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।। सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय ।। पान ५८ ॥
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कहिये छलका लक्षण तो अर्थका विकल्प उपजाय पैलेका वचन खंडन करना है । सो अनेकांत ऐसे नाही । जातें दोय धर्मकी प्रधान गौणकी अपेक्षाकरि वस्तु जैसे है तैसें कहै है, यामें छल कहा ? बहुरि कोई कहै, दोय पक्ष साधना तौ संशयका कारण है । ताकू कहिये, जो, संशयका स्वरूप तौ दोऊ पक्षका निश्चय न होय तहां है । अनेकांतविर्षे तौ दोऊ पक्षके विषय प्रत्यक्ष निश्चित हैं। तातें संशयके कारण नाही । बहुरि विरोधभी नाही । जातें नयकरि ग्रहे जे विरुद्धधर्म तिनिका मुख्यगौणकथनके भेद सर्वथा भेद नाही है । जैसैं एकही पुरुषवि पितापणां पुत्रपणां इत्यादिक विरुद्धधर्म हैं, तिनिके कहनेकी मुख्यगौणविवक्षाकरि विरोध नाही तैसें इहांभी जाननां ।।
आगें प्रमाणनयनिकरि जाणे जे जीवादिक पदार्थ, तिनिके अधिगमका अन्य उपाय दिखावनेकै अर्थि सूत्र कहे हैं
॥निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः ॥७॥ ___याका अर्थ-- निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति, विधान इनि छह | अनुयोगकरिभी सम्यग्दर्शन आदि तथा जीव आदि पदार्थनिका अधिगम होय है. ।। तहां निर्देश तौ | स्वरूपका कहनां । स्वामित्व कहिये अधिपतिपनां । साधन कहिये उत्पत्तिका कारण । अधिकरण |
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