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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय ॥ पान १४९ ॥
ఆటోనగుండములందుకerకుండా తగలకుందని
बहरि विषय सत्यार्थ निर्वाध है तातें प्रमाण है। बहुरि इंद्रियमनकै पदार्थसंबंध होनेरौं किंचित् स्पष्टताभी इनिमें है। तारौं व्यवहारकरि प्रत्यक्षभी इनिकू कहिये हैं। परमार्थतें परोक्षही है । बहुरि है अन्यवादी सर्वथा एकांत वस्तुका स्वरूप मान हैं। तिनिकै अवग्रहादिक भेदरूप ज्ञानकी कथनीही नांही । ऐसें जानना ॥ आगैं, कह्या जे अवग्रहादिक तिनिके भेदकी प्राप्तिकै अर्थि सूत्र कहे हैं -
॥ बहुबहुविधक्षिप्रानिस्सृतानुक्तभुवाणां सेतराणाम् ॥ १६ ॥ याका अर्थ-- कहे जे अवग्रहादिक, ते बहु आदि छह बहुरि छहही इनके प्रतिपक्षी तिनिसहित बारह भये, तिनिका ज्ञान होय है ॥ प्रकृत कहिये पूर्व कहे जे अवग्रहादिक ज्ञानरूपक्रियाका विशेष तिनिकी अपेक्षारूप या सूत्रविर्षे षष्ठीविभक्तीकरि कर्मका निर्देश कीया है। तहां | बहु शब्द तो यहां संख्या तथा विपुल कहिये समूहपणाका वाचक है । जाते दोऊमैं विशेष नाही ।
सामान्यसंख्या तथा बहुतका ग्रहण करना । जैसें एक दोय बहुत ऐसें तौ संख्या । बहुरि भात बहुत है दालि बहुत है इहां विपुलताही है संख्या न कही। बहुरि विधशद प्रकारवाची है, जैसे बहुतप्रकार । है । बहुरि क्षिप्रशदका ग्रहण काल अपेक्षा है । जैसे कोई वस्तु शीघ्र परिणमै । बहुरि अनिःसृत है
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