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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १०६ ।।
अपेक्षा गुणस्थानवत् । एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है । क्षपक श्रेणीवालाका गुणस्थानवत् अंतर है। यथाख्यातसंयमविर्षे अकषायवत् अंतर जाननां । संयतासंयतका नानाजीव अपेक्षा एकजीव अपेक्षा अंतर नांही है । असंयतविर्षे मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है। उत्कृष्ट तेतीस सागर देशोन है । अवशेष तीनूं गुणस्थाननिका गुणस्थानवत् अंतर है ॥
दर्शनके अनुवादकरि चक्षुर्दर्शनवालेविर्षे मिथ्यादृष्टिका गुणस्थानवत् अंतर है । सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् है । एकजीव अपेक्षा जघन्य पल्यकै असंख्यातवें भाग अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट दोय हजार सागर कछु घाटि है । असंयतसम्यग्दृष्टि आदि अप्रमत्तसंयतपर्यंतनिका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट दोय हजार सागर कछु घाटि है । च्यारि उपशमश्रेणीवालानिका नानाजीव अपेक्षा गुणस्थानवत् है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट दोय हजार सागर देशोन है । च्यारि क्षपकश्रेणीवालानिका गुणस्थानवत् है । अचक्षुर्दर्शनवि मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यंतनिका गुणस्थानवत् है । अवधिदर्शनवालेका अवधिज्ञानीवत् है । केवलदर्शनवालेका केवलज्ञानीवत् है ।।
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