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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय ॥ पान १८२ ॥ 6x2oEERPRECAPGAFARPrakapRCODANAASPASpepr विषय हैं। सर्वपर्याय याका विषय नाही ॥ आगें याकै लगताही कहनेयोग्य जो मनःपर्ययज्ञान ताका कहा विषयनियम है ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं-- ॥ तदनन्तभागे मनःपर्ययस्य ॥ २८॥ ___ याका अर्थ-- सर्वावधिका विषयकू अनंतका भाग देतें पाया जो सूक्ष्मपुद्गलस्कंध ताविर्षे या मनःपर्ययज्ञानका विषयका नियम है ॥ जो रूपी द्रव्य सर्वावधिज्ञानका विषय कह्या ताकू अनंतभागरूप कीया तिस एक भागविर्षे या मनःपर्ययज्ञान प्रवर्ते हैं । इहां ऐसा जाननां, जो परमावधिका विषयभूत पुद्गलस्कंधकू अनंतका भाग दीये तो एक परमाणुमात्र सर्वावधिका विषय होय है । बहुरि ताळू अनंतका भाग दीये ऋजुमति मनःपर्ययका विषय है । बहुरि ताकुंभी अनं | तभाग दीये विपुलमति मनःपर्ययका विषय है । इहां कोई पूछ सर्वावधिका विषय तौ एक परमा. णुमात्र कह्या ताकू अनंतका भाग देनां कह्या सो एकपरमाणूकू कैसें भाग देना? तहां ऐसा उत्तर- जो, एकपरमाणू मैं स्पर्श रस गंध वर्णके अनंतानंत अविभागप्रतिच्छेद हैं, तिनिके घटने वधनेकी अपेक्षा अनंतका भाग संभव है। जैसा परमाणू अवधिज्ञान जान्या तिसके अनंतवै । For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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