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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १२२ ॥
ఆనందం కుదురుకులం ఉండarerana
प्रमाण नय निक्षेप अनुयोगकी विधिकरि साधनेते यथार्थज्ञान होनेते अधिगमज सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति होय है । सो याका विधिनिषेधकी चर्चा श्लोकवार्तिकमें विशेषकरि है तहांतें जाननां । ऐसें आदिविर्षे कह्या जो सम्यग्दर्शन ताका लक्षण उत्पत्ति निमित्त स्वामी विषय न्यास अधिगमका उपाय कह्या । याके संबंधकरि जीवादिककाभी सत् परिमाणादिक कहै ॥ याके अनंतर सम्यग्ज्ञान विचारनेयोग्य है, सो कहै हैं
॥मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानम् ॥ ९॥ याका अर्थ- मति श्रुत अवधि मनःपर्यय केवल ए पांच ज्ञान है ॥ ज्ञानशद न्यारान्याराकै | लगाईये ऐसे पांचही ज्ञान भये । तहां मतिज्ञानावरणीयकर्मके क्षयोपशमतें इंद्रियमनकरि पदार्थनिकू | जानै सो, अथवा जाकरि जाणिये सो, अथवा जाननेमात्र सो, मतिज्ञान है । बहुरि श्रुतज्ञानावरणीयकर्मके क्षयोपशमते वक्ताकरि कही वस्तूका नाम सुननेकरि जानै सो, अथवा जाकरि | सुनि वस्तुकू जानिये सो, अथवा जो श्रवणकरि जान मात्र सो श्रुतज्ञान है। इन दोऊनिका
समीप निर्देश कार्यकारणभावतें कह्या । मतिज्ञान कारणरूप है श्रुतज्ञान कार्यरूप है । बहुरि | | अवधिज्ञानावरणीयकर्मके क्षयोपशमतें द्रव्य क्षेत्र काल भावकी मर्याद लीयें रूपी पदार्थकू प्रत्यक्षपणें |
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