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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १६१ ॥
११ कल्याणनामधेय । १२ प्राणावाय । १३ क्रियाविशाल । १४ लोकबिंदुसार ऐसें चौदह । ऐसें बारह अंग कहै ।। तिनिके वीस अंक प्रमाण अपुनरुक्त अक्षर हैं । तिनिके पद एकसो बारह कोडि | तियालिस लाख अठावन हजार पांच है । एक पदके अक्षर सोलासे चौतीस कोडि तियासी लाख सात हजार आठसे अठ्यासी हैं । प्रकीर्णकनिके अक्षर आठ कोडि एक लाख इक्यासीसे पचेहत्तरि है।। ___अर पूर्वनिकी उत्पत्ति ऐसे है । प्रथम पर्यायज्ञान अक्षरकै अनंतवै भाग सूक्ष्मनिगोद लब्धपर्याप्त जीवकातें लगाय वधता वधता पर्यायसमास ज्ञान हो है । बहुरि अक्षरज्ञान, अक्षरसमासज्ञान, पदज्ञान पदसमासज्ञान, संघातज्ञान, संघातसमासज्ञान, प्रतिपत्तिज्ञान, प्रतिपत्तिसमासज्ञान, अनुयोगज्ञान , अनुयोगसमासज्ञान, प्राभृतज्ञान, प्राभूतसमासज्ञान, प्राभृतप्राभृतज्ञान, प्राभृतप्राभृसमासज्ञान , वस्तुज्ञान , वस्तुसमासज्ञान , पूर्वज्ञान, पूर्वसमासज्ञान ऐसें वीस स्थानरूप पूर्वकी उत्पत्ति जाननी । बहुरि पूर्वके चौदह भेद कहे तिनिमें एकसो पिच्याणवै वस्तु हो हैं । अर एक एक वस्तुमैं वीस वीस प्राभूत कहै हैं । ते गुणतालीससे प्राधृत होय हैं । इनि अंग अर अंगवाह्यश्रुतके अक्षरनिकी तथा पदनिकी संख्या तथा तिनिमें जो जो प्रधानताकरि व्याख्यान है सो विशेषकरि गोमटसारमैं | कह्या है । तहांतें जाननां ॥
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