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।। सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय || पान ८५ ।।
लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्शे है । अर चौदा भागमैंसूं आठ भाग नव भाग देशोन स्पर्शे है । सम्यङ्मिथ्यादृष्टि आदि अनिवृत्तिवादरसांपरायपर्यंतनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है । नपुंसक वेदविषै मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टीनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है । सम्यङ्मिथ्यादृष्टीनिकै लोकका असंख्यातवां भाग है | असंयतसम्यग्दृष्टि संयतासंयत लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्शे है अर चौदह भागमै छह भाग देशोन मारणांतिक अपेक्षा स्पर्शे है । प्रमत्तसंयत आदि अनिवृत्तिवादरसांपरायपयंतवाले अर वेदरहितनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है ॥
कषायके अनुवादकरि च्यारि कषायवालेनिकै अर कषायरहितनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है । ज्ञानके अनुवादकर मति अज्ञान श्रुतअज्ञानवाले मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टिनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है । विभंगज्ञानीकै मिथ्यादृष्टीनिकै असंख्यातवां भाग है । अर चोदह भागमैंसूं आठ भाग देशोन हैअर सर्वलोकभी है । सासादन सम्यग्दृष्टीनिकै गुणस्थानवत स्पर्शन है । मति श्रुत अवधि मनःपर्यय केवलज्ञानी निकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है |
सँयमके अनुवादकरि सर्वसंयमीनिकै अर संयतासंयतनिकै अर असंयतनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है ||
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