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। सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १६८ ॥ नाही। तथा ताकी च्यारि वाणीरूप अवस्था होनाही वणें नाही । बहुरि हमारे स्यादादिनिकै सर्वप्रकार सिध्दि हो है ।।
वाणी द्रव्यभाव भेदतें दोय प्रकार है। तहां द्रव्यवचन दोय प्रकार; एक द्रव्यरूप एक पर्या| यरूप । तहां श्रोत्रंद्रियकै ग्रहणमें आवै ऐसा वचन तौ पर्यायरूप है। ताळू वैखरी ऐसा नाम कीया ॥ बहुरि भाषावर्गणारूप परिणये जे पुद्गलस्कंध तिनिळू द्रव्यवचन कहिये ताकू मध्यमा ऐसा नाम
कीया । बहुरि भाववचन दोय प्रकार है । ताके दोय भेद । तहां ज्ञानावरणीयकर्मका उदयका अभा| वतें भया जो आत्माकै अक्षरके ग्रहण करणैकी तथा कहनैकी शक्ति ताळू तो लब्धि कहिये, ताका
सूक्ष्मा नाम कीया । बहुरि तिस लब्धिकै अनुसारि व्यक्तिरूप भया जो अक्षरके ग्रहण करणेरूप तथा | कहनेरूप द्रव्यवचन... कारण जो भाव ताळू उपयोग कहिये ताका नाम पश्यंती किया । सो ए दोऊ |
आत्माके परिणाम हैं। शदरूप पुद्गल नाही; शब्दकू निमित्त है। सो इस लब्धि तथा उपयोगईं चिद्रूपसामान्य ग्रहणकरि अक्षररूप नाम कहनेकै पहली तौ मतिज्ञानही कहिये । सो तो वचनपूर्वक नाही प्रवर्ते है । बहुरि वचनपूर्वक जो प्रवर्ते सो श्रुतज्ञान है सो वचनपूर्वकही कहिये । ऐसें कहनेतें | सर्व जघन्य तौ लब्धाक्षरज्ञान ताकेभी श्रुतज्ञानपणां सिध्द होय है । सो स्पर्शन इंद्रियतें भया जो |
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