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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। प्रथम अध्याय ॥ पान ६३ ॥ क्षायोपशमिककी जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट छ्यासठि सागरोपकी है ॥ बहुरि सम्यग्दर्शन केते प्रकार है ? ऐसे पूछ कहै हैं। तहां सामान्यतै तौ सम्यग्दर्शन एक है। बहुरि निसर्गज अधिगमज भेदतें दोय प्रकार है । बहुरि औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-भेदतें तीन प्रकार है । ऐसे शदतें तो संख्यातभेत है । बहुरि अर्थते असंख्यात तथा अनंत भेद हो है । ते श्रद्धाता श्रद्धान करनेयोग्य वस्तुके भेदतें जानने । ऐसें विधान कह्या ॥ ऐसें निर्देशादिककी विधि ज्ञानचारित्रविर्षे बहुरि जीव आदि पदार्थनिवि आगमकै अनुसार लगावणी ॥
इहां विशेष कहिये हैं । ये निर्देशादिक श्रुतप्रमाणके विशेष व्यवहार अशुद्धद्रव्यार्थिककू कह्या है । सो शदात्मक तथा ज्ञानात्मक दोऊही प्रकार जाननें । इनितें अधिगम जीवादिकका होय है ॥ | बहुरि कोई अन्यवादी कहै - वस्तुका स्वरूप तौ वचनगोचर नाही. निर्देश काहेका करिये ? ताकू कहिये---- यह तेरा कहना सत्य है की नाही? जो कहेगा सत्य है तौ वस्तूका कहनाभी सत्य है। बहुरि कहैगा मेरा कहनाभी असत्य है, तो काहे कहै । असत्यकू कौन अंगीकार करेंगा? । बहुरि कोई वादी कहै, काहूकै काइका संबंध नाही, तातें कोईका कोई स्वामी नाही, तातें स्वामित्व | कहना अयुक्त है । ताकू कहिये-- जो, संबंध न होय तो सर्वव्यवहारका लोप होय । तातें |
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