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।। सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय । पान ७५ ॥
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ज्ञानके अनुवादकरि मति-अज्ञान श्रुत-अज्ञानवाले मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानवत् संख्या है । विभंगज्ञानी मिथ्यादृष्टि असंख्यातश्रेणीपरिमाण हैं । ते प्रतरके असंख्यातवै भाग हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि पल्योपमकै असंख्यातवै भाग हैं । मतिश्रुतज्ञानी असंयतसम्यग्दृष्टि आदि क्षीणकपायताई गुणस्थानवत् संख्या है । अवधिज्ञानी असंयतसमग्दृष्टि आदि संयतासंयतताई गुणस्थानवत् संख्या है । प्रमत्तसंयत आदि क्षीणकपायताई संख्यात हैं । मनःपर्ययज्ञानी प्रमत्तसंयत आदि क्षीणकषायताई संख्यात हैं । केवलज्ञानी अयोगी सयोगी गुणस्थानवत् संख्या है ॥ ___संयमके अनुवादकरि सामयिकच्छेदोपस्थापनाशुद्धि संयतप्रमत्त आदि अनिवृत्तिवादरसांपरायताई गुणस्थानवत् संख्या है । परिहारविशुद्धिसंयत प्रमत्त अप्रमत्त संख्यात हैं । सूक्ष्मसांपरायशुद्धिसंयत यथाख्यात विहारशुद्धिसंयत संयतासंयत असंयतकी गुणस्थानवत् संख्या है ॥
दर्शनके अनुवादकरि चक्षुर्दर्शनवाले मिथ्यादृष्टि असंख्यातश्रेणीपरिमाण हैं । ते प्रतरकै असंख्यातवै भाग हैं । अचक्षुर्दर्शनवाले मिथ्यादृष्टि अनंतानंत हैं । दोऊही सासादनसम्यग्दृष्टि आदि | क्षीणकषायताई सामान्योक्त कहिये गुणस्थानवत् है । अवधिदर्शनवाले अवधिज्ञानिवत् हैं । केवलदर्शनवाले केवलज्ञानीवत् हैं ।।
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