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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव पदार्थ भर जाता है तथा आदि प्रावर ( bowman's capsule ) में कुछ लाल कण देखे भर जाते हैं जिनके कारण वे छींटे दृग्गोचर होते हैं। यदि सम्पूर्ण केशिकाजूट विकृत होता है तो वहाँ व्रणशोथात्मक प्रतिक्रिया के लक्षणों के साथ साथ वृकाणु की मृत्यु होकर वहाँ पर तन्तूत्कर्ष हो जाता है। ऐसे विक्षत विषमतया फैले होते हैं तथा उनके सिध्म ( patches ) पाये जाते हैं। नित नये नये केशिकाजूट ऋणानित ( infarcted ) होते रहते हैं । इस क्रिया को तीव्र नाभ्य वृकपाक (acute focal nephritis ) या अन्तःशाल्यिक वृक्कपाक ( embolic nephritis) कहते हैं। इसके कारण शुक्लिमेह (albuminuria) तथा रक्तमेह पाया जाता है। त्वचा के नीचे की केशिकाओं में अन्तःशल्य के कारण चमड़ी पर अनेक नीलोहाङ्क (petechiae ) बन जाते हैं । नखों के नीचे ये अङ्क प्रायशः मिलते हैं।
गौण अल्परक्तता ( secondary anaemia) भी इस रोग में मिलती है पर उसका कारण अज्ञात है। कहीं कहीं सितकोशोत्कर्ष मिलता है पर अधिकतर सितकोशापकर्ष ( leucopenia)-जिसके साथ लसीकोशोत्कर्ष तथा एकन्यष्टिकोशोत्कर्ष सम्मिलित रहता है-मिलता है। ___ आधुनिक वैज्ञानिकों की दृष्टि में इस रोग में ज्वर के लक्षण के अतिरिक्त अन्य कोई भी लक्षण स्पष्ट नहीं मिलता। यह रोग आज भी असाध्य है। ६ मास से लेकर २ वर्ष तक रोगी जीवित रहता है अन्यथा मर जाता है। बिना किसी चिकित्सा के भी यह शीघ्र मारक स्वरूप का रोग है । - आयुर्वेद की दृष्टि से यह अनेक अन्तर्विद्रधि युक्त रोग है और असाध्य है
"तत्र विवर्यः सन्निपातजः । पक्को हृन्नाभिबस्तिस्थो भिन्नोऽन्तर्बहिरेव वा ।। पक्कश्चान्तः स्रवन् वक्त्रात् क्षीणस्योपद्रवान्वितः।
तीव्रजीवाण्वीय हृदन्तश्छदपाक
(Acute Bacterial Endocarditis) यह रोग अत्यन्त भयानक है और मृत्यु १ मास के भीतर ही हो जाती है । इस रोग के कारणभूत निम्न जीवाणु हैं
शोणांशन मालागोलाणु फुफ्फुस गोलाणु तथा स्वर्णपुंज गोलाणु ( staphylococcus aureus)
गुह्यगोलाणु (gonococci) इनके अतिरिक्त अन्य जीवाणुओं के द्वारा भी यह रोग हो सकता है जिनमें यक्ष्मा दण्डाणु भी एक है। इन जीवाणुओं के द्वारा सर्वप्रथम सार्वदेहिक रोगाणुरक्तता ( septicaemia) या पूयरक्तता ( pyaemia) होता है। उसी से रक्तधारा द्वारा उपसर्ग हृस्कपाटों को लगता है। रक्त का संवर्ध ( culture) करने पर ये जीवाणु निस्सन्देह प्रगट हो जाते हैं यद्यपि वैसा अनुतीव्र हृदन्तश्छद पाक में नहीं होता
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