________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
POP
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। प्रथम अध्याय ॥ पान २९८ ॥
सद्रूप नित्यद्रव्य है। भेदनिरपेक्षप जैसें, गुणपर्यायतें द्रव्य अभिन्न हैं । कर्मोंपाधि सापेक्ष जैसैं, जीव रागादिस्वरूप है । उत्पादव्ययमुख्यकरि जैसें, सत् है सो उत्पादव्ययत्रौव्यरूप द्रव्य है । भेदसापेक्ष जैसे, द्रव्य है सो गुणपर्यायवान् है । अन्वयद्रव्यार्थिक जैसें, द्रव्य गुणस्वरूप है । स्वद्रव्यादिग्राहक जैसें, अपने द्रव्य क्षेत्र काल भावकरि द्रव्य सद्रूप है । परद्रव्यादिग्राहक जैसें, परद्रव्य क्षेत्र काल भावकरि द्रव्य असद्रूप है । परमभावग्राहक जैसें, जीवद्रव्यकूं शुद्ध अशुद्ध उपचारादिकरि रहित चैतन्यमात्र कहै । ऐसें दश भेद भये ॥
बहुरि पर्यायार्थिकके छह भेद हैं । अनादिनित्यपर्यायग्राही जैसैं, चंद्रमा सूर्यादिकके विमान पर्वतादि नित्य हैं । सादिनित्यपर्यायार्थिक जैसैं, कर्म नाशिकरि सिद्ध भये ते सादिनित्यपर्याय हैं । सत्तागणकरि उत्पादव्ययरूप पर्यायार्थिक जैसें, पर्याय समयस्थायी हैं । उत्पादव्ययध्रुव रूप सत्ताग्राही पर्यायार्थिक जैसैं, समय समय पर्याय उत्पादव्ययौव्यरूप हैं । कर्मोपाधिनिरपेक्ष स्वभाव नित्य शुद्ध पर्यायार्थिक जैसें, संसारी जीवके पर्याय सिध्दके पर्यायसमान शुध्द हैं । कर्मोपाधिसापेक्ष अशुद्ध अनित्य पर्यायार्थिक जैसे, संसारी जीव उपजै विनसे हैं । ऐसें पर्यायार्थिकके छह भेद कहै । ऐसें प्रत्यक्ष परोक्षप्रमाण द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिकनयनि करि तथा निर्देशादिक वा
For Private and Personal Use Only