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।। सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १४१ ॥
अपेक्षातें एक इंद्रहीके नाम हैं। बहुरि इनिका अन्य अन्य अर्थ करिये तब मत्यादि अन्य अन्य होयही हैं। तथापि मतिज्ञानावरणक्षयोपशमकरि उपयोग ताहि न उल्लंधि वर्ते है । इहां ऐसा अर्थ है। बहुरि सूत्रमैं इति शब्द है सो प्रकारखाची है। या मतिज्ञानका येते पर्यायशब्द हैं ऐसा इतिका अर्थ जाननां । तथा अभिधेयार्थवाचीभी कहिये । जो मति स्मृति संज्ञा चिंता अभिनिबोध ऐसे येते शदनिकरि जो अर्थ कहिये सो एक मतिज्ञान है ॥
इहां विशेष कहिये है। सूत्रविर्षे इति शब्द प्रकारखाची है । सो बुद्धि तौ मतिका प्रकार जाननां । जातें पदार्थके ग्रहणके शक्तिस्वरूपकू बुद्धि कहिये है । बहुरि मेधा स्मृतिका प्रकार है ।
जातें शब्दके स्मरणकी शक्तिकू मेधा कहिये है । बहुरि प्रज्ञा चिंताका प्रकार है । जाते वितर्क| पणाका निषेध स्वरूप है । बहुरि प्रतिभा उपमा ये संज्ञाका प्रकार है । जातें सामान्यपदार्थको | | सादृश्य दिखावनेरूप है । बहुरि संभव , अर्थापत्ति, अभाव ए स्वार्थानुमानके प्रकार हैं । जातें ये | सर्व लिंगही जानिये हैं । इहां कोई कहै स्मृति तौ अप्रमाण है सो प्रमाणविर्षे कैसे अंतर्भत होयगी ?
ताकू कहिये; जो, स्मृति अप्रमाण होय तो प्रत्यभिज्ञान न होय तब व्याप्तिकाभी ग्रहण न होय । | तव अनुमान काहेतें होय ? अरु अनुमान न होय तब प्रत्यक्षकैभी प्रमाणता न ठहर । तब सर्व
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