________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान ७० ।।
HAPRACTIONSapkoASNPPOSACARPENDRApppapaser
अप्रमत्त है, प्रमत्तसंयतभी है । सूक्ष्म सांपरायशुद्धिसंयमी एक सूक्ष्म सांपरायस्थानही है । यथाख्यातविहारशुद्धिसंयमी उपशांतकषाय आदि अयोगकेवलीताई च्यारि गुणस्थान हैं । संयतासंयत एक संयतासंयत गुणस्थानविही है । अग्यत, मिथ्यादृष्टि आदि च्यारि गुणस्थान आदिकविही है ।
दर्शनके अनुवादकरि चक्षुअचक्षु दर्शनविर्षे मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यंत बारह गुणस्थान हैं । अवधिदर्शनविर्षे असंयतसम्यग्दृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यंत नव गुणस्थान हैं। केवलदर्शनविर्षे सयोगकेवली अयोगकेवली हैं ॥
लेश्याके अनुवादकरि कृष्ण नील कापोत लेश्यावि मिथ्यादृष्टि आदि असंयत सम्यग्दृष्टीपर्यन्त हैं । तेज पद्मलेश्याविर्षे मिथ्यादृष्टि आदि अप्रमत्तपर्यन्त सात हैं। शुक्ललेश्यावि मिथ्यादृष्टि आदि सयोगकेवलीपर्यंत तेरह हैं । लेश्यारहित अयोगकेवली है ॥ ___ भव्यके अनुवादकरि भव्यविर्षे चौदहही हैं। अभव्यविर्षे आदिका एकही है । सम्यक्त्वके अनुवादकरि क्षायिकसम्यक्त्वविर्षे असंयतसम्यग्दृष्ट्यादि अयोगकेवलीपर्यंत ग्यारह हैं । क्षायोपशमिकसम्यक्त्वविर्षे असंयतसम्यग्दृष्ट्यादि अप्रमत्तपर्यंत च्यार हैं। औपशमिकसम्यक्त्वविर्षे असंयतसम्यग्दृष्टि आदि उपशांत कषायपर्यंत आठ हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यमिथ्यादृष्टि मिथ्यादृष्टि अपने अपने गुणस्थान हैं ।।
For Private and Personal Use Only