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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय || पान १०२ ।। नही है | सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टिनिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है | एकजीव की अपेक्षा अंतर नांही है । च्यारि उपशम श्रेणीवालेनिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है । एकजीव अपेक्षा अतर नांही है । च्यारि क्षपकवालेनिकै अर अयोगकेवलीनिकै गुणस्थानवत् अंतर है | एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है ॥
वेदके अनुवादकर स्त्रीवेदविषै मिथ्यादृष्टिकै नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नांही है | एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पंचावन पल्य किछु घाटि है । सासादनसम्यग्दृष्टि अर सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् है | एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ पल्यका असंख्यातवा भाग है अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्व सौपल्य है । असंयत सम्यग्दृष्टि आदि अपर्यंतनिका नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तो अंतर्मुहूर्त है । अष्टसप है । दोय उपशमश्रेणीवालाका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्व सौपल्य है । दोय क्षपकश्रेणीवालाका नानाजी की अपेक्षा जघन्य एकसमय उत्कृष्ट पृथक्त्व वर्ष है । एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है । पुरु वेदविषै मिथ्यादृष्टिका गुणस्थानवत् । सासादन सम्यग्दृष्टि अर सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नानाजीव
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