________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान २०७ ॥
SACORPORPORAOPANGARPORAPARDAGAPAGAERNgipa
तदाकार भया होय तिसही स्वरूपकरि निश्चय करावै । जैसें इंद्रका आकाररूप ज्ञान परिणया होय तथा अमिका आकाररूप ज्ञान भया होय तिस ज्ञान सहित आत्माकू इंद्र तथा अग्नि कहै । इहां कोई कहै नामक्रियारूप परिणयाकूही कहै तौ नामके कारण तो जाति, गुण, द्रव्यभी है तिनकू कैसै कहै ? ताकू कहिये, जेते जाति आदिकतें भये नाम हैं ते सर्वही क्रियाविर्षे अंतर्भूत हैं विनाक्रिया निष्पत्ति नांही । जैसें जातिवाची अश्वशब्द है, सोभी शीघ्रगमन क्रिया करै, ता· अश्व कहिये, ऐसे क्रियावाची होय है । तथा शुक्ल ऐसा गुणवाची शब्द है, सो शुचिक्रियारूप परणवै, ताकू शुक्ल कहिये, ऐसे क्रियावाची होय है । तथा दंडी ऐसा संयोगी द्रव्यवाची है, सोभी दंड जाकै होय ताळू दंडी कहिये, ऐसे क्रियावाची होय है । तथा विषाणी ऐसा समवायव्यवाची शब्द है, सोभी विषाण कहिये सींग जाकै होय, ताकू विषाणी कहिये। ऐसेही वक्ताकी इच्छातै भया नाम, जैसे देवदत्त ऐसा काहका नाम वक्ता कह्या ताकाभी जब स्वार्थ करिये, तब जो देव दीया होय, तथा देवनिमित्त दे, ताकू देवदत्त कहिये, ऐसे क्रियावाची होय है, ऐसे जाननां ॥
ऐसै ए नैगमादिक नय कहे ते आगै अल्पविषय है । तिस कारणतै इनिका पाठका अनुक्रम है । पहलै नैगम कह्या ताका तौ वस्तु सदूप तथा असद्रूप इत्यादि अनेकधर्मरूप है । ताका
For Private and Personal Use Only