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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान ६२ ॥ अरु वेदनाका अनुभव ये दोयही कारण हैं । बहुरि तिर्यंचनिकै कोईकै जातिस्मरण है, कोईके धर्मश्रवण है, कोईकै जिनविका दर्शन है । बहुरि मनुष्यनिकैभी तैसेंही है । बहुरि देवनिके कोईके जातिस्मरण है । कोईकै धर्मश्रवण है । कोईके तीर्थकरकेवलीनिका कल्याणिकादिकी महिमाका दर्शन है । कोईकै देवनिकी ऋद्धीका देखना है, सो आनतकै पहली सहस्रारस्वर्गताई है । बहुरि आनत प्राणत आरण अच्युतनिकै देवऋद्धिदर्शनविनां अन्य तीन कारण हैं । बहुरि नवग्रैवेयकवासीनिकै केईकै जातिस्मरण है, केईके धर्मश्रवण है । बहुरि अनुदिश अनुत्तर विमानवासीनिकै यहु कल्पना नाही है । तहां सम्यग्दर्शनवालेही उपजै हैं ।
बहुरि सम्यग्दर्शनका अधिकरण कहा है ? ऐसे पूछ कहै हैं। अधिकरण दोय प्रकार है । बाह्य अभ्यंतर । तहां अभ्यंतर तो स्वस्वामिसंबंधक योग्य आत्माही है । जाते कारकनिकी प्रवृत्ति विवक्षातें है । बहुरि बाह्य अधिकरण एक राजू चोडी चोदा राजू उंची लोकनाडी है । सम्यग्दर्शन त्रसनाडीहीमें पाईए है ॥ बहुरि सम्यग्दर्शनकी स्थिति केती है ? ऐसें पूछे, कहै हैं । औपशमिककी जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त की है । क्षायिककी संसारी जीवकै जघन्य अंतर्मुहूर्तकी, उत्कृष्ट तेतीस सागर अर अंतर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष घाटि दोय कोडि पूर्व अधिक है । अरु मुक्तजीवकै सादि अनंत काल है । बहुरि
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