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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १०८ ॥
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असंख्यातर्फे भाग है। अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट इकतीस सागर कछु घाटि है । संयतासंयत अर प्रमत्तसंयतका पीतलेश्यावत् है । अप्रमत्तसंयतका नानाजीव अपेक्षा अंतर नाही है। एकजीव अपेक्षा जघन्यभी उत्कृष्टभी अंतर्मुहूर्त है । तीन उपशमश्रेणीवालानिका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् है । एकजीव अपेक्षा जघन्यभी उत्कृष्टभी अंतर्मुहूर्त है । उपशांत कषायका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् है । एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है | च्यारि क्षपकश्रेणीवालानिका अर सयोगकेवलीनिका अर लेश्यारहितका गुणस्थानवत् अंतर है ॥
भव्यके अनुवादकरि भव्यवि मिथ्यादृष्टि आदि अयोगकेवलीपयतीनका गुणस्थानवत् अंतर है। अभव्यनिका नानाजीव अपेक्षा एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है ॥
सम्यक्त्वके अनुवादकरि क्षायिक सम्यग्दृष्टिविर्षे असंयतसम्यग्दृष्टीका नानाजीवके अपेक्षा अंतर नांही है। एकजीव प्रति जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट कोडिपूर्व कछु घाटि है । संयतासंयत अर प्रमत्त अप्रमत्त संयतनिका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट तेतीस सागर कछु अधिक है। च्यारि उपशमश्रेणीवालानिका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तो अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट तेतीस
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