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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय || पान १०४ ॥ उपशम श्रेणीवालाताई मनोयोगीवत् अंतर है । अर दोय क्षपकश्रेणीवालानिका नानाजीव अपेक्षा जघन्य एकसमय उत्कृष्ट एकवर्ष किछु अधिक । केवललोभ सूक्ष्म परायोपनकका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् । एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है । सूक्ष्मसांपराय क्षपकश्रेणीवालाका गुणस्थानवत् । कपायरहित च्यारि गुणस्थाननिविषै उपशांतकपायका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् । एकजीव अपेक्षा अंतर नांही । अवशेष तीन गुणस्थाननिका गुणस्थानवत् अंतर है || ज्ञानके अनुवादकर मतिअज्ञान श्रुतअज्ञान विभंगज्ञानवालेविषै मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है । सासादनसम्यग्दृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् । एकजीव अपेक्षा अंतर नही है । मति श्रुत-अवधिज्ञानवालेवि असंयतसम्यग्दृष्टीका नानाजीव अपेक्षा अंतर नही है | एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट कोडिपूर्व देशोन है । संयतासंयतका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट छ्यासठ सागरोपम किछु अधिक है । प्रमत्त अप्रमत्तसंयतका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है | एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम किछु अधिक है । च्यारि उपशम श्रेणीवालेनिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ For Private and Personal Use Only igerator,
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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