________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय ।। पान ९१ ॥ सम्यग्मिथ्यादृष्टीका नानाजीवकी अपेक्षा एक जीवकी अपेक्षा जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त काल है । असंयतसम्यग्दृष्टीका नानाकीव की अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीव अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट तीन पल्य किछु अधिक है । बाकी के गुणस्थाननिका गुणस्थानवत् काल है ।। देवगतिविषै देवनि के मिथ्याटीका नानाजी की अपेक्षा सर्वकाल है एकजीवप्रति जघन्य अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट इकतीस सागरोम है । सासादन सम्यग्दृष्टीका अर सम्यग्मिथ्यादृष्टीका गुणस्थानवत् काल है । असंयतसम्यग्दृष्टी का नानाजीव अपेक्षा सर्वकाल है । एक जीव अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम है ||
इंद्रिय अनुवादकर एकेंद्रियनिका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीव की अपेक्षा जघन्य क्षुद्रभव उत्कृष्ट अनंत काल सो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन है । विकलत्रयका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एक जीव अपेक्षा जघन्य क्षुद्रभव उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष है । पंचेंद्रियविषै मिथ्यादृष्टीका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट हजार सागर पृथक्त्व कोडी पूर्व अधिक है । सासादन आदि सर्व गुणस्थाननिका गुणस्थानवत् काल है || काय के अनुवादकरि पृथिवी अप् तेज वायुकायिकका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीव अपेक्षा जघन्य क्षुद्रभव उत्कृष्ट असंख्यात लोकपरिमाण काल है । वनस्पतिकायिकका
For Private and Personal Use Only
१९६०