________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १८३ ॥
भागकू मनःपर्ययज्ञान जाने है । तथा एकपरमाणुमात्रस्कंधभी होय है । ताविर्षे सूक्ष्मभाव परिणये | अनंतपरमाणु होय हैं । तिस अपेक्षाभी अनंतका भाग संभव है । तहां स्वयोग्य केईक पर्यायरूप पुद्गलस्कंध लेना सर्वद्रव्यपर्यायकाभी विषय नाही ॥ आगें, अंतवि कह्या जो केवलज्ञान ताका कहा विषयनियम है? ऐसा प्रश्न होतें सूत्र कहै हैं
॥सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य ॥ २९॥ ___याका अर्थ-- केवलज्ञानका विषयका नियम सर्वद्रव्य सर्वपर्यायनिविर्षे है । इहां द्रव्य तथा पर्याय ऐसें इतरेतरयोग नामा द्वंद्वसमासतें वृत्ति करणी। तहां सर्वपद दोऊकै लगावणां । तब सर्वद्रव्य तथा सर्वपर्यायनिविर्षे विषयनियम है ऐसा अर्थ भया ॥ तहां जीवद्रव्य तौ अनंतानंत है । बहुरि पुद्गलद्रव्य अणुस्कंधका भेदकरि जीवद्रव्यते अनंतानंतगुणे है। धर्म अधर्म आकाश |
ए तीन एक एक द्रव्य है । तातें तीनही है। बहुरि कालद्रव्यके कालाणु असंख्यातद्रव्य हैं । | तिनि सर्व द्रव्यनिके पर्याय अतीत अनागत वर्तमानरूप जुदे जुदे अनंतानंत हैं । तिनि सर्वद्रव्य
सर्वपर्यायनिके समूहविर्षे ऐसा किछुभी नांही है, जो, केवलज्ञानके विषयपणांकू उलंधै । जातें | यह ज्ञान अपरिमित माहात्म्यरूप है । ऐसा जनावनेकू सर्वद्रव्यपर्यायविषयस्वरूप केवलज्ञान है ऐसा |
For Private and Personal Use Only