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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय ॥ पान १२४ ॥
है, तातै ताके समीप धन्य है । तातें ये दोऊ ज्ञान संयमी मुनिनिहीकै होय है । बहुरि तातें दूरवर्ति अवधि है तातें मनःपर्ययकै समीप याकों कह्या । बहुरि प्रत्यक्ष तीनूं ज्ञाननिकै पहलै परोक्ष | मति श्रुत ज्ञान कहै । जातें ए दोऊ सुगम हैं। सर्वप्राणिनिकै बाहुल्यपणे पाइये है। इनकी पद्धती सुणिये है परिचय कीजिये है। अनुभवमैं आवै है । ऐसें ए पांच प्रकार ज्ञान है । इनके भेद आगे कहसी । इहां मतिमात्रके ग्रहणते स्मरणादिकभी मतिज्ञानहीमें लेने । केई वादी कहै हैं इंद्रियबुद्धिही एक मतिज्ञान है ताका निराकरण है । तथा केई अनुमानसहित मति माने हैं। केई अनुमान तथा उपमानसहित मानै हैं । केई अनुमान उपमान अर्थापत्तिसहित तथा अभाव
आगमसहित मानै हैं । तिनि सर्वनिका निराकरण है। ए सर्वही मतिज्ञानमें गर्भित जानने । 4 कोई कहै मति श्रुत ज्ञान तौ एकही है। जातें दोऊ लार है एकही आत्माविर्षे वसै हैं। विशेषभी
| इंनिमें नांही। ताकू कहिये इन तीनूंही हेतुतें इनिकै सर्वथा एकता नांही है। कोई प्रकार | | कहै तौ विरोध नाही । जातें लार रहै है इत्यादि कहना दोय विना बनें नांही। बहुरि विषयके | भेदतेंभी भेदही है। श्रुतज्ञानका विषय सर्वतत्त्वार्थकू परोक्ष जानना है । मतिज्ञानका एता नांही। ॥ ऐसें इनिका भेदाभेदकी चरचा श्लोकवार्तिकतें जाननी। इहा कोई पूछै- सम्यग्दर्शनका तो
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