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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २२९ ॥ ___ इहां सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका विशेष लिखिये हैं । तहां प्रथमोपशमसम्यक्त्व उपजे पीछे अंत. मुहूर्तकाल रहे है । तहां मिथ्यात्वकर्मषं तीन प्रकार विभाग करै मिथ्यात्व सम्याग्मिथ्यात्व समक्प्रकृतिमिथ्यात्व ऐसे । बहुरि यह कहां उपजै है ? तहां नारकी तौ तहां उपजे पीछे अंतर्मुहूर्त पीछे उपजावै है । पहली दूसरी तीसरी पृथ्वीवाला तौ केई तो जातिस्मरणतें केई धर्मश्रवणते केई | वेदनाकरि पीड्या हवा उपजावै है । बहुरि नीचली च्यार पृथ्वीवाला धर्मश्रवणविना दोयही कारणलें | | उपजावै है । बहुरि तिर्यंच उपजै पछैि च्यारि” ले आठ दिनके उपरि उपजावै है । तहां जातिस्मरण | | धर्मश्रवण जिनविदर्शन ए तीन कारण हैं । बहुरि मनुष्य नवमां वर्ष उपजावै है । आठवर्षतांई | नांही उपजै है । तहांभी जातिस्मरण धर्मश्रवण जिनविदर्शन ए तीन कारण हैं । बहुरि
देवगतिविर्षे उपजे पीछे अंतर्मुहूर्त पीछे उपजावै है । तहां भवनवासीनितें ले सहस्रारस्वर्गतांईका तो | जातिस्मरण धर्मश्रवण जिनमहिमाका दर्शन देवनिकी ऋद्धिका देखना इनि च्यारि कारणते उपजावै | है । बहुरि आनतादि च्यारि स्वर्गनिके देवनिकै ऋद्धिदर्शनविना तीन कारणतें । बहुरि नव ग्रैवेय| कका जातिस्मरण धर्मश्रवण ए दोयही कारणते उपजावै है ऐसें जाननां ॥
आगें, जो क्षायिकभाव नवप्रकार कह्या ताके भेदस्वरूपके प्रतिपादनके अर्थि सूत्र कहै हैं
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