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सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २७८ ॥ उघडता हैं । इनिके भेद चऊराशी लाख हैं सो आगमविर्षे कह्या है । ताकी एक गाथा है ताका अर्थ-नित्य निगोद इतर निगोद बहुरि धातु कहिये पृथिवी आप तेज वायु ऐसे छह तो सात सात लाख हैं । ताके बियालीस लाख भये । बहुरि तरु कहिये वनस्पति सो दस लाख हैं। ऐसे एकेंद्रियकै तो बावन लाख भये । बहुरि विकलत्रय बेंद्रिय दोय लाख, तेंद्रिय दोय लाख, चौइंद्रिय दोय लाख ऐसे छह लाख । बहुरि देव च्यारि लाख, नारकी च्यारि लाख, पंचेंद्रिय तिर्यंच च्यारि लाख, मनुष्य चौदह लाख ऐसे पंचेंद्रियके छवीस लाख । सब मिली चवराशी लाख भये । इनिका विशेषस्वरूप प्रत्यक्षज्ञानीनिकै गम्य है ।।
आगे, इस नव योनिसंकटविर्षे तीन प्रकार जन्म लेते जे सर्व संसारी प्राणी, तिनिका जन्मका नियमकै अर्थि सूत्र कहे हैं
॥जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः॥ ३३ ॥ याका अर्थ- जरायुज अंडज पोत ए तीन प्रकारके प्राणीनिकै जन्म गर्भही है ।। तहां जो जालवत् परिवरण कहिये जारितें वेष्ट्या होय बहुरि जाविर्षे मांस लोही फिरि रह्या होय सो तो जरायु कहिये । तिसिविर्षे जो उपजै सो जरायुज कहिये । बहुरि नख ऊपरिकी त्वचा सारिखा होय |
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