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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १०३ ॥ अपेक्षा गुणस्थानवत् एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ पल्योपमकै असंख्यातवा भाग अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्व सौ सागर है । असंयतसम्यग्दृष्टि आदि अप्रमत्तसंयतपर्यंतनिका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा ज वन्य तो अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्व सौ सागर है । दोय उपशमश्रेणीवालानिका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । | उत्कृष्ट पृथक्त्व सौ सागर है । दोय क्षपकश्रेणीवालानिका नानाजीवकी अपेक्षा जघन्य एकसमय है। उत्कृष्ट एकवर्ष कछु अधिक है । एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है । नपुंसकवेदविर्षे मिथ्यादृष्टिका | नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट तेतीस सागर देशोन है । सासादनसम्यग्दृष्टि आदि अनिवृत्ति उपशमपर्यंतनिका गुणस्थानवत् अंतर है । अर दोय क्षपक श्रेणीवालानिका स्त्रीवेदवत् है । वेदरहित अनिवृत्ति बादरसांपराय उपशमक सूक्ष्मसांपराय उपशमकका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् है । एकजीव अपेक्षा जघन्य अरु उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त है । उपशांतकपायका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् है । एकजीवकी अपेक्षा अंतर नांही है । अवशेष | गणस्थानवत् अंतर है ।। कषायके अनुवादकरि क्रोध मान माया लोभ कपायकै मिथ्यादृष्टि आदि अनिवृत्ति For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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