________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २४१ ॥
| कारणते होयही है । बहुरि नारकादिपर्याय हैं ते द्रव्यविना निराश्रय होय नाही । ताते इनिका
आश्रय आत्मा द्रव्य हैही । तब कारणपणाका अभाव कैसे ? बहुरि सत् है सो विनाकारणभी क. हिये । सत्ही भया तब कारण काहेळू चाहिये ? बहुरि मडिककै चोटीका अभावका दृष्टांत है सो मीडक आदि तथा चोटी आदिका सत्त्व मानिकरि मीडक आदिकै संबंधका अभाव मानिये है। तहां सत्त्व असत्त्व दोऊ पक्षका ग्रहण है। तातें यहु दृष्टांतभी मिले नाही। जातें यह जीव कर्मके वशतें अनेक जातिके संबंधळू पावै है । जब मीडक भया तब तौ चोटीका संबंध न भया। बहुरि जब स्त्रीपर्याय पाई तब चोटी पाई। तब मीडकभी वैही जीव था। स्त्रीपर्यायमें आया तब पूर्वपर्यायकी अपेक्षा स्त्रीकू मंडुक कहि याकै चोटी कहिये तो दोष नाही। तैसेही आकाशके फूलके दृष्टांतकैभी बणे है । जातें कर्मके उदयते जीव वृक्ष भया । तब जीवपुद्गलके समुदायकू फूल ऐसा नाम कहिये । ऐसें पुद्गलद्रव्यतें फूल व्याप्त है तैसेंही आकाशतेंभी व्याप्त कहिये ॥
इहां कहै, जो, वृक्षरूप पुद्गलकृत उपकारकरि वृक्षका फूल कहिये है तहां कहिये आकाशका कीया अवगाहना उपकारकी अपेक्षा आकाशका फूल कहिये तो कहा दोष? वृक्ष तौ छूटभी है । | आकाशमैं तो सदा रहै तातें नित्यसंबंध है । बहुरि कहै, फूल आकाशतें जुदा वस्तु है, तातें
For Private and Personal Use Only