SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १०० ॥ अपेक्षा जघन्य पल्यका असंख्यातवा भाग अर अंतर्मुहूर्त है, उत्कृष्ट इकतीस सागर है, सो देशोन है। इंद्रियके अनुवादकरि एकेंद्रियनिका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य क्षुद्रभव है । उत्कृष्ट दोय हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है। विकलत्रयका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य क्षुद्रभव है । उत्कृष्ट अनंतकाल है । सो असंख्यातपुद्गलपरिवर्तन है । ऐसें इंद्रियप्रति अंतर कह्या । गुणस्थान अपेक्षा एक मिथ्यात्वही है तातें अंतर नांही है । पंचेंद्रियवि मिथ्यादृष्टिका अंतर गुणस्थानवत् । सासादनसम्यग्दृष्टिका अर सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य पल्यका असंख्यातवा भाग अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है । असंयतसम्यग्दृष्टि आदि अप्रमत्तपर्यंतनिका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है । च्यारि उपशमश्रेणीवालानिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट हजार सागर पृथक्त्वकोडिपूर्व अधिक है । अवशेषनिका गुणस्थानवत् अंतर है ।। कायके अनुवादकरि पृथिवी अप तेज वायु कायिकनिकै नानाजीव अपेक्षा अंतर नाही है। For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy