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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय ॥ पान १९५ ॥
पर्यायार्थिक है । इन दोऊनिके भेद नैगमादि है । तहां नैगम, संग्रह, व्यवहार, ए तीन तौ द्रव्यार्थिक है । बहुरि ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूद, एवम्भूत ऐ च्यारि पर्यायार्थिक है । तामैं भी नैगम, संग्रह व्यवहार, ऋजुसूत्र ए च्यारि तौ अर्थकूं प्रधानकरि प्रवर्ते है तातें अर्थनय कहिये | बहुरि शब्द समभिरूढ एवंभूत ए तीन शब्दकूं प्रधानकरि प्रवर्ते है तातें शब्दनय कहिये । इहां कोई पूछे, पर्यार्थिक तौ नय का अरु गुणार्थिक न कया सो कारण कहां ? ताका उत्तर सिद्धांत में पर्याय सहभावी क्रमभावी ऐसें दो प्रकार कहै है । तहां सहभावी पर्यायकूं गुण संज्ञा कही है। क्रमभावीकूं पर्याय संज्ञा कही तातें पर्याय कहनतैं या मैं गुणभी जानि लेना ऐसें जाननां । विस्तारकरिए सात नय कहे । बहुरि अतिविस्तारकरि नय संख्यात है । जातें जेते शब्द के भेद हैं।
है
।
तेही न कहे हैं ||
अन्यमती बौद्धतौ विज्ञान, वेदना, संज्ञा, संस्कार, रूप ए पांच स्कंध कहै हैं । बहुरि नैयायिक प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टांत, सिद्धांत, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितंडा, हेत्वाभास, छल, जाति, निग्रहस्थान ऐसे सोलह पदार्थ कहे हैं । बहुरि वैशेषिक द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय, अभाव, ऐसे सात पदार्थ कहैं हैं । बहुरि सांख्य एक तौ प्रकृति, बहुरि
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