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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १०० ॥
अपेक्षा जघन्य पल्यका असंख्यातवा भाग अर अंतर्मुहूर्त है, उत्कृष्ट इकतीस सागर है, सो देशोन है।
इंद्रियके अनुवादकरि एकेंद्रियनिका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य क्षुद्रभव है । उत्कृष्ट दोय हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है। विकलत्रयका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य क्षुद्रभव है । उत्कृष्ट अनंतकाल है । सो असंख्यातपुद्गलपरिवर्तन है । ऐसें इंद्रियप्रति अंतर कह्या । गुणस्थान अपेक्षा एक मिथ्यात्वही है तातें अंतर नांही है । पंचेंद्रियवि मिथ्यादृष्टिका अंतर गुणस्थानवत् । सासादनसम्यग्दृष्टिका अर सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य पल्यका असंख्यातवा भाग अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है । असंयतसम्यग्दृष्टि आदि अप्रमत्तपर्यंतनिका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है । च्यारि उपशमश्रेणीवालानिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है । अवशेषनिका गुणस्थानवत् अंतर है ।।
कायके अनुवादकरि पृथिवी अप तेज वायु कायिकनिकै नानाजीव अपेक्षा अंतर नाही है।
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