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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय ॥ पान १८२ ॥
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विषय हैं। सर्वपर्याय याका विषय नाही ॥
आगें याकै लगताही कहनेयोग्य जो मनःपर्ययज्ञान ताका कहा विषयनियम है ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं--
॥ तदनन्तभागे मनःपर्ययस्य ॥ २८॥ ___ याका अर्थ-- सर्वावधिका विषयकू अनंतका भाग देतें पाया जो सूक्ष्मपुद्गलस्कंध ताविर्षे या मनःपर्ययज्ञानका विषयका नियम है ॥ जो रूपी द्रव्य सर्वावधिज्ञानका विषय कह्या ताकू अनंतभागरूप कीया तिस एक भागविर्षे या मनःपर्ययज्ञान प्रवर्ते हैं । इहां ऐसा जाननां, जो परमावधिका विषयभूत पुद्गलस्कंधकू अनंतका भाग दीये तो एक परमाणुमात्र सर्वावधिका विषय
होय है । बहुरि ताळू अनंतका भाग दीये ऋजुमति मनःपर्ययका विषय है । बहुरि ताकुंभी अनं | तभाग दीये विपुलमति मनःपर्ययका विषय है । इहां कोई पूछ सर्वावधिका विषय तौ एक परमा.
णुमात्र कह्या ताकू अनंतका भाग देनां कह्या सो एकपरमाणूकू कैसें भाग देना? तहां ऐसा उत्तर- जो, एकपरमाणू मैं स्पर्श रस गंध वर्णके अनंतानंत अविभागप्रतिच्छेद हैं, तिनिके घटने वधनेकी अपेक्षा अनंतका भाग संभव है। जैसा परमाणू अवधिज्ञान जान्या तिसके अनंतवै ।
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