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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय ॥ पान २०८ ॥
संकल्प विषय है। सो यहू नयतौ सर्वतें महाविषय है। याकै पीछे संग्रह कह्या सो याका विषय सत् द्रव्यत्व आदिही है । इनिकै परस्पर निषेधरूप जो असत् आदि सो विषय नाही है । तातै तिसतै अल्पविषय है। बहुरि याके पछैि व्यवहार कह्या सो याका विषय संग्रहके विषयका भेद है । तहां अभेद विषय रहि गया। तातें तिसते अल्पविषय है । बहुरि याकै पीछै ऋजुसूत्र कह्या सो याका विषय वर्तमानमात्र वस्तुका पर्याय है सो अतीत अनागत रहि गया। तातें तिसतें अल्प विषय है । याके पीछे शब्दनय कह्या सो याका विषय वस्तुकी संज्ञा है । एक वस्तूके अनेक नाम हैं । तहां काल कारक लिंग संख्या साधन उपग्रहादिक भेदते अर्थकुँ भेदरूप कहै । सो इनिका भेद होतेंभी वर्तमानपर्यायरूप वस्तू· अभिन्न मानता जो ऋजुसूत्र तातें अल्पविषय भया । जातें एक भेद करतें अन्य भेद रहि गये। बहुरि याकै पीछे समभिरुह कह्या, सो एक वस्तु के अनेक नाम हैं तिनिकू पर्यायशब्द कहिये तिनि पर्यायशब्दनिका एकही अर्थ मानता जो शब्दनय तातें समभिरूढ अल्प विषय है । तातें तिनि पर्यायशब्दनिके जुदे जुदेभी अर्थ हैं । सो यह जिस शब्दकू पकडै तिसही अर्थरूपकू कहै । तब अन्य शब्द या रहि गये तातें अल्पविषय भया । बहुरि एवंभूत याके पीछे कह्या । सो याका विषय जिस शब्दषं पकड्या तिस क्रियारूप परिणमता पदार्थ है । सो अनेक
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