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॥ सवार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २४८ ॥
णीके समयनिकी पंक्तिविर्षे जन्म लीया तथा मरण कीया अनेकवार, तामें कोई समय अवशेष न रह्या ऐसें भ्रम्या ॥
आगें भवपरिवर्तन कहिये हैं। नरकगतिविर्षे सर्व जघन्य आयु दश हजार वर्षकी है । तिस आयूकू पाय तहां प्रथम नरककै पहलै पाथडै उपज्या। पीछै अन्यगत्यादिविर्षे भ्रमण करते फेरि कोई कालविर्षे तिसही आयूकू पाय तिसही पाथडै उपज्या। ऐसही दश हजार वर्षके समय होय तेतीवार तो तिसही आयु सहित तहांही उपजवो कीया। बीचिमैं अन्य जायगा उपज्या सो न गिणिये । पीछे एकसमयाधिक दश हजार वर्षकी आयु पाय उपज्या । पीछे दश हजार वर्ष दोय समयाधिककी आयु पाय उपज्या । इसही अनुक्रमकरि तेतीस सागरकै समय जन्मतें तथा मरणतें पूर्ण करै । अनुक्रमरहित बीचिबीचि अन्यगति तथा आयुकरि उपजै तो ते न गिणिये ऐसे भ्रमतें बहुरि तैसेंही तिर्यंचके गतिवि जघन्य आयु अंतर्मुहर्तकी पाय उपज्या । पहले अनुक्रमकीज्यौं इहांभी तीन पल्य प्रमाण आयुके समयनिविर्षे अनुक्रमतें उपजै मरे । बहुरि तैसेंही मनुष्यगतिकी | है. तीन पल्यकी आयुके समयनिविर्षे अनुक्रमतें उपजै मरे । तैसेंही देवगतिके आयु ग्रैवेयकनिकी इकतीस सागरतांईकी आयुके समय तिनिविर्षे तहां उपजै मरे जेता अनंताअनंतकाल वीते |
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