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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय ॥ पान ६० ॥
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होय है । बहुरि मनुष्यणीकै तीनूही हैं । सो पर्याप्तकहीकै है अपर्याप्तककै नांही है । बहुरि याकै क्षायिकसम्यक्त्व भाव वेदकरिही है । बहुरि देवगतिविर्षे देव पर्याप्तक अपर्याप्तकनिकै तीनही है । तहां
औपशमिक अपर्याप्तककै चारित्रमोहका उपशमकरि उपशमश्रेणीविर्षे मरण करै तिनिकै द्वितीयोपशम होय । यह प्रथमोपशम अपर्याप्तमैं काहूकही न होय है । बहुरि भवनवासी व्यंतर ज्योतिषी देवनिकै अरु इनिकी देवांगनाकै अर सौधर्म ईशानकी कल्पवासिनी देवांगनानिकै क्षायिक तौ होयही नाही । अरु इनिकै पर्याप्तकनिकै औपशमिक क्षायोपशमिक है ॥
बहुरि इंद्रियानुवादकरि संज्ञी पंचेंद्रियजीवनिकै तीनूंही हैं । अन्यकै नाही है ॥ बहुरि कायके अनुवादकरि त्रसकायिकजीवनिकै तीनही हैं । अन्यकै नांही हैं ॥ बहुरि योगके अनुवादकरि मन वचन काय तीही योगकै तीनही हैं । अयोगीनकै शायिकही है । बहुरि वेदके अनुवादकरि तीही वेदवालेकै तीनूंही हैं । वेदरहितकै औपशमिक सायिकही है | बहुरि कषायके अनुवादकरि क्रोध मान माया लोभ च्यायों कषायवालेकै तीनूंही हैं । कषायरहितकै औपशमिक क्षायिक हैं । बहुरि ज्ञानके अनुवादकरि मति आदि पांचूही ज्ञानवालेकै सामान्यकरि तीनही हैं । केवलज्ञानीनिकै क्षायिकही है ॥ बहुरि संयमके अनुवादकरि सामयिकच्छेदोपस्थापनासंयमीनिकै तीनूंही हैं ।
రుతుందని నలుగురు
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