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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय पान ॥ १०५ ॥ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट छयासठी सागरोपम कछु अधिक है । च्यारि क्षपक श्रेणीवालानिका गुणस्थानवत् अंतर है। तहां विशेष यहु- अवधिज्ञानीनिका नानाजीव अपेक्षा जघन्य एक समय उत्कृष्ट पृथक्त्व वर्ष । एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है । मनःपर्ययज्ञानीनिका प्रमत्त अप्रमत्तसंयमीनिका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्यभी उत्कृष्टभी अंतर्मुहूर्त है । च्यारि उपशमश्रेणीवालेनिका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट कोडिपूर्व किछु घाटि है । च्यारि क्षपकश्रेणीवालानिका अवधिज्ञानीवत् अंतर है । दोऊके केवलज्ञानीनिका गुणस्थानवत् अंतर है ।।। ___संयमके अनुवादकरि सामयिक च्छेदोपस्थापना शुद्धसंयमिविर्षे प्रमत्त अप्रमत्त संयमीका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्यभी उत्कृष्टभी अंतर्मुहूर्त है । दोऊ उपशमश्रेणीवालाका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट कोडिपूर्व कछु घाटि है । दोऊ क्षपक श्रेणीवालानिका गुणस्थानवत् अंतर है । परिहारविशुद्धि संयमी प्रमत्त अप्रमत्तका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव | अपेक्षा जघन्यभी उत्कृष्टभी अंतर्मुहूर्त है । सूक्ष्मसांपरायसंयमविर्षे उपशमश्रेणीवालाका नानाजीव atcexsasrepreatroveresabixterestlersitoeriespite For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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