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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृताः ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १९० ॥
ఆడదండుకుండగనుందనుండగలదులందు
गुणरूप जातिभेदनै लीया परमाणु है, ते पृथ्वी आदि स्कंध निपजावे है । ऐसै तौ कारणविषै विपर्यय होय है ॥ बहुरि भेदाभेदविपर्यास ऐसे है- जो, कारण कार्य सर्वथा भिन्नही है । जैसे पृथ्वी आदि परमाणु नित्य है । तिनितें स्कंधकार्य निपजे ते सर्वथा भिन्नही है ऐसे कहै हैं। तथा गुणतै गुणी भिन्नही है ऐसे कहै । बहुरि कारणतै कार्य सर्वथा अभिन्नही है । जैसे घटपटादि ग्रामपर्वतादि | ब्रह्मते निपजै हैं ते ब्रम्हही हैं जुदे नाही । इत्यादि भेदाभेदविपर्यास है। जहां भेद होय तहां अभे| दही कल्पना, जहां अभेद होय तहां भेदही कल्पना, ऐसे विपर्यय है ॥
बहुरि स्वरूपविपर्यास जैसैं रूपादिक हैं ते निर्विकल्प निरंश हैं, इनिमें अंशभेद नाही । तथा | रूपादिक बाह्यवस्तु हैही नाही, तदाकार परिणया ज्ञानही है । ताके आलंबनरूप बाह्यवस्तु नांही है
इत्यादि अन्यभी बहुत हैं । ते प्रत्यक्ष अनुमान प्रमाणते विरुध्द मिथ्यादर्शनके उदयते कल्पना होय | | है ॥ बहुरि तहां श्रद्धान प्रतीति रुचि उपजावै हैं । तातें ते मत्यज्ञान रुताज्ञान विभंगज्ञान होय हैं। | । बहुरि सम्यग्दर्शन है सो यथार्थ वस्तुवि श्रद्धान रुचि प्रतीति उपजावै है । तातै तेही मतिज्ञान | श्रुतज्ञान अवधिज्ञान हो हैं ॥ इहां विशेष कहै हैं- विपर्यय दोय प्रकार है। एक आहार्यविपर्यय दसरा सहजविपर्यय । तहां मतिअज्ञान तथा श्रोत्र इंद्रिय विनां अन्य इंद्रियपूर्वकै श्रुतअज्ञान अर |
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