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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान ११४ ॥
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भव्यके अनुवादकरि भव्यनिकै मिथ्यादृष्टि आदि अयोगकेवलीपर्यंतनिकै गुणस्थानवत् भाव है । अभव्यनिकै पारिणामिक भाव है ॥ ... सम्यक्त्वके अनुवादकरि क्षायिकसम्यग्दृष्टीविर्षे असंयंतसम्यग्दृष्टीकै क्षायिकभाव तौ क्षायिकसम्यक्त्व है। अर असंयतपणां है सो औदयिकभावकरि है । संयतासंयत प्रमत्त अप्रमत्तसंयतनिकै क्षायोपशमिक भाव है। सम्यक्त्व क्षायिक है सो क्षायिकभावकरि है । च्यारि उपशमश्रेणीवालेनिकै औपशमिक भाव है। सम्यक्त्व इहां क्षायिकभावकरि हो है । अवशेषनिके गुणस्थानवत् भाव है । क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टीविर्षे असंयतसम्यग्दृष्टीकै क्षायोपशमिक भाव है सो तौ क्षायोपशमिक सम्यक्त्व है । असंयत है सो औदयिकभावकरि है । संयतासंयत प्रमत्त अप्रमत्तसंयतनिकै क्षायोपशमिक भाव है। क्षायोपशमिकसम्यक्त्व है । औपशमिकसम्यक्त्वविर्षे असंयतसम्यग्दृष्टीकै औपशमिक भाव उपशमसम्यक्त्व है। असंयत है सो औदयिकभावकरि है । संयतासंयत प्रमत्त अप्रमत्तसंयतनिकै क्षायोपशमिक भाव है । सम्यक्त्व औपशमिक है । च्यारि उपशमश्रेणीवालानिकै औपशमिकभाव | उपशमसम्यक्त्व है। सासादनसम्यग्दृष्टिकै पारिणामिक भाव है । सम्यग्मिथ्यादृष्टिकै क्षायोपशमिक भाव है । मिथ्यादृष्टीकै औदयिक भाव है ॥
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