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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २५९ ॥ प्रकारखाची है । ताका समास ऐसा होय है, दोय प्रकार जाके ताकू द्विविध कहिये दोय प्रकार हैं । ऐसा अर्थ भया । ते कौन ? द्रव्येंद्रिय भावेंद्रिय ऐसें ॥ तहां द्रव्येदियके स्वरूपका निर्णयके अर्थि सूत्र कहै हैं
॥निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् ॥ १७॥ ___ याका अर्थ-- निवृति उपकरण ऐसै दोय प्रकार द्रव्येंद्रिय है ॥ तहां जो कर्मकरि रची होय ताकू निवृति कहिये । सो दोय प्रकार है । बाह्य निर्वृति अभ्यंतर निर्वृति । तहां जो उत्सेध अंगुलकै असंख्यातवै भाग परिणाम शुध्द जे आत्माके प्रदेश, ते न्यारे न्यारे नेत्र आदि इंद्रियनिके आकारकरि अवस्थित होय तिनिकी वृत्ति सो तो अभ्यंतरनिवृति है । बहुरि तिनि आत्माके प्रदेशनिविर्षे इंद्रिय है नाम जिनिके ऐसे जे न्यारे न्यारे आकार नामकर्मके उदयकरि निपजाये हैं अवस्थाविशेष जिनिकै ऐसे ते पुद्गलके संचय समूह सो बाह्यनिर्वृति है । बहुरि जो निर्वृतीका उपकार करै सो उपकरणभी दोय प्रकार है । अभ्यंतर उपकरण बाह्य उपकरण । तहां काला धौला जो नेत्रनिविर्षे मंडल गोलाकार आदि है सो तो अभ्यंतर है । बहुरि वांफणी तथा नेत्र जाकै ढकै ऐसे डोला इत्यादि बाह्य उपकरण है । तैसेही अन्य इंद्रियके जानने ॥
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