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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra NCP www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। प्रथम अध्याय ।। पान ९९ ॥ है । उत्कृष्ट एक तीन सात दश सतरा बाईस तेतीस सागर देशोन है । तिर्यंच गतिविष तिर्यंचनिकै मिथ्यादृष्टीका नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नाही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट तीन पल्य देशोन है । सासादनसम्यग्दृष्टि आदि च्यारीनिका गुणस्थानवत् अंतर है | मनुष्यगतिविषै मनुष्य निकै मिथ्यादृष्टिका तिर्यंचवत् । सासादनसम्यग्दृष्टीका अर सम्यग्मिथ्यादृष्टीका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् अंतर है । एकजीव अपेक्षा जघन्य पल्योपमका असंख्यातवा भाग अर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट तीन पल्य पृथक्त्व कोडिपूर्व अधिक है । असंयतसम्यग्दृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट तीन पल्य पृथक्त्व पूर्व अधिक है । संयतासंयत प्रमत्तअप्रमत्त संयतका नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्व कोडिपूर्व है । च्यारि उपशम श्रेणीवालेनिका की अपेक्षा गुणस्थानवत् एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पृथक्त्वको डिपूर्व है । अवशेषनिका गुणस्थानवत् अंतर है । देवगतिविर्षे देवनिकै मिथ्यादृष्टि असंयत सम्यग्दृष्टिका नानाजीव अपेक्षा अंतर नांही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट इकतीस सागर देशोन है | सासादन सम्यग्दृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा गुणस्थानवत् है | एकजीव For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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