SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय || पान १०२ ।। नही है | सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टिनिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है | एकजीव की अपेक्षा अंतर नांही है । च्यारि उपशम श्रेणीवालेनिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है । एकजीव अपेक्षा अतर नांही है । च्यारि क्षपकवालेनिकै अर अयोगकेवलीनिकै गुणस्थानवत् अंतर है | एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है ॥ वेदके अनुवादकर स्त्रीवेदविषै मिथ्यादृष्टिकै नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नांही है | एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पंचावन पल्य किछु घाटि है । सासादनसम्यग्दृष्टि अर सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् है | एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ पल्यका असंख्यातवा भाग है अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्व सौपल्य है । असंयत सम्यग्दृष्टि आदि अपर्यंतनिका नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तो अंतर्मुहूर्त है । अष्टसप है । दोय उपशमश्रेणीवालाका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्व सौपल्य है । दोय क्षपकश्रेणीवालाका नानाजी की अपेक्षा जघन्य एकसमय उत्कृष्ट पृथक्त्व वर्ष है । एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है । पुरु वेदविषै मिथ्यादृष्टिका गुणस्थानवत् । सासादन सम्यग्दृष्टि अर सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नानाजीव For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy