Book Title: Uvangsuttani Part 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उबंगसूत्ताणि [खण्ड २] अलगावलियाओ का कार्डिसिया, समती,सूरपण्णती en helping Mohbphin itaplanb लियाना वाहदसानो वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक युवाचार्य महाप्रज्ञ Jaimina EAPraja dane Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापर्व वर्ष के उपलक्ष्य में निग्गंथं पावयणं उवंगसुत्ताणि (खण्ड २) पण्णवण्णा • जंबुद्दीवपण्णत्ती • चंदपण्णत्ती • सूरपण्णत्ती • उवंगा निरयावलियाओ • कप्पडिसियाओ• पुप्फियाओ. पुप्फिचूलियाओ • वण्हिदसाओ वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी सम्पादक युवाचार्य महाप्रज्ञ प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं [राजस्थान] Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक: जैन विश्व भारती लाडनूं [राजस्थान] प्रबन्ध-सम्पादक: श्रीचंद रामपुरिया अर्थ सौजन्य : श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम सम्वत् २०४५ (मर्यादा महोत्सव) ईस्वी सन् १९८६ पृष्ठांक : ११७० : जैन विश्व भारती मूल्य ६००/ मुद्रक : मित्र परिषद, कलकत्ता के आर्थिक सौजन्य से स्थापित जैन विश्व भारती प्रेस, लाडनूं (राजस्थान) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ On the occasion of Pragyaprav Year Niggantham Pāvayanam UVANGA SUTTĀNI IV (PART II) PANNAVANĀ. JAMBUDDIVAPANNATTI. CANDAPAŅŅATTI, SŪRAPAŅŅATTI. NIRAYĀVALIYÃO. KAPPAVADIMSIYÃO PUPPHIYĀO , PUPPHACŪLIYÃO. VAŅHIDASÃO (Original Text Critically Edited) Våcana-pramukha : ĀCĀRYA TULSI Editori YUVĀCĀRYA MAHĀPRAJNA Publisher : JAIN VISHVA BHARATI LADNUN (RAJASTHAN) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Publisher : JAIN VISHVA BHARATI. Ladnun--341 306 Managing Editor : Shrichand Rampuria, By Munificence : Shri Ramlal Hansraj Golchha Viratnagar (Nepal) Year of Publication : Vikram Samvat 2045 (Maryada Mahotsava) 1989 A.D. Pages : 1170 जैन विश्व भारती FRU &ool Printers : JAIN VISHVA BHARATI PRESS, [Established through the financial co-operation of Mitra Parishad, Calcutta) Ladnun (Rajasthan) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुमनिकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोधपूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमो क्षण उसमें लगे। संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया। अत: मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहें हैं । संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार हैसंपादक: युवाचार्य महाप्रज्ञ पाठ-संशोधन सहयोगी : मुनि सुदर्शन ___ मुनि हीरालाल शब्दकोश मुनि श्रीचन्द्र 'कमल' संविभाग हमारा धर्म है। जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूं कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने । आचार्य तुलसी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, आणा-पहाणो जणि जस्स निच्च । सच्चप्पओगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणपुव्वं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु होकर भी आगम-प्रधान था । सत्य-योग में प्रवर चित्त था; उसी भिक्षु को विमल भाव से ॥ विलोडियं आगमदुद्धमेव, लद्धं सुलद्धं णवणीयमच्छं । सज्झाय-सज्झाण-रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स प्पणिहाणपुव्वं ॥ जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रुत-सद्ध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से। पवाहिया जेण सुयस्स धारा, गणे समत्थे मम माणसे वि । जो हेउभूओ स्स पवायणस्स, कालुस्स तस्स प्पणिहाणपुवं । जिसने श्रुत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में। हेतुभूत श्रुत-सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ গ্রান্ত १. प्रकाशकीय २. सम्पादकीय (हिन्दी) ३. भूमिका (हिन्दी) ४. सम्पादकीय (अंग्रेजी) ५. भूमिका (अंग्रेजी) ६. विषयानुक्रम ७. संकेत निर्देशिका ८. पण्णवण्णा ६. जंबुद्दीवपण्णत्ती १०. चंदपण्णत्ती ११. सूरपण्णत्ती १२. उवंगा निरयावलियाओ १३. कप्पवडिसियाओ १४. पुप्फियाओ १५. पुफिलियाओ १६. वण्हिदसाओ परिशिष्ट १. संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार-स्थल २. तुलनात्मक ३. शब्दकोश ४. शुद्धि-पत्र Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय प्रस्तुत ग्रन्थ उवांगसुत्ताणि ४ का द्वितीय खण्ड है। इस में नो आगम समाहित हैं-- १. पण्णवण। २. जंबुद्दीवपण्णत्ती ३. चंदपण्णत्ती ४. सूरपण्णत्ती ५. निरयावलियाओ ६. कप्पवडिसियाओ ७. पुल्फियाओ ८. पुप्फचूलियाओ ६. वण्हिदसाओ। आगम संपादन एवं प्रकाशन की योजना इस प्रकार है१. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला -मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुती करण। २. आगम-अनुसंधान ग्रन्थमाला-मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रंथमाला-आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला--आगमों से संबंधित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला-आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । ६. आगमों के केवल हिंदी अनुवाद के संस्करण । प्रथम आगम-सुत्त ग्रन्थमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चके हैं(१) अंगसुत्ताणि (१)- इसमें आयारो, सुयगडो, ठाणं, समवाओ-ये चार अंग समाहित हैं । (२) अंगसुत्ताणि (२)-इसमें पंचम अंग भगवई प्रकाशित है। (३) अंगसुत्ताणि (३)- इसमें नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोव वाइयदसाओ, पण्हावागरणाई, विवागसुयं-ये ६ अंग हैं । (४) उवंगसुत्ताणि (४) (खं० १))- इसमें (१) ओवाइयं (२) रायपसेणियं और (३) जीवाजीवाभिगमे-ये तीन आगम ग्रन्थ हैं। (५) उवंगसुत्ताणि (४) (खण्ड २)—प्रस्तुत ग्रन्थ । इसमें पण्णवणा, जंबुद्दीवपण्णत्ती, चंद पण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, निरयावलियाओ, कप्पवडिसियाओ, तुप्फियाओ, पुष्पचूलियाओ, वण्हिदसाओ प्रकाशित हो रहे हैं। (६) नवसुत्ताणि (५)-इसमें आवस्सयं, दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि, नंदी, अणओग दाराई, दसाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहज्झयणं-ये नौ आगम ग्रन्थ हैं। द्वितीय आगम अनुसंधान ग्रन्थमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं(१) दसवेआलियं १. इस ग्रंथमाला के अन्र्तगत (१) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि, (२) आयरो तह आयारचूला, (३) निसीहज्झयणं, (४) ओवाइयं, (५) समवाओ-ये ग्रंथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा भी प्रकाशित हुए थे। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और २) (३) ठाणं (४) समवाओ (५) सूयगडो (भाग १ और भाग २) उक्त में से द्वितीय ग्रंथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हुआ है। तीसरी आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला में निम्न दो ग्रन्थ निकल चुके हैं(१) दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन । (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन । चौथी आगम-कथा ग्रन्थमाला में अभी तक कोई ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हो पाया है। पांचवीं वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला में दो ग्रन्थ निकल चुके हैं। (१) दसवैकालिक वर्गीकृत (धर्म प्रज्ञत्ति खं०१) (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं० २) छठी केवल आगम हिंदी अनुवाद ग्रन्थमाला में एक 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ है। उक्त प्रकाशनों के अतिरिक्त दसवैकालिक एवं उत्तराध्ययन (मूल पाठ मात्र) गुटकों के रूप में प्रकाशित किए जा चुके हैं। उक्त विवरण से पाठकों को विदित होगा कि भूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित ३२ आगम ग्रंथ आगमसुत्त ग्रंथमाला के अर्न्तगत प्रकाशित हो चुके हैं। ३२ आगमों का इस प्रकार का आलोचनात्मक प्रकाशन आगम प्रकाशन के इतिहास में प्रथम बार ही सम्मुख आया है। आगम प्रकाशन कार्य की योजना में निम्न महानुभावों का सहयोग रहा--- (१) सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविंदालालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी)। (२) रामलालजी हंसराजजी गोलछा, विराटनगर । (३) स्व० जयचंदलालजी गोठी, सरदारशहर । (४) रामपुरिया चेरिटेबल ट्रस्ट, कलकत्ता । (५) बेगराज भंवरलाल चोरडिया चेरिटेबल ट्रस्ट । यह ग्रन्थ जैन विश्व भारती के निजी मुद्रणालय में मुद्रित होकर प्रकाशित हो रहा है। मुद्रणालय के स्थापना में मित्र-परिषद्, कलकत्ता के आर्थिक सहयोग का सौजन्य रहा, जिसके लिए उक्त संस्था को अनेक धन्यवाद । आगम-संपादन के विविध आयामों के वाचना-प्रमुख हैं आचार्य श्री तुलसी और प्रधान संपादक तथा विवेचक हैं युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी। इस कार्य में अनेक साधु-साध्वी सहयोगी रहे हैं। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ इस तरह अथक परिश्रम के द्वारा प्रस्तुत इस ग्रन्थ के प्रकाशन का सुयोग पाकर जैन विश्व भारती अत्यंत कृतज्ञ है। जैन विश्व भारती २६-६-८७ लाडनूं (राज.) श्रीचंद रामपुरिया कुलपति Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय प्रस्तुत ग्रन्थ में नौ उपांग हैं-- १. पण्णवणा २. जंबुट्टीवपण्णत्ती ३. चंदपण्णत्ती ४. सरपण्णत्ती ५. निरयावलियाओ ६. कप्पडिसियाओ ७. पुफियाओ ८. पुप्फलियाओ ६. वण्हिदसाओ। उपांग बारह हैं । उवंगसुत्ताणि भाग ४ खण्ड १ में तीन उपांग प्रकाशित हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ में शेष नौ उपांगों का मूल-पाठ पाठान्तरसहित सम्मिलित है । अंगसुत्ताणि की शब्दसूची एक स्वतन्त्र पुस्तक (आगम शब्दकोश) में मुद्रित है। पाठक और शोधकर्ताओं की सुविधा की दृष्टि से इस खण्ड में उपर्युक्त नौ आगमों की संयुक्त शब्दसूची संलग्न है । प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन के साथ बत्तीस आगमों के प्रकाशन का कार्य सम्पन्न हो जाता है। इस आगम सुत्त ग्रन्थमाला के सात ग्रन्थ सम्पन्न हो रहे हैं:--- १. अंगसुत्ताणि भाग-१ आयारो, सूयगडो, ठाणं, समवाओ। २. अंगसुत्ताणि भाग-२ भगवई। ३. अंगसुत्ताणि भाग-३ नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, पण्हावागरणाई, विवागसुयं। ४. उवंगसुत्ताणि भाग-४, खण्ड १ ओवाइयं, रायपसेणियं, जीवाजीवाभिगमे । ५. उवंगसुत्ताणि भाग-४, खण्ड २ पण्णवणा, जंबुद्दीवपण्णत्ती, चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, निरियावलियाओ, कप्पवडिसियाओ, पुप्फियाओ, पुप्फचूलियाओ, वण्हिदसाओ । ६. नवसुत्ताणि भाग-५ आवस्सयं, दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि, नंदी, अणुओगदाराइं, दसाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहझयणं । ७. आगम शब्दकोश (अंगसुत्ताणि शब्दसूची) इस मूलपाठ की ग्रन्थमाला के अन्तर्गत अन्य ग्रन्थों के सम्पादन का कार्य अभी चल रहा है। उनमें प्रकीर्णक, नियुक्ति और भाष्य सम्भावित हैं। विक्रम संवत् २०१२ (सन् १९५५) महावीर जयन्ती के दिन आचार्य श्री ने आगम-सम्पादन की घोषणा की । सम्पादन का कार्य उसी वर्ष चतुर्मास में प्रारम्भ हुआ। शुद्ध पाठ के बिना सम्पादनकार्य में अवरोध आए । तब पाठ-शोधन की ओर ध्यान गया। पाठ-शोधन का कार्य वि० सं० Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ २०१४ (सन् १९५७) में प्रारम्भ हुआ। यह कार्य वि० सं० २०३७ (सन् १९८०) में सम्पन्न हुआ। इसका विवरण इस प्रकार है:---. दसवेआलियं उत्तरज्झयणाणि नंदी, अनुओगदाराई ओवाइयं, रायपसेणियं ठाणं समवाओ सूयगडो नायाधम्मकहाओ आयारो, आयारचूला उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ अनुत्तरोववाइयदसाओ विपाक पण्हावागरणाई निरयावलियाओ भगवई पण्णवणा दसाओ, पज्जोसवणाकप्पो कप्पो ववहारो जीवाजीवाभिगमे जंबुद्दीवपण्णत्ती निसीहज्झयणं चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती वि० सं० २०१४ वि० सं० २०१६ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१६ वि० सं० २०२० वि० सं० २०२२ वि० सं० २०२६ वि० सं० २०२६ वि० सं० २०२८ वि० सं० २०२८ वि० सं० २०२६ वि० सं० २०३० वि० सं० २०३१ वि० सं० २०३२ वि० सं० २०३३ वि० सं० २०३३ वि० सं० २०३४ वि० सं० २०३५ वि० सं० २०३५ वि० सं० २०३७ सम्पादन का कार्य सरल नहीं है-यह उन्हें सुविदित है, जिन्होंने इस दिशा में कोई प्रयत्न किया है । दो-ढाई हजार वर्ष पुराने ग्रन्थों के सम्पादन का कार्य और भी जटिल है, जिनकी भाषा और भाव-धारा आज की भाषा और भाव-धारा से बहुत व्यवधान पा चुकी है। इतिहास की यह अपवाद-शून्य गति है कि जो विचार या आचार जिस आकार में आरब्ध होता है, वह उसी आकार में स्थिर नहीं रहता। या तो वह बड़ा हो जाता है या छोटा। यह ह्रास और विकास की कहानी ही परिवर्तन की कहानी है । और कोई भी आकार ऐसा नहीं है, जो कृत है और परिवर्तनशील नहीं है। परिवर्तनशील घटनाओं, तथ्यों, विचारों और आचारों के प्रति अपरिवर्तनशीलता का आग्रह मनुष्य को असत्य की ओर ले जाता है । सत्य का केन्द्र-बिन्दु यह है कि जो कृत है, वह सब परिवर्तनशील है । कृत या शाश्वत भी ऐसा क्या है जहां परिवर्तन का स्पर्श न हो। इस विश्व में जो है, वह वही है जिसकी सत्ता शाश्वत और परिवर्तन की धारा से सर्वथा विभक्त नहीं है। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ शब्द की परिधि में बंधने वाला कोई भी सत्य क्या ऐसा हो सकता है जो तीनों कालों में समान रूप से प्रकाशित रह सके ? शब्द के अर्थ का उत्कर्ष या अपकर्ष होता है- भाषा-शास्त्र के इस नियम को जानने वाला यह आग्रह नहीं रख सकता कि दो हजार वर्ष पुराने शब्द का आज वही अर्थ सही है, जो आज प्रचलित है । 'पाषण्ड' शब्द का जो अर्थ आगम-ग्रंथों और अशोक के शिलालेखों में है, वह आज के श्रमण-साहित्य में नहीं है । आज उसका अपकर्ष हो चुका है। आगम साहित्य के सैंकड़ों शब्दों की यही कहानी है कि वे आज अपने मौलिक अर्थ का प्रकाश नहीं दे रहे हैं। इस स्थिति में हर चिन्तनशील व्यक्ति अनुभव कर सकता है कि प्राचीन साहित्य के सम्पादन का काम कितना दुरूह है । मनुष्य अपनी शक्ति में विश्वास करता है और अपने पौरुष से खेलता है, अत: वह किसी भी कार्य को इसलिए नहीं छोड़ देता कि वह दुरूह है। यदि यह पलायन की प्रवृत्ति होती तो प्राप्य की सम्भावना नष्ट ही नहीं हो जाती किन्तु आज जो प्राप्त है, वह अतीत के किसी भी क्षण में विलुप्त हो जाता। आज से हजार वर्ष पहले नवांगी टीकाकार (अभयदेव सूरि) के सामने अनेक कठिनाइयां थीं। उन्होंने उनकी चर्चा करते हुए लिखा है : --- १. सत् सम्प्रदाय (अर्थ बोध की सम्यक् गुरु-परम्परा) प्राप्त नहीं है । २. सत् ऊह (अर्थ की आलोचनात्मक कृति या स्थिति) प्राप्त नहीं है। ३. अनेक वाचनाएं (आगमिक अध्यापन की पद्धतियां) हैं । ४. पुस्तकें अशुद्ध हैं। ५. कृतियां सूत्रात्मक होने के कारण बहुत गंभीर हैं । ६. अर्थ विषयक मतभेद भी हैं । इन सारी कठिनाइयों के उपरान्त भी उन्होंने अपना प्रयत्न नहीं छोडा और वे कुछ कर गए। कठिनाइयां आज भी कम नहीं हैं । किन्तु उनके होते हुए भी आचार्यश्री तुलसी ने आगम-सम्पादन के कार्य को अपने हाथों में ले लिया। उनके शक्तिशाली हाथों का स्पर्श पाकर निष्प्राण भी प्राणवान् बन जाता है तो भला आगम-साहित्य जो स्वयं प्राणवान् है, उसमें प्राण-संचार करना क्या बडी बात है ? बडी बात यह है कि आचार्यश्री ने उसमें प्राण-संचार मेरी और मेरे सहयोगी साधु-साध्वियों की असमर्थ अंगुलियों द्वारा कराने का प्रयत्न किया है। संपादन कार्य में हमें आचार्यश्री का आशीर्वाद ही प्राप्त नहीं है किन्तु मार्ग-दर्शन और सक्रिय योग भी प्राप्त है। आचार्यवर ने इस कार्य को प्राथमिकता दी है और इसकी परिपूर्णता के लिए अपना पर्याप्त समय दिया है। उनके मार्ग-दर्शन, चिन्तन और प्रोत्साहन का संबल पा हम अनेक दुस्तर धाराओं का पार पाने में समर्थ हुए हैं। पाठ सम्पादन-पद्धति पण्णवणा प्रज्ञापना के पाठ-शोधन में चार हस्त-लिखित आदर्श काम में लिए गए । आचार्य मलयगिरि की वत्ति का भी उसमें उपयोग किया गया। मुनि पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादित प्रज्ञापना भी हमारे सामने रही। किन्तु हम किसी एक प्रति को आधार मानकर नहीं चलते । टीका की व्याख्या, अन्य आगम तथा शब्दों का अर्थ--ये सब पाठ-शोधन के महत्त्वपूर्ण आधार-बिन्दु रहे हैं । इसलिए हमारे सम्पादन में पाठ-शुद्धि के अनेक विशेष विमर्श उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए गण्ठी शब्द प्रस्तुत है : -"वत्थुल कच्छुल सेवाल गण्ठी'। यहां 'गण्ठी' पद अशुद्ध है । शुद्ध पाठ है गत्थी' । पाठ-शोधन Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में प्रयुक्त हस्तलिखित आदर्शों तथा मुनिश्री पुण्य विजयजी द्वारा सम्पादित आगमों में 'गण्ठी' पाठ ही उपलब्ध है । इस पाठ का शोधन जीवीजीवाभिगम और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के आधार पर किया गया है। इसके लिए प्रस्तुत आगम का ११३८ का पाद-टिप्पण द्रष्टव्य है। दूसरा उदाहरण है-'तिट्ठाणवडिते' । इसके स्थान पर कुछ आदर्शों में 'चउट्ठाणवडिते' पाठ मिलता है। मुनिश्री पुण्यविजयजी ने भी 'चउढाणवडिते' पाठ स्वीकार किया है। किन्तु हमने 'तिट्ठाणवडिते' पाठ वृत्ति के आधार पर मान्य किया है। इसका समर्थन पण्णवणा ॥११५, ११६, की वृत्ति से होता है। प्रज्ञापनावृत्ति पत्र १६५-१६६ तथा पण्णवणा ५।११५ का पाद-टिप्पण द्रष्टव्य है । जम्बद्वीपप्रज्ञप्ति इसके पाठ-शोधन में सात प्रतियों और तीन टीकाओं का उपयोग किया गया है। उपाध्याय शान्तिचन्द्र की वृत्ति तथा हीरविजय वृत्ति में अनेक पाठान्तर और उनकी टिण णियां मिलती हैं । देखें -४।१५६ का पाद-टिप्पण। यह पाठान्तर-बहुल आगम है। उपाध्याय शान्तिचन्द्र ने वाचना-भेद की विस्तृत चर्चा की है। उदाहरण के लिए २६१२ का पाद-टिप्पण द्रष्टव्य हैं। कहीं-कहीं अशुद्ध पाठ के कारण व्याख्या भी अशुद्ध हुई है। देखें--४।४६ का पाद-टिप्पण । चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति इनके पाठ-शोधन में पांच हस्तलिखित आदर्शों तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति की वृत्तियों का उपयोग किया गया है। एक आदर्श का क्वचित् प्रयोग किया गया है। चन्द्रप्रज्ञप्ति का पूर्ण रूप उपलब्ध नहीं है। उसका सूर्यप्रज्ञप्ति से जो भेद है वह एक परिशिष्ट में दिया गया है। कुछ हस्तलिखित आदर्श चन्द्रप्रज्ञप्ति के नाम से उपलब्ध हैं। उनके पाठ-भेद सूर्यप्रज्ञप्ति के पाद-टिप्पण में दिए हए हैं। निरयावलिका निरयावलिका आदि पांच वर्गों के पाठ-शोधन में तीन हस्तलिखित आदर्शों तथा श्रीचन्द्रसूरिकृत वृत्ति का प्रयोग किया गया है। १. शान्तिचन्द्रीयवृत्ति पत्र ८७: पाठान्तरं-वाचनाभेदस्तद्गतपरिमाणान्तरमाह-मूले द्वादश योजनानि विष्कम्भेन मध्येऽष्ट योजनानि विष्कम्भेन उपरि चत्वारि योजनानि विष्कम्भेन, अत्रापि विष्कम्भायामतः साधिकत्रिगुणं मूलमध्यान्तपरिधिमानं सूत्रोक्तं सुबोधं । अत्राह परः- एकस्य वस्तुनो विष्कम्भादिपरिमाणे द्वैरुप्यासम्भवेन प्रस्तुतग्रन्थस्य च सातिशयस्थविरप्रणीतत्वेन कथं नान्यतरनिर्णयः ? यदेक स्यापि ऋषभकटपर्वतस्य मूलादावष्टादियोजनविस्तृतत्वादि पुनस्तत्रैवास्य द्वादशादियोजनविस्तृतत्वादीति, सत्यं, जिनभट्टारकाणां सर्वेषां क्षायिकज्ञानवतामेकमेव मतं मूलतः पश्चात्तु कालान्तरेण विस्मृत्यादिनाऽयं वाचनाभेदः, यदुक्तं श्रीमलयगिरिसूरिभिज्योतिष्करण्डकवृत्तौ - "इह स्कन्दिलाचार्य प्रवृ (तिप) तौ दुष्षमानुभावतो दुभिक्षप्रवृत्त्या साधूनां पठनगुणनादिकं सर्वमप्यनेशत्, ततो दुर्भिक्षातिक्रमे सुभिक्षप्रवृत्तौ द्वयोः संघमेलापकोऽभवत्, तद्यथा---एको वलभ्यामेको मथुरायां, तत्र च सूत्रार्थसंघटने परस्पर वाचनाभेदो जातः, विस्मृतयोहि सूत्रार्थयोः स्मृत्वा संघटने भवत्यवश्यं वाचनाभेद" इत्यादि, ततोऽत्रापि दुष्करोऽन्यतरनिर्णयः द्वयोः पक्षयोरुपस्थितयोरनतिशायिज्ञानिभिरनभिनिविष्टमतिभिः प्रवचनाशातनाभीरुभिः पुण्यपुरुषैरिति न काचिदनुपपत्तिः । Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ (क,ख) (क,ग) (घ) (घ) (क,घ) (क,घ) (ख,ग,घ) १।१४ १११४ ११२३ श२६ ११३५ ११३८ ११४८४७ श९३२४ २।१० २।१३ २०४० ३३१ ३७ ३।१०२ ३।१२७ ३।१७४ ३।१८२ ३३१८३ ४।२५५ ४।२७५ (घ,पु) (क,ख,घ) (क,ग,घ) शब्दान्तर और रूपान्तर पण्णवणा बंदिय बेइन्दिय तेंदिय तेइन्दिय ओसा उस्सा वायमंडलिया वाउमंडलिया अंकोल्ल अंकुल्ल कोरंटय कोरिटय (क); कोरेंट बलिमोडओ पलिमोडओ वीइभयं वीयभयं पडीण पयीण (क); पईण तडागेसु तलागेसु चोवट्टि चोसर्टि विसेसाहिया विसेसाधिया दाहिणणं दक्खिणणं विभंगणाणीण विहंगणाणीण अहेलोए अहोलोए (ग); अधेलोए अस्साता असाता जहा जधा सकसाई सकसादी एगूणवीसं एकूणवीसं (क,घ); एक्कूणवीस पणुवीस पंचवीसं (ख,घ); पणवीसं जदि जइ (ख,ग,घ); जति महुर मधुर' अब्भहिए अब्भइए (क); अब्भतिए पडिए मणुस्से मणूसे वढिज्जंति वुढिज्जति एएणठेणं एणठेणं अभिलावो अहिलावो ओसण्ण उस्सण्ण °आणमणी आणवणी वगे विगे सयणं सतणं सरीरपहवा सरीरप्पभवा वोयड अव्वोयडा वोगड अव्वोगडा (घ) (ख,ग) (ख,घ) ५१५ ५१५ (पु) वडिए (क,ख,प) (क,ग,घ) (क,ख) (ख,घ) ५१५ ५७ ५२१०१ ५।१७६ ५१२४२ ६।४६ ८८ ११।६ ११०२१ ११०२५ ११०३० १११३७ (ख,ग,घ) (क,ख,ग,ध) (क) (क,ख,ग,घ) Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ १११३७ ११।७२ १११७५ १११८४ १११८८ ११८८ १२१७ १२७ आणमणी परिवड्ढमाणाई कदलीथंभाण णिसरति बितियं भासज्जायं बद्धेल्लया मुक्केल्लया ओसप्पिणीहि अणागारो णग्गोह (ग) सादी १५।३५ १५॥३५ १५.५० १५॥५३ १०५८ १६३१५ अहवेते १६॥३४ १६३५१ १६१५४ १६१५५ १६१५५ पेहमाणे पेहति 'थिग्गले °ओवचए अहवेगे पच्चथिमिल्लं आयरियं सेयंसि माउल गाण तिदुयाण इणछे समभिलोएमाणे किण्ह हलधर क इरसारे बालिदगोवे 'बलाहए अपिक्काणं आगारभावमाताए याणमणी (घ) परिवड्ढे माणाई (ख,घ) कदलीख भाण (ग) णिस्सरति (ख); णिस्सिरति (ग); निसरति (घ) बीयं (क,ग) भासजाय बद्धिल्लया मुक्किल्लया (क,ख,ग,घ) अवसप्पिणीहि अणायारो (क,ख) णिग्गोह (ग) साती पेहेमाणे पेहेति थिग्गिले ओवचते (ख,घ) (क,ख) पच्छिमिल्लं आयरितं से इंसि (क,ग) मातुलिंगाण तिंडुयाण (ग) इणमठे (क); तिणठे (ख,घ) समभिलोतेमाणे कण्ह (क,घ) हलहर (क,ग,घ) कयरसारए (ख,ग); कतरसारए बालेंदगोपे °बलाहते (घ) अपक्काणं (क,ख,घ) आगारभावमायाए (क,ग) वेए (क,ग); बेते वयजोगी (ख,घ,पु) सकसादी (क); सकसाती सवणयाते सूयी' (क,घ) धणुहपुहत्तं सगाति (क,घ); सयाई (ग) १७।२४ १७.१०६ १७.११६ १७।१२४ १७.१२५ १७४१२६ १७.१२८ १७।१३२ १७.१५० १८.१ १८१५६ १८।६४ २०१२८ २११२५ २११४७ २११६२ वेदे (ख,घ) वइजोगी सकसाई सवणताए सूई धणुपुहत्तं सगाई Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ (क) (ख,ग) (क,घ) २३३३ २३११३ २३।२२ २३।१६१ २८।४४ ३३।१ ३३।१७ ३४।१ ३४।६ ३४।१५ णियच्छति कडस्स णीयागोयस्स खवए अफासाइज्ज अपडिवाई सगाई परियाइयणया जाणंति सपरियारा निगच्छति (क,घ) निग्गच्छति कतस्स (क,घ); कयस्स णीतागोतस्स खमए अप्फासाइज्ज अपडिवादी सताई (क,घ) सयाति परियादिणया (ख); परियायणया याणंति सपरिचारा (क,घ) (क,घ) (क,ख,ग,घ) (ख,ग) जंबुद्दीवपण्णत्ती श८ १११८ श२३ १२६ १२८ ११४८ રાજ विच्छिण्णा °णउय धणुपट्ठ पडोयारे पासिं दुहा हट्ठस्स (अ,ख) (अ,क,ब) (ख) (त्रि,ब) (अ,त्रि,ब) (ख,स) (क,ख) (प) २।४ (ब) २।१४ २।१५ २।२० २।२० २०३२ २१७० २१७८ २।१३१ २११३३ २।१३३ °पडोयारे मेइणि वेइया इत्थ कहग 'हास वाकरेमाणाणं हाहाभूए वलीविगय टोलाकिति वित्थिण्णा °णोत° धणुव8 (अ); धणुपुढें °पडोगारे पस्सिं दुधा हिट्ठस्स उडू (त्रि); उऊ पडोकारे मेतिणि वेइगा यस्थ (अ,ब); एत्थ कधक हस्स वागरमाणाणं हाहाब्भूते पलीविगय डोलाकिति (अ); डोलागिति टोलागित्ति (त्रि, स); टोलागति सीयउण्ह (त्रि,ब) (अ,ब) (क,ख,स) (अ,ख,ब) (अ,ख,ब) (प) (अ,क,ख,ब,स) (अ) (क,ख) (प) २।१३३ सीउण्ह ३३३ जय ३।११ ३।११ ३।११ पउसियाओ बब्बरी बहलि व उसीयाओ पप्परी पहलि (क,ख,त्रि,ब,स) (क,ख,प,स) (क,ख,प,स) (अ,ब) (अ,ब) Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० (अ,ब) ३।११ ३१२० ३२० ३३२१ ३१२२ ३।२३ ३१२४ ३१२६ ३३३५ ३॥३५ ३।३५ कडुच्छ्य. दुरुहइ बंभयारी दुरूढे बोल °बालचंद तंडं अंतवाले °पट्टसंगहिय °खिखिणी अयोज्झं ३।३५ ३।३५ ३३३५ ३७७ ३।११७ ३।११७ ३११३८ सोयामणि प्पगासं वीसुतं °चिंधपट्टे °मिरीई उऊण °हिदय (क ,स) °कडिच्छुय (ख); कडेच्छुय (अ,ब,स) द्रुहइ (अ,ब) पम्हचारी (अ,त्रि,ब) रूढे (अ); द्रुढे (ब) पोल बालयंद (स) 'तोंड (क,पस) अंतपाले (अत्रि,ब); अंतेवाले (क,ख) °वट्टसंगहिय (अ,ब) किंकिणी (क,ख,स) अजोज्झं (अ,ब); अओझं (क,ख,प,स); अवोझ (त्रि) सोतामणि (क); सोदामणि (ख,स) प्पकासं (अ,क,ख,त्रि,ब,स) विस्सुतं (क,स) चिधवट्टे (ब) मरीई (त्रि) उदूण (अ,ख,ब); रिदूण हियय° (अ,त्रि,प,ब); °हितय° (क,स); हदय (ख) निहितो (अ,त्रि,ब); °निहओ (ख,स) अभिसेयपेढं (अ,ब) गंठिम (त्रि,प) तिसोमाण (अ,ब) काकिणि (अ); कागिणि° (ब); काकणि° (स) पुवकड (क,स) ईहापूह (अ,क,ख,स); ईहावूह (पुत्र) बासर्टि हस्सतराए दाहिणणं (त्रि) हरिवस्सं (अ,प,ब) संखदल (प,शावृ,पुवृपा) पायाले (अ,ब) बायालीसे (त्रि) णिसअस्स सीओता (अ,ब); सीओदा (त्रि); सीओआ (प) पिउत्तरे ३।१७८ ३।१६४ ३।२११ ३।२१४ ३२२२० ३।२२१ ३२२२३ ४।३६ ४।५४ ४१५५ ४७७ ४१८५ ४॥८६ ४।८७ ४।६१ ४।६३ निहिओ अभिसेयपीढं गंथिम तिसोवाण कागणि पुवकय° ईहापोह बावर्द्धि हस्सतराए दक्खिणेणं हरिवासं संखतल° बायाले णिसहस्स सीतोदा विउत्तरे (अ,ब) Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ ४।६६ ४।१०२ णिसढ हेमवय-हेरण्णवय ४।१०३ ४।१०६ ४।१४० ४११४० ४।१४२ ४।१५७ ४।१८० ४।२१० ४।२३१ ५२५ णीलवंतस्स सणिच्चारी उववायसभाए जमगाओ दस णियया परुप्परंति सयज्जल पलासो घंटापडेंसुया णिसभ° (अ,ब); णिसह (क,ख,स) हेमवएरण्णवय (क,ख,ब,स); हेमवय एरण्णवय (त्रि) लवंतस्स (अ,क,ख,ब,स) सणिच्चारी (प) ओतावसभाए (क) जवगाओ (अ,ब); जमिगाओ (ख) दह (अ,क,ख,ब,स) णितिया (अ,क,ख,त्रि,ब,स) परोप्परति (अ,त्रि,ब) सयजल वलास (ब) घंटापडेसुका (अ,ब); घंटापडिसुका (क,ख); घंटापडिस्सुया' (त्रि); घंटापडंसुया? गत्ताइं (क,ख); गताई (ब) जाणु (त्रि) उड्ढंमुह° (अ,ब); उद्धीमुह (क,ख,प) भावियाया अभिजिदाइया (अ,ब); अभिजादिया (क,स); अभिजादीया (ख) समणे (अ,ब) मगसिर अभिती (अ,ब,स); अभिवी (क,ख) पहस्सती (अ,ब); वहप्फई कत्तिकी (अ); कित्तिकी (ख,ब); कित्तिगी (स) आसिणी (ब) लांगूलाणं ५।५८ ५२५८ ७।३१ ७।१२२ ७।१२६ गायाई जण्णु उड्ढीमुह भावियप्पा अभिजियाइया ७।१२८ ७.१२८ ७।१२६ ७।१३० ७.१५५ ७।१५६ ७.१७८ सवणो मियसर अभिई वहस्सई कत्तिगी अस्सिणी गंगूलाणं सूरपण्णतो الله (ग,घ) (ट) الله سم इदगतस्स चउत्तरे पिधुला (क); पुहुलो पुग्गला तोतसंठिती (ट) इहगतस्स चउरुत्तरे पिहुला पोग्गला ओयसंठिती ओयाए रयणिखेत्तस्स می ६।१ (क,ग,घ) (ट,व) (ट) ६१ ओताए रतणिखेत्तस्स (क,ग,घ); रातिखेत्तस्स (ट) Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ८.१ सदा सता वयं....वदामो सवणे (व) सायं सागं (ग,घ) (व) बंभ समणे १०२ १०१५ १०१७ १०।१० १०७७ १०७८ १०७६ १०८७ १०८६ १०।१३६ १०।१४७ १०११७३ १४।२ १५॥३१ आसोई असोइण्णं आदिच्चेहि बम्ह सवणे बितिया दुविहा तिही पातो उवाइणावेत्ता सयावि कहं अहियं मेहुणवत्तियं अहे वइयरिए (ग,घ,ट,व) वतं....वतामो समणो (ग,घ) (व) अस्सोती (व) अस्सोदिण्णं आतिच्चेहि (क,ग,घ) (ट,व) बिदिया (क,प) दुविधा तिधी पादो उवादिणावेत्ता (क,ग,घ); उवातिणावेत्ता (ट,व) सताधि (क,ग,घ,व); सदावि (ग) कधं (क,ग,घ) अधियं (क,ग,घ); अहितं (ट) मेधुणवत्तिय (क,ग,घ) अधो वतिचरिए (क,घ,व) १८।३४ २०११ २०१२ निरयावलियाओ ११४२ ११७२ श६१ १९७ श६७ ११११७ १११२७ ३।११५ ३३१३४ ४।१६ ४।२१ ५६ ५११० अण्णया जणवदं ऊसए पिइसोएणं पट्टे अंदोलावेइ निच्छुहावेइ लेच्छइ सुव्वयाओ अण्णदा (क); अण्णता जणवयं ऊसवे पितसोएण प्पिळे (क); पुछे अंदोडावेइ निच्छुभावेइ लेच्छती सुव्वदाओ जुवलं (ख); जुगलं तिट्ठा 'पाओसिया सव्वोदुय आधेवच्चं BREPREEEEEEE जुयलं इट्ठा 'बाओसिया सव्वोउय आहेवच्चं (क,ग) (क,ग) Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ पण्णवणा प्रति-परिचय (क) पण्णवणा मूलपाठ (हस्तलिखित) ___ यह प्रति पूनमचन्दजी बुधमलजी दूधोड़िया 'छापर' के संग्रहालय की है। इसकी पत्र संख्या ३०२ है। इसकी लम्बाई १०१ इन्च व चौड़ाई ४॥ इन्च है। लगभग प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३३ से ४१ अक्षर हैं । प्रति सुन्दरतम व शुद्ध है। यह प्रति लगभग १५ वीं शताब्दी की लिखी हई है। प्रति के अन्त में केवल ग्रन्थाग्र ७७८७ लिखा हुआ है। (ख) पण्णवणा टब्बा (हस्तलिखित) यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रंथालय, लाडनूं की है। इसमें मूल पाठ तथा स्तबक लिखा हआ है । इसकी पत्र संख्या ४६५ है। इसकी लम्बाई ६॥ इंच तथा चौडाई ४ इंच है। प्रत्येक पत्र में मूल पाठ की पंक्तियां ७ व प्रत्येक पंक्ति में ३५ से ३६ अक्षर हैं । प्रति अति सुन्दर लिखी हई है। प्रति के अन्त में ...'प्रत्यक्षरगणनया अनुष्ठपच्छंद: समानमिदं ग्रन्थाग्रं ७७८७ प्रमाणं' लिखा हआ है। आगे स्तबककर के ६ श्लोक हैं । संवत् १७७८ वर्षे फाल्गुन मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदा तिथौ रविवारे पंडित ईश्वरेण लिपी चक्रे श्री वेन्नातट नगर मध्ये"."" श्री रस्तु कल्याणमस्तु: शुभं भूयाल्लेषक पाठकयोः । (ग) पण्णवणा त्रिपाठी (हस्तलिखित) मलपाठ सहित वृत्ति यह प्रति हमारे संघीय हस्तलिखित ग्रंथ-भंडार 'लाडनूं' की है। इसमें मध्य में मूल पाठ व ऊपर नीचे वृत्ति लिखी हुई है। इसकी पत्र संख्या ४४८ है। इसकी लम्बाई ६।। इंच तथा चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रत्येक पत्र में मूल पाठ की पंक्तियां १ से १६ तक है। कुछ पत्रों में केवल वत्ति ही है। प्रत्येक पंक्ति में ३७ से ४५ तक अक्षर हैं । ग्रंथाग्र .. मूल पाठ ७७८७ तथा वृत्ति का ग्रन्थान १६००० । प्रति सुन्दर व शुद्ध है। लगभग १७ वीं शताब्दी की प्रति होनी चाहिए। (घ) पण्णवणा मूलपाठ (हस्तलिखित) ___ यह प्रति श्रीचन्दजी गणेशदासजी गधैया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। इसकी पत्र सख्या १३८ है। इसकी लम्बाई १३॥ इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। प्रत्येक पत्र में बीच में तथा हासिए के बाहर चित्र सा किया हुआ है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ के लगभग अक्षर हैं । प्रति सुन्दर तथा शुद्ध है । यह १६ वीं शताब्दी की लिखी हुई प्रतीत होती है । ग्रंथानं ७७८७ के सिवाय अन्त में कुछ लिखा हुआ नहीं है । (गव) 'ग' संकेतित प्रति में लिखित वृत्ति के पाठान्तर (व) हस्तलिखित वृत्ति यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया 'सरदारशहर' की है। इसकी पत्र संख्या १५६ । लिपि संवत् १५७७ । वैशाख शुक्ला १० । (मवृ) मलयगिरि वृत्ति-प्रकाशक आगमोदय समिति (मवृपा) मलयगिरि द्वारा गृहीत पाठान्तर (हव) श्री हरिभद्र सूरि सूत्रित प्रदेश व्याख्या संकलितं प्रकाशक श्री ऋषभदेव केशरीमलजी रतलाम पूर्व भाग पद ११ । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जंबुद्दीवपण्णत्ती प्रति-परिचय (अ) जंबुद्दीवपण्णत्ती मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति जेसलमेर भंडार की ताडपत्रीय (फोटोप्रिंट) मदनचन्द जी गोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र १६४ और पृष्ठ ३२८ हैं। प्रत्येक पत्र में २ से ६ तक पंक्तियां हैं। कहीं-कहीं पंक्तियां अधूरी लिखी हुई हैं। प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ३० से ३५ तक हैं। अन्त में ग्रंथान ४१४६ इतना ही लिखा हुआ है । इसके साथवाली प्रति के आधार पर यह प्रति १४ वीं शती की होनी चाहिए। (ब) जंबुद्दीवपण्णत्ती मलपाठ (हस्तलिखित) ___ यह प्रति जेसलमेर भंडार ताडपत्रीय (फोटोप्रिन्ट) मदनचन्दजी गोठी 'सरदारशहर' द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ६७ व पृष्ठ १६४ हैं। प्रत्येक पत्र में २ से ६ तक पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४७ से ५० तक अक्षर हैं । लिपि सं० १३७८ लिखा हुआ है। (स) जंबुद्दीवपण्णत्ती मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति जेसलमेर मंडार पत्राकार (फोटोप्रिन्ट) मदनचन्दजी गोठी 'सरदारशहर' द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ४६ व पृ. ६२ हैं। प्रत्येक पत्र में २० पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ७० से ७४ तक अक्षर हैं। लिपि सं. १६४६ लिखा हुआ है। प्रति बहुत महीन लिखी हुई है। (क) जंबुद्दीवपण्णत्तो मूलपाठ (हस्तलिखित) पत्र संख्या ७३ श्रीचंद गणेशदास गधया संग्रहालय (सरदारशहर) (ख) जंबुद्दीवपण्णत्तो मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रंथालय 'लाउनूं' की है। इसके पत्र १०१ व पृष्ठ २०२ हैं। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ५० से ५५ तक अक्षर हैं। प्रति प्राचीन व सुंदर लिखी हुई है। लिपि संवत् नहीं है। (ग) जंबुद्दीवपण्णत्ती त्रिपाठी, मूलपाठ व वृत्ति (हस्तलिखित) यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रन्थालय 'लाडनूं' की है। इसके पत्र ३५८ व पृष्ठ ७१६ है। प्रति के मध्य में मूलपाठ व ऊपर नीचे टीका लिखी हुई है। लिपि संवत् १९१३ अंकित है । प्रति सुंदर लिखी हुई है। इसके ६९-७० दो पत्र प्राप्त नहीं हैं। (होव) हीरविजयसूरि विरचित वृत्ति त्रिपाठी (हस्तलिखित) (हीवृपा) हीरविजय सूरि द्वारा गृहीत पाठान्तर यह प्रति शासन ग्रंथ भंडार 'लाडनू' की है। इसकी पत्र संख्या ५८२ है । बीच में मूलपाठ व ऊपर नीचे वृत्ति लिखी हुई है। लिपि संवत् १६१६ । (पुव) खरतरगच्छीय जिनहंसगणि शिष्य महोपाध्याय पुण्यसागर विरचित वृत्ति (हस्तलिखित) (पुवृपा) पुण्यसागर द्वारा गृहीत पाठान्तर यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। इसके पत्र २४३ व पृष्ठ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ ४८६ हैं । लिपि सं. १५७५ । प्रति सुन्दर लिखी हुई है । (शावृ) तपागच्छीय होरविजयसूरि परशिष्य शान्त्याचार्य विरचित वृत्ति (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। लिपि सं. १५५१ ( शावृपा ) शान्त्याचार्य द्वारा गृहीत पाठान्तर सूरपण्णत्तो प्रति परिचय (क) सूरपण्णत्ती मूल यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर 'अहमदाबाद की है। इसकी क्रमांक डा . २-५७ है । इसकी लम्बाई-चौड़ाई १२ ।। ५ इंच है । इसकी पत्र संख्या ६२ है । प्रथम पत्र नहीं है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्ति व प्रत्येक पंक्ति में ४५ से ७० तक अक्षर हैं। प्रति सुन्दर व सुवाच्य है। प्रति के बीच में हरी व लाल स्याही से चित्र चित्रण परन्तु प्रति प्राचीन है लगभग १७ वीं शताब्दी की होनी श्लोक प्राकृत में लिखे हुए हैं । किया हुआ है। लिपि संवत् नहीं दिया है । चाहिए । प्रति के अन्त में प्रशस्ति के २५ (ग) सूरपण्णत्ती मूल नंबर ६० (हस्तलिखित) यह प्रति भी पूर्व उल्लिखित 'अहमदावाद' की है। इसकी पत्र संख्या ८७ व इसकी लम्बाई चौड़ाई १० X ४ इंच है। प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां हैं । प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ३३ से ४१ तक है । प्रति की लिपि सुन्दर है पर अशुद्धि बहुल प्रति है । लिपि सं. १५७० । (घ) सूरपण्णत्ती मूल नम्बर ६०७ (हस्तलिखित ) यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर 'अहमदावाद' की है। इसकी पत्र संख्या ६६ व इसकी लम्बाई चौड़ाई १० x ४ इंच है । प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां है । प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ३४ से ४२ तक हैं । प्रति की लिपि सुंदर पर अशुद्धि बहुल है । लिपि सं. १६७३ है । उपर्युक्त तीनों प्रतियों के बीच में बावड़ी है । ( सूवृ) सूरपण्णत्ती टोका नं. ४८ यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, 'अहमदावाद' की है। इसकी लम्बाई चौडाई १२ । १५ इंच है। पत्र संख्या २२४ है । प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४४-६० अक्षर हैं । प्रति सुन्दर व स्पष्ट लिखी हुई है । लिपि संम्वत् १५७४ है । चन्द्रप्रज्ञप्ति प्रति-परिचय (क) चंदपण्णत्ती मूल नं. ६०० ( हस्तलिखित) यह प्रति भी लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर 'अहमदावाद' की है। इसकी पत्र संख्या ६८ व इसकी लम्बाई चौड़ाई १० । ४ । इंच है । प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ४१ तक अक्षर है । यह प्रति भी सुन्दर है पर अशुद्धि बहुल है । इसमें पत्र के बीच में बावडी है । लिपि संवत् १५७० है । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ (चंव) चंदपण्णत्ती टीका (हस्तलिखित) यह प्रति हमारे संघीय हस्तलिखित भण्डार 'लाडन' की है इसकी पत्र संख्या १७६ है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई १०x४ ॥ इच की है। प्रत्येक पत्र में पंक्ति ६ व प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ५० करीब है। प्रति सुन्दर है । लिपि संवत् १७६२ । (ट) चंदपण्णत्ती टब्बा (हस्तलिखित) जैन विश्व भारती लाडनूं हस्तलिखित ग्रंथालय । पत्र ५७ । निरयावलियाओ प्रति-परिचय (क) निरयावलियाओ मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति जेसलमेर भंडार की ताडपत्रीय (फोटोप्रिन्ट) मदनचन्दजी गोठी 'सरदारशहर' द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र २५ व पृष्ठ ५० हैं । फोटो प्रिंट के पत्र ६ है । एक पत्र में ६ पृष्ठों के फोटो है। किसी में न्यूनाधिक भी है । प्रत्येक पत्र १२ इंच लम्बा व ३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की पांच पंक्तियां हैं, किसी पत्र में दो-दो तीन-तीन पंक्तियां भी हैं। कहीं-कहीं पंक्तियां अधूरी भी हैं। प्रत्येक पंक्ति में करीब ४५ से ५० तक अक्षर है। प्रति के अंत में प्रशस्ति नहीं है। (ख) निरयावलियाओ मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय 'सरदारशहर' की है । इसके पत्र १६ तथा पृष्ठ ३८ हैं । प्रति १३३ इंच लम्बी व ५ इंच चौड़ी है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ७१ से ७५ तक अक्षर हैं । प्रति काली स्याही से लिखी हुई है। प्रति के मध्य भाग में बावड़ी व उसके बीच में लाल स्याही का टीका लगा हुआ है । लेखन संवत् नहीं है । परन्तु उसके साथ की प्रति के आधार पर अनुमानित १६ वीं शताब्दी की है । प्रति सुंदर, स्पष्ट तथा शुद्ध लिखी हुई है । (ग) निरयावलियाओ टब्बा (हस्तलिखित) यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रन्थालय, लाडनूं की है । इसके पत्र ६३ तथा पृष्ठ १२६ है। प्रत्येक पत्र में पाठ की ७ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में अक्षर करीब ३५ से ४५ तक हैं । यह प्रति १०३ इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है। लिपि सं० १८३३ । (वृ) निरयावलियाओ वृत्ति (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया पुस्तकालय 'सरदारशहर' की है। इसके पत्र ८ हैं । यह १३३ इंच लंबी ५ इंच चौड़ी है । लिपि संम्वत् १५७५ है । (मवृ) मुद्रित वृत्ति . ए. एस. गोपाणी एण्ड वी. जे. चोकसी। प्रकाशित-शंभूभाईजगसीशाह, गुर्जर ग्रन्थरत्न कार्यालय, गांधी रोड़ अहमदाबाद प्रकाशन १९३४ । सहयोगानुभूति जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ की चार वाचनाएं हो चुकी हैं । देवद्धि गणि के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। अनेक वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए हैं । उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। आचार्य श्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था। परंतु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्तत हम उसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसंधानपूर्ण, गवेषणापूर्ण, तटस्थ दृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगमवाचना का कार्य आरंभ हुआ। हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्य श्री तुलसी हैं । वाचना का अर्थ अध्यापन है । हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन कर्म के अनेक अंग हैं .. पाठ का अनुसंधान, भाषान्तर, समीक्षात्मक अध्ययन, तुलनात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में हमें आचार्य श्री का सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा गुरुतर कार्य में प्रवत होने का शक्ति-बीज है। मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर भार मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनूं । प्रस्तुत पुस्तक के अन्तर्गत नौ उपांगो के पाठ-शोधन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी, का पर्याप्त योग रहा है। पण्णवणा में मुनि बालचंदजी, निरयावलियाओ में मुनि मधुकरजी का भी योग रहा है। प्रतिलिपि शोधन में स्व. मन्नालालाजी बोरड़ भी इसमें सहयोगी रहे हैं । पण्णवणा की शब्दसूची मुनि श्रीचन्द जी, जंबुद्दीवपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, चंदपण्णत्ती की मुनि सुदर्शन जी तथा निरयावलियाओ की मुनि हीरालालजी ने तैयार की है। इस ग्रन्थ के प्रथम परिशिष्ट व इसका ग्रन्थ परिमाण मुनि हीरालालजी ने तैयार किया है। पण्णवणा व जंवुद्दीवपण्णत्ती की शब्दसूची में क्रमशः साध्वी जिनप्रभाजी व साध्वी चन्दनबालाजी का भी योग रहा है । प्रफ निरीक्षण में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी, मुनि दुलहराजजी तथा समणी कुसूमप्रज्ञा संलग्न रही है। कहीं मुनि विमलकुमारजी, मुनि सम्पतमलजी भी सहयोगी रहे हैं । पाठ के पुननिरीक्षण के समय मुनि हीरालालजी विशेषत: संलग्न रहे हैं । ___ आगम बत्तीसी के पाठ-सम्पादन कार्य में नामोल्लेख के अतिरिक्त जिनका यत्किञ्चित योग रहा है, उन सबके प्रति हम कृतज्ञता वा भाव व्यक्त करते हैं। सम्पादन कार्य में संघीयभंडार के अतिरिक्त एल० डी० इन्स्टीट्यूट अहमदाबाद, श्रीचंद गणेशदास गधया पुस्तक भंडार सरदाशहर, तेरापंथी सभा सरदारशहर, पूनमचंद बुद्ध मल दूधोडिया छापर, घेवर पुस्तकालय सुजानगढ़, जैन विश्व भारती ग्रंथालय लाडनं , जेसलमेर भंडार, इन सब संस्थानों से प्राप्त हस्तलिखित आदर्शों का हमने प्रयोग किया। मुनिश्री पुण्यविजयजी ने 'नन्दी' की संबोषित प्रति भी हमें उपलब्ध कराई थी। इन सबका योग हमारे कार्य में मूल्यवान बना। आचार्य श्री के वाचना-प्रमुखत्व में आगम-वाचना का जो कार्य प्रारंभ हुआ था उसका एक पर्व संशोधित पाठयुक्त आगम बत्तीसी के साथ सम्पन्न हो रहा है। बत्तीस आगमों का संशोधित पाठ पहली बार विद्वान् पाठकों के लिए सुलभ हो रहा है। यह हमारे लिए उल्लास का विषय है। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वि. सं. २०१२ उज्जैन में आगम-सम्पादन का कार्य प्रारंभ हुआ। उसी वर्ष प्रायः बत्तीस आगमों की शब्द सूचियां तैयार हो गईं। इस कार्य में अनेक साधु और साध्वियां संलग्न हुए। चारचार या तीन-तीन साधु-साध्वियों के वर्ग बने और उन्होंने इस कार्य को शीघ्रता से सम्पन्न किया। मुनि चौथमलजी, सोहनलालजी (चूरू) जैसे प्रौढ़ सन्त इस कार्य में लगे, वहां उनके सहयोगी के रूप में छोटे-छोटे साधु भी जुट गए । एक अभियान जैसा कार्य चला और सब में एक नयी भावना जागृत हो गई । पहले पाठ-शोधन नहीं हुआ था इसलिए उनका पूरा उपयोग नहीं हो सका। शब्द-सूचियां फिर से बनानी पडी, किन्तु जो काम हुआ वह अत्यंत श्लाघनीय है। इस सम्पादन की एक उल्लेखनीय बात यह है कि यह सारा कार्य साधु-साध्वियों के द्वारा ही सम्पादित हुआ, किसी गृहस्थ विद्वान् का इसमें योग नहीं रहा । आचार्यश्री का नेतृत्व और तेरापंथ धर्मसंघ का संगठन ही इसके लिए श्रेयोभागी बनता है। आगमविद् और संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचंदजी गोठी को इस अवसर पर विस्मृत नहीं किया जा सकता। यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता। आगम के प्रबन्ध सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया (कुलपति, जैन विश्व भारती) प्रारंभ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं। आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित वकालात कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर वे अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। जैन विश्व भारती के अध्यक्ष खेमचंदजी सेठिया और मंत्री श्रीचंद बैंगानी का भी इस कार्य में योग रहा है। संपादकीय और भूमिका का अंग्रेजी अनुवाद डा. नथमल टाटिया ने तैयार किया है। एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की सम प्रवत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारपूर्ति मात्र है। वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। अणुव्रत भवन (दिल्ली) २२ अक्टूबर, १९८७ युवाचार्य महाप्रज्ञ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका पण्णवणा नाम-बोध प्रस्तुत ग्रन्थ में नौ उपांग हैं। उसमें पहला है पण्णवणा (प्रज्ञापना) । इसमें जीव और अजीव इन दो तत्त्वों का विस्तार से प्रज्ञापन किया गया है। इसके प्रथम पद का नाम प्रज्ञापना है। संभवत: इस आदि पद के कारण ही इसका नाम प्रज्ञापना रखा गया है। प्रज्ञापना का एक कार्य प्रश्नोत्तर के माध्यम से तत्त्व का प्रतिपादन करना है। प्रस्तुत आगम में प्रश्नोत्तर के द्वारा तत्त्व का प्रतिपादन किया गया है । इसलिए भी इसका नाम प्रज्ञापना हो सकता है। प्रारंभिक गाथाओं में इस आगम को "अध्ययन" भी कहा गया है । इससे प्रतीत होता है कि इसका एक नाम 'अध्ययन" रहा है। इसका संबंध दृष्टिवाद (बारहवें अंग) से है इसलिए इसे दृष्टिवाद का निःस्यन्द या सार कहा गया है। विषयवस्तु प्रस्तुत आगम के ३६ पद हैं। उनमें जीव और अजीव के विभिन्न पर्यायों का प्रतिपादन किया गया है। यह तत्त्व-विद्या का अर्णव-ग्रन्थ है । इसके अध्ययन से भारतीय तत्त्व-विद्या के गहन स्वरूप को समझा जा सकता है। प्रथम पद में वनस्पति जीवों के दो वर्गीकरण उपलब्ध हैं:-प्रत्येकशरीरी और साधारणशरीरी। साधारणशरीरी का चित्र समाजवाद का ऐसा अनूठा चित्र है जिसकी मनुष्यसमाज में कल्पना नहीं की जा सकती । इसमें आर्य और म्लेच्छ का विशद वर्णन है। प्रस्तुत आगम तत्त्व-ज्ञान का आकर-ग्रन्थ है। भगवती अंगप्रविष्ट आगम है और यह उपांग कोटि का आगम है। ये दोनों तत्त्व-ज्ञान की दृष्टि से परस्पर जुड़े हए हैं। देवधिगणी ने भगवती में प्रज्ञापना के अधिकांश भाग का समावेश किया है। वहां बार-बार “जहा पण्णवणाए" का उल्लेख है। प्रस्तुत आगम के प्रत्येक पद में गूढ़ तत्त्वों की एक व्यूह-रचना सी उपलब्ध है। इसमें लेश्या और कर्म के विषय में अनेक महत्त्वपूर्ण सूत्र मिलते हैं। नन्दीसूत्र में आगमों के दो वर्गीकरण किए गए हैं---अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य । अंगबाह्य के दो प्रकार हैं -- आवश्यक और आवश्यकव्यतिरिक्त । आवश्यकव्यतिरिक्त के फिर दो प्रकार बतलाए गए है-- कालिक और उत्कालिक । प्रस्तुत आगम अंगबाह्य, आवश्यकव्यतिरिक्त और उत्कालिक है। नंदी में अंग और अंगबाह्य के संबंध की कोई चर्चा नहीं है । आगम-व्यवस्था के उत्तरकाल में अंग और है और वहां बाहुए तत्वों को क महत्त्व १. पण्णवणा, गा० २ २. वही, , ३ ३. वही, १३२ ४. नन्दी, ७३-७७ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० अंगबाह्य की संबंध-योजना निर्धारित की गई। उसके अनुसार प्रज्ञापना समवायांग का उपांग है। यह सम्बन्ध-योजना किस आधार पर की गई, यह अन्वेषण का विषय है । यदि प्रज्ञापना को "भगवती" का उपांग माना जाता तो अधिक बुद्धिगम्य होता। रचनाकार और रचनाकाल _प्रस्तुत आगम "दृष्टिवाद" का निःस्यन्द है, इस उक्ति से यह अनुमान किया जा सकता है कि इसका विषय 'दृष्टिवाद" से संग्रहीत किया गया है। इसके रचनाकार आर्यश्याम हैं। वे सुधर्मास्वामी के तेवीसवें पट्टधर थे। वे वाचकवंश की परंपरा के शक्तिशाली वाचक थे। उनका अस्तित्वकाल वीर-निर्वाण की चौथी शताब्दी है। प्रस्तुत आगम का रचनाकाल वीर-निर्वाण के ३३५ से ३७५ के बीच का संभव है। नंदी में महाप्रज्ञापना का उल्लेख किया गया है । वह अभी अनुपलब्ध है। महाप्रज्ञापना और प्रज्ञापना दोनों स्वतंत्र हैं । प्रज्ञापना महाप्रज्ञापना का अवतरण है अथवा इसमें कोई नया विषय है, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता । बारह उपांगों में प्रज्ञापना का एक विशिष्ट स्थान है। इससे प्रतीत होता है कि इसका रचनाकाल वह है जब पूर्वो की विस्मृति हो रही थी और उसके अवशिष्ट अंशों की स्मृति शेष थी। वैसे ही समय में “षट्खण्डागम" की रचना हुई थी। शेष उपांग प्रज्ञापना की रचना के उत्तरकाल में लिखे गए थे। उनकी विषयवस्तु के आधार पर यह संभावना की जा सकती है । उमास्वाति का अस्तित्व-काल वीर निर्वाण की पांचवी शताब्दी है । उन्होंने तत्वार्थसूत्र में "आर्या म्लेच्छाश्च" सूत्र लिया है। उसका आधार प्रज्ञापना का पहला पद हो सकता है। वहां जो आर्य और म्लेच्छ की स्पष्ट अवधारणा एवं परिभाषा है वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं है । इस आधार पर इसका रचनाकाल उमास्वाति से पूर्ववर्ती है। व्याख्या-ग्रंथ प्रस्तुन आगम के व्याख्या-ग्रंथ अनेक हैं। सबसे पहला ग्रन्थ हरिभद्रसूरि का है। व्याख्या-ग्रन्थ की तालिका इस प्रकार है:व्याख्या-ग्रंथ ग्रन्थान ग्रन्थकर्ता समय (वि० सं०) १. प्रदेशव्याख्या ३७२८ हरिभद्रसूरि ८ वीं शताब्दी २. तृतीय पद संग्रहणी १३३ अभयदेवसूरि १२ वीं शताब्दी का पूर्वार्ध ३. विवृति १४५०० मलयगिरि १३ वीं शताब्दी ४. अभयदेवसूरि कृत तृतीयपद कुलमण्डनगणी १८ वीं शताब्दी संग्रहणी अवचूणि ५. वृत्ति अज्ञात १. प्रज्ञापना, वृ० प० ४७-१. आर्यश्यामो यदेव ग्रन्थान्तरेषु आसालिगा प्रतिपादकं गौतमप्रश्न भगवन्निर्वचनरूपं सूत्रमस्ति तदेवागम बहुमानतः पठति । प्रज्ञापना, ३०प०७२-भगवान् आर्यश्यामोऽपि इत्थमेव सूत्रं रचयति ।" २. तत्त्वार्थ सूत्र ३।३६ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. वनस्पति सप्ततिका अथवा वनस्पति विचार ७. अवचूरी ८. बालावबोध ६. बालावबोध १०. स्तबक ११. पण्णवणानी जोड़ ७१ ३१ वृ० प० ५१७ - 'प्रज्ञापनायाश्चूणौं । वृ० प० ६०० - तत्रैवं वृद्धव्याख्या । मुनिचन्द्र पद्मसूरि धनविमल अनुमानित १७ वीं शताब्दी जीव विजय १७८४ १८७६ ५५० १८७८ इनके अतिरिक्त प्रज्ञापना से संबद्ध कुछ लघुकाय ग्रन्थों का विवरण मिलता है। मुनि पुण्यविजयजी ने हर्षकुलगणी द्वारा विरचित "बीजक" का उल्लेख किया है। मुनिपुण्यविजयजी द्वारा लिखित प्रज्ञापना की प्रस्तावना तथा "जिनरत्न कोश" में "पर्याय" का भी उल्लेख मिलता है । "जिनरत्न कोश" में प्रज्ञापना सूत्र सारोद्धार' का भी उल्लेख मिलता है । १. पण्णवणा सुत्तं, भाग २, प्रस्तावना पृ० १५८ २. वृत्ति प० २६६ - आह च चूर्णिकृत् । वृ० प० २७१ - आह च चूर्णिकृतोऽपि । वृ० प० २७२ यत आह चूर्णिकृत् । वृ० प० २७७ - आह च चूर्णिकृत् । परमानन्द जयाचार्य आचार्य मलयगिरि ने अपनी विवृति में चूर्णि और 'वृद्धव्याख्या' का उल्लेख किया है। चूर्णि अभी अनुपलब्ध है । उपलब्ध व्याख्याओं में सबसे बड़ी व्याख्या आचार्य मलयगिरि की है । मौलिक और आधारभूत व्याख्या आचार्य हरिभद्रसूरि की है । जंबुद्दीपण्णत्ती नाम-बोध प्रस्तुत आगम का नाम जंबुद्दीवपण्णत्ती ( जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ) है । प्रज्ञप्ति का अर्थ है व्याकरण, उत्तर या निरूपण । इसमें जम्बूद्वीप का व्याकरण है इसलिए इसका नाम जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति है । स्थानांग में चार अंगबाह्य प्रज्ञप्तियों का उल्लेख है, १. चन्द्र प्रज्ञप्ति २. सूरप्रज्ञप्ति, ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ४. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति । 'कसायपाहुड' में प्रज्ञप्तियों को 'दृष्टिवाद' के प्रथम भेद 'परिकर्म' के पांच अधिकार माना गया है- १. चन्द्रप्रज्ञप्ति, २. सूरप्रज्ञप्ति, ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ४ द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति । नंदी में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति को कालिक आगम के वर्गीकरण में रखा गया है ।" १२ वीं शताब्दी ३. ठाणं, ४११८६ ४. कसा पाहुड़, प्रथम अधिकार – पेज्जदोसविहत्ती, पृ० १३७ - "परियमे पंच अत्याहियारा - चंदपण्णत्ती सूरपण्णत्ती जंबुद्दीवपण्णत्ती दीवसायरपण्णत्ती विमाहपण्णत्ती चेदि ।" ५. नन्वी, ७८ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ विषय-वस्तु इसका मुख्य प्रतिपाद्य जम्बूद्वीप है। पारिपार्श्विक विषयों की सूची बहुत लंबी है। भगवान ऋषभ, कुलकर, भरत चक्रवर्ती, कालचक्र, सौरमण्डल आदि अनेक विषय इसमें प्रतिपादित हैं। इनमें भरत चक्रवर्ती का वर्णन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। चक्रवर्ती के चौदह रत्नों और नौ निधियों का वर्णन बहुत ही सजीव है। कालचक्र के वर्णन में वर्तमान अवसर्पिणी के छठे अर का जो वर्णन है वह बहुत रोमाञ्चक है । प्रलय की जितनी भविष्य वाणियां उपलब्ध हैं, उनमें यह सर्वाधिक ध्यानाकर्षण करने वाली है। इसे पढ़ते-पढ़ते अणयुद्ध की विभीषिका सामने आ जाती है। भगवान् ऋषभ और भगवान् महावीर में बहुत एकरूपता रही है। भगवान् ऋषभ को आदिकाश्यप और भगवान् महावीर को अन्त्यकाश्यप कहा जाता है। भगवान् ऋषभ और भगवान् महावीर दोनों ने पंच महाव्रत धर्म का प्रतिपादन किया था। भगवान महावीर की भांति भगवान ऋषभ भी एक वर्ष से कुछ अधिक समय तब सवस्त्र रहे. फिर अचेल हो गए। भरत चक्रवर्ती काच के महल में बैठे थे। वे काच में अपना प्रतिबिंब देख रहे थे । देखते-देखते उन्हें कैवल्य प्राप्त हो गया। उत्तरवर्ती ग्रन्थों में इस कथा का विकास हुआ है। अंगुली की अंगूठी गिर जाने पर सौन्दर्य की कमी का अनुभव हआ और उस चिंतन की गहराई में गए, अन्ततः केवली हो गए। यौगलिक व्यवस्था की समाप्ति, समाज और राज्य-व्यवस्था के प्रारंभ का सुन्दर चित्र प्रस्तुत आगम में उपलब्ध है । भगवान् ऋषभ के सर्वतोमुखी व्यक्तित्व को समझने के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका "श्रीमद्भागवत" में वर्णित ऋषभ के साथ तुलनात्मक अध्ययन करना बहुत महत्त्वपूर्ण प्रस्तुत आगम सात अध्यायों में विभक्त है । इन अध्यायों को "वक्खारो" या "वक्षस्कार" कहा गया है। उनके विषय इस प्रकार हैं १. जम्बूद्वीप २. कालचक्र और ऋषभ-चरित ३. भरत-चरित १. जंबुद्दीवपण्णत्ती, २११३०-१३७ २. धनञ्जय नाममाला, ११४, पृ० ५७ वर्षीयान् वृषभो ज्यायान् पुनराधः प्रजापतिः। ऐक्ष्वाकुः काश्यपो ब्रह्मा गौतमो नाभिजोऽग्रजः॥ धनञ्जय नाम माला, ११५, पृ० ५८ सन्मतिमहतीर्वीरो महावीरोऽन्त्यकाश्यपः । नाथान्वयो वर्धमानो यत्तीर्थमिह साम्प्रतम् ॥ ३. जंबुद्दीवपण्णत्ती, २०६६ ४. वही, ३३२१२, २२२ ५. आवश्यक चूणि, पृ० २२७ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ ४. जम्बूद्वीप का विस्तृत वर्णन ५. तीर्थकर का जन्माभिषेक ६. जम्बूद्वीप की भौगोलिक स्थिति ७. ज्योतिश्चक्र रचनाकार और रचनाकाल प्रस्तुत आगम उपांग के वर्गीकरण का ग्रन्थ है । इससे यह स्पष्ट है कि इसकी रचना भगवान् महावीर के निर्वाणोत्तर काल में हुई है। इसके रचनाकार कोई स्थविर थे। उनका नाम अज्ञात है। रचना का काल भी ज्ञात नहीं है। जीवाजीवाभिगम स्थविरों द्वारा कृत है। उसमें कल्पवृक्षों का विस्तृत वर्णन है। इसमें उनका संक्षिप्त रूप उपलब्ध है । विस्तार की सूचना 'जाव' पद के द्वारा दी ___इससे प्रतीत होता है कि यह जीवाजीवाभिगम के उत्तरकाल की रचना है। संभवतः श्वेताम्बर और दिगम्बर का स्पष्ट भेद होने के पूर्वकाल की रचना है। जंबुद्वीप के विषय में दोनों परंपराओं में प्रायः ऐकमत्य है। इस आधार पर इसका रचनाकाल वीर निर्वाण की चौथी-पांचवीं शताब्दी के आस-पास अनुमित किया जा सकता है। व्याख्या-ग्रन्थ प्रस्तुत आगम पर नौ व्याख्याएं उपलब्ध हैं। उनमें केवल शांतिचन्द्रीयवृत्ति मुद्रित है, शेष अप्रकाशित हैं । शान्तिचन्द्र ने यह उल्लेख किया है कि मलयगिरि की टीका काल-दोष से विच्छिन्न हो गई है। किन्तु आधुनिक विद्वानों ने उसे खोज निकाला है। वह जैसलमेर के भण्डार में उपलब्ध है। शान्तिचन्द्रीय और पुण्यसागरीय वृत्ति में चणि का भी उल्लेख है।' इन व्याख्या-ग्रन्थों की तालिका इस प्रकार है-- ग्रन्थ ग्रन्थान कर्ता रचनाकाल १. चूणि अज्ञातकर्तृक २. टीका (प्राकृतभाषा) हरिभद्रसूरि ३. टीका मलयगिरि ४. वृत्ति १४२५२ हीरविजयसूरि वि० सं० १६३६ ५. वृत्ति १३२७५ पुण्यसागर ६. टीका (प्रमेयरत्नमञ्जूषा) १८००० शान्तिचन्द्र १६६० " १६४५ १. शान्ति चन्द्रीया वृत्ति पत्र २ ---तत्र प्रस्तुतोपाङ्गस्य वृत्तिः श्रीमलयगिरिकृताऽपि संप्रति काल दोषेण व्यवच्छिन्ना। २. द्रष्टव्य, जैन रत्नकोश, पृ० १३० ३. शान्तिचन्द्रीया वृत्ति, पत्र १६, परिध्यानयनोपायस्त्वयं चणिकारोक्तः । वृ० ५० ५३, २५२, २७८ । पुण्यसागरीयवृत्ति, पत्र १२२-"एतच्चों च।" Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५००० १८३५२ ७. टीका ८. वृत्ति ६. वृत्ति अज्ञातकर्तृक गुजराती भाषा में धर्मसीमुनि ने इस पर स्तबक (टब्बा या बालावबोध) भी लिखा है। इन व्याख्या-ग्रन्थों की अधिकता से प्रतीत होता है कि प्रस्तुत आगम बहुत पठनीय रहा है। चन्दपण्णत्ती और सूरपण्णत्ती ३४ १. ठाणं, ४१६१ २. ३. नंदी, ७७, ७८ ४. Doctrine of the Jains P. 102 ब्रह्ममुनि धर्मसागर और वानरऋषि नाम बोध स्थानांग में चार अंगबाह्य प्रज्ञप्तियां बतलाई गई हैं। उनमें प्रथम प्रज्ञप्ति का नाम चन्द्रप्रज्ञप्ति और दूसरी का सूरप्रज्ञप्ति है। कषायपाहुड में भी इसी क्रम से नामोल्लेख मिलता है। प्रथम प्रज्ञप्ति में चन्द्र की वक्तव्यता है, इसलिए उसका नाम चन्द्रप्रज्ञप्ति है और द्वितीय प्रज्ञप्ति में सूर्य की वक्तव्यता है, इसलिए उसका नाम सूरप्रज्ञप्ति है। विषय-वस्तु ५. जिनरत्नकोश, पृ० ११८ ६. वही पृ० ४५२ आगम की प्राचीन सूचियों से पता चलता है कि चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूरप्रज्ञप्ति दो आगम हैं । 'नन्दी' की आगम सूची में चन्द्रप्रज्ञप्ति को कालिक और सूरप्रज्ञप्ति को उत्कालिक बतलाया गया है । ' इस भेद का हेतु क्या है, यह अभी अन्वेषणीय है । चन्द्रप्रज्ञप्ति वर्तमान में प्रायः उपलब्ध नहीं है । उसका थोड़ा-सा प्रारंभिक भाग मिलता है । यद्यपि कुछ हस्तलिखित आदर्श 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' के नाम से उपलब्ध होते हैं और कुछ आदर्श सूर्यप्रज्ञप्ति के नाम से मिलते हैं, किन्तु प्रारंभिक सूत्र को छोड़कर इनका पाठ एक जैसा है। आचार्य मलयगिरि ने इन दोनों की व्याख्याएं लिखी हैं, उनमें भी प्रायः समानता है । वर्तमान धारणा के अनुसार चन्द्रप्रज्ञप्ति आज उपलब्ध नहीं है । जो उपलब्ध है, वह सूरप्रज्ञप्ति है । डा० वाल्टर शुब्रिंग ने एक प्रकल्पना प्रस्तुत की है - सूरप्रज्ञप्ति के १० बें से पाहुड़ आगे सूर्य की अपेक्षा चन्द्र और ताराओं को अधिक महत्त्व दिया गया है अतः हम यह अनुमान करते हैं कि दसवे 'पाहुड़' से चन्द्रप्राप्ति का प्रारम्भ हुआ है। किन्तु चन्द्रप्रज्ञप्ति की समग्र विषयवस्तु की जानकारी के अभाव में शुत्रिय के निष्कर्ष को सहसा निर्णायक नहीं माना जा सकता। फिर भी उसमें विचार के लिए अवकाश है । व्याख्या ग्रंथ चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूरप्रज्ञप्ति दोनों पर मलयगिरि-कृत टीकाएं उपलब्ध हैं । दोनों टीकाएं प्राय: समान हैं। उनमें जो अन्तर है, वह परिशिष्ट में दिया हुआ है। 'जिनरत्न कोश' के अनुसार चन्द्रप्रज्ञप्ति की टीका का ग्रन्था ६५००५ तथा सूरप्रज्ञप्ति की टीका का ग्रन्थाग्र ६००० है । भद्रबाहु कृत पाहू, प्रथम अधिकार, पेज्जदोसविहत्ती, पृ० १३७ " १६३६ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ नियुक्तियों में सूरप्रज्ञप्ति की नियुक्ति का उल्लेख है। किन्तु वह मलयगिरि के समय में अनुपलब्ध थी। उन्होंने अपनी टीका में पूर्वाचार्यों के मत का भी उल्लेख किया है।' निरयावलियाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम एक श्रुतस्कन्ध है । इस का प्राचीनतम नाम उपांग प्रतीत होता है । जम्बूस्वामी ने उपांग का क्या अर्थ है, यह प्रश्न पूछा । सुधर्मा स्वामी ने इसके उत्तर में कहा-उपांग के पांच वर्ग हैं --निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा।। 'उपांग' शब्द का बहुवचन में प्रयोग किया गया है। उपांग पांच वर्गों का एक श्रुतस्कन्ध है। इसलिए संभवतः बहुवचन का प्रयोग किया गया है । इसका मूल अंग कौन-सा है, इसके बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है । वर्तमान में प्रस्तुत श्रुतस्कन्ध के लिए 'उपांग' शब्द प्रचलित नहीं है । अभी 'उपांग' शब्द के द्वारा बारह आगमों का संग्रहण है। 'नन्दी' सूत्र की आगमसूची में 'उपांग' शब्द का उल्लेख नहीं है। वहां 'निरयावलिया' आदि पांचों स्वतंत्र आगम के रूप में उल्लिखित हैं । अनुमान किया जा सकता है कि 'नन्दी' सूत्र की रचना के उत्तरकाल में पांचों आगमों की एक श्रुतस्कन्ध के रूप में व्यवस्था की गई और श्रुतस्कन्ध का नाम 'उपांग' रखा गया। प्रो० विन्टरनित्ज के अनुसार ये पांचों आगम निरयावलिका के नाम से प्रसिद्ध थे। अंग और उपांग की व्यवस्था के समय से वे अलग-अलग गिने जाने लगे। 'निरयावलिया' का दूसरा नाम 'कल्पिका' मिलता है। नंदी के कुछ आदर्शों में वह उपलब्ध है। आचार्य हरिभद्रसूरि और आचार्य मलयगिरि ने नंदी की वृत्ति में 'कल्पिका' का ही उल्लेख किया है। यह संभावना की जा सकती है कि 'उवंगा' के प्रथम वर्ग का नाम 'कल्पिका' था, किन्तु नरक-परिणाम वाले कर्मों का वर्णन होने के कारण इसका दूसरा नाम 'निरयावलिका' रख दिया गया। इस प्रकार प्रथम वर्ग के दो नाम हो गए-निरयावलिका और कल्पिका । विषय-वस्तु निरयावलिका श्रुतस्कन्ध का प्रतिपाद्य विषय है--शुभ-अशुभ आचरण, शुभ-अशुभ कर्म और उनका विपाक । १. आवश्यक नियुक्ति, गाथा ८५ २. सूर्यप्रज्ञप्ति, वृत्ति पत्र, १, गाथा ५---- अस्या नियुक्तिरभूत् पूर्व श्रीभद्रबाहुसूरिकृता । कलिदोषात् साऽनेशद्, व्याचक्षे केवलं सूत्रम् ॥ ३. सर्यप्रज्ञप्ति, व०प०१६८..."तदेवं यथा पूर्वाचायरिदमेव पर्वसूत्रमवलम्ब्य पर्वविषयं व्याख्यानं ___ कृतं तथा मया विनेयजनानुग्रहाय स्वमत्यनुसारेणोपदशितम् ।" ४. निरयावलियाओ ११४, ५ ५. History of Indian Literature, Second edition, Vol II PP. 457-458 ६. नन्दी, सूत्र ७८ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम वर्ग में चेटक और कोणिक के भयंकर युद्ध का वर्णन है। इसका उल्लेख भगवती और आवश्यक चणि' में भी मिलता है। बौद्ध साहित्य में भी इस युद्ध का उल्लेख मिलता है। यह आश्चर्य का विषय है कि इतिहास में इस युद्ध का कोई उल्लेख नहीं है। युद्ध आत्मरक्षा से लिए अनिवार्य हो सकता है। उस हिंसा को एक गृहस्थ के लिए आवश्यक कहा जा सकता है। फिर भी हिंसा हिंसा है, उसे अहिंसा नहीं माना जा सकता । प्रस्तुत वर्ग में यह युद्धविरोधी स्वर उभरकर सामने आया है और वह युद्ध को धार्मिक रूप देने के प्रतिपक्ष में एक सशक्त उद्घोष है। दुसरे वर्ग में धर्म की आराधना करने वाले श्रेणिक के दस पौत्रों की सद्गति का वर्णन है। तीसरे वर्ग में संयम और सम्यक्त्व की आराधना और विराधना का प्रतिपादन है। चौथे वर्ग में पार्श्वनाथ की दश शिष्याओं का निरूपण है। पांचवें वर्ग में वृष्णि-वंश के बारह राजकुमारों की चारित्र-आराधना और 'सर्वार्थसिद्धि' में उत्पत्ति का निरूपण है। इस प्रकार इस लघुकाय उपांग या निरयावलिका श्रुतस्कन्ध में अनेक रुचिपूर्ण एवं महत्त्वपूर्ण विषयों का प्रतिपादन हुआ है। रचनाकार और रचनाकाल प्रस्तुत श्रुतस्कन्ध के रचनाकार और रचनाकाल के बारे में कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है। यह अंगबाह्य श्रुतस्कन्ध है। इससे यह निश्चित है कि यह किसी स्थविर की रचना है । इसमें भगवती, ज्ञाता, उपासकदशा, औपपातिक और राजप्रश्नीय से संबंधित विषयों की चर्चा मिलती है। किन्तु इस आधार पर रचनाकाल का निर्णय नहीं किया जा सकता। आगमसूत्रों के व्यवस्थाकाल में पूर्ववर्ती आगमों में उत्तरवर्ती आगमों के नाम उल्लिखित किए गए हैं, अतः वे रचनाकाल के पौर्वापर्य के निर्णायक नहीं बनते । व्याख्या-ग्रन्थ प्रस्तुत श्रुतस्कन्ध पर एक संस्कृत व्याख्या उपलब्ध है । विक्रम संवत् १२२८ में श्री चन्द्रसूरि ने इसकी व्याख्या लिखी थी। वह बहुत संक्षिप्त है। मुनि धर्मसी (धर्मसिंह) ने इस पर गुजराती में एक टब्बा (स्तबक) लिखा था। कार्य-संपूर्ति प्रस्तुत ग्रन्थ के संपादन का बहुत कुछ श्रेय युवाचार्य महाप्रज्ञ को है, क्योंकि इस कार्य में अहर्निश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य संपन्न हो सका है, अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता। इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है। सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रमपरायणता, और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण-भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है । यह वत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है। इनकी कार्यक्षमता और कर्तव्यपरता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। १. भगवती, ७।१७३, २१० २. आवश्यकचूणि, भाग २, पृ० १७४ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बलबूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया था। प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा । उन सबको मैं आशीर्वाद देता हं कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो। यह बृहत् कार्य सम्यग् रूप से सम्पन्न हो सका, इसका मुझे परम हर्ष है। -आचार्य तुलसी अणुव्रत भवन (नई दिल्ली) २२ अक्टूबर, १९८७ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Editorial The present volume consists of nine āgamas :- 1. Paņņavaņā, 2. Jambuddiva. pannatti, 3. Candapaņņatti, 4. Sūrapannatti, 5. Nirayāvaliyão, 6. Kappavadimsiyão, 7. Puppliyão, 8. Pupphacūliyão, and 9. Vanhidasão. The upāngas are twelve in number. Three upāngas have already been included in the 'Uvangasuttăņi', Part 4, Volume 1. The original text of the remaining nine upāngas, with variant readings, has been incorporated in the present volume. The word index of Angasuttāṇi has already been published as a separate book (Āgama-sabda-kośa). To provide convenience to readers as well as the research scholars a joint word index of the above-mentioned nine agamas is appended in this volume. With the publication of this volume, the publication work of all the 32 canons is now over. This Agama-sütra series at present contains seven volumes as under: 1. Angasutrāni, Part I: Āyāro, Sūyagado, Thāṇam, Samavão. 2. Angasuttani, Part II : Bhagavai. 3. Angasuttäņi, Part III : Nāyādhammakahão, Uvāsagadasão, Antagadadasão, Aņuttarovavāiyadasão, Panhāvāgaraņāim, Vivāgasuyam. 4. Uvangasuttāņi, Part IV, Volume 1 : Oväiyam, Räyapaseniyam, Jivājivabhigame. 5. Uvangasuttāni, Part IV, Volume II : Pannavaņā, Jambuddivapaņņatti, Candapannatti, Sūrapannatti, Niraya. valiyão, Kappavadimsiyāo, Pupphiyao, Pupphacūliyão, Vashidasão. 6. Navasuttāṇi, Part V: Avassayam, Dasaveāliyam, Uttarajjhayaņāņi, Nandi, Aņuogadārāim, Dasão, Kappo, Vavahāro, Nisihajjhayanam. 7. Agama Sabda Kosa (Angasuttāņi Sabdasūci). Under this series of original texts, the work of editing the other canons too is in progress. They are likely to contain prakirņaka, niryukti and bhäşya. On Mahāvira Jayanti of 2012 Vikram Samvat (1955 A.D.), Acāryasri Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2018 declared his intention to edit the āgamas, and the assignment was taken up in the caturmāsa of the same year. Many obstacles were faced in the work of editing for want of the correct versions. Consequently we thought of correcting the text to begin with. The work was actually started in 2014 V.S. (1957 A D.) and brought to completion in 2037 V.S. (1980 A D.) as follows:Dasavedliyam Vikram Samvat 2014 Uttarajjhayaņāņi 2016 Nandi, Aņuogadārāim 2018 Ovāiyam, Rāyapaseniyam 2018 Thāņam Samavão 2018 Süyagado 2019 Nāyādhammakahāo 2020 Āyāro, Ayāracūlā 2022 Uvāsagadasão, Antagadadasão 2026 Anuttarovavāiyadasão 2026 Vipāka 2028 Paņhāvāgaraņāim 2028 Nirayāvaliyão 2029 Bhagavai 2030 Paņpavaņā 2031 Dasão, Pajjosavaņākappo Kappo 2033 Vavahāro 2033 Jivājivābhigame 2034 Jambuddiva paņņatti 2035 Nisihajjhayanam 2035 Candapaņņatti, Sürapannatti 2037 It is well known to all working in this field that editing is the most difficult job, specially when the texts to be edited are separated by a gap of several millennia in respect of language, style and thought. It is unexceptionally true that a thought or a custom does not continue in its original shape through the ages. It invariably expands or contracts. The story of expansion and contraction is the story of change. "What is made up' is necessarily amenable to change. The insistence on the eternality of events, facts, thoughts and customs that are subject to change leads one to untruth and false imagination. The truth is 'what is made up' is necessarily transient. Whether 'made up' or 'eternal', it must needs be susceptible of change. Whatever there is must be of a nature that is not absolutely divorced from the stream of eternity and change. It is possible that an idea or truth expressed by a particular word is capable 2032 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ of being expressed with its original connotation at all times? The semantic change is a necessary phenomenon and so no one with a knowledge of linguistics will insist that a word continues to have the same connotation through a period of two thousand years. For example, the expression pāşanda has not the same meaning in modern śrumaņic literature as it had in the times of the Agamas and Ashoka's inscriptions. It has acquired a derogatory nuance. Hundreds of words in the ancient Agama literature have shared the same fate. Under the circumstances, any thoughtful person will appreciate the difficulties in the task of an editor of ancient literature. Self-confidence is an innate virtue of human beings who take great pride in the exercise of their courage, and do not shirk from responsibility however ardous. Were escapism a human virtue, not only the achievement of any enduring value would have been impossible, but whatever had been achieved in the past would have been lost at any time. About a millennium ago, Abhayadevasūri, the great commentator of the nine Angas was confronted with a great many obstacles which he had detailed as follows: (i) Absence of authentic tradition (sampradaya, about the meaning of the texts). (ii) Lack of authentic ratiocination (üha). (iii) Conflicting modes of recitation (vācana). (iv) Vitiated manuscripts. (v) Unfathomable depth of the sūtras. (vi) Differences of opinion (about the readings and the meaning). In spite of all these difficulties and hurdles, he did not draw back from the Herculean task, but on the contrary achieved something that was of a permanent value. Even today the difficulties are not fewer, but as the work of editing has been taken up by Acāryasri Tulsī himself, the task has acquired a new dimension. Any programme that is undertaken by him opens up new vistas, what to speak of the editing of the canonical literature which is by itself full of new possibilities. What is most conspicuous is that Acāryasri has infused life in the programme through me and my colleagues, monks and nuns, who were quite tyros in the field. Not only are his inarticulate blessings with us but also his concrete guidance and active co-operation are always available to us. He has given priority to the work and devoted plenty of time to it. Under his direction, deliberative counsel and encouragement, we could solve the problems, however formidable, that cropped up from time to time in the course of our difficult enterprise. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Procedure adopted in editing the text Pannavaņa In editing the text of Prajñāpana, four Ms. ādarśas were consulted, Acārya Malayagiri's Vịtti was also used for this purpose. Muni Punyavijaya's edition was also before us. But we do not take for granted a single particular edition or manuscript for our work. The important basic points for us are the critical exposition of the commentary, other parallelāgamic texts and the meanings of words. Accordingly, the reader will find many a deliberation in our edition for the purpose of arriving at correct readings. For example, take the word "ganthi” in 'vatthula kacchula sevāla ganthi'. Here 'ganthi' is incorrect. The correct version should be 'gatthi'. We have come across the reading ‘ganthi' alone in all the available manuscripts as also in the âgamas edited by Muni Punyavijayaji. This reading has been revised on the basis of Jivājīvābhigama and Jambūdvīpaprajñapti. Please refer to the footnote of 1/38 of this agama. Another instance is 'titthāṇavadite', in place of which some ādarśas contain the reading as "cautthāṇavadite", and Muni Punyavijayaji too has accepted the latter reading. But on the basis of the Vštti, we have preferred 'titthāņavadite', which is endorsed by the vsiti of Pannavaņā, 5/115,116. Please refer to Prajñāpanā Vstti patra 195-196 as also the footnote of Pannavaņā, 5/115. Jambūdvipaprajnapti Seven different texts and three commentaries were consulted in the revision of the text. We find many variant readings and notes thereon in the vșttis of Upādhyāya Sānticandra and Hīravijaya. Please refer to the footnote of 4/159. This āgama abounds in variant readings. Upādhyāya Sánticandra has described in detail the variant readings, as is evident from the footnote of 2/12. At other 1. Sānticandriyavptti, patra 87: Variation of text-vacanäbhedastadgatapariņāmäntaramäha--müe dvadasa yojanäni viskambhena madhye'stayojanāni viskambhena upari catvāri yojanāni viskambhena, atrāpi viskambhāyāmataḥ sådhikatriguņam mūlamadhyāntaparidhimānam sūtroktam subodham. aträha parah-ekasya vastuno viskambhādiparimāņe dvairupyāsambhavena prastutagranthasya ca sātisayasthavirapranitatvena katham Dānyataranirnayah ? yadekasyāpi rşabhakūtaparvatarya mulādāvastādiyojanaviststatvadi punastraivāsya dvādaśādiyojanaviststatvaditi, satyam jinabhattarakanām sarveşām ksãyikajñänavatāmekameva matam mülatah paścăttu käläntarepa vismstyādina'yam vacanābhedab, yaduktam śrīmalayagirisūribhirjyotiskarandakavsttau-"iha skandilācārya pravs (tipa)tau duşşamānubhavato durbhikşapravsttyā sādhūnām pathanagunanā. dikam sarvamapyanesat, tato durbhikṣātikrame subhiksapravsttau dvayoh sanghamelāpako' bhavat, tadyatha-eko valabhyāmeko mathurāyām, tatra ca sūtrarthasamghatane parasparam vācanābhedo jātaḥ, vismstayorhi sūtrarthayoh smstvá sanghatane bhavatyavasyam vācanā. bheda" ityādi, tato'trapi duşkaro'nyataranirnayah dvayoh pakşayorupasthitayoranatiśāyijñānibhiranabhiniviştamatibhih pravacanāsátanābhịrubhiḥ punyapuruşairiti na kācidanupa. pattih. Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1/23 places we come across incorrect explanation due to faulty text, as is given in footnote 4/49. Candraprajñapti and Süryaprajñapti In order to revise the text, we consulted five manuscripts and the výttis of these āgamas. We rarely depended on a particular ādarśa. The complete text of Candraprajñapti is not available. Its variation from Süryaprajñapti has been given in an Appendix. We come across some manuscripts which have passed for Candraprajñapti. Their variant readings are contained in the footnotes of Suryaprajñapti. Nirayāvalikā Three manuscripts and the Vștti by Sricandrasūri have been consulted in revising the text of the five chapters of Nirayāvalikā. Transformation of Words and Metamorphosis PAŅŅAVAŅĀ 1/14 bendiya beindiya (ka, kha) 1/14 tendiyao teindiya (kha) ogā ussā (ka, ga) 1/29 vāyamandaliya vāumandaliyā 1/35 aókolla ankulla (gha) 1/38 koranțaya korinţaya (ka) korenţa (gha) 1/48/47 balimodao palimodao (ka, gha) 1/93/4 viibhayam viyabhayam (ka, gha) 2/10 padiņa payīņa (ka) paīna (kha, ga, gha) 2/13 tadāgesu talāgesu 2/40 covatthi cosatthim (ka) 3/1 visesāhiyā visesādhiya (gha, pu) dāhinenam dakkhipeņam (ka, kha, gha) 3/102 vibhangaņāņiņa vihangañāniņa (ka, ga, gha) 3/127 aheloe aholoe (ga) adheloe (gha) 3/174 assātā asātā (kba, ga) 3/182 jahā jadhā (kha, gha) 3/183 sakasai sakasādi (ka) 4/255 egūộavisam ekūộavisam (ka, gha) ekkūņavisam (kha) 4/275 paņuvisam pancavisam (kha, gha) (ka) (ka) 3/7 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5/5 jadi jai 5/5 mahurao abbhahie 515 5/7 5/101 5/179 5/242 6/46 8/8 11/6 11/21 11/25 11/30 11/37 11/37 11/72 11/75 11/84 vadie maņusse vaddhijjanti eeņaţthepam abhilāvo osaņnao Panamani vage sayanam sarirapahavā voyada avvoyadā ānamani parivaddhamāņāim kadalīthambhāņa pisarati paņavisam (ga) (kha, ga, gha) gati (pu) madhuro (ka, kha) abbhaie (ka) abbhatie (pu) opadie (ka) maņuse (ka, kha, gha) vuddhijjanti (ka, ga, gha) eņaţthenam (ka, kha) ahilão (kha, gha) ussanna (ka) āņavaņi (kha, ga, gha) vige (ka, kha, ga, gha) satanam (ka) sa: irappabhavā (ka, kha, ga, gha) vogada avvogadā (ka) yānamaņi (gha) parivaddhemāņāim (kha, gha) kadalikhambhāņa (ga) nissarati (kha) nissirati (ga) nisarati (gha) bīyam (ka, ga) bhāsajāya (ga) baddhillayā mukkillayā (ka, kha, ga, gha) 11/88 11/88 12/7 (ga) (ka, kha) (ga) (pu) 12/7 13/8 15/35 15/35 15/50 15/53 15/58 16/15 16/34 16/51 16/54 16/55 16/55 17124 bitiyam bhāsajjāyam baddhellayā mukkellayā osappiņihi aņāgaroo Daggohao sādi pehamāne pehati othiggale Rovacaye ahavege paccatthlmillam āyariyam seyansi māulungāna tinduyāņa iņaţthe avasappiņihi aņāyāro niggohao sāti pehemāņe peheti othiggile °ovacate ahavete pacchimillam āyaritam seinsi mātulingāna tiņduyāņa inamaţthe (ga) (kha) (kha, gha) (ka, kha) (pu) (ka) (ka, ga) (ga) (ga) (ka) Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17/106 17/119 17/124 17/125 (kha, gha) (ka) (ka, gha) (ka, ga, gha) (kha, ga) (gha) (ga) 17/126 17/128 17/132 17/150 18/1 (gha) (ka, kha, gha) (ka, ga) (ka, ga) (kha, gha) (kha, gha, pu) 18/56 18/64 (ka) suio 20/28 21/25 21/47 21/92 23/3 tiņaţthe samabhiloemäne samabhilotemäne kinhao kaņha haladharao halahara kairasāre kayarasārae katarasārae bālindagove bālendagope balāhae balāhate apikkānam apakkāņam āgarabhāvamātie āgārabhāvamāyāe vede vee vete vaijogi vayajogi sakasāi saka sādi sakasāļi savaṇatāe savaņayāte sūyio dhaņupuhattam dhaņuha puhattam sagāim sagāti sayāim ņiyacchati nigacchati niggacchati kadassa katassa kayassa niyāgoyassa nītāgotassa khavae khamae aphāsāijjao apphāsāijja apadivai apadivādi sagāim sataim sayātim pariyāiyaņayā pariyādiņayā pariyāyanayā jānanti yāṇanti sapariyārā saparicārā JAMBUDDIVAPAŅŅATTI vicchiņņā vitthiņņā Onauyao naotao dhapupaţtham dhapuvattham dhaņupuţtham 'padoyāre opaļogāre pāsim passim duhā dudhā 23/13 (gha) (kha) (ka, gha) (kha) (ka, gha) (ga) (ka, gha) (ka) (ka, gha) (kha, ga) (ka, gha) (kha) (ka, gha) (ka, gha) (ka, gha) (kha) (kha) (ka, ga) (ka, kha, ga, gha) (kha, ga) 23/22 23/191 28/44 33/1 33/17 34/1 3416 34/15 1/8 1/18 1/23 (a, kha) (a, ka, ba) (a) (kha) (tri, ba) (a, tri, ba) (kha, sa) 1/26 1/28 1/48 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2/4 2/4 2/14 2/15 2/20 2/32 2/70 2/78 2/131 2/133 2/133 2/133 3/3 3/11 3/11 3/11 3/11 3/20 3/20 3/21 3/22 3/23 3/24 3/26 3/35 3/35 3/35 3/35 3/35 3/35 hatthassa udü "padoyäre meini ittha kahaga "hāsa vākaremāṇāņam hāhābhūe vallvigaya tolakiti slunha jūva pausiyão babbari bahali "kaducchuya duruhai bambhayari durüdhe bola balacanda tundam antavale "paṭṭasangahiya "khinkhipl" ayojjham soyamaņi "ppagasam" visutam ૪૬ hi!thassa udü ūu 'paḍokāre metini yattha ettha kadhaka hassa vāgaramāṇāņam hāhābbhūte pallvigaya dolakiti dolagiti tolägitti Jolagati siyaupha jūya vausiyão papparl pahali "kadicchuya" *kadecchuya druhai parhhacārl rüdhe drudhe pola "balayanda. "topdam antapäle anteväle "vaṭṭasangahiya "kinkini ajojjham aojjham avojjham sotamani sodāmani "ppakasam vissuttam (ka, kha) (tri) (pa) (ba) (tri, ba) (a, ba) (ka, kha, sa) (a, kha, ba) (a, kha, ba) (pa) (a, ka, kha, ba, sa) (a) (a) (ka, kha) (tri, sa) (pa) (ka, kha, tri, ba, sa) (ka, kha, pa, sa) (ka, kha, pa, sa) (a, ba) (a, ba) (kha) (a, ba, sa) (a, ba) (a, tri, ba) (a) (ba) (a, ba) (sa) (ka, pa, sa) (a, tri, ba) (ka, kha) (a, ba) (ka, kha, sa) (a, ba) (ka, kha, pa, sa) (tri) (ka) (kha, sa) (a, ka, kha, tri, ba, sa) (ka, sa) Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3/77 3/117 3/117 3/138 3/178 3/194 3/211 3/214 3/220 (b) (sa) 3/221 3/223 4/36 4/54 4/55 4177 4/85 4/86 cindhapatte 'cindhavatte (ba) mirii Omarii (tri) uūņa udūņa (a, kha, ba) riduna (ka, sa) ohidayao ohiyayao (a, tri, pa, ba) Chitayao (ka, sa) 'hadayao (kha) onihic onihito (a, tri, ba) nihao (kha, sa) abhiseyapidham abhiseyapedham (a, ba) ganthim ganthim (tri, pa) tisovāņa tisomāņa (a, ba) kāgani kākiņio (a) kāginio kākaņio puvvakaya puvvakada (ka, sa) ihäpoha ihāpüha (a, ka, kha, sa) ihāvūha (pu, vr) bāyaţthim bāsaţthim (pa) hrassatarāe hassatarāe (pa) dakkhiñenam dāhiņeņam (tri) harivāsam harivassam (a, pa, ba) sankhatala sankhadalao (pa, śāvs, puvspā) bāyāle pāyāle (a, ba) bāyālise (tri) nisahassa nisa assa (a, ba) sitodā siotā (a, ba) siodā (tri) sioā (pa) viuttare piuttare (ba) ņisadhao ņisabhao (a, b) nisahao (ka, kha, sa) hemavaya-herannavaya hemavaerannavaya (ka, kha, ba, sa) hemavaya eranpavaya (tri) nilavantassa ņelavantassa (a, ka, kha, ba, sa) saņiccāri saņisccārī (pa) uvavāyasabhäe otāvasabhãe (ka) jamagão javagão (a, ba) jamigão (kha) dasa daha (a, ka, kha, ba, sa) piyaya pitiya (a, ka, kha, tri, ba, są) 4/87 4/91 4/93 4/96 4/102 4/103 4/109 4/140 4/140 4/142 4/157 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ 4/180 4/210 4/231 5/25 (a, tri, ba) (tri) (ba) (a, ba) (ka, kha) (tri) (sa) (ka, kha) 5/58 5/58 7/31 7/122 7/126 (ba) (tri) (a, ba) (ka, kha, pa) (kha) (a, ba) (ka, sa) (kha) (a, ba) (ba) (a, ba, sa) (ka, kha) (a, ba) (tri) 7/128 8/128 7/129 parupparanti paropparanti sayajjalao sayañjalao palāso valása ghanţāpadensuyao ghanţăpadensukā ghanțāpadinsukā° ghanțāpaļissuyā ghanţăpadansuyao gāyāim gattāim gataim jansuo jāņuo uddhimuha uddhammuha uddhimuhao bhāviyappa bhāviyāyā abhijiyāyā abhijidaiya abhijādiya abhijādiya savano samane miyasara magasirao abhii abhiti abivi vahassai pahassati vahapphai kattigi kattiki kittiki kittigi assini āsiņi nangulāņam lāögūlāņam SŪRAPANNATTI ihagatassa idagatassa cauruttare caut tare pihula pidhula puhulo poggalā puggalā oyasanthiti totasanthiti oyāe otãe rayaņikhettassa rataņikhettassa rātikhettassa satā vayam...vadāmo vatam...vatāmo savane samaņo sāyam sāgam 7/130 7/155 (a) (kha, ba) (sa) 7/159 7/178 (ba) (pa) 2/3 2/3 4/3 6/1 6/1 6/1 (ga, gha) (ta) (ka) (ta) (ka, ga, gha) (ța, va) (ta) (ka, ga, gha) (ta)) (ga, gha, ţa, va) (va) (ga, gha) (va) 6/1 8/1 sadā 9/3 10/2 10/5 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ € (ka) 10/7 āsoi assot i (va) 10/10 asoinnam assodiņņam (ga, gha) 10/77 ādiccehim àticcehim (va) 10/78 barha bambhao (ka, ga, gha) 10/79 savane samane (ta, va) 10/87 bitiya bidiya (ka, gha) 10,89 duvihā tihi duvidhā tidhi (ka) 10/136 pāto pådo (ka, gha, va) 10/147 uvaiņāvetta uvādiņävettä (ka, ga, gha) uvātināvettä (ta, ba) 10/173 sayāvi satāvi (ka, ga, gha, va) sadāvi (ga) 14/2 kaham kadham (ka, ga, gha) 15/31 ahiyam adhiyam (ka, ga, gha) ahitam (ta) 18/34 mehuộavattiyam medhunavattiyam (ka, ga, gha) 20/1 ahe adho 20/2 vaiyarie vaticarie (ta) NIRAYĀVALIYAO 1/42 anpayā annada (ka) angatā (kha) 1/66 janavadam jaṇavayam (kha) 1/72 üsae üsave (kha) 1/91 piisoenam pitasoenam (kha) 1/97 patthe ppitthe (ka) putthe 1/97 andojāvei andodávei (ka) 1/117 nicchuhävei nicchubhāvei (ka) 1/127 lecchai lecchati 3/115 suvvayāo suvvadão (ka) 3/134 juyalam juvalam (kha) jugalam (ga) itthā titthā (ka) 4/21 bāosiya pāosiyā (ka, ga) savvouya savvoduya (ka, ga) 5/10 āhevaccam ādhevaccam (kha) DESCRIPTION OF MANUSCRIPTS AND PRINTED VERSIONS PANŅAVANA PAŅŅAVAŅĀ Text (manuscript) Place Punamchand Budhmal Dudhoria, Chhāpar. (ga) (ka) 4/19 516 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 Size 101" x 41" No. of folias 302 patras Lines per page No. of letters per line 33 to 41 Script Most beautiful and correct. Special information It belongs to 15th century approximately. It ends only with the mention of granthā. gra 7787. PAŅŅAVAŅĀ Tabbā (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnun. Size 91" x 4" No. of folios 465 patras Lines per page No. of letters per line 35 to 39 Script Beautiful Colophon "Pratyakaşaragananayā anuşthapacchandaḥ samānamidam granthāgram 7787 pramanam". Six verses of stabaka :"Samvat 1778 varșe phālguna mäse suklapakse pratipadā tithau ravivāre pandita iśvareņa lipi cakre śrī vennātaţa nagara madhye" śrīrastu kalyāṇamastu : Subham bhūyāllekhakapāthakayoḥ." Special Information It contains the text and stabaka. Ms. PAŅŅAVAŅĀ TRIPĀTHI with Text and Vrtti Place Order's Ms. Grantha Bhaņdāra, Ladnun, Size 93" x 41" No. of folios 448 patras Lines per page 1 to 16 No. of letters per line 37 to 45 Special Information Text is given in the middle, with vịtti up and down. Some pages have vrtti alone. Granthāgra of text is 7787 and that of vstti is 16000. The Ms. is beautiful and faultless. It must belong to 17th cen. approximately, PAŅŅAVAŅĀ Text (Manuscript) Place Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. Size 131" x 5" (9) Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( गवृ) (1) (૬) (a) No. of folios Lines per page No. of letters per line Script Special Information No. of folios Special Information Variations of Vrtti written in Ms. bearing sign. Vrtti (Manuscript) Place () Variation as approved by Malayagiri. (8) Compliled with 'Pradeśa' commentary by Haribhadra sūri'. Publisher-Shri Rşabhadeva Kefarimal, Ratlam, Part I; verses 11 JAMBUDDIVAPANNATTI Place ५१ 138 patras. 15 No. of folios & pages Lines per page No. of letters per line Special Information 60 to 65 Beautiful and correct. Every patra is illustrated in the middle and out of the margin too. It appears to belong to 16th cen. Nothing else is mentioned at the end except 'granthagram 7787'. Jambuddivapappatt! Text (Manuscript) Place No. of folios & pages Lines per page Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. 159 patras. Manuscript, Scribing year 1577, VaiSakha Sukla 10 Palm-leaf (photoprint) Ms. of Jaisalmer. Bhandara, belonging to Madanchand Gauti, Sardarshahar. 164, 328 2 to 6 Jambuddivapappatti Text (Manuscript) 30 to 35 Some of the lines are incomplete. The Ms. ends only with the mention of Granthagra 4146. It must be belonging to 14th century in view of its accompanying ms. Palm-leaf (Photoprint) Ms. belonging to Madanchand Gauti, Sardarshahar. 97 and 194 2 to 6 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (#) (=) (a) (4) Letters per line Script year Jambuddivapanpatti Text (Manuscript) Place No. of folios & pages Lines per page Letters per lines Script year Special Information Place Place No. of folios & pages Lines per page Letters per line Special Information XR Jambuddivapappatti Text (Manuscript) Place No. of folios & pages 47 to 50 Samvat 1378 Palm-leaf (Photoprint) of Jaisalmer Bhandara, belonging to Madanchand Gauti, Sardarshahar. 46 & 92 Scribing year Special Information. 20 70 to 74 73 No. of patras Jambuddivapappatt! Text (Manuscript) Samvat 1646 The size of letters is very small. Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. Ms. Section, JVB Library, Ladnun 101 & 202 13 Jambuddivapappatti Tripathi, Text and Vṛtti (Manuscript) 50 to 55 Ms. is antiquated and beautifully scribed. Script year is not mentioned. Ms. Section, JVB Library, Ladnun. 358 & 716 Pages 69-70 missing. Samvat 1913 Original text scribed in the middle, with commentary at top and bottom margin. Script beautifully written. () Vitti Tripathi by Hiravijaya Süri (Manuscript) () Variant readings as approved by Hiravijaya Suri Place No. of patras Scribing year Sepecial Information Order's Library, Ladnun. 582 Samvat 1919 Original text scribed in the middle and Vṛtti at top and bottom margin (g) Vitti by Mahopadhyaya Punyasagara, the disciple of Jinahansagavi of (पु वृ) Kharataragaccha (Manuscript). Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ (4) Variant readings as approved by Punyasagara. Place Beautifully scribed. (a) Vitti by Säntyäcārya, the disciple of Hiravijaya Suri of Tapagaccha Order (Manuscript). Place (TT) No. of folios & pages Scribing year Special Information Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. Scribing year Samvat 1551 () Variant readings as approved by Santyacārya. SURAPANNATTI (*) (*) Surapanpatti Text Place Serial No. of Ms. Size No. of folios Lines in each page Letters in each line Ink Scribing year Special Information Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. 243 and 486 Samvat 1575 Place Size No. of patras Line in each page Letters in each line Scribing year Special Information Surapanpatti, Original, No. 60 (Manuscript) LD. Institute of Indology, Ahmedabad. Då 2/57 123" x 5" 62 [The first leaf is missing]. 13 48 to 70 Picture drawing in Green and Red ink in the centre of each page. Not mentioned. Place Size No. of patras It is beautiful and easily legible. It is a very antiquated Ms. belonging to about 17th century. It ends with 25 verses in Prakrit language. L.D. Institute of Indology, Ahmedabad. 101" x 41" 87 11 33 to 41 Samvat 1570 Script is beautiful, but abounds in mistakes. Sarapannatti, Original, No. 607 (Manuscript) L.D. Institute of Indology, Ahmedabad. 10" x 4" 66 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 11 Lines per page 13 Letters per line 34 to 42 Scribing year Samvat 1673 Special Information Beautiful script but abounds in mistakes. (97) Sürapannatti, Commentary, No. 48. Place L.D. Institute of Indology, Ahmedabad. Size 121" x 5' No. of patras 224 Lines per page 13 Letters per line 44 to 60 Scribing year Saṁvat 1574 Special Information Script beautiful and distinct. CANDRAPRAJÑ APTI (*) Candapannatti Original No. 600 (Manuscript) Place L.D. Institute of Indology, Ahmedabad. Size 101" x 41" No. of patras Lines per page Letters per line 32 to 41 Scribing year Samvat 1570 Special Information Beautiful script, but abounds in errors. A bāvadi in the middle of the page. (a) Candapaņņatti Commentary (Manuscript) Place Order's Ms. Library, Ladnun. Size 10" x 41" No. of patras 179 Lines per page Letters per line about 50 Scribing year Samyat 1762 Special Information Script beautiful Candapaņņatti Tabbā (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnun. No. of patras NIRAYĀV ALIYÃO Nirayāvaliyão Text (Manuscript) Place Palm-leaf (Photoprint) copy of Jaisalmer Bhandāra, belonging to Madanchand Gauti, Sardarshahar. (a) 57 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ No. of folios & pages 25 & 50. Nine patras are photoprinted. Each page contains photos of six pages. Somewhere it is less or more. Size 12' x Lines per page 5 lines of the text. Some patra contains 2 or 3 lines also. Some lines are even incomplete. Letters per line 45 to 50 Special Information No colophon at the end. Nirayávaliyão Text (Manuscript) Place Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. Size 131" x 5" No. of folios & pages 19 & 38 Lines per page 15 Letters per line 71 to 75 Ink Black colour. A bāvadi in the middle portion and a n in Red ink in its centre. Scribing year Not mentioned Special Information It should belong to 16th cen. approximately on the basis of the copy accompanying Nirayāvaliyão Tabbā (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnun. No. of folios & pages 63 and 126 Lines per page Letters per line 35 to 45 Size 101" x 41 Scribing year Samvat 1833 Nirayāvaliyão Vịtti (Manuscript) Place Srichand Ganesbdass Gadhaiya Library, Sardarshahar No. of patras Size 131" x 5" Soribing year Samvat 1575 Printed Vștti Editors A.S. Gopani & V.J. Choksi Publisher Shambubhai J. Shah, Gurjar Granthratna Karyalaya, Gandhi Road, Ahmedabad. Year of publication 1934 A.D. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acknowledgement of Collaboration The tradition of councils in Jainism is very old. As many as four councils had been held before the period that ended ere a millennium and a half from now. After the time of Devardhigaņi no well-organised council was held. The Āgamas committed to writing in his time were disorganised to a very great extent in this long interval. A fresh council was therefore a desideratum. Acārya Sri Tulsi made an attempt at holding a Comprehensive Consentaneous Council, but could not succeed. Ultimately we arrived at the view that our Council will serve the same purpose, if it was based on impartial research and complete dedication to the cause of truth. We started our work in accordance with this resolution. The chief inspiration to this council is the Acārya Sri. The council is a deliberative assembly headed by an eminent personality who combines in himself a variety of functions, the chief among them being teaching and instruction, translation, investigation, critical study, sorting out correct reading and so on. We enjoyed the active cooperation, guidance and encouragement in all these activities from the Ācārya Sri. This indeed was our strength and support for undertaking such an arduous task Instead of feeling relieved of the burden by expressing my gratitude to the Ācārya Sri, it would be better for me to feel more burdened by the support of his blessing for the future work and responsibility. In editing the text of the nine upāngas in the present volume I received sufficient cooperation from Muni Sudarshanji and Muni Hiralalji. In the work of ascertaining the readings in Pannavaņā and Nirayāvaliyão, Muni Balchandji and Muni Madhukarji respectively offered assistance. In preparing the press copy, Late Mannalalji Borad also proved helpful. The work index of Paņņavaņā has been prepared by Muni Śrichandji, of Jambuddivapannatti, Sūrapaņņatti and Candapannatti by Muni Sudarshanji and of Nirayāyaliyo by Muni Hiralalji. The first Appendix and the extent of the text was determined by Muni Hiralalji. In preparing the word indexes of Pannavaņā and Jambuddivapaņņattī, Sādhvi Jinaprabhā and Sadhvi Chandanbālā respectively contributed a lot. In proof-reading Muni Sudarshanji, Muni Hiralalji, Muni Dulaharajji and Samaņi Kusumprajñā actively cooperated. At certain stages Muni Vimalkumarji and Muni Sampatmalji also proved helpful. Muni Hiralali was specially engaged in revising the text again. I express sentiments of gratitude for all those, in addition to the names already mentioned, who contributed whatever little they could in editing the text of the 32 agamas. In this task we utilised the mss. belonging to the institutions such as L.D. Institute of Indology, Ahmedabad, Shrichand Ganeshdass Gadhaiya Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pustak Bhandāra, Sardarshahar, Terapantha Sabha, Sardarshahar, Punamchand Buddhamal Dudhoriya, Chhapar, Ghewar Pustakalaya, Sujangarh, Jain Vishva Bharti, Ladnun and Jaisalmer Bhandāra, in addition to Order's Bhandāra. The text of Nandi revised by Muni Punyavijayaji was also made available to us. All this proved a valuable assistance to us. An important stage of the publication of the revised text of 32 āgamas, which began under the able stewardship of Acārya Sri Tulsi as Vācanā-pramukha, is completing today. For the first time the revised and authorised version of the 32 agamas is being made available to the scholars. It is a matter of ineffable joy for us. The work of the editing of agamas first started in V.S. 2012 at Ujjain. In that year the word indexes of almost all the 32 agamas had been prepared. Several monks and nuns were actively engaged in it. Groups, each containing three or four monks or nuns, were formed and they finished the assignment without any Joss of time. On the one hand the aged monks like Muni Chauthmalji, Muni Sohanlalji (Churu) etc. were actively engaged in it while on the other band the younger monks too devoted themselves wholeheartedly to this job, which was like a campaign and every participant was full of the awakening of a new spirit. The text was unrevised so far, so it could not be utilised fully well. Word-indexes had got to be prepared anew, but whatever line of action was chalked out, was quite commendable. One special and worth-mentioning characteristic of this editing is that everything was done by the monks themselves and no external help from any scholar-householder was required. The whole credit goes to the leadership of Acārya Sri as also to the Terapanth Religious Order. I cannot afford to forget on this occasion the services rendered by the late Madanchandji Gothi who had a very sound knowledge of āgamas and was exceedingly helpful in revising the text of āgamas. Had he been alive, he would have felt satisfied on the publication of this volume. The Managing Director of the Āgama series, Sri Srīchand Rampuria (Vice-Chancellor, Jain Vishva Bharti) has been taking interest in this work since its inception. He is ever devoted to the task of popularising the Agamic lore. After retiring completely from his well-established profession, he has been devoting a major part of his time to the service of Agama literature. Sri Khemchand Sethia and Sri Srichand Bengani, the President and the Secretary respectively of Jain Vishva Bhart i have cooperated a lot towards the successful completion of this task. The English rendering of 'Editorial' and 'Introduction has been made by Dr. Nathmal Tatia. The mention of the cooperation of the co-workers in a common enterprise is only a formality. In fact it was a sacred duty of all of us and that we have fulfilled. Anuvrata Bhawan, Delhi. -Yuvācārya Mahāprajña 22nd Oct., 1987. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The present volume consists of nine agamas -uvañgas-Panṇavaņā, Jambuddivapanpattl, Candapanpatti, Surapannatti, Nirayavaliyão (five in number). PANNAVANA The canon under review is Panṇavaṇā (Prajñāpanā). It treats extensively the two substances-sentient being (jiva) and insentient being (ajiva). The term used in the beginning is'prajñāpanā', hence the whole canon bears the name 'Prajñāpanā". One of its aims is to interpret the Reality through QuestionAnswer method, and the same thing has been done in this canonical text. That also justifies its nomenclature as Prajñāpanā. In the opening gäthas, this āgama has been named as 'Adhyayana' which shows that one of its names is 'Adhyayana' also. It relates to Drstivada, the twelfth anga, so it has been called as the essence or niḥsyanda of Drstivada. Subject-Matter It contains 36 topics (padas) which discuss the various aspects (paryayas) of soul (va) and non-soul (ajiva). It is like an ocean of the Science of Reality (tattva vidya) through which the deeper meaning of Indian Science of Reality can be appreciated. The first topic (pada) provides two classifications of vegetable-bodied beings-the individual-bodied (pratyekalariri) and commonbodied (sädhäraṇasariri). The common-bodied presents such a unique picture of Socialism which cannot even be imagined in human society. It deals in greater details with the aryas and the mlecchas. Introduction This canon is the source book of the Science of Truth (tattvajñāna). Whereas the Bhagavari is an anga-pravista canon, the Pannavand is an Upanga. Both these Agamas are inter-related on account of their common theme of the Science of Truth. Most of the Prajñāpand has been included in Bhagavat! by Devarddhigan, as is evident from the use of Jaha pannavande' time and again. Its every pada is like the embodiment of abstruse metaphysical problems. It contains various important sutras about lefyd and karma, Nandisutra gives us the two classifications of Agamas-angapravista and 1. Pannavaṇā, gatha 2 2. " 3 " 3. 19 1/32 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० angabahya. The former is again twofold-vasyaka and Avasyaka-vyatirikta. The latter is again classified as kāliku and utkalika. Thus Pannṇavaṇā is Angabahya, Avasyaka-vyatirikta and Utkalika. Nandi does not contain any reference to Aliga and Angabahya. In the latter part of the Agama age the interrelation between Anga and Angabalya was determined. Accordingly, Prajñāpană turns to be the upanga of Samaväyänga. On what basis this interrelationship was determined is a matter of research. It would have been all the more intelligible if Prajñāpand had been recognised as Upanga of Bhagavati. Author and the Period of Composition Pannavana is the sum and substance (nibsyanda) of Drstivada. infer that its subject-matter has been derived from Drstivdda. Its author is Arya Syama 2 He was the 23rd in lineage from Acarya Sudharmasvami He was a powerful vacaka in the tradition of the lineage of vacakas. He flourished in the 4th century of Vira-nirvana. The date of composition of Punnavand is probably between the year 335 and 375 of Vira-nirvana. Nandi mentions the 'Mahaprajñāpand' which is now extinct. Both Mahaprajñāpand and Prajñāpanã are independent works. It cannot be said definitely whether the former is the progenitor of the latter or the latter contains any new topic. Among the twelve upangas, Prajñāpand holds a unique position. We can guess from this that it was composed at the period when the Purvas were passing into oblivion and their remaining portions alone were in memory Şatkhaṇḍāgama too came into existence at such a period. The remaining upangas were composed in the period subsequent to the composition of Prajñopand. All this conjecture has been made on the basis of their subjectmatter. Umäsvāti flourished in 5th century of Vira-nirvāņa. His Tattvärthasūtra mentions the sutra "arya mlecchaśca", which must be based on the first 'pada' of Prajñāpand. The clearcut idea and definition of 'drya' and 'mleccha' appearing there is net to be found elsewhere. On this basis Pannavana precedes the period of Umäsväti. Commentaries Many commentaries of Pannavaṇā are available. They are as follows: Commentaries 1. Pradeśa-commentary 2 Trtiya pada-Sangrahani Granthagra 3728 133 Author Haribhadrasüri Abhayadevasūri 1. Nandi, 73-77 2. Prajñāpana Vr, patra, 47/1, aryasyamo yadeva granthantareşu asaliga pratipädakam gautamapraśnabhagavannirvacanarupam sūtramasti tadevägama bahumanataḥ pathati. Prajñāpana Vr. Patra, 72; bhagavan āryasyamo'pi itthameva sütram racayati. 3. Tattvärthasūtra, 3/36 Date 8th Cen. First half of 12th Cen. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ » 1876 550 3. Vivsti 14500 Malayagiri 13th Cen. 4. Abhayadeva's Trtiva-puda-sangrahoni avacūrni Kulamandanagani 15th Cen. 5. Vrtti Anonymous 6. Vanaspati-suptikā or Vanaspati-"'icāra Municandra 12th Cen 7. Avacūri Padmasūri S. Bālāvabodha Dhanavimala 17th Cen Jivavijaya Year 1785 10. Stabaka Parınānanda 11. Pannavaņā ni Joda Jayācārya 1878 In addition to this, we also find some smaller commentaries of Pannavaņā. Muni Punyavijaya has mentioned the commentary named “Bijaka' by Harşakulagami'.! In Muni Punyavijaya's "Introduction to Prajñāpanā" and in 'Jinaratnakośa' we find mention of 'paryāya'. "Prajñāpana-sútra-säroddhåra" is also mentioned in Jinaratnakośa'. Acarya Malayagiri mentions cūrņi and Vrddhavyākhyā in his Vrtti. Cũrņi is untraceable at present. Malayagiri's commentary is the most elaborate among all the available commentaries. Ācārya Haribhadra Suri's commentary is the most original and basic too. JAMBUDDIVAPANNATTI Nomenclature This canon is known as Jambuddivapannatti (Jambūdvipaprajñapti). Prajñāpti means exposition, information or treatment. It contains the exposition of Jambūdvipa, hence it is called Jambūdvipaprajñapti. Sthānānga sūtra mentions four angabāhya prajñaptis--(1) Candraprajñapti, (2) Süryaprajñapti, (3) Jambūdvīpaprajñapti, and (4) Dvipasāgaraprajñopti. In Kasāyopôhuda, projñaptis have been classified as the five arthâdhikäras of 'parikarma' which is the first division of Drsțivāda—(1) Candraprajñapti, (2) Súryaprajñapti, (3) Jambūdvipaprajñapti, (4) Dvīpasāgara prajñapti and (5) Vyākhyāprajñapti." In Nandi, Jambūdvīpaprajñapti 1. Pannavana Suttam, Part II, Introduction, p. 158 1. Vrtti patra, 269 : āha ca cūrnikrt. ” ” 271 : aha ca cürniksto'pi. » » 272: yadah cūrņikst. » » 277 : aha ca cūrni krt. " 517 : prajñäpanāyāścūrno. " " 600 : taträivam vrddhavyakhyā. 1. Thāṇam, 4/189 2. Kasāyupāhuda, Adhikära I, pejjadosavihatti, p. 137; parivamme pañca atthāhivārā--candapannatti sūrapannatti jambūddivapannatti divasayarapannatti vi yahapannatti cedi Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ has been categorised as Kālika agama.' Subject matter Its main theme is Jambūdvípa. The list of peripheral and incidental topics is very long. Lord Rşabha, Kulakara, Bharata Cakravarti, Kālacakra, Sauramandala, and many others are the subjects dealt with in it. The description about Bharata Cakravarti's fourteen jewels and nine treasures has been described here in a lively manner. Under the 'wheel of eternity' (kālacakra), thrilling account has been given about the sixth spoke of the present descending cycle. Of all the available forecasts about the universal annihilation, it invites our attention most effectively. By going through it one is confronted with the horrors of the atomic warfare. Both Lord Rşabha and Lord Mahāvira have similarity in various respects. The former is called Ādi Kāśyapa while the latter is called Antyakāśyapa. Both propounded the path of five Great Vows. Like Lord Mahāvīra, Lord Rşabha also put on garment for more than a year, followed by absolute nudity. Bharata Cakravarti was seated in his palace of glass. While he was looking at his reflection in the mirror, he attained liberation. In later literature this incident is developed in a number of ways. At the loss of his finger-ring he felt the diminution of his beauty, which led him to deeper thought culminating into the attainment of a kevalihood. The canon gives us a beautiful picture of the termination of the 'yaugalika’ state, and the beginning of social life and political administration, It is a very important document to get a clear idea of the multifaceted personality of Lord Rşabha. A comparative study of the delineation of Rşabha in the present text with that in the Srimadbhägavata is bound to be very fruitful. The canon is divided into seven chapters which are called 'vakkhāro' or 'vakşaskāra'. Some of the topics are :1. Jambūdvīpa 2. Kālacakra & Rşabha-carita 3. Bharata-Carita 4. Jambūdvīpa : detailed description 1. Nandi, 78 2. Jambuddivapannattī, 2/130-137 3. Dhananjaya-namamala, 114, page 57 : vharsiyan vrşabho jyāyān punarădyah prajāpatiḥ / aikşvākuh kāśyapo brahma gautamo nábhijo'grajah // Ibid, 115, p. 58 : sanmatirmahatirviro mahaviro'ntyakaśyapah/ näthânvayo vardhamano yattirthamiha sampratam || 4. Jambuddivapannatti, 2/66 5. Ibid, 3/221,222 6. Avaśyakacūrni, p. 227 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 Birth Celebration of Tirthankara 7. Jyotiścakra. Author and Date This canon has been categorised as Upänga which shows that it was composed at a later period after Lord Mahävira's nirvana. Its author must be some anonymous elderly monk. The date of composition too is unknown. Jivājīvābhigame, containing detailed accounts of the Kalpavrksas, was also composed by the elders. Jambudvipaprajñapti gives only a brief account of them indicating the details through 'java'. This shows that Jambudvipaprajñapti was composed at a later period than that of Jīvājīvābhigame. Possibly we may ascribe it to an earlier date than the emergence of a clear-cut distinction between Svetambara and Digambara schools which are mostly unanimous about the contents of Jambudvipaprajñapti. On this basis we can guess it to belong to the 4th-5th century of Viranirvana. 4. Vrtti 5. Vrtti 6. Tika Commentaries About nine commentaries are available on this canon. Out of them, the Vrtti by Santicandra alone, has been printed; the remaining ones are unpublished. Santicandra has mentioned that Malayagiri's commentary was lost with the passage of time, but modern scholars have traced it out in the Jaisalmer Bhandara. The Vṛttis by Santicandra and Punyasagara bear the mention of Curni. These Commentaries are as follows: SN. Canon Granthǎgra 1. Cürni 2. Tika (in Prakrit) 3. (Prameyaratnamañjūṣā) 7. Tikā 8. Vrtti ६३ 14252 13275 18000 6. Geographical condition of Jambudvipa 15000 18352 Author Anonymous Haribhadrasūri Malayagiri Hiravijayasūri Punyasagara Sânticandra Brahma Muni Dharmasagara and Vanara Ṛşi Anonymous 9. Vrtti 1. Santicandra: Vrtti patra 2: "tatra prastuto pangasya vrttiḥ śrimalayagirikṛtā'pi sampratikāladoşeņu vyavacchinnā." 2. See, Jinaratnakośa, p. 130. 3. (a) Santicandra, Vrtti patra, 19: "paridhyanayanopâyastvayam curṇikäroktaḥ." (b) Vr. p. 53,252,278. (c) Punyasagari vrtti, patra, 122: "etaccurņo ca." Date 1639 (Vikram Sath) 1645 1660 1639 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * Muni Dharmasi has composed stabaka (tabba or bälävabodha) on it in Gujarati. The abundance of commentaries reveals that this canon was studied very frequently. CANDAPANNATTI AND SCRAPANNATTI Nomenclature Sthananga mentions four angababya prajñaptis, of which the first is Condroprajhapti and the second is Süryaprajñopti, Kasayapahtuda also mentions them in the same order." As the name connotes, the first prajñapti deals with the moon while the second one deals with the sun, so they are named as Candraprajñapti and Süryoprojñapti respectively. Subject Matter The list of agamas contains both these agamas-Candraprajñapti and Süryaprojhupti. Nandi's Agama-list too tells of Candraprajñapti as Kalika and Süryopropri as Urkalika." The cause of this distinction demands investigation. The former is not available at present but for a very small portion of its beginning. We come across some manuscripts entitled Candrup aftapti and Süryaprajhapti but their text throughout is identical except the initial sutra. Acarya Malayagiri has composed commentaries on both of them, and they are almost identical The general impression prevailing at present is that Candraprajñapt is not at all available these days. Whatever is available is Suryaprajñapti alone. Dr. Walter Schubring has put forward a conjectureSüryaprajñapti, from its 7th påhuda onwards, ascribes more importance to the moon and the stars, so we imagine that Candraprajhapti begins from the 10th pahula. But in the absence of the whole subject-matter of Candraprojñopti, Schubring's conclusions cannot be taken as authoritative outright. Even then there is much room for consideration. Commentaries Malayagiri's commentaries are available on both-Candraprajñapti and Suryaprajñopti. The commentaries are identical and whatever their difference is has been noted in the Appendix. According to Jinaratnakoša, the granthagra of the commentaries of these águmas is 9500 and 9000 respectively. Bhadrabahu's Niryuktis meation the Niryukti on Suryaprajñap 1, which was, however, not 1. Thānam, 4/189. 2 Kasayapahuḍa, Chapter I-"pejjadosa vihatti", p. 137 3. Nandi, 77,78 4. Schubring: The Doctrine of the Jaina, p. 102 5. Jinaratnakosa, p. 118 6. Ibid, p 452 7. Avasyaka-niryukti, gathä, 85 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ traceable in Malayagiri's period. He has mentioned the views of his foregoing ācāryas also in his commentary. NIRAYĀV ALIYO Nomenclature This agama is a śrutaskandha- Its oldest name seems to be upānga Jambūsvāmi enquired of Sudharmāsvāmi the meaning of upanga, whereon the latter replied--"Upānga is fivefold-Nirayávalikā, Kalpāvataṁśikā, Puşpikā, Puşpacūlika, Vrşnidaśā.93 The term 'upānga' is here used in plural number. It is a śrutaskandha consisting of five sections. The plural number is probably used on this reason. We do not know about its original anga. The term 'upānga' is not in vogue at present for the text. Upanga stands for the collection of twelve āgamas. Nandi's list of canons does not mention the term 'upānga', but only "Nirayāvaliyāo' etc. are mentioned as five independent āganas. It may be supposed that the five canons were regarded as a śrutaskundha in later times after the composition of the Nandi, and the śrutaskandha was named as upånga. According to Prof. Winternitz, these five āgamas were earlier known as 'Nirayāvalikä'. They were regarded as separate entities when the contents of angas and upangas were determined. Nirayávaliyao is also known as kalpikā, as we find this in some manuscripts of Nandi. "The same term has been used in the vrtti of Nandi by Ācārya Haribhadrasūri and Ācārya Malayagiri - It is just possible that the first group of the 'uvangā was named as 'kalpika', but as it related to the karmas leading to hell, it was given the second name Nirāyāva likā. In this way, the two names viz. 'Nirayāvalikā' and 'kalpika' originated. Subject-matter The main theme of the Nirayāvalikā śrutaskandha is the auspicious and inauspicious conduct and karma and the ir vipāka. In the first section we find the description of fierce battle between Cetaka 1. Vrtti p. 1, gåtha 5 asya niryuktirabhutpūrvam sribhadrabahusürikrta / kalidosät sä nesada y văcakse kevalam sitram // 2. Süryaprajñāpti, Vrti p 168 : tadevam yuthå pūrvåcåryairidameva pūrvasūtramavalambya pürvavisayam vyākhyānam krtam tathå mayà vineyajanānugrahāya s. amat yanusarenopadaršitam // 3. Nirayāvaliyão, 1/4,5 4. History of Indian Literature, II Edn, Vol. II, pp. 457-458 5. Nandi, 78 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ and Sreņika, which has been referred to not only in the Bhagavati' and the Āvaśyaka cūrņi”, but in the Buddhist literature too. It is surprising that history does not record this battle. Battle may be indispensable for self-protection, and the consequent violence may be regarded as inevitable for a householder. Even then none can deny that violence is, for all purposes, but violence and it can never masquerade as nonviolence. In the section under review, this anti-war attitude has come to the forefront, and it is a spiritual edict against the religious justification of holy wars. The second section contains the description of the salvation of Sreņika's ten grandchildren, who adopted the path of religious austerities. The third section propounds the observance and non-observance of restraint and equanimity. The fourth section contains the description of the ten nuns (disciples) of Pārsvanātha. We find the description of the observance of conduct by the twelve princes of Vrşội dynasty and their birth in 'Survārthasiddhi' in the fifth section. Thus various interesting and important topics have been propounded in this small-sized upānga, that is, Nirayävalikā śrutaskandha. Author and Date of Composition No definite information is available about the author and the date of composition of this angabāhya śrutaskandha. It is, however, certain that some elderly monk composed it. It deals with the topics related with Bhagavati, Jñāta, Upāsakadasă, Aupapātika and Rajapraśniya, but this is not a sufficient ground to determine the date of its composition. When the Agamas were analysed, it was found that the earlier agamas contain the names of the later āgamas, so they cannot determine which agamas were composed carlier and which at a later date. Commentaries A Sanskrit commentary is available on this śrutaskandha. Śricandrasuri wrote its commentary, a very abridged piece of composition, in the Vikram era 1228. A fabbá (stabaka) was composed on it in Gujarati by Muni Dharmasi (Dharmasingh). Completion of the Assignment The overall credit of its editing goes to Yuväcārya Mahāprajña. The work has come to successful completion due to the single-mindedness with which he applied himself to the task day and night, without which this gigantic task would have been insurmountable Being a yogi basically, he is able to ever maintain concentration of mind. Engaged as he has been in the editing of the āgamas for a 1. Bhagavati, 7/173,210 2. Avašyaka cūrņi, part II, p. 174 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ very long period, he is eminently endowed with the power to penetrate into the deeper mysteries of the canonical texts. Modesty, perseverance and complete dedication to the guru have contributed to the development of these merits in him. Such merits were inherent in him since childhood. Since the time he came to me, I have found gradual intensification of these merits. I have derived utmost satisfaction from his capability and wholehearted devotion to duty. Many other monks also contributed towards the editing of the text of these canons I bless them all with the wish that their working capacity may be all the more developed. I had embarked upon this Herculean work of agamas, having complete faith in my disciples--the monks and nuns of the Order. I feel highly satisfied that this gigantic task has been accomplished successfully in a right way. Anuvrata Bhawan, New Delhi, -Acharya Tulsi 22nd October, 1987 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम पण्णवणा पढमं पण्णवणापयं सू०१ से १३८ पृ० ३ से ३६. मंगल-पदं, अभिधेयपदं, पदाभिधाण-पदं, उक्खेव-पदं १, अजीवपण्णवणा-पदं २, जीवपण्णवणापदं १०, पुढवीकाय-पदं १६, आ उक्काय-पदं-२१, तेउक्काय-पदं २४, वाउकाय-पदं २६, वणस्सइकायपदं ३०, पइण्णगं ४८1८, अणंतजीवलक्खणं ४८।१०, पत्तथरारीरजीवलवखणं ४८१२०, छल्ली-अणंतजीवलक्खणं ४८।३०, छल्ली-पत्तेयसरीरजीवलक्खणं ४८।३४, अणंतजीवलक्खणं ४८१३८, पइण्णगं ४८।४०, साहरणसरीरलवखणं ४८१५३, जीवपमाणं ४८।५८, बेइंदियजीव-पदं ४६, तेइंदियजीव-पदं ५०, चारिदियजीव-रदं ५१, पंचिदिय जीव-पदं ५२, नेरइयजीव-पदं ५३, तिरिक्खजोगियजीव-पदं ५४, गणुस्सजीव-पदं ८२, मिलक्खु-पद ८६, आरिय-पदं ६०, खेत्तारिय-पदं ६६, जातिआरिय-पदं ६४, कुलारिय-पदं ६५, कम्मारिप-पदं ६६, सिप्पारिय-दं (७, भासारिय-पदं १८, णाणारिय-पदं ६६, दंसणारिय-पदं १००, देवजीव-पदं १३०. बिइयं ठाणपयं सू०१ से ६७ पृ० ४० से ६८ पूढविकायठाण-पदं १, आउबकायठाण-पदं ४, तेउक्कायठाण-पदं ७, वाउक्कायठाण-पदं १०, वणस्सइकायठाण-पदं १३, बेइंदियठाण-पदं १६, तेइंदियठाण-पदं १७, चरिदियठाण-पदं १८, पंचिंदियठाण-पदं १६, नेरइयठाण-पदं २०, पंचिदियतिरिक्खजोणियठाण-पदं २८, मणुस्सठाण-पदं २६, भवणवासिदेवठाण-पदं ३०, वाणमंतरदेवठाण-पदं ४१, जोइसियदेवठाण-पदं ४८, वेमाणियदेवठाण-पदं ४६, सिद्धठाण-पदं ६४. तइयं बहुबत्तव्वयपदं सू०१ से १८३ पृ०६६ से १२ दिसि-पदं १, गति-पदं ३८, इंदिय-पदं ४०, काय-पदं ५०, जोग-पदं ९६, वेद-पदं ९७, कसायपदं १८, लेस्सा-पदं ६६, सम्मत्त-पदं १००, णाण-पदं १०१, सण-पदं १०४, संजय-पदं १०५, उवओगपदं १०६, आहार-पदं १०७, भासग-पदं १०८, परित्त-पदं १०६, पज्जत्त-पदं ११०, सुहम-पदं १११, सण्णि-पदं ११२, भव-पदं ११३, अस्थिकाय-पदं ११४, चरिम-पदं १२३, जीव-पदं १२४, खेत्त-पदं १२५, बंध-पदं १७४, पोग्गल-पदं १७५, महादंडय-पदं १८३. चउत्थं ठिइपयं सू०१ से २६९ पृ०६३ से १११ नेरइयठिइ-पदं १, देवठिइ-पदं २५, भवणवासिठिइ-पदं ३१, एगिदियठिइ-पदं ५६, बेइंदियठिइपदं ६५, तेइंदियठिइ-पदं १८, चरिदियठिइ-पदं १०१, पंचिदियतिरिक्खजोणियठिइ-पदं १०४. मणुस्सठिइ-पदं १५८, वाणमंतरठिइ-पदं १६५, जोइसियठिइ-पदं १७१, वेमाणियठिइ-पदं २०७. पंचमं विसेसपयं ___ सू० १ से २४४ पृ० ११२ से १३२ पज्जव-पदं १, जीवपज्जव-पदं २, नेरइयाणं पज्जव-पदं ४, भवणवासीणं पज्जव-पदं ६, Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगिदियाणं पज्जव-पदं ६, विगलिंदियाणं पज्जव-पदं १६, पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जव-पदं २२. मणस्साणं पज्जव-पदं २३, वाणमंतराणं पज्जव-पदं २५, जोइसिय-वेमाणियाणं पज्जव-पदं २६, ओगाहणाई पडुच्च नेरइयाणं पज्जव-पदं २७, ओगाहणाई पडुच्च भवणवासीणं पज्जव-पदं ४८, ओगाहणाई पडुच्च एगिदियाणं पज्जव-पद ५२, ओगाहणाइं पडुच्च विगलिदियाणं पज्जव-पदं ६७, ओगाहणाई पडुच्च पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जव-पदं ८२, ओगाहणाइं पडुच्च मणुस्साणं पज्जवपदं १००, ओगाहणाइं पड़च्च वाणमंतराईणं पज्जव-पदं १२१, अजीवपज्जव-पदं १२३. छठें वक्कतिपयं सू० १ से १२३ पृ० १३३ से १४८ बारसदारं उववाय-उवट्टणा-विरह-पदं १, चउवीसाइं दारं उववाय-उवट्टणा-विरह-पदं १० संतरदारं उववाय-उव्वट्टणा-पदं ४७, एगसमयदारं उववाय-उव्वट्टणा-पदं ६०, कत्तोदारं उववायउब्वट्टणा-पदं ७०, उव्वट्टणादारं उबट्टणापुव्वं उववाय-पदं ६६, परभवियाउयदार परभवायुबंधकाल-पदं ११४, आगरिसदारं आउयबंधस्स आगरिस-पदं ११८. सत्तमं उस्सासपयं सू०१ से ३० पृ० १४६ से १५१ चउवीसदंडएसु उस्सासविरहकाल-पदं १. अटुमं सण्णापयां सू० १ से ११ पृ० १५२, १५३ सण्णाभेय-पदं १, नेरइयाईणं सण्णा-पदं २, नेरइयाणं सण्णावियार-पदं ४, तिरिक्खजोणियाणं सण्णावियार-पदं ६, मणुस्साणं सण्णावियार-पदं ८, देवाणं सण्णावियार-पदं १०. नवमं जोणीपयं सू०१ से२६ पृ० १५४ से १५६ सीयाइजोणि-पदं १, सचित्ताइजोणि-पदं १३, संवुडाइजोणि-पदं २० कुम्मुण्णयाइजोणि-पदं २६. दसमं चरिमपयं सू० १ से ५३ पृ० १५७ से १६७ चरिमाचरिमविभाग-पदं १ चरिमाचरिमपयाणं अप्पबहुत्त-पदं ३, परमाणुपोग्गलाईणं चरिमाइविभाग-पदं ६, संठाणाणं चरिमाइविभाग-पदं १५, गतिचरिमाइ-पदं ३१, ठितिचरिमाइ-पदं ३४, भवचरिमाइ-पदं. ३६, भासाचरिमाइ-पदं ३८, आणापाणुचरिमाइ-पदं ४०, आहारचरिमाइ-पदं ४२, भावचरिमाइ-पदं ४४, वण्णचरिमाइ-पदं ४६, गंधचरिमाइ-पदं ४८, रसचरिमाइ-पदं ५०, फासचरिमाइ-पदं ५२. एक्कारसमं भासापयं सू० १ से ६० पृ० १६८ से१७८ ओहारिणीभासा-पदं १, पण्णवणीभासा-पदं ४, मंदकुमाराइभासासण्णा-पदं ११, एगवयणाइभासा-पदं २१, भासासरूव-पदं ३०, भासाभेय-पदं ३१, भासगाभासग-पदं ३८, भासज्जाय-पदं ४२, भासदब्धगहण-निसिरण-पदं ४७ सोलसविहवयण-पदं ८६. बारसमं सरीरपयं सू० १ से ३८ पृ० १७६ से १८२ सरीरभेय-पदं १, चउवीसदंडएसु सरीर-पदं २, ओहेण बद्ध-मुक्कसरीर-पदं ७, चउवीसदंडएसु बद्ध-मुक्कसरीर-पदं ११. Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१ तेरसमं परिणामपयं सू० १ से ३१ पृ० १८३ से १८६ परिणामभेय-पदं १, जीवपरिणाम-पदं २, चउवीसदंडएसु परिणाम-पदं १४, अजीवपरिणामपदं २१. चोद्दसमं कसायपयं सू० १ से २८ पृ० १८७, १८८ कसायभेय-पदं १, चउदीसदंडएसु कसायपरूवण-पदं २, कसायपइट्टा-पदं ३, कसायउप्पत्ति-पदं ५, कसायभेय-पदं ७, कसाएहि कम्मचयोवचयादि-पदं ११. पणरसमं इंदियपयं सू० १ से १४३ पृ० १८६ से २०४ इंदियाणं भेद-पदं १, संठाण-पदं २, बाहल्ल-पदं ७, पोहत्त-पदं ८, कतिपएस-पदं ११, ओगाढ-पदं १२, अप्पाबय-पदं १३, चउवीसदंडएसु संठाणाइ-पदं १७, पद-पदं ३६, पविटू-पदं ३६, विसय-पदं ४० अणगारदारे निज्जरापोग्गल-पदं ४३, आहारदारे निज्जरापोग्गल-पदं ४६, अद्दायाइदारसत्तगे पडिबिंबपेहा-पदं ५०, कंबलफुसणा-पदं ५१, थूणादारे ओगाहणा-पदं ५२ थिग्गलदारे फुड-पदं ५३, दीवोदहिदारे फुड-पदं ५४, लोगदारे फुड-पदं ५६, अलोगदारे फुड-पदं ५७, इंदियाणं उवचय-पदं ५८, निव्वत्तणा-पदं ६०, निव्वत्तणासमय-पदं ६१, लद्धि-पदं ६२ उवयोगद्वा-पदं ६३, उपओगद्ध-अपबद्यपदं ६४, ओगाहण-पदं ६५, अवाय-पदं ६६, ईहा-पदं ६७, उग्गह-पदं ६८, दव्व-भाव-पदं ७६, दव्विंदिय-पदं ७७, भाविदिय-पदं १३३. सोलसमं पओगपयं सू० १ से ५५ पृ० २०६ से २१५ पओगभेय-पदं १, जीवेसु ओहेणं पओग-पदं २, चउवीसदंठएसु ओहेणं पओग-पदं ३, जीवेसु विभागेणं पओग-पदं १०, चउवीसदंडएसु विभागणं पओग-पदं ११, गइप्पवाय-पदं १७, पओगगइ-पदं १८, ततग इ-पदं २२, बंधणच्छेदणगइ-पदं २३, उववायगइ-पदं २४, विहायगति-पदं ३८, सत्तरसम लेस्सापयं सू० १ से १७२ पृ० २१६ से २३८ नेरइएस समाहारादि-पदं १, भवणवासिसु समाहारादि-पद-१४, एगिदिय-विलिदिएसू समाहारादि-पदं १८, पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु समाहारादि-पदं २३, मणुस्सेसु समाह रादि-पदं २४, वाणमंतराइसु समाहारादि-पदं २६, लेस्सेसु चउवीसदंडएसु समाहारादि-पदं २८ लेस्सा पदं ३६ चउवीसदंडएस लेस्सापरूवण-पदं ३७, अप्पाबहुय-पदं ५६, इड्ढिअप्पाबहुय-पदं ८४, उववाय-उबट्टणा-पदं ६०, ओहेणं उववाय-उव्वट्टणा-पदं ६२, विभागेणं उववाय-उव्वट्टणा-पदं १००, कण्हाइलेस्सेसु नेरइएस ओहिखेत्त-पदं १०६, णाण-पदं ११२ लेस्सा-पदं ११४, लेस्साणं परिणति-पदं ११५, वण्ण-पदं १२३, रस-पदं १३०, गंधादि-पदं १३६, परिणाम-पदं १३६ पदेस-पदं १४०, अवगाह-पदं १४१, वग्गण-पदं १४२, ठाण-पदं १४३, अप्पबहु-पदं १४४, लेस्सा-पदं १४७, परिणमणभाव-पदं १४८, लेस्सा-पदं १५६, मणुस्सेसु लेस्सा-पदं १५७, लेस्सं पडुच्च गब्भुप्पत्ति-पदं १६६. अट्ठारसमं कायट्टिइपयं सू० १ से १२७ पृ० २३६ से २४६ जीव-पदं १, गइ-पदं२, इंदिय-पदं १३, काय-पदं २५, जोग-पदं ५५, वेद-पदं ५६, कसाय-पदं ६४, लेस्सा-पदं ६८, सम्मत्त-पदं ७६, णाण-पदं ७६, सण-पदं ८५, संजय-पदं ८६, उवओग-पदं १३, आहार-पदं १४, भासग-पदं १०४, परित्त-पदं १०६, पज्जत्त-पदं ११३, सुहम-पदं ११६, सण्णि-पदं Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६, भवसिद्धिय-पदं १२२, अस्थिकाय-पदं १२५, चरिम-पदं १२६. सू० १ से ५ स ० १ से ६४ natasi सम्मत्तपयं वीसइमं अंत किरियापयं ७२ पृ० २५० पृ० २५१ से २५८ अंतकिरियापदं १, अनंतर पदं ६, एगसमय-पदं ६, उब्वट्ट- पदं १४, तित्थगर-पदं ३८, चक्रुवट्टिपदं ५०, बलदेव-पदं ५५, वासुदेव-पदं ५६, मंडलिय-पदं ५७, रयण-पदं ५८, देवउववाय-पदं ६१, असणिआउय-पदं ६२. एगवीसइमं ओगाहणसं ठाणपयं सू० १ से १०५ पृ० २५ से २७३ सरीर-पदं १, ओरालियसरीरे विहि-पदं २, ओरालियसरीरे संठाण- पदं २१, ओरालियसरीरे पमाण- पदं ३८ वेउव्वियसरीरे विहि-पदं ४६, वेडव्वियसरीरे संठाण- पदं ५६, वेउब्वियसरीरे पमाणपदं ६३, आहारगसरीरे विहि-पदं ७२, आहारगसरीरे संठाण-पदं ७३. आहारगसरीरे पमाण-पदं ७४, तेयगसरीरे विहि-पदं ६५, तेयगसरीरे संठाण-पदं ७८, तेयगसरीरे पमाण-पदं ८४, कम्मगसरीर-पदं ε४, पोग्गलचिणणा-पदं ८५, सरीरसंजोग पदं ६८, दव्व-पएप्पबहु-पदं, १०४, सरीरओगाहणप्पबहुपदं १०५. बावीतइमं किरियापयं सू० १ से १०१ पृ० २७४ से २८३ किरियाभेय-पदं १ सकिरियत्त अकिरियत्त-पदं ७, किरिया विसय-पदं 8, किरिया हे ऊहिं कम्म - पगडिबंध-पदं १२, कम्मबंधमहि किच्च किरियापदं २६ एगत्त-पुतेहि किरियापदं २६, किरिया -सहभाव-पद ४६, आओजियकिरियापदं ५७, पुट्ठापुट्टभाव-पदं ५६ किरियासामित्त पदं ६०, किरियाणं सहभाव - पदं ६७, पावद्वाणविरइ-पदं ७७, कम्सपगडिवंध- पदं ८३, किरिया भेय-पदं ९१, अप्पा बहुय-पदं १०१. dates कम्पनडिपर्व सू० १ से २०२ पृ० २८४ से ३०२ कतिपयडि-पदं, कहति-पदं ३ कतिठाणबंद पदं ६, कतिपयडिवेद-पदं, कतिविधाणुभाव-पदं १३, मूलोत्तरडिभेद-पदं २४, कम्मयडीणं टिइ-पदं ६०, एगिदिए कम्मपयडीणं ठिइबंध- पदं १३४, बेदिकम्पपीठिश्बंध-पदं १५५, तेईदिए कम्मपवडीण ठिइबंध- पदं १६०, चउरिदिएसु कम्पasti ठिइबंध पदं १६४, अण्णी कम्पयडीणं ठिइबंध-पदं १६७, सण्णीसु कम्मपयडीणं ठिबंध-पदं १७६, जगठिइबंधग पदं ११, उक्कोसटिबंधग-पदं १६४. चवीसइमं कम्मबंधपयं पंचवीसइमं कम्मबंधवेयपयं छवीसइमं कम्मवेयबंधपयं सत्तावीसइमं कम्मवेयवेयगपयं अट्ठावीस आहारपदं सू० १ से १५ सू० १ से ५ सू० १ से १२ सू० १से ६ सू० १ से १४५ सचित्ताहार-पदं १, नेरइएस आहारद्विआइसत्तग-पदं ३, भवणवासीसु आहारद्विआइसत्ता-पदं २५, एगिदिए आहारट्टिका इसत्तगदं २८, विगलिंगदिएसु आहारद्विआइसत्तग-पदं ३७ पंचिदिय पृ० ३०४, ३०५ पृ० ३०६ पृ० ३०७, ३०८ पृ० ३०६ पृ० ३१० से ३२३ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिरिक्खजोणिएसु आहारट्ठिआइसत्तग-पदं ४७ मणुस्सेसु आहारट्ठिआइसत्तग-पदं ४६, देवेसु आहारट्ठिआइसत्तग-पदं ७२, लोमाहार-पदं १०२, मणभक्खि-पदं १०४, आहारदारे आहारगादि-पदं१०६, भवियदारे आहारगादि-पदं १११, सण्णिदारे आहारगादि-पदं ११५, लेस्सादारे आहारगादि-पदं १२२, दिदिदारे आहारगादि पदं १२५, संजयदारे आहारगादि-पदं१२८, कसायदारे आहारगादि-पदं १३२, णाणदारे आहारगादि-पदं १३५. जोगदारे आहारगादि-पदं १३८, उवओगदारे आहारगादि-पदं १३६, वेददारे आहारगादि-पदं १४०, सरीरदारे आहारगादि-पदं १४१, पज्जत्तिदारे आहारगादि-पदं १४२. एगणतीसइमं उवओगपयं सू० १ से २२ पृ० ३२४ से ३२६ तीसइमं पासणयापयं सू० १ से२८ पृ० ३२७ से ३२६ एगतीसइमं सण्णिपयं सू० १ से ६ पृ० ३३० बत्तीसइमं संजमपयं सू० १ से ६ पृ० ३३१ तेत्तीसइमं ओहिपयं सू०१ से ३७ पृ० ३३२ से ३३४ ओहिय-पदं १, ओहिविसय-पपं २, ओहिसंठाण-पयं १६, ओहिअब्भितर-बाहिर-पदं २७, देससव्वोहि-पदं ३१, ओहिस्स खयवुड्ढिआदि पदं ३५. चउतीसइमं पवियारणापयं पृ०३३५ से ३३६ अणंतराहार-पदं १, आहाराभोगणा-पदं ५, पोग्गलजाणणा-पदं ६, अज्झवसाण-पदं १३, सम्मत्ताभिगम-पदं १४ परियारणा-पदं १५. पंचतीसइमं वेयणापयं सू० १ से २३ पृ० ३४० से ३४३ सीताइवेदणा-पदं १, दवाइवेदणा-पदं ४, सारीराइवेदणा-पदं ६ साताइवेदणा-पदं ८, दुक्खा इवेदणा-पदं १०, अब्भोवगमियाइवेयणा-पदं १२, णिदाइवेदणा-पदं १६. छत्तीसइमं समुग्धापयं सू० १ से ६४ पृ० ३४४ से ३५६ सम्मूग्धायभेद-पदं १ समुग्धायकाल-पदं २, समुग्घायसामित्त-पदं ४, एगत्तेणं अतीताइसमूग्घायपदं ८, पुहत्तेणं अतीताइसमुग्घाय-पदं १२, तब्भाव एव एगत्तेणं अतीताइसमुग्घाय-पदं १८, तब्भाव एव पृहत्तेणं अतीताइसमुग्धाय-पदं ३२, समोहयासमोहयाणं अप्पाबहुय-पदं ३५ कसायसमुग्घाय-पदं ४२, छाउमत्थियसमुग्घाय-पदं ५३, ओगाहफासाइ-पदं ५६ केवलिसमुग्घाय-पदं ७६, सिद्धसरूव-पदं ९३. जंबुद्दीवपण्णत्ती पढमो वक्खारो सू० १ से ५१ पृ० ३५१ से ३७० बीओ वक्खारो सू०१ से १६४ पृ० ३७१ से ४०३ तइओ वक्खारो सू० १ से २२६ पृ० ४०४ से ४६७ चउत्थो वक्खारो सू०१ से २७७ १० ४६८ से ५२४ पंचमो वक्खारो सू०१ से ७४ पृ० ५२५ से ५४८ छट्ठो वक्खारो सू० १ से २६ पृ० ५४६ से ५५१ सत्तमो वक्खारो सू० १ से २१४ पृ० ५५२ से ५८८ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ स०१स६ R HERE चंदपण्णत्ती सू० १ से १० पृ० ५६१ से ५६३ सूरपण्णत्ती पढम पाहुडं सू० १ से ३१ पृ० ५६४ से ६०६ बीयं पाहुडं सू० १ से ३ पृ०६१० से ६१५ तच्चं पाहुडं सू० १ से २ पृ० ६१६ से ६१७ चउत्थं पाहुडं सू० १ से १० पृ० ६१८ से ६२२ पंचमं पाहुडं सू०१ पृ० ६२२ छठे पाहुडं सू०१ पृ० ६२३ से ६२५ सत्तमं पाहुडं सू०१ पृ० ६२५ अट्ठमं पाहुडं सू०१ पृ०६२६ से ६२६ नवमं पाहुडं पृ० ६३० से ६३३ दसमं पाहुडं से १७३ पृ० ६३४ से ६६१ एक्कारसमं पाहुडं पृ० ६६२ से ६६३ बारसमं पाहुडं सू०१ से ३० पृ० ६६४ से ६६८ तेरसमं पाहुडं पृ० ६६६ से ६७१ चउद्दसमं पाहुडं पृ० ६७२ पण्णरसमं पाहुडं १ से ३७ पृ० ६७३ से ६७५ सोलसमं पाहुडं सू०१ से ६ पृ० ६७६ सत्तरसमं पाहुडं पृ० ६७७ अट्ठारसमं पाहुडं सू०१ से ३७ पृ० ६७८ से ६८३ एगूणवीसइमं पाहुडं सू० १ से ३८ पृ० ६८३ से ६६३ बीसइमं पाहुडं सू०१ से पृ० ६६३ से ७०५ परिसिठं पृ० ७०६ से ७१२ उवंगा निरयावलियाओ पढमं अज्झयणं सू०१ से १४२ पृ०७१५ से ७३६ उक्खेव-पदं १, कालीए चिता-पदं १२, भगवओ महावीरस्स समवसरण-पदं १६, कालीए पूच्छापदं २१, भगवओ उत्तर-पदं २२, कालीए मुच्छा-पदं २३ कालीए पडिगमण-पदं २४ कालकुमारस्स निरय-उववत्ति-पदं २५ चेल्लणाए दोहद-पदं २८, दोहद-संपन्नता-पदं ४२, गब्भसाडणचितणा-पदं ५०, पृत्तपसव-पदं ५२, पुत्तस्स उक्कुरुडियाए उज्झणा-पदं ५४ सेणिएण पुत्तस्स परिचरिया-पदं ५६, पूत्तस्स कूणिएत्ति नाम-पदं ६३ कूणिएण सेणियस्स निग्गह-पदं ६५, चेलणाए पडिबोह-पदं ७०, कूणियस्स निवेद-पदं ८८, सेणियस्स अप्पघाय-पदं ८६ कूणियस्स विलावकरण-पदं ६२, कूणिएण रायहाणी परिवतण-पदं ६३ वेहल्लस्स गंधहत्यिकीला-पदं ६४, हार-गंधहत्थि-विवाद-पदं ६८, वेहल्लस्स चेडग-सरणपदं १०५, कूणिएण दूय-पेसण-पदं १०७, कूणियस्स जुद्धसज्जा-पदं ११५, चेडगस्स जुद्धसज्जा-पदं १२७, Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहमसल-संगाम-पदं १३४, कालकुमारस्स मरण-पदं १४० निक्खेव-पदं १४२. २-१० अझयणाणि सू० १४३ से १४८ पृ० ७४० कप्पडिसियाओ पढमं अज्झयणं सू०१ से १४ पृ०७४१, ७४२ पुप्फियाओ पढमं अज्झयणं सू० १ से १६ पृ०७४४ से ७४६ बीअं अज्झयणं सू० २० से २२ पृ०७४६ तइयं अज्झयणं सू० २३ से ८७ पृ० ७४७ से ७५८ उकखेव-पदं २३, सोमिलस्स अरहया पासेण संवाद-पदं २७, सोमिलस्स सावगधम्मगहण-पदं ४५, सोमिलस्स मिच्छत्त-पदं ४७, सोमिलस्स तावसपबज्जा-पदं ५०, सोमिलस्स साधना-पदं ५१, सोमिलस्स देवेण पसिणोत्तर-पदं ७८, सोमिलस्स पूणो सावगधम्मगहण-पदं ८२, सोमिलस्स सुक्कमहग्गहत्ताए उववत्ति-पदं ८३, निक्खेव-पदं ८७.. चउत्थं अज्झयणं सू०८८ से १५३ पृ० ७५८ से ७७० उक्खेव-पदं ८८, बहुपुत्तिया-पदं ६०, सुभद्दाए संताणपिवासा पदं ६५, सुभद्दागिहे अज्जागमणपदं ६६, सुभद्दाए संताणलाभोवायपुच्छ-पदं १०१, अज्जाए धम्मकहा-पदं १०६, सुभद्दाए अज्जाए संताणपिवासाणुभव-पदं ११४, सुभद्दाए बहुपुत्तियदेवित्ताए उववत्ति-पदं १२० सोमाए संताणप्पत्तिपदं १२५, सोमाए बहुसंताणजणियखेद-पदं १३०, सोमागिहे अज्जागमण-पदं १३२, सोमाए धम्मपडिवत्ति-पदं १३५, सोमाए पव्वज्जा-पदं १४५, सोमाए सामाणियदेवत्ताए उववत्ति-पदं १५०. निक्खेव-पदं १५३. पंचमं अज्झयणं सू० १५४ से १६६ पृ०७७०, ७७१ छठें अज्झयणं सू० १६७ से १७० पृ० ७७२ ७-१० अज्झयणाणि सू० १७१ प०७७२ पुप्फचूलियाओ पढमं अज्झयणं सू० १ से २७ पृ० ७७३ से ७७६ २-१० अज्झयणाणि सू०२८ पृ०७७७ वहिदसाओ पढमं अज्झयणं सू०१ से ४४ पृ० ७७८ से ७८४ २-१२ अज्झयणाणि सू०४५ पृ०७८५ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगल-पदं १. अभिधेय-पदं पदाभिधाण-पदं पढमं पण्णवणापयं ववगयजर' - मरणभए, सिद्धे अभिवंदिऊण तिविहेणं । वंदामि जिणवरिंद, तेलोक्कगुरुं महावीरं ॥ १ ॥ सुरयण निहाणं जिणवरेण, भवियजणणिव्वुइकरेण । उवदंसिया भयवया, पण्णवणा सव्वभावा ॥२॥ अज्झयणमिणं चित्तं सुयरयणं दिट्ठिवाय-णीसंदं । जह वणियं भगवया, अहमवि तह वण्णइस्सामि ||३|| १. पण्णवणा २. ठाणाई ३. बहुवत्तव्वं ४. ठिई ५. विसेसा य । ६. वक्कंती' ७. उस्सासो ८. सण्णा ६. जोणी य १० चरिमाई ॥४॥ ११. भासा १२. सरीर १३. परिणाम १४. कसाए १५. इंदिए १६. पओगे य । १७. लेसा १८. कायठिई या १६. सम्मत्ते २०. अंतकिरिया य ॥५॥ १. णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं ववगय° ( क, ख, घ); वृत्त्योर्नास्ति व्याख्यातः । २. अतोग्रे 'ख, ग, घ' सङ्केतितादर्शेषु गाथाद्वयं लभ्यतेवायगवरवंसाओ तेवीसइमेण धीरपुर । दुद्धरधरेण मुणिणा पुव्वसुयसमिद्धबुद्धीण ॥१॥ सुयसागरा विएऊण, जेण सुयरयणमुत्तमं दिनं । सीसगणस्स भगवओ तस्स नमो अज्जसामस्स ||२|| वृत्तिकृद्भ्यां इदं गाथायुगलं अन्यकर्तृकमिति सूचयित्वापि व्याख्यातम् । अनयोः केचित् पाठभेदा अपि दृश्यन्ते – 'बुद्धीण बुद्धीणं (क, घ) ; - बुद्धीणा ( ख ) ; बुद्धी ( ग ) ; समिद्धबुद्धीणे' त्यत्र णाशब्दस्य ह्रस्वत्वं द्विशब्दस्य च दीर्घत्वात् (मवृ) । विएऊण -- विऊएण (ख); विणेऊण (क, घ, पु, मुद्रितमबू ) ; हस्तलिखितमलयगिरिवृत्तो 'विएऊण' इति पाठो दृश्यते हरिभद्रवृत्तौ च 'चियेऊण' इति पाठोस्ति । ३. बुक्कंती ( ख ) । ३ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं २१. ओगाहणसंठाणे' २२ किरिया २३. कम्मे "त्ति यावरे” । २४. कम्मरस बंधए २५. कम्मवेदए २६. वेदस्स बंधए २७. वेयवेयए || ६ || २८. आहारे २६. उवओगे ३०. पासणया ३१. सण्णि ३२. संजमे चैव । ३३. ओही ३४. पवियारण ३५. वैयणा य ३६. तत्तो समुग्धाए ॥ ७ ॥ उक्खेव-पदं से किं तं पण्णवणा ? पण्णवणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीवपण्णवणा य अजीव पण्णवणा य ॥ अजीव पण्णवणा-पदं २. . से किं तं अजीवपण्णवणा ? अजीवपण्णवणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - रूविअजीव पण्णवणाय अरूविअजीवपण्णवणा य ॥ ३. से किं तं अरूविअजीवपण्णवणा ? अरूविअजीवपण्णवणा दसविहा पण्णत्ता, तं जहा - धम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए अम्मfeatre देसे अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, आगासत्थिकाए आगासत्थिकायस्स देसे आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए । से त्तं अरूविअजीवपण्णवणा ॥ ४. से कि तं रूविअजीवपण्णवणा ? रूविअजीवपण्णवणा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - बंधा खंधदेसा खंधप्पएसा परमाणुपोग्गला । ते समासतो पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा -- वण्णपरिणया गंधपरिणया रसपरिणया फासपरिणया संठाणपरिणया । जे वण्णपरिणता ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - कालवण्णपरिणता नीलवण्णपरिणता लोहियवण्णपरिणता हालिद्दवण्णपरिणता सुक्किलवण्णपरिणता । गंधरिता दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सुब्भिगंधपरिणता य दुब्भिगंधपरिणता य । जे रसपरिणता ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - तित्तरसपरिणता कडुयरसपरिणता कसायरसपरिणता अंबिल रसपरिणता महुररसपरिणता । फासपरिणता ते अट्ठविहा पण्णत्ता, तं जहा - कक्खडफासपरिणता मउयफासपरिणता ' गरुयफासपरिणता लहुयफासपरिणता सीयफासपरिणता उसिणफासपरिणता निद्धफासपरिणता लुक्खफासपरिणता । जेठाणपरिणता ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - परिमंडलसंठाणपरिणता वट्टसंठाणपरिणता तंससंठाणपरिणता चउरंस संठाणपरिणता आयतसंठाणपरिणता २५ ॥ ५. जे वण्णओ कालवण्णपरिणता ते गंधओ सुब्भिगंध परिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता विलहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि ३. मउफास° (ग), मृदुस्पर्श° (मवू ) । १. अवगाहनास्थानं (मवृ) | २. इयावरे (क, ख ) ; इयर ( ख ) । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापयं ५ निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडल संठाणपरिणता वि ठाणपरिणता वितंसंसंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता २० । वि जेवणओ नीलवण्णपरिणता ते गंधओ सुब्भिगंध परिणता' वि दुब्भिगंध परिणता वि रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंविलरसपरिणता वि महररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता विलहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणत विक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २० । जेवणओ लोहियणपरिणता ते गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कड्यरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता विमउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता विलहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडल संठाणपरिणता वि वसंठाणपरिणता व तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २० । जेवणओ हालिद्दवण्णपरिणता ते गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंध परिणता सओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता गरुयफासपरिणता विलहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता व निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडल संठाणपरिणता वि वठाणपरिणता वि तंसंसंठाणपरिणता वि चउरंसंसंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २० । जे वण्णओ सुक्किलवण्णपरिणता ते गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरस - परिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता गरुफासपरिणता विलहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसि फासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि ठाणपरिणता वितंसंसंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २०।१०० ।। ६. जे गंधओ सुब्भिगंधपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि णीलवण्णपरिणता लोहवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता विडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि १. सुरभि ( ग ) । Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २३। जे गंधओ दुब्भिगंधपरिणया ते वण्णओ 'कालवण्णपरिणया वि नीलवण्णपरिणया वि लोहियवण्णपरिणया वि हालिद्दवण्णपरिणया वि सुक्किलवण्णपरिणया वि, रसतो तित्तरसपरिणया वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुरसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणया वि वट्टसंठाणपरिणया वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणया वि" २३।४६ ॥ ७. जे रसओ तित्तरसपरिणया ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि णीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २० ॥ जे रसओ कडुयरसपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २० ॥ जे रसओ कसायरसपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाण परिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयय १. कालवण्णपरिणया वि जाव सक्किलवण्णपरि णया वि, रसओ तित्तरसपरिणया वि जाव महररसपरिणया वि, फासओ कक्खडफास परिणया वि जाव लक्खफासपरिणया वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणया वि जाव आययसंठाणपरिणया वि (ग, घ)। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापयं संठाणपरिणता वि २० ॥ जे रसओ अंबिलरसपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता विदुभिगंधपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता विरुयफासपरिणता व लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि ठाणपरिणता वितंससंठाणपरिणता वि चउरंस संठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २० । जे रसओ महुररसपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोणपरिणता विहालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुब्भिगंधपरिणता विदुब्भिगंध परिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता' वि लहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि fraफासपरिणता विलुक्खफासपरिणता वि, संठाणतो परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वितंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठापरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २०११०० ॥ ८. जे फासतो कक्खडफासपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुभगं परिणता विदुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महररसपरिणता वि, फासतो गरुयफासपरिणता विलहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता विलुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडल संठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता २३ । जे फासतो मउयकासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता व हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणया वि, गंधओ सुभिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता व अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ गरुयफासपरिणया वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता विलुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडल संठाणपरिणया विवट्टसंठाणपरिणता वितं संठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणया वि २३ । जे फासतो गरुयफासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुभिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिल रसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफास १. गुरु (ग, घ ) । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं परिणता वि मउयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वटसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणया वि २३ । जे फासतो लहयफासपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि णीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कड्यरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणया वि सीयफासपरिणया वि उसिणफासपरिणया वि निद्धफासपरिणया वि लक्खफासपरिणया वि, संठाणतो परिमंडलसंठाणपरिणया वि वसंठाणपरिणया वि तंससंठाणपरिणया वि चउरंससंठाणपरिणया वि आयतसंठाणपरिणया वि २३ । जे फासतो सीयफासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २३। जे फासतो उसिणफासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसतो तित्तरसपरिणया वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंविलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लयफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणतो परिमंडलसं ठाणपरिणता वि वसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २३ । जे फासतो निद्धफासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुब्भिगंधपरिणता वि दुन्भिगंधपरिणता वि, रसतो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि, संठाणतो परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणया वि चउरंससंठाणपरिणया वि आयतसंठाणपरिणता वि २३। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापयं जे फासतो लुक्खफासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि, संठाणतो परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणया वि चउरंससंठाणपरिणया वि आयतसंठाणपरिणता वि २३।१८४॥ ६. जे संठाणतो परिमंडलसंठाणपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसतो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि णिद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि २० । जे संठाणओ वट्टसंठाणपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंविलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि णिद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि २० । जे संठाणतो तंससंठाणपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुविकलवण्णपरिणया वि, गंधओ सब्भिगंधपरिणता वि दब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि २० । जे संठाणओ चउरंससंठाणपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवणपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसतो तित्तरसपरिणता वि कड्यरसपरिणता वि कसाय रसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफा सपरिणता त्रि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धका सपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि २०। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं जे संठाणतो आयतसंठाणपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुब्भिगंधपरिणता वि दुन्भिगंधपरिणता वि, रसतो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिल रसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लक्खफासपरिणता वि २०११०० । से तं रूविअजीवपण्णवणा । से तं अजीवपण्णवण्णा ।। जीवपण्णवणा-पदं १०. से किं तं जीवपण्णवणा ? जीवपण्णवणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संसारसमावण्णजीवपण्णवणा य असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा य॥ ११. से किं तं असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा? असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा विहा पण्णत्ता. तं जहा-अणंतरसिद्ध-असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा य परंपरसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा य॥ १२. से किं तं अणंतरसिद्ध-असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ? अणंतरसिद्ध-असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा पन्नरसविहा पण्णत्ता, तं जहा--तित्थसिद्धा अतित्थसिद्धा तित्थगरसिद्धा अतित्थगरसिद्धा सयंबुद्धसिद्धा पत्तेयबुद्धसिद्धा बुद्धबोहियसिद्धा इत्थीलिंगसिद्धा पुरिसलिंगसिद्धा नपुंसकलिंगसिद्धा सलिंगसिद्धा अण्णलिंगसिद्धा गिहिलिंगसिद्धा एगसिद्धा अणेगसिद्धा। से तं अणंतरसिद्ध-असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ॥ १३. से कि तं परंपरसिद्ध-असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ? परंपरसिद्ध-असंसारसमा. वण्णजीवपण्णवणा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-अपढमसमयसिद्धा दुसमयसिद्धा तिसमयसिद्धा चउसमयसिद्धा जाव संखेज्जसमयसिद्धा असंखेज्जसमयसिद्धा अणंतसमयसिद्धा। से तं परंपरसिद्ध-असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा। से तं असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ।। १४. से किं तं संसारसमावण्णजीवपण्णवणा ? संसारसमावण्णजीवपण्णवणा पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-एगिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा बंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा' तेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा' चरिंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा पंचेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ॥ १५. से किं तं एगेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा? एगेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया ॥ पुढवीकाय-पदं १६. से किं तं पुढविकाइया ? पुढविकाइया दुविहा पण्णता, तं जहा --सुहुमपुढविकाइया य बादरपुढविकाइया य ।। १७. से किं तं सुहुमपुढविकाइया ? सुहुमपुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. बेइन्दिय° (क,ख)। २. तेइन्दिय' (ख)। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम पण्णवणापयं पज्जत्तसुहुमपुढविकाइया य अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइया य । से तं सुहुमपुढविकाइया ॥ १८. से किं तं बादरपुढविकाइया ? बादरपुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहासण्हबादरपुढविकाइया य खरबादरपुढविकाइया य॥ १६. से किं तं सहबादरपुढविकाइया ? सहबादरपुढविकाइया सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा-किण्हमत्तिया नीलमत्तिया लोहियमत्तिया हालिद्दमत्तिया सुक्किलमत्तिया' पंडुमत्तिया पणगमत्तिया । से त्तं सहबादरपुढविकाइया ।। २०. से किं तं खरबादरपुढविकाइया ? खरबादरपुढविकाइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा पुढवी य सक्करा वालुया य उवले सिला य लोणूसे । अय 'तंब तउय" सीसय, रुप्प सुवण्णे य वइरे य ।।१।। हरियाले हिंगुलुए, मणोसिला सासगंजण पवाले । अब्भपडलब्भवालुय, बादरकाए मणिविहाणा ।।२।। गोमेज्जए य रुयए, अंके फलिहे य लोहियक्खे य। मरगय मसारगल्ले, भुयमोयग इंदनीले य ॥३॥ चंदण गेरुय हंसे, पुलए सोगंधिए य बोधव्वे । चंदप्पभ वेरुलिए, जलकंते सूरकंते य ॥४॥ जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा एतेसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसतसहस्साइं। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति- जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा। से तं खरबादरपुढविकाइया । से तं बादरपुढविकाइया । से तं पुढविकाइया ।। आउक्काय-पदं २१. से किं तं आउक्काइया ? आउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमआउक्काइया य बादरआउक्काइया य॥ २२. से किं तं सुहुमआउक्काइया ? सुहुमआउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहापज्जत्तसुहुमआउक्काइया य अपज्जत्तसुहुमआउक्काइया य । से त्तं सुहुमआउक्काइया । २३. से किं तं बादरआउक्काइया ? बादरआउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-ओसा' हिमए महिया करए हरतणुए' सुद्धोदए सीतोदए उसिणोदए खारोदए १. मट्टिया (घ); सुकिल्ल° (ख) । गोमेज्जए य रुयगे अंको फलिहे य लोहियक्खे य । २. उत्तरज्झयणाणि ३६७३-७६ । चतस्रोपि चंदण गेरुय हंसग भयमो मसारगल्ले य॥७।। गाथास्तुल्या वर्तन्ते, केवलं हंसे' इति पदस्य चंदप्पह वेरुलिए जलकते चेव सूरकते य। स्थाने 'हंसगब्भ' इति पदमस्ति । आचाराङ्ग- एए खरपुढवीए नामं छत्तीसयं होइ ॥७६॥ निर्युक्ती आद्यं गाथाद्वयं तुल्यमस्ति । अन्त्यं ३. त उय तंब (क, ख, ग, घ)। गाथाद्वयं भिन्नपाठं लभ्यते ४. उस्सा (क, ग)। ५. हरतणु (क, ख); हरतणूए (घ) । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ पण्णवणासुत्तं खट्टोदए अंबिलोदए लवणोदए वारुणोदए खीरोदए घओदए' खोतोदए' रसोदए। जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पण्णता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा एतेसिणं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाई जोणिप्पमुहसयसहस्साई । पज्जतगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति-जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा। से तं बादरआउक्काइया। से तं आउक्काइया ।। तेउक्काय-पदं २४. से कि तं तेउक्काइया ? तेउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमतेउक्काइया य बादरतेउक्काइया य ।। २५. से किं तं सुहुमते उक्काइया ? सुहुमतेउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहापज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । से तं सुहमतेउक्काइया ।। २६. से किं तं बादरतेउक्काइया ? बादरतेउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहाइंगाले जाला मुम्मुरे अच्ची अलाए सुद्धागणी उक्का विज्जू असणी णिग्याए संघरिससमुट्ठिए सूरकंतमणिणिस्सिए। जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहापज्जत्तगाय अपज्जत्तगा य। तत्थ ण जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा एएसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, खेज्जाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साई । पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति-जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा । से तं बादरतेउक्काइया । से तं तेउक्काइया ॥ वाउकाय-पदं २७. से किं तं वाउक्काइया ? वाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहमवाउक्काइया य बादरवाउक्काइया य॥ २८. से किं तं सुहुमवाउक्काइया ? सुहुमवाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा ---- पज्जत्तगसुहुमवाउक्काइया य अपज्जत्तगसुहमवाउक्काइया य। से तं सुहमवाउक्काइया । २१.से कि तं वादरवाउकाइया? वादरवाउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता. तं जहा --पाईणवाए पडीणवाए दाहिणवाए उदीणवाए उड्ढवाए अहोवाए तिरियवाए विदिसीवाए वाउब्भामे वाउक्कलिया वायमंडलिया उक्कलियावाए मंडलियावाए गंजावाए झंझावाए संवगवाए घणवाए तणवाए सद्धवाए । जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा एतेसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं १. एतत् पदं वृत्त्योर्नास्ति व्याख्यातम् । २. खातोदए (ख); भगवतीवृत्ती खाओदयाण' इति पाठो व्याख्यातोस्ति, यथा---'खाओदयाण ति खातायां-भूमौ यान्युदकानि तानि खातो- दकानि । (भ० वृ० पत्र ६६४)। भगवत्या- दर्शष्वपि एष एव पाठो दृश्यते, अत एष एव स्वीकृतोस्ति, (अंगसुत्ताणि भाग २, पृष्ठ ७०६)। प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ-क्षोदोदकं इक्षुसमुद्र' इति व्याख्यातमस्ति । ३. विदिसिवाए (ख) । ४. वाउमंडलिया (क)। ५. संवट्टवाए (क)। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापयं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साइं। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तया वक्कमंति-जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा। से तं बादरवाउक्काइया। से तं वाउक्काइया ॥ वणस्सइकाय-पदं ३०. से किं तं वणस्सइकाइया ? वणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–सुहुमवणस्सइकाइया' य बादरवणस्सइकाइया य ।। ३१. से किं तं सुहुमवणस्सइकाइया ? सुहुमवणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–पज्जत्तसुहुमवणस्सइकाइया य अपज्जत्तसुहुमवणस्सइकाइया य। से तं सुहुमवणस्सइकाइया ॥ ३२. से किं तं वादरवणस्सइकाइया ? वादरवणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पत्तेयसरीरवादरवणस्सइकाइया य साहारणसरीरबादरवणस्सइकाइया य ॥ ३३. से कि तं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया? पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया दुवालसविहा पण्णत्ता, तं जहा ___ रुक्खा गुच्छा गुम्मा, लता य वल्ली य पव्वगा चेव। तण वलय हरिय ओसहि, जलरुह कुहणा य बोधव्वा ॥१॥ ३४. से' किं तं रुक्खा ? रुक्खा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–एगट्ठिया य बहुवीयगा य॥ ३५. से किं तं एगट्ठिया ? एगट्ठिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा णिबंब जंबु कोसंब, साल अंकोल्ल पीलु सेलू य । सल्लइ मोयइ मालुय, बउल पलासे करंजे य ॥१॥ पुत्तंजीवयरिठे 'बिभेलए हरडए य भल्लाए। उंबेभरिया खीरिणि बोधव्वे धायइ पियाले ॥२॥ 'पूई य निंबकरए" सेण्हा, तह सीसवा य असणे य । पण्णाग णागरुक्खे सीवण्णि तहा असोगे य ॥३॥ 'जे यावण्णे तहप्पगारा"। एतेसि णं मूला वि असंखेज्जजीविया, कंदा वि खंधा वि १. °वणप्फइ (क) सर्वत्र । २. तुलना-आचाराङ्गनियुक्ति, गाथा १२६ । उत्तराध्ययने (३६) असौ गाथा किञ्चिद् भेदेन लभ्यतेरुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा तहा ।१४। लयावलया पव्वगा कुहणा, जलरुहा ओसही तणा ।। ३. से किं तं असंखेज्जजीविया ? असंखेज्जजीविया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–एगट्ठिया य बहु बीयगा य (भ० ८।२१८)। ४. अंकुल्ल (घ)। ५. बिहेलए हरिडए भिल्लाए (क, घ)। ६. खीरणी (घ)। ७. पूइकरंज (पु); पूतिकरज्ज (मवृ); पूइयनिबारग (भ० ८।२१६।३; २२।२)। ८. एतद् वाक्यमपूर्णमस्ति । अत्र वृत्तिसूचितं एतद् वाक्यमध्याहर्यम्-ते सर्वेप्येकास्थिका वेदितव्याः (म)। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ पणवणा तया विसाला विपवाला वि । पत्ता पत्तेयजीविया । पुप्फा अणेगजीविया । फला एगया । से तंग ट्टिया ॥ ३६. से किं तं बहुबीयगा ? बहुबीयगा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - अथिति कविट्ठे, अंबाडग माउलिंग बिल्ले य । आमलग फणस दाडिम, आसोत्थे उंबर वडे य ॥ १ ॥ गोह दिखे, पिपरि सयरी पिलुक्खरुक्खे य । काउंबरि कुत्थंभरि, बोधव्वा देवदाली य ॥२॥ तिलए लउए' छत्तोह सिरीसे, सतिवण्ण' दहिवण्णे । लोद्ध धव चंदणज्जुण, णीमे कुडए कयंबे य ॥३॥ जे यावणे तप्पगारा' । एएसि णं मूला वि असंखेज्जजीविया, कंदा वि खंधा वि तया विसाला विपवाला वि । पत्ता पत्तेयजीविया । पुप्फा अणेगजीविया फला बहुवीया । सेत्तं बहुवीयगा । से तं रुक्खा ॥ ३७. से किं तं गुच्छा ? गुच्छा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा'वाइंगण सल्लइ बोंड ई" य तह कच्छुरी य जासुमणा । रूवी आढइ नीली, तुलसी तह माउलिंगी य ॥ १ ॥ कुत्थंभरि पिप्पलिया, अतसी बिल्ली य कायमाई या । 'चुच्चु ' पडोला कंदलि", बाउच्चा' वत्थुले" बदरे ॥२॥ पत्तउर सीयउरए, हवति तहा जवसए य बोधव्वे । " fris अक्क तूवर "", अट्टई" चेव तलऊडा" ॥३॥ सण वाण कास मद्दग", अग्घाडग साम सिंदुवारे य । करमद्द अट्टरूसग", करीर एरावण महित्थे ॥४॥ जाउला माल परिली, गयमारिणि कुच्च कारिया भंडी । जावई केइ तह गंज पाडला दासि अंकोल्ले ||५|| १. लवक (मवृ) । २. सत्तवण्ण (क, ख, ग, घ ) । ३. तेपि च बहुबीजका मन्तव्या: (मवृ) | ४. गच्छा (क) ५. वाइंगणि सल्लइ घुएडइ ( क ) ; ° वोंदई (घ); वाइंगणि अल्लइ पोंडइ ( भ० २२०४) । ६. कत्थंभरि (पु) । ७. चंचू ( ख ) ; चुन्न ( ग, घ ) । ८. चुच्चू पडोल कंद ( क ) । ६. विउव्वा ( क ) ; वीउच्चा (ग) । १०. बबुले ( क ) । ११. गुंड अंक तवर (क); णिगुंडि कत्थबरि (घ) । १२. उड्डइ (ख); अद्धई ( ग घ ) । १३. तउडा ( क ) ; तलउडा (घ ) । १४. पाण (क,ख,ग,घ) 1 १५. मुद्दग (क, घ ) । १६. लिपिपरिवर्तनेन संयुक्तटकारस्य स्थाने संयुक्तदकारः प्रचलितोभूत् । स्तबके समालोच्य पाठस्य स्थाने 'अरडूसो' (अडूसा ) अर्थ: कृतोस्ति । शालिग्रामनिघण्टुमध्ये अस्य वाचकं पदमस्ति आटरूषकः वनस्पतिकोशे च 'अटरूषकः', तेनात्र 'अट्टरूसग' पाठ एव प्रतीयते । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम पण्णवणापयं जे यावण्णे तहप्पगारा' । से तं गुच्छा ।। ३८. से किं तं गुम्मा ? गुम्मा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा सेरियए' णोमालिय कोरंटय' बंधुजीवग मणोज्जे। वीयय बाण' कणइर', कुज्जय तह सिंदुवारे य ॥१॥ जाई मोग्गर तह जूहिया य तह मल्लिया य वासंति । वत्थुल कच्छल सेवाल, ऽगत्थि मगदंतिया चेव ॥२॥ चंपग-जाती णवणीइया, य कंदो तहा महाजाई। एवमणेगागारा, हवंति गुम्मा मुणेयव्वा ॥३॥ से तं गुम्मा ॥ ३६. से किं तं लयाओ ? लयाओ अणेगविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा पउमलता नागलता, असोग-चंपयलता य चूतलता। वणलय वासंतिलया, अइमुत्तय-कुंद'-सामलता ॥१॥ जे यावण्णे तहप्पगारा । से तं लयाओ॥ ४०. से किं तं वल्लीओ ? वल्लीओ अणेगविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा पूसफली कालिंगी, तुंवी तउसी" य एलवालुंकी। घोसाडई पडोला, पंचंगलिया य णालीया ॥१॥ 'कंगूया कदुइया", कक्कोडइ कारियल्लई सुभगा। कुवधा" य वागली या, पाववल्लि तह देवदारू" य ॥२॥ अप्फोया अइमुत्तय- णागलया कण्ह-सूरवल्ली य । संघट्ट सुमणसा वि य, जासुवण कुविंदवल्ली य॥३॥ १. ते सव्वे गुच्छजातीया इति शेषः । आसु 'बीयय, बाणय, ऽगत्थि' इति पाठोस्ति, २. सेणियए (क)। अत्रापि एवमेव युज्यते । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ता३. कोरिटय (क); कोरेंटे (घ)। (२।१०) वपि 'बीय, बाण, अगत्थि, इति ४,५,७. प्रस्तुतसूत्रे सर्वेष्वपि आदर्शेषु पीईय, पाठोस्ति । शान्तिचन्द्रगणिनापि तद्वत्तो 'बीयपाण, गंठी' एतानि त्रीणि पदानि अशुद्धानि कगुल्माः बाणगुल्मा, अगस्त्यगुल्माः' इति दृश्यन्ते । जीवाजीवाभिगमवत्ती मलयगिरिणा व्याख्यातमस्ति। 'बीयगगुल्मा: बाणगुल्माः अगस्त्यगुल्माः, एवं ६. कणयर (क)। व्याख्यातमस्ति, तत्र तिस्रो गाथा उद्धताः ८. भूतलता (क,घ)। सन्ति ६. कंद (घ)। सेरियए नोमालियकोरंटयबंधुजीवगमणोज्जा। १०. तयसी (क)। बीययबाणयकणवीरकुज्ज तह सिंदुवारे च॥१॥ ११. केमूयी कडुईया (क)। जाई मोग्गर तह जूहिया य तह मल्लिया य वासंती। १२. कारवेल्लई (ख)। वत्थलकत्थूलसेवालगत्थिमगदंतिया चेव ॥२॥ १३. कुवया (क)। चंपकजाई नवनाइया य कुंदे तहा महाकुंदे। १४. देवदाली (क)। एवमणेगागारा, हवंति गुम्मा मुणेयव्वा ॥३॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं मुद्दिय अप्पा भल्ली, छीरविराली जियंति गोवल्ली'। पाणी मासावल्ली', गुंजावली य वच्छाणी ॥४॥ ससबिंदु गोत्तफुसिया, गिरिकण्णइ मालुया य अंजणई। 'दहफुल्लइ कागणि", मोगली य तह अक्कबोंदी य॥५॥ जे यावण्णे तहप्पगारा । से तं वल्लीओ। ४१. से किं तं पव्वगा ? पव्वगा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा इक्खू य इक्खुवाडी, वीरण तह एक्कडे भमासे य । संबे सरे य वेत्ते, तिमिरे सतपोरग णले य ।।१।। वसे वेलू कणए, 'कंकावंसे य चाववंसे' य। 'उदए कुडए विमए, कंडावेलू य" कल्लाणे ॥२॥ जे यावण्णे तहप्पगारा। से तं पव्वगा। ४२. से किं तं तणा ? तणा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा सेडिय 'भत्तिय होत्तिय", डब्भ' कुसे पव्वए य पोडइला" । अज्जुण असाढए" रोहियंसे सूय 'वेय खीर भसे" ॥१॥ एरंडे कुरुविंदे", करकर" सुंठे तहा विभंगू य । महरतण थुरय" सिप्पिय, बोधव्वे सुंकलितणा य॥२॥ जे यावण्णे तहप्पगारा । से तं तणा। ४३. से किं तं वलया ? वलया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा ताल तमाले तक्कलि, तेयलि" साले" य सारकल्लाणे । सरले जावति केयइ", कंदलि तह धम्मरुक्खे" य ॥१॥ भुयरुक्ख हिंगुरुक्खे, लवंगरुक्खे य होति बोधव्वे । पूयफली खज्जूरी, बोधव्वा नालिएरी य॥२॥ जे यावण्णे तहप्पगारा। से तं वलया। १. गोवाली (क,ख,पु)। १०. पोदइल (भ० २१११६) । २. सामावल्ली (क)। ११. आसाढए (क)। ३. दहिफोल्लई कागल्लि (क); दधिफोल्लइ- १२. वखीर (२१।१६) । __ काकलि (भ० २२।६)। १३. तुसे (पु)। ४. वीरुणा (क)। १४. कुरुकुंद (भ०२ ५. सुठे (क, घ)। १५. करके (ख); कक्खड (पु)। ६. कक्कावंस चारुवंस (भ० २११२७) । १६. बुरय (क); छुरय (क,ग,घ); लुणय (पु)। ७. दंडा कूडा विमा कंडा वेलुया (भ० २१११७)। १७. तेयाली (क,घ)। ८. भंतिय होतिय (क); भंतिय कोंतिय (भ० १८. सालिया (क,ख,ग,घ)। २१११६)। १६. केवइ (क)। ६. दब्भ (क)। २०. चम्मरुक्ख (भ० २२।१)। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापर्य ४४. से किं तं हरिया ? हरिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा -- अब्भोरुह' वोडाणे', हरितग तंदुलेज्जग तणे य । वत्थुल पोरग' मज्जार, पाइ बिल्ली* य पालक्का ॥ १ ॥ दगपिप्पलीय दव्वी, सोत्थिय-साए तहेव मंडुक्की । मूलग सरिसव अंविलसाए य जियंतए चेव || २ | तुलसी कह उराले, फणिज्जए अज्जए' य भूयणए' । चोरग' दमणग' मरुयग, सयपुष्पिदीवरे' य तहा ॥ ३ ॥ जे यावणे तप्पगारा । से तं हरिया || ४५. से किं तं ओसहीओ ? ओसहीओ अणेगविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - साली वही गोधूम - जवा", जवजवा कल - मसूर - तिल - मुग्गा । मास - निप्फाव - कुलत्थ आलिसंद" - सतीण-पलिमंथा ॥ १ ॥ अयसी - कुसुंभ-कोव कंगू रालग - वरसामग" - कोदूसा । सण- सरिसव-मूल-बीय-जे यावण्णा तहप्पगारा || २ || सेतं ओसीओ ॥ ४६. से किं तं जलरुहा ? जलरुहा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - उदए अवए पण सेवाले कलंबुया हढे कसेरुया 'कच्छा भाणी उप्पले पउमे कुमुदे नलिणे सुभए सुगंधिए पोंडरीए महापोंडरीए सयपत्ते " सहस्सपत्ते कल्हारे कोकणदे अरविंदे तामरसे भ भिसमुणाले पोक्खले पोक्खलत्थिभए" । जे यावण्णे तहप्पगारा । से त्तं जलरुहा ॥ ४७. से किं तं कुहणा ? कुहणा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - आए काए कुह कुणaat दव्वहलिया" सप्फाए सज्जाए छत्ताए" "वंसी पहिया कुरए । जे यावणे तहप्पगारा । सेत्तं कुणा । १. अज्भोरुह ( ख ) ; अ०भरुह ( भ० २१।२० ) । २. वोयाण ( भ० २१।२० ) । ३. पारग (पु) । ४. चिल्ला ( ख ) ; चिली ( ग ) ; व्विलीया (घ) । ५. अज्जुणे (ख ) । । ६. भुयगणए ( ग ) ७. वोरग ( ग ) । ८. मदणग ( ख ) । ६. सयपुष्पि ° (घ) । विठाणा, रुक्खाणं एगजीविया पत्ता | खंध व एगजीवो, ताल-सरल-नालिएरीणं ॥ १॥ अज्जोरुह ( क, पु ) ; १०. x (ग, पु) । ११. अलिसंद (ख, पु) । १२. पलिमंथग (क, I १३. वेरासामा (क); सामा (घ ) | १४. कच्छताणी (घ) । १५. ॰वत्ते (घ) । १६. ° थिए (घ ) । १७. कुंदुरुक्क ( भ० २३।४) । १८. उव्वेहलिया ( भ० २३|४) । १६. सेत्ता (ख, घ) ; सित्ताए (पु) । २०. साणिय ( भ० २३।४) । १७ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ से त्तं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया' | जह सगलसरिसवाणं, सिलेसमिस्साण वट्टिया वट्टी । पत्तेयसरीराणं, तह होंति सरीरसंघाया ॥२॥ जहवा तिलपपडिया, बहुएहि तिलेहि संहिता संती । पत्तेयसरीराणं तह होंति सरीरसंघाया ॥३॥ ४८. से किं तं साहारणसरीरबादरवणस्सइकाइया ? साहारणसरीरबादरवणस्सइ काइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा पइण्णगं अवए पण सेवाले, 'लोहि णीहू त्थिहू त्थिभगा” । अकण्णी' सीहकण्णी, सिउंढि तत्तो मुसुंढी व ॥ १ ॥ रुरु कंडुरिया' जारू, छीरविराली तहेव किट्टीया' । हलिद्दा सिंगबेरे य, आलुगा मूलए इ य ॥ २ ॥ कंबू' कहकडबू, 'महु- पोवलई" तहेव महुसिंगी । णिरुहा' सप्पसुगंधा, छिण्णरुहा चेव बीयरुहा ॥३॥ पाढा मियवालुंकी, महुररसा चेव रायवल्ली य । पउमा य 'माढरी दंती”, चंडी किट्टि त्ति यावरा ॥४॥ मासपण्णी मुग्गपण्णी, 'जीविय रसभेय रेणुया" चेव । काओली खीरकाओली, तहा" भंगी णही इ य ॥ ५ ॥ किमिरासी" भद्दमुत्था, मंगलई पेलुगा " इ य । किण्हे पउले य हढे, हरतणुया" चेव लोयाणी" ॥६॥ कण्हे कंदे वज्जे, सूरणकंदे तहेव खल्लूडे । एए अनंतजीवा, जे यावणे तहाविहा ॥७॥ तणमूल कंदमूले, वंसमूले" त्ति यावरे । संखेज्जमसंखेज्जा, बोधव्वाणंतजीवा य ॥८॥ १. वणफइ (क, घ, पु) । २. लोहिणी विहु विभुगा ( क ) ; लोहिणी मिहू° (ख, पु); लोहिणी निहू (घ ) । ३. अस्स° (क,घ ) । ४. कुणुरिया ( क ) ; कुंदुरिया ( ग ) ; कुंदरीया ११. तया ( क ) । ६. कुंदु ( भ० २३|१ ) ; कंबूया (घ ) । ७. महुओ वलई (पु) ; मधु-पुलयइ ( भ० २३ १) पण्णवणासुतं ८. विरुहा (घ ) । ९. माढसदंती ( ग ) ; मोढरिदंति ( भ० २३|१) । १०. जीवग- सरिसव करेणुय ( भ० २३८); रसिकेय° (क)। (घ) ; कंडरीय ( भ० २३|१) । १२. किमिरासि (क, घ, पु) । ५. किट्टिय ( ख ); किट्टिया ( ग ) ; किट्टीय १३. पलुगा (पु); पयुय ( भ० २३८ ) । (घ) किट्टि ( भ० २३|१) । १४. हरेणुया ( भ० २३८ ) | १५. लोहीणं ( भ० २३१८ ) | १६. वसीमूले ( क ) । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापयं सिंघाडगस्स गुच्छो, अणेगजीवो उ होति नायव्वो। पत्ता पत्तेयजिया, दोण्णि य जीवा फले भणिता ॥६॥ अणंतजीवलक्खणं जस्स मूलस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसए'। अणंतजीवे उ से मूले, जे यावण्णे तहाविहा ॥१०॥ जस्स कंदस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसए। अणंतजीव उ से कदे, जे यावण्ण तहाविहा ।।११।। जस्स खंधस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसए । अणंतजीवे उ से खंधे, जे यावण्णे तहाविहा ॥१२॥ जीसे तयाए भग्गाए, समो भंगो पदीसए। अणंतजीवा तया सा उ, जा यावण्णा तहाविहा ॥१३॥ जस्स सालस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसई । अणंतजीवे उ से साले, जे यावण्णे तहाविहा ॥१४॥ जस्स पवालस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसई। अणंतजीवे पवाले से, जे यावण्णे तहाविहा ॥१५॥ जस्स पत्तस्स' भग्गस्स, समो भंगो पदीसई । अणंतजीवे उ से पत्ते, जे यावण्णे तहाविहा ॥१६॥ जस्स पुप्फस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसई । अणंतजीवे उ से पुप्फे, जे यावण्णे तहाविहा ।।१७।। जस्स फलस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसती। अणंतजीवे फले से उ, जे यावण्णे तहाविहा ॥१८॥ जस्स बीयस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसई । अणंतजीवे उ से बीए, जे यावण्णे तहा विहा ॥१६॥ पत्तयसरीरजीवलक्षणं जस्स मूलस्स भग्गस्स, हीरो भंगे पदीसई। परित्तजीवे उ से मूले, जे यावण्णे तहाविहा ॥२०॥ जस्स कंदस्स भग्गस्स, हीरो भंगे पदीसई। परित्तजीवे उ से कंदे, जे यावण्णे तहाविहा ॥२१॥ जस्स खंधस्स भग्गस्स, हीरो भंगे पदीसई। परित्तजीवे उ से खंधे, जे यावण्णे तहाविहा ॥२२॥ जीसे तयाए भग्गाए, हीरो भंगे पदीसई। परित्तजीवा तया सा उ, जा यावण्णा तहाविहा ।।२३।। जस्स सालस्स भग्गस्स, हीरो भंगे पदीसती। परित्तजीवे उ से साले, जे यावण्णे तहाविहा ॥२४॥ १. य दीसए (ख,ग,घ) सर्वत्र । ३. पण्णस्स (घ)। २. य दीसई (घ)। ४. भंगो (क) सर्वत्र । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० जस्स पवालस्स भग्गस्स, हीरो भंगे पदीसति । परित्तजीवे पवाले उ, जे यावण्णे तहाविहा ||२५|| जस्स पत्तस्स भग्गस्स, हीरो भंगे पदीसति । परित्तजीवे उसे पत्ते, जे यावण्णे तहाविहा ॥२६॥ जस्स पुप्फस्स भग्गस्स, हीरो भंगे पदीसति । परित्तजीवे उ से पुष्फे, जे यावणे तहाविहा ॥ २७ ॥ जस्स फलस्स भग्गस्स हीरो भंगे पदीसति । परित्तजीवे फले से उ, जे यावण्णे तहाविहा ॥२८॥ जस्स बीयस्स भग्गस्स, हीरो भंगे पदीसति । परित्तजीवे उ से बीए, जे यावण्णे तहाविहा ॥२६॥ छल्ली - अनंतजीवलक्खणं जस्स मूलस्स कट्ठाओ, छल्ली बहलतरी' भवे । अनंतजीवा उसा छल्ली जा यावण्णा तहाविहा ||३०|| जस्स कंदस्स कट्ठाओ, छल्ली वहलतरी भवे । अनंतजीवा उसा छल्ली, जा यावण्णा तहाविहा ||३१|| जस्स खंधस्स कट्टाओ, छल्ली बहलतरी भवे । अनंतजीवा उसा छल्ली जा यावण्णा तहाविहा ||३२|| जसे सालाए कट्ठाओ, छल्ली बहलतरी भवे । अतजीवा उसा छल्ली जा यावण्णा तहाविहा ॥ ३३ ॥ छल्ली- पत्तेयसरीरजीवलक्खणं 1 जस्स मूलस्स कट्ठाओ, छल्ली तणुयतरी भवे । परित्तजीवा उसा छल्ली जा यावण्णा तहाविहा ||३४|| जस्स कंदस्स कट्ठाओ, छल्ली तणुयतरी भवे परित्तजीवा उसा छल्ली जा यावण्णा तहाविहा ||३५|| जस्स खंधस्स कट्ठाओ, छल्ली तणुयतरी भवे । परित्तजीवा उसा छल्ली जा यावण्णा तहाविहा ॥ ३६ ॥ जीसे सालाए कट्ठाओ. छल्ली तणुयतरी भवे । परित्तजीवा उसा छल्ली जा यावण्णा तहाविहा ॥ ३७ ॥ अनंतजीवलक्खणं चक्कागं भज्जमाणस्स, गंठी चुण्णघणो भवे । पुढवीसरिसभेदेण' अनंतजीवं वियाणाहि ॥ ३८ ॥ गूढ छिरागं पत्तं सच्छीरं जं च होति णिच्छीरं । जंपिय पण संधि, अनंतजीवं वियाणाहि ॥ ३६॥ २. पुढवि (क, ख, ग ) । १. बहुलतरी (क) सर्वत्र । पण्णवणासुतं Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापयं पइण्णगं पुप्फा' जलया थलया य, वेंटबद्धा य णालबद्धा य । संखेज्जमसंखेज्जा, बोधव्वाणंतजीवा य ॥४०॥ जे केइ नालियाबद्धा, पुप्फा संखेज्जजीविया भणिता । णिया अणंतजीवा, जे यावण्णे तहाविहा ॥४१॥ 'पउमुप्पलिणीकंदे, अंतरकंदे" तहेव झिल्ली य । एते अणंतजीवा, एगो जीवो भिस-मुणाले ॥४२।। 'पलंडू-लहसणकंदे" य, कंदली य कुडुंबए। एए परित्तजीवा, जे यावण्णे तहाविहा ॥४३।। पउमुप्पल-नलिणाणं, सुभग-सोगंधियाण य । अरविंद-कोकणदाणं', 'सतवत्त-सहस्सवत्ताणं ॥४४॥ वेंट बाहिरपत्ता य, कणिया चेव एगजीवस्स । अधिभतरगा पत्ता, पत्तेयं केसरा" मिजा ॥४५॥ वेणु णल इक्खुवाडिय, 'भमास इखू" य इक्क डेरंडे । करकर सुंठ विहंगु" तणाण तह पव्वगाणं च ॥४६॥ अच्छि पव्वं बलिमोडओ" य एगस्स होंति जीवस्स । पत्तेयं पत्ताइं, पुप्फाइं अणेगजीवाइं ॥४७।। पुस्सफल कालिग, तब तउसेलवालु वालुक। घोसाडयं पडोलं, तिंदूयं चेव तेंदूसं ॥४८॥ 'विटं मंस-कडाहं, एयाइं होंति" एगजीवस्स । पत्तेयं पत्ताई, सकेसरमकेसरं मिजा ।।४।। १. पुष्पा (घ)। ६. पत्त 'पत्ता (क)। २. कदेऽणंतरकंदे (ख); कंदे अणंतरकंदे (ग,घ)। ७. केसरं (क)। ३. 'ल्हसू (क) । उत्तगध्ययने पलाण्ड-लशुनकंदे ८. समा इक्खू (ख); समासइक्खू (ग); न अनंतजीवत्वेन निरूपिते स्त: समास इक्खू (घ); मसमा सइक्खू (पु); साहारणसरीरा उ, गहा ते पकित्तिया । लिपिदोषेण अस्य पदस्य अनेकरूपत्वं जातम्, आलुए मूलए चेव सिंगबेरे तहेव य ।। किन्तु पर्वजवनस्पतिसूत्रे (११४१) 'भमास' हिरिली सिरिली सिस्सिरिली जावई केदकंदली।। इति पदं विद्यते । अत्रापि तदेव युक्तम् । पलंदूलसणकंदे य, कंदली य कुटुंबए॥ ६. सुबि (क,ख); सुठि (ग,घ) । (उत्त० ३६१६६,६७)। १०. विहुंगं (ख); विहुंगुं (ग,घ,पु) । जीवाजीवाभिगमे (११७३) पि एवमेव दृश्यते। ११. पलि' (क,घ)। ४. कसुंबए (क); कुडंबए (घ); कुसुंबए (पु); १२. घोसालयं (क,घ)। कुस्तुम्बकः (मवृ)। १३. खिह वढमंस (ख); विट समंस (पु); विटं ५. कुकुणाणं (क); कोकणाणं (ग,पु); कोंकणाणं समंस (म); विटं गिरं (हव)। (घ)। १४. हवंति (क,घ)। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं सप्काए' सज्जाए, उव्वेहलिया य कुहण कंदुक्के । एए अणंतजीवा, कंडुक्के होति भयणा उ ।।५।। 'बीए जोणिब्भूए", जीवो वक्कमइ सो व अण्णो वा । जो वि य मूले जीवो, सो वि य पत्ते पढमताए ॥५१॥ सव्वो वि किसलओ खलु, उग्गममाणो अणंतओ भणिओ। सो चेव विवड्ढंतो, होइ परित्तो अणंतो वा ॥५२।। साहारणसरीरलक्खणं समयं वक्कंताणं, समयं तेसिं सरीरनिव्वत्ती। समयं आणग्गहणं, समयं ऊसास-नीसासे ॥५३।। एक्कस्स उ जं गहणं, बहूण साहारणाण तं चेव । जं बहुयाणं गहणं, समासओ तं पि एगस्स ॥५४॥ साहारणमाहारो, साहारणमाणुपाणगहणं च । साहारणजीवाण, साहारणलक्खणं एयं ।।५।। जह अयगोलो धंतो, जाओ तत्ततवणिज्जसंकासो। सव्वो अगणिपरिणतो, निगोयजीवे तहा जाण ॥५६॥ एगस्स दोण्ह तिण्ह व, संखेज्जाण व न पासिउं सक्का । दीसंति सरीराइं, णिगोयजीवाणऽणताणं" ।।५७।। जीवपमाणं लोगागासपएसे, णिगोयजीव ठवेहि एक्केक्कं । एवं मवेज्जमाणा, हवंति लोया अणंता उ॥५८।। लोगागासपएसे, परित्तजीवं ठवेहि एक्केक्कं । एवं मविज्जमाणा, हवंति लोया असंखेज्जा ।।५।। पत्तेया पज्जत्ता, पयरस्स असंखभागमेत्ता उ । लोगासंखापज्जत्तगाण साहारणमणता ॥६०॥ जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा तेसिं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साई। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति-जत्थ एगो तत्थ सिय संखैज्जा सिय असंखेज्जा सिय अणंता । एएसि णं इमाओ गाहाओ अणुगंतव्वाओ, तं जहा कंदा य कंदमूला य, रुक्खमूला इ यावरे।। गुच्छा" य गुम्म वल्ली य, वेलुयाणि तणाणि य ॥६१॥ १. सप्पासे (ख,ग)। एएहिं सरीरेहि, पच्चक्खं ते परूविया जीवा। २. कुंडक्के (क); कुंदुक्के (घ)। सुहमा आणागेज्झा, चक्खुप्फासं न ते एंति ॥ ३. कंदुक्के (क); कुंदुक्के (घ)। (क ख,ग,घ); अमौ गाथा वृत्तिकृद्भ्यां ४. जोणिन्भूए बीए (ख,घ,पु) । नास्ति व्याख्याता। ५. णिओय (क,घ)। ७. गच्छा (क)। ६. साहारणमणंता । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापयं २३ पउमुप्पल संघाडे', हढे य सेवाल 'किण्हए पणए। अवए कच्छ भाणी' कंडुक्केक्कूणवीसइमे ॥६२।। तय-छल्लि-पवालेसु य, पत्त-पुप्फ-फलेसु य। मूलग्ग-मज्झ-बीएसु, जोणी कस्स य कित्तिया ? ॥६३।। से त्तं साहारणसरीरवादरवणस्सइकाइया। से तं वादरवणस्सइकाइया। से त्तं वणस्सइकाइया। से तं एगिदिया। बेइंदियजीव-पदं ४६. से किं तं बेंदिया ? [से किं तं बेइंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ? ] बेंदिया [बेइंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा]" अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुला-किमिया कुच्छि-किमिया गंड्यलगा गोलोमा णेउरा सोमंगलगा वंसीमुहा सूईमुहा गोजलोया जलोया जलोउया संखा संखणगा 'घुल्ला खुल्ला" वराडा सोत्तिया मोतिया कलुया वासा एगओवत्ता दुहओवत्ता णंदियावत्ता संवुक्का माईवाहा सिप्पिसंपुडा चंदणा समुद्दलिक्खा, जे यावण्णे तहप्पगारा' । सव्वेते सम्मुच्छिमा नपुंसगा । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहापज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । एएसि णं एवमादियाणं बेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं सत्त जाइकुलकोडिजोणीपमुहसतसहस्सा भवंतीति मक्खातं"। से तं बेइंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवण्णा ॥ तेइंदियजीव-पदं ५०. से किं तं तेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा" ? तेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा--ओवइया रोहिणीया कुंथू पिपीलिया उइंसगा उद्देहिया उक्कलिया उप्पाया२ उक्कडा" उप्पाडा तणाहारा कट्ठाहारा" मालुया पत्ताहारा तणविटिया" पुप्फविटिया फल विटिया बीयविटिया तेदुरणमज्जिया तउसमिजिया कप्पासट्ठि १. सिंघाडे (क)। (घ)। हरिभद्रकृतप्रदेशव्याख्यायां खल्ला २. कृष्णकावकपनक (मवृ)। खुदा वराडा' इति पाठानुसारेण व्याख्यात३. ताणी (ख,घ)। मस्ति । ४. गूण (क,घ)। ६. ते सर्वे द्वीन्द्रिया ज्ञातव्याः (मव) । ५. बेइंदिया (क,ख,घ)। १०. मकारोऽलाक्षणिकः (मव) । ६. कोष्ठकवतिपाठद्वयं आदर्शेष नोपलभ्यते, वृत्ता- ११. तेइंदिय" (क,ग,घ)। वपि नास्ति व्याख्यातम्, तथापि एकेन्द्रियसूत्रे १२. वप्पाया (क,घ)। त्रीन्द्रियादिसूत्रे च एतादशी एवं रचनाशैली १३. ४ (क,ख,ग,घ)। दश्यते । अत्रापि तथैव अपेक्षितास्ति। १४. कट्ठहारा (घ)। ७. जालाउया (घ)। जीवाजीवाभिगमस्य वृत्तौ १५. तणवेंटिया (ख)। द्वीन्द्रियादीनां प्रकारेषु महान् पाठभेदो विद्यते। १६. तेभुरणमिजिया (क, ग); तेतरुण (ख); स च यथा स्थानमवलोकनीयः। तेभुरुणु (घ)। ८. घेल्ला फुल्ला गुलया (क,ग); घेला पुल्ला १७. तेउसिमिजिया (क); तेउसमज्जिया (ख); गुलया (ख); घुल्ला खुल्ला गुलया खुल्ली तेओसमिजिया (ग); तेउ (घ)। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ पण्णवणासुत्तं समिजिया हिल्लिया झिल्लिया झि गिरा' झिगिरिडा' पाहुया' सुभगा सोवच्छिया सुविटा इंदिकाइया इंदगोवया उरुलुंचगा" कोत्थलवाहगा' जूया हालाहला पिसुया सतवाइया गोम्ही हथिसोंडा, जे यावण्णे तहप्पगारा। सव्वेते सम्मुच्छिमा नपुंसगा। ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । एएसि णं एवमाइयाणं तेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं अट्ठ जातिकुलकोडिजोणिप्पमुहसतसहस्सा भवंतीति मक्खायं । से तं तेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा । चरिदियजीव-पदं ५१.से कि तं चउरिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा? चरिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा अंधिय पोत्तिय मच्छिय. 'मसगा कीडे १० तहा पयंगे य। ___ढिकुण" कुक्कुड कुक्कुह, णंदावत्ते य सिंगिरिडे ।।१।। किण्हपत्ता नीलपत्ता लोहियपत्ता हलिद्दपत्ता सुविकलपत्ता चित्तपक्खा विचित्तपक्खा 'ओभंजलिया जलचारिया"२ गंभीरा णीणिया" तंतवा अच्छिरोडा अच्छिवेहा सारंगा णेउरा" दोला भमरा भरिली" जरुला तोटा'६ विच्छता" पत्तविच्छ्या छाणविच्छ्या जल विच्छ्या पियंगाला कणगा“ गोमयकीडगा, जे यावण्ण तहप्पगारा । सव्वेते सम्मच्छिमा नपुंसगा। ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एतेसि णं एवमाइयाणं चउरिदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं णव जातिकुलकोडिजोणिप्पमुहसयसहस्सा भवंतीति मक्खायं । से तं चउरिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ॥ पंचिदियजीव-पदं ५२. से किं तं पंचिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ? पंचिंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा चउव्विहा पण्णत्ता, त जहा–नेरइयपंचिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा. तिरिक्खजोणियपंचिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा, मणुस्सपंचिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा देवपंचिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ।। १. भिगिरा (क); भिंगोरिया (ख); भिगोरा १०. मगसिरलाडे (ख); मगमिगकीडे (क, पु); (ग)। मगसिरकीडे (घ)। २. किंगरिडा (ख); सिगिरिडा (घ); किंगिरिडा ११. ढंकुण (क,ग,घ); टिंकण (ख) । (पु)। १२. ओहंज' (क); ओहिंजलिया जलकारी य ३. पहुया लहुया (घ)। (उत्त० ३६।१४८)। ४. इंदकाइया (उत्तरा० ३६।१३८)। १३. गणिया (घ)। ५. उरुतुंभुगा (क,घ); उरुतुंबगा (ख); गुरु- १४. णेउला (पु)। तुंभुगा (ग)। १५. भमरिली (ख)। ६. ४ (ख)। १६. तोट्टा (क,ख,घ)। ७. पिंसुया (ग)। १७. विव्वुता (घ)। ८. सम्मुच्छिम (ख,ग,घ)। १८. कणभा (क)। ६. णेत्तिय (पु)। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापर्यं नेरइयजीव-पदं ५३. से किं तं नेरइया ? नेरइया सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा - रयणप्पभापुढविनेरइया, सक्करप्पभापुढविनेरइया, वालुयप्पभापुढविनेरइया, पंकप्पभापुढविने रइया, धूमप्पभापुढविनेरइया, तमप्पभापुढविनेरइया, तमतमप्पभापुढविनेरइया' । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । से त्तं नेरइया ॥ तिरिक्खजोणियजीव-पदं ५४. से किं तं पंचिदियतिरिक्खजोणिया ? पंचिदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिया, थलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिया, खहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिया || ५५ से किं तं जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिया ? जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा -मच्छा, कच्छभा', गाहा, मगरा, सुंसुमारा' ॥ ५६. से किं तं मच्छा ? मच्छा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - सण्हमच्छा खवल्लमच्छा' जुगमच्छा विज्झिडियमच्छा' हलिमच्छा' मग्गरिमच्छा रोहियमच्छा हलीसागरा गागरा वडा वडगरा ' तिमी तिमिगिला' णक्का तंदुलमच्छा कणिक्कामच्छा सालिसच्छियामच्छा लंभणमच्छा पडागा पडागातिपडागा । जे यावण्णे तहप्पगारा । से तं मच्छा || ५७. से किं तं कच्छभा ? कच्छभा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - अट्टिकच्छभा य मंसकच्छभा य । सेत्तं कच्छभा ॥ ५८. .से किं तं गाहा ? गाहा पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - दिली वेढला मुद्धया" पुलगा सीमागारा । से त्तं गाहा ॥ ५६. से किं तं मगरा ? मगरा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- सोंडमगरा य मट्ठमगरा य । से त्तं मगरा ॥ ६०. से किं तं सुंसुमारा ? सुंसुमारा एगागारा पण्णत्ता । से त्तं सुंसुमारा । 'जे यावणे तहप्पगारा"" ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा सम्मुच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य । तत्थ णं जेते सम्मुच्छिमा ते सव्वे नपुंसगा । तत्थ णं जेते गब्भवक्कंतिया ते तिविहा पण्णत्ता तं जहा -- इत्थी पुरिसा नपुंसगा । एतेसि णं एवमाइयाणं जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं अद्धतेरस जाइकुलकोडिजोणिप्पमुहसयसहस्सा भवतीति मक्खायं । से तं जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया || १. तमतमापुढवि (ख, घ) 1 २. कच्छहा ( क, ख, घ, पु) । ३. शिशुमाराः प्राकृतत्वात् सूत्रे 'सुंसुमारा' इति २५ पाठ: (मवृ) । ४. खतमच्छा ( ख ) । ५. चिभडिय° (ख); विभिडिय° (घ ) । ६. हालिमच्छा ( ख ) 1 ७. मगरिमच्छा ( क ) ; मगरीमच्छा ( ख ) । ८. वडगरा कूयागारा ( ग ) । ९. तिमंगिला (घ ) । १०. मुख्या ( क ) ; सुद्धया ( ख, ग, घ ) । ११. चिन्हाङ्कितं वाक्यं पूर्वसूत्रेषु उत्तरसूत्रेष्वपि च निगमनवाक्यात् पूर्वं वर्तते । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ पण्णवणासुत्तं ६१. से कि तं थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य ॥ ६२. से कि तं चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया चउविहा पण्णत्ता, तं जहा-एगखुरा दुखुरा गंडीपदा सणप्फदा ॥ ६३. से किं तं एगखुरा ? एगखुरा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-अस्सा अस्सतरा घोडगा गद्दभा गोरक्खरा कंदलगा सिरिकंदलगा आवत्ता । जे यावण्णे तहप्पगारा। से तं एगखुरा ॥ ६४. से किं तं दुखुरा ? दुखरा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहाउट्टा गोणा गवया रोज्झा पसया महिसा मिया संवरा वराहा अय-एलग-रुरु-सरभ-चमर-कुरंग-गोकण्णमादी। 'जे यावण्णे तहप्पगारा" । से तं दुखुरा ।। ६५. से किं तं गंडीपया ? गंडीपया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-हत्थी पूयणया' मंकुणहत्थी खग्गा गंडा । जे यावण्णे तहप्पगारा। से तं गंडीपया ।। ६६. से किं तं सणप्फदा ? सणप्फदा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-सीहा वग्घा दीविया अच्छा तरच्छा परस्सरा सियाला बिडाला सुणगा कोलसूणगा कोकंतिया ससगा चित्तगा चित्तलगा। जे यावण्णे तहप्पगारा। सेत्तं सणप्फदा । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता तं जहा--सम्मच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य । तत्थ णं जेते सम्मुच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा। तत्थ णं जेते गब्भवतिया ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी पूरिसा णपंसगा। एतेसि णं एवमादियाणं थलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जत्तापज्जताणं दस जाइकुलकोडिजोणिप्पमुहसयसहस्सा हवंतीति मक्खातं। से तं च उप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्ख जोणिया॥ ६७. से किं तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य ॥ ६८. से किं तं उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? उरपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिया चउम्विहा पण्णत्ता, तं जहा-अही अयगरा आसालिय महोरगा ।। ६६. से कि तं अही? अही दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-दव्वीकरा य मउलिणो य ।। ७०. से कि तं दव्वीकरा ? दव्वीकरा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-आसीविसा दिट्ठीविसा उग्गविसा भोगविसा तयाविसा लालाविसा उस्सासविसा निस्सासविसा कण्हसप्पा सेदसप्पा काओदरा दब्भपुप्फा कोलाहा मेलिर्मिदा । जे यावण्णे तहप्पगारा। १. विखुरा (क,घ)। ५. चिल्ललगा (क); विल्ललगा (घ)। २. ४ (क,ख,घ,पु)। ६. लालविस्सा (ग)। ३. हत्थिपूयणया (क,ग,घ); पुयलया (ख)। ७. दज्झपुप्फा (ग)। ४. अरच्छा (घ)। ८. सेलिसिंदा (ख)। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम पण्णवणापयं २७ से तं दव्वीकरा॥ ७१. से किं तं मउलिणो ? मउलिणो अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-दिव्वा' गोणसा कसाहिया वइउला चित्तलिणो मंडलिणो मालिणो अही अहिसलागा पडागा'। जे यावण्णे तहप्पगारा । से तं मउलिणो । से तं अही॥ ७२. से किं तं अयगरा? अयगरा एगागारा पण्णत्ता, से तं अयगरा ॥ ७३. 'से कि तं आसालिया? आसालिया एगागारा पण्णत्ता ।। ७४. कहि णं भंते ! आसालिया सम्मुच्छति" ? गोयमा ! अंतोमणुस्सखित्ते अड्ढाइज्जेसु दीवेसु, निव्वाघाएणं पण्णरससु कम्मभूमीसु, वाघातं पडुच्च पंचसु महाविदेहेसु, चक्कवट्टिखंधावारेसु वासुदेवखंधावारेसु बलदेवखंधावारेसु मंडलियखंधावारेसु महामंडलियखंधावारेसु गामनिवेसेसु नगरनिवेसेसु निगमणिवेसेसु खेडनिवेसेसु कब्बडनिवेसेसु मडंबनिवेसेसु दोणमुहनिवेसेसु पट्टणनिवेसेसु आगरनिवेसेसु आसमनिवेसेसु संवाहनिवेसेसु रायहाणीनिवेसेसु एतेसि णं चेव विणासेसु एत्थ णं आसालिया सम्मुच्छति, जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए ओगाहणाए उक्कोसेणं बारसजोयणाई, तयणुरूवं च णं विक्खंभबाहल्लेणं भूमि दालित्ताणं समुद्रुति अस्सण्णी मिच्छद्दिट्ठी अण्णाणी अंतोमुहत्तद्धाउया चेव कालं करेइ। से तं आसालिया ॥ ७५ से कि तं महोरगा ? महोरगा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा--अत्थेगइया अंगुलं पि अंगुलपुहत्तिया वि वियत्थि पि वियत्थिपुहत्तिया वि रयणि पि रयणिपुहत्तिया वि कुच्छि पि कुच्छिपुहत्तिया वि धणुं पि धणुपुहत्तिया वि गाउयं पि गाउयपुहत्तिया वि जोयणं पि जोयणपूहत्तिया वि जोयणसतं पि जोयणसतपहत्तिया वि जोयणसहस्सं पि । ते णं थले जाता जले विचरंति थले विचरंति। ते णत्थि इहं, बाहिरएसू दीव-समूहा हवंति । जे यावण्णे तहप्पगारा। से तं महोरगा । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. दिव्वागा (क ग,घ)। यदेव ग्रन्थान्तरेषु आसालिगाप्रतिपादक २. कसाहीया (क,घ,पु)। गौतमप्रश्नभगवन्निर्वचनरूपं सूत्रमस्ति ३. वासपडागा (ग)। तदेवागमबहुमानतः पठति-'कहि णं भंते ४. से कि तं आसालिया ? कहि णं भंते ! इत्यादि (मव)। आसालिया सम्मुच्छति ? (क,ग,घ,पु); 'ख' ५. मलयगिरिवृत्ती 'चक्क वट्टिखंधावारेसु' इत्यत प्रति मुक्त्वा अन्येषु आदर्शेषु मलयगिरिवृता- आरभ्य 'रायहाणीनिवेसेसु' इत्यन्तानां पदावपि एष पाठ: अपूर्णो दश्यते । जीवाजीवा- नामनन्तरं 'वा' शब्दो व्याख्यातोस्ति-वा भिगमस्य तृतीयप्रतिपत्तौ, २१३ सूत्रे शब्द: सर्वत्रापि विकल्पार्थो द्रष्टव्यः । सम्मूच्छिममनुष्याणां एकाकारत्वं प्रतिपादित- ६. मलयगिरिवृत्तौ एतत्पदं नास्ति व्याख्यातम् । मस्ति, तेन 'ख' प्रतिगतपाठस्य पुष्टिर्जायते। ७. तदेव ग्रन्थान्तरगतं सूत्रं पठित्वा सूत्रकृद् द्रष्टव्यमस्यैव पदस्य ८३ सूत्रस्य पादटिप्पणम्। उपसंहारमाह- से तं आसालिया' (म) । मलयगिरिणा एवं विवतमस्ति-से कि तं ८. जोयणसहस्सिया (क,ग)। आसालिया' अथ का सा आसालिया ? एवं ६. चरंति जले जाता जले वि चरंति (ख,ग)। शिष्येण प्रश्ने कृते सति भगवान आर्यश्यामो Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं सम्मुच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य। तत्थ णं जेते सम्मुच्छिमा ते सव्वे नपुंसगा । तत्थ णं जेते गब्भवक्कंतिया ते णं तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी पुरिसा नपुंसगा। एएसि णं एवमाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं उरपरिसप्पाणं दस जाइकुलकोडीजोणिप्पमहसतसहस्सा हवंतीति मक्खातं । से तं उरपरिसप्पा । ७६. से किं तं भुयपरिसप्पा ? भुयपरिसप्पा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा–णउला गोहा' सेहा' सरडा सल्ला सरंडा' सारा घरोइला विस्संभरा मूसा मंगुसा पयलाइया छीरविरालिया जाहा चउप्पाइया । जे यावऽण्णे तहप्पगारा। ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-- सम्मुच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य । तत्थ णं जेते सम्मुच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा। तत्थ ण जेते गब्भवक्कंतिया ते णं तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी परिसा नपंसगा। एतेसि णं एवमाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं भयपरिसप्पाणं णव जाइकुलकोडिजोणीपमुहसयसहस्सा हवंतीति मक्खायं। से तं भयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। से तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ।। ७७. से किं तं खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-चम्मपक्खी लोमपक्खी समुग्गपक्खी विततपक्खी ।। ७८. से किं तं चम्मपक्खी ? चम्मपक्खी अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-वग्गुली जलोया अडिला'भारंडपक्खी जीवंजीवा समुद्दवायसा कण्णत्तिया पक्खिबिराली, जे यावण्णे तहप्पगारा । से तं चम्मपक्खी ।। ७६. से कि तं लोमपक्खी ? लोमपक्खी अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-ढंका कंका कुरला वायसा चक्कागा' हंसा कलहंसा पायहंसा रायहंसा अडा सेडी बगा बलागा पारिप्पवा कोंचा सारसा मेसरा मसूरा मयूरा सतवच्छा गहरा पोंडरीया कागा कामंजुगा' वंजुलगा तित्तिरा वट्टगा लावगा कवोया कविजला पारेवया चिडगा चासा कुक्कुडा सुगा वरहिणा ‘मदणसलागा कोइला" सेहा वरेल्लगमादी । से तं लोमपक्खी । ८०. से किं तं समुग्गपक्खी" ? समुग्गपक्खी एगागारा पण्णत्ता, ते णं णत्थि इहं, बाहिरएसु दोव-समुद्दएसु भवंति । से त्तं समुग्गपक्खी ॥ ८१. से किं तं विततपक्खी ? विततपक्खी एगागारा पण्णत्ता, ते णं नत्थि इहं, बाहिरएसु दीव-समुद्दएसु भवंति । से तं विततपक्खी । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सम्मुच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य । तत्थ णं जेते सम्मुच्छिमा ते सव्वे नपंसगा। तत्थ णं जेते गब्भवक्कंतिया ते णं तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी पुरिसा नपुंसगा। १. ४ (क,ख,ग,घ)। ५. अडिल्ला (क)। २. 'ग' संकेतितादर्श स्वीकृतपाठी लभ्यते । जीवा- ६. चक्कग (क,घ); चक्कवागा (ख)। जीवाभिगमे (२६) भुजपरिसर्पप्रकरणे ७. कामिजगा (क); कामिजुगा (घ)। 'सेधाओ' इति पाठो दृश्यते। ८. वट्टागा (क)। ३. सरंठा (क,ख,पु); सरठा (घ)। ६. मद्दणसलागा कोकिला (क); सद्दण (घ)। ४. मंगूसा (क); मुगुस (उवा० २।२१, पण्हा० १०. सामुग्ग° (घ) । १८)। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापर्यं २९ एएसि णं एवमाइयाणं खयरपंचेंदियतिरिवखजोणियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं बारस जातिकुल को डीजोणिप्पमुहसतसहस्सा' भवतीति मक्खातं । संग्रहणी - गाहा सत्तट्ठ जातिकुलकोडिलक्ख' नव अद्धतेरसाईं च । दस दस य होंति णवगा, तह बारस चेव बोधव्वा ॥ १ ॥ सेतं खयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया । से त्तं पंचेंदियतिरिक्खजोणिया । ' से त्तं तिरिक्खजोणिया " ॥ I ८२. से किं तं मणुस्सा ? मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - समुच्छिममणुस्सा य गब्भवक्कं तियमणुस्सा य ॥ ८३. 'से किं तं सम्मुच्छिममणुस्सा ? सम्मुच्छिममणुस्सा एगागारा पण्णत्ता ॥ ८४. कहि णं भंते " ! सम्मुच्छिममणुस्सा सम्मुच्छंति ? गोयमा ! अंतोमणुस्सखेत्ते पणतालीसाए जोयणसयसहस्सेसु अड्ढाइज्जेसु दीव- समुद्देसु पन्नरससु कम्मभूमीसु तीसाए अकम्मभूमीसु छप्पण्णाए अंतरदीवएसु गब्भवक्कंतियमणुस्साणं चेव उच्चारेसु वा पासवणेसु वा खेलेसु वा सिंघाणेसु' वा वंतेसु वा पित्तेसु वा पूएस वा सोणिएसु वा सुक्केसु वा सुक्कपोग्गल परिसाडेसु वा विगतजीव कलेवरेसु वा थी - पुरिससंजोएसु वा [ गामणिद्धमणेसु वा' ? ] रणिमणे वा सव्वेसु चेव 'असुइएसु ठाणेसु", एत्थ णं सम्मुच्छिममणुस्सा सम्मुच्छंति । अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए ओगाहणाए असण्णी मिच्छद्दिट्ठी अण्णाणी सव्वाहि पज्जत्तीहि अपज्जत्तगा अंतोमुहुत्ताउया चेव कालं करेंति । से त्तं सम्मुच्छिममणुस्सा ॥ .से किं तं गब्भवक्कंतियमणुस्सा ? गब्भवक्कंतियमणुस्सा तिविहा पण्णत्ता, तं ८५. १. जाती (क, घ, पु) 1 २. कोड होंति (क, ख, ग, घ ) । ३. मलयगिरिवृत्तौ तदेवमुक्ता पञ्चेन्द्रियतैर्यग्यो निका' इत्येव निगमनमस्ति । ४. से किं तं सम्मुच्छिममणुस्सा ? कहि णं भंते ! (क, ख, ग, घ, पु); एष पाठ: अपूर्णोस्ति, लिपिदोषेण अन्येन केनापि कारणेण त्रुटितोभूत् । जीवाजीवाभिगमे तृतीयप्रतिपत्ती, २१३ सूत्रे अस्य पूर्णरूपं प्राप्यते - 'से किं तं सम्मुच्छिममणुस्सा ? सम्मुच्छिममणुस्सा एगागारा पण्णत्ता' । एतस्यानन्तरं कहि णं भंते सम्मुच्छिममणुस्सा सम्मुच्छंति ?' इति सूत्रमस्ति । वृत्तिकृतापि आदर्शेषु अपूर्णः पाठो लब्ध:, तेन तत्र इति विवृतम् - अत्रापि समूच्छिम मनुष्यविषये प्रवचनबहुमानतः शिष्याणामपि च साक्षाद् भगवते दमुक्तमिति बहुमानोत्पादनार्थमङ्गान्तर्गतमालापकं पठति'कहि णं भंते' इत्यादि ( मवृ ) | ५. सिंघाण (घ ) । ६. नन्दी सूत्रस्य हारिभद्रीयवृत्तौ ( पृ० ३३) मलयगिरिवृत्त (पत्र १०१, १०२) च उद्धृते प्रज्ञापनायाः पाठे कोष्ठकान्तवत्ति पाठो लभ्यते । तत्र 'पूएसु' इति पदं नैव दृश्यते । जीवाजीवाभिगमस्य मलयगिरिवृत्तावपि (पत्र ४५-४६) एष पाठ उद्धृतोस्ति, तत्र कोष्ठकान्तवत्तिपाठो नास्ति । पूएसु' इति पदमपि च नास्ति । अनेन आदर्शगतो वाचना भेद: सम्भाव्यते । ७. असुयठाणेसु ( ग ) । ८. ( क,ख, घ, पु) । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० पण्णवणासुत्तं जहा-कम्मभूमगा' अकम्मभूमगा' अंतरदीवगा। ८६. से किं तं अंतरदीवया ? अंतरदीवया अट्ठावीसतिविहा पण्णत्ता, तं जहाएगोरुया आभासिया वेसाणिया णंगोली हयकण्णा गयकण्णा गोकण्णा सक्कुलिकण्णा' आयंसमुहा मेंढमुहा अयोमुहा गोमुहा आसमुहा हत्थिमुहा सीहमुहा वग्घमुहा आसकण्णा सीहकण्णा अकण्णा कण्णपाउरणा उक्कामुहा मेहमुहा विज्जुमुहा विज्जुदंता घणदंता लट्ठदंता गूढदंता सुद्धदंता। से तं अंतरदीवगा ॥ ८७. से कि त अकम्मभूमगा? अकम्मभूमगा तीसतिविहा पण्णत्ता, तं जहा-पंचहि हेमवएहिं, पंचहिं हिरण्णवएहि, पंचहिं हरिवासेहि, पंचहिं रम्मगवासेहि, पंचहिं देवकुरूहिं, पंचहि उत्तरकुरूहि । से तं अकम्मभूमगा॥ ___८८. से किं तं कम्मभूमगा? कम्मभूमगा पण्णरसविहा पण्णत्ता, तं जहा--पंचहिं भरहेहि, पंचहिं एरवतेहिं, पंचहि महाविदेहेहिं । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहाआरिया य मिलक्खू य ।। मिलक्खु-पदं ___८६. से किं तं मिलवखू ? मिलक्खू अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-सग" जवण चिलाय" सवर बब्बर काय मुरुंडर उड्ड भडग णिण्णग पक्कणिय कुलक्ख गोड" सिंहल" १. कम्मभूमिगा (ख,ग)। विसयवासी य पावमतिणो। २. अकम्मभूमिगा (ख,ग)। 'ओवाइयं' (७०) सूत्रे कुब्जाप्रकरणे देस३. एगोरूया (ख,ग,घ)। सम्बन्धीनि पदानि लभ्यन्ते, यथा-बहूहिं ४. आहा° (क,घ)। खुज्जाहिं चिलाईहिं वामणीहिं वडभीहिं ५. संकुलीकण्णा (ख)। बब्बरीहिं पउसियाहि जोणियाहिं पल्हवियाहिं ६. °कुराहिं (क); °कुरुहिं (घ)। ईसिणियाहिं थारुइणियाहिं लासियाहिं ७. आयरिया (क,ख,ग,घ)। लउसियाहिं सिंहलीहि दमिलीहिं आरबीहिं ८. पण्हावागरणाइं (१।२१) सूत्रे म्लेच्छजातिना- पुलिंदीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मरुंडीहिं मानि किञ्चित् संख्याभेदेन पाठभेदेन च प्रति- सबरीहिं पारसीहिं णाणादेसीहि । पादितानि सन्ति-कूरकम्मकारी इमे य बहवे . मिलक्खा (ग)। मिलक्ख्या किं ते ?-सक जवण सवर बब्बर १०. सगा (क,ग); सक्का (ख)। काय मुरुड उडु भडग निण्णग पक्काणिय ११. पण्हावागरणाइं (११२१) सूत्रे एतत् पदं कुलक्ख गोड सीहल पारस कोंच अंध दविल नास्ति अस्निन्नेव सूत्रे 'चिलायविसयवासी' चिल्लल पुलिंद आरोस डोंब पोक्कण गंधहारग एतत्पदं विद्यमानमस्ति तेनास्य पौनरुक्त्यमेव बहलीय जल्ल रोम माय बउस मलया य प्रतीयते । चुंचया य चुलिय कोंकणगा मेद पल्हव मालव १२. मुरुंडोड्ड (क,घ,पु); मुरंड (ग)। र आभासिया अणक्क चीण ल्हासिय खस १३. गोंड (ग,घ,पु)। खासिय नेदर मरहठ मुद्रिय आरब डोंबिलग १४. सिहर (ख) । कुहण केकय हण रोमग रुरु मरुगा चिलाय Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ पढमं पण्णवणापयं पारस 'गोध कोंच" दमिल चिल्लल पुलिंद हारोस' डोंब' वोक्काण गंधाहारग बहलिय' अज्जल रोम पास पउसा मलया य चुंचया' य सूयलि कोंकणग मेय पल्हव मालव मग्गर' 'आभासिय णक्क" चीणा ल्हसिय 'खस खासिय"णेदर" मोंढ२ डोंबिलग लउस बउस" केक्कया अरवागा हण 'रोमग भरु मरुय४ चिलायाविसयवासी'१५ य एवमादी। से तं मिलक्खू ॥ आरिय-पदं ६०. से किं तं आरिया ? आरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- इड्डिपत्तारिया य अणिढिपत्तारिया य॥ ६१. से किं तं इड्ढिपत्तारिया ? इड्ढिपत्तारिया छव्विहा पण्णत्ता, तं जहाअरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा चारणा विज्जाहरा । से तं इढिपत्तारिया ॥ २. से किं तं अणिढिपत्तारिया ? अणिड्ढिपत्तारिया णवविहा पण्णत्ता, तं जहा-खेत्तारिया जातिआरिया" कुलारिया कम्मारिया सिप्पारिया भासारिया णाणारिया दसणारिया चरित्तारिया ।। खेत्तारिय-पदं ६३. से कि तं खेत्तारिया ? खेत्तारिया अद्धछव्वीसतिविहा पण्णत्ता, तं जहा रायगिह मगह चंपा, अंगा तह तामलित्ति वंगा य। कंचणपुरं कलिंगा, वाणारसि चेव कासी य ॥१॥ १. गोधाइच्च (क); गोधोच्च (ख); गोधाइ १७. मलयगिरिवृत्ती जनपदनगरसम्बन्धः इत्थं (ग,घ); गोंधोडंब (पु)। प्रदशितोस्ति--१. मगधेषु जनपदेषु राजगृहं २. हारोसा (ख)। नगरम् २. अङ्गेषु चम्पा। ३. वङ्गेषु ताम३. ढोंच (ख,घ); दोव (ग)। लिप्ती ४. कलिङ्गेषु काञ्चनपुरं ५. काशिषु ४. गंधाहारवा (ख)। वाराणसी ६. कोशलासु सावे तं ७. कुरुषु गजपुरं ५. पहल (ख); पहलिल (ग)। ८. कुशावर्तेषु सौरिकं ६. पाञ्चालेष काम्पिल्यं ६. बंधुया (क,ख,ग,घ)। १०. जङ्गलेषु अहिच्छत्रा ११. सुराष्ट्रेषु ७. मूयलि (पु)। द्वारावती १२. विदेहेषु मिथिला १३. वत्सेष ८. सग्गर (क,घ); गग्गर (पु)। कौशाम्बी १४. शाण्डिल्येषु नन्दिपुरं १५. ६. आभासियाणक्क (क,ख,ग,घ)। मलयेषु भद्दिलपुरं १६. वत्सेषु वैराटपुरं १०. खग्गघासिय (क,ख,ग)। १७. वरणेषु अच्छापुरी १८. दशार्णेषु ११. णद्दर (ग,घ); णेदर (क); गेडूर (पु)। मत्तिकावती १९. चेदिषु शौक्तिकावती २०. १२. मेढ (ख) मंढ (घ), मंड (पु)। वीतभयं सिंधुषु सौवीरेषु २१. मथुरा शूरसेनेषु १३. पओस (ख); पउस (क,ग,घ)। २२. पापाभङ्गेषु २३. मास (सा) पुरिवट्टा १४. एतानि च प्रायो लुप्तबहुवचनानि । ( यां) २४. कुणालेषु श्रावस्ती २५. लाटासु १५. रोसग भरु सभयच्छिय° (क); रोसग-भरुग- कोटिवर्ष २६. श्वेताम्बिका केकयजनपदार्द्ध रुय-विलाय (पु)। एतावदर्वषड्विंशति जनपदात्मकं क्षेत्रमायं १६. जाता आरिया (ख)। भणितम् । Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं साएय कोसला गयपुरं च, कुरु सोरियं कुसट्टा' य । कंपिल्लं पंचाला, अहिछत्ता जंगला चेव ॥२॥ 'बारवती य सुरवा, मिहिल विदेहा य वच्छ कोसंबी। णंदिपुरं संडिल्ला, भद्दिलपुरमेव मलया य ॥३॥ वइराड वच्छ वरणा, अच्छा तह मत्तियावइ दसण्णा । सुत्तीमई य चेदी, वीइभयं सिंधसोवीरा ॥४॥ महुरा य सूरसेणा, पावा भंगी य मासपुरि वट्टा । सावत्थी य कूणाला, कोडीवरिसं च लाढा य ॥५॥ सेयविया वि य णयरी, केयइअद्धं च आरियं भणितं । एत्थुप्पत्ति जिणाणं, चक्कीणं राम-कण्हाणं ।।६।। से तं खेत्तारिया ॥ जातिआरिय-पदं ६४. से किं तं जातिआरिया' ? जातिआरिया छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा अंबट्ठा य कलिंदा, विदेहा वेदगा' इ य । हरिया चुंचुणा चेव, 'छ एया इब्भजातिओ" ॥१॥ से तं जातिआरिया ।। कुलारिय-पदं ६५. से कि तं कुलारिया ? कुलारिया छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-उग्गा भोगा राइण्णा इक्खागा णाता कोरव्वा । से तं कुलारिया ॥ कम्मारिय-पदं ६६. से किं तं कम्मारिया" ? कम्मारिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-दोस्सिया सोत्तिया कप्पासिया सुत्तवेयालिया भंडवेयालिया कोलालिया णरदावणिया" । जे यावण्णे तहप्पगारा। से तं कम्मारिया॥ १. °त्ता (क,घ)। ७. चंचुणा (घ)। २. सोरठा बारवइ (ख); वारवती सोरठा (घ)। ८. छप्पया इइजा (क)। ३. सोत्तियवइ (क,घ)। ६. ठाणं ६।३५ सूत्रे एतत्संवादी पाठो दृश्यते४. वीयभयं (क,घ)। छविहा कुलारिया मणुस्सा पण्णत्ता, तं ५. ठाणं ६।३४ सूत्रे एतत्संवादी पाठो दृश्यते- जहा-उग्गा, भोगा राइण्णा, णाता, कोरव्वा। छविहा जाइआरिया मणुस्सा पण्णत्ता, तं १०. अणुओगदाराई ३५६ सूत्र एततसंवादी पाठो जहा दश्यते-से किं तं कम्मनामे ? कम्मनामेअंबट्टा य कलंदा य, वेदेहा वेदिगादिया। दोसिए सोत्तिए कप्पासिए भंडवेयालिए हरिता चुचुणा चेव, छप्पेता इन्भजातिया ॥ कोलालिए । से तं कम्मनामे । ६. वेदमा (ख)। ११. णरवावण्णिया (ख,घ); नरंदावणिया (ग)। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापयं सिप्पारिय-पदं ६७. से कि तं सिप्पारिया' ? सिप्पारिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-तुण्णागा तंतुवाया पट्टगारा' देयडा वरुट्टा' छविया कट्टपाउयारा मुंजपाउयारा छत्तारा वज्झारा' पोत्थारा लेप्पारा चित्तारा संखारा दंतारा भंडारा जिब्भगारा' सेल्लरा' कोडिगारा। जे यावण्णे तहप्पगारा। से तं सिप्पारिया । भासारिय-पदं १८. से किं तं भासारिया ? भासारिया जे णं अद्धमागहाए भासाए भासिंति, जत्थ वि य णं बंभी लिवी पवत्तइ । बंभीए" णं लिवीए अट्ठारसविहे लेक्ख विहाणे पण्णत्ते, तं जहा-बंभी जवणाणिया दोसापुरिया खरोट्ठी" पुक्खरसारिया भोगवईया" पहराईयाओ य अंतक्खरिया अक्खरपुट्ठिया वेणइया णिण्हइया अंकलिवी गणितलिवी गंधव्वलिवी आयंसलिवी माहेसरी दामिली पोलिंदी। से तं भासारिया ।। णाणारिय-पदं ६६. से किं तं णाणारिया ? णाणारिया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-आभिणिबोहियणाणारिया सुयणाणारिया ओहिणाणारिया मणपज्जवणाणारिया केवलणाणारिया। से तं णाणारिया ॥ दंसणारिय-पदं १००. से किं तं दंसणारिया ? सणारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सरागदंसणारिया य वीयरागदसणारिया य॥ १०१. से किं तं सरागदसणारिया ? सरागदंसणारिया दसविहा पण्णत्ता, तं जहा निस्सग्गुवएसरुई आणारुइ, सुत्त-बीयरुइ मेव" । अहिगम-वित्थाररुई किरिया-संखेव-धम्मरुई ॥१॥ १. अणुओगदाराई ३६० सूत्रे एतत्संवादी पाठो ७. समवाओ १८९५ सूत्रे एतत्संवादी पाठो दृश्यते-से कि तं सिप्पनामे ? सिप्पनामे- दृश्यते-बंभीए णं लिवीए अट्ठारसविहे लेखवत्थिए तंतिए तुन्नाए तंतुवाए पट्टकारे देअडे विहाणे पण्णत्ते, तं जहा-बंभी जवणालिया वरुडे मुंजकारे कटकारे छत्तकारे वज्झकारे दोसऊरिया खरोट्ठिया खरसाहिया पहाराइया पोत्यकारे चित्तकारे दंतकारे लेप्पकारे कोट्टिम- उच्चत्तरिया अक्खरपुट्ठिया भोगवइया वेणइया निण्हइया अंकलिवी गणियलिवी गंधव्वलिवी २. वड्ढागारा (क); पट्टागारा (ख,ग,घ)। आयंसलिवी माहेमरी दामिली पोलिंदी। ३. वरुडा (क); वरुणा (ख); वरणा (पु); ८. जवणालिया (क,ख,घ,पु); मलयगिरिवृत्ती मलयगिरिणा 'वरुट्टा-पिच्छकारा' इति यवनानी। व्याख्यातम् । ६. दासा (क,घ)। ४. पभारा (क); पब्भारा (घ)। १०. खरोट्टी (क,ख,ग,घ)। ५. जिब्भारा (ख); जिज्झगारा (पु)। ११. °इया (घ)। ६. सेलारा (क); सेल्लगारा (पु)। १२. चेव (क)। कारे। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं भूयत्थेणाधिगया, 'जीवाजीवा य" पुण्णपावं च । सहसम्मुइयासवसंवरों' य रोएइ' उ णिसग्गो ॥२॥ जो जिणदिठे भावे, चउन्विहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव णण्णह त्ति य, णिस्सग्गरुइ त्ति णायव्वो ॥३॥ एते चेव उ भावे, उवदिठे जो परेण सद्दहइ। छउमत्थेण जिणेण व, उवएसरुइ त्ति नायव्वो ॥४।। 'जो हेउमयाणंतो, आणाए रोयए पवयणं तु । एमेव णण्णह त्ति य, एसो आणारुई नाम" ॥५॥ जो सुत्तम हिज्जतो, सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरेण व, सो सुत्तरुइ त्ति णायव्वो ॥६॥ 'एगपएणेगाई, पदाइं जो पसरई उ सम्मत्तं । उदए व्व तेल्लबिंदू, सो बीयरुइ त्ति णायव्वो" ॥७॥ सो होइ अहिगमरुई', सुयणाणं जस्स अत्थओ दिळं। एक्कारस अंगाई, पइण्णगं दिट्ठिवाओ य ॥८॥ दव्वाण सव्वभावा, सव्वपमाणेहि जस्स उवलद्धा। सव्वाहिं णयविहीहिं, वित्थाररुइ त्ति णायव्वो ।।६।। दंसण-णाण-चरित्ते, तवविणए सच्चसमिइ - गुत्तीसु । जो किरियाभावरुई. सो खल किरियारुई णाम ॥१०॥ अणभिग्गहियकुदिट्ठी, संखेवरुइ त्ति होइ णायव्वो। अविसारओ पवयणे, अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥११॥ जो अत्थिकायधम्म, सुयधम्म खलु चरित्तधम्मं च । सद्दहइ जिणाभिहियं, सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो ॥१२॥ परमत्थसंथवो वा, सुदिट्ठपरमत्थसेवणा वा वि । वावण्ण-कुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा ।।१३।। निस्संकिय निक्कंखिय, निन्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य । उववूह थिरीकरणे वच्छल्ल पभावणे अट्ठ ॥१४॥ से तं सरागदसणारिया ॥ १. जीवाजीवा इ (क); जीवाजीवं च (पु); ५. एगेण अणेगाइ, पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं । उत्तरज्झयणाणि २८॥१७ 'जीवाजीवा य' इति उदए व्व तेल्लबिंदू, सो बीयरुइ त्ति नायव्वो॥ विद्यते। (उत्त० २८.२२)। २. सहसंमइया (घ); °संवरे (पु)। ६. अभिगमरुई (ग,घ)। ३. रोइओ (क); रोइय (घ)। ७. सव्वसमिइ (कग,घ, मव) । ४. रागो दोसो मोहो, अण्णाणं जस्स अवगयं होइ। ८. तदेवं निसर्गाद्युपाधि भेदाद् दशधा रुचिरूपं आणाए रोयंतो, सो खलु आणारुई नाम ॥ दर्शनमुक्तं, सम्प्रति लिङ्गरिदमुत्पन्नमस्ति (उत्त० २८।२०) इति निश्चीयते तानि लिङ्गान्युपदर्शयन्नाह (म)। Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापयं ३५ १०२. से किं तं वीयरागदंसणारिया ? वीयरागदंसणारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- उवसंतकसायवीय रागदंसणारिया खीणकसायवीय रागदंसणारिया ॥ १०३. से किं तं उवसंतकसायवीय रागदंसणारिया ? उवसंतकसायवीय रागदंसणारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा पढमसमयउवसंतकसायवीय रागदंसणारिया अपढमसमयउवसंतकसायवीय रागदंसणारिया, अहवा चरिमसमयउ वसंतकसायवीय रागदंसणारिया' य अचरिमसमय उवसंत कसायवीयरागदंसणारिया य ॥ १०४. से किं तं खीणकसायवीय रागदंसणारिया ? खीणकसायवीय रागदंसणारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - छउमत्थखीणक सायवीयरागदंसणारिया य केवलिखीणकसायवीय रागदंसणारया य ॥ १०५. से किं तं छउमत्थखीणक सायवीय रागदंसणारिया ? छउमत्थखीणकसायवीरागदसणारया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीय रागदंसणारिया य बुद्धबोहि छउमत्थखीण कसायवीय रागदंसणारिया य ॥ १०६. से किं तं सयंबुद्धछ उमत्थ खीणकसायवीय रागदंसणारिया ? सयंबुद्धछउमत्थखीणक सायवीय रागदंसणारिया दुविहा पण्णत्ता, तं 'जहा - पढमसमय सयं बुद्धछउमत्थखीणकसायवीय राग दंसणारिया य अपढमसमय सयंबुद्धछउमत्थखीणक सायवीय रागदंसणारिया य अहवा चरिमसमय सयं बुद्धछउ मत्थखीणक सायवीयरागदंसणारिया य अचरिमसमय सयंबुद्धछउमत्थखीणक सायवीयरागदंसणारिया य । से त्तं सयंबुद्धछउमत्थखीणक सायवीयरागदंसणारिया || १०७. से किं तं बुद्धबोहियछ उमत्थखीण कसायवीयरागदंसणारिया ? बुद्धबोहियछउ - मत्थखीणकसायवीयरागदंसणारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पढमसमय बुद्धबो हियछउमत्थखीणकसायवीयरागदंसणारिया य अपढमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीय रागदंसणारया य, अहवा चरिमसमयबुद्धवो हियछ उमत्थखीण कसायवीय रागदंसणारिया य अचरिमसमय बुद्धबोहियछ उमत्थखीणक सायवीय रागदंसणारिया य से त्तं बुद्धबोहियछउ - मत्थखीणकसायवीतरागदंसणारिया से तं छउमत्थखीण कसायवीय रागदंसणारिया ॥ १०८. से किं तं केवलिखीणक सायवीतरागदंसणारिया ? केवलिखीणक सायवीतरागदंसणारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सजोगि केवलिखीणक सायवीतरागदंसणारिया य aarha लखीण कसायवीतरागदंसणारिया य ।। १०६. से किं तं सजोगिकेवलिखीणक सायवीतरागदंसणारिया ? सजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागदंसणारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पढमसमयसजोगिकेव लिखीणकसायवीतरागदंसणारिया य अपढमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागदंसणारिया य, अहवा चरमसमयस जोगिकेवलिखीणकसायवीतरागदंसणारिया य अचरिमसमयसजोगिकेवलिखीण सायवीतराग दंसणारिया य से त्तं सजोगिकेव लिखीणकसायवीतरागदंसणारिया ॥ ११०. से किं तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागदंसणारिया ? अजोगिकेवलिखीण सायवीय राग दंसणारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पदमसमयअजोगिकेवलिखीण१. चरम° ( ख ) । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं कसायवीतरागदसणारिया य अपढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागदसणारिया य, अहवा चरिमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागदंसणारिया य अचरिमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागदंसणारिया य। से तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागदंसणारिया। से तं केवलिखीणकसायवीतरागदसणारिया। से तं खीणकसायवीतरागदसणारिया। से तं वीयरागदसणारिया। से तं दसणारिया ॥ चरित्तारिय-पदं १११. से किं तं चरित्तारिया ? चरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सरागचरित्तारिया य वीयरागचरित्तारिया य ।। ११२. से किं तं सरागचरित्तारिया ? सरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहासुहमसंपरायसरागचरित्तारिया य वायरसंपरायसरागचरित्तारिया य ।। ११३. से किं तं सुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया ? सुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयसुहमसंपरायसरागचरित्तारिया य अपढमसमयसुहमसंपरायसरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयसुहमसंपरायसरागचरित्तारिया य अचरिमसमयसुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया य, अहवा सुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संकिलिस्समाणा य विसुज्झमाणा य। से तं सुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया ॥ ११४. से कि तं बादरसंपरायसरागचरित्तारिया ? बादरसंपरायसरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–पढमसमयवादरसंपरायसरागचरित्तारिया य अपढमसमयबादरसंपरायसरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयवादरसंपरायसरागचरित्तारिया य अचरिमसमयबादरसंपरायसरागचरित्तारिया य, अहवा बादरसंपरायसरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पडिवाती य अपडिवाती य । से तं बादरसंपरायस रागचरित्तारिया। से त्तं सरागचरित्तारिया ॥ ११५. से किं तं वीयरागचरित्तारिया ? वीयरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-उवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया य खीणकसायवीतरागचरित्तारिया य ॥ ११६. से किं तं उवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया ? उवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयउवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया य अपढमसमयउवसंतकसायवीय रागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयउवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया य अचरिमसमय उवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया य। से तं उवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया ॥ ११७. से कि तं खीणकसायवीयरागचरित्तारिया ? खीणकसायवीयरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-छउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य केवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य॥ ११८. से किं तं छउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ? छउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सयंबुद्धछ उमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीय रागचरित्तारिया य॥ | Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापदं ११६. से किं तं सयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ? सयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयसयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य अपढमसमयसयंबुद्धछ उमत्थखीणकसायवीतरागचरितारिया य, अहवा चरिमसमयसयंबुद्धछ उमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अचरिमसमयसयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य। से तं सयंबुद्धछउमत्थखीणकसाय वीतरागचरित्तारिया ॥ १२०. से किं तं बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ? बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य अपढमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयबुद्धबोहियछ उमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य अचरिमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य। से तं बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया। से तं छउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ॥ १२१. से किं तं केवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ? केवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य॥ १२२. से किं तं सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया ? सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अपढमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य अचरिमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य। से तं सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया ॥ १२३. से किं तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया ? अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया दुविहा पण्णता, तं जहा ---पढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अपढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य. अहवा चरिमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अचरिमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य। से तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया। से तं केवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया। से तं खीणकसायवीतरागचरित्तारिया। से तं वीयरागचरित्तारिया। १२४. अहवा चरित्तारिया' पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-सामाइयचरित्तारिया छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया परिहारविसुद्धियचरित्तारिया सुहुमसंपरायचरित्तारिया अहक्खायचरित्तारिया ॥ १२५. से किं तं सामाइयचरित्तारिया ? सामाइयचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्तरियसामाइयचरित्तारिया य आवकहियसामाइयचरित्तारिया य। से तं सामाइयचरित्तारिया ।। १. चारित्तारिया (ख,घ)। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पष्णवणासुतं १२६. से किं तं छेदोवढावणियचरित्तारिया ? छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-साइयारछेदोवट्ठावणियचरित्तारिया य णिरइयारछेदोवढावणियचरितारिया य । से तं छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया ॥ १२७. से किं तं परिहारविसुद्धियचरित्तारिया ? परिहारविसुद्धियचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-निव्विसमाणपरिहारविसुद्धियचरित्तारिया य निविट्ठकाइयपरिहारविसुद्धियचरित्तारिया य । से तं परिहारविसुद्धियचरित्तारिया ॥ १२८. से किं तं सुहुमसंपरायचरित्तारिया ? सुहुमसंपरायचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संकिलिस्समाणसुहमसंपरायचरित्तारिया य विसुज्झमाणसुहुमसंपरायचरित्तारिया य। से तं सूहमसंपरायचरित्तारिया ।। १२६ से कि तं अहक्खायचरित्तारिया ? अहक्खायचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-छउमत्थअहक्खायचरित्तारिया य केवलिअहक्खायचरित्तारिया य। से तं अहक्खायचरित्तारिया। से तं चरित्तारिया। से तं अणिड्ढिपत्तारिया। से तं आरिया। से तं कम्मभूमगा। से तं गब्भवक्कंतिया । से तं मणुस्सा ।। देवजीव-पदं १३०. से कि तं देवा ? देवा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-भवणवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया ।। १३१. से किं तं भवणवासी ? भवणवासी दसविहा पण्णत्ता, तं जहा--असुरकुमारा नागकुमारा सुवण्णकुमारा विज्जुकुमारा अग्गिकुमारा दीवकुमारा उदहिकुमारा दिसाकुमारा वाउकुमारा थणियकुमारा। ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । से तं भवणवासी॥ १३२. से किं तं वाणमंतरा ? वाणमंतरा अट्टविहा पण्णत्ता, तं जहा-किन्नरा किंपुरिसा महोरगा गंधव्वा जक्खा रक्खसा भूया पिसाया । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । से तं वाणमंतरा॥ १३३. से किं तं जोइसिया ? जोइसिया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-चंदा सूरा गहा 'नक्खत्ता तारा" । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । से तं जोइसिया ॥ १३४. से किं तं वेमाणिया ? वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-कप्पोवगा य कप्पातीताय ॥ १३५. से किं तं कप्पोवगा ? कप्पोवगा बारसविहा पण्णत्ता, तं जहा-सोहम्मा ईसाणा सणंकुमारा माहिंदा बंभलोया लंतया सुक्का' सहस्सारा आणता पाणता आरणा अच्चुता। ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । से तं कप्पोवगा॥ १३६. से किं तं कप्पातीया ? कप्पातीया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-गेवेज्जगा य अणुत्तरोववाइया य॥ १. तारा नक्खत्ता (ख)। २. महासुक्का (ग,घ)। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पण्णवणापर्यं १३७. से किं तं गेवेज्जगा ? गेवेज्जगा णवविहा पण्णत्ता, तं जहा - हेट्ठिमहेट्ठिमवेज्जगा हेट्टिममज्झिमगेवेज्जगा हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जगा मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जगा मज्झिममज्झिमवेज्जगा मज्झिमउवरिमगेवेज्जगा उवरिमहेट्ठिमगे वेज्जगा उवरिममज्झिमगेवेज्जगा उवरिम उवरिमगे वेज्जगा । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य से त्तं गेवेज्जगा ॥ 1 ३६ १३८. से कि तं अणुत्तरोववाइया ? अणुत्तरोववाइया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहाविजया वैजयंता जयंता अपराजिता सव्वट्टसिद्धा । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, जहा -- पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य से त्तं अणुत्तरोववाइया । से त्तं कप्पाईया । से त्तं वेमाणिया । सेत्तं देवा । से तं पंचिदिया । से त्तं संसारसमावण्णजीवपण्णवणा । से तं जीवपण्णवणा । से तं पण्णवणा ॥ I Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुढविकायठाण-पदं १. कहि णं भंते ! बादरपुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सट्टाणेणं अट्ठसु पुढवीसु, तं जहा - रयणप्पभाए सक्करप्पभाए वालुयप्पभाए पंकप्पभाए धूमप्पभाए तमप्पभाए तमतमप्पभाए इसीप भाराए । अहोलोए - पायालेसु भवणेसु भवणपत्थडे निरएस निरयावलियासु निरयपत्थडेसु । उड्ढलोए - कप्पेसु विमाणेसु विमाणावलियासु विमाणपत्थडेसु । तिरियलोए - टंकेसु कूडेसु सेलेसु सिहरीसु पब्भारेसु विजएसु वक्खारेसु वासेसु वासहरपव्वसु वेलासु वेइयासु दारेसु तोरणेसु दीवेसु समुद्देसु । एत्थ णं बादरपुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्धाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे ॥ २. कहि णं भंते ! बादरपुढविकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जत्थेव बादरपुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा तत्थेव बादरपुढविकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं सव्वलोए, समुग्धाएणं सव्वलोए, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे ।। ३. कहि णं भंते! सुमपुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाण य ठाणा पण्णत्ता ? गोमा ! सुमपुढविकाइया जे पज्जत्तगा जे य अपज्जत्तगा ते सव्वे एगविहा अविसेसा अणाणत्ता सव्वलोयपरियावण्णगा पण्णत्ता समणाउसो ! || बिइयं ठाणपयं आउक्कायठाण-पदं ४. कहि णं भंते ! बादरआउक्काइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सट्टा सत्तसु घणोदधीसु सत्तसु घणोदधिवलएसु । अहोलोए - पायालेसु भवणेसु भवणपत्थडेसु । उड्ढलोए - कप्पेसु विमाणेसु विमाणावलियासु विमाणपत्थडेसु । तिरियलोएअगडे तलासु नदी दहेसु वावीसु पुक्खरिणीसु दीहियासु गुंजालियासु सरेसु सरपंतियासु सरसरपंतियासु विलेसु बिलपंतियासु उज्झरेसु निज्झरेसु चिल्ललेसु' पल्ललेसु' वप्पिणेसु वे समुद्देसु सव्वे चेव जलासएसु जलट्ठाणेसु । एत्थ णं बादरआउक्काइयाणं पज्जत्तगाणं' ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्धाएणं लोयस्स असंखेज्जइ१. चिल्ललएसु ( ख, ग, घ ) । ३. पज्जत्ताणं (ग,घ) । २. पल्ललएसु (ग) । ४० Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं ठाणपर्यं भागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे || ५. कहि णं भंते! बादरआउक्काइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जत्थेव बादरआउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा तत्थेव बादरआउक्काइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं सव्वलोए, समुग्धाएणं सव्वलोए, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे ॥ ६. कहि णं भंते! सुहुमआउक्काइयाणं 'पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाण य" ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सुहुमआ उक्काइया जे पज्जत्तगा जे य अपज्जत्तगा ते सव्वे एगविहा अविसेसा अणाणत्ता सव्वलोयपरियावण्णगा पण्णत्ता समणाउसो ! | तेक्कायठाण-पदं ७. कहि णं भंते! बादरतेउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सट्टाणेणं अंतोमणुस्सखेत्ते अड्ढाइज्जेसु दीव-समुद्देसु निव्वाघाएणं पण्णरससु कम्मभूमीसु, वाघायं पच्च पंच महाविदेहेसु, एत्थ णं बादरते उक्काइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता । 'उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे समुग्धाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे” । ८. कहिणं भंते ! वादरते उकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जत्थेव वादरते उकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा तत्थेव बादरतेउकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोयस्स 'दोसु उड्ढकवाडेसु" तिरियलोयतट्टे य, समुग्धाएणं सव्वलोए, साणे लोस्स असंखेज्जइभागे || ६. कहि णं भंते! सुहुमतेउकाइयाणं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाण य ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सुहुमते उकाइया जे पज्जत्तगा जे य अपज्जत्तगा ते सव्वे एगविहा अविसेसा अणाणत्ता सव्वलोयपरियावण्णगा पण्णत्ता समणाउसो ! || वाउकायठाण-पदं १०. कहिणं भंते ! बादरवाउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सट्टाणेणं सत्तसु घणवाएसु सत्तसु घणवायवलएसु सत्तसु तणुवाएसु सत्तसु तणुवायवलएसु । अहोलोएपायाले भवणेसु भवणपत्थडेसु भवणछिद्देसु भवणणिक्खुडेसु निरएसु' निरयावलियासु निरयपत्थडे निरयछिद्देसु निरयणिक्खुडेसु । उड्ढलोए - कप्पेसु विमाणेसु विमाणावलि - यासु विमाणपत्थडेसु विमाणछिद्देसु विमाणणिक्खडेसु । तिरियलोए - पाईण पडीण - दाहिणउदीर्ण' सव्वेसु चेव लोगागासछिद्देसु लोगणिक्खुड्डेसु य । एत्थ णं बादरवाउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोयस्स असंखेज्जेसु भागेसु, समुग्धाएणं लोयस्स असंखेज्जेसु भागेसु, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जेसु भागेसु ॥ ११. कहि णं भंते ! अपज्जत्तबादरवाउकाइयाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जत्थेव १. पज्जत्तापज्जत्ताणं (घ ) । २. तीसु वि लोगस्स असंखेज्जतिभागे (हवृ ) । ३. दोसुद्धकवाडे (पु, हवृ ) । ४. णिखुडेसु (पु) सर्वत्र हारिभद्रीयवृत्ती 1 ४१ 'निकटो' इति पदं मुद्रितं दृश्यते ५. नरएसु ( ख ) । ६. पयीण ( क ) ; पईण ( ख, ग, घ ) । ७. विभक्तिरहितपदम् । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्त बादरवाउक्काइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा तत्थेव बादरवाउकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं सव्वलोए, समुग्घाएणं सव्वलोए, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जेसु भागेसु ॥ १२. कहि णं भंते ! सुहुमवाउकाइयाणं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाण य ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सुहमवाउकाइया जे पज्जत्तगा जे य अपज्जत्तगा ते सव्वे एगविहा अविसेसा अणाणत्ता सव्वलोयपरियावण्णगा पण्णत्ता समणाउसो!॥ वणस्सइकायठाण-पदं १३. कहि णं भंते ! बादरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सटाणेणं सत्तसु घणोदहीसु सत्तसु घणोदहिवलएसु। अहोलोए-पायालेसु भवणेसु भवणपत्थडेसु । उड्ढलोए-कप्पेसु विमाणेसु विमाणावलियासु विमाणपत्थडेसु। तिरियलोएअगडेसु तडागेसु' नदीसु दहेसु वावीसु पुक्खरिणीसु दीहियासु गुंजालियासु सरेसु सरपंतियासु सरसरपंतियासु बिलेसु बिलपंतियासु उज्झरेसु निज्झरेसु चिल्ललेसु पल्ललेसु वप्पिणेसु दीवेसु समुद्देसु सव्वेसु चेव जलासएसु जलट्ठाणेसु । एत्थ णं बादरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं सव्वलोए, समुग्धाएणं सव्वलोए, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे॥ १४. कहि णं भंते! बादरवणस्सइकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता? गोयमा ! जत्थेव बादरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा तत्थेव बादरवणस्सइकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं सव्वलोए, समुग्धाएणं सव्वलोए, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे ॥ १५. कहि णं भंते ! सुहुमवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाण य ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सुहुमवणस्सइकाइया जे पज्जत्तगा जे य अपज्जत्तगा ते सव्वे एगविहा अविसेसा अणाणत्ता सव्वलोयपरियावण्णगा पण्णत्ता समणाउसो !॥ बेइंदियठाण-पदं १६. कहि णं भंते ! बेइंदियाणं' पज्जत्तगापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! उड्ढलोए तदेक्कदेसभागे। अहोलोए तदेक्कदेसभागे। तिरियलोए-अगडेसु तलाएसु नदीसु दहेसु वावीसु पुक्खरिणीसु दीहियासु गुंजालियासु सरेसु सरपंतियासु सरसरपंतियासु बिलेस बिलपंतियास उज्झरेस निज्झरेस चिल्ललेस पल्ललेस वप्पिणेस दीवेस समहेस सव्वेसु चेव जलासएसु जलढाणेसु । एत्थ णं बेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोगस्स असंखेज्जइभागे, समुग्धाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सटाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे॥ तेइंदियठाण-पदं १७. कहि णं भंते ! तेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णता ? गोयमा ! १. तलागेसु (क)। ४. तदेकदेस (क,घ) सर्वत्र । २. विप्पणेसु (क); वप्पेसु (ख)। ५. X (ख)। ३.बेंदियाणं (क,घ)। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं ठाणपयं उडढलोए तदेक्कदेसभाए। अहोलोए तदेक्कदेसभाए। तिरियलोए---अगडेसु तलाएसु नदीसु दहेसु वावीसु पुक्खरिणीसु दीहियासु गुंजालियासु सरेसु सरपंतियासु सरसरपंतियासु बिलेसु विलपंतियासु उज्झरेसु निज्झरेसु चिल्ललेसु पल्ललेसु वप्पिणेसु दीवेसु समुद्देसु सव्वेसु चेव जलासएसु जलट्ठाणेसु । एत्थ णं तेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं' ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सटाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । चरिदियठाण-पदं १८. कहि णं भंते ! चरिंदियाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! उड्ढलोए तदेक्कदेसभाए । अहोलोए तदेक्कदेसभाए । तिरियलोए-अगडेसु तलाएसु नदीसु दहेसु वावीसु पुक्खरिणीसु दीहियासु गुंजालियासु सरेसु सरपंतियासु सरसरपंतियासु बिलेसु बिलपंतियासु उज्झरेसु निज्झरेसु चिल्ललेसु पल्ललेसु वप्पिणेसु दीवेसु समुद्देसु सव्वेसु चेव जलासएसु जलट्ठाणेसु । एत्थ णं चउरिंदियाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे ॥ पंचिदियठाण-पदं १६. कहि णं भंते ! पंचिदियाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! उड्ढलोए' तदेक्कदेसभाए। अहोलोए तदेक्कदेसभाए। तिरियलोए-अगडेसु तलाएसु नदीसु दहेसु वावीसु पुक्खरिणीसु दीहियासु गुंजालियासु सरेसु सरपंतियासु सरसरपंतियासु बिलेसु बिलपंतियासु उज्झरेसु निज्झरेसु चिल्ललेसु पल्ललेसु वप्पिणेसु दीवेसु समुद्देसु सव्वेसु चेव जलासएसु जलट्ठाणेसु । एत्थ णं पंचिदियाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । नेरइयठाण-पदं २०. कहि णं भंते ! नेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! नेरइया परिवसंति ? गोयमा ! सट्ठाणणं सत्तसु पुढवीसु, तं जहा–रयणप्पभाए सक्करप्पभाए वालुयप्पभाए पंकप्पभाए धूमप्पभाए तमप्पभाए तमतमप्पभाए, एत्थ णं णेरइयाणं चउरासीति णिरयावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खायं । ते णं णरगा अंतो वट्टा वाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिता णिच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-णक्खत्त-जोइसपहा' मेद-वसा-पृय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा' परमब्भिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा णरगा असुभा णरगेसु वेयणाओ, एत्थ णं १. पज्जत्ताणं (घ)। इति दृश्यते । २. पुष्करि° (क)। ७. पूयपडल (क,ख,ग,घ); समवायाङ्गे (प०सू० ३,४. °लोयस्स (घ)। १४१) 'पडल' इति पदं नास्ति । ५. खुरासंठाण° (ख)। ८. चिक्खल्ल° (क,ख,घ) सर्वत्र)। ६. मलयगिरिवृत्ती समुद्धते पाठे 'जोइसियपहा' ६. बीभच्छा (म); वीसा (मवृपा)। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं रइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सटाणणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं बहवे णेरइया परिवसंति काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणगा परमकण्हा वण्णणं पण्णत्ता समणाउसो' ! ते णं तत्थ णिच्च भीता णिच्चं तत्था णिच्चं तसिया णिच्चं उव्विग्गा णिच्चं परममसुहं संबद्धं णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ २१. कहि णं भंते ! रयणप्पभापूढविणेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! रयणप्पभापुढविणेरइया परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसतसहस्सवाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्टहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभापूढविनेरइयाणं तीसं णिरयावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं। ते णं णरगा अंतो वटा बाहि चउरंसा असे खुरप्पसंठाणसंठिता णिच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-णक्खत्तजोइसप्पभा मेद-वसापूय'-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा णरगा असुभा णरगेसु वेयणाओ, एत्थ णं रयणप्पभापुढविणेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घातेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ णं बहवे रयणप्पभापुढविनेरइया परिवसंति काला कोलोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणगा परमकिण्हा वण्णणं पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं णिच्च भीता णिच्चं तत्था णिच्चं तसिया णिच्चं उव्विग्गा णिच्चं परममसुहं संबद्धं णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति ।। २२. कहि णं भंते ! सक्करप्पभापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! सक्करप्पभापुढविनेरइया परिवसंति ? गोयमा ! सक्करप्पभाए पुढवीए बत्तीसूत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरि एग जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेदा वेगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता मज्झे तीसुत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं सक्करप्पभापुढविणेरइयाणं पणवीसं णिरयावाससतसहस्सा हवंतीति मक्खातं। ते णं णरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा अहे खरप्पसंठाणसंठिता णिच्चधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-णक्खत्तजोइसप्पहा मेदवसा-पय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणलेवणतला असूई वीसा परमदब्भिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा नरगा असुभा नरगेसु वेयणाओ, एत्थ णं सक्करप्पभापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समूग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं बहवे सक्करप्पभापुढविणेरइया परिवसंति काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणगा परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं णिच्चं भीता णिच्चं तत्था णिच्चं तसिया णिच्चं उव्विग्गा णिच्चं परममसुहं संबद्धं नरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति ।। २३. कहि णं भंते ! वालुयप्पभापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! वालुयप्पभाए पुढवीए अट्ठावीसुत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उरि एगं ३. पूयपडल (क,ख,ग,घ,पु) सर्वत्र । १. ४ (ख)। २. आसीदुत्तर° (हव)। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं ठाणपयं ४५ जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे छव्वीसुत्तरे जोयणसतसहरसे, एत्थ णं वालुयप्पभापुढविनेरइयाणं पण्ण रस णिरयावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं णरगा अंतो वट्टा वाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिता णिच्चंधयारतमसा ववगयगहचंद-सूर-नक्खत्तजोइसप्पहा मेद-वसा-पूय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा नरगा असुभा नरएसु वेदणाओ, एत्थ णं वालुयप्पभापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्ठाणेणं लोगस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ णं बहवे वालुयप्पभापुढवीनेरइया परिवसंति काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणगा परमकिण्हा वण्णणं पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं णिच्चं भीता णिच्चं तत्था णिच्चं तसिता णिच्चं उव्विग्गा णिच्चं परममसुहं संवद्धं णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ २४. कहि णं भंते ! पंकप्पभापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंकप्पभाए पुढवीए वीसुत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हिट्ठा' वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठारसुत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं पंकप्पभापुढविनेरइयाणं दस णिरयावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं णरगा अंतो वढा वाहिं चउरसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिता णिच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-नक्खत्तजोइसपहा मेद-वसा-पूय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दूरहियासा असभा नरगा असूभा नरगेस वेयणाओ. एत्थ णं पंकप्पभापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ णं बहवे पंकप्पभापुढविनेरइया परिवसंति काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणगा परमकिण्हा वण्णणं पण्णत्ता समणाउसो! ते णं निच्चं भीता निच्चं तत्था निच्चं तसिया निच्चं उव्विग्गा निच्चं परमममुहं संबद्धं णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ २५. कहि णं भंते ! धूमप्पभापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! धूमप्पभाए पुढवीए अट्ठारसुत्तरजोयणसयसहस्सवाहल्लाए उरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हिट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेता मज्झे सोलसुतरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं धूमप्पभापुढविनेरइयाणं तिन्नि निरयावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं णरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिता णिच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-नक्खत्तजोइसपहा मेद-वसा-पूय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा नरगा असुभा नरगेसु वेयणाओ, एत्थ णं धूमप्पभापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयम्स असंखेज्जइभागे, समुग्याएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे। तत्य णं बहवे धमप्पभापुढविनेरइया परिवसंति काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा १. अहे (ख)। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं उत्तासणगा परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं णिच्चं भीता णिच्चं तत्था णिच्चं तसिता णिच्चं उव्विग्गा णिच्चं परममसुहं संबद्धं णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ २६, कहिणं भंते ! तमप्पभापुढविनेरइयाणं' पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! 'तमप्पभाए पुढवीए सोल सुत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हिट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे चोद्दसुत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं तमप्पभापुढविनेरइयाणं एगे पंचूणे णरगावाससतसहस्से हवंतीति' मक्खातं । ते णं णरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिता निच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंदसूर-नक्खत्तजोइसप्पहा मेद-वसा-पूय-रुहिर-मंसचिखिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा नरगा असुभा नरगेसु वेदणाओ, एत्थ णं तमप्पभापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं बहवे तमप्पभापुढविणेरइया परिवसंति काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणगा परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं णिच्च भीता णिच्चं तत्था णिच्चं तसिया णिच्चं उद्विग्गा णिच्चं परममसूहं संबद्ध नरगभयं पच्चणभवमाणा विहरंति ॥ २७. कहि णं भंते ! तमतमापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! तमतमाए पुढवीए अट्ठोत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरिं अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता हिट्ठा वि अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साइं वज्जेत्ता मज्झे तिसुजोयणसहस्सेसु, एत्थ णं तमतमापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं पंचदिसिं पंच अणुत्तरा महइमहालया महाणिरया पण्णत्ता, तं जहा-काले महाकाले रोरुए महारोरुए अपइट्ठाणे । ते णं णरगा अंतो वट्टा वाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिता निच्चंधयारतमसा ववगयगहचंद-सूर-नक्खत्तजोइसपहा मेद-वसा-पूय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुन्भिगंधा' कक्खडफासा दुरहियासा असुभा नरगा असुभा नरगेसु वेयणाओ, एत्थ णं तमतमापुढविनेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ णं बहवे तमतमापढविनेरइया परिवसंति काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणया परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो! ते णं णिच्च भीता णिच्चं तत्था णिच्चं तसिया णिच्चं उव्विग्गा णिच्चं परममसुहं संवद्ध णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति । संगहणी-गाहा आसीतं बत्तीसं अट्ठावीसं च होइ वीसं च । अट्ठारस सोलसगं, अछुत्तरमेव हिट्ठिमिया ।।१।। १. तमा° (क,ख,ग,घ)। ५. तिसुत्तर (ख)। २. तमाए पुढवीए (क,ग,घ); तमापुढवीए (ख)। ६. दुब्भिगंधा नो काउअगणिवण्णाभा (ख) । ३. अत्र बहुवचनं प्रवाहपाति दृश्यते । ७. होति (ख,ग,घ)। ४. दुब्भिगंधा नो काउअगणिवण्णाभा (ख)। ८. हिट्ठिमया (पु)। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं ठाणपयं अठत्तरं च तीसं, छव्वीसं चेव सतसहस्सं त । अट्ठारस सोलसगं, चोद्दसमहियं तु छट्ठीए ॥२॥ अद्धतिवण्णसहस्सा, उवरिमऽहे वज्जिऊण तो भणियं । मज्झे 'उ तिसहस्सेसु", होंति' नरगा तमतमाए ॥३॥ तीसा य पण्णवीसा, पण्णरस दसेव सयसहस्साई । तिण्णि य पंचूणेगं, पंचेव अणुत्तरा नरगा ॥४॥ पंचिदियतिरिक्खजोणियठाण-पदं २८. कहि णं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! उड्ढलोए तदेक्कदेसभाए, अहोलोए तदेक्कदेसभाए, तिरियलोए--अगडेस तलाएसु नदीसु दहेसु वावीसु पुक्खरिणीसु दीहियासु गुंजालियासु सरेसु सरपंतियास सरसरपंतियासु विलेसु बिलपंतियासु उज्झरेसु निज्झरेसु चिल्ललेसु पल्ललेस वप्पिणेस दीवेसु समुद्देसु सव्वेसु चेव जलासएसु जलट्ठाणेसु। एत्थ णं पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे॥ मणुस्सठाण-पदं २६. कहि णं भंते ! मणुस्साणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! अंतोमणुस्सखेत्ते पणतालीसाए जोयणसतसहस्सेसु अड्ढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु पण्ण रससु कम्मभूमीसु तीसाए अकम्मभूमीसु छप्पणाए अंतरदीवेसु, एत्थ णं मणुस्साणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं सव्वलोए, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे॥ भवणवासिदेवठाण-पदं ३०. कहि णं भंते ! भवणवासीणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! भवणवासी देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं भवणवासीणं देवाणं सत्त भवणकोडीओ बावतरि च भवणावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो समचउरंसा अहे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिता उक्किण्णंतरविउलगंभीरखात-परिहा' पागारट्टालय-कवाड-तोरण-पडिदुवारदेसभागा जंत-सयग्घि-मुसल-मुसुंढिपरिवारिया १. अट्टत्तरं (क); अठ्ठत्तरि (ग,घ); अडहुत्तरं ६. मलयगिरिवृत्तौ समुद्धृते पाठे ‘फलिहा' इति पदं दृश्यते। समवायाङ्गे (प०म० १४४) पि २. उ तिसु सहस्सेसु (क); तिसहस्सेसु (ख,ग, एतदेव दृश्यते । ७. कवाडया (ख)। ३. होति उ (ख,ग,घ)। ८. मुसंढि° (क,घ); मुसंढिपरियारिया (ख,ग); ४. आसीउत्तर° (ख)। समवायाङ्गे (प०सू० १४४) 'मुसुंढि' इति ५. उक्किण्णंतरगंभीरखात (हाव); समवायांगे पदं दृश्यते । (प०सू० १४४) 'विपुल' इति पदं दृश्यते । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YE पण्णवणासुतं अओझा' 'सदाजता सदागुत्ता" अडयालकोट्ठगरइया अडयालकयवणमाला खेमा सिवा किकरामरदंडोवरक्खिया लाउल्लोइयमहिया गोसीस - सरसरतचंदणदद्ददिण्ण पंचगुलितला उवचियवंदणकलसा वंदणघड सुकततोरणपडिदुवारदेसभागा आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावा पंचवण्णसरस सुरहिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिया कालागरु'-पवरकुंदुरुक्क - तुरुक्क' - धूवमघमघेतगंधुद्धयाभिरामा 'सुगंध-वरगंध-गंधिया" गंधवट्टिभूता अच्छरगण-संघसंविगिण्णा दिव्वतुडितसद्दसंपणदिता सव्वरयणामया अच्छा सहा लहा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पहा सस्सिरीया' समिरीया' सउज्जोया पासादीया" दरिसणिज्जा" अभिरुवा पडिरूवा, एत्थ णं भवणवासीणं देवाणं पज्जत्तापज्जताणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोगस्स असंखेज्जइभागे, समुग्धाएणं लोगस्स असंखेज्जइभागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं बहवे भवणवासी देवा परिवसंति, तं जहा - असुरा नाग सुवण्णा, विज्जू अग्गी य दीव उदही य । दिसि पवण थणिय नामा, दसहा एए भवणवासी ॥ १ ॥ चूडामणिमउडरयण" - भूसणणागफडगरुल वइर" - पुण्णकल संकि उप्फेस " "सीह ह्यवर-गयअंकमंगर - वद्धमाण" - निज्जुत्तचित्तचधगता सुरूवा महिड्ढीया महज्जुतीया महायसा महब्बला महाणुभागा महासोक्खा " हारविराइयवच्छा कडग-तुडियथं भयभुया अंगद - कुंडल - मट्टगंडतलकण्णपीढधारी" विचित्तहत्याभरणा विचित्तमाला - मउलिमउडा कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपव रमल्लाणुलेवणधरा" भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघयणेणं" दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए १. अउज्झा (क). आउज्झा ( ग ) । २. सदा गुत्ता सदा जेया ( ख ) । ३. कालागुरु (ख,ग,घ) । ४. ° कंदुरुक्क (क ) । ५. तुरुक्क उज्यंत ( प० सू० १४४ ) । ६. सुगंधिव रगंधिया (ग) । ७. संधिगिणा ( ख ) 1; विगिण्णा ( ग ); मलयगिरिवृत्तौ संघः समुदायस्तेन सम्यक् रमणीयतया विकीर्णानि व्याप्तानि अप्सरो गणसंघविकीर्णानि' इति व्याख्यातमस्ति अत्र सम्यग् रमणीयतया इति 'सं' पदस्यैव व्याख्या संभाव्यते तथापि समस्तपदे 'विकीर्णानि' इति पदमेव लिखितं लभ्यते । ८. सस्सिरिया (घ ) । ६. समरिईया ( क ) ; X (ख); समिरिया ( ग ) ; समरिइया (घ ) | १०. पासाईया ( ख ) ; पासातीता ( घ. पु) । ११. दरसणिज्जा (क, ख, घ) । १२. रइया ( क ) ; इय (ख, घ); रयणा (ग) 1 (ख); सुगंध वरगंधिया १३. फण० ( ख ) । १४. संकितुप्पेसा ( क, घ ) ; ° सविउप्फेस (पु) । १५. सीहअस्सगयमय रवद्धमाण ( ख ) ; सीहहयवरगयंकमगरवरबद्धमाण (घ ) । १६. महेसक्खा (मवृ); महासोक्खा, महासक्खा (मवृपा) । १७. घट्टगंड (ख); मट्टगंडकण (मवृ) | १८. मालाणु ( ख ) । १६. संघायणेणं (क) । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૨ बिइयं ठाणपयं जुतीए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवे माणा पभासेमाणा । ते णं तत्थ साणं- साणं भवणावाससय सहस्साणं साणं- साणं सामाणियसाहस्सीणं साणं - साणं तावत्तीसाणं साणं - साणं लोगपालाणं साणं- साणं अग्गमहिसी साणं- साणं परिमाणं साणं- साणं अणियाणं साणं- साणं अणियाहिवतीणं साणं- साणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसि च बहूणं भवणवासीणं देवाण य देवीण य आहेवच्च पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणाईसरसेणावच्च कारेमाणा पालेमाणा महताहतनट्ट-गीत-वाइत - तंती- तल-ताल-तुडिय- घण-मुइंगपडुप्पवाइयरवेण दिव्वाइं भोगभोगाई माण विहरति । ३१. कहिणं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! असुरकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस् वज्जेत्ता मज्झे अट्टहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं असुरकुमाराणं देवाणं चोर्वाट्ठि भवणावाससतसहस्सा हवंतीति मक्खायं । ते णं भवणा बाहि वट्टा अंतो चउरंसा अहे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिता उक्किण्णंतर विउलगंभीरखाय परिहा पागारट्टालय-कवाड-तोरणपडिदुवारदेसभागा जंतसयग्धि-मुसल-मुसुंढिपरिवारिया अओझा ' सदाजया सदागुत्ता अडयालको गरइया अडयालकयवणमाला खेमा सिवा किकरामरदंडोवरक्खिया लाउल्लोइमहिया गोसीस - सरसरत्तचं दणदद्ददिण्णपंचं गुलितला उवचितवंदणकलसा वंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागा आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावा पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिया कालागरु- पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धूवमघमघेतगंधुद्धयाभिरामा सुगंध वरगंधगंधिया गंधवट्टिभूता अच्छरगगसंघसंविगिण्णा दिव्वतुडितसद्द संप दिया सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया निम्मला निप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा सस्सिया समिरीया' सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा, एत्थ णं असुरकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्धाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ बहवे असुरकुमारा देवा परिवसंति-- काला लोहियक्ख - विवोट्ठा धवलपुष्पदंता असिस वामेयकुंडलधरा" अद्दचंदणाणुलित्तगत्ता, ईसीसिलिधपुप्फपगासाई असंकि लिट्टाई सुहुमाई वत्थाई पवर परिहिया, वयं च पढमं समझक्कंता, बिइयं च असंपत्ता, भद्दे जोवणे वट्टमाणा, तलभंगय-तुडित-पवरभूषण' निम्मलमणि रयणमंडितभुया दस मुद्दामंडियग्गहत्था चूडामणिचित्तविधगता' सुरूवा महिड्ढिया महज्जुइया महायसा महब्बला महाणुभागा" १. भोगेणं (ख); स्तबके 'दिव्यभोग' इति अर्थो दृश्यते । २. तायत्तीसाणं ( ख, ग, घ ) ; तायत्तीसगाणं ( पु ) | ३. महयरगत्तं (पु) । ४. मुगं (पु) । ५. अउज्झा (क,ख,ग.) । ६. समरीइया (क घ) । ७. वाम एगकुंडलधरा (क, ख, ग, घ ) । ८. वर° (मवृ) । १. चूडामणिविचित्त (क, ख, ग, घ ) । १०. महाणुभावा ( ख ) । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० पण्णवणासुत्तं महासोक्खा हारविराइयवच्छा कडय-तुडियथंभियभुया अंगय-कुंडल-मट्ठगंडयलकण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमाला-मउली' कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणधरा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघयणेणं दिवेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुईए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा। तेणं तत्थ साणं-साणं भवणावाससतसहस्साणं साणं-साणं सामाणियसाहस्सीणं साणं-साणं तावत्तीसाणं साणं-साणं लोगपालाणं साणं-साणं अग्गमहिसीणं साणं-साणं परिसाणं साणं साणं अणियाणं साणं-साणं अणियाधिवतीणं साणं-साणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं भवणवासीणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणा पालेमाणा महताहतणट्ट-गीत-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-धण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाणं भोगभोगाई भुजमाणा विहरंति । चमर-बलिणो इत्थ दुवे असुरकुमारिदा असुरकुमाररायाणो परिवसंति-काला महानीलसरिसा णीलगुलिय-गवल-अयसिकुसुमप्पगासा वियसियसयवत्तणिम्मलईसीसित-रत्ततंबणयणा गरुलाययउज्जुतंगणासा ओयवियसिलप्पवाल-बिवफलसन्निभाहरोट्ठा पंडरससिसगल विमल'-निम्मलदहिघण-संख-गोखीर-कुंद-दगरय-मुणालियाधवलदंतसेढी हुयवहणिद्धतधोयतत्ततवणिज्जरत्ततल-तालु-जीहा अंजण-घणकसिणरुयगरमणिज्जणिद्धकेसा' वामेयकुंडलधरा अद्दचंदणाणुलित्तगत्ता, ईसीसिलिंधपुप्फपगासाइं असंकिलिट्ठाई सुहुमाई वत्थाई पवर परिहिया, वयं च पढम समइक्कंता, बिइयं तु असंपत्ता, भद्दे जोव्वणे वट्टमाणा, तलभंगय-तुडित-पवरभूसण-निम्मलमणि-रयणमंडितभुया दसमुद्दामंडितग्गहत्था चूडामणिचित्तचिधगता सुरूवा महिडिढया महज्जइया महायसा महाबला महाणभागा महासोक्खा हारविराइयवच्छा कडय-तुडितथंभियभया अंगद-कुंडल-मट्ठगंडतलकण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमाला-मउली कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघयणेणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुतीए 'दिव्वाए भासाए" दिव्वाए छायाए दिव्वाए पहाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा। ते णं तत्थ साणं-साणं भवणावाससतसहस्साणं साणं-साणं सामाणियसाहस्सीणं साणं-साणं तावत्तीसाणं साणं-साणं लोगपालाणं साणं-साणं अग्गमहि१. त्रिंशत्तमे सूत्रे 'मउलिमउडा' इति पाठोस्ति, ६. °कसिणगरुयग° (ग)। मलयगिरिवृत्तौ स व्याख्यातोस्ति । अत्र ७.४ (ग); पूर्वसूत्रे अस्य सूत्रस्य पूर्वालापके आदर्शेषु 'मउडा' इति पदं नैव दृश्यते । च दिव्वाए जुती (ई) ए 'दिव्वाए पभाए' २. सामिच्चं (पु)। एवं पाठोस्ति 'दिव्वाए भासाए' इति पाठो ३. इसिं° (क,ग,छ)। नास्ति। 'दिव्वाए पहाए' इति पाठोप्यत्र ४. उयचिय° (क)। व्युत्क्रमेण वर्तते। ५. पंडर (क,घ); पंडुल° (ख) । Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं ठापपयं सीणं साणं-साणं परिसाणं साणं-साणं अणियाणं साणं-साणं अणियाधिवतीणं साणं-साणं आतरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहणं भवणवासीणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणा पालेमाणा महताहतनट्ट-गीत-वाइत-तंती-तल-ताल-तुडित-घण-मुइंगपडु-प्पवाइतरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति ॥ ३२. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! दाहिणिल्ला असुरकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वतस्स दाहिणणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाणं चोत्तीसं भवणावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं भवणा वाहिं वट्टा अंतो चउरंसा, सो च्चेव वण्णओ जाव' पडिरूवा । एत्थ णं दाहिणिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं बहवे दाहिणिल्ला असुरकुमारा देवा य देवीओ य परिवसंति-काला लोहियक्खबिंबोट्ठा तहेव जाव' भुंजमाणा विहरंति । एतेसि णं तहेव' तावत्तीसगलोगपाला भवंति । एवं सव्वत्थ भाणितव्वं भवणवासीणं । चमरे अत्थ असुरकुमारिदे असुरकुमारराया परिवसति-काले महानीलसरिसे जाव' पभासेमाणे । से णं तत्थ चोत्तीसाए भवणावाससतसहस्साणं चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सीणं तायत्तीसाए" तावत्तीसाणं चउण्डं लोगपालाणं पंचण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाधिवतीणं चउण्ह य चउसट्ठीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं दाहिणिल्लाणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं जाव विहरति ।। ३३. कहि णं भंते ! उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! उत्तरिल्ला असुरकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाणं तीसं भवणावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं भवणा बाहिं वद्रा अंतो चउरंसा, सेसं जहा दाहिणिल्लाणं जाव' विहरंति। बलि यत्थ वइरोयणिंदे वइरोयणराया परिवसति-काले महानीलसरिसे जाव' पभासेमाणे । से णं तत्थ तीसाए भवणावाससयसहस्साणं सट्ठीए सामाणियसाहस्सीणं १.प० २।३१ । २. प० २।३१। ३. ४ (ख)। ४. प० २।३१। ५. तावत्तीसाए (क,ख,घ,पु)। ६. प० २।३० । ७. प० २१३२ । ८. एत्थ (ख,ग,घ)। ६. प० २।३१। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ पण्णवणासुत्तं तायत्तीसाए तावत्तीसगाणं चउण्हं लोगपालाणं पंचण्हं अग्गम हिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाधिवतीणं चउण्ह य सट्ठीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरवच्चं कुव्वमाणे विहरति ॥ ३४. कहि णं भंते ! णागकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! णागकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सवाहल्लाए उरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्टा वेगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता' मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं णागकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं चुलसीइ भवणावाससयसहस्सा हवंतीति मक्खातं । ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा जाव' पडिरूवा । तत्थ णं णागकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं बहवे णागकुमारा देवा परिवसंति-महिड्ढीया महाजुतीया, सेसं जहा ओहियाणं जाव' विहरंति । धरण-भूयाणंदा एत्थ दुवे णागकुमारिंदा णागकुमाररायाणो परिवसंति-महिड्ढीया, सेसं जहा ओहियाणं जाव' विहरंति ॥ ३५. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! दाहिणिल्ला णागकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्टहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं चोयालीसं भवणावाससयसहस्सा भवंतीति मक्खातं। ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा जाव' पडिरूवा । एत्थ णं दाहिणिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे । एत्थ णं बहवे दाहिणिल्ला नागकुमारा देवा परिवसंति -महिड्ढीया जाव' विहरंति । धरणे यत्थ' णागकुमारिदे णागकुमारराया परिवसति-महिड्ढीए जाव" पभासेमाणे । से णं तत्थ चोयालीसाए भवणावाससयसहस्साणं छण्हं सामाणियसाहस्सीणं तायत्तीसाए तावत्तीसगाणं चउण्हं लोगपालाणं पंचण्डं अग्गम हिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्डं अणियाणं सत्तण्डं अणियाधिवतीणं चउव्वीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णे सिं च बहूर्ण दाहिणिल्लाणं णागकुमाराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं कुव्वमाणे विहरति ॥ १. पूर्वालापकेषु कारेमाणे इति पदमस्ति, अत्र च उत्तरवत्तिसंग्रहगाथाभ्योऽवसेयम् । 'कुब्वमाणे' इति पदमस्ति यथा सामित्तं ५.५० २।३०। इत्यादि पदानां सूचकं जाव पदमपि नास्ति। ६.प० २।३०। २. वज्जिऊण (क,घ,पु)। ७,८. प० २।३०। ३. प० २।३०। ६. एत्थ (घ)। ४. एषां वर्णादिरूपणमत्र नहि दृश्यते । तत् १०. प० २।३० । Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं ठाणपयं ५३ ३६. कहि णं भंते ! उत्तरिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! उत्तरिल्ला णागकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा ? जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वतस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थे णं उत्तरिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं चत्तालीसं भवणावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं भवणा बाहिं वट्टा सेसं जहा दाहिणिल्लाणं जाव' विहरंति। भूयाणंदे यत्थ णागकुमारिंदे नागकुमारराया परिवसति-महिड्ढीए जाव' पभासेमाणे । से णं तत्थ चत्तालीसाए भवणावाससतसहस्साणं आहेबच्चं जाव' विहरति ।। ३७. कहि णं भंते'! सुवण्णकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव एत्थ णं सुवण्णकुमाराणं देवाणं बावरि भवणावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं भवणा बाहिं वट्टा जाव' पडिरूवा । तत्थ णं सुवण्णकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ णं बहवे सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति-महिडिढया. सेसं जहा ओहियाणं जाव' विहरति । वेणुदेव-वेणुदाली यत्थ दुवे सुवण्णकुमारिंदा सुबण्णकुमाररायाणो परिवसंति---महिड्ढीया जाव' विहरंति ॥ ३८. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं सुवण्णकुमाराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! दाहिणिल्ला सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए जाव' मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं सूवण्णकमाराणं अतीसं भवणावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं भवणा बाहिं वट्टा जाव" पडिरूवा । एत्थ णं दाहिणिल्लाणं सुवण्णकुमाराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। तिसू वि लोगस्स असंखेज्जइभागे । एत्थ णं बहवे सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति । वेणदेवे यत्थ सूणिदे सुवण्णकमारराया परिवसइ । सेसं जहा" णागकमाराणं ।। 38. कहिणं भंते ! उत्तरिल्लाणं सूवण्णकमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पणत्ता ? कहि णं भंते ! उत्तरिल्ला सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए जाव" एत्थ णं उत्तरिल्लाणं सुवण्णकुमाराणं चोत्तीसं भवणावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं भवणा बाहिं वट्टा जाव" एत्थ णं बहवे उत्तरिल्ला सुवण्णकुमारा १.प० २।३५। ३. प० २।३०। ३. प० २।३०। ४. प० २।३१। ५. प० २।३० । ६. महिड्ढीया (ग)। ७.५० २।३०। ८. य इत्थ (क,ख,ग,घ)। ६. प० २।३० । १०.५० २।३१ । ११. अट्टत्तीसं (ग)। १२. प० २।३० । १३. प० २।३५ । १४. प० २।३१। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪ देवा परिवसंति - महिड्डिया जाव' विहरति । वेणुदाली यत्थ सुवण्णकुमारिदे सुवण्णकुमारराया परिवसति - महिड्ढीए, सेसं जहा नागकुमाराणं ॥ ४०. एवं जहा सुवण्णकुमाराणं वत्तव्वया भणिता तहा सेसाण वि चोहसहं इंदाणं भाणितव्वा', नवरं - भवणनाणत्तं इंदनाणत्तं वण्णनाणत्तं परिहाणनाणत्तं च इमाहि गाहाहि अणुगंतव्वं चो असुराणं, चुलसीती चेव होति' णागाणं । बावर्त्तारं सुवणे, वाउकुमाराण छण्णउई || १ || दीव - दिसा - उदहीणं, विज्जुकुमारिद थणिय- मग्गीणं । छहं पि जुवलयाणं, छावत्तरिमो' सतसहस्सा ॥२॥ चोत्तीसा चोयाला, अट्ठतीसं च सयसहस्साइं । पण्णा चत्तालीसा, दाहिणओ होंति भवणाई ॥३॥ तीसा चत्तालीसा, चोत्तीसं चेव सयसहस्साइं । छायाला छत्तीसा, उत्तरओ होंति भवणाई ||४॥ चट्टी सट्ठी खलु छच्च सहस्सा उ असुरवज्जाणं । सामाणिया उ एए, चउग्गुणा आयरक्खा उ ॥ ५॥ चमरे धरणे तह वेणुदेव हरिकंत अग्गिसीहे य । पुणे जलते या, अमिय विलंबे य घोसे य ॥ ६ ॥ भूयादे वेणुदाल हरिस्सहे अग्गिमाणव विसिट्ठे । ' जलप अमियवाहण पभंजणे या महाघोसे ||७|| उत्तरिल्ला जाव विहरति । १. प० २।३० । २. प० २।३६ । काला असुरकुमारा, णागा उदही य पंडरा दो वि । वरणगणिहसगोरा, होंति सुवण्णा दिसा थणिया ॥ ८ ॥ उत्तत्तणगवण्णा विज्जू अग्गी य होंति दीवा य । सामापियंगुवण्णा, वाउकुमारा मुणेयव्वा ॥ ६ ॥ असुसु' होंति रत्ता, सिलिंधपुप्फप्पभा य नागुदही । आसासगवसणधरा, होंति सुवण्णा दिसा थणिया ||१०|| णीला रागवसणा, विज्जू अग्गी य होंति दीवा य । संझाणुरागवसणा, वाउकुमारा मुणेयव्वा ॥ ११॥ ३. प० २।३७-३१ । ४. चोसट्ठि ( क ) । ५. होंति ( ख ) । ६. बावत्तरिमो (ख) एष पाठो लिपिदोषेण अशुद्धो पण्णवणासुतं जातः । समवायाङ्ग (७६।२) सूत्रेण 'छावत्तरिमो' इति पाठस्यैव पुष्टिर्जायते । ७. वसिट्ठे (ख, घ) । ८. पांडुरा (ख); पंडुरा ( ग, घ ) । ६. असुरेहि ( क ) । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं गणपर्व वाणमंतरदेवठाण-पदं ४१. कहिणं भंते ! वाणमंतराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहिणं भंते ! वाणमंतरा देवा परिवसंति ? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उवरिं एगं जोयणसतं ओगाहित्ता हेट्ठा वि एग जोयणसतं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसु जोयणसएसु, एत्थ णं वाणमंत राणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जणगरावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं भोमेज्जा णगरा बाहिं वड़ा अंतो चउरंसा अहे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिता उक्किण्णंतरविउलगंभीरखाय-परिहा पागारट्रालय-कवाड-तोरण-पडिदुवारदेसभागा जंत-सयग्घि-मुसल-मुसुंढिपरिवारिया' अओज्झा सदाजता सदागुत्ता अडयालकोट्ठगरइया अडयालकयवणमाला खेमा सिवा किंकरामरदंडोवरक्खिया लाउल्लोइयमहिया गोसीस-सरसरत्तचंदणदद्दरदिन्नपंचंगुलितला उवचितवंदण कलसा वंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागा आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावा पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिया कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्कधूवमघमघेतगंधुद्धयाभिरामा सुगंध-वरगंध-गंधिया गंधवट्टिभूता अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडितसद्दसंपणदिता पडागमालाउलाभिरामा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मद्रा नीरया निम्मला निप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोता पासादीया' दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, एत्थ णं वाणमंतराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा परिवसंति, तं जहा–पिसाया भूया जक्खा रक्खसा किन्नरा किंपुरिसा, भयगवइणो य महाकाया, गंधव्वगणा य निउणगंधव्वगीतरइणो अणवण्णिय-पणवण्णिय-इसिवाइय भयवाइय-कंदित-महाकदिय-कुहंड-पयगदेवा चंचलचलचवलचित्तकीलण-दवप्पिया गहिरहसिय'-गीय-णच्चणरई वणमालामेल-मउल-कुंडल-सच्छंदविउव्वियाभरणचारुभसणधरा सव्वोउयसुरभिकुसुमसुरइयपलंबसोहंतकंतवियसंताचित्तवणमाल रइयवच्छा' कामगमा कामरूवदेहधारी णाणाविहवण्णरागवरवत्थ-चित्तचिल्लगणियंसणा' विविहदेसिणेवच्छगहियवेसा पमुइयकंदप्प-कलह-के लि-कोलाहलप्पिया हास-बोलबहुला असि-मोग्गर-सत्तिकुंतहत्था अणेगमणि-रयण विविहणिजुत्तविचित्तचिंधगया" सुरूवा महिड्ढीया महज्जतीया महायसा महाबला महाणुभागा" महासोक्खा हारविराइयवच्छा कडय-तुडितथंभियभुया अंगय"-कुंडल-मट्ठगंडयलकण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा" विचित्तमाला-मउली कल्लाणग १. परियारिया (क,ख,घ)। (घ)। २. ४ (क,ख,ग,घ)। ६. भलत्तिचित्तरूवगणियंसणा (ख); मुद्रितवृत्ती ३. पासातीता (घ)। 'चिल्ललगानि' इति दृश्यते । ४. महाकंदिया य (क,ग,घ,पु)। १०. °देसणेवत्थ° (ख,ग,घ)। ५. गहिरहसियपिय (क,ख,ग,घ)। ११. °णिजुत्तचित्त° (क,ख,ग,घ) । ६. मउड (क,ग,घ)। १२. महाणुभावा (घ)। ७. °विहसंत° (घ)। १३. संगय (क,ख,ग,घ)। ८. कामकामा (क,ख,ग, मपा); कामकमा १४. °वत्याभरणा (घ)। Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं पवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवर मल्लाणुलेवणधरा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वणेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघयणेणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुतीए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेस्साए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा । ते णं तत्थ साणं- साणं भोमेज्जगणगरावाससतसहस्साणं' साणं साणं सामाणियसाहस्सीणं साणं- साणं अग्ग महिसीणं साणं-साणं परिसाणं साणं-साणं अणियाणं साणं-साणं अणियाधिवतीणं साणं-साणं आयरक्खदेवसाहसी अण्णेसि च बहूणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणा पालेमाणा महयाहतणट्ट-गीयवाइयतंती - तल-ताल-तुडिय- घणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा ५६ विहरति ॥ ४२. कहि णं भंते ! पिसायाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! पिसाया देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उवरि एवं जोयणसतं ओगाहित्ता हेट्ठा वेगं जोयणसतं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसु जोयणसएसु, एत्थ णं पिसायाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जाणगरावाससतसहस्सा' भवतीति मक्खातं । ते णं भोमेज्जाणगरा वाहि वट्टा जहा ओओ भवणवण्णओ तहा भाणितव्वो जाव' पडिरूवा । एत्थ णं पिसायाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं बहवे पिसाया देवा परिवसंतिमहिड्डिया जहा ओहिया जाव विहरति । काल- महाकाल यत्थ दुवे पिसायइंदा' पिसायरायाणो परिवसंति - महिड्डिया महज्जुइया जाव' विहरति ॥ ४३. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं विसायाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! दाहिणिल्ला पिसाया देवा परिवसंति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उवरि एवं जोयणसतं ओगाहित्ता हेट्ठा वेगं जोयणसतं वज्जेत्ता मज्झे असु जोयस, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं पिसायाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जगनगरावास सतसहस्सा' भवतीति मक्खातं । 'ते णं भोमेज्जगणगरा वाहि वट्टा जहा" ओहिओ भवणवणओ तहा" भाणियव्वो जाव" पडिरूवा । एत्थ णं दाहिणिल्लाणं पिसायाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं बहवे दाहि १. भोमेज्जणगरा° (क, ख ) ; असंखेज्जा भोमेज्जानगरा° ( ग ) । २. भोमेज्ज° (ख,ग,घ); स्वीकृतपाठे एकपदे सन्धिवर्त्तते । ३. प० २।३० । ४. प० २।४१ । ५. पिसाइंदा (ख, घ); पिसायंदा ( ग ) । ६. प० २।४१ । ७. x (क, ख, ग ) । ८. भोमेज्जनगरा (क, ख, ग, घ ) । ६. ते णं भवणा जहा ( क, ख, ग, घ ) । १०. तहेव ( क ) । ११. ० २।३० । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं ठाणपयं ५७ णिल्ला पिसाया देवा परिवसंति-महिड्ढिया जहा ओहिया जाव' विहरंति । काले यत्थ पिसायइंदे पिसायराया परिवसति--महिड्ढीए जाव' पभासेमाणे । से णं तत्थ तिरियमसंखेज्जाणं भोमेज्जगनगरावाससतसहस्साणं चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चउण्हमग्गम हिसीणं' सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाधिवतीणं सोलसण्हं आतरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं जाव विहरति । ४४. उत्तरिल्लाणं पुच्छा। गोयमा ! जहेव दाहिणिल्लाणं वत्तव्वया तहेव' उत्तरिल्लाणं पि, नवरं-मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं । महाकाले यत्थ पिसायइंदे पिसायराया परिवसति जाव' विहरति ।। ४५. एवं जहा पिसायाणं तहा भूयाणं पि जाव गंधव्वाणं, णवर---इंदेसू णाणत्तं भाणियव्वं इमेण विहिणा-भूयाणं सुरूव-पडिरूवा, जक्खाणं पुण्णभद्द-माणिभद्दा, रक्खसाणं भीम-महाभीमा, किण्णराणं किण्णर-किंपुरिसा, किंपुरिसाणं सप्पुरिस-महापुरिसा, महोरगाणं अइकाय-महाकाया, गंधव्वाणं गीतरति -गीतजसे जाव' विहरति । १ काले य महाकाले, २ सुरूव पडिरूव ३ पुण्णभद्दे य । अमरवइ माणिभद्दे, ४ भीमे य तहा महाभीमे ॥१॥ ५ किण्णर किंपुरिसे खलु, ६ सप्पुरिसे खलु तहा महापुरिसे । ७ अइकाय महाकाए, ८ गीयरई चेव गीतजसे ॥२॥ ४६. कहि णं भंते ! अणवन्नियाणं देवाणं [पज्जत्तापज्जत्ताणं ? ] ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! अणवणिया देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स 'उरि हेट्ठा य एगं जोयणसयं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसु जोयणसतेसु, एत्थ णं अणवण्णियाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जा" णगरावाससयसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं जाव' पडिरूवा, एत्थ णं अणवणियाणं देवाणं ठाणा । उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्ठाणणं लोयस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ णं वहवे अणवन्निया देवा परिवसंति--महड्ढिया जहा पिसाया जाव" विहरंति ।। सन्निहिय-सामाणा" यत्थ दुवे अणवण्णिदा अणवण्णियकुमाररायाणो परिवसंति-महिड्ढीया जहा" काल-महाकाला ॥ १.१०२१४१ । ८. गीतरती (क,ग)। २. प०२१४१ । ६. प० २१४३,४४। ३. चउण्हं य अग्ग° (क); चउण्ह य मग्ग° (ख, १०. उरि जाव अट्ठसु (ख,ग,घ)। ग); चउण्ह य अग्ग° (घ)। ११.४ (क,ख,ग,पु)। ४. प० २।३० । १२. प० २०४१। ५. प० २।४३ । १३. प० २।४२। ६. प० २०४३। १४. सामाणी (क); सामाणि (ग)। ७. प० २।४३,४४ । १५. प० २।४२ । Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ पण्णवणासु ४७. एवं जहा काल-महाकालाणं दोण्हं पि दाहिणिल्लाणं उत्तरिल्लाण य भणिया तहा सन्निहिय-सामाणाणं' पि भाणियव्वा'। संगहणिगाहा १ अणवनिय, २ पणवन्निय, ३ इसिवाइय, ४ भूयवाइया चेव । ५ 'कंदिय, ६ महाकंदिय, ७ कुहंड य, ८ पयगा देवा" ॥१॥ इमे इंदा १ सण्णि हिया सामाणा, २ धाय विधाए, ३ इसी य इसिपाले । ४ ईसर महेसरे या, ५ हवइ सुवच्छे विसाले य ॥२॥ ६ हासे हासरई 'वि य", ७ सेते य तहा भवे महासेते । ८ पयते' 'पययपई वि य", नेयव्वा आणुपुव्वीए ॥३॥ जोइसियदेवठाण-पदं ४८. कहि णं भंते ! जोइसियाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! जोइसिया देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रतणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्ताणउते जोयणसते उड्ढं उप्पइत्ता दसुत्तरे जोयणसतबाहल्ले तिरियमसंखेज्जे जोतिसविसये, एत्थ णं जोइसियाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा जोइसियविमाणावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं विमाणा अद्ध कविट्ठगसंठाणसंठिता सव्वफालियामया अब्भुग्गयमूसियपहसिया इव विविहमणि-कणग-रतणभत्तिचित्ता वाउद्धतविजयवेजयंतीपडाग-छत्ताइछत्तकलिया तुंगा गगणतलमणुलिहमाणसिहरा जालंतररतणपंजरुम्मिलिय व्व मणि-कणगथूभियागा वियसियसयवत्तपुंडरीय-तिलय-रयणद्धचंदचित्ता णाणामणिमयदामालंकिया अंतो बहिं च सहा तवणिज्जरुइलवालुयापत्थडा सुहफासा सस्सिरीया सुरूवा पासाईया दरिसणिज्जा' अभिरूवा पडिरूवा, एत्थ णं जोइसियाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। तिसु वि लोगस्स असंखिज्जतिभागे। तत्थ णं बहवे जोइसिया देवा परिवसंति, तं जहा-बहस्सती चंदा सूरा सुक्का सणिच्छरा राहू धूमकेऊ बुहा अंगारगा तत्ततवणिज्जकणगवण्णा, जे य गहा जोइसम्मि चारं चरंति केतू य गइरइया अदावीसतिविहा य नक्खत्तदेवयगणा, णाणासंठाणसंठियाओ य पंचवण्णाओ तारयाओ, ठितलेस्सा चारिणो अविस्साममंडलगई पत्तेयणामंकपागडियांचधमउडा' महिडिढया जाव" पभासेमाणा। ते णं तत्थ साणं-साणं विमाणावाससतसहस्साणं साणं-साणं सामाणिय१. सामाणीणं (ख, ग)। ६. पयते यावि य (ख); पयंग वियते (ग); २. प० २।४३, ४४ । य पयय पयए (घ)। ३. कंदिय महाकंदिय कुहंडपयदेवा इमे इंदा (ख); ७. दसुत्तर (क,ख,ग,घ)। कंदिय महाकंदियकोहंडी पयगए चेव (ग); ८. °पुंडरीया (पु); मलयगिरिवृत्त्याश्रयेण कंदिय महाकदिय कुहंड य पयगदेवा य (घ); 'पुंडरीय' इति पदं गम्यते । कंद महाकदिय कुहंडे पययदेवा इमे इंदा (पु)। ६. दरमणिज्जा (क,ख) । ४. चेव (क); वसे (ख,घ) । १०. पगडिय° (घ)। ५. पयगे (क); पयए (घ) । ११.५० २।३०। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं ठाणपयं साहस्सीणं साणं-साणं अग्गम हिसीणं सपरिवाराणं साणं-साणं परिसाणं साणं-साणं अणियाणं साणं-साणं अणियाधिवतीणं साणं-साणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहणं जोइसियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं जाव' विहरंति।। चंदिम-सूरिया यत्थ दुवे जोइसिंदा जोइसियरायाणो परिवसंति-महिड्ढिया जाव पभासेमाणा । ते णं तत्थ साणं-साणं जोइसियविमाणावाससतसहस्साणं चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चउण्हं अग्गम हिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाधिवतीणं सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं जोइसियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं जाव विहरंति ॥ वेमाणियदेवठाण-पदं ४६. कहि णं भंते ! वेमाणियाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! वेमाणिया देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रतणप्पभाए पुढवीए बहसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उड्ढं चंदिम-सूरिय-गह-णक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणसताई बहूई जोयणसहस्साई बहूई जोयणसयसहस्साइं बहुगीओ' जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद-बंभलोय-लंतगमहासुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-आरण-अच्चुत-गेवेज्ज-अणुत्तरेसु, एत्थ णं वेमाणियाणं देवाणं चउरासीइ विमाणावाससतसहस्सा सत्ताणउइं च सहस्सा तेवीसं च विमाणा भवंतीति मक्खातं । ते णं विमाणा सव्वरतणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्ठा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, एत्थ णं वेमाणियाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। तिस वि लोयस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ णं बहवे वेमाणिया देवा परिवति, तं जहा--सं सणंकुमार-माहिंद-बंभलोग-लंतग-महासुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-आरण-अच्चुय-गेवेज्जगअणुत्तरोववाइया देवा । ते णं मिग-महिस-वराह-सीह-छगल-ददुर-हय-गयवइ-भुयग-खग्गउसभंक-विडिम-पागडियचिधमउडा पसढिलवरमउड-तिरीडधारिणो वरकुंडलुज्जोइयाणणा मउडदित्तसिरया रत्ताभा पउमपम्हगोरा सेया सुहवण्ण-गंध-फासा उत्तमवेउव्विणो पवरवत्थगंध-मल्लाणुलेवणधरा महिड्ढीया महज्जुइया महायसा महाबला महाणुभागा महासोक्खा हारविराइयवच्छा कडय-तुडियथंभियभुया अंगद-कुंडल-मट्ठगंडतलकण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमाला-मउली कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्लाणलेवणा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघयणेणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढोए दिव्वाए जुतीए दिव्वाए पभाए दिव्वाए याए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेस्साए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा। ते णं तत्थ साणं-साणं विमाणावाससयसहस्साणं साणं-साणं सामाणियसाहस्सीणं साणं-साणं तावत्तीसगाणं साणं-साणं लोगपालाणं साणं-साणं सपरिवाराणं अग्गमहिसीणं साणं-साणं परिसाणं साणं-साणं अणियाणं साणं-साणं अणियाधिवतीणं साणं पाण १. प० २।३०। २. गहगण (ख,प)। ३. बहुगाओ (क,ख,ग)। ४. °तलपीठधारी (घ)। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं साणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसि च बहणं वेमाणियाणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणा पालेमाणा महताहतनट्ट-गीय-वाइततंती-तल-ताल-तुडित-घणमुइंगपडुप्पवा इतरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भंजमाणा विहरंति ॥ ५०. कहिणं भंते ! सोहम्मगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! सोहम्मगदेवा परिवसंति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वतस्स दाहिणणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहनक्खत्ततारारूवाणं बहइं जोयणसताणि बहइं जोयणसहस्साइं बहइं जोयणसतसहस्साई बहुगीओ जोयणकोडीओ वहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं सोहम्मे णामं कप्पे पण्णत्ते-पाईण-पडीणायते उदीण-दाहिणवित्थिण्णे अद्धचंदसंठाणसंठिते अच्चिमालिभासरासिवण्णाभे असंखेज्जाओ जोयणकोडीओ असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव' पडिरूवे । तत्थ णं सोहम्मगदेवाणं बत्तीसं विमाणावाससतसहस्सा हवंतीति मक्खातं । ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं विमाणाणं बहुमज्झदेसभागे पच वडसया पण्णत्ता,त जहा-असोगवडसए सोत्तवण्णवडंसए'चपगवडसए चयवडसए मज्झ यत्थ सोहम्मवडेंसए । ते णं वडेंसया सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा, एत्थ णं सोहम्मगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं बहवे सोहम्मगदेवा परिवसंति-महिड्डीया जाव' पभासेमाणा। ते णं तत्थ साणं-साणं विमाणावाससतसहस्साणं साणं-साणं सामाणियसाहस्सीणं एवं जहेव ओहियाणं तहेव एतेसि पि भाणितव्वं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसि च बहूणं सोहम्मगकप्पवासीणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं जाव' विहरंति। सक्के यत्थ देविदे देवराया परिवसति, वज्जपाणी पुरंदरे सतक्कतू सहस्सक्खे मघवं पागसासणे दाहिणड्डलोगाधिवती बत्तीसविमाणावाससतसहस्साधिवती एरावणवाहणे सुरिंदे अरयंवरवत्थधरे आलइयमाल-मउडे णवहेमचारुचित्तचंचलकुंडल विलिहिज्जमाणगंडे महिड्डिए जाव पभासेमाणे। से णं तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससतसहस्साणं चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं तायत्तीसाए तावत्तीसगाणं चउण्हं लोगपालाणं अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाधिवतीणं चउण्हं चउरासीईणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं सोहम्मगकप्पवासीणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं कुव्वमाणे जाव विहरइ ॥ ५१. कहिणं भंते ! ईसाणगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! ईसाणगदेवा परिवसंति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वतस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गह-णक्खत्त१. प० २१४६ । ६. ३३ सूत्रे 'कुव्वमाणे' इतिपदानन्तरं जाव' इति २. सत्तवण्ण° (ग,घ)। पदं नास्ति । ३,४,५. प० २।४६। Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं ठाणपयं ६१ तारारूवाणं बहूइं जोयणसताइं बहूइं जोयणसहस्साइं जाव' उप्पइत्ता, एत्थ णं ईसाणे णाम कप्पे पण्णत्ते - पाईण-पडीणायते उदीण - दाहिणविच्छिष्णे एवं जहा सोहम्मे जाव' पडिवे । तत्थ णं ईसाणगदेवाणं अट्ठावीसं विमाणावाससतसहस्सा हवंतीति मक्खातं । ते णं विमाणा सव्वरयणामया जाव पडिख्वा । तेसि णं बहुमज्झदेसभाए पंच वडेंसगा पण्णत्ता, तं जहा - अंकवडेंसए फलिहवडेंसए रतणवडेंसए जातरूववडेंसए मज्झे यत्थ' ईसाणवडेंसए । ते णं वडेंसया सव्वरयणामया जाव' पडिरूवा. एत्थ णं ईसाणाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । तिसु वि लोगस्स असंखेज्जतिभागे । सेसं जहा सोहम्मग देवाणं जाव विहरति । ईसाणे यत्थ देविंदे देवराया परिवसति-सूलपाणी वसभवाहणे उत्तरढलोगाधिवती अट्ठावीस विमाणावाससतसहस्साधिवती अरयंबरवत्थधरे सेसं जहा सक्कस्स जाव' पभासेमाणे । से णं तत्थ अट्ठावीसाए विमाणावाससतसहस्साणं असीतीए सामाणियसाहस्सीणं तात्तीसार तावत्तसगाणं चउन्हं लोगपालाणं अट्टहं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिन्हं परिमाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाधिवतीणं चउन्हं असीतीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसि च बहूणं ईसाणकप्पवासीणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्च कुव्वमाणे जाव' विहरति ।। ५२. कहिणं भंते ! सणकुमारदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहिणं भंते! सणकुमारदेवा परिवसंति ? गोयमा ! सोहम्मस्स कप्पस्स उप्पि सर्पक्खि सपतिदिसि 'बहूइं जोयणाई" बहूइं जोयणसताइं बहूइं जोयणसहस्साइं बहूई जोयणसतसहस्साई agita जोकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं सणंकुमारे णामं कप्पे पाईण-पडीणायते उदीण - दाहिणविच्छिणे जहा सोहम्मे जाव' पडिरूवे, एत्थ णं णकुमाराणं देवाणं वारस विमाणावाससतसहस्सा भवतीति मक्खातं । ते णं विमाणा सव्वरयणामया जाव" पडिरूवा । तेसि णं विमाणाणं वहुमज्झदेसभागे पंच वडेंसगा पण्णत्ता, तं जहा - असोगवडेंसए सत्तिवण्णवडेंसए चंपगवडेंसए चूयवडेंसए मज्झे यत्थ सणकुमारवडेंसए । ते णं वडेंसया सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिवा, एत्थ णं सणंकुमारदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं बहवे सणकुमारा देवा परिवसंति-महिड्डिया जाव" पभासेमाणा विहरंति, णवरंअग्गमहिसीओ णत्थि । सणंकुमारे यत्थ देविंदे देवराया परिवसति - अरयंबरवत्थधरे सेसं जहा " सक्कस्स । से तत्थ बारसहं विमाणावाससतसहस्साणं बावत्तरीए सामाणियसाहस्सीणं सेसं जहा सक्क्स्स अग्ग महिसीवज्जं, णवरं - चउन्हं बावत्तरीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं जाव विहरइ ॥ १२. प० २।५० । ३. एत्थ (पु) । ४. प० २।४६ ५. प० २।५० । ६. प० २।४६ । ७. सणकुमारा देवा ( ग घ ) । ८. 'बहूई जोयणाई' इति पाठ: सनत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलोकालापकेषु एव दृश्यते । ६. प० २।५० । १०,११. प० २।४६ । १२. प० २।५० । Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं ५३. कहि णं भंते ! माहिंदाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहिणं भंते ! माहिंदगदेवा परिवसंति ? गोयमा ! ईसाणस्स कप्पस्स उप्पि सपक्खि सपडिदिसि बहूइं जोयणाई जाव' बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढे दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं माहिंदे णामं कप्पे पायीण-पडीणायए एवं जहेव' सणंकुमारे, णवरं-अट्ठ विमाणावाससतसहस्सा । वडेंसया जहा' ईसाणे, णवरं-मज्झे यत्थ माहिंदवडेंसए। एवं सेसं जहा सणंकुमारदेवाणं जाव' विहरति । माहिंदे यत्थ देविदे देवराया परिवसति-अरयंबरवत्थधरे, एवं जहा सणंकुमारे जाव' णवरं-अट्ठण्हं विमाणावाससतसहस्साणं सत्तरीए सामाणियसाहस्सीणं चउण्हं सत्तरीणं आयरक्खदेवसाहस्सीण जाव' विहरइ।। ५४. कहि णं भंते ! बंभलोगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! बंभलोगदेवा परिवसंति ? गोयमा ! सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं उप्पि सपक्खि सपडिदिसि बहूई जोयणाई जाव' उप्पइत्ता, एत्थ णं बंभलोए णामं कप्पे पाईण-पडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिते अच्चिमाली-भासरासिप्पभे अवसेसं जहा" सणंकुमाराणं, णवरं --चत्तारि विमाणावाससतसहस्सा। वडिंसगा जहा" सोहम्मवडेंसया, णवरं-मज्झे यत्थ बंभलोयवडिसए, एत्थ णं बंभलोगाणं देवाणं ठाणा पण्णत्ता। सेसं तहेव जाव विहरंति। बंभे यत्थ देविदे देवराया परिवसति-अरयंबरवत्थधरे. एवं जहा सणंकमारे जावविहरति णवरं-च उण्हं विमाणावाससतसहस्साणं सट्ठीए सामाणियसाहस्सीणं चउण्ह य सट्ठीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं जाव" विहरति ।। ५५. कहि णं भंते ! लंतगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! लंतगदेवा परिवसंति ? गोयमा ! बंभलोगस्स कप्पस्स उप्पि सपक्खि सपडिदिसि बहई जोयणसयाई जाव" वहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं लंतए णामं कप्पे पण्णत्ते-पाईण-पडीणायए जहा" बंभलोए, णवरं-पण्णासं" विमाणावाससहस्सा भवंतीति मक्खातं । वडेंसगा जहा“ ईसाणवसगा, णवरं-मज्झे यत्थ लंतगवडेंसए । देवा तहेव जाव" विहरंति। लंतए यत्थ देविदे देवराया परिवसति जहा सणंकुमारे, णवरं-पण्णासाए विमाणावाससहस्साणं पण्णासाए सामाणियसाहस्सीणं चउण्ह य पण्णासाणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं जाव" विहरति । ५६. कहि णं भंते ! महासुक्काणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! महासुक्का देवा परिवसंति ? गोयमा ! लंतयस्स कप्पस्स उप्पि सपक्खि सपडिदिसिं १,२. प० २।५२। ६. प० २०५२। १६. प० २।५४ । ३. प० २१५१ । १०. प०२।५३ । १७. पण्णासा (क)। ४. सणंकुमारगदेवाणं (क)। ११. प० २।५० । १८. प० २।५१ । ५,६. प० २।५२ । १२,१३. प० २०५२। १६. प० २।५० । ७. प० २५० । १४. प० २।५०। २०. प० २।५२ । ८. सपक्ख (ग)। १५. प० २।५२। २१.५० २०५०। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं ठाणपयं जाव' उप्पइत्ता, एत्थ णं महासुक्के णामं कप्पे पण्णत्ते-पाईण'-पडीणायए उदीणदाहिणवित्थिपणे जहा' बंभलोए, णवरं-चत्तालीसं विमाणावाससहस्सा भवंतीति मक्खातं । वडेंसगा जहा सोहम्मवडेंसगा, णवरं-मज्झे यत्थ महासुक्कवडेंसए जाव' विहरति । महासुक्के यत्थ देविदे देवराया जहा सणकुमारे, णवरं--चत्तालीसाए विमाणावाससहस्साणं चत्तालीसाए सामाणियसाहस्सीणं चउण्ह य चत्तालीसाणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं जाव' विहरति । ५७. कहि णं भंते ! सहस्सारदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! सहस्सारदेवा परिवसंति ? गोयमा ! महासुक्कस्स कप्पस्स उप्पि सपक्खि सपडिदिसिं जाव' उप्पइत्ता, एत्थ णं सहस्सारे णामं कप्पे पण्णत्ते-पाईण-पडीणायते जहा बंभलोए, णवरं छव्विमाणावाससहस्सा भवंतीति मक्खातं । देवा तहेव जाव" वडेंसगा जहा" ईसाणवडेंसगा", णवरं-मज्झे यत्थ सहस्सारवडेंसए जाव" विहरंति ।। सहस्सारे यत्थ देविंदे देवराया परिवसति जहा" सणंकुमारे, णवरं-छण्हं विमाणावाससहस्साणं तीसाए सामाणियसाहस्सीणं चउण्ह य तीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं जाव" आहेवच्चं कारेमाणे विहरति ।।। ५८. कहि णं भंते! आणय-पाणयाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता? कहिणं भंते ! आणय-पाणया देवा परिवसंति ? गोयमा ! सहस्सारस्स कप्पस्स उप्पि सपक्खि सपडिदिसिं जाव" उप्पइत्ता, एत्थ णं आणय-पाणयनामेणं दुवे कप्पा पण्णत्तापाईण-पडीणायता उदीण-दाहिणवित्थिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिता अच्चिमाली-भासरासिप्पभा, सेसं जहा सणंकुमारे" जाव" पडिरूवा। तत्थ णं आणय-पाणयदेवाणं चत्तारि विमाणावाससता भवंतीति मक्खायं जाव" पडिरूवा। वडिसगा जहा सोहम्मे, णवरंमज्झे पाणयव.सए । ते णं वडेंसगा सव्वरयणामया अच्छा जाव" पडिरूवा, एत्थ णं आणयपाणयदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं बहवे आणय-पाणयदेवा परिवसंति-महिड्डीया जावर पभासेमाणा। ते णं तत्थ साणंसाणं विमाणावाससयाणं जाव३ विहरंति। पाणए यत्थ देविदे देवराया परिवसति जहा सणंकुमारे, णवरं-चउण्हं विमाणावाससयाणं वीसाए सामाणियसाहस्सीणं असीतीए आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं जाव" विहरति ॥ ५६. कहि णं भंते ! आरणच्चुताणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! आरणच्चुता देवा परिवसंति? गोयमा! आणय-पाणयाणं कप्पाणं १. प० २१५२ । ६. प० २।५४ । १६,१७. प० २५२ । २. पायीण (क,ख,घ)। १०.५० २०५०। १८. प० २।४६ । ३. प० २०५४ । ११. प० २०५१। १६. प० २।५० । ४,५. प० २।५० । १२. ईसाणस्स वडेंसगा (ख)। २०,२१. प० २१४६ । ६.१०२१५२ । १३. प० २।५० । २२. ५०४६। ७. प० २।५०। १४. प० २।५२। २३. प० २०५२। ८.प. २१५२ । १५. प० २।५० । २४. प० २।५० । Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ पग्णवणासुत् उप्पि सपक्खि सपडिदिसिं 'जाव' उपपइत्ता, एत्थ णं आरणच्चुया णामं दुवे कप्पा पण्णत्ता-पाईण-पडीणायया उदीण-दाहिण विच्छिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिता अच्चिमालीभासरासिवण्णाभा असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयाम-विक्खंभेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्टा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, एत्थ णं आरणच्चुताणं देवाणं तिण्णि विमाणावाससता हवंतीति मक्खायं। ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोता पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तेसि णं विमाणाणं' बहुमज्झदेसभाए पंच वडेंसगा पण्णत्ता, तं जहा--- अंकवडेंसए फलिहव.सए रयणव.सए जायरूवव.सए मज्झे यत्थ अच्चुतवडेंसए। ते णं वडेंसया सव्वरयणामया जाव पडिरूवा, एत्थ णं आरणच्चुयाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ णं बहवे आरणच्चुता देवा जाव विहरंति। अच्चुते यत्थ देविंदे देवराया परिवसति जहा पाणए जाव' विहरति, णवरं-तिण्हं विमाणावाससताणं दसण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तालीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं आहेवच्चं कुव्वमाणे जाव' विहरति । बत्तीस अट्ठवीसा, बारस अटु चउरो सतसहस्सा । पण्णा चत्तालीसा, छ च्च सहस्सा सहस्सारे ॥१॥ आणय-पाणयकप्पे, चत्तारि सयारणच्चुए तिण्णि । सत्त विमाणसयाई, चउसु वि एएसु कप्पेसु ॥२॥ सामाणियसंगहणीगाहा चउरासीइ १ असीई २ बावत्तरि ३ सत्तरी य ४ सट्ठी य ५। पण्णा ६ चत्तालीसा ७तीसा ८ वीसा 8-१० दस सहस्सा ११-१२ ॥३॥ एते चेव आयरक्खा च उगुणा ॥ ६०. कहि णं भंते ! हेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! हेट्ठिमगेवेज्जा देवा परिवसंति ? गोयमा ! आरणच्चुताणं कप्पाणं उप्पि जाव' उड्ढे दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं हेट्ठिम गेवेज्जगाणं देवाणं तओ गेवेज्जविमाणपत्थडा पण्णत्तापाईण-पडीणायया उदीण-दाहिणविच्छिण्णा पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिता अच्चिमाली-भासरासिवण्णाभा सेसं जहा बंभलोगे जाव' पडिरूवा। तत्थ णं हेट्ठिमगेवेज्जगाणं देवाणं १.५० २।५२ । २. आदर्शेष असो पाठो नास्ति, किन्तु पूर्वक्रमेण तथा भगवत्यां (१४।६४-६८) प्रतिपादित- अन्तरसूत्रैश्च अस्य पाठस्य अपेक्षा अनुभूयते। ३. विमाणाणं कप्पाणं (ग); कप्पाणं (घ)। ४. प० २।४६ । ५. प० २।५८ । ६. प० २।५० । ७. ट्ठावीस (क,ग)। ८. प० २।५६ । ६.५० २।५४ । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं ठाणपयं 'एक्कारसुत्तरे विमाणावाससते" हवतीति' मक्खातं । ते णं विमाणा सव्वरयणामया जाव' डरूवा, एत्थ णं हेट्ठिमगेवेज्जगाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। तिसू वि लोगस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं बहवे हेट्ठिमगेवेज्जगा देवा परिवसंति-सव्वे समिड्डिया सव्वे समज्जुतीया सव्वे समजसा सव्वे समबला सव्वे समाणुभावा 'सव्वे समसोक्खा" अजिंदा अप्पेस्सा अपुरोहिया अहमिदा णामं ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो !॥ ६१. कहिणं भंते ! मज्झिमगाणं गेवेज्जगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! मज्झिमगेवेज्जगा देवा परिवसंति ? गोयमा ! हेट्ठिमगेवेज्जगाणं उप्पि सपक्खि सपडिदिसि जाव' उप्पइत्ता, एत्थ णं मज्झिमगेवेज्जगदेवाणं तओ गेवेज्जगविमाणपत्थडा पण्णत्ता-पाईण-पडीणायता जहा' हेट्ठिमगेवेज्जगाणं, णवरं-ससुत्तरे विमाणावाससते हवतीति मक्खातं । ते णं विमाणा जाव' पडिरूवा, एत्थ णं मज्झिमगेवेज्जगाणं देवाणं जाव' तिसु वि लोगस्स असंखेज्जतिभागे। तत्थ णं बहवे मज्झिमगेवेज्जगा देवा परिवसंति जाव" अहमिदा नाम ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो !॥ ६२. कहि णं भंते ! उवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! उवरिमगेवेज्जगा देवा परिवसंति ? गोयमा ! मज्झिमगेवेज्जगदेवाणं उप्पि जाव" उप्पइत्ता, एत्थ णं उवरिमगेवेज्जगाणं देवाणं तओ गेवेज्जगविमाणपत्थडा पण्णत्तापाईण-पडीणायता सेसं जहा हेट्ठिमगेवेज्जगाणं, नवरं-एगे विमाणावाससते भवतीति मक्खातं । सेसं तहेव" भाणियव्वं जाव अहमिदा णामं ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो ! एक्कारसुत्तरं हेट्ठिमेसु, सत्तुत्तरं च मज्झिमए । सयमेगं उवरिमए, पंचेव अणुत्तरविमाणा ॥१॥ ६३. कहि णं भंते ! अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! अणुत्तरोववाइया देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गह-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई बहूइं जोयणसतसहस्साइं बहुगीओ जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद-बंभलोय१. एक्कारसुत्तरविमाणवाससया (ग)। (वृत्ति पत्र ३६३) । अनया व्याख्यया 'सव्वे २. हवंतीति (क,ख,ग,घ)। समसोक्खा' इति पाठः एवं फलति । एष एवात्र ३.५० २।४६। प्रकरणानुसारी वर्तते । ४. महासोक्खा (क,ख,ग,घ,पु); प्रज्ञापनावृत्ती ५. प० २।५६ । 'समज्जुइया' इत्यादिपदानि नैव व्याख्यातानि ६. प० २१६०। सन्ति-एवं 'समज्जुइया' इत्याद्यपि भाव- ७. हवंतीति (क,ख,ग)। नीयम् । जीवाजीवाभिगमवृत्तौ ‘समिड्ढीया' ८. प० २।४६ । इत्यादीनि सर्वाणि पदानि व्याख्यातानि सन्ति- ६,१०. प० २।६० । सर्वे-निरवशेषाः समा ऋद्धिर्येषां ते समद्धिकाः ११. प० २।५६ । एवं सर्वे समद्युतिकाः सर्वे समबलाः सवें १२,१४. प० २।६० । समयशसः सर्वे समानुभागाः सर्वे समसौख्याः १३. भवंतीति (क,ख,ग)। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं लंतग-सुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय आरण-अच्चुयकप्पा तिष्णि य अट्ठारसुत्तरे गेवेज्ज - विमाणावाससते वीतीवतित्ता तेण परं दूरं गता णीरया निम्मला वितिमिरा विसुद्धा पंचदिसि पंच अणुत्तरा महतिमहालया विमाणा पण्णत्ता, तं जहा - विजए वैजयंते जयंते अपराजिते सव्वट्टसिद्धे । ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लहा घट्टा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरुवा, एत्थ णं अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठा पत्ता । ति वि लोगस्स असंखेज्जतिभागे । तत्थ णं वहवे अणुत्तरोववाइया देवा परिवसंति - सव्वे समिड्डिया सव्वे समबला सव्वे समाणुभावा 'सव्वे समसोक्खा " अणिदा अपेसा अपुरोहिता अहमिदा णामं ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ सिद्धठाण-पदं ६६ ६४. कहि णं भंते! सिद्धाणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! सिद्धा परिवसंति ? गोयमा ! सव्वट्टसिद्धस्स' महाविमाणस्स ' उवरिल्लाओं' थूभियग्गाओ 'दुवालस जोयणे उड्ढ" अबाहाए, एत्थ णं ईसीप भारा णामं पुढवी पण्णत्ता - पणतालीसं जोयणसतसहस्वाणि आयाम - विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोणिय अउणापणे जोयणसते किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ता । ईसीपब्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ते, ततो अनंतरं चणं माताए माताए- पएसपरिहाणीए परिहायमाणी - परिहायमाणी सव्वेसु चरिमंतेसु ' मच्छियपत्तातो तणुयरी अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं बाहल्लेणं पण्णत्ता ।। ६५. ईसीप भाराए णं पुढवीए दुवालस नामधिज्जा पण्णत्ता, तं जहा - ईसी तिवा भाति वा तणू ति वा तणुतणू ति वा सिद्धी ति वा सिद्धालए ति वा मुत्ती इवा मुत्तालए ति वा लोग्गे इ वा लोयग्गथूभिया ति वा लोयग्गपडिवुज्झणा इ वा सव्वपाणभूत-जीव सत्तसुहावहा इ वा ॥ ६६. ईसीपब्भारा णं पुढवी सेता 'संखदल- विमलसोत्थिय" - मुणाल- दगरय- तुसारगोक्खीर-हारवण्णा उत्ताणयछत्तसंठाणसंठिता सव्वज्जुणसुवण्णमती अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोता पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ ६७. ईसीप भाराए णं' सीताए जोयणम्मि लोगंतो । तस्स णं जोयणस्स जेसे उवरिल्ले गाउए तस्स णं गाउयस्स जेसे उवरिल्ले छब्भागे, एत्थ " णं सिद्धा भगवंतो सादिया" अपज्न 1 १. महासोक्खा ( क, ख, ग, घ, पु); द्रष्टव्यं २३६० सूत्रस्य टिप्पणम् । अत्र ६० सूत्रवतिविशेषणद्वयं - 'सव्वे समज्जुतीया सव्वे समजसा ' आदर्शेषु नैव लभ्यते । २. सव्वस (क, ख, ग, घ ) । ३. विमाणस्स ( ग ) । ४. सव्बुवरिल्लाओ (ओ० सू० १६२ ) । ५. दुवाल सजोयणाई (ओ० सू० १९२) । ६. चरिम - पेरतेसु (ओ० सू० १६२ ) । ७. तणुयरी (ओ० सू० १९३) । ८. संखतल विमलसोल्लिय (ओ० सू० १६४ ) । ६. णं पुढवीए (ओ० सू० १९५) । १०. तत्थ (ओ० सू० १६५ ) । ११. सादीया (क, ख, पु); सातिया (घ ) । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइयं ठाणपय बसिता अणेगजाति-जरा-मरण जोणि संसारकलंक लीभाव'- पुणब्भवगब्भव सही पवंचसमतिक्कंता' सासयमणागतद्धं कालं चिट्ठति । तत्थ' विय ते अवेदा, संसारविप्पमुक्का, कहि पsिहता सिद्धा ? कहि बोंदि चइत्ताणं ? अलोए पsिहता सिद्धा, लोयग्गे य इहं बोंदि चइत्ताणं, तत्थ गंतूण दहं वा हसं वा जं चरिमभवे हवेज्ज संठाणं । तत्तो' तिभागहीणा, सिद्धाणोगाहणा भणिया ||४|| जं संठाणं तु इहं, भवं चयंतस्स चरिमसमयम्मि' । आसी य पदेसघणं, तं संठाणं तहिं तस्स ॥५॥ तिणि सया तेत्तीसा, धणुत्तिभागो य होति बोधव्वो' । एसा खलु सिद्धाणं, उक्को सोगाहणा भणिया ||६|| चत्तारिय रयणीओ, रयणितिभागूणिया य बोधव्वा । एसा खलु सिद्धाणं, मज्झिम ओगाहणा भणिया ॥७॥ एगा य होइ रयणी, 'अट्ठेव य अंगुलाई साहीया । एसा खलु सिद्धाणं, जहण ओगाहणा भणिया ॥ ८ ॥ ओगाहणाए " सिद्धा, भव- त्तिभागेण होंति परिहीणा । संठाणमणित्थंथं, जरा-मरणविप्पमुक्काणं ॥ ६ ॥ जत्थ य एगो सिद्धो, तत्थ अनंता भवक्खयविमुक्का । अण्णोण्णसमोगाढा, पुट्ठा सव्वे वि" लोयंते ॥ १० ॥ फुसइ अणते सिद्धे, सव्वपएसेहिं नियमसो सिद्धो । तेवि असंखेज्जगुणा, देस-पदेसेहि जे पुट्ठा ॥११॥ असरीरा जीवघेणा, उवउत्ता दंसणे य नाणे य । सागारमणागार, लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥१२॥ १. जोणि-वेयणं संसारकलंकलीभाव (ओ० सू० १६५) । २. गन्भवासवसही (क, ख, घ, पु); 'गब्भवास वसही - पवंचं अइक्कंता (ओ० सू० १६५ ) । ३. औपपातिके (सू० १६५ ) एषा गाथा नैव दृश्यते । ४. कच्छ (क, ख ) ; कहि (पु) 1 ५. हुस्सं (क, ख, पु) ६. ततो (ख) 1 । अवेदणा निम्ममा असंगा य । पदेस निव्वत्तसंठाणा ॥ १ ॥ कहि सिद्धा पइट्टिता ? | कत्थ गंतूण सिज्झई ? ||२|| पइट्टिया | सिज्झई ॥३॥ ७. औपपातिके ( सू० १६५ ) 'जं संठाणं तु इहं' एषा गाथा 'दीहं वा हसं वा' अस्या गाथायाः पूर्वं दृश्यते । १७ ८. चरम° (क,ग) । ६. नायव्वो ( क,ख,ग,घ) । १०. साहीया अंगुलाई अट्ठभवे (ओ० सू० १६५ । ७) । ११. ओगाहणा (ग); ओगाहणाइ (घ ) । १२. य (ओ० सू० १९५६) । Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं केवलणाणुवउत्ता, जाणंती सव्वभावगुण-भावे । पासंति सव्वतो खलु, केवल दिट्ठीहिणंताहिं' ॥१३।। न वि अत्थि माणुसाणं, तं सोक्खं न वि य सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं सोक्खं, अव्वाबाहं उवगयाणं ॥१४॥ 'सुरगणसुहं समत्तं", सव्वद्धापिंडितं अणंतगुणं । 'ण वि पावे" मुत्तिसुहं, 'णंताहि वि" वग्गवग्गूहिं ॥१५॥ सिद्धस्स सुहो रासी, सव्वद्धापिंडितो जइ हवेज्जा । सोणंतवग्गभइतो, सव्वागासे ण माएज्जा ॥१६।। जह णाम कोइ मेच्छो, णगरगुणे बहुविहे वियाणंतो । न चएइ परिकहेउं, उवमाए तहिं असंतीए ॥१७॥ इय सिद्धाणं सोक्खं, अणोवमं णत्थि तस्स ओवम्म । किंचि विसेसेणेत्तो, सारिक्खमिणं' सुणह वोच्छं ॥१८॥ जह सव्वकामगुणितं, पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोइ । तण्हा-छहाविमुक्को, अच्छेज्ज जहा अमिय तित्तो॥१६॥ इय सव्वकालतित्ता, अतुलं णेव्वाणमुवगया सिद्धा । सासयमव्वाबाहं, चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ॥२०॥ सिद्धत्ति य बुद्धत्ति य, पारगतत्ति य परंपरगतत्ति । उम्मक्ककम्मकवया, अजरा अमरा असंगा य॥२१॥ णिच्छिण्णसव्वदुक्खा, जाति-जरा-मरणबंधणविमुक्का । अव्वाबाहं सोक्खं, अणुहोंती' सासयं सिद्धा' ॥२२॥ १. °दिट्ठीहिणंताहिं (क,ख,घ); दिट्ठीहणंताहिं (पु)। २. जं देवाण सोक्खं (ओ० स० १९५१४)। ३. ण य पावइ (ओ० सू० १६५।१४) । ४. गंताहिं (ग); णंताहिं वि (पु)। ५. सारक्खमिणं (घ); भोवम्ममिणं (ओ० सू० १६५।१७)। ६. अणुहंती (क,ख) : अणुहोति (ग)। ७. अतोग्रे औपपातिके (सू० १६५) एषा गाथा दृश्यतेअतुलसुहसागरगया, अव्वाबाहं अणोवमं पत्ता। सव्वमणागयमद्धं, चिठ्ठति सुही सुहं पत्ता ॥१॥ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं बहुबत्तव्वयपयं गाहा १. दिसि २. गति ३. इंदिय ४. काए, ५. जोगे ६. वेदे ७. कसाय ८. लेसा' य । ६. सम्मत्त १०. णाण ११. सण, १२. संजय १३. उवओग १४. आहारे ॥१॥ १५. भासग १६. परित्त १७. पज्जत्त, १८. सुहुम १६. सण्णी २०,२१. भवत्थिए' २२ चरिमे। २३. जीवे य २४. खेत्त २५. बंधे, २६. पोग्गल २७. महदंडए चेव ॥२॥ दिसि-पदं १. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा जीवा पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया', दाहिणणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया ।। . २. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा पुढविकाइया दाहिणेणं, उत्तरेणं विसेसाहिया, पुरस्थिमेणं विसेसाहिया, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया ॥ ३. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा आउक्काइया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया ॥ ४. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा तेउक्काइया दाहिणुत्तरेणं, पुरथिमेणं संखेज्जगुणा, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया ॥ ५. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा वाउकाइया पुरत्थिमेणं, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया, दाहिणणं विसेसाहिया ॥ ६. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा वणस्सइकाइया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया ॥ ७. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा बेइंदिया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया ।। ८. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा तेइंदिया पच्चत्थिमेणं, पुरथिमेणं विसेसाहिया, दाहिणणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया ॥ ६. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा चरिदिया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया ॥ १. लेसे (ख)। ३. विसेसाधिया (ध,पु)। २. भवत्थिमे (क,ख)। ४. दक्खिणेणं (क,ख,घ)। Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं १०. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा नेरइया पुरथिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा ॥ ११. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा रयणप्पभापुढविनेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा ।। १२. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा सक्करप्पभापुढविनेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा ॥ १३. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा वालुयप्पभापुढविनेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा ॥ १४. दिसाणुवाएणं सब्वत्थोवा पंकप्पभापुढविनेरइया पुरथिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा ॥ १५. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा धूमप्पभापुढविनेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा ॥ १६. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा ‘तमप्पभापुढविनेरइया पुरथिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा" ॥ १७. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा अहेसत्तमापुढविनेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा ॥ १८. दाहिणिल्लेहितो' अहेसत्तमापुढविनेरइएहितो छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरइया पुरस्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं असंखेज्जगुणा ॥ १६. दाहिणिल्लेहितो तमापुढविणेरइएहिंतो पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए नेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं असंखेज्जगुणा ।। २०. दाहिणिल्लेहिंतो धूमप्पभापुढविनेरइएहिंतो चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए नेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा ।। २१. दाहिणिल्लेहितो पंकप्पभापुढविनेरइएहितो तइयाए वालुयप्पभाए पुढवीए नेरइया पुरथिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं असंखिज्जगुणा ।। - २२. दाहिणिल्लेहितो वालुयप्पभापुढविनेरइएहितो दुइयाए सक्करप्पभाए पुढवीए णेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं असंखिज्जगुणा ॥ २३. दाहिणिल्लेहिंतो सक्करप्पभापुढविनेरइएहिंतो इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिण्णणं असंखेज्जगुणा ॥ २४. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया ।। २५. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा मणुस्सा दाहिण-उत्तरेणं, पुरथिमेणं संखेज्जगुणा, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया ॥ ___२६. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा भवणवासी देवा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं असंखेज्जगुणा ॥ १. तमप्प । पु। ने । पु। प । उ।दा । असं (ग)। २. दाहिणेहितो (क,ख,ग,घ)। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं बहुवत्तन्वयपयं २७. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा वाणमंतरा देवा पुरथिमेणं, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया, दाहिणणं विसेसाहिया ।। २८. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा जोइसिया देवा पुरथिम-पच्चत्थिमेणं, दाहिणणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया ॥ २६. दिसाणवाएणं सव्वत्थोवा देवा सोहम्मे कप्पे पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेज्जगणा, दाहिणणं विसेसाहिया। ३०. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा देवा ईसाणे कप्पे पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं विसेसाहिया । ३१. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा देवा सणंकुमारे कप्पे पुरथिम-पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणणं विसेसाहिया ॥ ३२. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा देवा माहिदे कप्पे पुरथिम-पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं विसेसाहिया ॥ ३३. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा 'देवा बंभलोए कप्पे" पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा॥ ३४. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा देवा लंतए कप्पे पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा ॥ ३५. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा देवा महासुक्के कप्पे पुरथिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा ॥ ३६. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा देवा सहस्सारे कप्पे पुरथिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा । तेण परं बहुसमोववण्णगा समणाउसो ! ।। ३७. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा सिद्धा दाहिणुत्तरेणं, पुरथिमेणं संखेज्जगुणा, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया ॥ गति-पदं ३८. एएसि णं भंते! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं देवाणं सिद्धाण य पंचगतिसमासेणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा वहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सा, नेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, सिद्धा अणंतगुणा, तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा ॥ ३६. एतेसि णं भंते ! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीणं मणुस्साणं मणुस्सीणं देवाणं देवीणं सिद्धाण य अट्ठगतिसमासेणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवाओ मणुस्सीओ, मणुस्सा असंखेज्जगुणा, नेरइया असंखेज्जगुणा, तिरिक्खजोगिणोओ असंखेज्जगुणाओ, देवा असंखेज्जगुणा, देवीओ संखेज्जगुणाओ, सिद्धा अणंतगुणा, तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा ॥ इंदिय-पदं ४०. एतेसि णं भंते ! सइंदियाणं एगिदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं १. बंभलोए कप्पे देवा (क,ग)। Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं पंचेंदियाणं अणिदियाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेदिया विसेसाहिया, अणदिया अनंतगुणा, एगिंदिया अनंतगुणा, सइंदिया विसेसाहिया || ४१. एतेसि णं भंते ! सइंदियाणं एगिंदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचेंदियाणं अपज्जत्तगाणं' कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचेंदिया अप्पज्जत्तगा, चउरिंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, इंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसा हिया, एगिंदिया अपज्जसगा अनंतगुणा, सइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया || ४२. एते सिणं भंते ! सइंदियाणं एगिदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचेंद्रियाणं पज्जत्तगाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोमा ! सव्वत्थोवा चउरिदिया पज्जत्तगा, पंचेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, बेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, तेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिंदिया पज्जत्तगा अनंतगुणा, सइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया || ७२ ४३. एतेसि णं भंते ! सइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं' कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सइंदिया अपज्जत्तगा, सइंदिया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा || ४४. एसि णं भंते! एगिंदियाणं पज्जतापज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहु वा तुला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा एगिंदिया अपज्जत्तगा, एगिंदिया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा || ४५. सिणं भंते ! बेंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बेंदिया पज्जत्तगा, बेंदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ॥ ४६. एतेसि णं भंते ! तेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहु तुला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा तेंदिया' पज्जत्तगा, तेंदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ॥ ४७. एतेसि णं भंते ! चउरिदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा बा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा चउरिदिया पज्जत्तगा, चउरिदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा || ४८. एतेसि णं भंते ! पंचेंद्रियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहु वा तुला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्योवा पंचेंदिया पज्जत्तगा, पंचेंदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ॥ ४६. एतेसि णं भंते ! सइंदियाणं एगिंदियाणं बेंदियाणं तेंदियाणं चउरिदियाणं ३. इंदिया (क, ख, ग, घ ) । १. अपज्जत्तगाणं ( ख ); अपज्जत्ताणं (घ ) । २. पज्जत्ता २ णं ( क ) ; पज्जत्ताणं २ ( ग ) | Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं बहुवत्तन्वयपयं पंचेंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा चरिदिया पज्जत्तगा, पंचेंदिया पज्जत्तगा विसेसा हिया, बेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, पंचेंदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, चउरिंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, बेंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, एगेंदिया अपज्जत्तगा अणंतगुणा, सइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिदिया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सइंदिया विसेसाहिया ॥ काय-पदं ५०. एतेसि णं भंते ! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सतिकाइयाणं तसकाइयाणं अकाइयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा तसकाइया, तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, अकाइया अणंतगुणा, वणस्सइकाइया अणंतगुणा, सकाइया विसेसाहिया ॥ ५१. एतेसि णं भंते ! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सतिकाइयाणं तसकाइयाण य अपज्जत्तगाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा तसकाइया अपज्जत्तगा, तेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, आउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, वाउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, वणस्सइकाइया' अपज्ज त्तगा अणंतगुणा, सकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया ॥ ५२. एतेसि णं भंते ! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सइकाइयाणं तसकाइयाण य पज्जत्तगाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा, तेउकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, आउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, वाउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, वणस्सइकाइया' पज्जत्तगा अणंतगुणा, सकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया ॥ ५३. एतेसि णं भंते ! सकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तूल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सकाइया अपज्जत्तगा, सकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा। ५४. एतेसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पुढविकाइया अपज्जत्तगा, • पुढविकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा। ५५. एतेसि णं भंते ! आउकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा आउकाइया अपज्जत्तगा, आउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ॥ १. वणप्फइ° (क,घ)। २. वणप्फइ (क,घ)। Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं ५६. एतेसि णं भंते ! तेउकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा तेउकाइया अपज्जत्तगा, तेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा || ७४ ५७. एतेसि णं भंते! वाउकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा वाउकाइया अपज्जत्तगा, वाउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ॥ ५८. एतेसि णं भंते ! वणस्सइकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा वणस्सइकाइया अपज्जत्तगा, वणस्सइकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा || ५६. एतेसि णं भंते! तसकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा || ६०. एतेसि णं भंते ! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सइकाइयाणं तसकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, तेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, आउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, वाउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, तेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, पुढविकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, आउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, वाउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, वणस्सइकाइया अपज्जत्तगा अतगुणा, 'सकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया", वणस्सतिकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, 'सकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सकाइया विसेसाहिया " || ६१. एतेसि णं भंते ! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं सुहुम आउकाइयाणं सुहुमतेउकाइयाणं हुवा उकाइयाणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं सुहुमणिओयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया, सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुमआउकाइया विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया विसेसाहिया, सुमनिगोदा असंखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सइकाइया अनंतगुणा, सुहुमा विसेसाहिया || ६२. एतेसि णं भंते ! सुहुमअपज्जत्तगाणं सुहुमपुढविकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमआउकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमते उकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमवाउकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमवणस्स - काइयापज्जत्तयाणं सुहुमणिगोदापज्जत्तयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया अपज्जत्तया, सुहुमपुढविकाइया १२. मलयगिरिवृत्तौ 'सकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया सकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सकाइया विसेसाहिया,' एतानि त्रीणि पदानि व्याख्यातानि नैव दृश्यते इन्द्रियद्वारपदे 'सईदिया अपज्जतगा विसेसाहिया, सइंदिया पज्जतगा विसेसाहिया, सइंदिया विसेसाहिया,' एतानि पदानि दृश्यन्ते, अत्रापि एतानि युक्तान्ये व । ३. वणफइ (क, घ) | Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं बहुवत्तन्वयपयं ७५ अपज्जत्तया विसेसाहिया, सुहुमआउकाइया अपज्जत्तया विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया अपज्जत्तया विसेसाहिया, सुहुम निगोदा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा अणंतगुणा, सुहमा अपज्जत्तगा विसेसाहिया ॥ ६३. एतेसि णं भंते ! सुहुमपज्जत्तगाणं सुहुमपुढविकाइयपज्जत्तगाणं सुहुमआउकाइयपज्जत्तगाणं सुहुमतेउकाइयपज्जत्तगाणं सुहुमवाउकाइयपज्जत्तगाणं सुहुमवणस्सइकाइयपज्जत्तगाणं सुहुमनिगोदपज्जत्तगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा सूहमतेउकाइया पज्जत्तगा, सुहमपूढविकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमआउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमणिओया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्तगा अणंतगुणा, सुहुमा पज्जत्तगा विसेसाहिया ॥ ६४. एतेसि णं भंते ! सुहुमाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहुमा अपज्जत्तगा, सुहुमा पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ॥ ६५. एतेसि णं भंते ! सुहमपुढविकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहुमपुढविकाइया अपज्जत्तगा, सुहुमपुढविकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ।। ६६. एतेसि णं भंते ! सुहमआउकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहुमआउकाइया अपज्जत्तया, सुहमआउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ॥ ६७. एतेसि णं भंते ! सुहुमते उकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया अपज्जत्तया, सुहुमतेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ॥ ६८. एतेसि णं भंते ! सुहुमवाउकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहुमवाउकाइया अपज्जत्तया, सुहुमवाउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ॥ ६६. एतेसि णं भंते ! सुहुमवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा सुहुमवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा, सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ॥ ७०. एतेसि णं भंते ! सुहमनिगोदाणं पज्जत्तापज्जत्तागं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहुमनिगोदा अपज्जत्तगा, सुहुमनिगोदा पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ॥ ७१. एतेसि णं भंते ! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं सुहुमआउकाइयाणं सुहुमतेउकाइयाणं सुहुमवाउकाइयाणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं सुहुमनिगोदाण य पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहमतेउकाइया आज्जत्तगा, सुहुमपुढविकाइया आज्जतगा विसेसाहिया, सुहुमआउकाइया Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणवणात्तं अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमते काइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमपुढविकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमआउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमनिगोदा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमनिगोदा पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा अणंतगुणा, सुहुमा अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, हुमा पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहमा विसेसाहिया || ७२. एतेसि णं भंते ! वादराणं बादरपुढविकाइयाणं बादरआउकाइयाणं बादरतेकाइयाणं बादरवाउकाइयाणं बादरवणस्सइकाइयाणं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयाणं बादरनिगोदाणं बादरतसकाइयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरतसकाइया, बादरा तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा, बादरा निगोदा असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया असंखेज्जगुणा, बादरवणस्सइकाइया अनंतगुणा, वादरा विसेसाहिया || ७३. एतेसि णं भंते ! बादर अपज्जत्तगाणं बादरपुढविकाइयअपज्जत्तगाणं बादरआउकाइयअपज्जत्तगाणं बादरते उकाइयअपज्जत्तगाणं बादरवाउका इयअपज्जत्तगाणं बादरवणस्सइकाइयअपज्जत्तगाणं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयअपज्जत्तगाणं बादरनिगोदापज्जत्तगाणं बादरतसकाइयापज्जत्तागाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरतसकाइया अपज्जत्तगा, बादरतेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरनिगोदा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, वादरपुढविकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा अनंतगुणा, बादरा अपज्जत्तगा विसेसाहिया || ७४. एतेसि णं भंते ! बादरपज्जत्तयाणं वादरपुढविकाइयपज्जत्तयाणं बादरआउकाइयपज्जत्तयाणं बादरतेउकाइयपज्जत्तयाणं बादरवाउकाइयपज्जत्तयाणं बादरवणस्सइकाइयपज्जत्तयाणं पत्तेयसरीरबादरवणस्स इकाइयपज्जत्तयाणं बादर निगोदपज्जत्तयाणं बादरतसकाइयपज्जत्तयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया AT ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरते उक्काइया पज्जत्तया, बादरतसकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरवादरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरनिगोदा पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा अनंतगुणा, वादरा पज्जत्तया विसेसाहिया || ७५. एतेसि णं भंते ! वादराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं' कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरा पज्जत्तगा, बादरा अप्पज्जता असंखेज्जगुणा ॥ १. पज्जत्तापज्जत्तयाणं ( ख ) । ७६ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं बहुबत्तन्वयपयं ७६. एतेसि णं भंते ! बादरपुढविकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरपुढविकाइया पज्जत्तगा, बादरपुढविकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा॥ ७७. एतेसि णं भंते ! बादरआउकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरआउकाइया पज्जत्तगा, बादरआउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ॥ ७८. एतेसि णं भंते ! बादरतेउकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरतेउकाइया पज्जत्तगा, बादरतेउक्काइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ॥ ७९. एतेसि णं भंते ! वादरवाउकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसा हिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा वादरवाउकाइया पज्जत्तगा, बादरवाउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगूणा ।। ५०. एतेसि णं भंते ! वादरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा, बादरवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ॥ ८१. एतेसि णं भंते ! पत्तेयसरीरवादरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ॥ ८२. एतेसि णं भंते ! बादरनिगोदाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरनिगोदा पज्जत्तगा, बादरनिगोदा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ।।। ८३. एतेसि णं भंते ! बादरतसकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा बादरतसकाइया पज्जत्तगा, बादरतसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा॥ ८४. एतेसि णं भंते ! बादराणं बादरपुढविकाइयाणं वादरआउकाइयाणं बादरतेउकाइयाणं बादरवाउकाइयाणं बादरवणस्सइकाइयाणं पत्तयसरीरबादरवणस्सइकाइयाणं बादरनिगोदाणं वादरतसकाइयाण य पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरतेउकाइया पज्जत्तगा, बादरतसकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, वादरतसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया' पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरनिगोदा पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरतेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरवादरवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरनिगोदा १. बादरपत्तेयसरीरवण (क,ग); बादरपत्तेयवण (ख,घ) । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा अणंतगृणा, बादरपज्जत्तगा विसेसाहिया, बादरवणस्सइकाइया अपज्ज तगा असंखेज्जगुणा, बादरअपज्जत्तगा विसेसाहिया, बादरा विसेसाहिया ॥ ८५. एतेसि णं भंते ! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं सुहुमआउकाइयाणं सुहुमतेउकाइयाणं सुहुमवाउकाइयाणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं सुहुमनिगोदाणं बादराणं बादरपुढविकाइयाणं बादरआउकाइयाणं बादरतेउकाइयाणं बादरवाउकाइयाणं बादरवणस्सइकाइयाणं पत्तेयसरीरबादरवण्णस्सइकाइयाणं वादरनिगोदाणं बादरतसकाइयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरतसकाइया, बादरतेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा, बादरनिगोदा असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया असंखेज्जगुणा, सुहुमतेउकाइया असंखेज्जगुणा सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुमआउकाइया विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया विसेसाहिया, सुहुम निगोदा असंखेज्जगुणा, बादरवणस्सइकाइया अणंतगुणा, बादरा विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा, सुहुमा विसेसाहिया॥ ८६. एतेसि णं भंते ! सुहुमअपज्जत्तयाणं सुहुमपुढविकाइयाणं अपज्जत्तगाणं सुहुमआउकाइयाणं अपज्जत्तयाणं सुहुमतेउकाइयाणं अपज्जत्तयाणं सुहुमवाउकाइयाणं अपज्जत्तयाणं सुहमवणस्सइकाइयाणं अपज्जत्तगाणं सहमणिगोदापज्जत्तयाणं बादरअपज्जत्तयाणं' 'बादरपुढविकाइयाणं अपज्जत्तयाणं" बादरआउकाइयाणं अपज्जत्तयाणं बादरतेउकाइयाणं अपज्जत्तयाणं बादरवाउकाइयाणं अपज्जत्तयाणं बादरवणस्सइकाइयाणं अपज्जत्तयाणं पत्तयसरीरबादरवणस्सइकाइयाणं अपज्जत्तयाणं बादरणिगोदाणं अपज्जत्तयाणं बादरतसकाइयाणं अपज्जत्तयाणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरतसकाइया अपज्जत्तगा, बादरतेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरणिगोदा अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरआउक्काइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सहमतेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमपुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहमआउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहमनिगोदा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा अणंतगुणा, बादरा अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमा अपज्जत्तगा विसेसाहिया ॥ ८७. एतेसि णं भंते ! सुहुमपज्जत्तयाणं सुहुमपुढविकाइयपज्जत्तयाणं सुहुमआउकाइयपज्जत्तयाणं सुहुमतेउकाइयपज्जत्तयाणं सुहुमवाउकाइयपज्जत्तयाणं सुहुमवणस्सइकाइयपज्जत्तयाणं सुहुमनिगोयपज्जत्तयाणं बादरपज्जत्तयाणं बादरपुढविकाइयपज्जत्तयाणं बादर१. बादरापज्जत्तयाणं (क,ख)। बादरपुढविकाइयअपज्जत्तयाणं (ग)। २. बादरपुढविकाइयापज्जत्तयाणं (ख,घ): Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इयं बहुवत्तव्वयपयं ०६ आउकाइयपज्जत्तयाणं वादरतेउकाइयपज्जत्तयाणं बादरवाउकाइयपज्जत्तयाणं बादरवणस्सइकाइयपज्जत्तयाणं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयपज्जत्तयायं बादरनिगोदपज्जत्तयाणं बादरतसकाइयपज्जत्तयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहया वा तल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरतेउकाइया पज्जत्तगा, बादरतसकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरनिगोदा पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, सुहुमतेउकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगूणा, सूहमपुढविकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया, सूहमआउकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया, सुहुमनिगोदा पज्जत्तया असंखेज्जगुणा , बादरवणस्सइकाइया पज्जत्तया अणंतगुणा, बादरा पज्जत्तया विसेसाहिया, सुहमवणस्सइकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगणा, सहमा पज्जत्तया विसेसाहिया ॥ ८८. एएसिणं भंते ! सूहमाणं बादराण य पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरा पज्जत्तगा, बादरा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमा अपज्जत्तगा असंखज्जगुणा, सुहुमा पज्जत्तगा संखेज्जगुणा॥ ८६. एएसि णं भंते ! सुहुमपुढविकाइयाणं बादरपुढविकाइयाण य पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरपुढविकाइया पज्जत्तगा, बादरपुढविकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, सुहुमपुढविकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, सुहुमपुढविकाइया पज्जत्तया संखेज्जगुणा ॥ १०. एएसि णं भते ! सूहमआउकाइयाण बादरआउकाइयाण य पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहया वा तल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरआउकाइया पज्जत्तया, बादरआउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, सुहमआउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, सुहुमआउकाइया पज्जत्तया संखेज्जगुणा ॥ ६१. एएसि णं भंते ! सुहुमतेउकाइयाणं बादरतेउकाइयाण य पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरतेउकाइया पज्जत्तगा, बादरतेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमतेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमतेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा॥ ६२. एएसि णं भंते ! सुहुमवाउकाइयाणं बादरवाउकाइयाण य पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरवाउकाइया पज्जत्तया, बादरवाउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, सुहमवाउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, सुहुमवाउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ॥ ६३. एएसि णं भंते ! सुहमवणस्सतिकाइयाणं बादरवणस्सतिकाइयाण य पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरवणस्सइकाइया पज्जत्तया, बादरवणस्सतिकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, कुसुमवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्तया Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं संखेज्जगुणा ॥ १४. एतेसि णं भंते ! सुहुमनिगोदाणं बादरनिगोदाण य पज्जत्तापज्जत्ताणं कतरे कतरे हितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसा हिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरनिगोदा पज्जत्तगा, बादरनिगोदा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुम निगोदा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमनिगोदा पज्जत्तगा संखेज्जगुणा॥ ६५. एएसि णं भंते ! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं सुहुमआउकाइयाणं सुहुमतेउकाइयाणं सुहुमवाउकाइयाणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं सुहुमनिगोदाणं बादराणं वादरपुढविकाइयाणं बादरआउकाइयाणं बादरतेउकाइयाणं बादरवाउकाइयाणं बादरवणस्सतिकाइयाणं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयाणं बादरनिगोदाणं बादरतसकाइयाण य पज्जत्ता पज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरतेउकाइया पज्जत्तया, बादरतसकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरतसकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, बादरनिगोदा पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, बादरतेउक्काइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरणिगोया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, बायरआउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, बादरवा उकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, सुहुमतेउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, सुहमपुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमआउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया अपज्जत्तया विसेसाहिया, सुहुमतेउकाइया पज्जत्तया संखेज्जगुणा', सुहुमपुढविकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहमआउकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया, सुहमवाउकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया, सुहुमनिगोदा अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, सुहु मनिगोदा पज्जत्तया संखेज्जगुणा, बादरवणस्सइकाइया पज्जत्तया अणंतगुणा, बादरपज्जत्तगा विसेसाहिया, वादरवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बादरअपज्जत्तया विसेसाहिया, वादरा विसेसाहिया, सुहुमवणस्सतिकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमा अपज्जत्तया विसेसाहिया, सहमवणस्सतिकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगणा, सहमा पज्जत्तया विसेसाहिया. सहमा विसेसाहिया ॥ जोग-पदं ६६. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सजोगीणं मणजोगीणं वइजोगीणं कायजोगीणं अजोगीण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा मणजोगी, वइजोगी असंखेज्जगुणा, अजोगी अणंतगुणा, कायजोगी अणंतगुणा, सजोगी विसेसाहिया ॥ १. असंखेज्जगुणा (ख,घ,पु); तत: सूक्ष्मपर्याप्ता- (मव); स्तबके 'असंख्यातगुणा' इति व्यास्तेजस्कायिकाः संख्येयगुणाः सूक्ष्मेष्वपर्याप्ते- ख्यातमस्ति । असौ व्याख्यावृत्तेभिन्नास्ति । भ्यः पर्याप्तानामोघत एव संख्येयगुणत्वात् Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१ तइयं बहुवत्तन्वयपयं वेद-पदं ६७. एएसि णं भंते ! जीवाणं सवेदगाणं इत्थीवेदगाणं पुरिसवेदगाणं नसगवेदगाणं अवेदगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसा हिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा पुरिसवेदगा, इत्थीवेदगा संखेज्जगुणा, अवेदगा अणंतगुणा, नपुंसगवेदगा अणंतगुणा, सवेयगा विसेसाहिया ।। कसाय-पदं ८. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सकसाईणं' कोहकसाईणं माणकसाईणं मायकसाईणं लोभकसाईणं अकसाईण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा अकसाई, माणकसाई अणंतगुणा, कोहकसाई विसेसाहिया, मायकसाई विसेसाहिया, लोहकसाई विसेसाहिया, सकसाई विसेसाहिया ।। लेस्सा -पदं ___EE. एएसि णं भंते ! जीवाणं सलेस्साणं' किण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साणं तेउलेस्साणं पम्हलेस्साणं सुक्कलेस्साणं अलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा सूक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा संखेज्जगुणा, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा, अलेस्सा अणंतगुणा, काउलेस्सा अणंतगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, किण्हलेस्सा विसेसाहिया, सलेस्सा विसेसाहिया । सम्मत्त-पदं १००. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सम्मद्दिट्ठीणं मिच्छट्ठिीणं' सम्मामिच्छादिट्ठीणं च कतरे कतरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा सम्मामिच्छदिट्ठी, सम्मद्दिट्ठी अणंतगुणा, मिच्छद्दिट्ठी अणंतगुणा ॥ णाण-पदं १०१. एतेसि णं भंते ! जीवाणं अभिणि बोहियणाणीणं सुतणाणीणं ओहिणाणीणं मणपज्जवणाणीणं केवलणाणीण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सवत्थोवा जीवा मणपज्जवणाणी, ओहिणाणी असंखेज्जगुणा, आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी य दो वि तुल्ला विसेसायिा, केवलणाणी अणंतगुणा ।। १०२. एतेसि णं भंते ! जीवाणं मइअण्णाणीणं सुतअण्णाणीणं विभंगणाणीण' य कतरे कतरेहितो अप्पा व बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा विभंगणाणी, मइअण्णाणी सुतअण्णाणी य दो वि तुल्ला अणंतगुणा ॥ १०३. एतेसि णं भंते ! जीवाणं आभिणिवोहियणाणीणं सुयणाणीणं ओहिणाणीणं मणपज्जवणाणीणं केवलणाणीणं मतिअण्णाणीणं सुतअण्णाणीणं विभंगणाणीण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा मणपज्जवणाणी, ओहिणाणी असंखेज्जगुणा, आभिणिबोहियणाणी सुतणाणी य दो वि १. सकसादी (क)। ४. सम्ममिच्छादिट्ठीणं (क); सम्मामिच्छ° (घ)। २. सलेसाणं (क,ख,घ)। ५. विहंग° (क,ग,घ)। ३. मिच्छा' (ग)। Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं तुल्ला विसेसाहिया, विभंगणाणी असंखेज्जगुणा, केवलणाणी अनंतगुणा, मइअण्णाणी सुतअण्णाणी य दो वितुल्ला अनंतगुणा ॥ दंसण-पदं ८२ १०४. एतेसि णं भंते ! जीवाणं चक्खुदंसणीणं अचक्खुदंसणीणं ओहिदंसणीणं केवलदंसणीण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा ओहिदंसणी, चक्खुदंसणी असंखेज्जगुणा, केवलदंसणी अनंतगुणा, अचक्खुदंसणी अनंतगुणा || संजय-पदं १०५. एतेसि णं भंते ! जीवाणं संजयाणं असंजयाणं संजयासंजयाणं नोसंजयनोअसंजय-नोसंजता संजताण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा संजता, संजयासंजया असंखेज्जगुणा, नोसंजत-नोअसंजतनोसंजताजता अनंतगुणा, असंजता अनंतगुणा ॥ उवओग-पदं १०६. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सागरोवउत्ताणं अणागारोवउत्ताण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा अणागारोवउत्ता, सागरोवउत्ता संखेज्जगुणा ॥ आहार - पर्द १०७. एतेसि णं भंते! जीवाणं आहारगाणं अणाहारगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा अणाहारगा, आहारगा असंखेज्जगुणा ॥ मासग-पदं १०८. एतेसि णं भंते ! जीवाणं भासगाणं अभासगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा भासगा, अभासगा अतगुणा ॥ परित पदं १०६. एतेसि णं भंते ! जीवाणं परित्ताणं अपरित्ताणं नोपरित्त-नोअपरित्ताण य कतरे कतर्हितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा परित्ता, नोपरित- नोअपरित्ता अनंतगुणा, अपरित्ता अनंतगुणा ॥ पज्जत्त-पदं ११०. एएसि णं भंते ! जीवाणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं नोपज्जत्त-नो अपज्जत्ताण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा नोपज्जत्त-नो अपज्जत्तगा, अपज्जत्तगा अणंतगुणा, पज्जत्तगा संखेज्जगुणा || सुहुम-पदं १११. एएसि णं भंते! जीवाणं सुहुमाणं बादराणं नोसुहुम-नोबादराण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं बहुवत्तव्वयपयं नोसुहुम-नोबादरा, बादरा अणंतगुणा, सुहुमा असंखेज्जगुणा ॥ सण्णि -पदं ११२. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सण्णीणं असण्णीणं नोसण्णी-नोअसण्णीण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा सण्णी, नोसण्णी-णोअसण्णी अणंतगुणा, असण्णी अणंतगुणा ।। भव-पदं ११३. एतेसि णं भंते ! जीवाणं भवसिद्धियाणं अभव सिद्धियाणं नोभवसिद्धियणोअभवसिद्धियाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा अभवसिद्धिया, नोभवसिद्धिय-णोअभवसिद्धिया अणंतगुणा, भवसिद्धिया अणंतगुणा ॥ अस्थिकाय-पदं ११४. एतेसि णं भंते ! धम्मत्थिकाय-अधम्मत्थिकाय-आगासत्थिकाय-जीवत्थिकायपोग्गलत्थिकाय'-अद्धासमयाणं दव्वट्ठयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए य एए तिण्णि वि तुल्ला दव्वट्ठयाए सव्वत्थोवा, जीवत्थिकाए दव्वट्ठयाए अणंतगुणे, पोग्गलत्थिकाए दव्वट्ठयाए अणंतगुणे', अद्धासमए दव्वट्ठयाए अणंतगुणे ॥ ११५. एतेसि णं भंते ! धम्मत्थिकाय-अधम्मत्थिकाय-आगासत्थिकाय-जीवत्थिकायपोग्गलत्थिकाय-अद्धासमयाणं पदेसट्ठयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए य एते णं दो वि तुल्ला पदेस?याए सव्वत्थोवा, जीवत्थिकाए पदेसट्टयाए अणंतगुणे, पोग्गलत्थिकाए पदेसट्टयाए अणंतगुणे, अद्धासमए पदेसट्टयाए अणंतगुणे, आगासत्थिकाए पदेसट्टयाए अणंतगुणे ॥ ११६. एतस्स णं भंते ! धम्मत्थिकायस्स दव्वट्ठ-पदेसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवे एगे धम्मत्थिकाए दव्वट्ठताए, से चेव पदेसट्ठताए असंखेज्जगुणे ॥ ११७. एतस्स णं भंते ! अधम्मत्थिकायस्स दव्वट्ठ-पदेसट्ठताए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवे एगे अधम्मत्थिकाए दव्वट्ठताए, से चेव पदेसट्ठताए असंखेज्जगुणे ॥ ११८. एतस्स णं भंते ! आगासत्थिकायस्स दव्वट्ठ-पदेसट्ठताए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे एगे आगासत्थिकाए दव्वट्ठताए, से चेव पदेसट्टताए अणंतगुणे ॥ ११६. एतस्स णं भंते ! जीवत्थिकायस्स दव्वट-पदेसटूताए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे जीवत्थिकाए दव्वट्ठयाए, से चेव पदेसट्ठताए असंखेज्जगुणे ॥ ___ १२०. एतस्स णं भंते ! पोग्गलत्थिकायस्स दव्वट्ठ-पदेसटुताए कतरे कतरेहितो अप्पा १. पुग्गलत्थि° (क)। २. अणंतगुणा (क,ख)। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासु वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे पोग्गल त्थिकाए दव्वट्टयाए, से चेव पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणे ॥ ८४ १२१. अद्धासमए ण पुच्छिज्जइ पदेसाभावा ॥ १२२. एतेसि णं भंते ! धम्मत्थिकाय - अधम्मत्थिकाय - आगासत्थिकाय जीवत्थिकायपोग्गलत्थिकाय-अद्धासमयाणं दव्वट्ट-पदेसट्टताए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए य एते णं तिणि वि तुल्ला दव्वट्टयाए सव्वत्थोवा, धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए य एते णं दोणि वि तुल्ला पदेसता असंखेज्जगुणा, जीवत्थिकाए दव्वट्टयाए अनंतगुणे से चेव पदेसताए असंखेज्जगुणे, पोग्गलत्थिकाए दव्वट्टयाए अनंतगुणे से चेव पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणे, अद्धासमए 'दव्वट्ट-पदेसट्टयाए" अनंतगुणे, आगासत्थिकाए पएसट्टयाए अनंतगुणे ॥ चरिम-पदं १२३. एतेसि णं भंते ! जीवाणं चरिमाणं अचरिमाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा अचरिमा, चरिमा अनंतगुणा ।। जीव-पदं १२४. एसि णं भंते ! जीवाणं पोग्गलाणं अद्धासमयाणं सव्वदव्वाणं सव्वपदेसाणं सव्वपज्जवाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा, पोग्गला अनंतगुणा, अद्धासमया अनंतगुणा, सव्वदव्वा विसेसाहिया, सव्वपदेसा अनंतगुणा, सव्वपज्जवा अनंतगुणा ॥ खेत्त-पदं १२५. खेत्ताणुवाणं सव्वत्थोवा जीवा उड्ढलोय - तिरियलोए, अहेलोय- तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा, अलोए विसेसाहिया || १२६. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा नेरइया तेलोक्के, अहेलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए असंखेज्जगुणा ॥ १२७. खेत्ताणुवाणं सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणिया उडलोय - तिरियलोए, अहेलोयतिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए' विसेसाहिया || १२८. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाओ तिरिखखजोणिणीओ उड्ढलोए, उड्ढलोयतिरियलोए असंखेज्जगुणाओ, तेलोक्के संखेज्जगुणाओ, अहेलोय - तिरियलोए संखेज्जओ, असंखेज्जगुणाओ, तिरियलोए संखेज्जगुणाओ || १. दव्वट्टयाए ( ख ) ; पूर्वसूत्रे 'पदेसाभावा' इति उल्लिखितमस्ति तेन 'अपदेसट्टयाए' इति पाठः सम्भाव्यते । अत्र अकारो लुप्तो दृश्यः । क्वचिद् 'दव्वट्ट-अपदेसट्टयाए' इति पाठोप लभ्यते । २. अहो लोए ( ग ); अधेलोए (घ ) ; प्राय: सर्वत्र । Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं बहुवत्तव्वयपयं १२६. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा मणुस्सा तेलोक्के, उड्ढलोय-तिरियलोए असंखेज्जगणा, अहेलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणा, उड्ढलोए संखेज्जगुणा, अधेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगुणा ।। १३०. खेत्ताणुवाएणं सब्वत्थोवाओ मणस्सीओ तेलोक्के, उड्ढलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणाओ, अहेलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणाओ, उड्ढलोए संखेज्जगुणाओ, अहेलोए संखेज्जगुणाओ, तिरियलोए संखेज्जगुणाओ।। १३१. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा देवा उड्ढलोए, उड्ढलोय-तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के संखेज्जगुणा, अहेलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगणा॥ १३२. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाओ देवीओ उड्ढलोए, उड्ढलोय-तिरियलोए असंखेज्जगुणाओ, तेलोक्के संखेज्जगुणाओ, अहेलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणाओ, अहेलोए संखेज्जगुणाओ, तिरियलोए संखेज्जगुणाओ॥ १३३. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा भवणवासी देवा उड्ढलोए, उड्ढलोय-तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के संखेज्जगुणा, अहेलोय-तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए असंखेज्जगुणा ॥ १३४. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाओ भवणवासिणीओ देवीओ उड्ढलोए, उड्ढलोयतिरियलोए असंखेज्जगुणाओ, तेलोक्के संखेज्जगुणाओ, अहेलोय-तिरियलोए असंखेज्जगुणाओ, तिरियलोए असंखेज्जगुणाओ, अहेलोए असंखेज्जगुणाओ॥ १३५. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वाणमंतरा देवा उड्ढलोए, उड्ढलोय-तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के संखेज्जगुणा, अहेलोय-तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगुणा ॥ १३६. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाओ वाणमंतरीओ देवीओ उड्ढलोए, उड्ढलोयतिरियलोए असंखेज्जगणाओ, तेलोक्के संखेज्जगणाओ, अहेलोय-तिरियलोए असंखेज्जगुणाओ, अहेलोए संखेज्जगुणाओ, तिरियलोए संखेज्जगुणाओ ।। १३७. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा जोइसिया देवा उड्ढलोए, उड्ढलोय-तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के संखेज्जगुणा, अहेलोय-तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए असंखेज्जगुणा ॥ १३८. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाओ जोइसिणीओ देवीओ उड्ढलोए, उड्ढलोयतिरियलोए असंखेज्जगुणाओ, तेलोक्के संखेज्जगुणाओ, अहेलोय-तिरियलोए असंखेज्जगुणाओ, अहेलोए संखेज्जगुणाओ, तिरियलोए असंखेज्जगुणाओ॥ १३६. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वेमाणिया देवा उड्ढलोय-तिरियलोए, तेलोक्के संखेज्जगुणा, अहेलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा ।। १४०. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाओ वेमाणिणीओ देवीओ उड्ढलोय-तिरियलोए, तेलोक्के संखेज्जगुणाओ, अहे तोय तिरियलोए संवेजगु गाओ, अहेलोए संखेज्जगुणाओ, Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ तिरियलोए संखेज्जगुणाओ, उड्ढलोए असंखेज्जगुणाओ || १४१. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा एगिदिया जीवा उड्ढलोय - तिरियलोए, अहेलोयतिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया || १४२. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा एगिदिया जीवा अपज्जत्तगा उडलोय - तिरियलोए, अहेलोय - तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोव के असंखेज्जगुणा, उड्डलए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया || पण्णवणासुतं १४३. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा एगिंदिया जीवा पज्जत्तगा उड्डलोय - तिरियलोए, अहेलोय - तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जागुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया || १४४. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा बेइंदिया उडलोए, उड्डलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, अहेलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगुणा ॥ १४५. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा बेइंदिया अपज्जत्तया उड्ढलोए, उड्डलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, अहेलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगुणा || १४६. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा बेंदिया पज्जत्तया उड्ढलोए, उड्डलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुण', तेलोवके असंखेज्जगुणा, अहेलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगुणा || १४७. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा तेइंदिया उडलोए, उड्डलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, अहेलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगुणा || १४८. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा तेइंदिया अपज्जत्तगा उड्ढलोए, उड्डलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, अहेलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगुणा ॥ १४६. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा तेइंदिया पज्जत्तगा उड्डलोए, उड्डलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, अहेलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगुणा || १५०. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा चउरिंदिया जीवा उड्ढलोए, उड्डलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, अहेलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगुणा || १५१. खेत्ताणुवाणं सव्वत्थोवा चउरिदिया जीवा अपज्जत्तगा उड्डलोए, उड्डलोयतिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, अहेलोय-तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलो संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगुणा ॥ १५२. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्योवा चउरिदिया जोत्रा पज्जतथा उडलोए, उड्डलोय Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इयं बहुवत्तव्वयपयं तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, अहेलोय - तिरियलोए असंखेज्जगुणा, अहेलो संखेज्जगुणा, तिरियलोए संखेज्जगुणा ॥ १५३. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा पंचिदिया तेलोक्के, उड्डलोय - तिरियलोए संखेज्जगुणा, अहेलोय - तिरियलोए संखेज्जगुणा, उड्ढलोए संखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए असंखेज्जगुणा ॥ ५७ १५४. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा पंचिदिया अपज्जत्तया तेलोक्के, उड्डलोय- तिरियलोए संज्जगुणा, अहेलोय - तिरियलोए संखेज्जगुणा, उड्डलोए संखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए असंखेज्जगुणा || १५५. खेत्ताणुवाणं सव्वत्थोवा पंचिदिया पज्जत्तया उडलोए, उड्डलोय- तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के संखेज्जगुणा, अहेलोय - तिरियलोए संखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए असंखेज्जगुणा || १५६. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा पुढविकाइया उडलोय - तिरियलोए अहेलोय - तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अलोए विसेसाहिया || १५७. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा पुढविकाइया अपज्जत्तया उड्ढलोय - तिरियलोए, अहेलोय - तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया || १५८. खेत्ताणुवाणं सव्वत्योवा पुढविकाइया पज्जत्तया उड्ढलोय - तिरियलोए, अहेलोय - तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया || १५६. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा आउकाइया उड्ढलोय - तिरियलोए, अहेलोय - तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा, अलोए विसेसाहिया || १६०. खेत्ताणुवाणं सव्वत्योवा आउकाइया अपज्जत्तया उड्ढलोय - तिरियलोए, अहेलोय - तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया || १६१. खेत्ताणुवारणं सव्वत्थोवा आउकाइया पज्जत्तया उड्डलोय तिरियलोए, अहेलोयतिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया || १६२. खेत्ताणुवाणं सव्वत्थोवा तेउकाइया उड्डलोय - तिरियलोए, अहेलोयतिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलाए असंवेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया || १६३. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्योवा तेउकाइया अपज्जत्तया उडलोय तिरियलोए, अहेलोय - तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियताएं असं बेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्ज गुणा, उड्डलए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया ॥ १६४. जे ताजुवाएगं सत्यावा ते उक्काया पज्जता उड्डलोय - तिरियलोए, Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ पण्णवणासुतं अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया ॥ १६५. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वाउकाइया उड्डलोय-तिरियलोए, अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया ॥ १६६. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वाउकाइया अपज्जत्तया उड्डलोय-तिरियलोए, अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड़लोए असंखेज्जगणा, अहेलोए विसेसाहिया ।। १६७. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वाउकाइया पज्जत्तया उड्डलोय-तिरियलोए, अहेलोयतिरियलोए विसेसा हिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया ॥ १६८. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वणस्सइकाइया उड्डलोय-तिरियलोए, अहेलोयतिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया ।। १६९. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वणस्सइकाइया अपज्जत्तया उड्डलोय-तिरियलोए, अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया । १७०. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वणस्सइकाइया पज्जत्तया उड्डलोय-तिरियलोए, अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया ॥ * १७१. खेत्ताणवाएणं सव्वत्थोवा तसकाइया तेलोक्के, उड्डलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणा, अहेलो य-तिरियलोए संखेज्जगुण, उड्डलोए संखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए असंखेज्जगुणा ॥ १७२. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्योवा तसकाइया अपज्जत्तया तेलोक्के, उड्डलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणा, अहेलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणा, उड्डलोए संखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए असंखेज्जगुणा ॥ १७३. खेत्ताणवाएणं सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तया तेलोक्के, उडलोय-तिरियलोए असंखेज्जगणा', अहेलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणा, उड्डलोए संखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगणा, तिरियलोए असंखेज्जगुणा ।। बंध-पद १७४. एतेसि णं भंते ! जीवाणं आउयस्स कम्मस्स बंधगाणं अबंधगाणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं सुत्ताणं जागराणं समोहयाणं असमोहयाणं सातावेदगाणं असातावेदगाणं इंदियउवउत्ताणं नोइंदियउवउत्ताणं सागारोवउत्ताणं अणागारोव उत्ताण य कतरे कतरेहितो इति पदं शुद्धं न प्रतिभाति । १. संखेज्जगुणा (क,ग); 'इमानि पंचेन्द्रियसूत्रवद् भावनीयानि' इति वृत्त्युल्लेखेन 'संखेज्जगुणा' Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं बहुक्त्तव्वयपयं ८६ अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा आउयस्स कम्मस्स बंधगा, अपज्जत्तया संखेज्जगुणा, सुत्ता संखेज्जगुणा, समोहता संखेज्जगुणा, सातावेदगा संखेज्जगुणा, इंदिओवउत्ता संखेज्जगुणा, अणागारोवउत्ता संखेज्जगुणा, सागारोवउत्ता संखेज्जगुणा, नोइंदियउवउत्ता विसेसाहिया, अस्सातावेदगा' विसेसाहिया, असमोहता विसेसाहिया, जागरा विसेसाहिया, पज्जत्तया विसेसाहिया, आउयस्स कम्मस्स अबंधगा विसेसाहिया ॥ पोग्गल-पदं १७५. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा पोग्गला तेलोक्के, उडलोय-तिरियलोए अणंतगुणा, अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया ।। १७६. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा पोग्गला उड्ढदिसाए, अहेदिसाए विसेसाहिया, उत्तरपरत्थिमेणं दाहिणपच्चत्थिमेण य दो वि तल्ला असंखेज्जगणा, दाहिणपरत्थिमेणं उत्तरपच्चत्थिमेण य दो वि तुल्ला विसेसाहिया, पुरथिमेणं असंखेज्जगुणा, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया । १७७. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाइं दव्वाइं तेलोक्के, उड्डलोय-तिरियलोए अणंतगुणाई, अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहियाई, उड्डलोए असंखेज्जगुणाई, अहेलोए अणंतगुणाई, तिरियलोए संखेज्जगुणाई॥ १७८. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवाइं दव्वाइं अहेदिसाए, उड्ढदिसाए अणंतगुणाई, उत्तरपुरत्थिमेणं दाहिणपच्चत्थिमेण य दो वि तुल्लाइं असंखेज्जगुणाई, दाहिणपुरत्थिमेणं उत्तरपच्चत्थिमेण य दो वि तुल्लाइं विसेसाहियाइं, पुरत्थिमेणं असंखेज्जगुणाई, पच्चत्थिमेणं विसेसाहियाई, दाहिणणं विसेसाहियाई, उत्तरेणं विसेसाहियाई॥ १७६. एतेसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं संखेज्जपदेसियाणं असंखेज्जपदेसियाणं अणंतपदेसियाण य खंधाणं दव्वट्ठयाए पदेसट्ठयाए दव्वट्ठ-पदेसट्ठयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा अणंतपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए, परमाणुपोग्गला दब्वट्ठयाए अणंतगुणा, संखेज्जपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा; पदेसट्ठयाए - सव्वत्थोवा अणंतपदेसिया खंधा पदेसट्टयाए, परमाणुपोग्गला अपदेसट्टयाए अणंतगुणा, संखेज्जपदेसिया खंधा पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपदेसिया खंधा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा; दव्वट्ठपदेसट्टयाए-सव्वत्थोवा अणंतपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए, ते चेव पदेसट्टयाए अणंतगुणा, परमाणपोग्गला दब्वट-अपदेसट्रयाए' अणंतगणा, संखज्जपदेसिया खंधा दव्वट्रयाए संखेज्जगणा, ते चेव पदेसट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपदेसिया खंधा दवट्ठयाए असंखेज्जगुणा, ते चेव पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा ।। १८०. एतेसि णं भंते ! एगपदेसोगाढाणं संखेज्जपदेसोगाढाणं असंखेज्जपदेसोगाढाण १. असातावेदगा (ख,ग) । ३. पदेसट्टयाए (ख,ग,घ)। २. पदेसट्टयाए (ग,घ)। Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं य पोग्गलाणं दव्वट्टयाए पदेसट्टयाए दव्वट्ट -पदेसट्टयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्योवा एगपदेसोगाढा पोग्गला दब्वट्टयाए, संखेज्जपदेसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा; पएसट्टयाए - सव्वत्थोवा एगपदेसोगाढा पोग्गला पदेसट्टयाए, संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्ज एसो गाढा पोग्गला पएस ट्टयाए असंखेज्जगुणा; दव्वट्ठ-पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा एगपएसो गाढा पोग्गला दव्वट्ट-एसट्टयाए, संखेज्ज एसो गाढा पोग्गला दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा, ते चेव पएसट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपदेसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, ते चेव पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा || १८१. एते सिणं भंते! एगसमयठितीयाणं संखेज्जसमयठितीयाणं असंखेज्जसमयठितीयाण यपोग्गलाणं दव्वट्टयाए पदेसट्टयाए दव्वट्ट - पदे सट्टयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा एगसमयठितीया पोग्गला व्याए, संखेज्जसमयठितोया पोग्गला दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जसमयठितीया पोग्गला दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा ; पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा एगसमयठितीया पोग्गला अपदेसट्टयाए, संखेज्जसमयठितीया पोग्गला पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जसमयठितीया पोग्गला पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा ; दव्त्रट्ठ-पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा एगसमयठितीया पोग्गला दव्वट्ट-अपदेसट्टयाए', संखेज्जसमयठितीया पोग्गला दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा, ते चेव पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जसमयठितीया पोग्गला दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, तेव पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा ॥ ६० १८२. एतेसि णं भंते ! एगगुणकालगाणं संखेज्जगुणकालगाणं असंखेज्जगुणकालगाणं गुणकालगाण योग्गलाणं दव्वट्टयाए पदेसट्टयाए दव्वट्ट-पदेसट्टयाए कतरे कतरे हितो बहु वा तुला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! जहा परमाणुपोग्गला तहा भाणितव्वा' । एवं संखेज्जगुणकालयाण वि । एवं सेसा वि 'वण्णा गंधा रसा" भाणितव्वा । फासाणं कक्खड - मउय गरुय-लहुयाणं जहा एगपदेसोगाढाणं भणति तहा भाणितव्वं । अवसेसा फासा जहा ' वण्णा भणिता तहा भाणितव्वा ॥ महादंडय-पदं १८३. अह भंते ! सव्वजीवप्पबहुं महादंडयं वत्तइस्सामि - १. सव्वत्थोवा 'गब्भक्कं - तिया मणुस्सा', २. मणुस्सीओ संखेज्जगुणाओ, ३. बादरते उक्काइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, ४. अणुत्तरोववाइया देवा असंखेज्जगुणा, ५. उवरिमगेवेज्जगा देवा संखेज्जगुणा, ६. मज्झिगेवेज्जगा देवा संखेज्जगुणा, ७. हेट्ठिमगेवेज्जगा देवा संखेज्जगुणा, ८. • अच्चु कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ६. आरण कप्पे देवा संवेज्जगुणा, १०. पाणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ११. आणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, १२. अधेसत्तमाए पुढवीए ने रइया असंखेज्जगुणा, १. पट्टयाए (क, ख, ग, घ ) । २. प० ३।११८ । ३. वण्णगंधरसा (ख, पु) । ४. प० ३।११६ । ५. जधा (ख, घ) i ६. भाणियव्वं ( क, ख घ ) । ७. वण्णइस्सामि (हवृ ) | ८. गभवतियमणुस्सा ( क ग ) । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इयं बहुवत्तव्यपयं १३. छुट्टीए तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १४. सहस्सारे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, १५. महासुक्के कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, १६. पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १७. लंतए कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, १८. चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १६. बंभलोए कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, २० तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए ने रइया असंखेज्जगुणा, २१. माहिदे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, २२. सणकुमारे कप देवा असंखेज्जगुणा, २३. दोच्चाए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, २४. सम्मुच्छिममणस्सा असंखेज्जगुणा, २५. ईसाणे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, २६. ईसाणे कप्पे देवीओ संखेज्जगुणाओ, २७. सोहम्मे कप्पे देवा संखेज्जगुणा, २८. सोहम्मे कप्पे देवीओ संखेज्जगुणाओ, २६. भवणवासी देवा असंखेज्जगुणा, ३० भवणवासिणीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ, ३१. इमीसे रतणप्पभाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, ३२. खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया पुरिसा असंखेज्जगुणा, ३३. खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ, ३४. थलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणिया पुरिसा संखेज्जगुणा, ३५. थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ, ३६. जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया पुरिसा संखेज्जगुणा, ३७. जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ, ३८. वाणमंतरा देवा संखेज्जगुणा, ३६. वाणमंतरीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ, ४०. जोइसिया देवा संखेज्जगुणा, ४१. जोइसिणीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ, ४२. खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णपुंसया संखेज्जगुणा, ४३. थलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णपुंसया संखेज्जगुणा, ४४. जलयरपंचेंयितिरिक्खजोणिया णपुंसया संखेज्जगुणा, ४५ चउरिदिया पज्जत्तया संखेज्जगुणा, ४६. पंचेंदिया पज्जत्तया विसेसाहिया, ४७. बेइंदिया पज्जत्तया विसेसाहिया, ४८. तेइंदिया पज्जत्तया विसेसाहिया, ४६. पंचिदिया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, ५०. चउरिदिया अपज्जत्तया विसेसाहिया, ५१. तेइंदिया अपज्जत्तया विसेसाहिया, ५२. बेइंदिया अपज्जत्तया विसेसाहिया, ५३. पत्तेयसरी रवादरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ५४. बादरनिगोदा पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ५५. बादरपुढविकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ५६. बादरआउकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ५७. बादरवाउकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ५८. बादरते उकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ५६. पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ६०. बादरनिगोदा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ६१. बादरपुढविकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ६२. बादरआउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ६३. बादरवाउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ६४. सुहुमतेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ६५. सुहमपुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, ६६. सुहुमआउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, ६७. सुहुमवाउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, ६८. सुहुमतेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, ६६. सुहुमपुढविकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, ७०. सुहुमआउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, ७१. सुहुमवाउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, ७२. सुमनि गोदा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ७३. सुहुमनिगोदा पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, ७४. अभवसिद्धिया अनंतगुणा, ७५. पडिवडितसम्म द्द्द्दिट्ठी' अनंतगुणा, ७६. सिद्धा अनंत १. परिवतिसम्मत्ता (ख, पु); परिवडितसम्म (घ ) । ६१ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं गुणा, ७७. बादरवणस्स तिकाइया पज्जत्तगा अनंतगुणा, ७८. बादरपज्जत्तया विसेसाहिया, ७६. बादरवणस्सइकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, ८०. बादरअपज्जत्तगा विसेसाहिया, ८१. वादरा विसेसाहिया, ८२. सुहुमवणस्सतिकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा, ८३. सुहमा अपज्जत्तया विसेसाहिया, ८४. सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्तया संखेज्जगुणा, ८५. सुमपज्जत्तया विसेसाहिया, ८६. सुहमा विसेसाहिया, ८७ भवसिद्धिया विसेसाहिया, ८८. निगोदजीवा विसेसाहिया, ८६. वणस्सतिजीवा विसेसाहिया, १०. एगिंदिया विसेसाहिया, ε१. तिरिक्खजोणिया विसेसाहिया, ε२. मिच्छद्दिट्ठी विसेसाहिया, ६३. अविरता विसेसाहिया, ६४. सकसाई' विसेसाहिया, ६५. छउमत्था विसेसाहिया, ६६. सजोगी विसेसाहिया, ६७ संसारत्था विसेसाहिया, ६८. सव्वजीवा विसेसाहिया || २ १. सकसादी ( क ) । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठिइपयं नेरइयठिइ-पदं १. नेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं॥ __२. अपज्जत्तनेरइयाणं' भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ।। ३. पज्जत्तयणेरइयाणं' भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई॥ ४. रयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साई उक्कोसेणं सागरोवमं ॥ ५. अपज्जत्तयरयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ।। पज्जत्तयरयणप्पभापढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहणणेण दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं सागरोवमं अंतोमुहत्तणं ॥ ७. सक्करप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एगं सागरोवमं, उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाइं॥ ८. अपज्जत्तयसक्करप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ।। ६. पज्जत्तयसक्करप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमं अंतोमुत्तूणं, उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई॥ १०. वालुयप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहणणं तिण्णि सागरोवमाइं, उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई ॥ ११. अपज्जत्तयबालुयप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ १२. पज्जत्तयबालुयप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ? केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? १. अपज्जत्तनेर° (ख,ग)। २. पज्जत्तणेर° (ख,ग)। ३ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं गोयमा ! जहण्णणं तिण्णि सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई॥ १३. पंकप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं सत्त सागरोवमाइं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं॥ १४. अपज्जत्तयपंकप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।। १५. पज्जत्तयपंकप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं सत्त सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेण दस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई॥ १६. धूमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं दस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाई ।। १७. अपज्जत्तयधूमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं ॥ १८. पज्जत्तयधूमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णणं दस सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई॥ १६ तमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं सत्तरस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाइं ।। २०. अपज्जत्तयतमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ २१. पज्जत्तयतमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं सत्तरस सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई॥ २२. अहेसत्तमपुढविनेरइयाणं' भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं बावीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं॥ २३. अपज्जत्तयअहेसत्तमपुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ? जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २४. पज्जत्तयअहेसत्तमपुढविनेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं वावीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई॥ देवठिइ-पदं २५. देवाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं॥ २६. अपज्जत्तयदेवाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं १. अहेसत्तमापुढवि॰ (क); अधेसत्तमापुढवि° (ख); अधेसत्तम° (घ) । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठिइपयं १५. अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ २७. पज्जत्तयदेवाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहत्तणाइं॥ २८. देवीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाइं॥ २६. अपज्जत्तयदेवीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ ३०. पज्जत्तयदेवीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई॥ भवणवासिठिइ-पदं ३१. भवणवासीणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं सातिरेगं सागरोवमं ।। ३२. अपज्जत्तयभवणवासीणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ ३३. पज्जत्तयभवणवासीणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उवकोसेणं सातिरेगं सागरोवमं अंतोमुत्तूणं । ३४. भवणवासिणीणं भंते ! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं अद्धपंचमाइं पलिओवमाई॥ ३५. अपज्जत्तियाणं भंते ! भवणवासिणीणं देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ३६. पज्जत्तियाणं भंते ! भवणवासिणीणं देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहरसाइं अंतोमुहुत्तणाइं, उक्कोसेणं अद्धपंचमाइं पलिओवमाई अंतोमुत्तूणाई॥ ३७. असुरकुमाराणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं सातिरेगं सागरोवमं ॥ ३८. अपज्जत्तयअसुरकुमाराणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।। ३६. पज्जत्तयअसुरकुमाराणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं सातिरेगं सागरोवमं अंतोमुहत्तणं ।। ४०. असुरकुमारीणं भंते ! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं अद्धपंचमाइं पलिओवमाइं ।। ४१. अपज्जत्तियाणं असुरकुमारीणं भंते ! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ ४२. पज्जत्तियाणं असुरकुमारीणं भंते ! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं अद्धपंचमाइं पलिओवमाई Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ अंत ॥ ४३. नागकुमाराणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साईं, उक्कोसेणं दो पलिओवमाई देसूणाई ॥ पण्णवणासुतं ४४. अपज्जत्तयाणं भंते! नागकुमाराणं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ४५. पज्जत्तयाणं भंते ! नागकुमाराणं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं दो पलिओवमाई देसूणाई तू ॥ ४६. नागकुमारीणं भंते ! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं दस वाससहस्सा इं, उक्कोसेणं देणं पलिओवमं ॥ ४७. अपज्जत्तियाणं नागकुमारीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ४८. पज्जत्तियाणं नागकुमारीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं देणं पलिओ मं अंतमुत्तू ॥ ४६. सुवण्णकुमाराणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं दो पलिओवमाई देसूणाई || ५०. अपज्जत्तयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ५१. पज्जत्तयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं दो पलिओ माई देसूणाई अंतोमुहुत्तूणाई || ५२. सुवण्णकुमारीणं भंते ! देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं दस वाससह स्साई, उक्कोसेणं देणं पलिओवमं ॥ ५३. अपज्जत्तियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ५४. पज्जत्तियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं देणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं ॥ ५५. एवं एएणं अभिलावेणं ओहिय अपज्जत्त - पज्जत्तसुत्तत्तयं देवाणं देवीण य णेयव्वं जाव थणियकुमाराणं जहा ' नागकुमाराणं ॥ frano-पदं ५६. पुढविकाइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साई || ५७. अपज्जत्तयपुढ विकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ५८. पज्जत्तयपुढविकाइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई || १. प० ४।४३-४८ । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठिइपर्यं ५६. सुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ६०. अपज्जत्तयसुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणेण वि उक्कोण वि अंतमुत्तं ॥ ६१. पज्जत्तय सुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण व अंत्तं ॥ ६२. बादरपुढविकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं ॥ ६३. अपज्जत्तयबादरपुढविकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोण वि अंतमुत्तं ॥ ६४. पज्जत्तयबादरपुढविकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई | ६५. आउकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साइं || ६६. अपज्जत्तयआउकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणेण वि उक्कोसेण वि अंतोतं ६७. पज्जत्तयआउकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई ॥ ६८. सुहुमआउकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्तयाणं पज्जत्तयाण य जहा सुहुमपुढविकाइया तहा भाणितव्वं ॥ ६६. बादरआउकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साई || ७०. अपज्जत्तयबादरआउकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंत ॥ ७१. पज्जत्तयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं अंतो मुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई ॥ ७२. ते उकाइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि राति दियाई ॥ ६७ ७३. अपज्जत्तयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ७४. पज्जत्तयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि रातिदियाइं अंतोमुहुत्तूणाई ॥ ७५. सुहुमते उकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्तयाणं पज्जत्तयाण य जहण्णेण वि उक्को - अिंतमुत्तं ॥ ७६. बादरतेउकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि रातिंदियाई ॥ १. ० [ ४।५९-६१ । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ पण्णवणासुत्तं ७७. अपज्जत्तयबादरतेउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।। ७८. पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि रातिदियाइं अंतोमुत्तूणाई ।। ७६. वाउकाइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साई ।। ८०. अपज्जत्तयवाउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ८१. पज्जत्तयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई॥ ८२. सुहमवाउकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ।। ८३. अपज्जत्तयसुहुमवाउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ८४. पज्जत्तयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।। ८५. बादरवाउकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि वाससहस्साई॥ ८६. अपज्जत्तबादरवाउकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ।। ६७. पज्जत्तबादरवाउकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साई अंतोमुहत्तूणाई। ८८. वणस्सइकाइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं॥ ८६. अपज्जत्तवणस्सतिकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ६०. पज्जत्तवणस्सइकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तूणाई॥ ६१. सुहुमवणस्सइकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्ताणं पज्जत्ताण य जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ६२. बादरवणस्सइकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं॥ ६३. अपज्जत्तबादरवणस्सइकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ६४. पज्जत्तबादरवणस्सइकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई॥ बेइंदियठिइ-पदं ६५. बेइंदियाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतो Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ari forti मुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराई ॥ ६६. अपज्जत्तबे इंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ६७. पज्जत्त बेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराई अंतोमुहुत्तूणाई ॥ इंदियfor-पदं ६८. इंदियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगूणवण्णं रातिंदियाई ॥ ६६. अपज्जत्तते इंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १००. पज्जत्तते इंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंत्तोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगूणवणं रातिदियाई अंतोमुहुत्तूणाई ॥ EE चरदिठिइ-पदं १०१. चउरिदियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं अंतमुत्तं, उक्को सेणं छम्मासा ॥ १०२. अपज्जत्तयचउरिंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतो मुहुतं ॥ १०३. पज्जत्तयचउरिदियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छम्मासा अंतीमुत्तूणा ॥ पाँचदियति रिक्खजोणियठिइ-पदं १०४. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई ॥ १०५. अपज्जत्तयपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेवितोमुत्तं ॥ १०६. पज्जत्तयपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई ॥ १०७. सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी । १०८. अपज्जत्तयसम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १०९. पज्जत्तयसम्मुच्छिम पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणं अंतमुत्तं, उक्को सेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा || ११०. गब्भवक्कं तियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिओ माई || १११. अपज्जत्तयगब्भवक्कं तियपंचें दियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! वि उक्कोण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ११२. पज्जत्तयगब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणं Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० अंतमुत्तं उक्कोसेणं तिष्णि पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई ॥ ११३. जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी | ११४. अपज्जत्तयजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतमुत्तं ॥ पण्णवणासुतं ११५. पज्जत्तयजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा ॥ ११६. सम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी ॥ गोयमा ! ११७. अपज्जत्तय सम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ११८. पज्जत्तयसम्मुच्छिम जलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणं अंतमुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा ॥ ११६. गब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी ॥ १२०. अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियजलयरपंचें दियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्को सेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ _१२१. पज्जत्तयगब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा ॥ १२२. चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिओ माई ॥ १२३. अपज्जत्तयचउप्पयथलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १२४. पज्जत्तयचउप्पयथलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणं अंतमुत्तं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई || १२५. सम्मुच्छिमच उप्पयथलयरपंचें दियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चउरासीइं वाससहस्साइं ॥ १२६. अपज्जत्तयसम्मुच्छिमच उप्पयथलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गोमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ पुच्छा । १२७. पज्जत्तयसम्मुच्छिमच उप्पयथलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणे अंतमुत्तं, उक्कोसेणं चउरासीइं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई || गोयमा ! १२८. गब्भवक्कं तियच उप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा | . जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओ माई || १२९. अपज्जत्तयगब्भवक्कं तियच उप्पयथलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गोमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । पुच्छा । Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठिइपयं पुच्छा । १३०. पज्जत्तयगब्भवक्कंतियच उप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओ माई अंतोमुहुत्तूणाई || १३१. उरपरिसप्पथलयरपंचें दियतिरिक्खजोणियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी | _१३२. अपज्जत्तयउरपरिसप्पथलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १३३. पज्जत्तय उरपरिसप्पथलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा | जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा ॥ गोयमा ! १३४. " सम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा' । 'गोयमा ! जहणं अंतमुत्तं, उक्कोसेणं तेवण्णं वाससहस्साई " ॥ १३५. सम्मुच्छिम अपज्जत्तयउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गोमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ पुच्छा। १३६. पज्जत्तयसम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेवण्णं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई || १३७. गब्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी ॥ १३८. अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १४२. पज्जत्तयभुयपरिसप्पथलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा | जहणणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा || १३६. पज्जत्तयगब्भवक्कंतिय उरपरिसप्पथलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा || १४०. भुयपरिसप्पथलय रपंच दियतिरिक्खजोणियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी | १४१. अपज्जत्तयभुयपरिसप्पथलयरपंचें दियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ गोयमा ! गोयमा ! १४३. सम्मुच्छिमभुयपरिसप्पथलय रपंचे दियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साइं || १०१ १४४. अपज्जत्तयसम्मुच्छिमभुयपरिसप्पथलय रपंच दियतिरिक्खजोणियाणं गोमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ पुच्छा । १४५. पज्जत्तयसम्मुच्छिमभुयपरिसप्पथलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई || पुच्छा । पुच्छा । १. सं० पा० - सम्मुच्छिम सामण्णपुच्छा कायव्वा । २. मुनिपुण्यविजयजीद्वारासंपादिते प्रज्ञापनापाठे अस्यपूर्ति: पर्याप्तकसम्मूच्छिमस्य आधारेण अस्य पाठस्य एकस्मिन्नादर्श उपलब्धिः सूचितास्ति । कृतास्ति । Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ पण्णवणासुत्तं १४६. गब्भवक्कंतियभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी॥ १४७. अपज्जत्तयगन्भवक्कंतियभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १४८. पज्जत्तयगब्भवक्कंतियभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुत्तूणा ॥ १४६. खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो॥ १५०. अपज्जत्तयखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंत्तोमुत्तं ॥ १५१. पज्जत्तयखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो अंतोमुहुत्तूणो॥ १५२. सम्मुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावत्तरि वाससहस्साई ।। १५३. अपज्जत्तयसम्मुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १५४. पज्जत्तयसम्मुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावत्तरि वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई॥ १५५. गब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागो ।। १५६. अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ १५७. पज्जत्तयगब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं अतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो अंतोमुहत्तणो॥ मणुस्सठिइ-पदं १५८. मणुस्साणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं ।। १५६. अपज्जत्तयमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।। १६०. पज्जत्तयमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुत्तूणाई॥ १६१. सम्मुच्छिममणुस्साणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १६२. गब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठिइपयं १६३. अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १६४. पज्जत्तयगब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई॥ वाणमंतरठिइ-पदं १६५. वाणमंतराणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमं ।।। १६६. अपज्जत्तयवाणमंतराणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ १६७. पज्जत्तयवाणमंतराणं' देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं पलिओवमं अंतोमुत्तूणं ॥ १६८. वाणमंतरीणं भंते ! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं ।। १६६. अपज्जत्तियाणं भंते ! वाणमंतरीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १७०. पज्जत्तियाणं भंते ! वाणमंतरीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं ।। जोइसियठिइ-पदं १७१. जोइसियाणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं पलिओवमट्ठभागो', उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं ॥ १७२. अपज्जत्तयजोइसियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।। १७३. पज्जत्तयजोइसियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमट्ठभागो अंतोमुहुतणो, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं अंतोमुत्तूणं ॥ १७४. जोइसिणीणं भंते ! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमट्ठभागो, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासवाससहस्समब्भहियं ॥ १७५. अपज्जत्तियाणं जोइसिणीणं पुच्छा। गोयम ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १७६. पज्जत्तियाणं जोइसिणीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं पलिओवमट्ठभागो अंतोमुत्तूणो, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं अंतोमुहुत्तूणं ॥ १७७. चंदविमाणे णं भंते ! देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं ॥ १७८. चंदविमाणे णं भंते ! अपज्जत्तयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि १. पज्जत्तयाणं वाणमंतराणं (ख,ग,घ)। २. सातिरेगं अट्ठभागपलिओवमं (अणुओगदाराई सू० ४३३ टिप्पण) । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं ।। १७६. चंदविमाणे णं पज्जत्तयदेवाणं' पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं अंतोमुत्तूणं ।। १८०. चंदविमाणे णं भंते ! देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्से हिमब्भहियं ॥ १८१. चंदविमाणे णं भंते ! अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।। १८२. चंदविमाणे णं भंते ! पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुहत्तणं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं अंतोमुहुत्तूणं ॥ १८३. सूरविमाणे णं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं. उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्समब्भहियं ॥ १८४. सूरविमाणे अपज्जत्तयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १८५. सूरविमाणे पज्जत्तयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुहत्तणं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्समब्भहियं अंतोमुहुत्तूणं ।। १८६. सूरविमाणे देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहि वाससतेहिमब्भहियं ॥ १८७. सूरविमाणे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १८८. सूरविमाणे पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससतेहिं अब्भहियं अंतोमुहत्तणं ॥ १८६. गहविमाणे देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवम, उक्कोसेणं पलिओवमं ॥ १६०. गहविमाणे अपज्जत्तयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १९१. गहविमाणे पज्जत्तयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतोमूहत्तणं, उक्कोसेणं पलिओवमं अंतोमुहत्तणं ।। १६२. गहविमाणे देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णणं चउभागपलिओवम, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं ॥ १६३. गहविमाणे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ १६४. 'गहविमाणे पज्जत्तियाणं" देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलि १. पज्जत्तयाणं देवाणं (क)। २. आदर्शेष पज्जत्तियाणं गहविमाणे' इति पाठो दृश्यते । प्रस्तुतक्रमावलोकनेन सम्भाव्यते लिपिकाले पदविपर्ययो जातः । Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठिइपयं १०५ ओवमं अंतोमुहत्तणं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं अंतोमुत्तूणं ।। १६५. णक्खत्तविमाणे देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं चउभागपलिओवम, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं ।। १६६. णक्खत्तविमाणे अपज्जत्तयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १६७. णक्खत्त विमाणे पज्जत्तयदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णणं चउभागपलिओवम अंतोमुत्तूणं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं अंतोमुहत्तूणं ॥ १६८. णक्खत्तविमाणे देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवम, उक्कोसेणं सातिरेगं चउभागपलिओवमं ।। १६६. णक्खत्तविमाणे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २००. णक्खत्तविमाणे पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुहत्तणं, उक्कोसेणं सातिरेगं चउभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तणं ॥ २०१. ताराविमाणे देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं चउभागपलिओवमं ॥ ___ २०२. ताराविमाणे अपज्जत्तयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २०३. ताराविमाणे पज्जत्तयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहत्तणं, उक्कोसेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं ।।। २०४. ताराविमाणे देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगं अट्ठभागपलिओवमं ।। २०५. ताराविमाणे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं ॥ २०६. ताराविमाणे पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं सातिरेगं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं ॥ वेमाणियठिइ-पदं २०७. वेमाणियाणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं पलिओवम, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई।। २०८. अपज्जत्तयवेमाणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।। २०६. पज्जत्तयवेमाणियाणं' पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमं अंतोमुहत्तूणं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहत्तणाई॥ २१०. वेमाणिणीणं भंते ! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं पलिओवम, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाइं॥ १. पज्जत्तयाणं वेमाणियाणं (ख,घ)। Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ पण्णवणासुत्तं २११. अपज्जत्तियाणं वेमाणिणीणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ २१२. पज्जत्तियाणं वेमाणिणीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाइं अंतोमुहत्तूणाई॥ २१३. सोहम्मे णं भंते ! कप्पे देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं॥ २१४. सोहम्मे कप्पे अपज्जत्तयदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २१५. सोहम्मे कप्पे पज्जत्तयदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णणं पलिओवमं अंतोमुहत्तणं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई ।। २१६. सोहम्मे कप्पे देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं पलिओवमं, उक्कोसेणं पण्णासं पलिओवमाइं॥ २१७. सोहम्मे कप्पे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २१८. सोहम्मे कप्पे पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं पलिओवम अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं पण्णासं पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई॥ २१६. सोहम्मे कप्पे परिग्गहियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाइं ॥ २२०. सोहम्मे कप्पे परिग्गहियाणं अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । २२१. सोहम्मे कप्पे परिग्गहियाणं पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। २२२. सोहम्मे कप्पे अपरिग्गहियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं पलिओवमं, उक्कोसेणं पण्णासं पलिओवमाइं॥ २२३. सोहम्मे कप्पे अपरिग्गहियाणं अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २२४. सोहम्मे कप्पे अपरिग्गहियाणं पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं पण्णासं पलिओवमाई अंतोमुत्तूणाई ।। २२५. ईसाणे कप्पे देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सातिरेगं पलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगाइं दो सागरोवमाई॥ २२६. ईसाणे कप्पे अपज्जत्तयाणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ २२७. ईसाणे कप्पे पज्जत्तयाणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सातिरेगं पलिओवमं अंतोमुत्तूणं, उक्कोसेणं सातिरेगाइं दो सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई॥ २२८. ईसाणे कप्पे देवीणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सातिरेगं पलिओवमं, Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चत्थं ठिइपयं उक्को सेणं पणपण्णं पलिओवमाई || २२. ईसा कप्पे 'अपज्जतियाणं देवीणं" पुच्छा । गोयमा ! जहणणेण वि उक्कोसेण वितोमुत्तं ॥ २३०. ईसाणे कप्पे पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सातिरेगं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई || २३१. ईसाणे कप्पे परिग्गहियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं सातिरेगं पलिओवमं, उक्कोसेणं णव पलिओवमाई ॥ २३२. ईसाणे कप्पे परिग्गहियाणं अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २३३. ईसाणे कप्पे परिग्गहियाणं पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा ! गोयमा ! जहणेणं सातिरेगं पलिओवमं अंतोमुहुतूणं, उक्कोसेणं नव पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई || २३४. ईसा कप्पे अपरिग्गहियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सातिरेगं पलिओवमं, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाई ॥ २३५. ईसाणे कप्पे अपरिग्गहियाणं अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २३६. ईसाणे कप्पे 'अपरिग्गहियाणं पज्जत्तियाणं देवीणं" पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं सातिरेगं पलि ओवमं अंतोमुहुत्तूगं उक्कोसेगं पणपण्णं पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई ॥ २३७. सणकुमारे कप्पे देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं दो सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई ॥ २३८. सणकुमारे कप्पे अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण विअंतोतं २३६. सणकुमारे कप्पे पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं दो सागरोवमाई अंतमुत्तूगाई, उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई || २४०. माहिंदे कप्पे देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सातिरेगाई दो सागरोवमाई, उक्को सेणं सत्त साहियाई सागरोवमाई || २४१. माहिंदे अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतमुत्तं ॥ १०७ २४२. माहिदे पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सातिरेगाई दो सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्को सेणं सातिरेगाई सत्त सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई ॥ २४३. बंभलोए कप्पे देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं सत्त सागरोवमाई, उक्को सेणं दस सागरोवमाई ॥ २४४. बंभलोए अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १. देवीणं अपज्जतियाणं ( क, ख, ग, घ ) । २. देवीणं पज्जत्तियाणं (ख, घ); देवीनं अपरिगहियाणं पज्जत्तियाणं ( ग ) । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ पण्णवणासुत्तं २४५. बंभलोए पज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सत्त सागरोवमाइं अंतोमुहुतूणाई, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई ।। २४६. लंतए कप्पे देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णणं दस सागरोवमाई, उक्कोसेणं चोद्दस सागरोवमाइं॥ २४७. लंतए अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमूहत्तं ।। २४८. लंतए पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं दस सागरोवमाइं अंतोमुहुतूणाई, उक्कोसेणं चोद्दस सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई ।। २४६. महासुक्के देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं चोद्दस सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाइं॥ २५०. महासुक्के अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ २५१. महासुक्के पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं चोद्दस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। २५२. सहस्सारे देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सत्तरस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं॥ २५३. सहस्सारे अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २५४. सहस्सारे पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सत्तरस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई ॥ २५५. आणए देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठारस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाइं। २५६. आणए अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २५७. आणए पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं अट्ठारस सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई॥ २५८. पाणए कप्पे देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगूणवीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमाई। २५६. पाणए अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २६०. पाणए पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णणं एगूणवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई॥ २६१. आरणे देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं वीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एगवीसं सागरोवमाइं॥ २६२. आरणे अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि १. एकूणवीसं (क,घ); एक्कूणवीसं (ख)। २. एककवीसं (क,ख) । Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठिइपयं अंतमुत्तं ॥ २६३. आरणे पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं वीसं सागरोवमाइं अंतमुत्तूणाई, उक्कोसेणं एगवीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई || २६४. अच्चुए कप्पे देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं एगवीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई || २६५. अच्चुए अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २६६. अच्चुए पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं एगवीसं सागरोवमाई अंतमुत्तूणाई, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई || २६७. हेट्ठिमहेट्ठिमगे वेज्जगदेवाणं' पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई, उक्को सेणं तेवीसं सागरोवमाई || १०६ २६८. हेट्ठिमहेट्ठिमअपज्जत्तदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतं ॥ २६. ट्टि द्विमज्जत्तदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई, अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई || २७०. हेट्टिममज्झिमवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं तेवीसं सागरोवमाइं उक्को सेणं चउवीसं सागरोवमाई ॥ २७१. हेट्टिममज्झिमअपज्जत्तयदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतमुत्तं ॥ २७२. हेट्टिममज्झिमवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणेणं तेवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं चउवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई ॥ २७३. हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं चउवीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं पणुवीसं सागरोमाई ॥ २७४. हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं ॥ २७५. हेट्टिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं चउवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं पणुवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई || २७६. मज्झिम हेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं पणुवीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं छव्वीसं साग रोवमाई ॥ २७७. मज्झिमट्ठिमगे वेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २७८. मज्झिमट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं पणुवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं छठवीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई ॥ ३. पंचवीसं (ख, घ); पणवीसं ( ग ) । १. . गेवेज्जदेवाणं ( क, ख ) 1 २. पंचवीसं ( क,ख,ग,घ ) । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० पण्णवणासुतं २७६. मज्झिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं छव्वीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं॥ २८०. मज्झिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ २८१. मज्झिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं छव्वीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई ॥ २८२. मज्जिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाई ।। २८३. मज्झिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।। २८४. मज्झिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई। २८५. उवरिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एगूणतीसं सागरोवमाई ॥ २८६. उवरिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २८७. उवरिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं एगूणतीसं सागरोवमाइं अंतोमुहत्तणाइं॥ २८८. उवरिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं एगूणतीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाई ॥ २८६. उवरिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ २६०. उवरिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगूणतीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहत्तूणाई॥ २६१. उवरिमउवरिमगवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं तीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं॥ २६२. उपरिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ २६३. उवरिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं एवक्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई॥ २६४. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजिएसु णं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहण्णणं एक्कतीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं॥ २६५. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ।। २६६. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोदमाइं अंतोमुत्तूणाई।। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं ठिइपयं १११ २९७. सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं' भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ।। २६८. सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ २६६. सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं पज्जत्ताणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहत्तूणाई ठिती पण्णता ।। १. सव्वट्ठगसिद्धदेवाणं (ख); सव्वट्ठगसिद्धगदेवाणं (घ)। Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जव-पदं तं १. कतिविहाणं भंते ! पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पज्जवा पण्णत्ता, - जीवपज्जवा य अजीवपज्जवा य ॥ जहा जीवपज्जव-पदं २. जीवपज्जवा णं भंते ! कि संखेज्जा असंखेज्जा अनंता ? गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता ॥ पंचमं विसेसपयं ३. सेकेणणं भंते ! एवं वुच्चति - जीवपज्जवा नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता ? गोयमा ! असंखेज्जा नेरइया, असंखेज्जा असुरा, असंखेज्जा णागा, असंखेज्जा सुवण्णा, असंखेज्जा विज्जुकुमारा, असंखेज्जा अग्गिकुमारा, असंखेज्जा दीवकुमारा, असंखेज्जा उदहिकुमारा, असंखेज्जा दिसाकुमारा, असंखेज्जा वाउकुमारा, असंखेज्जा थणियकुमारा, असंखेज्जा पुढविकाइया, असंखेज्जा आउकाइया, असंखेज्जा तेउकाइया, असंखेज्जा वाउकाइया, अनंता वणस्सइकाइया, असंखेज्जा बेइंदिया, असंखेज्जा तेइ दिया, असंखेज्जा चउरिदिया, असंखेज्जा पंचिदियतिरिक्खजोणिया, असंखेज्जा मणुस्सा, असंखेज्जा वाणमंतरा, असंखेज्जा जोइसिया, असंखेज्जा वेमाणिया, अनंता सिद्धा, से एएट्ठे गोयमा ! एवं वच्चति - ते णं नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता ॥ नेरइयाणं पज्जव - पदं ४. नेरइयाणं भंते ! केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ ५. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति - नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! नेरइए नेरइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए सिए हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए - जदि' हीणे असंखेज्जभागहीणे' वा संखेज्जभागहीणे' वा संखेज्जगुणहीणे वा असंखेज्जगुणही वा । अह अब्भहिए असंखेज्जभागमब्भहिए' वा संखेज्जभागमब्भहिए' वा १. जइ ( ख, ग, घ ) जति (पु) । ३. संखेज्जदिभाग (क); २. असंखेज्जइभाग (क, ग, घ, पु); अग्रेपि क्वचित् क्वचित् 'असंखेज्जइ संखेज्जइ' इति पाठान्तरं दृश्यते । संखेज्जइभाग ११२ (ग, घ,पु) । ४. असंखेज्जभागन्भहिए ( ख. घ, पु) । ५. संखेज्जभागन्भहिए (ख, घ, पु) । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं विसेसपयं ११३ संखेज्जगुणमब्भहिए वा असंखेज्जगुणमब्भहिए वा। ठिईए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए-जइ हीणे असंखेज्जभागहीणे वा संखेज्जभागहीणे वा संखेज्ज गुणहीणे वा असंखेज्जगुणहीणे वा । अह अब्भहिए असंखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जगुणमब्भहिए वा असंखेज्जगुणमब्भहिए वा । कालवण्णपज्जवेहिं सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए'--जदि होणे अणंतभागहीणे वा असंखेज्जभागहीणे वा संखेज्जभागहीणे वा संखेज्जगुणहीणे वा असंखेज्जगुणहीणे वा अणंतगुणहीणे वा । अह अब्भहिए अणंतभागमब्भहिए वा असंखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जगुणमन्भहिए वा असंखेज्जगुणम्भहिए वा अणंतगुणमब्भहिए वा। णीलवण्णपज्जवेहिं लोहियवण्णपज्जवेहि हालिद्दवण्णपज्जवेहिं' सुक्किलवण्णपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए । सुब्भिगंधपज्जवेहि दुब्भिगंधपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए । तित्तरसपज्जवेहिं कडुयरसपज्जवेहिं कसायरसपज्जवेहि अंबिलरसपज्जवेहिं महुररसपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए । कक्खडफासपज्जवेहिं मउयफासपज्जवेहि गरुयफासपज्जवेहिं लहुयफासपज्जवेहिं सीयफासपज्जवेहिं उसिणफासपज्जवेहिं निद्धफासपज्जवेहिं लुक्खफासपज्जवेहिं य छट्ठाणवडिए। आभिणिवोहियणाणपज्जवेहि सुयणाणपज्जवेहिं ओहिणाणपज्जवेहिं मतिअण्णाणपज्जवेहि सुयअण्णाणपज्जवेहि विभंगणाणपज्जवेहिं चक्खुदंसणपज्जवेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहिं ओहिदसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। से एएणठेणं' गोयमा ! एवं वुच्चति-नेरइयाणं नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता पज्जवा पण्णत्ता ।। भवणवासीणं पज्जव-पदं ६. असुरकुमाराणं भंते ! केवतिया पज्जवा पण्णता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता॥ ७. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-असुरकुमाराणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! असुरकुमारे असुरकुमारस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए । ठितीए चउट्ठाणवडिए'। कालवण्णपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए । एवं णीलवण्णपज्जवेहि लोहियवण्णपज्जवेहिं हालिढवण्णपज्जवेहिं सुक्किलवण्णपज्जवेहि', सुब्भिगंधपज्जवेहि दुब्भिगंधपज्जवेहिं, तित्तरसपज्जवेहि कडुयरसपज्जवेहिं कसायरसपज्जवेहि अंबिलरसपज्जवेहि महुररसपज्जवेहि, कवखडफासपज्जवेहि मउयफासपज्जवेहि गरुयफासपज्जवेहि लहुयफासपज्जवेहि सीतफासपज्जवेहि उसिणफासपज्जवेहि निद्धफासपज्जवेहि लुक्खफासपज्जवेहि, आभिणिबोहियणाणपज्जवेहि सुतणाणपज्जवेहि ओहिणाणपज्जवेहि, मतिअण्णाणपज्जवेहि सुतअण्णाणपज्जवेहिं विभंगणाणपज्जवेहि, चक्खुदंसणपज्जवेहि अचक्खुदंसणपज्जवेहि ओहिदसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-असुरकुमाराणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता॥ १. मब्भहिए (ख,घ,पु)। २. अब्भइए (क); अब्भतिए (पु) । ३. पीयवण्ण (क,ख) । ४. मधुर° (क,ख)। ५. एणडेणं (क,ख,ग)। ६. °पडिए (क)। ७. सुक्किल्ल° (ग,पु)। Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ पण्णवणासुतं ८. एवं जहा नेरइया जहा' असुरकुमारा तहा नागकुमारा वि जाव थणियकुमारा ॥ एग दियाणं पज्जव-पदं ६. पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ १०. सेकेणट्ठेणं भंते ! एवं बुच्चति - पुढविकाइयाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! पुढविकाइए पुढविकाइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए- जदि हीणे असंखेज्जभागहीणे वा संखेज्जभागहोणे वा संखेज्जगुणहीणे वा असंखेज्जगुणहीणे वा । अह अब्भहिए असंखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्जगुणअब्भहिए वा असंखेज्जगुणअब्भहिए वा । ठितीए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए- जदि हीणे असंखेज्जभागहीणे वा संखेज्जभागहीणे वा गुणही वा । अह अन्भहिए असंखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्जगुणअब्भहिए वा । वण्णेहिं गंधे हि रसेहिं फासेहि, मतिअण्णाणपज्जवेहिं सुयअण्णाणपज्जवेहि अचक्खदंसणपज्जवेहिं छट्टाणवडिते ॥ ११. आउकाइयाणं भंते! केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ १२. सेकेणट्ठे भंते ! एवं वच्चति - आउकाइयाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता गोयमा ! आउकाइए आउकाइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए तिट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रस फास-मतिअण्णाण सुतअण्णाणअक्खुदंसणपज्जवेहिय छट्टाणवडिते ॥ १३. ते उकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ १४. से केणट्ठणं भंते! एवं वच्चति - तेउकाइयाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! ते काइए तेउकाइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए चाणवडिते । ठितीए तिट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रस- फास-मतिअण्णाण सुयअण्णाणअचक्खुदंसणपज्जवेहिय छट्ठाणवडिते ॥ १५. वाउकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! वाउकाइयाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ १६. सेकेणट्ठणं भंते ! एवं वच्चति-वाउकाइयाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! वाउकाइए वाउकाइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए चाणवते । ठितीए तिट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रस - फास - मतिअण्णाण सुयअण्णा - अचक्खुदंसणपज्जवैहि य छट्टाणवडिते ।। १७. वणस्सइकाइयाणं भंते ! केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ १८. सेकेणट्ठे भंते ! एवं वृच्चति-वणस्सइकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता गोयमा ! वणस्सइकाइए वणस्सइकाइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणठ्ठया चउट्ठाणवडिते । ठितीए तिट्ठाणवडिए । वण्ण-गंध-रस - फास-मतिअण्णाण १. तहा ( क ) । Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं विसेसपयं सुयअण्णाण अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्टाणवडिते । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चतिवणस्सतिकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ विगल दियाणं पज्जव पदं १६. बेइं दियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ २०. से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चति बेइंदियाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोमा ! बेइदिए बेइंदियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अन्भहिए -- जति हीणे असंखेज्जभागहीणे वा संखज्जभागहीणे वा संखेज्जगुणहीणे वा असंखेज्जगुणहीणे वा । अह अन्भहिए असंखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जगुणमब्भहिए वा असंखेज्जगुणमब्भहिए वा । ठितीए तिट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रस फास आभिणिबोहियणाण - सुतणाण- मतिअण्णाण - सुतअण्णाणअचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्टा वडिते । २१. एवं इंदिया वि । एवं चउरिंदिया वि, णवरं - दो दंसणा - चक्खुदंसणं rai || पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जव-पदं - ११५ २२. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जवा जहा' नेरइयाणं तहा भाणितव्वा ॥ मस्साणं पज्जव-पदं २३. मणुस्साणं भंते! केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता || २४. सेकेणट्ठणं भंते ! एवं वच्चति - मणुस्साणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! मणुस्से मणुस्सस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पएसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणडुयाए चावडते । ठिती चउट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रस- फास आभिणि बोहियणाण-सुतणाणओहिणाण-मणपज्जवणाणपज्जवेहि य छट्टाणवडिते । केवलणाणपज्जवेहि तुल्ले । तिहि अण्णा तिहिं दंसणेहि छट्टाणवडिते । केवलदंसणपज्जवेहि तुल्ले ।। वाणमंतराणं पज्जव-पदं २५. वाणमंतरा ओगाहणट्टयाए ठितीए य चउट्ठाणवडिया, वण्णादीहिं afsa || जाइ सिय-वेमाणियाणं पज्जव पदं २६. जोइसिय-वेमाणिया वि एवं चेव, णवरं-ठितीए तिट्ठाणवडिता ॥ ओगाहणाई पडुच्च नेरइयाणं पज्जव-पदं २७. जहणोगाहणगाणं भंते! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ २८. सेकेणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चति - जहण्णोगा हणगाणं नेरइयाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णोगाणए नेरइए जहण्णोगाहणगस्स नेरइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए तुल्ले । ठितीए चउट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रस- फास १. प० ५।४, ५ । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं पज्जवेहि तिहिं णाणेहि तिहिं अण्णाणेहि तिहिं दंसणेहि य छट्टाणवडिते॥ २६. उक्कोसोगाहणयाणं भंते ! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता॥ 30. से कणटणं भंते ! एवं वच्चति- उक्कोसोगाहणयाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! उक्कोसोगाहणए नेरइए उक्कोसोगाहणगस्स नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्टयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए--जति हीणे असंखेज्जभागहीणे वा संखेज्जभागहीणे वा। अह अब्भहिए असंखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्जभागअब्भहिए वा। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहि तिहि णाणेहिं तिहि अण्णाणेहि तिहिं दंसणेहि छट्ठाणवडिते ।। ३१. अजहण्णुक्कोसोगाहणगाणं भंते ! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता । ३२. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-अजहण्णुक्कोसोगाहणगाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अजहण्णुक्कोसोगाहणए नेरइए अजहण्णुक्कोसोगाहणगस्स नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए सिए हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए-जति हीणे असंखेज्जभागहीणे वा संखेज्जभागहीणे वा संखेज्जगुणहीणे वा असंखेज्जगुणहीणे वा । अह अब्भहिए असंखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्जगुणअब्भहिए वा असंखेज्जगुणअब्भहिए वा। ठितीए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए-जति हीणे असंखेज्जभागहीणे वा संखेज्जभागहीणे वा संखेज्जगुणहीणे वा असंखेज्जगुणहीणे वा। अह अब्भहिए असंखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्जगुणअब्भहिए वा असंखेज्जगुणअब्भहिए वा। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं तिहिं णाणेहिं तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिते। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-अजहण्णुक्कोसोगाहणगाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता। ३३. जहण्ण द्वितीयाणं भंते ! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता॥ ३४. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जहण्ण द्वितीयाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णट्टितीए नेरइए जहण्ण ट्ठितीयस्स नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए च उट्ठाणवडिते। ठितीए तुल्ले। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं तिहिं णाणेहिं तिहिं अण्णाणेहि तिहि राणेहि य छट्ठाणवडिते॥ ३५. एवं उक्कोसद्वितीए वि। अजहण्णमणुक्कोसद्वितीए' वि एवं चेव, णवरंसट्टाणे चउट्ठाणवडिते ॥ ३६. जहण्णगुणकालल्याणं भंते ! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। ३७. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-जहण्णगुणकालयाण नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णगुणकालए नेरइए जहष्णगुणकालगस्स नेरइयस्स १. अजहष्णुक्कोस (घ,पु)। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं विसेसपयं ११७ दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए चउढाणवडिते। ठितीए चउढाणवडिते । कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले । अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहि तिहिं णाणेहि तिहि अण्णाणेहिं तिहि दंसणेहि य छढाणवडिते । से तेणट्ठणं गोयमा ! एवं वुच्चतिजहण्णगुणकालयाण नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ।। ३८. एवं उक्कोसगुणकालए वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, णवरंकालवण्णपज्जवेहि छट्ठाणवडिते ॥ ३६. एवं अवसेसा चत्तारि वण्णा दो गंधा पंच रसा अट्र फासा भाणितवा॥ ४०. जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं भंते ! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता॥ ४१. से केणटठेणं भंते ! एव वच्चति- जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णाभिणिबोहियणाणी नेरइए जहाणाभिणिबोहियणाणिस्स नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते। ठितीए चउढाणवडिते । वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते। आभिणिवोहियणाणपज्जवेहिं तुल्ले। सुतणाण-ओहिणाणपज्जवेहि छट्ठाणवडिते। तिहिं दंसणेहि छट्ठाणवडिते॥ ४२. एवं उक्कोसाभिणिबोहियणाणी वि। अजहण्णमणुक्कोसाभिणिबोहियणाणी वि एवं चेव, नवरं-आभिणिवोहियणाणपज्जवेहिं सट्टाणे छट्ठाणवडिते ।। ४३. एवं सुतणाणी ओहिणाणी वि, णवरं-जस्स णाणा तस्स अण्णाणा णत्थि । जहा नाणा तहा अण्णाणा वि भाणितव्वा, नवरं--जस्स अण्णाणा तस्स नाणा न भवंति ।। ४४. जहण्णचक्खदंसणीणं भंते ! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता॥ ___४५. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चति जहण्णचक्खुदंसणीणं ने रइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णचक्खुदंसणी णं नेरइए जहण्णचक्खुदंसणिस्स नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए च उट्ठाणवडिते । ठितीए चउट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं तिहिं णाणेहिं तिहिं अण्णाणेहि छट्टागवडिते। चक्खुदंसणपज्जवेहिं तुल्ले । अचक्खुदंसणपज्जवेहिं ओहिदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते॥ ४६. एवं उक्कोसचक्खुदंसणी वि। अजहण्णमणुक्कोसचक्खुदंसणी वि एवं चेव, नवरं-सट्ठाणे छट्ठाणवडिते ।। ४७. एवं अचक्खुदंसणी वि ओहिदसणी वि ।। ओगाहणाई पडुच्च भवणवासीणं पज्जव-पदं ४८. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! असुरकुमाराणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता॥ ४६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-जहण्णोगाहणगाणं असुरकुमाराणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णोगाहणए असुरकुमारे जहण्णोगाहणगस्स असुरकुमारस्स १. ओधिनाण° (पु)। Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ पण्णवणासुत्तं दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठायाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए तुल्ले । ठितीए चउट्ठाणवडिते । वण्णादीहिं छट्ठाणवडिते। आभिणिबोहियणाण-सूतणाण-ओहिणाणपज्जवेहिं तिहिं अण्णाणेहिं दसणेहि य छट्ठाणवडिते । ५०. एवं उक्कोसोगाहणए वि । एवं अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए' वि, नवरंउक्कोसोगाहणए वि असुरकुमारे ठितीए चउट्ठाणवडिते ।। ५१. एवं जाव' थणियकुमारा॥ ओगाहणाइं पड़च्च एगिदियाणं पज्जव-पदं ५२. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! पुढविकाइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ।। ५३. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति -जहण्योगाहणगाणं पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णोगाहणए पुढविकाइए जहण्णोगाहणगस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए तिढाणवडिते। वण्णगंध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं अण्णाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते ।। ५४. एवं उक्कोसोगाहणए वि । अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, नवरं-- सट्टाणे चउट्ठाणवडिते ॥ ५५. जहण्णट्ठितीयाणं भंते ! पुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ ५६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-जहण्णद्वितीयाणं पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णठितीए पुढविकाइए जहण्णठितीयस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते। ठितीए तुल्ले । वण्णगंध-रस-फासपज्जवेहिं मतिअण्णाण-सुतअण्णाण-अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्टाणवडिते ।। ५७. एवं उक्कोसट्टितीए वि । अजहण्णमणुक्कोसट्टितीए वि एवं चेव, णवरं-सट्ठाणे तिढाणवडिते ।। ५८. जहण्णगुणकालयाणं भंते ! पुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ।। ५६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-जहण्णगुणकालयाणं पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णगुणकालए पुढविकाइए जहण्णगुणकालगस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्ठयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते। ठितीए तिढाणवडिते । कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले । अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहि छट्ठाणवडिते। दोहिं अण्णाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते॥ ६०. एवं उक्कोसगुणकालए वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, णवरंसट्ठाणे छट्ठाणवडिते॥ ६१. एवं पंच वण्णा दो गंधा पंच रसा अट्ठ फासा भाणितव्वा ।। १. अणुककोमजहष्णोगाहणए (ख) । ग्रहणं तथा शेषभवनवासिनिकायानां ग्रहणं च २. अनावसदेत अपुरकुभारालापके स्थित्यादीनां जायते । Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं विसेसपयं ११६ ६२. जहणमतिअण्णाजीणं भंते ! पुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता || ६३. से केणट्ठणं भंते ! एवं वच्चति - जहण्णमतिअण्णाणीणं पुढविकाइयाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णमतिअण्णाणी पुढविकाइए जहण्णमतिअण्णाणिस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए तिट्ठाणafडिते । वण्ण-गंध-रस- फासपज्जवेहिं छट्टाणवडिते । मतिअण्णाणपज्जवेहिं तुल्ले | सुअण्णाणपज्जवे हि अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्टाणवडिते ।। ६४. एवं उक्कोसमतिअण्णाणी वि । अजहण्ण मणुवको समतिअण्णाणी वि एवं चेव, नवरं - सट्टाणे छट्टाणवडिते । ६५. एवं सुअण्णाणी वि । अवक्खुदंसणी वि एवं चेव ॥ ६६. एवं जाव वणस्सइकाइयाणं || ओगाहणाई पडुच्च वर्गांल दियाणं पज्जव-पदं ६७. जहण्णोगाहणगाणं भंते! बेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता || ६८. से केणट्ठेणं भंते! एवं वच्चति - जहण्णोगाहणगाणं बेइंदियाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णोगाहणए बेइदिए जहण्णोगाहणगस्स इंदियस्स दव्वयाए तुल्ले । पसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए तुल्ले । ठितीए तिट्ठाणवडिते । वण-गंधरस-फासपज्जवेहिं दोहिं णाणेहि दोहि अण्णाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्टाणवडिते । ६९. एवं उक्कोसोगाहणए वि, णवरं - णाणा णत्थि । अजहण्णमणुक्को सोगाहणए जहा जहणोगाहणए, णवरं- सट्टाणे ओगाहणाए चउट्ठाणवडिते । ७०. जहण द्वितीयाणं भंते! बेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ ७१. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वच्चति जहण्णद्वितीयाणं बेइंदियाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णद्वितीए बेइदिए जहण्णद्वितीयम्स बेइंदियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए चउद्वाणवडिते । ठितीए तुल्ले । वण्ण-गंध-रस- फासपज्जवेहि अण्णा अक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्टाणवडिते ॥ ७२. एवं उक्कोसतीए वि, णवरं--दो णाणा अब्भहिया । अजहण्णमणुक्को सट्ठितीए जहा उक्कोद्विती, वरं -ठितीए तिट्ठाणवडिते ॥ ७३. जहण्णगुणकालयाणं बेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ ७४. से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चति -- जहण्णगुणकालयाणं बेइंदियाणं अत पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णगुणकालए बेइदिए जहण्णगुणकालयस्स बेइंदियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए तिट्ठाणवडिते । कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले । अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस - फासपज्जवेहि दोहिं णाणेहि दोहि अण्णाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्टाणवडिते ।। ७५. एवं उक्को सगुणकालए वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, णवरंसट्टाछट्टas | Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ७६. एवं पंच वण्णा दो गंधा पंच रसा अट्ट फासा भाणितव्वा ।। ७७. जण्णाभिणिबोहियणाणीणं भंते! बेंदियाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ पण्णवणात्तं ७८. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहण्णाभिणिवोहियणाणी बेइं दिए जहणाभिणिबोहियणाणिस्स बेइंदियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । परसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणयाए उट्टाणवडिते । ठितीए तिट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रस - फासपज्जवेहिं छट्टाणवडिते । आभिणिबोहियणाणपज्जवेहि तुल्ले । सुयणाणपज्जवेहिं छट्टाणवडिते । अचक्खुदंसणपज्जवेहिं afsa || ७६. एवं उक्कोसाभिणिवोहियणाणी वि । अजहण्ण मणुक्कोसाभिणिवोहियणाणी वि एवं चेव, णवरं - सट्ठाणे छट्टाणवडिते ॥ ८०. एवं सुतणाणी वि, सुतअण्णाणी वि, मतिअण्णाणी वि, अचक्खुदंसणी वि, णवरं जत्थ णाणा तत्थ अण्णाणा णत्थि, जत्थ अण्णाणा तत्थ णाणा णत्थि । जत्थ दंसणं तत्थ णाणा वि अण्णाणा वि ॥ ८१. एवं इंदियाण वि । चरिदियाण वि एवं चेव, णवरं - चक्खुदंसणं अब्भहियं ॥ ओगाहणाई पडुच्च पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जव-पदं ८२. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? गोमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ ८३. सेकेणट्ठणं भंते ! एवं वच्चति - जहण्णोगाहणगाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं अणता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णोगाहणए पंचदियतिरिक्खजोगिए जहण्णोगाहणयस्स पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए तुल्ले । ठती तिट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रस- फासपज्जवेहि दोहि णाणेहिं दोहि अण्णा ह सहि छट्टाडिते | दो ८४. उक्को सोगाहणए वि एवं चेव, णवरं-तिहिं णाणेहिं तिहि अण्णाणेहि तिहिं दंसणेहिं छट्टाणवडिते । जहा उक्कोसोगाहणए तहा अजहणमणुक्को सोगाहणए वि, नवरं ओगाहट्टयाए चउद्वाणवडिए । ठिईए चउट्ठाणवडिए || ८५. जहणद्वितीयाणं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ ८६. सेकेणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहण्णद्वितीए पंचेंदियतिरिक्खजोणिए जहणद्वितीयस्स पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । गाहट्ठाए उाणवडिते । ठितीए तुल्ले । वण्ण-गंध-रस- फासपज्जवेहि दोहिं अण्णाणेहिं दोहिं दंसणेहिं छाणवडिते ॥ ८७. उक्कोसट्टितीए वि एवं चेव, नवरं - दो नाणा दो अण्णाणा दो दंसणा । अजहणमणुक्कोसतीए वि एवं चेव, नवरं - ठितीए चउट्ठाणवडिते । तिणिण णाणा, तिणि अण्णाणा, तिणि दंसणा । ८८. जहण्णगुणकालगाणं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! अनंता Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं विसेसपयं पज्जवा पण्णत्ता ॥ ८. सेकेणट्ठणं भंते! एवं वच्चति ? गोयमा ! जहण्णगुणकालए पंचेंदियतिरिक्खजोगिए जहण्णगुणकालगस्स पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पएसयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए चउट्ठाणवडिते । कालवण्णपज्जवेहि तुल्ले । अवसेसेहि वण-गंध-रस- फासपज्जवेहिं तिहिं णाणेहि तिहि अण्णाणेहिं तिहि दंसणेह afsa || ६०. एवं उक्को सगुण कालए वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, णवरंसट्टा छुट्टाafsa || ६१. एवं पंच वण्णा दो गंधा पंच रसा अट्ट फासा भाणियव्वा' ॥ ६२. जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ ६३. से केणट्ठणं भंते! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहण्णाभिणिवोहियणाणी पंचेंदियतिरिक्खजोणिए जहण्णाभिणिबोहियणाणिस्स पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले | पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए चउट्ठाणवडिते । वण्णगंध-रस-फासपज्जवेहि छट्टाणवडिते । आभिणिवोहियणाणपज्जवेहि तुल्ले । सुयणाणपज्जवेहिं छट्टाणवडिते । चक्खुदंसणपज्जवेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्टाणवडिते ।। ६४. एवं उक्कोसाभिणिबोहियणाणी वि, णवरं-ठितीए तिट्ठाणवडिते, तिण्णि णाणा, तिष्णि दंसणा, सट्टाणे तुल्ले, सेसेसु छट्टाणवडिते । अजहण्णुक्कोसाभिणिवोहियणाणी जहा उक्कोसाभिणिबोहियणाणी, णवरं-ठितीए चउट्ठाणवडिते । सट्टाणे छट्टाणवडिते । १२१ ६५. एवं सुतणाणी वि ॥ ९६. जहणोहिणाणीणं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ ६७. से केणट्ठणं भंते ! एवं वच्चति ? गोयमा ! जहण्णोहिणाणी पंचेंदियतिरिक्खजोणिए जहणोहिणाणिस्स पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । या वडिते । ठितीए तिट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रस- फासपज्जवेहिं आभिणिबोहियणाण-सुतणाणपज्जवेहि य छट्टाणवडिते । ओहिणाणपज्जवेहिं तुल्ले । अण्णाणा णत्थि । चक्खुदंसणपज्जवेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि [ ओहिदंसणपज्जवेहि ? ] ' य छट्टाणवडिते । ६८. एवं उक्को सोहिणाणी वि । अजहण्णुक्को सोहिणाणी वि एवं चेव, नवरं - सट्ठाणे छाणafsa || ६६. जहा आभिणिवोहियणाणी तहा मतिअण्णाणी सुयअण्णाणी य । जहा ओहिणाणी १. x ( क, ख, घ) । २. कोष्ठकवतिपाठः प्रयुक्तादर्णेषु नोपलभ्यते । आगमोदयममितिद्वारा प्रकाशिते प्रस्तुतसूत्रे एप पाठो दृश्यते । मुनिपुण्यविजयजीद्वारा सम्पादिते एप पाठान्तरे मुद्रितोस्ति । अस्यैव पदस्य ११५ सूत्रे जघन्यावधिमनुष्यस्यालापके तिहिं दंसणेहि' इति पाठोस्ति; अत्रापि तथैव युज्यते । तेन 'ओहिदंसणपज्जवेहि' इतिपाठो मुले आदृतः । Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं ताविभंगणाणीव । चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी य जहा आभिणिबोहियणाणी । ओहिदंसणी जहा ओहिणाणी । जत्थ णाणा तत्थ अण्णाणा णत्थि, जत्थ अण्णाणा तत्थ णाणा त्थि, जत्थ दंसणा तत्थ णाणा वि अण्णाणा वि अस्थि त्ति भाणितव्वं ॥ ओगाहणाई पडुच्च मणुस्साणं पज्जव-पदं १००. जहण्णोगाहणगाणं भंते! मणुस्साणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णत्ता ॥ १०१. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वृच्चइ - जहण्णोगाहणगाणं भणुस्साणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णोगाहणए मणुस्से' जहण्णोगाहणगस्स मणुस्सस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए तुल्ले । ठितीए तिद्वाणवडिते । वण्ण-गंध-रसफासपज्जवेहि तिहिं णाणेहिं दोहिं अण्णाणेहि तिहि दंसणेहिं छट्टाणवडिते ।। १२२ १०२. उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, नवरं - ठितीए सिय होणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए- जदि हीणे असंखेज्जभागहीणे । अह अब्भहिए असंखेज्जभागमब्भहिए । दोणा दो अण्णाणा दो दंसणा । अजहण्णमणुक्को सोगाहणए वि एवं चेव, णवरं - ओगाहणट्टयाए चाणवडिते । ठितीए चउट्ठाणवडिते । आइल्लेहि चउहि नाणेहि छट्टाणवडिते । केवलपज्जवेहिं तु । तहि अण्णाणेहि तिहि दंसह छट्टाणवडिते । केवल दंसणपज्जवेहि तुल्ले ॥ १०३. जहण्णद्वितीयाणं भंते ! मणुस्साणं केवतिया पज्जवा णण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ १०४. से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहण्णद्वितीए मणुस्से जहण्णद्वितीयस मस्सस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए चउट्टाणवडिते । ठितीए तुल्ले । वण्ण-गंध-रस- फासपज्जवेहिं दोहिं अण्णाणेहि दोहि दंसणेहि छट्टाणवडिते ।। १०५. एवं उक्कोसट्टितीए वि, नवरं - दो णाणा, दो अण्णाणा, दो दंसणा । अजहणमणुकोसतीए वि एवं चेव, नवरं --ठितीए चउट्टाणवडिते । ओगाहणट्टयाए चउट्टाणवडिते । आदिल्लेहिं चउनाणेहि छट्टाणवडिते । केवलनाणपज्जवेहि तुल्ले । तिहि हि तिहिं दंसणेहिं छट्टाणवडिते । केवलदंसणपज्जवेहि तुल्ले || १०६. जहण्णगुणकालयाणं भंते ! मणुस्साणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णत्ता ॥ १०७. से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहण्णगुणकालए मणुस्से जहण्णगुणकालगस्स मणुस्सस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए चट्टानवडिते । ठितीए चउट्ठाणवडिते । कालवण्णपज्जवेहि तुल्ले । अवसेसेहिं वण्ण-गंधरस- फासपज्जवेहि छट्टाणवडिते । चउहिं णाणेहिं छट्टाणवडिते । केवलणाणपज्जवेहि तुल्ले । तिहि अण्णाहि तिहि दंसणेहि छट्टाणवडिते । केवल दंसणपज्जवेहि तुल्ले || १०८. एवं उक्कोसगुणकालए वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, नवरं - afsa || १. मणूसे (क, ख, घ) । Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं विसेसपयं १२३ १०६. एवं पंच वण्णा दो गंधा पंच रसा अट्र फासा भाणितव्वा ॥ ११०. जहण्णाभिणिवोहियणाणीणं भंते ! मणुस्साणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ।। १११. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहण्णाभिणिबोहियणाणी मणस्से जहण्णाभिणिबोहियणाणिस्स मणुस्सस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए चउट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते। आभिणिवोहियणाणपज्जवेहिं तुल्ले । सुतणाणपज्जवेहिं तुल्ले । दोहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिते ।। ११२. एवं उक्कोसाभिणिवोहियणाणी वि, नवरं-आभिणिबोहियणाणपज्जवेहिं तुल्ले । ठितीए तिढाणवडिते। तिहिं णाणेहिं तिहिं दंसणेहि छट्ठाणवडिते । अजहण्णमणकोसाभिणिबोहियणाणी जहा उक्कोसाभिणिवोहियणाणी, णवरं-ठितीए चउढाणवडिते। सट्ठाणे छट्ठाणवडिते ।। ११३. एवं सुतणाणी वि ।। ११४. जहणोहिणाणीणं भंते ! मणुस्साणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता । ११५. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहण्णोहिणाणी मणुस्से जहण्णोहिणाणिस्स मणुस्सस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पएसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए तिढाणवडिते'। ठिईए तिढाणवडिते । वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं नाणेहिं छट्ठाणवडिए । ओहिणाणपज्जवेहिं तुल्ले । मणपज्जवणाणपज्जवेहिं छट्टाणवडिए। तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिए॥ ११६. एवं उक्कोसोहिणाणी वि । अजहण्णमणुक्कोसोहिणाणी वि एवं चेव, णवरं'ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते" सट्ठाणे छट्ठाणवडिए ।। ११७. जहा ओहिणाणी तहा मणपज्जवणाणी वि भाणितव्वे, नवरं-ओगाहणट्टयाए तिदाणवडिए । जहा आभिणिबोहियणाणी तहा मतिअण्णाणी सूतअण्णाणी य भाणितव्वे । जहा ओहिणाणी तहा विभंगणाणी वि भाणियव्वे । चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी य जहा आभिणिबोहियणाणी । ओहिदसणी जहा ओहिणाणी । जत्थ णाणा तत्थ अण्णाणा णत्थि, जत्थ अण्णाणा तत्थ णाणा णत्थि, जत्थ दंसणा तत्थ णाणा वि अण्णाणा वि ॥ ११८. केवलणाणीणं भंते ! मणुस्साणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता॥ ११६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ केवलणाणीणं मणुस्साणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! केवलनाणी मणुस्से केवलणाणिस्स मणुस्सस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्रयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए च उट्ठाणवडिते । ठितीए तिट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहि छट्ठाणवडिते । केवलणाणपज्जवेहिं केवलदसणपज्जवेहि य तुल्ले ।। १. चउट्ठाणवडिते (ख,घ); वृत्तौ स्वीकृतपाठस्य वधिर्वाऽवगाहनया त्रिस्थानपतितः (मवृ) । संवादिविवरणं दृश्यते-जवन्यावधिरुत्कृष्टा- २. x (ख,घ,पु)। Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ पण्णवणासुत्तं १२०. एवं केवलदसणी वि मणुस्से भाणियव्वे ।। ओगाहणाई पडुच्च वाणमंतराईणं पज्जव-पदं १२१. वाणमंतरा जहा असुरकुमारा ॥ १२२. एवं जोइसिया वेमाणिया, नवरं-सट्ठाणे ठितीए तिट्ठाणवडिते भाणितव्वे । से तं जीवपज्जवा ।। अजीवपज्जव-पदं १२३. अजीवपज्जवा णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-रूविअजीवपज्जवा य अरूविअजीवपज्जवा य। ४ अरूविअजीवपज्जवा णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता? गोयमा ! दसविदा पण्णत्ता, तं जहा-धम्मत्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकायस्स देसे, अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, आगासत्थिकाए, आगासत्थिकायस्स देसे, आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए॥ १२५. रूविअजीवपज्जवा णं भंते ! कति विहा पण्णत्ता ? गोयमा ! चउविहा' पण्णत्ता, तं जहा-खंधा खंधदेसा खंधपदेसा परमाणुपोग्गले ॥ १२६. ते णं भंते ! कि संखेज्जा असंखेज्जा अणंता ? गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता॥ १२७. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता ? गोयमा ! अणंता परमाणुपोग्गला, अणंता दुपदेसिया खंधा जाव अणंता दसपदेसिया खंधा, अणंता संखेज्जपदेसिया खंधा, अणंता असंखेज्जपदेसिया खंधा, अणंता अणंतपदेसिया भा से तेणटठेणं गोयमा ! एवं वच्चति ते णं नो संखज्जा, नो असंखेज्जा अणंता ।। १२८. परमाणपोग्गलाणं भंते ! केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! परमाणपोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता । १२६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति--परमाणुपोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाते तुल्ले । ओगाहणट्टयाए तुल्ले । ठितीए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए –जदि होणे असंखेज्जभागहीणे वा संखेज्जभागहीणे वा संखेज्जगुणहीणे वा असंखेज्जगुणहीणे वा । अह अब्भहिए असंखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जगुणमब्भहिए वा असंखेज्जगुणमन्भहिए वा । कालवण्णपज्जवेहि सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए -जदि हीणे अणंतभागहीणे वा असंखेज्जभागहीणे वा संखेज्जभागहीणे वा संखेज्जगुणहीणे वा असंखेज्जगुणहीणे वा अणंतगुणहीणे वा । अह अब्भहिए अणंतभागमब्भहिए वा असंखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जभागमब्भहिए वा संखेज्जगुणमब्भहिए वा असंखेज्जगुणमब्भहिए वा अणंतगुणमन्भहिए वा । एवं अवसेसवण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते । फासा णं सीय-उसिणनिद्ध-लुक्खेहिं छद्राणवडिते।से तेणठेणं गोयमा ! एवं बच्चति--परमाणपोग्गलाणं अणंता १. चउविहा (क)। २. असौ पाठः ‘फासपज्जवेहि छट्ठाणवडिते' इति पूर्ववर्तिपाठस्य व्याख्यारूपो दृश्यते । 'फासा' इति प्रथमान्तं पदम्, अस्य 'लुखेहि' इति Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं विसेसपयं १२५ पज्जवा पण्णत्ता॥ १३०. दुपदेसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ।। १३१. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! दुपदेसिए दुपदेसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए-जदि हीणे पदेसहीणे । अह अब्भहिए पदेसमब्भहिए । ठितीए च उट्टाणवडिते। वण्णादीहिं उवरिल्लेहि चउहिं फासेहि य छट्ठाणवडिते॥ १३२. एवं तिपएसिए वि, नवरं-ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए-जदि हीणे पएसहीणे वा दुपएसहीणे वा । अह अब्भहिए पएसमब्भहिए वा दुपएसमब्भहिए वा । एवं जाव दसपएसिए, नवरं- ओगाहणाए पएसपरिवुड्डी कायव्वा जाव दसपएसिए णवपएसहीणे ति॥ १३३. संखेज्जपदेसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ॥ १३४. से केण?णं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! संखेज्जपएसिए खंधे संखेज्जपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिएजदि हीणे संखेज्जभागहीणे वा संखेज्जगुणहीणे वा । अह अब्भहिए एवं चेव ! ओगाहणट्टयाए वि दुट्टाणवडिते । ठितीए चउट्टाणवडिते । वण्णादि उवरिल्लचउफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते॥ १३५. असंखेज्जपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ॥ १३६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! असंखेज्जपएसिए खंधे असंखेज्जपएसियस्स खंधस्स दव्बट्ठयाए तुल्ले । पएसट्टयाए चउट्ठाणवडिते । ओगाहणयाए चउट्ठाणवडिते। ठितीए चउट्ठाणवडिते । बण्णादि-उवरिल्लचउफासेहि य छटाणवडिते॥ १३७. अणंतपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ।। १३८. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! अणंतपएसिए खंधे अणंतपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पएसट्टयाए छट्ठाणवडिते। ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए चउट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते॥ १३६. एगपएसोगाढाणं पोग्गलाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ।। १४०. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! एगपएसोगाढे पोग्गले एगपएसोगाढस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पएसट्टयाए छट्ठाणवडिते। ओगाहणट्टयाए तुल्ले । ठितीए चउट्ठाणवडिते । वण्णादि-उवरिल्लचउफासेहि य छट्ठाणवडिते ।। १४१. एवं दूपएसोगाढं वि जाव दसपएसोगाढे ॥ १४२. संखेज्जपएसोगाढाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ॥ १४३. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! संखेज्जपएसोगाढे पोग्गले तृतीयान्तपदेन सङ्गतिरपि नास्ति । तथा च वत्ति-परमाण्वादीनामसलयातप्रदेशस्कन्धपर्यन्तानां केषांचिदनन्तप्रादेशिकानामपि स्कन्धानां तथैकप्रदेशावगाढानां सहयातप्रदेशावगाढानां शीतोष्णस्निग्ध रूक्षरूपाश्चत्वार एव स्पर्शा इति तैरेव परमाण्वादीनां षट्स्थानपतितता वक्तव्या, न शेषैः । Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ पण्णवणासुत्तं संखेज्जपएसोगाढस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पएसट्टयाए छट्ठाणवडिते। ओगाहणट्ठयाए दुट्ठाणवडिते। ठितीए चउट्ठाणवडिते। वण्णाइ-उवरिल्लच उफासेहि य छट्ठाणवडिते ॥ १४४. असंखेज्जपएसोगाढाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता पज्जवा ॥ १४५. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! असंखेज्जपएसोगाढे पोग्गले असंखेज्जपएसोगाढस्स पोग्गलरस दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते। ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए च उट्टाणवडिते । वण्णादि-अट्टफासेहिं छट्ठाणवडिते ।। १४६. एगसमयद्वितीयाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ॥ १४७. से केणटठेणं भंते ! एवं वच्चति ? गोयमा ! एगसमयद्वितीए पोग्गले एगसमयद्वितीयस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पएसट्टयाए छट्ठाणवडिते । ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए तुल्ले । वण्णादि-अट्ठफासेहिं छट्ठाणवडिते ॥ १४८. एवं जाव दससमय दिईए। संखेज्जसमय द्वितीयाणं एवं चेव, नवरं-ठितीए दुट्ठाणवडिते । असंखेज्जसमयट्ठितीयाणं एवं चेव, नवरं-ठिईए चउट्ठाणवडिते। १४६. एगगुणकालगाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता पज्जवा ॥ १५०. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगस्स पोग्गलस्स दवट्ठयाए तुल्ले । पएसट्टयाए छट्ठाणवडिते । ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिते। ठितीए चउट्ठाणवडिते। कालवण्णपज्जवेहि तुर हिं तल्ले। अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रसफासपज्जवेहि छट्ठाणवडिते। 'अहिं फासेहिं छट्ठाणवडिते' । १५१. एवं जाव दसगुणकालए। संखेज्जगुणकालए वि एवं चेव, नवरं-सट्टाणे दुट्ठाणवडिते । एवं असंखेज्जगुणकालए वि, णवरं- सट्ठाणे चउट्ठाणवडिते। एवं अणंतगुणकालए वि, नवरं-सट्टाणे छट्ठाणवडिते।। १५२. एवं जहा कालवण्णरस वत्तव्वया भणिया तहा सेसाण वि वण्ण-गंध-रस-फासाणं वत्तव्वया भाणितव्वा जाव अणंतगुणलुक्खे ॥ १५३. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! दुपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता। १५४. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहण्णोगाहणए दुपएसिए खंधे जहण्णोगाहणगस्स दुपए सियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पएसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए तुल्ले । ठितीए चउढाणवडिते। कालवण्णपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते। सेसवण्ण-गंधरसपज्जवेहि छट्ठाणवडिते। सीय-उसिण-णिद्ध-लुवखफासपज्ज वेहि छट्ठाणवडिते। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति जहण्णोगाहणगाणं दुपएसियाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता॥ १५५. उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव । अजहण्णमणक्कोसोगाहणओ नत्थि ॥ १५६. जहण्णोगाहणयाणं भंते ! तिपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता पज्जवा ।। १५७. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहा दुपएसिए जहण्णो१. ४ (ख); चिह्नाङ्कितपाठः ‘फासपज्जवेहि दृश्यते । छट्ठाणवडिते' इति पूर्ववर्तिपाठस्य व्याख्यारूपो २. रसफासपज्जवेहिं (ख,ग,घ) । Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं विसेसपयं १२७ गाहणए॥ १५८. उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव । एवं अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि॥ १५६. जहण्णोगाहणयाणं भंते ! चउपएसियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहा जहण्णोगाहणए दुपएसिए तहा जहण्णोगाहणए चउपएसिए । १६०. एवं जहा उक्कोसोगाहणए दुपएसिए तहा उक्कोसोगाहणए चउप्पएसिए वि । एवं अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि चउप्पएसिए, णवरं - ओगाहणट्ठयाए सिय हीणे सिय तल्ले सिय अब्भहिए-जदि हीणे पएसहीणे । अह अब्भहिए पएसमभहिए। १६१. एवं जाव दसपएसिए णेयव्वं, णवरं-अजहण्णुक्कोसोगाहणए पदेसपरिवड्डी कातव्वा जाव दसपएसियस्स सत्त पएसा परिवटिज्जति ॥ १६२. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! संखेज्जपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता॥ १६३. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहण्णोगाहणए संखेज्जपएसिए जहण्णोगाहणगस्स संखेज्जपएसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पएसट्टयाए दुट्ठाणवडिते। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले । ठितीए चउट्ठाणवडिए । वण्णादि-चउफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते ।। १६४. एवं उक्कोसोगाहणए वि । अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, णवरंसट्ठाणे दुट्ठाणवडिते ॥ १६५. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! असंखेज्जपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ॥ . १६६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहण्णोगाहणए असंखेज्जपएसिए खंधे जहण्णोगाहणगस्स असंखेज्जपएसियरस खंधरस दव्वट्ठयाए तुल्ले। पएसट्टयाए चउट्ठाणवडिते। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए चउट्ठाणवडिते। वण्णादि-उवरिल्लचउफासेहि य छट्ठाणवडिते॥ १६७. एवं उक्कोसोगाहणए वि । अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, नवरंसट्ठाणे चउट्ठाणवडिते॥ १६८. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! अणंतपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता॥ १६६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ ? गोयमा ! जहण्णोगाहणए अणंतपएसिए खंधे जहण्णोगाहणगस्स अणंतपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्टयाए छट्टाणवडिते। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले । ठितीए चउट्ठाणवडिते। वण्णादि-उवरिल्लचउफासेहि छट्ठाणवडिए॥ १७०. उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, नवरं-ठितीए' तुल्ले ॥ १७१. अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं भंते ! अणंतपएसियाणं पुच्छा। गोयमा ! अणंता॥ १७२. से केणठेणं ? गोयमा ! अजहण्णमणक्कोसोगाहणए अणंतपएसिए खंधे अजहण्णमणक्कोसोगाहणगस्स अणंतपदेसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते । ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते। ठितीए चउट्टाणवडिते। वण्णादि-अट्टफासेहि छट्ठाणवडिते॥ १. पएसअब्भहिए (क)। २. ठितीए वि (क,ख,ग)। Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ पण्णवणासुत्तं १७३. जहण्ण द्वितीयाणं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं पुच्छा। गोयमा ! अणंता ॥ १७४. से केणठेणं ? गोयमा ! जहण्णट्टितीए परमाणुपोग्गले जहण्ण ट्ठितीयस्स परमाणुपोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए तुल्ले। ठितीए तुल्ले । वण्णादि-दुफासेहि य छट्ठाणवडिते॥ १७५. एवं उक्कोसट्टितीए वि। अजहण्णमणुक्कोसट्टितीए वि एवं चेव, नवरं-ठितीए चउट्ठाणवडिते॥ १७६. जहण्ण द्वितीयाणं दुपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ।। १७७. से केणठेणं ? गोयमा ! जहण्णट्ठितोए दुपएसिए जहण्ण द्वितीयस्स दुपएसियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए-जदि हीणे पदेसहीणे । अह अब्भहिए पदेसमब्भहिए। ठितीए तुल्ले । वण्णादिचउफासेहि य छट्ठाणवडिते ॥ १७८. एवं उक्कोसट्टितीए वि । अजहण्णमणुक्कोसट्टितीए वि एवं चेव, नवरंठितीए चउट्ठाणवडिते॥ १७६. एवं जाव दसपदेसिए नवरं–पदेसपरिवुड्डी कातव्वा । ओगाहणट्ठयाए तिसु वि गमएसु जाव दसपएसिए णव पएसा वढिज्जति॥ १८०. जहण्ण द्वितीयाणं भंते ! संखेज्जपदेसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ॥ १८१. से केणठेणं ? गोयमा ! जहण्णट्टितीए संखेज्जपदेसिए खंधे जहण्णद्वितीयस्स संखेज्जपएसियस्स खंधस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए दुट्ठाणवडिते। ओगाहणट्ठयाए दुट्ठाणवडिते । ठितीए तुल्ले । वण्णादि-उवरिल्लचउफासेहि य छट्ठाणवडिते॥ १८२. एवं उक्कोसद्वितीए वि । अजहण्णमणुक्कोसट्टितीए वि एवं चेव, नवरं-ठितीए चउट्टाणवडिते॥ १८३. जहण्णद्वितीयाणं असंखज्जपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ।। १८४. से केणटठेणं ? गोयमा ! जहण्ण ट्रितोए असंखेज्जपएसिए जहण्ण द्वितीयस्स असंखेज्जपदेसियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए चउट्ठाणवडिते। ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए तुल्ले । वण्णादि-उवरिल्लच उफासेहि य छट्ठाणवडिते।। १८५. एवं उक्कोस ट्ठिईए वि । अजहण्णमणुक्कोसट्टितीए वि एवं चेव, नवरं-ठितीए चउट्टाणवडिते॥ १८६. जहण्ण द्वितीयाणं अणंतपदेसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणता ।। १८७. से केणठेणं ? गोयमा ! जहण्ण ट्ठितीए अणंतपएसिए जहण्ण द्वितीयस्स अणंतपएसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते। ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए तुल्ले । वण्णादि-अट्ठफासेहि य छट्ठाणवडिते॥ १८८. एवं उक्कोसट्टितीए वि । अजहण्णमणुक्कोसद्वितीए वि एवं चेव, नवरं-ठितीए चउट्ठाणवडिते॥ १८६. जहण्णगुणकालयाणं परमाणुपोग्गलाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ।। १. वुड्ढिज्जति (क,ग,घ)। Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं विसेसपय १२६ १६०. से केणठेणं ? गोयमा ! जहण्णगुणकालए परमाणपोग्गले जहण्णगुणकालगस्स परमाणुपोग्गलस्स दवट्ठयाए तुल्ले : पदेसट्ठयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए तुल्ले । ठितीए चउट्ठाणबडिते । कालवणपज्जवेहिं तुल्ले । अवसेसा वण्णा त्थि, गंध-रस-दुफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। १६१. एवं उदकोसगुणकालए वि । एवमजहणमणुक्कोसगुणकालए वि, णवरं -- सट्ठाणे छट्ठाणवडिते॥ १६२. जहण्णगुणकालयाणं भंते ! दुपएमियाणं पुच्छा। गोयमा ! अणता ।। १६३. से केणछैणं ? गोयमा ! जहण्णगुणकालए दुपएसिए जहण्णगुणकालगस्स दपएसियस्स दव्वल्याए तल्ले । पएसटयाए तल्ले । ओगाहणदयाए सिय होणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए -जदि हीणे पदेसहीण । अह अब्भहिए पएसमब्भहिए। ठितीए चउट्ठाणवडिते। कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले । अवसेसवण्णादि-उवरिल्ल चउफासेहि य छट्ठाणवडिते ॥ १६४. एवं उक्कोसगुणकालए वि । अजहण्णमणुवकोसगुणकालए वि एवंचेव, नवरंसट्ठाणे छट्ठाणवडिते। १६५. एवं जाव दसपएसिए, णवरं -- दस पएसपरिवूड्डी, ओगाहणा तहेव ।। १६६. जहण्णगुणकालयाणं भंते ! संखेज्जपए सियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ॥ १६७. से केणठेणं ? गोयमा ! जहण्णगुणकालए संखेज्जपएसिए जहण्णगुणकालगस्स संखेज्जपए सियस्स दवट्टयाए तुल्ले । पएसट्टयाए दुट्ठाणवडिते। ओगाहणट्ठयाए वाणवडिते। ठितीए चउदाणवडिते। कालवण्णपज्जवेहि तुल्ले अवसेसेहि वण्णादिउवरिल्लचउफासेहि य छट्ठाणवडिते। १६८. एवं उक्कोसगुणकालए वि । एवं अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि, नवरं--- सट्ठाणे छट्ठाणवडिते ॥ १६६. जहण्णगुणकालयाणं भंते ! असंखेज्जपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ॥ २००. से केणठेणं ? गोयमा ! जहण्णगुणकाला असंखेज्जपएसिए जहण्णगुणकालगस्स असंखेज्जपएसियस्स दव्वद्याए तुल्ले । पएसट्टयाए चउद्राणवडिते। ठितीए च उदाणवडिते । ओगाहणट्ठयाए चउट्टाणवडिते । कालवणपज्जवेहिं तुल्ले । अवसेसेहिं वण्णादिउवरिल्लच उफासेहि य छट्ठाणवडिते ।। २०१. एवं उक्कोसगुणकालए वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, णवरंसट्टाणे छट्ठाणवडिते ॥ २०२. जहण्णगुणकालयाणं भंते ! अणंतपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ॥ २०३. से केण ठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहण्णगुणकालए अणंतपएसिए जहण्णगुणकालयस्स अणंतपएसियस्स दब्बठ्ठयाए तुल्ले। पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते। ओगाहट्ठयाए चउहाणवड़िते । ठितीए चउट्ठाणवडिते । कालवणपज्जवेहिं तुल्ले । अवसेसेहि वण्णादि-अट्ठफासे हि य छट्ठाणवडिते॥ २०४. एवं उक्कोसगुणकालए वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, नवरं १. फासपज्जवेहि (ख,घ)। Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं सट्टाणे छट्ठाणवडिते॥ २०५. एवं नील-लोहित-हालिद्द-सुक्किल-सुबिभगंध-दुब्भिगंध-तित्त-कड्डय-कसायअंविल-महुररसपज्जवेहि य वत्तव्वया भाणियव्वा, नवरं--परमाणुपोग्गलस्स सुब्भिगंधस्स दुब्भिगंधो न भण्णति, दुब्भिगंधस्स सुब्भिगंधो न भण्णति, तित्तस्स अवसेसा ण भण्णंति । एवं कडुयादीण वि । सेसं' तं चेव ॥ २०६.जहण्णगुणकक्खडाणं अणंतपएसियाणं पृच्छा । गोयमा ! अणंता ॥ २०७. से केणट्टेणं ? गोयमा ! जहण्णगुणकवखडे अणंतपएसिए जहण्णगुणकक्खडस्स अणंतपदेसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते। ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए चउट्ठाणवडिते । वण्ण-गंध-रसेहिं छट्ठाणवडिते। कक्खडफासपज्जवेहिं तुल्ले । अबसेसेहिं सत्तफासपज्जवेहि छट्ठाणवडिते ॥ २०८. एवं उक्कोसगुणकक्खडे वि। अजहण्णमणुक्कोस गुणकक्खडे वि एवं चेव, नवरं- सट्टाणे छट्ठाणवडिते॥ २०६. एवं मउय-गरुय-लहुए वि भाणितव्वे ।। २१०. जहण्णगुणसीयाणं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ।। २११. से केणट्टेणं ? गोयमा ! जहण्णगुणसीते परमाणुपोग्गले जहण्णगुणसीतस्स परमाणुपोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए चउट्टाणवडिते वण्ण-गंध-रसेहि छट्ठाणवडिते। सीतफासपज्जवेहि य तुल्ले । उसिणफासो न भण्णति । णिद्ध-लुक्खफासपज्जवेहि छट्ठाणवडिते ।। २१२. एवं उक्कोसगुणसीते वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणसीते वि एवं चेव, नवरंसट्ठाणे छट्ठाणवडिते। २१३. जहण्णगुणसीयाणं दुपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ॥ २१४. से केणठेणं? गोयमा ! जहण्णगुणसीते दुपएसिए जहण्णगुणसीयस्स दुपएसिस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पएसट्ठयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए-जइहीणे पएसहीणे । अह अब्भहिए पएसमब्भहिए। ठिईए चउढाणवडिते। वण्णगंध-रसपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते । सीतफासपज्जवेहिं तुल्ले । उसिण-निद्ध-लुक्खफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते ॥ २१५. एवं उक्कोसगुणसीए वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणसीते वि एवं चेव, नवरंसट्टाणे छट्ठाणवडिते॥ २१६. एवं जाव दसपएसिए, नवरं-ओगाहणट्ठयाए पदेसपरिवुड्डी' कायव्वा जाव दसपएसियस्स णव पएसा वड्डिज्जति ।। २१७. जहण्णगुणसीयाणं संखेज्जपएसियाणं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! अणंता ।। २१८. से केणढेणं ? गोयमा ! जहण्णगुणसीते संखेज्जपए सिए जहण्णगुणसीयस्स संखेज्जपएसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पएसट्टयाए दुट्ठाणवडिते । ओगाहणट्टयाए दृट्ठाणवडिते। ठितीए चउट्ठाणवडिते । वण्णाईहिं छट्ठाणवडिते । सीतफासपज्ज वेहिं तुल्ले । उसिण-निद्ध १. अवसेसं (क) । २. परिवड्ढी (क)। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं विसेसपयं १३१ लुवखेहिं छट्ठाणवडिते॥ २१६. एवं उक्कोसगुणसीए वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणसीए वि एवं चेव, नवरंसट्ठाणे छट्ठाणवडिते ॥ २२०. जहण्णगुणसीताणं असंखेज्जपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ॥ २२१. से केणठेणं ? गोयमा ! जहण्णगुणसीते असंखेज्जपए सिए जहण्णगुणसीयस्स असंखेज्जपएसियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले । पएसट्ठयाए चउट्ठाणवडिते । ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए चउट्ठाणवडिते । वण्णादिपज्जवेहि छट्ठाणवडिते । सीतफासपज्जवेहिं तुल्ले । उसिण-निद्ध-लुक्खफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते॥ २२२ एवं उक्कोसगुणसीते वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणसीते वि एवं चेव, नवरंसट्ठाणे छट्ठाणवडिते ॥ २२३. जहण्णगुणसीताणं अणंतपदेसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता॥ २२४. से केणठेणं ? गोयमा ! जहण्णगुणसीते अणंतपदेसिए जहण्णगुणसीतस्स अणंतपएसियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले। पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते। ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए चउट्ठाणवडिते । वण्णादिपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते । सीतफासपज्जवेहि तुल्ले । अवसेसेहिं सत्तफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते॥ २२५. एवं उक्कोसगुणसीते वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणसीते वि एवं चेव, नवरंसट्ठाणे छट्ठाणवडिते ॥ २२६. एवं उसिणे निद्धे लुक्खे जहा सीते। परमाणुपोग्गलस्स तहेव पडिवक्खो, सव्वेसिं न भण्णइ त्ति भाणितव्वं'। २२७. जहण्णपदेसियाणं भंते ! खंधाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता॥ २२८. से केणढेणं ? गोयमा ! जहण्णपदेसिते खंधे जहण्णपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्टयाए तुल्ले । ओगाहणट्ठयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए-जदि हीणे पदेसहीणे । अह अब्भहिए पदेसमब्भहिए। ठितीए चउढाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-उवरिल्लचउफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते॥ २२६. उक्कोसपएसियाणं भंते ! खंधाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता॥ २३०. से केणठेणं ? गोयमा ! उक्कोसपए सिए खंधे उक्कोसपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पएसट्टयाए तुल्ले। ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए चउट्ठाणवडिते । वण्णादि-अट्ठफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते ।। २३१. अजहण्णमणक्कोसपदेसियाणं भंते ! खंधाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता? गोयमा ! अणंता ।। २३२. से केणठेणं ? गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसपदेसिए खंधे अजहण्णमणुक्कोसपदेसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते । ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते। ठितीए चउट्ठाणवडिते । वण्णादि-अट्ठफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते॥ २३३. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! पोग्गलाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ।। १. भाणितव्वं । साम्प्रतं सामान्यसूत्रमारभ्यते (क,ख,ग,घ) । Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ पण्णवणासुत्तं २३४. से केण ठेणं ? गोयमा ! जहण्णोगाहणए पोग्गले जहण्णोगाहणगस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते । ओमाहणट्टयाए तुल्ले । ठितीए च उट्ठाण वडिते। वण्णादि-उवरिल्लफासेहि य छट्ठाणवडिते ।। २३५. उनकोसोगाहणए वि एवं चेव, नवरं-ठितीए तल्ले ॥ २३६. अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं भंते ! जोगलाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता ।। २३७. से केगळेणं ? भोयमा ! अजहष्ण मणक्कोसोगाहणए पोरगले अजहण्णागणुक्कोसोगाहणगस्स पोग्गलस्स दब्वट्टयाए तुल्ले । पदे सटुयाः छहाणवड़िते । ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिते । ठितीए चट्ठाण वडिते । वष्णादि-अढकासपज्जवेहि ठाणवडिते ।। २३८. जहण्ण द्वितीयाणं भंते ! पोग्गलाणं पुच्छा । गोयमा ! अणंता॥ २३.से केटठणं ? गोयमा! जहण दिलीए पोगले जहण दितीयस्स पोग्गलस्रा दव्वदयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते । ओगाहणट्ठयाए नउठाणवडते । ठितीए तुल्ले । वणादि-अट्टफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते॥ २४०. एवं उक्कोसद्वितीए वि। अजहण्णमणुक्कोसद्वितीए वि एवं चेव, नवरं---- ठितीए चउट्ठाणवडिते ॥ २४१. जहण्णगुणकालयाणं भंते ! पोग्गलाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता॥ २४२. से केणठेणं? गोयमा ! जहण्णगुणकालए पोग्गले जहण्णगुणकालयस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले । पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते । ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिते। ठितीए चउठाणवडिते । कालवण्णपज्जवेहिं तल्ले । अवसेसेहिं वग-गंध-रस-फासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते । से एएणटेणं' गोयमा ! एवं वच्चति जहण्णगुणकालयाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता॥ २४३. एवं उक्कोसगुणकालए वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, नवरं-सट्ठाणे छट्ठाणबडिते ॥ २४४. एवं जहा कालवण्णपज्जवाणं वत्तव्वया भणिता तहा सेसाण वि वण्ण-गंध-रसफासपज्जवाणं वत्तव्बया भणितव्वा जाव अजहण्णमणुक्कोसलुक्खे सट्ठाणे छट्ठाणवडिते । से तं रूविअजीवपज्जवा। से तं अजीवपज्जवा ।। ३. फाला (क,ख,ग,घ) । १. ठितीए वि (क)। २. एणछेणं (क,ख); तेणढेणं (ग)। Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहा छट्ठे वक्कतिपयं १ 'बारस २ चवीसाई', ' ३ सअंतरं ४ एगसमय ५ कत्तो य । ६ उ ७ परंभवियाज्यं च अट्ठेव आगरिसा ||१|| बारसदारं उववाध उव्वट्टणा-विरह-पदं १. निरयगतो णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एवं समयं उक्कोसेणं वारस मुहुत्ता ॥ २. तिरियगती' णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एवं समयं उक्कोसेणं वारस मुहुत्ता || ३. मणुयगती णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एवं समय, उक्कोसेणं वारसा मुहुत्ता ॥ ४. देवगती णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं एवं समयं उनकोसेणं वारस मुहुत्ता ॥ ५. सिद्धगती णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया सिज्झणया पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एवं समयं उक्कोसेणं छम्मासा || ६. निरयगती णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उव्वट्टयाए पण्णत्ता ? जहणं एवं समयं उक्कोसेणं वारस मुहुत्ता ॥ ७. तिरियगतीणं भंते! केवतियं कालं विरहिता उब्वट्टणयाए पण्णत्ता ? जणं एवं समयं उक्को सेणं बारस मुहुत्ता || ८. मणुयगतीणं भंते! केवतियं कालं विरहिया उव्वट्टणाए । पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणं एवं समयं उक्कोसेण वारस मुहुत्ता ॥ ६. देवगती णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उव्वट्टण (ए पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एवं समयं उक्कोसेणं वारस मुहुत्ता ॥ १. वारस य चवीसा (क, ख, ग घ ) । २. गतीया ( ख ) । गोयमा ! गोयमा ! ३. उद्वर्तनया । पूर्वसूत्रयोः 'उब्वट्टणयाए' इति पदमस्ति तत्र 'या' प्रत्ययः स्वार्थिकोस्ति । १३३ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ चवीसाइं दारं उववाय उब्वट्टणा-विरह-पदं १०. रयणप्पभापुढविने रइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं एगं' समयं उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता ॥ ११. सक्करपभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोमा ! जहणेणं एवं समयं उक्कोसेणं सत्त रातिंदियाणि ॥ १२. वालुयप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोमा ! जहणेणं एवं समयं उक्कोसेणं अद्धमासं ॥ पण्णवणासुतं १३ पंकप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं एवं समयं उक्कोसेणं मासं ॥ १४. धूमप्पभापुढविने रइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं एवं समयं उक्कोसेणं दो मासा || १५. तमापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोमा ! जहणणं एवं समयं उक्कोसेणं चत्तारि मासा ।। १६. अहेसत्तमापुढविने रइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एवं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा || १७ असुरकुमारा णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववारणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता ॥ १८. नागकुमारा णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता । एवं सुवण्णकुमाराणं विज्जुकुमाराणं अग्गिकुमाराणं दीवकुमाराणं 'उदहिकुमाराणं दिसाकुमाराणं" वाउकुमाराणं यणियकुमाराण य 'पत्तेयं-पत्तेयं" जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं चउव्वीस मुहुत्ता || १६. पुढविकाइया णं भते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! अणुसमयमविरहि उववाएणं पण्णत्ता । एवं आउकाइयाण वि तेउकाइयाण वि वाउकाइया वि वणप्फइकाइयाण वि अणुसमयं अविरहिया उववाएणं पण्णत्ता ॥ २०. बेइंदिया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एवं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं । एवं 'तेइंदिय - चउरिदिया" ।। २१. सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया वाणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं एवं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ २२. गब्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं एवं समयं उक्कोसेणं वारस मुहुत्ता ॥ २३. सम्मुच्छिममणुस्सा णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववारणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं एवं समयं उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता || १. एक्कं ( क ) । २. दिसाकुमाराणं उदहिकुमाराणं ( ग घ ) । ३. पत्तेयं (क,ख,घ) । ४. चउरिदिय (क, ग, घ ) ; तेइंदियाण चउरिंदिवाणं ( ख ) । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठें वक्कंतिपयं १३५ २४. गब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता ।। २५. वाणमंतराणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एग समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता ।। २६. जोइसियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता ॥ २७. 'सोहम्मकप्पे देवा" णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एगं समयं, उक्कोसेणं च उव्वीसं मुहुत्ता ।। २८. ईसाणे कप्पे देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता॥ २६. सणंकुमारदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णणं एगं समयं, उक्कोसेणं नव रातिदियाइं वीसा य मुहुत्ता ॥ ३०. माहिंददेवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस राइंदियाइं दस मुहुत्ता। ३१. बंभलोए देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अद्धतेवीसं रातिदियाइं॥ ३२. लंतगदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं पणतालीसं रातिदियाई ॥ ३३. महासुक्कदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असीति रातिदियाइं ॥ ३४. सहस्सारदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं रातिदियसतं'। ३५. आणयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं संखेज्जा मासा ।। ३६. पाणयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं संखेज्जा मासा ।। वासा।। ३७. आरणदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं संखेज्जा ३८. अच्चुयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं संखेज्जा वासा॥ ३९. हेट्ठिमगेवेज्जाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससताई। ४०. मज्झिमगेवेज्जाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साई॥ १. सोहम्मकप्पदेवा (क,ग,घ) । २. सोराइंदियाइं (ग)। Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ पण्णवणासुतं ४१. उवरिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं एगं समयं, उवकोसेणं संखेज्जाई वाससतसहस्साई ।। ४२. विजय-वेजयंत-जयंतापगजियदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं एगं सभयं उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं ।। ४३. सव्वदसिद्धगदेवा णं भंते ! केवतियं कालं विरहिता उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं एग समयं, उक्कोसेणं पनि ओमयमस्स संखेज्जइभागं ।। ४४. सिद्ध। णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया सिउझणयाए पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं गं समयं, उक्फोसेणं छम्मासा। ४५. रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उबट्टणाए पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उनकोसेणं च उच्वीस मुहत्ता ।। ४६. एवं सिद्धवज्जा उव्वट्टणा वि भाणितव्वा जाव अणुत्तरोववाइय त्ति, नवरंजोइसिय-वेमाणिएसु चयणं ति अभिलावो' कायवो ।। संतरदारं उववाय-उव्वट्टणा-पदं ४७. नेरइया णं भंते ! कि संतर उववज्जति ? निरंतरं उववज्जति ? गोयमा ! संतरं पिउववज्जंति, निरंतरं पिउववज्जति ।। ४८.तिरिक्खजोणिया ण भंते ! कि संतरं उववज्जति ? निरंतरं उववज्जति ? गोयमा! संतरं पिउववज्जति, निरंतरं पि उववज्जति ।। ४६. मणुस्सा णं भंते ! किं संतरं उबवज्जति ? निरंतरं उववज्जति ? गोयमा ! संतर पि उववज्जति, निरंतरं पि उववज्जति ।। ५०. देवा णं भंते ! कि संतरं उनवज्जति ? निरंतर उववज्जति ? गोयमा ! संतरं पि उववज्जति, निरंतर पि उववज्जति ।। ५१. रयणपभापुढविनेरइया ण भते ! कि संतरं उववज्जति ? निरंतर उववज्जति ? गोयमा ! संतरं पि उववज्जति, निरंतरं पि उववज्जति । एवं जाय बहेरात्तभाए संतरं पि उववज्जति, निरंतरं पि उदवज्जति ।। ५२. अमरकुमाराणं 'भंते ! देवा कि संतरं उववज्जति ? निरंतर उववज्जति ? गोयमा ! संतरं पि उववज्जति ? निरंतर पि उववज्जति । एवं जाव थणियकुमारा संतरं पि उववज्जति, निरंतरं पि उववज्जति ।। ५३. पढविकाइया णं भंते ! कि संतरं उववज्जति ? निरंतरं उववज्जति ? गोयमा ! नो संतरं उववज्जंति, निरंतरं उववज्जति । एवं जाव वणस्सइकाइया नो संतरं उववज्जति, निरंतरं उववज्जति ।। ५४. बेइंदिया णं भंते ! कि संतरं उववज्जति ? निरंतर उववज्जंति ? गोयमा ! संतरं पि उववज्जति, निरंतर पि उववज्जति । एवं जाव पंचेंदियतिरितखजोगिया । ५५. मणस्सा णं भंते ! कि संतरं उववजंति ? निरंतर उववज्जति ? गोयमा ! संतरं पि उववज्जति, निरंतरं पि उववज्जति ॥ १. अहिलावो (ख,घ)। २. भत देव। णं (क,ग), देवा ण भंते (ख,घ)। Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठें वक्कतिपयं १३७ ५६. एवं वाणमंतरा जोइसिया सोहम्म-ईसाण-सणंकुमार-माहिंद-बंभलोय-लंतगमहासुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-'आरण-अच्चय ज्जग-मज्झिमगेवेज्जग-उवरिमगेवेज्जग-विजय वेजयंत-जयंत-अपराजित-सव्वदृसिद्ध देवा य संतरं पि उववज्जति निरंतरं पि उववज्जति ॥ ५७. सिद्धा णं भंते ! कि संतरं सिज्झति ? निरंतरं सिझंति ? गोयमा ! संतरं पि सिज्झंति, निरंतरं पि सिझंति । ५८. नेरइया णं भंते ! कि संतरं उव्वऎति ? निरंतरं उव्वटंति ? गोयमा! संतरं पि उव्वटंति, निरंतरं पि उब्वटंति ।। ५६. एवं जहा उववाओ भणितो तहा उव्वट्टणा वि सिद्धवज्जा भाणितव्वा जाव वेमाणिया, नवरं-जोइसिय-वेमाणिएसु चयणं ति अभिलावो कातव्वो ।। एगसमयदारं उववाय-उव्वट्टणा-पदं ६०. नेरइया णं भंते ! एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! जहणणं एको वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जति । एवं जाव अहेसत्तमाए ।। ६१. असुरकुमारा णं भंते ! एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! जहण्णणं एकको वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा । एवं नागकुमारा जाव थणियकुमारा वि भाणियव्वा ।। ६२. पुढविकाइया णं भंते ! एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! अणुसमयं अविरहियं असंखेज्जा उववज्जति । एवं जाव वाउकाइया ।। ६३. वणस्सतिकाइया णं भंते ! एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! सटाणुववायं पडुच्च अणुसमयं अविरहिया अणंता उववज्जति, परट्ठाणुववायं पडुच्च अणुसमयं अविरहिया असंखेज्जा उववज्जति ॥ ६४. बेइंदिया णं भंते ! केवतिया एमसभएणं उववज्जति ? गोयमा ! जहण्णणं एगो वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखज्जा वा असंखेज्जा वा ।। ६५. एवं तेइंदिया चरिदिया सम्मुच्छिमपंचेदियतिरिक्खजोणिया गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया सम्मुच्छिममणुस्सा वाणमंतर-जोइसिय-सोहम्मीसाण-सणंकुमारमाहिंद-बंभलोय-लंतग-महासुक्क -सहस्सारकप्पदेवा---एते जहा ने रइया ।। ६६. गम्भवक्क्रतियमणस्सा आणय-पाणय-आरण-अच्चय-गेवेज्जग-अणुत्तरोववाइया य एते जहण्णणं एक्को वा दो वा तिग्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति ।। ६७. सिद्धा णं भंते ! एगसमएणं केवतिया सिझंति ? गोयमा ! जहणणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं अट्ठसतं ।। ६८. नेरइया णं भंते ! एगसमएणं केवतिया उव्वट्ठति ? गोयमा ! जहण्णणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उव्वद॒ति ।। ६६. एवं जहा उववाओ भणितो तहा उव्वट्टणा वि सिद्धवज्जा भाणितव्वा जाव १. आरणच्चुय (क,ख,ग,घ) । २. सुक्क (ख, ग, घ)। Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ पण्णवणासुतं अणुत्तरोववाइया, णवरं-जोइसिय-वेमाणियाणं चयणेणं अभिलावो कातव्वो॥ कत्तोदारं उबवाय-उव्वट्टणा-पदं ७०. नेरइया णं भंते ! कतोहितो उववज्जति ? किं नेरइएहितो उववज्जति ? तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? मणुस्सेहितो उववज्जति ? देवेहितो उववज्जति ? गोयमा ! ' नो नेरइएहितो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, मणुस्से हितो उववज्जति, नो देवेहिंतो उववज्जति ॥ ७१. जदि तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति किं एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? बेइंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति ? तेइंदियतिरिवखजोणिएहितो उववज्जति ? चउरिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! नो एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो नो बेइंदियतिरिक्खजोणिएहितो नो तेइंदियतिरिक्खजोणिएहितो नो चउरिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति, पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति । जदि पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति किं जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति ? खहयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्जंति, थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्जति खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्जति। जदि जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं सम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! सम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिवखजोणिएहितो वि उववज्जति, गब्भवतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्जति। जदि सम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किपज्जत्तयसम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तयसम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तयसम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, नो अपज्जत्तयसम्मुच्छिमजलयरपंच दियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति । जदि गब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं पज्जत्तगगब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तयगम्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति, नो अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति । जदि थलयरपंच दियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ? गोयमा ! चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्जति, परिसप्पथलयर१. गोयमा नेरइया (ख)। Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छळं वक्कतिपयं १३६ पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्जति । जदि चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं सम्मुच्छिमेहितो उववज्जति ? गब्भवक्कंतिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! सम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्जति, गब्भवक्कंतियचउप्पएहितो वि उववज्जति। जदि सम्मुच्छिमचउप्पएहिंतो उववज्जति किं पज्जत्तगसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तगसम्मुच्छिमच उप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तएहिंतो उववज्जति, नो अपज्जत्तगसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ।। जदि गब्भवतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं संखेज्जवासाउगगब्भवक्कंतियच उप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति ? असंखेज्जवासाउयगब्भवतियच उप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ? गोयमा ! संखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जति, नो असंखेज्जवासाउएहितो उववज्जति। जदि संखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयगब्भवतियचउप्पयथलयरपंचेदियतिरिवखजोणिएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयगब्भवतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तएहितो उववज्जति, नो अपज्जत्तयसंखेज्जवासाउएहितो उववज्जति । जदि परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? भयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति । जदि उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं सम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गब्भवतियउरपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! सम्मुच्छिमेहितो वि उववज्जंति, गब्भवक्कंतिएहितो वि उववज्जति । जदि सम्मच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं पज्जत्तगेहिंतो उववज्जति ? अपज्जत्तरोहितो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तगसम्मुच्छिमेहितो उववज्जति, नो अपज्जत्तगसम्मुच्छिम उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति। जदि गब्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि पज्जत्तएहितो? अपज्जत्तएहितो ? गोयमा ! पज्जत्तगगब्भवक्कंतिएहितो उववज्जंति, नो अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति । जदि भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्ख जोणिएहितो उववज्जति किं सम्मुच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति? गब्भवतियभयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति । जदि सम्मुच्छिमभयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं पज्जत्तय पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिहितो उववज्जति ? अपज्जत्तय Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्त सम्मुच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तएहितो उववज्जंति, नो अपज्जत्तएहितो उववज्जति । जदि गब्भवक्कंतियभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि पज्जत्तएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तएहितो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तएहितो उववज्जति, नो अपज्जत्तएहितो उववज्जति । जदि खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं सम्मुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति । जदि सम्मुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं पज्जत्तएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तएहितो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तएहितो उववज्जति, नो अपज्जत्तएहितो उववज्जति ।। जदि गभवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि संखेज्जवासाउएहितो उववज्जति ? असंखेज्जवासाउएहितो उववज्जति ? गोयमा ! संखेज्जवासाउएहितो उववज्जति, नो असंखेज्जवासाउएहितो उववज्जति ।। जदि संखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि पज्जत्तएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तएहिंतो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तएहितो उववज्जति, नो अपज्जत्तएहितो उववज्जति । ७२. जदि मणुस्सेहितो उववज्जति किं सम्मुच्छिममणुस्सेहिंतो उववज्जति ? गब्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जति ? गोयमा ! नो सम्मुच्छिममणुस्सेहिंतो उववज्जति, गब्भववतियमणुस्सेहितो उववज्जति । जदि गब्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जति किं कम्मभूमगगब्भववतियमणुस्सेहितो' उववज्जति ? अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जति ? अंतरदीवगगब्भववतियमणुस्से हितो उववज्जति ? गोयमा ! कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उबवज्जति, नो अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेतो उववज्जति, नो अंतरदीवगगभवक्कंतियमणस्सेहितो उववज्जति । जदि कम्मभूमगगभवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जति किं संखेज्जवासाउएहितो उववज्जति ? असंखज्जवासाउएहिंतो उववज्जति ? गोयमा ! संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जति। जदि संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगन्भवतियमणु सेहिंतो उववज्जति कि पज्जत्त गेहितो उववज्जति ? अपज्जत्तगेहिंतो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तएहितो उववज्जति, नो अपज्जत्तएहितो उववज्जति ॥ ७३. एवं जहा ओहिया उववाइया तहा रयणप्पभापुढविने र इया वि उववाएयव्वा ।। ७४. सक्करप्पभापुढविने र इयाणं पुच्छ।। गोयमा ! एते वि जहा ओहिया तहेवोववाएयव्वा, नवरं-सम्मुच्छिमेहितो पडिसेहो कातव्यो ।। १. कम्मभूमिगब्भ° (ख)। Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठें वक्कंतिपयं १४१ ७५. वालुयप्पभापुढविने र इया णं भंते ! कतोहिंतो उववज्जति ? गोयमा ! जहा सक्करप्पभापुढविने र इया, नवरं भुयपरिसप्पेहितो वि पडिसेहो कातव्वो॥ ७६. पंकप्पभापुढविने र इयाणं पुच्छा। गोयमा ! जहा बालुयप्पभापुढविनेरइया, नवरं-- खहयरेहितो वि पडिसेहो कातव्यो । ७७. धूमप्पभापुढविने र इयाणं पृच्छा । गोयमा! जहा पंकप्पभापुढविनेरइया, नवरंचउप्पएहितो वि पडिसेहो कातव्यो । ७८. तमापुढविनेरइया णं भंते ! कतोहितो उववज्जति ? गोयमा ! जहा धूमप्प भापुढविनेरइया, नवरं थलयरेहितो वि पडिसेहो कातव्वो। इमेणं अभिलावेणं जदि पंचेदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति किं जलयरपंचदिएरितो उववज्जंति ? थलयरपंचें दिएहितो उववज्जति ? खहयरपंचेंदिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! जलयरपंच दिएहितो उववज्जति, नो थलयरेहितो नो खयरेहिंतो उववज्जति ।। ७६. जदि मणुस्सेहिंतो उववज्जति किं कम्मभूभएहितो अकम्भूमएहितो अंतरदीवएहितो? गोयमा ! कम्मभूमएहितो उववज्जंति, नो अकम्मभूमएहितो उववज्जति, नो अंतरदीवएहितो। जदि कम्मभूमएहितो उववज्जति किं संखेज्जवासाउएहितो उववज्जति ? असंखेज्जवासाउएहितो उववज्जति ? गोयमा ! संखेज्जवासाउए हिंतो उववज्जति, नो असंखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जति । जदि संखेज्जवासाउएहितो उववज्जति किं पज्जत्तएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तएहितो उववज्जति ? गोयमा! पज्जत्तएहितो उववजंति, नो अपज्जत्तएहितो। जदि पज्जत्तयसंखेज्जवासाउयकम्मभूमएहिंतो उववति कि इत्थीहितो उववज्जति ? पुरिसेहितो उववज्जति ? नपुंसएहितो उववज्जति ? गोयमा ! इत्थीहितो वि उववज्जंति, पुरिसेहितो वि उववज्जति, नपुंसएहितो वि उववज्जति ।। ८०. अहेसत्तमापुढविनेरइया णं भंते ! कतोहितो उववज्जति ? गोयगा! एवं चेव, नवरं-इत्थीहितो पडिसेहो कातव्यो । गाहा-- अस्सण्णी खल पढम, दोच्चं च सिरीसवा तइय पक्खी। सीहा जंति चउत्थि, उरगा पुण पंचमि' पुढवि ।। १ ।। छट्टि च इत्थियाओ, मच्छा मणुया य सतमि पुढवि। एसो परमुववाओ, बोधव्वो नरयपुढवीणं ॥२॥ ८१. असुरकुमारा णं भंते ! कतोहितो उववज्जति ? गोयमा ! नो नेरइएहितो उववज्जति , तिरिक्खजोणिए हितो उववज्जंति, मणुएहितो उववज्जति , नो देवेहितो उववज्जंति । एवं जेहिंतो नेरइयाणं उववाओ तेहितो असुरकुमाराण वि भाणितव्वो, नवरं---असंखेज्जवासाउय-अकम्मभूमग-अंतरदीवगमणुस्सतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्जति । सेसं तं चेव । एवं जाव थणियकूमारा॥ १. पंचमं (क,ख,)। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ पण्णवणासुत्तं ८२. पुढविकाइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति ? किं नेरइएहितो जाव देवेहितो उववज्जति ? गोयमा ! नो नेरइएहिंतो उववज्जति, तिरिक्खजोणिएहितो मणुस्सेहितो देवेहितो वि उववज्जति ॥ ८३. जदि तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ? गोयमा ! एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो वि जाव पंचें दियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्जति। जदि एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं पुढविकाइएहितो जाव वणप्फइकाइएहितो उववज्जति ? गोयमा ! पुढविकाइएहितो वि जाव वणप्फइकाइएहितो वि उववज्जति। जदि पुढविकाइएहितो उववज्जंति किं सुहमपुढविकाइएहितो उववज्जति ? बादरपुढविकाइएहितो उववज्जति ? गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति। जदि सुहुमपुढविकाइएहितो उववज्जति किं पज्जत्तयपुढविकाइएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तयपुढविकाइएहितो उववज्जंति ? गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति। जदि वादरपुढविकाइएहितो उववज्जति किं पज्जत्तएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तएहितो उववज्जति ? गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति । एवं जाव वणस्सतिकाइया चउक्कएणं भेदेणं उववाएयव्वा । जदि बेइंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति किं पज्जत्तयबेइंदिएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तयबेइंदिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति। एवं तेइंदियचरिदिएहितो वि उववज्जति । जदि पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं जलयरपंचेंदिएहितो उववज्जति ? एवं जेहितो नेरइयाणं उववाओ भणितो तेहिंतो एतेसि पि भाणितव्वो, नवरं-पज्जत्तगअपज्जत्तरोहितो वि उववज्जति । सेसं तं चेव ॥ ८४. जदि मणुस्सेहिंतो उववज्जति किं सम्मुच्छिममणुस्सेहिंतो उववज्जति ? गन्भवक्कंतियमणुस्सेहिंतो उववज्जंति ? गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति । जदि गब्भवक्कंतियमणुस्सेहिंतो उववज्जति किं कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जति ? अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जति ? सेसं जहा नेरइयाणं, नवरं-अपज्जत्तएहितो वि उववज्जति ॥ ८५. जदि देवेहितो उववज्जति किं भवणवासि-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियदेवेहतो उववज्जंति ? गोयमा ! भवणवासिदेवेहितो वि उववज्जति जाव वेमाणियदेवेहितो वि उववज्जति। जदि भवणवासिदेवेहितो उववज्जति किं असुरकुमारदेवेहितो जाव थणियकुमारदेवेहितो उववज्जति ? गोयमा ! असुरकुमारदेवेहितो वि जाव थणियकुमारदेवेहितो वि उववज्जति। जदि वाणमंतरदेवेहितो उववज्जति किं पिसाएहितो जाव गंधव्वेहितो उववज्जति ? गोयमा ! पिसाएहितो वि जाव गंधव्वेहितो वि उववज्जति । जदि जोइसियदेवेहितो उववज्जति किं चंदविमाणेहितो जाव ताराविमाणेहितो Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठें वक्कंतिपयं १४३ उववज्जति ? गोयमा ! चंदविमाणजोइसियदेवेहितो वि जाव ताराविमाणजोइसियदेवेहितो वि उववज्जति । जदि वेमाणियदेवेहितो उववज्जति किं कप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उववज्जति ? कप्पातीतगवेमाणियदेवेहितो ववज्जति ? गोयमा ! कप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उववज्जंति, नो कप्पातीतगवेमाणियदेवेहितो' उववज्जति। जदि कप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उववज्जति किं सोहम्मेहितो जाव अच्चुएहितो उववज्जति ? गोयमा ! सोहम्मीसाणेहितो उववज्जंति, नो सणंकुमार जाव अच्चुए हितो उववज्जति ॥ ८६. एवं आउक्काइया वि । एवं तेउ-वाऊ वि, नवरं-देववज्जहितो उववज्जति । वणस्सइकाइया जहा पुढविकाइया। बेइंदिय-तेइंदिय-चउरेंदिया एते जहा तेउ-वाऊ देववज्जेहिंतो भाणितव्वा ॥ ८७. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! कतोहितो उववज्जति ? कि नेरइएहितो उववज्जति जाव देवेहितो उववज्जति ? गोयमा ! नेरइएहितो वि तिरिक्खजोणिएहितो वि मणूसे हितो वि देवेहितो वि उववज्जति ।। ८८. जदि नेरइएहितो उववज्जति कि रयणप्पभापुढविनेरइएहितो उववज्जति जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएहितो उववज्जति ? गोयमा ! रयणप्पभापुढविनेरइएहितो वि जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएहितो वि उववति ॥ ८६. जदि तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं एगिदिएहितो उववज्जति जाव पंचेंदिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! एगिदिएहितो वि जाव पंचेंदिएहितो वि उववज्जति । जदि एगिदिएहिंतो उववज्जति किं पुढविकाइएहितो उववज्जति ? एवं जहा पुढविकाइयाणं उववाओ भणितो तहेव एएसि पि भाणितव्वो, नवरं-देवेहितो जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो वि उववज्जंति, नो आणयकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो जाव अच्चुएहितो' उववज्जति ॥ ६०. मणुस्सा णं भंते ! कतोहितो उववज्जति ? किं नेरइएहितो जाव देवेहितो उववज्जति ? गोयमा ! नेरइएहितो वि उववज्जति जाव देवेहितो वि उववज्जति ।। ६१. जदि नेरइएहितो उववजंति किं रयणप्पभापुढविनेरइएहितो जाव अहेसत्तमापूढविनेरइएहितो उववज्जति ? गोयमा ! रतणप्पभापुढविनेरइएहितो वि जाव तमापुढविनेरइएहितो वि उववज्जंति, नो अहेसत्तमापुढविनेरइएहितो उववज्जंति ॥ ६२. जदि तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? एवं जेहितो पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं उववाओ भणितो तेहितो मणुस्साण वि णिरवसेसो भाणितव्वो, नवरं- अहेसत्तमापुढविनेरइय-तेउ-वाउकाइएहितो ण उववज्जति । सव्वदेवेहितो वि उववज्जावेयव्वा' जाव कप्पातीतगवेमाणिय-सव्वसिद्धदेवेहितो वि उववज्जावेयव्वा ॥ ____६३. वाणमंतरदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति ? किं नेरइएहितो जाव देवेहितो १. कप्पातीतवे (क,घ) । ३. उववाओ कायव्वो (ग)। २. °हिंतो वि (क,ख,ग) । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ उववज्जंति ? गोयमा ! जेहिंतो असुरकुमारा ॥ ४. जोइसियदेवा णं भंते! कतोहितो उवज्जंति ? गोयमा ! एवं चेव, नवरं सम्मुच्छिमअसंखेज्जवासाउयखहयर - अंतरदीव मणुस्सवज्जे हितो उववज्जावेयव्वा ।। १३ ६५. 'एवं चेव' वेमाणिया वि सोहम्मीसाणगा" भाणितव्वा । एवं 'सणकुमारगा वि, " णवरं-असंखेज्जवासाउय कम्मभूमगवज्जेहिंतो उववज्जति । एवं जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेवा भाणितव्वा ॥ ६६. आणयदेवा णं भंते ! कतोहितो उववज्जंति ? किं नेरइए हितो जाव देवेहितो उववज्जति ? गोयमा ! नो नेरइएहितो उववज्जंति, नो तिरिखखजोणिएहितो उववज्जंति, महिनो उववज्जति, नो देवेहितो ॥ पण्णवणात्तं ६७. जदि मणुस्सेहितो उववज्जंति किं सम्मुच्छिममणुस्सेहितो गब्भववकं तियमणुस्सेहितो उववज्जति ? गोयमा ! गब्भवक्कंतियमणुस्से हितो उववज्जंति, नो सम्मुच्छिममणुसेहत | जदि गब्भवक्कंतियमणुस्सेहिंतो उववज्जंति किं कम्मभूमगेहिंतो उववज्जंति ? अम्मभूमहिंतो उववज्जंति ? अंतरदीवरोहितो उववज्जति ? गोयमा ! कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहिंनो उववज्जंति, नो अकम्मभूमगेहितो, नो अंतरदीवगे हितो | जदि कम्मभूमगगब्भववकं तियमणस्से हितो उववज्जं ति किं संखेज्जवासाउए हितो उववज्जंति ? असंखेज्जवासाउए हितो उववज्जंति ? गोयमा ! संखेज्जवासाउएहितो, नो असंखेज्जवासा उएहितो उववज्जंति । जदि संखेज्जवासाउयकम्मभूमभवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जति किं पज्जत्तएहितो अपज्जत्तएहितो उववज्जंति ? गोयमा ! पज्जत्तगसंखेज्जवासाज्यकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उनवज्जंति, णो अपज्जत्तएहिंतो । जदि पज्जत्तगसंखेज्जवासा उयकम्मभूमग गब्भवक्कंतियमणुस्सेहत उववज्जति सम्मद्दिट्टिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगे हिंतो उववज्जंति ? मिच्छद्दिट्टिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउएहितो उववज्जंति ? सम्मामिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगभवतियम से हितो उववज्जंति ? गोयमा ! सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जति, मिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगे हितो' उववज्जंति, णो सम्मामिच्छाद्दिट्ठिपज्जत्तगेहिंतो उववज्जति । जदि सम्मद्दिट्टिज्जत्तगसंखेज्जवासा उयकम्मभूमगगब्भवक्कं तियमणुस्से हितो उववज्जंति कि संजतसम्म ट्ठिीहितो ? असंजतसम्म द्दिद्विपज्जत्तएहितो ? संजया संजयसम्म द्दिष्ट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासा उएहिंतो उववज्जति ? गोयमा ! तीहितो वि उववज्र्ज्जति ॥ ६८. एवं जाव अच्चुओ कप्पो । एवं गेवेज्जगदेवा वि, णवरं - असंजत-संजतासंजते१. x ( क ) । तिरिक्खजोणिएहितो उव मणुस्सेहितो उव नो देवहितो उव । एवं सोहम्मीसाणगदेवा वि (ग) । २. माणिया णं भंते ! कओहितो उववज्जति ? किं नेरइएहितो जब कि पंचेंदियतिरिक्खजोणिहितो उव किं मगुस्सेहितो उव किं देवेहितो उव गोयमा ! नो नेरइयहितो उव पंचिदिय ३. सणकुमारा देवा ( ग ) । ४° हिंतो वि ( ख ) । किं Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठ्ठे वक्कतिपयं १४५ हितो व ते डिसेयव्वा । एवं जहेव गेवेज्जगदेवा तहेव अणुत्तरोववाइया वि, णवरं - इमं णाणत्तं - संजया चेव । जदि संजतसम्मद्दि पिज्जत्तसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवव कंतियमणुस्से हिंतो उववज्जंति किं मत्त संजतसम्मद्दिट्ठपज्जत्तएहिंतो अपमत्तसंजते हितो उववज्जंति ? गोयमा ! अपमत्तसंजएहिंतो उववज्जंति नो पमत्तसंजएहिंतो उववज्जंति । जदि अपमत्तसंजए हिंतो उववज्जंति किं इड्डिपत्तअपमत्तसंजते हितो उववज्जंति ? अणिड्डित्तअपमत्तसंजते हितो उववज्जंति ? गोयमा ! दोहितो वि उववज्जंति ॥ उणादारं उणावं उववाय-पदं ६६. नेरइया णं भंते ! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छति ? कहि उववज्जंति ? किं नेरइएस उववज्जंति ? तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति ? मणुस्सेसु उववज्जंति ? देवेसु उववज्जति ? गोयमा ! णो ने रइएसु उववज्जंति, तिरिक्खजोगिएसु उववज्जंति, मणुस्से उववज्जंति, नो देवेसु उववज्जति ॥ १००. जदि तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति किं एगिंदियतिरिक्खजोगिएसु जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति ? गोयमा ! नो एगिदिएसु जाव नो चउरिदिएसु उववज्जंति, 'पंचेंदिएसु उववज्जंति" । एवं जेहिंतो उववाओ भणितो' तेसु उव्वट्टणा वि भाणितव्वा, नवरं - सम्मुच्छिमेसु ण उववज्जंति । एवं सव्वपुढवीसु भाणितव्वं, नवरं - अहे - सत्तमाओ मणुस्सेसु ण उववज्जंति ॥ १०१. असुरकुमारा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहि गच्छंति ? कहि उववज्जंति ? किं नेरइएस उववज्जंति जाव देवेसु उववज्जंति ? गोयमा ! नो नेरइएसु उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, मणुस्सेसु उववज्जंति, नो देवेसु उववज्जंति ॥ १०२. जदि तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति किं एगिदियतिरिक्खजोगिएसु जाव पंचेंदियतिरिक्खजोगिएसु उववज्जंति ? गोयमा ! एगिदियतिरिक्खजोगिएसु उववज्जंति, नो इंदिए जाव नो चउरिदिएसु उववज्जंति, पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति । जदि एगिदिए उववज्जंति किं पुढविकाइयएगिदिएसु जाव वणस्सइकाइयएगिदिए सु उववज्जंति ? गोयमा ! पुढविकाइयएगिदिएसु वि आउकाइयएगिदिएसु वि उववज्जंति, नो ते उकाइए नो वाउकाइएसु उववज्जंति, वणस्सइकाइएस उववज्जति । दि पुढविकाइए उववज्जंति किं सुहुमपुढविकाइएसु उववज्जंति ? बादरपुढविकाइए उववज्जति ? गोयमा ! 'बादरपुढविकाइएस उववज्जंति, नो सुहुमपुढविकाइएसु" । जदि बादरपुढविकाइएसु उववज्जंति किं पज्जत्तगवादरपुढविकाइएसु उववज्जंति ? अपज्जत्तगवायरपुढविकाइएसु उववज्जंति ? गोयमा ! पज्जत्तएसु उववज्जंति, नो अपज्जत्तएसु । एवं आउ-वणस्सती विभाणितव्वं । १. X ( क, ख, घ) 1 २. प० ६।७१ । ३. नो सुहुमपुढविकाइएसु उवव० बादरपुढवि काइएसु उववज्जति ( क ) । ४. प० ६।१०० । Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवातं पंचेंद्रियतिरिक्खजोणिय - मणुस्सेसु य जहाँ नेरइयाणं उब्वट्टणा सम्मुच्छिमवज्जा तहा भाणितव्वा । एवं जाव थणियकुमारा ॥ १४६ १०३. पुढविकाइया णं भंते ! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छन्ति ? कहि उववज्जंति ? किं नेरइएसुजाव देवेसु ? गोयमा ! नो नेरइएसु उववज्जंति तिरिक्खजोणिय मणुस्सेसु उववज्जंति, नो देवेसु । एवं जहा एतेसि चेव उववाओ तहा उव्वट्टणा वि देववज्जा' भाणितव्वा' ॥ १०४. एवं आउ-वणस्सइ-बेइं दिय- तेइंदिय - चउरिदिया वि । एवं तेऊ वाऊ वि णवरंमणुस्सवज्जेसु उववज्जति ॥ १०५. पंचेंद्रियति रिक्खजोणिया णं भंते! अनंतरं उब्वट्टित्ता कहिं गच्छति कहि उववज्जति ? कि नेरइएसु जाव देवेसु ? गोयमा ! नेरइएसु उववज्जंति जाव देवेसु उववज्जंति ॥ १०६. जदि नेरइएसु उववज्जंति किं रयणप्पभापुढविनेरइएस उववज्जंति जाव असत्तमापुढविनेरइएस उववज्जंति ? गोयमा ! रयणप्पभापुढविनेरइएस वि उववज्जंति जाव असत्तमापुढविनेरइएस वि उववज्जंति || १०७. जदि तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति कि एगिदिएसु जाव पंचिदिएसु ? गोयमा ! एगिदिए वि उववज्जंति जाव पंचिदिएसु वि उवबज्जंति । एवं जहा एतेसिं चेव' उववाओ उट्टणावि तहेव भाणितव्वा, नवरं - असंखेज्जवासाउएसु वि एते उववज्जंति । १०८. जद मणुस्सेसु उववज्जति किं सम्मुच्छिममणुस्सेसु उववज्जंति ? गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु उववज्जंति ? गोयमा ! दोसु वि उववज्जंति । एवं जहा उववाओ तहेव उव्वणा वि भाणितव्वा, नवरं - अकम्मभूमग अंतरदीवग असंखेज्जवासाउएस वि एते उववज्जंति त्ति भाणितव्वं ॥ १०६. जदि देवेसु उववज्जंति किं भवणवतीसु उववज्जंति जाव वेमाणिएसु उववज्जंति ? गोयमा ! सव्वेसु चेव उववज्जंति । जदि भवणवती उववज्जंति किं असुरकुमारेसु उववज्जंति जाव थणिकुमा उववज्जंति ? गोयमा ! सव्वेसु चेव उववज्जति । एवं वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणि सु निरंतरं उववज्जंति जाव सहस्सारो कप्पो त्ति ॥ ११०. मणुस्सा णं भंते ! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छति ? कहि उववज्जंति ? कि इस उववज्जति जाव देवेसु उववज्जंति ? गोयमा ! नेरइएसु वि उववज्जंति जाव देवे वि उववज्जति । एवं निरंतरं सव्वेसु ठाणेसु पुच्छा । गोयमा ! सव्वेस ठाणेसु उववज्जंति, ण कहिंचि पडिसेहो कायव्वो जाव सव्वगसिद्धदेवेसु वि उववज्जंति । अत्थेगतिया सिज्झति बुज्झति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति ॥ १११. वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिया सोहम्मीसाणा य जहा असुरकुमारा, नवरं - जोइसियाणं वेमाणियाण य चयंतीति अभिलावो कातव्वो । १. प० ६१८३, ८४ | २. x ( ख, घ ) । ३. च (ख) । ४. भवणवासीसु ( ग ) | Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठें वक्कंतिपयं १४७ ११२. सणंकुमारदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहा असुरकुमारा, नवरं- एगिदिएसु ण उववज्जति । एवं जाव सहस्सारगदेवा ॥ ११३. आणय जाव अणुत्तरोववाइया देवा एवं चेव, णवरं- णो तिरिक्खजोणिएस उववज्जति, मणुस्सेसु पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेसु उववज्जति ॥ परभवियाउयदारं परभवायुबंधकाल-पदं ११४. नेरइया णं भंते ! कतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति ? गोयमा ! णियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति । एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा॥ ११५. पुढ विकाइया णं भंते! कतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति? गोयमा! पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--सोवक्कमाउया य निरुवक्कमाउया य। तत्थ णं जेते निरुवक्कम्माउया ते णियमा तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। तत्थ णं जेते सोवक्कमाउया ते सिय तिभागावसेसाउया परभवियाज्यं पकरेंति, सिय तिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागतिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति । आउ-तेउ-वाउ-वणरसकाइयाणं बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाण वि एवं चेव ।। ११६. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! कतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति ? गोयमा ! पंचेंदियतिरिवखजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संखेज्जवासाउया य असंखेज्जवासाउया य। तत्थ णं जेते असंखेज्जवासाउया ते नियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति । तत्थ णं जेते संखेज्जवासाउया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहासोवक्कमाउया य निरुवक्कमाउया य । तत्थ ण जेते निरुवक्कमाउया ते णियमा तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। तत्थ णं जेते सोवक्कमाउया ते णं सिय तिभागे परभवियाउयं पकरेति, सिय तिभागतिभागे य परभवियाउयं पकरति, सिय तिभागतिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेति । एवं मणुस्सावि ॥ ११७. वाणमंतर-जोइसिय-माणिया जहा नेरइया ॥ आगरिसदारं आउयबंधस्स आगरिस-पदं ११८. कतिविधे णं भंते ! आउयबंधे पण्णत्ते ? गोयमा ! छव्विधे आउयबंधे पण्णत्ते, तं जहा-जातिणामणिहत्ताउए, गइनामणिहत्ताउए, ठितीनामणिहत्ताउए, ओगाहणाणामणिहत्ताउए, पदेसणामणिहत्ताउए, अणुभावणामणिहत्ताउए । ११६. नेरइयाणं भंते ! कतिविहे आउयबंधे पण्णत्ते ? गोयमा ! छव्विहे आउयबंधे पण्णत्ते, तं जहा -जातिनामनिहत्ताउए, गतिणामनिहत्ताउए, ठितीणामणिहत्ताउए, ओगाहणानामनिहत्ताउए, पदेसणामनिहत्ताउए, अणुभावणामनिहत्ताउए। एवं जाव वेमाणियाण ॥ १. बंधंति (मवृ)। २. आउबंधे (ग)। Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ पण्णवणासुत्त १२०. जीवा णं भंते ! जातिणामणिहत्ताउयं कतिहिं आगरिसेहिं पकरेंति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्केण वा दोहि वा तीहि वा, उक्कोसेणं अट्ठहिं ॥ १२१. नेरइया णं भंते ! जाइनामनिहत्ताउयं कतिहिं आगरिसेहिं पकरेंति ? गोयमा ! जहण्णणं एक्केण वा दोहि वा तीहिं वा, उक्कोसेणं अहिं । एवं जाव वेमाणिया॥ १२२. एवं गतिणाम निहत्ताउए वि ठितीणामनिहत्ताउए वि ओगाहणाणामनिहत्ताउए वि पदेसणामनिहत्ताउए वि अणुभावणाम निहत्ताउए वि ।। १२३. एतेसि णं भंते ! जीवाणं जातिनामनिहत्ताउयं जहण्णणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा उक्कोसेणं अहिं आगरिसेहिं पकरेमाणाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा जातिणामणिहत्ताउयं अट्ठहिं आगरिसेहिं पकरेमाणा, सत्तहिं आगरिसेहि पक रेमाणा संखेज्जगुणा, छहिं आगरिसेहि पकरेमाणा संखेज्जगुणा, एवं पंचहि संखेज्जगुणा, चउहि संखेज्जगुणा, तिहि संखेज्जगुणा, दोहिं संखेज्जगुणा, एगेणं आगरिसेणं पगरेमाणा संखेज्जगुणा । एवं एतेणं अभिलावेणं जाव अणुभावनिहत्ताउयं । एवं एते छप्पि य अप्पाबहुदंडगा जीवादीया भाणियव्वा ।। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं उस्सासपयं चउवीसदंडएसु उस्सासविरहकाल-पदं १. नेरइया णं भंते ! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ? गोयमा ! सततं संतयामेव आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ।। २. असुरकुमारा णं भंते ! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ? गोयमा ! जहण्णणं सत्तण्डं थोवाणं, उक्कोसेणं सातिरेगस्स पक्खस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा ।। ३. णागकुमारा णं भंते ! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ? गोयमा ! जहणणेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं मुहत्तपुहत्तस्स'। एवं जाव थणियकुमाराणं ॥ ४. पुढविकाइया णं भंते ! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा जाव नीससंति वा ? गोयमा ! वेमायाए आणमंति वा जाव नीससंति वा । एवं जाव मणुस्सा॥ ५. वाणमंतरा जहा णागकुमारा॥ ६. जोइसिया णं भंते ! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहण्णेणं मुहुत्तपुहत्तस्स, उक्कोसेण वि मुहुत्तपुहत्तस्स जाव नीससंति वा ।। ७. वेमाणिया णं भंते ! केवतिकालस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा? गोयमा ! जहण्णेणं मुहत्तपुहत्तस्स, उक्कोसेणं तेत्तीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा ।। ८. सोहम्मगदेवा णं भंते ! केवतिकालस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहण्णणं मुहुत्तपुहत्तस्स, उक्कोसेणं दोण्हं पक्खाणं जाव नीससंति वा ।। ६. ईसाणगदेवा णं भंते ! केवइकालस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहण्णेणं सातिरगेस्स मुहत्तपुहत्तस्स, उक्कोसेणं सातिरेगाणं दोण्हं पक्खाणं जाव नीससंति वा॥ १०. सणंकुमारदेवा णं भंते ! केवतिकालस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहण्णेणं दोण्हं पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं सत्तण्हं पक्खाणं जाव नीससंति वा ॥ ११. माहिंदगदेवाणं भंते ! केवतिकालस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा ? गोयमा ! १. °पुहुत्तस्स (क,ग); पुहुत्त (ख,घ)। १४६ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० जणेणं सातिरेगाणं' दोन्हं पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं सातिरेगाणं सत्तण्हं पक्खाणं जाव नीससंति वा ॥ पणवणा १२. बंभलोगदेवा णं भंते ! केवतिकालस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा ? गोमा ! जहणेणं सत्तण्हं पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं दसहं पक्खाणं जाव नीससंति वा ॥ १३. लंतगदेवा णं भंते ! केवतिकालस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहणणं दसहं पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं चोद्दसण्हं पक्खाणं जाव नीससंति वा ॥ १४. महासुक्कदेवा णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहणणं चोदसण्हं पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं सत्तरसहं पक्खाणं जावनीसति वा ॥ १५. सहस्सारगदेवा णं भंते ! केवतिकालस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा ? गोमा ! जहणे सत्तरसण्हं पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं अट्ठारसहं पक्खाणं जाव नीससंति वा ॥ १६. आणयदेवा णं भंते ! केवतिकालस्स जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहणेणं अट्ठारसण्हं पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं एगूणवीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा ॥ १७. पाणयदेवा णं भंते! केवतिकालस्स जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहणेणं गुणवीस पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं वीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा ।। १८. आरणदेवा णं भंते! केवतिकालस्स जाब नीससंति वा ? गोयमा ! जहणेणं वीसा पक्खाणं जावनीससंति वा उक्कोसेणं एगवीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा ॥ १६. अच्चयदेवा णं भंते ! केवतिकालस्स जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहणेणं एक्कवीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा उक्कोसेणं वावीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा ॥ २०. हेमिट्टि वेज्जगा देवा णं भंते! केवतिकालस्स जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहणेणं बावीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं तेवीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा ॥ २१. हेट्टिममज्झिमवेज्जगा देवा णं भंते! केवतिकालस्स जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहणेणं तेत्रीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं चउवीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा ॥ २२. हेट्टिमउवरिमगे वेज्जगा देवा णं भंते! केवतिकालस्स जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहणणं चडवीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं पणवीसाए' पक्खाणं जाव नीससंति वा ॥ २३. मज्झिमहेट्ठिमगे वेज्जगा देवा णं भंते! केवतिकालस्स जाव नीससंति वा ? १. × ( ख, ग ) । २. पंचवीसाए ( ग ) । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम उस्सासपयं १५१ गोयमा ! जहणणं पणुवीसाए पक्खाणं जाव नोससंति वा, उक्कोसेणं छव्वीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा ।। २४. मज्झिममज्झिमगेवेज्जगा देवा णं भंते ! केवतिकालस्स जाव नीससंति वा? गोयमा ! जहण्णणं छव्वीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेण सत्तावीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा ।। २५. मज्झिमउवरिमगेवेज्जगा देवा णं भंते ! केवतिकालस्स जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहण्णणं सत्तावीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं अट्ठावीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा॥ २६. उवरिमहेट्ठिमगेवेज्जगा देवा णं भंते ! केवतिकालस्स जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहण्णणं अट्ठावीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा, उक्कोसेणं एगूणतीसाए पक्खाणं जाव नोससंति वा ।। ७. उवरिममज्झिमगेवेज्जगा देवा णं भंते ! केवतिकालस्स जाव नीससंति वा? गोयमा ! जहणणं एगूणतीसाए पक्खाणं जाव नोससंति वा, उक्कोसेणं तीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा ।। २८. उवरिमउवरिमगेवेज्जगा देवा ण भंते! केवतिकालस्स जाब नीससंति वा? गोयमा ! जहण्णेणं तीसाए पक्खाणं जाव नीससति वा, उक्कोसेणं एक्कतीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा ।। २६. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजितविमाणेसु णं भंते ! देवा केवतिकालस्स जाव नीससंति वा ? गोयमा ! जहणणं एक्क्रतीसाए पक्खाणं जाव नीससंति बा, उक्कोसेणं तेत्तीसाए पवखाणं जाव नीससंति वा ।। ३०. सव्वदसिद्धगदेवा णं भंते ! केवतिकालस्स जाव नीससंति वा ? गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसाए पक्खाणं जाव नीससंति वा ।। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं सण्णापयं सण्णाभेय-पदं १. कति णं भंते ! सण्णाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! दस सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आहारसण्णा, भयसण्णा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा, कोहसण्णा, माणसण्णा, मायासण्णा, लोभसण्णा लोगसण्णा, ओघसण्णा ।। नेरझ्याईणं सण्णा-पदं २. नेर इयाणं भंते ! कति सण्णाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! दस सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--आहारसण्ण , भयसपणा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा, कोहसण्णा, माणसण्णा, मायासण्णा, लोभसण्णा, लोगसण्णा, ओघसण्णा ।। ३. असुरकुमाराणं भंते ! कति सण्णाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! दस सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आहारसण्णा जाव ओघसण्णा। एवं जाव थणियकुमाराणं । एवं पढविकाइयाणं वेमाणियावसाणाणं णेयव्वं ।। नेरइयाणं सण्णावियार-पदं ४. नेरइया णं भंते ! किं आहारसण्णोवउत्ता भयसण्णोवउत्ता मेहुणसण्णोवउत्ता परिग्गहसण्णोवउत्ता ? गोयमा ! ओसण्णकारणं' पडुच्च भयसण्णोवउत्ता, संतइभावं पडच्च आहारसण्णोवउत्ता वि जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता वि ।। ५. एतेसि णं भंते ! नेरइयाणं आहारसण्णोव उत्ताणं भयसण्णोव उत्ताणं मेहणसण्णोवउत्ताणं परिग्गहसण्णोवउत्ताण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा नेरइया मेहुणसण्णोवउत्ता, आहारसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, परिग्गहसण्णोवउत्ता संखज्जगुणा, भयसण्णोवउत्ता संखज्जगुणा ।। तिरिक्खजोणियाणं सण्णावियार-पदं ६. तिरिक्खजोणिया णं भंते ! किं आहारसण्णोवउत्ता जाव परिग्गहसण्णोव उत्ता? गोयमा ! ओसण्णकारणं पडुच्च आहारसण्णोवउत्ता, संतइभावं पडुच्च आहारसण्णोवउत्ता वि जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता वि ।। ७. एतेसि णं भंते ! तिरिक्खजोणियाणं आहारसण्णोवउत्ताणं जाव परिग्गहसण्णोवउत्ताण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. ओसण्णं कारण (ग) सर्वत्र । १५२ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठ अण्णापर्यं सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणिया परिग्गहसण्णोवउत्ता, मेहुणसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, भयसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, आहारसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा || मस्सा सणावियार- पदं ८. मस्सा णं भंते! कि आहारसण्णोवउत्ता जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता ? गोयमा ! ओसणकारणं' पडुच्च मेहुणसण्णोवउत्ता, संततिभावं पडुच्च आहारसण्णोवउत्ता विजाव परिहसणवत्ता वि ।। ६. एतेसि णं भंते! मणुस्साणं आहारसण्णोवउत्ताणं जाव परिग्गहसण्णोवउत्ताणं य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सा भयसण्णोवउत्ता, आहारसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, परिग्गहसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, मेहुणसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा ॥ देवाणं सण्णावियार-पदं १०. देवा णं भंते ! कि आहारसण्णोवउत्ता जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता ? गोयमा ! ओसण्णकारणं पडुच्च परिग्गहसण्णोवउत्ता, संततिभावं पडुच्च आहारसण्णोवउत्तावि जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता वि । ११. एतेसि णं भंते ! देवाणं आहारसण्णोवउत्ताणं जाव परिग्गहसण्णोवउत्ताण य कतरे कतरोहित अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा देवा आहारसण्णोवउत्ता, भयसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, मेहुणसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, परिग्गहसणवत्ता संखेज्जगुणा ॥ १. उसण ( क ) । १५३ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमं जोणीपयं सोयाइजोणि-पदं १. कतिविहा णं भंते ! जोणी पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा -सीता जोणी, उसिणा जोणी, सीतोसिणा जोणी॥ २. नेरइयाणं भंते ! कि सीता जोणी? उसिणा जोणी? सोतोसिणा जोणी ? गोयमा ! सीता वि जोणी, उसिणा वि जोणी, नो सीतोसिणा जोणी॥ ३. असुरकुमाराणं भंते ! कि सीता जोणी? उसिणा जोणी ? सीतोसिणा जोणी? गोयमा ! नो सीता, नो उसिणा, सीतोसिणा जोणी । एवं जाव थणियकुमाराणं ।। ४. पुढविकाइयाणं भंते ! कि सीता जोणी ? उसिणा जोणी ? सीतोसिणा जोणी ? गोयमा ! सीता वि जोणी, उसिणा वि जोणी, सीतोसिणा वि जोणी। एवं आउ-वाउवणस्सति-बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियाण वि पत्तंय भाणियव्वं ।। ५.तेउक्काइयाणं नो सीता, उसिणा. नो सीतोसिणा ॥ ६. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! कि सीता जोणी? उसिणा जोणी ? सीतोसिणा जोणी ? गोयमा ! सीता वि जोणी, उसिणा वि जोणी, सीतोसिणा वि जोणी । सम्मच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं एवं चेव ।। ७. गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! कि सीता जोणी ? उसिणा जोणी? सीतोसिणा जोणी? गोयमा ! नो सीता जोणी, नो उसिणा जोणी, सीतोसिणा जोणी॥ ८. मणुस्साणं भंते ! किं सीता जोणी? उसिणा जोणी? सीतोसिणा जोणी? गोयमा ! सीता वि जोणी, उसिणा वि जोणी, सीतोसिणा वि जोणी॥ ____६. सम्मुच्छिममणुस्साणं भंते ! कि सीता जोणी ? उसिणा जोणी ? सीतोसिणा जोणिी? गोयमा ! तिविहा वि' जोणी ।। १०. गब्भवक्कंतियमणुस्साणं भंते ! किं सीता जोणी ? उसिणा जोणी ? सीतोसिणा जोणी ? गोयमा ! नो सीता जोणी, नो उसिणा जोणी, सीतोसिणा जोणी ॥ ११. वाणमंतरदेवाणं भंते ! कि सीता जोणी? उसिणा जोणी? सीतोसिणा १. ४ (क,ख)। १५४ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं जोणीपयं १५५ जोणी ? गोयमा ! नो सीता, नो उसिणा, सीतोसिणा जोणी। जोइसिय-वेमाणियाण वि एवं चेव ॥ १२. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सीतजोणियाणं उसिणजोणियाणं सीतोसिणजोणियाणं अजोणियाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा सीतोसिणजोणिया, उसिणजोणिया असंखेज्जगुणा, अजोणिया अणंतगुणा, सीतजोणिया अणंतगुणा । सचित्ताइजोणि-पदं १३. कतिविहा णं भंते ! जोणी पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता। तं जहा-सचित्ता, अचित्ता, मीसिया ।। १४. नेरइयाणं भंते ! कि सचित्ता जोणी ? अचित्ता जोणी? मीसिया जोणी ? गोयमा ! नो सचित्ता जोणि, अचित्ता जोणी, णो मीसिया जोणी ॥ १५. असरकमाराणं भंते ! कि सचित्ता जोणी ? अचित्ता जोणी? मीसिया जोणी ? गोयमा ! नो सचित्ता जोणी, अचित्ता जोणी, नो मीसिया जोणी। एवं जाव थणियकुमाराणं ॥ पढविकाइयाणं भंते ! कि सचित्ता जोणी ? अचित्ता जोणी? मीसिया जोणी? गोयमा ! सचित्ता वि जोणी, अचित्ता वि जोणी, मीसिया वि जोणी। एवं जाव चउरिदियाणं । सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मुच्छिममणुस्साण य एवं चेव ।। १७. गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गब्भवतियमणुस्साण य नो सचित्ता, नो अचित्ता, मीसिया जोणी॥ १८. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं ॥ १६. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सचित्तजोणीणं अचित्तजोणीणं मीसजोणीणं अजोणीण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा मीसजोणिया, अचित्तजोणिया असंखेज्जगुणा, अजोणिया अणंतगुणा, सचित्तजोणिया अणंतगुणा ॥ संवुडाइजोणि-पदं २०. कतिविहा णं भंते ! जोणी पण्णता? गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा--संवुडा जोणी, वियडा जोणी, संवडवियडा जोणी ॥ २१. नेरइयाणं भंते ! किं संवुडा जोणी ? वियडा जोणी ? संवडवियडा जोणी ? गोयमा ! संवडा लोणी, नो वियडा जोणी, नो संवुडवियडा जोणी। एवं जाव वणस्सइकाइयाणं ॥ २२. बेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! नो संवुडा जोणी, वियडा जोणी, णो संवुडवियडा जोणी । एवं जाव चरिदियाणं । सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मुच्छिममणुस्साण य एवं चेव ॥ २३. गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्ख जोणियाणं गब्भवक्कंतियमणुस्साण य नो संवुडा जोणी, नो वियडा जोणी, संवुडवियडा जोणी ॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ २४. वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं || २५. एतेसि णं भंते ! जीवाणं संवुडजोणियाणं वियडजोणियाणं संवुडवियडजोणियाणं अजोणियाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा संवुडवियडजोणिया, वियडजोणिया असंखेज्जगुणा, अजोणिया अतगुणा, संवुडजोणिया अनंतगुणा || कुम्मुण्णयाइजोणि-पदं २६. कतिविहा णं भंते ! जोणी पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा – कुम्मुण्णया, संखावत्ता, वंसीपत्ता | कुम्मुण्णया णं जोणी उत्तमपुरिसमाऊणं । कुम्मुण्णयाए णं जोणी उत्तमपुरिसा गब्भे वक्कमंति, तं जहा -अरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा । संखावत्ता णं जोणी इत्थिरयणस्स । संखावत्ताए णं जोणीए बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमति विउक्कमंति चयंति उवचयंति, नो चेव णं निप्फज्जंति । वंसीपत्ता जोणी पिहुजणस्स | वंसीपत्ताए णं जोणीए पिहुजणा' गब्भे वक्कमंति ॥ १. पहुजणे ( ख, ग, घ ) । पण्णवणासुत्तं Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं चरिमपयं चरिमाचरिमविभाग-पदं १. कति णं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! अट्ट पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- रयणप्पभा, सक्करप्पभा, वालुयप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, तमप्पभा, तमतमप्पभा, ईसीपब्भारा ॥ २. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी किं चरिमा अचरिमा चरिमाइं अचरिमाइं चरिमंतपदेसा अचरिमंतपदेसा? गोयमा ! इमा णं रतणप्पभा पुढवी नो चरिमा नो अचरिमा नो चरिमाइं नो अचरिमाइं नो चरिमंतपदेसा नो अचरिमंतपदेसा, णियमा अचरिमं च चरिमाणि य चरिमंतपदेसा य अचरिमंतपएसा य । एवं जाव अहेसत्तमा पुढवी । सोहम्मादी जाव अणुत्तरविमाणा एवं चेव । ईसीपब्भारा वि एवं चेव । लोगे वि एवं चेव । एवं अलोगे वि॥ चरिमाचरिमपयाणं अप्पबहुत्त-पदं ३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठ-पएसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेज्जगुणाई, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाइं। पदेसट्टयाए सव्वत्थोवा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए चरिमंतपदेसा, अचरिमंतपएसा असंखेज्जगुणा, चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया। दव्वट्ट-पदेसट्ठयाए सव्वत्थोवा इमीसे रतणप्पभाए पुढवीए दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेज्जगुणाई, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई, चरिमंतपएसा असंखेज्जगुणा, अचरिमंतपएसा असंखेज्जुगुणा, चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया । एवं जाव अहेसत्तमा । सोहम्मस्स जाव लोगस्स य एवं चेव ॥ ४. अलोगस्स णं भंते ! अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पदेसट्टयाए दव्वट्ठ-पदेसट्ठयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे अलोगस्स दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेज्जगुणाई, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई। पदेसट्टयाए सव्वत्थोवा अलोगस्स चरिमंतपदेसा, अचरिमंतपदेसा अणंतगुणा, चरिमंतपदेसा य अचरि १५७ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ पण्णवणासुतं मंत देसाय दो विविसेसाहिया । दव्वट्ट -पदेसट्टयाए सव्वत्थोवे अलोगस्स दव्वट्टयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेज्जगुणाई, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई, चरिमंत देसा असंखेज्जगुणा, अचरिमंतपदेसा अनंतगुणा, चरिमंतपएसा य अचरिमंतपसा य दो वि विसेसाहिया ॥ ५. लोगालोगस्स णं भंते ! अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपरसाण य अचरिमंतपसाय दव्वट्टयाए पदेसट्टयाए दव्वट्ट- पए सट्टया ए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे लोगालोगस्स दव्वट्टयाए एगमेगे अचरिमे, लोगस्स चरिमाई असंखेज्जगुणाई, अलोगस्स चरिमाई विसेसाहियाई लोगस्स य अलोगस्स य अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई । पदेसट्टयाए सव्वत्थोवा लोगस्स चरिमंतपदेसा, अलोगस्स चरिमंतपदेसा विसेसाहिया, लोगस्स अचरिमंतपदेसा असंखेज्जगुणा, अलोगस्स अचरिमंतपदेसा अनंतगुणा, लोगस्स य अलोगस्स य चरिमंतपदेसाय अचरिमंतपसा य दो वि विसेसाहिया । दव्वट्ठ-पदेसट्टयाए सव्वत्थोवे लोगालोगस्स दव्वट्टयाए एगमेगे अचरिमे, लोगस्स चरिमाई असंखेज्जगुणाई, अलोगस्स चरिमाइं विसेसाहियाई, लोगस्स य अलोगस्स य अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई, लोगस्स चरिमंतपएसा असंखेज्जगुणा, अलोगस्स चरिमंतपएसा विसेसाहिया, लोगस्स अरिमंत एसा असंखेज्जगुणा, अलोगस्स अचरिमंतपएसा अनंतगुणा, लोगस्सय अलोगस्स य चरिमंतपसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया, सव्वदव्वा विसेसाहिया, सव्वपएस अनंतगुणा, सव्वपज्जवा अणंतगुणा ॥ परमाणुपोग्गलाईणं चरिमाइविभाग-पदं ६. परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं चरिमे १ अचरिमे २ अवत्तव्वए ३ ? चरिमाई ४ अरिमाई ५ अवत्तव्वयाई ६ ? उदाहु चरिमेय अचरिमेय ७ उदाहु चरिमेय अरिमाई च ८ उदाहु चरिमाइं च अचरिमे यह उदाहु चरिमाई च अचरिमाई च १० ? [पढमा चउभंगी ] । उदाहु चरिमेय अवत्तव्वए य ११ उदाहु चरिमे य अवत्तव्वयाई च १२ उदाहु चरिमाई च अवत्तव्वए य १३ उदाहु चरिमाई च अवत्तव्वयाई च १४ ? [बीया चउभंगी] । उदाहु अचरिमेय अवत्तव्वए य १५ उदाहु अचरिमे य अवत्तव्वयाई च १६ उदाहु अचरिमाई च अवत्तव्वए य १७ उदाहु अचरिमाई च अवत्तव्वयाई च १८ ? [ तइया चभंगी ] | उदाहु चरिमेय अरिमे य अवत्तव्वए य १६ उदाहु चरिमेय अचरिमेय अवत्तव्वयाइं च २० उदाहु चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वए य २१ उदाहु चरिमेय अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च २२ उदाहु चरिमाई च अचरिमेय अवत्तव्वए य २३ उदाहु चरिमाई च अरिमेय अवत्तव्वयाई च २४ उदाहु चरिमाइं च अचरिमाइं च अवत्तव्वए य २५ उदाहु चरिमाइं च अचरिमाइं च अवत्तव्वयाई च २६ ? [ एवं एते छव्वीसं भंगा ] । गोयमा ! परमाणुपोग्गले नो चरिमे १ नो अचरिमे २ नियमा अवत्तव्वए । ३, सेसा भंगा पडिसेहव्वा ॥ ७. दुपए सिए णं भंते ! खंधे पुच्छा । गोयमा ! दुपए सिए बंधे सिय चरिमे १ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं चरिमपयं १५६ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए |३, सेसा भंगा परिसेहेयव्वा । ८. तिपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। गोयमा ! तिपएसिए खंधे सिय चरिमे |...| १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए। 8३ नो चरिमाइं ४ नो अचरिमाइं ५ नो अवत्तव्वयाइं ६, नो चरिमे य अचरिमे य ७ नो चरिमे य अचरिमाइं ८ सिय चरिमाइं च अचरिमे य |•••| 6 नो चरिमाइं च अचरिमाइं च १०, सिय चरिमे य अवत्तव्वए य ११, सेसा भंगा पडिसेहेयव्वा ॥ ६. चउपएसिए णं भंते ! खंखे पुच्छा । गोयमा ! चउपएसिए णं खंधे सिय चरिमे |.... | १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए || ३ नो चरिमाइं ४ नो अचरिमाइं ५ नो अवत्तव्वयाइं ६, नो चरिमे य अचरिमे य ७ नो चरिमे य अचरिमाइं च ८ सिय चरिमाइं च अचरिमे य .... | सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च |••••| १०, सिय चरिमे य अवत्तव्वए य ....। ११ सिय चरिमे य अवत्तव्वयाइं च १२ नो चरिमाइं च अवत्तव्वए य १३ नो चरिमाइं च अवत्तव्वयाई च १४, नो अचरिमे य अवत्तव्वए य १५ नो अचरिमेय अवत्तव्वयाइंच १६ नो अचरिमाइंच अवत्तव्वए य १७ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १८, नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वए य १६ नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च २० नो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वए य २१ नो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च २२ सिय चरिमाइं च अचरिमे य अवत्तव्वए य २३, सेसा भंगा पडिसेहेयव्वा ॥ | ...| १०. पंचपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा । गोयमा ! पंचपएसिए णं खंधे सिय चरिमे B: १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए|:::| ३ नो चरिमाइं ४ नो अचरिमाइं ५ नो अवत्तव्वयाई ६, सिय चरिमे य अचरिमे य न ७ नो चरिमे य अचरिमाइं च ८ सिय चरिमाइं च अचरिमे य |..... ६ सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च ना. १०, सिय चरिमे य अवत्तव्वए य |... ११, सिय चरिमे य अवत्तव्वयाई च |... १३ नो चरिमाइं च अवत्तव्व १२ सिय चरिमाइं च अवत्तव्वए य |01. Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० पण्णवणासुत्तं याइं च १४, नो अचरिमेय अवत्तव्वए य १५ नो अचरिमेय अवत्तव्वयाइं च १६ नो अचरिमाइंच अवत्तव्वए य १७ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १८, नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वए य १६ नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च २० नो चरिमे य अचरिमाइं च अवनव्वए य २१ नो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च २२ सिय चरिमाइं च अचरिमे य अवत्तव्वए य - २३ सिय चरिमाइं च अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च |... २४ सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च अवत्तव्वए य - २५ नो चरिमाइं च अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च २६ ।। .... ११. छप्पएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। गोयमा ! छप्पए सिए णं खंधे सिय चरिमे :: १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए ::: ३ नो चरिमाइ ४ नो अचरिमाइं ५ नो अवत्तव्बयाई ६, सिय चरिमे य अचरिमे य :- ७ सिय चरिने म अचरि नो अवत्तव्वयाई ६, सिय चरिमे य अचरिमे य ७सिय चरिमेय अचरि माइंच ८ सिय चरिमाइं च अचरिमे य हैसिय चरिमाइं च अचरिमाइंच १०, सिय चरिमेय अवत्तव्वए य |:: ११ सिय चरिमे य अवत्तव्वयाइंच १२ सिय चरिमाइंच अवत्तव्वए य | १३ सिय चरिमाइंच अवत्तव्वयाई नो अचरिमेय अवत्तव्वए य १५ नो अचरिम य अवत्तव्वयाइं च १६ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वए य १७ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वयाई Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं चरिमपयं च १८, सिय चरिमेय अचरिमेय अवत्तव्वए य १६ नो चरिमेय अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च २० नो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वए य २१ नो चरिमे य अचरि माइं च अवत्तव्वयाइं च २२ सिय चरिमाई च अचरिमेय अवत्तव्वए य च अवत्तव्वए य ··· सिय चरिमाइं च अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च नः २४ सिय चरिमाइं च अर्चारिमाइं २६॥ चरिमेय अचरिमाइं चरिमाइं च अचरिमाई च अरिमाई ५ नो अवत्तव्वयाई ६, सिय चरिमे य अचरिमे य चरिमेय अवत्तव्वयाइं च · १२. सत्तपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा । गोयमा ! सत्तपएसिए णं बंधे सिय चरिमे १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए ३ नो चरिमाई ४ नो • सिय चरिमाइं च अवत्तव्वयाई च 3 २५ सिय चरिमाई च अचरिमाई च अवत्तव्वयाई च ... .. • • ८ सय चरिमाई च अचरिमेय 1818181 १०, सिय चरिमेय अवत्तव्वए य १६१ '१२ सिय चरिमाई च अवत्तव्वए य २३ · ७ सिय .. सिय ११ सिय १३ १४, नो अचरिमेय अवत्तव्वए १५ नो Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ पण्णवणासुत्त अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च १६ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वए य १७ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १८, सिय चरिमे अचरिमे य अवत्तव्वए य ___ १६ सिय चरिमे य अचरिमेय अवत्तव्वयाई २० सिय चरिमेय अचरिमाइं च अवत्तव्वए नो चरिमेय अचरिमाइंच अवत्तव्वयाइंच २२ सिय चरिमाइं च अचरिमेय अवत्तव्वए य २३ सिय चरिमाइंच अचरिमे य अवत्त व्वयाइं च ||BHI २४ सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च अवत्तव्वए य. •8BI २५ सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च |08 २६ ॥ १३. अट्ठपदेसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। गोयमा ! अट्ठपदेसिए खंधे सिय चरिमे 88| १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए ३ नो चरिमाई ४ नो अचरिमाइं ५ नो अवतव्याई ६, सिम रिमे म अचरिमे व अवत्तव्वयाइं६,सिय चरिमेय अचरिमे य र सिम चरिमे म अचरिमाई च ७ सिय चरिमे य अचरिमाइं च •| ८ सिय चरिमाइं च अचरिमे य 888 सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च BBBB| १०, सिय चरिमे य अवत्तव्वए य म ११ सिय चरिमे य अवत्तव्वयाई न | १२ सिय चरिमाइं च अवत्तव्वए य __.. १३ सिय चरिमाइं च च| Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं चरिमपयं अवत्तव्वयाई च .. १४, नो अचरिमेय अवत्तव्वए य १५ नो अचरिमे य .. अवत्तव्वयाइं च १६ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वए य १७ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वयाई च १८, सिय चरिमेय अचरिमेय अवत्तव्वए य १६ सय चरिमेय अचरिमे य अवत्तव्वयाई च • य अवत्तव्वयाई च य २२ सिय चरिमाई च अचरिमेय अवत्तव्वए य · २१ सय चरिमेय अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च २० सय चरिमेय अचरिमाई च अवत्तव्त्रए य २६ ॥ .. १६३ · २३ सिय चरिमाई च अचरिमे २४ सिय चरिमाइं च अचरिमाई च अवत्तव्वए २५ सिय चरिमाई च अचरिमाई च अवत्तव्वयाई च BOGER १४. संखेज्जप एसिए असंखेज्जपए सिए अनंतपए सिए बंधे जहेव अट्ठपदेसिए तहेव पत्तेयं भाणितव्वं । गाहा परमाणुम्मि यततिओ, पढमो ततिओ य होति दुपदेसे । पढमो ततिओ नवमो, एक्कारसमो य तिपदेसे || १ || पढमो ततिओ नवमो, दसमो एक्कारसो य बारसमो । भंगा चउपदेसे, तेवीसइमो य बोद्धव्व ॥ २॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं पढमो ततिओ सत्तम, नव दस एक्कार बार तेरसमो। तेवीस चउव्वीसो, पणुवीसइमो य पंचमए ॥३॥ बि चउत्थ पंच छळं, पण्णर' सोलं च सत्तरट्ठारं । वीसेक्कवीस बावीसगं च वज्जेज्ज छट्टम्मि ॥४॥ वि चउत्थ पंच छठें, पण्णर सोलं च सत्तरद्वारं । वावीसइमविहणा, सत्तपदेसम्मि खंधम्मि ॥५॥ बि चउत्थ पंच छठें, पण्णर सोलं च सत्तरद्वारं । 'एते वज्जिय भंगा, सेसा सेसेसु खंधेसु" ॥६॥ संठाणाणं चरिमाइविभाग-पदं १५. कति णं भंते ! संठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच संठाणा पण्णत्ता, तं जहापरिमंडले वट्टे तंसे चउरसे आयते ॥ १६. परिमंडला णं भंते ! संठाणा किं संखेज्जा असंखेज्जा अणंता ? गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता । एवं जाव आयता ॥ १७. परिमंडले णं भंते ! संठाणे किं संखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसिए अणंतपएसिए ? गोयमा ! सिय संखेज्जपएसिए सिय असंखेज्जपदेसिए सिय अणंतपदेसिए। एवं जाव आयते॥ १८. परिमंडले णं भंते ! संठाणे संखेज्जपदेसिए किं संखेज्जपदेसोगाढे असंखेज्जपएसोगाढे अणंतपएसोगाढे ? गोयमा ! संखेज्जपएसोगाढे, नो असंखेज्जपएसोगाढे नो अणंतपएसोगाढे । एवं जाव आयते ।। १६. परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेज्जपदेसिए किं संखेज्जपदेसोगाढे असंखेज्जपदेसोगाढे अणंतपएसोगाढे ? गोयमा ! सिय संखेज्जपएसोगाढे सिय असंखेज्जपदेसोगाढे, णो अणंतपदेसोगाढे । एवं जाव आयते ॥ २०. परिमंडले णं भंते ! संठाणे अणंतपएसिए कि संखेज्जपएसोगाढे असंखेज्जपएसोगाढे अणंतपएसोगाढे ? गोयमा ! सिय संखेज्जपएसोगाढे सिय असंखेज्जपएसोगाढे, नो अणंतपएसोगाढे । एवं जाव आयते ॥ २१. परिमंडले णं भंते ! संठाणे संखेज्जपदेसिए संखेज्जपएसोगाढे किं चरिमे अचरिमे चरिमाइं अचरिमाइं चरिमंतपदेसा अचरिमंतपदेसा? गोयमा ! परिमंडले णं संठाणे संखेज्जपदेसिए संखेज्जपदेसोगाढे नो चरिमे नो अचरिमे नो चरिमाइं नो अचरिमाइंनो चरिमंतपदेसा नो अचरिमंतपएसा, नियमा अचरिमं च चरिमाणि य चरिमंतपदेसा य अचरिमंतपदेसा य । एवं जाव आयते ॥ २२. परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेज्जपएसिए संखेज्जपदेसोगाढे किं चरिमे पुच्छा । गोयमा ! असंखेज्जपएसिए संखेज्जपएसोगाढे जहा' संखेज्जपएसिए। एवं जाव आयते ॥ १. पण्णरस (क); पण्णा (ख); पणर (घ)। २. अन्ये त्वेवमूत्तरार्द्ध पठन्ति--एए वज्जियभंगा, तेण परमवट्ठिया सेसा (वृ)। ३.५० १०१२१ । Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं चरिमपयं १६५ २३. परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेज्जपदेसिए असंखेज्जपएसोगाढे कि चरिमे पुच्छा । गोयमा ! असंखेज्जपदेसिए असंखेज्जपदेसोगाढे नो चरिमे जहा ' संखेज्जपदेसोगाढे । एवं जाव आयते ॥ २४. परिमंडले णं भंते ! संठाणे अणतपएसिए संखेज्जपएसोगाढे किं चरिमे पुच्छा । गोमा ! तहेव' जाव आयते ॥ २५. अणतपदेसिए असंखेज्जपदेसोगाढे जहा संखेज्जपदेसोगाढे । एवं जाव आयते ॥ २६. परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स संखेज्जप एसियस्स संखेज्ज एसो गाढस्स अरिमस् य चरिमाण य चरिमंतपदेसाण य अचरिमंतपदेसाण यदव्याए पदेसgure org - पट्टयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेज्जपदेसियस्स संखेज्जपदेसोगाढस्स Goaट्टयाए एगे अरिमे १ चरिमाई संखेज्जगुणाई २ अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई ३ । पदेसट्टयाए सव्वत्थोवा परिमंडलस्स संठाणस्स संखेज्जपदेसियस्स संखेज्जपदेसोगाढस चरिमंतपदेसा १ अचरिमंतपसा संखेज्जगुणा २ चरिमंतपसा य अचरिमंतपसा य दो वि विसेसाहिया ३ । दव्व-पदेसट्टयाएं सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेज्जपदेसियस्स संखेज्जपदेसोगाढस्स दव्वट्टयाए एगे अचरिमे १ चरिमाइं संखेज्जगुणाई २ अरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई ३ चरिमंतपदेसा संखेज्जगुणा ४ अचरिमंतपसा संखेज्जगुणा ५ चरिमंतपदेसाय अचरिमंत देसाय दो विसेसाहिया ६ । एवं वट्ट-तंस चउरंस - आयएसु वि जोएयव्वं ॥ २७. परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स असंखेज्जप एसियस्स संखेज्ज एसो गाढस्स अरिमस् य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठ-पएसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोमा ! सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स दव्वट्टयाए एगे अचरिमे १ चरिमाई संखेज्जगुणाई २ अचरिमं च चरिमाणि यदो विसेसाहियाई ३ | पदेसट्टयाए सव्वत्थोवा परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेज्ज एसियस्स संखेज्ज एसो गाढस्स चरिमंतपएसा १ अचरिमंतपएसा संखेज्जगुणा २ चरिमंतपसा य अरितपसा दो वि विसेसाहिया ३ । दव्वट्ट- परसट्टयाए सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स दव्वट्टयाए एगे अचरिमे १ चरिमाइं संखेज्जगुणाई २ अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई ३ चरिमंतपएसा संखेज्जगुणा ४ अचरिमं तपसा संखेज्जगुणा ५ चरिमंतपएसाय अचरिमंतपसा य दो वि विसेसाहिया ६ । एवं जाव आयते ।। २८. परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स असंखेज्जपदेसियस्स असंखेज्जपएसो गाढस्स अरिमस् य चरिमाण य चरिमंतपसाण य अचरिमंतपसाण य दव्वट्टयाए पट्टयाए दव्वट्ट-पएसट्टयाए कतरे कतरोहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! जहा' रयणप्पभाए अप्पाबहुयं तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं । । एवं जाव आयते ॥ १. प.१०।२२ । २. प० १० २१ । ३. प० १०।३ । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं २६. परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स अणंतपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठ-पएसट्ठयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! जहा' संखेज्जपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स, णवरं-संकमे अणंतगुणा। एवं जाव आयते ॥ ३०. परिमंडलस्य णं भंते ! संठाणस्स अणंतपएसियस्स अखंखेज्जपएसोगाढस्स अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य जहा रयणप्पभाए, णवरं-संकमे अणंतगुणा । एवं जाव आयते ॥ गतिचरिमाइ-पदं ३१. जीवे णं भंते ! गतिचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे॥ ३२. णेरइए णं भंते ! गतिचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । एवं णिरंतरं जाव वेमाणिए । ३३. णेरइया णं भंते ! गतिचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । एवं णिरंतरं जाव वेमाणिया। ठितिचरिमाइ-पदं ३४. णेरइए णं भंते ! ठितीचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । एवं णिरंतरं जाव वेमाणिए। ३५. णेरइया णं भंते ! ठितीचरिमेणं कि चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। भवचरिमाइ-पदं ३६. णेरइए णं भंते ! भवचरिमेणं कि चरिमे अचरिमे? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । ३७. णेरइया णं भंते ! भवचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । एवं निरंतरं जाव वेमाणिया ।। भासाचरिमाई-पदं ३८. णेरइए णं भंते ! भासाचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । ३६. रतिया णं भंते ! भासाचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । एवं एगिदियवज्जा निरंतरं जाव वेमाणिया । आणापाणचरिमाइ-पदं ४०. रइए णं भंते ! आणापाणुचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे। एवं णिरंतरं जाव वेमाणिए । ४१. णेरइया णं भंते ! आणापाणुचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा १.१०।२६ । २. संकमेणं (क,घ) ; संकमेण (ख) । Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं चरिमपर्य वि अचरिमा वि । एवं निरंतरं जाव वेमाणिया ॥ आहारचरिमाइ-पदं ४२. णेरइए णं भंते ! आहारचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । ४३. ने इया णं भंते ! आहारचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं निरंतरं जाव वेमाणिया ।। भावचरिमाइ-पदं ४४. णेरइए णं भंते ! भावचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । ४५. णेरइया णं भंते ! भावचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । एवं निरंतरं जाव वेमाणिया ।। वण्णचरिमाइ-पदं ४६. रइए णं भंते ! वण्णचरिमेणं चरिमे अचरिमे ? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे । एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । ४७. णेरइया णं भंते ! वण्णचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । एवं निरंतरं जाव वेमाणिया ।। गंधचरिमाइ-पदं ४८. णेरइए णं भंते ! गंधचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । ४६. णेरइया णं भंते ! गंधचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । एवं निरंतरं जाव वेमाणिया।। रसचरिमाइ-पदं ५०. णेरइए णं भंते ! रसचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । ५१. नेरइया णं भंते ! रसचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं निरंतरं जाव वेमाणिया । फासचरिमाचरिमाई ५२. णेरइए णं भंते ! फासचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । ५३. णेरइया णं भंते ! फासचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । एवं निरंतरं जाव वेमाणिया॥ संगहणीगाहा गति ठिति भवे य भासा, आणपाणुचरिमे' य बोधव्वे । आहार भावचरिमे वण्ण रस गंध फासे य ॥ १॥ १. आणापाणु (क,ग,घ)। Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं भासापयं ओहरिणीभासा-पदं १. से णणं भंते ! मण्णामीति ओहारिणी भासा ? चिंतेमीति ओहारिणी भासा ? अह मण्णामीति ओहारिणी भासा ? अह चिंतेमीति ओहारिणी भासा? तह मण्णामीति ओहारिणी भासा ? तह चितेमीति ओहारिणी भासा? हंता गोयमा ! मण्णामीति ओहारिणी भासा, चिंतेमीति ओहारिणी भासा, अह मण्णामीति ओहारिणी भासा, अह चितेमीति ओहारिणी भासा, तह मण्णामीति ओहारिणी भासा, तह चितेमीति ओहारिणी भासा ।। २. ओहारिणी णं भंते ! भासा कि सच्चा मोसा सच्चामोसा असच्चामोसा ? गोयमा ! सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, सिय असच्चामोसा ॥ ३. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-ओहारिणी णं भासा सिय सच्चा सिय मोसा सिय सच्चामोसा सिय असच्चामोसा ? गोयमा ! आराहणी सच्चा, विराहणी मोसा, आराहण-विराहणी सच्चामोसा, जा'णेव आराहणी व विराहणी व आराहण-विराहणी असच्चामोसा णाम सा चउत्यी भासा । से एतेणठेणं' गोयमा ! एवं वुच्चइ-ओहारिणी णं भासा सिय सच्चा सिय मोसा सिय सच्चामोसा सिय असच्चामोसा ॥ पण्णवणीभासा-पदं ४. अह भंते ! गाओ मिया पसू पक्खी पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा? हंता गोयमा ! गाओ मिया पसू पक्खी पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ।। ५. अह भंते ! जा य इत्थिवऊ जा य पुमवऊ जा य णपसगवऊ पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! जा य इत्थिवऊ जा य पुमवऊ जा य णपुंसगवऊ पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ॥ ६. अह भंते ! जा य इत्थिआणमणी" जा य पुमआणमणी जा य णपुंसगआणमणी पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा? हंता गोयमा ! जा य इत्थिआणमणी १. जे (क,ख)। ४. इत्थीवयू (क)। २. एणठेणं (ग)। ५. °आणवणी (ख,ग,ध)। ३. अहण्णं (ख) सर्वत्र । १६८ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं भासापयं जा य पुमआणमणी जा य णपुंसगआणमणी पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा॥ ७. अह भंते ! जा य इत्थीपण्णवणी जा य पुमपण्णवणी जा य णपुंसगपण्णवणी पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! जा य इत्थिपण्णवणी जा य पुमपण्णवणी जा य णपुंसगपण्णवणी पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ॥ ८. अह भंते ! जा जातीति इत्थिवऊ जातीति पुमवऊ जातीति णपुंसगवऊ पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! जातीति इत्थिवऊ जातीति पुमवऊ जातीति णपुंसगवऊ पण्णवणी णं एसा भासा, न एसा भासा मोसा ।। ___. अह भंते ! जातीति इत्थिआणमणो जातीति पुमआणमणी जातीति णपुंसगाणमणी' पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! जातीति इत्थीआणमणी जातोति पुमआणमणी जातीति णपुंसगाणमणी पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ॥ १०. अह भंते ! जातीति इत्थिपण्णवणी जातीति पुमपण्णवणी जातीति णपुंसगपण्णवणी पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! जातीति इत्थिपण्णवणी जातोति पुमपण्णवणी जातीति णपंसगपण्णवणी पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा॥ मंदकुमाराइभासासण्णा-पदं ११. अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणइ बुयमाणे अहमेसे' बुयामि अहमेसे बुयामीति ? गोयमा ! णो इणठे समठे, णण्णत्थ सण्णिणो । १२. अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणति आहारमाहारेमाणे अहमेसे आहारमाहारेमि अहमेसे आहारमाहारेमि त्ति ? गोयमा ! णो इणठे समठे, णण्णत्थ सण्णिणो॥ १३. अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणति अयं मे अम्मा-पियरो अयं मे अम्मा-पियरो त्ति ? गोयमा ! णो इणठे समठे, णण्णत्थ सण्णिणो॥ १४. अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणति अयं मे अतिराउले अयं मे अतिराउले त्ति ? गोयमा ! णो इणठे समठे, णण्णत्थ सण्णिणो ।। . १५. अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणति अयं मे भट्टिदारए अयं मे भट्टिदारए त्ति ? गोयमा ! णो इणठे समठे, णण्णत्थ सण्णिणो॥ १६. अह भंते ! उट्टे गोणे खरे घोडए अए एलए जाणति बुयमाणे अहमेसे बुयामि अहमेसे बुयामि त्ति ? गोयमा ! णो इणठे समठे, णण्णत्थ सण्णिणो॥ १७. अह भंते ! उट्टे' गोणे खरे घोडए अए एलए जाणति आहारेमाणे अहमेसे आहारेमि अहमेसे आहारेमि त्ति ? गोयमा ! णो इणठे समठे, णण्णत्थ सणिणो ॥ १८. अह भंते ! उट्टे गोणे खरे घोडए आए एलए जाणति अयं मे अम्मा-पियरो अयं मे अम्मा-पियरो त्ति ? गोयमा ! णो इणठे समठे, णण्णत्थ सण्णिणो॥ १. णपुंसआणमणी (ग)। ३. सं० पा०-उट्टे जाव एलए। २. अहमेसा (ख,घ)। Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० पण्णवणासुतं १६. अह भंते ! उट्टे गोणे खरे घोडए अए' एलए जाणति अयं मे अतिराउले अयं मे अतिराउले त्ति ? गोयमा ! •णो इणठे समठे, णण्णत्थ सण्णिणो॥ २०. अह भंते ! उट्टे •गोणे खरे घोडए अए एलए जाणति अयं मे भट्टिदारए अयं मे भट्टिदारए त्ति ? गोयमा ! •णो इणठे समठे, णण्णत्थ सण्णिणो॥ एगवयणाइभासा-पदं २१. अह भंते ! मणुस्से महिसे आसे हत्थी सीहे वधे वगे' दीविए अच्छे तरच्छे परस्सरे सियाले विराले सुणए कोलसूणए 'कोक्कंतिए ससए चित्तए चिल्ललए जे यावण्ण तहप्पगारा सव्वा सा एगवऊ ? हंता गोयमा ! मणुस्से जाव चिल्ललए जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वा सा एगवऊ । २२. अह भंते ! मणुस्सा जाव चिल्ललगा जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वा सा बहुवऊ ? हंता गोयमा ! मणुस्सा जाव चिल्ललगा सव्वा सा बहुवऊ ॥ २३. अह भंते ! मणुस्सी महिसी वलवा हस्थिणिया सीही वग्घी वगी दीविया अच्छी तरच्छी परस्सरी सियाली विरालो सुणिया कोलसुणिया कोक्कंतिया ससिया चित्तिया चिल्ल लिया जा यावण्णा तहप्पगारा सव्वा सा इत्थिवऊ ? हंता गोयमा ! मणस्सी जाव चिल्ललिया जा यावण्णा तहप्पगारा सव्वा सा इत्थिवऊ॥ २४. अह भंते ! मणुस्से जाव चिल्ललए जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वा सा पुमवऊ ? हंता गोयमा ! मणुस्से जाव चिल्ललए जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वा सा पुमवऊ ॥ २५. अह भंते ! कसं कंसोयं परिमंडलं सेलं थूभं जालं थालं तारं रूवं अच्छि पव्वं कंडं पउमं दुद्धं दहिं णवणीयं आसणं सयणं" भवणं विमाणं छत्तं चामरं भिगारं अंगणं निरंगणं आभरणं रयणं जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वं तं णपुंसगवऊ ? हंता गोयमा ! कसं जाव रयणं जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वं तं णपुंसगवऊ।। २६. अह भंते ! पुढवीति इत्थीवऊ आउत्ति पुमवऊ धणेत्ति णपुंसगवऊ पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! पूढवित्ति इत्थिवऊ आउत्ति पुमवऊ, धण्णेत्ति णपुंसगवऊ, पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ।। २७. अह भंते ! पुढवीति इत्थीआणमणी आउत्ति पुमआणमणी धण्णेत्ति नपंसगाणमणी" पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! पुढवीति इत्थिआणमणी, आउत्ति पुमआणमणी, धणेत्ति णपुंसगाणमणी, पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा॥ २८. अह भंते ! पुढवीति इत्थिपण्णवणी आउत्ति पुमपण्णवणी धण्णेत्ति णपंसगपण्णवणी आराहणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! पुढवीति १. सं० पा०-उट्टे जाव एलए। ७. विगी (क,ख,ग,घ)। २. सं० पा०-गोयमा जाव णण्णत्थ । ८. परस्सरी रासभी (क)। ३. सं० पा०-उट्टे जाव एलए। ६. कस्सं (क)। ४. सं० पा०-गोयमा जाव णण्णत्थ । १०. संस्कृतकोशेषु 'कंसीयं' इति शब्दो लभ्यते । ५. विगे (क,ख,ग,घ)। ११. सतणं (क)। ६. ससए कोक्कतिए (मवृ)। १२. नपुंसकाणमणी (ग)। Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं भासापयं पद इत्थिपण्णवणी आउत्ति पुमपण्णवणी धण्णेत्ति णपुंसगपण्णवणी आराहणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा॥ २६. इच्चेवं भंते ! इत्थिवयणं वा पुमवयणं वा णपुंसगवयणं वा वयमाणे पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! इत्थिवयणं वा पुमवयणं वा णपुंसगवयणं वा वयमाणे पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ।। भासासरूव-पदं ३०. भासा णं भंते ! किमादीया किंपहवा' किंसंठिया किंपज्जवसिया ? गोयमा ! भासा णं जीवादीया सरीरपहवा वज्जसंठिया लोगंतपज्जवसिया पण्णत्ता । गाहा भासा कओ य पभवति ? कतिहिं च समएहिं भासती भासं ? भासा कतिप्पगारा ? कति वा भासा अणुमयाओ ? ॥१॥ सरीरप्पभवा भासा, दोहि य समएहिं भासती भासं । भासा चउप्पगारा, दोण्णि य भासा अणुमयाओ॥२॥ भासामेय-पदं ३१. कतिविहा णं भंते ! भासा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा भासा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तिया य अपज्जत्तिया य ॥ ३२. पज्जत्तिया णं भंते ! भासा कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सच्चा य मोसा य॥ ३३. सच्चा णं भंते ! भासा पज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा! दसविहा पण्णत्ता, तं जहा-जणवयसच्चा सम्मतसच्चा ठवणासच्चा णामसच्चा रूवसच्चा पडच्चसच्चा ववहारसच्चा भावसच्चा जोगसच्चा ओवम्मसच्चा ।। गाहा जणवय सम्मत ठवणा, णामे रूवे पडुच्चसच्चे य । ववहार भाव जोगे, दसमे ओवम्मसच्चे य ॥१॥ ३४. मोसा णं भंते ! भासा पज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता? गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता. तं जहा-कोहणिस्सिया माणणिस्सिया मायाणि स्सिया लोभणिस्सिया पेज्जणिस्सिया दोसणिस्सिया हासणिस्सिया भयणि स्सिया अक्खाइयाणिस्सिया' उवघायणिस्सिया ॥ गाहा कोहे माणे माया, लोभे पेज्जे तहेव दोसे य। हास भए अक्खाइय, उवघाइयणिस्सिया दसमा ॥१॥ ३५. अपज्जत्तिया णं भंते ! भासा कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--सच्चामोसा य असच्चामोसा य ।। १. किंपवहा (ख,ग,घ)। ३. अक्खाइयणि° (क)। २. सरीरप्पभवा (क,ख,ग,घ)। Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२० पण्णवणासुत्त ३६. सच्चामोसा णं भंते ! भासा अपज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता? गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता, तं जहा-उप्पण्णमिस्सिया, विगयमिस्सिया, उप्पण्णविगयमिस्सिया, जीवमिस्सिया अजीवमिस्सिया जीवाजीव मिस्सिया अणंतमिस्सिया परित्तमिस्सिया, अद्धामिस्सिया अद्धद्धामिस्सिया ॥ ३७. असच्चामोसा णं भंते ! भासा अप्पज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुवालस विहा पण्णत्ता, तं जहा--- गाहा आमंतणि आणमणी', जायणि तह पुच्छणी य पण्णवणी। पच्चक्खाणी भासा, भासा इच्छाणुलोमा य ॥१॥ अणभिग्गहिया भासा, भासा य अभिग्गहम्मि वोधव्वा । संसयकरणी भासा, 'वोयड अव्वोयडा चेव ।।२।। भासगाभासग-पदं ३८. जीवा णं भंते ! कि भासगा अभासगा ? गोयमा ! जीवा भासगा वि अभासगा वि ॥ ३६. से केणढेणं भंते ! एवं बुच्चति-जीवा भासगा वि अभासगा वि ? गोयमा ! जीवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संसारसमावण्णगा य असंसारसमावण्णगा य । तत्थ णं जेते असंसारसमावण्णगा ते णं सिद्धा। सिद्धा णं अभासगा। तत्थ णं जेते संसारसमावण्णगा ते णं दूविहा पण्णत्ता, तं जहा-सेलेसिपडिवण्णगा य असेलेसिपडिवण्णगाय। तत्थ णं जेते सेलेसिपडिवण्णगा ते णं अभासगा। तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-एगिदिया य अणेगिदिया य । तत्थ णं जेते एगिदिया ते णं अभासगा। तत्थ णं जेते अणेगिदिया ते दुविह। पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं अभासगा। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा ते णं भासगा। से एतेणटठेणं' गोयमा ! एवं वच्चति-जीवा भासगा वि अभासगा वि ।। ४०. नेरइया णं भंते ! किं भासगा अभासगा? गोयमा ! नेरइया भासगा वि अभासगा वि ॥ ४१. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-नेरइया भासगा वि अभासगा वि ? गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं अभासगा। तत्थ णं जेते पज्जतगा ते णं भासगा। से एतेणटठेणं गोयमा ! एवं वच्चइ-नेरइया भासगा वि अभासगा वि । एवं एगिदियवज्जाणं णिरंतरं भाणियव्वं ॥ भासज्जाय-पदं ४२. कति णं भंते ! भासज्जाता पण्णत्ता? गोयमा ! चत्तारि भासज्जाता पण्णत्ता, तं जहा-सच्चमेगं भासज्जातं वितियं मोसं, ततियं सच्चामोसं, चउत्थं असच्चामोसं ॥ ४३. जीवा णं भंते ! किं सच्चं भासं भासंति ? मोसं भासं भासंति ? सच्चामोसं ३. एणठेणं (क,ग,घ); तेणठेणं (ख) । १. याणमणी (घ)। २. वोगड अव्वोगडा (क)। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं भासापर्यं १७३ भासं भासंति ? असच्चामोसं भासं भासंति ? गोयमा ! जीवा सच्चं पि भासं भासंति, मोसं पि भासं भासंति, सच्चामोसं पि भासं भासंति, असच्चामोसं पि भासं भासंति ॥ ४४. रइया णं भंते! कि सच्चं भासं भासंति जाव असच्चामोसं भासं भासंति ? गोयमा ! णेरइया णं सच्चं पि भासं भासंति जाव असच्चामोसं पि भासं भासति । एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा ॥ ४५. बेइंदिय-ते इंदिय- चउरिंदिया य णो सच्चं णो मोसं णो सच्चामोसं भासं भासंति, असच्चामोसं भासं भासंति ॥ ४६. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! किं सच्चं भासं भासंति जाव असच्चामोसं भासं भासंति ? गोयमा ! पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णो सच्चं भासं भासंति, णो मोसं भासं भासंति, णो सच्चामोसं भासं भासंति, एगं असच्चामोसं भासं भासंति, णण्णत्थ सिक्खापुव्वगं उत्तरगुणलद्धि वा पडुच्च सच्चं पि भासं भासंति, मोसं पि भासं भासंति, सच्चामो पि भासं भासंति, असच्चामोस पि भासं भासति । मणुस्सा जाव वेमाणिया एए जहा जीवा तहा भाणियव्वा ॥ भासादव्वगहण-निसिरण-पदं ४७. जीवे णं भंते । जाई दव्वाई भासत्ताए गेण्हति ताई कि ठियाई गेण्हति ? अठियाई गेण्हति ? गोयमा ! ठियाई गेण्हति णो अठियाई गेहति ॥ ४८. जाई भंते! ठियाई गेण्हति ताई कि दव्वओ गेण्हति ? खेत्तओ गेहति ? कालओ गेहति ? भावओ गेण्हति ? गोयमा ! दव्वओ वि गेण्हति खेत्तओ वि गेहति, कालओ वि गेहति भावओ वि गेण्हति ॥ ४६. जाई दव्वओ गेहति ताई किं एगपएसियाई गेण्हति दुपएसियाई गेण्हति जाव अनंत एसियाई गेहति ? गोयमा ! णो एगपएसियाई गेण्हति जाव णो असंखेज्जपएसियाई हति, अनंत एसियाई गेण्हति ॥ ५०. जाई खेत्तओ गेहति ताई किं एगपएसोगाढाई गेण्हति दुपएसोगाढाई गेण्हति जाव असंखेज्जपए सो गाढाई गेण्हति ? गोयमा ! णो एगपएसोगाढाई गेण्हति जाव णो संखेज्ज एसो गाढाई गेण्हति, असंखेज्जपए सोगाढाई गेण्हति ॥ ५१. जाई कालओ गेहति ताई कि एगसमयद्वितीयाई गेहति दुसमय द्वितीयाई गेहति जाव असंखेज्जसमयद्वितीयाई गेहति ? गोयमा ! एगसमयद्वितीयाई पि गेहति, दुसमद्वतीयाई पहति जाव असंखेज्जसमयद्वितीयाई पिति ॥ ५२. जाई भावओ गेहति ताई किं वण्णमंताई गेहति गंधमंताई गेण्हति रसमंताई गेहति फासमंताई गेण्हति ? गोयमा ! वण्णमंताई पि गेण्हति जाव फासमंताई पि गेहति ॥ ५३. जाई भावओ वण्णमंताई गेण्हति ताइं कि एगवण्णाई गेण्हति जाव पंचवण्णाई गेहति ? गोयमा ! गहणदव्वाई पडुच्च एगवण्णाई पि गेण्हति जाव पंचवण्णाई पि गेहति, सव्वग्गणं पडुच्च णियमा पंचवण्णाई गेण्हति तं जहा-कालाई नीलाई लोहियाई हालिद्दाई सुक्किलाई || १. प० ११।४३ ॥ २. °ठियाई (क, ख ) । Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ पण्णवणासुत्तं ५४. जाइं वण्णओ कालाइं गेण्हति ताई किं एगगुणकालाइं गेण्हति जाव अणंतगुणकालाइं गेण्हति ? गोयमा ! एगगुणकालाई पि गेण्हति जाव अणंतगुणकालाई पि गेण्हति । एवं जाव सुक्किलाई पि॥ ५५. जाइं भावओ गंधमंताई गेण्हति ताई कि एगगंधाइं गेण्हति दुगंधाइं गेण्हति ? गोयमा ! गहणदव्वाइं पडुच्च एगगंधाई पि गेहति दुगंधाइं पि गेण्हति, सव्वग्गहणं पडुच्च नियमा दुगंधाइं गेण्हति ॥ ५६. जाइं गंधओ सुब्भिगंधाइं गेण्हति ताई कि एगगुणसुब्भिगंधाइं गेण्हति जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाइं गेण्हति ? गोयमा ! एगगुणसुबिभगंधाई पि गेण्हति जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाई पि गेण्हति । एवं दुब्भिगंधाई पि गेण्हति ।। ५७: जाइं भावतो रसमंताई गेण्हति ताई किं एगरसाइं गेण्हति जाव' पंचरसाई गेण्हति ? गोयमा ! गहणदव्वाइं पडुच्च एगरसाइं पि गेण्हति जाव पंचरसाइं पि गेण्हति, सव्वगहणं पड्डुच्च णियमा पंचरसाइं गेण्हति ।। ५८. जाइं रसतो तित्तरसाइं गेण्हति ताई कि एगगुण तित्तरसाइं गेण्हति जाव अणंतगुणतित्तरसाइं गेण्हति ? गोयमा ! एगगुणतित्तरसाई पि गेहति जाव अणंतगुणतित्तरसाई पि गेण्हति । एवं जाव महुरो रसो॥ ५६. जाइं भावतो फासमंताई गेण्हति ताई कि एगफासाइं गेण्हति जाव अट्टफासाई गेण्हति ? गोयमा ! गहणदव्वाइं पडुच्च णो एगफासाइं गेहति, दुफासाई गेण्हति जाव चउफासाइं पि गेण्हति, णो पंचफासाइं गेण्हति जाव णो अट्ठफासाई पि गेण्हति । सव्वग्गहणं पडुच्च णियमा चउफासाइं गेण्हति, तं जहा-- सीयफासाइं गेण्हति, उसिणफासाई गेण्हति, णिद्धफासाइं गेहति, लुक्खफासाइं गेण्हति ॥ ६०. जाई फासओ सीयाइं गेण्हति ताई कि एगगुणसीयाइं गेण्हति जाव अणंतगुणसीयाइं गेण्हति ? गोयमा ! एगगुणसीयाइं पि गेण्हति जाव अणंतगुणसीयाइं पि गेण्हति । एवं उसिण-णिद्ध-लुक्खाई जाव अणंतगणाई पि गेण्हति ।। ६१. जाइं भंते ! जाव अणंतगुणलुक्खाइं गेण्हति ताई किं पुट्ठाइं गेहति ? अपुढाई गेण्हति ? गोयमा ! पुट्ठाइं गेण्हति, णो अपुट्ठाइं गेण्हति ॥ ६२. जाइं भंते ! पुट्ठाइं गेहति ताई कि ओगाढाइं गेण्हति ? अणोगाढाइं गेण्हति ? गोयमा ! ओगाढाइं गेण्हति, णो अणोगाढाइं गेण्हति ॥ ६३. जाइं भंते ! ओगाढाइं गेण्हति ताइं किं अणंतरोगाढाइं गेण्हति ? परंपरोगाढाइं गेण्हति ? गोयमा ! अणंतरोगाढाइं गेण्हति, णो परंपरोगाढाइं गेण्हति ।। ६४. जाइं भंते ! अणंतरोगाढाइं गेण्हति ताई कि अणूइं गेहति ? बादराई गेण्हति ? गोयमा ! अणूई पि गेण्हति, बादराई पि गेण्हति ॥ ६५. जाइं भंते ! अणूई पि गेण्हति बायराइं पि गेण्हति ताई कि उड्ड गेण्हति ? अहे गेहति ? तिरियं गेहति ? गोयमा ! उड्ढ पि गेण्हति, अहे वि गेण्हति, तिरियं पि गेण्हति ।। ६६. जाइं भंते ! उड्ढ पि गेण्हति अहे वि गेहति तिरियं पि गेण्हति ताइं कि आदि १. जाव किं (क,ख,ग,घ)। Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं भासापयं १७५ गेण्हति ? मज्झे गेण्हति ? पज्जवसाणे गेहति ? गोयमा ! आदि पि गेण्हति, मज्झे वि गेण्हति, पज्जवसाणे वि गेण्हति ॥ ६७. जाई भंते ! आदि पि गेण्हति मज्झे वि गेण्हति पज्जवसाणे वि गेण्हति ताई किं सविसए गेहति ? अविसए गेण्हति ? गोयमा ! सविसए गेहति, णो अविसए गेण्हति ॥ ६८. जाइं भंते ! सविसए गेण्हति ताई किं आणुपुद्वि गेहति ? अणाणुपुब्बि गेण्हति ? गोयमा ! आणुपुद्वि गेण्हति, णो अणाणुपुब्वि गेहति ।। ६६. जाइं भंते ! आणुपुब्वि गेण्हति ताइं किं तिदिसि गेण्हति जाव छद्दिसि गेण्हति ? गोयमा ! णियमा छद्दिसि गेण्हति ॥ गाहा पुट्ठोगाढ अणंतर, अणू य तह बायरे य उड्डमहे । आदि विसयाणुपुवि, णियमा तह छदिसिं चेव ॥१॥ ७०. जीवे णं भंते ! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गेहति ताई कि संतरं गेण्हति ? निरंतरं गेण्हति ? गोयमा ! संतरं पि गेण्हति, निरंतरं पि गेण्हति । संतरं गिण्हमाणे जहण्णणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जसमए अंतरं कटु गेण्हति । निरंतरं गिण्हमाणे जहण्णणं दो समए, उक्कोसेणं असंखेज्जसमए अणसमयं अविरहियं निरंतरं गेण्हति ।। ७१. जीवे णं भंते ! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गहियाइं णिसिरति ताई कि संतरं णिसिरति ? णिरंतरं णिसिरति ? गोयमा ! संतरं णिसिरति, णो णिरंतरं णिसिरति । संतरं णिसिरमाणे एगणं समएणं गेण्हइ एगेणं समएणं णिसिरति'। एएणं गहण-णिसिरणोवाएणं जहण्णेणं दुसमइयं उक्कोसेणं असंखेज्जसमइयं अंतोमुहत्तयं गहण-णिसिरण करेति ॥ ७२. जीवे णं भंते ! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गहियाई णिसिरति ताई कि भिण्णाई णिसिरति ? अभिण्णाइंणिसिरति ? गोयमा ! भिण्णाई पि णिसिरति अभिण्णाई पि णिसिरति । जाइं भिण्णाई णिसिरति ताई अणंतगुणपरिवुड्डीए' 'परिवड्डमाणाई-परिवड्डमाणाई" लोयंतं १. अस्य स्थापना एवं-- |ग्र | अगम अग्रग | | आदर्शषु अस्य स्थापना अन्यथा पि लभ्यते-- ४. परिवड्ढेमाणाई २ (ख,घ) । २. णिसरणोवायं (क, ख, ग, घ)। ३. °परिवड्ढीए (क); °परिवुड्ढीए णं (ख,ग,घ)। Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ पणवणासुतं ति । जाई अभिण्णाइं णिसिरति ताइं असंखेज्जाओ ओगाहणवग्गणाओ' गंता भेयमावज्जंति, संखेज्जाई जोयणाई गंता विद्धसमागच्छति ॥ ७३. तेसि' णं भंते ! दव्वाणं कतिविहे भेए पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे भए पण्णत्ते, तं जडा- खंडाभेए पयराभेए' चुण्णियाभेए अणुतडियाभेए उक्करिया भए || ७४. से कि तं खंडाभेए ? खंडाभेए- जण्णं अयखंडाण वा तउखंडाण वा तंबखंडाण वा सोसाखंडाण वा रययखंडाण' वा जायरूवखंडाण वा खंडएण भेदे भवति । से त्तं खंडाभेदे ॥ ७५. से किं तं पयराभेदे ? पयराभेए-जण्णं वंसाण वा वेत्ताण वा गलाण वा कदलीथंभाण' वा अब्भपडलाण वा पयरएणं भेए भवति । से त्तं पयराभेदे ॥ ७६. से किं तं चुण्णियाभेए ? चुण्णियाभेए-जण्णं तिलचुण्णाण वा मुग्गचुण्णाण वा मासण्णाण वा पिप्पलिचुण्णाण वा मिरियचुण्णाण' वा सिंगबेरचुण्णाण वा चुण्णियाए भेदे भवति । से तं चुण्णियाभेदे ॥ ७७. से किं तं अणुतडियाभेदे ? अणुतडियाभेदे जण्णं अगडाण वा तलागाण वा हा वादी वा वावीण वा पुक्खरिणीण वा दीहियाण वा गुंजालियाण वा सराण वा सरपंतियाण वा सरसरपंतियाण वा अणुतडियाए भेदे भवति । से त्तं अणुतडियाभेदे || ७८. से किं तं उक्करियाभेदे ? उक्करियाभेदे - जण्णं मूसगाण' वा मगूसाण वा तिलसिंगाण वा मुग्गसिंगाण वा माससिंगाण वा एरंडबीयाण वा फुडित्ता" उक्करियाए भेदे भवति । त्तं उक्करियाभेदे ॥ ७६. एएसि णं भंते ! दव्वाणं खंडाभेदेणं पयराभेदणं चुण्णियाभेदेणं अणुतडियाभेदेणं उक्करियाभेदेण" य भिज्जमाणाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवाइं दव्वाई उक्करियाभेदेणं" भिज्जमाणाई, अणुतडियाभेदेणं भिज्जमाणाई अनंतगुणाई चुण्णियाभेदेणं भिज्जमाणाई अनंतगुणाई, पयराभेदेणं भिज्जमाणाइं अनंतगुणाई, खंडाभेदेणं भिज्जमाणाई अनंतगुणाई || ८०. रइएणं * भंते ! जाई दव्वाइं भासत्ताए गेण्हति ताई कि ठियाई गेण्हति ? अट्टियाई गेहति ? गोयमा ! एवं चेव जहा " जीवे वत्तव्वया भणिया तहा णेरइयस्सवि जाव अप्पाबहुयं । एवं एगिदियवज्जो दंडओ जाव वेमाणिया || ८१. जीवा णं भंते ! जाई दव्वाई भासत्ताए गेव्हंति ताई कि ठियाई गेण्हंति ? ओगाहणाओ १. ओगाहणावगहणाओ ( ग ); (घ) । २. एएसि ( ग ) । ३. पर° (क, ख, ग, घ ) । ४. सीस° ( ग ) ; सीसग (पु) । ५. रयण° (क, ग, घ ) । ६. ° खंभाण ( ग ) । ७. पयरेणं (ख,ग) । ८. मरिय ( क ग ) ; मिरी (ख, घ) । ६. मूसा ( ग ) । १०. मंडूसाण (क, ख, ग, घ ) । ११. फुडिया ( क ), (ग) 1 १२. उक्कारिया (घ) । १३. उक्कारिया (ख,ग,घ ) । १४. रइयाणं ( क ) । १५. प० ११।४७-७६ । फढता (ख,घ ) ; फुट्टिया Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं भासापयं १७७ अट्टियाइं गेण्हंति ? गोयमा ! एवं चेव पुहत्तेण' वि णेयव्वं जाव वेमाणिया । ८२. जीवे णं भंते ! जाइं दव्वाइं सच्चभासत्ताए गेण्हति ताइं किं ठियाइं गेण्हति ? अट्ठियाइं गेण्हति ? गोयमा ! जहा ओहियदंडओ तहा एसो वि, नवरं--विगलेंदिया ण पुच्छिज्जंति । एवं मोसमासाए वि सच्चामोसभासाए वि ॥ ८३. असच्चामोसभासाए वि एवं चेव, नवरं- असच्चामोसभासाए विगलिंदिया वि पुच्छिज्जति इमेणं अभिलावेणं-विलिदिए णं भंते ! जाइं दव्वाइं असच्चामोसभासत्ताए गेण्हति ताइं किं ठियाइं गेण्हति ? अट्ठियाइं गेण्हति ? गोयमा ! जहा' ओहियदंडओ। एवं एते एगत्त-पूहत्तण' दस दंडगा भाणियव्वा । ८४. जीवे णं भंते ! जाइं दव्वाइं सच्चभासत्ताए गेण्हति ताई कि सच्चभासत्ताए णिसिरति ? मोसभासत्ताए णिसिरति ? सच्चामोसभासत्ताए णिसिरति ? असच्चामोसभासत्ताए णिसिरति ? गोयमा ! सच्चभासत्ताए णिसिरति, णो मोसभासत्ताए णिसिरति, णो सच्चामोसभासत्ताए णिसिरति, णो असच्चामोसभासत्ताए णि सिरति । एवं एगिदियविगलिंदियवज्जो दंडओ जाव वेमाणिए । एवं पुहत्तेण' वि॥ ८५. जीवे णं भंते ! जाइं दव्वाइं मोसभासत्ताए गेण्हति ताई कि सच्चभासत्ताए णिसिरति ? मोसभासत्ताए णिसिरति ? सच्चामोसभासत्ताए णिसिरति ? असच्चामोसभासत्ताए णिसिरति ? गोयमा ! णो सच्चभासत्ताए णिसिरति, मोसभासत्ताए णिसिरति, णो सच्चामोसभात्ताए णिसिरति, णो असच्चामोसभासत्ताए णिसिरति। एवं सच्चामोसभासत्ताए वि । असच्चामोसभासत्ताए वि एवं चेव, णवरं-असच्चामोसभासत्ताए विगलिंदिया तहेव पुच्छिज्जति । जाए चेव गेण्हति ताए चेव णिसिरति । एवं एते एगत्तपुहत्तिया' अट्ठ दंडगा भाणियव्वा ॥ सोलसविहवयण-पदं ८६. कतिविहे णं भंते ! वयणे पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलसविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा-एगवयणे दुवयणे बहुवयणे इत्थिवयणे पुमवयणे णपुंसगवयणे अज्झत्थवयणे उवणीयवयणे अवणीयवयणे उवणीयअवणीयवयणे अवणीयउवणीयवयणे तीतवयणे पडुप्पन्नवयणे अणागयवयणे पच्चक्खवयणे परोक्खवयणे ॥ ८७. इच्चेयं भंते ! एगवयणं वा जाव परोक्खवयणं वा वयमाणे पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! इच्चेयं एगवयणं वा जाव परोक्खवयणं वा वयमाणे पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा॥ ८८. कति णं भंते ! भासज्जाया पण्णत्ता ? गोयमा! चत्तारि भासज्जाया पण्णत्ता, तं जहा-सच्चमेगं भासज्जायं बितियं मोसं भासज्जायं ततियं सच्चामोसं भासज्जायं १. बहुत्तेण (घ); पुहुत्तेण (पु)। ६. पुहुत्तेण (क,ख,ग,घ)। २. प० ११।४७-७६ । ७. पुहुत्तिया (ख,ग); पोहित्तिया (ग)। ३.५० १११४७-७६ । ८. बीयं (क,ग)। ४. पुहुत्तेण (क,घ)। ६. भासजायं (ग)। ५. णिस्सरति (ख); णिस्सिरति (ग); निसरति (घ)। Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ पण्णवणासुत्तं चउत्थं असच्चामोसं भासज्जायं ।। ८६. इच्चेयाइं भंते ! चत्तारि भासज्जायाइं भासमाणे किं आराहए विराहए ? गोयमा ! इच्चेयाइं चत्तारि भासज्जायाई आउत्तं भासमाणे आराहए, णो विराहए। तेण परं 'अस्संजए अविरए"अपडिय-अपच्चक्खायपावकम्मे सच्चं वा भासं भासंतो, मोसं वा सच्चामोसं वा असच्चामोसं वा भासं भासमाणे णो आराहए, विराहए ॥ ९०. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सच्चभासगाणं मोसभासगाणं सच्चामोसभासगाणं असच्चामोसभासगाणं अभासगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा सच्चभासगा, सच्चामोसभासगा असंखेज्जगुणा, मोसभासगा असंखेज्जगुणा, असच्चामोसभासगा असंखज्जगुणा, अभासगा अणंतगुणा ॥ १. अविरय (क,ख,घ); अस्संजय-अविरय (ग)। Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं सरीरपयं सरीरभेय-पदं १. कति णं भंते ! सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच सरीरा पण्णत्ता, तं जहाओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए । चउवीसदंडएसु सरीर-पदं २. णेरइयाणं भंते ! कति सरीरया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरया पण्णत्ता, तं जहा-वेउव्विए तेयए कम्मए । एवं असुरकुमाराणं वि जाव थणियकुमाराणं ॥ ३. पुढविक्काइयाणं भंते ! कति सरीरया पण्णत्ता? गोयमा ! तओ सरीरया पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए। एवं वाउक्काइयवज्जं जाव चरिदियाणं॥ ४. वाउक्काइयाणं भंते ! कति सरीरया पण्णत्ता? गोयमा ! चत्तारि सरीरया पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए वेउविए तेयए कम्मए । एवं पंचिदियतिरिक्खजोणियाण' वि॥ ५. मणुस्साणं भंते ! कति सरीरया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच सरीरया पण्णत्ता, तं जहा--ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए । ६. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियाणं जहा णारगाणं ।। ओहेण बद्ध-मुक्कसरीर-पदं ७. केवतिया णं भंते ! ओरालियसरीरया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लया' य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जगा, असखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसपप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं अणंता, अणंताहिं उस्स प्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ अभवसिद्धिएहितो अणंतगुणा 'सिद्धाणं अणंतभागो।। ८. केवतिया णं भंते ! वेउव्वियसरीरया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं १. जोणिया (ख,ग)। ४. मुक्किल्लया (क,ख,ग,घ)। २. मणूसाणं (क)। ५. अवसप्पिणीहिं (ग)। ३. बद्धिल्लया (क,ख,ग,घ) । ६. सिद्धाणणंत° (क)। Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० पण्णवणासुतं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेज्जतिभागो । तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, जहा ओरालियस्स मुक्केल्लया तहेव वेउव्वियस्स वि भाणियव्वा ।। ६. केवतिया णं भंते ! आहारगसरीरया पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णता, तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं सिय अत्थि सिय णत्थि । जति अत्थि जहण्णणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सहस्सपुहत्तं' । तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं अणंता जहा ओरालियस्स मुक्केल्लया तहा य भाणियव्वा ॥ १०. केवतिया णं भंते ! तेयगसरीरया पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ सिद्धेहितो अणंतगुणा सव्वजीवाणंतभागूणा। तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं अणंता, अणंताहि उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ सव्वजीवेहितो अणंतगुणा, जीववग्गस्स अणंतभागो। एवं कम्मगसरीरा वि भाणियव्वा ।। चउवीसदंडएसु बद्ध-मुक्कसरीर-पदं ११. णेरइयाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं णत्थि । तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं अणंता जहा' ओरालियमुक्केल्लगा तहा भाणियव्वा ॥ १२. णेरइयाणं भंते ! केवइया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पतरस्स असंखेज्जतिभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलं वीयवग्गमूलपड़प्पणं', अहव णं अंगुल बितियवग्गमूलघणप्पमाणमेत्ताओ सेढीओ। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं जहा ओरालियस्स मुक्केल्लगा तहा भाणियव्वा ।। १३. णेरइयाणं भंते ! केवतिया आहारगसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। एवं जहा ओरालिया बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य भणिया तहेव आहारगा वि भाणियव्वा । १४. तेया-कम्मगाइं जहा एतेसिं चेव वेउव्वियाई॥ १५. असुरकुमाराणं भंते ! केवतिया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहाँ णेरइयाणं ओरालिया' भणिया तहेव एतेसि पि भाणियव्वा । १६. असुरकुमाराणं भंते ! केवतिया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगाय। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा. १. °पुहुत्तं (क,ख,ग,ग)। २. प० १२७) ३. बितीयव° (क)। ४. प० १२।११। ५. ओरालियसरीरा (क)। Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं सरीरपयं असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पतरस्स असंखेज्जतिभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलस्स संखेज्जतिभागो । तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं जहा' ओरालियस्स मुक्केल्लगा तहा भाणियव्वा ।। १७. आहारयसरीरा जहा एतेसि णं चेव ओरालिया तहेव दुविहा भाणियव्वा ॥ १८. तेया-कम्मसरीरा दुविहा वि जहा एतेसि णं चेव वेउव्विया ।। १६. एवं जाव थणियकूमारा॥ २०. पुढविकाइयाणं भंते ! केवतिया ओरालियसरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालतो, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा । तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं अणंता, अणताहि उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, अभवसिद्धिएहितो अणंतगुणा, सिद्धाणं अणंतभागो॥ २१. पुढविकाइयाणं भंते ! केवतिया वेउव्वियसरीरया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं णत्थि। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं जहा एतेसिं चेव ओरालिया भणिया तहेव भाणियव्वा। एवं आहारगसरीरा वि । तेया-कम्मगा जहा एतेसिं चेव ओरालिया । २२. एवं आउक्काइया तेउक्काइया वि ॥ २३. वाउक्काइयाणं भंते ! केवतिया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। दुविहा वि जहा पुढविकाइयाणं ओरालिया। २४. वेउब्बियाणं पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमेत्तेणं कालेणं अवहीरंति, णो चेव णं अवहिया सिया । मुक्केल्लया जहा पुढविक्काइयाणं ॥ २५. आहारय-तेया-कम्मा जहा पुढविकाइयाणं तहा भाणियव्वा ॥ २६. वणप्फइकाइयाणं जहा पुढविकाइयाणं, णवरं-तेया-कम्मगा जहा' ओहिया तेया-कम्मगा। २७. बेइंदियाणं भंते ! केवतिया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेज्जतिभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ असंखेज्जाइं सेढिवग्गमूलाई। बेइंदियाणं ओरालियसरीरेहिं बद्धेल्लगेहिं पयरो' अवहीरति असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं कालओ, खेत्तओ अंगुलपयरस्स आवलियाए य असंखेज्जतिभागपलिभागेणं । तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते जहा' ओहिया ओरालिया १. प० १२७ । २.५० १२।१०। ३. पयरं (पु); प्रतरं (ब)। ४. प० १२।७। Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ पण्णवणासुत्तं मुक्केल्लया ॥ २८. वेउव्विया आहारगा य बद्धेल्लगा णत्थि, मुक्केल्लगा जहा ओहिया ओरालिया मुक्केल्लया ॥ २६. तेया-कम्मगा जहा एतेसिं चेव ओहिया ओरालिया ॥ ३०. एवं जाव चरिंदिया ।। ३१. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं एवं चेव, नवरं--वेउव्वियसरीरएसु इमो विसेसोपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवतिया वेउव्वियसरीरया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा जहा' असुरकुमाराणं, णवरं-तासि णं सेढीण विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलस्स असंखेज्जतिभागो। मुक्केल्लगा तहेव ॥ ३२. मणस्साणं भंते ! केवतिया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णता, तं जहा --बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा। जहण्णपए संखेज्जा-संखेज्जाओ कोडाकोडीओ तिजमलपयस्स उरि चउजमलपयस्स हेट्ठा, अहव णं छट्ठो वग्गो पंचमवग्गपडुप्पण्णो, अहव णं छण्णउईछेयणगदाई रासी। उक्कोसपदे असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ. खेत्तओ रूवपक्खित्तेहिं मणुस्सेहिं सेढी अवहीरति, 'तीसे सेढीए काल-खेत्तेहिं अवहारो मग्गिज्जइ" - असंखेज्जाहि उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहि कालओ, खेत्तओ अंगुलपढमवग्गमूलं ततियवग्गमूलपडुप्पण्णं । तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते जहा ओरालिया ओहिया मुक्केल्लगा। ३३. वेउव्वियाणं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं संखेज्जा, समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा संखेज्जेणं कालेणं अवहीरंति, णो चेव णं अवहिया सिया। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं जहा ओरालिया ओहिया ॥ ३४. आहारगसरीरा जहा ओहिया ॥ ३५. तेया-कम्मया जहा एतेसिं चेव ओरालिया ॥ ३६. वाणमंतरणं जहा णेरइयाणं ओरालिया आहारगा य। वेउव्वियसरीरगा जहा रइयाणं, णवरं-तासि णं सेढीण विक्खंभसूई संखेज्जजोयणसयवग्गपलिभागो पयरस्स। मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया। तेया-कम्मया जहा एएसिं चेव वेउव्विया ॥ ३७. जोतिसियाणं एवं चेव, णवरं--तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई बेछप्पण्णंगुलसयवग्गपलिभागो पयरस्स ।। ३८. वेमाणियाणं एवं चेव, णवरं -तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलवितियवग्गमूलं ततियवग्गमूलपडुप्पण्णं, अहव णं अंगुलततियवग्गमूलघणपमाणमेत्ताओ सेढीओ। सेसं तं चेव ॥ १. प० १२११६ । ४. प० १२।। २. अनुयोगद्दारस्य मल्लधारीयवृत्तौ कोडाकोडीओ' ५. x (क,ग,ध)। इति पाठो व्याख्यातोस्ति । 'क' संकेतित ६. आहारंगसरीरा जहा असुरकुमाराणं ते (क)। आदर्शो 'कोडीओ' इति पाठो लभ्यते। ७. वि० (क,घ)। ३. x (घ)। Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं परिणामपयं परिणामभेय-पदं १. कतिविहे णं भंते ! परिणामे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे परिणामे पण्णत्ते, तं जहा-जीवपरिणामे य अजीवपरिणामे य॥ जीवपरिणाम-पदं २. जीवपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दसविहे पण्णत्ते, तं जहागतिपरिणामे इंदियपरिणामे कसायपरिणामे लेसापरिणामे जोगपरिणामे उवओगपरिणामे 'णाणपरिणामे दसणपरिणामे" चरित्तपरिणामे वेदपरिणामे ॥ ३. गतिपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-णिरयगतिपरिणामे तिरियगतिपरिणामे मणुयगतिपरिणामे देवगतिपरिणामे ॥ ४. इंदियपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ? पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदियपरिणामे चक्खिदियपरिणामे घाणिदियपरिणामे जिभिदियपरिणामे' फासिंदियपरिणामे ।। ५. कसायपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते, तं जहा--कोहकसायपरिणामे माणकसायपरिणामे मायाकसायपरिणामे लोभकसायपरिणामे ॥ ६. लेस्सापरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! छव्विहे पण्णत्ते, तं जहा-कण्हलेस्सापरिणामे णीललेस्सापरिणामे काउलेस्सापरिणामे तेउलेस्सापरिणामे पम्हलेस्सापरिणामे सुक्कलेस्सापरिणामे ॥ ७. जोगपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहामणजोगपरिणामे वइजोगपरिणामे कायजोगपरिणामे ॥ ८. उवओगपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहासागारोवओगपरिणामे य अणागारोवओगपरिणामे य॥ ६. णाणपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहाआभिणिबोहियनाणपरिणामे सुयणाणपरिणामे ओहिणाणपरिणामे मणपज्जवणाणपरिणामे केवलणाणपरिणामे ॥ १. दंसणपरिणामे णाणपरिणामे (घ)। ३. अणायारो' (क,ख)। २. रसनिदिय° (ग)। १८३ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं १०. अण्णाणपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - मतिअण्णाणपरिणामे सुयअण्णाणपरिणामे विभंगणाणपरिणामे || ११. दंसणपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा सम्म सणपरिणामे मिच्छादंसणपरिणामे सम्मामिच्छादंसणपरिणामे ॥ - १२. चरित परिणाम णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - सामाइयचरित्तपरिणामे छेदोवट्ठावणियचरित्तपरिणामे परिहारविसुद्धियचरितपरिणामे सुहुमसं परायचरित्तपरिणामे अहक्खायचरित्तपरिणामे || १३. वेयपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहाइत्थवेयपरिणामे पुरिसवेयपरिणामे णपुंसगवेयपरिणामे || चवीसदंडएस परिणाम-पदं १८४ १४. रइया गतिपरिणामेणं णिरयगतिया, इंदियपरिणामेणं पंचिदिया, कसायपरिणामेणं कोहकसाई वि जाव लोभकसाई वि, लेस्सापरिणामेणं कण्हलेस्सा वि लस्सा विकाउलेस्सा वि, जोगपरिणामेणं मणजोगी वि वइजोगी विकायजोगी वि, उवओग परिणामेणं सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि, णाणपरिणामेणं आभिणिबोहियाणी व सुयणाणी व ओहिणाणी वि, अण्णाणपरिणामेणं मतिअण्णाणी वि सुयअण्णाणी विविभंगणाणी वि, दंसणपरिणामेण सम्मद्दिट्ठी विमिच्छद्दिट्ठी वि सम्मामिच्छद्दिट्ठी वि चरित्तपरिणामेण णो चरित्ती णो चरित्ताचरिती अचरित्ती, वेदपरिणामेणं णो इत्थिवेदगा णो पुरिसवेदगा णपुंसगवेदगा ॥ १५. असुरकुमारा वि एवं चेव, नवरं – देवगतिया, कण्हलेसा वि जाव तेउलेसा वि, वेदपरिणामेणं इत्थवेयगा वि पुरिसवेयगा वि णो णपुंसगवेदगा । सेसं तं चैव । एवं जाव कुमारा ॥ १६. पुढविकाइया गतिपरिणामेणं तिरियगतिया, इंदियपरिणामेणं एगिंदिया, सेसं जहा णेरइयाणं, णवरं - लेस्सापरिणामेणं तेउलेस्सा वि, जोगपरिणामेणं कायजोगी, णाणपरिणामो णत्थि, अण्णाणपरिणामेणं मतिअण्णाणी वि सुयअण्णाणी वि, दंसणपरिणामेण मिच्छदिट्ठी । सेसं तं चेव । एवं आउ - वणप्फइकाइया वि । तेऊ वाऊ एवं चेव, णवरं - लेस्सापरिणामेणं जहा णेरइया || १७. बेइंदिया गतिपरिणामेणं तिरियगतिया, इंदियपरिणामेणं बेइंदिया, सेसं जहा रइयाणं, णवरं - जोगपरिणामेणं वइयोगी वि काययोगी वि, णाणपरिणामेणं आभिणिबोहियाणी व सुयणाणी वि, अण्णाणपरिणामेणं मतिअण्णाणी वि सुयअण्णाणी विणो विभंगणाणी, दंसणपरिणामेणं सम्मद्दिट्ठी विमिच्छदिट्ठी वि णो सम्मामिच्छदिट्ठी । सेसं तं चेव । एवं जाव चउरिंदिया । णवरं - इंदियपरिवुड्डी' कायव्वा ॥ १८. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया गतिपरिणामेणं तिरियगतिया' । सेसं जहा णेरइयाणं, णवरं - लेस्सापरिणामेणं जाव सुक्कलेस्सा वि, चरित्तपरिणामेणं णो चरित्ती अचरिती वि ३. प० १३ । १४ । १. विड्ढी ( क, ख, घ ) । २. गतीया (घ ) । Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं परिणामपर्यं चरिताचरित्ती वि, वेदपरिणामेणं इत्थीवेदगा वि पुरिसवेदगा वि णपुंसगवेदगाव ॥ १६. मणुस्सा गतिपरिणामेणं मणुयगतिया, इंदियपरिणामेणं पंचेंदिया अणिदिया वि, कसायपरिणामेणं कोहकसाई वि जाव अकसाई वि, लेस्सापरिणामेणं कण्हलेस्सा वि जाव अलेस्सावि, जोगपरिणामेणं मणजोगी वि जाव अजोगी वि, उवओगपरिणामेणं जहा रइया, गाणपरिणामेणं आभिणिवोहियणाणी वि जाव केवलणाणी वि, अण्णाणपरिणामेणं तिणि वि अण्णाणा, दंसणपरिणामेणं तिण्णि वि दंसणा, चरित्तपरिणामेणं चरिती वि अचरित्ती वि चरित्ताचरित्ती वि, वेदपरिणामेणं इत्थवेदगा वि पुरिसवेदगा वि नपुंसंगवेदगा वि अवेदगा वि ॥ २०. वाणमंतरा गतिपरिणामेणं देवगइया जहा ' असुरकुमारा । एवं जोतिसिया वि णवरं -- लेस्सापरिणामेणं तेउलेस्सा । वेमाणिया वि एवं चेव, णवरं - लेस्सापरिणामेणं तेउलेस्सा वि पम्हलेस्सा वि सुक्कलेस्सा वि । से तं जीवपरिणामे ॥ अजीव परिणाम-पदं २१. अजीवपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दसविहे पण्णत्ते, तं जहा - बंधणपरिणामे गतिपरिणामे संठाणपरिणामे भेदपरिणामे वण्णपरिणामे गंधपरिणामे रसपरिणामे फासपरिणामे अगरुयल हुयपरिणामे सद्दपरिणामे || २२. बंधणपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहानिबंधणपरिणामे य लुक्खबंधणपरिणामे य । गाहा— समद्धिया बंधो ण होति, समलुक्खयाए वि ण होति । मायणिद्ध - लुक्खत्तणेण बंधो उ खंधाणं ॥ १ ॥ fate द्वेिण दुहिएणं, लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिएणं । णिद्धस्स लुक्खेण उवेइ बंधो, जहण्णवज्जो विसमो समो वा ॥२॥ २३. गतिपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहासमानगतिपरिणामे य अफुसमाणगतिपरिणामे य, अहवा दीहगइपरिणामे य हस्सगइपरिणामे य ॥ १८५ २४. संठाणपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - परिमंडलसंठाणपरिणामे जाव' आययसंठाणपरिणामे || २५. भेयपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - खंडाभेदपरिणामे जाव' उक्करियाभेदपरिणामे || २६. वण्णपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - कालवण्णपरिणामे जाव' सुक्किलवण्णपरिणामे || २७. गंधपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. प० १३।१५ । २. अगुरु° (क,ग) । ३. फुसण° (घ) 1 ४. प० ११४ । ५. प० ११।७३ । ६. प० ११४ । Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ सुभिगंधपरिणामे यदुभिगंधपरिणामे य ॥ २८. रसपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहातित्तरसपरिणामे जाव' महुररसपरिणामे ॥ २६. फासपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठविहे पण्णत्ते, तं जहा—कक्खडफासपरिणामे य जाव' लुक्खफासपरिणामे य ।। ३०. अगरुयलहुयपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते || ३१. सद्दपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहासुभद्दपरिणामे यदुब्भिसद्दपरिणामे य । से त्तं अजीवपरिणामे ॥ १,२. प० ११४ । पणवणासुतं Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोद्दसमं कसायपयं कसायभय-पदं १. कति णं भंते ! कसाया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहाकोहकसाए माणकसाए मायाकसाए लोभकसाए । चउवीसदंडएसु कसायपरूवण-पदं २. णेरइयाणं भंते ! कति कसाया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा-कोहकसाए जाव लोभकसाए। एवं जाव वेमाणियाणं ।। कसायपइट्ठा-पदं ३. कतिपतिट्टिए णं भंते ! कोहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउपतिट्ठिए कोहे पण्णत्ते, तं जहा-आयपतिट्ठिए परपतिट्ठिए तदुभयपतिट्ठिए अप्पतिट्ठिए। एवं णेरइयाणं' जाव वेमाणियाणं दंडओ॥ ४. एवं माणेणं दंडओ, मायाए दंडओ, लोभेणं दंडओ ।। सायउप्पत्ति-पदं ५. 'कतिहि णं" भंते ! ठाणेहिं कोहुप्पत्ती भवति ? गोयमा ! चउहि ठाणेहि कोहुप्पत्ती भवति, तं जहा-खेत्तं पडुच्च, वत्थु पडुच्च, सरीरं पडुच्च, उवहिं पडुच्च । एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं ॥ ६. एवं माणेण वि मायाए वि लोभेण वि । एवं एते वि चत्तारि दंडगा ॥ कसायपमेय-पदं ____७. कतिविहे णं भंते ! कोहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउबिहे कोहे पण्णत्ते, तं जहाअणंताणुबंधी कोहे अप्पच्चखाणे कोहे पच्चक्खाणावरणे कोहे संजलणे कोहे । एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं॥ ८. एवं माणणं मायाए लोभेणं । एए वि चत्तारि दंडगा' ।। ६. कतिविहे णं भंते ! कोहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउविहे कोहे पण्णत्ते, तं जहाआभोगणिव्वत्तिए अणाभोगणिव्वत्तिए उवसंते अणुवसंते । एवंणेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ॥ ३. दंडगा भाणियव्वा (ग)। १. णेरइयादीणं (पु)। २. कतिविहेणं (क,ख,ग)। १८७ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ १०. एवं माणेण वि मायाए वि लोभेण वि चत्तारि दंडगा ॥ कसाएहिं कम्मचयोवचयादि-पदं ११. जीवा णं भंते ! कतिहि ठाणेहि अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिसु ? गोयमा ! चउहिं ठाणे अकम्पगडीओ चिणिसु, तं जहा – कोहेणं माणेणं मायाए लोभेणं । एवं णेरइया जाव माणियाणं ॥ १२. जीवा णं भंते ! कतिहि ठाणेहि अट्ठ कम्मपगडीओ चिणंति ? गोयमा ! चउहिं ठाणेहिं तं जहा -- कोहेणं माणेणं मायाए लोभेणं । एवं णेरइया जाव वेमाणिया || १३. जीवा णं भंते । कतिहि ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिस्संति ? गोयमा ! उहि ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिस्संति, तं जहा- कोहेणं माणेणं मायाए लोभेणं । एवं रइया जाव वेमाणिया || १४. जीवा णं भंते ! कतिहि ठाणेहि अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिसु ? गोयमा ! उहि ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिसु, तं जहा- कोहेणं माणेणं मायाए लोभेणं । एवं रइया जाव वेमाणिया || १५. जीवा णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! लोभेणं । एवं रइया जाव वेमाणिया || १६. एवं उवचिणिस्संति || १७. जीवा णं भंते! कतिहि ठाणेह अट्ठ कम्मपगडीओ बंधिसु ? गोयमा ! चउहि ठाणेहि, तं जहा- कोहेणं जाव लोभेणं ॥ २८. एवं णेरइया जाव वेमाणिया बंधेसु बंधंति बंधिस्संति, उदीरेंसु उदीरंति उदीरिस्संति, वेइंसु वेति वेइस्संति' निज्जरेंसु निज्जरंति' निज्जरिस्संति । एवं एते जीवाईया वेमाणियपज्जवसाणा अट्ठारस दंडगा जाव वेमाणिया निज्जरिंसु निज्जरंति निज्जरिस्संति' । गाहा , १. अग्रिमसूत्रेषु सर्वत्र प्रथमाविभक्तेर्बहुवचनं दृश्यते । २. ११,१३ सूत्रयोः पाठपद्धत्या अत्रापि 'अट्ठकम्मपगडीओ चिति' इति पाठो युज्यते । ३. वेदइस्संति (ख, घ) । ४. निज्जरेंति (क, ग ) । पण्णवणासुतं आयपट्टिय खेत्तं, पडुच्चणंताणुबंधि आभोगे । चिण उवचिण बंध उईर वेय तह निज्जरा चेव ||१|| चउहि ठाणेहि उवचिणंति कोहेणं जाव ५. भगवत्या अष्टादशशतकस्य चतुर्थोद्देशकस्य वृत्तौ – 'निज्जरिस्संति' अस्य पदस्य पूर्णं सूत्रमुल्लिखितमस्ति - माणिया णं भंते ! कइहिं ठाणेहि अटू कम्मपयडीओ निज्जरिस्संति ? गोयमा ! चउहि ठाणेहिं तं जहा -- कोहेणं जाव लोभेणं । Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं इंदियपयं पढमो उद्देसो गाहा १ संठाणं २ वाहल्लं, ३ पोहत्तं ४ कतिपएस ५ ओगाढे । ६ अप्पाबहु ७ पुट्ठ ८ पविट्ठ', ६ विसय १० अणगार ११ आहारे ॥१॥ १२ अदाय १३ असो १४ य मणी, १५ उडुपाणे १६ तेल्ल १७ फाणिय १८ वसा य। १६ कंबल २० थूणा २१ थिग्गल, २२ दीवोदहि २३,२४ लोगलोगे य ॥२॥ इंदियाणं भेद-पदं १. कति णं भंते ! इंदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच इंदिया पण्णत्ता, तं जहासोइंदिए चक्खिदिए घाणिदिए जिभिदिए फासिदिए । संठाण-पदं २. सोइंदिए णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! कलंबुयापुप्फसंठाणसंठिए पण्णत्ते ॥ __३. चक्खिदिए णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! मसूरचंदसंठाणसंठिए पन्नत्ते ।। ४. घाणिदिए णं पुच्छा । गोयमा ! अइमुत्तगचंदसंठाणसंठिए' पण्णत्ते ॥ १. पविट्ठ (क,घ)। २. आहारए (ख)। ३. दुद्ध° (क,ग,घ); दुट्ठ (ख); हस्तलिखिते मलयगिरिवृत्यादर्श तदनन्तरमसिविषयं, ततो मणिविसयं ततो दुग्धोपलक्षितपान कविषयं, ततस्तैलविषयं, ततः फाणितविषयं, तदनन्तरं वशाविषयं, इति व्याख्याक्रमोस्ति । अस्यानुसारेण षटसूत्राण्येव जायन्ते । एतेषां सूत्राणामालापके मलयगिरिणा षट्सुत्राणामेव सूचनं कृतमस्ति- एवमसिमण्यादि विषयाण्यपि षट् सूत्राणि भावनीयानि। मलयगिरिणा दुग्धपानकं इति एकमेव सूत्रं स्वीकृतं, न तु द्वयम् । तस्याचार्यप्रवरस्य सम्मुखे 'दुद्धपाणए' इति पाठ आसीत् तेन तस्यैव व्याख्या कृता। मुनि पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादनप्रयुक्तेष आदर्शषु 'उडुपाणे' इति पाठो दृश्यते । निशीथसूत्रस्य पाठ'पि अस्य पुष्टिर्जायते। ४. थिग्गिल (ग,ध)। ५. अइमुत्तगसंठाण' (ग)। १८६ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० पण्णवणासुत्तं ५. जिभिदिए णं पुच्छा । गोयमा ! खुरप्पसंठाणसंठिए पण्णत्ते ।। ६. फासिं दिए णं पुच्छा । गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते । बाहल्ल-पदं ७. सोइंदिए णं भंते ! केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं' बाहल्लेणं पण्णत्ते एवं जाव फासिदिए ।। पोहत्त-पदं ८. सोइंदिए णं भंते ! केवतियं पोहत्तेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं पोहत्तेणं पण्णत्ते । एवं चक्खिदिए वि घाणिदिए वि ॥ ६. जिभिदिए णं पुच्छा । गोयमा ! अंगुलपुहत्तं पोहत्तेणं पण्णत्ते॥ १०. फासिदिए णं पुच्छा । गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ते पोहत्तेणं पण्णत्ते ।। कतिपएस-पदं ११. सोइंदिए णं भंते ! कतिपएसिए पण्णत्ते ? गोयमा ! अणंतपएसिए पण्णत्ते । एवं जाव फासिदिए। ओगाढ-पदं १२. सोइंदिए णं भंते ! कतिपएसोगाढे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते । एवं जाव फासिदिए॥ अप्पाबहुय-पदं १३. एएसि णं भंते! सोइंदिय-चक्खिदिय-घाणिदिय-जिभिदिय-फासिदियाण ओगाहणट्ठयाए पएसट्टयाए ओगाहण-पएसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुथा वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे चक्खिदिए ओगाहणट्ठयाए, सोइंदिए ओगाहणट्ठयाए संखेज्जगुणे, घाणिदिए ओगाहणट्ठयाए संखेज्जगुणे, जिभिदिए ओगाहणट्ठयाए असंखेज्जगुणे, फासिदिए ओगाहणट्टयाए संखेज्जगुणे; पएसट्टयाए-सव्वत्थोवे चक्खिदिए पएसट्टयाए, सोइंदिए पएसट्ठयाए संखेज्जगुणे, घाणि दिए पएसट्टयाए संखेज्जगुणे, जिभिदिए पएसट्टयाए असंखेज्जगुणे, फासिदिए पएसट्टयाए संखेज्जगुणे; ओगाहण-पएसट्ठयाएसव्वत्थोवे चक्खिदिए ओगाहणट्ठयाए सोइंदिए ओगाहणट्ठयाए संखेज्जगुणे, घाणिदिए ओगाहणट्ठयाए संखेज्जगुणे, जिभिदिए ओगाहणट्टय!ए असंखेज्जगुणे, फासिदिए ओगाहणट्ठयाए संखेज्जगुणे, फासिंदियस्स ओगाहणट्ठयाएहिंतो चक्खिदिए पएसट्टयाए अणंतगुणे, सोइंदिए पएसट्ठयाए संखेज्जगुणे, घाणिदिए पएसट्टयाए संखेज्जगुणे, जिभिदिए पएसट्टयाए असंखेज्जगुणे, फासिदिए पएसट्टयाए संखेज्जगुणे ।। १४. सोइंदियस्स णं भंते ! केवतिया कक्खडगरुयगुणा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता कक्खडगरुयगणा पण्णत्ता। एवं जाव फासिदियस्स। १५. सोइंदियस्स णं भंते ! केवतिया मउयलहुयगुणा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता मउयलहुयगुणा पण्णत्ता । एवं जाव फासिदियस्स ।। १६. एएसि णं भंते ! सोइंदिय-चक्खि दिय-धाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाणं १. भागे (क); भागो (ख,ग,घ)। Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं इंदियपयं १६१ कक्खडगरुयगुणाणं मउयलहयगुणाणं कक्खडगरुयगुणमउयलहयगणाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा चक्खिदियस्स कक्खडगरुयगुणा, सोइंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, घाणिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, जिभिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, फासिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा; मउयलहुयगुणाणं-सव्वत्थोवा फासिं दियस्स मउयलहुयगुणा, जिभिदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, घाणिदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, सोइंदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, चविखदियस्स म उयलहुयगुणा अणंतगुणा; कक्खडगरुयगुणाणं मउयलहुयगुणाण य--सव्वत्थोवा चक्खिदियस्स कक्खडगरुयगुणा, सोइंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, घाणिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, जिभिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, फासिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, फासिंदियस्स कक्खडगरुयगुणेहिंतो तस्स चेव मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, जिभिदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, घाणिदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, सोइंदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, चक्खिदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा ॥ चउवीसदंडएसु संठाणाइ-पदं १७. णेरइयाणं भंते ! कति इंदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचेंदिया पण्णत्ता, तं जहा-- सोइंदिए जाव फासिदिए । १८. णेरइयाणं भंते ! सोइंदिए किसंठिए पण्णत्ते? गोयमा ! कलंबुयासंठाणसंठिए पण्णत्ते । एवं जहा ओहियाणं वत्तव्वया भणिया तहेव णेरइयाणं पि जाव' अप्पाबहुयाणि दोण्णि वि, णवरं--णेरइयाणं भंते ! फासिदिए किसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--भवधारणिज्जे य उत्तरवेउव्विए य। तत्थ णं जेसे भवधारणिज्जे से णं हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते । तत्थ णं जेसे उत्तरवेउव्विए से वि तहेव । सेसं तं चेव ॥ १६. असुरकुमाराणं भंते ! कति इंदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचेंदिया पण्णत्ता। एवं जहा ओहियाणं जाव अप्पाबहुयाणि दोण्णि वि, णवरं--फासेंदिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--भवधारणिज्जे य उत्तरवेउव्विए य । तत्थ णं जेसे भवधारणिज्जे से णं समचउरंससंठाणसंठिए पण्णत्ते । तत्थ णं जेसे उत्तरवेउव्विए से णं णाणासंठाणसं ठिए पण्णत्ते । सेसं तं चेव । एवं जाव थणियकुमाराणं ।। २०. पुढविकाइयाणं भंते ! कति इंदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! एगे फासिदिए पण्णत्ते ॥ २१. पुढविकाइयाणं भंते । फासिदिए किंसंठिए' पण्णत्ते ? गोयमा ! मसूरचंदसंठाणसंठिए पण्णत्ते॥ २२. पुढविकाइयाणं भंते ! फासिदिए केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अंगुलस्स असंखेज्जइभागं वाहल्लेणं पण्णत्ते ।। २३. पुढविकाइयाणं भंते ! फासिदिए केवतियं पोहत्तेणं पण्णत्ते गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ते पोहत्तणं पण्णत्ते ॥ १. प० १५२-१६ । २. कि संठाणसंठिए (क)। Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ पणवणासुतं २४. पुढविकाइयाणं भंते ! फार्सिदिए कतिपएसिए पण्णत्ते ? गोयमा ! अनंतएसिए पण्णत्ते || २५. पुढविकाइयाणं भंते ! फासिदिए कतिपएसोगाढे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जसोगाढे पण्णत्ते || २६. एतेसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं फासिंदियस्स ओगाहण-पए सट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे पुढविकाइयाणं फार्सिदिए ओगाहणट्टयाए, से चेव पएसट्टयाए अनंतगुणे ॥ २७. पुढविकाइयाणं भंते ! फासिदियस्स केवतिया कक्खडगरुयगुणा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता । एवं मउयल हुयगुणा वि ।। २८. एतेसि णं भंते ! पुढविकाइयाण फासेंदियस्स कक्खडगरुयगुण-मउयल हुयगुणाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पुढविकाइयाणं फासेंदियस्स कवखडगरुयगुणा, तस्स चेव मयउलहुयगुणा अनंतगुणा ॥ २६. एवं आउक्काइयाणं वि जाव वणस्सइकाइयाणं, णवरं - संठाणे इमो विसेसो वो - आउक्काइयाणं थिबुगविदुसंठाणसंठिए पण्णत्ते, तेउक्काइयाणं सूईकलावसंठा - संठिए पण्णत्ते, वाउक्काइयाणं पडागासंठाणसंठिए पण्णत्ते, वणप्फइकाइयाणं णाणासंठाणसंठि पण्णत्ते ॥ ३०. बेइंदियाणं भंते ! कति इंदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दो इंदिया पण्णत्ता, तं जहा - जिभिदिए य फार्सिदिए य । दोण्हं पि इंदियाणं संठाणं बाहल्लं पोहत्तं पदेसा ओगाहणा य जहा ' ओहियाणं भणिया तहा भाणियव्वा णवरं - फासेंदिए इंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते त्ति इमो विसेसो ॥ ३१. एतेसि णं भंते ! बेइंदियाणं जिभिदिय - फार्सेदियाणं ओगाहणट्टयाए पसट्टयाए ओगहण पट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे बेइंदियाणं जिब्भिदिए ओगाहणट्टयाए, फासेंदिए ओगाहणट्टयाए संखेज्जगुणे' । पएसट्टयाए - सव्वत्थोवे बेइंदियाणं जिब्भिदिए पएसट्टयाए, फासें दिए पएसट्टयाए संखेज्जगुणे' । ओगाहण-एसट्टयाए - सव्वत्थोवे बेइंदियस्स जिब्भिदिए ओगाहणgare, फार्सिदिए ओगाहणट्टयाए संखेज्जगुणे, फासें दियस्स ओगाहणट्टयाए हितो जिब्भिदिए पट्टयाए अनंतगुणे, फार्सिदिए पएसट्टयाए संखेज्जगणे ॥ ३२. बेइंदियाणं भंते ! जिब्भिदियस्स केवइया कक्खडगरुयगुणा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता । एवं फासेंदियस्स वि । एवं मउयलहुयगुणा वि । ३३. एतेसि णं भंते ! बेइंदियाणं जिब्भिदिय- फासेंदियाणं कक्खडगरुयगुणाणं मउयलहुयगुणाणं कक्खडगरुयगुण-मउयल हुयगुणाण य कतरे कतरेर्हितो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बेइंदियाणं जिब्भिदियस्स कक्खड - १. प० १५५ १२ २. असंखेज्ज° (क,ख, घ) । ३. असंखेज्ज° (क,ख,ग.घ ) । ४. असंखेज्ज° (क,ख,ग,घ) । ५. असंखेज्ज° (क,ख,ग,घ ) । Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं इंदियपयं गरुयगुणा, फासेंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, फासेंदियस्स कक्खडगरुयगुणेहितो तस्स चैव मउयलहुयगुणा अनंतगुणा, जिब्भिदियस्स मउयल हुयगुणा अनंतगुणा || ३४. एवं जाव चउरिदिय त्ति, णवरं - इंदियपरिवुड्डी' कायव्वा घाणें दिए थोवे, चउर दियाणं चक्खिदिए थोवे । सेसं तं चेव ॥ तेइंदियाणं ३५. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहा णेरइयाणं, णवरं - फासिदिए छवि हसं ठाणसंठि पण्णत्ते, तं जहा - समचउरंसे णग्गोहपरिमंडले' सादी' खुज्जे वामणे हुंडे | वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं ॥ पुट्ठ-पदं ३६. पुट्ठाई' भंते ! सद्दाइं सुणेइ ? अपुट्ठाई सद्दाई सुणेइ ? गोयमा ! पुट्ठाई सद्दाई सुइ, नो अट्ठाई सद्दाई सुणेइ || णो पुट्ठाई ३७. पुट्ठाई भंते! रुवाई पासति ? अट्ठाई रुवाई पासति ? गोयमा रुवाई पासति, अट्ठाई रुवाई पासति ॥ १६३ ३८. पुट्ठाई भंते ! गंधाई अग्घाति ? अपुट्ठाई गंधाई अग्घाति ? गोयमा ! पुट्ठाई गंधा अघाति णो अट्ठाई गंधाई अग्घाति । एवं रसाणवि फासाणवि, णवरं - रसाई अस्साएइ, फासाई पडिसंवेदेति त्ति अभिलावो कायव्व ॥ पविट्ठ-पदं ३६. पविट्ठाई भंते! सद्दाई सुणेति ? अपविट्ठाई सद्दाई सुणेति ? गोयमा ! पविट्ठाई साई सुति, णो अपविट्ठाई सद्दाई सुणेति । एवं जहा पुट्ठाणि तहा पविट्ठाणि वि ॥ विसय-पदं ४०. सोइंदियस्स णं भंते! केवतिए विसए पण्णत्ते ? गोयमा ! जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागाओ", उक्कोसेणं बारसहि जोयणेहिंतो अच्छिण्णे पोग्गले पुट्ठे पविट्ठाई सासु ॥ ४१. चक्खिदियस्स णं भंते! केवतिए विसए पण्णत्ते ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जतिभागाओ, उक्कोसेणं सा तिरेगाओ जोयणसयसहस्साओ अच्छिण्णे पोग्गले अपुट्ठे अपविट्ठाई रुवाई पासति ॥ ४२. घाणिदियस पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागातो, उक्कोसेणं णवहिं जोयणेहितो अच्छिष्णे पोग्गले पुट्ठे पविट्ठाई गंधाई अग्घाति । एवं जिभिदियस्स वि फासिंदियस्स वि ॥ अणगारदारे निज्जरापोग्गल-पदं ४३. अणगारस्स णं भंते ! भाविअप्पणो मारणंतिय समुग्धाएणं समोहयस्स जे चरिमा १. परिवड्ढी ( क,ख, घ) । २. प० १५।१७,१८ । ३. णिग्गोह (ग) । ४. साती (पु) । ५. प० १५।१६ । ६. पुट्ठाणं (ख); पुट्ठाति (घ) । ७. भागो ( ख, ग, घ ) सर्वत्र । मलयगिरिवृत्तौ 'अङ्गुला संख्येयभागात्' इति पञ्चम्यन्तं पदं दृश्यते । Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ पण्णवणासुतं णिज्जरापोग्गला सुहमा णं ते पोगला पण्णत्ता समणाउसो ! ? सव्वलोगं पि य णं ते ओगाहित्ता णं चिट्ठति ? हंता गोयमा ! अणगारस्स णं भाविअप्पणी मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स जे चरिमा णिज्जरापोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो ! सव्वलोगं पियणं ते ओगाहित्ता णं चिट्ठति । ४४. छउमत्थे णं भंते ! मणूसे तेसि णिज्जरापोग्गलाणं किं आणत्तं वा णाणत्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा जाणति पासति ? गोयमा ! णो इणट्ठे' समट्ठे ! ४५. से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चति - छउमत्थे णं मणूसे तेसि णिज्जरापोग्गलाणं णो किंचि आणत्तं वा णाणत्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा जाणति पासति ? गोयमा ! देवे वि य णं अत्थेगइए जे णं तेसि णिज्जरापोग्गलाणं णो किंचि आणत्तं वाणात्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा जाणति पासति । से एणट्ठेणं' गोयमा ! एवं वृच्चति - छउमत्थे णं मणूसे तेसि णिज्जरापोग्गलाणं णो किंचि आणत्तं वा णाणत्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा जाणति पासति, सुहुमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो ! सव्वलोगं पि य णं ते ओगाहित्ताणं चिट्ठति ॥ आहारदारे निज्जरापोग्गल-पदं ४६. णेरइया णं भंते ! ते णिज्जरापोग्गले किं जाणंति पासंति आहारेंति ? उदाहु ण याणंति ण पासंति ण आहारेंति ? गोयमा ! णेरइया णं ते णिज्जरापोगले ण जाणंति ण पासंति आहारेंति । एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिया || ४७. मणूसा णं भंते! ते णिज्जरापोग्गले किं जाणंति पासंति आहारेंति ? उदाहु ण जाणंति ण पासंति ण आहारेंति ? गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति आहारेंति ॥ ४८. सेकेणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चति - अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति ? अत्थेगइया ण याणंति ण पासंति आहारेंति ? गोयमा ! मणूसा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सणिभूयाय असण्णिभूया य । तत्थ णं जेते असण्णिभूया ते णं ण जाणंति ण पासंति आहारेंति । तत्थ णं जेते सण्णिभूया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - उवउत्ता य अणुवउत्ता य । तत्थ णं जेते अणुवउत्ता ते णं ण याणंति ण पासंति आहारेंति । तत्थ णं जेते उवउत्ता ते णं जाणति पासंति आहारेंति । से एएणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति - 'अत्थेगइया जाति पासंति आहारेंति, अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति आहारेंति" । वाणमंतर - जोइसिया जहा णेरइया ॥ ४६. वैमाणिया णं भंते ! गोयमा ! जहा मणूसा णवरं १. इणभट्ठे (क,घ ) । २. तेणट्ठे ( क, ख ) 1 ३. एए सुहुमा ( क ) । ४. जोणिया णं ( क ग, घ ) । ते णिज्जरापोग्गले किं जाणंति पासंति आहारैति ? वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- माइमिच्छद्दिट्टि ५. अत्येगइया न जाणंति ण पासंति आहारेंति, अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति (क, ग, पु) । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं इंदियपयं १६५ . . . जन Tm उववण्णगा य अमाइ सम्म द्दिट्ठिउववण्णगा य । तत्थ णं जेते माइमिच्छद्दिट्ठिउववन्नगा ते णं न याणंति न पासंति आहारैति । तत्थ णं जेते अमाइसम्मद्दिटिउववन्नगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-अणंतरोववण्णगा य परंपरोववण्णगा य । तत्थ णं जेते अणंतरोववण्णगा ते णं ण याणंति ण पासंति आहारेति । तत्थ णं जेते परंपरोववण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहापज्जत्तगाय अपज्जत्तगा य । तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं ण याणंति ण पासंति आहारेति । तत्थ णं जेते पज्जत्तगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- उवउत्ता य अणुवउत्ता य। तत्थ णं उत्ता ते णं ण याणंति ण पासंति आहारति । तत्थ णं जेते उवउत्ता ते णं जाणंति पासंति आहारेति । से एणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चति--अत्थेगइया जाणंति' •पासंति आहारेंति, अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति आहारैति ।। अहायाइदारसत्तगे पडिबिंबपेहा-पदं ५०. अदाए णं भंते ! पेहमाणे' मणूसे किं अहायं पेहति' ? अत्ताणं' पेहति ? पलिभागं पेहति ? गोयमा ! नो अद्दायं पेहति णो अत्ताणं पहति, पलिभागं पेहति । एवं एतेणं अभिलावेणं असिं मणि उडुपाणं' तेल्लं फाणियं वसं ॥ कंबलफुसणा-पदं ५१. कंवलसाडए णं भंते ! आवेढिय-परिवेढिए समाणे जावतियं ओवासंतरं फुसित्ता णं चिट्टति, विरल्लिए वि य णं समाणे तावतियं चेव ओवासंतरं फुसित्ता णं चिद्रति ? हंता! गोयमा ! कंबलसाडए णं आवेढिय-परिवेढिए समाणे जावतियं •ओवासंतरं फुसित्ता णं चिट्ठति, विरल्लिए वि य णं समाणे तावतियं चेव ओवासंतरं फुसित्ता णं चिट्ठति ॥ थणादारे भोगाहणा-पदं ५२. थूणा णं भंते ! उड्ढं ऊसिया समाणी जावतियं खेत्तं ओगाहित्ता णं चिति, तिरियं पि य णं आयता समाणी तावतियं चेव खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठति ? हंता गोयमा ! थूणा णं उड्ड ऊसिया१ ११ समाणी जावतियं खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठति, तिरियं पि य णं आयता समाणी तावतियं चेव खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठति । थिग्गलदारे फुड-पदं ५३. आगासथिग्गले" णं भंते ! किणा" फुडे ? कइहिं वा काएहिं फुडे-किं धम्मत्थिकाएणं फुडे ? किं धम्मत्थिकायस्स देसेणं फुडे ? धम्मत्थिकायस्स पदेसेहिं फुडे ? एवं अधम्मत्थिकाएणं आगासत्थिकाएणं ? एएणं भेदेणं जाव किं पुढविकाइएणं फुडे जाव १. सं० पा०-जाणंति जाव अत्थेगइया । २. ४ (ख,घ)। ३. पेहेमाणे (ग)। ४. पेहेति (ग)। ५. अद्दाणं (ख)। ६. अप्पाणं (ख,ग,घ)। ७. दुद्धं गाणं (क,ख,घ); दुद्धं फाणि (ग)। ८. °साडे (क,ख)। ६. सं० पा०-जावतियं तं चेव । १०. उसासिया (ख)। ११. ऊसासिया (ख); ऊस इया (घ)। १२. संपा०—तं चेव जाव चिट्ठति । १३. °थिग्गिले (ख)। १४. किणे (ख) । Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ पण्णवणासुत्तं तसकाएणं फुडे ? अद्धासमएणं फुडे ? गोयमा ! धम्मत्थिकाएणं फुडे, णो धम्मत्थिकायस्स देसेणं फुडे, धम्मत्थिकायस्स पदेसे हि फुडे । एवं अधम्म त्थिकाएण वि। णो आगासत्थिकाएणं फुडे, आगासत्थिकायस्स देसेणं फुडे, आगासत्थिकायस्स पदेसेहिं फुडे जाव वणप्फइकाइएणं फुडे । तसकाएणं सिय फुडे, सिय णो फुडे । अद्धासमएणं देसे फुडे, देसे णो फुडे । दीवोदहिदारे फुड-पदं ५४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे किणा फुडे ? कतिहिं वा काएहिं फुडे-किं धम्मत्थिकाएणं जाव आगास त्थिकाएणं फुडे ? गोयमा ! णो धम्मत्थिकाएणं फुडे, धम्मत्थिकायस्स देसेणं फडे, धम्मत्थिकायस्स पएसेहि फडे। एवं अधम्मत्थिकायस्स वि आगासत्थिकायस्स वि। पुढविकाइएणं फुडे जाव वणप्फइकाइएणं फुडे । तसकाएणं सिय फुडे सिय णो फुडे । अद्धासमएणं फुडे ॥ ५५. एवं लवणसमुद्दे धायइसंडे दीवे कालोए समुद्दे अभितरपुक्खरद्धे । बाहिरपुक्खरद्धे एवं चेव, णवरं-अद्धासमएणं णो फुडे । एवं जाव सयंभुरमणे समुद्दे । एसा परिवाडी इमाहिं गाहाहिं अणुगंतव्वा, तं जहा जंबुद्दीवे लवणे, धायइ कालोय पुक्खरे वरुणे । खीर घत खोत नंदि य, अरुणवरे कुंडले रुयए ॥१॥ आभरण-वत्थ-गंधे, उप्पल-तिलए' य पुढवि-णिहि-रयणे । वासहर-दह-नदीओ, विजया वक्खार-कप्पिदा ॥२॥ कुरु-मंदर-आवासा, कूडा णक्खत्त-चंद-सूरा य । देवे णागे जक्खे, भूए य सयंभुरमणे य ॥३॥ एवं जहा बाहिरपुक्खरद्धे भणितं तहा जाव सयंभुरमणे समुद्दे जाव अद्धासमएणं णोफुडे ।। लोगदारे फुड-पदं ५६. लोगे णं भंते ! किणा फुडे ? कतिहिं वा काएहिं ? जहा आगासथिग्गले ।। अलोगदारे फुड-पदं ५७. अलोए णं भंते ! किणा फुडे ? कतिहिं वा काएहिं पुच्छा। गोयमा ! णो धम्मत्थिकाएणं फूडे जाव णो आगासत्थिकाएणं फूडे, आगासत्थिकायस्स देसेणं फडे, आगासत्थिकायस्स पदेसेहिं फुडे । णो पुढविक्काइएणं फुडे जाव णो अद्धासमएणं फुडे। एगे अजीवदव्वदेसे अगरुलहुए अणंतेहिं अगरुलहुयगुणेहिं संजुत्ते सव्वागासे अणंतभागूणे॥ २. अगुरु° (ग)। १. पउम (मवृ); अनुयोगद्वारे (१८५) सूत्रे 'तिलए' पदस्यस्थाने 'पउमे' इति पाठान्तरं लभ्यते । Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं इंदियपयं १६७ बीओ उद्देसो गाहा १ इंदिय-उवचय २ णिव्वत्तणा य ३ समया भवे असंखेज्जा। ४ लद्धी ५ उवओगद्धा, ६ अप्पाबहए विसेसहिया' ।।१।। ७ ओगाहणा ८ अवाए ह ईहा तह १० वंजणोग्गह चेव । ११ दविदिय १२ भाविदिय, तीया बद्धा पुरेक्खडिया ॥२।। इंदियाणं उवचय-पदं ५८. कतिविहे णं भंते ! इंदिओवचए पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे इंदिओवचए पण्णत्ते, तं जहा---सोइंदिओवचए' चक्खिदिओवचए घाणिदिओवचए जिभिदिओवचए फासिदिओवचए॥ ५६. णेरइयाणं भंते ! कतिविहे इंदिओवचए पण्णत्ते ? गोयमा ? पंचविहे इंदिओवचए पण्णत्ते, तं जहा--सोइंदिओवचए जाव फासिदिओवचए। एवं जाव वेमाणियाणं । जस्स जइ इंदिया तस्स तइविहो चेव इंदिओवचयो भाणियन्वो।। निव्वत्तणा-पदं ६०. कतिविहा णं भंते ! इंदियनिव्वत्तण। पण्णत्ता ? गोयमा ? पंचविहा इंदियनिव्वत्तणा पण्णत्ता, तं जहा-सोइंदियनिव्वत्तणा जाव फासिदियनिव्वत्तणा । एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं, नवरं-जस्स जतिदिया अत्थि ।। निव्वत्तणासमय-पदं ६१. सोइंदियणिव्वतणा णं भंते ! कतिसमइया पण्णत्ता? गोयमा? असंखिज्जसमइया अंतोमुहुत्तिया पण्णत्ता। एवं जाव फासिदियनिव्वत्तणा । एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं॥ लद्धि-पदं ६२. कतिविहा णं भंते ! इंदियलद्धी पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा इंदियलद्धी पण्णत्ता, तं जहा-सोइंदियलद्धी जाव फासिदियलद्धी । एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं, नवरं-जस्स जति इंदिया अत्थि तस्स तावतिया लद्धी भाणियव्वा ।। उवओगद्धा-पदं ६३. कतिविहा णं भंते ! इंदियउवओगद्धा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा इंदियउवओगद्धा पण्णत्ता, तं जहा--सोइंदियउवओगद्धा जाव फासिदियउवओगद्धा। एवं जरइयाणं जाव वेमाणियाणं, नवरं-- जस्स जति इंदिया अत्थि ।। उवओगद्ध-अप्पाबहुय-पदं ६४. एतेसि णं भंते ! सोइंदिय-चक्खिदिय-घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाणं जहणियाए उवओगद्धाए उक्कोसियाए उवओगद्धाए जहण्णुक्कोसियाए उवओगद्धाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा सुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा चक्खिदियस्स जहणिया उवओगद्धा, सोइंदियस्स जहणिया विसेसाहिया, घाणिदियस्स १. °साहिया (ख,घ)। २. °चते (ख,घ)। Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ पण्णवणासुतं जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया, जिब्भिदियस्स जहण्णिया उवओगद्धा विसेसाहिया, फार्मेदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया । उक्कोसियाए उवओगद्धाए सव्वत्थोवा चक्खिदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा, सोइंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, घाणिदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, जिमि दियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, फासेंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया । कोसियाए उवओगद्धाए सव्वत्थोवा चक्खिदियस्स जहण्णिया उवओगद्धा, सोइंदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया, घाणिदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया, जिभिदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया, फासेंदियस्स जहण्णिया उवओगद्धा विसेसाहिया । फासेंदियस्स जहण्णियाहिंतो उवओगद्धाहिंतो चक्खिदियस्स उक्कोसिया ओगद्धा विसेसाहिया, सोइंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसा हिया, घाणिदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, जिब्भिदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, फार्मेदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया || ओगाहण-पदं ६५. कतिविहाणं भंते! इंदियओगाहणा पण्णत्ता ! गोयमा ? पंचविहा इंदिय ओगाहणा पण्णत्ता, तं जहा- सोइंदियओगाहणा जाव फासेंदियओगाहणा । एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं, णवरं जस्स जइ इंदिया अस्थि ।। अवाय-पदं ६६. कतिविहे णं भंते ? इंदियअवाए पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे इंदियअवाए पण्णत्ते, तं जहा- सोइंदियअवाए जाव फासेंदियअवाए। एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं, नवरं जस्स जत्तिया इंदिया अत्थि || हा पद ६७. कतिविहाणं भंते! ईहा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा ईहा पण्णत्ता, तं जहा सोइंदियईहा जाव फासेंदियईहा । एवं जाव वेमाणियाणं, णवरं जस्स जति इंदिया || उग्गह-पदं -- ६८. कतिविहे णं भंते ! उग्गहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे उग्गहे पण्णत्ते, तं जहा अत्थोग्य वंजोग हे य ॥ ६६. वंजणोग्गहे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा- सोइंदियवंज गोग्गहे घाणिदियवंजणोग्गहे जिब्भिदियवंजणोग्गहे फासिदियवंजगोग्गहे ॥ ७०. अत्थोग्गहे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! छव्विहे पण्णत्ते, तं जहासोइंदियअत्थोग्गहे चक्खिदियअत्थोग्गहे घाणिदियअत्थोग्गहे जिब्भिदियअत्यग्गहे फासिदियअत्थोग्गहे णोइंदिय अत्थोग्गहे || ७१. रइयाणं भंते ! कतिविहे उग्गहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे उग्गहे पण्णत्ते, Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसम इंदियपयं तं उहा-अत्थोग्गहे जाव वंजणोग्गहे य । एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकूमाराणं ॥ ७२. पुढविकाइयाणं भंते ! कतिविहे उग्गहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे उग्गहे पण्णत्ते, तं जहा - अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य ॥ ७३. पुढविकाइयाणं भंते ! वंजणोग्गहे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगे फासिंदियवंजणोग्गहे पण्णत्ते ॥ ७४. पुढविकाइयाणं भंते ! कतिविहे अत्थोग्गहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगे फासिदियअत्थोगहे पण्णत्ते । एवं जाव वणप्फइकाइयाणं ॥ ७५. एवं बेइंदियाण वि, णवरं-बेइंदियाणं वंजणोग्गहे दुविहे पण्णत्ते, अत्थोग्गहे दुविहे पण्णत्ते । एवं तेइंदिय-वउरिदियाण वि, णवरं ---इंदियपरिवुड्ढी कायव्वा। चउरिदियाणं वंजणोग्गहे तिविहे पण्णत्ते, अत्थोग्गहे चउविहे पण्णत्ते । सेसाणं जहा णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं॥ दव्व-भाव-पदं ७६. कतिविहा णं भंते ! इंदिया पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहादविदिया य भाविदिया य॥ दग्विदिय-पदं ७७. कति णं भंते ! दबिदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ दविदिया पणत्ता, तं जहा—दो सोता' दो णेत्ता दो घाणा जीहा फासे । ७८. णेरइयाणं भंते ! कति दविदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! अटु, एते चेव। एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराण वि ।। ७६. पुढविकाइयाणं भंते ! कति दविदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! एगे फासेंदिए पण्णत्ते । एवं जाव वणस्सतिकाइयाणं ॥ ८०. बेइंदियाणं भंते ! कति दविदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दो दव्विदिया पण्णत्ता, तं जहा-फासिदिए य जिभिदिए य । ८१. तेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! चत्तारि दविदिया पण्णत्ता, तं जहा-दो घाणा जीहा फासे। ८२. चउरिदियाणं पुच्छा । गोयमा ! छ दविदिया पण्णता, तं जहा-दो णेत्ता दो घाणा जीहा फासे । सेसाणं जहा णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ॥ ८३. एगमेगस्स णं भंते ! रइयस्स केवतिया दविदिया अतीता ? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा ? गोयमा ! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अट्ट वा सोलस्स वा सत्तरस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा ।। ८४. एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स केवतिया दविदिया अतीता ? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा ? गोयमा ! अट्ठ । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! अट्ट वा णव वा' संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा । एवं जाव थणियकुमाराणं ताव भाणियव्वं ।। ३. वा सत्तरस्स वा (ग)। १. सोता (क)। २. ४ (क,ख,ग,घ)। Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्त ८५. एवं पुविक्काइय आउक्काइय-वणस्स इकाइयस्स वि, णवरं - केवतिया बद्धेल्लग ? त्ति पुच्छए उत्तरं एक्कं फासिंदियं पण्णत्तं । एवं ते उक्काइय-वाउक्काइयस्स वि, णवरं - पुरेक्खडा णव वा दस वा ॥ ८६. एवं बेइंदियाण वि, णवरं - बद्धेलगपुच्छाए दोण्णि । एवं तेइंदियस्स वि, णवरं - बलगा चत्तारि । एवं चउरिदियस्स वि, णवरं बद्धेललगा छ । २०० ८७. पंचेंदियतिरिक्खजोणिय मणूस - वाणमंतर - जोइ सिय सोहम्मीसाणगदेवस्स असुरकुमारस्स, नवरं - मणूसस्स पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्स नव वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा ॥ ८८. सणंकुमार-माहिंद-बंभ-लंतग सुक्क सहस्सार- आणय- पाणय- आरण- अच्चुय वेज्जगदेवरस य जहा नेरइयस्स || ८. एगमेगस्स णं भंते ! विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवस्स केवतिया दव्वंदिया अतीता ? गोयमा ! अनंता । केवतिया बद्धेललगा ? गोयमा ! अट्ठ । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा ॥ जहा ६०. सव्वट्टसिद्धगदेवस्स अतीता अनंता, बद्धेलगा अट्ठ, पुरेक्खडा अट्ठ | ε१. णेरइयाणं भंते ! केवतिया दव्विदिया अतीता ? गोयमा ? अणंता । बद्धेललगा ? गोयमा ! असंखेज्जा । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! अनंता । एवं जाव गेवेज्जगदेवाणं, णवरं - मणूसाणं बद्धेललगा सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा ।। २. विजय-जयंत- जयंत अपराजियदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! अतीता अनंता, बद्धेललगा असंखेज्जा, पुरेक्खडा असंखेज्जा | ६३. सव्वसिद्धगदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! अतीता अणंता, बद्धेललगा संखेज्जा, पुक्खडा संखेज्जा ।। ४. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइअत्ते केवतिया दव्विदिया अतीता ? गोमा ! अनंता । केवतिया बद्धेल्लया ? गोयमा ! अट्ठ । केवतिया पुरेक्खडा ? गोमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ट वा सोलस वा चउवौसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा ॥ - ε५. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता ? गोयमा ! अनंता । केवतिया बद्धेललगा ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा । एवं जाव थणियकुमारते ॥ ! ६७. एगमेगस्स णं भंते गोमा ! अनंता । केवतिया ६६. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स पुढविकाइयत्ते केवतिया दव्विदिया अतीता ? गोमा ! अनंता । केवतिया बद्धेललगा ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? गोमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सस्थि एक्को वा दो वा तिष्णि वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा । एवं जाव वणप्फइकाइयत्ते ॥ णेरइयम्स बेइंदियत्ते केवतिया दव्विदिया अतीता ? बद्धेललगा ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं इंदियपयं २०१ गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि' दो वा चत्तारि वा छ वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा । एवं तेइंदियत्ते वि, णवरं - पुरेक्खडा चत्तारि वा अट्ठ वा बार वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा । एवं चउरिदियत्ते वि, नवरं - पुरेक्खडा छ वा वारस वा अट्ठारस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा । पंचेंदियतिरिक्खजोणियत्ते जहा असुरकुमार || ८. मणूस वि एवं चेव, णवरं - केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! अट्ठ वा सोलस वा चवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा । सव्वेसि मणूसवज्जाणं पुरेक्खडा मणूस कसइ अस्थि कस्सइ णत्थि त्ति एवं ण वुच्चति ॥ ६६. वाणमंतर - जोइसिय सोहम्मग जाव गेवेज्जगदेवत्ते अतीता अनंता । बद्धेल्लगा । पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा ।। १००. एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स विजय - वेजयंत- जयंत अपराजियदेवत्ते केवतिया दविदिया अतीता ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया बद्धेलगा ? गोयमा ! । केवतिया पुक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ठा सोलस वा ॥ १०१. सव्वट्टसिद्धगदेवते अतीता णत्थि । बद्धेल्लगा णत्थि । पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि जस्सत्थि अट्ठ ॥ १०२. एवं जहा रइयदंडओ णीओ तहा असुरकुमारेण वि णेयव्वो जाव पंचेंद्रिय - तिरिक्खजोणिएणं, णवरं - जस्स सट्टाणे जति बद्धेललगा तस्स तइ भाणियव्वा ।। १०३. एगमेगस्स णं भंते! मणूसस्स णेरयइत्ते केवतिया दव्वेंदिया अतीता ? गोयमा ! अनंता । केवतिया बद्धेललगा ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा । एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियत्ते, णवरं - एगिदिय-विगलिंदिएसु जस्स जत्तिया पुरेक्खडा तस्स तत्तिया भाणियव्वा ॥ १०४. एगमेगस्स णं भंते! मणूसस्स मणूसत्ते केवतिया दव्विदिया अतीता ? गोयमा ! अनंता । केवतिया बद्धेललगा ? गोयमा ! अट्ठ । केवतिया पुरेक्खडा ? कस्सइ अथि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अता वा । वाणमंतर जोतिसिय जाव गेवेज्जगदेवत्ते जहा णेरइयत्ते ॥ १०५. एगमेगस्स णं भंते! मणूसस्स विजय - वेजयंत- जयंत अपराजियदेवत्ते केवतिया विदिया अतीता ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा । केवतिया बद्धे लगा ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस त्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा ॥ १०६. एगमेगस्स णं भंते ! मणूस स अतीता ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, १. जस्सत्थि एको वा ( क, ख घ ) । सव्वट्टसिद्ध गदेवत्ते केवतिया दविदिया जस्सत्थि अट्ठ । केवतिया बद्धेललगा ? Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ पण्णवणासुत्त गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ट॥ १०७. वाणमंतर-जोतिसिए जहाणेरइए । १०८. सोहम्मगदेवे वि जहा णेरइए, णवरं- सोहम्मगदेवस्स विजय-वेजयंत-जयंतअपराजियदेवत्ते केवतिया दविदिया अतीता? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ट । केवतिया बद्धेल्लगा ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा। सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते जहा णेरइयस्स । एवं जाव गेवेज्जगदेवस्स सव्वसिद्धगदेवत्ते ताव णेयव्वं ।।। १०६. एगमेगस्स णं भंते ! विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवस्स रइयत्ते केवतिया दग्विदिया अतीता ? गोयमा ! अणंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! णत्थि । एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियत्ते ।। ११०. मणूसत्ते अतीता अणंता, बद्धेल्लगा णत्थि । पुरेक्खडा अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा ॥ १११. वाणमंतर-जोतिसियत्ते जहा' णेरइत्ते॥ ११२. सोहम्मगदेवत्ते अतीता अणंता। बद्धेल्लगा णत्थि। पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ठ बा सोलस बा चउवीसा वा संखेज्जा वा। एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते॥ ११३. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियत्ते अतीता कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ठ । केवतिया वद्धेल्लगा? गोयमा ! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ठ। ११४. एगमेगस्स णं भंते ! विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवस्स सब्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवतिया दविदिया अतीता ? गोयमा! णत्थि केवतिया बद्धेल्लगा ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पूरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जम्सत्थि अटू॥ ११५. एगमेगस्स णं भंते ! सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स णेरइयत्ते केवतिया दविदिया अतीता? गोयमा ! अणंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! णत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! णत्थि । एवं मणसवज्जं जाव गेवेज्जगदेवत्ते, णवरं-मणूसत्ते अतीता अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पूरेक्खडा? गोयमा ! अट्ठ॥ ११६. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते अतीता कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि अट्ठ। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! णत्थि । ११७. एगमेगस्स णं भंते ! सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवतिया दविदिया अतीता? गोयमा ! णत्थि । केवतिया बद्धेल्लगा ? गोयमा ! अट्ठ । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! णत्थि ।। ११८. णेरइयाणं भंते ! णेरइयत्ते केवतिया दविदिया अतीता ? गोयमा ! अणंता । १. प० १५२९४-१०१ । २. प० १५॥१०६ । Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं इंदियपयं २०३ केवतिया बद्वेल्लगा ? गोयमा ! असंखेज्जा । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! अणंता ।। ११६. णेरइयाणं भंते ! असुरकुमारत्ते केवतिया दविदिया अतीता ? गोयमा ! अणंता। केवतिया बद्धेल्लगा ? गोयमा ! पत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अणंता । एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते॥ १२० रइयाणं भंते ! विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते केवतिया दविदिया अतीता ? णत्थि । केवतिया बद्धेल्लगा? णत्थि। केवतिया पुरेक्खडा ? असंखेजा। एवं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते वि ।। १२१. एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते भाणियव्वं, णवरंवणस्सइकाइयाणं विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते य पुरेक्खडा अणंता। सव्वेसि मणूस सव्वट्ठसिद्धगवज्जाणं सट्टाणे बद्धेल्लगा असंखेज्जा, परदाणे बद्धेल्लगा णत्थि। वणस्सइकाइयाणं सट्ठाणे बद्धेल्लगा अणंता ।। १२२. मणुस्साणं णेरइयत्ते अतीता अणंता । बद्धेल्ला णत्थि । पुरेक्खडा अणंता । एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते, णवरं-सट्टाणे अतीता अणंता, बद्धेल्लगा सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा, पूरेक्खडा अणंता॥ १२३. मणूसाणं भंते ! विजय वेजयंत-जयंत अपराजियदेवत्ते केवतिया दविदिया अतीता ? संखेज्जा। केवतिया बद्धेल्लगा? णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? 'सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा । एवं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते वि।। १२४. वाणमंतर-जोइसियाणं जहा णेरइयाणं ।। १२५. सोहम्मगदेवाणं एवं चेव, णवरं-विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते अतीता अखंखेज्जा, बद्धेल्लगा णत्थि, पुरेक्खडा असंखेज्जा" । सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते अतीता णत्थि । बद्धेल्लगा णत्थि । पुरेक्खडा असंखेज्जा । एवं जाव गवेज्जगदेवाणं ॥ १२६. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवाणं भंते ! णेरइयत्ते केवतिया दव्वेंदिया अतीता ? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धल्लगा ? णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? णत्थि । एवं जाव जोइसियत्ते, णवरमेसि मणूसत्ते अतीता अणंता । केवतिया बल्लिगा? णत्थि । पुरेक्खडा असंखेज्जा ।। १२७. एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते। सट्ठाणे अतीता असंखेज्जा । केवतिया बद्धेल्लगा ? असंखेज्जा । केवितया पुरेक्खडा ? असंखेज्जा ॥ १२८. सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते अतीता णत्थि । बद्धेल्लगा णत्थि पुरेक्खडा असंखेज्जा । १२६ सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं भंते ! णेरइयत्ते केवतिया दव्वें दिया अतीता? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा ? णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? णत्थि। एवं मणूसवज्जं जाव गेवेज्जगदेवत्ते ॥ १३० मणूसत्ते अतीता अणंता । बद्धेल्लगा णत्थि । पुरेक्खडा संखेज्जा ।। १३१. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते केवतिया दविदिया अतीता? संखेज्जा। केवतिया बद्धेल्लगा ? णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? णत्थि ॥ १.४ (ख,घ)। Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ पण्णवणासुतं १३२. सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं भंते ! सव्वट्टसिद्धगदेवत्ते केवतिया दविदिया अतीता ? णत्थि । केवतिया बद्धेल्लगा ? संखेज्जा । केवतिया पुरेक्खडा ? णत्थि ।। भाविदिय-पदं १३३. कति णं भंते ! भाविदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच भाविदिया पण्णत्ता, तं जहा-सोइंदिए जाव फासिदिए। १३४. णेरइयाणं भंते ! कति भाविदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच भाविदिया पण्णत्ता, तं जहा -सोइंदिए जाव फासें दिए। एवं जस्स जति इंदिया तस्स तति' भाणियव्वा जाव वेमाणियाणं ॥ १३५ एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स केवतिया भाविदिया अतीता ? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा ? पंच । केवतिया पुरेक्खडा ? पंच वा दस वा एक्कारस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा ॥ १३६. एवं असुरकुमारस्स वि, णवरं पुरेक्खडा पंच वा छ वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा । एवं जाव थणियकुमारस्स ।। १३७. एवं पुढविकाइय-आउकाय-वणस्सकाइयस्स वि, बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियस्स वि तेउक्काइय-वाउक्काइयस्स वि एवं चेव, णवरं–पुरेक्खडा छ वा सत्त वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा ॥ १३८. पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स जाव ईसाणस्स जहा असुरकुमारस्स, णवरं-- मणूसस्स पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि, कस्सइ णत्थित्ति भाणियव्वं । सणंकुमार जाव गेवेज्जगस्स जहा जेरइयस्स ।। १३६. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवस्स अतीता अणंता। बद्धेल्लगा पंच । पुरेक्खडा पंच वा दस वा पण्णरस वा संखेज्जा वा । सबट्ठसिद्धगदेवस्स अतीता अणंता। बद्धेल्लगा पंच । केवतिया पुरेक्खडा ? पंच ॥ १४०. णेरइयाणं भंते ! केवतिया भाविदिया अतीता ? गोयमा ! अणंता। केवतिया बद्धेल्लगा? असंखज्जा। केवतिया पुरेक्खडा ? अणंता । एवं जहा दविदिएसू पोहत्तेणं दंडओ भणिओ तहा भावि दिएसु वि पोहत्तेणं दंडओ भाणियव्वो, णवरंवणप्फइकाइयाणं बद्धेल्लगा वि अणंता॥ १४१. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवतिया भाविदिया अतीता ? गोयमा ! अणंता। बद्धेल्लगा पंच । पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि, कस्सइ णत्यि, जस्सत्थि पंच वा दस वा पण्णरस वा संखज्जा वा असंखज्जा वा अणंता वा। एवं असुरकुमारत्ते' जाव थणियकुमारत्ते', णवरं-बद्धल्लगा णत्थि ॥ १४२. पूढविक्काइयत्ते जाव बेइंदियत्ते जहा दविदिया। तेइंदियत्ते तहेव, णवरंपूरेक्खडा तिण्णि वा छ वा णव वा संखज्जा वा असंखज्जा वा अणंता वा। एवं चरिदियत्ते १. तत्तिया (ग,घ)। २. वा असंखेज्जा (घ)। ३. असुरकुमाराणं (क,घ)। ४. थणियकुमाराणं (क,घ) । Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं इंदियपयं २०५ वि णवरं-परेक्खडा चत्तारि वा अट्ठ वा बा रस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा ।। १४३. एवं एते चेव गमा चत्तारि णेयव्वा जे चेव दव्विदिएसु। नवरं-तइयगमे जाणियव्वा जस्स जइ इंदिया ते पुरेक्खडेसु मुणेयव्वा। चउत्थगमे जहेव दवेंदिया जाव सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवतिया भाविदिया अतीता ? णत्थि । बद्धेल्लगा संखेज्जा। पुरेक्खडा णत्थि ।। Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं पओगपयं पआगभेय-पदं १. कइविहे णं भंते ! पओगे पण्णत्ते ? गोयमा ! पण्णरसविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-सच्चमणप्पओगे, मोसमणप्पओगे, सच्चामोसमणप्पओगे, असच्चामोसमणप्पओगे, एक वइप्पओगे वि चउहा, ओरालियसरीरकायप्पओगे ओरालियमीससरीरकाय पओगे वेउव्वियसरीरकायप्पओगे वेउब्वियमीससरीरकायप्पओगे आहारगसरीरकायप्पओगे' आहारगमीससरीरकायप्पओगे' कम्मासरीरकायप्पओगे।। जीवेसु ओहेणं पओग-पदं २. जीवाणं भंते ! कतिविहे पओगे पण्णत्ते ? गोयमा ! पण्णरस विहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-सच्चमणप्पओगे जाव कम्मासरीरकायप्पओगे ।। चउबीसदंडएस ओहेणं पओग-पदं ३. णेरइयाणं भंते ! कतिविहे पओगे पण्णत्ते ? गोयमा ? ! एक्कारसविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-सच्चमणप्पओगे जाव असच्चामोसवइप्पओगे वेउव्वियसरीरकायप्पओगे वेउव्वियमीससरीरकायप्पओगे कम्मासरीरकायप्पओगे। एवं असुरकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं ।। ४. पुढविक्काइयाणं पुच्छा । गोयमा ! तिविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-ओरालियसरीरकायप्पओगे ओरालियमीससरीरकायप्पओगे कम्मासरीरकायप्पओगे। एवं जाव वणप्फइकाइयाणं, णवरं-- ५. बाउक्काइयाणं पंचविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-ओरालियसरीरकायप्पओगे ओरालियमीससरीरकायप्पओगे वेउव्विए दुविहे कम्मासरीरकायप्पओगे य॥ ६. बेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! चउविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-असच्चामोसवइप्पओगे ओरालियसरीरकायप्पओगे ओरालियमीससरीरकायप्पओगे कम्मासरीरकायप्पओगे। एवं जाव चउरिंदियाणं । ७. पंचेंदियतिरिवखजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! तेरसविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहासच्चमणप्पओगे मोसमणप्पओगे सच्चामोसमणप्पओगे असच्चामोसमणप्पओगे, एवं वइप्पओगे वि, ओरालियसरीरकायप्पओगे ओरालियमीससरीरकायप्पओगे वेउव्विय१. आहारस (घ)। २. आहारमी॰ (घ)। २०६ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं पओगपयं २०७ सरीरकायप्पओगे वेउव्वियमीससरीरकायप्पओगे कम्मासरीरकायप्पओगे॥ ८. मणूसाणं पुच्छा । गोयमा ! पण्णरसविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा- सच्चमणप्पओगे जाव कम्मासरीरकायप्पओगे।। ___. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं ॥ जीवेसु विभागेणं पओग-पदं १०. जीवा णं भंते ! किं सच्चमणप्पओगी जाव कि कम्मासरीरकायप्पओगी? गोयमा ! जीवा सव्वे वि ताव होज्जा सच्चमणप्पओगी वि जाव वेउव्वियमीससरीरकायप्पओगी वि कम्मासरीरकायप्पओगी वि, अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य आहारगमीससरीरकायप्पयोगी य ३ अहवेगे य आहारगमीससरीरकायप्पओगिणो य ४ चउभंगो, अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य ३ अहवेग य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य-एए जीवाणं अट्ठ भंगा॥ चउवीसदंडएसु विभागेणं पओग-पदं ११. णेरइया णं भंते ! किं सच्चमणप्पओगी जाव किं कम्मासरीरकायप्पओगी? गोयमा ! णेरइया सव्वे वि ताव होज्जा सच्चमणप्पयोगी वि जाव वेउव्वियमीसासरीरकायप्पओगी वि, अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य २ । एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा॥ १२. पुढविकाइया णं भंते ! किं ओरालियसरीरकायप्पओगी ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी कम्मासरीरकायप्पओगी? गोयमा ! पढविकाइया णं ओरालियसरीरकायप्पओगी वि ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी वि कम्मासरीरकायप्पओगी वि। एवं जाव वणप्फतिकाइयाणं, णवरं-वाउक्काइया वेउब्वियसरीरकायप्पओगी वि वेउव्वियमीसासरीरकायप्पओगी वि ॥ १३. बेइंदिया णं भंते ! किं ओरालियसरीरकायप्पओगी' जाव कम्मासरीरकायप्पओगी? गोयमा! बेइंदिया सव्वे वि ताव होज्जा असच्चामोसवइप्पओगी वि ओरालियसरीरकायप्पओगी वि ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी वि, अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पयोगी य १ अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य २ । एवं जाव चउरिदिया ।। १४. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया जहा जेरइया, णवरं-ओरालियसरीरकायप्पओगी वि ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी वि, अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पपोगी य १ अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य२॥ १५. मणसा णं भंते ! किं सच्चमणप्पओगी जाव किं कम्मासरीरकायप्पओगी? गोयमा ! मणूसा सव्वे वि ताव होज्जा सच्चमणप्पओगी वि जाव ओरालियसरीरकायप्पओगी वि वेउव्वियसरीरकायप्पओगी वि वेउव्वियमीसासरीरकायप्पओगी वि, अहवेगे १. °मीस (क,घ)। २,३. 'पओगी वि (क,घ)। Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं य ओरालियमी सासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरका ओगिणो य २ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य ३ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य ४ अहवेगे य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य ५ अहवेगे य आहारगमीसासरी र कायप्पओगिणो य ३ अहवेगे य कम्मगसरीरकायप्पओगी य ७ अहवेगे य कम्मगसरीकाय पओगिणो य ८ एते अट्ट भंगा पत्तेयं । अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरी रकायप्पओगी य १ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगी य ३ अहवेगे य ओरालियमी सासरी रकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणी य ४ - एवं एते चत्तारि भंगा | अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरी रकायप्पओगिणो य २ अहवेगे ओरालियमीसासरीरकायमप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य ३ अहवेगे य ओरालियमीसासरी रकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य ४- चत्तारि भंगा | अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य २ अह्वेगे य ओरालियमीसासरी रकायओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य ३ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ४ - एते चत्तारि भंगा | अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगीय आहारगमीससरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणी य आहारगमीसासरी रकायप्पओगी य ३ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमी सासरीरकायप्प ओगिणो य ४ -- चत्तारि भंगा | अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी कम्मगसरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायओगिणो य २ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य ३ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य कम्मगसरीरकायप्पओगिणो य ४ - चउरो भंगा । अहवेगे य आहारगमीसगसरी रकायप्पओगी य कम्मगसरीरकाय प्पओगी य १ अहवेगे य आहारगमीसगसरीरकायप्पओगी य कम्मगसरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेंगे य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मगसरी रकायप्पओगी य ३ अहवेगे य आहारगमीसासरीरकाय ओगिणो य कम्मगसरीरकायप्पओगिणो य ४ - चत्तारि भंगा। एवं चउवीसं भंगा । २०८ य अहवेगे' य ओरालियमीसग सरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगी आहारगमी सासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य १. अहवा एगे (ग) सर्वत्र । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं पओगपयं ओरालियमीसग सरीरकायप्पओगी य आहारगसरी रकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगीय ३ अहवेगे य ओरालियमीसासरी रकायप्पओगी य आहारगसरीरका गणो य आहारगमी सासरी रकायप्पओगिणो य ४ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकाय ओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य ५ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरका यप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरी रकायप्पओगिणो य ६ अहवेगे य ओरालियमी सासरीरकायप्पओ गणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य ७ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरका ओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य८--- एते अट्ठ भंगा | अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगी य कम्मगसरी रकायप्पओगी' य १ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगी य कम्मगसरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य ओरालियम सासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य कम्मगसरीरकायप्पओगी य ३ अहवेगे य ओरालियमीसासरी रकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य कम्मगसरीरकायप्पओगिणो य ४ अहवेगे य ओरालियमीसासरी रकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगी य कम्मगसरीरकायप्पओगी य ५ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगी य कम्मगसरीरकायप्पओगिणो य ६ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरी रकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य ७ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगिणो यद- एते अट्ठ भंगा। अवेगे य ओरालियमीसासरी कायप्पओगी य आहारगमीसासरी रकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मगसरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य ओरालियमीसासरी रकायप्पओगी य आहागमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य ३ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ४ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगी य ५ अहवेगे य ओरालियमीसासरी रकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ६ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य ७ अहवेगे ओरालियमीसासरी रकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ८ - एते अट्ठ भंगा। अवेगे' य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य आहारगमीसासरी रकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य ३ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसा य १. कम्मा ( ग ) ; कम्म° (घ ) । २. अहवेते॰ (क,ख) सर्वत्र । २०६ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० पण्णवणासुत्तं सरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ४ अहवेगे य आहागसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगी य ५ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ६ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य ७ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ८एवं एते तियसंजोएणं चत्तारि अट्ठभंगा। सव्वे वि मिलिया बत्तीसं भंगा जाणियव्वा'। अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगिणोय २ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य ३ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ४ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगी य ५ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ६ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य ७ अहवेगे य ओरालियमीसगसरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसारीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ८ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगी य ह अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य १० अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य ११ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणी य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य १२ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगी य १३ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य १४ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य १५ अहवेगे १. भाणियव्वा (क)। Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं पओगपयं य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य १६ – एवं एते चउसंजोएणं सोलस भंगा भवंति । सव्वे वि य णं संपिंडिया असीति' भंगा भवंति ८० ॥ १६. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा ॥ इवाय-पदं १७. कतविणं भंते! गइप्पवाए पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे' पण्णत्ते, तं जहाओगगती ततगती बंधणच्छेदणगती उववायगती विहायगती | पओगगइ-पदं २११ १८. से किं तं पओगगती ? पओगगती पण्णरसविहा पण्णत्ता, तं जहा - सच्चमणप्पओगगती एवं जहा पओगे भणिओ तहा एसा वि भाणियव्वा जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती ॥ १६. जीवाणं भंते! कतिविहा पओगगती पण्णत्ता ? गोयमा ! पण्णरस विहा पण्णत्ता, तं जहा - सच्चमणप्पओगगती जाव कम्मासरीरकायप्पओगगती ॥ - २०. रइयाणं भंते ! कतिविहा पओगगती पण्णत्ता ? गोयमा ! एक्कारसविहा पण्णत्ता, तं जहा - सच्चमणप्पओगगती एवं उवउज्जिऊण' जस्स जतिविहा तस्स ततिविहा भाणितव्वा जाव वेमाणियाणं ॥ २१. जीवा णं भंते ! किं सच्चमणप्पओगगती जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती ? गोमा ! जीवा सव्वे वि ताव होज्जा सच्चमणप्पओगगती वि, एवं तं चेव पुव्ववण्णियं * भाणियव्वं, भंगा तहेव जाव वेमाणियाणं । से त्तं पओगगती ॥ ततगइ-पदं २२. से किं तं ततगती ? ततगती - जेणं जं गामं वा जाव सण्णिवेसं वा संपट्टिते असंपत्ते अंतरापहे वट्टति । से त्तं ततगती ॥ बंधणच्छेद पदं २३. से किं तं बंधणच्छेदणगती ? बंधणच्छेदणगती - जेणं जीवो वा सरीराओ सरीरं वा जीवाओ । से त्तं बंधणच्छेदणगती ॥ १. असीइ (क,ग) : असीती (ख, घ ) । २. पंचविहे इप्पवाए (क, ग ); पंचविहे गइप्पा वाए (घ ) । उववायगइ-पदं २४. से किं तं उववायगती ? उववायगती तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - खेत्तोववायगती भवोववायगती णोभवोववायगती ॥ २५. से किं तं खेत्तोववायगती ? खेत्तोववायगती पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - णेरइयखेत्तोववायगती तिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती मणूसखेत्तोववायगती देवखेत्तोववायगती सिद्धखेत्तोववायगती ॥ २६. से किं तं णेरइयखेत्तोववायगती ? णेरइयखेत्तोववायगती सत्तविहा पण्णत्ता, तं ३. उववज्जिऊण (क, ख, ग ) ; उववेज्जिऊण ( ग ) । ४. पुव्वभणियं ( ख ) । Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ पण्णवणासुत्तं जहा- रयणप्पभापुढविणेरइयखेत्तोववायगती जाव अहेसत्तमापुढविणेरइयखेत्तोववायगती। से तं णेरइयखेत्तोववायगती॥ २७. से कि तं तिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती? तिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-एगिदियतिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती। से त्तं तिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती॥ २८. से किं तं मणूसखेत्तोववायगती? मणसखेत्तोववायगती दुविहा पण्णत्ता, तं जहासम्मुच्छिममणूसखेत्तोववायगती गब्भवक्कंतियमणूसखेत्तोववायगती। से तं मणूसखेत्तोववायगती॥ २६. से किं तं देवखेत्तोववायगती ? देवखेत्तोववायगती चउविहा पण्णत्ता, तं जहाभवणवइदेवखेत्तोववायगती जाव वेमाणियदेवखेत्तोववायगती । से तं देवखेत्तोववायगती ।। ३०. से किं तं सिद्धखेत्तोववायगती ? सिद्धखेत्तोववायगती अणेग विहा पण्णत्ता, तं जहा-जंबहीवे दीवे भरहेरवयवाससपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती. जंबडीवे दीवे चुल्ल हिमवंत-सिहरिवासहरपव्वयसपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे हेमवय'-हेरण्णवयवाससपक्खि' सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे सद्दावतिवियडावतिवट्टवेयड्ढसपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंतरुप्पिवासहरपव्वयसपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे हरिवास-रम्मगवाससपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे गंधावति-मालवंतपरियायवट्टवेयड्ढसपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे णिसढ-णीलवंतवासहरपव्वयसपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेह-अवरविदेहसपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे देवकुरूत्तरकुरुसपक्खि सपडिदिरिं सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स सपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, लवणसमुद्दे सपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, धायइसंडे दीवे पुरिमद्धपच्छिमद्धमंदरपव्वयस्स सपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, कालोयसमुद्दे सपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, पुक्खरवरदीवड्डपुरिमड्डभरहेरवयवाससपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, एवं जाव पुक्खरवरदीवड्डपच्छिमड्डमंदरपव्वयसपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती । से तं सिद्धखेत्तोववायगती। से तं खेत्तोववायगती॥ ३१. से कि तं भवोववायगती ? भवोववायगती चउविवहा पण्णत्ता, तं जहा-नेरइयभवोववायगती जाव देवभवोववायगती॥ 30.से किं तं रइयभवोववायगती? णेरइयभवोववायगती सत्तविहा पण्णत्ता. तं जहा--एवं सिद्धवज्जो भेओ भाणियव्वो, जो चेव खेत्तोववायगतीए सो चेव भवोववायगतीए। से तं भवोववायगती॥ ३३. से किं तं णोभवोववायगती ? णोभवोववायगती दुविहा पण्णत्ता, तं जहापोग्गलणोभवोववायगती य सिद्धणोभवोववायगती य॥ ३४. से किं तं पोग्गलणोभवोववायगती ? पोग्गलणोभवोववायगती जणं परमाणु१. हिमवंत (ख)। २. हिरण्णवास' (क,ख,घ); एरण्णवय° (ग) । Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं पओगपयं पोग्गले लोगस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्चत्थिमिल्लं' चरिमंतं एगसमएणं गच्छति, पच्चस्थिमिल्लाओ वा चरिमंताओ पुरथिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति, दाहिणिल्लाओ वा चरिमंताओ उत्तरिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति, एवं उत्तरिल्लाओ दाहिणिल्लं, उवरिल्लाओ हेट्ठिल्लं, हेट्ठिल्लाओ वा उवरिल्लं । से तं पोग्गलणोभवोववायगती॥ ३५. से किं तं सिद्धणोभवोववायगती ? सिद्धणोभवोववायगती दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-अणंतरसिद्धणोभवोववायगती य परंपरसिद्धणोभवोववायगती य॥ ३६. से किं तं अणंतरसिद्धणोभवोववायगती ? अणंतरसिद्धणोभवोववायगती पन्नरसविहा पण्णत्ता, तं जहा-तित्थसिद्धअणंतरसिद्धणोभवोववायगती' य जाव अणेगसिद्धणोभवोववायगती' य [से तं अणंतरसिद्धणोभवोववायगती?] ३७. से किं तं परंपरसिद्धणोभवोववायगती? परंपरसिद्धणोभवोववायगती अणेगविद्या पण्णत्ता, तं जहा-अपढमसमयसिद्धणोभवोववायगत सद्धणोभवोववायगती जाव अणंतसमयसिद्धणोभवोववायगती । से तं परंपरसिद्धणोभवोववायगती । से तं सिद्धणोभवोववायगती। से तं णोभवोववायगती। से तं उववायगती ॥ विहायगति-पदं ३८. से किं तं विहायगती ? विहायगती सत्तरस विहा पण्णत्ता, तं जहा-फुसमाणगती अफुसमाणगती उवसंपज्जमाणगती अणुवसंपज्जमाणगती पोग्गलगती मंडूयगती णावागती णयगती छायागती छायाणुवायगती लेसागती लेस्साणुवायगती उद्दिस्सपविभत्तगती' चउपूरिसपविभत्तगती वंकगती पंकगती बंधणविमोयणगती॥ ३६. से किं तं फुसमाणगती ? फुसमाणगती-जण्णं परमाणुपोग्गले दुपदेसिय जाव अणंतपदेसियाणं खंधाणं अण्णमण्णं फुसित्ता णं गती पवत्तइ । से तं फुसमाणगती। ४०. से किं तं अफुसमाणगती ? अफुसमाणगती-जण्णं एतेसिं चेव अफुसित्ता णं गती पवत्तइ । से तं अफुसमाणगती॥ ४१. से किं तं उवसंपज्जमाणगती ? उवसंपज्जमाणगती-जण्णं रायं वा जुवरायं वा ईसरं वा तलवरं वा माडंबियं वा कोडुंबियं वा इन्भं वा सेटुिं वा सेणावई वा सत्थवाहं वा उवसंपज्जित्ता णं गच्छति । से तं उवसंपज्जमाणगती॥ ४२. से किं तं अणुवसंपज्जमाणगती ? अणुवसंपज्जमाणगती-जण्णं एतेसिं चेव अण्णमण्णं अणवसंपज्जित्ता णं गच्छति । से तं अणवसंपज्जमाणगती ।। ४३. से किं तं पोग्गलगती ? पोग्गलगती-जण्णं परमाणुपोग्गलाणं जाव अणंतपएसियाणं खंधाणं गती पवत्तति । से तं पोग्गलगती॥ उद्दिसिय १. पच्छिमिल्लं (पु)। २. 'अणंतरणो° (ख,ग,घ)। ३. अस्मिन् पदे 'अणंतरसिद्ध' इति पदं नोल्लि- खितमस्ति । किन्तु पूर्वक्रमेण युज्यते। अग्रिम- सूत्रे 'परंपरसिद्ध' पदस्यापि एषैव स्थिति- रस्ति । ४. उद्दिसियविभत्त° (क,ख,घ); पविभत्त' (ग)। ५ चउपुरिसविभत्त° (ख,घ)। ६. बंधणमोयण (ग)। ७. सिट्ठि (घ)। Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ पण्णवणासुतं ४४. से किं तं मंडूयगती ? मंड्यगती-जण्णं मंडूए उप्फिडिया-उप्फिडिया गच्छति । से तं मंड्यगती॥ ४५. से किं तं णावागती ? णावागती-जण्णं णावा पुव्ववेयालीओ दाहिणवेयालि जलपहेणं गच्छति, दाहिणवेयालीओ वा अवरवेयालि जलपहेणं गच्छति । से तं णावागती।। ४६. से किं तं णयगती ? णयगती-जण्णं णेगम-संगह-ववहार-उज्जुसुय-सद्दसमभिरूढ-एवंभूयाणं णयाणं जा गती, अहवा सव्वणया विजं इच्छंति । से तं णयगती॥ ४७. से किं तं छायागती? छायागती जण्ण हयच्छायं वा गयच्छायं वा नरच्छायं वा किन्नरच्छायं वा महोरगच्छायं वा गंधव्वच्छायं वा उसहच्छायं वा रहच्छायं वा छत्तच्छायं वा उवसंपज्जित्ताणं गच्छति । से तं छायागती ।। ४८. से किं तं छायाणुवायगती ? छायाणुवायगतो--जण्णं पुरिसं छाया अणुगच्छति णो पुरिसे छायं अणुगच्छति । से तं छायाणुवायगती ।। ४६. से किं तं लेस्सागती ? लेस्सागती-जण्णं कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमति । एवं गीललेस्सा काउलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव ताफासत्ताए परिणमति । एवं काउलेस्सा वि तेउलेस्सं, तेउलेस्सा वि पम्हलेस्सं, पम्हलेस्सा वि सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव ताफासत्ताए परिणमति । से तं लेस्सागती ॥ ५०. से किं तं लेस्साणुवायगती ? लेस्साणवायगती-जल्लेस्साई दव्वाइं परियाइत्ता कालं करेति तल्लेस्सेसु उववज्जति, तं जहा--कण्हलेस्सेसु वा जाव सुक्कलेस्सेसु वा । से तं . लेस्साणुवायगती। ५१. से कि तं उद्दिस्सपविभत्तगती ? उद्दिस्सपविभत्तगती-जेणं आयरियं' वा उवज्झायं वा थेरं वा पवत्ति वा गणि वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा उद्दिसिय-उद्दिसिय गच्छति । से तं उहिस्सपविभत्तगती ।। ५२. से किं तं चउपुरिसपविभत्तगती ? च उपुरिसपविभत्तगती से जहाणामएचत्तारि पुरिसा 'समगं पट्ठिता समगं पज्जुवट्ठिया समगं पट्ठिया विसमं पज्जुवट्ठिया विसमं पट्टिया समगं पज्जुवट्टिया विसमं पट्ठिया विसमं पज्जुवट्टिया"। से तं च उपुरिसपविभत्तगती ।। ५३. से किं तं वंकगती ? वंकगती चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-घट्टणया थंभणया लेसणया पवडणया। से तं वंकगती। ५४. से किं तं पंकगती ? पंकगती से जहाणामए–केइ पुरिसे सेयंसि' वा पंकसि वा १. उद्दिसियवि (ख,घ); उद्दिसियपवि॰ (ग)। २. आयरितं (क)। ३. उद्दिसियपवि° (क,ग); उद्दिसियवि° (ख,घ) ४. समगं पज्जवट्ठिया समगं पट्ठिया, विसमं पज्जवट्ठिया विसमं पट्ठिया, समगं पज्जवट्ठिया, विसमं पटिया समं पज्जवट्ठिया समं पट्ठिया (ख,घ) ; 'ग' प्रतौ सर्वत्र ‘पज्जुवट्ठिया' दश्यते । मुनिपुण्यविजयजी सम्पादिते प्रज्ञापनासूत्रे मुद्रितवृत्तौ च चतुर्ध्वपिस्थानेषु 'पज्जवट्ठिया' इति पदं दृश्यते। हस्तलिखितवृत्तौ 'पज्जुवट्ठिया इति पदं लभ्यते। ५. सेइंसि (क,ग) x (ख,घ)। Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं पओगपयं उदयंसि वा कायं उब्बहिया' गच्छति । से तं पंकगती।। ५५. से किं तं बंधणविमोयणगती ? बंधणविमोयणगती-जण्णं अंबाण' वा अंबाडगाण' वा माउलुंगाण' वा बिल्लाण वा कविट्ठाण वा भव्वाण' वा फणसाण वा दालिमाण वा पारेवताण वा अक्खोडाण' वा चाराण' वा बोराण वा तिदुयाण वा पक्काणं परियागयाणं बंधणाओ विप्पमुक्काणं णिव्वाघाएणं अहे वीससाए गती पवत्तइ । से तं बंधणविमोयणगती। से तं विहायगती । से तं गइप्पवाए । १. उविहता (क); उव्वि हिया (ख,ग,घ)। २. अंबाणगं (क)। ३. अंबाडाण (ख,घ)। ४. मातुलिंगाण (ग)। ५. भवाण (क); भदाण (ख); भल्लाण (पु)। ६. अखोलाण (क); अखेलोण (ख); अक्खे लाण (ग,घ)। ७. चोराण (क); वाराण (ख,घ) । ८. तंदुयाण (क); तिड्याण (ग)। Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा ----- १ आहार सम सरीरा उसासे २ कम्म ३ वण्ण ४ लेस्सासु' । ५ समवेदन ६ समकिरिया, ७ समाउया चेव बोधव्वा ॥ १ ॥ नेरइएस समाहारादि-पदं १. रइया णं भंते ! सव्वे समाहारा सव्वे समसरीरा सव्वे समुस्सासणिस्सा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे || २. सेकेणट्ठणं भंते ! एवं वच्चति - णेरइया णो सव्वे समाहारा जाव णो सव्वे" समुस्सासणिस्सासा ? गोयमा ! णेरइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - महासरीरा य अप्प - सराय । तत्थ णं जेते महासरीरा णं बहुतराए पोग्गले आहारेंति वहुतराए पोगले परिणामेंति बहुतराए पोग्गले ऊससंति' बहुतराए पोग्गले णीससंति, अभिक्खणं आहारेंति अभिक्खणं परिणामेंति अभिक्खणं ऊससंति अभिक्खणं णीससंति । तत्थ णं जेते अप्पसरीरा ते अप्पतराए पोग्गले आहरेंति अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति अप्पतराए पोग्गले ऊससंति अप्पतराए पोग्गले णीससंति, आहच्च आहारेंति आहच्च परिणामेंति आहच्च ऊससंत आहच्च णीससंति । से तेणट्ठेणं * गोयमा ! एवं वच्चइ - णेरइया णो सव्वे समाहारा णो सव्वे समसरीरा णो सव्वे समुस्सासणीसासा || सत्तरसमं लेस्सापयं पढमो उद्देओ ३. णेरइया णं भंते ! सब्वे समकम्मा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ॥ ४. सेकेणणं भंते! एवं वुच्चति - णेरइया णो सव्वे समकम्मा ? गोयमा ! रइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पुव्वोववण्णगा य पच्छोववण्णगा य । तत्थ णं जेते goalaaणगा ते अप्पकम्मतरागा । तत्थ णं जेते पच्छोववण्णगा ते णं महाकम्मतरागा । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चति - णेरइया णो सव्वे समकम्मा || ६. से केणटुणं भंते ! एवं वच्चति दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पुव्वोववण्णगा य ५. णेरइया णं भंते ! सव्वे समवण्णा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे || णेरइया णो सव्वे समवण्णा ? गोयमा ! रइया पच्छोववण्णगा य । तत्थ णं जेते पुव्वोववरणगा १. सासु (क) । २. सव्वे नो (क, ख, घ ) । २१६ ३. उपसंति ( ग ) । ४. एट्ठेणं (क,ग) । Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसम लेस्सापयं २१७ ते णं विसुद्धवण्णतरागा। तत्थ णं जेते पच्छोववण्णगा ते णं अविसुद्धवण्णतरागा। से तेणठेणं' गोयमा ! एवं वुच्चति-णेरइया णो सव्वे समवण्णा ।। ७. एवं जहेव वण्णेण भणिया तहेव लेस्सासु वि विसुद्धलेस्सतरागा अविसुद्धलेस्सतरागा य भाणियव्वा ॥ ८. णेरइया णं भंते ! सव्वे समवेदणा ? गोयमा ! णो इणठे समझें ॥ ६. से केण?णं भंते ! एवं वुच्चति–णेरइया णो सव्वे समवेदणा? गोयमा ! णेरइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–सण्णिभूया य असण्णिभूया य । तत्थ णं जेते सण्णिभूया ते णं महावेदणतरागा। तत्थ णं जेते असण्णिभूया ते णं अप्पवेदणतरागा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-नेरइया णो सव्वे समवेदणा ।। १०. रइया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ? गोयमा ! णो इणठे समठे। ११. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-णेरइया णो सव्वे समकिरिया ? गोयमा ! रइया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-सम्मद्दिट्ठी मिच्छद्दिट्ठी सम्मामिच्छद्दिट्टी। तत्थ णं जेते सम्मट्टिी तेसि णं चत्तारि किरियाओ कज्जंति, तं जहा-आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया अपच्चक्खाणकिरिया। तत्थ णं जेते मिच्छद्दिट्ठी जे य' सम्मामिच्छट्टिी तेसि णं णियतियाओ' पंच किरियाओ कज्जंति, तं जहा-आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया अपच्चक्खाणकिरिया मिच्छादसणवत्तिया। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चतिणेरइया णो सव्वे समकिरिया ॥ १२. णेरइया णं भंते ! सव्वे समाउया ? गोयमा ! णो इणठे समठे ।। १३. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ ? गोयमा ! णेरइया चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा-अत्थेगइया समाउया समोववण्णगा अत्थेगइया समाउया विसमोववण्णगा अत्थेगइया विसमाउया समोववण्णगा अत्थेगइया विसमाउया विसमोववण्णगा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-णेरइया णो सव्वे समाउया णो सव्वे समोववण्णगा। भवणवासिसु समाहारादि-पदं १४. असुरकुमारा णं भंते ! सव्वे समाहारा ? स चेव पुच्छा । गोयमा ! णो इणठे समठे, जहाणेरइया ॥ १५. असुरकुमारा णं भंते ! सव्वे समकम्मा ? गोयमा ! णो इणठे समझें ॥ १६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुव्वोववण्णगा य पच्छोववण्णगा य । तत्थ णं जेते पुव्वोववण्णगा ते णं महाकम्मतरागा। तत्थ णं जेते पच्छोववण्णगा ते णं अप्पकम्मतरागा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-असुरकुमारा णो सव्वे समकम्मा ॥ १७. एवं वण्ण-लेस्साए पच्छा। तत्थ णं जेते पव्वोववण्णगाते णं अविसद्धवण्णतरागा। तत्थ णं जेते पच्छोववण्णगा ते णं विसुद्धवण्णतरागा । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति - १. एएणठेणं (घ)। २. X (क,ख,ग,घ)। ३. णिवतिताओ (क); नियनियाओ (ख,घ), नियताओ (ग)। ४.५० १७११,२। Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणा सुत्त असुरकुमारा णो सव्वे समवण्णा । एवं लेस्साए वि । वेदणाए जहा' णेरइया । अवसेसं जहा इया । एवं जाव थणियकुमारा ॥ दि- विलदिए समाहारादि-पदं २१८ १८. पुढविक्काइया आहार- कम्म वण्ण-लेस्साहि जहा रइया || १६. पुढविक्काइया णं भंते ! सव्वे समवेदणा ? हंता गोयमा ! सव्वे समवेदना || २०. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! पुढविक्काइया सव्वे असण वेदणं वेदेति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वच्चइ - पुढविक्काइया अण्णीभूयं अणि सव्वे समवेदना || सव्वे समकिरिया ? हंता गोयमा ! पुढविक्काइया सव्वे समकिरिया | २२. से केणट्ठेणं ? गोयमा ! पुढविक्काइया सव्वे माइमिच्छद्दिट्ठी, तेसि णेयतियाओ पंच किरियाओ कज्जंति, तं जहा – आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया अपच्चक्खाणकिरिया मिच्छादंसणवत्तिया । एवं जाव चउरिदिया || पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु समाहारदि-पदं २१. पुढविकाइयाणं भंते! २३. पंचिदियतिरिक्खजोणिया जहा णेरइया, णवरं - किरियाहि सम्मद्दिट्ठी मिच्छद्दिट्ठी सम्मामिच्छद्द्द्दिट्ठी । तत्थ णं जेते सम्मद्दिट्ठी ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा --- असंजयाय संजया संजया य । तत्थ णं जेते संजयासंजया तेसि णं तिष्णि किरियाओ कज्जति, तं जहा- आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया । तत्थ णं जेते असंजया तेसि णं चत्तारि किरियाओ कज्जंति, तं जहा- आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया अपच्चक्खाणकिरिया । तत्थ णं जेते मिच्छद्दिट्ठी जे य सम्मामिच्छद्दिट्ठी तेसि णं णियतियाओ पंच किरियाओ कज्जंति, तं जहा- आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया अपच्चक्खाणकिरिया मिच्छा दंसणवत्तिया । सेसं तं चेव ।। मस्से समाहारादि-पदं २४. मणूसाणं भंते ! सव्वे समाहारा ? गोयमा ! णो इणट्ठे' समट्ठे || २५. सेकेणट्ठे ? गोयमा ! मणूसा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- महासरीरा य अप्पसरीरा य । तत्थ णं जेते महासरीरा ते णं बहुतराए पोग्गले आहारैति जाव बहुतराए पोग्गले णीससंति, आहच्च आहारेंति जाव' आहच्च णीससंति । तत्थ णं जेते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारैति जाव अप्पतराए पोग्गले णीससंति अभिक्खणं आहाति जाव अभिक्खणं नीससंति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति - मणूसा णो सव्वे समाहारा । सेसं जहा' णेरइयाणं, नवरं किरियाहि मणूसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- १. ५० १७८, ६ २. प० १७।१०-१३ । ३. प० १७।१-७ । ४. X ( ख ) । ५. प० १७११-१३ । ६. इणमट्ठे (क); तिणट्ठे (ख, घ ) । ७. प० १७।२ । ८. ६. ( ख, ग, घ ) । ० १७।२-१३ । Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतरसमें लेस्सापर्यं २१६ ----- सम्मट्टी मच्छी सम्मामिच्छद्द्द्दिट्ठी । तत्थ णं जे ते सम्मद्द्द्दिट्टी ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - संजया असंजया संजयासंजया । तत्थ णं जेते संजया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सरागसंजयां य वीतरागसंजया य । तत्थ णं जेते वीतरागसंजया ते णं अकिरिया । तत्थ णं जेते सरागसंजया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा पमत्तसंजया य अपमत्तसंजयाय । तत्थ णं जेते अपमत्तसंजया तेसि एगा मायावत्तिया किरिया कज्जति, तत्थ णं जेते पमत्तसंजया सिदो करियाओ कज्जंति, तं जहा- आरंभिया मायावत्तिया य । तत्थ णं जेते संजयासंजयासि तिणि किरियाओ कज्जंति, तं जहा आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया । तत्थ णं जेते असंजया तेसिं चत्तारि किरियाओ कज्जंति, तं जहा- आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तया अपच्चक्खाणकिरिया । तत्थ णं जेते मिच्छद्द्द्दिट्ठी जे य सम्मामिच्छट्टिी सि यतियाओ पंच किरियाओ कज्जंति, तं जहा आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया अपच्चक्खाण किरिया मिच्छादंसणवत्तिया । सेसं जहा रइयाणं || वाणमंतराइसु समाहारादि-पदं २६. वाणमंतराणं जहा' असुरकुमाराणं ॥ २७. एवं जोइसिय-वेमाणियाण वि, णवरं ते वेदणाए दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - माइमिच्छद्दिवणगा य अमाइसम्मद्दिट्ठी उववण्णगा य । तत्थ णं जेते माइमिच्छद्दिट्टि - उववण्णगा ते णं अप्पवेदणतरागा । तत्थ णं जेते अमाइसम्मद्दिट्टिउववण्णगा ते णं महावेदरागा । से तेणट्ठे गोयमा ! एवं वुच्चइ - सेसं तहेव ।। लेस्से चउवीसदंडएसु समाहारादि-पदं २८. सलेस्सा णं भंते ! णेरइया सव्वे समाहारा समसरीरा समुस्सासणिस्सासा ? स च्चेव पुच्छा । एवं जहा ' ओहिओ गमओ' तहा सलेस्सगमओ वि णिरवसेसो भाणियव्वो जाव वेमाणिया || २६. कण्हलेस्सा णं भंते ! णेरइया सब्वे समाहारा समसरीरा समुस्सासणिस्सासा पुच्छा । गोयमा ! जहा ओहिया, गवरं - णेरइया वेदणाए माइमिच्छद्दिट्टिउववण्णगा अमाइसम्मद्दिविवण्णगा य भाणियव्वा । सेसं तहेव जहा ओहियाणं ॥ ३०. असुरकुमारा जाव वाणमंतरा एते जहा ओहिया, णवरं - मणूसाणं किरियाहि विसेसो जाव तत्थ णं जेते सम्मद्दिट्ठी ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - संजया असंजया संजया संजया य, जहा ओहियाणं । जोइसिय-वेमाणिया आइल्लिगासु तिसु लेस्सासु ण पुच्छति ॥ ३१. एवं जहा किण्हलेस्सा चारिया तहा णीललेस्सा वि चारियव्वा || ३२. काउलेस्सा णेरइएहितो आरम्भ जाव वाणमंतरा, नवरं - काउलेस्सा णेरइया वेदा जहा ओहिया || १. प० १७ १२,१३ । २. प० १७।१४-१७ । ३. प० १७।१-२७ । ४. गमओ भणिओ (पु) । ५. प० १७।२५ । ६. १० १७१८, ६ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं ३३. तेउलेस्साणं भंते ! असुरकुमाराणं ताओ चेव पुच्छाओ । गोयमा ! जहेव' ओहिया तहेव, णवरं वेदणाए जहा' जोतिसिया । पुढवि आउ-वणस्सइ-पंचेंदियतिरिक्खमणूस हा ओहिया तव भाणियव्वा णवरं - मणूसा किरियाहि जे संजया ते पमत्ता य अपमत्ताय भाणियव्वा, सरागा वीयरागा णत्थि ॥ ३४. वाणमंतरा तेउलेस्साए जहा असुरकुमारा एवं जोतिसिय-वेमाणिया वि । सेसं तं चेव ॥ २२० ३५. एवं पम्हस्सा वि भाणियव्वा, नवरं - जेसि अत्थि । सुक्कलेसा वि तहेव जेसि अत्थि । सव्वं तहेव जहा ओहियाणं गमओ, णवरं - पम्हलेस्स - सुक्कलेस्साओ पंचेंदियतिरिक्खजोणिय - मणूस - वैमाणियाणं चेव, ण सेसाणं ति ॥ बीओ उद्देओ लेस्सा-पदं ३६. कति णं भंते! लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेस्सा णीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा ॥ चवीसदंड सु लेस्सापरूवण-पदं ३७. रइयाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तिण्णि, तं जहाकिहलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा ॥ ३८ तिरिक्खजोणियाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेस्साओ, तं जहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा || ३६. एगिंदियाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! चत्तारि लेस्साओ, तं जहा -- कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा || ४०. पुढविक्काइयाणं भंते ! कति लेस्साओ ? गोयमा ! एवं चेव आउ-वणप्फतिकाइयाणवि एवं चेव । तेउ वाउ - बेइंदिय- तेइंदिय - चउरिदियाणं जहा णेरइयाणं ॥ ४१. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! छल्लेस्साओ - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेसा ॥ ४२. सम्मुच्छिपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहा णेरइयाणं || ४३. गब्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! छल्लेसाओ, तं जहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा || ४४. तिरिक्खजोणिणीणं पुच्छा । गोयमा ! छल्लेस्साओ एताओ चैव ॥ ४५. मणुस्साणं पुच्छा । गोयमा ! छल्लेसाओ एताओ चेव ।। ३. प० १७।१८-२५ । १. प० १७।१४-१७ । २. प० १७।२७ । Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं लेस्सापयं ४६. सम्मुच्छिममणुस्साणं पुच्छा । गोयमा ! जहा रइयाणं ॥ ४७. गब्भवक्कंतियमणूसाणं पुच्छा । गोयमा ! छल्लेसाओ, तं जहा कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेसा ॥ ४८. मणुस्सीणं पुच्छा । गोयमा ! एवं चेव ।। ४६. देवाणं पुच्छा । गोयमा ! छ एताओ चैव ॥ ५०. देवीणं पुच्छा । गोयमा ! चत्तारि, तं जहा -- कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा || ५१. भवणवासीणं भंते ! देवाणं पुच्छा । गोयमा ! एवं चेव । एवं भवणवासिणीण वि ॥ ५२. वाणमंतरदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! एवं चेव । एवं वाणमंतरीण वि ।। ५३. जोइसियाणं पुच्छा । गोयमा ! एगा तेउलेस्सा । एवं जोइसिणीण वि ॥ ५४. वैमाणियाणं पुच्छा । गोयमा ! तिण्णि, तं जहा - तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्क लेस्सा ॥ ५५. वेमाणिणीणं पुच्छा । गोयमा ! एगा तेउलेसा || अप्पा बहु-पदं ५६. एतेसि णं भंते ! सलेस्साणं जीवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साणं अलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा संखेज्जगुणा, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा, अलेस्सा अनंतगुणा, काउलेस्सा अनंतगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसा हिया, सलेस्सा विसेसाहिया || ५७. एतेसि णं भंते! णेरइयाणं कण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा गोयमा ! सव्वत्थोवा णेरइया कण्हलेस्सा, नीललेस्सा असंखेज्जगुणा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा || ५८. एतेसि णं भंते! तिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणिया सुक्कलेसा, एवं जहा' ओहिया, णवरं - अलेस्सवज्जा' ।। ५६. एतेसि णं भंते ! एगिदियाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा एगिदिया तेउलेस्सा, काउलेस्सा अनंतगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया || ६०. एतेसि णं भंते ! पुढविक्काइयाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसा हिया वा ? गोयमा ! जहा ओहिया एगिदिया, गवरं - काउलेस्सा असंखेज्जगुणा । एवं आउक्कायइयाण वि ॥ ६१. एतेसि णं भंते! तेउक्काइयाणं कण्हलेस्साणं णीललेस्साणं काउलेस्साणं य नवरमलेश्यावर्जास्तिरश्चाम लेश्यानामसम्भ १. प० १७।५६ । २. अलेससले सवज्जा ( क, ख, ग, घ ) ; मलयगिरिवृत्तौ 'अलेश्यावर्जा:' इति पाठ: सम्मतोस्ति २२१ वात् । Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ पण्णवणात्तं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा तेउक्काइया काउलेस्सा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया । एवं वाउक्काइयाणवि ॥ ६२. एतेसिणं भंते ! वणप्फइकाइयाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? जहा एगिदियओहियाणं इंदिय इंदिय-उरिदियाणं जहा तेउक्काइयाणं ॥ ६३. एतेसि णं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! जहा ओहिया तिरिक्खजोणियाणं, णवरं - काउलेस्सा असंखेज्जगुणा । सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा ते उक्काइयाणं । गब्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा ओहियाणं तिरिक्खजोणियाणं, णवरं - काउलेस्सा संखेज्जगुणा । एवं तिरिक्खजोणिणीण वि ॥ ६४. एतेसि णं भंते ! सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गब्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा यातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा संखेज्जगुणा, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा, काउलेस्सा संखेज्जगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्सा सम्मुच्छिम पंचेंदियतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया ॥ ६५. एतेसि णं भंते ! सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! जहेव' पंचमं तहा इमं पि छट्ठ भाणियव्वं ॥ ६६. एतेसि णं भंते ! गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीण' य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सम्बत्थोवा गव्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया सुक्कलेस्सा, सुक्कलेस्साओ तिरिक्खजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ, पम्हलेस्सा गब्भवक कंतिय पंचेंद्रियतिरिक्खजोणिया संखेज्जगुणा, पम्हलेस्साओ तिखिखजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ, तेउलेस्सा'• संखेज्जगुणा, तेउलेस्साओ० संखेज्जगुणाओ, काउलेस्सा० संखेज्जगुणा, नीललेस्सा० विसेसाहिया, कण्हलेस्सा० विसेसाहिया, काउलेस्साओ संखेज्जगुणाओ, णीललेस्साओ० विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ ० विसेसाहियाओ || ६७. एतेसि णं भंते ! सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गब्भवक्कंतिय पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो १. प० १७६४; इदं किल पञ्चेन्द्रियतिर्यग्यो निकाधिकारे षष्ठं सूत्रमनन्तरोक्तं च पंचममत उक्तं 'जव पंचमं तहा इमं छट्ठ भाणियव्वं (मवृ) | २. ' गभवक्कतियपंचेंदिय' इति पदांश: अध्या हार्यः । ३. 'तेउलेस्मा' इत्यादिपदानामग्रे 'गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया:' इति पदं गम्यमस्ति । एतत् सर्वत्रापि बोध्यम् । Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं लेस्सापयं २२३ अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया सुक्कलेस्सा सुक्कलेस्साओ तिरिवखजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ, पम्हलेस्सा गब्भवक्कंतियपंचेदियतिरिक्खजोणिया संखेज्जगुणा, पम्हलेस्साओ तिरिक्खजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ, तेउलेस्सा गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया संखेज्जगुणा, तेउलेस्साओ तिरिक्खजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ, काउलेस्सा तिरिक्खजोणिया संखेज्जगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्साओ संखेज्जगुणाओ, णीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ, काउलेस्सा सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया ॥ ६८. एतेसि णं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया सुक्कलेस्सा, सुक्कलेस्साओ संखेज्जगुणाओ, पम्हलेस्सा संखेज्जगुणा, पम्हलेस्साओ संखेज्जगुणाओ, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा तेउलेस्साओ संखेज्जगुणाओ, काउलेस्साओ संखेज्जगुणाओ, णीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ, काउलेस्सा असंखज्जगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया ।। ६६. एतेसि णं भंते ! तिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! जहेव णवम अप्पाबहगं तहा इमं पि, नवरं-काउलेस्सा तिरिक्खजोणिया अणंतगणा । एवं एते दसअप्पाबहुगा तिरिक्खजोणियाणं ॥ ७०. एवं मणूसाणं पि अप्पाबहुगा भाणियव्वा, ‘णवरं पच्छिमगं अप्पाबहगं णत्थि ॥ ७१. एतेसि णं भंते ! देवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा देवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा असंखेज्जगुणा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा ॥ ७२. एतासि' णं भंते ! देवीणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवाओ देवीओ काउलेस्साओ, णीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ, तेउलेस्साओ संखेज्जगुणाओ॥ १. सामान्यतः पञ्चेन्द्रियतिर्यगयोनिकतिर्यस्त्री - विषयं नवमम्' (मव)। २. नवरं पश्चिम दशममल्पबहुत्वं नास्ति, मनुष्या जामनन्तत्वाभावात्, तदभावे काउलेस्पा अनन्तगुणा इति पदासम्भवात् । ३. एतेसि (क,ख,ग,घ,पु) एतत्पदं 'देवी' पदस्य विशेषणमस्ति, अतः एतत् सम्यग नास्ति । प्रवाहपातिलेखनवृत्त्या अस्य प्रयोगो जात: '८२' सूत्रे 'एतासि' इति पदं लब्धमस्ति । तदस्ति समीचीनम् । Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं ७३. एतेसि' णं भंते! देवाणं देवीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कति अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा देवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा असंखेज्जगुणा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्साओ देवीओ संखेज्जगुणाओ, णीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ, तेउलेस्सा देवा संखेज्जगुणा, तेउलेस्साओ देवीओ संखेज्जगुणाओ || ७४. एसि णं भंते ! भवणवासीणं देवाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा भवणवासी देवा तेउलेस्सा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया || ७५. एतासि णं भंते ! भवणवासीणीणं देवीणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरे हितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! एवं चेव ॥ ७६. एतेसि णं भंते ! भवणवासीणं देवाणं देवीण य कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसा हिया वा ? गोयमा ! सव्वत्योवा भवणवासी देवा तेउलेस्सा, भवणवासिणीओ तेउलेस्साओ संखेज्जगुणाओ, काउलेस्सा भवणवासी असंखेज्जगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्साओ भवणवासिणीओ संखेज्जगुणाओ, णीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ || ७७. एवं वाणमंतराण वि तिष्णेव अप्पाबहुया जहेव भवणवासीणं तहेव भाणियव्वा ॥ ७८. एतेसि णं भंते ! जोइसियाणं देवाणं देवीण य तेउलेस्साणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जोइसियदेवा तेउलेस्सा, जोइसिणिदेवीओ तेउलेस्साओ संखेज्जगुणाओ || २२४ ७६. एतेसि णं भंते ! वेमाणियाणं देवाणं तेउलेस्साणं पम्हलेस्साणं सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा माणिया सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा असंखेज्जगुणा, तेउलेस्सा असंखेज्जगुणा ॥ ८०. • एतेसि णं भंते ! वेमाणियाणं देवाणं देवीण य तेउलेस्साणं पम्हलेस्साणं सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा माणिया देवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा असंखेज्जगुणा, तेउलेस्सा असंखेज्जगुणा, तेउलेस्सओ वेमाणिणीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ || ८१. एसि णं भंते ! भवणवासीणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाण य देवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा वेमाणिया देवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा असंखेज्जगुणा, तेउलेस्सा असंखेज्जगुणा; तेउलेस्सा भवणवासी देवा असंखेज्जगुणा, काउलेस्सा असंखेज्ज १. एवं एतेसि (क, ख, ग, घ ) । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं लेस्सापयं २२५ गुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया तेउलेस्सा वाणमंतरा देवा असंखेज्जगुणा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, किण्हलेस्सा विसेसाहिया; तेउलेस्सा जोइसियदेवा संखेज्जगुणा ॥ ८२. एतासि णं भंते ! भवणवासिणीणं वाणमंतरीणं जोइसिणीणं वेमाणिणीण य कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहिंता अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा गोयमा ! सव्वत्थोवाओ देवीओ वेमाणिणीओ तेउलेस्साओ; भवणवासिणीओ तेउलेस्साओ असंखेज्जगुणाओ, काउलेस्साओ असंखेज्जगुणाओ, नीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ; तेउलेस्साओ वाणमंतरीओ देवीओ असंखेज्जगुणाओ, काउलेस्साओ असंखेज्जगुणाओ, णीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ; तेउलेस्साओ जोइसिणीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ || ८३. एतेसि णं भंते ! भवणवासीणं जाव वेमाणियाणं देवाण य देवीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा वेमाणिया देवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा असंखेज्जगुणा, तेउलेस्सा असंखेज्जगुणा, तेउलेस्साओ वेमाणिणीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ; तेउलेस्सा भवणवासी देवा असंखेज्जगुणा, तेउलेस्साओ भवणवासिणीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ, काउलेस्सा भवणवासी असंखेज्जगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्साओ भवणवासिणीओ संखेज्जगुणाओ, नीललेसाओ विसेसाहियाओ, कण्हलेसाओ विसेसाहियाओ; तेउलेस्सा वाणमंतरा असंखेज्जगुणा, तेउलेस्साओ वाणमंतरीओ संखेज्जगुणाओ, काउलेस्सा वाणमंतरा असंखेज्जगुणा, गीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्साओ वाणमंतरीओ संखेज्जगुणाओ, णी लेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ; तेउलेस्सा जोइसिया संखेज्जगुणा, तेउलेस्साओ जोइसिणीओ संखेज्जगुणाओ || इड्डि अप्पा बहु-पदं ८४. एसि णं भंते! जीवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो affs an affair वा ? गोयमा ! कण्हलेस्सेहितो णीललेस्सा महिड्डिया, नीललेस्सेहितो काउलेस्सा महिड्डिया, एवं काउलेस्सेहितो तेउलेस्सा महिड्डिया, तेउलेस्से हितो पहलेस्सा महिड्डिया, पम्हलेस्सेहिंतो सुक्कलेस्सा महिड्डिया । सव्वप्पिड्डिया जीवा किण्हलेस्सा, सव्वमहिड्डिया जीवा सुक्कलेस्सा ॥ ८५. एतेसि णं भंते ! णेरइयाणं कण्हलेसाणं णीललेस्साणं काउलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पिड्डिया वा महिड्डिया वा ? गोयमा ! कण्हलेस्सेहितो णीललेस्सा महिड्डिया, णीललेस्सेहितो काउलेस्सा महिड्डिया । सव्वप्पिड्डिया णेरइया कण्हलेस्सा, सव्वमहिड्डिया रइया काउलेस्सा ॥ ८६. एतेसि णं भंते! तिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे १. एएस (क, ख, ग ) । २. अप्पड्डिया (क, ख, ग, घ ) सर्वत्र । ३. महड्डिया ( ख, ग ) सर्वत्र । ४. सव्व पड्डिया (क, ख, ग, घ ) सर्वत्र । Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ पण्णवणासुत्तं कतरेहितो अप्पिड्डिया वा महिड्डिया वा ? गोयमा ! जहा जीवा ।। ८७. एतेसि णं भंते ! एगिदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पिड्डिया वा महिड्डिया वा ? गोयमा ! कण्हलेस्से हिंतो एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो णीललेस्सा महिड्डिया, णीललेस्सेहितो काउलेस्सा महिड्डिया, काउलेस्सेहितो तेउलेस्सा महिड्डिया । सव्वप्पिड्डिया एगिदियतिरिक्खजोणिया कण्हलेस्सा, सव्वमहिड्डिया तेउलेस्सा । एवं पुढविक्काइयाण वि ।। ८८. एवं एतेणं अभिलावेणं जहेव लेस्साओ भावियाओ तहेव णेयव्वं जाव चउरिदिया। ८६. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीणं सम्मुच्छिमाणं गब्भवक्कंतियाण य सव्वेसिं भाणियव्वं जाव अप्पिड्डिया माणिया देवा तेउलस्सा, सव्वमहिड्डिया वेमाणिया देवा सुक्कलेस्सा ॥ [केइ भणंति-चउवीसदंडएणं इड्डी भाणियव्वा।] तइओ उद्देसओ उववाय-उव्वट्टणा-पदं ९०. णेरइए णं भंते ! णेरइएसु उववज्जति ? अणेरइए णेरइएसु उववज्जति ? गोयमा ! णेरइए णेरइएसु उववज्जइ, णो अणेरइए जेरइएसु उववज्जति । एवं जाव वेमाणिए॥ ____६१. णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो उव्वट्टति ? अणेरइए णेरइएहितो उव्वट्टति ? गोयमा ! अणेरइए णेरइएहितो उव्वट्टति, णो णेरइए णेरइएहितो उव्वट्टति । एवं जाव वेमाणिए, णवरं-जोतिसिय-वेमाणिएसु चयणं ति अभिलावो कायव्वो॥ ओहेणं उववाय-उव्वट्टणा-पदं । ६२. से णूणं भंते ! कण्हलेसे रइए कण्हलेसेसु णेरइएसु उववज्जति ? कण्हलेसे उव्वदृति ? जल्लेस्से उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति ? हंता गोयमा ! कण्हलेसे जरइए कण्हलेसेसु णेरइएसु उववज्जति, कण्हलेसे उव्वट्टति, जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति । एवं णीललेसे वि काउलेसे वि॥ ६३. एवं असुरकुमारा' वि जाव थणियकुमारा वि, णवरं - तेउलेस्सा अब्भहिया ॥ ६४. से णूणं भंते ! कण्हलेसे पुढविक्काइए कण्हलेस्सेसु पुढविक्काइएसु उववज्जति ? कण्हलेस्से उव्वट्टति ? जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्से पुढविक्काइए कण्हलेस्सेसु पुढविक्काइएसु उववज्जति; सिय कण्हलेस्से उव्वदृति, सिय नीललेसे उव्वदृति, सिय काउलेसे उव्वट्टति; सिय जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वदृति । एवं णील-काउलेस्सासु वि ॥ १. वृत्तिकृतापि मनुष्यवैमानिकसूत्राणां संकेतः 'वेमाणिए' इति पदमस्ति, अत्रापि तथैव युज्यते कृतोस्ति-एवं नैरयिकतिर्यग्योनिकमनुष्यवै- किन्तु आदर्शेषु नोपलब्धमिदम्, मलयगिरिवृत्ती मानिकविषयाण्यपि सूत्राणि येषां यावत्यो ‘एवं जाव वेमाणिए' इति पाठो लब्धः । स एव लेश्यास्तेषां तावती: परिभाव्य भावनीयानि। अस्माभिः स्वीकृतः । २. वेमाणियाणं (क,ख,ग,घ,पू); उद्वर्त्तना सूत्रे ३. असुरकुमाराण (क,ख,ग,घ)।. . Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं लेस्सापयं २२७ ६५. से णूणं भंते ! तेउलेस्से पुढविक्काइए तेउलेस्सेसु पुढविक्काइएसु उववज्जइ ? पुच्छा। हंता गोयमा ! तेउलेसे पुढविकाइए तेउलेसेसु पुढविक्काइएसु उववज्जति; सिय कण्हलेसे उव्वट्टति, सिय णीललेसे उव्वट्टति, सिय काउलेसे उव्वदृति ; तेउलेसे उववज्जति, णो चेव णं तेउलेस्से उव्वति ॥ ६६. एवं आउक्काइय-वणप्फइकाइया वि । तेऊ वाऊ एवं चेव, णवरं-एतेसिं तेउलेस्सा णत्थि । बि-तिय-चरिदिया एवं चेव ६७. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा य जहा' पुढविक्काइया आदिल्लियासु तिसु लेस्सासु भणिया तहा छसु वि लेसासु भाणियव्वा, णवरं-छप्पि लेसाओ चारियव्वाओ।। ६८. वाणमंतरा जहा असुरकुमारा। ६६. से णूणं भंते ! तेउलेसे जोइसिए तेउलेसेसु जोइसिएसु उववज्जति ? जहेव असुरकुमारा । एवं वेमाणिया वि, णवरं दोण्ह वि चयंतीति अभिलावो॥ विभागेणं उववाय-उव्वट्टणा-पदं १००. से णणं भंते ! कण्हलेस्से णीललेस्से काउलेस्से णेरइए कण्हलेस्सेसु णीललेस्सेसु काउलेस्सेसु णेरइएसु उववज्जति ? कण्हलेस्से णीललेस्से काउलेस्से उव्वट्टति ? जल्लस्से उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्स-णीललेस्स-काउलेस्सेसु उववज्जति, जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति ।। १०१. से णूणं भंते ! कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से असुरकुमारे कण्हलेस्सेसु जाव तेउलेस्सेसु असुरकुमारेसु उववज्जति ? एवं जहेव नेरइए तहा असुरकुमारे वि जाव थणियकुमारे वि ॥ १०२. से णूणं भंते ! कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से पुढविकाइए कण्हलेस्सेसु जाव तेउलेस्सेसु पुढविक्काइएसु उववज्जति ? एवं पुच्छा जहा असुरकुमाराणं । हंता गोयमा ! कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से पुढविक्काइए कण्हलेस्सेसु जाव तेउलेस्सेसु पुढविक्काइएसु उववज्जति; सिय कण्हलेस्से उव्वट्टति सिय णीललेसे सिय काउलेस्से उव्वट्टति, सिय जल्लेस्से उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति, तेउलेसे उववज्जति, णो चेव णं तेउलेस्से उव्वट्टति । एवं आउक्काइय-वणप्फइकाइया वि भाणिययव्वा ॥ १०३. से णणं भंते ! कण्हलेस्से णीललेस्से काउलेस्से ते उक्काइए कण्हलेसेसु णीललेसेसु काउलेसेसु ते उक्काइएसु उववज्जति ? कण्हलेसे णीललेसे काउलेसे उव्वट्टति ? जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्से णीललेस्से काउलेस्से तेउक्काइए कण्हलेसेसु णीललेसेसु काउलेसेसु तेउक्काइएसु उववज्जति; सिय कण्हलेसे उन्वट्टति, सिय णीललेसे सिय काउलेस्से उव्वट्टति; सिय जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति । एवं वाउक्काइया बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदिया वि भाणियव्वा ॥ १०४. से णणं भंते ! कण्हलेसे जाव सुक्कलेसे पंचेंदियतिरिक्खजोणिए कण्हलेसेसु जाव सुक्कलेसेसु पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जति ? पुच्छा । हंता गोयमा ! कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से पंचेंदियतिरिक्खजोणिए कण्हलेस्सेसु जाव सुक्कलेस्सेसु पंचेंदियतिरिक्ख १. ५० १७१६४। Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ पण्णवणासुत्तं जोणिएसु उववज्जति; सिय कण्हलेस्से उब्वट्टति जाव सिय सुक्कलेस्से उव्वट्टति, सिय जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति । एवं मणूसे वि ।। १०५. वाणमंतरे जहा असुरकुमारे। जोइसिय-वेमाणिए वि एवं चेव, णवरं-जस्स जल्लेसा। दोण्ह वि चयणं ति भाणियव्वं ॥ कण्हाइलेस्सेसु नेरइएसु ओहिखेत्त-पदं १०६. कण्हलेस्से णं भंते ! णेरइए कण्हलेस्सं णेरइयं पणिहाए ओहिणा सव्वओ समंता समभिलोएमाणे'-समभिलोएमाणे केवतियं खेत्तं जाणति ? केवतियं खेत्तं पासति ? गोयमा ! णो बयं खेत्तं जाणति णो बहयं खेत्तं पासति, णो दूरं खेत्तं जाणति णो दूर खेत्तं पासति, इत्तरियमेव खेत्तं जाणति इत्तरियमेव खेत्तं पासति ॥ १०७. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-कण्हलेसे णं णेरइए' 'कण्हलेस्सं णेरइयं पणिहाए ओहिणा सव्वओ समंता समभिलोएमाणे-सम भिलोएमाणे णो बयं खेत्तं जाणति णो वहुयं खेत्तं पासति, णो दूरं खेत्तं जाणति णो दूरं खेत्तं पासति, इत्तरियमेव खेत्तं जाणति' इत्तरियमेव खेत्तं पासति ? गोयमा ! से जहाणामए- केइ पुरिसे बहुसमरमणिज्जंसि भूमिभागंसि ठिच्चा सव्वओ समंता समभिलोएज्जा, तए णं से पुरिसे धरणितलगतं पुरिसं पणिहाए सव्वओ समंता समभिलोएमाणे-समभिलोएमाणे णो बहुयं खेत्तं 'जाणति णो बहुयं खेत्तं पासति, णो दूरं खेत्तं जाणति णो दूरं खेत्तं पासति, इत्तरियमेव खेत्तं जाणति' इत्तरियमेव खेत्तं पासति । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-कण्हलेसे णं णेरइए' कण्हलेस्सं रइयं पणिहाए ओहिणा सव्वओ समंता सम भिलोएमाणे-समभिलोएमाणे णो बहुयं खेत्तं जाणति णो बहुयं खेत्तं पासति, णो दूरं खेत्तं जाणति णो दूरं खेत्तं पासति, इत्तरियमेव खेत्तं जाणति इत्तरियमेव खेत्तं पासति ॥ १०८. णीललेसे णं भंते ! णेरइए कण्हलेसं णेरइयं पणिहाए ओहिणा सव्वओ समंता समभिलोएमाणे-समभिलोएमाणे केवतियं खेत्तं जाणइ ? केवतियं खेत्तं पासइ ? गोयमा ! बहुतरागं खेत्तं जाणति बहुतरागं खेत्तं पासति, दूरतरागं खेत्तं जाणइ दूरतरागं खेत्तं पासति, वितिमिरतरागं खेत्तं जाणइ वितिमिरतराग खेत्तं पासइ, विसुद्धतरागं खेत्तं जाणति विसुद्धतरागं खेत्तं पासति ॥ १०६. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चति-णीललेस्से णं णेरइए कण्हलेस्सं णेरइयं पणिहाए जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ ? गोयमा ! से जहाणामए-केइ पुरिसे बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ पव्वयं दुरुहति', दुरुहित्ता सव्वओ समंता समभिलोएज्जा, तए णं से पुरिसे धरणितलगयं पुरिसं पणिहाए सव्वओ समता समभिलोएमाणे-समभिलोएमाणे बहतरागं खेत्तं जाणइ जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासति । से तेणठेणं" गोयमा ! एवं वुच्चति-णीललेस्से णेरइए कण्हलेसं णेरइयं पणिहाए जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासति ॥ १. समभिलोतेमाणे (क)। ६. सं० पा०-णेरइए जाव इत्तरिय । २. इतिरियमेव (घ)। ७. पणिहाय (ग)। ३. सं० पा०-णेरइए तं चेव जाव इत्तरिय°। ८. बहुतरगं (ख)। ४. केति (क,ख,घ)। ६. दुरूहति (ग)। ५. सं० पा०-खेत्तं जाव पासति जाव इत्तरिय। १०. एणठेणं (घ) । Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसम लेस्सापयं २२६ ११०. काउलेसे णं भंते ! णेरइए णीललेस्सं णेरइयं पणिहाए ओहिणा सव्वओ समंता समभिलोएमाणे समभिलोएमाणे केवतियं खेत्तं जाणइ ? केवतियं खेत्तं पासइ ? गोयमा ! बहुतरागं खेत्तं जाणइ बहुतरागं खेत्तं पासई', 'दूरतरागं खेत्तं जाणति दूरतरागं खेत्तं पासति, वितिमिरतरागं खेत्तं जाणति वितिमिरतरागं खेत्तं पासति, विसुद्धतरागं खेत्तं जाणति° विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ ॥ १११. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति -काउलेसे णं णेरइए जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासति ? गोयमा ! से जहाणामए-केइ पुरिस बहुसमर णिज्जाओ भूमिभागाओ पव्वतं दुरुहति, दुरुहित्ता रुक्खं दुरुहति, दुरुहित्ता दो वि पादे उच्चाविय' सव्वओ समंता समभिलोएज्जा, तए णं से पुरिसे पव्वतगयं धरणितलगयं च पुरिसं पणिहाए सव्वओ समंता समभिलोएमाणे-समभिलोएमाणे बहुतरागं खेत्तं जाणति बहुतरागं खेत्तं पासति 'जाव विसुद्धतरागं" खेत्तं पासति । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-काउलेस्से णं णेरइए णीललेस्सं णेरइयं पणिधाए तं चेव 'जाव बिसुद्धतरागं" खेत्तं पासति ॥ णाण-पदं ___ ११२. कण्हलेस्से णं भंते ! जीवे कतिसु णाणेसु होज्जा ? गोयमा ! दोसु वा तिसु वा चउसु वा णाणेसु होज्चा-दोसू होमाणे आभिणिबोहिय-सूयणाणेसू होज्जा, तिसू होमाणे आभिणिबोहिय-सुयणाण-ओहिणाणेसु होज्जा, अहवा तिसु होमाणे आभिणिवोहिय-सुयणाणमणपज्जवणाणेसु होज्जा, चउसु होमाणे आभिणिवोहियणाण-सुयणाण-ओहिणाण-मणपज्जवणाणेसु होज्जा । एवं जाव पम्हलेस्से ॥ ११३. सुक्कलेस्से णं भंते ! जीवे कतिसु णाणेसु होज्जा ? गोयमा ! दोसु वा तिसु वा चउसु वा एगम्मि वा होज्जा-दोसु होमाणे आभिणिबोहियणाण-' 'सुयणाणेसु होज्जा, तिसु होमाणे आभिणिबोहिय-सुयणाण-ओहिणाणेसु होज्जा, अहवा तिसु होमाणे आभिणिबोहिय-सुयणाण-मणपज्जवणाणेसु होज्जा, चउसु होमाणे आभिणिबोहियणाण-सुयणाण-ओहिणाण-मणपज्जवणाणेसु होज्जा, एगम्मि होमाणे एगम्मि केवलणाणे होज्जा । चउत्थो उद्देसओ गाहा परिणाम १ वण्ण २ रस ३ गंध ४, सुद्ध ५ अपसत्थ ६ संकिलिठ्ठण्हा ७, ८ । गति ६ परिणाम १० पदेसावगाह ११,१२ वग्गण १३ ठाणाणमप्पबहुं १४,१५ ॥१॥ लेस्सा -पदं ११४. कति णं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा ॥ १. सं० पा०-पासइ जाव विसुद्धतरागं। जावविसुद्धतरागं खेत्तं पासति' तथा अत्रापि २. उच्चाविया (ग); उच्चावइत्ता (मवृ) । स एव पाठः संगतोस्ति । ३. जाव वितिमिरतरागं (क,ख,ग); x (घ); ४. वितिमिरतरागं (क,ख,ग,घ)। 'जाव' पदस्य प्रयोगे बहुवारं यथा पाठस्य ५. सं० पा०-आभिणिबोहियणाण एवं जहेव अशुद्धिर्भवति तथा अत्रापि विद्यते। यथोपरि- कण्हलेस्साणं तहेव भाणियव्वं जाव चउहि । Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० लेस्साणं परिणति-पदं ११५. सेणू भंते ! कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो - भुज्जो परिणमति ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्सा णीलले सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ ११६. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वच्चति - कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ? गोयमा ! से जहाणामए - खीरे 'दूसि पप्प" सुद्ध े वा वत्थे रागं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो - भुज्जो परिणमति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ ११७. एवं' एतेणं अभिलावेणं णीललेस्सा काउलेस्सं पप्प, काउलेस्सा तेउलेस्सं पप्प तेउलेस्सा पम्हलेस्सं पप्प, पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सं पप्प जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ ११८. से णूणं भंते ! कण्हलेस्सा णीललेस्सं काउलेस्सं तेउलेस्सं पहले सं सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफा सत्ताए भुज्जो - भुज्जो परिणमति ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्सा णीललेस्सं जाव सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ ११६. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति - किण्हलेस्सा णीललेस्सं जाव सुक्कले सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ? गोयमा ! से जहाणामए - वेरुलियमणी सिया कण्हसुत्तएर वा णीलसुत्तए वा लोहियसुत्तए वा हालिदसुत्तए वा सुक्किलसुत्तए वा आइए समाणे तारूवत्ताए जाव भुज्जो भुज्जो परिणमति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - किहलेस्सा णीललेस्सं जाव सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ पण्णवणासुत्त १२०. से भंते ! णीललेस्सा किण्हलेस्सं जाव सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव णूण भुज्जो - भुज्जो परिणमति ? हंता गोयमा ! एवं चैव ॥ १२१. एवं काउलेस्सा कण्हलेस्सं णीललेस्सं तेउलेस्सं पम्हलेस्सं सुक्कलेस्सं, एवं तेलेस्सा किण्हलेस णोललेसं काउलेस्सं पम्हलेस्सं सुक्कलेस्सं, एवं पम्हलेस्सा कण्हलेसं णीललेस काउलेसं तेउलेसं सुक्कलेस्सं 'पप्प जाव भुज्जो भुज्जो परिणमति ? हंता गोयमा ! तं चेव" ॥ १२२. से णूणं भंते! सुक्कलेस्सा किण्हलेस्सं णीललेस्सं काउलेस्सं तेउलेस्सं पहले संपप्प जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ? हंता गोयमा ! तं चैव ॥ वण्ण-पदं १२३. कण्हलेस्सा णं भंते ! वण्णेणं केरिसिया पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामए १. दूरं पप्प ( ख, ग, घ ) । २. एवं नीललेश्या कापोतलेश्यां प्राप्येत्यादीन्यपि चत्वारि सूत्राणि भावनीयानि ( मवृ ) । ३. कण्ह (क) । ४. सुविकल्ल° ( ग ) । ५. x (घ) । Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं लेस्सापयं २३१ जीए इ वा अंजणे इ वा खंजणे इ वा कज्जले इ वा गवले इ वा 'गवलवलए इ वा " जंबूफले इ वा अद्दारिट्ठए' इ वा परपुट्ठे इ वा भमरे इ वा भमरावली इ वा गयकलभे इ वाहिकेसरे' इवा आगासथिग्गले इ वा किण्हासोए इ वा किण्हकणवीरए इ वा किण्हबंधुजीवए इ वा भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, किण्हलेस्सा णं एत्तो अणिट्टतरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुण्णतरिया चेव अमणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता ॥ १२४. णीललेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामए - भिंगे इ वा भगपत्ते इ वा चासे इ वा चासपिच्छे इ वा सुए इ वा सुयपिच्छे इ वा सामा इ वा वणराई इ वा उच्चतए' इ वा पारेवयगीवा इ वा मोरगीवा इ वा हलधरवस इ वा अयसिकुसुमे इ वा बाणकुसुमे इ वा अंजणकेसियाकुसुमे इ वा णीलुप्पले इ वा नीलासोए इ वा नीलकणवीरए इ वा णीलबंधुजीवए इ वा भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे', 'णीललेसा णं एत्तो अणिट्ठतरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अणुणतरिया चेव' अमणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता । १२५. काउलेस्सा णं भंते ! केरिसिया' वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामएखइरसारे" इ वा कइरसारे" इ वा धमाससारे" इ वा तंबे" इ वा तंबकरोडए इवा तंबछवाडिया " इ वा वाइंगणिकुसुमए" इ वा कोइलच्छद" - कुसुमए इ वा 'जवासाकुसुमे इ वा कलकुसुमे इवा, भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, काउलेस्सा णं एत्तो अणिट्टतरिया" "चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुण्णतरिया चेव' अमणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता ॥ १. चिन्हाङ्कितः पाठो मलयगिरिवृत्तौ नास्ति व्याख्यातः । २. अद्दारिभे ( क ) ; अद्दारिपुष्पे ( ग ); अद्दाअरेट्ठए (ख,घ ) ; अरिष्टकं फलविशेषः पदं नास्ति अस्यां मलयगिरिवृत्तौ 'अद्द' व्याख्यातम् । ३. कहके से (ख, पु) 1 ४. भवेतारुवे (क,ख,ग,घ ) । ५. मुद्रितायां मलयगिरिवृत्ती उच्चन्तको दन्तरागः आह च मूलटीकाकारः 'उच्चतगो' दंतरागो भवइ' इति पाठो दृश्यते । हस्तलिखिते मलयगिरिवृत्त्यादर्थे ' उद्दन्तको दतरागः आह च मूलटीकाकारः उद्दतको दंतरागो भन्नइ । 'उव्वत्तए' (प्रदेशव्याख्या) । ६. हलहर° (क, ग, घ ) 1 ७. वणकुसुमे ( ग ) । ८. सं० पा० - समट्ठे एत्तो जाव अमणामतरिया । ६. केसरिया ( ख, ग, घ ) । १०. खयर० (ख, घ ) । ११. कयरसारए ( ख, ग ); कतरसारए (घ ) । १२. धमाससारते (घ) 1 १३. तंवे (घ) । १४. तंबाछिवाए ( ग ) । १५. वाइंगिणि° (ख, घ ) । १६. कोइच्छा (क, ख, ध ) । १७ एते पदे वृत्तौ व्याख्याते न स्तः 'क, ख, घ’ संकेतितादर्शेषु 'कलकुसुमे इवा' इति पाठो नैव दृश्यते । १८. सं० पा०- अणिट्ठतरिया जाव तरिया 1 अमणाम Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ पण्णवणासुत्त १२६. तेउलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामएससरुहिरे इ वा उरभरुहिरे इ वा वराहरुहिरे इ वा संबररुहिरे' इ वा मणुस्सरुहिरे इ वा बालिंदगोवे' इ वा बालदिवागरे इ वा संझन्भरागे इ वा गुंजद्धरागे इ वा जाइहिंगुलए' इ वा पवालंकुरे इ वा लक्खारसे इ वा लोहियक्खमणी इ वा किमिरागकंबले इ वा गयतालुए इ वा चीणपिट्ठरासी इ वा पालियायकुसुमे इ वा जासुमणकुसुमे इ वा किसुयपुप्फरासी इ वा रत्तुप्पले इ वा रत्तासोगे इ वा रत्तकणवीरए इ वा रत्तबंधुजीवए इ वा, भवेयारूवा? गोयमा ! णो इणठे समठे, तेउलेस्सा णं एत्तो इट्टतरिया चेव' कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणुण्णतरिया चेव मणामतरिया चेव वण्णणं पण्णत्ता । १२७. पम्हलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामएचंपे इ वा चंपछल्ली इ वा चंपभेदे इ वा हलिद्दा इ वा हालिद्दगुलिया इ वा हालिदाभेदे इ वा हरियाले इ वा हरियालगलिया इ वा हरियालभेदे इ वा चिउरे इ वा चिउररागे इ वा सुवण्णसिप्पी इ वा वरकणगणिहसे इ वा वरपुरिसवसणे इ वा अल्लइकुसुमे इ वा चंपयकुसुमे इ वा कणियारकुसुमे इ वा कुहंडियाकुसुमे इ वा सुवण्णजहिया इ वा सुहिरण्णियाकुसुमे इ वा कोरेंटमल्लदामे इ वा पीयासोगे इ वा पीयकणवीरए इ वा पीयबंधुजीवए इ वा, भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणठे समठे, पम्हलेस्सा णं एत्तो इद्रुतरिया चेव 'कंततरिया चेव पियतरिया केव मणुण्णतरिया चेव मणामतरिया चेव वण्णणं पण्णत्ता ।। १२८. सुक्कलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामएअंके इ वा संखे इ वा चंदे इ वा कुंदे इ वा दगे इ वा दगरए इ वा दही इ वा दहिघणे इ वा खीरे इ वा खीरपूरे इ वा सुक्कछिवाडिया इ वा पेहुणमिजिया इ वा धंत-धोयरुप्पपट्टे इ वा सारइयबलाहए" इ वा कुमुददले इ वा पोंडरियदले इ वा सालिपिट्ठरासी इ वा कुडगपुप्फरासी इ वा सिंदुवारवरमल्लदामे इ वा सेयासोए इ वा सेयकणवीरे इ वा सेयबंधजीवए इ वा, भवेतारुवा ? गोयमा ! णो इणठे समठे, सुक्कलेस्सा णं एत्तो इट्टतरिया चेव कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणुण्णतरिया चेव मणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता॥ १२६. एयाओ णं भंते ! छल्लेस्साओ कतिसु वण्णेसु साहिज्जंति ? गोयमा ! पंचसु वण्णेसु साहिज्जंति, तं जहा-कण्हलेसा कालएणं वण्णेणं साहिज्जति, णीललेस्सा णीलएणं वण्णेणं साहिज्जति, काउलेस्सा काललोहिएणं वण्णणं साहिज्जति, तेउलेस्सा लोहिएणं वण्णेणं साहिज्जइ, पम्हलेस्सा हालिद्दएणं वण्णेणं साहिज्जइ, सुक्कलेस्सा सुक्किलएणं वण्णेणं साहिज्जइ ॥ १. x (ख)। २. इंदगोपे वालेंदगोपे (ग)। ३. हिंगुलुए (क, पु)। ४. पालियाकुसुमे (ख), पारिजाय' (ग)। ५. सं० पा०-इद्रुतरिया चेव जाव मणाम- तरिया। ६. कोरंट (क); कोरिंट (ग)। ७. सं० पा०-इट्टतरिया चेव जाव मणाम तरिया। ८. दधी (क,घ)। ६. दधि' (ख,घ)। १०. सारय (क); °बलाहते (घ)। Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसम लेस्सापयं २३३ रस-पदं १३०. कण्हलेस्सा णं भंते ! केरिसिया आसाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामएणिबे इ वा णिबसारे इ वा णिबछल्ली इ वा णिबफाणिए इ वा कुडए इ वा कुडगफले इ वा कुडगछल्ली इ वा कुडगफाणिए इ वा कडुगतुंबी इ वा कडुगतुंबीफले इ वा खारत उसी इ वा खारतउसीफले इ वा देवदाली इ वा देवदालिपुप्फे इ वा मियवालुंकी इ वा मियवालुंकीफले इ वा घोसाडिए इ वा घोसाडइफले इ वा कण्हकंदए इ वा वज्जकंदए इ वा, भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणठे, समठे, कण्हलेस्सा णं एत्तो अणिद्रुतरिया चेव' 'अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुण्णतरिया चेव अमणामतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता । १३१. णीललेस्साए पुच्छा। गोयमा ! से जहाणामए-भंगी ति वा भंगीरए इ वा पाढा इ वा चविया' इ वा चित्तामूलए इ वा पिप्पलीमलए इ वा पिप्पली इ वा पिप्पलिचुण्णे इ वा मिरिए इ वा मिरियचुण्णे इ वा सिंगबेरे इ वा सिंगबेरचण्णे इ वा, भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणठे समठे, णीललेस्सा णं एत्तो' •अणि?तरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुण्णतरिया चेव अमणामतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता। १३२. काउलेस्साए पुच्छा। गोयमा ! से जहाणामए-अंबाण वा अंबाडगाण वा माउलुंगाण" वा बिल्लाण वा कविट्ठाण वा भव्वाण वा फणसाण वा दालिमाण वा पारेवताण वा अक्खोडयाण" वा चाराण वा बोराण वा तेंदुयाण वा अपिक्काणं अपरियागाणं वण्णेणं अणुववेताणं गंधेणं अणववेताणं फासेणं अणववेताणं, भवेतारूवा? गोयमा ! णो इणठे समठे, एत्तो" •अणि?तरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुण्णतरिया चेव अमणामतरिया चेव काउलेस्सा आसाएणं पण्णत्ता॥ १३३. तेउलेस्सा णं पुच्छा । गोयमा ! से जहाणामए-अंबाण वा जाव तेंदुयाण वा पिक्काणं परियावण्णाणं वण्णणं उववेताणं पसत्थेणं" 'गंधेणं उववेताणं पसत्येणं फासेणं उववेताणं पसत्थेणं, भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणठे समठे एत्तो इद्रुतरिया चेव कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणुण्णतरिया चेव मणामतरिया चेव तेउलेस्सा आसाएणं पण्णत्ता ॥ ३४. पम्हलेस्साए पच्छा । गोयमा ! से जहाणामए-चंदप्पभाइ वा मणिसिलागार इ वा वरसीधू इ वा वरवारुणी इ वा पत्तासवे इ वा पुप्फासवे इ वा फलासवे इ वा १. सं० पा०-अणिट्टतरिया चेव जाव अमणाम- भट्ठाण (पु); एतत् पदं मलयगिरिवृत्ती तरिया। नास्ति। २. अस्साएणं (पु) सर्वत्र । ७. अक्खोलाण (पु)। ३. चचिया (क); वछिया (ख); मलयगिरि- ८. पोराण (ख); चोराण (ग,पु)। वृत्तौ एतत् पदं नास्ति व्याख्यातम् । ६. अपक्काण (क,ख,घ)। ४. सं० पा०-एत्तो जाव अमणामतरिया। १०. सं० पा०-एत्तो जाव अमणामतरिया। ५. माउलिंगाण (घ)। ११. सं० पा०-पसत्थेणं जाव फासेणं जाव एत्तो। ६. भद्दाण (क)x (ग); भज्जाण (घ); १२. मणिसलागा (क); मणिसिला (ख,ग,घ)। Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ पण्णवणासुत्त चोयासवे इ वा आसवे इ वा मधू इ वा मेरए इ वा काविसायणे इ वा खज्जूरसारए इ वा मुद्दियासारए इ वा सुपिक्कखोयरसे इ वा अट्टपिट्टणि ट्ठिया इ वा जंबूफलकालिया इ वा वरपसण्णा इ वा आसला' मासला पेसला ईसि ओढावलंबिणी ईसिं वोच्छेयकडुई ईसिं तंबच्छिकरणी उक्कोसमदपत्ता वण्णेणं उववेया 'पसत्थेणं गंधेणं उववेया पसत्थेणं फासेणं उववेया पसत्थेणं आसायणिज्जा वीसायणिज्जा पीणणिज्जा विहणिज्जा' दीवणिज्जा दप्पणिज्जा मयणिज्जा सव्विदिय-गायपल्हायणिज्जा, भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणठे समठे, पम्हलेस्सा णं एत्तो इट्टतरिया चेव' 'कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणुण्णतिरिया चेव मणामतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता॥ १३५. सुक्कलेस्सा णं भंते ! केरिसिया आसाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामए-गुले इ वा खंडे इ वा सक्करा इ वा मच्छंडिया" इ वा पप्पडमोदए इ वा भिसकंदे इ वा पुप्फुत्तरा इ वा पउमुत्तरा इ वा आदंसिया इ वा सिद्धत्थिया इ वा 'आगासफलिओवमा इ वा अणोवमा इ वा, भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणठे समठे, सुक्कलेस्सा णं एत्तो इटुतरिया चेव कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणुण्णतरिया चेव मणामतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता॥ गंधादि-पदं १३६. कति णं भंते ! लेस्साओ दुन्भिगंधाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तओ लेस्साओ दुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--किण्हलेस्सा णीललेस्सा काउलेस्सा ।। १३७. कति णं भंते ! लेस्साओ सुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तओ लेस्साओ सुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा ॥ १३८. एवं तओ अविसुद्धाओ तओ विसुद्धाओ, तओ अप्पसत्थाओ तओ पसत्थाओ, तओ संकिलिट्ठाओ तओ असंकि लिट्ठाओ, तओ सीयलुक्खाओ तओ निद्धण्हाओ, तओ दुग्गइगामिणीओ" तओ सुगइगामिणीओ" ॥ परिणाम-पदं १३६. कण्हलेस्सा णं भंते ! कतिविधं परिणामं परिणमति ? गोयमा ! तिविहं वा नवविहं वा सत्तावीसतिविहं वा एक्कासीतिविहं वा बेतेयालसतविहं" वा बहुं वा बहुविहं १. कविसाणए (क,ख,ग,घ,पु); लिपिदोषेणात्र ७. सं० पा० ...उववेया जाव फासेणं । वर्णविपर्ययो जातः । वृत्तौ 'मधुमेरककापिशाय- ८. एतत् पदं मलय गिरिवृत्तौ नास्ति व्याख्यातम् । नानि मद्यविशेषाः, इति व्याख्यातमस्ति। ६. सं० पा०-इद्रुतरिया चेव जाव मणामजीवाजीवाभिगमे (३१८६०) पि 'कापिसाय- तरिया। णेइ वा' इति पाठो लभ्यते।। १०. मच्छंडिया (क); मच्छिंडिया (ख,ग,घ)। २. एतत पदं मलयगिरिवृत्ती नास्ति व्याख्यातम् । ११. फालितोवमा इ वा उवमा इ वा (ख,ग,घ)। ३. मंसला (ग)। १२. 'गामियाओ (क,ख,ग,घ)। ४. ईसि (क,ख); ईसी (पु)। १३. गामियाओ (क,ख,ग,घ)। ५. ईसी (पु)। १४. बेतेयालीसतिविहं (क,ख,ग,घ)। ६. उक्कोसमयपत्ता (पु)। Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसम लेस्सापयं २३५ वा परिणामं परिणमति । एवं जाव सुक्कलेसा ॥ पदेस-पदं १४०. कण्हलेस्सा णं भंते ! कतिपदेसिया पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंतपदेसिया पण्णत्ता । एवं जाव सुक्कलेस्सा ।। अवगाह-पदं १४१. कण्हलेस्सा णं भंते ! कइपएसोगाढा पण्णत्ता ? गोयमा असंखेज्जपएसोगाढा पण्णत्ता । एवं जाव सुक्कलेस्सा। वग्गण-पदं १४२. कण्हलेस्साए णं भंते ! केवतियाओ वग्गणाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! अणंताओ वग्गणाओ पण्णत्ताओ । एवं जाव सुक्कलेस्साए। ठाण-पदं १४३. केवतिया णं भंते ! कण्हलेस्साठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा कण्हलेस्साठाणा पण्णत्ता । एवं जाव सुक्कलेस्साए । अप्पबहु-पदं १४४. एतेसि णं भंते ! कण्हलेस्साठाणाणं जाव सुक्कलेस्साठाणाण य जहण्णगाणं दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठ-पएसट्टयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसा हिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्साठाणा दव्वट्ठयाए, जहण्णगा णीललेस्साठाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा कण्हलेस्साठाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा तेउलेस्साठाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा पम्हलेस्साठाणा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा सुक्क्लेस्साठाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा; पदेसट्टयाए-सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्साठाणा पएसट्टयाए, जहण्णगा णीललेस्सट्ठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा कण्हलेस्साठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा तेउलेस्सट्ठाणा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा पम्हलेस्सट्ठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा सुक्कलेस्साठाणा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा; दव्वट्ठ-पदेसट्टयाए- सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सट्ठाणा दव्वट्ठयाए, जहण्णगा णीललेस्सट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेस्सट्ठाणा तेउलेस्सट्ठाणा पम्हलेस्सट्ठाणा, जहण्णगा सुक्कलेस्सट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णएहिंतो सुक्कलेस्सट्ठाणेहितो दव्वट्ठयाए जहण्णगा काउलेस्सट्टाणा पदेसट्टयाए अणंतगुणा, जहण्णगा णीललेस्सट्ठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा। एवं जाव सुक्कलेस्सट्ठाणा ॥ १४५. एतेसि णं भंते ! कण्हलेस्सट्राणाणं जाव सक्कलेस्सद्राणाण य उक्कोसगाणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठ-पएसट्ठयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्योवा उक्कोसगा काउलेस्सट्ठाणा दव्वट्ठयाए, उक्कोसगा णीललेस्सट्ठाणा दवट्ठयाए असंखेज्जगुणा। एवं जहेव जहण्णगा तहेव उक्कोसगा वि, णवरं-उक्कोस त्ति अभिलावो।।। १४६. एतेसि णं भंते ! कण्हलेस्सट्ठाणाणं जाव सुक्कलेस्सट्ठाणाण य जहण्णुक्कोस Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ पण्णवणासुतं गाणं दव्वट्टयाए पसट्टयाए दव्वट्ट-पएसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जहणणगा काउलेस्सद्वाणा दव्वट्टयाए, जहण्णया णीलले सट्टाणा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेस्सट्टाणा तेउलेस्ट्ठाणा पम्हलेस्ट्ठाणा, जण्णगा सुक्कलेसट्टाणा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णएहिंतो सुक्कले-सट्टा हितो दव्वट्टयाए उक्कोसा काउलेस्सद्वाणा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, उक्कोसा णीललेसट्ठाणा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेसट्टाणा तेउलेसट्टाणा, पम्हलेसट्टाणा, उक्कोसा सुक्कलेस्सट्ठाणा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा ; पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सट्ठाणा पएसट्ठाए, जहण्णगा णीललेसट्टाणा परसट्टयाए असंखेज्जगुणा, एवं जहेव दव्वट्टयाए तहेव पट्टयाए वि भाणियव्वं, णवरं - पएसट्टयाए त्ति अभिलावविसेसो; दव्वपएसट्टयाए - सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सद्वाणा दव्वट्टयाए, जहण्णगा णीललेसट्टाणा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेसट्टाणा तेउले सट्टाणा पम्हलेसट्टाणा, जहण्णया सुक्कलेसट्टाणा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णएहिंतो सुक्कले सद्वाणेहितो दव्वट्टयाए उक्कोसा काउलेसट्ठाणा दव्वट्ट्याए असंखेज्जगुणा, उक्कोसा णीलले सट्टाणा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेसाणा तेउलेसट्टाणा पम्हलेसट्टाणा, उक्कोसगा सुक्कलेसट्टाणा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, उक्कोसएहितो सुक्कलेसट्टाणेहितो दव्वट्टयाए जहण्णगा काउलेसट्टाणा पदेसट्टयाए अनंतगुणा, जहण्णगा नीललेसट्टाणा परसट्ठाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेसाणा तेउलेसद्वाणा पम्हलेस ट्ठाणा, जहण्णगा सुक्कलेसट्ठाणा असंखेज्जगुणा, जहण्णएहितो सुक्कलेस हितोपदेसट्टयाए उक्कोसा काउलेसट्टाणा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, उक्कोसया णीललेसट्टाणा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेसट्टाणा तेउलेसट्टाणा पम्हले सट्टाणा, उक्को - या सुक्कलेसाणा सट्टयाए असंखेज्जगुणा || पंचमो उद्देओ लेस्सा-पदं १४७. कति णं भंते! लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा ॥ परिणमणभाव-पदं १४८. से णू भंते ! कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो - भुज्जो परिणमति ? इतो आढत्तं जहा' उत्थुद्देस तहा भाणियव्वं जाव वेरुलियमणिदिट्ठतोति ।। १४. सेणू भंते! कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए णो तावण्णत्ताए णो तागंधत्ताए णो तारसत्ताए णो ताफासत्ताए भुज्जो - भुज्जो परिणमति ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्सा णोललेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए णो तावण्णत्ताए णो तागंधत्ताए णो तारसत्ताए णो ताफासत्ताए भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ १५०. से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चति - कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए १. प० १७।११५- ११६ । Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं लेस्सापयं २३७ जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ? गोयमा ! आगारभाव माताए' वा से सिया पलिभागभावमाता वा से सिया कण्हलेस्सा णं सा णो खलु सा णीललेस्सा, तत्थ गता उक्कति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति - कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प णो तारूवत्ता जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ।। १५१. सेणू भंते ! नीललेस्सा काउलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ? हंता गोयमा ! नीललेस्सा काउलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ १५२. से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चइ - णीललेस्सा काउलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ? गोयमा ! आगारभावमाताए वा से सिया पलिभागभावमाता वा सिया णीललेस्सा णं सा णो खलु सा काउलेस्सा, तत्थ गता उसक्कति 'वा ओसक्कति वा” . से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - णीललेस्सा काउलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ १५३. एवं काउलेस्सा तेउलेस्सं पप्प, तेउलेस्सा पम्हलेस्सं पप्प, पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सं पप्प || १५४. से णूणं भंते ! सुक्कलेस्सा पम्हलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ? हंता गोयमा ! सुक्कलेस्सा " पम्हलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो - भुजो परिणमति ॥ १५५. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति - सुक्कलेस्सा जाव णो परिणमति ? गोयमा ! आगारभाव माताए वा जाव सुक्कलेस्सा णं सा णो खलु सा पम्हलेस्सा, तत्थ गता ओसक्कति, से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव णो परिणमति ॥ छट्टो उद्देसओ लेस्सा-पदं १५६. कति णं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा || मणुस्सेसु-लेस्सा-पदं १५७. मणूसाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा ॥ १५८. मणूसीणं पुच्छा । गोयमा ! छल्लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा ॥ १५६. कम्मभूमयमणूसाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छलेस्साओ १. माया (क,ग) । २. x ( क ) ; जम्हा कण्हलेसाए जहण्डियाए हेट्ठा अन्नलेसा नत्थि, तेण तत्थ गता चेव उस्सकति त्ति भ्रणितं, मज्झमिल्लियाओ तत्थ गता ओसक्कति, कहूं ? जेण णीलाए हिट्ठा कह लेसाए अत्थि तेण ओसवकति, उवरि पि काऊं अत्थि तेण उस्सक्कति, एवं सेसयाओवि, सुक्कलेसाए उवरि अण्णा लेसा णत्थि तेण ओसक्कति चेव भाणियव्वं । ( हावृ ) । ३. सं० पा० तं चेव । Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ पण्णवणासुत्त पण्णत्ताओ, तं जहा- कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा । एवं कम्मभूमयमणूसीण वि ।। १६०. भरहेरवयमणूसाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा । एवं मणुस्सीण वि ।। १६१. पुव्व विदेह-अवरविदेहकम्मभूमयमणूसाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! छ लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा । एवं मणूसीण वि॥ १६२. अकम्मभूमयमणूसाणं पुच्छा। गोयमा ! चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा । एवं अकम्मभूमयमणूसीण वि । एवं अंतरदीवयमणूसाणं मणूसीण वि॥ १६३. हेमवय'-एरण्णवयअकम्मभूमयमणूसाणं मणूसीण य कति लेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चतारि, तं जहा-कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा ।। १६४. हरिवास-रम्मयअकम्मभूमयमणुस्साणं मणूसीण य पुच्छा । गोयमा ! चत्तारि, तं जहा- कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा। देवकुरुत्तरकुरुअकम्मभूमयमणुस्साणं एवं चेव । एतेसिं चेव मणूसीणं एवं चेव ॥ १६५. धायइसंडपुरिमद्धे एवं चेव, पच्छिमद्धे वि । एवं पुक्खरद्धे वि भाणियव्वं ।। लेस्सं पडुच्च गब्भुप्पत्ति-पदं १६६. कण्हलेस्से णं भंते ! मणूसे कण्हलेस्सं गब्भं जणेज्जा" ? हंता गोयमा ! जणेज्जा॥ १६७. कण्हलेस्से णं भंते ! मणूसे णीललेस्सं गन्भं जणेज्जा ? हंता गोयमा ! जणेज्जा । एवं काउलेस्सं तेउलेस्सं पम्हलेस्सं सुक्कलेस्सं छप्पि आलावगा भाणियव्वा ।। १६८. एवं णीललेसेणं काउलेसेणं तेउलेसेण वि पम्हलेसेण वि सुक्कलेसेण वि । एवं एते छत्तीसं आलावगा। १६६. कण्हलेस्सा णं भंते ! इत्थिया कण्हलेस्सं गब्भं जणेज्जा ? हंता गोयमा ! जणेज्जा। एवं एते वि छत्तीसं आलावगा ॥ १७०. कण्हलेसे णं भंते ! मणूसे कण्हलेसाए इत्थियाए कण्हलेस्सं गब्भं जणेज्जा। हंता गोयमा ! जणेज्जा । एवं एते वि छत्तीसं आलावगा। १७१ कम्मभूमयकण्हलेस्से णं भंते ! मणुस्से कण्हलेस्साए इत्थियाए कण्हलेस्सं गभं जणेज्जा ? हंता गोयमा ! जणेज्जा । एवं एते वि छत्तीसं आलावगा ।। १७२. अकम्मभूमयकण्हलेसे णं भंते ! मणूसे अकम्मभूमयकण्हलेस्साए इत्थियाए अकम्मभूमयकण्हलेस्सं गब्भं जणेज्जा ? हंता गोयमा ! जणेज्जा, णवरं-चउसु लेसासु सोलस आलावगा। एवं अंतरदीवगा वि ।। १. एवं हेमवय (ख,ग)। २. पुरथिमद्धे (क)। ३. पच्चत्थिमद्धे (ग)। ४. पुक्खरदीवे (क,ग,घ); पुक्खरवरदीवे (ख)। ५. जाणेज्जा (ख,ग) सर्वत्र)। Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं कायट्ठिइपयं गाहा १ जीव २,३ गतिदिय' ४ काए, ५ जोगे' ६ वेदे' कसाय ८ लेस्सा य । ६ सम्मत्त १० णाण ११ दंसण १२ संजय १३ उवओग आहारे ॥१॥ १५ भासग १६ परित्त १७ पज्जत्त, १८ सुहुम १६ सण्णो २०,२१ भवत्थि २२ चरिमे य । एतेसिं तु पदाणं कायठिई होति णायव्वा ।।२।। जीव-पदं १. जीवे णं भंते ! जोवे त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सव्वद्धं ।। गइ-पदं २. णेरइए णं भंते ! नेरइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। ३. तिरिक्खजोणिए णं भंते ! तिरिक्खजोणिए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालतो, खेत्तओ अणंता लोगा-असंखेज्जा पोग्गलपरियटा, ते णं पोग्गलपरियदा आवलियाए असंखेज्जतिभागो॥ ४.तिरिक्खजोणिणी णं भंते ! तिरिक्खजोणिणीति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तअब्भइयाई। एवं मणूसे वि । मणूसी वि एवं चेव ॥ ५. देवे णं भंते ! देवे त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहेव णेरइए । ६. देवी णं भंते ! देवी ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाई।। ७. सिद्धे णं भंते ! सिद्धे ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए॥ १. गइ इंदिय (क,ख'ग)। २. जोए (ख,ग)। ३. वेए (क,ग); वेते (ख,घ)। ४. आउलिए (क)। ५. °पुहुत्त (क,ख,ग,घ)। २३६ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० पण्णवणासुत्तं ८. णेरइयअपज्जत्तए णं भंते ! णेरइयअपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । एवं जाव देवी अपज्जत्तिया ॥ ६. णेरइयपज्जत्तए णं भंते ! णेरइयपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई॥ १० तिरिक्खजोणियपज्जत्तए णं भंते ! तिरिक्खजोणियपज्जत्तए ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। एवं तिरिक्खजोणिणिपज्जत्तिया वि । मणूसे' मणूसी वि एवं चेव ॥ ११. देवपज्जत्तए जहा णेरइयपज्जत्तए । १२. देविपज्जत्तिया णं भंते ! देविपज्जत्तिय' त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई॥ इंदिय-पदं १३. सइंदिए णं भंते ! सइंदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सइंदिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणाईए वा अपज्जवसिए, अणाईए वा सपज्जवसिए।।। १४. एगिदिए णं भंते ! एगिदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं वणप्फइकालो' ।। १५. बेइंदिए णं भंते ! बेइंदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्ज कालं । एवं तेइंदिय-चउरिदिए वि ।। १६. पंचेंदिए णं भंते ! पंचेंदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं ।। १७. अणिदिए णं "भंते ! अणिदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए॥ १८. सइंदियअपज्जत्तए णं भंते ! ५ सइंदियअपज्जत्तए त्ति कालतो केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । एवं जाव पंचेंदियअपज्जत्तए । १६. सइंदियपज्जत्तए णं भंते ! सइंदियपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयम् ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहुत्तं सातिरेगं ॥ २०. एगिदियपज्जत्तए णं भंते ! "एगिदियपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?' गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साई॥ २१. बेइंदियपज्जत्तए णं भंते ! बेइंदियपज्जत्तए त्ति "कालओ केवचिरं होइ ?' गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वासाइं॥ २२. तेइंदियपज्जत्तए णं भंते ! तेइंदियपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?' गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं रातिदियाई ।। १. एवं मणूसे वि (ग)। ४,५. सं० पा०-पुच्छा। २. °पज्जत्तिए (क,ग,घ)। ६. पुहुत्तं (क,ग,घ)। ३. वणस्सइ° (ख,ग)। ७,८,६. सं० पा०-पुच्छा । Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं कायट्ठिइपयं २४१ २३. चउरिदियपज्जत्तए णं भंते ! "चउरिदियपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ?° गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जा मासा ॥ २४. पंचेंदियपज्जत्तए णं भंते ! पंचेंदियपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं ।। काय-पदं २५. सकाइए णं भंते ! सकाइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सकाइए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिए अणादीए वा सपज्जवसिए । २६. पुढविक्काइए णं भंते ! "पुढविक्काइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं-असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा । एवं आउ-तेउ-वाउक्काइया वि। २७. वणस्सइकाइया णं "भंते ! वणस्सइकाइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?' गोयमा ! जहण्णणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा-असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, ते णं पोग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जइभागो।। २८. तसकाइए णं भंते ! तसकाइए त्ति "कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमब्भहियाई॥ २६ अकाइए णं भंते ! “अकाइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ! ° गोयमा ! अकाइए सादीए अपज्जवसिए॥ ३०. सकाइयअपज्जत्तए णं "भंते ! सकाइयअपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । एवं जाव तसकाइयअपज्जत्तए॥ ३१. सकाइयपज्जत्तए णं "भंते ! सकाइयपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?' गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं ॥ ३२. पुढविक्काइयपज्जत्तए णं "भंते ! पुढविक्काइयपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ; जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साई। एवं आऊ वि॥ ३३. तेउक्काइयपज्जत्तए णं भंते ! तेउक्काइयपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा । जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं राइंदियाई॥ ३४. वाउक्काइयपज्जत्तए णं " भंते ! वाउक्काइयपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साइं॥ ३५. वणस्सइकाइयपज्जत्तए णं भंते ! वणस्सइकाइयपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साइं॥ ३६. तसकाइयपज्जत्तए णं "भंते ! तसकाइयपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?' गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेग ।। ३-१३. सं० पा०-पुच्छा। १. सं०पा०-पुच्छा। २. पुहुत्तं (क,ग,घ)। Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ पण्णवणासुत्तं ३७. सुहमे णं भंते ! सुहमे त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं-असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। ३८. सुहुमपुढविक्काइए सुहुमआउक्काइए सुहुमतेउक्काइए सुहुमवाउक्काइए सुहुमवणप्फइक्काइए सुहमणिगोदे वि जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं-असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। ३६ सुहुमअपज्जत्तए णं भंते ! सुहुमअपज्जत्तए' त्ति "कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णणं अंतोमूहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं ।।। ४० पुढविक्काइय-आउक्काइय-तेउक्काइय-वाउक्काइय-वणस्सइकाइयाण य एवं चेव। पज्जत्तयाण वि एवं चेव ॥ ४१. बादरे णं भंते ! बादरे त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा ! जहण्णणं अंतो उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं-असंखेज्जाओ उस्स प्पिणि-ओसप्पिणीओ कालतो, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं ।।। ४२. बादरपुढविक्काइए णं भंते ! बादरपुढविक्काइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ। एवं बादरआउक्काइए वि जाव बादरवाउक्काइए वि ।। . ४३. बादरवणस्सइकाइए णं भंते ! "बादरवणस्सइकाइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं'... असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालतो , खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं ॥ ४४. पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइए णं भंते ! "पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ॥ ४५. णिगोए णं भंते ! णिगोए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ. कालओ, खेत्तओ अड्डाइज्जा पोग्गलपरियट्टा ॥ . ४६. बादरनिगोदे णं भंते ! बादर "णिगोदे त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ ॥ ४७. बादरतसकाइए णं भंते ! बादरतसकाइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमब्भहियाई॥ ४८. एतेसिं चेव अपज्जत्तगा सव्वे वि जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ ४६. बादरपज्जत्तए णं भंते ! बादरपज्जत्तए “त्ति कालओ केवचिरं होइ ?' गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं ।। . १. सुहमे णं भंते ! अपज्जत्तए (क,ग,घ); सुहमे णं भंते ! अपज्जत्तपज्ज (ख)। . . २,३,४. सं० पा०—पुच्छा । ५. सं० पा०—कालं जाव खेत्तओ। ६,७,८. सं० पा०--पुच्छा । .. .. .. Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं कार्यइपयं २४३ ५०. बादरपुढविक्का इयपज्जत्तए णं भंते ! बादर पुढविक्काइयपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वास सहस्साइं । एवं आउक्काइए वि ।। ५१. ते उक्काइयपज्जत्तए णं भंते! तेउक्काइयपज्जत्तए "त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई राइंदियाई ॥ ५२. वाउक्काइए वणस्सइकाइए पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइए य पुच्छा । गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साई ॥ ५३. णिगोयपज्जत्तए बादरणिगोयपज्जत्तए य पुच्छा । गोयमा ! दोणि वि जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ५४. बादरतसकाइयपज्जत्तए णं भंते ! बादरतसकाइयपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं ॥ जोग - पदं ५५. सजोगी णं भंते! सजोगि त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सजोगी दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा सपज्जवसिए । ५६. मणजोगी णं भंते ! मणजोगि त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं । एवं वइजोगी' वि ॥ ५७. कायजोगी णं भंते! " कायजोगी त्ति कालओ केवचिरं होई ?° गोयमा ! जहणे अंतमुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो || ५८. अजोगी णं भंते ! अजोगी ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सादीए अज्जवसि ॥ वेद-पदं ५६. सवेदए णं भंते सवेदए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सवेदए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा सपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए । तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं - अनंताओ उस्सप्पिणि ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढ पोग्गलपरियट्ट सूणं ॥ ६०. इत्थवेदे णं भंते ! इत्थवेदेत्ति कालतो केवचिरं होति ? गोयमा ! एगेणं आदेसेणं जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दसुत्तरं पलिओवमसतं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियं १ एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एवं समयं उक्कोसेणं अट्ठारस पलिओवमाइं पुव्वको डिपुहत्तमब्भहियाई २ एगेणं आदेसेणं जणेणं एवं समयं, उक्कोसेणं चोट्स पलिओवमाई पुव्वकोडिyहत्तमब्भहियाइं ३ एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एवं समयं उक्कोसेणं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियं ४ एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एवं समयं उक्कोसेणं पलिओवमपुहत्तं पुण्वकोडिपुत्तमभयं ५ ॥ १२. सं०पा० - पुच्छा । ३. वयजोगी (ख,घ,पु) । ४. सं० पा० - पुच्छा । Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ पण्णवणासुत्तं ६१. पुरिसवेदे णं भंते ! पुरिसवेदे त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं ॥ ६२. नपुंसगवेदे णं भंते ! णसगवेदे त्ति "कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो ॥ ६३. अवेदए णं भंते ! अवेदए त्ति "कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! अवेदए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिए से जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ।।। कसाय-पदं ६४. सकसाई णं भंते ! 'सकसाई ति" कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सकसाई तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा सपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए । 'तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ' अवड्ढं पोग्गलपरियट्टू देसूणं ।। ६५. कोहकसाई णं भंते ! 'कोहकसाई ति कालओ केबचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । एवं जाव मायकसाई॥ ६६. लोभकसाई णं भंते ! लोभ "कसाई ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं ।। ६७. अकसाई णं भंते ! अकसाई ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा! अकसाई दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिए से जहण्णणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ लेस्सा -पदं ६८. सलेसे णं भंते ! सलेसे त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! सलेसे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा सपज्जवसिए॥ ६६. कण्हलेसे"णं भंते ! कण्हलेसे त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई ।। ७०. णीललेसे णं भंते ! णीललेसे त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णणं अंतोमूहत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमासंखेज्जइभागमब्भहियाई ॥ ७१. काउलेस्से णं भंते ! काउलेस्सेत्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाइं पलिओवमासंखेज्जइभागमब्भहियाइं । १,२. सं० पा०-पुच्छा। ८,९. सं० पा०-पुच्छा। ३. सकसादित्ति (क,ख)। १०. कण्हलेस्सा (ग)। ४. सकसादी (क); सकसाती (घ)। ११. सं० पा०-पुच्छा। ५. सं० पा०-सपज्जवसिए जाव अवड्ढं । १२. पलिओवमाई असंखे (क)। ६.सं० पा०—पुच्छा। १३. सं० पा०-पुच्छा। ७. माणमाय° (क,ग) । Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४५ अट्ठारसमं कायट्टिइपयं ७२. तेउलेस्से णं भंते ! तेउलेस्से ति कालओ केवचिरं होइ ?' गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोमाइं पलिओवमासंखेज्जइभागमब्भहियाइं ॥ ७३. पम्हलेस्से णं "भंते ! पम्हलेस्से त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं॥ ___७४. सुक्कलेस्से णं भंते ! "सुक्कलेस्से त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तमब्भहियाइं ॥ ७५. अलेस्से णं "भंते अलेस्से त्ति कालओ केवचिरं होइ ?' गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए॥ सम्मत्त-पदं ७६. सम्मद्दिट्ठी णं भंते ! सम्मद्दिट्ठी त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सम्मट्टिी दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए । तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छाव४ि सागरोवमाइं सातिरेगाई। ७७. मिच्छद्दिट्टी णं भंते ! ५ मिच्छट्टिी त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! मिच्छद्दिट्ठी तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा सपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिए से जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ उस्सप्पिणि-ओस प्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं ॥ ७८. सम्मामिच्छद्दिट्ठी णं "भंते ! सम्मामिच्छद्दिट्ठी ति कालओ केवचिरं होइ ?' गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ णाण-पदं ७६. णाणी णं भंते ! णाणीति कालओ केवचिरं होई ? गोयमा! णाणी विहे पण्णत्ते, तं जहा-सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए । तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिए से जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावर्द्धि सागरोवमाइं साइरेगाई॥ ८०. आभिणिबोहियणाणी णं भंते ! "आभिणिबोहियणाणी ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा एवं चेव। एवं सुयणाणी वि। ओहिणाणी वि एवं चेव । णवरं-जहण्णेणं एक्कं समयं ।। ८१. मणपज्जवणाणी णं भंते ! मणपज्जवणाणी ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं ॥ ८२. केवलणाणी णं "भंते ! केवलणाणी ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए । ८३. अण्णाणी-मइअण्णाणी-सुयअण्णाणी णं पुच्छा । गोयमा! अण्णाणी मतिअण्णाणी सुयअण्णाणी तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा सपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, १-८. सं० पा०-पुच्छा। Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ पण्णवणासुतं उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढे पोग्गलपरियट्टू देसूणं ॥ ८४. विभंगणाणी णं भंते ! "विभंगणाणी ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं देसूणाए पुव्वकोडीए अब्भहियाई । दसण-पदं ८५. चक्खुदंसणी णं भंते ! "चक्खुदंसणी ति कालओ केवचिरं होइं ?° गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं ॥ ८६. अचक्खुदंसणी णं भंते ! अचक्खुदंसणी ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! अचक्खदंसणी दूविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा सपज्जवसिए॥ र ८७. ओहिदसणी णं "भंते ! ओहिदंसणी ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो छावट्ठीओ सागरोवमाई सातिरेगाओ। ८८. केवलदसणी णं "भंते ! केवलदसणी ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए॥ संजय-पदं __८६. संजए णं भंते ! संजए त्ति " कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणं पुन्वकोडिं ॥ ६०. असंजए णं भंते ! असंजए ति कालओ केवचिरं होइ ? ° गोयमा ! असंजए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादिए वा सपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिए से जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढं पोग्गलपरियट्ट देसूणं ॥ ६१. संजयासंजए जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं ।। ६२. णोसंजए-णोअसंजए-णोसंजयासंजए णं पुच्छा । गोयमा !सादीए अपज्जवसिए । उवओग-पदं ६३. सागारोवउत्ते णं भंते ! “सागारोवउत्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । अणागारोवउत्ते वि एवं चेव ॥ आहार-पदं ४. आहारए णं भंते ! "आहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! आहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--छउमत्थआहारए य केवलिआहारए य ॥ ६५. छउमत्थाहारए णं भंते ! छउमत्थाहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं खुड्डागभवग्गहणं दुसमऊणं", उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं-असंखेज्जाओ १,२,३. सं० पा०—पुच्छा । ४. सागरोवमाणं (ख,ग,पु)। ५-६. सं० पा०-पुच्छा। १०. दुसमयऊणं (ख,ग)। Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ अट्ठारसमं कायट्ठिइपयं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालतो, खेत्ततो अंगुलस्स असंखेज्जइभागं ॥ ६६. केवलिआहारए णं भंते ! केबलिआहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं ॥ ६७. अणाहारए णं भंते ! अणाहारए त्ति • कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-छउमत्थअणाहारए य, केवलिअणाहारए य॥ १८. छउमत्थअणाहारए णं भंते ! "छउमत्थअणाहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो समया ॥ . केवलिअणाहारए णं भंते ! केवलिअणाहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! केवलिअणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सिद्धकेवलिअणाहारए य, भवत्थकेवलिअणाहारए य ।। १००. सिद्धकेवलिअणाहारए णं भंते ! "सिद्धकेवलिअणाहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए । १०१. भवत्थकेवलिअणाहारए णं भंते ! ' भवत्थकेवलिअणाहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! भवत्थकेवलिअणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सजोगिभवत्थकेवलिअणाद्वारए य. अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए य॥ १०२. सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए णं भंते ! ५ सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसेणं तिण्णि समया ॥ १०३. अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए णं "भंते ! अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ भासग-पदं १०४. भासए णं भंते ! भासए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ १०५. अभासए णं "भंते ! अभासए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! अभासए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा -अणाईए वा अपज्जवसिए, अणाईए वा सपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिए से जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणप्फइकालो। परित्त-पदं १०६. परित्ते णं भंते ! ""परित्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! परित्ते दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-कायपरित्ते य, संसारपरित्ते य॥ १०७. कायपरित्ते णं भंते ! कायपरित्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो-असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ॥ १०८. संसारपरित्ते णं भंते ! संसारपरित्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ ?' १-८. सं० पा०----पुच्छा , पण्णत्ते-साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा ६. जीवाजीवाभिगमे (६।५८) अभाषकस्य सपज्जवसिए। द्विविधत्वमेव स्वीकृतमस्ति-अभासए दुविहे १०-१२. सं पा०-पुच्छा। Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ पण्णवणासुतं गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं – अणंताओ उस्सप्पिणिओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ' अवढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं ॥ १०६. अपरित्ते णं भंते ! अपरिते त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! अपरित्ते दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - कायअपरिते य, संसारअपरिते य ॥ ११०. कायअपरित्ते णं भंते ! कायअपरित्ते त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्को सेणं वणप्फइकालो || १११. संसारअपरित्ते णं भंते! संसारअपरितेत्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! संसारअपरित्ते दुविहे पण्णत्ते तं जहा - अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा जवस ॥ ११२. णोपरित्ते-णोअपरित्ते णं पुच्छा । गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए || पज्जत्त-पदं ११३. पज्जत्तए णं "भंते ! पज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं ॥ ११४. अपज्जत्तणं "भंते ! अपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ ११५. णोपज्जत्तए-णोअपज्जत्तए णं पुच्छा । गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए || सुहुम-पदं ११६. हमे णं भंते ! सुहुमे त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो || ११७. बादरे णं भंते ! बादरे त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं – असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ', खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जइभागं ॥ ११८. णोसुहुम-णोबादरे णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए । सण-पदं ११६. सण्णी णं भंते ! " सण्णी ति कालओ केवचिरं होइ ?' गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं ॥ १२०. असण्णी णं भंते ! " असण्णी ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणप्फइकालो || १२१. णोसण्णी -- णोअसण्णी णं पुच्छा । गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए । भवसिद्धिय-पदं १२२. भवसिद्धिए णं भंते !" भवसिद्धिए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! अादी सपज्जवसिए । १२३. अभवसिद्धिए णं भंते ! " अभवसिद्धिए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° १. सं० पा० - कालं जाव अवड्ढं । २८. सं० पा०-- पुच्छा | ६. सं० पा० कालं जाव खेत्तओ । १०-१३. सं० पा० – पुच्छा | Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं कार्यइपर्य गोयमा ! अणादीए अपज्जवसिए || १२४. णोभवसिद्धिय-णोअभवसिद्धिए णं पुच्छा । गोयमा ! सादीए अपज्जवसि ॥ अथिकाय-पदं १२५. धम्मत्थिकाए णं भंते ! धम्मत्थिकाए त्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोमा ! सव्वद्धं । एवं जाव अद्धासमए । चरिम-पदं २४६ १२६. चरिमे णं "भंते ! चरिमेत्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! अणादीए सज्जवसि ॥ १२७. अचरिमे णं '"भंते ! अचरिमेत्ति कालओ केवचिरं होइ ?° गोयमा ! अरिमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - अणादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा अपज्जवसिए । १३. सं० पा० पुच्छा | Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगणवीसइमं सम्मत्तपयं १. जीवा णं भंते ! किं सम्मट्ठिी मिच्छद्दिट्ठी सम्मामिच्छद्दिट्ठी ? गोयमा ! जीवा सम्मद्दिट्ठी वि मिच्छद्दिट्ठी वि सम्मामिच्छद्दिट्ठी वि। एवं णेरइया वि । असुरकुमारा वि एवं चेव जाव थणियकुमारा॥ २. पुढविक्काइयाणं पुच्छा । गोयमा ! पुढविक्काइया णो सम्मट्ठिी, मिच्छद्दिट्ठी, णो सम्मामिच्छद्दिट्ठी । एवं जाव वणप्फइकाइया ।। ३. बेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! बेइंदिया सम्मद्दिट्ठी वि मिच्छट्टिी वि, णो सम्मामिच्छद्दिट्ठी । एवं जाव चउरेंदिया ॥ ४. पंचेंदियतिरिक्खजोणिय-मणुस्सा वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया य सम्म ट्ठिी वि मिच्छद्दिवी वि सम्मामिच्छद्दिट्ठी वि ॥ ५. सिद्धाणं पुच्छा । गोयमा ! सिद्धा णं सम्मद्दिट्ठी, णो मिच्छद्दिट्ठी णो सम्मामिच्छद्दिट्ठी ॥ २५० Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा अंतकिरिया - पदं वीसइमं अंतकिरियापयं १ रइय अंतकिरिया, २ अनंतरं ३ एगसमय ४ उव्वट्टा | ५ तित्थगर ६ चक्कि ७ बल, ८ वासुदेव मंडलिय १० रयणा य ॥ १ ॥ ह १. जीवे णं भंते ! अंतकिरियं करेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए करेज्जा, अत्थेगइए करेज्जा । एवं रइए जाव वेमाणिए । २. रइए णं भंते ! णेरइएस अंतकिरियं करेज्जा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ॥ ३. रइए णं भंते! असुरकुमारेसु अंतकिरियं करेज्जा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ! ४. एवं जाव माणिए, णवरं - मणूसेसु अंतकिरियं करेज्ज त्ति पुच्छा । गोयमा ! अत्थेगइए करेज्जा, अत्थेगइए णो करेज्जा | ५. एवं असुरकुमारे जाव वेमाणिए । एवमेते' चउवीसं चउवीसदंडगा || अनंतर - पदं ६. रइया णं भंते ! कि अनंतरागता अंतकिरियं करेंति ? परंपरागया अंतकिरिय करेंति ? गोयमा ! अनंतरागया वि अंतकिरियं करेंति, परंपरागता वि अंतकिरियं करेंति । एवं रयणप्पभापुढविणे रइया वि जाव पंकप्पभापुढविणेरइया ॥ ७. धूमप्पभापुढविणेरइया णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! णो अनंतरागया अंतकिरिय करेंति, परंपरागया अंतकिरियं करेंति । एवं जाव असत्तमापुढविणेरइया ॥ ८. असुरकुमारा जाव थणियकुमारा पुढवि-आउ-वणस्सइकाइया य अनंतरागया वि अंतरिय करेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं करेंति । तेउ वाउ- बेइंदिय-तेइंदिय- चउरिंदिया णो अनंतरागया अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति । सेसा अनंतरागया व अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं पकरेंति ॥ 1 एगसमय-पदं ६. अनंतरागया णं भंते! णेरइया एगसमएणं केवतिया अंतकिरियं पकरेंति ? १. बलदेव (क, ख ) । २. एवमेव (क, ग, घ ) ; एवामेव ( ख ) । २५१ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ पण्णवणासुतं गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं दस । रयणप्पभापुढविणेरइया वि एवं चेव जाव वालुयप्पभापूढविणेरइया ॥ १०. अणंतरागया णं भंते ! पंकप्पभापुढविणेरइया एगसमएणं केवतिया अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि ॥ ११. अणंतरागया णं भंते ! असुरकुमारा एगसमएणं केवइया अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं दस ॥ १२. अणंतरागयाओ णं भंते ! असुरकुमारीओ एगसमएणं केवतियाओ अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्को [क्का ?] वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं पंच । एवं जहा असुरकुमारा सदेवीया तहा जाव थणियकुमारा ।। १३. अणंतरागया णं भंते ! पुढविक्काइया एगसमएणं केवतिया अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि । एवं आउक्काइया वि चत्तारि । वणप्फइकाइया छ। पंचेंदियतिरिक्खजोणिया दस । तिरिक्खजोणिणोओ दस । मणूसा दस। मणूसीओ वीसं। वाणमंतरा दस । वाणमंतरीओ पंच। जोइसिया दस । जोइसिणीओ वीसं । वेमाणिया अट्ठसतं । वेमाणिणीओ वीसं ॥ उव्वट्ट-पदं १४. णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता णेरइएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! णो इणठे समठे । १५. णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता असुरकुमारेसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! णो इणठे समठे ॥ १६. एवं निरंतरं जाव चउरिदिएसु पुच्छा । गोयमा ! णो इणठे समठे । १७. णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जेज्जा? गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए णो उववज्जेज्जा। जे णं भंते ! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जेज्जा से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए ? गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा। जेणं भंते ! केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए से णं केवलं बोहिं बुज्झज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए बुज्झज्जा, अत्थेगइए णो बुज्झज्जा। जे णं भंते ! केवलं बोहिं बुज्झेज्जा से णं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा ? गोयमा ! सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा। जे णं भंते ! सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा से णं आभिणिबोहियणाण-सुयणाणाई उप्पाडेज्जा ? हंता गोयमा ! उप्पाडेज्जा। जे णं भंते ! आभिणिबोहियणाण-सुयणाणाई उप्पाडेज्जा से णं संचाएज्जा सोलं वा वयं वा गुणं वा वेरमणं वा पच्चक्खाणं वा पोसहोववासं वा पडिवज्जित्तए ? गोयमा ! अत्थेगइए संचाएज्जा, अत्थेगइए णो संचाएज्जा। जेणं भंते ! संचाएज्जा सीलं वा जाव पोसहोववासं वा पडिवज्जित्तए से णं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए णो उप्पाडेज्जा। Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीस इमं अंतकिरियापयं २५३ जे णं भंते ओहिणाणं उप्पाडेज्जा से णं संचाएज्जा मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ? गोयमा ! णो इणठे समठे ॥ १८. णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता मणूसेसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए णो उववज्जेज्जा। जे णं भंते ! उववज्जेज्जा से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए ? गोयमा ! "अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा। जे णं भंते ! केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्जा सवणयाए से णं केवलं बोहिं बज्झेज्जा? गोयमा ! अत्थेगइए बुज्झेज्जा, अत्थेगइए नो बुज्झेज्जा। जे णं भंते ! केवलं बोहिं बुज्झेज्जा से णं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा ? गोयमा ! सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा। जे णं भंते ! सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा से णं आभिणिबोहियणाण-सुयणाणाई उप्पाडेज्जा ? हंता ! गोयमा ! उप्पाडेज्जा। जे णं भंते ! आभिणिबोहियणाण-सुयणाणाइं उप्पाडेज्जा से णं संचाएज्जा सीलं वा वयं वा गुणं वा वेरमणं वा पच्चक्खाणं वा पोसहोववासं वा पडिवज्जित्तए ? गोयमा ! अत्थेगइए संचाएज्जा, अत्थेगइए णो संचाएज्जा। जे णं भंते ! संचाएज्जा सीलं वा जाव पोसहोववासं वा पडिवज्जित्तए से णं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए णो उप्पाडेज्जा। जे णं भंते ! ओहिणाणं उप्पाडेज्जा से णं संचाएज्जा मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ? गोयमा ! अत्थेगइए संचाएज्जा, अत्थेगइए णो संचाएज्जा। जे णं भंते ! संचाएज्जा मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए से णं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए णो उप्पाडेज्जा। जे णं भंते ! मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा से णं केवलणाणं उप्पाडेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए णो उप्पाडेज्जा। जे णं भंते ! केवलणाणं उप्पाडेज्जा से णं सिज्झज्जा बुज्झज्जा मुच्चेज्जा सव्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा ? गोयमा ! सिज्झज्जा जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा॥ १६. णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! णो इणठे समठे ॥ २०. असुरकुमारे णं भंते ! असुरकुमारेहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता जेरइएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! णो इणठे समढें ॥ २१. असुरकुमारे णं भंते ! असुरकुमारेहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता असुरकुमारेसु उववज्जिज्जा ? गोयमा ! णो इणठे समठे। एवं जाव थणियकुमारेसु ॥ २२. असुरकुमारे णं भंते ! असुरकुमारेहितो अणंतरं उव्व ट्टित्ता पुढविक्काइएसु उववज्जेज्जा ? हंता गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा। जेणं भंते ! उववज्जेज्जा से णं केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्जा सवणयाए ? गोयमा ! नो १. सं० पा०-जहा पंचेंदियतिरिवखजोणिएस जाव जे णं । Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ पण्णवणासुत्तं इणठे समठे । एवं आउ-वणप्फईसु वि ॥ २३. असुरकुमारे णं भंते ! असुरकुमारहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता तेउ-वाउ-बेइंदियः तेइंदिय-चउरिदिएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! णो इणठे समठे। अवसेसेसु पंचसु पंचेंदियतिरिक्खजोणियादिसु असुरकुमारे जहाणेरइए। एवं जाव थणियकुमारे॥ २४. पुढविकाइए णं भंते ! पुढविक्काइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता णेरइएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! णो इणठे समठे। एवं असुरकुमारेसु वि जाव थणियकुमारेसु वि॥ २५. पुढविक्काइए णं भंते ! पुढविक्काइएहितो अणंतरं उवट्टित्ता पुढविक्काइएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए णो उववज्जेज्जा। जे णं भंते ! उववज्जेज्जा से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए ? गोयमा ! णो इणठे समठे। एवं आउक्काइयादीसु णिरंतरं भाणियव्वं जाव चरिदिएसु । पंचेंदियतिरिक्खजोणिय-मणूसेसु जहा' णेरइए । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु पडिसेहो । २६. एवं जहा पुढविक्काइओ भणिओ तहेव आउक्काइओ वि वणप्फइकाइओ वि भाणियव्वो॥ २७. तेउक्काइए णं भंते ! तेउक्काइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता णेरइएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! णो इणठे समठे । एवं असुरकुमारेसु वि जाव थणियकुमारेसु वि। २८. पुढविक्काइय-आउ-तेउ-वाउ-वणस्सइ-बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदिएसु अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए णो उववज्जेज्जा। जे णं भंते ! उववज्जेज्जा से णं केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्जा सवणताए ? गोयमा ! नो इणठे समझें ॥ २९. तेउक्काइए णं भंते ! तेउक्काइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए णो उववज्जेज्जा। जे णं भंते ! उववज्जेज्जा से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए ? गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा।... जे णं भते ! केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्जा सवणयाए से णं केवलं बोहिं बुज्झेज्जा ? गोयमा ! णो इणठे समठे। ३०. मणूस-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु पुच्छा । गोयमा ! णो इणठे समझें। ३१. एवं जहेव ते उक्काइए णिरंतरं एवं वाउक्काइए वि ॥ ३२. बेइंदिए णं भंते ! बेइंदिएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता णेरइएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहा पुढविक्काइए, णवरं-मणूसेसु जाव मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा ॥ ३३. एवं तेइंदिय-चउरिदिया वि जाव मणपज्जवनाणं उप्पाडेज्जा। जे णं भंते ! मणपज्जवनाणं उप्पाडेज्जा से णं केवलणाणं उप्पाडेज्जा ? गोयमा ! णो इणठे समझें ॥ १. प० २०११७-१६ । २. प० २०११७,१८ । ३. सवणयाते (ख)। ४. प० २०१२४,२५। Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमं अंतकिरियापयं २५५ ३४. पंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो अणंतरं उवट्टित्ता रइएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए णो उववज्जेज्जा। जे णं भंते ! उववज्जेज्जा से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए ? गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा। जेणं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए से णं केवलं बोहिं बुज्झज्जा? गोयमा ! अत्थेगइए बुज्झज्जा, अत्थेगइए नो बुज्झेज्जा। जे णं भंते ! केवलं बोहिं बुज्झेज्जा से णं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा ? हंता गोयमा' ! 'सदहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा। जे णं भंते ! सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा से णं आभिणिवोहियणाण-सुयणाण-ओहिणाणाणि उप्पाडेज्जा ? हंता गोयमा ! उप्पाडेज्जा।। जे णं भंते ! आभिणिवोहियणाण-सुयणाण-ओहिणाणाई उप्पाडेज्जा से णं संचाएज्जा सीलं वा' 'वयं वा गुणं वा वेरमणं वा पच्चक्खाणं वा पोसहोववासं वा पडिवज्जित्तए ? गोयमा ! णो इणठे समठे ॥ ____३५. एवं असुरकुमारेसु वि जाव थणियकुमारेसु । एगिदिय-विगलिदिएसु जहा' पुढविक्काइए पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु मणूसेसु य जहाँ णेरइए। वाणमंतर-जोतिसियवेमाणिएसु जहाणेरइएसु उववज्जेज्जत्ति पुच्छाए भणियाए । ३६. एवं मणूसे वि॥ ३७. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिए जहा' असुरकुमारे ।। तित्थगर-पदं ३८. रयणप्पभापुढविणेरइए णं भंते ! रयणप्पभापुढविणेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता तित्थगरत्तं लभेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो ल भेज्जा। ३६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा? गोयमा ! जस्स णं रयणप्पभापुढविणेरइयस्स तित्थगरणाम-गोयाई कम्माइं बद्धाइं पुदाई कडाइं पट्टवियाई णिविट्ठाई अभिनिविट्ठाइं अभिसमण्णागयाइं उदिण्णाइं णो उवसंताई भवंति से णं रयणप्पभापुढविणेरइए रयणप्पभापुढविणेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता तित्थगरत्तं लभेज्जा, जस्स णं रयणप्पभापुढविणेरइयस्स तित्थगरणाम-गोयाइं णो बद्धाइं जाव णो उदिण्णाई उवसंताई भवंति से णं रयणप्पभापुढविणेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता तित्थगरत्तं णो लभेज्जा । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-अत्थेगइए लभेज्जा अत्थेगइए णो लभेज्जा। एवं जाव वालुयप्पभापुढविणेरइएहितो तित्थगरत्तं लभेज्जा ।। ४०. पंकप्पभापुढविणेरइए णं भते ! पंकप्पभापुढविणे रइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता तित्थगरत्तं लभेज्जा ? गोयमा ! णो इणठे समठे। अंतकिरियं पुण करेज्जा। .. १. सं० पा०-गोयमा जाव रोएज्जा। २.सं० १०-सीलं वा जाव पडिवज्जित्तए। ३. प० २०१२५ । ४. प० २०११७,१८ । ५. प० २०१३४ । ६. प० २०१२०-२३ । Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ पण्णवणासुत्तं __ ४१. धूमप्पभापुढविणेरइए णं पुच्छा। गोयमा ! णो इणठे समठे, विरतिं पुण लभेज्जा॥ ____ ४२. तमापुढविणेरइए णं पुच्छा । गोयमा ! णो इणठे समठे, विरयाविरतिं पुण लभेज्जा। ४३. अहेसत्तमाए पुच्छा। गोयमा ! णो इणठे समठे, सम्मत्तं पुण लभेज्जा। ४४. असुरकुमारे णं पुच्छा । गोयमा ! णो इणठे समठे, अंतकिरियं पुण करेज्जा। एवं निरंतरं जाव आउक्काइए। ४५. तेउक्काइए णं भंते ! तेउक्काइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता 'तित्थगरत्तं लभेज्जा" ? गोयमा ! णो इणठे' समझें, केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए । एवं वाउक्काइए वि॥ ४६. वणप्फइकाइए णं पुच्छा। गोयमा ! णो इणठे समठे, अंतकिरियं पुण करेज्जा । ४७. बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदिए णं पुच्छा । गोयमा ! णो इणठे समठे, मणपज्जवणाणं पुण उप्पाडेज्जा॥ ४८. पंचेंदियतिरिक्खजोणिय-मणूस-वाणमंतर-जोइसिए णं पुच्छा। गोयमा ! णो इणठे समठे, अंतकिरियं पुण करेज्जा। ४६. सोहम्मगदेवे णं भते ! अणंतरं चयं चइत्ता तित्थगरत्तं लभेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा । एवं जहा' रयणप्पभापुढविणेरइए । एवं जाव सव्वट्ठसिद्धगदेवे॥ चक्कवट्टि-पदं ५०. रयणप्पभापुढविणेरइए णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता चक्कवट्टित्तं लभेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा। ५१. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहा' रयणप्पभापुढविणेरइयस्स ५२. सक्करप्पभापुढविणेरइए अणंतरं उव्वट्टित्ता चक्कवट्टित्तं लभेज्जा ? गोयमा ! णो इणठे समठे । एवं जाव अहेसत्तमापुढविणेरइए । ५३. तिरिय-मणुएहिंतो पुच्छा । गोयमा ! णो इणठे समठे ।। ५४. भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएहितो पुच्छा । गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए नो लभेज्जा । बलदेव-पदं ५५. एवं बलदेवत्तं पि, णवरं-सक्करप्पभापुढविणेरइए वि लभेज्जा। तित्थगरते ॥ १. उववज्जेज्जा (क,ख,ग,घ); अस्मिन् तीर्थकरद्वारे 'तित्थ गरत्तं लभेज्जा' इति प्रश्नसूचक: पाठः सर्वत्र साधारणोस्ति । पूर्वस्मिन् द्वारे 'उववज्जेज्जा' इति पदं साधरणमस्ति। २. इणमठे (क)। ३. प० २०१३८,३६ । ४. प० २०१३९ । Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमं अंत किरियापयं वासुदेव-पदं ५६. एवं वासुदेवत्तं दोहितो पुढवीहितो वेमाणिएहितो य अणुत्तरोववातियवज्जेहितो, सेसेसु णो इणट्ठे समट्ठे ॥ मंडलिय-पदं ५७. मंडलियत्तं अहेसत्तमा तेउ वाउवज्जेहितो ॥ रयण-पदं ५८. सेणावइरयणत्तं गाहावइरयणत्तं वड्ढइरयणत्तं पुरोहियरयणत्तं इत्थिरयणत्तं च एवं चेव, णवरं - अणुत्तरोववाइयवज्जेहितो | ५६. आसरयणत्तं हत्थिरयणत्तं च रयणप्पभाओ णिरंतरं जाव सहस्सारो अत्येगइए भेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा ॥ ६०. चक्करयणत्तं 'छत्तरयणत्तं चम्मरयणत्तं" दंडरयणत्तं असिरयणत्तं मणिरयणत्तं कागणिरणत्तं एतेसि णं असुरकुमारेहिंतो आरद्धं निरंतरं जाव ईसाणे हितो उववातो, सेसेहितो णो इणट्ठे समट्ठे ॥ देवववाय-पदं ६१. अह भंते ! असंजयभवियदव्वदेवाणं अविराहियसंजमाणं विराहियसंजमाणं अविराहियसंजमासंजमाणं विराहियसंजमासंजमाणं असण्णीणं तावसाणं कंदप्पियाणं चरगपरिव्वायगाणं किब्बिसियाणं तेरिच्छियाणं आजीवियाणं आभिओगियाणं सलिंगीणं दंसणवावण्णगाणं' देवलोगेसु उववज्जमाणाणं कस्स कहि उववाओ पण्णत्तो ? गोयमा ! अस्संजयभवियदव्वदेवाणं जहणणं भवणवासीसु उक्कोसेणं उवरिमगेवेज्जगेसु । अविराहियसंजमाणं जहण्णेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सव्वट्टसिद्धे । विराहियसंजमाणं जहणेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे । अविराहियसंजमासंजमाणं जहणणेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे । विराहियसंजमा संजमाणं जहण्णेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं जोइसिए । असण्णीणं जहणणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं वाणमंतरेसु' । तावसाणं जहणणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं जोइसिएसु । कंदप्पियाणं जहण्णेणं भवणवासी, उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे । चरग-परिव्वायगाणं जहणेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं बंभलोए १. चम्मरयणत्तं छत्तरयणत्तं ( क ) । २. तेरच्छियाणं (ख)। ३. दंसणवावण्णाणं (ख); दंसणवावगाणं - एतेसि णं ( भ० १।११३) । ४. सव्वसिद्धे विमाणे ( भ० १।११३) । ५. अतो भगवत्यां (१।११३ ) रचनाभेदो दृश्यते - अवसेसा सव्वे जहणणं भवणवासीसु उक्को सेणं वोच्छामि -- तावसाणं जोतिसिएसु, कंदप्पियाणं सोहम्मे कप्पे, चरग-परिव्वातगाणं बंभलो कप्पे, किब्बिसियाणं लंतगे कप्पे, २५७ तेरिच्छियाणं सहस्सारे कप्पे, आजीवियाणं अच्चुए कप्पे, अभिओगियाणं अच्चुए कप्पे, सलिंगीणं दंसणवावन्नगाणं उवरिमगेविज्जएसु । 'अवसेसा सव्वे जहणणेणं भवणवासीसु' इति नियमानुसारेण किल्विषिकाणामपि जघन्येन भवनवासिषु उपपातो भवति, किन्तु प्रस्तुतसूत्रे 'किब्बिसियाणं जहणेणं सोहम्मे कप्पे' इति पाठोस्ति तेनास्य कथं संगतिः स्यादिति चिन्त्यमस्ति । अथवा स्याद् वाचनाभेदः । Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं कप्पे। किब्बि सियाणं जहष्णेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं लंतए कप्पे। तेरिच्छियाणं जहण्णेणं भवणवासीसु, उवकोसेणं सहस्सारे कप्पे। आजीवियाणं जहणणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे । एवं आभिओगाण वि। सलिंगीणं दंसणवावण्णगाणं जहण्णेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं उवरिमगेवेज्जएसु ॥ असण्णिआउय-पदं ६१. कतिविहे णं भंते ! असण्णिआउए पण्णत्ते ? गोयमा ! चउविहे असण्णिआउए पण्णत्ते, तं जहा-णेरइयअसण्णिआउए जाव देवअसण्णिआउए । ६३. असण्णी णं भंते ! जीवे किं णेरइयाउयं पक रेति जाव देवाउयं पकरेति ? गोयमा ! णेरइयाउयं पकरेति जाव देवाउयं पक रेति । णेरइयाउयं पकरेमाणे जहण्णेणं दस वाससहस्साई उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पकरेति । तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पकरेति । एवं मणुयाउयं पि । देवाउयं जहा णेरइयाउयं ॥ ६४. एयस्स णं भंते ! णेरइयअसण्णिआउयस्स जाव देवअसण्णिआउयस्स य कतरे कतरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे देवअसण्णिआउए, मणुयअसण्णिआउए असंखेज्जगुणे, तिरिक्खजोणियअसण्णिआउए असंखेज्जगुणे, नेरइयअसण्णिआउए असंखेज्जगुणे ॥ Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगवीसइमं ओगाहणसंठाणपयं गाहा-- १ विहि २ संठाण ३ पमाणं, ४ पोग्गलचिणणा ५ सरीरसंजोगो। ६ दव्व-पएसप्पबहु, ७ सरीरओगाहणप्पबहुं ॥१॥ सरीर-पदं १. कति णं भंते ! सरीरया' पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच सरीरया पण्णत्ता, तं जहाओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए । ओरालियसरीरे विहि-पदं २. ओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहाएगिदियओरालियसरीरे जाव पंचेंदियओरालियसरीरे॥ ३. एगि दियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे जाव वणप्फइकाइयएगिदियओरालियसरीरे॥ ४. पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुहुमपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे य बादरपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे य॥ ५. सुहुमपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–पज्जत्तगसुहुमपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे य अपज्जत्तगसुहमपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे य । बादरपुढविक्काइया वि एवं चेव । एवं जाव वणस्सइकाइयएगिदियओरालियसरीरे ति॥ ६. बेइंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–पज्जत्तबेइंदियओरालियसरीरे य अपज्जत्तबेइंदियओरालियसरीरे य । एवं तेइंदियचउरिदिया वि॥ ७. पंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—तिरिक्खपंचेंदियओरालियसरीरे य मणुस्सपंचेंदियओरालियसरीरे य॥ ८.तिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! १. सरीरा (ग)। २. ओरालिय (क,ख,घ) । २५६ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० पण्णवणासुत्तं तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-जलयरतिरिक्खजोणियपंचेदियओरालियसरीरे य थलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य खहयरतिरिवखजोणियपंचेदियओरालियसरीरे य । ६. जलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सम्मुच्छिमजलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य गब्भवक्कंतियजल यरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य॥ १०. सम्मुच्छिमजलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–पज्जत्तगसम्मुच्छिमतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य अपज्जत्तगसम्मुच्छिमतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य। एवं गब्भवक्कंतिए वि ॥ ११. थलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-चउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य परिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य ।। १२. चउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सम्मुच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य गब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य॥ १३. सम्मुच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पज्जत्तगसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य अपज्जत्तगसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य । एवं गब्भवक्कंतिए वि ।। १४. परिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-उरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य भुयपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेदियओरालियसरीरे य ।। १५. उरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दूविहे पण्णत्ते, तं जहा-सम्मच्छिमउरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य गब्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरेय ।। १६. सम्मुच्छिमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अपज्जत्तसम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरौरे य पज्जत्तसम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य। एवं गब्भवक्कंतियउरपरिसप्पचउक्कओ भेदो। एवं भुयपरिसप्पा वि सम्मुच्छिम-गब्भवक्कंतिय-पज्जत्त-अपज्जत्ता ।। १७. खहयरा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सम्मुच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य ॥ १८. सम्मुच्छिमा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्ता य अपज्जत्ता य। गब्भवक्कंतिया वि पज्जत्ता य अपज्जत्ता य॥ १६. मणूसपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सम्मुच्छिममणूसपंचेंदियओरालि यसरीरे य गम्भवक्कंतियमणूसपंचेंदिय Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ raatasi ओगाहणसंठाणपयं ओरालियस री य ।। २०. गब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पज्जतगगब्भवक्कंतियमणूसपंच दियओरालि यसरीरे य अपज्जत्तगगब्भवक्कं तियमणूस पंचें दियओरा लियसरीरे य ॥ ओरालियसरीरे संठाण-पदं २१. ओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते ॥ २२. एगिदियओरालि यसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठि पण्णत्ते ॥ २३. पुढविक्काइए गिदियओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोमा ! मसूरचंद ठाणसंठिए' पण्णत्ते । एवं सुहुमपुढविक्काइयाण वि । बायराण वि एवं चेव । पज्जत्तापज्जत्ताण वि एवं चेव || २६१ २४. आउक्काइएगिदियओरालियसरीरे णं भंते! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोमा ! बिगबिंदुठाणसंठिए पण्णत्ते । एवं सुहुम- बायर - पज्जत्तापज्जत्ताण वि ॥ २५. ते उक्काइएगि दियओ गलियसरीरे णं भंते ! किसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोमा ! सूईकलावसंठाणसंठिए' पण्णत्ते । एवं सुहुम- बादर - पज्जत्तापज्जत्ताण वि ॥ २६. वाउक्काइयाणं पडागासंठाणसंठिए' पण्णत्ते । एवं सुहुम - बायर-पज्जत्तापज्जताण वि ॥ २७. वणप्फइकाइयाणं णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते । एवं सुहुम-बायर- पज्जत्तापज्जत्ताण वि ॥ २८. बेइंदियओरालिय सरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! इंडसठाणसंठि पण्णत्ते । एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि । एवं तेइंदिय - चउरिदियाण वि ।। २६. तिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते, तं जहा - समच उरंससं ठाणसंठिए जाव' इंडसंठाणसंठिए' । एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि ॥ ३०. सम्मुच्छिम तिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालि यसरीरे णं भंते ! किसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! हुंडठाणसंठिए पण्णत्ते । एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि ॥ ३१. गब्भवक्कंतियतिरिक्ख जोणिय पंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते, तं जहा समचउरंसे जाव हुंडठाणसंठिए । एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि । एवमेते तिरिक्खजोणियाणं ओहियाणं णव आलावगा || ३२. जलयरतिरिक्खजोणियपंचें दियओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? १. मसूराचंद० (घ) | २. सू° (क,घ) । ३. °याणवि (ख,ग,घ) । ४. पडाग° ( ख ) । ५. प० १५।३५ । ६. संठिए वि (ग) । Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ पण्णवणासुत्तं गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते, तं जहा-समचउरंसे जाव हुंडे । एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि ।। ३३. सम्मुच्छिमजलयरा हुंडसंठाणसंठिया। एतेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्तगा वि एवं चेव ॥ ३४. गब्भवक्कंतियजलयरा छव्विहसंठाणसंठिया । एवं पज्जत्तापज्जत्तगा वि ।। ३५. एवं थलयराण वि णव सुत्ताणि । एवं चउप्पयथलयराण वि उरपरिसप्पथलयराण वि भुयपरिसप्पथलयराण वि । एवं खहयराण वि णव सुत्ताणि, णवरं-सव्वत्थ सम्मुच्छिमा हुंडसंठाणसंठिया भाणियव्वा, इयरे छसु वि ।। ३६. मणूसपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते, तं जहा-समचउरसे जाव हुंडे । पज्जत्तापज्जत्ताण वि एवं चेव । गब्भवक्कंतियाण वि एवं चेव । पज्जत्तापज्जत्तगाण वि एवं चेव ।। ३७. सम्मुच्छिमाणं पुच्छा । गोयमा ! हुंडसंठाणसंठिया पण्णत्ता । ओरालियसरीरे पमाण-पदं ३८. ओरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं ॥ ३६. एगिदियओरालियस्स वि एवं चेव जहा ओहियस्स ।। ४०. पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरओगाहणा पण्णत्ता ?° गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । एवं अपज्जत्तयाण वि पज्जत्तयाण वि । एवं सुहुमाण वि पज्जत्तापज्जत्ताणं । बादराणं पज्जत्तापज्जत्ताण वि एवं । एसो णवओ भेदो। जहा पुढविक्काइयाणं तहा आउक्काइयाण वि तेउक्काइयाण वि वाउक्काइयाण वि॥ ४१ वणस्सइकाइयओरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं अंगूलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं। अपज्जतगाणं जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगाणं जहण्णेणं अंगुलन्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं । बादराणं जहण्णेणं अंगलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं । पज्जत्ताण वि एवं चेव। अपज्जत्ताणं जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । सुहुमाणं पज्जत्तापज्जत्ताण य तिण्ह वि जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं ॥ ४२. बेइंदियओरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाई। एवं सव्वत्थ वि अपज्जत्तयाणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं जहण्णण वि उक्कोसेण वि। पज्जत्तयाणं जहेव ओद्रियस्सा एवं तेइंदियाणं तिण्णि गाउयाई, चउरिदियाणं चत्तारि गाउयाइं। १. सं०पा०--पुच्छा। २. सर्वेष्वपि आदर्गेषु 'ओरालियस्स ओहियस्स' इति पाठो लभ्यते, किन्तु 'ओरालियस्स' इति पदं अत्र सङ्गतं नास्ति। यदि 'ओरालियस्स ओहियस्स' इति पाठः स्वीकृतः स्यात् तदा द्वीन्द्रियौदारिकशरीरस्य उत्कृष्टावगाहना Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगवीसइमं ओगाहणसंठाणपयं २६३ ४३. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं जोयणसहस्सं ३, एवं सम्मुच्छिमाणं ३, गब्भवक्कंतियाण वि३ । एवं चेव णवओ भेदो भाणियवो। एवं जलयराण वि जोयणसहस्सं, णवओ भेदो।।। ४४. थलयराण वि णवओ भेदो' ओहियचउप्पयपज्जत्तय-गब्भवक्कतियपज्जत्तयाण य उक्कोसेणं छग्गाउयाइं । सम्मुच्छिमाणं पज्जत्ताण य गाउयपुहत्तं उक्कोसेणं ॥ ४५. एवं उरपरिसप्पाण वि ओहिय-गब्भवक्कंतियपज्जत्ताणं जोयणसहस्सं सम्मुच्छिमाणं जोयणपुहत्तं ।।। ४६. भुयपरिसप्पाणं ओहिय-गम्भवक्कंतियाण य उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं । सम्मुच्छिमाणं धणुपुहत्तं ॥ ४७. खहय राणं ओहिय-गब्भवक्कंतियाणं सम्मुच्छिमाण य तिण्ह वि उक्कोसेणं धणुपुहत्तं । इमाओ संगहणिगाहाओ जोयणसहस्स छग्गाउयाई तत्तो य जोयणसहस्सं । गाउयपुहत्त भुयए, धणुहपुहत्तं च पक्खीसु ॥१॥ जोयणसहस्स गाउयपुहत्त तत्तो य जोयणपुहत्तं । दोण्हं तु धणुपुहत्तं', सम्मुच्छिमे होति उच्चत्तं ।।२।। ४८. मणस्सोरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाइं । अपज्जत्ताणं जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । सम्मुच्छिमाणं जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स सातिरेक योजनसहस्रं प्रसज्येत द्रष्टव्यं ३८ द्वीन्द्रियादीनां जघन्यावगाहना अंगुलस्य संख्येयसूत्रम् । तच्च अनिष्टम् । द्वीन्द्रियौदारिक- भागं दृश्यते। द्रष्टव्यम्-४०५ सूत्रस्य पादशरीरस्य औधिकसूत्रे तस्य उत्कृष्टावगाहना टिप्पणम् । द्वादशयोजनानि एव विद्यते- द्रष्टव्यं ४२ १. भेदो उक्कोसेणं छग्गाउयाई, पज्जत्ताण वि सूत्रम्। अनुयोगद्वारस्य विस्तृतवाचनायां एवं चेव ३। सम्मुच्छिमाणं पज्जत्ताण य अस्यैव संवादी पाठो दृश्यते—'पज्जत्तगाणं° उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं। गब्भवक्कतियाणं उक्कोसेणं बारसजोयणाणि' । मलयगिरिवृत्ता- उक्कोसेणं छग्गाउयाई पज्जत्ताण य २ (क,ख, वपि अस्य संवादिव्याख्या लभ्यते-तत्रौधिक- ग,घ); असौ पाठः सर्वेष्वपि आदर्शेषु लभ्यते. सूत्रे पर्याप्तसूत्रे च द्वीन्द्रियाणामुत्कर्षतो द्वादश वृत्तौ च नास्ति व्याख्यातः, अनावश्यकोपि योजनानि। एतैः कारण: 'ओरालियस्स' इति प्रतिभाति । 'ओहियचउप्पयपज्जत्तय' इत्यादि पदं नास्माभिर्मूले स्वीकृतम्। सम्भाध्यते पाठः अर्थसिद्धच पर्याप्तोस्ति वृत्तावपि एवमेलिपिदोषेण असौ मूले प्रवेशं प्राप्तः । वास्ति व्याख्यात:--स्थलचरेषु चतुष्पदस्थल_ 'जहेब ओहियस्स' इति समर्पणसूत्रण चरेषु चौघिकेषु गर्भव्युत्क्रान्तिकेषु च षट्गव्यूपर्याप्तकानां द्वीन्द्रियाणां जघन्यावगाहना तानि, सम्मूच्छिमेषु गव्यूतपृथक्त्वम् । अंगूलस्य असंख्येयभागमापद्यते। अन्यत्रापि २. धणुपुहत्तं (क,पु)। (४८ सूत्रपर्यन्तम् ) एष एव क्रमोस्ति। अनु- ३. धणुहपुहत्तं (ख)। योगद्वारस्य विस्तृतवाचनायां पर्याप्तानां Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ पण्णवणासु असंखेज्जइभागं । गब्भवक्कंतियाणं पज्जत्तयाण य जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई ॥ वेव्वियसरीरे विहि-पदं ४६. वे उव्वियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - एगिदियवे उव्वियसरीरे य पंचेंदियवे उव्वियसरीरे य ॥ ५०. जदि एगिदियवे उव्वियसरीरे कि वाउक्काइयएगिदियवे उव्वियसरीरे अवाउक्काइयएगिदियवे उव्वियसरीरे ? गोयमा ! वाउक्काइयएगिदिय वे उव्वियसरीरे, णो अवाउक्काइय एगिंदियवे उव्वियसरीरे । जदि वाउक्काइए गिंदियवे उब्वियसरीरे किं सुहुमवाउक्काइयएगिदिय वे उब्विय सरीरे ? बादरवारक्काइए गिदियवेउव्वियसरी रे ? गोयमा ! णो 'सुमवाकाइयग दियवेउब्वियसरीरे, बादरवाउक्काइय एगिदिय वे उव्वियसरीरे । जदि बादरवाउक्का इयए गिंदिय वे उव्वियसरीरे किं पज्जत्तबादरवा उक्का इयएगिदियवेव्वियसरीरे ? अपज्जत्तबादरवा उक्काइयए गिं दियवेडव्वियसरीरे ? गोयमा ! पज्जत्तबादरवाजाइयएगिदियवेडव्वियसरीरे, णो अपज्जत्तबादरवाउक्काइयएगिदियवे उब्विय सरीरे ॥ ५१. दि पंचेंदियवे उव्वियसरीरे किं णेरइयपंचेंदिय वेउव्वियसरीरे जाव किं देवपंचेंदियवे उव्वियसरी रे ? गोयमा ! णेरइयपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि जाव देवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे वि ॥ ५२. जदि णेरइयपंचेंदियवे उब्वियसरीरे किं रयणप्पभापुढविणे रइयपंचेंदियवे उब्वियसरीरे जाव किं असत्तमापुढविणे रइयपंचेंदिय वेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! रयणप्पभापुढविणेरइयपंचेंदियवे उव्वियसरीरे वि जाव आहेसत्तमापुढविणे रइयपंचें दियवे उव्वियसरीरे वि । जदि रयणप्पभापुढविणे रइयपंचेंदिय वेडव्विय सरीरे किं पज्जत्तगरयणप्पभापुढविणेरइयपंचेंदिवे उव्वियसरीरे ? अपज्जत्तगरयणप्पभापुढविणे रइयपचें दियवे उब्वियसरीरे ? गोयमा ! पज्जत्तगरयणप्पभापुढविणे रइय पंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि अपज्जत्तगरयणप्पभापुढविणे रइय पंचेंदियवे उव्वियसरीरे वि । एवं जाव अहेसत्तमाए दुगतो भेदो णेयव्वो' ॥ ५३. जदि तिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्व्वियसरीरे किं सम्मुच्छिमतिरिक्खजोणिय पंचेंदियवेव्वियसरी रे' ? गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणिय पंचें दिय वेउव्वियसरी रे ? गोयमा ! णो सम्मुच्छिम तिरिक्खजोणियपंचेंदियवे उव्वियसरीरे, गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणिय पंचेंदिवे व्वियसरीरे | जदि गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं संखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणिय पंचेंदियवे उव्वियसरीरे ? असंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणियपंचेंदियवे उव्वियसरीरे ? गोयमा ! संखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवे उव्वियसरीरे, णो असंखेज्जवासाउयगन्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदिय वेउब्वियसरीरे | १. भाणियव्वो ( ख, ग, घ ) । २. पंचेंदियतिरिक्खजोणिय ( क, ख, ग ) प्रायः सर्वत्र । Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगवीस इमं ओगाहणसंठाणपय २६५ जदि संखेज्जवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे कि पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? अपज्जत्तगसंखज्जवासा उयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे? गोयमा ! पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे, णो अपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे। जदि संखेज्जवासाउयगब्भववक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे कि जलयरसंखेज्जवासाउयगब्भववक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? थलयरसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? खहयरसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! जलयरसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवे उब्वियसरीरे वि. थलयरसंखेज्जवासाउयगब्भवतियतिरिक्ख. जोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि, खहयरसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवे उब्वियसरीरे वि। जदि जलयरसंखेज्जवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवे उव्वियसरीरे कि पज्जत्तगजलयरसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचें दियवेउव्वियसरीरे? अपज्जत्तगजलयरसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे? गोयमा! पज्जत्तगजलयरसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्ख जोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे, णो अपज्जत्तगजलयरसंखेज्जवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदिय वेउव्वियसरीरे। जदि थलयरसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे कि चउप्पय जाव सरीरे ? परिसप्प जाव सरीरे ? गोयमा ! च उप्पय जाव सरीरे वि, परिसप्प जाव सरीरे वि । एवं सन्वेसिं णेयं जाव खहयराणं पज्जत्ताणं, णो अपज्जत्ताणं ।। ५४. जदि मणूसपंचेंदियवेउवियरीरे किं सम्मुच्छिममणूसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे ? गब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! णो सम्मुच्छिममणसपंचेंदियवे उव्वियसरीरे, गब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे। जदि गब्भवक्कंतियमणूपंचेंदियवेउव्वियसरीरे कि कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे ? अंतरदीवयगब्भवतियमणसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा! कम्मभमगगब्भवक्कंतियमणसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे, णो अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे, णो अंतरदीवयगब्भवक्कंतियम सनीनगरा-भततिगमणसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे। जदि कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? असंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे, णो असंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतिमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे। ३. °सरीरे य (क घ)। १. पंचेंदिय जाव सरीरे (ग)। २. कम्मभूमिग° (ख)। Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ पण्णवणासुत्तं जदि संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? अपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमग गब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे, णो अपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ।। ५५. जदि देवपंचेंदियवे उव्वियसरीरे किं भवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे जाव वेमाणियदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! भवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि जाव वेमाणियदेवपंच दियवेउव्वियसरीरे वि। जदि भवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे कि असुरकूमारभवणवासिदेवपंचें दियवेउव्वियसरीरे जाव थणियकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! असुरकुमार जाव थणियकूमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि। जदि असुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं पज्जत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? अपज्जत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! पज्जत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे वि अपज्जत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि। एवं जाव थणियकुमाराणं दुगओ भेदो। एवं वाणमंतराणं अट्टविहाणं, जोइसियाणं पंचविहाणं । वेमाणिया दुविहाकप्पोवगा कप्पातीता य। कप्पोवगा बारस विहा। तेसि पि एवं चेव दगतो भेदो। कप्पातीता दुविहा-गेवेज्जगा य अणुत्तरा य। गेवेज्जगा णवविहा । अणुत्तरोववाइया पंचविहा । एतेसिं पज्जत्तापज्जत्ताभिलावेणं दुगतो भेदो॥ वेउव्वियसरीरे संठाण-पदं ५६. वेउव्वियसरीरे णं भंते ! किसंठिए पण्णत्ते? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते॥ ५७. वाउक्काइयएगिदियवेउब्बियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! पडागासंठाणसंठिए पण्णत्ते ॥ ५८. णेरइयपंचेंदियवेउव्वियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णेरइयपंचेंदियवे उव्वियसरीरे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-भवधार णिज्जे य उत्तरवेउव्विए य । तत्थ णं जेसे भवधारणिज्जे से हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते । तत्थ णं जेसे उत्तरवेउव्विए से वि हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते ॥ ५६. रयणप्पभापुढविणे रइयपंचेंदियवेउव्वियसरीरे णं भंते! किंसठाणसंठिए पण्णत्ते? गोयमा ! रयणप्पभापुढविणेरइयाणं दुविहे सरीरे पण्णत्ते, तं जहा ---भवधारणिज्जे य उत्तरवेउव्विए य। तत्थ णं जेसे भवधारणिज्जे से वि हुंडे, जे वि उत्तरवेउविए से वि हंडे । एवं जाव अहेसत्तमापुढविणेरइयवेउव्वियसरीरे ।।। ६०. तिरिक्ख जोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते । एवं जलयर-थलयर-खहयराण वि। थलयराण चउप्पय-परिसप्पाण वि । परिसप्पाण उरपरिसप्प-भुयपरिसप्पाण वि। एवं मणूसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे वि॥ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६७ एगवीस इमं ओगाहणसठाणपयं ६१. असुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! असुरकुमाराणं देवाणं दुविहे सरीरे पण्णत्ते, तं जहा- भवधारणिज्जे य उत्तरवेउविए य । तत्थ णं जेसे भवधारणिज्जे से णं समचउरंससंठाणसंठिए पण्णत्ते । तत्थ णं जेसे उत्तरवेउव्विए से णं णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते । एवं जाव थणियकुमारदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे । एवं वाणमंतराण वि, णवरं-ओहिया वाणमंतरा पुच्छिज्जति । एवं जोइसियाण वि ओहियाणं । एवं सोहम्म जाव अच्चुयदेवसरीरे ॥ ६२. गेवेज्जगकप्पातीयवेमाणियदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे णं भंते ! किसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! गेवेज्जगदेवाणं एगे भवधारणिज्जे सरीरए । से णं समचउरंसंठाणसंठिए पण्णत्ते । एवं अणुत्तरोववातियाण वि ॥ वेउब्वियसरीरे पमाण-पदं ६३. वेउब्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसतसहस्सं ।। ६४. वाउक्काइयएगिदियवेउव्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं ॥ ६५. णेरइयपंचेंदियवेउव्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जासा' भवधारणिज्जा सा जहण्णणं अंगलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं पंचधणसयाई। तत्थ णं जासा उत्तरवे रविवया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं धणुसहस्सं ।। ६६. रयणप्पभापुढविणे रइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सत्त धणई तिण्णि रयणीओ छच्च अंगुलाइं । तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पण्णरस धणूइं अड्डाइज्जाओ रयणीओ॥ ६७. सक्करप्पभाए पूच्छा। गोयमा ! जाव तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहण्णण अंगूलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं पण्णरस धणई अड्डाइज्जाओ रयणीओ। तत्थ णं जासा उत्तरवे उब्विया सा जहणणं अंगूलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं एक्कतीसं धणूई एक्का य रयणी। वालुयप्पभाए भवधारणिज्जा एक्कतीसं धणूई एक्का य रयणी, उत्तरवे उब्विया बावढि धणूइं दोण्णि य रयणीओ। पंकप्पभाए भवधारणिज्जा बावट्टि धणूइं दोण्णि य रयणीओ, उत्तरवेउव्विया पणुवीसं धणुसतं । धूमप्पभाए भवधारणिज्जा पणुवीसं धणुसतं, उत्तरवेउव्विया अड्डाइज्जाइं धणुसताई। तमाए भवधारणिज्जा अड्डाइज्जाइंधणुसताई, उत्तरवे उव्विया पंच धणुसताई। अहेसत्तमाए भवधारणिज्जा पंच धणुसताई, उत्तरवेउव्विया धणुसहस्सं। एयं उक्कोसेणं। जहणणं भवधारणिज्जा अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उत्तरवेउव्विया अंगुलस्स संखेज्जइभागं ।। १. जेसे (ख)। Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं ६८. तिरिक्खजोणिय पंचेंद्रिय वे उव्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसतपुहत्तं ॥ ६६. मणूस पंचेंदियवे उव्वियसरीररस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोमा ! जहणेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसतसहस्सं ॥ २६८ ७०. असुरकुमारभवणवासिदेव पंचि दियवे उव्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! असुरकुमाराणं देवाणं दुविहा सरीरोगाहणा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य । तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ । तत्थ णं जासा उत्तरवे उब्विया सा जहणेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसतसहस्सं । एवं जाव थणियकुमाराणं । एवं ओहियाणं वाणमंतराणं । एवं जोइसियाण वि । सोहम्मीसाणगदेवाणं एवं चैव उत्तरउब्विया जाव अच्चुओ कप्पो, णवरं - सणकुमारे भवधारणिज्जा जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं छ रयणीओ । एवं माहिंदे वि । बंभलोय-लंतगेसु पंच रयणीओ। महासुक्क सहस्सारेसु चत्तारि रयणीओ । आणय-पाणय-आरण-अच्चुएसु तिण्णि रणीओ ॥ ७१. गेवेज्जगकप्पातीतवेमाणियदेवपंचेंदियवे उब्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! गेवेज्जगदेवाणं एगा भवधारणिज्जा सरीरोगाहणा पण्णत्ता । सा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं दो रयणीओ । एवं अणुत्तरोववाइयदेवाण वि, णवरं - एक्का रयणी ॥ आहारगसरीरे विहि-पदं ७२. आहारगसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते । जदि एगागारे पण्णत्ते किं मणूस आहारगसरीरे ? अमणूस आहारगसरीरे ? गोयमा ! मणूस - आहारगसरीरे, णो अमणूस आहारगसरीरे । जदि मणूस आहारगसरीरे किं सम्मुच्छिममणूस आहारगसरीरे ? गब्भवक्कंतियमणूस आहारंगसरीरे ? गोयमा ! णो सम्मुच्छिममणूस आहारगसरीरे, गब्भवक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे । भवति मणूस आहारगसरीरे किं कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे ? अकम्मभूमगगब्भवक्कं तियमणूस आहारगसरीरे ? अंतरदीवगगन्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे ?" गोयमा ! कम्मभूमग गब्भवक्कं तियमणूस आहारगसरीरे, णो अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे, णो अंतरदीवगगब्भवक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे । किम्भूमभवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे किं संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरी रे? असंखेज्जवासा उयकम्मभूमगगब्भवक्कं तियमणूस आहारगसरीरे ? गोयमा ! संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगन्भवक कंतिय मणूस आहारगसरीरे, णो असंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कं तियमणूस आहारगसरीरे । जदि संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे किं पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे ? अपज्जत्तगसंखेज्जवासा उयकम्मभूमगगब्भवक्कंतिय मणूस आहारगसरीरे ? गोयमा ! पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूम गगब्भ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगवीसइमं ओगाहणसंठाणपयं २६६ वक्कंतियमणूसआहारगसरीरे, णो अपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे। जदि पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवतियमणसआहारगसरीरे किं सम्मदिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे ? मिच्छद्दिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे ? सम्मामिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे ? गोयमा ! सम्मदिट्रिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे, णो मिच्छदिदिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे, णो सम्मामिच्छहिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे। जदि सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भक्कंतियमणूसआहारगसरीरे कि संजयसम्म द्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भववकंतियमणूसआहारगसरीरे ? असंजयसम्मद्दिट्टिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे ? संजतासंजतसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे ? गोयमा ! संजयसम्म द्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे, णो असंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारग सरीरे,' णो संजयासंजयसम्मद्दिट्रिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवतियमणसआहारगसरीरे। जदि संजतसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूस आहारगसरीरे किं पमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतिमणसआहारग - सरीरे ? अपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणसआ - हारगसरीरे ? गोयमा! पमत्तसंजयसम्म द्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भव - क्कंतियमणूसआहारगसरीरे, णो अपमत्तसंजतसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहरगसरीरे। जदि पमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारग - सरीरे किं इडिढपत्तपमत्तसंजयसम्मद्दिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतिय - मणूसआहारगसरीरे ? अणिड्ढिपत्तपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे ? गोयमा ! इड्ढिपत्तपमत्तसंजयसम्म हिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे, णो अणिढिपत्तपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे ।। आहारगसरीरे संठाण-पदं ७३. आहारगसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! समचउरंससंठाणसंठिए पण्णत्ते ॥ आहारगसरीर पमाण-पदं ७४. आहारगसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! १. अस्संजत° (क,घ)। Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० जहणणं देणारयणी, उक्कोसेणं पडिपुण्णा रयणी ॥ तेयगसरीरे विहि-पदं ७५. तेयगसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहागिदियतेयगसरीरे जाव पंचेंदियतेयगसरीरे ॥ ७६. एगिंदियतेयगसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - पुढविक्काइयएगिदियतेयगसरीरे जाव वणप्फइकाइयएगिदियतेयगसरीरे । एवं जहा' ओरालियसरीरस्स भेदो भणिओ तहा तेयगस्स वि जाव चउरिंदियाणं ॥ ७७. पंचेंदियतेयगसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - इयतेयगसरीरे जाव देवतेयगसरीरे । णेरइयाण दुगतो भेदो भाणियव्वो जहा वेउव्वियसरीरे। पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहा ओरालियसरीरे भेदो भणितो तहा भाणियव्वो । देवाणं जहां वेउव्वियसरीरे भेओ भणितो तहा भाणियव्वो जव सव्वसिद्धदेवेत्ति ॥ तेयगसरीरे संठाण-पदं ७८. तेयगसरीरे णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते ॥ ७६. गिंदियतेयगसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते । ८०. पुढविक्काइए गिंदियतेयगसरीरे णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! मसूरचंद ठाणसंठिए' पण्णत्ते । एवं ओरालियसंठाणाणुसारेणं भाणियव्वं जाव' चउरिदियाति ॥ रइयाणं भंते! तेयगसरीरे किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! जहा वेउव्विय सरीरे ॥ ८२. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहा ' एतेसि चेव ओरालिय त्ति ॥ ८३. देवाणं भंते! तेयगसरीरे किसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! जहा ' वेउव्वियस्स जाव अणुत्तरोववाइय त्ति ॥ तेयगसरीरे पमाण-पदं ८१. ८४. जीवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्धाएवं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं; आयामेणं जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागो, उक्कोसेणं लोगंताओ लोगंतो ॥ ८५. एगिदियस्स णं भंते ! मारणं तिय समुग्धाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! एवं चैव जाव पुढवि - आउ-ते उ-वाउ-वणप्फइ १. प० २१।४-६ । २. प० २१।५२ । ३. प० २१1७-२० । ४. १० २१।५५ । ५. मसूराचंद° (ख, घ) । पण्णवातं ६. प० २१।२४-२८ । ७. प० २१।५८, ५६ । ८. प० २१।२६-३७ । ६. प० २१।६१,६२ । Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगवीसइमं ओगाहणसंठाणपयं २७१ काइयस्स ॥ ८६. बेइंदियस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं; आयामेणं जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिरियलोगाओ लोगंते। एवं जाव चउरिदियस्स ॥ ८७. णेरइयस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-वाहल्लेणं; आयामेणं जहण्णेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं, उक्कोसेणं अहे जाव अहेसत्तमा पुढवी, तिरियं जाव सयंभूरमणे समुद्दे, उड्ढे जाव पंडगवणे पुक्खरिणीओ॥ ८८. पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहा' बेइंदियसरीरस्स ॥ ८६. मणसस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता ? गोयमा ! समयखेत्ताओ लोगंते ।। ६०. असुरकुमारस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सरीरपमाण मेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं ; आयामेणं जहण्णणं अंगलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं अहे जाव तच्चाए पढवीए हेटिल्ले चरिमंते, तिरियं जाव सयंभुरमणसमुद्दस्स बाहिरिल्ले वेइयंते, उड्ढं जाव इसीपब्भारा पुढवी । एवं जाव थणियकुमारतेयगसरीरस्स । वाणमंतर-जोइसिया सोहम्मीसाणगा य एवं चेव ॥ ६१. सणंकुमारदेवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता 'विक्खंभ-बाहल्लेणं"; आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं अहे जाव महापातालाणं दोच्चे तिभागे, तिरियं जाव सयंभुरमणसमुद्दे, उड्ढं जाव अच्चुओ कप्पो। एवं जाव सहस्सारदेवस्स। ६२. आणयदेवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं; आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं अहे जाव अहेलोइयगामा, तिरियं जाव मणूसखेत्ते, उड्ढं जाव अच्चुओ कप्पो। एवं जाव आरणदेवस्स । अच्चुयदेवस्स वि एवं चेव, णवरं-उड्ढं जाव सगाई' विमाणाई । ३. गेवेज्जगदेवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं; आयामेणं जहणणं विज्जाहरसेढीओ, उक्कोसेणं जाव अहेलोइयगामा, तिरियं जाव मणूसखेत्ते, उड्ढं जाव सगाई विमाणाइं । अणुत्तरोववाइयस्स वि एवं चेव ॥ ३. सगाति (क,घ); सयाइं (ग)। १. प० २११८६। २. विक्खंभेणं बाहल्लेणं (ख,ग)। Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ पण्णवणासुत्तं कम्मगसरीर-पदं ६४. कम्मगसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-एगिदियकम्मगसरीरे जाव पंचेंदियकम्मगसरीरे। एवं जहेव तेयगसरीरस्स भेदो संठाणं ओगाहणा य भणिया तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं जाव' अणुत्तरोववाइय त्ति ।। पोग्गलचिणणा-पदं ६५. ओरालियसरीरस्स णं भंते ! कतिदिसि पोग्गला चिजति ? गोयमा ! णिव्वाधाएणं छद्दिसिं, वाघातं पडुच्च सिय तिदिसिं सिय चउदिसि सिय पंचदिसि ।। ६६. वेउब्बियसरीरस्स णं भंते ! कतिदिसि पोग्गला चिज्जति ? गोयमा! णियमा छद्दिसि । एवं आहारगसरोरस्स वि । तेया-कम्मगाणं जहा' ओरालियसरीरस्स ।। ७. 'एवं उवचिज्जति" अवचिज्जति। सरीरसंजोग-पदं ८. जस्स णं भंते! ओरालियसरीरं तस्स णं वे उव्वियसरीरं? जस्स वेउव्वियसरीरं तस्स ओरालियसरीरं? गोयमा ! जस्स ओरालियसरीरं तस्स वेउव्वियसरीरं सिय अस्थि सिय णत्थि ! जस्स वेउव्वियसरीरं तस्स ओरालियसरीरं सिय अत्थि सिय णत्थि ।। ह. जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरं तस्स आहारगसरीरं? जस्स आहारगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं ? गोयमा ! जस्स ओरालियसरीरं तस्स आहारगसरीरं सिय अस्थि सिय णत्थि । जस्स पुण आहारगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं णियमा अत्थि ॥ १००. जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरं तस्स तेयगसरीरं ? जस्स तेयगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं ? गोयमा ! जस्स ओरालियसरीरं तस्स तेयगसरीरं णियमा अत्थि । जस्स पुण तेयगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं सिय अत्थि सिय णत्थि । एवं कम्मगसरीरं पि॥ १०१. जस्स णं भंते ! वेउव्वियसरीरं तस्स आहारगसरीरं ? जस्स आहारगसरीरं तस्स वेउव्वियसरीरं ? गोयमा ! जस्स वेउव्वियसरीरं तस्साहारगसरीरं णत्थि । जस्स वि य आहारगसरीरं तस्स वि वेउव्वियसरीरं णत्थि ॥ १०२. तेया-कम्माइं जहा ओरा लिएण समं तहेव आहारगसरीरेण वि समं तेयाकम्माई चारेयव्वाणि ॥ १०३. जस्स णं भंते ! तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं? जस्स कम्मगसरीरं तस्स तेयगसरीरं ? गोयमा ! जस्स तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं नियमा अत्थि। जस्स वि १. प० २११७५-६३ । २. प० २११६५। ३. ओरालियसरीरस्स णं भंते ! कति दिसि पोग्गला उवचिज्जति ? गोयमा ! एवं चेव जाव कम्मगसरीरस्स। एवं उवचिजति (क, ख,ग,घ,पु); एतत् सूत्रं तथा एवं उवचिज्जति' एते द्वे अपि समानार्थके स्तः नैतयोः कश्चित् तात्पर्यभेदः । सम्भाव्यते कथमपि द्वयोर्वाचनयोः मिश्रणं संजातम् । तेन आदर्शषु उपलब्धमपि सूत्रमेतत् पाठान्तरे स्वीकृतम्। भगवत्यामपि (१२०,२१) चिज्जति' सूत्रानन्तरं एवं उवचिज्जति' इति सूत्रं दृश्यते। ४. ४ (क,ख,ध)। ५. प० २१३१००। Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ rates ओगाहणसं ठाणपयं कम्मगसरीरं तस्स वि तेयगसरीरं णियमा अत्थि ॥ दव्व-पएस पबहु-पदं १०४. एतेसि णं भंते ! ओरालिय-वेउव्विय - आहारग- तेया- कम्मगसरीराणं दव्वट्टयाए पट्टयाए दव्वट्ट-एसट्टयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा आहारगसरीरा दव्वट्टयाए, वेउव्वियसरीरा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, ओरालियसरीरा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, तेया- कम्मगसरीरा दो वि तुल्ला दव्वट्टयाए अणंतगुणा; पएसट्टयाए - सव्वत्थोवा आहारगसरीरा पएसट्टयाए, वेउब्वियसरीरा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, ओरालियसरीरा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, तेयगसरीरा पट्टयाए अनंतगुणा, कम्मगसरीरा पदेसट्टयाए अनंतगुणा; दव्वटु-पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा आहारगसरीरा दव्वट्टयाए, वेउव्वियसरीरा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, ओरालियसरीरा दव्या असंखेज्जगुणा, ओरालियस रीरेहिंतो दव्वट्टयाए आहारगसरीरा परसट्टयाए अनंतगुणा, वेउव्वियसरीरा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, ओरालियसरीरा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, तेया- कम्मगसरीरा दो वि तुल्ला दव्वट्टयाए अनंतगुणा, तेयगसरीरा पदेस - या अनंतगुणा, कम्मगसरीरा पदेसट्टयाए अनंतगुणा ॥ सरीर ओगाहणम्पबहु-पदं १०५. एतेसि णं भंते ! ओरालिय- वेउब्विय- आहारग तेया- कम्सगसरीराणं जहण्णिओगाहणाए उक्कोसियाए ओगाहणाए जहण्णुक्कोसियाए ओगाहणाए कतरे कतरे हितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा ओरालियसरीरस्स हणिया ओगाहणा, तेया- कम्मगाणं दोन्ह वि तुल्ला जहणिया ओगाहणा विसेसाहिया, वेउव्वियसरीरस्स जणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा, आहारगसरीरस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा; उक्कोसियाए ओगाहणाए - सव्वत्थोवा आहारगसरीरस्स उक्कोसिया ओगाहणा, ओरालियसरीरस्स उक्कोसिया ओगाहणा संखेज्जगुणा, वेउब्वियसरीरस्स उक्कोसिया ओगाहणा संखेज्जगुणा, तेया- कम्मगाणं दोन्ह वि तुल्ला उक्कोसिया अगाहणा असंखेज्जगुणा; जहण्णुक्कोसियाए ओगाहणाए - सव्वत्थोवा ओरालियस रस्स जहणिया ओगाहणा, तेया- कम्मगाणं दोन्ह वि तुल्ला जहण्णिया ओगाहणा विसेसाहिया, वेव्वियसरीरस्स जहण्णिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा, आहारगसरीरस्स जहण्णिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा, आहारगसरीरस्स जहण्णियाहिंतो ओगाहणाहितो तस्स चैव उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया, ओरालियसरीरस्स उक्कोसिया ओगाहणा संखेज्जगुणा, वेउब्वियसरीरस्स णं उक्कोसिया ओगाहणा संखेज्जगुणा, तेया- कम्मगाणं दोन्ह वि तुल्ला उक्कोसिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ २७३ Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावीसइमं किरियापयं किरियाभेय-पदं १. कति णं भंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-काइया अहिगरणिया'पादोसिया पारियावणिया पाणाइवातकिरिया।। २. काइया णं भंते ! किरिया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-अणुवरयकाइया य दुप्पउत्तकाइया य ॥ ३. अहिगरणिया णं भंते ! किरिया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संजोयणाहिकरणिया य निव्वत्तणाहिकरणिया य॥ ४. पादोसिया णं भंते ! किरिया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-जेणं अप्पणो वा परस्स वा तदुभयस्स वा असुभं मणं पधारेति'। से तं पादोसिया किरिया ॥ ५. पारियावणिया णं भंते ! किरिया कतिविहा पण्णत्ता? गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-जेणं अप्पणो वा परस्स वा तदुभयस्स वा असायं वेदणं उदीरेति । से तं पारियावणिया किरिया ॥ ६. पाणातिवातकिरिया णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! ति विहा पण्णत्ता, तं जहा-जेणं अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा जीवियाओ ववरोवेइ। से तं पाणाइवायकिरिया ॥ सकिरियत्त-अकिरियत्त-पदं ७. जीवाणं भंते ! किं सकिरिया ? अकिरिया ? गोयमा! जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि॥ ८. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति -जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि? गोयमा ! जीवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संसारसमावण्णगा य असंसारसमावण्णगा य । तत्थ णं जेते असंसारसमावण्णगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं अकिरिया। तत्थ णं जेते संसारसमावण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सेलेसिपडिवण्णगा य असेलेसिपडिवण्णगा य । तत्थ णं जेते सेलेसिपडिवण्णगा ते णं अकिरिया। तत्थ णं जेते असेलेसिपडिवण्णगाते णं सकिरिया। से १. आहिगरणिया (पु)। २. वा धारेति (क,ख)। २७४ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावीस इमं किरियापयं तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वृच्चति - जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि ॥ किरिया विसय-पदं ६. अत्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जति ? हंता गोयमा ! अस्थि ॥ १०. कम्हि णं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ ? जीवणिकाए । ११. अस्थि णं भंते ! णेरइयाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जति ? चेव । एवं जाव निरंतरं वैमाणियाणं ॥ १४. अत्थि णं भंते ! जीवाणं अदिण्णादाणेणं किरिया कज्जति ? १५. कम्हि णं भंते ! जीवाणं अदिण्णादाणेणं किरिया कज्जइ ? धारणजे दव्वे । एवं णेरइयाणं णिरंतरं जाव वेमाणियाणं ॥ २७५ १२. अस्थि भंते ! जीवाणं मुसावाएणं किरिया कज्जति ? हंता ! अत्थि ॥ १३. कम्हि णं भंते ! जीवाणं मुसावाएणं किरिया कज्जति ? गोयमा ! सव्वदव्वेसु । एवं निरंतरं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ॥ गोयमा ! छसु गोयमा ! एवं १६. अस्थि णं भंते ! जीवाणं मेहुणेणं किरिया कज्जति ? हंता ! अत्थि ॥ १७. कम्हि णं भंते! जीवाणं मेहुणेणं किरिया कज्जति ? गोयमा ! रूवेसु वा रूवसहगतेसु वा दव्वेसु । एवं णेरइयाणं णिरंतरं जाव वेमाणियाणं ॥ १८. अत्थि णं भंते ! जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कज्जति ? हंता ! अत्थि ॥ हंता अस्थि || गोयमा ! गहण १६. कम्हि णं भंते ! जीवाणं परिग्गहेणं किरिया कज्जति ? गोयमा ! सव्वदव्वेसु । एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं ॥ २०. एवं कोहेणं माणेणं मायाए लोभेणं पेज्जेणं दोसेणं कलहेणं अब्भक्खाणेणं पेसुण्णेणं परपरिवारणं अरतिरतीए मायामोसेणं मिच्छादंसणसल्लेणं सव्वेसु 'जीव-णे रइयभेदेसु" भाणियव्वं णिरंतरं जाव वेमाणियाणं ति । एवं अट्ठारस एते दंडगा || किरिया ऊह कम्मपगडिबंध-पदं २१. जीवे णं भंते! पाणाइवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंध वा अहिबंध वा । एवं णेरइए जाव णिरंतरं वेमाणिए । २२. जीवा णं भंते! पाणाइवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोयमा ! सत्तविहबंधा व अविबंधगा वि ॥ २३. णेरइया णं भंते ! पाणाइवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य, अहवा सत्तविहबंधा अहिबंधगा य । एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा ॥ २४. पुढवि आउ-तेउ वाउ वणप्फइकाइया य एते सव्वे वि जहा ओहिया जीवा । अवसेसा जहा णेरइया ॥ २५. एवं एते जीवेगिदियवज्जा तिण्णि- तिणि भंगा सव्वत्थ भाणियव्वं त्ति जाव १. जीवाने रइयभेदेणं (क, ख, ग, घ ) । Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ पण्णवणासुत्तं मिच्छादसणसल्लेणं । एवं एगत्त-पोहत्तिया छत्तीसं दंडगा होंति ॥ कम्मबंधमहिकिच्च किरिया-पदं २६. जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं बंधमाणे कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए । एवं रइए जाव वेमाणिए । २७. जीवा णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्म बंधमाणा कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि । एवं रइया निरंतरं जाव वेमाणिया ।। २८. एवं दरिसणावरणिज्जं वेयणिज्जं मोहणिज्ज आउयं णामं गोयं अंतराइयं च अट्टविहकम्मपगडीओ भाणियव्वाओ। एगत्त-पोहत्तिया सोलस दंडगा ॥ एगत्त-पुहत्तेहि किरिया-पदं । २६. जीवे णं भंते ! जीवातो कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए सिय अकिरिए । ३० जीवे णं भंते ! णेरइयाओ कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चतुकिरिए सिय अकिरिए । एवं जाव थणियकुमाराओ॥ ३१. पुढविक्काइयाओ आउक्काइयाओ तेउक्काइयाओ वाउक्काइयाओ वणस्सइकाइयाओ बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिय-पंचिदियतिरिक्खजोणिया मणसातो जहा जीवातो। वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाओ जहा रइयाओ॥ ३२. जीवे णं भंते ! जीवेहितो कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए सिय अकिरिए। ३३. जीवे णं भंते ! रइएहितो कतिकिरिए ? गोयमा! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय अकिरिए । एवं जहेव' पढमो दंडओ तहा एसो वि वितिओ भाणियव्वो॥ ३४. जीवा णं भंते ! जीवाओ कतिकिरिया ? गोयमा ! 'तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि अकिरिया वि"॥ ३५. जीवा णं भंते ! णेरइयाओ कतिकिरिया ? गोयमा ! जहेव' आइल्लदंडओ तहेव भाणियव्वो जाव वेमाणिय त्ति ।। ३६. जीवा णं भंते ! जीवेहितो कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया विचउकिरिया वि पंचकिरिया वि अकिरिया वि ।। ३७. जीवा णं भंते ! णेरइएहिंतो कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि अकिरिया वि । असुरकुमारेहितो वि एवं चेव जाव वेमाणिएहितो । ओरालियसरीरेहितो जहा जीवेहितो॥ ३८. जेरइए णं भंते ! जीवातो कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए ॥ १. प० २२।३०,३१ । २. सिय तिकिरिया वि सिय चउकिरिया वि सिय पंचकिरिया वि सिय अकिरिया वि (क,ख,ग, घ); अस्मिन रचनाक्रमे यत्र 'अपि' शब्दस्य प्रयोगोस्ति तत्र 'सिय' शब्दस्य प्रयोगो नास्ति, द्रष्टव्यं-२७,३६,३७ सूत्राणि । ३. प० २२।३०,३१ । ४. प० २२।३६। । Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावीसइमं किरियापयं २७७ ३६. णेरइए णं भंते ! णेरइयाओ कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए। ‘एवं जाव थणियकुमाराओ। पुढविकाइयाओ जाव मणुस्साओ जहा' जीवाओ । वाणमंतर-जोइसिय-वैमाणियाओ जहा नेरइयाओ॥ ४०. णेरइए णं भंते ! जीवेहितो कइकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए॥ ४१. णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो कइकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए। एवं जहेव' पढमो दंडओ तहा एसो वि बितिओ भाणियव्वो"। एवं जाव वेमाणिहितो, णवरं-णेरइयस्स रइएहितो देवेहितो य पंचमा किरिया णत्थि ।। ४२. णेरइया णं भंते ! जीवाओ कतिकिरिया ? गोयमा ! सिय तिकिरिया सिय चउकिरिया सिय पंचकिरिया। एवं जाव वेमाणियाओ, णवरं-णेरइयाओ देवाओ य पंचमा किरिया णत्थि ॥ ४३. णेरइया णं भंते ! जीवेहितो कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि।। ४४. णेरइया णं भंते ! णेरइएहितो कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि। एवं जाव वेमाणिएहितो, णवरं–ओरालियसरीरेहितो जहा जीवे हितो॥ ४५. असुरकुमारे णं भंते ! जीवातो कतिकिरिए ? गोयमा ! जहेव' णेरइए चत्तारि दंडगा तहेव असुरकुमारे वि चत्तारि दंडगा भाणियव्वा । एवं उवउज्जिऊण भावेयव्वं तिजीवे मणूसे य अकिरिए वुच्चति, सेसा अकिरिया ण वुच्चंति । सब्वजीवा ओरालियसरीरेहितो पंचकिरिया, णेरइय-देवेहिंतो य पंचकिरिया ण वुच्चंति । एवं एक्केक्कजीवपए चत्तारि चत्तारि दंडगा भाणियव्वा । एवं एयं दंडगसयं । सव्वे वि य जीवादीया दंडगा। किरिया-सहभाव-पदं ४६. कति णं भंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-काइया जाव पाणाइवायकिरिया ॥ ४७. णेरइयाणं भंते ! कति किरियाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–काइया जाव पाणाइवायकिरिया । एवं जाव वेमाणियाणं ॥ ४८. जस्स णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जइ तस्स अहिगरणिया किरिया कज्जति ? जस्स अहिगरणिया किरिया कज्जति तस्स काइया किरिया कज्जति ? गोयमा ! जस्स णं जीवस्स काइया किरिया कज्जति तस्स अहिगरणी णियमा कज्जति, जस्स अहिगरणी किरिया कज्जति तस्स वि काइया किरिया णियमा कज्जति ।। ४६. जस्स णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जति तस्स पाओसिया किरिया कज्जति ? जस्स पाओसिया किरिया कज्जति तस्स काइया किरिया कज्जति ? गोयमा ! १. २२।३८ । २. प० २२०३६। ३. चिह्नाङ्कितपाठः 'ख,घ' प्रत्यो स्ति। ४. पंचमी (ख)। ५. प० २२।४३। ६.५०२२।३८-४४। Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ एवं चेव ॥ ५०. जस्स णं भंते! जीवस्स काइया किरिया कज्जइ तस्स पारियावणिया किरिया कज्जइ ? जस्स पारियावणिया किरिया कज्जइ तस्स काइया किरिया कज्जति ? गोयमा ! जस्स णं जीवस्स काइया किरिया कज्जइ तस्स पारियावणिया किरिया सिय कज्जति सियणो कज्जति, जस्स पुण पारियावणिया किरिया कज्जति तस्स काइया नियमा कज्जति । एवं पाणा इवायकिरिया वि ॥ ५१. एवं आदिल्लाओ परोप्परं नियमा तिण्णि कज्जति । जस्स आदिल्लाओ तिण्णि कज्जंति तस्स उवरिल्लाओ दोण्णि सिय कज्जंति सियणो कज्जति । जस्स उवरिल्लाओ दोणि कज्जति तस्स आइल्लाओ तिण्णि णियमा कज्जति ॥ ५२. जस्स णं भंते ! जीवस्स पारियावणिया किरिया कज्जइ तस्स पाणाइवायकिरिया कज्जति ? जस्स पाणाइवायकिरिया कज्जति तस्स पारियावणिया किरिया कज्जति ? गोयमा ! जस्स णं जीवस्स पारियावणिया किरिया कज्जति तस्स पाणाइवायकिरिया सिय कज्जति सिय णो कज्जति, जस्स पुण पाणाइवायकिरिया कज्जति तस्स पारियावणिया किरिया नियमा कज्जति ॥ ५३. जस्स णं भंते ! णेरइयस्स काइया किरिया कज्जति तस्स अहिगरणिया किरिया कज्जति ? गोयमा ! जहेव' जीवस्स तहेव णेरइयस्स वि । एवं "निरंतरं जाव" माणिस्स || पण्णवणासुतं ५४. जं 'समयं णं" भंते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जति तं समयं अहिगरणिया किरिया कज्जति ? जं समयं अहिगरणिया किरिया कज्जति तं समयं काइया किरिया कज्जति ? एवं जहेव आइल्लओ दंडओ भणिओ तहेव भाणियव्वो जाव वेमाणियस्स || ५५. जं 'देसं णं" भंते! जीवस्स काइया किरिया कज्जति तं देसं णं अहिगरणिया किरिया कज्जति ? तहेव जाव वेमाणियस्स ॥ - ५६. जं पएसं णं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कज्जति तं पएसं अहिगरणिया किरिया कज्जति ? एवं तहेव जाव वेमाणियस्स । एवं एते – जस्स, जं समयं, जं देसं, जं 'पएसं णं" - चत्तारि दंडगा होंति ॥ आओजिय किरिया -पदं ५७. कति णं भंते! आजोजिताओ किरियाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! पंच आओजिताओ किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - काइया जाव पाणाइवायकिरिया । एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं ॥ ५८. जस्स णं भंते! जीवस्स काइया आओजिया किरिया अत्थि तस्स अहिकरणिया आओजिया किरिया अस्थि ? जस्स अहिगरणिया आओजिया किरिया अत्थि तस्स काइया १. २२।४८-५२ । २. जाव निरंतर (क, घ) 1 ३. समय णं (क, ख ) ; समयण्णं ( ग ) । ४. प० २२।४८- ५३ । ५. देसेणं (क, घ) ; देस णं ( ख ) ; देसण्णं ( ग ) । ६. पदेसत्तं (क, घ); पदेसणं ( ख ); पदेसणं (ग) । ७. आतोजितातो (कख) । Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावीसइमं किरियापयं २७६ आओजिया किरिया अत्थि ? एवं एतेणं अभिलावेणं ते चेव चत्तारि दंडगा भाणियव्वाजस्स, जं समयं, जं देसं, जं पदेसं जाव' वेमाणियाणं । पुट्ठापुट्ठभाव-पदं ५६. जीवे णं भंते ! जं समयं काइयाए अहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पुढे तं समयं पारियावणियाए किरियाए पुढे ? पाणाइवायकिरियाए पुढे ? गोयमा ! अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं समयं काइयाए अहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पटठे तं समयं पारियावणियाए किरियाए पटठे पाणाइवाय किरियाए पट अत्थेगइए जीवे एगइओ जीवाओ जं समयं काइयाए अहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पुढे तं समयं पारियावणियाए किरियाए पुढे पाणाइवायकिरियाए अपुठे, अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं समयं काइयाए अहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए पुढे तं समयं पारियावणियाए किरियाए अपुढे पाणाइवायकिरियाए अपुढें। अत्थेगइए जीवे एगइयाओ जीवाओ जं समयं काइयाए अहिगरणियाए पाओसियाए किरियाए अपुढे तं समयं पारियावणियाए किरियाए अपुढे पाणाइवायकिरियाए अपुढे । किरियासामित्त-पदं ६०. कइ णं भंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया अपच्चक्खाणकिरिया मिच्छादसणवत्तिया ॥ ६१. आरंभिया णं भंते ! किरिया कस्स कज्जति ? गोयमा! अण्णयरस्सावि पमत्तसंजयस्स ॥ ६२. परिग्गहिया णं भंते ! किरिया कस्स कज्जति ? गोयमा ! अण्णयरस्सावि संजयासंजयस्स ॥ ६३. मायावत्तिया णं भंते ! किरिया कस्स कज्जति ? गोयमा ! अण्णयरस्सावि अपमत्तसंजयस्स ।। ६४. अपच्चक्खाणकिरिया णं भंते ! कस्स कज्जति ? गोयमा ! अण्णयरस्सावि अपच्चक्खाणिस्स ॥ ६५. मिच्छादसणवत्तिया णं भंते ! किरिया कस्स कज्जति ? गोयमा ! अण्णयरस्सावि मिच्छदंसणिस्स ।। ६६. णेरइयाणं भंते ! कति किरियाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया । एवं जाव वेमाणियाणं ॥ किरियाणं सहभाव-पदं ६७. जस्स णं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जति तस्स परिग्गहिया किरिया कज्जति ? जस्स परिग्गहिया किरिया कज्जइ तस्स आरंभिया किरिया कज्जति ? गोयमा! जस्स णं जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जति तस्स परिग्गहिया किरिया सिय कज्जति सिय णो कज्जइ, जस्स पुण परिग्गहिया किरिया कज्जइ तस्स आरंभिया किरिया नियमा कज्जति॥ १. प० २२।४८-५६ । Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० पण्णवणासुतं ६८. जस्स णं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जति तस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ पुच्छा । गोयमा ! जस्स णं जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ तस्स मायावत्तिया किरिया णियमा कज्जइ, जस्स पुण मायावत्तिया किरिया कज्जइ तस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जइ सिय णो कज्जइ॥ ६६. जस्स णं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ तस्स अप्पच्चक्खाणकिरिया कज्जइ पुच्छा । गोयमा ! जस्स णं जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ तस्स अप्पच्चक्खाणकिरिया सिय कज्जइ सिय णो कज्जइ, जस्स पुण अप्पच्चक्खाणकिरिया कज्जति तस्स आरंभिया किरिया णियमा कज्जति । एवं मिच्छादसणवत्तियाए वि समं ॥ ७०. एवं परिग्गहिया वि तिहि उवरिल्लाहि सम चारेयव्वा ॥ ७१. जस्स मायावत्तिया किरिया कज्जति तस्स उवरिल्लाओ दो वि सिय कज्जंति सिय णो कज्जति, जस्स उवरिल्लाओ दो कज्जति तस्स मायावत्तिया णियमा कज्जति ।। ७२. जस्स अपच्चक्खाणकिरिया कज्जति तस्स मिच्छादसणवत्तिया किरिया सिय कज्जइ सिय णो कज्जइ, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जति तस्स अपच्चक्खाणकिरिया णियमा कज्जति ।। ७३. णेरडयस्स आइल्लियाओ चत्तारि परोप्परं णियमा कज्जति, जस्स एताओ चत्तारि कज्जति तस्स मिच्छादसणवत्तिया किरिया भइज्जति, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जति तस्स एयाओ चत्तारि णियमा कज्जति । एवं जाव थणियकुमारस्स । पुढविक्काइयस्स जाव चउरिदियस्स पंच वि परोप्परं णियमा कज्जति ।। ७४. पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स आइल्लियाओ तिण्णि वि परोप्परं णियमा कज्जति, जस्स एयाओ कज्जति तस्स उवरिल्लाओ दो भइज्जति, जस्स उवरिल्लाओ दोणि कज्जंति तस्स एताओ तिण्णि वि' णियमा कज्जति; जस्स अपच्चक्खाणकिरिया तस्स मिच्छादसणवत्तिया सिय कज्जति सिय णो कज्जति, जस्स पूण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जति तस्स अप्पच्चक्खाणकिरिया णियमा कज्जति ॥ ७५. मणसस्स जहा जीवस्स । वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियस्स जहा णेरइयस्स ।। ७६. जं समयं णं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जति तं समयं परिग्गहिया किरिया कज्जति ? एवं एते-जस्स, जं समयं, जं देसं, जं पदेसं णं-चत्तारि दंडगा णेयव्वा। जहा णेरइयाणं तहा सव्वदेवाणं णेयव्वं जाव वेमाणियाणं ॥ पावट्ठाणविरइ-पदं ७७. अत्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवायवेरमणे कज्जति ? हंता ! अत्थि । ७८. कम्हि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवायवेरमणे कज्जति ? गोयमा ! छसु जीव णिकाएसु ।। ७९. अत्थि णं भंते ! णेरइयाणं पाणाइवायवेरमणे कज्जति ? गोयमा ! णो इणठे समठे । एवं जाव वेमाणियाणं, णवरं-मणूसाणं जहा जीवाणं । ८०. एवं मुसावाएणं जाव मायामोसेणं जीवस्स य मणूसस्स य, सेसाणं णो इणठे १. x (क,घ)। Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ arates किरियापयं समट्ठे, णवरं-अदिण्णादाणे गहण धारणिज्जेसु दव्वेसु, मेहुणे रूवेसु वा रूवसहगएसु वा दव्वेसु, सेसाणं सव्वदव्वेसु' ।। ८१. अस्थि णं भंते ! जीवाणं मिच्छादंसणसल्लवेरमणे कज्जति ? हंता ! अस्थि || ८२. कम्हि णं भंते ! जीवाणं मिच्छादंसणसल्लवेरमणे कज्जइ ? गोयमा ! सव्वदव्वेसु । एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं, णवरं - एगिदिय-विगलि दियाणं णो इणट्ठे समट्ठे ॥ कम्मपगडिबंध-पदं ८३. पाणाइवायविरए णं भंते ! जीवे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंध वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा अबंधए वा । एवं मणूसे वि भाणियव्वे ॥ २८१ ८४. पाणाइवायविरया णं भंते ! जीवा कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य १. । अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा अट्ठविहबंधगे य १. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंध अधिगा य २. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य ३. हवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छहव्विहबंधगा य ४. अहवा सत्तविहबंधगा य Rafaeबंधगा य अबंधगे य ५. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अबंधगा य ६. । अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छव्विहबंधगे य १. अहवा सत्तविहबंगा विहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छव्विहबंधगा य २. अहवा सत्तविहबंधगा य विबंधगाय अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगे य ३. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा अविबंधगाय छव्विहबंधगा य ४. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य अबंधए य १. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधबंध २. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य अबंधगे य ३ . अहवा सत्तविहबंधा गहिबंधगा य अट्ठविहबंधगा य अबंधगा य ४, अहवा सत्तविहबंधगा य गविहबंधगाय छव्विहबंधगे य अबंधगे य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य अबंधगा य २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगा य बंध ३ अहवात्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगा य अबंधगा ४ य । अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छव्विहबंधगे य अबंधगे य १. हवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छव्विहबंधगे य अबंधगा य २. हवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छव्विहबंधगा य अबंधगे य ३. अवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छव्विहबंधगा य अबंधगा य ४. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगे य अबंधगे य ५. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंध य अबंधगा य ६. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य अबंधगे य ७. अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगाय अबंधगा १. सव्वे दव्वेसु (क, ख, ग, घ ) । Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ पण्णवणासुतं य ८-एते अट्ठ भंगा। सव्वे वि मिलिया सत्तावीसं भंगा भवंति। एवं मणूसाण वि एते चेव सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा ।। ८५. एवं मुसावायविरयस्स जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स य मणूसस्स य । ८६. मिच्छादसणसल्लविरए णं भंते ! जीवे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा एगविहबंधए वा अबंधए वा ।। ८७. मिच्छादसणसल्लविरए णं भंते ! णेरइए कति कम्मपगडीओ बंधति? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिए ।। ८८. मणूसे जहा' जीवे । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिए जहा णेरइए । ८६. मिच्छादसणसल्लविरया णं भंते ! जीवा कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! ते चेव सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा ॥ १०.मिच्छादसणसल्लविरया णं भंते ! रइया कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्ज सत्तविहबंधगा १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगे य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य ३ । एवं जाव वेमाणिया, णवरं-मणूसाणं जहा जीवाणं ।। किरियाभेय-पदं ६१. पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स किं आरंभिया किरिया कज्जति' ? गोयमा ! पाणाइवायविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जइ सिय णो कज्जइ॥ ६२. पाणाइवाय विरयस्स णं भंते ! जीवस्स परिग्गहिया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! णो इणठे समठे ॥ ६३. पाणाइवायविरयस्स णं भंते! जीवस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ? गोयमा ! सिय कज्जइ सिय णो कज्जइ॥ १४. पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स अप्पच्चक्खाणवत्तिया किरिया कज्जति? गोयमा ! णो इणठे समठे॥ ६५. मिच्छादसणवत्तियाए पुच्छा । गोयमा ! नो इणठे समझें ॥ ६६. एवं पाणाइवायविरयस्स मणूसस्स वि। एवं जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स मणूसस्स य॥ ६७. मिच्छादसणसल्लविरयस्स णं भंते ! जीवस्स किं आरंभिया किरिया कज्जति जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जति ? गोयमा! मिच्छादसणसल्लविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जति सिय नो कज्जति। एवं जाव अप्पच्चक्खाणकिरिया। मिच्छादसणवत्तिया किरिया नो कज्जति ॥ १८. मिच्छादसणसल्लविरयस्स णं भंते ! णेरइयस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! आरंभिया वि किरिया कज्जति जाव अपच्चक्खाणकिरिया वि कज्जति, मिच्छादसणवत्तिया किरिया णो कज्जति । एवं १.५० २२।८६ । २. कज्जति जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कजति (क,ख,घ) । Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावीस इमं किरियापर्य २८३ जाव थणियकुमारस्स ॥ __६६. मिच्छादसणसल्लविरयस्स णं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स एवमेव पुच्छा। गोयमा ! आरंभिया किरिया कज्जइ जाव मायावत्तिया किरिया कज्जइ, अपच्चक्खाणकिरिया सिय कज्जइ सिय णो कज्जइ, मिच्छादसणवत्तिया किरिया णो कज्जति॥ १००. मणूसस्स जहा जीवस्स । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहाणेरइयस्स ।। अप्पाबहुय-पदं १०१. एतासि णं भंते ! आरंभियाणं जाव मिच्छादसणवत्तियाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवाओ मिच्छादसणवत्तियाओ किरियाओ, अप्पच्चक्खाणकिरियाओ विसेसाहियाओ, परिग्गहियाओ विसेसाहियाओ आरंभियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ, मायावत्तियाओ विसेसाहियाओ॥ १.प० २२।६६ Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा कति पगडी ? कह बंधति ? कतिहि व ठाणेहि बंधए जीवो ? कति वेदेइ य पयडी ? अणुभावो कतिविहो कस्स ? ॥ १ ॥ कतिपय डि-पदं १. कति णं भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - णाणावरणिज्जं दंसणावरणिज्जं वेदणिज्जं मोहणिज्जं आउयं णामं गोयं अंतराइयं ॥ २. रइयाणं भंते ! कति कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! एवं चेव । एवं जाव वेमाणियाणं | कहबंधति-पदं ३. कहणणं भंते! जीवे अट्ठ कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं दंसणावरणिज्जं कम्मं नियच्छति, दंसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं दसणमोहणिज्जं कम्मं णियच्छति', दंसणमोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं मिच्छत्तं णियच्छति', 'मिच्छत्तेणं उदिष्णेणं" गोयमा ! एवं खलु जीवे अट्ठ कम्मपगडीओ बंधइ ॥ ४. कहण्णं भंते! णेरइए अट्ठ कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! एवं चेव । एवं जाव माणि || ५. कहणं भंते ! जीवा अट्ठ कम्मपगडीओ बंधंति ? गोयमा ! एवं चेव । एवं जाव मणिया || कतिठाणबंध-पदं ६. जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं कतिहि ठाणेहि बंधति ? गोयमा ! दोहि ठाणेहि, तं जहा - रागेण य दोसेण य । रागे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - माया य लोभे य । १. दरिसणावरणिज्जं (पु) । २. निगच्छति (क, घ ) । ३. निग्गच्छति ( क ) । २८४ तेवीसइमं कम्मपगडिपयं पढो उद्देसओ ४. मलयगिरिणा तत एवं मिथ्यात्वोदयेन जीवोष्टी प्रकृतीबंध्नाति' अस्यां व्याख्यायां उदीरर्णेन नैव व्याख्यातम् । Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेवीस इमं कम्मपगडिपयं २८५ दोसे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- कोहे य माणे य। इच्चेतेहिं चउहिं ठाणेहिं वीरिओवग्गहिएहिं' एवं खलु जीवे णाणावरणिज्ज कम्मं बंधति । एवं रइए जाव वेमाणिए॥ ७. जीवा णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्म कतिहिं ठाणेहिं बंधंति ? गोयमा ! दोहिं ठाणेहि, एवं चेव । एवं णेर इया जाव वेमाणिया॥ ८. एवं दसणावरणिज्जं जाव अंतराइयं । एवं एते एगत्त-पोहत्तिया सोलस दंडगा। कतिपयडिवेद-पदं ६. जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं वेदेति ? गोयमा ! अत्थेगइए वेदेति, अत्थेगइए णो वेदेति ॥ १०. णेरइए णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं वेदेति ? गोयमा ! णियमा वेदेति । एवं जाव वेमाणिए, णवर-मणसे जहा जीवे ।। ११. जीवा णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं वेदेति ? गोयमा ! एवं चेव । एवं जाव वेमाणिया॥ १२. एवं जाव णाणावरणिज्जंतहा दंसणावरणिज्जं मोहणिज्ज अंतराइयं च। वेदणिज्जाउय-णाम-गोयाइं एवं चेव, णवरं-मणूसे वि णियमा वेदेति । एवं एते एगत्त-पोहत्तिया सोलस दंडगा । कतिविधाणुभाव-पदं १३. णाणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स पुटुस्स बद्ध-फास-पुटुस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स' जीवेणं णिव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तदुभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गति पप्प ठिति पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणामं पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणावरणिजस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प दसविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा-सोयावरणे सोयाविण्णाणावरणे णेत्तावरणे णेत्तविण्णाणावरणे घाणावरणे घाणविण्णाणावरणे रसावरणे रसविण्णाणावरणे फासावरणे फासविण्णाणावरण। जं वेदेति पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं जाणियव्वं ण जाणइ, जाणिउकामे वि ण याणति, जाणित्ता वि ण याणति, उच्छण्णणाणी यावि भवति णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं। एस णं गोयमा ! णाणावरणिज्जे कम्मे । एस णं गोयमा ! णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प दसविहे अणुभावे पण्णत्ते ॥ १४. दरिसणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स' 'पुटुस्स वद्ध-फास-पुटुस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं णिव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेणं वा उदीरियस्स तभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गति पप्प ठिति पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणाम १. वीरियउवग्गहिएहि (क)। ३. सं० पा०-बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणाम । २. कतस्स (क, घ); कयस्स (ख, ग)। Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ पण्णवणासुत्तं पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते ? गोयमा ! दरिसणावरणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प णवविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा-णिद्दा णिहाणिद्दा पयला पयलापयला थीणद्धी' चक्खुदंसणावरणे अचक्खुदंसणावरणे ओहिदसणावरणे केवलदसणावरणे। जं वेदेति पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणाम वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं पासियव्वं ण पासति, पासिउकामे वि ण पासति, पासित्ता वि ण पासति, उच्छन्नदसणी' यावि' भवति दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं । एस णं गोयमा ! दरिसणावरणिज्जे कम्मे । एस णं गोयमा! दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प णवविहे अणुभावे पण्णत्ते ॥ १५. सातावेदणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स 'पुटुस्स बद्ध-फास-पटुस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं णिव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तद्भएण वा उदीरिज्जमाणस्स गति पप्प ठिति पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणाम पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते ? गोयमा ! सायावेदणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा- मणुण्णा सद्दा मणुण्णा रूवा मणुण्णा गंधा मणुण्णा रसा मणुण्णा फासा मणोसुहता वइसुहता' कायसुहता। जं वेइए पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं सातावेदणिज्जं कम्मं वेदेति । एस णं गोयमा ! सातावेदणिज्जे कम्मे। एस णं गोयमा ! सातावेयणिज्जस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते ॥ अस्सातावेयणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं "बद्धस्स पृटुस्स बद्ध-फास-पस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं णिव्वत्तियरस जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तद्भएण वा उदीरिज्जमाणस्स गति पप्प ठिति पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणामं पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते ? गोयमा ! अस्सातावेदणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा-अमणुण्णा सहा अमणण्णा रूवा अमणुण्णा गंधा अमणुण्णा रसा अमणुण्णा फासा मणोदुहता वइदहता कायदहता। जं वेएइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसि वा उदएणं असायावेयणिज्ज कम्म वेदेति । एस णं गोयमा ! असायावेदणिज्जे कम्मे । एस १. थीणगिद्धी (पु)। भावे पण्णत्ते' इति पाठोस्ति तदनुसारेण २ "दसणावरणणाणी (ख,घ); दसणानाणी (ग)। 'कायसुहता, कायदुहता' एते द्वे पदे न स्तः । ३. तावि (क, घ)। ६. बतिसुहता (क, घ); वयसुहता (ख ग)। ४. सं० पा०-बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणाम । ७. सं० पा०-तहेव पुच्छा उत्तरं च, णवरं५. 'ख' प्रतौ सातासातयोरालापके 'सत्तविहे अणु- अमणुण्णा सद्दा जाव कायदुहता। Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेवीसइमं कम्मपगडिपयं २८७ णं गोयमा ! असायावेयणिज्जस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते॥ १७. मोहणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स' 'पुटुस्स बद्ध-फास-पुटुस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं णिव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गति पप्प ठिति पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणाम पप्प कतिविहे अणभावे पण्णत्ते ? गोयमा ! मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा-सम्मत्तवेयणिज्जे मिच्छत्तवेयणिज्जे सम्मामिच्छत्तवेयणिज्जे कसायवेयणिज्जे णोकसायवेयणिज्जे। जं वेदेति पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं मोहणिज्ज कम्म वेदेति । एस णं गोयमा! मोहणिज्जे कम्मे । एस णं गोयमा ! मोहणिज्जस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते ॥ १८. आउयस्स' णं भंते ! कम्मरस जीवेणं "वद्धस्स पुटुस्स वद्ध-फास-पुट्ठस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं णिव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गति पप्प ठिति पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणामं पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते ?° गोयमा! आउयस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प चउविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा-णेरइयाउए तिरियाउए मणुयाउए देवाउए। जं वेइए पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणाम वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसि वा उदएणं आउयं कम्मं वेदेति । एस णं गोयमा ! आउए कम्मे । एस णं गोयमा ! आउयस्स कम्मस्स जीवेणं वद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प चउविहे अणुभावे पण्णत्ते ।। १६. सभणामस्सणं भंते ! कम्मस्स जीवेणं "बद्धस्स यूट्रस्स बद्ध-फास-पूट्रस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं णिव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तदुभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गति पप्प ठिति पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणाम पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते ? गोयमा ! सुभणामस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प चोद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा-इट्ठा सद्दा इट्ठा रूवा इट्ठा गंधा इट्ठा रसा इट्ठा फासा इट्ठा गती इट्ठा ठिती इठे लावण्णे इट्ठा जसोकित्ती इठे उट्ठाण-कम्मबल-वीरिय पुरिसक्कार-परक्कमे इट्ठस्सरता कंतस्सरता पियस्सरता मणुण्णस्सरता। जं वेइए पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं सुभणामं कम्मं वेदेति । एस णं गोयमा ! सुभणामे कम्मे । एस णं गोयमा ! १. सं० पा०-बद्धस्स जाव कतिविहे । २. आउस्स (ग)। ३. सं पा०-तहेव पुच्छा । ४. सं० पा०—पुच्छा। Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ पण्णवणासुत्तं सुभणामस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प चोद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते॥ २०. दुहणामस्स णं भंते ! ' कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स पुट्ठस्स बद्ध-फास-पुटुस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं णिव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिग्णस्स परेण वा उदीरियस्स तभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गतिं पप्प ठिति पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणाम पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुहणामस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प चोद्दस विहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा-अणिट्टा सद्दा अणिट्ठा रूवा अणिट्ठा गंधा अणिट्ठा रसा अणिट्ठा फासा अणिट्ठा गती अणिट्ठा ठिती अणिठे लावणे अणिट्ठा जसोकित्ती अणिठे उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमे हीणस्सरता दीणस्सरता अणिस्सरता अकंतस्सरता। जं वेएड पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम. तेसिं वा उदएणं दुहणामं कम्मं वेदेति । एस णं गोयमा ! दुहणामे कम्मे । एस णं गोयमा ! दुहणामस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणाम पप्प चोद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते ।। २१. उच्चागोयस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं "बद्धस्स पुट्ठस्स बद्ध-फास-पुट्ठस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं णिव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गति पप्प णामं पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते ? गोयमा ! उच्चागोयस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा–जातिविसिट्ठया कुलविसिट्ठया बलविसिट्ठया रूवविसिट्ठया तवविसिट्ठया सुयविसिट्ठया लाभ विसिट्ठया इस्सरियविसिट्टया । जं वेदेति पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं' उच्चागोयं कम्मं वेदेति। एस णं गोयमा! उच्चागोए कम्मे। एस णं गोयमा ! उच्चागोयस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणाम पप्प अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते॥ २२. णीयागोयस्सणं भंते ! “कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स पुटुस्स वद्ध-फास-पुटुस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्स्स्स जीवेणं कडस्स जीवेणं णिव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तदुभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गति पप्प ठितिं पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गल१. सं० पा०-पुच्छा। गोयमा ! एवं चेव, ३. सं० पा०-उदएणं जाव अट्ठविहे णवरं-अणिट्ठा सद्दा जाव हीणस्सरता दीण- ४. णीतागोतस्स (क, घ) स्सरता अणिस्सरता अकंतस्स रता जं वेदेति ५. सं० पा०-पुच्छा। गोयमा ! एवं चेव, सेसं तं चेव जाव चोद्दसविहे । णवरं-जातिविहीणया जाव इस्सरियविही२. सं० पा०—पुच्छा। णया। Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेवीसइम कम्मपगडिपयं २८९ परिणाम पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते ? गोयमा ! णीयागोयस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प अट्टविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा-जातिविहीणया कुलविहीणया बलविहीणया रूवविहीणया तवविहीणया सुयविहीणया लाभविहीणया इस्सरियविहीणया। जं वेदेति पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम तेसि वा उदएणं णीयागोयं कम्मं वेदेति । एस णं गोयमा ! णीयागोए कम्मे। एस णं गोयमा ! णीयागोयस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प' अढविहे अणुभावे पण्णत्ते॥ २३. अंतराइस्स णं भंते ! कम्मरस जीवेणं "बद्धस्स पुटुस्स बद्ध-फास-पुट्ठस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं णिव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तदुभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गतिं पप्प ठिति पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणाम पप्प कतिविहे अणुभावे पण्णत्ते ?° गोयमा ! अंतराइयस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा-दाणंतराए लाभंतराए भोगंतराए उवभोगंतराए वीरियंतराए। जं वेदेति पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं अंतराइयं कम्मं वेदेति । एस णं गोयमा! अंतराइए कम्मे । एस णं गोयमा ! अंतराइयस्स कम्मस्स जीवेणं वद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते॥ बीओ उद्देसो मूलोत्तरपयडिभेद-पदं २४. कति णं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-णाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं ॥ २५. णाणावरणिज्जे णं भंते पण्णत्ते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा–आभिणिवोहियणाणावरणिज्जे सुयणाणावरणिज्जे ओहिणाणावरणिज्जे मणपज्जवणाणावरणिज्जे केवलणाणावरणिज्जे ॥ २६. दरिसणावरणिज्जे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-णिद्दापंचए य दंसणचउक्कए य ॥ २७. णिद्दापंचए णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहाणिद्दा जाव' थीणद्धी॥ २८. दंसणचउक्कए णं भंते ! ५ कतिविहे पण्णत्ते ?° गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-चक्खदंसणावरणिज्जे जाव केवलदसणावरणिज्जे॥ २६. वेयणिज्जे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं १. सं० पा०-उदएणं जाव अट्टविहे । ४. थोणगिद्ध (क), थीणगिद्धी (घ)। २ सं० पा०—पुच्छा । ५. सं० पा०---पुच्छा। ३. प० २३/१४ । ६.५०२३॥१४॥ Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० जहा - सातावेदणिज्जे य असातावेयणिज्जे य ॥ ३०. सातावेयणजे णं भंते ! कम्मे पण्णत्ते, तं जहा- मणुण्णा सद्दा जाव' कायसुहया ॥ ३१. अस्साय वेदणिज्जे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठविहे पण्णत्ते, तं जहा - अमणुण्णा सद्दा जाव कायदुहया ॥ ३२. मोहणिज्जे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा दुविहे पण्णत्ते, तं जहादंसणमोहणिज्जे य चरित्तमोहणिज्जे य ॥ ३३. दंसणमोहणिज्जे गं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - सम्मत्तवेयणिज्जे मिच्छत्तवेय णिज्जे' सम्मामिच्छत्तवेय णिज्जे || पणवणा ३४. चरितमोहणिजे णं भंते! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - कसायवेयणिज्जे य णोकसायवेयणिज्जे य ॥ कतिविहे पण्णत्ते ?° गोयमा ! अट्ठविहे ३५. कसायवेयणिज्जे णं भंते! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलसविहे पण्णत्ते, तं जहा - अणताणुबंधी कोहे अणताणुबंधी माणे अणताणुबंधी माया अणंताणुबंधी लोभे, अपच्चक्खाणे कोहे एवं माणे माया लोभे, पच्चक्खाणावरणे कोहे एवं माणे माया लोभे, संजलणे कोहे एवं माणे माया लोभे ॥ ३६. णोकसायवेयणिज्जे गं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! णवविहे पण्णत्ते, तं जहा - इत्थिवेए पुरिसवेए णपुंसग वेदे हासे रती अरती भए' सोगे दुगंछा ॥ ३७. आउ णं भंते! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा -- णेरइयाउए जाव' देवाउए । ३८. णामे णं भंते! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! बायालीसविहे " पण्णत्ते, तं जहा - गतिणामे जाइणामे सरीरणामे सरीरंगोवंगणामे सरीरबंधणणामे सरीरसंघायणा में ' संघयणणामे संठाणणामे वण्णणामे गंधणामे रसणामे फासणामे अगुरुलहुणामे उवघायणामे पराधायणामे आणुपुव्वीणामे उस्सारणामे आयवणामे उज्जोयणामे विहायगतिणामे' तणामे थावरणा मे सुहुमणामे वादरणामे पज्जत्तगणामे" अपज्जत्तगणामे" साहारणसरीरणामे पत्तेयसरीरणामे थिरणामे अथिरणामे सुभणामे असुभणामे सुभगणामे भगणामे सुसरणामे " दूसरणामे आदेज्जणामे अणादेज्जणामे जसोकित्तिणामे अजसो कित्तिणामे णिम्माणणामे तित्थगरणामे ॥ १. सं० पा० - पुच्छा । २. प० २३।१५ । ३. प० २३ । १६ । ४. वे णिज्जेय (क, ख, घ) । ५. भये (क, ख, घ) 1 ६. ० २३।१८ । ३६. गतिणामे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा -- णिरयगतिणामे तिरियगतिणामे मणुयगतिणामे देवगतिणामे || ७. बातालीस तिविहे (क. ख, घ) । ८. संघायणणामे (ग) । 8. विहायो° ( ग ) । १०. पज्जत्तणामे (ख,ग ) । ११. अपज्जत्तणामे ( ख, ग ) । १२. सुसरणामे (ख) । Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेवीसइमं कम्मपगडिपयं २६१ ४०. जाइणामे णं भंते ! कम्मे "कतिविहे पण्णत्ते ?° गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-एगिदियजाइणामे जाव पंचेंदियजाइणामे ॥ ४१. सरीरणामे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-ओरालियसरीरणामे जाव कम्मगसरीरणामे ।। ४२. सरीरंगोवंगणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-ओरालियसरीरंगोवंगणामे वेउव्वियसरीरंगोवंगणामे आहारगसरीरंगोवंगणामे ॥ ४३. सरीरबंधणणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-ओरालियसरीरबंधणणामे जाव कम्मगसरीरबंधणणामे ॥ ४४. सरीरसंघायणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा- ओरालियसरीरसंघातणामे जाव कम्मगसरीरसंघायणामे ।। ४५. संघयणणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा! छविहे पण्णत्ते, तं जहावइरोसभणारायसंघयणणामे उसभणारायसंघयणणामे णारायसंघयणणामे अद्धणारायसंघयणणामे खीलियासंघयणणामे छेवट्टसंघयणणामे' ।। ४६. संठाणणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! छविहे पण्णत्ते, तं जहासमचउरंससंठाणणामे णग्गोहपरिमंडलसंठाणणामे सातिसंठाणणामे 'वामणसंठाणणामे खुज्जसंठाणणामे" हुंडसंठाणणामे ॥ ४७. वण्णणामे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-कालवण्णणामे जाव सुक्किलवण्णणामे ।। - ४८. गंधणामे णं भंते ! कम्मे पुच्छा। गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुरभिगंधणामे दुरभिगंधणामे ॥ ४६. रसणामे णं पुच्छा। गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-तित्तरसणामे जाव महररसणामे ॥ ५०. फासणामे णं पुच्छा। गोयमा ! अट्ठविहे पण्णत्ते, तं जहा-कक्खडफासणामे जाव लुक्खफासणामे ॥ ५१. अगुरुलहुअणामे एगागारे पण्णत्ते ।। ५२. उवघायणामे एगागारे पण्णत्ते ॥ ५३. पराघायणामे एगागारे पण्णत्ते ॥ ५४. आणुपुविणामे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-णेरइयाणुपुविणामे जाव देवाणुपुविणामे ॥ ५५. उस्सासणामे एगागारे पण्णत्ते ॥ ५६. सेसाणि सव्वाणि एगागाराइं पण्णत्ताई जाव तित्थगरणामे, णवरं-विहायगति १. सं० पा०—पुच्छा। २. कीलिया' (क, ख, ग)। ३. छेवट्ठ (ख, घ)। ४. णिग्गोह° (ख)। ५. खुज्जे वामणे (ठाणं ६।३१)। Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं २६२ णा' दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पसत्थविहायगतिणामे' य अपसत्य विहायगतिणामे य ॥ ५७. गोए णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहाउच्चागोए य णीयागोए य ॥ ५८. उच्चागोए णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठविहे पण्णत्ते, तं जहा - जाइविसिया जाव' इस्सरियविसिट्टिया । एवं णीयागोए वि, णवरं - जातिविहीणया जाव' इस्सरिय विहीणया || ५६. अंतराइए णं भंते! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - दाणंतराइए जाव वीरियंतराइए ॥ कम्मपयडीणं ठिइ-पदं ६०. णाणावर णिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिण्णि य वाससहस्साई CTET, बाहूणिया कम्मठिती- कम्मणिसेगो ।। ६१. निद्दापंचयस्स णं भंते ! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं सागरोवमस्स तिष्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं तीसं सारोवमकोडाकोडीओ; तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती - कम्मणिसेगो || ६२. दंसणचउक्कस्स णं भंते ! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिण्णि य वाससहस्साई CTET, अबाहूणिया कम्मठिती - कम्मणिसेगो ।। ६३. सातावेयणिज्जस्स इरियावहियबंधगं पडुच्च अजहण्णमणुक्कोसेणं दो समया, संपराइयबंधगं पडुच्च जहण्णेणं बारस मुहुत्ता, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ ; पण रस य वाससलाई अवाहा, अबाहूणिया कम्मठिती- कम्मणिसेगो ॥ ६४. असायावेय णिज्जस्स जहणेणं सागरोवमस्स तिण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिण्णि व वाससहस्साइं CTET, अबाहूणिया कम्मठिती - कम्मणिसेगो ॥ ६५. सम्मत्तवेयणिज्जस्स पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छाट्ठ सागरोवमाइं साइरेगाई || ६६. मिच्छत्तवेयणिज्जस्स जहणेणं सागरोवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं सत्तरि कोडाकोडीओ; सत्त य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती - कम्मणिसेगो । ६७. सम्मामिच्छत्तवेदणिज्जस्स जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ॥ १. विहायो ( ग ) । २. विहागति (घ) ; विहायो' (ग ) । ३. विहागति (क, घ); विहायो' (ग ) । ४. प० २३।२१ । ५. प० २३ २२ । ६. प० २३।२३ । ७. इदमपृष्टस्य व्याकरणम् (हवृ ) । ८. उणता (क,घ ) ; ऊणिया ( ग ) । Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेवीसइम कम्मपगडिपयं २६३ ६८. कसायवारसगस्स जहण्णेणं सागरोवमस्स चत्तारि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; चत्तालीसं वाससताइं अबाहा', 'अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ६६. कोहसंजलणाए' पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं दो मासा,उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; चत्तालीसं वाससताईअबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्म°णिसेगो॥ ७०. माणसंजलणाए पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं मासं, उक्कोसेणं जहा कोहस्स ॥ ७१. मायासंजलणाए पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अद्धमासं, उक्कोसेणं जहा कोहस्स ॥ ७२. लोभसंजलणाए पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं जहा कोहस्स। ७३. इत्थिवेदस्स णं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवड्ढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं,उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ; पण्णरस य वाससताइं अबाहा, अबाहणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ७४. पुरिसवेयस्स णं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठ संवच्छराई, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाई अवाहा' 'अबाहूणिया कम्मठिती-कम्म°निसेगो॥ ७५. नपुंसगवेदस्स णं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं सागरोवमस्स दुण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीसति वाससताइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती--कम्मणिसेगो । ७६. हास-रतीणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमस्स एक्कं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणं, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससताई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ७७. अरइ-भय-सोग-दुगुंछाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीसतिं वाससताइं अबाहा, अबाहणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ७८. णेरइयाउयस्स णं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तमभहियाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुव्वकोडोतिभागमब्भहियाई॥ ७६. तिरिक्खजोणियाउयस्स पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुवकोडितिभागमब्भहियाइं । एवं मणूसाउयस्स वि ॥ ८०. देवाउयस्स जहा णेरइयाउयस्स ठिति त्ति ।। ८१. णिरयगतिणामाए णं भंते ! कम्मस्स पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवम १. सं पा०-अबाहा जाव णिसेगो । २. संजलणे (क,ख,ग,घ)। ३. सं० पा०-वाससताई जाव णिसेगो। ४. सं० पा०-अबाहा जाव णिसेगो। ५. मब्भइयाइं (क,घ)। ६. °णामए (क,ख,घ)। Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ पण्णवणासुतं सहस्सस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससताइं अबाहा, अवाहणिया कम्मठिती--कम्मणिसेगो॥ ८२. तिरियगतिणामाए जहा' णपुंसगवेदस्स ॥ ८३. मणुयगतिणामाए पुच्छा। गोयमा! जहण्णणं सागरोवमस्स दिवढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ; पण्णरस य वाससताइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ८४. देवगतिणामाए णं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स एक्कं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं जहा पुरिसवेयस्स ॥ ८५. एगिदियजाइणामाए णं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; 'वीस य" वाससताई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो।। ___ ८६. बेइंदियजातिणामाए णं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स णव पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अट्ठारस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ८७. तेइंदियजाइणामाए णं जहणणं एवं' चेव, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अट्रारस य वाससताइं अबाहा, अबाहणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो।। ८८. चउरिदियजाइणामाए णं पुच्छा । जहण्णेणं सागरोवमस्स नव पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अट्ठारस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ८६. पंचेंदियजाइणामाए णं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो । ओरालियसरीरणामाए वि एवं चेव ॥ १०. वेउव्वियसरीरणामाए णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडा कोडीओ; वीस य वाससताइं अबाहा, अवाहूणिया कम्मठिती- कम्मणिसेगो॥ ६१. आहारगसरीरणामाए जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेण वि अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ।। ६२. तेया-कम्मसरीरणामाए जहण्णेणं [सागरोवमस्स ? ] दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवकोडाकोडीओ; वीस य वाससताई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो। ओरालिय-वेउन्विय-आहारगसरीरंगोवंगणामाए तिण्णि वि एवं चेव । सरीरबंधणणामाए वि पंचण्ह वि एवं चेव ।। १.५० २३७५। २.५० २३१७४। ३. वीसइ (क,ख,ग,घ)। ४. प० २३३८६ । Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेवीसइम कम्मपगडिपयं २६५ ६३. सरीरसंघायणामाए वि पंचण्ह वि जहा सरीरणामाए कम्मस्स ठिति त्ति ॥ ६४. वइरोसभणारायसंघयणणामाए जहा' रतिणामाए । ६५. उसभणारायसंघयणणामाए पुच्छा । गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमस्स छ पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं बारस सागरोवमकोडाकोडीओ; बारस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ६६. णारायसंघयणणामाए जहण्णेणं सागरोवमस्स सत्त पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं चोद्दस सागरोवमकोडाकोडीओ; चोद्दस य वाससताइ अबाहा, अबाणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो।।। ६७. अद्धणारायसंघयणणामस्स जहण्णणं सागरोवमस्स अट्ठ पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेण सोलस सागरोवमकोडाकोडीओ; सोलस य वाससताइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो।। ६८. खीलियासंघयणे' णं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स णव पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अट्ठारस य वाससयाई अवाहा, अवाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो । ६६. छेवट्टसंघयणणामस्स पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाइं अबाहा, अवाहूणिया कम्मठिती - कम्मणिसेगो॥ १००. एवं जहा संघयणणामाए छ भणिया एवं संठाणाए वि छ भाणियव्वा ।। १०१. सुक्किलवण्णनामाए पुच्छा । गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असं खिज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो।।। १०२. हालिद्दवण्णणामाए पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स पंच अट्ठावीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं अद्धतेरस सागरोवमकोडाकोडीओ; अद्धतेरस य वाससयाई अबाहा, अवाणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो।। १०३. लोहियवण्णणामाए णं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स छ अट्ठावीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ; पण्णरस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो।। १०४. णीलवण्णणामाए पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स सत्त अट्ठावीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं अद्धद्वारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अट्ठारस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती--कम्मणिसेगो।। १०५. कालवण्णणामाए जहा" छेवट्टसंघयणस्स ॥ १०६. सुब्भिगंधणामाए पुच्छा। गोयमा ! जहा सूक्किलवण्णणामस्स ॥ १. प० २३१८६-६२ । २. प० २३१७६ । ३. कीलिया (ग)। ४. हलिद्द° (क,घ)। ५. प० २३।१६। ६. प० २३।१०१। Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ पण्णवणासुत्तं १०७. दुब्भिगंधणामाए जहा' छेवट्टसंघयणस्स ॥ १०८. रसाणं महुरादीणं जहा वण्णाणं भणियं तहेव परिवाडीए भाणियव्वं ॥ १०६. फासा जे अपसत्था तेसिं जहा' छेवट्टस्स, जे पसत्था तेसिं जहा सुक्किलवण्णणामस्स ॥ ११०. अगुरुलहुणामाए जहा' छेवट्टस्स । एवं उवघायणामाए वि। पराघायणामाए वि एवं चेव ॥ १११. णिरयाणपुग्विणामाए पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ११२. तिरियाणुपुवीए पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससताइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मणिसेगो॥ ११३. मणुयाणुपुविणामाए णं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवड्ढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ; पण्णरस य वाससयाइं अवाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ११४. देवाणपूविणामाए पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमसहस्सस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससताइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ११५. उस्सासणामाए पुच्छा । गोयमा ! जहा' तिरियाणुपुवीए । आयवणामाए वि एवं चेव, उज्जोवणामाए वि॥ ११६. पसत्थविहायगतिणामाए पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगं सागरोवमस्स सत्तभागं, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससताई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ११७. अपसत्थविहायगतिणामस्स पुच्छा । गोयमा ! जहणणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो। तसणामाए थावरणामाए य एवं चेव ।। ११८. सुहमणामाए पुच्छा । गोयमा जहण्णेणं सागरोवमस्स णव पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अट्ठारस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ ११६. बादरणामाए जहा अप्पसत्थविहायगतिणामस्स ।। १. प० २३१६६। २. प०२३।१०१-१०५ । ३. प० २३॥६६ । ४.५० २३।१०१। ५. प० २३।६६ । ६. प० २३।११२। ७. प० २३।११७। Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेवीसइमं कम्मपगडिपयं २९७ १२०. एवं पज्जत्तगणामाए वि । अपज्जत्तगणामाए जहा' सुहुमणामस्स ।। १२१. पत्तेययरीरणामाए वि दो सत्तभागा। साहारणसरीरणामाए जहा' सुहुमस्स ॥ १२२. थिरणामाए एगं सत्तभागं । अथिरणामाए दो ॥ १२३. सुभणामाए एगो । असुभणामाए दो॥ १२४. सुभगणामाए एगो। दूभगणामाए दो। १२५. सूसरणामाए एगो। दूसरणामाए दो । १२६. आएज्जणामाए एगो । अणाएज्जणामाए दो। १२७. जसोकित्तिणामाए जहण्णेणं अट्ठ मुहुत्ता, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससताइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ १२८. अजसोकित्तिणामाए पुच्छा। गोयमा ! जहा' अपसत्थविहायगतिणामस्स । एवं णिम्माणणामाए वि ॥ १२९. तित्थगरणामाए णं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेण वि अंतोसागरोवकोडाकोडीओ। १३०. एवं जत्थ एगो सत्तभागो तत्थ उक्कोसेणं दस सागरोबमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो। जत्थ दो सत्तभागा तत्थ उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडाओ वीस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ १३१. उच्चागोयस्स पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठ मुहुत्ता, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ १३२. णीयागोयस्स पुच्छा । गोयमा ! जहा अप्पसत्थविहायगतिणामस्स ॥ १३३. अंतराइयस्स णं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ एगिदिएसु कम्मपयडीणं ठिइबंध-पदं १३४. एगिदिया णं भंते ! जीवा णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति ? गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमस्स तिण्णि सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति । एवं णिद्दापंचकस्स वि सणचउक्कस्स वि ।। १३५. एगिदिया णं भंते ! जीवा सातावेयणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति ? गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवड्ढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति ॥ १३६. असायावेयणिज्जस्स जहा' णाणावरणिज्जस्स ॥ १३७. एगिदिया णं भंते ! जीवा सम्मत्तवेयणिज्जस्स कम्मस्स कि बंधंति ? गोयमा णत्थि किंचि बंधंति ॥ ५. प०२३।१३४ । १-२. प० २३।११८ । ३-४. प० २३॥१७॥ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ पण्णवणासुत्तं १३८. एगिदिया णं भंते ! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति ? गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति ॥ १३६. एगिदिया णं भंते ! जीवा सम्मामिच्छत्तवेयणिज्जस्स किं बंधति ? गोयमा ! णत्थि किंचि बंधंति ॥ १४०. एगिदिया णं भंते ! कसायबारसगस्स किं बंधंति ? गोयमा ! जहणणं सागरोवमस्स चत्तारि सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति । एवं कोहसंजलणाए वि जाव लोभसंजलणाए वि।। १४१. इत्थिवेयस्स जहा' सायावेय णिज्जस्स ।। १४२. एगिदिया पुरिसवेदस्स कम्मस्स जहण्णणं सागरोवमस्स एक्कं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, ऊक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति ॥ १४३. एगिदिया णपुंसगवेदस्स कम्मस्स जहण्णेणं सागरोवमस्स दो सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति ॥ १४४. हास-रतीए जहा' पुरिसवेयस्स ॥ १४५. अरति-भय-सोग-दगंछाए जहाणपंसगवेयस्स॥ १४६. णेरइयाउय देवाउय णिरयगतिणाम देवगतिणाम वेउब्वियसरीरणाम आहारगसरीरणाम णेरइयाणुपुग्विणाम देवाणुपुव्विणाम तित्थगरणाम एयाणि पयाणि ण बंधंति॥ १४७. तिरिक्खजोणियाउयस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुत्वकोडि' सत्तहिं वाससहस्सेहिं वाससहस्सतिभागेण य अहियं बंधति । एवं मणुस्साउयस्स वि ॥ १४८. तिरियगतिणामाए जहा' णपुंसगवेदस्स ॥ १४६. मणुयगतिणामाए जहा सातावेदणिज्जस्स ।। १५०. एगिदियजाइणामाए पंचेंदियजातिणामाए य जहाणपुंसगवेदस्स ॥ १५१. बेइंदिय-तेइंदियजातिणामाए जहण्णेणं सागरोवमस्स णव पणतीसतिभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधति ॥ १५२. चउरिदियनामाए वि जहण्णणं सागरोवमस्स णव पणतीसतिभागे पलिओवमस्स असंखिज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं जत्थ जहण्णगं दो सत्तभागा तिण्णि वा चत्तारि वा सत्तभागा अट्ठावीसतिभागा भवंति तत्थ णं जहण्णणं ते चेव पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा भाणियव्वा,उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति । जत्थ णं जहण्णणं एगो वा दिवड्ढो वा सत्तभागो तत्थ जहण्णेणं तं चेव भाणियव्वं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति ।। १.५० २३।१३५। २.५० २३।१४२ । ३. प० २३।१४३। ४. विभक्तिरहितं पदम् । ५. एयाणि णव (ग)। ६. पुवकोडी (क,ख,ग,घ)। ७. प० २३।१४३ । ८.५० २३।१३५ ६. प०२३।१४३। Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेवीसइमं कम्मपगडिपयं २९६ १५३. जसोकित्ति-उच्चागोयाणं जहणणं सागरोवमस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति ।। १५४. अंतराइयस्स णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! जहा' णाणावरणिज्जस्स जाव उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधति ।। बेइंदिएसु कम्मपयडीणं ठिइबंध-पदं १५५. बेइंदिया णं भंते ! जीवा णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति ? गोयमा ! जहण्णणं साग रोवमपणुवीसाए तिण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति । एवं णिहापंचगस्स वि ॥ १५६. एवं जहा एगिदियाणं भणियं तहा बेइंदियाण वि भाणियव्वं, णवरं-सागरोवमपणुवीसाए' सह भाणियव्वा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणा, सेसं तं चेव, जत्थ एगिदिया ण बंधति तत्थ एते वि ण बंधंति ॥ १५७ बेइंदिया णं भंते ! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स किं बंधंति ? गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमपणुवीसं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति ॥ १५८. तिरिक्खजोणियाउअस्स जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडि चउहिं वासेहिं अहियं बंधंति । एवं मणयाउअस्स वि ॥ १५९. सेसं जहा एगिदियाणं जाव अंतराइयस्स ।। तेइंदिएसु कम्मपयडीणं ठिइबंध-पदं १६०. तेइंदिया णं भंते ! जीवा णाणावरणिज्जस्स किं बंधति ? गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमपण्णासाए तिण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति । एवं जस्स जइ भागा ते तस्स सागरोवमपण्णासाए सह भाणियव्वा ॥ १६१. तेइंदिया णं भंते !जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति ? गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमपण्णासं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति ॥ १६२. तिरिक्खजोणियाउअस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडि सोलसहि राइंदिएहिं राइंदियति भागेण य अहियं बंधंति । एवं मणुस्साउयस्स वि । १६३. सेसं जहा बेइंदियाणं जाव अंतराइयस्स ।। चरिदिएसु कम्मपयडीणं ठिइबंध-पदं १६४. चउरिदिया णं भंते ! जीवा णाणावरणिज्जस्स किं बधंति ? गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसयस्स तिण्णि सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधति । एवं जस्स जइ भागा ते तस्स सागरोवमसतेण सह भाणियव्वा ॥ १६५. तिरिक्ख जोणियाउअस्स कम्मस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडिं १. प०२३।१३४। २. °पणुवीसा (क,ख,घ)। Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० दो माह अहियं । एवं मणुस्साउअस्स वि ॥ १६६. .सेसं जहा बेइंदियाणं, णवरं - मिच्छत्तवेयणिज्जस्स जहणेणं सागरोवमसतं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति । [ सेसं जहा इंदिया ] जाव अंतराइयस्स ॥ अण्णी कम्मपयडीणं ठिइबंध-पदं १६७. असण्णी णं भंते! जीवा पंचेंदिया णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति ? गोयमा ! जहणेणं सागरोवमसहस्सस्स तिण्णि सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुणे बंधंति । एवं सो चेव गमो जहा बेइंदियाणं, णवरं - सागरोवमसहस्सेण समं भाणियव्वा जस्स जति भाग त्ति ॥ १६८. मिच्छत्तवेदणिज्जस्स जहणणेणं सागरोवमसहस्सं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं ॥ १६६. णेरइयाउअस्स जहणणेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुव्वकोडितिभागमब्भहियं बंधति ॥ १७०. एवं तिरिक्खजोणियाउयस्स वि, णवरं जहणणं अंतोमुहुत्तं । एवं मणुस्साउस्सवि । देवा यस्स जहा णेरइयाउयस्स ।। १७१. असण्णी णं भंते! जीवा पंचेंदिया णिरयगतिणामाए कम्मस्स कि बंधति ? गोयमा ! जहणेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुणे ॥ १७२. एवं तिरियगतीए वि । मणुयगतिणामाए वि एवं चेव, णवरं जहणेणं सागरोवमसहस्सस्स दिवढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चैव पडणं बंधंति । एवं देवगतिणामाए वि, णवरं - जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स एवं सत्तभागं पलिओ मस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं ॥ १७३ वेउव्वियसरीरणामाए पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागे पओिवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं दो पडिपुणे बंधंति ॥ १७४. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त आहारगसरीरणामाए तित्थगरणामाए य ण किंचि बंधति ॥ पण्णवणासुत्त १७५. अवसिद्धं जहा बेइंदियाणं, णवरं --- जस्स जत्तिया भागा तस्स ते सागरोवमसहस्सेणं सहभाणियव्वा सव्वेसि आणुपुव्वीए जाव अंतराइयस्स ।। सणी कम्मपयडीणं ठिइबंध-पदं १७६. सण्णी णं भंते ! जीवा पंचेंदिया णाणावरणिज्जस्स कम्मरस कि बंधति ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिणिय वाससहस्साइं अवाहा, अवाहूणिया कम्मठिती- कम्मणिसेगो ॥ १७७. सण्णी णं भंते ! पंचेंदिया णिद्दापंचगस्स कि बंधंति ? गोयमा ? जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिष्णि य वास १. एष पाठ: पुनरावृत्तिरूपोस्ति । Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेवीसइमं कम्मपगडिपयं ३०१ वाससहस्साई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो॥ १७८. दसणचउक्कस्स जहा णाणावरणिज्जस्स ॥ १७६. सातावेदणिज्जस्स जहा ओहिया ठिती भणिया तहेव भाणियव्वा इरियावहियबंधयं पडुच्च संपराइयबंधयं च ।। १८०. असातावेयणिज्जस्स जहा णिद्दापंचगस्स ॥ १८१. सम्मत्तवेदणिज्जस्स सम्मामिच्छत्तवेदणिज्जस्स य जा ओहिया ठिती भणिया तं बंधंति ॥ १८२. मिच्छत्तवेदणिज्जस्स जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ; सत्त य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठितीकम्मणिसेगो॥ १८३. कसायबारसगस्स जहण्णेणं एवं चेव, उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; चत्तालीस य वाससयाइं अबाहा, अबाहणिया कम्मठिती-कम्मणिसेगो।। १८४. कोह-माण-माया-लोभसंजलणाए य दो मासा मासो अद्धमासो अंतोमुत्तो एयं जहण्णगं, उक्कोसगं पुण जहा कसायबारसगस्स ।। १८५. चउण्ह वि आउयाणं जा ओहिया ठिती भणिया तं बंधंति ।। १८६. आहारगसरीरस्स तित्थगरणामाए य जहण्णणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ. उक्कोसेण वि अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ बंधंति ।। १८७. पुरिसवेदस्स जहण्णेणं अट्ठ संवच्छराई, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती-कम्मणि सेगो ।। १८८. जसोकित्तिणामाए उच्चागोयस्स य एवं चेव, णवरं -जहण्णणं अट्ठ मुहुत्ता ।। १८६. अंतराइयस्स जहा णाणावरणिज्जस्स ॥ १६०. सेसएसु सव्वेसु ठाणेसु संघयणेसु संठाणेसु वण्णेसु गंधेसु य जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेणं जा जस्स ओहिया ठिती भणिया तं बंधति, णवरं इम णाणत्तं-अवाहा अबाहूणिया ण वुच्चति । एवं आणुपुव्वीए सव्वेसिं जाव अंतराइयस्स ताव भाणियव्वं ॥ जहण्णठिइबंधग-पदं - १६१. णाणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जहण्णठितिबंधए के ? गोयमा ! अण्णयरे सुहमसंपराए-उवसामए वा खवए' वा, एस णं गोयमा ! णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स जहण्णठितिबंधए, तव्वइरित्ते अजहण्णे । एवं एतेणं अभिलावेणं मोहाउयवज्जाणं सेसकम्माणं भाणियव्वं ।। १६२. मोहणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जहण्णठितिबंधए के ? गोयमा! अण्णयरे बायरसंपराए-उवसामए वा खवए वा, एस णं गोयमा ! मोहणिज्जस्स कम्मस्स जहण्णठितिबंधए, तव्वतिरित्ते अजहण्णे ॥ १६३. आउयस्स णं भंते ! कम्मस्स जहण्णठितिबंधए के ? गोयमा ! जे णं जीवे १. खवगए (क,ग,घ); खमए (ख) । Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ पण्णवणासुत्तं असंखेप्पद्धप्पविठे सव्वणिरुद्धे से आउए, सेसे सव्वमहंतीए आउयबंधद्धाए, तीसे णं आउयबंधद्धाए चरिमकालसमयंसि सव्वजहणियं ठिई पज्जत्तापज्जत्तियं णिव्वत्तेति । एस णं गोयमा ! आउयकम्मस्स जहण्णठितिबंधए, तव्वइरित्ते अजहणे ॥ उक्कोसठिइबंधग-पदं १६४. उक्कोसकालठितीयं णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं किं णेरइओ बंधति तिरिक्खजोणिओ बंधति तिरिक्खजोणिणी बंधति मणुस्सो बंधति मणुस्सी बंधति देवो बंधति देवी बंधति ? गोयमा ! णेरइओ वि बंधति जाव देवी वि बंधति ॥ १६५. केरिसए णं भंते ! णेरइए उक्कोसकालठितीयं णाणावरणिज्जं कम्मं बंधति ? गोयमा ! सण्णी पंचिदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्ते सागारे जागरे सुतोवउत्ते' मिच्छादिट्ठी कण्हलेसे उक्कोससंकि लिट्ठपरिणामे ईसिमज्झिमपरिणामे वा, एरिसए णं गोयमा ! रइए उक्कोसकालठितीयं णाणावरणिज्ज कम्मं बंधति ॥ १६६. केरिसए णं भंते ! तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालठितीयं णाणावरणिज्ज कम्म बंधति ? गोयमा ! कम्मभूमए वा कम्मभूमगपलिभागी वा सण्णी पंचें दिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए, सेसं तं चेव जहा जेरइयस्स । एवं तिरिक्खजोणिणी वि, मणूसे वि मणूसी वि। देव-देवी जहा णेरइए॥ १६७. एवं आउयवज्जाणं सत्तण्डं कम्माणं ॥ १९८. उक्कोसकालठितीयं णं भंते ! आउयं कम्मं किं णेरइओ बंधइ जाव देवी बंधइ ? गोयमा ! णो णेरइओ बंधति, तिरिक्खजोणिओ बंधति, णो तिरिक्खजोणिणी बंधति, मणुस्सो वि बंधति, मणुस्सी वि बंधति, णो देवो बंधति, णो देवी बंधति ॥ १६६. केरिसए णं भंते ! तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालठितीयं आउयं कम्मं बंधति ? गोयमा ! कम्मभूमए वा कम्मभूमगपलिभागी वा सण्णी पंचेंदिए सव्वा हि पज्जत्तीहिं पज्जत्तए सागारे जागरे सुतोवउत्ते मिच्छद्दिट्ठी परमकिण्हलेस्से उक्कोससंकिलिट्ठपरिणामे, एरिसए णं गोयमा ! तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालठितीयं आउयं बंधति ॥ २००. केरिसए णं भंते ! मणूसे उक्कोसकाल ठितीयं आउयं कम्मं बंधति ? गोयमा ! कम्मभूमगे वा कम्मभूमगपलिभागी वा' 'सण्णी पंचेंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए सागारे जागरे° सुतोवउत्ते सम्मट्ठिी वा मिच्छट्टिी वा कण्हलेसे वा सुक्कलेसे वा णाणी वा अण्णाणी वा उक्कोससंकिलिट्ठपरिणामे वा तप्पाउग्गविसुज्झमाणपरिणामे वा, एरिसए णं गोयमा ! मणसे उक्कोसकाल ठिईयं आउयं कम्मं बंधति ।। २०१. केरिसिया णं भंते ! मणूसी उक्कोसकालठितीयं आउयं कम्मं बंधति ? गोयमा ! कम्मभूमिगा वा कम्मभूमगपलिभागी वा 'सण्णी पंचेंदिया सव्वाहिं पज्जत्तीहिं १. असंखेप्पद्धापविठे (क)। २. ठियं (क,ख,ग,घ); मलयगिरिणा स्थिति- मितिगम्यते' इति लिखितम्, तेनानुमीयते वृत्तिकारेण नासौ पाठः साक्षाल्लब्धः । ३. सुत्तोवउत्ते (क)। ४. सं० पा०-कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सत्तोव उत्ते। ५. सं० पा०—कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुत्तोवउत्ता। Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेवीसइमं कम्मपगडिपयं ३०३ पज्जत्तीया सागारा जागरा सुतोवउत्ता सम्मट्ठिी सुक्कलेस्सा तप्पाउग्गविसुज्झमाणपरिणामा एरिसिया णं गोयमा ! मणुस्सी उक्कोसकालठितीयं आउयं कम्मं बंधति ॥ २०२. अंतराइयं जहा णाणावरणिज्ज । १. 'एवं आउयवज्जाणं सत्तण्हं कम्माणं १९८' इति सूत्रस्य सन्दर्भे प्रस्तुतसूत्रस्य पुनरावृत्तिः परिभाव्यते । Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउवीसइमं कम्मबंधपयं १. कति णं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! अटु कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–णाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं । एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ॥ २. जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं वंधमाणे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा ।। ३. णेरइए णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं बंधमाणे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अविहबंधए वा। एवं जाव वेमाणिए, णवरं-मणसे जहा जीवे॥ ४. जीवा णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगे य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य छव्विहबंधगा य ३॥ ५. णेरइया णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगे य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य ३, तिण्णि भंगा। एवं जाव थणियकुमारा॥ ६. पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा ! सत्तविहबंधगा वि अट्ठविहबंधगा वि। एवं जाव वणस्सतिकाइया ॥ ७. वियलाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य तियभंगो-सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधए य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य ३॥ ८. मणसा णं भंते ! णाणावरणिज्जस्स पुच्छा । गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अदविहबंधगा य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य छव्विहबंधए य ४ अहवा सत्तविहबंधगा य छव्विहबंधगा य ५ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य छव्विहबंधए य ६ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छव्विहबंधगा य ७ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधए य ८ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य ६, एवं एते ३०४ Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चवीस इमं कम्मबंधपयं ३०५ णव भंगा। सेसा वाणमंतराइया जाव वेमाणिया जहा ' णेरइया सत्तविहादिबंधगा भणिया तहा भाणियव्वा || ६. एवं जहा णाणावरणं बंधमाणा जाहिं भणिया दंसणावरणं पि बंधमाणा ताहि जीवादीया एगत्त- पोहत्तेहिं भाणियव्वा ॥ १०. वेयणिज्जं बंधमाणे जीवे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए अधि वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा । एवं मणूसे वि । सेसा णारगादीया सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य जाव वेमाणिए || ११. जीवा णं भंते ! वेयणिज्जं कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोमा ! सव्वे वि ताव होज्जा 'सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य १ अहवा" सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य २ अहवा सत्तविहबंधगाय अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगा य ३ । अवसेसा णारगादीया जाव वेमाणिया जाओ णाणावरणं बंधमाणा बंधंति ताहि भाणियव्वा, णवरं १२. मणूसा णं भंते! वेदणिज्जं कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगाय अट्ठविहबंधए य २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविह गाय ३ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य ४ अहवा सत्तविहबंधा य गहिबंधगा य छव्विहबंधगा य ५ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अहिबंध य छविबंधए य ६ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधए छव्हिबंधगाय ७ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंध अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य एवं णव भंगा। १३. मोहणिज्जं बंधमाणे जीवे कति कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! जीवेगिदियवज्जो तियभंगो । जीवेगिदिया सत्तविहबंधगा वि अट्ठविहबंधगा वि ॥ १४. जीवे णं भंते ! आउयं कम्मं बंधमाणे कति कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा णियमा अट्ठ । एवं रइए जाव वेमाणिए । एवं पुहत्तेण वि ॥ १५. णाम - गोय- अंतरायं बंधमाणे जीवे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! जाओ णाणावरणिज्जं बंधमाणे बंधइ ताहि भाणियव्वो । एवं णेरइए वि जाव वेमाणिए । एवं हत् विभाणियव्वं ॥ १. प० २४।५ । २. सं० पा० - पुच्छा । ३. चिन्हाङ्कितः पाठः प्रयुक्तादर्शेषु नास्ति । असौ वृत्याधारेण स्वीकृतः । वृत्तौ त्रयो विकल्पा विद्यन्ते - इह जीवाः सप्तविधबन्धकाः अष्टविधबन्धकारच सदैव बहुत्वेन लभ्यन्ते, षड्विधबन्धकस्तु कदाचित्सर्वथा न भवति, षण्मासान् यावत् उत्कर्षतस्तदन्तरस्य प्रतिपादनाद्, यदापि लभ्यते तदापि जघन्यपदे एको द्वौ वा उत्कर्षतोऽष्टाधिकं शतं तत्र यदेकोऽपि न लभ्यते तदा प्रथमो भङ्गः, यदा त्वेको लभ्यते तदा द्वितीय, बहूनां लाभे तु तृतीय इति । ४. भंगा भाणियव्वा (क, ग, घ ) । Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचवीसइमं कम्मबंधवेयपय १. कति णं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ? गोयमा! अट्ट कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहा णाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं । एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं ॥ २. जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं बंधमाणे कति कम्मपगडीओ वेदेति ? गोयमा ! णियमा अट्ठ कम्मपगडीओ वेदेति । एवं णेरइए जाव वेमाणिए । एवं पुहत्तेण वि॥ ३. एवं वेयणिज्जवज्जं जाव अंतराइयं ।। ४. जीवे णं भंते ! वेयणिज्जं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ वेदेइ ? गोयमा ! सत्तविहवेयए वा अट्ठविहवेयए वा चउविहवेयए वा । एवं मणूसे वि । सेसा णेरइयाई एगतेण वि पुहत्तेण वि णियमा अट्ट कम्मपगडीओ वेदेति जाव वेमाणिया ॥ .. ५. जीवा णं भंते ! वेदणिज्जं कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीओ वेदेति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा अट्ठविहवेदगा य चउविहवेदगा य १ अहवा अट्ठविहवेदगा य चउविहवेदगा य सत्तविहवेदगे य २ अहवा अट्ठविहवेदगा य चउव्विहवेदगा य सत्तविहवेदगा य ३ । एवं मणूसा वि भाणियव्वा । Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छodiaइमं कम्मवेयबंधपयं १. कति णं भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - णाणावर णिज्जं जाव अंतराइयं । एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं || २. जीवे णं भंते ! णाणावर णिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा ॥ ३. रइए णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा । एवं जाव वेमाणिए । मणूसे जहा जीवे || ४. जीवा णं भंते ! णाणावर णिज्जं कम्मं वेदेमाणा कति कम्म पगडीओ बंधंति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य १ अहवा सत्तविहबंधगा अहिबंधगाय छव्विहबंधए य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगाय ३ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगे य ४ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य ५ अहवा सत्तविहबंधगा य बंधा छविहबंधए य एगविहबंधए य ६ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छविबंध य एगविहबंधगा य ७ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य एगविहबंधए य ८ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा विधाय ६, एवं एते नव भंगा। अवसेसाणं एगिदिय- मणूसवज्जाणं तियभंगो' जाव वेमाणियाणं ॥ ५. एगिंदिया णं सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य ॥ ६. मणूसाणं पुच्छा । गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा १ अहवा सत्तविधगाय अहिबंधगे य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य ३ अहवा सत्तविहबंधगाय छव्विहबंधए य, एवं छव्विहबंधएण वि समं दो भंगा ५ एगविहबंधएण वि समं दो भंगा ७ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य छव्विहबंधए य चउभंगो ११ अहवा सत्तविहबंधगाय अट्ठविहबंधए य चउभंगो १५ अहवा सत्तविहबंधगा य छव्विहबंध य एगविहबंध य चउभंगो १६ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य छव्विहबंध विधय भंगा अट्ठ २७, एवं एते सत्तावीसं भंगा ॥ ७. एवं जहा णाणावर णिज्जं तहा दरिसणावरणिज्जं पि अंतराइयं पि ॥ १. तियभंगा ( ग ) । ३०७ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ पण्णवणासुत्तं ८. जीवे णं भंते ! वेयणिज्ज कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा अबंधए वा । एवं मणूसे वि। अवसेसा णारगादीया सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य। एवं जाव वेमाणिए । ६. जीवा णं भंते ! वेदणिज्ज कम्मं वेदेमाणा कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगा य ३ अबंधगेण वि समं दो भंगा भाणियव्वा ५ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधए य अबंधए य चउभंगो , एवं एते णव भंगा। एगिदियाणं अभंगयं । णारगादीणं तियभंगो जाव वेमाणियाणं, णवरं १०. मणूसाणं पुच्छा । गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तबिहबंधगा य एगविहबंधगा य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छबिहबंधए य अट्ठविहबंधए य अबंधए य, एवं एते सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा जहा' किरियासु पाणाइवायविरतस्स ।। ११. एवं जहा वेदणिज्ज तहा आउयं णामं गोयं च भाणियव्वं ।। १२. मोहणिज्जं वेदेमाणे जहां बंधे णाणावरणिज्जं तहा भाणियव्वं ॥ १. प० २२।१६। २. प० २४॥२-८ । Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तावीसइमं कम्मवेयवेयगपयं १. कति णं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! अट्ठ, तं जहा - णाणावर णिज्जं जाव अंतराइयं । एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ।। २. जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ वेदेति ? गोयमा ! सत्तविहवे दए वा अट्ठविहवेदए वा । एवं मणूसे वि । अवसेसा एगत्तेण वि पुहत्तेण विनियमा अविकम्मपगडीओ वेदेंति जाव वैमाणिया || ३. जीवा णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणा कति कम्मपगडीओ वेदेति ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा अट्ठविहवेदगा १ अहवा अट्ठविहवेदगाय सत्तविहवेदगे य २ अहवा अट्ठविहवेदगा य सत्तविहवेदगाय ३ । एवं मणूसा वि ।। ४. दरिसणावरणिज्जं अंतराइयं च एवं चैव भाणियव्वं ॥ ५. वेदणिज्ज आउअ - णाम- गोयाइं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ वेदेति ? गोयमा ! जहा' बंधगवेयगस्स वेदणिज्जं तहा भाणियव्वं ॥ ६. जीवे णं भंते ! मोहणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ वेदेति ? गोयमा ! forमा अट्ठ कम्मपगडीओ वेदेति । एवं णेरइए जाव वेमाणिए । एवं पुहत्तेण वि ॥ १. प० २५४,५ । ३०६ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावीसइमं आहारपयं पढमो उद्देसओ गाहा १,२ सच्चित्ताहारट्ठी' ३ केवति ४ किं वा वि ५ सव्वओ चेव । ६ कतिभागं ७ सव्वे खलु, ८ परिणामे चेव बोधव्वे ॥१॥ ६ एगिदिसरीरादी, १० लोमाहारे तहेव ११ मणभक्खी । एतेसिं तु' पयाणं, विभावणा होइ कायव्वा ॥२॥ सचित्ताहार-पदं १.णेरइया णं भंते ! किं सचित्ताहारा अचित्ताहारा मीसाहारा ? गोयमा ! णो सचित्ताहारा, अचित्ताहारा, णो मीसाहारा । एवं असुरकुमारा जाव वेमाणिया ॥ २. ओरालियसरीरी' जाव मणूसा सचित्ताहारा वि अचित्ताहारा वि मीसाहारा वि ॥ नेरइएसु आहारट्टिआइसत्तग-पदं । ३. णेरइया णं भंते ! आहारट्ठी ? हंता गोयमा ! आहारठ्ठी ॥ ४. णेरइयाणं भंते ! केवतिकालस्स आहारठे समुप्पज्जति ? गोयमा ! णेरइयाणं आहारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आभोगणिव्वत्तिए य अणाभोगणिव्वत्तिए य । तत्थ णं जेसे अणाभोगणिव्वत्तिए से णं अणु समयमविरहिए आहारट्ठे समुप्पज्जति । तत्थ णं जेसे आभोगणिव्वत्तिए से णं असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए आहारट्टे समुप्पज्जति ॥ ५.णेरडया णं भंते ! किमाहारमाहारेंति? गोयमा ! दवओ अणंतपदेसियाई दव्वाइं, खेत्तओ असंखेज्जपदेसोगाढाइं, कालतो अण्णतरठितियाई, भावओ वण्णमंताई गंधमंताई रसमंताई फासमंताई।। ६. जाइं भावओ वण्णमंताई आहारेंति ताई कि एगवण्णाइं आहारति जाव किं पंचवण्णाई आहारेंति ? गोयमा ! ठाणमग्गणं पडुच्च एगवण्णाई पि आहारेति जाव १. सचित्ता (क,ख,घ)। भिगमे (११३३) पि एवमेव दृश्यते । २. त्थ (क)। ५. अण्णतरकालठितियाइं (क,ग,घ); अणंतर३. ओरालियसरीरा (क,ख,ग)। कालठितियाई (ख)। ४. एतत्पदं वृत्त्याधारण स्वीकृतम, जीवाजीवा ३१० Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ agarati आहारपर्यं पंचवण्णाई पि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च कालवण्णाई पि आहारेंति जाव सुक्किलाई पि आहारेंति ॥ ७. जाई वण्णओ कालवण्णाई आहारेंति ताइं कि एगगुणकालाई आहारेंति जाव दसगुणकालाई आहारेंति ? संखेज्जगुणकालाई असंखेज्जगुणकालाई अनंतगुणकालाई आहारेंति ? गोयमा ! एगगुणकालाई पि आहारेंति जाव अनंतगुणकालाई पि आहारेंति । एवं जाव सुक्किलाई पि ॥ ८. एवं गंधओ वि रसतो वि ।। ६. जाई भावओ फासमंताई ताई णो एगफासाइं आहारेंति णो दुफासाई आहारेंति णो तिफासाइं आहारेंति, चउफासाई आहारेंति जाव अट्ठफासाई पि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च कक्खडाई पि आहारेंति जाव लुक्खाई पि ॥ १०. जाई फासओ कक्खडाई आहारेति ताई कि एगगुणकक्खडाई आहारेंति जाव अनंत गुणकक्खडाई आहारेंति ? गोयमा ! एगगुणकक्खडाई पि आहारेंति जाव अतगुणक्खडाई पि आहारेंति । एवं अट्ठ वि फासा भाणियव्वा जाव अनंतगुणलुक्खाई पि आहारेंति ॥ ११. जाई भंते ! अनंतगुणलुक्खाई आहारेति ताइं कि पुट्ठाई आहारेंति ? अपुट्ठाई आहारेंति ? गोयमा ! पुट्ठाई आहारेति णो अट्ठाई आहारेति ॥ १२. जाई भंते ! पुट्ठाई आहारेंति, ताई कि ओगाढाई आहारेंति ? अणोगाढाई आहारेंति ? गोयमा ! ओगाढाई आहारेंति, णो अणोगाढाई आहारेंति ॥ १३. जाई भंते ! ओगाढाई आहारेंति, ताई कि अनंतरोगाढाई आहारेंति ? परंपरोगाढाई आहारेंति ? गोयमा ! अनंतरोगाढाई आहारेंति, णो परंपरोगाढाई आहारेंति ॥ १४. जाई भंते ! अणंतरोगाढाई आहारेंति, ताइं कि अणूई आहारेंति ? बादराई आहारेंति ? गोयमा ! अणूई पि आहारेंति, बादराई पि आहारेंति । १५. जाई भंते! अणूइं पि आहारेंति, वादराई पि आहारेंति, ताई कि उड्ढ आहात ? अहे आहारेंति ? तिरियं आहारेंति ? गोयमा ! उड्ढ पि आहारेंति, अहे वि आहारेंति, तिरियं पि आहारेंति ।। १६. जाई भंते ! उड्ढं पि आहारेंति, अहे वि आहारेंति, तिरियं पि आहारेंति, ताई कि आदि आहारैति ? मज्झे आहारेंति ? पज्जवसाणे आहारेंति ? गोयमा ! आदि पि आहारेंति, मज्झे वि आहारेंति पज्जवसाणे वि आहारेंति ॥ १७. जाई भंते! आदि पि आहारेंति, मज्झे वि आहारेंति, पज्जवसाणे वि आहारेंति, ताइं कि सविसए आहारेंति ? अविसए आहारेंति ? गोयमा ! सविसए आहारेंति, णो अविसए आहारेंति || ३११ १८. जाई भंते ! सविसए आहारेंति, ताई किं आणुपुव्वि आहारेंति ? अणाणुपुव्वि आहारेंति ? गोयमा ! आणुपुव्वि आहारेंति, णो अणाणुपुव्वि आहारेति ॥ १. सं० पा० -- जहा भासुद्देसए जाव णियमा । Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ पण्णवणासुत्तं १६. जाइं भंते ! आणुपुव्वि आहारेंति, ताई किं तिदिसि आहारेंति जाव छद्दिसिं आहारेंति ? गोयमा ! ° णियमा छद्दिसिं आहारेति ॥ २०. ओसण्णकारणं पडुच्च वण्णओ काल-नीलाई गंधओ दुब्भिगंधाइं रसतो तित्तरसकड्याइं फासओ कक्खड-गरुय-सीय-लुक्खाइं, तेसिं पोराणे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे फासगुणे विप्परिणामइत्ता परिपीलइत्ता परिसाडइत्ता परिविद्धंसइत्ता अण्णे अपुव्वे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे फासगुणे उप्पाएत्ता आयसरीरखेत्तोगाढे पोग्गले सव्वप्पणयाए आहारमाहरेंति॥ २१. णेरइया णं भंते ! सव्वतो आहारेंति सव्वतो परिणामें ति सव्वओ ऊससंति सव्वओ णीससंति, अभिक्खणं आहारति अभिक्खणं परिणामें ति अभिक्खणं ऊससंति अभिक्खणं णीससंति, आहच्च आहारेंति आहच्च परिणामेंति आहच्च ऊससंति आहच्च णीससंति ? हंता गोयमा ! णेरइया सव्वतो आहारेंति एवं तं' चेव जाव आहच्च णीससंति ॥ २२. णेरइया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते णं तेसिं पोग्गलाणं सेयालंसि कतिभागं आहारेंति ? कतिभागं आसाएंति ? गोयमा! असंखेज्जतिभागं आहारेंति, अणंतभागं अस्साएंति ।। २३. णेरइया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते किं सव्वे आहारेंति णो सव्वे आहारेति ? गोयमा ! ते सव्वे अपरिसेसिए आहारेति ॥ २४. णेरइया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेहंति ते णं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति ? गोयमा ! सोइंदियत्ताए जाव फासिदियत्ताए अणिद्वत्ताए अकंतत्ताए अप्पियत्ताए असुभत्ताए अमणुण्णत्ताए अमणामत्ताए अणिच्छियत्ताए अभिज्झियत्ताए अहत्ताए –णो उड्डत्ताए दुक्खत्ताए-णो सुहत्ताए ‘ते तेसि", भुज्जो-भुज्जो परिणमंति ॥ भवणवासीसु आहारद्विआइसत्तग-पदं २५. असुरकुमारा णं भंते ! आहारट्ठी ? हंता ! आहारट्ठी। एवं जहा णेरइयाणं तहा असुरकुमाराण वि भाणियव्वं जाव ते तेसिं भुज्जो-भुज्जो परिणमंति । तत्थ णं जेसे आभोगणिव्वत्तिए से णं जहण्णेणं चउत्थभत्तस्स, उक्कोसेणं सातिरेगस्स वाससहस्सस्स आहारठे समुप्पज्जति ॥ २६. ओसण्णकारणं पडुच्च वण्णओ हालिद्द-सुक्किलाइं गंधओ सुब्भिगंधाइं रसओ अंबिल-महुराई फासओ म उय-लहुअ-णिझुण्हाइं, तेसि पोराणे वण्णगुणे जाव फासिंदियत्ताए जाव मणामत्ताए इच्छियत्ताए अभिज्झियत्ताए उड्डत्ताए–णो अहत्ताए सुहत्ताए-णो दुहत्ताए ते तेसि भुज्जो-भुज्जो परिणमंति । सेसं जहा णेरइयाणं ॥ २७. एवं जाव थगियकुमाराणं, णवरं-आमोगणिव्वत्तिए उक्कोसेणं दिवसपुहत्तस्स आहारट्टे समुप्पज्जति ॥ १. आहारगमाहारेंति (क,घ)। २. ते (क); ४ (ख,ग,घ)। ३. एतेसिं (क,ख,ग,घ)। ४. प० २८१४-२४ । Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावीसइमं आहारपयं ११३ एगिदिएसु आहारद्विआइसत्तग-पदं २८. पुढविकाइया णं भंते ! आहारट्ठी ? हंता ! आहारट्ठी ॥ २६. पुढविक्काइयाणं भंते ! केवतिकालस्स आहारट्टे समुप्पज्जति ? गोयमा ! अणसमयं अविरहिए आहारट्ठे समुप्पज्जति ।।। ३०. पूढविक्काइया णं भंते ! किमाहारमाहारेंति एवं जहा णेरइयाणं जाव' ३१. ताई भंते ! कति दिसि आहारेंति ? गोयमा ! णिव्वाघाएणं छद्दिसि, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि सिय चउदिसि सिय पंचदिसिं, णवरं ३२. ओसण्णकारणं ण भवति, वण्ण्णतो काल-णील-लोहिय-हालिद्द-सुक्किलाई, गंधओ सब्भिगंध-दब्भिगंधाई, रसओ तित्त-कडय-कसाय-अंबिल-महराइं, फासतो कक्खडमउय-गरुय-लहुय-सीय-उसिण-णिद्ध-लुक्खाइं, तेसिं पोराणे वण्णगुणे 'गंधगुणे रसगुणे फासगुणे विप्परिणामइत्ता परिपीलइत्ता परिसाडइत्ता परिविद्धंसइत्ता अण्णे अपुग्वे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे फासगुणे उप्पाएत्ता आयसरीरखेत्तोगाढे पोग्गले सव्वप्पणयाए आहारमाहारेति ॥ ३३. पुढविक्काइयाणं भंते ! सव्वतो आहारेंति सव्वतो परिणामें ति सव्वतो ऊससंति सव्वतो णीससंति, अभिक्खणं आहारेंति अभिक्खणं परिणामें ति अभिक्खणं ऊससंति अभिक्खणं णीससंति, आहच्च आहारेंति आहच्च परिणामेंति आहच्च ऊससंति आहच्च णीससंति ? हंता गोयमा ! पुढविक्काइया सव्वतो आहारेंति एवं तं चेव जाव' आहच्च णीससंति ॥ ३४. पुढविक्काइया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति तेसिं णं भंते ! पोग्गलाणं सेयालंसि कतिभागं आहारेंति ? कतिभागं आसाएंति ? गोयमा ! असंखेज्जतिभागं आहारेंति, अणंतभागं आसाएंति ॥ ३५. पुढविक्काइया णं भंते ! जे पुग्गले आहारत्ताए गेहंति ते किं सव्वे आहारेंति ? णो सव्वे आहारेंति ?" गोयमा ! ते सव्वे अपरिसेसिए आहारेति ॥ ३६.पढविक्काइया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हति ते णं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति ? गोयमा ! फासेंदियवेमायत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति । एवं जाव वणप्फइकाइयाणं ।। विलिदिएसु आहारटिआइसत्तग-पदं ३७. बेइंदिया णं भंते ! आहारट्ठी ? हंता गोयमा ! आहारट्ठी ॥ ३८. बेइंदिया णं भंते ! केवतिकालस्स आहारट्टे समुप्पज्जति ? जहाणेरइयाणं, णवरं-तत्थ णं जेसे आभोगणिव्वत्तिए से णं असंखेज्जसमइए' अंतोमुहुत्तिए वेमायाए आहारट्ठे समुप्पज्जति । सेसं जहा पुढविक्काइयाणं जाव' आहच्च णीससंति, णवरंणियमा छद्दिसि ॥ १. प० २८१५-१६ । २. सं०पा०-सेसं जहा नेरइयाणं जाव आहच्च। ३. सं०पा०-जहेव नेरइया तहेव । ४.५० २८।४। ५. असंखेज्जतिसमतिए (क,घ)। ६. प० २८।३०-३३ । Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ पण्णवणासुत्तं ३६. बेइंदिया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हति ते णं तेसि पोग्गलाणं सेयालंसि कतिभागं आहारेंति ? कतिभागं अस्साएंति ? • गोयमा ! असंखेज्जतिभागं आहारेंति, अणंतभागं अस्साएंति ॥ ४०. बेइंदिया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते किं सव्वे आहारेति ? णो सव्वे आहारेंति ? गोयमा ! बेइंदियाणं दुविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-लोमाहारे य पक्खेवाहारे य । जे पोग्गले लोमाहारत्ताए गेहंति ते सव्वे अपरिसेसे आहारेंति, जे पोग्गले पक्खेवाहारत्ताए गेण्हंति तेसिं असंखेज्जइभागमाहारेति गाइं च णं भागसहस्साइं अफासाइज्जमाणाई अणासाइज्जमाणाई विद्धंसमागच्छंति ।। ४१. एतेसि णं भंते ! पोग्गलाणं अणासाइज्जमाणाणं अफासाइज्जमाणाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पोग्गला अणासाइज्जमाणा, अफासाइज्जमाणा अणंतगुणा ।। ४२. बेइंदिया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए ''गेण्हति ते णं तेसिं पोगला कीसत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति ?° गोयमा ! जिभिदिय-फासिदियवेमायत्ताए ते तेसि भुज्जो-भुज्जो परिणमंति ॥ ४३. एवं जाव चउरिदिया, णवरं-गाइं च णं भागसहस्साई अणग्घाइज्जमाणाइ अफासाइज्जमाणाई अणस्साइज्जमाणाई विद्धंसमागच्छंति ॥ ४४. एतेसि णं भंते ! पोग्गलाणं अणाघाइज्जमाणाणं अणासाइज्जमाणाणं अफासाइज्जमाणाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा पोग्गला अणग्घाइज्जमाणा, अणस्साइज्जमाणा अफासाइज्जमाणा अणंतगुणा ॥ ४५. तेइंदिया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते णं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति ?° गोयमा ! धाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियवेमायत्ताए ते तेसिं भज्जो-भज्जो परिणमंति ॥ ४६. चउरिदियाणं चक्खिदिय-घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियवेमायत्ताए ते तेसिं भुज्जो-भुज्जो परिणमंति, 'सेसं जहा ते [बे ?] इंदियाणं" ॥ पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु आहारद्विआइसत्तग-पदं ४७. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया जहा ते [बे? ] इंदिया', णवरं-तत्थ णं जेसे आभोग १. सं० पा०-एवं जहा नेरइयाणं । २,३. °माणाणं (क,ख,ग,घ,पु,मवृ); हरिभद्र- सुरिणा तत्र प्रक्षेपाहारे बहन्यस्पृष्टानि' इति व्याख्यातम्। चतुरिदियसूत्रे पि अफासाइज्ज भाणाई इत्यादीनि कर्तृपदानि दृश्यन्ते । ४. सं० पा०--पुच्छा। ५. अप्फासा (क,घ)। ६. सं० पा०-पुच्छा। ७. चोरिदियाणं (ख)। ८,९. एतस्य समर्पणसूत्रस्य किञ्चित् तात्पर्य नावबुध्यते 'तेइंदिय' सूत्रे 'चरिदिय° सूत्रात् अतिरिक्तं किमपि नास्ति, तत् कथं समर्पणं क्रियेत । अतोऽनुमीयते 'सेसं जहा बेइंदियाणं' इति पाठः आसीत् किन्तु लिपिदोषेण, स्मृतिदोषेण वा 'बेइंदियाणं' स्थाने तेइंदियाणं' इति परिवर्तनं जातम् । Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावीस आहारपयं व्वित्तिए से जहणेणं अंतोमुहुत्तस्स, उक्कोसेणं छट्टभत्तस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति ॥ ४८. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेहंति ते णं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुज्जो - भुज्जो परिणमंति ? गोयमा ! सोइंदिय - चक्खि दिय- घाणिदियजिब्भिदिय- फासेंदियवेमायत्ताए भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ मस्से आहारट्ठआइसत्तग-पदं ४६. मणूसा णं भंते ! आहारट्ठी ? हंता गोयमा ! आहारट्ठी || ५०. मणूसा णं भंते! केवतिकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति ? गोयमा ! मणूसाणं आहारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - आभोगणिव्वत्तिए य अणाभोगणिव्वत्तिए य । तत्थ गं जेसे अणाभोगणिव्वत्तिए से णं अणुसमयमविरहिए आहारट्ठे समुप्पज्जति । तत्थ णं जेसे आभोगणिव्वत्तिए से णं जहणणेणं अंतोमुहुत्तस्स, उक्कोसेणं अट्ठमभत्तस्स आहारट्ठे मुज्जति ॥ ५१. मणूसा णं भंते! किमाहारमाहारेंति ? गोयमा ! दव्वओ अणतपदेसियाई खेत्तओ असंखेज्जपदेसोगाढाई, कालतो अण्णतरठितियाई, भावओ वण्णमंताई गंधमंताई रसमंताई फासताइं ॥ ५२. जाई भावओ वण्णमंताई आहारेंति ताई किं एगवण्णाई आहारेंति जाव किं पंचवण्णाई आहारेंति ? गोयमा ! ठाणमग्गणं पडुच्च एगवण्णाई पि आहारेंति जाव पंचaणाई पि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च कालवण्णाई पि आहारेंति जाव सुक्किलाई पि आहारेंति । ३१५ ५३. जाई वण्णओ कालवण्णाई आहारैति ताई कि एगगुणकालाई आहारेंति जाव दसगुणकालाई आहारेंति ? संखेज्जगुणकालाई असंखेज्जगुणकालाई अनंतगुणकालाई आहात ? गोयमा ! एगगुणकालाई पि आहारेंति जाव अनंतगुणकालाई पि आहारेति । एवं जावक्किलाई पि । ५४. एवं गंधओ वि रसतो वि ।। _५५. जाई भावओ फासमंताई ताई णो एगफासाई आहारेंति णो दुफासाई आहारेंति णो तिफासाई आहारेंति, चउफासाई आहारेंति जाव अट्ठफासाई पि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च कक्खडाई पि आहारेंति जाव लुक्खाई पि ।। ५६. जाई फासओ कक्खडाई आहारेति ताई किं एगगुणकक्खडाई आहारैति जाव अनंतगुणकक्खडाई आहारेंति ? गोयमा ! एगगुणकक्खडाई पि आहारेंति जाव अनंतगुणकक्खडाई पि आहारेंति । एवं अट्ठ वि फासा भाणियव्वा जाव अनंतगुणलुक्खाई पि आहात ॥ ५७. जाई भंते ! अनंतगुणलुक्खाई आहारेंति ताई किं पुट्ठाई आहारेंति ? अपुट्ठाई आहारेति ? गोयमा ! पुट्ठाई आहारेंति, णो अपुट्ठाई आहारेंति || ५८. जाई भंते! पुट्ठाई आहारेंति, ताई किं ओगाढाई आहारेंति ? अणोगाढाई १. सं० पा० - पुच्छा । २. सं० पा० - मणुस्सा एवं चेव, णवरं - आभोग णिव्वत्तिए जहणेणं अंतोमुहुत्तस्स उक्को सेणं अट्टमभत्तस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति । Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुत्तं आहारेंति ? गोयमा ! ओगाढाई आहारेति, णो अणोगाढाई आहारेति ॥ ५६. जाइं भंते ! ओगाढाइं आहारेंति, ताइं कि अणंतरोगाढाइं आहारेंति ? परंपरोगाढाइं आहारेति ? गोयमा ! अणंतरोगाढाई आहारेंति, णो परंपरोगाढाई आहारेति ॥ ६०. जाई भंते ! अणंतरोगाढाई आहारेंति, ताइं कि अणूइं आहारेंति ? बादराई आहारेंति ? गोयमा ! अणूई पि आहारेंति, बादराई पि आहारेति ॥ ६१. जाई भंते ! अणूइं पि आहारेंति, बादराई पि आहारेंति, ताई कि उड्ढं आहारेंति ? अहे आहारति ? तिरियं आहारेति ? गोयमा ! उड्ढं पि आहारेति, अहे वि आहारेंति, तिरियं पि आहारेति ।। ६२. जाइं भंते ! उड्ढं पि आहारेंति, अहे वि आहारेंति, तिरियं पि आहारेंति, ताई किं आदि आहारेंति ? मज्झे आहारेंति ? पज्जवसाणे आहारेंति ? गोयमा ! आदि पि आहारेंति, मज्झे वि आहारति, पज्जवसाणे वि आहारेति ॥ ६३. जाइं भंते ! आदि पि आहारेति, मज्झे वि आहारेंति, पज्जवसाणे वि आहारति, ताई कि सविसए आहारेंति ? अविसए आहारेति ? गोयमा ! सविसए आहारेंति, णो अविसए आहारेति ॥ ६४. जाइं भंते ! सविसए आहारेंति, ताई किं आणुपुब्वि आहारेंति ? अणाणुपुटिव आहारेंति ? गोयमा ! आणुपुन्वि आहारेंति, णो अणाणुपुवि आहारेति ॥ ६५. जाइं भंते ! आणुपुव्वि आहारति, ताईकिं तिदिसि आहारेंति जाव छहिसि आहारेंति ? गोयमा ! णियमा छद्दिसिं आहारेति ॥ ६६. ओसण्णकारणं ण भवति, वण्णतो काल-णील-लोहिय-हालिद्द-सुक्किलाइं, गंधओ सब्भिगंध-दब्भिगंधाइं, रसओ तित्त-कडय-कसाय-अंबिल-महराइं, फासतो कक्खड-मउयगरुअ-लहुय-सीय-उसिण-णिद्ध-लुक्खाइं, तेसिं पोराणे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे फासगुणे विप्परिणामइत्ता परिपील इत्ता परिसाडइत्ता परिविद्धंसइत्ता अण्णे अपुव्वे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे फासगुणे उप्पाएत्ता आयसरीरखेत्तोगाढे पोग्गले सव्वप्पणयाए आहारमाहारेति ॥ ६७. मणसा णं भंते ! सव्वतो आहारति सव्वतो परिणामें ति सव्वओ ऊससंति सव्वओ णीससंति, अभिक्खणं आहारेंति अभिक्खणं परिणामें ति अभिक्खणं ऊससंति अभिक्खणं णीससंति, आहच्च आहारेंति आहच्च परिणामेंति आहच्च ऊससंति आहच्च णीससंति ? हंता! गोयमा ! मणूसा सव्वतो आहारेंति एवं तं चेव जाव आहच्च णीससंति ॥ ६८. मणूसा णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेहंति ते णं तेसि पोग्गलाणं सेयालसि कतिभागं आहारेति ? कतिभागं आसाएंति ? गोयमा! असंखेज्जतिभागं आहारेंति, अणंतभागं आसाएंति ॥ ६९. मणूसा णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते कि सव्वे आहारेंति ? णो सव्वे आहारेति ? गोयमा ! मणूसाणं दुविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-लोमाहारे य पक्खेवाहारे य । जे पोग्गले लोमाहारत्ताए गेहंति ते सव्वे अपरिसेसे आहारेंति, जे पोग्गले पक्खेवाहारताए गेहंति तेसि असंखेजइभागमाहारेंति णेगाइं च णं भागसहस्साई Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावीसइमं आहारपयं ३१७ अणग्घाइज्जमाणाई अफासाइज्जमाणाई अणस्साइज्जमाणाविद्धंसमागच्छंति ॥ ७०. एतेसिं भंते ! पोग्गलाणं अणाघाइज्जमाणाणं अणासाइज्जमाणाणं अफासाइज्ज माणाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वथोवा पोग्गला अणग्घाइज्जमाणा, अणस्साइज्जमाणा अणंतगुणा, अफासाइज्जमाणा अणंतगुणा ॥ ७१. मणुसा णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते णं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए रणमंति? गोयमा ! सोइंदिय-चक्खिदिय-घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियवेमायत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति ।। देवेसु आहारटिआइसत्तग-पदं ७२. वाणमंतरा जहा' णागकुमारा॥ ७३. एवं जोइसिया वि, णवरं-आभोगणिव्वत्तिए जहण्णेणं दिवसपुहत्तस्स, उक्कोसेण वि दिवसपुहत्तस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति ।। ७४. एवं वेमाणिया वि, णवरं-आभोगणिव्वत्तिए जहणेणं दिवसपुहत्तस्स, उक्कोसेणं तेत्तीसाए वाससहस्साणं आहारट्टे समुप्पज्जति । सेसं जहा' असुरकुमाराणं जाव ते तेसिं भुज्जो-भुज्जो परिणमंति ।। ७५. सोहम्मे आभोगणिव्वत्तिए जहण्णेणं दिवसपुहत्तस्स, उक्कोसेणं दोण्हं वाससहस्साणं आहारट्टे समुप्पज्जइ ॥ ७६. ईसाणे पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं दिवसपुहत्तस्स सातिरेगस्स, उक्कोसेणं सातिरेगाणं दोण्हं वाससहस्साणं ।। ७७. सणंकुमारे पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं दोण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं सत्तण्हं वाससहस्साणं ।। ७८. माहिंदे पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं दोण्हं वाससहस्साणं सातिरेगाणं, उक्कोसेणं सत्तण्हं वाससहस्साणं सातिरेगाणं ॥ ७६. बंभलोए पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सत्तण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं दसण्हं वाससहस्साणं ॥ ८०. लंतए' पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं दसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं चोद्दसण्हं वाससहस्साणं ॥ ८१. महासुक्के पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं चोद्दसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं सत्तरसण्हं वाससहस्साणं॥ ८२. सहस्सारे पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सत्तरसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं अट्ठारसण्हं वाससहस्साणं ॥ ८३. आणए पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठारसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं एगूण१. प० २७ । ४. सणंकुमाराणं (क,ख,घ)। २. प० २८.२५,२६ । ५. लंतए णं (क,ख,घ)। ३. ईसाणं (क,घ); इसाणेणं (ग)। Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ वीसा वाससहस्साणं ॥ ८४. पाणए पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं एगूणवीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं वीसा वाससहस्साणं ॥ पण्णवणासुतं ८५. आरणे पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं वीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं एक्कवीसाए वास सहस्ताणं ॥ ८६. अच्चुए पुच्छा । गोयमा ! जहणणे एक्कवीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं बावीसाए वाससहस्साणं । ८७. हेट्टिम हैट्ठिमगे वेज्जगाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं बावीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं तेवीसाए वाससहस्साणं । एवं सव्वत्थ सहस्साणि भाणियव्वाणि जाव सव्वट्टं ॥ ८८. हेट्ठिममज्झिमाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं तेवीसाए, उक्कोसेणं चउवी साए ॥ ८९. हेट्टिमउवरिमाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं चउवीसाए, उक्कोसेणं पणुवीसा ॥ εo. • मज्झिमट्टिमाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं पणुवीसाए, उक्कोसेणं छव्वीसाए ॥ ६१. मज्झिममज्झिमाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणेणं छव्वीसाए, उक्कोसेणं सत्ता वीसा ॥ २. मज्झिमउवरिमाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं सत्तावीसाए, उक्कोसेणं अट्ठावीसा || ६३. उवरि मट्टिमाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठावीसाए, उक्कोसेणं एगूणतीसा ॥ ४. उवरिममज्झिमाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं एगूणतीसाए, उक्कोसेणं तीसा ॥ ६५. उवरिमउवरिमगेवेज्जगाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणेणं तीसाए, उक्कोसेणं एकतीसा ॥ ε६. विजय-वेजयंत-जयंत अपराजियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं एक्कतीसाए, उक्को सेणं तेत्तीसाए ॥ ६७. सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं' पुच्छा । गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसाए वाससह - स्साणं आहारट्ठे समुप्पज्जति ॥ सराहार-पदं ६८. रइया णं भंते ! कि एगिदियसरीराई आहारेंति जाव पंचेंदियसरीराई आहारेंति ? गोयमा ! पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च एगिदियसरीराई पि आहारेंति जाव पंचेंदियसराई पि, पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च णियमा पंचेंदियसरी राई आहारेंति । एवं जाव थणियकुमारा ॥ ६६. पुढविक्काइयाणं पुच्छा । गोयमा ! पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च एवं चेव, पडुप्पण्ण १. सव्वदेवाणं (घ) । Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावीसइमं आहारपयं ३१६ भावपण्णवणं पडुच्च णियमा एगिदियसरीराइं आहारेति ।। १००. बेइंदिया पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च एवं चेव, पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च बेइंदियसरीराई आहारेति ॥ १०१. एवं जाव चउरिदिया ताव' पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च एवं, पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च णियमा जस्स जति इंदियाइं तइंदियसरीराई' ते आहारेति । सेसा जहा रइया जाव वेमाणिया । लोमाहार-पदं १०२. णेरइया णं भंते ! कि लोमाहारा पक्खेवाहारा ? गोयमा ! लोमाहारा, णो पक्खेवाहारा । एवं एगिदिया सव्वे देवा य भाणियव्वा जाव वेमाणिया ।। १०३. बेइंदिया जाव मणुसा लोमाहारा वि पक्खेवाहारा वि ।। मणभक्खि -पदं १०४. णेरइया णं भंते ! किं ओयाहारा ? मणभक्खी ? गोयमा ! ओयाहारा, णो मणभक्खी। एवं सव्वे ओरालियसरीरा वि।। १०५. देवा सव्वे जाव वेमाणिया ओयाहारा वि मणभवखी वि। तत्थ णं जेते मणभक्खी देवा तेसि णं इच्छामणे' समुप्पज्जइ-इच्छामो णं मणभक्खणं करित्तए। तए णं तेहिं देवेहिं एवं मणसीकते समाणे खिप्पामेव जे पोग्गला इट्ठा कंता' 'पिया सुभा मणण्णा मणामा ते तेसिं मणभक्खत्ताए परिणमंति, से जहाणामए-सीता पोग्गला सीयं पप्प सीयं चेव अतिवतित्ताणं चिट्ठति, उसिणा वा पोग्गला उसिणं पप्प उसिणं चेव अतिवतित्ताणं चिटठंति, एवामेव तेहिं देवेहिं मणभक्खणे कते समाणे से इच्छामणे खिप्पामेव अवेति ।। बीओ उद्देसओ गाहा- आहार १ भविय २ सण्णी ३ लेस्सा ४ दिट्ठी य ५ संजय ६ कसाए ७ । णाणे ८ जोगुवओगे ६,१० वेदे य ११ सरीर १२ पज्जत्ती १३ ॥ आहारदारे आहारगादी-पदं १०६. जीवे णं भंते ! किं आहारए ? अणाहारए ? गोयमा ! सिय आहारए सिय अणाहारए । एवं नेरइए जाव असुरकुमारे जाव वेमाणिए ॥ १०७. सिद्धे णं भंते ! किं आहारए ? अणाहारए ? गोयमा ! णो आहारए, अणाहारए॥ १०८. जीवा णं भंते ! किं आहारया ? अणाहारया ? गोयमा ! आहारगा वि १. जाव (ख,घ)। प्रधानं मनः' इति व्याख्यातमस्ति । २. तेइंदिय (क,ग,घ); तेंदिय (ख); तइ+ ४. सं० पा०-कंता जाव मणामा। इंदिय=तइंदिय० ॥ ५. पप्पा (ख) उभयत्रापि । ३. 'मणे' अत्र मलयगिरिणा इच्छा पदं नैव ६. वावेति (क,घ)। व्याख्यातम्, अस्य विषयस्योपसंहारे 'इच्छा Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० अाहारा ॥ १०६. रइयाणं पुच्छा । गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा आहारगा १ अहवा आहारगा य अणाहारगे य २ अहवा आहारगा य अणाहारगा य ३ । एवं जाव वेमाणिया, णवरं - एगिदिया जहा जीवा ॥ ११०. सिद्धाणं पुच्छा । गोयमा ! णो आहारगा, अणाहारगा ॥ भवियदारे आहारगादि-पदं १११. भवसिद्धिए णं भंते ! जीवे कि आहारए ? अणाहारए ? गोयमा ! सिय आहारए सिए अणाहारए । एवं जाव वेमाणिए ॥ ११२. भवसिद्धिया णं भंते ! जीवा कि आहारगा ? अणाहारगा ? गोयमा ! जीवेगिदियवज्जो तियभंगो । अभवसिद्धिए वि एवं चेव ।। ११३. णोभवसिद्धिए - णोअभवसिद्धिए णं भंते ! जीवे कि आहारए ? अणाहारए ? गोयमा ! णो आहारए, अणाहारए। एवं सिद्धे वि ॥ ११४. णोभवसिद्धिया-णोअभवसिद्धिया णं भंते ! जीवा कि आहारगा ? अणाहारगा ? गोमा ! णो आहरगा, अणाहारगा । एवं सिद्धा वि ॥ सष्णिदारे आहारगादि-पदं ११५. सण्णी णं भंते ! जीवे कि आहारगे ? अणाहारगे ? गोयमा ! सिय आहारगे यि अणाहारगे । एवं जाव वेमाणिए, णवरं - एगिदिय - विगलिंदिया ण पुच्छिज्जति ॥ ११६. सण्णी णं भंते ! जीवा कि आहारगा ? अणाहारगा ? गोयमा ! जीवाईओ तियभंगो जाव वेमाणिया || ११७. अण्णी णं भंते ! जीवे कि आहारए ? अणाहारए ? गोयमा ! सिय आहारए सिय अणाहारए । एवं णेरइए जाव वाणमंतरे' । जोइसिय- वेमाणिया ण पुच्छिज्जति ॥ ११. अण्णी णं भंते ! जीवा कि आहारगा ? अणाहारगा ? गोयमा ! आहारगा वि अणाहारगा वि, एगो भंगो ॥ ११६. असण्णी णं भंते ! णेरइया कि आहारगा ? अणाहारगा ? गोयमा ! आहारगा वा १ अणाहारगा वा २ अहवा आहारए य अणाहारए य ३ अहवा आहारए य अणाहारगा य ४ अहवा आहारगा य अणाहारगे य ५ अहवा आहारगा य अणाहारगाय ६, एवं एते छब्भंगा । एवं जाव थणियकुमारा । एगिदिए अभंगयं । बेइंदिय जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणीएसु तियभंगो । मणूस - वाणमंतरेसु छब्भंगा ॥ १२०. पोसण्णी - णोअसण्णी णं भंते! जीवे किं आहारए ? अणाहारए ? गोयमा ! far आहारए सिय अणाहारए । एवं मणूसे वि । सिद्धे अणाहारए || १२१. पुहत्तेणं णोसण्णी - णोअसण्णी जीवा आहारगा वि अणाहारगा वि । मणूसेसु तियभंगो | सिद्धा अणाहारंगा ॥ १. प्रयुक्तेषु सर्वेष्वादर्शेषु 'णवरं' इति पदमस्ति । मलयगिरिणा एतत्पदं नास्ति व्याख्यातम् न च पणवणा उपयुक्तमस्ति । Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावीसइमं आहारपयं ३२१ लेस्सादारे आहारगादि-पदं १२२. सलेसे णं भंते ! जीवे कि आहारए ? अणाहारए ? गोयमा ! सिय आहारए सिय आणाहारए। एवं जाव वेमाणिए । १२३. सलेसा णं भंते ! जीवा किं आहारगा? अणाहारगा? गोयमा ! जीवेगिंदिवज्जो तियभंगो। एवं 'कण्हलेसाए वि णीललेसाए वि काउलेसाए" वि जीवेगिदियवज्जो तियभंगो। तेउलेस्साए पुढवि-आउ-वणप्फइकाइयाणं छब्भंगा। सेसाणं जीवादीओ तियभंगो जेसिं अत्थि तेउलेस्सा । पम्हलेस्साए य सुक्कलेस्साए य जीवादीओ तियभंगो।। १२४. अलेस्सा जीवा मणूसा सिद्धा य एगत्तेण वि पुहत्तेण वि णो आहारगा, अणाहारगा॥ दिदिदारे आहारगादि-पदं १२५. सम्मद्दिट्टी णं भंते ! जीवे किं आहारए ? अणाहारए ? गोयमा ! सिय आहारए सिय अणाहारए। बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिया छब्भंगा। सिद्धा अणाहारगा। अवसेसाणं तियभंगो॥ १२६. मिच्छद्दिट्ठीसु जीवेगिदियवज्जो तियभंगो॥ १२७. सम्मामिच्छद्दिट्ठी णं भंते ! किं आहारए ? अणाहारए ? गोयमा ! आहारए, णो अणाहारए । एवं एगि दिय-विगलिंदियवज्जं जाव वेमाणिए । एवं पुहत्तण वि ॥ संजयदारे आहारगादि-पदं - १२८. संजए णं भंते ! जीवे किं आहारए ? अणाहारए ? गोयमा ! सिय आहारए सिय अणाहारए । एवं मणूसे वि । पुहत्तेण तियभंगो॥ १२६. अस्संजए पुच्छा। गोयमा ! सिय आहारए सिय अणाहारए । पुहत्तेणं जीवे. गिदियवज्जो तियभंगो॥ १३०. संजयासंजए जीवे पंचेंदियतिरिक्खजोणिए मणूसे य एते एगत्तेण वि पुहत्तेण वि आहारगा, णो अणाहारगा। १३१. णोसंजए-णोअसंजए-णोसंजयासंजए जीवे सिद्ध य एते एगत्तेण वि पुहत्तेण वि णो आहरगा, अणाहारगा॥ कसायदारे आहारगादि-पदं । १३२. सकसाई' णं भंते ! जीवे किं आहारए ? अणाहारए ? गोयमा ! सिय आहारए सिय अणाहारए । एवं जाव वेमाणिए । पुहत्तेणं जीवेगिदियवज्जो तियभंगो॥ १३३. कोहकसाईसु जीवादीसु एवं चेव, णवरं-देवेसु छब्भंगा। माणकसाईसु मायाकसाईसु य देव-णेरइएसु छन्भंगा । अवसेसाणं जीवेगिदियवज्जो तियभंगो। लोभकसाईसु रएसु छन्भंगा । अवसेसेसु जीवेगिदियवज्जो तियभंगो॥ १३४. अकसाई जहा णोसण्णी-णोअसण्णी॥ २. सकसादी (क,घ)। १. कण्हलेसा वि नीललेसा वि काउलेसा (ख,ग)। Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ पण्णवणासुत्तं णाणदारे आहारगादि-पदं १३५. णाणी जहा सम्मद्दिट्ठी ॥ १३६. आभिणिबोहियणाणि-सुतणाणिसु बेइंदिय-तेइंदिय चरिदिएसु छन्भंगा । अवसेसेसु जीवादीओ तियभंगो जेसिं अत्थि। ओहिणाणी पंचेंदियतिरिक्खजोणिया आहारगा णो अणाहारगा। अवसेसेसु जीवादीओ तियभंगो जेसिं अत्थि ओहिणाणं । मणपज्जवणाणी जीवा मणूसा य एगत्तेण वि पुहत्तेण वि आहारगा, णो अणाहारगा। केवलणाणी जहा' णोसण्णी-णोअसण्णी॥ १३७. अण्णाणी मइअण्णाणी सुयअण्णाणी जीवेगिदियवज्जो तियभंगो। विभंगणाणी पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा य आहारगा, णो अणाहारगा। अवसेसेसु जीवादीओ तियभंगो ॥ जोगदारे आहारगादि-पदं १३८. सजोगीसु जीवेगिदियवज्जो तियभंगो। मणजोगी वइजोगीय जहा सम्मामिच्छद्दिट्ठी,णवरं-वइजोगो विगलिंदियाण वि। कायजोगीसु जीवेगिदियवज्जो तियभंगो। अजोगी जीव-मणूस-सिद्धा अणाहारगा॥ उवओगदारे आहारगादि-पदं १३६. सागाराणागारोवउत्तेसु जीवेगिदियवज्जो तियभंगो । सिद्धा अणाहारगा। वेददारे आहारगादि-पदं १४०. सवेदे' जीवेगिदियवज्जो तियभंगो। इत्थिवेद-पुरिसवेदेसु जीवादीओ तियभंगो । णपुंसगवेदए जीवेगिदियवज्जो तियभंगो। अवेदए जहा' केवलणाणी॥ सरीरदारे आहारगादि-पदं । १४१. ससरीरी जीवेगिदियवज्जो तियभंगो। ओरालियसरीरीसु जीव-मणसेस तियभंगो । अवसेसा आहारगा, णो अणाहारगा, जेसिं अत्थि ओरालियसरीरं। वेउवियसरीरी आहारगसरीरी य आहारगा, णो अणाहारगा, जेसिं अस्थि । तेय-कम्मगसरीरी जीवेगिदियवज्जो तियभंगो। असरीरी जीवा सिद्धा य णो आहारगा, अणाहारगा। पज्जत्तिदारे आहारगादि-पदं १४२. आहारपज्जत्तीए पज्जत्तए सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तए इंदियपज्जत्तीए पज्जत्तए आणापाणुपज्जत्तीए पज्जत्तए भासा-मणपज्जत्तीए पज्जत्तए एयासु पंचसु वि पज्जत्तीसु जीवेसु मणूसेसु य तियभंगो। अवसेसा आहारगा, णो अणाहारगा। भासा-मणपज्जती पंचेंदियाणं, अवसेसाणं णत्थि ॥ १४३. आहारपज्जत्तीए अपज्जत्तए णो आहारए, अणाहारए, एगत्तेण वि पुहत्तेण वि। सरीरपज्जत्तीए अपज्जत्तए सिय आहारए सिय अणाहारए। उवरिल्लियासु चउसु अपज्जत्तीसु णेरइय-देव-मणूसेसु छन्भंगा, अवसेसाणं जीवेगिदियवज्जो तियभंगो॥ १. प० २८।१२। २. सव्वेद (क,घ)। ३. प० २८११३६ । ४. आहारपज्जत्ती (क,ख,घ) सर्वत्रापि । ५. भासा-मणपज्जत्तीते (क,ख,ग,घ) । Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावीसइमं आहारपयं ३२३ १४४. ‘भासा-मणपज्जत्तीए अपज्जत्तएसु" जीवेसु पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु य तियभंगो, रइय- देव - मणुएसु छब्भंगा || १४५. सव्वपदेसु एगत्त-पुहत्तेणं जीवादीया दंडगा पुच्छाए भाणियव्वा । जस्स जं अत्थि तस्स तं पुच्छिज्जति, जं णत्थि तं ण पुच्छिज्जति जाव भासा - मणपज्जत्तीए अपज्जत्तसुरइय-देव- मणुसु य छन्भंगा । सेसेसु तियभंगो ॥ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगणतीसइमं उवओगपयं १. कतिविहे णं भंते ! उवओगे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे उवओगे पण्णत्ते, तं जहा-सागारोवओगे य अणागारोवओगे य । २. सागारोवओगे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्टविहे पण्णत्ते, तं जहा-आभिणिबोहियणाणसागरोवओगे सुयणाणसागारोवओगे ओहिणाणसागारोवोगे मणपज्जवणाणसागारोवओगे' केवलणाणसागारोवओगे मतिअण्णाणसागारोवओगे सुयअण्णाणसागारोवओगे विभंगणाणसागारोवओगे।। ३. अणागारोवओगे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-चक्खुदंसणअणागारोवओगे अचक्खुदंसणअणागारोवओगे ओहिदसणअणागारोवओगे केवलदसणअणागारोवओगे।। ४. एवं जीवाणं पि। ५. णेरइयाणं भंते ! कतिविहे उवओगे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे उवओगे पण्णत्ते, तं जहा-सागारोवओगे य अणागारोवओगे य ॥ . रइयाणं भंते ! सागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! छविहे पण्णत्ते, तं जहा-मतिणाणसागारोवओगे सुयणाणसागारोवओगे ओहिणाणसागारोवओगे मतिअण्णाणसागारोवओगे सुयअण्णाणसागारोवओगे विभंगणाणसागारोवओगे॥ ७. णेरइयाणं भंते ! अणागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-चक्खुदंसणअणागारोवओगे अचक्खुदंसणअणागारोवओगे ओहिदसणअणागारोवओगे। एवं जाव थणियकुमाराणं॥ ८. पुढविक्काइयाणं पुच्छा । गोयमा ! दुविहे उवओगे पण्णत्ते, तं जहा-सागारोवओगे य अणागारोवओगे य ॥ ६. पुढविक्काइयाणं भंते ! सागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-मतिअण्णाणे सुतअण्णाणे ॥ १०. पुढविक्काइयाणं भंते ! अणागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा ! एगे णागारोवओगे पण्णत्ते । एवं जाव वणप्फइकाइयाणं ।। १. मणपज्जय', मणपज्जाय° (मवृ)। २. x (क,ख,ग,घ)। ३२४ Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगणतीसइमं उवओगपयं ३२५ ११. बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा ! दुविहे उवओगे पण्णत्ते, तं जहा-सागारे अणागारे य॥ १२. बेइंदियाणं भंते ! सागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-आभिणिबोहियणाणसागारोवओगे सुयणाणसागारोवओगे मतिअण्णाणसागारोवओगे सुतअण्णाणसागारोवओगे ॥ १३. बेइंदियाणं भंते ! अणागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगे अचक्खुदसणअणागारोवओगे । एवं तेइंदियाण वि ।। १४. चउरिदियाण वि एवं चेव, णवरं--अणागारोवओगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहाचक्खुदंसअणागारोवओगे य अचक्खुदंसणअणागारोवओगे य ।। १५. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा' णेरइयाणं मणुस्साणं जहा' ओहिए उवओगे भणियं तहेव भाणियव्वं । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं ।। १६. जीवा णं भंते ! किं सागारोवउत्ता? अणागारोवउत्ता? गोयमा ! सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि॥ १७. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-जीवा सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि? गोयमा ! जे णं जीवा आभिणिबोहियणाण-सुतणाण-ओहिणाण-मण-केवलमतिअण्णाण-सुतअण्णाण-विभंगणाणोवउत्ता ते णं जीवा सागारोवउत्ता, जे णं जीवा चक्खुदंसण-अचक्खुदंसण-ओहिदसण-केवलदसणोवउत्ता ते णं जीवा अणागारोवउत्ता। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-जीवा सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि॥ १८. णेरइया णं भंते ! किं सागारोवउत्ता? अणागारोव उत्ता ? गोयमा ! णेरइया सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि॥ १६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-गोयमा ! जे णं णेरइया आभिणिवोहियणाणसुत-ओहिणाण- मतिअण्णाण-सुतअण्णाण-विभंगणाणोवउत्ता ते णं णेरइया सागारोवउत्ता, जेणं णेरइया चक्खुदंसण-अचक्खुदंसण-ओहिदसणोवउत्ता ते णं णेरइया अणागारोवउत्ता, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति--णेरइया' सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि। एवं जाव थणियकुमारा॥ २०. पूढविक्काइयाणं पुच्छा । गोयमा ! तहेव जाव जे णं पुढविकाइया मतिअण्णाणसुतअण्णाणोवउत्ता ते णं पुढविकाइया सागारोवउत्ता, जे णं पुढविकाइया अचक्खुदसणोवउत्ता ते णं पुढविक्काइया अणागारोव उत्ता। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चति जाव वणप्फइकाइया॥ २१. बेइंदियाणं अट्ठसहिया तहेव पुच्छा । गोयमा ! जाव जे णं बेइंदिया आभिणिबोहियणाण-सुतणाण-मतिअण्णाण-सुयअण्णाणोवउत्ता ते णं बेइंदिया सागारोवउत्ता, जे णं बेइंदिया अचक्खुदंसणोवउत्ता ते णं बेइंदिया अणागारोवउत्ता। से तेणठेणं १.प० २६।५-७ । २.प० २६१-३। ३. जाव(क,ख,ग,घ)। ४. 'से केणठेणं भंते !' इति सूत्रसहिता । Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ पण्णवणासुतं गोयमा ! एवं वच्चति । एवं जाव चउरिदिया, णवरं - चक्खुदंसणं अब्भहियं चरदियाणं ॥ २२. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया जहा ' णेरइया । मणूसा जहा' जीवा । वाणमंतरजोतिसिय-वेमाणिया जहा णेरइया ॥ १. प० २६।१५, १६ । २. प० २६।१६, १७ । Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. कतिविहा णं भंते ! पासणया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पासणया पण्णत्ता, तं जहा - सागारपासयणा अणागारपासणया || तीसइमं पासणयापर्यं २. सागारपासण्या णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - सुयणाणसागारपासणया ओहिणाणसागारपासणया मणपज्जवणाणसागारपासण्या केवलणाणसागारपासयणया सुयअण्णाणसागारपासणया विभंगनाणस । गार पासणया || ३. अणागारपासणया णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- चक्खुदंसणअणागारपासणया ओहिंदंसणअणागारपासण्या केवलदंसणअणागार पासणया || ४. एवं जीवाणं पि । ५. रइयाणं भंते ! कतिविहा पासणया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सागारपासणया अणागारपासणया ॥ ६. रइयाणं भंते! सागारपासणया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा -- सुतणाणसागारपासणया ओहिणाणसागारपासणया सुयअण्णाणसागारपासणया विभंगणाणसागारपासणया | ७. रइयाणं भंते! अणागारपासणया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - चक्खुदंसणअणागारपासणया य ओहिदंसणअणागारपासणया य । एवं जाव थणियकुमारा ॥ ८. पुढविक्काइयाणं भंते! कतिविहा पासणया पण्णत्ता ? गोयमा ! एगा सागारुपासणया ॥ C. पुढविक्काइयाणं भंते ! सागारपासणया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! एगा सुय अण्णाणसागारपासणया पण्णत्ता । एवं जाव वणप्फइकाइयाणं ॥ १०. बेइंदियाणं भंते ! कतिविहा पासणया पण्णत्ता ? गोयमा ! एगा सागार पासणया पण्णत्ता ॥ ११. बेइंदियाणं भंते! सागारपासणया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सुतणाणसागारपासणया य सुयअण्णाणसागारपासणया य । एवं ३२७ Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ पण्णवणासुत्ते तेइंदियाण वि।। १२. चउरिदियाणं पुच्छा । गोयमा ! दुविहा पण्णता, तं जहा-सागारपासणया य अणागारपासणया य । सागारपासणया जहा बेइंदियाणं ॥ १३. चरिदियाणं भंते ! अणागारपासणया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! एगा चक्खुदंसणअणागारपासणया पण्णत्ता ॥ १४. मणूसाणं जहा' जीवाणं । सेसा जहाणेरइया जाव वेमाणिया ।। १५. जीवा णं भंते ! किं सागारपस्सी ? अणागारपस्सी ? गोयमा ! जीवा सागारपस्सी वि अणागारपस्सी वि॥ १६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-जीवा सागारपस्सी वि अणागारपस्सी वि ? गोयमा ! जे णं जीवा सुयणाणी ओहिणाणी मणपज्जवणाणी केवलणाणी सुयअण्णाणी विभंगणाणी ते णं जीवा सागारपस्सी। जे णं जीवा चक्खुदंसणी ओहिदसणी केवलदंसणी ते णं जीवा अणागारपस्सी । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति–जीवा सागारपस्सी वि अणागारपस्सी वि ॥ १७. णेरइया णं भंते ! किं सागारपस्सी ? अणागारपस्सी ? गोयमा! एवं चेव, णवरं-सागारपासणयाए मणपज्जवणाणी केवलणाणी ण वुच्चंति, अणागारपासणयाए केवलदसणं णत्थि । एवं जाव थणियकुमारा॥ १८. पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा ! पुढविक्काइया सागारपस्सी, णो अणागारपस्सी॥ १६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! पुढविक्काइयाणं एगा सुयअण्णाणसागारपासणया पण्णत्ता । से तेण→णं गोयमा ! एवं वुच्चति । एवं जाव वणस्सतिकाइया ।। २०. बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा ! सागारपस्सी णो अणागारपस्सी ।। २१. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! बेइंदियाणं दुविहा सागारपासणया पण्णत्ता, तं जहा-सुयणाणसागारपासणया य सुयअण्णाणसागारपासणया य । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वच्चति । एवं तेइंदियाण वि॥ २२. चउरिदियाणं पुच्छा। गोयमा ! चरिदिया सागारपस्सी वि अणागारपस्सी वि॥ २३. से केणठेणं? गोयमा ! जे णं चउरिदिया सुयणाणी सुतअण्णाणी ते णं चउरिदिया सागारपस्सी, जे णं चउरिदिया चक्खुदंसणी ते णं चउरिदिया अणागारपस्सी। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति ॥ २४. मणूसा जहा' जीवा । अवसेसा जहा णेरइया जाव वेमाणिया ।। २५. केवली णं भंते ! इमं रयणप्पभं पुढवि आगारेहि हेतूहिं उवमाहिं दिळंतेहिं वण्णेहिं संठाणेहिं पमाणेहिं पडोयारेहिं जं समयं जाणति तं समयं पासति ? जं समयं १. प० ३०।४। २.१० ३०१५-७। ३. प० ३०११५, १६ । ४.प. ३०।१७। Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीसइम पासणयापर्य ३२६ पासति तं समयं जाणति ? गोयमा ! णो इणठे समझें ।। २६. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चति-केवली णं इमं रयणप्पभं पुढवि आगारेहि 'हेतुहिं उवमाहि दिळंतेहिं वण्णेहिं संठाणेहिं पमाणेहिं पडोयारेहि जं समयं जाणति णो तं समयं पासति ? जं समयं पासति णो तं समयं जाणति ? गोयमा ! सागारे से गाणे भवति, अणागारे से दंसणे भवति । से तेणठेणं' 'गोयमा! एवं वुच्चति-केवली णं इम रयणप्पभं पुढवि आगारेहिं हेतूहिं उवमाहिं दिळेंतेहिं संठाणेहिं पमाणेहिं पडोयारेहिं जं समयं जाणति णो तं समयं पासति, जं समयं पासति° णो तं समयं जाणति । एवं जाव अहेसत्तमं । एवं सोहम्मं कप्पं जाव अच्चुयं गेवेज्जगविमाणा अणुत्तरविमाणा ईसीपब्भार पूढवि परमाणपोग्गल दूपएसिय खध जाव अणतपदेसय खध ।। २७. केवली णं भंते ! इमं रयणप्पभं पुढवि अणागारेहिं अहेतूहिं अणुवमाहिं अदिलैंतेहिं अवण्णेहिं असंठाणेहिं अपमाणेहिं अपडोयारेहिं पासति, ण जाणति ? हंता गोयमा ! केवली णं इमं रयणप्पभं पुढवि अणागारेहि' •अहेतूहिं अणुवमाहिं अदिट्टतेहिं अवण्णेहि असंठाणेहिं अपमाणेहिं अपडोयारेहि° पासति, ण जाणइ ॥ २८. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-केवली णं इमं रयणप्पभं पुढवि अणागारेहि •अहेतूहिं अणुवमाहिं अदिद्रुतेहिं अवण्णेहिं असंठाणेहिं अपमाणेहिं अपडोयारेहि पासति, ण जाणइ ? गोयमा ! अणागारे से दसणे भवति, सागारे से णाणे भवति । से तेणठेणं गोयमा । एवं वुच्चति-केवली णं इमं रयणप्पभं पुढविं अणागारेहि अहेतूहिं अणुवमाहि अदिळेंतेहिं अवण्णेहिं असंठाणेहिं अपमाणेहिं अपडोयारेहिं पासति, ण जाणति । एवं जाव ईसीपब्भारं पुढविं परमाणुपोग्गलं अणंतपदेसियं खंधं पासइ, ण जाणइ ।। ३,४,५. सं० पा०-आणागारेहिं जाव पासति । १.सं० पा०-आगारेहिं जाव जं। २. सं० पा०-तेणठेणं जाव णो। Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगतीसइमं सण्णिपयं १. जीवा णं भंते ! कि सण्णी? असण्णी ? णोसण्णी-णोअसण्णी ? गोयमा ! जीवा सण्णी वि असण्णी वि णोसण्णी-णोअसण्णी वि ॥ २. णेरइयाणं पुच्छा। गोयमा ! रइया सण्णी वि असण्णी वि, णो णोसण्णीणोअसण्णी । एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा॥ ३. पुढविक्काइयाणं पुच्छा । गोयमा ! णो सण्णी, असण्णी, णो णोसण्णी-णोअसण्णी। एवं बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिया वि ।। ४. मणूसा जहा जीवा । पंचेंदियतिरिक्खजोणिया वाणमंतरा य जहा णेरइया ।। ५. जोइसिय-वेमाणिया सण्णी, णो असण्णी णो णोसण्णी-णोअसण्णी ।। ६. सिद्धाणं पुच्छा । गोयमा ! णो सण्णी णो असण्णी, णोसण्णि-णोअसण्णी ।। गाहा णेरइय-तिरिय-मणुया य, वणयरसुरा' य सण्णासण्णी य । विगलिंदिया असण्णी, जोतिस-वेमाणिया सण्णी ।।१।। १. वनचरा-व्यन्तरा, असुरादयः-समस्ता भवनपतयः । २. संज्ञिनोऽसंज्ञिनश्च । ३३० Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बत्तीसइमं संजमपयं १. जीवा णं भंते ! किं संजया ? असंजया ? संजतासंजता ? 'णोसंजत - णोअसंजतणोसंजया संजया" ? गोयमा ! जीवा संजया वि असंजया वि संजयासंजया वि णोसंजयगोअसंजय - णो संजतासंजया वि ॥ २. रइया णं भंते ! कि संजया ? असंजया ? संजयासंजया ? णोसंजत - णोअसंजतगोसंजया संजया ? गोयमा ! णेरइया णो संजया, असंजया, णो संजयासंजया णो णोसंजयअसंजय - णोसंजतासंजया । एवं जाव चउरिदिया ॥ ३. पंचेदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णो संजया, असंजया वि संजतासंजता वि, णो णोसंजय - णोअसंजय - णोसंजया संजया ॥ ४. मणूसा णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! मणूसा संजया वि असंजया वि संजता - संजया वि, णो णोसंजत-गोअसंजय गोसंजतासंजया ॥ ५. वाणमंतर - जोतिसिय-वेमाणिया जहा णेरइया || ६. सिद्धाणं पुच्छा । गोयमा ! सिद्धा नो संजया नो असंजया नो संजय संजया, संजय - णोअसंजय गोसंजयासंजया || गाहा— संजय अस्संजय मीसगा य, जीवा तहेव मणुया य । संजतरहिया तिरिया, सेसा अस्संजता होंति ॥ १ ॥ १. गोसंजता णोअसंजता णोसंजतासंजता (क, ख, ग, घ ) सर्वत्र । ३३१ Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा - तेत्तीसइमं ओहिपयं १ भेद २ विसय ३ संठाणे, ४ अब्भितर - बाहिरे य ५ देसोही । ६ ओहिस्स य खय- बुड्डी, ७ पडिवाई चेवऽपडिवाई' ॥१॥ ओहिभेय-पदं १. कतिविहा णं भंते ! ओही पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा ओही पण्णत्ता, तं जहा - भवपच्चइया य खओवसमिया य । दोहं भवपच्चइया, तं जहा- देवाण य रइयाण य । दोहं खओवसमिया, तं जहा - मणूसाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य ।। ओहिविसय-पदं २. णेरइया णं भंते ! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहणेणं अद्धगाउयं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति ॥ ३. रयणप्पभापुढविणेरइया णं भंते! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहणेणं अट्ठाई गाउयाई, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति ॥ ४. सक्करप्पभापुढविणेरइया जहण्णेणं तिण्णि गाउयाई, उक्कोसेणं अद्धट्ठाई गाउयाई ओहिणा जाणंति पासंति ॥ ५. वालुयप्पभापुढविणेरइया जहणणेणं अड्डाइज्जाई गाउयाई, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई ओहिणा जाणंति पासंति ॥ ६. पंकप्पभापुढविणेरइया जहणणेणं दोण्णि गाउयाई, उक्कोसेणं अड्डाइज्जाई गाउयाई ओहिणा जाणंति पासंति ॥ ७. धूमप्पभापुढविणे रइयाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं दिवड्ढ गाउयं, उक्कोसेणं दो गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति ॥ ८. तमापुढवीए पुच्छा। गोयमा ! जहणणेणं गाउयं, उक्कोसेणं दिवड्ढं गाउयं ओहिणा जाणंति पसंति ॥ ६. अहेसत्तमाए पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अद्धगाउयं, उक्कोसेणं गाउयं ओहिणा १. अपडिवादी (क,घ ) ; अपडिवाई ( ख, ग ) । ३३२ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेत्तीसइमं ओहिपयं जाणंति पासंति ॥ १०. असुरकुमारा णं भंते ! ओहिणा केवतियं खेत्तं जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहण्णेणं पणुवीसं जोयणाई, उक्कोसेणं असंखेज्जे दीव-समुद्दे ओहिणा जाणंति पासंति ।। ११. णागकुमारा णं जहण्णेणं पणुवीसं जोयणाई, उक्कोसेणं संखेज्जे दीव-समुद्दे ओहिणा जाणंति पासंति । एवं जाव थणियकुमारा॥ १२. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं असंखेज्जे दीव-समुद्दे ।।। १३. मणूसा णं भंते ! ओहिणा केवतियं खेत्तं जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं असंखेज्जाइं अलोए लोयपमाणमेत्ताइं खंडाई ओहिणा जाणंति पासंति ॥ १४. वाणमंतरा जहा णागकुमारा॥ १५. जोइसिया णं भंते ! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहण्णेणं संखेज्जे दीव-समुद्दे, उक्कोसेण वि संखेज्जे दीव-समुद्दे ।। १६. सोहम्मगदेवा णं भंते ! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते तिरियं जाव असंखेज्जे दीव-समुद्दे उड्ढं जाव सगाई विमाणाइं ओहिणा जाणंति पासंति । एवं ईसाणगदेवा वि। सणंकुमारदेवा वि एवं चेव, णवरं-अहे जाव दोच्चाए सक्करप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते। एवं माहिंदगदेवा वि। बंभलोगलंतगदेवा तच्चाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते। महासुक्क-सहस्सारगदेवा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते । आणय-पाणय-आरण-अच्चुयदेवा अहे जाव पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए हेछिल्ले चरिमंते । हेट्ठिम-मज्झिमगेवेज्जगदेवा अहे जाव छट्ठाए तमाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते ॥ १७. उवरिमगेवेज्जगदेवा णं भंते ! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं अहेसत्तमाए पुढवीए हेटिल्ले चरिमंते तिरियं जाव असंखेज्जे दीव-समुद्दे उड्ढे जाव सगाई' विमाणाइं ओहिणा जाणंति पासंति ॥ १८. अणुत्तरोववाइयदेवा णं भंते ! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ? गोयमा ! संभिन्नं लोगणालि ओहिणा जाणंति पासंति ।। ओहिसंठाण-पदं १६. णेरइयाणं भंते ! ओही किंसठिए पण्णत्ते ? गोयमा! तप्पागारसंठिए पण्णत्ते ॥ २०. असुरकुमाराणं पुच्छा। गोयमा ! पल्लगसंठिए। एवं जाव थणियकुमाराणं ॥ २१. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते । एवं १. सताई (क,घ); सयाति (ख) । Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ पण्णवणासुतं मणूसाण वि॥ २२. वाणमंतराणं पुच्छा। गोयमा ! पडहसंठाणसंठिए पण्णत्ते ॥ २३. जोतिसियाणं पुच्छा । गोयमा ! झल्लरिसंठाणसंठिए पण्णत्ते । २४. सोहम्मगदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! उद्धमुइंगागारसंठिए' पण्णत्ते । एवं जाव अच्चुयदेवाणं पुच्छा ॥ २५. गेवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा ! पुप्फचंगेरिसंठिए पण्णत्ते ॥ २६. अणुत्तरोववाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! जवणालियासंठिए ओही पण्णत्ते ॥ ओडिभितर-बाहिर-पदं २७. णेरइया णं भंते ! ओहिस्स किं अंतो? बाहिं ? गोयमा ! अंतो, नो बाहिं । एवं जाव थणियकुमारा॥ २८. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! णो अंतो, बाहिं । २६. मणूसाणं पुच्छा । गोयमा ! अंतो वि बाहिं पि॥ ३०. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं ॥ देस-सव्वोहि-पदं ३१. णेरइया णं भंते ! किं देसोही ? सव्वोही ? गोयमा ! देसोही, णो सव्वोही। एवं जाव थणियकुमाराणं ॥ ३२. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! देसोही, णो सव्वोही॥ ३३. मणूसाणं पुच्छा । गोयमा ! देसोही वि सव्वोही वि॥ ३४. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं ॥ ओहिस्स खयवुड्ढिआदि-पदं ३५. णेरइयाणं भंते ! ओही कि आणुगामिए अणाणुगामिए ? वड्ढमाणए हायमाणए ? पडिवाई अपडिवाई ? अवट्ठिए अणवट्ठिए ? गोयमा ! आणुगामिए, नो अणाणुगामिए नो वड्ढमाणए णो हायमाणए णो पडिवाई, अपडिवाई अवट्ठिए, णो अणवट्ठिए। एवं जाव थणियकुमाराणं ॥ ३६. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! आणुगामिए वि जाव अणवट्ठिए वि। एवं मणूसाण वि॥ ३७. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं ॥ १. उड्ढ०.(पु)। Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीसइमं पवियारणापयं १ अणंतरागयाहारे', २ आहाराभोयणाइ य । ३ पोग्गला नेब' जाणंति, ४ अज्झवसाणा य आहिया ॥१॥ ५ सम्मत्तस्स अभिगमे, ६ तत्तो परियारणा य बोद्धव्वा । काए फासे रूवे, सद्दे य मणे य अप्पबहुं ॥२॥ अणंतराहार-पदं १. णेरइया णं भंते ! अणंतराहारा तओ णिव्वत्तणया ततो परियाइयणया' ततो परिणामणया ततो परियारणया ततो पच्छा विउव्वणया? हंता गोयमा ! णेरइया णं अणंतराहारा तओ निव्वत्तणया ततो परियाइयणया तओ परिणामणया तओ परियारणया तओ पच्छा विउवणया ।। २. असुरकुमारा णं भंते ! अणंतराहारा तओ णिवत्तणया तओ परियाइयणया तओ परिणामणया तओ विउव्वणया तओ पच्छा परियारणया ? हंता गोयमा ! असुरकुमारा अणंतराहारा तओ णिवत्तणया जाव तओ पच्छा परियारणया। एवं जाव थणियकुमारा॥ ___३. पुढविक्काइया णं भंते ! अणंतराहारा तओ णिवत्तणया तओ परियाइयणया तओ परिणामणया तओ परियारणया ततो विउव्वणया ? हंता गोयमा ! तं चेव जाव परियारणया, णो चेव णं विउव्वणया । एवं जाव चउरिदिया, णवरं-वाउक्काइया पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा' य जहा णेरइया ॥ ४. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा॥ आहाराभोगणा-पदं ५. णेरइयाणं भंते ! आहारे किं आभोगणिव्वत्तिए ? अणाभोगणिव्वत्तिए ? १. अणंतरगयाहारे (ख); अणंतराय आहरे (पु)। परियाइयणया ततो परिणामणया ततो २. मेव (क,ख,घ)। परियारणया ततो पच्छा विउव्वणया ? हंता ३. परियायणया (क)। गोयमा ! मणुस्सा णं अणंतराहारा तओ ४. परियादिणया (ख); परियायणया (ग)। निव्वत्तणया ततो परियाइयण या तओ परिणा५. मनुष्यालापकस्य पूर्ण सूत्रमेवं स्यात्-मणुस्सा मणया तओ परियारणया तओ पच्छा विउव्व णं भंते! अणंतराहारा तओ निव्वत्तणया ततो णया। Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ गोयमा ! आभोगणिव्वत्तिए वि अणाभोगणिव्वत्तिए वि । एवं असुरकुमाराणं जाव माणियाणं, णवरं - एगिदियाणं णो आभोगणिव्वत्तिए, अणाभोगणिव्वत्तिए || पोग्गलजाणणा-पदं ६. रइया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेव्हंति ते जाणंति पासंति आहारेंति ? उदाहु ण जाणंति' ण पासंति आहारेंति ? गोयमा ! ण जाणंति ण पासंति, आहारेंति । एवं जाव तेइंदिया ॥ ७. चउरिदियाणं पुच्छा । गोयमा ! अत्थेगइया ण जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थे - गइया, ण जाणंति ण पासंति आहारेंति ॥ ८. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति पासंति आहाति, अत्थेगइया जाणंति न पासंति आहारेंति, अत्थेगइया ण याणंति पासंति आहारेंति, अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति आहारेंति ॥ ६. मणूसाणं पुच्छा । गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति, अत्येगइया जाणंति न पासंति आहारेंति, अत्थेगइया ण जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति आहारेंति ॥ १०. वाणमंतर - जोतिसिया जहा रइया ॥ ११. वेमाणियाणं पुच्छा । गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति, अत्गइयाण याति ण पासंति आहारेंति । १२. सेकेणट्ठे भंते । एवं वुच्चति - अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति ? अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति आहारेंति ? गोयमा ! वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - माइमिच्छद्दिट्टिउववण्णगा य अमाइसम्म द्दिट्टिउववण्णगा य । "तत्थ णं जेते माइमिच्छद्दिट्टिउववन्नगा ते णं न याणंति न पासंति आहारेंति । तत्थ णं जेते अमाइसम्म - वनगा दुवा पण्णत्ता, तं जहा - अनंत रोववण्ण्गा य परंपरोववण्णगा य । तत्थ णं जेते अनंत रोववण्णगा ते णं ण याणंति ण पासंति आहारेंति । तत्थ णं जेते परंपरोववण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं ण याणंति ण पासंति आहारेंति । तत्थ णं जेते पज्जत्तगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा — उवउत्ता य अणुवउत्ता य । तत्थ णं जेते अणुवउत्ता ते णं ण याणंति ण पसंत आहारेंति । तत्थ णं जेते उवउत्ता ते णं जाणंति पासंति आहारेंति । से तेणट्ठेणं गोमा ! एवं वच्चति - अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थेगइया ण याणंतिण पासंति आहारेंति ॥ पण्णवणा अज्झवसाण-पदं १३. रइयाणं भंते! केवतिया अज्झवसाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा १. याति (क, ख, ग, घ ) । २. सं० पा० एवं मणूसाण वि । ३. सं०पा० – एवं जहा इंदियउद्देसए पढमे भणियं तहा भाणियव्वं जाव से तेणट्ठेणं । ४. मनुष्यालापकस्य पूर्णं सूत्रमेवं स्यात् — मणु स्साणं भंते ! केवतिया अज्झवसाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा अज्झवसाणा पण्णत्ता । ते णं भंते ! किं पसत्था ? अप्पसत्था ? गोयमा ! पसत्था वि अप्पसत्या वि । Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उतीसइमं पवियारणापर्यं ३३७ अज्झवसाणा पण्णत्ता । ते णं भंते! किं पसत्था ? अप्पसत्था ? गोयमा ! पसत्था वि अप्पसत्था वि । एवं जाव वैमाणियाणं | सम्मताभिगम-पदं १४. रइया णं भंते ! कि सम्मत्ताभिगमी' ? मिच्छत्ताभिगमी ? सम्मामिच्छत्ताभिगामी ? गोयमा ! सम्मत्ताभिगमी वि मिच्छत्ताभिगमी वि सम्मामिच्छत्ताभिगमी वि । एवं जाव वैमाणिया, णवरं-- एगिंदिय- विगलिंदिया णो सम्मत्ताभिगमी, मिच्छत्ताभिगमी, णो सम्मामिच्छत्ताभिगमी ॥ परियारणा-पदं १५. देवा णं भंते ! किं सदेवीया सपरियारा ? सदेवीया अपरियारा ? अदेवीया सपरियारा ? अदेवीया अपरियारा ? गोयमा ! अत्थेगइया देवा सदेवीया सपरियारा, अत्थेrइया देवा अदेवीया सपरियारा, अत्थेगइया देवा अदेवीया अपरियारा, णो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा ॥ १६. से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चति - अत्थेगइया देवा सदेवीया सपरियारा, "अत्थेगइया देवा अदेवीया सपरियारा, अत्थेगइया देवा अदेवीया अपरियारा णो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा ? गोयमा ! भवणवति वाणमंतर - जोतिस सोहम्मीसाणेसु कप्पे देवा सदेवीया सपरियारा, सणकुमार - माहिंद - बंभलोग लंतग-महासुक्क सहस्सार- आणय-पाणयआरण-अच्चए कप्पेसु देवा अदेवीया सपरियारा, गेवेज्जणुत्तरोववाइयदेवा अदेवीया अपरियारा, णो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वच्चतिअत्या देवा सदेवीया सपरियारा, अत्थेगइया देवा अदेवीया सपरियारा, अत्थे गइया देवा अदेवीया अपरियारा, णो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा ॥ १७. कतिविहाणं भंते ! परियारणा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा परियारणा पण्णत्ता, जहा - कायपरियारणा' फासपरियारणा रुवपरियारणा सद्दपरियारणा मणपरियारणा ॥ १८. सेकेणट्ठे भंते ! एवं वृच्चति - पंचविहा परियारणा पण्णत्ता, तं जहाकायपरियारणा जाव मणपरियारणा ? गोयमा ! भवणवति वाणमंतर - जोइस सोहम्मीसासु कप्पे देवा कायपरियारगा, सणकुमार - माहिदेसु कप्पेसु देवा फासपरियारगा, बंभलोय - लंतगेसु कप्पेसु देवा रूवपरियारगा, महासुक्क सहस्सा रेसु देवा सद्दपरियारगा, आणय-पाणय-आरण-अच्चएस कप्पेसु देवा मणपरियारगा, गेवेज्जअणुत्तरोववाइया देवा अपरियारगा । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति - पंचविहा परियारणा पण्णत्ता, तं जहा — कायपरियारणा जाव' मणपरियारणा ॥ १६. तत्थ णं जेते कायपरियारगा देवा तेसि णं इच्छामणे समुप्पज्जइ - इच्छामो णं अच्छराहिं सद्धिं कायपरियारं करेत्तए । तए णं तेहि देवेहिं एवं मणसीकए समाणे खिप्पा १. सम्यक्त्वाधिगामिन: ( मवृ ) | २. सपरिचारा ( ख, ग ) 1 ३. सं०पा० तं चैव जाव णो । ४. सं०पा० तं चैव जाव णो । ५. परियारणया ( क, ख, घ) प्राय: सर्वत्र । ६. सं०पा० तं चेव जाव मणपरियारणा । ७. वृत्तावपि 'कायपरिचारं कर्तुमिति' दृश्यते । Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ पण्णवणासुतं मेव ताओ अच्छराओ ओरालाई सिगाराई मणुण्णाई मणोहराई मणोरमाइं उत्तरवेउव्वियाई रुवाई विउव्वंति, विउवित्ता तेसि देवाणं अंतियं पादुब्भवंति । तए णं ते देवा ताहि अच्छराहिं सद्धि कायपरियारणं करेंति से जहाणामए- सीता पोग्गला सीतं पप्प सीतं चैव अतिवृतित्ता णं चिट्ठति, उसिणा वा पोग्गला उसिणं पप्प उसिणं चेव अइवइताणं चिट्ठति, एवमेव तेहिं देवेहिं ताहि अच्छराहिं सद्धि कायपरियारणे कते समाणे से इच्छामणे खिप्पामेवावेति ॥ २०. अत्थि णं भंते ! तेसि देवाणं सुक्कपोग्गला ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! तासि अच्छराणं कीसत्ताए भुज्जो - भुज्जो परिणमंति ? गोयमा ! सोइंदियत्ताए चक्खिदियत्ताए घाणिदियत्ताए रसिंदियत्ताए फासिंदियत्ताए इट्टत्ताए कंतत्ताए मणुण्णत्ताए मणामत्ताए सुभगत्ताए सोहग्ग- रूव-जोव्वण-गुणलायण्णत्ताए ते तासि भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ २१. तत्थ णं जेते फासपरियारगा देवा तेसि णं इच्छामणे समुप्पजइ - इच्छामो णं अच्छ राहिं सद्धि फासपरियारं करेत्तए । तए णं तेहि देवेहिं एवं मणसीकए समाणे खिप्पामेव ताओ अच्छाराओ ओरालाई सिंगाराई मणुण्णाई मणोहराई मणोरमाई उत्तरवेउव्वियाई रुवाई विउव्वंति, विउव्वित्ता तेसि देवाणं अंतियं पादुब्भवंति । तए णं ते देवा ताहि अच्छराहि सद्धि फासपरियारणं करेंति, एवं जहेव कायपरियारगा तहेव निरवसेसं भाणियव्वं ॥ २२. तत्थ णं जेते रूवपरियारगा देवा तेसि णं इच्छामणे समुप्पज्जइ - इच्छामो णं अच्छराहिं सद्धि रूवपरियारणं करेत्तए । तए णं तेहि देवेहि एवं मणसीक समाणे तहेव जाव उत्तरवेउब्वियाई रुवाई विउब्वंति, विउव्वित्ता जेणामेव ते देवा तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेसि देवाणं अदूरसामंते ठिच्चा ताई ओरालाई जाव मणोरमाई उत्तरवेउब्वियाई रुवाइं उवदंसेमाणीओ उवदंसेमाणीओ चिट्ठति । तए णं ते देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धि रूवपरियारणं करेंति, सेसं तं चैव जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ २३. तत्थ णं जेते सद्दपरियारगा देवा तेसि णं इच्छामणे समुप्पज्जति - इच्छामो णं अच्छ राहिं सद्धि सद्दपरियारणं करेत्तए । तए णं तेहिं देवेहि एवं मणसीकए समाणे तहेव जाव उत्तरवे उब्वियाई रुवाई विउव्वंति, विउव्वित्ता जेणामेव ते देवा तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेसि देवाणं अदूरसामंते ठिच्चा अणुत्तराई उच्चावयाई सद्दाई समुदीरेमाणीओ - समुदीरेमाणीओ चिट्ठेति । तए णं ते देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धि सद्दपरियारणं करेंति, सेसं तं चेव जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ २४. तत्थ णं जेते मणपरियारगा देवा तेसि इच्छामणे समुप्पज्जइ - इच्छामो णं अच्छराहि सद्धिमणपरियारणं करेत्तए । तए णं तेहिं देवेहिं एवं मणसीकए समाणे खिप्पामेव ताओ अच्छराओ तत्थगताओ चैव समाणीओ अणुत्तराई उच्चावयाइं मणाई पहारेमाणीओ - पहारेमाणीओ चिट्ठति । तए णं ते देवा ताहि अच्छराहिं सद्धि मणपरियारणं करेंति, सेसं णिरवसेसं तं चेव जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमति ॥ २५. एतेसि णं भंते! देवाणं कायपरियारगाणं जाव मणपरियारगाणं अपरियारगाय कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीसइमं पवियारणापयं सव्वत्थोवा देवा अपरियारगा, मणपरियारगा संखेज्जगुणा, सद्दपरियारगा असंखेज्जगुणा, रूवपरियारगा असंखेज्जगुणा, फासपरियारगा' असंखेज्जगुणा, कायपरियारगा असंखेज्ज गुणा॥ १.फरिस (क,ग,घ); फरस (ख)। Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा पंचतीसइमं वेयणापर्द सीताइवेदणा-पदं १. कतिविहा गं भंते ! वेदणा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा वेदणा पण्णत्ता, तं जहा - सीता उसिणा सीतोसिणा || १ 'सीता २ य दव्व ३ सारीर ४ सात" तह वेदणा हवति ५ दुक्खा | ६ अब्भुवगमवक्कमिया, ७ णिदा य अणिदा य णायव्वा ॥ १ ॥ सातमसातं सव्वे, सुहं च दुक्खं अदुक्खमसुहं च । माणसरहियं विगलिंदिया उ सेसा दुविहमेव ॥२॥ २. रइया णं भंते! किं सीतं वेदणं वेदेति ? उसिणं वेदणं वेदेति ? सीतोसिणं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! सीयं पि वेदणं वेदेंति, उसिणं पि वेदणं वेदेंति, णो सीतोसिणं वेदणं वेदेति' ॥ ३. असुरकुमाराणं पुच्छा । गोयमा ! सीयं पि वेदणं वेदेति, उसिणं पि वेदणं वेति, सीतोसि पि वेदणं वेदेति । एवं' जाव वेमाणिया || १. सीता दव्व सारीर साता (क); सीता दव्व सरीरा साता ( ख, ग ) ; सीता दव्व सारीरा साता (घ ) । ३४० २. अतोनन्तरं, मलयगिरिणा एवं टीकितम् एतावत् सूत्रं चिरन्तनेष्वविप्रतिपत्त्या श्रूयते केचिदाचार्याः पुनरेतद्विषयमधिकमपि सूत्रं पठन्ति, ततस्तन्मतमाह — केई एक्केक्कीए पुढवीए वेदणाओ भांति - रयणप्पभापुढविणेरइया णं भंते! पुच्छा । गोयमा ! णो सीयं वेदणं वेदेति, उसिणं वेदणं वेदेति, णो सीतोसिणं वेदणं वेदेति । एवं जाव वालुयप्पभापुढविणेरइया । पंकष्पभापुढविणेरइयाणं पुच्छा । गोयमा ! सीयं पिवेद वेदेंति, उसिणं पि वेदणं वेदेंति, जो सीओ सिणं वेदणं वेदेति । ते बहुयतरागा जे उसिणं वेदणं वेदेंति, ते थोवतरागा जे सीयं वेद वेदेति । धूमपभाए एवं चैव दुविहा, नवरं -- ते बहुयतरागा जे सीयं वेदणं वेदेति, तेथोक्तरागा जे उसिणं वेयणं वेदेति । तमाए तमतमाए य सीयं वेदणं वेदेति णो उसिणं वेदणं वेदेंति, णो सीओसिणं वेदणं वेदेंति । आदर्शेषु एष पाठः संलग्नरूपेण लिखितोस्ति । ३. मनुष्यालापकस्य पूर्णं सूत्रमेवं स्यात् - मणुस्साणं पुच्छा । गोयमा ! सीयं पि वेदणं वेदेति, उसिणं पि वेदणं वेदेति, सीतोसिणं पि वेद वेदेति । Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचतीसइम वेयणापयं बव्वाइवेदणा-पदं ४. कतिविहाणं भंते! वेदणा पण्णत्ता ? गोयमा ! चउव्विहा वेदणा पण्णत्ता, तं जहा-दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। ५. णेरइया णं भंते ! किं दव्वओ वेदणं वेदेति जाव किं भावओ वेदणं वेदेति ? गोयमा ! दव्वओ वि वेदणं वेदेति जाव भावओ वि वेदणं वेदेति। एवं' जाव वेमाणिया॥ सारीराइवेदणा-पदं ६. कतिविहा णं भंते ! वेदणा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा वेदणा पण्णत्ता, तं जहा-सरीरा माणसा सारीरमाणसा ॥ ७. णेरइया णं भंते ! किं सारीरं वेदणं वेदेति ? माणसं वेदणं वेदेति ? सारीरमाणसं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! सारीरं पि वेदणं वेदेति, माणसं पि वेदणं वेति सरीरमाणसं पि वेदणं वेदेति । एवं जाव वेमाणिया, णवरं---एगिंदिय-विगलिंदिया सारीरं वेदणं वेदेति, णो माणसं वेदणं वेदेति णो सारीरमाणसं वेदणं वेदेति ।। साताइवेदणा-पदं ८. कतिविहा णं भंते ! वेयणा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा वेयणा पण्णत्ता, तं जहा-साता असाता सातासाता ।। 8. णेरइया णं भंते! कि सातं वेदणं वेदेति? असातं वेदणं वेदेति ? सातासातं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! तिविहं पि वेदणं वेदेति । एवं' सव्वजीवा जाव वेमाणिया। दुक्खाइवेदणा-पदं १०. कतिविहा णं भंते ! वेयणा पण्णता ? गोयमा ! तिविहा वेयणा पण्णत्ता, तं जहा-दुक्खा सुहा अदुक्खमसुहा॥ ११. णेरइया णं भंते ! किं दुक्खं वेदणं वेदेति पुच्छा। गोयमा ! दुक्खं पि वेदणं वेति. सदं पि वेदणं वेदेति, अदक्खमसह पि वेदणं वेदेति । एवं" जाव वेमाणिया॥ अन्मोवगमियाइवेयणा-पदं १२. कतिविहा णं भंते ! वेदणा पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा वेदणा पण्णत्ता, तं जहा-अब्भोवगमिया य ओवक्कमिया य॥ १. मनुष्यालापके पूर्ण सूत्रमेवं स्यात्---मणुस्सा णं भंते किं दव्वओ वेदणं वेदेति जाव किं भावओ वेदणं वेदेति ? गोयमा ! दबओ वि वेदणं वेदेति जाव भावओ वि वेदणं वेदेति । २. मनुष्यालापके पूर्ण सूत्रमेवं स्यात् ...-मणुस्सा णं भंते ! कि सारीरं वेदणं वेदेति ? माणसं वेदणं वेदेति ? सारीरमाणसं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! सारीरं पि वेदणं वेदेति, माणसं पि वेदणं वेदेति, सारीरमाणसं पि वेदणं वेति । ३. मनुष्यालापके पूर्ण सूत्रमेवं स्यात्म णुस्सा णं भंते ! कि सातं वेदणं वेदेति ? असातं वेदणं वेदेति ? सातासातं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! तिविहं पि वेदणं वेदेति । ४. अदुक्खा असुहा (ख)। ५. मनुष्यालापके पूर्ण सूत्रमेवं स्यात् ......मणुस्सा णं भंते! किं दुक्खं वेदणं वेदेति पुच्छा। गोयमा! दुक्खं पि वेदणं वेदेति, सुहं पि वेदणं वेदेति, अदुक्खमसुहं पि वेदणं वेदंति। Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ पण्णवणासुत्तं १३. णेरइया णं भंते! किं अब्भोवगमियं वेदणं वेदेति ? ओवक्कमियं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! णो अब्भोवगमियं वेदणं वेदेति, ओवक्कमियं वेदणं वेदेति । एवं जाव चरिदिया ॥ १४. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा' य दुविहं पि वेदणं वेदेति ।। १५. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा णेरइया ॥ णिदाइवेदणा-पदं १६. कतिविहा णं भंते ! वेदणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा वेदणा पण्णत्ता, तं जहा-णिदा य अणिदा य॥ १७. णेरइया णं भंते ! कि णिदायं वेदणं वेदेति ? अणिदायं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! णिदायं पि वेदणं वेदेति अणिदायं पि वेदणं वेदेति ।। १८. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति–णेरइया णिदायं पि वेदणं वेदेति अणिदायं पि वेदणं वेदेति ? गोयमा ! णेरइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सण्णिभूया य असण्णिभूया य । तत्थ णं जेते सण्णिभूया ते णं निदायं वेदणं वेदेति, तत्थ णं जेते असण्णिभूया ते णं अणिदायं वेदणं वेदेति । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-णेरइया निदायं पि वेदणं वेदेति, अणिदायं पि वेदणं वेदेति । एवं जाव थणियकुमारा।।। १६. पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा ! णो निदायं वेदणं वेदेति, अणिदायं वेदणं वेदेति ॥ २०. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति-पुढविक्काइया णो णिदायं वेदणं वेदेति अणिदायं वेयणं वेदेति ? गोयमा ! पुढविक्काइया सव्वे असण्णी असण्णिभूतं अणिदायं वेदणं वेदेति । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति---पुढविक्काइया णो णिदायं वेदणं वेदेति, अणिदायं वेदणं वेदेति । एवं जाव चउरिदिया ।।। २१. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा' वाणमंतरा जहा णेरइया ।। २२. जोइसियाणं पुच्छा। गोयमा ! णिदायं पि वेदणं वेदेति अणिदायं पि वेदणं वेदेति ॥ २३. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-जोइसिया णिदायं पि वेदणं वेदेति अणिदायं पि वेदणं वेदेति ? गोयमा ! जोतिसिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-माइमिच्छद्दिट्ठिउव१. मनुष्यालापके पूर्ण सूत्रमेवं स्यात्- मणुस्सा णं वेदणं वेदेति अणिदाय पि वेदणं वेदेति ? भंते ! किं अब्भोवगमियं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! मणुस्सा दुविहा पण्णता, तं ओवक्कमियं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! दुविहं जहा—सण्णिभूया य असण्णिभूया य। तत्थ णं पि वेदणं वेदेति । जेते सण्णिभूया ते णं णिदायं वेदणं वेदेति, २. मनुष्यालापके पूर्ण सूत्रमेवं स्यात्-मणुस्सा णं तत्थ णं जेते असण्णिभूया ते णं अणिदायं वेदणं भंते ! किं णिदायं वेदणं वेदेति ? अणिदायं वेदेति । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! णिदाय पि वेदणं वुच्चति-मणुस्सा णिदायं पि वेदणं वेदति, वेदेति अणिदायं पि वेदणं वेदेति । से केणठेणं अणिदायं पि वेदणं वेदेति । भंते ! एवं वुच्चति-मणुस्सा णिदायं पि Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचतीसइमं वैयणापदं वण्णगा य अमाइसम्महिदिउववण्णगा य। तत्थ णं जेते माइमिच्छद्दिविउववण्णगा ते णं अणिदायं वेदणं वेदेति, तत्थ णं जेते अमाइसम्मद्दिट्ठिउवण्णगा ते णं णिदायं वेदणं वेदेति । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति–जोतिसिया दुविहं पि वेदणं वेदेति । एवं वेमाणिया वि॥ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा छत्तीसइमं समुग्धायपयं १ वेयण २ कसाय ३ मरणे, ४ वेउब्विय ५ तेयए य ६ आहारे । ७ केवलिए' चेव भवे, जीव- मणुस्साण सत्तेव ॥ समुग्धाय भेय-पदं १. कति णं भंते ! समुग्धाया पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेदणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणं तियसमुग्धाए वेउव्वियसमुग्धाए तेयासमुग्धाए आहारसमुग्धाए' केवलिसमुग्धाए ॥ समुग्धाय काल-पदं २. वेदणासमुग्धाए णं भंते ! कतिसमइए पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए पण्णत्ते । एवं जाव आहारगसमुग्धाए ॥ ३. केवलिसमुग्धाए णं भंते ! कतिसमइए पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठसमइए पण्णत्ते ॥ समुग्धायसामित्त-पदं ४. रइयाणं भंते! कति समुग्धाया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा – वेदणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतिय समुग्धाए वेउब्वियसमुग्धाए ॥ ५. असुरकुमाराणं भंते! कति समुग्धाया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा-वेदणासमुग्धाए कसायसमुघाए मारणंतियसमुग्धाए वेडव्वियसमुग्धाए तेयासमुग्धाए । एवं जाव थणियकुमाराणं ॥ ६. पुढविक्काइयाणं भंते ! कति समुग्धाया पण्णत्ता ? गोयमा ! तिण्णि समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा – वेदणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धाए । एवं जाव चउरिदियाणं, णवरं वाउक्काइयाणं चत्तारि समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेदणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धाए वे उव्वियसमुग्धाए ॥ ७. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं जाव वैमाणियाणं भंते ! कति समुग्धाया पण्णत्ता ? २. आहारसमु° (क, ख, घ ) । १. केवलए [क,ग) । ३४४ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं समुग्धायपयं ५४५ गोयमा ! पंच समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा–वेदणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउव्वियसमुग्घाए तेयासमुग्धाए, णवरं-मणूसाणं सत्तविहे समुग्घाए पण्णत्ते, तं जहा-वेदणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउव्वियसमुग्घाए तेयासमुग्घाए आहारगसमुग्घाए केवलिसमुग्घाए । एगत्तेणं अतीताइसमुग्घाय-पदं ८. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स केवतिया वेदणासमुग्घाया अतीता ? गोयमा ! अणंता । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा । एवं असुरकुमारस्स वि, णिरंतरं जाव वेमाणियस्स। एवं जाव तेयगसमुग्घाए। एवं एते पंच चउवीसा दंडगा॥ 8.गमेगस्स णं भंते! णेरडयस्स केवतिया आहारगसमग्घाया अतीता? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि जहण्णणं एक्को वा दो वा, उक्कोसेणं तिण्णि । केवतिया पुरेक्खडा ? कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि जहण्णणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि । एवं णिरंतरं जाव वेमाणियस्स, नवरं १०. एगमेगस्स णं भंते ! मणूसस्स केवतिया आहारगसमुग्घाया अतीता ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि जहण्णणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि । केवतिया पुरेक्खडा ? कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि ।। ११. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स केवतिया केवलिसमुग्घया अतीता ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि। जस्सत्थि एक्को। एवं जाव वेमाणियस्स, णवरं-मणूसस्स अतीता कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि। जस्सत्थि एक्को । एवं पुरेक्खडा वि ।।। पुहत्तेणं अतीताइसमुग्घाय-पदं - १२. णेरइयाणं भंते ! केवतिया वेदणासमुग्घाया अतीता ? गोयमा ! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अणंता। एवं जाव वेमाणियाणं। एवं जाव तेयगसमग्घाए। एवं एते विपच चउवीसादडगा ॥ १३. णेरइयाणं भंते ! केवतिया आहारगसमुग्घाया अतीता ? गोयमा ! असंखेज्जा। केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! असंखेज्जा। एवं जाव वेमाणियाणं, णवरं-वणप्फइकाइयाणं मणूसाण य इमं णाणत्तं १४. वणप्फइकाइयाणं भंते ! केवतिया आहारगसमुग्घाया अतीता ? गोयमा ! अणंता। मणूसाणं भंते ! केवतिया आहारगसमुग्घाया अतीता ? गोयमा ! सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा। एवं पुरेक्खडा वि ॥ १ सं०पा०-मणसस्स अतीता वि पुरेक्खडा वि जहा रइयस्स पुरेक्खडा। Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ पण्णवणासुसँ १५. रइयाणं भंते! केवतिया केवलिसमुग्धाया अतीता ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! असंखेज्जा । एवं जाव वेमाणियाणं, णवरं - वणफइकाय मणूसेसु इमं णाणत्तं -- १६. वणप्फइकाइयाणं भंते! केवतिया केवलिसमुग्धाया अतीता ? गोयमा ! । केवतिया पुक्खडा ? गोयमा ! अणंता ॥ १७. मणूसाणं भंते ! केवतिया केवलिसमुग्धाया अतीता ? सिय णत्थि । जदि अत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा bafतिया पुक्खडा ? गोयमा ! सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा ।। तब्भाव एव गत्तेणं अतीताइसमुग्धाय-पदं १८ एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवतिया वेदणासमुग्घाया अतीता ? गोयमा ! अनंता । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि जहणणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा । एवं असुरकुमारत्ते जाव वेमाणियत्ते ॥ १६. एगमेगस्स णं भंते! असुरकुमारस्स णेरइयत्ते केवतिया वेदणासमुग्धाया अतीता ? गोयमा ! अनंता । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि तस्स सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा सिय अनंता ॥ गोयमा ! सिय अस्थि उक्कोसेणं सतपुहत्तं । २०. एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स असुरकुमारत्ते केवतिया वेदणासमुग्धाया अतीता ? गोयमा ! अनंता । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा । एवं णागकुमारते वि जाव वेमाणियत्ते । एवं जहा वेदणासमुग्धघाएणं असुरकुमारे णेरइयादिवेमाणियपज्जवसाणेसु भणिए तहा णागकुमारादीया अवसेसेसु सट्टा-पट्ठाणेसु भाणियव्वा जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते । एवमेते चउव्वीसं चउव्वीसा दंडगा भवंति ॥ २१. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवतिया कसायसमुग्धाया अतीता ? गोमा ! अनंता । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि गुत्तरिया जाव अनंता ॥ २२. एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवतिया कसायसमुग्धाया अतीता ? गोयमा ! अनंता । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा सिय अनंता । एवं जाव णेरइयस्स थणियकुमारते । पुढविकाइयत्ते एगुत्तरियाए णेयव्वं, एवं जाव मणूसत्ते । वाणमंतर जहा असुरकुमारत्ते । जोतिसियत्ते अतीता अणंता, पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि सिय असंखेज्जा सिय अनंता । एवं वेमाणियत्ते वि सिय असंखेज्जा सिय अनंता ॥ २३. असुरकुमारस्स णेरइयत्ते अतीता अनंता । पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा सिय अनंता ॥ Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं समुग्धायपयं ३४० २४. असुरकुमारस्स असुरकुमारत्ते अतीता अणंता। पुरेक्खडा एगुत्तरिया । एवं नागकुमारत्ते निरंतरं जाव वेमाणियत्ते जहा णेरइयस्स भणियं तहेव भाणियव्वं । एवं जाव थणियकुमारस्स वि [जाव ? ] वेमाणियत्ते, णवरं-सव्वेसि सटाणे एगुत्तरिए परहाणे जहेव असुरकुमारस्स ॥ २५. पुढविक्काइयस्स गैरइयत्ते जाव थणियकुमारत्ते अतीता अणंता। पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा सिय अणंता ॥ २६. पुढविक्काइयस्स पुढविक्काइयत्ते जाव मणूसत्ते अतीता अणंता । पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि। जस्सस्थि एगुत्तरिया। वाणमंतरत्ते जहा रइयत्ते । जोतिसिय-वेमाणियत्ते अतीता अणंता । पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि सिय असंखेज्जा सिय अणंता । एवं जाव मणूसे वि णेयव्वं । वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारे, णवरंसट्ठाणे एगुत्तरियाए भाणियव्वा जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते। एवं एते चउवीसं च उवीसा दंडगा ॥ २७. मारणंतियसमुग्धाओ सट्टाणे वि परटुाणे वि एगुत्तरियाए नेयव्वो जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते । एवमेते चउवीसं चउवीसा दंडगा भाणियव्वा ।। २८. वेउव्वियसमुग्घाओ जहा कसायसमुग्धाओ तहा णिरवसेसो भाणियव्वो, णवरं---जस्स णत्थि तस्स ण वुच्चति । एत्थ वि चउवीसं चउवीसा दंडगा भाणियव्वा । - २९. तेयगसमुग्घाओ जहा मारणंतियसमुग्घाओ, णवरं- जस्स अत्थि। एवं एते वि चउवीसं चउवीसा दंडगा भाणियव्वा । ३० एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवतिया आहारगसमुग्घाया अतीता? गोयमा ! पत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! णत्थि। एवं जाव वेमाणियत्ते, णवरं--मणूसत्ते अतीता कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि। जस्सत्थि जहणणं एक्को वा दो वा, उक्कोसेणं तिण्णि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि जहणणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि । एवं सव्वजीवाणं मणूसेसु भाणियव्वं । मणूसस्स मणूसत्ते अतीता कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि । एवं पुरेक्खडा वि। एवमेते चउवीसं चउवीसा दंडगा जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते ।। ३१. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवतिया केवलिसमुग्घाया अतीता? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! णत्थि । एवं जाव वेमाणियत्ते, णवरंमणूसत्ते अतीता णत्थि, पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि एक्को। मणसस्स मणूसत्ते अतीता कस्सइ अत्थि कस्सइ णस्थि । जस्सत्थि एकको । एवं पुरेक्खडा वि । एवमेते चउवीसं चउवीसा दंडगा ॥ तब्भाव एव पुहत्तेणं अतीताइसमुग्घाय-पदं ३२. णेरइयाणं भंते ! णेरइयत्ते केवतिया वेदणासमुग्घाया अतीता ? गोयमा ! अणंता । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अणंता। एवं जाव वेमाणियत्ते । एवं सव्वजीवाणं भागियव्वं जाव वेमागियाणं वेमाणियते । एवं जाव तेयगसमुग्घाओ, णवरं Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ पण्णवणासुत्त उवउज्जिऊण' णेयव्वं जस्सत्थि वेउव्विय-तेयगा ।। ३३. णेरइयाणं भंते ! णेरइयत्ते केवतिया आहारगसमुग्धाता अतीता ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! नत्थि। एवं जाव वेमाणियत्ते, णवरं-मणूसत्ते अतीता असंखेज्जा, पुरेक्खडा असंखेज्जा । एवं जाव वेमाणियाणं, णवरं-वणस्सइकाइयाणं मणूसत्ते अतीता अणंता, पुरेक्खडा अणंता। मणसाणं मणूसत्ते अतीता सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा, एवं पुरेक्खडा वि। सेसा सव्वे जहा रइया। एवं एते चउव्वीसं चउव्वीसा दंडगा॥ ३४. णेरइयाणं भंते ! णेरइयत्ते केवतिया केवलिसमुग्घाया अतीता ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! णत्थि । एवं जाव वेमाणियत्ते, णवरं-मणूसत्ते अतीता णत्थि, पुरेक्खडा असंखेज्जा । एवं जाव वेमाणिया, णवरं-वणप्फइकाइयाणं मणूसत्ते अतीता णत्थि, पुरेक्खडा अणंता। मणूसाणं मणूसत्ते अतीता सिय अत्थि सिय णत्थि । जदि अत्थि जहण्णणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सतपुहत्तं। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा । एवं एते च उव्वीसं चउव्वीसा दंडगा सव्वे पुच्छाए भाणियव्वा जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते ।। समोहयासमोहयाणं अप्पाबहुय-पदं ३५. एतेसि णं भंते ! जीवाणं वेयणासमुग्धाएणं कसायसमुग्घाएणं मारणंतियसमुग्धाएणं वेउव्वियसमुग्घाएणं तेयगसमुग्घाएणं आहारगसमुग्घाएणं केवलिसमुग्घाएणं समोहयाणं' असमोहयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा आहारगसमुग्घाएणं समोहया, केवलिसमुग्घाएणं समोहया संखज्जगूणा, तेयगसमूग्घाएण समोहया असंखंज्जगुणा, वेउव्वियसमूग्घाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, मारणंतियसमुग्घाएणं समोहया अणंतगुणा, कसायसमुग्घाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, वेदणासमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया असंखेज्जगुणा ॥ ३६. एतेसि णं भंते ! णेरइयाणं वेदणासमुग्घाएणं कसायसमुग्घाएणं मारणंतियसमग्घाएणं वेउब्वियसमग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा णेरइया मारणंतियसमुग्घाएणं समोहया, वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, कसायसमुग्घाएणं समोहया संखेज्जगुणा, वेदणासमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, असमोहया संखेज्जगुणा ॥ ३७. एतेसि णं भंते ! असुरकूमाराणं वेदणासमूग्घाएणं कसायसमग्घाएणं मारणंतियसमुग्घाएणं वेउव्वियसमुग्घाएणं तेयगसमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा असुरकुमारा तेयगसमुग्धाएणं समोहया, मारणंतियसमुग्घाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, वेयणासमुग्धाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, कसायसमुग्घाएणं समोहया संखेज्जगुणा, वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहया संखेज्जगुणा, असमोहया असंखेज्जगुणा । एवं जाव थणियकुमारा॥ १. उववेज्जिऊण (क); उववज्जिऊण (घ)। २. सम्मोहयाणं (ग)। Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ छत्तीसइमं समुग्धायपयं ३८. एतेसि णं भंते ! पुढविक्कइयाणं वेदणासमुग्धाएणं कसायसमुग्धाएणं मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पुढविक्काइया मारणंतियसमुग्धाएणं समोहया, कसायसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, वेदणासमुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया असंखेज्जगुणा । एवं जाव वणप्फइकाइया । णवरं - सव्वत्थोवा वाउक्काइया वेव्वियसमुग्धाएणं समोहया, मारणंतियसमुग्धाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, कसायसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, ' वेदणासमुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया असंखेज्जगुणा' ॥ ३९. बेइंदियाणं भंते ! वेयणासमुग्धाएणं कसायसमुग्धाएणं मारणंतियसमुग्धाएणं मोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया व। ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बेइंदिया मारणंतिय समुग्धाएणं समोहया, वेदणासमुग्धाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, कसायसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा', असमोहया संखेज्जगुणा । एवं जाव चउरिदिया || ४०. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! वेदणासमुग्धाएणं कसायसमुग्धाएणं मारणंतियसमुग्धाएणं वेउव्वियसमुग्धाएणं तेयासमुग्धाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्योवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया तेयासमुग्धाएणं समोहया, वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, मारणंतियसमुग्धाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, वेदणासमुग्धाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, कसायसमुग्धा एणं समोहया संखेज्जगुणा, असमोहया संखेज्जगुणा || ४१. मणुस्साणं भंते! वेदणासमुग्धाएणं कसायसमुग्धाएणं मारणंतियसमुग्धाएणं वे उव्वियसमुग्धाएणं तेयगसमुग्धाएणं आहारगसमुग्धाएणं केवलिसमुग्धाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा मणूसा आहारगसमुग्धाएणं समोहया, केवलिसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, तेयगसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, मारणंतियसमुग्धाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, वेयणासमुग्धा एणं समोहया १. असंखेज्जगुणा ( क, ख, घ) ; अस्माकं पार्श्व मलयगिरिवृत्तेः हस्तलिखितादर्शद्वयं वर्तते । तत्र 'ग' संकेतितादर्श लिखितायां वृत्तौ 'तेभ्यो पि कषायसमुद्घातेन समुद्धता ' संख्येयगुणा' इति पाठोस्ति । अपरस्मिन् वृत्त्यादर्शे 'तेभ्योपि कषायसमुद्घातेन समुद्धता 'असंख्येयगुणा' इति पाठोस्ति । मुद्रितवृत्तौ ' संख्येयगुणाः' इति विद्यते । पृथ्व्यादिसूत्रेषु द्वीन्द्रियादिसूत्रेषु च ' कसायसमुग्धा एणं समोहया 'संखेज्जगुणा' इति पाठो दृश्यते तमनुसृत्य अत्रापि 'संखेज्जगुणा' इति पाठः स्वीकृतः । २. संखेज्जगुणा ( क ) 1 ३. मलयगिरिवृत्तौ 'असंखेज्जगुणा' इति पाठोस्ति'तेभ्यः कषायसमुद्घातेन समुद्धता असंख्येयगुणाः, अतिप्रभूततराणां लोभादिकषाय समुद्घात भावात्' । अत्र अतिप्रभूततराणामितिप्रयोगः संख्येयगुणत्वमेव सूचयति । असंख्येयगुणत्वमिति न जाने कथं जातम् । ४. असंखेज्जगुणा ( ख ) । Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० पण्णवणासुतं असंखेज्जगुणा, कसायसमुग्घाएणं समोहया संखेज्जगुणा, असमोहया असंखेज्जगुणा। वाणमंतर-जोतिसिय वेमाणिया जहा असुरकुमारा। कसायसमुग्घाय-पदं ४२. कति णं भंते ! कसायसमुग्धाया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कसायसमुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा-कोहसमुग्धाए माणसमुग्घाए मायासमुग्घाए लोभसमुग्धाए । ४३. णेरइयाणं भंते ! कति कसायसमुग्धाया पण्णत्ता? गोयमा! चत्तारि कसायसमुग्घाया पण्णत्ता । एवं जाव वेमाणियाणं ।। ४४. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स केवइया कोहसमुग्धाया अतीता? गोयमा ! अणंता । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा। एवं जाव वेमाणियस्स। एवं जाव लोभसमुग्घाए । एते चत्तारि दंडगा॥ ४५. णेरइयाणं भंते ! केवतिया कोहसमुग्घाया अतीता ? गोयमा ! अणंता । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अणंता । एवं जाव वेमाणियाणं । एवं जाव लोभसमुग्घाए वि चत्तारि दंडगा ॥ ४६. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवतिया कोहसमुग्घाया अतीता? गोयमा ! अणंता। एवं जहा' वेदणासमुग्घाओ भणिओ तहा कोहसमुग्घाओ वि भाणियव्वो णिरवसेस जाव वेमाणियत्त । माणसमुग्धाओं मायासमुग्घातो य णिरवसेसं जहा मारणंतियसमुग्धाओ। लोभसमुग्धाओ जहा' कसायसमुग्घाओ, णवरं-सव्वजीवा असुरादी णेरइएसु लोभकसाएणं एगुत्तरिया णेयव्वा ॥ ४७. णेरइयाणं भंते ! णेरइयत्ते केवतिया कोहसमुग्धाया अतीता ? गोयमा ! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अणंता । एवं जाव वेमाणियत्ते । एवं सट्टाणपरहाणेसु सव्वत्थ वि भाणियव्वा सव्वजीवाणं चत्तारि समुग्घाया जाव लोभसमुग्घातो जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते॥ ४८. एतेसि णं भंते ! जीवाणं कोहसमुग्धाएणं माणसमुग्घाएणं मायासमुग्घाएणं लोभसमुग्धाएण य समोहयाणं अकसायसमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा अकसायसमुग्धाएणं समोहया, माणसमुग्घाएणं समोहया अणंतगुणा, कोहसमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, मायासमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, लोभसमुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया संखेज्जगुणा ॥ ४६. एतेसि णं भंते ! णेरइयाणं कोहसमुग्धाएणं माणसमुग्धाएणं मायासमुग्घाएणं लोभसमुग्धाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा णेरइया लोभसमुग्घाएणं समोहया, मायासमुग्घाएणं समोहया संखेज्जगुणा, माणसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, कोहसमुग्घाएणं समोहया ३. ५० ३६।२१-२६ । १. ५० ३६।१८-२० । २.५० ३६।२७। Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं समुग्धायपयं संखेज्जगुणा, असमोहया संखेज्जगुणा ॥ ५०. असुरकुमाराणं पुच्छा । गोयमा ! सव्वत्थोवा असुरकुमारा कोहसमुग्धाएणं समोहया. माणसमुग्घाएणं समोहया संखेज्जगुणा, मायासमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, लोभसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, असमोहया संखेज्जगुणा । एवं सव्वदेवा जाव वेमाणिया || ५१. पुढविक्काइयाणं पुच्छा । गोयमा ! सव्वत्थोवा पुढविक्काइया माणसमुग्धाएणं समोहया, कोहसमुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, मायासमुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, लोभसमुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया संखेज्जगुणा । एवं जाव पंचेंद्रिय - तिरिक्खजोणिया | ५२. मणुस्सा जहा जीवा, नवरं - माणसमुग्घ एणं समोहया असंखेज्जगुणा ॥ छाउमत्थियसमुग्धाय-पदं ५३. कति णं भंते ! छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता ? गोयमा ! छ छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेदणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धाए वे उब्वियसमुग्धा ते समुग्धा आहारगसमुग्धाए ॥ ५४. रइयाणं भंते ! कति छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेदणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धाए वे उव्वियसमुग्धाए ॥ ५५. असुरकुमाराणं पुच्छा । गोयमा ! पंच छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेदणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए, मारणंतियसमुग्धाए वेउव्वियसमुग्धाए तेयगसमुग्धाए ॥ ५६. एगिदिय - विगलिदियाणं पुच्छा । गोयमा ! तिण्णि छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेदणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धाए, णवरं - वाउक्काइयाणं चत्तारि समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेदणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धा वेव्वियसमुग्धाए ॥ ३५१ ५७. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! पंच समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेदणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धाए वेउव्वियसमुग्धाए तेयगसमुग्धाए ॥ ५८. मणूसाणं भंते ! कति छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता ? गोयमा ! छ छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेदणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धाए उग्वियसमुग्धाए तेयगसमुग्धाए आहारगसमुग्धाए ॥ ओगाहफासाइपर्द ५६. जीवे णं भंते ! वेदणासमुग्धाए समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभति तेहि' णं भंते! पोग्गलेहिं केवतिए खेत्ते अफुण्णे ? केवतिए खेत्ते फुडे ? गोयमा ! सरीरमाणमेत्ते विक्खंभ - बाहल्लेणं णियमा छद्दिसि एवइए खेत्ते अफुण्णे एवइए खेत्ते फुडे || १. ते (क,ग,घ) । Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णवणासुतं ६०. से णं भंते ! खेत्ते केवइकालस्स अफुण्णे ? केवइकालस्स फुडे ? गोयमा ! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेण वा एवइकालस्स अफुण्णे एवइकालस्स फुडे ॥ ३५३ ६१. . ते णं भंते ! पोग्गला केवइकालस्स णिच्छुभति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुउक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तस्स || त्तस्स, ६२. ते णं भंते ! पोग्गला णिच्छूढा समाणा जाई तत्थ पाणाई भूयाणं जीवाई सत्ताई अभिहणंति वत्तेंति लेसेंति संघाएंति संघट्टेति परियावैति किलावेंति उद्दवेंति तेहितो णं भंते! से जीवे कति किरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए | ६३. ते णं भंते 'जीवा ताओ" जीवाओ कतिकिरिया ? गोयमा ! सिय तिकिरिया सिय चउकिरिया सिय पंच किरिया || ! ६४. से णं भंते ! जीवे ते य जीवा अण्णेसि जीवाणं परंपराघाएणं कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि ॥ ६५. रइए णं भंते ! वेदणासमुग्धाएणं समोहए, एवं जहेव' जीवे, णवरं - णेरइयाभिलावो । एवं णिरवसेसं जाव वेमाणिए । एवं कसायसमुग्धातो वि भाणियव्वो । ६६. जीवे णं भंते ! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभति तेहिणं भंते ! पोग्गलेहि केवतिए खेत्ते अफुण्णे ? केवतिए खेत्ते फुडे ? गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ते विक्खंभ- बाहल्लेणं आयामेणं जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं असंखेज्जाई जोयणाई एगदिसि एवइए खेत्ते अफुण्णे एवतिए खेत्ते फुडे | ६७. से णं भंते ! खेत्ते केवतिकालस्स अफुण्णे ? केवतिकालस्स फुडे ? गोयमा ! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गणं एवतिकालस्स अणे एवतिकालस्स फुडे । सेसं तं चैव जाव' पंचकिरिया || ६८. एवं णेरइए वि, णवरं - आयामेणं जहण्णेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं, उक्को सेणं असंखेज्जाई जोयणाई एगदिसि एवतिए खेत्ते अफुण्णे एवतिए खेत्ते फुडे; विग्गहेणं एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा, नवरं - चउसमइएण ण भण्ण । तं जाव पंच करिया वि ॥ ६६. असुरकुमारस्स जहा जीवपए, णवरं - विग्गहो तिसमइओ जहा णेरइयस्स सेसं तं चैव । जहा असुरकुमारे एवं जाव वेमाणिए, णवरं एगिदिए जहा जीवे णिरवसेसं ॥ ७०. जीवे णं भंते ! वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभति तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवतिए खेत्ते अफुण्णे ? केवतिए खेत्ते फुडे ? गोयमा ! सरीरमाणमेत्ते विक्खंभ- बाहल्लेणं, आयामेणं जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं संखेज्जाई जोयणाई एगदिसि विदिसि वा एवतिए खेत्ते अफुण्णे एवति खेत्ते फुडे ॥ ७१. से णं भंते ! खेत्ते केवतिकालस्स अफुण्णे ? केवतिकालस्स फुडे ? गोयमा ! १. x (क, ख, ग, घ ) । २. प० ३६।५९-६४ । - ३. प० ३६/६१-६४ । ४. प० ३६ / ६६, ६७ । Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं समुग्धायपयं ३५३ एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेण एवतिगालस्स अफण्णे एवतिकालस्स फुडे । सेसं तं चेव जाव' पंचकिरिया वि॥ ७२. एवं णेरइए वि, णवरं-आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं जोयणाई एगदिसि एवतिए खेत्ते। केवतिकालस्स तं चेव जहा जीवपए। एवं जहा णेरइयस्स तहा असुरकुमारस्स, णवरं-- एगदिसि विदिसिं वा। एवं जाव थणियकुमारस्स । वाउक्काइयस्स जहा जीवपदे, णवरं-एगदिसिं । पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स णिरवसेसं जहा रइयस्स मणस-वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियस्स णिरवसेसं जहा असुरकुमारस्स॥ ७३. जीवे णं भंते ! तेयगसमुग्घाएणं' समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छभइ तेहि णं भंते ! पोग्गलेहिं केवतिए खेत्ते अफुण्णे ? एवं जहेव' वेउव्वियसमुग्घाए तहेव, णवरं-आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जतिभागं', सेसं तं चेव ।एवं जाव वेमाणियस्स, णवरं-पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स एगदिसिं एवतिए खेत्ते अफण्णे ॥ ७४. जीवे णं भंते ! आहारगसमुग्घाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छभइ तेहि णं भंते ! पोग्गलेहि केवतिए खेत्ते अफुण्णे ? केवतिए खेत्ते फुडे ? गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ते विक्खंभ-बाहल्लेणं, आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं जोयणाई एगदिसि एवइए खेत्ते अफुण्णे एवइए खेत्ते फुडे ॥ ७५. से णं भंते ! केवइकालस्स अफुण्णे ? केवइकालस्स फुडे ? गोयमा ! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं एवतिकालस्स अफुण्णे एवतिकालस्स फुडे । ७६. ते णं भंते ! पोग्गला केवतिकालस्स णिच्छुभति ? गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तस्स ॥ ७७. ते णं भंते ! पोग्गला णिच्छूढा समाणा जाइं तत्थ पाणाइं भूयाइं जीवाई सत्ताइ अभिहणंति जाव उद्दवेंति तओ" णं भंते ! जीवे कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए। ते णं भंते ! जीवा तातो जीवाओ कतिकिरिया ? गोयमा ! एवं चेव ॥ ७८. से णं भंते ! जीवे ते य जीवा अण्णेसिं जीवाणं परंपराघाएणं कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि । एवं मणूसे वि॥ १. प० ३६।६१-६४ । २. तेयास (क); तेयस° (ग)। ३. प० ३६।७०-७२ । ४. असंखेज्जतिभागं (क,ख,ग,घ); वृत्तौ 'असंखेज्जतिभागं' इति पाठस्यैव समर्थन कृतमस्ति--तेषां तेजससमुद्घातमारभमाणानां जघन्यतोपि क्षेत्रमायामतोगुलासंख्येयभागप्रमाणं भवति, न तु संङ्ख्येयभागमानम्। तथापि समनपाठाध्ययनेन अत्र संखेज्जतिभागं' इति पाठ एव समीचीनः। वैक्रियसमुद्घातसूत्रे 'अंसंखेज्जतिभागं' इति पाठो विद्यते । यदि अत्र 'अंसखेज्जतिभागं' इति पाठ इष्टो भवेत् तथा 'एवं जहेव वेउब्वियसमुग्घाए तहेव' इति पाठान्तरं णवरं-'आयामेणं जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, सेसं तं चेव' इति पाठस्य व्यर्थता स्यात् । ५. ते (क,ग,घ); तते (ख)। Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ पण्णवणासुत्तं केवलिसमुग्घाय-पदं ७६. अणगारस्स णं भंते ! भावियप्पणो केवलिसमुग्घाएणं समोहयस्स जे चरिमा णिज्जरापोग्गला सुहमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो ! सव्वलोगं पि य णं ते फुसित्ता णं चिट्ठति ? हंता गोयमा ! अणगारस्स भावियप्पणो केवलिमुग्धाएणं समोहयस्स जे चरिमा णिज्जरापोग्गला सुहमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो! सव्वलोगं पि य णं ते फुसित्ता णं चिट्ठति ।। ८०. छउमत्थे णं भंते ! मणूसे तेसि णिज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेण वा फासं जाणति पासति ? गोयमा ! णो इणटठे समठे॥ ८१. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-छउमत्थे णं मणसे तेसिं णिज्जरापोग्गलाणं णो किंचि वि वण्णणं वणं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेण वा फासं जाणति पासति ? गोयमा ! अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं सव्वभंतराए सव्वखुड्डाए, वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए, एग जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि य जोयणसयसहस्साइं सोलस य सहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसते तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसतं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते। देवे णं महिड्ढीए' 'महज्जुतीए महायसे महब्बले महाणुभागे° महासोक्खे' एगं महं सविलेवणं गंधसमुग्गयं गहाय तं अवदालेति, तं महं एगं सविलेवणं गंधसमुग्गयं अवदालेत्ता इणामेव कटु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्छराणिवातेहिं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ताणं हव्वमागच्छेज्जा, से गूणं गोयमा ! से केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे तेहिं घाणपोग्गलेहि फुडे ? हंता फुडे । छउमत्थे णं गोयमा ! मणूसे तेसिं घाणपोग्गलाणं किंचि वण्णणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणति पासति ? भगवं ! णो इणठे समठे। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-छउमत्थे णं मणसे तेसि णिज्जरापोग्गलाणं णो किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणति पासति । एसुहमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो ! सव्वलोग पि य णं फुसित्ता णं चिट्ठति ॥ ८२. कम्हा णं भंते ! केवली समुग्घायं गच्छति ? गोयमा ! केवलिस्स चत्तारि कम्मंसा अक्खीणा अवेदिया अणिज्जिण्णा भवंति, तं जहा-वेयणिज्जे आउए णामे गोए । सव्वबहुप्पएसे से वेदणिज्जे कम्मे भवति, सव्वत्थोवे से आउए कम्मे भवति । गाहा विसमं समं करेति, बंधणेहि ठितीहि य । विसमसमीकरणयाए, बंधणेहि ठितीहि य ।।१।। एवं खलु केवली समोहण्णति, एवं खलु समुग्घायं गच्छति ॥ ८३. सव्वे वि णं भंते ! केवली समोहण्णंति ? सवे वि णं भंते ! केवली समुग्घायं गच्छंति ? गोयमा ! णो इणठे समढें ॥ १. सं०पा०-महिड्डीए जाव महासोक्खे। महिड्डिए २. महासुक्खे (ख); महेसक्खे, महासखे (क,घ) महड्डीए (ख)। (मवृपा)। Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं समुग्धायपयं ३५५ जस्साउएण तुल्लाइं, बंधणेहिं ठितीहि य ॥ भवोवग्गहकम्माइं, समूग्घायं से ण गच्छति ॥२।। अगंतूणं समुग्घायं, अणंता केवली जिणा। जर-मरणविप्पमुक्का, सिद्धि वरगति गता ॥२॥ ८४. कतिसमइए णं भंते ! आउज्जीकरणे' पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए आउज्जीकरणे पण्णत्ते ॥ ८५. कतिसमइए णं भंते ! केवलिसमुग्घाए पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठसमइए पण्णत्ते, तं जहा-पढमे समए दंडं करेति, बिइए समए कवाडं करेति, ततिए समए मंथं करेति, चउत्थे समए लोगं पूरेइ, पंचमे समए लोगं पडिसाहरति छठे समए मंथं पडिसाहरति, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरति, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरति, पडिसाहरित्ता ततो पच्छा सरीरत्थे भवति ॥ ८६. से णं भंते ! तहास मुग्घायगते किं मणजोगं जुजति ? वइजोगं जुजति ? कायजोगं जुजति ? गोयमा ! णो मणजोगं जुंजइ, णो वइजोगं जुंजइ, कायजोगं जुजति ।। ८७. कायजोगण्णं भंते ! जुजमाणे किं ओरालियसरीरकायजोगं जुजति ? ओरालियमीसासरीरकारजोगं जुजति ? किं वेउव्वियसरीरकायजोगं जुजति ? वेउव्वियमीसासरीरकायजोगं जुजति ? किं आहारगसरीरकायजोगं जुजइ ? आहारगमीसासरीरकायजोगं जुजति ? कि कम्मगसरीरकायजोगं झुंजइ ? गोयमा ! ओरालियसरीरकायजोगं पि जंजति ओरालियमीसासरीरकायजोगं पि जंजति. णो वेउव्वियसरीरकायजोगं जंजति ण वेउब्वियमीसासरीरकायजोगं गँजति, णो आहारगसरीरकायजोगं जुजति णो आहारगमीसासरीरकायजोगं जुजति, कम्मगसरीरकायजोगं पि जुजति; पढमट्ठमेसु समएसु ओरालियसरीरकायजोगं जुजति, बितिय-छट्ठ-सत्तमेसु समएसु ओरालियमीसगसरीरकायजोगं जुजति, ततिय-चउत्थ-पंचमेसु समएसु कम्मगसरीरकायजोगं जुजति ॥ ८८. से णं भंते ! तहासमुग्घायगते सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ ? गोयमा ! णो इणठे समटठे। से णं तओ पडिनियत्तति, पडिनियत्तित्ता ततो पच्छा मणजोगं पि जुजति वइजोगं पि जुंजति कायजोगं पि जुजति ॥ ८९. मणजोगणं मुंजमाणे किं सच्चमणजोगं जुजति ? मोसमणजोगं जुजति ? सच्चामोसमणजोगं जंजति ? असच्चामोसमणजोगं जंजति? गोयमा ! सच्चमणजोगं जुजति, णो मोसमणजोगं जुजति णो सच्चामोसमणजोगं जुजति, असच्चामोसमणजोगं पि जुंजइ ॥ ____६०. वइजोगं जुजमाणे किं सच्चवइजोगं जुजति ? मोसवइजोगं जुजति ? सच्चामोसवइजोगं जुजति ? असच्चामोसवइजोगं जुजति ? गोयमा ! सच्चवइजोगं जुजति, णो मोसवइजोगं जुजइ णो सच्चामोसवइजोगं जुजति, असच्चामोसवइजोगं पि जुंजइ ।। ६१. कायजोगं जुजमाणे आगच्छेज्ज वा गच्छेज वा चिट्ठज्ज वा णिसीएज्ज वा तुयटेज्ज वा उल्लंघेज्ज वा पलंघेज्ज वा पाडिहारियं पीढ़-फलग-सेज्जा-संथारगं १. आउज्जियाकरणे, आउस्सियाकरणे। (मवृपा)। Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ पच्चष्पिणेज्जा | ६२. से णं भंते ! तहासजोगी सिज्झति' बुज्झति मुच्चति परिणिव्वाति सव्वदुक्खाणं अंतं करोति ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । से णं पुव्वामेव सण्णिस्स पंचेंदियस्स पज्जत्तयस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं पढमं मणजोगं णिरुंभइ, तओ अनंतरं च णं बेइंदियस्स पज्जगत्तस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं दोच्चं वइजोगं णिरुंभति, तओ अनंतरं चणं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तयस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तच्चं कायजोगं णिरंभति । से णं एतेणं उवाएणं पढमं मणजोगं णिरुंभइ, णिरंभित्ता वइजोगं णिरंभति, णिरुभित्ता कायजोगं णिरंभति, णिरुभित्ता जोगणिरोहं करेति, करेत्ता अजोगयं पाउणति, पाउणित्ता ईसीहस्सपंचक्खरुच्चारणद्धाए असंखेज्जसमइयं अंतोमुहुत्तियं सेलेसि पडिवज्जइ, पुव्वरइतगुणसेढीयं च णं कम्मं तसे सेलेसिमद्धाए असंखेज्जाहिं गुणसेढीहि असंखेज्जे कम्मखंधे खवयति, खवइत्ता वेदणिज्जाउय - नाम-गोत्ते इच्चेते चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवेति, खवेत्ता ओरालियतेया- कम्मगाई सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहति, विप्पज हित्ता उजुसेढीपडिवण्णे' अफुसमाणगतीए एगसमएणं अविग्गणं उड्ढं गंता सागा रोवउत्ते सिज्झति ॥ ........ सिद्धसरूव-पदं ६३. ते णं तत्थ सिद्धा भवंति - असरीरा जीवघणा दंसण- णाणोवउत्ता णिट्टियट्ठा नीरया णिरेयणा वितिमिरा विसुद्धा सासयणागतद्धं कालं चिट्ठति ॥ ε४. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति - ते णं तत्थ सिद्धा भवंति -- असरीरा जीवघणा दंसण - णाणोवउत्ता णिट्टियट्ठा नीरया णिरेयणा वितिमिरा विसुद्धा सासतमणागयद्धं कालं चिट्ठति ? गोयमा ! से जहाणामए-बीयाणं अग्गिदड्ढाणं पुणरवि अंकुरुप्पत्ती न हवइ, एवामेव सिद्धाणवि कम्मबीएस दड्ढेसु पुणरवि जम्मुप्पत्ती न हवति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वच्चति - ते णं तत्थ सिद्धा भवंति - असरीरा जीवघणा दंसण- णाणोवत्ता निट्टियट्ठा णीरया णिरेयणा वितिमिरा विसुद्धा सासयमणागयद्धं कालं चिट्ठति त्ति ॥ गाहा णिच्छिण्ण सव्वदुक्खा, जाति-जरा-मरण-बंधणविमुक्का । सासयमव्वाबाहं, चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ॥१॥ १. सं०पा० २. उज्जु० (क, ख, घ) । ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर २,७३,०७८ अनुष्टुप् श्लोक ८, ५३३ अक्षर २३ सिज्झति जाव अंतं । पण्णवणासुतं ३. सिझति बुज्झति (क, ख, ग, घ, पु); वृत्तिकृद्भ्यां नैतत्पदं व्याख्यातम् । Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबद्दीवपण्णत्ती Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती पढमो वक्खारो १. णमो अरिहंताणं ॥ २. तेणं' कालेणं तेणं समएणं मिहिला णामं णयरी होत्था - रिद्ध-त्थिमिय- समिद्धा, वणओ' || ३. ती से णं मिहिलाए णयरीए बहिया उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए, एत्थ णं माणिभद्दे णामं चेइए होत्था, वण्णओ'। जियसत्तू राया, धारिणी देवी, वण्णओ' ।। ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढो, परिसा णिग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पगिया ॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे गोयमे' गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कणगलगनिघसपह्मगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबह्मचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से चोदसपुब्वी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाती समणस्स भगवओ महावीस्स अदूरसामंते उड्ढजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ६. तते गं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले उप्पन्न सड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नको उहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायको उहल्ले समुप्पन्न सड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोउहल्ले उट्ठाए उट्ठेति, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागछित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण -पयाहिणं १. अरिहंताणं (त्रिप) क्वचिन् नमो अरिहंताणं नमो अरुहंताणं चेति पाठान्तरं दृश्यते ( ही वृ); अरिहंताणंति पाठान्तरं अरुहंताणं इत्यादि पाठान्तरम् ( पुवृ ) । २. 'ते' इति प्राकृतशैलीवशात्तस्मिन्निति द्रष्टव्यम् 'ण' मिति वाक्यालंकारे, अथवा सप्तम्यर्थे तृतीया आत्वात् (पुवृ, शावृ, ही वृ) । ३. ओ० सू० १ । ४. ओ० सू० २ - १३ । ५. ओ० सू० १४, १५ । ६. गोयम (त्रि ) । ७. सं० पा० समचउरंसे जाव आदाहिण पयाहिणं करेइ जाव वंदति वंदित्ता जाव एवं । ३५६ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० जंबुद्दीवपण्णत्ती करेइ, करेता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता णच्चासन्ने णातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलियडे पज्जुवासमाणे° एवं वयासी ७. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ? केमहालए णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ? किंसंठिए णं भंते ! जंबुदीवे दीवे ? किमागारभावपडोयारे' णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सवभितरए' सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वटे पडिपूण्णचंदसंठाणसंठिए एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिणि जोयणसयसहस्साई सोलस सहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस अंगुलाई अद्धंगुलं च किचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते । से णं एगाए वइरामईए जगईए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते ॥ ८. सा णं जगई अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले बारस जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे अट्ट जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरिं चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले विच्छिण्णा', मज्झे संक्खित्ता, उरि' तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया' सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा॥ ६. सा णं जगई एगेणं महंतगवक्खकडएणं' सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। से णं गवक्खकडए अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे॥ १०. तोसे णं जगईए उपि बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महई एगा पउमवरवेइया पण्णत्ता-अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं, जगईसमिया परिक्खेवेणं सव्वरयणामई अच्छा जाव पडिरूवा॥ ११. तीसे णं पउमवरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-वइरामया णेमा' एवं जहा जीवाभिगमे जाव अट्ठो जाव धुवा णियया सासया" •अक्खया अव्वया अवट्ठिया णिच्चा॥ १२. तीसे णं जगईए उप्पि ‘पउमवरवेइयाए बाहिर एत्थ णं महं एगे वणसंडे १. किमागारपडोयारे (क, ख)। (पुवृपा) ; जालकडएणं (जी० ३।२६२) । २. सव्वब्भंतरए (प)। ७. गवक्खवाडए (ख); जालकडए (जी० ३. वित्थिण्णा (अ, ख)। ३।२६२)। ४. उप्पि (अ). ८. महं (अ, क, ख, त्रि, स)। ५. सस्सिरीया (क, त्रि); समरीइया (प); ६. णिम्म (त्रि) ; जेम्मा (प)। सस्सिरीय' त्ति सधीका बहिविनिर्गतकिरण- १०. जी० ३।२६४-२७२ । जालेनापि श्रेष्ठा जीवाभिगमे तु समरी इत्ति ११. सं० पा०--सासया जाव णिच्चा। पाठः (ही)। १२. बाहि पउमवरवेइयाए (अ, क, ख, त्रि, ६. गवक्खजालकडएणं (अ, त्रि, पुव); गव- प, स)। क्खजालवाडएणं (ख) ; गवक्खकडएणं Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वक्खारी पण्णत्ते-देसूणाई दो जोयणाइं विक्खंभेणं', जगईसमए परिक्खेवेणं, वणसंडवण्णओ णेयव्वो॥ १३. तस्स णं वणसंडस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामएआलिंगपुक्खरेइ वा जाव' णाणाविहपंचवण्णेहि मणीहि य तणेहि य उवसोभिए, तं जहाकिण्हेहिं 'जाव सुक्किलेहि"। एवं वण्णो गंधो फासो सद्दो पुक्खरिणीओ पव्वयगा घरगा मंडवगा पुढविसिलावट्टया य णेयव्वा । तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति सयंति' चिट्ठति णिसीयंति तुयद॒ति रमंति ललंति कीलंति मोहंति, पुरापोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फल वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ १४. तीसे णं जगईए उप्पि 'पउमवरवेइयाए अंतो" एत्थ णं महं एगे वणसंडे पण्णत्ते-देसूणाई दो जोयणाई विक्खंभेणं, वेदियासमए परिक्खेवेणं किण्हे जाव'तणविहूणे" णेयव्वे ।। १५. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स कति दारा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा-विजए वेजयंते जयंते अपराजिते । १६. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साई वीइवइत्ता जंबुद्दीवे दीवे पुरथिमपेरते लवणसमुद्दपुरथिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीआए महाणईए उप्पि, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते-अट्ठ जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेए वरकणगथूभियाए जाव दारस्स वण्णओ जाव" रायहाणी । एवं चत्तारिवि दारा सरायहाणिया भाणियव्वा ।। १. चक्कवालविक्वंभेणं (जी० ३।२७३) । ८. द्रष्टव्यम-जीवाजीवाभिगमस्य ३।२६६ सूत्रस्य २. जी० ३।२७३, २७४ । पाद टिप्पणम् । ३. जी० ३।२७५ । ६. जं० १११२,१३। ४. x (अ, क, ख, त्रि, प, स); पुण्यसागरवृत्तौ १०. शान्त्याचार्येण 'तणविहणे' इति पाठो व्याख्यातः लिखितपाठानुसारी पाठोसौ गृहीतः जीवाजीवा- नवरं तृणविहीणो ज्ञातव्यः अत्र तृणजन्यः शब्दो भिगमेपि (३१२७५) एवमेव पाठो दृश्यते । पि तृणशब्देनाभिधीयते उपचारादतस्तृणशब्द५. जी० ३२७६-२६५। विहीनो ज्ञातव्यः उपलक्षणत्वादस्य मणिशब्द६. 'प' प्रति विहाय अन्येष्वादशेषु अतः परवत्ति विहीनोपि, पद्मवरवेदिकान्तरिततया तथाविधः पाठो नैव लिखितो दृश्यते, वृत्तित्रयेपि व्याख्या- वाताभावतो मणीनां तुणानां चाचलनेन परस्पर तोस्ति, पुण्यसागरमहोपाध्यायेन इति टिप्पणी संघर्षाभावात् शब्दाभावः उपपन्नश्चायमर्थः कृतास्ति-सूत्रैकदेशग्रहणात् सम्पूर्ण सूत्रमेव जीवाभिगमसूत्रवृत्त्योस्तथैव दर्शनादिति । हीरज्ञातव्यम् । प्रमेय रत्नमञ्जूषायामपि एवमस्ति विजयवृत्तावपि एवमेवास्ति। पुण्यसागरमहो-चिट्ठती' त्यादिकः पाठो जीवाभिगमोक्तो पाध्ययेन तणसद्दविहणे' इति पाठो व्याख्यातः। लिखितोस्ति। ११. जी० ३।२६८-५६३ । ७. अंतो पउमवरवेइयाए (अ,क,ख,प,त्रि,स)। Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ जंबुद्दीपण्णत्ती १७. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स दारस्स य दारस्सय केवइए अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! अउणासीइं जोयणसहस्साइं बावण्णं च जोयणाई देसूणं च अद्धजोयणं दारस य दारस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते | संग्रहणीगाहा - अणासी सहस्सा, बावण्णं चेव जोयणा हुंति । ऊणं च अद्धजोयण, दारंतर जंबुद्दीवस्स ॥१॥ १८. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्थि मलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे णामं वासे पण्णत्ते - खाणुवहुले कंटकबहुले विसमबहुले दुग्गबहुले पव्वयबहुले पवायबहुले उज्झरबहुले णिज्झर बहुले खड्डाबहुले' दरिबहुले णदीवहुले दहबहुले रुक्खबहुले गुच्छबहुले गुम्मबहुले याहुले वल्लीबहुले अडवीबहुले सावयबहुले तेणबहुले तक्करबहुले डिबबहुले डमरबहुले हुक्काहुले पासंडबहुले किवणबहुले वणीमगबहुले ईतिबहुले मारिबहुले कुट्टबहुले अणावुट्टिबहुले रायवहुले रोगबहुले संकिलेसवहुले अभिक्खणं अभिक्खणं संखोहबहुले पादीणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिणे उत्तरओ पलियंकसंठाणसंठिए दाहिणओ धणुपट्टसंट्ठिए तिधा लवणसमुद्द' पुट्ठे गंगासिंधूहिं महाणईहिं' वेयड्ढेण य पव्वण छन् भागपविभत्ते जंबुद्दीवदीवणउयसयभागे पंचछव्वी से जोयणसए छच्च एगूणवीसभाए जोयणस्स विक्खभेणं ॥ १६ भरहस्य णं वासस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं वेयड्ढे णामं पव्वए' जेणं भरहं वासं दुहा विभयमाणे - विभयमाणे चिट्ठई, तं जहा - दाहिणड्डूभरहं च उत्तरड्डभरहं च ॥ २०. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धे भरहे णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! वेस्स व्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुहस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणभर हे णामं वासे पण्णत्ते-पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिणे अद्धचंदसंठाणसंठिए तिहा लवणसमुद्द पुट्ठे, गंगा सिंधू हि महाणईहि तिभागपविभत्ते दोण्णि अट्ठती से जोयणसए तिणिय एगूणवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुद्द पुट्ठा --- पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठा, णव जोयणसहस्साइं सत्त य अडयाले जोयणसए दुवालस य एगूणवीसभाए जोयणस्स आयामेणं, तीसे धणुपट्ठे दाहिणेणं णव जोयणसहस्साई १. गड्डबहुले (क, ख ) ; खड्डाबहुले गहुबहुले (त्रि ) । २. लवणं (अत्रि, ब) ३. X ( अ, ब ) । ४. ओतसयभागे ( अ, क, ब ) । ५. पव्व पण्णत्ते ( क,ख, त्रि,प,स,पुवृ, शावृ, ही वृ); एतत्पदं ताडपत्रीयादर्शयोर्नास्ति, अर्वाचीनादर्शेषु वर्तते अतएव वृत्तित्रयेपि व्याख्यातोस्ति, अग्रे 'यत्' पदस्य प्रयोगोस्ति तेन नापेक्षितोप्यस्ति । ६. भारहं (क,ख,स) । Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वक्खारो ३६३ सत्तछावठे जोयणसए इक्कं च एगूणवीसइभागे जोयणस्स किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते॥ २१. दाहिणभरहस्स णं भंते ! वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए--आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' 'णाणाविहपंचवण्णेहि मणीहिं तणेहि य" उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहि चेव अकित्तिमेहि चेव॥ २२. दाहिणड्डभरहे णं भंते ! वासे मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ते णं मणुया बहुसंघयणा बहुसंठाणा बहुउच्चत्तपज्जवा बहुआउपज्जवा वहुई वासाइं आउं पालेंति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणयगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वंति' सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ।। २३. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे णामं पव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! उत्तरद्धभरहवासस्स दाहिणेणं, दाहिणड्डभरहवासस्स उत्तरेणं, 'पुरथिमलवणसमूहस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं", एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे णामं पव्वए पण्णत्ते-पाईणपडीणायए" उदीणदाहिणविच्छिण्णे दुहा लवणसमुदं पुढेंपुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुठे, पणवीसं जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, छस्सकोसाइं जोयणाई उन्वेहेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरथिम-पच्चत्थिमेणं चत्तारि अट्रासीए जोयणसए सोलस य एगूणवीसइभागे जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं पण्णत्ता । तस्स जीवा उत्तरेणं पाइणपडीणायया' दुहा लवणसमुदं पुट्ठा-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडोए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुहं पटा, दस जोयणसहस्साइं सत्त य वीसे जोयणसए दुवालस य एगणवीसइभागे जोयणस्स आयामेणं। तीसे धणुपट्ठ° दाहिणणं दस जोयणसहस्साइं सत्त य तेयाले जोयणसए पण्णरस य एगणवीसइभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं, रुयगसंठाणसंठिए सव्वरययामए" अच्छे सण्हे लण्हे १. जी० ३।२७५। २. णाणामणिपंचवण्णेहिं तणेहिं मणीहि य (अ, क,ख,त्रि,ब); नानाप्रकारपञ्चवणमणिभिश्- चोपशोभितः (पूर्व); यत्तु क्वचिद् 'नाणाम- णिवणेहि' त्तिपाठः स चाशुद्धः सम्भाव्यते, जीवाभिगमादौ व्याख्यातपाठस्यैव दर्शनात (हीवृ)। ३. कत्तिमेहिं (त्रि)। ४. परिनिव्वायंति (क,ख,त्रि,प); 'परिनिर्वान्ति' वृत्तित्रयेपि स्वीकृतपाठस्य संस्कृतरूपं दृश्यते । ५. 'प' प्रति विहाय शेषादर्शेष 'लवणपच्चत्थिमेणं लवणपुरत्थिमेणं' इति संक्षिप्तरूपं विद्यते । ६. भारहे (अ,क,ख,त्रि,स)। ७. पातीणपडियायते (अ,त्रि) । ८. छच्च कोसाई (प)। ९. पाईणपडियायता (अ,त्रि)। १०. धणुवट्ठ (अ); धणुपुट्ठ (ख) । ११. सव्वरयणामए (अ,ख,त्रि); एष पाठोशुद्धः प्रतिभाति वृत्तित्रयेपि 'रजतमयः' इति व्याख्यातत्वात् । Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ जंबुद्दीवपण्णत्ती घट्टे मट्ठे णीरए णिम्मले णिप्पं के णिक्कंकडच्छाए सप्पभे समिरीए' पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। ताओ णं पउमवरवेइयाओ अद्धजोयणं उद्धं उच्चत्तेणं, पंचधणुसयाई विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं । वण्णओ भाणियव्वो' । ते णं वणसंडा देसूणाई दो जोयणाइं विक्खंभेणं, पउमवरवेइयासमगा आयामेणं, किण्हा किण्होभासा जाव वण्णओ॥ २४. वेयड्डस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं दो गुहाओ पण्णत्ताओ-उत्तरदाहिणाययाओ पाईणपडीणवित्थिण्णाओ पण्णासं जोयणाई आयामेणं, दुवालस जोयणाई विक्खंभेणं, अट्र जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, वइरामयकवाडोहाडिआओ जमलजुयलकवाडघणदुप्पवेसाओ णिच्चंधयारतिमिस्साओ ववगयगहचंदसूरणक्खत्तजोइसपहाओ जाव' पडिरूवाओ, तं जहा-तिमिसगुहा चेव, खंडप्पवायगुहा चेव। तत्थ णं दो देवा महिड्डीया महज्जुईया महाबला' महायसा महासोक्खा महाणुभागा पलिओवमट्टिईया परिवसंति, तं जहा- कयमालए चेव, णट्टमालए चेव ॥ २५. तेसि णं वणसंडाणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ वेयड्डस्स पव्वयस्स उभओ पासिं दस-दस जोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं दुवे विज्जाहरसेढीओ पण्णत्ताओपाईणपडोणाययाओ" उदीणदाहिणविच्छिण्णाओ दस-दस जोयणाई विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं, उभओ पासि" दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ताओ। ताओ णं पउमवरवेइयाओ अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं, वयसमियाओ आयामेण, वण्णओं णयव्वो"। वणसडावि पउमवरवेइयासमगा आयामेण, वण्णओ" ।। २६. विज्जाहरसेढीणं भंते ! भूमीणं केरिसए आगारभावपडोयारे" पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए-आलिंगपुक्खरेइ वा जाव ‘णाणाविहपंचवण्णेहिं मणोहि तणेहि य उवसोभिए, तं जहा-क्रित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं १. ससिरिए (अत्रि); ससिरीए (क,ख); ८. महेसक्का (अ); महेसक्खा (स, जी. सस्सिरिए (प)। ३॥३४८)। २. जी० ३।२६३-२७२। ६. कतमालए (क,ख,स,)। ३. जी० ३।२७३-२६५ १०. पाईणपडियायताओ (अ,त्रि)। ४. वइरामयगवाडो (अ)। ११. पस्सिं (अ,त्रि)। ५. यावच्छब्दाद् वैताढयस्य अवयवरूपत्वेन वैता- १२. जी० ३।२६३-२७२। ढयवत् अनयोरपि 'सवरययामयाओ अच्छाओ १३. जी० ३।२७३-२६५ । सण्हाओ' इति विशेषणानि वक्तव्यानि (ही)। १४. पडोगारे (त्रि,ब)। ६. खंडगवायगुहा (अ, क, ख, त्रि, ब, स, ठागं १५. णाणामणिपंचवण्णेहि (अ,क,ख,त्रि,ब); २।२७६); वृतित्रयेपि खंडप्रात' रूपं शान्याचार्येण पि अत्र वृत्ती टिप्पणीकृतास्तिव्याख्यातमिति तन्मूलेगृहीतम् । अत्र बहुव्वादशेषु 'नाणामणिचवण्णेहिं मणीहि' ७. महब्बला (क,ख,त्रि,स)। इति पाठो दृश्यते, परं राजप्रश्नीयसूत्रवृत्त्यो Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वक्खारो चेव । तत्थ णं दविखणिल्लाए' विज्जाहरसेढीए गगणवल्लभपामोक्खापण्णासं विज्जाहरणगरावासा पण्णत्ता, उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए रहनेउरचक्कवालपामोक्खा सठिं विज्जाहरणगरावासा पण्णत्ता । एवामेव सपुव्वावरेणं' दाहिणिल्लाए उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए एगं दसुत्तरं 'विज्जाहरणगरावाससयं भवतीतिमक्खायं । ते विज्जाहरणगरा रिद्ध-त्थि मियसमिद्धा पमुइयजण-जाणवया जाव पडिरूवा । तेसु णं विज्जाहरणगरेसु विज्जाहररायाणो परिवसंति --महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारा, रायवण्णओ भाणियव्वो' ।। २७. विज्जाहरसेढीणं भंते ! मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे" पण्णत्ते ? गोयमा ! ते णं मणुया बहुसंघयणा बहुसंठाणा बहुउच्चत्तपज्जवा बहुआउपज्जवा जाव' सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ॥ २८. तासि णं विज्जाहरसेढीणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ वेयड्स्स पव्वयस्स उभओ पासिं' दस-दस जोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं दुवे आभिओग्गसेढीओ पण्णत्ताओ- पाईणपडीणाययाओ" उदीणदाहिणवित्थिण्णाओ दस-दस जोयणाइं विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं, उभओ पासिं" दोहिं पउमवरवेइया हिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ताओ, वण्णओ" दोण्हवि, पव्वयसमियाओ आयामेणं ।। २६. आभिओग्गसेढीणं" भंते ! केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव तणेहिं उवसोभिए, वण्णाइ जाव" तणाणं सद्दोत्ति ॥ ३०. तासि णं आभिओग्गसेढीणं तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं जाव" वाणमंतरा देवा य देवीयो अ आसयंति सयंति" •चिट्ठति णिसीयंति तुयटुंति रमंति ललंति कीडंति मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं' फल वित्तिविसेसं पच्चणभवमाणा विहरंति ॥ ३१. तासु णं आभिओग्गसेढीसु सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोम-जम"-वरुणवेसमणकाइयाणं आभिओग्गाणं देवाणं बहवे भवणा पण्णत्ता । ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरसा वण्णओ जाव" अच्छरगण-संघ-संविकिण्णा" 'दिव्वतुडितसद्दसंपणादिता सव्व र्दष्टत्वात् सङ्गतत्वाच्च 'नाणामणिपंचवण्णेहि ६. पस्सि (अ,त्रि,ब)। मणीहिं तणेहि' इति पाठो लिखितोस्तीति १०.पाईणपडियायताओ (अ,त्रि,ब)। बोध्यम्। ११. पस्सि (अ,त्रि,ब)। १. दाहिणिल्लाए (प)। १२. जी० ३१२६३-२६५ । २. उवरिल्लाए (अ,क)। १३. आभिओगसेढीणं (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ३. पुवावरेणं (अ,क,ख,ब,स, हीवृ)। १४. जी० ३१२७५-२८३ । ४. ओ०सू० १। १५. जी० ३।२८४-२६५। ५. विज्जाहरणगरसयं तेसु बहवे (अ,ब) । १६. सं०पा०-सयंति जाव फलवित्तिविसेसं । ६. ओ०सू० १४ ॥ १७. यम (ब)। १८. पण्ण० २।३०। ७. °पडोगारे (ब)। १६. विकिण्णा (अ,क,ख,त्रि,प,ब); सं०पा०८. जं० २२२। अच्छरगणसंघसंविकिण्णा जाव पडिरूवा। | Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ बुद्दीपण्णत्ती रयणामया अच्छा सहा लम्हा घट्टा मट्ठा णोरया णिम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पा सस्सिया समिरीया सउज्जोया पासा दीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरुवा । तत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोम-जम - वरुण - वेसमणकाइया बहवे आभिओग्गा देवा महिड्डीया महज्जुईया' 'महाबला महायसा महासोक्खा महाणुभागा पलिओवमट्ठिया परिवसंति ॥ ३२. तासि णं आभिओग्गसेढीणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ वेयस्स पव्वयस्स उभओ पासि पंच-पंच जोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं वेयड्डूस्स पव्वयस्स सिहरतले पण्णत्ते - पाईणपडीणायए' उदीणदाहिणविच्छिण्णे दस जोयणाई विक्खंभेणं, पव्वयसमगे आयामेणं । से णं एक्काए पउमवरवेइयाए एक्केण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खिते । पमाणं वण्णगो' दोहंपि ॥ ३३. वेयडुस्स णं भंते ! पव्वयस्स सिहरतलस्स केरिसए आगारभाव पडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते से जहाणामए-आलिंगपुक्खरेइ वा जाव णाणाविह पंचवणेहि मणीहि तणेहि य उवसोभिए जाव वावीओ पुक्खरिणीओ जाव* वाणमंतरा देवाय देवीओ य आसयंति' 'संयंति चिट्ठेति णिसीयंति तुयट्टेति रमंति लंति कीडंति मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं भुजमाणा विहरंति ॥ ३४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे वेयडपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा- सिद्वायतणकूडे दाहिणड्डूभरहकूडे खंडप्पवाय गुहाकूडे भिडे वेडे पुण्णभद्दकूडे तिमिसगुहाकूडे उत्तरढभ रहकूडे वेसमणकूडे ॥ ३५. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयपव्वए सिद्धायतणकडे णामं कुडे पण्णत्ते ? गोयमा ! पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं दाहिणड्डूभरहकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्डपव्त्रए सिद्धायतणकडे णामं कडे पण्णत्ते, छ सक्कोसाइं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले छ सक्कोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे सूणाई पंच जोयणाइं विक्खभेणं, उवरि साइरेगाई तिण्गि जोयणाई विक्खभेणं, मूले सूणाई वीसं जोयणाई परिक्खेवेणं, मज्झे देसूणाई पण्णरस जोयणाई परिक्खेवेणं, उवरि साइरेगाई णव जोयणाई परिक्खेवेणं, मूले विच्छिण्णे मज्झ संखित्ते उप्पि तणुए गोपुच्छठाणसं ठिए सव्वरयणामए अच्छे सण्हे जाव' पडिरूवे । से णं एगाए पउमवर वेश्याए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिखित्ते, पमाणं वण्णओ दोहंपि ॥ ३६. सिद्धायतणकूडस्स णं उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, जहाणामए -आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' वाणमंतरा देवा य' 'देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठति १. सं०पा० --- महज्जुईया जाव महासोक्खा । २. पाईपडियायए ( अ, त्रि, प ) । ३. जी० ३.२६३-२६५ । ४. जी० ३।२७५-२६५ । ५. सं०पा० – आसयंति जाव भुजमाणा । ६. जं० १८ । ७. जी० ३।२६३-२६५ । ८. जी० ३।२७५-२६५ । ६. सं० पा० देवाय जाव विहति । Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वक्खारो णिसीयंति तुट्टेति रमंति ललंति की लंति मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरवकंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा' विहरति ॥ ३७. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं महं एगे सिद्धायतणे पण्णत्ते -- कोसं आया मेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणं कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसन्निविट्ठे खंभुग्गय सुकयवइरवेइयातोरण-वररइयसालभंजिय-सुसि लिट्ठविसि - लट्ठ- संठिय-पसत्थवे रुलिया विमलखंभे णाणामणिरयणख चिय- उज्जल बहुसमसुविभत्तभूमिभागे ईहामिग- उसभ तुरग णर-मगर- विहग वालग किण्णर- रुरु - सरर्भ- चमर-कुंजरवणलय- पउमलय-भत्तिचित्ते कंचणमणिरयणथूभियाए णाणाविहपंचवण्णघंटापडागपरिमंडियग्गसिहरे धवले' मरीइकवयं विणिम्मुयंते लाउल्लोइयमहिए जाव' झया ॥ ३८. तस्स णं सिद्धायतणस्स तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता । ते णं दाग पंच धणुसयाई उड्ढं उच्च्चत्तेणं, अड्डाइज्जाई धणुसयाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं सेया वरकणगथू भियागा, दारवण्णओ जाव' वणमाला || ३६. तस्स णं सिद्धायतणस्स अंतो वहुसमरसणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते से जहाणामए - आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' ४०. तस्स णं सिद्धायतणस्स वहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स वहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे देवच्छंद पण्णत्ते - पंचधणुसयाई आयामविक्खं भेणं, साइरेगाई पंच धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामए, एत्थ णं अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सेहप्पमाणत्ताणं संनिक्खित्तं चिट्ठइ । एवं जाव' धूवकडुच्छुगा ॥ ४१. कहिणं भंते! यड्डपव्वए दाहिणड्डूभरहकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! १. 'चवले' त्यादि चपलं चञ्चलं चिकचिकायमानत्वात् (हीवृ) । २. मिरीयकai ( ब ) । ३ 'जाव झया' इति समर्पणपदात् पूर्णोपिपाठ: समर्पितो भवति । द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य प्रतिपत्तेः ३।४१०-४१८ । शान्तिचन्द्रसूरिणापि एतस्मिन् विषये एका टिप्पणी कृतास्ति - 'जाव झया' इति अत्र यावत्करणात् वक्ष्यमाणयमिका राजधानीप्रकरणगतसिद्धायतनवर्णके तिदिष्टः धर्माभागमो वाच्यो, यावत्सिद्धायतनोपरि ध्वजा उपर्वाणता भवन्ति, यद्यत्र यावत्पदग्रा द्वारवर्णकप्रतिमावर्णधूपकच्छादिकं सर्वमन्तर्भवति तथापि स्थानाशून्यतार्थं किञ्चित् सूत्रे दर्शयति - 'तस्स णं सिद्धायतणस्स' इत्यादि । ४, सया (अ,ब) । ५. जी० ३।२६८- ३०४ । ६. जी० ३।३७५ । ३६७ ७. अत्रानुक्तापि आयामविष्कम्भ म्यां देवच्छन्द - कसमाना उच्चैस्त्वेन तु तदर्द्धमाना मणिपीठिका सम्भाव्यते, अन्यत्र राजप्रश्नीयादिषु देवच्छन्दकाधिकारे तथाविधमणिपीठिकाया दर्शनात् यथासूर्याभविमाने 'तस्स णं सिद्धायतणस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता सोलसजोयणाई आयामविक्खंभेणं अट्ठ जोयणाई उच्चत्तेणं' ति, तथा विजयाराजधान्यामपि तस्स णं सिद्धाययणस्स बहुमज्झदेस भाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता दो जोयणाई आयामविक्खंमेण जोयण बाहल्लेणं सव्वमणिमया अच्छा जव पडिवा' इति (शावृ ) । ८. जी० ३।४१३- ४१७ । Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ जंबुद्दीवपण्णत्ती खंडप्पवायकूडस्स पुरथिमेणं सिद्धायतणकूडस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं वेयड्डपव्वए दाहिणड्डभरहकूडे णामं कूडे पण्णत्ते, सिद्धायतणकूडप्पमाणसरिसे जाव' ४२. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायव.सए पण्णत्ते-कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं विवखंभेणं अब्भुग्गयमूसियपहसिए जाव' पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे॥ ४३. तस्स णं पासायवडेंसगस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता-पंच धणुसयाइं आयामविक्खंभेणं, अड्डाइज्जाहिं धणुसयाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई॥ ४४. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि सीहासणे पण्णत्ते, सीहासणं सपरिवारं भाणियवं॥ ४५. से केणद्वैणं भंते ! एवं वुच्चइ-दाहिणड्डभरहकूडे दाहिणड्डभरहकूडे ? गोयमा ! दाहिणड्डभरहकूडे णं दाहिणड्ढभरहे णामं देवे महिड्डीए जाव' पलिओवमदिईए परिवसइ । से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चउण्हं अग्गम हिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाहिवईणं सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं दाहिणड्भरहकूडस्स दाहिणड्ढाए रायहाणीए, अण्णेसिं च बहूणं देवाण य देवीण य • आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयायनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरई॥ ४६. कहि णं भंते ! दाहिणड्ढभरहकूडस्स देवस्स दाहिणड्डा णामं रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वतस्स दक्खिणेणं तिरियमसंखेज्जदीवसमुद्दे वीईवइत्ता 'अण्णं जंबूहीवं दीवं दक्खिणेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणड्ढभरहकूडस्स देवस्स दाहिणड्डभरहा णामं रायहाणी भाणिअव्वा, जहा" विजयस्स देवस्स। एवं सव्व कूडा णेयव्वा जावर वेसमणकूडे परोप्परं पुरथिम-पच्चत्थिमेणं, इमेसि वण्णावासे गाहा मज्झे वेयड्स्स उ, कणयमया तिण्णि होंति कूडा उ । सेसा पव्वयकूडा, सव्वे रयणामया होंति ॥१॥ १. जं० ११३५,३६ । धान्या इति (शावृ)। २. जं० ४४८ । ८. सं० पा०-देवीण य जाव विहरइ । ३. सर्वात्मना रत्नमयी अच्छेत्यादि प्राग्वत् ६. अत्र सूत्रेऽश्यमानमपि से तेणठेण' मित्यादि _ (पुवृ)। सूत्रं स्वयं ज्ञेयम् (शावृ)। ४. X (क,ख,त्रि,प,स)। १०. अण्णं जंबुद्दीवे दीवे (अ,क,ख,ब,स); अयण्णं ५. जी० ३.३०९-३११, ३३७-३४३ । जंबुद्दीवं दीवं (त्रि); अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे ६. जं० १।२४। (जी० ३.३४६)। ७. दक्षिणार्द्धया इति पदैकदेशे पदसमुदायोपचारात्, ११. जी० ३।३४६-५६३ । पाठान्तरानुसाराद् वा दक्षिणा भरताया राज- १२. जं० ११३४ । Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वक्खारो १६६ माणिभद्दकडे वेयड्डकूडे पुण्णभद्दकूडे-- एए तिणि कणगामया सेसा छप्पि रयणामया। 'छण्हं सरिणामया देवा, दोण्हं कयमालए चेव णट्टमालए चेव"। गाहा जण्णामया य कूडा, तन्नामा खलु हवंति ते देवा । पलिओवमट्टिईया, हवंति पत्तेय पत्तेयं ॥१॥ रायहाणीओ' ? जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणणं तिरियं असंखेज्जदीवसमुद्दे वीईवइत्ता अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं रायहाणीओ भाणियव्वाओ' विजयरायहाणी सरिसियाओ ।। ४७. से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ-वेयड्ढे पव्वए वेयड्ढे पव्वए ? गोयमा! वेयड्ढे णं पव्वए भरहं वासं दुहा विभयमाणे-विभयमाणे चिट्ठइ, तं जहा---दाहिणड्डभरहं च उत्तरड्डभरहं च । वेयड्डगिरिकुमारे य एत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-वेयड्ढे पव्वए वेयड्ढे पव्वए।। अदुत्तरं च णं गोयमा ! वेयड्डस्स पव्वयस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते-जंण कयाइ ण आसि ण कयाइ ण अत्थि, ण कयाइ ण भविस्सइ, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे णियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे ॥ ___४८. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्डभरहे णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! चुल्ल हिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, पुरथिमलवणसमद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्डभरहे णामं वासे पण्णत्ते-पाईणपडीणायए' उदीणदाहिणविच्छिण्णे पलियंकसंठिए दुहा लवणसमुदं पुढे-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुठे, पच्चत्थिमिल्लाए' • कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुठे, गंगासिंधूहि महाणईहिं १ दोण्हं वि सरिसणामया देवा कयमालए चेव देवा अधिपतयो भवन्ति अथोक्तमेवार्थव्यक्ती णट्टमालए चेव, सेसाणं छह सरिसणामया कुर्वन् स्थिति प्रतिपादयितुं गाथामाह (ही); (प); हीरविजयवृत्तौ शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ च द्वयोः कुटयोविसदृशनामको देवौ स्वामिनी, एष पाठो व्यत्ययेन व्याख्यातोस्ति-दोण्ह- तद्यथा-कृतमालकश्चैव नृत्तमालकश्चैव, मित्यादि नवानां कुटानां मध्ये प्रथमस्य तमिस्रगुहाकूटस्य कृतमालः स्वामी खण्डसिद्धायतनकूटस्य स्वामी अर्हन्नेव नापरो देव प्रपातगुहाकूटस्य नृत्तमालः स्वामी, शेषाणां इत्यष्टानां तु मध्ये द्वयोः खण्डप्रपाततमिस्राभि- षण्णां कूटानां सदृक-कूटनामसदृशं नाम धानयोः कूटयोः विसदृशनामको देवौ तद्यथा येषां ते सदगनामका देवाः स्वामिनः (शाव)। -कृतमालकश्च नृत्तमालकश्च चकारैवकारौ २. 'रायहाणीओ' त्ति एतेषां राजधान्यः क्व समुच्चयावधारणाओं सेसाणं छण्हं ति शेषाणां सन्तीति प्रश्नवाक्यं सूचितम् (पुर्व)। दक्षिणार्द्धभरतकूट १ मणिभद्रकूट २ वैताढ्य- ३. जी० ३।३४६-५६३ । कूट ३ पूर्णभद्रकूट ४ उत्तरभरतार्द्धकूट ४. जं० १।२४। ५ वैश्रमणकूट ६ नाम्नां कूटानां सदृशनामकाः ५. पडीयायए (त्रि,ब)। सदृशं कूटेन समानं नाम येषां ते सदृशनामका ६. सं० पा.-पच्चथिमिल्लाए जाव पुढें । Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० जंबुद्दीवपण्णत्ती तिभागपविभत्ते दोणि अद्वतीसे जोयणसए तिण्णि य एगणवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं अट्ठारस बाणउए जोयणसए सत्त य एगूणवीसइभागे जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया' दुहा लवणसमुई पुट्ठा तहेव जाव चोद्दस जोयणसहस्साइं चत्तारि य एक्कहत्तरे' जोयणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोयणस्स किंचिविसेसूणे आयामेणं पण्णत्ता। तीसे धणुपट्टे दाहिणणं चोद्दस जोयणसहस्साइं पंच अट्ठावीसे जोयणसए एक्कारस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं ॥ ४६. उत्तरड्डभरहस्स णं भंते ! वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहि चेव ॥ ५०. उत्तरड्डभरहे णं भंते ! वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ते णं मणुया बहुसंघयणा' 'बहुसंठाणा बहुउच्चत्तपज्जवा बहुआउपज्जवा बहूई वासाइं आउं पालेंति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी अप्पेगइया तिरियगामी अप्पेगइया मणुयगामी अप्पेगइया देवगामी अप्पेगइया सिझंति 'बुझंति मुच्चंति परिणिव्वंति° सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ॥ ५१. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्डभरहे वासे उसभकूडे णामं पव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! गंगाकुंडस्स पच्चत्थिमेणं, सिंधुकंडस्स पुरथिमेणं, चुल्ल हिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे वासे उसह कूडे णामं पव्वए पण्णत्ते-अट्ट जोयणाई उड्ड उच्चत्तेणं, दो जोयणाइं उव्वेहेणं, मूले अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे छ जोयणाई विक्खंभेणं, उरि चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले साइरेगाई पणवीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाइं अट्ठारस जोयणाइं परिक्खेवेणं, उवरि साइरेगाइं दुवालस जोयणाइं परिक्खेवेणं, [पाठांतरं-मूले वारस जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, उप्पि चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, मूले साइरेगाइं सत्तत्तीसं जोयणाई परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाइं पणवीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं, उप्पि साइरेगाइं बारस जोयणाइं परिक्खेवेणं] मूले विच्छिण्णे मज्झे संक्खित्ते उप्पि तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वजंबणयामए अच्छे सण्हे जावपडिरूवे। सेणं एगाए पउमवरवेइयाए तहेव जाव' भवणं कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूर्ण कोसं उड्डउच्चत्तेणं । अट्ठो तहेव, उप्पलाणि पउमाणि जाव" उसभे य एत्थ देवे महिड्डीए जाव" दाहिणणं रायहाणी तहेव मंदरस्स पव्वयस्स जहा विजयस्स अविसे सियं ॥ १. °पडीयायता (त्रि,ब)। विद्यते, न तु आदर्शगतः। २. दुधा (ख,स)। ८. जं० १०८। ३. एक्कसत्तरे (अ)। ६. जं० ११३५,३६,४२-४४ । ४. जी० ३।२७५ । १०. एतत्पदं से केणट्ठणं भंते !' इति पदस्य ५. सं० पा०-बहुसंघयणा जाव अप्पेगइया। सूचकमस्ति । ६.सं० पा०-सिझंति जाव सव्वदुक्खाणमंतं। ११. जी० ३।६३५ । ७. अयं वाचनाभेद: आगमसकलनकालीन एव १२. जी० ३१३४८-५६३ । Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारो कालचक्क-पदं १. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे कतिविहे काले पण्णत्ते ? गोयमा ? दुविहे काले पण्णत्ते, तं जहाओसप्पिणिकाले य उस्सप्पिणिकाले य॥ २. ओसप्पिणिकाले णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! छबिहे पण्णत्ते, तं जहासुसमसुसमाकाले सुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले दुस्समाकाले दुस्समदुस्समाकाले ॥ ३. उस्सप्पिणिकाले णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा! छविहे पण्णत्ते, तं जहादुस्समदुस्समाकाले' 'दुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले सुसमाकाले सुसमसुसमाकाले। ४. एगमेगस्स णं भंते ! महत्तस्स केवइया उस्सासद्धा विआहिया ? गोयमा ! असंखेज्जाणं समयाणं समुदय-समिइ-समागमेणं सा एगा आविलिअत्ति वुच्चई', संखेज्जाओ आवलियाओ ऊसासो, संखेज्जाओ आवलियाओ नीसासो। सिलोगा हट्ठस्स' अणवगल्लस्स, णिरुवकिट्ठस्स जंतुणो। एगे ऊसासनीसासे, एस पाणुत्ति वुच्चई ॥१॥ सत्त पाणूइं से थोवे, सत्त थोवाइं से लवे । लवाणं सत्तहत्तरीए, एस मुहुत्तेति आहिए ॥२॥ गाहा तिण्णि सहस्सा सत्त य, सयाई तेवत्तरि च ऊसासा। एस मुहुत्तो भणिओ, सव्वेहि अणंतनाणीहिं ॥३॥ एएणं मुहुत्तप्पमाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरत्तो, पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उर्दू, तिण्णि उदू अयणे, दो अयणा संवच्छरे, पंच संवच्छरिए जुगे, वीसं १. सं० पा०-दुस्समदुस्समाकाले जाव सुसम- सुसमाकाले। २. पवुच्चइ (प)। ३. हिट्ठस्स (क,ख)। ४. उडू (त्रि); उऊ (प) अग्रेपि । Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ जंबुद्दीवपण्णत्ती जुगाई वाससए, दस वाससयाई वाससहस्से, सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्से, चउरासीई वाससयसहस्साइं से एगे पुव्वंगे, चउरासीई पुव्वंगसयसहस्साइं से एगे पुव्वे, एवं बिगुणं बिगुणं णेयव्वं-तुडियंगे तुडिए अडडंगे अडडे अववंगे अववे हुहुयंगे हुहुए उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे णलिणंगे णलिणे अत्थणिउरंगे' अत्थणिउरे अउयंगे अउए 'नउयंगे नउए पउयंगे पउए" चूलियंगे चूलिया जाव चउरासीइं सीसपहेलियंगसयसहस्साइं सा एगा सीसपहेलिया । एतावताव गणिए, एतावताव गणियस्स विसए', तेण परं ओवमिए॥ ५. से किं तं ओवमिए? ओवमिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पलिओवमे य सागरोवमे य ॥ ६. से किं तं पलिओवमे ? पलिओवमस्स परूवणं करिस्सामि-परमाणू दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुहमे य वावहारिए य । अणंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदयसमिइ-समागमेणं वावहारिए परमाणू णिप्फज्जइ, तत्थ णो सत्थं कमइगाहा सत्येण सुतिक्खणवि, छेत्तुं भित्तुं च जं किर ण सक्का। तं परमाणु सिद्धा, वयंति आदि पमाणाणं ।।१।। १. जूयाई (त्रि,प.ब)। २. हूहुए (अ,प,पुवृ); हूहूए (ब,हीवृ)। ३. अत्थिणीउरे (प)। ४. पउते २ णउते २ (अ,क,ब,हीव); द्रष्टव्यम् -अणुओगद्दाराई ४१७ सूत्रस्यपादटिप्पणम् । ५. अत्र हीरविजयवृत्ती वाचनाभेदः समालोचितोस्ति-अयं च संख्यानुक्रमो माथुरीवाचनानुगतो वलभीवाचनानुगतस्तु ज्योतिष्करण्डेऽन्यथापि दृश्यते। तथाहि-पूर्वाङ्ग १ पूर्व २ लतांगं ३ लता ४ महालतांगं ५ महालता ६ नलिनांगं ७ नलिनं ८ महान लिनांग ६ महानलिनं १० पद्मांगं ११ पद्मं १२ महापांगं १३ महापद्म १४ कमलांगं १५ कमलं १६ महाकमलांगं १७ महाकमलं १८ कुमुदांगं १६ कुमुदं २० महाकुमुदांग २१ महाकुमुदं २२ त्रुटितांगं २३ त्रुटितं २४ महात्रुटितांगं २५ महात्रुटितं २६ अटटांगं २७ अटटं २८ महाअटटांगं २६ महाअटटं ३० ऊहांगं ३१ ऊहं ३२ महोहांगं ३३ महोहं ३४ शीर्षप्रहेलिकांगं ३५ शीर्षप्रहेलिका चेति ३६ न चात्र संमोहः कर्त्तव्यः दुभिक्षादिदोषेण श्रुतहान्या यस्य यादृशं स्मृतिगोचरीभूतं तेन तथा सम्मतीकृत्य लिखितं तच्च लिखनमेकं मथुरायां अपरं च वलभ्यामिति । यदुक्तम्-ज्योतिष्करण्डवृत्तावेव इह स्कन्दिलाचार्यप्रवृत्तौ दुष्षमानुभावतो दुर्भिक्षप्रवृत्त्या साधूनां पठनगणनादिकं सर्वमप्यनेशत् ततो दुभिक्षातिक्रमे सुभिक्षाप्रवृत्तौ द्वयोः सङ्घयोर्मेलापकोऽभवत् तद्यथा एको वलभ्यामेको मथुरायाम् । तत्र सूत्रार्थसंघटने परस्परं वाचनाभेदो जातः विस्मृतयोहि सूत्रार्थयोः स्मृत्वा स्मृत्वा संघटने भवत्यवश्य वाचनाभेदो न कदाचिदनुपपत्तिः । तत्रानुयोगद्वारादिकमिदानी च वर्तमान माथुरवाचनानुगतं ज्योतिष्करंडसूत्रकर्ता वाचार्यो वालभ्यस्तत इदं संख्यास्थानं प्रतिपादनं वालभ्यवाचनानुगत मिति नास्यानुयोगद्वारप्रतिपादितसंख्यास्थानः सह विसदृशत्वम्पलभ्य विचिकित्सितव्यमिति तथानुयोगद्वारे प्रयुतन युतयोः परावृत्तिरप्यस्तीति । ६. आदी (त्रि,ब); आयं (प)। Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारी अणंताणं वावहारियपरमाणूणं' समुदय-समिइ-समागमेणं सा एगा उस्सण्हसण्हिआइ वा सण्हसण्हियाइ वा उद्धरेण्इ वा तसरेणूइ वा रहरेणूइ वा वालग्गेइ वा लिक्खाइ वा जूयाइ वा जवमझेइ वा उस्सेहंगुलेइ' वा अट्ठ उस्सण्हस ण्हियाओ सा एगा सहसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उद्धरेणू, अट्ठ उद्धरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ से एगे देवकुरूत्तरकुराणं मणुस्साणं वालग्गे, अट्ठ देवकुरूत्तरकुराणं मणुस्साणं वालग्गा से एगे हरिवास-रम्मयवासाणं मणुस्साणं वालग्गे', 'अट्ट हेमवय-एरण्णवयाणं मणुस्साणं वालग्गा से एगे पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मणुस्साणं वालग्गे, अट्ट पूव्वविदेह-अवरविदेहाणं मणुस्साणं वालग्गा सा एगा लिक्खा, अट्र लिक्खाओ सा एगा जूया, अट्ठ जूयाओ से एगे जवमझे, अट्ठ जवमज्झा से एगे अंगुले। एतेणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पाओ, बारस अंगुलाइ वितत्थी', चउवीसं अंगुलाई रयणी, अडयालीसं अंगुलाई कुच्छी, छण्णउई अंगुलाइं से एगे अक्खेइ वा दंडेइ वा धण्इ वा जुगेइ वा मुसलेइ वा णालिआइ वा। एतेणं धणुप्पमाणेणं दो धणुसहस्साई गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं । एएणं जोयणप्पमाणेणं जे पल्ले जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं । से णं पल्लेगाहा एगाहिय-बेहिय-तेहिय', उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । संमठे सण्णिचिए, भरिए वालग्ग कोडीणं ॥१॥ ते णं वालग्गा णो कुच्छेज्जा, णो परिविद्धंसेज्जा, णो अग्गी डहेज्जा, णो वाए हरेज्जा, णो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा, तओ णं वाससए-वाससए एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे णीरए णिल्लेवे णिट्ठिए भवइ, से तं पलिओवमे। गाहा एएसि पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिआ । त सागरोवमस्स उ, एगस्स भवे परीमाणं ।।२।। एएणं सागरोवमप्पमाणेणं चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा, तिण्णि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमा, दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमदुस्समा, १. यद्यपि ग्रन्थान्तरे (अणुओगद्दाराई सू० ३६५) वालग्गे। अट्ठ पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं परमाण तसरेण' इत्यादि गाथायामुछ्श्लक्षिण मणुस्साणं वालग्गा भरहेरवयाणं मणस्साणं कादीनि त्रीणि पदानि नोक्तानि (हीव)। से एगे वालग्गे। अट्ठ भरहेरवयाणं मणुस्साणं २. अंगुले (भ० ६।१३४)। वालग्गा सा एगा लिक्खा [अ० सू० ३६६] । ३. सं० पा.---वालग्गे एवं हेमवयएरण्णवयाणं ५. विहत्थी ( क.ख. ५. विहत्थी (क,ख,प,स, भ०६।१३४, अणुओगमणुस्साणं पुव्वविदेहअवरविदेहाणं मणुस्साणं। द्दाराइं सू० ४००)। ४. प्रस्तुतपाठे भरतैरवतयोर्मनुष्याणामुल्लेखो ६. जुतेति (ब)। नास्ति, अनुयोगद्वारसूत्रे विद्यते--अठ्ठ हेमवय- ७. 'एगाहिय बेहिय तेहिय' त्ति षष्ठी बहुवचनहेरण्णवयाणं मणुस्साणं वालग्गा पुव्वविदेह- लोपात् एकाहिक-द्वयाहिक - त्र्याहिकानाम् अवरविदेहाणं मणुस्साणं से एगे (ही)। Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ जंबुद्दीवपण्णत्तो एगा सागरोवमकोडाकोडीओ बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया कालो दुस्समसुसमा, एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दुस्समा, एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दुस्समदुस्समा । पुणरवि उस्सप्पिणीए एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दुस्समदुस्समा, एवं पडिलोमं णेयव्वं जाव चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा। दससागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी, दससागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी, वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी॥ ७. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भरहे वासे इमीसे ओस प्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए' भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था ? गोयमा ! बहसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' णाणाविधपंचवण्णेहि तणेहि य मणीहि य उवसोभिए, तं जहा-किण्हेहिं जाव सुक्किलेहिं। एवं वण्णो गंधो फासो सहो य तणाण य भाणिअव्वो जाव' तत्थ णं वहवे मणुस्सा मणुस्सीओ य आसयंति सयंति चिट्ठति णिसीयंति तुयद॒ति हसंति रमंति ललंति" ॥ ८. तीसे णं समाए भ रहे वासे बहवे उद्दाला 'कोद्दाला मोद्दाला" कयमाला णट्टमाला 'दंतमाला नागमाला सिंगमाला संखमाला" सेयमाला णामं दुमगणा पण्णत्ता, कुस-विकुसविसुद्धरुक्खमूला" पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य उच्छण्ण-पडिच्छण्णा सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा चिळंति ॥ तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ बहवे सेरुतालवणाई हेरुतालवणाई भेरुतालवणाई मेरुतालवणाइं" पयालवणाई" सालवणाई सरलवणाई सत्तिवण्णवणाई पूअफलिवणाई खज्जूरीवणाई णालिएरीवणाई कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूलाई" पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य उच्छण्ण-पडिच्छण्णा सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा' चिट्ठति ।। १०. तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ बहवे सेरियागुम्मा ‘णोमालियागुम्मा कोरंटयगुम्मा बंधुजीवगगुम्मा मणोज्जगुम्मा बीयगुम्मा बाणगुम्मा कणइरगुम्मा कुज्जाय १. भारहे (क)। पूव); वनमाला दंतमाला सिंगमाला संखमाला २. ओसप्पिणीसमाए (ब)। (जी० ३१५८२)। ३. उत्तमट्ठपत्ताए (पुवृ, शावृपा); उत्तिमट्ठ- १०. 'मूला मूलमंतो कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्ताए (भ० ६।१३५)। (ख,प,शावृ)। ४. जी० ३।२७७ । ११. सूत्रे पुंस्त्वं प्राकृतत्वात् (ही)। ५. णाणामणिपंचवण्णेहिं (अ,क,ख,त्रि,ब)। १२. भेरुतालादयो वृक्षविशेषा (शावृ)। ६. जी० ३।२७८-२६७ । १३. x (अ,क,ख,ब,स); जीवाजीवाभिगमे ७. यावच्छब्दात् पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं (३१५८१) पि एतत्पदं दृश्यते । सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं १४. पभवालवणाइं (ख,त्रि); क्वचित् प्रभवालफलवित्तिविसेसे पच्चणुभवमाणा विहरंति वणा इति पाठः (शा)। (ही)। १५. X (त्रि)। ८. मोद्दाला कुद्दाला (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १६. सं० पा० --विसुद्ध रुक्खमूलाइं जाव चिट्ठति । ६. संखमाला दंतमाला नागमाला (अ,क,ख,ब,स, Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोनो वक्खारो गुम्मा सिंदुवारगुम्मा जातिगुम्मा मोग्गरगुम्मा जूहियागुम्मा मल्लियागुम्मा वासंतियागुम्मा वत्थुलगुम्मा कत्थुलगुम्मा सेवालगुम्मा अगत्थिगुम्मा मगदंतियागुम्मा चंपक गुम्मा जातिगुम्मा णवणीइयागुम्मा कंदगुम्मा" महाजाइगुम्मा' रम्मा महामेहणिकुरंवभूया दसद्धवण्णं कुसुमं कुसुमें ति, जे णं भरहे वासे बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं वायविधुअग्गसाला मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति ॥ ११. 'तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ बहुईओ पउमलयाओ जाव सामलयाओ णिच्चं कुसुमियाओ जाव' लयावण्णओ"॥ १२. तीसे ण समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ बहईओ वणराईओ पण्णत्ताओकिण्हाओ किण्होभासाओ जाव' मणोहराओ रयमत्तछप्पय -कोरग'-भिंगारग-कोंडलगजीवंजीवग-नंदीमुह-कविल-पिंगलक्खग-कारंडव-चक्कवाय- कलहंस-हंस"-सारसअणेगसउणगणमिहुणवियरियाओ२ सदुण्णइयमहुरसरणाइयाओ संपिडियदरियभम रमहुयरिपहकरपरिलितमत्तछप्पय-कुसुमासवलोलमहुरगुमगुमंतगुंजंतदेसभागाओ णाणाविहगुच्छ-गम्म-मंडवगसोहियाओ वावोपुक्खरणीदीहियाहि य सुणिवेसियरम्मजालघरगाओ" विचित्तसुहके उ१. जाव (अ,क,ख,त्रि,ब,स, पुव, होवृ)। ६. कोरंगा (अ,क,ख,त्रि,ब,स); कोरण्टक २. यावन्महाकुन्दगुल्मा (हीवृ); यावन्महाजाति- (हीवृ)। गुल्मा जीवाभिगमे तु सर्वगुल्मप्रान्ते महाकुन्द- १०. कोणाल (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। गुल्मा इति दृश्यते (पुत्र) मूलपाठः 'प' ११. ४ (क,ख,त्रि,प,स)। संकेतिता प्रति प्रमेय रत्नमञ्जूषां चानुसृत्य १२. प्रमेयरत्नमञ्जूषायां प्रथमवक्षस्कारे वनषण्डस्वीकृतः। पुण्यसागरमहोपाध्यायेन जीवा- वर्णकः उद्धृतास्ति (वृत्ति पत्र २७,२८) तत्र जीवाभिगमवृत्ति लक्षीकृत्य महाकुन्दगुल्मा' 'विरइय' इति पाठो विद्यते 'विरचितं' इति इति सूचितम् । व्याख्यातमस्ति (वृत्तिपत्र ३०)। औप३. जी० ३।५८४ । पातिके (सू० ६) पि 'विरइय' इति पाठो ४. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स, पुवृ, हीवृ)। लभ्यते । तथा अस्मात् पाठात् परं एवं जाव ५. बहवे (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। तहेव इच्चाइ वण्णाओ सेसं जहा' इत्यादि६. ओ० सू० ४। पदाभिव्यङ्ग्य रतिदेशैर्दशितविवक्षणीयवाच्याः ७. अस्य स्थाने औपपातिके 'रम्माओ' इति सूत्रे लाघवं दर्शयन्ति, यत उक्तं निशीथभाष्ये पदमस्ति । षोडशोद्देशके८. रइयमत्तछप्पय (अ,ख,ब,त्रि,स); शान्ति- कत्थइ देसग्गहणं, कत्थइ भण्णंति निरवसेसाई। चन्द्रेण 'रतमत्ता:-- सुरतोन्मादिनः' इति उक्कमकमजुत्ताई, कारणवसओ निरुत्ताई ॥१॥ व्याख्यातम्, एतत्पाठानुसारी वर्तते । हीर- १३. झणि (क); आदर्शेषु संक्षिप्तपाठाः लिखिता: विजयवृत्तौ 'रइयमते' त्यादि, र िददातीति सन्ति, तेन वृत्ती अर्थविपर्यासोपि दृश्यते, यथा रतिदाः गुञ्जनशब्दैः श्रोतृणामिति गम्यम् । - - 'झुणि' त्ति पदेन 'झुणिविचित्तभंगाओ' पुण्यसागरवृत्तौ 'उपरचितं कृतम्' इति त्ति विशेषणं ध्वनिविचित्रा भृङ्गा यासु व्याख्यातम् । एते द्वे अपि व्याख्ये 'रइय' तास्तथा (ही)। पाठमनुसृत्य कृते स्तः, तेन बुद्धिप्रधाने जाते । Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ जंबुद्दीवपण्णत्ती भूयाओ अभितरपुप्फफलाओ बाहिरपत्तच्छण्णाओ पत्तेहि य पुप्फेहि य ओच्छण्णपरिच्छण्णाओ साउफलाओ णिरोगयाओ अकंटयाओ सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धाओ पिंडिम' •णीहारिम सुगंधिं सुहसुरभि मणहरं च महया गंधद्धणि मुयंतीओ सुहसेउकेउबहुलाओ अणेगसगड-रह-जाण-जुग्ग-सीया-संदमाणिय-पडिमोयणाओ सुरम्माओ° पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरुवाओ पडिरूवाओ।। १३. तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ मत्तंगाणाणं दुमगणा पण्णत्ता, जहा से चंदप्पभ जाव' ओछण्णपडिच्छण्णा चिट्ठति । एवं जाव' अणिगणा णामं दुमगणा पण्णत्ता। १४. तीसे णं भंते ! समाए भरहे वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेणं मणुया सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा जाव लक्खण-वंजण-गुणोववेया सुजाय-सुविभत्त-संगयंगा पासादीया •दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ १५. तीसे णं भंते ! समाए भरहे वासे मणुईणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ताओ णं मणुईओ सुजायसव्वंगसुंदरीओ पहाणमहिलागुणेहिं जुत्ताओ अइकंत-विसप्पमाणमउय-सुकुमाल-कुम्मसंठिय-विसिट्ठचलणाओ उज्जु-मउय'""-पीवर-सुसाहयंगुलीओ अब्भुण्णय-रइय-तलिण-'तंब-सुइ"णिद्धणक्खा रोमरहिय-वट्ट-लट्ठसंठिय-अजहण्णपसत्थलक्खण-अक्कोप्पजंघजुयला 'सुणिम्मिय-सुगूढसुजाण मंसलसुबद्धसंधीओ"२ कयलीखंभाइरेकसंठिय-णिव्वण-सुकुमाल- मउय-मंसलअविरलसमसंहियसुजायवट्टपीवरणिरंतरोरू अट्ठावयवीचिपट्ठसंठिय"-पसत्थ-विच्छिण्ण-पिहुल सोणी वयणायामप्पमाणदुगुणियविसालमंसलसुबद्धजहणवरधारिणीओ वज्जविराइय-पसत्थलक्खणनिरोदरा तिवलियवलिय"५. तणुणमियमज्झियाओं उज्जुय-सम-सहिय-जच्चतणु-कसिण-'णिद्ध-आदेज्ज"-लडह-सुजायसुविभत्त-कंत-सोभंत-रुइल-रमणिज्जरोमराई गंगावत्त-पयाहिणावत्त-तरंगभंगुर-रविकिरण १. सं० पा० -- पिंडिम जाव पासादीयाओ। ११. तंबसुचिरुइल (अ,ब, पूर्व); आतंबविरइय २. जी० ३१५८६ । (क); आतंबसुचिरयित (ख); सुविरइय ३. जी० ३।५८७-५६५। (त्रि); आतंबसुचिरुइल (स)। ताम्रा सुचय ४. अणियाणी (अ,ब); आयीणा (क); आयाणी रुचिरा (हीवृ)। (त्रि)। १२. °जण्णुमंडल (प), जानुमण्डले (हीवृ)। ५. °पडोकारे (ब)। १३. प्रमेयरत्नमञ्जूषायां 'वीति' इति पदं व्याख्या६. जी० ३३५६६। तमस्ति..-वीतिः- विगतेतिको घुणाद्यक्षत इति ७. सं० पा०-पासादीया जाव पडिरूवा। भावः एवंविधोऽष्टापदो धूतफलकम्, विशेषण८. अक्कंत (अ,क,ब,स)। व्यत्ययः प्राकृतत्वात् (पत्र ११४)। ६. °मउया (अ,ख,ब)।। १४. 'वरहारिणीओ (ब)। १०. पउमजुग (अ,ब); पउममउयसुजात (क, १५. निरोदरतिवलिय° (क,ख,प) । त्रि); पलममउय (प,स, पुवृ हीव) उज्जुमउय १६. नतं-न ग्रं (शाव)। (पुवृपा)। १७.णिद्धआइज्ज (प); णिद्धादेज्ज (ब)। Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीमो वक्खारौ तरुणबोहिय-आकोसायंतपउम'-गंभीरवियडणाभा अणुब्भड-पसत्थ-पीणकुच्छी सण्णयपासा संगयपासा सुजायपासा मियमाइयपीणरइयपासा अकरंड्य'-कणगरुयगणिम्मलसुजाय-णिरुवहयगायलट्ठी कंचणकलसप्पमाण-सम-सहित-लट्ठ-चूचुयआमेलग-जमलजुयलवट्टिय-अब्भुण्णयपीणरइयपीवरपयोहराओ भुजंगअणुपुव्वतणुय-गोपुच्छवट्टसम-संहियणमिय-आदेज्ज'-ललियबाहा तंबणहा मंसलग्गहत्था पीवरकोमलबरंगुलीया णिद्धपाणिलेहा रवि-ससि-संख-चक्क-सोत्थिय-विभत्तसुविर इयपाणिलेहा पीणुण्णयकक्ख-वक्ख-वत्थिप्पएसा पडिपुण्णगल कवोला' चउरंगुलसुप्पमाण-कंबुवरसरिसगोवा मंसल-संठिय-पसत्थहणुगा दाडिमपुप्फप्पगास-पीवरपलंबकुंचियवराधरा सुंदरुत्तरोट्ठा दहिदगरयचंदकुंदवासंतिमउलधवल-अच्छिद्दविमलदसणा रत्तुप्पलपत्त-मउयसुकुमालतालुजीहा कणवीरमउल"अकूडिलअब्भग्गय-उज्जुतंगणासा सारदणवकमलकूमयकूवलयविमलदलणियरसरिसलक्खणपसत्थअजिम्हकंतणयणा पत्तल-'चवलायंत-तंवलोयणाओ'१ आणाभियचावरुइलकिण्हब्भराइ-संगय-सुजाय-भुमगा अल्लीण-पमाणजुत्तसवणा सुसवणा पीण-मट्ठ-गंडलेहा चउरंस-पसत्थ-समणिडाला कोमुईरयणियर-विमलपडिपुण्णसोमवयणा छत्तुण्णय उत्तिमंगा अकविल-सुसिणिद्ध-सुगंधदीहसिरया छत्त-ज्झय-जूय-थूभ-दामिणि-कमंडलु-कलस-वाविसोत्थिय-पडाग-जव-मच्छ-कुम्म-रहवर - मगरज्झय - अंक -थाल-अंकुस-अट्ठावय-सुपइट्ठगमयूर-सिरियाभिसेय-तोरण - मेइणि"-उदहि-वरभवण-गिरि-वरआयंस-सलीलगय"-उसभसीह-चामर-उत्तमपसत्थबत्तीसलक्खणधरीओ हंससरिसगईओ कोइलमहुरगिरसुस्सराओ कता सव्वस्स अणमयाओ ववगयवालपलिय-वंग-दव्वण्ण-वाहि-दोहग्ग-सोगमुक्का उच्चत्तण य णराण थोवूणमुस्सिआओ सभावसिंगारचारुवेसा संगयगय-हसिय-भणिय-चिट्ठियविलास-संलाव-णिउणजुत्तोवयारकुसला सुंदरथण-जहण-वयण-कर-चलण-णयण-लावण्ण-रूवजोव्वण-विलासकलिया णंदणवणविवरचारिणीउव्व अच्छराओ भरहवासमाणुसच्छराओ १. अकोसायंत' (अ,त्रि,प,स, पुत्र, हीव) । धवलशब्दो जीवाभिगमवत्तौ दर्शनाल्लिखि२. अत्समासान्तेन ‘णाभा' इति सिद्धि (ही)। तोस्ति। ३. अकरंडय (अ, ब)। १०. 'मुकुल (अ, क, ख, ब, स,)। ४. चुच्चुय० (अ, क, ख, ब); चुचुआमेलग ११. धवलायततंबं० (अ, ब, पुव); धवलायत(प)। आतंब (क, स); धवलायतआयंब (प); ५. आइज्ज (प); आदेय (ब)। क्वचिद्धवले कर्णान्तत्तिनी क्वचित्ताम्रलोचने ६. रेहा (प)। यासां ता: (शावृ); चवलायंततंब (पुवपा) । ७. सुविभत्त० (क, ख, प, स, पुव, शावृ)। १२. °उत्तमंगा (ख, त्रि, ब)। ८. °कयोला (प)। १३. सुक (अ, त्रि, ब, स, हीव); क्वचिदङ्कस्थाने ६. °मउल (अ, क, ख, त्रि, ब, स, पुव, हीवृ); शुक इति दृश्यते (शावृ)। उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण 'धवल' शब्दः जीवाभिग- १४. मेतिणि (त्रि, ब)। मवृत्तिमनुसृत्य स्वीकृतो व्याख्यातश्च-जम्बू- १५. सुललियगय (पण्हा०४।८); ललियगय (जी० द्वीपप्रज्ञप्ति-प्रश्नव्याकरणाद्यादर्शष्वदष्टोपि ३३५६७)। Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जबुद्दीवपण्णत्ती अच्छे रगपेच्छणिज्जाओ पासाईयाओ' 'दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ ।। १६. ते णं मणुया ओहस्सरा हंसस्सरा कोंचस्सरा गंदिस्सरा णंदिघोसा सीहस्सरा सीहघोसा' सूसरा सूसरणिग्घोसा छायाउज्जोवियंगमंगा वज्जरिसहनारायसंघयणा समचउरंससंठाणसंठिया छवि-णिरातका अणुलोमवाउवेगा कंकग्गहणी कवोयपरिणामा सउणिपोसपिट्ठ-तरोरुपरिणया छद्धणुसहस्समूसिया। तेसि णं मणुयाणं बे छप्पण्णा पिट्टिकरंडकसया' पण्णत्ता समणाउसो ! पउमुप्पलगंधसरिसणीसाससुरभिवयणा । ते णं मण्या पगइ उवसंता' पगइपयणुकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा भद्दगा विणीया अप्पिच्छा असण्णिहिसंचया विडिमंतरपरिवसणा जहिच्छियकामकामिणो 'पुढवीपुप्फफलाहारा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो" ! ॥ १७. तीसे णं भंते ! पूढवीए केरिसए आसाए पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहाणामए गलेइ वा खंडेइ वा सक्कराइ वा मच्छंडियाइ वा पप्पडमोयएइ वा भिसेइ वा पृष्फत्तराइ वा पउमुत्तराइ वा विजयाइ वा महाविजयाइ वा आकासियाइ वा आदंसियाइ वा आगासफलोवमाइ वा उग्गाइ वा अणोवमाइ वा', भवे एयारूवे? णो इणठे समठे। सा णं पुढवी इत्तो इट्टतरिया चेव 'कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणुण्णतरिया चेव मणमतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता ।। १८. तेसि णं भंते ! पुप्फफलाणं केरिसए आसाए पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहाणामए रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स कल्लाणे भोयणजाए सयसहस्सनिप्फन्ने वण्णेषुववेए गंधेणुववेए रसेणुववेए°फासेणुववेए आसायणिज्जे विसायणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिज्जे" सविदिअगायपल्हायणिज्जे, भवे एयारूवे ? णो इणठे समठे। तेसि णं पुप्फफलाणं एत्तो इतराए चेव कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव आसाए पण्णत्ते ॥ १६. ते णं भंते ! मणुया तमाहारमाहारेत्ता कहिं वसहि उति ? गोयमा ! रुक्ख १. सं० पा०.-पासाईयाओ जाव पडिरूवाओ। दृश्यमानत्वादिति, तेनात्र स्थानाशून्यार्थं २. जीवाभिगमादौ दुन्दुभिस्वरा मजुस्वरा मजु- जीवाभिगमादिभ्यो लिख्यते- तेसि ण घोषा इत्यपि दृश्यते (पुवृ)। भंते ! मणुआणं केवइकालस्स आहारट्ठे ३. पिद्वित० (अ, त्रि, ब); पिट्ठ० (क, ख); समुप्पज्जइ ? गोयमा ! अट्ठमभत्तस्स आहापृष्ठकरण्डुकशते पाठान्तरेण पृष्ठकरंडकशते रठे समुप्पज्जइ, पुढवी पुप्फफलाहारा णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो ! (शाव) । ६. वा इमेए अज्झोववणाए (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स); ४. पगइभद्दगा पगइउवसंता (त्रि, स, पुवृ, हीव)। द्रष्टव्यम्- जीवा० ३१६०१, पण्ण० १७.१३५। ५. उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण प्रमेयरत्नमञ्जूषायां ७. सं०पा० इतरियाचेवजावमणामतरिया। अस्मिन् विषये एका टिप्पणी कृतास्ति-अत्र च ८. सं० पा०-वण्णेषुववेए जाव फासेणुववेए। जीवाभिगमादिषु युग्मिवर्णनाधिकारे आहारा- ६.x (अ, क. ख, त्रि, प, ब)। र्थप्रश्नोत्तरसूत्रं दृश्यते, अत्र च कालदोषेण १०. १०. X (ब)। (ब टित सम्भाव्यते, अवोत्तरत्र द्वितीयतृतीया- ११. विग्घणिज्जे (ब)। रकवर्णकसूत्रे आहारार्थसूत्रस्य साक्षाद् १२. सं० पा०-इद्वैतराए चेव जाव आसाए । Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारी २७९ गेहालया णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ २०. तेसि णं भंते ! रुक्खाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! कूडागारसंठिया पेच्छा-'च्छत्त-झय"-थूभ-तोरण-गोपुर-वेइया-चोप्पालग'-अट्टालग-पासायहम्मिय-गवक्ख-वालग्गपोइया-वलभीघरसंठिया, अण्णे इत्थ वहवे वरभवणविसिट्ठसंठाणसंठिया दुमगणा सुहसीयलच्छाया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ २१. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे बासे गेहाइ वा गेहाव [य ?] णाई वा ? गोयमा ! णो इणठे सम8, रुक्खगेहालया णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ २२. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे 'गामाइ वा •णगराइ वा णिगमाइ वा रायहाणीइ वा खेडाइ वा कब्बडाइ वा मडंबाइ वा दोणमुहाइ वा पट्टणाइ वा आगराइ वा आसमाइ वा संबाहाइ वा सण्णिवेसाइ वा ? गोयमा ! णो इणठे समठे, जहिच्छियकामगामिणो णं ते मणुया पण्णत्ता । २३. अत्थि णं भंते ! 'तीसे समाए भरहे वासे" असीइ वा मसीइ वा किसीइ वा 'वणिएत्ति वा 'पणिएत्ति वा वाणिज्जेइ वा ? गोयमा ! णो इण? सम8, ववगयअसिमसि-किसि 'वणिय-पणिय-वाणिज्जा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो !॥ २४. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे हिरण्णेइ वा सुवण्णेइ" वा कसेइ वा १. छयरुप्प (अ. ब)। वृत्तः पाठः उदृङ्कितः-'जहिच्छिअकामगा२. वेइगा (अ, ब)। मिणो' इत्यस्य स्थाने 'जं नेच्छियअकामगा३. चोयालग (अ, ब); चोपालग (क, ख, स); मिणो' इतिपाठः । चोवालग (त्रि); चोप्फाल (प, शावृ)। ८. x (अ, क, ख, त्रि, प, ब, स); अग्रेपि ४. यत्थ (अ, ब); एत्थ (क, ख, स)। क्वचिद् एष पाठो पि नास्ति, क्वचिद् 'भरहे ५. वत्तित्रयेपि 'आयतनानि' इति व्याख्यातम वासे' इत्येव विद्यते । लिपिसंक्षेपादेवं जातस्ति । द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३१८४१. मस्ति । सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. x (हीव); विवणित्ति' विपणिरिति हट्टोप६.सं० पा०-गामाइ वा जाव सण्णिवेसाइ। जीविनः (पुत्र)। 'अ, क, ख, त्रि, ब, स, हीव' एषु 'गामाइ १०. वणिपणि (अ, क, ख, त्रि, ब, स)। वा' इत्यस्य स्थाने 'नगराइ वा' इति पाठो ११. प्रस्तुतप्रकरणे 'सुवर्ण कांस्य दूष्य' पदत्रयस्य दृश्यते। प्रयोगः कथं संभवेत् ? उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण ७. गामगामिणो (अ, ख, ब); जं नेच्छियका- एष प्रश्नः समुपढौकितस्तस्य समाधानमपि कृतम् मगामिणो (त्रि); हीरविजयसूरिणा जं -घटितं सुवर्ण तथा ताम्रनपुसंयोगजं कांस्य जेच्छियकामगामिणो' इति पाठो व्याख्यातः, तथा तन्तुसन्तानसम्भवं दुष्यं तत्र कथं सम्भ'जहिच्छियकामगामिणो' इति पाठान्तरत्वेन च वेयुः? शिल्पिप्रयोगजन्यत्वात् तेषां, न च तान्य_..क्वचिदादर्श 'जहिच्छियकामगामिणो' इति वातीतोत्सपिणीसत्कनिधानगतानि सम्भवं. पाठो दृश्यते, परं जीवाभिगमवृत्तौ तथा व्याख्यान- तीति वाच्यं, सादिसपर्यवसितप्रयोगबन्धस्यानुपलम्भान्न व्याख्यातः (हस्तलिखितपत्र स्यासंख्येयकाल-स्थितेरसम्भवात, एगोरुगोत्तर११०); उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण जीवाभिगम. कुरुसत्रयोरेतदालापकस्याकथनप्रसङ्गात्, उच्यते, Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० 'जंबुद्दीवपण्णत्ती दूसेइ' वा मणि-मोतिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-सावज्जेइ वा ? हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छइ ॥ २५. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे रायाइ वा जुवराया इ वा ईसर-तलवरमाडंबिय-कोडंबिय इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहाइ वा ? गोयमा ! णो इणठे समठे, ववगयइड्ढिसक्कारा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो! ॥ २६. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे दासेइ वा पेसेइ वा सिस्सेइ' वा भयगेइ वा भाइल्लएइ वा कम्मारएइ वा ? णो इण? सम?, ववगयआभिओगा णं ते मण्या पण्णत्ता समणाउसो! ॥ २७. अत्थि णं भंते ! तोसे समाए भरहे वासे मायाइ वा पियाइ वा भाया"-भगिणिभज्जा-पुत्त-धूण-सुण्हाइ वा ? हंता अत्थि, णो चेव णं तिव्वे पम्मबंधणे समुप्पज्जइ ॥ २८. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे अरीइ वा वेरिएइ वा घायएइ वा वहएइ वा पडिणीयए वा पच्चामित्तेइ वा ? णो इण? सम?, ववगयवेराणुसया णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो! ॥ २६. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे मित्ताइ वा वयंसाइ वा गायएइ वा घाडिएइ वा सहाइ वा सुहीइ वा संगइएति वा ? हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणयाणं तिव्वे रागबंधणे समुप्पज्जइ ।। ३०. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे आवाहाइ वा वीवाहाइ वा जण्णाइ वा सद्धाइ वा थालीपागाइ वा पितिपिंडनिवेदणाइ वा ? णो इण? सम8, ववगयआवाहवोवाह-जण्ण-सद्ध-थालीपाग पितिपिंडनिवेदणा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ३१. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे इंदमहाति ना खंद-णाग-जक्ख-भूयअगड-तलाग-दह-णदि-रुक्ख-पव्वय-थूभ-चेइयमहाइ वा ? णो इण? सम8, ववगयमहिमा णं ते मणया पण्णत्ता समणाउसो ! ।। ३२. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे णडपेच्छाइ वा णट्ट-जल्ल-मल्ल-मुट्ठियवेलंबग-कहग -पवग-लासगपेच्छाइ वा"? णो इणट्टे समठे, ववगयकोउहल्ला णं ते मणया पण्णत्ता समणाउसो।। संहरणप्रवृत्तक्रीडाप्रवृत्तदेवप्रयोगात् तानि ६. संघाडिए (ख,त्रि,प); संघाटिकः-सहचारी सम्भवन्तीति सम्भाव्यते, (वृत्ति पत्र १२२)। (शाबू)। प्रस्तुतप्रश्नस्य एतत् समाधानं स्वाभाविक ७ x (अ,क,ख,ब,स)। भवति-वर्णके कानिचित् पदानि प्रवाहपा- ८. सड्ढेति (अ,क,ख,त्रि,ब) । तीन्यपि भवन्ति। ६ मितपिंड (त्रि,प,शावृ,हीवृ)। १. दोसेइ (अ,ख,त्रि,ब)। १०. कधक (अ,ख,ब)। २. निवाएति (अ); निवाइ (ब)। ११. इतः परम् ---आइक्खग लंख मंख तूणइल्ल ३. x (अ, क, ख, ब, स)। तुंबवीणिय काय मागहपेच्छाइ वा इति जीवा४. कर्मकर:-छगणपुज्जाद्यपनेताः (शावृ) । भिगामे (३।६१६) उपलभ्यते (पुवृ)। ५. भाति (अ,त्रि,ब)। Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारो ३८१ ३३. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे सगडाइ वा रहाइ वा जाणाइ वा जुग्गगिल्लि-थिल्लि-सीअ-संदमाणिआइ वा ? णो इणठे समठे, पायचारविहारा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ३४. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे गावीइ वा महिसीइ वा अयाइ वा एलगाइ वा ? हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वामागच्छति ।। ३५. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे आसाइ वा हत्थि-उट्ट-गोण-गवय-अयएलग-पसय-मिय-वराह-रुरु-सरभ-चमर-कुरंग-गोकण्णमाइया ? हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ॥ ३६. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे सीहाइ वा वग्घाइ वा विग-दीविगअच्छ-तरच्छ-सियाल-बिडाल-सूणग-कोकंतिय-कोलसूणगाइ वा ? हंता अत्थि, णो चेव ण 'ते अण्णमण्णस्स तेसिं वा" मणयाणं आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेयं वा उप्पाएंति, पगइभद्दया णं ते सावयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ३७. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे सालीति वा वीहि-गोहूम-जवजवजवाइ वा कल'-मसूर-मुग्ग-मास-तिल-कुलत्थ-णिप्फावग-आलिसंदग-अयसि-कुसुंभकोहव-कंगू-वरग-रालग-सण-सरिसव-मूलाबीआइ वा ? हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ।। ३८. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे गड्ढाइ वा दरी-ओवाय-पवाय-विसमविज्जलाइ वा ? णो इणठे समठे, भरहे वासे बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा ॥ ३६. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे खाणूइ वा कंटग-तणय-कयवराइ वा पत्तकयवराइ वा ? णो इणठे समठे, ववगयखाणुकंटगतणकयवर-पत्तकयवरा णं सा समा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ४०. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे डंसाइ वा मसगाइ वा जूआइ वा लिक्खाइ वा ढिकुणाइ वा पिसुआइ वा ?णो इणठे समठे, ववगय डंस-मसग-जूअ-लिक्खढिंकुण-पिसुआ उवद्दवविरहिया णं सा समा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ४१. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे अहीइ वा अयगराइ वा ? हंता अत्थि, णो चेव णं' 'ते अण्णमण्णस्स तेसि वा मणुयाणं आवाहं वा वावाहं वा छविच्छयं वा १. स्वीकृतपाठः हीरविजय-पुण्यसागरवृत्त्योरनु- सारीवर्तते जीवाजीवाभिगमे (३१६२०) पि एवमेव पाठो दृश्यते। शेषादशेषु प्रमेयरत्नमञ्जूषायां च 'नो चेव णं ते स मणयाणं' इत्येव पाठो दृश्यते। २. x (अ,ब)। ३. कलम (क,त्रि,हीवृ)। ४. कुसुभग (अ,ख,त्रि,ब)। ५. वग (अ,ब); x (त्रि, पुवृ,हीवृ)। ६. मूलबीजाति (क, ख, त्रि, प); मूलक: -- शाकविशेष: तस्य बीजानि, प्राकृतत्वात् कका रलोपसन्धिभ्यां निष्पत्तिः (शा)। ७. जी० ३ २७७ । ८. उवद्दवबाहाविरहिया (क,ख,त्रि,स,हीव) । ६. सं० पा०—णो चेव णं तेसिं मणयाणं आबाहं वाबाहं वा जाव पगइभद्दया । Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ उप्पति, पगइभद्दया णं ते वालगगणा पण्णत्ता समणाउसो' ! ॥ ४२. अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे डिबाइ वा डमराइ वा कलह -' बोलखार"-वेर'-महाजुद्धाइ वा महासंगामाइ वा महासत्थपडणाइ वा महापुरिसपडणाइ वा महारुधिरपणाति वा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, ववगयवेराणुबंधा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ४३. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे दुब्भूयाति वा कुलरोगाइ वा 'गामरोगाइ वा मंडलरोगाइ वा " पोट्ट-सीसवेयणाइ वा कण्णो-अच्छिणह- दंतवेयणाइ वा कासाइ वा सासाइ वा सोसाइ वा 'जराइ वा " दाहाइ वा अरिसाइ वा अजीरगाइ वा दओदराइ वा पंडुरोगाइ वा भगंदराइ वा एगाहियाइ वा बेयाहियाइ वा तेयाहियाइ वा उत्थाहियाइ वा 'धणुग्गहाइ वा इंदग्गहाइ वा " खंदग्गहाइ वा कुमारग्गहाइ वा जक्खग्गहाइ वा भूयग्गहाइ वा मत्थगसूलाइ वा हिययसूलाइ वा पोट्ट-कुच्छि - जोणिसूलाइ वा गाममाइ वा जाव सण्णिवेसमारीइ वा पाणक्खया जणक्खया कुलक्खया वसणब्भूयमारिआ ? णो इणट्ठे समट्ठे, ववगयरोगायंका णं ते मणुया' पण्णत्ता समणाउसो ! ।। ४४. तीसे णं समाए भारहे वासे मणुयाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं देसूणाई तिण्णि पलिओवमाई, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओवमाई ॥ ४५. तीसे णं समाए भरहे वासे मणुयाणं सरीरा केवइयं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं देसूणाई तिण्णि गाउयाई, उक्कोसेणं तिष्णि गाउयाई ॥ ४६. ते णं भंते! मणुया कि संघयणी पण्णत्ता ? गोयमा " ! वइरोसभणारायसंघयणी पण्णत्ता ॥ मणुयाणं सरीरा किंसंठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! समचउरंस ४७. तेसि णं भंते संठाणसठिया पण्णत्ता ॥ ४८. सिणं मणुयाणं बेछप्पणा पिट्ठिकरंडगसया पण्णत्ता समणाउसो " ! ॥ ४६. ते णं भंते! मणुया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छति ? कहि उववज्जंति ? गोयमा ! छम्मासावसेसाउया जुयलगं पसवंति, एगूणवण्णं राइंदियाई १. अत्र ग्रहयुद्धसूत्रं जीवाभिगमादिषु साक्षाद् दृष्टमपि एतत्सूत्रादर्शेषु न दृष्टमिति न व्याख्यायामप्यलेखि (शावृ) । २. पोली खारा (अ); बोली खारा ( ब ) | ३. वर (क, ख, त्रि, प, स ) । जंबुद्दीपणती अराति (त्रि); त्रपुकरः कुष्ठविशेषः सम्भाव्यते ( ही ) । ८.ग्गहाति वा ( अ, क,ख, त्रि,ब,स,पुवृ, ही वृ) ; इंदग्गहाति वा धणुग्गहाति वा ( प ) । ६. मणुयगणा ( अ, ब ) । ४. दुब्भुगगाइ (अब), दुब्भुरोगाति ( क,ख, त्रिस ) दुब्भूय रोगाति ( ही वृ ) 1 ५. पंडलरोगाति वा गामरोगाति वा ( अ, त्रि, ब, १२. × ( अ,ब ) । वृही) । ६. x ( प, शाबू ) । ७. दओअराति (अ,ब ) ; तओराति (क ) ; तउ १०. णं भंते ( प ) । ११. णं भंते ( प ) । १३. द्वितीयारके षष्ठमभक्तेनाहारार्थस्य वक्ष्यमाणत्वादिहानुक्तोप्यष्टमभक्तेनाहारार्थी द्रष्टव्यः ( ही ) | Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारो ३८३ सारक्खंति संगोवेंति, सारविखत्ता संगोवेत्ता कासित्ता छीइत्ता जंभाइत्ता अक्किट्ठा अयि अपरिताविया कालमासे कालं किच्चा देवलोएसु उववज्जंति, देवलोगपरिग्गहा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ५०. तीसे णं समाए रहे वासे कइविहा मणुस्सा अणुसज्जित्था ? गोयमा ! छव्विा, तं जहा - ह [ पम्म ? ] गंधा' मियगंधा' 'अममा तेतली सहा सणिचारी " ॥ ५१. तीसे णं समाए चउहि सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहि वण्णपज्जवेहिं अणंतेहि गंधपज्जवेहि अणतेहि रसपज्जवेहि अणंतेहि फासपज्जवेहि अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अणंतेहि संठाणपज्जवेहि अणतेहि उच्चत्तपज्जवेहिं अणतेहि आउपज्जवेहि अणंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहि अणंतेहि अगरुयलहुयपज्जवेहिं अणतेहि उट्ठाण-कम्म-बलवोरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे - परिहायमाणे, एत्थ णं सुसमा णामं समा काले पडिवज्जिसु समणाउसो ! ॥ ५२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए उत्तमकटुपत्ता ' भहस्स वासस्स के रिसए आगारभावपडोयारे होत्या ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूभागे होत्था, से हाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा, तं चैव जं सुसमसुसमाए पुग्वदण्णियं', णवरं - णाणत्तं चउधणुसहस्समूसिया एगे अट्ठावीसे पिट्ठिकरंडुकसए छट्टभत्तस्स आहारट्ठे, चउसट्ठि राइंदियाइं सारक्खति, दो पलिओवमाइं आऊ ँ, सेसं तं चेव ।। ५३. तीसे णं समाए चउव्विहा मणुस्सा अणुसज्जित्था, तं जहा - एका पउरजंघा कुसुमा सुसमणा ॥ ५४. तीसे णं समाए तिहि सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अणतेह वण्णपज्जवेहिं "अणंतेहि गंधपज्जवेहिं अणतेहि रसपज्जवेहिं अणतेहिं फासपज्जवेहि अणंतेहिं संघयणपज्जवेहि अणतेहि संठाणपज्जवेहिं अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहि अहि आउपज्जवेहि अणंतेहिं गरुयल हुयपज्जवेहिं अणतेहि अगरुयल हुयपज्जवेहि अणतेहि उट्ठाण - कम्म बल-वीरिय- पुरिसक्कार- परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए 'परिहायमाणे - परिहायमाणे" एत्थ णं सुसमदुस्समा णामं समा काले पडिवज्जिसु समणाउसो ! ॥ १. उमगंधा ( जी० ३ । ६३१ ) ; द्रष्टव्यः तस्यैव पादटिप्पणम् । २. विगयगंधा (अ, क,ख,स) ; मिगमयगंधा (त्रि) । ३. अमया सहीए ताली साणिच्चारी ( अ, ब ) । ४. अगुरुलहु ( त्रिप) । ५. उत्तिमदुपत्ता ( अ, ब ) ; उत्तिमकट्टपत्ताए (क, स, ही वृ) ; उत्तमट्टपत्ताए (त्रि ) । ६. जं २।७-५० । ७. आउं ( अ, क, त्रि, ब, स ) । ८. सं० पा० - वण्णपज्जवेहिं जाव अनंतगुण ६. परिहायमाणी २ ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स ) ५१ सूत्रस्थानुसारेण परिहायमाणे' इति पाठो युक्तोस्ति, हीरविजयवृत्तौ पुण्यसागरवृत्तौ च 'परिहीयमानः ' इति व्याख्यातमस्ति, 'उपाध्याय शान्तिचन्द्रेण 'परिहायमाणी' पाठ एव व्याख्यातः - - नवरं परिहायमाणी इत्यत्र स्त्रीलिङ्ग निर्देश: समा विशेषणार्थस्तेन समाकालं इति पदद्वयं पृथग् मन्तव्यम् अयमेवाशयः सूत्रकृता 'सा णं समे' त्युत्तरसूत्रे प्रादुश्चक्रे इति । Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ जंबुद्दीवपण्णत्ती ५५. सा णं समा तिहा विभज्जइ'-पढमे तिभाए, मज्झिमे तिभाए, पच्छिमे तिभाए॥ ५६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमदुस्समाए समाए पढममज्झिमेसु तिभाएसु भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, सो चेव गमो णेयव्वो', णाणत्तं-दो धणुसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, तेसिं च मणुयाणं चउसढि पिट्टिकरंडुगा, चउत्थभत्तस्स आहारत्थे समुप्पज्जइ, ठिई पलिओवम, एगुणासीइं राइंदियाइं सारक्खंति संगोवेंति जाव देवलोगपरिग्गहिया णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ५७. तीसे णं भंते ! समाए पच्छिमे तिभाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहाणामए आलिंगपुक्खरे इ वा जाव' णाणाविह पंचवण्णेहिं मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहाकित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहि चेव ।।। ५८. तीसे णं भंते ! समाए पच्छिमे तिभागे भरहे वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था ? गोयमा ! तेसिं मणयाणं छविहे संघयणे, छविहे संठाणे, बहूणि धणुसयाणि उद्धं उच्चत्तेणं, जहण्णेणं संखेज्जाणि वासाणि, उक्कोसेणं असंखेज्जाणि वासाणि आउयं पालेति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुस्सगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति 'बुझंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणमंत करेंति ।। ५६. तीसे णं समाए पच्छिमे तिभाए पलिओवमट्ठभागावसेसे, एत्थ णं इमे पण्णरस कुलगरा समुप्पज्जित्था, तं जहा–सम्मुती पडिस्सुई सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे विमलवाहणे चक्खुमं जसमं अभिचंदे चंदाभे पसेणई मरुदेवे णाभी उसभे त्ति ॥ ६०. तत्थ णं सम्मुति-पडिस्सुइ-सीमंकर-सीमंधर-खेमंकराणं-- एतेसिं पंचण्हं कुलगराणं हक्कारे णाम दण्डणीई होत्था । ते णं मणुया हक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिया विलिया वेड्डा" भीया तुसिणीया विणओणया चिट्ठति ।। ६१. तत्थ णं खेमंधर-विमलवाहण-चक्खुम-जसम-अभिचंदाणं-एतेसि णं पंचण्हं कुलगराणं मक्कारे णामं दंडणीई होत्था । ते णं मणुया मक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिया विलिया वेड्डा भोया तुसिणीया बिणओणया चिठ्ठति ।। ६२. तत्थ णं चंदाभ-पसेणइ-मरुदेव-णाभि-उसभाणं-एतेसि णं पंचण्हं कुलगराणं धिक्कारे णामं दंडणीई होत्था। ते णं मणुया धिक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिया १. भिज्जति (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। २. पुच्छा (अ,क,ख,त्रि,प,ब)। ३. जं२७-५० । ४. मणुयगणा (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ५. एतादृशे सूत्रसंरचने क्वचिदेव 'भंते' इति पदं आदर्शषु लभ्यते । ६. जी० ३।२७७। ७. ते मनुजा इत्यध्याहार्यम् (हीव) । ८. सं० पा०-सिझंति जाव सव्वदुक्खाणमंतं । ६. सुमती (त्रि,प,स,शावृ,हीवृ,पुवृपा)। १०. सुमति (त्रि,प)। ११. वड्डा (ख)। Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारो विलिया वेड्डा भीया तुसिणीया विणओणया चिट्ठति' ॥ ६३. णाभिस्स णं कुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए कुच्छिसि, एत्थ णं उस णामं अरहा लिए पढया पढमजिणे पढमकेवली पढमतित्थकरे पढमधम्मवरचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था ॥ ६४. तए णं उसमे अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवास मज्झावसइ', अज्झावसित्ता ते पुव्वसय सहस्साई महारायवासमज्झावसइ, तेवट्ठि पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावतर कलाओ', चोसट्ठि महिलागुणे सिप्पसयं च कम्माणं तिण्णि वि पयाहियाए उवदिसइ, उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचाइ, अभिसिंचित्ता तेसीइं पुव्वसयसहस्साई महाराय - वासमज्झावसइ, अज्झावसत्ता जेसे गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले, तस्स णं चित्तबहुलस्स नवमीपक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे चइत्ता हिरण्णं चइत्ता सुवण्णं चइत्ता कोसं चइत्ता कोट्ठागारं चइत्ता बलं चइत्ता वाहणं चइत्ता पुरं चइत्ता अंतेउरं चइत्ता विउलधण - कणग- रयण-मणि- मोत्तिय संख सिल प्पवाल - रत्तरयण - संतसार - सावइज्जं विच्छड्डयित्ता विगोवइत्ता दायं " दाइयाणं परिभाएत्ता सुदंसणाए सीयाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे संखिय चक्किय-गंगलिय-मुहमंग लिय-पूस माणव 'वद्धमाणगआइक्खग"-लंख-मंख-घंटियगणेहिं', [गणा ? ] ताहि इट्ठाहि कंताहि पियाहि मणुष्णाहि मणामाहि ओरालाहि कल्लाणाहि सिवाहिं धण्णाहि मंगल्लाहि सस्सिरिया हि हिययगमणिज्जाहि हिययपल्हायणिज्जाहिं कण्णमणणिव्वुइकरीहि अपुणरुत्ताहि अट्ठसइयाहि वग्गूहि अणवरयं अभिनंदंताय अभिथुणंता य एवं वयासी - जय जय नंदा' ! जय जय भद्दा ! धम्मेणं, अभीए परीसहोवसग्गाणं, खंतिखमे भयभेरवाणं, धम्मे ते अविग्धं भवउत्ति कट्टु अभिनंदंतिय अभियुति य ॥ ६५. तए णं उसमे अरहा कोसलिए णयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे - पेच्छिज्जमाणे " " हिययमाला सहस्सेहि अभिणं दिज्जमाणे- अभिनंदिज्जमाणे मणोरहमालासहस्से हि १. संचिट्ठेति ( अ, ब, स ) 1 २. कुमारमासमझे वसति ( अ, क, ख, त्रि, प, स, पुवृ, शावृ, ही वृ) ; मज्झावसति ( पुवृपा, शावृपा ) अग्रेपि एवमेव । ३. द्रष्टव्यं औपपातिकस्य कलाविषयकं परिशिष्टम् । ४. रयणरत ( क, ख, स ) । ५. दाणं (त्रि) । ६. समाणग (क, ख, त्रि, ब, स ) 1 ७. आइख (ब) | ८. पडियगणेहि (ब); औपपातिके ( सू० ६८ ) 'खंडियगणा' इति प्रथमान्तः पाठो विद्यते । ३८५ अत्रापि प्रथमान्त एव पाठो युक्तोस्ति, किन्तु आदर्शषु तादृशः पाठो नोपलभ्यते, अतएव उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण इत्युल्लिखितम् — सूत्रे च आर्षत्वात् प्रथमार्थे तृतीया । ६. दीर्घत्वं च प्राकृतत्वात् (हीवृ ) । १०. सं० पा० – पेछिज्जमाणे एवं जाव णिग्गच्छइ जहा ओववाइए जाव आउल बोलबहुलं । अस्य पाठसंक्षेपस्य पूर्त्यर्थं औपपातिकस्य निर्देशः कृतोस्ति । असौ राठः औपपातिकसूत्रं वृत्तिगतवाचनान्तरं तथा प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तित्रयं सम्मुखीकृत्य पूरितः । Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ जंबुद्दीवपण्णत्ती विच्छिप्पमाणे-विच्छिप्पमाणे वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे-अभिथुव्वमाणे कंतिसोहग्गगुणेहिं पत्थिज्जमाणे-पत्थिज्जमाणे बहणं नरनारीसहस्साणं दाहिणहत्थेणं अंजलिमालासहस्साइं पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे मंजुमंजुणा घोसेणं आपडिपुच्छमाणे-आपडिपुच्छमाणे भवणपंतिसहस्साई समइच्छमाणे - समइच्छमाणे तंतीतलतालतुडियगीयवाइयरवेणं महुरेणं मणहरेणं जयसदुग्घोसविसएणं मंजुमंजुणा घोसेणं अपडिबुज्झमाणे कंदरगिरिविवरकुहरगिरिवरपासादुद्धघणभवणदेवकुलसिंघाडग -तिगच उक्कचच्चरआरामुज्जाणकाणणसभापवापदेसभागे पडियासयसहस्ससंकुलं करते हयहेसियहत्थिगुलगुलाइयरहघणघणसद्दमीसएणं महया कलकलरवेण जणस्स महुरेणं पूरयंते सुगंधवरकुसुमचुण्णउव्विद्धवासरेण कविलं नभं करते कालागुरुकंदुरुक्कतरुक्कधव निवहेणंजीवलोगमिव वासयंते समंतओ खुभियचक्कवालं - पउरजणबालं वुड्ढयपमुइयतुरियपहाविय - विउल° आउलबोलबहुलं णभं करेंते विणीयाए रायहाणीए मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता आसिय-संमज्जिय-सित्तसुइकपुप्फोवयारकलियं सिद्धत्थवणविउल रायमग्गं करेमाणे हयगयरहपहकरेण पाइक्कचडकरेण य मंदं मंदायं' उद्धत रेणुयं करेमाणे-करेमाणे जेणेव सिद्धत्थवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठवेइ, ठवेत्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेवाभरणालंकार ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव चउ हिं अट्टाहिं' लोयं करेइ, करेत्ता छठे भत्तेणं अपाणएणं आसाढाहि णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं खत्तियाणं चउहिं सहस्सेहिं सद्धि एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । ६६. उसमे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीबरधारी होत्था, तेण परं अचेलए॥ ६७. जप्पभिई च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, तप्पभिई च णं 'उसभे अरहा कोसलिए" णिच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जति, तं जहा-दिव्वा वा 'माणुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अणुलोमा वा । तत्थ पडिलोमा-वेत्तेण वा 'तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अणुलोमा-वंदेज्ज वा 'नमसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्माणेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं° पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे' सम्म सहइ 'खमइ तितिक्खइ° १. मंदं (क,ख,त्रि,प,स)। स, पत्र); केषुचिदादर्शषु 'उसभस्स णं अरहओ २. उद्धरेणुयं (अ,ब)। कोसलिए वोटकाए' इत्यादि पाठो दृश्यते ३ मुट्ठीहि (क); मुट्ठाहिं (ब)। तत्रान्वयाभावात विभक्तिपरिणामो लेखकदोषो ४. 'आसाढाहिं' ति आषाढशब्देन उत्तराषाढा पदैक वान्यथा संगति वा घटनीया (हीव) । देशे पदसमुदायोपचारात् पंचउत्तरासाढे' त्ति ६. सं० पा०—दिव्वा वा जाव पडिलोमा। वक्ष्यमाणत्वाच्च बहुत्वमार्यत्वात् सूत्रानु- ७. सं० पा० वेत्तेण वा जाव कसेण ! लोम्याच्च उत्तराषाढानक्षत्रेण योगमुपागते. ८. सं० पा०-वंदेज्ज वा जाव पज्जुवासेज्ज। नार्थाच्चन्द्रेणेति योज्यम् (हीवृ)। ६. उत्पन्नानिति गम्यम् (ही)। ५. उसभस्स अरहओ कोसलियस्स (अ,क,ख,प, १०. सं० पा०-सहइ जाव अहियासेइ । Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारो ३८७ अहियासेइ ॥ ६८. तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए' 'भासासमिए एसणासमिए आयाणभंड-मत्तणिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल पारिट्ठावाणियासमिए मणसमिए वइसमिए कायसमिए मणगुत्ते' वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्ति दिए° गुत्तबंभयारी अकोहे' 'अमाणे अमाए° अलोहे संते पसंते उवसंते परिणिव्वुडे छिण्णसोए निरुवलेवे संखमिव निरंजणे, जच्चकणगमिव जायरूवे, आदरिसपलिभागे इव पागडभावे, कुम्मो इव' गुत्तिदिए, पुक्खरपत्तमिव निरुवलेवे, गगणमिव निरालंबणे, अणिले इव णिरालए, चंदो इव सोमदंसणे, सूरो विव तेयस्सी, विहगो विव अपडिबद्धगामी, सागरो विव गंभीरे, मंदरो विव अकंपे, पुढवी विव सव्वफासविसहे, जीवो विव अप्पडिहयगती॥ ६६. णत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे। ‘से पडिबंधे चउविहे" भवति, तं जहा-दव्वओ खंत्तओ कालओ भावओ। दव्वओ-इह खलू माया मे पिया मे भाया में भगिणी में भज्जा मे पत्ता मे धया मे नत्ता मे सुण्डा मे सही मे सयण संगंथसंथया मे हिरण्णं मे सुवण्णं मे •धणं मे धण्णं मे कंसं मे दूस मे विपुलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तियसंख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार-सावतेयं मे उवगरणं मे । अहवा समासओ सच्चित्ते वा अचित्ते वा मीसए वा दव्वजाए सेवं तस्स ण भवइ । खेत्तओ. गामे वा णगरे वा अरण्णे वा खेत्ते वा खले वा गेहे वा अंगणे वा एवं तस्स ण भवइ। कालओ-थोवे वा लवे वा मुहुत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा उऊ वा अयणे वा संवच्छरे वा अण्णयरे वा दीहकालपडिबंधे एवं तस्स ण भवइ । भावओ-कोहे वा •माणे वा मायाए वा लोहे वा भए वा हासे वा एवं तस्स ण भवइ ।। ७०. से णं भगवं वासावासवज्जं हेमंत-गिम्हासु गामे एगराइए, णगरे पंचराइए, ववगयहास-सोग-अरइ-भयपरित्तासे णिम्ममे णिरहंकारे लहुभूए अगंथे वासीतच्छणे अदुट्ठ, चंदणाणुलेवणे अरत्ते, लेलृमि कंचणंमि य समे, इहपरलोए य अपडिबद्धे, जीवियमरणे निरवकंखे संसारपारगामी कम्मसंगणिग्घायणट्ठाए अब्भुट्ठिए विहरइ ॥ ७१. तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स एगे वाससहस्से विइक्कते १. सं० पा०-ईरियासमिए जाव पारिट्ठाव- णियासमिए । २. सं० पा०—मणगुत्ते जाव गुत्तबंभयारी। ३. सं० पा०-अकोहे जाव अलोहे । ४. निरंगणे (ब)। ५. जच्चकणगं पिव (क,स); जच्चकणगं व संथुयं (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १०. सं० पा०---सुवष्णं मे जाव उवगरणं। उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण अत्र एका टिप्पणी कृतास्ति सा च यावत्पदपूर्तये उल्लेखनीयास्ति—अयं च यावत्पदसङ्ग्रहोऽदृष्टमूलकत्वेन मयैव सिद्धान्तशैल्या प्राकृतीकृत्य स्थानाशन्यतार्थं लिखितोस्ति तेन सैद्धान्ति करेतन्मूलपाठगवेषणायामुद्यमः कार्यः । ११. सं० पा०-कोहे वा जाव लोहे । १२. °हस्स (अ,ख,ब)। ६. °तलिभागे (ख); °पडिभागे (प)। ७. विव (ब)। ८. x (अ,क,ख,त्रि,ब,पुवृ,शावृ,हीवृ)। ६. सं० पा०-भगिणी मे जाव संगंथसंथुया । Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ जंबुद्दीवपण्णत्ती समाणे पुरिमतालस्स नगरस्स बहिया 'सगडमुहंसि उज्जाणंसि" णग्गोहवरपायवस्स अहे झाणंतरियाए वट्टमाणस्स फग्गुणबहुलस्स इक्कासीए पुव्वण्हकालसमयंसि अट्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं उत्तरासाढाणक्खत्तणं' जोगमवागएणं अणत्तरेणं नाणेणं अणत्तरेणं दंसणेणं अणुत्तरेणं चरित्तेणं अणुत्तरेणं तवेणं बलेणं वीरिएणं आलएणं विहारेणं भावणाए खंतीए गुत्तीए मुत्तीए तुट्ठीए अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं सुचरियसोवचियफलणिव्वाणमग्गेणं" अप्पाणं भावेमाणस्स अणंते अणुत्तरे णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने, जिणे जाए केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी सणेरइयतिरियनरामरस्स लोगस्स पज्जवे जाणइ पासइ, तं जहा-आगई गई ठिइं उववायं भुत्तं कडं पडिसेवियं आवीकम्म रहोकम्म तं तं काल मणवइकाइए जोगे एवमादी जीवाणवि सव्वभावे अजीवाणवि सव्वभावे मोक्खमग्गस्स विसुद्धतराए भावे जाणमाणे पासमाणे, एस खलू मोक्खमग्गे 'मम अण्णेसि" च जीवाणं हियसुहणिस्सेसकरे सव्वदुक्खविमोक्खणे परमसुहसमाणणे भविस्सइ॥ ७२. तते णं से भगवं समणाणं निग्गंथाण य णिग्गंथीण य पंच महव्वयाइं सभावणगाइं छच्च जीवणिकाए धम्मे देसमाणे विहरति, तं जहा-पुढविकाइए भावणागमेणं पंच महव्वयाइं सभावणगाइं भाणियव्वाई। ७३. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स चउरासीति गणहरा होत्था । ७४. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स उसभसेणपामोक्खाओ चुलसीइं समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था । ७५. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स बंभी-सुंदरीपामोक्खाओ तिण्णि अज्जियासयसाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था ॥ ७६. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स सेज्जंसपामोक्खाओ तिण्णि समणोवासगसयसाहस्सीओ पंच य साहस्सीओ उक्कोसिया समणोवासगसंपया होत्था । ७७. उसभस्स णं अरहओ कोस लियस्स सुभद्दापामोक्खाओ पंच समणोवासियासयसाहस्सीओ चउपण्णं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियासंपया होत्था । ७८. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खरसन्नि १, सगडामुहउज्जाणंसि (ब)। २. उत्तरासाढणक्खत्तेणं (त्रि, ब)। ३. सं० पा०—नाणेणं जाव चरित्तेणं। ४. एतत्पदं सर्वत्र संयोजनीयम् । ५. °सोबच्चफले णेव्वाण° (अ, ब)। ६. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुत्,हीव)। ७. ममयमण्णेसि (ब)। ८. धम्म (ख,त्रि,प,स,पुत्र); धम्मे (पुत्पा) । ६. आ० चू० १५५४२-७८ । १०. पर्युषणाकल्पे (सू० १६७) 'चउरासीइं गणा चउरासीइं गणहरा' इतिपाठो लभ्यते । उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण अस्मिन् विषये प्रस्तुतसूत्रस्य जीर्णादर्शपि एतादृशस्य पाठस्योल्लेख: कृतोस्ति- जस्स जावइया गणहरा तस्स तावइया गणा' इति वचनाद् गणाः सूत्रे साक्षादनिर्दिष्टा अपि तावन्त एव बोध्याः, क्वचिजजीर्णप्रस्तुतसूत्रादर्श 'चउरासीति गणा गणहरा होत्था' इत्यपि पाठो दृश्यते । Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ati arart ३८६ वाईणं जिणो विव अवितहं वाकरेमाणाणं' चत्तारि चउद्दसपुव्वीसहस्सा अट्टमा यसया उक्कोसिया चउदसपुव्वीसंपया होत्या ।। ७६. उसभस्स णं अरहओ कोसलियम्स णव ओहिणाणिसहस्सा उक्कोसिया ओहि - ाणिसंपया होत्था || ८०. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स' - वीसं जिणसहस्सा, वीसं वेउव्वियसहस्सा छच्च सया उक्कोसिया', बारस विउलमईसहस्सा छच्च सया पण्णासा, बारस वाईसहस्सा छच्च सया पण्णासा ॥ ८१. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स गइकल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभद्दाणं बावीसं 'अणुत्तरोववाइयाणं सहस्सा" णव य सया ॥ ८२. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स वीसं समणसहस्सा सिद्धा, चत्तालीसं अज्जियासहस्सा सिद्धा - सद्वि अंतेवासीसहस्सा सिद्धा ॥ ८३. अरहओ णं उसभस्स बहवे अंतेवासी अणगारा भगवंतो अप्पेगइया मासपरियाया एवं जहा ओववाइए सच्चेव' अणगारवण्णओ जाव' उड्ढं जाणू अहोसिरा झाणगया संजणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरति ॥ ८४. अरहओ णं उसभस्स दुविहा अंतकरभूमी होत्या, तं जहा - जुगंतकरभूमी य परियायत करभूमी । जुगंतकरभूमी जाव असंखेज्जाई पुरिसजुगाई, परियायंत करभूमी अंतमुत्तपरियाए अंतमकासी ॥ ८५. उसमें णं अरहा पंचउत्तरासाढे अभीइछट्ठे होत्था, तं जहा उत्तरासादाहिं ४. अणुत्तरोववाइय सहस्सा ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) ; 'अणुत्तरोववाइय' ति षष्ठी बहुवचनलोपः प्राकृतत्वात् (पुवृ) । ५. सच्चेव वया ( अ ) ; सव्वओ (क, ख, त्रि, प ) ; सच्चेव वत्तव्वया ( ब ) । सर्व ( शावृहीवृ) | ६. ओ० सू० २३-४५ । ७. कडभूमी (त्रि ) सर्वत्र । ८. पर्युषण कल्पे ( सू० १६० ) चउउत्तरासाढे' इति प्रतिपादकं सूत्रमस्ति, यथा- तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभेणं अरहा कोसलिए चउउत्तरासाढे अभी पंचमे होत्था, तं जहा - उत्तरासादाहि चुए चइत्ता गब्भं वक्कते । उत्तरासाढाहिं जाए। उत्तरासादाहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए। उत्तरासाढाहि अणते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणो कसिणे पडिपुणे केवलवरणाणदंसणे समुप्पन्ने । अभीइणा परिनिव्वए । १. वागरमाणाणं ( प ) । २. अतः परं सर्वेष्वपि आदर्शेषु संक्षिप्तपाठो लभ्यते । पर्युषणाकल्पे ( सू० १७४-१७७ ) पूर्णपाठः उपलब्धोस्ति, स चैवम् - १७४ उस्स णं अरहओ कोसलियम्स वीससहस्सा केवलणाणी उक्कोसिया संपया होत्था ॥ १७५ उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स वीससहस्सा छच्च सया वेउव्वियाणं उक्कोसिया संपया होत्या ।। १७६. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स बारस सहस्सा छच्च सया पन्नासा विउलमणं अड्ढाज्जे दीवस मुद्देसु सण्णीणं पंचिदियाणं पज्जत्तगाणं मणोगए भावे जाणमाणाणं पास माणा उक्कोसिया विउलम संपया होत्था ।। १७७. उसभस्त णं अरहओ कोसलियस्स बारस सहस्सा छच्च सया पन्नासा वाईणं संपया होत्था ॥ ३. उत्कृष्टा सम्पदभूदिति सर्वत्र योज्यम् (हीवृ ) । Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० जंबुद्दीपण चुए चइता गब्भं वक्ते, उत्तरासाढाहिं जाए, उत्तरासाढाहिं रायाभिसेयं पत्ते, उत्तरा - साढाहि मुंडे भत्ता अगाराओ' अणगारियं पव्वइए, उत्तरासाढाहि अनंते' अणुत्तरे णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणं पडिपुण्णे केवलवरताणदंसणे समुप्पन्ने, अभीइणा परिणि ॥ ८६- उसभे णं अरहा कोसलिए वज्जरिसहनारायसंघयणे समचउरंससंठाणसंठिए पंच धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था || ८७. उसमे णं अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साई कुमारवासमज्झावसित्ता', पुव्वसयहस्साइं रज्जवासमज्झावसित्ता, तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं अगारवास मज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ॥ ८८. उसमे णं अरहा कोसलिए एगं वाससहस्सं छउमत्थपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसय सहस्सं वाससहस्सूणं * केवलिपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउ णित्ता, चउरासीइं पुव्वसय सहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जेसे हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे माहबहुले, तस्स णं माहबहुलस्स तेरसीपक्खेणं दसह अणगारसहरसेहिं सद्धि संपरिवुडे अट्ठावयसेलसिहरंसि चोदसमेणं भत्तेणं अपाणएणं संपलियंकणिसणे पुव्वण्हकालसमयंसि अभीइणा णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं सुसमद्समाए समाए गुणणतीहि पक्खेहि सेसेहि कालगए वीइक्कते समुज्जाए छिण्णजाइ-जरा-मरणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतकडे परिनिव्वुडे' सव्वदुक्खप्पी || ८६. जं समयं च णं उसमे अरहा कोसलिए कालगए वीइक्कंते समुज्जाए छिण्णजाइजरा-मरण-बंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतकडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे, तं समयं च णं सक्कर देविंदस्स देवरण्णो आसणे चलिए || ९०. तणं से सक्के देविदे देवराया आसणं चलियं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंजइ, परंजित्ता भयवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता एवं वयासी- परिणिव्वुए खलु बुदी भर वासे उसके अरहा कोसलिए, तं जीयमेयं तीयपच्चप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविदाणं देवराईणं तित्थगराणं परिनिव्वाणमहिम करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भगवतो तित्थगरस्स परिनिव्वाणमहिमं करेमित्ति कट्टु एवं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता चउरासीईए सामाणिय साहस्सीहि, तायत्तीसाए तावत्तीसएहिं,' चउहिं लोगपाले हिं" • अहि अग्गमहिसीहि सपरिवाराहि तिहिं परिसाहि सतह अणिएहि सतह अणियाहिवईहि चउहिं चउरासीईहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहि, अण्णेहि य बहूह सोहम्मकप्पवासीहि मणिएहिं देवेहि देवीहि यसद्धि संपरिवुडे ताए उक्किट्ठाए" तुरियाए चवलाए चंडाए १. आकाराओ ( ब ) । २. सं० पा०-- अणते जाव समुत्पन्ने । ३. ज्वसित्ता (खत्रि, प, स ) सर्वत्र । ४. स्सूण ( अ, क, ख, ब, स ) । ५. उतिहिं ( अ, ब ) ; ६. × ( अ, ब ) । उएहिं (त्रि, प ) । ७. सं० पा० -वीइक्कंते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे । ८. जीवमेतं ( अ, ब ) | ६. तायत्तीस एहिं (त्रि, प, स ) । १०. सं० पा० - लोगपालेहिं जाव चउहि । ११. सं० पा० - उक्किट्ठाए जाव तिरियमसंखे जाणं । Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीमो वक्खारो सिग्घाए उद्धृयाए जइणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए° 'तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झमज्झणं वीईवयमाणे-वीईवयमाणे" जेणेव अट्ठावयपव्वए, जेणेव भगवओ तित्थगरस्स सरीरए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विमणे णिराणंदे अंसुपुण्णणयणे तित्थयरसरीरयं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे' •णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलियडे पज्जुवासइ॥ १. तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविंदे देवराया उत्तरद्धलोगाहिवई अट्ठावीसविमाणसयसहस्साहिवई सूलपाणी वसहवाहणे सुरिंदे अरयंवरवत्थधरे जाव' विउलाई भोगभोगाइं भुजमाणे विहरइ ।। ६२. तए णं तस्स ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो आसणं चलइ ।। ६३. तए णं से ईसाणे देविदे देवराया आसणं चलियं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता भगवं तित्थगरं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता जहा सक्के नियगपरिवारेणं भाणेयव्वो जाव पज्जुवासइ॥ ६४. एवं सव्वे देविंदा जाव अच्चुए णियगपरिवारेणं आणेयव्वा । एवं जाव भवणवासीणं इंदा, वाणमंतराणं सोलस, जोइसियाणं दोणि नियगपरिवाराणेयव्वा ।। ६५. तए णं सक्के देविदे देवराया बहवे भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिए देवे एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! णंदणवणाओ सरसाइं गोसीसवरचंदणकट्ठाई साहरह, साहरित्ता तओ चियगाओ' रएह - एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणहराणं, एगं अवसेसाणं अणगाराणं ।। ६६. तए णं ते भवणवइ- वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा णंदणवणाओ सरसाइं गोसीसवरचंदणकट्टाई साहरंति, साहरित्ता तओ चियगाओ रएंति-एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणहराणं, एग अवसेसाणं अणगाराणं ।।। ६७. तए णं से सक्के देविंदे देवराया आभिओगे देवे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! खीरोदसमुद्दाओ खीरोदगं साहरह ।। ६८. तए णं ते आभिओगा देवा खीरोदसमुद्दाओ खीरोदगं साहरंति ।। ६६. तए णं से सक्के देविदे देवराया तित्थगरसरीरगं खीरोदगेणं ण्हाणेति, ण्हाणेत्ता सरसेणं गोसीसवरचंदणेणं अणुलिपइ, अणुलिपित्ता हंसलक्खणं पडसाडयं णियंसेइ, णियंसेत्ता सव्वालंकारविभूसियं करेति ।। १००. तए णं ते भवणवइ"- वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा 'गणहरसरीरगाई अणगारसरीरगाणि य"१ खीरोदगेणं हार्वेति, पहावेत्ता सरसेणं गोसीसवरचंदणणं १. वीईवयमाणे वीईवयमाणे तिरियमसंखेज्जाणं ७. सं० पा०-भवणवइ जाव वेमाणिया। दीवसमुद्दाणं मझमज्झेणं (पुत्,शावृ,हीव)। ८. अभिजोग्गिया (अ,क,ब); आभिओग्गिया २. सं० पा०-सुस्सूसमाणे जाव पज्जुवास इ। (क); आभियोगिया (त्रि, स)। ३. पण्ण० २०५१ । ६. पडगं (अ,ब)। ४. जं० २१६०,६१। १०. सं० पा०-भवणवइ जाव वेमाणिया। ५. पण्ण० २।३०-६३ । ११. गणहरअणगारसरीराइं (त्रि,हीव)। ६. चिइगाओ (प) सर्वत्र। १२. ण्हवेंति (ब)। Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९२ जंबुद्दीवपण्णत्ती अणुलिपंति, अणुलिपित्ता अहताइं दिव्वाइं देवदूसजुयलाई णियंसंति, णियंसित्ता सव्वालंकार-विभूसियाइं करेंति ॥ १०१. तए णं से सक्के देविदे देवराया ते बहवे भवणवइ-वाणमंतर-जोइसवेमाणिए देवे एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! ईहामिग-उसभ-तुरग'- णरमगर-विहग-वालग-किण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय -भत्तिचित्ताओ तओ सिबियाओ विउव्वह -- एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणहराणं, एगं अवसेसाणं अणगाराणं॥ १०२. तए णं ते बहवे भवणवइ'- वाणमंतर-जोइस-°वेमाणिया देवा तओ सिबियाओ विउव्वंति-एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणहराणं, एगं अवसेसाणं अणगाराणं ।। १०३. तए णं से सक्के देविदे देवराया विमणे णिराणंदे अंसुपुण्णणयणे भगवओ तित्थगरस्स विणट्ठजम्मजरामरणस्स सरीरगं सीयं आरुहेति, आरुहेत्ता चियगाए ठवेइ॥ १०४. तए णं बहवे भवणवइ. वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा गणहराणं अणगाराण य विणट्ठजम्मजरामरणाणं सरीरगाइं सीयाओ' आरुहेंति, आरुहेत्ता चियगाए ठति ॥ १०५. तए णं से सक्के देविदे देवराया अग्गिकूमारे देवे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचियगाए 'गणहरचियगाए° अणगारचियगाए अगणिकायं विउव्वह, विउव्वित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ १०६. तए णं ते अग्गिकुमारा देवा विमणा णिराणंदा अंसुपुण्णणयणा तित्थगरचियगाए गणहरचियगाए अणगारचियगाए य अगणिकायं विउव्वति ॥ १०७. तए णं से सक्के देविंदे देवराया वाउकुमारे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचियगाए 'गणहरचियगाए अणगारचियगाए य वाउकायं विउव्वह, विउव्वित्ता अगणिकायं उज्जालेह, तित्थगरसरीरगं गणहरसरीरगाइं अणगारसरीरगाइं च झामेह ॥ १०८. तए णं ते वाउकुमारा देवा विमणा णिराणंदा अंसुपुण्णणयणा तित्थगरचियगाए गणहरचियगाए अणगारचियगाए य वाउक्कायं विउव्वंति, अगणिकायं उज्जालेंति, तित्थगरसरीरगं गणहरसरीरगाई अणगारसरीरगाणि य झामेंति ॥ १०६. तए णं से सक्के देविंदे देवराया ते बहवे भवणवइ" वाणमंतर-जोइस-वेमाणिए देवे एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचियगाए 'गणहरचियगाए' अणगारचियगाए य अगुरु -तुरुक्क"-घय-मधुं च कुंभग्गसो य भारग्गसो य साहरह। १,११. सं० पा०-भवणवइ जाव वेमाणिए। ६. सं० पा०-तित्थगरचियगाए जाव विउव्वंति। २. सं० पा०-तुरग जाव वणलयभत्तिचित्ताओ। १०. सं० पा० ...तित्थगरसरीरगं जाव अणगार३,४. सं० पा०-भवणवइ जाव वेमाणिया। सरीरगाणि । ५. सीयं (क,ख त्रि,प,स)। १३. x (अ,ब) । ६,७,८,१२. सं० पा०—तित्थगरचियगाए जाव १४. तुरक्कं (अ,ब)। अणगारचियगाए। Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ atrt arart २६३ ११०. तए णं ते भवणवइ'- 'वाणमंतर - जोइस-वेमाणिया देवा तित्थगर चिrगाए हरचिगाए अणगारचियगाए य अगुरु तुरुक्क - घय- मधुं च कुंभग्गसो य° भारग्गसो य साहति ॥ १११. तए णं से सक्के देविंदे देवराया मेहकुमारे देवे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचियगं गणहरचियगं' अणगारचियगं च खीरोदगेणं णिव्वावेह || गणहरचियगं अणगारचियगं च ११२. तए णं ते मेहकुमारा देवा तित्थगरचियगं खीरोदगेणं णिव्वावेंति ॥ ११३. तए णं से सक्के देविंदे देवराया भगवओ तित्थगरस्स उवरिल्लं दाहिणं सकह गेहइ, ईसाणे देविंदे देवराया उवरिल्लं वामं सकह गेण्हइ, चमरे असुरिंदे असुरराया हेट्ठिल्लं दाहिणं सकहं ण्हइ, बली वइरोयणिदे वइरोयणराया हेट्ठिल्लं वामं सकहं गेहइ, अवसेसा भवणवइ'-'वाणमंतर - जोइस' - वेमाणिया देवा जहारिहं अवसेसाई अंगमंगाईhs जिणभत्तीए, केइ जीयमेयंतिकट्टु, केइ धम्मोत्तिकट्टु - गेहंति ॥ ११४. तए णं से सक्के देविंदे देवराया बहवे भवणवइ' - ' वाणमंतर-जोइस'वेमाणिए देवे" एवं " वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सव्वरयणामए महइमहालए तओ चेइयथूभे करेह - एगं भगवओ तित्थगरस्स चियगाए, एगं गणहरचिय गाए, एगं अवसेसाणं अणगाराणं चिगाए || ११५. तणं ते बहवे' 'भवणवइ-वाणमंतर - जोइस - वेमाणिया देवा खिप्पामेव सव्वरयणामए महइमहालए तओ चेइथूभे कति ॥ ११६. तए णं ते बहवे भवणवइ" - वाणमंतर - जोइस' - वेमाणिया देवा तित्थगरस्स परिणिव्वाणमहिमं करेंति, करेत्ता जेणेव नंदीसरवरे दीवे तेणेव उवागच्छति ॥ ११७. तए णं से सक्के देविंदे देवराया पुरत्थिमिल्ले अंजणगपव्वए अट्ठाहियं महाहिमं करेति ॥ ११८. तए णं सक्क्स्स देविंदस्स देवरण्णो चत्तारि लोगपाला चउसु दहिमुहपव्वएसु" अट्ठाहियं महामहिमं करेंति ॥ ११६. ईसाणे देविदे देवराया उत्तरिल्ले अंजणगे अट्ठाहियं", तस्स लोगपाला चउसु दहिमुहेसु अट्ठाहियं । चमरो य दाहिणिल्ले अंजणगे, तस्स लोगपाला दहिमुहपव्वसु । बली पच्चत्थिमिल्ले अंजणगे, तस्स लोगपाला दहिमुहेसु ॥ १३ १२०. तणं बहवे भवणवइ" वाणमंतर जोइस-वेमाणिया देवा अट्ठाहियाओ १. सं० पा० भवणवइ जाव तित्यगर जाव भारग्गसो । २. सं० पा० - तित्थगरचियगं जाव अणगारचियगं । ३. सं० पा० - तित्थगरचियगं जाव णिव्वावेंति । ४. सगधं (अ, क,ख, ब, स ) ; सगहं (त्रि ) । ५,१०. सं० पा० भवणवइ जाव वेमाणिया । ६. सं० पा०- भवणवइ जाव वेमाणिया । ७. वेमाणिया देवा (अ, क, ख, त्रि,ब,स) । ८. जहारियं एवं (त्रि ) ६. सं० पा० - बहवे जाव करेंति । ११. दहिमुखगपव्वसु ( अ, क, ख, ब ) । १२. 'महामहिमं करती' ति शेषः, एवं सर्वत्रापि । १३. सं० पा० भवणवइ जाव अट्ठाहियाओ । Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ जंबुद्दीवपण्णत्ती महामहिमाओ करेंति, करेत्ता जेणेव साइं-साइं विमाणाई जेणेव साइं-साइं भवणाई जेणेव साओ-साओ सभाओ सुहम्माओ जेणेव सगा-सगा माणवगा चेइयखंभा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु जिण-सकहाओ पक्खिवंति, पविखवित्ता अग्गेहिं वरेहि मल्लेहि य गंधेहि य अच्चेति, अच्चेत्ता विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति ।। १२१. तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कते अणंतेहि वण्णपज्जवेहि अणंतेहिं गंधपज्जवेहि अगतेहिं रसपज्जवेहिं अणंतेहिं फासपज्जवेहिं अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अणंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहि अणंतेहिं आउपज्जवेहि अणतेहि गरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बलवीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहि अणंतगुणपरिहाणीए° परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमसुसमाणामं समा काले पडिज्जिसु समणाउसो !॥ १२२. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्ख रेइ वा जाव' णाणाविहपंचवण्णेहि मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा- कत्तिमेहिं चेव अकत्तिमेहिं चेव ॥ १२३. तीसे णं भंते ! समाए भरहे वासे मणयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेसिं मणुयाणं छविहे संघयणे, छबिहे संठाणे, बहूई धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं, जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडि आउयं पालेंति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी' •अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुयगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति' 'बुज्झंति मुच्चंति परिणिव्वं ति° सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ।। १२४. तीसे णं समाए [भरहे वासे] तओ वंसा समुप्पज्जित्था, तं जहा–अरहंतवंसे चक्कवट्टिवंसे दसारवंसे ।। १२५. तीसे णं समाए [भरहे वासे] तेवीसं तित्थकरा, एक्का रस चक्कवट्टी, णव बलदेवा, णव वासु देवा समुप्पज्जित्था । १२६. तीसे णं समाए [भरहे वासे] एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहि ऊणियाए काले वीइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवहिं' 'अणंतेहिं गंधपज्जवेहि अणतेहिं रसपज्जवेहि अणंतेहिं फासपज्जवेहिं अणतेहिं संघयणपज्जवेहि अणंतेहिं संठाणपज्जवेहि अणंतेहि उच्चत्तपज्जवेहि अणतेहिं आउपज्जवेहिं अणंतेहि गरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं उठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहि अणंतगुण परिहाणोए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो !॥ १. सं० पा० ----वण्णपज्जवेहि तहेव जाव अणंतेहि उढाणकम्म जाव परिहायमाणे। २. जी० ३।२७७ । ३. पुवकोडी (अ,त्रि,प,ब)। ४. सं० पा०.-णिरयगामी जाव देवगामी। ५. सं० पा.-सिझंति जाव सव्वदुक्खाणमंतं । ६. सं० पा०-वण्णपज्जवेहिं तहेव जाव परिहाणीए। Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारी ३६५ १२७. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भक्स्सिइ, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा मुइंगपुक्खरेइ वा जाव' णाणाविहपंचवण्णेहि 'मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा-कत्तिमेहि चेव अकत्तिमेहिं चेव ॥ १२८. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स मणयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेसि मणयाणं छविहे संघयणे, छविहे संठाणे, बहुईओ रयणीओ उड्ढे उच्चत्तेणं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं साइरेगं वाससयं आउयं पालेंति,' पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणयगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वंति° सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ॥ १२६. तीसे णं समाए पच्छिमे तिभागे गणधम्मे पासंडधम्मे रायधम्मे जायतेए धम्मचरणे य बोच्छिज्जिस्सइ ।। १३०. तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले विइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं, अणंतेहिं गंधपज्जवेहिं अणंतेहिं रसपज्जवेहिं अणंतेहिं फासपज्जवेहि अणंतेहिं संघयणपज्जवेहि अणंतेहिं संठाणपज्जवेहि अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहि अणंतेहि आउपज्जवेहि अणंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहि अगरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं उट्ठाण-कम्मबल-वीरिय-पुरिसक्कार-परकम्मपज्जवेहिं अणंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दसमदसमणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो !॥ १३१. तीसे णं भंते ! समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! काले भविस्सई हाहाभूए भंभाभूए'कोलाहलभूए समाणुभावेण 'य णं खरफरुसधूलिमइला दुव्विसहा वाउला भयंकरा य वाया संवट्टगा य वाहिति । इह अभिक्खं धूमाहिति य दिसा समंता रउस्सला" रेणुकलुस-तमपडल-णिरालोया । समयलुक्खयाए य णं अहियं चंदा सीयं मोच्छिहिति, अहियं सूरिया तविस्संति। अदुत्तरं च णं गोयमा ! अभिक्खणं अरसमेहा विरसमेहा खा रमेहा खत्तमेहा" अग्गिमेहा विज्जुमेहा विसमेहा १. जी. ३।२७७ । ५. भागे (स)। २. सं० पा......णाणामणिपंच जाव कित्तिमेहिं । ६. सं० पा०-फासपज्जवेहिं जाव परिहायमाणे। ३. अत्र भविष्यदर्थे वर्तमानक्रियाप्रयोगः (ही); ७. उत्तिमट्ठपत्ताए (अ,ब); उत्तिमकट्ठपत्ताए अत्र पालयन्ति अन्तं कुर्वन्ति इत्यादौ भविष्य- (क,स)। कालप्रयोगे कथं वर्तमाननिर्देशः ? उच्यते, ८. हाहन्भूते (अ,क,ख,ब,स)। सर्वास्वप्यवसप्पिणीषु पञ्चमसमासु इदमेव ६. भंभन्भूए (भ० ७११७) । स्वरूपमिति नित्यप्रवृत्तवर्तमानकाले वर्तमान- १०. x (अ,त्रि,ब,पुव)। प्रयोगः (शावृ)। ११. रयोसला (अ,क,ब,स)। ४. सं० पा० --णिरयगामी जाव सव्वदुक्खाण- १२. खट्टमेहा (ख, पुवृपा, शावृपा)। मंतं। Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती असणिमेहा' अजवणिज्जोदगा वाहिरोगवेदणोदीरण-'परिणामसलिला अमणुण्णपाणियगा" चंडानिलपहत-तिक्खधारा-णिवातपउरं वासं वासिहिंति, जेणं भरहे वासे गामागरणगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासमगयं जणवयं,चउप्पयगवेलए, खहयरे पक्खिसंघ गामारण्णप्पयारणिरए तसे य पाणे बहुप्पयारे रुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-पवालंकुरमादीए तणवणस्सइकाइए ओसहीओ य विद्धंसेहिति, पव्वय-गिरि-डोंगरुत्थलभट्ठिमादीए य वेयड्डगिरिवज्जे विरावेहिति, सलिलबिल-'विसम-गड्ड-णिण्णुण्णयाणि य गंगासिंधुवज्जाइं समीकरहिति ॥ १३२. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स भूमीए केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! भूमी भविस्सइ इंगालभूया मम्मरभूया छारियभया' तत्तकवेल्लयभूया तत्तसमजोइभूया धूलिबहुला रेणुबहुला पंकबहुला पणयबहुला चलणिबहुला बहूणं धरणिगोयराणं सत्ताणं दुन्निकम्मा' यावि भविस्सई ॥ १३३. तीसे णं भंते ! समाए भरहे वासे मणुयाणं के रिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! मणुया भविस्संति दुरूवा दुवण्णा' दुग्गंधा दुरसा दुफासा अणिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुण्णा अमणामा हीणस्सरा दीणस्सरा अणिट्ठस्सरा अकंतस्सरा अपियस्सरा अमणुण्णस्सरा अमणामस्सरा अणादेज्जवयणपच्चायाता णिल्लज्जा कुड-कवडकलह-वह-बंध-वेरनिरया मज्जायातिक्कमप्पहाणा अकज्जणिच्चुज्जया" गुरुणिओग-विणयरहिया य विकलरूवा परूढणह-केस-मंसु-रोमा काला खर-फरुस-सामवण्णा" फुट्टसिरा कविलपलियकेसा" बहुण्हारुणिसंपिणद्ध-दुईसणिज्जरूवा संकुडियवलीतरंग-परिवेढिअंगमंगा जरापरिणयव्व थेरग-णरा पविरल-परिसडिय-दंतसेढी उब्भडघडामुहा" विसमणयणवंकणासा वंक"-वलीविगय"-भेसणमुहा ददु-किटिभ-सिब्भ-फुडियफरुसच्छवी चित्तलंगमंगा" १. x (अ,क,त्रि,प,ब,स); 'असणिमेह' त्ति १०. °णिच्चुज्जुता (अ,त्रि,प,ब,स) । क्वचित् (पुवृ); 'असणिमेहा' इत्यपि पदं ११. समवण्णा (अ); समावण्णा (प); ध्यामक्वचिद् दृश्यते (शावृ); भगवत्या (७.११७) वर्णा (पुवृपा, शावृपा); भगवत्या (७।११६) मपि एतत्पदं दृश्यते। मपि 'झामवष्णा' इति पदं दृश्यते । २. अपिबणिज्जोदगा (पुवृपा, शावृपा, भ० १२. फट्टसि रा (क,ख)। ७।११७)। १३. वलियकेसा (अ,क,ख,त्रि,ब)। ३. परिणामा सलिलसमणुण्णपाणियागा (अ,ब)। १४. दुईसणीयरूवा (क,ख)। ४. गड्ड-दुग्गविसम (भ० ७.११७); क्वचिद् १५. उब्भडघाडामुहा (क, स, पुवृपा, शावृपा, दुर्गपदमपि दृश्यते (शावृ)। हीवृपा)। ५. छारिभूया (त्रि)। १६. 'वंधा (अ,ब); 'वंग (क,ख,स,पुवृपा, ६. दुन्निग्गमा (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पूर्व,हीव) । शावृपा)। ७. दुव्वण्णा (क,ख,स)। १७. पलीविगय (अ)। ८. दुगंधा (अ,प,ब)। १८. चित्तलगा (पुवहीवृ, भ० ७.११६)। ६. °पच्चाया (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीमो वक्खारो कच्छृखसराभिभूया खरतिक्खणक्ख-कंडूइय-विक्खयतणू' टोलाकिति'-विसमसंधिबंधणउक्कुडुयट्ठियविभत्त-दुब्बल-कुसंघयण-कुप्पमाणकुसंठिया कुरुवा कुट्ठाणासण-कुसेज्ज-कुभोइणो असुइणो अणेगवाहिपरिपीलिअंगमंगा खलंत-विब्भलगई णिरुच्छाहा सत्तपरिवज्जिता विगयचेट्ठा नट्ठतेया अभिक्खणं सीउण्ह'-खरफरुसवायविज्झडिय-मलिणपंसुरओगुंडिअंगमंगा बहुकोहमाणमायालोभा बहुमोहा असुभदुक्खभागी ओसण्णं धम्मसण्ण-सम्मत्तपरिभट्ठा उक्कोसेणं रयणिप्पमाणमेत्ता सोलस-वीसइवास-परमाउसो' बहुपुत्तणत्तुपरियाल-पणयबहला गंगासिंधओ महाणईओ 'वेयडढं च पव्वयं" नीसाए बावत्तरि णिगोया बीयं बीयमेत्ता बिलवासिणो मणुया भविस्संति ।। १३४ ते णं भंते ! मण्या किमाहारिस्संति ? गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं गंगासिंधुओ महाण ईओ रहपहमित्तवित्थराओ अक्खसोयप्पमाणमेत्तं जलं वोज्झिहिंति, सेवि य णं जले बहुमच्छकच्छभाइण्णे, णो चेव णं आउबहुले भविस्सइ। तए णं ते मणया सूरुग्गमणमुहत्तंसि य सूरत्थमणमुहुत्तंसि य बिलेहितो णिद्धाइरसंति, णिद्धाइत्ता मच्छकच्छभे थलाइं गाहेहिंति, गाहेत्ता सीयातवतत्तेहिं मच्छकच्छभेहिं इक्कवीसं वाससहस्साई वित्ति कप्पेमाणा विहरिस्संति ॥ १३५. ते णं भंते ! मणुया णिस्सीला णिव्वया णिग्गुणा णिम्मेरा णिप्पच्चक्खाणपोसहोववासा ओसण्णं मंसाहारा मच्छाहारा खोद्दाहारा कुणिमाहारा कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववजिहिति ? गोयमा ! ओसण्णं णरगतिरिक्खजोणिएसु उववज्जिहिंति ॥ १३६. 'ते णं भंते !'१ सीहा वग्घा वगा दीविया अच्छा तरच्छा परस्सरा सियाल - बिराल-सुणगा कोलसुणगा ससगा चित्तलगा* चिल्ललगा ओसण्णं मंसाहारा मच्छाहारा खोद्दाहारा कुणिमाहारा कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिंति ? कहिं उववजिहिति ? गोयमा ! ओसण्णं णरगतिरिक्खजोणिएसु उववज्जिहिति ॥ १३७. ते णं भंते ! ढंका कंका पिलगा मदुगा" सिही ओसण्णं मंसाहारा •मच्छा१. विक यतणू (प,शावृ)। १०. डगडाहारा (अ,ब); खुद्दाहारा (क,ख); २. डोलाकिति (अ); डोलागिति (क,ख); खुड्डाहारा (त्रि,प); केषुचिदादर्शषु अत्र टोलागिति (त्रि,स); टोलागति (प); ‘गड्डाहारा' इति दृश्यते, स लिपिप्रमाद एव टोलगति (पुत्पा, शावृपा, हीवृपा, भ० सम्भाव्यते पञ्चमाङ्गे सप्तमशते षष्ठोटेशे ७.११६)। दुष्षमदुष्षमावर्णनेऽदृश्यमानत्वात् (शावृ)। ३. सीयउण्ह (क,ख,त्रि,ब,स) । ११. तीसे णं भंते समाए (शा, ही)। ४. परायुसो (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १२. विगा (त्रि, प, स)। ५. पणयपरियालबहुला (क,ख,त्रि,ब,स); °पुत्त- १३. सरभसियाल (क,ख,त्रिप)। ____णत्तुपरियालबहुला (पुवृपा,हीवृपा)। १४. चित्तगा (ख,त्रि,प); x (स)। ६. वेयड्ढपव्वयं च (ब)। १५. मद्दूई (अ,ब); मदुई (क,ख); मड्डई ७. णिओता (अ,क,ख,ब,स)। (त्रि); मग्गुगा (प); मद् (स)। ८. बीतं (अव)। १६. सं० पा०-मंसाहारा जाव कहि । ६. आवबहुले (अ,व)। Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ जंबुद्दीवपण्णत्ती हारा खोद्दाहारा कुणिमाहारा कालमासे कालं किच्चा कहि गच्छिहिति ? कहि उववज्जिहिंति ? गोयमा ! ओसण्णं णरगतिरिक्खजोणिएसु' उववज्जिर्हिति ॥ १३८. तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्से हि काले वीइक्कते आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सावणबहुलपडिवए बालवकरणंसि अभीइणक्खत्ते चोट्स पढमसमये अणतेहि वण्णपज्जवेहिं' 'अणंतेहि गंधपज्जवेहिं अणंतेहि रसपज्जवेहि अनंतेहिं फासपज्जवेहि अणतेहि संघयणपज्जवेहि अणंतेहि संठाणपज्जवेहि अनंतेहि उच्चत्तपज्जवेहिं अणंतेहिं आउपज्जवेहिं अणंतेहिं गरुयल हुयपज्जवेहिं अणतेहिं अगरुयल हुयपज्जवेहिं अणतेहि उट्ठाण - कम्म-बल-वीरिय- पुरिसक्कार- परक्कमपज्जवेहि अनंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं दूसमद्समाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो ! ॥ १३६. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभाव पडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! काले भविस्सइ हाहाभूए भंभाभए एवं सो चेव दूसमसमावेढो यव्व ॥ १४०. तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले विइक्कंते अणतेहिं वण्णपज्जवेहिं' 'अणंतेहिं गंधपज्जवेहि अणंतेहि रसपज्जवेहि अणंतेहिं फासपज्जवेहि अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अणतेहिं संठाणपज्जवेहिं अणतेहि उच्चत्तपज्जवेहिं अहिं आउपज्जवेहि अणंतेहिं गरुयल हुयपज्जवेहि अणतेहिं अगरुयल हुयपज्जवेहि अणतेहि उट्ठाण - कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार- परक्कमपज्जवेहि अनंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे- परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं दूसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो ! ।। १४१. तेणं कालेणं तेणं समएणं पुक्खलसंवट्टए णामं महामे हे पाउब्भविस्सइ - भरहप्पमाणमेत्ते आयामेणं, तदणुरूवं च णं विक्खंभ - बाहल्लेणं' । तए णं से पुक्खल संवट्टए महामे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुयाइस्सइ, पविज्जुयाइत्ता खिप्पामेव जुग - मुसल-मुट्ठिष्पमाणमेत्ताहिं धाराहि ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासिस्सइ, जेणं भरहस्स वासस्स भूमिभागं इंगालभूयं मुम्मुरभूयं छारियभूयं तत्तकवेल्लुगभूयं' तत्तसमजोइभूयं णिव्वाविस्सति ॥ १० १४२. तंसि च णं पुक्खल संवट्टगंसि महामे हंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि, एत्थ णं खीरमे णामं महामेहे पाउन्भविस्सइ - भरप्पमाणमेत्ते आयामेणं, तदणुरूवं च णं विक्खंभबाहल्लेणं । तए णं से खीरमेहे णामं महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ " पतणतणाइत्ता खप्पामेव विज्जुया इस्सइ, पविज्जुयाइत्ता' खिप्पामेव जुग-मुसल-मुट्ठि" प्पमाणमेत्ताहि १. तिरिक्खजाव ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स ) । २. आगमेसाए (अ, ब ) । ३. सं० पा० - वण्णपज्जवेहि जाव अनंत' । ४. वेढओ (१) । ५. जं० २।१३१-१३७ ॥ ६. सं० पा० . वण्णपज्जवेहिं जाव णंतगुण° । ७. तदाणुरुवं (अ, क, ख, प, ब, स ) सर्वत्र । ८. बाहुल्लेणे (अ, ब ) । ६. विल्लय° (क); 'कविलग° (ख); 'कवेल्ल (त्रि,व); कवेलूय° ( प ) । १०. णिव्ववेसइ (अव); णिव्ववेस्सति (क, प ) ; णिव्ववेस्सति (ख); णिव्वावेस्सति (त्रि ) ११ सं० पा० पतणतण इस्सर जाव खिप्पामेव । १२. सं० पा० - जुगमुसलमुट्ठि जाव सत्तरत्तं । Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ बक्खारो REE धाराहि ओघ मेघ सत्तरत्तं वासं वा सिरसइ, जेणं भरहरस वासस्स भूमीए वण्णं गंध रसं फासं च जणइस्सइ ॥ १४३. तंसि च णं खीरमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि, एत्थ णं घयमेहे णामं महामहे पाउ भविस्सइ - भरहापमाणमेत्ते आयामेणं, तदणुरुवं च णं विक्खंभ-वाहलेणं । तए णं से घय मेहे महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सई', 'पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुया इस्सइ, पविज्जुयाइत्ता खिप्पामेव जुग - मुसल मुट्टिप्पमाणमेत्ताहि धाराहि ओघमेघं सत्तरत्तं° वासं वासिस्सइ, जेणं भरहस्स वासरस भूमीए सिणेहभावं जण इस्सइ || १४४. तंसि च णं घयमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि, एत्थ णं अमयमेहे णामं महामे हे पाउब्भविस्सइ - भरहृष्यमाणमेत्ते आयामेणं, तदणुरूवं च णं विक्खंभबाहल्लेणं । तए णं से अमयमे हे महामहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव विज्जुयाइस्सइ, पविज्जुयाइत्ता खिप्पामेव जुग- मुसल- मुट्ठिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहि ओघमेघं सत्तरत्तं° वासं वासिस्सइ, जेण भरहे वासे रुक्ख गुच्छ - गुम्म-लय- वल्लि तण पव्वगहरित - ओस हि - पवालंकुरमाईए तणवणस्सइकाइए जणइस्सइ || १४५. तंसि च णं अमयमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि, एत्थ णं रसमेहे णामं महा मेहे पाउभविस्सइ - भरहप्पमाणमेत्ते आयामेणं' ' तदणुरूवं च णं विक्खंभ- बाहल्लेणं । तणं से रस मे महा मेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुयाइसइ, पविज्जुयाइत्ता खिप्पामेव जुग मुसल - मुट्ठिप्पमाणमेत्ताहि धाराहिं ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासिस्सइ, जेणं तेसि बहूणं रुक्ख गुच्छ - गुम्म-लय- वल्लि तण-पव्वग हरितओसहि-पवालंकुरमादीणं तित्त- कडुय कसाय अंबिल - महुरे पंचविहे रसविसेसे इस । तणं भर हे वासे भविस्सइ परूढरुक्ख गुच्छ गुम्म-लय- वल्लि-तण-पव्वग-हरिय-ओसहिए, उवचियतय- पत्त - पवालंकुर - पुप्फ-फलसमुइए सुहोवभोगे यावि भविस्सइ ॥ १४६. तए णं ते मणुया भरहं वासं परुढरुक्ख गुच्छ गुम्म-लय- वल्लि-तण-पव्वय-हरियओसहीयं उवचियतय- पत्त-पबालंकुर - पुष्प फलसमुइयं सुहोवभोगं जायं चावि पासिहिंति, पासित्ता बिलेहितो णिद्वाइस्संति. णिद्धाइत्ता हट्टतुट्ठा अण्णमण्णं सद्दाबिस्संति, सद्दावित्ता एवं वदिस्संति - जाते णं देवाणुप्पिया ! भरहे वासे परूढरुख-गुच्छ गुम्म-लय- वल्लि-तणपव्वय - हरिय' - ओसहीए उवचियतय पत्त-पवालंकुर - पुप्फ-फलसमुइए सुहोवभोगे, तं जेणं देवाप्पिया ! अम्हं केइ अज्जप्पभिइअसुभं कुणिमं आहारं आहारिस्सइ, से णं अणेगा हिं छायाहि वज्जणिज्जेत्तिकट्टु संठिति ठवेस्संति, ठवेत्ता भरहे वासे सुहंसुहेणं अभिरममाणाअभिरमाणा विहरिस्सति ॥ १. सं० पा० पतणतणा इस्सइ जाव वासं । २. सं० पा० आया मेणं जाव वासं । ३. सं० पा० आवामेण जाव वासं । ४. पालिपल्लवंकुर (अ, ब ) ; पवालपल्लवंकुर (क, ख, त्रि, स, वृ, शावृ); पवालपल्लवांकुरु (ख) अग्रेपि । ५. वावि (अ, क,ख, त्रि,ब,स) । ६. सं० पा० - हरिय जाव सुहोवभोगे । ७. ववचिद् 'वर्ज' इति सूत्रपाठेतु वय वर्जनीय इत्यर्थः (शाबु) । Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती १४७. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ बा जाव' णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि तणेहि य उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहि चेव ।। १४८. तीसे णं भंते ! समाए मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! तेसि णं मणुयाणं छविहे संघयणे, छव्विहे संठाणे, बहूईओ रयणीओ उड्ढं उच्चतेणं, जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं साइरेगं वाससयं आउयं पालेहिति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी', 'अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुयगामी, अप्पगइया देवगामी, ण सिज्झंति॥ १४६. तोसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले वीइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहि अणंतेहिं गंधपज्जवेहिं अणंतेहिं रसपज्जवेहि अणंतेहिं फासपज्जवेहि अणंतेहि संघयणपज्जवेहिं अणतेहिं संठाणपज्जवेहिं अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अणंतेहिं आउपज्जवेहिं अणंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अणतेहिं अगरुयल हुयपज्जवेहिं अणंतेहिं उढाणकम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अणंतगुणपरिवड्डीए° परिवड्ढेमाणे-परिवडढमाणं, एत्थ ण दुसमसूसमाणाम समा काले पांडवज्जिस्सइसमणाउसो ! || १५०. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव ।। १५१. तेसि णं भंते ! मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! तेसि णं मणुयाणं छविहे संघयणे, छविहे संठाणे, बहूई धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं, जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडि' आउयं पाले हिंति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी', •अप्पेगडया तिरियगामी. अप्पेगइया मणयगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिज्जिहिंति बुज्झिहिंति मुच्चि हिंति परिणिवाहिंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिति ॥ १५२. तीसे णं समाए तओ वंसा समुप्पज्जिस्संति, तं जहा-तित्थगरवंसे चक्कवट्टिवंसे दसारवंसे ॥ १५३. तीसे णं समाए तेवीसं तित्थगरा, एक्कारस चक्कवट्टी, णव बलदेवा, णव वासुदेवा समुप्पज्जिस्संति ॥ १५४. तीसे णं समाए सागरोवमकोडाकोडीए बायलीसाए वाससहस्सेहिं ऊणियाए १. जी० ३।२७७ । २. सं० पा०--णिरयगामी जाव अप्पेगइया। ३. नवरं 'न सिझति' ति द्वितीयारकवत्तिनो मनुजा न सिध्यन्ति' वर्तमान प्रयोगोपि भवि- ष्यत्तयाऽवसातव्यः, तेन न सेत्स्यन्ति सफल- कर्मक्षयलक्षणां सिद्धि न प्राप्स्यन्तीत्यर्थः (हीवृ)। ४. सं० पा०-वण्णपज्जवेहिं जाव परिवडढेमाणे । ५. धण्याइं (अ, त्रि, ब)। ६. पुवकोडी (प)। ७. सं० पा०---णिरयगामी जाव अंतं। Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारो ४०१ काले वीइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहि •अणंतेहिं गंधपज्जवेहिं अणंतेहिं रसपज्जवेहिं अणंतेहिं फासपज्जवेहिं अणंतेहिं संघयणपज्जवेहि अणंतेहिं संठाणपज्जवेहि अणंतेहि उच्चत्तपज्जवेहिं अणंतेहिं आउपज्जवेहि अणंतेहि गरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं उढाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परवकमपज्जवेहि अणंत गुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढे माणे, एत्थ णं सुसमदूसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो ! ॥ १५५. सा णं समा तिहा विभजिस्सइ, तं जहा-पढमे तिभागे मज्झिमे तिभागे पच्छिमे तिभागे॥ १५६. तीसे णं भंते! समाए पढमे तिभाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे' 'भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि तणेहि य उवसोमिए, तं जहा-कित्तिमेहि चेव अकित्तिमेहिं चेव ॥ १५७. तीसे णं भंते ! समाए पढमे तिभागे भरहे वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! तेसिं मणुयाणं छविहे संघयणे, छव्विहे संठाणे, बहुणि धणुसयाणि उद्धं उच्चत्तेणं, जहण्णणं संखेज्जाणि वासाणि, उक्कोसेणं असंखेज्जाणि वासाणि आउयं पालेहिंति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुस्सगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिज्झि हिंति बुज्झिहिंति मुच्चिहिंति परिणिव्वाहिति सम्बदुक्खाणमंतं करेहिति ॥ १. सं० पा०-वण्णपज्जवेहिं जाव अणंतगुण°। २. सं० पा०-बहसमरमणिज्जे जाव भविस्सइ, मणयाणं जा चेव ओसप्पिणीए पच्छिमे तिभागे वत्तव्वया सा भाणियव्वा, कुलगरवज्जा उसभसामिवज्जा । 'उसभसामिवज्जा' इत्यस्य स्पष्टीकरणं प्रमेयरत्नमञ्जूषायां इत्थं लभ्यतेअत्रैवापवादसूत्रमाह-कीदृशी च सा वक्तव्यतेत्याह-कुलकरान् वर्जयतीति कुलकरवर्जा, 'वजैण् वर्जने' इत्यस्याचि प्रत्यये रूपसिद्धि, एवं ऋषभस्वामिवर्जाः, अवसप्पिण्यां कुलकरसम्पाद्यानां दण्डनीत्यादीनामिव ऋषभस्वामिसम्पाद्यानां चान्नपाकादिप्रक्रियाशिल्पकलोपदर्शनादीनामिवोत्सप्पिण्यामपि द्वितीयारकभाविकुलकरप्रवत्तितानां तेषां तदानीमनुवत्तिष्यमाणत्वेन तत्प्रतिपादकपुरुषकथनप्रयोजनाभावात् यथा अवसप्पिणीतृतीयारकतृतीय भागे कुलकराणां स्वरूपं ऋषभस्वामिरूपं च प्राक प्ररूपितं तथा नात्र वक्तव्यमिति भावः, अथवा ऋषभस्वामिव त्यत्र ऋषभस्वामिअभिलापवर्जेति तात्पर्य, तेन ऋषभस्वाम्यभिलापं वजयित्वा भद्रकृत्तीर्थकृतोऽभिलापः कार्य इत्यागतम्, उत्सर्पिणीचरमतीर्थकरस्य प्रायोवसप्पिणीप्रथमतीर्थकृत्समानशीलत्वात, अन्यथोत्सप्पिणी - चतुर्विंशतितमतीर्थकृतः क्व सम्भवः स्यादिति संशयादयोपि स्यात् कलाद्यपदर्शनस्य तु अर्थादेव निषेधप्राप्ते तद्विषयकोभिलाप एव नास्तिीति । कुलकरविषयको वाचनाभेद: आगमादर्शेषु एवमस्ति-अण्णे पढ़ति-तीसे णं समाए पढमे तिभाए इमे पण्णरस कुलगरा समुप्पज्जिस्संति, तं जहा–सम्मुइ जाव उसमे सेसं तं चेव, दंडणीईओ पडिलोमाओ णेयव्वाओ [जं० २१५६-६२] । Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती १५८. तीसे णं समाए पढमे तिभाए रायधम्मे' 'जायतेए' धम्मचरणे य वोच्छि ज्जिस्सइ ॥ ४०२ १५६. तीसे णं समाए मज्झिम- पच्छिमेसु तिभागेसु' भरहस्स वासस्स के रिसए आगारभाव पडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, सो चेव गमो णेयव्वो', णाणत्तं - दो धणुसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं, तेसि च मणुयाणं चउसट्ठि पिट्टिकरंडगा, चउत्थभत्तस्स आहारत्थे समुप्पज्जिस्सइ, ठिई पलिओवमं, एगुणासीइं इंदियाई सारक्खिस्संति संगोवेस्संति जाव देवलोगपरिग्गहिया णं ते मणुया पण्णत्ता समाउसो ? || १६०. तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहि काले वीइक्कते अनंतेहि वपज्जवेहि अणतेहि गंधपज्जवेहि अणतेहि रसपज्जवेहि अणतेहि फासपज्जवे हिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहि अणतेहि संठाणपज्जवेहि अणंतेहि उच्चत्तपज्जवेहि अहि आउपज्जवेहि अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अणतेहि अगरुयलहुयपज्जवेहि अणतेहि उट्ठाण - कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार- परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणेपरवड्ढेमाणे, एत्थ णं सुसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो ! || १६१. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए उत्तमकट्ठेपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा, तं चैव जं सुसमसुसमाए पुव्ववण्णियं", णवरं - णाणत्तं चउधणुसहस्समूसिया एगे अट्ठाबीसे पिट्टिकरंडुकसए छट्ठभत्तस्स आहारट्ठे, चउसट्ठि राइंदियाइं सारक्खिस्संति, दो पलिओवमाई आऊ, सेसं तं चेव ॥ १६२. तीसे णं समाए चउव्विहा मणुस्सा अणुसज्जिस्संति, तं जहा - एका पउरजंघा कुसुमा सुसमणा ॥ १६३. "तीसे णं समाए तिहि सागरोवमकोडा कोडिहि काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहि अणतेहिं गंधपज्जवेहिं अणतेहिं रसपज्जवेहि अणतेहिं फासपज्जवेहिं अणतेह संघयणपज्जवेहिं अणंतेहिं संठाणपज्जवेहि अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अणतेहिं आउपज्जवेहिं अणतेहि गरुयल हुयपज्जवेहिं अणतेहि अगरुयल हुयपज्जवेहिं अणतेहिं उट्ठाण-कम्म-बलवीरिय- पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे- परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं सुसम सुसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो ! ।। १६४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भरहे वासे इमीसे उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमक पत्ता भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सर ? गोयमा ! १. सं० पा० राययम्मे जाव धम्मचरणे । यावत्करणात् तुलामध्यन्यायेन मध्यग्रहणे आद्यन्तयोर्ग्रहणमितिन्यायात् राजधर्मस्योभयोः पार्श्ववत्तिनां गणधर्मपाषण्डजाततेजसामुपादानं कार्यं तेषामपि तत्र व्युच्छेत्स्यमानत्वात् ( ही वृ ) । २. सं० पा० - तिभागेसु जा पढममज्झिमेसु वत्तव्या ओसप्पिणीए सा भाणियव्वा । ३. जं० २।७-५० । ४. सं० पा० – सुसमा तहेव । ५. जं० २।७-५० । ६. सं० पा० - सुसमासुसमावि तहेव । Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारो ४०३ बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए आलिंगपुवखरेइ वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा-किण्हेहिं जाव सुविकले हिं° तहेव' जाव छव्विहा मणुस्सा अणुसज्जिस्संति, 'तं जहा- पम्हगंधा मियगंधा अममा तेतली सहा सणिचारी॥ १. जं० २।७-५०। २. [सं० पा- अणुसज्जिरसति जाव सणिचारी। Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो १. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चई - भर हे वासे ? भरहे वासे ? गोयमा ! भरहे णं वासे वेढस पव्वयस्स दाहिणेणं चोद्दसुत्तरं जोयणसयं एगारस' य एगूणवीसइभाए जोयणस्स अबाहाए, लवणसमुद्दस्स उत्तरेणं चोद्दसुत्तरं जोयणसयं एगारस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स अबाहाए, गंगाए महाणईए पच्चत्थिमेणं, सिंधूए महाणईए पुरत्थिमेणं, दाहिणड्ढभ रहमज्झिल्लतिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं विणीया णामं राहाणी पण्णत्ता - पाईणपडीणायया, उदीणदाहिणविच्छिण्णा, दुवालसजोयणायामा णवजोयणविच्छिण्णा धणवइमति - णिम्माया चामीकरपागारा णाणामणिपंचवण्णकविसीसगपरिमंडभरामा अलकापुरीसंकासा पमुइयपक्की लिया पच्चवखं देवलोगभूया रिद्ध'- त्थिमियसमिद्धा पमुइय - जण जाणवया जाव' पडिरूवा ।। २. तत्थ णं विणीयाए रायहाणीए भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था - महयाहिमवंत-महंत मलय-मंदर-महिंदसारे जाव' रज्जं पसासेमाणे विहरइ ॥ ३. बिइओ गमो रायवण्णगस्स इमो - तत्थ असंखेज्जकालवासंतरेण उपज्जए १. एक्कारस (क, त्रि, ब ) । २. पातीणपडियायता ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । ३. रिद्धि ( अ, ख, ब ) । ४. ओ० सू० १ । ५. आवश्यकचूण राजवर्णकसूत्रं भरतस्य रत्नोत्पत्तिस्थलनिर्देशानन्तरं विद्यते ( पृ० २०७२०९ ) । प्रस्तुतसूत्रस्य उपलब्धादर्शेषु राजवर्णकसूत्रस्य किञ्चिद्भागः प्रस्तुतप्रकरणे विद्यते किञ्चिच्च रत्नोत्पत्तिस्थलनिर्देशानन्तरं ( ३।२२० ) विद्यते । प्रस्तुतप्रकरणे आवश्यकचूण उपलब्ध जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिपाठे ये केचन पाठभेदास्ते एवं सन्तिय संखेज्जकाल ४०४ वासाउए जसंसी.......संघतणतणुक बुद्धि... देहधारी उज्जुगभिंगार......सोत्थियंकुसचंददिव्वअग्गि गागरभेगभवणविमाण हयणासणको सिसन्निभ... जातिजूत वितवरचंपग ..... छत्तीस एव पसत्थ...अव्वोच्छिन्ननवत्तपागड .....कुलपुत्तयं देवेंद...थिमिते फणवतिव्व ..... भरचवकट्टी चोट्सहं । ६. ओ० सू० १४ । ७. य संखेज्ज° (अ, क, ख, त्रि, ब ) ; उपाध्याय - शान्तिचन्द्रेण आवश्यकचूर्णेः पाठोत्र उद्धृतःआवश्यकचूर्णौ तु ‘तत्थ य संखिज्जकालवासा - उए' इति पाठः । ........ Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४०१ जसंसो उतमे 'अभिजाए सत्त"-वीरियपरक्कमगुणे पसत्थवण्ण-सर-सार-संघयण'-बुद्धिधारण'-मेहा-संठाण-सील-प्पगई पहाणगारवच्छायागइए अणेगवयणप्पहाणे तेय-आउ-बलवीरियजुत्ते अझुसिरघणणिचियलोहसंकल-णारायवइरउसहसंघयणदेहधारी 'झस-जुग"भिंगार-वद्धमाणग-भद्दासण-संख-छत्त-वीयणि-पडाग-चक्क-णंगल-मुसल-रह-सोत्थिय-अंकुसचंदाइच्च-अग्गि-जूव-सागर-इंदज्झय-पुहवि-पउम-कुंजर-सीहासण-दंड-कुम्भ-गिरिवर-तुरगवर-मउड-कंडल-णंदावत्त-धणु-कोत-गागर-भवणविमाण - णेगलक्खणपसत्थसुविभत्तचित्तकरचरणदेसभागे उड्ढमुहलोमजात -सुकुमालणिद्धमउयावत्तपसत्थलोमविरइयसिरिवच्छच्छण्णविउलवच्छे देसखेत्तसुविभत्तदेहधारी तरुणरविरस्सिबोहिय-वरकमलविबुद्धगब्भवण्णे हयपोसण-कोससण्णिभ-पसत्थपिठंतणिरुवलेवे पउमुप्पल-कुंद-जाइ-जहिय-वरचंपगणागपुप्फ-सारंग-तुल्लगंधी छत्तीसाहियपसत्थपत्थिवगुणेहि जुते अव्वोच्छिण्णातपत्ते पागड उभयजोणी" विसुद्धणियगकुलगयणपुण्णचंदे, चंदे इव सोमयाए णयणमणणिव्वुईकरे, अक्खोभे सागरोव्वथिमिए, धणवइव्व भोगसमुदयसद्दव्वयाए, समरे अपराइए परमविक्कमगुणे अमरवइसमाणसरिसरूवे भणुयवई भरहचक्कवट्टी भरहं भुंजइ पण्णट्ठसत्तू ॥ ४. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अण्णया कयाइ आउहघरसालाए दिव्वे चक्करयणे समुप्पज्जित्था ॥ ५. तए णं से आउहघरिए भरहस्स रण्णो आउहघरसालाए दिव्वं चक्करयणं समुप्पन्नं पासाइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणामेव से दिव्वे चक्करयणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता करयल' परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणामेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणामेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल •परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं आउहघरसालाए दिव्वे चक्करयणे समुप्पन्ने, तं एयण्णं देवाणुप्पियाणं पियट्टयाए पियं णिवेदेमो, पियं भे भवउ । १. अभियातसत्त (क, ख, स); अहियातसत्त ७. तुरंगवर (अ, क, ख, त्रि, ब, स)। (त्रि, ब, पुत्र, ही)। ८. मगर (क, ख)। २. संघयणतणुग (क, ख, त्रि, प, स, पु, शावृ, ९. उद्धामुहलोमजात (अ, ब, पुवृ); उड्ढामुहहीव); ताडपत्रीयादर्शयोः 'तणुग' इति पदं लोमजाल (क,त्रि,प,स); उड्ढमुहलोमजाल नास्ति, उपाध्यायपुण्यसागरकृतवृत्तावपि (ख); °लोमजाल (शावृ, हीवृ, पुवृपा)। अस्य पदस्यादर्शनस्योल्लेखोस्ति--क्वचित्तनु- १०. छतीसा अहिय' (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। कशब्दो न दृश्यते। ११. "उभतो' (अ,क,ख,ब,स)। ३. x (ब)। १२. X (त्रि, प)। ४. नारायणवइर° (अ, ख, ब)। १३. सं० पा०—करयल जाव कटु । ५. झसयुगं-मत्स्युग्मम् (पुत्र)। १४. सं० पा.....करयल जाव जएणं । ६. जूय (क, ख, प, स)। १५. भवइ (अ, ब)। Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ जंबुद्दीवपण्णत्ती ६. तते णं से भरहे राया तस्स आउहपरियस्स अंतिए एयमह्र सोच्चा णिसम्म हट्ठ'तुट्ठ-चित्तमाणंदिए नदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए' वियसियवरकमलणयणवयणे पयलियवरकडगतुडियकेऊर-मउड-कुंडल-हारविरायंतरइयवच्छे पालंबपलबमाणघोलंतभूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं परिंदे सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ. पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता अंजलिमउलियग्गहत्थे चक्करयणाभिमुहे सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि णिहटु करयल'- परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता तस्स आउहपरियस्स अहामालियं मउडवज्ज ओमोयं दलयइ, दल इत्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ॥ ७. तए णं से भरहे राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! विणीयं रायहाणि सभितरबाहिरियं आसिय-संमज्जिय-सित्त-सुइगसंमट्ठ-रत्यंतरवीहियं मंचाइमंचकलियं णाणाविहरागवसण-ऊसियझयपडागाइपडागमंडियं लाउल्लोइयमहियं गोसीससरसरत्तदद्दर दिण्णपंचंगुलितलं उवचियवंदणकलसं वंदणघडसुकय'- तोरणपडिदुवारदेसभायं आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं कालागुरुपवरकुंदुरुक्क-तुरक्कधूवमघमघेत° गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह कारवेह, करेत्ता कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ८. तए णं से कोडुंबियपुरिसा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठ' 'तुट्ठ-चित्तमाणंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसापमाणहियया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमंति पडिणिक्खमित्ता विणीयं रायहाणि जाव' करेता कारवेत्ता य तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ६. तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणपविसइ, अणपविसित्ता समत्तजालाकलाभिरामे विचित्तमणिरयणकट्रिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि णाणामणिरयण-भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहणिसण्णे सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहि य पुण्णे कल्लाणगपवरमज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइय-लूहियंगे सरससुरहि१.सं० पा०-हट्ट जाव सोमणस्सिए । भिरामं । २. 'मउलितहत्थे (अ, क, ब)। ७. सं० पा०-हट्ट करयल जाव एवं । ३.सं० पा०-करयल जाव अंजलि। ८. जं० ३७॥ ४. अभिंतर (अ,ब))। ६. 'कोट्टिमतले (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ५. 'वसणं (अ,क,ख,ब,स) । १०. x (अ,ब)। ६.सं० पा०-वंदणघडसुकय जाव गंधुद्ध या Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४०७ गोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते अहयसुमहग्घदूसरयणसुसंवुए' सुइमाला-वण्णग-विलेवणे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहार-तिसरय-पालंबपलंबमाण-कडिसुत्तसुकयसोहे पिणद्धगेविज्जगअंगुलिज्जग'-ललितंगयल लियकयाभरणे णाणामणिकडगतुडियथंभियभुए 'अहियरूव-सस्सिरीए" कुंडल उज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकयरइयवच्छे पालंबपलंवमाणसुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलंगुलीए णाणामणिकणग'-विमल-महरिह-णिउणोविय:- मिसिमिसेंत-विरइयसुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठसंठियपसत्थआविद्धवीरवलए, किं बहुणा? कप्परुक्खए चेव अलंकियविभूसिए रिदे सकोरंट"मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं च उचामरवालवी इअंगे मंगलजयसद्दकयालोए अणेगगणणायग-दंडणायग'- राईसर-तलवर-मांडवियकोडंबिय-मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च-चेड - पीढमद्द- नगर-निगम-सेटि-सेणावइसत्यवाह दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे धवल-महामेहणिग्गए इव' गहगण-दिप्पंत-रिक्खतारागणाण मज्झे° ससिव्व पियदंसणे णरवई धूवपुप्फगंधमल्लहत्थगए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव आउहघरसाला जेणेव चक्करयणे तेणामेव पहारेत्थ गमणाए। १०. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बहवे ईसर- तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्टिसेणावइ-सत्थवाहं पभितओ-अप्पेगइया पउमहत्थगया अप्पेगइया उप्पलहत्थगया अप्पेगइया कुमुयहत्थगया अप्पेगइया नलिणहत्थगया अप्पेगइया सोगंधियहत्थगया अप्पेगइया पंडरीयहत्थगया अप्पेगइया महापंडरीयहत्थगया अप्पेगइया सयपत्तहत्थगया अप्पेगइया सहस्सपत्तहत्थगया भरहं रायाणं पिट्ठओ-पिट्ठओ अणुगच्छंति ।। ११. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बहूओ खुज्ज चिलाइ वामणि, वडभीओ बब्बरी" पउसियाओ" । जोणियपल्हवियाओ, ईसिणिय५ थारुकिणियाओ" ॥१॥ लासिय लउसिय दमिली, सिंहलि तह आरबी पुलिंदी य । पक्कणि बहलि" मुरुंडी, सबरीओ पारसीओ य ॥२॥ १. 'सुसंवुते (अ) ; सुसंवुडे (त्रि,प) । भिन्नोस्ति । द्रष्टव्यं ओवाइयं ६३ सूत्रम् । २. तिसरिय (त्रि,प,शावृ,हीवृ) । भगवतीवृतौ (पत्र ३१८) औपपातिकस्य ३. अंगुलेज्जग (अ,ब)। पाठः उद्धृतोस्ति स प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तोः संवादी ४. अहियसस्सिरीए (अ,क,ख,प,ब,स,पुव,शावृ)। वर्तते। ओवाइयसूत्रस्य अष्टादशे सूत्रे पि ५. नाणामणिमयं (शावृ)। एतत्संवादी पाठो लभ्यते । ६. हीरविजयवृत्तौ शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ च । १०. सं० पा०---इव जाव ससिव्व । ___'ओयविय' इति पाठः उद्धृतोस्ति । ११. सं० पा० ईसर जाव पभितयो। ७. मिसिमिसंत (क,ख,त्रि,स)। ८. सं० पा०--सकोरंट जाव चउचामर । १२. सं०प०--उप्पलहत्थगया जाव अप्पेगइया । २. स० ५०--उप्पलहत्यगया जाव अप्पगइया हीरविजयसरिणा वाचनान्तरगतस्य छत्रचामर- १३. पप्परी (अ,ब)। वर्णकस्य उल्लेखः कृतोस्ति, द्रष्टव्यं औपपाति- १४. वउसीयाओ (क,ख,प,स)। कस्य ६३ सूत्रस्य वाचानान्तरम् । १५. तिसिंणामगा (अब)। इ.सं० पा०-दंडणायग जाव दूय । औपपाति- १६. चारुविणियाओ (त्रि) । कस्य उपलब्धादर्शेषु प्रस्तुतपाठः किञ्चिद् १७. पहलि (अ,ब) । Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ जंबुद्दीवपण्णत्ती अप्पेगइयाओ वंदणकलसहत्थगयाओ भिंगार-आदंस-थाल-पाति-सुपइट्ठग'-वायकरग-रयणकरंड-पुप्फचंगेरी-मल्ल-वण्ण-चुण्ण'-गंधहत्थगयाओ वत्थ-आभरण-लोमहत्थयचंगेरीपुप्फपडलहत्थगयाओ जाव' लोमहत्थगपडलहत्थगयाओ अप्पेगइयाओ सीहासणहत्थगयाओ 'छत्त-चामर-हत्थगयाओ" तेल्लसमुग्गयहत्थगयाओ 'कोट्ठसमुग्गयहत्थगयाओ जाव सासवसमुग्गयहत्थगयाओ" । संगहणी गाहा तेल्ले कोट्टसमुग्गे, पत्ते चोए य तगरमेला य । हरियाले हिंगुलए, मणोसिला सासवसमुग्गे ।।३।। अप्पेगइयाओ तालियंटहत्थगयाओ धूवकडुच्छयहत्थगयाओं भरहं रायाणं पिट्ठओ-पिट्ठओ अणुगच्छंति॥ १२. तए णं से भरहे राया सव्विड्डीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूसाए सव्वविभूईए सव्ववत्थ-पुप्फ-गंध-मल्लालंकारविभूसाए सव्वतुरिय"-सहसण्णिणाएणं महया इड्डीए जावर महया वरतुरिय"-जमगसमगपवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरिझल्लरि-खरमुहि-मुरव"-मुइंग-दुंदुहिनिग्घोषणाइएणं जेणेव आउहघरसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता जेणेव चक्करयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थयं परामुसइ, परामुसित्ता चक्करयणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणु लिपइ, अणुलिपित्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मल्लेहि य अच्चिणइ, पुप्फारुहणं मल्ल-गंध-वण्ण-चुण्णवत्थारुहणं आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता अच्छेहि सहेहि सेतेहिं 'रययामएहि अच्छरसातंडुलेहि चक्करयणस्स पुरओ अट्ठट्ठ मंगलए आलिहइ, [तं जहा-सोत्थिय सिरिवच्छ १ सुपति? (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ८. आदर्शेषु चिह्नाङ्कितः पाठो नास्ति, असौ २. रयणकरंडग (क,ख,त्रि,स)। प्रमेयरत्नमञ्जूषाया आधारेण अस्माभिः ३. x (अ,ब)। संस्कृतं प्राकृतीकृत्य स्वीकृतः। हीरविजयवृत्ती ४. पुष्पचङ्गेरीत आरभ्य मालादिपदविशेषिता- अस्य पूर्णपाठस्य निर्देशोस्ति, ततश्च सङ्ग्रहणी___ स्तच्चङ्गेर्यो ज्ञातव्याः लोमहस्तकचङ्गेरी गाथाया उल्लेखोस्ति। तु साक्षादुपात्तास्ति (शावृ)। ६. °कडेच्छुय (अ,ब,स); °कडिच्छ्य ° (ख)। ५. यावत्करणात् अप्येककाः पुष्पपटलकमाल्य- १०. 'युक्त' इति गम्यम् । पटलक . चर्णपटलकगंधवस्त्राभरणसिद्धार्थक- ११. °तुडिय (क,ख,त्रि,प,स)। हस्तगता वाच्याः (हीव); अस्यां वृत्तौ १२. अत्र यावत्करणात् पूर्वोक्तानि धुत्यादि पदानि 'वर्ण' इति पदं व्याख्यातं नास्ति, मूलपाठे महच्छब्दयुक्तानि वाच्यानि (पुर्व)। तत्स्वीकृतमस्ति, तेन 'वण्णपडलहत्थगयाओ' १३. तूडिय (क,ख,त्रि,प,स) । इत्यपि वाच्यम् । १४. मुरज (प)। ६. लोमहत्थगया २ पडलहत्थगया (अ,त्रि,ब); १५. रयणमएहिं (अ)। लोमहत्थगयाओ (क,ख,प)। १६. द्वयोरपि पदयोः पूर्वपदस्य दीर्धान्तता प्राकृत७. x (त्रि,प,स,ही)। त्वात् (हीव)। Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४०६ णंदियावत्त वद्धमाणग भद्दासण मच्छ कलस दप्पण' अट्ठमंगलए]' आलिहित्ता काऊणं' करेइ उवयारं, कि ते? पाडल-मल्लिय-चंपग-असोग-पुण्णाग-चूयमंजरि-णवमालिय-बकुलतिलग-कणवीर-कुंद-कोज्जय-कोरंटय-पत्त-दमणय-वरसुरहिसुगंधगंधियस्स कयग्गहगहियकरयलपब्भट्ठविप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणिगरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमेत्तं ओहिनिगरं करेत्ता चंदप्पभ-वइर-वेरुलियविमलदंडं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरुपवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धुवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवट्टि विणिम्मुयंतं वेरुलियमयं कडुच्छ्यं पग्गहेत्तु पयते धूवं दहइ, दहित्ता सत्तट्ठपयाई पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता वामं जाणं अंचेई', 'अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साहट्ट करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता आउहघरसालाओ पडिणिक्खमाइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छड. उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसीयइ, सण्णिसीयित्ता अट्ठारस सेणिपसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सुक्कं उक्करं उक्किट्ठ अदिज्ज अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलिय-सपुरजणजाणवयं 'विजयवेजइयं चक्करयणस्स" अट्टाहियं महामहिमं करेह, करेत्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह ॥ १३. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्ठाओ जाव' विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमेंति, पडिणिक्खमेत्ता उस्सुक्कं उक्करं जाव' अट्ठाहियं महामहिमं करेंति य कारवेंति य, करेत्ता य कारवेत्ता य जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता" तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ १४. तए णं से दिव्वे चक्करयणे अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्ण जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसहसण्णिणाएणं" आपूरते" चेव अंबरतलं विणीयाए रायहाणीए मज्झमझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता गंगाए महाणईए 'दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरथिमं दिसि मागहतित्थाभिमुहे पयाते यावि होत्था । १. प्राकृतत्वाद् विभक्तिलोपो द्रष्टव्यः (हीव)। ८. जं०३८ । २. कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांश: प्रतीयते। ६. जं० ३।१२।। ३. कृत्वा-अन्तर्वर्णकादिभरणेन पूर्णानि कृत्वे. १०. जाव (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स) । त्यर्थः । ११. सर्वेष्वादशेषु 'तुडिय' इत्येव पदं दृश्यते । ४. कयगाह (अ,क,ब,स)। १२. पूरेते (अ,ब); पूरेति (ख)। ५. कडेच्छुयं (ख,ब,स)। १३. वृत्तित्रयेपि 'ण' शब्दो वाक्यालङ्करे लिखि६. सं० पा०-अंचेइ जाव पणामं । तोस्ति, किन्तु बहुषु स्थानेषु सप्तम्यर्थे तृती७ विजयवेजयंत चक्करयणस्स (अ,क,ख,त्रिब,स, यापि भवति, अतोस्माभिरेषपाठः तृतीयान्तः पुवृपा, शावृपा)। स्वीकृतः । Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीपणती १५. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए महाणईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरथिमं दिसि माहतित्थाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठ' - चित्तमाणं दिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए कोडुंवियपुरिसे सहावे, सावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हयगय रहपवरजोहकलियं चाउरंगिण सेण्णं सण्णाहेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिह || १६. तणं ते कोडुंबियपुरिसा जाव' पच्चप्पिणंति ॥ १७. तणं से भरहे राया जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविस, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेब जाव' धवल - महामेहणिग्गए इव गगण - दिप्पंत-रिक्ख तारागणाण मज्झे ससिव्व पियदसणे णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता हय-गय-रह-पवरवाहण भड चडगर-पहकर संकुलाए सेण पहियकित्ती जेणेव बाहिरिया उवट्टाणसाला जेणेव अभिसेक्के हत्थरयणे तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरिकडगसण्णिभं गयवई णरवई दुरुढे ॥ १८. तए णं से भरहाहिवे परिंदे हारोत्ययसुकयरइयवच्छे कुंडल उज्जोइयाणणे मउदित्तसिरए णरसीहे णरवई गरिदे णरवसभे मरुयरायवसभकप्पे अब्भहियरायतेयलच्छीए दिप्पमाणे पसत्थमंगलस एहि संयुव्वमाणे जयसद्दक्यालोए हत्थिबंधवरगए संकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहि उद्धव्वमाणीहि उद्धव्वमाणीहिं जक्खसहस्ससंपरिवुडे वेसमणे चेव धणवई अमरवइसण्णिभाए इड्डीए पहियकित्ती गंगाए महाणईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं गामागर-नगर- खेड - कब्बड - मडंव - दोणमुह-पट्टणासम-संबाहसहस्समंडियं थिमियमेइणीयं वसुहं अभिजिणमाणे- अभिजिणमाणे अग्गाई वराई रयणाई पडिच्छमाणे- पडिच्छमाणे तं दिव्वं चक्करयणं अणुगच्छमाणे अणुगच्छमाणे जोयणंतरिया हि वसहीहि वसमाणे वसमाणे जेणेव मागहतित्थे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मागहतित्थस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायामं णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेइ, करेत्ता वड्ढइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाप्पिया ! मम आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ १६. तए णं से वड्ढइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे हट्ट - चित्तमाणं दिए नंदिए पोमणे' 'परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणणं वयणं पडिसणे, पडसुत्ता भरस्सरणो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चपिणति ॥ २०. तए णं से भरहे राया अभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता ૪૧૦ १. सं० पा०-हट्टतुटु जाव हियए । २. जं ३।८,१५ । ३. जं० ३१६ । ४. सं० पा० इव जाव ससिव्व । ५. सार्द्धमिति शेषः (शावृ) । ६. मणुराय (त्रि, ही वृ ) । ७. अमहिय रायलच्छीए ( अ, त्रि, ब ) । ८. मेतिणीयं ( अ, ब ) । ६. सं० पा० पीइमाणे जाव अंजलि । Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ asओ वक्खारी जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंधारगं दुरुहइ', दुरुहित्ता मागहतित्थ कुमारस्स देवस्स' अट्टमभत्तं परिण्हइ, परिहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी' उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्यमुसले दब्भसंथारोवगए एगे अवीए अट्टमभत्तं पडिजागरमाणे - पडिजागरमाणे विहरइ || २१. तए णं से भरहे राया अट्टमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पक्खिमित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबिय - पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिण सेण्णं सण्णा हेइ, चाउग्घंटं अस्सरह पडिकप्पेहत्ति कट्टु मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवल - महा मेहणिग्गए • इव गगण - दिप्पंत - रिक्ख-तारागणाण मज्झे ससिव्व पियदंसणे णरवई धूवपुप्फगंधमल्लहत्थगए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता हय-गय-रह-पवरवाहण' - 'भड़चडगर-पहकरसंकुलाए सेणाए पहियकित्ति जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे अस्सरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउरघंटं अस्सरहं दुरुढे" ।। २२. तए णं से भरहे राया चाउग्घंटं अस्सरहं दुरुढे " समाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलिया" सद्धि संपरिवुडे मह्याभड - चडगर - पहगरवंदपरिक्खित्ते चक्करयणदेसियमग्गे अणे गरायवरसहस्साणु जायमग्गे " महया उक्किट्ठि" - सीहणाय - बोल" - कलकल रवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं " पिव करेमाणे - करेमाणे पुरत्थिमदिसाभिमुहे मागहतित्थेणं लवणसमुद्द ओगाहइ जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला || २३. तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता धणुं परामुसइ ॥ २४. तए णं तं अइरुग्गयवालचंद " - इंदधणु सन्निकासं वरमहिस-दरिय-दप्पिय-दढघर्णासिंगग्गरइयसारं " उरगवर-पव रगवल "-पवरपरहुय - भमरकुल-णी लि- णिद्ध-धंत-धोयपट्ट णिउणोविय - मिसिमिसेंत मणिरयण- घंटियाजालपरिक्खित्तं तडितरुणकिरण" -तवणिज्ज १. दुहइ ( अ, ब ) । २. आराधनार्थमितिशेषः ( ही वृ ) 1 ३. पम्हचारी ( अ, त्रि, ब ) । ४. अबिती ( अ, ब ) ; अबियए ( क ) । ५. पडियागरमाणे (त्रि, ब) । ६. आसरहं (पा) । ७. जं० ३६ ॥ ८. सं० पा० - महामेहणिग्गए जाव मज्जणघराओ । ६. सं० पा० पवरवाहण जाव सेणाए । १०. रूठे (अ); द्रुढे (ब) । ११. रूढे (अ); द्रुढे (ब) । १२. सेनया इति गम्यम् ( शावृ ) । १३. ०णुयायमग्गे ( अ, प, ब ) । ४११ १४. उक्किट्ट ( अ, त्रि, प, ही वृ ) ; उक्कट्ठि ( स ) 1 १५. पोल ( अ, ब ) । १६ सेनामिति गम्यम् (हीवृ ) । १७. बालयंद (स) । १८. संगग्गरइय° ( अ, ब ) । १६. गवलय (त्रि ) । २०. तडितरुणतरणिकिरण पुवृपा) । (क, ख, स, हीवृ, Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ जंबुद्दीवपण्णत्तौ बद्धचिधं दद्दरमलयगिरिसिहर-केसरचामरबाल-द्धचंदचिधं काल-हरिय-रत्त-पीय-सुक्किलबहुण्हारुणि'-संपिणद्धजीवं चलजीवं' जीवियंतकरणं धणं गहिऊण से णरवई उसु च वरवइरकोडियं वइरसारतुंड कंचणमणिकणगरयणधोइट्ठसुकयपुंखं अणेगमणिरयण-विविहसुविरइयनामचिंधं वइसाहं ठाईऊण ठाणं आयतकण्णायतं च काऊण उसुमुदारं इमाई वयणाई तत्थ भाणिय से णरवई हंदि ! सुणंतु भवंतो, बाहिरओ खलु सरस्स जे देवा । णागासुरा सुवण्णा, तेसिं 'खु णमो” पणिवयामि ॥१॥ हंदि ! सुणंतु भवंतो, अभितरओ सरस्स जे देवा । णागासुरा सुवण्णा, सव्वे मे ते विसयवासी ॥२॥ इतिकट्ठ उसुं णिसिरइ परिगरणिगरियमज्झो, वाउद्धयसोभमाणकोसेज्जो। चित्तेण सोभते धणवरेण इंदोव्व पच्चक्खं ॥३॥ तं चंचलायमाणं, पंचमिचंदोवमं महाचावं । छज्जइ वामे हत्थे, णरवइणो तंमि विजयंमि ॥४॥ २५. तए णं से सरे भरहेणं रण्णा णिसठे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाइं गंता' मागहतित्थाधिपतिस्स देवस्स भवणंसि निवइए॥ २६. तए णं से मागहतित्थाहिवई देवे भवणंसि सरं णिवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुठे चंडिक्किए कुविए भिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि णिडाले साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी-केस णं भो ! एस अपत्थियपत्थए दरंतपंतलक्खणे हीणपण्णचाउदसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं मम इमाए एयारूवाए" दिव्वाए देवड्ढीए" दिव्वाए देवजुईए" दिव्वेणं दिवाणुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमण्णागयाए उप्पि अप्पुस्सुए भवणंसि सरं णिसिरइत्तिकटु सीहासणाओ अब्भुठेइ", अब्भुढेत्ता जेणेव से णामाहयके सरे तेणेव उवागच्छइ, १. पुहुण्हारुणि (अ,ब)। ७. थुणिमो (पुवृ); खु णमो (पुवृपा)। २. बलजीवं (ख,स, पुवृपा); X (प); चलजीव- ८. विसतवासी (क)। मिति विशेषणं त्वेतद्वर्णकवृत्तौ षष्ठाङ्गे ९. गंगा (अ,ख,ब)। श्री अभयदेवसूरिभि नं व्याख्यातमिति न १०. हिण्ण (अ,ख,त्रि,ब); भिण्ण' (क,स, हीव, व्याख्यायते यदि च भूयस्सु जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति- पुवृपा, शावृपा); हीण° (हीवृपा) । सूत्रादर्शषु दृश्यमानत्वाद् व्याख्यातं विलोक्यते ११. एआणुरूवाए (प)। तदा टङ्कारकरणक्षणे चला-चञ्चला जीवा १२. देविड्ढीए (क,ख,प,स)। यस्य तत्तथा (शा)। १३. °जुत्तीए (अ,ख,त्रि,ब,स); युतिर्वा इष्ट३. वरवइरकोडिमं (अ, त्रि, ही); वरवइर- परिवारादिसंयोगलक्षणा (शा)। कोट्टिम (ब, पुवृपा)। १४. अप्पस्सुए (अ,ब)। ४. °चुडं (अ); तोंडं (क,प,स)। १५. उठेइ (अ,क,ख,त्रि,ब,स, पुवृ, हीवृ)। ५. चित्तं (त्रि, ही)। १६. णामपहंके (त्रि,हीवृ);णामायंके (प, शावृ)। ६. भणिय (त्रि, हीव)। Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो उवागच्छित्ता तं णामाहयकं सरं गेण्हइ, गेण्हित्ता णामकं अणुप्पवाएइ, णामकं अणुप्पवाएमाणस्स इमे एयारूवे अज्झ थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था--उप्पन्ने खलु भो ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमणागयाणं मागहतित्थकुमाराणं देवाणं राईणमुवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमित्तिकटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हारं मउडं कुंडलाणि कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं मागहतित्थोदगं च गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्याए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणीयाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए" अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-अभिजिए णं देवाणप्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे पूरस्थिमेणं मागहतित्थमेराए. तं अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी, अहण्णं देवाणु प्पियाणं आणत्ती-किंकरे, अहण्णं देवाणुप्पियाणं पुरथिमिल्ले अंतवाले,' तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया! ममं इमेयारूवं पीइदाणंतिक? हारं मउडं कुंडलाणि कडगाणि य 'तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं मागहतित्थोदगं च उवणेइ ।।। २७. तए णं से भरहे राया मागहतित्थकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता मागहतित्थकुमारं देवं सक्कोरेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥ २८. तए णं से भरहे राया रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता मागहतित्थेणं लवणसमुद्दाओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ,उबागच्छित्ता तुरगे णिगिण्हइ,णिगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छत्ति, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणपविसइ, अणुपविसित्ता जाव' ससिव्व पियदंसणे गरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्टमभत्तं पारेइ, पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवदाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ,उवागच्छित्ता' सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पमेव भो देवाणु प्पिया ! उस्सुक्कं उक्कर ° उक्किळं अदिज्ज अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरिय अणुद्धयमइंगं १. सविखखियाइं (अ,ब); अखिखिणियाई (त्रि)। प्रमादादागतं दृश्यते। २. सिरे जाव (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ७. वयासी जाव (ब); अत्र सूत्रे यावत् शब्दो ३. अंतेपाले (अ,त्रि,ब); अंतेवाले (क,ख)। लिपिप्रमादापतित एव दृश्यते, सङ्ग्राहकपदा४. सं० पा०-- कडगाणि य जाव मागह। भावात्, अन्यत्र तद्गमादावदृश्यमानत्वाच्चेति ५. जं० ३।६। (शावृ)। ६. २ जाव (अ,क,ब); एतद् यावत्पदं लिपि- ८. सं० पा०-उक्करं जाव मागह। Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुद्दीपण्णत्ती अमिलायमल्लदा मुइयपक्कीलिय-सपुरणजाणवयं विजयवेजइयं मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियं महाहिमं करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ २६. तणं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वृत्ताओ समाणीओ ओ जाव' करेंति, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिनंति ॥ ३०. तए णं से दिव्वे चक्करयणे वइरामयतुंबे लोहियक्खामयारए जंबूणयणेमीए णाणामणिखुरप्पवालि परिगए' मणिमुत्ताजालभूसिए सणंदिघोसे सखिखिणीए दिव्वे तरुणरविमंडल णि णाणामणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्ते सव्वोउयसुरभिकुसुम आसत्तमल्लदा मे अंतलिक्खपविणे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दस ण्णिणादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं, णामेण सुदंसणे, णरवइस्स पढमे चक्करयणे मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दाहिणपच्चत्थि' दिसि वरदामतित्थाभिमुहे पयाए यावि होत्था || ३१. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं वरदामतित्याभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्ठतु - चित्तमाणं दिए नंदिए पी मणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया । हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिण सेण्णं सण्णा हेह आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहत्तिकट्टु मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता तेव कमेणं जाव' धवल-महामेहणिग्गए जाव' सेयवरचामराहिं उद्धव्वमाणीहि उद्धव्वमाणीहि, मगइयवरफलग - पवरपरिगरखेडय-वरवम्म'- कवय - माढी - सहस्सकलिए उक्कडवरमउड'तिरीड-पडाग-झय-वेजयंति चामरचलंत - छत्तंधयारकलिए, असि खेवणि खग्ग-चाव - णारायकणय-कप्पणि-सूल-लउड भिडिमाल" - धणुह-तोण - सरपहरणेहि य काल-पील- रुहिर-पीयसुक्किल-अणेगचिधसयसंविणद्धे", अप्फोडियसीहणाय छेलिय- हय हेसिय-हत्थिगुलुगुलाइयअणेगरहसयसहस्सघणघणेंत - णीहम्ममाण सद्दसहिएण जमगसमगभंमा हो रंभ-किणित-खर मुहिमुकुंद - संखिय- पिरिलि" - पव्वग" परिवार्याणि वंस- वेणु-बिवंचि" - महति - कच्छभि-रिगिसिगिकलताल'"-कंसताल-करधाणुव्विद्धेण" महता सहसण्णिणादेण सयलमवि जीवलोगं पूरयंते, ४१४ १. जं० ३।१३ । C. उक्कुड्डु २. थालपरिगए ( प ) ; स्थालं - अन्तः परिधि - १०. याव ( अ, ब ) । रूपम् (शावृ ) । ११. हिमाल ( अ, ब ) । ३. दक्खिणपच्चत्थिमे (अ, ब ) ; दक्खिण° ( क,ख, १२. संविद्धं ( अ, ब ) ; सणि विट्ठ (क, ख, त्रि, स, शावृ, ही, पुवृपा); सण्णिविट्ठे ( प ) । त्रि,स) । ४. सं० पा० - हट्ट जाव कोडुंबिय । १३. परिलि (अस) । ५. जं० ३।१५-१७ । ६. जं० ३।१७ ॥ ७. माइय° ( प, शावृ) ; विपाकश्रुते (१।३।४३) पि 'मगइयहि' इति पाठ एव दृश्यते । ८. वरचम्म (अ, क,ख, त्रि, ब, वृ, ही वृ ) । (ब)। १४. पच्चग ( अ, ब ) ; वव्वग ( प ) । १५. पवाइणि (क.स) । १६. बीवंचि ( अ, ब ) । १७. तलताल (ख); करताल ( स ) । १८ करधाणुत्थिदेण ( प, शाबू, आवश्यकचूर्णि Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो बलवाहणसमुदएणं', एवं जक्खसहस्ससंपरिवुडे वेसमणे चेव धणवई अमरपतिसण्णिभाए इड्डीए पहियकित्ती गामागर-णगर-खेड-कब्बड- मडंब-दोणमुह-पट्टणासम-संवाहसहस्समंडियं थिमियमेइणीयं वसुहं अभिजिणमाणे-अभिजिणमाणे अग्गाइं वराइं रयणाई पडिच्छमाणेपडिच्छमाणे तं दिव्वं चक्करयणं अणुगच्छमाणे-अणुगच्छमाणे जोयणंतरियाहिं वसहीहिं वसमाणे-वसमाणे जेणेव वरदामतित्थे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वरदामतित्थस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायामं णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं° विजयखंधावारणिवेसं करेइ, करेत्ता वड्डइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मम आवसहं पोसहसालं च करेहि, ममेयमाण तियं पच्चप्पिणाहि ।। ३२. तए णं से आसम-दोणमुह-गाम-पट्टण-पुरवर-खंधावार-गिहावणविभागकुसले, एगासीतिपदेसु सव्वेसु चेव वत्थूसु णेगगुणजाणए पंडिए विहिण्णू पणयालीसाए देवयाणं, 'वत्थुपरिच्छाए णेमिपासेसु" भत्तसालासु कोट्टणिसु य वासघरेसु य विभागकुसले, 'छेज्जे वेज्झे" य दाणकम्मे पहाणबुद्धी, जलयाणं भूमियाण य भायणे, जलथलगुहासु जंतेसु परिहासु' य कालनाणे, तहेव सद्दे वत्थुप्पएसे पहाणे, गन्भिणि-कण्ण-रुक्ख-वल्लिवेढिय-गुणदोसवियाणए, गुणड्ढे, सोलसपासायकरणकुसले, चउसट्ठिविकप्पवित्थयमई, ‘णंदावत्ते य वद्धमाणे सोत्थियरुयग तह सव्वओभद्दसण्णिवेसे य बहुविसेसे", उइंडिय-देव-कोट्ठ-दारु-गिरि खाय-वाहण-विभागकुसले इय तस्स बहुगुणड्ढे, थवईरयणे परिंदचंदस्स । तवसंजमनि विठे, किं करवाणीतुवट्ठाई ।।१।। सो देवकम्मविहिणा, खंधावारं णरिंदवयणेणं । आवसहभवणकलियं, करेइ सव्वं मुहुत्तेणं ॥२॥ करेत्ता पवरपोसहघरं करेइ, करेत्ता जेणेव भरहे राया 'तेणेव उवागच्छति, उवगच्छित्ता तमाणत्तियं खिप्पामेग पच्चप्पिणइ ।। ३३. 'तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पृष्ठ १८७) । वाद्यविषये पाठपरिवर्तनस्याध्य- (पवपा) । यनार्थं रायपसेणइयसूत्रस्य ७७ सूत्रं तथा ६. कण्णग (क,ख,त्रि,स, पुव); कण्णि (ब)। जीवाजीवाभिगमस्य ३।५८८ सूत्रं द्रष्टव्यम् । ७. सूत्रे च क्वचित् सप्तमीलोपः प्राकृतत्वात् १. 'सह' इतिगम्यम् (हीव)। (शा)। २. सं० पा.--तहेव सेसं जाव विजयखंधावार। ८. चिन्हाङ्कितपाठस्थाने 'अ,ब' प्रत्योः 'णंदाव' ३. वत्युपरिच्छायणेमिपासेसु (अ,त्रि,ब, पुवृपा); इत्येव लिखितं दृश्यते । वत्थुपरिच्छए णे मिपासेसु (हीवृ, शावृपा); ८. करवाणि (अ,ब)। वत्थुपरिच्छाए णेमिपासेसु, वत्थुपरिच्छायणे १०. सं० पा०-राया जाव तमाणत्तियं । णेमिपासेसु (हीवृपा)। ११. एतमाणत्तियं (क,ख,प, शावृ, हीवृ)। ४. छज्जे वज्जे (पुवृपा)। १२. सं० पा०-पच्चप्पिणइ सेसं तहेव जाव ५. परिगुहासु (अ,त्रि,ब,पुव); परिहासु मज्जणघराओ। Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ जंबुद्दीपण्णत्ती पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता वरदामतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, परिहित्ता पोसहसा लाए पोसहिए भयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोare एगे अबीए अट्टमभत्तं पडिजागरमाणे- पडिजागरमाणे विहरइ ॥ ३४. तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबिय - पुरिसे सहावे, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिण सेण्णं सण्णा हेह, चाउग्घंटं अस्सरहं पडिकप्पेहत्तिकट्टु मज्जणघरं अणुविस, अणुविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवल - महा मेहणिग्गए इव गहगण - दिप्पंत-रिक्ख तारागणाण मज्झे ससिव्व पियदंसणे णरवई धूव पुष्पगंध मल्ल हत्थगए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला जेणेव चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ' ॥ ३५. तते णं तं 'धरणितलगमणलहु-ततोव्विद्ध-लक्खणपसत्थं" हिमवंत कंदरंतरशिवाय संवद्धिय-चित्त- तिणिसदलियं जंबूणयसुकयकुव्वरं कणयदंडियारं पुलय- 'वइरइंदणील" - सासग-पवाल- फलिहवर - रयण - 'लेट्ठ मणि" विदुमविभूसियं अडयालीसाररइयतवणिज्जपट्टसंग हिय - जुत्ततुंबं पघसियपसियनिम्मियनवपट्ट-पुट्ठ-परिणिट्ठियं विसिलवलोहवद्धम्मं हरिपहरणरयणसरिसचक्कं कक्केयणइंदणी सासगसुसमाहिय-बद्धजाल कंकड 'पसत्य विच्छिण्णसम-धुरं" पुरवरं व गुत्तं सुकरणतवणिज्जजुत्तकलियं " कंकडगणि जुत्तकप्पणं १. उवागच्छइ २ (अ, क, ख, त्रि, प, ब, स ) ; उपागच्छति उपागत्य (पुवृ, शावृ, हीवृ ) आवश्यकचूर्णी ( पृ० १५८ ) एतदं नैव दृश्यते । २. धरणितलगमणलहुततो विहुलक्खणपसत्ये ( अ, ब, पुवृपा ) घरणितलगमणलहुत तोविहुलक्खणपत्थं (क, ख, स), धरणितलगमण लहुततोविणलक्खपवेसे ( त्रि); धरणितलगमणलहुं ततो बहुलक्खणपत्यं ( प, शावृ); धरणितलगमण हुं तया विद्धलक्खणपसत्यं ( हीवृ ) ; धरणितलगमणलहुं ततो विद्धलक्खणपसत्थे ( ही वृपा ) ; आवश्यकचूर्णी ( पृ० १८८ ) स्वीकृत - पाठस्य संवादित्वं दृश्यते । ३. कूबरं ( प ) ; कुप्परं (आवश्यकचूर्णि पृ० १८८ ) । ४. वरइंदणील ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स, पुवृ, शावृ); 'वर' इति पाठ: आवश्यकचूर्णे ( पृ० १८८) राधारेण स्वीकृत: । ५. वरफरिह (अ, क, ख, ब, स, पुवृ० ) । ६. क्वचित्ष्टुमणिशब्दौ न दृश्येते ( पुवृ ) । ७. संगहिय ( अ, ब ) ; पट्टसंगहिय ( क, स, हीवृ, पुवृपा) । ८. पघसियनिम्मियनव पट्ट ( अ, ब, पुवृ) । ९. बद्धजालगवाडं (ख); बद्धजालकडगं (त्रि, प, शावृ, पुवृपा); जाल कटकं ( हीवृ ) । १०. 'विच्छिण्णसुमहुरं ( अ, ब ) अत्र लिपिप्रमादः सम्भाव्यते । ११. सुकयरयणतवणिज्जजालकलियं ( अ, पुवृपा ) ; सुकरिणतवणिज्जजालकलियं ( क, ख ) ; सुकरयणत वणिज्जजालकलियं (त्रि, ब, स ) ; सुकिरणतवणिज्जजुत्तकलियं ( प, शावृ ) ; सुकरण वणिज्जुज्जलकलियं (पुवृ) ; सुक रण वणिज्जजालकलियं ( हीवृ); वृत्तिकारैर्यथापाठोलब्धस्तथा व्याख्यातः । शान्तिचन्द्रेण Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइमो वक्खारो पहरणाणुजायं' खेडग-कणग-धणु-मंडलग्ग-वरसत्ति-कोत-तोमर-सरसयवत्तीसतोणपरिमंडियं कणगरयणचित्तं जुत्तं हलीमुह-बलाग-गयदंत-चंद-मोत्तिय-तणसोल्लिय'-कुंद-कुडय-वरसिंदुवार-कंदल-वरफेणणिगर-हार-कासप्पगासधवलेहिं अमरमणपवणजइण-चवलसिग्घगामीहिं चउहिं चामराकणगभूसियंगेहिं तुरगेहि सच्छत्तं सज्झयं सघंटे सपडागं सुकयसंधिकम्मं सुसमाहियसमरकणग-गंभीरतुल्लघोसं वरकुप्परं सुचक्कं वरनेमीमंडलं' वरधुरातोंडं वरवइरबद्धतुंबं वरकंचणभूसियं वरायरियणिम्मियं वरतुरगसंपउत्तं' वरसारहिसुसंपग्गहियं वरपुरिसे बरमहारहं दुरुढे आरूढे पवररयणपरिमंडियं कणयखि खिणीजालसोभियं अयोझं सोयामणि-कणगतविय-पंकय-जासुयण"-जलणजलिय-सुयतोंडरागं गुंजद्ध-बंधुजीवग-रत्तहिंगुलुगणिगर"-सिंदूर-रुइलकुंकुम-पारेवयचलण-णयणकोइल-दसणावरणरइतातिरेग-रत्तासोग-कणग-केसुय"-गयतालु-सुरिंदगोवग-*-समप्पभप्पगासं' बिवफल-सिलप्पवाल-उद्वैतसूरसरिसं सव्वोउयसुरहिकुसुम-आसत्तमल्लदाम ऊसियसेयज्झयं महामेहरसिय-गंभीरणिद्धघोसं सत्तुहिययकंपणं पभाए" य" सस्सिरीयं, णामेणं पुहविविजयलभंति वीसुतं" लोगविस्सुतजसो अहतं चाउग्घंटं आसरहं पोसहिए णरवई दुरुढे ।। ३६. तए णं से भरहे राया चाउग्घंटं आसरहं दुरुढे समाणे 'हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए" सद्धि संपरिवुडे महयाभड-चडगर-पहगरवंदपरिक्खिते चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायवरसहस्साणुजायमग्गे महया उक्किट्ठि-सीहणाय-वोल-कलकलरवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयंपिव करेमाणे-करेमाणे दाहिणाभिमुहे वरदामतित्थेणं लवणसमुदं ओगाहइ जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला" ॥ प्रस्तुतपाठांशविषये एकाटिप्पणीकृतास्ति- ११. "हिंगुलग (ख, स)। अत्र च एतत्सूत्रादर्शेषु तवणिज्जजालकलिय' १२. केसुय (त्रि) । मिति पाठोऽशुद्ध एव सम्भाव्यते, आवश्यकचूणौ १३. गोपग (क, ख, स)। (पृ० १८८) अस्यैव पाठस्य दर्शनात् । १४. 'प्पकासं (अ, क, ख, त्रि, ब, स)। १५. मल्लदामं (अ, त्रि, ब, स, पूर्व, शाव, हीव)। १. परपहरणाणुयातं (अ, ब, पुव)। २. तणसोत्तिय (आवश्यकचूणि पृ० १८८)। सुत्तमल्लदामं (ख); आसत्तमल्लदाम (पुवृपा, होवृपा)। ३. वरणेम (ब)। १६. सत्तुहितय (अ, ब) सत्तुहिदय (आवश्यक४. वरतुरंग (त्रि, आवश्यकचूणि पृ० १८८)। चूणि पृ० १८६)। ५. दुरूढेत्ति आरूढः क्वचिद्दुरूढे आरूढे इति १७.प्रभाते (क, ख, स)। पाठद्वयम् (पुवृ)। १८. ४ (ख, आवश्यकचूणि पृ० १८६) । ६. x (ही)। १६. विस्सुतं (क, स)। ७. कणयकिंकिणीजालपरिसोभियं (क, ख, स)। २०. सं० पा०-समाणे सेसं तहेव । ८. अजोज्झं (अ, ब); अओझ (क, ख, प, स), २१ द्रष्टव्यम–३/२२ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । अवोज्झं (त्रि)। २२. सं० पा०-उल्ला जाव पीइदाणं से, णवरि ६. सोतामणि (क); सोदामणि (ख, स)। चुडामणिं च दिव्वं उरत्थगेविज्जगं सोणिय१०. जासुमणा (अ, ब); जासुमण (क, स); सुत्तगं कडगाणि य तुडियाणि य जाव दाहिजासुमणि (ख)। णिल्ले अंतवाले जाव अट्टाहियं । Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१५ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३७. 'तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता धj परामुसइ जाव' उसु णिसिरइ-- परिगरणिगरियमज्झो, वाउद्ध्यसोभमाणकोसेज्जो। चित्तेण सोभते धणुवरेण इंदोव्व पच्चक्खं ॥१॥ तं चंचलायमाणं, पंचमिचंदोवमं महाचावं । छज्जइ वामें हत्थे, णरवइणो तमि विजयंमि ।।२।। ३८. तए णं से सरे भरहेणं रण्णा णिस? समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाई गंता वरदामतित्थाधिपतिस्स देवस्स भवणंसि निवइए॥ ३६. तए णं से वरदामतित्थाहिवई देवे भवणंसि सरं णिवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रु? चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि णिडाले साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी-केस णं भो ! एस अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं मम इमाए एयारूवाए दिवाए देवड्डीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं देवाणुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमण्णागयाए उप्पि अप्पुस्सुए भवणंसि सरं णिसिरइत्तिकटु सीहासणाओ अब्भुट्ठइ, अब्भुट्ठत्ता जेणेव से णामाहयके सरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं णामाहयक सरं गेण्हइ, गेण्हित्ता णामकं अणुप्पवाएइ, णामकं अणुप्पबाएमाणस्स इमे एयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-उप्पन्ने खलु भो ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चप्पन्नमणागयाणं वरदामतित्थकुमाराणं देवाणं राईणमुवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्स रणो उवत्थाणियं करेमित्तिकटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता चूडामणिं च दिव्वं उरत्थगेविज्जगं सोणियसुत्तगं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं वरदामतित्थोदगं गेण्हइ, गेण्हिता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाये उद्धयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणीयाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वडावेत्ता एवं वयासी-अभिजिए णं देवाणु प्पिएहि केवलकप्पे भरहे वासे दाहिणिल्ले वरदामतित्थमेराए तं अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी, अहण्णं देवाणुप्पियाणं आणत्ती-किंकरे, अहण्णं देवाणुप्पियाणं दाहिणिल्ले अंतवाले, तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! ममं इमेयारूवं पीइदाणंतिकटु चूडामणि च दिव्वं उरत्थगेविज्जगं सोणियसुत्तगं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं बरदामतित्थोदगं च उवणेइ॥ ४०. तए णं से भरहे राया वरदामतित्थकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता वरदामतित्थकुमारं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥ ४१. तए णं से भरहे राया रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता वरदामतित्थेणं लवणसमुद्दाओ १. जं० ३।२४। Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ तइओ वक्खारो पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव विजयखंधाबारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरगे णिगिण्हइ, णिगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जाव ससिव्व पियदंसणे णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता, जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सुक्कं उक्करं उक्किट्ठ अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं वरदामतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियं महामहिमं करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ४२. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्टतुट्ठाओ जाव अट्टाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ४३. तए णं से दिव्वे चक्करयणे वरदामतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे' 'जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसहसण्णिणादेणं पूरेते चेव अंवरतलं उत्तरपच्चत्थिमं दिसि पभासतित्थाभिमुहे पयाते यावि होत्था ॥ ४४. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं उत्तरपच्चत्थिमं दिसि पभासतित्थाभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता तहेव जाव' पच्चत्थिमदिसाभिमुहे पभासतित्थेणं लवणसमुदं ओगाहेइ जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला' ।। ४५. तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई, निगिण्हत्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता धj परामुसइ जाव उसु णिसिरइ परिगरणिगरियमझो, वाउयद्धसोभमाणकोसेज्जो। चित्तेण सोभते धणुवरेण इंदोव्व पच्चक्खं ॥१॥ तं चंचलायमाणं, पंचमिचंदोवमं महाचावं । छज्जइ वामे हत्थे, णरवइणो तंमि विजयंमि ॥२॥ ४६. तए णं से सरे भरहेणं रण्णा णिसठे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाइं गंता पभासतित्थाधिपतिस्स देवस्स भवणंसि निवइए। ४७. तए णं से पभासतित्थाहिवई देवे भवणंसि सरं णिवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुते १. सं० पा०-- अंतलिक्खपडिवण्णे जाव परते। २. जं० ३।१५-२२ । ३. सं० पा०-उल्ला जाव पीइदाणं से, णवरं मालं मउडि मृत्ताजालं हेमजालं कडगाणि य तुडियाणि य आभरणाणि य सरं च णामायं पभासतित्थोदगं च गिण्हइ २ ता जाव पच्च. स्थिमेणं पभासतित्थ मेराए अहण्णं देवाणप्पियाणं विसयवासी जाव पच्च थिमिल्ले अंतवाले सेसं तहेव जाव अट्ठाहिया निव्वत्ता। ४. जं० ३२४ । Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० जंबुद्दीव पण्णत्ती रुठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि णिडाले साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी-केस णं भो ! एस अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं मम इमाए एयारूवाए दिव्वाए देवड्डीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं देवाणुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमण्णागयाए उप्पि अप्पुस्सुए भवणंसि सरं णिसिरइत्तिकटु सीहासणाओ अब्भु?इ, अब्भुठेत्ता जेणेव से णामाहयके सरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं णामाहयकं सरं गेण्हइ, गेण्हित्ता णामकं अणुप्पवाएइ, णामकं अणुप्पवाएमाणस्स इमे एयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-उप्पन्ने खलु भो ! जंबुद्दीने दीवे भरहे वासे भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमणागयाणं पभासतित्थकुमाराणं देवाणं राईणमुवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमित्तिकटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता मालं मउडि मुत्ताजालं हेमजालं कडगाणि य सुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं पभासतित्थोदगं गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्याए उद्ध्याए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणीयाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-अभिजिए णं देवाण प्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे पच्चथिमिल्ले पभासतित्थमेराए तं अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी, अहण्णं देवाणुप्पियाणं आणत्ती-किंकरे, अहणं देवाणु प्पियाणं पच्चथिमिल्ले अंतवाले, तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! ममं इमेयारूवं पीइदाणंतिकट्ठ मालं मउडि मुत्ताजालं हेमजालं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामायं पभासतित्थोदगं च उवणेइ ॥ ४८. तए णं से भरहे राया पभासतित्थकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता पभासतित्थकुमारं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कोरत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ ४६. तए णं से भरहे राया रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता पभासतित्थेणं लवणसमुद्दाओ पच्चुत्तरइ,पच्चुत्तरित्ता जेणेव विजयखंधावारणिवेसे जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरगे णिगिण्हइ, णिगि ण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति,पच्चोरुहित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ,उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जाव ससिव्व पियदसणे णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ,पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभि णिसीयइ,णिसीइत्ता अट्टारस सेणि-प्पसेणीओ सद्धावेइ, सद्धावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सुक्क उक्करं उक्किठें अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदडिम अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्ल दामं पमुइयपक्कीलियसपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं पभासतित्थकुमारस्य देवस्स Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो वक्खारो ४२१ अट्ठाहियं महामहिमं करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ५०. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्टतुट्ठाओ जाव अट्ठाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ५१. तए' णं से दिव्वे चक्करयणे पभासतित्थकुमारस्स' देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता' •अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दसण्णिणादेणं° पूरते चेव अंबरतलं सिंधूए महाणईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवणाभिमुहे पयाते यावि होत्था ॥ ५२. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं सिंधूए महाणईए दाहिणिल्लेणं कलेणं पूरत्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवणाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हतुटु-चित्तमाणंदिए तहेव जाव' जेणेव 'सिंधए देवीए भवणं" तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिंधए देवीए भवणस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायामं णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारणिवेसं करेइ, करेता 'वड्ढइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! ममं आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ ५३. तए णं से वड्ढइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुटु-चित्तमाणदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणति ।। ५४. तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता १. आवश्यकचूणौँ (पृ० १८६) अतः ५८ सूत्रपर्यन्तं भिन्नवाचनाया: पाठो लभ्यते-तते णं से दिव्वे चक्के पभासतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महिमाए णिवत्ताए अंतलिक्खपडिवष्णे जाव अंबरतलं सिंधूए महाणदीए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरथिमं दिसि सिंधुदेविभव- णाहिमुहे पयाते यावि होत्था, भरहे वि य णं तहेव जाव तीए भवणस्स अदूरसामंते विजय- खंधावारनिवेसेणं तहेव अट्ठमभत्तग्गहणं तंमि परिणममाणंसि सिंधुदेविए आसणचलणं ओहि- पउंजणं जीतकप्पसरणं जाव करेमित्तिक१ कभद्रसहस्सं रयणचित्तं णाणामणिकणगरयण- भित्तिचित्ताणि य दुवे कणकभद्धासणाई कड गाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य गेण्हित्ता जाव उवागच्छति जहा मागहकुमारे जाव आभरणाणि य उवणेति, रायावि तं सक्कारेति जाव अट्ठाहियाए महिमाए णिवत्ताए समाणीए से चक्करयणे । एवमग्रेपि वाचनाभेदो दृश्यते । २. पहास (अ, त्रि, ब)। ३. सं० पा०-पडिणिक्खमित्ता जाव परेंते । ४. सिंधुदेव (अ, ब) । ५. जं० ३।१५-१८ । ६. सिंधुमहाणदी दीवे (अ, ब)। ७. सं० पा०—करेत्ता जाव सिंधुए। Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ जंबुद्दीवपण्णत्ती पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता सिंधूए देवीए अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हत्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी' •उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे गिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए अट्ठमभत्तिए सिंधुदेवि मणसीकरेमाणे-मणसीक रेमाणे चिट्ठइ॥ ५५. तए णं सा तस्स भरहस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि सिंधूए देवीए आसणं चलइ॥ ५६. तए णं सा सिंधु देवी आसणं लियं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता भरहं रायं ओहिणा आभोएइ, आभो त्ता इमे एयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-उप्पन्ने खलु भो! जंबुद्दीवे दोवे भरहे वासे भरहे णामं राया चाउरतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमणा गयाणं सिंधूणं देवीणं भरहाणं' राईणं उवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमित्ति कट्ट कुंभट्ठसहस्सं रयणचित्तं णाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणगभद्दासणाणि य कडगाणि य तुडियाणि य 'वत्थाणि य" आभरणाणि य गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए 'तुरियाए चवलाए जइण।ए सीहाए सिग्याए उद्याए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणीवोईवयमाणी जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिखिणीयाइं पंचवण्णाइं वत्थाई पवर परिहिया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी - अभिजिए णं देवाण प्पिएहि केवलकप्पे भरहे वासे, अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासिणो, अहण्णं देवाणप्पियाणं आणत्ति-किंकरी तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! मम इमं एयारूवं पीइदाणंतिकट्ट कुंभट्टसहस्सं रयणचित्तं णणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणकभद्दासणाणि य कडगाणि य' 'तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य उवणेइ॥ ५७. तए णं से भरहे राया सिंधूए देवीए इमेयारूवं पीइद णं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सिंधुं देवि सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥ ५८. तए णं से भरहे राया पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हाए कयबलिकम्मे जाव' जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता' •भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, १.० पा० --बंभयारी जाव दब्भसंथारोवगए। २. परिणाइ (अ,ब)। ३. पूर्वं मागधादि प्रकरणे (२६) भरहाणं' इति पदं नैव दृश्यते। अत्र आदर्शषु एतत्पदमुप- लभ्यते, वृत्तावपि व्याख्यातमस्ति । ४. जाव (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। ५. सं० पा.---उक्किट्ठाए जाव एवं। ६. सं० पा० --कडगाणि य जाव सो चेव गमो जाव पडिविसज्जेइ । ७. जं० ३।२८। यावत्पदस्य पूरकसूत्रे हाए कयबलिकम्मे' एतद् विशेषणद्वयं नैव लभ्यते, तेन ज्ञायते एतत् स्नानक्रियायाः सूचकमेवास्ति। ८. सं० पा० -पारेत्ता जाव सीहासणवरगए। Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो वक्खारी ४२३ णिसीइत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता' •एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सक्कं उक्करं उक्किट्ठ अदिज्ज अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिम अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणचरियं अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कोलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं सिंधूए देवीए अट्ठाहियं महामहियं करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ५६. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हतुवाओ जाव अट्टाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ६०. तए णं से दिव्वे चक्करयणे सिंधूए देवीए अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउहघरसालओ' पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवडे दिव्वतडियसहसणिणादेणं परेंते चेव अंबरतलं° उत्तरपरत्थिमं दिसिं वेयड्ढपव्वयभिमुहे पयाए यावि होत्था ॥ ६१. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं उत्तरपुरत्थिमंदिसि वेयड्ढपव्वयाभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्टतुठ्ठ-चित्तमाणं दिए जाव' जेणेव वेयड्डपव्वए जेणेव वेयड्डस्स पव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेयड्स्स पव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे दुवालसजोयणायाम णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधा वारनिवेसं करेइ, करेत्ता' वड्डइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मम आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ ६२. तए णं से वड्डइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिए नंदिए पीइमाणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणति ॥ ६३. तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता वेयड्ढगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए' •पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्ण ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए अट्रमभत्तिए वेयलगिरिकुमारं देवं मणसीक रेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्टइ। ६४. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि वेयड्ढगिरिकुमारस्स देवस्स आसणं चलइ । एवं सिंधुगमो णेयवव्वो। पीइदाणं-आभिसेक्कं रयणालंकार" १. सं० पा०-सहावेत्ता जाव - अढाहियाए अदाहियाए ५. सं. पा.-पोमध्यान ५. सं० पा०-पोसहसालाए जाव अट्रमभत्तिए। महामहिमाए। ६. जं० ३५६। २.सं० पा०.-आउहघरसालाओ तहेव जाव ७. भंडालंकारं (अ, ब, पुर्व); रयणालंकारं उत्तरपुरस्थिमं। (पुवृपा) रत्नालङ्कारं-मुकुट मिति आवश्यक३. जं० ३।१५-१८ । चूणौं तथैव दर्शनात् (शावृ); आवश्यकचूणों ४. सं० पा०--करेत्ता जाव वेयड्डगिरिकुमारस्स। (पृ० १६०) मउडालंकारे' इति पाठो दृश्यते । Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीपण्णत्ती गाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए • तुरियाए चलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंत लिक्खपडिवण्णे सखिखिणीयाई पंचवणारं वत्थाइं पवर परिहिए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी - अभिजिए णं देवाणुप्पि - एहि केवलकप्पे भरहे वासे, अहण्णं देव णुप्पियाणं विसयवासी, अहण्णं देवाणुप्पियाणं आणत्ति-किंकरे, तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! मम इमं एयारूवं पीइदाणंतिकट्टु अभिसेक्कं रयणालंकारं कडगाणि य तुडियाणि य वत्याणि य आभरणाणि य उवणेइ || ६५. तए णं से भरी राया वेयड्ढगिरिकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छर, पsिच्छित्ता वेयगिरिकुमारं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्मात्तापडि - विसज्जेइ ॥ ४२४ ६६. तए णं से भरहे राया पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता व्हाए कयबलिकम्मे जाव जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ पारेता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता अट्ठारस सेणि-पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणु - पिया ! उस्सुक्कं उक्करं उक्किट्ठे अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं वेयढगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियं महामहिमं करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ६७. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वृत्ताओ समाणीओ हट्ठाओ जाव अट्ठा हियं महामहिमं करेंति, करेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिनंति ॥ ६८. तए णं से दिव्वे चक्करयणे वेयड्ढगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए व्वित्ताए समाणीए' 'आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवणे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसट्सण्णिणादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं पच्चत्थिमं दिसि तिमिसगुहा भिमु पयाए आवि होत्था || ६६. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं' पच्चत्थिमं दिसि तिमिसगुहाभि मुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठ-चित्त माणं दिए जाव' तिमिसगुहाए अदूरसामंते दुवालसजोयणायामं णवजोयण विच्छिण्णं" "वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेस करेइ, करेत्ता १. सं० पा० -- उक्किट्ठाए जाव अट्ठाहियं जाव पञ्चपिणंति । २. सं० पासमाणीए जाव पच्चत्थिमं । ३. चक्करयणं जाव (अ, क, ख, ग, ट, त्रि,) शाबू ); अत्र 'जाव' पदं लिपिप्रमादादागतं सम्भाव्यते । ४. जं० ३।१५-१८ । ५. सं० पा० मालस्स । णवजोयणविच्छिण्णं जाव कय Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारी ४२५ वड्डइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मम आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ ७०. तए णं से वड्डइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणति ।। ___७१. तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता कयमालस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी' उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए अट्ठमभतिए कयमालगं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठइ॥ ७२. तए णं तस्स भरहस्स रणो अट्टमभत्तंसि परिणममाणंसि कयमालस्स देवस्स आसणं चलइ तहेव जाव' वेयगिरिकुमारस्स, णवरं'-पीइदाणं-इत्थीरयणस्स तिलगचोद्दसं भंडालंकारं कडगाणि य 'तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए" तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्याए उद्ध्याए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणीयाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासीअभिजिए णं देवाणु प्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी, अहण्णं देवाणुप्पियाणं आणत्ति-किंकरे तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! मम इमं एयारूवं पीइदाणंतिक? इत्थीरयणस्स तिलगचोद्दसं भंडालंकारं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य उवणेइ ।। ७३. तए णं से भरहे राया कयमालस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता कयमालं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ ७४. तए णं से भरहे राया पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उबागच्छइ, उवागच्छित्ता णहाए कयबलिकम्मे जाव जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सूहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता १. सं० पा०.--बंभयारी जाव कयमालगं । हीरविजयवृत्तौ 'रयण' स्थाने 'दप्पण' इति २. जं० ३।६४ । पदं दृश्यते । ३. णवरि (अ, क, ब, स)। ६. सं० पा०-कडगाणि च जाव आभरणाणि । ४. थीरयणस्स (आवश्यक चणि पृ० १६०)। ७. सं० पा०-उक्किट्ठाए जाव सक्कारेइ, सम्माणेइ ५. प्रमेय रत्नमञ्जूषायां चतुर्दशाभरणानग्रां सालिका २त्ता पडिविसज्जेइ जाव भोयणमंडवे, तहेव गाथा उद्धृतास्ति महामहिमा कयमालस्स पच्चाप्पिणंति । हारद्धहार इग कणय रयण मुत्तावली उ केऊरे । कडए तुडिए मुद्दा कुंडल उरसुत्त चूलामणि तिलयं ॥१॥ Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ जंबुद्दीवपण्णत्तौ भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव वाहिरिया उवदाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उसुक्कं उक्करं उक्किट्ठ अदिज्जं अमिज्ज अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं कयमालं देवं अट्ठाहियं महामहिम करेह, करेत्ता मम एयमणत्तियं पच्चप्पिणह॥ ७५. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हद्वतुवाओ जाव अट्टाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता तमाणत्तियं° पच्चप्पिणंति ॥ ७६. तए णं से भरहे राया कयमालस्स देवस्स अट्टाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छाहि णं भो देवाणुप्पिया ! सिंधए महाणईए पच्चथिमिल्लं णिक्खुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेहि, ओयवेत्ता अग्गाइं वराई रयणाई पडिच्छाहि, पडिच्छित्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ ७७. तते णं से सेणावई बलस्स णेया, भरहे वासंमि विस्सुयजसे, महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी 'तेयसी लक्खणजुत्ते” मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि णिक्खुडाणं निण्णाण य दुग्गमाण' य दुक्खप्पवेसाण' य वियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं सेणावई सुसेणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिए दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए' करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सए आवासे" तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुवियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं हत्यिरयणं पडिकप्पेह हय-गय-रह-पवर जोहकलियं° चाउरंगिणि सेण्णं सण्णाहेहत्तिकटु जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सन्नद्धबद्धवम्मियकवए उप्पीलियसरासणपट्टिए पिणद्धगेवेज्ज-बद्धआविद्धविमलवरचिधपट्टे' गहियाउहप्पहरणे अणेगगणणायग-दंडणायग"- राईसर-तलवर-माडंविय-कोडुंबिय-मंति - महामंतिगणग-दोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम- सेट्ठि- सेणावइ-सत्थवाह- दूय- संधिवाल° १. तेयलक्खणजुत्ते (क, ख, त्रि, प, स, शावृ, ही ६. सिग्घा मेव (अ, ब)। पुत्पा, आवश्यकचूणि पृ० १६०) । ७. अभिसेक्क (अ,ब) । २. दुसमाण (अ, ब)। ८. सं० पा०-हयगयरहपवर जाव चाउरंगिणि। ३. दुप्पवेसाण (प, स, शावृ)। ६. गेवेज्जे (अ,ख,ब,स,पुर्व); गेवेज्ज (पुवपा)। ४. सं० पा०.-हटतुटुचित्तमाणं दिए जाव १०. चिंधवट्टे (ब)। करयल। ११. सं० पा०-दंडणायग जाव सद्धि । ५. आवासए (ब)। Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारी ४२७ सद्धि संपरिवुडे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मंगलजयसद्दकयालोए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरुढे ॥ ७८. तए णं से सुसेणे सेणावई हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे महयाभड चडगरपहगरवंदपरिक्खत्ते महयाउक्किट्ठिसीहणायबोलकलकलसद्देणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयंपिव करेमाणे-करेमाणे सव्विड्डीए सव्वज्जुईए सव्ववलेणं' सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूसाए सव्वविभूईए सव्ववत्थपुप्फ-गंध-मल्लालंकारविभूसाए सव्वतुरिय-सद्दसण्णिणाएणं महया इड्डीए जाव महया वरतुरिय-जमगसमगपवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहिमुरव-मुइंग-दंदुहि -निग्घोसनाइएणं' जेणेव सिंधू महाणई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चम्मरयणं परामुसइ ।। ७६. तए णं तं सिरिवच्छसरिसरूवं मुत्ततारद्धचंदचित्तं अयलमकंपं अभेज्जकवयं, जंतं सलिलासु सागरेसु य उत्तरणं दिव्वं चम्मरयणं, सणसत्तरसाई' सव्वधण्णाई जत्थ रोहंति एगदिवसेण वावियाई, वासं णाऊण चक्कवट्टिणा परामुट्ठ दिव्वे चम्मरयणे दुवालस जोयणाई तिरियं पवित्थरइ तत्थ साहियाई ।। ८०. तए णं से दिव्वे चम्मरयणे सुसेणसेणावइणा परामुट्ठ समाणे खिप्पामेव णावाभूए जाए यावि होत्था ।। ८१. तए णं से सुसेणे सेणावई सखंधावारबलवाहणे णावाभूयं चम्मरयणं दूरह, दुरुहित्ता सिंधु महाणइं विमलजलतुंगवीचि णावाभूएणं चम्मरयणेणं सबलवाहणे ससासणे समुत्तिणे । तओ महाणइमुत्तरित्तु सिंधुं अप्पडिहयसासणे य सेणावई कहिंचि गामागरणगरपव्वयाणि खेडमडंबाणि' पट्टणाणि य सिंहलए बब्बरए य सव्वं च अंगलोयं बलावलोयं" च परमरम्म, जवणदीवं च पवरमणिकणगरयणकोसागारसमिद्धं, आरबके रोमके य अलसं १. द्रूढे (अ,क,ख,ब)। चतुर्विंशतिरप्युक्तानि, लोके च क्षुद्रधान्यानि २. सं. पा.---सव्वबलेणं जाव निग्घोसनाइएणं। बहन्यपि। ३. °नाइयरवेणं (आवश्यकचूणि पृ० १६०)। ६. द्रुहइ (ब)।। ४. यंदचितं (अ,क,ब.स)। ७. °वीतीं (अ,क,ख,त्रि,ब,स) वीइयं (आवश्यक५. सणसत्तगमाइं (अ,ब); सत्तसत्तरसयाई चूणि पृ० १६१)। (पुवपा) । प्रमेयरत्नमञ्जूषायां सप्तदशधान्य. ८. x (अ,ब); उत्तरति (आवश्यकचूणि पृ० सङ्ग्राहिका गाथा उद्धृतास्ति १६१)। सालि जव वीहि कुद्दव रालय तिल मुग्ग मास ६. खेडकब्बडमंडबाणि (आवश्यकचूणि पृ०१६१)। चवल चिणा। १०. च लावलोकं (क, त्रि,हीव); विलायलोकं तूअरि मसूरि कुलत्था गोहुम णिप्फाव अयसि (आवश्यकचूणि पृ० १६१) । सणा॥शा ११. परममणि° (अ,ब); पवरमणिरयणकणग° प्रायो बहूपयोगिनीमानीत्युक्तानि, अन्यत्र- (प, थावृ)। Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दी ववपण्णत्ती sविसवासी' य पिक्खुरे कालमुहे जोणए य उत्तरवेयसंसियाओ य मेच्छजाई बहुप्पगारा दाहिण अवरेण जाव सिंधुसागरतोत्ति' सव्वपवर कच्छं च ओयवेऊण पडिणियतो बहुसमरमणिज्जे य भूमिभागे तस्स कच्छस्स सुहणिसण्णे । ताहे ते जणवयाण गगराण पट्टणाण य जे यह सामिया पभूया आगरपती य मंडलपती य पट्टणपती य सव्वे घेत्तूण पाहुडाई आभरणाणि भूसणाणि रयणाणि य वत्थाणि य महरिहाणि, अण्णं च जं वरिट्ठ रायारिहं जंच saroj एवं सेवइस्स उवर्णेति मत्थयकयंजलिपुडा, पुणरवि काऊण अंजलि मत्थमि पया "तुभे म्हत्थ' सामिया, देवयं व सरणागया मो तुब्भं विसयवासित्ति" विजयं जंपमाणा सेणावइणा जहा रिहं ठविय पूइय विसज्जिया णियता सगाणि नगराणि पट्टणाणि विट्ठा। ता सेावई सविणओ घेत्तूण पाहुडाई आभरणाणि भूसणाणि रयणाणि य पुरवितं सिंधुणामधेज्जं उत्तिष्णे अणहसासणबले, तहेव 'रण्णो भरहा हिवस्स'' णिवेएइ, णिवेत्ता य अपप्पिणित्ता' य पाहुडाई सक्कारिय- सम्माणिए " सहरिसे विसज्जिए सगं पडमंडव मइगए || ४२८ ८२. तते णं सुसेणे सेणावई पहाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल- पायच्छित्ते जिमियभुत्तुत्तरागए समाणे " आयंते चोक्खे परमसुइभूए' सरसगोसीसचंदणु विकण्ण गायसरीरे उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं वत्तीसइबद्धेहिं णाडएहि वरतरुणीसंपउत्तेहि उवणच्चिज्जमाणे उवणच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे - उवलालिज्जमाणे महायण- गीय-वाइय-तंती - तल-ताल-तुडिय घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं इट्ठे सद्दफरिसरसरूवगंधे पंचविहे माणुस्सर कामभोगे भुंजमाणे विहरइ ॥ ८३. तणं से भरहे राया अण्णया कयाइ" सुसेणं सेणावई सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - गच्छ णं खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेहि, विहाडेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ ८४. तणं से सुसेणे सेणावई भरहेणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे हद्दुतुटु - चित्तमाणं दिए " • नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थ अंजलिकट्टू" एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुणेइ, पत्ता भरहस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सए आवासे ९. अलसंडविसय ( अ, ब ) ; अलसंडविसयासी य (क) 1 २. सिंधुसागरतोत्तिय (क, ख ) । ३. अम्हित्थ (क, त्रि, स ) ; अम्हेत्थ (ख, प ) । ४. च (पुवृ); व (पुवृपा ) । ५. वारिणोति ( प, आवश्यकचूर्णि पृ १९१ ) । ६. विय ( अ, ब, पुवृ); विजयं ( पुवृपा ) । ७. ताव (अ, ब ) । ८. भरहस्सरण्णो ( प, शावृ, ही वृ ) । ६. अप्पणित्ता (खत्रि, प, स ) । १०. 'तए णं भरणं रण्णा' इति शेष: ( हीवृ) 1 ११. सं० पा० समाणे जाव सरसगोसीस | समाणे सरसगोसीस ( पुवृ) । १२. चंद (त्रि, प, शावृ ) । १३. कदाचि (अत्रि,व); कयाति ( आवश्यक चूर्णि पृ० १६२) । १४. सं० पा०-हदुतुट्ठचित्तमाणंदिए करयल । १५. सं० पा० - कट्टु जाव पडिसुणेइ । जाव Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४२६ जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दम्भसंथारगं संथरइ', 'संथ रित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता कयमालस्स देवस्स अट्ठमभत्तं परिण्हइ, पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी 'उम्मुकमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्थमुसले Goriथा रोगए एगे अबीए अट्टमभत्तं पडिजागरमाणे - पडिजागरमाणे विहरइ ॥ क्खमइ, ८५. एणं से सुसे सेणावई' अठ्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिपडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पहाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई' मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे धूवपुप्फगंधमल्लहत्थगए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा' तेणेव पहारेत्थ गमणाए । ८६. तए णं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स बहवे राईसर - तलवर - माडंबिय'- - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि- सेणावइ - सत्थवाहप्पभियओ - अप्पेगइया उप्पलहत्थगया जाव' अप्पेगइया सहपत्तहत्थगया सुसेणं सेणावई पिट्ठओ-पिट्ठओ अणुगच्छति ॥ ८७. तणं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स बहूओ' खुज्जाओ चिलाइयाओ जाव' इंगियचितिय-पत्थिय-विआणियाओ णिउणकुसलाओ विणीयाओ अप्पेगइयाओ वंदण कलस हत्थ - गयाओ जाव' सुसेणं सेणावई पिट्ठओ-पिटुओ अणुगच्छति ॥ ८८. तणं से सुसेणे सेणावई सव्विड्डीए सव्वजुईए जाव" णिग्घोसणाइएण जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस दुवारस्स कवाडा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेइ, करेत्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितले चच्चए य दलयति, दलयित्ता अग्गेहि वरेहिं गंधेहि मल्लेहि य अच्चिणेइ, अच्चिणेत्ता पुप्फारुहणं मल्ल-गंध-वण्ण- चुण्ण-वत्थारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविपुलवट्ट" - `वग्घारियमल्लदामकलावं पंचवण्णसरस सुरभिमुक्क पुप्फपुंजोवयारकलियं कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क-धूवमघमघेत-गंधुद्ध्याभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं° करेइ, करेत्ता अच्छेहि सहेहि सेतेहि रययामएहि अच्छरसातंडुलेहि तिमिस्सगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडाणं पुरओ अट्ठट्ठ मंगलए आलिहइ, [तं जहा -सोत्थिय सिरिवच्छ" "णंदियावत्त वद्धमाणग भद्दासण मच्छ कलस दप्पण अट्ठमंगलए ] आलिहित्ता काऊणं" करेइ उवयारं, कि ते? पाडल-मल्लिय चंपग असोग- पुण्णाग, चूयमंजरि णवमालिय १. सं० पा०—संरइ जाव कयमालस्स । २. सं० पा० - बंभयारी जाव अट्ठमभत्तंसि । ३. वेसाई ( अ, ब ) । ४. कवाडाओ (ब) 1 ५. सं० पा० - माडंबिय जाव सत्यवाह° । ६. जं० ३।१० । ७. बहूईओ ( प ) । ८. ओ० सू० ७० ॥ ६. जं० ३।११ । १०. जं० ३।१२ । ११. सं० पा० - पुप्फारुहणं जाव वत्थारुणं । १२. सं० पा० – आसत्तोसत्तविपुलवट्ट जाव करेइ । १३. सं० पा० - सिरिवच्छ जाव कयग्गह' | १४. द्रष्टव्यम् - १२ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० जंबुद्दीवपण्णत्ती बकुल-तिलग-कणवीर-कुंद-कोज्जय-कोरंटय-पत्त-दमणय-वरसुरहिसुगंधगंधियस्स' कयग्गहगहिय-करयलपब्भट्ठ' विप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणिगरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमेत्तं ओहिनिगरं करेत्ता चंदप्पभवइरवेरुलियविमलदंडं 'कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमट्टि विणिम्मुयंतं वेरुलियमयं कडुच्छुयं पग्गहेत्तु पयते धूवं दलयइ', दलयित्ता वामं जाणु अंचेइ, अंचेत्ता करयल' 'परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट कवाडाणं पणामं करेइ, करेत्ता दंडरयणं परामसइ, तए णं तं दंडरयणं पंचल इयं वइरसारमइयं, विणासणं सव्वसत्तसेण्णा खंधावारे णरवइस्स गड्ड-दरि-विसम-पब्भार-गिरीवर-पवायाणं समीकरणं, संतिकरं 'सुभकरं हितकर" रण्णो हियइच्छियमणोरहपूरगं दिव्वमप्पडिहयं दंडरयणं गहाय सत्तट्ठ पयाइं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे दंडरयणणं महया-महया सद्देणं तिक्खुत्तो आउडेइ ।। ८६. तए णं तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सुसेणसेणावइणा दंडरयणेणं महया-महया सद्देणं तिखुत्तो आउडिया समाणा महया-महया सद्देणं कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स" सगाई-सगाई ठाणाई पच्चीसक्कित्था ।। ६०. तएणं से सुसेणे सेणावई तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेइ, विहाडेत्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" भरहं रायं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासीविहाडिया णं देवाणु प्पिया ! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा, एयण्णं देवाणुप्पियाणं पियं णिवेदेमो, पियं भे" भवउ॥ ६१. तए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अंतिए एयमढं सोच्चा निसम्म हट्ठ १. अस्मात् पदात करेत्ता' पर्यन्तः पाठः आदर्शेषु १६२) 'तते णं सेणावती जाव भरहस्स तं लिखितो नैव दृश्यते । बहुषु स्थानेषु लिपिकारैः निवेदेइ' इति पाठोस्ति । अस्मिन् विषये पूर्वागतः पाठः सक्षिप्यैव लिख्यते । उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण एवं समीक्षा कृतास्ति२. सं० पा०--वेरुलियविमलदंडं जाव धूवं । इदं च सूत्रमावश्यकचौँ वर्द्धमानसूरिकृतादि३. ३।१२ सूत्रे 'धूवं दहइ' इति पाठो विद्यते । चरित्रे च न दृश्यते, ततोनन्तरपूर्वसूत्र एव ४. सं० पा०~करयल जाव मत्थए । कपाटोद्घाटनमभिहितं, यदि चैतत्सूत्रादर्शान५. णं भंते (ख,ब); णं भवे (आवश्यकचूणि पृ० सारेणेदं सूत्रमवश्यं व्याख्येयं तदा पूर्वसूत्रे १६२)। सगाई २ ठाणाई इत्यत्रार्षत्वात् पञ्चमी ६. पंचरतिय (क)। व्याख्येया तेन स्वकाभ्यां २ स्थानाभ्यां कपाट७. सेणाणं (त्रि,प, शावृ, हीवृ)। द्वयसम्मीलनास्पदाभ्यां प्रत्यवस्तृताविति - ८. पहाणा (अ,ख,ब, शावृपा)। किञ्चिदविकसितावित्यर्थः तेन विघाटनार्थक६. हितकरं शुभकरं (क,ब,स, पुवृ)। मिदं न पुनरुक्तमिति। १०. आउड्डेइ (ख) आउट्टेइ (त्रि)। १३. उवागच्छित्ता जाव (अ,क,ख,त्रि,पब,स); ११. सरसरसरस्स (ब)। एतत्पदं लिपिप्रमादादागत सम्भाव्यते । १२. अस्य सूत्रस्य स्थाने आवश्यकचूणौँ (पृ० १४. x (त्रि, हीव)। Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४३१ तुटु - चित्तमादिए' 'नंदिए पीइमणे परमसोमण स्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए सुसेणं सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कं हत्थिरपणं पडिकप्पेह, हय-गयरह-पवरजोहक लियं चाउरंगिणिं सेण्णं सण्णा हेह तहेव जाव' अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवरं वई दुरुढे ॥ ६२. तए णं से भरहे राया मणिरयणं परामुसइ तो' तं चउरंगुलप्पमाणमेत्तं च अणग्घियं * 'तंस-च्छलं सं" अणोवमजुई दिव्वं मणिरयणपतिसमं वेरुलियं सव्वभूयकं तं वेढो - जेण य मुद्धागणं दुक्खं, ण किंचि जायइ' 'हवइ आरोग्गे य" सव्वकालं । तेरिच्छिय-देवमाणुसकया य, उवसग्गा सव्वे ण करेंति तस्स दुक्खं । संगामे व असत्यवज्झो, होइ णरो मणिवरं धरेंतो । ठियजोव्वण-केसअवट्ठियणहो, हवइ य सव्वभयविप्पमुक्को । तं मणिरणं गहाय से णरवई हत्थिरयणस्स दाहिणिल्लाए कुंभीए णिक्खिवर || ६३. तए गं से भरहाहिवे परिंदे हारोत्थयसुकयरइयवच्छे' 'कुंडल उज्जोइयाणणे उदित्तसिर णरसीहे णरवई गरिदे णरवसभे मरुयरायवसभकप्पे अब्भहियरायतेयलच्छीए दिप्पमाणे पसत्थमंगल सएहिं संयुव्वमाणे जयसद्दकयालोए हत्थिखंधव रगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहि उद्धव्वमाणीहि उद्धव्व माणीहि जक्खसहस्ससंपरिवडे वेसणे व धणवई' अमरवइसण्णिभाए इड्डीए पहियकित्ती मणिरयणकउज्जोए " चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे महयाउक्किट्टिसीहणायबोलकलकलवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणे- करेमाणे जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्ले दुवारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिमिसगुहं दाहिणिल्लेणं दुवारेणं अतीति ससिव्व मेहंधकारनिवहं ॥ ६४. तए णं से भरहे राया छत्तलं दुवालसंसियं अट्ठकण्णियं अहिगरणिसंठिय अट्ठसवण्णय कागणिरयणं परामुसइ ॥ ६५. तए णं तं चउरंगुलप्पमाणमित्तं" १. सं० पा० - हट्टतुट्ठ चित्तम दिए जाव हियए । २. जं० ३ । १५-१७ । ३. ततो ( स ) ; उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण 'तोत' मितिपाठः परामृष्ट:- 'तोत' मिति सम्प्रदायाद् गम्यम् । ४. अणग्घेतं (ख,ब,स, पुवृ, आवश्यकचूर्णि पृ० १३); अणक्खेयं (पुवृषा ) । ५. तस्सच्छलंसं ( अ, क, त्रि, बस, पुवृ); छलंसं (आवश्यकचूर्णि पृ० १६३ ) । ६. 'पडिमं (क) । तंसं अट्ठसुवण्णं च विसहरणं अडलं चउरंससंठाण ७. जाति ( अ,ख, ब ) ; जाव (अवश्यकचूर्णि पृ० १६३); 'जाव' इति पदं लिपिदोषाज्जातं दृश्यते । ८. पाठान्तरे - भवत्यरोगता ( पुवृ ) । ६. सं० पा०-- हारोत्थय सुकयरइयवच्छे जाव अमरवइ । १०. ॰कयउज्जोए (क); 'कयउज्जोवे (ख) । ११. हीर विजयसूरिणा अनुयोगद्वारेणास्य विसंवादित्वविषये विस्तृता चर्चा कृतास्ति यत्तु एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्क बट्टिस्स Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ जंबुद्दीवपण्णत्ती संठियं समतलं, माणुम्माणजोगा जतो लोगे चरंति सव्वजणपण्णावगा, णवि चंदो ‘णवि तत्थ", सूरो ‘णवि अग्गी" णवि तत्थ मणिणो तिमिरं णासेंति अंधकारे, जत्थ तकं दिव्वप्पभावजुत्तं' दुवालसजोयणाई तस्स लेसाओ विवड्ढंति तिमिरणिगरपडिसेहियाओ', रति च सव्वकालं खंधावारे करेइ 'आलोयं दिवसभूयं" जस्स पभावेण चक्कवट्टी, तिमिसगुहमतीति सेण्णसहिए अभिजेतुं वितियमद्धभरहं रायपवरे कागणि गहाय तिमिसगुहाए पुरथिमिल्ल-पच्चत्थि मिल्लेसु कडएसुं जोयणंतरियाई पंचधणुसयायामविक्खंभाई जोयणज्जोयकराइं चक्कणेमीसंठियाइं चंदमंडलपडिणिकासाइं एगणपण्णं मंडलाइं आलिहमाणेआलिहमाणे अणुप्पविसइ॥ ६६. तए णं सा तिमिसगुहा भरहेणं रण्णा तेहिं जोयणंतरिएहिं पंचधणुसयायामविक्खंभेहिं जोयणुज्जोयक रेहिं एग्गणपण्णाए मंडलेहिं आलिहिज्जमाणेहि-आलिहिज्जमाणेहिं खिप्पामेव आलोगभूया उज्जोयभूया दिवसभूया जाया यावि होत्था ॥ श्चचितोस्ति-यत्त 'तस्स णं एगमेगा कोडी उस्से हंगुल विक्खंभा तं च समणस्स भगवओ महावीरस्स अद्धंगुलं; इत्यनुयोगद्वारसूत्रे उक्तं तन्मतान्तरमवसेयम् । पुण्यसागरवृत्तावपि एषा चर्चा विद्यते। (हस्तलिखितवृति पत्र अट्टसोवष्णिए कागिणीरयणे छत्तले दुवालसंसिए अट्ठकण्णिए अहिगरणीसंठाणसंटिए पण्णत्ते। तस्स णं एगमेगा कोडी उस्सेहंगुलविक्खंभा इति श्री अनुयोगद्वारसत्रे तदवत्तौ च एतानि च मधुरतृणफलादीनि भरतचक्रवत्तिकालसंभवान्येव गृह्यन्ते अन्यथा कालभेदेन वैषम्यसंभवे काकिणीरत्नं सर्वचक्रिणां तुल्यं न स्यात तुल्यं चेष्यते इति व्याख्यातं तच्च विचार्यमाणं सम्यगभिप्रायविषयो न भवति यतः सूत्रे उत्सेधांगुलप्रमाणं कागिणीरत्नं भणितं तद्वृत्तौ च प्रमाणांगुलप्रमाणं उभय ण उभय- मपि प्रवचनसारोद्धारादिना विसंवादि- युक्त्वक्षमं च यत्तु चतुरंगुलो मणी पुणेति माथां व्याख्यानयता श्रीमलयगिरिणापि इहांगुलं प्रमाणांगुलमवगन्तव्यं सर्वचक्रवत्तिना- मपि काकिण्यादिरत्नानां तुल्यप्रमाणत्वादिति बृहत्संग्रहणीवृत्तौ एतदपि प्राग्वद् विचारणास्पदमेवेति बहुश्रुतः सम्यकपर्यालोच्य यथावत् श्रद्धेयमिति। चतुरंगुलप्रमाणमात्रं नाधिकं न च न्यूनमिति यत्तु 'उस्सेहंगुल विक्खंभा' इत्यनुयोगद्वारवचनेन एकांगुलप्रमाण वमुक्तं तद्वाचनाभेदहेतुकं संभाव्यते । शान्तिचन्द्रीयवतावपि एष मतभेद १. णाइ तत्थ (अ,ब,स); ण इव तत्थ (क,प); ण इर तत्थ (ख, शाव, आवश्यकचूणि पृ० १९३); "इवात्थ (त्रि)। २ ण इवग्गी (अ,ख,त्रि,ब);ण इव अग्गी (क,प, स) अग्रेपि । ३. दिव्वभावजुत्तं (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स,पुव,हीव) । ४. पडिसेधियाओ (ब); पडिसिहिक्काओ (आवश्यकणि पृ० १९३) । ५. आलोयदिवसभूयं (पूर्व) ; आलोकं दिवसभूये (पुवृपा) । ६. अभिजेत्तुं (त्रि)। ७. रायवर (अ,क,ख,प,ब,स, पुवृ,शावृ)। ८. पंचधणुसयाई पंचधणुयामविक्खंभाई (अ,ब); पंचधणुसयाई क्विखंभाइं (त्रि); पंचधणु सयविक्खंभाइं (शा)। ६. सं० पा०-जोयणंतरिएहिं जाव जोयणुज्जोय करेहि। Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ६७. तीसे णं तिमिसगुहाए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं 'उम्मुग्ग-णिमुग्गजलाओ" णामं दुवे महाणईओ पण्णत्ताओ, जाओ णं तिमिसगुहाए पुरथिमिल्लाओ भित्तिकडगाओ पवूढाओ समाणीओ पच्चत्थिमेणं सिंधुं महाणइं समप्पेंति ।। ६८. से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ-उम्मुग्ग-णिमुग्गजलाओ महाणईओ ? गोयमा ! जण्णं उम्मुग्गजलाए महाणईए तणं वा पत्तं वा कळं वा सक्करा वा आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे वा मणुस्से वा पविखप्पइ', तण्णं उम्मुग्गजला महाणई तिवखुत्तो आहुणियआहुणिय एगंते थलं सि एडेइ। जण्णं णिमुग्गजलाए महाण ईए तणं वा पत्तं वा कळं वा सक्करा वा आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे वा मणुस्से वा पक्खिप्पइ, तण्ण णिमुग्गजला महाणई तिक्खुत्तो आहुणिय-आहुणिय अंतो जलंसि णिमज्जावेइ। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-उम्मुग्गणिमुग्गजलाओ महाणईओ॥ ६. तए णं से भरहे राया चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे महया उक्किट्टिसीहणाय बोलकलकलरवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयंपिव' करेमाणे-करेमाणे सिंधूए महाणईए 'पुरथिमिल्लेणं कूलेणं" जेणेव उम्मुग्गणिमुग्गजलाओ महाणईओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वड्डइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उम्मुग्गणिमुग्गजलासु महाणईसु अणेगखंभसयसण्णिविठे अचलमकंपे अभेज्जकवए सालंबणबाहाए सव्वरयणामए सुहसंकमे करेहि, करेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणाहि ॥ १००. तए णं से वड्डइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिए" 'नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं सामो ! तहत्ति आणाए° विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता खिप्पामेव उम्मुग्गणिमुग्गजलासु महाणईसु अणेगखंभसयसण्णिविट्ठे 'अचलमकंपे अभेज्जकवए सालंबणबाहाए सव्वरयणामए° सुहसंकमे करेइ, करेत्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तिय पच्चप्पिणइ ।। १०१. तए णं से भरहे राया सखंधावारबले उम्मुग्गणिमुग्गजलाओ महाणईओ तेहिं अणेगखंभसयसण्णिविठेहिं 'अचलमकंपेहि अभेज्जकवएहि सालंवणवाहाएहि सव्वरयणामएहिं सुहसंकमेहिं उत्तरइ ॥ १०२. तए णं तीसे तिमिसगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सयमेव महया-महया कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई" सगाईठाणाई पच्चोसक्कित्था ।। १०३. तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरड्डभरहे वासे बहवे आवाडा णामं चिलाया १. उम्मग्गणिम्मग्ग (प) ; उम्मग्गणिमग्ग (स)। ७. सं०पा०–हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिए जाव विणएणं । २. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुवृ,हीवृ) । ८. सं० पा०-अणेगखंभसयसण्णिविठे जाव सुह३. परिक्खिप्पति (ख.त्रि); पक्खिपति (पु); संको। पक्खिप्पति (पुवपा)। ६. उवागच्छित्ता जाव (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। ४.सं० पा०-सक्करा वा जाव मणस्से। १०. सं० पा०--अणेगखंभसयसण्णिविटठेहिं जाव ५. सं० पा०-उक्किट्ठिसीहणाय जाव करेमाणे। सुहसंकमेहि। ६. उभयत्रापि 'ण' शब्दो वाक्यालङ्कारे (शावृ)। ११. साइं (क,ख,)। Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ जंबुद्दीवपण्णत्ती परिवसंति----अड्डा दित्ता वित्ता विच्छिण्णविउलभवण-सयणासण-जाणवाहणाइण्णा बहुधण'बहुजायरूवरयया आओगपओगसंपत्ता विच्छड्डियपउरभत्तपाणा बहुदासीदास-गो-महिसगवेलगप्पभूया बहुजणस्स अपरिभूया सूरा वीरा विक्कंता विच्छिण्णविउलबलबाहणा बहुसु समरसंपराएसु लद्धलक्खा यावि होत्था ॥ १०४. तए णं तेसिमावाडचिलायाणं अण्णया कयाइ विसयंसि वहूई उप्पाइयसयाई पाउन्भवित्था, तं जहा-अकाले गज्जियं, अकाले विज्जुयं, अकाले पायवा पुप्फंति, अभिक्खणंअभिक्खणं आगासे देवयाओ णच्चंति ।। १०५. तए णं ते आवाडचिलाया विसयंसि बहूई उप्पाइयसयाई पाउब्भूयाइं पासंति, पासित्ता अण्णमण्णं सदावेंति सहावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं विसयंसि बहूइं उप्पाइयसयाइं पाउब्भूयाइं तं जहा-अकाले गज्जियं, अकाले विज्जुयं, अकाले पायवा पुप्फति, अभिक्खणं-अभिक्खणं आगासे देवयाओ णच्चंति तं ण णज्जइ णं देवाणुप्पिया ! अम्हं विसयस्स के मन्ने उवद्दवे भविस्सइत्ति कटु ओहयमणसंकप्पा चिंतासोगसागरं पविट्ठा करयलपल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठिया झियायंति ॥ १०६. तए णं से भरहे राया चक्करयणदेसियमग्गे' 'अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे महयाउक्किटिसीहणाय बोलकलकलरवेणं पक्खुभियमहा समुद्दरवभूयं पिव करेमाणेकरेमाणे तिमिसगुहाओ उत्तरिल्लेणं दारेणं णीति ससिव्व मेहंधयारणिवहा ॥ १०७. तए णं ते आवाडचिलाया भरहस्स रण्णो अग्गाणीयं एज्जमाणं पासंति, पासित्ता, आसुरुत्ता रुद्वा चंडिक्किया कुविया मिसिमिसेमाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! केइ अप्पत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए', जे णं अम्हं विसयस्स 'उरि विरिएणं" हव्वमागच्छइ, तं तहा णं घत्तामो देवाणुप्पिया! जहा णं एस अम्हं विसयस्स 'उरि विरिएणं" णो हव्वमागच्छइत्तिकट्ट अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सण्णद्धबद्धवम्मियकवया उप्पीलियसरासणपट्टिया पिणद्धगेवेज्जा वद्धआविद्धविमलवरचिंधपट्टा गहिआउहप्पहरणा जेणेव भरहस्स रणो अग्गाणीयं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भरहस्स रणो अग्गाणीएण सद्धि संपलग्गा यावि होत्था ॥ १०८. तए णं ते आवाडचिलाया भरहस्स रण्णो अग्गाणीयं हयमहियपवरवीरघाइयविवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसिं पडिसेति ।। १०६. तए णं से सेणावलस्स णेया" 'भरहे वासंमि विस्सुयजसे महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि णिक्खुडाणं निण्णाण य दुग्गमाण य दुक्खप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं १. बहुधणा (आवश्यकचूणि पृ १६४) । २. सं० पा०--°मग्गे जाव समुद्दरवभूयं । ३. हरि °(अ,ख,ब)। ४. अवरवरिएणं (अ,क,त्रि,ब,हीव)। ५. अपरवरिएणं (अ,क,त्रि,प,ब,स,हीव) । ६. पडिसेवंति (क,त्रि,प,ब) ; प्राचीनलिप्यां धकार वकारयो : प्रायः सादृश्येन अर्वाचीनादर्शषु धकारस्थाने वकारो जात :। ७. सं० पा०—णेया वेढो जाव भरहस्स। Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो वक्खारो ४३५ सेणावई सुसेणे भरहस्स रण्णो अग्गाणीयं आवाडचिलाएहिं हयम हियपवरवीर"घाइयविवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसिं पडिसेहियं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे कमलामेलं आसरयणं दुरुहइ, तए णं तं असीइमंगुलमूसियं णवणउइमंगुलपरिणाहं अट्ठसयमंगुलमायतं बत्तीसमंगुलमूसियसिरं चउरंगुलकण्णाकं वीसइअंगुलबाहाक' चउरंगुलजण्णुक' सोलसअंगुलजंघाकं चउरंगुलमूसियखुरं मुत्तोलीसंवत्तवलियमज्झं' 'ईसिं अंगुट्ठपणयपढें संणयपढें संगयपढें सुजायपळे पसत्थपढें विसिट्ठपढें 'एणीजण्णुण्णय-वित्थय-थद्धपट्ठ" वित्तलयकसणिवाय-अंकेल्लणपहार"-परिवज्जिअंगं तवणिज्जथासगाहिलाणं वरकणगसुफुल्लथासगविचित्तरयणरज्जुपासं कंचणमणिकणगपयरग-णाणाविहघंटियाजाल-मुत्तियाजालएहिं परिमंडिएणं पट्टेणं सोभमाणेणं सोभमाणं कक्केयण-इंदनील-मरगय-मसारगल्लमुहमंडणरइयं आविद्धमाणिक्कसुत्तगविभूसियं कणगामयपउमसुकयतिलकं देवमइविकप्पियं 'सुरवरिंदवाहणजोग्गं च तं" सुरूवं दूइज्जमाणपंचचारुचामरामेलगं धरेंतं अणदब्भवाह अभेलणयणं कोकासियबलपत्तलच्छं सयावरणनवकणग-तवियतवणिज्जतालुजीहासयं सिरिआभिसेयघोणं" पोक्खरपत्तमिव सलिलबिंदु अचंचलं चंचलसरीरं" चोक्ख" चरग-परिव्वायगो विव हिलीयमाणं-हिलीयमाणं खुरचलणचच्चपुडेहि धरणियलं अभिहणमाणं-अभिहणमाणं, दोवि य चलणे जमगसमगं मुहाओ विणिग्गमंतं व, सिग्घयाए मुणालतंतुउदगमवि" णिस्साए पक्कमंतं, जाइकुलरूवपच्चय-पसत्थबारसावत्तगविसुद्धलक्खणं सुकुलप्पसूयं मेहावि भद्दयं विणीयं अणुकतणुकसुकुमाललोमनिद्धच्छवि सुयातं"अमर-मण १. सं० पा०-पवरवीर जाव दिसोदिसि । आवश्यकचूणौं (पृ० १६५) 'अणट्टब्भवाह' २. विसति° (त्रि)। इति पाठो मुद्रितोस्ति, किन्तु सोपि 'अणदब्भ३. जंणूकं (क,ख,त्रि,प,ब,स)। वाह' इति प्रतीयते । ४. सुत्तोली (त्रि,ब); लिपिदोषाद वर्णविपर्यासो ११. सिरियाभिसे यघोसणं (ख,त्रि,ब,पुत्पा , जात : । हीवृपा) ; सिरिसाभिसेअघोणं (शावृपा) । ५. °अंगुलपणयपट्ट (अ,ख,त्रि,प,ब,स,पुत्,शाव); १२. सलिलबिंदुजुवं (आवश्यकचूणि पृ० १६५) । अंगुलाष्टप्रणतं (ही)। १३. चवल° (ब,आवश्यकचूणि पृ० १६५) । ६. एणीजंतुण्णयवित्थतत्थपट्ठ (ब,पुव० शाव); १४. चुक्ख (क,ख,स)। एणीजण्णण्णयवित्थयत्थद्धपट्ठ (पुवपा) । १५. हीलिज्जमाणं (त्रि,); हीलियमाणं (ब); ७. अण्हेल्लणपहार (अ,ब)। प्राकृतशैल्या अकार प्रश्लेषादभिलीयमानम् ८. पत्थरक (ख)। (शाव)। ६. जोग्गं वयं (प) ; जोग्गं व तं (पुवृ) ; १६. पक्खुर° (हीवृपा) । जोग्गावयं (शाव)। १७. मुणालयंतु° (त्रि,ब)। १०. x (अ, ब); अणब्भवाहं (ख,प,स,पुत्,शावृ १८. अणुपयणुक° (अ,ब) । हीवृपा) ; अणवन्भवाहं (त्रि,हीवृ) ; अदभ- १६. सुजातं (हीवृ, आवश्यकचूणि पृ० १६५) ; वाहं (थावृपा) ; अणदब्भवाहं (हीवृपा); सुयातं (हीवृपा) । Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ जंबुद्दीवपण्णत्ती पवण'-गरुलजइणचवलसिग्घगामि, इसिमिव खंतिखमाए', सुसीसमिव पच्चक्खयाविणीयं उदग-हुतवह-पासाण-पंसु-कद्दम-ससक्कर-सवालुइल्ल-तड'-कडग-विसम-पब्भार - गिरिदरीसू लंघण-पिल्लण-णित्थारणासमत्थं, अचंडपाडियं दंडपाति अणंसुपातिं अकालताल'च कालहेसिं जियनिदं गवेसगं जियपरिसहं जच्चजातीयं मल्लिहाणि' सुगपत्तसुवण्ण-कोमल मणाभिरामं कमलामेलं णामेणं आसरयणं सेणावई कमेण समभिरूढे कुवलयदलसामलं च रयणिकरमण्डलनिभं सत्तजणविणासणं कणगरयणदंडं णवमालियपुप्फसुरभिगंधि' णाणामणिलयभत्तिचित्तं च पधोत-मिसिमिसिंत-तिक्खधारं दिव्वं खग्गरयणं लोके अणोवमाणं तं च पुणो वंस-रुक्ख सिंगट्ठि-दंत-कालायस विपुललोहदंडक-वरवइरभेदकं जाव सव्वत्थअप्पडिहयं किं पुण देहेसु जंगमाणं ? गाहा पण्णासगुलदीहो, सोलंस सो अंगुलाई विच्छिण्णो। अद्धंगुलसोणीको, जेटुपमाणो असी भणिओ ॥१॥ असिरयणं णरवइस्स हत्थाओ तं गहिऊण जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आवाडचिल्लाएहिं सद्धि संपलग्गे आवि होत्था ।। ११०. तए णं से सुसेणे सेणावई ते आवाडचिलाए हयमहियपवरवीरघाइय'"•विवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसि पडिसेहेइ॥ १११. तए णं ते आवाडचिलाया सुसेणसेणावइणा हयमहिय पवरवीरघाइय-विवडियचिंधद्धयपडागा किच्छप्पाणोवगया दिसोदिसिं' पडिसेहिया समाणा भीया तत्था वहियार उद्विग्गा संजायभया अत्थामा अबला अवीरिया अपुरिसक्कारपरक्कमा अधारणिज्जमितिकटु अणेगाइं जोयणाई अवक्कमंति, अवक्कमित्ता एगयओ मिलायंति, मिलायित्ता जेणेव सिंधू महाणई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वालुयासंथारए संथरेंति, संथरेत्ता वालुयासंथारए १. पवर (त्रि,ब)। लत्वेनानाविलमपूतिगन्धि च घ्राणं-प्रोथो २. खंतिखमं (अ,ब); खंतिखमए (आवश्यक यस्य तत्तथा, ईकार:प्राकृतशैलीभवः । . चूणि पृ० १६५)। हीरविजयवृत्ती 'मल्लिहाणं' अस्य पाठान्तर३. तर (अ,ब); तडाग (त्रि,हीव) ; तड रूपेण उल्लेखोस्ति। (हीवृपा)। ७११७८ सूत्रे 'मल्लिहायणाणं' इति पाठः ४. करक (अ, ब)। आदर्शषु वृत्तित्रये पि दृश्यते । औपपातिके ५. पासियं (त्रि, स, हीवृपा); 'पाडियं (आव- (६४) पि तथैव वर्तते । पाठद्वयमपि प्रसिद्धश्यकचूणि पृ० १६५)। मस्ति इति सम्भाव्यते । ६. x (अ, स)। ८. सुकयत्त' (अ, ब, आवश्यकचूणि पृ० १६५) । ७. अत्र सर्वेष्वपि आदर्शेषु स्वीकृतपाठ एव ९. गंध (त्रि)। लभ्यते। वृत्तित्रयेपि (शावपत्र २३७, पुर्व पत्र १०. सं० पा.---'घाइय जाव दिसोदिसि । १०२, ही पत्र २४८, २४६) एष एव पाठो ११. सं० पा०-- हयमहिय जाव पडिसेहिया। व्याख्यातोस्ति, यथा शान्तिचन्द्रीयवृत्ती- १२. तसिया (ब)। मल्लि:-विचकिलकुसुमं तद्वच्छुभ्रः अश्लेष्म Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो दुरुहंति, दुरुहित्ता अट्ठमभत्ताइं पगिण्हंति, पगिण्हित्ता वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया जे तेसिं कुलदेवया मेहमुहा णामं णागकुमारा देवा ते मणसीकरेमाणामणसीकरेमाणा चिट्ठति ॥ ११२. तए णं तेसिमावाडचिलायाणं अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि मेहमुहाणं णागकुमाराणं आसणाई चलति ।। ११३. तए णं ते मेहमुहा णागकुमारा देवा आसणाई चलियाइं पासंति, पासित्ता ओहिं पउंजंति, पउंजित्ता आवाडचिलाए ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अण्णमण्णं सद्दावेंति, सहावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्डभरहे वासे आवाडचिलाया सिंधए महाणईए वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया अम्हे कुलदेवए मेहमहे णागकमारे देवे मणसीकरेमाणा-मणसीकरेमाणा चिटठंति, तं सेयं खल देवाणुप्पिया ! अम्हं आवाडचिलायाणं अंतिए पाउब्भवित्तएत्तिकटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमठें पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए' 'चवलाए जइणाए सीहाए सिग्याए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए° वीतिवयमाणा-वीतिवयमाणा जेणेव जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्वभरहे वासे जेणेव सिंधू महाणई जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिखिणियाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिया ते आवाडचिलाए एवं वयासी-हं भो आवाडचिलाया ! जण्णं तुब्भे देवाणु प्पिया ! वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया अम्हे कुलदेवए मेहमुहे णागकुमारे देवे मणसीकरेमाणा-मणसीकरेमाणा चिट्ठह, तए णं अम्हे मेहमुहा णागकुमारा देवा तुभं कुलदेवया तुम्हें अंतियण्णं पाउब्भूया, तं वदह णं देवाणुप्पिया ! कि करेमो? किं आचिट्ठामो ? के व भे मणसाइए ?॥ ११४. तए णं ते आवाड चिलाया मेहमुहाणं णागकुमाराणं देवाणं अंतिए एयम सोच्चा णिसम्म हट्टतुटु-चित्तमाणंदिया' 'नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण° हियया उट्ठाए उठेति, उठेत्ता जेणेव मेहमुहा णागकुमारा देवा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं 'सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट मेहमहे णागकुमारे देवे जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणु प्पिया ! केइ अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे 'हीणपुण्णचाउद्दसे° हरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं अम्हं विसयस्स 'उरि विरिएणं" हव्वमागच्छइ, तं तहा णं छत्तेह देवाणुप्पिया ! जहा णं एस अम्हं विसयस्स 'उवरि विरिएणं" णो हव्वमागच्छइ ।।। ११५. तए णं ते मेहमुहा णागकुमारा देवा ते आवाडचिलाए एवं वयासी-एस णं भो देवाणुप्पिया ! भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी महिड्ढीए महज्जुईए 'महाबले महायसे' महासोक्खे महाणुभागे णो खलु एस सक्को केणइ देवेण वा दाणवेण वा १. सं०पा०—तुरियाए जाव वीतिवयमाणा। २. सं०पा०---हतचित्तमाणंदिया जाव हियया। ३. सं० पा०.-करयलपरिग्गहियं जाव मत्थए। ४. सं०पा०-दुरंतपंतलक्खणे जाव हिरिसिरि । ५, ६. अवर वरिएण (अ, क, ख, त्रि, ब)। ७. सं०पा०-महज्जूईए जाव महासोक्खे । ८. महासक्खे (अ, क, त्रि, ब, आवश्यकर्णि पृ० १६६); महेसक्खे (पुत्पा)। Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा सत्यप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा उद्दवित्तए वा पडिसेहित्तए वा तहावि य णं तुब्भं पियट्टयाए भरहस्स रण्णो उवसग्गं करेमोत्तिक? तेसिं आवाडचिलायाणं अंतियाओ अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणंति', समोहणित्ता मेहाणीयं विउव्वं ति, विउन्वित्ता जेणेव भरहस्स रणो विजयखंधावारणिवेसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता उप्पि विजयखंधावारणिवेसस्स खिप्पामेव पतणतणायंति, पतणतणायित्ता खिप्पामेव पविज्जुयायंति, पविज्जुयायित्ता खिप्पामेव जुगमुसलमुट्ठिप्पमाणमेत्ताहि धाराहिं ओघमेघ सत्तरत्तं वासं वासिउं पवत्ता यावि होत्था ॥ ११६. तए णं से भरहे राया उप्पिं विजयखंधावारस्स जुगमुसलमुट्ठिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहिं ओघमेघ सत्तरत्तं वासं वासमाणं पासइ, पसित्ता चम्मरयणं परामुसइ-तए णं तं सिरिवच्छसरिसरूवं' 'मुत्ततारद्धचंदचित्तं अयलमकंपं अभेज्जकवयं जंतं सलिलासु सागरेसु य उत्तरणं दिव्वं चम्मरयणं, सणसत्तरसाइं सव्वधण्णाई जत्थ रोहंति एगदिवसेण वावियाई, वासं णाऊण चक्कवट्टिणा परामुठे दिव्वे चम्मरयणे दुवालसजोयणाई तिरियं पवित्थरइ तत्थ साहियाइं॥ ११७. तए णं से भरहे राया सखंधारबले चम्मरयणं दुरुहइ, दुरुहित्ता दिव्वं छत्तरयणं परामसइ-तए णं णवणउइसहस्सकंचणसलागपरिमंडियं महरिहं अओज्झं' णिव्वण-सुपसत्थ-विसिट्ठलट्ठ-कंचणसुपुट्ठदंडं मिउरायतवट्टलट्ठअरविंदकण्णिय-समाणरूवं वत्थिपएसे य पंजरविराइयं विविहभत्तिचित्तं मणि-मुत्त-पवाल-तत्ततवणिज्ज'-पंचवणियधोतरयणरूवरइयं रयणमिरीईसमोप्पणाकप्पकारमणुरंजिएल्लियं रायलच्छिचिधं अज्जुणसुवण्णपंडुरपच्चत्थुयपट्ठदेसभागं तहेव तवणिज्जपट्टधम्मतपरिगयं अहियसस्सिरीयं सारयरयणियरविमलपडिपुण्णचंदमण्डलसमाणरूवं परिंदवामप्पमाणपगइवित्थडं कुमुदसंडधवलं रण्णो संचारिमं विमाणं, सुरातववायवुट्ठिदोसाण य खयकरं, तवगुणेहिं लद्धगाहा अहयं बहुगुणदाणं, उऊण' विवरीयसुकयच्छायं । छत्तरयणं पहाणं सुदुल्लहं अप्पपुण्णाणं ॥१॥ पमाणराईण तवगुणाण फलेगदेसभाग, विमाणवासेवि दुल्लहतरं, वग्धारियमल्लदाम १. समोहणंति (अ, क, ख, प, ब, स)। २. सं० पा०-सिरिवच्छसरिसरूवं वेढो भाणियन्वो जाव दुवालस। ३. अयोज्झं (अ, ब); अउज्झं (क,ख,त्रि,प,स); अवोझ (आवश्यकचूणि पृ० १६७)। ४. मिदुगयतवट्ट (अ, ब, पुवृपा); मिदुरायंत (पुवपा)। ५. रत्त (अ, ब, पुवृपा) । ६. 'मरीईसमप्पणा (त्रि) 'मरीई (प); 'मरीइसमोवणा (पूव); तणुमरीइसमोवणा' (पुवृपा); °मरीइसमोप्पणा (पुवृपा)। ७. पंडर' (अ,क,ख,ब,स)। ८. पगीयवित्थडं (अ, ब, पूवपा); 'पगतीयवि त्थंड (क, ख) “पगतीइवित्थडं (स); पगति पवित्थडं (आवश्यकचूणि पृ० १९७)। ६. उदूण (अ, ख, ब); रिदूण (क, स)। Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४१६ कलावं 'सारयधवलब्भ-रयणिगरप्पगासं" दिव्वं छत्तरयणं महिवइस्स धरणियलपुण्णचंदो । ११८. तए णं से दिव्वे छत्तरतणे भरहेणं रण्णा परामुढे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाइं पवित्थरइ साहियाइ तिरियं ॥ ११६. तए णं से भरहे राया छत्तरयणं खंधावारस्सुवरि ठवेइ, ठवेत्ता मणिरयणं परामुसई'- तो तं चउरंगुलप्पमाणमेत्तं च अणग्घियं तंस-च्छलंसं अणोवमजुइं दिव्वं मणिरयणपतिसमं वेरुलियं सव्वभूयकंतंवेढो जेण य मुद्धागएणं दुक्खं, ण किचि जायइ हवइ आरोग्गे य सव्वकालं । तेरिच्छिय-देवमाणुसकया य, उवसग्गा सव्वे ण करेंति तस्स दुक्खं ।। १॥ संगामे वि असत्थवज्झो, होइ णरो मणिवरं धरेंतो। ठियजोव्वण-केसअवट्ठिय-णहो, हवइ य सव्वभयविप्पमुक्को ॥२।। तं मणिरयणं गहाय छत्तरयणस्स वत्थिभागंसि ठवेइ, तस्स य अणतिवर' चारुरूवं सिलणिहियत्थमंतसित्त-सालि-जव-गोहूम-मुग्ग-मास - तिल-कुलत्थ-सट्ठिग - निप्फाव-चणगकोद्दव-कोत्थंभरि-कंगु-बरग-रालग-अणेगधण्णावरण'-हारितग-अल्लग-मूलग-हलिद्दि-लाउयतउस-तुंब-कालिंग-कविट्ठ-अब-अंबिलिय-सव्वणिप्फायए सुकुसले गाहावइरयणेत्ति सव्वजणवीसुतगुणे ॥ १२०. तए णं से गाहावइरयणे भरहस्स रण्णो तद्दिवसप्पइण्ण-णिप्फाइय-पूयाणं सव्वधण्णाणं अणेगाइं कुंभसहस्साइं उवट्ठवेति ॥ १२१. तए णं से भरहे राया चम्मरयणसमारूढे छत्तरयणसमोच्छन्ने मणिरयणक उज्जोए समुग्गयभूएणं सुहंसुहेणं सत्तरत्तं परिवसइगाहा णवि से खुहा ण तण्हा", 'णेव भयं णेव विज्जए दुक्खं । भरहाहिवस्स रण्णो, खंधावारस्सवि तहेव ॥१॥ १. सारयधवलरयणि (अ, ब, पुवृ); सारयधव- ६. 'वरण (अ,क,ख,ब,स); 'वरत्त (आवश्यकलब्भयंदणिगरप्पगासं (क,स, पुवृपा, आवश्यक- चूणि पृ० १९७)। चूणि पृ० १९७)। ७. गावति (अ); गहवति (क, ब, स)। २. सं०पा०-परामुसइ वेढो जाव छत्तरयणस्स। ८. पूइयाणं (प, आवश्यक चूणि पृ १९८)। ३. अणतीवरं (अ, ब, पुवृपा); अणतिचरं (त्रि, ६. समोच्छइत्ते (स) । हीवृ); आणतिपरं (पुषु)। १०. कयउज्जोवे (ब); कतुज्जोवे (आवश्यकणि ४. सिलनियच्छमत्तसेत्त (अ,ब); सिलनिहियत्थ- पृ० १९८)। मंतसेत्तु (क, आवश्यकचूणि पृ० १६७); सिल- ११. वलियं (अ, क, ख, त्रि, ब); विलियं (प, निहियत्थमंतमेरु (ख); सिलनिहियच्छमंत- शाव); चलियं (स, पुवृ; हीवृ) अयं पाठ सित्त (स)। आवश्यकचूाधारेण स्वीकृतः । शान्तिचन्द्रीय ५. वरालग (अ, क, त्रि, ब, आवश्यकचूणि पृ० वृत्तौ अस्य समर्थनपरं उद्धरणं दृश्यते-इयमेव १९७); परालग (स)। गाथा श्री वर्धमानसूरिकृतऋषभचरित्रे तु Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४० जंबुद्दीवपण्णत्ती १२२. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सत्तरत्तंसि परिणममाणंसि इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-केस णं भो' ! अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरि° परिवज्जिए जे णं ममं इमाए एयारूवाए' दिव्वाए देवड्डीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं देवाणुभावेणं लद्धाए पत्ताए° अभिसमण्णागयाए उप्पि विजयखंधावारस्स जुगमुसलमुट्ठि'प्पमाणमेत्ताहिं धाराहिं ओघमेघ सत्तरत्तं वासं वासइ॥ १२३. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो इमेयारूवं अज्झत्थियं चिंतियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पण्णं जाणित्ता सोलस देवसहस्सा सण्णज्झिउंपवत्ता यावि होत्था ॥ १२४. तए णं ते देवा सण्णद्धबद्धवम्मियकवया उप्पीलियसरासणपट्टिया पिणद्धगेवेज्ज-बद्धआविद्धविमलवरचिंधपट्टा गहियाउहप्पहरणा जेणेव ते मेहमुहा णागकुमारा देवा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मेहमुहे णागकुमारे देवे एवं वयासी-हं भो ! मेहमुहा णागकुमारा देवा ! अपत्थियपत्थगा' 'दुरंतपंतलक्खणा हीणपुण्णचाउद्दसा हिरिसिरि परिवज्जिया किण्णं तुब्भे ण याणह भरहं रायं चाउरंतचक्कट्टि महिड्डीयं 'महज्जुईयं महावलं महायसं महासोक्खं महाणुभागं णो खलु एस सक्को केणइ देवेण वा दाणवेण वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा सत्थप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा उद्दवित्तए वा पडिसेहित्तए वा, तहावि णं तुब्भे भरहस्स रण्णो विजयखंधावारस्स उप्पि जुगमुसलमुट्ठिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहिं ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासह, तं एवमवि गते , इत्तो खिप्पामेव अवक्कमह अहव णं अज्ज पासह चित्तं जीवलोगं ।। १२५. तए णं ते मेहमुहा णागकुमारा देवा तेहिं देवेहिं एवं वुत्ता समाणा भीया तत्था वहिया उव्विग्गा संजायभया मेहाणीक पडिसाहरंति, पडिसाहरित्ता जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता आवाडचिलाए एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया! भरहे राया महिड्डीए" •महज्जुईए महावले महायसे महासोक्खे महाणुभागे णो खलु एस सक्को केणइ देवेण वा" "दाणवेण वा किण्ण रेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा सत्थप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा उद्दवित्तए वा पडिसेहित्तए वा, तहावि य णं" एवं 'णत्थि से खहा, णवि तिसा व भयं' शेष ६. सं० पा०- अपत्थियपत्थगा जाव परिप्राग्वत्। ___ वज्जिया । अप्पत्थिय° (क, ख, त्रि, प, स)। १२. ण विलितं (आवश्यकचूणि पृ० १९८)। ७. सं० पा०-महिड्ढीय जाव उद्दवित्तए। १. एस (क, ख)। ८. किं बहु अधिक्षिपामः ? (शावृ)। २. सं० पा०-दुरंतपंतलक्खणे जाव परिव- ६. पासध (अ, त्रि, ब) । ___ज्जिए। १०. मेहाणीतं (आवश्यकचूणि पृ० १९८) । ३. सं० पा०-एयारूवाए जाव अभिसमण्णा- ११. सं० पा० ---महिड्ढोए जाव णो। गयाए । एयाणुरूवाए (प)। १२. सं० पा०-देवेण वा जाव अग्गिप्पओगेण वा ४. सं० पा०-जुगमुसलमुट्ठि जाव वासं। जाव उद्दवित्तए। ५. सं० पा०-सणद्धबद्धवमियकवया जाव १३. तहवि पूर्ण (अ, क, ख, ब, स); तहवि य णं गहियाउह। (त्रि)। Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइमौ वक्खारी ४४१ अम्हे देवाप्पिया! तुब्भं पियट्टयाए भरहस्स रण्णो उवसग्गे कए, तं गच्छह णं तुब्भे देवाप्पिया ! व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल- पायच्छित्ता उल्लपडसाडगा ओचूलगणित्था' अग्गाई वराइं रयणाई गहाय पंजलिउडा पायवडिया भरहं रायाणं सरणं उवेह, पणिवयवच्छता खलु उत्तमपुरिसा ' णत्थि भे भरहस्स रण्णो अंतियाओ भयमितिकट्टु, एवं वदित्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया || १२६. तए णं ते आवाडचिलाया मेहमुहेहि नागकुमारेहिं देवेहि एवं वृत्ता समाणा उट्ठाए उट्ठेति, उट्ठेत्ता हाया कयवलिकम्मा कयकोउय-मंगल- पायच्छित्ता उल्लपडसाडगा ओचूलगforत्था अग्गाई वराई रयणाई गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं' "सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं बद्धावेंति, वृद्धावेत्ता अग्गाई वराइं रयणाई उवर्णेति उवणेत्ता एवं वयासी गाहा वसुहर ! गुणहर ! जयहर ! हिरिसिरिधी कित्तिधारकर्णारिद ! लक्खणसहस्सधारक ! रायमिणं णे चिरं धारे ॥ १ ॥ हयवति ! गयवति ! णरवति ! णवणिहिवति ! भरहवासपढमवति ! बत्तीसजणवय सहसराय ! सामी चिरं जीव ॥ २ ॥ पढमणरीसर ! ईसर ! हियईसर ! महिलियासहस्साणं । देवसयसहस्सीसर' ! चोहसरयणीसर ! जसंसी ! ॥३॥ सागरगिरिपेरंतं', उत्तरपाईणमभिजिय" तुमए । ता अम्हे देवाप्पियस्स विसए परिवसामो ॥४॥ होणं देवाप्पाणं इड्डी जुई जसे बले वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे' दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभागे' लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तं दिट्ठा णं देवाणुप्पियाणं इड्डी" "जुई जसे बले वीरिए पुरिसक्कार - परक्कमे दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभागे लद्धं पत्ते अभिसमण्णागए, तं खाणं देवाप्पिया ! खमंतु णं देवाणुप्पिया ! खंतुमरुहंतु णं देवाणुप्पिया ! गाइ भुज्जो - भुज्जो एवं करणयाएत्तिकट्टु पंजलिउडा पायवडिया भरहं रायं सरणं उवेंति ।। १२७. तए णं से भरहे राया तेसि आवाडचिलायाणं अग्गाई वराइं रयणाई पडिच्छंति, पडिच्छित्ता ते आवाडचिलाए एवं वयासी - गच्छह णं भो ! तुब्भे ममं बाहुच्छायापरिग्गहिया णिव्भया णिरुव्विग्गा सुहंसुहेणं परिवसह, णत्थि भे कत्तोवि भय १. नियच्छा ( प, स ) । २. ण भे ( अ, ब ) ; णत्थि (ख, त्रि) । ३. सं० पा० - करयलपरिग्गहियं जाव मत्थए । ४. बत्तीसं जणवयसहस्स ( अ, ब ) । ५. साहसीसर (त्रि), ६. मेरागं ( प, शावृ ) । ७. उत्तरपातीण° ( अ, ब ) ; उत्तरवातीण (क, स ); उत्तरवाणीण' (ख, त्रि); उत्तरवाईण° ( प ) 1 ८. परक्कमे दिव्वा देविड्ढी, इदं पदं क्वचिन्त दृश्यते ( पुवृ ) । ६. भावे (अप) । १०. सं० पा० इड्ढी एवं चेव जाव अभिसमण्णा गए । Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ जंबुद्दीवपण्णत्तौ मितिकटु' सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ १२८. तए णं से भरहे राया सुसेणं सेणावई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छाहि णं भो देवाणुप्पिया! दोच्चं पि सिंधूए महाणईए पच्चत्थिमं णिक्खुडं ससिन्धुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेहि, ओयवेत्ता अग्गाइं वराइं रयणाइं पडिच्छाहि, पडिच्छित्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणाहि ।।। १२६. तए णं से सेणावई बलस्स णेया भरहे वासंमि विस्सुयजसे महाबलपरक्कमे जहा दाहिणिल्लस्स ओयवणं तहा सव्वं भाणियव्वं जाव' पच्चणुभवमाणे विहरति ।। १३०. तए णं दिव्वे चक्करयणे अण्णया कयाइ आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे' 'जक्खसहस्ससंपरिडे दिव्वतुडियसद्दसण्णिणादेणं पूरेते चेव अंबरतलं° उत्तरपुरस्थिमं दिसि चुल्ल हिमवंतपव्वयाभिमुहे पयाते यावि होत्था॥ १३१. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं उत्तरपुरस्थिमं दिसिं चुल्ल हिमवंतपव्वयाभिमुहं पयातं पासइ जाव जेणेव चुल्ल हिमवंतपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चुल्लहिमवंतवासहरपव्वयस्स अदूरसामन्ते दुवालसजोयणायामं णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेइ जाव' चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स अट्रमभत्तं पगिण्हइ, 'तहेव जहा मागहकुमारस्स णवरं"-उत्तरदिसाभिमुहे जेणेव चल्लहिमवंतवासहरपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चुल्ल हिमवंतवासहरपव्वयं तिक्खुत्तो रहसिरेणं फुसइ, फुसित्ता तुरए णिगिण्हइ, णिगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता धणुं परामुसइ तहेव जाव आयतकण्णायतं च काऊण उसुमुदारं इमाणि वयणाणि तत्थ भाणीय से णरवईगाहा हंदि ! सुणंतु भवंतो, बाहिरओ खलु सरस्स जे देवा, णागासुरा सुवण्णा, तेसिं खु णमो पणिवयामि ।।१।। हंदि ! सुणंतु भवंतो, अभिंतरओ सरस्स जे देवा । णागासुरा सुवण्णा सव्वे मे ते विसयवासी ॥२॥ इतिकटु उड्ड वेहासं उसु णिसिरइ परिगरणिगरियमज्झो 'वाउद्धयसोभमाणकोसेज्जो। चित्तेण सोभते धणुवरेण इंदोव्व पच्चक्खं ॥३॥ १. भयमस्थित्तिक१ (क, ख, त्रि, प, स, हीव, __ आवश्यकचूणि पृ० १६६) । २. नं० ३१७७-८२। ३. सं० पा०-अंतलिक्खपडिवण्णे जाव उत्तर पुरत्थिमं । ४. जं०३।१५-१८ । ५. जं० ३।१८-२०। ६. जं० ३।२०-२२ । ७. तहेव जाव जहा मागहत्थिस्स जाव समुद्दरव भयंपि करेमाणे २ (अ, क, ख, त्रि, प, ब, स, पुव, शावू, हीव); चिन्हाङ्कितपाठः आवश्यकचूर्णावुद्धृतजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिपाठानुसारी विद्यते, आदर्शषु 'तहेव' इति पदानन्तरं 'जाव' पदस्य कापि सार्थकता नानुभूयते । ८ जं० ३।२४। ६. सं० पा०-णरवई जाव सव्वे । १०.सं० पा०--परिगरणिगरियमझो जाव तए। Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइत्र वक्खारौ तं चंचलायमाणं, पंचमिचंदोवमं महाचावं । छज्जइ वामे हत्थे, णरवइणो तंमि विजयंमि ॥४॥ १३२. तए णं से सरे भरहेणं रण्णा उड्ड वेहासं णिसट्ठे समाणे खिप्पामेव बावतर जोयणाई गंता चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स मेराए णिवइए || १३३. तए णं से चुल्ल हिमवंतगिरिकुमारे देवे मेराए सरं णिवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे' चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि णिलाडे साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी-केस णं भो ! एस अपत्थियपत्थर दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउ से हिरिसिरिपरिवज्जिए, जेणं मम इमाए एयारुवाए दिव्वाए देवड्ढीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं देवाणुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमण्णागयाए उप्पि अप्पुस्सुए मेराए सरं णिसिरइत्तिकट्टु सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जेणेव से णामायके सरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं णामाहयकं सरं गेहइ, गेण्हित्ता णामकं अणुप्पवाएइ, णामकं agar area इमे एयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्थाउप्पन्ने खलु भो ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमणागयाणं चुल्लहिमवंतगिरिकुमाराणं देवाणं राईणमुवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अपि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमित्तिकट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सव्वोसहिं च मालं गोसीसचंदणं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं दहोदगं च गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए' तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे - वीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणीयाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए करयलपरिग्गहियं दसण्णहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु भरहं रायं जपणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी - अभिजिए णं देवाणुप्पिएहि केवलकप्पे भरहे वासे' उत्तरेणं चुल्लहिमवंतगिरिमेराए अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी,' 'अहणं देवाप्पियाणं आणत्ती- किंकरे अहण्णं देवाणुप्पियाणं उत्तरिल्ले अंतवाले तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! ममं इमेयारूवं पीईदाणंत्तिकट्टु सव्वोसहि च मालं गोसीसचंदणं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं दहोदगं च उवणेइ ॥ १३४. तए णं से भरहे राया चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीईदाणं परिच्छइ, पडिच्छित्ता चुल्लहिमवंतगिरिकुमारं देवं सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्मात्तापडिविसज्जेइ ॥ १३५. तए णं से भरहे राया तुरए णिगिण्हइ, णिगिरिहत्ता रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता जेणेव उसहकूडे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उसहकूडं पव्वयं तिक्खुत्तो रहसिरेणं फुसइ, फुसित्ता तुरए णिगिues, णिगिरिहत्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता छत्तलं दुवालसंसियं अट्टकण्णिय अहिगरणिसंठियं सोवण्णियं कागणिरयणं परामुसइ, परामुसित्ता उसभकूडस्स १. सं० पा० रुट्ठे जाव पीइदाणं सव्वोसहि च मालं गोसीसचंदणं कडगाणि जाव दहोदगं । २. सं० पा० - उक्किट्ठाए जाव उत्तरेणं । ૪૪૨ ३. सं० पा० विसयवासी जाव अहण्णं । ४. सं० पा० - अंतवाले जाव पडिविसज्जेइ । Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४४ जंबुद्दीवपण्णत्ती पव्वयस्स पुरथिमिल्लंसि कडगंसि णामगं आउडेइगाहा ओसप्पिणी' इमीसे, तइयाए समाइ पच्छिमे भाए। अहमसि' चक्कवट्टी, 'भरहो इति" नामधेज्जेणं ॥१॥ अहमंसि' पढमराया, इहई भरहाहिवो परवरिंदो। णत्थि महं पडिसत्तू, जियं मए 'भारहं वासं ॥२॥ इतिकट्ट णामगं आउडेइ, आउडेत्ता रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता जेणेव विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव - १३६. तए णं से दिव्वे चक्करयणे चुल्ल हिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स अट्टाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता •अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसहसण्णिणादेणं पूरेते चेव अंवरतलं° दाहिणं दिसि वेयड्ढपव्वयाभिमुहे पयाते यावि होत्था ॥ १३७. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणं दिसि वेयड्डपव्वयाभिमुह पयातं चावि पासइ. पासित्ता हत-चित्तमाणदिए जाव' जेणेव वेयडढपव्वए जेणेव वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले णितंबे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले णितंबे दुवालसजोयणायाम णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेइ जाव" पोसहसालं अणुपविसई", 'अणुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता णमिविणमीणं विज्जाहरराईणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाएर पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए अट्ठमभत्तिए णमि-विणमिविज्जाहररायाणो मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठइ ॥ १३८. तए णं तस्स भरहस्स रणो अट्रमभत्तंसि परिणममाणंसि णमि-विणमी विज्जाहररायाणो दिव्वाए मईए" चोइयमई अण्णमण्णस्स अंतियं पाउब्भवंति, पाउन्भवित्ता एवं वयासी-उप्पन्ने खलु भो देवाणुप्पिया! जंबुद्दोवे दीवे भरहे वासे भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी, तंजीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमणागयाणं विज्जाहरराईणं चक्कवट्टीणं उवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! अम्हेवि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमोत्तिकट्ट विणमी णाऊणं चक्कवट्टि दिव्वाए मईए चोइयमई माणुम्माणप्पमाणजुत्तं तेयस्सिं रूवलक्खणजुत्तं १. ओसप्पिणीए (त्रि); अत्र षष्ठीलोपः ६. भरहवासं (अ, ख, ब, स)। प्राकृतत्वात् (शावृ)। ७. ० ३।२८, २६ । २. अहतंसि (अ, क, त्रि, ब, स); अहयंमि ८. सं० पा० ---पडिणिक्खमित्ता जाव दाहिणं। (आवश्यकचूणि पृ० २००); स्वार्थे कप्रत्यये ६.० ३.१५-१८ । सति अहयं यकारस्य तकारे सति 'अहतं' इति १०. जं० ३।१८-२० । रूपं जातमस्ति । ११. सं० पा० -अणुपविसइ जाव णमि । ३. भरहो त्ती (अ, ब); भरहो इय (प)। १२. सं० पा०-पोसहसालाए जाव णमि । ४. अहतंसि (अ, क, ख, त्रि, ब, स)। १३. मदीए (अ, ब)। ५. अयं (प, शाव, पुपा); इहयं (पुवृ)। १४. चोतितमती (अ, त्रि, ब)। Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ठियजुव्वणकेसवट्ठियणहं सव्वामयणासणि' बलकरि इच्छियसीउण्हफासजुत्त'गाहा 'तिसु तणुयं 'तिसु तंबं" तिवलीणं तिउण्णयं तिगंभीरं । तिसु कालं तिसु सेयं तियायतं 'तिसु य" विच्छिण्णं ॥१॥ समसरीरं भरहे वासंमि सव्वमहिलप्पहाणं सुंदरथण-जघण-वरकर -चरण -णयण-सिरसिजदसण-जणहिदयरमण-मणहरि सिंगारागार चारुवेसं संगयगय-हसिय-भणिय-चिट्ठियविलास- संलाव-णिउण जुत्तोवयारकुसलं अमरबहूणं, 'सुरुवं स्वेणं अणुहरंति" सुभदं भइंमि जोव्वणे वट्टमाणिं इत्थीरयणं, णमी य रयणाणि य कडगाणि य तुडियाणिय गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए" उविकट्ठाए तुरियाए" 'चवलाए जइणाए सीहाए सिग्धाए उद्धयाए विज्जाहरगईए जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिंखिणीयाइ५ •पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिया करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु भरहं रायं°जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी-अभिजिए णं देवाणुप्पिएहि केवलकप्पे भरहे वासे उत्तरेणं चुल्ल हिमवंतगिरिमेराए तं अम्हे णं देवाणप्पियाणं विसयवासिणो अम्हे णं देवाणुप्पियाणं आणत्ति-किकरा तं" पडिच्छंतु णं देवाणप्पिया ! अम्हं इम" 'एयारूवं पीइदाणंतिकट्ट विणमी इत्थीरयणं, णमी रयणाई समप्पेइ ॥ १३६. तए णं से भरहे राया" •णमि-विण मिविज्जाहरराएहिं इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छत्ता णमि-विणमिविज्जाहररायाणो सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जाव" ससिव्व पियदंसणे णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जणव भोयणमंडवे तेणव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता १. सव्वारोयणास णि (अ, ब); सब्वरोयणासणि ११. सुरूवरूवेणं अणुहरंती (अ, क, ख, त्रि, ब, (ख, त्रि, प, शावृ, हीवृ)।। स, पुवृ. हीवृ)। २. °सी उण्हपएसजुत्तं (अ, ख, ब)। १२. विणमी इत्थिरयणं (अ, क, ख, त्रि, ब, स, ३. तिण्णि तणुकिं (क) तिष्णि तणु (ख); पुत्, हीव, आवश्यक चूणि पृ० २००)। तिणि तणुकं (त्रि); ति तणुकं (स, पुव)। १३. जाव ताए (अ, क, ख, त्रि, ब, स, पुल, हीवृ) ४. ति तंबं (अ, क, ख, त्रि, ब, स, पुत्र) । एतत्पदं लिपिदोषादागतं सम्भाव्यते। ५. ति (अ, ब, स, पु); तिगिण (क, ख, त्रि)। १४. सं० पा०-तुरियाए जाव उद्धयाए। ६. जहणं (अ, क, ख, त्रि, ब, स)। १५. सं० पा०-सखिखिणीयाइं जाव जएणं । ७. वदणकर (क, ख, स, पुवृ)। १६. सं० पा०-देवाणुप्पिया जाव अम्हे । ८. चलण (अ, त्रि, ब)। १७. इतिकटु तं (अ, क, ख, त्रि, प, ब, स)। ९. °हियय (अ, त्रि, प, ब); °हितय °(क, स) १८. सं० पा०--इमं जाव विणमी। हदय° (ख)। १६. सं० पा०-राया जाव पडिविसज्जेइ । १०. सं० पा०-सिंगारागार जाव जुत्तोवयार- २०. जं० ३।। कुसलं । Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४६ जंबुद्दीवपण्णत्ती भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ जाव' णमि-विणमीणं विज्जाहरराईणं अट्ठाहियमहामहिमं करेंति ।। १४०. तए णं से दिव्वे चक्करयणे आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता' •अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दसण्णिणादेणं पूरेंते चेव अंवरतल° उत्तरपुरत्थिमं दिसिं गंगादेवी भवणाभिमुहे पयाए यावि होत्या। १४१. "तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं उत्तरपुरथिमं दिसिं गंगादेवीभवणाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठ-चित्तमाणदिए तहेव जाव जेणेव गंगाए देवीए भवणं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गंगाए देवीए भवणस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायाम णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारणिवेसं करेइ, करेत्ता वड्डइरयणं सद्दावेइ सद्दावेता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मम आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।। १४२. तए णं से वड्डइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणति ॥ १४३. तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसालं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ अणुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता गंगाए देवीए अट्रमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए अट्ठमभत्तिए गंगादेवि मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठइ ॥ १४४. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि गंगाए देवीए आसणं चलइ।। १४५. तए णं सा गंगा देवी आसणं चलियं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता भरहं रायं ओहिणा आभोएइ. आभोएत्ता इमे एयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था- उप्पन्ने खलु भो! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवटी, तं जीयमेयं तीयपच्चप्पन्नमणागयाणं गंगाणं देवीणं भरहाणं राईणं उवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमित्तिकट्ट कुंभट्ठसहस्सं रयणचित्तं णाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाणि य कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य १. जं० ३।२८, २६ । कभदसहस्सं रयणचित्तं णाणामणिकणगरयण. २.सं० पा०---पडिणिक्खमित्ता जाव उत्तरपुर- भत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाइं सेसं तं स्थिमं। चेव जाव महिमत्ति। ३. सा चेव (क, ख, त्रि, स); सं० पा०- ४. जं° ३॥१५-१८ । सच्चेव सव्वा सिंधुवत्तव्वया जाव णवरं Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो वक्खारो गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्याए उद्ध्याए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणी-वी ईवयमाणी जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिखिणीयाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-- अभिजिए णं देयाणुप्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासिणी अहण्णं देवाणुप्पियाणं आणत्तिकिंकरी, तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! मम इमं एयारूवं पीइदाणंतिकट्ठ कुंभट्ठसहस्सं रयणचित्तं णाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाणि य कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य उवणेइ ॥ १४६. तए णं से भरहे राया गंगाए देवीए इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता गंगं देवि सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।। १४७. तए णं से भरहे राया पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ण्हाए कयबलिकम्मे जाव' जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! उस्सुक्कं उक्करं उक्किठे अदिज्जं अमिज्ज अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिम अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदाम पमुइयपक्कीलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं गंगाए देवीए अट्ठाहियं महामहिम करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ . १४८. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हतुवाओ जाव अट्ठाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ १४६. तए णं से दिव्वे चक्करयणे गंगाए देवीए अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता' अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिपुडे दिव्वतुडियसहसण्णिणादेणं पुरेते चेव अंबरतलं° गंगाए महाणईए पच्चत्थिमिल्लेणं कूलेणं दाहिणदिसि खंडप्पवायगुहाभिमुहे पयाए यावि होत्था॥ १५०. तते णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए महाणईए पच्चथिमिल्लेणं कलेणं दाहिणदिसि खंडप्पवायगुहाभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्टतुटु-चित्तमाणंदिए जाव' जेणेव खंडप्पवायगुहा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सव्वा कयमालकवत्तव्वया णेयव्वा, णवरि–णट्टमालगे देवे, पीतिदाणं से आलंकारियभंडं कडगाणि य, सेसं सव्वं तहेव जाव' अट्ठाहिया महामहिमा ॥ १५१. तए णं से भरहे राया णट्टमालगस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए १. जं० ३।२८ । ३. जं० ३.१५-१८। २. सं० पा०—पडिणिक्खमित्ता जाव गंगाए। ४. जं० ३१६६-७५। Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ जंबुद्दीवपण्णत्ती णिव्वत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छाहि णं भो देवाणुप्पिया ! गंगाए महाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खडाणि य ओयवेहि, ओयवेत्ता अग्गाइं वराई रयणाई पडिच्छाहि, पडिच्छित्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि जाव सिंधुगमो णेयव्वो जाव' तओ महाणइमुत्तरित्तु गंगं अप्पडिहयसासणे य सेणावई गंगाए महाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेइ, ओयवेत्ता अग्गाणि वराणि रयणाणि पडिच्छइ, पडिच्छित्ता जेणेव गंगा महाणई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दोच्चं पि सखंधावारबले गंगामहाणइं विमलजलतुंगवीइं णावाभूएणं चम्मरयणेणं उत्तरइ, उत्तरित्ता जेणेव भरहस्स रण्णो विजयखंधावारणिवेसे जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अग्गाइं वराई रयणाइं गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मस्थए अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता अग्गाइं वराइं रयणाई उवणेइ ।। १५२. तए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अग्गाइं वराइं रयणाइं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सुसेणं सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥ १५३. तए णं से सुसेणे सेणावई भरहस्स रण्णो 'अंतियाओ पडिणिक्खमति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सए आवासे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरमणुपविसति अणुपवसित्ता हाए', सेसंपि तहेव जाव' विहरइ ॥ १५४. तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ सुसेणं सेणावइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छण्णं भो देवाणुप्पिया ! खंडगप्पवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेहि, विहाडेता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ १५५. तए णं से सुसेणे सेणावई जहा तिमिसगुहाए तहा भाणियव्वं जाव' दंडरयणं गहाय सत्तटुपयाइं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता खंडप्पवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडे दंडरयणेणं महया-महया सद्देणं तिखुत्तो आउडेइ॥ १५६. तए णं खंडप्पवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सुसेणसेणावइणा दंडरयणेणं महया-महया सद्देणं तिक्खुत्तो आउडिया समाणा महया-महया सद्देणं कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई-सगाई ठाणाई पच्चोसक्कित्था ।। १५७. तए णं से सुसेणे सेणावई खंडप्पवाहगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेड. विहाडेत्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता भरहं रायं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं बयासी-विहाडिया णं देवाणुप्पिया ! खंडप्पवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडा, १.० ३१७७-८१। तोस्ति। २.सं० पा०-करयलपरिग्गहियं जाव अंजलि । ४. जं० ३१८२; ही पत्र २७२ । ३. चिन्हाङ्कितः पाठो हीरविजयवृत्तिमनुसृत्यादृ- ५. जं० ३३८४-८८ । १.४० ३८२: ही प Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो एयणं देवाणु पिया पियं णिवेदेमो, पियं भे भवउ, सेसं तहेव जाव' भरहो उत्तरिल्लेणं दुवारेणं अईइ ससिव्व मेहंधकारनिवहं ॥ १५८. तए णं से भरहे राया छत्तलं दुवालसंसियं अटुकण्णियं अहिगरणिसंठिय असोवणियं कागणिरयणं परामुसइ ॥ १५६. तए णं तं चउरंगुलप्पमाणमित्तं अट्ठसुवण्णं च विसहरणं अउलं चउरंस संठाणसंठियं समतलं, माणुम्माणजोगा जतो लोगे चरंति सव्वजणपण्णवगा, णवि चंदो णवि तत्थ वि अग्गी वि तत्थ मणिणो तिमिरं णासेंति अंधकारे, जत्थ तकं दिव्वप्पभावत्तं दुवालसजोयणाई तस्स लेसाओ विवड्ढति तिमिरणिगरपडिसेहियाओ, रतिं च सव्वकालं खंधावारे करेइ आलोयं दिवसभूयं जस्स पभावेण चवकवट्टी, खंडप्पवाय गुहमतीति सेण्णसहिए रायपवरे कागणि गहाय खंडप्पवायगुहाए पच्चत्थिमिल्ल - पुरथिमिल्लेसु कडए जोरियाई पंचधणुसयायाम विक्खंभाई जोयणुज्जोयकराई चक्कणेमीसंठियाई चंदमंडलपडिणिकासाई एगूणपण्णं मंडलाई आलिहमाणे- आलिहमाणे अणुप्पविसइ ॥ १६०. तए णं सा खंडप्पवायगुहा भरहेणं रण्णा तेहि जोयणंत रिएहि पंचधणुसया - यामविक्खभेहि जोयणुज्जोयकरेहिं एगूणपण्णाए मंडलेहि अलि हिज्जमाणेहि-आलिहिज्ज - माणेहि खिप्पामेव आलोगभूया उज्जोयभूया दिवसभूया जाया यावि होत्था° ॥ १६१. तीसे णं खंडगप्पवायगुहाए' बहुमज्झदेसभा एत्य णं° उम्मुग्ग-णिमुग्गजलाओ णामं दुवे महाणईओ' 'पण्णत्ताओ, जाओ णं खंडप्पवाय गुहाए' पच्चत्थि मिल्लाओ कडगाओ पढाओ समाणीओ पुरत्थिमेणं गंगं महाणई समप्पेंति, सेसं तहेव णवरपच्चत्थिमिल्लेणं कलेणं गंगाए संकमवत्तव्वया तहेव ' ॥ १६२. तए णं तीसे खंडगप्पवायगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सयमेव महयामहया कोंचार करेमाणा - करेमाणा सरसरस्स सगाई सगाई ठाणाई पच्चोसक्कित्था | १६३. तए णं से भरहे राया चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे महाउसीहणा बोल कलकलरवेणं पक्खुभियमहासमुद्दवभूयं पिव करेमाणे - करेमाणे खंड गप्पवाय गुहाओ दक्खिणिल्लेणं दारेणं णीणेइ ससिव्व मेहंधकारनिवहाओ । १६४. तणं से भरहे राया गंगाए महाणईए पच्चत्थिमिल्ले कूले दुवालसजोयणायामं वजोयणविच्छिणं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारणिवेसं करेई', करेत्ता वढ्ढइरयणं, सावे, सद्दवेत्ता एवं वयासी -- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मम आवासं पोसहसालं च १. जं० ३।६१-६३ । २. सं० पा० – तहेव पविसंतो मंडलाई आलिहइ । ३. खंडप्पवाय' (क, ख ) । ४. सं० पा०-- बहुउज्झदेसभाए जाव उमुग्ग° । 'एत्थ णं' इति पदमात्रमेव ४४६ यावत्करणात् (हीवृ ) । ५. सं० पा०-- महाणइओ तहेव णवरं पच्चत्थि मिल्लाओ । ६. जं० ३।६८-१०१ । ७. सं० पा० - चक्करयणदेसियमग्गे जाव खंडगप्पवायगुहाओ । ८. सं० पा०—णवजोयणविच्छिण्णं जाव विजयखंधावारणिवेसं । ६. सं० पा० – करेइ अवसिट्ठ तं चेव जाव निहिरयणाणं । Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० जंबुद्दीवपण्णत्ती करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ १६५. तए णं से वड्डइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुट्ठ-चित्तमाणं दिए नंदिए पीइमणे परमसोमण स्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं सामो ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणति ।। १६६. तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता निहिरयणाणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ ।। १६७. तए णं से भरहे राया पोसहसालाए' •पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए अट्ठमभत्तिए णिहिरयणे मणसीकरेमाणे-मणसीक रेमाणे चिट्ठइ, तस्स य अपरिमियरत्तरयणा धुवमक्खयमव्वया' सदेवा' लोकोपचयंकरा' उवगया णव णिहिओ लोगविस्सुयजसा, तं जहा-- गाहा नेसप्पे पंडुयए, पिंगलए सव्वरयण' महापउमे'। काले य महाकाले, माणवग महानिही संखे ॥१॥ णेसप्पंमि णिवेसा, गामागरणगरपट्टणाणं च। दोणमूहमडंबाणं, खंधावारावणगिहाणं ॥२॥ गणियस्स य उप्पत्ती', माणम्माणस्स जं पमाणं च । धण्णस्स य बीयाण य, उप्पत्ती पंडुए भणिया ॥६॥ सव्वा आभरणविही, पुरिसाणं जा य होइ महिलाणं । आसाण य हत्थीण य, पिंगलगणिहिमि सा भणिया ॥४॥ रयणाई सव्वरयणे, 'चोद्दस पवराई' चक्कवट्टिस्स। 'उप्पज्जतेगिदियाइं पंचिदियाइं च ||५|| १. सं० पा०-पोसहसालाए जाव णिहिरयणे। २. धुयमक्ख (क,प)। ३. सद्देवा (अ,ब); सदिव्वा (क,ख,त्रि,स, पु, होवृ); सदेवा (हीवृपा)। ४. लोगपव्वयंकरा (पुवपा) । ५. सव्वरयणे (अ,क,ख,त्रि,ब)। ६. महपउमे (अ,ब,स)। ७. खंधाराणं गिहाणं च (ठाणं ६।२२।२) । ८. उ (अ,ब)। ६. क्वचित् गणियस्स य बीयाणं ति पाठः क्वचित् गीयाणं ति पाठः (पुवृ); बीयाणं (ठाणं ६।२२।३)। १०. चोहसवि वराई (अ,क,ख,प,ब,स,शावृ) । ११. उप्पज्जते पंचिदियाई एगिदियाइं च (क,ख, स, आवश्यकचूणि पृ० २०२); उप्पज्जंत एगिदियाइं (प); उप्पज्जंति एगिदियाइं० (ठाणं ६।२२।५)। Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो वत्थाण य उप्पत्ती, णिष्कत्ती चैव सव्वभत्तीणं । रंगाण य धोव्वाण' 'य, सव्वाएसा महापउमे || ६ || काले कालपणाणं, भव्वपुराणं च तिसुवि वासेसु' । सिप्पस कम्माणि य, तिणि पयाए हियकराणि ॥७॥ लोहस्स य उप्पत्ती, होइ महाकाले' आगराणं च । रुपस्स सुवण्णस्स य, मणि - मोत्ति - सिल प्पवालाणं ॥ ८ ॥ जोहाण य उप्पत्ती, आवरणाणं च पहरणाणं च । सव्वा ' जुद्धणी, माणवगे दंडणीई य ॥६॥ विहीणाडगविही, कव्वस्स' चउव्विहस्स उप्पत्ती । संखे महाणिहिमी, तुडियंगाणं च सव्वेसि ॥ १०॥ चक्कट्टपइट्ठाणा, अट्ठस्सेहा य णव य विक्खंभे । बारसदीहा मंजूससंठिया जण्हवीइमुहे ॥। ११॥ वेरुलियमणिकवाडा, कणगमया विविहरयणपडिपुण्णा । ससिसूरचक्कलक्खण', अणुसमवयणोववत्तीया ॥ १२ ॥ पलिओ मट्ठिया, णिहिसरिणामा य तेसु" खलु देवा । जेसि ते आवासा, अक्किज्जा" आहिवच्चा य ॥ १३ ॥ 'एए णव णिहिरयणा", पभूयधणरयणसंचयसमिद्धा । जे वसमुपगच्छंति", भरहाहिवचक्कवट्टीणं ॥ १४ ॥ १६८. तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, एवं मज्जणघरपवेसो जाव" "अट्ठारस सेणि-प्प सेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सुक्कं उक्कर उक्किट्ठे अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं निहिरयणाणं अट्ठायं महामहिम करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह || १. धाऊण (पुवृपा); धोयाण ( ठाणं |२२|६ ) । २. वंसेसु ( क, ख, त्रि, प, स, पुवृ, शावृ) ; वासु (पुवृपा) । ३. महाकालि (त्रि, प, स, आवश्यकचूर्णि पृ० २०२) । ४. मुत्त ( प, स ) । ५. उ (क, ख,स) । ६. कव्वस्य ( अ, त्रि, पब, आवश्यकचूर्णि पृ० २०२) । ७. विक्खंभा (त्रि, ब ) । ८. प्रथमा बहुवचनलोपः प्राकृतत्वात् (शावृ ) । ४५१ ९. अणुवमवयणोववत्तीया ( हीवृपा ) ; अणुसमजुगबाहुवयणाय ( ठाणं । २२ ।११) । १०. तत्थ ( प ) ; तत्र ( शावृ ) । ११. अक्खेज्जा ( अ, त्रि, ब, हीवृ); अक्केज्जा (हीवृपा, आवश्यकचूर्णि पृ० २०३) । १२. एए ते वणिहिणो ( ठाणं | २२|१४) । १३. वसमणुगच्छंति ( अ, क,ख, त्रि,ब,स,हीवृ, आव चूर्णि पृ० २०३ ) । ३।५८ । १४. जं० १५. सं० पा० - सेणिपसे सिद्दावणया णि हिरयणाणं अट्ठाहियं महामहिम करे । जाव Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ जंबुद्दीवपण्णत्ती १६६. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्ठतुट्ठाओ जाव अट्ठाहियं महामहिमं करेंति, करेता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ १७०. तए णं से भरहे राया णिहिरयणाणं अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छण्णं भो देवाणुप्पिया! गंगामहाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं दोच्चपि सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेहि, ओयवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ १७१. तए णं से सुसेणे तं चेव पुव्ववणियं भाणियव्वं जाव ओयवित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणइ, पडिविसज्जिए' जाव भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ॥ १७२. तए णं से दिव्वे चक्करयणे अण्णया कयाइ आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपडिवुडे दिव्वतुडिय" सहसण्णिणाएणं° आपूरेते चेव अंबरतलं विजयखंधावारणिवेसं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं विणीयं रायहाणि अभिमुहे पयाए यावि होत्था ॥ १७३. तए णं से भरहे राया 'तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं विणीयाए रायहाणीए अभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्ठतु?'- चित्तमाणदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए कोडबियपूरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्क' 'हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेण्णं सण्णाहेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ १७४. तए णं ते कोडंबियपुरिसा जाव' पच्चप्पिणंति ॥ १७५. तए णं से भरहे राया अज्जियरज्जो णिज्जियसत्तू 'उप्पन्नसमत्तरयणे चक्करयणप्पहाणे- 'णवणि हिवई समिद्धकोसे" बत्तीसरायवरसहरसाणुयायमग्गे सट्ठीए वरिससहस्सेहिं केवलकप्पं भरहं वासं ओयवेइ, ओयवेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भी देवाणप्पिया! आभिसेक्क हत्थिरयण पडिकप्पेह, हय-गय-रह"•पवरजोहकलियं चाउरंगिणि सेण्णं सण्णाहेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ १७६. तए णं ते कोडंबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति। १७७. तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणधरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवलमहामेह णिग्गए इव गहगण-दिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण मज्झ ससिव्व पियदंसणे णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता हय-गय-रह-पवरवाहण-भड-चडगर-पहकरसंकुलाए सेणाए पहियकित्ती जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव १. पडिविसज्जेइ (प)। २. जं० ३।१५१-१५३ । ३. सं० पा०-दिवतुडिय जाव आपूरेते। ४ सं० पा०-राया जाव पासइ। ५. सं० पा०-हठ्ठतुट्ठ जाव कोडुबिय । ६.सं० पा०-आभिसेक्कं जाव पच्चप्पिणंति । ७. जं० ३।८,१७३ । ८.समत्तरयणचक्करयण° (अ,क,ख,ब,स,पुत्,हीव आवश्यकचूणि पृ० २०३)। ६. णवणिहिस मिद्धकोसे (आवश्यकचूणि पृ० २०३)। १०. सं० पा०-हयगयरह तहेव अंजणगिरि । Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ बक्खारो ४५३ उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवई णरवई दुरुढे ॥ १७८. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठमंगलगा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया' तं जहा–सोत्थिय-सिरिवच्छ'-•णंदियावत्तवद्धमाणग-भद्दासण-मच्छ-कलस-दप्पणे'। तयणंतरं च णं पुण्णकलसभिगारं 'दिव्वा य छत्तपडागा" 'सचामरा दंसण-रइय-आलोय-दरिसणिज्जा वाउद्धय-विजयवेजयंती य ऊसिया गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुबीए' संपट्ठिया। तयणंतरं च णं वेरुलियभिसंत-विमलदंड 'पलबकोरंटमल्लदामोवसोभियं चंदमंडलणिभं समूसियं विमलं आयवत्तं पवरं सीहासणं वरमणिरयणपादपीढं सपाउयाजोयसमाउत्तं बहुकिंकर-कम्मकर-पुरिसपायत्तपरिक्खित्तं पुरओ' अहाणुपुव्वीए संपट्ठियं । तयणंतरं च णं सत्त एगिदियरयणा पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया, तं जहा-चक्करयणे छत्तरयणे चम्मरयणे दंडरयणे असिरयणे मणिरयणे कागणिरयणे । तयणंतरं च णं णव महाणिहिओं पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया, तं जहा–णेसप्पे पंडुयए'" 'पिंगलए सव्वरयणे महापउमे काले महाकाले माणवगे° संखे । तयणंतरं च णं सोलस देवसहस्सा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया। तयणंतरं च णं बत्तीसं रायवरसहस्सा" अहाणुपुवीए संपट्ठिया। तयणंतरं च णं सेणावइरयणे पुरओ अहाणुपुवीए संपट्टिए। एवं गाहावइरयणे वट्टइरयणे पूरोहियरयणे। तयणंतरं च णं इत्थिरयणे पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिए । तयणंतरं च णं बत्तीसं उडुकल्लाणियासहस्सा पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया। तयणंतरं च णं बत्तीसं जणवयकल्लाणियासहस्सा पुरओ अहाणपूवीए संपट्टिया। तयणंतरं च णं बत्तीसं" बत्तीसइबद्धा णाडगसहस्सा पुरओ अहाणपुवीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं तिण्णि सट्ठा सूयसया पुरओ अहाणु पुवीए संपट्ठिया। तयणंतरं च णं अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठियाओ। तयणंतरं च णं चउरासीइं आससयसहस्सा पुरओ अहाणपुवीए संपट्ठिया। तयणंतरं च णं चउरासीइं हत्थिसयसहस्सा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया। 'तयणंतरं च णं चउरासीइं रहसयसहस्सा पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया'५। तयणंतरं च णं छण्णउई मणुस्सकोडीओ पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठियाओ। तयणंतरं च णं बहवे राईसर"-तलवर". माडंबिय-कोडुंबिय १. संपडिया (अ,ख)। १०. सं० पा०—पंडुयए जाव संखे । २. सं० पा०–सिरिवच्छ जाव दप्पणे। ११. रायसहस्सा (अ, क, ख, ब, स)। ३. दप्पण (क,ख,स)। १२. पुरोहितरत्नं-शांतिकर्मकृत्, रणे प्रहाराद्दि४. तदाणंतरं (अ,ख,त्रि,ब) प्रायः सर्वत्र । तानां मणिरत्नजलच्छटया वेदनोपशामकम् ५. दिव्वायवत्तपडागा (राय० सू० ५०); सं० (शा)। सं० पा.- छत्तपडागा जाव संपट्टिया। १३. x (अ, त्रि, ब)। ६. संपत्थिया (क,ख,त्रि,स, आवश्यकचूणि पृ० १४. दंतिसयसहस्सा (क, आवश्यकचूणि पृ० २०४) प्रायः सर्वत्र । २०४)। ७. सं० पा०-विमलदंडं जाव अहाणुपुव्वीए। १५. x (प, शावृ)। ८. काकिणि° (अ,ब)। १६. रादीसर (आवश्यक चूणि पृ० २०४) । ६. °निहितो (अ,त्रि,ब); °निहओ (ख,स)। १७. सं० पा०-तलवर जाव सत्थवाह । Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ जंबुद्दीवपण्णत्ती इब्भ-सेटि-सेणावइ -सत्थवाहप्पभितओ' पुरओ अहाणपुवीए संपट्टिया। तयणंतरं च णं बहवे असि-लट्ठिग्गाहा कुंतग्गाहा' चावग्गाहा चामरग्गाहा पीढग्गाहा' पासग्गाहा फलगग्गाहा पोत्थगग्गाहा वीणग्गाहा' कूवग्गाहा हडप्पग्गाहा दीवियग्गाहा-सएहि-सएहिं रूवेहि, एवं वेसेहिं चिधेहि निओएहि सएहि-सएहि नेवत्थेहिं पुरओ अहाणपुव्वीए संपट्ठिया। तयणंतरं च णं बहवे दंडिणो मुंडिणो 'सिहंडिणो जडिणो पिच्छिणो हासकारगा खेड्डकारगा दवकारगा" चाडुकारगा कंदप्पिया कोकुइया मोहरिया गायंता य वायंता य नच्चंता य हसंता य रमंता य कोलंता य ‘सासेंता य" सावेंता" य जावेंता य रावेंता य सोभेता य सोभावेंता य 'आलोयंता य' जयजयसदं च पउंजमाणा पुरओ अहाणुपुबीए संपट्ठिया" । " तयणंतरं च णं जच्चाणं तरमल्लिहायणाणं" हरिमेलामउलमल्लिअच्छीणं चंचुच्चिय-ल लिय-पुलिय-चल-चवल-चंचल गईणं लंघण-वग्गण-धावण-धोरणतिवइ-जइण-सिक्खियगईणं ललंत-लाम-गललाय-वरभूसणाणं मुहभंडग-ओचूलग-थासगअहिलाण'-चमरीगंडपरिमंडियकडीणं किंकरवरतरुणपरिग्गहियाणं अट्ठसयं वरतुरगाणं पुरओ अहाणुपुव्वोए संपट्ठियं । तयणंतरं च णं ईसिदंताणं ईसिमत्ताणं ईसितुंगाणं ईसिउच्छंगविसाल"-धवलदंताणं कंचणकोसी-पविट्ठदंताणं कंचणमणिरयणभूसियाणं वरपुरिसारोहगसंप उत्ताणं अट्ठसयं गयाणं पुरओ अहाण पुव्वोए संपट्ठियं । तयणंतरं च णं सच्छत्ताणं सज्झयाणं सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराण सनंदिघोसाण सखिखिणोजालपरिक्खित्ताणं" १. °प्पभिइओ (क,ख,त्रि,स) । १२. (अ,क,ख,त्रि,ब)। २. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुवृ); कुंतग्गाहा १३. भावेंता (क,त्रि)। (पुवृपा)। १४. ओलोयं च केइ (अ,ब, पुर्व); आलोयंता य ३. x (अ,क,ख,चि,प,ब,स,पुव); पीढगग्गाहा (पुवृपा)। (पुवृपा)। १५. इहगमे क्वचिदादर्श न्यनाधिकान्यपि पदानि ४. x (अ,क,ख,ब,पुवृ); पासग्गाहा (पुवृपा)। ५. फलगग्गाहा परसुग्गाहा (ख)। १६. सं० पा०.--एवं ओववाइयगमेणं जाव तस्स । ६. x (अ,ब) । अस्य सक्षिप्तपाठस्य पूतिः हीरविजयशान्ति७. कूयग्गाहा (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। चन्द्रकृतवृत्त्योस्तथा औपपातिकसूत्रपाठ ८. विविहेहि (अ,ब,पुर्व); चिधेहिं (पुवृपा)। (सू ६४) मनुसृत्य कृतास्ति । ६. अबद्धसूत्रे च पदानि न्यूनाधिकान्यपि लिपि- १७. x (शाव) । प्रमादात् सम्भवेयुरिति तन्नियमार्थं सङ्ग्रह- १८. वरमल्लिभासणाण (शावृपा)। गाथा सूत्रबद्धा क्वचिदादर्श दृश्यते, यथा- १६. अमिलाण (हीव, ओ० सू० ६४ वाचनान्तरम्), असिलट्टिकंतचावे, चामरपासे य फलगपोत्थे य। २०. X (ही)। वीणावग्गाहे, तत्तो य हडप्पगाहे य॥१॥ (शाव) । २१. ईसिउच्छंगउन्नयविसाल (शाव)। १०. पिच्छिणो जडिणो सिखंडिणो (अ,क,ख,त्रि, २२. सतोरणाणं (हीव)। ब, पुवृ)। २३. सखिखिणीहेमजाल (ही) । ११. क्वचित् 'डमरकरा' इति दृश्यते (पुत्र)। 2 ). Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो '४५५ हेमवयचित्ततिणिसकणगणिजुत्तदारुगाणं कालायससुकयणेमिजंतकम्माणं सुसिलिटुवत्तमंडलधुराणं' आइण्णवरतुरगसुसंपउत्ताणं कुसलणरच्छेयसारहिसुसंपग्गहियाणं बत्तीसतोणपरिमंडियाणं सकंकडवडेंसगाणं सचावसरपहरणावरणभरियजुद्धसज्जाणं अट्ठसयं रहाणं पुरओ अहाणपव्वोए सपंट्ठियं । तयणंतरं च णं असि-सत्ति-कुंत-तोमर-सूल-लउल-भिडिमाल-धणुपाणिसज्जं पायत्ताणोयं पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठियं ॥ १७६. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो पुरओ महआसा आसधरा', उभओ पासिं णागा णागधरा', पिट्ठओ रहा रहसंगेल्ली अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया ॥ १८०. त णं से भरहाहिवे णरिंदे हारोत्थयसुकयरइयवच्छे' 'कुंडलउज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए णरसीहे णरवई परिंदे णरवसभे मरुयरायवसभकप्पे अब्भहियरायतेयलच्छीए दिप्पमाणे पसत्थमंगलसएहिं संथुव्वमाणे जयसद्दकयालोए हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेण धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धवमाणीहि-उद्धव्वमाणीहिं जक्खसहस्ससंपरिवुडे वेसमणे चेव धणवई अमरवइसण्णिभाए इड्ढीए पहियकित्ती चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे •महया उक्कि ट्ठिसीहणायबोलकलकलरवेणं पक्खुभियमहा° समुद्दरवभूयं पिव करेमाणे-करेमाणे सव्विड्डीए सव्वज्जुईए" सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूसाए सव्वविभूईए सव्ववत्थ-पुप्फ-गंधमल्लालंकारविभूसाए सव्वतुरियसद्दसण्णिणाएणं महया इड्डीए जाव मह्या वरतुरियजमगसमगपवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-मुरव-मुइंग-दुंदुहि°णिग्घोसणाइयरवेणं गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंव - दोणमुह-पट्टणासम-संबाहसहस्समंडियं थिमियमेइणीयं वसुहं अभिजिणमाणे-अभिजिणमाणे अग्गाइं वराई रयणाइं पडिच्छमाणेपडिच्छमाणे तं दिव्वं चक्करयणं अणुगच्छमाण-अणुगच्छमाणे° जोयणंतरियाहि वसहीहिं वसमाणे-वसमाणे जेणेव विणीया रायहाणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विणीयाए रायहाणीए अदूरसामंते दुवालसजोयणायाम णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छे विजयखंधावारणिवेसं करेइ, करेत्ता वड्डइरयणं सद्दावेइ, सद्धावेत्ता'° °एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! मम आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ १८१. तए णं से वड्डइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे हट्टतुटु-चित्तमाणदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता १. सुसिलिट्ठचक्कमंडल° (ही)। ६. सं० पा०-अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे २. आसवरा (पुवृ, हीवृपा); आसधरा जाव समुद्दरव। (पुत्पा )। ७. सं० पा० --- सव्वज्जुईए जाव णिग्घोसणाइयर३. णागवरा (पुवृ, हीवृपा); णागधरा वेणं ।। (पुवृपा)। ८. सं० पा०–मडंब जाव जोयणंतरियाहि । ४. X (ओ० सू०६६)। ६. सं० पा० .....णवजोयणविच्छिण्णं जाव ५. सं० पा०--हारोत्थयसुकयरइयवच्छे जाव खंधावारणिवेसं। अमरवइ । १०. सं० पा०-सहावेत्ता जाव पोसहसालं । Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ जंबुद्दीवपण्णत्ती भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणति ॥ १८२. तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' पोसहसालं अणुपविसइ, अणु पविसित्ता विणीयाए रायहाणोए अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता' •पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवण णिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए एगे अबीए अट्रमभत्तं पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरह।। १८३. तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह जाव' तहेव अंजणगिरिकडसण्णिभं गयवई णरवई दुरुढे, तं चेव सव्वं जहा हेट्ठा णवरि णव महाणिहिओ चत्तारि सेणाओ ण पवि संति, सेसो सो चेव गमो जाव' णिग्घोसणाइयरवेणं विणीयाए रायहाणीए मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव भवणवरवडेंसगपडिदुवारे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । १८४. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो विणीयं रायहाणि मज्झंमज्झेणं अणपविसमाणस्स अप्पेगइया देवा विणीयं रायहाणि सब्भंतरबाहिरियं आसियसंमज्जिओवलितं करेंति, अप्पेगइया मंचाइमंचकलियं करेंति', अप्पेगइया णाणाविहरागवसणुस्सियधयपडागाइपडागामंडितं करेंति, अप्पेगइया लाउल्लोइयम हियं करेंति, अप्पेगइया गोसीससरसरत्तदद्दरदिण्णपंचंगुलितलं जाव' गंधवट्टिभूयं करेंति, अप्पेगइया हिरण्णवासं वासंति, अप्पेगइया सुवण्ण-रयण-वइर'-आभरणवासं वासंति ॥ १८५. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो विणीयं रायहाणि मज्झमज्झेणं अणुपविसमाणस्स सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-च उम्मुह -महापह-पहेसु बहवे अत्यत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया इड्डिसिया' किब्बिसिया कारोडिया कारभारिया" संखिया चक्किया णंगलिया मुहमंगलिया पूसमाणया बद्धमाणया लंखमंखमाइया ताहिं ओरालाहिं इट्टाहिं कंताहि पियाहिं मणण्णाहिं मणामाहिं सिवाहिं धण्णाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहि हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं वग्गूहि अणवरयं 'अभिणंदता य अभिथुणंता य" एवं वयासी-जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! 'जय-जय नंदा ! ११ भदं ते, अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, जियमझे वसाहि, इंदो विव देवाणं, चंदो विव ताराणं, चमरो १. सं० पा०--पगिण्हित्ता जाव अट्ठमभत्तं । ८. सं० पा० -सिंघाडग जाव महापह । २. जं० ३११७५-१७७ । ६. रिड्डिसिया (ख)। ३. जं० ३११७८-१८० । १०. x (अ,ब); किट्टिसिया (क,ख,हीवृपा)। ४. आदर्शेष अत्र बहनि विशेषणानि संक्षेपेण ११. कारतारिया (अ); कारवाहिया (प, शाव, लिखितानि सन्ति । पुवृपा, हीवृपा, ओ० सू०६८)। ५. करेंति एवं सेसेसुवि पएसु (क,ख,स,हीव,पुर्व)। १२. अणुवरतं (अ,क,ख,प,ब)। ६. जं० ३।७। १३. क्वचिदनयोः पादयोर्व्यत्ययो दृश्यते (पूर्व)। ७. वतिर (अ,त्रि,ब)। १४. X (प, शा)। Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारी ४५७ विव असुराणं, धरणो विव नागाणं, बहूई पुव्वसयसहस्साई बहूईओ पुव्वकोडीओ बहूईओ पुव्वकोडाकोडीओ विणीयाए रायहाणीए चुल्ल हिमवंतगिरिसागरमेरागस्स य केवल कप्पस्स भरहस्स वासस्स गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासम-सण्णिवेसेसु सम्म पयापालणोवज्जियलद्धजसे महया "हयणट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं विउलाइं भोगभोगाइं भुजमाणे आहोवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे° विहराहित्तिकटु जयजयसई पउंजंति ।। १८६. तए णं से भरहे राया णयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे-पेच्छिज्जमाणे वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे-अभिथव्वमाणे हिययमालासहस्सेहिं उण्णंदिज्जमाणेउण्णं दिज्जमाणे मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे-विच्छिप्पमाणे कंतिरूवसोहग्गगुणेहि पत्थिज्जमाणे-पत्थिज्जमाणे अंगुलिमालासहस्सेहिं दाइज्जमाणे-दाइज्जमाणे दाहिणहत्थेणं बहणं णरणारीसहस्साणं अंजलिमालासहस्साई पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे भवणपंतिसहस्साई समइच्छमाणे -समइच्छमाणे तंती-तल-ताल-तुडिय-गीय-वाइयरवेणं मधुरेणं मणहरेणं मंजुमंजुणा घोसेणं अपडिवुज्झमाणे"-अपडिवुज्झमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव सए भवणवरवडेंसयदुवारे तेणेव उवागच्छइ', भवणवरवंडेंसयदुवारे आभिसेक्कं हत्थिरयणं ठवेइ, ठवेत्ता आभिसेक्काओं हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सोलस देवसहस्से सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता बत्तीसं रायसहस्से सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता सेणावइरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता एवं गाहावइरयणं वड्डइरयणं पूरोहियरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तिण्णि सठे सूयसए सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता अण्णे वि बहवे राईसर- तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइसत्थवाहप्पभितओ सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ, इत्थीरयणणं, बत्तीसाए उडुकल्लाणियासहस्सेहि, बत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्सेहिं, बत्तीसाए बत्तीस इबद्धेहि णाडयसहस्सेहिं सद्धि सपरिवुडे भवणवरवडेसगं अईइ जहा कुबेरो व्व १. सं० पा०-महया जाव आहेवच्चं पोरेवच्चं जाव विहराहित्ति कटु । अस्य पाठस्य पूर्ति: शान्तिचन्द्रीयवृत्तेराधारेण कृतास्ति । औप- पातिके (सू ६८) पाठस्य भिन्नः क्रमोस्ति, तस्य सूचना हीरविजयसुरिणापि कृता- यद्यप्यौपातिकादिषु 'महतायणट्टगीयवाइय- तती' त्यादिसूत्ररचना आहेबच्च' मित्यादि सूत्ररचनातः पश्चादेव दृश्यते, अत्र तु प्रथम- तया तथापि सूत्रकाराणां विचित्रागतिरतो न सम्मोहो न वान्यथाकरणम् । २. अभिणंदिज्जमाणे (जं० २।६४) । ३. कतिसोहग्गगुणेहिं (जं० २०६४) । ४. समईमाणे (अ,ब); समइक्कममाणे (त्रि)। ५. अपरिबुज्झमाणे (अ,क,ख,व); क्वचित् आपुच्छमाणे, क्वचित् पडिबुज्झमाणे (हीव)। ६. उवागच्छित्ता (पुवृ)। ७. अभिसेक्काओ (त्रि) । ८. देवसहस्सा (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ६. सं० पा०—राईसर जाव सत्थवाह । १०. °प्पभिइयो (क,ख,स)। Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ जबुद्दीवपण्णत्ती देवराया केलाससिहरिसिंगभूतं'। १८७. तए णं से भरहे राया मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधिपरियणं पच्चुवेक्खइ, पच्चवेक्खित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव' मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणबरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता उप्पिं पासायवरगए फट्टमाणे हिं मूइगमत्थएरोह बत्तीसइबद्धहि णाडएहि वरतरुणोसपउत्तहि' उवलालिज्जमाण-उवलालिज्जमाणे उवणच्चिज्जमाणे-उवणच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे महया 'हयणट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं इठे सद्दफरिसरसरूवगंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे भुजमाणे विहरइ॥ १८८. तए' णं तस्स भरहस्स रण्णो अण्णया कयाइ रज्जधुरं चिंतेमाणस्स इमेयारूवे •अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे' समुप्पज्जित्था-अभिजिए णं मए णियगबलवीरिय-पुरिसक्कार'-परक्कमेणं चुल्ल हिमवंतगिरिसागरमेराए केवलकप्पे भरहे वासे, तं सेयं खलु मे अप्पाणं महयारायाभिसेएणं' अभिसिंचावित्तएत्तिकटु एवं संपेहेति, संपेहेत्ता १. °सिहर' (अ,ब,पुवृ); °सिहरि° (पुवृपा)। भरताभिप्रायकाल एव तथाभिप्रायमवगम्य २. जं० ३।६। आभियोजिकदेवैविज्ञप्तो भरतस्तथैवं प्रति३. x (अ,क,ख,प,ब,स)। पन्नवान् इत्यदोषात् युक्तिक्षमत्वाच्च । ४. सं० पा०-महया जाव भुंजमाणे।। उपाध्यायशान्तिचन्द्रस्यापि अस्मिन् विषये ५. आवश्यकचों (पृ० २०५) महाराजा- एका टिप्पणी विद्यते-आवश्यकचूादो तु भिषेकस्य प्रस्तावो देवादिभिः कृतः इत्युल्लेखो भक्त्या सुरनरास्तं महाराजाभिषेकाय विज्ञदृश्यते--तए णं तस्स अन्नया कयादी ते पयामासुभरतश्च तदनुमेने, अस्ति हि अयं देवादीया महारायाभिसेयं विब्भवंति, सेवि य विधेयजनव्यवहारो यत्प्रभूणां समयसेवाविधी णं तहेव अट्ठमभत्तं गेहति । हीरविजयसूरिणा ते स्वयमेवोपतिष्ठन्ते, सत्यप्येवंविधे कल्पे यद् स्ववृत्ती ऋषभचरित्रान्तर्गतस्य अस्य विषयस्य भरतस्यात्रानुचरसुरादीनामभिषेकज्ञापनमूक्तं सूचना कृतास्ति-श्रीऋषभचरित्रे तु 'तए णं तद् गम्भीरार्थकत्वादस्मादृशां मन्दमेधसामनातस्म भरहस्स रणा अण्णयाई ते देवाइया कलनीयमिति । महाराजाभिषेकाय अन्येषां महारायाभिसेयं काउंकामा भरहं रायाणं प्रस्तावोधिकं स्पृशति मनोभावं, किन्तु विष्णवेंति-जिएण देवाणु प्पिएहि भारह वासे, आदर्शेषु सर्वत्र भरतकृतप्रस्तावस्योल्लेखो वसमुवागया विज्जाहराइरायाणो तमणु- लभ्यते, यद्यपि आवश्यकचूर्णी जम्बूद्वीपजाणह महारायाभिसेयं करेमो। भरहोवि तं प्रज्ञप्तेरेव पाठ उद्धृतोस्ति, किन्तु तादृशः पाठो देवाइयाणं वयणमणुमण्णति। तेवि हट्टतुट्ठ नादर्शषु क्वापि लभ्यते । एष वाचनाभेदोस्ति कयंजलिणो आभियोगिया देवा विणीयाए अथवा उत्तरकालीन परिवर्तनमिति अनुसन्धा नस्य विषयोस्ति। रायहाणीए उत्तरपुरथिमे दिलीभाए एगं महं ६. सं० पा० - इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था । आभिसेयमंडवं विउव्वंति' न चास्य प्रकृत- ७. पुरिसगार (क,ख,स)। सूत्रणं सह विरोधः शङ्कनीयः तीर्थकृतां निष्क्र. ८. महारायाभिसेयं (अ,ब); महारायाभिसेएणं मणकाले लोकान्तिकदेवानामिव पुण्योत्कर्षात (क,ख,प,स); महयाभिसेएणं (त्रि) । Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४५६ कल्लं पाउप्पभाए' • रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास-किसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव' मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयति, णिसीइत्ता सोलसदेवसहस्से, बत्तीसं रायवरसहस्से, सेणावइरयणे' 'गाहावइरयणे वड्डइरयणे' पुरोहियरयणे, तिण्णि सछे सूयसए, अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ, अण्णे य बहवे राईसरतलवर- माडंबिय-कोडुबिय-इब्म सेटि-सेणावइ सत्थवाहप्पभिइयो सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-अभिजिए णं देवाणुप्पिया ! मए णियगबल-वीरिय- पुरिसक्कार-परक्कमेणं चुल्ल हिमवंतगिरिसागरमेराए° केवलकप्पे भरहे वासे, तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! ममं महयारायाभिसेयं वियरह॥ १८६. तए णं ते सोलस देवसहस्सा जाव' सत्थवाहप्पभिइयो भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं दसण्णहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु भरहस्स रण्णो एयमलैं सम्म विणएणं पडिसुणेति ।। १६०. तए णं से भरहे राया जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव' अट्ठमभत्तिए [अट्ठमभत्तं ?"] पडिजागरमाणे विहरइ॥ १६१. तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि आभिओग्गे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासि-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए एगं महं अभिसेयमंडवं विउव्वेह, विउव्वेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह॥ १६२. तए णं ते आभिओग्गा देवा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्टा जाव" एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरथिमं दिसीभागं अवक्कमति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णंति", समोहणित्ता संखिज्जाई जोयणाई दंडं णिसिरंति, तं जहा-रयणाणं जाव'२ रिट्राणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेति, परिसाडेत्ता अहासुहमे पोग्गले परियादियंति, परियादित्ता १. सं० पा०-पाउप्पभाए जाव जलते। जं. ३२०,१८२ । 'पडिजागरमाणे' इत्यर्ध२. जं० ३।६। क्रियापदस्य कर्मापेक्षयापि 'अट्टमभत्तं' इति ३. सं० पा०-सेणावइरयणे जाव पुरोहियरयणे । पाठो युक्तः स्यात् । ४. सं० पा० - तलवर जाव सत्यवाह । ६. आभियोगिए (प, हीवृ)। ५. सं० पा०-वीरिय जाव केवलकप्पे । १०. जं० ३।१६। ६. जं० ३.१८८ । ११. समोरणंति (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स); समवध्न७. जं० ३१२०१८२। न्ति (शावृ)। ८. पाठस्य पूर्वपद्धति यदि विचारयामः तदा १२. जी० ३१७। 'अट्रमभत्तं' इति पाठो युक्तः स्यात् । द्रष्टव्यं Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० जंबुद्दीवपण्णत्ती दोच्चंपि वेउब्विय समुग्घाएणं° समोहणंति', समोहणित्ता बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं विउव्वंति, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' णाणाविधपंचवण्णेहिं तणेहि य मणीहि य उवसोभिए॥ १६३. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगं अभिसेयमंडवं विउव्वं ति-अणेगखभसयसण्णिविठं जाव' गंधवट्टिभूयं पेच्छाघरमंडववण्णगो॥ १६४. तस्स णं अभिसेयमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगं अभिसेयपीढं विउव्वंति-अच्छं सण्डं ॥ १६५. तस्स णं अभिसेयपीढस्स तिदिसिं तओ तिसोवाणपडिरूवए विउव्वंति । तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते जाव तोरणा ॥ १६६. तस्स णं अभिसेयपीढस्स बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते ॥ १६७. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगं सीहासणं विउव्वंति, तस्स णं सीहासणस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते जाव' दामवण्णगं समत्तं ॥ १६८. 'तए ण" ते देवा अभिसेयमंडवं विउव्वंति, विउव्वित्ता जेणेव भरहे राया" तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ १६६. तए णं से भरहे राया आभिओग्गाणं" देवाणं अंतिए" एयमठे सोच्चा णिसम्म हत?"- चित्तमाणंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए° पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, पडिकप्पेत्ता हय-गय" 'रह-पवरजोहक लियं चाउरंगिणि सेण्णं सण्णाहेह', सण्णाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ २००. 'तए णं ते कोडुंबियपुरिसा' जाव पच्चप्पिणंति ।। २०१. तए णं से भरहे राया मज्जणघरं अणुपविसइ जाव' अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवई णरवई दुरुढे ॥ २०२. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो आभिसेक्कं हत्थिरयाणं दुरुढस्स समाणस्स इमे १. सं० पा०-वेउव्विय जाव समोहण्णंति । ६. एएणं (अ,त्रि,ब,हीवृ); एवं णं (हीवृपा)। २. समोहणति (क,ख,त्रि,प,स) । १०. सं० पा०-राया जाव पच्चप्पिणंति । ३. जी० ३।२७७। ११. अभिओग्गाणं (अ,ब)। ४. पूर्णपाठावलोकनार्थद्रष्टव्यं जं० २१७ । १२. अंतियं (क,ख)। ५. राय० सू० ३२। १३. सं० पा०-हट्टतुट्ठ जाव पोसहसालाओ। ६. अभिसेयपेढं (अ,ब); अभिसेयपीढं (ख) प्रायः १४. सं० पा०---हयगय जाव सण्णाहेत्ता। सर्वत्र। १५. सं० पा०-पच्चप्पिणह जाव पच्चप्पिणंति । ७. जी० ३।२८७-२६१ । १६. जं० ३।१७। ८. जी. ३१३११-३१३ । Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइमओ वक्वारो ४६१ अट्ठमंगलगा पुरओ अहाणपृवीए संपट्टिया ॥ २०३ जो चेव गमो विणीयं पविसमाणस्स सो चेव णिक्खममाणस्सवि' जाव' ।। २०४. •तए णं से भरहे राया णयणमालासहस्सेहि पेच्छिज्जमाणे-पेच्छिज्जमाणे वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे-अभिथुव्वमाणे हिययमालासहस्सेहिं उण्णं दिज्जमाणे-उण्णंदिज्जमाणे मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे-विच्छिप्पमाणे कंतिरूवसोहग्गगुणेहिं पत्थिज्जमाणे-पत्थिज्जमाणे अंगुलिमालासहस्सेहिं दाइज्जमाणे-दाइज्जमाणे दाहिणहत्थेणं बहूणं णरणारीसहस्साणं अंजलिमालासहस्साई पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे भवणपंतिसहस्साइं समइच्छमाणे-समइच्छमाणे तंती-तल-ताल-तुडिय-गीय-वाइयरवेणं मधुरेणं मणहरेणं मंजमंजूणा घोसेणं° अप्पडिवज्झमाणे-अप्पडिवज्झमाणे विणीयं रायहाणि मज्झंमझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरथिमे दिसीभाए जेणेव अभिसेयमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अभिसेयमंडवदुवारे आभिसेक्कं हत्थिरयणं ठवेइ', ठवेत्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता इत्थीरयणेणं', बत्तीसाए उडुकल्लाणियासहस्सेहिं, बत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्से हिं, बत्तीसाए बत्तीसइबद्धेहिं णाडगसहस्सेहिं सद्धि संपरिवुडे अभिसेयमंडवं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव अभिसेयपीढे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभिसेयपीढं अणुप्पदाहिणीकरेमाणे-अणुप्पदाहिणीकरेमाणे पुरित्थिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुरत्थाभिभुहे सण्णिसण्णे ।। २०५. ताणं तस्स भरहस्स रणो बत्तीसं रायसहस्सा जेणेव अभिसेयमंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता' अभिसेयमंडवं अणपविसंति, अणुपविसित्ता अभिसेयपीढं अणुप्पदाहिणीकरेमाणा-अणुप्पदाहिणीक रेमाणा उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं जेणेव भरहे राया तेणेब उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए' अंजलि कटु भरहं रायाणं जएणं विजएणं बद्धावेंति, वद्धावेत्ता भरहस्स रण्णो णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणा •णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलियडा पज्जुवासंति ।। २०६. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सेणावइरयणे 'गाहावइरयणे वड्डइरयणे पुरोहियरयणे, तिण्णि सट्टे सूयसए, अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ, अण्णे य बहवे राईसर-तलवरमाडंबिय-कोडुबिय-इव्भ से ट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइओ जेणेव अभिसेयमंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अभिसेयमंडवं अणुपविसंति, अणुपविसित्ता अभिसेयपीढं अणुप्पदाहिणीकरेमाणा-अणुप्पदाहिणीकरेमाणा' दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं" १. सं० पा०-णिक्खममाणस्सवि जाव अप्पडि- ७. सं० पा०-सुस्मसमाणा जाव पज्जुवासंति। वुज्झमाणे। ८. सं० पा० ----सेणावइरयणे जाव सत्थवाह । २. जं० ३१८३-१८५। ६. सं० पा०-पभिइओ तेवि तह चेव णवरं ३ ठावेइ (त्रि,प)। दाहिणिल्लेणं। ४. थीरयणं (अ,ब)। १०. सं० पा०-तिसोवाणपडिरूवएणं जाव पज्जू५. उवागच्छित्ता जाव (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । वासंति। ६. सं० पा०-करयल जाव अंजलि । Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ जंबुद्दीवपण्णत्ती 'जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटट भ रहं रायाणं जएणं विजएणं वद्धाति, वद्धावेत्ता भरहस्स रणो णच्चास णाइदूरे सुस्सुसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलियडा पज्जुवासंति ॥ २०७. तए णं से भरहे राया आभिओग्गे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो -- खिप्पामेव भो देवाणु प्पिया ! तं महत्थं महग्धं महरिहं महारायाभिसेयं उवट्ठवेह ।। २०८. तए णं ते आभिओग्गा देवा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठचित्ता जाव' उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणंति', एवं जहा विजयस्स तहा इत्यंपि जाव' पंडगवणे एगओ मिलायंति, मिलाइत्ता जेणेव दाहिणभरहे वासे जेणेव विणीया रायहाणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता विणीयं रायहाणि अणुप्पयाहिणीकरेमाणा-अणुप्पयाहिणीकरेमाणा जेणेव अभिसेयमंडवे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता तं महत्थं महग्धं महरिहं महारायाभिसेयं उवट्ठति ॥ २०६. तए णं तं भरहं रायाणं बत्तीसं रायसहस्सा सोभणंसि तिहि-करण-दिवसणक्खत्त-मुहत्तंसि उत्तरपोढवया-विजयंसि तेहि साभाविएहि य उत्तरवेउव्विएहि य वरकमलपइट्टाणेहिं सुरभिवरवारिपडिपुण्णेहिं 'चंदणकयचच्चाएहिं आविद्धकंठेगुणेहिं पउमुप्पलपिधाणेहिं सुकुमालकरतलपरिग्गहिएहिं अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं रुप्पामयाणं मणिमयाणं जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहि सव्वमट्टियाहिं सव्वतुवरेहि सव्वपुप्फेहि सव्वगंधेहि सव्वमल्लेहिं सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं य सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूतीए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वदिव्वतुडियसहसण्णिणाएणं महया इड्ढीए महया जूतीए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुरियजमगसमगपडुप्पवादितरवेणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडक्क- मुरव - मुइंग- दुंदुहि- णिग्घोसनादितरवेणं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति, अभिसेओ जहा विजयस्स, अभिसिचित्ता पत्तेयंपत्तेयं करतलपरिग्गहियं सिरसावत्त मत्थए° अंजलि कटु ताहि इट्टाहि कंताहिं पियाहि मणुण्णाहिं मणामाहिं सिवाहि धण्णाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहि हिययपल्हायणिज्जाहिं वग्गूहि अणवरयं अभिणंदंता य अभिथुणंता य एवं वयासी-जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! जय जय नंदा ! भदं ते, अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि, इंदो विव देवाणं, चंदो विव ताराणं चमरो विव असुराणं, धरणो विव नागाणं, बहूइं पुव्वसयसहस्साई बहूईओ पुव्वकोडीओ बहूईओ १. जं० ३।१६२। कानि-कानिचिद विशेषणानि भिन्नानि वर्तन्ते । २. समोहणंति (अ,क,ख,प,ब,स) । ५. जी० ३।४४७,४४८ । . ३. जी० ३१४४५)। ६. सं पा०-पत्तेयं जाव अंजलि । ४. सं० पा०-सुरभिवरवारिपडिपुण्णेहिं जाव ७. सं० पा०- इटाहिं जहा पविसंतस्स भणिया महया। असौ पाठो जीवाजीवाभिगमात् जाव विहराहित्तिकटु। . . . (३।४४६) वृत्तित्रयाच्च पूरितः । वृत्तित्रयेपि Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो वक्खारो ४६३ पुवकोडाकोडीओ विणीयाए रायहाणीए चुल्लहिमवंतगिरिसागरमेरागस्स य केवलकप्पस्स भरहस्स वासस्स गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमूह-पट्टणासम-सण्णिवेसेसू सम्म पयापालणोवज्जियलद्धजसे महयाहयणट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्त आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे° विहराहित्तिकटु जयजयसई पउंजंति ॥ २१०. तए णं तं भरहं रायाणं सेणावइरयणे' 'गाहावइरयणे वड्ढइरयणे° पुरोहिय रयणे, तिण्णि य सट्टा सूयसया, अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ, अण्णे य बहवे राईसरतलवर-मांडबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ°-सत्थवाहप्पभिइओ एवं चेव अभिसिंचंति तेहिं वरकमलपइट्ठाणेहिं तहेव जाव अभिथुणंति य । सोलस देवसहस्सा एवं चेव णवरं'.-. २११. 'तए णं तस्स भरहस्स रण्णो तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए दिव्वाए सुरभीए गंधकासाईए गाताई लू हेंति, लुहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गाताई अणुलिपंति, अणुलिपित्ता नासानीसास वायवोज्झं चक्खुहरं वण्णफरिसजुत्त हयलालापेलवातिरेगं धवलं कणगखचियंतकम्मं आगासफहिलहसमप्पभं अहतं दिव्वं देवदूसजुयलं णियंसावेंति, णियंसावेत्ता हारं पिणिद्धेति, पिणिवेत्ता अद्धहारं पिणिद्धति, पिणिद्धेत्ता एकावलि पिणिखेति, पिणिवेत्ता एवं एतेणं अभिलावेणं मुत्तावलिं कणगावलि रयणावलि कडगाइं तुडियाई अंगयाइं केयूराइं दसमुद्दियाणंतकं कुंडलाइं चूडामणि चित्तरयणसंकडं° मउडं पिणद्धेति । तयणंतरं च णं दद्दरमलयसुगंधगंधिएहिं गंधेहिं गायाइं भुकंडेंति दिव्वं च सुमणदाम पिणद्वेति, किं बहणा ? गंथिम-वेढिम - पूरिम-संघाइमेणं चउव्विहेणं मल्लेणं कप्परुक्खयं पिव अलंकिय-विभूसियं करेंति॥ २१२. तए णं से भरहे राया महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचिए समाणे कोबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हत्थिखंधवरगया विणीयाए रायहाणीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-' चउम्मुह -महापह-पहेसु महयामहया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाण उस्सुक्कं उक्करं उक्किट्ठ अदिज्जं अमिज्ज अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलिय°-सपुरजणजाणवयं दुवालससंवच्छरियं पमोयं घोसेह, घोसेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।।। २१३. तए णं ते कोडुबियपुरिसा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुटूचित्तमाणंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया विणएणं वयणं १. सं० पा०-सेणाव इरयणे जाव पुरोहियरयणे। ५. सूमणोदामं (प)। २. सं० पा०-बहवे जाव सत्थवाह । ६. गंठिम (त्रि, प)। ३. सं० पा०-णवरं पम्हलमालाए जाव ७. सं० पा०-वेढिम जाव विभूसियं । मउडं। ८. सं० पा०-चच्चर जाव महापह। ४. अभुक्खंति (क, ख, त्रि, प, शाव,हीवपा); है. सं० पा...--अदंडकोदंडिमं जाव सपुरजणजाणभुकुंडेंति (शावृपा)। वयं । संपुरजणुज्जाणवयं (अ, त्रि, ब)। Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ जंबुद्दीवपण्णत्ती पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता खिप्पामेव हत्थिखंधवरगया' विणीयाए रायहाणीए सिंघाडगतिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा उस्सुक्कं उक्करं उक्किट्ठ-अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेस अंदडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलियसपुरजणजाणवयं दुवालससंवच्छरियं पमोयं° घोसंति, घोसित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ २१४. तए णं से भरहे राया महया-'महया रायभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासणाओ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता इत्थिरयणेणं, 'बत्तीसाए उडुकल्लाणियासहस्सेहिं, बत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्सेहि,बत्तीसाए बत्तीसइबद्धेहि णाडगसहस्सेहिं सद्धि संपरिवडे अभिसेयपीढाओ पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अभिसेयमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरिकडसण्णिभं गयवइं५ •णरवई दुरुढे ॥ २१५. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बत्तीसं रायसहस्सा अभिसेयपीढाओ उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति ॥ २१६. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सेणावइरयणे 'गाहावइरयणे वढइरयणे पुरोहियरयणे, तिण्णि सट्टे सूयसए, अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ, अण्णे य बहवे राईसरतलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ°-सत्थवाहप्पभिइओ अभिसेयपीढाओ दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति ॥ २१७. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो आभिसेक्कं हत्थिरयणं दरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठमंगलगा पुरओ •अहाणुपुबीए° संपट्ठिया, जच्चिय अइगच्छमाणस्स गमो पढमो कुबेरावसाणो सो चेव इहंपि कमो सक्कारजढो णेयव्वो जाव' कुबेरोव्व देवराया केलासं सिहरिसिंगभूयं ॥ २१८. तए णं से भरहे राया मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जाव" भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहि 'बत्तीस इबद्धेहिं णाडएहिं वरतरुणीसंपउत्तेहिं उवलालिज्जमाणे-उवलालिज्जमाणे उवणच्चिज्जमाणे-उवणच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे महयाहयणट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण१. सं० पा०—हत्थिखंधवरगया जाव घोसंति । ७. सं० पा०—पुरओ जाव संपट्ठिया । २. महयाभिसेकेणं (अ, क, त्रि, ब)। ८. जेचिय (अ, ब); जोच्चिय (क, स, पुवृ); ३. सं० पा०-इत्थिरयणेणं जाव जेच्चिय (ख); जोविय (प, शावृ)। __णाडगसहस्सेहिं। ६. जं० ३११८३-१८६ । ४. तिसोमाण° (अ,ब)। १०. सिहर° (अ, क, त्रि, ब)। ५. सं० पा०—गयवई जाव दुरुढे । ११. जं० ३११८७ । ६.सं० पा०-सेणावइरयणे जाव सत्थवाह । १२. सं० पा०.-मुइंगमस्थ एहिं जाव भुंजमाणे। Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४६५ मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं इठे सद्दफरिस रसरूवगंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे° भुंजमाणे विहरइ॥ २१६. तए णं से भरहे राया दुवालससंवच्छरियंसि पमोयंसि णिव्वत्तसि समाणंसि जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव' मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला 'जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता सोलस देवसहस्से सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता बत्तीसं रायवरसहस्सा सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता सेणावइरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता •एवं गाहावइरयणं वड्ढइरयणं° पुरोहियरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता एवं तिण्णि सढे सूयसए अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता अण्णे य बहवे राईसर-तलवर- माडंबियकोडुबिय-इब्भ-सेट्टि-सेणावइ -सत्थवाहप्पभिइओ सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता उप्पि पासायवरगए जावः विहरइ॥ ____ २२०. भरहस्स रण्णो चक्करयणे 'छत्तरयणे दंडरयणे असिरयणे'"-एते णं चत्तारि एगिदियरयणा आउहघरसालाए समुप्पण्णा। चम्मरयणे मणिरयणे कागणिरयणे णव य महाणिहओ-एए णं सिरिघरंसि समुप्पण्णा । सेणावइरयणे गाहावइरयणे वड्ढइरयणे पुरोहियरयणे--'एए णं चत्तारि मणुयरयणा विणीयाए रायहाणीए समुप्पण्णा। आसरयणे हत्थिरयणे-'एए णं' दुवे पंचिदियरयणा वेयड्ढगिरिपायमूले समुप्पण्णा। इत्थीरयणे" उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए समुप्पण्णे ॥ २२१. तए णं से भरहे राया चउदसण्हं रयणाणं णवण्हं महाणिहीणं सोलसण्हं देवसाहस्सीणं बत्तीसाए रायसहस्साणं बत्तीसाए उडुकल्लाणियासहस्साणं बत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्साणं बत्तीसाए बत्तीसइबद्धाणं णाडगसहस्साणं तिण्हं सट्ठीणं सूयसयाणं अटारसण्हं सेणि-प्पसेणीणं चउरासीए आससयसहस्साणं चउरासीए दंतिसयसहस्साणं चउरासीए रहसयसहस्साणं छण्णउइए मणुस्सकोडीणं बावत्तरीए पुरवरसहस्साणं बत्तीसाए जणवयसहस्साणं छण्णउइए गामकोडीणं णवणउइए दोणमुहसहस्साणं अडयालीसाए पट्टणसहस्साणं चउव्वीसाए कब्बडसहस्साणं चउव्वीसाए मडंबसहस्साणं वीसाए आगरसहस्साणं सोलसण्हं खेडसहस्साणं' चउदसण्हं संवाहसहस्साणं छप्पण्णाए अंतरोद१. जं० ३।। ८. काकिणि° (अ); कागिणी' (ब); २.सं० पा०-उवट्ठाणसाला जाव सीहासणवर काकणि' (स)। गए। ६. एवं (अ, त्रि, ब)। ३. सं० पा०—सम्माणेत्ता जाव पुरोहियरयणं। १०. एवं (अ,ब) । ४. सूआरसए (प) ११. सुभद्दा इत्थीरयणे (क, ख, त्रि)। ५. सं० पा०-तलवर जाव सत्थवाह । १२. सूआरसयाणं (प)। ६. जं० ३१८७ १३. खेडगसयाणं (अ, ब, आवश्यकचूणि पृ० ७. दंडरयणे असिरयणे छत्तरयणे (ख, त्रि, प)। २०८) । Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ गाणं एगूणपण्णाए कुरज्जाणं विणीयाए रायहाणीए चुल्लहिमवंतगिरिसागरमेरागस्स केवलकप्पस्स भरहस्स वासस्स अण्णेसि च बहूणं राईसर' - तलवर'- माडंबिय - कोडुंबिय इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ' -सत्थवाहप्पभिईणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा - ईसर - सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे ओहय - णिहएस कंटएसु उद्धमलिए सव्वसत्सु णिज्जिएसु भरहा हिवे परिंदे वरचंदणचच्चियंगे वरहाररइयवच्छे वरमउडविसिट्ठए' वरवत्थभूसणधरे सव्वोउयसुर हिकुसुमवरमल्लसोभियसिरे वरणाडग*नाइज्ज-वरइत्थिगुम्म सद्धि संपरिवडे सव्वोसहि सव्वरयण - सव्वसमिइस मग्गे संपुष्णमणोरहे हयामित्तमाणमहणे पुव्वकयतवप्पभाव'-निविट्ठसंचियफले भुंजइ माणुस्सए सुहे भरहे णामधेज्जे || २२२. तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता • मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरणकुट्टिमतले रमणिज्जे पहाणमंडवंसि णाणामणि- रयण भत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि सुहणिसणे सुहोदहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहि य पुण्णे कल्लाणगपवरमज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयस एहि बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलू हियंगे सरससुर हिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते अहयसुमहग्घ दूसरयणसुसंवए सुइमाला - वण्णग- विलेवणे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहार- तिसरय- पालंबलंबमाणकत्तिसुकसोहे पिणद्धगेविज्जगअंगुलिज्जग-ललितंगयल लियकयाभरणे णाणामणिक - गडियथं भयभए अहियरूव सस्सिरीए कुंडलउज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकयरइयवच्छे पालंबलंबमाणसुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलंगुलीए णाणामणिकणगविमल - महरिह - णिउणोवियमिसिमिसेंत विरइयसुसिलिट्ठविसिलसंठिय-पसत्थआविद्धवीरकिं बहुणा : कप्परुक्खए ? 'चेव अलंकियविभूसिए परिंदे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे मंगलजयसद्दक्यालोए अणेगगणणायग-दंडणायगराईसर-तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय - मंति- महामंति- गणग दोवारिय-अमच्च- चेड-पीढमद्दनगर-निगम - सेट्ठि सेणाव इ-सत्थवाह- दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे धवल - महामेहणिग्गए इव गहगण - दिप्पंत- रिक्ख-तारागणाण मज्झे ससिव्व पियदंसणे णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव आदंसघरे जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता आदंसघरंसि अत्ताणं देहमाणे - देहमाणे चिट्ठइ ॥ वलए, २२३. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहि अज्झवसाणेहि १. रादीसर (आवश्यक चूर्णि पृ० २०८ ) २. सं० पा० – तलवर जाव सत्यवाह । ३. करेमाणे ( अ, क, ब ) । ४. विसाए ( अ, ब ) ; ° विकट्टए ( क ) ; गढ (ख, पुवृपा) । ५. चूर्णां तु वरमउडाविद्धाए' (शावृ ) । ६. तृतीया लोपः आर्षत्वात् ( शावृ ) । ७. हतामित्तसत्तु पक्खे ( आवश्यक चूर्णि पृ०२०९ ) । ८. पुव्वकड° (क,स) । ६. सं० पा०- उवागच्छित्ता जाव ससिव्व । Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४६७ लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं-विसुज्झमाणीहिं ईहापोह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स तयावरिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं अपुव्वकरणं पविट्ठस्स अणंते अणुत्तरे कसिणे पडिपुण्णे निव्वाघाए निरावरणे केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे ॥ २२४. तए णं से भरहे केवली सयमेवाभरणालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, करेत्ता आदंसघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतेउरं मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता दसहिं रायवरसहस्सेहि सद्धिं संपरिवडे विणीयं रायहाणिं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता मज्झदेसे सुहंसुहेणं विहरइ, विहरित्ता जेणेव अट्टावए पव्वते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्ठावयं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहइ, दुरुहित्ता मेघघणसण्णिकासं देवसण्णिवायं पुढविसिलापट्टगं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता संलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पायोवगए कालं अणवकंखमाणे-अणवकंखमाणे विहरइ॥ २२५. तए णं से भरहे केवली सत्तत्तरि पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमज्झावसित्ता, एग वाससहस्सं मंडलियरायमज्झावसित्ता, छ पुव्वसयसहस्साई वाससहस्सूणगाई महारायमज्झावसित्ता, तेसीइं पुव्वसयसहस्साई अगारवासमज्झावसित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं देसूणगं केवलिपरियायं पाउणित्ता, तमेव बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता, मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं सवणेणं" णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं खीणे वेयणिज्जे आउए णामे गोए कालगए वीइक्कते समुज्जाए छिण्णजाइजरामरणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिणिव्वुडे अंतगडे सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ २२६. भरहे य एत्थ देवे महिड्ढीए महज्जुईए 'महाबले महायसे महासोक्खे महाणुभागे । पलिओवमट्ठिईए परिवसइ । से एएणठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-भरहे वासे भरहे वासे ॥ अदुत्तरं च णं गोयमा ! भरहस्स वासस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते-जंण कयाइ ण आसि ण कयाइ णत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ, भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवे णियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे भरहे वासे । १. ईहापूह (अ.क,ख.स); ईहावूह (पुर्व)। २. मुयई (ब)। ३. सिलावट्टयं (प)। ४. भरहे राया (क,ख,स)। ५. मज्झे वसित्ता (ख,त्रि,प,शाव,हीव) सर्वत्र । ६. पाउणित्ता (क,प)। ७. समणेणं (अ,ब)। ८. सं० पाo-महज्जुईए जाव पसिओवमट्टिईए। Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो १. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! हेमवयस्स वासस्स दाहिणेणं, भरहस्स वासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंते णाम वासहरपव्वए पण्णत्ते-पाईणपडीणायए' उदीणदाहिणविच्छिण्णे दुहा लवणसमुई पुढे-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुढें, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुढें, एगं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं, पणवीसं जोयणाई उव्वेहेणं, एग जोयणसहस्सं बावण्णं च जोयणाई दुवालस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं पंच जोयणसहस्साई तिण्णि य पण्णासे जोयणसए पण्णरस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स अद्ध भागं च आयामेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणाणया 'दुहा लवणसमुदं पुट्ठा-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा, चउव्वीसं जोयणसहस्साई णव य बत्तीसे जोयणसए अद्धभागं च किंचिविसेसूणा आयामेणं पण्णत्ता। तीसे धणुपट्टे दाहिणेणं पणवीसं जोयणसहस्साइं दोण्णि य तीसे जोयणसए चत्तारि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं, रुयगसंठाणसंठिए सव्वकणगामए अच्छे सण्हे लण्हे जाव' पडिरूवे, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते दुण्ह वि पमाणं वण्णगो य॥ २. चुल्लहिमवंतस्स णं वासहरपव्वयस्स उवरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति' 'सयंति चिट्ठति णिसीयंति तुयटुंति रमंति ललंति कीलंति मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फल१. °पडियायते (अ,ब) प्रायः सर्वत्र । ६. जं० । २. पासा (अ,ब)। ७. पस्सिं (अ,ख,त्रि,ब,स)। ३. सं० पा०-पाईणपडीणायया जाव पच्चत्थि- ८. जं०१०-१४ । मिल्लाए। ६. जं० २१३ । ४. पणुवीसं (अ,क,ब.स)। १०. सं० पा.-आसयंति जाव विहरति । ५. सव्वकणकमए (अ,ब)। ४६८ Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्यो वक्खारी वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा' विहरति ॥ ३. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं एक्के महं पउम णामं दहे पण्णत्ते - पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे एक्कं जोयणसहस्सं आयामेणं, पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, अच्छे सण्हे रययामयकूले' 'वइरामयपासाणे सुहोतारे सुउत्तारे णाणामणितित्थ-बद्धे वइरतले सुवण्णसुज्झ - रययवालुयाए वेरुलियमणिफालियपडल- पच्चोयडे वट्टे समतीरे अणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजले संछणपत्तभिसमुणाले बहुउप्पल - कुमुय णलिण - सुभग-सोगंधिय-पोंडरीयमहापोंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्तपप्फुल्ल केसरो बचिए अच्छविमलपत्थसलिल पुणे परिहत्थभमंतमच्छकच्छभ-अणेगस उणगणमिहुणपविचरिय- सदुष्णइय महुरसरणाइए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे' पडिरूवे । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते, वेइया-वणसंड-वण्णओ भाणियव्व ॥ ४. तस्स णं पउमद्दहस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णावासो भाणियव्व ॥ ५. तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं तोरणे पण्णत्ते । तेणं तोरणा णाणमणिमया ॥ ६. तस्स णं पउमद्दहस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पउमे पण्णत्ते - जोयणं आयाम - विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं दो कोसे ऊसिए जलताओ 'साइरेगाई दसजोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ते । से णं एगाए जगईए सव्वओ समंता संपरिक्खित्त, जंबुद्दीवजगइप्पमाणा गवक्खकडएवि तह चेव पमाणेणं ॥ ७. तस्स णं पउमस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - वइरामया मूला रिट्ठामए कंदे वेरुलियामए णाले वेरुलियामया बाहिरपत्ता जंबूणयामया अभितरपत्ता तवणिज्जमया केसरा णाणामणिमया पोक्खरत्थिभया कणगामई कण्णिगा, सा णं अद्धजोय आयाम - विक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, सव्वकणगामई अच्छा ॥ ८. तीसे णं कण्णियाए उप्पि बहुसरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा " ॥ ६. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महंगे भवणे पण्णत्ते--कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणगं कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, १. पडियाय ( अ, ब ) पडणायए (क, ख, त्रि,स)। २. सं० पा० - रययामयकूले जाव पासाईए जाव परुिवे । ३. जं० १११०-१३ । ४. जं० ४।२६ । ५. नवरं 'णाणामणिमये' ति वर्णकैकदेशेन पूर्ण स्तोरणवर्णको ग्राह्यः ( शावृ ) ; जं० ४।२७ ३० । ४६६ ६. × ( अ, ब ) । ७. पमाणेणं सातिरेगाई दसजोयणाइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ( अ, क, ख, त्रि,ब) ; जं० ११८,६ ॥ ८. पुष्करास्थिभागाः (शावृ); पुक्ख रत्थिभुया (जी० ३।६४३) । ६. 'अच्छा' इत्येकदेशेन 'साहा' इत्यादिपदान्यपि विज्ञेयानि (शावृ ) । १०. जं० १।१३ । Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० जंबुद्दीवपण्णत्ती अणेगखंभसयसण्णिविट्ठे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ १०. तस्स णं भवणस्स तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता। ते णं दारा पंचधणुसयाई उडढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइंधणुसयाई विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा जाव' वणमालाओ णेयव्वाओ॥ ११. तस्स णं भवणस्स अंतो' बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा ॥ १२. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स, बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता । सा णं मणिपेढिया पंचधणुसयाई आयाम-विक्खंभेणं, अड्ढाइजाई धणुसयाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा ॥ १३. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं महं एगे सयणिज्जे पण्णत्ते", 'तं जहा--- नाणामणिमया पडिपादा, सोवण्णिया पादा, नाणामणिमया पायसीसा, जंबूणयमयाई गत्ताई, वइरामया संधी, णाणामणिमए वेच्चे, रइयामई तूली, लोहयक्खमया बिब्बोयणा, तवणिज्जमई गंडोवहाणिया। से णं देवसयणिज्जे सालिंगणवटीए उभओ बिब्बोयणे दुहओ उण्णए मज्झे णय-गंभीरे गंगापुलिणवालुया-उद्दालसालिसए ओयवियखोमदुग्गुलपट्ट-पडिच्छयणे आइणग-रूत-बूर-णवणीय-तूलफासे सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवते सुरम्मे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे.॥ १४. से णं पउमे अण्णेणं अट्ठसएणं पउमाणं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्ताणं सव्वओ समता संपरिखिक्त्ते । ते णं पउमा अद्धजोयणं आयाम-विक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, दस जोयणाइं उव्वेहेणं, कोसं ऊसिया जलंताओ, साइरेगाई दसजोयणाई 'सव्वग्गेणं पण्णत्ते'५॥ १५. तेसि णं पउमाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा--वइरामया मूला जाव कणगामई कण्णिया। सा णं कण्णिया कोसं आयामेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं सव्वकणगामई अच्छा ॥ १६. तीसे णं कण्णियाए उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीहिं उवसोभिए । १७. तस्स णं पउमस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं सिरीए देवीए चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ॥ १८. तस्स णं पउमस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सिरीए देवीए चउण्हं महत्तरियाणं १. जी० ३३२६९-३०६ । जीवाजीवाभिगमे (३१६५३ पि नीलवग्रह२. अंते (ख,त्रि)। प्रकरणे सव्वग्गेणं' इति पाठो लभ्यते । ३. महइ (प)। वृत्तावपि (पत्र २७६) तथैव व्याख्यातोस्ति । ४. सं० पा०-पण्णत्ते सयणिज्जवण्णओ भाणि- अत्रापि सव्वग्गेणं' इति पाठो युक्तः प्रतिभाति । यव्वो । ६. जं० ४१७ । ५. उच्चत्तेणं (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स); पूर्वप्रकरणे ४१६ 'सव्वग्गेणं पण्णत्ते' इति पाठोस्ति । ८.० १११३ । Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४७१ चत्तारि पउमा पण्णत्ता॥ १६. तस्स णं पउमस्स दाहिणपुरस्थिमेणं, एत्थ णं सिरीए देवीए अभितरियाए परिसाए अट्टण्हं देवसाहस्सीणं अट्ठ पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ । दाहिणणं मज्झिमपरिसाए दसण्हं देवसाहस्सीणं दस पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरियाए परिसाए बारहसण्हं देवसाहस्सीणं बारस पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। पच्चत्थिमेणं सत्तण्हं अणियाहिवईण सत्त 'पउमा पण्णत्ता'। २०. तस्स णं पउमस्स चउद्दिसि सव्वओ समंता, एत्थ णं सिरीए देवीए सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ॥ २१. से णं पउमे तिहिं पउमपरिक्खेवेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, तं जहाअभितरएणं' मज्झिमएणं बाहिरएणं । अभितरए पउमपरिक्खेवे बत्तीसं पउमसयसाहस्सीओ पण्णताओ। मज्झिमए पउमपरिक्खेवे चत्तालीसं पउमसयसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। बाहिरए पउमपरिक्खेवे अडयालीसं पउमसयसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। एवामेव सपुव्वावरेणं तिहिं पउमपरिक्खेवेहिं एगा पउमकोडी वीसं च पउमसयसाहस्सीओ भवंतीति अक्खायं ।। २२. से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ-पउमद्दहे-पउमद्दहे ? गोयमा ! पउमद्दहे णं तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई पउमद्दहप्पभाई ‘पउमद्दहागाराइं पउमद्दहवण्णाई पउमद्दहवण्णाभाई, सिरी यत्थ देवी महिड्ढीया जाव' पलिओवमट्टिईया परिवसइ । से एएणद्वेणं ।। अदुत्तरं च णं गोयमा ! पउमद्दहस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते-जं ण कयाइ णासि ण कयाइ णत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ, भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवे णियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे ॥ २३. तस्स णं पउमद्दहस्स पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं गंगा महाणई पवूढा समाणी पुरत्थाभिमुही पंच जोयणसयाइं पव्वएणं गंता गंगावत्तणकूडे आवत्ता समाणी पंच तेवीसे जोयणसए तिण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स दाहिणाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं" मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ। २४. गंगा महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पण्णत्ता । साणं जिब्भिया अद्धजोयणं आयामेणं, छस्सकोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, १. पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ (अ, ख, त्रि)। चतुष्टयी विद्यते । शान्तिचन्द्रीयवत्तौ 'पद्मद्रहा२. अभंतरए (अ, ब)। काराणि' इति विशेषणमपि व्याख्यातमस्ति । ३. मज्झिमाए (अ, क, ख, त्रि, ब)। ८. इत्थ (प)। ४. बाहिरियाए (अ, क, ख, त्रि, ब)। ६. जं० १।२४ । ५. देसे-देसे (अ, क, ख, ब, स)। १०. गंगा (अ, ख, ब) लिपिप्रमादोसो सम्भाव्यते । ६. सयसहस्सपत्ताई (अ, क, ख, ब,स)। ११. पवित्तएणं (ख, स); °पवित्तिएणं (त्रि)। ७. x (अ, क, ख, त्रि, प, ब, स); जीवाजीवा- १२. सदिएणं (ब)। भिगमे (३१६५६) नोलवद् द्रवर्णने विशेषण- १३. पवाहेणं (त्रि)। Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ मगरमुहविउट्टसं ठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सहा ॥ २५. गंगा महाणई जत्थ पवडइ, एत्थ णं महं एगे गंगप्पवायकुंडे णामं कुंडे पण्णत्तेसट्ठि जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं, णउयं जोयणसयं किचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं दस जोयणाइं उब्वेहेणं अच्छे सहे रययामयकूले' वइरामयपासाने' 'सुहोतारे सुउत्तारे ाणामणितित्थ-बद्धे वइरतले सुवण्ण-सुज्झ रययमणिवालुयाए वेरुलियरमणिफालियपडलपच्चोयडे वट्टे समतीरे अणुपुव्वसुजायवप्पगंभीर सीयलजले संछण्णपत्तभिसमुणाले बहुउप्पल - कुमुय - णलिण-सुभग-सोगंधिय-पोंडरीय महापोंडरीय सयपत्त - सहस्सपत्त- पप्फुल्लकेसरोवचिए ' अच्छविमलपत्थसलिल पुणे पsिहत्थभमंतमच्छकच्छभ - अणेगसउणगणमिहुणपवियरिय- सदुन्नइयमहुरसरणाइए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, वेइया-वणसंडपमाणं वण्णओ भाणियव्वो" ॥ २६. तस्स णं गंगप्पवायकुंडस्स तिदिसिं तओ तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, तं जहा - पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं । तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - वइरामाया म्मा रिट्ठामया पट्टाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पमया फलया लोहियक्खमईओ सूईओ वइरामया संधी णाणामणिमया आलंबणा आलंबणबाहाओ || जंबुद्दीपण्णत्ती २७. तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं - पत्तेयं 'तोरणे पण्णत्ते ते णं तोरणा णाणामणिमया णाणामणिमएसु खंभेसु उवणिविद्वसंनिविट्ठा 'विविहतारारूवोवचिया विविहमुत्तंत रोवइया " ईहामिय-उसह तुरंग णर-मगर - विहग-वालगकिण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर - वणलय- पउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गयवइरवेइयापरिगयाभिरामा" विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ताविव अच्चीसहस्समालणीया रूवग सहस्सकलिया १. रययामयकुंडे ( अ, ब ) ; रययमयकूले समतीरे ( प, शावृ ) । २. क्षेत्रसमासवृत्तौ तु वज्रमयपार्श्वमित्युक्तम्, तदनुसारेण सूत्रपाठस्तु 'वयरमयपासे' त्ति द्रष्टव्यम् (हीवृ) । ३. चिन्हाङ्कित पाठस्य स्थाने 'प' प्रतौ शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ च भिन्नः क्रमः क्वचिद् भिन्नपदश्च पाठो विद्यते - वइरतले सुवण्णसुब्भरययामयबालुयाए वे रुलिअमणि फालिअपडलपच्चोअडे सुहोतारे सुउत्तारे णाणामणितित्यसुबद्धे (पशावृ) । ४. × (प, शावृ) । ५. केसरोवचिए छप्पयमहुवरपरिभुज्जमाण 1 कमले ( प, शावृ) 1 ६. वणसंडगाणं पमाणं (त्रि, प ) । ७. जं० १।१०-१३ । ८. णिम्मा ( अ, क, त्रि, ब ) । ६. तोरणा पण्णत्ता (क, ख, त्रि, प ) । १०. विविहमुत्तंत रोवइया विविहतारारूवोवचिया ( प, शावृ); जीवाजीवाभिगमे (३२८८ ) पि एवमेव विद्यते, प' संकेतितादर्शः जीवाजीवाभिगमपरम्परानुसारी विद्यते, उपाध्यायशान्तिचन्द्रेणापि तस्य सूत्रस्य पाठपरम्परा अनुसृतास्ति बहुशः । ११. खंभुतरवइर° ( अ, ब ) । १२. विज्जाहरजमल जंत' ( अ, क, त्रि, ब, स ) । Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारौ ४७३ " भिमाणा भिब्भिसमाणा" चक्खुल्लोयणलेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवार पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ २८. तेसि णं तोरणाणं उवरि बहवे अट्टमंगलगा पण्णत्ता, तं जहा- सोत्थियसिरिवच्छ'- 'गंदियावत्त- वद्धमाणग-भद्दासण- कलस मच्छ-दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा° जाव पडिरूवा ॥ २६. तेसि णं तोरणाणं उवरि बहवे किण्हचामरज्झया नीलचामरज्झया लोहियचामरज्झया हालिचामरज्झया सुक्किलचामरज्झया अच्छा सण्हा रुप्पपट्टा वइरामयदंडा जलयामल गंधिया सुरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ ३०. 'तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे छत्ताइच्छत्ता पडागाइपडागा घंटाजुयला चामरजुयला' उप्पलहत्थगा पउमहत्थगा जावई सहस्सपत्तहत्थगा सव्वरयणामया अच्छा जाव" पडिवा | ३१. तस्स णं गंगप्पवायकुंडस्स वहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे गंगादीवे णामं दीवे पण्णत्ते - अट्ठ जोयणाई आयाम विक्खंभेणं, साइरेगाई पणवीसं " जोयणाई परिक्खेवेणं, दो कोसे ऊसिए जलताओ, सव्ववइरामए अच्छे से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, वण्णओ भाणियव्वो" ॥ 1 ३२. गंगादीवस्स णं दीवस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । ३३. तस्स णं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं गंगाए देवीए एगे भवणे पण्णत्तेकोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणगं च कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसणिविट्ठे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे जाव ३ बहुमज्झदेसभाए मणिपेढिया सयणिज्जे ॥ ३४. से केणट्ठेणं" "भंते ! एवं बुच्चइ - गंगादीवे णामं दीवे ? गोयमा ! गंगादीवे तत्थ-तत्थ देसे तर्हि तहि बहूई उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताइं गंगादीवप्पभाई गंगादीवागाराई गंगादी ववण्णाई, गंगादीववण्णाभाई गंगा यत्थ देवी महिड्ढीया जाव पलिओवमया परिवसइ । से तेणंट्ठेणं । अदुत्तरं च णं जाव" सासए णामधेज्जे पण्णत्ते ॥ ३५. तस्स णं गंगप्पवायकुंडस्स दक्खिणिल्लेणं १. भिभिसमीणा भिसमीणा ( अ, ख, ब ) । २. 'रूवा घंटावलिचलिअमहुरमणहरसरा ( प, शावृ, राय० सू० २० ) । ३. पासादीता ( अ, ब ) । ४. सं० पा० ५. सं० पा० - किण्हचामरज्झया जाव सुक्किल । ६. मयतुंडा ( अ, ब ) । ७. सुरम्मा ( प ; शावृ ) । ८. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'अ, क, ख, त्र, सिरिवच्छ जाव पडिरूवा । तोरणेणं गंगा महाणई पवूढा समाणी ब, स, ही वृ' आदर्शेषु केवलं 'बहवे' इति पाठो विद्यते । ६. जं० ३ १० । १०. जं० १८ । ११. पणवीस ( अ, क, ख, ब) । १२. जं० १।१०-१३ । १३. जं० ४१६-१३ । १४. सं पा० – केणट्ठेणं जाव सासए । १५. जं० ४।२२ । Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७४ जंबुद्दीवपण्णत्ती उत्तरड्ढभरहवासं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी सत्तहि सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणी'-आपूरेमाणी अहे खंडप्पवायगुहाए वेयड्ढपव्वयं दालइत्ता दाहिणड्ढभरहवासं एज्जेमाणीएज्जेमाणी दाहिणड्ढभरहवासस्स बहुमज्झदेसभागं गंता पुरत्थाभिमुही आवत्ता समाणी चोद्दसहि सलिलासहस्सेहिं समग्गा अहे जगई दालइत्ता पुरत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ ॥ ३६. गंगा णं महाणई पवहे 'छ स्सकोसाई'२ जोयणाई विक्खंभेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, तयणंतरं च णं मायाए-मायाए परिवड्ढमाणी-परिवड्ढमाणी मुहे बावद्धि जोयणाई अद्धजोयणं च विक्खंभेणं, सकोस जोयणं उव्वेहेणं, उभओ पासि दोहि य पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ता, वेइयावणसंडवण्णओ भाणियव्वो' ॥ ३७. एवं सिंधूएवि णेयव्वं जावः तस्स णं पउमद्दहस्स पच्चत्थि मिल्लेणं तोरणेणं सिंधआवत्तणकडे दाहिणभिमूही, सिंधप्पवायकंडं, सिंधहीवो, अटो सो चेव जाव" अहे तिमिसगुहाए वेयड्डपव्वयं दालइत्ता पच्चत्थिमाभिमुही आवत्ता समाणी चोद्दसेहि सलिलासहस्सेहि समग्गा अहे जगई दालइत्ता पच्चत्थिमेणं लवण समुई समप्पेइ, सेसं तं चेव ॥ ३८. तस्स णं पउमद्दहस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं रोहियंसा महाणई पवूढा समाणी दोण्णि छावत्तरे जोयणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोयणस्स उत्तराभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ॥ ___३६. रोहियंसा महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पण्णत्ता । सा णं जिब्भिया जोयणं आयामेणं, अद्धतेरसजोयणाई विक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा ॥ ४०. रोहियंसा" महाणई जहिं पवडइ, एत्थ णं महं एगे रोहियंसप्पवायकुंडे णाम १. आभरमाणी (अ); आऊरेमाणी (प) । समावायाङ्गेन सह विरोधः स्यात् (ही)। २. गंगामहानदीप्रवहे मकरमुखजिबिकाप्रदेशे ३. पवड्डमाणी (क, त्रि)। षट्सक्रोशानि योजनानि विष्कम्भेण यत्त ४. बासट्टि (प)। छजोयणसवकोसमिति क्षेत्रसमासगाथा ५. जं० १११०-१३। व्याख्यानयता मलयगिरिणा प्रवहे पद्मद्रहा- ६. जं० ४।२३-३३. अत्र 'णवरं' इति पदमपेक्षितदिनिर्गमे षट्योजनानि सक्रोशानि गंगानद्या मामीत, किन्तु न जाने केन कारणेन तस्य स्थाने विस्तार इति भणितं तन्मकर मुखजिह्विकाया 'जाव' पदस्य प्रयोगो जातः । निर्गम यावदऽविशेषेण विवक्षणात् अन्यथा-- ७.०४।३४,३५ । गंगासिंधुओ णं महाणदीओ पणवीसं गाउयाणि ८. सं० पा०.-लवण जाव समप्पेइ । पुहुत्तेणं दुहओ घडमुहपवित्तिएणं मुत्तावलि- ६. जं० ४१३६ । हार---संठिएणं पवातेणं पवडंति (सं० १०. रोहियंसा णं (अ,क,ख,ब,स); रोहियंसा णाम २५७) । तथा - गंगासिंधुओ णं (त्रि)। महाणईओ पवहे सातिरेगे चउवीसं कोसे ११. रोहियंसा णं (अ,क,ख,ब,स); रोहियंसा णाम वित्थारेणं पण्णत्ताओ (स० २४१५) त्ति (त्रि)। Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४७५ कुंडे पण्णत्ते-सवीसं जोयणसयं आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि असीए जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, दसजोयणाइं उव्वेहेणं, अच्छे कुंडवण्णओ जाव' तोरणा ॥ ४१. तस्स णं रोहियंसप्पवायकुंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे रोहियंसदीवे णामं दीवे पण्णत्ते-सोलस जोयणाइं आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाइं पण्णास जोयणाई परिक्खेवेणं, दो कोसे ऊसिए जलंताओ, सव्वरयणामए अच्छे, सेसं तं चेव जाव भवणं अट्ठो य भाणियब्वो॥ ४२. तस्स णं रोहियंसप्पवायकुंडस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं रोहियंसा महाणई पवढा समाणी हेमवयं वासं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी चउद्दसहि सलिलासहस्सेहिं आपरेमाणीआपूरेमाणी सद्दावइ वट्टवेयड्डपव्वयं अद्धजोयणेणं असंपत्ता समाणी पच्चत्थाभिमुही आवत्ता समाणी हेमवयं वासं दुहा विभयमाणी-विभय माणी अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहिं समग्गा अहे जगई दालइत्ता पच्चत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ ॥ ४३. रोहियंसा णं पवहे अद्धतेरसजोयणाइं विक्खंभेणं, कोसं उब्वेहेणं तयणंतरं च णं मायाए-मायाए परिवड्डमाणी-परिवड्डमाणी मुहमूले पणवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं, अड्डाइज्जाइं जोयणाइं उव्वेहेणं, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ता ॥ ४४. चुल्लहिमवंते णं भंते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! एक्कारस कडा पण्णत्ता, तं जहा -सिद्धायतणकूडे चुल्लहिमवंतकडे भरहकूडे इलादेवीकडे गंगाकडे सिरिकडे रोहियंसकडे सिन्धुकडे सूरादेवीकूडे हेमवयकडे वेसमणकूडे ॥ ४५. कहि णं भंते ! चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए सिद्धायतणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, चुल्लहिमवंतकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सिद्धायतणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते--पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पंचजोयणसयाई विक्खंभेणं, मझे तिण्णि य पण्णत्तरे जोयणसए विक्खंभेणं, उप्पि अड्डाइज्जे जोयणसए विक्खंभेणं, मूले एग जोयणसहस्सं पंच य एगासीए जोयणसए किचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, मज्झे एग जोयणसहस्सं एगं च छलसीयं जोयणसयं किंचिविसेसणे परिक्खेवेणं, उप्पि सत्तएक्काणउए जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मूले विच्छिण्णे, मज्झे संखित्ते, उप्पि तणुए, गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते ॥ ४६. सिद्धायतणस्स कूडस्स णं उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव' ४७. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे सिद्धायतणे पण्णत्ते-पण्णासं जोषणाई आयामेगं, पणवीसं जोयणाई विक्खंभेणं, छत्तीसं जोयणाइं उडढं उच्चत्तेणं जाव जिणपडिमावण्णओ णेयव्वो ॥ १. जं० ४१२५-३० । २. जं० ४।३१-३४ ३. सिंधुदेवीकूडे (त्रि,प)। ४. सिद्धायणकूडे (ब)। ५. जं० ११३६। ६. जं० ११३७-४० । ७. भाणियन्बो (त्रिप) । Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णी ४८. कहि णं भंते ! चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए चुल्लहिमवंतकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! भरहस्स कूडस्स पुरत्थिमेणं, सिद्धायतणकूडस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए चुल्लहिमवंतकूडे णामं कूडे पण्णत्ते । एवं जो चेव सिद्धायतणकूडस्स उच्चत्त - विक्खंभ- परिक्खेवो जाव'--- ४६. बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंस ए पण्णत्ते 'बावट्ठ जोयणाई अद्धजोयणं च उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं' २ अब्भुग्गयमूसिय-पहसिए विव विविहमणिरयणभत्तिचित्ते वाउयविजयवेजयंतीपडाग-च्छत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमभिलंघमाणसिहरे जालंतररयण* पंजरुम्मिलिएव्व भया वियसियसयवत्तपुंडरीय तिलयरयणद्धचंदचित्ते * णाणामणिमयदामालंकिए अंतो बाहिं च सण्हे" वर " - तवणिज्ज रुइलवालुगापत्थडे सुहासे सस्सिरी यरूवे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे' पडिरूवे । ॥ ५०. तस्स णं पासायवडेंसगस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे" जाव सीहासणं सपरिवारं ॥ ५१. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ चुल्लहिमवंतकूडे ? चुल्लहिमवंतकूडे ? गोयमा ! चुल्लहिमवंते णामं देवे महिड्डीए जाव" परिवसइ " ॥ १२ ५२. कहिं णं भंते ! चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स चुल्लहिमवंता णामं यहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! चुल्लहिमवंतकूडस्स दक्खिणेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीवइत्ता अण्णं जंबुद्दीवं दीवं दक्खिणेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चुल्ल हिमवंत गिरिकुमारस्स ३ देवस्स चुल्लहिमवंता णामं रायहाणी पण्णत्ता - बारस जोयणसहस्सा आयाम - विक्खंभेणं, एवं विजयरायहाणीसरिसा भाणियव्वा ॥ ५३. एवं अवसेसाणवि कूडाणं 'वत्तव्वया णेयव्वा १५, आयाम - विक्खंभ-परिक्खेव ४७६ १. जं० ४।४५-४६ । २. बासट्ठि जोयणाई अद्धजोयणं च विक्खंभेणं एक्कतीसं जोयणाई कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं ( अ, क.ख, त्रि, बस, पुवृ, हीवृ); एष पाठ: सम्यग् न प्रतीयते, सर्वत्रापि उच्चत्वापेक्षया विष्कम्भस्य अर्धत्वं दृश्यते । इदं समुचितमपि यथा जीवाजीवाभिगमे ( ३३५६ ) स्वीकृतपाठस्य संवादी पाठः उपलभ्यते - तेणं पासायवडेंसगा बावट्ठ जोयणाई अद्धजोयणं च उद्डं उच्चते एक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयामविक्खंभेणं । ३. गयणयल° ( क ) | ४. सूत्रे चात्र विभक्तिलोपः प्राकृतत्वात् ( शावृ ) | ५. शान्तिचन्द्रीयवृत्ती 'तिलयरयणद्धचंद' इति पाठांशी व्याख्यातो नास्ति । ६. बहिं (क, ख. प, स ) । ७. संड (अ, ख, ब) ; सव्ह (क, त्रि. प ) । ८. X (शावृ, जी० ३ । ३०७ ) । ६. सं० पा० – पासाईए जाव पडिरूवे । १० जी० ३।३०८-३१३ जं० ११४३, ४४ । ११. जं० १।२४ ॥ १२. अत्र परिवसति तेन 'क्षुद्रहिमवन्तकूट' मिति क्षुद्र हिमवत्कूट, अत्र च सूत्रेऽदुष्टमपि 'से तेणेणं चुल्लहिमवंतकडे ' ( शावृ ) । १३. चुल्लहिमवंत कूडस्स ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । १४. जी० ३।३५१-५६५ । १५. यव्वा वत्तव्वया ( अ, त्रि, ब, स ) ; णेयव्वा (क,ख) । Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउथो वक्खारो ४७७ पासा देवयाओ सीहासण-परिवारो' अट्ठो य देवाण य देवीण य रायहाणीओ यव्वाओ', चउसु देवा - चुल्लहिमवंत-भरह - हेमवय-वेसमणकूडेसु, सेसेसु देवयाओ ॥ ५४. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वच्चइ - चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए ? चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए ? गोयमा ! महाहिमवंतवासहरपव्वयं पणिहाय' 'आयामुच्चत्त-उव्वेह’*विक्खंभ- परिक्खेवं पडुच्च ईसि खुड्डतराए चेव हस्सतराए चेव णीयतराए चेव । चुल्लहिमवंते यत्थ' देवे महिड्डीए जाव ँ पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से एएणट्ठेणं गोयमा ! एवं वच्चइ - चुल्लहिमवंते वासहरपव्व ए- चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए । अदुत्तरं च णं गोयमा ! चुल्लहिमवंतस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते - जंण कयाइ णासि काइ णत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ, भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवे यिए सास ए अक्खए अव्वए अवट्टिए णिच्चे || ५५. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे हेमवए णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! महाहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे वे व णामं वासे पण्णत्ते -- पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे पलियंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे - पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, दोण्णि य' जोयणसहस्साई एवं च पंचुत्तरं जोयणसयं पंच य एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं छज्जोयणसहस्साइं सत्त य पणवण्णे जोयणसए तिण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहओ लवणसमुद्द पुट्ठापुरथिमिल्लाए कोडी ए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए" कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुद्द° पुट्ठा, सत्ततीसं जोयणसहस्साई 'छच्च चउवत्तरे " जोयणसए सोलस य एगुणवीसइभाए जोयणस्स किंचिविसेसूणे आयामेणं । तस्स धणुं [ धणुपठ्ठे ? ] दाहिणेणं अतीसं जोयणसहस्साइं सत्त य चत्ताले जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं ॥ ५६. हेमवयस्स णं भंते ! वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, 'एवं तइयसमाणुभावो णेयव्वो ।। १. सपरिवारो (अ); परियारो ( क ब ) । २. जं० ४।४७ - ५१ । ३. पणिभाए ( अ, ब ) । ४. मायामुच्चत्तोवेह ( क,ख, स); आयामुच्चत्तुव्वेह ( प ) 1 ५. हस्सतराए ( प ) ६. इत्थ ( क, ख, त्रि, स ) ; य इत्थ ( प ) । ७. जं० ११२४ । दाहिणे (त्रि) । । ६. x ( प ) । १०. सं० पा० - पच्चत्थिमिल्लाए जाव पुट्ठा । ११. छच्च चउदुत्तरे (अ); छच्च चोवत्तरे ( क ) ; छच्च चुउत्तरे (ख); छच्च चोवुत्तरे (त्रि); छच्चेयत्तरे ( ब ) ; छच्चोत्तरे ( स ) । १२. एरवयतइयसमयभावो ( अ, ब ) ; एरवततइयमणुस्स भावो ( ख ); एरवततइयसमाणुभावो (स); एरवयत इयसमाणुभावो णेयव्वोत्तिऐरवतक्षेत्रसत्कसुषम दुष्षमालक्षण तृतीया र कानु Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ जंबुद्दीवपण्णत्ती ५७. कहि णं भंते ! हेमवए वासे सद्दावई' णामं वट्टवेयड्डपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! रोहियाए महाणईए पच्चत्थिमेणं, रोहियंसाए महाणईए पुरत्थिमेणं हेमवयवासस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं सद्दावई णामं वट्टवेयड्डपव्वए पण्णत्ते--- एगं जोयणसहस्सं उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्डाइज्जाइं जोयणसयाई उव्वेहेणं, सव्वत्थसमे पल्लगसंठाणसंठिए एगं जोयणसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसहस्साइं एगं च बावळं जोयणसयं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं सव्वरयणाम ए अच्छे । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते, वेइयावणसंडवण्णओ भाणियव्वो॥ ५८. सद्दावइस्स णं वट्टवेयड्डपव्वयस्स उवरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते ।। ५६. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पण्णत्ते--बाढि जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं एक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयाम-विक्खंभेणं जाव' सीहासणं सपरिवारं ॥ ६०. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ -सद्दावई वट्टवेयड्डपव्वए ? सद्दावई वट्टवेयड्डभाववदत्रत्यमनुष्याणामप्यनुभावो नेतव्य ज्ञेया इत्थर्थः (पुत्र); एवं तइयसमाणुभावो इत्यर्थः। ऐरावतग्रहणं भरतस्योपलक्षणार्थं (पुवृपा)। यथा हि भरतैरावतयोस्तृतीयारकमनुष्या १३. जं० २.५६ । एकगव्यूतोच्चत्वादिभावास्तथा अत्रत्या अपि १. प्रस्तुतसूत्रे हेमवत-हरिवर्ष-रम्यक हैरण्यवतसूत्रेषु वृत्तवैताढ्यपर्वतानां देवानां च स्थानाङ्गतः भिन्ना परम्परा विद्यते, द्रष्टव्यं निम्नवतियन्त्रम् हैमवत जं०४।५७ वृत्तवैताढ्य सद्दावई सद्दावाती सद्दावई साती ठाण ४१३०७ देव हरिवर्ष वृत्तवैताढ्य जं०४१८४ वियडावई अरुणे ठाणं ४।३०७ गंधावाती अरुणे देव रम्यक वृत्तवैताढ्य जं ४१२६४ गंधावई पउमे ठाण ४१३०७ मालवंतपरिताते पउमे देव हैरण्यवत जं०४/२७० मालवंतपरियाए पभासे वृत्तवैताढ्य देव २. जं २।१०-१३ । ठाणं ४१३०७ वियडावाती पभासे ३. जं० ४१४८,४६। Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४७९ पव्वए ? गोयमा ! सद्दावइवट्टवेयड्डपव्वए णं खुड्डा खुड्डियासु वावीसु जाव' बिलपंतियासु बहवे उप्पलाइं पउमाइं सद्दावइप्पभाई सद्दावइआगाराइं सद्दावइवण्णाई सद्दावइण्णाभाई। 'सद्दावई यत्थ२ देवे महिड्डीए जाव महाणुभागे' 'पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से तेणठेणं जाव सद्दावई वट्टवेयड्डपव्वए-सद्दावई वट्टवेयड्डपव्वए। रायहाणीवि णेयव्वा । ६१. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-हेमवए वासे ? हेमवए वासे ? गोयमा ! चुल्लहिमवंतमहाहिमवंतेहिं वासहरपव्व एहिं दुहओ समुवगूढे णिच्चं हेमं दलयइ, णिच्चं हेमं पगासइ । हेमवए य एत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-हेमवए वासे-हेमवए वासे ॥ ६२. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते? गोयमा! हरिवासस्स दाहिणेणं, हेमवयस्स वासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते -पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे पलियंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुदं पुढे-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुढे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुढे, दो जोयणसयाई उड्डे उच्चत्तेणं, पण्णासं जोयणाइं उव्वेहेणं १. जी० ३२८६। देवस्तत्र---प्रस्तुतगिरी चतुर्णां सामानिक२. सद्दावइत्थ (अ, ब); सद्दावई इत्थ (क,त्रि); सहस्राणां यावत्पदात् विजयदेववर्णकसूत्रं सर्वसद्दावतित्थ (ख, स)। मपि ज्ञेयं व्याख्येयं च, कियत्पर्यन्तमित्याह३. महाणुभावे (प, शावृ)। राजधानी मन्दरस्य दक्षिणस्यामन्यस्मिन् ४. से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं पलि- जम्बुद्वीपे द्वीपे इति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्त्यादर्शेषु ओवमट्टितीए जाव परिवसइ रायहाणी वि एतत्सूत्रदृष्टोऽपि 'पलिओवमट्टिई परिवसती' यन्वा (अ,क,ख,त्रि,ब,स, हीव); पलिओव- त्ययं सूत्रादेशः पूर्वसूत्रे यद्योजितस्तद्बहुसु मद्वितीए परिवसइ से णं तत्य चउण्हं सामाणिय- विजयदेवप्रकरणादिसूत्रप्वित्थमव दृष्टत्वात् साहस्सीणं जाव रायहाणी (प, शावृ)। पुण्य- बहग्रन्थसाम्मत्येन क्वचिदादर्शवैगुण्यमुद्भाव्यासागरीयवृत्ती स्वीकृतपाठ एव व्याख्यातोस्ति । न्यथायोजनं बहुश्रुतसम्मतमेवास्ति इत्यलं हीरविजयवृत्ती 'साहस्सीणं' इति पदानन्तरं विस्तरेण । जी. ३१३५१-५६५ । 'पलिमोवट्रिईए' इत्यादि व्याख्यातमस्ति, ५. समवगूढे (क, ख, प, स, पूर्व, शाव, हीव); किन्तु पूर्वपाठानुसन्धानेन नैतत् सङ्गच्छते । समुवगढे (पूर्वपा)। बहसू आदर्शष्वपि एषा पाठ विसङ्गतिरस्ति। ६. त्रि' प्रती 'दलयइ' इति पदस्य स्थाने 'मुंचति' अस्या विसङ्गतेनिवारणार्थ उपाध्यायशान्ति- इति पदं विद्यते । 'क,ख, ब, स' प्रतिषु हीरचन्द्रेण प्रयत्नः कृतः। तस्यानुसारी 'प' प्रति विजयवृत्तौ पुण्यसागरवृत्तौ च 'दलयइ' इति गतः पाठो व्याख्या चापि सङ्गच्छते । स च पदस्याग्रे णिच्चं हेमं मुंचइ' इति पाठो प्रयत्नः एवमस्ति-शब्दापाती चात्र देवो मह- विद्यते; एतत्पदं क्वचिन्न दृश्यते (पुत्र); द्धिको यावन्महानुभावः पल्योपमस्थितिकः 'प' प्रती 'दलयइ' स्थाने 'दलति' इति पदं —परिवसति, अथ शब्दापातिदेवमेव विशिनष्टि विद्यते । 'से णं तत्थ' इत्यादि, स-शब्दापाती Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीववपण्णत्ती चत्तारि जोयणसहस्साइं दोण्णि य दसुत्तरे जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं णव जोयणसहस्साइं दोणिय छावत्तरे जोयस एव य एगूणवीसइभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं पापडीणायया दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठा - पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्द पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठा, तेवण्णं जोयणसहस्साई नव य एगतीसे जोयणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोयणस्स किंचिविसेसाहिए आयामेणं । तस्स धणु [धणुपट्ठं ? ] दाहिणेणं सत्तावण्णं जोयणसहस्साइं दोण्णि य तेणउए जोयस ए दस य एगुणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं, रुयगसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे उभओ पासि दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खिते ॥ ६३. महाहिमवंतस्स णं वासहरपव्वयस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्तेगाविह पंचवणेहि मणीहि य तणेहि य उवसोभिए जाव' आसयति ॥ ६४. तस्स णं बहुमज्झतेसभाए, एत्थ णं एगे महापउमद्दहे णामं दहे पण्णत्ते- दो जोयणसहस्साइं आयामेणं, एगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं, दस जोयणाइं उव्वेहेणं, अच्छे रययामयकूले एवं आयाम - विक्खंभविहूणा जा चेव पउमद्दहस्स वत्तव्वया सा चेव णेयव्वा' । पउम पमाणं दो जोयणाइं अट्ठो जाव महापउमद्दहवण्णाभाई । हिरी य एत्थ देवी महिड्डीया जाव पओिवमट्टिईया परिवसइ । से एएणट्ठेणं गोयमा ! एवं वच्चइ - महापउमद्दहे - महापउमद्दहे । अदुत्तरं च णं गोयमा ! महापउमद्दहस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते - जंण कयाइ सण या त्णि कयाइ ण भविस्सइ, भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवे यिए सासए अक्खए अव्वए अवट्टिए णिच्चे ॥ ४५० ६५. तस्स णं महापउमद्दहस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं रोहिया महाणई पवूढा समाणी सोलस पंचुत्तरे जोयणसए पंच य एगुणवीसइभाए जोयणस्स दाहिणाभिमुही पव्वणं गंता महाघपवत्तिणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगदोजोयणसइएण पवाएणं पवडइ ।। ६६. रोहिया णं महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पण्णत्ता । साणं जिब्भिया जोयणं आयामेणं, अद्धतेरसजोयणाइं विक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, मग रमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा ॥ ६७. रोहिया णं महाणई जहिं पवडइ, एत्थ णं महं एगे रोहियप्पवायकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते -सवीसं जोयणसयं आयाम विक्खंभेणं, तिणि असीए जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, अच्छे सण्हे सो चेव वण्णओ, वइरतले वट्टे समतीरे जाव तोरणा ॥ ६८. तस्स णं रोहियप्पवायकुंडस्स १. जी० ३।२७७-२६७ । २. महं एगे (क, ख, त्रि, स ) 1 ३. रयणामयकूले ( अ, ख, त्रि, ब ) । ४. जं० ४।३-२२ । बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे रोहिदीवे ५. साइरेगजोयणदुसइ एणं ( अ, ब ) । ६. विक्खंभेणं पण्णत्ते ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स ) । ७. जं० ४।२५-३० । Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४८ १ णामं दीवे पण्णत्ते- सोलस जोयणाई आयाम विक्खंभेणं, साइरेगाई पण्णासं जोयणाई परिक्खेवेणं, दो कोसे ऊसिए जलंताओ, सव्ववइरामए अच्छे । से णं एगाए पउमरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते ॥ ६६. रोहियदीवस्स णं दीवस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते ॥ ७०. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते कोसं आयामेणं, सेसं तं चेव पमाणं च अट्ठो य भाणियव्वो' ॥ ७१. तस्स णं रोहियप्पवायकुंडस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं रोहिया महाणई पबूढा समाणी हेमवयं वासं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी सद्दावई वट्टवेयड्डुपव्वयं अद्धजोयणेणं असंपत्ता पुरत्थाभिमुही आवत्ता समाणी हेमवयं वासं दुहा विभयमाणी - विभयमाणी अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहिं समग्गा अहे जगई दालइत्ता पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं समप्पे ॥ ७२. रोहिया णं पवहे अद्धतेरसजोयणाई विक्खंभेणं, कोसं उव्वेहेणं, तयणंतरं चणं माया - मायाए परिवड्ढमाणी- परिवड्डमाणी मुहमूले पणवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं, अड्डाइज्जाइं जोयणाइं उब्वेहेणं, उभओ पासि दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि ' संपरिक्खित्ता ॥ ७३. तस्स णं महापउमद्दहस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं हरिकंता महाणई पवूढा समाणी सोलस पंचुत्तरे जोयणसए पंच य एगूणवीसइभाए जोयणस्स उत्तराभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगदुजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ ।। ७४. हरिकंता महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पण्णत्ता - दो जोयणाइं आयामेणं, पणवीसं जोयणाई विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया 'सव्वरयणामई [ सव्ववइरामई ?"] अच्छा ॥ ७५. हरिकंता णं महाणई जहिं पवडइ, एत्थ णं महं एगे हरिकंतप्पवायकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते - दोणि य चत्ताले जोयणसए आयाम - विक्खंभेणं, सत्तअउणट्ठे जोयस परिक्खेवेणं, अच्छे, एवं कुंडवत्तव्वया सव्वा नेयव्वा जावर तोरणा ॥ ७६. तस्स णं हरिकंतप्पवायकुंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे हरिकंतदीवे णामं दीवे पण्णत्ते-बत्तीसं जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं एगुत्तरं जोयणसयं परिक्खेवेणं, दो कोसे ऊसिए जलंताओ, सव्वरयणामए अच्छे से णं एगाए प उमवरवेइयाए एगेण १. जं० ४३३, ३४ । २. समुप्पेइ (ख, त्रि) । ३. सं० पा० - रोहिया णं जहा रोहियंसा तहा पवय मुहे ( तहा वट्टवेयड्ढमुहे – अ, ब ) य भाणियव्व जाव संपरिक्खित्ता । ४, अत्र 'सव्वरयणामई' ति पाठो बह्वादशंदुष्टोऽपि लिपि प्रमादादापतित एव सम्भाव्यते, बृहत्क्षेत्रविचारादिषु सर्वासां जिह्विकानां वज्रमयत्वेनैव भणनात् जलाशयानां प्रायो वज्रमयत्वेनैवोपपत्तेश्च (शावृ ) । ५. जं० ४।२५-३० । Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ जंबुद्दीवपण्णत्ती य वण संडेणं सध्वओ समता संपरिविखत्ते, वण्णओ भाणियन्वो, पमाणं च सयणिज्जं च अट्ठो य भाणियव्वो॥ ७७. तस्स णं हरि कंतप्पवायकुंडस्स उत्तरिलेणं तोरणेणं' 'हरिकता महाणई पवूढा समाणी हरिवासं वासं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी वियडावई वट्टवेयड्ढं जोयणेणं असंपत्ता पच्चत्थाभिमुही आवत्ता समाणी हरिवासं दुहा विभयमाणी-विभयमाणी छप्पण्णाए सलिलासहस्सेहि समग्गा अहे जगई दालइत्ता पच्चत्थिमेणं लवणसमुई समप्पेइ॥ ७८. हरिकता णं महाणई पवहे पणवीसं जोयणाई विक्खंभेणं, अद्धजोयणं उव्वेहेणं, तयणंतरं च णं मायाए-मायाए परिवड्डमाणी-परिवड्डमाणी मुहमूले अड्डाइज्जाइं जोयणसयाई विक्खंभेणं, पंच जोयणाई उव्वेहेणं उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ता॥ ७६. महाहिमवंते णं भंते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहा-सिद्धायतणकूडे महाहिमवंतकूडे हेमवयकूडे रोहियकूडे हिरिकूडे हरिकताकूडे हरिवासक डे वेरुलियकूडे, एवं चुल्लहिमवंतकूडाणं जा वत्तव्वया सच्चेव णेयव्वा ।। ८०. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ--महाहिमवंते वासहरपव्वए ? महाहिमवंते वासहरपव्वए ? गोयमा ! महाहिमवंते णं वासहरपव्व ए चुल्लहिमवंतं वासहरपव्वयं पणिहाय आयामुच्चत्तुव्वह-विक्खभ-परिक्खेवेण महततराए चेव दीहतराए चेव । महाहिमवंते यत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ ।। ८१. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे हरिवासे णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, महाहिमवंतस्स" वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हरिवासे णामं वासे पण्णत्ते । एवं जाव'२ पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुठे, अट्ठ जोयणसहस्साइं चत्तारि य एगवीसे जोयणसए एगं च एगूणवीसइभागं जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरथिमपच्चत्थिमेणं तेरस जोयणसहस्साई तिण्णि य एगसढे जोयणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुहं पुढा--पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं जाव लवणसमुदं पुट्ठा, तेवत्तरि जोयणसहस्साई णव य एगुत्तरे जोयणसए सत्तरस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं । तस्स १. सं० पा०-वणसंडेणं जाव संपरिक्खित्ते । ७. जं० ४।४५-५४। २. जं० १४१०-१३। ८. आयामुच्चत्तोब्वेह (अ, ख त्रि, ब, स)। ३. जं० ४१३२-३४॥ ६ महंतराए (अ, क, ख, त्रि, ब)। ४. सं० पा०-तोरणेणं जाव पवूढा। १०. जं० २४ । ५. हरिवस्सं (अ, प, ब)। ११. महयाहिमवंतस्स (अ, त्रि, ब) । ६. सिद्धायणकूडे (अ, ब)। १२. जं०४।१। Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४८ ३ धणुं [ धणुपट्ठ ? ] दाहिणेणं चउरासीइं जोयणसहस्साइं सोलसजोयणाइं चत्तारि एगुणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं ॥ ८२. हरिवासस्स णं भंते ! वासस्स केरिसए आगारभावपडोआरे पण्णत्ते ? गोमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीहिं लणेहि य उवसोभिए, एवं मणी ताण य वण्णो गंधो फासो सद्दो य भाणियव्वो' ॥ ८३. हरिवासे णं वासे तत्थ तत्थ देसे तहि तहि बहवे खुड्डा खुड्डियाओ, एवं जो सुसमाए अणुभावो सो चेव अपरिसेसो वत्तव्वों ॥ ८४. कहिणं भंते! हरिवासे वासे वियडावई णामं वट्टवेयडुपव्वए पण्णत्ते ? गोमा ! हरीए महाणईए पच्चत्थिमेणं, हरिकताएं महाणईए पुरत्थिमेणं, हरिवासस्स वासस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं वियडावई णामं वट्टवेयडुपव्वए पण्णत्ते । एवं जो चेव सद्दावइस्स विक्खंभुच्चत्तुव्वेह-परिक्खेव संठाण - वण्णावासो य सो चेव वियडावइस्सवि भाणियव्वो णवरं- अरुणो देवो, पउमाई जाव वियडावइवण्णाभाई । अरुणे यत्थ देवे महिड्डी एवं जाव दाहिणेणं रायहाणी णेयव्वा ॥ ८५. से केणट्ठेणं भंते ! एवं बुच्चइ हरिवासे वासे ? हरिवासे वासे ?, गोयमा ! हरिवासे णं वासे मणुया अरुणा अरुणोभासा सेया णं संखतलसण्णिकासार, हरिवासे देवे हड्डी जाव पओिवमट्टिईए परिवसइ । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - हरिवासे वासे - हरिवासे वासे ॥ ८६. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे णिसहे णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स दक्खिणेणं, हरिवास्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे णिसहे णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते -- पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे-पुरस्थि मिल्लाए जाव पुट्ठे, चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाइं उब्वेहेणं, सोलस जोयणसहस्साइं अट्ठय बायाले' जोयणसए दोण्णिय एगुणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं वीसं जोयणसहस्साइं एगं च पण्णट्ठ जोयणसयं दुण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं' •पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठा - पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्द पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठा, चउणवई जोयणसहस्साइं एगं च छप्पण्णं जोयणसयं दुण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं । तस्स धणुं [ धणुपट्ठे ? ] दाहिणेणं एगं जोयणसय सहस्सं चउवीसं च जोयणसहस्साई तिणिय छायाले जोयणसए णव य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं, रुयगसंठाण १. जी ३।२७७-२८५ । २. जं २१५२, ५३ । ३. द्रष्टव्यम् – ४।५७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. जं० ४।५७-६० । ५. संखदल (प, शावृ, पुवृपा) । ६. पायाले (अ, ब ) ; बयालीस (त्रि ) । ७. सं० पा० - उत्तरेणं जाव चउषवदं । ८ तस्य (त्रि, ही ) । Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ जंबुद्दीवपण्णत्ती संठिए सव्वतवणिज्जमए अच्छे, उभओ पासि दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि' 'सव्वओ समता संपरिक्खित्ते ।। ८७. णिसहस्स' णं वासहरपव्वयस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव आसयंति सयंति॥ ८८. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे तिगिछिद्दहे णामं दहे पण्णत्ते---पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे चत्तारि जोयणसहस्साइं आयामेणं, दो जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, दस जोयणाइं उव्वेहेणं, अच्छे सण्हे रययामयकले ॥ ८६. तस्स णं तिगिछिद्दहस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता। एवं जाव आयाम-विक्खंभविहणा जच्चेव महापउमदृहस्स वत्तव्वया सच्चेव तिगिछिदहस्सवि वत्तव्वया तं चेव पउमद्दहप्पमाणं अट्ठो जाव तिगिछिवण्णाइं। धिई यत्थ देवी पलिओवमट्टिईया परिवस इ। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-तिगिछिद्दहेतिगिछिद्दहे ॥ ६०. तस्स णं तिगिछिद्दहस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं हरिमहाणई पवूढा समाणी सत्त जोयणसहस्साई चत्तारि य एकवीसे जोयणसए एगं च एगूणवीसइभागं जोयणस्स दाहिणाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं 'मुत्तावलिहारसंठिएणं° साइरेगचउजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ। एवं जा चेव हरिकताए वत्तव्वया सा चेव हरीएवि णेयव्वा८- जिभियाए कुंडस्स दीवस्स भवणस्स तं चेव पमाण, अट्ठोवि भाणियव्वो जाव अहे जगई दालइत्ता छप्पण्णाए सलिलासहस्सेहि समग्गा पुरत्थिमं लवणसमुद्दे समप्पेइ। तं चेव पवहे य मुहमूले य पमाणं उव्वेहो य जो हरिकताए जाव वणसंडसंपरिक्खित्ता ॥ ६१. तस्स णं तिगिछिद्दहस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं सीतोदा महाणई पवढा समाणी सत्त जोयणसहस्साइं चत्तारि य एगवीसे जोयणसए एगं च एगूणवीसइभागं जोयणस्स उत्तराभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं° 'मुत्तावलिहारसंठिएणं' साइरेगचउजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ। सीतोदा णं महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पण्णत्ता-चत्तारि जोयणाई आयामेणं, पण्णासं जोयणाइं विक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा ॥ ६२. सीतोदा णं महाणई जहिं पवडइ, एत्थ णं महं एगे सीओदप्पवायकुंडे णाम कुंडे पण्णत्ते- चत्तारि असीए जोयणसए आयाम-विवखंभेणं, पण्णरसअट्ठारे" जोयणसए १. सं० पा०-वणसंडेहिं जाव संपरिक्खित्ते । २. णिसभस्स (अ, ब)। ३. तिगिच्छिद्दहे (अ, ब)। ४. रततामयकूले (अ,ब) । ५. जं० ४१६४। ६. दक्खिणेणं (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ७. सं० पा०-घडमुहपवत्तिएणं जाव साइरेग। ८. जं० ४१७४-७८ । ६. सीओता (अ,ब); सीओदा (त्रि); सीओआ (प)। १०. सं० पा०--घडमुहपवत्तिएणं जाव साइरेग° । ११. °अट्ठार (त्रि,ब)। Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४८५ किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, अच्छे, एवं कुंडवत्तव्वया णेयव्वा जाव' तोरणा ॥ ६३. तस्स णं सीओदप्पवायकुंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे सीओदा दीवे णामं दीवे पण्णत्ते-चउसट्टि जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं दोण्णि बिउत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं, दो कोसे ऊसि ए जलंताओ, सव्ववइरामए अच्छे, सेसं तमेव वेइयावणसंड-भू मिभाग-भवण-सयणिज्ज-अट्टो य भाणियव्वो ॥ ६४. तस्स णं सीओदप्पवायकुंडस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं सीओदा महाणई पवूढा समाणी देवकुरं" एज्जेमाणी-एज्जेमाणी चित्तविचित्तकूडे पव्वए निसढ-देवकुर-सूर-सुलसविज्जुप्पभद्दहे य दुहा विभयमाणी-विभयमाणी चउरासीए सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणीआपूरेमाणी भद्दसालवणं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी मंदरं पव्वयं दोहिं जोयणेहि असंपत्ता पच्चत्थिमाभिमुही 'आवत्ता समाणी' अहे विज्जुप्पभं वक्खारपव्वयं दाल इत्ता मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं अवरविदेहं वासं दुहा विभयमाणी-विभयमाणी एगमेगाओ चक्कवट्टिविजयाओ अट्ठावीसाए-अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणी-आपूरेमाणी पंचहि सलिलासयसहस्सेहि दुतीसाए य सलिलासहस्सेहि समग्गा अहे जयंतस्स दारस्स जगई दालइत्ता पच्चत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेति ॥ ६५. सीतोदा णं महाणई पवहे पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, जोयणं उव्वेहेणं, तयणंतरं च णं मायाए-मायाए परिवड्डमाणी-परिवड्डमाणी मुहमूले पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, उभओ पासिं दोहि पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ता ॥ ६६. णिसढे णं भंते ! वासहरपव्वए कति कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! णव कुडा पण्णत्ता, तं जहा-सिद्धायतणकूडे णिसढकूडे' हरिवासकूडे पुव्वविदेहकूडे हरिकूडे धिइकूडे सीओदाकूडे अवरविदेहकूडे रुयगकूडे । जो चेव चुल्लहिमवंतकूडाणं उच्चत्त-विक्खंभपरिक्खेवो य पुव्ववण्णिओ रायहाणी य सच्चेव इहंपि णेयव्वा' । ६७. से केणठेणं भंते ! एवं वच्चइ--णिसहे वासहरपव्वए? णिसहे वासहरपव्वए? गोयमा ! णिसहे णं वासहरपव्वए बहवे कूडा णिसहसंठाणसंठिया उसभसंठाणसंठिया। णिसहे यत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से तेणठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-णिसहे वासहरपव्वए-णिसहे वासहरपव्वए॥ ६८. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महा विदेहे णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरथिमलवण१. जं० ४।२५-३० । ७. सलिलासहस्सेहिं (क,त्रि,प); 'सय' इति पदं २. सीओदद्दीवे (अ,ब); सीतोददीवे (क,ख,प,स)। लिपिप्रमादात्त्रुटितं सम्भाव्यते । ३. पिउत्तरे (ब)। ८. दुवत्तीसाए (अ); दुबत्तीसाए (क, त्रि); ४. जं० ४।३१-३४ । बत्तीसाए (स)। ५. देवकुरुं (क, ख); अत्र सूत्रे एकवचनं ६. सिद्धायण' (अ, ब, स)। आकारान्तत्वं च प्राकृतत्वात् (शावू)। १०. णिसभ° (अ, व); णिसह° (क, ख, स)। ६. पाठान्तरे आवर्तमाना (पुत्) । ११. जं० ४१४५-५३) । Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८६ जंबुद्दीवपण्णत्ती समुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे णामं वासे पण्णत्ते-पाईणपडीणायए' उदीणदाहिणविच्छिण्णे पलियंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुदं पुटठे-पुरथिमिल्लाए' 'कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं° पुढे, पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुठे, तित्तीसं जोयणसहस्साई छच्च चुलसीए जोयणसए चत्तारि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं तेत्तीसं जोयणसहस्साई सत्त य सत्तसठे जोयणसए सत्त य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं। तस्स जीवा बहुमज्झदेसभाए पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुदं पुट्ठा-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुढा, एवं पच्चत्थिमिल्लाए जाव पूटा, एगं जोयणसयसहस्सं आयामेणं। तस्स धणं [धणपटठं?] उभओ पासिं उत्तरदाहिणेणं एगं जोयणसयसहस्सं अट्ठावण्णं जोयणसहस्साइं एगं च तेरसुत्तरं जोयणसयं सोलस य एगूणवीसइभागे जोयणस्स किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं ॥ __EE. महाविदेहे णं वासे चउविहे चउप्पडोयारे पण्णत्ते, तं जहा-पुव्वविदेहे अवरविदेहे देवकुरा उत्तरकुरा ॥ १००. महाविदेहस्स णं भंते ! वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' कत्तिमेहि चेव अकत्तिमेहि चेव ॥ १०१. महाविदेहे णं भंते ! वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेसि णं मणुयाणं छव्विहे संघयणे छविहे संठाणे पंचधणुसयाइं उड्ढे उच्चत्तेणं, जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी आउयं पालेंति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी, •अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुयगामी, अप्पेगइया देवगामी,° अप्पेगइया सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति ॥ १०२. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ --महाविदेहे वासे ? महाविदेह वासे ? गोयमा! महाविदेहे णं वासे भरहेरवय-'हेमवय-हेरण्णवय"-हरिवास-रम्मगवासेहितो आयाम-विक्खंभ-संठाण-परिणाहेणं विच्छिण्णतरराए चेव विपुलतराए चेव महंततराए चेव सुप्पमाणतराए चेव । महाविदेहा यत्थ मणूसा परिवसंति । महाविदेहे यत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-महाविदेहे वासेमहाविदेहे वासे। अदुत्तरं च णं गोयमा! महाविदेहस्स वासस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते-जं ण कयाइ णासि ण कयाइ णत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ, भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवे णियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे ॥ १०३. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे गंधमायणे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? १. पदीण पडियायए (अ, ब)। २. सं० पा०-पुरस्थिम जाव पुढें। ३. जं० १२१ । ४. कित्तिमेहिं (क, ख, प, स)। ५. सं० पा०—णिरयगामी जाव अप्पेगइया । ६. सं० पा०सिझंति जाव अंतं । ७. हेमवएरण्णवय (क, ख, ब, स); हेमवय एरण्णवय (त्रि)। Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४८७ गोयमा ! णीलवंतस्स' वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं, गंधिलावइस्स विजयस्स पुरथिमेणं, उत्तरकुराए पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे गंधमायणे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते - उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे तीसं जोयणसहस्साइं दुण्णि य णउत्तरे जोयणसए छच्च य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं, णीलवंतवासहरपब्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाई उब्वेहेणं, पंच जोयणसयाइं विक्खंभेणं, तयणंतरं च णं मायाए-मायाए उस्सेहुन्वेहपरिवुड्डीए परिवड्डमाणे-परिवड्डमाणे विक्खंभपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे मंदरपव्वयंतेणं पंच जोयणसयाई उडढं उच्चत्तेणं, पंच गाउयसयाइं उव्वेहेणं, अंगूलस्स असंखेज्जइभाग विक्खंभेणं पण्णत्ते ...गयदंतसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे, उभओ पासि दोहि पउमवरवेइयाहि दोहि य वणसंडेहि सव्वओ समता संपरिक्खित्ते ।। १०४. गंधमायणस्स णं वक्खारपव्वयस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव' आसयंति ॥ १०५. गंधमायणे णं वक्खारपव्वए कति कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त कूडा पण्णत्ता, तं जहा -सिद्धायतणकूडे गंधमायणकूडे गंधिलावइकूडे उत्तरकुरुकूडे फलिहकूडे लोहियक्खकूडे आणंदकूडे ॥ १०६. कहि णं भंते ! गंधमायणे वक्खारपव्वए सिद्धायतणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं, गंधमायणक डस्स दाहिणपुरस्थिमेणं, एत्थ णं गंधमायणे वक्खारपबए सिद्धायतणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते। जं चेव चुल्लहिमवंते सिद्धायतणकूडस्स पमाणं तं चेव एएसि सव्वेसि भाणियव्वं', एवं चेव विदिसाहि तिण्णि कूडा भाणियव्वा, चउत्थे ततियस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं, पंचमस्स दाहिणेणं, सेसा उत्तरदाहिणणं । फलिह-लोहियक्खेसु भोगंकर-भोगवईओ दो देवयाओ, सेसेसु सरिसणामया देवा। छसुवि पासायवडेंसगा, रायहाणीओ विदिसासू ॥ १०७. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-गंधमायणे वक्खारपव्वए ? गंधमायणे वक्खारपव्वए ? गोयमा ! गंधमायणस्स णं वक्खारपव्वयस्स गंधे, से जहाणामएको?पूडाण वा पत्तपूडाण वा चोयपूडाण वा तगरपुडाण वा एलापूडाण वा चपापूडाण वा दमणापूडाण वा कंकूमपूडाण वा चंदणपूडाण वा उसीरपूडाण वा मरुयापूडाण वा जातिपुडाण वा जूहियापुडाण वा मल्लियापुडाण वा हाणमल्लियापुडाण वा केतकिपुडाण वा पाडलिपुडाण वा णोमालियापुडाण वा वासपुडाण वा कप्पूरपुडाण वा अणुवायंसि उब्भिज्जमाणाण वा णिब्भिज्जमाणाण वा कोटेज्जमाणाण वा° पीसिज्जमाणाण वा उक्किरिज्जमाणाण वा विकिरिज्जमाणाण वा परिभुज्जमाणाण वा' 'भंडाओ भंडं १. णेलवंतस्स (अ, क ख, ब, स) । २. जं०१।१३। ३. आणंदनकूडे (ख)। ४. जं० ११३५-४६ । ५. x (अ, प, ब)। ६. सं० पा..... कोट्टपुडाण वा जाव पीसिज्जमा__णाण । ७. सं० पा०—परिभुज्जमाणाण वा जाव ओराला। Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८८ जंबुद्दीवपण्णत्ती साहरिज्जमाणाणं° ओराला मणुण्णा' •मणहरा घाणमणणिव्वतिकरा सव्वतो समंता गंधा अभिणिस्सवंति, भवे एयारूवे ? णो इणठे समठे, गंधमायणस्स णं एत्तो इट्ठतराए चेव' कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव गंधे पण्णत्ते। से एएणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-गंधमायणे वक्खारपव्वए-गंधमायणे वक्खारपव्वए । 'गंधमायणे य इत्थ' देवे महिड्डीए परिवसइ। अदुत्तरं च णं सासए णामधेज्जे ।। १०८. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे उत्तरकुरा णामं कुरा पण्णत्ता ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, णीलवंतस्स५ वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरथिमेणं, मालवंतस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा णामं कुरा पण्णत्ता-पाईणपडीणायया उदीणदाहिणविच्छिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिया एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसए दोण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं । तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा वक्खारपव्वयं पुढा, तं जहा-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुढा, 'पच्चथिमिल्लाए 'कोडीए° पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा', तेवण्णं जोयणसहस्साई आयामेणं । तीसे णं धj [धणुपट्ठ ? ] दाहिणणं सर्ड्सि जोयणसहस्साइं चत्तारि य अट्ठारसे जोयणसए दुवालस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं ॥ १०६. उत्तरकुराए णं भंते ! कुराए केरिस ए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते? गोयमा! बहसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते। एवं पुव्ववण्णिया जच्चेव सुसमसुसमावत्तव्वया सच्चेव णेयव्वा जाव पम्हगंधा मियगंधा अममा सहा तेतली सणिच्चारी" ॥ ११०. कहि णं भंते ! उत्तरकुराए जमगा णाम दुवे पव्वया पण्णत्ता ? गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ अजोयणसए चोत्तीसे चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए, सीयाए महाणईए [पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं ? ] उभओ कले, एत्थ णं जमगा णामं दुवे पव्वया पण्णत्ता - जोयणसहस्सं उड्ढं उच्चत्तेणं अड्डाइज्जाइं जोयणसयाइं उव्वेहेणं मूले एगं जोयणसहस्सं आयाम विक्खंभेणं, मज्झे अट्ठमाणि जोयणसयाइं आयाम-विक्खंभेणं, उरि पंच जोयणसयाइं आयाम-विक्खंभेणं, मूले तिण्णि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठ जोयणसयं किंचिविसेसाहियं" परिक्खेवेणं, मज्झे दो जोयणसहस्साइं, तिण्णि य बावत्तरे जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, उवरि एगं जोयणसहस्सं पंच य एकासीए जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, मूले विच्छिण्णा १. सं० पा०-मणुण्णा जाव गंधा। पच्चत्थिमिल्लं। २. इत्तो (क, प, स)। ८. एवं पच्चत्थिमेणं पुट्ठा (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । ३. सं० पा०-चेव जाव गंधे । ६. अट्ठारे (अ,ब); अट्ठारस (त्रि)। ४. गंधमायणे त्थ (अ, ब)। १०. जं० २१७-५० । ५. लवंतस्स (अ, क, ख, ब, स)। ११. सणिचारी (प)। ६. इक्कारस (क, ख, प, स)। १२. द्रष्टव्यम् .. जं ४।२०६; जी०३१६३२ । ७. सं० पा०–एवं पच्चत्थिमिल्लाए जाव १३. विसेसाहिए (अ, क, ख, त्रि, ब, स)। Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४८१ मज्झे संखित्ता उप्पि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिया' सव्वकणगामया अच्छा सण्हा, पत्तेयंपत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता। ताओ णं पउमवरवेइयाओ दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाइं विक्खंभेणं, वेइयावणसंडवण्णओ भाणियव्वो॥ १११. तेसि णं जमगपव्वयाणं उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव'.--- ११२. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं दुवे पासायवडेंसगा पण्णत्ता। ते णं पासायवडेंसगा बावट्टि जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयाम-विक्खंभेणं, पासायवण्णओ भाणियव्वो', सीहासणा सपरिवारा जाव एत्थ णं जमगाणं देवाणं सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ११३. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ जमगा पव्वया ? जमगा पव्वया ? गोयमा! जमगपव्वएसु णं तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं 'खुड्डाखुड्डियासु वावीसु जाव बिलपंतियासु बहवे उप्पलाई जाव जमगवण्णाभाई। जमगा य एत्थ दुवे देवा महिड्डीया । ते णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव भुजमाणा विहरति । से तेणढेणं गोयमा! एवं वच्च....जमगपव्वया-जमगपव्वया। अदुत्तरं च णं सासए णामधेज्जे जाव जमगपव्वया-जमगपव्वया ।। ११४. कहि णं भंते! जमगाणं देवाणं जमगाओ रायहाणीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं जमगाणं देवाणं जमगाओ रायहाणीओ पण्णत्ताओ-बारस जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, सत्तत्तीसं जोयणसहस्साइं णव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, पत्तेयं-पत्तेयं पागारपरिक्खित्ता। ते णं पागारा सत्तत्तीसं जोयणाई अद्धजोयणं च उडढं उच्चत्तेणं, मुले अद्धतेरस जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे छस्सकोसाई जोयणाई विक्खंभेणं, उरि तिण्णि सअद्धकोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं, मूले विच्छिण्णा, मज्झे संखित्ता, उप्पि तणुया, बाहिं वट्टा, अंतो चउरंसा, सव्वरयणामया अच्छा। ते णं १. जमगसंठाण (अ,क,प,ब,स, पुवृ,शावृ,हीवृ); ५. बहवे खुड्डाखुड्डियाओ जाव बिलपंतियाओ जीवाभिगमे (३१६३२) तु गोपुच्छसंस्थान- (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। संस्थितः (पूर्व); यमकौ यमल जातो म्रातरौ ६ जी० ३।६३७ । तयोर्यत्संस्थानं तेन संस्थिती, परस्परं सदृश- ७. जी० ३।६३७ । संस्थानावित्यर्थः; अथवा यमका नाम शकुनि- ८. जं० ३।२२५ । विशेषास्तत्संस्थानसंस्थिती संस्थानं चानयो- ६. जमगा पव्वया (अ,क,ख,ब,स)। मलतः प्रारम्भ्य संक्षिप्त-संक्षिप्तप्रमाणत्वेन १०. जमिगाओ (क,खप स,पु,शाबू) । प्रायः गोपुच्छस्येव बोध्यम् (शावृ)। सर्वत्र। जीवाजीवाभिगमे (३१६३८) । पि २. जं० १११०-१३। 'जमगाओ' इति पाठो विद्यते । ३. जी० ३१६३३ । ११. छच्च सकोसाइं (क,ख,स)। ४. जी० ३१६३४,६३५) । Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती पागारा णाणामणिपंचवण्णेहिं कविसीसएहि उवसोहिया, तं जहा-किण्हेहिं जाव सुक्किलेहि। ते णं कविसीसगा अद्ध कोसं आयामेणं, देसूणं अद्धकोसं उड्ढे उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमया अच्छा ।। ११५. जमगाणं रायहाणीणं एगमेगाए बाहाए पणवीसं-पणवीसं दारसयं पण्णत्तं । ते णं दारा बावट्टि जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढे उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा एवं रायप्पसेणइज्जविमाणवत्तव्वयाए' दारवण्णओ जाव' अट्ठमंगलगाई॥ ११६. जमयाणं रायहाणीणं 'चउद्दिसि पंच-पंच जोयणसए अबाहाए' चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा–असोगवणे सत्तिवण्णवणे' चंपगवणे चयवणे । ते णं वणसंडा साइरेगाइं बारसजोयणसहस्साइं आयामेणं, पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं, पत्तयं-पत्तेयं पागारपरिक्खित्ता किण्हा वणसंडवण्णओ, भूमीओ पासायवडेंसगा य भाणियव्वा ॥ ११७. जमगाणं रायहाणीणं अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, वण्णगों ।। ११८. 'तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं दुवे उवयारियालयणा पण्णत्ता-बारस जोयणसयाई आयाम-विक्खंभेणं'६, तिण्णि जोयण १. वत्तव्वया (अ,क,ख,त्रि बस,पुत्,हीव)। २. राय० सू० १२६-१६८ । ३. जवियाणं (अ,ख,ब)। ४. पंच-पंच जोयणसए अबाहाए चउद्दिसिं (अ, क ख,त्रि,ब,रा, पुत्, हीव); रायपसेणइयसूत्रे (१७०) जीवाजीवाभिगमे (२३५८) च स्वीकृतपाठसंवादी पाठो विद्यते । ५. सत्तवण्णवणे (त्रि)। ६. जी० ३१३५८ । ७. जी० ३३५६ । ८. वण्णओ (अ,ब); वण्णतो (ख); जी० ३।३६०। ६. चिन्हाङ्कितः पाठः 'अ,क,ख,त्रि,ब' आदर्शषु नास्ति । हीरविजयसूरिणा अस्य पाठस्य अपेक्षा प्रत्यपादि-अत्र तस्स ण बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगे महं उवयारियालयणे पण्णत्ते बारसजोयणसयाई आयामविक्खंभेणमित्यादिसूत्रं श्रीजीवाभिगमतोऽध्याहृत्याऽध्येतव्यं तत्र उपकरिकालयन उपकरोत्युपष्टभ्नातीति उपकारिकाराजधानीस्वामीसलप्रासादावतंस - कादीनां पीठिका उपकारिकालयनमिवोपकारिकालयनं यत् अन्यथा तिजोयणसहस्साइमित्यादि परिक्षेपप्रतिपादकस्य तत्रानुपपत्तेः विष्कम्भाधुपेतपदार्थपरिज्ञानाभावे कस्य परिक्षेप उपवर्ण्यते ग्रामो नास्ति कुतः सीमेति वचनात् अध्याहृतसूत्रस्याभिधेयं यदुपकारिकालयनं तस्य परिधिमाह । उपाध्यायशान्ति. चन्द्रेण एष पाठः साक्षाल्लिखितः, अप्राप्तिश्च लेखकप्रमादात् प्रतिपादिता-अत्र च उपकारिकालयनसूत्रमादर्शष्वदृश्यमानमपि राजप्रश्नीयसूर्याभविमानवर्णके जीवाभिगमे विजयाराजधानीवर्णके च दृश्यमानत्वात् तिण्णि जोयणसहस्साई सत्त य पंचाणउए जोयणसए परिखेवेण' मित्यादिसूत्रस्यान्यथानुपपतेश्च जीवाभिगमतो लिख्यते, आदर्शष्वदृश्यमानत्वं च लेखकवैगुण्यादेवेति, तद्यथा--'तेसि ण' मित्यादि । प्रस्तुतपाठस्य सम्बन्धावलोकनार्थ द्रष्टव्यं-- राय० सू० १८८; जीवाजीवाभिगमे ३१३६१ । Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरथो वक्खारो सहस्साइं सत्त य पंचणउए जोयणसए परिक्खेवेणं, अद्धकोसं' च बाहल्लेणं, सव्वजंबुणयामया अच्छा, पत्तेयं - पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता, पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडवण्णओ भाणियव्वो, तिसोवाणपडिरूवगा तोरणा चउद्दिसि भूमिभागो य भाणियव्वो । ११६. तस्स णं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं 'एगे पासायवडेंसए पण्णत्ते" [ दुवे पासायवडेंसया पण्णत्ता ? ] - बावट्ठ जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोस च आयाम - विक्खंभेणं, वण्णओ', उल्लोया भमिभागा सीहासणा सपरिवारा। एवं पासा पंतीओ एक्कतीसं जोयणाई कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं, साइरेगाइं अद्धसोलसजोयणाई आयाम - विक्खंभेणं । बिइयपासायापंती ते णं पासायवडेंसया साइरेगा इं अद्धसोलसजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, साइरेगाई अद्धट्टमाई जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं । तइयपासायापंती ते णं पासायवडेंसया साइरेगाई" अट्टमाई जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, साइरेगाई अद्भुदुजोयणाई आयाम विक्खंभेणं, वण्णओ", सीहासणा सपरिवारा२ ॥ १२०. तेसि णं मूलपासायवडेंसयाणं उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं जमगाणं देवाणं सभाओ सुहम्माओ पण्णत्ताओ अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं, छस्सकोसाइं जोयविक्खंभे, व जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसण्णिविट्ठा, सभावण्णओ'३ ॥ १२१. तासि णं सभाणं सुहम्माणं तिदिसिं तओ दारा पण्णत्ता । ते णं दारा दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, जोयणं विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेया, वण्णओ जाव ४ १. अद्धजोयणं (अ, क,ख, त्रि, बस, पुवृ, ही वृ); अत्र 'जोयणं' इति पदं लिपिप्रमादादागतमिति सम्भाव्यते, हरिविजयसूरिणा उपाध्यायपुण्यसागरेण च आदर्शेषु यथा पाठो लब्धस्तथैव टीकितः । जीवाजीवाभिगमे (३/३६१) 'अद्धको सं' इत्येव पाठो दृश्यते । २. जी० ३।३६२-३६४ । ३. x ( अ, क, ख, त्रि,ब, स, पुवृ, ही वृ ) । ४. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'दुवे मूलपासायवडेसया पण्णत्ता' इति पाठो युज्यते, एषा सम्भावना १२० सूत्रस्य 'तेसि णं मूलपासायवडेंसयाणं' इति पाठेन संपुष्टा भवति । किन्तु सर्वादशेष्वपि पातायवडेंसए पण्णत्ते' इति पाठो लभ्यते । महोपाध्यायपुण्यसागरेण प्रस्तुतप्रश्नस्य समाधानार्थं कश्चित् प्रयत्नः कृतः - एकवचननिर्देशस्तु एकैकस्मिन् भूमिभागे एकै कस्य प्रासादस्य सद्भावात् । ५. जी० ३।३६४-३६७ । ६. प्रस्तुतप्रकरणे संक्षिप्तः पाठः उपलभ्यते, अस्य ४६१ सम्यगवबोधार्थं जीवाजीवाभिगमस्य ३।३६८ सूत्रमवलोकनीयमस्ति । तत्र एवं पाठो विद्यते'से णं पासायवडेंसए अण्णेहिं चउहिं' तदद्धुच्चतप्पमाणमेते हि पासा यवडेंस एहि सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते । ते णं पासायवडेंसगा एगतीसं जोयणाई' इत्यादि । ७ बीतित (अस); द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३।३६६ सूत्रम् । ८. ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । ६. द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३ | ३७० सूत्रम् । १०. x ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । ११. जी० ३।३७० । १२. यद्यपि जीवाभिगमे विजयदेवप्रकरणे तथा श्री भगवत्यङ्गवृत्तौ चम प्रकरणे प्रासादपंक्तिचतुष्कं तथाप्यत्र यमकाधिकारे पंक्तित्रयं बोध्यम् (शावृ) । १३. जी० ३।३७२ । १४. जी० ३।३७३ । Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ • वणमाला || १२२. तेसि णं दाराणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं तओ मुहमंडवा पण्णत्ता । ते णं मुहमंडवा अद्धतेरसजोयणाइं आयामेणं, छस्सकोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं, साइरेगाई दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं जाव' दारा भूमिभागा' य ॥ १२३. पेच्छाघरमंडवाणं तं चेव पमाणं भूमिभागो मणिपेढियाओ । ताओ णं मणिपेढयाओ जोयणं आयाम - विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ सीहासणा भाणिव्वा ॥ १२४. सि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढयाओ 'दो जोयणाइं" आयाम - विक्खंभेणं, जोयण बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ || १२५. तासि णं उप्पि पत्तेयं पत्तेयं 'थूभा पण्णत्ता'" । ते णं थूभा 'दो जोयणाइ उड्ढं उच्चत्तेणं, 'दो जोयणाई'' आयाम - विक्खंभेणं, सेया संखतल विमल " - णिम्मल - दधिघणगोखीर-फेण-रययणिगरप्पगासा जाव" अट्ठट्ठमंगलया ॥ १२६. तेसि णं थूभाणं चउद्दिसि चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढयाओ जोय आयाम - विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, जिणपडिमाओ" वत्तव्वाओ" । चेइयरुक्खाणं मणिपेढियाओ दो" जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं, चेइयरुक्खवण्णओ ॥ १२७. तेसि णं चेइयरुक्खाणं पुरओ तओ मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढयाओ जोयणं आयाम - विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं ॥ १२८. तासि णं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं महिंदज्झया पण्णत्ता । ते णं अद्धट्टमाई जोयणाई १. जी० ३।३७४, ३७५ ॥ २. भूमिभागो ( क, ख, त्रिस ) । ३. जी० ३।३७६ जंबुद्दीपण्णत्ती ४. जी० ३।३७७-३७६ । ५,६. जीयणं, अद्धजोयणं ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) ; स्वीकृतपाठः 'प' सङ्केतितादर्श शान्तिचन्द्रीयवृत्तेः परम्परानुसारी वर्तते । अस्य पाठस्य विषये उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण एका टिप्पणी चापि कृतास्ति - यद्यप्येतत्सूत्रादर्शेषु 'जोयणं आयाम विक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं' इति पाठो दृश्यते तथापि जीवाभिगमपाठदृष्टत्वेन प्रेक्षामण्डपमणिपीठिकातः स्तूपमणिपीठिकायाः द्विगुणमानत्वेन दृष्टत्वाच्चायं सम्यक् पाठः सम्भाव्यते, आदर्शेषु लिपिप्रमादस्तु सुप्रसिद्ध एव । ७. तओ थूभा ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) ; चेइयथूभे पण्णत्ते ( जी० ३:३८१ ) । ८. सातिरेगा दो जोयणाई ( जी० ३।३८१ ) । ६. जो ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) ; अयमपि पाठ: 'प' सङ्केतितादर्श शान्तिचन्द्रीयवृत्ति चानुसृत्य स्वीकृतः । वृत्तिकर्तुः टिप्पणी एवमस्ति - द्वे योजने ऊर्ध्वोच्चत्वेन द्वे योजने आयामविष्कम्भाभ्यां व्याख्यातो विशेषप्रतिपत्ति' रिति देशोने द्वे योजने आयामविष्कम्भाभ्यां ग्राह्ये, अन्यथा मणिपीठिकास्पयोरभेद एव स्यात् । १०. संखदल ( प, शावृ ) । ११. जी० ३।३८१,३८२ | १२. जिणपडिमाओ चेव ( अ, ब ) । १३. जी० ३।३८३,३८४ । १४. X ( अ, ब ) 1 I १५. जी० ३।३८५-३६१ । Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्यो वक्खारो ४६३ उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उच्वेहेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, वइरामय-वट्टलट्ठसंठिय-सुसिलिट्ठपरिघट्टमट्ठसुपतिढा वण्णओ' । वेइगा-वणसंड-तिसोवाण-तोरणा य भाणियव्वा ॥ १२६. तासि णं सभाणं सुहम्माणं छच्च मणोगुलियासाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तं जहापुरस्थिमेणं दो साहस्सीओ पण्णत्ताओ, पच्चत्थिमेणं 'दो साहस्सीओ" दाहिणेणं एगा साहस्सी, उत्तरेणं एगा जाव' दामा चिट्ठति ॥ १३०. एवं गोमाणसियाओ, णवरं-धवघडियाओ ॥ १३१. तासि णं सुधम्माणं सभाणं अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते ।। १३२. मणिपेढिया दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं ।। १३३. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि माणवए चेइयखंभे महिंदज्झयप्पमाणे ॥ १३४. उरि छक्कोसे" ओगाहित्ता हेदा छक्कोसे वज्जित्ता 'जिणसकहाओ पण्णत्ताओ१३ ॥ १३५. माणवगस्स पुव्वेणं सीहासणा सपरिवारा, पच्चत्थिमेणं मयणिज्जा, वण्णओ५ ॥ १३६. सयणिज्जाणं उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए खुड्डगमहिंदज्झया मणिपेढियाविहूणा महिंदज्झयप्पमाणा८॥ १३७. तेसिं अवरेणं चोप्पाला पहरणकोसा। तत्थ णं बहवे फलिहरयणपामोक्खा जाव चिट्ठति ॥ १३८. सुहम्माणं उप्पि अट्ठमंगलगा ॥ १३६. तासि णं उत्तरपुरत्थिमेणं सिद्धायतणा२२ । एसेव जिणघराणवि गमो, णवरं२3इमं णाणत्तं -एतेसि णं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढियाओ दो जोयणाई आयाम १. जी० ३।३९३,३६४ । ३१४०२,४०३ सूत्रम् । २. उक्ता महेन्द्रध्वजा, अथ पुष्करिण्यः ताश्च ११,१२. छस्सक से (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। 'वेइयावणसंड' इत्यादिपर्यन्तसूत्रेण संगृह्यते १३. जिणसकहा वण्णओ (क,स)। (शा)। १४. जी० ३।४०४,४०५ । ३. जी० ३।३६५,३६६ । १५. जी० ३१४०६,४०७ । ४. दोण्णि (अ,ब); दुण्णि (क,ख,त्रि,स)। १६. उत्तरओ (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ५ जी० ३।३६७ । १७. खुड्डाग (क,ख,स)। ६. जी० ३।३६८। १८. जी० ३।४०८.४०६ । ७. धूवघडिया (अ,ब); धूवघडिओ (क,ख, १६. °पामुक्खा (क,ख,त्रि,प,स)। त्रि,स)। २०. जी० ३१४१० ८. अत्र मणिवर्णादयो वाच्याः उल्लोकाः पद्मलता- २१. सुधर्मयोरुपर्यष्टाष्टमङ्गलकानि इत्यादि तावद् दयोपि च चित्ररूपाः (शा); जी० ३१३६६, वक्तव्यं यावद् बहवः सहस्रपत्रहस्तकाः सर्वरत्न४००। मया इत्यादि (शा)। ६. जं०४।१३२। २२. सिद्धायणाओ (अ,ब)। १०. पूर्णपाठावबोधार्थं द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य २३. णवरि (अ,क,ब,स)। Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९४ जंबुद्दीवपण्णत्ती विक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं । तासि उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं देवच्छंदया पण्णत्ता-दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाइं दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामया। जिणपडिमा, वण्णओ जाव' धूवकडुच्छुगा॥ १४०. एवं चेव अवसेसाणवि सभाणं जाव उववायसभाए सयणिज्जं 'हरओ य" अभिसेयसभाए बहू आभिसेक्के भंडे, अलंकारियसभाए' बहू अलंकारियभंडे' चिट्ठइ, ववसायसभासु पोत्थयरयणा, णंदा पुक्खरिणीओ, बलिपेढा 'दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं जावसंगह-गाहा उववाओ संकप्पो, अभिसेय विहसणा य ववसाओ। अच्चणियसुधम्मगमो, जहा य परिवारणाइड्ढी ॥१॥ जावइयंमि पमाणंमि, हुंति जमगाओ" णीलवंताओ२ । तावइयमंतरं खलु, जमगदहाणं दहाणं च ॥२॥ १४१. कहि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए णीलवंतद्दहे" णामं दहे पण्णत्ते ? गोयमा! जमगाणं ५ दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठसए चोत्तीसे चत्तारि य सत्तभाए 'जोयणस्स अबाहाए" सीयाए महाणईए बहुमज्झदेसभाए, ‘एत्थ णं णीलवंतद्दहे णामं दहे पण्णत्तेदाहिणउत्तरायए पाईणपडीणविच्छिण्णे जहेव पउमद्दहे तहेव वण्णओ मेयव्वो, णाणत्तं-- दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ते, ‘णीलवंते णाम" णागकुमारे देवे, सेसं तं चेव णेयव्वं ॥ १४२. णीलवंतद्दहस्स पुव्वावरे पासे 'दस दस'२१ जोयणाइं अबाहाए, एत्थ णं वीसं १. जी० ३.४१२-४२० । ६. यावत्पदात 'सव्वरयणामया अच्छा पासाईया २. ४ (प,शावृ)। ४'। (शाव); जी० ३।४२१-४३८ । ३. ओतावसभाए (क)। १०. परियारणाइड्ढी (अ,ख,त्रि,ब); परिआरणा४. 'अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुव,ही' एतेषु सर्वेष्वपि इड्ढो (क,स)। 'हरओ य' इति पाठः 'आभिसेक्के भंडे' इति ११. जवगाओ (अ,ब) । पाठानन्तरं विद्यते, किन्तु जीवाजीवाभिगमस्य १२. लवंताओ (अ,क,ख,ब)। ३।४२५ सूत्रस्यावलोकनेन एतज्ज्ञायते-उप- १३. जवग° (अ,ब)। पातसभायाः उत्तरपौरस्त्ये ह्रदो विद्यते, तस्य १४. णेलमंतहहे (अ,ब)। उत्तरपौरस्त्ये अभिषेकसभा विद्यते, अतः 'हरओ १५. जवगाणं (अ,ब); जमिगाणं (ज)। य' इति पाठः अभिषेकसभातः पूर्वमेव १६. अबाहाए जोयणस्स (अ,त्रि,ब,स); आबाहाए युज्यते। जोयणस्स (क,ख) । ५. भंडे हरओ य (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १७. x (अ,क,ख,ब,स) । ६. आलंकारियसभाए (अ,ब)। १८. पादीणपडिण° (अ,ब)। ७. आलंकरिय° (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १६. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ८. सव्वरयणामया' सकोसं जोयणं बाहल्लेणं २०. जं० ४।३.२२ । (अ,क,ख,त्रि,ब,स पुवाही)। २१. दह २ (अ,क,ख,ब,स)। Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४६५ कंचणगपव्वया पण्णत्ता- एग जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं---- गाहा मूलंमि जोयणसयं, पण्णत्तरि जोयणाई मज्झंमि । उवरितले कंचणगा, पण्णासं जोयणा हुँति ॥१॥ मूलंमि तिण्णि सोले, सत्तत्तीसाइं दुण्णि मज्झंमि । अट्ठावण्णं च सयं, उवरितले परिरओ होइ ॥२॥ पढमोत्थ' नीलवंतो', बितिओ उत्तरकुरू मुणेयव्वो। चंदद्दहोत्थ तइओ, एरावण मालवंतो य ॥३॥ एवं वण्णओ, अट्ठो पमाणं पलिओवमट्टिइया देवा ॥ १४३. कहि णं भंते । उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे णामं पेढे पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, मंदरस्स उत्तरेणं [उत्तरपुत्थिमेणं ?५], मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं [गंधमादणस्स वक्खारपव्वयस्स पूरत्थिमेणं ? ६]. सीयाए महाणईए पुरथिमिल्ले कूले, एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे णामं पेढे पण्णत्तं--पंच जोयणसयाई आयाम-विक्खंभेण, 'पण्णरस एक्कासीयाई" जोयणसयाई किंचिविसेसाहियाइं परिक्खेवेणं, बहुमज्झदेसभाए बारस जोयणाई बाहल्लेणं, तयणंतरं च णं 'मायाए-मायाए'१० पदेसपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे सव्वेसु णं चरिमपेरंतेसु दो-दो गाउयाई बाहल्लेणं, सव्वजंबूणयामए अच्छे । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । दुण्हंपि वण्णओ" ॥ १४४. तस्स णं जंबू पेढस्स चउद्दिसि एए चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णओ जाव तोरणाई॥ १४५. तस्स णं जंबूपे ढस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं मणिपेढिया पण्णत्ता- अट्ठजोयणाई आयाम-विक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं । जंबू सुदंसणा पण्णत्ता-अट्ट जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धजोयणं उव्वेहेणं । तीसे णं खंधो दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्ध १. पढमित्थ (क,ख,त्रि,प,स)। तथापि 'गंध मादणस्स वक्खारपव्वयस्स पुर२. णेल मंतो (अ,ब)। त्थिमेणं इति' पाठो युज्यते । जीवाजीवाभिगमे ३. पितिओ (अ,व)। (३।६६८) पि एवंविधः पाठो लभ्यते । ४. एरावय (प,शावृ)। ७. पण्णरसे एक्कतीसाइं (अ,ब); पण्णरसेक्का५. यथा देवकुरुप्रकरणे (४।२०७) मंदरस्स सीयाई (क,ख,त्रि,स)। पव्वयस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं इति पाठोस्ति ८.४ (अ,ब)। तथात्रापि' 'मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरस्थिमेणं' 8. विसेसाहिए (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। इति पाठो युज्यते। जीवाजीवाभिगमे १०. माताए २ (अ,त्रि,ब)। (३।६६८) पि एवंविधः पाठो लभ्यते । ११. जं० १।१०-१३ । ६. यथा देवकुरुप्रकरणे (४।२०७) 'विज्जुप्पभस्स १२. जी० ३।२८७-२६१ । वक्खारपव्वयस्स पुरस्थिमेणं' इति पाठोस्ति Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ जंबुद्दीवपण्णत्ती जोयणं बाहल्लेणं । तीसे णं साला छ जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ट जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाइं अट्ठ जोयणाइं सव्वग्गेणं। तीसे णं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते– 'वइरामयमूल-रययसुपइट्ठियविडिमा" जाव' अहियमणणिव्वुइकरी पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा॥ १४७. जंबूए णं सुदंसणाए चउद्दिसि चत्तारि साला पण्णत्ता। 'तेसि णं'3 सालाणं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं सिद्धाययणे पण्णत्ते--कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणगं कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसण्णिविठे जाव दारा पंचधणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं जाव वणमालाओ, मणिपेढिया पंचधणुसयाई आयाम-विक्खंभेणं, अड्ढाइज्जाइं धणसयाइं बाहल्लेणं । तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि देवच्छंदए पंचधणुसयाइं आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाइं पंचधणसयाइं उडढं उच्चत्तेणं, जिणपडिमा. वण्णओ सव्वो णेयव्वो। तत्थ णं जेसे पुरथिमिल्ले साले, एत्थ णं भवणे पण्णत्ते- 'कोसं आयामेणं' एमेव, णवरमित्थ सयणिज्ज, सेसेसु पासायवडेंसया सीहासणा ‘य सपरिवारा' ॥ १४८. जंबू णं बारसहिं पउमवरवेइयाहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता, वेइयाणं वण्णओ ॥ १४६. जंबू णं अण्णेणं अट्ठसएणं जंबणं तदद्धच्चत्ताणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता, तासि णं वण्णओ" । ताओ णं जंबू छहिं पउमवरवेइयाहिं संपरिक्खित्ता ।। १५० जंबूए णं सुदंसणाए ‘उत्तरपुरस्थिमेणं उत्तरेणं उत्तरपच्चत्थिमेणं१२ एत्थ णं अणाढियस्स देवस्स चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि जंबूसाहस्सीओ पण्णत्ताओ॥ १. वइरामया मूला रतयामया विडिमा सुवि- ६. अपरिवारा (क,स); सीहासणा अपरिवारत्ति दिसि (अ,ब); वइरामया मूला रजतमया अत्र प्रासादेषु सिंहासनानि अपरिवाराणि विडिमा सुविदिसि (क ख); वइरामया मूला किमुक्त भवति एकैकस्य प्रासादावतंसकस्य रजतमया विडिमा सुदिसि (त्रि,हीवृ) वइरा- मध्ये पञ्चधनुः शतायामविष्कम्भा अर्धततीयमया मूला रयतामया विडिमा (स,पूव); धनुःशतबाहल्या मणिमयी पीठिका । तासां च जीवाभिगमे तु वज्रमयमूला रजतमयसुप्रति- मणिपी ठिकानामुपरि प्रत्येकमनादृतदेवयोग्यं ष्ठितविडिमा इत्यादिरूपो वर्णको दश्यते सर्वरत्न मयं भद्रासनरूपपरिवाररहितं वाच्य(पुवृ)। मिति (पुवृ); सिंहासनानि चापरिवाराणि २. जी० ३१६७२। परिवाररहितानि वाच्यानि, क्वचित्रापरिचारा ३. तेसिं (अ,ब)। इत्यपि पाठः (हीव)। ४. उपरितनविडिमशालायामित्यध्याहार्य जीवा- १०. जं० १६१०,११ । भिगमे तथा दर्शनात् (शावृ)। ११. जी० ३।६७६ । ५. जी. ३१६७४-६७७ । १२. उत्तरेणं पुरस्थिमेणं दक्खिणेणं (क); उत्तरेणं ६. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। उत्तरपुरत्थिमेणं उत्तरपच्चत्थिमेणं (जी० ७. जी० ३१६७३ । ३।६७०)। ८.जी० ३।६७३। १३. सामाणियदेवसाहस्सीणं (क,ख,त्रि,स)। Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउरथो वक्खारो १५१. तीसे णं पुरत्थमेणं चउन्हं अग्गमहिसीणं' चत्तारि जंबूओ पण्णत्ताओ गाहा ---- खणपुर, दविखणेण तह अवरदविखणेणं च । अट्ठ दस बारसेव य, भवंति जंबूसहस्साई ॥ १ ॥ अणियाविण पच्चत्थिमेण सत्तेव होति जंबूओ । सोलस साहसीओ, चउद्दिसिं आयरक्खाणं ॥२॥ १५२. जंबू णं तिहिं सइएहिं वणसंडेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता [तं जहाअब्भं तरणं मज्झिमेणं बाहिरेणं ? २ ] ॥ १५३. जंबू णं पुरत्थिमेणं पण्णासं जोयणाई पढमं वणसंडं ओगाहित्ता, एत्थ णं भवणे पण्णत्ते-कोसं आयामेणं, सो चेव वण्णओ' सयणिज्जं च । एवं सेसासुविदिसासु भवणा ।। १५४. जंबू णं उत्तरपुरत्थिमेणं पढमं वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - पउमा पउमप्पा कुमुदा कुमुदप्पभा । ताओ को आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, पंचधणुसयाई उव्वेहेणं, वण्णओ' ॥ १५५. तासि णं मज्झे पासायवडेंसगा - कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणगं कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, वण्णओ, सीहासणा सपरिवारा, एवं सेसासु विदिसासुगाहा पउमा पउमप्पभा चेव, कुमुदा कुमुदप्पहा । उप्पलगुम्मा णलिणा, उप्पला उप्पलुज्जला ॥१॥ भिंग भिंगप्पा चेव, अंजणा कज्जलप्पभा । सिरिकता सिरिमहिया, सिरिचंदा" चेव सिरिनिलया ॥२॥ ६ १५६. जंबू ए णं पुरथिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं, उत्तरपुरत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दक्खिणं, एत्थ णं 'महं एगे कूडे पण्णत्ते- अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाई उव्वेहेणं, मूले अट्ट जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं, बहुमज्झदेसभाए छ जोयणाइं आयाम - विक्खंभेणं, उवरिं चत्तारि जोयणाई आयाम - विक्खंभेणंगाहा— पणवीसट्ठारस बारसेव मूले य मज्झमुवरिं" च । सविसेसाई परिरओ, कूडस्स इमस्स बोद्धव्व ॥ १॥ १. अग्गवर महिसणं ( अ, ख, ब ) । २. शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ तद्यथा - अभ्यंतरेण मध्यमेन बाह्येनेति' इति व्याख्यातमस्ति । जीवाजीवाभिगमेपि (३।६८१ ) एष पाठ: उपलभ्यते तं जहा - अभंतरएणं मज्झिमेणं बाहिरेणं । तेन आदर्शेषु अनुपलब्धोपि एष पाठो युज्यते । ३. जी० ३।६७३ ॥ ४. जी० ३।२८६ | XTE ५. जी० ३।६८३,६८४ । ६. भिंगणिभा (क, ख, जी० ३।६८७ ) । ७. कज्जला ( स ) । ८. सिरियंदा ( अ, क, ख, त्रि. ब, स ) । ६. X (अ, क, ख, प, ब, स ) ; एगे महं (त्रि, ही ) । १०. मज्झ उवर (क, ख,स); मझे उबर (त्रि ) ; मज्झि उर्वार ( प ) । Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ जंबुद्दीवपण्णत्ती मूले विच्छिण्णे, मज्झे संखित्ते, उरि तणुए, सव्वकणगामए' अच्छे वेइया-वणसंडवण्णओ । एवं सेसावि कूडा ।। १५७. जंबूए णं सुदंसणाए दुवालस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा--- गाहा सुदंसणा अमोहा य, सुप्पबुद्धा जसोहरा। विदेहजंबू सोमणसा, णियया णिच्चमंडिया ॥१॥ सुभद्दा य विसाला य, सुजाया सुमणा वि या। सुदंसणाए जंबूए, णामधेज्जा दुवालस ॥२॥ १५८. जंबूए णं अट्ठमंगलगा ॥ १५६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जंबू सुदंसणा? जंब सुदंसणा? गोयमा! जंबूए णं सुदंसणाए अणाढिए णामं देवे जंबुद्दीवाहिवई परिवसइ-महिड्ढीए । से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं, जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स, जंबूए सुदंसणाए, अणाढियाए रायहाणीए, अण्णेसिं च बहूणं देवाण य देवीण य जाव विहरई । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ.-जंबू सुदंसणा-जंबू सुदंसणा। अदुत्तरं च णं गोयमा ! जंबू सुदंसणा जाव भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवा णियया सासया अक्खया अवट्ठिया ॥ १६०. कहि णं भंते ! अणाढियस्स देवस्स अणाढिया णामं रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, जं चेव पुव्ववण्णियं जमिगापमाणं तं १. कणगमए (अ त्रि,ब)। शान्तिचन्द्रेण प्रस्तुतपाठस्य विषये एका महत्त्व२. जं०१।१०-१३। पूर्णा टिप्पणी कृतास्ति-यद्यप्यनादृता राज३. जी० ३१६८९-६९८ । धानीप्रश्नोत्तर सूत्रे सुदर्शनाशब्दप्रवृत्तिनिमित्त४. णितिया (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। प्रश्नोत्तरसूत्रनिगमनसूत्रान्तर्गते बहष्वादशेष ५. भद्दा (अ,क,ख ब,स)। दृष्टे तथापि 'से तेणठेण' मित्यादि निगमन६. णं उप्पि (अ,ब)। सूत्रमुत्तरसूत्रान्तरमेव वाचयितणामव्यामोहाय ७. मंगला (क,ख,स)। उपलक्षणाद् ध्वजच्छ- सूत्रपाठेस्माभिलिखितं व्याख्यातं च, उत्तरसूत्रा. त्रादिसूत्राणि वाच्यानि (शावृ)। नन्तरं निगमनसूत्रस्यैव यौक्तिकत्वादिति, अथा८. x (प)। . . परं गौतम ! यावच्छब्दाज्जम्ब्वाः सुदर्शनाया ६. जं०४।१५१ । एतच्छाश्वतं नामधेयं प्रज्ञप्तं यन्न कदाचिन्ना१०. जी० ३।३५०, ... सीदित्यादिकं ग्राह्य नाम्नः शाश्वतत्वं दर्शितम्, ११. अतः परं प्रस्तुतसूत्रस्य समग्रोपि पाठः ‘प' अथ प्रस्तुतवस्तुनः शाश्वतत्वमस्ति नवेत्यासङ्कतितां प्रति शान्तिचन्द्रीयवृत्तिं च मुक्त्वा शङ्कां परिहरन्नाह -'जंबुसुदंसणा' इत्यादि, सर्वेष्वपि आदर्शेषु वृत्तिद्वयेपि च परवर्तितसूत्रे व्याख्याऽस्य प्राग्वत् । 'निरवसेसो' इति पदानन्तरं विद्यते । उपाध्याय- १२. जं० ११४७ । Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४88 चेव णेयव्वं जाव' उववाओ अभिसेयो य निरवसेसो । १६१. से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ- उत्तरकुरा उत्तरकुरा ? गोयमा ! उत्तरकुराए उत्तरकुरू णामं देवे परिवसइ-महिड्डीए जाव' पलिओवमट्टिईए। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वच्चइ.-उत्तरकुरा-उत्तरकुरा। अदुत्तरं च णं जाव सासए ॥ १६२. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे मालवंते णामं वक्खारपव्वए पण्णते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, नीलवंतस्स' वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, उत्तरकुराए पुरत्थिमेणं, कच्छस्स चक्कवट्टिविजयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे मालवंते णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते---उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे, जं चेव गंधमायणस्स पमाणं विक्खंभो य, णवरमिमं णाणत्तं-सव्ववेरुलियामए अवसिट्ठ तं चेव जाव गोयमा ! नव कूडा पण्णत्ता, तं जहा-सिद्धाययणकूडे ।। गाहा - सिद्धे य मालवंते, उत्तरकुरु कच्छ सागरे रयए"। सीया य पण्णभद्दे", हरिस्सहे चेव बोद्धव्वे ॥१॥ १६३. कहि णं भंते ! मालवंते वक्खारपव्वए सिद्धाययणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, मालवंतकूडस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, एत्थ णं सिद्धाययणे कूडे 3- पंच जोयणसयाइं उड्ढे उच्चत्तेणं, अवसिठें तं चेव जाव रायहाणी। एवं मालवंतकूडस्स उत्तरकुरुकूडस्स कच्छकूडस्स एए चत्तारि कूडा दिसाहि पमाणेहि य णेयव्वा, कूडसरिसणामया'६ देवा ॥ १६४. कहि णं भंते ! मालवंते सागरकडे नामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा! कच्छकडस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, रययकूडस्स" दक्खिणेणं, एत्थ णं सागरकूडे णामं कूडे पण्णत्ते पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, 'अवसिटुं तं चेव'१८ सुभोगा देवी, रायहाणी १. जं० ४।११४-१४० । १०. रुचककूटं पाठान्तरे रजतकूटं (पुत्र); इदं २. निरवसेसो से तेणठेणं गो एवं वुच्चइ जंबू चान्यत्र रुचकमिति प्रसिद्धम् (शाव)। सुदंसणा जाव भुवि च ३ धुवा णितिया सासया ११. पुण्णणामे (अ,क,ख,ब,स); क्वचित् पूर्णनाअक्खया अवट्ठिया। अदुत्तरं च णं गोयमा जाव मेति पाठः (हीव) । पडुच्च (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुवृहीव)। १२. हरिकूडे (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ३. जं० २।२४। १३. प्रज्ञप्तमिति गम्यम् (शाव)। ४. जं० २४७ १४. जं० ४/४५-४७। ५. जेलमंतस्स (अ,ब) प्राय: सर्वत्र । १५. जं० ४।४८-५२। ६. पादीण° (अ,ख,त्रि,ब,स) । १६. सरिणामया (अ,क,ख,स)। ७. पमाणं च (अ,ब)। १७. रयणकूडस्स (अ,ख,ब); रजतकूडस्स (क) । ८. जं० ४।१०३-१०५। १८. X (अ,ख,त्रि,बस)। ६. सिद्धायण° (अ, ब) प्रायः सर्वत्र । Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती उत्तरपुरस्थिमेणं । रययकूडे भोगमालिणी देवी, रायहाणी उत्तरपुरस्थिमेणं'। अवसिट्टा कूडा उत्तरदाहिणेणं णेयव्वा एक्केणं पमाणेणं ॥ १६५. कहि णं भंते ! मालवंते हरिस्सहकडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! पुण्णभद्दस्स उत्तरेणं, णीलवंतस्स कूडस्स दक्खिणेणं', एत्थ णं हरिस्सहकूडे णामं कूडे पण्णत्ते--एगं जोयणसहस्सं उड्ढं उच्चत्तेणं, जमगपमाणेणं णेयव्वं । रायहाणी उत्तरेणं असंखेज्जदीवे अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे उत्तरेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं हरिस्सहस्स देवस्स हरिस्सहा णामं रायहाणी पण्णत्ता-चउरासीइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, बे जोयणसयसहस्साइं पण्ण४ि च सहस्साइं छच्च बत्तीसे जोयणसए परिक्खेवेणं, सेसं जहा चमरचंचाए रायहाणीए तहा पमाण भाणियव्वं', महिड्डीए महज्जुईए॥ १६६. से केणटठे णं भंते ! एवं बच्चइ-मालवंते वक्खारपव्वए ? मालवंते वक्खारपव्वए? गोयमा! मालवंते णं वक्खारपव्वए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे सेरियागुम्मा णोमालियागुम्मा जाव" मगदंतियागुम्मा२ । ते णं गुम्मा दसद्धवण्णं 'कुसुमं कुसुमेंति'13, जे णं तं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं वायविधुयग्गसालामुक्कपुप्फपंजोवयारकलियं करेंति । मालवंते य इत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ। अदुत्तरं च णं जाव५ णिच्चे ॥ १६७, कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे कच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! सीयाए महाणईए उत्तरेणं, णीलवंतस्स ६ वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्यस्स पच्चत्थिमेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे कच्छे णामं विजए पण्णत्ते- उत्तरदाहिणायए पाईणपडीण १. पुरथिमेणं (अ,त्रि,ब,स, पुवृ, हीवृ)। गोयमा ! हरिस्सहकडे बहवे उप्पलाई पउमाई २. दाहिणेणं (ख)। हरिस्सहकूडसमवण्णाई जाव हरिस्सहे णाम ३. जं० ४।११०। देवे अ इत्थ महिद्धीए जाव परिवसइ, से तेणठेणं ४. 'असंखेज्जदीवे' त्ति पदं स्मारकं तेन 'मन्दरस्स जाव अदुत्तरं च णं गोयमा ! जाव सासए पव्वयस्स उत्तरेणं तिरिअमसंखेज्जाइं दीवसमु- णामधेज्जे' इति (शाव)। दाई वीईवइत्ता' इति ग्राह्यम् (शावृ)। १०. सिरियागुम्मा (अ,ब); सेडियागुम्मा (क); ५. सहस्सं (अ); °सहस्सा (ख,त्रि,ब,स)। ६. हरिकता (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुत्,हीवृ)। ११. जं० २।१०। ७. छत्तीसे (त्रि,प) अशुद्धं प्रतिभाति 'बकार १२. अगदंतिया (अ,ख त्रि,ब)। __ स्थाने 'छकारो' जातः लिपिप्रमादात् । १३. कुसुमेंति (ख,त्रि,हीव)। ८. भ० २।१२१,१३१६६ । १४. जं० १।२४। ६. 'महिद्धीए महज्जुईए' इति सूत्रेणास्य नामनिमित्त-१५. जं०१।४७ । विषयके प्रश्ननिर्वचने सूचिते, ते चैवम् - 'से १६. णेलवन्तस्स (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ हरिस्स हकूडे २? १७. दविखणणं (प)। Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो विच्छिण्णे पलियंकसंठाणसंठिए ‘गंगासिंधूहि महाणईहि'' वेयड्ढेण य पव्वएणं छब्भागपविभत्ते सोलस जोयणसहस्साइं पंच य बाणउए जोयणसए दोण्णि य एगूणवीसइभाए' जोयणस्स आयामेणं, दो जोयणसहस्साइं दोण्णि य तेरसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूणे विक्खंभेणं ॥ १६८. कच्छस्स णं विजयस्स बहमज्झदेसभाए, एत्थ णं वेयड्ढे णामं पव्वए पण्णत्ते, जे णं'कच्छं विजयं' दुहा विभयमाणे-विभयमाणे चिट्ठइ, तं जहा- दाहिणड्डकच्छं च उत्तरड्डकच्छं च ॥ १६६. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दाहिणड्डकच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! वेयड्डस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, सीयाए महाणईए उत्तरेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दाहिणड्डकच्छे णामं विजए पण्णत्ते उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे अट्ट जोयणसहस्साइं दोण्णि य एगसत्तरे जोयणसए एक्कं च एगणवीसइभागं जोयणस्स आयामेणं, दो जोयणसहस्साइं दोण्णि य तेरसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूणे विक्खंभेणं, पलियंकसंठिए । १०० दाहिणड्डकच्छस्स णं भंते ! विजयस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' कत्तिमेहि चेव अकत्तिमेहिं चेव ॥ १७१. दाहिणड्डकच्छे णं भंते ! विजए मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेसि णं मणुयाणं छव्विहे संघयणे जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ॥ १७२. कहिणं भंते! जंबहीवे दीवे महाविदेहे वासे कच्छे विजए वेयडढे णाम पव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! दाहिणड्डकच्छविजयस्स उत्तरेणं, उत्तरड्डकच्छस्स दाहिणेणं, चित्तकूडस्स पच्चत्थिमेणं, मालवंतस्स वक्खारपब्वयस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं कच्छे विजए वेयड्ढ णामं पव्वए पण्णत्ते, तं जहा --पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे दुहा वक्खारपव्वए पुढे ...पुरथिमिल्लाए कोडीए'" पुरथिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुढे भरहवेयड्डसरिसए", णवर---- दो बाहाओ जीवा धणुपटुं च ण कायव्वं, विजयविक्खंभसरिसे आयामेणं, विक्खंभो उच्चत्तं उव्वेहो तह चेव विज्जाहरसेढीओ तहेव, णवरं'२. ... 'पणपण्णं-पणपण्णं विज्जा १. गंगासिंधूमहाणदीही (अ,ब)। २. एकूण° (अ,त्रि,ब)। ३. कच्छविजयं (अ,त्रि,ब)। ४. एकाहत्तरे (अ,ब); एगुत्तरे (क)। ५. पलियंकसंठाणसंठिए (ख,त्रि,स, पुवृ,हीवृ)। ६ जं० २।१२२ । ७. कित्तिमेहि (अ,क,ब)। ८. अकित्तिमेहिं (अ,क,ब)। ६. जं० २।१२३ । १०. सं० पा०-कोडीए जाव दोहिवि पुछे। तत्र पौरस्त्यं चित्रकूटनामानं वक्षस्कारपर्वतं स्पृष्टः, पाश्चात्यया कोटया पाश्चात्यं माल्यवन्तं वक्षस्कारपर्वतं स्पृष्टः (ही) । ११. जं० १०२३-४७ । १२. णवरि (क,ख,त्रि)। १३. पण्णवण्णं २ (अ,ब,स)। Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ जंबुद्दीवपणत्ती हरणगरावासा पण्णत्ता । आभिओगसेढीए उत्तरिल्लाओ सेढीओ सीयाए ईसाणस्स, सेसाओ सक्कस्स, कूडा गाहा सिद्धे कच्छे खंडग, माणी वेयड्ड पुण्ण तिमिसगुहा। कच्छे वेसमणे वा, वेयड्ढे होंति कूडाई ॥१॥ १७३. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरड्डकच्छे णाम विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! वेयड्डस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दाहिणड्डकच्छे णामं विजए पण्णत्ते जाव' सिज्मंति, तहेव णेयव्वं सव्वं॥ १७४. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरडकच्छे विजए सिंधकंडे णामं कुंडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, उसभकूडस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरड्डकच्छविजए सिंधुकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते-सट्टि जोयणाणि आयामविक्खंभेणं जाव' भवणं अट्ठो रायहाणी य णेयव्वा, भरहसिंधुकुंडसरिसं सव्वं णेयव्वं जाव तस्स णं सिंधुकुंडस्स दाहिणिल्लेणं तोरणेणं सिंधू महाणई पवूढा समाणी उत्तरडकच्छविजयं 'एज्जेमाणी-एज्जेमाणी ५ सत्तहि सलिलासहस्सेहि आपूरेमाणी-आपूरेमाणी अहे तिमिसगुहाए वेयड्डपव्वयं दालयित्ता दाहिणड्ढकच्छविजयं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी चोद्दसहि सलिलासहस्सेहिं समग्गा दाहिणेणं सीयं महाणइं समप्पेइ। सिंधु महाणई पवहे य मुले य भरहसिंधुसरिसा पमाणेणं जाव दोहि वणसंडेहिं संपरिखिता॥ १७५. कहि णं भंते ! उत्तरड्डकच्छविजए उसभकूडे णामं पव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! सिंधुकुंडस्स पुरत्थिमेणं, गंगाकुंडस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ णं उत्तरडकच्छविजए उसहकडे णामं पव्वए पण्णत्ते अट्ट जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, तं चेव पमाणं जाव रायहाणी से, णवरं-उत्तरेणं भाणियव्वा । १७६. कहि णं भंते ! उत्तरकच्छविजए गंगाकंडे णाम कंडे पण्णत्ते ? गोयमा ! चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, उसहकूडस्स पुरत्थिमेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ णं उत्तरडकच्छविजए गंगाकुंडे णामं कुंडे पण्णत्तेसट्टि जोयणाइं आयाम-विक्खंभेणं तहेव जहा सिंधू जाव" वणसंडेण य संपरिक्खित्ते ॥ १. जं० ४।१६६-१७१ । २.X (ख,प, शावृ, ही)। ३. जं० ४।३७ । ४. कच्छं विजयं (अ,क,ख,ब)। ५. पज्जेमाणी (अ,क,ख,त्रि,ब); (ही)। ६. सिंधूणं (अ,क,ख,ब,स)। ७. जं० ४।३७ । ८. उत्तरड्डकच्छे (अ,क,ख,त्रि ,ब,स) अग्रेपि प्राय, सर्वत्र। ९. जं० १२५१। १०. जं० ४।१७४ । पाययन्ती Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो १७७. 'से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-कच्छे विजए ? कच्छे विजए ?" गोयमा ! 'कच्छे विजए'२ वेयड्डस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, सीयाए महाणईए उत्तरेणं, गंगाए महाणईए पच्चत्थिमेणं, सिंधूए महाणईए पुरत्थिमेणं दाहिणड्डकच्छविजयस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं खेमा णामं रायहाणी पण्णत्ता, विणीयरायहाणीसरिसा भाणियव्वा। तत्थ णं खेमाए रायहाणीए कच्छे णामं राया समुप्पज्जइ-महयाहिमवंत जाव सव्वं भरहोयवणं भाणिय व्वं निक्खमणवज्ज, सेसं सव्वं भाणियव्वं जाव' भुंजए माणुस्सए सुहे कच्छे णामधेज्जे । कच्छे यत्थ देवे महड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ। से एएणडेणं" गोयमा ! एवं वच्चइ-कच्छे विजए-कच्छे विजए जाव णिच्चे ॥ १७८. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चित्तकूडे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! सीयाए महाणईए उत्तरेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं 'कच्छस्स विजयस्स'५ पुरत्थिमेणं 'सुकच्छस्स विजयस्स'६ पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चित्तकूडे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते- उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे सोलसजोयणसहस्साई पंच य बाणउए जोयणसए दुण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं, पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं, नीलवंतवासहरपव्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाइं उब्वेहेणं, तयणंतरं च णं मायाएमायाए उस्सेहोवेहपरिवाढीए परिवद्रमाणे-परिवडमाणे सीयमहाणईयंतेणं पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच गाउयसयाई उव्वेहेणं, आसखंधसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे सण्हे जाव" पडिरूवे । उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ते, वण्णओ दोण्हवि ॥ १७६. चित्तकूडस्स णं वक्खारपव्वयस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव" आसयंति ॥ १८०. चित्तकूडे णं भंते ! वक्खारपव्वए कति ५ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कडा पण्णत्ता. तं जहासिद्धाययणकडे चित्तकडे कच्छकडे सूकच्छकडे, समा ६ उत्तरदाहिणेणं परुप्परंति", पढमए सीयाए उत्तरेणं, चउत्थए नीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स १. कहि णं भंते ! खेमा णामं रायहाणी पण्णत्ता ६. आसखंधगसंठाण (अ,ख,त्रि,ब)। (अ,ब) । १०. सिण्हे (ख)। २. कच्छे णं विजए णं (अ,क,ख,ब,स); कच्छे ११. जं० ११८ । विजए णं (त्रि )। १२. पस्सि (अ,त्रि,ब)। ३. जं० ३११-२२१,२२६ । १३. जं० १११०-१३। ४. तेणठेणं (अ,त्रि,ब); एगट्टेणं (क,ख,स)। १४. जं० ४।२ । ५. कच्छविजयस्त (प)। १५. कइ (ख,स)। ६. सुकच्छविजयस्स (क,ख,त्रिप)। १६. समं (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । ७. तयाणंतरं (अ,ख,ब); तदाणंतरं (त्रि)। १७. परोप्परंति (अ,त्रि ,ब) । ८. परिवड्डीए (अ,ख,स)। Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ जंबुद्दीवपण्णत्ती दाहिणेणं, अट्ठो', एत्थ' णं चित्तकूडे णाम देवे महिड्डीए जाव रायहाणी। से तेणठेणं ।। १८१. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सुकच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! सीयाए महाणईए उत्तरेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, गाहावईए महाणईए पच्चत्थिमेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सुकच्छे णामं विजए पण्णत्ते-उत्तरदाहिणायए जहेव कच्छे विजए तहेव सुकच्छे विजए, णवरं...खेमपुरा रायहाणी, सुकच्छे राया समुप्पज्जइ, तहेव सव्वं ॥ १८२. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे गाहावइकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते ? गोयमा ! सुकच्छस्स विजयस्स पुरथिमेणं, महाकच्छस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे गाहावइकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते, जहेव रोहियंसा कुंडे तहेव जाव 'गाहावइदीवे भवणे ॥ १८३. तस्स णं गाहावइस्स कुंडस्स दाहिणिल्लेणं तोरणेणं गाहावई महाणई पढा समाणी सुकच्छ-महाकच्छविजए दुहा विभयमाणी-विभयमाणी अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहिं समग्गा दाहिणेणं सीयं महाणइं समप्पेइ । गाहावई णं महाणई पवहे य मुहे य सव्वत्थ समा पणवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं, अड्डाइज्जाइं जोयणाई उव्वेहेणं, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ता, दुण्हवि वण्णओ ॥ १८४. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, सीयाए महाणईए उत्तरेणं, पम्हकूडस्स" वक्खारपव्वयस्स" पच्चत्थिमेणं, गाहावईए महाणईए पुरथिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजए पण्णत्ते, सेसं जहा कच्छस्स विजयस्स जाव महाकच्छे इत्थ देवे महिड्डीए, अट्ठो य भाणियव्वो॥ १८५. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे पम्हकूडे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स दक्खिणेणं सीयाए महाणईए उत्तरेणं महाकच्छस्स पुरत्थिमेणं, कच्छगावईए पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे पम्हकूडे णामं वक्खारपव्वए १. x (अ,क,ख,त्रि,प,स)। भिन्नापि पाठपरम्परा दृश्यते, तस्यां ग्राहा२. x (अ,ब) । वतीद्वीपस्योल्लेखो नास्ति. किन्तु 'गाहावइ. ३. जं०४१५१,५२ । देवीभवणे' एष पाठः सम्मतोस्ति, स च ४ जं०४।१६७-१७७ । पाठान्तरत्वेन स्वीकृतः। ५. णवरि (क); णरि (ख,त्रि) । ८. पणुवीसं (अ,कात्र,ब,स)। ६. जं०४१४०,४१ । ६.जं० १११०-१३ । ७. गाहावइदेवी भवणे (अ,ब,स, पुव); असौ १०. बम्हकूडस्स (क, ख, त्रि, प, स); ब्रह्मकूट सक्षिप्तपाठः रोहितांशकुण्डाय समर्पितोस्ति, (पूर्व) प्रायः सर्वत्र । तत्र 'तस्स णं रोहियंसप्पवायकुंडस्स बहुमज्झ- ११. x (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स); अत्र लिपिसङ्खदेसभाए एत्थ णं महं एगे रोहियंसदीवे पात् केवलं 'पव्वयस्स' इति पाठो दृश्यते। णामं दीवे पण्णत्ते' इति पाठोस्ति तेनात्र १२. जं० ४।१६७-१७७ । 'गाहावइदीवे' इति पाठ एव युक्तोस्ति । एका १३. कच्छावइस्स (क,प); कच्छावयस्स (स)। Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थो वक्खारो ५०५ पण्णत्ते - उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे, सेसं जहा चित्तकूडस्स जाव' आसयति ॥ १८६. पम्हकूडे चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा - सिद्धाययणकूडे पम्हकूडे महाकच्छकूडे कच्छगावईकूडे एवं जाव अट्ठो । पम्हकूडे इत्थ देवे महिड्डीए पलिओ मट्ठिए परिवसइ । से तेणट्ठेणं ॥ I १८७. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे कच्छगावती णामं विजय पण्णत्ते ? गोयमा ! पीलवंतस्स दाहिणेणं, सीयाए महाणईए उत्तरेणं, दहावतीए महाणईए पच्चत्थिमेणं, पम्हकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे कच्छगावती णामं विजए पण्णत्तेउत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे, सेसं जहा कच्छस्स विजयस्स जाव' कच्छगावई य इत्थ देवे ॥ १८८. कहि णं भंते! महाविदेहे वासे दहावई कुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते ? गोयमा ! आवत्तस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं कच्छगावईए विजयस्स पुरत्थिमेणं, णीलवंतस्स दाहिणिले तिंबे, एत्थ णं महाविदेहे वासे दहावईकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते, सेसं जहा गाहावईकुंडस्स जाव' अट्ठो ॥ १८६. तस्स णं दहावईकुंडस्स दाहिणेणं तोरणेणं दहावई महाणई पवूढा समाणी कच्छगावई - आवत्ते विजए दुहा विभयमाणी - विभयमाणी दाहिणेणं सीयं महाणई समप्पेइ, से जहा गाहावईए ॥ १६०. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे आवत्ते णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, सीयाए महाणईए उत्तरेणं, णलिणकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, दहावतीए महाणईए पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे आवत्ते णामं विज पण्णत्ते, सेसं जहा ँ कच्छस्स विजयस्स ॥ १६१. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे णलिणकूडे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स दाहिणेणं, सीयाए उत्तरेणं, मंगलावइस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, आवत्तस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे णलिणकूडे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते-- उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे, सेसं जहा चित्तकूडस्स जाव आसयति ॥ १६२. णलिणकूडे णं भंते ! कति कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा - सिद्धायतणकूडे णलिणकूडे " आवत्तकूडे मंगलावत्तकूडे । एए कूडा पंचसइया, रायहाणीओ उत्तरेणं ॥ १. जं० ४।१७८, १७६ । २. जं० ४ १८०, ५१,५२ । ३. दहवतीए ( अ, क, ख, त्रि, बस, पुवृ, ही वृ) प्रायः सर्वत्र । ४. जं० ४। १६७-१७७ ५. जं० ४। १ ८२ । प्रायः सर्वत्र । ६. जं० ४।१८३ । ७. जं० ४। १६७-१७७ । ८. मंगलावइस्स ( अ, ब ) । ६. जं० ४।१७८ - १७६ १०. णलिणिकूडे ( अ, क, ख, ब, स ) । Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती १६३. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे मंगलावत्ते' णाम विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स दक्खिणेणं, सीयाए उत्तरेणं, णलिणकूडस्स पुरथिमेणं, पंकावईए पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं मंगलावत्ते णाम विजए पण्णत्ते । जहा कच्छविजए तहा एसो वि भाणियव्वो जाव' मंगलावत्ते य इत्थ देवे परिवसइ । से एएणठेणं ।। १६४. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे पंकावईकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंगलावत्तस्स पुरत्थिमेणं, पुक्खल विजयस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स दाहिणे नितंबे, एत्थ णं 'पंकावइकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते', तं चेव गाहावइकुडप्पमाणं ॥ १६५. तस्स णं पंकावइकुंडस्स दाहिणिल्लेणं तोरणेणं पंकावती महाणदी पवूढा समाणी मंगलावत्त-पुक्खलविजए' दुहा विभयमाणी-विभयमाणी अवसेसं तं चेव" गाहावईए॥ १६६. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे पुक्खले" णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स दाहिणणं, सीयाए उत्तरेणं, पंकावईए पुरत्थिमेणं, एगसेलस्स२ वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्खले णामं विजए पण्णत्ते। जहा कच्छविजए तहा भाणियव्वं जाव पुक्खले य इत्थ देवे महिड्डीए पलिओवमदिईए परिवसइ । से एएणठेणं ॥ १६७. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे एगसेले णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! पुक्खलचक्कवट्टिविजयस्स" पुरत्थिमेणं, पोक्खलावतीचक्कवट्टिविजयस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स दक्खिणेणं, सीयाए उत्तरेणं, एत्थ णं एगसेले णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते, चित्तकूडगमेणं णेयव्वो जाव५ देवा आसयंति ॥ १६८. चत्तारि कूडा, तं जहा-सिद्धाययणकूडे एगसेलकूडे पुक्खलकूडे ६ पुक्खलावईकूडे । कूडाणं तं चेव पंचसइयं परिमाणं जाव' एगसेले य देवे महिड्डीए॥ १६६. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे पुक्खलावई णामं चक्कवट्टिविजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स दक्खिणेणं, सीयाए उत्तरेणं, उत्तरिल्लस्स सीयामुहवणस्स पच्चत्थिमेणं, एगसेलस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे पुक्खलावई णाम विजए पण्णत्ते-उत्तरदाहिणायए, एवं जहा कच्छविजयस्स जाव'८ पूक्खलावई य १. णंगलावत्ते (अ,क,ब)। 1. ग्रन्थान्तरे वेगवतीत्यस्या नाम पठ्यते (पूर्व) । २. जं० ४।१६७-१७७ । ६. पुक्खलावत्तविजए (स)। ३. पंकवई (अ,क,ब) प्रायः सर्वत्र । १०. ० ४.१८३ ४. पोक्खलावइस्स (अ,ब); पुक्खलावइस्स ११. पोक्खले (अ,त्रि,ब) । (क,ख,स)। स्थानाङ्ग (२।३४०) पि १२. एगसेलगस्स (अ,ब) । "पुक्खला' इति पाठो दृश्यते । १३. जं० ४.१६७-१७७ । ५. पंकावइ (ब,क,ख,त्रि,ब,स); पंकावइ जाव १४. पोक्खलाव३० (अ,ब); पुक्खलावइ (क,ख)। कुंडे पण्णत्ते (प)। १५. जं० ४।१७८,१७६ । ६. जं० ४।१८२। १६. पुक्खलावत्तकूडे (प)। ७. सं० पा०-गाहावइकुंडप्पमाणं जाव १७. जं० ४।१८० । मंगलावत्त । १८. जं० ४.१६७-१७७ । Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो इत्थ देवे परिवसइ । से एएणठेणं ॥ २००. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे सीयाए महाणईए उत्तरिल्ले सीयामुहवणे णामं वणे पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स दक्खिणेणं, सीयाए उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुइस्स पच्चत्थिमेणं, पुक्खलावइचक्कवट्टिविजयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सीयामुहवणे णाम वणे पण्णत्ते...--उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे सोलसजोयणसहस्साइं पंच य बाणउए-जोयणसए दोण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं, सीयामहाणइंतेणं' दो जोयणसहस्साइं नव य बावीसे' जोयणसए विक्खंभेणं, तयणंतरं च णं मायाए-मायाए परिहायमाणे-परिहायमाणे णीलवंतवासहरपव्वयंतेणं एगं एगूणवीसइभागं जोयणस्स विक्खंभेणं, से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं संपरिक्खित्तं, वण्णओ सीयामहवणस्स जाव देवा आसयंति । एवं उत्तरिल्लं पासं समत्तं । विजया भणिया। रायहाणीओ इमाओगाहा.-- खेमा खेमपुरा चेव, रिट्ठा रिठ्ठपुरा तहा। ___ खग्गी मंजसा अवि य, ओसही पुंडरीगिणी ॥१॥ [सोलस विज्जाहरसेढीओ' ? ] तावइयाओ आभियोगसेढीओ, सव्वाओ इमाओ ईसाणस्स। सव्वेस विजएसु कच्छवत्तव्वया जाव अट्ठो, रायाणो सरिसणामगा' विजएस्, ‘सोलसण्हं वक्खारपव्वयाणं' चित्तकूडवत्तव्वया जाव कूडा चत्तारि-चत्तारि बारसण्हं गईणं गाहावइवत्तव्वया जाव उभओ पासि दोहि पउमवरवेइयाहि वणसंडहि य वण्णओ ॥ २०१. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सीयाए महाणईए दाहिणिल्ले सीयामुहवणे णामं वणे पण्णत्ते ? एवं जह चेव उत्तरिल्ले सीयामुहवणं तह चेव दाहिणंपि भाणियव्वं, णवरं-णिसहस्स" वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सीयाए महाणईए दाहिणेणं, परत्थिलवणसमूहस्स पच्चत्थिमेणं, वच्छस्स विजयस्स पूरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सीयाए भहाणईए दाहिणिल्ले सीयामुहवणे णामं वणे पण्णत्ते--- १. सीयं महा (अ,क,ख त्रि,ब,म)। विद्याधरथेणिसूत्रं आदन्तिरेष्वदृष्टमपि प्रस्ता२. तेवीसे (अ,क,ख,वि,ब,स,पुवहीव); विजयव- वादाभियोग्यश्रेणिसङ्गत्यनुपपत्तेश्च प्राकृतक्षस्काराद्यन्तरनदोमेरुपृयुत्वपिरभद्र शावना- शैल्या संस्कृत्य मया लिखितमस्तीति बहुश्रुतैर्मयि याममीलने जातानि ६४१५६, अस्य राशेज- सूत्राशातना न चिन्तनीयेति, उत्तरत्रापि सूत्रम्बुद्वीपपरिणामात् शोधने शेष ५८४४, अस्य कारेण सहगाथा-यामाभियोग्यश्रेणिसङ्ग्रशीताशीतोदयोरेकस्मिन् दक्षिणे उतरे वा भागे होविद्याधरश्रेणिसंग्रहपूर्वकमेव वक्ष्यते (शा)। द्वे मुखवने इति द्वाभ्यां भागे हृते आगतानि ६. सरिणामगा (क,ख) । द्वाविंशत्यधिकान्येकानत्रिंशद्या जनशतानि२६२२, ७. सोलस वक्खारपब्वया (पुवृ); सोलसण्हं अत्र च 'तेवीसे' इति पाठोऽशुद्धः (शा) । वक्खारपव्वयाणं (पुत्पा)। ३. तदाणंतरं (अ,त्रि,ब); तयाणंतर (क,खस)। ८. तहा (अ,ब) । ४. जं० १११३ । ६. ० ४१२००। ५. ४ (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुत्,हीवृ) अत्र च १०. निसभस्स (अ,ब) । Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ जंबुद्दीवपण्णत्तो उत्तरदाहिणायए, तहेव सव्वं, णवरं-णिसहवासहरपव्वयंतेणं एगमेगूणवीसइभाग जोयणस्स विक्खंभेणं, किण्हे किण्होभासे' जाव' आसयंति, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहि वणवण्णओ॥ २०२. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे वच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सीयाए महाणईए दाहिणेणं, दाहिणिल्लस्स सीयामुहवणस्स पच्चत्थिमेणं, तिउडस्स वक्खारपव्वयस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे वच्छे णाम विजए पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सुसीमा रायहाणी, तिउडे वक्खारपव्वए । सुवच्छे विजए, कुंडला रायहाणी, तत्तजला णई। महावच्छे विजए, अपराजिया रायहाणी, वेसमणकूडे वक्खारपव्वए । वच्छावई विजए, पभंकरा रायहाणी, मत्तजला गई। रम्मे विजए, अंकावई रायहाणी, अंजणे वक्खारपव्वए। रम्मगे विजए, पम्हावई रायहाणी, उम्मत्तजला महाणई । रमणिज्जे विजए, सुभा रायहाणी, मायंजणे वक्खारपव्वए। मंगलावई विजए, रयणसंचया रायहाणी। एवं जह चेव सीयाए महाणईए उत्तरं पासं तह चेव दक्खिणिल्लं' भाणियव्वं, दाहिणिल्लसीयामुहवणाइ । इमे ववखारकूडा, तं जहा–तिउडे वेसमणकूडे अंजणे मायंजणे, विजया---- गाहा-- ___ वच्छे सुवच्छे महावच्छे, चउत्थे वच्छगावई । रम्मे रम्मए चेव, रमणिज्जे मंगलावई ॥१॥ रायहाणीओ, तं जहा सुसीमा कुंडला चेव, अवराइय पहंकरा। अंकावई पम्हावई, सुभा रयणसंचया ॥२॥ वच्छस्स विजयस्स-णिसहे दाहिणेणं, सीया उत्तरेणं, दाहिणिल्लसीयामुहवणे पुरथिमेणं, तिउडे पच्चत्थिमेणं-सुसीमा रायहाणी, पमाणं तं चेव । वच्छाणंतरं तिउडे, तओ सुवच्छे विजए। एएणं कमेणं-तत्तजला णई, महावच्छे विजए। वेसमणकूडे वक्खारपव्व ए, वच्छावई विजए। मत्तजला णई, रम्मे विजए। अंजणे वक्खारपव्वए, रम्मए विजए। उम्मत्तजला णई, रमणिज्जे विजए। मायंजणे वक्खारपव्व ए, मंगलावई विजए॥ २०३. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सोमणसे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणपुरत्थिमेणं, मंगलावईविजयस्स पच्चत्थिमेणं, देवकुराए" पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे १. किण्होभासे जाव महया गंधद्धाणिं मुयंते (क,ख,त्रि,प,स)। २. जं० १११३ । ३. जं० ४११६७-१७७ । ४. अंजणे (अ,ब)। ५. दक्खिणं (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ६. तिउडकूडे (अ,ब) तिउडे कूडे (क,ख,त्रि)। ७. ४ (अ,ख,त्रि.ब,स)। ८. वह्मावई (अ,त्रि)। ६.सीयावणमुहे (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । १०. मंगलावइस्स विजयस्स (अ,क,ख,त्रि,ब) । ११. देवकुराणं (स)। Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ५०१ वासे सोमणसे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते-उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे' जहा' मालवंते वक्खारपव्वए तहा, णवरं-सव्वरययामए अच्छे जाव' पडिरूवे णिसहवासहरपव्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाई उव्वेहेणं, सेसं तहेव सव्वं, णवरं-अट्ठो से गोयमा ! सोमणसे णं वक्खारपव्वए बहवे देवा य देवीओ य सोमा सुमणा सोमणसिया, सोमणसे य इत्थ देवे महिड्डीए जाव परिवसइ। से एएणठेणं गोयमा ! जाव णिच्चे ॥ २०४. सोमणसे वक्खारपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त कूडा पण्णत्ता, तं जहागाहा सिद्धे सोमणसे विय, बोद्धव्वे मंगलावईकूडे । देवकुरु विमल कंचण वसिट्ठकूडे य बोद्धव्वे ॥१॥ एवं सव्वे पंचसइया कूडा, एएसि पुच्छा दिसिविदिसाए भाणियव्वा जहा'' गंधमायणस्स, विमल-कंचणकडेसु, णवरि-देवयाओ सुवच्छा वच्छमित्ता य, अवसिठेसु कूडेसु सरिसणामया" देवा, रायहाणीओ दक्खिणेणं ।। २०५. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे देवकुरा णामं कुरा पण्णत्ता ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, णिसहस्स२ वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, विज्जप्पहवक्खार पव्वयस्स3 पुरत्थिमेणं, सोमणसवक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं देवकुरा णामं कुरा पण्णत्ता-पाईणपडीणायया उदीणदाहिणविच्छिण्णा एक्कारस जोयणसहस्साई अट्ठ य बायाले जोयणसए दुण्णि य एगूणवीस इभाए जोयणस्स विक्खंभेणं, जहा उत्तरकुराए वत्तव्वया जाव'५ अणु सज्जमाणा पम्हगंधा मियगंधा अममा सहा तेतली" सणिच्चारी८॥ २०६. कहि णं भंते ! देवकुराए चित्त-विचित्तकूडा णाम दुवे पव्वया पण्णत्ता ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठचोत्तीसे जोयणसए १. उदीणदाहिणविच्छिण्णे (अ,ब) अशुद्धं प्रति- ६. या (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। भाति । १०. जं०४।१०६ । २. जं० ४११६२। ११. सरिणामया (अ,ख,ब,स)। ३. णवरि (अ,क,त्रि,ब,स) प्रायः सर्वत्र । १२. णिसभस्स (अ,ख,ब); णिसढस्स (त्रि) । ४. सव्वरयणामए (अ,त्रि.ब,स,हीव) । १३. विज्जुप्पहस्स वक्खार° (प)। ५. जं० १०८। १४. अतः परं उत्तरकुरुप्रकरणे (४।१०८) 'बसे' इति पदं से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ चंदसंठाणसंठिया' इति पाठोपि विद्यते। सोमणसे वक्खारपव्वए सोमणसे वक्खारपब्वए' १५. जं० ४।१०८,१०६ । इत्यस्य सूचकमस्ति । १६. सहि (अ,ब); सुसहा (ब)। ७. x (प,शा); क्वचित् 'सोमणस्सिया' १७. एताली (अ,ब); तिताली (क,ख)। (पुवृ)। १८. रााणिचारी (अ,ब); सण्णिच्चारी (ख) । ८. जं० ४११०३,१०४,१०७ । Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१० जंबुद्दीवपण्णत्ती चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए सीयोयाए' महाणईए पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं उभओ कूले, एत्थ णं चित्त-विचित्तकूडा णामं दुवे पव्वया पण्णत्ता। एवं जच्चेव जमगपव्वयाणं सच्चेव । एएसि रायहाणीओ दक्खिणेणं ।। २०७. कहि णं भंते! देवकुराए कुराए णिसहद्दहे णामं दहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेसिं चित्त-विचित्तक डाणं पव्वयाणं उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठ चोत्तीसे जोयणसए चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए सीओयाए महाणईए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं णिसहद्दहे णामं दहे पण्णत्ते । एवं जच्चेव नीलवंत-उत्तरकुरु - चंदेरावण-मालवंताणं वत्तव्वया सच्चेव णिसह-देवकुरु-सूर- सुलस-विज्जुप्पभाणं णेयव्वा। रायहाणीओ दक्खिणेणं॥ २०८. कहि णं भंते ! देवकुराए कुराए क डसामलिपेढे णामं पेढे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, विज्जुप्पभस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, सोमणसस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, सीयोयाए महाणईए पच्चत्थिमेणं, देवकुरुपच्चत्थिमद्धस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं देवकुराए कुराए कूडसामलीए कूडसामलिपेढे णामं पेढे पण्णत्ते । एवं जच्चेव जंबूए सदसणाए वत्तव्वया सच्चेव सामलीएवि भाणियव्वा णामविहणा गरुलवेणदेवे, रायहाणी दक्खिणेणं, अवसिठें तं चेव जाव देवकुरू य इत्थ देवे पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-देवकुरा-देवकुरा । अदुत्तरं च णं देवकुराए ॥ २०६. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे विज्जुप्पभे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, देवकुराए पच्चत्थिमेणं, पम्हस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे विज्जूप्पभे वक्खारपव्वए पण्णत्त --उत्तरदाहिणायए, एवं जहा मालवंते, णवरि-सव्वतवणिज्जमए अच्छे जाव देवा आसयंति ॥ __ २१०. विज्जुप्पभे णं भंते ! वक्खारपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! नव कूडा पण्णत्ता, तं जहा सिद्धाययणकूडे विज्जुप्पभकूडे देवकुरुकूडे पम्हकूडे कणगकूडे सोवत्थियकूडे सीतोदाकूडे सयज्जलकूडे हरिकूडे । गाहा सिद्धे य विज्जुणामे, देवकुरु पम्ह कणग सोवत्थी । सीतोदा य सयज्जल, हरिकूडे चेव बोद्धव्वे ॥१॥ १. सीयाए (अ,त्रि प,ब) अशुद्धं प्रतिभाति । ६. गरुलदेवे (अ,ख,त्रि,प.ब होवृ); गरुडदेवोत्र, २. जं० ४।११०.१४० । गरुडो... गरुड जातीयो वेणुदेवनामा मतान्तरेण, ३. चंदेराक्य (क,त्रि,प,स,पु, शावृ, हीवृ); गरुडवेगनामा वा देवः (शाव) । द्रष्टव्यं...-४।१४२ सूत्रम । जीवाजीवाभिगमे ७. जं०४१४३-१६१ । (१६६७)- पि 'एरावणदहे' इति पाठो ८. जं० ४.१६२। दृश्यते। ६. सोओआकूडे (ख,स)। ४.० ४.१४१,१४२ । । १०. सयंजूलकूडे (त्रि); सूर्य जलकूटम् (हीव) । ५. °वेढे (क)। Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थो वक्खारो एए हरिकूडवज्जा पंचसइया णेयव्वा । एएसि णं कूडाणं पुच्छाएं दिसिविदिसाओ णेयव्वाओ, जहा मालवंतस्स हरिरसहकूडे तह चेव हरिकूडे, 'रायहाणी जह चेव दाहिणं चमरचंचा रायहाणी तह णेयव्वा" । कणग-सोवत्थियकू डेसु वारिसेणलाओ दो देवयाओ, अवसिट्ठेसु कूडेसु कूडसरिसणामया देवा, रायहाणीओ दोहिणं ॥ २११. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वृच्चइ - विज्जुप्पभे ववखारपव्वए ? विज्जुप्पभे वक्खारपव्व ए ? गोयमा ! विज्जुप्पभे णं वक्खारपव्वए विज्जुमिव सव्वओ समंता अभास इ" उज्जोवेइ पभासइ । विज्जुप्पभे य इत्थ देवे महिड्डीए जाव परिवसइ । से एएट्ठे गोयमा ! एवं वुच्चइ- विज्जुप्पभे-विज्जुप्पभे । अदुत्तरं च णं जाव" णिच्चे ॥ २१२. एवं पम्हे" विजए, अस्सपुरा रायहाणी, अंकावई ववखारपव्वए । सुपम्हे विजए, सीहपुरा रायहाणी, खीरोदा महाणई। महापम्हे विजए, महापुरा रायहाणी, पम्हावई वक्खारपव्वए । पम्हगावई विजए, विजयपुरा रायहाणी, सीहसोया महाणई । संखे विजए, अवराइया रायहाणी, आसीविसे ववखारपव्वए । कुमुदे विजए, अरजा रायहाणी, अंतोवाहिणी महाणई । णलिणे विजए, असोगा रायहाणी, सुहाव हे ववखारपव्वए । सलिलावई विजए, वीयसोगा रायहाणी, दाहिणिल्ले सीतोदामुहवणसंडे । * १५ १. पुच्छादे ( अ, ब ); पुच्छा ( प ) । २. दिसविदिसाओ ( अ, ख, ब) । ३. जं० ४।१६३-१६५ । ४. रायहाणीत्यादि राजधानी चास्य देवस्य दक्षिणतो यथैव चमरचंचा राजधानी तथैव ज्ञेया । क्वचित् रायहाणो तह चेव दाहिणेणं चमरचचा रायहाणिष्पमाणेणं णेयव्वा इति पाठ: ( पुवृ.) । ५. पलाहयाओ ( ब ) | ६. सरिणामया ( अ, क, ख, ब, स ) । ७. यद्यप्युत्तरकुरुवक्षस्कारयोर्यथायोगं च सिद्धहरिस्सह कूटवकूटाधिपराजधान्यो यथाक्रमं वायव्यामैशान्यां ( ४:१०६,१६४) प्रागभिहितास्तथा देव कुरुवक्षस्कारयोर्यथायोगं सिद्धहरिकूट कूटाधिपराजधान्यो यथाक्रममाग्नेय्यां नैऋत्यां च वक्तुमुचितास्तथापि प्रस्तुतसूत्रसम्बन्धियावदादर्शेषु पूज्यश्रीमलयगिरिकृत क्षेत्रसमासवृत्तौ च तथादर्शनाभावात् अस्माभिरपि राजधान्यो दक्षिणनेत्यले खि ५११ ( शावृ) । ८. ओभाइ ( प ) । ६. जं० ११२४ । १०. जं० १।४७ । ११. वम्हे ( अ, ब ) । १२. वम्हावती ( अ, ब ) । १३. सीह सोगा ( अ, क, ब ) ; सीयसंगा (त्रि, प, शावृ, हीवृ); शीघ्रस्रोताः सिंहस्रोता वा ग्रन्थान्तारे शीतस्रोताः ( पुवृ); द्रष्टव्यम् - टाणं ३:४६१ । १४. अवरा ( स ) ; अपरा ( पुवृ); स्थानाङ्गे ( २।३४१ ) पि 'अवरा' इति पाठो विद्यते, किन्तु अस्मिन्नेव सूत्रे किञ्चिदग्रे 'अरया' इति पाठां सर्वेष्वप्यादर्शेषु विद्यते तेनात्रापि 'अरजा' इति पाठः स्वीकृतः । १५ णलिणावई ( प ) ; सलिलावती ग्रन्थान्तरे नलिनी (पुवृ); नलिनावती विजयः सलिलावतीतिपर्यायः (श. वृ); सलिलावती ( ठाणं २।३४० ) । Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीपण्णत्ती उत्तरिल्लेवि एमेव भाणियव्वे जहा सीयाए, वप्पे विजए, विजया रायहाणी, चंदे वक्खारपव्वए । सुवप्पे विजए, वेजयंती रायहाणी, ओम्मिमालिणी णई । महावप्पे विजए, जयंती रायहाणी, सूरे वक्खारपव्वए । वप्पावई विजए, अपराइया रायहाणी, फेणमालिणी गई । ara fare, चक्कपुरा रायहाणी, णागे वक्खारपव्वए । सुवग्गू विजए, खम्गपुरा राहाणी, गंभीरमालिणी अंतरणई। गंधिले विजए, अवज्झा रायहाणी, देवे वक्खारपव्वए । गंधिलाई विजए, अओज्झा' रायहाणी, एवं मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लं पासं भाणियव्वं तत्थ ताव सीतोदाए णईए दविखणिल्ले णं कूले इमे विजया, तं जहागाहा ५१२ म्हे सुम्हे महापम्हे, चउत्थे म्हगावई । संकुल, अट्टमे लिणावई || १ || ओ राहाणीओ, तं जहा गाहा आसपुरा सीहपुरा, महापुरा चेव हवइ विजयपुरा । अवराइया य अरया, असोग तह वीयसोगा य ॥२॥ इमे वक्खारा, तं जहा - अंके पम्हे' आसीविसे सुहावहे, एवं इत्थ परिवाडीए दो-दो विजया कूडसरिणामया' भाणियव्वा, दिसा विदिसाओ य भाणियव्वाओ, सीयोयामुहवणं च भाणियव्वं, सीतोदाए दाहिणिल्लं उत्तरिल्लं च । सीतोदाए उत्तरिल्ले पासे इ विजया, तं जहा - गाहा- वप्पे सुवप्पे महावप्पे, चउत्थे वप्पगावई । वग्गू य सुवग्गू या, गंधिले गंधिलाई ||३|| रायहाणीओ इमाओ, तं जहा -- गाहा --- विजया य वेजयंती", जयंती अपराजिया | चक्कपुरा खग्गपुरा, हवइ अवज्झा अओज्झा य ॥४॥ इमे वक्खारा, तं जहा - चंदपव्वए सूरपव्वए नागपव्वए देवपव्वए । सीयोयाए महाणईए दाहिणिल्ले कूले - खीरोया सीहसोया अंतोवाहिणीओ" ईओ, उम्मिमालिणी फेणमालिणी गंभीरमालिणी उत्तरिल्लविजयाणंतराओ" । इत्थ परिवाडीए दो १. अयोज्झा ( अत्रि, ब ) । २. उत्थे ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । ३. पउमे ( अ, क,ख, ब, स ) 1 ४. सरिणाम ( अ, क, ख, ब, स ) प्रायः सर्वत्र । ५. दक्खिणिल्लं ( अ, क,ख, त्रि,ब,स) । ६. बप्पावई ( अ, त्रि, ब] । ७. गंधिला ( अ, क,ख, त्रि.ब. स ) । ८. वैजयंती य ( अ, ब ) । 8. सीयसोया ( प ) । १०. अंतोवाहिणी ( अ, ख, त्रि, ब) । ११. यत्तु पूर्वविभागे विजयादिसङ्ग्रहः प्राच्यविभागद्वयेन्त र नदीसंग्रहश्च नोक्तस्तत्र सूत्र - काराणां प्रवृत्तिवैचित्र्यं हेतुर्व्यवच्छिन्नसूत्रता वेति (शावृ) । Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ५१३ दो कूडा विजयसरि णामया भाणियव्वा । इमे दो-दो कूडा अवट्टिया तं जहा -- सिद्धाययणकूडे पव्वयसरिणामकूडे ॥ २१३. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरे णामं पव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! उत्तरकुराए दविखणेणं, देवकुराए उत्तरेणं, पुव्वविदेहस्स वासस्स पच्चत्थिमेणं, अवरविदेहस्स वासस्स पुरत्थिमेणं, जंबुद्दीवस्स दीवस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरे णाम पव्वए पण्णत्ते - णवणउतिजोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेणं, मूले दसजोयणसहस्साइं णवई च जोयणाई दस य एगारसभाए जोयणस्स विक्खंभेणं, धरणितले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, तयणंतरं चणं मायाए- मायाए परिहायमाणे- परिहायमाणे उवरितले एगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं, मूले एकतीसं ' जोयणसहस्साइं णव य दसुत्तरे जोयणसए तिष्णि य एगारसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं, धरणितले एकतीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे जोयणसए परिक्खेवेणं, उवरितले तिष्णि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठे जोयणसयं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं, मूले विच्छिण्णे मज्झे संखित्ते उवरिं* तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे सहे । सेणं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, वण्णओ ॥ 1 २१४. मंदरे णं भंते ! पव्वए कइ वणा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा - भद्दसालवणे णंदणवणे सोमणसवणे पंडगवणे ॥ २१५. कहि णं भंते! मंदरे पव्वए भद्दसालवणे णामं वणे पण्णत्ते ? गोयमा ! धरणितले, एत्थ णं मंदरे पव्वए भद्दसालवणे णामं वणे पण्णत्ते- पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिणे सोमणस - विज्जुप्पह-गंधमायण - मालवतेहिं वक्खारपव्वएहिं सीयासीतोदाहि य महाणईहिं अट्ठभागपविभत्ते, मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं बावीस-बावीसं'" जोयणसहस्साइं आयामेणं, उत्तरदाहिणेणं अड्डाइज्जाई अड्डाइज्जाई जयसाई विक्खंभेणं, से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, दुहवि वण्णओ" भाणियव्वो- किण्हे किण्होभासे जाव देवा आसयंति सयंति ॥ २१६. मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिमेणं भद्दसालवणं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता, एत्थ णं महं एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते- पण्णासं जोयणाई आयामेणं, पणवीसं जोयणाई विक्खंभेणं, छत्तीसं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसण्णिविट्ठे वण्णओ" ॥ १. मंदिरे ( अ, ब ) अग्रेपि प्राय एवमेव । २. धरणियले ( अ, प, स ) । ३. तदाणंतरं ( अ, ब ) ; त्रि, स) । ४. एक्कतीसं ( अ, ब ) ; एगत्तीसं ( क, ख, त्रि, स ) । ५. उप्पि ( अ, क, ख, त्रि,ब,स) । ६. नं० १।१०-१३ ॥ ७. पादणपडियायते (अ, ब ) ; तयाणंतरं (क, ख, (कत्रि,स) । ८. पच्चत्थिमेणं बावीस ( अ, ब ) ; पच्चत्थिमपुरस्थिमेणं बावीसं ( क,ख, स); पुरत्थिमेणं पच्चत्थिमेणं बावीसं २ (त्रि); पश्चिमपूर्वाभ्यां (हीवृ) । ६. उत्तरेण दाहिणेणं (अ, क, ख,त्रि,ब,स) । १०. जं० ११०-१३ । पडियाय ११. जं १।३७ । Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती २१७. तस्स णं सिद्धाययणस्स ति दिसि तओ दारा पण्णत्ता। ते णं दारा अटू जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा जाव' वणमालाओ भूमिभागो य भाणियव्वो॥ २१८. तस्स णं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता-- अट्ठ जोयणाई आयाम-विवखंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वरयणामई अच्छा ॥ २१६. तीसे णं मणिपेढियाए उरि देवच्छंदए-- अट्र जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाइं अट्ट जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं जाव जिणपडिमावण्णओ देवच्छंदगस्स जाव' धूवकडुच्छ्याणं ॥ - २२०. मंदरस्स णं पव्वयस्स दाहिणेणं भद्दसालवणं पण्णासं, एवं चउद्दिसिंपि मंदरस्स भदृसालवणे चत्तारि सिद्धाययणा भाणियव्वा ॥ २२१. मंदरस्स णं पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं भद्दसालवणं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि णंदापुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा पउमा पउमप्पभा चेव, कुमुदा कुमुदप्पभा। ताओ णं पुवखरिणीओ पण्णासं जोयणाई आयामेणं, पणवीसं जोयणाई विक्खंभेणं, दस जोयणाइं उव्वेहेणं, वण्णओ वेइयावणसंडाणं भाणियव्वो। चउद्दिसिं तोरणा जाव' तासि णं पुवखरिणीणं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो पासायवडेंसए पण्णत्ते-- पंचजोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्डाइज्जाइं जोयणसयाई विक्खंभेणं', अब्भुग्गयमूसियपहसिय विव एवं सपरिवारो पासायवडेंसओ भाणियव्वो" ॥ २२२. मंदरस्स णं एवं" दाहिणपुरत्थिमेणं पुक्खरिणीओ उप्पलगुम्मा णलिणा, उप्पला उप्पलुज्जला। तं चेव पमाणं मज्झे पासायवडेंसओ सक्कस्स सपरिवारो तेणं चेव पमाणेणं ।। २२३. दाहिणपच्चत्थिमेण वि पुक्खरिणीओ भिंगा भिंगनिभा चेव, अंजणा कज्जलप्पभा२ ॥ पासायवडेंसओ सक्कस्स सीहासणं सपरिवारं॥ २२४. उत्तरपच्चत्थिमेणं पक्खरिणीओ सिरिकता सिरिचंदा, सिरिमहिया चेव सिरिणिलया। पासायवडेंसओ ईसाणस्स सीहासणं सपरिवारं ॥ १. जी० ६।३००-३०६ । २. वणलयामालाओ (क,स); वणलयाओ (ख)। ३. जी० ३।४१४-४१६ । ४. पञ्चाशद्योजनान्यवगाोत्याद्यालापकोग्राद्यः (शावृ)। ५. णंदाओ (अ,क,ख,त्रि,ब)। ६. पणुवीसं (अ,ख,ब)। ७. जी० ३।२८६। ८. जं० ४।२६-३० । ६. आयाम-विक्खंभेणं (क,ख,स) । १०. जी० ३१३३८-३४५; पण्ण०२।५१ । ११. एवमितिपदमुक्तातिदेशार्थं तेन 'भहसालवणं पण्णासं जोअणाई ओगाहित्ता' इत्यादि ग्राह्यम् (शा )। १२. अंजणप्पभा (प)। १३. सिरियंदा (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । १४. तेव (ब)। Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्यो वक्खारो ५१५ २२५. मंदरे णं भंते ! पच्चए भद्दसालवणे कइ दिसाहत्थिकूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ दिसाहत्थिकूडा पण्णत्ता, तं जहागाहा पउमुत्तरे णीलवंते, सुहत्थी अंजणागिरी'। कुमुदे य पलासे य, वडेंसे रोयणागिरी ॥ २२६. कहि णं भंते ! मंदरे पव्वए भद्दसालवणे पउमुत्तरे णाम दिसाहत्थिकूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, पुरथिमिल्लाए सीयाए उत्तरेणं, एत्थ णं पउमुत्तरे णाम दिसाहत्थिकूडे पण्णत्ते-पंचजोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, पंचगाउयसयाइं उव्वेहेणं, एवं विक्खंभे परिक्खेवो य भाणियव्वो' चुल्लहिमवंतकडसरिसो, पासायाण य 'तं चेव', पउमुत्तरो देवो, रायहाणी उत्तरपुरत्थिमेणं ॥ २२७. एवं णीलवंतदिसाहत्थिकूडे मंदरस्स दाहिणपुरत्थिमेणं, पुरथिमिल्लाए सीयाए दक्खिणेणं । एयस्सवि नीलवंतो देवो, रायहाणी दाहिणपुरत्थिमेणं ॥ २२८. एवं सुहत्थिदिसाहत्थिकूडे मंदरस्स दाहिणपुरत्थिमेणं, दक्खिणिल्लाए सीयोयाए पुरत्थिमेणं । एयस्सवि सुहत्थी देवो, रायहाणी दाहिणपुरत्थिमेणं ॥ २२६. एवं चेव अंजणागिरिदिसाहत्थिकूडे मंदरस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, दक्खिणिल्लाए सीतोदाए पच्चत्थिमेणं । एयस्सवि अंजणागिरी देवो, रायहाणी दाहिणपच्चत्थिमेणं॥ २३०. एवं कुमुदेवि दिसाहत्थिकूडे मंदरस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमिल्लाए सीतोदाए दक्खिणेणं । एयस्सवि कुमुदो देवो,रायहाणी दाहिणपच्चत्थिमेणं ।। २३१. एवं पलासेवि दिसाहत्थिकूडे मंदररस उत्तरपच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमिल्लाए सीतोदाए उत्तरेणं । एयस्सवि पलासो देवो, रायहाणी उत्तरपच्चत्थिमेणं ।।। २३२. एवं वडेंसेवि दिसाहत्थिकूडे मंदरस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं, उत्तरिल्लाए सीयाए महाणईए पच्चत्थिमेणं । एयस्सवि वडेंसो देवो, रायहाणी उत्तरपच्चत्थिमेणं ।। २३३. एवं रोयणागिरी दिसाहत्थिकूडे मंदरस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, उत्तरिल्लाए सीयाए पुरत्थिमेणं । एयस्सवि रोयणागिरी देवो, रायहाणी उत्तरपुरत्थिमेणं । २३४. कहि णं भंते ! मंदरे पव्वए णंदणवणे णामं वणे पण्णत्ते ? गोयमा ! भद्दसालवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ पंच जोयणसयाइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए णंदणवणे णाम वणे पण्णत्ते-पंच जोयणसयाइं चक्कवालविक्खंभेणं वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मंदरं पव्वयं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्टइ १. अंजणगिरी (अ,प,ब,स)। वृत्तिकृता मंष पाठो सब्धस्तेन विभक्तिलोपस्य २. वडेंसए (अ,ब); वतंसे (ख)। सम्भावना कृता। ३. रोहणागिरि (शावृपा) । ५. जं०४१४८-५२। ४. विक्खंभ (क,ख,त्रि,प,स,); अत्र विभक्तिलोपः ६. तदेव प्रमाणमिति गम्यम् (शाव) । प्राकृतत्वात् (शाव); ताडपत्रीयादर्श विक्खंभे ७. दाहिणपुरथिमिस्लेणं (ब)। इति पाठो लम्यते, किन्तु अर्वाचीनादर्शषु ८. वलास (ब)। Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१६ बुद्दीपणती णव जोयणसहस्साइं णव य चउप्पण्णे जोयणसए छच्चेगारसभाए जोयणस्स बाहिं गिरिविक्खभो, एगत्तीसं जोयणसहस्साइं चत्तारि य अउणासीए जोयणसए किंचिविसेसाहिए बाहि गिरिपरिरएणं, अट्ठ जोयणसहस्साइं णव य चउप्पण्णे जोयणसए छच्चेगारसभाए जोयणस्स अंतो गिरिविवखंभो, अट्ठावीसं जोयणसहस्साइं तिष्णि य सोलसुत्तरे जोयणसए अट्ठ य इक्कारसभाए जोयणस्स अंतो गिरिपरिएणं । से णं एगाए पउमवर वेश्याए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते, वण्णओ जाव' देवा आसयति ॥ २३५. मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते । एवं चउद्दिसि चत्तारि सिद्धाययणा, विदिसासु पुक्खरिणीओ तं चेव' पमाणं सिद्धाययणाणं, पुक्खरिणीणं च, पासायवडेंसगा तह चेव सक्केसाणाणं तेणं चेव पमाणेणं' | २३६. णंदणवणे णं भंते ! वणे कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा -- णंदणवणकूडे मंदरकडे जिसहकूडे हिमवयकूडे रययकूडे रुयगकूडे सागरचित्तकूडे वइरकूडे बलकूडे । २३७. कहि णं भंते ! णंदणवणे णंदणवणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमिल्ल सिद्धाययणस्स' उत्तरेणं, उत्तरपुरत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसयस्स दक्खिणं, एत्थ णं णंदणवणे णामं कूडे पण्णत्ते । पंच सइया कूडा पुव्ववण्णिया भाणिव्वा देवी मेहंकरा, रायहाणी विदिसाए । २३८. एयाहि चेव पुव्वाभिलावेणं णेयव्वा इमे कूडा इमाहिं दिसाहि— पुरत्थि - मिल्लस्स भवणस्स दाहिणेणं, दाहिणपुरत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं मंदरे कूडे, मेहवई देवी, रायहाणी पुव्वेणं । दक्खिणिल्लस्स भवणस्स पुरत्थिमेणं, दाहिणपुरत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं णिसहे कूडे सुमेहा देवी, रायहाणी दक्खिणं । दक्खिणिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं, दक्खिणपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरत्थिमेणं 'हेमवए कूड़े मेघमालिनी देवी, रायहाणी दक्खिणं । पच्चत्थिमिल्लस्स भवणस्स दविखणेणं, दाहिणपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं 'रयए कूडे "" सुवच्छा देवी, रायहाणी पच्चत्थिमेणं । पच्चत्थिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं, १. जं० १।१०-१३ । २. जं० ४।२१६-२२४ । ३. सक्कीमााणं ( अ, क, ब) । ४. अत्र च पुष्करिणीनां नामानि सूत्रकारालिखितत्वाल्लिपिमादाद् वा आदर्शेषु न दृश्यन्ते इति तत्रं शान्यादिप्रासादक्रमादिमानि नामानि द्रष्टव्यानि पूज्यप्रणीतक्षेत्र विचारतः -- नन्दो - त्तरा, नन्दा, सुनन्दा, नन्दिवर्द्धना तथा नदिघेणा अमोघा गोस्तूपा सुदर्शना तथा भद्रा विशाला कुमुदा पुण्डरीकिणी तथा विजया वैजयन्ती अपराजिता जयन्ती ( शाबू ) । ५. पुरथिमिल्लस्स (क, ख, त्रि, स ) । ६. अथ लाघवार्थमुक्तस्य वक्ष्यमाणानां च कूटानां साधारणमतिदिशति - पञ्चशतिकानि कूटानि पूर्व विदिहस्तिकूटप्रकरणं वर्णितानि उच्चत्वव्यासपरिधिवर्णसंस्थान राजधानीदिंगादिभिः तान्यत्र भणितव्यानीति शेष: ( शावृ ) । ७. सिह कूडे ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । ८. हेमवयकूडे ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । E. हेममालिनी ( क ) । १०. रययकूड़े ( अ, ब ) रजत कूडे ( क,ख,स); रयतकूडे (त्रि) । Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ५१७ उत्तरपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दक्खिणेणं 'रुयगे कूडे", वच्छमित्ता देवी, रायहाणी पच्चत्थिमेणं। उत्तरिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं, उत्तरपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरत्थिमेणं 'सागरचित्ते कडे'२, वइरसेणा देवी, रायहाणी उत्तरेणं । उत्तरिल्लस्स भवणस्स पुरत्थिमेणं, उत्तरपुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं 'वइरे कुडे', बलाहया देवी, रायहाणी उत्तरेणं ।। . २३९. कहि णं भंते ! णंदणवणे बलकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं णंदणवणे बलकूडे णामं कूडे पण्णत्ते । एवं जं चेव हरिस्सहकूडस्स पमाणं रायहाणी य, तं चेव बलकूडस्सवि, णवरं ---बलो देवो, रायहाणी उत्तरपुरथिमेणं ॥ २४०. कहि णं भंते ! मंदरए पव्वए सोमणसवणे णाम वणे पण्णत्ते ? गोयमा ! णंदणवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अद्धतेवढेि जोयणसहस्साइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए सोमणसवणे णामं वणे पण्णत्ते-पंचजोयणसयाइं चक्कवालविक्खंभेणं, वने वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मंदरं पव्वयं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ-चत्तारि जोयणसहस्साई दुण्णि य बावत्तरे जोयणसए अट्ट य इक्कारसभाए जोयणस्स 'बाहिं गिरिविक्खंभेणं", तेरस जोयणसहस्साइं पंच य एक्कारे जोयणसए छच्च इक्कारसभाए जोयणस्स बाहिं गिरिपरिरएणं, तिण्णि जोयणसहस्साई दुण्णि य बावत्तरे जोयणसए अट्ठ य एक्कारसभाए जोयणस्स अंतो गिरिविक्खंभेणं, दस जोयणसहस्साई तिण्णि य अउणापण्णे" जोयणसए तिण्णि य इक्कारसभाए जोयणस्स अंतो गिरिपरिरएणं । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, वण्णओ" किण्हे किण्होभासे जाव आसयंति । एवं कूडवज्जा सच्चेव णंदणवणवत्तव्वया भाणियव्वा, तं चेव ओगाहिऊणं जाव' पासायवडेंसगा सक्कीसाणाणं । २४१. कहि णं भंते ! मंदरे पव्वए पंडगवणे णामं वणे पण्णत्ते ? गोयमा ! सोमणसवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ छत्तीसं जोयणसहस्साइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए सिहरतले पंडगवणं णाम वर्ण पण्णत्त-चत्तारि चउणउए जोयणसए चक्कवालविक्खंभेणं, वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मंदरचूलियं* सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ-तिणि जोयणसहस्साइं एगं च बाबठें जोयणसयं किंचिविसे १. रुयगकूडे (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ८. एक्कारस (त्रि); एक्कार (स)। २. सागरचित्तकूडे (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ६. छ (ख)। ३. वइरकूडे (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १०. अउणवण्णे (अ,ब)। ४. बलाहिका (त्रि,हीवृ)। ११ जं० १।१०-१३ । ५. नंदणवणे २ (अ,क,ख,ब,स)। १२. ओगाहिऊण (त्रि)। ६. जं० ४.१६५। १३. जं० ४१२३५ । ७. बाहिरविक्खंभेणं (अ,ख,ब,स); बाहिर गिरि- १४. मंदिरस्स चूलियं (अ,ब); मंदरस्स चुलियं विक्खंभेणं (त्रि)। (क,ख,त्रि,स)। Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१८ जंबुद्दीवपण्णत्ती साहियं' परिक्खेवेणं । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं जाव किण्हे देवा आसयंति ॥ २४२. पंडगवणस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं मंदरचूलिया णामं चूलिया पण्णत्ता-- चत्तालीसं जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, मूले बारस जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे अट्ट जोयणाई विक्खंभेणं, उप्पि चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले साइरेगाइं सत्तत्तीसं जोयणाई परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाइं पणवीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं, उप्पि साइरेगाइं बारस जोयणाई परिक्खेवेणं, मूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता उप्पि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिया सव्ववेरुलियामई अच्छा। सा णं एगाए पउमवरवेइयाए 'एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता, उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव सिद्धाययणं बहुमज्झदेसभाए---कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणगं कोसं उड्ढ उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसण्णिविठे जाव धूवकडुच्छुगा ॥ २४३. मंदरचूलियाए" णं पुरत्थिमेणं पंडगवणं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता, एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते । एवं जच्चेव सोमणसवणे पुव्ववण्णिओ गमो भवणाणं ५ पूक्खरिणीणं पासायवडेंसगाण य, सो चेव णेयव्वो जाव६ सक्कीसाणवडेंसगा तेणं चेव परिमाणेणं ॥ २४४. पंडकवणे णं भंते ! वणे कइ अभिसेयसिलाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि अभिसेयसिलाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पंडुसिला पंडुकंबलसिला रत्तसिला रत्तकंबलसिला ॥ २४५. कहि णं भंते ! पंडगवणे वणे पंडुसिला णामं सिला पण्णत्ता ? गोयमा ! मंदरचूलियाए पुरत्थिमेणं, पंडगवणपुरथिमपेरंते, एत्थ णं पंडगवणे वणे पंडुसिला णामं सिला पण्णत्ता-उत्तरदाहिणायया पाईणपडीणविच्छिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिया पंचजोयणसयाइं आयामेणं, अड्डाइज्जाइं जोयणसयाई विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वकणगामई अच्छ। । वेइयावणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता, वण्णओ८॥ १. किंचिविसेसाहिए (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ११. मंदरचूलगाए (अ,ब)। २. जं० १११०-१३। 'जाव' इति पदं किण्हे १२. जो चेव (क,ख,स)। पदानंतरं युज्यते, अत्र कश्चिदलिपिप्रमादः १३. सोमणसवण (अ,ख,त्रि,ब,स); सोमणस (क); सम्भाव्यते। सोमणसे (प)। ३. पणुवीसाइं (अ,ब); पणुवीसं (क,ख)। १४. X (अ,त्रि,ब)। ४. उवरिं (त्रि)। १५. भवणं (अ,ख,ब); भवणस्स (क,त्रि) । ५. दुवालस (अत्रि,ब)। १६. जं० ४।२४० । ६. सं०पा०-उमवरवेइयाए जाव संपरिक्खित्ता। १७. अन्यत्र तु पाण्डुकम्बला अतिपाण्डुकम्बला ७. जं० २३६,३७ । रक्तकम्बला अतिरक्तकम्बला नामान्तराणि ८. सिद्धायणं (अ,ब); सिद्धाययणे (क,ख,स)। (शावृ)। ६. देसूणं (क,त्रि)। १८. जं० १११०-१३। १०. जं० ११३७-४० । Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्यो वक्खारा ५१६ २४६. तीसे णं पंडुसिलाए चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता जाव' तोरणा, वण्णओ॥ २४७. तीसे णं पंडुसिलाए उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव देवा आसयंति सयंति ॥ २४८. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए उत्तरदाहिणेणं, एत्थ णं दुवे अभिसेयसीहासणा पण्णत्ता - पंच धणुसयाइं आयाम-विक्खंभेणं, अड्डाइज्जाई धणुसयाइं बाहल्लेणं, सीहासणवण्णओ भाणियब्वो' विजयदूसवज्जो। तत्थ णं जेसे उत्तरिल्ले सीहासणे तत्थ णं बहूहिं भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएहिं देवेहि देवीहि य कच्छाइया तित्थयरा अभिसिच्चंति। तत्थ णं जेसे दाहिणिल्ले सीहासणे तत्थ णं बहुहिं भवण वइ-वाणमंतर-जोइसिय° वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य वच्छाईया तित्थयरा अभिसिच्चंति ॥ २४६. कहि णं भंते ! पंडगवणे वणे पंडुकंबलसिला णामं सिला पण्णत्ता ? गोयमा ! मंदरचूलियाए दक्खिणेणं, पंडगवणदाहिणपेरंते, एत्थ णं पंडगवणे वणे पंडुकंबलसिला णामं सिला पण्णत्ता-पाईणपडीणायया उत्तरदाहिणविच्छिण्णा, एवं तं चेव पमाणं वत्तव्वया य भाणियव्वा जाव:-- २५०. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे सीहासणे पण्णत्ते, तं चेव सीहासणप्पमाणं', तत्थ णं बहूहिं भवणवइ'"-'वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य° भारहगा तित्थयरा अभिसिच्चंति ॥ २५१. कहि णं भंते ! पंडगवणे वणे रत्तसिला णामं सिला पण्णत्ता ? गोयमा ! मंदरचलियाए पच्चत्थिमेणं, पंडगवणपच्चत्थिमपेरंते, एत्थ णं पंडगवणे वणे रत्तसिला णामं सिला पण्णत्ता--- उत्तरदाहिणायया पाईणपडीणविच्छिण्णा जाव'' तं चेव पमाणं सव्वतवणिज्जामई अच्छा । तत्थ णं जेसे दाहिणिल्ले सीहासणे तत्थ णं बहूहिं भवणवइवाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य पम्हाइया तित्थयरा अभिसिच्चति । तत्थ णं जेसे उत्तरिल्ले सीहासणे तत्थ णं बहूहि भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएहि देवेहिं देवीहि य वप्पाइया२ तित्थयरा अभिसिच्चंति ॥ २५२. कहि णं भंते ! पंडगवणे वणे रत्तकंबलसिला णामं सिला पण्णत्ता ? गोयमा ! ए उत्तरेणं, पंडगवणउत्तरचरिमंते, एत्थ णं पंडगवणे वणे रत्तकंबलसिला णामं सिला पण्णत्ता-पाईणपडीणायया उदीणदाहिणविच्छिण्णा सव्वतवणिज्जामई १. जं०४।२६-३० । २. जं० १११३। ३. अभिसेया सीहासणा (अ,ब)। ४. जी० ३।३११ । ५. अभिसिंचंति (अ,ब)। ६. सं०पा० -भवण जाव वेमाणिएहि । ७. पडियायता (अ,क,ब,स) । ८. ० ४१२४५-२४७ । ९. जं० ४।२४८ । १०. सं०पा०-भवणवइ जाव भारहगा। ११.० ४।२४५-२४८ । १२. वप्पातिया (अ,ब)। Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० जंबुद्दीवपण्णत्ती अच्छा जाव' बहुमज्झदेसभाए सीहासणं, तत्थ णं बहूहि भवणवइ- वाणमंतर-जोइसियवेमाणिएहि देवेहि देवीहि य एरावयगा तित्थयरा अभिसिच्चंति ॥ २५३. मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स कइ कंडा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ कंडा पण्णत्ता, तं जहा...'हेट्ठिल्ले कंडे, मज्झिमिल्ले कंडे, उवरिल्ले कंडे' ॥ २५४. मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स हेडिल्ले कंडे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा....पुढवी उवले वइरे सक्करा ॥ २५५. मज्झिमिल्ले णं भंते ! कंडे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-अंके फलिहे जायरूवे' रयए॥ २५६. उवरिल्ले कंडे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते सव्वजबूणयामए॥ २५७. मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स हेट्ठिल्ले कंडे केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एगं जोयणसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ २५८. मज्झिमिल्ले कंडे पुच्छा। गोयमा तेवढेि जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ __२५६. उवरिल्ले पुच्छा। गोयमा ! छत्तीसं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते । एवामेव सपुत्वावरेणं मंदरे पव्वए एगं जोयणसयसहस्सं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ॥ २६०. मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स कति णामधेज्जा पण्णत्ता ? गोयमा ! सोलस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहागाहा मंदर मेरु मणोरम सूदंसण सयंपभे य गिरिराया। रयणोच्चए सिलोच्चए' मज्झे लोगस्स णाभी य ॥१॥ अच्छे य सूरियावत्ते सूरियावरणे ति या। उत्तमे य दिसादी य, वडेंसेति य सोलस ॥२॥ २६१. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-मंदरे पव्वए? मंदरे पव्वए ? गोयमा ! मंदरे पव्वए मंदरे णामं देवे परिवसइ महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ..मंदरे पव्वए-मंदरे पव्वए। १.० ४१२४५-२४८ । ६ जोयणसहस्स (प,ब,स) अशुद्धं प्रतिभाति । २. सं०पा०-भवणवइ जाव देवेहिं । १०. समवायाङ्गे (१६५३) त्रयाणां नाम्नां भेदो ३. हेट्रिल्ल कंडे मज्झिमकंडे उवरिल्लकंडे (अत्रि, दृश्यते....... ब, पुवृ, हीवृ); °मज्झिल्ले कंडे (स) ।। मंदर-मेरु-मणोरम-सुदंसण सयंपों य गिरिराया। ४. वतिरे (ख)। रयणुच्चय पियदंगण, मज्झे लोगस्स नाभी य ॥१॥ ५. जावरूवे (अ,ब)। अत्थे य सूरियावत्ते, सूरियावरणेत्ति य । ६. एक्काक्कारे (अ,त्रि,ब)। उत्तरे य दिशाई य, वडेंसे इय सोलसे ॥२॥ ७. सव्वजंबूणतामए (अ,ब) । ११. रयणुच्चए सिलुच्चए (क,ख,त्रि,स)। ८. मज्झिल्ले (अ,त्रि,ब)। Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ५२१ अदुत्तरं तं चेव॥ २६२. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे णीलवंते' नाम वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स उत्तरेणं, रम्मगवासस्स दक्खिणेणं, पुरथिमिल्ललवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे णीलवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते-- पाईणपडीणायए' उदीणदाहिणविच्छिण्णे, णिसहवत्तव्वया प्पीलक्तस्स भाणियव्वा', णवरं -जीवा दाहिणेणं, धणु [धणुपट्ठ ? ] उत्तरेणं, एत्थ' णं केसरिद्दहो, सीया महाणई पवढा समाणी उत्तरकुरं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी जमगपव्वए" णीलवंत-उत्तरकुरु-चंदेरावण-मालवंतद्दहे य दुहा विभयमाणी-विभयमाणी चउरासीए सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणी -आपूरेमाणी भद्दसालवणं एज्जेमाणी -एज्जेमाणी मंदरं पव्वयं दोहि जोयणेहिं असंपत्ता पूरस्थाभिमूही आवत्ता समाणी अहे मालवंतवक्खारपव्वयं दालयित्ता मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं पुव्वविदेहं वासं दुहा विभयमाणी-विभयमाणी एगमेगाओ चक्रवट्टिविजयाओ अट्ठावीसाए-अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणीआपूरेभाणी पंचहि सलिलासयसहस्सेहिं बत्तीसाए" य सलिलासहस्सेहिं समग्गा अहे विजयस्स दारस्स जगई दालइत्ता पुरत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ, अवसिठं तं चेव"। एवं णारिकतावि उत्तराभिमुही णेयव्वा, णवरमिमं णाणत्तं----गंधावइवट्टवेयअपव्वयं जोयणेणं असंपत्ता पच्चत्थाभिमुही आवत्ता समाणी, अवसि8 तं चेव पवहे य मुहे य जहा" हरिकतासलिला ।। २६३. णीलवंते णं भंते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! नव कूडा पण्णत्ता, तं जहा-सिद्धायय गाहा-- सिद्धे णीले" पुव्वविदेहे, सीया य कित्ति णारी य । अवरविदेहे रम्मगकूडे उवदंसणे चेव ॥१॥ सव्वे एए कूडा पंचसइया, रायहाणीओ उत्तरेणं ॥ __२६४. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ --णीलवंते वासहरपव्वए ? णीलवते वासहरपव्वए ? गायमा ! णोले णोलोभासे, णोलवंते य इत्थ देवे महिड्डीए जाव परिवसइ । सव्ववेरुलियामए णोलवते जाव" णिच्चे ॥ १. जं० १।४७ । ११. जं० ४१६१-६५ २. लवंते (अ,क,त्रि,ब) प्रायः सर्वत्र । १२. नवरं इमं (अ,ब); नवरि इमं (त्रि)। ३. पडियायते (अ,क,ख,ब) । १३. मालवनपरियागं वटवेयपवयं (अ,ब) । ४. ० ४८६-८६। १४. जं० ४१६०; यच्चात्र हरिसलिला विहाय प्रवह५. तत्थ (अ.क,ख,त्रि,ब,स)। मुखयोहरिकान्तातिदेश उक्तस्तत् हरिसलिला६. पज्जेमाणी (अ,क,ख,त्रि,ब,पुव,हीव)। प्रकरणेपि हरिकान्तातिदेशस्यक्तित्वात् (शा)। ७. जवगपव्वतो (अ,ब)। १५. णेलवंते (अ,ब)। ८. आपूरयमाणी (अ,ब); आपुरमाणी (ख,स)। १६. जं० १४२४ । ६. पज्जेमाणी (अ,क,ख,त्रि,ब,पुत्,हीव)। १७. जं० ११४७ । १०. दुपत्तीसाए (अ,ब); दुबत्तीसाए (त्रि)। Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ जंबुद्दीवपण्णत्ती २६५. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे रम्मए णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स उत्तरेणं, रुप्पिस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं, एवं जह चेव हरिवासं तह चेव रम्मयं वासं भाणियव्वं', णवरंदक्खिणेणं जीवा उत्तरेणं धj [धणुपट्ठ ? ] अवसेसं तं चेव ॥ २६६. कहि णं भंते ! रम्मए वासे गंधावई णामं वट्टवेयड्ढपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! णरकताए पच्चत्थिमेणं, णारीकंताएं पुरत्थिमेणं, रम्मगवासस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं गंधावई णामं वट्टवेयड्ढे पव्वए पण्णत्ते, जं चेव वियडावइस्स तं चेव गंधावइस्सवि वत्तव्यं । अट्ठो, बहवे उप्पलाइं जाव' गंधावइवण्णाइं गंधावइवण्णाभाई गंधावइप्पभाई। 'पउमे य इत्थ" देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ । रायहाणी उत्तरेणं । २६७. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ--रम्मए वासे ? रम्मए वासे? गोयमा ! रम्मगवासे णं रम्मे रम्मए रमणिज्जे। 'रम्मए य इत्थ६ देवे जाव परिवसइ। से तेणठेणं ॥ २६८. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे रुप्पी णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! रम्मगवासस्स उत्तरेणं, हेरण्णवयवासस्स दक्खिणेणं, पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे रुप्पी णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते-पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे, एवं 'जा चेव महाहिमवंतवत्तव्वया 'सा चेव'२ रुप्पिस्सवि, णवरं-दाहिणेणं जीवा उत्तरेणं धj [धणुपट्ट् ? ] अवसेसं तं चेव, महापुंडरीए दहे, णरकता महाणदी" दक्खिणेणं णेयव्वा, जहा५ रोहिया पुरत्थिमेणं गच्छइ, रुप्पकूला उत्तरेणं णेयव्वा, जहा६ हरिकता पच्चत्थिमेणं गच्छइ, अवसेसं तं चेव ॥ २६६. रुप्पिम्मि णं भंते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहागाहा-- सिद्धे रुप्पी रम्मग, णरकता बुद्धि रुप्पकूला य । हेरण्णवए मणिकंचणे य रुप्पिम्मि कूडाइं ॥१॥ सव्वेवि एए पंचसइया, रायहाणीओ उत्तरेणं ॥ १. ४ (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुव,हीव)। २. जं० ४१८१-८३। ३. द्रष्टव्यम् -४१५७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. नारिकताए (अ,क,ख,ब,स)। ५.० ४।८४1 ६. x (अप,ब,शावृ)। ७. पउमेत्थ (अ,ब); पउमे इत्थ (क,ख,त्रि,स)। ८. जं० २४। ६. रमएत्थ (अ,ब); रम्मए इत्थ (ख,त्रि,स) । १०. हेरण्णवासस्स (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ११. जच्चेव (अ,त्रि,ब); ज० ४,६२,६३६ १२. सच्चेव (अ,त्रि,ब)। १३. णारिकता (अ,ब); स्थानाङ्गपि (२।२६३), 'णरकता' इत्येव पाठो लभ्यते । १४. नदी (प)। १५. जं०४।६४-७२ । १६. जं० ४१७३-७८ । Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ५२३ २७०. से केणट्ठेणं भंते ! एवं बुच्चइ - रुप्पी वासहरपव्वए ? रुप्पी वासहरपव्वए ? गोयमा ! रुप्पी णं' वासहरपव्वए रुप्पी रुप्पपट्टे' रुप्पिओ भासे सव्वरुप्पामए । रुप्पी य इत्थ देवे लिओमट्ठिए परिवसइ । से तेणट्ठेणं ॥ २७१. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! रुप्पिस्स उत्तरेणं, सिहरिस्त दक्खिणेणं, पुरत्थिमलवणससुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुहस्स पुरमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पण्णत्ते । एवं जह चेव हेमवयं तह चेव हेरण्णवयंपि भाणियव्वं', णवरं जीवा दाहिणेणं उत्तरेणं धणुं [ धणुपट्ठे ? ] अवसितं चेव । २७२. कहि णं भंते ! हेरण्णवए वासे मालवंतपरियाए ' णामं वट्टवेयड्डूपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! सुवण्णकूलाए पच्चत्थिमेणं, रुप्पकूलाए पुरत्थिमेणं, एत्थ णं 'हेरण्णवयस्स वासस्स बहुमज्झदेसभाए " मालवंतपरियाए णामं वट्टवेयड्ढे पण्णत्ते । जह" चेव सद्दावई तह चेव मालवंतपरियाए । अट्ठो, उप्पलाई पउमाई मालवंतप्पभाई' मालवंतवण्णाई मालवंतवण्णाभाई । पभासे य इत्थ देवे महिड्डीए पलिओवमट्ठिईए परिवसइ । से ट्ठे । यहाणी उत्तरेणं ॥ २७३. से केणट्ठेणं भंते! एवं बुच्चइ - हेरण्णवए वासे ? हेरण्णवए वासे ? गोयमा ! हेरण्णवए णं वासे रुप्पि - सिहरीहि 'वासहरपव्वएहिं दुहओ" समुवगूढे " णिच्चं हिरण्णं दलयइ" णिच्च हिरण्णं पगासइ । हेरण्णवए य इत्थ देवे परिवसइ । से एट्ठेणं ॥ २७४. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे सिहरी णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! हेरण्णवयस्स उत्तरेणं, एरावयस्स दाहिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं । एवं जह" चेव चुल्लहिमवंतो तह चेव सिहरीवि, णवरं -- जीवा दाहिणेणं, धणुं [ धणुपट्ठं ? ] उत्तरेणं, अवसिद्धं तं चेव । पुंडरीए दहे, सुवणकूला महाण दाहिणेणं णेयव्वा जहा रोहियंसा पुरत्थिमेणं गच्छइ । एवं जह चेय गंगा-सिंधूओ तह चेव रत्ता-रत्तवईओ णेयव्वाओ - पुरत्थिमेणं रत्ता, पच्चत्थिमेणं रत्तवई, अवसिद्धं तं चेव, 'अपरिसेसं णेयव्वं ४ || २७५. सिहरिमिणं भंते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! इक्कारस कूडा पण्णत्ता, तं जहा -- सिद्धाययणकूडे सिहरिकूडे हे रण्णवयकूडे सुवण्णकूलाकूडे सुरादेवी १. णामं ( प ) ; x ( स ) 1 २. x ( प, शावृ ) । ३. रुप्पोभासे ( प ) । ४. जं० ४०५५,५६ । ५. द्रष्टव्यम् - ४१५७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. x ( अ, क, ख, त्रि, बस, पुवृ, ही वृ ) । ७. जं० ४।५७-६० । ८. X ( अ, क,ख, त्रि, ब, स ) । ६. वासहरपब्व एहिमुभओ (त्रि, ही वृ ) । १०. समवगूढे (त्रि, पुवृ, ही वृ ) । ११. दलयइ णिच्च हिरण्णं मुंचति ( अ, क, ख, ब, स, पुवृ, ही वृ); द्रष्टव्यं ४।६१ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । १२. जं० ४।१,२ ॥ १३. जं० ४ । ३-४३ । १४. अवसेसं भाणियव्वं ( प ) । Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ जंबुद्दीवपण्णत्ती कूडे रत्ताकूडे लच्छीकूडे रत्तवईकूडे इलादेवीकूडे एरवयकूडे तिगिच्छिकूडे' । एवं सव्वेवि एते' कूडा पंचसइया, रायहाणीओ उत्तरेणं ॥ २७६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ सिहरिवासहरपव्वए ? सिहरिवासहरपव्वए ? गोयमा ! सिहरिम्मि' वासहरपव्वए बहवे कूडा सिहरिसंठाणसंठिया सव्वरयणामया सिहरी य इत्थ देवे जाव' परिवसइ। से तेणठेणं ॥ २७७. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे एरावए णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! सिहरिस्स उत्तरेणं, उत्तरलवणसमुद्दस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे एरावए णामं वासे पण्णत्तेखाणुबहुले, कंटकबहुले, एवं जच्चेव भरहस्स वत्तव्वया सच्चेव सव्वा निरवसेसा णेयव्वा सओयवणा सणिक्खमणा सपरिनिव्वाणा, णवरं-एरावओ चक्कवट्टी, एरावओ देवो। से तेणढेणं एरावए वासे-एरावए वासे ।। १. तिगिच्छकूडे (अ); तिगिछिकूडे (क,त्रि, प); तिगिच्छे कूडे (ख); तेगिच्छिकूडे (ब)। २. x (प)। ३. सिहरिम्हि (म,त्रि,ब) । ४. जं० ११२४ । ५. जं० ३३१-२२६ । Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. जया णं एक्मेक्के' चक्कवट्टिविजए भगवंतों' तित्थयरा समुप्पज्जंति, तेणं काणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ सहि-सएहिं कूडे हं सहि-सएहिं भवणेहिं सएहिं सएहिं पासायवडेंस एहि पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहि य' महत्तरियाहिं सपरिवाराहि सत्तहिं अणिएहिं सतह अणियाविहि सोलसएहि आय रखखदेवसाहस्सीहिं, अण्णेहि य बहूहि' देवेहिं देवीहि यसद्धि संपरिवुडाओ महाहयणट्ट- गीय-वाइय- तंती-तल-ताल-तुडिय घण- मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणीओ विहरति तं जहा- वृत्तं -- पंचमो वक्खारो १. एगमेगे (क, ख,स) । २. भगवं ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । ३. अधो ( अ, ब ) ; भोगंकरा' भोगवई, सुभोगा भोगमालिणी । तोयधारा विचित्ता य, पुप्फमाला अणिदिया ॥ १ ॥ अहो ( खत्रि,प); अह (स) 1 ४. X ( प, स ) | ५. बहूहिं वाणमंतहिं ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) ; ननु कासांचिद्दिवकुमारीणां व्यक्त्या स्थानाङ्ग पल्योपमस्थितेर्भणनात् समानजातीयत्वेनासामपि तथाभूतायुषः सम्भाव्यमानत्वात् भवनपतिजातीयत्वं सिद्धं । तेन भवनपतिजातीयानां वानमंतरजातीयपरिकरः कथं सङ्गच्छते ? उच्यते-- एतासां महद्धिकत्वेन ये आज्ञाकारिणो व्यन्तरास्ते ग्राह्या इति अथवा वानमन्तरशब्देनात्र वनानामन्तरेषु चरन्तीति यौगिकार्थसंश्रयणात् । भवनपतयोऽपि वानमन्तरा इत्युच्यते । उभयेषामपि प्रायो वनकूटादिषु विहरणशीलत्वादिति संभाव्यते । तत्त्वं तु बहुश्रुतगम्यमिति ( शावृ ) । पञ्चमे सूत्र कस्मिश्चिदादर्श' 'वाणमंत रेहि' इति पदं नास्ति । ६. सं० पा० – वाइय जाव भोगभोगाई | ७. पुण्यसागरीयवृत्ती दिशाकुमारीनाम्नां भेदो दृश्यते भोगंकरा भोगवती, सुभोगा भोगमालिनी । सुवत्सा वत्स मिश्रा, पुष्पमाला अनिंदिता ॥ १ ॥ एषु नामसु स्थानाङ्गप्रतिपादिताम्नायानुसारेण 'पुप्फमाला अनिंदिता' एते द्वे नाम्नी ऊर्ध्वलोकवास्तव्ययो दिशाकुमार्योर्विद्येते । स्थानाङ्ग (5188, १०० ) अधोलोकवास्तव्यानां ऊद्धर्वलोकवास्तव्यानां च दिशाकुमारीणां नामानि अनेन क्रमेण प्रतिपादितानि सन्ति-rg अहेलोगवत्थव्वाओ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा ५२५ Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुद्दीपण २. तए णं तासि अहेलो गवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारी महत्तरियाणं' पत्तेयं-पत्तेयं आसणाई चलति ॥ ५२६ ३. तए णं ताओ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ पत्तेयं-पत्ते आसणाई चलियाई पासंति, पासित्ता ओहि पउंजंति, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी - उप्पण्णे खलु भो ! जंबुद्दीवे दीवे भयवं तित्थयरे, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पण्णमणागयाणं अहेलोगवत्थव्वाणं अहं दिसाकुमारी महत्तरियाणं जम्मणमहिमं करेत्तए, तं गच्छामो णं अम्हेवि भगवओ जम्मणमहिम करे मोत्तिकट्टु एवं वयंति, वइत्ता पत्तेयं-पत्तेयं आभिओगिए' देवे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेगखंभसयसण्णिविट्ठे लीलट्ठियसालभंजियागे, एवं विमाणवण्णओ भाणियव्वो जाव जोयणविच्छिणे दिव्वे जाणविमाणे विउव्वह, विउव्वित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह || ४. तए णं ते आभिओगिया' देवा अणेगखंभसयसन्निविट्ठे जाव पच्चप्पिणंति ॥ ५. तए णं ताओ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारी महत्तरियाओ हट्टतुट्ठचित्तमाणंदियाओ' पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहि महत्तरियाहिं जाव अण्णेहिय बहूहि देवेहि देवीहि यसद्धि संपरिवुडाओ ते दिव्वे जाणविमाणे दुरुहंति, दुरुहित्ता सव्विडीए सव्वजुईए घणमुइंगपणवपवाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए" "तुरियाए चलाए जइणाए सहाए सिघाए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए जेणेव भगवओ तित्थगरस्स जम्मणणगरे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणं तेहिं दिव्वेहिं जाणविमाणेहिं तिक्खुत्तो आणि पाहि करेंति, करेत्ता उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए ईसि चउरंगुलमसंपत्ते धरणियले ते दिव्वे जाणविमाणे ठवेंति, ठवेत्ता पत्तेयं पत्तेयं चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जावसद्धि संपरिवुडाओ दिव्वेहितो जाणविमाणेहिंतो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता सव्विड्डीए जाव दुदुहिणिग्घोसगाइएण जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च तिक्खुत्तो आयाहिण -पयाहिणं करेंति, करेत्ता पत्तेयं - पत्तेयं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - णमोत्थु ' ते रयणकुच्छि - भोगंकरा भोगवती, सुभोगा भोगमालिनी । सुवच्छा वच्छमित्ताय, वारिसेणा बलाहगा ॥ अट्ठ उड्ढलोगवत्थन्नाओ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- मेघंकरा मेघवती, सुमेधा मेघमालिनी । तोयधारा विचित्ता य, पुष्पमाला अणिदिता ॥ ८. तोहारा ( अ, ब ) । १. दिसाकुमारीणं मयहरियाणं ( क प ) ; दिसीकुमारीणं महायरिआणं (ख); दिसाकुमारीणं महरियाणं ( स ) । २. अभिओगे ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । ३. जं० ५। २८ । ४. एतत्सूत्रं 'अ, ब ' प्रत्योर्नैव दृश्यते । ५. आभिओगा (क, ख, श्रि, स ) । ६. 'हट्टतुटु' त्याद्येकदेशदर्शनेन ग्राह्यः (शावृ ) । ७. सं० पा० - उक्किट्ठाए जाव देवगईए । ८. जं० ३।१२ । ६. णमुत्थु ( प, स ) । सम्पूर्णालापको Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो ५२७ धारिए जगप्पईवदाईए' सव्वजगमंगलस्स चक्खुणो ‘य मुत्तस्स'२ सव्वजगजीववच्छलस्स हियकारग-मग्गदेसिय-पागड्डि-विभुपभुस्स जिणस्स णाणिस्स णायगस्स बुद्धस्स बोहगस्स सव्वलोगणाहस्स' णिम्म मस्स पवरकुलसमुब्भवस्स जाईए खत्तियस्स जंसि लोगुत्तमस्स" जणणी धण्णासि पुण्णासि" तं कयत्थासि, अम्हे णं देवाणुप्पिए ! अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ भगवओ तित्थगरस्स जम्मणमहिमं करिस्सामो", तण्णं तुब्भाहि ण भाइयव्वंतिकट्ठ उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णंति," समोहणित्ता संखिज्जाइं जोयणाई दंड णिसिरंति, तं जहा-- रयणाणं २ 'वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजणाणं अंजणपुलगाणं रययाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेंति, परिसाडेत्ता दोच्चंपि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोह णित्ता संवट्टगवाए विउव्वंति, विउव्वित्ता तेणं सिवेणं मउएणं मारुएणं अणुद्धएणं भूमितलविमलकरणेणं मणहरेणं सव्वोउयसुरभिकुसुमगंधाणुवासिएणं पिंडिमणीहारिमेणं गंधद्धरेणं तिरियं पवाइएणं भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणस्स सव्वओ समंता जोगणपरिमंडलं, से जहाणामए-कम्मगरदारए सिया'५ 'तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पायंके थिर रगहत्थे दढपाणि-पाय-पिट्ठतरोरु-परिणए घण-णिचिय-वट्टवलियखंधे चम्मेढग-दुघण-मुट्ठिय-समाहय-निचियगत्ते उरस्सबलसमण्णागए तलजमलजुयलबाहू लंघण-पवण-जइण-पमद्दणसमत्थे छेए दक्खे पत्तठे कुसले मेधावी णिउणसिप्पोवगए एगं महं दंडसंपुच्छणि वा सलागाहत्थगं वा वेणुसलाइयं वा गहाय रायंगणं वा रायंतेउरं वा आरामं वा उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा पवं वा अतुरियमचवलमसंभंतं निरंतरं सुनिउणं सव्वतो समंता संपमज्जेज्जा । एवामेव ताओ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ' जं तत्थ तणं वा पत्तं वा कळं वा कयवरं वा असुइमचोक्खं पूइयं दुन्भिगंधं तं सव्वं आहुणिय-आहुणिय एगंते एडेंति, एडेत्ता जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमायाए य अदूरसामंते 'आगाय १. जगप्पतीवदाइए (आवश्यकचूणि पृ० १३७)। ५. सकललोगणाहस्स (अ,ब)। अतः परं तत्र 'सव्वलोयणाहस्स सव्वजगमंग- ६. सव्वजगमंगलस्स णिम्ममस्स (अ,क,ख,त्रि,ब, लस्स सव्वजगजीववच्छलस्स' इत्यादि विशेष- स,पुव,हीव)। णानि सन्ति 'बोहगस्स' अनन्तरं चक्खुणो य ७. लोउत्तमस्स (अ,ख,ब); लोए उत्तमस्स (क) । मुत्तस्स' इति पाठो विद्यते । ८. संपुण्णासि (अ,ब)। २. अमुत्तस्स (ख); असुत्तस्स (त्रि); ‘सुत्तस्स' त्ति ६. कयत्थे (अ,ब, आवश्यकचूणि पृष्ठ १३७) । सूत्रमिव सूत्रं ज्ञानादिरत्नावलिनिबन्धहेतुत्वात् १०. करेस्सामो (ब)। तस्य यथा 'असुत्तस्स' त्ति अखण्डमिव विशेषणं ११. समोहणंति (प)। तत्र न सुप्तोऽसुप्तः सर्वत्रापि सदनुष्ठानेषु १२. सं० पा०-रयणाणं जावसंवगवाए। निद्रारहितो जागरूकोऽप्रमत्त इत्यर्थः (हीव)। १३. सव्वत्तुय° (ख)। ३. हियकरग (अ,क,ख,ब,स,पुलहीवृ)। १४. गंधुद्धएणं (प)। ४. वागिड्ढि (प,शावृ)। १५. सं० पा०-सिया जाव तहेव जं। Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ माणीओ परिगायमाणीओ" चिट्ठति ॥ ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं उड्डलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारी महत्तरियाओ स एहि -सएहि कूडेहि सए हिं-सएहिं भवणेहिं सए हिं-सएहिं पासायवडेंस एहि पत्तेयंपत्तेयं चउहिं सामाणियसाहस्सीहि एवं तं चैव पुव्ववण्णियं जाव' विहरति, तं जहावृत्तं- ७. तए णं तासि उड्डलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारी महत्तरियाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसणाई चलति, एवं तं चैव पुव्ववण्णियं भाणियव्वं" जाव' अम्हे णं देवाणुप्पिए ! उलोगवत्थब्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ भगवओ तित्थगरस्स जम्मणमहिम करिस्सामो, तुम्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता' "वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहरणंति, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंड निसिरंति, तं जहा -- रयणाणं जाव रिट्ठाणं अहाबाय रे पोग्गले परिसाडेंति, परिसाडेत्ता दोच्चं पि वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता अब्भवद्दलए विउव्वंति से जहाणामए - कम्मगरदारए सिया तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए एगं महं दगवारगं वा दगथालगं वा दगकलसगं वा दगकुंभगं वा गहाय आरामं वा उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा पवं वा अतुरियमचवलमसंभंत निरंतरं सुनिउणं सव्वतो समंता आवरिसेज्जा, एवामेव ताओ दिसाकुमारी महत्तरियाओ अब्भवद्दलए विउव्वंति, विउव्वित्ता खिप्पामेव पतणतणायंति, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव विज्जुयायंति, विज्जुयाइत्ता भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं णच्चोदगं णातिमट्टियं तं पविरलफुसिय मेरा मेहवई, सुमेहा मेहमालिणी । सुवच्छा वच्छमित्ताय, वारिसेणा बलाहगा ॥१॥ रेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदगं वासं वासंति, वासित्ता° तं हियरयं णट्टर भट्टर पसंतरयं उवसंतरयं करेंति, करेत्ता 'खिप्पामेव पच्चुवसमंति," "पच्चुवसमित्ता तच्चपि वेव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता पुप्फबद्दलए विउव्वंति से जहाणामए--- मालागारदारए सिया तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए एगं महं पुप्फछज्जियं वा पुप्फपडलगं वा पुष्पचंगेरियं वा गहाय रायंगणं वा रायंतेउरं वा आरामं वा उज्जाणं वा देवलं वा सभं वा पवं वा अतुरियमचवलमसंभंतं निरंतरं सुनिउणं सव्वतो समंता कयग्गहगहियकरयलप भट्ट - विप्पमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेज्जा, एवामेव ताओ दिसाकुमारी महत्तरियाओ पुष्पवद्दलए विउव्वंति, विउव्वित्ता खिप्पामेव पतणतणा १. आगयमाणीओ परियायमाणीओ ( अ ) ; आगय माणीओ ( ब ) । २. जं० ५।१ । ३. द्रष्टव्यं - प्रथमसूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. तं एवं चैव भाणियव्वं पुण्ववण्णियं (अ) ख, ब) । ५. जं० ५।२-५ । जंबुद्दीपण ६. सं० पा० - अवक्कमित्ता जाव अब्भवद्दलए विउव्वंति २ जाव तं हियरयं । ७. पणट्टर (क, ख, स ) 1 ८. X ( अ, क, ख, ब, स ) 1 ६. x (खस); सं० पा०--पच्चुवसमंति एवं पुप्फवद्दल गंसि पुष्पवासं वासंति, वासित्ता जाव कालागुरुपवर जाव सुरवराभिगमणजोग्गं । Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो ५२६ यंति, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव विज्जूयायंति, विज्जुयाइत्ता भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं जलयथलयभासुरप्पभूयस्स बेंटट्ठाइस्स दसद्धवण्णकुसुमस्स जण्णुस्सेहपमाणमेत्ति ओहिं वासं वासंति, वासित्ता कालागरु-पवरकुंदुरुक्कतुरुक्क-धूव-मघमघेतगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूतं दिव्वं° सुरवराभिगमणजोग्गं करेंति, करेत्ता जेणेव भयवं तित्थय रे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छंति, उवाच्छित्ता' 'भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमायाए य अदूरसामंते' आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ॥ ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं पुरत्थिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ट दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहि-सएहि कूडेहिं तहेव जाव' विहरंति, तं जहा----- वृत्तं णंदुत्तरा य णंदा, आणंदा णंदिवद्धणा। विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया ॥१॥ सेसं 'तं चेव" जाव' तुब्भाहिण भाइयव्वंतिकट्ट भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमायाए य पुरत्थिमेणं आदंसहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ॥ ____. तेणं कालेणं तेणं समएणं दाहिणरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ तहेव जाव विहरंति, तं जहा--- वृत्तं समाहारा सुप्पइण्णा', सुप्पबुद्धा जसोहरा। लच्छिमई सेसवई, चित्तगुत्ता वसुंधरा ॥१॥ तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकटु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य दाहिणणं भिंगारहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ॥ १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं पच्चत्थिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहि-सएहिं जाव विहरंति, तं जहा--- वृत्तं इलादेवी सुरादेवी, पुहवी पउमावई । एगणासा णवमिया 'भद्दा सीया" य अट्ठमा ॥१॥ तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिक? भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य पच्चत्थिमेणं तालियंटहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिटठंति ॥ ११. तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरिल्लरुयगवत्थव्वाओ जाव विहरंति, तं जहा १. सं० पा०---उवागच्छित्ता जाव आगायमा- णीओ। २. जं० २१। ३. तहेव (अ,क,त्रि,ब,पुवृ)। ४. जं० श२-५॥ ५. तुम्हेहिं (अ,ब); तुब्भेहिं (क,ख,स, आवश्यक__ चूणि पृष्ठ १३८)। ६. सुप्पदिण्णा (ब)। ७. सीता भद्दा (ठाणं ८९७) । ८. तालयंत° (अ,ब); तालवंत (त्रि) । Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३० वृत्तं अलंबुसा मिस्सकेसी, पुंडरीका' य वारुणी । हासा सव्वष्पभा चेव, 'सिरि हिरि” चेव उत्तरओ ॥१॥ तव जाव वंदित्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य उत्तरेणं चामरहत्थगयाओ आगयमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ॥ १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं विदिसिरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारी महतरियाओ जाव विहरंति, तं जहा- वृत्तं चित्ताय चित्तकणगा, सतेरा य सोदामिणी ॥ तहेव जाव ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य चउसु विदिसासु दीवियाहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ॥ जंबुद्दीपण्णत्ती १३. तेणं कालेणं तेणं समएणं मज्झिमरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारी महतरियाओ सहि-सएहि कूडेहिं तहेव जाव विहरंति, तं जहा- रूया रूयंसा' सुरूया रूयगावई । तहेव जाव तुभाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स चउरंगुलवज्जं णाभिणालं कप्पेंति, कप्पेत्ता वियरगं खणंति, खणित्ता वियरगे णाभि हिणंति, हिणित्ता' ' रयणाण य वइराण" य पूरेंति, पूरेत्ता हरियालियाए पेढं" बंधंति, बंधित्ता तिदिसिं तओ कयलीहरगे विउव्वंति । 'तए णं" तेसि कयलीहरगाणं बहुमज्झदेसभाए तओ चाउस्सालए विउव्वंति । तए णं तेसि चाउस्सालगाणं बहुमज्झदेसभाए तओ सीहासणे विउव्वंति । तेसि णं सीहासणाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, सव्वो वण्णगो भाणियव्वो ३ ॥ १४. तए णं ताओ रुयगमज्झवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारी महत्तरियाओ जेणेव भयवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता 'भगवं तित्थयरं करयलपुडे" गिण्हति तित्थयरमायरं च बाहाहिं ५ गिण्हंति, गिरिहत्ता जेणेव दाहिपिल्ले कयलीहरगे जेणेव चाउस्सालए जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवंतत्रं तित्थयरमायरं च सीहासणे णिसीयावेंति, णिसीयवेत्ता सयपाग - सहस्स १. पुंडरीगा (त्रि); पुंडरीया ( प ) ; पोंडरिंगी (STOT 5125) I २. हिरि सिरी ( अ, क, ख, ब, स ) । ९. हित्ता ( ब ) । १०. 'रत्नेश्च वज्रः' प्राकृतत्वाद् विभक्तिव्यत्ययः... ( शावृ ) । ३. चामरा' (ब) । ११. पीढं (क,ख,स) 1 ४. ओरा ( अ, ब ) ; साओरा ( ख ) ; सुतेआ १२ तयणंतरं ( ब ) । (त्रि ) । ५. आसिया ( प ) ; रूपासिका ( शावृ ) । ६. तुभेहि ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स ) । ७. नाभि ( अ, ब, आवश्यकचूर्णि पृ० १३९ ) । ८. विवरगं (त्रि) । १३. राय० सू० ३७-४० । १४. संपुडे ( प, शावृ ) । १५. भगवं तित्थगरं तित्थयरमायरं च बाहाहि (त्रि, ही वृ ) । Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो पागेहि तेल्लेहिं अब्भंगेति', अब्भंगेत्ता सुरभिणा गंधट्टएणं' उवऎति, उवठूत्ता भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं तित्थयरमायरं च बाहासु गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुरथिमिल्ले कयलीहरए जेणेव चाउस्सालए जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च सीहासणे णिसीयावेंति, णिसीयावेत्ता तिहि उदएहि मज्जावेंति, [तं जहा -गंधोदएणं पुप्फोदएणं सुद्धोदएणं ] मज्जावेत्ता सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करेत्ता भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं तित्थयरमायरं च बाहाहि गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव उत्तरिल्ले कयलीहरए जेणेव चाउस्सालए जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च सीहासणे णिसीयाविति, णिसीयावित्ता आभिओगे देवे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चुल्लहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ सरसाइ” गोसीसचदणकट्टाइ साहरह ।। १५. तए णं ते आभिओगा देवा ताहिं रुयगमज्झवत्थव्वाहिं चउहिं दिसाकुमारीमहत्तरियाहिं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुटूचित्तमाणंदिया जाव' विणएणं वयणं पडिच्छंति, पडिच्छित्ता खिप्पामेव चुल्लहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ सरसाइं गोसीसचंदणकट्ठाई साहरंति ॥ १६. तए णं ताओ मज्झिमरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सरगं करेंति, करेत्ता अरणि घडेंति, घडेत्ता सरएणं अरणि महिंति महित्ता अग्गि पाडेंति, पाडेत्ता अग्गि संधुक्खंति, संधुक्खित्ता गोसीसचंदणकट्ठे पक्खिवंति, पक्खिवित्ता अग्गि उज्जालंति, उज्जालित्ता 'समिहाकट्ठाई पक्खिवंति, पक्खिवित्ता" अग्गिहोम करेंति, करेत्ता भूतिकम्मं करेंति, करेत्ता रक्खापोट्टलियं बंधंति, बंधेत्ता णाणामणिरयणभत्तिचित्ते दुविहे पाहाणवट्टगे गहाय भगवओ तित्थय रस्स कण्णमूलंसि टिट्टियावेंति-भवउ भयवं पव्वयाउए । १७. तए णं ताओ रुयगमज्झवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ भयवं तित्थयरं करयलपुडेणं तित्थय रमायरं च बाहाहिं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तित्थयरमायरं सयणिज्जंसि णिसीयाति, णिसीयावेत्ता भयवं तित्थयरं माऊए" पासे ठवेंति, ठवेत्ता आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ॥ १८. तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के णामं देविदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे १. अभिगेंति (क,ख,त्रि); अब्भंगेंति (स)।। ७. मथिति (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। २. गंधवट्टएणं (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स, पुव शाव, , ८.४ (आवश्यकचणि पृ० १३८)। हीवृ); द्रष्टव्यम्-ठाणं ३१८७ । ६. 'पुट्टलियं (क,ख,स)। ३. पुडेहिं (अ,क,ख,त्रि,ब,स) अग्रेपि । १०. पट्टगे (अ,ब); पाहाणवट्टगोलए (त्रि,शाव, ४. कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । हीवृ)। ५. ४ (अ,क,ख,प,ब,स,पुत्,शावृ)। ११. माताए (अ,ब)। ६.० ३८॥ Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३२ जंबुद्दीवपण्णत्ती सयक्कऊ सहस्सवखे मघवं पागसासणे दाहिणलोगादिवई बत्तीस विमाणावास सयसहस्साहिवई एरावणवाहणे सुरिंदे अरयंबरवत्थधरे आलइयमालमउडे णवहेमचारुचित्तचंचलकुंडल विलिहिज्जमाणगल्ले भासुरबोंदी पलंबवणमाले महिड्डीए महज्जु ईए महाबले महायसे महाणुभागे महासोवखे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे समाए सुहम्माए सक्कंसि सीहासणंसि [णिसण्णे ?"] । १९. से णं तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तावत्तीसगाणं', चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, चउण्हं चउरासीणं आय रखखदेवसाहस्सीणं, अण्णेसिं च बहूणं सोहम्मकप्पवासीणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य आदेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्रित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर- सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयणट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं" दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ ॥ २०. तए णं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो आसणं चलइ॥ २१. तए णं से सक्के" 'देविंदे देवराया आसणं चलियं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंज इ, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता हट्टतुटुचिते" आणदिए णंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए धाराहयनीवसुरभिकुसुम चंचुमालइय-ऊसविय-रोमकूवे 'वियसियवरकमल-णयणवयणे'५ पयलियवरकडग-तुडियकेऊर-मउड-कुंडल-हारविरायंतवच्छे पालंबपलंबमाणघोलंतभूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं १. आवश्यकचणी अत्रैव पाठसक्षेपोस्ति--- पढंति' इत्युल्लेखपूर्वक पाठान्तरं लिखितं पागसासणे जाव अद्भुट्टाहिं अच्छराकोडीहिं दश्यते-'अण्णे पढंति अण्णेसिं च बहुणं देवाण सद्धि जाव विहरइ। य देवीण य आभिओगउववण्ण गाणं'। पूर्व २. अयरंबर' (क,ख,प,स) लिपिप्रमादाद् वर्णव्य- हीवृ' इति वृत्तिद्वयेपि इदं व्याख्यातमस्ति । त्ययो जात इति सम्भाव्यते । ६. दीसर (ब)। ३. गंडे (त्रि,प)। १०. °पडुपडहवाइयरवेणं (प)। ४. सर्वेष्वप्यादर्शवू 'सीहासणंसि' एतत्पर्यवसान ११.सं० पा०-सक्के जाव आसणं । एव पाठो लभ्यते, अर्थविचारणया नैव पर्याप्तो- १२. आवश्यकचूणों (पृष्ठ १४०) अत: पुरं एवं .. स्ति, क्रियापदं चापि नैव विद्यते । पज्जोसव- पाठसंक्षेपोस्ति-एवं जहा बद्धमाणस्सामिस्स णाकप्पे (८) अस्मिन्नेव प्रकरणे 'सीहासणंसि अवहारदारे जाव सन्निसन्ने जीयकप्पं सरति, निसणे' इति पाठो विद्यते अत्रापि तथैव सरित्ता तं गच्छामि। १३. धाराहयकयंबकुसुम (प)। ५. तावत्तीसाए (अ,ब)। १४. चंचुमालइयतणुए (भ० ११।१३४); चुचु६. तायत्तीसगाणं (क ख,त्रि,प,स) । ___ मालइयतणू (नाया० ११२०)। ७. चउरासीतीणं (ख); चउरासीए (त्रि,हीव)। १५. कमलाणणवयणे (अ,क,ख,ब); कमलावय८. अतः परं 'अ,क,ख,त्रि,ब' आदर्शेषु 'अण्णे णणयणे (त्रि); °कमलाणणणयणे (ही)। युज्यते। Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो सूरिंदे सीहासणाओ अब्भुट्टेइ, अब्भुठेत्ता 'पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता' वेरुलिय-वरिट्ठ-रिट्ठ-अंजण-णिउणोविय-मिसिमिसिंतमणिरयणमंडियाओ पाउयाओओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता अंजलि-मउलियग्गहत्थे तित्थयराभिमुहे सत्तट्ठ पयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता, वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणीतलंसि साहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि णिवेसेइ', णिवेसेत्ता ईसिं पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता कडग-तुडिय-थंभियाओ भुयाओ साहरइ, साहरित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-णमोत्थु णं अरहताणं भगवंताणं, आइगराणं तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं, पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पूरिसवरगधहत्थाण, लोगूत्तमाण लोगणाहाण लोगहियाण लोगपईवाण लोगपज्जोयगराण अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जोवदयाणं बोहिदयाणं', धम्मदयाणं धम्मदेसयाण धम्मणायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवठ्ठीणं, दीवो ताणं सरणं गई पइट्टा, अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं वियदृछउमाणं, जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं, सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावित्ति सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं"। णमोत्थ णं भगवओ तित्थगरस्स आइगरस्स जाव संपाविउकामस्स। वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे भयवं! तत्थगए इहगयंतिकटु वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ॥ २२. तए णं तस्स एक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो अयमेयारूवे" 'अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए' संकप्पे समुप्पज्जित्था-उप्पण्णे खलु भो ! जंबुद्दीवे दीवे भगवं तित्थयरे, तं जीयमेयं तीयपच्चप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविंदाणं देवराईणं तित्थयराणं जम्मणमहिमं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भगवओ" तित्थगरस्स जम्मणमहिमं करेमित्तिकटु एवं संपेहेइ, संपेहेता हरि-णेगमेसिं पायत्ताणीयाहिवइं देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सभाए सुहम्माए मेघोघरसियगंभीरमहुरयरसई" जोयण १. X (अ,क,ख,त्रि,ब,स, पुव, हीवृ)। २. णिहटु (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुत्,हीवृ) । ३. निवाडेइ (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुवृ,हीवृ) । ४.४ (अ,क,ब,स)। ५. णमुत्थु (क,प,स)। ६. अरिहंताणं (अ,त्रि) । ७. पुरिसुत्तमाणं (क,ख,त्रि,प,स)। ८. ४ (अ,ब)। ६. x (अ,ब)। १०. वत्ति (अ,क,ख,त्रि ) वत्तयं (ब)। ११. संपताणं णमो जिणाणं (क,ख,त्रि,हीव); संपत्ताणं णमो जिणाणं जियभयाणं (प,स, पूर्व); प्राचीनादर्शषु 'ठाणं संपत्ताणं' इति पर्यवसितः पाठो लभ्यते, भगवत्या (१७) मपि 'ठाणं संपाविउकामे' इत्येव पाठो विद्यते । १२. रायपसेणिइ (८) सुत्ते 'पासई' इति पदं स्वीकृतमस्ति । अर्थदृष्ट्या तत् समीचीनमस्ति, किन्तु प्रयुक्तादर्शेषु 'पासइ' इति पदं क्वापि नैव दृश्यते। १३. सं. पा.-अयमेयारूवे जाव संकप्पे। १४. भगवं (अ,ब)। १५. गंभीरतरमहुरतरसइं (अ क,ख,त्रि,ब,स,पु,) हीव); गंभीरतरमहुरसदं (आवश्यकचूणि पृ० १४०)। Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३४ बुद्दीपण्णत्ती परिमंडलं सुघोसं सूसरं घंटं तिक्खुत्तो उल्लाले माणे - उल्लाले माणे- महया - महया सद्देणं उग्घोसेमाणे - उग्घोसेमाणे एवं वयाहि आणवेइ णं भो ! सक्के देविंदे देवराया, गच्छइ जंबुद्दीवे दीवे भगवओ तित्थयरस्स जम्मणमहिमं करित्तए, तं तुब्भेवि णं देवाणुप्पिया ! णं भो ! सक्के देविंदे देवराया सव्विड्डीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्वसमुद एणं सव्वायरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभ्रमेणं सव्वणाडएहिं सव्वोरोहेहि सव्वपुप्फगंध मल्लालंकारविभूसाए सव्वदिव्व तुडियस सष्णिणाएणं महया इड्डीए जाव' दुंदुहिणिग्घोसनाइयरवेणं णिययपरियाल संपरिवुडा सयाई-सयाई जाणविमाणवाहणाई' दुरुढा' समाणा अकालपरिहीणं चेव सक्कस्स' 'देविंदस्स देवरण्णो' अंतियं पाउब्भवह || २३. तए णं हरि-गमेसी देवे पायत्ताणीयाहिवई सक्केणं देविदेणं देवरण्णा एवं वृत्ते समाणे तु चित्तमादिए जाव एवं देवोत्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुत्ता सक्क्स्स देविंदस्स देव रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए मेघोघरसियगंभीर महुरय रसद्दा " जोयणपरिमंडला सुघोसा घंटा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं मेघोघरसियगंभीर महुरयरसद्दं जोयणपरिमंडलं सुघोसं घंटं तिक्खुत्तो उल्लालेइ ॥ २४. तए णं तीसे मेघोघरसियगंभीरमहुरयरसद्दाए जोयणपरिमंडलाए सुघोसाए घंटा तिक्खुत्तो उल्लालियाए समाणीए सोहम्मे कप्पे अण्णेहि एगूणेहिं बत्तीसार विमाणावासस्यसहस्सेहि अण्णाई एगूणाई बत्तीसं घंटासयसहस्साइं जमगसमगं कणकणरवं काउं पयत्ताइं चावि हुत्था ॥ २५. तए णं सोहम्मे कप्पे पासायविमाणणिक्खुडावडियसद्द - घंटापडें सुयासयस हस्ससंकुले" जाए या होत्था ॥ २६. तए णं तेसिं सोहम्मकप्पवासीणं बहूणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य एगंतरइपसत्त- णिच्चप्पमत्त-विसयसुहमुच्छियाणं सूसरघंटारसियविउलबोलतुरियचवलपडिबोहणे " कए समाणे घोसणको ऊहलदिण्णकण्ण एगग्गचित्तउवउत्तमाणसाणं से पायताणीयाहिवई देवे तंसि घंटारवंसि णिसंत - पसंतंसि" समाणंसि तत्थ - तत्थ १. सव्वरोहेहिं ( अ, क ) ; सव्वाव रोहेहि (त्रि); सव्वा रोहेहि (ब) ; सव्वोवरोहेहिं (आवश्यक - चूर्णि पृ० १४० ) । २. जं० ३।१२ । ३. जाणाई वाहणविमाणाई ( अ, ब ) ; जाणवाहणविमाण ( क खत्रि, स, पुवृ, ही वृ, पृ० १४० ) । आवश्यकचूर्णि ४. द्रुढा ( अ, ब ) । ५. सं० पा० सक्क्स्स जाव अंतियं । ६. जं० ३।८ । ७. गंभीर महुरसद्दा ( अ, क, ख, त्रि, बस, पुवृ, ही वृ ) अग्रेपि एवमेव । ८. कणकणगरवं (त्रि ) ; कणकणारावं ( प ) । ६. निक्खुडपडियसद्द ( अ, ब ) । १०. डेंसुका (अब आवश्यकचूर्णि पृ० सुका (कख); डिस्सुया १४१ ) ; " (त्रि ) ; • सुया ( स ) । ११. ० बोलत रितु 'बोलतरिय (क,ख,स) । १२. पडिनिसंतंसि ( अ, ब, पुवृ) ; पडिसंतंसि (क, त्रि, स ही आवश्यकचूर्णि पृष्ठ १४१ ) ; रायपसेणइयसूत्रे (१५) पि निसंत - पसंतंसि' इति पाठो लम्यते । ( अ, ब ) ; Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो ५३५ तहि-तहिं देसे महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणे-उग्घोसेमाणे एवं वयासी--- हंदि ! सुणंतु भवंतो बहवे सोहम्मकप्पवासी वेमाणिया देवा य देवीओ य सोहम्मकप्पवइणो इणमो वयणं हियसुहत्थं--- आणवेइ णं भो ! सक्के •देविदे देवराया, गच्छइ णं भो ! सक्के देविंदे देवराया जंबुद्दीवे दीवे भगवओ तित्थयरस्स जम्मणमहिम करित्तए, तं तुब्भेवि णं देवाणुप्पिया ! सव्विड्डीए सव्व जुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं. सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वणाडएहिं सव्वोरोहेहि सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारविभूसाए सव्वदिव्वतुडियसहसण्णिणाएणं मया इड्डीए जाव दुंदुहिणिग्घोसणाइयरवेणं णिययपरियालसंपरिवुडा सयाई-सयाई जाणविमाणवाहणाई दुरुढा समाणा अकालपरिहीणं चेव सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियं पाउब्भवह ॥ २७. तए णं ते देवा य देवीओ य एयम8 सोच्चा हट्टतुट्ठ- चित्तमाणंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण° हियया अप्पेगइया वंदणवत्तियं एवं प्रयणवत्तियं सक्कारवत्तियं सम्माणवत्तियं दसणवत्तियं कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया सक्कस्स वयणमणुवत्तमाणा अप्पेगइया अण्णमण्णमणुवत्तमाणा अप्पेगइया जीयमेयं एवमाइत्तिक१ सव्विड्डीए जाव अकालपरिहीणं चेव सक्कस्स देविंदस्स देव रण्णो अंतियं पाउन्भवति ॥ २८. तए ण से सक्के देविदे देवराया ते वेमाणिए देवे य देवीओ य अकालपरिहीणं चेव अंतियं पाउब्भवमाणे पासइ, पासित्ता हतूटु-चित्तमाणं दिए पालयं णाम आभिओगियं देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ लीलट्ठियसालभंजियाकलियं ईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मगर-विहग-वालगकिण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्तं खंभुग्गयवइरवेइयापरिगयाभिराम विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्तंपिव अच्चीसहस्समालणीयं- रूवगसहस्सकलियं १.हंद (क,त्रि,हीव); हंत (ख,प,पुत्,शावृ)। त्ति अप्पेगइया जीयमेयं । औपपातिके (५२) २. सं० पा०.--सक्के तं चेव जाव अंतियं । पि एवमेव दृश्यते। ३. सुच्चा (क,ख,स)। ६. °मणुयत्तमाणा (अ,ब)अग्रपि एवमेव । ४. सं० पा०-हट्ठतुट्ठ जाव हियया । ७. जं० ५।२२। ५. कोउहल्ल° (अ,ख,त्रि,ब, आवश्यकचूणि ८. रायपसेण इयसुत्ते (१७) अतः पर सब्विड्डीए पृ० १४१); कोऊहल्ल° (क,स); रायपसेणिय- जाव अकालपरिहीणं' इति पाठो दृश्यते। सत्रे (१६) अन्यान्यपि कारणानि निर्दिष्टानि ६. पूर्णपाठार्थं द्रष्टव्यम्-- ज० ५।२७ । सन्ति । तत्प्रतिपादकः पाठः एवमस्ति– १०. आभिओग्गियं (अ,ख,ब)। 'कोऊहलवत्तियाए अप्पेगइया असुयाई ११. अब्भुग्गय (अ,क,ख,ब,स) । सुणिस्सामो, अप्पेगइया सुयाइं अट्ठाई हेऊइं १२. °मालिणीयं (अ,क,ख,त्रि,स); रायपसेणइयपसिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छिस्सामो, सुत्ते (१७) तथा नायाधम्मकहाओ (१८६) अपेगइया सूरियाभस्म देवस्म वयणमण यत्ते- मालणीयं' इति पाठो स्वीकृतोस्ति । माणा अप्पेगइया अण्णमण्णमणुवत्तेमाणा, १३. रूअग° (क); रूपग° (क,त्रि, आवश्यकअप्पेगइया जिणभत्तिरागेणं अप्पेगइया धम्मो चूणि पृष्ठ १४१) । Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ जंबुद्दीवपण्णत्ती भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं घंटावलिचलिय-महुरमणहरसरं 'सुहं कंतं दरिसणिज्ज'२ णिउणोविय-मिसिमिसेंत-मणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं जोयणसयसहस्सविच्छिण्णं पंचजोयणसयमुब्बिद्धं सिग्घ-तुरिय-जइण-णिव्वाहि दिव्वं जाणविमाणं विउव्वाहि, विउब्वित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ २६. तए णं से पालए देवे सक्केणं देविदेणं देवरण्णा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुट्ठ-चित्तमाणदिए जाव वेउव्वियसमग्घाएणं समोहणित्ता तहेव करेइ।।। ३०. तस्स णं दिव्वस्स जाणविमाणस्स तिदिसिं तओ तिसोवाणपडिरूवगा वण्णओ ॥ ३१. तेसि णं पडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं तोरणे', वण्णओ" जाव पडिरूवा ।। ३२. तस्स णं जाणविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे, से जहाणामएआलिंगपुक्खरेइ वा जाव' दीवियचम्मेइ वा अणेगसंकुकीलगसहस्सवितते आवड-पच्चावड-सेढि-प्पसेढि-सोत्थिय-सोवत्थिय-'पूसमाणव- बद्धमाणग'''- ‘मच्छंडग- मगरंडग- जारमार'१-फुल्लावलि-पउमपत्त-सागरतरंग-वसंतलय-पउमलयभत्तिचित्तेहिं सच्छाएहिं सप्पभेहि समरीइएहि सउज्जोएहिं णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं उवसोभिए। तेसि णं मणीणं वण्णे गंधे फासे य भाणियब्वे जहा५ रायप्पसेणइज्जे ॥ ३३. तस्स णं भूमिभागस्स मज्झदेसभाए पेच्छाघरमंडवे--अणेगखंभसयसण्णिविठे, वण्णओ जाव' पडिरूवे ॥ ३४. तस्स उल्लोए पउमलयभत्तिचित्ते जाव सव्वतवणिज्जमए जाव पडिरूवे ॥ १. वलिय (क,ख,त्रि); लिपिसादृश्यात् ११. अच्छदामा मोराकुंडा जारा मंडा(अ,ब); चकारस्थाने बकारो दृश्यते । अच्छदाम माराअंडा जारा मंडा (क); २. सुभकंतदरिसणिज्ज (अ,ख,त्रि,ब,आवश्यकचूणि अच्छंदाम मोरा अंडा जारामारा (ख); पृष्ठ १४१) । मच्छंडग मकरंडा जारामारा (त्रि); मच्छंडा ३. जेव्वाहिं (क,त्रि,ब,स)। मकरंडा जारामारा (स); मच्छग सुसुमार ४. राय० सू० १८ । अंडग जरामंडा (आवश्यकचूणि पृ० १४२) । ५. राय० सू०१६। १२. पउमपत्तवर (त्रि,स)। ६. तोरणा (प)। १३. वसंतलता (अ,ख,ब); वासंतलता (त्रि)। ७. राय० सू० २०-२३ । १४. समिरीएहि (अ,ब,स,पुर्व, आवश्यकचूणि.. ८. राय० सू० २४ । पृ० १४२); सस्सिरीएहि (क,ख)। ६. पडिसेढि (अ,क,ख,ब आवश्यकचूणि पृष्ठ १५. राय० सू० २४-३१ । १४२); X (प)। १६. बहुमज्झ° (त्रि,पुवृ)। १०. वद्धमाणा पूसमाणा (अ,क,ख,ब); पुसमाणग १७. राय० सू० ३२ । वद्धमाणग (त्रि); वद्धमाण पूसमाणव (प) १८. अतःपूर्व 'रायपसेणिज्जे (३३) प्रेक्षागृहमण्डवद्धमाण पूसमाण (स, आवश्यकचूणि पृ० पस्य भूमिभागसूत्रं विद्यते। १४२); द्रष्टव्यम् राय० सु०२४ । १६. जी ३१२०६। Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो ५३७ ३५. तस्स' णं मंडवस्स बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स मज्झदेसभागंसि' महेगा' मणिपेढिया-अट्ट जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई, वण्णओ' ॥ ३६. तीए उवरि महेगे सीहासणे, वण्णओ ।। ३७. तस्सुवरि महेगे विजयदूसे सव्वरयणामए, वण्णओ ॥ ३८. तस्स मज्झदेसभाए एगे वइरामए अंकुसे, एत्थ णं महेगे कुंभिक्के मुत्तादामे । से णं अण्णेहिं तदद्धच्चत्तप्पमाणमित्तेहिं चउहि अद्धकुंभिक्केहि मुत्तादामेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा सुवण्णपयरगमंडिया णाणामणिरयणविविहहारद्धहारउवसोभियसमुदया ईसिं अण्णमण्णमसंपत्ता पुव्वाइएहिं वाएहिं मंद-मंदं एज्जमाणा"-एज्जमाणा" 'पलबमाणा-पलंबमाणा पझंझमाणा-पझंझमाणा उरालेणं मणुण्णेणं मणहरेणं कण्ण-मण निव्वुइकरेणं सद्देणं ते पएसे 'सव्वओ समंता'१२ आपूरेभाणाआपूरेमाणा' सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ ___३६. तस्स णं सीहासणस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरस्थिमेणं, एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरणो चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं, चउरासीइं भद्दासणसाहस्सीओ, पुरथिमेणं अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं, एवं दाहिणपुरत्थिमेणं अभितरपरिसाए दुवालसण्हं देवसाहस्सीणं, दाहिणणं मज्झिमपरिसाए चउदसण्हं देवसाहस्सीणं, दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरपरिसाए सोलसण्हं देवसाहस्सीणं, पच्चत्थिमेणं सत्तण्हं अणियाहिवईणं । ४०. तए णं तस्स सीहासणस्स चउद्दिसिं चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, एवमाइ विभासियव्वं सूरियाभगमेणं जाव पच्चप्पिणति ६ ॥ ४१. तए णं से सक्के 'देविंदे देवराया हदुतुट्ठ-चित्तमाणदिए जाव हरिसवसविसप्पमाणहियए'७ दिव्वं जिणिदाभिगमणजोगं सव्वालंकारविभूसियं उत्तरवेउव्वियं रूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता अट्टहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहि णट्टाणीएणं गंधव्वाणीएण य १. अतः पूर्व रायपसेणिज्जे (३५) अक्षपाटक- ६. ईसि णं (अ,ब) सूत्रं विद्यते। शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ एतद्विषये १०. एइज्जमाणा (अ,त्रि,प,स); एइज्जमाणे एका टिप्पणी कृतास्ति-अत्र च राजप्रश्नीये (क,ख); इज्जमाणा (ब) । सूर्याभयानविमानवर्णकेऽक्षपाटकसूत्रं दृश्यते, ११. सं० पा०-एज्जमाणा जाव निव्वइकरेणं । परं बहुष्वेतत्सूत्रादर्शषु अदष्टत्वान्न १२. x (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स); रायपसेणिज्जे लिखितम्। (४०) पि 'सव्वओ समता' इति पाठो २. बहुमज्झ° (त्रि,पुवृ)। दृश्यते। ३. महं एगा (प)। १३. सं० पा०-आपूरेमाणा जाव अतीव । ४. राय० सू० ३६। १४. मज्झिमाए (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स) । ५. महं एगे (प)। १५. राय० सू० ४४४६ । ६. राय० सू० ३७ । १६. पच्चप्पिणंति (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स) । ७. महं एगे (प) अग्रेपि एवमेव । १७. जाव हदहितए (अब,); जाव हट्ठहियए ८. राय० सू० ३८ । (क,ख त्रि,प,स आवश्यकचूणि पृ० १४३)। Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती सद्धि तं विमाणं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे----अणुप्पयाहिणीकरेमाणे पुब्बिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं' दुरुहइ, दुरुहित्ता' जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ॥ ४२. एवं चेव सामाणियावि उत्तरेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वण्णत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति । अवसेसा देवा य देवीओ य दाहिणिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहित्ता •पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वण्णत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति ॥ ४३. तए णं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो तंसि [दिव्वंसि जाणविमाणंसि ?] दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठट्ठमंगलगा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया" । तयणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगारं दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा य दंसणरइयआलोयदरिसणिज्जा वाउद्धयविजयवेजयंती य समूसिया गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्टिया। तयणंतरं छत्तभिंगारं । तयणंतरं च णं वइरामयवट्टलट्ठसंठियसुसिलिट्ठपरिघट्टमट्ठसुपइट्टिए" विसिठे अणेगवरपंचवण्णकुडभीसहस्सपरिमंडियाभिरामे वाउद्धयविजयवेजयंतीपडागाछत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गयणतलमणुलिहंतसिहरे जोयणसहस्समूसिए महइमहालए महिदज्झए पूरओ अहाणपुव्वीए संपट्टिए। तयणंतरं च णं सरूवणेवत्थपरियच्छिया सुसज्जा सव्वालंकारविभूसिया पंच अणिया पंच अणियाहिवइणो पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्टिया। तयणंतरं च णं बहवे आभिओगिया देवा य देवीओ य सएहि-सएहिं रूवेहि 'सएहिसएहि विहवेहिं सएहि-सएहिं वत्थेहि सएहि-सएहि णिओगेहिं सक्कं देविदं देवराय पुरओ य मग्गओ य पासओ य अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया। तयणंतरं च णं बहवे सोहम्मकप्पवासी देवा य देवीओ य सव्विड्डीए जाव दुरुढा समाणा पुरओ य मग्गओ य पासओ य अहाणुपुवीए संपट्ठिया ॥ ४४. तए णं से सक्के देविदे देवराया तेणं पंचाणियपरिक्खित्तेणं जाव'६ महिंदज्झएणं १. तिसोमाणेणं (अ,क,ख,ब,स); तिसोवाणेणं पूर्णपाठावलोकनार्थ द्रष्टव्यं ..औपपातिकस्य (त्रि,प,); रायपसेणिज्जे (४७) पि 'तिसो ६४सूत्रम् । मानपडिरूवएणं' इति पाठो दृश्यते । अग्रेपि। ११. वइरामयवट्टलट्ठियसंठिय° (अ,क,ख,त्रि,ब,स, २. द्रुहइ (अ,ब)। पुवृपा)। ३. सं०पा०.--दुरुहित्ता जाव सीहासणंसि । १२. गगणतलमभिकंखमाणसिहरे (अ,क,ख,त्रि,ब, ४. णिसण्णे (अ,ब)। स,पुवृपा)। ५. तए णं एवं (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुवृ हीवृ)। १३. सरुवणेवत्थहत्यपरि (अ,ब); सरुवणेवत्थ ६. द्रुहिता (अ,ब) अग्रेपि। हत्थपरि° (क,ख,स); सुरूवणेवत्थहत्थपरि° ७. अवसेसा य (अ,क,ख,त्रि ब,स) । (त्रि,पुवृ); सुरूवणेवत्यपरि (पुवृपा)। ८. सं० पा०-दुरुहित्ता तहेव जाव णिसीयंति। १४. सव्वालंकारभूरिया (अ,ब); क्वचित् महया ६. इदं सूत्रं सङ्क्षिप्तमतो राजप्रश्नीयानुसारेण भडचडगरपड़करेणं (पुर्व)। (४६) किञ्चित्सविस्तरं व्याख्यायते (पुत्र)। १५. सं० पा०--रूवेहिं जाव णिओगेहि। १०. अस्मिन् प्रकरणे पाठसंडे क्षपो विद्यते । १६. राय० सू० ५६ । Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो पुरओ पकड्डिज्जमाणेणं चउरासीए सामाणियसाहस्सीहिं जाव' परिवुडे सव्विड्डीए जाव' णाइयरवेणं सोहम्मस्स कप्पस्स मज्झमझेणं तं दिव्वं देविडि' 'दिव्वं देवजुर्ति दिव्वं देवाणुभाव उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे जेणेव सोहम्मस्स कप्पस्स उत्तरिल्ले निज्जाणमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जोयणसयसाहस्सिएहिं विग्गहेहिं ओवयमाणे वीतिवयमाणे ताए उक्किट्ठाए' 'तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्ध्याए दिव्वाए' ... देवगईए कीईचयमाणे-वीईवयमाणे तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झमज्झेणं जेणेव णंदीसरवरे दीवे जेणेव दाहिणपुरथिमिल्ले रइकरगपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दिव्वं देविड्डि' दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभावं° दिव्वं जाणविमाणं पडिसाहरेमाणे-पडिसाहरेमाणे •पडिसंखेवेमाणे-पडिसंखेवेमाणे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणणगरे, जेणेव भगवओ तित्थगरस्स जम्मणभवणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवओ तित्थगरस्स जम्मणभवणं तेणं दिव्वेणं जाणविमाणेणं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता भगवओ तित्थय रस्स जम्मणभवणस्स उत्तरपुरथिमे दिसीभागे चउरंगुलमसंपत्तं धरणियले" तं दिव्वं जाणविमाणं ठवेइ, ठवेत्ता अट्टहिं अग्गमहिसीहिं दोहि अणीएहिगंधव्वाणीएण य णट्टाणीएण य सद्धि ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ पुरथिमिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ१॥ ४५. तए णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो चउरासीइं१२ सामाणियसाहस्सीओ ताओ दिवाओ जाणविमाणाओ उत्तरिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति । अवसेसा देवा य देवीओ य ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ दाहिणिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति ॥ ४६. तए णं से सक्के देविंदे देवराया चउरासीए सामाणियसाहस्सीहिं जाव" सद्धिं संपरिवडे सव्विड्डीए जाव" दुंदुहिणिग्घोसणाइयरवेणं जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए चेव पणामं करेइ, करेत्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता करयल'५ •परिग्गहियं १. राय सू० ५६ । पाठस्य अर्थस्य च सूचकः। केनापि कारणेन २. जं० ३।२२ । पाठविपर्यासो जातः इति सम्भाव्यते । ३. सं० पा० -- देविदि जाव उवदंसेमाणे। ७. सं० पा०--देविड्ढेि जाव दिव्वं । ४. विग्गहेहिं उवग्गहेहिं (ख,ब) । ८. परिसाहरमाणे (अ,ब); पडिसाहरमाणे (क,स)। ५. सं० पा० --उक्किट्ठाए जाव देवगईए। ६. सं० पा० ....पडिताहरेमाणे जाव जेणेव । ६. उवागच्छित्ता एवं जच्चेव सूरियाभस्स वत्तव्वया १०. धरणितलं (अ,ब); धरणिअलं (क,ख,स) । वर सक्काहिगारो वतब्बो जाव (अ,क,ख, ११. पच्चोरुभइ (अ.ब) अग्रेपि। त्रि.प.ब.स.पूर्व शाव,हीव); एष पाठान्तररूपेण १२. चउरासिं (अ,ब); चउरासीइ (क.प): निदिष्ठः पाठः आवश्यकचूणौँ नास्ति, चउरासीए (ख); चउरासी (स)। रायपसेणिज्जे (५६)पि 'उवागच्छित्ता' इति १३. जं० २१०। पदानन्तरं तं दिवं देविडूि' इति पाठो १४. जं० ३।१२। विद्यते । एष अन्तरवर्तिपाठो नास्ति कस्यापि १५. सं० पा०--करयल जाव एवं। Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४० जंबुद्दीवपण्णत्ती सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट° एवं वयासी.णमोत्थु ते रयणकुच्छिधारिए' 'जगप्पईवदाइए सव्व जगमंगलस्स चक्खुणो य मुत्तस्स सव्व जगजीववच्छलस्स हियकारग-मग्गदेसिय-पागड्डि-विभुपभुस्स जिणस्स णाणिस्स णायगस्स बुद्धस्स बोहगस्स सव्वलोगणाहस्स णिम्ममस्स पवरकुलसमुब्भवस्स जाईए खत्तियस्स जंसि लोगुत्तमस्स, जणणी° धण्णासि पुण्णासि तं कयत्थासि, अहण्णं देवाणुप्पिए ! सक्के णाम देविदे देवराया भगवओ तित्थयरस्स जम्मणमहिमं करिस्सामि, तणं' तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्ठ ओसोवणि दलयइ, दलइत्ता तित्थयरपडिरूवगं विउव्वइ, विउवित्ता तित्थयरमाउयाए पासे ठवेइ, ठवेत्ता पंच सक्के विउव्वइ, विउव्वित्ता एगे सक्के भगवं तित्थयरं करयलपूडेणं गिण्हइ, एगे सक्के पिट्रओ आयवत्तं धरेइ, दुवे सक्का उभओ पासि चामरुक्खेवं करेंति, एगे सक्के पुरओ वज्जपाणी पगड्ढइ॥ ४७. तए णं से सक्के देविदे देवराया अण्णेहिं बहूहिं भवणवइ-वाणमंतर-जोइसवेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धि संपरिवुडे सव्विड्डीए जावई दुंदुहिणिग्घोसणाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए 'तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्ध्याए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव मंदरे पव्वए जेणेव पंडगवणे जेणेव अभिसेयसिला जेणेव अभिसेयसीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ॥ ४८. तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविंदे देवराया सूलपाणी वसभवाहणे सुरिंदे उत्तरड्डुलोगाहिवई अट्ठावीसविमाणावाससयसहस्साहिवई अरयंबरवत्थधरे, एवं जहाँ सक्के, इमं णाणत्तं महाघोसा घंटा, लहुपरक्कमो पायत्ताणियाहिवई", पुप्फओ विमाणकारी, दक्षिणा निज्जाणभूमी, उत्तरपुरथिमिल्लो रइकरगपव्वओ, मंदरे समोसरिओ जाव" पज्जुवासइ ॥ ४६. एवं अवसिट्ठावि इंदा भाणियव्वा जाव२ अच्चुओ, इमं णाणत्तं-- १. सं० पा०-रयणकुच्छिधारिए एवं जहा दिसाकुमारीओ जाव धण्णासि । २. तेण (त्रि, हीवृ)। ३. अवहो (अ,ब)। ४. पवट्टति (त्रि,ही,पुवृपा)। ५. जोइसिय (त्रि)। ६. जं० ३।१२। ७. सं० पाo-उक्किट्टाए जाव वीईवयमाणे। ८. विमाणवास (क,ख,त्रि,प,ब) । ६. जं० ५॥१८-४६ । १०. पादत्ताणीया (ब)। ११. अस्य 'जाव' पदस्य पूर्तिवृत्तित्रयेपि भिन्न-भिन्न प्रकारेण कृतास्ति-यावत्करणात् जेणेव भगवं तित्थयरे तेणेव उवागच्छइ, भगवं तित्थयरं आयाहिण-पयाहिणं करेत्ति २ ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता २ तिविहाए पज्जुवा सणाए पज्जुवासइ (पुवृ); यावत्पदात् भगवंतं तित्ययरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता .. णच्चासणे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे इति पर्युपास्ते (शावृ); यावत्करणात जेणेव भगवं तित्थगरे तेणेव उवागच्छति २ त्ता भगवं तित्थगरं आयाहिण -पयाहिणं करेइ इत्यादि द्रष्टव्यम (ही); जं०५५८ । १२. ठाणं १०११४६ । Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो ५४१ गाहा- चउरासीइ असीई, बावत्तरि सत्तरी य सट्ठी य । पण्णा चत्तालीसा, तीसा वीसा दस सहस्सा ॥१॥ एए सामाणिया णं बत्तीसट्ठावीसा बारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा। प्रण्मा चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥२॥ आणयपाणयकप्पे, चत्तारि सयारणच्चुए तिण्णि । एए विमाणा णं । इमे जाणविमाणकारी देवा, तं जहा पालय पुप्फय सोमणसे सिरिवच्छे य' णंदियावत्ते । कामगमे पीइगमे', मणोरमे विमल सव्वओभद्दे ॥३॥ सोहम्मगाणं सणकुमारगाणं बंभलोयगाणं महासुक्कगाणं पाणयगाणं' इंदाणं सुघोसा घंटा, हरि-णेगमेसी पायत्तणीयाहिवई, उत्तरिल्ला णिज्जाणभूमी, दाहिणपुरथिमिल्ले रइकरगपव्वए। ईसाणगाणं माहिंद-लंतग-सहस्सार-अच्चुयगाण य इंदाणं महाघोसा घं लहुपरक्कमो पायत्ताणीयाहिबई, दक्खिणिल्ले णिज्जाणमग्गे, 'उत्तरपुरथिमिल्ले रइकरगपव्वए", परिसाओ णं जहा जीवाभिगमे, आयरक्खा सामाणियचउग्गुणा सव्वेसि, जाणविमाणा सव्वेसि जोयणसयसहस्सविच्छिण्णा, उच्चत्तेणं सविमाणप्पमाणा, महिंदज्झया सव्वेसि जोयणसाहस्सिया, सक्कवज्जा मंदरे समोसरंति जाव पज्जुवासंति ॥ ५०. तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सीहि तायत्तीसाए तावत्तीसेहि, चउहि लोगपालेहि, पंचहि अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अणिएहि, सत्तहिं अणियाहिवईहिं, चरहिं चउसठ्ठीहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अण्णेहि य जहा सक्के, णवरं- इमं णाणत्तं-दूमो पायत्तणीयाहिवई, ओघस्सरा घंटा, विमाणं पण्णासं जोयणसहस्साइं, महिंदज्झओ पंचजोयणसयाई, विमाणकारी आभिओगिओ देवो, अवसिट्ठ तं चेव जाव मंदरे समोसरइ पज्जुवासइ । ५१. तेणं कालेणं तेणं समएणं बली असुरिंदे असुरराया एवमेव णवरं-सट्ठी सामाणियसाहस्सीओ, चउगुणा आयरक्खा, महादुमो पायत्ताणीयाहिवई, महाओहस्सरा १. णं इति वाक्यालंकारे (ही)। समोतरंति (आवश्यकचूणि पृ० १४५)। २. 'णं' इति प्राग्वत् (ही)। १०. जं० २५८ । ३. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । ११. सामाणियसाहस्सीहिं' इत्यादिपदेसु षष्ठी४. कामकमे (अ,ब)। विभक्तेर्बहुवचनमपेक्षितमस्ति, यथा शक्र५. स्थानाङ्गे (८१०३,१०।१५०) 'पीतिमणे' इति प्रकरणे (२१६) 'सामाणियसाहस्सीणं' पाठो दृश्यते। इत्यादि पदानि दृश्यन्ते, अन्यथा 'जहा सक्के' ६. आणयगाणं (अ,ब)। इति समर्पणस्य सार्थकता न स्यात् । तृतीयान्त ७. पुरथिमिल्लो रइकरपव्वओ (अ,क,त्रि,ब)। पदानि घण्टावादनानन्तरं प्रयाणसमये ८. जी० ३।१०४०-१०५५।। निर्दिष्टानि सन्ति, द्रष्टव्यं ५।४६ सूत्रम् । ६. समो यरंति (क); समोअरंति (ख,प); १२. जं० ५।१६-४६ । Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ जंबुद्दीवपण्णत्ती घंटा, सेसं तं चेव', परिसाओ जहा जीवाभिगमे ।। ५२. तेणं कालेणं तेण समएणं धरणे तहेव, णाणत्तं-छ सामाणियसाहस्सीओ, छ अग्गमहिसीओ, चउग्गुणा आयरवखा, मेघस्सरा घंटा, भद्दसेणो पायत्ताणीयाहिवई, विमाणं पणवीसं जोयणसहस्साई, महिंदज्झओ अड्डाइज्जाई जोयणसयाइं, एवमसुरिंदवज्जियाणं भवणवासिइंदाणं, णवरं --असुराणं ओघस्सरा घंटा, णागाणं मेघस्सरा, सुवण्णाणं हंसस्सरा, विज्जूणं कोंचस्सरा, अग्गीणं मंजुस्सरा, दिसाणं मंजुघोसा, उदहीणं सुस्सरा, दीवाणं महुरस्सरा, वाऊणं णंदिस्सरा, थणियाणं णंदिघोसा। गाहा- चउसट्ठी सट्ठी खलु, छच्च सहस्सा उ असुरवज्जाणं । सामाणिया उ एए,चउग्गुणा आयरक्खा उ ॥१॥ दाहिणिल्लाणं पायत्ताणीयाहिवई भद्दसेणो, उत्तरिल्लाणं दक्खो ॥ ५३. वाणमंतरजोइसिया णेयव्वा, एवं चेव णवरं--चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ, चत्तारि अग्गमहिसीओ, सोलस आयरक्खसहस्सा, विमाणा सहस्सं, महिंदज्झया पणवीसं जोयणसयं, घंटा दाहिणाणं मंजुस्सरा, उत्तराणं मंजुघोसा, पायत्ताणीयाहिवई विमाणकारी य आभिओगा देवा, जोइसियाणं सुस्सरा सुस्सरणिग्घोसा' घंटाओ, मंदरे समोसरणं जाव पज्जुवासंति ॥ ५४. तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया महं देवाहिवे आभिओग्गे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! महत्थं महग्धं महरिहं विउलं तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह ॥ ५५. तए णं ते आभिओग्गा देवा हट्टतुटु-चित्तमाणं दिया जाव पडिसुणित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं जाव समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवण्णियकलसाण, एवं रुप्पमयाण मणिमयाण सूवण्णरुप्पमयाण सूवण्णमणिमयाण रुप्पमणिमयाणं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं अट्ठसहस्सं भोमेज्जाणं, अट्ठसहस्सं वंदणकलसाणं, एवं भिंगाराणं आयंसाणं थालाणं पातीणं सुपइट्ठाणं' चित्ताणं रयणकरंडगाणं वायकरगाणं पुप्फचंगेरीणं जहा सूरियाभस्स सव्वचंगेरीओ सव्वपडलगाइं विसेसियतराई भाणियव्वाइं विउव्वंति, विउव्वित्ता सीहासण-छत्त-चामर-तेल्लसमग्गा जाव सरिसवसमग्गा तालियंटा जाव अट्ठसहस्सं कडुच्छयाणं विउव्वंति, विउव्वित्ता साहाविए वेउव्विए य कलसे जाव कडुच्छुए य गिण्हित्ता जेणेव खीरोदए समुद्दे तेणेव आगम्म खीरोदगं गिण्हंति, जाई तत्थ उप्पलाइं पउमाइं जाव सहस्सपत्ताइं ताइं गिण्हंति, एवं पुक्खरोदाओ जाव .. १. जं० १५० । ८. जं० ५।५। २. जी० ३।२३५-२५० । ६. पादीणं (अ, ब); पाईणं (क, ख, प, स)। ३.णिग्घोसाओ (प)। १०. सुपइट्ठगाणं (प) । ४. महिंदे (क.ख,स,पुवृ); महं (पुवृपा)। ११.४ (अ,क,ख,त्रि,ब,स आवश्यकचूणि पृ० १४७) ५. आभिओगे (क,ख,प,स); आभिओगिए (त्रि)। १२. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स, आवश्यकचूणि पृ० १४७)। ६. जं० ३।८। १३. राय० सू० २७६ । ७. पइसुणेत्ता (अ,ब)। Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो ५४३ भररवयाणं मागहाइतित्थाणं उदगं मट्टियं च गिण्हति एवं गंगाईणं महाणईणं जाव चुल्ल हिमवताओ सव्वतुवरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले जाव सव्वोसहीओ सिद्धत्थए य गिण्हंति, गिव्हित्ता, पउमद्दहाओ दहोदगं उप्पलाईणि य, एवं सव्वकुलपव्वसु वट्टवेयड्ढे सव्वमहद्दहेसु सव्ववासेसु सव्वचक्कवट्टिविजएसु वक्खारपव्वसु अंतरणईसु विभासिज्जा जाव उत्तरकुरुसु जाव सुदंसणभद्दसालवणे सव्वतुवरे जाव सिद्धत्थए य गिण्हंति, एवं दवेणाओं सव्वतुवरे जाव सिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं दिव्वं च सुमणदामं गेहंति, एवं सोमणसपंडगवणाओ य सव्वतुवरे जाव सुमणदामं दद्दरमलयसुगंधे य गिव्हंति, fifeत्ता गओ मिलायंति' मिलाइत्ता जेणेव सामी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं महत्थं जाव तित्थयराभिसेयं उवट्टवेंति । ५६. तए णं से अच्चुए देविदे देवराया दसहिं सामाणियसाहस्सीहिं, तायत्तीसाए तावत्ती एहि चह लोगपालेहि तिहि परिसाहि सत्तहिं अणिएहि, सत्तहिं अणियाहिवईहिं चत्तालीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीहिं सद्धि संपरिवुडे' तेहि साभाविएहि वे उब्विएहि य वरकमलपइट्ठाणेहिं सुरभिवरवारिपडिपुण्णेहिं चंदणकयचच्चा एहि आविद्धकंठेगुणेहिं पउप्पल पिहाणेहिं करयलसूमालपरिग्गहिएहि अट्टसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं जाव सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहि सव्वतुवरेहिं जाव सव्वोसहिसिद्धत्थ एहिं सव्विड्डीए जाव दुंदुहिणिग्घोसनाइयरवेणं महया - महया तित्थयराभिसेणं अभिसिंचइ* ॥ ५७. तए णं सामिस्स महया - महया अभिसेयंसि वट्टमाणंसि इंदाइया देवा छत्तचामरकलसधूवकडुच्छुयपुप्फगंध जाव' हत्थगया हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव' वज्जसूलपाणी पुरओ चिट्ठति पंजलिउडा, एवं विजयाणुसारेण जाव" अप्पेगइया देवा आसिय-संमज्जिवलित्तं सित्तसुइसम्मट्ठरत्थंतरावणवीहियं करेंति जाव गंधवट्टिभूयं अप्पेगइया हिरण्णवासं वासंति, एवं सुवण्ण रयण - वइर आभरण - पत्त- पुप्फ-फल- बीय- मल्ल-गंध-वण्ण जाव चुण्णवासं वासंति, अप्पेगइया हिरण्णविहिं भाएंति, एवं जाव चुण्णविहिं भाएंति अप्पेगइया चउन्विहं वज्जं वाएंति, तं जहा - ततं विततं घणं झुसिरं, " अप्पेगइया चउब्विहं गेयं गायंति, तं जहा -- उक्खित्तं पयत्तं मंदं" रोइंदगं" अप्पेगइया चउव्विहं णट्टं णच्चंति, तं जहा - अंचियं दुयं १. मिलति ( प ) । २. संपरिवुडे जाव ( अ, क, ख, त्रि,ब, स, आवश्यक चूर्णि पृ० १४८ ) । ३. सुकुमाल (क, ख, त्रि, प, स ) । ४. अभिसिचंति (अ, क, ख, त्रि, प, बस, ही वृ); एकवचनकर्तकत्वेन एकवचनान्तमेव क्रियापदं युज्यते तथापि लिपिमादात् आदर्शेषु तद् बहुवचनान्तं जातम् । ५. जं० ५५५; ३।१०,११ । ६. जं० ५।२७ । ७. जी० ३।४४७ ॥ ८. सुसिरं ( अ, ब ) । ६. पायत्तं ( प ) ; पत्तए ( ठा० ४।६३४ ) ; पायं तं ( राय० सू० ११५ ) ; पायंतायं ( राय० सू० २८१) । १०. मंदायं ( प, पुवृपा, राय० सू० ११५,२८१, जी० ३।४४७) । ११. रोगं ( कस, शावृपा ); रोइदअंगं (ख); रोइयावसानं (त्रिप, पुवृ, राय० सू० ११५,२८१ जी० ३।४४७) । Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती आरभडं भसोलं, अप्पेगइया च उविहं अभिणयं अभिणेति, तं जहा-दिलैंतियं पाडियंतियं' सामण्णओविणिवाइयं लोगमज्झावसाणियं', अप्पेगइया बत्तीस इविहं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगइया उप्पयनिवयं निवय उप्पयं संकुचियपसारियं जाव भंतसंभंतं णाम दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति, 'अप्पेगइया पीणेंति, एवं बुक्कारेंति' तंडवेंति लासेंति" अप्फोडेंति वग्गंति सीहणायं णदंति, अप्पेगडया सव्वाई करेंति, अप्पेगइया हयहेसियं", एवं हत्थिगुलगुलाइयं रहघणघणाइयं, अप्पेगइया तिण्णिवि, अप्पेगइया उच्छोलेंति", अप्पेगइया पच्छोलेंति,", अप्पेगइया तिवई छिदंति, 'अप्पेगइया तिण्णिवि.२, अप्पेगइया पायदद्दरयं करेंति, अप्पेगइया भूमिचवेडं दलयंति, अप्पेगइया महया-महया सद्देणं रावेंति, एवं संजोगा विभासियव्वा, अप्पेगइया हक्कारेंति, एवं पुक्कारेंति४ थक्कारेंति५ ओवयंति उप्पयंति परिवयंति, जलंति तवंति पतवंति" गज्जति विज्जुयायंति" वासंति, अप्पेगइया देवुक्कलियं करेंति, एवं देवकहकहगं करेंति, अप्पेगइया दुहदुहगं करेंति, अप्पेगइया विकियभूयाई रूवाई विउव्वित्ता पणच्चंति, एवमाइ विभासेज्जा जहा विजयस्स जाव सव्वओ समंता आधावेंति परिधावेंति ॥ ५८. तए णं से अच्चइंदे सपरिवारे सामि तेणं महया-गया२१ अभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता करयलपरिग्गहियं२२ •सिरसावत्तं° मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं बद्धावेइ, वद्धावेत्ता ताहि इटाहि२३ • कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं सिव्वाहिं धण्णाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं वग्गूहि जयजयसई १. पडियंतियं (क); प्रातिश्रुतिकं (पुवृ,शावृ); ६. गुलगुलाइयं (अ,क,ख,प,ब,स)। प्रतिश्रुतिकं (हीव); द्रष्टव्यं ठाणं ४१६३७ १०. उच्छोलंति (क,ख); उच्छलेंति (त्रि); सुत्रं तत्पादटिप्पणं च।। उच्छलंति (हीवृ.पुवृपा)। २. सामंतोकतियं (अ,त्रि,ब); सामंतोवाइयं ११. पच्छोलंति (क,ख); प्रोच्छलंति (हीव,पुत्पा)। (क,प,स); सामंतोकंतियं (ख); सामण्ण- १२. x (अ,क,ख,त्रि,प.ब.स,शावृ,हीवृ) । ओविणिवाइयं (ठाणं ४।६३७ राय० सू० १३. ददरं (अ,क,ख,त्रि,ब,स, आवश्यकणि ११७,२८१. जी० ३।४४७ । पृ० १४८)। ३. लोगमज्झावसियं (अ,क,ख,प,ब,स); लोग- १४. बुक्कारेंति (स,पुवृ) । मज्झावसाणियं (राय० सू० ११७,२८१. जी० १५. बक्कारेंति (आवश्यकचूणि पृ १४८) । ३।४४७)। १६. x (अ,क,ख,त्रि,ब) । ४. उप्पयणिवयप्पवत्तं (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुव,हीवृ। १७. विज्जुतापयंती (अ,ख,ब); विज्जुयंति (आव५. ४ (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुवृ,हीवृ) : रायपसेणइ- श्यकचूणि पृ० १४८) । यसुत्ते (१११); जीवाजीवाभिगमे (३।४४७) १८. देवकुहुकुहगं (अ,ब) । च 'निवाय-उप्पाय' इति पाठो विद्यते। १६. देवदुदुचुंग (अ); देवदुदुनुंग (ब)। ६. बक्कारेंति (अ क,ख,ब)। २०. जी० ३१४४७ । ७. अप्पेगइया तंडवेंति अप्पेगइया लासेंति अप्पेग- २१. महया जाव (अ,त्रि,ब)। इया पीणेति एवं बुक्कारेंति (प,शावृ)। २२. सं० पा०- करयलपरिग्गहियं जाव मत्थए। ८. हतहिसियं (अ,ब)। २३. सं० पा०-इट्ठाहिं जाव जयजयसई । Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४५ पंचमो बक्खारो परंजइ, परंजित्ता' •तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए' सुरभीए गंधकासाईए गाया " लूहेइ, लहेत्ता "सरसेणं गोसीसचंदणेणं गाताई अणुलिपति, अणुलिपित्ता नासानीसासवायवोज्झं चक्खुहरं वण्णफरिसजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलकणगखचियंतकम्मं आगास फलिहसमप्पभं अहतं दिव्वं देवदूतजुयलं णियंसावेति, णियंसावेत्ता' जाव' कप्परुक्खगं पिव अलंक - विभूतियं करेs, करेत्ता' 'दिव्वं च सुमणदामं पिणद्धावेइ, पिणद्धावित्ता' ट्टविहि उवदंसेइ, उवदंसेत्ता अच्छेहिं सहेहि रययामएहिं अच्छरसातंडुलेहिं भगवओ सामिस्स पुरओ अट्ठट्ठमंगलगे आलिहइ, [तं जहा दप्पण भासण वद्धमाण वरकलस मच्छ सिरिवच्छा । सोत्थिय णंदावत्ता लिहित्ता अट्ठट्ठ मंगलगा || १ || ] काऊण' करेइ उवयारं, किं ते ? पाडल - मल्लिय चंपग असोग- पुण्णाग-चूयमंजरि णवमालिय- बकुल - तिलग-कणवीर कुंद - कोज्जय - कोरंट-पत्त - दमणग- वरसुरभिगंधगंधियस्स" कयग्गहिय" - करयल पब्भट्टविप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणिगरस्स" तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमेत्तं" ओहिनिगरं" करेत्ता चंदप्पभ - रयण-वइर-वेरुलियविमलदंडं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं " कालागरु"-पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क-धूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवट्टि विणिम्यं तं वेरुलियमयं कडुच्छुयं" पग्गहेत्तु पयते धूवं दाऊण जिणवरिंदस्स सत्तट्ठपयाई ओसरित्ता दसंगुलियं अंजलि करिय मत्थयंसि " पयओ" अट्ठसय विसुद्धगंथजुत्तेहिं महावित्ते हिं अपुणरुत्तेहिं अत्थजुत्तेहिं संथुणइ, संथुणित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता" "दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साहट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि णिवेसेइ, णिवेसेत्ता ईसि पच्चण्णमइ, पच्चणमित्ता कडग - तुडिय-थंभियाओ भुयाओ साहरइ, साहरिता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - णमोत्थु ते सिद्ध ! बुद्ध ! णीरय ! समण ! समाहिय ! समत्त ! समजोगि ! सल्लगत्तण ! णिब्भय ! णीरागदोस " ! णिम्मम ! णिस्संग ! णीसल्ल ! माणमूरण ! गुणरयण ! सीलसागरमणंतमप्पमेय ! भविय ! धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी ! णमोत्थु ते अरहओत्तिकट्टु " वंदइ णमंसइ, वंदित्ता २२ १. सं० पा०—पजित्ता जाव पम्हलसूमालाए । २. सुकुमालाए ( अ, त्रि, ब ) । ३. गत्ताइं ( क, ख ) ; गत्ताई ( ब ) । ४. संपा० - लूहेत्ता एवं जाव कप्परुक्खगं । ५. जी० ३।४५.१ । ६. सं० पा०—कत्ता जाव णट्टविहि ७. सहेहि सेतेहि (जं० ३।१२) । ८. कोष्ठकवत्तपाठः व्याख्यांशो दृश्यते । ६. लिहिऊण (पशावृ); आलिहित्ता काऊणं ( जं० ३।१२) । द्रष्टव्यम् - ३।१२ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । २० सं० पा० – अंचेत्ता जाव करयल परिग्गहियं । २१ णिरागदोस ( अ, ब ) । १०. सुरभिसुगंध गंधियस्स (क, ख, पुवृ) ; सुरभिसु- २२. अरहओ णमोत्यु ते भगवओत्तिकट्टु ( अ, ब, पुवृ); अरहओ णमोत्थु ते अरहओत्तिकट्टु ( क ) | गंधिकस्स (त्रि, ही वृ.) । ११. गाह (त्रि, ब ) 1 १२. कुसुमसंचतस्स (आवश्यक चूर्णि पृ० १४६ ) । १३. जाणु° (त्रि ) । १४. ओह (क, ख, प, स, पुवृ) । १५. णाणामणि (त्रि, ही वृ ) । १६. कालागुरु (त्रि ) । १७. कडेच्छु (क, ख ); कडच्छुयं ( ब ) | १८. मत्थगंमि ( अ, ब ) ; मत्थयंमि ( क, ख, स ) । १६. पत्तो ( अ, त्रि, ब ) । Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे •णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलियडे पज्जुवासइ ॥ ५६. एवं जहा अच्चुयस्स तहा जाव ईसाणस्स भाणियव्वं, एवं' भवणवइ-वाणमंतरजोइसिया य सूरपज्जवसाणा सएणं-सएणं परिवारेणं पत्तेयं-पत्तेयं अभिसिंचंति ॥ ६०. तए णं से ईसाणे देविंदे देवराया पंच ईसाणे विउव्वइ, विउव्वित्ता एगे ईसाणे भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं' गिण्हइ, गिण्हित्ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सण्णिसण्णे, एगे ईसाणे पिट्ठओ आयवत्तं धरेइ, दुवे ईसाणा उभओ' पासिं चामरुक्खेवं करेंति, एगे ईसाणे पुरओ सूलपाणी चिट्ठइ । ६१. तए' णं से सक्के देविदे देवराया आभिओगे' देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एसोवि तह चेव अभिसेयाणत्ति देइ, तेवि तह चेव उवणेति ॥ ६२. तए णं से सक्के देविदे देवराया भगवओ तित्थयरस्स चउद्दिसिं चत्तारि धवलवसभे विउव्वेइ---सेए 'संखतल-विमल-णिम्मल-दधिघण-गोखीर-फेण-रयय-णिगरप्पगासे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ ६३. तए णं तेसिं चउण्हं धवलवसभाणं अट्ठहि सिंगेहितो अट्ठ तोयधाराओ णिग्गच्छति ॥ ६४. तए णं ताओ अट्ठ तोयधाराओ उड्डे वेहासं उप्पयंति, उप्पइत्ता एगओ मिलायंति, मिलाइत्ता भगवओ तित्थयरस्स मुद्धाणंसि णिवयंति" ॥ ६५. तए णं से सक्के देविंदे देवराया चउरासीईए सामाणियसाहस्सीहिं, एयस्सवि तहेव अभिसेओ भाणियव्वो जाव णमोत्थु ते अरहओत्तिक? वंदइ णमंसइ जाव पज्जुवासइ ॥ ६६. तए णं से सक्के देविंदे देवराया पंच सक्के विउव्वइ, विउव्वित्ता एगे सक्के भयवं तित्थयरं करयलपुडेणं गिण्हइ, एगे सक्के पिट्टओ आयवत्तं धरेइ, दुवे सक्का उभओ पासिं चामरुक्खेवं करेंति, एगे सक्के वज्जपाणी पूरओ पकडढइ॥ ६७. तए णं से सक्के देविंदे देवराया चउरासीईए सामाणियसाहस्सीहिं जाव अण्णेहि य बहूहिं भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धि संपरिवडे सव्विड्डीए जाव" दुंदुहिणिग्घोसणाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए १. सं० पा०-सुस्सुसमाणे जाव पज्जुवासइ। १०. अट्ठसु (अ,क,ख,त्रि,ब,स); 'अद्वसु'त्तिप्राकृतत्वात २. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुत्,हीवृ)। सप्तमी पञ्चम्यर्थे (ही)। ३. करयलसंपुडेणं (क,ख,प,स)। ११. निपयंति (अ,ब); निपतंति (क,ख,त्रि) । ४. अवहो (अ,ब)। १२. जं० ५।५६-५८ । ५. एतत्सूत्रं 'अ,ब' प्रत्यो: नास्ति । १३. अवहो (अ,ब)। ६. आभिओग्गे (क,स) १४. पगच्छति (त्रि)। ७. जं० ५१५४,५५। १५. जं० २।१०। ८. संखदल (प,शावृ)। १६. जोइसिय (त्रि)। ६. संखदलसन्नि गासे (आवश्यकचूणि पृ० १५०)। १७. जं० ३.१२ । Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो ५४७ सिघाए उयाए दिव्वाए देवगई ए वीईवयवमाणे - वीईवयमाणे जेणेव भगवओ तित्थय रस्स जम्मणणयरे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणे जेणेव तित्थयरमाया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं माऊए पासे ठवेइ, ठवेत्ता तित्थयरपडिरूवगं पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता ओसोवणि पडिसाहइ, पडिसाहरित्ता एगं महं खोमजुयलं कुंडलजुयलं च भगवओ तित्थयरस्स उस्सीसगमूले' ठवेइ, ठवेत्ता एवं महं सिरिदामगंड तवणिज्जलंबूसगं सुवण्णपयरगमंडियं णाणामणिरयणविविहहारद्धहारउवसोहियसमुदयं भगवओ तित्थयरस्स उल्लोयंसि णिक्खिवइ, तण्णं भगवं तित्थयरे अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणे - देहमाणे सुसुहेणं अभिरममाणे- अभिरममाणे चिट्ठइ ॥ ६८. तए णं से सक्के देविंदे देवराया वेसमणं देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! बत्तीसं हिरण्णकोडीओ बत्तीसं सुवण्णकोडीओ बत्तीसं दाई बत्तीसं भद्दाई सुभगे सोभग्ग' - रूव - जोव्वण- गुण - लावण्णे य भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणंसि साहराहि, साहरित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ ६६. तए णं से वेसमणे देवे सक्केणं जाव' विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जंभए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! बत्तीसं हिरण्णकोडीओ जाव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणंसि साहरह, साहरित्ता एयमाणत्तियं पच्चपिह ॥ ७०. तए णं ते जंभगा देवा वेसमणेणं देवेणं एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठ- चित्तमाणंदिया जव खप्पामेव बत्तीसं हिरण्णकोडीओ जाव सोभग्ग- रूव-जोव्वण- गुण - लावण्णे य भगवओ तित्थगरस्स जम्मणभवणंसि साहरंति, साहरिता जेणेव वेसमणे देवे तेणेव * • उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चणिति ॥ ७१. तए णं से वेसमणे देवे जेणेव सक्के देविंदे देवराया" "तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चपिणइ || ---- ७२. तए णं से सक्के देविंदे देवराया आभिओगे देवे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! भगवओ तित्थयरस्स जम्मणणयरंसि सिंघाडग'• तिग- चउक्क- चच्चर- चउम्मुह' - महापह - पहेसु महया - महया सद्देणं उग्घोसेमाणाउग्घोसेमाणा एवं वदह - हंदि " ! सुणंतु भवंतो बहवे भवणवइ-वाणमंतर-जोइसवेमाणिया देवा ! य देवीओ ! य जेणं देवाणुप्पिया ! तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए वा असुभं मणं पधारेइ, तस्स णं अज्जगमंजरिका इव सतहा" मुद्धाणं फुट्टउत्ति [ फुट्टिहीति ? ]कट्टु घोसणं घोसेह, घोसेत्ता एयमाणत्तियं पच्चपिह ॥ । १. ऊसी सगमूले ( अ, ब ) ; उस्सीसमृले (त्रि ) २. 'कोडीओ बत्तीसं रयणकोडीओ (त्रि, होवृ ) । ३. सुभग्ग ( अ, क,ख, त्रि, ब, स ) । ४. × (क,ख) । ५. जं० ५।२३ । ६. जं३८ । ७. सं० पा० तेणेव जाव पच्चप्पिणंति । ८. सं० पा० – देवराया जाव पच्चपिणइ । ६. सं० पा० - सिंघाडग जाव महापह | १०. हंद ( क,ख, त्रि, प, स ) । ११. सत्ता ( अ, त्रि, बस, पुवृ, हीव) । Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्तो ७३. तए णं ते आभिओगा देवा जाव' एवं देवोत्ति आणाए विणणं वयणं पडणंति, पडिणित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमंति, पडिfuraमित्ता खिप्पामेव भगवओ तित्थगरस्स जम्मणणगरंसि सिंघाडग े - "तिग- चउक्कचच्चर-चउम्मुह-महापह - पहेसु महया - महया सद्देणं उग्घोसेमाणा - उग्घोसेमाणा एवं वयासी - हंदि सुणंतु भवंतो बहवे भवणवइ' - वाणमंतर - जोइस-वेमाणिया देवा ! यदेवीओ ! य° जे णं देवाणुप्पिया ! तित्थयरस्स "तित्थयरमाऊए वा असुभं मणं पधारेइ, तस्स णं अज्जगमंजरिका इव सतहा मुद्धाणं फुट्टिहीतिकट्टु घोसणं घोसेंति, घोसेत्ता एयमाणत्तियं पच्चपिति ॥ ७४. तए णं ते बहवे भवणवइ-वाणमंतर - जोइस-वेमाणिया देवा भगवओ तित्थगरस्स जम्मणमहिमं करेंति, करेत्ता जेणेव मंदिस्सरे दीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अट्ठाहियाओ महामहिमाओ करेंति, करेत्ता जामेव दिसि पाउब्भूया तामेव दिसि पडिगया || ५४८ १. जं० ५। २३ । २. सं० पा० - सिंघाडग जाव एवं । ३. सं० पा० भवणवइ जाव जे । ४. सं० पा० - तित्थयरस्स जाव फुट्टिहीतिकट्ट । ५. फुट्टितित्तिकट्टु (क); फुट्टिहित्तिकट्टु ( ख ) ; फुट्टत्तिकट्टु (त्रि ) ; फुट्टिहितिकट्टु ( स ) । Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो वक्खारो १. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स पएसा लवणं समदं पुट्ठा ? हंता ! पुढा ॥ २. ते णं भंते ! किं जंबुद्दीवे दीवे ? लवणे समुद्दे ? गोयमा ! ते णं जंबुद्दीवे दीवे, णो खलु लवणे समुद्दे ॥ ३. एवं लवणसमुदस्सवि पएसा जंबुद्दीवे दीवे पुट्टा भाणियव्वा' ।। ४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति ? गोयमा ! अत्थेगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो पच्चायति ।। ५. एवं लवणसमुदस्सवि जंबुद्दीवे दीवे णेयव्वं । गाहा--- खंडा जोयण वासा, पव्वय कूडा य तित्थ सेढीओ। विजय दह सलिलाओ य, पिंडए होइ संगहणी ॥१॥ ७. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भरहप्पमाणमेत्तेहिं खंडेहि केवइयं खंडगणिएणं पण्णत्ते ? गोयमा! णउयं खंडसयं खंडगणिएणं पण्णत्ते ॥ ८. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइयं जोयणगणिएणं पण्णत्ते ? गोयमा ! गाहा.- सत्तेव य कोडिसया, णउया छप्पण्ण सयसहस्साइं। चउणवई च सहस्सा, सयं दिवड्ढं च गणियपयं ॥१॥ ह. जंबूद्दीवे णं भंते ! दीवे कइ वासा पण्णत्ता? गोयमा! सत्त वासा पण्णत्ता, तं जहा 'भरहे एरवए" हेमवए हेरण्णवए हरिवासे रम्मगवासे महाविदेहे ॥ १०. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया वासहरा पण्णत्ता? केवइया मंदरा पव्वया ? केवइया चित्तकूडा ? केवझ्या विचित्तकूडा ? केवइया जमगपव्वया ? केवइया कंचणगपव्वया? केवइया वक्खारा! केवइया दीहवेयडा। केवइया वटवेयझा पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबहीवे दीवे छ वासहरपव्वया, एगे मंदरे पव्वए, एगे चित्तकडे, एगे विचि कडे, दो जमगपव्वया, दो कंचणगपव्वयसया, वीसं वक्खारपव्वया, चोत्तीसं दीहवेयड्डा, चत्तारि वट्टवेयड्डा-- एवामेव सपुवावरेणं जंबुद्दीवे दीवे दुण्णि अउणत्तरा पव्वयसया भवंतीतिमक्खायं ॥ १.जी० ३१५७३,५७४ | ५. भरहेरवए (अ,क,त्रि,ब)। २. जी० ३१५७६ । ६. एरण्णवए (अ,क,ख,त्रि,ब) । ३. जोयणभाइएणं (अ,ब)। ७. जवगपव्वया (अ,ब) अग्रेपि । ४. चउणउति (अ,क,ख,त्रि ब,स) । Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५० जंबुद्दीवपण्णत्ती ११. जंबुद्दीवे णं भंते ! दोवे केवइया वासहरक डा? केवइया वक्खारकुडा ? केवइया वेयड्डकूडा ? केवइया मंदरकूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! छप्पण्णं वासहरकूडा, छण्णउइं वक्खारकूडा, तिण्णि छलुत्तरा वेयड्डकूडसया, णव मंदरकूडा पण्णत्ता---एवामेव सपूवावरेणं जंबुद्दीवे दीवे चत्तारि सत्तट्टा' कूडसया भवंतीतिमक्खायं ॥ - १२. जंबहीवे णं भंते ! दीवे भरहे वासे कइ तित्था पण्णत्ता? गोयमा ! तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा मागहे वरदामे पभासे ॥ १३. जंबूट्टीवे णं भंते ! दीवे एरवए वासे कइ तित्था पण्णत्ता ? गोयमा! तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा-मागहे वरदामे पभासे ॥ १४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे महाविदेहे वासे एगमेगे चक्कवट्टिविजए कइ तित्था पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा.....मागहे वरदामे पभासे....एवामेव सपवावरेणं जंबुद्दीवे दीवे एगे बिउत्तरे तित्थसए भवतीतिमक्खायं ॥ १५. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइयाओ विज्जाहरसेढीओ ? केवइयाओ आभिओगसेढीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे अट्ठसट्ठी विज्जाहरसेढीओ, अट्टसट्ठी आभिओगसेढीओ पण्णत्ताओ - एवामेव सपुत्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे छत्तीसे सेढीसए भवतीतिमक्खायं ॥ १६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया चक्कवट्टिविजया ? केवइयाओ रायहाणीओ? देवयाओ तिमिसगृहाओ ? केवइयाओ खंडप्पवायगृहाओ? केवइया कयमालया देवा ? केवडया णदमालया देवा ? केवइया उसभकडा पव्वया पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबहीवे दीवे चोत्तीसं चक्कवट्टिविजया, चोत्तीसं रायहाणीओ, चोत्तीसं तिमिसगुहाओ, चोत्तीसं खंडप्पवायगुहाओ, चोत्तीसं कयमालया देवा, चोत्तीसं णट्टमालया देवा, चोत्तीसं उसभकूडा पव्वया पण्णत्ता ।। १७. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया महदहा पण्णत्ता ? गोयमा ! सोलस महदहा पण्णत्ता॥ १८. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइयाओ महाणईओ वासहरपवहाओ ? केवइयाओ महाणईओ कुंडप्पवहाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे चोद्दस महाणईओ वासहरपवहाओ, छावरि महाणईओ कुंडप्पवहाओ एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे णउई महाणईओ भवंतीतिमक्खायं ।। १६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भरहेरवएसु वासेसु कइ महाणईओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! चत्तारि महाणईओ पण्णत्ताओ, तं जहा- गंगा सिंधु रत्ता रत्तवई। तत्थ णं एगमेगा महाणई चउद्दसहि सलिलासहस्सेहिं समग्गा पुरथिमपच्चत्थिमेणं लवणसमुई समप्पेइ --एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु छप्पण्णं सलिलासहस्सा १. सत्तसट्ट (त्रि)। २. पिउत्तरे (अ,ब)। ३. अट्ठसट्टि (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । ४. मक्खाए (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ५. महादहा (त्रि)। ६. एगमेका (अ,ब) । ७. पुरत्थिमेणं पच्चत्थिमेणं (त्रि) अग्रेपि । Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५१ छट्ठो वक्खारो भवंतीतिमक्खायं ॥ २०. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे 'हेमवय-हेरण्णवएसु'२ वासेसु कइ महाणईओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि महाणईओ पण्णत्ताओ, तं जहा-रोहिया रोहियंसा सुवण्णकूला रुप्पकूला'। तत्थ णं एगमेगा महाणई अट्ठावीसाए-अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहिं समग्गा पुरथिमपच्चत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पे... एवामेव सपुवावरेणं जंबुद्दीवे दीवे हेमवय - हेरण्णवएसु वासेसु बारसुत्तरे सलिलासयसहस्से भवतीतिमक्खायं ॥ २१. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे हरिवास-रम्मगवासेसु कइ महाणईओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि महाणईओ पण्णत्ताओ, तं जहा----हरी हरिकंता णारकंता णरिकता। तत्थ णं एगमेगा महाणई छप्पण्णाए-छप्पण्णाए सलिलासहस्सेहि समग्गा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ --एदामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे हरिवास-रम्मगवासेसु दो चउवीसा सलिलासयसहस्सा भवंतीतिमक्खायं ॥ २२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे महाविदेहे वासे कइ महाणईओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! दो महाणईओ पण्णत्ताओ, तं जहा---सीया य' सीतोदा य। तत्थ णं एगमेगा महाणई पंचहि-पंचहि सलिलासयसहस्सेहिं बत्तीसाए य सलिलासहस्सेहि समग्गा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ-एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दस सलिलासयसहस्सा चउसट्टि च साललासहस्सा मक्खायं ॥ २३. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स" पव्वयस्स दक्खिणेणं केवइया सलिलासयसहस्सा पुरत्थिमपच्चत्थिमाभिमुहा लवणसमुदं समप्पेंति ? गोयमा ! एगे छण्णउए सलिलासयसहस्से पुरथिमपच्चत्थिमाभिमुहे लवणसमुई समप्पेइ ॥ २४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं केवइया सलिलासयसहस्सा पुरत्थिमपच्चत्थिमाभिमुहा लवणसमुई समप्पेंति ? गोयमा ! एगे छण्णउए सलिलासयसहस्से पुरथिमपच्चत्थिमाभिमुहे 'लवणसमुई समप्पेइ ॥ २५. जंबहीवे णं भंते ! दीवे केवइया सलिलासयसहस्सा परत्थिमाभिमहा' लवणसमुदं समति ? गोयमा ! सत्त सलिलासयसहस्सा अट्ठावीसं च सहस्सा पुरत्थिमाभिमुहा लवणसमुई समप्पेंति ॥ २६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया सलिलासयसहस्सा पच्चत्थिमाभिमुहा लवणसमुई समप्पेंति ? गोयमा! सत्त सलिलासयसहस्सा अट्ठावीसं च सहस्सा पच्चत्थिमाभिमुहा लवणसमुदं समप्पेंति-एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे चोद्दस सलिलासयसहस्सा छप्पण्णं च सहस्सा भवंतीतिमक्खायं ॥ १. मक्खाया (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। २. हेमवएरण्णवएसु (अ,क,ख,त्रि,ब,स) अग्रपि। ३. रुप्पीकूला (त्रि); रुक्मीकूला (हीवृ)। ४. ४ (अ,त्रि,ब)। ५. मंदिरस्स (अब) अग्रेपि । ६. संपा० - पच्चत्थिमाभिमुहे जाव समप्पेइ। ७. पुरत्थाभिमुहा (त्रि,प) । ८.सं० पा०-सहस्सा जाव समप्येति । Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो १. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे कइ चंदा पभासिंसु पभासंति पभासिस्संति ? कइ सूरिया' तवइंसु तवेंति तविस्संति ? केवइया णक्खत्ता जोगं जोएंसु जोएंति जोएस्संति ? केवइया महग्गहा चारं चरिंसु चरंति चरिस्संति ? केवइयाओ तारागणकोडाकोडीओ सोभं' सोभिंसु सोभंति सोभिस्संति ? गोयमा ! दो चंदा पभासिसु पभासंति पभासिस्संति, दो सूरिया तवइंसु तवेंति तविस्संति, छप्पण्णं णवखत्ता जोगं जोइंसु जोएंति जोएस्संति, छावत्तरं महग्गहसयं चारं चरिंसु चरंति चरिस्संति, गाहा-- एगं च सयसहस्सं, तेत्तीसं खलु भवे सहस्साई। णव य सया पण्णासा, तारागणकोडिकोडिणं ॥१॥ २. कइ णं भंते ! सूरमंडला पण्णत्ता ? गोयमा! एगे चउरासीए मंडलसए पण्णत्ते ॥ ३. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पण्णत्ता ? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता, एत्थ णं पण्णट्ठी सूरमंडला पण्णत्ता॥ ४. लवणे णं भंते ! समुद्दे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पण्णत्ता ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे तिण्णि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं एगूणवीसे सूरमंडलसए पण्णत्ते एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे 'लवणे य समुद्दे" एगे चुलसीए सूरमंडलसए भवतीतिमक्खायं ॥ ५. सव्वभंतराओ णं भंते ! सूरमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए सूरमंडले पण्णत्ते ॥ ६. सूरमंडलस्स णं भंते ! सूरमंडलस्स य केवइयं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते? गोयमा ! 'दो-दो" जोयणाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ७. सूरमंडले णं भंते ! केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं १. सूरा (त्रि) । २. ४ (क,ख,त्रि,प,स) । ३. लवणसमुद्दे (अ,ब)। ४. केवइयाए (क,ख,प,स); केवइए (त्रि)। ५. दो (प,शावृ) सर्वत्र । ५५२ Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमौ वक्खारो ५३ बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अडयालीसं एगसट्टिभाए जोयणस्स आयाम - विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, चउवीसं एगसट्टियाए जोयणस्स बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ ८. . जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं' अबाहाए सव्वब्भंतरे सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहा सव्वब्भंतरे सूरमंडले पण्णत्ते ॥ ६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंत राणंतरे' सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य बावीसे जोयणसए अयालीसं च एगसट्टिभागे' जोयणस्स अबाहाए अब्भंत राणंतरें सूरमंडले पण्णत्ते ॥ १०. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरतच्चे सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य पणवीसे जोयस ए पणतीसं च एगसट्टिभागे जोयणस्स अबाहाए अब्भंतरतच्चे सूरमंडले पण्णत्ते । एवं खलु एएणं उवाणं णिक्खममाणे सूरिए 'तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं" संकममाणेसंकममाणे दो-दो जोयणाई अडयालीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगमेगे मंडले अबाहावुढि अभिवड्ढेमाणे- अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ ११. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरे' सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साइं तिण्णि य तीसे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरे सूरमंडले पण्णत्ते ॥ १२. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए बाहिराणंतरे" सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साइं तिण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तेरस य एगसट्टिभाए" जोयणस्स अबाहाए बाहिराणंतरे सूरमंडले पण्णत्ते ॥ १३. जंबुद्दीवे णं भंत्ते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए बाहिरतच्चे सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साइं तिष्णि य चउवीसे जोयणसए छव्वीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स अवाहाए बाहिरतच्चे सूरमंडले पण्णत्ते । एवं खलु एए उवाएणं पविसमाणे सूरिए 'तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडल "" संकममाणेसंकममाणे दो-दो जोयणाई अडयालीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगमेगे मंडले अवाहाaf विड्ढेमाणे विड्ढेमाणे सव्वव्यंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ १. केवइया ( प ) । २. आबाधाए (क, त्र ) ; आबाहाए ( ब ) । ३. सव्वब्भंत राणंतरे (त्रिप) । ४. एगट्टिभाए ( अ, क.ख, ब, स ) अग्रेपि । ५. अभितराणंतरे ( अ, ब ) । ६. तयाणंतराओ (त्रि ) । ७. तदनंतराओ तदनंतर मंडलाओ मंडलं ( अ, ख, त्रिबस) । ८. अभिवुड्ढेमाणे (त्रि) अग्रेपि । ६. वाहिरए ( अ, ख, त्रि, ब, स ) ॥ १०. बाह्यानन्तरं सर्वब्राह्यमंडलात् अनन्तरं जम्बूद्वीपप्रवेशाभिमुखस्य चारक्षेत्रस्यादिभूतं द्वितीयं मंडलं प्रज्ञप्तम् (होवृ ) । ११. एगट्टिभाए ( अ, ब, स ) । १२. तदनंतराओ तदनंतरं मंडलाओ मंडलं ( अ, क, खत्रि,ब,स) अग्रप्येवमेव । १३. णिवुड्ढेमाणे ( अ, क, ख, प, ब, स ) । Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५४ जंबुद्दीवपण्णत्ती १४. जंबुद्दीवे दीवे सव्वब्भंतरे णं भंते! सूरमंडले केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! णवणउइं जोयणसहस्साइं छच्च चत्ताले जोयणसए आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि य जोयणसयसहस्साइं पण्णरस य जोयणसहस्साइं एगुणणउई च जोयणाइं किंचिविसेसाहियाई परिक्खेवेणं ।।। १५. अब्भंतराणंतरे णं भंते ! सूरमंडले केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! णवणउइं जोयणसहस्साई छच्च पणयाले जोयणसए पणतीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि य जोयणसयसहस्साइं पण्णरस य जोयणसहस्साइं एगं च सत्तुत्तरं जोयणसयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।। १६. अब्भंतरतच्चे णं भंते ! सूरमंडले केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेणं पण्णत्ते ? गोयमा! णवणउई जोयणसहस्साइं छच्च एक्कावण्णे जोयणसए णव य एगसट्ठिभाए जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि य जोयणसयसहस्साइं पण्णरस जोयणसहस्साइं एगं च पणवीसं जोयणसयं परिक्खेवेणं । एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे सूरिए तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं संकममाणे-संकममाणे पंच-पंच जोयणाइं पणतीसं च एगसद्विभाए जोयणस्स एगमेगे मंडले विक्खंभवुढि अभिवड्ढेमाणेअभिवड्ढेमाणे अट्ठारस-अट्ठारस जोयणाइं परिरयवुड्डि अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ॥ १७. सव्वबाहिरए णं भंते ! सूरमंडले केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एग जोयणसयसहस्सं छच्च सट्टे जोयणसए आयामविक्खंभेणं, तिण्णि य जोयणसयसहस्साइं अट्ठारस य सहस्साई तिण्णि य पण्णरसुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं ।।। १८. बाहिराणंतरे णं भंते ! सूरमंडले केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एगं जोयणसयसहस्सं छच्च चउप्पण्णे जोयणसए छव्वीसं च एगसट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि य जोयणसयसहस्साई अट्ठारस य सहस्साई दोण्णि य सत्ताणउए जोयणसए परिक्खेवेणं ॥ १६. बाहिरतच्चे णं भंते ! सूरमंडले केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एगं जोयणसयसहस्सं छच्च अडयाले जोयणसए बावण्णं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं अट्ठारस य सहस्साइं दोण्णि य अउणासीए जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं । एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं संकममाणे-संकममाणे पंच-पंच जोयणाइं पणतीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स एगमेगे मंडले विक्खंभवुड्डि णिवड्ढेमाणे१. विसेसाहिए (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। लम्ब्य किञ्चिन्यूनत्वस्याविवक्षणम् (हीव) । २. जोयणसयं परिक्षेपे सप्तोत्तरं योजनशतं ३. उवसंकममाणे (प)। किञ्चिदुनं वक्तव्यम् । यदागम:-'एगं सत्तुत्तरं ४. x (प,शावृ)। जोयणसयं किंचिविसेसूर्ण परिक्खेवेणं पण्णत्ते' ५. णिवुड्ढेसमाणे (अ); णिवुढेसमाणे (ब)। त्ति सूर्यप्रज्ञप्तौ यद्वात्र सूत्रे व्यवहारनयमव. Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो णिवड्ढेमाणे अट्ठारस-अट्ठारस जोयणाई परिरयवुटि णिवड्ढेमाणे-णिवड्ढेमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ।। २०. जदा णं भंते ! सुरिए राव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तदा णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोण्णि य एगावण्णे जोयणसए एगणतीसं च सद्विभाए जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ । तदा णं इहगयस्स मणूसस्स' सीयालीसाए जोयणसहस्सेहि दोहि य तेवढेहि जोयणसएहिं एगवीसाए यं जोयणस्स सट्ठिभाएहिं सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ। से णिक्खममाणे सूरिए णवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ॥ २१. जया णं भंते ! सूरिए अब्भंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोण्णि य एगावण्णे जोयणसए सीयालीसं च सट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ । तया णं इहगयस्स' मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं एगणासीए जोयणसए सत्तावण्णाए य सट्ठिभाएहिं जोयणस्स सट्ठिभागं च एगसट्ठिहा' छेत्ता एगणवीसाए चुण्णियाभागेहिं सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ। से णिक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अभंतरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ॥ २२. जया णं भंते ! सूरिए अभंतरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेतं गच्छइ ? गोयमा ! पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोण्णि य बावण्णे जोयणसए पंच य सट्ठिभाए जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ । तया णं इहगयस्स मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं छण्णउईए जोयणेहि तेत्तीसाए सद्विभागेहि जोयणस्स सट्ठिभागं च एगसहिहा छेत्ता दोहिं चुण्णियाभागेहिं सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ। एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे सूरिए तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं संकममाणे-संकममाणे अट्ठारस-अट्ठारस सद्विभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले महत्तगई अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे चुलसीइं-चुलसीईसीयाई जोयणाई पूरिसच्छायं णिवड्ढेमाणे-णिवड्ढेमाणे सब्बबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ॥ २३. जया णं भंते ! सूरिए सव्वबाहिरमंडलं उवसंकभित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच-पंच जोयणसहस्साइं तिण्णि य पंचत्तरे जोयणसए पण्णरस य सद्विभाए जोयणस्स एगभेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ । तया णं इहगयस्स मणूसस्स एगतीसाए जोयणसहस्सेहिं अहि य एगत्तीसेहिं जोयणसएहि तीसाए १. मणुयस्। (ख); मणुअस्स (त्रि) । २.x (अ,ख,ब)। ३. सब्भंतराणंतरं (त्रि); सव्वभंतराणतरं (प)। ४. एगापण्णे (अ,ब)। ५. इहगतस्य (ब)। ६. मणुयस्स (ख); मणुअस्स (त्रि) । ७. सत्तावष्णं (अ,ख,त्रि,बस)। ८. एगट्टिया (अ,क,ख,ब,स) अग्रेपि । ९. उवसंपज्जित्ता (अ,ख,द,स)। १०. सत्ताई (अ); सताई (ब); सूर्यप्रज्ञप्त्या (२॥३) मपि सीताई' इति पाठो विद्यते । Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती य सट्ठिभाएहिं जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्म छम्मासस्स पज्जवसाणे। से पविसमाणे सूरिए दोच्चे छम्मासे अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ॥ २४. जया णं भंते । सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच-पंच जोयणसहस्साइं तिण्णि य चउरुत्तरे जोयणसए सत्तावण्णं च सद्विभाए जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ। तया णं इहगयस्स मणूसस्स एगत्तीसाए जोयणसहस्सेहिं णवहि य सोलसुत्तरेहि जोयणसएहिं इगुणालीसाए य सट्ठिभाएहिं जोयणस्स सट्ठिभागं च एगसट्ठिहा' छेत्ता सट्ठीए चुण्णियाभागेहि सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ । से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तसि बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ । २५. जया णं भंते ! सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच-पंच जोयणसहस्साइं तिण्णि य चउरुत्तरे जोयणसए इगुणालीसं च सद्विभाए जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ । तया णं इहगयस्स मणूसस्स एगाहिएहि बत्तीसाए जोयणसहस्सेहिं एगण गणाए य सट्ठिभाएहिं जोयणस्स सट्ठिभागं च एगसट्ठिहा छेत्ता तेवीसाए चुणियाभाएहि सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ । एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सुरिए तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं संकममाणे-संकममाणे अट्ठारस-अट्ठारस सट्ठिभाए जोयणस्स एगमेगे मंडले मुहुत्तगई निवड्ढेमाणे-निवड्ढेमाणे साइरेगाइं पंचासीई-पंचासीइं जोयणाइं पुरिसच्छायं अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंक मित्ता चारं चरइ । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, एस णं आइच्चे संवच्छरे, एस णं आइच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे पण्णत्ते ।। २६. जया णं भंते ! सूरिए सव्वभंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे, केमहालया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ । से णिक्खममाणे सूरिए णवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ॥ २७. जया णं भंते ! सूरिए अभंतराणंतरं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे, केमहालया राई भवइ ? गोषमा ! तथा णं अवारसमुहुते दिवसे भवइ दोहिं एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ दोहि य एगसट्ठि १. अयमीणं (अ,क,ब) अग्रेपि सर्वत्र । २. ऊणालीसाए (अ,ब); ऊगुतालीसाए (क,ख) उगुणतालीसाए (त्रि,स) । ३. एगट्ठिधा (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ४. ऊतालीसं (अ,ब); ऊगुतालीसं (क,ख); उगुणतालीसं (त्रि), उणतालीसं (स)। ५. एकाहिहि (ज,क,ख,ब) । ६. केमहल्लिया (अ,ब,त्रि ब,स)। ७. केमहालिया (ब)। ८. मुहत्तेणं (ख,स) । Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो भागमुतेहि अहिया । से णिक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि' 'अब्भंतरतच्च मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे, केमहालया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगसट्टिभागमुहुर्तोहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ चउहि एगसट्टिभागमुहुत्तेहि अहिया । एवं खलु एए वाणं क्खिमाणे सूरिए तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतर मंडल संकममाणे संकममाणे दो-दो एसट्टिभागमुहुत्ते मंडले दिवसखेत्तस्य निवड्ढेमाणे निवड्ढेमाणे रयणिखेत्तस्स अभिवड्ढेमाणे - अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ | जया णं सूरिए सव्वभंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तथा णं सव्वमंतरमंडल पणिहाय एगेणं तेसीएणं राईदियसएणं तिण्णि छावट्ठे एगसट्टिभागमुहुत्तस दिवसखेत्तस्स निवड्ढेत्ता' रयणिखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ ॥ २८. जया णं भंते ! सूरिए सव्वबाहिर मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं महाला दिवसे", महालया राई भवई ? गोयमा ! तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवई, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि वाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ २६. जया णं भंते ! सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहाल दिवसे, केमहालया राई भवइ ? गोयमा ! अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ दोहिं भागमुहं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगसट्टिभागमुहुत्ते ह अहिए । से पविसमाणे सूरिए दोच्चसि अहोरत्तंसि बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ ३०. जया णं भंते ! सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं महालए दिवसे, केमहालया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ हिं एगसट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगसट्टिभागमुहुत्ते हि अहि । एवं खलु एणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं संकममाणे- संकममाणे दो-दो एगसट्टिभागमुहुत्ते एगमेगे मंडले रयणिखेत्तस्स निवड्ढेमाणे निवड्ढेमाणे दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेमाणे- अभिवड्ढेमाणे सव्वमंतर मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ । जया णं सूरिए सव्ववाहिराओ मंडलाओ सव्वन्तरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं सव्वबाहिर मंडलं पणिहाय एगेणं तेसीएणं राईदियसणं तिणि छावट्ठे एगसट्टिभागमुहुत्तसए रयणिवेत्तस्स णिवड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स १. सं० पा० - अहोरत्तंसि जाव चारं । २. महालिया ( अ, ब ) 1 ३. अभिनिवड्ढेत्ता (अब); अभिणिवुड्ढेत्ता ( क स ) ; णिवुड्डेता (त्रि ) । ४. अभिबुड्ढेत्ता (ख, प ) । ५. दिवसे भवति ( अ, त्रि, ब ) । ५५७ ६. दिवसे भवइ ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स ) । ७. णं भंते ( अ, ख, त्रि, प, ब, स ) । ८. सव्वतरं ( अ, क, ब, स ) ; सव्वभंतरं बाहिरं (ख) । ९. छावट्टि ( अ, ब ) । Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५८ जंबुद्दीवपण्णत्ती अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, एस णं आइच्चे संवच्छरे, एस णं आइच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे पण्णत्ते ॥ ३१. जया णं भंते ! सरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं किंसंठिया तावखेत्तसंठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठिया तावखेत्तसंठिई पण्णत्ता---अंतो संकुया' बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सगडुद्धीमुहसंठिया, उभओं पासेणं तीसे दो बाहाओ अवट्टियाओ हवंति----पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवट्ठियाओ हवंति, तं जहा--'सव्वभंतरिया चेव' बाहा 'सव्वबाहिरिया चेव' बाहा। तीसे णं सव्वब्भंतरिया बाहा मंदरपव्वयंतेणं णव जोयणसहस्साई चत्तारि छलसीए जोयणसए णव य दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं ।। एस णं भंते ! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएति वएज्जा ? गोयमा ! जे णं मंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं, तिहिं गुणेत्ता दसहि छेत्ता दसहि भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहिएति वएज्जा। तीसे णं सव्वबाहिरिया बाहा लवणसमुदंतेणं चउणवई जोयणसहस्साइं अट्ठ य अट्ठसठे जोयणसए चत्तारि य दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं ।। से णं भंते ! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएति वएज्जा ? गोयमा ! जे णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं तिहिं गुणेत्ता दसहि छेत्ता ‘दसहिं भागे'' हीरमाणे, एस परिक्खेवविसेसे आहिएति वएज्जा ॥ ३२. तया णं भंते ! तावखेत्ते केवइयं आयामेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठहत्तरि जोयणसहस्साइं तिण्णि य तेत्तीसे जोयणसए जोयणतिभागं च आयामेणं पण्णत्ते । - १. आदिच्चे (अ,क,ख,ब.स) । प्रज्ञप्तौ (४१४) च 'सत्थीमुहं" इति पाठो २. उड्ढंमुह° (अ,ब); उद्धीमुह (क,ख,प)। विद्यते । तद्वत्त्योश्च 'स्वस्तिकः' इति पदं ३. संकुडा (क)। व्याख्यातमस्ति । किन्तु प्रस्तुतसूत्रस्य ३२ ४. सत्थीमुह° (अ,ब,स); आदर्शान्तरे तु बाहिं सूत्रेपि 'सगडुद्धी' इत्येव पाठो दृश्यते सोत्थियमुहसंठिया' पाठः (शावृ); बाहिं तेनात्र एतदेवपदं स्वीकृतम् । असो वाचनासत्थीमुहसंठिया ति बहिर्लवणदिशि स्वस्तिक- भेदः स्यादथवा केनापि कारणेन लिपिभेदोपि मुखसंस्थिता स्वस्तिकः प्रतीतस्तस्यमुखमप्र- जातः स्थात् ? भागः तस्येवातिविस्तीर्णतया संस्थितं संस्थानं ५. अवहो (अ,ख,ब); अवधो (क) । यस्याः सा तथा (पुत्र); बाहिं सगडुद्धित्ति ६. सव्वभंतरिअच्चेव (अ,ब)। बहिः शकटोद्धिमुखसंस्थिता जीर्णादर्शषु तु ७. सव्वबाहिरयच्चेव (अ ब)। क्वचित सत्थीमहसंठअत्ति पाठस्तत्र स्वस्तिकः ८. समद्देणं (अ,ब)। प्रतीतस्तस्य मुखमग्रभागस्तस्येवातिविस्तीर्ण- . चउणउई (अ,ब); चउणउति (क,ख,स)। तया संस्थितं संस्थानं यस्याः सा तथा अयं १०. अटूठे (अ,क,ख,त्रि,ब)। च पाठः सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रसंवादी व्याख्यायुक्त- ११. दसभागे (अ,क,ख,प,ब,स)। रूपवेत्यवसेयम् (हीव) । सूर्यप्रज्ञप्ती चन्द्र- १२. जोयणस्स तिभागं (क,ख,त्रि,प,स)। Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो १५० गाहा-- मेरुस्स' मज्झयारे, जाव य लवणस्स रुंदछब्भागे। तावायामो एसो, सगडुद्धीसंठिओ णियमा ॥१॥ ३३. तया णं भंते ! किंसंठिया अंधयारसंठिई पण्णत्ता? गोयमा ! उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठिया अंधयारसंठिई पण्णत्ता- अंतो संकुया बाहिं वित्थडा', 'अंतो वट्टा बाहिं पिहला, अंतो अंक मुहसंठिया बाहिं सगडुद्धीमुहसंठिया, उभओ पासे णं तीसे दो बाहाओ अवट्ठियाओ हवंति-पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साइं आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवट्टियाओ हवंति, तं जहा—सव्वब्भंतरिया चेव बाहा, सव्वबाहिरिया चेव बाहा। तीसे णं सव्वभंतरीया बाहा मंदरपव्वयंतेणं छज्जोयणसहस्साइं तिण्णि य चउवीसे जोयणसए छच्च दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं । से णं भंते ! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएति वएज्जा? गोयमा ! जे दरम्य पव्वयस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं दोहिं गुणेत्ता दसहि छेत्ता दसहिं भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहिएति वएज्जा। तीसे णं सव्वबाहिरिया बाहा लवणसमुदंतेणं तेसट्ठी' जोयणसहस्साई दोण्णि य पणयाले जोयणसए छच्च दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं । से णं भंते ! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएति वएज्जा ? गोयमा ! जे णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं दोहिं गुणेत्ता' 'दसहि छेत्ता दसहि भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहिएति वएज्जा ।। ३४. तया णं भंते ! अंधयारे केवइए आयामेणं पण्णत्ते ? गोयमा! अट्ठहत्तर जोयणसहस्साई तिण्णि य तेत्तीसे जोयणसए जोयण तिभागं च आयामेणं पण्णत्ते॥ ३५. जया णं भंते ! सूरिए सव्वबाहिरमंडलं' उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं किंसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता? गोयमा ! उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं चेव सव्वं णेयव्वं, णवरं णाणत्तं-जं अंधयारसंठिईए पुव्ववण्णियं पमाणं तं तावखेत्तसंठिईए णेयव्वं", जं तावखेत्तसंठिईए पुव्ववण्णियं पमाणं तं अंधयारसंठिईए१ णेयव्वं ॥ ३६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति ? मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति ? अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति ? हता गोयमा ! तं चेव जाव दीसंति ॥ १. 'अ,ब' सङ्केतितयोः ताडपत्रीयादर्शयोः नेयं ७. अद्वत्तरि (अ,ब,स)। गाथा उपलभ्यते। ८. °बाहिरगं (अ,ब)। २. उद्धीमुह° (अ,ख,त्रि,ब)। ६. णवरि (अ,क,ब,स); णवरि (ख,त्रि)। ३. सं० पा०—वित्थडा तं चेव जाव तीसे। १०. ० ७१३३,३४। ४. तेवट्ठी (अ,क,ख,ब,स); तेवट्टि (त्रि)। ११. अंधकारस्स (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ५. पणताले (क,ख,स); पणयालीसे (त्रि)। १२. जं० ७।३१,३२ । ६. सं० पा०--गुणेत्ता जाव तं चेव । Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० जंबुद्दीवपण्णत्ती ३७. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया उग्गमणमुहत्तंसि या मज्झंतियमुहत्तंसि या अत्थमणमुहत्तंसि या सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं ? हंता तं चेव जाव उच्चत्तेणं ॥ ३८. जइ णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उग्गमणमुहत्तंसि या मज्झंतियमुहुत्तंसि या अत्थमणमुहुत्तंसि या सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं, कम्हा णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उग्गमणमुहत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति जाव अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति ? गोयमा ! लेसापडिघाए णं उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, लेसाहितावेणं' मज्झंतियमुहत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति, लेसापडिघाएणं अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, एवं खलु गोयमा ! तं चेव जाव दीसंति ॥ ३६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया कि तीतं खेत्तं गच्छंति ? पडुप्पण्णं खेत्तं गच्छंति ? अणागयं खेत्तं गच्छंति ? गोयमा ! णो तीतं खेत्तं गच्छंति, पडुप्पण्णं खेत्तं गच्छंति, णो अणागयं खेत्तं गच्छंति ।। ४०. तं भंते ! किं पुट्ठ गच्छंति' ? •अपुढं गच्छंति ? गोयमा ! पुट्ठ गच्छंति, णो अपूटठं गच्छति ॥ ४१. तं भंते ! किं ओगाढं गच्छंति ? अणोगाढं गच्छंति ? गोयमा ! ओगाढं गच्छंति, णो अणोगाढं गच्छति ॥ ४२. तं भंते ! कि अणंतरोगाढं गच्छंति ? परंपरोगाढं गच्छंति ? गोयमा! अणंतरोगाढं गच्छति, णो परपरोगाढ गच्छति ॥ ४३. तं भंते ! कि अणुं गच्छंति ? बायरं गच्छंति ? गोयमा ! अणुंपि गच्छंति, बायरंपि गच्छंति ॥ ४४. तं भंते ! कि उड्ढं गच्छंति ? अहे गच्छंति ? तिरियं गच्छंति ? गोयमा ! उड्ढपि गच्छंति, अहेपि गच्छंति, तिरियपि गच्छंति ॥ ४५. तं भंते ! किं आइं गच्छंति ? मज्झे गच्छंति ? पज्जवसाणे गच्छंति ? गोयमा ! आइंपि गच्छंति, मज्झवि गच्छंति, पज्जवसाणेवि गच्छति ॥ ४६. तं भंते ! किं सविसयं गच्छंति ? अविसयं गच्छंति ? गोयमा ! सविसयं गच्छंति, णो अविसयं गच्छति ।। ४७. तं भंते ! किं आणुपुव्वि गच्छंति ? अणाणुपुब्बि गच्छंति ? गोयमा ! आणुपुव्वि गच्छंति, णो अणाणपुव्वि गच्छंति ॥ ४८. तं भंते ! किं एगदिसि गच्छंति ? छद्दिसिं गच्छंति ? गोयमा ! • नियमा छद्दिसि ॥ ४६. एवं ओभासेंति ॥ ५०. तं भंते ! कि पुठं ओभासेंति ? एवं आहारपयाई णेयव्वाइं पुट्ठोगाढमणंतरअणु-मह-आइ-विसयाणुपुव्वी य जाव णियमा छद्दिसिं ॥ ५१. एवं उज्जोवेति तवेंति पभासेंति ।। ५२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरियाणं किं तीए खेत्ते किरिया कज्जइ ? पडुप्पण्णे १. लेसाहियावेणं (अ,ब); लेसाभितावेण (क); लेसाभियावेणं (ख)। २. सं० पा०-गच्छंति जाव नियमा। Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो खेत्ते किरिया कज्जइ ? अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ ? गोयमा ! णो तीए खेत्ते किरिया कज्जइ, पडुप्पण्णे खेत्ते किरिया कज्जइ, णो अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ ॥ ५३. सा भंते ! किं पुट्ठा कज्जइ ? अपुट्ठा कज्जइ ? गोयमा ! पुट्ठा कज्जइ, णो अपुट्ठा कज्जइ जाव णियमा छद्दिसि ॥ ५४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया केवइयं खेत्तं उड्ढं तवयंति अहे तिरियं च ? गोयमा ! एगं जोयणसयं उड्ढं तवयंति, अट्ठारस जोयणसयाइं अहे तवयंति, सीयालीसं जोयणसहस्साइं दोण्णि य तेवढे जोयणसए एगवीसं च सट्ठिभाए जोयणस्स तिरियं तवयंति॥ ५५. अंतो णं भंते ! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त-तारारूवा ते णं भंते ! देवा कि उड्ढोववण्णगा कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा चारोववण्णगा, चारट्टिइया गइरइया गइसमावण्णगा? गोयमा ! अंतो णं माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय' 'गहगण-णक्खत्त° तारारूवा ते णं देवा णो उड्डोववण्णगा णो कप्पोववण्णगा, विमाणोववण्णगा चारोववण्णगा, णो चारद्विइया, गइरइया गइसमावण्णगा उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठिएहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं 'वेउव्वियाहिं, बाहिराहि" परिसाहिं महयाहय-णट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा महया उक्किट्ठसीहणायबोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वयरायं पयाहिणावत्तमंडलचारं मेरु अणपरियटटंति ॥ ५६. तेसि णं भंते ! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ से कहमियाणि पकरेंति ? गोयमा! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिया देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति जाव 'तत्थण्णे इंदे" उववण्णे भवइ ॥ ५७. इंदट्टाणे णं भंते ! केवइयं कालं उववाएणं विरहिए ? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं छम्मासे 'उववाएणं विरहिए"। ५८. बहिया णं भंते ! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम'२. सूरिय-गहगण-णक्खत्ततारारूवा, तं चेव णेयव्वं, णाणत्तं विमाणोववण्णगा, णो चारोववण्णगा, चारट्रिइया, णो गइरइया णो गइसमावण्णगा पक्किट्रगसंठाणसंठिएहि जोयणसयसाहस्सिएहि तावखेत्तेहिं. सयसाहस्सियाहिं वेउव्वियाहिं, बाहिराहिं परिसाहिं महयाहयणट्ट-गीय-वाइय"- 'तंती-तल१. तवंति (अ,ब)। ८. देवाःसमुदितीभूय (पुत्,हीव); देवाः सम्भूय २. सं० पा०—सूरिय जाव तारारूवा। (शाव)। ३. बाहिरियाहिं वेउव्वियाहिं (जी० ३।८४२; सू० ६. तत्थ णं इंदे (त्रि,हीव)। १९२३) । १०. केवइ (अ,ब); केवति (क,ख,त्रि,स)। ४. उक्किट्ठी (अ,ब); उक्किट्ठि (ख); उक्कट्ठि ११. विरहिए उववाएणं (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। (स)। १२. सं. पा.--चंदिम जाव तारारूवा । ५. जाधे (अ,ब)। १३. वंकिट्टग° (अ.क,ख,त्रि,ब,स,हीवृ)। ६. जाव (अ,क,ख,त्रि,ब,स पुर्व)। १४. सं० पा०-वाइय जाव भुंजमाणा । ७. x (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा सुहलेसा मंदलेसा मंदायवलेसा चित्तंतरलेसा अण्णोण्णसमोगाढाहिं लेसाहिं कूडाविव ठाणठिया सव्वओ समंता ते पएसे ओभासेंति उज्जोवेंति पभासेंति ।। ५६. तेसि णं भंते ! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ से कहमियाणि पकरेंति' ? गोयमा ! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिया देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति जाव तत्थण्णे इंदे उववण्णे भवइ॥ ६०. इंदट्ठाणे णं भंते ! केवइयं कालं उववाएणं विरहिए? गोयमा ! ° जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा ॥ ६१. कइ णं भंते ! चंदमंडला पण्णत्ता? गोयमा ! पण्णरस चंदमंडला पण्णत्ता ॥ ६२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया चंदमंडला पण्णत्ता? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता पंच चंदमंडला पण्णत्ता ।। ६३. लवणे णं भंते ! पुच्छा। गोयमा ! लवणे णं समुद्दे तिण्णि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं दस चंदमंडला पण्णत्ता। एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणे य समुद्दे पण्णरस चंदमंडला भवंतीतिमक्खायं ॥ ६४. सव्वब्भंतराओ णं भंते ! चंदमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमंडले पण्णत्ते ।। ६५. चंदमंडलस्स णं भंते ! चंदमंडलस्स य एस णं केवइयं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! पणतीसं-पणतीसं जोयणाई तीसं च एगसटिभाए' जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि चण्णियाभाए चंदमंडलस्स-चंदमंडलस्स अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ... ६६. चंदमंडले णं भंते ! केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा! छप्पण्णं एगसद्विभाए जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, अट्ठावीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स बाहल्लेणं ॥ ६७. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वभंतरए चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहाए सव्वब्भतरे चंदमंडले पण्णत्त ।। ६८. जंबहीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतराणंतरे चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य छप्पण्णे जोयणसए पणवीसं च एगसद्विभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि चुण्णियाभाए अबाहाए अभंतराणंतरे चंदमंडले पण्णत्ते ।। ६६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरतच्चे चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य बाणउए जोयणसए एगावण्णं १. सं० पा०.--पकरेति जाव जहणणं। ४. पणुवीसं (अ,क,ब) अग्रेपि। । २. एगट्ठिभाए (अ,क,ख,त्रि,ब,स) प्रायः सर्वत्र। ५. चत्तारि य (ख,त्रि,स) । ३. एगद्विभाए (प) । ६. एक्कापण्णं (अ,ब)। . . Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो ५६३ च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसट्टिभागं च सत्तहा छेत्ता एवं चुण्णियाभागं अबाहाए अब्भंतरतच्चे चंदमंडले पण्णत्ते । एवं खलु एएणं उवाएणं णिवखममाणे चंदे 'तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं" संकममाणे संकममाणे छत्तीसं-छत्तीसं जोयणाई पणवीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि चुण्णियाभाए एगमेगे मंडले अबाहा वुड अभिवड्ढेमाणे'-अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ ७०. • जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरे चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साइं तिण्णि य तीसे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमंडले पण्णत्ते ॥ ७१. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए बाहिराणंतरे' चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साइं दोण्णि य तेणउए जोयणसए पणतीसं च एगसट्टियाए जोयणस्स एगसट्टिभागं च सत्तहा छेत्ता तिष्णि चुण्णियाभाए अबाहाए बाहिराणंतरे चंदमंडले पण्णत्ते || ७२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए बाहिरतच्चे चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साइं दोण्णि य सत्तावण्णे जोयणसए णव य एसट्टिभाए जोयणस्स एगसट्टिभागं च सत्तहा छेत्ता छ चुण्णियाभाए अबाहाए बाहिरतच्चे चंदमंडले पण्णत्ते । एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे चंदे 'तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं” संकममाणे - संकममाणे छत्तीसं छत्तीसं जोयणाई पणवीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि चुण्णियाए एगमेगे मंडले अबाहा वुढ विड्ढेमाणे- णिवड्ढेमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ ७३. सव्वब्भंतरे णं भंते ! चंदमंडले केवइयं आयाम - विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! णवणउई जोयणसहस्साइं छच्चचत्ताले जोयणसए आयाम विक्खंभेणं, तिणि य जोयणसहस्साइं पण्णरस जोयणसय सहस्साइं अउणाणउइं च जोयणाई किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ ७४. अब्भंतराणंतरे सा चेव पुच्छा । गोयमा ! णवणउई जोयणसहस्साइं सत्त य बारसुत्तरे जोयणसए एगावण्णं च एगसद्विभागे जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्ता छेत्ता एगं चुण्णियाभागं आयाम - विवखंभेणं, तिष्णि य जोयणसयसहस्साइं पण्णरस सहस्सा तिण्णि य एगूणवीसे जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं ॥ ७५. अब्भंतरतच्चे णं जाव' पण्णत्ते ? गोयमा ! णवणउई जोयणसहस्साइं सत्त य पंचसीए जोयणसए इगतालीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसट्टिभागं च सत्तहा छेत्ता १. तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं ( अ, क, ख,त्रिबस) अग्रेपि । २. अभिवुड्ढेमाणे (ख) त्रि) । ३. सव्वबाहिराणंतरे (खस, शावृ ) । ४. तयणंतराओ तयणंतरं चंदमंडलाओ चंदमंडलं (त्रि, ही ) । ५. णिबुड्ढेमाणे (अत, ख, त्रि, पत्र,स) । ६. अउणवीसे ( अ, ब ) ; अउणावीसे (क, ख, त्रिस ) । ७. जं० ७७३ । ८. इतालीस ( अ, ब ) : इयालीसं ( क ) ; एगताली (त्रि ) । Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५.६४ Shara दोfor a चुणिया भाए आयाम - विक्खंभेणं, तिष्णिय जोयणसयसहस्साइं पण्णरस जोयणसहस्साइं पंच य इगुणापणे' जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं । एवं खलु एएणं उवाणं णिक्खममाणे चंदे' 'तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडल संकममाणेसंकममाणे बावर्त्तारं-बावर्त्तारं जोयणाई एगावण्णं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसट्टिभागं च सत्तहा छेत्ता एगं च चुण्णियाभागं एगमेगे मंडले विक्खंभवुढि अभिवड्ढेमाणे- अभिवड्ढेमाणे दो-दो तीसा जोयणसयाई परिरयवुडि अभिवड्ढेमाणे- अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ ७६. सव्वबाहिरए णं भंते ! चंदमंडले केवइयं आयाम - विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एगं जोयणसयसहस्सं छच्चसट्ठे जोयणसए आयाम - विक्खंभेणं, तिणि य जोयणसयसहस्साइं अट्ठारस सहस्साइं तिण्णि य पण्णरसुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं ॥ ७७. बाहिराणंतरे णं पुच्छा । गोयमा ! एगं जोयणसयसहस्सं पंच सत्तासीए' जोयणस एव य एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्तहा छेत्ता छ चुण्णिया भाए आयामविक्खंभेणं, तिण्णि य जोयणसय सहस्साइं अट्ठारस सहस्साई पंचासीइं च जोयणाई परिक्खेवेणं ॥ ७८. बाहिरतच्चे णं भंते ! चंदमंडले जाव' पण्णत्ते ? गोयमा ! एगं जोयणसयसहस्सं पंच य चउदसुत्तरे जोयणसए एगूणवीसं " च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्ता छेत्ता पंच चुण्णियाभाए आयाम - विक्खंभेणं, तिण्णिय जोयणसयसहस्साई सत्तरस सहस्साइं अट्ठ' य पणपणे जोयणसए परिक्खेवेणं । एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे चंदे" "तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडल संकममाणे- संकममाणे बावर्त्तारंबावर्त्तारं जोयणाई एगावण्णं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसट्टिभागं च सत्तहा छेत्ता एगं चुण्णियाभागं एगमेगे मंडले विक्खंभवुद्धिं विड्ढेमाणे- णिवड्ढेमाणे दो-दो तीसाई* जय साई परिरयवुड णिवड्ढेमाणे- णिवड्ढेमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ ७६. जया णं भंते ! चंदे सव्वब्भंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच जोयणसहस्साइं तेवतरि च जोयणाई सत्ततरं च चोयाले भागसए गच्छइ मंडलं तेरसहि सहस्सेहिं सत्तहि य पणवीसेहिं" सएहिं छेत्ता । तया णं इहगयस्स मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं दोहिय तेवट्ठेहिं जोयणसएहिं एगवीसाए य सट्टिभाएहिं जोयणस्स चंदे चक्खुप्फासं हव्वमा गच्छइ ॥ १. अणपणे (अत्रि, ब); अउणापण्णे (क, स ) ; अगुणापणे ( ख ) । २. सं०पा०-- चंदे जाव संकममाणे । ३. सत्तावीसे ( अ,ख, ब ) । ४. जं० ७७३ । ५. अउणावीसं ( अ, क, ख, त्रि, स ) । ६. सत्त ( अ, क, ख, ब ) । ७. सं० पा० - चंदे जाव संकममाणे । ८. असीयाई ( अ, ब ) । 8. जदा ( अ, क, ख, ब ) । १०. पणुवीसेहि (अ, क, ख, त्रि, ब ) । Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो ८०. जया णं भंते ! चंदे अब्भंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, 'तया णं एगमेगेणं मुहत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा! पंच जोयणसहस्साई सत्तत्तरिं च जोयणाई छत्तीसं च चोवत्तरे भागसए गच्छइ मंडलं तेरसहि' 'सहस्सेहिं सत्तहि य पणवीसेहिं सएहि छेत्ता॥ ८१. जया णं भंते ! चंदे अब्भंतरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच जोयणसहस्साइं असीइं च जोयणाइं तेरस य भागसहस्साई तिण्णि य एगुणतीसे भागसए गच्छइ मंडलं तेरसहि सहस्सेहि सत्तहि य पणवीसेहिं सएहि छेत्ता। एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे चंदे तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं संकममाणे-संकममाणे तिण्णि-तिण्णि जोयणाई छण्णउइं च पंचावण्णे भागसए एगमेगे मंडले मुहुत्तगई अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ।। ८२. जया णं भंते ! चंदे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच जोयणसहस्साई एगं च पणवीसं जोयणसयं अउणतरि च णउए भागसए गच्छइ मंडलं तेरसहिं भागसहस्सेहिं सत्तहि य •पणवीसेहिं सएहि छेत्ता। तया णं इहगयस्स मणू सस्स एक्कतीसाए जोयणसहस्सेहि अट्टहि य एगत्तीसेहिं जोयणसएहि चंदे चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ ॥ ८३. जया णं भंते ! बाहिराणंतरं पुच्छा। गोयमा! पंचजोयणसहस्साई एक्कं च एक्कवीसुत्तरं जोयणसयं एक्कारस य सट्टे भागसहस्से गच्छइ मंडलं तेरसहिं 'सहस्सेहिं सत्तहि य पणवीसेहि सएहिं छेत्ता ॥ ८४. जया णं भंते ! बाहिरतच्च पुच्छा। गोयमा! पंचजोयणसहस्साई एगं च अट्ठारसुत्तरं जोयणसयं चोइस य पंचुत्तरे भागसए गच्छइ मंडलं तेरसहिं सहस्सेहि सत्तहिं पणवीसेहिं सएहिं छेत्ता। एवं खलु एएणं उवाएणं •पविसमाणे चंदे तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं' संकममाणे-संकममाणे तिण्णि-तिण्णि जोयणाई छण्णउइं च पंचावण्णे भागसए एगमेगे मंडले महत्तगई णिवड्ढेमाणे-णिवड्ढेमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ ।। ८५. कइ णं भंते ! णक्खत्तमंडला पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ णक्खत्तमंडला पण्णत्ता॥ ८६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया णक्खत्तमंडला पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहेत्ता, एत्थ णं दो णक्खत्तमंडला पण्णत्ता । १. सं० पा०---चरइ जाव केवइयं । ६. सं० पा० ..तेरसहिं जाव छेत्ता। २. चोयत्तरे (अ,ब)। ७. सं० पा०-तयणंतराओ जाव संकममाणे । ३. सं० पा०-तेरसहिं जाव छेत्ता। ८. संपा०-य जाव छेत्ता। ४. केषुचित् सूत्रेषु चन्द्रस्य चक्षुःस्पर्शस्य प्रतिपत्ति- ६. एक्कवीसं (प)। नँव दृश्यते। १०. सं० पा० -तेरसहिं जाव छेत्ता ५. अउणतीसे (अत्रि,ब); अउणातीसे (ख)। ११. सं० पा.--उवाएणं जाव संकममाणे । Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीपणती ८७. लवणे णं भंते ! समुद्दे केवइयं ओगाहेत्ता केवइयं णक्खत्तमंडला पण्णत्ता ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे तिणि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं छ णक्खत्तमंडला पण्णत्ता । एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणसमुद्दे अट्ठ णक्खत्तमंडला भवतीतिक्खायं ॥ ८८. सव्वमंतराओ णं भंते ! णक्खत्तमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए णक्खत्तमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए णक्खत्तमंडले पण्णत्ते || ५६६ ८६. णक्खत्तमंडलस्स णं भंते ! णक्खत्तमंडलस्स य एस णं केवइयं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! दो जोयणाई णक्खत्तमंडलस्स णक्खत्तमंडलस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ६०. णक्खत्तमंडले णं भंते! केवइयं आयाम - विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! गाउयं आयाम - विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, अद्धगाउयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वब्भंतरे णक्खत्तमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीस जोयणतहस्साई अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहाए सव्वन्तरे णक्खत्तमंडले पण्णत्ते || ६२. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए णक्खत्तमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्सा इं तिष्णि य तीसे जोयस ए अबहाए सव्वबाहिरए णक्खत्तमंडले पण्णत्ते ॥ ६३. सव्वभंतरे णं भंते ! णक्खत्तमंडले केवइयं आयाम विक्खमेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! णवणउई जोयणसहस्साई छच्चचत्ताले जोयणसए आयाम - विक्खंभेणं, तिष्णिय जोयणसयसहस्साइं पण्णरस जोयणसहस्साइं एगुणणवई च जोयणाई किचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ ६४. सव्वबाहिरए णं भंते ! णक्खत्तमंडले केवइयं आयाम - विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एवं जोयणस्यसहस्सं छच्च सट्ठे जोयणसए आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसय सहस्साइं अट्ठारस य जोयणसहस्साइं तिण्णि य पण्णरसुत्तरे जोयस परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ ६५. जया णं भंते ! णक्खत्ते सव्वब्भंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच जोयणसहस्साइं दोणि य पणट्ठे जोयणसए अट्ठारस य भागसहस्से दोण्णि य तेवट्ठे भागसए गच्छइ मंडलं एक्कवीसा भागसहस्सेहिं णवहि य सट्ठेहिं सएहिं छेत्ता ॥ ६६. जया णं भंते ! णक्खत्ते सव्वबाहिरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोथमा ! पंच जोयणसहस्साइं तिष्णि य एगूण३. मंडलस्य (त्रि, प ) 1 १. मक्खाया (अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । २. केवइयाए ( प ) सर्वत्र । Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो ५६७ वीसे जोयणसए सोलस य भागसहस्सेहिं तिण्णि य पण्णठे भागसए गच्छइ मंडलं एगवीसाए भागसहस्सेहिं णवहि य सठेहिं सएहिं छेत्ता॥ ६७. एए णं भंते ! अट्ठ णक्खत्तमंडला कइहिं चंदमंडलेहि समोयरंति ? गोयमा ! अहिं चंदमंडलेहिं समोयरंति, तं जहा--पढमे चंदमंडले तइए छठे सत्तमे अट्टमे दसमे एक्कारसमे पण्णरसमे चंदमंडले ॥ १८. एगमेगेणं भंते ! मुहत्तेणं चंदे केवइयाई भागसयाइं गच्छइ ? गोयमा ! ज-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तस्स-तस्स मंडलपरिक्खेवस्स 'सत्तरस अट्ठठे' भागसए गच्छइ मंडलं सयसहस्सेणं अट्ठाणउईए य सएहि छे ता॥ 68. एगमेगेणं भंते ! महत्तेणं सुरिए केवइयाइं भागसयाइं गच्छइ ? गोयमा ! ज-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तस्स-तस्स मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारसतीसे भागसए गच्छइ मंडलं सयसहस्सेहिं अट्ठाणउईए य सएहिं छेत्ता ॥ १००. एगमेगेणं भंते ! मुहुत्तेणं णक्खत्ते केवइयाइं भागसयाइं गच्छइ ? गोयमा ! जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तस्स-तस्स मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारस पणतीसे भागसए गच्छइ मंडलं सयसहस्सेणं अट्ठाणउईए य सएहिं छेत्ता ॥ १०१. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया 'उदीण-पाईणमुग्गच्छ” पाईण-दाहिणमागच्छंति, पाईण-दाहिणमुग्गच्छ दाहिण-पडीणमागच्छंति, दाहिणपडीणमुग्गच्छ पडीण-उदीणमागच्छंति, पडीणउदीणमुग्गच्छ उदीण-पाईणमागच्छंति ? हंता गोयमा ! जहा पंचमसए पढमे उद्देसे जाव' णेवत्थि उस्स प्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो! इच्चेसा जंबुद्दीवपण्णत्ती सूरपण्णत्ती वत्थुसमासेणं समत्ता भवइ ।। १०२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे चंदिमा' उदीण-पाईणमुग्गच्छइ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जहा सूरवत्तव्वया जहा पंचमसयस्स दसमे उद्देसे जाव' अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो ! इच्चेसा जंबुद्दीवपण्णत्ती चंदपण्णत्ती वत्थुसमासेणं समत्ता भवइ॥ १०३. कइ णं भंते ! संवच्छरा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच संवच्छरा पण्णत्ता, तं जहा--णक्खत्तसंवच्छरे जुगसंवच्छरे पमाणसंवच्छरे लक्खणसंवच्छरे सणिच्छरसंवच्छरे । १०४. णक्खत्तसंवच्छरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुवालसविहे पण्णत्ते, तं जहा-सावणे भद्दवए आसोए 'कत्तिए मग्गसिरे पोसे माहे फग्गुणे चेत्ते वइसाहे १. अउणापण्णे (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पु,हीव)। २. पणठे (ब)। ३. सत्तरसट्टठे (अ,ब); सत्तरटुमठे (स); सप्तदशशतानि अष्टषष्ठिभागैरधिकानि गच्छति (शा)। ४. उदीयिपादीण° (अ,ब) अग्रेपि । ५. भ० ५।३-२० । ६. पण्णत्ता (त्रि, हीव) । ७. चंदमा (त्रि) । ८. भ० ५।२३० । ६. सनिच्छर° (ब)। १०.सं० पा०- आसोए जाव आसाढे । Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ जंबुद्दीवपण्णत्ती जेवामूले आसाढे, जं वा विहप्फइ' महग्गहे दुवालसेहिं संवच्छरेहि सव्वणक्खत्तमंडलं समाणेइ । सेत्तं णक्खत्तसंवच्छरे । १०५. जुगसंवच्छरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा—चंदे चंदे अभिवड्डिए' चंदे अभिवड्डिए चेव ॥ १०६. पढमस्स णं भंते ! चंदसंवच्छरस्स कइ पव्वा पण्णत्ता ? गोयमा ! चउव्वीसं पव्वा पण्णत्ता॥ १०७. बिइयस्स णं भंते ! चंदसंवच्छरस्स कइ पव्वा पण्यत्ता? गोयमा! चउव्वीसं पव्वा पण्णत्ता॥ १०८. एवं पुच्छा तइयस्स । गोयमा ! छव्वीसं पव्वा पण्णत्ता । १०६. चउत्थस्स चंदसंवच्छरस्स चोव्वीसं पव्वा पण्णत्ता । ११० पंचमस्स णं अभिवड्डियस्स छव्वीसं पव्वा पण्णत्ता । एवामेव सपुव्वावरेणं पंचसंवच्छरिए जुए एगे चउव्वीसे पव्वसए पण्णत्ते । सेत्तं जुगसंवच्छरे॥ १११. पमाणसंवच्छरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा—णक्खत्ते चंदे उऊ' आइच्चे अभिवड्डिए । सेत्तं पमाणसंवच्छरे ॥ ११२. लक्खणसंवच्छरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहागाहा-- समयं णक्खत्ता जोगं जोयंति समयं उद् परिणमंति। णच्चुण्ह णाइसीओ, बहूदओ होइ णक्खत्ते ॥१॥ ससि समगं' पुण्णमासिं, जोएंति विसमचारिणक्खत्ता । कडुओ बहूदओ वा', तमाहु संवच्छरं चंदं ॥२॥ विसमं पवालिणो परिणमंति, अणुदूसु देंति फुप्फफलं । वासं न सम्म वासइ, तमाहु संवच्छरं कम्मं ॥३॥ पुढविदगाणं तु रस, पुप्फफलाणं च देइ आइच्चो। अप्पेणवि वासेणं, सम्म निप्फज्जए सासं ॥४॥ आइच्चतेयतविया, खणलवदिवसा उऊ परिणमंति । 'पूरेइ य णिण्णथले, तमाहु अभिवड्डियं जाण ॥५॥ १. वहस्सई (अ,क,ख,ब,स)। २. अहिवढिए (अ,ब) अग्रेपि। ३. उडू (अ); उदू (क,ख,त्रि,ब)। ४. जोएंति (अ,क,ब)। ५. 'ससि' त्ति विभक्तिलोपात् शशिना (हीव)। ६. समयं (अ,ब); समय (क,स); समग (ख,त्रि,प); सगल (ठाणं श२१३१२)। ७. या (अ,ख,ब); आ (प)। ८. अणुऊसु (प)। ६. च (प)। १०. सस्सं (क,ख,त्रि,प)। ११. पूरिति य णिण्णतले (अ,ब); स्थानागे (५।२९३३५) 'पूरेति रेणु थलयाई' इति पाठो लभ्यते, किन्तु सूर्यप्रज्ञप्ति-चन्द्रप्रज्ञप्त्योः (१०।१२६) 'पूरेति णिण्णथलए' इति पाठो दृश्यते । वृत्तिकृता मलयगिरिणापि निम्नस्थानानि स्थलानि च जलेन पूरयति' इति व्याख्यातमस्ति। Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो ५६६ वृत्तं ११३. सणिच्छरसंवच्छरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठावीसइविहे पण्णत्ते, तं जहा -- गाहा- अभिई सवणे धणिट्ठा, सयभिसया दो य होंति भद्दवया। ___ रेवइ अस्सिणि भरणी, कत्तिय तह रोहिणी चेव ॥१॥ जाव' उत्तराओ आसाढाओ जं वा सणिच्चरे महग्गए तीसाए संवच्छरेहिं सव्वं णक्खत्तमंडलं समाणेइ । सेत्तं सणिच्चरसंवच्छरे ॥ ११४. एगमेगस्स णं भंते ! संवच्छरस्स कइ मासा पण्णत्ता? गोयमा ! दुवालस मासा पण्णत्ता । तेसि णं दुविहा णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-लोइया लोउत्तरिया य । तत्थ लोइया णामा इमे', तं जहा-सावणे भद्दवए जाव' आसाढे। लोउत्तरिया णामा इमे, तं जहा--- अभिणदिए" पइठे य, विजए पीइवद्धणे। सेयंसे य सिवे चेव, सिसिरे य सहेमवं ॥१॥ णवमे वसंतमासे, दसमे कुसुमसंभवे । एक्कारसे 'निदाहे य", वणविरोहे' य बारसे ॥२॥ ११५. एगमेगस्स णं भंते ! मासस्स कइ पक्खा पण्णता ? गोयमा ! दो पक्खा पण्णत्ता, तं जहा–बहुलपक्खे य सुक्कपक्खे य॥ ११६. एगमेगस्स णं भंते ! पक्खस्स कइ दिवसा पण्णत्ता ? गोयमा ! पण्णरस दिवसा पण्णत्ता, तं जहा–पडिवादिवसे बिइयादिवसे जाव पण्णरसीदिवसे ॥ ११७. एएसि णं भंते ! पण्णरसण्हं दिवसाणं कइ णामधेज्जा" पण्णत्ता? गोयमा ! पण्णरस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहागाहा- 'पुव्वंगे सिद्धमणोरमे य, तत्तो मणोहरे चेव । जसभद्दे य जसधरे, छठे सव्वकामसमिद्धे य ॥१॥ इंदमुद्धाभिसित्ते य, सोमणस" धणंजए य बोद्धव्वे । अत्थसिद्ध अभिजाए, अच्चसणे सयंजए चेव ॥२॥ अग्गिवेसे उवसमे, दिवसाणं होंति णामधेज्जाइं। १. जं० ७.१२८ । ७. य णिद्दाहे (ब)। २. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ८. वणवरोधे (क,ख); वणविरोहि (त्रि,हीव); ३. जं०७।१०४। वणविरोधे (स); सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तौ तु....... ४. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। वणविरोहस्थाने तु वणविरोधि (शावृ) । ५. अभिणादिए (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुत्,हीवृ); ६. सुक्किलपक्खे (ख,स) । क्वचिदभिनंदन इति पठ्यते (पुव); सूर्य- १०. णामधेया (त्रि)। प्रज्ञप्तिवत्तौ तु अभिनन्दितस्थाने अभिनन्दः १ त णोरोग ननो, (शाव); चन्द्रप्रज्ञप्त्यादौ तु 'अहिणं दिए' त्ति १२. मणो रहे (अ,क,ख,ब) । पाठस्तत्राभिनंदित इति (हीव) । १३. सोमणसे (क,त्रि)। ६. x (अ,क,ख,त्रि,ब)। Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० जंबुद्दीवपण्णत्ती ११८. एएसि णं भंते ! पण्णरसण्हं दिवसाणं कइ तिही पण्णत्ता? गोयमा ! पण्णरस तिही पण्णत्ता, तं जहा ___णंदे भद्दे जए तुच्छे, पुण्णे पक्खस्स पंचमी। पुणरवि-- गंदे भद्दे जए तुच्छे, पुण्णे पक्खस्स दसमी। पूणरवि- णंदे भद्दे जए तुच्छे, पुण्णे पक्खस्स पण्णरसी । एवं एते तिगुणा तिहीओ सव्वेंसि दिवसाणं । ११६. एगमेगस्स णं भंते ! पक्खस्स कई राईओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! पण्णरस पार्टयो पत्ताओ तं जहा--पडिवाराई जाव पण्णरसीराई॥ १२०. एयासि णं भंते ! पण्णरसण्हं राईणं कइ णामधेज्जा पण्णत्ता ? गोयमा ! पण्णरस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहागाहा- उत्तमा य सुणक्खत्ता, एलावच्चा जसोहरा। सोमणसा चेव तहा, सिरिसंभूया य बोद्धव्वा ॥१॥ विजया य वेजयंति, जयंति अपराजिया य इच्छा य। समाहारा चेव तहा, तेया य तहेव' अइतेया ॥१॥ देवाणंदा णिरई, रयणीणं णामधेज्जाई। १२१. एयासि णं भंते! पण्णरसण्हं राईणं कइ तिही पण्णत्ता ? गोयमा ! पण्णरस तिही पण्णत्ता, तं जहा-उग्गवई, भोग्गई, जसवई, सव्वसिद्धा सुहाणामा। पुणरवि- उग्गवई भोगवई जसवई सवसिद्धा सुहणामा। उग्गवई भोगवई जसवई सव्वसिद्धा सुहणामा । एवं एए तिगुणा तिहीओ सव्वेसिं राईणं ।। १२२. एगमेगस्स णं भंते ! अहोरत्तस्स कइ मुहत्ता पण्णत्ता? गोयमा ! तीसं मुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहागाहा-- रोद्दे सेए मित्ते, वाउ सुपीए तहेव अभिचंदे । माहिंद" बलव बंभे, बहुसच्चे चेव ईसाणे५ ।।१।। पुणरवि १. उत्तरमा (अ,ब)। २. महाहारा (अ,ब)। ३. तहा (प)। ४. अभितेया (अ,ब)। ५. निरतीति पंचदश्या एव द्वितीयं नाम (हीव)। ६. सवदसिद्धा (अ,क ख,त्रि,ब,स,पुव) सर्वत्र। सूर्यप्रज्ञप्ति उत्तौ तु सर्वार्थसिद्धास्थाने सर्वसिद्धेति दृश्यते (पुवृ)। ७. मुहुत्ता मुहुत्तग्गेणं (सम ३०१३)। ८. रुद्दे (त्रि,प)। ६. सुवीए (क,ख,त्रि,प,स)। १०. अभिणंदे (अ,क,ख,ब)। ११. महिंदे (अ,क,ख,ब) ! १२. बलवं (अ,क,त्रि,ब,स); पलंबे (सम० ३०१३) । १३. पण्ह (अ,ब); पक्ष्मः क्वचिद् ब्रह्मेति दृश्यते (पुत्र); पक्ष्म: (चन्द्र प्रज्ञप्तिवृत्ति १०१८४)। अतः परं समवायाङ्गे (३०३) नाम्नां व्यत्ययो भेदश्च दृश्यते-- सच्चे आणंदे विजए वीरासेणे वायावच्चे उसमे ईसाणे तिठे Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो ५७१ तळे' य भावियप्पा', वेसमणे वारुणे' य आणंदे । विजए य वीससेणे, पायावच्चे उवसमे य ॥२॥ गंधव्व' अग्गिवेसे, सयवसहे आयवं य अममे य । अणवं भोमे च रिसहे", सव्वळे रक्खसे चेव ॥१॥ १२३. कइ णं भंते ! करणा पण्णत्ता? गोयमा! एक्कारस करणा पण्णत्ता, तं जहा--बवं बालवं कोलवं थीविलोयणं" गराइ वणिज विट्ठी सउणी चउप्पयं णागं किंथुग्धं ॥ १२४. एएसि णं भंते ! एक्कारसण्हं करणाणं कइ करणा चरा, कइ करणा थिरा पण्णत्ता? गोयमा ! सत्त करणा चरा, चत्तारि करणा थिरा पण्णत्ता, तं जहा-बवं बालवं कोलवं थीविलोयणं गराइ वणिज विट्ठी-एए णं सत्त करणा चरा। चत्तारि करणा थिरा पण्णत्ता, तं जहा—-सउणी चउप्पयं णागं किंथुग्घं-एए णं चत्तारि करणा थिरा ॥ १२५. एए णं भंते ! चरा थिरा वा कया" भवंति ? गोयमा ! सुक्कपक्खस्स पडिवाए ५ राओ बवे करणे भवइ । बिइयाए दिवा बालवे करणे भवइ, राओ" कोलवे करणे भवइ । तइयाए दिवा थीविलोयणं करणं भवइ, राओ गराइ करणं भवइ । चउत्थीए दिवा वणिज राओ विट्ठी । पंचमीए दिवा बवं, राओ बालवं। छट्ठीए दिवा कोलवं, राओ थीविलोयणं । सत्तमीए दिवा गराइ, राओ वणिज । अदमीए दिवा विटी, राओ बवं । णवमीए दिवा बालवं, राओ कोलवं । दसमीए दिवा थीविलोयणं, राओ गराइ। एक्कारसीए दिवा वणिज, राओ विट्ठी। बारसीए दिवा बवं, राओ बालवं । तेरसीए दिवा कोलवं, राओ थीविलोयणं चउद्दसीए दिवा गराइ करणं, राओ वणिज । पुण्णिमाए दिवा विट्ठी करणं, राओ बवं करणं भवइ । भावियप्पा बेसमणे वरुणे सतरिसभे गंधते . सत्यवान् (चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्ति १०८४)। अग्गिवेसायणे आतवं आवधं तदुवे भूमहे रिसभे १०. तिय (अ,ब); ईय (क); इय (ख,स); सव्वट्ठसिद्धे रक्खसे। ___इया (त्रि)। १४. च्चेव (अ)। ११. थीविलोवणं (अ); थीवलोवणं (ब); थीलो१५. तीसाणे (अ,ब)। __यणं (स); अन्यत्रास्य स्थाने तैतिलं (शावृ)। १. तत्थे (क,ख); सट्टे (त्रि); स्रष्टा (हीवृ, १२. गराई (त्रि); अन्यत्र गरं (शावृ); ज्योतिः __ चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्ति १०।१३) । शास्त्रेषु गरादि स्थाने गरं स्त्रीविलोचनस्थाने २. भावियाया (ख)। तैतलमिति (ही)। ३. अपरः (चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्ति (१०१८४) । १३ वाणिज्ज (त्रि); वाणिज्यं (पुर्व)। ४. विजयसेनः (चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्ति १०१८४)। १४. कता (अ,ब); कदा (त्रि)। ५. पादावच्चे (अ,ब)। १५. पडियदे (अ,ब); पडिवए (क,ख,स)। ६. गंधव्वे (अ,ब); गंधवे य (क,ख,स)। १६. पालवे (अ,ब)। ७. x (ख,त्रि,प,स)। १७. रातो (ब)। ८. वसहे (ख,त्रि,प)। १८. कोलते (स)। Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ जंबुद्दीवपण्णत्ती बहुलपक्खस्स पडिवाए' दिवा' बालवं, राओ कोलवं । बिइयाए दिवा थीविलोयणं, राओ गराइ । तइयाए दिवा वणिज, राओ विट्ठी। चउत्थीए दिवा बवं, राओ बालवं । पंचमीए दिवा कोलवं, राओ थीविलोयणं । छट्ठीए दिवा गराइ, राओ वणिज । सत्तमीए दिवा विट्ठी, राओ बवं । अट्ठमीए दिवा बालवं, राओ कोलवं । णवमीए दिवा थीविलोयणं, राओ गराइ । दसमीए दिवा वणिज, राओ विट्ठी। एक्कारसीए दिवा बवं राओ बालवं । बारसीए दिवा कोलवं, राओ थीविलोयणं । तेरसीए दिवा गराइ, राओ वणिजं। चउद्दसीए दिवा विट्ठी, राओ सउणी । अमावसाए दिवा चउप्पयं, राओ णागं। सुक्कपक्खस्स पडिवाए दिवा किंथुग्धं करणं भवइ । १२६. किमाइया णं भंते ! संवच्छरा, किमाइया अयणा, विमाइया उऊ, किमाइया मासा. किमाइया पक्खा, किमाइया अहोरत्ता, किमाइया महत्ता, किमाइया करणा, किमाइया णक्खत्ता पण्णत्ता ? गोयमा ! चंदाइया संवच्छरा, दक्खिणाइया अयणा, पाउसाइया उऊ, सावणाइया मासा, बहुलाइया पक्खा, दिवसाइया अहोरत्ता, रोद्दाइया महत्ता बालवाइया करणा, अभिजियाइया णक्खत्ता पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ १२७. पंचसंवच्छरिए णं भंते ! जुगे केवइया अयणा, केवइया उऊ, एवं मासा पक्खा अहोरत्ता, केवइया मुहुत्ता पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचसंवच्छरिए णं जुगे दस अयणा, तीसं उऊ, सट्ठी मासा, एगे वीसुत्तरे पक्खसए, अट्ठारसतीसा अहोरत्तसया, चउप्पण्णं महत्तसहस्सा णव य सया पण्णत्ता । गाहा- जोगो देवय तारग्ग, गोत्त संठाण चंदरविजोगो। कूल पूण्णिम अवमंसा य, सण्णिवाए य णेया य ॥१॥ १२८. कइ णं भंते ! णक्खत्ता पण्णत्ता? गोयमा ! अट्ठावीसं णक्खत्ता पण्णत्ता, तं जहा--अभिई सवणो धणिट्ठा सयभिसया पुव्वभद्दवया उत्तरभद्दवया रेवई अस्सिणी भरणी कत्तिया रोहिणी मियसिरं अद्दा पुणव्वसू पूसो अस्सेसा मघा पुव्वफग्गुणी उत्तरफग्गुणी हत्थो चित्ता साइ विसाहा अणुराहा जेट्ठा मूलं पुवासाढा उत्तरासाढा ॥ १२६. एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ता, जे णं सया चंदस्स दाहिणेणं जोयं जोएंति ? कयरे णक्खता, जे णं सया चंदस्स उत्तरेणं जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता, जे णं चंदस्स दाहिणेणवि उत्तरेणवि पमपि जोगं जोएंति ? कयरे १. पडिवए (अ,ख,ब,स); पाडिवए (क,त्रि)। बहुलप्रतिपद्दिवसे तस्पैव सम्भवात् (शाव) । २. दिया (अ,ब)। ८. अभिजिदादिया (अ,ब); अभिजादिया (क,स); ३. अवामसाए (अ,ब)। अभिजादीया (ख)। ४. पाडिवाए (अ,क,ब); पडिवए (ख)। ६. समणे (अ,ब)। ५ उदू (अ,त्रि,ब)। • मगसिरं (ब)। ६. पाउसातिया (अ,ब)। १. पुस्सो (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ७. ववातिया (अ,ब); बवादिया (क,ख,स); १२. जोयंति (अ); जोगंति (ब)। बवादीनि (पुत्र); बालवादिकानि करणानि १३. दाहिणेणंपि (प)। Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो णवखत्ता, जे णं चंदस्स दाहिणेण वि पमपि जोयं जोएंति ? कयरे णवखत्ता, जे णं सया चंदस्स पमई जोयं जोएंति ? गोयमा ! एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं, तत्थ णं', जेते णक्खत्ता 'जे णं" सया चंदस्स दाहिणेणं जोयं जोएंति, ते णं 'छ, तं" जहा.---. गाहा- संठाण अद्द पुसो, सिलेस हत्थो तहेव मूलो य। . बाहिरओ बाहिरमंडलस्स छप्पेते णक्खत्ता ॥१॥ तत्थ' णं जेते णवखत्ता जे णं सया चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, ते णं बारस, तं जहाअभिई सवणो धणिट्ठा सयभिसया पुव्वभद्दवया उत्तरभद्दवया रेवई अस्सिणी भरणी पुव्वफग्गुणी उत्तरफग्गुणी साई। तत्थ णं जेते णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स दाहिणेणविच उत्तरेणवि पमपि जोगं जोएंति, ते णं सत्त, तं जहा--कत्तिया रोहिणी पूणव्वसू मघा चित्ता विसाहा अणराहा। तत्थ णं जेते णक्खत्ता, जे णं सया चंदस्स दाहिणओवि पमपि जोगं जोएंति, ताओ णं दुवे आसाढाओ । सव्वबाहिरए मंडले जोगं जोइंसु वा जोइंति वा जोइंस्संति वा । तत्थ णं जेसे णक्खत्ते, जे णं सया चंदस्स पमई जोगं जोएइ सा णं एगा जेट्टा ॥ १३०. एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई णक्खत्ते किदेवयाए पण्णत्ते ? गोयमा ! बम्हदेवयाए पण्णत्ते । सवणे" णक्खत्ते विण्हुदेवयाए पण्णत्ते । धणिट्ठा णक्खत्ते वसुदेवयाए पण्णत्ते । एएणं कमेणं णेयव्वा अणुपरिवाडीए'५ इमाओ देवयाओ बम्हा विण्हू वसू वरुणे आए अभिवड्डी" पूसे आसे जमे अग्गी पयावई सोमे रुद्दे अदिती वहस्सई सप्पे पिऊ भगे अज्जम सविया तट्टा वाऊ इंदग्गी मित्तो इंदे णिरई आऊ विस्सा य, एवं णक्खत्ताणं 'एताए परिवाडीए' णेयव्वा जाव उत्तरासाढा किंदेवया पण्णत्ता? गोयमा ! विस्सदेवया" पण्णत्ता॥ १. x (अ,ब)। ११. दाहिणओवि (प)। २. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । १२. उत्तरओवि (प)। ३. छत्तं (अ,ब)। १३. कित्तिया (क,ख,स)। ४. मृगशिरः (सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्ति, पत्र १३८)। १४. समणे (अ,ब)। ५. समवायांगे (६।६) अस्मिन् प्रकरणे नव १५. अणुपरिवाडीय (अ,क,ख,ब,स); अणपरिवाडी नक्षत्राणामुल्लेखो विद्यते--अभीजिया इया नव (प)। नक्खत्ता चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, तं १६. विविद्धी (अ,क,ख,ब); अभिवड्डी (त्रि); जहा-अभीजि सवणो धणिद्रा रायभिसया अहिविड्डी (स); अभिवृद्धिः क्वचिद् विद्धिपुव्वाभद्दवया उत्तरापोवया रेवई अस्सिणी र्ग्रन्थान्तरे अहिर्बुध्नः (पुवृ); अभिवृद्धि: अन्यभरणी। बाहिर्बुध्न: (शावृ); अभिवृद्धिः ज्योतिःशास्त्रे ६. अभिती (अ,ब,स); अभिवी (क,ख)। तु अस्याहिर्बुध्ननामेति (ही)। ७. समणो (अ,ब)। १७. पहस्सती (अ,ब); बहप्फई (त्रि) । ८. उत्तराभद्दवया (त्रि); उत्तराभद्दवता (ब)। १८. एया परिवाडी (प)। ६. पुव्वा (क,ख,ब,स)। १६. वीसु° (अ,ब)। १०. उत्तरा° (स)। Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ जंबुद्दीवपण्णत्ती गाहा- तिमी १३१. एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिईणक्खत्ते कइतारे पण्णत्ते ? गोयमा ! तितारे पण्णत्ते । एवं णेयव्वा जस्स जइयाओ' ताराओ, इमं च तं तारग्गं-- तिग-तिग पंचेगसयं', दुग-दुग 'बत्तीसगं तिग-तिगं च । छप्पंचग-तिग-एक्कग-पंचग-तिग-छक्कगं चेव ॥१॥ सत्तग-दुग-दुग-पंचग, एक्केक्कग-पंच-चउ-तिगं चेव । एक्कारसग-चउक्कं, चउक्कगं चेव तारग्गं ।।२।। १३२. एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई' णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? गोयमा ! मोग्गलायणसगोत्ते। गाहा- मोग्गलायण संखायणे य, तह अग्गभाव कण्णिल्ले । तत्तो य जाउकण्णे, धणंजए० चेव बोद्धव्वे ॥१॥ पुस्सायणे११ य अस्सायणे१२ य, भग्गवेसे१३ य अग्गिवेसे य । गोयम भारद्दाए, लोहिच्चे चेव वासिठे ॥२॥ ओमज्जायण मंडव्वायणे य, पिंगायणे य गोवल्ले । कासव कोसिय दब्भा य, चामरच्छाय सुंगा य ।।३।। गोलव्वायण तेगिच्छायणे य कच्चायणे हवइ मुले । तत्तो य वज्झियायण, वग्यावच्चे य गोत्ताई॥४॥ १३३. एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिईणक्खत्ते किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! गोसीसावलिसंठिए पण्णत्ते, गाहा- गोसीसावलि काहार", सउणि पुप्फोवयार" वावी य । णावा आसक्खंधग, भग छुरघरए" य सगडुद्धी ॥१॥ १. जत्तियाओ (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १०. धणंजया (अ,ख,ब); धणंधया (क)। २. पंचगसय (प)। ११. पुस्सायणि (अ,ख,ब,स); दुस्सायणि (क) । ३. बत्तीसगतिगं तह तिगं च (प)। १२. अस्सासयणी (अ,ख,ब); अस्सायणी (स)। ४. पंच (अ,क,ख,त्रि,ब)। १३. भग्गवेसी (अ,क,ब); भग्गविसी (ख)। ५. अभीयाइ (अ,ब); अभीई आदी (क,ख)। १४. अग्गिवेसी (अ,क,ख,ब)। ६. मोग्गल्याण (प)। १५. गोदम (अ,ब)। ७. अत्तभाव (अ,ख,ब,स); अत्त (क); अग्गताव १६. मणुब्वायणे (अ,क,ख,ब) । (त्रि, हीव)। सूर्यप्रज्ञप्तेश्चन्द्रप्रज्ञप्तेश्व हस्त- १७. गोवल्ला (अ,क,ख,ब,स)। लिखितादर्शेषु उद्धृतासु जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिगाथासु १८. गोलब्वाय (क,ख,स) : गोलव्वाण (त्रि); 'अग्गभाव' इति पदं दृश्यते । गोवल्लायण (प)। ८. कण्णेल्ले (अ,ब); कणेले (क); कालण्णे १६. कासार (त्रि)। (ख) कण्णेले (स)। २०. पुप्फोवकार (अ,क,ख,ब) । ६. जातुकण्णी (अ,ब); जानुकण्णं (क); गजा- २१. छुरधारा (त्रि) । उकण्णी (ख)। Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो ५७५ मिगसीसावलि रुहिरबिंदु तुल वद्धमाणग पडागा। पागारे पलियंके', हत्थे मुहफुल्लए चेव ॥२॥ खीलग दामणि एगावली य गयदंत विच्छुयअले" य' । गयविक्कमे य तत्तो, सीहणिसाई य संठाणा ॥३॥ १३४. एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिईणवखत्ते कइमुहत्ते चंदेण सद्धि जोगं जोएइ ? गोयमा ! णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभाए मुहत्तस्स चंदेण सद्धि जोगं जोएइ । एवं इमाहि गाहाहि अणुगंतव्वं - अभिइस्स चंदजोगो, सत्तट्ठिखंडिओ अहोरत्तो। ते हुति णव मुहुत्ता, सत्तावीसं कलाओ य ॥१॥ सयभिसया भरणीओ, अद्दा अस्सेस साइ जेट्ठा य । एए छण्णक्खत्ता पण्णरसमुहुत्तसंजोगा ॥२॥ तिण्णेव उत्तराई, पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य । एए छण्णवखत्ता, पणयालमुहुत्तसंजोगा ॥३॥ अवसेसा णक्खत्ता, पण्ण रसवि हुंति तीसइमुहुत्ता। चंदंमि एस जोगो, णक्खत्ताणं मुणेयव्वो ॥४॥ १३५. एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिईणक्खत्ते कइ अहोरत्ते सूरेण सद्धि जोगं जोएइ ? गोयमा ! चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेणं सद्धि जोगं जोएइ । एवं इमाहिं गाहाहिं णेयव्वं अभिई छच्च मुहुत्ते, चत्तारि य केवले अहोरत्ते । सूरेण समं गच्छइ, एत्तो सेसाण वोच्छामि ॥१॥ सयभिसया भरणीओ, अद्दा असेस साइ जेट्ठा य । वच्चंति मुहुत्ते 'इक्कवीस छच्चेवहोरत्ते ॥२॥ तिण्णेव उत्तराई, पूणव्वस रोहिणी विसाहाय। वच्चंति मुहुत्ते, तिण्णि चेव वीसं अहोरत्ते ॥३॥ अवसेसा णक्खत्ता, पण्णरसवि सूरसहगया जंति । बारस चेव मुहुत्ते, तेरस य समे अहोरत्ते ॥४॥ १३६. कइ णं भंते ! कुला, कइ उवकुला', कइ कुलोवकुला पण्णत्ता? गोयमा ! १. रुहिरवंडु (अ,ब)। पाठो विद्यते, तेनासौ मूले स्वीकृत: 'अल' शब्द२. पडाला (अ,ब)। स्यार्थावबोधाय द्रष्टव्यः पाइयसद्दमहण्णवो। ३. पल्लंके (त्रि)। ५. या (अ,क,ख,त्रि,स); वा (ब)। ४. विच्छुलंगूल (त्रि); चन्द्रप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्त्यो- ६. सीहणिसीई (अ); सीहासणिसाई (क)। रादर्शेषु 'विच्छ्यनंगोलसंठिते, विच्छुयलंगोल' ७. इक्कवीसाइं छच्च अहोरत्ते (अ,ब); एक्कइति पाठद्वयं लभ्यते, प्रस्तूतसूत्रस्य एकस्मिन्ना- वीसति छच्च अहोरत्ते (क,ख)। दर्शषु 'विच्छुलंगुल' इति पाठो दृश्यते किन्तु ८. यंति (क); इंति (ख,स)। ताडपत्रीयादिप्राचीनादर्शेषु विच्छुअयले' इति ६. अवकुला (अ,ख,ब) सर्वत्र । Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७६ जंबुद्दीपण बारस कुला, बारस उवकुला, चत्तारि कुलोवकुला, पण्णत्ता । बारस कुला, तं जहा ट्टा कुलं उत्तरभवया कुलं अस्सिणी कुलं कत्तिया कुलं मिगसिर कुलं "पुस्सो कुलं " मघा कुलं उत्तर फग्गुणी कुलं चित्ता कुलं विसाहा कुलं मूलो कुलं उत्तरासाढा कुलं । गाहा- मासाणं परिणामा, होंति कुला उवकुला उहेट्ठिमगा । होंति पुण कुलोवकुला, अभी इसय अद्द अणुराहा ॥ १ ॥ बारस उवकुला, तं जहा-सवणो उवकुलं पुव्वभद्दवया' उवकुलं 'रेवई उवकुलं भरणी उवकुलं रोहिणी उवकुलं पुणव्वसू उवकुलं अस्सेसा उवकुलं पुव्वफग्गुणी उवकुलं हत्थो उवकुलं साई उवकुलं जेट्ठा उवकुलं" पुव्वासाढा' उवकुलं । चत्तारि कुलोवकुला, तं जहा -- अभिई कुलोकुला सयभिसया कुलोवकुला अद्दा कुलोवकुला अणुराहा कुलोवकुला ॥ १३७. कइ णं भंते ! पुण्णिमाओ, कइ अमावसाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! बारस पुण्णिमाओ, बारस अमावसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा साविट्ठी पोट्ठवई' आसोई कत्तिगी मग्गसिरी पोसी माही फग्गुणी चेत्ती वइसाही जेट्ठामूली आसाढी ॥ १३८. साविट्टिणं भंते ! पुण्णिमासि कइ णक्खत्ता जोगं जोएंति ? गोयमा ! तिणि क्खत्ता जोगं जोएंति, तं जहा - अभिई सवणो धणिट्ठा ॥ १३६. पोट्ठवइण्णं भंते ! पुण्णिमं कइ णक्खत्ता जोगं जोएंति ? गोयमा ! तिष्णि क्खत्ता जोगं जोएंति, तं जहा - सर्याभिसया पुव्वभद्द्वया उत्तरभद्दवया ॥ १४०. अस्सोइण्णं भंते ! पुण्णिमं कइ णक्खत्ता जोगं जोएंति ? गोयमा ! दो णक्खत्ता जोगं जोएंति, तं जहा - रेवई अस्सिणी य । कत्तिइण्णं दो-भरणी कत्तिया । मग्गसिरिणं दो- रोहिणी मग्गसिरं च । पोसिण्णं तिण्णि- अद्दा पुणव्वसू पुस्सो । माघिण्णं दोअस्सेसा मघा य । फग्गुणिण्णं दो-पुव्वाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी य । चेत्तिणं दो - हत्थो चित्ता य | विसाहिणं दो-साई विसाहा य । जेट्ठामूलिणं तिण्णि-अणुराहा जेट्ठा मूलो । आसाढण्णं दो- पुव्वासाढा उत्तरासाढा ॥ १४१. साविट्टिणं भंते! पुण्णिमं किं कुलं जोएइ ? उवकुलं जोएइ ? कुलोवकुलं जोइ ? गोयमा ! कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ, कुलोवकुलं वा जोएइ । कुलं जोएमाणे धणिट्ठा णक्खत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे सवणे" णक्खत्ते जोएइ, कुलोकुलं जो माणे अभिई णक्खत्ते जोएइ । साविट्टिण्णं पुष्णिमासि कुलं वा जोएइ उवकुलं वा जोएइ, कुलोवकुलं वा जोएइ । कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता कुलोवकुलेण वा जुत्ता साविट्ठी पुणिमा जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया ॥ १२ १. पूसो कुलं ( अ, ब ) ; पुस्तकुलं ( क, ख, त्रि, स ) । २. महा ( प ) 1 ३. उत्तरा° ( अ, ब ) । ४. पुवा° ( अ, ब ) । ५. रेवती भरणी य रोहिणी य, पुणव्वसू य असेसा । पुव्वा फग्गुणीय हत्थो य, साती य जेट्टा य । (अ,ख,ब,स) । ६. पुन्हाआसाढा ( अ, ब ) । ७. अवामंसाओ ( ब ) । ८. पोट्ठवदा ( अ, ब ) ; पोट्ठवया ( क,ख, स ) । ६. पुव्वा° (अ, क,ख,ब) । १०. उत्तरा° (अ, ब ) । ११. समाणे ( अ, ब ) | १२. सं० पा०—– जो एइ जाव कुलोवकुलं । Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वखारो ५७७ १४२. पोट्ठवइण्णं भंते ! पुण्णिमं किं कुलं जोएइ पुच्छा । गोयमा ! कुलं वा उवकुलं वा कुलोवकुलं वा जोएइ । कुलं जोएमाणे उत्तर भद्दवया णवखत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे पुव्वभद्दवया णक्खत्ते जोएइ, कुलोवकुलं जोएमाणे सय भिसया णदखत्ते जोएइ। पोट्टवइण्णं पुण्णिमं कुलं वा जोएइ जाव कुलोवकुलं वा जोएइ। कुलेण वा जुत्ता जाव कुलोवकुलेण वा जुत्ता पोट्ठवई पुण्णमासी जुत्तति वत्तव्वं सिया ॥ १४३. अस्सोइण्णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ, णो लब्भइ कुलोवकुलं । कुलं जोएमाणे अस्सिणी णवखत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे रेवई णक्खत्ते जोएइ । अस्सोइण्णं पुण्णिमं कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ । कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता अस्सोई पुण्णिमा जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया ॥ १४४. कत्तिइण्णं भंते ! पुण्णियं किं कुलं पुच्छा । गोयमा! कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ, णो कुलोवकुलं जोएइ। कुलं जोएमाणे कत्तिया णक्खत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे भरणी णक्खत्ते जोएइ। कत्तिइण्णं' •पुण्णिमं कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ। कुलेणं वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता कत्तिई पुण्णिमा जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया ॥ १४५. मग्गसिरिणं भंते ! पुण्णिमं किं कुलं तं चेव दो जोएइ, णो भवइ कुलोवकुलं । कुलं जोएमाणे मग्गसिर णक्खत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे रोहिणी णक्खत्ते जोएइ । मग्गसिरिण्णं पुण्णिमं जाव वत्तव्वं सिया ॥ १४६. एवं सेसियाओवि जाव आसाढिं पोसि जेट्टामूलिं च कुलं वा उवकुलं वा कुलोवकलं वा । सेसियाणं कलं वा उवकलं वा, कलोवकलं ण भण्णइ॥ १४७. साविट्टिण्णं भंते ! अमावसं कइ णक्खत्ता जोएंति ? गोयमा ! दो णक्खत्ता जोएंति, तं जहा-अस्सेसा य महा य ॥ १४८. पोटुवइण्णं भंते ! अमावसं क इ णवखत्ता जोएंति ? गोयमा ! दो णक्खत्ता जोएंति, तं जहा-पुव्वाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी' य ॥ १४६. अस्सोइण्णं भंते ! दो-हत्थे चित्ता य । कत्तिइण्णं दो - साई विसाहा य । मग्गसिरिणं तिण्णि-- अणुराहा जेट्ठा मूलो य । पोसिण्णं दो---पुव्वासाढा उत्तरासाढा। माहिण्णं तिण्णि-अभिई सवणो धणिट्ठा । फग्गुणिण्णं तिण्णि-सयभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तराभद्दवया । चेत्तिण्णं दो-रेवई अस्सिणी य। वइसाहिण्णं दो-भरणी कत्तिया य। जेदामूलिण्णं दो-रोहिणी मग्गसिरं च । आसाढिण्णं तिणि---अद्दा पुणव्वसू पुस्सो॥ १५०. साविट्टिण्णं भंते ! अमावसं किं कुलं जोएइ ? उवकुलं जोएइ ? कुलोवकुलं जोएइ ? गोयमा! कुलं वा जोएइ, उबकुलं वा जोएइ, णो लब्भइ कुलोवकुलं । कुलं जोए १. सं० पा०—कत्तिइण्णं जाव वत्तव्वं । २. अमावासं (अ,क,ख,त्रि,ब)। ३. अवामसं (अ,ब)। ४. उत्तरभद्दवया (अ); उत्तराफग्गुणी उत्तरा- भद्दवया (ब); वृत्तित्रयेपि परमार्थतः पुनस्त्रीणि नक्षत्राणि मघादीनि इति तात्पर्य स्वीकृतमस्ति, किन्तु उत्तराभवया' इति पाठो नास्ति तत्रोल्लिखितः । एष वाचनाभेद एव सम्भाव्यते लिपिदोषो वा। ५. अवामस (अ); अमावासं (क,त्रि,प); अवामासं (ख); अवमास (ब)। Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती माणे महा णवखत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे अस्सेसा णवखत्ते जोएइ। साविट्टिण्णं अमावसं कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ । कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता साविट्ठी अमावसा जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया ॥ १५१. पोट्टवइण्णं भंते ! अमावसं तं चेव दो 'जोएइ, णो लब्भइ कुलोवकलं''। कलं जोएमाणे उत्तराफग्गुणी णक्खत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे पुव्वाफग्गुणी णक्खत्ते जोएइ। पोट्ठवइण्णं अमावसं जाव जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया ॥ १५२. मग्गसिरिणं तं चेव कुलं मूले णक्खत्ते जोएइ, उवकुलं जेट्ठा णक्खत्ते जोएइ, कुलोवकुलं अणुराहा जाव जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया ॥ १५३. एवं माहीए फग्गुणीए आसाढीए कुलं वा उवकुलं वा कुलोवकुलं वा। अवसेसियाणं कुलं वा उवकुलं वा जोएइ ॥ १५४. जया णं भंते ! साविट्ठी पुण्णिमा भवइ, तया णं माही अमावसा' भवइ ? जया णं माही पुण्णिमा भवइ, तया णं साविट्ठी अमावसा भवइ? हंता गोयमा! जया णं साविट्ठी तं चेव वत्तव्वं ॥ १५५. जया णं भंते ! पोट्ठवई पुण्णिमा भवइ, तया णं फग्गुणी अमावसा भवइ? जया णं फग्गुणी पुण्णिमा भवइ, तया णं पोट्ठवई अमावसा भवइ ? हंता गोयमा ! तं चेव । एवं एएणं अभिलावेणं इमाओ पुण्णिमाओ अमावसाओ णेयवाओ-अस्सिणी पुण्णिमा चेत्ती अमावसा, कत्तिगी' पुण्णिमा वइसाही अमावसा, मग्गसिरी पुण्णिमा जेट्ठामूली अमावसा, पोसी पुण्णिमा आसाढी अमावसा ॥ १५६. वासाणं भंते ! पढमं मासं कइ णक्खत्ता णेति ? गोयमा ! चत्तारि णक्खत्ता णेति, तं जहा-उत्तरासाढा अभिई सवणो धणिट्ठा। उत्तरासाढा चउद्दस अहोरत्ते णेइ। अभिई सत्त अहोरत्ते णेई । सवणो अट्ट अहोरत्ते णेई । धणिट्ठा एग अहोरत्तं णेइ। तंसि च णं मासंसि चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स 'चरिमे दिवसे" दो पया चत्तारि य अंगुला पोरिसी भवइ । १५७. वासाणं भंते ! दोच्चं मासं कइ णक्खत्ता णेति ? गोयमा ! चत्तारि, तं जहाधणिट्ठा सयभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तराभद्दवया। धणिट्ठा णं चउद्दस अहोरत्ते णेइ। सयभिसया सत्त । पुव्वाभद्दवया अट्ठ। उत्तराभद्दवया एगं । तंसि च णं मासंसि अटुंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पया अट्ठ य अंगुला पोरिसी भवइ ।। १५८. वासाणं भंते ! तइयं मासं कइ णक्खत्ता णेति ? गोयमा ! तिण्णि णक्खत्ता णेति, तं जहा-उत्तराभद्दवया रेवई अस्सिणी । उत्तराभद्दवया चउद्दस राइदिए णेइ । रेवई पण्णरस । अस्सिणी एगं । तंसि च णं मासंसि दुवालसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ । तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे लेहट्ठाई तिण्णि पयाइं पोरिसी भवइ ॥ १. णो जोएइ कुलोवकुलं (प)। २. अवमंसा (अ,क,ख,त्रि,ब)। ३. कत्तिकी (अ); कित्तिको (ख,ब); कित्तिगी (स)। ४. चरिमदिवसे (अ,त्रि,प); चरमदिवसे (ब)। Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो धक्खारो ५७६ १५६. वासाणं भंते ! चउत्थं मासं कइ णक्खत्ता णेति ? गोयमा! तिण्णि, तं जहाअस्सिणी भरणी कत्तिया । अस्सिणी च उद्दस । भरणी पप्णरस । कत्तिया एगं। तंसि च णं मासंसि सोलसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे तिण्णि पयाइं चत्तारि य अंगुलाई पोरिसी भवइ । १६०. हेमंताणं भंते ! पढमं मासं कइ णक्खत्ता णेति ? गोयमा ! तिण्णि, तं जहा–कत्तिया रोहिणी मिगसिर । कत्तिया चउद्दस । रोहिणी पण्णरस । मिगसिरं ए अहोरत्तं णेइ । तंसि च णं मासंसि वीसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरिवट्टइ । तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि तिण्णि पयाइं अट्ठ य अंगुलाई पोरिसी भवइ॥ १६१. हेमंताणं भंते ! दोच्चं मासं कइ णक्खत्ता ऐति ? गोयमा ! चत्तारि णक्खत्ता ऐति, तं जहा-मिगसिरं अद्दा पुणव्वसू पुस्सो। मिगसिरं चउद्दस राइंदियाई णेइ । अद्दा अट्ठ णेइ । पुणव्वसू सत्त राइंदियाइं । पुस्सो एगं राइंदियं णेइ। तया णं चउव्वीसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ । तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि लेहटाइं चत्तारि पयाई पोरिसी भवइ॥ १६२. हेमंताणं भंते ! तच्चं मासं कइ णक्खत्ता णेति ? गोयमा ! तिण्णि, तं जहा–पुस्सो असिलेसा महा। पुस्सो चोद्दस राइंदियाइं णेइ। असिलेसा पण्णरस । महा एक्कं । तया णं वीसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि तिण्णि पयाई अळंगुलाई पोरिसी भवइ । १६३. हेमंताणं भंते ! चउत्थं मासं कइ णक्खत्ता ऐति ? गोयमा ! तिण्णि णक्खत्ता, तं जहा-महा पव्वाफग्गणी उत्तराफग्गणी। महा चउस राइंदियाई णेह। पुव्वाफग्गुणी पण्णरस राइंदियाई णेइ। उत्तराफग्गुणी एगं राइंदियं णेइ। तया णं सोलसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ । तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि तिण्णि पयाइं चत्तारि य अंगुलाई पोरिसी भवइ ॥ १६४. गिम्हाणं भंते ! पढम मासं कइ णक्खत्ता ऐति ? गोयमा ! तिण्णि णक्खत्ता णेति, तं जहा- उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता। उत्तराफग्गुणी चउद्दस राइंदियाइं णेइ। हत्थो पण्णरस राइंदियाइं णेइ। चित्ता एगं राइंदियं णेइ। तया णं दुवालसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि लेहट्ठाइं तिण्णि पयाइं पोरिसी भवइ ॥ १६५. गिम्हाणं भंते ! दोच्चं मासं कइ णक्खत्ता णेति ? गोयमा ! तिण्णि णक्खत्ता णेति, तं जहा-चित्ता साई विसाहा। चित्ता चउद्दस राइंदियाई णेइ। साई पण्णरस राइंदियाइं णेइ । विसाहा एगं राइंदियं णेइ। तया णं अटुंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि दो पयाइं अलैंगुलाई पोरिसी भवइ॥ १. आसिणी (ब)। २. कित्तिया (क,ख,स)। ३. मगसिरं (ब)। ४. तता (अ,ब); तदा (क,ख,स)। Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीपणती १६६. गिम्हाणं भंते ! तच्चं मासं कइ णवखत्ता णेंति ? गोयमा ! चत्तारि णक्खत्ता ति, तं जहा -विसाहा अणुराहा जेट्टा मूलो। विसाहा चउद्दस राइंदियाई इ । अणुराहा अट्ट इंदियाई इ । जेट्ठा सत्त राईदियाई णेइ । मूलो एक्कं राइदियं इ । तया णं चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियदृइ । तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि दो पयाइं चत्तारि य अंगुलाई पोरिसी भवइ || १६७. गिम्हाणं भंते ! चउत्थं मासं कइ णक्खत्ता णेंति ? गोयमा ! तिणि णक्खत्ता ति तं जहा- मूलो पुव्वासाढा उत्तरासाढा । मूलो चउद्दस राइंदियाई इ । पुव्वासाढा पण्णरस राइंदियाई णेइ । उत्तरासाढा एगं राईदियं णेइ । तया णं वट्टाए समचउरंससंठाणसंठिए णग्गोहपरिमंडलाए सकायमणुरंगियाए छायाए सूरिए अणुपरियट्टा । तस् णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि लेहट्टाई दो पयाई पोरिसी भवइ । एसि णं पुव्ववणियाणं पयाणं इमा संग्रहणी, तं जहा गाहा— जोगो' देवय तारग्ग, गोत्त संठाण चंदरविजोगो । कुल पुण्णिम अवमंसा, णेया छाया य बोद्धवा ॥ १ ॥ १६८. गाहा - हिट्ठि ससिपरिवारों, मंदरबाहा तहेव लोगंते । धरणितलाउ अबाहा, अंतो बाहि च उड्डमहे ||१|| संठाणं च पमाणं, वहति सीहगई इड्डिमंता य । तारंतरग्गमहिसी, तुडिय पहु ठिई य अप्पबहू ||२|| अत्थि णं भंते ! चंदिमसूरियाणं हिट्ठिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? समपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? उप्पिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? हंता गोयमा ! तं चेव उच्चारेयव्वं ॥ ५८० १६६. से केणट्ठेणं भंते ! एवं बुच्चइ - अत्थि णं जहा जहा णं तेसि देवाणं तव - णियम - बंभचेराई ऊसियाइं भवंति, तहा - तहा णं तेसि णं देवाणं एवं पण्णायए, तं जहा - अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा । जहा जहा णं तेसि देवाणं तव नियम- बंभचेराई णो ऊसियाई भवति तहा तहाणं तेसि देवाणं एवं णो पण्णायए, तं जहा - अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा ॥ १७०. एगमेगस्स णं भंते ! चंदस्स केवइया महग्गहा परिवारो, केवइया णक्खत्ता परिवारो, केवइया तारागणकोडाकोडीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! अट्ठासी महग्गहा परिवारो, अट्टवीसं णवखत्ता परिवारो, छावट्टिसहस्साइं णव सया पण्णत्तरा तारागणकोडाकोडीणं पण्णत्ता ॥ १७१. मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए जोइस चारं चरइ ? गोयमा ! एक्कारसहिं एक्कवीसेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइस चारं चरइ ॥ १. जोगो देवय तारग्ग इत्यादि प्राग्व्याख्यातस्वरूपाः अस्या निगमनार्थं पुनरुपन्यासस्तेन न पुनरुक्तिर्भावनीया ( शावृ ) । २. परियारो ( अ, क, ख, ब ) । ३. सिग्घगई (खस) । ४. समेवि ( अ, क, ख, त्रि, प,व); जीवाजीवाभिगमे ( ३ | १००० ) सूर्यप्रज्ञप्ता ( १८/२ ) वपि च 'समपि' इति पाठो लभ्यते । ५. जह ( अ, ब ) अगेपि । ६. तह (अ,ब) अग्रेपि । Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो १८१ १७२. लोगंताओ णं भंते ! केवइयाए अबाहाए जोइसे पण्णत्ते ? गोयमा ! एक्कारस एक्कारसेहि जोयणसएहि अबाहाए जोइसे पण्णत्ते ॥ १७३. धरणितलाओ णं भंते ! [केवतियं अबाहाए हेढिल्ले तारारूवे चारं चरति ? केवतियं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति ? केवतियं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति ? केवतियं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति ? गोयमा ! ] सत्तहिं णउएहिं जोयणसएहिं जोइसे चारं चरइ। एवं सूरविमाणे अट्टहिं सएहि, चंदविमाणे अट्टहिं असीएहि, उवरिल्ले तारारूवे णवहिं जोयणसएहिं चार चरइ॥ १७४. जोइसस्स णं भंते ! हेट्ठिल्लाओ तलाओ केवइयं अबाहाए सूरविमाणे चार चरइ ? गोयमा ! दसहि जोयणेहिं अबाहाए चारं चरइ । एवं चंदविमाणे णउईए जोयणेहिं चारं चरइ, उवरिल्ले तारारूवे दसुत्तरे जोयणसए चारं चरइ, सूरविमाणाओ चंदविमाणे असीईए जोयणेहि चारं चरइ, सरविमाणाओ जोयणसए उवरिल्ले तारारूवे चार चरह. चंदविमाणाओ वीसाए' जोयणेहिं उवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ । १७५. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ते सव्वब्भंतरिल्ल चारं चरइ ? कयरे णखते सव्वबाहिरं चारं चरइ ? कयरे णक्खत्ते सव्वहिदिल्लं चारं चरइ ? कयरे णक्खत्ते सव्वउवरिल्लं चारं चरइ ? गोयमा! अभिई णक्खत्ते सव्वभंतरं चारं चरइ, मूलो सव्वबाहिर' चारं चरइ, भरणी सव्वहिडिल्लगं चारं चरइ, साई सव्वुवरिल्लं चारं चरइ । १७६. चंदविमाणे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! अद्धकविट्ठसंठाणसंठिए" सव्वफालियामए अब्भुग्गयमूसिथपहसिए एवं सव्वाइं णेयव्वाइं ॥ १७७. चंदविमाणे णं भंते ! केवइयं आयाम-विक्खंभेणं? केवइयं बाहल्लेणं ? गोयमा ! गाहा-- छप्पण्णं खलु भाए, विच्छिण्णं चंदमंडलं होइ। अट्ठावीसं भाए, बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥१॥ अडयालीसं भाए, विच्छिण्णं सूरमंडलं होइ । चउवीसं खलु भाए, बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥२॥ १. धरणियलाओ (अ,प,ब)। २. आदर्शष कोष्ठकवर्ती पाठो नोपलभ्यते । शांतिचन्द्रीयवृत्तौ 'धरणितलाओ णं भंते ! उड्ढे उप्प इत्ता केवइयाए अबाहाए हेट्ठिल्ले जोइसे चारं चरइ' एष प्रश्नांशः समुल्लिखि- तोस्ति, शेषप्रश्ना नव निर्दिष्टाः सन्ति । अस्माभिरसौ पाठः जीवाजीवाभिगम (३।१००३) सूत्रादुङ्कितोस्ति। ३. वीसं (अ,ब)। ४. सव्वभंतरिल्ले (अ,ब)। ५. सव्वबाहिरओ (अ,ख,प,ब); सव्वबाहिल्लो (क)। ६. सव्वुप्परिल्लं (क,ख,ब,स)। ७. °कविढग (अ,क,ख,ब,स)। ८. जी० ३.१००८,१००६। ६. उपलक्षणात् सूर्यादिविमानं च (पुर्व) । १०.४ (अ,क,ख,त्रि,ब,स); उपलक्षणात् कियद् बाहल्येन प्रज्ञप्तं (पुर्व)। Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८२ दो कोसे य गहाणं, णक्खत्ताणं तु हवइ तस्सद्धं । तस्सद्धं ताराणं, तस्सद्धं चेव बाहल्लं ॥३॥ १७८. चंदविमाणं भंते ! कइ देवसाहस्सीओ परिवहंति ? गोयमा ! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति - चंदविमाणस्स णं पुरत्थिमेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं' संखतल-विमलणिम्मलदहिघण- गोखीर- फेण-रययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउट्ठ' - वट्टपीवरसुसिलिट्ठविसिट्ठतिक्खदाढाविडंबिय मुहाणं रत्तुप्पलपत्तमउयसूमालतालुजीहाणं महुगुलिपिंगलक्खाणं पीवरवरोरुपडिपुण्णविउलखंधाणं मिउविसयसुहुमलक्खणपसत्थव रवण्णकेसरसडोवसोहियाणं ऊसिय-सुणमिय' - सुजाय- अप्फोडिय - गंगूलाणं वइरामयणक्खाणं वइरामयदाढाणं' वइरामयदंताणं" तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं" मणोगमाणं मणोरमाणं" अमियगईणं" अमियबल - वीरियपुरिसक्कार परक्कमाण महया अप्फोडियसीहणायबोलकलकलरवेणं" महुरेणं मणहरेणं पूरंता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ सीहरूवधारीणं पुरथिमिल्लं बाहं परिवहंति ॥ चंदविमाणस्स णं दाहिणेणं सेयाणं सुभगाणं" सुप्पभाणं संखतल - विमलणिम्मलदहिघणगोखीर-फेण-रययणिगरप्पगासाणं वइरामयकुंभजुयल " -सुट्ठियपीवरवरवइरसोंडवट्टियदित्तसुरत्तपउमपगासाणं" अब्भण्णयमुहाणं तवणिज्जविसाल कण्णचंचल चलंतविमलुज्जलाणं महुवण्णभिसंतणिद्धपत्तलनिम्मल तिवण्णमणि रयणलोयणाणं" अब्भुग्गय मउलमल्लियाधवलसरिससंठिय- णिवण्ण-दढ - कसिणफालियामय- सुजाय - दंतमुसलोवसोभियाणं कंचकोसीपविट्ठदंग्ग - विमलमणिरयण रुइल पेरंतचित्तरूवग विराइयाणं तवणिज्जविसालतिलगप्पमुहपरिमंडियाणं नाणामणिरयणमुद्ध" - गेवेज्जबद्ध गलयवरभूसणाणं वेरुलियविचित्तदंड १. 'चंदविमाणे णमित्यादि' चन्द्रविमानं लिंगविभक्त्योश्चात्र व्यत्ययः प्राकृतत्वात् (हीवृ) । २. सुभाणं (अ, क,ख, त्रि,ब, स, पुवृ, ही वृ.) । ३. सभाणं ( खत्रि, पुवृ. ही वृ ) । ४. यणिगर ( अ, ब ) अग्रेपि । क्वचित् संखतलेत्यादि यावत् रजनिकरप्रकाशानाम् (पुवृ) । ओट्ठ ( अ, ब ) । ५. ६. 'अ, ब ' प्रत्योः 'विसय' स्थाने 'विसद' इति पदं विद्यते 'सत्य' इति पदं च नास्ति । ७. सुणिमित्त ( अ, ब ) ; सुणिम्मित ( ख, त्रि, स ) 1 ८. लांगूलाणं ( प ) । ६. × ( ब ) । । १०. x ( अ, क, ख, त्रि, बस, पुवृ ) ११. पीयमाणं णभोगमाणं ( ख ) । १२. × (पुवृ) । बुद्दीपण १३. गतीणं अमियबलाणं ( अ. क, ख, ब, स, पुवृ ) | १४. 'बोलकलरवेणं (अ, त्रि, ब) 1 १५. सुभाण (अख); सुभाणं ( क ) ; सुहाणं (त्रि); सुहाण ( बस ) । १६. कुंभिजुअय (अत्र) । १७. सुहितपीवर ( ब ) | १८. निम्मललसत्तमणिरयण निम्मलाणं निम्मलभित्तमणि (ख) मणिरण निम्माणं (ब); ( पुवृ ) । १६. मणिरयणभरियपेरंत° ( अ, ब ) ; मणिरयणभरियरंत ( ख ) । २०. सुद्ध ( अ, ब, पुवृ, ही वृ ) ; पाठान्तरे वा मुग्धं ( पुवृ) ; क्वचित् 'मुद्ध' त्ति पाठः स चाशुद्धः सम्भाव्यते ( ही ) । (अ) ; निम्मल भिसत्तनिम्मलमणि Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो णिम्मलवइरामयतिक्खलट्ठअंकुस कुंभजुयलयंत रोडियाणं तवणिज्जसुबद्धकच्छद प्पियबलुद्धराणं विमलघणमंडलवइरामयलालाललियतालण' - णाणामणिरयणघंटपासग रययामयबद्धरज्जुलंबियघंटाजुयलमहुरसरमणहराणं अल्लीणपमाणजुत्तवट्टियसुजायलक्खणपसत्थरमणिज्ज बालगत्तपरिपुंछणाणं उवचियपडिपुण्णकुम्मचलणलहुविक्कमाणं' अंकमयणक्खाणं * 'तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं" तवणिज्जजोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं अमियगईणं अमियबलवीरियपुरिसक्कारपरक्कमाणं महया गंभीर गुलुगुलाइयरवेणं महुरेणं मणहरेणं पूरेंता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहसीओ गयख्वधारीणं देवाणं दक्खिणिल्लं बाहं परिवहति । चंदविमाणस्स णं पच्चत्थिमेणं सेयाणं सुभगाणं' सुप्पभाणं चलचवलककुहसालीणं घणचियसुबद्धलक्खणुण्णय ईसिआणयवसभोद्वाणं चकमियल लिय पुलियचलचवलगव्वियगईणं सण्णयपासाणं संगयपासाणं सुजायपासाणं पीवरवट्टियसुसंठियकडीणं ओलंबपलं बलक्खणपमाणजुत्तरमणिज्जवालगंडाणं 'समखुरवालिधाणाणं समलिहियसिंगतिक्खग्गसंगयाणं" तणुसुहुमसुजायणिद्धलोमच्छविधराणं उवचियमंसलविसालपडिपुण्णखंधपएससुंदराणं वेरुलयभिसंत कडक्खसुणिरिक्खणाणं" जुत्तपमाण हाणलक्खणपसत्थर मणिज्जगग्गरगलसोभियाणं घरघरगसुसद्द बद्धकंठपरिमंडियाणं णाणामणिकणगरयणघंटिया वेगच्छिगसुकयमालियाणं" वरघंटागलयमालुज्जलसिरिधराणं पउमुप्पलसगलसुरभिमालाविभूसियाणं 'वइरखुराणं विविहविक्खुराणं"" फालियामयदंताणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं अमियगईणं अमियबलवी रियपुरिसक्कारपरक्कमाणं मह्या गज्जियगंभीररवेणं महुरेणं मणहरेणं पूरेंता १. कुंभयुगल स्यान्तरे उत्थितं ऊर्वतया स्थितं येषां (पुवृ) । २. 'वइरामततलललियतालेण ( अ, ब ) वइरामयलालललियताण ( क,ख, त्रि); वइराम तलाल ( स ) । ३. उप्पतिय ( अ, त्रि,ब, ही वृ) ; ( हीवृपा) । ४. अंकाम° ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । ५. तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजीहाणं (ख, त्रि, स, वृहीवृ) । ६. सुभाण ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । ७. सप्पभाणं (अ,ख,त्रि,ब,स)। उपचिता ८. वरवलय° (अ,ब) । C. इसि (अ, क, ख, त्रि, ब ) । १०. समधुरवालियाणसमलियसंगमाणं ( अ, ब ) ; समखुरखालिहीणं° (त्रि); समखुरवालिहाण ५८३ समलिहित सिंगतिखग्गसं गगयाणं ( पुवृपा); समधुरवालिहीणं ( ही वृपा ) । ११. भिसंतकक्खदक्ख सुतिक्खनिरिक्खणणं (अत्रि, ब, पुवृ); °भिसंतकक्खडसुनिक्खिणाणं (क, ही वृ ) ; भिसंतकक्खदक्खसुनिरिक्खणाणं (ख,स) ; भक्खनिरिक्खणाणं ( पुवृपा) । रम णिज्जलंब भंगगंधा उडगलगसोभियाणं ( अ, खत्रि, बस, पुवृ) । १३. कण्णपरिमंडियाणं ( अ, ख, त्रि,ब,स); घुग्धरंगसुद्द बद्धकरण परिमंडियाणं ( पुवृ ) ; पाठान्तरे वा ईदृग् य कण्ठः ( पुवृ.) । १४. ॰वेगच्छग° (अ,क,ख, त्रि,ब, स, पुवृ, ही वृ) । १५. वेरक्खु रविविपिक्खुराणं ( अ, क, ब ) ; विविपिक्खुराणं ( ख ) ; वेरखुर विविक् (स, पुवृ) । १२. वेर Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ जंबुद्दीवपण्णत्ती अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ वसहरूवधारीणं देवाणं पच्चत्थिमिल्लं बाहं परिवहति । चंदविमाणस्स णं उत्तरेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं तरमल्लिहायणाणं हरिमेलामउलमल्लियच्छाणं चंचुच्चियललियपुलियचलचवलचंचलगईणं लंघणवग्गणधावणधोरणतिवइजइणसिक्खियगईणं ललंत-'लाम-गललाय -वरभूसणाणं सण्णयपासाणं संगयपासाणं सुजायपासाणं पीवरवट्टियसुसंठियकडीणं ओलंबपलंबलक्खणपमाणजुत्तरमणिज्जवालपुच्छाणं तणुसुहमसुजायणिद्धलोमच्छविहराणं मिउविसयसुहमलक्खणपसत्थविकिण्णकेसरवालिहराणं ललंतथासगललाडवरभूसणाणं मुहमंडग-ओचूलग-चामर-थासग-परिमंडियकडीणं तवणिज्जखुराणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं •पीइगमाणं मणोगमाणं' मणोरमाणं अमियगईणं अमियबलवीरियपुरिसक्कारपरक्कमाणं महया हयहेसियकिलकिलाइयरवेणं मणहरेणं पूरेता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ हयरूवधारीणं देवाणं उत्तरिल्लं बाहं परिवहति । गाहा --- सोलसदेवसहस्सा, हवंति चंदेसु चेव सूरेसु । अद्वैव सहस्साई, एक्केमी गहविमाणे ॥१॥ चत्तारि सहस्साई, णक्खत्तंमि य हवंति इक्किक्के । दो चेव सहस्साई, तारारूवेक्कमेक्कमि ॥२॥ १७६. एवं सूरविमाणाणं जाव तारारूवविमाणाणं, णवरं -एस देवसंघाए॥ १८०. एएसि णं भंते ! चंदिम-सूरियगहगण-णक्खत्त-तारारूवाणं कयरे सव्वसिग्घगई ? कयरे सव्वसिग्धगईतराए चेव ? गोयमा ! चंदेहितो सूरा सव्वसिग्घगई, सुरेहितो गहा सिग्घगई, गहेहिंतो णक्खत्ता सिग्घगई, णक्खत्तेहितो तारारूवा सिग्घगई, सव्वप्पगई, चंदा, सव्वसिग्घगई तारारूवा॥ १८१. एएसि णं भंते ! चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त-तारारूवाणं कयरे सव्वमहिड्डिया ? कयरे सव्वप्पिड्डिया' ? गोयमा ! तारारूवेहितो णक्खत्ता महिड्डिया, णक्खत्तेहितो गहा महिड्डिया, गहेहिंतो सूरिया महिड्डिया, सूरेहितो चंदा महिड्डिया, सव्वप्पिड्डिया तारारूवा, सव्वमहिड्डिया चदा। १८२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे ताराए य ताराए य केवइए अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—'वाघाइए य निव्वाघाइए१३ य । निव्वा १. उसभ° (त्रि)। ८. सं० पा०-कामगमाणं जाव मणोरमाणं। २. वर° (अ,क,त्रि,ब,स,हीव) । ६. वहंति (अ,ख त्रि,ब,हीव)। ३. लासगललाम (अ,क,ख,त्रि,ब,पुव,हीव); °ललाम १०. इक्किक्कस्स (त्रि)। (स)। ११. सव्वप्पड्ढिया (त्रि)। ४. विच्छिण्णकेसरवालिहराणं (प,शाव)। १२. तारारूवस्स (क)। ५. ललंतलामग° (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पवहीव)। १३. वाघाइमे निव्वाघाइमे (पुर्व); वाघाइए ६. मुहभंडग (पुत्र)। निवाघाइए (पुवृपा)। ७. जेऊर (अ,त्रि,ब); उवबूला (ख)। Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो ५८५ ना घाइए जहण्णेणं पंचधणुसयाइं, उक्कोसेणं दो गाउयाइं । वाघाइए जहण्णेणं दोण्णि छावठे जोयणसए, उक्कोसेणं बारस जोयणसहस्साई दोण्णि य बायाले जोयणसए तारारूवस्स य तारारूवस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। १८३. चंदस्स णं भंते ! जोइसिंदस्स जोइसरणो कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--- चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली' पभंकरा । तओ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि-चत्तारि देवीसहस्साइं परिवारो पण्णत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अण्णं देवीसहस्सं परिवारो विउव्वित्तए। एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देवी सहस्सा । सेत्तं तुडिए॥ १८४. पभू णं भंते ! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाणे चंदाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए तुडिएणं सद्धि महयाहयणट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? गोयमा ! णो 'इणठे समझें ॥ १८५. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ णो पभू जाव विहरित्तए ? गोयमा ! चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो चंदवडेंसए विमाणे चंदाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए माणवए चेइयखंभे वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहुईओ जिण-सकहाओ सण्णिक्खित्ताओ चिटठंति. ताओ णं चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो अण्णेसि च बहणं जोइसियाणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ जाव' पज्जुवासणिज्जाओ। से तेणठेणं गोयमा ! णो पभ । परम्माए चरहिं सामाणियसाहस्सीहिं एवं जाव दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए केवलं परियारिड्डीए, णो चेव णं मेहुणवत्तियं ॥ १८६. विजया वेजयंती जयंती अपराजिया-सव्वेसिं गहाईणं एयाओ अग्गमहिसीओ वत्तव्वाओ इमाहि गाहाहि--- १. अच्चिमाला (क,ख,त्रि)। २. सं० पा०-वाइय जाव दिव्वाइं। ३. तिणत्थे समत्थे (ब)। ४. जं० ७११८४। ५. जी. ३१४०२ । ६. द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३३१०२५ सूत्रम्। ७. मेहुणपत्तियं (अ,क,ख,त्रि,ब)। शान्तिचन्द्रीय वृत्ती सूर्यस्य अग्रमहिषीविषये जीवाजीवाभिगमस्य पाठ उद्धृतोस्ति--अथ प्रस्तुतोपाङ्गादर्शेष्वदृष्टमपि जीवाभिगमायुपाङ्गादर्शदृष्टसूर्याग्रमहिषीवक्तव्यमुपदर्श्यते। सूरस्स जोइसरण्णो कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ गो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तं सूरप्पभा आयवाभा अच्चिमाली पभंकरा। एवं अवसेसं जहा चंदस्स। णवरं सुरवडेंसए विमाणे सूरंसि सोहासणसीति व्यक्तम् । हीर. विजयवृत्ती अस्योल्लेखोपि नास्ति। पुण्यसागरीयवृत्तौ एष पाठः मूले व्याख्यातोस्ति । द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३।१०२६ सूत्रम् । ८. गहाणं (अ,क,ख,ब,स)। ६. अगमडिसीओ छावत्तरस्स वि गहसयस्स एयाओ अग्गमहिसीओ (अ,क,ख,प,ब,स,पुदृ, शाव); हीरविजयवृत्ती अस्मिन् विषये एका टिप्पणी चापि विद्यते-यद्यप्यत्र बहुष्वादशेषु अन्यथापि पाठो दृश्यते । परं व्याख्यातपाठस्यवोपादेयत्वं द्रष्टव्यं जीर्णादर्शेषु तथैव दृष्टत्वाज्जीवाभिगमसङ्गतत्वाच्च । Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८६ इंगालए' वियालए लोहितक्खे' सणिच्छरे चेव । आणि पाहुणिए, कणगसणामा य पंचेव ॥ १॥ सोमे सहिए आसासणे' य कज्जोवए य कब्बडए । अयकरए 'दुंदुभए, संखसणामेवि तिष्णेव ||२|| एवं भणिव्वं जाव भावकेउस्स अग्गमहिमीओ | गाहा म्हा" विहू य वसू, वरुणे अय विद्धी' पूस आस जमे । अग्ग यावइ सोमे, रुद्दे अदिई वहस्सई सप्पे ॥१॥ पिउ भग अज्जम सविया, तट्ठा वाऊ तहेव इंदग्गी । मित्ते इंदे णिरई, आऊ विस्सा य बोद्धव्वे ||२|| १८७. चंदविमाणे णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं चउभागपलिओ मं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससय सहस्समम्भहियं ॥ १८८. चंदविमाणे णं देवीणं जहण्णेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्से हिमन्भहियं ॥ १८६. सूरविमाणे देवाणं जहणेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वास सहस्सम भहियं । १०. सूरविमाणे देवीणं जहणणेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहि वाससएहिं अब्भहियं ॥ १६१. गहविमाणे देवाणं जहणणेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं ॥ १९२. गहविमाणे देवीणं जहण्णेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं ॥ १६३. णक्खत्तविमाणे देवाणं जहण्णेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलि ओवमं ॥ १४. क्खत्तविमाणे देवीणं जहण्णेणं चउब्भागपलिओवमं', उक्कोसेणं साहियं " चउभागपलिओवमं ॥ १५. ताराविमाणे देवाणं जहणणेणं अट्टभागपलिओवमं, उक्कोसेणं चउब्भाग १. नक्षत्रसम्बन्धिगाथाद्वयं 'अ, क, ख, त्रि, ब, स, पुवृ, ही ' -- एतेषु आदर्शेषु ग्रहसम्बन्धिगाथाभ्यां पूर्वं विद्यते । २. लोहियंके ( अ, क, ख, पब, शावृ); स्थानाङ्गे (२।३२५) 'लोहितक्खा' इति पाठो विद्यते । ३. आसासेणे ( अ, ब ) आससणे ( क, ख ) ; असासणे (त्रि) बुद्दीपण ४. कब्वरती ( अ, ब ) ; कव्वरए (त्रि); कब्बुरए ( प, स, पुवृ, शाबू, ही वृ); स्थानाङ्गे (२।३२५) 'कब्बडगा' इति पाठो विद्यते । ५. आतरए ( अ, ख, ब) । ६. ठाणं २।३२५ । ७. वम्हे (अत्रि, ब ) ; म्हे ( क, ख ) | पुण्यसाग यवृत्ती एतद् गाथाद्वयं नास्ति व्याख्यातम् । 'स' प्रतावपि नैतद् उपलभ्यते । ८. वुड्ढी ( प ) । ६. अट्टभाग ° (क,ख, त्रि, ही वृ) ; एतदशुद्धं प्रतिभाति । बहुष्वादशेषु प्रज्ञापनायां (४११६८ ) जीवाजीवाभिगमे ( ३|१०३४) पि च तथादर्शनात् ! १०. X ( क, ख, त्रि, ही वृ) | Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो ५८७ पलिओवमं ॥ १६६. ताराविमाणे देवीणं जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवम, उक्कोसेणं साइरेगं अट्ठभागपलिओवमं ॥ १६७. एएसि णं भंते ! चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त-तारारूवाणं कयरे-कयरेहितो अप्पा वा ? बहुया वा ? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा ! चंदिम-सूरिया दुवे तुल्ला सव्वत्थोवा, णक्खत्ता संखेज्जगुणा, गहा संखेज्जगुणा, तारारूवा संखेज्जगुणा ॥ १९८. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे जहण्णपए वा उक्कोसपए वा केवइया तित्थयरा सव्वग्गेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णपए चत्तारि, उक्कोसपए चोत्तीसं तित्थयरा सव्वग्गेणं पण्णत्ता॥ १६६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे जहण्णपए वा उक्कोसपए वा केवइया चक्कवट्टी सव्वग्गेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णपए चत्तारि, उक्कोसपए तीसं चक्कवट्टी सव्वग्गेणं पण्णत्ता॥ २००. बलदेवा तत्तिया चेव जत्तिया चक्कवट्टी, वासुदेवावि तत्तिया चेव ॥ २०१. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया णिहिरयणा सव्वग्गेणं पण्णत्ता? गोयमा ! तिण्णि छलुत्तरा णिहिरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता ॥ २०२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया णिहिरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ? गोयमा ! जहण्णपए छत्तीसं, उक्कोसपए दोण्णि सत्तरा णिहिरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति ॥ २०३. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया पंचिंदियरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! दो दसुत्तरा पंचिंदियरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता ॥ २०४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे जहण्णपए वा उक्कोसपए वा केवइया पंचिंदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ? गोयमा ! जहण्णपए अट्ठावीसं, उक्कोसपए दोण्णि दसुत्तरा पंचिदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ॥ २०५. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया एगिदियरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता ? गोयमा! दो दसत्तरा एगिदियरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता॥ २०६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया एगिदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ? गोयमा ! जहण्णपए अट्ठावीसं, उक्कोसेणं दोण्णि दसुत्तरा एगिदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ।। २०७. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं उव्वेहेणं, केवइयं उड्ढे उच्चत्तेणं, केवइयं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस य सहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, णवणउइं जोयणसहस्साइं साइरेगाई उड्ढं उच्चत्तेणं, साइरेगं जोयणसयसहस्सं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ॥ १. दोवि (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। २. X(अ,क,ख,त्रि,ब,स)। Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ जंबुद्दीवपण्णत्ती २०८. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे किं सासए ? असासए ? गोयमा ! सिय सासए, सिय असासंए॥ २०६. से केणट्टेणं भंते ! एवं वच्चइ--सिय सासए? सिय असासए? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासए, वण्णपज्जवेहिं गंध-रस-फास-पज्जवेहिं असासए। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ.-सिय सासए, सिय असासए॥ २१०. जंबूहीवे णं भंते ! दीवे कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! ण कयावि णासि ण कयावि णत्थि ण कयावि ण भविस्सइ, भुविं च भवइ य भविस्सइ य धुवे णिइए सासए अक्खए अव्वए अवट्टिए णिच्चे जबुद्दीव दीव पण्णत्तं ॥ २११. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे किं पुढविपरिणामे ? आउपरिणामे ? जीवपरिणामे ? पोग्गलपरिणामे ? गोयमा । पुढविपरिणामेवि आउपरिणामेवि जीवपरिणामेवि पोग्गलपरिणामेवि ॥ २१२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सव्वपाणा 'सव्वभूया सव्वजीवा" सव्वसत्ता पुढविकाइयत्ताए आउकाइयत्ताए तेउकाइयत्ताए वाउकाइयत्ताए वणस्सइकाइयत्ताए उववण्णपुव्वा ? हंता गोयमा ! असइं अदुवा अणंतखुत्तो॥ २१३. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जंबुद्दीवे दीवे जंबुद्दीवे दीवे ? गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे जंबुरुक्खा जंबूवणा जंबूवणसंडा णिच्चं कुसुमिया जाव पडिमंजरिवडेंसगधरा' सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति । जंबुए सुदंसणाए अणाढिए णामं देवे महिड्डिए जाव' पलिओवमट्टिईए परिवसइ। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जंबुद्दीवे दीवे जंबुद्दीवे दीवे ॥ २१४. 'तए णं' समणे भगवं महावीरे मिहिलाए णयरीए माणिभद्दे चेइए बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं देवाणं बहूणं देवीणं मज्झगए एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ जंबूदीवपण्णत्ती णाम अज्जो ! अज्झयणे अटुं च हेउं च 'पसिणं च कारणं च वागरणं च भुज्जो-भुज्जो उवदंसेइत्ति बेमि ॥ ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर-१,६७,६९८ अनुष्टुप् श्लोक ५,२४० अक्षर १८ १. आउय° (अ,त्रि,ब) अग्रेपि । २. सव्वजीवा सव्व भूया (अ,क,ब,स,शाव) । ३. देसे-देसे (क,ख,स)। ४. ओ० सू० ५। ५. पिडि° (अ); पोंडि° (ब); पुंडि° (स)। ६. जं० ११२४ । ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं (पूर्व); तए णं (पुवृपा)। ८. माघवदे (अ,ब)। ६. चितिए (अ,ब)। १०. अज्झयणं (पुवृ); अज्झयणे (पुवृपा)। ११. करणं च (अ,ब) । Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदपण्णत्ती सूरपण्णत्ती Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदपण्णत्ती मंगल-पदं जयति णवणलिणकुवलय-वियसियसयवत्तपत्तलदलच्छो। वीरो गयंदमयगल'-सललियगयविक्कमो भयवं ॥१॥ नमिऊण असुरसुर-गरुलभुयगपरिवंदिए गयकिलेसे' । अरिहे सिद्धायरिए, उवज्झाए सव्वसाहू य ॥३॥ फुडवियडपागडत्थं, वोच्छं पुव्वसुयसारणीसंदं । सुहमगणि [ण ? ] णोवदिळं, जोइसगणरायपण्णत्ति ॥३॥ णामेण इंदभूतित्ति, गोतमो वंदिऊण तिविहेणं । पुच्छइ जिणवरवसहं, जोइसगणरायपण्णत्ति" ॥४॥ पाहुडसंखा-पदं कइ मंडलाइ वच्चइ ? तिरिच्छा किं व गच्छइ ? ओभासइ केवइयं ? सेयाइ किं ते संठिई ? ॥१॥ कहिं पडिहया लेसा ? कहं ते ओयसंठिई ? के सूरियं वरयंती ? कहं ते उदयसंठिती ? ॥२॥ कतिकट्ठा पोरिसिच्छाया ? जोगे किं ते आहिए ? कि ते संवच्छराणादी? कइ संवच्छराइ य? ॥३॥ कहं चंदमसो वुड्डी ? कया ते दोसिणा बहू ? केई सिग्घगई वुत्ते ? कहं दोसिणलक्खणं ? ॥४॥ चयणोववाते ? उच्चत्ते ? सूरिया कति आहिया ? अणुभावे के व से वुत्ते ? एवमेयाइं वीसई ॥५॥ १. गइंदमयगल (व)। २. नमिउण (ट,व)। ३. गत्तकिलेसे (व)। ४, सिद्धायरि (म,व)। ५. मुवज्झाए (ट)। ६. सुहुमणिगवोइट्ठ (म,व)। ७. जोइसगणरायसंबद्धं (म,व) । ८. जोइसगणरायपण्णत्ती (ट)। Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ चंदपण्णत्ती पढमे पाहुडे पाहुडपाहुड-पडिवत्तिसंखा-पदं ३. वड्डोवुड्डी मुहुत्ताणमद्धमंडलसंठिई। के ते चिण्णं परियरइ ? अंतरं किं चरंति य? ॥१॥ ओगाहइ केवइयं ? केवइयं च विकंपइ ? मंडलाण य संठाणे, विक्खंभो अट्ठ पाहुडा ॥२॥ छप्पंच य सत्तेव य, अट्ठ य तिण्णि य हवंति पडिवत्ती। पढमस्स पाहुडस्स उ, हवंति एयाओ पडिवत्ती ॥३॥ दोच्चेपाहडे पाहुडपाहुड-पडिवत्तिसंखा-पदं पडिवत्तीओ उदए, तह अत्थमणेसु य । भेयघाए कण्णकला, मुहुत्ताण गईइ य ॥१॥ णिक्खममाणे सिग्घगई, पविसंते मंदगईइ य । चूलसीइसयं पुरिसाणं, तेसिं च पडिवत्तीओ ॥२॥ उदयम्मि अट्ठ भणिया, भेयघाए दुवे य पडिवत्ती। चत्तारिमुहुत्तगईए, हुंति तइयम्मि पडिवत्ती ॥३॥ दसमे पाहडे पाहडपाहडसंखा-पदं आवलिय मुहत्तग्गे, एवंभागा य जोगसा। कुलाइं पुण्णमासी य, सण्णिवाए य संठिई ॥१॥ तारगग्गं च णेया य, चंदमग्गत्ति यावरे । देवताण य अज्झयणे, मुहुत्ताण य नामयाइ य ॥२॥ दिवसा राइ वुत्ता य तिहि गोत्ता भोयणाणि य । आइच्च-चार मासा य, पंचसंवच्छराइ य ॥३॥ जोइसस्स य दाराई, णवखत्तविजएवि य । दसमे पाहुडे एए, बावीसं पाहुडपाहुडा ॥४॥ उक्खेव-पदं ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नाम नयरी होत्था रिद्ध-स्थिमिय-समिद्धा, वण्णओ॥ ____ ७. तीसे णं मिहिलाए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं माणिभद्दे नामं चेइए होत्था-चिराईए, वण्णओ॥ ८. तीसे णं मिहिलाए नयरीए जियसत्तू नाम राया, धारिणी नामं देवी, वण्णओं ॥ ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं तम्मि माणिभद्दे चेइए सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया॥ १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूती १. नामधेज्जाइं (ट,म,व)। २. अष्टादशे आदित्यानामुपलक्षणमेतच्चन्द्रमसां च चारा वक्तव्याः (सूव)। ३. ओ० सू०१। ४. ओ० सू० २-१३ । ५. ओ० सू० १४,१५ । Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदपण्णत्ती ५६३ नाम अणगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव' पज्जुवासमाणे एवं वयासी' ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर–८६५ अनुष्टुप् श्लोक २७ अक्षर ३० १. ओ० सू० ८२,८३ । २. चन्द्रप्रज्ञप्तेः सूर्यप्रज्ञप्तेश्च उपलब्धः पाठः विषयश्च तुल्योस्ति । चन्द्रप्रज्ञप्तौ चतस्रो मंगलगाथा अतिरिक्ता वर्तन्ते । चन्द्रप्रज्ञात्यादर्शष प्रारम्भिकपाठस्य क्रमः किञ्चिद् भिन्नोस्ति, तेन आद्यवर्ती किञ्चिद् अंशः अत्र साक्षात लिखितः। शेषपाठः सूर्यप्रज्ञप्तिवद् ज्ञातव्यः । अनयोर्द्वयोरपि हस्तलिखिता आदर्शा उपलभ्यन्ते, द्वयोरपि च स्वतन्त्रा टीका वर्तते। तेषु उपलब्धः पाठभेदः परिशिष्टे प्रदत्तोस्ति । Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती पढमं पाहडं पढम पाहुडपाहुडं उक्खेव-पदं १. तेणं' कालेणं तेणं समएणं मिहिला नाम नयरी होत्था-रिद्ध-स्थिमिय-समिद्धा पमुइयजणजाणवया जाव' पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ २. तीसे णं मिहिलाए नयरीए बहिया 'उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए", एत्थ णं माणिभद्दे नाम चेइए होत्था–वण्णओ ॥ ३. तीसे णं मिहिलाए नयरीए जियसत्तू नामं राया, धारिणी नामं देवी, वण्णओ ॥ ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं तम्मि माणिभद्दे चेइए सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ जाव" राया जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूती नाम अणगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे जाव एवं वयासीपाहुडसंखा-पदं ६ 'कइ मंडलाइ वच्चइ ? तिरिच्छा किं व गच्छइ ? ओभासइ केवइयं ? सेयाइ" किं ते संठिई ? ॥१॥ १. अतः पूर्व आदर्शेषु णमो अरिहंताणं' इत्येक. ६. ओ० सू० १४,१५ । पदमेव लिखितं दृश्यते । वृत्तौ तद् नास्ति ७. समोसढो (ख) । व्याख्यातम् । अतो नास्माभिस्तन्मूले ८. ओ० सू० ७६,८०। स्वीकृतम्। ६. नामंति प्राकृतत्वात् विभक्तिपरिणामेन २. रिद्धि (ग,घ)। नाम्नेति द्रष्टव्यम् (सूव) । ३. ओ० सू०१। १०. ओ० सू०८२,८३ । ४. एकारो मागधभाषानुरोधतः प्रथमैकवचन- कति मंडला , प्रभवः, यथा 'कयरे आगच्छइ दित्तरूवे' १२. वा (ग,घ)। (उत्त० १२।६) इत्यादी [सूवृ] । १३. सेयाए (ग,घ)। ५. ओ० सू० २-१३ । ५९४ Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम पाहुडं (पढम पा०) कहिं पडिहया लेसा ? कहं ते ओयसंठिती ? के सूरियं वरयंती ? कहं ते उदयसंठिती ? ॥२॥ कतिकट्ठा पोरिसिच्छाया? जोगे किं ते आहिए ? के ते संवच्छराणादी? कइ संवच्छराइ य ॥३॥ कहं चंदमसो वुड्डी ? कया ते दोसिणा बहू ? के सिग्घगई वुत्ते ? कह दोसिणलक्खणं? ॥४॥ चयणोववाते ? उच्चत्ते ? सूरिया कति आहिया ? अणुभावे के व से वुत्ते ? एवमेयाइं वीसई ॥५॥ पढमे पाहुडे पाहुडपाहुड-पडिवत्तिसंखा-पदं वड्डोवुड्डी मुहत्ताणमद्धमंडलसंठिई। के ते चिण्णं परियरइ ? अंतरं किं चरंति य ? ॥१॥ ओगाहइ केवइयं ? केवइयं च विकंपइ? मंडलाण य संठाणे, विक्खंभो अट्ठ पाहुडा ॥२॥ छप्पंच य सत्तेव य, अट्ठ य तिण्णि य हवंति पडिवत्ती। पढमस्स पाहुडस्स उ, हवंति एयाओ पडिवत्ती ॥३॥ दोच्चे पाहुडे पाहुडपाहुड-पडिवत्तिसंखा-पदं पडिवत्तीओ उदए, तह' अत्थमणेसु य । भेयघाए कण्णकला, मुहुत्ताण गईइ य ॥१॥ निक्खममाणे सिग्घगई, पविसंते मंदगईइ य । चूलसीइसयं पुरिसाणं 'तेसिं च" पडिवत्तीओ ॥२॥ उदयम्मि अट्ठ भणिया, भेयघाए' दुवे य पडिवत्ती। चत्तारि मुहुत्तगईए', हुंति तइयम्मि पडिवत्ती॥३॥ वसमे पाहुडे पाहुडपाहुड संखा-पदं आवलिय मुहुत्तग्गे, एवंभागा य जोगसा। कुलाई पुण्णमासी य, सण्णिवाए य संठिई ॥१॥ तारगग्गं च णेया य, चंदमग्गत्ति यावरे। देवताण य अज्झयणे° मुहुत्ताण नामयाइ" य ॥२॥ १. कधं (ग,घ)। २. कतियं (ख)। ३. तधा (ख); तहा (ग,घ) । ४. तेसि व णं (ग,घ)। ५. भेदग्घाए (सूवृ)। ६. मुहुत्तारिमुहुत्तगतीए (ग,घ) । ७. वितिआइ (ख); वित्तायाए (ग,घ)। ८. तारग्गं (ख); तारसं (ग,घ) । ९.देवाण (ख)। १०. अज्झयणा (ख,ग,घ)। ११. नामधेज्जाइं (ग,घ) । Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ दिवसा राइ वृत्ता य, तिहि गोत्ता भोयणाणि य । आइच्च चार' मासा य, पंच संवच्छराइ य ॥३॥ जोइसस्स दाराई, णक्खत्तविजएवि य । दसमे पाहुडे एए, बावीसं पाहुडपाडा ||४|| १०. ता कहं ते वड्ढोवुड्डी मुहुत्ताणं आहितेति वएज्जा ? ता अट्ठ एगुणवीसे मुहुत्तसए सत्तावीसं च सद्विभागे मुहुत्तस्स आहितेति वएज्जा ॥ ११. ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, सव्वबाहिराओ वा मंडलाओ सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, एस णं अद्धा केवइयं इंदियग्गेणं आहितेति वएज्जा ? ता तिण्णि छावट्ठे राइदियसए राइंदियग्गेणं आहितेति वएज्जा ॥ १२. ता एयाए णं अद्धाए सूरिए 'कइ मंडलाई दुक्खुत्तो चरइ ? ता चुलसीयं * मंडलसयं चरइ - बासीतं मंडलसयं दुक्खुत्तो चरइ, तं जहा - निक्खममाणे चेव पविसमाणे चेव, दुवे य खलु मंडलाई सई चरइ, तं जहा - सव्वब्भंतरं चैव मंडलं सव्वबाहिरं चेव मंडलं ॥ सूरपणती १३. जइ खलु तस्सेव आदिच्चस्स संवच्छरस्स सइं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सई अट्ठारसमुत्ता राती भवति, सई दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सई दुवालसमुहुत्ता राती भवति । पढमे छम्मासे अत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राती, णत्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे, अत्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे, णत्थि दुवालसमुहुत्ता राती । दोच्चे छम्मासे अस्थि अट्ठारसमुह दिवसे, णत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राती, अस्थि दुवालसमुहुत्ता राती, णत्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे । पढमे वा छम्मासे दोच्चे वा " छम्मासे णत्थि पण्णरसमुहुत्ते दिवसे", णत्थि पण्णरसमुहुत्ता राती" ॥ १४. तत्थ णं को हेतूति वएज्जा" ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं १. आयणाणि ( ख ) ; तोयणाणि (घ ) । २. अष्टादशे आदित्यानामुपलक्षणमेतच्चन्द्रमसां च चारा वक्तव्याः (सूवृ) । ३. x (घ,ट,व, चंवृ) । ४. चिन्हाङ्कितः पाठः द्वयोरपि वृत्योराधारेण स्वीकृत: । आदर्शषु केचिद् भेदा लभ्यन्ते - कति मंडलाई चरति (क,ग,घ,व); कइ मंडलाई चरति कई मंडलाई दुक्खुत्तो चर (ट) । कति वा मंडलान्येकवारमिति शेषः (सू, चंवृ) । ५. चूलसिति (ट) ; चूलसीती (व) । ६. वयासीयं (ट) । ७. सयं (ग,घ ) । ८. राती भवति (क, ग, घ, ट,व); वृत्योरेतत्पदं नास्ति व्याख्यातम् अस्ति क्रियापदस्य विद्यमानतायां नावश्यकमपि विद्यते । ६. दिवसे भवइ (क,ग,घट,व) । १०,११. x (क, ग, घ ); प्रथमे षण्मासे द्वितीये वा षण्मासे ( सूवृ, चवृ ) । १२. दिवसे भवति (क, ग, घ, ट, व, सूवृ); चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्ती एतत् क्रियापदं नास्ति 1 १३. राती भवति (क, ग, घ, ट, वृ) । १४. को हेतूं वदेज्जा ( क ); (ग, घ,व); को हेउ (ट) । के हेतुं वंदेज्जा Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पाहुडे ( पढमं पा० ) ५२७ सव्वब्भंतराए' 'सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवाल संठाणसंठिए, वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिणि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साई दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिणिय कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस अंगुलाई अर्द्धगुलं च किंचि विसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते । ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । सेनिक्खमाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, 'ता जया णं सूरिए अभितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ", तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहिं अहिया । से निक्खमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अब्भितरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया' णं सूरिए अब्भितरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ उहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति चउहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहि अहिया । एवं खलु एएणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओं तयानंतर मंड मंडलं संकममाणे संक्रममाणे दो-दो 'एगट्टिभागे मुहुत्तस्स" एगमेगे मंडले दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेमाणे निवुड्ढेमाणे रयणिखेत्तस्स अभिवुड्ढेमाणे- अभिवुड्ढेमाणे सव्वबाहिर मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वब्भंतरमंडलं पणिहाय एगेणं तेसीएणं इंदियस एणं तिष्णिछावट्ठे एगट्टिभागमुहुत्ते सए दिवसखेत्तस्स निवुढित्ता रणिखेत्तस् अभिवृडित्ता चारं चरइ, तथा णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं 'पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे | से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे" पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुता राती भवति दोहि एगट्टिभागमुहुत्तेहि ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहिं अहिए । से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति चउहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवाल - १. सं० पा० --- सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं । २. अमीणे (क, ग, घ ) । ३. x (क, घ) 1 ४. अधिया ( क ) । ५. जदा (क, घ) 1 ६. द्रष्टव्यम् -- जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः ७।६६ सूत्रस्य पाठ: पाठान्तरं च । ७. गट्ठभागमुहुत्ते (क, ट,व) । तेसीतेणं (कट) ८. ६. पढमछम्मासस्स (क, ग, घ ) । १०. अयमीणे (क,व); अजमीणे ( ग, घ ) । Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ सुरपण्णत्ती मुहुत्ते दिवसे भवइ चहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिए। एवं खलु एएणुवाएणं पविसमाणे सरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणे-संकममाणे दो-दो एगट्रिभागमुहत्ते एगमेगे मंडले रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेमाणे-निवुड्ढेमाणे दिवसखेत्तस्स अभिवुड्ढेमाणे -अभिवुड्ढेमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिराओ मंडलाओ सव्वन्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वबाहिरं मंडलं पणिहाय एगेणं तेसोएणं' राइंदियसएणं तिण्णिछावठे एगट्ठिभागमुहत्ते सए रयणिखेत्तस्स निवुड्डित्ता दिवसखेत्तस्स अभिवुड्डित्ता' चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणं। इति खल तस्सेवं आदिच्चस्स संवच्छरस्स सई अङ्गारसमूहत्ते दिवसे भवइ, सइं अटारसमहत्ता राती भवति, सई दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सई दुवालसमुहुत्ता राती भवति । पढमे छम्मासे अत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राती, पत्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे, अत्थि दुवालसमहत्ते दिवसे, णत्थि दुवालसमुहुत्ता राती। दोच्चे छम्मासे अत्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे, णत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राती, अत्थि दुवालसमुहुत्ता राती, णत्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे। पढमे वा छम्मासे दोच्चे वा छम्मासे णत्थि पण्णरसमुहुत्ते दिवसे, णत्थि पण्णरसमुहुत्ता राती। णण्णत्थ राइंदियाणं वड्डोवुड्डीए मुहुत्ताण वा चयोवचएणं, णण्णत्थ अणुवायईए, 'गाहाओ भाणियव्वाओ" । बीयं पाहुडपाहुडं १५. ता कहं ते अद्धमंडलसंठिती आहितेति वएज्जा ? तत्थ खलु ‘इमे दुवे" अद्धमंडलसंठिती पण्णत्ता, तं जहा- दाहिणा चेव अद्धमंडलसंठिती उत्तरा चेव अद्धमंडलसंठिती॥ १६. ता कहं ते दाहिणा अद्धमंडलसंठिती आहितेति वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए १. अभिवड्ढेमाणे (क,ग,घ,ट,व)। सम्प्रति क्वापि पुस्तके न दृश्यन्ते इति व्यव२. तीयसीएणं (ट))। च्छिन्नाः सम्भाव्यन्ते ततो न कथयितुं ३. अभिवड्ढित्ता (क,ग,घ,ट,व)। व्याख्यातुं वा शक्यन्ते, यो वा यथा सम्प्रदाया४. वड्ढोवड्ढीए (क,ग,घ,ट,व) । दवगच्छति तेन तथा शिष्येभ्यः कथनीयाः ५. 'गाहाओ भणितव्वाओ' ति अत्र अनन्त- व्याख्यानीयाश्चेति (सूव) । रोक्तार्थसंग्राहिका अस्या एव सूर्यप्रज्ञप्तेर्भद्र- ६. आहिताति (क,ग,घ,व) । बाहस्वामिना या नियुक्तिः कृता तत्प्रतिबद्धा ७. इमा दुविहा (ट,व)। अन्या वा काश्चन ग्रन्थान्तरसुप्रसिद्धा गाथा ८. आहिताति (क,ग,घ)। वर्त्तन्ते ता भणितव्याः' पठनीयाः, ताश्च १. सू० १४ Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम पाहुडं (बीयं पा०) अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं आयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि दाहिणाए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए अभितराणंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, जया णं सूरिए अभितराणंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगद्विभागमुहुत्तेहिं अहिया । से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि उत्तराए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए अभितरं तच्चं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अभितरं तच्चं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता रातो भवति चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया। एवं खलु एएणं उवाएणं निक्खममाणे सुरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं तंसि-तंसि देसंसि तं-तं अद्धमंडलसंठिति संकममाणे-संकममाणे दाहिणाए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए सव्वबाहिरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ। एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि उत्तराए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए बाहिराणंतरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरई, ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिए । से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि दाहिणाए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए बाहिरंतरं तच्चं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहत्ता राती भवति चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिए। एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं तंसि-तंसि देसंसि तं-तं अद्धमंडलसंठिति संकममाणे-संकममाणे उत्तराए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए सव्वब्भंतरं दाहिणं अद्धमंडसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वन्भंतरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे ॥ १७. ता कहं ते उत्तरा अद्धमंडलसंठिती आहितेति वएज्जा? ता अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव' परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारस - १. सू० १॥१४॥ Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती मुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । जहा दाहिणा तहा' चेव, णवरं-उत्तरट्ठिओ अभितराणंतरं दाहिणं उवसंकमति, दाहिणाओ अभितरं तच्चं उत्तरं उवसंकमति । एवं खलु एएणं उवाएणं जाव' सव्वबाहिरं दाहिणं उवसंकमति, सव्वबाहिरं दाहिणं उवसंकमित्ता दाहिणाओ बाहिराणंतरं उत्तरं उवसंकमति, उत्तराओ बाहिरं तच्चं दाहिणं, तच्चाओ दाहिणाओ संकममाणे-संक्रममाणे जाव सव्वब्भंतरं उवसंकमति तहेव । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे, गाहाओ॥ १,२. तहा उत्तरा (क) । वृत्ती (पत्र २०) अस्य विषयस्य पूर्णालापको लिखितो दृश्यते। कोष्ठकवर्ती पाठो वृत्तौ नोपलब्धः, किन्तु पूर्णपाठानुसारेणं युज्यते, इत्यस्माभिलिखितः। सूत्रालापको यथावस्थितः परिभावनीयः, सच्चैव--से निक्खममाणे सरिए नवं संवच्छरमयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि उत्तराए अंतराए भागाए तस्साइपएसाए अभितराणंतरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरति, जया णं सूरिए अब्भितराणंतरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चार चरति तया णं अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति दोहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया । से निक्खममाणे सूरिए दोच्चसि अहोरत्तंसि दाहिणाए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए अब्भितरं तच्चं उत्तरं अद्धमंडलसंठिइं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सरिए अभितरं तच्च उत्तरं अद्धमंडलसंठिई उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति चाहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहत्ता राई भवति चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया, एवं खलु एएणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं तंसि-तंसि देसंसि तं-तं अद्धमंडलसंठिइं संकममाणे-संकममाणे उत्तराए अंतराए भागाए तस्साइपएसाए सवबाहिरं दाहिणमद्धमंडलसंठिइं उवसंकमिता चारं चरति, ता जया णं सरिए सव्वबाहिरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिइमुवसंकमित्ता चारं चरति तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवति, जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । से पविसमाणे सरिए दोच्चं छम्मासमयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि दाहिणाए अंतराए भागाए तस्साइपएसाए बाहिराणंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिइमुवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिइमुवसंकमित्ता चारं चरति तया णं अटारसमहत्ता राई भवइ दोहि य एगट्रिभागमहत्तेहि ऊणा, वालसमहत्ते दिवसे भवइ दोहि एगट्ठिभागमु हुत्तेहिं अहिए। [से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि उत्तराए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए बाहिरंतरं तच्चं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सरिए बाहिरं तच्च दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं अट्ठारसमहत्ता राई भवइ चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगट्ठिभागमुत्तेहि अहिए] । एवं खलु एएणं उवाएणं पवितमागे सरिए तयणंतराओ तथागंतरं तंसि-तंसि देसंसि तंतं अद्धमंडलसंठिई संक्रममाणे-संकममाणे दाहिणाए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए सव्वभंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिइमवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सरिए सव्वभंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिइं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अद्वारसमुहत्ते दिवसे भवति जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवति (सूव)। Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पाहुडं ( तच्चं पा० ) तच्चं पाहुडहुड १८. ता के ते चिणं पडिचरइ आहितेति वएज्जा ? तत्थ खलु इमे दुवे सूरिया पण्णत्ता, तं जहा - भारहे चेव सूरिए, एखए चेव सूरिए । ता एते णं दुवे सूरिया तीसा तीसा मुहुत्तेहि एगमेगं अद्धमंडलं चरंति, सट्टीए - सट्ठीए मुहुत्तेहि एगमेगं मंडलं संघातेंति । ता निक्खममाणा खलु एते दुवे सूरिया नो अण्णमण्णस्स चिणं पचिरंति, पविसमाणा खलु एते दुवे सूरिया अण्णमण्णस्स चिण्णं पडिचरंति, तं सतमेगं चोयालं ॥ १६. तत्थ ' को तुति वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव परिक्खेवेणं, तत्थ णं अयं भारहए चेव सूरिए जंबुद्दीवस्स दीव 'पाईणपडिणायताए उदीणदाहिणायताए" जीवाए मंडलं चउवीस एणं सरणं छेत्ता दाहिणपुरथिमिल्लंसि चउभागमंडलंसि बाणउति सूरियगताई जाई अप्पणा चेव' चिण्णाई पडिचरइ, उत्तरपच्चत्थिमिल्लांसि च भागमंडलंसि एक्काणउति सूरियगताई जरिए अप्पणा चेव चिण्णाई पडिचरइ । तत्थ अयं भारहे सूरिए एरवयस्स सूरियस्स जंबुवस्स दीवस पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउवीस एणं सणं छेत्ता उत्तरपुरत्थिमिल्लंसि चउभागमंडलंसि बाणउति सूरियगताई जाई सूरिए परस्स चिण्णाइं पडिचरइ, दाहिणपच्चत्थिमिल्लंसि चउभागमंडलंसि एक्काउणति सूरियगताई जाई सूरिए परस्स चेव चिण्णाई पडिचरइ । तत्थ अयं एरवए सूरिए जंबुद्दीवस्स दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीर्णदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउवीसएणं सतेणं छेत्ता उत्तरपुरत्थिमिल्लंसि चउब्भागमंडलसि बाणउति सूरियगताइं जाई सूरिए अप्पणा चेव चिण्णाई पडिचरइ, दाहिणपुरत्थिमिल्लंसि चउभागमंडलंस एक्काणउति सूरियगताई जाई सूरिए अप्पणा चेव चिण्णाई पडिचरइ । तत्थ अयं एरावतिए सूरिए भारहस्स सूरियस्स जंबुद्दीवस्स दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउवीसएणं सतेणं छेत्ता दाहिणपच्चत्थिमिल्लंसि च भागमंडलसि बाणउति सूरियगताई सूरिए परस्स चिण्णाई पडिचरइ, उत्तरपुरथिमिल्लंसि चउभागमंडलंसि एक्काणउति सूरियगताई जाई सूरिए परस्स चेव चिण्णाई पडिचरइ | ता निक्खममाणा खलु एते दुवे सूरिया नो अण्णमण्णस्स चिणं पडिचरंति । पविसमाणा खलु एते दुवे सूरिया अण्णमण्णस्स चिण्णं पडिचरंति । सतमेगं चोयाल, गाओ ॥ १. x (क, ग, घ ) । २. हेऊ (क, ग, घ, ट, व ) । ३. पाईप डिणाययउदीणदाहिणायताए घ,व) । (क,ग, ६०१ ४. सूरियमताई ( ग, घ, ट, व ) । ५. × (क,ध,व) । ६. चिणं (ग, घ, टव) प्राय: सर्वत्र | ७. तत्थ णं (ग, ट,व) । Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ सूरपण्मत्ती चउत्थं पाहुडपाहुडं २०. ता केवतियं एते दुवे सूरिया अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चारं चरंति आहिताति' वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ छ पडिवत्तीओ। तत्थ एगे एवमाहंसु-ता एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसतं अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता एगं जोयणसहस्सं एगं च चउतीसं जोयणसयं अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति' वएज्जा-एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता एग जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसयं अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा - एगे एवमाहंसु ३ "एगे पुण एवमाहंसु–ता एगं दीवं एगं समुदं अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा-एगे एवमाहंसु° ४ एगे पुण एवमाहंसु-ता दो दीवे दो समुद्दे अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा-एगे एवमाहंसु ५ एगे पुण एवमाहंसु-ता तिण्णि दीवे तिण्णि समुद्दे अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा—एगे एवमाहंसु ६ वयं पुण एवं वयामो-ता 'पंच पंच" जोयणाइं पणतीसं च एगद्विभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले अण्णमण्णस्स अंतरं अभिवड्ढे माणा वा निवड्ढे माणा वा सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा॥ २१. तत्थ णं को हेतूति वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं पण्णत्ते, ता जया णं एते दुवे सूरिया सव्वब्भंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं 'नवणउति जोयणसहस्साई" छच्च चत्ताले जोयणसए अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चारं चरंति आहिताति वएज्जा, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति। ते निक्खममाणा सूरिया नवं संवच्छरं अयमाणा पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, ता जया णं एते दुवे सूरिया अब्भितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं नवणवति जोयणसहस्साइं छच्च पणयाले जोयणसए पणवीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चारं चरंति आहिताति वएज्जा, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया। ते निक्खममाणा सूरिया दोच्चंसि अहोरत्तंसि अभितरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, ता जया णं एते दुवे सूरिया अभितरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं नवणवति जोयणसहस्साइं छच्च १. ते (क,ग,घ,व)। ४. सं० पा० –एवं एगं दीवं एगं समुई २. आहितेति (ट,व); अत्र कर्तृपदे द्विवचनमस्ति अण्णमण्णस्स अंतरं कटु । तेन 'आहिताति' (आख्याताविति) इति पाठो ५. पंच (क,ग,घ,ट,व)। मूले स्वीकृतः। ६. णवणवइजोयणसहस्साई (ग,घ,ट,व)। ३. आहियति (ग,घ,व)। Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०३ पढमं पाहुडं (पंचमं पा०) इक्कावण्णे जोयणसए नव य एगट्ठिभागे जोयणस्स अण्णमण्णस्स अंतरं कट्ठ चारं चरंति आहिताति वएज्जा, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति चरहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया। एवं खलु एते णुवाएणं निक्खममाणा एते दुवे सूरिया तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणासंकममाणा पंच-पंच जोयणाइं पणतीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले अण्णमण्णस्स अंतरं अभिवड्ढेमाणा-अभिवड्ढे माणा सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, ता जया णं एते दुवे सूरिया सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं एगं जोयणसयसहस्सं छच्च सट्टे जोयणसए अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चारं चरंति, तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ। एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। ते पविसमाणा सूरिया दोच्चं छम्मासं अयमाणा पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, ता जया णं एते दुवे सूरिया बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, तया णं एगं जोयणसयसहस्सं छच्च चउप्पण्णे जोयणसए छव्वीसं च एगट्रिभागे जोयणस्स अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चारं चरंति आहिताति वएज्जा, तया णं अठारसमहत्ता राती भवति दोहिं एगद्विभागमुहत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिए । ते पविसमाणा सूरिया दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, ता जया णं एते दुवे सूरिया बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं एग जोयणसयसहस्सं छच्च अडयाले जोयणसए बावणं च एगट्ठिभागे जोयणस्स अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चारं चरंति, तया णं अट्ठारसमुहत्ता राती भवति चउहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहि एगट्रिभागमुहत्तेहिं अहिए। एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणा एते दुवे सूरिया तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणा-संकममाणा पंच-पंच जोयणाइं पणतीसे एगट्रिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले 'अण्णमण्णस्स अंतरं निवुड्ढेमाणा-निवुड्ढेमाणा सव्वब्भंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, ता जया णं एते दुवे सूरिया सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, तया णं नवणउति जोयणसहस्साइं छच्च चत्ताले जोयणसए अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चार चरंति, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे॥ पंचमं पाहुडपाहुडं २२. ता केवतियं ते दीवं समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा ? १. इक्कावणे (ग,घ,ट,व)। 'छत्तीस' इति पदं नास्ति सम्मतम् । २. छत्तीसं (ग,घ); वृत्तिद्वयेपि 'षड्विंशति ३. अण्णमण्णस्संतरं (क,ग,घ)। चैकषष्ठिभागान् योजनस्य इति लभ्यते । तेन ४. आहिताति (क,ग,घ)। Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०४ सूरपण्णत्ती तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं दीवं समुई वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ 'आहितेति वएज्जा---एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु---ता एग जोयणसहस्सं एगं च चउत्तीसं जोयणसयं दीवं समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जाएगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु-ता एगं जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसयं दीवं समुई वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा-एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु ता अवड्ढं दीवं समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जाएगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु-ता किंचि दीवं समुदं वा ओगाहित्ता सरिए चारं चरड आहितेति वएज्जा-एगे एवमाहंस ५ तत्थ जेते एवमाहंस-ता एग जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं दोवं समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, ते एवमाहंसू –ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं जंबुद्दीवं दीवं एग जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहत्ता राती भवति, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं लवणसमुदं एग जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ १ एवं चोत्तीसं जोयणसयं २ एवं पणतीसं जोयणसयं ३ तत्थ जेते एवमाहंसु-ता अवड्ढं दीवं समुई वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, ते एवमाहंसु-ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अवड्ढं जंबुद्दीवं दीवं ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति, एवं सव्वबाहिरएवि, नवरं-अवड्ढं लवणसमुई, तया णं राइंदियं तहेव ४ तत्थ जेते एवमाहंसु-ता नो किंचि दीवं समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, ते एवमाहंसू....ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं नो किंचि दीवं समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमहत्ते दिवसे भवइ, तहेव। एवं सव्वबाहिरए मंडले, नवरं-नो किंचि लवणसमदं ओगाहित्ता चारं चरइ, राइंदियं तहेव, एगे एवमाहंसु ५ वयं पूण एवं वयामो-ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं जंबुद्दीवं दीवं असीतं जोयणसतं ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अटारसमुहत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एवं सव्वबाहिरेवि, णवरं-लवणसमुदं तिणि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ट१. प्रज्ञप्तस्तद्यथा (सूव, चंव) । पत्तिष्वपि एवमेव दृश्यते । २. दीवं वा (क,ग,घ,ट,व) । ४. क्वचित्तु 'सव्वबाहिरेवी' व्यतिदेशमन्तरेण ३. 'क,ग,घ' आदर्शषु अयं पाठो नैव दृश्यते, सकलमपि सूत्रं साक्षाल्लिखितं दृश्यते (सूव, वृत्योरपि नास्ति व्याख्यातः 'ट' प्रतौ क्वचित्- चंव)। क्वचित् लिखितोस्ति शेषप्राभूतानां प्रति Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पाहुडं (छट्ठ पा० ) ६०५ पत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, गाहाओ भाणियव्वाओ || छट्ठ पाहुडपाहुडं २३. ता केवतियं ते एगमेगेणं राईदिएणं विकंपइत्ता - विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ सत्त पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । 'तत्थ एगे " एवमाहंसु-ता दो जोयणाइं अद्धबायालीसं तेसीतिसतभागे जोयणस्स एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा - एगे एवमाहंसु १ ऐगे पुण एवमाहंसु-ता अड्डाइज्जाई जोयणाई एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा - एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु-ता तिभागूणाई तिणि जोयणाई एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता - विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा - एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु- - ता तिण्णि जोयणाई अद्धसीतालीस च तेसीतिसयभागे जोयणस्स एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता - विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा - एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु - ता अद्भुट्टाई जोयणाई एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा-एगे एवमाहं ५ एगे पुण एवमाहंसु -ता चउब्भागुणाई चत्तारि जोयणाई एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा - एगे एवमाहंसु ६ एगे पुण एवमाहंसु - ता चत्तारि जोयणाई अद्धबावण्णं च तेसीतिसयभागे जोयणस्स एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता - विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा - एगे एवमाहंसु ७ वयं पुण एवं वयामो-ता दो जोयणाई अडतालीसं च एगट्टिभागे जोयणस्स एगमेगं मंडलं एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता - विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ ॥ २४. तत्थ को हेतूति वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतराए जाव' परिक्खेवेणं पण्णत्ते, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । सेनिक्खमाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अभितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं दो जोयणाई अडयालीसं च एगट्टिभागे जोयणस्स एगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता चारं चरइ, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्ते हिं ऊणे दुवालसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया । से निक्खमाणे सूरिए दोच्चसि अहोरत्तंसि अब्भितरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जाणं सूरिए अभितरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं पंच जोयणाई पणतीसं एगट्ठभागे जोयणस्स दोहिं राईदिएहिं विकंपइत्ता चारं चरइ, तया गं ३. अद्धसीताल (क,व) | ४. सू० १।१४ ॥ १. कत्तियं (ग,घ ) । २. तत्येगे (ग,घ) । Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरपण्णत्ती अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति चहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया । एवं खलु एतेणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणे संकममाणे दो-दो जोयणाई अडता ६०६ संच एगट्ठभागे जोयणस्स एगमेगं मंडलं एगमेगेणं राइदिएणं विकंपमाणे विकंपमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वब्भंतरं मंडलं पणिहाय एगेणं तेसीतेणं राइंदियसतेणं पंचदसुत्तरजोयणसए विकंपइत्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । से पविसमा सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं दो-दो जोयणाई अडतालीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स एगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता चारं चरइ, तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्ते हिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिए । से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरतच्चसि मंडलंसि उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं पंच जोयणाइं पणतीसं च एगट्ठभागे जोयणस्स दोहिं राइदिएहिं विकंपइत्ता चारं चरइ, " तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति उहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहि एगट्टिभागमुहुत्तेहि अहि । एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ तयानंतर मंडलाओ मंडलं संकममाणे - संकममाणे दो-दो जोयणाई अडयालीसं च एगट्टिभागे जोयणस्स एगमेगेणं राइदिएणं विकंपमाणे विकंपमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिराओ मंडलाओ सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वबाहिरं मंडलं पणिहाय एगेणं तेसीतेणं राइंदियसतेणं पंचदसुत्तरे जोयणस विकंपइत्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छस्स पज्जवसाणे || सत्तमं पाहुडहुड २५. ता कहं ते मंडलसंठिती आहितेति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ अट्ठ पवित्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थ एगे एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता' समचउरंस संठाणसंठिता पण्णत्ता - एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता विसमचउरंस संठाणसंठिता पण्णत्ता - एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता समचउक्कोणसंठिता पण्णत्ता - एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु-ता १. सं० पा० - राइदिए तहेव । ३. मंडलवत्ता ( ग ) । २. आहिताति (क, ग, घ,व) । Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०७ पढमं पाहुडं (अट्ठमं पा०) सव्वावि मंडलवता विसमचउक्कोणसंठिता पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता समचक्कवालसंठिता पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु ५ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता विसमचक्कवालसंठिता पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु ६ एगे पुण एवमाहंसु-तासव्वावि मंडलवता चक्कद्धचक्कवालसंठिता पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु ७ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता छत्तागारसंठिता पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु ८ तत्थ जेते एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता छत्तागारसंठिता पण्णत्ता, एतेणं नएणं नायव्वं, नो चेव णं इतरेहि, पाहुडगाहाओ भाणियव्वाओ। अट्ठमं पाहुडपाहुडं २६. ता सव्वावि णं मंडलवता केवतियं बाहल्लेणं, केवतियं आयाम-विक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं अहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ तिण्णि पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु-ता सव्वावि णं मंडलवता जोयणं बाहल्लेणं, एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसहस्साई तिण्णि य नवणउए जोयणसए परिक्खेवेणं पण्णत्ता'--एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु--ता सव्वावि णं मंडलवता जोयणं बाहल्लेणं, एगं जोयणसहस्सं एगं च चउतीसं जोयणसयं आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसहस्साई चत्तारि बिउत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं पण्णत्ताएगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि णं मंडलवता जोयणं बाहल्लेणं, एगं जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसयं आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसहस्साई चत्तारि य पंचुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु ३ वयं पुण एवं वयामो-ता सव्वावि णं मंडलवता अडतालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, अणियता आयाम-विक्खंभ-परिक्खेवेणं आहिताति वएज्जा ॥ २७. तत्थ णं को हेतूति वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सा मंडलवता अडतालीसं एगट्रिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, नवणउति जोयणसहस्साइं छच्च चत्ताले जोयणसए आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं पण्णरस य जोयणसहस्साइं एगूणणउति जोयणाई किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहण्णिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभिंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अभिंत राणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सा मंडलवता अडतालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, नवणउति जोयणसहस्साइं छच्च पणयाले जोयणसए पणतीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं पण्णरस य सहस्साइं एगं च सत्तुत्तरं जोयणसयं किंचिविसेसूणं १. आहितेति वएज्जा (ट); आहियाति वएज्जा (व)। २. आहितेति वएज्जा (); आहियाति व एज्जा (व) । Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८ सूरपण्णत्ती परिक्खेवेणं, तया णं दिवसराइप्पमाणं तहेव' । से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोर सि अब्भिंतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अब्भिंतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सा मंडलवता अडतालीसं एगद्विभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, नवणउति जोयणसहस्साइं छच्च एक्कावणे' जोयणसए नव य एगट्टिभागा जोयणस्स आयाम - विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं पण्णरस य सहस्साइं एगं पणवीसं जोयणसयं परिक्खेवेणं, तया णं दिवसराई तहेव' । एवं खलु एतेणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयातराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडल 'संकममाणे - संकममाणे" पंच-पंच जोयणाई पणतीसं च एगट्टिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले विक्खंभवुढि अभिवड्ढे माणे अभिवड्ढेमाणे 'अट्ठारसअट्ठारस" जोयणाई परिरयवुढि अभिवड्ढेमाणे- अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सा मंडलवता अडतालीस एगट्टिभागा जोयणस्स बाहल्लेणं, एगं जोयणसयसहस्सं छच्च सट्ठे जोस आयाम - विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं अट्ठारस सहस्साइं तिण्णि य पण्णरसुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं, तया णं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहणए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । से पविसमा सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सा मंडलवता अडतालीसं एगट्टिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, एवं जोयणसयसहस्सं छच्च चउप्पण्णे जोयणसए छव्वीसं च एगट्टिभागे जोयणस्स आयाम - विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं अट्ठारस सहस्साइं दोण्णि य सत्ताणउए जोयणसए परिक्खेवेणं, तया णं इंदियं तव । से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं सा १. तच्चैवम् - तथा णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहि एगट्टिभागमुहुत्तेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवति दोहि एगट्टिभागमुहुत्तेहिं अहिया (सूवृ) । २. एक्कापणे (ट,व) । ३. तच्चैवं - तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति चउहि एगट्ठिभाग मुहुत्तेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवति चउहि एगट्ठिभागमुहुत्ते हि अहिया ( सूवृ । ४. उवसंकममाणे उवसं कममाणे (ट,व) 1 ५. अट्ठारस-अट्ठारस विचूणाई (क); वृत्तौ निश्चयव्यवहारनययोश्चर्चा कृतास्ति'अष्टादश अष्टादश' योजनानि परिरयवृद्धि मभिवर्द्धयन्नभिवर्द्धयन् इहाष्टादशेति व्यवहारत उक्तम्, निश्चयनयेन तु सप्तदश सप्तदश योजनानि अष्टात्रिशतं चैकषष्टिभागा योजनस्येति द्रष्टव्यं एतच्च प्रागेव भावितं, न चैतत् स्वमनीषिका विजृम्भितं यत उक्तं तद्विचारप्रक्रमे एव करणविभावनायां - सत्तरस जोयणाई अट्ठतीसंच एगट्ठभागा १७३६ एयं निच्छएणं, संववहारेणं पुण अट्ठारस जोयणाई ( सूवृ ) । ६. तौ चवम् — 'तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवति दोहि एगट्ठिभागमुहुत्ते हि ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे हवइ दोहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिए (सूवृ) 1 Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम पाहुडं (अट्ठमं पा०) ६०६ मंडलवता अडतालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, एगं जोयणसयसहस्सं छच्च अडयाले जोयणसए बावण्णं च एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साई अट्ठारस सहस्साइं दोण्णि य अउणासीते जोयणसए परिक्खेवेणं, दिवसराई तहेव । एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणेसंकममाणे पंच-पंच जोयणाई पणतीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले विक्खंभवyि निवुड्ढे माणे-निवुड्ढेमाणे अट्ठारस जोयणाई परिरयवुड्डि निवुड्ढेमाणे-निवुड्ढेमाणे सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं सा मंडलवता अडतालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, नवणउति जोयणसहस्साइं छच्च चत्ताले जोयणसए आयाम-विक्खंभेणं, तिणि जोयणसयसहस्साइं पण्णरस य सहस्साइं अउणाउति' च जोयणाइं किंचिविसेसाहियाइं परिक्खेवेणं, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एस णं दोच्चे छम्मासे एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे। ता सव्वावि णं मंडलवता अडतालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, सव्वावि णं मंडलंतरिया दो जोयणाई विक्खंभेणं, एस णं अद्धा तेसीयसयपडुप्पण्णो पंचदसुत्तरे जोयणसए आहिताति वएज्जा ॥ २८. ता अभिंतराओ मंडलवताओ बाहिरा मंडलवता, बाहिराओ वा मंडलवताओ अभिंतरा मंडलवता, एस णं अद्धा केवतियं आहितेति वएज्जा? ता पंचदसत्तरे जोयणसए आहितेति वएज्जा ॥ २६. अभिंतराए मंडलवताए बाहिरा मंडलवता, बाहिराए वा मंडलवताए अभिंतरा मंडलवता, एस णं अद्धा केवतियं आहितेति वएज्जा ? ता पंचदसुत्तरे जोयणसए अडतालीसं च एगट्टिभागे जोयणस्स आहितेति वएज्जा ।।। ३०. ता अभंतराओ मंडलवताओ बाहिरा मंडलवता, बाहिराओ वा मंडलवताओ अभंतरा मंडलवता, एस णं अद्धा केवतियं आहितेति वएज्जा ? ता पंचणवत्तरे जोयणसए तेरस य एगट्ठिभागे जोयणस्स आहितेति वएज्जा॥ ३१. ता अभिंतराए मंडलवताए बाहिरा मंडलवता, बाहिराए वा मंडलवताए अभिंतरा मंडलवता, एस णं अद्धा केवतियं आहितेति वएज्जा ? ता पंचदसुत्तरे जोयणसए आहितेति वएज्जा॥ १.ते चैवम्-तया णं अट्ठारसमुहत्ता राई भवइ चउहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालस- महत्ते दिवसे भवइ चउहि एगठ्ठिभागमुहुतेहि अहिए (सूव)। २. अट्ठारस किंचूणाई (क)। ३. अउणाणउति (क,ट,व) । ४. चन्द्रप्रज्ञप्यादर्शयोः सूत्रचतुष्कस्य (११२६-३२) पाठो भिन्नोस्ति । द्रष्टव्यं परिशिष्टम् । Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं पाहुडं पढमं पाहुडपाहुडं १. ता कहं ते तिरिच्छगती' आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ अट्ट पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु-ता पुरत्थिमाओ' लोयंताओ पादो मिरीची आगासंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायं मिरीयं आगासंसि विद्धंसइ.-एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसुः–ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पादो सूरिए आगासंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायं सूरिए आगासंसि विद्धंसइ-एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पादो सूरिए आगासंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता, 'पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायं सूरिए आगासं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता" अहे पडियागच्छइ, पडियागच्छित्ता पुणरवि अवरभूपुरथिमाओ लोयंताओ पादो सूरिए आगासंसि उत्तिट्ठइ---एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसुता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए पुढविकायंसि उत्तिट्ठइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चथिमिल्लसि लोयतंसि सायं सूरिए पुढविकायंसि विद्धंसइ---एगे एवमाहंसू ४ एगे पूण एवमाहंसू-ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पाओ सरिए पूढविकायंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायं रिए पुढविकायंसि अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अहे पडियागच्छइ, पडियागच्छित्ता पुणरवि अवरभूपुरत्थिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए पुढविकायंसि उत्तिदृइ--- एगे एवमाहंसु ५ एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरथिमिल्लाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आउकायंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि पाओ सूरिए आउकायंसि विद्धंसइ–एगे एवमाहंसु ६ एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरत्थिमाओ लोगंताओ पाओ सूरिए १. कधं (क)। २. तिरच्छगती (ट)। ३. पुरत्थमिल्लातो (ट)। ४. लोगंतातो (ट)। ५. सूरिए (ट); मिरी (व) । ६. x (ग,घ,ट,व)। ७. पच्चस्थिमिल्लसि (ट,व)। ८. सूरिए (क,ट,व)। ६. चिन्हाङ्कितः पाठः क,ग,घ' नोपलभ्यते। आदर्शषु Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं पाहुडं (बीयं पा०) आउकायंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायं सूरिए आउकायंसि अणुपविसइ', अणुपविसित्ता अहे पडियागच्छइ, पडियागच्छित्ता पुणरवि अवरभूपुरत्थिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आउकायंसि उत्तिट्ठइ-एगे एवमाहंसु ७ एगे पुण एवमाहंसु–ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ बहूई जोयणाई बहूइं जोयणसयाई बहूइं जोयणसहस्साई उड्ढं दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं पाओ सूरिए आगासंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं दाहिणड्ढं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता उत्तरड्डलोयं तमेव राओ, से णं इमं उत्तरडलोयं तिरियं करेइ, करेत्ता दाहिणड्डलोयं तमेव राओ, से णं इमाइं दाहिणुत्तरडलोयाइं तिरियं करेइ, करेत्ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ बहूइं जोयणाई बहूइं जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साइं उड्ढं दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं पाओ' सूरिए आगासंसि उत्तिट्टइएगे एवमाहंसु ८। वयं पुण एवं वयामोता जंबुद्दीवस्स दीवस्स 'पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दाहिणपुरथिमंसि उत्तरपच्चत्थिमंसि य चउभागमंडलंसि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अट्ठ जोयणसयाई उडढं उप्पइत्ता, एत्थ णं पाओ दुवे सरिया उत्तिट्ठति । ते णं इमाई दाहिणत्तराई जंबुद्दीवभागाइं तिरियं करेंति, करेत्ता पुरथिमपच्चत्थिमाइं जंबुद्दीवभागाइं तामेव राओ, ते णं इमाइं पुरथिमपच्चत्थिमाइं जंबुद्दीवभागाइं तिरियं करेंति, करेत्ता दाहिणुत्तराई जंबुद्दीवभागाइं तामेव राओ, ते णं इमाइं दाहिणुत्तराई पुरथिमपच्चत्थिमाणि य जंबहीवभागाइं तिरियं करेंति, करेत्ता जंबूद्दीवस्स दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दाहिणपुरथिमिल्लसि उत्तरपच्चत्थिमिल्लसि य चउभागमंडलंसि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अट्ठ जोयणसयाई उड्ढे उप्प इत्ता, एत्थ णं पाओ दुवे सूरिया आगासंसि उत्तिट्ठति ॥ बीयं पाहुडपाहुडं २. ता कहं ते मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए चारं चरति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु-ता मंडलओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु-ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति २ तत्थ जेते एवमाहंसु-ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति, तेसि णं अयं दोसे, ता जेणंतरेणं मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति एवतियं च णं अद्धं पुरतो न गच्छति, पुरतो अगच्छमाणे १. पविसइ (ग,घ)। ४. सूरिया आगासातो (ट,व) । २. पातो (क,ग,घ,ट,व)। ५. संकममाणे २ (क,ग,घ,व)। ३. पाईणपाडिणायतउदीणदाहिणायताए (क,ग, ६. निगच्छमाणे (ग,घ)। घ,ट,व)। Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१२ सूरपण्णत्ती मंडलकालं परिहवेति', तेसि णं अयं दोसे । तत्थ जेते एवमाहंसुता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति, 'तेसि णं अयं विसेसे", ता जेणंतरेणं मंडलाओ मंडल संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति एवतियं च णं अद्धं पुरतो गच्छति, पुरतो गच्छमाणे मंडलकालं न परिहवेति, तेसि णं अयं विसेसे । तत्थ जेते एवमाहंसु-ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं णिव्वेढेइ, एतेणं नएणं नेयव्वं, नो चेव णं इतरेणं ॥ तचं पाहुडहुड ? तत्थ ३. ता यतियं ते खेत्तं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति आहिताति वएज्जा खलु इमाओ चत्तारि पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थ एगे एवमाहंसु ता छ छ जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति' - एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु-ता पंच-पंच जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति - एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु- -ता चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहत्तेणं गच्छति - एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु - ता छवि पंचवि चत्तारिवि जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति - एगे एवमाहंसु ४ तत्थ जेते एवमाहंसु - ता छ छ जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति ते एवमाहंसुता जया णं सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहण्णिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति, तंसि च णं दिवसंसि एवं जोयणसयसहस्सं अट्ठ य जोयणसहस्साइं ताववखेत्ते ' पण्णत्ते, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तंसि च णं दिवसंसि बावर्त्तरि जोयणसहस्साइं तावक्खेत्ते पण्णत्ते, "तया णं" छ- छ जोयणसहस्साइं सूरए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति १ तत्थ जेते एवमाहंसु-ता पंच-पंच जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, ते एवमाहंसु—ता जया णं सूरिए सव्वबभंतर मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, तहेव दिवस राइप्पमा, तंसि च णं दिवसंसि नवतिं जोयणसहस्साइं तावक्खेत्ते पण्णत्ते, ता जया १. परिहारति (घ ) ; परिभ्रमति' यावता कालेन मण्डलं परिपूर्ण भ्रम्यते तस्य हानिरुपजायते (सूवृ, चंवृ) । हस्तलिखितवृत्योः परिभ्रमति' इति लिखितं दृश्यते । किन्तु अग्रेतने 'परिहवेति' क्रियापदस्य परिभवति' इति लिखितं विद्यते, तेन परिभवति' इति पदमेव शुद्धं सम्भाव्यते 'परिहावति' इति पदमपि 'परिहाणि' अर्थ द्योतयति । २. तेणं एवमाहंसु (ट,व) । ३. गच्छति आहितेति वदेज्जा (ट,व) सर्वत्र । ४. तावक्खित्ते (क ) । ५. ते सिणं ( क ) ; तेसिणमित्यादि, तेषां हि तीर्थान्तरीयाणाम् (सूवृ, चंव् ) । वृत्तिकृता अग्रेतन प्रतिपत्तिषु 'ता जया णं' इति व्याख्यातमस्ति । ६. अत्र प्रस्तावे दिवसरात्रिप्रमाणं तथैव प्रागिव द्रष्टव्यम्, 'तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे हवइ, जहण्णिया दुवालसमुहुत्ता राई भवती' ति ( सूवृ ) | Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं पाहुडं ( तच्च पा० ) ६१३ सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तथा णं तं चेव राइदियप्पमाणं' तंसि चणं दिवसंसि सट्ठि जोयणसहस्साइं तावक्खेत्ते पण्णत्ते, तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साई सूरए गमेणं मुहुत्तेणं गच्छति २ तत्थ जेते एवमाहंसु ता चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ, ते एवमाहंसु ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं दिवसराई तहेव, तंसि च णं दिवसंसि बावर्त्तारं जोयणसहस्साइं तावक्खेत्ते पण्णत्ते, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं राईदियं तहेव, ' तंसि च णं दिवसंसि अडतालीसं जोयसहस्साइं तावक्खेत्ते पण्णत्ते, तया णं चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति ३ तत्थ जेते एवमाहंसु ता छवि पंचवि चत्तारिवि जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, ते एवमाहंसु ता सूरिए णं उग्गमणमुहुत्तंसि य अत्थमणमुहुत्तंसि य सिग्धगती * भवति तया णं छ-छ जोयणसहस्साइं एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, मज्झिमतावक्खेत्तं समासादेमाणे समासादेमाणे सूरिए मज्झिमगती भवति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साई एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, मज्झिमं तावक्खेत्तं संपत्ते सूरिए मंदगती भवति तया णं चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साई एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति । तत्थ को हेतूति व एज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वन्भंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं दिवसराई तहेव, तंसि च णं दिवसंसि एक्काणउति जोयणसहस्साइं तावक्खेत्ते पण्णत्ते, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं राइंदियं तहेव, तस्सि च णं दिवसंसि एगजोयणसहस्साइं तावक्खेते पण्णत्ते, तया णं छवि पंचवि चत्तारिवि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति - एगे एवमाहंसु ४ वयं पुण एवं वयामोता सातिरेगाई पंच-पंच जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्ते गच्छति । तत्थ को हेतुति वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोण्णि य एक्कावण्णे जोयणसए एगूणतीसं च सट्टिभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति तया णं इहगतस्स मणुस्सस्स सीतालीसाए १. तदेव प्रागुक्तं रात्रि दिवसप्रमाणं रात्रि दिवसप्रमाणं वक्तव्यम्, तद्यथा 'उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई हवई, जहन्निए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवती' ति ( सूवृ ) । २. ते चैवम् ‘तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे हवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ' इति ( सूवृ ) । ३. तच्चैवम् - ' तथा णं उत्तमकट्टपत्ता उक्को सिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवई, जहन्नए दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवति' ( सूवृ) । ४. सिग्धागति ( ग, घ ) ५. ते चैवम्---' तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राई भवई' ( सूवृ ) । ६. तच्चैवम् -- ' तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्टारसमुहुत्ता राई भवई, जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ' ( सूवृ ) । ७. इदगतस्स (ग, घ ) । Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१४ सूरपण्णत्ती जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवट्ठेहिं जोयणसएहिं एगवीसाए' य सट्टिभागेहिं जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ, तया णं दिवसे राई तहेव' । से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे' पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए अभितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोण्णि य एक्कावणे' जोयणसए सीतालीसं च सट्ठिभागे' जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, तया णं इहगतस्स मणसस्स सीतालीसाए जोयणसहस्सेहिं अउणासीते' य जोयणसए सत्तावण्णाए सट्टिभागेहिं जोयणस्स सद्विभागं च एगट्ठा छेत्ता अउणावीसाए चुण्णियाभागेहिं सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति तया णं दिवसराई तहेव । से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अब्भितरतच्च ' मंडल उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए अब्भितरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तथा णं पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोण्णि य बावण्णे जोयणसए पंचय - भागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति तया णं इहगतस्स मणूसस्स सीतालीसाए जोयणसहस्सेहि छण्णउतीए य जोयणेहि तेत्तीसाए य सद्विभागेहि जोयणस्स सद्विभागं चएगा छेत्ता दोहिं चुण्णियाभागेहिं सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति तया णं दिवसराई तहेव" । एवं खलु एतेणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडल संकममाणे- संकममाणे अट्ठारस- अट्ठारस सट्टिभागे" जोयणस्स एगमेगे मंडले मुत्तगत अभिवृड्ढे माणे- अभिवुड्ढेमाणे चुलसीति सीताई' जोयणाई पुरिसच्छायं निवुड्ढेमाणे निवुड्ढेमाणे सव्वबाहिर मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए सव्व - बाहिर मंडल उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साइं तिष्णिय पंचुत्तरे जोयणसते पण्णरस य सद्विभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति तथा णं इहगतस्स मणूस एक्कतीसाए जोयणसहस्सेहिं अट्ठहिं एक्कतीसेहिं जोयणसतेहि तीसाए य सट्टि - भागेहिं जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । १. एकवीसाए ( क ) । २. ते चैवम् -'तया णं उत्तमक पत्ते उक्कोसए समुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवाल - समुहुत्ता राई भव' ( सूवृ ) । ३. अयमीणे (क, ग, घ ) | ४. एकापणे (ट) । ५. एगट्टिभागे ( ग, घ ) । ६. एगुणासीते ( ट ) । ७. एगसट्टिभागेहिं (ग,घ) ; एयसट्टिभागे ( ट व ) । ८. ते चैवम् -' तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे हवइ दोहि गट्टिभागमुत्ते ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ दोहि एगट्टिभागमुहुत्तेहिं अहिया' ( सूवृ ) । ६. अब्भंतरं तच्चं ( ट ) | १०. ते चैवम् -' तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे हवइ हि एट्टिभागमुहुत्ते हि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ चहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहिं अहिया' ( सूवृ) । ११. सरिस - सट्टरस सट्टिभागे ( ग, घ ) | १२. शीतानि किञ्चिन्न्यूनानीत्यर्थः (सूवृ); सीया इति किञ्चिन्न्यूनानि ( चंवृ ) । Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं पाहुडं (तच्चं पा०) ६१५ से पविसमाण सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साइं तिण्णि य चउरुत्तरे' जोयणसते सत्तावण्णं च सद्विभाए जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ तया णं इहगतस्स मणूसस्स एक्कतीसाए जोयणसहस्सेहिं नवहि य सोलेहिं जोयणसतेहिं एगणतालीसाए' सट्ठिभागेहिं जोयणस्स सट्ठिभागं च एगट्ठिहा' छेत्ता सट्ठिए चुण्णियाभागे सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति, तया णं राइंदियं तहेव । से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साई तिणि य चउत्तरे जोययणसए ऊतालीसं च सद्रिभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति तया णं इहगतस्स मणूसस्स एगाहिगेहिं बत्तीसाए जोयणसहस्सेहिं एगणपण्णाए' य सट्ठिभागेहिं जोयणस्स सट्ठिभागं च एगट्टिहा छेत्ता तेवीसाए चुण्णियाभागेहि सूरिए चवखुप्फासं हव्वमागच्छति, राइंदियं तहेव । एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणेसंकममाणे अटारस-अटारस सदिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले महत्तगति निवडढेमाणेनिवडढेमाणे सातिरेगाइं पंचासीति-पंचासीति जोयणाई पुरिसच्छायं अभिवडढेमाणेअभिवडढेमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोण्णि य एक्कावण्णे जोयणसए अउणतीसं च सट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति तया णं इहगतस्स मणूसस्स सीतालीसाए जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवढेहिं जोयणसतेहिं एक्कवीसाए य सट्ठिभागेहिं जोयणस्स सरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे ।। १. चउत्तरे (ट)। २. इगुणतालीसाए (क); अगुणतालीसाए (घ); एगुणचत्तालिसाए (ट); चउआलीसाए (व)। ३. एगट्ठिधा (क,ग,ध)। ४. तच्चैवम्--'तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवति दोहि एगट्ठिभागमुहूत्तेहि ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे हवइ दोहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिए' (सूवृ)। ५. उणयालिसं (ट)। ६. चक्कावण्णाए (क,ख,घ,व); वृत्तौ 'एकोन पञ्चाशता' इति व्याख्यातमस्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तावपि (७.२५) 'एगणपण्णाए' इति पाठो लभ्यते । गणनयापि एतदेव लभ्यते । ७. तधेव (क,ग,घ); तच्चैवम् -'तया णं अट्ठा रसमुहुत्ता राई भवइ चउहिं एगट्ठिभागमुहत्तेहि ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे हवइ चउहिं एगटिभागमुहुत्तेहिं अहिए, (सूवृ)। ८. एगुणतीसं (ट)। Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चं पाहुडं १. ता केवतियं खेत्तं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ बारस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु-ता एगं दीवं एग समदं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति १ एगे पुण एवमाहंसुता तिणि दीवे तिण्णि सम चंदिमसरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति....एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु -ता अद्भुठे दीवे अद्धठे समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति --एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु ता सत्त दीवे सत्त समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति-- एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु -ता दस दीवे दस समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति---एगे एवमाहंसु ५ एगे पुण एवमाहंसु-ता बारस दीवे बारस समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति --एगे एवमाहंसु ६ एगे पुण एवमाहंसु-ता बायालीसं दीवे बायालीसं समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति---एगे एवमाहंसु ७ एगे पुण एवमाहंसु-ता बावरि दीवे बावतरि समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति-एगे एवमाहंसु ८ एगे पुण एवमाहंसु-ता बायालीसं दीवसतं बायालं' समुद्दसतं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति--एगे एवमाहंसु ६ एगे पुण एवमाहंसु-ता बावत्तरि दीवसतं बावरि समुद्दसतं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति- एगे एवमाहंसु १० एगे पुण एवमाहंसु--ता बायालीसं दीवसहस्सं बायालं समुद्दसहस्सं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति ---एगे एवमाहंसु ११ एगे पुण एवमाहंसुता बावत्तरि दीवसहस्सं बावत्तरि समुद्दसहस्सं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति-एगे एवमाहंसु १२ वयं पुण एवं वयामो–ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव' परिक्खेवेणं पण्णत्ते, से णं एगाए जगतीए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, सा णं जगती तहेव १. पगासेंति आहितेति वदेज्जा (ट,व) सर्वत्र । परिपूर्णाश्चतुर्थस्य चार्द्धमित्यर्थः । चन्द्रप्रज्ञप्ते२. आउठे (ग,घ); 'ट,व' प्रत्योः पाठस्त्रुटि वृत्तावपि इत्थमेव व्याख्यातमस्ति । तोस्ति । सूर्यप्रज्ञप्तेर्हस्तलिखितवृत्तौ 'अद्भुढे' ३. बातालं (क) । इति अर्द्ध चतुर्थं येषां से अर्द्धचतुर्थाः, तत्र ४. सू० १।१४ । Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चं पाहु ६१७ जहा जंबुद्दीपण्णत्ती जाव' एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे चोट्सस लिलासय सहस्सा छप्पण्णं च सलिला सहस्सा भवतीति मक्खाता ॥ २. जंबुद्दीवे णं दीवे पंचचक्कभागसंठिते' आहितेति वएज्जा, ता कहं जंबुद्दीवे दीवे पंचचक्कभागसंठिते आहितेति वएज्जा ? ता जया णं एते दुवे सूरिया सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स तिणि पंचचक्कभागे ओभासंति उज्जीवेंति तवेंति पगासेंति, 'तं जहा" - एगेवि एगं दिवढं पंचचक्कभागं ओभासति उज्जोवेति तवेति पगासेति, एगेवि एगं दिवढं पंचचक्कभागं ओभासति उज्जोवेति तवेति पगासेति, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । ता जया णं एते दुवे सूरिया सव्वबाहिर मंडल उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स दोणि चक्कभागे' ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति, तं जहा एगेवि सूरिए एगं पंचचक्कवालभागं ओभासति उज्जोवेति तवेति पगासेति, एगेवि एगं पंचचक्कवालभागं ओभासति उज्जोवेति तवेति पगासेति, तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ ॥ १. जं० १७ से ६।२६ । २. संठिता ( ग, घ ) । ३. वृत्ती नास्ति व्याख्यातम् । ४. एकोपि अपरोपि द्वितीयोपीत्यर्थः (सूवृ) । ५. द्वौ चक्रवालपञ्चमभाग ( सूवृ ) । Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं पाहुडं १. ता कहं ते सेयताए' संठिती आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमा दुविधा संठिती पण्णत्ता, तं जहा -चंदिमसूरियसंठिती य तावक्खेत्तसंठिती य । २. ता कहं ते चंदिमसूरियसंठिती आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ सोलस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु --ता समचउरंससंठिता चंदिमसूरियसंठिती पण्णत्ता ....एगे एवमाहंसू १ एगे पूण एवमाहंसू - ता विसमचउरंससंठिता चंदिमसूरियसंठिती पण्णत्ता-एगे एवमाहंसू २ एवं समचउक्कोणसंठिता ३ विसमचउक्कोणसंठिता ४ समचक्कवालसंठिता ५ विसमचक्कवालसंठिता ६ चक्कद्धचक्कवालसंठिता चंदिमसूरियसंठिती पण्णत्ता --एगे एवमाहंसु ७ एगे पुण एवमाहंसु-ता छत्तागारसंठिता चंदिमसूरियसंठिती पण्णत्ता---एगे एवमाहंसु ८ एवं गेहसंठिता है गेहावणसंठिता १० पासादसंठिता ११ गोपुरसंठिता १२ पेच्छाघरसंठिता १३ वलभीसंठिता १४ हम्मियतलसंठिता १५ एगे पुण एवमासु ता वालग्गपोतियासंठिता चंदिमसूरियसंठिती पण्णत्ता -~-एगे एवमासु १६ तत्थ जेते एवमाहंसु-ता समचउरंससंठिता चंदिमसूरियसंठिती पण्णत्ता, एतेणं नएणं नेयव्वं नो चेव णं इतरेहिं ॥ ३. ता कहं ते तावक्खेत्तसंठिती आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ सोलस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु ता गेहसंठिता तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता' 'एवं जाव वालग्गपोतियासंठिता'' तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता---एगे एवमाहंसु ८ एगे पूण एवमाहंसु-ता जस्संठिते ९ जंबुद्दीवे दीवे तस्संठिता तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ताएगे एवमाहंसु ६ ‘एगे पुण एवमाहंसु१२-ता जस्संठिते भारहे वासे तस्संठिता १. सेयाए (ग); सेयाते (ट,व) । ८.गेहागारसंठिया (ट,व)। २. कधं (क,ग)। ६. आहियाति वएज्जा (ट,व,चं) सर्वत्र । ३. आहिताति वदेज्जा (ट,व); आहियत्ति १०. एवं ताओ चेव अट्ठपडिवत्तीओ णेयवाओ वएज्जा (चंवृ) सर्वत्र । जाव ता वालग्गपोतियासंठिया (ट,व,चंवृ)। ४. एवं एतेणं अभिलावेणं (ट,व) । ११. जस्संठिए णं (ट,व); 'ण' इति वाक्यालङ्कारे ५. द्वयोरपि वृत्त्योः पूर्णः पाठो लभ्यते । (चं)। ६. गेहागारसंठिता (ट,व)। १२. एवं एएणं अभिलावेणं (ट,व,चंव) । ७. हम्मियनवसंठिता (ग,घ)। Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६ उत्थं पाहुड तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता - एगे एवमाहंसु १० ' एवं उज्जाणसंठिता " ११ निज्जाणसंठिता १२ एगतो निसहसंठिता १३ दुहतो निसहसंठिता १४ सेयणगसंठिता -- एगे एवमाहंसु १५ एगे पुण एवमाहंसु- ---ता सेणगपट्टसंठिता तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता - एगे एवमाहंसु १६ वयं पुण एवं वदामो ता उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठिता तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता अंतो संकु बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहि पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिता बाहि सत्थीमुहसंठिता, उभओ पासेणं' तीसे दुवे बाहाओ अवट्टियाओ भवंति पणयालीसंपणयालीसं जोयणसहस्साई आयामेणं, 'दुवे य णं तीसे" बाहाओ अणवट्टियाओ भवति, तं जहा - सव्वब्भंतरिया चेव बाहा सव्वबाहिरिया चेव बाहा || ४. तत्थ को हेतुति वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं. ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठिता तावक्खेत्तसंठिती आहिताति वएज्जा, अंतो कुहि वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहुला", अंतो अंकमुहसंठिया बाहि सत्थीमुहसंठिता, उभओ" पासेणं तीसे दुवे बाहाओ अवट्टियाओ भवंति पणयाली सं- पणयालीसं जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवट्टियाओ भवंति, तं जहा - सव्वब्भतरिया चेव बाहा' सव्वबाहिरिया चेव बाहा । १५ तीसे णं सव्वभंतरिया बाहा मंदरपव्वयंतेणं नव जोयणसहस्साइं चत्तारि य छलसीए' जोयस नव य दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहिताति वएज्जा । 'ता से १४ णं परिक्खेवविसेसे तो आहितेति वएज्जा ? ता जेणं मंदरस्स पव्वयस्स ' परिक्खेवे, तं परिक्खेवं तिहिं गुणेत्ता दसहिं छेत्ता दसहिं भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहितेति वज्जा । तीसे णं सव्वबाहिरिया बाहा लवणसमुद्दतेणं चउणउति जोयणसहस्सा अट्ठय अट्ठे जोयणसए चत्तारि य दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहिताति १. 'टव' प्रत्यः किञ्चिद् विस्तृतः पाठो विद्यते ---"ता उज्जाणसंठिया णं तावखेत्ता । एवं सर्वत्रापि । द्वयोरपि वृत्योः पूर्णः पाठो विद्यते । सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तो 'पण्णत्ता' इति पदमस्ति, चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्ती तस्य स्थाने 'आहियत्ति वएज्जा' इति पाठो विद्यते । २. संकुडा (क, ग, घ, ट, व ) ; जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती ( ७१३१) 'संकुया' इति पाठ: स्वीकृतोस्ति । द्वयोरपि वृत्त्योः संकुचा संकुचिता' इति व्याख्यातमस्ति, तेन 'संकुया' इति पाठो स्वीकृतः । मूले ३. पिधुला ( क ), पुहुलो (ट) । ४. सत्थमुहसंठिया (ट); चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्ती 'बाहि सत्य मुहसंठियत्ति' पाठो लभ्यते । सद्धी (जंबुद्दीवपण्णत्ती ७.३१) । ५. पासि (ट,व) ६. तीसे णं दुवे ( ट व ) । ७. के (क) ८. ताव ( क ) ; तो ( व ) ६. संकुडा (क, ग, घ, ट, व ) । १०. पिधुला ( ग, घ ) । ११. दुहतो ( ग ) । १२. सं० पा० तीसे तहेव जाव सव्वबाहिरिया । १३. चुलसीए (ट) । १४. तीसे ( ग, घ, ट,व) । १५. परिक्लेवे णं ( ग घ ) । Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० सूरपण्णत्ती एज्जा । ता से णं परिक्खेवविसेसे कतो आहितेति वएज्जा ? ता जे णं जंबुद्दीवस्स दीवस परिक्खेवे तं परिक्खेवं तिहिं गुणेंत्ता दसहिं छेत्ता दसहि भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहितेति वएज्जा ॥ ५. ता से णं तावक्खेत्ते केवतियं' आयामेणं आहितेति वएज्जा ? ता अट्ठत्तरि जोयणसहस्साइं तिणि य तेत्तीसे जोयणसए जोयणतिभागे य आयामेणं आहित वएज्जा ॥ ६. तया णं किंसंठिया अंधयारसंठिती आहिताति वएज्जा ? ता उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठिता' 'अंधयारसंठिती पण्णत्ता अंतो संकुया बाहि वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिता बाहि सत्थीमुहसंठिता, उभओ पासेणं तीसे दुवे बाहाओ अवट्टियाओ भवंति पणयालीसं पणयालीसं जोयणसहस्साइं आयामेणं, दुवे य णं ती बाहाओ अणवट्टियाओ भवंति तं जहा सव्वब्भंतरिया चेव बाहा सव्वबाहिरिया चेव बाहा ॥ ७. तत्थ को हेतूति वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठिता अंधयारसंठिती आहिताति वएज्जा अंतो संकुया विथा, तो वट्टा बाहिं पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिता बाहि सत्थी मुहसंठिता, उभओ पासेणं तीसे दुवे बाहाओ अवट्टियाओ भवंति पणयालीसं पणयालीसं जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवट्टियाओ भवंति तं जहा - सव्वब्भंतरिया चेव बाहा सव्व'बाहिरिया चेव बाहा । तीसे णं सञ्वब्भंतरिया बाहा मंदरपव्वयंतेणं छज्जोयणसहस्साइं तिष्णि य चउवीसे जोयणसए छच्च दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहितति वज्जा । तीसे णं परिक्खेवविसेसे कतो आहितेति वएज्जा ? ता जे णं मंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं दोहिं गुणेत्ता", "दसहिं छेत्ता दसहिं भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहितेति वएज्जा । तीसे णं सव्वबाहिरिया बाहा लवणसमुद्दतेणं तेवट्ठि जोयणसहस्साई दोण्णि य पणयाले जोयणसए छच्च दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहितेति वज्जा । ता से णं परिक्खेवविसेसे कतो आहितेति वएज्जा ? ता जेणं जंबुद्दीवस्स दीवस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं दोहिं गुणेत्ता दसहिं छेत्ता दसहिं भागे हीरमाणे, एस परिक्खेवविसेसे आहितेति वएज्जा ॥ १. एस (ग, घ ) । २. के तियं (ग,घ ) । ३. सं० पा० -- उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठिता तहेव जाव बाहिरिया । उद्धीमुहकलंबु यापुप्फसंठिया आहितेति वदेज्जा अंतो संकुता बाहि वित्थडा तं चैव जाव तीसे णं दुवे बाहातो अणवट्टिता भवंति तं सव्वभरिता चेव बाहा सव्वबाहिरिया (टव) 1 ४. गुणिया ( ट ) ! ५. सं० पा० -- सेसं तहेव । चन्द्रप्रज्ञप्ती एष पाठः पूर्ण एव विद्यते, तद्वृत्तावपि पाठसंक्षेपः सुचितो नास्ति । सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तौ 'सेसं तं चेव' ति शेषं तदेव प्रागुक्तं वक्तव्यं तच्चेदं दर्साहि छत्ता दसहि भागे हीरमाणे एस णं परिक्खेवविसेसे आहियत्ति वइज्जा' इति सूचितमस्ति । ६. वाताले ( ग ) ; वाणाले (घ ); बायाले (व) । Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं पाहुडं ६२१ ८. ता से णं अंधयारे केवतियं आयामेणं आहितेति वएज्जा ? ता अद्वत्तरि जोयणसहस्साइं तिण्णि य तेत्तीसे जोयणसए जोयणतिभागं च आयामेणं आहितेति वएज्जा, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति ॥ ६. ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं किंसंठिता तावक्खेत्तसंठिती आहिताति वएज्जा? ता उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठिता तावक्खेत्तसंठिती आहिताति वएज्जा। एवं जं अधिभतरमंडले अंधयारसंठितीए पमाणं तं बाहिरमंडले तावक्खेत्तसंठितीए, जं तहिं तावक्खेत्तसंठितीए तं बाहिरमंडले अंधयारसंठितीए भाणियव्वं जाव' तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्टारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ ॥ १०. ता जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया केवतियं खेत्तं उड्ढं तवयंति' ? केवतियं खेत्तं अहे १. सू० ४।४-८ । सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तौ पूर्णपाठो लिखितोस्ति-तच्चवं सूत्रतो भए नीयं अंतो संकुडा बाहिं वित्थडा अंतो वट्टा बाहिं पिहला अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सत्थिमुहसंठिया, उभओ पासेणं तीसे दुवे बाहाओ अवट्टियाओ भवंति पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साइं आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवट्रियाओ भवंति, तं जहा---अभितरियो चेव बाहा सव्वबाहिरिया चेव बाहा। तीसे णं सव्वब्भंतरिया बाहा मंदरपव्वयंतेणं छ जोयणसहस्साई तिन्नि य चउवीसे जोयणसए छच्च दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहियत्ति वएज्जा। ता से णं परिक्खेवविसेसे कओ आहियत्ति वएज्जा? ताजे णं मंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे ते णं दोहिं गुणित्ता दसहिं छित्ता दसहि भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहियत्ति वएज्जा। ता से णं तावक्खेत्ते केवइयं आयामेणं आहियत्ति वएज्जा? ता तेसीइ जोयणसहस्साई तिन्नि तेतीसे जोयणसए जोयणतिभागं आहियाति वएज्जा । तया णं किंसंठिया अंधकारसंठिई आहियत्ति वएज्जा ? ता उड्डीमुहकलबुयापुप्फसंठाणसंठिया आहियत्ति वएज्जा अंतो संकुडा बाहिं वित्थडा अंतो वट्टा बाहिं पिहला अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सत्थिमुहसंठिया, उभओ पासेणं तीसे दुवे बाहाओ भवंति पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साइं आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवट्ठियाओ भवंति, तं जहा-सव्वभंतरिया चेव बाहा सव्वबाहिरिया चेव बाहा। तीसे णं सव्वब्भंतरिया बाहा मंदरपव्वयंतेणं नवजोयणसहस्साइं चत्तारि य छलसीए जोयणसए नव य दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहियत्ति वएज्जा। ता जे णं मंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं तिहिं गुणित्ता दसहिं छित्ता दसहि भागे हीर. माणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहियत्ति वएज्जा । तीसे णं सम्बबाहिरिया बाहा लवणसमुदंतेणं चउणउइंजोयणसहस्साइं अट्ठ य अट्ठसठे जोयणसए चत्तारि य दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहिए इति वएज्जा । ता एस णं परिक्खेवविसेसे कओ आहिए इति वएज्जा ? ता जे णं जंबूहीवस्स दीवस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं तिहिं गुणित्ता दसहिं छित्ता दसहिं भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहिए इति वएज्जा । ता से णं अंधकारे केवइए आयामेणं आहिए इति वएज्जा ? ता तेसीइं जोयणसहस्साई तिन्नि य तित्तीसे जोयणसए जोयणतिभागं आहिए इति वएज्जा। २. तवंति (क,ट,व); तावंति (ग,घ)। Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ सूरपण्णत्ती तवयंति' ? के वतियं खेत्तं तिरियं तवयंति'? ता जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया एगं जोयणसयं उड्ढं तवयंति' अट्ठारस जोयणसयाइं अहे तवयंति, सीयालीसं' जोयणसहस्साई दुण्णि य तेवढे जोयणसए एगवीसं च सट्ठिभागे जोयणस्स तिरियं तवयंति ॥ पंचमं पाहुडं १. ता कस्सिणं सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ वीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थेगे एवमाहंसु-ता मंदरंसि णं पव्वतंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहिताति वएज्जा---एगे एवमाहंस १ एगे पूण एवमाहंसता मेरुसि। पव्वतंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहिताति वएज्जा-एगे एवमाहंसु २ एवं एएणं अभिलावेणं भाणियव्वं--ता मणोरमंसि णं पव्वतंसि ३ ता सुदंसणंसि णं पव्वतंसि ४ ता सयंपभंसि णं पव्वतंसि ५ ता गिरिरायंसि णं पव्वतंसि ६ ता रयणुच्चयंसि णं पव्वतंसि ७ ता सिलूच्चयंसिणं पव्वतंसि ८ लोयमज्झंसि णं पव्वतंसिह ता लोयणाभिसि णं पव्वतंसि १० ता अच्छंसि णं पव्वतंसि ११ ता सूरियावत्तंसि णं पव्वतंसि १२ ता सूरियावरणंसि णं पव्वतंसि १३ ता उत्तमंसि णं पव्वतंसि १४ ता दिसादिसि णं पव्वतंसि १५ ता अवतंसंसि णं पव्वतंसि १६ ता धरणिखीलंसि णं पव्वतंसि १७ ता धरणिसिंगंसि णं पव्वतंसि १८ ता पव्वतिदंसि णं पव्वतंसि १६ ता पव्वयरायसि णं पव्वतंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहिताति वएज्जा-एगे एवमाहंसु २० वयं पुण एवं वदामो--ता मंदरेवि पवुच्चइ जाव पव्वयरायावि पवुच्चइ, ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेस्सं फुसंति, ते णं पोग्गला सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति, अदिट्ठावि णं पोग्गला सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति, चरिमलेस्संतरगताविणं पोग्गला सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति ॥ १. तविति (क); तवंति (ग,घ,ट,व) । २. तवंति (क,ग,घ,ट,व)। ३. तवंति (क,ग,घ,ट) प्रायः सर्वत्र । ४. अधे य (क,ग,घ) । ५. सीताले (व)। ६. संकि (ग,घ); किस (ट); कीस (व)। ७. पुग्गला (क,ग,घ)। ८. चरम° (ट,व)। ६. पडिहणंति माहितेति वदेज्जा (ट); पडिह णंति आहिमाति वदज्जा (व)। Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठ पाहुडं. १. ता कहं ते ओयसंठिती' आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थेगे एवमाहंसु -ता अणुसमयमेव ' सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा वेअति* एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु --ता अणुमुहुत्तमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा वेअति-- एगे एवमाहंसु २ एवं एतेणं अभिलावेणं णेतव्वा-ता अणुरादियमेव ३ ता अणुपक्खमेव ४ ता अणुमासमेव ५ ता अणुउडुमेव ६ ता अणुअयणमेव ७ ता अणुसंवच्छरमेव ८ ता अणुजुगमेव ता अणुवासस्यमेव १० ता अणुवास सहस्तमेव ११ ता अणुवाससय सहस्समेव १२ ता अणुपुव्वमेव १३ अणुपुव्वसयमेव १४ ता अणुपुव्वसहस्समेव १५ ता अणुपुव्वसयसहस्समेव १६ ता अणुपलिओममेव १७ ता अणुपलिओवमसयमेव १८ ता अणुपलिओवमसहस्समेव १९ ता अणुपलिओवमसयसहस्समेव २० ता अणुसागरोवममेव २१ ता अणुसागरोवमसयमेव २२ ता अणुसागरोवमसहस्समेव २३ ता अणुसागरोवमसयसहस्समेव २४ एगे पुण एवमाहंसु - ता अणुओसप्पिणिउस्सप्पिणिमेव सूरियस्स ओया अण्णा उपज्जइ अण्णा वेअति - एगे एवमाहंसु २५ वयं पुण एवं वदामो - ता तीस-तीस मुहुत्ते सूरियस्स ओया अवट्ठिता भवइ, तेण परं सूरियस ओया अणवता भवइ, छम्मासे सूरिए ओयं निवुड्ढे, छम्मासे सूरिए ओ अभिवुढेइ, निक्खममाणे सूरिए देसं निवुड्ढेइ, पविसमाणे सूरिए देसं अभिवुड्ढेइ । तत्थ को' हेतुति वदेज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । १. तोतसंठिती (ट,व) | २. पणुवीसं (ग,घ,व) ॥ ३. अणुसमतमेव (ट,व ) । ४. अवेति ( क ); वेती (ट,व); अपैति (सूवृ) ; उपैति ( चंवृ) । ५. अवेति ( क ) ; वेति (ट,व); अपैति (सूवृ) ; उपैति ( चंवृ) । ६. अणुपलितो ममेव ( ग, घ, व ) । ७. वेति आहिताति वदेज्जा (ट, व ) । ८. के (क,ग,घ); णं के (ट,व) । ६२३ Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ सूरपण्णत्ती से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभिंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ, ता जया णं सूरिए अभिंत राणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगेणं राइदिएणं एगं भागं ओयाए दिवसखेत्तस्स निवुड्डित्ता रयणिखेत्तस्स अभिवड्डित्ता चारं चरइ ‘मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहि" छेत्ता, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया । से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अभिंतर तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अभिंतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं दोहिं राइदिएहिं दो भागे ओयाए दिवसखेत्तस्स निवुड्डित्ता रयणिखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ ‘मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहि छेत्ता तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चरहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति चरहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिया। एवं खलु एतेणुवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणे-संकममाणे 'एगमेगे मंडले एगमेगेणं राइदिएणं एगमेगं भागं ओयाए" दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेमाणे-निवुड्ढेमाणे रयणिखेत्तस्स अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वभंतरं मंडलं पणिधाय" एगेणं तेसीतेणं राइंदियसतेणं एग तेसीतं भागसतं ओयाए दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता रयणिखेत्तस्स अभिवड्ढेता चारं चरइ ‘मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं स एहि छेत्ता, तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं 'एगेणं राइदिएणं एगं भागं ओयाए रयणिक्खेत्तस्स'१२ निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ ‘मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहि छेत्ता, तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिए । से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि 'बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं १. अयमीणे (क) । २. अब्भंतराणंतरं (ट,व)। ३. अद्वारसहिं तीसेहिं सतेहिं मंडलं (ट,व) । ४. अब्भंतरं (ग,घ,ट,व)। ५. अट्ठारसहिं तीसेहिं सतेहिं मंडलं (ट,व)। ६. एगमेगं भागं ओयाए एगमेगे मंडले एगमेगेणं रातिदिएणं (ट,व)। ७. पणिहाए (ट,व)। ८. ओताए (ट)। ६. रतणिखेत्तस्स (क,ग,घ); रातिखेत्तस्स (ट)। १०. अट्ठारसहिं तीसेहिं मंडलं (ट,व)। ११. अयमीणे (क,ग,घ,व)। १२. एगं भागं ओयाए एगेणं राइदिएणं राति खेत्तस्स (ट,व)। १३. अट्टारसहिं तीसेहिं सएहिं मंडलं (ट,व)। १४. बाहिरतच्चं (क,ग,घ,व)। Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतपा 'दोहिं राइदिएहिं दो भाए ओयाए रयणिखेत्तस्स" निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवदेत्ता चारं चरइ 'मंडल' अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहिं छेत्ता, तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति हि एगट्टिभागमुहुत्ते हि ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगट्टिभाग मुहुत्ते हिं अहि । एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणे संकममाणे 'एगमेगेणं राइदिएणं एगमेगं भागं ओयाए रयणिखेत्तस्स" निवुड्ढेमाणे- निवुड्ढेमाणे दिवसखेत्तस्स अभिवड् ढेमाणे- अभिवड्ढेमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिराओ मंडलाओ सव्वब्भंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वबाहिरं मंडलं पणिधाय एगेणं तेसीतेणं राइंदियसतेणं एवं सीतं भागसतं ओयाए रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ 'मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहिं " छेत्ता, तथा णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहण्णिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति, एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे || सत्तमं पाहुडं १. ता के ते सूरियं वरयति' आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ वीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थेगे एवमाहंसु-ता मंदरे णं पव्वए सूरियं वरयति आहितेति वएज्जा - एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु - ता मेरु णं पव्वए सूरियं वरयति आहितेति वएज्जाएगे एवमाहंसु २ एवं एएणं अभिलावेणं णेयव्वं जाव' पव्वयराए णं पव्वए सूरियं वरयति आहितेति वज्जा - एगे एवमाहंसु २० वयं पुण एवं वदामो-ता मंदिरेवि पबुच्चइ तहेव जाव पव्वयराएवि पवच्चइ ता जेणं पोग्गला सूरियस लेस फुसंति ते णं पोग्गला सूरियं वरयति, अदिट्ठावि णं पोग्गला सूरियं वरयंति, चरमलेसंतरगतावि णं पोग्गला सूरियं वरयंति ॥ १. दो भाए ओयाए दोहिं राइदिएहि रातिखेत्तस्स (ट,व) । २. अट्ठारसहि तीहि एहि मंडलं (ट,व ) । ३. एगमेगं भागं ओयाए एगमेगेणं राईदिएणं ६२५ रातिखेत्तस्स (ट,व) 1 ४. अट्ठारसहि तीहि एहि मंडल (ट,व) । ५. वरति (ट,व) । ६. सू ५।१ । Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं पाहुडं १. ता कहं ते उदयसंठिती आहितेति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ तिण्णि पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु-ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढे वि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उतरड्ढे सत्तरसमुहत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, एवं परिहावेतव्वं - सोलसमुहुत्ते दिवसे पण्णरसमुहुत्ते दिवसे चउद्दसमुहुत्ते दिवसे तेरसमुहत्ते दिवसे जाव ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे बारसमुहत्ते दिवसे भवइ तया ण उत्तरडढवि बारसमूहत्तं दिवसे भवइ, ता जया ण उत्तरडढे बारसमहत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणडढेवि बारसमूहत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं दाहिणडढे बारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमे णं सदा' पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सदा पण्णरसमुहुत्ता राती भवति, अवट्ठिया णं तत्थ राइंदिया पण्णत्ता समणाउसो! एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु--ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, एवं परिहावेतव्वं-सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, सोलसमूहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, पण्णरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, चोद्दसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तेरसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे बारसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढेवि बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरडढे बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमे णं णो सदा पण्णरसमुहत्ते दिवसे भवइ, णो सदा पण्णरसमुहुत्ता राती भवति, अणवद्विता णं तत्थ राइंदिया पण्णत्ता समणाउसो ! एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु-ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढे दुवालसमुहुत्ता राती भवति, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढे दुवालसमुहुत्ता' राती १. सता (ग,घ,ट,व)। २. बारसमुहुत्ता (ग,घ)। ६२६ Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाहु ६२७ भवति, ता जया णं दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढे दुवालसमुहुत्ता' राती भवति, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया दाहिड् ढे दुवालसमुहुत्ता' राती भवति । एवं तव्वं सगलेहि य अणंतरेहि य एक्क्के दो दो आलावा सव्वेहिं दुवालसमुहुत्ता राती भवति जाव" ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिगड्ढे बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढे दुवालसमुहुत्ता राती भवति, ता जया णं उत्तरड्ढे दुवालसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढे दुवालसमुहुत्ता राती भवति, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं वत्थि पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, वत्थि पण्णरसमुहुत्ता राती भवति, वोच्छिण्णा णं तत्थ राइंदिया पण्णत्ता समणाउसो ! एगे एवमाहंसु ३ । वयं पुण एवं वदामो ता जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उदीण - पाईणमुग्गच्छ" पाईण- दाहिणमागच्छति पाईण दाहिणमुग्गच्छ दाहिण-पडीणमागच्छति दाहिण-पडीणमुग्गच्छ पडीणउदीमागच्छति पडीण - उदीणमुग्गच्छ उदीण पाईणमागच्छति, ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि' दिवसे भवइ । जया णं उत्तरड्ढे दिवसे भवइ तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमपच्चत्थिमे णं राती भवति । ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे भवइ तया णं पच्चत्थिमे णवि दिवसे भवइ । ता जया णं पच्चत्थिमे णं दिवसे भवइ तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणे णं राती भवति । ता जया णं दाहिणड्ढे उक्कोस अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ । ता जया णं उत्तरड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमपच्चत्थिमे णं जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । ता जाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं पच्चत्थिमे गवि उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ । ता जया णं पच्चत्थिमे णं उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणे णं जहण्णिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति, एवं एएणं गमेणं तव्वं-- अट्ठासमुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, साइरेगदुवालसमुहुत्ता राती भवति, सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तेरसमुहुत्ता राती भवति, सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, साइ रेगतेरसमुहुत्ता राती भवति, सोलसमुहुत्ते दिवसे भवइ, चोद्दसमुहुत्ता राती भवति, सोलसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, साइरेगचोद्दसमुहुत्ता राती भवति, पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, पण्णरसमुहुत्ता राती भवति, पण्णरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, साइरेगपण्णरसमुहुत्ता राती १,२. बारस मुहुत्ता ( ग, घ ) । ३. आलावका (क, ग, घ ) । ४. एवं सत्तर मुहुत्ते दिवसे सत्तरसमुहुत्त णंतरे सोलसमुहुत्ते सोलसमुहुत्ताणंतरे पणरसमुहुत्ते पणरसमुहुत्ताणंतरे चउदसमुहुत्ते चउदसमुहुत्ताणंतरे तेरसमुहुत्ते तेरसमुहुत्ताणंतरे बारसमुहुत्ते बारसमुत्ताणंतरे ( ट व ) । ५. मुग्गच्छंति ( क ग, घ, टव) सर्वत्र । ६. उत्तरड्डे (क, ग, घ, ट, व ) द्वयोरपि वृत्त्योः 'उत्तरार्धेपि' इति व्याख्यातमस्ति । भगवत्या (५४) मपि ' उत्तरड्ढे वि' इति पाठो लभ्यते । Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ सूरपण्णत्ती भवति, चउद्दसमूहत्ते दिवसे भवइ, सोलसमूहत्ता राती भवति, चोहसमूहत्ताणंतरे दिवसे भवइ, साइरेगसोलसमुहत्ता राती भवति, तेरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सत्तरसमुहुत्ता राती भवति, तेरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, साइरेगसत्तरसमुहुत्ता राती भवति, 'जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, उक्कोसिया अट्टारसमुहुत्ता राती भवति । एवं भणितव्वं" । ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जति तया णं उत्तरडढेवि वासाणं पढमे समए पडिवज्जति, जया णं उत्तरडढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जति, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमपच्चत्थिमे णं अणंतरपरक्खडे कालसमयंसि वासाणं पढमे समए पडिवज्जति. ता जय णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जति तया णं पच्चत्थिमे णवि वासाणं पढमे समए पडिवज्जति जया णं पच्चत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जति तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वतस्स उत्तरदाहिणे णं अणंतरपच्छाकडकालसमयंसि' वासाणं पढमे समए पडिवण्णे भवइ । जहा समओ एवं आवलिया आणापाणू थोवे लवे मुहत्ते अहोरत्ते पक्खे मासे उडू । एते' दस आलावगा जहा वासाणं, एवं हेमंताणं गिम्हाणं च भाणियव्वा । ता जया णं जंबहीवे दीवे दाहिणड्ढे पढमे अयणे पडिवज्जति तया णं उत्तरड्ढेवि पढमे अयणे पडिवज्जति, ता जया णं उत्तरड्ढे पढमे अयणे पडिवज्जति तया णं दाहिणड्ढेवि पढमे अयणे पडिवज्जति, ता जया णं उत्तरड्ढे पढमे अयणे पडिवज्जति तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमपच्चत्थिमे णं अणंतरपुरक्खडे कालसमयंसि पढमे अयणे पडिवज्जति, ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं पढमे अयणे पडिवज्जति तया णं पच्चत्थिमे णवि पढमे अयणे पडिवज्जति, ता जया णं पच्चत्थिमे णं पढमे अयणे पडिवज्जति तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणे णं अणंतरपच्छाकडकालसमयंसि पढमे अयणे 'पडिवण्णे भवइ । 'जहा अयणे तहा संवच्छरे जुगे वाससए° वाससहस्से वाससयसहस्से पुव्वंगे पुव्वे एवं जाव" सीसपहेलिया पलिओवमे १. ता जया णं जंबूद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे जहण्णए २. समयंसि (भ० ॥१३)। दुवालसमुहत्ता रातीभवति तता णं उत्तरड्ढे ३. अणंतरपच्छाकयकालसमयंसि (ग,व); अणंजहणणं दुवालसमुहत्ते दिवसे भवति । जया णं तरपच्छाकडसमयंसि (ट)। उत्तरड्ढे जहण्णए दुवालस दिवसे तता णं ४. उडुए (ट,ब)। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमे णं ५. एवं (ग,घ); ए (ट,व) । पच्चत्थिमे णं उक्कोसिया अट्ठारसमुहत्ता राति ६. आलावका (क,ग,घ)। भवति । ता जया णं जंबूद्दीवमंदरपुरस्थिमे णं ७. जधा (क,ग,घ)। जहण्णए दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवति तता णं ८. तासा णं (ग,घ) । पच्चत्थिमे णं वि जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे ६. पडिवज्जति (क,ग,घ)। भवति । जया णं पच्चत्थिमे णं जहण्णं दुवाल- १०. जहा अयणे तधा संवच्छरे जुगे वाससते एवं समुहत्ते दिवसे तता णं जंबूहीवे दीवे मदरस्स (क.ग,घ); एवं संवच्छरे जुगे वाससए (ट,व)। उत्तरे णं दाहिणे णं उक्कास अट्टारसमुहत्ता ११. भ० ५।१८ 'ट, व' आदर्शयोः एष पाठः राति भवति (ट,व)। साक्षाल्लिखितो दृश्यते । Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम पाहुडं ६२६ सागरोवमे । ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जति तया णं उतरड्ढेवि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जति, ता जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओस प्पिणी पडिवज्जति तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमे णं णेवत्थि ओसप्पिणी णेव अत्थि उस्सप्पिणी अवट्टिते णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो ! एवं उस्सप्पिणीवि । ता' लवणे णं समुद्दे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ तहेव । ता जया णं लवणे समुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ तया णं लवणसमुद्दे उत्तरड्ढेवि दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे दिवसे भवइ तया णं लवणसमुद्दे पुरथिमपच्चत्थिमे णं राती भवति । जहाँ जंबुद्दीवे दोवे तहेव जाव उस्सप्पिणी। तहा धायइसंडे णं दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ तहेव। ता जया णं धायइसंडे दीवे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ तया णं उत्तरडढेवि दिवसे भवइ, जया णं उत्तरडढे दिवसे भवइ तया णं धायइसंडे दीवे मंदराणं पव्वयाणं पुरथिमपच्चत्थिमे णं राती भवति । एवं जंबुद्दीवे दीवे जहा तहेव जाव उस्सप्पिणी। कालोए णं जहा लवणे समुद्दे तहेव । ता अभंतरपुक्खरद्धे णं सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ तहेव । ता जया णं अब्भंतरपुक्खरद्धे णं दाहिणड्ढे दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे दिवसे भवइ तया णं अभितरपुक्खरद्धे मंदराणं पव्वयाणं पुरथिमपच्चत्थिमे णं राती भवति, सेसं जहा जंबुद्दीवे दीवे तहेव जाव ओसप्पिणी-उस्सप्पिणीओ॥ १. सूर्यप्रज्ञप्तेः 'क,ग,घ' संकेतितादर्शेषु एतत् पदं नैव लभ्यते । द्वयोरपि वृत्त्योरेतत्पदं नास्ति व्याख्यातम् । किन्तु तयोरुद्धते आलापकपाठे एतत्पदं दृश्यते, भगवत्या (५।१६) मपि एतत्पदं विद्यते, 'पढमे समए' इति प्रस्तुते क्रमेऽपि अपेक्षितमस्ति, तेनात्र एतन्मूले स्वीकृतम् । २. अतः परं 'ट,व' आदर्शयोः संक्षिप्तपाठो विद्यते-एवं लवणसमुद्दे धातीसंडे कालोए ता अब्भतरपुक्खरद्धे णं सूरिया उदीणपाईणमुग्गच्छंति पातीणदाहिणमागच्छंति एवं जंबुद्दीवं वत्तव्वता। ३. 'तहेव' त्ति यथा जम्बूद्वीपे उगमविषये आलापक उक्तः तथा लवणसमुद्रपि वक्तव्यः, स चैवम्-'लवणे णं सूरिया उईणपाईणमुग्गच्छ पाईणदाहिणमाग्गछति पाईणदाहिणमुग्गच्छ दाहिणपाईणमागच्छति, दाहिणपाईणमुग्गच्छ पाईण उईणमागच्छंति पाईणउईणमुग्गच्छ उईणपाईणम गच्छंति,' इदं च सूत्रं जम्बूद्वीपगतोद्गमसूत्रवत् स्वयं परिभावनीयं, नवरमत्र सूर्याश्चत्वारो वेदितव्याः (सूवृ)। ४. यथा जम्बूद्वीपे द्वीपे 'पुरच्छिमपच्चच्छिमे णं राई भवइ' इत्यादिकं सूत्रमुक्तं यावदुत्सप्पिण्यवसप्पिण्यालापकस्तथा लवणसमुद्रप्यन्यनातिरिक्त समस्तं भणित व्यं, नवरं जम्बूद्वीपे द्वीपे इत्यस्य स्थाने लवणसमुद्रे इति वक्तव्यमिति शेषः (सूवृ)। Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं पाहुडं १. ता कतिकट्ठ ते सूरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ तिण्णि पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु- ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला संतप्पंति, ते णं पोग्गला संतप्पमाणा तदणंतराई बाहिराई पोग्गलाई संतावतीति, एस णं से समिते तावक्खेत्ते एगे एवामहंसू १ एगे पुण एवमाहंसुता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला णो संतप्पंति, ते णं पोग्गला असंतप्पमाणा तदणंतराइं बाहिराइं पोग्गलाई णो संतावेंतीति, एस णं से समिते तावक्खेत्ते एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमासु-ता जे णं पोग्गला सरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला अत्थेगतिया संतप्पति अत्थेगतिया णो संतप्पंति, तत्थ अत्थेगतिया संतप्पमाणा तदणंतराइं बाहिराइं पोग्गलाई अत्थेगतियाई संताति अत्थेगतियाई णो संताति, एस णं से समिते तावक्खेत्ते - एगे एवमाहंसू ३ । वयं पुण एवं वदामो -ता जाओ इमाओ चंदिमसरियाणं देवाणं विमाणे हितो लेसाओ बहिया' अभिणिस्सढाओ पतावेंति, एतासि णं लेसाणं अंतरेसु अण्णतरीओ छिण्णलेसाओ संमच्छंति, तए णं ताओ छिण्णलेसाओ संमृच्छियाओ समाणीओ तदणंतराई बाहिरा पोग्गलाई संतावेंतीति एस णं से समिते तावक्खेत्त ॥ २. ता कतिकट्ठे ते सरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंमु-ता अणुसमयमेव सूरिए पोरिसिच्छायं णिवत्तेति आहितेति वदेज्जा एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुमुहुत्तमेव सूरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति आहितेति वएज्जा २ एवं एएणं अभिलावेणं णेयव्वं, ता जाओ चेव ओयसंठितीए पणवीसं पडिवत्तीओ ताओ चेव णेयव्वाओ जाव' अणुओसप्पिणिउस्स प्पिणिमेव सूरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति आहिताति वदेज्जा-एगे एवमाहंसु २५। वयं पूण एवं वयामो...ता सरियस्स णं उच्चत्त च लेसं च पडुच्च छाउद्देसे, उच्चत्तं छायं च पडुच्च लेसुद्देसे, लेसं च छयं च पडुच्च उच्चत्तुद्दे से, तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु-ता अस्थि णं से दिवसे जंसि णं' दिवसंसि सूरिए १. बहिता (क,ग,घ,व)। ३. च णं (ट,व)। २. सू० ६३१ ६३० Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं पाहुडं चउपोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति अत्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए दुपोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु ता अत्थि णं से दिवसे जंसिणं दिवसंसि सरिए दुपोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति, अत्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सरिए णो किंचि पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति २ तत्थ जेते एवमाहंसु ता अत्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए चउपोरिसिच्छायं' णिव्वत्तेति, अत्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए दुपोरिसिच्छायं' णिव्वत्तेति ते एवमाहंसु, ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्रपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दवालसमूहत्ता राती भवति, तंसि णं दिवसंसि सूरिए चउपोरिसियं छायं णिव्वत्तेति.तं जहा-उग्गमणमुहत्तंसि य' अत्थमणमुहुत्तंसि य लेसं अभिवड्ढेमाणे णो चेव णं णिवडढेमाणे, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्रपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तंसि णं दिवसंसि सूरिए दुपोरिसियं छायं णिव्वत्तेति, तं जहा उग्गमणमुहत्तंसि य अत्थमणमुहत्तंसि य लेसं अभिवडढेमाणे णो चेव णं णिवुड्ढेमाणे १ तत्थ णं जेते एवमाहंसू .....ता अत्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए दुपोरिसियं छायं णिव्वत्तेति, अत्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए णो किंचि पोरिसियं छायं णिव्क्त्तेति, ते एवमासु, ता जया णं सुरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अटारसमूहत्ते दिवसे भवइ जहणिया दुवालसमूहत्ता राती भवति, तंसि णं दिवसंसि सरिए दपोरिसियं छायं णिव्वत्तेति, तं जहा -उग्गमणमुहुत्तंसि य अत्थमणमुहुत्तंसि य लेसं अभिवड्ढेमाणे णो चेव णं णिवुड्ढेमाणे, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइ, तंसि णं दिवसंसि सूरिए णो किंचि पोरिसियं छायं णिव्वत्तेइ, तं जहाउग्गमणमुहत्तंसि य अत्थमणमुहुतंसि य, णो चेव णं लेसं अभिवड्डेमाणे वा णिवुड्ढेमाणे वा २॥ ३. ता कतिकळं ते सूरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ छण्णउति पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु-ता अत्थि णं से देसे जंसि च णं देसंसि सरिए एगपोरिसियं छायं णिव्वत्तेति - एगे एवमाहंसू १ एगे पूण एवमाहंसु-ता अत्थि णं से देसे जंसि णं देसंसि सूरिए दुपोरिसियं छायं णिव्वत्तेइ २ एवं एएणं अभिलावेणं णेतव्वं जाव छण्णउति पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति । तत्थ जेते एवमाहंसुता अत्थि णं से देसे जंसि णं देसंसि सूरिए एगपोरिसियं छायं णिवत्तेति, ते एवमाहंसू-ता सूरियस्स णं सव्वहेट्ठिमाओ सूरियप्पडिहीओ' बहिया अभिणिस्सढाहि लेसाहिं ताडिज्जमाणीहिं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ जावतियं सूरिए १. चउपोरिसियं छायं (क,ग,घ)। २. दो पोरिसियं छायं (क,ग,घ) । ३. या (क,ग,घ) अग्रेऽपि । ४. निव्वत्तति आहितेति वएज्जा (ट,व) । ५. सूरिपडिहाओ (ट)। ६. अभिणिसडाहिं (क,घ,ट,)। Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ सूरपण्णत्ती उड्ढं उच्चत्तेणं एवतियाए एगाए अद्धाए एगेणं छायाणुमाणप्पमाणेणं ओमाए', 'एत्थ णं से सूरिए एगपोरिसियं छायं णिव्वत्तेति १ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता अस्थि णं से देसे जंसि णं देसंसि सूरिए दुपोरिसियं छायं णिव्वत्तेति, ते एवमाहंसु- ता सूरियस्स णं सव्वहेट्टिमाओ सूरियप्पडिहीओ बहिया अभिणिस्सिताहि लेसाहिं ताडिज्जमाणीहिं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ जावतियं सूरिए उड्ढं उच्चत्तेणं एवतियाहि दोहिं अद्धाहिं दोहिं छायाणुमाणप्पमाणेहि ओमाए, एत्थ णं से सूरिए दुपोरिसियं छायं णिव्वत्तेति २ एवं एक्केक्काए पडिवत्तीए णेयव्वं जाव छण्णउतिमा पडिवत्ती--एगे एवमाहंसु ६६। वयं पूण एवं वदामो-ता सातिरेगअउणट्ठिपोरिसीणं सूरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति, ता अवडपोरिसी णं छाया दिवसस्स कि गते वा सेसे वा? ता तिभागे गते वा सेसे वा, त परिमाणं छाया दिवसस्स कि गते वा सेसे वा? ता चउब्भागे गते वा सेसे वा. ता दिवड्डपोरिसी णं छाया दिवसस्स कि गते वा सेसे वा ? ता पंचमभागे गते वा सेसे वा, एवं अद्धपोरिसिं छोढुं-छो पुच्छा दिवसस्स भागं छोढुं-छोढुं वागरणं जाव ता अद्धअउणट्रिपोरिसीणं छाया दिवसस्स किं गते वा सेसे वा? ता एगणवीससतभागे गते वा सेसे वा, ता अउणट्रिपोरिसीणं छाया दिवसस्स कि गते वा सेसे वा? ता बावीससहस्सभागे गते वा सेसे वा, ता सातिरेगअउणट्ठिपोरिसी णं छाया दिवसस्स कि गते वा सेसे वा ? ता णत्थि किंचि गते वा सेसे वा ॥ ४. तत्थ खलु इमा पणवीसतिविधा छाया पण्णत्ता, तं जहा-खंभच्छाया रज्जुच्छाया पागारच्छाया पासादच्छाया उवग्गच्छाया उच्चत्तच्छाया अणुलोमच्छाया पडिलोमच्छाया आरुभिता उवहिता समा पडिहता खीलच्छाया पक्खच्छाया पुरओउदग्ग। पिट्रओउदग्गा १. इमाए (ट,व) । सियं छायं णिव्वत्तेति-एगे एवमाहंसु । २. तत्थ (क,ग,घ) । ४. भाणियव्वं (ट,व)। ३. असौ स्वीकृतः पाठः द्वयोरपि वृत्योाख्या- ५. वतं (व) । तोस्ति तथा चन्द्रप्रज्ञप्तेः 'ट,व' संकेतितादर्शयो- ६. वतामो (व) । रपि लभ्यते, सूर्यप्रज्ञप्तेरादर्शेषु किञ्चिद् ७. अणुगट्ठि (ट)। विस्तृतः पाठो दृश्यते-एवं णेयव्वं जाव तत्थ ८. दिवसभागं' ति पूर्वपूर्वसूत्राऽपेक्षया एकैकमजेते एवमाहंसु–ता अस्थि णं से देसे जंसि ण धिकं दिवसभागं क्षिप्त्वा-क्षिप्त्वा व्याकरणदेसंसि सूरिए छण्णउतिपोरिसियछायं णिव्व- उत्तरसूत्रं ज्ञातव्यं, तच्चवम्-'बिपोरिसी णं तेति, ते एवमाहंसु-ता सूरियस्स णं सव्व- छाया किं गए वा सेसे वा ? ता छब्भागगए वा हिट्ठिमाओ सूरप्पडिहीओ बहिया अभिणिस्स- सेसे वा, ता अड्डाईपोरिसी णं छाया किं गए डाहिं लेसाहिं ताडिज्जमाणीहिं इमीसे रयणप्प वा सेसे वा ? ता सत्तभागगए वा सेसे वा' भाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो इत्यादि, एतच्च एतावत् तावत् यावत् 'ता जावतियं सूरिए उड्ड उच्चत्तेणं एवतियाहिं अगुणट्ठी' इत्यादि सुगमम् (सूवृ)। छण्णवतीए अद्धाहिं छायाणुमाणप्पमाणाहि ६. पंथच्छाया (ट); पंकच्छाया (व)। ओमाए, एत्थ णं से सुरिए छण्णउतिं पोरि- १०. पिडिउग्गा (ग,घ)। Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं पाहुड ६३३ पुरिमकंठभाओवगता पच्छिमकंठभाओवगता छायाणुवादिणी कंठाणुवादिणी छाया छायच्छाया छायाविकंपे वेहासकडच्छाया गोलच्छाया ॥ ५. तत्थ खलु इमा अट्ठविहा गोलच्छाया पण्णत्ता, तं जहा — गोलच्छाया अवड्डगोलच्छाया गोलगोल च्छाया अवड्डगोलगोलच्छाया गोलावलिच्छाया अवड्डगोलावलिच्छाया गोलपुंजच्छाया अवड्डगोलपुंजच्छाया ॥ १. × (ग,घ ) । Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं पढमं पाहुडपाहुडं १. ता जोगेति वत्थुस्स आवलियाणिवाते आहितेति वदेज्जा, ता कहं ते जोगेति वत्थुस्स आवलियाणिवाते आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमासु–ता सव्वेवि णं णक्खत्ता कत्तियादिया भरणिपज्जवसाणा' पण्णत्ता--एगे एवमाहंस १ एगे पूण एवमाहंसू-ता सव्वेवि णं णक्खत्ता महादिया अस्सेसपज्जवसाणा पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु - ता सव्वेवि णं णक्खत्ता धणिट्ठादिया सवणपज्जवसाणा पण्णत्ता–एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वेवि णं णक्खत्ता अस्सिणीआदिया रेवइपज्जवसाणा पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु -ता सव्वेवि णं णक्खत्ता भरणीआदिया अस्सिणीपज्जवसाणा पण्णत्ताएगे एवमाहंसु ५। वयं पुण एवं वदामो-ता सव्वेवि णं णक्खत्ता अभिईआदिया उत्तरासाढापज्जवसाणा पण्णत्ता, तं जहा -अभिई सवणो जाव उत्तरासाढा ॥ बीयं पाहुडपाहुडं २. ता कहं ते मुहुत्तग्गे आहितेति वदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अत्थि णक्खत्ते जे णं णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धि जोयं जोएति । अत्थि णक्खत्ता जे णं पण्णरस मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं तीसं मुहत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं पणयालीसे मुहत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति । ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ते जे णं णवमुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभाए मुहुत्तस्स चंदेण सद्धि जोयं जोएति ? कयरे णक्खत्ता १. पज्जवसिया (ट,व) सर्वत्र । सतविसता पुत्वभद्दवता उत्तराभद्दवता रेवति २. ४ (क,ग,घ); आहितेति वदेज्जा (ट,व) अस्सिणि भरणि कित्तिया रोहिणि मिगसिरं सर्वत्र । अद्दा पुणव्वसो पुसो असिलेस मघा पुव्वफग्गुणि ३. असिलेस° (ट)। उत्तराफग्गुणि हत्थो चित्ता साति विसाहा ४. चन्द्रप्रज्ञप्तेरादर्शयोः 'ट,व संकेतितयोः पूर्णः अणुराधा जिट्ठा मूलो पुवासाढा उत्तरासाढा। पाठोपि लभ्यते-अभी यी समणो धणिट्ठा ६३४ Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (तच्चं पा०) ६३५ जे णं पण्णरसमुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता जे णं तीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता जे णं पणयालीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं तत्थ जेसे णक्खत्ते जे णं णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभागे मुहत्तस्स चंदेण सद्धि जोयं जोएति से णं एगे अभीई। तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं पण्णरसमुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोयं जोएंति ते णं छ, तं जहा–सतभिसया' भरणी अद्दा अस्सेसा साती जेट्ठा। तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं तीसं मुहुत्तं चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं पण्णरस, तं जहा-सवणे धणिट्ठा पुव्वाभद्दवया रेवती अस्सिणी कत्तिया मिगसिरं' पुस्सो महा पुव्वाफग्गुणी हत्थो चित्ता अणुराहा मूलो पुव्वासाढा । तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं पणयालीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं छ, तं जहा-उत्तराभद्दपदा रोहिणी पुणव्वस उत्तराफग्गणी विसाहा उत्तरासाढा ॥ ३. ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अत्थि णक्खत्ते जे णं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहत्ते सूरेण' सद्धि जोयं जोएति । अस्थि णक्खत्ता जे णं छ अहोरत्ते एक्कवीसं च मुहत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं तेरस अहोरत्ते दुवालस य मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं वीसं अहोरत्ते तिण्णि य मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति । ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खताणं कयरे णक्खत्ते जे णं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएति ? कयरे णक्खत्ता जे णं छ अहोरत्ते एक्कवीसं मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता जे णं तेरस अहोरत्ते बारस मुहुत्ते सुरेण सद्धि जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता जे णं वीसं अहोरत्ते तिण्णि य महत्ते सुरेण सद्धि जोयं जोएंति ? ता एतेसि णं अदावीसाए णक्खत्ताणं तत्थ जेसे णक्खत्ते जे णं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएति से णं एगे अभीई। तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं छ अहोरत्ते एक्कवीसं च मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं छ, तं जहा--- सतभिसया भरणी अद्दा अस्सेसा साती जेट्ठा । तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं तेरस अहोरत्ते दुवालस य मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं पण्ण रस, तं जहा-सवणो धणिदा पुव्वाभद्दवया रेवती अस्सिणी कत्तिया मिगसिरं पूसो महा पुव्वाफग्गुणी हत्थो चित्ता अणराहा मूलो पुव्वासाढा। तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं वीसं अहोरत्ते तिण्णि य मुहत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति ते णं छ, तं जहा-- उत्तराभद्दवया रोहिणी पुणव्वसू उत्तराफग्गुणी विसाहा उत्तरासाढा ॥ तच्चं पाहुडपाहुडं ४. ता कहं ते एवंभागा आहिताति वदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अत्थि णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता" पुव्वंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता पण्णत्ता। अत्थि १. सतभिसता (टव) । ५. सूरिएण (ट,व) सर्वत्र । २. समणो (ग,घ)। ६. बारस (क,ग,घ)। ३. महरिर (ग,घ)। ७. x (क,ग,घ)। ४. उत्तराभद्दपादा (ग); उत्तरभद्दवया (ट); ८. उत्तरा भद्दवता (क,ग,घ,ट,व)। उत्तराभपता (ब)। ६. x (क,ग,घ)। Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता" पच्छंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता पण्णत्ता। अत्थि णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता" णत्तंभागा अवड्डक्खेत्ता पण्णरसमुहुत्ता पण्णत्ता। अत्थि णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता उभयंभागा दिवड्डखेत्ता पणयालीसइमुहुत्ता पण्णत्ता । ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता" पुव्वंभागा समक्खेत्ता तीसइमहुत्ता पप्णत्ता ? कयरे णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता पच्छंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता पण्णत्ता? कयरे णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता" णत्तंभागा अवड्डक्खेत्ता पण्णरसमूहुत्ता पण्णत्ता ? कयरे णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता उभयंभागा दिवड्डक्खेत्ता पणयालीसइमुहुत्ता पण्णत्ता। ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं तत्थ जेते णक्खत्ता पुव्वंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता पण्णत्ता ते णं छ, तं जहा–पुव्वापोट्ठवया कत्तिया महा पुव्वाफग्गुणी मूलो पुव्वासाढा। तत्थ जेते णक्खत्ता पच्छंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता पण्णत्ता ते णं दस, तं जहा...अभिई सवणो धणिट्ठा रेवती अस्सिणी मिगसिर पूसो हत्थो चित्ता अणुराहा । तत्थ जेते णक्खत्ता णत्तंभागा अवड्डक्खेत्ता पण्णरसमुहुत्ता पण्णत्ता ते णं छ, तं जहा–सतभिसया भरणी अद्दा अस्सेसा साती जेट्ठा । तत्थ जेते णक्खत्ता उभयंभागा दिवड्डक्खेत्ता पणयालीसइमुहुत्ता पण्णत्ता ते णं छ, तं जहा–उत्तराभद्दवया रोहिणी पुणव्वसू उत्तराफग्गुणी विसाहा उत्तरासाढा ॥ चउत्थं पाहुडपाहुडं ५. ता कहं ते जोगस्स आदी आहितेति" वदेज्जा ? ता अभीई-सवणा खलु दुवे णक्खत्ता पच्छंभागा समक्खेत्ता सातिरेगऊतालीसइमुहुत्ता" तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएंति, ततो पच्छा अवरं सातिरेगं दिवसं—एवं खलु अभिई-सवणा दुवे णक्खत्ता एगं राति एगं च सातिरेगं दिवसं चंदेण सद्धि जोयं जोएंति, जोएत्ता जोयं अणुपरियटुंति, अणुपरियट्टित्ता सायं चंदं धणिट्ठाणं समप्पेंति । ता धणिट्ठा खलु णक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्ते तीसइमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता ततो पच्छा राति अवरं च दिवसं एवं खलु धणिट्ठा णक्खत्ते एगं राति एगं च दिवसं चंदेण सद्धिं जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणपरियति, अणपरियट्रित्ता सायं चंदं सतभिसयाणं समप्पेति । ता सतभिसया खल णक्खत्ते णत्तंभागे अवड्डक्खेत्ते पण्णरसमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं" चंदेण सद्धि जोयं जोएति, णो लभति अवरं दिवसं-एवं खलु सतभिसया णक्खत्ते एगं राति चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता पातो चंदं पुव्वाणं पोट्ठवयाणं समप्पेति। ता पुवापोट्ठवया खलु णक्खत्ते पुव्वंभागे समक्खेत्ते तीसइमुहुत्ते तप्पढमयाए पातो चंदेण सद्धि जोयं जोएति, तओ पच्छा अवरं राति --एवं खलु पुव्वापोट्ठवया णक्खत्ते एग दिवसं एगं च रातिं चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता पातो १-७. ४ (क,ग,घ) । १२. 'उणतालीसइ° (ट,व)। ८. समणो (ग,घ,व); सवणे (ट)। १३. सततिसयाणं (घ); सतभिसताणं (ट); ६. मिगसिरासिरं (ग,घ); मगसिरं (ट)। सतविसताणं (व)। १०. उत्तरापोट्ठवता (क,ग,घ) । १४. सागं (व)। ११. आहिताति (क,ग,घ)। Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (पंचमं पा०) ६३७ चंदं उत्तराणं पोटवयाणं समप्पेति । ता उत्तरापोट्टवया खलु णवखत्ते उभयंभागे दिवड्डक्खेत्ते पणयालीस इमुहुत्ते तप्पढमयाए पातो चंदेण सद्धि जोयं जोएति, अवरं च राति ततो पच्छा अवरं दिवसं-एवं खलु उत्तरापोट्टवया णक्खत्ते दो दिवसे एगं च राति चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता सायं चंदं रेवतीणं समप्पेति। ता' रेवती खलु णक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्ते तीसइमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएति, ततो पच्छा अवरं दिवसं-- एवं खलु रेवती णवखत्ते एगं राति एगं च दिवसं चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टिता सायं चंदं अस्सिणीणं समप्पेति । ता अस्सिणी खलु णक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्ते तोसइमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएति ततो पच्छा अवरं दिवस-एवं खलु अस्सिणी णक्खत्ते एगं राति एगं च दिवसं देण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता सायं चंदं भरणीणं समप्पेति। ता भरणी खलु णक्खत्ते णत्तंभागे अवडक्खेत्ते पण्णरसमूहत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएति, णो लभति अवरं दिवसं एवं खलु भरणी णक्खत्ते एगं राति चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता पातो चंदं कत्तियाणं समप्पेति । ता कत्तिया खलु णक्खत्ते पुव्वंभागे समक्खेत्ते तीसइमुहुत्ते तप्पढमयाए पातो' चंदेण सद्धि जोयं जोएति, ततो पच्छा राति-एवं खलु कत्तिया णक्खत्ते एग दिवसं एगं च राति चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता पातो चंदं रोहिणीणं समप्पेति । रोहिणी जहा उत्तरभद्दवया। मिग सिरं जहा धणिट्ठा। अद्दा' जहा सतभिसया । पुणव्वसू जहा उत्तरभद्दवया । पुस्सो जहा धणिट्ठा। अस्सेसा जहा सतभिसया। मघा जहा पुव्वाफग्गुणी । पुव्वाफग्गुणी जहा पुव्वाभद्दवया। उत्तराफग्गुणी जहा उत्तरभद्दवया । हत्थो चित्ता य जहा धणिट्ठा । साती जहा सतभिसया । विसाहा जहा उत्तरभद्दवया । अणराहा जहा धणिट्ठा। जेट्ठा जहा सतभिसया। मूलो पुव्वासाढा य जहा पुव्वभद्दवया। उत्तरासाढा जहा उत्तरभद्दवया ॥ पंचमं पाहुडपाहुडं ६. ता कहं ते कुला आहिताति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमे बारस कुला बारस उवकुला चत्तारि कुलोवकुला पण्णत्ता । बारस कुला तं जहा–धणिट्ठा कुलं उत्तराभद्दवया कुलं १. अतः 'व' प्रतौ भिन्नावाचना लभ्यते--तथा देवा रेवति खलु णक्खत्ते पच्छंभागे सम जहा धणिट्टा जाव भागं चंदं अस्सिणी णं समप्पेति, भरणी खलु णक्खत्ते णंतरं भागे अवडू जहा सतविसता जाव पादो चंदं कत्तिताणो सम- प्पेति, एवं जहा पुव्वाभद्दवता तहा पुवभागा छप्पि णेयव्वा, जहा धणिट्ठा तहा 'पच्छंभागा' अट्ठ णेयव्वा जाव एवं खलु उत्तरासाढा दो दिवसे एगं च राति ग चदेण सद्धि जोगं जोएति जोगं २ अणुपरियटति जोगं २ अतिति समणं समप्पेति । २. सायं (क); सागं (घ,व)। ३. अत: 'ट' प्रती भिन्न वाचना लम्यते-एवं जहा सतभिसया तहा नत्तंभागा णेयव्वा, जहा पुव्वाभद्दवया तहा पुवंभागा छप्पि नेयव्या, जहा धणिट्ठा तहा पच्छाभागा नेयव्वा, अभिति समणं समप्पिति। ४. उत्तरापोट्ठवता (क,ग,घ)। Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ सूरपण्णती अस्सिणी कुलं कत्तिया कुलं संठाणा' कुलं पुस्सो कुलं महा कुलं उत्तराफग्गुणी कुलं चित्ता कुलं विसाहा कुलं मूलो कुलं उत्तरासाढा कुलं । बारस उवकुला, तं जहा-सवणो उवकुलं पुव्वभद्दवया उवकुलं रेवती उवकुलं भरणी उवकुलं रोहिणी उवकुलं पुण्णवसू उवकुलं अस्सेसा उवकुलं पुव्वाफग्गुणी उवकुलं हत्थो उवकुलं साती उवकुलं जेट्ठा उवकुलं पुव्वासाढा उवकुलं । चत्तारि कुलोवकुला, तं जहा-अभीई कुलोवकुलं सतभिसया कुलोवकुलं अद्दा कुलोवकुलं अणुराहा कुलोवकुलं ॥ छठं पाहडपाहडं ७. ता कहं ते पुण्णिमासिणी' आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ 'बारस पुण्णिमासिणीओ बारस अमावासाओ" पण्णत्ताओ, तं जहा-साविट्ठी पोटवली आसोई कत्तिया मग्गसिरी पोसी माही फग्गुणी चेत्ती वइसाही जेट्ठामूली आसाढी ॥ ८. ता साविट्ठिणं पुण्णिमासि कति णक्खत्ता जोएंति ? ता तिण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा--अभिई सवणो धणिट्ठा ॥ ६. ता पोट्ठवतिण्णं पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता तिण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा—सतभिसया पुव्वापोटुवया उत्तरापोट्ठवया ॥ १०. ता आसोइण्णं पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दोण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा-रेवती अस्सिणी य॥ ११. ता कत्तियण्णं पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दोण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा–भरणी कत्तिया य॥ १२. ता 'मग्गसिरणं पुण्णिमं" कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दोण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा-रोहिणी मिगसिरो य । १३. ता पोसिण्णं पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता तिण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा-अद्दा पुण्णवसू पुस्सो॥ १४. ता माहिण्णं पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दोण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा–अस्सेसा महा य ॥ १५. ता फग्गुणिण्णं पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दुण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा–पुवाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी य ॥ १६. ता चेत्तिण्णं पुण्णिम कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दोण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा-हत्थो चित्ता य॥ १७. ता वइसाहिण्णं" पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दोण्णि णक्खत्ता जोएंति, १. मिगसिरं (ट,व)। ६. विसाही (क,ग,घ,ट,व)। २. पुव्वपुट्ठवता (क,ग,घ)। ७. सततिसया (ग,घ); सतविसया (व)। ३. पुणमासी (ट,व)। ८. अस्सोदिण्णं (ग,घ)। ४. दुवालस अमावसातो दुवालस पुणिमातो ___E. मग्गसिरी पुणिमं (क,ग,घ) । (व)। १०. मग्गसिरो (ग,घ)। ५. अस्सोती (व)। ११. विसाहिणं (ग,घ); विसाहि (ट)। Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३६ दसमं पाहुडं (छठें पा०) तं जहा-साती विसाहा य॥ १८. ता जेट्ठामलिण्णं पुण्णिमासिणि कति णक्खत्ता जोएंति ? ता तिण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा अणुराहा जेट्ठा मूलो॥ १६. ता आसाढिण्णं पुण्णिमं कति णक्लत्ता जोएंति ? ता दो णक्खत्ता जोएंति, तं जहा---पुव्वासाढा उत्तरासाढा ।। २०. ता साविट्टिण्णं पुण्णिमासिणि किं कुलं जोएति ? उवकुलं वा जोएति ? कुलोवकुलं वा' जोएति ? ता कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, कुलोवकुलं वा जोएति। कुलं जोएमाणे धणिट्टा णक्खत्ते जोएति, उवकुलं जोएमाणे सवणे' णक्खत्ते जोएति, कुलोवकुलं जोएमाणे अभिई णक्खत्ते जोएति । साविट्ठिण्णं पुण्णिमं कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, कुलोवकुलं वा जोएति । कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता कुलोवकुलेण वा जुत्ता साविट्ठी पुण्णिमा जुत्ताति वत्तव्वं सिया ॥ २१. ता पोटुवतिण्णं पुण्णिमं किं कुलं जोएति ? उवकुलं जोएति ? कुलोवकुलं वा जोएति ? ता कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, कुलोवकुलं वा जोएति । कुलं जोएमाणे उत्तरापोट्ठवया णक्खत्ते जोएति, उवकुलं जोएमाणे पुव्वापोट्ठवया णक्खत्ते जोएति, कुलोवकुलं जोएमाणे सतभिसया णक्खत्ते जोएति । पोट्ठवतिण्णं पुण्णमासिणि कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, कुलोवकुलं वा जोएति, कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता कुलोवकुलेण वा जुत्ता पोटुवती पुण्णिमा जुत्ताति वत्तव्वं सिया ॥ २२. ता आसोइण्णं' पुण्णिमासिणिं किं कुलं जोएति ? 'उवकुलं वा जोएति ? कुलोवकुलं वा जोएति ?" ता कुलंपि जोएति, उवकुलंपि जोएति, णो लभति कुलोवकुलं । कुलं जोएमाणे अस्सिणी णक्खत्ते जोएति, उवकुलं जोएमाणे रेवती णक्खत्ते जोएति । आसोइण्णं पुण्णिमं कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति । कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता आसोई णं पुण्णिमा जुत्ताति वत्तव्वं सिया । ‘एवं णेयव्वाओ-पोसिं पुण्णिमं जेट्ठामूलिं पुण्णिमं च कुलोवकुलंपि जोएति, अवसेसासु णत्थि कुलोवकुलं'५ 'जाव आसाढी पुण्णिमा जुत्ताति वत्तव्वं सिया ॥ २३. ता सविट्ठिण्णं अमावासं कति णक्खत्ता जोएति ? ता दुण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा-अस्सेसा महा य । एवं एतेणं अभिलावेणं णेतव्वं पोट्ठवति दो णक्खत्ता जोएंति, १. ४ (क,ग,घ)। पाठो विद्यते-दुवालस अमावसाओ (अवाम२. समणे (ट,व)। सातो-व) पंतं सावट्ठि पोट्ठवति जाव आसाठी। ३. आसोदिण्णं (क,ग,घ.ट); अस्सोहणं (व) । वृत्तिद्वयेपि एष पाठो व्याख्यातोस्ति, किन्तु ४. पुच्छा (ब)। प्रस्तुतप्राभृतप्राभृतस्य प्रारम्भसूत्रे 'बारण ५. एवं एएणं अभिलावेणं पोसपुषिणमाए जेट्ठमूल- अमावासाओ' इति पाठो विद्यते, तेनात्र नामो पुण्णिमाए य कुलोवकुलं भाणियव्वा सेसा मूले स्वीकृतः। कुलोवकुला पत्थि (ट,व)। ८. अमावसं (ग,घ); अवामसं (ट) सर्वत्र । ६. x (क,ग,घ)। १. अस्सिलेसा (ट)। ७. अतः पूर्व 'टव' प्रत्योः एतावान् अतिरिक्तः १०. पोट्ठबतं (ग,ध,व)। Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० सूरपण्णत्ती तं जहा-पुव्वाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी । अस्सोई हत्थो चित्ता य । कत्तियं साती विसाहा य । मग्गसिरि अणुराधा जेट्टा मूलो । पोसि पुव्वासाढा उत्तरासाढा। माहिं अभीई सवणो धणिट्ठा । 'फग्गुणि सतभिसया पुव्वापोट्ठवया। चेत्ति उत्तरापोट्टवया रेवती अस्सिणी य" । १. अतःट,व' प्रत्योः किञ्चिविस्तृत: पाठो पञ्चमी फाल्गुनीम मावास्यां धनिष्ठानक्षत्र लभ्यते । षटसु मुहर्तेषु एकस्य च महतस्य द्विपञ्चाशति २. समणो (व)। द्वाषष्टिभागेष्वेकस्य च द्वाषष्टिभागस्य सत्केषु ३. फग्गुणि सतभिसया पुवापोट्ठवया उत्तरापो- द्वाषष्टौ सप्तषष्टिभागेषु गतेषु ६.५२१६२ । टूवया। चेत्ति रेवती अस्सिणी य (क,ग,घ); परिणमयति। फगुणी दोणि तं जहा सतभिसता पुव्वाभद्दवया 'ता चित्तिन्नं अमावासं कइ नवखत्ता जोएंति ? य । चेत्ति तिणि तं जहा उत्तरभद्दवया रेवती ता तिणि नक्खत्ता जोएंति, तंजहाअसणि य (ट,सूव चंवृ); चन्द्रप्रज्ञप्तेः सूर्य- उत्तरभद्दवया रेवई अस्सिणी य' एतदपि व्यप्रज्ञप्तेश्च वत्स्योराधारेण पाठः स्वीकृतोस्ति । वहारतो, निश्चयतः पुनरमूनि त्रीणि नक्षत्राणि सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्ति (पत्र १२५, १२६) -'ता चैत्रीममावस्यां परिसमापयन्ति, तद्यथाफग्गुणी णं अमावासं कइ नक्खत्ता जोएंति ? पूर्वभद्रपदा उत्तरभद्रपदा रेवती च, तत्र प्रथमां ता दोणि नक्खत्ता जोएंति, तंजहा-सय- चैत्रीममावास्यामुत्तरभद्रपदानक्षत्रं सप्तविंशती भिसया पुव्वभद्दवया य। एतदपि व्यवहारतो, मुहर्तेष्कवेस्य च मुहूर्तस्य षट्त्रिंशति द्वाषष्टिनिश्चयतः पुनरमूनि त्रीणि नक्षत्राणि फाल्गुनी- भागेष्वेकस्य च द्वाषष्टिभागस्य दशसु सप्तममावास्यां परिसमापयन्ति, तद्यथा-धनिष्ठा षष्टिभागेषु गतेषु ३३॥३६।१०,द्वितीयां चैत्रीशतभिषक् पूर्वभद्रपदा च, तत्र प्रथमां फाल्गु- ममावास्यामुत्तरभद्रपदानक्षत्रमेकादशसु मुहूर्तेनीममावास्यां पूर्वभद्रपदानक्षत्रं षट्सु मुहूर्ते- ध्वेकस्य च मुहर्तस्य नवसु द्वाषष्टिभागेषु ध्वेकस्य च मुहर्तस्यकत्रिशति द्वाषष्टिभागेषु एकस्य च द्वाषष्टिभागस्य त्रयोविंशती सप्तएकस्य च द्वाषष्टिभागस्य नवसु सप्तषष्टि- षष्टिभागेषु गतेषु ११।६।२३, तृतीयां चैत्रीममाभागेषु गतेषु । ६।३१९, द्वितीयां फाल्गुनी- वास्यां रेवतीनक्षत्रं पञ्चसु मुहूर्तेषु एकस्य च ममावस्यां धनिष्ठानक्षत्रं विंशतो मुहर्तेष्वेकस्य महर्तस्यैकोनपञ्चाशति द्वाषष्टिभागेष्वेकस्य च च मुहूर्त्तस्य चतुर्पु द्वाषष्टिभागेष्वेकस्य च द्वापष्टिभागस्य सप्तत्रिंशति सप्तषष्ठिभागेष्वद्वाषप्टिभागस्य द्वाविंशतो सप्तषष्टिभागेषु तिक्रान्तेषु ५१४६।३७, चतुर्थी चेत्रीममावास्याव्यतिक्रान्तेषु २०।४,२२, तृतीया फाल्गुनीम- मुत्तरभद्रपदानक्षत्रं त्रयोविंशतो मुहर्तेषु एकस्य मावास्यां पूर्वाषाढानक्षत्रं चतुर्दशसु मुहर्तेष्वे- च मुहूर्तस्य द्वाविंशतो द्वाषप्टिभागेष्वेकस्य च कस्य च मुहर्तस्य चतुश्चत्वारिंशति द्वाषष्टि- द्वाषष्टिभागस्य पञ्चाशति सप्तषष्टिभागेषु भागेष्वेकस्य च द्वाषष्टिभागस्य षट्त्रिंशति गतेषु २३।२२।५०, पञ्चमी चैत्रीममावास्यां सप्तषष्टिभागेषु गतेषु १४।४४१३६, चतुर्थी पूर्वभद्रपदानक्षत्रं सप्तविंशती मुहूर्तेष्वेकस्य च फाल्गुनीममावास्यां शतभिषक् नक्षत्रं त्रिषु महतस्य सप्तपञ्चाशति द्वाषष्ठिभागेष्वेकस्य मुहूर्तेष्वेकस्य च मुहूर्तस्य सप्तदशसु द्वाषष्टि- च द्वाषष्टिभागस्य त्रिषष्टौ सप्तषष्टिभागेष्वतिभागेष्वेकस्य च द्वाषष्टिभागस्य एकोनपञ्चा- क्रान्तेषु २७१५७।६३ परिसमापयति । शति 'सप्तषष्टिभागेषु गतेषु ३।१७।४६, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तावपि (७.१४६) स्वीकृतपाठाद् Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (सत्तमं पा०, अट्ठमं पा०) ६४१ वइसाहिं' भरणी कत्तिया य । जेट्टामूलि रोहिणी मिगसिरं च ॥ २४. ता आसाढिण्णं अमावासिं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता तिण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा—अद्दा पुणव्वसू पुस्सो॥ २५. ता सावट्टिण्णं अमावासं किं कुलं जोएति ? 'उवकुलं वा जोएति ? कुलोवकुलं वा जोएति" ? ता कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, णो लभति कुलोवकुलं । कुलं जोएमाणे महा णक्खत्ते जोएति, उवकुलं जोएमाणे 'अस्सेसा णक्खत्ते" जोएति, कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता साविट्ठी अमावासा जुत्ताति वत्तव्वं सिया। एवं णेतव्वं, णवरंमग्गसिरीए माहीए फग्गुणीए आसाढीए य 'अमावासाए कुलोवकुलंपि जोएति, सेसेसु गत्थि " ॥ सत्तमं पाहुडपाहुडं २६. ता कहं ते सण्णिवाते आहितेति वदेज्जा? ता जया णं साविट्ठी पुण्णिमा भवति तया' णं माही अमावासा" भवति, जया णं माही पुण्णिमा भवइ तया णं साविट्ठी भमावासा भवइ, जया णं पोट्ठवती पुण्णिमा भवति तया णं फग्गुणी अमावासा भवति, जया गं फग्गुणी पुण्णिमा भवति तया णं पोट्ठवती अमावासा भवति, जया णं आसोई पुण्णिमा भवति तया णं चेत्ती अमावासा भवति, जया णं चेत्ती पुण्णिमा भवति तया णं आसोई अमावासा भवति, जया" णं कत्तिई पुण्णिमा भवति तया णं वइसाही अमावासा भवति, जया णं वइसाही पुण्णिमा भवति तया णं कत्तिई अमावासा भवति, जया णं मग्गसिरी पुण्णिमा भवति तया णं जेट्टामूली अमावासा भवति, जया णं जेट्टामूली पुण्णिमा भवति तया णं मग्गसिरी अमावासा भवति, जया णं पोसी पुण्णिमा भवति तया णं आसाढी अमावासा भवति, जया णं आसाढी पुण्णिमा भवति तया णं पोसी अमावासा भवति ॥ अट्ठमं पाहुडपाहुडं २७. ता कहं ते णक्खत्तसंठिती आहितेति वदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णखत्ताणं अभीई णक्खत्ते किसंठिते पण्णत्ते? ता गोसीसावलिसंठिते पण्णत्ते॥ भिन्ना वाचना दृश्यते-फग्गुणिण्णं तिष्णि--- न वक्तव्यम् (चं)। सयभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तराभद्दवया। ५. जता (क,ग,घ,व)। चेतिण्णं दो-रेवई अस्सिणी य। ६. तता (क,ग,घ,ट,व) । १. वेसाहिं (क); विसाहिं (ग,घ)। ७. अवमंसा (ग,घ,व) सर्वत्र । २. पुच्छा (व)। ८. अतः 'व' प्रती सक्षिप्तः पाठो विद्यते .....एवं १. अस्सिलेसाणक्खत्ते (व)। एएणं अभिलावेणं आसोईए चेतीए य कत्तिइए ४. अमावसाए कुलोवकुलं भाणियब्वं, सेसाणं वतिसाहीए य, मग्गसिरीए जेट्टामूले य । कुलोवकुलं णत्थि जाव कुलोवकुलेण वा जुत्ता ६. अस्सोइ (ट)। आसाढी अमावसं (अवामंसा-व) जुत्ताति १०. अत: 'ट' प्रती संक्षिप्त: पाठो विद्यते-एवं बत्तव्वं सिया (ट,व); कुलोपकुलं भणितव्यं, कत्तिय वतिसाहियाए य मगसिरीए जेट्ठामूलीए शेषाणां स्वमावस्यानां कुलोपकुलं नास्ति, तेन य। Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ २८. तासवणे' णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता काहारसंठिते पण्णत्ते || २६. ता' धणिट्ठा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता सउणिपलीणगसंठिते पण्णत्ते ॥ ३० ता सतभिसया णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता पुप्फोवया रसंठिते पण्णत्ते ॥ ३१. ता पुव्वापोट्ठवया णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता अवडवाविसंठिते पण्णत्ते ॥ ३२. एवं उत्तरावि ॥ ३३. ता रेवती णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता णावासंठिते पण्णत्ते ॥ ३४. ता अस्सिणी णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता आसक्खंधसंठिते पण्णत्ते ॥ ३५. ता भरणी णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता भगसंठिते पण्णत्ते ॥ ३६. ता कत्तिया णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता छुरघरगसंठिते पण्णत्ते ॥ ३७. ता रोहिणी णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता सगडुद्धिसंठिते पण्णत्ते ॥ ३८. ता मिगसिरा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता मगसीसावलिसंठिते पण्णत्ते || ३६. ता अद्दा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता रुहिर बिंदुसंठिते पण्णत्ते ॥ ४०. ता पुणव्वसू णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता तुलासंठिते पण्णत्ते ॥ ४१. ता पुस्से णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता वद्धमाणगसंठिते पण्णत्ते ॥ ४२. ता अस्सेसा' णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता पडागसंठिते पण्णत्ते ॥ ४३. ता महा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता पागारसंठिते पण्णत्ते । ४४. ता पुव्वाफग्गुणी णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता अद्धपलियंकसंठिते पण्णत्ते ॥ ४५. एवं उत्तरावि ॥ ४६. ता हत्थे णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता हत्थसंठिते पण्णत्ते ॥ ४७. ता चित्ता णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता मुहफुल्लसंठिते पण्णत्ते ॥ ४८. ता साती णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता खीलगसंठिते पण्णत्ते ॥ ४६. विसाहा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता दामणिसंठिते पण्णत्ते ॥ ५०. ता अणुराधा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता एगावलिसंठिते पण्णत्ते ॥ ५१. ता जेट्ठा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता गयदंतसंठिते पण्णत्ते ॥ ५२. ता मूले णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता विच्छुयनं गोलसंठिते' पण्णत्ते ।। ५३. ता पुव्वासाढा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता गयविक्कमसंठिते पण्णत्ते ॥ ५४. ता उत्तरासाढा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता सीहणीसाइसंठिते पण्णत्ते ॥ नवमं पाहुडहुड सुरपण्णत्ती ५५. ता कहं ते तारग्गे आहितेति बदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभीई' क्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? ता तितारे पण्णत्ते ।। १. समणे (व) 1 २. 'ट,व' प्रत्योः अतः परं संक्षिप्तः पाठो विद्यते यथा - धणिट्ठाणक्खते सउणिपलीणगसंठिते, समिाणक्खत्ते पुप्फोवयारसंठिते' एवं सर्वत्र | ३. असिलेसा (व) । ४. विच्छ्यलं गोल (ग, घ.ट, व ) । ५. 'ट,व' प्रत्योः अतः परं संक्षिप्तपाठो विद्यते, यथा 'अभीयीणक्खत्त तितारे प सवणे क्खत्ते तितारे प धणिट्ठा पंचतारे प संयभि Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (दसमं पा०) ६४. ५६. ता सवणे णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? ता तितारे पण्णत्ते॥ ५७. ता धणिट्ठा णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? ता पणतारे पण्णत्ते॥ ५८. ता सतभिसया णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? ता सततारे पण्णत्ते ॥ ५६. ता पुव्वापोट्ठवता णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? ता दुतारे पण्णत्ते ।। ६०. एवं उत्तरावि ॥ ६१. ता रेवती णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? ता बत्तीसतितारे पण्णत्ते । ६२. ता अस्सिणी णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? ता तितारे पण्णत्ते। एवं सव्वे पुच्छिज्जति-भरणी तितारे पण्णत्ते, कत्तिया छत्तारे पण्णत्ते, रोहिणी पंचतारे पण्णत्ते, संठाणा' तितारे पण्णत्ते, अद्दा एगतारे पण्णत्ते, पुणव्वसू पंचतारे पण्णत्ते, पुस्से तितारे पण्णत्ते, अस्सेसा छतारे पण्णत्ते, मघा सत्ततारे पण्णत्ते, पुव्वाफग्गुणी दुतारे पण्णत्ते, एवं उत्तरावि, हत्थे पंचतारे पण्णत्ते, चित्ता एगतारे पण्णत्ते, साती एगतारे पण्णत्ते, विसाहा पंचतारे पण्णत्ते, अणुराहा चउतारे' पण्णत्ते, जेट्ठा तितारे पण्णत्ते, मूले एगतारे पण्णत्ते, पुव्वासाढा चउतारे पण्णत्ते, उत्तरासाढा चउतारे पण्णत्ते ॥ दसम पाहडपाहडं ६३. ता कहं ते णेता आहितेति वदेज्जा ? ता वासाणं पढमं मासं कति णक्खत्ता णेति ? ता चत्तारि णक्खत्ता णेति, तं जहा- उत्तरासाढा अभिई सवणो धगिट्ठा। उत्तरासाढा चोद्दस अहोरत्ते णेति, अभिई सत्त अहोरत्ते णेति, सवणे अट्ट अहोरत्ते णेति, धणिट्ठा एगं अहोरत्तं णेति । तंसि च णं मासंसि चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पदाई चत्तारि अंगुलाई पोरिसी भवति ॥ ६४. ता वासाणं दोच्चं मासं कति णक्खत्ता णेति ? ता चत्तारि णक्खत्ता णेंति, तं जहा-धणिट्ठा सतभिसता पुन्वपोट्ठवया उत्तरपोट्ठवया । धणिट्ठा चोद्दस अहोरत्ते सया दसतारे प पुव्वभद्दवया दुतारे प उत्तर. ४ पादाइं (ग,घ); पयाणि (ट)। भवया दुतारे प रेवती वत्तीसतारे प' एवं ५. वितियं (ट)। सर्वत्र। ६. पुव्वभद्दवया (ट)। १. चन्द्रप्रज्ञप्तेः 'ट' प्रतौ 'दसतारे' इति पाठो विद्यते ७. उत्तरभहवया (ट); अतः परं 'ट' प्रती 'व' प्रती एष पाठः वटितोस्ति । चन्द्रप्रज्ञप्ते- संक्षिप्त पाठो लभ्यते--एवं एएण अभिलावेणं वृत्तौ उद्धृतायां जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिगाथायामपि जहेब जंबूदीवाष्णत्तीए तहेव एत्यपि भाणियव्वं 'दस' इति पदस्य उल्ले खोस्ति । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ जाव तेसि च णं मासंनि वट्टीए समचउरंस(७१३१) पंचेक्कसय' इति पाठो लभ्यते, सध्याए । णगोहपरिमंडलाए सकायमणुरंगिसमवायाङ्गे (१००२) पि शतसंवादी पाठो णीयाए च्छायाए सूरिय अणपरियति । तस्स लभ्यते--'सयभिसयाणक्खत्ते एक्कसयतारे णं मासस्स चरिमदिवसे लेहठाति दोपयाति पण्णत्ते'। पोरसी भवति । चंद्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एष एव २. मिगसिरे (ट,व)। संक्षिप्तपाठो व्याख्यातोस्ति । ३. पंचतारे (ग,घ) । Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ सूरपण्णत्ती णेति, सतभिसता सत्त अहोरत्ते णेति, पुश्वपोटदया अट्ट अहोरत्ते णेति, उत्तरपोट्टवया एग अहोरत्तं णेति। तंसि च णं मासंसि अटुंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणपरियट्टति, तस्स णं मासस्स चरि मे दिवसे दो पदाइं अट्ट अंगुलाई पोरिसी भवति ।। ६५. ता वासाणं ततियं मासं कति णक्खत्ता ऐति, ता तिण्णि णवखत्ता णेति, तं जहा-उत्तरापोढवया रेवती अस्सिणी। उत्तरापोट्टवया चोइस अहोरत्ते णेति, रेवती पण्णरस अहोरत्ते णेति, अस्सिणी एग अहोरत्तं णेति । तंसि च णं मासंसि दुवालसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणपरियति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे लेहवाइं तिण्णि पदाइं पोरिसी भवति ॥ ६६. ता वासाणं चउत्थं मासं कति णक्खत्ता णेति ? ता तिण्णि णवखत्ता णेंति, तं जहा अस्सिणी भरणी कत्तिया। अस्सिणी चउद्दस अहोरत्ते णेति, भरणी पण्णरस अहोरत्ते णेति, कत्तिया एगं अहोरत्तं णेति । तसि च णं मासंसि सोलसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे तिण्णि पदाइं चत्तारि अंगुलाई पोरिसी भवति ॥ ६७. ता हेमंताणं पढमं मासं कति णक्खत्ता णेति ? ता तिण्णि णवखत्ता णेंति, तं जहा --कत्तिया रोहिणी संठाणा। कत्तिया चोद्दस अहोरत्ते णेति, रोहिणी पण्णरस अहोरत्ते णेति, संठाणा एग अहोरत्तं णेति । तसि च णं मासंसि वोसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे तिण्णि पदाइं अट्ठ अंगुलाई पोरिसी भवइ॥ ६८. ता हेमंताणं दोच्चं मासं कति णक्खत्ता णेति ? ता चत्तारि णक्खत्ता णेति, तं जहा-- संठाणा अद्दा पुणव्वसू पुस्सो। संठाणा चोद्दस अहोरत्ते णेति, अद्दा सत्त' अहोरत्ते णेति, पुणव्वसू अट्ठ' अहोरत्ते णेति, पुस्से एग अहोरत्तं णेति । तंसि च णं मासंसि चउवीसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे लेहट्राई' चत्तारि पदाई पोरिसी भवति । ६६. ता हेमंताणं ततियं मासं कति णक्खत्ता णेंति ? ता ति णि णक्खत्ता णेति, तं जहा पुस्से अस्सेसा महा। पुस्से चोद्दस अहोरत्ते णेति, अस्सेसा पंचदस अहोरत्ते णेति, महा एगं अहोरत्तं णेति। तंसि च णं मासंसि वीसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे तिष्णि पदाइं अळंगुलाई पोरिसी भवति । ७०. ता हेमंताणं चउत्थं मासं कति णक्खत्ता णेति ? ता तिण्णि णक्खत्ता णेति, तं जहा-महा पुव्वाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी । महा चोद्दस अहोरत्ते णेति, पुव्वाफग्गुणी पण्णरस अहोरत्ते णेति, उत्तराफग्गुणी एग अहोरत्तं णेति । तंसि च णं मासंसि सोलसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे तिण्णि पदाइं चत्तारि अंगूलाई पोरिसी भवति ॥ १. पुव्वाभद्दवया (क,ग,घ)। २. अट्ठ (जं०७।१६१) । ३. सत्त (जं० ७.१६१) ४. लेहटाणि (क,ग,ख) । Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसम पाहुडं (एक्कारसमं पा० ) ६४५ ७१. ता गिम्हाणं पढमं मासं कति णक्खत्ता गति? ता तिष्णि णक्खत्ता णेंति, तं जहाउत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता । उत्तराफग्गुणी चोट्स अहोरत्ते णेति हत्थो पण्णरस अहोरत्ते ति, चित्ता एवं अहोरत्तं णेति । तंसि च णं मासंसि दुवालसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरिदृति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे लेहट्ठाई तिणि पदाई पोरिसी भवति ॥ ७२. तां गिम्हाणं बितियं मासं कति णक्खत्ता ति ? ता तिणिण णक्खत्ता णेंति, तं जहा - चित्ता साती विसाहा । चित्ता चोइस अहोरते णेति, साती पण्णरस अहोरते ति, विसाहा एगं अहोरतं णेति । तंसि च णं मासंसि अट्ठगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पदाई अट्ठ अंगुलाई पोरिसी भवति ॥ ७३. ता गिम्हाणं ततियं मासं कति णक्खत्ता णेंति ? ता चत्तारि णकत्ता णेंति, तं जहा विसाहा अणुराहा जेट्ठा मूलो। विसाहा चोट्स अहोरत्ते णेति, अणुराहा सत्त अहोरतेति, जेट्ठा अट्ठ अहोरत्ते णेति, मूलो एवं अहोरतं णेति । तंसि च णं मासंसि चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पदाणि चत्तारि अंगुलाई पोरिसी भवति ॥ ७४. ता गिम्हाणं चउत्थं मासं कति णक्खत्ता णेंति ? ता तिणिण णक्खत्ता र्णेति तं जहा - मुलो पुव्वासाढा उत्तरासाढा । मूलो चोद्दस अहोरत्ते णेति, पुव्वासाढा पण्णरस अहोरत्ते णेति, उत्तरासाढा एवं अहोरतं णेति । तंसि च णं मासंसि वट्टाए समचउरंससंठिताए णग्गोहपरिमंडलाए सकायमणुरंगिणीए छायाए सूरिए अणुपरियदृति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे लेहट्ठाई दो पदाई पोरिसी भवति ॥ एक्कारसमं पाहुडपाहुडं ७५. ता कहं ते चंदमग्गा आहितेति वदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अथ णक्खत्ता जेणं सया चंदस्स दाहिणेणं जोयं जोएंति, अत्थि णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स उत्तरेणं जोयं जोएंति, अत्थि णक्खत्ता जे णं चंदस्स दाहिणेणवि उत्तरेणवि पमपि जोति अथ क्खत्ता जेणं चंदस्स दाहिणेणवि पमद्दपि जोयं जोएंति, अस्थि णक्खत्ते जेणं सया चंदस्स पमदं जोयं जोएति । ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ता जेणं सया चंदस्स दाहिणेणं जोयं जोएंति ? तहेव जाव कयरे णक्खत्ते जे णं सया चंदस्स पमदं जोयं जोएति ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं जे णं णक्खत्ता सया चंदस्स दाहिणं जोयं जोएंति ते णं छ, तं जहा संठाणा अद्दा पुस्सो अस्सेसा हत्थो मूलो। तत्यजेते क्खता जे णं सया चंदस्स उत्तरेणं जोयं जोएंति ते गं बारस, तं जहाअभिई सवण धणिट्ठा सतभितया पुत्राभवया उत्तरापोट्ठवया रेवती अस्सिणी भरणी पुत्राफग्गुणी उत्तराफग्गुणी साती । तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं चंदस्स दाहिणेणवि उत्तरेणवि पमपि जोयं जोएंति ते णं सत्त, तं जहा कत्तिया रोहिणी पुणव्वसू महा चित्ता विसाहा अणुराहा । तत्थ जेते क्खत्ता जे गं चंदस्स दाहिणेवि पमद्दपि जोयं जोएंति ताओ गं दो आसाढाओ सव्वबाहिरे मंडले जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोएस्संति वा । तत्थ जेसे णक्खत्ते १. अट्ठ (जं० ७।१६६) । २. सत्त ( जं० ७ १६६ ) । Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ जेणं सया चंदस्स पमद्दं जोयं जोएति सा णं एगा जेट्ठा ॥ ७६. ता कति ते चंदमंडला पण्णत्ता' ? ता पण्णरस चंदमंडला पण्णत्ता ॥ ७७. तातेसि णं पण्णरसण्हं चंद मंडलाणं अस्थि चंदमंडला जे णं सया णक्खत्तेहिं अविरहिया । अस्थि चंदमंडला जे णं सया णक्खत्तेहिं विरहिया । अत्थि चंदमंडला जे णं रविससिणक्खत्ताणं सामण्णा भवंति । अत्थि चंदमंडला जे णं सया आदिच्चेहिं विरहिया । ता एतेसि णं पण्णरसहं चंदमंडलाणं कयरे चंदमंडला जे णं सया णक्खत्तेहिं अविरहिया जाव कयरे चंदमंडला जे णं सया आदिच्चेहि विरहिया ? ता एतेसि णं पण्णरसहं चंदमंडलाणं तत्थ जेते चंदमंडला जे णं सया णक्खत्तेहिं अविरहिया ते णं अट्ठ, तं जहा पढमे चंदमंडले ततिए चंदमंडले छट्ठे चंदमंडले सत्तमे चंदमंडले अट्टमे चंदमंडले दसमे चंदमंडले एक्कारसमे चंदमंडले पण्णरसमे चंदमंडले । तत्थ जेते चंदमंडला जे णं सया णक्खत्तेहि विरहिया ते णं सत्त, तं जहा बितिए चंदमंडले चउत्थे चंदमंडले पंचमे चंदमंडले णवमे चंदमंडले बारसमे चंदमंडले तेरसमे चंदमंडले चउसमे चंदमंडले । तत्थ जेते चंदमंडला जे णं रविससिणक्खत्ताणं सामण्णा भवंति ते णं चत्तारि, तं जहा - पढमे चंदमंडले बीए चंदमंडले इक्कारसमे चंदमंडले पण्णरसमे चंदमंडले । तत्थ जेते चंदमंडला जे णं सया 'आदिच्चेहि विरहिया" ते णं पंच तं जहा छट्ठे चंदमंडले सत्तमे चंदमंडले अट्टमे चंदमंडले णवमे चंदमंडले दसमे चंदमंडले | बारसमं पाहुडपाहु ७८. ता कहं ते देवयाणं अज्झयणा आहिताति' वदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए क्खत्ताणं अभिई क्खत्ते किंदेवयाए पण्णत्ते ? ता बम्हदेवयाए' पण्णत्ते ॥ ७६. ता° सवणे णक्खत्ते किंदेवयाए पण्णत्ते ? ता विण्हुदेवयाए पण्णत्ते ॥ ८०. ता धणिट्ठा णक्खत्ते किंदेवयाए पण्णत्ते ? ता वसुदेवया पण्णत्ते ॥ ८१. तासतभिसया णक्खत्ते किंदेवयाए पण्णत्ते ? ता वरुणदेवयाए पण्णत्ते ॥ ८२. तापुव्वापोवा णक्खत्ते किंदेवयाए पण्णत्ते ? ता अयदेवयाए पण्णत्ते ॥ ८३. ता उत्तरापोट्टवया णक्खत्ते किंदेवयाए पण्णत्ते ? ता अभिवढिदेवयाए पण्णत्ते । एवं सव्वेवि पुच्छिज्जति रेवती पुस्सदेवयाए, अस्सिणी अस्सदेवयाए, भरणी जमदेवयाए, कत्तिया अग्गिदेवया, रोहिणी पयावइदेवयाए, संठाणा सोमदेवयाए, अद्दा रुद्ददेवया, पुणव्वसू अदितिदेवया, पुस्सो बहस्सइदेवयाए, अस्सेसा सप्पदेवयाए, महा पिइदेवयाए, पुव्वा फग्गुणी भगदेवयाए, उत्तराफग्गुणी अज्जमदेवयाए, हत्थे सवियादेवयाए", चित्ता १२. आहिताति वदेज्जा (ट, व ) । ३. इग्यारस मे (ट) । ४. आदिच्चविरहिया ( ग, घ, ट ) ; आतिच्चेहि विरहिया (व) । ५. अभिहिताति (व) । ६. बंभ° (क,ग,घ) ॥ ७. अतः 'टव' प्रत्योः संक्षिप्तपाठो लभ्यते, सूरपण्णत्ती यथा - समणे ण विण्हदेवताए पण्णत्ते एवं जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए जाव उत्तरासाढा णक्खत्ते विस्सदेवताए पण्णत्ते । ८. पुसदेवयाए ( क ) । ६. पिऊ ( जं० ७ १२९ ) । १०. सवितिदेवयाए (क, ग, घ ) । Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द समं पाहुडं (तेरसमं पा, चउद्दसमं पा०) ६४७ तट्ठदेवयाए, साती वायुदेवयाए, विसाहा इंदग्गिदेवयाए, अणुराहा मित्तदेवयाए, जेट्टा इंददेवयाए, मूले णिरइदेवयाए, पुव्वासाढा आउदेवयाए, उत्तरासाढा विस्सदेवयाए पण्णत्ते ॥ तेरसमं पाहुडपाहुडं ८४. ता कहं ते मुहुत्ताणं नामधेज्जा आहिताति वदेज्जा? ता एगमेगस्स णं अहोरत्तस्स तीसं मुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा -- गाहा रोहे सेते मित्ते, वाउ सपीए तहेव अभिचंदे। माहिद बलव बंभे, बहुसच्चे चेव ईसाणे ॥१॥ तठे" य भावियप्पा, वेसमणे वारुणे य आणंदे । विजए य वीससेणे, पायावच्चे चेव उवसमे ॥२॥ गंधव्व अग्गिवेसे, सयरिसहे आयवं च अममे य। अणवं च भोमे रिसहे, सव्वठे रक्खसे चेव ॥३॥ चउद्दसमं पाहुडपाहुडं ८५. ता कहं ते दिवसा आहिताति वदेज्जा? ता एगमेगस्स णं पक्खस्स पण्णरस दिवसा पण्णत्ता, तं जहा पडिवादिवसे बितियादिवसे जाव पण्णरसीदिवसे ॥ ८६. ता एतेसि णं पण्णरसण्हं दिवसाणं पण्णरस णामधेज्जा पण्णत्ता तं जहा पुव्वंगे सिद्धमणोरमे य तत्तो मणोहरे" चेव । जसभद्दे य जसोधरे सव्वकामसमिद्धे ॥२॥ इंदमुद्धाभिसित्ते य , सोमणस धणंजए य बोद्धव्वे । अत्थसिद्धे अभिजाते, अच्चसणे य सयंजए" ॥२॥ अग्गिवेसे उवसमे, दिवसाणं णामधेज्जाइं ॥३॥ ८७. ता कहं ते रातीओ आहिताति वदेज्जा? ता एगमेगस्स णं पक्खस्स पण्णरस रातीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पडिवाराती बितियाराती" जाव पण्णरसीराती॥ १. सुठिए (ट); सुट्ठीजे (द); स्थपीति ७. विजयसेणे (ट); विजयसेनः (च) । (च)। ८. ववसमे (क)। २. माहिंदे (ट,व)। ६. सत्यवान् (चवृ)। ३. वलवं (ट,व); पलंबे (सम० ३०१३) । १०. दिवसाणं णामधेज्जा (ट); दिवसानां नाम४. पम्हे (ट); नवमः पक्ष्मः (चव); अतः परं धेयानि व्याख्यातानीति वदेत् (चव) । समवायांगे (३०॥३) नाम्नां व्यत्ययो भेदश्च ११. मणरहः (चव)। दश्यते-सच्चे आणंदे विजए वीससेणे वाया- १२. सव्वकामसमिद्धति (ग,घ,ट,व); छठे वच्चे उवसमे ईसाणे तिठे भावियप्पा वेसमणे सव्वकामसमिद्धे (जं०७।११७) । वरुण सतरिसभ गंधव्वे अग्गिवेसायणे आतवं १३. अच्चासणे (ग.घ.टव)। आवधं तवे भूमहे रिसभे सव्वदृसिद्धे रक्खसे । १४. सयंजए चेव (जं० ७।११७) । : ५. स्रष्टा (चव)। १५. बिदियाराई (क,घ)। ६. वावरे (ट); अपरः (च) । गाहा-- Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० सूरपण्णत्ती ८८. ता एतासि णं पण्णरसण्हं रातीणं पण्णरस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-- गाहा-- उत्तमा य सुणक्खत्ता, एलावच्चा जसोधरा। सोमणसा चेव तहा, सिरिसंभूया य बोद्धव्वा ॥१॥ विजया य वेजयंति, जयंति अपराजिया य इच्छा य । समाहारा चेव तहा, तेया य तहा य अतितेया' ॥२॥ देवाणंदा राती, रयणीणं णामधेज्जाई॥३॥ पण्णरसमं पाहुडपाहुडं ८६. ता कहं ते तिही आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमा 'दुविहा तिही" पण्णत्ता, तं जहा दिवसतिही य रातीतिही य॥ ६०. ता कहं ते दिवसतिही आहितेति वदेज्जा ? ता एगमेगस्स णं पक्खस्स पण्णरसपण्णरस दिवसतिही पण्णत्ता, तं जहा णंदे भद्दे जए तुच्छे पूण्णे पक्खस्स पंचमी, पूणरविणंद्दे भद्दे जए तुच्छे पुण्णे पक्खस्स दसमी, पुणरवि - णंदे भद्दे जए तुच्छे पुण्णे पक्खस्स पण्णरसी । एवं एते तिगुणा तिहीओ सव्वेसि दिवसाणं ।।। ६१. ता कहं ते रातीतिही आहितेति वदेज्जा ? ता एगमेगस्स णं पक्खस्स पण्णरसपण्णरस रातीतिही पण्णत्ता, तं जहा - उग्गवई भोगवई जसवई सव्वसिद्धा सुहणामा, पुणरवि-उग्गवई भोगवई जसवई सव्वसिद्धा सुहणामा, पुणरवि-उग्गवई भोगवई जसवई सव्वसिद्धा सुहणामा । एवं एते तिगुणा तिहीओ सव्वासिं रातीणं ॥ सोलसमं पाहुडपाहुडं ६२. ता कहं ते गोत्ता आहिताति वदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभीई णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता मोग्गलायणसगोत्ते पण्णत्ते ॥ ६३. ता सवणे णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता संखायणसगोत्ते पण्णत्ते ॥ ६४. ता धणिट्ठा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता अग्गभावसगोत्ते' पण्णत्ते ॥ ६५. ता सतभिसया णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता कण्णिलायणसगोत्ते पण्णत्ते ॥ ६६. ता पुवापोटुवया णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता जाउकण्णियसगोत्ते पण्णत्ते ।। ६७. ता उत्तरापोट्टवया णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता धणंजयसगोत्ते पण्णत्ते ।। १८. ता रेवती णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता पुस्सायणसगोत्ते पण्णत्ते॥ १६. ता अस्सिणी णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता अस्सायणसगोत्ते पण्णत्ते । १००. ता भरणी णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते? ता भग्गवेससगोत्ते पण्णत्ते ॥ १. अभितेया (ग,घ,व)। २.णिरती (ग,घ,ट); णिरिती (व); निरतीति पंचदश्या एव द्वितीयं नाम (जं० हीव) । ३. दुविधा तिधी (क)।। ४. एते' इति स्त्रीत्वेपि प्राप्ते पुंस्त्वनिर्देशः प्राकृतत्वात् (सूवृ)। ५. X (क,ग,घ,ट,व)। ६. समणे (ग,घ,व); अतः 'ट,ब' प्रत्योः संक्षिप्तपाठो लभ्यते-यथा-'सवणे णक्खत्ते संखायणगोत्ते धणिट्ठा अग्गिवेसायणगोत्ते पण्णत्ते' एवं सर्वत्र। ७. अग्गताव (ग,घ); अग्गिवेसायण (ट)। ८. कत्तेलायण° (ग,घ); कंडिल्लायण (ट,व); कणिल्ले (जं०७।१३२)। Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (सत्तरसमं पा०) ६४४ १०१. ता कत्तिया णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता अग्गिवेससगोत्ते' पण्णत्ते ॥ १०२. ता रोहिणी णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता गोयमसगोत्ते पण्णत्ते ॥ १०३. ता संठाणा' णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता भारद्दायसगोत्ते पण्णत्ते ॥ १०४. ता अद्दा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता लोहिच्चायणसगोत्ते पण्णत्ते ॥ १०५. ता पुणव्वसू णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता वासिट्ठसगोत्ते पण्णत्ते ॥ १०६. ता पूस्से णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता ओमज्जायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। १०७. ता अस्सेसा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता मंडव्वायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। १०८. ता महा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता पिंगायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। १०६. ता पूव्वाफग्गुणी णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता गोवल्लायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। ११०. ता उत्तराफग्गुणी णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता कासवसगोत्ते पण्णत्ते ॥ १११. ता हत्थे णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता कोसियसगोत्ते पण्णत्ते ॥ ११२. ता चित्ता णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता दब्भियायणसगोत्ते' पण्णत्ते ॥ ११३. ता साती णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता चामरच्छायणसगोत्ते पण्णत्ते ॥ ११४. ता विसाहा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता सुंगायणसगोत्ते पण्णत्ते ॥ ११५. ता अणराहा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते? ता गोलव्वायणसगोत्ते पण्णत्ते ॥ ११६. ता जेट्ठा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता तिगिच्छायणसगोत्ते पण्णत्ते ॥ ११७. ता मूले णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते? ता कच्चायणसगोत्ते पण्णत्ते ॥ ११८. ता पुव्वासाढा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता वज्झियायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। ११६. ता उत्तरासाढा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता वग्घावच्चसगोत्ते पण्णत्ते ॥ सत्तरसमं पाहुडपाहुडं १२०. ता कहं ते भोयणा आहिताहि वदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कत्तियाहिं दधिणा भोच्चा कज्जं साधेति । रोहिणीहि वसभमंसं भोच्चा कज्ज साधेति । संठाणाहि मिगमंसं भोच्चा कज्ज साधेति । अद्दाहि णवणीतेण भोच्चा कज्जं साधेति । पुणव्वसुणा घतेण भोच्चा कज्जं साधेति । पुस्सेण खीरेण भोच्चा कज्ज साधेति । अस्सेसाहिं दीवगमंसं' भोच्चा कज्जं साधेति । महाहिं कसरि भोच्चा कज्जं साधेति । पुव्वाहिं फग्गुणीहिं मेंढकमसंभोच्चा कज्जं साधेति । उत्तराहिं फग्गुणीहिं णखीमंसं" भोच्चा कज्ज साधेति । हत्थेणं वच्छाणीएण" भोच्चा कज्जं साधेति । चित्ताहि मुग्गसूवेणं १. अग्गिवेसायण' (ट,व) । ८.मिगसिरेणं (ट,व)। २. मगसिरं (ग,ट,व)। ६. मिगमसेणं (ट,व)। ३. दभियाण (ग,व); दभियण° (ट); दब्भिय° १०. असिलेसाहिं (ट,व) । (व); दब्भा (जं० ७.१३२) । ११. दीवगमसेणं (ट,व)। ४. चामरच्छगोत्ते (क,ग,घ)। १२. कसोरि (ट); कासारी (व) । ५.अंगायण (ट,व)। १३. में ढगमसेणं (ट)। ६. तिगिच्छायण' (क,ग,घ) । १४. नभीमसं (क); णखीमसेणं (ट,व) । ७ वसभमसेणं (ट,व) । १५. वच्छाणी (पण्ण. ११४०) एका वल्ली। Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती भोच्चा कज्ज साधेति । सादिणा फलाइं भोच्चा कज्जं साधेति । विसाहाहि आसित्ति याओ' [अगत्थियाओ ? ] भोच्चा कज्ज साधेति । अणुराहाहि मिस्साकूरं भोच्चा कज्जं साधेति । जेहाहि कोलट्ठिएणं भोच्चा कज्जं साधेति । मूलेणं मूलापण्णणं' भोच्चा कज्जं साधेति । पुव्वाहिं आसाढाहिं आमलगसारिएणं भोच्चा कज्ज साधेति । उत्तराहिं आसाढाहिं बिल्लेहि भोच्चा कज्ज साधेति । अभीइणा पुप्फेहि भोच्चा कज्ज साधेति । सवणेणं खीरेणं भोच्चा कज्जं साधेति । धणिवाहिं जूसेणं भोच्चा कज्ज साधेति । सतभिसयाए तुवरीओ भोच्चा कज्जं साधेति। पुव्वाहि पोट्टवयाहि कारिल्लएहि भोच्चा कज्जं साधेति । उत्तराहिं पोट्टवयाहिं वराहमंसं भोच्चा कज्ज साधेति । रेवतीहिं जलयरमंसं भोच्चा कज्ज साधति । अस्सिणीहि तित्तिरमंस भोच्चा कज्ज साधेति 'अहवा वगमंसं" । भरणीहिं तिलतंदुलगं भोच्चा कज्ज साधेति ॥ अट्ठारसमं पाहुडपाहुडं १२१. ता कहं ते चारा आहिताति वदेज्जा? तत्थ खलु इमे दुविहा चारा पण्णत्ता, तं जहा आदिच्चचारा य चंदचारा य ।। १२२. ता कहं ते चंदचारा आहिताति वदेज्जा ? ता पंच संवच्छरिए णं जुगे अभीई णक्खत्ते सत्तसट्ठिचारे चंदेण सद्धि जोयं जोएति, सवणे' णं णक्खत्ते सत्तसद्विचारे चंदेण सद्धि जोयं जोएति । एवं जाव उत्तरासाढा णक्खत्ते सत्तसट्ठिचारे चंदेण सद्धि जोयं जोएति ॥ १२३. ता कहं ते आदिच्चचारा आहिताति वदेज्जा ? ता पंच संवच्छरिए णं जुगे अभीई णक्खत्ते पंचचारे सूरेण सद्धि जोयं जोएति । एवं जाव उत्तरासाढा णक्खत्ते पंचचारे सूरेण सद्धि जोयं जोएति ॥ एगणवीसइमं पाहुडपाहुडं १२४. ता कहं ते मासा आहिताति वदेज्जा ? ता एगमेगस्स णं संवच्छरस्स बारस मासा पण्णत्ता । तेसिं च दुविहा णामधेज्जा एणत्ता, तं जहा---लोइया लोउत्तरिया य । तत्थ लोइया णामा 'इमे, तं जहा'१२.. सावणे भद्दवते अस्सोए कत्तिए मग्गसिरे पोसे माहे फग्गुणे चित्ते वइसाहे जेट्ठामूले आसाढे । लोउत्तरिया णामा 'इमे, तं जहा १४..... १. सातिणा (ट); सातीहिं (व)। ६. x (ग,घ)। २. आत्तसियाओ (4); आतिसियाओ (ट); १०. मा (क,ग,घ) । आसत्तिया (व)। ११. समणे (ग,घ,व)। ३. मूलागसाएणं (ट)। १२. ४ (क,ग घ,ट,व) । ४. आमलगसरीणेणं (ग,घ)। १३. चन्द्रप्रज्ञप्तेः 'ब' संकेतितायां प्रती पूर्णः पाठो ५. विलेवीओ (क); विलेवी (ग,घ)। विद्यते, स मूले स्वीकृतः अन्यादर्शेषु 'अस्सोए ६. पुप्फति (ट,व)। जाव आसाढे' इति संक्षिप्त पाठोस्ति । ७. समणेणं (व)। १४. ४ (क,ग,घ,ट,व) । ८. तुवरातो (ट)। Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (वीसइमं पा०) गाहा- अभिणंदे सुपइठे य, विजए पीतिवद्धण । सेज्जंसे य सिवे यावि, 'सिसिरेवि य हेमवं" ॥१॥ णवमे वसंतमासे, दसमे कुसुमसंभवे । एकादसमे णिदाहे, वणविरोही य बारसे ॥२॥ वीसइम पाहुडपाहुडं १२५. ता कति णं संवच्छरा आहिताति वदेज्जा ? ता पंच संवच्छरा आहिताति वदेज्जा, तं जहाणक्खत्तसंवच्छरे जुगसंवच्छरे पमाणसंवच्छरे लक्खणसंवच्छरे सणिच्छरसंवच्छरे ॥ १२६. ता णक्खत्तसंवच्छरे णं कतिविहे पण्णत्ते ? ता णक्खत्तसंवच्छरे णं दुवालसविहे पण्णत्ते, तं जहा-सावणे भद्दवए जाव' आसाढे । जं वा बहस्सतीमहग्गहे दुवालसहि संवच्छरेहि सव्वं णक्खत्तमंडलं समाणेति ।। १२७. ता जुगसंवच्छरे णं पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-चंदे चंदे अभिवड्डिए चंदे अभिवड्डिए चेव । ता पढमस्स णं चंदसंवच्छरस्स चउव्वीसं पव्वा पण्णत्ता। दोच्चस्स णं चंदसंवच्छरस्स चउव्वीसं पव्वा पण्णत्ता, तच्चस्स णं अभिवड्डियसंवच्छरस्स छव्वीसं पव्वा पण्णत्ता । चउत्थस्स णं चंदसंवच्छरस्स चउव्वीसं पव्वा पण्णत्ता। पंचमस्स णं अभिवडियसंवच्छरस्स छव्वीसं पव्वा पण्णत्ता । एवामेव सपुवावरेणं पंचसंवच्छरिए जुगे एगे चउवीसे पव्वसते भवतीति मक्खायं॥ १२८. ता पमाणसंवच्छरे णं पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा----णक्खत्ते चंदे उडू आइच्चे अभिवड्डिते ॥ १२६. ता लक्खणसंवच्छरे णं पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा---'णक्खत्ते चंदे उड़ आइच्चे अभिवड़िते । ता णक्खत्तसंवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा" गाहा समगं णक्खत्ता जोयं, जोएंति समगं उडू परिणमंति । णच्चुण्हं णातिसीते, बहूदओ होति णक्खत्ते ॥१॥ १. आभिणादिते (क); अभिणदे (ग,घ); आभिणंदे (ट); आभिणादिता (व); द्रष्टव्यं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते. ७।११४ सूत्रस्य पाद टिप्पणम् । २. सुपइट्ठिते (क); सुपइट्ठिय (ग,घ); पतिट्ठो (व)। ३. सिसिरे य सहेमवं (क,व, जं० ७११४) । ४. सू० १०११२४ । ५. समक्खातं (ग,घ)। ६. क (ट,व)। ७. ताणक्खत्ते णं संवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते तं जहा (क); णखत्ते चंदे उदू आइच्चे अभिवद्भिते। ता णक्खत्ते णं संवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते (ग,घ); नक्खत्ते चंदे उदू आइच्चे अभिवड्ढिते । ता नक्खत्तसंवच्छ रस्स पंचविहं लक्खणं पण्णत्तं तं (ट); ~ (व); स्थानाङ्गे (५२२१३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तौ (७१११२) च चिह्नाङ्कितः पाठो नोपलभ्यते । ८. उऊ (ट,व)। Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ ससि समग पुणिमासि, जोएंति' विसमचारिणक्खत्ता' । कडुओ बहूओ य, तमाहु संवच्छरं चंदं ॥ २ ॥ विसमं पवालिणो परिणमंति अणुऊसु दिति पुप्फफलं । वासं न सम्म वासति, तमाहु संवच्छरं कम्मं ॥३॥ पुढविदगाणं च रसं, पुप्फफलाणं च देइ आइच्चे | अप्पेणवि वासेणं, सम्मं निप्फज्जए सस्सं ॥४॥ आइच्यते यतविया, खणलवदिवसा उड़ परिणमति । 'पूरेति णिण्णथलए" तमाहु अभिवड्ढियं जाण ॥५॥ १३०. ता सणिच्छरसंवच्छरे णं अट्ठावीसइविहे पण्णत्ते, तं जहा अभीई सवणे जाव उत्तरासाढा । जं वा सणिच्छरे महग्गहे तीसाए संवच्छरेहिं सव्वं णक्खत्तमंडलं समाणेइ ॥ Pararasi पाहुडपाहुडं १३१. ता कहं ते 'जोतिसस्स दारा" आहिताति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ पंच पडवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थेगे एवमाहंसु ता कत्तियादिया णं सत्त णक्खत्ता पुग्वदारिया पण्णत्ता - एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु ता महादिया " णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता - एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु ता धणिट्ठादिया णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता - एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु-ता अस्सिणीयादिया णं सत्त क्खत्ता पुग्वदारिया पण्णत्ता - एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु --ता भरणीयादिया १. 'ससि' ति विभक्तिलोपात् शशिना । २. सगल (ठा० ५। २१३ ) । ३. जोएइ (ट, व, ठा० ५१२१३ ) । ४. क्खत्ते (ठा० ५।२१३) । ५. सास (ट) 1 ६. पूति यथलियाई ( ग, घ ); पूरेइ य थलाति (ट.व); पुरेति रेणुथलयाई ( ठा० ५।२१३) । ७. समो (ग,ध,व) | ८. जोतिसिदार (ट) । ६. कत्तियादी (क, ग, घ ) । १०. द्वयोरपिवृत्योः 'एके पुनरेवमाहुः - अनुराधा दीनि सप्तनक्षत्राणि पूर्वद्वारकाणि प्रज्ञप्तानि ' इति व्याख्यातमस्ति, अनेन ज्ञायते वृत्तिकारस्य सम्मुखे अनुराधा दिनक्षत्रविषयक पाठ एव आसीत् । इदानीन्तनेषु आदर्शषु मघादिनक्षत्रविषयकः पाठः उपलभ्यते । स्थानाङ्गवृत्ता ( पत्र ३६३ ) वपि अभयदेवसूरिणा एष एव पाठ: उल्लिखितः इह चार्थे पञ्च सूरपण्णत्ती मतानि सन्ति यत आह चन्द्रप्रज्ञप्त्याम् — 'तत्य खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ, तत्थेगे एवमाहंसु कत्तियाइया सत्त नक्खता पुत्र्वदारिया पन्नत्ता एवमन्ये मधादीन्यपरे धनिष्ठादीनि इत्तरेऽश्विान्यादीनि अपरे भरण्यादीति, दक्षिणाऽपरोत्तरद्वाराणि च सप्तसप्त यथागतं क्रमेणैव समवसेयानीति, वयं पुण एवं क्यामो अभियाइया णं सत्त नक्खत्ता पुण्यदारिया पन्नत्ता', एवं दक्षिणद्वारिकादीन्यपि क्रमेणैवेति, तदिह षष्ठं मतमाश्रित्य सूत्राणि प्रवृत्तानि । 'क' सङ्केतितादर्शे धादिविषयक पाठानन्तरं अनुराधा विषयकः पाठोपि लिखितोस्ति । एतेन ज्ञायते अस्मिन् विषये वाचनाद्वयमासीत् । प्रस्तुतप्रतौ द्वयोरपि वाचनयोः सम्मिश्रणं कृतं लिपिकारेण । वृत्त्योः 'तत्थ जेते एवमाहंसु' इत्यालापकेषु अनुराधादिनक्षत्राणां स्पष्टीकरणपाठो नोपलभ्यते, तेन आदर्शानुसारी पाठ एव स्वीकृतः । Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (एक्कवीसइमं पा०) ६५३ णं सत्त णक्ख त्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता- एगे एवमाहंसु ५। तत्थ जेते एवमाहंसु-ता कत्तियादिया णं सत्त णवखत्ता पुवदारिया पण्णत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा-कत्तिया रोहिणी 'संठाणा अद्दा पुणव्वसू पुस्सो अस्सेसा" । महादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा- महा पव्वाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता साती विसाहा । अणुराधादिया णं सत्त णक्खत्ता पच्छिमदारिया' पण्णत्ता, तं जहा -- अणुराधा जेट्ठा मूलो पुव्वासाढा उत्तरासाढा अभिई सवणो। धणिट्रादिया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा– धणिवा सतभिसया पुव्वापोट्टवया उत्तरापोट्टवया रेवती अस्सिणी भरणी। तत्थ जेते एवमाहंसु-- ता महादिया णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा—महा पुवाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता साती विसाहा । अणुराधादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा–अणुराधा जेट्ठा मूले पुब्वासाढा उत्तरासाढा अभिई सवणे । धणिट्ठादिया णं सत्त णक्खत्ता पच्छिमदारिया पण्णत्ता, तं जहा-धणिट्ठा सतभिसया पुव्वापोटुवया उत्तरापोट्टवया रेवती भस्सिणी भरणी । कत्तियादिया णं सत्त णखत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहाकत्तिया रोहिणी संठाणा अद्दा पुणव्वसू पुस्सो अस्सेसा। तत्थ जेते एवमाहंसु-ता धणिट्ठादिया णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा - धणिट्ठा सतभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तराभद्दवया रेवती अस्सिणी भरणी। कत्तियादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा—कत्तिया रोहिणी संठाणा अद्दा पुणव्वसू पुस्सो अस्सेसा। महादिया णं सत्त णक्खत्ता पच्छिमदारिया पण्णत्ता, तं जहा–महा पुवाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता साती विसाहा । अणुराधादिया णं सत्त णवखत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा- अणुराधा जेट्टा मूलो पुव्वासाढा उत्तरासाढा अभीई सवणो। तत्थ जेते एवमाहंसु-ता अस्सिणीयादिया णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा---अस्सिणी भरणी कत्तिया रोहिणी संठाणा अद्दा पुणव्वसू । पुस्सादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा-पुस्सो अस्सेसा महा पुव्वाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता । सातियादिया' णं सत्त णक्खत्ता, पच्छिमदारिया पण्णत्ता, तं जहा-साती विसाहा अणुराधा जेट्ठा मूलो पुव्वासाढा उत्तरासाढा । अभीईयादिया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा ... अभिई सवणो धणिट्ठा सतभिसया पुव्वाभवया उत्तराभवया रेवती। तत्थ जेते एवमाहंसु-ता भरणीयादिया णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा--भरणी कत्तिया रोहिणी संठाणा अद्दा पुणव्वसू पुस्सो । अस्सेसादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा -अस्सेसा महा पुव्वाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता साती। विसाहादिया णं सत्त णक्खत्ता पच्छिमदारिया पण्णत्ता, तं ३. सादीयादीया (क,ग,घ)। १.जाव अस्सिलेसा (ट,व)। २. अवरदारिया (ट,व) सर्वत्र । Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ सूरपण्णत्ती जहा---विसाहा अणुराहा जेट्ठा मूलो पुव्वासाढा उत्तरासाढा अभिई। सवणादिया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा-सवणो धणिट्ठा सतभिसया पुव्वापोट्टवया उत्तरापोट्ठवया रेवती अस्सिणी --एगे एवमाहंस । वयं पुण एवं वदामो-ता अभिईयादिया णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता, तं जहा-अभिई सवणो धणिट्ठा सतभिसया पुव्वापोटुवया उत्तरापोढवया रेवती। अस्सिणीयादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा-अस्सिणी भरणी कत्तिया रोहिणी संठाणा अद्दा पुणव्वसू । पुस्सादिया णं सत्त णक्खत्ता पच्छिमदारिया पण्णत्ता, तं जहा—पुस्सो अस्सेसा महा पुवाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता। सातियादिया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा-साती विसाहा अणुराहा जेट्ठा मूले पूव्वासाढा उत्तरासाढा ।। बावीसइमं पाहुडपाहुडं १३२. ता कहं ते णक्खत्तविजए आहितेति वदेज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतराए जाव' परिक्खेवेणं । ता जंबुद्दीवे णं दीवे दो चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, दो सूरिया तविंसु वा तवेंति वा तविस्संति वा, छप्पण्णं णक्खत्ता जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा, तं जहा-दो अभीई दो सवणा' दो धणिट्ठा दो सतभिसया दो पुव्वापोट्ठवया दो उत्तरापोट्ठवया दो रेवती दो अस्सिणी दो भरणी दो कत्तिया दो रोहिणी दो संठाणा दो अद्दा दो पुणव्वसू दो पुस्सा दो अस्सेसाओ दो महा दो पुव्वाफग्गुणी दो उत्तराफग्गुणी दो हत्था दो चित्ता दो साती दो विसाहा दो अणुराधा दो जेट्ठा दो मूला दो पुव्वासाढा दो उत्तरासाढा ।।। १३३. ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं-अत्थि णक्खत्ता जे णं णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तद्रिभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धि जोयं जोएंति । अस्थि णक्खत्ता जे णं पण्णरस महत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं तीसं मुहत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं पणयालीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति । ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ता जे णं णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तद्विभागे महत्तस्स चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ? 'कयरे णक्खत्ता जे णं पण्णरस मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता जे णं तीसं मुहत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता जे णं पणयालीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ? ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं दो अभीई। तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं पण्णरस मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं बारस, तं जहा -दो सतभिसया दो भरणी दो अद्दा दो अस्सेसा दो साती दो जेट्टा । तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं तीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं तीसं, तं जहा-दो सवणा दो धणिट्ठा दो पुव्वाभद्दवया दो रेवती दो अस्सिणी दो कत्तिया दो संठाणा दो पुस्सा दो महा दो पुव्वाफग्गुणी दो हत्था दो चित्ता दो अणुराहा दो मूला दो ३. जाव (ट,व)। १. सू० १११४ । २. दो समणा जाव दो उत्तरासाढा (व)। Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (बावीसइमं पा०) ६५५ पुव्वासाढा। तत्थ जेते णवखत्ता जे णं पणयालीसं मुहत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं बारस, तं जहा- दो उत्तरापोट्टवया दो रोहिणी दो पुणव्वसू दो उत्तराफग्गुणी दो विसाहा दो उत्तरासाढा॥ १३४. ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं-- अत्थि णवखत्ता जे णं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरिएणं सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं छ अहोरत्ते एक्कवीसं च मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति। अत्थि णक्खत्ता जे णं तेरस अहोरत्ते बारस मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं वीसं अहोरत्ते तिण्णि य मुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति । ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ता जे णं तं चेव उच्चारेयव्वं । ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं दो अभीई। तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं छ अहोरत्ते एक्कवी सद्धि जोयं जोएंति ते णं बारस, तं जहा-दो सतभिसया दो भरणी दो अद्दा दो अस्सेसा दो साती दो जेट्ठा। तत्थ जेते णवखत्ता जे णं तेरस अहोरत्ते बारस मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं तीसं, तं जहा. दो सवणा जाव दो पुव्वासाढा । तत्थ जेते णवखत्ता जे णं बीसं अहोरो तिणि य मुहुत्ते सुरेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं बारस, तं जहा-दो उत्तरापोट्ठवया जाव दो उत्तरासाढा ॥ १३५. ता कहं ते सीमाविक्खंभे आहितेति वदेज्जा ? ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं-अत्थि णक्खत्ता जेसि णं छ सता तीसा सत्तट्ठिभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो। अस्थि णक्खत्ता जेसि णं सहस्सं पंचोत्तरं सत्तट्ठिभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो। अत्थि णक्खत्ता जेसि णं दो सहस्सा दसुत्तरा सत्तट्ठिभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो। अस्थि णवखत्ता जेसि णं तिणि सहस्सा पण्णरसत्तरा सत्तदिभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो। ता एतेसिणं छप्पण्णाए णवखत्ताणं कयरे णक्खत्ता जेसि णं छ सत्ता तीसा तं चेव उच्चारेतव्वं । कयरे णक्खत्ता जेसि णं तिणि सहस्सा पण्णरसूत्तरा सत्तट्रिभागतीसतिभागाणं सीमाविवखंभो ? ता एतेसि णं छप्पण्णाए णवखत्ताणं तत्थ जेते णवखत्ता जेसि ण छ सता तीसा सत्तट्ठिभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो ते णं दो अभीई। तत्थ जेते णक्खत्ता जेसि णं सहस्सं पंचुत्तरं सत्तट्ठिभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो ते णं बारस, तं जहा --दो सतभिसया जाव' दो जेट्ठा । तत्थ जेते णक्खत्ता जेसि णं दो सहस्सा दसुत्तरा सत्तट्ठिभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो ते णं तीसं, तं जहादो सवणा जाव दो पुवासाढा । तत्थ जेते णक्खत्ता जेसि णं तिण्णि सहस्सा पण्ण रसत्तरा सत्तट्रिभागतीसतिभागाणं सीमाविवखंभो ते णं बारस, तं जहा.दो उत्तरापोट्टवया जाव' दो उत्तरासाढा॥ १. सत्तसट्ठिभागा° (ट)। २. उच्चारतव्वं जाव (ट)। ३. सू० १०११३३। ४. सू० १०११३३ । ५. सू० १०११३३ । Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती १३६. ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं- किं सया' पातो' चंदेण सद्धि जोयं जोति ? किं सया सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएति ? किं सया दुहओ पविट्टित्तापविद्वत्ता चंदे सद्धि जोयं जोएति ? ता एतेसि णं छप्पण्णाए 'णक्खत्ताणं किमपि तं जं" सया पातो चंदे सद्धि जोयं जोएति । णो सया सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएति । णो सया दुओ पविट्टित्ता-पविट्टित्ता चंदेण सद्धि जोयं जोएति । 'णण्णत्थ दोहिं अभीईहि" । 'ता एतेणं" दो अभीई 'पायंचिय- पायंचिय" ' चोत्तालीसं - चोत्तालीसं" अमावासं " जोएंति, णो चेवणं पुण्णमासिणि ॥ ६५६ १३७. तत्थ खलु इमाओ बावट्ठ पुष्णिमासिणीओ बावट्ठ अमावासाओ" पण्णत्ताओ ॥ १३८. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं पुष्णिमासिणि चंद कंसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि चंदे चरिमं बावट्ठ पुण्णिमासिणि जोएति ताओ" पुण्णिमासिट्टिणाओ " मंडलं चउव्वीसेणं सरणं छेत्ता दुबत्तीसं भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ से चंदे पढमं पुष्णिमासिणि जोएति ॥ १३. तातेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं पुष्णिमासिणि चंद कंसि देि नोएति ? ता जंसि णं देसंसि चंदे पढमं पुष्णिमासिणि जोएति ताओ" पुण्णिमासिणिद्वाणाओ " मंडलं चउवीसेणं सएणं छेत्ता दुबत्तीसं भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से चंदे दोच्च पुण्णिमासिणि जोएति ॥ १४०. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं तच्चं पुण्यमासिणि वंदे कंसि देसिं जोति ? ताजंसि णं देसंसि चंदे दोच्चं पुष्णिमासिणि जोएति ताओ पुणिमासिणिद्वाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दुबत्तीसं भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से चंदे तच्च पुण्णिमासिणि जोएति ॥ १४१. ता एसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दुवालसमं पुष्णिमासिणि चंद कंसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि चंदे तच्च पुण्णिमासिणि जोएति ताओ पुणिमा सिणिट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दोण्णि अट्ठासीए भागसए उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से चंदे १. सता (क, ग, घ ) । २. पादो ( ग, घ,व) । ३. जोति ( क ) । ४. साग ( ग, घ ) । ५. क्खत्ताणो (क, ग, घ,ट,व) । ६. ण णत्थि रातिंदियाणं वुड्ढोबुड्ढीए मुहुत्ताणं च चयोवचयेणं णण्णत्थ वा दोहिं अभिया (ट) । ७. 'ता एतेसि ण' मित्यादि ता इति तत्र - तेषां षट्पञ्चाशतो नक्षत्राणां मध्ये एते ( सूवू, चंदू) । ८. पाय पायं ( क ), आअं चित्ता आअं चित्ता (व) । ६. चोतालीसतिमं चोतालीसतिमं (व) । १०. अमावसं (क, ट); अवामंसं ( ग, घ, व ) । ११. अमावसाओ (कट) ; अवामंसातो ( ग, घ, व ) । १२. ता एते णं ( क ) ; ता तेणं ( ग, घ ) ; ताद्बो (व) । १३. द्वाणा (ग, घ ) । १४. ता तेणं ( क ) ; ता एते णं ( ट ) ; ता एते (व) प्रायः सर्वत्र । १५. द्वाणाते (क, ग, घ ) सर्वत्र । Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (बावीसइमं पा०) ६५७ दुवालसमं पुण्णिमासिणि जोएति । एवं खलु एतेणुवाएणं ताओ-ताओ पुण्णिमासिणिट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दुबत्तीसं-दुबत्तीसं भागे उवाइणावेत्ता तंसि-तंसि देसंसि तं-तं पुण्णिमासिणि चंदे जोएति ।। १४२. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चरिमं बावट्टि पुण्णिमासिणि चंदे कंसि देसंसि जोएति ? ता जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दाहिणिल्लंसि चउब्भागमंडलंसि सत्तावीसं भागे' उवाइणावेत्ता अट्ठावीसइभागे वीसहा छेत्ता अट्ठारसभागे उवाइणावेत्ता तिहिं भागेहिं दोहि य कलाहिं पच्चत्थिमिल्लं चउब्भागमंडलं असंपत्ते, एत्थ णं से चंदे चरिमं बावट्ठि पूण्णिमासिणि जोएति ॥ १४३. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं पुण्णिमासिणि सूरे कसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि सूरे चरिमं बावट्ठि पुण्णिमासिणि जोएति ताओ पूण्णिमासिणिट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता चउणवति भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से सूरे पढम पुण्णिमासिणि जोएति ॥ १४४. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं पुण्णिमासिणि' सूरे कंसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि सूरे पढमं पुणिमासिणि जोएति ताओ पुण्णिमासिणिट्राणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दो चउणवति भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से सरे दोच्चं पुण्णिमासिणि जोएति ।। १४५. ता' एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं तच्चं पुण्णिमासिणि सूरे कंसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि सूरे दोच्चं पुण्णिमासिणि जोएति ताओ पूण्णिमासिणिटाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता चउणउति भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से सरे तच्चं पुण्णिमासिणि जोएति ॥ १४६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दुवालसमं पुणिमासिणि सूरे कंसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि सूरे तच्चं पुणिमासिणि जोएति ताओ पूण्णिमासिणिट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता अट्टछत्ताले भागसए उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से सूरे दुवालसमं पुण्णिमासिणि जोएति । एवं खलु एतेणुवाएणं ताओ-ताओ पूणिमासिणिट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता चउणउति-चउणउति भागे उवाइणावेत्ता तंसितंसि देसंसि तं-तं पुण्णिमासिणि सूरे जोएति ।। १४७. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छ राणं चरिमं बावट्ठि पुण्णिमासिणि सूरे कंसि देसंसि जोएति ? ता जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता पुरथिमिल्लंसि चउभागमंडलंसि सत्तावीसं भागे उवाइणावेत्ता अट्ठावीसइभागे वीसहा छेत्ता अट्ठारसभागे उवाइणावेत्ता तिहिं भागेहिं १. चउभागे (क,ग,घ,ट,व); असौ पाठः 'सप्त- ३. अस्थ सूत्रस्प स्थाने 'ट,व' प्रत्योः पाटसंक्षो विंशतिभागानुपादाय' इति वृत्त्यनुसारेण । विद्यते एवं तच्चपि णवरं दोच्चातो। ४. अटातीसामं भागं (ग,घ,ट,व)। स्वीकृतः । ५. उवादिणावेत्ता (क,ग,घ); उवातिणावेत्ता २. पुणपुच्छा (ट) सर्वत्र। (ट,व)। Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ सूरपणी दोहि य कलाहि दाहिणिल्लं चभागमंडलं असंपत्ते, एत्थ णं से सूरे चरिमं बावट्ठ पुणिमासिणि जोएति । १४८. ता' एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं अमावासं चंदे कंसि देसंसि जोति ? ताजंसि णं देसंसि चंदे चरिमबावट्ठ अमावासं जोएति ताओ अमावासट्टाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सरणं छेत्ता दुबत्तीसं भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से चंदे पढमं अमावासं जोएति । एवं जेणेव अभिलावेणं चंदस्स पुण्णिमासिणीओ भणिताओ तेणेव ' अभिलावेणं अमावासाओवि भणितव्वाओ, तं जहा -- बिइया तइया दुवालसमी । एवं खलु एतेणुवाणं ताओ - ताओ अमावासद्वाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दुबत्तीसंदुबत्तीसं भागे उवाइणावेत्ता तंसि तंसि देसंसि तं तं अमावासं चंदे जोएति ॥ १४६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चरिमं बावट्ठ अमावासं चंदे कंसि देि जोति ? ता जंसि णं देसंसि चंदे चरिमं बावट्ठ पुष्णिमासिणि जोएति ताओ-ताओ पुणिमा सिणिट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता सोलसभागे ओसक्कइत्ता', एत्थ जं से चंदे चरिमं बावट्ठ अमावासं जोएति ॥ १५०. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं अमावासं सूरे कंसि देसंसि जोएति ? ताजंसि णं देसंसि सूरे चरिमं बावट्ठ अमावासं जोएति ताओ अमावासद्वाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सरणं छेत्ता चउणउति भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से सूरे पढमं अमावासं जोति । एवं जेणेव अभिलावेणं सूरस्स पुण्णिमासिणीओ भणियाओ तेणेव अभिलावेण अमावासाओवि भणितव्वाओ, तं जहा - बिइया' तइया दुवालसमी । एवं खलु एतेणुवाणं ताओ अमावासद्वाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता चउणउति चउणउति भागे उवाइणावेत्ता तंसि तंसि देसंसि तं तं अमावासं सूरे जोएति ॥ १५१. तातेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चरिमं बावट्ठ अमावासं पुच्छा । ता जंसि णं देसंसि सूरे चरिमं बावट्ठ पुष्णिमासिणि जोएति ताओ पुण्णिमासिणिट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता सत्तालीसं भागे ओसक्कइत्ता, एत्थ णं से सूरे चरिमं बावट्ठ अमावास जोएति ॥ १५२. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं पुष्णिमासिणि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोति ? ता धणिट्ठाहिं, धणिट्ठाणं तिणि मुहुत्ता एगुणवीसं च बावट्ठभागा मुहुत्तस्स बावट्टभागं च सत्तद्विधा छेत्ता पण्णट्ठि चुष्णिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं १. 'ट' प्रतौ अत एव संक्षिप्तपाठी विद्यते-एवं जेणेव अभिलावेणं चंदस्स पुण्णमासिणीया भणिया तेणं चेव अभिलावेणं अमावसातोवि भाणियव्वाओ तं पढमा बितिया दुवालसमा । चंद्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि संक्षिप्तपाठो व्याख्यातोस्ति - चन्द्रविषयमतिदेशमाह- एवमित्यादि एवं येनाभिलापेन चन्द्रस्य पौर्णमास्य उक्तास्तेनैवाभिलापेनामावस्यापि वक्तव्यास्तद्यथा - प्रथमा द्वितीया द्वादशी । २. अमावसं ( क ); अवामंसं ( ग, घ, व ) प्रायः सर्वत्र । ३. तेणं चेव (व) ४. तं जहा- पढमा (क,व) ; प्रथमं सूत्रं पूर्वं लिखितमस्ति इति पदं अतिरिक्तं विद्यते । ५. ओसवकावइत्ता (क, ग, घ ) 1 ६. बिदिया (क,ग,घं); वितिया (ट,व ) । अनयोरादर्शयोः ते न 'पढमा' Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५६ दसमं पाहुडं (बावीसइमं पा० ) णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुव्वाफग्गुणीहिं, पुव्वाफग्गुणीणं अट्ठावीसं मुहुत्ता अट्ठत्तीसं च बावट्टभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता दुबत्तीसं चुण्णिया भागा सेसा ॥ १५३. ता एलेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं पुष्णिमासिणि चंदे केणं णक्खत्तेणं एति ? ता उत्तराहिं पोट्ठवयाहिं, उत्तराणं पोट्ठवयाणं सत्तावीसं मुहुत्ता चोद्दस य बावद्विभागे मुहुत्तस्स बावट्ठभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता बावट्ठ चुण्णिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहि फग्गुणीहि, उत्तराणं फग्गुणीणं सत्त हुता तेत्तीसं च बावट्ठभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता एक्कतीसं चुण्णिया भागा सेसा ॥ १५४. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छरणं तच्च पुण्णिमासिणिं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोति ? ता अस्सिणीहिं, अस्सिणीणं एक्कवीसं मुहुत्ता णव य एगट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता तेवट्ठि चुण्णिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरेकेणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता चित्ताहि, चित्ताणं एक्को मुहुत्तो अट्ठावीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्टिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता तीसं चुणिया भागा सेसा ॥ १५५. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दुवालसमं पुष्णिमासिणि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहिं, उत्तराणं आसाढाणं छब्वीसं' मुहुत्ता छव्वीसं च बावट्टिभागा मुहुत्तस्स बावट्टिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता चउप्पण्णं चण्णियाभागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुणव्वसुणा, पुणव्वसुस्स सोलस ता अट्ठय बावट्टिभागा मुहुत्तस्स बावट्टिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता वीसं चुण्णिया भागा सेसा ॥ १५६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चरिमं बावट्ठ पुण्णिमासिणि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहिं, उत्तराणं आसाढाणं चरमसमए । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुस्सेणं, पुस्सस्स एगूणवीसं मुहुत्ता यालीसं च बावट्टिभागा मुहुत्तस्स बावट्टिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता तेत्तीसं चुण्णिया भागा सेसा ॥ १५७. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं अमावासं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता अस्सेसाहिं, अस्सेसाणं एक्के मुहुत्ते चत्तालीसं च बावट्टिभागा मुहुत्तस्स भागं च त्तट्ठधा छेत्ता बावट्ठ चुण्णिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरेकेणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता अस्से साहि' चेव, अस्सेसाणं * एक्को मुहुत्तो चत्तालीसं च भागा मुहुत्त बावट्टिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता बावट्ठ चुण्णिया भागा सेसा ॥ १५८. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं अमावासं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोति ? ता उत्तराहिं फग्गुणीहि, उत्तराणं फग्गुणीणं चत्तालीसं मुहुत्ता पणतीसं बावट्ठभागा मुहुत्तस्स बावट्टिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता पण्णट्ठि चुण्णिया भागा सेसा । तं समयं च १. दुवी ( ग, घ ) । २. अट्ठा (व) । ३. असिलेसाहि (ट) | ४. असिलेसाणं ( ट ) | Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० सूरपण्णत्ती णं सूरे केणं णवखत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहि चेव फग्गुणीहि, उत्तराणं फग्गुणीणं जहेव' चंदस्स ॥ १५६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं तच्चं अमावासं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता हत्थेणं, हत्थस्स चत्तारि मुहुत्ता तीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता बाट्ठि चुण्णिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता हत्थेणं चेव, हत्थस्स जहा' चंदस्स ॥ १६०. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दुवालसमं अमावासं चंदे केणं णक्खत्तेण जोएति ? ता अद्दाहिं, अद्दाणं चत्तारि मुहुत्ता दस य बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावद्विभागं च सत्तट्टिधा छेत्ता चउप्पण्णं चुणिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता अद्दाहिं चेव, अद्दाणं जहा' चंदस्स ॥ १६१. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चरिमं बावट्टि अमावासं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुणव्वसुणा, पुणव्वसुस्स बावीसं मुहुत्ता बायालीसं च बासट्ठिभागा मुहुत्तस्स सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुणव्वसुणा चेव, पुणव्वसुस्स णं जहा चंदस्स ॥ १६२. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं चंदे जोयं जोएति जंसि देसंसि, से णं इमाइं अट्ठ एगूणवीसाइं मुहुत्तसयाइं चउव्वीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता बाट्टि चुण्णिया भागे उवाइणावेत्ता पुणरवि से चंदे अण्णेणं सरिसएणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति अण्णंसि देसंसि ॥ १६३. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं चंदे जोयं जोएति जंसि देसंसि, से णं इमाइं सोलस अट्टतीसे मुहुत्तसयाई अउणापण्णं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता पण्णट्ठि चुण्णिया भागे उवाइणावेत्ता पुणर वि से चंदे तेणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति अण्णंसि देसंसि ॥ १६४. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं चंदे जोयं जोएति जंसि देसंसि, से णं इमाई 'चउप्पण्णं मुहुत्तसहस्साई५ णव य मुहुत्तसयाई उवाइणावेत्ता पुणरवि से चंदे अण्णेणं तारिसएणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति तंसि देसंसि । १६५. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं चंदे जोयं जोएति सि देसंसि, से णं इमं एगं मुहुत्तसयसहस्सं अट्ठाणउतिं च मुहुत्तसताइं उवाइणावेत्ता पुणरवि से चंदे तेणं चेव णक्खत्तेणं १. यथा चंद्रस्य विषये उक्तं तथैवात्रापि विषये (सूव)। वक्तव्यं तद्यथा --चत्तालीसं महत्ता पणतीसं च ३. सचैवम् -अदाए चत्तारि मुहत्ता दस य वावट्ठिभागा महत्तस्स बावट्ठिभागं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तटिठहा छित्ते पण्णट्ठि चण्णिया भागा सत्तट्टिहा छेत्ता चउपण्णं चुण्णिया भागा सेसा (सूवृ) । सेसा (सूवृ)। २. स चैवम -हत्थस्स चत्तारि महत्ता तीसं चेव ४. स चैवम्---'पुणव्वसुस्स बावीसं मुहत्ता छायाबावट्ठिभागा मुहुतस्स बावट्ठिभागं च सत्त- लीसं च वाव ट्ठिभागा मुहुत्तस्स सेसा (सूव)। ट्टिहा छित्ता बावट्ठी चुणिया भागा सेसा ५. चउप्पणम् हुत्तस हरसाई (क,ग,घ,ट)। Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (बावीसइमं पा०) जोयं जोएंति तंसि देसंसि ।। १६६. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं सूरे जोयं जोएति जंसि देसंसि, से णं इमाइं तिण्णि छावट्ठाइं राइंदियसयाइं उवाइणावेत्ता पुणरवि से सूरे' अण्णेणं तारिसएणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति तंसि देसंसि ॥ १६७. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं सूरे जोयं जोएति तंसि देसंसि, से णं इमाई सत्तदुवतीसं राइंदियसयाइं उवाइणावेत्ता पुणरवि से सूरे तेणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति तंसि देसंसि ॥ १६८. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं सूरे जोयं जोएति जंसि देसंसि, से णं इमाइं अट्ठारस वीसाइं राइंदियसयाइं उवाइणावेत्ता पुणरवि से सूरे अण्णेणं तारिस एणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति तंसि देसंसि ।। १६९. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं सूरे जोयं जोएति जंसि देसंसि, से णं इमाई छत्तीसं सट्टाई राइंदियसयाइं उवाइणावेत्ता पुणरवि से सूरे तेणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति तंसि देसंसि ॥ १७०. ता जया णं इमे चंदे गतिसमावण्णए भवइ तया' णं इयरेवि चंदे गतिसमावण्णए भवइ, जया णं इयरे चंदे गतिसमावण्णए भवइ तया णं इमेवि चंदे गतिसमावण्णा भवइ॥ १७१. ता जया णं इमे सूरिए गतिसमावण्णे भवइ तया णं इयरेवि सूरिए गतिसमावण्णे भवइ, जया णं इयरे सूरिए गतिसमावण्णे भवइ तया णं इमेवि सुरिए गतिसमावण्णे भवइ । एवं गहेवि णक्खत्तेवि ।। १७२. ता जया णं इमे चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ तया णं इयरेवि चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ, जया णं इयरे चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ तया णं इमेवि चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ। ‘एवं सूरेवि गहेवि णक्खत्तेवि ॥ १७३. सयावि णं चंदा जुत्ता जोगेहि सयावि णं सूरा जुत्ता जोगेहि, सयावि णं गहा जुत्ता जोगेहिं, सयावि णं णक्खत्ता जुत्ता जोगेहिं । दुहतोवि णं चंदा जुत्ता जोगेहि, दुहतोवि णं सूरा जुत्ता जोगेहि, दुहतोवि णं गहा जुत्ता जोगेहि, दुहतोवि णं णक्खत्ता जुत्ता जोगेहिं। मंडलं सयसहस्सेणं अट्ठाणउयाए सएहि छेत्ता। इच्चेस णक्खत्ते खेत्तपरिभागे णक्खत्तविजए पाहुडे आहितेत्ति बेमि ।। १. सूरिए (क,ग,घ,ट)। २. सत्तदुबत्तीसं (क); सत्तदुवत्तीसं (ग,घ); __सत्तदूवत्तीसं (ट); सत्तदुपतीसा (व) । ३. ४ (ग,घ)। ४. जता (ग,घ)। ५. तता (ग,घ)। ६. जहा चंदे एवं सूरेवि गहे णवत्ते भाणितब्बे (ब)। ७. सतावि (क,ग,घ,व); सदावि (ट)। ८. पाहुडेति (ग,घ,ट)। Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं पाहुडं १. ता कहं ते संवच्छराणादी' आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमे पंच संवच्छरा पण्णत्ता, तं जहा-चंदे चंदे अभिवड्डिते चंदे अभिवड़िते ॥ २. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमस्स चंदसंवच्छरस्स के आदी आहितेति वदेज्जा ? ता जे णं पंचमस्स अभिवड्डितसंवच्छरस्स पज्जवसाणे से णं पढमस्स चंदसंवच्छ रस्स आदी अणंतरपूरक्खडे समए॥ ता से णं किं पज्जवसिते आहितेति वदेज्जा ? ता जे णं दोच्चस्स चंदसंवच्छरस्स आदी से णं पढमस्स चंदसंवच्छरस्स पज्जवसाणे अणंतरपच्छाकडे समए । तं समयं च णं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहि आसाढाहि, उत्तराणं आसाढाणं छ दूवीसं मुहुत्ता छदुवीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता चउप्पण्णं चुण्णिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुणव्वसुणा, पुणव्वसुस्स सोलस मुहत्ता अट्ठ य बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिहा छेत्ता वीसं चुण्णिया भागा सेसा॥ ३. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चस्स चंदसंवच्छरस्स के आदी आहितेति वदेज्जा? ता जे णं पढमस्स चंदसंवच्छरस्स पज्जवसाणे से णं दोच्चस्स चंदसंवच्छरस्स आदी अणंतरपुरक्खडे समए । ता से णं किं पज्जवसिते आहितेति वदेज्जा ? ता जे णं तच्चस्स अभिवहितसंवच्छरस्स आदी. से णं दोच्चस्स चंदसंवच्छ रस्स पज्जवसाणे अणंतरपच्छाकडे समए। तं समयं च णं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुव्वाहिं आसाढाहिं, पुव्वाणं आसाढाणं सत्त मुहुत्ता तेवण्णं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता इगतालीसं चुणिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं' णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुणव्वसुणा, पुणव्वसुस्स णं बायालीसं मुहुत्ता पणतीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता सत्त चुण्णिया भागा सेसा॥ ४. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छ राणं तच्चस्स अभिवड्डितसंवच्छरस्स के आदी आहि१. संवच्छराणाई (क); संवच्छराणाती (व)। २. के पुच्छा (ट,व)। ६६२ Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं पाहुडं तेति वदेज्जा? ता जे णं दोच्चस्स चंदसंवच्छरस्स पज्जवसाणे, से णं तच्चस्स अभिवडितसंवच्छरस्स आदी अणंतरपुरक्खडे समए । ता से णं किं पज्जवसिते आहितेति वदेज्जा ? ता जे णं चउत्थस्स चंदसंवच्छरस्स आदी, से णं तच्चस्स अभिवड्डितसंवच्छ रस्स पज्जवसाणे अणंतरपच्छाकडे समए। तं समयं च णं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहि आसाढाहि, उत्तराणं आसाढाणं तेरस मुहुत्ता तेरस य वावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता सत्तावीसं चुणिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुणव्वसुणा, पुणव्वसुस्स दो महत्ता छप्पण्णं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता सट्ठी चुणिया भागा सेसा॥ ५. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चउत्थस्स चंदसंवच्छरस्स के आदी आहितेति वदेज्जा? ता जे णं तच्चस्स अभिवतिसंवच्छरस्स पज्जवसाणे, से णं चउत्थस्स चंदसंवच्छरस्स आदी अणंतरपुरक्खडे समए।। ता से णं किं पज्जवसिते आहितेति वदेज्जा ? ता जे णं चरिमस्स' अभिवतिसंवच्छरस्स आदी, से णं चउत्थस्स चंदसंवच्छरस्स पज्जवसाणे अणंतरपच्छाकडे समए। तं समयं च णं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहिं, उत्तराणं आसाढाणं ऊतालीसं मुहुत्ता चत्तालीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता चउदस चण्णिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुणव्वसुणा, पुणव्वसुस्स अउणतीसं मुहुत्ता एकवीसं बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता सीतालीसं चुणिया भागा सेसा ॥ ६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पंचमस्स अभिवड्डितसंवच्छरस्स के आदी आहितेति वदेज्जा ? ता जे णं चउत्थस्स चंदसंवच्छरस्स पज्जवसाणे, से णं पंचमस्स अभिवतिसंवच्छरस्स आदी अणंतरपुरक्खडे समए । ता से णं किं पज्जवसिते आहितेति वदेज्जा ? ता जे णं पढमस्स चंदसंवच्छरस्स आदी, से णं पंचमस्स अभिवड्डितसंवच्छरस्स पज्जवसाणे अणंतरपच्छाकडे सभए। तं समयं च णं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति? ता उत्तराहिं आसाढाहिं, उत्तराणं आसाढाण चरिमसमए। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुस्सेणं, पुस्सस्स णं एक्कवीसं मुहत्ता तेतालीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता तेत्तीसं चुण्णिया भागा सेसा ॥ १. पंचमस्स (ट)। २. सीयालीसं (ट); सीतालंस (व)। Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं पाहुड १. ता कति णं संवच्छरा आहिताति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमे पंच संवच्छरा पण्णत्ता, तं जहा णक्खत्ते चंदे उडू आदिच्चे अभिवड्ढिते || ता २. ता एतेसि णं पंचहं संवच्छराणं पढमस्स णक्खत्तसंवच्छरस्स णक्खत्तमासे तीस मुहुत्तेणं अहोरत्तेणं मिज्जमाने केवतिए राइदियग्गेणं आहितेति वज्जा ? सत्तावीस राइंदियाई एक्कवीसं च सत्तट्ठिभागा राइदियस्स राइदियग्गेणं आहित वदेज्जा | ताणं केलिए मुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता अट्ठसए एगूणवी से मुहुत्ताणं' सत्तावीसं च सत्तट्ठभागे मुहुत्तस्स मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा । ता एस णं अद्धा दुवाल - वखुत्त कडा णक्खत्ते संवच्छरे । तासे णं केवतिए राइदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता तिण्णि सत्तावीसे राइदियस तं एक्कावण्णं च सत्तट्ठिभागे राइदियस्स राइदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा । ता से णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता णव मुहुत्तसहस्साइं अट्ठय बत्तीसे मुहत्तसए छप्पण्णं च सत्तट्टिभागे मुडुत्तस्स मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा | ३. ता एतेसि णं पंचहं संवच्छरणं दोच्चस्स चंदसंवच्छरस्स चंदे मासे तीसतिमुहत्तेणं अहोरत्तणं गणिज्जमाण के वतिए राईदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता एगुणती सं इंदियाई वत्तोसं वावट्टिभागा राईदिपस्स राइदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा । तासेणं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वएज्जा ? ता अट्ठपंचासते मुहुत्ते तेत्तीस च छावद्विभागे मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा । ता एस णं अद्धा दुबालसक्खुत्तकडा चंदे संवृच्छरे । ताणं केवतिए राइदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता तिण्णि चउप्पण्णे राइदियसते दुवालसय बावट्टिभागा राइदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा । तासे णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता दस मुहुत्तसहस्साई छच्च पणवी से मुहुत्तसते पण्णासं च बावद्विभागे मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ।। ४. ता एतेसि णं पंचहं संवच्छराणं तच्चस्स उडुसंवच्छरस्स उडुमासे तीसतिमुहुत्तेणं ३. पणुवीसं ( ग घ ) १. × (क,ट,व) । २. एतेसि ( ग, घ, ट,व) । ६६४ Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं पाहुडं ६६५ अहोरत्तेणं गणिज्जमाणे केवतिए राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता ती राइंदियाणं राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा । ता से णं केवतिए मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता णव मुहुत्तसताई मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा । ता एस णं अद्धा दुवालसक्खुत्तकडा उडू संवच्छरे। ता से णं केवतिए राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता तिण्णि सठे राइंदियसते राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा।। ता से णं केवतिए मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता दस मुहुत्तसहस्साइं अट्ठ मुहुत्तसताई मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ।। ५. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चउत्थस्स आदिच्चसंवच्छरस्स आदिच्चे मासे तीसतिमहत्तेणं' अहोरत्तेणं गणिज्जमाणे केवतिए राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता तीसं राइंदियाइं अवतभागं च राइंदियस्स राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता से णं केवतिए मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता णव पण्णरस मुहत्तसए मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता एस णं अद्धा दुवालसक्खुत्तकडा आदिच्चे संवच्छ रे । ता से णं केवतिए राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता तिण्णि छावठे राइंदियसए राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता से णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता दस मुहुत्तस्स सहस्साइं णव असीते मुहत्तसते मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ॥ ६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पंचमस्स अभिवड्डितसंवच्छरस्स अभिवद्भिते मासे तोसतिमुहत्तेणं गणिज्जमाणे केवतिए राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता एकतीसं राइंदियाइं एगूणतीसं च मुहुत्ता सत्तरस बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता से णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता णव एगूणसठे मुहत्तसते सत्तरस बावडिभागे मुत्तस्स मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता एस णं अद्धा दुवालसक्खुत्तकडा अभिवड्डितसंवच्छरे । ता से णं केवतिए राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता तिण्णि तेसीते राइंदियसते एककवीसं च मुहुत्ता अट्ठारस बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता से णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता एक्कारस मुहुत्तसहस्साई पंच य एक्कारस मुहुत्तसते अट्ठारस बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा॥ ७. ता केवतियं ते नोजुगे राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता सत्तरस एक्काणउते राइंदियसते एगणवीसं च महत्ते सत्तावण्णे बावटिभागे मुहत्तस्स बावद्विभागं च सत्तद्विधा छेत्ता पणपण्णं चुणिया भागा राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता से णं केवतिए मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता तेपण्णमुहत्तसहस्साइं सत्त य अउणापण्णे' मुहुत्तसते सत्तावणं बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता १. तीसतिमुहुत्ते पुच्छा तहेव (ट,व)। २. अगुणपण्णा (ट,व) । Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६६ पणणं चुणिया भागा मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा | ८. ता केवतिए णं ते जुगप्पत्ते राईदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता अट्टतीसं राईदियाई दस य मुहुत्ता चत्तारिय बावट्टिभागे मुहुत्तस्स वावद्विभागं च सत्तद्विधा छत्ता दुवालस चुण्णिया भागा राइदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा । तासे णं केवति मुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता एक्कारस पण्णासे मुहत्तसते चत्तारिय बावट्टिभागे बावट्टिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता दुवालस चुण्णिया भागा मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा | ६. ता केवतियं जुगे राईदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता अट्ठारसतीसे राइदियस ते इंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा । तासे णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता चउप्पण्णं मुहृत्तसहस्साई णव य मुहुत्तमताई मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा । तावत बावट्ठभागमुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता चउत्तीस सयराहस्साई अतीसं च बावट्टिभागमुहुत्तसते बावट्टिभागमुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ॥ १०. ता कया' णं एते 'आदिच्चचंदा संवच्छरा समादीया' समपज्जवसिया आहितेति वदेज्जा ? ता सट्ठि एते आदिच्चमासा, बावट्ठ एते चंदमासा । एस णं अद्धा छक्खुत्तकडा दुवालसभइता तीसं एते आदिच्चसंवच्छरा एक्कतीसं एते चंदसंवच्छरा । तया णं एते आहिच्चचंदसंवच्छरा समादीया समपज्जवसिया आहिताति वदेज्जा ।। सूरपण्णत्ती ११. ता कया णं एते आदिच्चउडुचंदणक्खत्ता संवच्छरा समादीया समपज्जवसिया आहिताति वदेज्जा ? ता सट्ठि एते आदिच्चा मासा, एगट्ठि एते उडू मासा, बावट्ठ एते चंदा मासा, सर्त्ताट्ठ एते णक्खत्ता मासा । एस णं अद्धा दुवालसक्खुत्तकडा दुवाल भइता सट्ठि एते आदिच्चा संवच्छरा, एगट्ठ एते उडू संवच्छरा, बाब एते चंदा संवच्छरा, सत्तट्ठि एते खत्ता संच्छरा । तया णं एते आदिच्च उडुचंदणवत्ता संवच्छरा समादीया समपज्जवसिया आहिताति वदेज्जा | १२. ता कया णं एते अभिवडितआदिच्च उडुचं दणक्खता संदच्छरा समादीया समपज्जवसिया आहिताति वदेज्जा ? ता सत्तावण्णं मासा सत्त य अहोरता एक्कारस मुहुत्ता तेवीसं बावट्टिभागा मुहुत्तस्स एते अभिवड्डिता मासा, सहि एते आदिच्चा मासा, एग ते उडू मासा, बावट्ठ एते चंदमासा, सत्तट्ठ एते गक्खत्तमासा । एस णं अद्धा छप्पण्णसतक्खुत्तकडा दुवालसभइता सत्त सता चोताला " एते णं अभिवङ्क्षिता संवच्छरा, सत्त सता असीता एते णं आदिच्चा संवच्छरा, सत्त सता तेणउता एते गं उडू संवच्छरा, अट्ठ सता छलुत्तरा एते गं चंदा संवच्छरा अट्ठ सता एगवत्तरा एते णं णक्खत्ता अस्माभिरुभयथापि पाठः स्वीकृतः । वृत्त्योस्तु सर्वत्रापि समस्तपदं व्याख्यातमस्ति । ३. समातीता (व) । ४. सत्तापणं ( ग, घ ) | ५. चोयाला (ट) । १. कता (क, ग, घ, व ) । २. आदिच्च चंदसं वच्छरा (क, ग, घ ट ); प्रस्तुतसूत्रस्य निगमने 'क, व, घ' प्रतिष्ठापि 'आदिच्चचं दसवच्छरा' इति पाठो दृश्यते । आदर्शेषु च क्वचित् समस्तपदान्यपि लिखितानि सन्ति, Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६७ बारसमं पाहुड संवच्छरा । तया णं एते अभिवड्ढिता आदिच्च उडुचंदणक्खत्ता संवच्छरा समादीया समपज्जवसिया आहिताति वदेज्जा ॥ १३. ता यट्टयाए णं चंदे संवच्छरे तिण्णि उप्पण्णे राइदियसते दुवालस बावद्विभागे राइदियस्स आहितेति वदेज्जा । ता अधातच्चेणं चंदे संवच्छरे तिण्णि उपणे रायंदियसते पंच य मुहुत्ते पण्णासं च बावद्विभागे मुहुत्तस्स आहितेति वदेज्जा ॥ १४. तत्थ खलु इमे छ उडू पण्णत्ता, तं जहा - पाउसे वरिसारत्ते सरदे' हेमंते वसंते गिरहे ॥ १५. ता सव्वेवि णं एते चंदउडू दुवे-दुवे मासाति चउप्पण्णेणं - चउप्पण्णेणं आदाणेण गणिज्जमाणा सातिरेगाई एगुणसट्ठि एगुणसट्ठि राइंदियाई राइदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा | १६. तत्थ खलु इमे छ ओमरत्ता पण्णत्ता, तं जहा - ततिए पव्वे सत्तमे पव्वे एक्कारसमे पव्वे पण्णरसमे पव्वे एकूणवीसतिमे पव्वे तेवीसतिमे पव्वे || १७. तत्थ खलु इमे छ अइरत्ता, तं जहा - चउत्थे पव्वे अट्ठमे पव्वे बारसमे पव्वे सोलसमे पव्वे वीसतिमे पव्वे चउवीसतिमे पव्वे । गाहा --- छच्चेव य अइरत्ता, आदिच्चाओ हवंति माणाहिं ॥ छच्चेव ओमरत्ता, चंदाओ हवंति माणाहिं ॥ १ ॥ १८. तत्थ खलु इमाओ पंच वासिकीओ पंच हेमंतीओ' आउट्टीओ पण्णत्ताओ || १६. ता एसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं वासिकि आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता अभीइणा, अभीइस्स पढमसमए । तं समयं च णं सूरेकेणं णक्खत्तेणं जोएति' ? ता पूसेणं, पूसस्स एगूणवीसं मुहुत्ता तेतालीसं च बावट्टिभागा मुहुत्तस्स भागं च तद्विधा छेत्ता तेत्तीसं चुण्णिया भागा सेसा ॥ २०. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं वासिकि आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जति ? ता ठाणा, संठाणाणं 'एक्कारस मुहुत्ता ऊतालीसं च बावट्टिभागा मुहुत्तस्स बावट्टभागं च सत्तद्विधा छेत्ता तेपण्णं चुण्णिया भागा सेसा " । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुसेणं, पूसस्स णं तं चैव जं पढमाए ॥ २१. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं तच्चं वासिकि आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोति ? ता विसाहाहिं, विसाहाणं तेरस मुहुत्ता चउप्पण्णं च बावट्टिभागा मुहुत्तस्स भागं च सत्तट्ठधा छेत्ता चत्तालीसं चुण्णिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं क्खत्तेणं जोएति ? ता पूसेणं, पूसस्स तं चेव ॥ २२. ता एतेसि णं पंचहं संवच्छराणं चउत्थि वासिकि आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता रेवतीहि, रेवतीणं पणवीसं मुहुत्ता दुबत्तीसं च बावट्ठिभागा सेसा मुहुत्तस्स १. सरते (क,ग,घ) । २. हेमंताओ (ट) । ३. जोगं जोएति (ट,व) 1 ४. सो चेव अभिलावो एकारस ऋणलाभे तेपणं चेव चुण्णिया ( ट ); सो चेव अभिलावो एक्कारस ऊताली तेपणं चेव चुण्णिता (व) । Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ सूरपण्णत्ती बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता छव्वीसं चुण्णिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पूसेणं, पूसस्स तं चेव ॥ २३. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छ राणं पंचमं वासिकि आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुव्वाहि फग्गुणीहि, पुव्वाणं फग्गुणीणं बारस मुहुता सत्तालीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता तेरस चुणिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पूसेणं, पूसस्स तं चेव ॥ २४. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं हेमति आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता हत्थेणं, हत्थस्स णं पंच मुहत्ता पण्णासं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्टिभागं सत्तट्ठिधा छेत्ता सट्ठि चुणिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहि, उत्तराणं आसाढाणं चरिमसमए॥ २५. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं हेमंति आउट्रि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता सतभिसयाहि, सतभिसयाणं दुण्णि मुहुत्ता अट्ठावीसं च बावट्ठिभागा मुहत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता छत्तालीसं चुण्णिया भागा सेसा । तं समयं च णं सुरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहि, उत्तराणं आसाढाणं चरिमसमए॥ २६. ता एतेसि णं पंचण्ह संवच्छराणं तच्चं हेमति आउटि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पूसेणं, पूसस्स एगूणवीसं मुहुत्ता तेतालीसं च बावट्ठिभागा मुहत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता तेत्तीसं चुणिया भागा सेसा। तं समयं च णं सरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहि, उत्तराणं आसाढाणं चरिमसमए॥ २७. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चउत्थि' हेमंतिं आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता मूलेणं, मूलस्स छ मुहुत्ता अट्टावण्णं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावविभागं च सत्तट्टिधा छेत्ता वीसं चुण्णि या भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहि, उत्तराणं आसाढाणं चरिमसमए । २८. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पंचमि हेमति आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता कत्तियाहिं, कत्तियाणं अट्ठारस मुहत्ता छत्तीसं च बावट्ठिभागा मुहत्तस्स बावट्रिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता छ चुण्णिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहिं, उत्तराणं आसाढाणं चरिमसमए॥ २६. तत्थ खलु इमे दसविधे जोए पण्णत्ते, तं जहा - वसभाणुजाते वेणुयाणुजाते. मंचे मंचातिमंचे छत्ते छत्तातिछत्ते जुयणद्धे घणसंमद्दे पीणिते मंडुकप्पुत्ते णाम दसमे ॥ ३० ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं छत्तातिच्छत्तं जोयं चंदे कंसि देसंसि जोएति ? ता जंबुद्दीवस्स दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सतेणं छेत्ता दाहिणपुरस्थिभिल्लंसि चउभागमंडलंसि सत्तावीसं भागे उवाइणावेत्ता १. बत्तीसं (ग,घ); वृत्त्याः षड्विंशतिश्चूणिका ३. पंचम (व) । भागाः शेषाः' इति व्याख्यातमस्ति । ४. वेणुताणुजाते (व)। २. चउत्थं (ट)। Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं पाहुडं ६६६ अट्ठावीसतिभागं वीसधा छेत्ता अट्टारसभागे उवाइणावेत्ता तिहिं भागेहिं दोहिं कलाहिं दाहिणपुरथिमिल्लं चउब्भागमंडलं असंपत्ते, एत्थ णं से चंदे छत्तातिच्छत्तं जोयं जोएति, तं जहा-उप्पि चंदे, मज्झे णक्खत्ते, हेट्ठा आदिच्चे । तं समयं च णं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता चित्ताहि, चित्ताणं चरिमसमए । तेरसमं पाहुडं A १. ता कहं ते चंदमसो वड्डोबड्डी आहितेति वदेज्जा ? ता अट्ट पंचासीते मुहत्तसते तीसं च बावद्रिभागे महत्तस्स, ता दोसिणापक्खाओ अंधकारपक्खमयमाणे चंदे चत्तारि बातालसते छत्तालीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स जाइं चंदे रज्जति, तं जहा– पढमाए पढमं भागं 'बितियाए बितियं भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भागं । चरिमसमए चंदे रत्ते भवति, अवसेसे समए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवति, इयण्णं अमावासा", एत्थ णं पढमे पव्वे अमावासा, ता अंधकारपक्खो, तो णं दोसिणापक्खं अयमाणे चंदे चत्तारे बाता छतालीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स जाइं चंदे विरज्जति, तं जहा–पढमाए पढमं भाग, बितियाए बितियं भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भागं । चरिमे समए चंदे विरत्ते भवति, अवसेसमए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवति, इयण्णं पुण्णिमासिणी, एत्थ णं दोच्चे पव्वे पुण्णिमासिणी॥ २. तत्थ खलु इमाओ बावट्ठि पुण्णिमासिणीओ बावढेि अमावासाओ पण्णत्ताओ। बावर्द्वि एते कसिणा रागा, बावढेि एते कसिणा विरागा। एते चउव्वीसे पव्वसते एते चउव्वीसे कसिणरागविरागसते, जावतिया णं पंचण्हं संवच्छराणं समया एगेणं चउव्वीसेणं समयसतेणणका एवतिया परित्ता असंखेज्जा देसरागविरागसता भवंतीति मक्खाता॥ ३. ता अमावासाओ णं पुण्णिमासिणी चत्तारि बाताले मुहत्तसते छत्तालीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स आहितेति वदेज्जा। ता पुण्णिमासिणीओ णं अमावासा चत्तारि बाताले मुहुत्तसते छत्तालीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स आहितेति वदेज्जा। ता अमावासाओ णं अमावासा अट्ठपंचासीते मुहुत्तसते तीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स आहितेति वदेज्जा। ता पूणिमासिणीओ णं पुणिमासिणी अट्ठपंचासीते मुहत्तसते तीसं च बावद्विभागे मुहुत्तस्स आहितेति वदेज्जा । एस णं एवतिए चंदे मासे, एस णं एवतिए सगले जुगे । ४. ता चंदेणं अद्धमासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति ? ता चोद्दस चउब्भागमंडलाइं चरति, एगं च चउव्वीससयभागं मंडलस्स ।। १. चंदिमसो (क); चंदेमसो (ट,व) । ४. अयण्णं (ग,घ,ट)। २. पक्खं अयमीणे (क,ग,घ,व) । ५. अमावसा (क); अवामंसा (ग,घ); अवामंसं ३.बिदियाए बिदियं (क,ग,घ)। (ट,व)। Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० सूरपण्णत्ती ५. ता आदिच्चेणं अद्धमासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति? ता सोलस मंडलाइं चरति, सोलसमंडलचारी तदा अवराई खलु दुवे अट्ठकाइं जाइं चंदे केणइ असामण्णकाई सयमेव पविट्ठित्ता-पविद्वित्ता चारं चरति ।। ६. कतराइं खलु ताई दुवे अट्ठकाई जाइं चंदे केणइ असामण्णकाइं सयमेव पविद्वित्तापविट्टित्ता चारं चरति ? ता इमाइं खलु ते बे अट्ठकाइं जाइं चंदे केणइ असामण्णकाई सयमेव पविद्वित्ता-पविट्ठित्ता चारं चरति, तं जहा--णिक्खममाणे चेव अमावासंतेणं, पविसमाणे चेव पुण्णिमासितेणं। एताइं खलु दुवे अट्ठकाइं जाइं चंदे केणइ असामण्णकाई सयमेव पविट्ठित्ता-पविट्ठित्ता चारं चरति ॥ ७. ता पढमायणगते चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे सत्त अद्धमंडलाइं जाइं चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे चारं चरति ॥ ८. कतराइं खलु ताई सत्त अद्धमंडलाइं जाइं चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे चारं चरति ? इमाइं खलु ताई सत्त अद्धमंडलाइं जाइं चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे चारं चरति, तं जहा ---बितिए' अद्धमंडले चउत्थे अद्धमंडले छठे अद्धमंडले अट्टमे अद्धमंडले दसमे अद्धमंडले बारसमे अद्धमंडले चउदसमे अद्धमंडले । एताई खलु ताई र अद्धमंडलाइं जाई चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे चारं चरति ॥ ६. ता पढमायणगते चंदे उत्तराते भागाते पविसमाणे छ अद्धमंडलाइं तेरस य सत्तट्ठिभागाइं अद्धमंडलस्स जाइं चंदे उत्तराते भागाते पविसमाणे चारं चरति ।। १०. कतराइं खलु ताई छ अद्धमंडलाइं तेरस य सत्तविभागाइं अद्धमंडलस्स जाई चंदे उत्तराते भागात पविसमाणे चारं चरति ? इमाइं खलु ताई छ अद्धमंडलाइं तेरस य सत्तट्ठिभागाइं अद्धमंडलस्स जाइं चंदे उत्तराते भागाते पविसमाणे चारं चरति, तं जहाततिए अद्धमंडले पंचमे अद्धमंडले सत्तमे अद्धमंडले णवमे अद्धमंडले एक्कारसमे अद्धमंडले तेरसमे अद्धमंडले पण्णरसमस्स अद्धमंडलस्स तेरस सत्तट्ठिभागाइं। एताइं खलु ताई छ अद्धमंडलाई तेरस य सत्तट्ठिभागाइं अद्धमंडलस्स जाइं चंदे उत्तराते भागाते पविसमाणे चारं चरति । एतावता च' पढमे चंदायणे समत्ते भवति ।। ११. ताणक्खत्ते अद्धमासे नो चंदे अद्धमासे, चंदे अद्धमासे नो णक्खत्ते अदमासे। ता णक्खत्ताओ अद्धमासाओ ते चंदे चंदेणं अद्धमासेणं किमधियं चरति ? ता एगं अद्धमंडलं चरति चत्तारि य सट्रिभागाइं अद्धमंडलस्स सत्तद्विभागं एगतीसाए छेत्ता णव भागाइं॥ १२. ता दोच्चायणगते चंदे पुरत्थिमाते भागाते णिक्खममाणे सत्त चउप्पण्णाइं जाई चंदे परस्स चिण्णं पडिचरति, सत्त तेरसकाइं जाई चंदे अप्पणो चिण्णं पडिचरति । ता दोच्चायणगते चंदे पच्चत्थिमाते भागाते णिक्खममाणे छ चउप्पण्णाई जाइं चंदे परस्स चिण्णं पडिचरति, छ तेरसकाइं जाइं चंदे अप्पणो चिण्णं पडिचरति, अवरकाइं खलु दुवे तेरसकाइं जाई चंदे केणइ असामण्णकाइं सयमेव पविट्ठित्ता-पविद्वित्ता चारं चरति ।। १. बिदिए (क,ग,घ)। ३. ४ (क,ग,ट)। २. पण्णरसस्स (क); पणरसमे (ग,घ)। ४. किमयिं (ट,व)। Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं पाहुडं ६७१ १३. कतराइं खलु ताई दुवे तेरसकाई जाइं चंदे केणइ असामण्णकाई सयमेव पविद्वित्ता-पविद्वित्ता चारं चरति । इमाइं खलु ताई दुवे तेरसकाई जाइं चंदे केणइ असामण्णकाइं सयमेव पविदित्ता-पविदित्ता चारं चरति, तं जहा--सव्वब्भंतरे चेव मंडले सव्वबाहिरे चेव मंडले । एताणि खलु ताणि दुवे तेरसकाई जाइं चंदे केणइ 'असामण्णकाई सयमेव पविद्वित्ता-पविद्वित्ता" चारं चरति । एतावता च दोच्चे चंदायणे समत्ते भवति ॥ १४. ता णक्खत्ते मासे णो चंदे मासे, चंदे मासे णो णक्खत्ते मासे । ता णक्खत्ताओ मासाओ चंदे चंदेणं मासेणं किमधियं चरति ? ता दो अद्धमंडलाइं चरति अट्ठ य सत्तट्ठिभागाइं अद्धमंडलस्स सत्तट्ठिभागं च एक्कतीसधा छेत्ता अट्ठारस भागाइं । ता तच्चायणगते चंदे पच्चत्थिमाते भागाते पविसमाणे बाहिराणंतरस्स पच्चथिमिल्लस्स अद्धमंडलस्स ईतालीसं सत्तट्ठिभागाइं जाइं चंदे अप्पणो परस्स य चिण्णं पडिचरति, तेरस सत्तट्ठिभागाइं जाइं चंदे परस्स चिण्णं पडिचरति, तेरस सत्तट्ठिभागाइं जाइं चंदे अप्पणो परस्स य चिण्णं पडिचरति । एतावता व बाहिराणंतरे पच्चत्थिमिल्ले अद्धमंडले समत्ते भवति ॥ १५. ला तच्चायणगते चंदे पुरत्थिमाते भागाते पविसमाणे बाहिरतच्चस्स पुरत्थिमिल्लस्स अद्धमंडलस्स ईतालीसं सत्तट्ठिभागाइं जाइं चंदे अप्पणो परस्स य चिण्णं पडिचरति, तेरस सत्तद्विभागाइं जाइं चंदे परस्स चिण्णं पडिचरति, तेरस सत्तट्ठिभागाई जाइं चंदे अप्पणो परस्स य चिण्णं पडिचरति । एतावता च बाहिरतच्चे पुरथिमिल्ले अद्धमंडले समत्ते भवति।। १६. ता तच्चायणगते चंदे पच्चत्थिमाते भागाते पविसमाणे बाहिरचउत्थस्स पच्चत्थिमिल्लस्स अद्धमंडलस्स अट्ठ सत्तट्ठिभागाइं सत्तट्ठिभागं च एक्कतीसधा छेत्ता अट्ठारस भागाइं जाइं चंदे अप्पणो परस्स य चिण्णं पडिचरति । एतावता च बाहिरचउत्थे पच्चत्थिमिल्ले अद्धमंडले समत्ते भवति ॥ १७. एवं खलू चंदेणं मासेणं चंदे तेरस चउप्पण्णगाई दुवे तेरसकाइं जाइं चंदे परस्स चिण्णं पडिचरति, तेरस तेरसकाई जाइं चंदे अप्पणो चिण्णं पडिचरति, दुवे ईतालीसकाई 'दुवे तेरसकाई" अट्ठ सत्तट्ठिभागाइं सत्तट्ठिभागं च एक्कतीसधा छेत्ता अट्ठारसभागाई जाइं चंदे अप्पणो परस्स य चिण्णं पडिचरति । 'अवराइं खलु दुवे तेरसगाइं जाइं चंदे केणइ असामण्णगाई सयमेव पविद्वित्ता-पविट्ठित्ता चारं चरति" इच्चेसा चंदमसोऽभिगमण-णिक्खमण-बुड्डि-णिवुड्डि-अणवट्ठितसंठाणसंठिती विउव्वणगिड्डिपत्ते रूवी चंदे देवे आहितेति वदेज्जा ॥ ३. चिन्हाङ्कितः पाठो वृत्त्योाख्यातो नास्ति । १. जाव (क,ग,घ)। २. x (ग,घ,ट,व)। Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउद्दसमं पाहुडं १. ता कया' ते दोसिणा बहू आहितेति वदेज्जा ? ता दोसिणापक्खे णं दोसिणा बहू आहितेति वदेज्जा॥ २. ता कहं ते दोसिणापक्खे दोसिणा बहू आहितेति वदेज्जा ? ता अंधकारपक्खातो णं दोसिणापक्खे दोसिणा बहू आहिताति वदेज्जा ॥ ३. ता कहं ते अंधकारपक्खातो दोसिणापक्खे दोसिणा बहू आहिताति वदेज्जा ? ता अंधकारपक्खाओ णं दोसिणापक्खं अयमाणे चंदे चत्तारि बाताले मुहुत्तसए छत्तालीसं च बावट्ठिभागे मुहत्तस्स जाइं चंदे विरज्जति, तं जहा—पढमाए पढमं भागं, 'बितियाए बितियं" भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भागं । एवं खलु अंधकारपक्खातो दोसिणापक्खे दोसिणा बहू आहिताति वदेज्जा ॥ ___४. ता केवतिया णं दोसिणापक्खे दोसिणा बहू आहिताति वदेज्जा ? ता परित्ता असंखेज्जा भागा ॥ ५. ता कया' ते अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ? ता अंधकारपक्खे णं अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ।। ६. ता कहं ते अंधकारपक्खे अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ? ता दोसिणापक्खातो णं अंधकारपक्खे अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ॥ ७. ता कहं ते दोसिणापक्खातो अंधकारपक्खे अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ? ता दोसिणापक्खातो णं अंधकारपक्खं अयमाणे चंदे चत्तारि बाताले मुहुत्तसते छायालीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स जाइं चंदे रज्जति, तं जहा-पढमाए पढम भाग, बितियाए बितियं भाग जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भागं । एवं खलू दोसिणापक्खातो अधकारपक्खे अधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ॥ ८. ता केवतिए णं अंधकारपक्खे अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ? ता परित्ता असंखेज्जा भागा॥ १. कता (क,ग,घ,ट,व)। ४. बिदियाए बिदियं (क,ग,घ) । २. कधं (क,ग,घ)। ५. कता (क,ग,घ)। ३. अयमीणे (क,ग,घ,व) । ६७२ Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमं पाहुडं १. ता कहं ते सिग्घगती वत्थू आहितेति वदेज्जा ? ता एतेसि णं चंदिम-सूरिय-गहणक्खत्त-तारारूवाणं चंदेहितो सूरा सिग्घगती, सूरेहितो गहा सिग्घगती, गहेहितो णक्खत्ता सिग्घगती, णक्खत्तेहितो तारा सिग्घगती। सव्वप्पगती चंदा, सव्वसिग्घगती तारा॥ २. ता एगमेगेणं मुहत्तेणं चंदे केवतियाइं भागसताइं गच्छति ? ता जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तस्स-तस्स मंडलपरिक्खेवस्स सत्तरस 'अडसट्टि भागसते'२ गच्छति, मंडलं सतसहस्सेणं अट्ठाणउतीए सतेहिं छेत्ता॥ ३. ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं सूरिए केवतियाई भागसताइं गच्छति ? ता जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तस्स-तस्स मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारस तीसे भागसते गच्छति, मंडलं सतसहस्सेणं अट्ठाणउतीए सतेहिं छेत्ता । ४. ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं णक्खत्ते केवतियाइं भागसताइं गच्छति ? ता जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तस्स-तस्स मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारस पणतीसे भागसते गच्छति, मंडलं सतसहस्सेणं अट्ठाणउतीए सतेहि छेत्ता । ५. ता जया' णं चंदं गतिसमावण्णं सूरे गतिसमावण्णे भवति, से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ? ता बावट्ठिभागे विसेसेति ॥ ६. ता जया णं चंदं गतिसमावण्णं णक्खत्ते गतिसमावण्णे भवति, से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ? ता सत्तट्ठिभागे विसेसेति ॥ ७. ता जया णं सूरं गतिसमावण्णं णक्खत्ते गतिसमावण्णे भवति, से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ? ता पंच भागे विसेसेति ॥ ८. ता जया णं चंदं गतिसमावण्णं अभीई णक्खत्ते गतिसमावण्णे पुरथिमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता णव मुहत्ते सत्तावीसं च सत्तटुिभागे मुहत्तस्स चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता विजहति विप्पजहति विगतजोई यावि भवति ॥ १. गहगण (ट)। ३. जता (क,ग,घ,व)। २. अट्ठठे भागसते (क,ग,घ); अट्ठभागसयाति ४. अभीयी (क,ग,घ); अभिति (ट,व) । (ट,व)। Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ सूरपण्णत्ती ६. ता जया णं चंदं गतिसमावण्णं सवणे' णक्खत्ते गतिसमावण्णे पुरित्थमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता तीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियदृति, अणुपरियट्टित्ता विजहति विप्पजहति विगतजोई यावि भवति । एवं एतेणं अभिलावेणं णेतव्वं-पण्णरसमुहुत्ताई, तीसइमुहुत्ताइं, पणयालीसमुहुत्ताइ भणितव्वाइं जाव उत्तरासाढा ॥ १०. ता जया णं चंदं गतिसमावण्णं गहे गतिसमावण्णे पुरत्थिमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता चंदेणं सद्धि अधाजोगं जुजति, जंजित्ता अधाजोगं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता विजहति विप्पजहति विगतजोई यावि भवति । ११. ता जया णं सरं गसिसमावण्णं अभीई णक्खत्ते गतिसमावण्णे परित्थिमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता चत्तारि अहोरत्ते छच्च महत्ते सरेण सद्धि जोयं जोएति. जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति,अणुपरियट्टित्ता विजहति विप्पजहति विगतजोई यावि भवति । एवं छ अहोरत्ता एक्कवीसं मुहुत्ता य, तेरस अहोरत्ता बारस मुहुत्ता य, वीसं अहोरत्ता तिण्णि मुहुत्ता य सव्वे भाणितव्वा जाव -- १२. जया णं सूरं गतिसमावण्णं उत्तरासाढा णक्खत्ते गतिसमावण्णे पुरथिमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता वीसं अहोरत्ते तिण्णि य मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता विजहति विप्पजहति विगतजोई यावि भवति । १३. ता जया णं सूरं गतिसमावण्णं गहे गतिसमावण्णे पुरत्थिमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता सूरेण सद्धि अधाजोयं सृजति, जुंजित्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियद्वित्ता विजहति विप्पजहति विगतजोई यावि भवति । १४. ता णक्खत्तेणं मासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति ? ता तेरस मंडलाइं चरति तेरस य सत्तट्ठिभागे मंडलस्स ॥ १५. ता णक्खत्तेणं मासेणं सूरे कति मंडलाइं चरति ? ता तेरस मंडलाइं चरति चोत्तालीसं च सत्तट्ठिभागे मंडलस्स । १६. ता णक्खत्तेणं मासेणं णक्खत्ते कति मंडलाइं चरति ? ता तेरस मंडलाइं चरति अद्धसीतालीसं च सत्तट्ठिभागे मंडलस्स ॥ १७. ता चंदेणं मासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति ? ता चोद्दस सचउभागाइं मंडलाई चरति एगं च चउव्वीससतभागं मंडलस्स ।। १८. ता चंदेणं मासेणं सूरे कति मंडलाइं चरति ? ता पण्णरस चउभागूणाई मंडलाइं चरति एगं च चउवीससतभागं मंडलस्स ॥ १६. ता चंदेणं मासेणं णक्खत्ते कति मंडलाइं चरति ? ता पण्णरस चउभागूणाई मंडलाइं चरति छच्च चउवीससतभागे मंडलस्स ।। २०. ता 'उडुणा मासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति ? ता चोद्दस मंडलाइं चरति १. समणे (ट,व)। २. सं० पा०---अणुपरियट्रिता जाव विगतजोई। ३. उडुमासेणं (क,सूवृ,चं)। Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१. पण्णरसमं पाहुडं ६७५ तीसं च एगट्ठिभागं मंडलस्स ।। सेणं सरे कति मंडलाइं चरति ? ता पण्णरस मंडलाइं चरति ।। २२. ता उडुणा मासेणं णक्खत्ते कति मंडलाइं चरति ? ता पण्णरस मंडलाइं चरति पंच य बावीससतभागे मंडलस्स ॥ २३. ता आदिच्चेणं मासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति ? ता चोद्दस मंडलाइं चरति एक्कारस य पण्णरसभागे मंडलस्स ॥ २४. ता आदिच्चेणं मासेणं सूरे कति मंडलाइं चरति ? ता पण्णरस चउभागाहिगाई मंडलाइं चरति ॥ २५. ता आदिच्चेणं मासेणं णक्खत्ते कति मंडलाइं चरति ? ता पण्ण रस चउभागाहिगाइं मंडलाइं चरति 'पंचतीसं च" वीससतभागे मंडलस्स चरति ॥ २६. ता अभिवड्डितेणं मासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति ? ता पण्णरस मंडलाई चरति तेसीति य छलसीयसतभागे मंडलस्स ॥ २७. ता अभिवड्डितेणं मासेणं सूरे कति मंडलाइं चरति ? ता सोलस मंडलाइं चरति तिहिं भागेहिं ऊणगाइं दोहि अडयालेहि सतेहि मंडलं छेत्ता ॥ २८. ता अभिवड्डितेणं मासेणं णक्खत्ते कति मंडलाइं चरति ? ता सोलस मंडलाई चरति सीतालीसएहिं भागेहिं आहियाई चोद्दसहिं अट्ठासीएहिं सतेहिं मंडलं छेत्ता । २६. ता एगमेगेणं अहोरत्तेणं चंदे कति मंडलाइं चरति ? ता एगं अद्धमंडलं चरति एक्कतीसाए भागेहिं ऊणं णवहिं पण्णरसेहिं सतेहिं अद्धमंडलं छेत्ता ॥ ३०. ता एगमेगेणं अहोरत्तेणं सूरे कति मंडलाइं चरति ? ता एगं अद्धमंडलं चरति ॥ ३१. ता एगमेगेणं अहोरत्तेणं णक्खत्ते कति मंडलाइं चरति ? ता एगं अद्धमंडलं चरति दोहिं भागेहिं अहियं सत्तहिं देवत्तीसेहिं सतेहिं अद्धमंडलं छेत्ता ॥ ३२. ता एगमेगं मंडलं चंदे कतिहि अहोरत्तेहिं चरति ? ता दोहिं अहोरत्तेहिं चरति एक्कतीसाए भागेहि अहिएहिं चउहि बातालेहि सतेहिं राइंदियं छेत्ता। ३३. ता एगमेगं मंडलं सूरे कतिहिं अहोरत्तेहिं चरति ? ता दोहिं अहोरत्तेहि चरति ॥ ३४. ता एगमेगं मंडलं णक्खत्ते कतिहिं अहोरत्तेहिं चरति ? ता दोहिं अहोरत्तेहि चरति दोहिं भागेहिं ऊणेहि तिहिं सत्तसठेहि सतेहिं राइंदियं छेत्ता॥ ३५. ता जुगेणं चंदे कति मंडलाइं चरति ? ता अट्ठ चुलसीते मंडलसते चरति ॥ ३६. ता जुगेणं सूरे कति मंडलाइं चरति ? ता णव पण्णरसमंडलसते चरति ।। ३७. ता जुगेणं णक्खत्ते कति मंडलाई चरति ? ता अट्ठारस पणतीसे दुभागमंडलसते चरति । इच्चेसा मुहुत्तगती रिक्खातिमास-राइंदिय-जुग-मंडलपविभत्ती सिग्घगती वत्थू आहितेति बेमि॥ १. पंच य (क,ट,व)। (व)। २. अधियं (क,ग,घ); अहितं (ट) । ४. रिक्खेगणमास (ट,व)। ३. सत्तठेहिं (क,ग,घ); सतठे (ट); सत्तठे ५. वदेज्जा (ट,व) । Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं पाहुर्ड १. ता कहं ते दोसिणालक्खणे आहितेति वदेज्जा ? ता 'चंदलेस्सा 'इ य" दोसिणा इय॥ २. दोसिणा इ य चंदलेस्सा इ य के अट्ठे किं लक्खणे ? ता एगढे एगलक्खणे ।। ३. ता' सूरलेस्सा इ य आतवे इ य ॥ ४. आतवे इ य सूरलेस्सा इ य के अट्ठे किं लक्खणे ? ता एगठे एगलक्खणे ॥ ५. ता अंधकारे इ य छाया इ य ॥ ६. छाया इ य अंधकारे इ य के अठे कि लक्खणे ? ता एगठे एगलक्खणे ॥ १. दीय (ग,घ)। २. दोसिणा ति या चंदलेस्सा ति आ चंदलेस्सा ति आ दोसिणा ति आ (ट,व)। ३,४. 'एतेषु पदेषु विषये प्रश्ननिर्वचनसूत्राणि भावनीयानि' इति द्वयोरपि वृत्त्योयाख्यातमस्ति । तेन सुरलेश्या अन्धकारसम्बन्धि सङ्क्षिप्तसूत्रद्वयस्य पूर्णपाठ एवं सम्भाव्यतेता कहं ते आतवलक्खणे आहितेति वदेज्जा ? ता सूरलेस्सा इ य आतवे इ य। ता कहं ते छायालक्खणे आहितेति वदेज्जा ? ता अंधकारे इय छाया इय। Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं पाहुडं १. ता कहं ते चयणोववाता' आहिताति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसू-ता अणसमयमेव चंदिमसरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति'--एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु ता अणु मुहुत्तमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति २ एवं जहेव हेट्ठा तहेव जाव ता एगे पुण एवमाहंसुता अणुओसप्पिणिउस्सप्पिणिमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति–एगे एवमाहंसु २५ वयं पुण एवं वदामो -ता चंदिमसूरिया णं देवा महिड्डिया महाजुतीया महाबला महाजसा 'महाणुभावा महासोक्खा" वरवत्थधरा वरमल्लधरा वरगंधधरा वराभरणधरा अव्वोच्छित्तिणयट्ठयाए काले अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति आहिताति वदेज्जा ॥ १. °वाते (क,ग,घ,ट,व); सूत्रे च द्वित्वेपि बहुवचनं प्राकृतत्वात् (सूव)। २. उववज्जति आहिताति वदेज्जा (ट,ब,सू, चंव) सर्वत्र । ३. सू० ६.१ । 'एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुराईदियमेव चंदिमसूरिया अन्ने चयंति अन्ने उववज्जति आहिताति वएज्जा-एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु--ता एव अणुपक्खमेव चंदिमसूरिया अन्ने चयंति अन्ने उववज्जति आहियत्ति वएज्जा-एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुमासमेव चदिमसूरिया अन्ने चयंति अन्ने उववज्जति आहियत्ति वएज्जा....एगे एवमाहंसु ५ एगे पूण एवमाहंसु---ता अणुउउमेव चंदिमसूरिया अन्ने चयंति अन्ने उववज्जति आहियत्ति वएज्जा ... एगे एवमासु ६ एवं ता अणुअयणमेव ७ ता अणुसंवच्छरमेव ८ ता अणुजुगमेव ६ ता अणुवाससयमेव १० ता अणुवाससहस्समेव ११ ता अणुवाससयसहस्समेव १२ ता अणुपुव्वमेव १३ ता अणुपुव्वस यमेव १४ ता अणुपुव्वसहस्समेव १५ ता अणुपुव्यसयसहस्समेव १६ ता अणुपलिओवममेव १७ ता अणुपलिओवमसयमेव १८ ता अणुपलिओवमसहस्समेव १६ ता अणुपलिओवमसयसहस्समेव २० ता अणुसागरोवममेव २१ ता अणुसागरोवमरायमेव २२ ता अणुसागरोवमसहस्तमेव २३ ता अणुसागरोवमसयसहस्समेव २४' (सूवृ) । ४. महासोक्खा महाणु भावा (ग,ध); महाणुभागा महासक्खा (व)। ६७७ Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं पाहुडं १. ता कहं ते उच्चत्ते आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थे एवमाहंसु ता एवं जोयणसहस्सं सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, दिवड्ढं चंदे - एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु ता दो जोयणसहस्साइं सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्डाइज्जाई चंदे एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु ता तिण्णि जोयणसहस्साइं सूरे उड्ढं उच्चतेणं, अट्ठाई चंदे - एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु -ता चत्तारि जोयणसहस्साई सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धपंचमाई चंदे एगे एवगाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु - ता पंच जोयणसहस्सा सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धछठ्ठाई चंदे एगे एवमाहंसु ५ एगे पुण एवमाहंसुता छ जोयणसहस्साइं सूरे उड्ढं उच्चत्रोणं, अद्धसत्तमाई चंदे एगे एवमाहंसु ६ एगे पुण एवमाहंसु ता सत्त जोयणसहस्साइं सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्टमाई चंदे - एगे एवमाहं ७ एगे पुण एवमाहंसु ता अट्ठ जोयणसहस्साइं सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धणवमाइं चंदे - एगे एवमाहंसु ८ एगे पुण एवमाहंसु ता णव जोयणसहस्साइं सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धदसमाई चंदे एगे एवमाहंसु εएगे पुण एवमाहंसु ता दस जोयणसहस्साइं सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धएक्कारस चंदे एगे एवमाहंसु १० एगे पुण एवमाहंसु ता एक्कारस जोयणसहस्साइं सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्घबारस चंदे ९१ एतेणं अभिलावेणं तव्वं - बारस सूरे अतेरस चंदे १२ तेरस सूरे, अचोट्स चंदे १३ चोद्दस सूरे, अद्धपण्णरस चंदे १४ पण्णरस सूरे, अद्धसोलस चंदे १५ सोलस सूरे, अद्धसत्तरस चंदे १६ सत्तरस सूरे, अद्धअट्ठारस चंदे १७ अट्ठारस सूरे, अद्धएकोणवीसं चंदे १८ एकोणवीस सूरे, अद्धवीसं चंदे १६ वीसं सूरे, अद्धएककवीस चंदे २० एक्कावीसं सूरे, अद्धबावीसं चंदे २१ बावीसं सूरे, अद्धतेवीसं चंदे २२ तेवीसं सूरे, अद्धचउवीसं चंदे २३ चउवीसं सूरे, अद्धपणवीसं चंदे - एगे एवमाहं २४ एगे पुण एवमाहंसु ता पणवीसं जोयणसहस्साइं सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धछब्वी चंदे - एगे एवमाहंसु २५ १. पणुवी सं ( गव, द ); पंचवीसं ( ट ) | २. अतः 'टव' प्रवृत्त्योश्च संक्षिप्तपाठो विद्यते --एवं एएण अभिलावेणं तिण्णि जोयणसहसाति पूरे उड् उन्चत्ते अद्भुट्ठाई चंदे, ६७८ तावता जोयणसहस्साति सूरे उड़ढं उच्चत्तेगं अट्ट एवमाइ चंदे' इत्यादि । (ग,घ ) ; ३. एक्कूणवीसं (ट, व ) । एकूणवीस तिमात Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं पाहुडं ६७६ वयं पुण एवं वदामो–ता इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ' सत्तणउतिजोयणसते उड्ढं उप्पइत्ता हेट्ठिल्ले ताराविमाणे चारं चरति, अट्ठजोयणसते उड्ढं उप्पइत्ता सूरविमाणे चारं चरति, अट्ठअसीए जोयणसए उड्ढं उप्पइत्ता चंदविमाणे चारं चरति, णव जोयणसयाई उड्ढं उप्पइत्ता उवरिल्ले ताराविमाणे चारं चरति, हेट्ठिल्लाओ ताराविमाणाओ दसजोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता सूरविमाणे चारं चरति, णउति जोयणाई उड्ढे उप्पइत्ता चंदविमाणे चारं चरति, दसोत्तरं जोयणसयं उड्ढं उप्पइत्ता उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति, ता सूरविमाणाओ असीति जोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता चंदविमाणे चारं चरति, जोयणसयं उड्ढं उप्पइत्ता उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति, ता चंदविमाणाओ णं वीसं जोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति । एवामेव सपुव्वावरेणं दसुत्तरजोयणसयं बाहल्ले तिरियमसंखेज्जे जोतिसविसए जोतिसं चारं चरति आहितेति वदेज्जा ॥ २. ता अत्थि णं चंदिमसरियाणं देवाणं हिटठपि तारारूवा अणंपि तल्लावि ? समंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? उप्पिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? ता अत्थि ।। ३. ता कहं ते चंदिमसूरियाणं देवाणं हिट्ठपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? समंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? उप्पिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? ता जहा-जहा णं तेसि णं देवाणं तव-णियम-बंभचेराई उस्सियाइं भवंति तहा-तहा' णं तेसि देवाणं एवं भवति', तं जहा - अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा । ता एवं खलु चंदिमसूरियाणं देवाणं हिट्ठपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि तहेव ॥ ४. ता एगमेगस्स णं चंदस्स देवस्स केवतिया गहा परिवारो पण्णत्तो? केवतिया णक्खत्ता परिवारो पण्णत्तो? केवतिया तारा परिवारो पण्णत्तो? ता एगमेगस्स णं चंदस्स देवस्स अट्ठासीति गहा परिवारो पण्णत्तो, अट्ठावीसं णक्खत्ता परिवारो पण्णत्तो, १. अतः परं चन्द्रप्रज्ञप्तेः 'ट,व' संकेतितयोः प्रत्योश्चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तौ च संक्षिप्तपाठः किञ्चित्पाठभेदश्चापि लभ्यते....सत्तणउते जोयणसते अबाहाए हिट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति, अट्ठजोयणसए अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति, अट्ठअसीते जोयणसते अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति, णवजोयणसए अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति, ता हेटिठलातो णं तारारूवाओ दस जोयणे अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति, तता णं असीते जोयणे अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति, एवं जहेव जीवाभिगमे तहेव णेयव्वं...-सव्वब्भंतरिल्लं चारं संठाणं पमाणं वहति सिहगति इढि तारतरं अग्गमहिसी ठिति अप्पाबयं जाव तारातो संखेज्जगुणातो। २. तधा (क,ग,घ) । ३. पण्णायति (जी० ३।६६६); पण्णायए (जं० ७।१६६)। ४. वा । जहा जहा णं तेसि देवाण तव-णियमबंभचेराइ णो ऊसियाइ भवंति, तहा तहा णं तेसिं देवाणं एवं णो पण्णायए तं जहाअणुत्ते वा तुल्लत्ते वा (ग) । ५. तहेव जाव उप्पिपि तारारूवा अणुपि तुल्लावि (ग,घ) । ६. महग्गहा (जी० ३।१०००, जं०७।१७०) । Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८० सूरपण्णत्ती साइं णव चेव सताई पंचसत्तराई तारागण कोडिकोडीणं परिवारो पण्णत्तो॥ ५. ता मंदरस्स णं पव्वयस्स केवतियं अबाहाए जोतिसे चारं चरति ? ता एक्कारस एक्कवीसे जोयणसते अबाहाए जोतिसे चारं चरति ॥ ६. ता लोयंताओ णं केवतियं अबाहाए जोतिसे पण्णत्ते ? ता एक्कारस एक्कारे जोयणसते अबाहाए जोतिसे पण्णत्ते ।। ७. ता जंबुद्दीवे णं दीवे कतरे णक्खत्ते सव्वभंतरिल्लं चारं चरति ? कतरे णक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चारं चरति ? कतरे णक्खत्ते सव्वुपरिल्ल चारं चरति ? कतरे णक्खत्ते सव्वहिडिल्लं चारं चरति ? ता अभीई णक्खत्ते सव्वभंतरिल्लं चारं चरति, मूले णक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चारं चरइ, साती णक्खत्ते सव्वुपरिल्लं चार चरति, भरणी णक्खत्ते सव्वहेदिल्लं चारं चरति ।। ८. ता चंदविमाणे णं किंसंठिते पण्णत्ते ? ता अद्धकविट्ठगसंठाणसंठिते सव्वफलिहामए अब्भुग्गयमूसियपहसिए विविहमणि रयणभत्तिचित्ते जाव पडिरूवे । एवं सूरविमाणे गहविमाणे णवत्तविमाणे ताराविमाणे॥ ६. ता चंदविनाणे णं केवतियं आयाम-विक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं, केवतियं बाहल्लेणं पण्णते? ता छप्पणे एगट्रिभागे जोषणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिरएणं, अट्ठवोसं एगद्विभागे जोयणस्स बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १०.ता सरविमाणे णं केवतियं आयाम-विक्खंभेणं पृच्छा। ता अडयालीसं एगदिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिरएणं, चउव्वीसं एगद्विभागे जोयणस्स बाहल्लेणं पण्णत्ते॥ ११. ता गहविमाणेणं पुच्छा । ता अद्धजोयणं आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिरएण कोसं बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १२. ता णखत्तविनाणे णं केवतियं पुच्छा । ता कोसं आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिरएणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं पण्णत्ते ।। १३. ता ताराविमाणे णं केवतियं पुच्छा। ता अद्धकोसं आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिरएणं, पंच धणुसयाई बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १४. ता चंदधिमाण कति देवसाहस्सीओ परिवहति ? ता सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति, तं जहा - पुरथिमेणं सोहरूवधारीणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, दाहिणेणं गयरूवधारीणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, पच्चत्थिमेणं वसहरूवधारीण चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, उत्तरेणं तुरगरूवधारीणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहति । एवं सुरविमाणंपि।। १५. ता गहविभाणं कति देवसाहस्सोओ परिवहंति ? ता अदु देवसाहस्सीओ परिवहंति, तं जहा -पुरस्थिमेणं सीहरूबधारीणं देवाणं दो देवसाहस्सीओ परिवहंति, एवं जाव १. पंचुत्तराई (ग,घ)। २. सव्वुवरिल्ले (ग घ)। ३. °फलियामए (ग,घ); फालियामए (जी. ३।१००८, जं० ७.१७६)। ४. जी० ३३१००८ । ५. °विमाणे णं (ग,घ) सर्वत्र । Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं पाहुडं ६५१ उत्तरेणं तुरगरूवधारीणं ॥ १६. ता णक्खत्तविमाणं कति देवसाहस्सीओ परिवहंति ? ता चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, तं जहा-पुरथिमेणं सीहरूवधारीणं देवाणं एक्का देवसाहस्सी परिवहति, एवं जाव उत्तरेणं तुरगरूवधारीणं देवाणं ॥ १७. ता ताराविमाणं कति देवसाहस्सीओ परिवहंति ? ता दो देवसाहस्सीओ परिवहंति, तं जहा-पुरत्थिमेणं सीहरूवधारीणं देवाणं पंच देवसता परिवहंति, एवं जाव उत्तरेणं तुरगरूवधारीणं॥ १८. तारे एतेसि णं चंदिम-सरिय-गहगण-णक्खत्त-तारारूवाणं कयरे कयरेहितो सिग्घगती वा मंदगती वा ? ता चंदेहितो सूरा सिग्घगती, सूरहितो गहा सिग्घगती, गहेहितो णक्खत्ता सिग्घगती, णक्खत्तेहिंतोतारा सिग्घगती । सव्वप्पगती चंदा, सव्वसिग्धगती तारा॥ १६. ता एतेसि णं चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्ता-तारारूवाणं कयरे कयरेहितो अप्पिड्डिया वा महिड्डिया वा? ता ताराहिंतो णक्खत्ता महिड्डिया, णक्खत्तेहितो गहा महिड्डिया, गहेहिंतो सूरा महिड्डिया, सूरेहितो चंदा महिड्डिया । सव्वप्पिड्डिया तारा, सव्वमहिड्डिया चंदा । २०. ता जंबुद्दीवे णं दीवे तारारूवस्स य तारारूवस्स य एस णं केवतिए अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? ता दुविहे अंतरे पण्णत्ते, तं जहा... वाघातिमे य निव्वाघातिमे य । तत्थ णं जेसे वाघातिमे, से णं जहण्णेणं दोण्णि छावठे जोयणसते, उक्कोसेणं बारस जोयणसहस्साइं दोण्णि बाताले जोयणसते तारारूवस्स य तारारूवस्स य अबाधाए अंतरे पण्णत्ते । तत्थ णं जेसे निव्वाघातिमे, से णं जहण्णेणं पंच धणुसताई, उक्कोसेणं अद्धजोयणं तारारूवस्स य तारारूवस्स य अबाधाए अंतरे पण्णत्ते॥ २१. ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गम हिसीओ पण्णत्ताओ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा --चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा । तत्थ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि-चत्तारि देवीसाहस्सी परिवारो पण्णत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अण्णाइं चत्तारि-चत्तारि देवीसहस्साई परिवारं विउवित्तए। एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देवीसहस्सा । सेत्तं तुडिए॥ २२. ता पभू णं चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडिसए विमाणे सभाए सुहम्भाए तुडिएणं सद्धि दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ? णो इणठे समझें ॥ २३. ता कहं ते णो पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसिया चंदडिसए विमाणे सभाए सुधम्माए तुडिएणं सद्धि दिवाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ? ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो चंदवडिसए विमाणे सभाए सुधम्माए माणवए चेतियखंभे वइरामएसु गोलवद्रसमूगएस बहवे जिणसकधा सण्णिक्खित्ता चिट्ठति, ताओ णं चंदस्स जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो अण्णेसिं च बहणं जोतिसियाणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ १. तुरगा (क,ग,घ)। २. 'ता एएसि ण' मित्यादि, शीघ्रगतिविषयं प्रश्नसूत्रं निर्वचनसूत्रं च सुगम, एतच्च पश्चादप्युक्तं (१५॥१) परं भूयो विमानवहनप्रस्तावादुक्तमित्यदोषः, अन्यद्वा कारणं बहुश्रुतेभ्योऽवगन्तव्यम् (सूव) । Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८२ सूरपण्णत्ती वंदणिज्जाओ पूयणिज्जाओ सकारणिज्जाओ सम्माणणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जूवासणिज्जाओ। एवं खलू णो पभ चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदडिसए विमाणे सभाए सुधम्माए तुडिएणं सद्धि दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए॥ पभू णं चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि चउहि सामाणियसाहस्सीहिं चउहिं अग्गमहिसीहि सपरिवाराहि, तिहिं परिसाहिं सत्तहि अणिएहि सहि अणि पाहिवईहिं सोलसहि आयरक्खदेवसाहस्सीहि अण्णेहि य बहूहि जोतिसिएहि देवेहिं देवीहि य सद्धि महयाहयणट्ट-गीय-वाइय-तंती-तलताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए, केवलं परियारणिड्डीए, णो चेव णं मेहुणवत्तियं ॥ २४. ता सूरस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिस रण्णो कति अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—सूरप्पभा आतवा अच्चिमाली पभंकरा, सेसं जहा चंदस्स, णवरं सूरवडेंसए विमाणे जाव णो चेव णं मेहुणवत्तियं ॥ २५. ता जोतिसिया णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? ता जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवम, उक्कोसेणं पलिओवम वाससतसहस्समब्भहियं ।। २६. ता जोतिसिणीणं देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णता? ता जहणणं अट्रभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहि अब्भहियं ॥ २७. ता चंदविमाणे णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता?ता जहण्णेणं चउब्भागपलिओवम, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ॥ २८. ता चंदविमाणे णं देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? ता जहण्णेणं चउब्भागपलिओवम, उक्कोसेणं अपलिओवमं पण्णासाए वापसहस्सेहिं अब्भहियं ।। २६. ता सूरविमाणे णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? ता जहण्णेणं चउभागपलियोवमं, उक्कोसेणं पलिओवर्म वाससहस्समब्भहियं ॥ ३०. ता सूरविमाणे णं देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? ता जहण्णेणं चउब्भागपलिओवमं, उवकोसेणं अपलिओम पंचहि वासस एहि अव्भहियं ॥ ३१. ता गहविमाणे णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? ता जहण्णेणं चउब्भागपलिओवम, उक्कोसेणं पलिओवमं । ३२. ता गहविमाणे णं देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? ता जहण्णणं चउब्भागपलिओवम, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं ॥ ३३. ता णक्खत्तविमाणे णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? ता जहण्णेणं चउन्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं ॥ ३४. ता णक्खत्तविमाणे णं देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? ता जहण्णणं 'अटूभागपलिओवमं, उक्कोसेणं चउब्भागपलिओवम" । ३५. ता ताराविमाणे णं देवाणं पुच्छा। ता जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवम, उक्कोसेणं १. मेधुणवत्तियं (क,ग,घ)। भागपलिओवमं (पण्ण० ४।१६८, जी० २. पलितोवमं (क,ग,घ) सर्वत्र । ३।१०३४) । ३. चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगं चउ Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगणवीस इमं पाहुडं ६८३ चउब्भागपलिओवमं ।। ३६. ता ताराविमाणे णं देवीणं पुच्छा । ता जहणणेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं साइरेगअट्ठभागपलिओवमं ॥ ३७. ता एएसि णं चंदिम-सूरिय-गह-णक्खत्त-तारारूवाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? ता चंदा य सूरा य-एते णं दोवि तुल्ला सव्वत्थोवा, णक्खत्ता संखेज्जगुणा, गहा संखेज्जगुणा, तारा संखेज्जगुणा ॥ एगूणवीसइमं पाहुडं १. ता कति णं चंदिमसूरिया सव्वलोयं ओभासंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति आहितेति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ दुवालस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु-ता एगे चंदे एगे सूरे सव्वलोयं ओभासति उज्जोएति तवेति पभासेति'.. एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु ---ता तिण्णि चंदा तिण्णि सूरा सव्वलोयं ओभासंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति- एगे एवमासु २ एगे पुण एवमाहंसु-ता आहुट्टि' चंदा आहदि सुरा सव्वलोयं ओभासंति उज्जोएंति तवति पभासंति--एगे एवमाहंसू ३ एगे पण एवमाहंसू- एतेणं अभिलावेणं णतव्वं-सत्त चंदा सत्त सूरा ४ दस चंदा दस सरा ५ बारस चंदा बारस सूरा ६ बातालीसं चंदा बातालीसं सूरा ७ बावत्तरि चंदा बावतरि सरा८ बातालीसं चंदसत बातालीस सूरसतं ६ बावत्तरं चंदसतं बावत्तरं सरसतं १० बातालीसं चंदसहस्सं बातालीसं सूरसहस्सं ११ बावत्तरं चंदसहस्सं बावत्तरं सूरसहस्सं सव्वलोयं ओभासंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति ---एगे एवमाहंसु १२ वयं पूण एवं वदामो-ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतराए जाव' परिक्खेवेणं पण्णत्ते । ता जंबुद्दीवे दोवे दो चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा १. पभासेति आहितेति वदेज्जा (ट,व); आख्यात क्रमेण ज्ञातव्याश्चतुर्थ्यां प्रतिपत्तौ प्रत्येक सप्त इति वदेत् वृत्त्योरपि सर्वत्र । चन्द्राः सूर्याश्च वक्तव्याः । पंचम्यां दश एव २. आउठ्ठि (ग,घ); आउट्टि (ट)। यावद् द्वादशभ्यां प्रतिपत्तौ द्वासप्ततं चन्द्रसहस्रं ३. अत: परं चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' संकेतितयोः प्रत्योः द्वासप्ततं सूर्यसहस्रमिति । चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तौ च भिन्ना पाठपद्धतिर्दृश्यते, ४. सू० १।१४ । ५. अतः परं सूर्य प्रज्ञप्ते: 'क,ग,घ' संकेतितेष पडिवत्तीओ ताओ चेव इहपि णेयव्वा । आदर्शषु अतिरिक्तः पाठो लभ्यते--ता ता णवरं सत्त य दस जाव ता बावत्तरिचंद- जम्बुद्दीवे २ केवतिया चंदा पभासिसु वा सहस्सं बावत्तरिसूरियसहस्सं सबलोयं ओभा- पभासिति वा पभासिस्संति वा ? केवतिया संति जाव आहितेति वदेज्जा एगे एवं । चंवृ सूरिया तविसु वा तवेंति वा तविस्संति वा ? ----या एव तृतीये प्राभते द्वादशप्रतिपत्तयः केवतिया णक्खत्ता जोयं जोइसु वा जोएंति उक्तास्ता एव इहापि ज्ञातव्याः, नवरमनेन वा जोइस्संति वा? केवतिया गहा चार Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ सूरपण्णत्ती दो सूरिया तव इंसु वा तवइंति वा तवइस्संति वा, छप्पण्णं णक्खत्ता जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा, छावत्तरि गहसतं चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा, एगं सथसहस्सं तेत्तीसं च सहस्सा णव य सया पण्णासा तारागण कोडिकोडीणं सोभं सोभैंसु वा सोति वा सोभिस्संति वा । संगहणी गाहा दो चंदा दो सूरा, णक्खत्ता खलु हवंति छप्पण्णा । छावत्तरं हसतं, जंबुद्दीवे विचारी णं ॥ १ ॥ एगं च सयसहस्सं, तेत्तीसं खलु भवे सहस्साइं । वयसा पण्णासा, तारागण कोडिकोडीणं ॥ २ ॥ २. ता जंबुद्दीवं णं दीवं लवणे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ॥ ३. ता लवणे णं समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? ता लवणसमुद्दे समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते ॥ ४. ता लवणसमुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिवखेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता दो जोयणसतसहस्साई चक्कवालविवखंभेणं, पण्णरस जोयणसयसहस्साई एक्कासीइं च सहस्साई सतं च ऊतालं किचिविसेतुणं परिववेवेगं आहितेति वदेज्जा ॥ ५. ता लवणसमुद्दे केवतिया चंदा पसासें वा एवं पुच्छा जाव केवतियाओ तारागणकोडिकोडीओ सोभि वा सोभेति वा सोभिस्संति वा ? ता लवणे णं समुद्दे चत्तारि चंदा भासु वा पभाति वा पभासिस्संति वा, चत्तारि सूरिया तवसु वा तवइति वा तवइसंति दा, बारस पक्खत्तसतं जोयं जोएंसु वा जोति वा जोइस्संति वा, तिणि बावण्णा महग्गहसता चारं चरिसु वा वरंति वा चरिस्तंति वा, दो रातग्रहस्ता सर्त्ता च सहस्सा वय सता तारागणकोडि छोडोगं सोभं सोभि वा योति वा सोभिति वा । संग्रहणी गाहा- पारस नहस्सा, एक्कासी एवं च उतायें | किचिविसेसेणणी, लवणोरण परिवखेवो ॥१॥ चत्तारि देव चंदा, चत्तारि य सूरिया लगतीए । बारस पक्खत्तरायं, गहाण विष्णुंब वावण्या ॥२॥ दो चैव सतराहा, सत्तट्ठि खलु भवे सहस्साई । णव य सता लवणजले, तारागण कोडिकोडीणं ॥ ३ ॥ चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा? केवतिया तारागण कोडिकोडीओ सोभं सोभेंसु वा सोर्भेति वा सोभिस्संति वा ? सूर्य प्रज्ञप्तिवृत्तौ नैष व्याख्यातोस्ति । प्रस्तुतसूत्रस्थ रचनाक्रमेणापि नैष उपयुक्तोस्ति । 'वयं पुण एवं वदामो' इति पाठान्तरं स्वाभिमतप्रतिपादनं भवति, न तु प्रश्नोत्तर शैली पूर्वं क्वापि प्रयुक्ता दृश्यते । चन्द्रवज्ञप्तेः 'टव' संकेतितयोः प्रत्योः एवं संक्षिप्तपाठो लभ्यते -ता जंबूदीवे णं दीवे दो चंदा पभासिसु पभाति जहा जीवाभिगमे जाव तारातो । चन्द्रवज्ञप्तिवृत्तावपि एष एव पाठो व्याख्यातोस्ति । १. 'ण' इति वाक्यालङ्कारे (वृ ) । २. उगुतालं ( क ) । Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीस मं पाहु ६८५ ६. ता' लवणसमुद्दं धायईसंडे' णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंटिते तहेव जाव णो विसमचक्कवालसंठिते ॥ ७. धायसंडे णं दीवे केवतियं चवकवाल विवखंभेणं केवतियं परिवखेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता चत्तारि जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं ईतालीसं जोयणसतसहस्साइं दस य सहस्साई व य एगट्ठे जोयणसते किंचिविसेसूणे परिवखेवेणं आहितेति वदेज्जा | ८. धायसंडे दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव । ता धायईसंडे णं दीवे बारस चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, बारस सूरिया तवेंसु वा तवेंति वा तविस्संति वा, तिणि छत्तीसा णक्खत्तसया जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा, एगं छप्पणं महग्गहसहस्सं चारं चरिंसु वा चरिति वा चरिस्संति वा अट्ठेव सय सहस्सा तिष्णि सहस्साइं सत्त य सयाई तारागणकोडिकोडीणं सोभं सोभैंसु वा सोर्भेति वा सोभि स्संति वा ॥ संगहणी गाहा धायसंडपरिरओ, ईताल दसुत्तरा सतसहस्सा । व याय एगट्टा, किंचिविसेसेण परिहीणा ॥ १ ॥ चडवीसं ससिरविणो णक्खत्तराया य तिणि छत्तीसा । एगं च गहसहस्सं, छप्पण्णं धायईसंडे ॥२॥ अट्ठेव सतसहस्सा, तिष्णि सहस्साइं सत्त य सताई | धायसंडे दीवे, तारागणकोडिकोडीणं ॥३॥ ६. ता धायसंडं णं दीवे कालोए णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते जाव णो विसमचक्कवालसंठाणसंठिते ॥ १०. ता कालोए णं समुद्दे केवतियं चक्कवाल विवखंभेणं केवतियं परिवखेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता कालोए णं समुद्दे अट्ठ जोयणसतसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते, एक्काणउति जोयणसतसहस्साई सतरि च सहस्साइं छच्च पंचुत्तरे जोयणसते किचिविसे साहिए परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा | ११. ता कालोए णं समुद्दे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा । ता कालोए समुद्दे बातालीसं चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, बातालीसं सूरिया तवेंसु वा वेंति वा विस्संति वा, एक्कारस बावत्तरा णक्खत्तसया जोयं जोइंसु वा जोएंति वा १. अत: चंद्रप्रज्ञप्तेः 'ट,व' संकेतितप्रत्योः भिन्ना ४. अतः चन्द्रप्रज्ञप्तेः ट, व संकेतितप्रत्योः भिन्ना वाचना विद्यते - ता लवणसमुद्दे ता धायति- वाचना विद्यते - धायति संडेणं दीवे कालोए संडे णामं दीवे बट्टे वलयाकारसंठिते जाव चिट्ठति । ता धायतिसंडे णं दीवे किं समचक्कसंठित एवं विसंभो परिक्खेवो जोतिसं जहा जीवाभिगमे जाव तारातो । चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एष एव व्याख्यातोस्ति । २. धातकीसंडे ( क ) 1 समुद्दे वट्टे वलया जाव चिट्ठति । ता कालोए णं समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते विसम एवं विक्खंभो परिवखेवो जोतिसं च भाणि यव्वं जावतारातो । चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एष एव व्याख्यातास्ति । ५. सू० १६ २, ३ । ३. सू० १९।२,३ । Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ सूरपण्णत्ती जोइस्संति वा, तिण्णि सहस्सा छच्च छण्णउया महग्गहसया चारं चरिंसु वा चरेंति वा चरिस्संति वा, अट्ठावीसं सयसहस्साइं बारस य सहस्साइं णव य सताइं पण्णासा तारागणकोडिकोडीओ सोभं सोभेसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा । संगहणी गाहा-- एक्काणउति सतराइं, सहस्साई परिरओ' तस्स । अहियाइं छच्च पंचुत्तराई कालोदधिवरस्स ॥१॥ बातालीसं चंदा, बातालीसं च दिणकरा दित्ता। कालोदहिमि एते, चरंति संबद्धलेसागा ॥२॥ णवखत्तसहस्सं एगमेव छावत्तरं च सयमण्णं । छच्च सया छण्णउया, महग्गहा तिण्णि य सहस्सा ॥३॥ अट्ठावीसं कालोदहिमि बारस य सहस्साई। णव य सता पण्णासा, तारागणकोडिकोडीणं ॥४॥ १२. ता' कालोयं णं ससुदं पुक्खरवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ।।। १३. पुक्खरवरे णं दीवे कि समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? ता समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते ॥ १४. ता पुक्खरवरे णं दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं ? ता सोलस जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बाणउति च सतसहस्साइं अउणाणउति च सहस्साइं अट्ठचउणउते जोयणसते परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा॥ १५. ता पुक्खरवरे णं दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव । ता चोतालं चंदसतं पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, चोतालं सूरियाणं सतं तवइंसु वा तवइंति वा तवइस्संति वा, चत्तारि सहस्साई बत्तीसं च णक्खत्ता जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा, बारस सहस्साई छच्च बावत्तरा महग्गहसया चारं चरिंसू वा चरेंति वा चरिस्संति वा, छण्णउति सयसहस्साई चोयालीसं सहस्साइं चत्तारि य सयाइं तारागणकोडिकोडोणं सोभं सोभिंसु वा सोभेति वा सोभिस्संति वा ॥ संगहणी गाहा-कोडी बाणउती खलु, अउणाणउतिं भवे सहस्साइं। अट्ठसता चउणउता, य परिरओ पोक्खरवरस्स ॥१॥ १. परिरतो (क,ग,घ)। २. सयसहस्साइ (क); मूलपाठे 'अट्ठावीसं सयसहस्साइ बारस य सहस्साई इत्युपलभ्यते, किन्तु प्रस्तुतगाथायां 'बारस य सयसहस्साइ" मूलपाठपद्धत्या नास्ति समीचीनम् अथवा छन्दोदृष्टया एवं संक्षेपीकरणं स्यात् । ३. अत: चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' संकेतितप्रत्योः भिन्ना वाचना विद्यते-ता कालोयं णं समुद्दे पुक्खरवरे णं दीवे वट्टे वलया जाव चिट्ठति । ता पुक्खरवरे णं दीवे कि समचक्कवाल विक्ख भो परिक्खेवो जोतिसं जाव तारातो। चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एष एव पाठो व्याख्यातोस्ति । ४. अउणावणं (ग,घ) । ५. तधेव (क) । Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसइमं पाहुडं ६८७ चोतालं चंदसतं, चोतालं चेव सूरियाण सतं । पोक्खरवरदीवम्मि, चरंति एते पभासंता ॥२।। चत्तारि सहस्साइं, बत्तीसं चेव हुंति णक्खत्ता। छच्च सता बावत्तर, महग्गहा बारह सहस्सा ॥३॥ छण्णउति सयसहस्सा, चोत्तालीसं खलु भवे सहस्साई। चत्तारि य सता खलु, तारागणकोडिकोडीणं ॥४॥ १६. ता पुक्खरवरस्स णं दीवस्स बहुमज्झदेसभाए' माणुसुत्तरे णामं पव्वते पण्णत्तेवट्टे वलयागारसंठाणसंठिते जे णं पुक्खरवरं दीवं दुधा विभयमाणे-विभयमाणे चिट्ठति, तं जहा -अभितरपुक्खरद्धं च बाहिरपुक्खरद्धं च ॥ १७. ता अभितरपुक्खरद्धे णं कि समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? ता समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते । १८. ता अभितरपुक्खरद्धे णं केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता अट्ट जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, एक्का जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साई तीसं च सहस्साइंदो अउणापण्णे जोयणसते परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा॥ १६. ता अभितरपुक्खरद्धे णं केवतिया चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा? केवतिया सूरा तर्विसु वा पुच्छा। ता बावतरि चंदा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, बावत्तरि सूरिया तवइंसु वा तवइंति वा तवइस्संति वा, दोण्णि सोला णक्खत्तसहस्सा जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा, छ महग्गहसहस्सा तिण्णि य [सया?] छत्तीसा चारं चरेंसु वा चरेंति वा चरिस्संति वा, अडतालीससतसहस्सा बावीसं च सहस्सा दोण्णि य सता तारागणकोडिकोडीणं सोभं सोभिंसु वा सोभेति वा सोभिस्संति वा ॥ २०. ता समयक्खेत्ते णं केवतियं आयाम-विवखंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता पणतालीसं जोयणसयसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साइं [तीसं च सहस्साइं ?"] दोण्णि य अउणापण्णे जोयणसते परिक्खेवेणं १. चक्कवालविक्खंभस्स बहुमज्झदेसभागे एत्थ णं परिक्खेवो। चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एष एव (ट,व)। ५. कोष्ठकवतिपाठः आदर्शष त्रटितो वर्तते । २. अतः चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' संकेतितप्रत्योः भिन्ना पाठो व्याख्यातोस्ति ।। वाचना विद्यते .....अभितरपुक्खरद्धे णं कि वृत्तौ एष व्याख्यातोस्ति-एका योजनकोटी समचक्कवालसंटिते, एवं विक्खंभो परिक्खेवो द्वाचत्वारिंशत् - द्विचत्वारिंशच्छतसहस्राधिका जोतिसं जाव तारातो। चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि त्रिंशत्सहस्राणि द्वे शते, एकोनपञ्चाशदधिके एष एव पाठो व्याख्यातोस्ति । एतावत्प्रमाणो मानुषक्षेत्रस्य परिरयः । जीवा३. अस्य अपेक्षाय द्रष्टव्यम्--जीवाजीवाभिगमे जीवाभिगमे (३१८३५) पि वृत्तिसंवादिपाठो ३१८३४ । लभ्यते-- एगा जोयणकोडी बायालीसं च ४. अत: चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' संकेतितप्रत्योः भिन्ना सयसहस्साई तीसं च सहस्साइं दोण्णि य वाचना विद्यते- ता मणुस्सखेत्तं केवतियं एऊणपण्णा जोयणसते किंचिविसेसाहिए आयाम-विक्खंभेणं केवतियं एवं विक्खं भो परिक्खेवेणं पण्णत्ते । Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ सूरपण्णत्ती आहितेति वदेज्जा॥ २१. ता समयक्खेत्ते णं केवतिया चंदा पभाससु वा पुच्छा तहेव । ता बत्तीसं चंदसतं पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, बत्तीसं सूरियाणं सतं तवइंसु वा तवइंति वा तवइस्संति वा, तिण्णि सहस्सा छच्च छण्णउता णवखत्तसता जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा, एक्कारस सहस्सा छच्च सोलस महग्गहसता चारं चरिंसु वा चरेंति वा चरिस्संति वा, अट्ठासीति सतसहस्साइं चत्तालीसं च सहस्सा सत्त य सया तारागणकोडिकोडीणं सोभं सोभिंसु वा सोभेति वा सोभिस्संति वा । संगहणी गाहा-- अद्वैव सतसहस्सा, अभितरपुक्खरस्स विक्खंभो। पणयालसयसहस्सा, माणुसखेत्तस्स विक्खंभो ॥१॥ कोडी बातालीसं', 'सहस्सा दो सता अउणपण्णासा। माणुसखेत्तपरिरओ, एमेव य पुक्खरद्धस्स ॥२॥ बावत्तरि च चंदा, बावत्तरिमेव दिणकरा दित्ता। पुक्खरवरदीवड्ढे, चरंति एते पभासेंता ॥३॥ तिण्णि सता छत्तीसा, छच्च सहस्सा महग्गहाणं तु। णक्खत्ताणं तु भवे, सोलाई दुवे सहस्साइं ॥४॥ अडयालसयसहस्सा, बावीसं खलु भवे सहस्साई । दो य सय पूक्खरद्धे, तारागणकोडिकोडीणं ॥५॥ बत्तीसं चंदसतं, बत्तीसं चेव सूरियाण सतं । सयलं माणुसलोयं, चरंति एते पभासेंता ॥६॥ एक्कारस य सहस्सा, छप्पि य सोला महग्गहाणं तु । छच्च सता छण्ण उया, णक्खत्ता तिप्णि य सहस्सा ॥७॥ 'अट्टासीतिं चत्ताइं, सयसहस्साइं मणयलोगंमि। सत्त य सया अणूणा, तारागणकोडीकोडीणं ॥८॥ २२. एसो तारापिंडो, सव्वसमासेण मणुयलोयंमि । बहिया पुण ताराओ, जिणेहि भणिया असंखेज्जा ॥१॥ एवतियं तारग्गं, जं भणियं माणुसंमि लोगंमि । चारं कलंबुयापुप्फसंठितं जोइसं चरति ॥२॥ १. बादालीसा (क); एषा गाथा संक्षिप्ता वर्तते 'बातालीसं स स्सा' एते द्वे अपि पदे केवलं संकेतं कुर्वतः । वस्तुत: 'बातालीसं सयसहस्साई तीसं सहस्साई' इति पाठो युज्यते। २. सहस्स दुसया (ग,घ)। ३. अडसीइ सय सहस्सा, चत्तालीससहस्स मणुय लोगंमि (जी० ३१८३७ पादटिप्पणम्) । ४. अतः चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' संकेतितप्रत्योः भिन्ना वाचना विद्यते -- जोतिसं गाहातो य जाव एगससिपरिवारो तारागणकोडिकोडीणं । चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एष एव पाठो व्याख्यातोस्ति । Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसइमं पाहुडं ६८६ रविससिगहणक्खत्ता, एवतिया आहिता मणुयलोए । जेसिं णामागोत्तं, ण पागता पण्णवेहिति ॥३॥ छावट्टि पिडगाई, चंदादिच्चाण मणुयलोयम्मि । दो चंदा दो सूरा', हुंति एक्केक्कए पिडए ॥४॥ छावढि पिडगाई, णक्खत्ताणं तु मणुयलोयम्मि । छप्पण्णं णक्खत्ता, हुंति एक्केक्कए पिडए ॥५॥ छावढेि पिडगाई, महग्गहाणं तु मणुयलोयंमि । छावत्तरं गहसयं, होइ एक्केक्कए पिडए ॥६॥ चत्तारि य पंतीओ, चंदादिच्चाण मणुयलोयम्मि । छावट्टि छावढेि, च होंति एक्किक्किया पंती ॥७॥ छप्पण्णं पंतीओ, णक्खत्ताणं तु मणुयलोयम्मि। छावट्टि छावट्टि, हवंति एक्के क्किया पंती ॥८॥ छावत्तरं गहाणं पंतिसयं हवइ मणुयलोयंमि । छावट्टि छावट्ठि, हवंति य एक्के क्किया पंती ॥६॥ ते मेरुमणचरंता, पदाहिणावत्तमंडला सव्वे। अणवट्टितेहिं जोगेहि, चैदा सूरा गहगणा य ॥१०॥ णक्खत्ततारगाणं, अवट्ठिता मंडला मुणेयव्वा। तेवि य पदाहिणावत्तमेव मेरुं अणुचरंति ॥११॥ रयणिकरदिणकराणं, उड्ढं च अहे य संकमो णत्थि । मंडलसंकमणं पण. सब्भतरबाहिरं तिरिए ॥१२॥ रयणिकरदिणकराणं, णक्खत्ताणं महग्गहाणं च । चारविसेसेण भवे, सुहदुक्ख विही मणुस्साणं ॥१३॥ तेसिं पविसंताणं, तावक्खेत्तं तु वड्डते णिययं । तेणेव कमेण पूणो, परिहायति णिक्खमंताणं ॥१४॥ तेसिं कलंबुयापुप्फसंठिता हुँति तावखेत्तपहा। अंतो य संकुडा बाहिं, वित्थडा चंदसूराणं ॥१५॥ केणं वड्डति चंदो, परिहाणी केण होति' चंदस्स । कालो वा जोण्हो' वा, केणणुभावेण चंदस्स ॥१६॥ किण्हं राहुविमाणं, णिच्चं चंदेण होइ अविरहियं । चउरंगुलमप्पत्तं, हिट्ठा चंदस्स तं चरति ॥१७॥ बाट्ठि-बावढेि, दिवसे-दिवसे तु सुक्कपक्खस्स। जं परिवड्डति चंदो, खवेइ तं चेव कालेणं ॥१८॥ १. सूरा य (ग,घ)। २. हंति (ग,घ)। ३. जुण्हो (क)। Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० सूरपण्णत्ती पण्णरसइभागेण य, चंदं पण्णरसमेव तं वरति । पण्णरसइभागेण य, पुणोवि तं चेव वक्कमति ॥१६॥ एवं वडति दो, परिहाणी एव' होइ चंदस्स । कालो वा जोण्हो वा, एयणुभावेण चंदस्स ।।२०।। अंतो मणुस्सखेत्ते, हवंति चारोवगा तु उववण्णा। पंचविहा जोतिसिया, चंदा सूरा गहगणा य ॥२१॥ तेण परं जे सेसा, चंदादिच्चगहतारणक्खत्ता। णत्थि गई णवि चारो, अवट्ठिता ते मुणेयव्वा ॥२२॥ एवं जंबूहीवे, दुगुणा लवणे चउग्गणा हंति। लावणगा य तिगुणिता, ससिसूरा धायईसंडे ॥२३॥ दो चंदा इह दीवे, चत्तारि य सायरे लवणतोए। धायइसंडे दीवे, बारस चंदा य सूरा य ॥२४॥ धायइसंडप्पभिति, उद्दिट्टा तिगुणिता भवे चंदा। आदिल्लचंदसहिता, अणंतराणंतरे खेत्ते ॥२५॥ रिक्खग्गहतारग्गं, दीवसमुद्दे जतिच्छसी णाउं । तस्स ससीहिं गुणितं', रिक्खग्गहतारगग्गं तु ॥२६॥ बहिता' तु माणुसणगस्स, चंदसूराणवट्ठिता जोआ'। चंदा अभीइजुत्ता, सूरा पुण हुंति पुस्सेहिं ॥२७॥ चंदातो सूरस्स य, सूरा चंदस्स अंतरं होइ। पण्णाससहस्साइं, तु जोयणाणं अणूणाई ॥२८॥ सूरस्स य सूरस्स य, ससिणो ससिणो य अंतरं होइ। बाहिं तु माणुसणगस्स, जोयणाणं सतसहस्सं ॥२६॥ सूरंतरिया चंदा, चंदंतरिया य दिणयरा दित्ता। चित्तंतरलेसागा, सुहलेसा मंदलेसा य ॥३०॥ अट्ठासीति च गहा, अट्ठावीसं च हुंति णक्खत्ता। एगससीपरिवारो, एत्तो ताराण वोच्छामि ॥३१॥ छावट्ठिसहस्साई, णव चेव सताइं पंचसतराई। एगससीपरिवारो, तारागणकोडिकोडीणं ॥३२॥ १. अत्र छन्दोदृष्टया अनुस्वारलोपो दृश्यते । २. एवणुभावेण (ग,घ)। ३. तिगुणियं (ग,घ)। ४. जीवाजीवाभिगमे (३.८३८) एषा गाथा अंतिमा विद्यते। ५. द्वयोरपि वृत्त्योः 'तेया' इति पाठो व्याख्यातो दृश्यते--- बहिश्चन्द्रसूर्याणां तेजांसि अवस्थितानि भवन्ति, किमुक्तं भवति ? सूर्याः सदैवानत्युष्णतेजसो न तु जाचिदपि मनुष्यलोके ग्रीष्मकाल इवात्युष्णतेजसः, चन्द्रमसोपि सर्वदैवानतिशीतलेश्याका नतु कदाचनाप्यन्तर्म. नुष्यक्षेत्रस्य शिशिरकाल इवातिशीततेजसः । Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसइमं पाहुडं ६६१ २३. ता' अंतो मणुस्सखेत्ते जे चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त-तारारूवा ते णं देवा कि उड्ढोववण्णगा कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा चारोववण्णगा चारट्ठितिया गतिरतिया गतिसमावण्णगा? ता ते णं देवा णो उड्डोववण्णगा णो कप्पोववण्णगा, विमाणोववण्णगा चारोववण्णगा, णो चारद्वितिया गतिरतिया गतिसमावण्णगा उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहिं 'बाहिराहिं वेउब्वियाहिं परिसाहिं महताहतणट्ट-गीय - वाइय-तंती- तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं महता उक्कुट्ठिसीहणाद-बोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वतरायं पदाहिणावत्तमंडलचारं मेरुं अणुपरियट्ठति ॥ २४. ता तेसि णं देवाणं जाधे इंदे चयति से कधमियाणि पकरेंति ? ता चत्तारि पंच सामाणियदेवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति जावण्णे तत्थ इंदे उववण्णे भवति ॥ २५. ता इंदट्ठाणे णं केवतिएणं कालेणं विरहिते पण्णत्ते ? ता जहण्णेणं इक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासे ।। २६. ता बहिता णं माणुस्सक्खेत्तस्स जे चंदिम-सूरिय-गह 'गण-णक्खत्त- तारारूवा ते णं देवा किं उड्डोववण्णगा कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा चारद्वितिया गतिरतिया गतिसमावण्णगा? ता ते णं देवा णो उड्डोववण्णगा णो कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा णो चारोववण्णगा. चारदितिया, णो गतिरतिया णो गतिसमावण्णगा पक्किटगसंठाणसंठिते जोयणसयसाहस्सिएहि तावक्खेत्तेहि सयसाहस्सियाहिं बाहिराहिं वेउव्वियाहिं परिसाहि महताहतणट्ट-गीय-वाइय- तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पड़प्पवायइ°रवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति, सुहलेसा मंदलेसा मंदायवलेसा चित्तंतरलेसा अण्णोण्णसमोगाढाहिं लेसाहिं कूडा इव ठाणठिता ते पदेसे सव्वतो समंता ओभासंति उज्जोवंति तवेंति पभासेंति ॥ २७. ता तेसि णं देवाणं जाहे इंदे चयति से कहमियाणि पकरेंति ? ता चत्तारि पंच सामाणियदेवा तं ठाणं तहेव जाव छम्मासे ॥ २८. ता" पुक्खरवरं णं दीवं पुक्खरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो' १. अतः प्रारभ्य 'जाव छम्मासे' इति पर्यन्त: ५. सं० पा.-----वाइय जाव रवेणं । (सूत्र २३-२७) आलापक: चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' ६. ता जाव (क,ग,घ)। संकेतितयोर्द्वयोरपि प्रत्योर्नास्ति । चन्द्रप्रज्ञप्ति- ७. अतः चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' संकेतितप्रत्योः भिन्ना वृत्तावपि अस्य आलापकस्य उपलब्धेविरलता वाचना विद्यते-- ता पुक्खर णं दीवं पुक्खरोदे प्रतिपादितास्ति-इहान्यान्यपि सूत्राणि वा णामं समुद्दे वट्टे वलया जाव चिट्ठति । प्रविरलपुस्तकेषु दृश्यन्ते न सर्वेषु पुस्तकेषु, एवं विक्खंभो परिक्खेवो जोतिसं च ततस्तान्यपि विनेयजनानुग्रहाय दर्श्यन्ते । भाणियव्वं जहा जीवाभिगमे जाव सयंभुरमणे । २. वेउब्बियाहिं बाहिराहिं (जं० ७।५५) । चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एष एव पाठो ३. उक्कठ्ठि (ग,घ)। व्याख्यातोस्ति। ४. सं० पा०--गह जाव तारारूवा। ८. सं० पा०-सव्व जाव चिट्ठति । Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९२ सूरपण्णत्ती 'समंता संपरिक्खित्ताणं चिति ॥ २६. ता पुक्खरोदे णं समुद्दे कि समचक्कवालसंठिते ? 'विसमचक्कवालसंठिते ? ता पुक्खरोदसमुद्दे समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते ।। ३०. ता पुक्खरोदे णं समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता संखेज्जाइं जोयणसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, संखेज्जाई जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा॥ ३१. ता पुक्खरवरोदे णं समुद्दे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव । ता पुक्खरोदे णं समुद्दे संखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जाव संखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ सोभं सोभेसु वा सोभेति वा सोभिस्संति वा । एतेणं आभिलावेणं-वरुणवरे दीवे वरुणोदे समुद्दे । खीरवरे दीवे खीरवरे समुद्दे । घतवरे दीवे घतोदे समुद्दे । खोदवरे दीवे खोदोदे समुई। णंदिस्सरवरे दीवे णंदिस्सरवरे समझे । अरुणोदे दीवे अरुणोदे समझे । अरुणवरे दीवे अरुणवरे समुद्दे । अरुणवरोभासे दीवे अरुणवरोभासे समुद्दे । कुंडले दीवे कुंडलोदे समुद्दे । कुंडलवरे दीवे कुंडलवरोदे समुद्दे । कुंडलवरोभासे दीवे कुंडलवरोभासे समुद्दे । सव्वेसि विक्खंभपरिक्खेवो जोतिसाइं पुक्खरोदसागरसरिसाई॥ ३२. ता कुंडलवरोभासण्णं समुदं रुयए दीवे व वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो 'समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ॥ ३३. ता रुयए णं दीवे किं समचक्कवाल संठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? ता रुयए दीवे समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते ॥ ३४. ता रुयए णं दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ।। ३५. ता रुयगे णं दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा। ता रुयगे णं दीवे असंखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जाव असंखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ सोभं सोभेसु वा सोभेति वा सोभिस्संति वा। एवं रुयगे समुद्दे । रुयगवरे दीवे रुयगवरोदे समुद्दे । रुयगवरोभासे दीवे रुयगवरोभासे समुद्दे । एवं तिपडोयारा तव्वा जाव सूरे दीवे सूरोदे समुद्दे । सूरवरे दीवे सूरवरे समुद्दे । सूरवरोभासे दीवे सूरवरोभासे समुद्दे । सव्वेसि विक्खंभपरिक्खेवजोतिसाइं रुयगवरदीवसरिसाइं॥ ३६. ता सूरवरोभासोदण्णं समुदं देवे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव' णो विसमचक्कवालसंठिते ।। ३७. ता देवे णं दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ॥ १. सं० पा०-समचक्कवालसंठिते जाव णो। २. खोतवरे (क)। ३. खोतोदे (क,ग,घ)। . . ४. सं० पा०-सव्वतो जाव चिट्ठति । । ५. सं० पा०-समचक्कवाल जाव णो। .. ६. सू० १६।३।। Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमं पाहु ३८. ता देवे णं दीवे असंखेज्जा चंदा पभासेंसु वा सोमे॑ति वा सोभेस्संति वा जक्खोदे समुद्दे । भूते दीवे देवदीवसरिसा ॥ । ६६३ केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव । ता देवे णं दीवे जाव असंखेज्जाओ तारागण कोडिकोडीओ सोभं सोभेंसु वा एवं देवोदे समुद्दे । णागे दीवे गागोदे समुद्दे | Ga भूतोदे समुद्दे । सयंभुरमणे दीवे सयंभुरमणे समुद्दे । सव्वे वीसइमं पाहू १. ता कहं ते अणुभावे आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थेगे एवमाहंसु-ता चंदिमसूरिया णं णो जीवा अजीवा, णो घणा झुसिरा', णो वरबोंदिधरा' कलेवरा, णत्थि णं तेसि उट्ठाणेति वा कम्मेति वा बलेति वा वीरिएति वा पुरिसक्कारपरक्कमेति वा, ते णो विज्जुं लवंति णो असणि लवंति णो थणितं लवंति । अहे' णं बादरे वाउकाए संमुच्छति, संमुच्छित्ता विज्जुंपि लवंति असणिपि लवंति णितंपि लवंति -- एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु-ता चंदिमसूरिया णं जीवा णो अजीवा, ण णो झुसरा, वरबोंदिधरा णो कलेवरा, अत्थि णं तेसि उट्ठाणेति वा कम्मेति वा बलेति वा वीरिएति वा पुरिसक्कारपरक्कमेति वा, ते विज्जुंपि लवंति असणिपि लवंति थणितंपि लवंति - एगे एवमाहंसु २ । वयं पुण एवं वदामो-ता चंदिमसूरिया णं देवा महिड्डिया' महाजुतीया महाबला महाजसा महासोक्खा महाणुभावा वरवत्थधरा वरमल्लधरा वराभरणधारी अवोच्छित्तिणयया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति' ॥ २. ता कहं ते राहुकम्मे आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थेगे एवमाहंसु-ता अत्थि णं से राहू देवे, जेणं चंदं वा सूरं वा गेण्हति - एगे एवमाहंसु १. एगे पुण एवमाहंसु ता णत्थि णं से राहू देवे, जेणं चंदं वा सूरं वा गेहति - एगे एवमाहंसु २ तत्थ जेते एवमाहंसु- -ता अत्थि णं से राहू देवे, जेणं चंदं वा सूरं वा गेण्हति ते एवमाहंसु- --ता राहू णं देवे चंदं वा सूरं वा गेण्हमाणे बुद्धतेणं गिहित्ता बुद्धतेणं मुयति, बुद्धतेणं गिव्हित्ता मुद्धतेणं मुयति, मुद्धतेणं गिव्हित्ता १. भू सियारा (ट) । २. बादरबोंदिधरा (क); बादरबुंदघरा ( ग, घ ) ; वायरवोदिधरा ( ट ) ; वादरवोदिधरा (व) । ३. अधो ( क ) 1 ४. बादरबुंदिधरा (क, ग, घ ) ; वादर बोंदेधरा (ट) ; वादरवोंदियरा (व) । ५. सं० पा० - महिड्ढिया जाव महाणुभावा । महासुक्खा ( ट ) ; महेसक्खा (व) यावत्करणात् 'महज्जुइया महबला महाजसा महेसक्खा' इति द्रष्टव्यं तथा महेश इति महान् ईश: -- ईश्वर इत्याख्या येषां ते महेशाख्या:, क्वचित् महासोक्खा इति पाठः, तत्र महत् सौख्यं येषां ते महासौख्या: ( सूवृ ) । ६. उववज्जंति आहितेति वदेज्जा (ट, व ) । ". Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ सूरपण्णत्ती बुद्धतेणं मुयति, मुद्धतेणं गिण्हित्ता मुद्धतेणं मुयति, वामभुयंतेणं गिण्हित्ता वामभुतेणं मुयति, वामभयंतेणं गिण्हित्ता दाहिणभयंतेणं मुयति, दाहिणभयंतेणं गिण्हित्ता वामभुयंतेणं मुयति, दाहिणभयंतेणं गिण्हित्ता दाहिणभयंतेणं मुयति । तत्थ जेते एवमाहंसुताणत्थि णं से राहू देवे, जे गं चंदं वा सूरं वा गेहति, ते एवमाहंसु तत्थ णं इमे पण्णरस कसिणपोग्गला पण्णत्ता, तं जहा सिंघाडए जडिलए खरए खतए अंजणे खंजणे सीतले हिमसीतले केलासे अरुणाभे परिज्जए णभसूरए कविलए पिंगलए राहू । ता जया णं एते पण्णरस कसिणा पोग्गला सया' चंदस्स वा सूरस्स वा लेसाणुबद्धचारिणो भवंति तथा णं माणुसलोयंसि माणुसा एवं वदंति एवं खलु राहू चंदं वा सूरं वा गेहति । ता जया णं एते पण्णरस कसिणा पोग्गला णो सया चंदस्स वा सूरस्स वा लेसाणुबद्धचारिणो भवंति णो खलु तया णं माणुसलोयम्मि मणुस्सा एवं वदंति एवं खलु राहू चंदं वा सूरं वा गेण्हति - एगे एवमाहंसु । वयं पुण एवं वदामो ता राहू णं देवे महिड्डिए महाजुतीए महाबले महाजसे महाणुभावे वरवत्थधरे वरमल्लधरे' वराभणधारी । राहुस्स णं देवस्स णव णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा सिंघाडए जडिलए खतए खरए दद्दरे मगरे मच्छे कच्छभे कण्हसप्पे | ता राहुस्स णं देवस्स विमाणा पंचवण्णा पण्णत्ता, तं जहा किण्हा णीला लोहिता हालिद्दा सुकिला । अथ काल राहुविमाणे खंजणवण्णाभे पण्णत्ते, अत्थि णीलए राहुविमाणे लावण्णा पण्णत्ते, अत्थि लोहिए राहुविमाणे मंजिट्ठावण्णाभे पण्णत्ते, अत्थि पीत ' राहुविमाणे हालिद्दवण्णाभे पण्णत्ते, अस्थि सुक्किलए राहुविमाणे भासरासिवण्णाभे पण्णत्ते । ता जया णं राहुदेवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वासुरस्वा लेस्सं पुरत्थमेणं आवरित्ता पच्चत्थिमेणं वीतीवयति तया णं पुरत्थिमेणं चंदे वा सूरे वा उवदंसेति, पच्चत्थिमेणं राहू । जया णं राहुदेवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं दाहिणेणं आवरित्ता उत्तरेणं वीतीवयति तया णं दाहिणेणं चंदे वा सूरे वा उवदंसेति, उत्तरेणं राहू । एतेणं अभिलावेणं पच्चत्थिमेणं आवरित्ता पुरत्थिमेणं वीतीवयति, उत्तरेणं आवरित्ता दाहिणेणं वीतीवयति । जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वारस वाले दाहिणपुरत्थिमेणं आवरित्ता उत्तरपच्चत्थिमेणं वीतीवयति तया णं दाहिणपुरत्थमेणं चंदे वा सूरे वा उवदंसेति, उत्तरपच्चत्थिमेणं राहू । जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा सं दाहिणपच्चत्थिमेणं आवरिता उत्तरपुरत्थिमेणं वीतीवयति तया णं दाहिणपच्चत्थिमेणं चंदे वा सूरे वा उवदंसेति, उत्तरपुरत्थिमेणं राहू । एतेणं अभिलावेणं उत्तरपच्चत्थिमेणं आवरेत्ता दाहिणपुरत्थिमेणं वीतीवयति, उत्तरपुरत्थिमेणं आवरेता दाहिणपच्चत्थिमेणं वतीवयति । ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउब्वमाणे वा परियारेमाणे ३. हालिए ( क, ग, घ ) । १. सता (क, ग, घ, ट, व ) । २. सं० पा० वरवत्थधरे जाव वराभरणधारी । Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमं पाहुडं वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं 'आवरेत्ता वीतीवयति" तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति-... ‘एवं खलु" राहुणा चंदे वा सूरे वा गहिते--एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा गहिते। ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता पासेणं वीतीवयति तया णं मणुस्सलोयंमि मणुस्सा वदंति-... ‘एवं खलु चंदेण वा सूरेण वा राहुस्स कुच्छी भिण्णा---एवं खलु चंदेण वा सूरेण वा राहुस्स कुच्छी भिण्णा। ता जया णं राहुदेवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता पच्चोसक्कति तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंतिएवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा वंते-एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा वंते । ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सुरस्स वा लेसं आवरेत्ता मज्झमज्झेणं वीतीवयति तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा वइयरिए...... एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा वइयरिए । ता जया णं राह देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ताणं अहे सपक्खिं सपडिदिसि चिट्ठति तया णं मणुस्सलोयंसि मणुस्सा वदंति--एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा घत्थे--एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा घत्थे ॥ - ३. ता कतिविहे गं राहू पण्णत्ते ? ता दुविहे पण्णत्ते, तं जहा---धुवराहू य पव्वराहू य । तत्थ णं जेसे धुवराहू, से णं बहुलपक्खस्स पाडिवए" पण्णरसतिभागेणं पण्णरसतिभागं चंदस्स लेसं आवरेमाणे-आवरेमाणे चिट्ठति, तं जहा–पढमाए पढमं भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भाग, चरमे समए चंदे रत्ते भवइ, अवसेसे समए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवति । तमेव सुक्कपक्खे उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे चिट्ठति, तं जहा–पढमाए पढमं भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भाग, चरिमे समए चंदे विरत्ते भवति, अवसेसे समए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ । तत्थ णं जेसे पव्व राहू, से जहण्णेणं छण्हं मासाणं, उक्कोसेणं बायालोसाए मासाण चंदस्स, अडतालीसाए सवच्छराण सुरस्स ।। ४. ता 'कहं ते चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा ? ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो मियंके विमाणे कंता देवा कंताओ देवीओ कंताई आसण-सयण-खंभभंडमत्तोवगरणाई, अप्पणावि य णं चंदे देवे जोतिसिंदे जोतिसराया सोमे कंते सुभगे पियदंसणे सुरूवे ता ‘एवं खलु चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा ।। ५. ता 'कहं ते" सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा ? ता सूरादिया १. आवरेति (ट,व)। २.४ (क,ग,घ)। ३. ४ (क,ग,घ)। ४. वतिचरिए (ट); वेतिचरिए (व) । ५. पडिवए (ग,घ,ट,व) । ६. से णं केणठेणं एवं वुच्चइ (ट); से केण ठेणं एवं वुच्चति (व); भगवत्या (१२।१२५) मपि एवं विद्यते। ७. से तेणठेणं एवं बुच्चइ (ट,व)। ८. से केणठेणं एवं वुच्चति (ट,व)। Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६६ सूरपण्णत्ती णं समयाति वा आवलियाति वा आणापाणूति वा थोवेति वा जाव' ओसप्पिणिउस्सप्पिणीति वा, ‘एवं खलु" सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा ॥ ६. ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा, 'जहा हेढा तं चेव जाव णो चेव णं मेहुणवत्तियं । एवं सूरस्सवि भाणितव्वं ॥ ७. ता चंदिमसूरिया णं जोतिसिंदा जोतिसरायाणो केरिसे कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति? ता से जहाणामए केइ पूरिसे पढमजोव्वणदाणबलसमत्थे पढमजोव्वणदाणब समत्थाए भारियाए सद्धि 'अचिरवत्तविवाहे अत्थत्थी'' अत्थगवसणयाए सोलसवासविप्पवसिते, से णं ततो लद्धठे कयकज्जे अणहसमग्गे पुणरवि णियगघरं हव्वमागए हाते कतबलिकम्मे कतकोतुक-मंगल-पायच्छिते सुद्धप्पावेसाइं मंगलाई वत्थाई पवर परिहिते अप्पमहग्घाभरणालंकितसरीरे मणुण्णं थालीपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाउलं भोयणं भुत्ते समाणे तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अंतो सचित्तकम्मे बाहिरओ दूमिय-घट्ट-मछे विचित्तउल्लोयचिल्लियतले 'बहुसमसुविभत्तभूमिभाए मणिरयणपणासितंधयारे" कालागुरु-पवरकुंदुरुक्कतुरुक्क-धूव-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामे सुगंधवरगंधिते गंधवट्टिभूते तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि दुहओ उण्णए मज्झे णत-गंभीरे सालिंगणवट्टिए 'उभओ विब्बोयणे" सुरम्मे गंगापुलिणवालुयाउद्दालसालिसए 'सुविरइयरयत्ताणे ओयवियखोमियखोमदुगूलपट्टपडिच्छायणे रत्तंसुयसंवुडे सुरम्मे आईणगरूतबूरणवणीततुलफासे सुगंधवरकुसुमचुण्णसयणोवयारकलिए ताए तारिसाए भारियाए सद्धि सिंगारागारचारुवेसाए संगतगतहसितभणितचिट्ठितसंलावविलासणिउणजुत्तोवयारकुसलाए अणुरत्ताए अविरत्ताए मणोणुकूलाए एगंतरतिपसत्ते अण्णत्थ कत्थइ मणं अकुव्वमाणे इठे सद्दफरिसरसरूवगंधे पंचविधे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरेज्जा । ता से णं पुरिसे विउसमणकालसमयंसि केरिसयं सातासोक्खं पच्चणुभवमाणे विहरति ? ओरालं समणाउसो ! ता तस्स णं पुरिसस्स कामभोगेहितो एतो अणंतगुणविसिट्टतरा चेव वाणमंतराणं देवाणं कामभोगा, वाणमंतराणं देवाण कामभागीहता अणतगुणविसिट्रतरा चेव असुरिदवाज्जयाण भवणवासोण देवाणं कामभोगा, अरिदवज्जियाणं भवणवासीणं देवाणं कामभोगेहितो अणंतगणविसिदतरा चेव असुरकुमाराणं इंदभूयाणं देवाणं कामभोगा, असुरकुमाराणं इंदभूयाणं देवाणं कामभोगेहिंतो अणंतगुणविसिद्रुतरा चेव गहगणणक्खत्ततारारूवाणं कामभोगा, गहगणणक्खत्ततारारूवाणं कामभोगेहितो अणंतगुणविसिट्टतरा चेव चंदिमसूरियाणं देवाणं कामभोगा, १. भ० १२।१२६; ठाण २।३८८,३८६ । ८. मणिरयणपगासियंधयारे बहुसमरमणिज्जे २. से एएणं अट्ठणं एवं बच्चति (ट,व)। भूमिभागे पंचवण्णरस २ सुरभिमुक्कपुप्फ३. एवं तं चेव पुब्वभणियं अट्ठारसमे पाहुडे पुंजोवयारे कलिते (ट,व)। ___ तहा यव्वं जाव मेहुणवत्तियं (ट,व)। ६. पण्णत्तगंडविब्बोयणे (ग,घ,सूवपा, चंवपा) । ४. ४ (ट,व)। १०. उवचितदुगुल्लपट्टपडिच्छयणे सुविरइयत्ताणे ५. अचिरवत्तविवाहकज्जे (भ० १२।१२८)। (ट,व) । ६. अभितरओ (ट,व)। ११. विसिट्ठतराए (ग,घ) । ७. आइण्णतले (चंव)चिल्लगतले (चंपा)। Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६७ वीसइमं पाहुड ता एरिसए णं चंदिमसूरिया जोतिसिंदा जोतिसरायाणो कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ ८. तत्थ खलु इमे अट्ठासीति महग्गहा पण्णत्ता, तं जहा-इंगालए वियालए लोहितक्खे' सणिच्छरे आहुणिए पाहुणिए कणे कणए कणकणए कणविताए कणसंताणए सोमे सहित आसासणे कज्जोवए कब्बडए अयकरए दुंदुभए संखे संखणाभे संखवण्णाभे कसे कंसणाभे कंसवण्णाभे णीले णीलोभासे रुप्पे रुप्पोभासे भासे भासरासी तिले तिलपुप्फवण्णे दगे दगवण्णे काए काकंधे इंदग्गी धुमकेतू हरी पिंगलए बुधे सुक्के बहस्सई राहू अगत्थी माणवगे 'कासे फासे' धुरे पमुहे वियडे विसंधीकप्पे [णियल्ले ?] पयल्ले जडियायलए अरुणे अग्गिल्लए काले महाकाले सोत्थिए सोवत्थिए वद्धमाणगे पलंबे णिच्चालोए णिच्चुज्जोते सयंपभे ओभासे सेयंकरे खेमंकरे आभंकरे पभंकरे अरए विरए असोगे वोतसोगे विमले वितत्ते विवत्थे विसाले साले सुव्वते अणियट्टी एगजडी दुजडी करकरिए रायग्गले पुप्फकेतु भावकेतू। संगहणी गाहा-- इंगालए वियालए, लोहियक्खे सणिच्छरे चेव । आहुणिए पाहुणिए, कणगसणामा उ पंचेव ॥१॥ १. लोहितंके (क); लोहिएके (ग,घ); विद्यते तथा चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' सङ्केतित लोहित्यकः (सूव); चंद्रप्रज्ञप्तिवृत्तौ 'लोहि- प्रतिद्वये 'कासे फासे' इति पाठोस्ति, सङ्ख्यासाक्षः' इति व्याख्यातमस्ति, तथा स्थानाले दृष्टयापि 'कासे फासे' इति नामद्वय युक्त(२।३२५) 'लोहितक्खा' जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती मस्ति । वृत्तिद्वयेपि 'कामस्पर्श इति व्याख्यात(७।१८६) च 'लोहितक्खें इति पाठो मस्ति । सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तावुद्धतासु गाथास्वपि लभ्यते। 'कामफासे' इति पाठो विद्यते, किंतु स्थानाने २. बंधे (क,ग,घ) वृत्तिद्वयेपि 'बन्ध्यः ' इति (२।३२५) 'दो कासा दो फासा' इति पाठो व्याख्यातमस्ति । 'बन्ध्यः' इति पदस्य 'बंझ' लभ्यते । इति रूपं स्यात, कथं 'बंधे' इति प्रश्नोस्ति । ४. ४ (ट); एतत् पदं वृत्तिद्वयेपि व्याख्यातं तथा स्थानाने 'कक्कंधा' इति पाठो लभ्यते। नास्ति । ३. सूर्यप्रज्ञप्ते: 'क' प्रती 'कासफासे' इति पाठो ५. स्थानाङ्गवत्ती 'इदं तत्रैव संग्रहणीगाथाभिनियन्त्रितम्' इत्युल्लेखपूर्वकं नव गाथा उदधताः सन्ति. तास विद्यमानानां नाम्नां गद्यभागवत्तिभिर्नामभि: सह संवादित्वमस्ति, तेन एता गाथा: मले स्वीकृताः । चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' संकेतितयोरादर्शयोस्तवृत्तौ च संग्रहणीगाथा नोपलभ्यते । सर्यप्रज्ञप्त्यादर्शष एता निम्ननिर्दिष्टा गाथा लिखिताः सन्ति, सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तौ च एतेषामेव नाम्नां सखप्रतिपत्त्यर्थं सङ्गहणिगाथाषट्कमाह' इत्युल्लेखपूर्वकं नव गाथा उद्धृताः सन्ति । एतासु गाथासू यानि नामानि सन्ति, तेषां नाम्नां गद्यभागवत्तिभिर्नामभिः सर्वथा संवादित्वं नास्ति, तेन नैताः मूले स्वीकृताः इंगालए वियालए, लोहितंके' सणिच्छरे चेव । आहुणिए पाहुणिए कणकसणामावि पंचेव ॥१॥ १. लोहिकते (ग,घ)। Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ सोमे सहिते अस्सासणे य कज्जोवए य कब्बरए । अयकरए दुंदुभए, संससणामावि तिष्णेव || २ || तिणे व कंसणामा, पीले रुप्पी य हुति चत्तारि । भास तिल पुण्फवण्णे, दगवण्णे काय बंधे य ॥ ३ ॥ इंग्ग धूमकेतू य, हरि पिंगलए बुधे य सुक्के य । वसति राहु जगत्थी, माणवए कामकासे य ॥ ४ ॥ धुरए पमुहे वियडे, 'विसंधिकप्पे पल्ले | जडिया इल्लए' अरुणे, अग्गिल काले महाकाले || ५ || सोत्थिय सोबत्विय बद्धमाणन तथा पलंबे य णिच्चालोए णिच्चज्जोए सर्वपमे चेव ओभासे ॥६॥ सोयंकरे खेमंकर, आभंकर पभंकरे य बोधव्वे । अरए विरए य तथा असोगे वह बीतसोगे य ॥७॥ विमल वितत्त विवत्थे, विसाल तह साल सुव्वते चेव । अणि गजडि य होई बिजडी य बोधव्वे ||८|| कर करिए रायम्मल, बोधव्वे पुष्क भावकेतू य अट्ठासीति खलु महा, तब्बा आणुपुच्चीए ॥१॥ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एता गाथा लभ्यन्ते -- इंगालए विद्यालए, लोहियनचे सच्चिरे चैव । आहूणिए पाहुणिए, कणगसणामावि पंचेव ॥ १ ॥ सोमे सहि अस्सासणे य कज्जोवए कब्बरए । अयकर दुंदुभए वि य, संखसणामावि तिन्नेव ॥२॥ तिन्नेव कंसणामा, नीले रुप्पी हवंति चत्तारि । भास तिल पुप्फवन्ने, दगवन्ने काय बंधे य ॥ ३॥ इंग्ग धूमकेऊ, हरि पिंगलए बुधे य सुक्के य । बहस राहू अगत्थी, माणवगे कामफासे व ॥ ४ ॥ धुरए पमुहे विडे विसंधिकप्पे तहा पयल्ले' य 1 1 डिया" य अरुणे, अग्गिल काले महाकाले ||५|| सोत्थिय सोत्थिय वद्धमाणग तहा पलंबे य निच्चालोए नियुज्जोए सपने चैव अभासे || ६ || सेयंकर खेमंकर, आकर पभंकरे व बोधव्वे । अरए विरए य तहा, असोक तह वीयसोगे य ॥७॥ "विमल वितत्त" विवरथे, विसाल तह साल सुब्बाए चैव । अट्टी गजडी, य होइ वियडी य बोधव्वे ॥ ८॥ १. दगपंचवणे ( ग, घ ) । २. विसंधीकप्पे तहा यिल्ले या ( ग घ ) । ३. जडियालए ( ग, घ ) । ४. 'लोहिके' चिल्लोहिताक्षः (पुवृ) | ५. पुप्फवण्ण दग ( ही ) । ६. पमप्पे ( ही ) । ७. जाडालए (ही)। ८. अग्गिय ( ही ) । ६. होइ वितत्थ (हीवृ ) 1. सूरपण्णत्ती Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमं पाहुडं ६६६ सोमे सहिए आसासणे य कज्जोवए य कब्बडए। अयकरए दुंदुहए, संखसनामाओ तिन्नेव ॥२॥ तिन्नेव कंसणामा, णीला रुप्पी य होंति चत्तारि । भास तिलपुप्फवन्ने, दगे य दगपणवण्णे य काय काकंधे ॥३॥ इंदग्गि धूमकेऊ, हरि पिंगलए बुहे य सुक्के य । बहस्सइ राहु अगत्थी, माणवए कास फासे य ॥४॥ धरए पमूहे वियडे, विसंधि णियले तहा पयल्ले य। जडियाइलए अरुणे, अग्गिल काले कहाकाले ॥५॥ सोत्थिय सोवत्थिय, वद्धमाणगे तधा पलंबे य । निच्चालोए णिच्चुज्जोए सयंपभे चेव ओभासे ॥६॥ सेयंकर खेमकर, आभंकर पभंकरे य बोधव्वे । अरए विरए य तहा, असोग तह वीयसोगे य ॥७॥ विमल वितत वितत्थे, विसाल तह साल सुव्वए चेव । अनियट्टी एगजडी, य होइ विजडी य बोद्धव्वे ॥८॥ करकरए रायग्गल, बोद्धव्वे पुप्फ भावकेऊ य । अट्ठासीई गहा खलु, णेयव्वा आणुपुवीए ॥६॥ ६. इइ एस पाहुडत्था, अभव्वजणहिययदुल्लहा इणमो। उक्कित्तिता भगवती, जोतिसरायस्स पण्णत्ती ॥१॥ एस गहितावि-संती थद्धे गारविय-माणि-पडिणीए। अबहुस्सुए ण देया, तन्विवरीते भवे देया ॥२॥ सद्धा-धिति-उट्ठाणुच्छाह-कम्म-बल वीरिय-पुरिसकारेहिं । जो सिक्खिओवि संतो, अभायणे पक्खिवेज्जाहि ॥३॥ सो पयवण-कूल-गण-संघबाहिरो णाणविणयपरिहीणो। अरहंतथेरगणहरमेरं किर होति वोलीणो ॥४॥ तम्हा धिति-उढाणुच्छाह-कम्म-बल-वीरियसिक्खियं णाणं । धारेयव्वं णियमा, ण य अविणीएसु दायव्वं ॥५।। वीरवरस्स भगवतो, जरमरणकिलेसदोसरहियस्स । वंदामि विणयपणतो, सोक्खुप्पाए सदा पाए ॥६॥ ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर ७५,८७५ अनुष्टुप् श्लोक २,३७१ अक्षर ३ कर करिए' रायग्गल, बोधव्वे पुप्फ भाव केऊ य । अठासीइ गहा खलु, नायव्वा आणुपुवीए ॥६॥ चन्द्रप्रज्ञप्तिसूर्यप्रज्ञप्त्योरादर्शषु, स्थानाङ्गे, तद्वत्तावुद्धृते सूर्यप्रज्ञप्तिपाठे, जंबूद्वीपप्रज्ञप्तेः संक्षिप्तपाठे तद्वत्तौ तथा त्रिलोकप्रज्ञप्तौ च उपलब्धानि महाग्रहनामानि अत्र कोष्ठकेषु प्रदर्शितानि सन्ति--- १. करए (ही)। Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०० सूरपण्णत्ती क्र० मूल ट' व 'क' ग, घ' ठाणं २।३२५ ठाणं वृत्ति' इगालगा लोहितके लोहिएके सणच्छंदे सणिच्चरे सणिच्चरा इंगालए वियालए लोहितक्खे सणिच्छरे आहुणिए पाहुणिए कणे कणए कणकणए कणविताणए कणसंताणए सोमे सहिते आसासणे कणगवियाणए कणगविताणगा कणगसंताणए कणगसताणए कणगसंताणगा ओसो अस्सासणे अस्सासणे अस्सासणे आसासणे रुकं १५ कज्जोयए कज्जावए कब्बरए १६ कब्बरणे संखवणे संखण्णेभे संखणाते संखवण्णा कज्जोवए कब्बडए अयकरए दुंदुभए संखे संखणाभे संखवण्णाभे कसे कंसणाभे कंसवण्णाभे णीले णीलोभासे संखवणे २२ " २३ ___ कंसणाभे कंसवणे कंसवणे कंसवण्णा कंसवण्णे गीताताती २६ रुप्पी णीलोतासी रुप्पाभासा णीला णीलोभासा नीलाभासे रूवी रूवीभास रुप्पे रुप्पी रुप्पी २८ रुप्पोभासे २६ भासे ३० भासरासी , १. अङ्गारकादयोऽष्टाशीतिग्रहाः सूत्रसिद्धाः केवलमस्मद् दृष्टपुस्तकेषु केषुचिदेव यथोक्तपंख्यां संवदतीति सूर्यप्रज्ञप्त्यनुसारेणासाविह संवदनीया, तथाहि तत्सूत्रम् -तत्य........(व.)। Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीस इमं पाहुडं जं० ७.१८६ सूव चंव जं० पुव जं० होव तिलोयपण्णत्ति विकाल: लोहिताक्षः अङ्गरकः विकालकः विकालगः लोहित्यक: लोहिताक्ष: लोहितांक शनैश्चर: आधुनिक: प्राधुनिक: कण: बुध যুক্ত बृहस्पति मंगल शनि काल लोहित कणक: कनक नील कणकणक: कणवितानक: कणसन्तानक: सोमः सहितः आश्वासनः कणकवितानक: विकाल कणकसंतानक: केश कवयव कनक-संस्थान आश्वासनः आश्वासनः दुन्दुभक रूत: १५ एवं भाणियव्वं जाव भावके उस्स ........ इमाहि माहाहि-इंगालए पियालए, लोहितक्खे सणिच्छरे चेव । आहुणिए पाहुणिए, कणगसणामा पंचेव ॥१॥ सोमे सहिए आसासणे य कज्जोवए य कब्बडए अयकरए दंभए संखसणामेवि तिण्णेव ।।२।। कर्बुर कर्बुरक: कर्बुरः कार्योपग: कर्बटक: अजकरकः दुन्दुभक: शङ्ख शवनाभः शङ्खवर्णाभः कंसः रक्तनिभ नीलाभास अशोकसंस्थान कंस रूपनिभ कंसकवर्ण शंखपरिणाम तिलपुच्छ शंखवर्ण उदकवर्ण पंचवर्ण उत्पात धूमकेतु तिल नभ क्षारराशि कंसनाभः कंसवर्णाभः नीलः नीलावभासः नीलोवभासः रूप्पी रूप्यावभासः भस्म भस्मराशिः २. क्वचिल्लोहिताक्षः । Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ सूरपण्णत्ती क० मूल ठाण २॥३२५ ३१ ३३ दगयवण्णे दगपंचवण्णा तिले तिलपुप्फवण्णे दगे दगवण्णे काए काकंधे इंदग्गी धूमकेतू पिगए पिंगला पिंगलए बुधे " सुक्के . . . . . . . . .......... x: : * वुक्के ४३ बहस्सई ४५ आगत्था ४६ अगत्थी माणवगे कासे * . . . . . . . . . . . . : कासफासे कामफासे फासे ४६ धुरे पमुहे वियडे विसंधीकप्पे [णियल्ले?] xx ५२ विसंधी x विसंधी नेतले पत्तल्ले जडियातिलते विसंधीकप्पेल विसंधी णियल्ला पइल्ला जडिएबलए जडियाइलगा पयल्ले जडियायलए जयले ५७ अग्गिलए अग्गन्नए अग्गिलए काले महाकाले महाकालगा ६१ ६२ सोथिए सोवत्थिए वद्धमाणगे पलंबे णिच्चालोए णिच्चुज्जोते सयंपमे Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमं पाहुडं ७०३ ठाणं वृत्ति सूव० चव जं० पुव जं. हीव तिलोयपण्णत्ति विजिष्णु सदृश पुष्पवर्णः संधि दगपंचवण्ण तिलः तिलपुष्पवर्णक: ,, दक: दकवर्णः दकवर्णः कायः वन्ध्यः इन्द्राग्निः धूमकेतुः हरिः पिङ्गलः बुधः सूनकेतुः कलेवर अभिन्न ग्रन्थि मानवक कालक कालकेतु निलय अनय विद्युज्जिह्व " पिंगले शुक्र: बृहस्पतिः सिंह राहः अगस्तिः माणवकः . कामस्पर्शः धुरः प्रमुखः अलक निर्दु:ख काल महाकाल विकटः महारुद्र सन्तान विपुल संभव स्वार्थी विसंधी नियल्ले क्षेम जडियाइल्लए विसंधिकल्प: प्रकल्प: जटाल: अरुणः अग्निः काल: महाकालः स्वस्तिक: सौवस्तिकः वर्द्धमानक: प्रलम्बः नित्यालोकः नित्योद्योतः स्वयंप्रभः अवभास: श्रेयस्करः चन्द्र निर्मन्त्र ज्योतिष्माण दिशासंस्थित विरत वीतशोक निश्चल प्रलम्ब भासुर स्वयंप्रभ विजय वैजयन्त Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०४ सूरपण्णत्ती क. 'व' क' माघ ठाणं ॥३७५ ६७ ६८ मूल ओभासे से यंकरे खेमंकरे आभंकरे पमंकरे अरए विरए असोगे 9991 खेमंकरे पमंकरे , अपरातिए अपरते अपराजिता अरया ७४ विगतसोगा ७५ ७६ विगयसोगे विगतसोगे x वीतसोगे विमले वितत्ते विवत्थे विसाले वितते " वितता वितत्था विवये वितत्थे साले ८० ८१ ८२ ८३ सुव्वते अणियट्टी एगजडी x सव्वतो अणियट्टिए . अणिष्ट्ठी अट्ठी दुजडी करकरिए रायग्गले पुप्फकेतू भावकेतू कर करिए कर करिए कर ८३ करिए ८४ कर करिए राय ग्गले राय ग्गले राय ८५ गले ८६ राय ग्गले , पुप्फकेता x ८८ Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमं पाहुडं ७०५ ठाणं वृत्ति चं जं० पुव जं० ही तिलोयपण्णत्ति सूव० क्षेमंकरः आभंकरः प्रभङ्करः अरजा विरजा अशोकः वीतशोकः वितप्तः अरजा: अरजाः विरजाः सीमंकर अपराजित जयन्त विमल अभयंकर विकस काष्ठी विकट अपराजिए अरए अशोकावीति वितप्तग्रहः विततः विमल: ७४ वितप्त: ७५ थिवः कज्जलो अग्निज्वाल अशोक वियत्ते वितत्थे केतु अतवृत्तिः विवस्त्रः विशाल: शाल: सुव्रतः अनिवृत्तिः एकजटी द्विजटी करः करिक: राजः अर्गल: क्षीररस अघ श्रवण जलकेतु केतु राजा राजा राजा पुष्पः भावकेतुः धूम्रकेतुः पुष्पकेतु: ८७ भावकेतु: ८८ अंतरद एकसंस्थान अश्व भावग्रह महाग्रह भाव: केतुः पुष्यकेतुः १. अत: चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तौ एतावान् अतिरिक्तः पाठो व्याख्यातोस्ति - एते अंगारकादयो ग्रहाः सर्वेपि प्रत्येक चतुर्णां सामानिकसहस्राणां चतसृणाजन पहिषीणां सपरिवाराणां तिसृणां पर्षदां सप्तानामनीकानां सप्तानामनीकाधिपतीनां षोडशानामात्मरक्षकदेवसहस्राणामन्येषां च स्वविमानवास्तव्यानां देवानां चाधिपत्यमनुभवंति । Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसिठं चन्द्रप्राप्ति व सूर्यप्रज्ञप्ति का पाठभेद चन्द्रप्राप्ति सूत्र १० सूर्यप्राप्ति सूत्र ६ सूर्यप्र० ,२-३ सूत्र ६-६ ॥६-१० १११ से ६ पाहुडपाहुडों में कहीं-कहीं शब्दभेद है। १७ पाहुडपाहुड में पाठभेद है । वह इस प्रकार है चन्द्रप्र० ता समचउरंससंठाणसंठिता णं' मंडलसंठिती ता सव्वावि मंडलवाता समचउरंससंठाणसंठिता आहितेति वएज्जा एगे एवमाहंसु १ एगे पुण पण्णत्ता एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु-ता एवमाहंसू-ता विसमसंठाणसंठिता णं मंडल- सव्वावि मंडलवता विसमचउरंससंठाणसंठिता संठिती आहितेति वएज्जा एगे एवमाहंसु २ एगे पण्णत्ता एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु-ता पूण एवमाहंसू-ता समचउक्कोणसंठिता णं सव्वावि मंडलवता समचउक्कोणसंठिता पण्णत्ता मंडलसंठिती आहितेति वएज्जा एगे एवमासु ३ एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि एगे पुण एवमाहंसु-ता विसमचउक्कोणसंठिता मंडलवता विसमचउक्कोणसंठिता पण्णत्ता एगे णं मंडलसंठिती आहितेति वएज्जा एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु-ता मंडलवता समचक्कवालसंठिता पण्णत्ता एगे एवमासमचक्कवालसंठिता णं मंडलसंठिती आहितेति हंसु ५ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता वएज्जा एगे एवमाहंसू ५ एगे पूण एवमाहंसु विसमचक्कवालसंठिता पण्णत्ता एगे एवमाहंसु ६ ---ता विसमचक्कवालसंठिता णं मंडलसंठिती एगे पुण एवमाहंसु–ता सव्वावि मंडलवता आहितेति वएज्जा एगे एवमाहंसु ६ एगे पुण चक्कद्धचक्कवालसंठिता पण्णत्ता एगे एवाहंस ७ एवमाहंसू--ता चक्कद्धचक्कवालसंठिता णं मंडल- एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता संठिती आहितेति वएज्जा एगे एवमाहंसु ७ एगे छत्तागारसंठिता पण्णत्ता एगे एवमाहंसु-८ तत्थ पुण एवमाहंसु-ता छत्तागारसंठिता णं मंडल- जेते एवमाहंसु–ता सव्वावि मंडलवता छत्तागारसंठिती आहितेति वएज्जा एगे एवमाहंसु ८ 'तत्थ संठिता पण्णत्ता, एतेणं नएणं नायव्वं, नो चेव णं १. 'ण' इति वाक्यालंकारे । Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसिट्ठ जेते एवमाहंसु ता छत्तागारसंठिता णं मंडल- इतरेहि, पाहुडगाहाओ भाणियव्वाओ । संठिती आहितेति वएज्जा,” एतेणं नएणं नायव्वं, नो चेव णं इतेरेहि । चं० १।२६-३२ २६. 'ता अब्मंतराए मंडलवाए बाहिरा मंडलबा बाहिराए मंडलवयाए अब्भितरा मंडल बाहा एस णं अद्धा पंचदसुत्तरे जोयणसते आहितेति वएज्जा । ३०. ता अब्मंतराए मंडलवयाए अब्मंतरा मंडल - बा बाहिराए मंडल याए एस णं अद्धा पंचदसुत्तरे जोयणसए अडतालीसं च एगट्टिभागे जोयणस्स आहितेति वएज्जा" । ३१. 'ता मंडला बाहिराए मंडलवाए बाहिरा मंडल - बाहा एस णं अद्धा पंचनवुत्तरे जोयणसते तेरस भागे जोयणस्स आहितेति वएज्जा" । सू० १।२८-३१ २८. ता अभितराओ..... २६. अभितराए मंडलवताए..... अब्मंतराए मंडलवयाए अब्भितरा ३०. ता अब्मंतराओ... ३२. 'अब्भंतराए मंडलवयाए अन्यंतरा मंडल बाहा ३१. ता अभितराए'''' बाहिराए मंडलवाए एस णं अद्धा पंचदसुत्तरे जोणते आहितेति वएज्जा" । चं, चंवृ ४२. आहियत्ति वएज्जा सू०, सूवृ० पण्णत्ता ( सर्वत्र ) १. X (ट) । २. ता अब्यंतरातो मंडलवतातो बाहिरा मंडलवता बाहिरा मंडलवतातो अन्यंतरा मंडलवया । बाहरा मंडलवाते एस णं अद्धा पंचदसुत्तरे जोयणसते अडतालीसं च एगट्टिभागे जोयणस्स आहिया ( ट ) ; ता अब्भंतराए मंडलवयाए अब्भंतरा मंडलबाहा बाहिराए मंडलवयाए अब्भंतरा मंडल बाहा एस णं अद्धा पंचदसुत्तरे जोयणसते आहियाति वदेज्जा । ता अब्भंतराए मंडलवयाए अन्तरा मंडला बाहिरा एस णं अद्धा पंचनवुत्तरे जोयणसते अडयालीसं च एगट्टिभागे जोयणस्स आहिए (व) । ३. ता अब्भंतराए मंडलवयाते अब्भंतरमंडलबाहा बाहिराए मंडलवताए बाहिरा मंडलबाहा एस णं अद्धा पंचनवुत्तरे जोयणसते तेरस एगट्टिभागे जोयणस्स आहितेति वदेज्जा ( ट ); अब्भंतराए मंडलवाए बाहिरा मंडलवाहा बाहिराए मंडलवयाए अब्भंतरा मंडल बाहा एस णं अद्धा पंचनवुत्तरे जोयणसते तेरस एगट्टिभागे जोयणस्स आहिता ( व ) । ४. अब्भंतराते मंडलवताते अब्भंतरा मंडलवता बाहिराए मंडलवयाते एस णं अद्धा केवतियं आहिति वदेज्जा ? ता पंचदसुत्तरे जोयणसते आहियति वदेज्जा ( ट ) ; अब्भंतराए मंडलवयाए बाहिरा मंडलबाहा एस णं अद्धा पंचदसुत्तरे जोयणसते आहिताति वएज्जा (व) । ७०७ Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०८ ४१३. एवं ताओ इत्यादि । एवमुक्तेन प्रकारेण चन्द्रसूर्य संस्थितिगतेन प्रकारेणेत्यर्थः एवानन्तरोदितचन्द्रसूर्यसंस्थितिगता गेहसंस्थितया सहाऽष्टौ प्रतिपत्तयो नेतव्याः यावदियमष्टमा वालग्गपोत्तिया संठिया तावखित्तसंठिए आहियत्ति वएज्जा । ४ | ३ एवमुक्तेन प्रकारेण एतेनान्तरोदितेनाभिलापेन । १०।६।२५ चंवृ हस्त० पत्र ७८ एवं नेयव्वमिति एवमुक्तेन प्रकारेण शेषमप्यमा वास्याजातं नेतव्यम् | नवरं मार्गशीर्ष्या माध्यां फाल्गुन्यामाषाढ्यां च कुलोपकुलं भणितव्यम्, शेषाणां त्वामावास्यानां कुलोपकुलं नास्ति ततो न वक्तव्यम् । १०६५८ : चंवृ पत्र ८० तिग तिग पंचग दस जं० ७।१३० तिग तिग पंचेगसयं १०।१०।६४ : चंवृ पत्र ८०, ८१ एवमित्यादि एवमुक्तेन प्रकारेण एतेनाऽनंतरोदि तेनाभिलापेन यथैव जंबूद्वीपप्रज्ञप्ती भणितं तथैव इहापि भणितव्यम् । यावदाषाढमासचितायां । तस्सि च णमित्यादि । तच्चैवं घणिट्ठा चउद्दस अहोरत्ते नेइ, सयभिसया सत्तअहोरत्ते नेइ, पुव्वभद्दवया अट्ठअहोरत्ते नेति । '''''पश्चात्यं तु सूत्रं सकलमपि सुगमम् । १०।१४८६ चंवृ तृतीयो मणरहः दिवसाणं णामधे ज्जा (ट) । दिवानां नामधेयानि व्याख्यातानीति वदेत् । सूरपण्णत्ती एवं जाव वालग्गपोत्तिया संठिता तावखेत्तसंठिई पण्णत्ता । इति एवमनन्तरोक्तेन प्रकारेण चन्द्रसूर्य संस्थितिगतेन प्रकारेणेत्यर्थः गृहसंस्थिताया ऊर्ध्वं तावद् वक्तव्यं यावद् वालाग्रपोत्तिकासंस्थिता प्रज्ञप्ता इति तच्चैवम् । एके पुनरेवमाहुः सूवृ पत्र १२७ 'एवं नेयव्व' मिति एवमुक्तप्रकारेण शेषमप्यमावास्याजातं नेतव्यम्, नवरं मार्गशीष माघीं फाल्गुनी माषाढीममावास्यां कुलोपकुलमपि युनक्तीति वक्तव्यम्, शेषासु त्वमावास्यासु कुलोपकुलं नास्ति । सूवृ पत्र १३१ तिग तिग पंचग सय दोनों वृत्तियों (चंबू व सूवृ) में गाथाएं उद्धृत हैं । १०।१३।८४ सुपीए- 'ट' सुठिए 'व' सुट्ठीजे 'चंवृ' पंचमः स्थपीति: । 'सूवृ' पञ्चमः सुपीतः । बंभे - 'ट' पम्हे 'चंवृ' नवमः पक्ष्मः | 'सूवृ' नवमः ब्रह्मा । तट्ठे--‘चंवृ’ द्वादशं स्रष्टा । 'सूवृ' द्वादश त्वष्टा । वारुणे - 'ट' वावरे 'चंवृ' अपरः पञ्चदश: । 'सूवृ' पंचदश: वारुणः । वीससेणे - 'ट' विजयसेणे 'चंवृ' अष्टादशो विजयसेनः । ' सूवृ' अष्टादशो विश्वसेनः । सव्वट्ठे –'चंवृ' एकोनत्रिशतितमः सत्यवान् । 'सूवृ' एकोनत्रिशत्तमः सर्वार्थः । सूवृ पत्र १३३ तत्र धनिष्ठा तस्मिन् भाद्रपदे मासे प्रथमान् चतुर्दश अहोरात्रान् स्वयं अस्तङ्गमनेनाहोरात्रपरिसमापकतया नयति, तदनन्तरं शतभिषक्नक्षत्रं सप्ताहोरात्रान् ततः एवं शेषमासगतान्यपि सूत्राणि भावनीयानि । सूवृ तृतीयो मणोहर : दिवसा । दिवसा आख्याता इति वदेत् । Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसिट्ठ १०।२२।१४८ चंवृ पत्र ११० चन्द्रविषयमतिदेशमाह— एवमित्यादि एवं येनाभिलापेन चन्द्रस्य पौर्णमास्य उक्तास्तेनवभिलापेनाऽमावास्याऽपि वक्तव्यास्तद्यथा प्रथमा द्वितीया तृतीया द्वादशी । १८ ।१ चं पत्र १५५ वयं पुण मित्यादि । वयं पुनरुत्पन्नकेवलज्ञाना एवं वक्ष्यमाणेन वदामस्तमेव प्रकारमाह । ता इमीसे इत्यादि । ता इति पूर्ववत् अस्या रत्नप्रभायाः पृथ्व्याः बहुसमरमणीयाद्भूमिभागादृर्वं सप्तयोजनशतानि नवत्यधिकानि अबाधया कृत्वा इति गम्यते । अन्तरीकृत्येति भावः अत्रान्तरेऽधस्तनोरूपं ज्योतिश्चक्रं चारं चरति । मंडलगत्या परिभ्रमणं प्रतिपद्यते । तस्या अस्या एव रत्नप्रभायाः पृथिव्या बहुसमरमणीयात् भूमिभागात् ऊर्ध्वमष्टी योजनशतान्यबाधया कृत्वा अत्रान्तरे सूर्यविमानं चारं चरति । तथा अस्या रत्नप्रभायाः पृथिव्या बहुसमरमणीयाद् भूमिभागाद् उद्धर्वमष्टी योजनशतान्यबाधया कृत्वा अत्रान्तरे सूर्यविमानं चारं चरति । तस्मादेवाधस्तया अस्या रत्नप्रभायाः पृथिव्या बहुसमरमणीयात् भूमिभागा अष्टी योजनशतानि अशीत्यधिकानि अबाधया कृत्वा अत्रान्तरे सूर्यविमानं चारं चरति । तस्मादेवाधस्तनात् तारारूपाज्जोतिश्चक्रादृद्धर्वं नवति योजनान्यूर्ध्व मबाधया कृत्वा अत्रान्तरे चन्द्रविमानं चारं चरति । दशोत्तरयोजनशतमबाधया कृत्वा अत्रान्तरे चंद्रविमानं चारं चरति । ७०ह सूवृ पत्र १८४ चन्द्रविषयं प्रश्नसूत्रमाह-'ता एएसि ण' मित्यादि, तत्र युगे एतेषामनन्तरोदितानां पञ्चानां संवत्सराणां मध्ये प्रथमाममावस्यां चन्द्रः कस्मिन्देशे स्थितः परिसमापयति ? भगवानाह 'ता जंसिण' मित्यादि, तत्र यस्मिन् देशे स्थितः सन् चन्द्रश्चरमां द्वाषष्टि-द्वाषष्टितमाममावस्यां परिसमापयति, ततोऽमावास्यास्थानाद् - अमावास्यापरिसमाप्ति स्थानात् परतो मण्डलं चतुर्विंशत्याधिकेन शतेन छित्त्वा तद्गतान् द्वात्रिंशतं भागान् उपादायात्र प्रदेशे स चन्द्रः प्रथमाममावास्यां परिसमापयति 'एव' मित्यादि, एवमुक्तेन प्रकारेण येनैवाभिलापेन चन्द्रस्य पौर्णमास्यो भणितास्तेनवाभिलापेनामावास्या अपि भणितव्याः । तद्यथा— द्वितीया तृतीया द्वादशी च । सूवृ पत्र २६१ 'वयं पुण एवं वदामो' इत्यादि, वयं पुनरुत्पन्नकेवलवेदसः एवं वक्ष्यमाणेन प्रकारेण वदामस्तमेव प्रकारमाह- 'ता इमीसे' इत्यादि, ता इति पूर्ववत्, अस्या रत्नप्रभायाः पृथिव्या बहुसमरमणीयात् भूमिभागादूर्ध्वं सप्तयोजनशतानि नवतानि नवत्यधिकानि उत्प्लुत्य गत्वा अत्रान्तरे अधस्तनं ताराविमानं चारं चरति --- मण्डल गत्या परिभ्रमणं प्रतिपद्यते । Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरपण्णत्ती दशोत्तरं योजनशतमबाधया कृत्वा अत्रान्तरे सर्वोपरितनं तारारूपं ज्योतिश्चक्रं चारं चरति । तथा सुरविमाणातो इत्यादि । ता इति तस्मात्सूर्यविमानादूद्धर्वमशीतियोजनान्यबाधया कृत्वा अत्रान्तरे चन्द्रविमानं चारं चरति । एवं जहेव जीवाभिगमे तहेव नेयव्वमिति एवमुक्तेन प्रकारेण यथैव जीवाभिगमेऽभिहितं तथैव ज्ञातव्यम्। १६१ चंवृ पत्र १६१ सूवृ पत्र २७१ एवमवतेन प्रकारेण एतेनानन्तरोदितेनाभिलापेन एवं-उक्तेन प्रकारेण एतेनानन्तरोदितेनाभिलापेन या एव तृतीये प्राभूते द्वादशप्रतिपत्तयः उक्तास्ता तृतीयप्राभतप्राभतोक्तप्रकारेण द्वादशप्रतिपत्तिएव इहापि ज्ञातव्याः नवरमनेन क्रमेण ज्ञातव्या- विषयं सकलमपि सूत्र नेतव्यं, तच्चैवम्-.-'सत्तचंदा श्चतुर्थ्यां प्रतिपत्तौ प्रत्येक सप्त चन्द्रा: सूर्याश्च सत्त सूरा' इति, एगे पुण एवमाहंसू ता सत्त.. वक्तव्याः । पंचम्यां दश एवं यावद् द्वादश्यां प्रतिपत्तौ द्वाशप्ततं चन्द्रसहस्रं द्वासप्तसूर्यसहस्रमिति । तत्र चैवमभिलाप: एगे पुण एवमासु । ता सत्त....." चंवृ पत्र १६१ १६।१ सूवृ पत्र २७२ ता जंबूद्दीवे णं दीवे दो चंदा इत्यादि अत्र जहा 'ता जंबुद्दीवे णं दीवे दो चंदा इत्यादि, जम्बूद्वीपे जीवाभिगमे जाव ताराओ ति वचनं सूत्रं पाठो द्वौ चन्द्रौ........ द्रष्टव्यः । दो चंदा पभासिंसु वा पभासिति वा । दो सूरिया तवयंसु वा तवयंति वा तवइस्संति वा । छप्पन्नं णक्खत्ता जोगं जोएंसु वा जोयंति वा जोइस्संति वा । छावत्तरं गहसयं चारि चरिंसु वा चरिस्संति वा। एगं सयसहस्सं बत्तीसं च सहस्सा नव सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं सोमंसु वा सोभिस्संति वा दो चंदा दो सूरा नक्खत्ता खलु हवंति छप्पन्ना । बावत्तरं गहसयं, जंबूदीवे वियारी णं ॥ एगं च सयसहस्सं तेत्तीसं खलु भवे सहस्साई। नवसयसया पन्नासा, तारागणकोडिकोडीणं ॥ इति । अस्य व्याख्या द्वौ चंद्रो... चंवृ पत्र १६२।१ सूवृ पत्र २७३ ता लवणे समुद्दे चत्तारि चंदा पभासिंसु वा जाव ता लवणेणं समुद्दे इत्यादि सुगम, लवणसमुद्दे ताराउत्तिवचनं......." । इदं सकलमपि सूत्रं सुगमं चत्वारः । Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७११ परिसिठ्ठ नवरम् लवणसमुद्दे चत्वारः । चंवृ १६२११ सूवृ पत्र २७३ ता लवणन्नं समुद्दमित्यादि सुगम। ता धायइ- 'ता लवणं णं समुद्द' मित्यादि सकलमपि सुगमम्, संडेणमित्यादि । अत्र जहा जीवाभिगमे जाव नवरम् ताराउत्ति.............तारागणकोडिकोडीणमिति । इदमपि सुगमं नवरं चंवृ पत्र १६२।२ सूवृ पत्र २७३ धायइसंडेणमित्यादि सुगमं । ता कालोए णं समुद्दे ता धायइसंडण्ण' मित्यादि, एतदपि सकलं सुगम, इत्यादि । अत्र एवं विष्कंभो......"तारागणकोडि- 'ता कालोए णं समुद्दे' इत्यादि, एतदपि सुगम, कोडीणमिति एतदपि सुगमं । नवरं नवरं चंवृ १६३।१ सूवृ २७३ ता कालोय णं समुद्दपुक्खरवरेण मित्यादि सुगम, ता कालोयं णं समुदं पुक्खरवरेण मित्यादि सुगम, ता पुक्खरवरेणमित्यादि। अत्र एवं विष्कंभो गणितभावना त्वियं पुष्करवरद्वीपस्य पूर्वतः षोडश परिक्खेवो इमं जाव ताराउत्ति तारागणकोडि- लक्षा अपरतोपीति द्वात्रिंशल्लक्षाः कालोदधेः कोडीणमिति सुगम । गणितभावना त्वियं पुष्क- पूर्वतोष्टी अपरतोऽप्यष्टाविति षोडश धातकीखण्ड रखरदीपस्यैकतोपि चक्रवालविष्कभः षोडशलक्षा एकतोपि चतस्रो लक्षा अपरतोपि चतस्र इत्यष्टौ । परतोपि षोडशेति । द्वात्रिंशतिकालोदधिसमुद्रे एकतोप्यष्टी लक्षा अपरतोप्यष्टाविति षोडशधातकीषंडे त्वेकतोपि चतस्रो लक्षा: अपरतोपि चतम्रो। चंव पत्र १६३ सूवृ पत्र २७४ ता अभ्यंतरपुक्खरद्धणमित्यादि सुगमं ।""तारा- ता अभितरपुक्खरद्धे वा' मित्यादि सर्वमपि सुगम, गणकोडिकोडीणं । सोभेसु वा इति सुगमं । नवरं नवरं परिधिगणितभावना परिधिगणितभावना चंव पत्र १६४।१ से १६५।१ सूवृ पत्र २७४ ता मणसखेत्तेणं केवइयं आयामविष्कंभेणं केवइयं ता मणु सखेत्ते णं केवइयमित्यादि सुगमं । नवरं परिक्खेवेणं आहियत्ति वएज्जा। एवं विष्कंभो मानुषक्षेत्रस्यायामविष्कंभपरिमाणं पञ्चचत्वारिंपरिक्खेवो जोइसं जोइसगाओ य जाव एकससी- शल्लक्षा: परिवारो...""एतस्य समस्तस्यापि सूत्रस्य क्रमेण व्याख्या तत्र मनुष्यक्षेत्रस्यायामविष्कंभविषये पंचचत्वारिंशल्लक्षाः चंवृ पत्र १७६ सूवृ पत्र २६३ तथा विचित्र नारूपैरुल्लोचैश्चन्द्रोदयैराकीणं विचित्रेण -विविधचित्रयुक्तेनोल्लोचेन ...- चन्द्रोक्वचित् । चिल्लगाति पाठसूत्रचिल्लगं देदीप्यमानं दयेन 'चिल्लियं' त्ति दीप्यमानं Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ सूरपण्णत्ती चंवृ पत्र १७७ सूवृ पत्र २६५ तत्थ खलु इत्यादि । तत्र तेषु चंद्रसूर्यग्रहनक्षत्र- तत्थ खलु' इत्यादि, तत्र-तेषु चन्द्रसूर्यनक्षत्रतारातारारूपेषु मध्ये इमेऽष्टाशीति संख्या ग्रहाः प्रज्ञप्ता- रूपेषु मध्ये ये पूर्व मष्टाशीतिसङ्ख्या ग्रहा: प्रज्ञप्ताः स्तद्यथा इंगालए इत्यादि अंगारक: १ विकालक: ते इमे, तद्यथा 'इंगालए' इत्यादि सुगम एतेषा२ लोहिताक्षः ३ शनैश्चरः ४......."अतवृत्ति: ८० मेव नाम्नां सुखप्रतिपत्त्यर्थं संग्रहणीगाथाषट्कमाह एकजटी ८१ द्विजटी ८२ करः ८३ करिक: ८४ इंगालए वियालए लोहियंके सणिच्छरे चेव ।.... राजा ८५ अर्गल: ८६ भावकेतु ८७ धूम्रकेतुः अनिवृत्ति ७६ एकजटी ८० द्विजटी ८१ करः ८२ पुष्पकेतुः ८८ एते अंगारकादयो ग्रहाः सर्वेपि करिकः ८३ राज: ८४ अर्गल: ५५ पूष्पः ८६ प्रत्येक चतुर्णां सामानिकसहस्राणां चतसणां अग्र- भावः ८७ केतु: ८८। सम्प्रति सकलशास्त्रोपमहिषीणां सपरिवाराणां तिसणां पर्षदां सप्ता- सहारमाह-" नामनीकानां सामानीकाधिपतीनां षोडशानां आत्मरक्षकदेवसहस्राणामन्येषां च स्वविमानवास्तव्यानि देवानां चाधिपत्यमनुभवन्ति । सम्प्रति सकलशास्त्रोपसंहारमाह--- चंवृ पत्र १७८ सूवृ पत्र २६६ एसगहियावसंतीथद्धेगार वियमाणि पडिणीए। 'एषा गहियावि' इत्यादि गाथाद्वयं, एषा... अबहस्सुए न देयातविचरीए भवेदेया एषा चन्द्र- सूर्यप्रज्ञप्ति: स्वयं सम्यक्करणेन ....... प्रज्ञप्तिः सूर्य सम्यक्करणेन........ सद्धाधिउढाणुच्छाहकम्मबलविरियपुरिसकारेहिं । 'सद्धे' त्यादि, श्रद्धा श्रवणम जो सिक्खाओविसंतो अभायणे पविखविज्जाहि । सो पवयणकुल-गण-संघबाहिरो नाणविणयपरिहीणो अरहंत-थेर-गणहर-मेरं किर होइ बोलीणे श्रद्धा श्रवणं........ स्वयं शिष्यतोपि चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्रार्थोभयोपि सन् स्वयं शिक्षितोषि ...गृहीतसूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रार्थोभयोपि यो दाक्षिण्यादिना अन्तेवासिन्यभाजनेऽयोग्ये सन् यो दाक्षिण्यादिना अन्तेवासिनि अभाजने .. प्रक्षिपेत्....... अयोग्ये प्रक्षिपेत् ..... यत् चन्द्रप्रज्ञप्तिलक्षणं ज्ञानं मुमुक्षणा सता यत् ज्ञान... सूर्यप्रज्ञप्त्यादि स्वयं मुमुक्षुणा सता शिक्षितं । तन्नियमादात्मन्येव धर्तव्यम् । ननु शिक्षित तन्नियमादात्मन्येव धर्त्तव्यं, न तु जातुजातुचिदप्यविनीतेषु दातव्यं तदानोक्तप्रकारेण चिदप्यविनीतेषु दातव्यं, उक्तप्रकारेण तद्दाने आत्म पर...... आत्म -पर........... Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवंगा निरयावलियाओ कपafsसियाओ पुल्फियाओ पुप्फचूलियाओ वहिदसाओ Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो निरयावलियाओ पढमं अज्मयणं काले उक्खे व-पदं १. लेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था रिद्ध-त्थिमिय-समिद्धे । 'गुणसिलए चेइए'२...वण्णओ' । असोगवरपायवे । पुढविसिलापट्टए। २. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नाम अणगारे जाइसंपण्णे जहा केसी जाव' पंचहि अणगारसएहिं सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, रायगिह-नयरस्स बहिया गुणसिलए चेइए° अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं' 'तवसा अप्पाणं भावेमाणे° विहरइ। परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया ॥ ३. तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स अंतेवासी जंबू नाम अणगारे 'कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे" समचउरंससंठाणसंठिए जाव" संखित्तविउलतेयलेस्से अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू" "अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे° विहरइ॥ ४. तए णं से भगवं जंबू जायसड्ढे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-उवंगाणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अठे पण्णत्ते ।। ५. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं उवंगाणं पंच वग्गा १. पू०--- ओ० सू० १। नयरे जाव अहापडिरूवं । २. उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए गुणसिलए नाम चेइए ८. सं० पा०--संजमेणं जाव विहरइ । होत्था (व)। ६. X (क,ख,ग)। ३. ओ० सू० २-७ । १०. ओ० सू० ८२। ४. पू०-ओ० सू० ८-१२ । ११. सं० पा०.-उड्ढंजाण जाव विहरइ । ५. पू०-ओ० सू० १३ । १२. ओ० सू० ८३ । ६. राय० सू० ६८६ । १३,१४. ना० १११७ । ७. सं० पा०--चरमाणे जाव जेणेव रायगिहे ७१५ Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१६ निरयावलियाओ पण्णत्ता, तं जहा--निरयावलियाओ कप्पडिसियाओ पुफियाओ पुप्फचूलियाओ' वण्हिदसाओ। ६. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंच वग्गा पण्णत्ता, तं जहा --निरयावलियाओ' जाव' वण्हिदसाओ। पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स उवंगाणं निरयावलियाणं समजेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं कई अज्झयणा पण्णत्ता? ७. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं उवंगाणं पढमस्स वग्गस्स निरयावलियाणं' दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा काले सुकाले महाकाले, कण्हे सुकण्हे तहा महाकण्हे । वीरकण्हे य बोद्धव्वे, रामकण्हे तहेव य ॥ पिउसेणकण्हे नवमे, दसमे महासेणकण्हे उ॥ ८. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेण उवंगाणं पढमस्स वग्गस्स निरयावलियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स निरयावलियाणं समजेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अठे पण्णत्ते ? ६. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपा नाम नयरी होत्था..-रिद्ध-स्थिमिय-समिद्धं । पूण्णभइ चेरइ ।। १०. तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए कणिए नाम राया होत्था महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे । ११. तस्स णं कूणियस्स रण्णो पउमावई नामं देवी होत्था--सूमालपाणिपाया जाव माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणी विहरइ ॥ कालीए चिता-पदं १२. तत्थ णं चंपाए नयरोए सेणियस्स रण्णो भज्जा कूणिरस्त रण्णो चुल्लमाउया काली नामं देवी होत्था - सूमालपाणिपाया जाव सुरूवा।। १३. तीसे णं कालीए देवीए पुत्ते काले नाम कुमारे होत्था सूमालपाणिपाए जाव सुरूवे ॥ १४. तए णं से काले कुमारे अण्णया कयाइ तिहिं दंतिसहस्सेहिं तिहिं आससहस्सेहि तिहिं रहसहस्सेहिं तिहिं मणुयकोडीहिं गरुलवूहे एक्कारसमेणं खंडेणं कूणिएणं रण्णा १. पुप्फचूलाओ (क,ग)। ६. य (क); - (ग) । २. ना० १२१७ । १०,११. ना० १११७ । ३. निरियावलिताओ (क)। १२. पू....-.ओ० सू०१४ । ४. उ० १।४। १३. ओ० सू० १५ । ५,६. ना० १।१७। १४. ओ० सू० १५। ७. णेरयियावलिताणं (क); निरावलियाणं १५. ओ० सू० १४३ । (ग)। १६. गरुलवूहे (ग)। ८. ४ (क,ख)। १७. खंधणं (क)। Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं ७१७ सद्धि रहमुसलं संगामं ओयाए । १५. तए णं तीसे कालीए देवीए अण्णया कयाइ कुडुबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे' समुप्पज्जित्था एवं खलु मम पुत्ते काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहि तिहि आससहस्सेहिं तिहिं रहसहस्सेहिं तिहिं मणुयकोडीहिं गरुलव्हे एक्कारसमेणं खंडेणं कूणिएणं रण्णा सद्धि रहमुसलं संगाम ओयाए---- से मण्णे किं जइस्सइ ? नो जइस्सइ ? जीविस्सइ ? नो जीविस्सइ ? पराजिणिस्सइ ? नो पराजिणिस्सइ ? कालं णं कुमारं अहं जीवमाणं पासिज्जा ? ओहयमण संकप्पा करयलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ओमंथियवयणनयणकमला दीणविवण्णवयणा' झियाइ॥ भगवओ महावीरस्स समवसरण-पदं १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए। परिसा निग्गया ॥ १७. तए णं तीसे कालीए देवीए इमीसे कहाए लट्ठाए' समाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव' समुप्पज्जित्था एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्बाणपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागते जाव विहरइ, तं महाफलं खलु तहारूवाणं 'अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण' विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं समणं भगवं •महावीरं वंदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि। इमं च णं एयारूवं वागरणं पुच्छिस्सामित्तिकटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तमेव उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ १८. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ १६. तए णं सा काली देवी हाया कयबलिकम्मा •कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगलाई वत्थाई पवर परिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा बहूहि खुज्जाहिं जाव' महत्तरगवंदपरिक्खित्ता अंतेउराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता नियगपरियालसंपरिवुडा चंपं नयरि मज्झमझेणं निग्गच्छइ, १. सं० पा०-अज्झस्थिए जाव समुप्पज्जित्था। ७. ओ० सू० ५२ । २. सं० पा०-दंतिसहस्सेहिं जाव ओयाए। ८. सं० पा०-- तहारूवाणं जाव विउलस्स । ३. न वेत्येवम् --- वृत्तौ इति सम्बन्धयोजना ६. सं० पा० .... भगवं जाव पज्जूवासामि । __ कृतास्ति । १०. सं० पा०-- उववेत्ता जाव पच्चप्पिणंति । ४. सं० पा०-ओहयभण जाव झियाइ। ११. स० पा०—कयबलिकम्मा जाव अप्प० । ५. लद्धठे (क,ग)। १२. ओ० सू० ७० । ६. उ० १११५ । १३. विद° (ग)। Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१८ निरयावलियाओ निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्ण भद्दे चेइए तेणेव उवागच्छ इ, उवागच्छित्ता छत्तादीए' तित्थयरातिसए पासइ, पासित्ता धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ, ठवेत्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता बहूहिं खुज्जाहिं जाव महत्तरगवंदपरिक्खित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता ठिया' चेव सपरिवारा सुस्सूसमाणी नमसमाणी अभिमहा विणएणं पंजलिउडा पज्जवासइ॥ २० तए णं समणे भगवं महावीरे' कालीए देवीए तीसे य महइमहालियाए इसिपरिसाए 'धम्म परिकहेइ" जाव एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए समणोवासए वा समणोवासिया वा विहरमाणे आणाए आराहए भवइ॥ कालीए पुच्छा-पदं २१. तए णं सा काली देवी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म' 'हट्टतुटु-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो' 'आयाहिण-पयाहिणं करेति, करेत्ता वंदति णमंसति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु भंते ! मम पुत्ते काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं तिहिं आससहस्सेहिं तिहिं रहसहस्सेहिं तिहिं मणुयकोडीहिं गरुलव्वूहे एक्कारसमेणं खंडेणं कूणिएणं रण्णा सद्धिं रहमुसलं संगामं ओयाए-से णं भंते ! किं जइस्सइ ? नो जइस्सइ ? •जीविस्सइ ? नो जीविस्सइ ? पराजिणिस्सइ ? नो पराजिणिस्सइ° ? कालं णं कुमारं अहं जीवमाणं पासेज्जा ? भगवओ उत्तर-पदं २२. कालीइ ! समणे भगवं महावीरे कालिं देवि एवं वयासी-एवं खलु काली ! तव पुत्ते काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव" कूणिएणं रण्णा सद्धि रहमुसलं संगामं संगामेमाणे हयमहिय-पवरवीरघाइय-निवडियचिंधज्झयपडागे'२ निरालोयाओ दिसाओ करेमाणे चेडगस्स रण्णो सपक्खं सपडिदिसि रहेणं पडिरहं हव्वमागए। तए णं से चेडए राया कालं कुमारं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निलाडे साहट्ट धणुं परामुसइ, परामुसित्ता उसुं परामुसइ, परामुसित्ता वइसाहं ठाणं ठाइ, ठिच्चा आयय-कण्णाययं उसु करेइ, करेत्ता कालं कुमारं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेइ । तं कालगए" णं काली ! काले कुमारे, नो चेव १. सं० पा०-छत्तादीए जाव धम्मियं । २. ठितिया (क,ख)। ३. जाव (क,ख,ग)। ४. पू....ओ० सू० ७१-७७ । ५. धम्मकहा भाणियव्वा (क,ख,ग)। ६. सं० पा०—निसम्म जाव हियया । ७. सं० पा.-... तिक्खुत्तो जाव एवं । ८. सं० पाo.-दंतिसहस्सेहिं जाव रहमुसलं । ६. सं० पा०-जइस्सइ जाव कालं । १०. पासेमित्ती (क); पासित्ता (ग)। ११. उ० ११४। १२. विपडितचिधंधया० (क) । १३. सं० पा०-आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे धणुं । १४. कालं गए (क)। Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं णं तुमं कालं कुमारं जीवमाणं पासिहिसि ॥ कालीए मुच्छा-पदं २३. तए णं सा काली देवी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयम8 सोच्चा निसम्म महया पुत्तसोएण' अप्फुण्णा समाणी परसुनियत्ता' विव चंपगलया धसत्ति धरणीयलंसि सव्वंगेहिं संनिवडिया ॥ कालीए पडिगमण-पदं २४. तए णं सा काली देवी मुहुत्तंतरेणं आसत्था समाणी उट्टाए उठेइ, उठेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! सच्चे णं! एसमठे से जहेयं तुब्भे वदहत्ति कटु समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसि पडिगया । कालकुमारस्स निरय-उववत्ति-पदं २५. भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदिता नमंसित्ता एवं वयासी---काले णं भंते ! कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव' रहमुसलं संगाम संगामेमाणे चेडएणं रण्णा एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोविए समाणे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववण्णे ? ॥ २६. गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी–एवं खलु गोयमा ! काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव' रहमुसलं संगामं संगामेमाणे चेडएणं रण्णा एगाहच्चं कू डाहच्चं जीवियाओ ववरोविए समाणे कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए हेमाभे नरगे दससागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णे ॥ २७. काले णं भंते ! कुमारे केरिसएहिं आरंभेहि केरिसएहिं आरंभ-समारंभेहिं केरिसएहिं भोगेहि केरिसएहिं भोग-संभोगेहिं केरिसेण वा असुभकडकम्मपन्भारेणं कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए जाव' नेरइयत्ताए उववण्णे ? चेल्लणाए दोहद-पदं २८. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्थारिद्ध-स्थिमिय-समिद्धे ॥ २६. तत्थ णं रायगिहे नयरे सेणिए नामं राया होत्था-महयाहिमवंत-महंत-मलयमंदर-महिंदसारे॥ ___३०. तस्स णं सेणियस्स रणो नंदा नामं देवी होत्था-सूमालपाणिपाया जाव' विहरइ॥ ३१. तस्स णं सेणियस्स रण्णो पुत्ते नंदाए देवीए अत्तए अभए नाम कुमारे होत्था१. पासिहसि (क)। ५. उ० १।१४ । २. सोएणं (ग)। ६. उ० १।२६ । ३. परिसु० (क)। ७. ओ० सू०१५। ४. उ० १।१४। Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० निरयावलियाओ सूमालपाणिपाए जाव' सुरूवे, साम-दंड-भेय-उवप्पयाण-अत्थसत्थ-ईहामइ-विसारए जहा चित्तो जाव' रज्जधुराए चिंतए यावि होत्था ।। ३२. तस्स णं सेणियस्स रण्णो चेल्लणा नामं देवी होत्था--सूमालपाणिपाया जाव विहरई॥ ३३. तए णं सा चेल्लणा देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि जाव सीहं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा जहा पभावई जाव' सुमिणपाढगा पडिविसज्जिया जाव चेल्लणा से वयणं पडिच्छित्ता जेणेव सए भवणे तेणेव अणुपविट्ठा ॥ ३४. तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अण्णया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउन्भूए--धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओं, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासि अम्मयाणं माणुस्सए' जम्मजीवियफले , जाओ णं सेणियस्स रण्णो उयरवलिमसेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधं च° पसण्णं च आसाएमाणीओ" “विसाएमाणीओ परिभाएमाणीओ परि जेमाणीओ दोहलं विणेति१२ ॥ ३५. तए णं सा चेल्लणा देवी तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा नित्तेया दीणविमणवयणा पंडुलइयमुही ओमंथियनयणवयणकमला जहोचियं पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारं अपरि जमाणी करयलमलियव्व कमलमाला ओहयमणसंकप्पा जाव" झियाइ । ३६. तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अंगपडियारियाओ चेल्लणं देवि सुक्कं भुक्खं जाव" झियायमाणि पासंति, पासित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल •परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु सेणियं रायं एवं वयासी–एवं खलु सामी ! चेल्लणा देवी न याणामो केणइ कारणेणं सुक्का भुक्खा जाव झियाइ॥ ३७. तए णं से सेणिए राया तासिं अंगपडियारियाणं अंतिए एयम; सोच्चा निसम्म तहेव संभंते समाणे जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेल्लणं देवि १. ओ० सू० १४३ । १०. सं० पा०-सुरं च जाव पसण्णं । २. राय० सू० ६७५ । ११. सं० पाo.-आसाएमाणीओ जाव परिभाए३. ओ० सू० १५ । माणीओ। ४. भग० ११।१३३ । १२. पविणेति (ख); विणंजंति (ग)। ५. भग० ११११३४-१४३ । १३. पाण्डु कियमुखी (वृ)। ६. भग० ११११४३,१४४ । १४. उ० १११५। ७. चिल्लणा (ग)। १५. उ० ११३५ । ८. सं० पा०.- अम्मयाओ जाव जम्म० । १६. झियायभाणं (क) । ६. °फलं (क)। १७. सं० पा०--करयल० । Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं ७२१ सुक्क भुक्खं जाव' झियायमाणि पासित्ता एवं वयासी-किं णं तुम देवाणुप्पिए ! सुक्का भुक्खा जाव झियासि ?॥ ३८. तए णं सा चेल्लणा देवी सेणियस्स रण्णो एयमढें नो आढाइ नो परिजाणइ तुसिणीया संचिट्ठइ॥ ३६. तए णं से सेणिए राया चेल्लणं देवि दोच्चंपि तच्चपि एवं वयासि-किं णं अहं देवाणुप्पिए ! एयमस्स नो अरिहे सवणयाए, जं णं तुम एयमट्ठ रहस्सीक रेसि?।। ४०. तए णं सा चेल्लणा देवी सेणिएणं रण्णा दोच्चंपि तच्चपि एवं वुत्ता समाणी सेणियं रायं एवं वयासी- नत्थि णं सामी ! से केइ अठे जस्स णं तुब्भे अणरिहा सवणयाए, नो चेव णं इमस्स अट्ठस्स सवणयाए। एवं खलु सामी ! ममं तस्स ओरालस्स जाव' महासुमिणस्स तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउब्भूएधण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव जाओ णं तुब्भं उयरवलिमसेहिं सोल्लएहि य जाव दोहलं विणेति। तए णं अहं सामी ! तंसि दोहलंसि' अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा जाव झियामि ॥ ४१. तए णं से सेणिए राया चेल्लणं देवि एवं वयासी -मा णं तुमं देवाणुप्पिए ! ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि । अहं णं तहा घत्तिहामि" जहा णं तव दोहलस्स संपत्ती भविस्सइत्तिकटु चेल्लणं देवि ताहि इट्टाहिं कंताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिंधण्णाहिं मंगल्लाहि मितमहरसस्सिरीयाहिं वग्गृहि समासासेड समासासेत्ता चेल्लणाए देवीए अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीयित्ता तस्स दोहलस्स संपत्तिनिमित्तं बहूहिं 'आएहि य" उवाएहि य उप्पत्तियाए य वेणइयाए य 'कम्मियाए य पारिणामियाए य परिणामेमाणे-परिणामेमाणे तस्स दोहलस्स आयं वा उवायं वा ठिई वा अविंदमाणे ओहयमणसंकप्पे जाव झियाइ॥ दोहद-संपन्नता-पदं ४२. इमं च णं अभए कुमारे पहाए जाव* अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं ओहयमणसंकप्पं जाव५ झियायमाणं १. उ० ११३५ । २. करेहि (क)। ३. उ० ११३३ । ४. उ० ११३४ । ५. उ० ११३४ । ६. दोहलयंसि (क)। ७. अणवणिज्जमाणंसि (क,ख)। ८. उ० ११३५। ६. उ०१।१५। १०. झियासि (ख,ग)। ११. वत्तिहामि (क्व); जत्तिहामि (क्व) । १२. आएहिं (क,ख,ग)। १३. कम्मियाहि य पारिणामियाहि (क)। १४. उ० १११६ । १५. उ०१।१५। Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ निरयावलियाओ पासइ, पासित्ता एवं वयासी—अण्णया णं ताओ ! तुब्भे ममं पासित्ता हट्ठ' 'तुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण हियया भवह, किं णं ताओ ! अज्ज तुब्भे ओहयमणसंकप्पा जाव झियाह' ? तं जइ णं अहं ताओ! एयमदृस्स अरिहे सवणयाए तो णं तुब्भे मम एयमढें जहाभूयमवितहं असंदिद्धं परिकहेह, जहाणं अहं तस्स अट्ठस्स अंतगमणं करेमि ॥ ४३. तए णं से सेणिए राया अभयं कुमारं एवं वयासी-नत्थि णं पुत्ता ! से केइ अछे जस्स णं तुमं अणरिहे सवणयाए । एवं खलु पुत्ता ! तव चुल्लमाउयाए चेल्लणाए देवीए तस्स ओरालस्स जाव' महासुमिणस्स तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउब्भए-धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव' जाओ णं मम उदरवलिमसेहि सोल्लेहि य जाव' दोहलं विणेति । तए णं सा चेल्लणा देवी तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का जाव' झियाइ । तए णं अहं पुत्ता! तस्स दोहलस्स संपत्तिनिमित्तं बहहिं आएहि य उवाएहि य उप्पत्तियाए य वेणइयाए य कम्मियाए य पारिणामियाए य परिणामेमाणे-परिणामेमाणे तस्स दोहलस्स आयं वा उवायं वा ठिई वा अविंदमाणे ओहयमणसंकप्पे जाव झियामि ॥ ४४. तए णं से अभए कुमारे सेणियं रायं एवं वयासी-मा णं ताओ! तब्भे ओहयमणसंकप्पा जाव" झियाह । अहं णं तहा घत्तिहामि" जहा णं मम चुल्लमाउयाए चेल्लणाए देवीए तस्स दोहलस्स संपत्ती भविस्सइत्ति कटु सेणियं रायं ताहि इटाहि" •कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहि धण्णाहिं मंगल्लाहिं मितमहरसस्सिरीयाहि वग्गूहि समासासेइ, समासासेत्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभिंतरए रहस्सियए ठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तब्भे देवाणप्पिया! सुणाओ अल्लं मंसं सरुहिरं वत्थिपूडगं च गिण्हह, ममं उवणेह ॥ ४५. तए णं ते ठाणिज्जा पुरिसा अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठा करयल •परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसूणेति', पडिसुणेत्ता अभयस्स कुमारस्स अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सूणा तेणेव उवागच्छंति, अल्लं मंसं सरुहिरं वत्थिपुडगं च गिण्हंति, गिण्हिता जेणेव अभए कुमारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए १. अण्णदा (क); अण्णता (ख) । ६. सं० पा.-..आएहिं जाव ठिइं। २. सं० पा०--हट्ट जाव हियया। १०. उ० १।१५। ३. झियायह (ख)। ११. उ० १११५ । ४. जा (क)। १२. झियाअह (ख)। ५. उ० १३३ । १३. वत्तिहामि (ख); वत्तिसामि (ग)। ६. उ० श३४ । १४. सं० पा०--- इट्टाहि जाव वग्गूहिं । ७. उ० ११३४ । १५. सं० पा....करयल जाव पडिसुणेत्ता। ८. उ० ११३५। १६. सं० पा०---करयल०। Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं ७२३ अंजलिं कटु तं अल्लं मंसं सरुहिरं वत्थिपुडगं च उवणेति ॥ ४६. तए णं से अभए कुमारे तं अल्लं मंसं सरुहिरं अप्पकप्पियं करेइ, करेत्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता सेणियं रायं रहस्सियगंसि सयणिज्जंसि उत्ताणयं निवज्जावेइ, निवज्जावेत्ता सेणियस्स उयरवलीसु तं अल्लं मंसं सरुहिरं विरवेइ', विरवेत्ता वत्थिपुउएणं वेढेइ, वेढेत्ता सवंतीकरणेणं' करेइ, करेत्ता चेल्लणं देविं उप्पि पासाए उल्लोयणवरगयं ठवावेइ, ठवावेत्ता चेल्लणाए देवीए अहे सपक्खिं सपडिदिसि सेणियं रायं सयणिज्जसि उत्ताणगं निवज्जावेइ, सेणियस्स रण्णो उयरवलिमसाई कप्पणि-कप्पियाई करेइ, करेत्ता सेयभायणंसि पक्खिवइ॥ ४७. तए णं से सेणिए राया अलियमुच्छियं करेइ, करेत्ता मुहुत्तंतरेणं अण्णमण्णेण सद्धि संलवमाणे चिट्टइ। ४८. तए णं से अभए कुमारे सेणियस्स रण्णो उयरवलिमसाइं गिण्हेइ, गिण्हेत्ता जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेल्लणाए देवीए उवणेइ । ४६. तए णं सा चेल्लणा देवी सेणियस्स रण्णो तेहिं उयरवलिमसेहिं सोल्लेहि य' 'तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी दोहलं विणेइ ॥ गब्भसाडण-चितणा-पदं ५०. तए णं सा चेल्लणा देवी संपुण्णदोहला सम्माणियदोहला' वोच्छिण्णदोहला तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ ॥ ५१. तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे 'अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था—जइ ताव इमेणं दारएणं गब्भगएणं चेव पिउणो 'उयरवलिमसाई खाइयाई", तं सेयं खलु मे एयं गब्भं 'साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए'१ वा विद्धंसित्तए वा–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तं गब्भं बहूहिं गब्भसाडणेहि य गब्भपाडणेहि य गब्भगालणेहि य गब्भविद्धंसणेहि य इच्छइ तं गब्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा विद्धंसित्तए वा, नो चेव णं से गब्भे सडइ वा पडइ वा गलइ वा विद्धंसइ वा ॥ पुत्तपसव-पदं ५२. तए णं सा चेल्लणा देवी तं गब्भं जाहे नो संचाएइ बहूहिं गब्भसाडणेहि य जाव'२ गब्भविद्धंसणेहि य साडित्तए वा जाव" विद्धंसित्तए वा ताहे संता तंता परितंता १. कप्पणिकप्पियं (क,ख,ग)। ८. सं० पा०-अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था । २. रहस्सिगयं (क)। है. मंसाणि खाइयाणि (ख,ग)। ३. विरचेइ (ख)। १०. ममं (ख,ग)। ४. वत्थपुडागेण (क)। ११. साडेत्तए वा पाडेत्तए वा गालेत्तए (क)। ५. सवण्णीकरणं (क); सर्वनीकरण (ख)। १२. उ० ११५१। ६. सं० पा०-सोल्लेहि य जाव दोहलं । १३. उ० ११५१ । ७. एवं संमाणियदोहला (क,ख,ग)। Page #801 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२४ निरयावलियाओ निविण्णा समाणी अकामिया अवसवसा अट्टहवसट्टा' तं गब्भं परिवहइ॥ ५३. तए णं सा चेल्लणा देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं' अद्धट्ठमाण राइंदियाणं वीइक्कंताणं सूमालं सुरूवं दारगं पयाया ।। पुत्तस्स उक्कुरुडियाए उज्झणा-पदं ५४. तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए इमे एयारूवे 'अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-जइ ताव इमेणं दारएणं गब्भगएणं चेव पिउणो उयरवलिमंसाइं खाइयाई, तं न नज्जइ णं एस दारए संवड्डमाणे अम्हं कुलस्स अंतकरे भविस्सइ, तं सेयं खलु अम्हं एयं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झावित्तए---एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता दासचेडि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी----गच्छ णं तुमं देवाणुप्पिए ! एयं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झाहि ।। ५५. तए णं सा दासचेडी चेल्लणाए देवीए एवं वुत्ता समाणी करयल परिग्गहियं दसनह सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु चेल्लणाए देवीए एयमठें विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झइ ।। ५६. तए णं तेणं दारएणं एगते उक्कुरुडियाए उज्झितेणं समाणेणं सा असोगवणिया उज्जोविया यावि होत्था ॥. सेणिएण पुत्तस्स पुणराणयण-पदं ५७. तए णं से सेणिए राया इमीसे कहाए लद्धठे समाणे जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झियं पासेइ, पासेत्ता आसुरुत्ते जाव भिसिमिसेमाणे तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेल्लणं देविं उच्चावयाहिं आओसणाहिं आओसइ, उच्चावयाहिं 'निन्भंछणाहिं निब्भंछेइ, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसेइ, उद्धंसेत्ता एवं वयासी-कीस णं तुमं मम पुत्तं एगते उक्कुरुडियाए उज्झावेसि ? त्ति कटु चेल्लणं देवि उच्चावयसवहसावितं.२ करेइ, करेत्ता एवं वयासी-तुमं णं देवाणुप्पिए ! एयं दारगं अणपुवेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी" संवड्ढेहि ॥ ५८. तए णं सा चेल्लणा देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी लज्जिया विलिया विड्डा करयल.५ परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु सेणियस्स रण्णो १. अट्टवसट्टदुहट्टा (ख,ग,व)। २. सं० पा० ---बहुपडिपुण्णाणं जाव सूमाल । ३. सं० पा०--एयारूवे जाव समुप्पज्जित्था । ४. गच्छह (क)। ५. उक्करुडियाए (ख)। ६. सं० पा०...-करयल जाव कटु । ७. उज्झाति (ख,ग)। ८. उ० ११२२ । ६. आउसरणाई (क)। १०. निब्भच्छणाहि निब्भच्छेइ (ख,ग) । ११. एवं (क,ख,ग)। १२. उच्चावयाहिं० (ग)। १३. संरक्खमाणी (ख)। १४. संगोयभाणी (क)। १५. सं० पा०-करयल० । Page #802 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं ७२५ 'एयमट्ट विणएणं" पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दारगं अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवड्ढेइ ॥ सेणिएण पुत्तस्स परिचरिया-पदं ५६. तए णं तस्स दारगस्स एगते उक्कुरुडियाए उज्झिज्जमाणस्स अग्गंगुलिया कुक्कुडिपिच्छएणं' दूमिया वि होत्था, अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयं च सोणियं च अभिनिस्सवेइ॥ ६०. तए णं से दारए वेयणाभिभूए समाणे महया-महया सद्देणं आरसइ । ६१. तए णं से सेणिए राया तस्स दारगस्स आरसियसई सोच्चा निराम्म जेणेव से दारए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता तं अग्गं. गुलियं आसयंसि पक्खिवइ, पक्खिवित्ता पूयं च सोणियं च आसएणं आमुसइ। तए णं से दारए निव्वुए निव्वेयणे तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ ६२. जाहे वि य णं से दारए वेयणाए अभिभूए समाणे महया-महया सद्देणं आरसइ, ताहे वि य णं सेणिए राया जेणेव से दारए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हइ, "गिण्हित्ता तं अग्गंगुलियं आसयंसि पक्खिवइ, पविखवित्ता पूर्य च सोणियं च आसएणं आमुसइ । तए णं से दारए निव्वए' निव्वेयणे तुसिणीए संचिट्रई॥ पुत्तस्स कणिएत्ति नाम-पदं ६३. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो 'पढमे दिवसे ठितिपडियं करेंति, वितिए दिवसे जागरियं करेंति, ततिए दिवसे चंदसूरदंसणियं करेंति, एवामेव निवत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते बारसाहे" जाव' अयमेयारूवं गुणनिप्फण्णं नामधेज्ज करेंति---जम्हा णं अम्हं इमस्स दारगस्स एगते उक्कुरुडियाए उज्झिज्जमाणस्स अग्गंगुलिया कुक्कुडिपिच्छएणं दूमिया, तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं --कूणिए-कूणिए। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज करेंति कुणिए त्ति ॥ ६४. 'तए णं से कूणिए कुमारे पंचधाईपरिग्गहिए जाव' उप्पि पासायवरगए" विहरइ११॥ १. विणएणं एयमट्ठ (क,ख,ग)। २. अग्गंगुलियाए (क)। पाछपण (ख) कुक्कुडापच्छएण (ग)। ४. सं० पा० -तं चेव जाव निव्वेयणे । ५. दंसणं (ग)। ६. तइए दिवसे चंदसूरदंसणियं करेंति जाव संपत्ते बारसाहदिवसे (क,ख); 'बारसमे दिवसे (ग); एतदर्थं द्रष्टव्यम् --ओवाइय (१४४) सूत्रस्य तथा नाया० (१।१।८१) 'बारसाहे' पदस्य पादटिप्पणम् । ७. ना० १३१२८१ । ८. °पिछएणं (ख,ग)। ६. ना० १३१२८२-६३ । १०. पू०...ना० ११११६३ । ११. तए णं तस्स कूणियस्स अगुपुवेणं ठिइवडिय च जहा मेहस्स जाव उप्पि पासायवरगए विहरइ, अट्ठओ दाओ (क,ख,ग)। ६३ सूत्रे प्रतिपादितविषयस्य उपर्युल्लिखितपाठे पुनरावर्तनमस्ति तथा नामकरणानंतरं 'ठिइवडियं' इत्यादिपाठस्य नोपयोगित्वम् । तेनासौ पाठः पाठान्तरत्वेन स्वीकृतः । Page #803 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२६ निरयावलियाओ कणिएण सेणियस्स निग्गह-पदं ६५. तए णं तस्स कूणियस्स कुमारस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्ता वरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्प ज्जित्था-एवं खलु अहं सेणियस्स रण्णो वाघाएणं नो संचाएमि सयमेव रज्जसिरि करेमाणे पालेमाणे विहरित्तए, तं सेयं खलु मम सेणियं रायं नियलबंधणं करेत्ता अप्पाणं महया-महया रायाभिसेएण अभिसिंचावित्तएत्तिकटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सेणियस्स रण्णो अंतराणि य छिद्दाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरइ ।। ६६. तए णं से कणिए कूमारे सेणियस्स रण्णो अंतरं वा छिदं वा विरहं वा मम्म वा अलभमाणे अण्णया कयाइ कालाईए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे सेणियस्स रण्णो वाघाएणं नो संचाएमो सयमेव रज्जसिरि करेमाणा पालेमाणा विहरित्तए, तं सेयं खलु देवाणु प्पिया ! अम्हं सेणियं रायं नियलबंधणं करेत्ता रज्जं च रठं च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागार च जणवदं च एक्कारसभाए विरिचित्ता सयमेव रज्जसिरिं करेमाणाणं पालेभाणाणं विहरित्तए॥ ६७. तए णं ते कालाईया दस कुमारा कूणियस्स कुमारस्स एयमठें विणएणं पडिसुणेति ॥ द. तए णं से कणिए कमारे अण्णया कयाइ सेणियस्स रणो अंतरं जाणइ. जाणित्ता सेणियं रायं नियलबंधणं करेइ, करेत्ता अप्पाणं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचावेइ ।। ६६. तए णं से कूणिए कुमारे राया जाए .. महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदरमहिंदसारे ॥ चेल्लणाए पडिबोह-पदं ७०. तए णं से कुणिए राया अण्णया कयाइ ण्हाए' •कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगलपायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए" चेल्लणाए देवीए पायवंदए हव्वमागच्छइ ।। ७१. तए णं से कूणिए राया चेल्लणं देवि ओहयमणसंकप्पं जाव' झियायमाणि पासइ, पासित्ता चेल्लणाए देवीए पायग्गहणं करेइ, करेत्ता चेल्लणं देवि एवं वयासी-किं णं अम्मो ! तुम्हं न तुट्ठी वा न ऊसए वा न हरिसे वा न आणंदे वा, जं णं अहं सयमेव रज्जसिरि 'करेमाणे पालेमाणे विहरामि ?॥ ७२. तए णं सा चेल्लणा देवी कूणियं रायं एवं वयासी - कहं णं पुत्ता ! ममं तुट्ठी वा ऊसए" वा हरिसे वा आणंदे वा भविस्सइ ? जं णं तुम सेणियं रायं पियं देवयं गुरुजणं अच्चंतनेहाणुरागरत्तं नियलबंधणं करेत्ता अप्पाणं महया-महया रायाभिसेणं अभिसिंचावेसि ?॥ १. सं० पा० ----पुव्वरत्ता जाव समुप्पज्जित्था। २. सं० पा०–अंतरं वा जाव मम्मं । ३. जणवयं (ख)। ४. सं० पा०--हाए जाव सव्वालंकार' । ५. सव्वालंकारभूसिए (क)। ६. उ० १११५ । ७. सं० पा०.-रज्जसिरि जाव विहरामि । ८. ऊसवे (ख)। ६. अभिसिंचावेहि (क,ग)। Page #804 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढ में अज्झयणं ७२७ ७३. तए णं से कणिए राया चेल्लणं देवि एवं वयासी-घाएउकामे णं अम्मो ! ममं सेणिए राया, "मारेउकामे णं अम्मो ! ममं सेणिए राया, बंधेउकामे णं अम्मो ! ममं सेणिए राया, निच्छुभिउकामे णं अम्मो ! ममं सेणिए राया, तं कहं णं अम्मो ! मम सेणिए राया अच्चंतनेहाणुरागरत्ते ?।। ७४. तए णं सा चेल्लणा देवी कूणियं रायं' एवं वयासी एवं खलु पुत्ता ! तुमंसि ममं गब्भे आभूए समाणे तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं ममं अयमेयारूवे दोहले पाउन्भए.--- धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव' जाओ णं सेणियस्स रण्णो उयरवलिमसेहि सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणीओ विसाएमाणीओ परिभाएमाणीओ परिभुजेमाणीओ दोहलं विणेति जाव अहं सेणियस्स रण्णो तेहिं उयरवलिमसेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी दोहलं विणेमि ॥ ७५. तए णं अहं संपुण्णदोहला सम्माणियदोहला वोच्छिण्णदोहला तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहामि ॥ ७६. तए णं ममं अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था जइ ताव इमेणं दारएणं गब्भगएणं चेव पिउणो उयरवलिमसाइं खाइयाई, तं सेयं खलु मे एयं गब्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा विद्धंसित्तए वा--एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता तं गब्भं बहूहिं गब्भसाडणेहि य गब्भपाडणेहि य गब्भगालणेहि य गब्भविद्धंसणेहि य इच्छामि तं गब्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा विद्धंसित्तए वा, नो चेव णं से गब्भे सडइ वा पडइ वा गलइ वा विद्धंसइ वा ॥ ७७. तए णं अहं तं गब्भं जाहे नो संचाएमि बहूहि गब्भसाडणेहि य जाव' गब्भविद्धंसणेहि य साडित्तए वा जाव विद्धंसित्तए वा ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणी अकामिया अवसवसा अट्टदुहट्टवसट्टा तं गब्भं परिवहामि ।। ७८- तए णं अहं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण राइंदियाणं वीइक्कंताणं सूमाल सुरूव दारगं पयामि ॥ ७६. तए णं ममं इमे एयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था --जइ ताव इमेणं दारएणं गब्भगएणं चेव पिउणो उयरवलिमसाई खाइयाई, तं न नज्जइ णं एस दारए संवड्डमाणे अम्हं कुलस्स अंतकरे भविस्सइ, तं सेयं खलु अम्हं एवं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झावित्तए-एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता दासचेडि सद्दावेमि, १. सं० पा० ---एवं मारेउ बंधेउ । २. कुमारं (ख,ग)। ३. सं० पा०.--अम्मयाओ जाव अंगपडिचारि- याओ निरवसेसं भाणियब्वं जाव जाहे वि य णं तुमं वेयणाए अभिभूए महया जाव तुसिणीए। ४. उ०१३४ । ५. उ० ११३५-४८ । ६. उ० ११५१ । ७. उ० ११५१ । Page #805 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२८ निरयावलियाओ सद्दावेत्ता एवं वयामि-गच्छ णं तुम देवाणुप्पिए ! एयं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झाहि॥ ८० तए णं सा दासचेडी ममं एवं वुत्ता समाणी करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु ममं एयमढें विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तुमं करयलपुडेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुमं एगते उक्कुरुडियाए उज्झइ ।। ८१. तए णं तुमे एगते उक्कुरुडियाए उज्झितेणं समाणेणं सा असोगवणिया उज्जोविया यावि होत्था ॥ ८२. तए णं से सेणिए राया इभीसे कहाए लद्धठे समाणे जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुम एगते उक्कुरुडियाए उज्झियं पासेइ, पासेत्ता आसुरुत्ते जाव' मिसिमिसेमाणे तुमं करयलपुडेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव अहं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ममं उच्चावयाहिं आओसणाहिं आओसइ, उच्चावयाहिं निभंछणाहिं निब्भंछेइ, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसेइ, उद्धंसेत्ता एवं वयासी - कीस णं तुमं मम पुत्तं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झावेसि ? त्ति कटु ममं उच्चावयसवहसावितं करेइ, करेत्ता एवं वयासी -तुमं णं देवाणुप्पिए ! एयं दारगं अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवड्ढेहि ॥ ८३. तए णं अहं सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी लज्जिया विलिया विड्डा करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु सेणियस्स रणो एयमझें विणएणं पडिसुणेमि, पडिसुणेत्ता तुमं अणुपुत्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवड्ढेमि ॥ ८४. तए णं तुम्हं एगते उक्कुरुडियाए उज्झिज्जमाणस्स अग्गंगुलिया कुक्कुडिपिच्छएणं दूमिया वि होत्था, अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयं च सोणियं च अभिनिस्सवेइ ।। ८५. तए णं तुमं वेयणाभिभूए समाणे महया-महया सद्देणं आरससि ॥ ८६. तए णं सेणिए राया तुम्हं आरसियसई सोच्चा निसम्म जेणेव तुमं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुमं करयलपुडेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता तं अग्गंगुलियं आसयंसि पक्खिवइ, पक्खिवित्ता पूयं च सोणियं च आसएणं आमुसइ । तए णं तुमं निव्वुए निव्वेयणे तुसिणीए संचिट्ठसि ।। ८७. जाहे वि य णं तुमं वेयणाए अभिभूए समाणे महया-महया सद्देणं आरससि, ताहे वि य णं सेणिए राया जेणेव तुमं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुमं करयलपुडेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता तं अग्गंगुलियं आसयंसि पक्खिवइ, पक्खिवित्ता पूयं च सोणियं च आसएणं आमुसइ । तए णं तुम निव्वुए निव्वेयणे° तुसिणीए संचिट्ठसि--- एवं खलु तव पुत्ता ! सेणिए राया अच्चंतनेहाणुरागरत्ते ।। कणियस्स निवेद-पदं ८८. तए णं से कूणिए राया चेल्लणाए देवीए अंतिए एयमह्र सोच्चा निसम्म चेल्लणं देवि एवं वयासी-दुठ्ठ णं अम्मो ! मए कयं सेणियं रायं पियं देवयं गुरुजणगं अच्चंत१. उ०१।२२। २. उसम्मा (क)। Page #806 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं ७२६ हाणुरागरत्तं नियलबंधणं करतेणं, तं गच्छामि णं सेणियस्स रण्णो सयमेव नियलाणि छिदामित्तिकट्टु परसुहत्थगए 'जेणेव चारगसाला तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ सेणियस्स अपघाय-पदं ८. तणं सेणिए राया कूणियं रायं परसुहत्थगयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी एस णं कूणिए राया' अपत्थियपत्थए' दुरंत-पंत- लक्खणे हीणपुण्णचाउछ सिए सिरि-हिरि-धि- कित्ति - परिवज्जिए परसुहत्थगए इह' हव्वमागच्छइ, तं न नज्जइ णं ममं केणइ कु-मारेणं मारिस्सइत्तिकट्टु भीए' 'तत्थे तसिए उब्विग्गे संजाय भए तालपुडगं विसं आसगंसि पक्खिवइ ॥ ६०. तएण से सेणिए राया ' तालपुडगविसंसि आसगंसि" पक्खित्ते समाणे मुहुत्तंतरेण परिणममाणंसि निप्पाणे निच्चिट्ठे जीवविप्पजढे ओइण्णे || ६१. तए णं से कूणिए राया जेणेव चारगसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं निप्पाणं निच्चिट्ठ जीवविप्पजढं ओइण्णं पासइ, पासित्ता 'महया पिइसोए अप्फुण्णे समाणे परसुनियत्ते विव चंपगवरपायवे धसत्ति धरणीयलंसि सव्वगेहि संनिवड | कूणियस्स विलावकरण-पदं २. तणं से कूणि राया" मुहुत्तंतरेण आसत्थे समाणे रोयमाणे कंदमाणे सोय माणे विलवमाणे एवं वयासी -- अहो णं मए अधणेणं अपुण्णेणं अकयपुण्णेणं दुट्टु कयं सेणियं रायंपियं देवयं गुरुजणगं अच्चंतनेहाणुरागत्तं नियलबंधणं करतेणं, मम मूलागं चेव सेणि राया कालगएत्तिकट्टु ईसर-तलवर" - माडंबिय कोडुंबिय इब्भ-सेट्ठि-सेणावइसत्थवाह-दूय'- संधिवालसद्धि संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे सोयमाणे विलवमाणे महा इड्डीसक्कारसमुदएण सेणियस्स रण्णो नीहरणं करेइ, बहूई लोइयाई मयकिच्चाई करेइ ॥ कणिएण रायहाणीपरिवत्तण-पदं ३. तणं से कूणि राया एएणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे अण्णा कयाइ अंतेउरपरियाल संपरिवुडे सभंडमत्तोवगरणमायाए रायगिहाओ पडिनिक्खमइ, पडनिमित्ता जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ, 'तत्थ वि य" णं विउलभोगसमिइस मण्णा गए कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था ॥ १. कुमारं ( ख, ग ) । २. कुमारे ( ख, ग ) । ३. सं० पा० - अपत्थियपत्थए जाव परिवज्जिए ; थिए ( क ) । ४. इहं ( ख ) । ५. सं० पा० -भीए जाव संजायभए । ६. विसं आसगं ( क ) 1 ७. माणं ( क ) । ८. कुमारे ( ख, ग ) । ६. महया - महया पितसोएणं ( ख ) । १०. कुमारे ( ख. ग ) । ११. सं० पा० तलवर जाव संधिवाल । १२. तेणं (क) । १३. परिवुडे (क, ख, ग ) । १४. तत्थ विणं ( क ) ; तत्थ ( ग ) । Page #807 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरयावलियाऔ वेहल्लस्स गंधहत्यिकीला-पदं ६४. तए णं से कूणिए राया अण्णया कयाइ कालाईए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता रज्जं च •रठं च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च जणवयं च एक्कारसभाए विरिंचइ, विरिचित्ता सयमेव रज्जसिरिं करेमाणे पालेमाणे विहरइ ।। ६५. तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवोए अत्तए कूणियस्स रणो सहोयरे कणीयसे भाया वेहल्ले नामं कुमारे होत्था सूमाले जाव' सुरूवे ।। ६६. तए णं तस्स वेहल्लस्स कुमारस्स सेणिएणं रण्णा जीवंतएणं चेव सेयणए गंधहत्थी अट्ठारसवंके हारे य पुव्वदिण्णे ॥ ६७. तए णं से वेहल्ले कुमारे सेयणएणं गंधहत्थिणा अंतेउरपरियालसंपरिवुडे चंप नयरि मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता अभिक्खणं-अभिक्खणं गंगं महाणई मज्जणयं ओयरइ । तए णं सेयणए गंधहत्थी देवीओ सोंडाए' गिण्हइ, गिण्डित्ता अप्पेगयाओ पटठे ठवेइ, अप्पेगइयाओ खंधे ठवेइ, अप्पेगइयाओ कुंभे ठवेइ, अप्पेगइयाओ सीसे ठवेइ, अप्पेगइयाओ दंतमूसले ठवेइ, अप्पेग इयाओ सोंडाए गहाय उड्ढं वेहासं उविहइ, अप्पेगइयाओ सोंडागयाओ अंदोलावेइ, अप्पेगइयाओ दंतंतरेसु नीणेइ, अप्पेगइयाओ 'सीभरेणं ण्हाणेइ, अप्पेगइयाओ अणेगेहिं कीलावणेहिं कीलावेइ॥ हार-गंधहित्थ-विवाद-पदं ६८. तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-[चउम्मुह? ] महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं° परूवेइ--- एवं खलु देवाणुप्पिया ! वेहल्ले कुमारे सेयणएणं गंधहत्थिणा अंतेउरपरियालसंपरिवुडे 'जाव" १. सं० पा.---रज्जं च जाव जणवयं । णापि केवलं वेहल्लकुमारस्यैव नामोल्लेखः २. हल्लविहल्ले (क); महाराजश्रेणिकेन गन्ध- कृत:..... हस्ती हारश्च वेहल्लकुभाराय समर्पितो। छोटो भाइ कोणक ने सहोदर, नामें बेहल्लकुमार। आगमस्य मूलपाठे एषैव परम्परा दृश्यते। तिणने श्रेणक जीवतां दीया, वृत्ती भिन्ना परम्परा उल्लिखितास्ति --ताहे एक हाथी ने वंकसर हार ॥१॥ अभएण रज्जं दिज्जमाणं न इच्छियं ति पच्छा (भिक्षु ग्रन्थ रत्नाकर, द्वितीय खण्ड, पृष्ठ ७२) । सेणियो चितेई 'कोणियस्स दिज्जिहि' त्ति ३. ओ० सू० १४३ । हल्लस्स हत्थी दिन्नो सेयणगो, विहल्लस्स ४. सेतणए (क,ख)। देवदिन्नो हारो। अभएण वि पव्वयंतेण ५. सोंडाओ (क) । सुनंदाए खोमजुयलं कुंडलजुयलं च हल्ल- ६. प्पिट्टे (क); पुढे (ग)। विहल्लाणं दिण्णाणि । महया विहवेण अभओ ७. अंदोडावेइ (क)। नियजणणीसमेओ पव्वइओ। सेणियस्य ८. सीकरेणं हाएइ (ख); सीतरेणं° (ग)। चेलणादेवी अंगसमुन्भूया तिन्नि पुत्ता- ६. एतत् पदं प्रायः सूत्रेषु लभ्यते । कूणिओ हल्लविहल्ला य । का १०. सं० पा० - एवमाइक्खइ जाव परूवेइ । आगमस्य परम्परायां केवलं वेहल्लस्यैव नामो- ११. उ० ११६७ । ल्लेखो दृश्यते। आगममर्मज्ञेन आचार्य भिक्ष Page #808 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अझयणं ७३१ अणेगेहि" कीलावणएहिं कीलावेइ, तं एस णं वेहल्ले कुमारे रज्जसिरिफलं पच्चणुभवमाणे विहरइ, नो कुणिए राया ॥ ६. तए णं तीसे पउमावईए देवीए इमीसे कहाए लढाए समाणीए अयमेयारूवे 'अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे' समुप्पज्जित्था एवं खलु वेहल्ले कुमारे सेयणएणं गंधहत्थिणा जाव' अणेगेहिं कीलावणएहिं कोलावेइ, तं एस णं वेहल्ले कुमारे रज्जसिरिफलं पच्चणुभवमाणे विहर इ, नो कुणिए राया, तं किण्णं अम्हं रज्जेण वा' •रट्टेण वा बलेण वा वाहणेण वा कोसेण वा कोट्ठागारेण वा' जणवएण वा, जइ णं अम्हं सेयणगे गंधहत्थी नत्थि ? तं सेयं खलु ममं कूणियं रायं एयमठें विण्णवित्तएत्तिकटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव कूणिए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु कूणियं रायं° एवं वयासी –एवं खलु सामी ! वेहल्ले कुमारे सेयणएणं गंधहत्थिणा जाव अणेगेहिं कीलावणएहिं कीलावेइ, तं किण्णं सामी अम्हं रज्जेण वा जाव जणवएण वा, जइ णं अम्हं से यणए गंधहत्थी नत्थि?|| १००. तए णं से कूणिए राया पउमावईए देवोए एयमद्वं नो आढाइ नो परिजाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ॥ १०१. तए णं सा पउमावई देवी अभिक्खणं-अभिक्खणं कूणियं रायं एयमझें विण्णवेइ॥ १०२. तए णं से कूणिए राया पउमावईए देवीए अभिक्खणं-अभिक्खणं एयमलैं विण्णविज्जमाणे अण्णया कयाइ वेहल्लं कुमारं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं जायइ॥ १०३. तए णं से वेहल्ले कुमारे कूणियं रायं एवं वयासी–एवं खलु सामी ! सेणिएणं रण्णा जीवंतएणं चेव सेयणए गंधहत्थी अट्ठारसवंके य हारे दिण्णे, तं जइ णं सामी ! तुब्भे ममं रज्जस्स य जाव जणवयस्स य अद्धं दलयह तो णं अहं तुब्भं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं दलयामि ॥ १०४. तए णं से कूणिए राया वेहल्लस्स कुमारस्स एयमझें नो आढाइ नो परिजाणइ अभिक्खणं-अभिक्खणं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं जायइ । वेहल्लस्स चेडग-सरण-पदं १०५. तए णं तस्स वेहल्लस्स कुमारस्स कूणिएणं रण्णा अभिक्खणं-अभिक्खणं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं [जाइज्जमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे सम्मुप्पज्जित्था --? ] एवं अक्खिविउकामे णं गिहिउकामे णं उद्दालेउकामे णं ममं कूणिए राया सेयणगं गंधहत्यि अट्ठारसवंकं च हारं 'तं जाव न अक्खिवइ १. तं चेव जाव णेगेहिं (क)। ६. सं० पा० -करयल जाव एवं । २. सं० पा०---अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था। ७. उ०११६६ । ३. उ० ११७। ८. अत्र आदर्शेषु किंचित् त्रुटित: पाठोस्ति, तत्४. किण्हं (क,ख,ग)। संबंधयोजनाय कोष्ठकान्तर्वर्ती पाठः ५. सं० पा० – रज्जेण वा जाव जणवएण। उल्लिखितः । प्रकरणवशादसी संगत: प्रतीयते । Page #809 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३२ निरयावलियाओ न गिण्हइ न उद्दालेइ ममं कूणिए राया ताव" सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं गहाय अंतेउरपरियालसंपरिवुडस्स सभंडमत्तोवगरणमायाए चंपाओ नयरीओ पडिनिक्खमित्ता वेसालीए नयरीए अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कूणियस्स रण्णो अंतराणि •य छिद्दाणि य विरहाणि य° पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरइ ॥ १०६. तए णं से वेहल्ले कुमारे अण्णया कयाइ कुणियस्स रण्णो अंतरं जाणइ, सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं गहाय अंतेउरपरियालसंपरिवुडे सभंडमत्तोवगरणमायाए चंपाओ नयरीओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव वेसाली नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेसालीए नयरीए अज्जगं चेडयं रायं उवसंपिज्जित्ता णं विहरइ॥ कूणिएण दूय-पेसण-पदं १०७. तए णं से कूणिए राया इमीसे कहाए लद्धठे समाणे - एवं खलु वेहल्ले कुमारे ममं 'असंविदिते णं" सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं गहाय अंतेउरपरियालसंपरिवुडे जाव' अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ता णं विहर इ, तं सेयं खलु मम सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं आणेउं दूयं पेसित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी---गच्छ णं तुमं देवाणुप्पिया ! वेसालि नरिं । तत्थ णं तुमं मम अज्जगं चेडगं रायं करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेहि, वद्धावेत्ता एवं वयाहि -एवं खलु सामी ! कूणिए राया विण्णवेइ-एस णं वेहल्ले कुमारे कुणियस्स रणो असंविदितेणं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं गहाय इहं हव्वमागए, तं णं तुब्भे सामी ! कूणियं रायं अणुगिण्हमाणा सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकचहार कणियस्स रण्णा पच्चाप्पणह, वेहल्ल कुमार च पेसह ।।। १०८. 'तए णं से दूए कूणिएणं 'रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुठे करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उयागच्छित्ता जहा चित्तो जाव' वद्धावेत्ता एवं वयासी एवं खलु सामी ! कूणिए राया विण्णवेइ .एस णं वेहल्ले कुमारे " कणियस्स रणो असंविदिते णं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं गहाय इहं हव्वमागए, तं णं तुब्भे सामी ! कूणियं रायं अणुगिण्हमाणा सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च १. तं जाव ताव मम कूणिए राया (क,ख)। ६. वदासी (क) । २. सं० पा..... अंतराणि जाव पडिजागरमाणे। १०. ततो (क,ख) । ३. गहाय (ख)। ११. सं० पा० --कूणिएणं ४. असंविदे णं (क); असंप्रति (व)। पडिसुणेत्ता। ५. उ० १।१०६। १२. स (ख)। ६. विसज्जए (क)। १३. राय० सू० ६८१-६८३ । ७. गच्छह (क,ग)। १४. सं० पा०... तहेव भाणिवव्वं जाव वेहल्लं । ८. सं० पा०-करयल°। करयल जाव Page #810 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं ७३३ हारं कूणियस्स रण्णो पच्चप्पिणह, °वेहल्लं कुमारं च पेसेह ॥ १०६. तए णं से चेडए राया तं दूयं एवं वयासी-जह चेव णं देवाणुप्पिया ! कूणिए राया सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए ममं नत्तुए, तहेव णं वेहल्लेवि कुमारे सेणिय स्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए ममं नत्तुए, सेणिएणं रण्णा जीवंतेणं चेव वेहल्लस्स कुमारस्स सेयणगे गंधहत्थी अट्ठारसवंके य हारे पुव्वदिण्णे तं जइ णं कूणिए राया वेहल्लस्स रज्जस्स य जणवयस्स य अद्धं दलयइ तो णं अहं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं कणियस्स रण्णो पच्चप्पिणामि, वेहल्लं च कुमारं पेसेमि, न अण्णहा' - तं दूयं सक्कारेइ सम्माणेइ पडिविसज्जेइ॥ ११०. तए णं से दूए चेडएणं रण्णा पडिविसज्जिए समाणे जेणेव चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउघंट आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता वेसालि नयरि मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता सुहेहि वसही- पायरासेहिं नाइविकिठेहिं अंतरावासेहि वसमाण-वसमाणे जेणेव चंपा नगरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव' कूणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-‘एवं खलु सामी' ! चेडए राया आणवेइ जह चेव णं कुणिए राया सेणियस्स रणो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए गर्म नत्तुए तहेव णं वेहल्लेवि कुमारे सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए ममं नत्तुए, सेणिएणं रण्णा जीवंतेणं चेव वेहल्लस्स कुमारस्स सेयणगे गंधहत्थी अट्ठारसवंके य हारे पुवदिण्णे, तं जइ णं कूणिए राया वेहल्लस्स रज्जस्स य जणवयस्स य अद्धं दलयइ तो णं अहं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं कुणियस्स रण्णो पच्चप्पिणामि, वेहल्लं च कुमारं पेसेमि । तं न देइ णं सामो! चेडए राया सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हार, वेहल्लं च नो पेसेइ ॥ १११. तए णं से कूणिए राया दोच्चंपि दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छ णं तुम देवाणुप्पिया ! वेसालि नयरिं । तत्थ णं तुमं मम अज्जगं चेडगं रायं जाव एवं वयाहि - एवं खलु सामी! कुणिए राया विण्णवेइ---जाणि काणि वि रयणाणि समुप्पज्जति सव्वाणि ताणि रायकुलगामीणि । सेणियस्स रण्णो रज्जसिरिं करेमाणस्स पालेमाणस्स दुवे रयणा समुप्पण्णा, तं जहा-सेयणए गंधहत्थी अट्ठारसवंके हारे । तं णं तुब्भे सामी ! रायकुलपरंपरागयं पीति" अलोवेमाणा सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं कुणियस्स रणो पच्चप्पिणह, वेहल्लं कुमारं च पेसेह ।। १. पू०-उ० ११६६ । २. x (क,ख,ग); असौ पाठो वृत्त्याधारण स्वीकृतः । ३. ४ (क,ख,ग)। ४. सुभेहिं (क,ख,ग)। ५. सं० पा०-वसही जाव वद्धावेत्ता । वासेहिं __ (राय० सू० ६८३) । ६. राय० सू० ६८३ । ७. ४ (ख)। ८. सं० पा०-तं चेव भाणियव्वं जाव वेहल्लं । ६. पू०--उ० १।६६ । १०. उ० १११०७ । ११. य (ख)। १२. पीईयं (ग); ठिइयं (क्व०) । १३. अलोवेमाणे (क,ग)। Page #811 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३४ निरयावलियाओ ११२. तए णं से दूए तहेव जाव' वद्धावेत्ता एवं वयासी- एवं खलु सामी ! कूणिए राया विण्णवेइ-जाणि काणि वि रयणाणि समुप्पज्जति सध्वाणि ताणि रायकुलगामीणि । सेणियस्स रण्णो रज्ज सिरि करेमाणस्स पालेमाणरस दुवे रयणा समुप्पण्णा, तं जहा-सेयणए गंधहत्थी अट्ठारसवंके हारे । तं गं तुभे सामी! रायकुलपरंपरागयं पीति अलोवेमाणा सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं कूणियस्स रण्णो पच्चप्पिणह°, वेहल्लं कुमारं च पेसेह॥ ११३. तए णं से चेडए राया तं दूयं एवं वयासी-जह चेव णं देवाणुप्पिया ! कणिए राया सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए. ममं नत्तए, तहेव णं वेहल्लेवि कूमारे सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए ममं नत्तुए, सेणिएणं रण्णा जीवंतएणं चेव वेहल्लस्स कुमारस्स सेयणगे गंधहत्थी अट्ठारसवंके य हारे पुव्व दिण्णे, तं जइ णं कूणिए राया वेहल्लस्स रज्जस्स य जणवयस्स य अद्धं दलयइ तो णं अहं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं कुणियस्स रण्णो पच्चप्पिणामि , वेहल्लं च कुमारं पेसेमि, न अण्णहा-तं दूयं सक्कारेइ सम्माणेइ पडिविसज्जेइ ।। ११४. तए णं से दूए जाव' कूणियस्स रण्णो वद्धावेत्ता एवं वयासी-'चेडए राया आणवेइ"-जह चेव णं देवाणुप्पिया ! कणिए राया सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए ममं नत्तुए, तहेव णं वेहल्लेवि कुमारे सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए ममं नत्तुए, सेणिएणं रण्णा जीवंतेणं चेव वेहल्लस्स कुमारस्स सेयणगे गंधहत्थी अट्ठारसवंके य हारे पुव्वदिण्णे, तं जइ णं कूणिए राया वेहल्लस्स रज्जस्स य' जणवयस्स य अद्धं दलयइ तो णं अहं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंक च हारं कूणियस्स रण्णो पच्चप्पिणामि, वेहल्लं च कुमारं पेसेमि। तं न देइ णं सामी ! चेडए राया सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं, वेहल्लं च कुमारं नो पेसेइ । कूणियस्स जुद्धसज्जा-पदं ११५. तए णं से कृणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमझें सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तच्चं दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छ" णं तुमं देवाणुप्पिया ! वेसालीए नयरीए चेडगस्स रण्णो वामेणं पाएणं पादपीठं अक्कमाहि, अक्कमित्ता कुंतग्गेणं लेहं पणावेहि२, पणावेत्ता आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निलाडे साहट्ट चेडगं रायं एवं वयाहि-हंभो चेडगराया अपत्थियपत्थगा"! दुरंत"- पंत-लक्खणा! १. कूणियस्स रण्णो तहेव जाव (क,ख,ग); ७. ४ (क,ख) । उ० १११०८। ८. सं० पा०–अत्तए जाव वेहल्लं । २. सं० पा० - काणि जाव वेहल्लं । ६. पू०---उ० ११६६ ।। ३. सं० पाo.- जहा पढमं जाव वेहल्लं । १०. उ० श२२। ४. पू०-उ० ११६६ । ११. गंतूणं (क); गच्छह (ख,ग)। ५.x(क,ख,ग); असौ पाठो वृत्त्याधारण १२. पणामेहि (क)। स्वीकृतः । १३. पत्थिया (क)। ६. उ० ११११०। १४. सं० पा०-दुरंत जाव परिवज्जिया। Page #812 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं ७३५ हीणपुण्णचाउद्दसिया ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति -परिवज्जिया ! एस णं कूणिए राया आणवेइ-- पच्चप्पिणाहि णं कूणियस्स रण्णो सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं, वेहल्लं च कुमारं पेसेहि अहवा जुद्धसज्जे चिट्ठाहि । एस णं कूणिए राया सबले सवाहणे सखंधावारे णं जुद्धसज्जे इह हव्वमागच्छइ ।। ११६. तए णं से दूए करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु तहेव जाव' जेणेव चेडए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-एस णं सामी ! ममं विणयपडिवत्ती, इमा' कूणियस्स रण्णो आणत्ती चेडगस्स रण्णो वामेणं पाएणं पायपीढं अक्कमइ, अक्कमित्ता आसुरुत्ते कृतग्गेण लेहं पणावेइ', 'पणावेत्ता चेडग रायं एवं वयासी हंभो चेडगराया ! अपत्थियपत्थगा ! दुरंत-पंत-लक्खणा ! हीणपुण्णचाउदृसिया ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! एस णं कणिए राया आणवेइ-पच्चप्पिणाहि णं कूणियस्स रण्णो सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं, वेहल्लं च कुमारं पेसेहि अहवा जुद्धसज्जे चिट्ठाहिं । एस णं कुणिए राया सबले सवाहणे° सखंधावारे णं इह हव्वमागच्छइ ।। ११७. तए णं से चेडए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमठे सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते जाव तिवलियं भिउडि निलाडे साहट्ट एवं वयासी -न अप्पिणामि णं कूणियस्स रण्णो सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं, वेहल्लं च कुमारं नो पेसेमि । एस णं जुद्धसज्जे चिट्ठामि । तं दूयं 'असक्कारिय असम्माणिय अवद्दारेणं निच्छुहावेई॥ ११८. [तए णं से दूए चेडएणं रण्णा असक्कारिय असम्माणिय अवद्दारेण निच्छुढे समाणे जेणेव कूणिए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता कूणियं रायं एवं वयासी–चेडए राया न अप्पिणइ सेयणगं गंधहत्थि जाव अवद्दारेणं निच्छुहावेइ ? ] ॥ ११६. तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमठे सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते कालादीए" दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- एवं खलु देवाणुप्पिया ! वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिते णं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं हारं अंतेउरं सभंडं च १. उ० १।१०८; राय० सू० ६८१-६८३ । ११. ११६ सूत्रे 'तस्स दूयस्स अंतिए एयमट्ठ २. सं० पा०--करयल जाव वद्धावेत्ता । सोच्चा इति पाठोस्ति, किन्तु दूतस्य पुनरा३. इयाणि (ग)। गमनस्य चेटकस्याज्ञप्तेनिवेदनस्य अभिधायक ४. पू०--उ० १।२२ । सूत्र केनापि कारणेन विलुप्तमस्ति । तत् ५. पणामेइ (क)। 'नायाधम्मकहाओ' १।१६।२४६ सूत्रस्य तथा ६. सं० पा०—तं चेव सखंधावारे । प्रस्तुतागमस्य ११११७ सूत्रस्याधारेण प्रकल्पित७. उ० ११२२ । मस्ति । 'नायाधम्मकहाओ' १।८।१६० सूत्रे८. असक्कारितं असम्माणितं (क,ख,ग)। णापि अस्य समर्थनं जायते । ६. निच्छुभावेइ (क)। १२. पू०-उ० ११२२ । १०. उ०१।११७ । १३. कालातीए (क)। Page #813 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरयावलियाओ गहाय चंपाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता वेसालि अज्जगं' •चेडयं रायं° उवसंपज्जित्ता णं विहरइ । तए णं मए सेयणगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स हारस्स अट्ठाए दूया पेसिया । ते य चेडएण रण्णा इमेणं कारणेणं पडिसेहित्ता अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असम्माणिए अवदारेणं निच्छु हाविए', तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं चेडगस्स रण्णो जुत्तं गिण्हित्तए । १२०. तए णं ते कालादीया दस कुमारा कूणियस्स रण्णो एयमठें विणएणं पडिसुणेति ॥ १२१. तए णं से कूणिए राया ते कालादीए दस कुमारे एवं वयासी-गच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया ! सएसु-सएसु रज्जेसु, पत्तेयं-पत्तेयं ण्हाया •कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल-पायच्छित्ता हत्थिखंधवरगया पत्तेयं-पत्तेयं तिहिं दंतिसहस्सेहिं 'तिहिं आससहस्सेहि तिहिं रहसहस्सेहि तिहिं मणुस्सकोडीहिं सद्धि संपरिवुडा सव्विड्ढीए जाव' दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं सएहितो-सएहितो नयरेहितो पडिनिक्खमह, पडिनिक्खमित्ता ममं अंतियं पाउब्भवह ॥ १२२. तए णं ते कालादीया दस कुमारा कूणियस्स रण्णो एयमठे सोच्चा सएसुसएसु रज्जेसु पत्तेयं-पत्तेयं ण्हाया जाव तिहिं मणुस्सकोडीहिं सद्धि संपरिवुडा सव्विड्डीए जाव दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं सएहितो-सएहितो नयरेहितो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अंगा-जणवए जेणेव चंपा नयरी जेणेव कूणिए राया तेणेव उवागया करयल*परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेंति ॥ १२३. तए णं से कूणिए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणु प्पिया ! अभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणि सेणं सण्णाहेह, ममं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह जाव पच्चप्पिणंति ॥ १२४. तए णं से कुणिए राया जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ जाव पडिनिग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जाव" गयवई नरवई दुरूढे ॥ १२५. तए णं से कूणिए राया तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं चंपं नयरिं मझमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कालादीया दस कुमारा तेणेव उवागच्छ इ, उवागच्छित्ता कालादीएहिं दसहिं कुमारेहिं सद्धि ‘एगतओ मिलायइ१५ ॥ १२६. तए णं से कूणिए राया तेत्तीसाए दंतिसहस्सेहिं तेत्तीसाए आससहस्सेहिं तेत्तीसाए १. सं० पा० ----अज्जगं जाव उवसंपज्जित्ता। ८. ओ० सू० ६७ । २. निच्छुहावेइ (क,ग)। . अंग (ग)। ३. सं० पा.---.हाया जाव पायच्छित्ता । १०. सं० पा० करयल जाव वद्धाति । ४. दंतिसहस्सेहिं एवं (क,ख,ग)। ११. उवट्ठवेह (व); पडिकप्पेह (वृपा)। ५. तिहिं हयसहस्सेहि (क); तिहिं रहसहस्सेहिं १२,१३. ओ० सू० ६३ । तिहिं आससहस्सेहिं (ग)। १४. उ० १११२१ । ६. ओ० सू० ६७ । १५. एगओ मिलायंति (ग)। ७. उ० १११२१ । Page #814 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं ७३७ रहसहस्सेहि तेत्तीसाए मणुर सकोडीहि सद्धि संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव' दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं सुहेहि वसही-पाय रासेहिं नाइविगिठेहि अंतरावासेहि वसमाणे-वसमाणे अंगाजणवयस्स मज्झमज्झणं जेणेव विदेहे जणवए जेणेव वेसाली नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥ चेडगस्स जुद्धसज्जा-पदं १२७. तए णं से चेडए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे नवमल्लई नव लेच्छई' कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी एवं खल देवाणप्पिया ! वेहल्ले कूमारे कणियस्स रणो असंविदिए णं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं गहाय इह हव्वमागए । तए णं कणिएण सेयणगस्स गंधहत्थिस्स अटठारसवंकस्स य हारस्स अट्ठाए तओ दूया पेसिया । ते य मए इमेणं कारणेणं पडिसेहिया। तए णं से कुणिए ममं एयमठें अपडिसुणमाणे चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे जुज्झसज्जे इहं हव्वमागच्छइ, तं किं णं देवाणुप्पिया ! सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं कूणियस्स रणो पच्चप्पिणामो? वेहल्लं कुमारं पेसेमो ? उदाहु जुज्झित्था ? १२८. तए णं नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो चेडगं रायं एवं वयासी नो एयं सामी ! जुत्तं वा पत्तं वा रायसरिसं वा, जंणं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं कुणियरस रण्णो पच्चप्पिणिज्ज इ, वेहल्ले य कुमारे सरणागए पेसिज्जइ । तं जइ णं कूणिए राया चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे जुज्झसज्जे इहं हव्वमागच्छइ तए णं अम्हे कूणिएणं रण्णा सद्धि जुज्झामो॥ १२६. तए णं से चेडए राया ते नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो एवं वयासी-जइ णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे कूणिएणं रण्णा सद्धिं जुज्झह, तं गच्छह णं देवाणुप्पिया ! सएसु-सएसु रज्जेसु, पत्तेयं-पत्तेयं ण्हाया जावमम अंतियं पाउब्भवह ॥ १३०. तए णं ते नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो जाव जेणेव वेसाली नयरी जेणेव चेडए राया तेणेव उवागया जाव० ० जएणं विजएणं वद्धावेंति ॥ १३१. तए णं से चेडए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह जहा कूणिए जाव' गयवई नरवई दुरूढे ॥ १३२. तए णं से चेडए राया तिहिं दंतिसहस्सेहिं जहा कूणिए जाव" वेसालि नरि १. ओ० सू० ६७ । ७. सं०पा०-हाया जहा कालादीया जाव जएणं । २. सुभेहिं (क,ख,ग)। ८. उ० १११२१ । ३. लेच्छती (क)। ६. उ० १२१२२। ४. हुब्भित्था (क)। १०. उ० १११२२ ।। ५. लेच्छी (क); लच्छई (ग)। ११. उ० १२१२३,१२४ । ६. सिरीसं (क,ग)। १२. उ० १।१२५। Page #815 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३८ निरयावलियाओ मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव ते नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो तेणेव उवागच्छइ । १३३. तए णं से चेडए राया सत्तावण्णाए दंतिसहस्सेहिं सत्तावण्णाए आससहस्सेहि सत्तावण्णाए रहसहस्सेहिं सत्तावण्णाए मणुस्सकोडीएहिं सद्धि संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव' दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं सुहेहि वसही-पायरासेहिं नाइविगिठेहिं अंतरावासेहि वसमाणेवसमाणे विदेहं जणवयं मज्झमज्झेणं जेणेव देसपंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खंधावारनिवेसं करेइ, करेत्ता कुणियं रायं पडिवालेमाणे जुज्झसज्जे चिट्ठइ ॥ रहमुसल-संगाम-पदं १३४. तए णं से कूणिए राया सव्विड्डीए जावदुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं जेणेव देसपंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेडयस्स रण्णो जोयणंतरियं खंधावारनिवेसं करेइ । १३५. तए णं ते दोण्णिवि रायाणो रणभूमि सज्जावेंति, सज्जावेत्ता रणभूमि जयंति ॥ १३६. तए णं से कूणिए राया तेत्तीसाए दंतिसहस्सेहि' 'तेत्तीसाए आससहस्सेहिं तेत्तीसाए रहसहस्सेहिं तेत्तीसाए° मणुस्सकोडीहिं गरुलव्वूह' रएइ, रएत्ता गरुलव्वूहेणं रहमुसलं संगामं ओयाए । १३७. तए णं से चेडगे राया सत्तावण्णाए दंतिसहस्सेहिं सत्तावण्णाए आससहस्सेहिं सत्तावण्णाए रहसहस्सेहिं॰ सत्तावण्णाए मणुस्सकोडीहिं सगडवूहं रएइ, रएत्ता सगडवूहेणं रहमुसलं संगामं ओयाए॥ - १३८. तए णं ते दोण्हवि राईणं अणीया सण्णद्ध १. बद्ध-वम्मिय-कवया उप्पीलियसरासण-पट्टिया पिणद्ध-विज्जा आविद्ध-विमल-वरचिंध-पट्टा गहियाउह२-पहरणा मगइतेहि फलएहिं निक्कट्ठाहिं असीहि अंसागएहि तोणेहिं सजीवेहिं धहिं समुक्खित्तेहिं सरेहिं समुल्लालियाहि डावाहिं ओसारियाहिं ऊरुघंटाहि छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठसीहनाय-बोलकलकलरवेणं समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा सव्विड्डीए जाव" दुंदुहिणिग्घोसणाइयरवेणं हयगया हयगएहिं गयगया गयगएहिं रहगया रहगएहिं 'पायत्तिया १. ओ० सू० ६७ । ११. सं० पा०-सण्णद्ध जाव गहियाउह । २. सुभेहिं (क,ख,ग)। १२. गहिया उय (क)। ३. अंतरेहिं च (क); अंतरेहिं (ख,ग)। १३. मग्गंतितेहिं (क); मगहिंतेहिं (ग); मगइ४. ओ० सू० ६७ । एहिं (वि० ११३।४२)। ५. सं० पा०-दंतिसहस्सेहिं जाव मणुस्स- १४. समुल्लासिताहि (ख)। कोडीहिं। १५. ओरुघंटाहि (क)। ६. गरुलवूहं (ख,ग)। १६. किप्पतूरेहिं (क); छिप्पत्तूरेणं (ख); ७. उवायाए (क,ख,ग)। छिप्पत्तरेणं (ग)। १. सं० पा०-दंतिसहस्सेहिं जाव सत्तावण्णाए। १७. उक्किट्टी० (क) । ६. उवायाते (ख)। १८. भूतं (क,ख)। १०. अणिया (क)। १६. ओ० सू० ६७ ।। Page #816 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं ७३६ पायत्तिएहि" अण्णमण्णेहि सद्धि संपलग्गा यावि होत्था । १३६. तए णं ते दोण्हवि राईणं' अणीया नियगसामीसासणाणुरत्ता महया जणक्खयं जणवहं जणप्पमई जणसंवट्टकप्पं नच्चंतकबंधकरभीम" रुहिरकद्दमं करेमाणा अण्णमण्णेणं सद्धि जुझंति ॥ कालकुमारस्स मरण-पदं १४०. तए णं से काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव तिहिं मणुस्सकोडीहिं गरुलव्हेणं एक्कारसमेणं खंधेणं कणिएणं रण्णा सद्धि रहमुसलं संगामं संगामेमाणे हयमहियपवरवीरघाइय-निवडियचिधज्झयपडागे "निरालोयाओ दिसाओ करेमाणे चेडगस्स रण्णो सपक्खं सपडिदिसि रहेणं पडिरहं हव्वमागए । तए णं से चेडए राया कालं कुमारं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निलाडे साहट्ट धणु परामुसइ, परामुसित्ता उसु परामुसइ, परामुसित्ता वइसाहं ठाणं ठाइ, ठिच्चा आययकण्णाययं उसु करेइ, करेत्ता कालं कुमारं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेइ । तं एयं खल गोयमा ! काले कमारे एरिसएहिं आरंभेहि •एरिसएहिं आरंभसमारंभेहिं एरिसएहिं भोगेहिं एरिसएहिं भोग-संभोगेहिं॰ एरिसएणं असुभकडकम्मपन्भारेणं कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए हेमाभे नरए दससागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णे ॥ १४१. काले णं भंते ! कुमारे चउत्थीओ पुढवीओ अणंतरं उव्व ट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे जाइं कुलाइं भवंति अड्डाइं जहा दढपइण्णो जाव' सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ 'मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाण मंतं काहिइ॥ निक्खेव-पदं १४२. तं एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं निरयावलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते -त्ति बेमि ॥ १. पयाइय पयाइहिएहिं (क)। २. रायीणं (क)। ३. अणिया (क,ख)। ४. संघट्टकप्पं (क)। ५. कारभीभं (क,ग)। ६. उ० १११४ । ७. सं० पा०-जहा भगवया कालीए देवीए परिकहियं जाव जीवियाओ ववरोविए। ८. सं० पा० -- आरंभेहिं जाव एरिसएणं । ६. सं० पा०--नरए जाव नेरइयत्ताए। १०. ओ० सू० १४१-१५४ । ११. सं० पा०-बुज्झिहिइ जाव अंतं । १२. ना० ११११७ । Page #817 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४० २- १० अज्झयणाणि १४३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेण जाव' संपत्तेणं निरयावलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, दोच्चरस णं भंते! अज्झयणस्स निरयावलियाणं समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? १४४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था । पुण्णभद्दे चेइए | कूणिए राया । पउमावई देवी || निरयावलियाओ १४५. तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रण्णो भज्जा कूणियस्स रण्णो चुल्लमाउया काली नामं देवी होत्था - सूमाला ॥ १४६. तीसे णं सुकालीए देवीए पुत्ते सुकाले नामं कुमारे होत्था - सुकुमाले || १४७. तए णं से सुकाले कुमारे अण्णया कयाइ तिहिं दंतिसहस्सेहिं जहा कालो कुमारो निरवसेसं तं चैव भाणियव्वं जाव' महाविदेहे वासे अंतं काहिइ ॥ १४८. एवं सावि अट्ठ अज्झयणा नेयव्वा पढमसरिसा, नवरं मायाओ सरिसनामाओ निरावलियाओ समत्ताओ । निक्खेवो 'सव्वासिं भाणियव्वो" ॥ १,२. ना० १1१1७ । ३. उ० १।१४-१४१ । ४. सव्वेसि भाणियव्वो तहा ( ग ) । Page #818 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोओ वग्गो कप्पवडिसियाओ १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं उवंगाणं पढमस्स वग्गस्स निरावलियाणं अयमट्ठे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स कप्पवडिंसियाणं समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं कइ अज्झयणा पण्णत्ता ? पढमं अज्झयणं पउमे २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं कप्पव डिंसियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा पउमे महापउमे, भद्दे सुभद्दे पउमभद्दे । पउमसेणे पउमगुम्मे, नलिणिगुम्मे आणंदे नंदणे ॥ १ ॥ ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स कप्पवडिंसियाणं समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था । पुण्णभद्दे चेइए । कूणिए राया । पउमावई देवी ॥ ५. तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रण्णो भज्जा कूणियस्स रण्णो चुल्लमाउया काली नामं देवी होत्था सूमाला ॥ ६. तीसे णं कालीए देवीए पुत्ते काले नामं कुमारे होत्था - सुमाले ॥ ७. तस्स णं कालस्स कुमारस्स पउमावई नामं देवी होत्था – सूमालपाणिपाया जाव विहरइ ॥ १, २, ३, ४, ५. ना० १।१।७ । ६. ओ० सू० १५ । ७. भग० ११।१३३ । ८. तए णं सा पउमावई देवी अण्णया कयाइं तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अभिंतरओ सचित्तकम्मे जाव सीहं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा ॥ T ६. एवं जम्मणं जहा महाबलस्स' जाव' नामधेज्जं - जम्हा णं अम्हं इमे दारए ८. महब्बलस (क ) । ६. भग० ११।१३३-१५३ । ७४१ Page #819 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४२ कप्पडिसियाओ कालस्स कुमारस्स पुत्ते पउमावईए देवीए अत्तए, तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं पउमे-पउमे । सेसं जहा महाबलस्स, अट्ठओ दाओ जाव उप्पिं पासायवरगए विहरइ। सामी समोसरिए । परिसा निग्गया। कूणिए निग्गए। पउमेवि जहा महाबले निग्गए तहेव । अम्मापिइआपुच्छणा जाव' पव्वइए, अणगारे जाए- इरियासमिए जाव' गुत्तबंभयारी॥ १०. तए णं से पउमे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थछट्टम'- दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।। ११. तए णं से पउमे अणगारे तेणं ओरालेणं जहा मेहो तहेव धम्मजागरिया चिंता एवं जहेव मेहो तहेव समणं भगवं महावीरं आपुच्छित्ता विउले जाव' पाओवगए [कालं अणवकखमाणे विहरइ?] १२. तए णं से पउमे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, बहुपडिपुण्णाइं पंच वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, सट्टि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता आणपुव्वीए कालगए। थेरा ओइण्णा। भगवं गोयमे पुच्छइ, सामी कहेइ जाव' सर्ट्सि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता आलोइय-पडिक्कते उड्ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववण्णे । दो सागराइं ठिई ॥ १३ से णं भंते ! पउमे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं पुच्छा ? गोयमा ! महाविदेहे वासे जहा दढपइण्णा जाव' अंतं काहिइ ।। १४. तं एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावोरेणं जाव' संपत्तेणं कप्पडिसियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते त्ति बेमि॥ १. भग० ११११५४-१६८ । २. ओ० सू० २७ । ३. सं० पा०-छट्ठट्ठम जाव विहरइ । ४. ना० १११।२०२-२०६ । ५. ना० १११।२११ । ६. ओ० सू० १४१-१५४ । ७. ना० १।१७। Page #820 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं महापउमे १५. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं कप्पडिसियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स कप्पडिसियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? १६. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था। पुग्णभद्दे चेइए । कूणिए राया। पउमावई देवी ॥ १७. तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रण्णो भज्जा कूणियस्स रण्णो चुल्लमाउया सुकाली नामं देवी होत्था ।।। १८. तीसे णं सुकालीए पुत्ते सुकाले नामं कुमारे ॥ १६. तस्स णं सुकालस्स कुमारस्स महापउमा नामं देवी होत्था-सूमाला ।। २०. तए णं सा महापउमा देवी अण्णया कयाइं तंसि तारिसगंसि एवं तहेव महापउमे नाम दारए जाव' सिज्झिहिइ, नवरं--ईसाणे कप्पे उववाओ उक्कोसटिइओ। २१. तं एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं कप्पडिसियाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते त्ति बेमि ॥ ३-१० अज्झयणाणि २२. एवं सेसावि अट्ठ नेयव्वा' । मायाओ सरिसनामाओ। कालाईणं दसण्हं पुत्ताणं आणुपुवीए - दोण्हं च पंच चत्तारि, तिण्हं तिण्हं च होंति तिण्णेव । दोण्हं च दोण्णि वासा, सेणियनत्तूण परियाओ॥१॥ उववाओ आणुपुवोए ---पढमो सोहम्मे बिइओ ईसाणे तइओ सणंकुमारे चउत्थो माहिंदे पंचमो बंभलोए छट्ठो लंतए सत्तमो महासुक्के अट्ठमो सहस्सारे नवमो पाणए दसमो अच्चुए। सव्वत्य उक्कोसट्ठिई भाणियव्वा । महाविदेहे सिज्झिहिति ॥ १,२. ना० ॥१७॥ ५. उ० २।१-१४। ३. उ० २।८-१३ । ६. पुत्ता (क,ख)। ४. ना० १२७ । ७. अणुपुवीए (ख,ग)। ७४३ Page #821 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो पुफियाओ पढमं अज्झयणं चंदे १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं दोच्चस्स वग्गस्स कप्पडिसियाणं अयमठे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स उवंगाणं पुप्फियाणं के अट्ठे पण्णत्ते? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावोरेणं जाव' संपत्तेणं उवंगाणं तच्चस्स वग्गस्स पुप्फियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा.... चंदे सूरे सुक्के, बहुपुत्तिय पुण्ण -माणिभद्दे य । दत्ते सिवे बले या, अणाढिए चेव बोद्धव्वे ।।१।। ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पुफियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अछे पण्णत्ते ? ४. एवं खलु जंबू ! तणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया ॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे । परिसा निग्गया ।। ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि चउहि सामाणियसाहस्सीहि जाव' विहरइ ।। ७. इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासइ. पच्छा समणं भगवं महावीरं जहा सरियाभे आभियोगं देवं सहावेत्ता जाव सुरिंदाभिगमणजोग्गं करेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । सूसरा घंटा जाव विउव्वणा, नवरं-जाणविमाणं जोयणसहस्सविच्छिण्णं अद्धतेवट्ठिजोयणमूसियं महिंदज्झओ पणुवीस १. ना० १।१७। ४,५. ना० ११११७ । २. ना० १२१७ । ६. राय० सू०७ । ३. पुण्णभद्दे (ख,ग)। ७. राय० सू० ८-१२। ७४४ Page #822 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयण ओ से जहा सूरियाभस्स जाव' आगओ नदृविहो तहेव पडिगओ ॥ ८. भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं पुच्छा । कूडागारसाला दिट्ठतो सरीरं अणुपविट्ठा' ।। ६. पुव्वभवो - एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नामं नयरी होत्था । कोट्टए चेइए || १०. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए अंगई नाम गाहावई होत्था अड्ढे जाव' अपरिभू । ११. तणं से अंगई गाहावई सावत्योए नयरीए बहूणं राईसर - तलवर - माडंबिय - ब-इभ से सेणावइ - सत्थवाहाणं बहुसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेमु य रहस्से य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, यस् णं कुटुंबस्स मेढी पमाणं आहारे आलंबणं चक्खू मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चक्खुभूए सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था ॥ १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे णं' अरहा पुरिसादाणीए आइगरें' जहा ँ महावीरो नवस्सेहे सोलसहि समणसाहस्सीहि अद्भुतोसाए अज्जियास हस्सेहिं जाव कोट्ठए समोसढे । परिसा निग्गया || १३. तए गं से अंगई गाहावई इमोसे कहाए लट्ठे समाणे हट्ठतुट्ठे जहा कत्तिओ सेट्ठी निग्गच्छइ जाव' पज्जुवासइ धम्मं सोच्चा निसम्म " जं, नवरं देवाणुप्पिया ! जेट्ठपुत्तं कुटुंबे ठावेमि, तणं अहं देवाणुष्पिणाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि, जहा गंगदत्ते तहा पव्वइए" । अणगारे जाए इरियासमिए जाव" गुत्तबंभयारी ॥ १२ ● १४. तए णं से अंगई अणगारे पासस्स अरहओ तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाझ्याई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थ छट्ठट्ठम- दसम दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विचितेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं' भावेमाणे बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्वमासिवाए संलेहणाए तीस भत्ताई अणसणाए छेदित्ता विराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा वंदवडिस विमाणे उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूतरिए चंदजोइसिंदत्ताए उववण्णे || १. राय० सू० १३-१२० । २. पू० -राय० सू० १२१-१२३ । ३. ओ० सू० १४१ । ४. सं० पा० बहू नगर-निगम जहा आणंदो । वृत्तौ अस्य पूर्तिरेवं दृश्यते 'जहा आणंदो' त्ति उपासकदशांगोक्तः श्रावकआनन्दनामा, स च बहूणं ईसरलवरमा बि.कोडुंबियनगरनिगमसेसत्यवागं बहु कज्जेसु य कारसु य मंते कुडुंबे तिच्छासु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे सब्बज्ज वड्डावए ૭૪૫ सस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढीभूए होत्था । ५. ४ ( क, ख ) । ६. आदिगरे ( क, ख ) । ७. पू० - ओ० सू० १६; वाचनान्तरम् । ८. ओ० सू० १६-२२ । ६. भग० १८१४२ । १० पू० ११. पू० भग० १६।७१ । १२. ओ० सू० २७ । १३. सं० पा० - चउत्य जाव भावेमाणे । भग० १६ ७०, १८।४४ । Page #823 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४६ पुफियाओ १५. तए णं से चंदे जोइसिंदे जोइसराया अहुणोववण्णे समाणे पंचविहाए पज्जत्तीएआहारपज्जत्तीए' सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आण-पाणपज्जत्तीए भासमणपज्जत्तीए पज्जत्तभावं गए। १६. चंदस्स णं भंते ! जोइसिंदस्स जोइसरण्णो केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ।।। १७. एवं खलु गोयमा ! चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो सा दिव्वा देविडी ।। १८. चंदे णं भंते ! जोइसिंदे जोइसराया ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। १६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं पुप्फियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते ---त्ति बेमि ।। बीअं अज्झयणं २०. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पुप्फियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? २१. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। समोसरणं। जहा चंदो तहा सूरोवि आगओ जाव नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगओ। पूव्वभवपूच्छा । सावत्थी नयरी। सुपइठे नाम गाहावई होत्थाअड्ढे जहेव अंगई जाव विहरइ। पासो समोसढो, जहा अंगई तहेव पव्वइए, तहेव विराहियसामण्णे जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव' अंतं करेहिइ ।। २२. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं पुप्फियाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते -त्ति बेमि ॥ १. सं० पा०.-आहारपज्जत्तीए जाव भासमण पज्जत्तीए। २,३. ना० १।१७। ४. उ० ३।६-८ । ५. उ० ३।६-१८ । Page #824 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं ७४७ तइयं अज्झयणं सुक्के उक्खेव-पदं २३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं'पुप्फियाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समजेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अठे पण्णत्ते? २४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए । सेणिए राया। सामी समोसढे । परिसा निग्गया। २५. तेणं कालेणं तेणं समएणं सुक्के महग्गहे सुक्कडिसए विमाणे सुक्कंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जहेव चंदो तहेव आगओ, नट्टविहिं उवदं सित्ता पडिगओ॥ २६. भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं पुच्छा । कूडागारसाला दिळंतो। पुत्वभवपुच्छा ॥ सोमिलस्स अरहया पासेण संवाद-पदं २७. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नाम नयरी होत्था । २८. तत्थ णं वाणारसीए नयरीए सोमिले नामं माहणे परिवसइ, अड्ढे जाव' अपरिभूए, रिउव्वेय जाव बहूसु बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिनिट्ठिए। पासे समोसढे । परिसा पज्जुवासइ॥ २६. तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लट्ठस्स समाणस्स इमे एयारूवे अज्झथिए 'चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था -एवं खलु पासे अरहा पुरिसादाणीए पुव्वाणुपुवि 'चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इहसंपत्ते इहसमोसढे इहेव वाणारसीए नयरीए बहिया अंबसालवणे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे° विहरइ, तं गच्छामि णं पासस्स अरहओ अंतिए पाउब्भवामि, इमाइं च णं एयारूवाइं अट्ठाई हेऊई 'पसिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छिस्सामि, तं जइ मे से इमाइं एयारूवाइं अट्ठाइं जाव वागरणाई वागरेहिति ततो णं वंदीहामि नमसीहामि जाव पज्जुवासोहामि, अह मे से इमाइं अट्ठाई जाव वागरणाइं नो वागरेहिती तो णं अहं एएहिं चेव अद्रुहि य जाव वागरणेहि य निप्पट्ठपसिणवागरणं १. ना० १।१७। ६. सं० पा०-अज्झत्थिए । २.सं० पा०-उक्खेवओ भाणियब्यो। १०. सं० पा०-पुव्वाणुपुब्वि जाव अंबसालवणे ३. ना० १।१७। विहरइ। ४. उ० ३।६,७ । ११. सं० पा०-जहा पण्णत्तीए। सोमिलो ५. राय० सू० १२१-१२३ । निग्गओ खंडियविहूणो जाव एवं वयासी६. ओ० सू० १४१ । जत्ता ते भंते ! जवणिज्जं च ते? पुच्छा। ७. रिव्वेय (क)। सरिसवया मासा कुलत्था एगे भवं जाव ८. ओ० सू० ६७ । संबुद्धे । Page #825 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४८ पुफियाजी करेस्सामीतिकटु एवं संपेहेइ, संपेहेता हाए जाव' अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता पायविहारचारेणं वाणारसिं नयरिं मझमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव अंबसालवणे चेइए जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासस्स अरहओ पुरिसादाणियस्स अदूरसामंते ठिच्चा पास अरहं पुरिसादाणियं एवं वयासी-- ३०. जत्ता ते भंते ? जवणिज्ज [ते भंते ? ] ? अव्वाबाहं [ते भंते ? ] ? फासुयविहारं [ते भंते ? ] ? सोमिला ! जत्ता वि मे, जवणिज्ज पि मे, अव्वाबाहं पि मे, फासुयविहारं पि मे ॥ ३१. किं ते भंते ! जता? सोमिला ! जं मे तव-नियम-संजम-सज्झाय--झाणावस्सगमादीएसु जोगेसु जयणा । सेत्तं जत्ता॥ ३२. कि ते भंते ! जवणिज्ज? सोमिला! जवणिज्जे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-- इंदियजवणिज्जे य नोइंदियजवणिज्जे य॥ ३३. से कि तं इंदियजवणिज्जे ? इंदियजवणिज्जे-जं मे सोइंदिय-चक्खिंदियघाणिदिय-जिभिदिय-फासिदियाइं निरुवहयाइं वसे वटंति । सेत्तं इंदियजवणिज्जे ॥ ३४. से कि तं नोइंदियजवणिज्जे? नोइंदियजवणिज्जे --जं मे कोह-माण-मायालोभा वोच्छिण्णा नो उदोरेंति । सेत्तं नोइंदियजवणिज्जे । सेत्तं जवणिज्जे ॥ ३५. कि ते भंते ! अव्वाबाहं ? सोमिला ! जं मे वातिय-पित्तिय-संभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका सरीरगया दोसा उवसंता नो उदोरेति । से तं अव्वाबाहं ॥ ३६. कि ते भंते ! फासुयविहारं ? सोमिला ! जण्णं आरामेसु उज्जाणेसु देवकुलेसु सभासु पवासु इत्थी-पसु-पंडगविवज्जियासु वसहीसु फासु-एसणिज्ज पीढ-फलगसेज्जा-संथारगं उवसंपज्जित्ताणं विहरामि । सेत्तं फासुयविहारं ।। ३७. सरिसवया ते भंते ! कि भक्खेया ? अभक्खेया ? सोमिला ! सरिसवया [मे?] भक्खेया वि अभक्खेया वि ॥ ३८. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ.--सरिसवया भे भक्खेया वि अभक्खेया वि ? से नणं भे सोमिला! बंभण्णएसु नएसु दुविहा सरिसवथा पण्णत्ता, तं जहा--मित्तसरिसवया य, धन्नसरिसवया य । तत्थ णं जेते भित्तसरिसवया ते तिविहा पण्णता, तं जहासहजायया, सहवड्डियया, सहपंसुकीलियया, ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते धन्नसरिसवया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य । तत्थ णं जेते असत्थपरिणया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेगा। तत्थ णं जेते सत्थपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--एसणिज्जा य, अणेसणिज्जा य। तत्थ णं जेते अणेसणिज्जा ते समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते एसणिज्जा ते विहा पण्णत्ता तं जहा....जाइया य, अजाइया य। तत्थ णं जेते अजाइया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते जाइया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-लद्धा य, अलद्धा य । तत्थ णं जेते अलद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते लद्धा १. भग०२।७। Page #826 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं ७४६ ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खेया। से तेणठेणं सोमिला ! एवं वुच्चइ-सरिसवया मे भक्खेया वि अभक्खेया वि ॥ ३६. मासा ते भंते ! किं भक्खेया ? अभक्खेया ? सोमिला ! मासा मे भक्खेया वि अभक्खेया वि ॥ ४०. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ- मासा मे भक्खेया वि अभक्खेया वि? से नणं भे सोमिला ! बंभण्णएस नएसू दूविहा मासा पण्णत्ता, तं जहा-दव्वमासा य, कालमासा य । तत्थ णं जेते कालमासा ते णं सावणादीया आसाढपज्जवसाणा दुवालस पण्णत्ता, तं जहा-सावणे, भद्दवए, आसोए, कत्तिए, मग्गसिरे, पोसे, माहे, फग्गुणे, चेत्ते, वइसाहे, जेट्टामूले, आसाढे । ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते दव्वमासा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा अत्थमासा य धण्णमासा य। तत्थ णं जेते अत्थमासा पण्णत्ता, तं जहा सुवण्णमासा य रुप्पमासा य। ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते धण्णमासा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सत्थपरिणया य, असत्थपरिणया य। एवं जहा धण्णसरिसवया जाव से तेणठेणं जाव अभक्खेया वि ।। ४१. कुलत्था ते भंते ! किं भक्खेया? अभक्खेया ? सोमिला ! कुलत्था मे भक्खेया वि अभक्खेया वि ॥ ४२. से केणट्टेणं जाव अभक्खेया वि ? से नूणं भे सोमिला ! बंभण्णएसु नएसु विहा कुलत्था पण्णत्ता, तं जहा- इत्थिकूलत्था य, धण्णकुलत्था य । तत्थ णं जेते इत्थिकुलत्था ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–कुलवधुया इ वा, कुलमाउया इ वा, कुलधुया इ वा। ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते धण्णकुलत्था एवं जहा धण्णसरिसवया। से तेणठेणं जाव अभक्खेया वि ॥ ४३. एगे भवं ? दुवे भवं ? अक्खए भवं ? अव्वए भवं ? अवट्ठिए भवं ? अणेगभूयभाव-भविए भवं ? सोमिला ! एगे वि अहं जाव अणेगभूय-भाव-भविए वि अहं ॥ ४४. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ--एगे वि अहं जाव अणेगभूय-भाव-भविए वि अहं ? सोमिला ! दव्वट्ठयाए एगे अहं, नाणदंसणट्ठयाए दुविहे अहं, पएसट्टयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, उवयोगट्ठयाए अणेगभूय-भाव-भविए वि अहं । से तेणठेणं जाव अणेगभूय-भाव-भविए वि अहं ॥ सोमिलस्स सावगधम्मगहण-पदं । ४५. एत्थ णं से सोमिले माहणे संबुद्धे सावगधम्म पडिवज्जित्ता पडिगए। ४६. तए णं पासे अरहा अण्णया कयाइ वाणारसीओ नयरीओ अंबसालवणाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ सोमिलस्स मिच्छत्त-पदं ४७. तए णं से सोमिले माहणे अण्णया कयाइ असाहुदंसणेण य अपज्जुवासणयाए य मिच्छत्तपज्जवेहिं परिवड्डमाणेहिं', सम्मत्तपज्जवेहि परिहायमाणेहि मिच्छत्तं विप्पडिवण्णे ॥ १. परिवड्ढमाणेहिं २ (ग)। ३. पडिवण्णे (ग)। २. परिहायमाणे हिं २ (ग)। Page #827 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५० ४८. तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंब जागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए ' ' चितिए पत्थिए मणोगए कप्पे समुपज्जित्था -- एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए सोमिले नाम माहणे अच्चतमाहणकुलप्पसूए, तए णं मए वयाई चिण्णाई, 'वेदा य" अधीया', दारा आहूया, पुत्ता जणिया, इड्डीओ समाणीताओ, पसुवधा कया, जण्णा जट्ठा, दक्खिणा दिण्णा, अतिही पूजिता, अग्गी हुता, जूवा' निक्खित्ता, तं सेयं खलु मम इयाणि कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते वाणारसीए नयरीए बहिया बहवे अंबारामे य 'माउलिंगारामे य बिल्लारामे य कविद्वारामे य चिंचारामे य पुप्फारामे य" रोवावित्तए - एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते वाणारसीए नयरीए बहिया अंबारामे य जाव पुप्फारामे य रोवावेइ ॥ ४६. तए णं बहवे अंबारामा य जाव' पुप्फारामा य अणुपुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविज्जमाणा संवडिज्जमाणा आरामा जाया - किण्हा किण्होभासा जाव" रम्मा महामेहनिकुरंबभूया पत्तिया पुष्फिया फलिया हरियगरेरिज्जमाणसिरीया अई अईव उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ सोमिलस्स तावसपव्वज्जा-पदं ५०. तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए" चितिए पत्थिए मणोगए कप्पे समुपज्जित्था - एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए सोमिले नामं माहणे अच्चतमाहणकुलप्पसूए, तए णं मए वयाई चिण्णाइं, " वेदा य अधीया, दारा आहूया, पुत्ता जणिया, इडीओ समाणीताओ, पसुवधा कया, जण्णा जट्ठा, दक्खिणा दिण्णा, अतिही पूजिता, गहु, वा निक्खित्ता, तए णं मए वाणारसीए नयरीए बहिया बहवे अंबारामा पुप्फारामा य रोवाविया, तं सेयं खलु ममं इयाणि कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव" उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते सुबहु लोहकडाहकडुच्छ्रयं तंबियं" तावसभंड घडावेत्ता, विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता, मित्तनाइ - नियग-सयण - संबंधि - परियणं आमंतेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं जाव १. सं० पा० - अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था । २. वेदाई ( ग ) । ३. अहिया ( ग ) । ४. पूरिता ( क ) । ५. जूय ( ग ) । ६. ओ० सू० २२ । ७. एवं माउलिंगा बिल्ला कविट्ठा चिंचा पुप्फारामा (क, ख, ग ) । पुफियाओ ८. रोविया वित्त ( क ) ; रोवेत्तए ( ख ) । ६. उ० ३।४८ । १०. ओ० सू० ४ । ११. सं० पा० १२. सं० पा० – चिण्णाई जाव जूवा । १३. उ० ३।४८ । १४. ओ० सू० २२ । १५. संतियं ( ख ) । -अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था । Page #828 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयण ७५१ विउलेणं असण'- पाण-खाइम-साइमेणं धूव-पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स पुरओ जेट्टपुत्तं कुडुबे ठावेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं [जेट्टपुत्तं च ? ] आपुच्छित्ता, सुबहुं लोहकडाहकडुच्छुयं तंबियं तावसभंडगं गहाय जे इमे गंगाकूला वाणपत्था तावसा भवंति, तं जहा-होत्तिया 'पोत्तिया कोत्तिया" जण्णई सडई थालई हुंबउट्टा' दंतुक्खलिया उम्मज्जगा संमज्जगा निमज्जगा संपक्खालगा दक्खिणकूला उत्तरकूला संखधमा कुलधमा मियलुद्धा हत्थितावसा उदंडगा दिसापोक्खिणो वक्कवासिणो बिलवासिणो जलवासिणो रुक्खमूलिया अंबुभक्खिणो वाउभक्खिणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कंदाहारा तयाहारा पत्ताहारा पुप्फाहारा फलाहारा बीयाहारा परिसडिय-कंद-मूल-तय-पत्त-पुप्फ-फलाहारा जलाभिसेयकढिणगायभूया आयावणाहिं पंचग्गितावेहिं इंगालसोल्लियं कंदुसोल्लियं कट्टसोल्लियं" पिव अप्पाणं करेमाणा विहरंति । तत्थ णं जेते दिसापोक्खिया तावसा, तेसिं अंतिए दिसापोक्खिय [तावस ? ]त्ताए पव्वइत्तए, पव्वइए वि य णं समाणे२ इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिहिस्सामि"--कप्पइ मे जावज्जीवाए छठंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालेणं तवोकम्मेणं उडढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सुराभिमहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स विहरित्तएत्तिकटु ‘एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते सुबहुं लोह" •कडाहकड़च्छयं तंबियं तावसभंडं घडावेत्ता, विउलं असणं पाणं खाइमं साइमउवक्खडावेत्ता, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणं विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं धूव-पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स पुरओ जेट्रपूत्तं कूडंबे ठावेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं [जेट्टपुत्तं च ? ] आपुच्छित्ता, सुबहुं लोहकडाहकडुच्छुयं तंबियं तावसभंडगं गहाय तत्थ णं जेते दिसापोक्खिया तावसा, तेसिं अंतिए° दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइए । पव्वइए वि य णं समाणे १५ इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हित्ता पढमं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ सोमिलस्स साधना-पदं ५१. तए णं सोमिले माहणरिसी पढमछट्टक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चो१. सं० पा-असण जाव सम्माणेत्ता। ६. °किढिण° (ख), जलाभिसेयकढिणगाया २. °कडेच्छुयं (क,ख)। (व); जलाभिसेयक ढिणगायभूया (वपा) । ३. गोत्तिया बोहिया (क)। १०. ४ (क,ख); कंडुसोल्लियं (ग)। ४. वड्ढइ (क)। ११. कट्टयसोल्लियं (क); x (ग)। ५. हंपउट्टा (क); हुंपउट्टा (ख); हुंपउट्ठा १२. समाणे उड्ढं बाहाओ (क,ख) । (ग); हुंबउट्ठा (ओ० सू० ६४)। १३. अभिगिण्हित्ता (क,ख)। ६. दंतुज्जलिया (क)। १४. सं० पा०-लोह जाव दिसापोक्खिय । ७. वाकवासिणो (ओ० सू० ६४) । १५. ४ (क,ख)। ८. वेलवासिणो (वृपा)। Page #829 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५२ पुप्फियाओ रुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवस्थ नियत्थे जेणेव 'साः उडए" तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयं गेहद, गेमिहत्ता पुरस्थिमं दिसि पोरखेइ, पुरथिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरखउ सोमिल माहणरिसि-अभिरकर उ सोमिलमाहणरिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाणउत्ति कटु पुरत्थिमं दिसं पसरइ, पसरित्ता जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव हरियाणि य ताइं गेण्हइ, गेण्हित्ता किढिण-संकाइयं भरेइ, भरेत्ता दब्भे य कुसे य पत्तामोडं च समिहाकट्ठाणि य गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं ठवेइ, ठवेत्ता वेदि वडढेइ, वडढेत्ता उवलेवणसंमज्जणं करेइ, करेत्ता दब्भकलसहत्थगए जेणेव गंगा महाणई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गंगं महाणइं ओगाहइ, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता ‘जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता जलकिड्डं' करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसूइभए देवपिउकयकज्जे दब्भकलसहत्थगए गंगाओ महाणईओ पच्चत्तरइ, पच्चत्तरित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दब्भे य कुसे य वालुयाए य वेदि रएइ, रएत्ता सरयं करेइ, करेत्ता अरणि करेइ, करेत्ता सरएणं अरणिं महेइ, महेता अग्गि पाडेइ, पाडेता अग्गि संधुक्के इ, संधुक्केत्ता समिहाकट्टाणि पविखवइ, पविखवित्ता अग्गि उज्जालेइ, उज्जालेत्ता अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाई समादहे, [तं जहा ___ सकथं वक्कलं ठाणं, सेज्जभंडं कमंडलुं । दंडदारु १३ तहप्पाणं, अहे ताई" समादहे ॥१॥] महुणा य घएण य तंदुलेहि य अग्गि हुणइ, 'चरुं साहेइ", साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ, करेत्ता अतिहिपूयं करेइ, करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ ॥ ५२. तए णं से सोमिले माहणरिसी दोच्चं छट्रवखमण उवसंपज्जित्ताणं विहरइ॥ ५३. तए णं से सोमिले माहणरिसी दोच्चछवखमणपारणगंसि आयावणभमीओ १. साए उडव (क) । ehokshi द्वारा सम्पादितवत्तिपत्र ३२) । २. दिसं (क)। ११. भगवं (क); सगधं (ख)। ३. कढिण (क)। १२. मकलं (क)। ४. पत्तमोडं (क)। १३. डंडदारु (क); दंडदारं (ख)। ५. उडवए (क)। १४. ताई समिते (क,ख ग); भगवत्यामपि ६. दब्भकलसाहत्थगए (वृपा)। (१११६४) च नैतत् पदं लभ्यते। ७. जलकिड्ड करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं (व)। १५. असौ कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । ८. अगणि (क)। १६. वेतंसावेइ (क)। ६. अग्गी (क)। १७. सं० पा.-तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव १०. प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ भगवतीवृत्तावपि (पत्र आहार आहारेइ, नवरं इमं नाणत्तं- दाहि ५२०) च सार्धश्लोकस्य उल्लेखो लभ्यते-- णाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं 'अग्गिस्स दाहिणे' इत्यादि सार्धश्लोक: अभिरवखउ सोमिलं माहणरिसिं, जाणि य तद्यथा शब्दवर्जम् (A. S. Gopani, V.J. तत्थ कंदाणि य जाव अणुजाणउ ति कट्ट Page #830 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं ७५३ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयं गेण्हइ, गेण्हित्ता दाहिणं दिसिं पोक्खेइ, दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सोमिलमाहणरिसिं-अभिरवखउ सोमिलमाहणरिसि. जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाणउत्तिक? दाहिणं दिसि पसरइ जाव' तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ॥ ५४. एवं तच्चछट्टक्खमणपारणगंसि पच्चत्थिमेणं वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सोमिलमाहणरिसिं जाव' तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ । एवं चउत्थछट्टक्खमणपारणगंसि उत्तरेणं वेसमणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सोमिलमाहणरिसिं जाव' तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ ॥ ५५. तए ण तस्स सोमिलमाहणारासिस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अणिच्चजागरियं जागरमाणस्स' अयमेयारूवे अज्झथिए' 'चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए सोमिले नाम माहणरिसो अच्चंतमाहणकुलप्पसूए, तए णं मए वयाइं चिण्णाइं जाव जूवा निक्खित्ता, तए णं मए वाणारसीए 'नयरीए बहिया बहवे अंबारामा य माउलिंगारामा य बिल्लारामा य कविट्रारामा य चिंचारामा य° पुप्फारामा य रोवाविया, तए णं मए सुबहुं लोह 'कडाहकडच्छयं तंबियं तावसभंडं घडावेत्ता, विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं° उवक्खडावेत्ता जाव' जेट्रपत्तं कुडुंबे ठवेत्ता जाव जेट्टपुत्तं आपुच्छित्ता, सुबहुं लोह" कडाहकडुच्छुयं तंबियं तावसभंडं गहाय तत्थ णं जेते दिसापोक्खिया तावसा तेसिं दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइए, पव्वइए वि य णं समाणे छठेंछट्टेणं जाव' विहरिए", तं सेयं खलु ममं इयाणि कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव" उद्रियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते बहवे तावसे दिट्ठाभट्ठे य पुव्वसंगइए य परियायसंगइए" य आपुच्छित्ता आसमसंसियाणि य दाहिणं दिसि पसरइ। एवं पच्चत्थिमेणं ७. सं० पा०-वाणारसीए जाव पुप्फारामा य वरुणे महाराया जाव पच्चस्थिमं दिसि जाव रोविया (क,ख,ग)। पसरह । उत्तरेणं वेसमणे महाराया जाव ८. सं० पा०... लोह जाव घडावेत्ता जाव उत्तरं दिसि पसरइ। पुव्वदिसागमेणं चत्तारि उवक्खडावेत्ता । दिसाओ भाणियव्वाओ जाव आहारं ६. उ० ३५० । आहारेइ । १०. उ० ३१५० । १. उ० ३।५१ । ११. सं. पा.---लोह जाव गहाय मुंडे जाव २. उ० ३।५२,५३ । पव्वइए। ३. उ. ३१५२,५३ । १२. उ० ३१५०-५४ । ४. जागरेमाणे (क)। १३. विहरइ (क,ग)। ५. सं० पा०-अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था । १४. ओ० सू० २२ । ६. उ०३१४८। १५. परिसासंगइए (क); ४ (ख)। Page #831 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५४ पुफियाओ बहूई सत्तसयाइं अणुमाणइत्ता वागलवत्थनियत्थस्स किढिण'-संकाइय-'गहितग्गिहोत्त-सभंडोवगरणस्स" कट्ठमुद्दाए' मुहं बंधित्ता उत्तरदिसाए उत्तराभिमुहस्स महप्पत्थाणं पत्थाइत्तए --एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते बहवे तावसे य दिट्ठाभट्ठे य पुव्वसंगइए य "परियायसंगइए य आपुच्छित्ता आसमसंसियाणि य बहूई सत्तसयाइं अणुमाणइत्ता वागलवत्थनियत्थे किढिणसंकाइय-गहितग्गिहोत्त-सभंडोवगरणे° कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-जत्थेव णं अहं जलंसि वा थलंसि वा दुग्गंसि वा निन्नसि वा पव्वयंसि वा विसमंसि वा गड्डाए वा दरीए वा पक्खलेज्ज वा पवडेज्ज वा, नो खलु मे कप्पइ पच्चुट्टित्तएत्तिक? अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ, उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे महप्पत्थाणं पत्थिए। ५६. तए णं से सोमिले माहणरिसी पच्चावरण्हकालसमयंसि' जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागए, असोगवरपायवस्स अहे किढिण-संकाइयं ठवेइ, ठवेत्ता वेदि वड्ढेइ, वड्ढेता उवलेवण-संमज्जणं करेइ, करेत्ता दब्भकलसहत्थगए जेणेव गंगा महाणई 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गंगं महाणइं ओगाहइ, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता जलकिड्ड करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवपिउकयकज्जे दब्भकलसहत्थगए गंगाओ महाणईओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव असोगवरपायवे तेणेव 'उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" दब्भेहि य कुसेहि य वालुयाए य वेदि रएइ, रएत्ता सरगं करेइ, करेत्ता जाव बलिं वइस्सदेवं करेइ, करेत्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ ५७. तए णं तस्स सोमिलमाहणरिसिस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए। ५८. तए णं से देवे सोमिलं माहणं एवं वयासी-हंभो सोमिलमाहणा! पव्वइया ! दुप्पव्व इयं ते ॥ ५६. 'तए णं से सोमिले तस्स देवस्स एयमद्वं नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ११॥ ६०. 'ततेणं से देवे सोमिलं माहणं दोच्चंपि तच्चपि एवं वयासी-हंभो सोमिलमाहणा ! पव्वइया ! दुप्पव्व इयं ते ॥ ६१. तए णं से सोमिले तस्स देवस्स दोच्चपि तच्चपि एयमढें नो आढाइ नो परि१. कढिण (क,ख) । ७. संकाइयगं (क,ख,ग)। २. गिहितग्निहोत्तस्समं (क); गहितग्गिहोत्त- ८. सं० पा०- जहा सिवो जाव गंगाओ। स्समं (ख); गिहितसभंडोवगरणस्स (व)। ६. उवागए (क,ख) । ३. कट्ठमुंडाते (क)। १०. उ० ३।५१ । ४. सं० पा०-तं चेव जाव कट्ठमुद्दाए। ११. ४ (क)। ५. वा एवं (क,ख,ग)। १२. ४ (ख)। ६. पुन्वावरण्ह (क,ख,ग)। Page #832 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५५ तइयं अज्झयणं जाणइ', 'अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ ६२. तए णं से देवे सोमिलेणं माहणरिसिणा अणाढाइज्जमाणे' जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। ६३. तए णं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते वागलवत्थनियत्थे किढिण-संकाइय-गहियग्गिहोत्त-भंडोवगरणे कट्ठमुहाए मुहं बंधइ, बंधित्ता [उत्तराए दिसाए ? ] उत्तराभिमुहे संपत्थिए। ६४. तए णं से सोमिले बिइयदिवसम्मि पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव सत्तिवण्णे तेणेव उवागए, सत्तिवण्णस्स अहे किढिण-संकाइयं ठवेइ, ठवेत्ता वेदि वड्ढेइ जहा असोगवरपायवे जाव' अग्गि हुणइ, 'चरु साहेइ, बलिं वइस्सदेवं करेइ", कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, तुसिणीए संचिट्ठइ ।। ६५. तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउन्भूए । ६६. तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे जहा असोगवरपायवे जाव पडिगए। ६७. तए णं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते वागलवत्थनियत्थे किढिण-संकाइयं गेण्हइ, गेण्हित्ता कटुमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए॥ ६८. तए णं से सोमिले तइयदिवसम्मि पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे किढिण-संकाइयं ठवेइ, ठवेत्ता वेदि वड्ढेइ जाव' 'गंगाओ महाणईओ' पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" वेदि रएइ, रएत्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता तुसिणीए संचिट्ठइ॥ ६६. तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउन्भूए'२, तं चेव भणइ जाव" पडिगए। ७०. तए णं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव" उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते वागलवत्थनियत्थे किढिण-संकाइय-'गहियग्गिहोत्तभंडोवगरणे"५ कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए। ७१. तए णं से सोमिले चउत्थदिवसम्मि पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव वडपायवे १. सं० पा०–परिजाणइ जाव तुसिणीए। ८. ओ० सू० २२। २. अतोने 'अपरिजाणिज्जमाणे' इति पाठः ६. उ० ३१५६ । प्रासङ्गिकोस्ति, किन्तु आदर्शषु नोपलभ्यते। १०. गंगं महानई (क,ख,) ३. ओ० सू० २२ । ११. पू०-उ० ३१५६ ।। ४. समंडो° (उ० ३१५५) । १२. पाउब्भवित्था (क,ग,)। ५. उ० ३३५६ । १३. उ० ६।५८-३२ । ६. ४ (क.ख,ग,)। १४. ओ० सू० २२। ७. उ० ३३५८-६२ । १५. जाव अग्गिहोत्तं (क,ख)। Page #833 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुफियाओ तेणेव उवागए, वडपायवस्स अहे किढिण-संकाइयं ठवेइ, ठवेत्ता वेदि वड्ढेइ, उवलेवणसंमज्जणं करेइ जाव' कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ ७२. तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउब्भूए', तं चेव भणइ जाव' पडिगए॥ ७३. तए णं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते वागलवत्थनियत्थे किढिण-संकाइय'- 'गहियग्गिहोत्तभंडोवगरणे कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए॥ ४. ताण से सोमिले पंचमदिवसम्मि पच्चावरण्ढकालसमयंसि जेणेव उंबरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उंबरपायवस्स अहे किढिण-संकाइयं ठवेइ, ठवेत्ता वेदि वड्ढेइ जाव' कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता तुसिणीए संचिट्ठइ ।। ७५. तए णं तस्स सोमिलमाहणस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउब्भूए॥ ७६. तए णं से देवे सोमिलं माहणं एवं वयासी-हंभो' सोमिला ! पव्वइया ! दुप्पव्वइयं ते ॥ ७७. •तए णं से सोमिले तस्स देवस्स एयमढें नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ । देवो दोच्चंपि तच्चपि वदइ-सोमिला ! पव्वइया! दुप्पव्वइयं ते॥ सोमिलस्स देवेण पसिणोत्तर-पदं ७८. तए णं से सोमिले तेणं देवेणं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वुत्ते समाणे तं देवं एवं वयासी कहं णं देवाणुप्पिया ! मम दुप्पव्वइयं ? । ७६. तए णं से देवे सोमिलं माहणं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! तुम पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतियं पंचाणुब्बइए सत्तसिक्खावइए दुवालसविहे सावगधम्मे पडिवण्णे, तए णं तव अण्णया कयाइ असाहुदंसणेण पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुबजागरियं जागरमाणस्स जाव पुचितियं देवो उच्चारेइ जाव जेणेव १. उ० ३।५६ । २. ४ (क)। ३. उ० ३१५८-६२। ४. ओ० सू० २२ । ५. सं० पा०----संकाइय जाव कट्ठमुद्दाए । ६. उ० ३।५६ । ७. सं० पा०-देवे जाव एवं । ८. हंहो (क)। ६. सं० पा०--पढम भणइ तहेव । १०. अंतिए (ख)। ११. ४५ सूत्रे ‘सावगधम्म पडिवज्जित्ता' इति पाठो स्ति, अत्र 'पंचाणुब्वइए सत्तसिक्खावइए दुवालसविहे सावगधम्मे पडिवणे' इति पाठोस्ति । ८१,८२ सूत्रयो : 'पुव्वपडिवण्णाई पंच अणुव्बयाई' इति पाठोस्ति । अनयो : सप्तशिक्षावतानां उल्लेखो नास्ति । एतत् परिवर्तन भगवतो महावीरय परम्परानुसारि कृतं स्थविरै : । द्रष्टव्यम्---ना० १।०४५ सूत्रस्य पादटिप्पणम्। १२. पू०- उ० ३।४७;x (क,ख)। Page #834 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इयं अभय ७५७ असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छसि', उवागच्छित्ता किठिण-संकाइयं जाव' तुसिणीए संचिट्ठसि । तए णं अहं पुव्वरत्तावरत्तकाले तव अंतियं पाउन्भवामि, हंभो सोमिला ! पव्वइया ! दुप्पव्वइयं ते । तह च्चेव देवो निरवयवं भणइ जाव पंचमदिवसम्मि पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव उंबरपायवे तेणेव उवागए किढिण-संकाइयं ठवेसि वेदि वड्ढेसि उवलेवण-संमज्जणं करेसि, करेत्ता कट्टमुद्दाए मुहं बंधेसि, बंधेत्ता तुसिणीए संचिट्ठसि तं एवं खलु देवाणुप्पिया ! तव दुप्पव्वइयं ॥ 7७ ८०. 'तए णं से सोमिले तं देवं एवं वयासी कहं णं देवाणुप्पिया ! मम सुपव्वइयं ? ८१. तणं से देवे सोमिलं एवं वयासी - जइ गं तुमं देवाणुप्पिया ! इयाणि 'पुव्वपडवण्णाई पंच अणुव्वयाई सयमेव उवसंपज्जित्ताणं विहरसि तो णं तुब्भं इयाणि सुपव्वइयं भवेज्जा' । तए णं से देवे सोमिलं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जामेव दिसि पाउब्भू तामेव दिसि पडिगए । सोमिलस्स पुणो सावगधम्मगहण-पदं ८२. एणं से" सोमिले माहणरिसी तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे पुव्वपडिवण्णाई पंच अणुव्वयाई सयमेव उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ सोमिलस्स सुक्क सहग्गत्ताए उववत्ति-पदं ८३. तए णं से सोमिले बहूहिं चउत्थ छट्ठम" - दसम दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोवहाणेहिं" अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाई समणोवासगपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ, झूसेत्ता तीसं भत्ताइं अणसणाए छेदेइ, छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते विराहियसम्मत्ते कालमासे कालं किच्चा सुक्कडस विमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्ताए° ओगाहणाए सुक्कम हग्गहत्ताए उववण्णे || १३ ८४. तए णं से सुक्के महग्गहे अहुणोववण्णे समाणे" "पंचविहाए पज्जत्तीए ---- आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणपाणपज्जत्तीए भासमणपज्जत्तीए पज्जत्तभावं गए ॥ ८५. एवं खलु गोयमा ! देवी दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते १. उवागए ( क ) ; उवा ( ख ) । २. ३।४८-५६ । ३. निययं ( ग ) । सुक्केणं महग्गहेणं सा दिव्वा" "देविड्ढी दिव्वा अभिसमण्णागए । एगं पलिओवमं ठिई ॥ ८. विहरइ ( क ) । ६. हवेज्जा ( क ) । १०. x ( ख ) । ११. सं० पा०छट्टट्ठम जाव मासद्ध० । १२. तवविहाणेहिं ( क ) । १३. सं० पा० देवसयणिज्जंसि जाव ओगाहणाए । समाणे जाव भासमणपज्जत्तीए । दिव्वा जाव अभिसमण्णागया । ४. उ० ३।५६-७७ । ५. ठवेहि (क); ठवेइ ( ख, ग ) । ६. x (क, ख ) ; करेइ ( ग ) । ७. × (क,ग) ; तए णं से सोमिले तं देवं एवं १४. सं० पा वयासी (ख) । १५. सं० पा० Page #835 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५८ पुप्फियाओ ८६. सुक्के णं भंते ! महग्गहे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं' कहिं गच्छिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ॥ निक्खेव-पदं ८७. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं पुफियाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते ___—त्ति बेमि ॥ चउत्थं अज्झयणं बहुपुत्तिया उक्खेव-पदं ८८. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते, चउत्थस्स णं भंते ! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? ८६. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए । सेणिए राया। सामी समोसढे । परिसा निग्गया । बहुपुत्तिया-पदं ६०. तेणं कालेणं तेणं समएणं बहुपुत्तिया देवी सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तिए विमाणे सभाए सुहम्माए बहुपुत्तियंसि सोहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहि चाहिं महत्तरियाहिं जहा सूरियाभे जाव भुंजमाणी विहरइ ॥ ६१. इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी-आभोएमाणी पासइ पच्छा समणं भगवं महावीरं जहा सूरियाभो जाव नमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहा संनिसण्णा । आभिओगा जहा सूरियाभस्स, सूसरा घंटा, आभिओगं" देवं सद्दावेइ, जाणविमाणं जोयणसहस्सवित्थिण्णं, जाणविमाणवण्णओ जाव उत्तरिल्लेणं निज्जाणमग्गेणं जोयणसाहस्सिएहि१२ विग्गहेहिं तहा आगया जहा सूरियाभो, धम्मकहा समत्ता ॥ ६२. तए णं सा बहुपुत्तिया देवी दाहिणं भुयं पसारेइ. देवकुमाराणं अट्ठसयं, देवकुमारियाण य वामाओ भुयाओ। तयाणंतरं च णं बहवे दारगा य दारियाओ य डिभए य डिभियाओ य विउव्वइ, नट्टविहिं जहा" सूरियाभो उवदंसित्ता पडिगया । १. पू०-उ० ३।१८।। ८. आ (क); ४ (ग)। २. सं० पा-निक्खेवो। ६. राय० सू० ८। ३. सं० पा०.-उक्खेवओ। १०. "मुही (ख)। ४. ना० १११७ । ११. आभिओगियं (क्व)। ५. संपाविउकामेणं (व) । १२. °सहस्सिएहिं (क)। ६. ना० १११७ । १३. पू०-राय० सू० ६-६१ । ७. राय० सू० ७। १४. राय० सू० ६९-१२० । Page #836 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं ७५६ ६३. भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ। कूडागारसाला दिद्रुतो। ६४. बहुपुत्तियाए णं भंते ! देवीए सा दिव्वा देविड्डी पुच्छा जाव' अभिसमण्णागया ? सुभद्दाए संताणपिवासा-पदं . ६५. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नाम नयरी, अंबसालवणे चेइए॥ ___६६. तत्थ ण वाणारसीए नयरीए भद्दे नाम सत्थवाहे होत्था –अड्ढे जाव' अपरिभूए॥ ६७. तस्स णं भद्दस्ससुभद्दा नाम भारिया--सूमाला वंझा अवियाउरी जाणकोप्परमाया यावि होत्था ॥ ६८. तए णं तीसे सुभद्दाए सत्थवाहीए अण्णया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए इमेयारूवे 'अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए° संकप्पे समुप्पज्जित्था -एवं खलु अहं भद्देणं सत्थवाहेणं सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुजमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि, तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव सुलद्धे णं तासि अम्मयाणं 'मणुए जम्मजीवियफले", जासिं मण्णे नियगकुच्छिसंभूयगाई थणदुद्धलुद्धगाइं महुरसमुल्लावगाणि मम्मणपजंपियाणि 'थणमूला कक्खदेसभाग" अभिसरमाणाणि 'पण्हयं पियंति', पुणो य कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गिहिऊणं उच्छंगनिवेसियाणि देंति समुल्लावए सुमहुरे पुणो-पुणो मंजुलप्पभणि ए, अहं णं अधण्णा अपुण्णा अकयपुण्णा एत्तो एगमवि न पत्ता, ओहय मणसंकप्पा करयलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ओमंथियवयणनयणकमला दीणविवण्णवयणा° झियाइ ।। सुभद्दागिहे अज्जागमण-पदं ___EE. तेणं कालेणं तेणं समएणं सुव्वयाओ णं अज्जाओ इरियासमियाओ भासासमियाओ एसणासमियाओ आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमियाओ उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिढावणियासमियाओ मणगुत्तीओ वयगुत्तीओ कायगुत्तीओ गुत्तिदियाओ गुत्तबंभचारिणीओ बहुस्सुयाओ बहुपरियाराओ पुव्वाणुपुद्वि चरमाणीओ गामाणुगाम दुइज्जमाणीओ जेणेव वाणारसी नयरी तेणेव उवागयाओ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा •अप्पाणं भावेमाणीओ विहरंति ॥ १. पू०--राय० सू० १२१-१२३ । २. राय० सू० ६६७ । ३. ओ० सू० १४१ । ४. भद्दस्स य (क,ख,ग)। ५. सं० पा०-- इमेयारूवे जाव संकप्पे । ६. उ० १२३४ । ७. मणुयजम्म० (वृ)। ८. मंजुलपजंपियाणि (क,ख,ग)। ६. थणमूलकक्ख० (क,ख,ग)। १०. अतिसरमाणगाणि (क,ग)। ११. पण्हयंति (वृ)। १२. मम्मणप्प० (क,ख,ग)। १३. सं० पा०.-ओहय जाव झियाइ । १४. सं० पा०-तवसा जाव विहरति । Page #837 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० पुल्फियाओ १००. तए णं तासि सुव्वयाणं अज्जाणं एगे संघाडए वाणारसीए नयरीए उच्चनीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे भद्दस्स सत्थवाहस्स गिहं अणुपविठे ।। सुभद्दाए संताणलाभोवायपुच्छा-पदं १०१. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही ताओ अज्जाओ एज्जमाणीओ पास इ, पासित्ता हतुट्टा खिप्पामेव आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुठेत्ता सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता एवं वयासी एवं खलु अहं अज्जाओ! भद्देणं सत्थवाहेणं सद्धि विउलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि', तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ •जाव' सूलद्धे णं तासि अम्मयाण मणए जम्मजीवियफले'. अहं णं अधण्णा अपुण्णा अकयपुण्णा एत्तो एगमवि न पत्ता, तं तुब्भे णं अज्जाओ! बहुणायाओ बहुपढियाओं बहूणि गामागर'-*णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टणासमसंबाह-सण्णिवेसाइं आहिंडह, बहूणं राईसर-तलवर - माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठिसेणावइ-सत्थवाहप्पभिईणं गिहाई अणुपविसह, अत्थि से केइ कहिंचि विज्जापओए वा मंतप्पओए वा वमणं वा विरेयणं वा वत्थिकम्मे वा ओसहे वा भेसज्जे वा उवलद्धे, जेणं अहं दारगं वा दारियं वा पयाएज्जा? अज्जाए धम्मकहा-पदं १०२. तए णं ताओ अज्जाओ सुभदं सत्थवाहिं एवं वयासी---अम्हे णं देवाणुप्पिए ! समणीओ निग्गंथीओ इरियासमियाओ जाव' गुत्तबंभचारिणीओ, नो खलु कप्पइ अम्हं एयमठे कण्णेहि वि निसामेत्तए, किमंग पुण उवदंसित्तए' वा समायरित्तए वा ? अम्हे णं देवाणु प्पिए ! पुणं तव विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहेमो॥ सुभद्दाए धम्मपडिवत्ति-पदं १०३. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही तासि अज्जाणं अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्टा ताओ अज्जाओ तिक्खुत्तो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सद्दहामि णं अज्जाओ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं अज्जाओ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं अज्जाओ! निग्गंथं पावयणं, एवमेयं तहमेयं अवितहमेयं जाव से जहेयं तुब्भे वयह । इच्छामि णं अहं तुब्भं अंतिए सावगधम्म पडिवज्जित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंध करेहि ॥ १०४. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही तासिं अज्जाणं अंतिए सावगधम्म पडिवज्जइ, १. पयायामि (क्व०)। ८. उ० ३।६६ । २. सं० पा.-..--अम्मयाओ जाव एत्तो। ६. उवएसियत्तए (क)। ३. उ० ११३४ । १०. x (क); णं (ग); नवरं (क्व०)। ४. पू०-उ० ३१९८ । ११. अंतियं (क)। ५. बहुसिक्खिताओ बहुपढिताओ (क) । १२. ना० २।१४।४७ । ६. सं० पा०—गामागर जाव सण्णिवेसाइं। १३. अंतियं (क); सं० पा०---अंतिए जाव ७. सं० पा०---तलवर जाव सत्थवाह० । पडिवज्जइ। Page #838 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं अभयणं पडिवज्जित्ता ताओ अज्जाओ वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जइ ॥ १०५. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही समणोवासिया जाया जाव' विहरइ ॥ सुभद्दाए पव्वज्जा-पदं १०६. तए णं तीसे सुभद्दाए समणोवासियाए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयं सिकुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे' 'अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए कप्पे समुपज्जित्था एवं खलु अहं भद्देणं सत्थवाहेणं सद्धि विउलाई ' 'भोगभोगाई भुंजमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि, तं सेयं खलु ममं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते 'भद्दं सत्यवाहं" आपुच्छित्ता सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए मुंडा' भवित्ता अगाराओ • अणगारयं पव्वइत्तए एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्ले' जेणेव भद्दे सत्थवाहे तेणेव उवागया करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहिं सद्धि बहूई वासाई विउलाई भोगभोगाई" "भुंजमाणी" विहरामि, नो चेव णं दारगं वा दारियं वा पयामि, तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहि अब्भणुष्णाया समाणी सुव्वयाणं अज्जाणं" अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइत्तए । १०७. तए णं से भद्दे सत्थवाहे सुभद्दं सत्यवाहि एवं वयासी - माणं तुमं देवाणुप्पिए ! इयाणि" मुंडा" भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयाहि भुंजाहि ताव देवाणुपिए ! मए सद्धिविउलाई भोगभोगाई, तओ पच्छा भुत्तभोई सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए मुंडा" भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयाहि" ॥ १०८. तए णं सुभद्दा सत्थवाही भद्दस्स एयमट्ठे नो आढाइ नो परियाणइ । दोच्चपि तच्चपि [ सुभद्दा सत्थवाही ? ] भद्दं सत्यवाहं एवं वयासी - इच्छामि णं देवापिया ! तुभेहिं अब्भणुष्णाया समाणी" सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । १०६. तए णं से भद्दे सत्थवाहे जाहे नो संचाएइ बहूहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि " य सण्णवणाहि य विष्णवणाहि य आघवित्तए वा" पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा° १. ना० १।१४/४६ । २. सं० पा० - अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था । ३. सं० पा० विउलाई जाव विहरामि । ४. ओ० सू० २२ । ५. भद्दस्स (ख,ग) । ६. अंतियं ( क ) । ७६१ ७. अज्जा (ग) । ८. सं० पा० - अगाराओ जाव पव्वइत्तए । ε. कल्लं ( ख ) । १०. सं० पा० – करयल० । ११. सं० पा० – भोगभोगाई जाव विहरामि । १२. सं० पा० - अज्जाणं जाव पव्वइत्तए । १३. इदाणी ( क, ख ) । १४,१५. सं० पा० मुंडा जाव पव्वयाहि । १६. पव्वइए हिसि ( क ); पव्वइहिसि ( ख ) ; पवहिसिति ( ग ) । १७. सं० पा० – समाणी जाव पव्वइत्तए । १८. एवं पण (क, ख ग ) । १६. सं० पा० - आघवित्तए वा जाव विष्णवित्तए । Page #839 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ पुप्फियाओ विण्णवित्तए वा ताहे अकामए चेव सुभद्दाए निक्खमणं अणुमण्णित्था ॥ ११०. ताणं से भरे सत्थवाहे विउलं असणं पाणं खाइम साइम उवक्खडावे. मित्तनाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमतेइ, तओ पच्छा भोयणवेलाए जाव' मित्तनाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं धूव-पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सुभई सत्थवाहि हायं कियबलिकम्मं कयकोउयमंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरूहेइ॥ १११. तए णं से भद्दे सत्थवाहे मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेण सद्धि संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं वाणारसीनयरीए मज्झमज्झेणं जेणेव सुव्वयाणं अज्जाणं उवस्सए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं ठवेइ, सुभदं सत्थवाहि सीयाओ पच्चोरुहेइ ।। ११२. तए णं भद्दे सत्थवाहे सुभदं सत्थवाहिं पुरओ काउं जेणेव 'सुव्वया अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुव्वयाओ अज्जाओ वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! सुभद्दा सत्थवाही मम भारिया इट्ठा कंता जाव' मा णं वाइया पित्तिया सिभिया सण्णिवाइया विविहा रोगायंका फ़संतु । एस णं देवाणुप्पिया ! संसारभउब्विग्गा भीया जम्मणमरणाणं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयाइ। तं एयं णं अहं देवाणुप्पियाणं सी सिणिभिक्खं दलयामि । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सीसि णिभिक्खं । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ ११३. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही सुव्वयाहिं अज्जाहिं एवं वुत्ता समाणी हट्टतुट्ठा [उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता?] सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणेव सुव्वयाओ अज्जाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुव्वयाओ अज्जाओ तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-आलित्ते णं अज्जा ! लोए जहा देवाणंदा तहा पव्वइया जाव अज्जा जाया-इरियासमिया जाव' गुत्तबंभयारिणी ॥ सुभद्दाए अज्जाए संताणपिवासाणुभव-पदं ११४. तए णं सा सुभद्दा अज्जा अण्णया कयाइ बहुजणस्स चेडरूवेसु मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा अभंगणं च उव्वट्टणं च फासुयपाणं च अलत्तगं च कंकणाणि य अंजणं च वण्णगं च चुण्णगं च खेल्लणगाणि य खज्जल्लगाणि य खीरं च पुप्फाणि य गवेसइ, गवेसित्ता बहुजणस्स दारए य दारियाओ य कुमारे य कुमारियाओ य १. उवा०११५७ २. सं० पा०—ण्हायं जाव पायच्छित्त । ३. ओ० सू० ६७ । ४. सुव्वयज्जा (ख)। ५. उ० ३।१२८ । ६. सं० पा० -भवित्ता जाव पव्वयाइ । ७. भंते (क,ख,ग)। ८. भग० ६।१५२-१५४ । ६. उ० ३।६६ । १०. सं० पा०--मुच्छिया जाव अज्झोववण्णा । ११. खेल्लणाणि (क); खेल्लगाणि (ग) । Page #840 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं ७६३ डिंभए य डिभियाओ य अप्पेगइयाओ अभंगेइ अप्पेगइयाओ उव्वट्टेइ अप्पेगइयाओ फासूयपाणएणं ण्हावेइ, अप्पेगइयाणं पाए रयइ, अप्पेगइयाणं ओट्ठे रयइ, अप्पेगइयाणं अच्छीणि अंजेइ, अप्पेगइयाणं उसुए करेइ अप्पेगइयाणं तिलए करेइ, अप्पेगइयाओ दिगिंदलए करेइ, अप्पेगइयाणं पंतियाओ करेइ, अप्पेगइयाई छिज्जाई करेइ, अप्पेगइया वण्णएणं समालभइ अप्पेगइया चुण्णएणं समालभइ अप्पेगइयाणं खेल्लणगाई दलयइ, अप्पेगइयाणं खज्जलगाई दलयइ, अप्पेगइयाओ खीरभोयणं भुंजावेइ, अप्पेगइयाणं पुप्फाई ओमुयइ', अप्पेगइयाओ पाएसु ठवेइ, अप्पेगइयाओ जंघासु वेइ, एवं - ऊरुसु उच्छंगे कडीए पिट्ठीए पिट्टे उरसि खंधे सीसे य करयलपुडेणं गहाय 'हलउलेमाणीहलउलेमाणी'' 'आगायमाणी - आगायमाणी परिगायमाणी - परिगायमाणी - पुत्तपिवासं च धूयपिवासं च नत्तुयपिवासं च नत्तिपिवासं च पच्चणुभवमाणी विहरइ ॥ ११५. तए णं ताओ सुब्वयाओ अज्जाओ सुभद्द अज्जं एवं वयासी- अम्हे णं देवाणुपिए ! समणीओ निग्गंथीओ इरियासमियाओ जाव" गुत्तबंभयारिणीओ, नो खलु अम्ह कप्पइ धाइकम्मं करेत्तए । तुमं च णं देवाणुप्पिए ! बहुजणस्स चेडरूवेसु मुच्छिया " • गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा अब्भंगणं जाव नत्तिपिवासं वा पच्चणुभवमाणी विहरसि । तं णं तुमं देवाणुप्पिए ! एयस्स ठाणस्स आलोएहि पडिकम्मेहि णिदेहि गरिहेहि विउहि विसोहि अकरणयाए अब्भुट्ठेहि अहारिहं पायच्छित्तं" पडिवज्जाहि ॥ ११६. तए णं सा सुभद्दा अज्जा सुव्वयाणं अज्जाणं एयमट्ठ नो आढाइ नो परिजाण, अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी विहरइ ॥ ११७. तए णं ताओ समणीओ निग्गंथीओ सुभद्दं अज्जं ही लेंति" निदंति खिति गरहंति" अभिक्खणं अभिक्खणं एयमट्ठ निवारंति ॥ ११८. तए णं तीसे सुभद्दाए अज्जाए समणीहिं निग्गंथीहि हीलिज्जमाणीए • निदिज्ज माणीए खिसिज्जमाणीए गरहिज्जमाणीए अभिक्खणं- अभिक्खणं एयमट्ठ निवारिज्जमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - जया णं अहं अगारवासं आवसामि " तया णं अहं अप्पवसा, जप्पभिदं च णं अहं मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया तप्पभिदं च णं अहं परवसा पुव्वि च मम १. एवं अप्पे ० ( क, ख, ग ) । २. एति ( ख ) । ३. आमुयइ ( क, ख ) ; असुयंति ( ग ) । ४. करेइ ( ख, ग ) । ५. पट्टीए ( क ) ; पिट्ठे ( ग ) । ६. पेट्टे ( क ) ; x ( ग ) । ७. हलओमाणी २ (क) । ८. गायमाणी ( ख ) । C. सुव्वदाओ ( क ) । १०. उ० ३।६६ ११. सं० पा०--मुच्छिया जाव अज्झोववण्णा १२. उ० ३।११४ । १३. सं० पा० - आलोएहि जाव पायच्छित्तं । १४. च्छित्तं ( ख ) । १५. हिलंति ( क ग ) । १६. गरिहंति ( ख ) । १७. सं० पा० - हीलिज्जमाणीए जाव अभिक्खणं । १८. वसामि ( ग ) । Page #841 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ पुफियाओ समणीओ निग्गंथीओ आति' परिजाणेति, इयाणि नो आति नो परिजाणंति, तं सेयं खलु मे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते सव्वयाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिनिक्खमित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता गं विहरित्तए- एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते सुव्वयाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता' णं विहरइ ।। ११६.तए णं सा सुभद्दा अज्जा अज्जाहिं अणोहट्टिया अणिवारिया सच्छंदमई बहुजणस्स चेडरूवेसु मुच्छिया 'गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा' अब्भंगणं च जाव' नत्तिपिवासं च पच्चणुभवमाणी विहरइ ।। सुभद्दाए बहुपुत्तियदे वित्ताए उववत्ति-पदं १२०. तए णं सा सुभद्दा अज्जा पासत्था पासत्थविहारी' 'ओसण्णा ओसण्णविहारी कुसीला कुसीलविहारी संसत्ता संसत्तविहारी अहाछंदा अहाछंदविहारी बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसेत्ता, तोसं भत्ताइं अणसाए छेदेत्ता, तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तियाविमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जसि देवदूसंतरिया अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्ताए' ओगाहणाए बहुपुत्तियदेवित्ताए उववण्णा ॥ १२१ तए णं सा बहुपुत्तिया देवी अहुणोववण्णमेत्ता समाणी पंचविहाए पज्जत्तीए जाव भासमणपज्जत्तीए पज्जत्तभावं गया । १२२. एवं खलु गोयमा ! बहुपुत्तियाए देवीए सा दिव्वा देविड्डी' • दिव्वा देवजुती दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए । १२३. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ-बहुपुत्तिया देवी बहुपुत्तिया देवी ? गोयमा ! बहुपुत्तिया णं देवी जाहे-जाहे सक्कस्स देविंदस्स देवरणो उवत्थाणियं करेइ ताहे-ताहे बहवे दारए य दारियाओ य डिभए य डिभियाओ य विउव्वइ, विउव्वित्ता जेणेव सक्के देविदे देवराया तेणेव उवागच्छ इ, उवागच्छित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो दिव्यं देविड्डि दिव्वं देवज्जुइं दिव्वं देवाणुभाव उवदंसेइ। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-बहुपुत्तिया देवी बहुपुत्तिया देवी ॥ १२४. बहुपुत्तियाए णं भंते ! देवीए केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १. आढयंति (क); आढ़ति (ख,ग)। २. ओ० सू० २२ । ३. जाइत्ता (ग)। ४. सं पा० --मुच्छिया जाव अब्भंगणं । ५. उ० ३३११४। ६. विहारिणी (क्व)। ७. एवं ओसण्णा कुसीला (क,ख,ग)। ८. अपडिक्कंता (क,ख,ग)। ६. मित्ताए (क,ख)। १०. उ०३।८४। ११. सं० पा०-देविड्ढी जाव अभिसमण्णागया। १२. उवत्थाणियाणं (क,ख,ग)। Page #842 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अभयणं सोमा संताणुपत्ति-पदं १२५. बहुपुत्तिया णं भंते ! देवी ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं 'भवक्खएणं ठिइक्खएणं" अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विझगिरिपायमूले विभेलसण्णिवेसे' माहणकुलंसि दारियताए पचायाहि ॥ १२६. तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे 'वीइक्कते णिवत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते बारसाहे" अयमेयारूवं नामधेज्जं करेहिति होउ णं म्हं इसे दारिया नामधेज्जं सोमा || १२७. तए णं सा सोमा उम्मुक्कबालभावा विष्णय-परिणयमेत्ता जोव्वणगमणुप्पत्ता रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्कि दुसरीरा वि भविस्सइ || १२८. तए णं तं सोमं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं 'विण्णय-परिणयमेत्तं जोव्वणगमणुप्पत्तं" पडिरूविएणं' सुक्केणं 'पडिरूविएण य विणणं" नियगस्स भाइणेज्जस्स रट्ठकूडस्स भारियत्ताए दलइस्संति । सा णं तस्स भारिया भविस्सइ इट्ठा कंता' ● पिया मण्णा मणामा थेज्जा वेसासिया सम्मया बहुमया अणुमया' भंडकरंङगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया " चेलपेला इव सुसंपरिहिया" रयणकरंडगो विव सुसारविखया सुसंगविया, माणं सीयं मा णं उण्हं माणं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला माणं दंसामा णं मसगा मा णं वाइय-पित्तिय-सिंभिय-सण्णिवाइया विविहा रोयाका संतु । १२६. तए णं सा सोमा माहणी रटूकूडेणं" सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणी संवच्छरे-संवच्छरे जुयलगं पयायमाणी सोलसेहि संवच्छ रेहिं बत्तीसं दारगरूवे" पयाहिइ" ॥ सोमाए बहुसंताणजणियखेद-पदं १३०. तए णं सा सोमा माहणी तेहि बहूहिं दारगेहि य दारियाहि य कुमारेहि य कुमारियाहि यभिहिय डिभियाहि य- अप्पेगइएहिं उत्ताणसेज्जएहि", 'अप्पेगइएहि १. ठिक्खिणं भवक्खणं ( ख ) । २. बेभेल (कख); विभले नाम ( ग ) । ३. वीइक्कते जाव बारसहिं दिवसेहिं वीइक्कतेहि (क, ग ); वीइवकंते बारसहिं दिवसेहिं वीइक्कतेहि (ख) ; अयं पाठः प्रासङ्गिकार्थशून्योस्ति । लिपिदोषेण एवं जातमिति सम्भाव्यते । स्वीकृतः पाठः 'ओवाइय' (१४४) सूत्रानुसारी विद्यते । ४. करेंति (क, ख ) । ५. या वि (क) । ६. उदिष्णजोव्वणमणुप्पत्तं ( क ) । ७६५ ७. पडिकूविएणं ( वृ ) । ८. पडिरूविएणं ( ख ) ; पडिरूवएणं ( ग ) । ६. सं० पा०- कंता जाव मंड० । १०. सुसंगोफिता ( क ) । ११. सुसंपरिग्गहिता ( ग ) । १२. सं० पा० सीयं जाव विविहा । १३. रट्ठकूडे हि ( क ) । १४. चेडगरूवे (ग) । १५. पयाही ( क ग ) । १६. सेज्जाहिं ( ख ) । Page #843 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ पुप्फियाओ थणपाएहि", अप्पेगइएहिं पीहगपाएहि', अप्पे गइएहिं परंगणएहिं', अप्पेगइएहि परक्कममाणेहि, अप्पेगइएहिं पक्खोलणएहिं, अप्पेगइएहिं थणं मग्गमाणेहि, अप्पेगइएहिं खीरं मग्गमाणेहिं, अप्पेगइएहिं तेल्लं मग्गमाणेहिं, अप्पेगइएहिं खेलणयं मग्गमाणेहि, अप्पेगइएहिं खज्जगं" मग्गमाणेहिं, अप्पेगइएहिं कूरं मग्गमाणेहि, अप्पेगइएहिं पाणियं मग्गमाणेहि, अप्पेगइएहिं हसमाणेहिं, अप्पेगइएहिं रूसमाणेहि, अप्पेगइएहिं अक्कोसमाणेहिं', अप्पेगइएहिं अक्कुस्समाणेहिं, अप्पेगइएहिं हणमाणेहि, अप्पेगइएहिं हम्ममाणेहि, अप्पेगइएहिं विप्पलायमाणेहिं, अप्पेगइएहिं अणुगम्ममाणेहि, अप्पेगइएहिं रोयमाणेहि, अप्पेगइएहि कंदमाणेहिं, अप्पेगइएहिं विलवमाणेहिं, अप्पेगइएहिं कूवमाणेहिं, अप्पेगइएहि उक्कवमाणेहि , अप्पेगइएहिं निद्दायमाणेहिं, अप्पेगइएहिं पलवमाणेहि, अप्पेगइएहिं हदमाणेहि, अप्पेगइएहि वममाणेहि, अप्पेगइएहि छेरमाणेहि, अप्पेगइएहि मुत्तमाणेहिं मुत्त-पुरीस-वमिय-सुलित्तोवलित्ता मइलवसणपोच्चडा असुइबीभच्छा परमदुग्गंधा नो संचाएहिइ" रटूकडेणं सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरित्तए॥ १३१. तए णं तीसे सोमाए माहणीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं इमेहिं बहूहिं दारगेहि य जाव" डिभियाहि य अप्पेगइएहिं १. अप्पेगइएहि य थणपाएहिं (क); अप्पेगइ- ६. अकोस (क,ग); आकोस० (ख)। एहि थणियपाएहि (ख,ग)। ७. उक्कूवमाणेहिं निज्जायमाणेहिं (ख)। २. पीयगयाएहिं (क)। ८. पवलमाणेहिं (क)। ३. परंगणेहिं (वृ)। ६. पुच्चडा (ख,ग)। ४. पचंकमणेहिं (क)। १०. °वीसका (क)। ५. खज्जगे (ख)। ११. संचाएति (क)। १२. अतः पूर्व 'बहुपुत्तिया' भाविजन्मवर्णने सर्वत्र भविष्यत् क्रियापदप्रयोगो दृश्यते, किन्तु अत्र अतः परं च सर्वत्रापि वर्तमानक्रियापदप्रयोगो लभ्यते । एतत् परिवर्तनं निश्चितं कयाचित विस्मत्या जातमस्ति । अर्थप्रसङ्गानुसारेण उत्तरवर्तीनि क्रियापदानि यन्त्रे द्रष्टव्यानिसू० १३१ समुप्पज्जित्था समुप्पज्जिहिइ ,१३२ उवागच्छंति विहरंति उवागच्छिहिंति विहरिस्संति ,, १३३ अणुपविढे अणपविस्सिहिइ , १३४ पास इ अब्भुठेइ अणु गच्छइ वंदइ पासिहिइ अब्भुठेहिइ अणुगच्छिहिइ बंदिस्सइ नमंसइ पडिलाभेइ वयासी नमंसिस्सइ पडिलाभेहिइ वइस्सइ , १३५ परिकहेंति परिकहेहिंति ,, १३६ वंदइ नमसइ वयासी पव्वयामि बंदिस्सइ नमसिस्सइ वइस्सइ पव्वइस्सामि ,, १३७ वंदइ नमसइ पडिविसज्जेइ वंदिस्सइ नमंसिस्सइ पडिविसज्जिहिइ , १३८ वयासी वइस्सइ ॥ १३६ वयासी वइस्सइ , १४० पडिसुणेइ पडिसुणिस्सइ Page #844 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं ७६७ उत्ताणसेज्जएहिं जाव' अप्पेगइएहिं मुत्तमाणेहिं दुज्जाएहिं दुज्जम्मएहिं हयविप्पहयभग्गेहिं एगप्पहारपडिएहिं जेणं मुत्त-पुरीस-वमिय-सुलित्तोवलित्ता जाव' परमदुग्गंधा' नो संचाएमि रटुकडेणं सद्धि विउलाई भोगभोगाइं° भुंजमाणी विहरित्तए, तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव' सुलद्धे णं तासि अम्मयाणं मणुए जम्मजीवियफले जाओ णं वंझाओ अवियाउरियाओ' जाणुकोप्परमायाओ सुरभिसुगंधगंधियाओ' विउलाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणीओ विहरंति, अहं णं अधण्णा अपुण्णा अकयपुण्णा नो संचाएमि रट्टकूडेणं सद्धि विउलाई 'माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरित्तए ॥ सोमागिहे अज्जागमण-पदं । १३२. तेणं कालेणं तेणं समएणं सुव्वयाओ नाम अज्जाओ इरियासमियाओ जाव बहुपरिवाराओ पुव्वाणुपुव्वि चरमाणोओ गामाणुगामं दूइज्जमाणीओ जेणेव विभेले" सण्णिवेसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं" •ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणीओ विहरंति ॥ १३३. तए णं तासिं सुव्वयाणं अज्जाणं एगे संघाडए विभेले सण्णिवेसे उच्च-नीय •मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए° अडमाणे रट्टकूडस्स गिहं अणुपविठे ॥ सु० १४१ पडिनिक्खमइ उवागच्छइ वंदइ नम- पडिनिक्खमिस्सइ उवागच्छिहिइ वंदिस्सइ सइ पज्जुवासइ नमंसिस्सइ पज्जुवासिहिइ , १४२ परिकहेंति परिकहेहिति , १४३ पडिवज्जइ वंदइ नमसइ पाउन्भूया पडिवज्जि हिइ बंदिस्सइ नमंसिस्सइ पाउब्भविस्सइ पडिगया पडिगमिस्सइ , १४४ जाया विहरइ भविस्सइ विहरिस्सइ ,, १४५ पडिनिक्खमंति विहरंति पडिनिक्खमिस्संति विहरिस्संति , १४६ विहरंति विहरिस्संति , १४७ वंदइ नमसइ पव्वयामि वंदिस्सइ नमंसिस्सइ पव्वइस्सामि ,, १४८. वंदइ नमसइ पडिनिक्खमइ उवाग- वंदिस्सइ नमंसिस्सइ पडिनिक्खमिस्सइ उवागच्छिच्छइ आपुच्छइ हिइ आपुच्छिस्सइ , १४६ जाया भविस्सइ " १५० अहिज्जइ अहिज्जिस्सइ १३. उ० ३।१३० । ७. °सुगंधसुगंधियाओ (ख)। १. उ० ३३१३० । ८. सं० पा०—विउलाई जाव विहरित्तए। २. उ० ३।१३० । ६. उ० ३९६ । ३. दुब्भिगंधा (ख)। १०. वेभेले (क,ख); वेभले (ग)। ४. सं० पा०–सद्धि जाव मुंजमाणी। ११. सं० पा०-ओग्गहं जाव विहरंति । ५. उ० ११३४ । १२. सं० पा०-नीय जाव अडमाणे । ६. अवियाउरीओ (क)। Page #845 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६५ पुफियाओ १३४. तए णं सा सोमा माहणी ताओ अज्जाओ एज्जमाणीओ पासइ, पासित्ता हट्ठा खिप्पामेव आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुठेत्ता सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभत्ता एवं वयासी - एवं खलु अहं अज्जाओ ! रट्ठकूडेणं सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरामि, संवच्छरे-संवच्छरे जुयलं' पयामि, सोलसहि संवच्छरेहिं बत्तीसं दारगरूवे पयाया। तए णं अहं तेहिं बहूहि दारएहि य जाव' डिभियाहि य अप्पेगइएहिं उत्ताणसेज्जएहिं जाव' मुत्तमाणेहिं दुज्जाएहिं 'दुज्जम्मएहिं हयविप्पहयभग्गेहिं एगप्पहारपडिएहिं जेणं मुत्त-पुरीस-वमिय-सुलित्तोवलित्ता जाव' परमदुग्गंधा नो संचाएमि रटकूडेणं सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरित्तए, तं इच्छामि णं अहं अज्जाओ! तुम्हं अंतिए धम्म निसामेत्तए॥ सोमाए धम्मपडिवत्ति-पदं १३५. तए णं ताओ अज्जाओ सोमाए माहणीए विचित्तं' केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहेंति ॥ १३६. तए णं सा सोमा माहणी तासिं अज्जाणं अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ट'तुटुचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया ताओ अज्जाओ वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सहामि णं अज्जाओ! निग्गंथं पावयणं जाव' अब्भुढेमि णं अज्जाओ ! निग्गंथं पावयणं, एवमेयं अज्जाओ ! जाव से जहेयं तब्भे वयह जं, नवरं----अज्जाओ! रटुकडं आपुच्छामि । तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा" भवित्ता अगाराओ अणगारियं° पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंधं ॥ १३७. तए णं सा सोमा माहणी ताओ अज्जाओ वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ॥ १३८. तए णं सा सोमा माहणी जेणेव रटुकडे तेणेव उवागया करयल२. परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-एवं खलु मए देवाणुप्पिया! अज्जाणं अंतिए धम्मे निसंते, से वि य णं धम्मे इच्छिए 'पडिच्छिए° अभिरुइए । तए णं अहं [इच्छामि ? ] देवाणुप्पिया ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया सुव्वयाणं अज्जाणं " •अंतिए मुंडा १. जुवलं (ख); जुगलं (ग)। भाति । २. उ० ३।१३० । ८. सं० पा०.- हट्ट जाव हियया । ३. उ० ३।१३० । ६. ना० १।१।१०१। ४. सं० पा०. दुज्जाएहिं जाव नो संचाएमि १०. ना० १११११०१ । विहरित्तए। ११. सं० पा०-मुंडा जाव पव्वयामि । ५. उ० ३।१३० । १२. सं० पा०--करयल० । ६. अंतियं (क)। १३. सं० पा०—इच्छिए जाव अभिरुइए। ७. विचित्तं जाव (क,ख,ग); उ० ३१११२ १३. सं० पा०--अज्जाणं जाव पव्व इत्तए। सूत्रानुसारेण 'जाव' इति पदं नावश्यक प्रति Page #846 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । १३६. तए णं से रट्टकडे सोमं माहणि एवं वयासी—मा णं तुमं देवाणुप्पिए ! इयाणि मुंडा भवित्ता' अगाराओ अणगारियं° पव्वयाहि, भुंजाहि ताव देवाणुप्पिए ! मए सद्धि विउलाई भोगभोगाई। तओ पच्छा भुत्तभोई सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए मुंडा' भवित्ता अगाराओ अणगारियं° पव्वयाहि ।। १४०. तए णं सा सोमा माहणी रटकूडस्स एयमट्ठ पडिसुणेइ । १४१. तए णं सा सोमा माहणी हाया जाव' अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता विभेलं सण्णिवेसं मज्झमज्झेणं जेणेव सुव्वयाणं अज्जाणं उवस्सए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुव्वयाओ अज्जाओ वंदइ नमसइ पज्जुवास इ॥ १४२. तए णं ताओ सुव्वयाओ अज्जाओ सोमाए माहणीए विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहेंति-जहा' जीवा बज्झंति, 'जहा जीवा मुच्चंति ॥ १४३. तए णं सा सोमा माहणी सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता सुव्वायाओ अज्जाओ वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसि पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया ।। १४४. तए णं सा सोमा माहणी समणोवासिया जाया---अभिगयजीवाजीवा जाव' अप्पाणं भावेमाणी विहरइ ॥ सोमाए पव्वज्जा-पदं १४५. तए णं ताओ सुव्वयाओ अज्जाओ अण्णया कयाइ विभेलाओ सण्णिवेसाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरंति ॥ १४६. तए णं ताओ सुव्वयाओ अज्जाओ अण्णया कयाइ पुवाणुपुब्वि चरमाणीओ जाव' विहरंति ॥ १४७. तए णं सा सोमा माहणी इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्ठा हाया तहेव निग्गया जाव" वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता धम्म सोच्चा जाव' जं, नवरं-रटुकडं आपुच्छामि, तए णं पव्वयामि । अहासहं ॥ १४८. तए णं सा सोमा माहणी 'सुव्वयाओ अज्जाओ वंदइ नमसंइ, वंदित्ता नमसित्ता सुव्वयाणं अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव रटुकडे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहिया तहेव आपुच्छइ जाव" पव्वइत्तए । १. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वयाहि । २. सं० पा०-मुंडा जाव पव्वयाहि । ३. उ० १११६ । ४. ४ (ख,ग)। ५. जाव जहा (ख)। ६. x (क)। ७. अंतिए जाव (ख)। ८. ओ० सू० १२० । ६. उ० ३।१३२ । १०. उ० ३३१४१ । ११. ना० १।१।१०१। १२. सुव्वयं अज्ज (क,ख,ग)। १३. उ० ३।१३८ । Page #847 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७० पुप्फियाओ अहासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंधं ॥ १४६. तए णं से रटुकडे विउलं असणं तहेव जहा पुन्वभवे सुभद्दा जाव' अज्जा जाया-इरियासमिया जाव' गुत्तबंभयारिणी ॥ सोमाए सामाणियदेवत्ताए उववत्ति-पदं। १५०. तए णं सा सोमा अज्जा सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं छट्ठम-दसम-दुवालसेहिं जाव' भावेमाणी बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसेत्ता, सर्द्धि भत्ताई अणसणाए छेइत्ता, आलोइय-पडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा सक्कस्स देविदस्स देवरणो सामाणियदेवत्ताए उववज्जिहि॥ १५१. तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं सोमस्सवि देवस्स दो सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। १५२. से णं भंते ! सोमे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे जाव' अंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं १५३. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पुप्फियाणं चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते -त्ति बेमि ।। पंचमं अज्झयणं पुण्णभद्दे १५४. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं पुप्फियाणं चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, पंचमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स पुल्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जावसंपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? १५५. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए । सेणिए राया। सामी समोसरिए । परिसा निग्गया । १५६. तेणं कालेणं तेणं समएणं पुण्णभद्दे देवे सोहम्मे कप्पे पुण्णभद्दे विमाणे सभाए सुहम्माए पुण्णभदंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जहा सूरियाभे जाव बत्तीस इविहं नट्टविहिं उवदंसित्ता जाव जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए। कूडागार१. उ० ३।११०-११३ ६. ना० १११७ । २. उ० ३१६६ । ७. सं० पा०-उक्खेवओ। ३. उ० २।१०। ८. ना० १।१७। ४. गमिहिति (ख)। ६. राय० सू० ७-१२० । ५. उ० १३१४१ । १०. दिसं. (ख)। Page #848 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं ७७१ साला' । पुव्वभवपुच्छा ॥ १५७. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मणिवइया नाम नयरी होत्था-रिद्ध-स्थिमिय-समिद्धा । चंदोतारायणे' चेइए॥ ___ १५८. तत्थ णं मणिवइयाए' नयरीए पुण्णभद्दे नाम गाहावई परिवसईअड्ढे ॥ १५६. तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा जाव' जीवियासमरणभय-विप्पमुक्का बहुस्सुया बहुपरियारा पुव्वाणुपुद्वि चरमाणा जाव' समोसढा । परिसा निग्गया ॥ १६०. तए णं से पुण्णभद्दे गाहावई इमीसे कहाए लद्धठे समाणे हट्टतुठे जाव जहा पण्णत्तीए गंगदत्ते तहेव निग्गच्छइ जाव निक्खंतो जाव' गुत्तबंभयारी॥ १६१. तए णं से पुण्णभद्दे अणगारे 'तहारूवाणं थेराणं" भगवंताणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं जाव भावित्ता बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, सर्द्धि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे पुण्णभद्दे विमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि •देवदूसंतरिए अंगूलस्स असंखेज्जइभागमेत्ताए ओगाहणाए पुण्णभद्ददेवत्ताए उववण्णे ॥ १६२. तए णं से पुण्णभद्दे देवे अहुणोववण्णे समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए जाव० ० भासमणपज्जत्तीए पज्जत्तभावं गए। १६३. एवं खलु गोयमा ! पुण्णभद्देणं देवेणं सा दिव्वा देविड्डी जाव" अभिसमण्णागया। १६४. पुण्णभद्दस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! दो सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १६५. पुण्णभद्दे णं भंते ! देवे ताओ देवलोगाओ जाव कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव" अंतं काहिइ॥ १६६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं पूप्फियाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते -त्ति बेमि॥ १. पू०-राय० सू० १२१-१२३ । २. तारायण (ख); 'ताराइण (ग)। ३. मणिवयाए (क)। ४. राय० सू० ६८६ । ५. उ० ११२। ६. भग० १६१६८-७१। ७. ४ (क,ख)। ८, उ० २।१०। है. सं० पा० - देवसयणिज्जंसि जाव भासमण पज्जत्तीए। १०. उ० ३.८४ । ११. उ० ३१८५। १२. उ० ३८६ । १३. उ० ३८६ । १४. ना० १।१७। १५. सं० पा०-निक्खेवओ। Page #849 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२ पुप्फियाओ छठें अज्झयणं माणिभद्दे १६७ जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं "पुप्फियाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते, छट्ठस्स णं भंते ! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते° ? १६८. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए । सेणिय राया। सामी समोसरिए। १६६. तेणं कालेणं तेणं समएणं माणिभद्दे देवे सभाए सुहम्माए माणिभदंसि सीहासणंसि चउहि सामाणियसाहस्सीहिं जहा पुण्णभद्दो तहेव आगमणं नट्टविही पुव्वभवपुच्छा । मणिवई नयरी, माणिभद्दे गाहावई, थेराणं अंतिए पव्वज्जा, एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूई वासाइं परियाओ, 'मासिया संलेहणा", सर्द्धि भत्ताई, माणिभद्दे विमाणे उववाओ, दो सागरोवमाई ठिई, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। १७०. एवं खलु जंबू ! °समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पुप्फियाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि ॥ ७-१० अज्झयणाणि १७१. एवं दत्ते ७, सिवे ८, बले ६, अणाढिए १०, सव्वे जहा पुण्णभद्दे देवे। दो सागरोवमाइं ठिई । विमाणा देवसरिनामा। पुव्वभवे दत्ते चंदणानामाए, सिवे मिहिलाए" बले हत्थिणपुरे नयरे, अणाढिए काकंदीए"। चेइयाइं-जहा संगहणीए॥ १. ना० १।१७। २. स० पा०-उक्खेवओ। ३. ना० १।१७। ४. समोसढे (ख,ग)। ५. उ० ३।१५६-१६५ । ६. मासियाए संलेहणाए (क,ख,ग)। ७. सं० पा०—निक्खेवओ। ८. ना० १११७ । ६. उ०३।१५४-१६४ । १०. महिलाए (क,ख,ग)। ११. काकिंदीए (क)। Page #850 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वग्गो पुण्फचूलियाओ पढमं अज्झयणं सिरि १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं उवंगाणं तइयस्स वग्गस्स पुप्फियाणं अयमठे पण्णत्ते, चउत्थस्स णं भंते ! वग्गस्स पुप्फच लियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं कइ अज्झयणा पण्णता ? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावो रेणं जाव' संपत्तेणं पुप्फचूलियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति, बुद्धि-लच्छी य होइ बोद्धव्वा । ___ इलादेवी सुरादेवी, रसदेवी गंधदेवी य ॥१॥ ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं उवंगाणं चउत्थस्स वग्गस्स पुप्फचूलियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! "अज्झयणस्स पुप्फचलियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटठे पण्णते ? ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे । परिसा निग्गया। ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं सिरिदेवी सोहम्मे कप्पे सिरिवडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए सिरिवडिसयंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहि महत्तरियाहिं सपरिवाराहिं जहा बहुपुत्तिया जाव" नट्टविहिं उवदं सित्ता पडिगया, नवरं-दारियाओ नत्थि । पुव्वभवपुच्छा ॥ ६. एवं खलु गोयमा" ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। जियसत्तू राया ॥ ७. तत्थ णं रायगिहे नयरे सुदंसणे नाम गाहावई परिवसई१२–अड्ढे । १. सं० पा०----उक्खेवओ जाव दस । ६. सिरिमि (क); सिरिसि (ग) । २,३,४,५. ना० १११७ । १०. उ० ३।६०-६४ । ६. पुप्फचूलाणं (क,ख,ग)। ११. जंबू (क,ख,ग)। ७. सं० पा...-उक्खेवओ। १२. वसइ (क)। ८. ना० १११७ । ७७३ Page #851 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७४ पुप्फचूलियाओ ८. तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स पिया नाम भारिया होत्था---सूमालपाणिपाया ॥ ६. तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स धूया, पियाए गाहावइणीए अत्तया भया नाम दारिया होत्था--'वुड्डा वुड्डकुमारी" जुण्णा जुण्णकुमारी पडियपुतत्थणी वरगपरिवज्जिया' यावि होत्था ॥ १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए जाव नवरयणिए' वण्णओ सो चेव समोसरणं । परिसा निग्गया ॥ ११. तए णं सा भूया दारिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्टतुट्टा जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी-एवं खलु अम्मताओ ! पासे अरहा पुरिसादाणीए पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे जाव' गणपरिवुडे' विहरइ, तं इच्छामि णं अम्मताओ! तुन्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स पायवंदिया गमित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंधं ॥ १२. तए णं सा भूया दारिया ण्हाया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा चेडीचक्कवालपरिकिण्णा साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा ।।। १३. तए णं सा भूया दारिया नियगपरिवारपरिवुडा रायगिहं नयरं मझमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्ताईए तित्थयराइसए पासइ, पासित्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुभित्ता चेडीचक्कवालपरिकिण्णा जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो अयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ जाव पज्जुवासइ॥ १४. तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए भूयाए दारियाए तीसे य महइमहालियाए परिसाए ‘धम्म परिकहेइ'१९, धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं जाव१ अब्भठेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, से जहेयं तुब्भे वयह, जं नवरं भंते ! अम्मापियरो आपुच्छामि, तए णं अहं१२ 'देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं° पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिए !॥ १५. तए णं सा भूया दारिया तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ, दुरूहित्ता जेणेव १. अत्तिया (ख)। १०. धम्मकहा (क,ख,ग)। २. वड्ढा वड्ढकुमारी (क,ख)। ११. ना० १११।१०१। ३. परग० (क) : वरगपक्खेज्जिया (वृ)।। १२. देवाणुप्पिया (क,ख,ग) । ४. ओ० सू० १६, वाचनांतरम् । १३. सं० पा०-अहं जाव पव्वइत्तए । ५. नवरयणीओ (ख)। १४. अस्य पदस्य स्थाने आदर्शषु 'पव्व इत्तए' इति ६ ओ० सू० ५२ । पदमस्ति, किन्तु वाक्यरचनायां नैतत ७. समणगणपरिवुडे (ग) । सङ्गच्छते। ३।१३६ सूत्रस्य संदर्भ 'पव्वयामि' ८. परिक्खित्ता (ख) । इति पदमेव युक्तमस्ति । ६. उ० ११६। १५. जाव (क,ख,ग)। Page #852 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयण रायगिहे नयरे तेणेव उवागया, रायगिहं नयरं मज्झमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागया, रहाओ पच्चोरुहित्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागया, करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जहा जमाली आपुच्छइ । अहासुहं देवाणुप्पिए !॥ १६. तए णं से सुदंसणे गाहावई विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमतेइ, आमंतेत्ता जाव' जिमियभुत्तुत्तरकाले सुईभए निक्खमणमाणेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! भूयाए दारियाए पुरिससहस्सवाहिणि' सीयं उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता' •एयमाणत्तिय पच्चप्पिणह ।। १७. तए णं ते 'कोडुंबियपुरिसा तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ १८. तए णं से सुदंसणे गाहावई भूयं दारियं व्हायं जाव' सव्वालंकारविभूसियसरीरं पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरूहेइ, दुरूहेत्ता मित्त-नाइ -नियग-सयण-संबंधिपरियणेण सद्धि संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव" दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं रायगिहं नयरं मज्झमज्झेणं जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागए छत्तातीए तित्थयरातिसए पासइ, पासित्ता सीयं ठवेइ, ठवेत्ता भूयं दारियं सीयाओ पच्चोरुहेइ"॥ १६. तए णं तं भूयं दारियं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागया तिक्खुत्तो 'वंदंति नमसंति'", वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पिया ! भूया दारिया अम्हं धूया" इट्टा", एस णं देवाणुप्पिया ! संसारभउविग्गा भीया •जम्मणमरणाणं° देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं° पव्वयाइ“ । तं एयं णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणीभिक्खं दलयामो । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणिभिक्खं । अहासुहं देवाणुप्पिया !॥ २०. तए णं सा भूया दारिया पासेणं अरहा" एवं वुत्ता समाणी हट्टतुट्ठा उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कम्मइ, अवक्कमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ, जहा देवाणंदा, पुप्फचलाणं अंतिए जाव" गुत्तबंभयारिणी ।। २१. तए णं सा भूया अज्जा अण्णया कयाइ सरीरबाओसिया जाया यावि होत्था१. सं० पा०--करयल० । १३. वंदइ नमसइ (क,ख,ग) । २. पू०. भग०६।१६५-१६७ । १४. एगा धूया (ग)। ३. ना० १११११। १५. तिट्ठा (क)। ४. उक्खणमाणेत्ता (क,ख,ग) । १६. तसिया जाव (ख); सं० पा०-भीया जाव ५. °वाहिणी (क); वाहिणीयं (क्व०)। देवाणुप्पियाणं । ६. सं० पा०--उवट्ठवेत्ता जाव पच्चप्पिणह । १७. सं० पा.-मुंडा जाव पव्वयाइ । ७. सं० पा० ते जाव पच्चप्पिणंति । १८. पव्वयइ (ख)। ८. उ० ११७० । १६. दलयामि (ख); दलयति (ग)। ६. सं० पा०-नाइ जाव रवेणं । २०. अरहया (क)। १०. ओ० सू० ६७ । २१. भग० ६।१५२-१५४ । ११. पच्चोरुहइ (क ख) । २२. पाओसिया (क,ग)। १२. उवागए (क,ख,ग)। Page #853 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७६ पुप्फचूलियाओ arrai अभिक्खणं हत्थे धोवइ, पाए धोवइ, सोसं धोवइ, मुहं धोवइ, थणगंतराई धोवइ, कक्वं तराई धोवइ, गुज्झतराई धोवइ, जत्थ- जत्थ वि य णं ठाणं वा सेज्ज' वा निसीहि वा चेएइ, तत्थ तत्थ वि य णं पुव्वामेव पाणएणं' अब्भुक्खेइ, तओ पच्छा ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ ॥ २२. तए णं ताओ पुप्फचूलाओ अज्जाओ भूयं अज्जं एवं वयासी अम्हे णं देवाणुfore ! समणीओ निग्गंथीओ इरियासमियाओ जाव' गुत्तबंभयारिणीओ । नो खलु कप्पइ अम्हं सरीरबाओसियाणं होत्तए । तुमं च णं देवाणुप्पिए ! सरीरबाओसिया अभिक्खणंअभिक्खणं हत्थे धोवसि जाव' निसीहियं चेएसि' । 'तं णं" तुमं देवाणुप्पिए ! एयस्स" ठाणस्स आलोएहि, सेसं जहा सुभद्दाए जाव" पाडिएक्कं" उवस्सयं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ॥ २३. तए णं सा भूया अज्जा अणोहट्टिया अणिवारिया सच्छंदमई अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवइ जाव" निसीहियं वा चेएइ " ।। २४. तए णं सा भूया अज्जा बहूहि चउत्थ छट्ठ" ट्ठम- दसम दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सिरिवडेंस विमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिया अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्ताए' ओगाहणाए सिरिदेवित्ताए उववण्णा । पंचविहाए पज्जत्तीए जाव" भासमणपज्जत्तीए पज्जत्तभावं गया ॥ २५. एवं खलु गोयमा ! सिरीए देवीए एसा दिव्वा देविड्डी लद्धा पत्ता । ठिई एगं पलिओवमं ॥ २६. सिरी णं भंते ! देवी 'ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खणं ठिइक्खणं अनंतरं चयं चइत्ता' कहिं गच्छिहिइ" ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहि ॥ १७ २७. एवं खलु जंबू ! "समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं पुप्फचूलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते -त्ति बेमि° ॥ १. एवं सीसं ( क, ख, ग ) । २. तराई ( ख ) । ३. सिज्जं (ख,ग ) । ४. निसेज्जं ( क ) । ५. पुव्वमेव ( ख ) । ६. पाणिएणं ( क ) ७. उ० ३।६६ । ८. उ० ४।२१ । ६. चेतेहि (कख); चेइए ( ग ) । १०. सेतं ( क ) । ११. तस्स (क ) । १२. उ० ३।११५.११८ । १३. पडियक्कं ( ख ) । १४. उ० ४।२१ । १५. चेवेति ( क ) ; चेति ( ग ) । १६. सं० पा० – छट्ठ बहूई । १७. सं०पा० – देवसयणिज्जंसि जाव ओगाहणाए । १८. उ० ३।८४ | १९. सं० पा० देवी जाव कहिं । २०. गमिहिति ( ख, ग ) । २१. सं० पा०-निक्खेवओ । २२. ना० १।१७ । Page #854 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २-१० अज्झयणाणि २- १० अज्झयणाणि २८. एवं सेसाणवि नवहं भाणियव्वं । सरिनामा' विमाणा । सोहम्मे कप्पे । पुव्वभवे नयरचेइयपियमाईणं अप्पणो य नामाई जहा संगहणीए । सव्वा पासस्स अंतिए निक्खता । पुप्फचूलाणं सिस्सिणीयाओ सरीरबाउसियाओ' सव्वाओ अनंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिंति ॥ १. सरिसनामा ( ग ) । २. निक्कंता ( क ) । ३. पाउसियाओ (क,ग) । ७७७ Page #855 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वग्गो वण्हिदसाओ पढमं अज्झयणं निसढे १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं उवंगाणं चउत्थस्स वग्गस्स पुप्फचूलियाणं' अयमठे पण्णत्ते, पंचमस्स णं भंते ! वग्गस्स उवंगाणं वण्हिदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं वण्हिदसाणं दुवालस अज्झयणा पण्णत्ता, त जहा 'निसढे मायणि-वह-वहे, पगया" जुत्ती दसरहे दढरहे य । महाधण सत्तधण, दसधणू नामे सयधण य ॥१॥ ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं उवंगाणं पंचमस्स वग्गस्स वण्हिदसाणं दुवालस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! १२.अज्झयणस्स वण्हिदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं के अठे पण्णत्ते ? ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नाम नयरी होत्था- दुवालसजोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा जाव* पच्चक्खं देवलोयभूया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। ५. तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं रेवतए" नाम पव्वए होत्था-तुंगे गगणतलमणुलिहंतसिहरे नाणाविहरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लया-वल्ली-परि१. ना० १२११७। ८. महधणू (ख)। २. पुप्फचूलाणं (क,ख,ग)। ६. सत्तधणू नवधणू (ग)। ३,४. ना० १११७ । १०. ४ (क,ख)। ५. निरूढे रा अवि वाह वहे पगत्ती (क); ११. ना० २११७ । निसढे अनि वह वेहे पगई (ख); निसढे अनि १२. सं० पा०-- उक्खेवओ। वह वेही पगती (ग)। १३. ना० १।१७। ६. जुती (ख)। १४. ना० शश२। ७. ४ (क)। १५. रेववए (क)। ७७८ Page #856 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं ७७६ गयाभिरामे हंस-मिय-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाग-मदणसाला'-कोइलकुलोववेए तडकडग-विवर-उज्झर"-'पवात-पब्भारसिहरपउरे" अच्छरगण - देवसंघ - विज्जाहरमिहुणसंनिचिते निच्चच्छणए दसारवर-वीरपुरिस-तेल्लोक्कबलवगाणं' सोमे सुभए पियदसणे सुरूवे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ।। ६. तस्स णं रेवयगस्स पव्वयस्स अदूरसामंते, एत्थ णं नंदणवणे नामं उज्जाणे होत्था-सव्वोउय-पुप्फ - फल-समिद्धे रम्मे नंदणवणप्पगासे पासाईए° दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे॥ ७. तत्थ णं नंदणवणे उज्जाणे 'सुरप्पिए नामं५१ जक्खस्स जक्खाययणे होत्थाचिराईए जाव बहुजणो आगम्म अच्चेइ सुरप्पियं जक्खाययणं । ८. से णं सुरप्पिए जक्खाययणे एगेणं महया वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते जहा पुण्णभद्दे जाव" पुढविसिल्लावट्टए । ६. तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया होत्था जाव" रज्जं पसासेमाणे विहरइ ॥ १०. से णं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसण्हं दसाराणं, बलदेवपामोक्खाणं पंचण्हं महावीराणं, उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसण्हं राईसाहस्सीणं", पज्जुण्णपामोक्खाणं अद्धट्टाणं कुमारकोडीणं, संबपामोक्खाणं सट्ठीए दुइंतसाहस्सीणं, वीरसेणपामोक्खाणं एक्कवीसाए वीरसाहस्सीणं, रुप्पिणिपामोक्खाणं सोलसण्हं देवीसाहस्सीणं, अणंगसेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं", अण्णेसिं च बहूणं राईसर- तलवर-माइंबिय-कोडुबियइब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिईणं वेयड्डगिरिसागरमेरागस्स दाहिणड्डभरहस्स आहेवच्च२ •पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ॥ ११. तत्थ णं बारवईए नयरीए बलदेवे नामं राया होत्था-महयाहिमवंत-महंतमलय-महिंदसारे जाव" रज्जं पसासेमाणे विहरइ ।। १. कुंच (ख)। २. बग (ख); काग (ग)। ३. मयण० (ग)। ४. विउरमझर (क)। ५. पवातसिहर० (क,ख,ग)। ६. दसाणपर (क)। ७. तेल्लोकवलवल गाणं (क) ८. सं० पा० ...पासादीए जाव पडिरूवे । ६. सव्वोदुय (क)। १०. सं० पा०--पुप्फ जाव दरिसणिज्जे। ११. सुरप्पियस्स (ख,ग)। १२. ओ० सू०२। १३. उच्चेइ (क,ग)। १४. ओ० सू० ४-१३ । १५. ओ० सू० १४ । १६. विभरइ (क)। १७. राईसहस्साणं (क, ख); रायसहस्साणं (ग)। १८. अट्ठाणं (क); अट्ठाणं (ख,ग)। १६. °सहस्साणं (क); सहस्सीणं (ख)। २०. सं० पा०-- राईसर जाव सत्यवाह० । २१. दाहिणद्ध० (ख)। २२. आधेवच्चं (ख); सं० पा०...आहेवच्चं जाव विहरइ। २३. ओ० सू०१४॥ Page #857 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८० वण्हिदसाओ १२. तस्स णं बलदेवस्स रण्णो रेवई नाम देवो होत्था -सूमालपाणिपाया जाव' विहरइ ॥ १३. तए णं सा रेवई देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि जाव सीहं सुमिणे पासित्ता णं पुडिबुद्धा। एवं सुमिणदंसणपरिकहणं, कलाओ जहा महाबलस्स, पण्णासओ दाओ, पण्णासं रायवरकण्णगाणं एगदिवसेणं पाणिग्गहणं, नवरं-निसढे नाम जाव' उप्पि पासाए विहरइ ।। १४. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमी आइगरे दस धणूई वण्णओ जाव समोसरिए। परिसा निग्गया॥ १५. तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्धढे समाणे हट्ठतुढे कोडुंबियपुरिसं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणप्पिया ! सभाए सुहम्माए सामुदाणियं भेरि तालेहि ॥ १६. तए णं से कोडुंबियपुरिसे जाव' वयणं पडिसुणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाणिया भेरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामुदाणियं भेरि महया-महया सद्देणं तालेइ ॥ १७. तए णं तीसे सामुदाणियाए भेरीए महया-महया सद्देणं तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा देवीओ भाणियव्वाओ जाव" अणंगसेणापामोक्खा अणेगा गणियासहस्सा, अण्णे य बहवे राईसर जाव" सत्थवाहप्पभिइओ व्हाया 'कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया जहाविभवइड्ढीसक्कारसमुदएणं अप्पेगइया हयगया जाव" पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल •परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट् कण्हं वासुदेवं जएणं विजएणं वद्धावेंति ॥ १८. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुबियपुरिसे एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कहत्थि" कप्पेह, हय-गय-रह-पवर जोहकलियं चाउरंगिणि सेणं सण्णाहेह, ममं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह जाव पच्चप्पिणंति ।। १६. तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव मज्जणघरे 'तेणेव उवागच्छइ जाव पडिनिग्ग १. ओ० सू०१५। २. पण्णासाए (क)। ३. भग० ११११३३-१६१ । ४. ना० २५।१०। ५. समुदा इयं (क); समुदाणियं (ख) । ६. भेरियं (ख)। ७. ना० ११५१३॥ ८. सामुदाइयं (क); सामुदाणियं (ख,ग)। ६. °पामोक्खाणं (क)। १०. उ० ५।१०। ११. उ० ५।१०। १२. सं० पा० -ण्हाया जाव पायच्छित्ता। १३. ना० १।५।१५। १४. सं० पा०—करयल० । १५. अभिसेक्कं हत्थिरयणं (उ० १२१२३) । १६. सं० पा०---पवर जाव पच्चप्पिणंति । १७. सं० पा०-मज्जणघरे जाव दुरूढे । १८. ओ० सू० ६३ । Page #858 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं ७८१ च्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जाव' गयवई नरवई° दुरूढे । अट्ट' मंगलगा' जहा' कूणिए सेयवरचामरेहिं 'उद्धव्वमाणेहि-उद्धव्वमाणेहि समुद्दविजयपामोक्खेहि दसहिं दसारेहि जाव' सत्थवाहप्पभिईहिं सद्धि संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं नार मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ । सेसं जहा कुणिओ जाव पज्जुवासइ॥ २०. तए णं तस्स निसढस्स कुमारस्स उप्पि पासायवरगयस्स तं महया जणसइं च जहा जमालो जाव धम्म सोच्चा निसम्म वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-... सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं जहा चित्तो जाव' सावगधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता पडिगए॥ २१. तेणं कालेणं तेणं सम एणं अरहओ अरिढनेमिस्स अंतेवासी वरदत्ते नाम अणगारे उराले जाव' विहरइ। २२. तए णं से वरदत्ते अणगारे निसढं कुमारं पासइ, पासित्ता जायसड्ढे २ जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी अहो' णं भंते ! निसढे कुमारे इठे इगुरूवे कंते कंतरूवे 'पिए पियरूवे मणुणे मणुण्णरूवे" मणामे मणामरूवे सोमे सोमरूवे पियदंसणे सुरूवे ।। २३. निसढेणं भंते ! कुमारेणं अयमेयारूवा मणय इड्डी किण्णा लद्धा ? किण्णा पत्ता ? पुच्छा जहा सूरियाभस्स ।। ___२४. एवं खलु वरदत्ता ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रोहीडए नामं नयरे होत्था -रिद्ध-स्थिमिय-समिद्धे। मेहवण्णे उज्जाणे मणिदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे"॥ २५. तत्थ णं रोहीडए नयरे महब्बले नाम राया, पउमावई नामं देवी, अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सीहे सुमिणे, एवं जम्मणं भाणियव्वं जहा महाबलस्स, नवरं-वीरंगओ नाम बत्तीसओ दाओ, बत्तीसाए रायवरकण्णगाणं पाणि जाव उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे पाउस-वरिसारत्त-सरय-हेमंत-वसंत-गिम्ह-पव्वंसे छप्पि उऊ जहाविभवेणं 'भुंजमाणे-भुंजमाणे'२२ कालं गालेमाणे इठे सद्द •-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे १. ओ० सू० ६३ । १३. ओ० सू० ८३ । २. अट्ठ (क)। १४. अहं (क); अहे (ख,ग)। ३. मंगला (ख)। १५. एवं पिए मणुण्णे (क,ख) । ४. ओ० सू० ६४,६५ । १६. राय० सू० ६६७ । ५. अद्धुव्वमाणेहिं २ (क)। १७. रोहेडए (क,ख)। ६. उ० ५।१०। १८. मेघवण्णे (क)। ७. ओ० सू० ६७ । १६. जक्खाययणे होत्था (क)। १. ओ० ६८,६६। २०. भग० ११।१३३-१६१ ।। ६. भग० ६।१५७-१६४ । २१. सरित (क); सरत (ख) । १०. राय० सू० ६६५-६६७ । २२. माणे माणे (क,ख,ग)। ११. ओ० सू० ८२ । २३. x (क,ख)। १२. जायसद्धे (क)। २४. सं० पा०-सद्द जाव विहरइ। Page #859 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८२ माणुस कामभोए पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥ २६. तेणं कालेणं तेणं समएणं सिद्धत्था नाम आयरिया जाइसंपण्णा जहा केसी नवरं बहुस्सुया बहुपरियारा जेणेव रोहीडए नयरे जेणेव मेहवण्णे उज्जाणे जेणेव मणिदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागया अहापडिरूवं' 'ओग्गहं ओगिव्हित्ता संजमेण तवसा अप्पा भावेमाणा' विहरति । परिसा निग्गया । २७. तए णं तस्स वीरंगयस्स कुमारस्स उप्पि पासायवरगयस्स तं महया जणसद्द जहा जमाली निग्गओ धम्मं सोच्चा जं, नवरं - देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि जहा जमाली तहेव निक्खतो जाव अणगारे जाए जाव गुत्तबंभयारी ॥ २८. तणं से वीरंगए अणगारे सिद्धत्थाणं आयरियाणं अंतिए सामाइयमाइयाई जाव एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूहि चउत्थ • छुट्टम - दसम दुवालसेहिं मासद्धमासक्खमणेहिं विचितेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई पणयालीसं वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सवीसं भत्तसयं अणसणाए छेइत्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे मणोरमे विमाणे देवत्ताए उववण्णे || २६. तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दससागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं वीरंगयस्स देवस्स दससागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ ३०. से णं वीरंगए देवे ताओ देवलोगाओ आउवखएणं भववखरणं ठिइवखएणं" अनंतरं चयं चइत्ता इहेव बारवईए नयरीए बलदेवस्स रण्णो रेवईए देवीए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववण्णे | ३१. तए णं सा रेवई देवी तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सुमिणदंसणं जाव' उप्पि पासायवरगए विहरइ । तं एवं खलु वरदत्ता ! निसढेणं कुमारेणं अयमेयारूवा उराला गुड्डी लद्धा पत्ता अभिसमण्णा गया || 1 भवित्ता अगाराओ ३२ पभू णं भंते ! निसढे कुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे' अणगारयं पव्वत्तए ? हंता ! पभू । 'से एवं भंते ! से एवं भंते वरदत्ते अणगारे " "अहं अरिनेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ! वहिदाओ ३३. तए णं अरहा अरिट्ठनेमी अण्णया कयाइ बारवईओ नयरीओ जाव" बहिया tra विहारं विहरइ ॥ १. राय० सू० ६८६ । २. सं० पा० अहापरूिवं जाव विहरति । ३. भग० ६।१५७-२१५ । ४. सं० पा०. - चउत्थ जाव अप्पाणं । ५. जाव (कख) । ६. उ० ५।१३ । ७. ओराला (कख) । ८. मणुड्ढी ( क ग ) ; मणुयिड्ढी ( ख ) । ६. सं० पा० मुंडे जाव पव्वइत्ते । १०. से एवं भंते ! वरदत्ते त्ति भगवं ( क ) ; सेवं भंते सेवं भंते त्ति भगवं (ख); से एवं भंते ३ इह ( ग ) । ११. सं० पा०--. अणगारे जाव अप्पाणं । १२. उ० ३।४६ । Page #860 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं ७८३ ३४. तए णं से निसढे कुमारे समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे जाव' विहरइ॥ ३५. तए णं से निसढे कुमारे अण्णया कयाइ जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव' दब्भसंथारोवगए विहरइ॥ ३६. तए णं तस्स निसढस्स कुमारस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था --तं धण्णा णं ते गामागर जाव' सण्णि वेसा, जत्थ णं अरहा अरिट्ठनेमी विहरइ । धण्णा णं ते राईसर जाव' सत्थवाहप्पभिइओ, जे णं अरहं अरिट्टनेमि वंदंति नमसंति सक्कारेंति सम्माणति कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासंति, तं जइ णं अरहा अरिट्ठनेमी पुव्वाणुपुवि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे नंदणवणे विहरेज्जा तो णं अहं अरहं अरिट्ठनेमि वंदिज्जा जाव पज्जुवासिज्जा ॥ ३७. तए णं अरहा अरिट्ठनेमी निसढस्स कुमारस्स अयमेयारूवं अज्झत्थियं चितियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं° वियाणित्ता अट्ठारसहि समणसहस्सेहिं जाव नंदणवणे उज्जाणे समोसढे। परिसा निग्गया। ३८. तए णं निसढे कुमारे इमीसे कहाए लद्धठे समाणे हद्वतुढे चाउग्घंटेणं आसरहेणं निग्गए जहा जमाली जाव' अम्मापियरो आपुच्छित्ता पव्वइए अणगारे जाएइरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी॥ ३६. तए णं से निसढे अणगारे अरहओ अरिट्ठनेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ-छट्टम - दसमदवालसेहिं मासद्धमासक्खमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई नव वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता बायालीसं भत्ताई अणसणाए छेएइ, आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते आणुपुड्कीए कालगए"। ४०. तए णं से वरदत्ते अणगारे निसढं अणगारं कालगयं जाणित्ता जेणेव अरहा अरिटुनेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव" एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी निसढे नामं अणगारे पगइभद्दए जाव" विणीए, से णं भंते ! निसढे अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववण्णे ? १. ओ० सू० १६२ । २. भग० १२।६। ३. सं० पा० . अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। ४. उ० ३३१०१। ५. उ० ३।१०१। ६. सं० पा०-नमसंति जाव पज्जुवासंति । ७. सं० पा०.---अज्झत्थियं जाब वियाणित्ता। ८. ना० ११५।१०। ६. भग० ६।१६०-२१५ । १०. २०३।१६। ११. सं० पा०-. छट्ठट्ठम जाव विचित्तेहिं । १२. अणुपुव्वीए (ख) । १३. कालगए सव्वदसिद्ध महाविमाणे देवत्ताए उववण्णे (ग)। १४. ओ० स० ८३ । १५. ना० ११११२०६ । Page #861 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८४ वण्हिदसाओ ४१. वरदत्ता दि! अरहा अरिटुनेमी वरदत्तं अणगारं एवं वयासी एवं खलु वरदत्ता ! ममं अंतेवासी निसढे नाम अणगारे पगइभद्दए जाव' विणीए ममं तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जित्ता, बहुपडिपुण्णाइं नव वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं भत्ताई अणसणाए छेइत्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त-तारारूवाणं सोहम्मीसाण जाव' अच्चुए तिण्णि य अट्ठारसुत्तरे गेविज्जविमाणावाससए वीइवइत्ता सव्वट्ठसिद्ध विमाणे देवत्ताए उववण्णे ॥ ४२. तत्थ णं देवाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं निसढस्सवि देवस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ४३. से णं भंते ! निसढे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएण अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? वरदत्ता ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उण्णाए नयरे विसुद्धपिइमाइवंसे रायकुले पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ । ‘से " उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलबोहिं 'बुज्झिहिइ, बुज्झिहित्ता" अगाराओ अणगारियं पव्वज्जिहिइ । से णं तत्थ अणगारे भविस्सइ- इरियासमिए" जाव" गुत्तबंभयारी । से णं तत्थ बहूहि चउत्थ-छट्ठमदसम-दुवालसेहिं मासद्धमासक्खमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाइं सामण्णपारियागं पाउणिस्सइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेहिइ,१२ झूसेत्ता स४ि भत्ताइं अणसणाए छे देहिइ, जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए" अदंतवणए अच्छत्तए अणोवाहणए फलहसेज्जा५ कटुसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे पिंडवाओ६ लावलद्धे" उच्चावया गामकंटगा अहियासिज्जंति" तमट्ठ आराहेहिति, आराहेत्ता चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहि सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ" "मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ° सव्वदुक्खाणं अंतं काहिइ ॥ ४४. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं १०वण्हिदसाणं १. वरदत्ता (क)। १३. अण्हाणए जाव (क,ख,ग)। २. भद्दगे (क)। १४. अणोवाहणाए (क)। ३. ना० १११।२०६। १५. भूमिसेज्जा फलहसेज्जा (ओ० सू० १५४, ४. सोहम्मीसाणाणं (ख)। राय० सू० ८१६) ।। ५. ना० १११।२११ । १६. x (क,ग, ओ० सू० १५४, राय० सू० ६. °पितवंसेमाइवंसे (क)। ८१६); परपिंडवाओ (ख)। ७. पुमत्ताए (ख,ग)। १७. लद्धालद्धे (क)। क. ततेणं (क)। १८. अभिअसिजसि (क) । १. उवबुज्झिहिइ २ (क)। १६. सं० पा०-बुज्झिहिइ जाव सव्व। १०. रियासमिते (ख)। २०. ना० १११७ । ११. उ० ३।६६ । २१. सं० पा०—निक्खेवओ। १२. झोसेहिइ (ख)। Page #862 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २-१२ अज्झयणाणि ७८५ पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते -त्ति बेमि ॥ २-१२ अज्झयणाणि ४५. एवं' सेसावि एक्कारस अज्झयणा नेयव्वा संगहणीअणुसारेण । एवं अहीणमइरित्तं एक्कारससुवि ___..-त्ति बेमि ॥ परिसेसो निरयावलियाइउवंगाणं एगो सुयक्खंधो, पंच वग्गा, पंचसु दिवसेसु उद्दिस्संति, तत्थ चउसु वग्गेसु दस दस उद्देसगा,पंचमवग्गे बारस उद्देसगा। अन्य परिमाण : कुल अक्षर ४७,६८६ अनुष्टुप् श्लोक १,४६६ अक्षर १८ १. उ० ५।२-४४। Page #863 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #864 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #865 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #866 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार-स्थल पूर्त-स्थल ३०।२७,२८ १७।१३० १७।१२५ २३॥६८,७४ ३०।२६ पूर्ति आधार-स्थल ३०१२८ १७.१२३ १७.१२३ २३६० ३०१२५ संक्षिप्त-पाठ अणागारेहिं जाव पासति अणितरिया चेव जाव अमणामतरिया अणि?तरिया जाव अमणामतरिया अबाहा जाव णिसेगो आगारेहिं जाव जं आभिणिबोहियणाण एवं जहेव कण्हलेस्साणं तहेव भाणियव्वं जाव चउहिं ... इद्रुतरिया चेव जाव मणामतरिया उट्टे जाव एलए उदएणं जाव अट्ठविहे उववेया जाव फासेणं एत्तो जाव अमणामतरिया एवं जहा इंदियउद्देसए पढमे भणियं तहा भाणियव्वं जाव से तेणठेणं एवं जहा नेरइयाणं एवं मणूसाण वि कंता जाव मणामा कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुतोवउत्ता कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुतोवउत्ते कालं जाव खेत्तओ खेत्तं जाव पासति जाव इत्तरिय गोयमा जाव णण्णत्थ गोयमा जाव रोएज्जा जहा पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु जाव जे णं १७।११३ १७४१२६,१२७,१३४ ११११७,१६,२० २३।२१,२२ १७११३४ १७।१३१,१३२ १७।११२ १७।१३८ ११।१६ २३॥१३ १७।१३३ १७.१२३ ३४।१२ २८१३६ ३४ २८।१०५ २३।२०० २३॥२०१ १८।११७ १७।१०७ ११११६,२० २०१३४ २०११८ १०४६ २८१२२ ३४।८ २८।२४ २३३१६६ २३।१६६ १८.२६ १७१०६ ११।११ २०१७ २०१७ Page #867 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० ११॥६२-६६ २८।३३ १५१४७ १५२५१ १७.१०६ १७.१०६ १७११५१ १२५२ ३४/१५ ३४।१८ २३३१३ जहा भासुद्देसए जाव णियमा २८१२-१६ जहेव नेरइया तहेव २८.३५ जाणंति जाव अत्थेगइया १५१४६ जावतियं तं चेव १५॥५१ रइए जाव पासति १७.१०७ रइए तं चेव जाव इत्तरिय १७११०७ तं चेव १७।१५४ तं चेव जाव चिट्ठति १५२५२ तं चेव जाव णो ३४।१६ तं चेव जाव मणपरियारणा ३४।१८ तहेव पुच्छा २३।१६ तहेव पुच्छा उत्तरं च, णवर-अमणुण्णा सद्दा जाव कायदुहता २३११६ तेणठेणं जाव णो ३०१२६ पसत्थेणं जाव फासेणं जाव एत्तो १७।१३३ पासइ जाव विसुद्धतरागं १७।११० १८।१७,१८,२०-२३,२६-३६,३६, ४२-४४,४६,४६-५१,५७,६२,६३, ६५,६६,६८,७०-७५,७७,७८,८०, ८२,८४,८५,८७-६०,६३,६४,९७, ६८,१००-१११,११३,११४,११६, ११७,११६,१२०,१२२,१२३,१२५१२७ २३।१५ ३०॥२६ १७।१३२ १७.१०८ पुच्छा पुच्छा पुच्छा पुच्छा पुच्छा २२४० २३३१६,२१,२३ २३।२८,३०,४० २४।११ २८१४१,४३,४८ १८।१ २११३८ २३१३ २३३२५ २४।४ २८।२४ पुच्छा पुच्छा। गोयमा ! एवं चेव, णवरं-अणिट्टा सद्दा जाव हीणस्सरता दोणस्सरता अणिटुस्सरता अकंतस्सरता जं वेदेते सेसं तं चेब जाव चोद्दसविहे पुच्छा । गोयमा! एवं चेव, णवरं-जातिविहीणया जाव इस्सरियविहीणय बद्धस्स जाव कतिविहे २३२० २३।१६ २३३२२ २३३१७ २३१२१ २३३१३ Page #868 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६१ २३३१४,१५ २०१३ बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणाम मणुस्सा एवं चेव, णवरं-आभोगणिव्वत्तिए जहण्णेणं अंतोमुहुत्तस्स उक्कोसेणं अट्ठमभत्तस्स आहारठे समुपज्जति २८।४६-७१ २८१४-१६,३२,२१, २२,४०,४३-४५ मणसस्स अतीता वि पुरेक्खडा वि जहा रइयस्स पुरेक्खडा महिड्ढीए जाव महासोक्खे वाससताई जाव णिसेगो सपज्जवसिए जाव अवढं समझें एत्तो जाव अमणामतरिया सम्मुच्छिमसामण्णपुच्छाकायव्वा सिज्झति जाव अंतं सीलं वा जाव पडिवज्जित्तए सेसं जहा नेरइयाणं जाव आहच्च ३६।१० ३६८० २३३६६ १८१६४ १७:१२४ ४।१३४ ३६६२ २०१३४ २८३२,३३ ३६९ २०३० २३॥६० १८५६ १७११२३ ४।११६ ३६।८८ २०११७ २८।२०,२१ ३६६ ५२१ जंबुद्दीवपण्णत्ती अंचेइ जाव पणाम अंचेत्ता जाव करयलपरिग्गहियं अंतलिक्खपडिवण्णे जाव उत्तरपुरत्थिमं अंतलिक्खपडिवण्णे जाव पूरते अंतवाले जाव पडिच्छइ अकोहे जाव अलोहे अच्छरगणसंघसंविकिण्णा जाव पडिरूवा अणंते जाव समुप्पन्ने अणुपविसइ जाव णमि अणुसज्जिस्संति जाव सणिचारी अणेगखंभसयसण्णि विठे जाव सुहसंकमे अणेगखंभसयसण्णिविट्ठहिं जाव सुहसंकमेहिं अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे जाव समुद्दरव अदंडकोदंडिम जाव सपुरजणजाणवयं अपत्थियपत्थगा जाव परिवज्जिया अयमेयारूवे जाव संकप्पे अवक्कमित्ता जाव अब्भवद्दलए विउव्वंति २ जाव तं णिहयरयं अहोरत्तंसि जाव चारं ३११२ ५१५८ ३।१३० ३।४३ ३।१३३,१३४ २०६८ ११३१ २१८५ ३।१३७ २।१६३ ३३१०० ३।१०१ ३११८० ३।२१२ ३।१२४ २२२ ३।४३ ३।३० ३।२६,२७ पज्जो० ७८ पण्ण० २०३० पज्जो० ८१ ३।२० २।४६ ३६६ ३६६ ३।२२ ३।१२ ३१७७ ५२२० ५७ राय० स० १२ ७२६ ७.२७ Page #869 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ ३१६० ५॥३८ ३३१७३,१७४ २।१४४,१४५ ३१८८ १३३ ४।२ ३२४३ राय० सू० ४० ३३१५,१६ २।१४१ ३७ ११३ १११३ भ० १८।२१६ जी० ३।५९६ जी० ३।२७६ ३।१८५ ३।१८५; शावृ ३।१२६ ३।२०४ ३।२६ 'आउहघरसालाओ तहेव जाव उत्तरपुरस्थिमं आपूरेमाणा जाव अतीव आभिसेक्क जाव पच्चप्पिणंति आयामेणं जाव वासं आसत्तोसत्तविपुलवट्ट जाव करेइ आसयंति जाव भुंजमाणा आसयंति जाव विहरंति आसोए जाव आसाढे इट्टत्तराए चेव जाव आसाए इट्टत्तरिया चेव जाव मणामतरिया इटाहि जहा पविसंतस्स भणिया जाव विहराहित्तिकट्ट इट्टाहिं जाव जयजयसई इडढी एवं चेव जाव अभिसमण्णागए इत्थिरयणेणं जाव णाडगसहस्सेहि इमं जाव विणमी इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था इव जाव ससिव्व ईरियासमिए जाव पारिद्रावणियासमिए ईसर जाव पभितयो उक्करं जाव मागह उक्किट्ठाए जाव अढाहियं जाव पच्चप्पिणंति उक्किट्ठाए जाव उत्तरेणं उक्किट्ठाए जाव एवं उक्किट्ठाए जाव तिरियमसंखेज्जाणं उक्किट्ठाए जाव देवगईए उक्किट्ठाए जाव वीईवयमाणे उक्किट्ठाए जाव सक्कारेइ सम्माणेइ, २ त्ता पडिविसज्जेइ जाव भोयणमंडवे, तहेव महामहिमा कयमालस्स पच्चप्पिणंति उक्किट्ठिसीहणाय जाव करेमाणे उत्तरेणं जाव चउणवई उप्पलहत्थगया जाव अप्पेगइया उल्ला जाव पीइदाणं से, णवरं चुडामणि च दिव्वं उरत्थगेविज्जगं सोणियसूत्तगं कडगाणि य ...तुडियाणि य जाव दाहिणिल्ले अंतवाले जाव अट्राहियं ७।१०३ २।१८ २०१६ ३।२०६ ५।५८ ३११२६ ३।२१४ ३।१३८ ३।१८८ ३।६,१७ २०६८ ३।१० ३।२८ ३।६४-६७ ३।१३३ ३३५६ २।६० ३२६ ओ० सू० ६३ पज्जो० ७८ ओ० सू० ५२ ३।१२ ३१५६-५६ ३१२६ ३।२६ जी० ३।४४३ ३।२६ ३।२६ ५१४७ ३।७२-७५ ३२९६ ३३५६-५६ ३१२२ ११२० ४।८६ ३।१० शाव ३।३७-४२ ३३२३-२६ Page #870 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४।१ उल्ला जाव पीइदाणं से, णवरं मालं मउडि मुत्ताजालं हेमजालं कडगाणि य तुडयाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं पभासतित्थोदगं च गिण्हइ २ त्ता जाव पच्चत्थिमेणं पभासतित्थमेराए अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी जाव पच्चथिमिल्ले अंतवाले, सेसं तहेव जाव अट्टाहिया निब्बत्ता उवट्ठाणसाला जाव सीहासणवरगए उवाएणं जाव संकममाणे उवागच्छित्ता जाव आगायमाणीओ उवागच्छित्ता जाव ससिव्व एज्जमाणा जाव निव्वु इकरेणं एयारूवाए जाव अभिसमण्णागए एवं ओववाइयगमेणं जाव तस्स एवं पच्चत्थिमिल्लाए जाव पच्चत्थिमिल्लं कट्ठ जाव पडिसुणेइ कडगाणि य जाव आभरणाणि कडगाणि य जाव मागह कडगाणि य जाव सो चेव गमो जाव पडिविसज्जेइ कत्तिइण्णं जाव वत्तव्वं करयल जाव अंजलि करयल जाव एवं करयल जाव कटु करयल जाव जएणं करयल जाव मत्थए करयलपरिग्गहियं जाव अंजलि करयलपरिग्गहियं जाव मत्थए करेइ अवसिठें तं चेव जाव निहिरयणाणं करेत्ता जाव णट्टविहिं करेत्ता जाव वेयड्ढगिरिकुमारस्स करेत्ता जाव सिंधूए कामगमाणं जाव मणोरमाणं किण्हचामरझया जाव सुक्किल' केणढेणं जाव सासए कोटपुडाण वा जाव पीसिज्जमाणाण कोडीए जाव दोहिवि पुढे ३।४५-५० ३१२३-२६ ३१२१६ ३३१८६ ७८४ ওওও ५१५ ३।२२२ ३६ ५॥३८ राय० सू० ४० ३।१२२ ३२२६ ३३१७८,१७६ शाव, हीवृ, ओ० सू० ६४ ४।१०८ ३८४ ३।१६ ३७२ ३१२६ ३२६ ३३२६ ३१५६,५७ ३।२६,२७ ७.१४२ ७।१४१ ३।६,२०४ ३१५ ___३५ ओ० सू० २० ३१५ ओ० सू० २० ३८८ ३२५ ३।१५१ ३३५ ३।११४,१२६,२५८ ३३५ ३।१६४-१६६ ३॥१८-२० ५५८ शा श६१-६३ ३॥१८-२० ३३५२-५४ ३।१८-२० ७.१७५ ७।१७५ ४।२६ जी० ३।२८८ ४१३४ ४।२२, पुवृ, ही ४।१०७ जी० ३।२८३ ४११७२ ४।१०८ ३३५ Page #871 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ कोहे वा जाव लोहे २०६६ पज्जो०७६ गच्छंति जाव नियमा ७१४०-४८ भ० १०२५८-२६६, शावृ गयवई जाव दुरुढे ३।२१५ ३।१७ गामाइ वा जाव सण्णिवेसाइ २०२१ ठाणं २।३६० गाहावइकुडप्पमाणं जाव मंगलावत्त ४।१६५ ४।१८३; ही गुणेत्ता जाव तं चेव ७।३३ ७।३१ घडमुहपवत्तिएणं जाव साइरेग ४१६०,६१ ४।२३ घाइय जाव दिसोदिसि ३।११० ३।१०८ चंदिम जाव तारारूवा ७।५८ ७।५५ चंदे जाव संकममाणे ७७५,७८ ७.६६ चक्करयणदेसियमग्गे जाव खंडगप्पवायगृहाओ ३।१६३ ३१६३ चच्चर जाव महापह ३१२१२ ३।१८५ चरइ जाव केवइयं ७१८० ७७६ चेव जाव गंधे ४११०७ जी० ३।२८१ छत्तपडागा जाव संपट्ठिया ३११७८ ओ० सू० ६४ जा पढममज्झिमेसु वत्तव्वया ओसिप्पिणीए सा भाणियव्वा २।१५८ २१५५ जुगमुसलमुट्ठि जाव वासं ३३१२२ ३।११५ जुगमुसलमुट्ठि जाव सत्तरत्त २।१४२ २।१४१ जोएइ जाव कुलोवकुलं ७।१३६ ७।१३६ जोयणंतरिएहिं जाव जोयणुज्जोयकरेहि ३६६ ३९५ णरवई जाव सव्वे ३३१३१ ३।२४ णवजोयणविच्छिण्णं जाव कयमालस्स ३१६६-७१ ३११८-२० णवजोयणविच्छिण्णं जाव खंधावारणिवेसं ३११८० ३।१८ णवजोयणविच्छिण्णं जाव विजयखंधावारणिवेसं ३२१६४ ३।१८ णवरं पम्हलसूमालाए जाव मउडं ३।२११ जी० ३।४४६ णाणामणिपंच जाव कित्तिमेहि २।१२७ २१५७ णिक्खममाणस्सवि जाव अप्पडिव ज्झमाणे ३॥१८६ णिरयगामी जाव अंतं १११५१ ११२२ णिरयगामी जाव अप्पेगइया २।१४८,४।१०१ १२२२ णिरयगामी जाव देवगामी २।१२३ १२२ णिरयगामी जाव सव्वदुक्खाणमंत २।१२८ १२२ णेया वेढो भरहस्स ३।१०६ ३१७७ णो चेव णं तेसिं मणुयाणं आबाहं वाबाहं वा जाव पगइभद्दया २०४१ २०३६ तयणतराओ जाव संकममाणे ७।८१ ७।६६ तलवर जाव सत्यवाह ३।१७८,१८८,२१९,२२१ ३३१० तहेव पविसंतो मंडलाइं आलिहइ ३।१५८-१६० ३६४-६६ तहेव सेस जाव विजयखंधावार' ३।३० ३०१८ ३।२०४ Page #872 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २।९५ २११११ २९५ २।१०७ २।१०७ ५७२ ३।२०५ ११३७ ३।२६ ३।२६ ३।१३ ওও ४॥३५ शा ३६ ३।१४ पज्जो० ७७ ३।२६ तित्य गरचियगं जाव अणगारचियग तित्थगरचियगं जाव णिव्वाति तित्थगरचियगाए जाव अणगारचियगाए तित्थगरचियगाए जाव विउव्वं ति तित्थगरसरीरगं जाव अणगारसरीरगाणि तित्थयरस्स जाव फुट्टिहीतिकटु तिसोवाणपडिरूवएणं जाव पज्जुवासंति तुरग जाव वणलयभत्तिचित्ताओ तुरियाए जाव उद्ध् याए तुरियाए जाव वीतिवयमाणा तेणेव जाव पच्चप्पिणंति तेरसहिं जाव छेत्ता तोरणेणं जाव पवढा दंडणायग जाव दूय दंडणायग जाव सद्धि दिव्वतुडिय जाव आपूरते दिव्वा वा जाव पडिलोमा दुरंतपंतलक्खणे जाव परिवज्जिए दुरंतपंतलक्खणे जाव हिरिसिरि' दुरुहित्ता जाव सीहासणंसि दुरुहित्ता तहेव जाव णिसीयंति दुस्समदुस्समाकाले जाव सुसमसुसमाकाले देवराया जाव पच्चप्पिणइ देवाणुप्पिया जाव अम्हे देवा य जाव विहरति देविढि जाव उवदंसेमाणे देविड्ढि जाव दिव्वं देवेण वा जाव अग्गिपओगेण वा जाव उद्दवित्तए नाणेणं जाव चरित्तेणं पउंजित्ता जाव पम्हसूमालाए पउमवरवेइयाए जाव संपरिक्खित्ता पंडुयए जाव संखे पकरेंति जाव जहण्णेणं पगिण्हित्ता जाव अट्ठमभतं पच्चत्थिमाभिमुहे जाव समप्पेइ पच्चथिमिल्लाए जाव पुट्ठा २।१११ २॥११२ २११०५-१०७, १०६ २।१०८ २॥१०८ ५७३ ३।२०६ २।१०१ ३११३८ ३१११३ ५७० ७८०,८१,८३ ४७७ ३६ ३७७ ३११७२ २०६७ ३११२२ ३।११४ ५१४१ ५४२ २।३ ५७१ ३११३८ ११३६ ५४४ ५१४४ ३।१२५ २०७१ ५।५८ ४।२४२ ३।१७८ ७.५६,६० ३।१८२ ६।२४ ४१५५ ३३५ राय० सू० ४७ ५।४२ २२ ३।१३ ३।२६ १११३ राय० सू०५६ राय० सू० ५६ ३१११५ पज्जो० ८१ शाव, जी० ३।४६६ ४१३ ३।१६७ ७।५६,५७ ३२२० ६।२४ Page #873 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ १६४८ ३॥३३,३४ ३१२०० २२० ३।२०,२१ ३११६ पच्चत्थिमिल्लाए जाव पुढे पच्चप्पिणइ सेसं तहेव जाव मज्जणघराओ पच्चप्पिणह जाव पच्चप्पिणंति पच्चुवसमंति एवं पुप्फवद्दलगंसि पुप्फवासं वासंति, वासित्ता जाव कालागुरुपवर जाव सुरवराभिगमणजोग्गं पडिणिक्खमित्ता जाव उत्तरपुरस्थिमं पडिणिक्खमित्ता जाव गंगाए पडिणिक्खमित्ता जाव दाहिणं पडिणिक्खमित्ता जाव पूरेते पडिसाहरेमाणे जाव जेणेव पण्णत्ते सयणिज्जवण्णओ भाणियव्यो पतणतणाइस्सइ जाव खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ जाव वासं पत्तेयं जाव अंजलि परामुसइ वेढो जाव छत्तरयणस्स परिगरणिगरियमझो जाव तए परिभुज्जमाणाण वा जाव ओराला पवरवाहण जाव सेणाए पवरवीर जाव दिसोदिसिं पाईणपडीणायया जाव पच्चस्थिमिल्लाए पाउप्पभाए जाव जलते पारेत्ता जाव सीहासणवरगए पासाईयाओ जाव पडिरूवाओ पासादीया जाव पडिरूवा पिंडिम जाव पासादीयाओ पीइमणे जाव अंजलि पुप्फारुहणं जाव वत्थारुहणं पुरथिम जाव पुढे पेच्छिज्जमाणे एवं जाव णिग्गच्छइ जहा ओववाइए जाव आउलबोलबहुलं ५७ राय० सू० १२ ३।१४० ३४३ ३।१४६ ३।४३ ३।१३६ ३।४३ ३१५१ ३।४३ ५१४४ राय० सू०५६ ४।१३ जी० ३।४०७; शाव २११४२ २१४१ २।१४३ २।१४१ ३।२०६ जी० ३।४४६ ३।११६ ३६२ ३।१३१ ३।२४ ४।१०७ जी० ३।२८१ ३२१ ३।१७ ३।१०६ ३।१०५ ४१ १२१२० ३११८८ ओ० सू० २२ ३३५८ ३।२८ २।१५ श २।१४ ११८ २।१२ ओ० सू०७ ३८ ३।८८ ३।१२ ४।१८ ३।१६ ४।१ २०६५ पोसहसालाए जाव अट्ठमभत्तिए पोसहसालाए जाव णमि पोसहसालाए जाव णिहिरयणे प्पभिइओ तेवि तह चेव णवरं दाहिणिल्लेणं फामपज्जवेहिं जाव परिहायमाणे बंभयारी जाव अट्ठमभत्तिए ३।६३ ३।१३७ ३।१६६ ३।२०६ २।१३० ३८४,८५ ओ० सू० ६६ वाचनान्तर; वृतित्रय ३३५४ ३३५४ ३२५४ ३।२०५ २०५१ ३।२०,२१ Page #874 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बंभवारी जाव कमालगं बं भयारी जाव दब्भसंथारोव गए बहवे जाव कति बहवे जाव सत्यवाह ' बहुमज्झदेसभाए जाव उम्मुग्ग बहुसंघयणा जाव अप्पेगइया बहुसमरमणिज्जे जाव भविस्सइ, मणुयाणं जा चेव ओसप्पिणीए पच्छिमे विभागे वत्तव्यया सा भाणियव्वा, कुलगरवज्जा उसभसामिवज्जा भगिणी मे जाव संगंथ संथ या भवण जाव वेमाणिएहि भवन जाव अट्ठाहियाओ भवणवइ जाव जे भवणवइ जाव तित्थगर जाव भारग्गसो भवणवइ जाव देवेहि ७६७ भवणवइ जाव भारहगा भवणव जाव वैमाणिए भवणवइ जाव वेमाणिया साहारा जाव कहि मागे जाव समुद्रवभूयं मडंब जाव जोवणंतरियाहि मणगुते जाव गुत्तबंभवारी मण्णा जाव गंधा महज्जुईए जान पलिओवमट्टिईए महज्जुईए जाव महासोवखे महज्जुईया जाव महासोक्खा महया जाव आहेवच्चं पोरेवच्चं जाव विहराहित्तिकट्टु महया जाव मुंजमाणे महाणईओ तहेव णवरं पच्चत्थिमिल्लाओ महामेहणिन्मए जाव मज्जणघराज महिद्दीए जाव णो महिड्ढीयं जाव उद्द्वित्तए माइंबिय जाव सत्यवाह ० य जाव घेता रयण कुच्छधारिए एवं जहा दिसाकुमारीओ जाव पण्णासि ३।७१ ३।५४ २।११५ ३।१० ३।१६१ ११५० २०१५६,१५७ २६६ ४।२४८ २।१२० ५।७३ २।११० ४।२५२ ४२५० २११०१, १०२, ११४ २६६,१००,१०२,१०४,११३,११६ २।१३७ ३।१०६ ३।१८० ३।६८ ४१०७ ३।२५६ २।११५ १।३१ ३।१८५ ३।१८७ ३।१६१ ३।२१ ३।१२५ ३।१२४ ३।८६ ७।८२ ५।४६ ३।६३ ३।२० २।११४ ३।१७८ ३।६७ १।२२ २५७,५८ सू० २।१।५१ शाबू ४२४८ २.११६ ५।७२ २१०६ ४।२४८ ४।२४८ २०१५ २०१५ २।१३५ ३।२२ ३।१५ पज्जी० ७६ जी० ३२०१ १।२४ ११२४ १२४ शावृ ३१८२ ३।६७ ३६ ३।११५ ३।११५ ३।१० ७७६ ५५ Page #875 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६५ ४।३८ ३३१८६ २११५७ ३।३२ ३३१६८ ३।१३६ ३०१७३ रा० सू० १२ ४।२५ ३३१० २।१२८ ३।१३ ३३१३ ३३२७ ३।३१ ३३१३३ ३।२६ ५॥४३ (राय० सू० ५४, शावृ रयणाणं जाव संवट्टगवाए रययाम यकूले जाव पासाईए जाव पडिरूवे राईसर जाव सत्थवाह रायधम्मे जाव धम्मचरणे राया जाव तमाणत्तियं राया जाव पच्चप्पिणंति राया जाव पडिविसज्जेइ राया जाव पासइ रुटठे जाव पीइदाणं सव्वोसहि च मालं गोसीसचंदणं कडगाणि जाव दहोदगं रूवेहिं जाव णिओगेहिं रोहिया णं जहा रोहियंसा पवहे य मुहे य भाणियव्वा जाव संपरिक्खित्ता लवणं जाव समप्पेइ लूहेत्ता एवं जाव कप्परुक्खगं लोगपालेहिं जाव चउहिं वंदणघडसुकय जाव गंधुद्धयाभिरामं वंदेज्ज वा जाव पज्जुवासेज्ज वणसंडेणं जाव संपरिक्खित्ते वणसंडेहिं जाव संपरिक्खित्ते वण्णपज्जवेहिं जाव अणंतगुण° वण्णपज्जवेहिं जाव परिवड्ढेमाणे वण्णपज्जवेहिं तहेव जाव अणंतेहिं उद्राणकम्म जाव परिहायमाणे वण्णपज्जवेहिं तहेव जाव परिहाणीए वण्णेणुववेए जाव फासेणुववेए वाइय जाव दिव्वाई वाइय जाव मुंजमाणा वाइय जाव भोगभोगाई वालग्गे एवं हेमवयएरण्णवयाणं मणस्साणं पुव्वविदेह अवरविदेहाणं मणुस्साणं वित्थडा तं चेव जाव तीसे विमलदंडं जाव अहाणुपुवीए विसयवासी जाव अहण्णं विसुद्धरुक्खमूलाइं जाव चिट्ठति ४१७२ ४।३७ ५।५८ २०६० ३७ २०६७ ४१७६ ४१८६ २॥५४,१३८,१४०,१५३ २।१४६ ४१४३ ४।३५ शावृ, जी० ३।४४६ १६ ओ० सू० ५५ शा ४।३१ ४१३१ २०५१ २२५१ २।१२१ २।१२६ २०१८ ७१८२ ७.५८ ५१ २१५१ २०५१ जी० ३१५६६ ५।१८ ५।१८ श१८ २२६ ७.३३ ३।१७८ ३।१३३ २६ २०६ ७.३१ ओ० सू०६४ ३१२६ २।८ Page #876 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीइक्कते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे वीरिय जाव केवलकप्पे वेउब्विय जाव समोहणंति वेदिम जाय विभूसियं वेत्तेण वा जाव कसेण वेलियविमलदंडं जाव धूर्व संथरइ जाव कयमालस्स सकोरंट जाव चाउचामर° सक्कस्स जाव अंतियं सक्करा वा जाव मणुस्से सक्के जाव आसणं सक्के तं चैव जाव अंतियं सखिखिणीयाई जाव जएणं सच्चैव सदा सिंधुवत्तब्वया जाव णवरं कुंभट्टसहस्स रयणचित्तं णाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाई सेसं तं चेव जाव महिमत्ति सण्णद्धबद्धवम्मियकवया जाव गहियाउह सद्दावेत्ता जाव अट्ठाहियाए महामहिमाए सद्दावेत्ता जाव पोसहसालं समचउरसे जाव तिक्खुत्तो आदाहिणपयाहिणं करेइ वंदति वंदित्ता जाव एवं समाणीए जाव पच्चत्थिमं समाणे जाव सरसगोसीस समाणे से तहेव सम्माणत्ता जाव पुरोहियरवणं सयंति जाव फलवित्तिविसेसं सब्वज्जुईए जाव णिन्चोसणाइयरवेणं सव्वबलेणं जाव निग्घोसनाइएणं सहइ जाव अहियासेइ सहस्सा जाव समर्चेति सासया जाव णिच्चा सिंगारागार जाव जुत्तोवयारकुसलं सिंघाडन जाव एवं सिंघाडन जाव महापह सिज्यंति जाव अंतं सिज्यंति जाव सम्वदुक्खाणमंत 022 २२८८ ३।१८८ ३।१६२ ३।२११ २।६७ ३३८८ ३८४ ३६ ५।२२ ३।१६ ५।२१ ५।२६ ३।१३८ ३।१४१-१४८ ३।१२४ ३१५८,५६ ३।१८०-१८२ ११५, ६ ३।६८ ३१८२ ३३६ ३।२१६ १।३० ३|१८० ३७८ २।६७ ६।२६ १।११ ३।१३८ ५।७३ ३१८५,५७२ ४११०१ १०५०, २०५८ शह ३।१८८ ३।१६२ जी० ३०४४६ शाव ३।१२ ३।२० ओ० सू० ६३ ५।२० ३६८ ५।२० ५।२२ ३।२६ ३।५२-५६ ३।७७ ३२८,२६ ३।१८-२० भ० ११२,१० ३८४३ शाबू ३।२२ ३।१८६ १।१३ ३।१२ ३।१० पज्जो० ७७ ६।२६ १४४७ २।१५ ५॥७२ ओ० सू० ५२ १।२२ १।२२ Page #877 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० ५।५ ३१८८ ३११७८ ४।२८ ३।११६ २।२०६ २०६६ २।१५६-१६१ २।१६२,१६३ ३।२०५ २।६०,२५८ ७।५५ ३।१८८,२१० ३।२०६,२१५ राय० सू० १२ ३।१२ ३।१२ जी० ३२८७ ३७६ जी० ३।४४४ सू० २२५० २१५०-५२ २१५०७ ११६ ७१५५ ३।१७८ ३२१८८ ३।१६८,१६६ ३१५८,५६ ३१८ ३३५; ओ० सू० ५६ ३१६ ३५ सिया जाव तहेव जं सिरिवच्छ जाव कयग्गह सिरिवच्छ जाव दप्पणे सिरिवच्छ जाव पडिरूवा सिरिवच्छसरिसरूवं वेढो भणियम्वो जाव दुवालस सुरभिवरवारिपडिपुण्णेहिं जाव महया सुवण्णं मे जाव उवगरणं सुसमा तहेव सुसमासुसमा तहेव सुस्सूसमाणा जाव पज्जुवासंति सुस्सूसमाणे जाव पज्जुवासइ सूरिय जाव तारारूवा सेणावइरयणे जाव पुरोहियरयणे सेणावइरयणे जाव सत्थवाह. सेणिपसेणिसद्दावणया जाव णिहिरयणाण अट्ठाहियं महामहिमं करेइ हट्ट करयल जाव एवं हट्ठ जाव सोमणस्सिए हतचित्तमाणंदिए जाव करयल' हतचित्तमाणंदिए जाव विणएणं हट्टतुटुचित्तमाणंदिया जाव हियया हट्ठतुट्ठ जाव कोडुबिय हट्टतुट्ठ जाव पोसहसालाओ हट्टतुटु जाव हियए हट्टतुट्ठ जाव हियया हत्थिखंधवरगया जाव घोसंति हयगय जाव सण्णाहेत्ता हयगयरह तहेव अंजणगिरि हयगयरहपवर जाव चाउरंगिणि हयमहिय जाव पडिसेहिया हरिय जाव सुहोवभोगे हारोत्थयसुकयरइयवच्छे जाव अमरवइ° सूरपण्णत्ती सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं एवं एगं दीवं एगं समुई अण्णमण्णस्स अंतरंकटु ३७७,८४ ३३१०० ३।११४ ३।३१,१७३ ३।१६६ ३।१६ ३१५ ३१५ ३१५ ३२५ ३३५ ५२७ ३।२१३ ३।१६६ ३।१७५-१७७ ३१७७ ३।१११ २११४६ ६।६३,१८० ३२१२ ३।१५ ३३१५-१७ ३११५ ३।१०८ २११४५ ३११८ १।१४ १२० जं०१७ ११२० Page #878 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०१ १।२४ ४४ ४।६,७ ४७ राइंदिए तहेव तीसे तहेव जाव सव्वबाहिरिया उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठिता तहेव जाव बाहिरिया सेसं तहेव अणुपरियट्टित्ता जाव विगतजोई गह जाव तारारूवा वाइय जाव रवेणं सब जाव चिट्ठति समचक्कवालसंठिते जाव णो सव्वतो जाव चिट्ठति समचक्कवाल जाव णो १।२४ ४।३ ४।३,४ ४१४ १५।१० १६।२३ १६२३ १६०२ १५।१४ १६।२६ १६।२६ १६०२८ १६२६ १६।३२ १६।३३ १६३ १६।२ १६।३ उवंगा अंतरं वा जाव मम्म अंतराणि जाव पडिजागरमाणे १।१०५ अंतिए जाव पडिवज्जइ ३।१०४ अगाराओ जाव पव्व इत्तए ३।१०६ अज्जगं जाव उवसंपज्जित्ता श११६ अज्जाणं जाव पव्वइत्तए ३।१०६,१३८ अज्झथिए ३।२६ अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था १११५३।४८,५०,५५,५१३५ अज्झत्थियं जाव वियाणित्ता श३७ अणगारे जाव अप्पाणं ५।३२ अत्तए जाव वेहल्लं १२११४ अपत्थियपत्थए जाव परिवज्जए १८६ अम्मयाओ जाव अंगपडिचारियाओ निरवसेसं भाणियव्वं जाव जाहे वि य णं तुमं वेयणाए अभिभुए मह्या जाव तुसिणीए ११७४-८७ अम्मयाओ जाव एत्तो ३।१०१ अम्मयाओ जाव जम्म २३४ अयमेया रूवे जाव समुप्पज्जित्था ११५१,६६३१०६ असण जाव सम्माणेत्ता ३१५० अहं जाव पव्व इत्तए ४।१४ अहापडिरूवं जाव विहरंति श२६ आएहि जाव ठिइं ११४३ ११६५ १०६५ ३।१०३ ३।११८ श१०६ ३।१०६ श१५ राय० सू०६ १।१५ भ० ११५१ ११११० उवा० २।२२ ११३४-६२ ३३९८ ना० ११११३३ ना० १६७।६ ३।१२८ ३२९६ ११४१ Page #879 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०२ ११३४ वृत्ति आघवित्तए वा जाव विण्णवित्तए आरंभेहिं जाव एरिसएणं आलोएहि जाव पायच्छित्तं आसाएमाणीओ जाव परिमाएभाणीओ आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे धणं आहारपज्जत्तीए जाव भासमणपज्जत्तीए आहेवच्चं जाव विहरइ इच्छिए जाव अभिरुइए इट्ठाहिं जाव वग्गूहिं इमेयारूवे जाव संकप्पे उक्खेवओ उक्खेवओ उक्खेवओ जाव दस उक्खेवओ भाणियव्यो उड्ढंजाणू जाव विहरइ उवट्टवेत्ता जाव पच्चप्पिणंति उवट्ठवेत्ता जाव पच्चप्पिणह एयारूवे जाव समुप्पज्जित्था एवं मारेउ बंधेउ एवमाइक्खइ जाव परूवेइ ओग्गहं जाव विहरंति ओहय जाव झियाइ ओहयमण जाव झियाइ कंता जाव भंड० कयवलिकम्मा जाव अप्प० करयल० ३।१०६ ३।१०६ १११४० ११२७ ३१११५ ठाणं ३।३३८ वि० ११२।२६ ११२२ ३।१५ राय० सू० ७६७ ५।१० ना० ११०६ ३।१३ ना० १।१।१०२ १४४ १४१ ३१६८ १११५ ३।८८,१५४,१६७ ३।२० ४।३५।३ २।३ ४।१,२ २।१,२ ३।२३,२४ ३।२०,२१ ओ० सू० ८२ १।१७,१८ राय० सू० ६६०,६६१ ४१६ १११७ ११५४ १११५ ११७३ ११७३ श६८ ओ० सू० ५२ ३।१३२ ३६१ ३१६८ १११५ १११५ वृत्ति ३११२८ ना० १।१।२०६ १।१६ ओ० सू० २० १॥३६,५८; ३।१०६ १३८; ५१६ ११४५,४।१५ श४५ १।१०७ ओ० सू० २० १२९६ ११३६ ११४५ ओ० सू० ५६ १११२२ १११०७ ११११६ १।१०७ ११११२ १११०८ ११४५ ३।१०१ ओ० सू० ८६ ५।२८ २।१० वृत्ति करयल० करयल० करयल जाव एवं करयल जाव कटु करयल जाव पडिणेत्ता करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वद्धावेत्ता काणि जाव वेहल्लं कूणिएणं करयल जाव पडिसुणेत्ता गामागर जाव सण्णिवेसाई चउत्थ जाव अप्पाणं १११११ Page #880 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०३ २।१० राय० सू० ६८६ ३।४८ २।१० २०१० २।१० ना० १११०२०१ ४।१८ १२१५ १११०६ ५१३६ भग० १८।२०५-२२१ चउत्थ जाव भावेमाणे ३।१४ चरमाणे जेणेव रायगिहे नयरे जाव अहापडिरूवं श२ चिण्णाइं जाव जूवा ३१५० ४।२४ छटट्ठम जाव मासद्ध० ३१८३ छट्टट्ठम जाव विचित्तेहिं छट्टट्ठम जाव विहरइ २।१० छत्तादीए जाव धम्मियं १११६ जइस्सइ जाव कालं १२२१ जहा पढमं जाव वेहल्लं १२११३ जहा पण्णत्तीए । सामिलो निग्गओ खंडियविहूणो जाव एवं वयासी-जत्ता ते भंते ! जवणिज्ज च ते भंते ! पुच्छा । सरिसवया मासा कुलत्था एगे भवं जाव संबुद्ध ३।२६-४५ जहा भगवया कालीए देवीए परिकहियं जाव जीवियाओ ववरोविए १११४० जहा सिवो जाव गंगाओ ३१५६ हाए जाव सव्वालंकार' श७० व्हायं जाव पायच्छित्तं ३।११० व्हाया जहा कालादीया जाव जएण १११२६,१३० ण्हाया जाव पायच्छित्ता १।१२१,५१६ तं चेव जाव कट्ठमुद्दाए ३१५५ तं चेव जाव निव्वेयणे श६२ तं चेव भाणियव्वं जाव वेहल्लं ११११० तं चेव सखंधावारे ११११६ तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव आहारं अहारेइ, नवरं इमं नाणत्तं -दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सोमिलं महाणरिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव अणुजाणउ त्ति कट्ट दाहिणं दिसिं पसरइ। एवं पच्चत्थिमेणं वरुणे महाराया जाव पच्चत्थिमं दिसि पसरइ । उत्तरेणं वेसमणे महाराया जाव उत्तरं दिसिं पसरइ । पूव्वदिसागमेण चत्तारि वि दिसाओ भाणियव्वाओ जाव आहार आहारेइ ३१५३, ५४ तलवर जाव संधिवाल' १९२ तलवर जाव सत्यवाह ३।१०१ तवसा जाव विहरंति ३३६६ ११२२ ३।५१, भग० १०६४ ओ० सू०७० ११७० १११२१,१२२ ११७० ३।५५ श६१ १।१०६ ११११५ ३१५१ ओ० सू० ६३ ११६२ Page #881 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०४ तहारूवाणं जाव विउलस्स १२१७ तहेव भाणियब्वं जाव वेहल्लं १।१०८ तिक्खुत्तो जाव एवं ११२१ ते जाव पच्चप्पिणंति ४।१७ दंतिसहस्सेहिं जाव ओयाए १११५ दंतिसहस्सेहिं जाव मणुस्सकोडीहिं १।१३६ दंतिसहस्सेहिं जाव रहमुसलं ११२१ दंतिसहस्सेहिं जाव सत्तावण्णाए १११३७ दिव्वा जाव अभिसमण्णगया ३८५ दुज्जाएहिं जाव नो संचाएमि विहरित्तए ३।१३४ दुरंत जाव परिवज्जिया १।११५ देवसयणिज्जंसि जाव ओगाहणाए ३।८३,४।२४ देवसयणिज्जसि जाव भासमणपज्जत्तीए ३११६१,१६२ देविड्ढी जाव अभिसमण्णागया ३।१२२ देवी जाव कहि ४।२६ देवे जाव एवं ३१७५,७६ नमसंति जाव पज्जुवासंति नरए जाव नेरइयत्ताए १।१४० नाइ जाव रवेणं ४।१८ निक्खेवओ ३८७,१६६ १७०४।२७ ; १४३ निसम्म जाव हियया श२१ नीय जाव अडमाणे ३।१३३ पढम भणइ तहेव ३१७७ परिजाणइ जाव तुसिणीए ३१६१ पवर जाव पच्चप्पिणंति ५।१८ पासादीए जाव पडिरूवे पुप्फ जाव दरिसणिज्जे पुव्वरत्ता जाव समुप्पज्जित्था ११६५ पुव्वाणुपुदि जाव अंबसालवणे विहरइ ३।२६ बहुपडिपुण्णाणं जाव सूमालं ११५३ बहणं नगरनिगम जहा आणंदो बुज्झिहिइ जाव अंतं १।१४१ बुज्झिहिइ जाव सव्व ५१४३ भगवं जाव पज्जुवासामि १।१७ भवित्ता जाव पव्वयाइ ३।११२ भवित्ता जाव पव्वयाहि ३११३६ ओ० सू० ५२ श१०७ ओ० सू० ८१ १११८ १।१४ १।१४ १११४ १।१४ राय० सू० ७६७ ३।१३१ १।८६ ३।१२० ३१८३,८४ ३१८४ ३।१२५ ३१५७,५८ ओ० सू० ५२ ११२६ ३।१११ ३।१६ ओ० सू० ८१ ३।१०० ३१५६ ३१५६ १११२३ ना०११।४ ११५१ ओ० सू० ५२ ओ० सू० १४३ उवा० १११३ ओ० सू० १५४ ओ० सू० १५४ ओ० सू० ५२ ३।१०६ ३।१०६ Page #882 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०५ भीए जाव संजायभए भीया जाव देवाणुप्पियाणं भोगभोगाइं जाव विहरामि मज्जणघरे जाव दुरूढे मुंडा जाव पव्वयाइ मुंडा जाव पव्वयामि मुंडा जाव पव्वयाहि मुंडे जाव पव्वइत्तए मुच्छिया जाव अज्झोववण्णा मुच्छ्यिा जाव अब्भंगणं रज्जं च जाव जणवयं रज्जसिरिं जाव विहरामि रज्जेण वा जाव जणवएण राईसर जाव सत्थवाह लोह जाव गहाय मुंडे जाव पव्वइए लोह जाव घडावेत्ता जाव उवक्खडावेत्ता लोह जाव दिसापोक्खिय वसही जाव बद्धावेता वाणारसीए जाव पुप्फारामा य जाव रोविया विउलाई जाव विहरामि विउलाई जाव विहरित्तए संकाइय जाव कट्ठमुद्दाए संजमेणं जाव विहरइ सण्णद्ध जाव गहियाउह० सद्द जाव विहरइ सद्धि जाव भुंजमाणी समाणी जाव पव्व इत्तए समाणे जाव भासमणपज्जत्तीए सीयं जाव विविहा सुरं च जाव पसण्ण सोल्लेहि य जाव दोहलं हट्ट जाव हियया हीलिज्जमाणीए जाव अभिक्खण १८६ ४।१६ ३।१०६ ५२१६ ४।१६ ३।१३६ ३।१०७,१३६ ५।३२ ३।११४,११५ ३।११६ १।१४ १७१ शक्ष श२० ३१५५ ३१५५ ३५० ११११० ३।५५ ३।१०६ ३।१३१ ना० १।१।१६० ३१११२ ३।६८ ११२४ ३।१०६ ३।१०६ ३।१०६ ३।१०६ ना० १२१६२८ ३।११४ ११६६ ११६५ ११६६ ११६२ ३१५० ३३५० ३३५० राय० सू० ६८३ ३।४८ ३१६८ ३।१३१ ३१७३ राय० सू० ६८६ राय० सू० ६६४ ओ० सू० १५ ३।१३० ३११०६ श२ १११३८ श२० ३।१३१ ३।१०८ ३।८४ ३।१२८ १३४ २४६ ११४२ , ३।१२८ ३।११८ ३।१५ ना० १११।२०६ वि० श२।२६ १३४ ओ० सू०२० ३।११७ Page #883 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #884 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३ Page #885 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमाणविधि ० अव्यय, सर्वनाम का साक्ष्य-स्थल का निर्देश प्राय: एक बार दिया है। ० रूट (1) अंकित शब्द धातुएं हैं। उनके रूप भी दिए गए हैं। ० शब्द के बाद साक्ष्यस्थल ... पण्णवणा... पहला प्रमाण पद का, दूसरा सूत्र का और तीसरा श्लोक का परिचायक है। जंबुद्दीवपण्णत्ती-- पहला प्रमाण वक्खार का, दूसरा सूत्र का, तीसरा श्लोक का परिचायक चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती ..पहला प्रमाण पाहुड का, दूसरा सूत्र का, तीसरा श्लोक का परिचायक है। उवंग अंक १ निरयावलियाओ, अंक २ कप्पडिसियाओ, अंक ३ पुष्म्यिाओ, अंक ४ पुष्फचूलियाओ, अंक ५ वण्हिदसाओ का परिचायक है। दूसरा सूत्र का प्रमाण, तीसरा श्लोक का है। अध्ययन (पद, वक्खार) आदि के परिवर्तन का संकेत (B) सेमिकोलन है। जहां एक सूत्र में अनेक श्लोक आ गए हैं वहां आगे के सूत्र की संख्या से पहले अध्ययन की संख्या भी दी गई है। जैसे उप्पल (उत्पल) पा० ११४६, ११४८१४४, ११६२ । शब्द पहले सूत्र में आया फिर उसी सूत्र के श्लोकों में आया तो उसके दोनों प्रमाण दिए हैं, जैसे --अइकाय (अतिकाय) प० २।४५, २०४५।२। Page #886 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ (अ) प ११॥६७ अइ (अपि) प २१६४१७ अइ (अयि) उ ११२६; १४० अइकंत (अतिकान्त) ज २०१५ अइकाय (अतिकाय) प २।४५,२१४५२ अइगच्छमाण (अतिगच्छत् ) ज ३।२१७ अइगय (अतिगत) ज ३।८१ अइछत्त (अतिछत्र) प २१४८ अइतेया (अतितेजा) ज ७१२०१२ अइदूर (अतिदूर) ज २१६०; ३।२०५,२०६; ५।५८ अइपडागा (अतिपताका) ज ३७ अइमुत्तग (अतिमुक्तक) प १५४४ अइमुत्तय (अतिमुक्तक) ५ १।४०।३ अइमुत्तय (लता) (अतिमुक्तकलता) प १३६१ अइरत्त (अतिरात्र) सू १२।१७।१ अइरित्त (अतिरिक्त) उ ५।४५ अइरेक (अतिरेक) ज २०१५ अइवइत्ताण (अतिव्रज्य) प ३४।१६ अइविकिट्ठ (अतिविकृष्ट) उ ११११० अइविगिट्ठ (अतिविकृष्ट) उ १११२६,१३३ अइसीय (अतिशीत) ज ७।११२।१ -अइ (अति- इ) अईइ ज ३।१५७,१८६ अईव (अतीव) ज २१८,६७।२१३ उ ३।४६ अउज्झ (अयोध्य) प २।३०,३१,४१ अउणतीस (एकोनत्रिंशत्) सू २।३ अउणत्तर (एकोनसप्तति) ज ६।१० अउणत्तरि (एकोनसप्तति) ज ७।८२ अउणपण्णास (एकोनपञ्चाशत्) सू० १६।२१।२ अउणाउति (एकोननवति) सू १।२७ अउणाणउति (एकोननवति) सू १६।१४,१५१ अउणाणवइ (एकोननवति) ज ७७३ अउणापण्ण (एकोनपञ्चाशत्) ज ४।२४० सू० १०११६३ अउणावीस (एकोनविंशति) सू २।३ अउणासीइ (एकोनाशीति) ज ११७।१ अउणासीत (एकोनाशीति) सू १।२७ अउणासीति (एकोनाशीति) सू २।२।३ अउणासीय (एकोनाशीति) ज ४।२३४; ७११६ अउण्णापण्ण (एकोनपञ्चाशत्) प २०६४ अउय (अयुत) ज २।४; ७।१७८ अउयंग (अयुतांग) ज २।४ अउल (अतुल) ज ३६५,१५६ अओज्झ (अयोध्य) ज ३१११७; ४।२१२ अंक (अंक) प १२०३, २।३०,४८,४६%3 १७।१२८ ज २११५; ४।२१२,२५५; १५ अंकमय (अंकमय) ज ७।१७८ अंकमुहसंठित (अंकमुखसंस्थित) ज ७।३१, ३३ सू ४।३,४,६,७ अंकलिवि (अंकलिपि) प १४९८ अंकवडेंसय (अंकावतंसक) प २१५१,५६ अंकावई (अंकावती) ज ४।२०२।२,२११; ७।१७८ अंकिय (अंकित) प २।३० अंकुर (अंकुर) प ३६।९४ ज २।१३१,१४४ से १४६ अंकुस (अंकुश) ज २।१५; ३।३; ५३८; ७।१७८ अंकेल्लण (दे०) ज ३।१०६ अंकोल्ल (अंकोल, अंकोठ, अंकोट) प ११३५।१, १॥३७॥५ अंग (अंग) प १२६३१,१११०१।६,८ ज २।१४; ३१६,३५,१०६, २२१,२२२ उ १११२२,१२६; २१०, १२; ३३१४, १५०,१६१,१६६; ५२८,३६,४१ अंगइ (अंगजित्) उ ३३१०,११,१३,१४,२१ अंगण (अंगन) प ११।२५ ज २१६६; १५,७ Page #887 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१० अंगद-अंतरगत अंगद (अंगद) प २।३०,४६ १८३,२०१,२१४ अंगपडियारिया (अंगपरिचारिका) उ ११३६,३७ अंजणा (अजना) ज ४।१५५।२,२२३।१ अंगमंग (अंगांग) ज २।१६,११३ अंजणागिरि (अजनगिरि) ज ४।२२५२१ अंगय (अंगद) प २।३१,४१ ज ३१६,२११, अंजलि (अञ्जलि) ज २१६५, ३१५,६,८,१२, २२२ १६,२६,३६,४७,५३,५६,६२,६४,७०,७२, अंगलोय (अंगलोक) ज ३।८१ ७७,८१,८४,८८,६०,१००,११४,१२६,१३३, अंगा (अंग) उ १।१२२ १३८,१४२,१४५,१५१,१५७,१६५,१८१, अंगारग (अंगारक) प २।४८ १८६, १८६,२०४ से २०६,२०६५।५, अंगुट्ठ (अंगुष्ठ) ज ३।१०६ २१,४६,५८ उ ११३६,४५,५५,५८,८०,८३, अंगुल (अंगुल) प १।७४,७५,८४; २।६४, ६६,१०७,१०८,११६,११८,१२२; ३।१०६, २।६४।८; १२।१२,१६,२७,३१,३२,३७,३८; १३८,४।१५; ५।१७ १५७ से ६,२२,४० से ४२; १८।४१,४३,६५, अंजलिपुट (अञ्जलिपुट) ज ३८१ ११७, २११३८,४० से ४३, ४८,६३ से ७१,८४, अंडग (अण्डज) ज ५१३२ ८६,६० से १२; ३३।१२,१३,१६,१७, अंत (अन्त) प ६।११०; २०१८, २११६०; ३६।६६,७०,७२ से ७४,८१ ज ११७; २६ ३६।८८,६२ ज ११२२,२७,५०; २०५८, सू १११४; १०।६३ से ७३; १६।२२।१७. ८४,१२३,१२८,१५१,१५७; ४।१०१,१०३, उ ३८३,१२०,१६१; ४।२४ १७१,१७८,२०० सू४।४,७; २०१२,७ अंगुलपुहत्तिय (अंगुलपृथक्त्विक) प ११७५ उ ११४२,१४१,१४७; २।१३; ३।२१, अंगुलि (अंगुलि) प २।३०,३१,४१ ज २११५; ८६,१५२,१६५; १४३ ३६,१८४,१८६,२०४,२२२ अंतकड (अन्तकृत) ज २।८८,८६ अंगुलिज्जग (अंगुलीयक) ज ३।६,२२२ अंतकम्म (अन्तकर्मन्) ज ५१५८ अंगुलितल (अंगुलितल) ज ३७,८८ अंतकर (अन्तकर) उ ११५४,७६ अंतकिरिया (अन्तक्रिया) प ११११५; २०११११, अंगुलिय (अंगुलिक) ज ५१५८ अंच (कृष्) अंचेइ ज ३१६ २०११ से ४,६ से १३,४०,४४,४६,४८ अंचिय (अञ्चित) ज ५१५७ अंतक्खरिया (अन्त्याक्षरिका) प ११६८ अंचेता (कृष्ट्वा) ज ३६ अंतगड (अन्तकृत) ज ३।२२५ अंज (अङ्ग्) अंजेइ उ ३।११४ अंतगमण (अन्तगमन) उ ११४२ अंतर (अन्तर) प २।३०,३१,४१; १११७० अंजण (अजन) प १।२०१२; २।३१, १७।१२३ । ज १११७, ३।३,३५,२२१; ४।२७,४६, ज ४।२०२; ५१५,२१ सू २०१२ उ ३।११४ १४०।२; ७।६,६५,८६,१६८,१७८,१८२ अंजणई (अजनकी) प ११४०।५ च ३३१ सू० १६७।१,१।१६,२०,२१,२४,२७; अंजणकेसियाकुसुम (अञ्जनकेशिकाकुसुम) २।२; १; १८१२०१६।२२।२८ प १७४१२४ उ ११२४,४७,६५,६६,६८,९०,६२,१०५, अंजणग (अञ्जनक) ज २१११७,११६,१२० १०६ अंजणगिरि (अजनगिरि) ज ३।१७ अंतरकंद (अन्तरकन्द) प ११४८१४२ अंजणगिरिकूड (अञ्जनगिरिकूट) ज ३।६१,१७७, अंतरगत (अन्तर्गत) सू ५।१; ७।१ Page #888 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतरणई-अंतोमुहुत्त ८११ चं १० सू ११५ उ ११२,३; ५२०,४०,४१ अंतरणई (अन्तर्नदी) ज ४।२१२; ५१५५ अंतरदीव (अन्तर्वीप) प २।२६ ; ६।६४ । अंतरदीवग (अन्तर्वीपज, द्वीपक) प ११८५,८६; ६७२, ८१,६७,१०८; १७।१७२; २११७२ अंतरदीवय (अन्तर्वीपज, °द्वीपक) प ११८४,८६; ६।७६; १७।१६२; २१।५४ अंतरवीहिय (अन्तर्वीथिक) ज ३७ अंतराइय (आन्तरायिक) प २२।२८; २३।१, ८,१२,२३,२४,५९,१३३,१५४,१५६,१६३, १६६,१७५१८६,१६०,२०२; २४।१; २५।१, ३; २६।१,७; २७१,४ अंतरापह (अन्तरापथ) प १६।२२ अंतराय (अन्तराय) प २४।१५ अंतरावास (अन्तरावास) उ १।१००,१२६,१३३ अंतरिय (अन्तरित) ज ३१८,३१६५,६६,१५६, १६०,१८० उ ११३४; ३।१४,८३,१२०, १६१; ४।२४ अंतरिया (अन्तरिका) सू १६।२२।३० अंतलिक्ख (अन्तरिक्ष) ज ३।१४,२६,३०,३६, ४३,४७,५१,५६,६०,६४,६८,७२,११३,१३६, १३८,१४०,१४५ १४६,१७२ उ ३।६६ अंतवाल (अन्तपाल) ज ३।२६,३६,४७,११३ अंतिय (अन्तिक) प ३४।१६,२१ ज ३।६,८,१३, ७७,८४,६१,१०७,११३ से ११५,१२५, १३८,१५३,१६६ ५।२२,२३,२६ से २८ ७३ उ ११२१,२३,३७,४१,४५,८८,११५११७, ११६,१२१,१२६; २।१०,१२; ३।१३,१४, २६,५०,५५,५७,६५,६६,७२,७५,७६,१०३, १०४,१०६ से १०८,११२,११८,१३४,१३६, १३८,१३६,१४८,१५०,१६१,१६६; ४।१४, १६,२०,२८; ५।२८,३२,३६,४१,४३ अंतियाओ (अन्तिकतस्) उ ३।११० अंतेउर (अन्तःपुर) ज २१६४; ३।२२४; ५५, ७ उ १।१६,६३,९७,६८,१०५ से १०७,११६ अंतेवासि (अन्तेवासिन्) ज ११५, २।८२,८३ अंतो (अन्तर्) प ११७४,८४, २१७,२० से २७, २६ से ३५,४१,४८; २३।११,१२६,१७७, १८२,१८६,१६०; ३३।२७ से २६ ज १।१३,१४,३१,३६, ३६८ ४११,४६, ५०,११४,११७,१३१,२३४,२४०; ५।३२; ७।३१,३३,५५,१६८११ सू ४।३,४,६,७, १६।२२।१५,२१, १६।२३, २०१७ अंतोमुहुत्त (अन्तर्मुहूर्त) प ४।२,३,५,६,८,९,११, १२,१४,१५,१७,१८,२०,२१,२३,२४,२६, २७,२६,३०,३२,३३,३५,३६,३८,३६,४१,४२, ४४,४५,४७,४८,५०,५१,५३,५४,५६ से ६७, ६६ से १६४,१६६,१६७,१६६,१७०,१७२, १७३,१७५,१७६,१७८,१७६,१८१,१८२, १-४१८५,१८७,१८८,१६०,१६१,१६३, १६४,१६६,१६७,१६६,२००,२०२,२०३, २०५,२०६,२०८,२०६,२११,२१२,२१४, २१५,२१७,२१८,२२०,२२१,२२३,२२४, २२६,२२७,२२६,२३०,२३२,२३३,२३५, २३६,२३८,२३६,२४१,२४२,२४४,२४५, २४७,२४८,२५०,२५१,२५३,२५४,२५६, २५७,२५६,२६०,२६२,२६३,२६५,२६६, २६८,२६६,२७१,२७२,२७४,२७५,२७७, २७८,२८०,२८१,२८३,२८४,२८६,२८७, २८६,२६०,२६२,२६३,२६५,२६६,२६८, २६६६२०,२१,१८।३,४,८,९,१०,१२, १४ से १६,१८ से २४,२६ से २८,३० से ३६,४१ से ५४,५६,५७,५६,६१,६३ से ६७, ६६ से ७४,७६ से ७६,८३,८५,६०,६१,६३, १६,१०३ से १०५,१०७,१०८,११०,११३, ११४,११६,११७,११६,१२०; २०१६३; २३।६०,६२,६५,६७,७२,७८,७६,१३३,१४७, १५८,१६२,१६५,१६६,१७०,११६,१८४; २८।४७,५०,३६६६१,७६ ज २१८४,१२३, १२८,१४८,१५१; ४।१०१ Page #889 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१२ अंतोमुहुत्तग-अकिरिय अकंत (अकान्त) ज २११३३ अकंततरिया (अकान्ततरका) प १७११२३ से १२५, १३० से १३२ अकंतत्त (अकान्तत्व) प २८।२४ अकंतस्सर (अकान्तस्वर) ज २११३३ अकंतस्सरता (अकान्तस्वरता) प २३।२० अकंप (अकम्प) ज २१६८३१७६.६ से १०१ अज्ज (अकार्य) ज २११३३ अकण्ण (अकर्ण) प ११८६ अकत्तिम (अकृत्रिम) ज २११२२,१२७,४।१००, १७० अंतोमुहुत्तग (अन्तर्मुहूर्त्तक) प ११७१ अंतोमुहुत्तद्धाउय (अन्तर्मुहूर्ताद्धायुष्क) प १७४ अंतोमुहुत्ताउय (अन्तर्मुहूर्तायुष्क) ५ ११८४ अंतोमुहुत्तिय (आन्तर्मुहूर्तिक) प १५।६१; २८१४,३: ; ३६।२,८४,६२ अंतोवाहिणी (अन्तर्वाहिनी) ज ४।२१२ अंदोलाव (आन्दोलय) अंदोलावेइ उश६७ अंधकार (अन्धकार) ज ३१६३,६५,१५७,१५६, १६३ सू १४१५ से ८,१६१५,६ अंधकारपक्ख (अन्धकारपक्ष) सू १३।१:१४।२, ३,५ से ८ अंधयार (अन्धकार) प २०२० से २७ ज ११२४; ३१३१,१०६ अंधयारसंठिति (अन्धकारसंस्थिति) ज ७।३३, से ३५ सू ४।६,७,६ अंधिया (अन्धिका) प ११५१११ अंब (आम्र) प १।३।१; १६।५५; १७:१३२, १३३ ज ३।११६ अंबठ्ठ (अम्बष्ठ) प ११६४।१ अंबर (अम्बर) ज ७।१७८ अंबरतल (अम्बरतल) ज ३।१४,३०,४३,५१,६० ६८,१३०,१३६,१४०,१४६,१७२ अंबसालवण (आम्रशालवन) उ ३१२६, ६,९५ अंबाडग (आम्रातक) प ११३६।११६।५५; १७११३२ अंबाराम (आम्राराम) उ ३।४८ से ५०,५५ अंबिल (अम्ल) प ११४ से ६५२५,७,२०५; २८.२६,३२,६६ ज २११४५ अंबिलसाय (अम्लशाक) ५११४४०२ अंबिलिया (अम्लिका) ज ३।११६ अंबिलोदय (अम्लोदकः) प ११२३ अंबुभक्खि (अम्बुभक्षिन्) उ ३५० अंस (अंस) उ १११३८ अंसु (अश्रु) ज २।६०, १०३,१०६,१०८ अकंटय (अकण्टक) ज २११२ अकम्मभूमग (अकर्मभूमज) प ११८५,८७,६७२ ८१८४,६५,६७,१०८,२११५४,७२ अकम्मभूमय (अकर्मभूमज) प ६१७६; १७।१६२, से १६४,१७२ अकम्मभूमि (अकर्मभूमि) प ११८४; २।२६ अकयपुण्ण (अकृतपुण्य) उ ११९२३१६८,१०१ १३१ अकरंडुय (अकरण्डक) ज २०१५ अकरणया (अकारणता) उ ३।११५ अकविल (अकपिल) ज २०१५ अकसाइ (अकषायिन्) प ३६८; १३.१६; १८६७, २८।१३४ अकसायसमुग्धाय (अकषायसमुद्घात) प ३६१४८ अकसायि (अकषायिन्) प ३९८ अकाइय (अकायिक) प ३।५०; १८।२६ अकामय (अकामक) उ ३।१०६ अकामिय (अकामित) उ ११५२,७७ अकाल (अकाल) ज ३।१०४,१०५ अकालतालु (अकालतालु) जं ३।१०६ अकालपरिहीण (अकालपरिहीन) जं ५।२२,२६ से २८ अकित्तिम (अकृत्रिम) जं १।२१,२६,४६; २।५७, १४७,१५०,१५६ अकिरिय (अत्रिय) प १७४२५, २२१७,८,२६,३० Page #890 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकुडिल-अग्गमहिसी ८१३ ३२ से ३४,३६,३७,४५ अक्खीण (अक्षीण) प ३६।८२ अकुडिल (अकुटिल) ज २।१५ अक्खोड (अक्षोट) प १६।५५ अकुटवमाण (अकुर्वत्) सू २०१७ अक्खोडय (अक्षोटक) प १७११३२ अकेसर (अकेसर) प ११४८।४६ अक्खोभ (अक्षोभ) ज ३३ अकोह (अक्रोध) ज २१६८ अगंतूण (अगत्वा) प ३६।८३।२ अक्क (अर्क) प १।३७।३ अगंथ (अग्रन्थ) ज २७० अक्कबोंदी (दे०) प ११४०।५ अगक्छमाण (अगच्छत्) सू २०२ Vअक्कम (आ-+ क्रम्) अक्कमइ उ १।११६ अगड (दे०) प २१४,१३,१६ से १६,२८; १११७७ अक्कमाहि उ १५११५ ज २।३१ अक्कमित्ता (आत्रम्य) उ ११११५ अगणि (अग्नि) प ११४८१५६; २।२० से २५ अक्किज्ज (अक्रेय) ज ३।१६७।१३ अगणिकाय (अग्निकाय) ज २।१०५ से १०८ अक्किट्ठ (अक्लिष्ट) ज २०४६ अगस्थि (अगस्ति ) प ११३८।२ ज २।१० सू अक्कुस्समाण (आक्रोशत्) उ ३.१३० २०१८,२०१८।४ अक्कोप्प (अकोप्य) ज २०१५ अगरुलहुय (अगुरुलघुक) प १५१५७ ज २१५१,५४, अक्कोसमाण (आक्रोशत्) उ ३।१३० १२१,१२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, अक्ख (अक्ष) ज २।६,१३४ । १६३ अक्खय (अक्षय) ज १।११,४७, ३।१६७,२२६; अगरुयलहुयपज्जव (अगुरुलघुकपर्यव) ज २।१४६, ४।२२,५४,६४,१०२,१५६; २१ १५४,१६०,१६३ ७।२१० उ ३।४३,४४ अगरुयलहुयपरिणाम (अगुरुलघुकपरिणाम) अक्खर (अक्षर) ज २१६,१३४ प १३।२१,३० अक्खरपुट्ठिया (अक्षरपुष्टिका, पृष्टिका) प १६८ अगार (अगार) प २०११७,१८ ज २१६५,६७,८५, अक्खाइया (आख्यायिका) प १११३४।१ ८७ उ ३।१३,१०६ से १०८, ११२,११८, अक्खाइयाणिस्सिया (आख्यायिकानिश्रिता) १३६,१३८,१३६,४१४,१६,५।३२,४३ अगारवास (अगारवास) ज २१८७, ३।२२५ प १११३४ अक्खात (आख्यात) प १६४६,६६,७५,८१; उ ३।११८ २।२१ से २६,३०,३२ से ३६,४१,४३,४६, अगुरु (अगुरु) जं २।१०६,११० ४८ से ५२,५५ से ५७.६० से ६२ सू अगरलघुअणाम (अगुरुलघुक नामन्) प २३॥५१ ३।११३२ अगुरुलहुणाम (अगुरु लघुनामन् ) प २३।३८,११ अक्खाय (आख्यात) प ११५०,५१,६०,७६; अग्ग (अग्र) प २।३१ ज ११३७; २।१२०; ३।१२, २।२०,३१,५८,५६ ज ।२६,४।२१; १८,२२,३१,७६,८८.१०७,१२५ से १२८, ६।१०,११,१४,१५,१८ से २२,२६, ७।४,६३ १५१,१५२,१५६,१८० ८७ सू१०।१२७ अग्गंगुलिया (अग्रांगुलिका) उ ११५६,६१ से ६३ अक्खिव (आ+क्षिप्) अक्खिवइ उ १११०५ ८४,८६,८७ अक्खिविउकाम (आक्षेप्तुकाम) उ १११०५ अग्गभाव (अग्रभाव) ज ७।१३२।१. सू १०६४ १. टीका में अक्षरस्पृष्टिका है। अग्गमहिसी (अ महिषी) प २।३० से ३३,३५, Page #891 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१४ ४१, ४३,४८ से ५२ ज ११४५ २६०, ४/१५१; ५।१६, ३६, ४१, ४४, ५०, ५२, ५३; ७।१६८।२,१८३,१८६ सू १८।२१,२३, २४, २०१६ अग्गर (दे० ) प १ 15 अग्गल (अर्गल ) सू २०१८ अग्गसाला अग्रशाला ) ज २ | १० ; ४।१६६ अग्ग सहर ( अग्रशिखर ) ज १।३७ अग्गहत्थ (अग्रहस्त ) ज २।१५ गाणी (ग्रीक) ज ३।१०७ से १०६ अग (अग्नि) प २।३०।१,२।४०।२,६,११; ३६।९४ ज २६; ३।३, ६५, ११५, १२४, १२५ १५६ ५।१६,५२; ७।१३०, १८६।३ उ ३१४८, ५०, ५१,६४ अग्गिकुमार (अग्निकुमार ) प १।१३१५।३ ६ । १८ ज २ १०५, १०६ अग्गिदेवा (अग्निदेवता ) सू १०१८३ अग्गमाणव (अग्निमानव ) प २|४०|७ अग्गमेह ( अग्निमेघ) ज २।१३१ अग्गिल (अग्निल) सू २०१८५ afda (अग्निवेश्मन्) ज ७।११७,१२२।३, १३२/३ सू १०८४१३,१०१८६।३ अगिसीह (अग्निसिंह ) प २०४०१६ अग्गहोत्त (अग्निहोत्र ) उ३।५५,६३,७०,७३ अहोम (अग्निहोम ) ज ५।१६ ~ अग्घा ( आ + घा) - अग्घाति प १५ ३८,४२ अघाडग (दे० अपामार्ग ) प १|३७|४ अचंचल ( अचञ्चल) ज ३।१०६ अचंडपाडिय ( अचण्डपातित ) ज ३॥१०६ अचक्खुदंसण ( अचक्षुर्दर्शन ) प ५५, ७, १०, १२, १४,१६,१८,२०,२१,४५, ५३, ५६,५६,६३, ६८,७१,७४,७८, ६३, ६७, २६३, ७, १०, १३,१४,१७,१६ से २१ अक्खुद सणावरण ( अचक्षुदर्शनावरण) प २३।१४ अचक्खुदंसण ( अचक्षुर्दर्श निन् ) प ३|१०४; ५४७,६५,८०, ६६, ११७,१८८६ अग्गर-अच्चय अचरित्ति (अचरित्रिन्) प १३११४,१८,१६ अचरिम ( अचरम ) प १।१०३, १०६, १०७ १०६ ११०,११३,११४,११६,११६, १२०, १२२, १२३;३।१२३१०।२ से १३,२१,२६ से ५३; १८।१२७ अचरिमंत ( अचरमान्त ) प १०२ से ५,२१,२६,से २६ अचल (अचल ) ज ३ ६ से १०१, ५।२१ अचवल ( अचपल ) ज ५।५,७ अचित्त (अचित्त ) प ६।१३ से १७,१६ ज २०६६ अचित्तजोणीय (अचित्तयोनिक) प ६१६ अचिताहार (अचित्ताहार ) प २८|१, २ अचिरवत्त विवाह (अचिरवृत्तविवाह) सू २०१७ अचेलय (अचेलक ) ज २०६६ अचोक्ख (दे० ) ज ५।५ √ अच्च (अर्च ) अच्चेइ उ ५ । ७अच्चेति ज० २।१२० अच्चंत ( अत्यन्त ) उ १।७२, ७३,८७,८८, ६२; ३१४८, ५०, ५५ अच्चणिज्ज ( अर्चनीय) ज ७।१८५ सू० १८।२३ अचनिया (अर्चनिका) ज ४।१४०।१ अच्चसण ( अत्यशन ) ज ७ ११७/२ सू १०८६ २ अच्चासरण ( अत्यासन्न ) ज २६०३।२०५, २०६, ५।५८ अच्चासन्न ( अत्यासन्न ) ज ११६ aa (अर्चिस् ) प ११२६,२१३०,३१,४१,४६ अचित्ता ( अर्चयित्वा ) ज ३८८ अचिमालि (अर्चिर्मालिन् ) प २५०,५४,५८ से ६० ज ७।१८३ सू १८।२१,२४,२०१६ अच्चिस हस्तमाली (अचिस्सहस्र मालनीक) ज ४।२७५।२८ अच्च ईद (अच्युतेन्द्र ) ज ५।५८ अह ( अत्युष्ण) ज ७।११२ ।१ सू० १० १२६ । १ अच्चुत (अच्युत ) प ११३५२४६,५६,६०,३१८३ अच्चुतवडेंसय ( अच्युतावतंसक ) प २५६ अच्य (अच्युत ) प २।४६, ५६, ५६२, ६३,४।२६४ Page #892 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अच्चुयग-अजीवपज्जव से २६६,६३८,५६,६६, ८५, ८६, ६८,७१६; १८८, २०१६१,२११६१,७०,६१,६२,२८६६; ३०।२६,३३।१६,२४,३४।१६, १८ ज २०६४; ५।४६, ५४,५६,५८,५६ उ २।२२५/४१ अच्चुयग (अच्युतक) ज ५।४६ अच्वेत्ता ( अर्चयित्वा ) ज २।१२० अच्छ ( रुक्ष ) प १।६६,११।२१ ज २१३६,१३६ अच्छ (अच्छ ) प १९३१४, २०३०, ३१, ४१, ४६,५० ५२,५८,५६,६३,६४ ज १८ से १०,२३,३१, ३५,५१,३५१२,८८,१०६,१६४, ४१, ३, ७, १२, १५, २४, २५, २८ से ३१,३० से ४१,४५, ५७, ६२,६४,६६ से ६८, ७४ से ७६,८६,८८,६१ से ३,१०३, ११०, ११४, ११८, १४३, १५६ १७८,२०३,२०६,२१३,२१८,२४२,२४५, २५१,२५२,२६०।१५।५८, ७।५५ सु ५१; १६।२३ ( अच्छ (आस) अच्छेज्ज प २६४ । १६ अच्छत्तय (अछत्रक) उ५।४३ अच्छरगण ( अप्सरोगण ) प २१३०,३१,४१ ज १।३१ अच्छरसातंडुल ( अप्सरस्तण्डुल' ) ज ३।१२,८८ ५।५८ अच्छरा (दे० ) प ३६८१ अच्छरा ( अप्सरस् ) प ३४ । १६ से २४ उ ५ ।५ अच्छि (अक्षि ) प १।४८ ।४७,११।२५ चं १११ ज २।४३;३।१७८,७।१७८ उ० ३।११४ अच्छिण्ण (अच्छिन्न) प १५।४० से ४२ अच्छि (अछिद्र ) ज २।१५ अच्छिरोड ( अक्षिरोट) प ११५१ अच्छिवेह ( अक्षिवेध ) प ११५१ अच्छी (ऋक्षी ) प ११।२३ अच्छेरग (आश्चर्य) ज २।१५ अजर (अजर ) प २०६४।२१ १ अच्छो रसो येषां ते अच्छरसाः प्रत्यासन्नवस्तु प्रतिविम्बाधारभूता इवातिनिर्मला इतिभावः टीका पत्र १६२ ८१५ अजसोकित्तिणाम (अयश: कीर्तिनामन् ) प २३।३८, १२८ अजहरण ( अजघन्य ) प २३।१६१ से १९३ ज २।१५ अहमणुक्को (अजघन्यानुत्कर्ष ) प ४२६७, २६६ ५।४२,४६, ६४,७६, ११२, ११६,२४४; ७१३०१८ १०२,२३।६३,२८।६७ मोगुण ( अजघन्यानुत्कर्ष गुण) प५३८, ६०, ७५,६०,१०८, १६१,१६४,२०१, २०४,२०८,२१२,२१५,२१६,२२२, २२५,२४३ अजहण्णमणुक्कोसट्ठितिय ( अजघन्यानुत्कर्षस्थितिक) प ५।३५,५७,७२,८७,१०५, १७५, १७८, १८२, १८५,१५८,२४० अजहण्णमणुक्को सपदेसिय ( अजघन्यानुत्कर्ष प्रदेशिक ) प ५।२३१,२३२ मति) अजहण्णमणुक कोसमति (अजघन्यानुत्क प ५।६४ अजहणमणुक्को सोगा हणग (अजघन्यानुत्कर्षावगाहनक) प ५१७१,१७२,२३६,२३७ अजहणमणुककोसोगाहणय ( अजघन्यानुत्कर्षावगा हनक ) प ५ ५०,५४,६६,८४,१०२, १५५,१५८ १६०,१६४,१६७,१७२, २३७ अणुक्को ( अजघन्योत्कर्ष ) प ५६४,६८ अजहष्णुक्को सो गाहणग ( अजघन्योत्कर्षोवगाहनक ) प५।३१,३२ अणुक् कोसोगाहणय ( अजघन्योत्कर्षावगाहनक ) प५।३२,१६१ अजाइय (अयाचित ) उ० ३।३८ अजावणिज्ज (अयापनीय ) ज२।१३१ अजिण (अजिन ) ज २७८ अम्हि (अज) ज २।१५ अजिय ( अजित ) ज० ३।१८५,२०६ अजीरग ( अजीरक) ज २०४३ अजीव ( अजीव ) प १।१०१।२१५।५७ ज २०७१ सू २०१३ ३।१४४; ५।३४ अजीवपज्जव (अजीवपर्यव ) प ५१, १२३ से १२५, २४४ Page #893 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१६ अजीवपण्णवणा-अट्ठ अजीवपण्णवणा (अजीवप्रज्ञापना) प ११ से ४,६ अजीवपरिणाम (अजीवपरिणाम) प १३।१,२१,३१ अजीवमिस्सिया (अजीवमिश्रिता) प १११३६ अजोगया (अयोगता) प ३६।१२ अजोगि (अयोगिन् ) प ३।६६१३।१६१८।५८ ; २८।१३८ अजोगिकेवली (अयोगिकेवलिन् ) प १।१०८,११०, १२१,१२३ अजोगिभवत्थकेवलि (अयोगिभवस्थकेवलिन) प १८।१०१,१०३ अजोणि (अयोनि) प ६।१६।। अजोणिय (अयोनिक) प ६।१२,१६,२५ अज्ज (अद्य) ज २११४६ सू १०११६२ से १६६ उ ११४२ अज्ज (आर्य) ज ३।१२४;७।२१४ अज्जग (अर्जक) ज ५।७२,७३ अज्जग (आर्यक) उ १११०५ से १०७,११६ अज्जम (अर्यमन्) ज ७१३०,१८६।४ अज्जमदेवता (अर्यमदेवता) सू १०।८३ अज्जय (अर्जक)प १।४४।३ अज्जल (आर्यल) प १८६ अज्जव (आर्जव) ज २०७१ अज्जसुहम्म (आर्यसुधर्मन्) उ ११२,३ अज्जा (आर्या) उ ३६६ से १०४,१०६ से १०८, १११ से १२०, १३२ से १३६,१४१,१४२ १४३,१४५,१४६,१४८ से १५०;४।२१ से २४ अज्जिय (अजित) ज ३।१७५ अज्जिया (आर्यिका) ज २१७५,८२ उ ३।१२ अज्जुण (अर्जुन) प ११३६।३,४२११ ज ३।११७ अज्झत्थवयण (अध्यात्मवचन) प १११८६ अज्झत्थिय (आध्यात्मिक) ज ३।२६,३६,४७,५६, १२२,१२३,१३३,१४५,१८८,५।२२ उ १५१५ १७,५१,५४,६५,७६,७६,६६,१०५,३।२६ ४८,५०,५५,६८,१०६,११८,१३१,५।३६,३७ अज्झयण (अध्ययन) प ११११३ ज७।११४ च ५।२ सू १।६।२,१०७८ उ ११६ से ८, १४२,१४३, १४८; २।१ से ३,१४,१५,२१,३१२,३,१६,२०, २२,२३,८७,८८,१५३,१५४,१६६,१६७,१७०, ४।१ से ३,२७,५२,३,४४,४५ अज्झवसाण (अध्यवसान) प ३४।१।१,३४।१३ ज ३।२२३ अज्झावस (अधि-आ वस्)-अज्झावसइ ज २१६४ अज्झावसमाण (अध्यावसत) ज २१६४ अज्झावसित्ता (अध्याय) ज २१६४ अज्झोववण्ण (अध्युपपन्न) उ ३।११४,११५,११६ अझुसिर (अशुषिर) ज ३।३ अट्ट (आर्त) उ ११५२,७७ अट्टइ (दे०) १० ११३७।३ अट्टज्झाण (आर्तध्यान) ज ३।१०५ उ १११५;३।१८ अट्टालग (अट्टालक) ज २।२० अट्टालय (अट्टालक) प २।३०,३१,४१ अट्ठ (अष्टन् ) प ११५० ज १८चं ३।२ अट्ठ (अर्थ) प ५।३,५,७,१०,१२,१४,१६,१८,२०, २४,२८,३०,३२,३४,३७,४१,४५,४६,५३,५६, ५६,६३,६८,७१,७४,७८,८३,८६,८६,६३,६७, १०१,१०४,१०७,१११,११५,११६,१२७,१२६, १३१,१३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७. १५०,१५४,१५७,१६३,१६६,१६६,१७२,१७४, १७७,१८१,१८४,१८७,१६०,१६३,१६७,२००, २०३,२०७,२११,२१४,२१८,२२१,२२४, २२८,२३०,२३२,२३४,२३७,२३६,२४२; ११॥३,११ से २०,३६,४१,१५१४४,४८,४६; १७।१ से ६,८ से १७,२०,२२,२४,२५,२७, १०७,१०६,१११,११६,११६,१२३ से १२८, १३० से १३२,१३५,१५०,१५२,१५५;२०१२ ३,१४ से १७,१६ से २५,२७ से ३०,३३,३४, ३६ से ४८,५० से ५२,५५,५६२२।८,७६, ८०,८२,६२,६४,६५;२८१४,२५,२७,२६,३८, ४७,५०,७३ से ७५,९७,२६।१७,१६ से २१; ३०।१६,१६,२१,२३,२५,२६,२८:३४:१२, Page #894 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठअसीय-अट्ठहत्तर ८७ ८१७ १६,१८,३५।१८,२०,२३; ३६८०,८१,८३, अट्ठभाग (अष्टभाग) प ४११७१,१७३,१७४, ८८ ६२,६४, ज ११११,४५,४७,५१; १७६,२०१,२०३,२०४,२०६, ज २०५६; २।१७,१८,२१ से २३,२५,२६,३० से ३३, ४।२१५;७।१६५,१६६ सू १८।२५,२६,३४,३६ ३८ से ४०,४२,४३,५२,५६,१५६,१६१;३।१ अट्ठम (अष्टम) प ३६।८५,८७ ज २१७१,४।२११ ६,६१,९८,१०६,१०७,११३,११४,१८६, ५।१०,७।६७ सू १०७७१२।१७,१३१८ उ १६६,२०६,२२६;४।१६,२२,३४,३७,४१,५१, २।१०,२२, ३।१४,८३,१५०,१६१,४।२४; ५३,५४,६०,६१,६४,७०,७६,७६,८१,८५, श२८,३६,४३ ८६,८६,६०,६३,६७,१०२,१०७,१०८,११०, अट्ठमंगलग (अष्टमंगलक) ज ३।१७८,२०२, ११३,१४१,१४२,१४६,१५१,१५६,१६१,१६६, २१७,४।२८,११५,१३८,१५८,५।४३,५८ १७७,१८०,१८४,१८६,१८८,१६३,१६६, अट्ठमंगलय (अष्टमंगलक) ज ३।१२,८८,४।१२५ १६६,२००,२०३,२०५,२०६,२०६ से अट्ठमभत्त (अष्टमभक्त) प२८।५० ज ३।२०, २११,२६१,२६४,२६६,२७०,२७२,२७३, २१,२८,३३,३४,४१,४६,५४,५५,५८,६३, २७६,२७७,५१२७;७।१६६,१८४,१८५,२०६, ६४,६६,७१,७२,७४,८४,८५,१११,११२, २१३,२१४ सू १६।२,४,६,१८।२२ उ ११४, ११३,१३१, १३७ से १३६,१४३,१४४, ८,१७,२३,२४,३७ से ४०,४२,४३,५५,५७, १४७,१६६,१६८,१८२,१८३,१८७,१६१, ५८,६७,८०,८२,८३,८८,६६,१००,१०२, २१८ १०४,१०७,११५,११७,११६,१२०,१२२, अट्ठमभत्तिय (अष्टमभक्तिक) ज ३।५४,६३,७१, १२७,१४२,१४३;२।१,३,१४,१५,२१,३।१, १११,११३,१३७,१४३,१६७,१६० ३,१३,१६,२०,२२,२३,२६,३८,४०,४२,४४, अट्ठमी (अष्टमी) ज ७।१२५ ५६,६१,७७,८७,८८,१०२,१०७,११६ से अठ्ठया (अर्थ) सू १७।१,२०।१ उ ३।४४ ११८,१२३,१४०,१४७,१५३,१५४,१६०, अट्ठविह (अष्टविध) प ११४,१३२,१३।२६; १६६,१६७,१७०,४।१,११,२७,५।१,३,१५, २११५५;२२।२१ से २३,२८,८३,८४,८६,८७ ३८,४३,४४ ६०;२३।१५,१६,२१,२२,३०,३१,५०,५८; अट्ठअसीय (अष्टाशीति) सू १८।१ २४।२ से ८,१० से १३,२५।४,५,२६।२ से ६, अट्ठक (अष्टक) सू १३।५,६ ८ से १०,२७।२,३, २६।२ सू ६।५ अट्ठकण्णिय (अष्टकणिक) ज ३१६४,१३५,१५८ अट्ठवीस (अष्टविंशति) प २०५६।१ अट्ठछत्ताल (अष्टचत्वारिंशत् ) सू १०।१४६ अट्ठसइय (अष्टशतिक) ज २१६४ अट्ठजोयणिय (अष्टयोजनिक) प २१६४ अट्ठसठ्ठ (अष्टषष्टि) ज ७३१ सू ४।४ अट्ठतरि (अष्टसप्तति) सू ४१५ अट्ठसट्ठि (अष्टषष्टि) ज ६।१५ अट्ठतीस (अष्टत्रिंशत् ) प २।३८ ज १।२० अट्ठसमइय (अप्टसामयिक) प ३६।३,८५ सू. १०।१५२ उ ३।१२ अट्ठसयमंगुलमायत (अष्टशताङ्गुलायत) अट्ठपंचासत (अष्टपञ्चाशीति) सू १२॥३ ___ ज ३।१०६ अट्ठपदेसिय (अष्टप्रदेशिक) प १०।१३,१४ अट्ठसुवण्ण (अप्टसुवर्ण) ज ३।६५,१५६ अट्ठपिट्ठणिट्ठिया (अष्टपिष्ट निष्ठिता) अट्ठसोवणिय (अष्टसौवणिक) ज ३।६४,१५८ प१७।१३४ अट्ठहत्तर (अष्टसप्तति) प २।२१ Page #895 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१८ अठहत्तर (अष्टसप्तति ) ज ७ ३२, ३४ अट्ठा (अष्टा ) ज २।६५ अट्ठाणउइ (अष्टनवति) ज ७६८ अट्ठानउति (अष्टनवति ) सू १०।१६५ अट्ठाण (अष्टनवति) सू १०।१७३ अट्ठार (अष्टादशन् ) प १०।१४।४ से ६ ज ४।६२ अट्ठारस (अष्टादशन् ) प २०२४ जं १४८ स १।१३१।१०४ अट्ठारसक (अष्टादशवक्र) उ१।६६, १०२ से ११७,११६, १२७, १२८ अट्ठासविह (अष्टादशविध ) प १६८ अट्ठावण्ण (अष्टपञ्च । शत ) ज ४।१४२ अट्ठावय (अष्टापद) ज २।१५,८८, ६०, ३।२२४ अट्ठावीस (अष्टाविंशति ) प २।२३ ज १७ सू १।१४ अट्ठवीसहभाग (अष्टाविंशतिभाग) सू १०।१४२ अट्ठावीसविह (अष्टविंशतिविध) ज ७।११३ सू १०।१३० अट्ठावीसतिभाग (अष्टविंशतिभाग ) प २३|१०२ से १०४,१५२ सू १२।३० अट्ठावीसतिविह (अष्टाविंशतिविध ) प १८६ २।४८ अट्ठावीस माणसयसहस्साहिवइ (अष्टाविंशतिविमानशतसहस्राधिपति) ज २९१ अटासीइ ( अष्टाशीति) सू २०1८1ह अट्ठासीति (अष्टाशीति) सू १८४,२०१८ अट्ठासीय (अष्टाशीति) ज १।२३ सू १०।१४१ अट्ठाहिय ( अष्टाहिक) ज २।११७ से १२० ३।१२ से १४,२८,३०, ४१, ४२, ४३, ४१ से ५१,५८ से ६०, ६६ से ६८, ७४ से ७६,१३६,१३६,१४७ से १५१,१६८ से १७०; ५।७४ २८१११, २८१३, २५, २८, ३७, अट्ठ (अर्थ) ४६, ज ३।१०६ अट्ठिकच्छभ ( अस्थिकच्छप ) प १।५७ अट्ठिय ( अस्थित ) प ११।८० से ८३ अयि ( अस्थित ) प ११।४७ अट्ठहत्तर-अनंत अड (दे० ) प १७ अडड ( अटट) ज २१४ अडडंग (अटटाङ्ग ) ज २१४ अडतालीस (अष्टचत्वारिंशत् ) सू १।२३ अडमाण ( अटत् ) उ ३।१००,१३३ अडयाल' (दे० ) प २।३० अडयाल (अष्टचत्वारिंशत् ) ज १।२० सू १।२४ अडयालीस (अष्टचत्वारिंशत् ) ज २६ सू १२४ अडवीबहुल (अटवीबहुल ) ज १।१८ अडसठ (अष्टषष्टि) सू १५/२ अडिल ( अटिल ) प १७८ अड्ढ (आढ्य) ज ३।१०३ उ १।१४१,३ । १०,२१ २८,६६, १५८, ४/७ अड्ढाइज्ज ( अर्धतृतीय ) प १७४, ८४, २७, २६; १८।४५, २१।६६,६७, ३३।५, ६ ज ११३८, ४३; ४।१०,१२,४३,४५, ५७, ७२,७८, ११०, १४७, १८३,२१५,२२१,२४५, २४८, ५।५२ १।२३ १८१ अगसेणा ( अनङ्गसेना) उ५।१०,१७ अनंत (अनन्त) प १।१३,४८,१२४८७, ८, १० से १६,३० से ३३,३५ से ४२,५०,५२,५७,५८, ६०,२।६४।१०,११,१३, १५, १६,५२ से ७, ६ से २०, २३, २४, २७ से ३४,३६,३७,४०, ४१,४४,४५,४८,४६, ५२, ५३, ५५,५६,५८,५६, ६२,६३,६७,६८,७०,७१,७३,७४,७७, ८२, ८३ ८५,८८,६२,६६, १००,१०१, १०३, १०६,११० ११४,११८,११६,१२६ से १३०,१३३,१३५, १३७,१३६,१४२,१४४,१४६, १४० से १५४ १५६,१६२,१६५,१६८, १७१,१७३, १७६, १८०,१८३,१८६, १८६,१६२,१६६,१६६,२०२ २०६,२१०,२१३,२१७,२२०, २२३, २२७, २२६,२३१,२३३, २३८, २४१,६६३,१०।१६, १८ से २०१२।७ से ११,२०,१५।१४, १५, २७,३२,५७,८३,८४,८७,८६ से ६६, १०३, १०४,१०६,११२,११५, ११८, ११६, १२१, १ अडयाल शब्दो देशीवचनत्वात् प्रशंसावाची Page #896 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतक-अणघ ८१६ १७ से २५ २७,२६,३२,३४,३८ से ४०,४५ ५२,३४।१।१,३४।१ से ३; ३६।६२ ज ३।१७८ २११४।३६,७२,७८,६५,१०३,१४३,१७८, २००,२०२,२१२,५।४३;७।६,१०,१२,१३,१५ १६,१८ से ३० ४२,५०,६८,६६,७१,७२,७४ ७५,७७,७८,८०,८३,८४, सू १।१४,१६,१७, २१,२४,२७,२।२,३;६।१८।१६।१,१३।१४; १६।२२।२५ उ १११४१,३।९२,१२५,४।२६, २८,३०,४३ अणंतरपच्छाकड (अनन्तरपश्चात्कृत) सू ८।१, १११२ से ६ अणंतरपुरक्खड (अनन्तरपुरस्कृत) सू८।१, १११२ से६ अणंतरसिद्ध (अनन्तरसिद्ध) प ११११,१२; १२२,१२६,१२६,१३०,१३५ से १३७, १३६ से १४२,१६।३७,१७१४२,१८।३,१४, २७,४५,५६,६४,७७,८३,६०,१०८,३६।८, १२,१४,१६,१८ से २६ ३२ से ३४,४४ से ४७,८३१२ ज २१६,५१,५४,७१,८५,१२१ १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, १६३;३।२२३,५१२१,५८ अणंतक (अनन्तक) ज ३।२११ अणंतखुत्तो (अनन्तकृत्वस्) ज ७।२१२ अणंतगुण (अनन्तगुण) प २१६४।१५,३।३८ से ४२ ४६ से ५२,६० से ६३, ७१ से ७४,८४ से ८७,६५ से १०२,१०५ से ११५,११८,१२२, से १२४,१७५,१७७ से १७६,१८२,१८३; ५॥५,१२६,१५.१,१५२;६।१२,१६,२५,१०१४, ५,२६,३०,१११५४,५६,५८,६०,६१,७२,७६, १०,१२१७,१०,२०,१५।१३,१६,२६,२८,३१, ३३,१७१५६,५६,६६,१४४,१४६,२१।१०४; २८७,१०,११,४१,४४,५३,५६,५७,७०; ३६।३५,४८ ज २१५१,५४,१४६,१५४,१६०, १६३ सू २०१७ अणंतनाणि (अनन्तज्ञानिन ) ज २।४।३ अणंतपएसिय (अनन्तप्रदेशिक) प ५।१३७,१३८, १६८,१६६,१७१,१७२,१८७,२०२,२०३, २०६,२०७,२२४;१०।१४,१७,२०,२४,२६, ३०,१११४६;१५।११,२४,१६।४३ अणंतपदेसिय (अनन्तप्रदेशिक) प ३।१७६; ५।१२७,१७२,१८६,२०७,२२३,२२४;१०।१७, २५,१६।३६१७।१४०२८।५,५१,३०।२६, २८ अणंतभाग (अनन्तभाग) प ५१५,१२६;१२।७,१०, २०१५।५७;२८।२२,३४,३६,६८ अणंतमिस्सिया (अनन्त मिश्रिता) प १११३६ अणंतय (अनन्तक) प ११४८।५२ अणंतर (अनन्तर) प २।६४:६।६६,१०१,१०३, १०५,११०१११६६।१:२०।१।१,२०१६ से १५ अणंतरोवगाढ (अनन्तरावगाढ) प १११६३,६४; २८।१३,१४,५६,६० अणंतरोववण्णग (अनन्तरोपपन्नक) प १५।४६ ; ३४।१२ अणंतसमयसिद्ध (अनन्तसमयसिद्ध ) प ११३ अणंताणुबंधि (अनन्तानुबन्धिन ) प १४१७; १८।१; २३।३५ अणंसुपाति (अनथुपातिन् ) ज ३३१०६ अणगार (अनगार) : १५।१।११५।४३; ३६।७६ ज ११५, २१६५,६७,८३,८५,८७, ८८,६५,९६,१०० से १०२,१०४,११४,चं १० सू ११५ उ १।२,३; २६ से १२; ३।१३, १४,१६१; ५।२१,२२,२७,२८,३२,३८ से ४१ ४३ अणगारचियगा (अनगारचितका) जं २।१०५ से अणगारिया (अनगारिता) प २०११७,१८ उ ३।१३,१०६ से १०८,११२,११८,१३६, १३८,१३६४।१४,१६,३२,४३ अणघ (दे०अक्षत) ज० ३८१ Page #897 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२० अणगघाइज्जमाण-अणाहारग अणागार (अनाकार) प २१६४।१२; २६।११; ३०२६ से २८ अणागारपस्सि (अनाका रदर्शिन ) प ३०।१५ से१८ २०,२२,२३ अणागारपासणता (अनाकारदर्शन, पश्यत्ता) प३०१७ अणागारपासणया (अनाकारदर्शन, °पश्यत्ता) प३०।१,३,५,७,१२,१३ अणागारोवउत्त (अनाकारोपयुक्त) प ३३१०६, १७४; १३।१४; १८।६३; २६।१६ से २१ अणागारोवओग (अनाकारोपयोग) प १३१८,२६।१ ३,५,७,८,१०,१३,१४ अणाघाइज्जमाण (अनाघ्रायमाण) प २८।४४,७० अणाढाइज्जमाण (अनाद्रियमाण) उ ३१६२ अणाढायमाण (अनाद्रियमाण) उ ३।५६,६१,७७, अणग्घाइज्जमाण (अनाघ्रायमाण) प २८१४३, ४४,६९,७० अणग्घिय (अनधित) ज ३।६२, ११६ अणतिवर (अनतिवर) ज ३।११६ अणदब्भवाह (अदभ्रवाह) ज ३।१०६ अणभिग्गहिय (अनभिग हीत) प १११०१।११ अणभिग्गहिया (अनभिगहीता) प १११३७।२ अणरिह (अनह) उ ११४०,४३ अणव (ऋणवत्) ज ७।१२२।३ सू१०१८४।३ अणवकंखमाण (अनवकाङ्क्षत्) ज ३।२२४ उ० २।११ अणवगल्ल (अनवकल्प) ज २।४।१ अणवहित (अनवस्थित) सू ६।१०।८।१०; १३।१७,१६।२२।१०,२७ अणवठ्ठिय (अनवस्थित) प ३३।३५,३६ ज ७।३१,३३ सू ४।३ से ७ अणवष्णिद (अणपन्निकेंद्र) प २१४६ अणवण्णिय (अणपन्निक) प २४१,४६ अणवण्णियकुमारराय (अणपन्निककुमारराज) प २०४६ अणवन्निय (अणपन्निक) प २१४६,४७।१ अणवरय (अनवरत) ज २१६४ ; ३॥१८५,२०६ अणसण (अनशन) उ २११२; ३३१४,८३,१२०, । १५०,१६१,५।२८,३६,४१,४३ अणस्साइज्जमाण (अनास्वाद्यमान) प२८।४३,४४ ६६,७० अणह (अनघ) सू २०१७ अणह (दे०अक्षत) ज ३८१ अणाईय (अनादिक) प १८।१३,१०५ अणाएज्जणाम (अनादेयनामन्) प २३।१२६ अणागतद्धा (अनागताध्वन्) २०६४ ; ३६।६३ अणागय (अनागत) ज २१६०; ३।२६,३६,४७, ५६,१३३,१३८,१४५, ५॥३,२२; ७।३६,५२ अणागयद्धा (अनागताध्वन्) प ३६।१४ अणागयवयण (अनागतवचन) प १११८६ अणाढिय (अनादत) ज ४।१५०,१५६,१६०; ७.२१३ उ ३।२,१७१ अणाणत्त (अनानात्व) प २।३,६,६,१२,१५ अणाणुगामिय (अनानुगामिक) प ३३।३५ अणाणुपुव्व (अनानुपूर्व्य) ज ७।४७ अणाणपुव्वी (अनानुपूर्वी) प १११६८२८१८, ६४ अणादि (अनादि) सू ११६,११११ अणादीय (अनादिक) प १८।२५,५५,५६,६४,६८ ७७,८३,८६,६०,१११,१२२,१२३,१२६, १२७ अणादेज्ज (अनादेय) ज २११३३ अणादेज्जणाम (अनादेयनामन् ) २३।३८ अणाभोगणिव्वत्तिय (अनाभोगनिर्वर्तित) प १४।६% २८।४,५०, ३४१५ अणारिय (अनार्य) ज २१४३ अणालोइय (अनालोचित) उ ३।८३ १२०४।२४ अणावुट्ठिबहुल (अनावृष्टिबहुल) ज ११८ अणासाइज्जमाण (अनास्वाद्यमान) प २८१४०, ४१,४४,७० अणाहारग (अनाहारक) ३३१०७, २८।१०८ Page #898 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणाहारय-अणुत्तर से ११०,११२,११४ से ११६,११८ ११६, १२१,१२३ से १२५,१३०,१३१,१३६ से १३६,१४१,१४२ अणाहारय (अनाहारक) प १८९७ से १०३; २८।१०६ से १०८,१११,११३,११७,११६, १२०,१२२,१२५,१२७ से १२६,१३२,१४३ अणिंद (अनिन्द्र) प २१६०,६३ अणिदिय (अनिन्द्रिय) प ३।४०,१३।१६१८।१७ अणिदिया (अनिन्दिता) ज ५।११ अणिक्खित्त (अनिक्षिप्त) उ० ३१५० अणिगण (अनग्न) ज २०१३ अणिच्चजागरिया (अनित्यजागरिका) उ० ३१५५ अणिच्छियत्त (अनिष्टत्व) प २८।२४ अणिज्जिण्ण (अनिर्जीर्ण) प ३६८२ अणिट्ठ (अनिष्ट) प २३।२० ज २११३३ अणिद्रुतरिया (अनिष्टतरका) प १७।१२३ से १२५,१३० से १३२ अणिठ्ठत्त (अनिष्टत्व) प २८१२ अणिट्ठस्सर (अनिष्टस्वर) ज २११३३ अणिट्ठस्सरता (अनिष्टस्वरता) प २३।२० अणिड्ढि (अद्धि) प ६६८,२१७२ अणिढिपत्तारिय (अद्धिप्राप्तार्य) प १६०,६२, १२६ अणित्थंत्थ (अनित्थंस्थ) प २१६४।६ अणिदा (दे०) प ३५।१।१,३५।१६ अणिदाया (दे०) प ३५।१७ से २०,२२,२३ अणिमिस (अनिमेष) ज ५।६७ अणिय (अनीक)प २।३० से ३३,३५,४१,४३,४८ से ५१ ज ११४५ ; २।६० ; ३।१२५; ५।१,१६, ४३,४४,५०,५६, सू १८१२३ अणियट्टि (अनिवृत्ति ) सू २०।८,२०।८।८ अणियत (अनियत) सू १।२६ अणियय (अनियत) प १७१२० अणियाधिवति (अनीकाधिपति) प २।३० से ३३ ४१,४३,४८ से ५१ अणियाहिव (अनीकाधिप) ज ४।१५।२ अणियाहिवइ (अनीकाधिपति) ज ११४५; २०६० ४।१६,१५१,५।१,१६,३६,४३,४८,५०,५२, ५३,५६ सू १८।२३ अणियाहिवति (अनीकाधिपति) प २१३० अणिल (अनिल) ज २१६८ अणिवारिय (अनिवारित) उ ३.११६४।२२ अणीय (अनीक) उ १११४६; १४७ अणु (अणु) प ११।६४,६५,६६।१,२८।१४,१५, ६०,६१ ज ७।४३,५०,१६८ सू ६।१६।२; १७।१।१८।२,३,१६।२१ अणुउ (अनृतु) सू १०।१२६।३ अणुकतनुक (दे०) ज ३।१०६ अणुगंतव्व (अनुगन्तव्य) प १६४८; २।४०१५१५५ ज ७।१३४ अणुगच्छ (अनु + गम्) अणुगच्छइ ज ३।६,५।२१ उ ३।१०१ अणुगच्छति ज ३।१०,११,५१,८६,८७ अणुगच्छति प १६।४८ अणुगच्छमाण (अनुगच्छत्) ज ३।१८,३१,१८० अणुगच्छित्ता (अनुगम्य) ज ३१६ उ ३।१०१ अणुगम्ममाण (अनुगम्यमान) उ ३।१३० अणुगिण्हमाण (अनुगृण्हान) उ १।१०७,१०८ - अणुचर (अनु+चर्) ___ अणुचरंति सू १६।२२।११ अणुचरंत (अनुचरत् ) सू १६।२२।११ अणुचरिय (अनुचरित) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८ ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ - अणुजाण (अनु + ज्ञा) अणुजाणउ उ ३३५१ अणुजाय (अनुयात) ज ३।२२,३५,३६ अणुतडिया (अनुतटिका) प १०७७ अणुतडियाभेद (अनुतटिकाभेद) प १११७७,७६ अणुतडियाभेय (अनुतटिकाभेद) प १११७३ अणुत्त (अणुत्व) ज ७।१६६ सू १८।३ अणुत्तर (अनुत्तर) प २।२७,२७।४।२।४६,६३; Page #899 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२२ अणुत्तरविमाण-अणुलित्त २११५५; ३४।२३,२४ ज २०७१,८५; ३।२२३ अणुप्पवाएमाण (अनुप्रवाचयत् ) ज ३।२६,३६, अणुत्तरविमाण (अनुत्तरविमान) प २१६२।१; ४७,१४३ १०।२,३०।२६ अणुप्पवाय (अनु+प्र-वाचय) अणुत्तरोववाइय (अनुत्तरोपपातिक) प १११३६, __ अणुप्पवाएइ ज ३।२६,३६,४७,१३३ १३८, २।४६,६३ ; ३।१८३ ; ६।४६,६६,६६, अणुबंध (अनुबन्ध) ज २।४२ ६८,११३ ; २०१५७ ; २११५५,७१,८३,६३, अणुबद्धचारि (अनुबद्ध चारिन् ) सू २०१२ ६४; ३३।१८,२६, ३४।१६,१८ ज० २।८१ ।। अणुब्भड (अनुद्भट) ज २११५ अणत्तरोववातिय (अनुत्तरोपपातिक) प २०१५६; अणुभाव (अनुभाव) प २३।१।१,२३।१३ से २३ २११६२ ज ४।८३ च २१५ सू १।६।५; १६।२२।१६,२० अणुभावणामणिहत्ताउय (अनुभावनामनिधत्तायुष्क) अणुदु (अन्तु) ज ७।११२।३ प६।११८ अणु य (अनुद्धृत) जं ३।१२,२८,४१,४६,५८ अणुभावणाभनिहत्ताउय (अनुभावनामनिधत्तायुष्क) ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३,५१५ प६।११६,१२२ अणुपरियट्ट (अनु+परि + वृत्) अणुभावनिहत्ताउय (अनुभावनिधत्तायुष्क) प६।१२३ अणुपरिट्टइ ज ७।१५६ से १६७ सू १०६७ अणुमण्ण (अनु + मन्) अणुपरियट्ट ति ज ७।५५ सू १६।२३ अणुमण्णित्थ। उ ३।१०६ अणुपरियट्टति सू १०।५ अणुमय (अनुमत) १११।३०।१,२ ज २०१५ अणुपरियट्टित्ता (अनुपरिवृत्य) सू १०५ उ ३।१२८ अणुपरियट्टित्ताणं (अनुपरिवृत्य) प ३६।८१ अणुमाण (अनुमान) सू ।३ अणुपरिवाडीय (अनुपरिपाटीक) ज ७।१३० अणुमाणइत्ता (अनुमान्य) उ ३।५५ अणुपविट्ठ (अनुप्रविष्ट) ज ३८१ उ १।३३, अणुयाय (अनुयात) ज ३।६३,६६,१०६,१६३, ३८,१००,१३३ १७५,१८० अणुपविस (अनुप्र+विश्) अणुरंगिणी (अनुरङ्गिनी) सू १०७४ अणुरंजिएल्लिय (अनुरञ्जित) ज ३।११७ अणुपविसइ ज ३१६,१७,२०,२१,२८,३१ से अणुरत्त (अनुरक्त) सू २०१७ उ १११३६ ३४,४१,४६,५४,६३,७१,७७,६५,१३७,१३६, अणुराग (अनुराग) प २१४०।११ उ११७२,७३, १४३,१५६,१६६,१७७,१८२,२०१,२०४, ८७,८८,६२ २१८,२२२ सू २।१ अणुपविसंति ज ३।२०५, अणुराधा (अनुराधा) सू १०।२ से ६, १८ २०६ अणुपविसति ज ३।१८३,१८४ अणुराहा (अनुराधा) ज ७।१२८,१२६,१३६।१, अणुपविसह उ ३।१०१ १४०,१४६,१५२,१६६, सू १०१२ से ६,१८, अणुपविसमाण (अनुप्रविशत् ) ज ३।१८४,१८५ २३,५०,६२,७३,७५,८३,११५,१२०,१३१, अणुपविसित्ता (अनुप्रबिश्य) ज ३।६ सू २।१ अणुपुव्व (अनुपूर्व) ज २।१५,४।३।२५,३५ सू -अणुलिप (अनु+लिप ) अलिपइ ज २१६६%3 ६।१ उ ११५७,५८,८२,८३,३।४६ ३।१२ अणुलिपति ज २।१००,३।१२,२११; अणुप्पत्त (अनुप्राप्त) उ ३।१२७,१२८,५१४३ ५।५८ अणुप्पयाहिणीकरेमाण (अनुप्रदक्षिणीकुर्वत्) ज अणुलिपित्ता (अनुलिप्य) ज २६६ ३।२०४ से २०६,२०८; ५१४१ अणुलित्त (अनुलिप्त) प २।३१ ज ३।६,२२२ Page #900 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२३ अणुलिह-अण्णतरठितिय ‘अणुलिह (अनु+लिह) अणुलिहंति ज ३।१७८,५१४३ अणुलिहंत (अनुलिहत् ) उ ५।५ अणुलिहमाण (अनुलिखत्) प २०४८ अणुलेवण (अनुलेपन) प २।२० से २७,३०,३१, ४१,४६ ज २०७० अणुलोम (अनुलोम) ज २।१६,६७ अणुलोमच्छाया (अनुलोमछाया) सू ६।४ अणुवउत्त (अनुपयुक्त) १५१४८,४६३४।१२ अणुवत्तमाण (अनुवर्तमान) ज ५।२७ अणुवम (अनुपम) प ३०।२७,२८ अणुवरयकाइया (अनुपरतकायिकी) प २२।२ अणुववेत (अनुपेत) प १७।१३२ अणुवसंत (अनुपशान्त) प १४।६ अणुवसंपज्जमाणगति (अनुपसंपद्यमानगति) प १६।३८,४२ अणुवसंपज्जित्ताणं (अनुपसंपद्य) प १६।४२ अणुवाय (अनुवाद) ज ४।१०३ अणुवायगइ (अनुपातगति) सू १।१४ अणुवासिय (अनुवासित) ज ५१५ अणुविद्ध (अनुविद्ध ) ज ३।१२,८८; ५।५८ अणुव्वय (अणुव्रत) उ ३।८१,८२ अणुसज्जमाण (अनुसजत्) ज ४।२०५ *अणुसज्ज (अनु + पंज) अणुसज्जित्था ज २।५० अणुसज्जिस्सं ति ज २।१६२, १६४ अणसमवयणोववत्तीय (अनूसमवदनोपपत्तिक) ज ३।१६७।१२ अणुसमय (अनुसमय) प ६।१६,६२,६३, १११७०; २८।४,२६,५० अणुसार (अनुसार) १ २०८० ज० ५१५७ उ ५४५ अणुहर (अनु+ह) अणुहरंति ज ३।१३८ अणुहो (अनु । भू) अणुहोति प २१६४।२२ अणूण (अनून) सू १६।२११८; १६।२२।२८ अणेग (अनेक) ५११३८।३,११४८१६,४७,१।१०११ ७; २१४१,६४ ज ११३७,२।१२,११३,१४६; ३।३,६,१२,२२,२४,२८,३१,३६,४१,४६,५८, ६६,७४,७७,६३,६६से१०१,१०६,१११,११६, १२०,१४७,१६३,१६८,१६३,२१२, २१३, २२२; ४।३,६,२५,३३,१२०,१४७,२१६, २४२; ५।३,४,२८,३२,३३,४३ उ १९७ से ६६; ३।४३,४४ ; ५।१०,१७ अणेगजीविय (अनेकजीवित जीवक) प ११३५,३६ अणेगविह (अनेकविध) प १।१३,२०,२३,२६,२६, ३५ से ५१,५६,६३ से ६६,७०,७१,७५,७६, ७८,७६.८६,९६,१६।३०,३७ अणेगसिद्ध (अनेकसिद्ध) प १११२,१६॥३६ अगिदिय (अनेकेन्द्रिय) प १११३८ अणेरइय (अनैरयिक) प १७।६०,६१ अणेसणिज्ज (अनेषणीय) उ ३।३८ अणोगाढ (अनवगाढ) प १११६२,२८।१२,५८ अणोवम (अनुपम) ज ३।६२,१०६,११६ अणोवमा (अनुपमा) प २१६४।१८,१७।१३५ अणोवमा (दे०) ज २०१७ अणोवाहणय (अनुपानत्क) उ ५।४३ अणोहट्टिय (दे०) उ ३।११६; ४।२३ अण्ण (अन्य) प ११२०,२३,२६,२६,३५ से ३७,३६ से ४७,४८७,१० से २६१६४८ से ५१,५६, ६०,७८,६६,६७, २०३० से ३३,४८ से ५५; ११।२१ से २५ ; ३६१६४ ज ११४५,४६; २।२०,७१,६०,३।८१,१८६,१८८,२०६, २१०,२१६,२२१, ४।१३,१४,५२,११४,१४६, १५६,१६५,२०६,२१६,२१६,२२१; ५।१,५, १६,२४,३८,४७,५०,६७, ७।५६,५६,१८३, १८५ सू ६।११०।१६२ से १६४,१६६; १७.१,१८।२१,२३,१६।११,२४, २०११ उ ५।१०,१७ अण्णतर (अन्यतर) सूह।१ अण्णतरठितिय (अन्यतरस्थितिक) प २८।५०,५१ Page #901 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२४ अण्णत्थ-अस्थि अण्णत्थ (अन्यत्र) प ११११ से २०,४६ सू१११४, अतिवतित्ताणं (अतिव्रज्य) प२८।१०५,३४।१६ - १७,१०।१३६; २०१७ अतिसीत (अतिशीत) स १०।१२६११ अण्णमण्ण (अन्योन्य) प १६।३६,४२ ज २०३६, अतिहि (अतिथि) उ ३।४८,५०,५१ ४१,१४६ ;३।१०५,१०७,११३ से १३८; अति (अति--इ) अतीति ज ३।६३,६५ ५।३,२७,३८ सू १।१८ से २१ उ ११४७,६८, अतीत (अतीत) प १५।८३,८४,८६ से ६७,६६ १३८,१३६ से १०१,१०३ से १०६,१०६,११०,११२ अण्णयर (अन्यतर) प २२।६१ से ६५; २३।१६१ से ११७,११६,१२०,१२२,१२३,१२५ १६२ ज २०६६ से १३२,१३५,१३६,१४०,१४१,१४३; ३६८ अण्णया (अन्यदा) ज ३।४,८३,१०४,१३०,१५४, से २६,३० से ३४,४४, से ४७ १७२,१८८,२२२ उ १११४, २१८,३।४६; अतीय (अतीत) प १५।१०८,११८,३६॥३४ ४।२१।५।१३ अतीव (अतीव) ज ५१३८ अण्णलिगसिद्ध (अन्यलिङ्गसिद्ध ) प १११२ अतुरिय (अत्वरित) ज ५१५,७ अण्णहा (अन्यथा) प १११०१।३,५ उ १।१०६ अतुल (अतुल) प २१६४।२० अण्णाण (अज्ञान) प ५१२४,२८,३०,३२,३४,३७, अत्त (आत्मन् ) प १५।५० ज ३।२२२ उ ३१८३, ४३,४५,४६,५३,५६,६८,७१,७४,८०,८३,८४ १२०, १५०,५२८,४३ ८६,८७,८६,६७,६६,१०१,१०२,१०४,१०५, अत्तय (आत्मज) उ १।१०,३१,६५,१०६,११०, १०७,११७ ११३,११४; २६ अण्णाणपरिणाम (अज्ञानपरिणाम) प १३।१४,१६ अत्तया (आत्मजा) उ ४ाह १७,१६, अत्थ (अत्र) ज ४।१४२,३ सू ।१ उ ३।१५१ अण्णाणि (अज्ञानिन्) प ११७४,८४,५।६४,१८१८३ अत्थ (अर्थ) ज ५।२६ चं १।३ सू २०१७ उ ३।४० २३।२००,२८।१३७ अत्थ (अस्त्र) ज ३।७७,१०६ अण्णाणुपुव्वी (अनानुपूर्वी) प२८१८,६४ स २६ अत्यओ (अर्थतस्) प ११०१।८ अण्णोण्ण (अन्योन्य) प २।६४।१० ज ७।५८ अत्थजुत्त (अर्थयुक्त) ज ५।५८ सू १६।२६ अत्थणिउर (अर्थनिकूर) ज १२४ अण्हाणय (अस्नानक) उ ५।४३ अत्यणिउरंग (अर्थनिकूराङ्ग) ज २।४ अतसी (अतसी) प ११३७।२ अत्यस्थि (अर्थाथिन् ) सू २०१७ अतिक्कम (अतिक्रम) ज २११३३ अत्यत्थिय (अर्थाथिक) ज ३।१८५ अतितेया (अतितेजा) सू १०।०८।२ अत्थमंत (अस्तवत् ) ज ३।१६ अतित्थगरसिद्ध ((अतीर्थकरसिद्ध ) प १।१२ अस्थमण (अस्तमयन) ज ७।३६ से ३८ च ४।१ अतित्थसिद्ध (अतीर्थ सिद्ध) प १११२ __ सू श८।१२।३; ६।२ अतिदूर (अतिदूर) ज ११६ । अत्थसत्थ (अर्थशास्त्र) उ ११३१ अतिभाग (अतिभाग) सू ४।८ अत्थसिद्ध (अर्थ सिद्ध) ज ७।११७१२ सू १०१८६०२ अतिमास (अतिमास) सू १५।३७ अत्थाम (अस्थामन्) ज ३।१११ अतिराउल (दे०) प ११३१४,१६ अस्थि (अस्ति) प ११७५; २०६४।१४; ५८०, अतिरेग (अतिरेक) ज ३१३५,२११५३५८ ६६ ; ६।११०; १२।६; १५।४५,४७ से ४६, Page #902 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्थिकायधम्म-अद्धजोयण ८२५ १२ ६०,६२,६३,६५,६६,८७,६४ से १०१,१०३ से १०६,१०८,११२ से ११४,११६,१३८, १४१ ; १७।१३,३५; १८।१।२; २०११,४,१७ १८,२२,२५,२८,२६,३४,३८,३६,४६,५०,५३, ५८% २११८ से १००,१०३ ; २२।६,११,१२, १४,१६,१८,५८,५६,७७,७६,८१,८२,२३१६; २८।१२३,१३६,१४१,१४५, ३४१७ से १,११, १२,१५,१६,२०,३६।८ से ११,१७ से २३, २५,२६,२६ से ३२,३४,४४ ज ११४७, सू ११३ ;६।१ उ ३।१०१,४।५।५।२६ अस्थिकायधम्म (अस्तिकायधर्म) प १११०१।१२ अत्थिय (अस्थिक) प १३६।१३।१।२ अत्थोग्गह (अर्थावग्रह) प १५६८,७० से ७२,७४, अथिरणाम (अस्थिरनामन्) प २३।३८,१२२ अद (अदस्) सू ११४ अदंड (अदण्ड) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८,६६,७४ १४७,१६८,२१२,२१३ अदंतवणय (दे० अदन्तधावनक) उ ५५४३ अदि (अयि) उ ५१४१ अदिइ (अदीति) ज ७।१८६।३ अदिज्ज (अदेय) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८,६६, ७४,१४७,१६८,२१२,२१३ अदिट्ठ (अदृष्ट) सू ५।१७१ अदिद्वैत (अदृष्टान्त) प ३०।२७,२८ अदिण्णादाण (अदत्तादान) प २२।१४,१५,८० अदिति (अदिति) ज ७।१३० अदितिदेवया (अदितिदेवता) सू १०।८३ अदुक्खमसुह (अदुःखासुख) प ३५।११२ ; ३५।१० १४१,१८०,५५,७ उ१॥३,३१२६५६ अदेवीय (अदेवीक) प ३४।१५,१६ अद्द (आर्द्र) प २।३१ अद्दरूसग (अटरूषक,आटरूषक) प ११३७१४ अद्दा (आर्द्रा) ज ७/१२८,१२६।१,१३४ से १३६, १३६।१,१४०,१४६,१६१, सू १०।३ से ६, १३,२४,३६,६२,६८,७५,८३,१०४,१२०, १३१ से १३४।२,१३५।२,१६० अद्दाय (दे०) प १५।१।१ ; १५।५० अद्दारिद्र्य (आर्द्रारिष्टक) प १७।१२३ अद्ध (अर्ध) ज ११६३।१०६४।२०८:५॥३८; ७।१७६,१७७।३ सू २।२६।३ उ १११०३, १०६,११०,११३,११४ । अद्धअउणट्ठि (अर्द्धकोनषष्टि) स ६।३ अद्धअट्ठारस (अर्धाष्टादश) सू १८।१ अद्धएकोणवीस (अधैंकोनविंशाति) सू १८।१ अद्धएकवीस (अर्धेकविंशति) सू १८।१ अद्धएकारस (अर्धेकादश) सू १८।१ अद्धंगुल (अर्धाङ्गुल) प ३६।८१ ज १।१७; ३।१०६७।२०७ सू ११५४ अद्धकविठ्ठग (अर्द्धकपित्थक) प २।४८ सू १८१८ अद्धकंभिक (अर्द्धकुम्भिक) ज ५।३८ । अद्धकोस (अर्द्धकोश) ज ११३७,४२,५१,४।६, १५,२४,३३,३६,११४,११८,१२८,१४७, १५४,१५५,२४२, सू १८।१२,१३ अद्धगाउय (अर्द्धगव्यूत) प ३३।२,६ ज ७।१० अद्धचउवीस (अर्द्धचतुर्विंशति) सू १८।१ अद्ध चंद (अर्द्धचन्द्र) प २।४८,५०,५६, ज ११२०; ३।२४,७६,११६ ; ४।४६,१०८,२४५ अद्धचंदसंठाणसंठित (अर्द्धचंद्रसंस्थानसंस्थित)प २१५८ अद्धचोद्दस (अर्धचतुर्दश) सू १८।१ अद्ध छ? (अर्द्धषष्ठ) सू १८१ अद्धछव्वीस (अर्द्धषड्विंशति) सू १८।१ अद्धछव्वीसतिविह (अर्द्धषड्विंशतिविध) प ११६३ अद्धजोयण (अर्द्धयोजन) ज ११७।१, ११६,१०,१७, २३,२५; ४।६,७,१४,२४,३६,४२,४६,५६,७१, १२ अदुत्तर (दे०) ज २०४७,१३१; ३।२२६; ४।२२, ३४,५४,६४,१०२,१०५,११३,१५६,१६१, १६६,२०८,२१०,२६१ उ १।११६ अदुवा (दे०) ज ७।२१२ अदूरसामंत (अदूरसामन्त) प ३४।२२,२३ ज ११५,३।१८,३१,५२,६६,१३१, Page #903 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२६ अट्ठम अधिपति ७४,७८,११२,११४,११५,११६,१२३, अद्धमंडलसंठिति (अर्द्धमण्डलसंस्थिति) स १७।१, १२६,१२७,१४६ सू १८।११,२० १।१५ से १७ अद्धट्ठम (अष्टिम) ज २१७८४।११०,११६, अद्धमागहा (अर्द्धमागधी) प १६८ १२८ सू १८।१ उ ११५३,७८ अद्धमास (अर्द्धमास) प६।१२, २३।७१,१८४ अट्ठारस (अष्टिादश) प २३।१०४ _सू १३।४,५,११ अद्धणवम (अर्द्धनवम) सू १८१ अद्धमासिया (अर्द्ध मासिकी) उ ३३१४,८३,१२० अद्धणाराय (अर्द्धनाराच) प २३।४५,६७ अद्धवीस (अर्द्धविंशति) सू १८१ अद्धतिवण्ण (अर्द्ध त्रिपञ्चाशत् ) प २।२७।३ अद्धसत्तम (अर्द्धसप्तम) सू १८।१ अद्ध तेरस (अर्द्ध त्रयोदश) प श६०,८१११; अद्ध सत्तरस (अर्द्धसप्तदश) सू १८।१ २३।१०२ ज ४।३६,४३,६६,७२,११४,१२०, अद्ध सीतालीस (अर्द्धसप्तचत्वारिंश) सू ११२३ १२२ सू १८।१ अद्धसोलस (अर्द्धषोडश) ज ४।११६ सू १८।१ अद्धतेवट्टि (अर्द्ध त्रिषष्टि) ज ४।२४० उ ३७ अद्धहार (अर्धहार) ज ३।६,२११,२२२; ५।३८ अद्धतेवण्ण (अर्द्धत्रिपञ्चाशत्) प २२२७ अद्धतेवीस (अर्द्धत्रयोविंशति) प ६।३१ सू १८।१।। अद्धा (अद्धा, अध्वन् ) प २१६४।१५,१६,१५। अद्धदसम (अर्द्धदश) सू १८१ ५८।१; १५।६३,६४,१८।१,१२५; ३६।६२, अद्धद्धमिस्सिया (अर्द्धार्द्ध मिथिता) प ११६३६ ६४, मू ११११,१२,२७ से ३१, २।२६।३; अद्धपंचम (अर्द्धपञ्चम) प ४।३४,३६,४०,४२ १२।२ से ६,१० से १२ सू १८१ अद्धामिस्सिया (अर्द्ध मिश्रिता) प १११३६ अद्धपण्णवीस (अर्द्धपञ्चविंशति) सू १८१ अद्धासमय ('अद्धा'समय) प ११३,३।११४,११५, अद्धपण्णरस (अर्द्धपञ्चदशन् ) स १८११ १२१,१२२,१२४; ५१२४१५१५३ से ५५, अद्धपलिओवम (अर्द्धपल्योपम) प ४।१६८,१७०, ५७; १८।१२५ १७४,१७६,१८०,१८२,१८६,१८८,१६२, अद्भुट्ठ (दे०) प ३३।३,४ ज ४।११६ सू ११२३, १६४,१६५,१६७ ज ७।१८८,१६०,१६२, ३।१; १८।१ उ ५।१० १६३ स १८।२६,२८,३०,३२,३३ अधण्ण (अधन्य) उ ११६२, ३।६८,१०१,१३१ अद्धपलियंकसंठित (अर्द्धपयंक संस्थित) सू १०।४४ । अधमस्थिकाय (अधर्मास्तिकाय) प ११३;३।११४, अद्धपोरिसी (अर्द्धपौरुषी) सू ९३ ११५, ११७,१२२,५११२४; १५॥५३,५४ अद्धबारस (अर्द्धद्वादश) सू १८११ अधर (अधर) ज २०१५ अद्धबयालीस अर्द्धद्वाचत्वारिंशत् ) सू ११२३ अधरिम (अधरिम) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८,६६, अद्ध बावण्ण (अर्द्ध द्विपञ्चाशत्) सू ११२३ ७४,१४७,१६८,२१२,२१३ अद्धबावीस (अर्द्धद्वाविंशति) स १८।१ अधाजोग (यथायोग) सू १५।१० अद्धभरह (अर्द्धभरत) ज ३।६५ अधाजोय (यथायोग) सू १५:१३ अद्धभाग (अर्धभाग) ज ११२३,४८,४।१,६२,८१ । अधातच्च (यथातथ्य) सू १२।१३ ८६ अधारणिज्ज (अधारणीय) ज ३११११ अद्धमंडल (अर्द्धमंडल) च ३३१ सू १।१८; १३१७ अधिगय (अधिगत) प १।१०१२ से ११,१४ से १६,१५।२६ से ३१ अधिपति (अधिपति) ज ३।२५,४६ Page #904 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिय-अपत्थियपत्थग अधिय (अधिक) स १३।११,१४ अधिवति (अधिपति) प २१५०,५१ अधेसत्तमा (अधःसप्तमी) प ३।१८३ अनिल (अनिल) ज २१६८,१३१ अपइट्ठाण (अप्रतिष्ठान) प २।२७ अपच्चक्खाण (अप्रत्याख्यान) प १४।७; २३।३५ अपच्चक्खाणकिरिया (अप्रत्याख्यानक्रिया) प १७:११,२२,२३,२५, २२१६०,६४,६६, ७२,७४,६८,६६ अपच्चक्खाणि (अप्रत्याख्यानिन् ) प २२१६४ अपच्चक्खाय (अप्रत्याख्यात) प १११८६ अपज्जत्त (अपर्याप्त) प १११७,२२,३१,४६ से ५१,६०,६६,७५,७६,८१, २।१७,२० । से ३६,४१ से ४३,४८ से ६३ ; ३।४३ से ४६, ५३ से ६०,६४ से ७१,७५ से ८४,८८ से १५, ११०,१७४ ; ४।५५,८६,८६,६१,६३,९६,६६, २३८,२४१,२४४,२४७,२५०,२५३,२५६, २५६,२६२,२६५,२६८,२७४,२७७,२८०, २८३,२८६,२८६,२६२,२६५,२६८,२११६, १६,१८,२३ से ३२,३६,४०,४१,४८,५०,५३, १८३,४।२,५,८,११,१४,१७,२०,२३,२६,२६, ३२,३५,३८,४१,४४,४७,५०,५३,५७,६०,६३, ६६,६८,७०,७३,७५,७७,८०,८३,१०२,१०५, १०८,१११,११४,११७,१२०,१२३,१२६, १२६,१३२,१३५,१३८,१४१,१४४,१४७, १५०,१५३,१५६,१५६,१६३,१६६,१६६, १७२,१७५,१७८,१८१,१८४,१८७,१६०, १६३,१६६,१६६,२०२,२०५,२०८,२११,२१४, २१७,२२०,२२३,२२६,२२६,२३२,२३५, २७१; ६७१,७२,७६,८३,८४,६७,१०२; ११।३१,३५,३६,१८।८,१८,३०,३६,११४; २११४०,४२, २३।१६३; २८।१४३ से १४५; ३६.५२ अपज्जत्ति (अपर्याप्ति) प २८।१४३ अपज्जवसित (अपर्यवसित) प २०६४ अपज्जवसिय (अपर्यवसित) प १८७,१३,१७, २५,२६,५५,५८,५.६,६३,६४,६७,६८,७५ से ७७,७६,८२,८३,८६,८८,६०,६२,१००, १०५,१११,११२,११५,११८,१२१,१२३, १२४,१२७ अपज्जुवासणया (अपर्युपासना) उ ३।४७ अपडिक्कंत (अप्रतिक्रान्त) उ ३।८३,१२०, ४।२४ अपडिबद्ध (अप्रतिबद्ध ) ज २०७० अपडिबद्धगामि (अप्रतिबद्धगामिन्) ज २६८ अपडिबुज्झमाण (अप्रतिबुध्यमान) ज २६५ ३३१८६, अपडिवाइ (अप्रतिपातिन) प ३३।१११,३३३३५ अपडिवाति (अप्रतिपातिन ) प ११११४ अपडिसुणमाण (अप्रतिशृण्वत्) उ १११२७ अपडिहय (अप्रतिहत) प ११८६ अपडोयार (अप्रत्यवतार) प ३०।२७,२८ अपढम (अप्रथम) प १११३,१०३,१०६,१०७, १०६,११०,११३,११४,११६,११६,१२०, १२२,१२३ ; १६।३७ अपत्थियपत्थग (अप्रार्थितप्रार्थक) ज ३११२४ उ ११११५,११६ अपज्जत्तग (अपर्याप्तक) पश२०,२३,२५,२६,२८ २६,४८।६०; ११४८ से ५१,५३,८४, १३१ से १३३,१३५,१३७,,१३८; २।२,३,५, ६,८,६,११,१२,१४ से १६३।४१,४३ से ४६,५१,५३ से ६०,६२,६४ से ७१,७३,७५ से ८४,८६,८८,६१,६३ से ६५,११०,१४२, १४८,१५१,१८३,६७१,७२,८३,१०२; १११३६,४१,१५१४६१८१४८,२११५,१०, १३,२०,३३,३४,३६,४१,५२ से ५५,७२, ३४।१२ अपज्जत्तगणाम (अपर्याप्तकनामन् ) प २३१३८,१२० अपज्जत्तय (अपर्याप्तक) प ११२९, ३१६२,६६ से ६८,८६,८६,६०,६२,६३,६५,१४५,१५४, १५७,१६०,१६३,१६६,१६६,१७२,१७४, Page #905 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२८ अपत्थियपत्थय-अप्प अपत्थियपत्थय (अप्राथितप्रार्थक) ज ३।२६,३६, ४७,१०७,११४,१२२,१३३ उ १८६ अपदेसठ्ठया (अप्रदेशार्थ) प ३३१७६,१८१ अपमत्त (अप्रमत्त) प १७।३३,२११७२ अपमत्तसंजत (अप्रमत्तसंयत) प ६।९८ अपमत्तसंजय (अप्रमत्तसंयत) प ६।९८,१७.२५, २२०६३ अपमाण (अप्रमाण) प ३०।२७,२८ अपराइय (अपराजित) ज ३।३ अपराइया (अपराजिता) ज ४।२१२ अपराजित (अपराजित) प १११३८, २०६३; ६।५६७।२६ ज १११५ अपराजिता (अपराजिता) ज ४।२०२,७।१८६ अपराजिय (अपराजित) प ४।२६४ से २६६; ६।४२; १५।८६,६२,१००,१०५,१०८,१०६, ११४,११६,१२०,१२१,१२३,१२५,१२६, १३१,१३६; २८।९६ अपराजियत्त (अपराजितत्व) प १५।११३ अपराजिया (अपराजित।) ज ४।२१२।४।५।८।१; ७।१२०१२ सू १०।८८।२ अपरिग्गहिय (अपरिगृहीत) प ४।२२२ से २२४, २३४, से २३६, अपरिजाणमाण (अपरिजानत् ) उ ३।५६,६१,७७, अपरिसेसिय (अपरिशेषित) प २८१२३ अपविट्ठ (अप्रविष्ट) प १५।३६, ४१ अपसत्थ (अप्रशस्त) प १७।११४११; २३।५६, १०६,११७,१२८ अपाणय (अपानक) ज २२६५,७१,८८, ३।२२५ अपि (अपि) ज ११२२ उ ११९७; ३१६०; ५।१७ अपिक्क (अपक्व) प १७११३२ अपुट्ठ (अस्पृष्ट) प १११६१; १५३६ से ३८,४१; २२१५६; २८।११,५७ ज ७।४०,५३ अपुणरावित्ति (अपुनरावृत्ति) ज ५।२१ अपुणरुत्त (अपुनरुक्त) ज २१६४; ५।५८ अपुण्ण (अपुण्य) उ ११६२; ३।६८,१०१,१३१ अपुरिसक्कार (अपुरुषकार) ज ३।१११ अपुरोहिय (अपुरोहित) प २१६०,६३ अपुव्व (अपूर्व ) प २८।२०,३२,६६ अपुवकरण (अपूर्वकरण) ज ३।२२३ अपोह (अपोह) ज ३।२२३ अप्प (आत्मन्) प० ११४०।४; २२।४ से ६ ज ११५; २१७१, ८३; ३।१८८,५५७ सू १।१६; १३।१२,१४ से १७,१८१८ ; २०१४ उ ११२,३,४६,६५,६८,७२; २।१०,१२, ३।१४,२६,५०,५१,५३,५४,८३,६६,१३२, १४४,१६१; ४।२४,२८; ५।२६, २८,३२,३६, अपरिताविय (अपरितापित) ज २०४६ अपरित्त (अपरीत) प ३।१०६; १८।१०६ अपरि जमाण (अपरिभुञ्जत् ) उ ११३५ अपरिभूय (अपरिभूत) ज ३।१०३ उ ३।१०, २८ अपरिमिय (अपरिमित) ज ३।१६७ अपरियाग (अपरिपाक, अपर्याय) प १७११३२ अपरियार (अपरिचार) प ३४११५,१६ अपरियारग (अपरिचारक) प ३४।१८,२५ अपरिसेस (अपरिशेष) प २८।४०, ६६ ज ४।८३, अप्प (अल्प) प ३।३८ से ११६, ११७११,११८ से १२०,१२२ से १२४,१७४,१७६ से १८३; ६।१२३; ८।५,७,६,११; ६।१२,१६,२५; १०।३ से ५,२६ से २६; १११७६,६०; १५।१३,१६,२६,२८,३१,३३,६४; १७१५६ से ६६,७१ से ७६,७८ से ८३,१४४ से १४६; २०१६४; २१।१०४,१०५; २२।१०१, २८१४१, ४४,७०, ३४।२५; ३६।३५ से ४१,४८,४६ ज ११५०; २।५८,८३,१२३,१२८,१४८,१५१, १५७; ३।१०,११,८५,८७,११७।१,१८४; ४।१०१; ५१५ २७,५७,७४११२।४,१६८,१६७ सू १०।१२६।४; १५।१; १८.१८,३७; १६। २७४ Page #906 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्प - अब हा २३,२६, २०१७ उ १११६,४२, ६३, ३।२६, १४१, ४।१२ अप्प (अल्प ) जवासा प १।४०।४ अप्पकपय ( आत्मकल्पित) उ १।४६ अप्पकम्मतराग (अल्पकर्मतरक ) प १७३, १६ अप्प चक्खाण (अप्रत्य। ख्यान ) प १४।७ अपचक्खाण किरिया (अप्रत्याख्यान क्रिया ) प २२६४,६६,७४, १७, १०१ अप्पच्चक्खाणवत्तया ( अप्रत्याख्यानप्रत्यया) प २२६४ अबुझमाण (अप्रतिबुध्यमान) ज ३।२०४ अपsिहय ( अप्रतिहत ) ज ३८१,८८, १०६,१५१; ५।२१ अप्पणया (आत्मन् ) प २८/२०,३२,६६ अप्पतराय (अल्पतरक ) प १७ २, २५ अप्पतिट्ठिय (अप्रतिष्ठित ) प १४ | ३ अप्पत्त (अप्राप्त) सू १६।२२।१७ अप्पत्थियपत्यय ( अप्रार्थितप्रार्थक ) ज ३।१०७ अप्पबहु ( अल्पबहु ) प १७।११४।१; २१ । १ । १; ३४।१।२ ज ७ । १६८।२ अप्पमेय ( अप्रमेय ) ज ५।५८ अप्पवस (आत्मवश ) उ३।११८ अप्पवेदणतराग (अल्पवेदनतरक) अप्पसत्य ( अप्रशस्त ) प १७ १३८ १३२, ३४।१३ अप्पसरीर ( अल्पशरीर ) प १७/२, २५ अपसोय (अल्पशोक ) उ १।६३ अप्पयगति ( अप्रतगति) ज २६८ अप्पा बहु ( अल्पबहु ) प ६।१२३; १५।१।१ अप्पा बहुग (अल्पबहुक ) प १७३६,७० अप्पाबहुय (अल्पबहुक) प० १० २८, ११।८०; १५।१८, १६, १५।५८ ।१; १७ ७७ अप्पिच्छ (अल्पेच्छ ) ज २।१६ अपsar (अल्प ) प १७८४ से ८७,८६ १७६, २७ २३।११६, ज० ७ १८१ १८ ।१६ अप्पिण ( अर्पय् ) अप्पिणइ उ० ११११८ अप्पिणामि उ० १।११७ अपणित्ता ( अर्पयित्वा ) ज ३२८१ अप्पिय (अप्रिय ) ज २।१३३ ८२६ अपितरिया (अप्रियतरका ) प १७।१२३ से १२५, १३० से १३२ अप्पियत्त (अप्रियत्व ) प० २८|१४ अप्पियस्सर (अप्रियस्वर) ज २।१३३ अप्पुस्सुय (अल्पोत्सुक्य ) ज ३।२६, ३९, ४७, १३३ अप्पेस (अप्रेष्य) प० २१६०,६३ अप्फुण्ण (दे ) उ १।२३,६१ अप्फोड ( आ + स्फोट ) - अप्फोडेंति ज ५७ अप्फोडिय (आस्फोटित ) ज ३।३१, ७ १७८ अष्फोया (आस्फोता) मल्लिका, अपराजिता प १।४०।३ अफासाइज्जमाण ( अस्पृश्यमान ) प २८ ।४०, ४१, ४३,४४,६६,७० अफुण्ण (दे० ) प ३६ ५६, ६०, ६६ से ६८,७०,७१, ७३ से ७५ असमाण (अस्पृशत् ) प १३।२३ अफुसमागति (अस्पृशद्गति ) प १६।३८, ४०; ३६।६२ अफुसित्ता (अस्पृष्ट्वा ) प १६॥४० अबंधग ( अबन्धक ) प ३।१७४; २२/८४; २६६ अबंध ( अबन्धक ) प २२८३, ८४, ८६ २६।८ से १० अबल ( अबल) ज ३।१११ अब (बहुश्रुत ) सू २० हार अबाधा (अबाधा ) सू २८/२० अबाहा (अबाधा ) प २१६४; २३।६० से ६४,६६, ६८,६६,७३ से ७७,८१,८३,८५ से ६०, ६२, ६५ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११६ से ११८,१२७,१३०,१३१,१७६, १७७, १८२,१८३,१८७,१६० ज १।१७ ; ३१; ४।११०,११६,१४१, १४२,२०६, २०७३ ७५, Page #907 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३० अबाहणिया-अभवसिद्धिय ६,८ से १३,६४,६५,६७ से ७२,८८,८६,६१, ७४,८४; २३७८,७६,१६६; २६।२१ ६२,१६८।१,१७१ से १७४,१८२ सू १८१५,६ ज ३१८,६३,१८०; ७।१८७ से १६० अबाहूणिया (अबाधोनिका) प २३।६० से ६४,६६ सू १८।२५ से ३० उ ३।१६ ६८,६६,७३ से ७७,८१,८३,८५. से ६०,६२, अभितर (आभ्यन्तर) प १५३५५; ३३।११ ६५ से १६,१०१ से १०४,१११ से ११४, ज १७, २११२; ४,२१; ५।३६ सू १।१४, ११६ से ११८,१२७,१३०,१३१,१३३,१७६, १६,२१,२४,२७ से २६,३१; २।३; ४।६; १७७,१८२,१८३,१८७,१६० ६।१; ८।१, १६।२१।१ अबीय (अद्वितीय) ज ३१२०,३३,८४,१८२ अभिंतरओ (अभ्यन्तरतस्) ज ३।२४।२,१३१२ अब्भइय (अभ्यधिक) प १८।४ उ २८ अभंग (अभि । अञ्ज) अब्भंगेइ उ ३।११४ अभिंतरग (आभ्यन्तरक) प ११४८।४५ अब्भंगेति ज ५।१४ अभिंतरय (आभ्यंत रक) उ ११४४ अभंगण (अभ्यञ्जन) उ ३।११४,११५,११६ अभिंतरिय (आभ्यंतरक) ज ४।१६ अब्भंगेत्ता (अभ्यज्य) ज ५।१४। अब्भुक्ख (अभि + उक्ष ) अब्भुक्खेइ ज ३।१२, अब्भंतर (आभ्यन्तर) प ३६।८१ ज ३।१८४; ८८ उ०४।२१ ४।१५२; ७।५,८,९,१०,१३ से १६,१६ से अब्भुक्खेत्ता (अभ्युक्ष्य) ज ३।१२ २२,२५ से २७,३०,३१,३३,६४,६७ से ६६, अब्भुग्गय (अभ्युद्गत) प ४।४८ ज १।४२; २।१५; ७२ से ७५,७८ से ८१,८४,८८,६१,६३,६५, ४।४६, २२१, ७१७६,१७८ सू १८१८ १७५ सू ११११,१२,१४,१६,१७,२१,२४, अब्भुट्ठ (अभि-+-उत्+ ष्ठा) अब्भुट ठेइ २७,३०; २१३; ३३१,२, ४७; ६।१; ६।२; ज ३।६,२६,३६,४७,१३३, २१४, ५२२१ १०।१३२; १३।१३; १६१, १६।२२।१२ उ ३३१०१-अब्भुट्ठमि उ ३३१३६; ४।१४ -~-अब्भुट्ठ हि उ ३।११५ अब्भंतर पुरक्खरद्ध (आभ्यन्तर पुस्करार्द्ध) सूचा१ अब्भुठ्ठिय (अभ्युत्थित) ज २७० १६।१६ से १६ अब्भुठेत्ता (अभ्युत्थाय) ज ३।६ उ ३।१०१, अभंतरिय (आभ्यन्तरिक) सू ४।३,४,६,७ अब्भंतरिल्ल (आभ्यंतरिक) ज ७१७५ सू१८७ अब्भुण्णय (अभ्युन्नत) ज २११५; ७१७८ अब्भक्खाण (अभ्याख्यान) प २२०२० अब्भुवगम (अभ्युपगम) प ३५।१।१ अब्भणुण्णाय (अभ्यनुज्ञात) उ ३।१०६,१०८,१३८; अब्भोरुह (अभ्यवरुह) प ११४४।१ ४।११ अब्भोवगमिया (आभ्युपगमिकी) प ३५।१२,१३ अब्भपडल (अध्रपटल) प १।२०।२; १११७५ अभंगय (अभङ्गक) प २६।६; २८।११६ अब्भवद्दलय (अभ्रवादलक) ज ५७ अभवखेय (अभक्ष्य) उ ३।३७ से ४० अब्भवालुया (अभ्रवालुका) प १।२०१२ अभड (अभट) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८,६६,७४, अब्भहिय (अभ्यधिक) प ४।१७१,१७३,१७४,१७६, १४७,१६८,२१२,२१३ १७७,१७६,१८०,१८२,१८३,१८५,१८६, अभय (अभय) उ ११३१,४२ से ४६,४८ १८८; १५,१०,२०,३०,३२,७२,८१,१०२, अभयदय (अभयदय) ज ५।२१ १२६,१३१,१३२,१३४,१६०,१७७,१६३, अभवसिद्धिय (अभवसिद्धिक) प ३।११३,१८३; २१४,२२८; १७।६३; १८१२८,४७,६०,६६ से १२१७,२०; १८११२३, २८।११२ Page #908 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभव्वजण-अभिरूव ८३१ अभव्वजण (अभव्यजन) सू २०१६।१ अभायण (अभाजन) सू २०६।३ अभाव (अभाव) प ३।१२१ अभासग (अभाषक) ३।१०८; ११।३८ से ४१, अभिणंद (अभि+णद् ) अभिणंदति ज २१६४ अभिणंद (अभिनन्द) सू १०।१२४।१ अभिणंदत (अभिनन्दत) ज २१६४; ३।१८५, २०६ अभिणंदिज्जमाण (अभिनन्द्यमान) ज १६५ अभिणंदिय (अभिनन्दित) ज ७।११४।१ अभिणय (अभिनय) ज ५१५७ अभिणिसढ (अभिनिसृत) सू ६।१,३ अभिणिस्सव (अभि+ नि+स्र ) अभिणिस्सवंति ज ४।१०७ अभिणिस्सित (अभिनिश्रित) सू ।।३ अभिणी (अभि--णी) अभिणे ति ज ५१५७ अभिण्ण (अभिन्न) प १११७२ अभिथुण (अभि + ष्टु) ___ अभिथुणंति ज २१६४ ; ३।२१० अभिथुणंत (अभिष्टुवत् ) ज २।६४ ; ३।१८५,२०६ अभिथुव्वमाण (अभिष्ट्रयमान) ज २१६५; ३११८६ २०४ अभासय (अभाषक) प० १८।१०५ अभिइ (अभिजित्) ज ७।११३।१, १२८ से १३१, १३३,१३४।१, १३५,१३६,१३८,१४१,१४६, १५६,१७५ सू १०।१ से ६,८,२०,२३,२७,५५, ६३,७५,७८,६२,१२०,१२२,१२३,१३० से १३६; १२।१६; १५।८,११; १८७; अभिओग (अभियोग) उ ३६१ अभिक्ख (अभीक्ष्ण) ज २।१३१ अभिक्खण (अभीक्ष्ण) प १७।२,२५, २८।२१,३३, ६७ ज० १।१८; २।१३१,१३३; ३।१०४, १०५ उ ११५६,८४,६७; ३।११७; ४।२१ अभिगम (अभिगम) प ३४।१२ अभिगमण (अभिगमन) ज ५१७,४१ सू०१३।१७ उ ११७; ३७ अभिगय (अभिगत) उ ३।१४४; ५।३४ V अभिगिण्ह (अभि+ ग्रह ) अभिगिण्हइ उ ३१५५ अभिगिहिस्सामि उ ३५० अभिगिण्हेत्ता (अभिग ह्य) उ ३।५० अभिग्गह (अभिग्रह) प ११॥३७।२ उ० ३।५० अभिचंद (अभिचन्द्र) ज २१५६, ६१; ७।१२२।१ सू १०.८४।१ अभिजात (अभिजात) सू १०।८६।२ अभिजाय (अभिजात) ज ३।३; ७।११७।२ अभिजिणमाण (अभिजयत्) ज ३।१८,३१,१८० अभिजिय (अभिजित) ज ३।३६,३६,४७,५६,६४, ७२, १२६।४, १३३,१३८,१४५,१८८; ७।१२६ अभिजेतुं (अभिजेतुम् ) ज ३।६५ अभिज्झियत्त (अभिध्यातत्व) २८।२४,२६ अभिनिविट्ठ (अभिनिविष्ट) प २०।३६ अभिनिस्सव (अभि+नि+स्र) अभिनिस्सवेइ उ ११५६ अभिभूय (अभिभूत) ज २११३३ उ ११६०,६२,८५, ८७,६३ अभिमुह ((अभिमुख) ज ११६; २१६०३।१४, १५,२२,३०,३१,३६,४३,४४,५१,५२,६० ६१,६८,६६,१३०,१३१,१३६,१३७,१४०, १४११४५,१४६,१५०,१७२,१७३,२०५,२०६, ४।१,३७,३८,६५,७१,७३,६०,६१,६४; ५।५८,६।२३ से २६ उ १११६३४३ अभिरक्ख (अभिरक्ष) अभिरक्रवउ उ ३१५१ अभिरममाण (अभिरममाण) ज २।१४६,५१६७ अभिराम (अभिराम) प २।३०,३१,४१ ज ३।१, ७,६,१७,२१,३४,८८,१०६,१७७,२२२; ४।२७,५७,२८,४३ सू २०१७ उ ५५ अभिरुइय (अभिरुचित) उ ३।१३८ अभिरूव (अभिरूप) प २।३०,३१,४१,४८,४६, Page #909 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३२ ५६, ६३, ६४ ज १८, २३, ३१,४२, २।१२,१४, १५४३, ६, १३, २५, २७, २६,३३,४६, १४६ ; ५।६२ सू०१।१ उ०५।४ से ६ अभिघमाण (अभिलङ्घमान) ज ४।४६ अभिलाव ( अभिलाप ) प ४ ५५; ६।४६,५६,६६,७८ १११,१२३; ११।८३ : १५।३८, ५०; १७८८, ६१,६६, ११७, १४५, १४६ ; २१।५५ ; २२।५८; २३।१११ ; ३६।६५ ज ३।२११४।२३८; ७। १५५ सू५ ।१ ; ६ । १ ७ १ ; ६ २, ३; १०।२३, १४८, १५०; १५॥६; १८ १ १६ १,३१; २०१२ अभिवंदिऊण (अभिवन्द्य ) प १|१|१ afras (अभिवृद्धि ) ज ७।१३० अभिवदित (अभिवर्धित ) सू १०।१२८, १२६; ११११ ; १२।१,६,१२; १५।२६ से २८ अभवति वच्छर (अभिवर्धितसंवत्सर) सू ११ २ से ६; १२/६ अभिवदित्ता (अभिवर्ध्य ) सू ६ । १ अभिवढिदेवया ( अभिवृद्धिदेवता ) सू०१०।८३ अभिवदिय (अभिवर्धित ) ज ७।१०५, ११० से ११२५ १०।१२७, १२६५ अभिवड्ढि संवच्छर (अभिवर्धितसंवत्सर) सू १०।१२७ अभिवदेत्ता ( अभिवर्ध्य ) ज ७।२७ सू६ । १ अभिवढे माण (अभिवर्धमान ) ज ७ १०, १६,२२,२५,२७,३०, ६६,७५,८१, सू १२०, २१,२७६ १ ६२ अभिवृड्ढ (अभि + वृध्) अभिवुड्ढे इ स ६ । १ अभिवृदिता ( अभिवर्ध्य ) सू १।१४ अभिवुढेमाण (अभिवर्धमान ) सू १।१४; २।३; ६ २ अभिसमण्णाय (अभिसमन्वागत ) प २०३६ सू ३।२६,३६,४७,१२२,१२६,१३३३३८५, ६४, १२२,१६३ ५।३१ अभिसरमाण (अभिसरत्) उ ३६८ / अभिसंच ( अभि + सिंच्) अभिसिंचइ ज २६४ अभिसिचंति ज ३।२१० ४।२४८, २५० से २५२५।५६ अभिसिंचति ज ३।२०६५।६० अभिलंघमाण-अमणुण्ण / अभिसंचाव (अभि + सेचय्) अभिसिंचाइ उ १६८ अभिसिचावेसि उ १।७२ अभिसंचावित्त (अभिषिञ्चयितुम् ) ज ३।१८८ उ० १४६५ अभिसिंचिता (अभिषिच्य ) ज २२६४ अभिसिंचिय (अभिषिञ्चित) ज ३।२१२ अभित्ति (अभिषिक्त ) ज ३।२१४ अभिसेक (अभिषेक) ज ३।२०४, २१४, २१७, ४१४० अभिसेक ( अभिषेक्य ) उ १।१२३,१३१ अभिसे (अभिषेक) ज २।१५; ३।२०६४ | १४० ११ १६०,२४४, २४८ ; ५।५७,५८,६१,६५ अभिपीढ ( अभिषेकपीठ ) ज ३|१९४ से १६६, २०४ से २०६,२१४ से २१६ अभिसेयमंडव (अभिषेकमण्डप) ज ३।१६१, १९३, १६४,१८,२०४ से २०६,२०८,२१४ अभिसेयसभा ( अभिषेकसभा) ज ४ । १४० अभिसेयसिला ( अभिषेकशिला) ज ४।२४४; ५।४७ अभिसेयसिहासण ( अभिषेक सिंहासन ) ज ४१२४८; ५।४७ अभिहण (अभि + हन् ) अभिहणंति प ३६।६२,७७ अभिहणमाण ( अभिघ्नत् ) ज ३।१०६ अभिहिय ( अभिहित ) प १।१०१।१२ अभीइ ( अभिजित् ) ज २२८५,८८, १३८ ७१३६।१ १६।२२।२७ अभीय ( अभीत) ज २०६४ अभेज्ज (अभेद्य ) ज ३७६,६६ से १०१,११६, अमेल (अभेल) ज ३११०६ अमच्च (अमात्य) ज ३, ६,७७,२२२ अमणाम (दे० ) ज २।१३३ अमणामतरिया ( 'अमणाम' तरका) प १७।१२३ से १२५,१३० ते १३२ अमणामत्त ( ' अमणाम' त्व) प २८।२४ अमणुण्ण ( अमनोज्ञ ) प २३।१६,३१ ज २।१३१, १३३ Page #910 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमणुण्णतरिया-अरतिरति ८३३ अमणुण्णतरिया (अमनोज्ञ तरका) प १७४१२३ से। १२५,१३० से १३२ अमणुण्णत्त (अमनोज्ञत्व) प २८।२४ अमणूस (अमनुष्य) प २१७२ अमम (अमम) ज २१५०,१६४,४।१०६ २०५, ७।१२२।३ सू १०१८४।३ अमयमेह (अमृतमेघ) ज २११४४,१४५ अमर (अमर) प २।३०,३१,४१, २।६४।२१; ज २१७१; ३।३५,१०६,१३८ अमरपति (अमरपति) ज ३।३१ अमरवइ (अमरपति) प २।४५।२ ज ३।३,१८, ६३,१८० अमल (अमल) ज ४।२६ अमाइसम्मद्दिट्ठिउववण्णग (अमायिसम्यक दृष्ट्युपपन्तक) प १७।२७,२६ अमाइसम्मद्दिट्ठी (अमायिसम्यकदष्टि) प १५।४६ ३४।१२,३५।३ अमाइसम्महिट्ठी उववण्णग (अमायि सम्यकदृष्ट्युप पन्नक) १७।२७ अमाण (अमान) ज २१६८ अमाय (अमाय) ज २१६८ अमावासा (अमावास्या) ज ७।१२५,१३७,१४७, १४८.१५०,१५१,१५४,१५५, सू १०७,२३ से २६,१३६,१३७,१४८ से १५१,१५७ से १६१% १३।१ से ३,६, अमिज्ज (अमेय) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८,६६, ७४,१४७,१६८ २१२,२१३ अमित्त (अमित्र).ज ३।२२१ अमिय (अमृत) प २।६४।१६ अमिय (अमित) प २१४०१७ ज ७.१७८ अमियवाहण (अमितवाहन) प २१४०।७ अमिलाय (अम्लान) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८, ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ अमिलाव (अमिलाप) ज ४।२३८ अमूढदिछि (अमूढदृष्टि) प १।१०१।१४ अमोहा (अमोहा) ज ४११५७।१ अम्मता (अम्बा) उ ४।११ अम्मया (अम्बा) उ १२३४,४०,४३,७४, ३६८, १०१,१३१ अम्मा (अम्बा) प ११।१३,१८ उ १७१,७३,८८ अम्मापिइ (अम्बापित) उ २६ अम्मापियर (अम्बापित) उ ११६३; ३११२६,१२८ ४।११,१४,१५,१६,५२७,३८ अम्ह (अस्मत्) प ११११३ ज ५।३ सू श२० उ ११५ अय (अज) प.११६४११।१६ से २० ज २१३४, ३५; ७।१८६।३ अय (अयस्) प १।२०।१ ज १७ अयकरय (अजकरक) ज ७।१८६।२ सू २०१८,८।२ अयखंड (अयस्खण्ड) प ११।७४ अयगर (अजगर) प ११६८,७२ ज २०४१ अयगोल (अयोगोल) ११४८५६ अयण (अयन) ज २१४,६६७१२६,१२७ सू ६।१८।१; १३७,६,१२ से १४ अयदेवया (अजदेवता) सू १०।८२ अयमाण (अयमान) ज ७।२०,२३,२६,२८ सू १११४,१६,२१,२४,२७, २।३,६१,१३।१; १४।३,७ अयल (अचल) ज ३७६,११६ अयसिकुसुम (अतसीकुसुम) प १७।१२४ अयसी (अतसी) प११४५।२, २।३१ ज २।३७ अयाणंत (अजानत्) प ११०१५ अयोज्झ (अयोध्य) ज ३।३५ अयोमुह (अयोमुख) प ११८६ अर (अर) ज ३१३५ अरइ (अरति) प २३७७ जं २०७० अरजा (अरजा) ज ४।२१२ अरणि (अरणि) ज ५११६ उ०३१५१ अरण्ण (अरण्य) ज २१६६,१३१ अरति (अरति) प २३१३६,१४५ अरतिरति (अरतिरति) प २२०२० Page #911 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरत्त-अवज्झा अरत (अरक्त) प २१७० ६४,७२,७८,१५०,१८०,२०६,२२४; ५।१४, अरय (अरक) ज ३।३० २२,३६,४१,४३ उ १।३५,७० ; ३।५०,११०, अरय (अरजस्) सू २०८७ ११३;४।१८,२०, ५।१७ अरयंबर (अरजोम्बर) प २१५० से ५३,५४ अलंकारिय (अलंकारिक) ज ४।१४० ज २१६१ अलंकित (अलङ्कृत) सू २०१७ अरयंबरवत्थधर (अरजोम्बरवस्त्रधर) ज ५।१८, अलंकिय (अलङ्कृत) प २।४८ ज ३१६,८५,२११, ४८ २२२,४१४६,५१५८ उ १११६,४२,३।२६, अरया (अरजा) ज ४।२१२।२ १४१,४।१२ अरबाक (अरबक) प १८९ अलंबुसा (अलम्बुसा) ज ५।११।१ अरविंद (अरविन्द) प ११४६,१॥४८॥४४ अलकापुरी (अलकापुरी) ज ३।१ . ज ३।११७ अलत्तग (अलक्तक) उ ३।११४, अरसमेघ (अरसमेघ) ज २।१३१ अलद्ध (अलब्ध) उ ३।३८ अरह (अर्हत्) ज २।६३ से ६७,७३ से १०; अलभमाण (अलभमान) उ ११६६ ५१५८,६५ उ ३।१२,१४,२६,४६,७६,४।१०, अलसंडविसयवासी (अलसण्डविषयवासिन) ११,१३,१४,१६,२०५।१४,२०,३२,३३,३६, ज ३८१ ३७,३६ से ४१ अलाय (अलात) प १।२६ अरहंत (अर्हत्) प ११६१, ६।२६ ज ११:५।२१ अलिय (अलीक) उ ११४७ सू० २०६।४ उ १।१७ अलेस्स (अलेश्य) प ३१६६१३।१६; १७१५६, अरहंतवंस (अहवंश) ज २।१२४ ५८; १८७५; २८।१२४ अरि (अरि) ज २०२८ अलोग (अलोक) प १०।२,४,५,१५।१।२ अरिठ (अरिष्ट) प ११३५२ अलोय (अलोक) प २०६४।३ ; १५।५७; ३३।१३ अरिठ्ठनेमि (अरिष्टनेमि) उ ५।१४,२०,३२,३३, अलोवेमाण (अलोपयत् ) उ १।१११,११२ ३६,३७,३६, से ४१ अनोह (अलोभ) ज २६८ अरिस (अर्शस) ज २१४३ अल्ल (आद्र) उ ११४४ से ४६ अरिह (अर्ह) ज १।२ उ ११३६,४२ अल्लइकुसुम (आद्रकीकुसुम) प १७.१२७ अरुण (अरुण) ज ४।८४,८५ सू २०१८,८।५ अल्लग (आद्रक) ज' ३।११६ अरुणवर (अरुणवर) प १५१५५११ सू १६।३१ अल्लीण (आलीन) ज २११५,१६, ७।१७८ अरुणवरोभास (अरुणवरावभास) सू १६।३१ अवक्कम (अव-1 क्रम्) अवक्कमइ उ ३३११३, अरुणोभास (अरुणावभास) ज ४।८५ अवक्कमति ज ३।१११,११५,१६२,२०८; अरुणाभ (अरुणाभ) सू २०१२ ५।५,७,५५ अवक्कमह ज ३।१२४,४१२० अरुणोद (अरुणोद) सू १६।३१ अवक्कमित्ता (अवक्रम्य) ज ३।१११; उ ३।११३; अरुय (अरुज) ज ५।२१ ४।२० अरूवि (अरूपिन् ) प १२२,३ ; ५।१२,३,१२४ . अवगाह (अवगाह) प १७।११४।१ अरुह (अर्ह, ) अवचिज्ज (अव+चि) अवचिज्जति ___ अरुहतु ज ३।१२६ प२११६७ अलंकार (अलङ्कार) ज २१६५,६६,१००।३।१२ अवज्झा (अवध्या) ज ४।२१२,२१२।४ Page #912 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अति अवाय अवट्ठित ( अवस्थित ) सू ६ । १; १६।२२।११ अवट्ठित्ता ( अवस्थाय ) सू १६।२२।२२ अवट्ठिय ( अवस्थित ) प ३३।२५ ज १।११,४७; ३।६२, ११६,२२६ : ४।२२,५४,६४, १०२, १५६, २१२७।३१,३३,१०१,१०२,२१० सू ४।३ ४,६,७,८११ उ ३१४३, ४४ अवढ (अपार्ध ) प १८५६,६४,७७, ८३,६०,१०८ सू १।२२; ६।३ अवड्ढखेत्त (अपार्धक्षेत्र ) सू १०४, ५ अवड्ढगोल गोलच्छाया ( अपार्धगोलगोलछाया) सु ६५ अवड्ढगोलच्छाया (अपर्धगोलच्छाय ) सू ६१५ अवड्ढगोलपुंजच्छाया ( अपार्धगोल पुंजछाया) सू ६५ अवढगोलावलच्छाया ( अपार्धगोलावलिछाया ) सू ६५ अवढभाग ( अपार्धभाग) सू १२५ अवड़ढवाविसंठिय (अपार्द्ध वापीसंस्थित) सू १०।३१ raitsaritra ( अपनीततोपनीतवचन ) प १९८६ raftaar (अपनीतवचन ) प १९८६ raण (अवर्ण ) प ३०।२७, २८ अवतंस (अवतंस ) सू ५।१ अवत्तव्य (अवक्तव्यक ) प १०।६ से १३ / अवदाल (अव + दलय् ) अवदालेति प ३६।८१ अवदात्ता ( अवदल्य ) प ३६।८१ अवद्दार ( अपद्वार ) उ १।११७ से ११६ अवमंस (दे० अमावास्या) ज ७।१२७।१,१६७।१ अवय ( अवका ) प १।४६, ११४६ ११ १६२ शैवाल अवर ( अपर ) प १ ११६, १४८४ ८ १६१ ज ४।१७ १३७,१५१,५।३६ चं ५।२१।६।२; २।१३।११०१५, १२७ १३१५, १७, १८१, २१ अवरक (अपरक) सू १३ । १२ अवरत (अपरात्र) उ ११५१,६५,७६, ३०४८, ० ५५,५७,६५,६८,७२,७५,७६, ६८, १०६,१३१; ५।३६ अवरविदेह ( अपरविदेह ) प १६ ३०; १७।१६१ज २६ ; ४ ६४,६६,२१३, २६३।१ अवरविदेहकूड ( अपरविदेहकूट) ज ४।६६ अवरवेयालि (अपर 'वेयाली' ) प १६।४५ अवराइया ( अपराजिता ) ज ४।२०२२,२१२, ८३५ २१२।२ अवलद्ध ( अपलब्ध ) ५।४३ अवव (अवव) ज २०४ अववंग (अववाङ्ग) ज २१४ अवस ( अवश ) उ १।५२,७७ अवसण ( अवसन ) ज ३।१११,११३ अवसाण (अवसान ) प ८।३३।६,२१७,२२२ अवसिठ ( अवशिष्ट ) प २३।१७५ ज ४। १६२ से १६४,२०४,२०८, २१०, २६२,२७१, २७४ ; ५।४६, ५० अवसेय ( अवशेष ) प २०५४ ३१८२५ ३७, ३६, ७४, ८६, १०७, १४६,१५६,१६०, १६३, १६७, २००,२०३, २०५, २०७, २२४, २४२; १७/१७ ; २०।२३; २२।२४; २४।११२६।४, ८ २७१२; २८।१२५,१३३,१३६, १३७,१४१ से १४३ ; ३०।२४; ३६।२० ज २१४६, ५६, ६२, ६५, ६६, १०१, १०२, ११३, ११४, ४१५३, १४०, १६५, २६५,२६८; ५१४२, ४५, ७११३४ ४, १३५/४, १५३ सू १०।२२; १३११ ; २०१३ अवहाय ( अपहाय ) ज २।६ अवहार ( अपहार ) प १२।३२ अवहिय ( अपहृत ) प १२।२४,३३ √ अवहीर (अप | हृ) अवहीरंति प १२७, ८, १०, १२,१६,२०,२४,२७, ३२ अवहीरति प१२।२७,३२ अवीरमाण (अपह्रियमाण ) प १२२४,३३ taraar (अवायुकायिक ) प २१।५० अवाय ( अवाय ) प १५।५८।२; १५/६६ Page #913 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३६ अवि-असंखेज्ज अवि (अपि) प १११३ ज ४।२०० स ११२५,५१ उ ११३१; ३।११; ४।६ ।४५ अविदमाण (अविन्दान) उ १२४१,४३ अविग्गह (अविग्रह) प ३६।६२ अविग्ध (अविघ्न) ज २१६४ अविणिज्जमाण (अविनीयमान) उ ११३५,४०,४३ अविणीय (अविनीत) ज ३।१०६ सू २०६६ अवितह (अवितथ) ज २१७८ उ ११२४,४२ ३।१०३ अवियाउरिया (दे० अविजनयित्री) उ ३३१३१ अवियाउरी (दे० अविजनयित्री) उ ३३९७ अविरत (अविरत) प ३३१८३ अविरत्त (अविरक्त) सू २०१७ अविरय (अविरत) प १११८६ अविरल (अविरल) ज २०१५ अविरहिय (अविरहित) प ६।१६,६२,६३, ११। ७०;२८।४,२६,५० सू १०।७७ ; १६।२२।१७ अविराहियसंजम (अविराधितसंयम) प २०१६१ अविराहियसंजमासंजम (अविराधितसंयमासंयम) प २०६१ अविसय (अविषय) प १११६७;२८११७,६३ ज ७/४६ अविसारय (अविशारद) प० १।१०१।११ अविसुद्ध (अविशुद्ध) प १७।१३८ अविसद्धलेस्सतराग (अविशुद्धलेश्यतरक) प १७१७ अविसुद्धवण्णतराग (अविशुद्धवर्णतरक) प १७।६, अवेदणा (अवेदना) प २।६४।१ अवेदय (अवेदक) प १८१६३; २८।१४० अवेदिय (अवेदित) प ३६१८२ अन्वय (अव्यय) ज ११११,४७,३।१६७,२२६; ४।२२,५४,६४,१०२७।२१० उ ३।४३,४४ अव्वहिय (अव्यथित) ज २१४६ अव्वाबाह (अव्याबाध) प २।६४।१४,२०,२२; ३६।१४।१ ज ५।२१ उ ३।३०,३५ अध्वोच्छिण्ण (अव्यवच्छिन्न) ज ३।३ अव्वोच्छित्तिणय (अव्यवच्छित्तिनय) सू १७११; २०११ अव्वोयड (अव्याकृत) प १११३७।२ अस (अस्) अत्थि प ११७५,८०,५१६६; १२।६१५।६५,६६:१७.३३;२८।१२३,१३६, १४१,१४२,१४५ ज ११४७ आसि ज ११४७ आसीप २०६४।५ सिया सू १०।२५ असइ (असकृत्) ज ७२१२ असंकिलिट्ठ (असंक्लिष्ट) प २।३१,१७।१३८ असंख (असंख्य) प ११४८६० असंखभाग (असंख्यभाग) प ११४८।६० असंखिज्जइभाग (असंख्येयभाग) प २३।१०१, १५१,१५७ असंखिज्जगुण (असंख्येयगुण) प १८१६३;२८।१४० असंखिज्जतिभाग (असंख्येयभाग) प २१४८ असंखिज्जसमइय (असंख्येयसामयिक) प १५६१ असंखेज्ज (असंख्येय) प १।१३,२०,२३,२६,२६, ४८,११४८1८,४०,५६२।१०,११,४१ से ४३, ४६,४८ ५०,५६,३११८०५।२,३,५,१२६, १२७,१४४,१४५,१५१,६।४२,६० से ६४,६८, १०।१६,१८ से २०,२३,२५,२८,३०,१११५०, ७०,७२,१२१७,८,१२,१६,२०,२४,२७,३१, ३२,१५।१२,२५,५८.१,१५८३,८४,८७,६१, ६२,६४ से ६६,१०३,१०४,११८,१२० से १२३,१२५ से १२८,१३५ से १३७,१४० से १४२; १७।१४१,१४३;१८।३,२६,२७,३७ अविसेस (अविशेष) प २१३,६,६,१२,१५ अविसेसिय (अविशेषित) ज ११५१ अविस्साम (अविश्राम) १ २१४८ अवीरिय (अवीर्य) ज ३।१११ अवे (अप-+ इ) अवेति प २८।१०५; ३४।१६ अवेद (अवेद) प २।६४।१ अवेदग (अवेदक) प ३६७१३।१६ Page #914 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असंखेज्जइभाग-असंविदित ८३७ ३८,४१,४३,६५,१०७,११७,२८१५,५१,३३। २८।२२,३४,३६,६८,३३।१२,१३,१६,१७, १०,१२,१३,१६,१७,३४।१३;३६।८,१३ से ३६।६६,७०,७३,७४ १५,१७ से २०,२२,२३,२५,२६,३३,३४,४४, असंखेज्जपएसिय (असंख्येयप्रदेशिक) प ५।१३५, ६६,६८,६२ ज ११४६,२।४,५८,८४,६०,१५७; १३६,१६५,१६६,१८३,१८४,१६६,२००, ३।३;४।५२,१६५,५१४४ सू १३।२,१४।४,८; २२०,२२११०।१७,२२,२७,१११४६ १८।११।२२।१,१६।३४,३५,३७,३८ असंखेज्जपदेसिय (असंख्येयप्रदेशिक) प ३३१७६; असंखेज्जइभाग (असंख्येयभाग) प १७४,८४; ५॥१२७,१८४;१०।१७,१६,२३,२८ २११,२,४,५,७,८,१३,१६ से ३२,३४३५,३७, असंखेज्जभाग (असंख्येयभाग) प ५१५,१०,२०,३०, ३८,४१ से ४३,४६,४६,५०,५२,५८ से ६०; ३२,१०२,१२६ ४।१४६,१५१,१५७,१५।२२:१८।२७,७० से असंखेज्जवासाउय (असंख्येयवर्षायुष्क) प ६७१, ७२,६५,११७,२०।६३,२११३८,४० से ४२, ७२,७६,८१,६४,६५,६७,१०७,१०८,११६, ४८,६३ से ६७,७०,७१,८४,८६,६० से ६२; २११५३,५४,७२ २३१६१,६४,६६,६८,७३,७५ से ७७,८३ से असंखेज्जसमइय (असंख्येयसामयिक) ११७१ ८६,८८ से ६०,६२,६५ से १६,१०२ से १०४, २८।४,३८,३६।२,८४,९२ १११ से ११४,११७,११८,१३४,१३५,१३८, असंखेज्जसमयद्वितिय (असंख्येयसमयस्थितिक) १४०,१४२,१४३,१५१ से १५३,१५५,१५६, प ५१४८,१११५१ १६०,१६१,१६४,१६६ से १६९,१७१ से असंखेज्जसमयठितीय (असंख्येयसमयस्थितिक) १७३;२८।४०,६६ उ ३।८३,१२०,१६१% प३।१८१ ४।२४ असंखेपद्धपविट्ठ (असंक्षेप्याध्वप्रविष्ट) असंखेज्जग (असंख्येयक) ५ १२१७ प २३।१६३ असंग (असङ्ग) प २१६४।१,२१ असंखेज्जगुण (असंख्येयगुण) प २०६४।११,३।१०।। असंजत (असंयत) प ३।१०५; ६९७,६८ से २३,२६,२६ से ३६,३८,३६,४५ से ५२,५६ असंजय (असंयत) प ३।१०५; १७।२३,२५,३०; से ६३,७१ से ६६,१०१,१०३ से १०५,१०७, १८१६०; २०१६०; २१७२, ३२।१ से ४,६ १११,११६,११७,११६,१२०,१२२,१२५ से। असंजयभवियदव्वदेव (असंयतभविकद्रव्यदेव) १२६,१३१ से १७३,१७५ से १७७,१८२, प २०६१ १८३;५।५,१०,२०,३२,१२६,१५१;६।१२, असंठाण (असंस्थान) प ३०।२७,२८ १६,२५; १०।३ से ५,११।१०।१५।१३; असंत (असत्) प २१६४।१७ १७।५७,६०,६३,६४,६७,६८,७१,७३,७४,७६, असंतप्पमाण (असंतप्यमान) सू ६।१ ७६ से ८३,१४४ से १४६;२०१६४;२११०४, असंदिद्ध (असंदिग्ध) उ० ११२४,४२ १०५,२८७,५३,३४।२५,३६।३५ से ४१,५२, , १. असंपत्त (असंप्राप्त) प १।२०,२३,२६,२६,४८%; २।३१।१६।२२ ज ४।४२,७१,७७,६४,२६२, असंखेज्जजीविय (असंख्येयजीविक) प १।३५,३६ ५१५,३८,४४ सू१०।१४२,१४७, १२।३० असंखेज्जतिभाग (असंख्येयभाग) प २१५१,६१,६३, असंभंत (असम्भ्रान्त) ज ५१५,७ ६४,४।१५५;१२१८,१२,१६,२४,२७,३१, असंविदित (असंविदित) उ १११०७,१०८,११६, १५७,८,४०,४२,१८१३,४१,४३,२३८१, १२७ ६२ Page #915 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३८ असंसारसमावण्ण-असुरकुमार १३ असंसारसमावण्ण (असंसारसमापन्न) प १११० से असाढय (अषाढक) प ११४२११ असात (असात) प ३५।१।२; ३५।८,६ असंसारसमावण्णग (असंसारसमापन्नक) असातवेदग (असातवेदक) प३।१७४ प१११३६; २२८ असातावेयणिज्ज (असातवेदनीय) प २३।२६,१८० असकण्णी (अश्वकर्णी) प ११४८।१ असामण्णक (असामान्यक) सू १३१५,६,१२,१३,१७ असककारिय (असत्कारित) उ ११११७ से ११६ असाय (असात) १२२१५ असच्चामोसभासग (असत्यमृषाभाषक) प ११।१०। असायावेदणिज्ज (असातवेदनीय) प २३।१६ असच्चामोसमण (असत्यमृषामनस्) प १६।१,७ असायावेयणिज्ज (असातवेदनीय) प २३।१६,६४, असच्चामोसमणजोग (असत्यमृषामनोयोग) १३६ प३६।८६ असासय (अशाश्वत) ज ७।२०८,२०६ असच्चामोसवइ (असत्यमृषावाक्) प १६।३,६,१३ असाहुदसण (असाधुदर्शन) उ ३।४७,७६ असच्चामोसवइजोग (असत्यमृषावाग्योग) असि (असि) प २१४१,१५।१।२,१५१५० प३६।१० ज २।२३,३१,१७८; ३।१७८; उ १११३८ असच्चामोसा (असत्यमृषा) प १११२,३,३५,३७, असिय (असित) प २।३१ ४२ से ४६,८३ से ८५,८८,८६ असिरयण (असि रत्न) ज ३।१०६;१७८, २२० असण (अशन) प ११३५।३ उ ३१५०,५५,१०१, असिरयणत्त (असिरत्नत्व) प २०१६० ११०,१३४,१४६ असिलेस (अश्लेष) ज ७/१२६।१,१६२ असणि (अशनि) प ११२६ सू २०११ असीइ (अशीति) प २।५६।३ असणिमेह (अशनिमेघ) ज २११३१ असीइमंगुलमूसिय (अशीत्य ङ्गुलोच्छित) ज ३।१०६ असण्णि (असंज्ञिन्) प १८४,३।११२,१७२२०; असीति (अशीति) प० २०५१ सू ११२२; १२।५,१२ १८।१२०; २०१६१,६३, २३।१६७,१७१; असुइ (अशुचि) प २।२० से २७ ज २।१३३,५१५ २८११७ से ११६३१।१ से ३,५,६,६।१ उ ११६३;३।१२६,१३० ३५२० असुइजायकम्मकरण (अशुचिजातकर्मकरण) असण्णिआउय (असंज्ञयायुष्क) प २०६२ उ० ११६३ ; ३।१२६ असण्णिभूत (असंज्ञिभूत) प ३५।२० असुइय (अशुचिक) प ११८४ असण्णिभूय (असंज्ञिभूत) प १५।४८,१७१९ असुभ (अशुभ) प २।२० से २७, २२६४ ३५१८ असुभणाम (अशुभनामन्) प २३।३८,१२३ असण्णिहि (असन्निधि) ज २०१६ असुभत्त (अशुभत्व) प २८।२४ उ ११२७,१४० असण्णिभूय (असंज्ञिभूत) प १७।२० असुर (असुर) प० २।३०।१,२।४०।१,५,१०; असत्थ (अशस्त्र) ज ३।६२, ११६ उ ३।३८,४० ५।३; ३६१४६ ज २१६४; ३।२४।१,२, असमोहत (असमवहत) प ३।१७४ १३१११,२,३।१८५,२०६५५२; चं ११२ असमोहय (असमवहत) प३११७४; ३६।३५ से ४१,४८ से ५१ असुरकुमार (असुरकुमार) प १११३१, २०३१ से असम्माणिय (असम्मानित) उ० १।११७ से ११६ . ३३,४०८४।३७ से ३६; २६ से ८,४८ से असरीर (अशरीर) प २०६४।१२,३६।६३,६४ ५०,१२१, ६।१७,५२,६१,८१,८५,६३,१०१, असरीरि (अशरीरिन्) प २८।१४१ १०६,१११,११२,११४, ७।२८।३, ६।३, Page #916 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असुरकुमारत्त-अहवणं ८३६ १५,१८,१११४४; १२।२,१५,१६,३१; १३।१५,२०:१५।१६,३५,७१,७८,८४,८७, १०२,१३६,१३८; १६।३,११,१६,१७।१४ से १७,२६,३०,३३,३४,६३,६८,६६,१०१, १०२,१०५,१६।१; २०१३,५,८,११,१२,१५, २० से २४,२७,३५,३७,४४,६०,२११५५, ६१,७०,६०,२२।२३,३७,४५; २८।१,२५, ७४,१०६,३११२,३३।१०,२०, ३४।२,४,५, ३५।३,३६।५,८,१६,२०,२३,२४,२६,३७, ४१,५०,५५,६९,७२ उ २०१७ असुरकुमारत्त (असुरकुमारत्व) प १५।६५,६७, ११६,१४१,३६।१८,२०, २२ से २४ असुरकुमारराय (असुरकुमारराज) प २।३१,३२ ज २।११३; ५२५०,५१ असुरकुमारिद (असुरकुमारेन्द्र) प २।३१,३२ असुरकुमारी (असुरकुमारी) प ४।४० से ४२, २०११२ असुरिंद (असुरेन्द्र) ज २।११३; ५।५० से ५२ सू २०१७ असुह (अशुभ) प २।२० से २७ असेलेसिपडिवण्णग (अशैलेशीप्रतिपन्नक) __ प ११॥३६; २२।८ असेस (अशेष) ज ७।१३५।२ असोग (अशोक) प० ११३५।३ ज २१६५,३।१२, ३५,८८,१८८४।२१२।२,५।५८ सू २०१८, २०८७ उ १११, ३१५६,६४,६६,६८,७६ असोग (लता) (अशोकलता) प ११३६।१ असोगवडेंसय (अशोकावतंस) प२।५०,५२ असोगवणिया (अशोकवनिक।) उ ११५५ से ५७, ८० से ८२ असोगवण (अशोकवन) ज ४।११६ असोगा (अशोका) ज ४।२१२ अस्स (अश्व) प १।६३ अस्संजत (असंयत) प ३२।६।१ अस्संजय (असंयत) प ११८६; २८।१२६) ३२।६।१ अस्संजयभवियदव्वदेव (असंयतभविकद्रव्यदेव) प २०६१ अस्सण्णि (असंज्ञिन्) प १७४,६१८०१ अस्सतर (अश्वतर) प ११६३ अस्सदेवया (अश्वदेवता) सू१०८३ अस्सपुरा (अश्वपुरा) प ४।२११ अस्सरह (अश्वरथ) प ३।२१,२२,३४ अस्सातावेदग (असातवेदक) प ३।१७४ ।। अस्सातावेदणिज्ज (असातवेदनीय) प २३।१६। अस्सातावेयणिज्ज (असातवेदनीय) प २३।१६ अस्साय (आ+स्वादय) अस्साएइ प १५।३८ ___ अस्साएंति प २८।२२,३६,६८ अस्सायण (आश्वायन) ज ७१३२ सू० १०६६ अस्सायावेदणिज्ज (असातवेदनीय) प २३।३१ अस्सिणी (अश्विनी) ज ७।११३।१,१२८,१२६, १३६,१४३,१४६,१५५,१५८,१५६; सू १०१ से ६,१०,२२,२३,३४,६२,६५,६६,७५,८३, ६६,१२०,१३१ से १३३,१५४ अस्सेसा (अश्लेषा) ज ७/१२८,१३४,१३६,१४०, १४७,१५० सू १०११ से ६,१४,२३,२५,४२, ६२,६६,७५,८३,१०७,१२०,१३१ से १३४१२, अस्सोई (आश्वयुजी) ज ७।१४०,१४३,१४६ सू १०।२३ अस्सोय (आश्वयुज) सू १०।१२४ अह (अथ) प ५१५ उ० ३।२६ अह (अधस्) ज ३।१८८ अहक्खाय (यथाख्यात) प १।१२४,१२६ अहक्खायचरित्तपरिणाम (यथाख्यातचरित्रपरिणाम) प० १३.१२ अहत (अहत) ज २११००।३।३५,२११,५१५८ अहत्ता (अधस्ता) प०२८।२४,२६ अहमिद (अहमिन्द्र) प २।६०,६१,६२।१,६३ अहय (अहत) ज ३।६,११७.१२,२२ अहर (अधर) प २।३१ अहवणं (अथवा) प० १२।१२ Page #917 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४० अहवा ( अथवा ) प १।१०३ ज २।६६ सू १०।१२० उ १।११५ अहाछंद ( यथाछन्द) उ३।१२० अहाछंदविहारि ( यथाछंदविहारिन् ) उ३।१२० अहापरुिव ( यथाप्रतिरूप ) उ १२:३।२६,६६, १३२; ५।२६ अहावी ( यथानुपूर्वी) ज ३१७८, १७६,२०२, २१७५।४३ अहाबायर (यथा बादर ) ज ३११२२; ५।५,७ अामालय (यथामालिक ) ज ३१६ अहारिह ( यथार्ह) उ ३।११५ अहासु ( यथासुख) उ ३।१०३,११२,१३६, १४७, १४८ ४१११, १४, १५, १६ अहासुम ( यथासूक्ष्म ) ज ३।१९२ अहि (अहि) प १६८,६६, ७१ ज० २०४१ अहिंग ( अधिक ) सू ११२७; १५।२४,२५ अहिगम ( रुइ ) ( अधिगमरुचि ) प १।१०१।१ अहिगमरुs (अधिगमरुचि ) प १।१०१1८ अहिगरणिया (आधिकरणिकी ) प २२१,३,४८, ५३ से ५६,५८,५६ अहिगरणिसंठिय (अधिकरणीसंस्थित) ज ३६४, १३५,१५८ अहिगरणी (अधिकरणी ) प २२।४८ अहिछत्ता ( अहिछत्रा ) प १।३।२ ~ अहिज्ज ( अधि + इ) अहिज्जइ उ २ १०; ३११४; ५२८ अज्जित (अधीयान) प १।१०१६ अहिज्जित्ता (अधीत्य ) उ २ (१०;३।१४; ५।३६ हि (अधिक) २२७/२; १३।२२।२; २३।१४७, १५८,१६२,१६५ ज २।१३१; ३।३६,७६,११७, २२२;४।१४६; ७।२७,२६,३० सू १११४, १६, २१,२४;६।१; १५।२८,३१,३२; १६।११।१ अहियास ( अधि + सह, आस्) अहियासिज्जति उ ५।४३ अहियासेइ ज २।६७ अहिलाण (दे० ) ज ३|१०६,१७८ घोड़े के मुंह पर अहवा - अहोसिर बांधे जानेवाला अहिवs ( अधिपति) ज ३।२६,३६,१५६ ५ १८,४६ अहिसलाग (दे० ) प १।७१ अहीण ( अहीन) उ५।४५ अहीय (अधीत ) उ३१४८, ५० अणोववण (अधुनोपपन्न) उ३।१५,८४,१२१, १६२ अहे (अधस् ) प २।२० से २७, २७ ३,२।३०,३१, ४१ ; ११।६५,६६, ६६।१; १६।५५ ; २१८७, ६०, ६१२८१५, १६,६१,६२,३३।१६ ज २१६५,७१; ७।५४,१६८।१ सू २।१; ४|१०; १६।२२; २०११,२१।४६; ३ |५६, ६४,६८,७१,७४ अहे (अथ) उ३।५१।१ अहेतु (अहेतु ) प ३० | २७,२८ अदिसा (अधोदिशा ) प ३।१७६,१७८ अहेलोइय (अधोलौकिक ) प २१/६२, ६३ अहेलो (अधोलोक ) प ० ३।१२५ से १७३, १७५, १७७ असत्तमा ( अधः सप्तमी ) प ३।१७, १८, ४।२२ से २४,६।१६,५१,६०,८०,८८,६१,६२,१००, १०६ १०१२,३,१६२६, २०१७, ४३, ५७ ; २१५२,५६,६७,८७ ३०१२६; ३३१६, १७ असत्तमापुढवि ( अधः सप्तमी पृथ्विी) प० २०।५२ अहो ( अहो ) ज ३ | १२६ उ १।६२५।२२ अहोरत (अहोरात्र ) ज २२४,६६,७ २० से २४, २६ से २६,१२२,१२६,१२७,१३४।१, १३५।१ से ४,१५६,१५७,१६० सू ११४, १६,२१,२४,२७, २३ : ६।१; ८।१; १०।३,६३ से ७४,८४,१३४; १२२ से ५, १२; १५।११, १२,२६ से ३१,३४ अहोलोग (अधोलोक ) ज ५।१ से ३,५ अहोलोय (अधोलोक ) प २।१,४,१०,१६ से १६,२८ अहोवा ( अधोवात ) प १२६ अहोसिर ( अधः शिरस् ) ज ११५; २१८३ उ०१३ Page #918 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आइ-आउहघरसाला ८४१ आ आइ (आदि) प ५१४,१४३,२१८, २५१४ ज ।२१५।२७,४०,५५,५७,७१४५,५० उ २।२२; ५।४५ Vआइक्ख (आ+ख्या) आइक्खइ ज ७।२१४ उश६८ आइक्खग (आख्यायक) ज २१६४ आइगर (आदिकर) ज ५।११ उ ३।१२,५।१४ आइच्च (आदित्य) ज ३।३; ७।२५,३०,१११, । ११२।४,५ सू १।६।३।१०।१२८,१२६।४,५ आइच्चचार (आदित्यचार) चं ५।३ आइणग (आजिनक) ज ४।१३ आइण्ण (आकीर्ण) ज २।१३४, ३।१०३,१७८ आइय (आदिक) प ११५०,५१,६०,७५,७६,८१; २४।८ ज २१३५,६४,१४४,३।१८५; ४।२४८,२५१; ५।३८,५७, ७।१२६ उ २।१०, १२,३।१४,१६१,२५०,५२८,३६,४१ आइय (आचित) प १७।११६ आइल्ल (आदिम) प ५।१०२; २२१३५,५१,५४ आइल्लिग (आदिम) प १७।३० आइल्लिय (आदिम) प २२।७३,७४ आईणग (आजिनक) सू २०१७ आईय (आदिक) प १४।१८; २८।११६; उ ११६६,६७,६४,४।१३ आउ (दे० अप) प ६३१०२,१०४,११५, ६।४; ११।२६ से २८; १३।१६,१७।३३;१८।२६, ३२,२०१८,२२,२८,२११८५;२२।२४;२८।१२३ आउ (आयुष) ज ११२२,२७,५०,२१४६,५१,५३, ५४,५८,१३३ से १३५,१६१; ३।३; ७।१३०, १८६।४,२११ आउ (काइय) (दे० अप्कायिक) प १७।१४० आउकाइय (अप्कायिक) प १११५; ३१५० से ५२, ५५, ६० से ६३,६६,७१ से ७४, ७७,८४ से ८७,६०,६५,१५६ से १६१,१८३,४।६५ से आउकाइयत्त (अप्कायिकत्व) ज ७।२१२ ७०,५॥३,११,१२,६।१६,१०२:१५।१३७) आउक्काइय (अप्कायिक) प ११२१,२।४ से ६; ३।३;६।८६,१२।२२,१५।२६,८५,१७१६०, ६६,१०२,१८॥३८,४०,४२,५०; २०।१३,२५, २६,४४,२११२४,४०; २२।३१ आउकाय (अप्काय) सू २११ आउक्खय (आयुःक्षय) उ० २।१३; ३।१८,८६, १२५,१५२,४।२६,५।३०,४३ आउज्जीकरण (आवर्जीकरण) प ३६१८४ आउट्ट (आ+वृत्) आउज्जा ज २।६७ आउट्टि (आवृत्ति) सू १२।१८ से २८ आउड (आ+कुट ) आउडेइ ज ३८८,१३५, १५५ आउडिय (आकुटित) ज ३।८६,१५६ आउत्त (आयुक्त) प १११८६ ज ३।१७८ आउदेवया (अब्देवता) सू १०८३ आउपज्जव (आयुष्पर्यव) ज २१५१,५४,१२१, १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३ आउय (आयुष्क) प ३३१७४; २०१६१,६३; २२।२८, २३।१,१२,१८,३७,१४६,१६६,१८५ १६१,१६३,१६७ से २०१; २४।१४।२६।११; २७।५,३६।८२,८३।१,६२ ज २०४६,५८,१२३, १२८,१४८,१५१,१५७; ३३२२५,४।१०१ आउयबंध (आयुष्कबन्ध) प ६।११८,११६ आउयबंधद्धा (आयुष्कबन्धाध्वन् ) प २३।१६३ आउल (आकुल) प० २।४१ ज० २।६५ सू २०१७ आउस (आयुष्मत् ) प २॥३,६,६,१२,१५,२० से २७, ६० से ६३; ३।३६; १५६४३,४५,३६१७६, ८१ ज २।१६,१६ से २१,२३,२५,२६,२८, ३० से ३६,३६ से ४३,४८,४६,५१,५४,१२१, १२६,१३०,१३३,१३८,१४०,१४६,१५४,१५६, १६०,१६३; ७।१०१,१०२,१२६, सू ८।१०; २०१७ आउह (आयुध) ज ३७७,१०७,१२४ उ १११३८ आउहघरसाला (आयुधगृहशाला) ज ३।४,५,६,१२, Page #919 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४२ आउहधरिय-आणंदकड आगायमाण (आगायत्) ज ५१५,७ से १२,१७ उ० ३।११४ आगार (आकार) प ११३८।३; ३३।१६,२४ आगार (आगार) प ३०।२५,२६ आगारभाव (आकारभाव) ज ११७,२१,२६,२७, २६,३३,४६,५०; २।५,१४,१५,२०,५२,५६ से ५८,६५,१२२,१२३,१२७,१२८,१३१ से १३३, १३६,१४७,१४८,१५०,१५१,१५६,१५७,१५६ १६१,१६४,४।५६,८२,१००,१०१,१०६,१७०, १४,३०,४३,५१,६०,६८,१३०,१३६,१४०, १४६,१७२,२२० आउहधरिय (आयुधगृहिक) ज ३१५,६ आएज्जणाम (आदेयनामन्) प २३।१२६ आएस (आदेश) ज ३।१६७।६ आओग (आयोग) ज ३।१०३ आओजित (आयोजित) प २२१५७ आओजिय (आयोजित) प २२।५८ Vआओस (आ+ क्रुश ) आओसइ उ ११५७ आओसणा (आक्रोशना) उ ११५७,८२ आकासिया (आकाशिका) ज २०१७ आकुल (आकुल) ज ३१६,२२२ आकोसायंत (आक्रोशायमान) ज २०१५ आगइ (आगति) ज २१७१ आगच्छ (आ+ गम् ) आगज्छइ ज २।२४, ३।१०७,११४;७।२० से २५,७६,८२ सू २।३ उ ११७० आगच्छंति प ११।७२,२८।४०, ४३,६६ ज २।३४,३५,३७,१०१; ७।१०१, १०२,२०२,२०४,२०६ सू ८।१ आगच्छति सू २।३ आगच्छेज्ज प ३६।६१ आगच्छेज्जा प ३६।८१ ज २१६ आगच्छमाण (आगच्छत् ) सू २०१२ आगत (आगत) प २०१६,१० आगम (आ+गम्) आगमेसि ज १८१ आगमण (आगमन) उ ३।१६६ आगमेस्स (आगमिष्यत्) ज २११३८,१६१ आगम्म (आगम्य) ज ५।५५ उ ५७ आगय (आगत) प २०१६ से ६,११ से १३; ३४।१।१ ज ३१८२ सू २०१७ उ० १६१७,२२, १०७,१०८,१२७,१२८,१३८,१४०, ३७,२१, २५,२६,६१ आगर (आकर) प ११७४ ज २।२२,१३१; ३।१८,३१,८१,१६७।२,८,३११८०,१८५,२०६, २२१ उ० ३०१०१,५३३६ आगरपति (आकरपति) ज ३।८१ आगारभावमाता (आकारभावमात्रा) प १७।१५०, १५२,१५५ आगरिस (आकर्ष) प ६।१।१६।१२०,१२१,१२३ आगास (आकाश) प २१६४।१६; १५।५३,५४, ५७ ज ३।१०४,१०५,१०७,२११,५।५८ सू १६ आगासत्थिकाय (आकाशास्तिकाय) प ११३; ३।११४,११५,११८,१२२,५।१२४; १५।५३, ५४,५७ आगासथिग्गल (आकाशथिग्गल) प १५।५३,५६; १४।१२३ आगासफलोवम (आकाशफलोपम) ज २।१७ आगासफालिओवमा (दे०) प १७।१३५ आघवणा (आख्यान) उ ३।१०६ आघवित्तए (आख्यातुम् ) उ ३।१०६ आचिट्ठ (आस्था ) आचिट्ठामो ज ३।११३ आजीविय (आजीविक) प २०१६१ आजोजित (आयोजित) प २२१५७ आडोव (आटोप) ज ७१७८ आढई (आढकी) ११३७।१ आढत्त (आरब्ध) प १७।१४८ आढा (आ+द) आढाइ उ ११३८, ३१५६ आढेति उ ३३११८ आणंद (आनन्द) ज ७.१२२।२ सू१०१८४२ उ १७१,७२,२।२१ आणंदकूड (आनन्दकूट) ज ४।१०५ Page #920 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आणंदा-आदरिस आनंदा ( आनन्दा) जशार आदिय ( आनन्दित ) ज ३०५,६,८,१५,१९,३१, ५२,५३,६१,६२,६६,७०,७७,८४,९१,१००, १३४,१३७,१४१, १४२,१५०, १६५, १७२, १८१,१६,११६,२१३५०५,१५,२१,२३,२७, २८, २९, ४१, ५५,५७,७० उ १।२१.४२: ३।१३६ आणण ( आनन ) प २०४६ ३९,१०,१३,१५०, २२२ आणत ( आनत ) प १।१३५ / आणत ( अन्यत्व ) प १५।४४, ४५ आपत्ति (आज्ञप्ति) ३१२६,३६,४७,५६,६४, ७२,१३३,१३८, १४५ ४४६१ उ १।११६ आणत्तिया (आज्ञप्तिका) ज २२१०५, ३३७, ६, १२, १३.१५,१६,१९,२८,२६,३१,३२,४१,४२, ४७, ४९, ५०, ५२, ५३, ५०, ५०,६१,६२,६४, ६६,६७,६९,७०,७४ से ७६,८३,१६,१००, १२८,१४१,१४२,१४५ १४७, १४८, १५१, १५४,१६४,१६५,१६८ से १७१.१७३, १७४, १८०,१८१,१६१, १६८, १६६,२१२,२१३,५३, २८,६८,६६ से ७३४ १।१७.१८,१२३:३०७; ४१६,१७,५०१८ आणपाणपज्जत्ति (आनप्राणपर्याप्ति, आनापान पर्याप्ति) उ ३।१५।८४ आणपाणु (आनप्राण, आनापान ) प १०५.३०१ / आणम ( आ + नम् ) आणमंति ५ ७।१ से ४,६ से १५ आणमणी (आज्ञापनी) ११४६.६.२७,३७१ आणय ( आनत) २४१,५८,५१,५६०२,६३,३४१६३ ४।२५५ से २५७६।३५,५६,६६,८६,६६, ११३७।१६१५८६८ २१४७०६२२८८३ ३३।१६:३४।१६,१० ज ४२४९, ५Ive; ७।१७८ / आणव (आ + ज्ञापय् ) आणवेइ ज ५।२२,२६ उ १।११० ८४३ आणा ( आज्ञा ) प १।१०१।५ ज ११४५; ३८, १६,५३,६२,७०,७७, ८४, १००, १४२, १६५, १०१,१८५११२,२०१,२२१:५।११,२३,७३ उ १२०,४५, १०८ आणाईसर (आज्ञेश्वर ) प २०३०,३१,४१,४९ उ ५।१० आणापाणु (आनप्राण, आनापान ) सू २१:२०१५ आणापाणुचरिम (आनप्राणचरम आनापानचरम ) प १०१४०, ४१ आणापाणुपज्जत्ति (आनप्राणपर्याप्ति, आनापान - पर्याप्ति ) प २८ । १४२ आणामिव ( आनमित) ज २०१५ आणारु ( आज्ञारुचि ) प १।१०१।१,५ आणु (आन) प ११४८।५३ आणुगामिय (आनुगामिक) १ ३२०३५,३६ आणुपाण (आनप्राण, आनापान ) प ११४८।५५ आणुपुब्विणाम (आनुपूर्वीनामन् ) प २३५४,१११० १११, ११४,१४६ आणपुथ्वी (आनुपूर्वी ) प २२४७३ ११६८,६६, ६९।१:२३।११२,११५.१७५, १९०२८१८, १६,६४,६५७१४७,५०२०१६ २०१२, २२:५।३६ आणुपुण्यीणाम (आनुपूर्वीनामन् ) प २३३८ आगे आनेतुम् १०१०७ आत्ता ( आनीय) उ ४।१६ आयव्व ( आनेतव्य) ज २०६४ आयपत्त ( आतपत्र ) ज ३।३ आतरक्ख (आत्मरक्ष ) प २३१,४३ आतव (आप) ज २।१३४; २०१९१७ १६०३, ४ आतवा ( आतपा) सू १८।२४ आतीय (आदिक) उ ४।१८ आस (आदर्श) ३०११ २० आवंसधर (आदर्श गृह) ज ३१२२२,२२४ आदंसिया (दे० ) प १७।१३५ ज २।१७ आदरिस (आदर्श) ज २६८ सू Page #921 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४४ आदाण-आभिणिबोहियणाणि आदाण (आदान) सू १२।१५ आपुच्छित्ता (आपृच्छ्य) उ २।११, ३१५०,५॥३८ आदाय (आदाय) ज २१६५ आपूरेत (आपूरयत्) ज ३१४,१७२ आदि (आदि) प ११६४,७६,८६,५।२५,४६,१३१, आपूरेमाण (आपूर्यमाण) ज ४।३५,४२,६४,१७४, १३४,१३६,१४०,१४७,१६३,१६६,१६६, २६२,५।३८ १७२,१७४,१७७,१८१,१८४,१८७,१६३, आबाहा (आबाधा) ज २।३०,३६,४१ १६७,२००,२०३,२०५,२२१,२२४,२३०,२३२, आभकर (आभङ्कर) सू २०१८,२०८७ २३४,२३७,२३६१०।२; १११६६,६७,६६।१।। आभरण (आभरण) प २।३०,३१,४१,४६% २०।२५, २३।१०८, २४१८,२६।९।२८।११२, ११।२५,१५।५५।२ ज २१६५, ३।६,११,१२, २८।१६,१७,६२,६३,१२३,१३३,१३६,१३७, २६,३६,४७,५६,६४,७२,७८,८१,८५,१३३, १४०३६।२०,४६ ज २।६।१,२७१,१३१, १४५,१८४,२२२,२२४; सू २०१७ उ १११६; १४५ चं २।३ सू १।६।३,५१,१०१५,१११२ ४२,३।२६,११३,१४१,४।१२,२० से ६ आभरण (वासा) (आभरणवर्षा) ज ५१५७ आदिच्च (आदित्य) सू १।१३,१४,१६,१७,२१, आभरणविहि (आभरणविधि) ज ३।१६७।४ २४,२७, २।३; ६६११०॥५,१०,११,७७, आभरणारहण (आभरणारोहण आभरणारोपण) १२।१,५,१० से १२,१३१५१५।२३ से २५; ज ३।१२ आभासिय (आभाषिक) प ११८६,८६ १६।२२।४,७,८,२२, २०१५ आदिच्चचार (आदित्यचार) सू १०।१२१,१२३ आभिओग (आभियोग) प २०१६१ ज २।२६,६७, आदिपदेस (आदिप्रदेश) सू १११६ ६८,५।१४,१५,५३,६१,७२,७३ उ ३।३७,६१ आभिओगसेढी (आभियोगश्रेणी) ज ४।१७२ आदिय (आदिक) प ११४६,६६,२८।१४५ आभिओगिय (आभियोगिक) प २०१६१ ज ५१३, सू १०।१,१३१, २०१५ ४,२८,४३,५० आदिल्ल (आदिम) प ५१०५, २२१५१ आभिओग्ग (आभियोग्य) ज १११३; ३।१६१, सू १६।२२।२५ आदिल्लिय (आदिम) प १७६७ १६२,१६६,२०७,२०८५।२८,५४,५५ आभिओग्गसेढी (आभियोग्यश्रेणी) ज १०२८ से आदीय (आदिक) प ६।१२३,१११३०,२२।४५; ३२; ६१६५ २४१६ से ११,२६।८।२८।१२३,१२६,१३७, आभिणिबोहिय (आभिनिबोधिक) प १७।११२, १४०,१४५, ३६।२० उ १११६,११६ से १२२, १२५, ३१३१,४० आभिणिबोहियणाण (आभिनिबोधिकज्ञान) प १५, आदेज्ज (आदेय) ज २११५ ७,२०,२४,४१,४२,४६,७८,६३,६७,१११, आदेज्जणाम (आदेयनामन्) प २३॥३८ ११२,१७।११२,११३;२०१७,१८,३४; आदेस (आदेश) प १८६० २६।२,१२,१७,१६,२१ Wआधाव (आ+धाव ) आधावेंति ज ५१५७ आभिणिबोहियणाणारिय (आभिनिबोधिकज्ञानार्य) आपडिपुच्छमाण (आप्रतिपृच्छत्) ज २१६५ प११६६ आपुच्छ (आ+प्रच्छ) आपुच्छइ उ ३.१४८; आभिणिबोहियणाणावरणिज्ज (आभिनिबोधिक ४।१५ आपुच्छामि उ ३३१३६ ; ४।४; ५।२७ ज्ञानावरणीय) प २३।२५ आपुच्छणा (आप्रच्छना) उ २६ आभिणिबोहियणाणि (आभिणिबोधिकज्ञानिन) आपुच्छणिज्ज (आप्रच्छनीय) उ ३।११ प३।१०१,१०३,५२४० से ४२,७७ से ७६, Page #922 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आभिणिबोहियनाणपरिणाम-आयाम ८४५ आयंक (आतङ्क) ज २।४३,५१५ उ ३।३५,११२, १२८ आयंत (आचान्त) ज ३।८२ उ ३।५१,५६ आयंस (आदर्श) ज २।१५,५१५५ आयंसमुह (आदर्शमुख) प १८६ आयंसलिवि (आदर्श लिपि) प ११८ आयत (आयत) प ११४ से ६२।५० से ५२,५७, ५८,६१,६२,१०।१५ से २५,२७ से ३०; १५१५२ ज ३।२४,१०६,१३१,१३८।१ आयय (आतत) प ११७,२३१,५३ से ५६,५६, ६०१०।२६:१३।२४ ज १।१८,२०,२३,२५, २८,३२,४८,४।८१,९८,१०३,१०८,१७२, १६१,२०३,२०५,२१४,२४५,२५१,२५२, २६८ उ ११२२,१४० आयर (आदर) ज ३।१२,७८,१८०,२०६;५।२२, २६ ६२ से १४,६६,१०० से ११२,११७,१३।१४, १७,१६,१८१८०; २८1१३६ आभिणिबोहियनाणपरिणाम (आभिनिबोधिकज्ञान- परिणाम) प० १३९ आभियोगसेढी (आभियोगश्रेणी) ज ४१२०० आभिसेक्क (आभिषेक्य) ज ३।१५,१७,२०,३१, ३३,५४,६३,६४,७१,७७,६१,१४३,१५१,१६६, १७३,१७५,१७७,१७८,१८२,१८३,१८५, १६६,२०२,२०४,२१४,२१७,४।१४० उ ५१८ आभिसेय (आभिषेक) ज ३।१०६ आभूय (आभूत) उ १७४ आभोएत्ता (आभोग्य) ज २१६० आभोएमाण (आभोगयत्) उ ३७,६१ आभोग (आभोग) प १४।१८।१ आभोगणिव्वत्तिय (आभोगनिर्वर्तित) प १४।६; २८।४,२५,२७,३७,४७,५०,७३ से ७५; ३४१५ -आभोय (आ+ भोगय) आभोएइ ज २।६०,६३; ३१५६,१४५,५।२१ आभोएंति ज ३।११३; ५।३ आभोयण (आभोगन) प ३४।१।१ आमंत (आ+ मंत्रय्) आमंतेइ उ ३।११०; ४।१६ आमंतणी (आमन्त्रणी) प ११॥३७।१ आमंतेत्ता (आमन्त्र्य) उ ३१५०;४।१६ आमलग (आमलक) प ११३६।१ आमलगसारिय (आमलकसारिक) सू १०।१२० १ आमुस (आ+मृश्) आमुसइ उ श६१ आमुह (आमुख) सू १६।२३ आमेल (आपीड) प २१४१ आमेलग (आमेलक) ज २।१५) ३।१०६ आय (दे०) प ११४७ आय (आत्मन्) प १४।३ ; १४।१८।१ आय (आय) उ १।४१,४३ आयरक्ख (आत्मरक्ष) प २।३० से ३३,३५,४०१५; २१४१,४८ से ५६ ज ११४५:२।१०।४।२०, ११२,१५११२, २१५६,५।१,१६,४०,४६ से ५१,५२।२,५३,५६ सू १८।२३ आयरिय (आचार्य) प १६.५१ ज ३।३५ च ११२ । उ ५२२६,२८ आयव (आतप) ज ७।१२२।३ सू १०८४१३ आयवणाम (आतपनामन्) प २३।३८,११५ आयसरीर (आत्मशरीर) प २८।२०,३२,६६ आयाए (आदाय) उ ११६३ आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमित (आदानभाण्डामत्रनिक्षेपणासमित) उ ३६६ आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिय (आदानभाण्डामत्रनिक्षेपणासमित) ज ३१६८ आयाम (आयाम) प २१५०,५६,६४,२११८४,८६, ८७,६० से ६३, ३६।६६,६८,७०,७२ से ७४, ८१ ज ११७,२०,२३ से २५,२८,३२,३७,४०, ४३,४८,५१ ; २१६,१५,१४१ से १४५;३।१, १८,३१,५२,६१,६६,६५,६६,१३१,१३७, १३८,१४१,१५६,१६०,१६४,१८०४।१,३, Page #923 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४६ आयारभाव-आलोअंत ६,७,६,१२,१४,१५,१६,२४,२५,३१,३३,३६ से ४१,४७,५२ से ५५,५७,५६,६२,६४,६६ से ६८,७०,७४ से ७६,८०,८१,८६,८८,८६,६१ से ६३,६८,१०२,१०३,१०८,११०,११२,११४, ११६,११८ से १२०,१२२ से १२७,१३२, १३६,१४०,१४३,१४५ से १४७,१५३ से १५६, १६५,१६७,१६६,१७२,१७४,१७६,१७८, २००,२१५,२१६,२१८,२१६,२२१,२४२, २४५,२४८;५३५;७७,१४,१६,३१,३२॥१, ३३,३४,६६,७३ से ७८,६०,६३,९४,१०७, २०७ सू १।१४,२६,२७, ४।३,५ से ८,१८६ से १३;१६।२०,३० उ ५।४ आयारभाव (आकारभाव) ज ११२२ आयावण (आतापन) उ ३३५० आयावणभूमी (आतापनभूमी) उ ३।५०,५१,५३ आयावेमाण (आतापयत् ) उ ३५० आयाहिण (आदक्षिण) ज ११६; २।६३१५; ५१५,४४,४६ उ १११६,२१,३।११३,४।१३ आरंभ (आरम्भ) उ ११२७,१४० आरंभिया (आरम्भिकी) प १७।११,२२,२३,२५; २२।६०,६१,६६ से ६६,७६,६१,९८,१०१ आरंभियाकिरिया (आरम्भिकी क्रिया) प २२९७ से १६ आरण (आरण) प १११३५; २।४६,५६,५६।२, ६०,६३,३।१८३;४।२६१ से २६३,६।३७,५६, ६६७।१८,१५८८,२१७०,९२,२८1८५; ३३११६, ३४।१६,१८ ज ५१४६ आरद्ध (आरब्ध) प २०१६० आरबक (आरब) ज ३१८१ आरबी (आरबी) ज ३।११२ आरब्भ (आरब्ध) प १७१३२ आरभड (आरभट) ज ५१५७ आरस (आ-+-रस् ) आरसइ उ ११६० ___ आरससि उ १८५ आरसिय (आरसित) उ १६६१,८६ आराम (आराम) ज २१६५५१५,७ उ ३।३६,३६ आराह (आ+राध) आराहेहिति उ ५।४३ अराहण विराहणी (आराधन विराधनी) प १११३ आराहणी (आराधनी) प ११॥३,८ आराहय (आराधक) प १११८६ उ ११२० आराहेत्ता (आराध्य) उ ५१४३ आरिय (आर्य) प ११८८,६०,६३१६,१११२६ उ १११७ आरूढ (आरूढ) ज ३।३५,१२१ आरुभित्ता (आरुह्य) सू ६।४ आरुह (आ। रुह ) आरुहेति ज २।१०३,१०४ आरुहेत्ता (आरुह्य) ज २।१०३ आरोग्ग (आरोग्य) ज ३।६२,११६ आरोहग (आरोहक) ज ३।१७८ आलइय (आलगित) प २१५० ज ५॥१८ आलंकारिय (आलंकारिक) ज ३।१५० आलंबण (आलम्बन) ज ४।२६ आलंबणभूय (आलम्बन भूत) उ ३।११ आलय (आलय) ज २७१ आलावग (आलापक) प १७।१६७ से १७२; २१।३१ सू ८१ आलिंगणवट्टिय (आलिङ्गनवर्तिक) ज ४।१३ सू २०१७ आलिंगपुक्खर (आलिङ्गपुष्कर) ज १११३,२१,२६, ३३,३६,३६,४६,२७,३८,५२,५७,११२, १२७,१४७,१५०,१५६,१६१,१६४;३।१६२; ४।२,८,११,५॥३२ आलित्त (आदीप्त) उ ३।११३ आलिसंद (दे०) प ११४५।१ आलिसंदग (दे०) ज २।३७ -आलिह (आ+लिख) आलिहइ ज ३।१२,८८, ५।५८ आलिहमाण (आलिखत्) ज ३४९५,१५६ आलिहिज्जमाण (आलिख्यमान) ज ३।६६,१६० आलिहिता (आलिख्य) ज ३।१२ आलुग (आलुक) प १।४८।२ आलोअंत (आलोकमान) ज ३।१७८ Page #924 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आलोइय-आसय ८४७ आलोइय (आलोचित) उ २०१२;३।१५०,१६१, ५।२८,३६,४१ आलोगभूय (आलोकभूत) ज ३१६६,१६० आलोय (आलोक) ज ३।६,१२,१८,७७,८८,६३, ६५,१५६,१७८,१८०,२२२,५।४३,४६ आलोय (आ+ लोच) आलोएहि उ ३।११५; । ४।२२ आवकहिय (यावत्कथिक) प १।१२५ आवज्ज (आ+पद्) आवज्जति प १११७२ आवड (आवर्त) ज ५।३२ आवडिय (आपतित) ज ५।२५ आवण (पण) ज ३।३२ आवणगिह (आपणगृह) ज ३।१६७।२ आवत्त (आवतं) प ११६३ ज ३॥३;४।२३,३५, ३७,४२,७१,७७,६४,१८८ से १६१,२६२; ७।५५ सू१६।२२।१०,११,१६।२३ आवत्तकूड (आवर्तकूट) ज ४।१६२ आवत्तग (आवर्तक) ज ३।१०६ आवरण (आवरण) ज ३१३५,११६,१६७।६,१७८ आवरित्ता (आवृत्य) सू २०१२ आवरिस (आ+वृष ) आवरिसेज्जा ज ५७ आवरेत्ता (आवृत्य) सू २०१२ आवरेमाण (आवृन्वत्) सू २०१३ आवलि (आवलि) ज ५१२८ आवलिया (आवलिका) प १२।२७; १८।३,२७ ज २।४ चं ५।१ सू ११६।१८।१ २०१५ आवलियाणिवात (आवलिकानिपात) सू१०११ आवस (आ| वस्) आवसामि उ ३३११८ आवसह (आवसथ) ज' ३।१६,३१,३२।२,५३,६२, ७०,१४२,१६५,१८१ आवसित्ता (ओस्य) ज ३।२२५ आवस्सग (आवश्यक) उ ३।३१ आवाग (आपाक) प २३।१३ से २३ आवाड (आपात) ज ३।१०३ से १०५,१०७ से .११५,१२५ से १२७ आवास (आवास) प १५।५५।३ ज ३११८,५२,६१, ६६,७७,८४,१४१,१५३,१६४,१६७।१३,१८० उ ५।४१ आविद्ध (आविद्ध) ज ३१६,७७,१०७,१०६,१२४, २२२; ५।५६ उ १११३८ आविद्धकंठ (आविद्ध कण्ठ) ज ३।२०६ आवीकम्म (आविष्कर्मन्) ज २१७१ आवेढिय (आवेष्टित) प १५१५१ आस (अश्व) प २१४०।१०।११।२१ ज २।३५; ३।६८,१६७।४,१७८,१७६,२२१ ;७।१३, १८६।३ उ १११४,१५,२१,१२१,१२६,१३३, १३६,१३७ आस (आस्य) प २१४०।१० Wआस (आस् ) आसि ११४७ आसकण्ण (अश्वकर्ण) प १८६ आसक्खंधसंठिय (अश्वस्कन्धसंस्थित) सू १०।३४. आसखंध (अश्वस्कन्ध) ज ४।१७८ आसखंधग (अश्वस्कन्धक) ज ७।१३३।१ आसग (आस्यक) उ १८६,६० आसण (आसन) प ११।२५ ज २।८६,६०,६२, ९३,३,५५,५६,६४,७२,१०३,११२,११३, १४४,१४५, ५।२,३,७,२०,२१ सू २०१४ उ ३१०१,१३४ आसत्त (आसक्त) प २।३०,३१,४१ ज २१७,३०, ३५,८८ आसत्थ (आश्वस्त) उ ११२४,६२ आसधर (अश्वधर) ज० ३।१७६ आसपुरा (अश्वपुरा) ज ४।२१२२ आसम (आश्रम) प १७४ ज २।२२,१३१; ३१८,३१,३२,१८०,१८५,२०६ उ ३।५५,१०१ आसमुह (अश्वमुख) प १८६ आसय (आस्यक) उ १६६१,६२,८६,८७ आसय (आस्) आसयंति ज १।१३,३०,३३,३६; २१७; ४।२,६४,८७,१०४,१७६,१८५,१६१, १६७,२००,२०१,२०६,२१४,२३४,२४०, २४१,२४७ Page #925 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४८ आसरयण ( अश्वरत्न) ज ३।१०६,२२० आसरयणत्त ( अश्व रत्नत्व) प २०५६ आसरह (अश्वरथ) ज ३।३४ से ३६ उ १।११० ; ५।३८ आसल (दे० ) प १७।१३४ आसव (आश्रव ) प १।१०१।२; १७ १३४ आसा (आशा) उ३।१५६ आसाएमाण (आस्वादयत् ) उ ११३४,४६,७४ आसाढ ( आषाढ) ज २०६५ ७ १०४, ११३,११४, १२ सू १०।१२४,१२६ उ ३।४० आसाढा ( आषाढा) सू १०।७५, १२०,१५५,१५६; ११।२ से ६; १२।२४ से २८ आसाढी ( आषाढी) ज ७११३७, १४०, १४६, १४६, १५३,१५५ सू १०७,१६,२४,२५,२६ आसाय (आस्वाद ) प १७।१३० से १३५ ज २।१७,१८ / आसाय ( आ + स्वाद् ) आसाएंति प २८।२२, ३४,६८ आसायणिज्ज (आस्वादनीय ) प १७।१३४ ज २।१८ आसालिय (आशालिक, आसालिंग ) प ११६८,७३, ७४ आसासग ( अश्वास्यक ) प २।४०।१० आसासण ( आश्वसन) ज ७।१८६२ सू २०१८, २०१६/२ आसरयण आहारगसरीर सू १०।१२६ २,५ आहच्च (दे० ) प १७।२,२५ २८।२१,३३,३८,६७ आहत (आहत ) प २ ३०, ३१, ४१, ४९ सू १६ २३, २६ आय ( आहत ) ज ११४५ ३१२६,८२, १३३ ; ५।१, १६७।५५, ५८ सू १८।२३ आहर ( आ + ह् ) आहरेइ उ ३।५१ आहार ( आ + ह् ) आहारिस्सइ ज २०१४६ आहारिस्संति ज २।१३४,१४६ आहारेइ उ ३।५० आहारति प १५।४६ से ४६; १७ २, २५; २८।५ से ७, ६ से २३,३० से ३५,३६, ४०,५१,५२, ५३, ५५ से ६६, ६८ से १०१ ; ३४१६ से ६,११,१२ आहारेमि प ११।१२,१७ आहार (आहार) प १।१७, ११४८२५५; ३ | १|१; १०५३।१; ११।१२; १५।१।१ ; १७।१।१ ; १७ १८; १८|१|१; २८ । १११ ; २८ । ३ से ५, २०,२७ से ३०, ३२, ३७, ३८, ४०, ४७, ४६ से ५१,६६,६६,७३ से ७५,६७,१०६।१; ३४।१।१,३४।१ से ३, ५ ३६।१।१ ज २०१६, १६,५२,५६,१४६,१५६,१६१ उ ३।५१,५३,५४ आहार (आधार) उ३।११ आहारग (आहारक ) प ३।१०७१२।१३, २८, ३६; २१।१०४,१०५ : २३।४२,६१,६२,१४६, १७४; २८।१०८ से ११०,११२,११४ से ११६, ११८,११६,१२१,१२३, १२४, १३०, १३१,१३६, १३७,१४१,१४२ आसिय (आसिक्त ) ज २२६५; ३१७, १८४ ५७ आसीत (आशीत ) प २।२७।१ आसीत्तिय (दे० ) सू १०।१२० आसीविस (आशीविष ) प १७० ज ४।२१२ आसुरुत्त (आशुरक्त) ज ३।२६,३६,४७,१०७, १०६,१३३ उ १।२२,५७,८२,११५ से ११७, ११६,१४० आहारगमीससरीर (आहारक मिश्रशरीर ) प १६ १, १०,१५; ३६।८७ आहारगमीसासरीर (आहा रकमिश्रकशरीर ) प १६ १०, १५; ३६।८७ आसोइ (आश्वयुजी ) ज ७ १३७ सू १०७,१०,२२, २३,२६ आसोत्थ (अश्वत्थ ) प १।३६।१ आहारगसमुग्धात (आहारकसमुद्घात ) प ३६।३३ आहारगसमुग्धाय (आहारकसमुद्घात ) प ३६।१ २,७,९,१०,१३,१४,३०,३५,५३, ५८, ७४ आसोय (आश्वयुज) ज ७।१०४ उ ३।४० (आह (ब) आहंसु सु १।२० आज ७।११२/२, ५ आहारगसरीर ( आहारकशरीर ) प १२।१३,२१, आहारगमीसगसरीर ( आहारकमिश्रकशरीर ) प १६।१५ Page #926 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहारगसरीरय-इंदियपरिणाम ८४६ ३४; १६।१,१०,१५; २१।७२ से ७४,६६,६६, इंगाल (अङ्गार) प १।२६ उ ३।५० १०१,१०२,१०४,१०५; २३।१८६३६८७ इंगालभूय (अंगारभूत) ज २११३२,१४१ आहारगसरीरय (आरारकशरीरक) प १२६ इंगालय (अंगारक)ज ७४१८६।१ सू २०१८,२०।८।१ आहारगसरीरि (आहारकशरीरिन्) प २८।१४१ इंगिय (इङ्गित) ज ३१८७ आहारचरिम (आहारचरम) प १०१४२.४३ इंद (इन्द्र) प २।४०,४५,४७।१ ज २१९४३।२४।३, आहारत्त (आहारत्व) प २८।२२ से २४,३४ से ३७।१,४५।१,१३१४३,१८५,२०६; १४६, ३६,३६,४०,४२,४५,४८,६८,६९,७१,३४।६ ५२,५७,७१५६,५७,५६,६०,१३०,१८६।४ आहारपज्जत्ति (आहारपर्याप्ति) प २८।१४२,१४३, सू१६।२४,२७ उ ३।१५,८४ इंदगोवय (इन्द्रगोपक) प ११५० आहारपय (आहा रपद) जे ७.५० इंदग्गह (इन्द्रग्रह) ज २०४३ आहारभूय (आधारभूत) उ ३।११ इंदगि (इन्द्राग्नि) ज ७/१३०,१८६।२,४ आहारय (आहारक) प १२।१,५,२५; १८९४ से सू २०१८,२०।८।४ ६७,२१११, २८।१०६ से १०८,१११,११३, इंदग्गिदेवया (इन्द्राग्निदेवता) सु १०।८३ ११७,११६,१२०,१२२,१२५,१२७ से १२६, इंदज्झय (इन्द्रध्वज) ज ३।३ १३२,१४३ इंदट्ठाण ) इन्द्रस्थान) सू १६।२५ आहारयसरीर (आहारकशरीर) प १२।१७ इंदणील (इन्द्रनील) ज ३।३५ आहारसण्णा (आहारसंज्ञा) प ८।१ से ११ इंददेवया (इन्द्रदेवता) सू १०८३ आहारेता (आहार्य) ज २।१६ इंदधणु (इन्द्रधनुष्) ज ३।२४ आहारेमाण (आहारयत्) प ११।१२,१७ इंदनील (इन्द्रनील) प १।२०।३ ज ३३१०६ आहिंड (आ--हिण्ड्) आहिंडह उ ३।१०१ इंदभूइ (इन्द्रभूति) ज १५ आहित (आख्यात) सू १।१०,११,१५ से १८,२०, इंदभूति (इन्द्रभूति) चं ११४,१० सू ११५ २२,२३,२५,१६।२२।३ इंदभूय (इन्द्रभूत) सू २०१७ आहिय (आख्यात) प ३४।१।१ ज २।४।२; इंदमह (इन्द्रमह) ज २।३१ ७।३१,३३ चं २।३,५ सू १।६।३,५ इंदमुद्धाभिसित्त (इन्द्रमूर्धाभिषिक्त) ज ७।११७।२ आहिवच्च (आधिपत्य) ज ३।१६७।१३ सू १०८६।२ इंदिओवउत्त (इन्द्रियोपयुक्त) प ३।१७४ आहुट्ठि (दे०,अर्ध चतुर्थ) सू १६१ आहुणिय (आधुनिक) ज ३।६८,५॥५,७।१८६।१। इंदिकाइय (दे०) प ११५० आहूय (आहूत) उ ३।४८,५० सू २०१८,२०८।१ इादय (इन्द्रिय) प १११।५,३।१।११३।१७; आहेवच्च (आधिपत्य) १२।३० से ३३,३५,३६, १५।१,१७,१६,२०,३०,३४,५८।१,१५।५८ से ४१,४३, ४८ से ५१,५७,५६ ज ११४५,१८५, ६०,६२,६३,६५,६६,६७,७५,७६,१३४,१४३; २०६,२२१; ५।१६ उ ५।१० १७।१३४; १८।१।१; २८।१०१ इंदियउवउत्त (इन्द्रियोपयुक्त) प ३३१७४ इंदियजवणिज्ज (इन्द्रिययापनीय) उ ३।३२,३३ इ (इति) प ११४८२ ज ११२६ सू १८ इंदियपज्जत्ति (इन्द्रियपर्याप्ति) प २८११४२ इ (चित्) उ ११३६३।११ उ ३११५,८४ इइ (इति) सू २०१६ इंदियपरिणाम (इन्द्रियपरिणाम) प०१३।२.१४ Page #927 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५० इंदीवर-इत्थी १६,१७,१६ इंदीवर (इन्दीवर) प ११४४।३ इक्क (एक) ज ११२० सू १६।२५ इक्कड (इक्कड) सरकंडा, पानी का पौधा प ११४८।४६ इक्कवीस (एकविंशति) ज २११३४ इक्कारस (एकादशन्) ज ४।२७५ इक्कारसम (एकादश) सू१०७७ इक्कारसी (एकादशी) ज २०७१ इक्कावण्ण (एकपञ्चाशत्) सू ११२१ इक्किक्क (एकैक) ज ७।१७८।२ इक्खाग (इक्ष्वाकु) प ११६५ इक्खु (इक्षु) प ११४१११,११४८।४६ इक्खुवाडिया (इक्षुवाटिका) प ११४८॥४६ इक्खुवाडी (इक्षुवाटी) प ११४११ इगतालीस (एकचत्वारिंशत) ज ७७५ स ११३ इगुणापण्ण (एकोनपञ्चाशत्) ज ७७५ इगुणालीस (एकोनचत्वारिंशत्) ज ७।२४ इच्छ (इष्) इच्छइ उ ११५१ इच्छंति प १६।४६ इच्छसि सू १६।२२।२६ इच्छामि उ १७६;३।१०६,४।११ इच्छामो प २८.१०५३४।१६,२१ से २४ इच्छा (इच्छा) ज ७।१२०।२ सू १०।०८।२ इच्छाणुलोम (इच्छानुलोम) प ११॥३७।१ इच्छामण (इच्छामनस) प २८।१०५,३४।१६,२१ से २४ इच्छिय (इष्ट, ईत्सित) ज ३८८,१३८; उ ३११३८ इच्छियत्त (इष्टत्व) प २८।२६ इच्छियव्व (एष्टव्य, एषितव्य) ज ३१८१ इट्ठ (इष्ट) प २३।१६,२८।१०५ ज २१६४; ३।२४,८२,१८५,१८७,२०६,२१८,५।५८ सू २०१७ उ ११४१,४४,३।११२,१२८,४।१६; ॥२२,२५ इतर (इष्टतर) ज २११८,४।१०७ इट्ठतरिय (इष्टतरक) प १७।१२६ से १२८,१३३ से १४५ ज २।१७ इठ्ठत्त (इष्टत्व) प ३४।२० इट्ठस्सरता (इष्टस्वरता) प २३।१६ इड्ढि (ऋद्धि) प २।३०,३१,४१,४६;६।६८ १७.८६२११७२ ज २।२५,३।१२,१८,३१, ७८,८८,६३,१२६,१८०,१८६,२०६,२१६; ४।१४०,५।२२,२६,२७,४३,४४,४६,४७,५६, ६७ उ श६२,१२१,१२२,१२६,१३३,१३४, १३८,३।४६,५०,१११,१२२,४।१८,५।१७, १६,२३,३१ इड्ढिपत्तारिय (ऋद्धिप्राप्तार्य) प १६०,६१ इड्ढिमंत (ऋद्धिमत्) ज ७।१६८।२ इड्ढिसिय (दे०) ज ३।१८५ इणं (एतत्) प ११११३ ज २०१७ सू १८।२२ इतर (इतर) सू ११२५, २।२,४१२ इति (इति) प ११७५ ज ११२६, ३।३२।१ सू १०।१० उ १।१७ इत्तरिय (इत्वरिक) प १११२५; १७।१०६,१०७ इत्तो (इतस्) प २१६४।१८ ज ३।१२४ इत्थ (अत्र) प २१३१ ज ४।१४७ इत्थं (अत्र) ज २०२० इस्थि (स्त्री) प ११६०,६६,७५,७६,८१,६७६, ८०,८०२,१११५ से १०,२३,२६ से २८% १७।१६६ से १७२ ज ३१२२१ इत्थिरयण (स्त्रीरत्न) प ६।२६ ज ३७२,१३८, १७८,१८६,२०४,२१४,२२० इत्थिरयणत्त (स्त्रीरत्नत्व) प २०१५८ इत्थिवयण (स्त्रीवचन) प १११२६,८६ इत्थिवेद (स्त्रीवेद) ५१८१६०; २३।७३ ; २८।१४० इत्थिवेदग (स्त्रीवेदक) प १३।१४,१६ इत्थिवेय (स्त्रीवेद) प २३।३६,१४१ इत्थिवेयपरिणाम (स्त्रीवेदपरिणाम) प १३।१३ इत्थिवेयग (स्त्रीवेदक) प १३३१५ इत्थी (स्त्री) उ ३।३६,४२ Page #928 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इत्थीलिंगसिंद्ध उउ इत्थीलिंग सिद्ध (स्त्रीलिंगसिद्ध ) प १।१२ इत्थवेदग (स्त्रीवेदक ) प ३६७१३।१८ इभ ( इभ्य ) प १६ ४१ ज २।२५ ३ १०,८६, १७८,१८६,१८८, २०६,२१०, २१६,२१६, २२११।२३।११,१०१,५।१० इन्भजाति ( इभ्यजाति) प १।६४।१ इम (इदम्) प १।४८ सू ११५१।१५ २६ इय (इति) प २६४ १८ ज १७ सू १६ इयर (इतर) प २१।३५ इयाणि ( इदानीम् ) सू १६।२४ उ३।५५ इरियावहियबंधग (ईर्यापथिकबन्धक) प २३।६३ इरियावहियबंध (ईर्यापथिकबन्धक ) प २३।१७६ इरियासमिय (ईर्यासमित) उ २।६; ३ १३,६६, १०२,११३,११५,१३२, १४६४।२२,५१३८, ४३ इलादेवी ( इलादेवी) ज ५।१०।१४।२।१ इलादेवीकूड ( इलादेवीकूट ) ४१४४, २७५ इव (इव ) प २।४८ उ३११२८ इसि (ऋषि) प २४७।२ ज ३।१०६ उ १२० इसिपाल ( ऋषिपाल ) प २०४७।२ इसिवाय ( ऋषिवादिक) प २०४१ २०४७ १ इसीपारा ( ईषत्प्राग्भारा ) प २०१२१६० इस रियविसिया (ऐश्वर्यविशिष्टता) प २३।२१, ई ईतिबहुल ( ईतिबहुल) ज १।१८ ईताल ( एकचत्वारिंशत् ) सू १६८ । १ तालीस ( एकचत्वारिंशत् ) सू १३ १४ इतालीस ( एकचत्वारिंशत्क ) सू १३।१७ ईरियासमिय ( ईर्यासमित) ज २।१६८ ईसर (ईश्वर) प २४७ २; १६।४१ ज २१२५; ३।१२६।३५।१६ उ ११६२५।१० ईसर ( ऐश्वर्य ) ज १।४५; ३०१०,१८५,२०६,२२१ ईसाण ( ईशान ) प १।१३५, २०४९, ५१,५३,६३; ३।३०,१८३४।२२५ से २३६६।२८,५६,६५, ८५,१११,१५।१३८, २०१६ ०; २८।७६, ३४।१६, १८ ज २९१ से ३,११३, ११६,४।१७२, २००,२२१, २२४।१, २३५, २४०, २४२, २४३; ५।४८,५६,६०,७।१२२।१ सू १०२८४।१ उ २।२०, २२,५४४१ ईसाकप्पवासि (ईशान कल्पवासिन् ) प २१५१ ईसाग ( ईशानज) प २।५१६ / ६५, ७ ६; १५।८७; २१।७०, ६०, ३३।१६ ज ५।४६ ईसाणवडेंसग ( ईशानावतंसक ) प २२५५, ५७ ईसाणवडेंस ( ईशानावतंसक ) प २०५१ ईसि ( ईषत् ) प २३१,६४; १७ १३४; २३ । १६५ ज ३।१०६,१७८४।५४,५५,२१,३८,५८ ७१७८ ५८ इस रियविहीणया ( ऐश्वर्यविहीनता ) प २३ । २२, ५८ इह (इह ) ज २६६ १६ इह (इह ) प १।७५ उ १।१७ च्चारणाध्वन् ) प ३६।९२ sei ( इहगत ) ज ५।२१७ २०, २२ से २५,७६, ईहा ( ईहा ) प १५।५८ । २१५।६७ ज ३।२२३ हाइ ( ईहामति) उ १।३१ ८२ हामिंग ( ईहामृग ) ज २।३७,१०१४।२७ ८५१ ईसिउच्छंग ( ईषदुत्सङ्ग) ज ३।१७८ ईसिणिया (ईशानिका) ज ३।११।१ ईसितुंग ( ईषत्तुङ्ग ) ज ३।१७८ ईसिवंत ( ईषद्दान्त ) ज ३।१७८ ईसिमत्त ( ईषन्मत्त ) ज ३ । १७८ ईसीप भारा ( ईषत्प्राग्भ ( रा ) प २२६४; १०१ १,२; २१६०३०२६, २८ ईसीहस्सपंचक्खरुच्चारणद्धा ( ईषद् ह्रस्वपञ्चाक्षरो उ उ (तु) प ११४८६ ज ११४७ सू १७ उ १७ उईर ( उदीरण ) प १४ । १८ ।१ उउ (ऋतु) ज २६६; ३ । ११७।१७।१११, ११२१५, १२६, १२७५।२५ Page #929 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५२ उउय-उक्कोसपय उउय (ऋतुक) प २१४१ उंबर (उदुम्बर) प १।३६१ उ ३।७४,७६ उंबेभरिया (दे०) प १३५।२ उक्कड (उत्कट) प ११५० ज ३।३१ उक्कर (उत्कर) ज ३।१२, १३,२८,४१,४६,५८, ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ उक्करिया (उत्करिका) प ११७८,१३।२५ उक्करियाभेद (उत्करिका भेद) प १११७८,७६ उक्करियाभेय (उत्करिकाभेद) प १११७३ उक्कलिया (उत्कलिका) प ११५० उक्कलियावाय (उत्कलिकावात) प ११२६ उक्का (उल्का) प ११२६ उक्कामुह (उल्कामुख) प ११८६ उक्कालिय (उत्कालिक) ज ५७ उक्किट्ठ (उत्कृष्ट) ज २१६०३।१२,२६,२८,३६, ४१,४७,४६,५६,५८,६४,६६,७२,७४,११३, १३८,१४५,१४७,१६८,२१२,२१३,५१५,४४, ४७,६७,७।५५ उ १११३८,३।१२७ उक्किट्ठि (उत्कृष्टि) ज ३१२२,३६,७८,६३,६६, १०६,१३३,१६३,१८० उक्किण्ण (उत्कीर्ण) प २।३०,३१,४१ ज ३१८२ उक्कित्तिता (उत्कीर्तिता) सू २०६१ उक्किरिज्जमाण (उत्कीर्यमाण) ज ४।१०७ उक्कुट्ठ (उत्कृष्ट) सू १६।२३ उक्कुडयट्ठिय (उत्कुटु कस्थित') ज २११३३ उक्कुरुडिया (दे०) उ १।५४ से ५७,५६,६३,७६ से ८२,८४ उक्कुला (उत्कला) सू १०।६ उक्कूवमाण (उत्कूजत् ) उ ३।१३० उक्कोस (उत्कर्ष) प ११७४, २०६४।६४१ से ६७,६६ से २६६,२६८,५३४२,४६,७६,६४, ६८,११२,११६,६।१ से १८,२० से ४५,६०, ६१.६४,६६ से ६८,१२०,१२१,१२३,७।२,३,, ६ से २६१११७०,७१,१२।१५।४० से ४२; १. अस्थिक इत्यपि भवति विकल्पेन । १७।१४५,१४६;१८।२ से ४,६,८ से १०,१२, १४ से १६,१८ से २४,२६ से २८,३० से ३६, ४१ से ५४,५६,५७,५६ से ६७,६६ से ७४, ७६ से ७६,८१,८३ से ५,८७,८६ से ६१, ६३,६५,६६,६८,१०३ से १०५, १०७,१०८, ११०,११३,११४,११६,११७,११६,१२०; २०१६ से १३,६१,६३,२११३८,४० से ४४, ४६ से ४८,६३ से ७१,७४,८४,८६,८७,६० से ६३;२३।६० से ७६,८१,८३ से ६२,६५ से १६, १०१ से १०४,१११ से ११४,११६ से ११८,१२७,१२६ से १३१,१३३ से १३५, १३८,१४०,१४२,१४३,१४७,१५१ से १५५, १५७,१५८,१६० से १६२,१६४ से १६६, १७१ से १७३,१७६,१७७,१८२,१८३,१८६, १८७,१६०;२८।२५,२७,४७,५०,७३ से ६६; ३३।२ से १३,१५ से १७,३६८ से १०,१७, १८,२०,३०,३४,४४,६१,६६,६८,७०,७२,७४, ७६ ज २।६,४४,४५,५८.१२३,१२८,१३३, १४८,१५१,१५७;४।१०१;७:५७,६०,१८२, १८७ से १६६,२०६ सू १८।२०,२५,३६; १६।२५ उ २।२०,२२,३।१३० उक्कोसकालठिईय (उत्कर्षकालस्थितिक) प२३१२०० उक्कोसकालठितीय (उत्कर्षकालस्थितिक) प२३।१६४ से १६६,१६८ से २०१ उक्कोसग (उत्कर्षक) प १७।१४५,१४६ ; २३।१८४ उक्कोसगुण (उत्कर्ष गुण) प ५।३८,६०,७५,६०, १०८,१६१,१६४,१६८,२०१,२०४,२०८, २१२,२१५,२१६,२२२.२२५,२४३३ उकोसटिईय (उत्कर्षस्थितिक) प५।१८५ उकोसद्वितीय (उत्कर्षस्थितिक) प ५१३५,५७, ७२,८७,१०५,१७५,१७८,१८२,१८८,२४० उक्कोसपएसिय (उत्कर्षप्रदेशिक) प ५१२२६,२३० उकोसपद (उत्कर्षपद) प १२१३२ उक्कोसपय (उत्कर्षपद) ज ७।१६८,१६६,२०२, Page #930 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्कोसमति-उच्छोल ८५३ उक्कोसमति (उत्कर्पमति) प ५।६४ उक्कोसमदपत्त (उत्कर्षमदप्राप्त) प १७।१३४ उक्कोसय (उत्कर्षक) प १५।६४,२१११०५ ज ७।२६ सू१।१६,१७,२१,२२,२४,२७,२।३; ३।२६।१८।१६।२२००३ उक्कोसा (उत्कर्षक) प १७।१४६ उक्कोसिया (उत्कर्षिक।) ज २०७४ से ८०;७।२८ सू १११४,२१, २१३, ४।९६१ उक्कोसोगाहणग (उत्कर्षावगाहनक) प ५।३० उक्कोसोगाहणय (उत्कर्षावगाहनक) प ५१२६, ३०,५०,५४,६६,८४,१०२,१५५,१५८,१६०, १६४,१६७,१७०,२३५ उक्खित्त (उत्क्षिप्त) ज ५१५७ उक्खेव (उत्क्षेप) ज ५।४६,६०,६६ उग्ग (उग्र) प श६५ ज २,१६५ उग्गच्छ (उद्गत्य) ज ७।१०१,१०२ सू ८१ उग्गतव (उग्रतपम् ) ज ११५ उग्गमण (उद्गमन) ज ७।३६ से ३८ सू २।३; ५७,५६,६२,८०,८४,८६,६६,१०१,१०३, ११०,११२,११४,११५,११६ से १२२,१२५, १२८,१३६,१४२,१४६,१४७,१४६,१५५, १५६,१६३ से १६५,१७२,१७५,१७८,२०३, २१२,२१६,२१७,२१६,२२१,२२६,२४२; ५।३८,४६,७२,७३,७।३७,३८,२०७ च २।५ सू १।६।५।६।२,३,१८।१ उच्चत्तच्छाया (उच्चत्वछाया) सू ६।४ उच्चत्तपज्जव (उच्चत्वपर्यव) ज २१५१,५४,१२१, १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, उग्गममाण (उद्गच्छत् ) प ११४८।५२ उग्गय (उद्गत) ज ११३७, ३।२४ ; ४।२७,५।२८ उग्गवई (उपवती) ज ७।१२१ सू १०१६१ उग्गविस (उपविष) प १७० उग्गसेण (उग्रसेन) उ ५।१० उग्गह (अवग्रह) प १५।६८,७१,७२ उग्गा (दे०) जे २।१७ उग्घोस (उद्घोष) ज २१६५ उग्घोसेमाण (उद्घोसयत्) ज ३।२१२,२१३; ५।२२,२६ उच्च (उच्च) उ ३११००,१३३ उच्चंतय (उच्चंतग) प १७।१२४ उच्चत्त (उच्चत्व) प २१।४७।२ ज ११८ से १०,१६,२२ से २४,२७,३५,३७,३८,४०, ४२,४६,५१,२।६,१५,४५,५१,५४,५६,५८, ८६.१२३.१२८.१३८.१४०,१४८,१५१,१५७, १५६,४।१,९,१०,१४,३३,४५,४७ से ४६,५४, उच्चत्तुद्देस (उच्चत्वोद्देश) सू ६।२ उच्चागोय (उच्चगोत्र) प २३।२१,५७,५८, १३१,१५३,१८८ उच्चार (उच्चार) प ११८४ Vउच्चार (उत्-|-चारय) उच्चारेइ उ ३७६ उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपरिवणियासमिय (उच्चारप्रस्रवणश्वेल 'जल्ल' 'सिंघाण' परिष्ठापनिकासमित) ज २०६८ उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपरिटठावणियासमिय (उच्चारप्रस्रवणश्वेल 'सिंघाण' 'जल्ल' परिष्ठा पनिकासमित) उ ३६६ उच्चारतव्व (उच्चारयितव्य) सू १०।१३५ उच्चारेयव्व (उच्चारयितव्य) ज ७।१६८ सू १०।१३४ उच्चावय (उच्चावच) प ३४।२३,२४ उ ११५७, ८२,५१४३ उच्चाविय (उच्च:कृत्वा) प १७।१११ उच्छंग (उत्सङ्ग) उ ३१६८,११४ उच्छण्ण (उत्सन्न) ज २१८,६ उच्छण्णणाणि (उत्सन्नज्ञानिन्) प २३।१३ उच्छण्णसणि (उत्सन्नदर्श निन् ) प २३।१४ उच्छाह (उत्साह) सू २०१६।३,५ उच्छढसरीर (उत्क्षिप्तशरीर) ज ११५ उच्छोल (दे० उत।क्षालय) उच्छोलेंति Page #931 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५४ उजुसेदि-उड्ड ज ५।५७ उज्झरबहुल (निर्भरबहुल) ज १११८ उजुसेढि (ऋजुश्रेणि) प ३६६६२ उज्झाव (उज्झय) उज्झावेसि उ १।५७ उज्जय (उद्यत) ज २६१३३ उज्झावित्तए (उज्झयितुम् ) उ ११५४,५६ उज्जल (उज्ज्वल) ज ११३७,७:१७८ उज्झिज्जमाण (उज्झयमान) उ ११५६,६३,८४ उज्जाण (उद्यान) ज २१६५,७१,५१५,७ उ ३३३६; उज्झित (उज्झित) उ ११५६,८१ ५।६,७,२४,२६,३७ उज्झिय (उज्झित) उ ११५७,८२ उज्जाणसंठित (उद्यानसंस्थित) सू ४।३ उट्ट (उष्ट्र) प ११६४; ११३१६ से २० ज २१३५ उज्जाल (उत्+ज्वालय) उज्जालंति ज ५।१६ उट्ठा (उत् +ष्ठा) उठेइ उ १२४ । उज्जालेइ उ ३१५१ उज्जालेंति ज २११०८ उठेति ज ३।११४,१२६ उठे ति ज ११६ उज्जालेह ज २।१०७ उट्ठा (उत्था) उ ११२४ उज्जालित्ता (उज्ज्वाल्य) ज ५११६ उट्ठाण (उत्थान) प २३।१६,२० ज २१५१,५४, उज्जालेत्ता (उज्ज्वाल्य) उ ३३५१ १२१,१२६,१३०,१३५,१३८,१४०,१४६, उज्जु (ऋजु) प २।३१ ज २०१५ १५४,१६०,१६३ सू २०११,७, ६।३,५ उट्ठाय (उत्थाय) ज ११६ उज्जुय (ऋजुक) ज २०१५ उठ्ठिय (उत्थित) ज ३३१८८ उ ३।४८,५०,५५, उज्जुसुय (ऋजुसूत्र) प १६।४६ ६३,६५,७०,७४,१०६,११८ उज्जोइय (उद्योतित) प २।४६ ज ३।६,१८,६३, उठेत (उत्तिष्ठत् ) ज ३।३५ १८०,२२२ उठेत्ता (उत्थाय) ज ११६ उ १।२४ उज्जोत (उद्द्योत) प० २।४१,५६,६६ उडय (उटज) उ ३।५१,५३ उज्जोय (उद्द्योत) प २।३०,३१,४६,५६,६३ उडिय (दे०) ज ७।१७८ ज १८,३१,३।६३,१२१,०३२ उडु (ऋतु) सू ६।१८।१।१०।१२८,१२६;१२।१, Vउज्जोय (उद्-+-द्योतय) उज्जोए ति सू १६१ ४,११,१२,१४,१५,१५।२० से २२ उज्जोएति मू १६।१ उडु (उडु) सू१०।१२६।१,५ उज्जोयकर (उद्द्योतकर) ज ३।९५,९६,१५६,१६० उडुकल्लाणिया (ऋतुकल्याणिका) ज ३।१७८, उज्जोयणाम (उद्द्योतनामन्) प २३।३८ १८६,२०४,२१४,२२१ उज्जोयभूय (उद्द्योतभूत) ज ३।६६,१६० उडुपाण (उडुपान') प १५।१।२; १५१५० Vउज्जोव (उत्। धुत्) उज्जोवेइ ज ४।२११ उड्ड (उड्र) प १८६ उज्जोवेति ज ७१५१,५८ सू ३।१ उज्जोवेति उड्ढ (ऊर्ध्व) प २।४,४८ से ५३,६०,६३,६४; सू ३।२ १११६५,६६,१११६६।१,१५।५२,२१८७, उज्जोवणाम (उद्योतनामन्) प २३।११५ ६० से ६३,२८।१५,१६,६१,६२,३३।१६, उज्जोविय (उयोतित) ज २।१६ उ १।५६,८१ १७,३६।६२ ज ११८ से १०,२५,२८,३२, उज्जोवेमाण (उद्योतयत्) प २।३०,३१,४१,४६ ३५,३७,३८,४०,४२,५१,२१६,५६,८६,१२३, उज्झ (उज्झ) उज्झइ उ ११५५ उज्झाहि १२८,१४८,३।१३१,१३२:४।१,६,१०,२३, उ ११५४ ४५,४७,५७,५६,६२,८६,१०१,१०३,११०, उज्झर (उज्झर) प २१४,१३,१६ से १६,२८ ११२,११४,११५,११६ से १२२,१२८,१३६, उ ५५ १. उडु (जलम्) आप्टे पृ० ४०१ Page #932 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उड्डजाणु-उत्तरडकच्छ ८५५ १४२,१४६,१४७,१५५,१५६,१६३ से १६५, १७५,१७८,२०३,२१२,२१६,२१७,२१६, २२१,२२६,२३४,२४० से २४२,५६४; ७।४४,५४,१६८।१,२०७ सू २।१४।१०; ६।३,१८।१,१६।२२।१२,१६।२३ उ श६७; २।१२;३।५०; ५४१ उड्ढजाणु (ऊर्ध्वजानु) ज ११५,२१८३ उ ११३ उड्ढत्त (ऊर्ध्वत्व) प २८।२४,२६ उड्ढदिसा (ऊर्ध्व दिशा) प ३।१७६,१७८ उड्ढमुह (ऊर्ध्वमुख) ज ३।३; १७।१६८ उड्ढलोग (ऊर्ध्वलोक) ज ५।६,६७ उड्ढलोय (ऊर्ध्व लोक) प २११,४,१०,१३,१६ से १६,२८,३।१२५,१२७ से १७३,१७५,१७७ उड्ढवाय (ऊर्ध्ववात) पश२६ उड्ढामुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठित ('उद्धी'मुखकलम्बुकपुष्पसंस्थानसंस्थित) सू १६।२३ उड्ढीमुहकलबुंयापुप्फसंठित ('उद्धी'मुखकलम्बुक पुष्पसंस्थित) ज ७।३१,३३,३५ सू ४।३,४,६, ७,६ उड्ढोववण्णग (ऊर्वोपपन्नग) ज ७५५ सू १६।२३, २६ उण्णं दिज्जमाण (उन्नन्द्यमान) ज ३।१८६,२०४ । उण्णय (उन्नत) ज २।१५,३।१०६,१३८,४।१३; ७१७८ सू २०१७ उण्णाय (उन्नाक) उ ५।४३ उण्ह (उष्ण) प १७।११४।१,१७।१३८२८।२६ उ ३३१२८ उतालीस (एकोनचत्वारिंशत् ) सू १२।२० उत्तत्त (उत्तप्त) प २।४०६ उत्तम (उत्तम) प २।४६ ज २०१५३।३,१२, १२५, ४१२६०११; ५।५८ सू ५।१ उत्तमकठ्ठपत्त (उत्तमकाष्ठाप्राप्त) ज २१७,५२, १३१,१६१,१६४,७।२६,२८ सू १११४,१६, १७,२१,२२,२४,२७, २।३;३।२,४८,६; ६. १२ उत्तमपुरिस (उत्तमपुरु) प ६।२६ उत्तमा (उत्तमा) ज ७।१२०११ सू ५।१:१०८८।१ उत्तर (उत्तर) प २।२१ से २७, २७।१,२,२।३० से ३६,४४,४८,५१,६०,६१,६२।१२।६३; ३.१ से ३७,१७६,१७८,१५।८५,१८१६० ज १११८,२०,२३,४८,३।१,८२,१२६।४,१३१, १३३,१३८,१५१,४।१,१७,३८,५५,६२,७३, ७६,८१,८६,६१,६३,९८,१०३,१०८,११४, १२६,१४१ से १४३,१५०,१५६,१६०,१६५, १६७,१६६,१७२,१७३,१७५,१७७,१७८, १८०,१८१,१८४,१८५,१८७,१६०,१६१, १६३,१६६,१६७,१९६ से २०३,२०५,२०८, २०६,२१३,२२६,२३१,२३४,२३७,२३८, २४६,२५२,२६२,२६५,२६८,२६६,२७१, २७२,२७४,२७५,५।११,३६,४२,६।११, १४,२४;७।५,१५,१७,२४,२५,६४,७४,७६, ७८,८३,८४,८८,६४,१२७,१२६,१३४।३, १३५॥३,१७४,१७८,२०१,२०४ सू १।१५ से १७,२४,२६ से ३१;२।३,१०७५,१३५; १२।१२,१३।६,१०,१८।१४ से १७;१६।८।१, ११११,२०१२ उ ३३५४,५५,६३,६७,७०,७३, ४।१६,५।४१ उत्तर (उत्+तु) उत्तरइ ज ३।१०१,१२६ उत्तरओ (उत्तरतस्) प २१४०।४ ज १११८ उत्तरकुरा (उत्तरकुरु) ज ४।६६,१०३,१०८ से ११०,१४१,१४३,१६१,१६२,२०५,२१३ उत्तरकुरु (उत्तरकुरु) प ११८७;१६।३०।१७।१६४ ज २।६ ; ४।१४२॥३,१६१।२; १६२,२०७, २६२; ५।५५ उत्तरकुरुकूड (उत्तरकुरुकूट) ज ४।१०५,१६३ उत्तरकूल (उत्तरकूल) उ ३।५० उत्तरगुण (उत्तरगुण) प ११।४६ उत्तरड्ढ (उत्तरार्द्ध) प २।५१;८।१ उत्तरड्ढकच्छ (उत्तरार्द्धकच्छ) ज ४।१६८,१७२, १७३ से १७६ Page #933 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५६ उत्तरडभरह-उत्तरिल्ल उत्तरड्ढभरह (उत्तरार्द्धभरत) ज १११६,४७ से ५१,३।१०३,११३; ४।३५ उत्तरड्ढभरहकूड (उत्तरार्द्धभरतकूट) ज ११३४ उत्तरलवणसमुह (उत्तरलवणसमुद्र) ज ४।२७७ उत्तरडढलोकाहिवइ (उत्तरार्द्धलोकाधिपति) ज ५१४८ उत्तरण (उत्तरण) ज ३७६,११६ उत्तरदारिया (उत्तरद्वारिका) सू १०।३१ उत्तरदाहिण (उत्तरदक्षिण) ज १।२४;४।१०६, १६४,१६७,१६६,१७८,१८०,१८१,१८५, १८७,१६१,१६६ से २०१,२०३,२०६,२१५, २४५,२४८,२५१,२५२ सू ८।१ उत्तरदाहिणायया (उत्तरदक्षिणायता)ज ११२४; ४।१०३,१६२,१६७,१६६,१७८,१८५,१८७, १६१,२००,२०३,२४५,२५१ उत्तरद्ध (उत्तरार्द्ध) ज ६१ उत्तरद्धभरह (उत्तरार्द्ध भरत) ज ११२३ उत्तरपच्चस्थिम (उत्तरपाश्चात्य) प ३।१७६,१७८ ज ३१४३,४४,४।१०३,१०६,१५०,२२४,२३१, २३२ सू २।१२०१२ उत्तरपच्चथिमिल्ल (उत्तरपाश्चात्य) ज ४।२३८ सू १।१६; २।१;२०१२ उत्तरपाईण (उत्तरप्राची) ज ३।१२६ उत्तरपुरस्थिम (उत्तरपौरस्त्य) प ३।१७६,१७८ ज ११३,३१६०,६१,१३०,१३१,१४०,१४१, १६१,१६२,२०४,२०८,४।१७,१२०,१३६, १३६,१५०,१५४,१६२ से १६४,२२१,२२६, २३३,२३६,५५,७,३६,४४,५५ च ७ स १२ २०१२ उ ३।११३, ४।२०, ५१५ उत्तरपुरथिमिल्ल (उत्तरपौरस्त्य) ज ४।१५६, २३७,२३८,५।४८,४६ सू १११६ उत्तरपोट्टवया (उत्तरप्रोष्ठपदा) ज ३।२०६ सू १०।६४ उत्तरफागुणी (उत्तरफल्गुनी) ज ७।१२८,१२६, उत्तरभद्दवया (उत्तरभद्रपदा) ज ७।१२८,१२६, १३६,१३६,१४२ उत्तरवेउव्विय (उत्तरवैऋयिक) प १५.१८,१६3 २१।५८,५६,६१,६५ से ६७,७०,३४।१६,२१ से २३ ज ३।२०६५॥४१ उत्तरवेयड्ढ़ (उत्तरवताढय) ज ३८१ उत्तरा (उत्तर) सू १०।३२,४५,६०,६२,१२०, १५३,१५५,१५६,१५८,१११२,४ से ६ १२।२४ से २८ ज ७।११३ उ ३१५५,६३,६५, ६७,७०,७४ उत्तरापोवया (उत्तरप्रोष्ठपदा) सू १०१५,६,२१, २३,६५,७५,८३,६७,१३१ से १३५ उत्तराफग्गुणी (उत्तरफल्गुनी) ज ७।१४०,१४८, १५१,१६३,१६४ सू १०।२ से ६,१५,२३,७०, ७१,७५,८३,११०,१३१ से १३३ उत्तराभद्दवया (उत्तरभद्रपदा) ज ७।१४६,१५७, १५८ सू १०।२ से ६,१३१ उत्तराभिमुह (उत्तराभिमुख) उ ३१५५,६३,६७, ७०,७३ उत्तरासंग (उत्तरासङ्ग) ज ३१६,५।२१ उत्तरासाढा (उत्तराषाढा) ज २।७१,८५,७।१२८, १३०,१३६,१४०,१४६,१५६,१६७ सू १०१ से ६,१६,२३,५४,६२,६३,७४,८३,११६, १२२,१२३,१३० से १३५,१५।६,१२ उत्तरिज्ज (उत्तरीय) ज ३।६,२२२ उत्तरित्तु (उत्तीर्य) ज १।१८१ उत्तरिय (औत्तरिक) प ३६।२१,२२,२४,२६,२७, ४६ उत्तरिल्ल (औदीच्य) प २।३३,३६,३६,४०,४४, ४७; १६॥३४ ज १।२६, २।११६,३।१०२, १०६,१३३,१३७,१५४ से १५७,२०५,२१५, २२०;४।३८,४२,७३,७७,६१,६४,१७२, १६६ से २०२,२०६,२०७,२१२,२३२,२३३, २३८,२४८,२५१;५।११,१४,४४,४५,४६,५२, ७।१७८ उ ३६१ १३६ Page #934 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरो?-उद्धृय ८५७ उत्तरोट्ठ (उत्तरौष्ठ) ज २।१५ उत्ताण (उत्तान) उ ३।१३० उत्ताणग (उत्तानक) ज ३।१११,११३ उ ११४६ उत्ताणय (उत्तानक) पश६४ उ १।४६ उत्ताणसेज्ज (उत्तानशय) उ ३।१३०,१३१,१३४ उत्तासणग (उत्त्रासनक) प २।२० से २६ उत्तासणय (उत्तासनक) प २।२७ उत्तिण्ण (उत्तीर्ण) ज ३१८१ उत्तिमंग (उत्तमाङ्ग) ज २०१५ उदग (उदक) जे २।१३१,३।२६,३६,४७,१०६, १३३,२२१,५१५५ उदगधारा (उदकधारा) ज ३।८८ उदय (उदय) प २३।३,१३ से २३ सू १।६।२; ११८१ उदय (उदक) प ११४१।२,११४६;१०१७ १६।५४ ज ३१६,२०६५।१४,५६,७।११२।१, २ च २।२,४११,३ सू १०।१२६।१,२ उदयसंठिति (उदयसंस्थिति) सू १।६।२१।८।१,३ उदर (उदर) उ ११४३ उदहि (उदधि) प २।३०।१२।४०।२,८,१०; १५।१।२ ज २।१५,५१५२ उदहिकुमार (उदधिकुमार) प १११३१,५।३।६।१८ उदार (उदार) ज ३।२४,१३१ उदाहु (उताहो) प १०१६:१५।४६,४७,३४१६ उ१११२७ उदिण्ण (उदीर्ण) प २०॥३६,२३।३,१३ से २३ उदीण (उदीचीन) प २१०,५० से ५२,५४,५६, ५८ से ६० ज ११८,२०,२३,२५,२८,३२, ४८,३।१४।१,३,५५६२,८६,८८,६८, १०८,१७२,२०५,२१४,२५२,२६२,२६८; ७।१०१,१०२ सू ८.१ उदीणदाहिणायता (उदीच्यदक्षिणायता) सू ११६; २११;१०।१४२,१४७,१२।३० उदीणवाय (उदीचीनवात) प १२६ /उदोर (उद्। ईर् ) उदीरंति प १४।१८ उदीरिस्संति प १४।१८ उदीरेंति उ ३।३४ उदीरेंसु प १४।१८ उदीरेति प २२१५ उदीरण (उदीरण) ज २।१३१ उदीरिज्जमाण (उदीर्यमाण) प २३।१३ से २३ उदीरिय (उदीरित) प २३।१३ से २३ उदु (ऋतु) ज २।४;७११२।१ उदंडग (उद्दण्डक) उ ३१५० उइंडिय (उद्दण्डिक) ज ३।३२ उद्दव (उद्द+द्र) उद्दति प ३६।६२,७७ उद्दवित्तए (उद्भवयितुं) ज ३।११५ उद्दाइत्ता (उद्रुत्य) ज ६।४ उद्दाल (उद्दाल) ज २८ उद्दाल (अवदाल) ज ४।१३ सू २०१७ उद्दाल' (आ।-छिद्) उद्दालेइ उ १।१०५ उद्दालेउकाम (आछेत्तुकाम) उ १।१०५ उद्दिट्ठ (दे०) सू १६।२२।२५ उद्दिस (उत्+दिश् ) उदिसंति उ ५१४५ उद्दिस्यि (उद्दिश्य) प १६.५१ उद्दिस्सपविभत्तगति (उद्दिश्यप्रविभक्तगति) प १६१३८,५१ उद्देस (उद्देश) ज ७।१०१,१०२ उद्देसग (उद्देशक) उ ५।४५ उद्देसय (उद्देशक) प १७।१४८ उद्देहिया (दे०) प ११५० उद्ध (ऊर्ध्व) प ३३।२४ ज १११६,२३,२४,२।६, ५८,६५,१५७ Vउद्धंस (उत्। धृष ) उद्धंसेइ उ ११५७ उद्धंसणा (उद्धर्षणा) उ१।५७,८२ उद्धंसेत्ता (उदय) उ ११५७ उद्धत (उद्धत) ज २०६५ उद्धिय (उद्धृत) ज ३।२२१ उद्धृत (उद्धत) प २।४८ उद्धृय (उद्धृत) प २।३०,३१,४१ ज २१६०;३।७; २४।३,२६,३७।१,३६,४५।१,४७,५६,६४, ७२,८८,११३,१३११३,१३८,१४५,१७८; १. हेम० ४।१२५ Page #935 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५८ उद्धर-उम्मुग्गजला ४।४६,५५,७,४३,४४,४७,६७ सू २०१७ उप्पलिणीकंद (उत्पलिनीकन्द) प ११४८०४२ उद्धर (उद्धर) ज ५।५; ७।१७८ उप्पलगुम्मा (उत्पलगुल्मा) ज ४।११५।१,२२२ उद्धवमाण (उद्धयमान) ज ३११८,३१,६३,१८० उप्पलुज्जला (उत्पलोज्वला) ज ४।११५।१,२२२ उ ५।१६ उप्पाइय (औत्पातिक) ज ३।१०४,१०५,१०६ (उपगच्छ (उप+ गम् ) उपगच्छंति ज ३।१६७।१४ उप्पाएत्ता (उत्पाद्य) प २८।२०,३२,६६ उपचयंकर (उपचयङ्कर) ज ३।१६७ उप्पाड (उत-पादय) उप्पाडेज्जा प २०११७, उपरिल्ल (उपरितन) सू १८७ १८,३२ से ३४,४७ उपसंत (उपशान्त) प २०३६ उप्पाय (उत्पाद) प १५० उप्पइत्ता (उत्पत्य) प २।४८ से ६३ ज ११२५ उप्पाय (उत् + पादय्) उप्पाएंति ज २।३६,४१ सू २।१,१८।१ उप्पि (उपरि) प २१५२ से ६२ ज १११०,१२, उप्पज्ज (उत्+पद्) उप्पज्जइ सू ६१ १४,१६ सू १२।३०,१८१२,३ उ ११४६:२१६; उप्पज्जति ज २१६७ ५१३,२०,२७,३१ उप्पज्जंत (उत्प द्यमान) ज ३।१६७१५ उप्पीलिय (उत्पीडित) ज ३१७७,१०७,१२४ उप्पज्जय (उत्पद्यक) ज ३।३ उ १११३८ उप्पड (उत्पट) प ११५० उप्फिडिय (उफिट्य) प १६।४४ उप्पण्णमिस्सिया (उत्पन्न मिश्रिता) प १११३६ उप्फेस (दे०) प २।३० उप्पण्णविगयमिस्सिया (उत्पन्नविगतमिश्रिता) उब्बहिया (उद्वाह्य) प १६।५४ प१११३६ उन्भड (उद्भट) ज २११३३ उत्पत्ति (उत्पत्ति) प ११६३६१४१५,३६१६४ उन्भिज्जमाण (उद्भिद्यमान) ज ४।१०७ ज ३।१६७।३,६,८,९,१० उभओ (उभयतस्) ज ११२३,२५,२८,३२; उप्पत्तिया (औत्पत्तिकी) उ ११४१,४३ ३।१७६;४।१,१३,३६,४३,६२,७२,७८,८६, उत्पन्न (उत्पन्न) ज ३।२६,३६,४७,५६,१३३, ६५,६८,१०३,११०,१८३,२००,२०१,२०६; १३८,१४५,१७५,५।३,२२ ५।४६,६०,६६७।३१,३३ सू ४।३,४,६; २०१७ उप्पन्नकोउहल्ल (उत्पन्नकुतूहल) ज ११६ उभय (उभय) ज ३।३ उप्पन्नसंसय (उत्पन्नसंशय) ज ११६ उभयभाग (उभयभाग) सू १०१४,५ उप्पन्नसड्ढ (उत्पन्नश्रद्धा) ज ११६ उम्मज्जग (उन्मज्जक) उ ३.५० उप्पयनिवय (उत्पातनिपात) ज ५।५७ उम्मत्तजला (उन्मत्तजला) ज ४।२०२ /उप्पय (उत् + पत्) उप्पयंति ज ५१५७,६४ उम्माण (उन्मान) ज ३।६५,१३८,१५६,१६७।३ उप्पल (उत्पल) प ११४६,११४८।४४,११६२, उम्मिमालिणी (ऊर्मिमालिनी) ज ४।२१२ १५।५।२ ज ११५१, २१४,१६,३।३,८६, उम्मिलिय (उन्मीलित) प २।४८ ज ३।१८८; १८८,२०६४।३,२२,२५,३०,३४,६०,११३, ४।४६ २६६,२७२,५१५५,५६;७।१७८ उम्मुक्क (उन्मुक्त) प २१६४१२१ ज ३१२०,३३, उप्पलंग (उत्पलाङ्ग) ज २।४ ५४,६३,७१,८४,१३७,१४३,१६७,१८२ उप्पलहत्थगय (हस्तगतोत्पल) ज ३।१० उम्मुग्गजला (उन्मुक्तजला) ज ३६७ से १०१, उप्पला (उत्पला) ज ४।१५५।१,२२२ ll Page #936 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उयर-उवत्ता ८५६ ४५,६० उयर (उदर) उ ११३४,४०,४६,४८,४६,५१,५४, उवंग (उपाङ्ग) उ ११४ से ८,२।१३।१,२; ७४,७६,७६ ४।१,३,२१,३,४५ उर (उरस्) ज ५१५ उ ३।११४ उवकुल (उपकुल) ज ७।१३६।१,१४१,१४३ से उरग (उरग) प६१८०१ ज ३।२४ १४६,१५० से १५३ सू १०१६,२० से २२,२५ उरत्थ (उरःस्थ) ज ३।३६ -उवक्खड (उपस्कारय) उवक्खडावेइ उ ३।११०; उरपरिसप्प (उर:परिसर्प) प ११६७,६८,७५; ४।१६ ४।१३१ से १३६,६७१; २१११४ से १६,३५, उवक्खडावेत्ता (उपस्कार्य) उ ३।५० -उवगच्छ (उप+ गम् ) उवगच्छइ ज ३।४१ उरभरुहिर (उरभ्ररुधिर) प १७।१२६ उवगच्छित्ता (उपगम्य) ज ३४१ उराल (उदार) प ११४४।३ गुलू नामक वृक्ष उवगय (उपगत) प २१६४।१४,२० ज ३१२०,३३, उराल (दे०) ज ५१३८ ५४,५६,८४,१०५,१०८ से १११,११३,१३७; उरु (उरु) ज २।१५,१६,५१५७।१७८ ५१५,७ उ १२१५,२५,३।६८,१०६,५२३५ उरुलुंचग (दे०) प ११५० । उवगरण (उपकरण) ज २०६६ सू २००४ उ ११६३, -उलंघ (उत्+लङ्घ) उलंघेज्ज प ३६।६१ १०५,१०६,३१५५,६३,७०,७३ उल्ल (आर्द्र) ज ३।२२,३६,४४,१२५,१२६ उवगिज्जमाण (उवगीयममान) ज ३१८२,१८७, उल्लाल (उत्+लालय) उल्लालेइ ज ५२३ १८८ उ ५।२५ उल्लालिय (उल्लाल्य) ज ५।२४ उवग्गच्छाया (उपाग्रछाया) सू ६।४ उल्लालेमाण (उल्ललायत्) ज ५।२२ उवघाइय (उपघातिक) ५० १११३४।१ उल्लोइय (उल्लोचित) प २१३०,३१,४१ ज ११३७; उवग्गहिय (औपग्रहिक) प २३१६ ३१७,१८४ उवघायणाम (उपघातनामन्) प २३॥३८,५२,११० उल्लोय (उल्लोच) ज ४।११६ ५।३४,६७ उवधायणिस्सिया (उपघात निश्रिता) प१११३४ सू २०१७ उवचय (उपचय) प १५।५८।१,१५१५८,५६ उल्लोयण (उल्लोचन) उ ११४६ उवचय (उप-+चि) उवचयंति प ६।२६ उवइय (उपचित) ज ४।२७ उवचिण (उप-चि) उवचिण प १४।१८।१ उवउज्जिऊण (उपयुज्य) प १६।२०२२१४५% उवचिज्जति प १४।१८।१२११९७ ३६।३२ उवचिणंति प१४।१५ उवउत्त (उपयुक्त) प २१६४।१२,१३;८।४ से ११; उवचिणिसु प १४।१४ उवचिणिस्संति १५५४८,४६,२६।१७,१६,२०,३४।१२ प१४।१६ ज ५।२६ उवचित (उपचित) प २।३१,४१ उवएसरुइ (उपदेशरुचि) प १११०१।१,४ उवचिय (उपचित) प २।३०,२३।१३ से २३ उवओग (उपयोग) १११७,३।१।१,१५१५८।१; ज २११४५,१४६,३७,४।३,२५,२७,७।१७८ १५॥६३,६४,१८।१।१२८।१०६।१।२६।१,५, उवज्जिय (उपार्जित) ज ३।१८५,२०६ ८,११,१५ उवज्झाय (उपाध्याय) प १६:५१ च ११२ उवओगपरिणाम (उपयोगपरिणाम) प १३।२,१४, उवट्ट (उद्+वत्) उवति ज ५।१४ उवट्टेता (उद्धृत्य) ज ५११४ १६ Page #937 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६० उवटव-उवलालिज्जमाण Vउवठ्ठव ( उप स्थापय ) उवटुवेंति ज ३।२०८; उवभोग (उपभोग) ज २।१४६ ५॥५५ उवढवेति ज ३।१२० उवट्टवेह उवभोगतराय (उपभोगान्तराय) प २३१२३ ज २१५४,३१२०७ उ१।१७ उवमा (उपमा) प २१६४।१७,३५।२५,२६ उववेत्ता (उपस्थाप्य) उ १।१७ ज ३।२४।४;३७।२,४५।२,१३११४ उ ३।६८ उक्ट्ठाइ (उपस्थायिन् ) ज ३३२।१ उवयार (उपचार) प २३०,३१,४१ ज २।१०, उवठ्ठाणसाला (उपस्थानशाला) ज ३।५,१२,१७, १५,६५,३।७,१२,८८,१३८;४।१६६,५१७, २१,२८,३४,४१,४६,५८,६६,७४,७७,१३५, ५८;७।१३३।१ सू २०१७ १४७,१५१,१७७,१८८,२१६ उ १११६,४१, उवयारियालयण (उपकारिकालयन) ज ४।११८ ४२,१२४,४।१२,५११६ उवरक्खिय (उपरक्षित) प २।३०,३१,४१ उठ्ठिय (उपस्थित) उ १।२० उरि (उपरि) प २।२१ से २७,३० से ३६,४१ उवणी (उप- णी) उवणेइ ज २६,३६,४०, से ४३,४६;१२।३२ ज ११३५,४।१५६।१, ४७,५६,६४,७२,१३३,१४५,१५१ उवणेति २१३,२१६ ज ३८१,१२६,५४६१ उ ११४५ उवणेह उवरितल (उपरितल) ज ४।१४२।१,२,४।२१३ उ११४४ उवरिम (उपरितन) प १२७१३,६२११ उवणीयअवणीयवयण (उपनीतापनीतवचन) उवरिमउवरिमगवेज्जग (उपरितनोपरितनवेयक) प १११८६ प १११३७,४।२६१ से २६३;७।२८,२८।६५ उवणीयवयण (उपनीतवचन) प १११८६ उवरिमगवेज्जग (उपरितनवेयक) प २१६२; उवणेत्ता (उपनीय) ज ३।१२६ ३।१८३;६।४१,५६,२०१६१,३३।१७ उवस्थाणिया (उपस्थानिका) ज ३।२६,३६,४७, उवरिमगेवेज्जय (उपरितनवेयक) प २०१६१ ५६,१३३,१३८,१४५ उ ३।१२३ उवरिममज्झिम (उपरितनमध्यम) प २८१६४ Vउवदं (उप । दृन) उवदसइज ५।५७,५८; ७.२१४७३।१२३ उवदं सति) ज ५१५७ उवरिममज्झिमगेवेज्जग (उपरितनमध्यमवेयक) उवदरोति गृ २०१२ प१११३७,४।२८८ से २६०७।२७ उदसण (दर्शन) ज ४२६३।१ उवरिमहेट्ठिम (उपरितनाधस्तन) प २८६३ उपसिलए (उपदशंपितुभ ) उ३।११२ उवरिमहेहिमगवेज्जग (उपरितनाधस्तनप्रैबेक) उबदसित्ता (उपदश्यं ) उ ३।२१,४।५ प ११३७,४।२८५ से २८७,७।२६ उवदंसिय (उपदशित) प १।११२ उवरिल्ल (उपरितन) प २१६४५।१३१,१३४, उनसेता (उपदश्यं ) प ५१५८ १३६,१४०,१४३,१६६,१६६,१८१,१८४, उवदंसेमाण (उपदर्शयत्) प ३४।२२ ज ५।४४ १६३,१६७,२००,२२८,२३४,१६।३४; सु२०१३ २२१५१,७०,७१,७४ ज २।११३;४।२५३, उवादि (उपदिष्ट) प १११०११४ च ११३ २५६,२५६;७।१७३ से १७५ सू १८१ Vउदिस (उ+ दिश) उवदिसाइप २०६४ उरिल्लय (उपरितन) प २८।१४३ उदिसित्ता (उपदिश्य) प २०६४ उवल (उपल) प ११२०१ ज ४।२५४ उपदव (उपद्रव) ज २।४०,३।१०५ उवलद्ध (उपलब्ध) प १११०१।६ उ ३।१०१ उवप्पयाण (उपप्रदान) उ १।३१ उवलालिज्जमाण (उपलाल्यमान) ज ३१८२,१८७, उपबूह (पवृंहण) प ११०१।१४ २१८ Page #938 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवलित-उबागच्छ उवलित (उपलिप्त ) ज २।१८४५०५७ ३।१३०, १३१,१३४ उवलेवण (उपलेपन) २०५१,५६,७१,७२ उववज्ज ( उप + पद्) उववज्जइ प १७६५ उबवज्जति प ६४७ मे २६,६० से ६४,६६ ७० से ७२.७८ से ११०,११२.११३ ज २०४६ यू १७०१ उववज्जति प १६५०३१७९०,६२, २४,१५,१६ से १०४ उवज्जहि १।१४१ उ ३१८४२६ उज्जिहति २।१३५ से १३७ उववज्जमाण ( उपपद्यमान ) प २०६१ उवज्जावेथ्व (उपव्य) प ६२२,६४ उववरण ( उपपन्न) ज ७५६,५६,२१२ १६। २२।२१,१६।२४ उ ११२५ से २७,१४० २४१२३०१४,८३१२०,१६२४१२४:५१२८ ३०, ४०, ४१ उवण्णग ( उपपन्नक ) प ३।३६, १५/४६; ३४ । १२; ३५।२३ उववण्णपुत्र ( उपपन्नपूर्व) ज ७।२१२ उवन्नग ( उपपन्नक) प १५/४६; ३४।१२ उवाय ( औपपातिक) प ६।७३ उदवाएयध्व ( उपपादयितव्य ) प ६४७३,७४ उवदात ( उपपत ) प २०/६० चं २१५. सू १।६।५; १७ १ उववातगति (उपपातगति) व १६।२७ उदवातसभा ( उपपातसभा) उ३।१४ उपाय ( उपपात ) प २११,२,४,५,७,८,१०,११. १३,१४,१६, से ३०, ४६६१ से ४,१० से २३,२७,४३,५६,६३,६६, ८०१२,६१८१,८३, ८१, १२, १००, १०३, १०७, १०८ २०/६१. ज २०७१ ४ १४०१,१६० ७५७,६० उ २१२०,२२, ३।१६६ उपवायगति (उपपातगति ) प १६१७.२४ से ३७ उववायसभा ( उपपातसभा) ज ४।१४० उ ३१८३; १२०,१६१४।२४ उपवास (उपवास) ज० २।१३५ उववेत ( उपेत ) प १७।१३३ उपवेष (उपेत) प १७११४२२१४,१८ उ ५।५ उवसंकम (उपक्रम) ि सू १।१७ उवसंकमिता (उपसंकम्प) ७१०,१६,१९ सू १।११:१४ उवसंत ( उपशान्त) प १४१२ २०१३ २१६ ६८ ५१७. उ ३।३५ वसंतकसाय ( उपशान्तकपाय ) प ११०२,१०३, ११५.११६ उवसंपज्जनानगति (उपसंपद्यमानगति ) प १६३८ ४१ उवसंपज्जित (उप) प १६८१,४७. ज ७०५६,५९. सू. १६४२४ ३४६२२ उवसग्ग (उपसर्ग ) ज २९४,६७६ ३६२.११५. ११६.१२५ उवसम (उपयम) ज ७।११७, १२२२ सू १०६४/२, ८६२ उवसामय (उपशामक) ५२३।१९१,१९२ उवसोभिय (उपशोभित) ज १।१३,२१,२६,२६, ३३,४६ : २७,५७,१२२.१२७, १४७, १५०, १५६, १६४ ३।१७८, ११२३४।१६.६३.५२ ५।३२,३६,७३१७८ ८६१ 2 उवसोममाण (उपसोभमान उवसोमेमाण ( उपशोभमान) ७२१३ ३४९ २३५३८ उवसोहिय ( उपशोभित) ज ४|११४; ११६७ उदस्थ्य (उपाध्य) ३३११११११८, १४१४२२ उचहाण (उपधान) ज ४११३ उवहि (उपधि ) प १४।५ उहित (उपहित) सू २४ उवाइणावेत्ता (उपातिक्रम्य सू १०।१३ √ उवागच्छ (उप + आगन् ज ११६ २०१० ३१५.६,१२,१७,१८,४१ वागच्छइ Page #939 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६२ उवागच्छित्ता-उस्सासणाम उ ११२,३।२६४।११।५।१६-उवागच्छंति उबेहलिया (दे०) प १२४८।५० प ३४।२२,२३. ज २।११६. उ ११४५; ५।१७ उसभ (ऋषभ) प २।४६ ज० ११३७,५१, २।१५, -उवागच्छति. ज २।१६५, ३१२८,३२,४१, ५६,६२,६४ से ६७,७३ से ८६,१०१; ४६,२१६ उवागच्छसि. उ ३७६ ४।९७:५।२८ उवागच्छित्ता (उपागत्य उपागम्य) प ३४।२२; उसभकूट (ऋषभकट) ज०११५१,३।१३५; ज १६. उ० १२१६३।२६,४।११,५।१६ ४।१७४,१७५, ६।१६ उवागय (उपागत) उ १।१२२,१३०, ३।७१,७६, उसभणाराय (ऋषभनाराच) प २३।४५,६५ ६६,१०६,१३८,४।१५,१८,१६,५२६ उसभसेण (ऋषभसेन) ज० २।७४ उसह (ऋषभ) ज २।६३,६०४।२७ उवाय (उपाय) प० १११७१,३६१६२ ज ७।१०, उसहक ड (ऋषभकूट) ज० ११५१,१३५,४।१७५, १३,१६,१६,२२ से २५,२७,३०,६६,७२,७५, ७८,८१,८४ सू १११४,१६,१७,२१,२४,२७, उसहच्छाया (ऋषभछाया) १ १६।४७ २॥३,६।११०।१४१,१४६,१४८,१५० उसहसंघयण (ऋषभसंहनन) ज ३।३ उ ११४१,४३ उसिण (उष्ण) प ११४ से ६५॥५,७,१२६,१५४, उवागय (उपागत) ज २२६५,७१,८८, ३१२२५ २११,२१४,२१८,२२१,२२६६।१ से ११; Nउवे (उप+ इ) उवेइ प १३।२२१२. उ ३।१११ ११।५६,६०; २८१३२,६६,१०५, ३४।१६%) उति ज २११६३।१२६ उवेह ज ३।१२५ ३५।१ से ३ उव्वट्ट (उद्+ वृत्) उव्वति प ६।५८,६८ उसिणजोणिय (उष्णयोनिक) प ६।१२ उव्वट्टति प १७६१,६२,६४,६५,१००,१०२ उसिणोदय (उष्णोदक) प १२३ से १०४ उव्वइ उ० ३।११४ उसीरपुड (उशीरपुट) ज ४।१०७ उध्वट्ट (उद्वर्त ) प २०।१।१ उसु (इषु) ज ३।२४,३७,४५,१३१ उ ११२२, उव्वट्टण (उद्वर्तन) प ६।१।१. उ० ३।११४ १४० उव्वट्टणया (उद्वर्तन) प ६।६,७ उसुय (इषुक) उ ३।११४ उव्वट्टणा (उद्वर्तना) प ६८,६,४५,४६,५६,६६, उस्सक्क (उत्+वष्क) उस्सक्कति १००,१०२,१०३,१०७,१०८ प १७।१५०,१५२ उध्वट्टित्ता (उद्वर्त्य) प ६।६६ उ १११४१ उस्सण्हसण्डिया (उत्पलक्षणश्लक्षिणका) ज २६ उविग्ग (उद्विग्न) प २।२० से २७ ज ३।१११, उस्तप्पिणी (उत्सर्पिणी) प १२।७,८,१०,१२, १२५ उ १८६; ३।११२; ४१६ १६,२०,२७,३२,१८१३,२६,२७,३७,३८,४१, उन्विद्ध (उद्विद्ध) ज २।६५, ३।३१,५।२८ ४३,४५,५६,६४,७७,८३,६०,६५,१०७, (उन्विह (उद्+व्यध्) उव्विहइ उ १६१ १०८. ज २।१,३,६,१३८,१६१,१६४; उन्वेह (उदवेध) ज० ११२३,५१,४।१,३,६,१४, ७।१०१ सू६।१८।१६।२,१७११, २०१५ २५,३६,४०,४३,५४,५७,६२,६४,६७,७२, उस्सास (उच्छ्वास) प १।१।४।१७।१।१ ७८,८०,८४,८६,८८,६०,६५,१०३,११०, उ ५१४३ १२८,१४६,१५४,१५६,१७२,१७८.१८३, उस्सासणाम (उच्छ्वासनामन्) प २३।३८,५५, २०३,२१३,२२१,२२६७।२०७ Page #940 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उस्सासद्धा-एक्कहत्तर ८६३ उस्सासद्धा (उच्छ्वास अद्धा') ज २।४ उस्सासविस (उच्छ्वासविष) प १७० उस्सिय (उच्छित) ज ३१८४. सू १८।३ उस्सीसग (उच्छीर्षक) ज ५१६७ उस्सुक्क (उच्छुल्क) ज ३।१२,१३,२८,४१,४६, ५८,६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ उस्सेह (उत्सेध) ज ११४०।३।१२,८८,१६७।११, ४११०३,१७८,५।५७,५८ च १० उ १।३; ३।१२ उस्सेहंगुल (उत्सेधागुल) ज २१६ ८८,६०,६२,१०४,११७,११८,१३४,१३५, १३८,१४०,१४२,१४३,१५१,१५३,१५५, १५७,१६०,१६१,१६४,१६६ से १६८,१७१ से १७३ ज २।६,१२६,१२४ ऊताल (एकोनचत्वारिंशत्) सू १६।४ ऊतालीस (एकोन चत्वारिंशत् ) सू २।३ ऊरु (ऊरु) उ १११३८,३।११४ ऊस (ऊष) प ११२०११ ऊसय (उत्सव) उ १७१,७२ ऊसविय (उच्छित) ज ५।२१ सू १८१८ ऊसस (उत् +-श्वस्) ऊससंति प ७।१ से ३; १७।२,२८।२१,३३,६७ ऊसास (उच्छवास) प ११४८।५३ ज० २।४।१ ऊसिय (उच्छित) प २।४८,१५१५२ ज ११४२; २०१५,१६,५२,१६१,३७,३५,१०६,१७८; ४।६,१४,३१,४१,४६,६८,७६,६३,२२१; ५।४३;७।१६६,१७६,१७८ सू १८।८. उ०३७ ऊण (ऊन) प २२६,२७१४,२०६४७,४।३,६,६, १२,१५,१८,२१,२४,२७,३०,३३,३६,३६, ४२,४३,४५,४६,४८,४६,५१,५२,५४,५८,६४, ६७,७१,७४,७८,८१,८७,६०,६४,६७,१००, १०३,१०६,१०६,११२,११५,११८,१२१, १२४,१२७,१३०,१३३,१३६,१४२,१४५, १४८,१५१,१५४,१५७,१६०,१६४,१६७, १७०,१७३,१७६,१७६,१८२,१८५,१८८, १६१,१९४,१६७,२००,२०३,२०६,२०६, २१२,२१५,२१८,२२१,२२४,२२७,२३०, २३३,२३६,२३६,२४२,२४५,२४८,२५१, २५४,२५७,२६०,२६३,२६६,२६६,२७२, २७५,२७८,२८१,२८४,२८७,२६०,२६३, २६६,२६६।१२।१०।१५।५७,१८१६,१०,१२, ५६,६४,७७,८१,८३,८४,८६ से ११,६५, ६६,१०८:२११७४:२३१७६,१५६ ज १।१७।१२।८८,४।५५,६२,७।२७,२६, ३० सू १।१४,१६,२१,२३,२४;६।१,१५।१८, १६,२६,३४ ऊणक (ऊनक) सू १३।२ ऊणग (ऊनक) प २३॥६६,८१,८३ से ८६,८६, ६५ से १६,१०१ से १०३,१११ से ११४, १५२ ज ३।२२५,१५१२७ कृणय (ऊनक) प २३।६१,६४,६८,७३,७५,७७, एकादसम (एकादश) सू १०।१२४।२ एकावलि (एकावलि) ज ३।२११ एकासीइ (एकाशीति) ज ४।११० एकणवीसतिम (एकोनविंशतितम) सू० १२।१६ एक्क (एक) प ११४८।५४ ज ११३२ सू १०।१५७ एक्कग (एक) ज ७।१३१११ एक्कड (इक्कट) प ११४१।१ एक तरह का सरकंडा जिसकी चटाई बनाई जाती है। एक्कतीस (एकत्रिंशत्) प ४।२६१ ज ४।११६ सू २।३ एक्कतीसधा (एकत्रिंशद्धा) सू १३।१४,१६,१७ एक्कमेक्क (एकैक) ज ५।१ एक्कवीस (एकविंशति) प ७११६. ज २६ सू २।३. उ ५।१० एक्कवीस (एकविंशतितम) प १०।१४।४ एक्कहत्तर (एकसप्तति) ज ११४८ Page #941 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६४ एक्काणउति-एगवउ एगगुण (एकगुण) प ३।१८२,५११४६,१५०; । १११५४,५६,५८,६०;२८७,१०,५३,५६ एगग्ग (एकात्र) ज ५।२५ एगजडि (एकाटिन्) सू २०१८ एगजीव (एकजीव) प ११४७।१ एकजीविय (एक जीविका) प ११४७।१ एगट्ठ (एकार्थ) सू १६।२,४,६ एगट्ठिभाग (एकपप्टिभाग) सू १।१४,१६,२०, २१,१३ एक्काणउति (एकनवति) सू ११६ एककार (एकादश) ब १०।१४।३ एक्कार (एकादशन् ) सू १८१६ एक्कारस (कादशन् ) १।१०१८ ज ११४८. सू १२।६. उ ११६६ एक्कारस (एकादश) प १०।१४।२ एक्कारसग (एकादश) ज ७।१३११२ एककारसम (एकादश) प १०।१४।१ ज ७१९७ सू १०७७,१३।१० उ १।१४,१५,२१,१४०; ३।१२६ एक्कारसविह (एकादश विध) प १६।३,२० एक्कारसी (एकादशी) ७/१२५ एक्कावण्ण (एकपञ्चाशत्) ७.१६ सू ११२७ एक्कासी (एकाशीति) सू १६४ एक्कासीइ (एकाशीति) ज ४११४३ एक्कासीत (एकाशीति) सू १६५ एक्कासीतिविह (एकाशीतिविध) प० १७।१३६ एविकक्किय (एकैकक) सू १६।२२।८ एक्कणवीसइम (एकोनविंशतितम) प ११४८१६२ एक्कक्क (एकैक) प ११४८।५८ ज ७।१७८।१,२. सू ८।११६।२२।४ सेह एग (एक) प ११२० ज १७. सू १११४ उ १११७ एगइय (एकक) प ११७५:१५१४५,४७ से ४६; १७।१३,२०११,४,१७,१८,२२,२५,२८,२६, ३४,३८,३६,४६,५०,५३,५८,२२१५६;२३।६; ३४७ से ६,११,१२,१५,१६ ज १।२२,५०, २।५८,८३,१२३,१२८,१४८,१५१,१५७; ३।१०,११,८६,८७,१४४,४।१०१,१८४; ५२२७,५७,६।४ उ ११६७;३।११४,१३०, १३१,१३४,१५१,५।१७,२६ एगओवत्त (एकतोवृत्त) प ११४६ एगंत (एकान्त) ज ३१९८;५५,२६. सू २०१७. उ ११५४ से ५७,५६,६३,७६ से८२,८४ एगखुर (एकखुर) प ११६२,६३ एगठ्ठिय (एकास्थिक) प ११३४,३५ एगठ्ठिहा (एकषष्टिधा) सू २।३ एगणासा (एकनासा) ज ५।१०।१ एगतओ (एकततस्) 3 ११२५ एमतारा (एकतारा) सू १०।६२ एगतिय (एकक) प ६।११० सू ६।१ एगतीस (एकत्रिंशत्) ज ४।६२ सू १३।११ एगतोनिसहसंठिय (एकतोनिषधसंस्थित) सू ४।३ एगत्त (एकत्व) प १११८३,८५;२२।२५,२८; २३।८,१२,२४।६।२५।४;२७।२;२८।१२४; १३०,१३१,१३६,१४३,१४५ एगदिसि (एकदिश्) ज ७।४८ एगपएसिय (एकप्रदेशिक) १ १११४६ एगमेग (एकैक) प १०१५;१५।८३,८४,८६,६४ स ९७,१००,१०३ से १०६,१०६,११४,११५, ११७,१३५,१४१,३६।८ से ११,१८ से २२, ३०,३१,४४,४६ ज २१४,४६४,११५,२६२; ६.१४,१६,२१,२२;७।१३,१६,१६ से २५, ६६,७२,७५,७८ से ८२,८४,६५,९६,९८ से १००,११४ से ११६,११६,१७० सू १।१८, २०,२१,२३,२४,२७,२।३,६६१,१०।८४,८५, ८७,६०,६१,१२४,१५।२ से ४,२६ से ३४; १८।४,२१ एगयओ (एकततस्) ज ३।१११ एगराइय (एकरात्रिक) प २०७० एगलक्खण (एकलक्षण) सू १६।२,४,६ एगवउ (एकवचस्) प १११२१ Page #942 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगवयण- एत एगवण ( एकवचन ) प ११८६,८७ एगविह ( एकविध ) प २३, ६, ६, १२, १५, २२/८३, ८४,८६,२४।१० से १२,२६१२,४,६, ८ से १० एगवीस ( एकविंशति ) प ४/२,६१ सू २/३ एगसट्ठि ( एकषष्टि) ज ७ ७ एसट्ठिभाग ( एकषष्टिभाग) ज ७।२७,२६,३०, ६६,७२,७५ सभा ( एकषष्टिभाग ) ज ७ ६५, ६६,७१, ७२,७५,७७ हा ( एकटा ) ज०७।२१, २२, २४, २५ एगसत्तर (एकसप्तति) ज ४।१६६ सू १२।१२ एगसमय ( एकसामायिक ) प ३६ ६०,६७,६८, ७१, ७५ एगसमइयट्ठितीय ( एकसमयस्थितिक ) प ५।१४६, १४७, ११ । ४१ समयठतीय ( एकसमयस्थितिक ) प ३।३८१ एगसाडिय ( एकशाटिक) ज ३०६ : ५।२१ एगसिद्ध (एग सिद्ध ) प १।१२ एगसेल (एकल) ज ४।१६६, १६७ एगसेलकूड (एकशैलकूट) ज ४।१६८ गागार ( एकाकार ) प १६०,७२,७३,८०, ८१, ८४; १३ ।२०; २१।७२,२३।५१ से ५३, ५५,५६, ज ४।२५६ गारस ( एकादशन् ) ज ३।१ गावण्ण ( एकपञ्चाशत् ) ज ७।२० गावलि ( एकावलि) ज ७।१३३ गावलिसंठिया ( एकावलिसंस्थित) सू १०/५० एगासीति (एकाशीति) ज ३।३२ एगाहच्च (एगाहत्य) उ ११२२, २५, २६, १४० गाहिय ( एकाहिक) ज २१६,४३,७।२५ सू २।३ एदि (एकेन्द्रिय) प १९ १४, ४८, ३।४० से ४२, ४४, ४६,१४१ से १४३,१८३६।७१, ८३, ८६, ६२, १००, १०२, १०७,११२; १० ३६, ११।३६, ४१,८०,८४,१३।१६,१५।१०३,१६।२७; १७/३६,५६,६०,६२,८७,१८१४, २०; २०।३५२१।२ से ५,२२ से २५, ३६, ४०४६, ८६५ ५०, ५७,६४,७५,७६,७६, ८०, ८५, ६४; २२।२५,८२, २३।४०,८५,१३४,१३५,१३७ से १४०, १४२, १४३, १५०, १५६,१५६; २४।१३, २६।४, ५, ६, २८।११२; २८१६८, ६६, १०२,१०६,११२,११५, ११६, १२३, १२६, १२७,१२६,१३२,१३३,१३७ से १४१,१४३; ३४।५,१४,३५७, ३६।५६, ६१ ज ३।१६७१५, १७८ गिदियरयण (एकेन्द्रियरत्न) ज ३।१७८, २२०; ७/२०५, २०६ एगूण उs ( एकोननवति) ज ७।१४ एगूणणउति ( एकोनवति) ज २८८ सू ११२७ एगूणतालीस ( एकोनचत्वारिंशत् ) सू २।३ एगूणतीस ( एकोनत्रिंशत् ) प ४।२८५ सू २१३ एगूणपण ( एकोनपञ्चाशत् ) ज २।४६ सू २०३ एगूणवण्ण ( एकोनपञ्चाशत् ) प ४।६८ गुणवीस ( एकोनविंशति ) प ४ । २५७ ज ७।४ सू १।१० एगूणवीस ( एकोनविंशति ) ज १।१८ गुणवीस भाग ( एकोनविंशतिभाग) ज १।२३; ४८१, ६०, ६८, १६६ एगूणवीस भाय ( एकोनविंशतिभाग ) ज १।१८, २०, ४८, ४६८, २००,२०१ एगूणवीसति ( एकोनविंशति) ज २८८ एगूणसट्ठि ( एकोनषष्टि) सू १२।६ एगुणासी ( एकोनाशीति) ज २।५६ एगेंद (एकेन्द्रिय) प १।१५; ३।४६ एगोरुय ( एकोरुक) प १८६ एज्जमाण ( एजमान) ज ३।१०७ एज्जमाण ( आयत् ) उ १।२२,८६,१४० एज्जेमाण (आयत्) ज ४३५, ४२,७१,७७,६९४ √ एड (एड् ) एडेइ ज ३६८ एडेंति ज ५५ एडेत्ता (एलित्वा एडित्व) ज ५१५ एणी (एणी) ज ३ | १०६ एत ( एतद् ) प १२० Page #943 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६६ एताव ( एतद्रूप ) प १७ १२३ से १२५, १२७, १२८,१३० से १३२,१३४,१३५ एयारू ( एतद्रूप ) प १७।१२६ ज ११११ ; २।१७,१८ ३।२६, २७, ३६, ४०, ४७, ४८,५६, ५७,६४,६५,७२,७३,११२,१२२, १२३,१३३, १३४,१३८,१३६,१४५,१४६, १८८, १६५, १६७४७, १५, २६, १०७,१४६, ५१३, २२ उ १।१५,१७,३४, ४०, ४३, ५१, ५४,६३,६५, ७४,७६,७६, ६६, १०५; ३।२६, ४८, ५०, ५५, ८,१०६,११८,१२६,१३१५।२३,३१,३६, एताब ( एतावत् ) ज २०४ एलापुड (एलापुट) ज ४।१०७ एतादत ( एतावत् ) सू १३।१०,१३ से १६ एतो ( इतस् ) प १७।१३५ उ३।१०१ एत्थ (अत्र ) प १।७४ ज ११३ चं ७ सू १।२ उ ३।४५ एलावच्चा (एलापत्या ) ज ७।१२० सू १०१६८१ एव (एव) ज १।१६ सू १६।१११।२ एवइ ( एतावत् ) प ३६।६० एमेव ( एवमेव ) प १ । १०१।३ एवइय ( एतावत् ) प ३६५६,६६,७४ ए ( एतद् ) प १।२६ ज ३|१०७ चं २५ सू १६ एवं ( एवं ) प १६० ज १६ च २५ सू ११५ उ १।१७ उ ११४ ३७ एरंड (एरण्ड ) प १४२ २; ११४८४६ एरंडबी (एरण्डबीज ) प ११७८ एरण्णवय (ऐरण्यवत ) प १७।१६३ ज २६ एरवत ( ऐरवत ) प १८८ एरव (ऐरवत ) प १६।३०;१७।१६० ज ४।१०२; ५१५५; ६ ६,१३,१६,२० सू १।१८,१६ एरव्यकूड (ऐरवतकूट) ज ४।२७५ एरावण (ऐरावण ) ज ४।१४२३, २०७,२६२; ५।१८ रावणवाहण (ऐरावणवाहन ) प २५० एराति ( ऐरावतिक) सू १।१६ एराव्य (ऐरावत) ज ४।२७४, २८७ एराग ( ऐरावतक) ज ४।२५२ एरिस ( ईदृशक ) प २३।१६५, १६६,२०० सू २०१७ उ १।१४० एरिसिय ( ईदृशक ) प २३।२०१ एल (एल) प १६४ ज २१३४,३५ एतारूव-ओग | हणट्ठया एलय (एलक) प ११।१६ से २० एलवालु (दे० ) प ११४८४८ एलवालुंकी (दे० ) प १।४०।१ एवंकरणया ( एवंकरण ) ज ३११२६ एवंभाग ( एवंभाग ) सू १६; १०/४ एवंभूय ( एवंभूत) प १६।४६ एवति ( इयत्, एतावत् ) प ३६।६७,७१,७५ एवतिय ( एतावत्, इयत् ) प ३६६६,६८,७०,७३ सू २२:१६।२२।२,३ एवमेव ( एवमेव ) प ३४।१६ एवमेव ( एवमेव ) प २८।१०५ ज १।२६ सू ३०१; १०।१२७१।६३ सणास मिय ( एषणासमित) ज २६८ उ३६६ एसणिज्ज ( एषणीय) उ३।३६,३८ ओ ओअवण (दे० साधन, स्वायत्तीकरण ) ज ४।२७७ ओइण्ण (अवतीर्ण) उ १६०, ६१ ओगाढ ( अवगाढ ) प ३।१८०, १८२५ । १३९ से १४५१०१८ से ३०,११।५०,६२ से ६४, ६६।१; १५।१।१; १५।१२,२५,१७।१४१ ; २८१५,१२,१३,२०,३२,५१,५८,५६,६६ ज ७१४१, ४२,५०,५८ / ओगाह ( अव + गाह) ओगाहइ ज ३।२२,२६ चं ३२ सू १।७।२उ ३०५१ ओगाहई प १।१०१।६ ओगाहेइ ज ३०४४ गाहट्ठया ( अवगाहनार्थ ) प ५५, ७, १०, १२, १४,१६,१८,२०,२४, २५, २८, ३०, ३२, ३४, ३७,४१,४५,४६,५३,५६,५६,६३,६८,७१, Page #944 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओगाहणसंठाण-ओयविय ८६७ ७४,७८,८३,८४,८६,८६,६३,६७,१०१,१०२, १०४.१०५,१०७,१११,११५,११६,११७, ११६,१२६,१३१,१३२,१३४,१३६,१३८, १४०,१४३,१४५,१४७,१५०,१५४,१६०, १६३,१६६,१६६,१७२,१७४,१७७,१७९, १८१,१८४,१८७,१६०,१६३,१६७,२००, २०३,२०७,२११,२१४,२१८,२२१,२२४, २२८,२३०,२३२,२३४,२३७,२३६,२४३; १५।१३,२६,३१ ओगाहणसंठाण (अवगाहनासंस्थान) प १।१६ ओगाहणा (अवगाहना) प १७४,८४, २१६४।४, ६ से १५६६,१३२,१६५११।७२, १५।१३,२६,३०,३१,५८।२,६५,२१।१।१, २११३८,४० से ४२,४८,६३ से ६६,६८ से ७१,७४,८४ से ६४,१०५ उ ३.८३,१२०, १६१,४।२४ ओगाहणाणामणिहत्ताउय (अवगाहनानामनिधत्ता युष्क) प६।११८ ओगाहणाणामनिहत्ताउय (अवगाहनानामनिधत्ता युष्क) प ६।११२ ओगाहणानामनिहताउय (अवगाहनानामनिधत्ता युष्क) प ६।११६ ओगाहिऊण (अवगाह्य) ज ४।२४० ओगाहित्ता (अवगाह्य) प २।२१,२२,२४ से २७, ३० से ३२,४१ से ४३ ; १५६४३,४५,५२ ज ११४६,४।२२१; सू १।२२ उ ३१५१ ओगाहेत्ता (अवगाह्य) प २।२३,३३,३५,३६ ओगिण्हित्ता (अवगृह्य) उ ११२,३२६; ५२६ ओगुंडिय (अवगुण्डित) ज २११३३ ओग्गह (अवग्रह) उ ११२, ३।२६,६६,१३२; ५।२६ ओघ (ओघ) ज ५।२२ से २४ ओघमेघ (ओधमेघ) ज २११४१,१४२,१४५; ३।११५,११६,१२२,१२४ ओघसण्णा (ओघसंज्ञा) प८।१,२,३ ओघस्सर (ओघस्वर) ज १५०,५२ ओचूलग (अवचूलक) ज ३।१२५,१२६,१७८%; ७.१७८ ओच्छण्ण (अवच्छन्न) ज २।१२,१३,३।१२१ ओट्ठ (ओष्ठ) प २॥३१,३२ ज २।४३,७।१७८ उ३।११४ ओठावलंविणी (ओष्ठावलम्बिनी) प १७४१३४ ओणय (अवनत) ज २१६० ओत्थय (अवस्तृत) ज ३।६,१८,६३,१८०,२२२ ओभंजलिया (दे०) प १५१ ओभास (अव+भास्) ओभासइ ज ४।२१० चं २।१ सू श६।१ ओभासंति सू० ३३१ ओभासति सू ३।२ ओभासेंति ज ७।४६,५८ ओभास (अवभास) ज ११२३;२।१२;४।२०१, २१४,२४०,२६४,२७० सू २०१८,२०।८।६ ओम (अवम) सू ६।३ ओमंथिय (दे० अवमस्तिक) उ ११५,३५, ३।६८ ओमज्जायण (अवमज्जायन) ज ७१३२।१% सू १०।१०६ ओमत्त (अवमत्व) प १५॥४४,४५ ओमरत्त (अवमरात्र) सू १२।१६,१७।१ ओमुइत्ता (अवमुच्य) ज २१६५ उ ३।११३ Vओमय (अव + मुच्) ओमुयइ ज २।६५,२२४; ५२१ उ ३।११३;४।२० ओमोय (दे०) ज ३६ ओम्मिमालिणी (मिमालिनी) ज ४।२११ ओय (ओजस्) चं २।२ सू १।६।२६।१६।३ ओयंसि (ओजस्विन) ज ३७७,१०६ 1 ओवर (अब-त) ओयरइ उ १२९७ ओयव (दे०) ओयवेइ ज ३।१७५ ओयवेहि ज ३७६,१२८,१५१,१७० ओयवण (दे०, साधन, स्वायत्तीकरण) ज ३।१२६;४।१७७ ओयविता (दे० अधीनीकृत्य) ज ३७१ ओयविय (दे० परिकगित) प २।३१ ज ४।१३ सू २०१७ Page #945 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६८ ओयवेऊण-ओहडिय ओयवेऊण (दे० स्वायत्तीकर्तु) ज ३१८१ ओयवेत्ता (दे० अधीनीकृत्य) ज ३७६ ओयसंठिति (ओजःस स्थिति) सू श६६।१; हा२ ओयाय (उपयात) उ १।१४,१५,२१,१३६,१३७ ओयाहार (ओज आहार) प २८।१०४,१०५ ओराल (दे०, उदार) प ३४।१६,२१,२२ ज ११५; २१६४३।१८५,४।१०७ सू २०१७ उ ११४०, ४१,४३,४४, २१११ ओरालिय (औदारिक) प १२।१,३ से ५,८,९, ११ से १३,१५ से १७,२१,२३,२७ से २६, ३२,३३,३५,३६,२१११,३६,८०,८२,१०२, १०४,१०५२३।४१ से ४४,८६,६२,३६।१२ ओरालियामीसगसरीर (औदारिकमिश्रकशरीर) प १६।१५,३६।८५ ओरालियमीससरीर (औदारिकमिश्रशरीर) प १६।१,४ से ७ ओरालियमीसासरीर (औदारिकमिश्रकशरीर) __ क १६।१२ से १५,३६।८७ ओरालियसरीर (औदारिकशरीर) प १२।२३,२७, ३२,१६।१,४ से ७,१२ से १५,२११२ से ५, १६ से २५,२८ से ३२,३६,३८,४० से ४२, ४८,७६,७७,६५,६८ से १००,१०४,१०५ २२।३७,४४,४५,२८।१०४,१४१,३६।८७ ओरालियसरीरग (औदारिकशरीरक) प १२०२० ओरालियसरीरय (औदारिकशरीरक) प १२१७ ओरालियसरीरि (औदारिकशरीरिन) प२८।२,१४१ ओरोह (अवरोध) ज ५।२२,२६ ओलंग (अवलम्ब) ज ७।१७८ ओलुग्ग (अवरुग्ण) उ ११३५ ओवइय (दे०) प ११५० ओवक्कमिया (औपक्रमिकी] प ३५।१।१:३५।१२, ओवम्म (औपम्य) प २१६४।१८ ओवम्मसच्च (औपम्यसत्य) प ११॥३३॥१, ११।३३ -ओवय (अव+पत्) ओवयंति ज ५।५७ ओयवमाण (अवपतत्) ज ५१४४ ओववाइय (औपपातिक) ज २१८३; ५१५७ ओवाय (अवपात) ज २।३८ ओवासंतर (अवकाशान्तर) प १५।५१ ओविय (दे०) ज ३।६,२४,५।२१,२८ ओसक्क (अव-प्वष्क) ओसक्कति प १७।१५२,१५५ ओसक्कइत्ता (अवष्वष्क्य) सू १०।१४८ ओसण्ण (अवसन्न) प ८।४,६,८,१०,२८।२०, २६,३२,६६ ज २११३३,१३५ से १३७ उ ३।१२० ओसण्णविहारि (अवसन्नविहारिन् ) उ ३।१२० ओसत्त (अवसक्त) प २।३०,३१,४१ ज ३७,८८ ओसधि (ओषधि) प १।३३।१,११४५ ज २११३१, १४४ से १४६,३।१३३,२०६,२११:५१५५, ५६ ओसप्पिणी (अवसर्पिणी) प १२।७,८,१०,१२,१६, २०,२७,३२; १८।३,२६,२७,३७,३८,४१,४३, ४५,५६,६४,७७,८३,६०,६५,१०७,१०८ ज २।१,२,६,७,५२,५६,१३५१ सू ८।१६।२; १७।१,२०१५ ओसरित्ता (अपसत्य) ज ५।५८ ओसह (ओषध) उ ३।१०१ ओसही (ओषधी) ज ४/२००१ नगरी का नाम ओसा (दे०) प ११२३ ओसारिय (उत्सारित) उ १११३८ ओसोवणी (अवस्वापिनी) ज ५।४६,६७ ओहय (उपहत,अवहत) ज ३।१०५,१०६,२२१ उ१।१५,३५,४१ से ४४,७१, ३१९८ ओहस्सर (ओघस्वर) ज २११६,५१५१ ओहडिय (अवघटित) ज १२४ ओवमिय (औपमिक) ज २।४,५ Page #946 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओहारिणी - कंतयरिय ओहारिणी ( अवधारिणी ) प ११ । १ से ३ ओहि ( अवधि ) प १।१।७१७।१०६ से १०८, ११० ; ३३ । १ । १ ; ३३ । १ से १३,१५ से १६, २६, २७, ३५ ज २६०, ६३ ३।१२,५६,८८, ११३,१४५ ; ५।३७।२१, ५८ उ३७, ६१ ओहिणाण ( अवधिज्ञान ) प ५५,७२४, ४१, ४६, ६७,११५; १७१२१२, ११३; २०१७,१८,३४; २८।१३६ ; २६/२,६,१७,१६; ३०२,६ ओहिणाणारि ( अवधिज्ञानार्य ) प १६ ओहिणाणि ( अवधिज्ञानिन् ) प ३।१०१, १०३; ५।४३,९६ से ९६,११४ से ११७१३ । १४; १८८०; २८ ।१३६; ३०।१६ ज २७६ ओहिदंसण ( अवधिदर्शन ) प ५२५,७,४५, ६७; २६३,७,१७,१६,३०१३,७ ओहिदंसणावरण ( अवधिदर्शनावरण) प २३|१४ ओहिदंसण ( अवधिदर्श निन् ) प ३।१०४, ५०४७, ६६,११७, १८८७ ३०।१६ ओहिना परिणाम ( अवधिज्ञानपरिणाम ) प १३।६ ओहिनिगर ( अवधिनिकर) ज ३।१२,८८ ओहिय ( औधिक ) प २१३४,३७,४२,४३,५०; ४१५५,६८,७५,६१,६७३,७४११८२,८३; १२।२६,२८,२६,३२ से ३४,३६,१५११८, १६,३०; १७।२८ से ३०,३२,३३,३५,५८, ६०,६२,६३,२१।३१,३६,४२,४४ से ४७, ६१,७०,२२।२४; २३।१७६, १८१, १८५, १६०; २६।१५ क क (किम् ) प १।१ ज १।४५ सू १।६ उ १।४ कइ ( कति ) प १५ ५३,१७।१४१,२२०४०,४१, ६०,२५।४ ज १।३४,४१२१४ चं २।१,३ सू १।६।१,३१६ ; २०१४।१ कइविह ( कतिविध ) प १६ १,२१।७, १३, ३०/२ ज २।५;७।१०४,१०५,१११ से ११३ कइरसार (करीरसार ) प १७।१२५ कओ ( कुतस् ) प ६।८२,६३,११।३०११ ज ७।३१ कंक ( कक ) प १७६ ज २।१३७ कंकरगहणी ( कङ्कग्रहणी) ज २।१६ कंकडग (कंकटक) ज ३।३५,१७८ कंकण ( कङ्कण ) उ ३।११४ कंकास (दे० ) प १४१२ कंगु ( कगु ) प १०४५।२ ज २।३७३।११६ कंया ( कंगू ) प १४०२ कंचन ( काञ्चन) ज ११३७, २०१५,७०३।१२, २४,३५,८८, १०६, ११७५।५८७ १७८ कंचणकूट ( काञ्चनकूट ) ज ४।२०४।१ कंचनकोसी (काञ्चनकोशी) ज ३।१७८ कंचrग ( काञ्चनक) ज ४ । १४२।१ कंचणगपव्यय ( काञ्चनकपर्वत) ज ४११४२; ६।१० कंचनपुर (कानपुर) प १।९३।१ कंटक ( कण्टक) ज ४।२७७ कंटक बहुल ( कण्टकबहुल) ज १।१८ कंटग ( कण्टक) ज २३६ कंट ( कण्टक) ज ३।२२१ कंठ ( कण्ठ) ज ५। ५६७।१७८ कंठाणवादिणी ( कण्ठानुवादिनी) सू ६४ कंड ( काण्ड ) प २०४१ से ४३,४६ कंडावे (कण्डावेणु) प १।४१।२ कंडुइय ( कण्डूयित) ज १।१३३ ८६६ कंडुक्क (कंडुक) १०४८।५०,६२ भिलावा, तमाल कंडुरिया (कंडुर ) प ११४८।२ एक तरह का सरकंडा कंत (कान्त ) प २०४१ २८ । १०५ ज २।१५,६४, ६५, ३६२, ११६, १८५, २०६५१२८, ५८ सू २०१४ उ १४१, ४४३।११२, १२८, ५।२२ कंततर (कान्ततर) ज २०१८,४।१०७ कंततरिय (कान्ततरक ) प १७११२६, १२७,१३३ से १३५ ज २।१७ कंतत्त (कान्तत्व ) प ३४।२० कंतयरिय (कान्ततरक ) प १७।१२८ Page #947 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७० कंतस्तरता (कान्तस्वरता ) प २३।१६ कंति (कान्ति) ज २२६५३१६६,२०४ कंद (कन्द) प ११३५,३६,४८०,११,२१,३१,३५, ६१,१११०१,१२८ ज ४।७ उ ३१५०,५१,५३ कंद (कन्द) प २०४१ कंदयि (कान्दर्पिक) प २०१६१ ज २१७८ कंदमाण (अम्वत् ) उ १४६२३३११३० कंदमूल (कन्दमूल ) प ११४८८,६१ कंदर (कन्दर ) ज २।६५; ३।३५ कंदल ( कन्दल ) ज ३।३५ कंदलग (कन्दलक ) प १।६३ कंदल (कन्दली) प १०३७।२.१०४३।१ कंदली (कंद) ( कन्दलीकन्द ) प ११४८।४३ कंदलीथंभ (कन्दली स्तम्भ ) प १९७५ कंदाहार (कन्दाहार) ३३५० कंवित (कन्दित) प २०४१ कंदिय ( क्रन्दित) प २०४७।१ कंडु (कन्दु) उ ३१५० कंयुक्क (कंदुक) व ११४८५० कंपण ( कम्पन ) ज ३।३५ कंपिल्ल ( काम्पिल्य) प ११६३।२ कंबल (कम्बल) प १५।१।२,१५।५१ कंडु (कम्बु) प १२४८१३ कंस (कांस्य) प ११।२५ २ २४,६६ सू २०1८ कंसणाभ (कंसनाभ) सू २०१८ ; २०1८1३ कंसताल (कांस्यताल ) ज ३।२१ कंसवण्णाभ ( कांस्यवर्णाभ) सू २०१८ कंसोय ( कंसीय ) प ११।२५ ककुह (ककुद) ज ७१७८ कक्कस ( कर्कश ) उ ३६८ कक्केयण ( कर्केतन) ज ३।३५, १०६ कक्कोडद (कर्कोटकी ) प ११४०१२ कक्ख ( कक्ष ) ज० २।१५ उ० ३।६८ कक्तर (कक्षान्तर) उ४२१ कक्खड (कक्खट ) प १।४ से ६; २।२० से २७ ; २११६२५१५, ७,२०६ से २०१३।२९ कंतस्सरता- कट्टु १५।१४,१६, २७, २८, ३२, ३३, २३१५०,२८१६, १०,२०,३२,५५,५६,६६ कच्चायण ( कात्यायन ) ज ७११३२|४ सू १०।११७ कच्छ ( कक्ष) ज ४।२४८ कच्छ (कच्छ) ज ३१८१,४१६२१,१६७, १७२११, १७७, १७८, १८१,१०४, १८७,१६०,२०० ७१७८ कूड (कच्छकूट) ४।१६३,१६४,१०० कच्छगाव ( कच्छकावती) ज ४।१८५ से १८६ कच्छगावइकूट (कीट) ४१८७ कच्छगावती ( कच्छकावती) ज ४।१८७ कच्छभ ( कच्छप ) प ११५५, ५७ ज २११३४; ४१३,२५ सू २०१२ कच्छभी ( कच्छभी) ज ३।३१ कच्छविजय ( कच्छविजय ) ज ४ । १९३, १६६,१६६ कच्छा (कक्षा) वराही नामक पौधा, भींगुर १०४६१।४८।६२ कच्छु (कच्छू ज २१३३ कच्छुल ( कच्छुरा ) प १०३८।२ कच्छुरी (कच्छु ) प १२७१ कज्ज (कृ) कञ्ज प २२१०,१५,१६,१०,४८, ५०,५२,६७ से ६६,७२,८२, ६१ से ३,६८, १६७१५२,५३ कति ११७११.२२. २१,२५,२२।५१,७१,७३,७४ कच्चति १७२५२२६,११ से १४,१७,१९,४८ से ५०,५२ से ४६,६१ से ६५,६७ से ६६,७१ से ७४,७६७२,८१,९१,६४,६७ से २९ कज्ज (कार्य) सू १०।१२० २।११,५१,५६ फज्जल (कमल) १७।१२३ कज्जलमा (४१५५२ २२३॥१ कज्जोवय ( कार्योपग) ज ७।१८६/२ सू २०1८; २०१८/२ कट्टु (कृत्वा) प ११७० २६४११२० २११।१७ Page #948 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कट्ठ-कण्णपाउरण ८७१ कट्ठ (काष्ठ) प ११४८।३० से ३७ ज २६५, ६६,६८,१३१,३।६८,५१५,१४ से १६ उ ३५०,५१ कट्ठपाउयार (काष्ठपादुकाकार) प १६७ कट्ठमुद्दा (काष्ठमुद्रा) उ ३.५५,५६,६३,६४,६७, ६८,७०,७१,७३,७४,७६ कट्ठसेज्जा (काष्ठशय्या) उ ५।४३ कट्ठा (काष्ठा) सू ११६।३;१।६।१ से ३. कट्ठाहार (काप्ठाहार) प १५० कड (कृत) प २०१३६,२३।१३ से २३ ज १११३, ३०,३३,३६,२०७१,४।२ सू १।२ से ६,१० से १२ उ ११२७,१४० कडक्ख (कटाक्ष) ज ७१७८ कडग (कटक) प २।३० ज ३।६,६,१७,२६,३६, ४७,५६,६४,७२,६७,१०६,१३३,१३५,१३८, १४५,१५०,१६१,२११,२२२५२१,५८ उ ५५ कडय (कटक) प॥३१,४१,४६ ज ११९,३६५, १५६४।६ कडाह (कटाह) प ११४८।४६ कटाहवृक्ष कडि (कटि) ज ३।१७८,७४१७८ उ ३।११४ कडिसुत्त (कटिसूत्र) ज ३।६,२२२ कडुगतुंबी (कटुकतुम्बी) ! १७।१३० कडुगतुंबीफल (कट कतुम्बीफल) प १७।१३० कडुच्छुग (दे०) ज ११४०,४।१३६,२४२ कडुच्छ्य (दे०) ज ३।११,१२,८८,४।२१६; ५।५५,५७,५८ उ ३१५०,५५ कडुय (कटक) प ११४ से ६,५५,७,२०५; २८।२०,३२,६६, ज २।१४५,७।११२।२ सू १०।१२६।२ कढिण (कठिन) उ ३३५० कण (कण) सू २०१८ कणइर (करवीर) प ११३८।१ ज २।१० कणिकार का पेड कणकण (कणकण) ज ५१२४ कणकणय (कणकणक) सू २०१८ कणग (दे०) ज ३।३५ बाण कणग (कनक) प ११५१, २०४०।८,६२।४८ ज ११५,१६,३८; २।१५,६४,६८,६६; ३६, २४,३५,५६,८१,१४५,१७८,२११,२२२; ४।१०,११५; ४।२१०।१,२१७; ५१५८; ७/१७८ कणगमय (कनकमय) ज ३।१६७।१२ कणगरयणदंड (कनकरत्नदण्ड) ज ३।१०६ कणगसणाम (कनकसनामन्) ज ७।१८६।१ सू २०।८।१ कणगामई (कनकावती) ज ४।७,१५,२४५ कण गामय (कनकमय) ज ११४६;३।१०६,१६७; ४११,११०,१५६ कणगावलि (कनकावलि) ज ३१२११ कणय (कनक) प ११४११२ पलाश, धतूरा कणय (दे०) ज ३।३१ कणय (दे०) सू२०१८ एक ग्रह का नाम कणयदंडियार (कनकदण्डिकार) ज ३।३५ कणयमय (कनकमय) ज ११४६।१ कणविताणय (कनकवितानक) सू २०१८ ग्रह का नाम कणसंताणय (कनकसंतानक) सू २०१८ ग्रह का नाम कणवीर (करवीर')ज २०१५,३।१२,८८,५।५८ कणिक्कामच्छ (कणिका मत्स्य) प ११५६ कणीयस (कनीयस्) उ ११६५ कण्ण (कर्ण) ज २।४३,६४।५।२६,३८,७।१७८ उ ३३१०२ कण्णकला (कर्णकला) सू १।८।१२।२ कण्णगा (कन्यका) उ ५१३,२५ कण्णत्तिय (दे०) प ११७८ कण्णपाउरण (कर्णप्रावरण) प १८६ १.हे० ११२५३ Page #949 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७२ कण्णपीढ-कतिविह कण्णपीढ (कर्णपीठ) प १३०,३१,४१,४६ ७,६,११,६।१२,१६,२५,१०।३ से ५,२६, कण्णमूल (कर्णमूल) ज ५।१६ २८,२६१११७६,६०१५।१३,१६,२६,२८, कण्णा (कन्या) ज ३।३२ ३१,३३,६४,१७।५६ से ६६,७१ से ७६,७८ कण्णायत (कर्णायत) ज ३।२४,१३१ से ८३,१४५,१४६;२०१६४;२१।१०४,१०५; कण्णायय (कर्णायत) उ ११२२,१४० २८।४१,४४,७०,३४।२५,३६।३५ से ३७,३६ कण्णिगा (कणिका) ज ४७ से ४१,४८,४६ सू १३।६,८,१०,१३,१८७, कणिया (कणिका) प ११४८।४५ ज ३।११७; ४।८,१५,१६ कति (कति) प६।१२०,१२१;८।१ से ३,१०११ कणियारकुसुम (कणिकारकुसुम) प १७११२७ ,१५,१११३०११,१११४२,८८,१२११ से ५; कण्णिलायण (कणिलायन) सू १०६५ १४।१ से ३,५,११ से १४,१७; १५३१११, कण्णिल्ल (कणिल) ज ७।१३२॥१ १५।१,१२,१७,१६,२०,२५,३०,५४,५६, ५७,७७ से ८०,१३३,१३४;१७१३६ से कण्ह (कृष्ण) प ११४४।३,११४८७,११६३१६; ४०,११२ से ११४,१२६,१३६,१३७, २।२०१७।२६,५६ से ६६,७१ से ७६,८१ १४७,१५६,१५७,१५६ से १६१,१६३; से ८७,६४,१०० से १०४,१०६,१०६,११२, २१११,६५,६६,२२१,२१ से २३,२६,२७, १६६,१६७,१६६ से १७२ उ १७; ५।६,१५, २६,३०,३२ से ३६,४२ से ४७,५७,६६,८३, १७ से १६ ८४,८६,८७,८६,६०;२३।१।१,२३।१,२,६,७, कण्ह (वल्ली) (कृष्णवल्ली) प ११४०।३ २४;२४११ से ५,१० से १५:२५।१,२,५; कण्हकंदय (कृष्णकंदक) प १७४१३० २६।१ से ४,८,६;२७।१ से ३,५,६,२८।३१; कण्हकडबु (दे०) प ११४८।३ ३६।१,४ से ७,४२,४३,५३,५४,५८,६२ से कण्हलेस (कृष्णलेश्य) प १३।१५; १७८३,६२, ६४,७७,७८ ज १६१५,४।२६० चं ॥३,५ १४,६५,१०३,१०४,१०७,१०८,१२१,१२६, सू ११६॥३,१११ से ३,१०८ से १६,६३ से १७०,१७२,१८१६६२३११६५,२०० ७४,७६,१२।१,१३।४,५,१५ से ३७,१८।१४ कण्हलेसट्ठाण (कृष्णलेश्यास्थान) प १७१४६ से १७,१६।१ कण्हलेसा (कृष्णलेश्या) प १७।१२१,२८।१२३ कतिपएसिय (कतिप्रदेशिक ) प १५।११,२४ कण्हलेस्स (कृष्णलेश्य) प १३।१४,१६ कतिपदेसिय (कतिप्रदेशिक) प १७।१४० कण्हलेस्सट्ठाण (कृष्णलेश्यास्थान) प १७।१४६ कतिप्पगार (कतिप्रकार) प ११।३०।१ कण्हलेस्सा (कृष्णलेश्या) प १३।१४,१६,१६१४६, कतिभाग (कतिभाग) प २८।१।१,२८।२२,३४,३६ ५०,१७१३६,३८,३६,४१,४३,४७,५०,८२, ११४ से ११६,११८,१२१,१२३,१३०,१३६ कतिभागावसेसाउय (कतिभागावशेषायुष्क) से १४५,१४७ से १५०,१५६ से १६४ प६१११४ से ११६ कण्हलेस्सापरिणाम (कृष्णलेश्यापरिणाम) १ १३१६ कतिविध (कतिविध) प६।११८,१७४१३६ कण्हसप्प (कृष्णसर्प) प १७० सू २०१२ कतिविह (कतिविध) प ५।१,१२३ से १२५; कत (कृत) प २८.१०५;३४।१६ सू २०१७ ६।११६६।१,१३,२०,२६,११।३१ से ३७, कतर (कतर) प ३।३८ से ४८,५० से १२०,१२२ ७३,८६,१३।१ से १३,२१ से ३१,१४।७,६ से १२४,१७४,१७६ से १८२६।१२३,८१५, १५।५८ से ६०,६२,६३,६५ से ७४,७६; Page #950 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कतिसमइय-कब्बडय ८७३ १६।२,३,१७,१६,२०,२०१६२; २११२ से ६, ८ से १२,१४,१५,१६,२०,४६,७२,७५ से । ७७,९४,२२।२ से ६; २३।१११,२३।१३ से २३,२५ से ४७,५७ से ५६:२६।१ से ३,५ से ७,६,१०,१२,१३;३०।१,३,५ से ११,१३; ३३।१,३४।१७,३५।१,४,६,८,१०,१२,१६ ज २।१ से ३;४।२५४,२५५ सू १०।१२६; २०१३ कतिसमइय (कतिसामयिक) प १५॥६१; ३६।२, ३,८४,८५ कतो (कुतस्) प० ६७० सू ४।४ कत्तिई (कार्तिकी) ज ७।१४०,१४४,१४६ सू १०।२६ कत्तिगी (कार्तिकी) ज ७।१३७,१५५ कत्तिम (कृत्रिम) ज २।१२२,१२७,४।१००,१७० कत्तिय (कार्तिक) ज ७।१०४,११३।१,१३७ उ ३।१३,४० कत्तिया (कृत्तिका) ज०७।१२८,१२६,१३६, १४०,१४४,१४६,१५६,१६० सू १०।१ से ६, ११,२३,३६,६२,६६,६७,७५,८३,१०१,१२०, १२४,१३१ से १३३;१२।२८ कत्तिया (कार्तिकी) सू १०७,११,२३,२६ कत्तो (कुतस्) ५६।१।१,६७५,७८,८०,८१,८७, ६०,६४,६६ ज ३।१२७ कत्थ (कुत्र) प २१६४।२ कत्थइ (कुत्रचित्) ज २१६६ सू २०१७ कत्थुल (कस्तुल) ज २।१० कदलीथंभ (कदलीस्तंभ) प १११७५ कद्दम (कर्दम) ज० ३।१०६ उ १।१३६ कद्दुइया (दे०) प ११४०।२ कषं (कथं) सू १६।२४ कप्प (कल्प) प० २।१,४,१०,१३,५० से ५६, ५६।२,२१६०,६३,३।२६ से ३६,१८३,४।२१३ से २४०,२४३,२४६,२५८,२६४,६।२८,६५, ६८,१०६;२०१६१२११७०,६१,६२,३०।२६; ३४।१६,१८ ज ५॥१८,२४ से २६,४४,४६ उ २।२०,२२,३।६०,१२०,१५६,१६१,४१५, २४,२८ /कप्प (कृप)-कप्पइ उ ३१५०,४।२२ कप्पति ज ५।१३,१८,२४,२५ कप्प (कल्पय्) कप्पेह उ ५१८ कप्पकार (कल्पकार) ज ३।११७ कप्पणा (कल्पना) ज ३।३५ कप्पणी (कल्पनी) ज ३।३१ कप्पणिकप्पिय (कल्पनीकल्पित) उ ११४६ कप्परुक्ख (कल्पवृक्ष,कल्परूक्ष) ज ३।६,२११,२२२ कप्परुक्खग (कल्परूक्षक) ज ५१५८ कप्पडिसिया (कल्पावतंसिका) उ ११५;२।१ से ३,१४,१५,२१, ३१ कप्पाईय (कल्पातीत) प १११३८ कप्पातीत (कल्पातीत) प १।१३४; २१।५५,७१ कप्पातीतग (कल्पातीतक) प ६१८५,६२ कप्पातीय (कल्पातीत) प १११३६; २११६२ कप्पासठिसमिजिया (कासास्थिसमञ्जिका) प११५० कप्पासिय (कासिक) प १९६ कप्पिद (कल्पेन्द्र) प १५॥५५॥२ कप्पिय (कल्पित) ज ३१६,२२२ कप्पूरपुड (कर्पूरपुट) ज ४।१०७ कप्पेत्ता (कल्पयित्वा) ज ५११२ कप्पेमाण (कल्पमान) ज १।१३४ कप्पोवग (कल्पोपग) प १११३४,१३५, ६१८५, ८६,९५,२१५५ कप्पोववण्णग (कल्पोपपन्नक) ज ७.५५ सू १६।२३ कबंध (कबन्ध) उ १११३६ कब्बड (कर्बट) प ११७४ ज २।२२,१३१,३।१८, ३१, १८०,१८५,२०६,२२१ उ ३३१०१ कब्बडय (कर्बटक) ज ७।१८६।२ सू २०१८, २०१८२ Page #951 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .८७४ कम ( कम ) ३३१,१०६,२१७६४।२०२६७।१३० मू १६।२२।१४ कम ( क्रम् ) कमइ ज २२६, ४२०२; ७ १३० कमंडलु (कमण्डल) ज २०१५ ३।५१११ कमल ( कमल) ज २।१५,३३,६,१८८, २०६ २१०५।२१,५६१।१५,३५,३१८ कमलमाला ( कमलनाला ) उ ११३५ कमलागर ( कमलाकर ) ज ३।१८८ कमलामेन (कमलामेल) ज २०१०६ कम्म ( कर्मन् ) प १।१४६, २।६४।२१३।१७४; १९८६ १७ ११:१७।१८:२०१३६ २१।१०२:२२।२६, २७:२३३,६,७,९ मे ११, १३ से २३,२५,२६,२२ से ४१,४७, ४८, ५७ से ६४,६६,६८,६६,७३ ७७,८१,८३,८५ से २०,९२,१३,६५ से २९.१०१ से १०४, १११ से ११४,११६ से ११८,१२७,२३०, १३१,१३३ से १३५.१२७.१३८, १४२, १४३, १५५,१६१, १६५. १६७. १७१.१७६. १७७, १८२,१८३, १८७,१६१ से २०१,२४।२ से ५, ११, १२, १४:२५४२,४,५,२६१२ से ४,८,९ २७२.३.६३६४८२,८३१.३६६२ २१२. ३०,३३,३६,२०५१,५४,६४.७०, १२१,१२६. १३०.१२८,१४०, १४९, १५४, १६०, १६३ ३१३२१२,२५,१२५.१६७१७, १७८, २११,२२३ ४।२७।११२३ १०।१२।३.२०११.२ २०६।३५१।२७, १४० कम्स ( कम ) प ३६२०२१२ कम्मकर (कर्मकर) ३२१७८ कम्नबंध ( कर्मस्कन्ध ) प ३६।९२ कम्मग ( कर्मक) प १२१४, २१, २६, २६, २१/६६, १०५,२३।४१,४३, ४४, ३६।१२ कम्मगर (कर्मकर) वा ५४५.७ कम्मगसरीर (कर्मकशरीर ) प १२१०,१६।१५, १८,२१,२१११४,१०० १०३ से १०५३६१०७ कम्मवारी (कर्मकशरीर) २८१४१ कम-कयपुष्ण कम्मपगडि ( कर्मप्रकृति) ११४|११ से १४,१७; २२०२१ से २३.२००३८४८६८७८, २०२३।१ से ५.२४२४०१ से ५.१० से १५: २५४१,२,४.५२६।१ से ४,८९२७१ से ३, ५,६ कम्मबीय ( कर्मबीज ) प ३६।९४ कम्मभूमग ( कर्मभूमिक) १८५०८१२९६ ६७२,६४१७, १८, ११२२११५४,७२ कम्मभूमग ( कर्मभूमिज ) प २३२०० कम्मभूमगपतिभागि (कर्मभूमिकपरिभागिन् ) २३।१९६.१९९ से २०१ कम्मभूमय ( कर्मभूमज ) प ६७६ १७ १५९,१६१. १७१:२३।११६.१९८ कम्मभूमि (कर्मभूमि ) प १७४८४२७२ कम्मभूमि ( कर्मभूमिज ) प २३।२०१ कम्मय (कर्मक) प १२१ से ५,३५,३६२१०१ कम्मवेदय (कर्मवेदक ) प १०१०६ कम्मर (कर्मशरीर ) प १२० कम्मा ( कर्मक) प १२/२५ २१।१०२ कम्मार ( कर्मार ) ज २।२६ कम्माfरय ( कम ) ११९२.१६ कम्मासरीर (कर्मकशरीर ) प १६०१ से ८ १० से १५, १६ कम्मिया (कार्मिक) उ १४४१,४३ कम्हा ( कस्मात् ) ७२८ कय (कृत ) प २३०,३१,४१ ज ३१६,१८,५८, ६६. ७२,७४,७७,८१,०२,८५,९२,१३, ११७१.११९१२१.१२५.१४७, १६० २२१. २२२,२२६ ५।२६, ५६ उ ११६,७०,८८, १२.१२१३४५, ५०, ५१,५६,११०६५।१७ कथंब ( कदम्ब) प १३६।३ कयकज्ज ( कृतकार्य ) सू २०१७ करगह (कचग्रह) ३४१२००५४७५८ कमश्व (हतार्थ) ५१५४६१२४ कयपुण्ण ( कृतपुण्य) उ १।३४ Page #952 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कयमाल-करीर ८७५ कयमाल (कृतमाल) ज २८, ३७१ से ७४,७६, १६।५०; ३६।८२।१३६८५,६२ ज २१६६, ११७ करेमि ज २१०३।२६,३६,४७,५६ ' कयमालक (कृतमालक) ज ३।७१,१५० १३३,१४५; ५१२२ उ ११४२ करेमो कयमालय (कृतमालक) ज १।२४,४६, ६।१६ ज ३।११३,११५,१३८,५।३ करेसि उ ३७६ कयर (कतर) प ३।४६१७।१४४; २२।१०१, करेस्सामी उ ३।२६ करेह ज २।१४; ३७, ३६।३८ ज ७।१२६,१७५,१८०,१८१,१६७ १२,२८,४१,४६,५८,६१,६६,७४,१४७,१६८ सू १०१२ से ४,७५,७७,१३३ से १३५; करेहि ज ३।१८,१६,३१,५२,६६,६६,१४१, १८।१८,१६ १६४,१८० सू३।१०३ करेहिइ उ ३।२१ करेहिंति ज २११५१.१५७ उ ३।१२६ काहिइ कयलक्खण (कृतलक्षण) उ १।३४ उ ११४१,३८६ कीरइ उ ५।४३ कयलीखंभ (कदलीस्तंभ) ज २।१५ कर (कर) ज २।१५,७१, ३।३,१३८ उ १।१३६ कयलीहर (कदलीगृह) ज ५।१४ करंज (करञ्ज) प ११३५।१ कंजा जिसके फल कयलीहरग (कदलीगहक) ज ५।१३ आदि दवा के काम आते हैं कयवर (कचवर) ज २।३६, ५१५ करंडग (करण्डक) उ ३।१२८ कयविहव (कृतविभव) उ ११३४ करंडुग (दे०) ज २०१६ कया (कदा) ज ७/१२५ च २।४ सू १।६।४,१४११ करंत (कुर्वत्) उ १८८,६२ कयाइ (कदाचित् ) ज ११४७, ३।४,८३,१०४, करकर (करकर,अकरकरा) प ११४२।२,११४८।४६ १५४,१७२,१८८,२२२,२२६; ४।२२,५४, अकरकरा १०२ उ १।१४; ३।४६,४।२१,५।१३ करकरय (करकरक) सू २०१८ कयाई (कदाचित् ) उ२।८ करकरिय (करकरिक) सू २०१८ कर (कृ) अकासी ज २१८४ करवाणि ज ३।३२१।। करण (करण) ज १११३८,३।३२ १२६,२०६; करिस्सामि ज २१६; ५१४६ करिस्सामो ५।५, ७।१२३ से १२६ ज ५१५,७ करेइ प ११७४;३६८८ ज ११६; करतल (करतल) ज ३।२०६ २१६५,६०, ३।५,६,१२,१८ १६,३१,३२२२, करधाण (करध्मान) ज ३।३१ ४६,५२,५३ ६१,६२ ६६,७०,८८,६५,१००, करमद्द (करमर्द) प ११३७।४ करौंदा,आंवला १३१,१३७,१४१ १४२,१५६,१६४,१६५, . करय (करक) प ११२३ १८०,१८१,२२४;५।२१,२६,४४,४६ ४८ करयल (करतल) ज ३१५,६,८,१२,१६,२६,३६, सू २१ उ ११६,३१५१;४।१३ करेंति ४७,५३,५६,६२६४,७०,७२,७७,८४,८८, प ११८४, ६।११०.२०१६ से ८,३४।१६,२१ ६०,१००,१०५,११४,१२६,१३३,१३८ १४२, से २४ ज ११२२,२७,५०; २०१०,५८,१००, १४५,१५१,१५७ १६५,१८१,१८६,२०५, ११५,११६,११८,१२०,१२३,१२८,३।१३, २०६; ५१५७,,२१,४६,५८ उ १।१५,३५, २८,४२,४७,५०५६,६७,७५, ९२,११६,१३६, ३६,४५,५५,५७,५८,६१,६२,८०,८२,८३ १४८.१६६,१८४,२११,४।१०१,१६६,१७१; ८६,८७,६६,१०७,१०८,११६,११८,१२२; ५।५,७,१४,१६,४६,५७,६०,६६,७४ ३१६८,१०६,११४,१३८,१४८,४।१५,५।१७ सू २११ उ ११६३ करेजा प २०११ से ४,१८, करयलपुर (करतलपुट) ज ५.१४,१७,६०६६ ४०,४४,४६,४८ ज ५७, करेति प ११७१; करिय (कृत्वा) ज ५१५८ Page #953 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७६ करित्तए-कसरि २ करित्तए (कर्तुम् ) प २८।१०५ ज ५।२२ ७८,८८,६१,१४७,१६८,१७३,१७५,१८४, करीर (करीर) प ११३७।४ करील १६६,२१२,२१३,४।२७,४६१६६:५७ करेंत (कुर्वत्) ज २१६५ २८,४३ सू २०१७ उ १।१२३; ५॥१८ करेत्तए (कर्तम् ) प ३४।१६,२१ से २४ ज २।६० कलुय (कलुक) प ११४६ उ ३।११५ कलुस (कलुष) ज २।१३१ करेत्ता (कृत्वा) प ३६।६२ ज ११६ सू २११ कलेवर (कलेवर) प ११८४ सू २०११ उ १११६; ३७;४।१३ कल्ल (कल्य) ज ३।१८८ उ ३।४८,५०,५५,६३, करेमाण (कुर्वत्) ज २१६५,७८, ३।२२,२८,३१, ६७,७०,७३,१०६,११८ ३२,३४ से ३६,५४,७८,८६,६३,६६,१०२ कल्लाण (कल्यानी) प ११४१।२ जंगली ३३८ १०६,१११,११३,१३७,१४३,१५६,१६२, कल्लाण (कल्याण) ज १।१३,३०,३३,३६; १६३,१८०,२०४ से २०६,२०८,२०६,२२३ २।१८,६४,६७,४।२ सू १८।२३ उ १११७, उ १।२२,६५,६६,७१,६४,१११,११२,१३८, ४१,४४,५१३६ १४०, ३१५० कल्लाणग (कल्याणक) प २।३०,३१,४१,४६ कल (कल) प ११४५।१ ज २०३७ सालवृक्ष ज ३१६,२२२ कलंकलीभाव (कलंकलीभाव) प २०६४ कल्हार (कल्हार) प ११४६ सफेद कोइ, एक पुष्प कलंबुया (कदम्बक) प ११४६; १५।२,१८ सू ४।३, कवड (कपट) ज २११३३ ४,६,७,६;१६।२२।२,१५,१६।२३ कवय (कवच) प २१६४।२१ ज ११३७, ३।३१, कलकल (कलकल) ज २१६५; ३।२२,३६,७८,६३, ६६.१०६,१६३,१८०, ७.५५,१७८ सू १६।२३ ७७,७६,६६,१००,१०१,१०७,११६,१२४ उ ११३८ उ११३८ कलकुसुम (कलकुसुम) प १७११२५ कवाड (कपाट) प २८,३०,३१,४१ ज ११२४; कलताल (कलताल) ज ३१३१ ३१८३,८५,८८ से ६०,१०२,१५४ से १५७, कलस (कलश) प २।३०,३१ ४१ ज २।१५; १६२,१६७।१२ ३।१७८,२०६४१२८,५५६ से ५८ कविजल (कपिञ्जल) प ११७६ उ ३१५१,५६ कविट्ठ (कपित्थ) प ११३६।१,१६।५५,१७।१३२ कलह (कलह) प २१४१२२।२० ज २१४२,१३३ ज ३।११६७।१७६ कैथ कलहंस (कलहंस) प १७६ ज २०१२ कविट्ठाराम (कपित्था राम) उ ३।४८,५५ कला (कला) ज २१६४७।१३४।१ सू १०।१४२, कविल (कपिल) ज २।१२,६५,१३३ १४७; १२।३० उ ५।१३ कविलय (कपिलक) सू २०१२ राहु का नाम कलाव (कलाप) प २।३०,३१,४१,१५।२६%3 कविसीसग (कपिशीर्षक) ज ३।१४।११४ २१।२५ ज ३७,८८,११७ कविसीसय (कपिशीर्षक) ज ४।११४ कलिंग (कलिङ्ग) प श६३।१ कवोय (कपोत) प १७६ ज २११६ कलिंद (कलिन्द) प ११६४।१ कवोल (कपोल) ज २०१५ कलिय (कलित) प २।३०,३१४१,४८ ज ३।१०, कव्व (काव्य) ज ३।१६७।१० १५,६५, ३१७ १२,१५,२१,२२,२८,३१, कस (कष) ज २६७ ; ३।१०६ ३२१२,,३४ से ३६,४१ ४६,५८,६६,७४,७७, कसरि (दे०) सू १०।१२० Page #954 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कसाय-कामभोग ८७७ कसाय (कषाय) प ११११५,,११४ से ६३।१११; काउलेसट्ठाण (कापोतलेश्यास्थान) प १६।१४६ ५१५,७,२०५; १४।१,२,१८।१।१; २३।६८, काउलेसा (कापोतलेश्या) प १७११२१२८।१२३ १४०,१८३,१८४; २८१३२,६६,१०६।१; काउलेस्स )कापोतलेश्य) प ३९६१३।१४; ३६।१।१ ज २११४५ १६।४६;१७।३२,५६,५७,५६ से ६१,६३,६४, कसायपरिणाम (कषायपरिणाम) प १३।२,५,१४ ६६ से ६४,७१ से ७४,७६,८१ से ८५,८७, १६ ६४,१००,१०२,१०३,१११,१६७,१८७१ कसायवेयणिज्ज (कषायवेदनीय) ब २३।१७,३४, काउलेस्सट्ठाण (कापोतलेश्यास्थान) प १७।१४६ काउलेस्सा (कापोतलेश्या) प १६।४६,१७।३६, कसायसमुग्घात (कषायसमुद्घात) प ३६।६५ ।। ३७,११७,११८,१२१,१२२,१२५,१२६,१३२, कसायसमुग्घाय (कषायसमुद्घात) प ३६।१४,५, १३६,१४४,१४५,१५१ से १५३ ६,७,२१,२२ २८,३५ से ४३,४६,५३ से ५८ काउलेस्सापरिणाम (कापोतलेश्यापरिणाम) कसाहिया (दे०) प १७१ प१३१६ कसिण (कृष्ण) प २।३१ ज २०१५ काऊ (कापोती) प २०२० से २५ कसिणपुग्गल (कृष्णपुद्गल) सू २०१२ काऊण (कृत्वा) ज ३।१२ कसेरुया (कशेरुक) प ११४६ एक तरह का घास काओदर (काकोदर) प १७० कह (कथं) प २३।१।१ काओली (काकोली) प ११४८।५ एक वनौषधि जो कह (कथय) कहेइ उ २।१२ अष्टवर्ग के अन्तर्गत है, जीवंती कहं (कथं) ज ७.५६ चं २।४ सू ११६ उ ११७२, काकंदी (काकन्दी) उ ३।१७१ ३७८ काकंध (काकन्ध) सू २०१८,२०८।३ कहग (कथक) ज २१३२ काग (काक) प १७६ कहा (कथा) उ १।१७,५७,८२,६६,१०७,१२७; कागणि (काकिणी) प ११४०१५ ज ३१६५,१५६ ३।१३,२६,१४७,१६०; ४।११।५।१५,३८ कागणिरयण (काकिणीरत्न) ज ३।६४,१३५,१५८, कहि (क्व) प १७४ ज १७ १७८,२२० कहिं (क्व) प ६९६ ज २।१८ चं २।२ सू १।६।२ कगणिरयणत्त (काकिणीरत्नत्व) प २०१६० उ ११२५ काणण (कानन) ज २६५ कहिचि (कुत्रचित्) उ ३।१०१ कातव्य (कर्तव्य) ५।१६१,१७६;६।५६,६६, कहिय (कथित) ज ११४ चं हसू ११४ उ ११२ ७४ से ७८,८०,१११ काइय (कायिक) ज २७१ कामंजुग (कामयुग) प ११७६ काइया (कायिकी) प २२।१२,२२१४६ से ५०,५३ कामकाम (कामकाम) प २।४१ से ५६ कामकामि (कामकामिन्) ज २०१६ काउ (कापोत) प १३।६।१७।१२२ कामगम (कामगम) ज ५१४६।३;७१७८ काउं (कृत्वा) उ ३।१११,४।१६ कामगामि (कामकामिन्) ज २।२२ काउंबरी (काकोदुम्बरिका) प ११३६।२ कामगुणित (कामगुणित) प २।६४।१६ काउलेस (कापोतलेश्य) प १७।६२,६४,६५,१०३, कामत्थिय (कामाथिक) ज ३१८५ ११०,१११,१६८ कामभोग (कामभोग) ज ३१८२,१८७,२१८ Page #955 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७८ कामभोय-काल सू २०१७ उ १।११ कामभोय (कामभोग) उ ५।२५ कामरूव (कामरूप) प २१४१ काय (काक) प ११४७ काय (काय) प ११८६,३।१।१,१५१५३,५४,५६, ५७:१६५१ से ८,१० से १५,१८,१६,२१,५४: १८।१।१; २३।१५,१६,३०,३१,३४।११२ जश६७,६।१६७ सू१०१७४;२०१८२०1८।३ कायअपरित्त (कायअपरीत) प१८।१०६,११० कायगुत्त (कायगुप्त) ज २६८ उ ३६६ कायजोग (काययोग) प ३६।८६ से ८८,६१,६२ कायजोगपरिणाम (काययोगपरिणाम) प १३७ कायजोगि (काययोगिन् ) प ३९६,१३।१४,१६; १८१५७; २८।१३८ कायठिइ (कायस्थिति) प १।११५,१८११२ कायपरित्त (कायपरीत) प १८।१०६,१०७ कायपरियार (कायपरिचार) प ३४।१६ कायपरियारग (कायपरिचारक) प ३४।१८,१९, २१,२५ कायपरियारणा (कायपरिचारणा) प ३४।१७ से कारियल्लइ (कारवल्ली) प ११४०।२ करेला कारिया (दे०) प ११३७५ कारिल्लय (दे०) सू १०।१२० कारेमाण (कारयत्) प २।३०,३१,४१,४६,५७ ज ११४५,३।१८५,२०५,२०६,२११;५।१६ उ ५।१० कारोडिय (कारोटिक) ज ३।१८५ काल (काल) प ११४ से ६,७४,८४,२।२० से २७, ३१ से ३३,४०1८;२।४२,४३,४५।१२।४६,४७, ६४,४१ से ४६,५६ से ५८,६५,७२,७६,८८, ६५,६८,१०१,१०४,११३,१३१,१४०,१४६, १५८,१६५,१६८,१७१,१७४,१८३,२०७, २१०,२१३,२६४,२६७,२६६,५५,७,३७,३८, ७४,१०७,१२६,१५०,१५२,१५४,१६०,१६३, १६७,२००,२०३,२४२,२४४।६।१ से २३, २७,४२ से ४५;७।१ से ४,६ से ३०,१११५३, ५४;१२।२४,३२,३३,१३।२६,१६।५०;१८॥३, १४,१५,२६,२७,३७,३८,४१,४३,४५,५७, ५६,६२,६४,७७,८३,६०,६५,१०५,१०७, १०८,११०,११६,११७,१२०,२३।४७,६० से ६२,१०५,१६३ से १६६,१६८ से २०१; २८।४,६,७,२०,२६,३२,३८,५०,५२,५३, ६६,३६।६०,६१,६७,७१,७२,७५,७६,६३, १४ ज १२,४,५,२।१ से ३,६,४४,४६,५१, ५४,६६,७१,८८,८६,६१,१२१,१२६,१३०, १३१,१३३ से १४१,१४६,१५४,१६०,१६३; ३।३,२४,३१,३२,६२,६५,१०३,११६,१३८।१, १५६,१६७।१,७,१७८,२२४;५।१,६,८ से १३,१८,४८,५० से ५२,७०५७,६०,१०१, १०२,१८७,२१० चं ६,६,१० सू १।१,४,५; २।२८।११७११,१८१२५ से ३४;१६।२५; २०१७ उ १।१ से ३,७,६,१३ से १६,२१,२२, २५ से २८,५१,६५ से ६७,७६,६३,६४,११६ से १२२,१२५,१४०,१४१,१४४,१४७,२।४,६, ७,६,११,१६,२२,३।४ से ६,६,१२,१४,१६, २१,२४,२५,२७,४०,४८,५०,५५ से ५७,६४, कायमाई (काकमाची) प ११३७२ मकोय काययोगि (काययोगिन्) प १३।१७ कायव्व (कर्तव्य) प ५११३२,२२६;६।४६,११०; १३।१७;१५।३४,३८,७५,१७।६१,२८।१।२ ज ४।१७२ कायसत्रिय (कायसमित) ज २१६८ कारंडव (कारण्डक) ज २०१२ कारण (कारण) प ८।४,६,८,१०,२८।२०,२६, ३२,६६ ज ७।२१४ उ ११३६,११६,१२७; ३।११,२६ कारभरिय (कारभारिक) ज ३।१८५ कारव (कारय) कारवेंति ज ३।१३ कारवेह ज ३७ कारवेत्ता (कारयित्वा) ज ३१७ Page #956 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काल-किपुरिस ७९ ६५,६८,६६,७१,७२,७४,७५,७६,८३,८६, कालिंग (कालिङ्ग) प ११४८।४८ ज ३।११६ १०,६५,९८,६६,१०६,१२०,१२४,१३१,१३२, कालिंगी (कालिङ्गी) प ११४०११ १५०,१५५ से १५७,१५६,१६१.१६४,१६८, काली (काली) उ१११२,१३,१५,१७,१६ से २४; १६६,४।४ से ६,१०,१६,२४,५।४,१४,२१, २१५,६ २४,२५,२६२८,३६,४०,४१ कालोदधि (कालोदधि) सू १६।११।१ काल (काल) सू२०१७,२०1८।५ कालोदहि (कालोदधि) सू१६।११।२,४ काल (दे० कृष्ण) सू १६।२२।१६,१८,२० कालोय (कालोद) प १५१५५,५५५१ सू ८।१ कालओ (कालतस्) प १११४८,५१,१२।७.८,१०, कालोयसमुह (कालोदसमूद्र) प १६।३० १२.१६.२०,२७,३२:१८११ से १०,१२ से १७, कादिसायण (कापिशायन) प १७।१३४ १६ से ३६,४१ से ४७४६ से ५१, ५४ से कास (काश, कास) प ११३७।४ सहिजन का पेड, ५६,६१ से ६०,६३ से १११,११३,११४, एक घास ११६,११७,११६,१२०१२२,१२३,१२५ से कास (कास) २४३ १२७;३५।४ ज २१६६ कास (काश) सू२०१८२०।८।४ कालग (कालक) प ३।१८२,५३३७,५६,८८,८६, कासपगात (काशनकाश) ३।३५ १०७,१४६,१५०,१६०,१६३,१६७,२०० कासव (काश्यप) ७।१३२।३ कालगय (कालगत) ज २८८,८६;३।२२५ कासवगोत्त (काश्यपगोत्र) उ १३ उ ११२२,६२; २।१२,५।३६,४० कासित्ता (कासित्वा) ज २१४६ कालण्णाण (कालज्ञान) ज ३।१६७७ कासी (काशी) प १६३।१ उ १११२७ से १३०, कालनाण (कालज्ञान) ज ३।३२ कालतो (कालतस्) प १२।२०१८।३,१८,४१, काह (कथय) काहिइ उ २।१३,५१४३ ४३,६०,६५,२८।५,५१ काहार (दे०) ज ७।१३३।१ कालमास (कालमास) ज २१४६,१३५ से १३७ काहारसंठिय ('काहार'सस्थित) सू१०।२७ उ १२५ से २७,१४०।३।१४,८३,१२०,१५०, कि (किम) प ११ ज १७ च २।१ सू ११६ १६१,४।२४।५।२८,४०,४१ कालमुह (कालमुख) ज ३१८१ किंकर (किङ्कर) प २।३०,३१,४१ ज ३।२६,३६, कालय (कालक) प ३।१८२,५।३६ से ३८,५.८ से ४७,५६,६४,७२,१३३,१३८,१४५,१७८ ६०,७३ से ७५,८६,६०,१०६ से १०८,१५०, किचि (किञ्चित् ) प २१६४।१८ ज १७ १५१,१८६ से १६४,१६६ से २०४,२४१ से सू१११४,२०,२७ २४३;१७।१२६ सू २०१२ किंचिविसेसूण (किञ्चितविशेषोन) ज २४८ काललोहिय (काललोहित) ३ १७११२६ ४।१,४०,५५,६७,१६७,१६६ सू ११२७; कालहेसि (कालहेपिन् ) १।१६।४,५।१,१११६७, ८१ काला (काला) ज २११३३ किंथुग्घ (किंस्तुघ्न) ज ७।१२३ से १२५ कालागरु (कालागुरु) प २१३०,३१,४१ ज २१६५; किपज्जवसिय (विपर्यवसित) ष १११३० ३।१२,५७,५८ किपहव (किंप्रभव) प ११।३० कालागुरु (कालागुरु) ज ३१७,८८ सू २०१७ किंपुरिस (frपुरुष) प १।१३२; २।४१,४५, कालायस (कालायस) ज ३।१०६,१७८ ४५।२ ज ३।११५,१२४,१२५. Page #957 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० किंसंठिय-कीलंत किंसंठिय (किंसंस्थित) प ११३० किंसुय (किंशुक) ज ३१८८ किसुयपुप्फ (किंशुक पुष्प) प १७१२६ किच्च (कृत्य) उ ११६२ किच्चा (कृत्वा) ज २०४६ उ ११२५, ३।१४; ४।२४; ५।२८ किच्छ (कृच्छ) ज ३।१०८ से १११ किटिभ (किटिभ) ज २११३३ किट्टि (किट्टी) प ११४८।४ किट्ठीय (किट्टिया) प ११४८।२ किढिण (किठिण) उ ३.५१,५३,५५,५६,६३,६४, ६७,६८,७०,७१,७३,७४,७६ किणा (कथं) प १५१५३ किण्णं (किंनं) ज ३।१२४ उ १६६ किण्णर (किन्नर) प २।४५,४५।२ ज ११३७; २।१०१,३।११५,१२४,१२५; ४।२७, ५।२८ किण्णा (कथं) उ ५।२३ किण्ह (कृष्ण) प ११४८१६ कालीमीर्च, करौदा किण्ह (कृष्ण) प २।२१ से २७ ज ११३,१४; २१७,१२,२३,१६४,४।२६,११४,११६,१२६, २०१,२१५,२४०,२४१ सू १६।२२।१७; २०१२ उ ३३४६ किण्हकणवीरय (कृष्णकरवीरक) प १७१२३ किण्णकेसर (कृष्णकेशर) प १७।१२३ किण्हपत्त (कृष्णपत्र) प ११५१ किण्हबंधुजीवय (कृष्णबन्धुजीवक) प १७।१२३ किण्हब्भ (कृष्णाभ्र) ज २।१५ किण्हमत्तिया (कृष्णमृत्तिका) प १११६ किण्हय (कृष्णक) प ११४८।६२ किण्हलेसा (कृष्णलेश्या) प १७।२१ किण्हलेस्स (कृष्णलेश्य) प ३।६६;१७।३१,८४; २३।१६६ किण्हलेस्सा (कृष्णलेश्या) प १७।३७,११६,१२०, १२२,१२३,१३६ किण्हसुत्तय (कृष्णसूत्रक) प १७११६ किण्हा (कृष्णा) ज ११२३,२।१२ किण्हासोय (कृष्णाशोक) प १७.१२३ किण्होमास (कृष्णावभास) ज ४।२१५ उ ३।४६ कित्ति (कीति) ज ३।१७,१८,२१,३१,६३,१७७, १८० उ ४।२।१ कित्ति (कूड) (कीतिकूट) ज ४।२६३।१।। कित्तिम (कृत्रिम) ज ११२१,२६,४६; २०५७,१४७, १५०,१५६ कित्तिय (कीर्तित) प ११४८१६३ किन्नर (किन्नर) प १११३२,२१४१ किन्नरछाया (किन्नरछाया) प १६।४७ किब्बिसिय (किल्विषिक) प २०१६१ ज ३।१८५ किमंग (किमङ्ग) उ १११७, ३।१०२ किमिरागकंबल (कृमिरागकम्बल) प १७।१२६ किमिरासि (कृमिराशि) प ११४८६ किर (किल) ज २१६ सू २०१६।४ किरण (किरण) ज २।१५,३।२४ किरिया (क्रिया) प ११११६१७१११,२२,२३, २५,३०,३३,२२।१ से ५,६ से १६,२६,२७, २६,३०,३२ से ५०,५२ से ६३,६५ से ६६, ७१ से ७४,७६,६१ से १४,६७ से १६,१०१ २६।१०,३६।६२ से ६४,६७,६८,७१,७७,७८ ज ७.५२ किरिया (रुइ) (क्रियारुचि) प ११०१११,१० किरियारुइ (क्रियारुचि) प १११०१।१० किलकिलाइय (किलकिलायित) ज ७।१७८ ‘किलाव (क्लम्) किलावेंति प ३६।६२ किवणबहुल (कृपणबहुल) ज १११८ किलेस (क्लेश) चं ११२ सू २०६६ किसलय (किसलय) प १४८।५२ किसि (कृषि) ज २६३ कीड (कीट) प १३५११ v कोड (क्रीड्) कीडंति ज ११३०,३३ Vकील (क्रीड) कीलंति ज १११३,४/२ कोलंत (क्रीडत्) ज ३।१७८ Page #958 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कील - कुप्पर कीलग ( कोलक) ज ५।३२ कीलण ( क्रीडन ) प २१४१ कीलावण ( क्रीडन) उ ११६७ से ६६ कीस ( कस्मात् ) उ ११५७,८२ कोस (कीदृशता ) प २८।२४,३६,४२,४५, ७१; कुंभी (कुम्भी) ज ३।२ कुक्कुड ( कुक्कुट ) प ११५१।११।७६ कुक्कुडि ( कुक्कुटी) उ १५६,६३,८४ कुक्कुह (दे० ) प १।५११ कुच्च (कूर्च ) प १३७।५ ३४/२० कुंकुम ( कुंकुम ) ज ३१३५. 1 कुच्छ ( कुत्स्) कुच्छेज्जा ज २१६ कुच्छि ( कुक्षि ) प ११७५ ज २२६, ६३ सू २०२ उ ३६८ ५१३० कुंकुमपुड ( कुंकुमपुट) ज ४११०७ कुंजर (कुञ्जर) ज ११३७,२११०१; ३ | ३ ४ २७ कुच्छि ( कुक्षि ) ज २१४३ अडतालीस आंगुल का मान ५।२८ कुंड ( कुण्ड ) प ११।२५ ज ४।२५,४०,६७,६८, ७१,७५,६०,६२,१७४ से १७६, १८२,१८३, १८८, १८६१६४६६१८ कुंडल ( कुण्डल ) प २।३०,३१,४१,४६.५० ; १५५५११३१३,६,९,१८,२६,६३,१८०, २११,२२२४।२०२५११८,२१,६७ सू १६।३१ कुंडलवर ( कुंडलवर) सू १६/३१ कुंडलवरोद ( कुंडलवरोद ) सू १६।३१ कुंडलवरोभास (कुंडलवरावभास) सू१९/३१,३२ कुंडलोद ( कुण्डलोद) सु १६।३१ कुंत ( कु·त ) प २२४१ ज ३।१७८ कुंलग्ग (कुत्ता) उ १।११५,११६ कुंतग्गाह (कुन्तग्राह) ज ३।१७८ कुंथु (कु) प १५० कुंद (कुन्द) प ११३८ । ३; २१३१,१७११२८ ज २११०,१५,३३,१२,३५,६६ ५१५८ कुंद (लता) (कुन्दलता ) प १|३३|१ कुंदरुव (कुद) २६५३८ एक बेल और उसका फल जिसकी तरकारी बनती है कुंदुरुक्क (कुन्द) २१३०,३१,४१ ज ३७,१२,६८ ५७,५८ सू २०१७ कुंभ (कुंभ) ज ३१३,५६,१२०, १४५,७१७८ उ १६७ कुंभग्गल (कुंभास् ) ज २११०६,११० कुंभिक्क (कम्भिक, कुंभाग ) ज ५३८ ८८१ कुच्छ ( कुक्षिकृमिक ) प ११४६ कुत्तिय (कुक्षिपृथक्त्वक ) प १७५ कुज्जय ( कुब्जक ) प १।३८।१ कुजाय (कु) ज २०१० कु (कुट्टितल) ज ३१६,२२२ कुट्ठाणासण ( कुस्थानासन ) ज २।१३३ कुडगछल्ली ( कुटज छल्ली ) प १७।१३० कुडगपुष्करासि ( कुटजपुष्पराशि ) प १७।१२८ कुडगफल ( कुटपफल ) प १७ १३० कुडगकाणिय ( कुटज फाणित ) प १७।१३० कुडभी ( कुडभी) ज ५१४३ कुड ( कुटज) प १३६।३,१।४१।२; १७ १३० ज ३।३५ कुटुंब ( कुटुम्ब ) उ ३।११,१३,५०,५५ कुटुंबजारिया ( कुटुम्बजागरिका) उ १।१५; ३१४८, १४९०,७६,६८,१०६,१३१ कुडुar (कंद ) ( कुस्तुम्बद ) प ११४८।४३ कुक ( कुणक) प १४७ कुमाला ( कुणाला ) प ११६३१५ कुणिम (दे० कुणप ) ज २१४६ कुलिमाहार ( 'कुणिम' आहार ) ज २।१३५ ते १३७ कुसुंभार ( कुस्तुम्भरी ) प १३६।२,३७२ कुण ( कुदर्शन ) प १।१०१।१३ कुट्ठि ( कुदृष्टि ) प १।१०१।११ कुप्पमाण ( कुप्रमाण ) ज २९१३३ कुप्पर (कूर्पर) ज ३।२२,३५,३६,४४ Page #959 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८२ कुबेर-कुसील कुबेर (कुबेर) ज ३।१८६,२१७ ३।४८,५०,५५,१००,१३३; ५५ कुभोइ (कुभोजिन् ) ज २११३३ कुल कोडि (कुलकोटि) प ११४६ से ५१,६०,६६, कुमार (कुमार) उ १३१३ से १५,२१,२२,२५ से ७५,७६,८१,८१।१ २७,३१,४२ से ४६,४८,६४ से ६६,६४ से कुलक्ख (कुलाक्ष) प ११८६ ६६,१०२ से ११७,११६ से १२२,१२५, कुलक्खय (कुलक्षय) ज २०४३ १२७,१२८,१४०,१४१,१४६,१४७,२१६,७, कुलगर (कुलकर) ज २१५६ से ६३ ६,१८,१६, ३।११४,१२०,५।१०,२०,२२, कुलत्थ (कुलत्थ) प ११४५।१ ज २।३७, ३.११६ २३,२७,३१,३२,३४ से ३८ उ ३।४१,४२ कुमार (कुमार) उ १८६ कुलत्था (कुलस्था) उ ३।४२ कुमारग्गह (कुमारग्रह) ज २।४३ कुलदेव (कुलदेव) ज ३।११३ कुमारावास (कुमारावास) ज २१६४,८७, ३।२२५ कुलदेवया (कुलदेवता) ज ३।१११,११३ कुमारिया (कुमारिका) उ ३।११४,१३० कुलधुया (कुलदुहित) उ ३।४२ कुमुद (कुमुद) प ११४६ ज ३।११७,४।१५४, कुलमाउया (कुलमातृका) ज ३।४२ १५५,२१२,२२५२१,२३० कुलरोग (कुल रोग) ज २।४३ कुमुददल (कुमुददल) प १८४१२८ कुलवधुया (कुलवधु) उ ३।४२ कुमुदप्पभा (कुमुदप्रभा) ज ४।२२१।१ कुलविसिट्ठिया (कुलविशिष्टता) प २३।२१ कुमुदप्पहा (कुमुदप्रभा) ज ४।१५५।१ कुलविहीणया (कुलविहीनता) प २३।२२ कुमुदा (कुमुद) ज ४।१५५।१,२२१ कुमुय (कुमुद) ज २११५; ४।३,२५,२१२।१ कुलारिय (कुलार्य) प ११६५ कुमुयहत्थगय (हस्तगतकुमुद) ज ३।१० कुलोवकुल (कुलोपकुल) ज ७।१३६,१४१ से कुम्म (कूम) ज २।१४,१५,६८,३।३; ७।१७८ १४६,१५० से १५३ सू १०१६,२० से २२,२५ कुम्मुण्णया (कूर्मोन्नता) प ६।२६ कुवधा (दे०) प ११४०।२ कुरंग (कुरङ्ग) प ११६४ ज २।३५ कुवलय (कुवलय) चं ११ कुविंदवल्ली (कुविन्दवल्ली) प ११४०१३ कुरज्ज (कुराज्य) ज ३।२२१ कुरय (कुरब) प ११४७ लालफूलवाली कटसरैया। कुविय (कुपित) ज ३।२६,३६,४७,१०७,१०६, कुरल (कुरल) प १७६ १३३ उ १।२२,१४० कुरा (कुरु) ज ४।१०८,१४१,१४३,२०५,२०७ कुवुट्ठिबहुल (कुवष्टिबहुल) ज १११८ कुव्वमाण (कुर्वत्) प २।३३,५०,५१,५६ कुरु (कुरु) प १।६३।२; १५॥५५॥३ कुव्वर (कूबर) ज ३।३५ कुरुविंद (कुरुविन्द) प ११४२।२ कुस (कुश) प ११४२१ ज २।८.६ उ ३।५१,५६ कुरूव (कुरूप) ज २।१३३ कुसंघयण (कुसंहनन) ज २११३३ कुल (कुल) ज ३।३,६,१७,२१,२४,३४,१०६, कुसंठिय (कुसंस्थित) ज २११३३ १७७, ४।२१२,५१५,४६,५५, ७.१२७११, कुसट्ट (कुशावर्त) प ११६३।२ १३६।१,१४१ से १४६,१५० से १५३, कुसल (कुशल) ज २०१५; ३।३२,७७,८७,१०६, १६७।१ च ५।१ सू १।६।११०१६,२०,२१, ११६,१३८,१७८,५।५ सू २०१७ २२,२५,२०१६।४उ ११५४,७६,१४१, कुसील (कुशील) उ ३।१२० २०८ Page #960 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसीलविहारी - केवइय कुसील बिहारी ( कुशीलविहारिन् ) उ३।१२० कुसुंभ (कुसुम्भ ) प १।४५।२ ज २।३७ कुसुम (कुसुम) प २।३१,४१ ज २।१०,५३,६५, १६२३।१२,३०,३५,८८, २२१, ४१६६; ५५,७,२१,५८ सू २०१७ कुसुम (कुसुम) कुसुमेंति ज २।१० ४।१६६ कुसुमसंभव (कुसुमसंभव) ज ७।११४।२ सू १०।१२४।२ कुसुमासव (कुसुमासव) ज २।१२ कुसुमिय ( कुसुमित) ज २ ।११, ७।२१३ कुसेज्जा ( कुशय्या) ज २।१३३ कुहंड ( कुष्माण्ड ) ज २।४१, ४७।१ कुडियाकुसुम ( कुष्माण्डका कुसुम ) प १७।२७ कुण ( कुहण ) प १।३३।१,१।४७ कुहर ( कुहर ) ज २६५ कूड ( कूट ) प २।१; १५ ५५।३ ज १।३४,३५,४१, ४६।१२।१३३;४।४४ से ४६,४८,५३,७६, ६६,६७,१०५,१०६, १५६।१,१६२ से १६५, १६७,१६६,१७२११,१८०, १८६,१६२,१६८, २०४,२१०,२१२,२३६ से २४०, २६३, २६६, २७५, २७६५।१, ६ से ८, १३६।६।१, ६ ११, १६७/५८ सू १६।२६ कूडसामली ( कूटशाल्मली ) ज ४।२०८ कूड सामलीपेठ ( कूटशाल्मलीपीठ) ज ४।२०८ कूडागार ( कूटागार) ज २।२० कूडागारसाला ( कूटावारशाला ) उ३१८,२६,६३, १५६ कूडाहच्च ( कूटाहत्य) उ १।२२,२५,२६,१४० कूणिय ( कूणिक) उ १।१० से १२,१४,१५,२१, २२,६३ से ७४,८८,८६,६१ से ५,६८ से १२६,१३१,१३४,१३६, १४०, १४४, १४५, २४, ५,६,१६,१७,५१६ कूर (कूर) उ३।१३० कूल (कूल ) ज ३११४, १५, १८,५१,५२,६६, १४६, १५०,१६१,१६४,४३,२५,६४,८८, ११०. १४३,२०६,२११ कूलधमा (कूलध्मायक ) उ३।५० कूवग्गह ( कूपग्राह) ज ३।१७८ कूवमाण ( कुप्यत्) उ ३०१३० इ (केचित् ) प ११४८।४१ ज २।११३ बहुल (केतु बहुल) ज २।१२ केभूय ( केतुभूत) ज २।१२ ऊर (केयूर ) ज ३१६; ५।२१ केकय ( केकय ) प ११८६ केणइ ( केनचित् ) पू १३।५ safeys ( केतकीपुट) ज ४।१०७ केतु (केतु) २४८ ८८३ महालय ( कियत् महत् ) ज ११७; ७।२६ से ३० महालय ( कियत् महत् ) प २१३८, ४० से ४२, ४८, ६३ से ६६, ६० से ७१,७४,८४ से ६३ has ( केतकी) प १३७१५, १।४३।१ अद्ध ( केकयार्द्ध ) प १९३६ केयूर (केयूर ) ज ३।२११ केरिस ( कीदृश) सू २०१७ रिसिया ( कीदृशक ) प २३।१६५, १६६, १९६ से २०१ ज १२१,२२,२६,२७,२६,३३,४६, ५०; २।७,१४,१५,१७,१८,२०,५२,५६ से ५८, १२२,१२३,१२७,१२८, १३१ से १३३,१३६, १४७, १४८, १५०, १५१,१५६, १५७, १५६, १६१,१६४;४।५६,१००,१०१, १०६,१७०, १७१ उ १।२७ रिसिय ( कीदृशक ) प १७ १२३ से १२८,१३०, १३५ केलास ( कैलाश) ज ३।१८६,२१७ केलास (कैलाश) सू २०१२ राहु का नाम केलि (केलि ) प २०४१ has ( कियत् ) प ७६; ३६।६०,६१,७५ has ( कियत् ) प ५८२; ६ । ३; १२।११,१२; १५।३२;२०।११; ३६।४४ ज १।१७२॥४, ४४,४५; ४।२५७; ६।७,८,१०,११,१५ से Page #961 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८४ केवचिर-केवलिसमुग्याय १८,२३ से २५७।१,३ से २५,३२,५४,५७, केवल (केवल) प २०१७,१८,२६,३४ ज २०७१, ६०.६२.६४ से ७३,७६,७६ से ८२,८६ से ८५३।२२३७१३५।१,१८५ सू १८१२३ ६६,९८ से १००,१२७,१७० से १७२,१७४, केवलकाप्प (केवलकप्प) ३६।८१ ज ३१२६,३६, १८२,१८७,१६८,१६६,२०१ से २०७ ४७,५६,६४,७२,१३३,१३८,१४५,१७५, चं २।१३।२ १६६।११।७।२ उ ३।१६, १८५,१८८,२०९,२११ उ ३१७,६१ १२४,१६४ केवल (णाण) (केलज्ञान) प २६१७ केवचिर (झियच्चिर) प १८।१ से १०,१२ ग ३७, केवलणाण (केवलज्ञान) प२१६४५१३,५१२४, ४१ ४७,४६ से५१,५४ से ८२,८४ से ६०. १०२,१०७,११६ १७१११३;२०११८,३३; १३ से १११,११३,११४,११६,११७.११६, २६।२;३०१२ १२०,१२२,१२३,१२५ से १२७ ज ७.२१० केवलणाणारिय (केवलज्ञानार्य) प १९६ केवति (कियत्) प ७.१ से ४,६ से ८,१० से ३०; केवलणाणावरणिज्ज (केवलज्ञानावणी) २८।१।१,२८१४,२६,३८,५०,३६।६७,७१,७२, प २३।२५ केवलणाणि (केवलज्ञानिन ) प ३३१०१,१०३; केवनिय (कियत्) व ४।१ से ४६,५६ से ५८,६५, ५।१,११८,११६; १३।१६:१८१८२; ७२.७६,८८,९२,६८,१०१,१०४,११३,१३१, २८।१३६,१४०।३०।१६,१७ १४०,१४६,१५८,१६५,१६८,१७१,१७४, केवलदसण (केवलदर्शन) प ५१२४,१०२,१०५, १८३,२०७,२१०,२१३,२६४,२६७,२६६ १०७,११६; २६।३,१७,३०।३,१७ ५१४,६,६,११,१७,२३,२७,२६,३१,३३,३६, केवलदंसणावरण (केवल दर्शनातरण) प २३।१४ ४०,४४,४८,५२,८३,६२,१००,१०३,१०६, केवलदसणावरणिज्ज (केपलदर्शनावरणीय) ११०,११४,११८,१२८,२३१,२४१,६१,२, ५२३१२८ ४ से २३,२७,४३ से ४५,६० से ६४,६७,६८; केवलदंसणि (केवल दर्शनिन) प ३।१०४,५।१२०%; १२१७ से १०,१३,१५,१६,२०,२१,२३,२७, १८१८८;३०।१६ ३१.३२,१५७,८,१४,१५,२२,२३,२७,४०, केवलदिठ्ठि (केवलदृष्टि) प २।६४।१३ ४१,८३ से ८५,८६,६१,६४ से ६८,१००, केवलनाण (केवलज्ञान) प ५।१०५ १०३ से १०६,१०८,१०६,११३ से १२०, केवलनाणपरिणाम (केवलज्ञानपरिणाम) प १३१६ १२३,१२६,१२७,१२६,१३१,१३२,१३५, केवलनाणि (केवलज्ञानिन्) प ५११६ १३६ से १४१,१४३,१७१०६,१०८,११०, केवलयोहि (केवलबोधि) उ ५१४३ १४२,१४३ ; २०१६,१०,१२,१३, २३।६० से केवलि (केमिन) प १११०४,१०८,१२१,१२६% ६२; ३३।२,३,१०,१२,१३ १५ से १८; १८६४,६६,६७,६६,२०११७,१८,२२,२५,२८ ३४।१३,३६८ से २२,३० से ३४,४४ से २६,३४,४५; ३०।२५ से २८, ३६।८२,८३, ४७,५६,६६,७०,७३,७४ ज ७।१७३ ८३।२ ज २६६३,७१, ३।२२४,२२५ सू ११२०,२२,२३,२६,२८ से ३१; २३; उ ३।१०२,१३५,१४२ ३।१,४,५,८,१०,१२।२ से ११४।४,८, केवलिपरियाय (केलिप वि) ज २८८,३।२२५ १५।२ से ७,१८१४ से ६,९,१०,१२,१३,२०, केलिय (कै निक) ५ ३६।१।१ २५ से ३४,१६।४,५,७,८,१०,११,१४,१५, केवालिसमुग्घाय (केवलीसमुद्घात) प ३६।१,३,७, १८ से २१,२५,३०,३१,३४,३५,३७,३८ ११,१५ से १७,३१,३४,३५,४१,७६,८५, Page #962 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केस-कोदंडिम ८८५ कोट्ठय (कोष्ठक) उ ३६,१२ कोट्ठसमुग्ग (कोष्ठसमुद्ग) ज ३।११।३ कोट्ठसमुग्गयहत्थगय (हस्तगतकोप्ठसमुदगक) ज ३।११ कोट्ठागार (कोप्ठागार) ज २१६४ उ ११६६,६४, कोडाहोडि (कोटिकोटि) प २।४६,५०,५२,५३, ५५,५६,६३,१२।२७,३२,१८।४२,४४,४६, २३१६० से ६४,६६,६८,६९,७३ से ७७, ८१,८३,८५ से ६२,९५ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४,११६ से ११८, १२७,१२६ से १३१,१३३,१७६,१७७, १८२,१८३,१८६,१८७,१६० ज २१६, ५१,५४,१२१,१२६,१५४,१६०,१६३;७।१, केस (केश) पश३१ज ११३३,३।२६,३६,४७, १२,११६ केसवटिठअणह (केशापस्थितनख) ज ३।१३८ केस (कीदृश) ज ३।१२२ केसर (केसर) प ११४८।४५,४६ ज ३।२४,४१३, ७,२५,७४१७८ केसरिदह (केसरिद्रह) ज ४।२६२ केसलोय (केशलोच) उ ५।४३ केसि (केशि) उ १२:५।२६ केसुय (किंशुक) ज ३।३५ कोइल (कोकिल) ज २११५:३।३५ उ ५५ कोइलच्छदकुसुम (कोकिलछ्दकुसुम) प १७।१२५ कोइला (कोकिला) प १७६ कोउय (कौतुक) ज ३१६,७७,८२,८५,१२५,१२६, २२२ उ १।१६,७०,१२१,३।११०५।१७ कोउहल्ल (कौतुहल) ज २।३२ कोऊहल (कौतुहल) ज ५१२६ कोऊहलवत्तिय (कौतुहलप्रत्यय) ज ५।२७ कोंकणग (कोकणक) प १८९ कोंच (क्रौञ्च) प ११७६,८६ उ ५५ कोंचारव (क्रौञ्चारव) ज ३।८६,१०२,१५६,१६२ कोंचस्सर (क्रौञ्चस्वर) ज २।१६,५१५२ कोंडलग (कुण्ड नक) ज २०१२ कोंत (कन्त) ज ३।३,३५ कोकंतिय (दे०) ज २।३६ लोमड़ी कोकणद (कोकनद) प ११४६,११४८।४४ फोकासिय (दे० विकसित) ज ३।१०६ कोकुइय (कौकुचिक) ज ३।१७८ कोक लिय (दे०) प ११६६,१११२१,२३ कोज्जय (कुजक) ज ३।१२,८८,५१५८ कोटेज्जमाण (कुट्ट त्) ज ४।१०७ कोट्टणी (दे०) ३।३२ कोट्ठ (कोष्ठ) ज ३।३२ कोट्ठग (कोष्ठक) प २१३०,३१,४१ कोठ्ठयुड (कोष्ठपुट) ज ४।१०७ १. हे ० ११२६ कोडि (कोटि) प २।३०,४६,५०,५२,६२,६३,६४ ज ११२०,२३,४८,२।६।३।२४,१७८,२२१; ४।१,२१,५५,६२,८१,८६,६८,१०८,१७२; ५।६८ से ७०।६।८।१७।१।१ उ १११४,१५, २१,१२१,१२२,१२६,१३३,१३६,१३७,१४०; ५०१० कोडिकोडि (कोटिकोटि) सू १८।४१६।१।१,५।३, ८।३,१११४,१५।४।१६।१६,२११५,८, १६।२२।३,१६।३१,३५,३८ कोडिगार (कोटिकार) प श६७ कोडी (कोटि) सू १६।१४,१५।१,१८,२११२ कोडीवरिस (कोटिवर्ष) प ११६३१५ कोडुंबिय (कौटुम्बिक) प १६।४१ उ १।१७,१८, ६२,१२३,१३१,३।११,१०१,४।१६,१७, ५।१०,१५,१६,१८ कोतुक (कौतुक) सू २०१७ कोत्तिय (दे०) उ ३५० कोत्थंभरि (कुस्तुम्बरी) ज ३।११६ कोत्थलवाहग (दे०) प १५० कोदंडिम (कुदण्डिम) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८, Page #963 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८६ कोदूसा-खंडाभेद कोसागार (कोशागर) ज ३८१ कोसिय (कौशिक) ज ७।१३२।३ सू १०११११ कोसेज्ज (कौशेष) ज ३१२४।३,३७४१,४५।१ १३१॥३ कोह (क्रोध) प१११३४।१; १४१३,५,७,६,११ से १५,१७,२२।२०,२३१६,३५,७० से ७२,१८४ ज २।१६,६६,१३३ उ ३।३४ कोहकसाइ (क्रोधकषाचिन् ) प ३।६८१३।१४, १६; १८।६५; २८।१३३ कोहकसाय (कोधकषाय) प १४।१,२ कोहकसायपरिणाम (क्रोधकषायपरिणाम) प १३।५ कोहकसायि (क्रोधकषाविन्) प ३१६८ कोहणिस्सिया (क्रोधनिश्रिता) प ११॥३४ कोहसंजलना (क्रोधसंज्वलन) प २३।६६,१४० कोहसण्णा (क्रोधसंज्ञा) प ८।१,२ कोहसमुग्घाय (क्रोधसमुद्घात) प ३६।४२,४४ से ५१ ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ कोदूसा (कोरदूष?) प ११४५।२ कोद्दव (कोद्रव) प ११४५२ ज २१३७,३।११६ कोद्दाल (दे०) ज २८ कोमल (कोमल) ज २११५; ३।१०६,२८८ उ ३९८ कोमुई (कौमुदी) ज २।१५ कोरंट (कोरण्ट) ज ३।१७८,५१५८ कोरंटय (कोरण्टक) प ११३८।१ ज २।१०; ३।१२,८८ कोरग (कोरक) ज २०१२ कोरव्व (कौरव्य) प १६५ कोरेंटमल्लदाम (कोरण्टमाल्यदामन ) प १७१२७ कोलट्ठिय (कोलास्थिक) सू१०।१२० कोलव (कौलव) ज ७४१२३ से १२५ कोलसुणग (कोलशुनक) प ११६६ ज २१३६,१३६ कोलसुणय (कोलशुनक) प १११२१ कोलसुणिया (कोलशुनिका) प १११२३ कोलालिय (कौलालिक) प १६६ कोलाह (कोलाभ) प १७० कोलाहल (कोलाहल) प २।४१; ज २।१३१ कोस (क्रोश) प ३६।८१ ज १७,३५,३७,४२,५१, ४७,६,१४,१५,२४,३१,३३,३६,३६,४१,४३, ४६,५९,६६,६८,७०,७२,७६,६३,११२,११४, ११५,११६,१२०,१२२,१३४,१३७,१४७, १५३ से १५५,२४२,७।१७७१३,२०७ सू १११४१८।११,१२ कोस (कोष) ज २१६४;३।३,१७५,४।६;७।१७७ उ १२६६,६४,६८ कोसंब (कोशाम्र) प ११३५११ कोसंबी (कौशाम्बी) प ११६३।३ कोसल (कौशल) प ११६३१२ कोसलग (कौशलक) उ १११२७ से १३०,१३२ कोसलिय (कौशलिक) ज २१६३ से ६७,७३ से ८२,८६ से १० खइरसार (खदिरसारक) प १७।१२५ खओवसमिय (क्षायोपशभिक) प ३३।१ खंजण (खञ्जन) प १७।१२३ खंजण (दे०) सू २०१२ राहु का नाम खंजणवण्णाभ (खजनवर्णाभ) सू २०१२ खंड (खण्ड) प १३।२५; १७।१३५, ३३।१३ ज २।१७,६।६।१;६७ उ १।१४,१५,२१ खंडग (खण्डक) ज ४।१७२।१,६७ खंडगप्पवायगुहा (खण्डप्रपातगुफा) ज ३।१५४,१६१ से १६३ खंडप्पवायकूड (खण्डप्रपातकूट) ज १।४१ खंडप्पवायगुहा (खण्डप्रपातगुफा) ज १।२४; ३।१४६,१५०,१५५ से १५७,१५६ से १६१ ४।३५, ६।१६ खंडप्पवायगुहाकूड (खण्डप्रपातगुहाकूट) ज ११३४ खंडय (खण्डक) प १११७४ खंडाभेद (खण्डभेद) प ११७६ Page #964 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडाभेयस्खाइम ८८७ खंडाभेय (खण्डभेद) प १११७३,७४ खंडिय (खण्डित) ज ७।१३४।१ खंति (क्षान्ति) ज २१६४,७१, ३।१०६ खंतुं (क्षन्तुम् ) ज ३।१२६ खंद (स्कन्द) ज २१३१ खंदग्गह (स्कन्दग्रह) ज २।४३ खंध (स्कन्ध) प ११४,३५,३६,४७।१,११४८।१२, २२,३२,३६,३११७६; ५।१२५,१२७,१३४, १३६,१३८,१५४,१६६,१६६,१७२,१८१,२२७ से २३२; १०७ से १४; १०।१४।५,६; १३।२२।१,१६६३६,४३ ; ३०।२६,२८ ज ३११८,७८,६३,२१२,२१३,४११४६,५५; ७.१७८ उ १६७,१२१,१४०,३।११४ खंधावार (स्कन्धावार) प ११७४ ज ३।१८,२८, ३१,३२।२,४१,४६,५२,६१,६६,८१,८८,६५, १०१,११५ से ११७,११६,१२१११,१२२, १२४,१३१,१३५,१३७,१४१,१५१,१५६, १६४,१६७।२,१७२,१८० उ १।११५,११६, १३३,१३४ खंभ (स्तम्भ) ज ११३७ ; ३।६६ से १०१,१६३; ४।६,२६,२७,३३,१२०,१४७,२१६,२४२; ५।३,४,२८,३२ सू २०१४ खंभच्छाया (स्तम्भछाया) सू ६।४ खग्ग (खड्ग) प ११६५, २०४६ ज ३।३१; ४।२००।१ खग्गपुरा (खड्गपुरा) ज ४।२१२,२१२।४ खग्गरयण (खड्गरत्न) ज ३।१०६ खचिय (खचित) ज ११३७, ३।२११,५१५८ खज्जग (खाद्यक) उ ३।१३० खज्जलग (दे०) उ ३३११४ खज्जूरसारय (खजूरसारक) प १७।१३४ खज्जरी (खर्जूरी) प ११४३।३ खज्जूरीवण (खर्जूरीवन) ज २६ खट्टोदय ('खट्ट' उदक) प १२३ खड्डाबहुल ('खड्डा' बहुल) ज ११८ खण (क्षण) ज ७।११२ सू १०।१२६५ खण (खन्) खणंति ज ५११३ खणित्ता (खनित्वा) ज ५।१३ खतय (दे०) सू २०१२ राहु का नाम खत्तमेघ ('खत्त'मेघ) उ २११३१ खत्तिय (क्षत्रिय) ज २१६५,५१५,४६ खिम (क्षम्) खमई ज २१६७ खमंतु ज ३।१२६ खामेमु ज ३।१२६ खम (क्षम) ज २१६४ खमा (क्षमा) ज ३।१०४ खय (क्षय) प ३३।१।१ ज ३।१२३ उ ११३६ खयकर (क्षयकर) ज ३।११७ खर (खर) प १११८,२०११११६ से २० ज २११३३ खरमुही (खरमुखी) ज ३।१२,३१,७८,१८०,२०६ खरय (दे०) सू २०१२ राहु का नाम खरोट्ठी (खरोष्ट्रिका) प १९८ खल (खल) ज २१६६ खलंत (स्खलत्) ज २११३३ खलु (खलु) प ११४८।५२; ६१८०।११७१५०, १५२,१५५,२३॥३,६३६८२ ज ११४६ सू१।१२ उ ११५; २।२३।२४।२,५२२ खल्लूड (खल्लूट) प ११४८७ खव (क्षपय्) खवेइ सू १६।२२ खवइत्ता (क्षपयित्वा) प ३६।१२ खवय (क्षपय) खवयति प ३६।१२ खवेइ सू १६।२२।१८ खवेति प ३६।१२ खवय (क्षपक) प २३।१६१,१६२ खवल्लमच्छ (दे०) ५ ११५६ खवेत्ता (क्षपयित्वा) प ३६।१२ खस (खस) प ११८६ खसर ) खसर) ज २।१३३ खहचर (खेचर) प ११५४,७७,८१,३।१८३; ४।१४६ से १५७,६७१,७६,७८,६४, २११८, १७,३५,४७,५३,६० ज २११३१ खाइम (खाद्य) उ ३१५०,५५,१०१,११०,१३४; ४।१६ Page #965 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८८ खाइय-खेत्त खाइय (खादित) उ ११५१,५४,७६,७९ खाणु (स्थाणु) ज १३६,४।२७७ खाणुबहुल (स्थाणुबहल) ज ११८ खात (खात) प २१३० खाय (खात) २।३१,४१ ज ३।३२ खार (क्षार) प १७६ खारतउसी (क्षारत्रयुपी) प १७।१३० खारतउसीफल (क्षारत्रपुषीफल) प १७।१३० खारमेघ (क्षारमेघ) ज २०४२,१३१ खारोदय (क्षारोदक) प ११२३ खासीय (खासिक) प १८६ खिखिणी (किंकणी) ज ३।३५ खित (खिस्) खिसंति उ ३।११७ खिसिज्जमाण (खिस्यमान) उ ३।११८,१२३ खिप्पामेव (क्षिप्रमेव) प २८।१०५,३४११६,२१, २४ ज २।९५,६७,१०१,१०५,१०७,१०६, १११११४,११५,१४१ से १४५,३७,१२, १५,१८,१६,२१,२५,२८,३१,३२,३४,३८, ३६.४६,४६,५२,५३,५८,६१,६२,६६,६६, ७०,७४, ७७,८०,८३,६१,६६,६६,१००, ११५,११८,१२१,१२४,१२८,१३२,१४१, । १४२.१४७,१६० से १६५.१६८,१७३,१७५, १८०,१८१,१८३,१६१,१६६,२०७.२१२, २१३,५॥३,७,१४,१५,२२,२८,५४,६८रो ७०,७२,७३ खीण (क्षीण) ज २१६३१२२५ खीणकषाय (क्षीणकापाय) प १११०२,१०४ से ११०,११५.११७ से १२३ खीर (खीर) प ११४२११ लौकी खीर (क्षीर) प १५१५५११७।११६,१२८ सू १०।१२० उ ३३११४,१३० खीरकाओनी (श्रीरकाकोली) १११४८५ खीरपूर (क्षीरपुर) प १७।१२८ खीरमेह (क्षी मेघ) ज २११४२,१४३ खीरवर (लीवर) सू १६६३१ खीरिणी (क्षीरिणी) प ११३५२ खीरोद (क्षीरोद) ज २।६७,९८ खीरोदग (क्षीरोदक) ज २।६७ से १००,१११, ११२; ५१५५ खीरोदय (क्षीरोदक) प ११२३ ज ५१५५ खीरोदा (क्षीरोदा) ज ४।२१२ खीरोया (क्षीरोदा) ज ४।२१२ खोलग (कीलक) ज ७।१३३।३ खीलगसंठिय (कीलकसंस्थित) सू १०।४८ खीलच्छाया (कीलछाया) सूहा४ खीलिया (कीलिका) प २३।४५,६८ खु (खलु) ज ३।२४ खुज्ज (कुटज) प १५॥३५; २३।४६ ज ३।११।१,८७ खुज्जा (कुब्जा) उ १।१६ खुड्ड (क्षुद्र) प ३६।८१ ज ११७, ४१६०,८३,११३ खुड्डग (क्षुद्रक) ज ४।१३६ खुड्डार (क्षुद्रतर) ज ४१५४ खुड्डाग (क्षुद्रक) प १८९५ खुड्डाय (क्षुद्रक) सू १।१४ खुड्डिया (क्षुद्रिका) ज ४।६०,८३,११३ खुभिय (क्षभित) ज २६५ खुर (खुर) ज ३।३०,७१७८ खुरप्प (क्षुरप्र) प १२० से २७; १५१५ ज ३१३० खुल्ला (क्षुल्लक) ५ ११४६ खुहा (क्षुधा) ३१२२१११ उ ३११२८ खेड (खेट) प १७४ ज २२२,१३१,३।१८,३१, ८१,१८०,१८५,२०६,२२१ उ ३।१०१ खेडग (खेटक) ज ३।३५ खेडय (खेटक) ज' ३।३१ खेड्डकारग (खेलकारक) ज ३११७८ खेत्त (क्षेत्र) प २१६४,३।११२,१२।३२; १४१५, १४।१८।११५।५२;१७१०६ से १११; २८।२०,३२,६६,३३१२,३,१०,१२,१३,१५ से १८;३६॥५६,६०,६६ से ६८,७० से ७४ ज २१६६३।३७२० से २५,२६,५२,५४, ७६ से ८२,६५,९६ सू १११४; १३,३११; Page #966 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेत्तओ-गंध ८८६ ६।१६।१,१०१४,५,१७३;१६।२२।२५ प६।११८ खेत्तओ (क्षेत्रतस्) प १११४८,५०; १२।७,८,१०, गइपरिणाम (गतिपरिणाम) प १३।२३ १२,१६,२०,२७,३२; १८।३,२६,२७,३७,३८, गइप्पवाय (गतिप्रपात) प १६।१७,५५ ४१,४३,४५,५६,६४,७७,८३,१०८,११७; गइरइय (गतिरतिक) ज ७।५५,५८ २८।५,५१,३५।४ ज २१६६ गंगदत्त (गङ्गदत्त) उ ३।१३,१६० खेत्ततो (क्षेत्रतस्) प १८१६०,६२,६५ गंगप्पवायकुंड (गंगाप्रपातकुण्ड) ज ४।२५,२६,३१, खेत्ताणुवाय (क्षेत्रानुपात) प ३।१२५ से १७३, १७५,१७७ गंगा (गंगा) ज १११८,२०,४८, २।१३१,१३३, खेत्तारिय (क्षेत्रार्य) प ६६२,६३ १३४; ३।१,१४,१५,१८,१४१,१४३ से १५१, खेत्तोवधातगति (क्षेत्रोपपातगति) प १६।२५ १६१,१६४,१७०।४।१३,२३ से २६,३३ से खेत्तोववायगति (क्षेत्रोपपातगति) प १६।२४ ३६,१६७,१७७,२७४; ५१५५, ६।१६ से ३०॥३२ सू २०१७ उ ११६७,३१५१,५६,६८ खेम (क्षेम) प २।३०,३१,४१ गंगाकुंड (गंगाकुण्ड) ज ११५१४।१७५१७६ खेमकर (क्षेमंकर) ज २१५६,६० सू २०१८,२०१८।७ गंगाकूड (गंगाकूट) ज ४।४४ खमंधर (क्षेमंधर) ज २१५६,६१ गंगाकूल (गंगाकूल) उ ३।५० खेमपुरा (क्षेमपुरा) ज ४।१८१,२००।१ गंगादीव (गंगाद्वीप) ज ४।३१,३२ खेमा (क्षमा) ज ४।१७७,२००।१ गंगादेवी (गंगादेवी) ज ३।१४०,१४१,१४३,१४५, खेल (श्वेल) प १८४ खेल्लणग (खेलनक) उ ३३११४ गंगावत्त (गंगावतं ) ज २०१५ खेल्लणय (खेलनक) उ ३।१३० गंगावत्तणकूड (गङ्गावर्तनकूट) ज ४।२३ खेवणी (क्षेपणी) ज ३।३१ गंज (गजा) प ११३७।५ खोत (क्षोद) प १५।५५।१ गंठि (प्रन्थि) प ११४८।३८ ईख खोतोदय (क्षोदोदक) प १२३ खोदवर (क्षोदवर) सू १६।३१ गंड (गण्ड) प ११६५,२१५० ज ४।१३; ५।६७; खोदोद (क्षोदोद) सू १६।३१ ७।१७८ खोद्दाहार (क्षौद्राहार) ज २११३५ से १३७ गंडतल (गण्डतल) प २।३०,४६ खोम (क्षौम) ज ४।१३,५६७ सू २०१७ गंडयल (गण्डतल) प२।३१,४१ खोमिय (क्षौमिक) सू २०१७ गंडलेहा (गण्डरेखा) ज २।१५ गंडीपद (गण्डीपद) प ११६२ गंडीपय (गण्डीपद) प ११६५ गइ (गति) प २।४८ ज २।१५,७१,१३३,३।३, गंडूयलग (गण्डपदक) प ११४६ १३८,१७८,५।२१,७।२१,२५,५५,५८,८१, गंता (गत्वा) प ११।७२,३६।६२ ज ३।२५,३८, १७५,१७८ च ४११ सू ११६,१।८।१, १६।२२२२ गंतूण (गत्वा) प २१६४१२,३ गइकल्लाण (गतिकल्याण) ज २८१ गंध (गन्ध) प ११४ से ६२।३०,३१,४१,४६; गइनामणिहत्ताउय (गतिनामनिधत्तायुष्क) ३।१८२,५५१०,१२,१४,१६,१८,२०,२४,२८, Page #967 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६० ३०,३२,३४,३७,३६,४१,४५, ५३, ५६ ५६, ६१,६३,६८,७१,७४,७६,७८, ८३, ८६,८६, ६१६३,६७,१०१, १०४, १०७,१०६,१११, ११५, ११, १२, १३८, १५०, १५२, १५४, १६०,२०७, २११, २१४,२२८.२४२, २४४; १०।५३।१; ११।५५; १५३८, ४२, १५ ५५।२; १७।११४।१,१७।१३२ से १३४; २३।१५१६, १६,२०,१०,२८।२०,३२,६६,३६।८०, ८१ १।१३,२७,१६,१८,१२०,१४२१६४, २११, ३३, ७, ६,११,१२,२१,३४,७८, ८२, ८५,८८,१०६, १८०, १८७, २०६, २११,२१८, २२२४१८२,१०७, १०६, ५५, ७,२२,२६, ३२,५५,५८७।२०६ सू २०१७ उ १।३५; ३।५०,११०५।२५ गंध (गन्धतस् ) प १।५ से ६; ११।५६;२८1८, २०,२६,३२,५४,५६ गंधकासाइय (गन्धकासायिक ) ज ३६, २११,२२२; ५।५८ गंधचरिम (गन्धचरम ) प १०।४८।४६ गंध ( गन्धाट्टक) ज ५।१४ गंधणाम ( गन्धनामन् ) प २३३८,४८,१०६, १०७ गंधतो ( गन्धतस् ) प १७ से 8 गंधदेवी (गन्धदेवी ) उ४।२।१ गंधक्षुणि (गन्धाणि) ज २।१२ गंधपज्जव ( गन्धपर्यव) ज २१५१,५४,१२१,१२६, १३०,१३८, १४०, १४६, १५४, १६०,१६३ गंधपरिणाम (गन्धपरिणाम ) प १३।२१,२७ गंधमंत ( गन्धवत् ) प ११।५२,५५२८ ५,५१ गंधमायण (गन्धमादन) ज ४।१०२, १०४ से १०८, १६२,२०४,२१५ गंधमायणकूड (गन्धमादनकूट ) ज ४।१०५ गंधभूत (गन्धवतभूत ) प २३०, ३१, ४१ ज ३७,८८,१८४,१६३,५।५७ सू २०१७ भू (गन्धवर्तिभूत) ज ५७ गंध (वासा) ( गन्धवर्षा) ज ५५७ गंधव ( गन्धर्व ) प १।१३२,२०४१,४५,६८५ गंधओ-गच्छ ज ३।११५,१२४, १२५, ७।१२२।३ सू १०१८४/३ धन्वछाया (गन्धर्वछाया ) प १६।४७ गंधव्वलिवि (गन्धर्व लिपि ) प १६८ गंधवाणी (गन्धर्वानीक) ज ५।४१, ४४ गंधहत्थि ( गन्धहस्तिन् ) उ १।६६ से ६६, १०२ से ११६,१२७,१२८ गंधादेस (गन्धादेश ) प ११२०, २३, २६२६,४८ गंधावर ( गन्धापातिन् ) ज ४।२६६ गंधावेयपव्यय ( गन्धापातिवृत्तवैताढ्य - पर्वत) ज ४।२६२ गंधावति ( गन्धापातिन् ) प १६१३० गंधाहारग (गन्धारक ) प १८६ गंधिल (गन्धिल) ज ४।२१२,२१२।३ गंधिय (गन्धिक) प २ ३०, ३१, ४१ ज ३ ७, १२, ८८,२११,२२१,४।२६,५७,५८ उ ३।१३१ गंधिलाई (गन्धिलावती) ज ४।१०३, २१२, २१२।३ लावइकूड (गन्धिलावतीकूट) ज ४।१०५ गंधोदग (गन्धोदक ) ज ५।७ गंधोदय (गन्धोदक) ज ३६,२२२ गंभीर ( गम्भीर ) प ११५१२।२० से २७,३०,३१, ४१. ज २।१५,६८,३।३५,१३८।१,४१३,१३, २५५।२२ से २४७।१७८ सू २०१७ गंभीर मालिणी ( गम्भीरमालिनी) ज ४।२१२ गगण ( गगन) ज १।२६ : २२६८, ३११७८४१४६ गगनतल ( गगनतल ) प २०४८ ज ३।१७८५४३ उ ५१५ गग्गर ( गद्गद ) ज ७ १७८ गच्छ ( गम् ) गच्छ ज ३१८३,१७० उ १।५४ गच्छइ ज ४।२६८ २७४५।२२, २६७।२० से २५,७६ से ८४,६५६८ से १००,१३५; ७। १३५।१ २ ।१ सू १।६।१ गच्छं ज ३।१५४,१७० गच्छति प ६६,१०५, ११०,३६।८३ ज २४६,७३६ से ४८ गच्छति प १६।३४, ४१, ४२, ४४, ४५, ४७, ५१, ५४, ३६।८२,८३।१ स २२ Page #968 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गमाण गन्भवक्कतिय गच्छ ज ३।१२५.१२७ उ १४४ मच्छामि ज २११०३।२६,३६,४७,५६,१३३,१४५ ५।२२ उ १।१७;३ । २६ गच्छामो ज ३।१३८; ५।३ गच्छाहि ज ३।७६, १२७, १२८, १५१ गच्छिहिइ उ १।१४१३।१८,४।२६,५१४३ गच्छहिंति ज २।१३५ से १३७ गच्छेज्ज प ३६४६१ गच्छमाण (गच्छत् ) सू २२:२०१२ गच्छत्ता ( गत्वा) ज २०१४ / गज्ज (गर्ज ) गज्जंति ज ५।७ गज्जिय (गजित) ज २०१०४, १०५ ७११७८ गड (ग) २३८,१३१३८८३०५५ गढिय ( ग्रथित) उ ३।११४,११५,११६ गण ( गण ) प २०२०,३१,४१,४८,६० से ६३ २।६४।१५ ज १।३१ २१८,१२,१३,२०,३६, ४१,६४,४३,२५ १६४२२१० २१ २०६४ उ ४ । ११५ ।५ गणग ( गणक) ज ३४९,७७, २२२ गणणा (गणना) चं ११३ गणधम्म ( गणधर्म ) ज २१२६ गणनायग ( गणनायक) ज ३२६,७७,२२२ गणराय ( गणराज ) उ १।१२७ से १३०,१३२ गणहर ( गणधर ) प १६।५१ ज २७३,६५,६६, १०० से १०२,१०४ सू २०१६ ४ गणहरचियगा ( गणधरचितका) ज २।१०५ से ११२,११४ गणावच्छेय ( गणावच्छेदक ) प १६।५१ गण (गणन ) प १६ ५१ ज ३०३५, १६७ चं १०३ गणिज्जमाण ( गण्यमान) १२०३ से ६,१५ गणितलिवि (गणितलिपि ) प १६८ गणिय ( गणित ) ज २२४,६४, ३।१६७ ३६७, ८ गणियपय (गणितपद) ज ६।८।१ गणिया ( गणिका) ज ३११२,२०,४१,४९,४८, ६६,७४, १४७, १६८,२१२,२१३ ५।१०, १७ गत (गत ) प २३०,३१,६३,१७११०७,१५१, १५४; २१।५२,५५,७७ ३४१२०३६/०३/२. ३६८६० सू २१३, ११३१३४७,९,१२,१४ से १६:२०७ गति (गति) प ३|१११,३३८,३६१०१५३०१; ८११ १६।३६,४०,४३,४६,५५१७११४११ १८|१|१२३।१३ से २३;३६।८३।२ सू २०३१५१,३७६ १८८ गतिचरिम (गतिचरम ) प १० ३१ से ३३ गतिणाम (गतिनामन् ) प २३।३८,३६,८१ से ८४, १४६, १४८, १४९,१७१,१७२ गतिणामनिहत्ता जय (गतिनामनिधात्तावुष्क) ६।११६,१२२ गतिपरिणाम (गतिपरिणाम ) प १३२, ३,१४,१६ से २१,२३ गतिमाता ( गतिमात्रा) सू १५।५ से ७ गतिरतिय (गतिरतिक) सू १२/२३,२६ गतिसमावण्ण ( गतिसमापन्न ) सू १०।१७०; १५१५ से १३ गतिसमावण्णग (गतिसमापन्नक) सू १६।२३,२६ गत ( गात्र ) प २०३१ ज ३६,२२२४१३६ ५।५७ १७८ गद्दभ (गर्दभ ) प १६३ गन्भ (गर्भ) प |२६; १७।१६६,१६७,१६६ से १७२ ज २२८५, ३।३ उ ११५० से ५२, ५४,७४,७६,७७,७९ गम्भवतिय ( नवान्तिक) प १०६०,६६, ७५,७६,८१,८२,८४,८५,१२६३३१८२ ४११० से ११२,११९ से १२१,१२० से १३०,१३७ से १३२,१४६ से १४८, १५५ से १५७,१६२ से १६४६२२,२४,६५,६६, ७१,७२,८४,१७,१८१०८, ११३२७, १०, १७,२३; १६।२८; १७१४३,४७,६२,६४,६६, ६७,८१,२१९,१०,१२,१३,१५ से २०,३१, ३४,३६,४३ से ४८,५३,५४,७२ Page #969 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६२ गम्भवसहि-गवेसित्ता ५११६ गयवति (गजपति) ज ३।१२६।२ गयवर (जवर) ज ३।६१ गयविक्कम (गजविक्रम) ज ७।१३३।३ गयविकामसंठिय (गजविक्रमसंस्थित) सू १०॥५३ गरह (गर्ह ) रहंति उ ३।११७ गरहेहि उ३।११५ गरहिज्जमाण (गर्ह यमान) उ ३।११८ गराइ (गर) ज ७।१२३ से १२५ गरुय (गुरुक) प ११४ से ६३।१८२,५१५,७, २०६;१५।१४,१६,२७,२८,३२,३३,२८।२०, गरुयत्त (गुरुकल) प १५१४४,४५ गरुयलहुयपज्जव (गुरुक नघुक पर्यव) ज २१५१, ५४,१२१,१२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४, गब्भवसहि (गर्भवसति) प २१६४ गभिणी (गभिगी) ज ३।३२ गम (गम) प १५॥१४३ ; २३।१६७ ज २१५६, १५६;३।३,१८३,२०३,२१७;४।१३६, १४०११,१६७,२४३,५।४० सू ८।१ गमण (गमन) ज ३१६,३५,८५,१८३ उ ११४२, ८८,१२६;३।१२७,१२८ गमणिज्ज (गमनीय) ज २०६४;३।१८५,२०६; ५।५८ गमय (गमक) प ५१७६,१७।२८,३५ गमित्तए (गन्तुम् ) उ ४।११ गय (गज) प २।३० ज २।१५,६५,३।१५,१७, २१,२२,३१,३४ से ३६, ७७,७८,६१,१७३, १७५,१७७,१७८,१६६ उ १११२३,१३८; ५।१८ गय (गत) प २।४१:१७।१०६,१११;२११५५ ज २११५,३।१८,१३८,७।१३३।३,१३५ चं १११,२ उ ११२५,४६,५१,५४,६४,७६,७९ ८८,८६,६७,१११.११२,१२१,१३८,२।६; ३।१५,३५,५१,५६,८४,१२१,१६२,४।२४; ५।१७,२०,२७,३१,४० गयंद (गजेन्द्र) चं १११ गयकण्ण (गजकर्ण) प १८६ गयकलभ (गजकलभ) प १७४१२३ गयछाया (गजछाया) प १६।४७ गयण (गगन) ज ३।३ गयणतल (गगनतल) ज ५।४३ गयतालुय (गजतालुक) प १७४१२६ गयदंत (गजदन्त) ज ३।३५,४।१०३,७।१३३।३ गजदंतसंठिय (गजदंतमंस्थित) सू १०५१ गयपुर (गजपुर) पश६३।२ गयमारिणी (जमारिणी) प ११३७५ गयरूवधारि (गजरूपधारिन् ) ज ७।१७८ सू १८।१४ गयवइ (गजपति) प २१४६ ज ३।१७,१२६।२, १७७,१८३,२०१,२१४ उ १११२४,१३१; गरुल (गरुड) प २३०,३१ ज ३।१०६;४।२०८ च ११२ गरुलम्वूह (गरुडव्यूह) उ १११४,१५,२१,१३६, १४० गल (मल) ज २०१५७१७८ गल (गलत् ) चं ११ गिल (एल) मलाइ उ १३५१ गलय (कालत्) ज ७।१७८ गललाय (गलल त) ज ३।१७८,७।१७८ गल्ल (गल्ल) ज ५।१८ गवक्ख (गवाक्ष) ज ११६२२०४।६ गवय (गवय) प ११६४ ज २१३५ गवल (गवल) प २।३१,१७।१२३ ज ३।२४ गवलवलय (गवलवलय) प १७११२३ गवेलग (गवेलक) ज ३११०३ गवेलय (गवेलक) ज २।१३१ गवेस (वेस्) बेसइ उ ३।११४ गवेसग (गवेषक) ज ३।१०६ गवेसणा (गवेषणा) ज ३१२२३ सु २०१७ गवेसित्ता (गवेषयित्वा) उ ३।११४ Page #970 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गव्विय माता गव्विय (जवित ) ज ७।१७८ ग्रह (ग्रह) प ११३३२०२० से २७,४८ से ५१, ६३ ज १।२४७।१७७१३, १८०, १८१,१८६, १६७ १० १७२ से १७३१५१,१०,१३ १८२४,१८,११,३७१९४१,५२,८१२, १६।२२१३, ६, ९, १०, २१,२२,२६,३१,२०१८ गहगण ( ग्रहण) ज ३१६, १७,२१,३४, १७७,२२२; ७५५ ५० १८०१०१११७ सू १६१६६ १६।२२, २३, २६, २०७४ २।१२:५४४१ गहण (गहन ) प ११४८।५३ से ५५ ११।५३, ५५, ५७.५६,७११८६५२२१५८०७१।७१ गहणया ( ग्रहण) उ १।१७ महत (महत्व) उ ३ हर (दे० ) प १७६ दिशा ( ग्रहमान ) प ४।१८९ से १९४ ज ७।१७८११,१११.१९२ १८१८,११,१५. ३१,३२ हाय (गृहीत्वा ) प ३६३८१ ज ३८८११६७ ३।५० गहिकण (गृहीत्वा ) ज ३०२४ गहित ( गृहीत ) सू २०१२, १२३५५ हिय ( गृहीत ) प २४१, ११।७१,७२ ज ३।१२, ७७,८८ १०७,१२४५६७, २८ व ११३८ ३१६३,७०,७३ गहिर ( गंभीर ) प २४ गागंज ५०५७ गाउय (व्यूत) प ११७५ २४६४,२१।४२,४४,४६, ४७१२२४८३३२ मे २६,४५ ४१६६.१०३, ११०,१४३, १७८,२०३,२२६; ७१६०,१८२ गाउयपुत्तिय (२०७४ गागर (दे ) प ११५६ ज ३१३ गात (३२११ ५४५८ गाम (म) १२७४ १६।२२:२११६२,१३ २।२२.६९७०,१३१.३१०,३१,३२,८१, ८६३ १६७१२, १८०, १८५, २०१,२२१७३|१०१ ५।३६ गामकंटय ( ग्रामकण्टक) उ५१४३ गामणिहमण ( ग्रामणिमण' ) प ९८४ गाममारी (ग्राममारी) ज २२४३ ग्रामरोग (ग्राम) २०४३ गाय (गो) ११४ गामाणगान गाउ ११२१७:३४२६,६६, १३२,५१३६ गामि मन्) १।१११.११२ गाव (गो) ११४ गाय (ग) प १७।१३४ २०१५, १८:३३८२, २११,५५८३५० गायंत (यत्) ज ३।१७८ गारव (गौर) ज ३।३ गारविय ( गौरवित) सू २०६२ गालण ( गालन ) उ १।५१, ७६ गालिलए तुम्) व ११५१,७६,७७ गालेमाण ( गालगत ) उ५।२५ गावी (गो) ज २।३४ गाह (ग्रह) ११५५, ५८ गाह (गाह ) माहेहिति) ज २।१३४ गाहा (गाया ) प १।४२४०१५।५५ मृ १।१७, १६, २५ गाहाय (गुरुपति) ज ४११०१, १०३, १०४, १८६, १२५ २०१०,११,१२,२१.१५८,१६०,१६९; ४७ से १,१६,१८ गाहाइकुण्ड (गृहपतिकुण्ड ४११०२, १९४ गाहावइणी (गृहपत्नी) उ४६ गावइदीप (गृहपतिद्वीप) ४१६२ गाहारयण (गृहपतिरन) ज ३।१११,१२०, १७८, १८६,१०५, २०६.२१०, २१६,२१६, २२० गाहावइरयणत्त (गृहपतिरत्तः ) प २०५८ माता (ग्राहयित्वा २०१३४ Page #971 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६४ गिण्ह-गुत्ति गिण्ह (ग्रह.) गिण्हइ ज ५१६०,६६ उ ११५७ गिण्हति ज ५।१४,१७,५५ उ ११४५ गिण्हह उ ११४४ गिण्हेइ उ ११४८ गिण्हउकाम (ग्रहीतुकाम) उ १।१०५ गिण्हमाण (गृह णत्) प १११७० गिण्हित्तए (ग्रहीतुम्) उ १।११६ गिण्हित्ता (गृहीत्वा) ज ५।१४ सू २०।२ उ १।४५ गिण्हेऊणं (गृहीत्वा) उ ३१६८ गिण्हेत्ता (गृहीत्वा) उ ११४८ गिम्ह (ग्रीष्म) ज २१६४,७०,७।१६४,१६७ सू ८।११०७१ से ७४;१२।१४ उ ५१२५ गिरिकुमार (गिरिकुमार) ज ३।१३३,१३६ गिरा (गिरा,गिर्) ज २।१५ गिरि (गिरि) ज २।१५,६५,१३१,१३३,१३४; ३।३२,७६,७७,१०६,१२६।४,१२८,१३८, १५१,१७०,१८५,२०६,२२१,४।२३४,२४० गिरिकण्णइ (गिरिकर्णी) प १४०।५ अपराजिता गिरिदरी (गिरिदरी) ज ३।१०६ गिरिराय (गिरिराज) ज ४।२६०११ सू ५।१ गिरिवर (गिरिवर) ज २१६५,३।३,८८ गिल्लि (दे०) ज १३३ गिह (गह) ज ३।३२,१८३,१८६ उ ११४२,४४, १०८:३।२६,१००,१०१,१३१,१४१,१४८; ४।१२,१५ गिहिलिंगसिद्ध (गहलिङ्गसिद्ध) प १११२ गीत (गीत) प २।३०,३१,४१ सू१८।२३; १६।२३,२६ गीतजस (गीतयशस्) प २।४५,४५।२ गीतरति (गीतरति) प २१४५ गीय (गीत) प २।४१,४६ ज ११४५,२१६५%, ३८२,१८५,१८७,२०४,२०६,२१८,५१, १६७५५,५८,१८४ गीयरइ (गीतरति) प२।४५२ गोवा (ग्रीवा) ज २०१५ गुंजंत (गुञ्जत्) ज २०१२ गुंजद्ध (गुजार्ध) ज ३।३५,१८८ गुंजद्धराग (गुजार्ध राग) प १७१२६ गुंजालिया (गुजालिका) प २।४,१३,१६ से १६, २८,१११७७ गुंजावल्ली (गुञ्जावल्ली) प ११४०।४ चूंघची गुंजावाय (गुञ्जावात) प १।२६ गुच्छ (गुच्छ) प ११३३।१,३७, ११४८।६,६१ ज२।१२,१३१,१४४,१४६ उ ५१५ गुच्छवहुल (गुच्छबहुल) ज ११८ गुज्झ (गुह्य) उ ३।११ गुझंतर (गुह्यान्तर) ज ४।२१ गुण (गुण) प २१६४।१३,१७,५।३६ से ३८,५८ से ६०,७३ से ७५,८८ से १०,१०६ से १०८, १४६,१५०१५।१४ से १६,२७,२८,३२,३३, ५७; २०१७,१८,३४,२८।२०,२६,३२,६६; ३४।२० ज २।१५,६५, ३।३,३२,११७।१, ११६,१८६,२०४,२०६; १५६,६८,७० गुणड्ढ (गुणाढ्य) ज ३।३२।१ गुणनिप्फण्ण (गुणनिष्पन्न) उ ११६३ गुणरयण (गुणरत्न) ज ५।५८ गुणसिलय (गुणशिलक) उ १११,२,३४,२१,२४, ८६,१५५,१६८,४।४,६,१३,१८ गुणसेढि (गुणश्रेणि) प ३६।१२ गुणसेढीय (गुणश्रेणिक) प ३६।९२ गुणहर (गुणधर) ज ३३१२६।१ गुणित (गुणित) सू १६।२२।२६ गुणिय (गुणित) ज २१६ गुणेत्ता (गुणयित्वा) ज ७।३१ सू ४।४,७ गुणोववेय (गुणोपेत) ज २११४ । गुप्त (गुप्त) प २।३०,३१,४१ ज २१६८,३३५ गुत्तबंभयारि (गुप्तब्रह्मचारिन् ) ज २१६८ उ २१६% ३।१३,८६,१०२,११३,११५,१४६,१६०%3; ४।२०,२२, ५।२७,३८,४३ गुत्ति (गुप्ति) प ११०१।१० ज २७१ Page #972 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुत्तिदिय-गोयम ८६५ गुत्तिदिय (गुप्तेन्द्रिय) ज २१६८ उ ३६६ १३६२११५५,६२,७१,६३,३३।२५ गुमगुमंत (गुमगुमायमान) ज २।१२ गेवेज्जगविमाण (वेयकविमान) प २१६०; गुम्म (गुल्म) प १।३३।११।३८।३,१।४८।६१ ३०।२६ ज २।१०,१२,१३१,१४४ मे १४६;३।२२१; गेह (गेह) ज ६६ सू ४।२,३ ४।१६६ उ ५५ गेहावण (गेहायतन') ज २।२१ गुम्मबहुल (गुल्मवहुल) ज ११८ गेहावणसंठित (गेहापणसंस्थित) सू ४।२ गुरु (गुरु) प १।१।१ ज २।१३३ गो (गो) ज ३।१०३ गुरुजण (गुरुजन) उ १७२ गोकण्ण (गोकर्ण) प ११६४,८६ ज २१३५ गुरुजणग (गुरुजनक) उ १८८,६२ गोक्खीर (गोक्षीर) प २०६४ गुल (गुड) प १७।१३५ ज २।१७ गोखीर (गोक्षीर) प २।३१ ज ४।१२५,५।६२; गुलगुलाइय (गुलगुलायित) ज २१६५;३।३१; ७१७८ ५१५७ गोजलोय (गोजलौका) प ११४६ गुलिया (गुलिका) प २।३१ ज ७.१७८ गोड (गोड) प १८६ गुलगुलाइय (गुलगुलायित) ज ७।१७८ गोण (गौण) प ११६४;११११६ से २० ज २।३५ गुहा (गुफा) ज १।२४;३।३२ गोणस (गोनस) प १७१ गूढदंत (गूढदन्त) प ११८६ गोतम (गौतम) प ३६।१२,८१ च ११४ गूढछिराग (गूढशिराक) प ११४८॥३६ गोत्त (गोत्र) प ३६।६२ ज १।१५;७।१२७।१, गेह (ग्रह) गेण्हइ प १११७१ ज २।११३; १३२।४,१६७।१ च ५।३,१० सू ११५६।४; ३।२६,३६,४७,५६,६४,७२,१३३,१३८, १०।६२ से ११६,१६।२२।३ १४५,५।५५ उ ३।५१ गेण्हति प १११८१; गोत्तफुसिया (गोत्रस्पर्शिका) प १४०१५ २८।२२ से २४,३४ से ३६,३६,४०,४२,४५, गोध (गोध) प १८६ ६८,६६,७१,३४।६ ज २।११३,५१५५ गोधूम (गोधूम) प ११४५११ गेण्हति प ११।४७ से ७०,८०,८१,८३,८५ गोपुच्छ (गोपुच्छ) ज १।१८,३५,५१,२।१५; सू २०१२ ___४।४५,११०,२१३, २४२ गेण्हमाण (गृह णत्) सू २००२ गोपुर (गोपुर) ज २।२० सू ४।२ गेण्हित्ता (गृहीत्वा) ज ३।२६,३६ उ ३१५१ गोमयकीडग (गोमयकीटक) प ११५१ गेय (गेय) ज ५।५७ गोमाणसिया (दे०) ज ४।१३० गेरुय (गरिक) प १।२०।४ गोमुह (गोमुख) प ११८६ गेविज्ज (ग्रेवेय) उ १११३८ गोमेज्जय (गोमेदक) प १।२०।३ गेविज्जग (ग्रेवेयक) ज ३।६,३६,२२२ गोम्ही (दे०) प ११५० गेविज्जविमाण (वेयकविमान) उ ५१४१ गोय (गोत्र) प २२।२८,२३।१,२,५७,२४।१५; गेवज्ज (ग्रेवेय) प २।४६,६३;३४।१६,१८ २६।११,२७१५,३६८२ ज ३।२२५ ज ३७७,१०७,१२४;७।१७८ उ १११७ गेवेज्जग (ग्रेवेयक) प १११३६,१३७,२।४६,६० से ___ गोयम (गौतम) प ११७४,८४,२११ से ३६,४१ से . ६२;६।६६,६८,१५।८८,६१,६६,१०४,१०८, ११२,११५,११६,१२२,१२५,१२७,१२६, १. गेहेषु आपतनानि वा उपभोगार्थमागमनानि । Page #973 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६६ गोयम ४४,४६,४८ से ६४,३।३८ से १२०,१२२ से १२४,१७४,१७६ से १८२,४११ से ५४, ५६ से ६७,६६ वे ७४,७६ से ६०,६२से २६९५.१ से ७,६ से २०,२३,२४,२७ से ३४,३६,३७,४०,४१,४४,४५,४८,४६,५२, ५३,५५,५६,५८,५६,६२,६३,६७,६८,७०, ७१,७३,७४,७७,७८,८२,८३,८५,८६,८८, ८६,६२,६३,६६,६७,१००,१०१,१०३,१०४, १०६,१०७,११०,१११,११४,११५,११८, ११६,१२३ से १३१,१३३ से १४०,१४२ से १४७,१४६,१५०,१५३,१५४,१५६,१५७, १५६,१६२,१६३,१६५.१६६,१६८,१६६, १७१ से १७४,१७६,१७७,१८०,१८१.१८३, १८४,१८६,१८७,१८६,१६०,१६२,१६३, १६६,१६७,१६६,२००,२०२,२०३,२०६, २०७,२१०,२११,२१३,२१४,२१७,२१८, २२०,२२१,२२३,२२४,२२७ से २३४, २३६ से २३६,२४१,२४५६।१ से ४५, ४७ से ५५,५७,५८,६० से ६४,६७,६८,७० से ७२,७४ से ८५,८७ से ११,९३,९४,९६ से १०३,१०५ से ११०,११२,११४ से ११६, ११८ से १२१,१२३,७१ से ४,६ से ३०; ८।१ से ११;६।१ से ४,६ से १६,१६ से २२, २५,२६,१०१ से ५,७ से १३,१५ से २४, २६ से २६,३१ से ५३,११।१ से ४४,४६, ७३,७६ से ६०१२।१ से ५,७ से १३,१५, १६,२०,२१,२३,२४,२७,३१ से ३३;१३३१ मे १३,२१ से ३१,१४।१ से ३,५,७,६११ से १५,१७,१५।१ से २८,३० से ३३,३६ से ५४, ५७ से ७४,७६ से ८४,८६,६१ से १८,१००, १०३ से १०६,१०८,१०६,११३ से ११६, १२६.१२६,१३२ से १३५,१४०,१४१,१६।१ से ४,६ से ८,१० से १३,१५,१७,१६ से २१ ; १७११ से ६,८ से १७,१६ से २२,२४, २५,२७,२६,३३,३६ से ६१,६३ से ६६,७१ से ७६,७८ से ८७,६० से ६२,६४,९५,१००, १०२ से १०४,१०६ से ११६,११८ से १३७, १३६ से १४७,१४६ से १५२,१५४ से १६४, १६६,१६७,१६६ से १७२;१८।१ मे १८,१२ से ३७,३६,४१ से ४७,४६ से १०,६२ से १२७:१६।१ से ३,५;२०।१ से ४,६,७,६ से २५,२७ से ३०,३२ से ३४,३८ से ५४,६१ से ६४;२१।१ से १५,१६ से २५,२८ मे ३२, ३६ से ३८,४० से ४२,४८ से ८१,८३ से ९६,६८ से १०१,१०३ से १०५,२२०१ से ११,१३,१५,१७,१६,२१ से २३,२६,२७, २६,३०,३२ से ५०,५२,५३,५७,५६ से ६६, ७८.७६,८२ से ८४,८६,८७,८६ से १५,६७ से ६६,१०१,२३।१ मे ७,६ से ११,१३ से ५०,५७ से ६२,६५,६६ से ७६,८१,८३ से ८६,८६,६०,६५,६८,६६,१०१ से १०४, १०६,१११ से ११८,१२८,१२६,१३१ से १३५,१३७ से १४०,१५४,१५५,१५७,१६०, १६१,१६४,१६७,१७१,१७३,१७६,१७७, १६१ से १६६,१६८ से २०१;२४।१ से ६,८, १० से १५,२५।१,२,४,५,२६।१ से ४,६,८ से १०,२७।१ से ३,५,६,२८।१,३ से ७,१० से १६,२१ से २४,२६,३१,३३ से ३७,३६ से ४२,४४,४५,४६ से ५३,५६ से ६५,६७ से ७१,७६ से ६६,१०२,१०४,१०६ से १२०, १२२,१२३,१२५,१२७ से १२६,१३२,२६।१ से ३,५ से १३,१६ से २१:३०११ से ३,५ से १३,१५ से २३,२५ से २८,३१११ से ३,६,३२११ से ४,६,३३।१ से ३,७ से १०, १२,१३,१५ से २६,३१ से ३३,३५,३६; ३४।१ से ३,५ से ६,११ से १८,२०,२५; ३५१ से १३,१६ से २०,२२,२३,३६।१ से २२,३० से ५१,५३ से ६४,६६,६७,७०,७१, ७४ से ६०,६२,६४ ज ११५ से ७,१५ से १८,२० से २३,२६,२७,२६,३३ से ३५,४१, Page #974 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोयम - घणघणाइय ४५ से ५१२३१ से ४,७,१४, १५, १७ से २३, २५,४२,४४ से ४८, ५०, ५२, ५६ से ५८, १२२,१२३,१२७,१२८, १३१ से १३७,१३६, १४७, १५०,१५१,१५६, १५७, १५६, १६१, १६४,३१,६८,२२६,४१,२२,३४,४४,४५, ४८,५१,५२,५४ से ५७,६० से ६२,६४,७६, से ८२,८४ से ६,८६,६६ से ९८,१०० से १०३,१०५ से ११०,११३, ११४, १४१, १४३, १५६ से १६७.१६६ से १७८, १८० से १८२, १८४,१८५, १८७, १८८, १६० से १६४, १६६, १६७,१६६,२००,२०२ से २१०,२१२ से २१४,२२५,२२६, २३४, २३६,२३७,२३६, २४१,२४५, २४६, २५१ से २७७,६२,४,७ से २६,७।१ से ३६, ३० से ४८, ५२ से ५७, ५६ से १०८,१११ से १४४, १४७, १४८, १५०,१५४ से १६७,१७० से १७८,१८० से १८५,१८७,१६७ से १६६,२०१ से २१३ चं १० सू० ११५; १०।१०२१।२५,२६,२८, १४०,१४१;२।१२,१३,३८,६,१६ से १८, २६,२७,८५,८६,६३,६५,१२२ से १२५, १५२, १५७,१६३ से १६५,४६, २५, २६ गोयम ( गोतम ) ज ७।१३२ २ गोयर ( गोचर ) ज २।१३२ गोर (गौर) प २२४०८, २४६ ज ११५ गोरक्खर ( गौरखर ) प १९६३ गदर्भ की एक जाति गोलगोलच्छाया (गोलगोलच्छाया) सू ६५ गोलच्छाया (गोलच्छाया ) सू ६१४,५ गोलपुंजच्छाया (गोलपुञ्जच्छाया ) सू६१५ गोलवट्टसमुग्गय ( गालवृत्तसमुद्ग ) २।१२०; ७। १८५ गोलव्वायण ( गौलव्यायत) ज ७११३२|४ सू १०।११५ गोलावलिच्छाया (गोलावलिच्छाया ) सू ६५ गोलोम (गोलोमन् ) प ११४६ गोवग ( गोपक) ज ३।३५ गोवल्ल (गोवल ) ज ७११३२।३ गोवल्लायण (गोवलायन ) सू १०।१०६ गोवल्ली (दे० ) प १।४०१४ गोसीस (गोशीर्ष ) प २३०, ३१, ४१ ज २६५, ६६,६६, १००, ३१७,६,१२,८२,८८, १३३, १८४,२११,२२२;५।१४ से १६,५५, ५८ गोसीसावल (गोशीर्षावलि) ज ७। १३३ । १ गोसीसावलिसठिय (गोशीर्षावलिसंस्थित) सू १०।२७ गोहा (गोधा ) प १।७६ गोहूम ( गोधूम ) ज २।३७३।११९ ८६७ घ ओ ( घृतोदक ) प १।२३ घंटा ( घण्टा ) ज ११३७ ३ ३५, १७८ ४ ३०; ५।२२ से २६,२८,४८ से ५३७।१७८ उ १।१३८३।७,६१ घंटिया ( घण्टिका) ज २६४;७११७८ घंटियाजाल ( घण्टिकाजाल ) ज ३२४, ३०, १०६; ५।२८ घट्टणया (घट्टनता ) प १६।५३ घट्ट (घृष्ट ) प २१३०,३१,४१,४६,५६,६३,६४ ज १८,२३, ३१ सू २०/७ घड (घट) प २१३०,३१,४१ ज ३।७४।२३,३८, ६५,७३, ६०, ६१ घड (घट) घडेंति ज ५।१६ घडावेता (घटयित्वा ) उ३।५० घडिया ( घटिका ) ज ४१२६ घडेत्ता (घटयित्वा ) ज ५।१६ घन (घन ) प ।४८।३८, २३०, ३१, ४१, ४६; १२।१२,३८, ज १।२४,४५, ६५, ३।३, २४, ८२,१६७,१८५, १८७, २०६,२१८, २२४; ४११२५५११, ५, १६,५७,६२,७१५५, ५८, १७८,१८४ सू १८।२३; १६।२३,२६ घणघण ( घनघन ) ज २।६५ घणघणाय ( घनघनायित ) ० ५।५७ Page #975 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६८ घणघणेत-चउक्कय घणघणेत (घनघनायमान) ज ३।३१ घणदंत (घनदन्त) प १८६ घणवाय (घनवात) प ११२६;२।१० घणवायवलय (घनवातवलय) प २०१० घणसंमद्द (घनसंमर्द) सू १२।२६ घणोदधि (घनोदधि) प २।२४ घणोदधिवलय (घनोदधिवलय) प २४ घणोदहि (घनोदधि) २०१३ घणोदहिवलय (घनोदधिवलय) प २०१३ घत (घृत) प १५।५५१ सू १०।१२० घतवर (घृतवर) सू १६॥३१ घतोद (घृतोद) सू १६॥३१ घत्त (ग्रह ) घत्तामो ज ३।१०७ पत्तिहामि उ ११४१ घत्तेह ज ३।११४ घत्थ (ग्रस्त) सू २०१२ घय (घृत) ज २।१०६११० उ ३३५१ घयमेह (घृतमेघ) ज २११४३,१४४ घर (गृह) सू २०१७ उ ३।१०० घरग (गृहक) ज १।१३ घरघरग (घरघरक) ज ७.१७८ अनुकरणशब्द घरोइला (गृहको किला) प १७६ घाइय (घातित) ज ३।१०८ से १११ उ १२२; १४० घाएउकाम (हन्तुकाम) उ १७२ घाडिय (घाटिक) ज २२२६ घाण (घ्राण) प १५७७,८१,८२, ३६।८१ ज ४।१०७ घाणविण्णाणवरण (घ्राणविज्ञानावरण) २३।१३ घाणावरण (घ्राणावरण) प २३।१३ घाणिदिय (घ्राणेन्द्रिय) प १३१४,१५११,४,८, १३,१६,४२,५८,६४,६६,७०,२८४५,४६, ७१ उ ३।३३ घाणिदियत्त (घ्राणेन्द्रियत्व) प ३४।२० घाणिदियपरिणाम (ध्राणेन्द्रियपरिणाम) प १३।४ घाणेदिय (घाणेन्द्रिय) प १५३४ घायय (घातक) ज २।२८ घुल्ला (दे०) प ११४६ घेतूण (गृहीत्वा) ज ३।८१ घोडग (घोटक) प ११६३ घोडय (घोटक) प ११११६ से २० घोणा (घोणा) ज ३।१०६ घोर (घोर) ज ११५ घोरगुण (घोरगुण) ज १५ घोरतवस्सि (घोरतपस्विन्) ज ११५ घोरबंभचेरवासि (घोरब्रह्मचर्यवासिन्) ज ११५ घोलंत (घोलत् ) ज ३१६ ; ५।२१ घोस (घोष) प० २।४०१६ ज २१६५,३।३५, १८६,२०४ घोस (घोषय) घोसंति ज ३१२१३ घोसेंति ज ५७३ घोसेह ज ३।२१२,५७२,७३ घोसणा (घोषणा) ज ५।२६,७२,७३ घोसाडइफल (कोशातकीफल) प १७११३० घोसाडई (कोशातकी) प ११४०११ घोसडय (कोशातक) प १४४८१४८ घोसाडिय (कोशातकी) प १७।१३० घोसेत्ता (घोषयित्वा) ज ३।२१२ च (च) प १११ ज १७ सू ११७ उ ११७३१७; ४।१० चइत्ता (त्यक्त्वा ) प २०१४६ ज २१६४ उ ३.१८, १२५,१५२,४।२६,२८,५।३०,४३ चइत्ता (च्युत्वा) ज २१८५ चउ (चतुर) प १११३ ज ११८ चं ४।३ सू ११८ उ २०२२ चउक्क (चतुष्क) प २१।१६।२३।२६,२८,६२, १३४,१७८ ज २१६५;३११८५,२१२,२१३; ५७२,७३,७।१३१२ उ १४९८ चउक्कग (चतुष्क) ज ७।१३११२ चउक्कय (चतुष्क) प ६१८३:२३।२८ Page #976 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउगुण-चउम्मुह 588 चउगुण (चतुर्गण) प २१५६ ज ५।५१ चउदस (चतुर्दशन ) ज ३।२२१ चउग्गुण (चतुर्गण) प २१४०।५ ज ५।४६,५२।१ चउदसपुदिव (चतुर्दशविन ) ज २१७८ सू १६।२२।२३ चउद्दस (चतुर्दशन्) ज ७१५६ सू ८।१ चउजमलपय (चतुर्यमलपद) प १२।३२ चउद्दसपुव्वि (चतुर्दशपूर्विन्) ज २१७८ चउठाणवडित (चतु.स्थानपतित) प ५।१२,१४, चउद्दसम (चतुर्दश) सू १०७७,१३८ १६,१८,२४,२८,३४,३५,३७,४१,४५,४६, चउद्दसी (चतुर्दशी) ज ७।१२५ ५.०,५४,५६,५६,६३,६६,७१,७४,७८,८६, चउद्दिसि (चतुर्दिश्) ज ४।४,२०,११८,१२६, ८७,८६,६३,६४,९७,१०२,१०४,१०५,१०७, १४४,१४७,१५११२,२१६,२३५,२४६; १११,११२,११६,११६,१३१,१३४,१३६, ५।४०,६१ १३८,१४०,१४३,१४५,१४७,१४८,१५०, चउनाणोवगय (चतुर्ज्ञानोपगत) ज ११५ १५१,१५४,१६६,१६७,१६६,१७२,१७५, चउपएसिय (चतुःप्रदेशिक) प ५।१५६१०९ १७८,१८२,१८४,१८५,१८७,१८८,१६०,१६३, चउपण्ण (चतु पञ्चाशत् ) ज २१७७ १६७,२००,२०३,२०७,२११,२१४,२१८, चउपण्णग (चतु.पञ्चाशत्क) सू १३।१७ २२१,२२४,२२८,२३०,२३२,२३४,२३७, चउपुरिसपविभक्तगति (चतुःपुरुषप्रविभक्तगति) २३६,२४०,२४२ - प १६।३८,५२ चउट्ठाणवडिय (चतुःस्थानपतित) प ५१७,२५, चउप्पएसिय (चातुप्रदेशिक) प ५११६० चउप्पगार (चतुःप्रकार) प ११।३०।२ ८४,१६३ चउप्पण्ण (चतुःपञ्चाशत्) ज ४।२३४ चउणउत (चतुर्नवति) सु १६।१४,१५१ चउप्पदेस (चतुःप्रदेशिक) प १०।१४।२ चउणउति (चतुर्नवति) सू ४।४ चउप्पय (चतुष्पद) प ११६१,६२,६६,४।१२२ से चउणउय (चतुर्नवति) ज ४।२४१ १३०,६७१,७७,२११११ से १३,३५,४४, चउणवइ (चतुर्नवति) ज ४१८६ ५३,६० ज २११३१७।१२३ से १२५ चउतीस (चतुत्रिंशत् ) सू १।२० चउप्पाइया (चतुष्पादिका) प १७६ चउत्तीस (चतुत्रिंशत् ) सू ११२२ चउब्भाग (चतुगि) ज ७१६० से १६५ सू चउत्थ (चतुर्थ) प३।२०,१८३,६।८०।१% १११६१०११४२,१४७;१२।३०।१८।२७ से १०।१४।४,५,६,११।३,४२,८८,१५।१४३; ३५ १७११४८;३३।१६;३६।८५,८७ ज ४।१८०, चउभंग (चतुर्भङ्ग) प १६।१०।२६।६,९ २०२,७।१०६,१५६,१६३ सू १०७०,७४, चउभंगि (चतुर्भङ्गिन्) प १०१६ ७७,१२७ , ११।५,६१२।५,१७,२७,१३१८, चउभाग (चतुर्भाग) प ४।१७७,१७६,१८०,१८२, १६ उ २।१०,१२,३।१४,५४,७१,८३,८८, १८३,१८५,१८६,१८८,१८६,१६१,१६२, १५३,१५४.१६१,४।१,३,२४,५।१,२८,३६,४३ १६४,१६५,१६७,१६८,२००,२०१,२०३ चउत्थभत्त (चतुर्थभक्त) प २८।२५ ज २।५६,१५६ ज७।१८७,१८८ सू १।१६,२।१६।३; चउत्था (चतुर्थी) सू १२।२२ १०।४७,१२।३०;१३।४;१५।१७ से १६,२४। चउत्थाहिय (चतुर्थाहिक) ज २१४३ २५ चउत्थी (चतुर्थी) ज ७।१२५ उ ११२६,२७, चउम्मुह (चतुर्मुख) ज ३।१८५,२१२,२१३; १४०,१४१ ५।७२.७३ उ१९८ Page #977 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० चउरंगुल (चतुरङ्गुल) सू १०।६३; १९।२२ चउरंगुलकण्णाक (चतुरङ्गुलकर्णक) ज ३।१०६ चउरंगुलजण्णुक (चतुरङ्गुलज | नुक) ज ३ | १०६ रंगुल सिखुर ( चतुरङ्गुलोच्छ्रितखुर ) ज ३।१०६ चरंस (चतुरस्र ) प १।४ से ६;२।२० से २७, ३१ से ३५,४१,१०।१५,२६,२१।६२ ज १।३१,२।१५;३।६५, १५६,४।११४ चउरासोइ (चतुरशीति) प २४६ ज २४ चउरासीति ( चतुरशीति ) प २।२० ज २।७३ चरिदिय (चतुरिन्द्रिय) प १।१४,५१, २०१८ ३१६,४० से ४२,४७,४६, १५० से १५२, १८३४ । १०१ से १०३ ५।३,८१,६।२०,६५, ७१,८३,१००, १०२, १०४, ११५; ६ ४, १६, २२,११।४५; १२१३, ३०,१३।१७,१५।३४,७५, ८२, ८६, १३७,१६१६,१३,१७।२२,४०,६२, ८८,६६,१०३१८११५,२३,२०१८,१६,२३, २५,२८,३३,४७,२११६,२८,४२,७६,८०,८६, २२।३१,७३,२३१८८, १५१, १६४२८/४३, ४६,१०१,१२५,१३६; २६।१४, २१:३०।१२, १३,२२,२३,३११३,३२२, ३४, ३, ७,३५।१३, २०:३६।६,३६ चरदित्त (चतुरिन्द्रियत्व ) प १५।६७,१४२ चउरेंदिय (चतुरिन्द्रिय) प ६।८६१९ / ३ चडवत्तर ( चतुःसप्तति ) ज ४।५५ चवीस ( चतुर्विंशति) प ६।१।१ ज २६ सू ४।७ चवीसतिम (चतुर्विंशतितम) सू १२।१७ चवीस ( चतुर्विंशति) सू १।१६ चव्विह (चतुविध ) प ११४,५२,६२,६८,७७, १०१३, १३०५।१२५; १३१३, ५, १४७, ६; १५/६६,७५,१६१६,२९,३१,५३,१७।१३; २०१६२,२१।७७,२३१८, २८, ३७, ३६, ५४; २५४४,५,२६१३,१२,३०१६; ३५।४ ज २१५३, ६६,१६२,३।१६७३१०, २११,४६६, २५४, २५५५।५७ चव्वीस ( चतुर्विंशति ) प ६ । १० सू २०१ चउरंगुल-चंद चउव्वीस (चतुर्विंशतितम) प १० | १४ | ३ चउसट्ठि (चतुःषष्टि ) प २०३२ ज २१५२ चउसमइय ( चतु: सामयिक ) प ३६।६७,६८ चहा (चतुर्धा ) प १६।१ चकमिय ( चंक्रम्य ) ज ७ १७८ चंगेरी ( चंगेरी) ज ३।११,५१७, ५५ चंचल ( चञ्चल ) प २१४१, ५० ज ३।१०६,१७८ ५।१८७।१७८ चंचलायमाण ( चंचलायमान ) ज ३१२४१३, ३७ १, ४५।१,१३१।३ चंचुच्चिय (दे० ) ज ३।१७८७ १७८ कुटिलगमन चंचुमलइय (दे० ) ज ५।२१ चंड ( चण्ड) २६०, १३१ astra (दे० ) अत्यधिक कुपित ज ३।२६,३६, ४७, १०७, १०६, १३३ उ १।२२,१४० चंडी ( चण्डा) प ११४८४ चंद (चन्द्र) प ११३३, २।२० से २७, ४८, १५३, ४,२१,५५।३,१७११२८,२१।२३,८० १।२४, २।१५,६८, १३१,३३,२४४, ३२१, ३५,३७१२,४२,४५२, ७६, ८५, ६५, १३१ ४, १५६,१८५, २०६; ४।१४२, २११, ७ १,७२, ७५,७८ से ८२,८४,६८,१०५,१११, ११२।२,१२६,१२७११,१२६,१३४५१, ४, १६७१,१७०, १७७ १,१७८१,१८०,१८१, १८३ से १८५, २०७, २१२,२६२सू १०/२, ५,७५,१२२,१२७ से १२६/२,१३२,१३३, १३६,१३८ से १४२, १४८, १४९,१५२ से १६५,१७०,१७२,१७३,११।१ से ६,१२।३, १५,१७ १,१६ से २८,३०,१३१, ३ से १७; १४।३,७,१५।१,२,५,६,८ से १०,१४,१७ से २०,२६,२६,३२,३५; १८१४,१८,१६,२१ से २४, ३७ १६ ११,५२, ८, ११२, १५२, १६,२१३,६,१६२२/४, ७, १०, १५ से २५, २७,२८,३०१६।३१,३५,३८, २०१२,३,४,६ उ १।६३ : ३।२।१,३६,१४ से १८,२१,२५ Page #978 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदचार-चक्कवट्टि ६०१ चंदचार (चंद्रचार) सू१०।१२१,१२२ चंदण (चन्दन) प ११२०॥४१॥३६॥३,११४६; २।३०,३१,४१ ज २१७०,६५,६६,६६,१००; ३।६,१२,८२,८८,१३३,२०६,२११,२२१, २२२,५।१४ से १६,५५,५६,५८ चंदणकयचच्चाय (चन्दनकृतचर्चाक) ज ३।२०६ चंदणपुड (चन्दनपुट) ज ४।१०७ चंदणा (चन्दना) उ ३।१७१ चंदद्दह (चन्द्रद्रह) ज ४।१४२।३,२६२ चंदपण्णत्ति (चन्द्रप्रज्ञप्ति) ज ७।१०२ चंदपव्वय (चन्द्रपर्वत) ज ४।२२२ चंदप्पभ (चन्द्रप्रभ) प १।२०।४ ज २।१३; ३।१२,८८,५।५८ चंदप्पभा (चंद्रप्रभा) प १७।१३४ ज ७।१८३ सू१८१२१,२०६ चंदमंडल (चन्द्रमण्डल) ज ३।६५,११७,१५६, १७८,७६१ से ७३,७६,७८,६७,१७७ सू १०७६,७७ चंदमग्ग (चन्द्रमार्ग) चं ५।२ सू १।६।२; १०७५ चंदमस (चन्द्रमस्) चं २।४; सू १।६।४; १३११,१७ चंदमा (चन्द्रमस्) ११६,१३।१,१७ चंदमास (चन्द्रमास) सू १२।१० से १२ चंदलेस्सा (चन्द्रले ) सू १६।१,२ चंदवडिसय (चन्द्रावतंसक) सू १८।२२,२३ उ ३।६,१४ चंदविमाण (चन्द्रविमान) प ४।१७७ से १८२; ६।८५ ज ७१७३,१७४,१७६ से १७८,१८८ सू १८।१,८,९,१४,२७,२८ चंदसंवच्छर (चन्द्र पंवत्सर) ज ७।१०६,१०७ सू १०११२७;११२ से ६,१२।१,३,१० से चंदिम (चन्द्रमस्) प २०४८ से ५१,६३ ज ७.५५, ५८,१६८,१८०,१८१,१६७ सू ३।१६।१; १५।११७।१;१८।२,३,१८,१६,३७, १६१, २६; २०११,७ उ २।१२,५१४१ चंदिमसूरियसंठिति (चन्द्रमरसूर्यसंस्थिति) सू ४।१,२ चंदिमा (चन्द्रिका) ज ७/१०२ चंदोतारायण (चन्द्रावतारायन) उ ३३१५७ चंप (चम्पक) प १७।२७ चंपकवण (चम्पकवन) ज ४।११६ चंपग (चम्पक) ज २११०,३।१२,८८ उ ११२३, ६१ चंपगजाति (चम्पकजाति) प ११३८।३ चंपकवडेसंय (चम्पकावतंसक) प २१५०,५२ चंपछल्ली (चम्पकछल्ली) प १७।१२७ चंपभेद (चम्पक भेद) प १७१२७ चंपयकुसुम (चम्पककुसुम) प १७।१२७ चंपयलता (चम्पकलता) प ११३६।१ चंपा (चम्पा ) प ११६३।१; १७१२७ उ ११९,१०, १२,१६,६३,९५,६७,६८,१०५,१०६,११०, ११६,१२२,१२५,१४४,१४५; २।४,५,१६,१७ चंपापुड (चम्पकपुट) ज ४।०७ चक्क (चक्र) ज २११५,३।३,३५,६५,१५६, १६७।११,१२ सू ३।२ चक्कद्धचक्कवालसंठित (चक्रार्धचक्रवालसंस्थित) सू ११२५,४।२ चक्कपुरा (चक्रपुरा) ज ४।२१२,२१२।४ चक्करयण (चक्ररत्न) ज ३।४ से ६,६,१२,१४, १५,१८,२२,३०,३१,३६,४३,४४,५१,५२, ६०,६१,६८,६६,६३,६६,१०६,१३०,१३१, १३६,१३७,१४०,१४१,१४६,१५०,१६३, १७२,१७३,१७५,१७८,१८०,२२० चक्करयणत्त (चक्ररत्नत्व) प २०१६० चक्कवट्टि (चक्रवर्तिन् ) प ११७४,६१,६।२६ ज २।१८,६३,१२५,१५३;३।२,३,२६,३६, चंदाभ (चन्द्राभ) ज २।५६,६२ चंदायण (चन्द्रायण) सू १३।१०,१३ Page #979 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ चक्कवट्टित्त-चर ४७,५६,७६,६५,११५,११६,१२४,१३३, चक्खुहर (चक्षुहर) ज ३।२११,५१५८ १३५॥१,१३६,१३८,१४५,१५६,१६७।५,१४; चच्चपुड (चर्चपुट) ज ३।१०६ ४।६४,१६२,२७७,५।२१,५८,७।१६६,२०० चच्चय (चर्चक) ज ३१८८ चक्कवट्टित्त (चक्रवर्तित्व) प २०१५०,५२ चच्चर (चत्वर) ज २१६५, ३।१८५,२१२,२१३; चक्कवट्टिवंस (चक्रवर्तिवंश) ज २।१२४,१५२ ५७२,७३ उ १९८ चक्कट्टिविजय (चक्रातिविजय) ज ४।१६६, चच्चा (दे०) ज ५१५६ २६२,५।१,५५,६।१४,१६ चच्चिय (चचित) ज ३१२११ चक्कवाग (चक्रवाक) उ ५।५ चडकर (दे०) ज २१६५ चक्कवाय (चक्रमात) ज २।१२ चडगर (दे०) ज ३।१७,२१,२२,३६,७८,१७७ चक्कवाल (चक्रवाल) ज १६५,४।२३४,२४०, चणग (चणक) ज ३।११६ २४१ सू १६।४,७,१४,१८,३०,३४,३७ चत्ताल (चत्वारिंशत्) ज ४।५५ सू ११२१ उ ३।१२,१४१,४।१२,१३ चत्तालीस (चत्वारिंशत् ) प २॥३६ ज ५।४६ चक्काग (चक्रवाक) प ११४८।३८,१७६ सू १०।१५७ चक्कि (चक्रिन ) प ११६३।६;२०११११ चमर (चमर) प ११६४; २।३१,३२,४०।६ चक्किय (चक्रिक) ज २१६४ ज ११३७,२।३५,१०१,११३,११६,३।१८५, चक्किया (शक्नुयात्) ज ३११८५ २०६; ४।२७; ५।२८,५० चक्खिदिय (चक्षुरिन्द्रिय) प १५।१,३,८,१३,१६, चमरचंचा (चमरचञ्चा ) ज ४।१६५,२१०,५१५० ___३४,४१,५८,६४,७०,२८।४६,७१ उ ३३३३ चमरीगंड (चमरगण्ड) ज ३३१७८ चक्खिदियत्त (चक्षुरिन्द्रियत्व) ५ ३४।२० चम्म (चर्मन् ) ज ५।३२ चक्खिदियपरिणाम (चक्षुरिन्द्रियपरिणाम) चम्पपक्खि (चर्मपक्षिन् ) प ११७७,७८ प १३।४ चम्मरयण (चर्मरत्न) ज ३१७८ से ८१,११६, चक्खु (चक्षुष्) ज ५५५,४६ ११७,१२१,१५१,१७८,२२० चक्खसण (चक्षुर्दर्शन) प ५१५,७,२१,४५,८१, चम्मरयणत्त (चर्मरत्नत्व) प २०१६० ६३,६७,२६।३,७,१४,१७,१६,२१;३०।३,७, चम्मेद्वग (चर्मष्टक) ज १५ चय (चय, च्यव) प २०१४६ उ ३।१८,१२५,१५२; ४१२६,२८, ५।३०,४३ चक्खुदंसणावरण (चक्षुर्दर्शनावरण) प २३।१४ चय (श) चएइ प २१६४।१७ चक्खुदंसणावरणिज्ज (चक्षुर्दर्शनावरणीय) चय (च्यव्) चयंति प ६३१११६।२६,१७।६६ प२३।२८ सू १७१ चयति सू १६।२४ चक्खुदंसणि (चक्षुर्द शिन्) प ३।१०४ चयंत (त्यजत्) प २०६४१५ चक्खुदय (वक्षुर्दय) ज ५।२१ चयण (च्यवन) प ६।४६,५६,६६; १७६१,१०५ चक्खप्फास (चक्षःस्पर्श) ज७।२० स २५,७६,८१ च १५ सू११६५१७११ चक्खुफास (चक्षुःस्पर्श) सू २।३ चयोक्चय (चयोपचय) सू१।१४ चक्खूभूय (चक्षुर्भूत) उ ३।११ चर (चर्) चरइ ज ७।१०,१३,१६,१६ से ३०, चक्खुन (चक्षुष्मत्) ज २१५६,६१ २५,६६,७२,७५,७८ से ८२,८४,६५,६६,६८ चक्खुल्लोयणलेस (चक्षुर्लोकनलेश) ज ४।२७; ५।२८ से १००,१७१,१७३,१७५ सू १।११ चरंति १३ Page #980 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चर-वाम रहयगय १७५२।४६ ज ३६५ १२५७११ चं ३११ १७।१:१९०१.११.२.१५२.२१/३.६ १३५१६।२२।२,१७ परिति १२ १ १६०१ चति चरवि सू १२८ चरि ज ३६५७१ चरिस्सति ज ३९५७१ सू १६।११ चर (चर) ज ७।१२४, १२५ चरग ( चरक ) प २०१६१ ज ३।१०२ चरण (चरण) ज ३०२,१३८ चरम (चरम ) सू ७।१:१०११५६ २०१३ चरमाण (चरत् ) उ १२, १७३४२९,६६,१३२, १४६, १५६, ४१११.५.३६ चरित (चरित्र) प १।१०१।१० ज २७१ चरितधम्म ( चरित्रधर्म ) प ११०१।१२ परितपरिणाम ( वरिपरिणाम ) प १३०२, १२, १४,१८,१९ चरितमोहणिज्ज ( चरित्रमोहनीय ) प २३ | ३२,३४ चरिताचरिति (चरित्राचरित्रिन्) प १३१४,१८, १६ चरितारिय (परिषायं ) प १।१२,१११ से १२९ चरिति (चरित्र) प १३।१४, १५,१६. चरिम (चरम ) प १११०४,१०३२,१०६,१०७, १०६, ११०,११३,११४,११६.११६१२०,१२२,१२३ २०६४।५३।१।२३।१२२१०१२ से १३, २१ से २४,२६ से २६, ३१ से ५३; १५४४३:१८११२,१६१२६६२३१६३ ३६।७१ ज ४।१४३७११५६ से १६७ १०६३ से ७४, १२५, १४२:१४३, १४७ से १५१,१५६,१६१: ११०५,६,१२०२४ से २८, ३०:१३।१५।४३ ५०१: चरिमंत ( चरमान्त ) प २०६४ १०१२ से ५,२१, २६,२७ से २६ १६।३४; २१।२०३३।१६. १७ ज ४।११०, १९४१,२०६, २०७, २५२ चरिमभव (चरमभव ) प २०६४|४ चरु ( चरु ) उ ३।५१,६४ चल (चल) ज ३।१७८ ७ १७८ चल (चल) चल ज २११२:३१५५,६४,७२, १४४५।२० चलति ज ३२,१११,११२:५२,७ चलंत ( चलत् ) ज ३।३१,७।१७८ चलचल (चलचपल ) प २०४१ चलण (चरण) ज २०१४, १५:३।३५, १०६७१७८ चलणीबहुल ( चलनी' बहुल) ज २।१३२ चलिय ( चलित) ज २१८६, ६०, ६३ ३५६,११३, १४५५१३,२१,२८ चवल (चपल ) ज २६०, ३१६, २६, ३५, ३६,४७, ५६,६४,७२,१०६, ११३,१३८, १४५, १७८; ०३ ५१५,२१,२६,४४,४७,६७,७१७८ चवलायत (चपलायमान) ज २०१५ चविया ( चव्य ) प १७।१३१ चाउरघंट (चतुर्घण्ट ) ज ३।२१, २२, ३४ से ३६ उ ५।३८ चाउट (चतुर्घण्ट) उ १।११० चाउरंगिणी (चतुरङ्गिणी) ज ३०१५,२१,३१,३४, ७८,६१,१७२,१७५,१६६ उ १।१२३ १२७, १२८:५।१८ चाउरंत (चतुरन्त ) ज २।१६३४२,२६,३९,४७, ५६, ११५,१२४, १३२, १३, १४५.५०२१,५० चाउरसालग (चतुःशालक) ५|१३ चाउस्सालय ( चतुःशालक) ज ५०१३,१४ चाटुकारण (चाटुकारक) ज २०७६ चामर ( चामर ) प ११।२५ ज २।१५;३।६,१८, २४,३१,३५,६३,१०६,१७८, १८०,२२२; ४१२६,३०:५।११,४३,४६,५५,५७,६०,६६ ७।१७८ चामरगाह (चामरग्राह) ज ३।१७८ चामरच्छाय (चामरच्छायन) ज ७।१३२।३ चामरच्छायण (नामरच्छायन) सू १०१११३ चामरहयगय (हस्तगतचामर ) ज ३।११ १ चलनप्रमाण कर्दमः चलनीत्युच्यते Page #981 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०४ चामीकर ( चामीकर) ज ३|१ चार (चार) प २४८, १६५५ ज ७ १,१०,१३, १६, १६ से ३१, ३५, ६६,७२,७५,७८ से ८२,८४,६५,६६,६८ से १००,१७१,१७३ से १७५ १६,११,१४,१६,१७,१९ से २४, २७,२१२, ३, ३।२४१४, ७, ६; ६१; ६२; १०।१२१,१२२,१३।५ से १०,१२,१३,१७; १५२ से ४; १८ ।१, ५, ७,१६१, ५, ८, ११,१५, १६,२१,१६२२१२,१३,२२,१६/२३ चारगसाला ( चारकशाला ) उ११८८६१ चारट्ठिइय ( चारस्थितिक) ज ७।५५,५८ चारट्ठतिय ( चारस्थितिक ) सू १९२३, २६ चारण (चारण) प १६१ चारि ( चारिन् ) प २०४८ चारिय (चारिक ) प १७।३१ चारित्व ( चारयितव्य ) प १७।३१,६७ चारु ( चारु) प २०४१, ५० ज २११४, १५:३।१०६, ११६,१३८५११८ चारुभासि ( चारुभासिन्) ज ३१७७, १०६ चारेयव्व ( चारयितव्य ) प २१।१०२; २२|७० चारोग (चारोपग) सू १६।२२।२१ चारोववण्णग ( चारोपपन्नक) ज ७।५५,५८ सू१६/२३,३६ चाव (चाप) ज २।१५; ३।३१,१७८ चावगाह (चापग्राह) ज ३।१७८ चावंस (दे० ) प ११४१२ चास (चा) १७६; १७।१२४ चासपिच्छ ( चाषपिच्छ ) प १७।१२४ चि (चि) चिज्जंति प २१।६५,६६ चिउर ( चिकुर ) प १७।१२७ चिउरराग ( चिकुरराग ) प १७।१२७ चिंचाराम (चिञ्चाराम) उ३१४८, ५५ चित (चित्) चितेभि प ११।१ चितय ( चिन्तक) उ ११३१ चिता (चिन्ता) ज ३११०५ उ२।११ चामीकर-चित्त चितिय ( चिन्तित ) ज ३२६,३६,४७,५६,८७, १२२,१३३, १४५, १८८५१२२१।१५,५१, ५४,६५,७६,७६,६६,१०५ ३२६,४८,५०, ५५,६८,१०६,११८,१३१,५३६,३७ चितेमाण ( चिन्तयत् ) ज ३३१८८ चिंध (चिह्न) प २१३०,३१,४१,४८,४६ ज ३।२४,३१,७७,१०७ से १११,११७, १२४, १७८ उ१।१२,१४० चिक्खिल्ल (दे० ) प २२० से २७ ( चिट्ठ (स्था) चिट्ठइ उ ११४७ चिट्ठई ज १।१६, ४०, ४७,३।५४,६३,७२, १३७, १४३, १६७, २२२,४।१४०,१६८, २३४,२४०, २४१, ५।६७, ६८ चिट्ठति प० २६४; २।६४।२०;१५।४३, ४५,२८।१०५;३४।१६,२२ से २४,३६,७६, ८१,६३,६४। १ ज १।१३,३०,२१७ से ६, १३, ६० से ६२ : ३।१११, ११३,४२, १२६, १३७; ५५,७ से १२,३८, ५७, ६०, ६७,७१८५, २१३ सू १८।२३ उ ३।४६ चिट्ठति प १५ ५१, ५२ सू १६२ चिट्ठह ज ३।११३ चिट्ठामि उ १।११७ चिट्ठाहि उ १।११५ चिट्ठे ३६।९१ चिट्ठित ( स्थित ) सू २०७ चिट्ठिय ( चेष्टित) ज २ । १५; ३।१३८ चिडग ( चटक ) प १७६ चिजण ( चयन ) प २१।१।१ चि ( चि) चिप १४।१८ १ चिति ४ १४|११ चिणिस्संति १४।१२ प १४।१३ चिण्ण (चीर्ण) चं ३|१ सू १७, १८, १६, १३१२, १४ से १७ उ ३।४८,५०,५५ चित्त (चित्त) २४१ ज ३।५,६,८,१५,१६,३१,५२, ५३,६१,६२,६६,७०,७७,८४,६१,१००, १०६, ११४,१३७,१४१,१४२,१५०, १६५,१७३, १८१,१६६,२०८,२१३५१५, १५, १८, २१, २६,२७,२६,४१,५५,५७,७० उ १।२१,३१, Page #982 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्त-चुलसीइ है०५ ४२,१०८,३।१३६,५।२० चित्त (चित्र) प ११११३,२।३०,३१,४१,४८,५० ज ३।२४।३,३७/१,४५।१,७६,११६,१२४, १३१॥३,१४५,१७८,७।१७८ चित्त (चैत्र) सू १०।१२४ चित्तंतरलेस (चित्रान्तरलेश्य) ज ७।५८ सू १६।२६ चित्तंतरलेस्साग (चित्रान्तरलेश्याक) सू १६।२२।३० चित्तकणगा (चित्रकनका) ज ५।१२ चित्तकूड (चित्रकूट) ज ४।१६६,१६६,१७२,१७३, १७६,१७८ से १८१,१८५,१६१,१६७,२००, २०६,२०७; ६।१० चित्तग (चित्रक) प ११६६ चित्तगुत्ता (चित्रगुप्ता) ज ५९।१ चित्तपक्ख (चित्रपक्ष) प ११५१ चित्तगहुल (चित्रकबहुल) ज २१६४ चित्तय (चित्रक) प ११।२१ चित्तलंगमंग (चित्रलाङ्गाङ्ग) ज २।१३३ चित्तलग (चित्रलक) प ११६६ ज २।१३६ चित्तलि (चित्रल,चित्रलिन्) प १७१ चित्तविचितकूड (चित्रविचित्रकूट) ज ४१६४ चित्ता (चित्रा) ज ५।१२;७।१२८,१२६,१३६, १४०,१४६,१६४,१६५ सू १०।२ से ६,१६, २३,४७,६२,७१,७२,७५,८३,११२,१२०, १३१ से १३३,१५४; १२।३० चितामूलय (चित्तामूलक) प १७।१३१ चितार (चित्रकार) प १९७ चित्तिया (चित्रिका) प १११२३ चिय (चित) प २३।१३ से २३ ज ३१२१७ चिय (एव) सू १०।१३६ चियगा (चितका) ज २।९५,९६,१०३,१०४,११४ चियत्तदेह (:क्तदेह) ज २।६७ चिरं (चिरम् ) ज ३।१२६।१,२ चिरंजीव (चिरंजीव) ज ३।१२६ चिराईय (चिरातीत) चं ७ उ ५७ चिलाइ (किराती) ज ३१११११ चिलाइया (किरातिका) ज ३१८७ चिलाय (किरात) ज ३।१०३ से १०५,१०७, ११५,१२५ से १२७ चिलायविसयवासि (किरातविषयवासिन) प ११८६ चिल्लग (दे०) प २।४१ चिल्लल (दे०) प १८६; २१४,१३,१६ से १६,२८ चिल्ललग (दे०) प १११२२ चिल्ललय (दे०) प ११।२१,२४ चिल्ललिया (दे०) प १११२३ चिल्लाय (किरात) प १८६ चिल्लियतल (दे०) सू २०१७ देदीप्पमान तल चीण (चीन) प १८६ चीणपिट्ठरासि (चीनषिष्टराशि) प १७।१२६ चीवरघारि (चीवरधारिन्) ज २०६६ चुचुण (चुञ्चुण) प १।६४।१ चुंचुय (चुञ्चुक) प १८६ चुच्च (दे०) प १।३७।२ चुण्ण (चूर्ण) प ११४८।३८ ज २१६५,३।११,१२, ८८ सू २०१७ चुण्णग (चूर्णक) उ ३३११४ चुण्णवास (चूर्णवास) ज ५।५७ चुण्णविहि (चूर्ण विधि) ज ५१५७ चुणिया (चूर्णिका) प १११७६ ज ७।२१,२५,६५, ६८,६६,७१,७२,७४ सू २।३१०।१५२ से १६०,१६२,१६३,१११२ से ६,१२१७,८,१६ से २८ चुण्णियाभाग (चूणिकाभाग) ज ७।२१,६६,७४,७५ चुणियाभाय (चूर्णिकाभाग) ज ७।२५,६५,६८, ७१,७२,७५,७७,७८ चुणियाभेद (चणिकाभेद) प १११७६,७६ चुणियाभेय (चूर्णिकाभेद) प ११७३,७६ चुय (च्युत) ज २१८५७५६,५६ चुलसीइ (चतुरशीति) प २१३४ ज २०७४ च ४।२ Page #983 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चुलसीति-चोरग चुलसीति (चतुरशीति) प २।४०।१ सू २।३ चेडरूव (चेटरूप) उ ३।११४ चुलसीय (चतुरशीति) सू १।१२ चेडिया (चेटिका) उ ३।१४१ चुल्लमाउया (क्षुल्लमातृका) उ १।१२,४३,४४, । चेडी (चेटी) उ ११५४,५५,७६,८०,४।१२,१३ १४५,२१५,१७ चेतियखंभ (चैत्यस्तम्भ) सू १८।३ चुल्लहिमवंत (क्षुल्ल हिमवत्) प १६।३० ज ११४८; चेत्त (चैत्र) ज ७।१०४ उ ३।४० ४।४८ चेती (चैत्री) ज ७१३७,१४०,१४६,१५५ चुल्लहिमवंतकड (चुल्लहिमवत्कूट) ज ४।४४,४५, सू १०७,१६,२३,३६ ४८,५१,५२,७६,६६,२२६ चेदि (चेदि) प ११९३४ चुल्लहिमवंतगिरिकुमार (क्षुल्लहिमवगिरिकुमार) Vचेय (त्यज्) चेएइ उ० ४।२१ चेएसि उ ४।२२ ज ३।१३१ से १३४,१३६,४१५२ चेलपेला (चेलपेटा) उ ३३१२८ चूचुय (चूचुक ( ज २।१५ चेल्लणा (चेलना) उ १११०,३२ से ४१,४३,४४, चूडामणि (चूडामणि) प २।३० ३१ ज ३।३६, ४६,४८ से ५५,५७,५८,७० से ७४,८८,६५, १०६,११०,११३,११४ चूतलता (चूतलता) प १३३९।१ वेव (चैव) प ११११७ चूयमंजरी (चूतमञ्जरी) ज ३।१२,८८,२५८ चोइयमइ (चोदितमति) ज ३११३८ चूयवण (चूतवन) ज ४।११६ चोक्ख (चोक्ष) ज ३८२,१०६ उ ३।५१,५६ चूयवडेंसय (चूतावतंसक) प २।५०,५२ चोताल (चत्वारिंशत्) सू १२।१२,१६।१५।२ चूलासीइ (चतुरशीति ) सू १।८।२ चोत्तालीस (चत्वारिंशत्) सू १०।१३६ चूलियंग (चूलिकाङ्ग) ज २।४ चोत्तीस (चतुःत्रिंशत् ) प २।३६ ज ४।११० चूलिय (चूलिक) ज २।४ ; ४।२४२ सू १।२२ चेइय (त्य) ज १।३।२।३१,६७,७१२२४ च ७६ चोद्दस (चतुर्दशन ) प २२६; ज ११४८ सू श२,४,१८।२३ उ १६१,२,६,१७,१६, सू३।११०१६३ १४४;२।४,१६,३।४,६,२१,२४,२६,४६,८६, चोहसपूवि (चतुर्दशपूविन्) ज ११५ ६५,१५५,१५७,१६८,१७१:४।४,६,१३,१८, चोइसम (चतुर्दश) ज २१८८ २८:५३६ चोद्दसरयणीसर (चतुर्दशरत्नेश्वर) ज ३।१२६।३ चेइमखंभ (चैत्यस्तम्भ) ज २।१२०,४।१३३; चोद्दसविह (चतुर्दशविध) प २३।१६,२० ७।१८५ चोप्पाल (दे०) ज ४,१३७ आयुधशाला चेइयथूभ (चैत्यस्तूप) ज २११४,११५ चोप्पालग (दे०) ज २।२० वरण्डा चेइयरुक्ख (चैत्यरूक्ष,चैत्यवृक्ष) ज ४।१२६,१२७ चोय (दे०) ज ३।११।३ चेट्ठा (चेष्टा) ज २११३३ चोयपुड ('चोय'पुट) ज ४।१०७ चेड (चेट) ज ३।६,७७,२२२ चोयाल (चतुश्चत्वारिंशत्) प २।४०।३ ज ७७६ चेडग (चेटक) उ ११२२,१०७,१११,११५,११६, सू ११८ ११६,१२८,१३७,१४० चोयालीस (चतुश्चत्वारिंशत्) प १३५ ज ७८ चेडय (चेटक) उ ११२२,२५,२६,१०५ से १०७, चोयासव (चोयासव) प १७।१३४ १०६,११०,११३,११४,११६ से ११६,१२७, चोर (चोर) प १७।१३२ उ ३।१२८ १२६ से १३४,१४० चोरग (चोरक) प ११४४।३ असबरक, एक बढ़िया Page #984 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवट्टि-छप्पण्ण १०७ १३११४ घास जो रेशम रंगने के काम आता है २१६,२२१,२२२,२२४,२२५,२२८,२३०, चोवछि (चतुष्षष्टि) प २।३१ २३२,२३४,२३७,२३६,२४२ से २४४ चोवत्तर (चतुस्सप्तति) ज ७८० छट्ठाणवडिय (षट् स्थानपतित) प ५१५.७।११५, चोव्वीस (चतुर्विंशति) ज ७।१०६ चोसट्ठि (चतुष्षष्टि) ज २०६४ छठ्ठी (षष्ठी) प २।२७।२ ज ७/१२५ छण्ण (छन्न) ज ३।३ छण्णउइ (षण्णवति) प २।४०।११२।३२ ज २१६; छ (षष् ) प ११६४।१ ज १।१८ चं ३।३ सू ११७ ३१७८ उ ५१२५ छण्णउत (षण्णवति) सू १६।२१ छउमत्थ (छद्ममस्थ) प १११०११४,१४१०४ से १०७; छण्णउति (षष्णवति) सू २।३ ११७ से १२०,१२६,३।१८३,१५।४४,४५; छण्णउय (षण्णवति) सू १६।११।३;२११७ १८।६४,६५,६७,६८,३६।८०,८१ छत्त (छत्र) प २।४८,६४,१११२५ ज २।१५,२०; छउमत्थपरियाय (छद्मस्थपर्याय) ज २८८ ३।३,६,१८,३१,३५,७७,७८,६३,१७८,१८०, छक्कग (षट्क) ज ७१३१।१ छक्खुत्तो (षट् कृत्वस्) सू १२।१० २२२,५१४३,५५,५७ सू १२।२६ उ १।१६; ४।१३,१८ छगल (छगल) प २०४६ छज्ज (राज्) छज्जइ ज ३।२४।४,३७।२,४५।२, छत्तहत्थगय (हस्तगतछत्र) ज ३।११ छत्तछाया (छत्रछाया) प १६।४७ छट्ठ (षष्ठ) प ३।१८,१८३,६।८०।२; १०।१४।४ छत्तरयण (छत्ररत्न) ज ३।११७।१,११८,११६, से ६,१२।३२; १७१६५; ३३।१६,३६।८५,८७ १२१,१७८,२२० ज २१६५,८५,७।६७,११७।१ सू १०७७; छत्तरयणत्त (छत्र रत्नत्व) प २०१६० १३१८ उ २।१०,२२,३।१४,५०,५५,८३,१५० छत्तल (षट्तल) ज ३१६३,१३५,१५८ १६१,१६७,१७०।४।२४।५।२८,३६,४३ छत्ताइच्छत्त (छत्रातिच्छत्र) ज ४।३०,४६,५१४३ छट्ठक्खमण (षष्ठक्षपण) उ ३।५० से ५४ छतागारसंठित (छत्राकारसंस्थित) सू ११२५,४।२ छट्ठभत्त (षष्ठभक्त) प २८।४७ ज २।५२,१६१ । छत्तातिच्छत्त (छत्रातिच्छत्र) सू १२।२६,३० छठाणवडित (षट् थानपतित) प ५१५,७,१०,१२ छत्ताय (छत्राक) प ११४७ कुकुरमुत्ता, धनिया, १४,१६,१८,२०,२४,२५,२८,३०,३२,३४, सोया, जाल बबूर का वृक्ष ३७,३८,४१,४२,४५,४६,४६,५३,५६,५६, छत्तार (छत्रकार) प ११९७ ६०,६३,६४,६८,७१,७४,७५,७८,७६,८३, छत्तालीस (षट्चत्वारिंशत्) सू १२।२५ ८४,८६,८६,६०,६३,६४,६७,१०१,१०२, छत्तीस (षट्त्रिंशत् ) प २।४०।४ ज ३।३ १०४,१०५:१०७,१०८,१११,११२,११६,१२६, सू १०।१६६ १३१,१३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७, छत्तोह (छत्रौघ) प ११३६।३ १५०,१५१,१५४,१६३,१६६,१६६,१७२, छप्पएसिय (षट् प्रदेशिक) प १०।११ १७४१७७,१८१,१८४,१८७,१६०,१६१, छप्पण्ण (षट्पञ्चाशत् ) प ११८४ ज ४।८६ १६३,१६४,१६७,१६८,२००,२०१,२०३,२०४, सु३११ २०७,२०८,२११,२१२,२१४,२१५,२१८, छप्पण्ण (दे० षट् प्राज्ञक) ज २०१६ Page #985 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ छप्पय-छेत्तुं छप्पय (षट्पद) ज २११२ १०१६३ से ७४;१६।५,६ छब्भंग (षटभङ्ग) प २८।११६,१२३,१२५,१३३, छायागति (छायागति) प १६।३८,४७ १३६,१४३ से १४५ छायाणमाणप्पमाण (छायानुमानप्रमाण) सू ।३ छन्भाग (षटभाग) प २१६४ ज १११८,६।३२।१।। छायाणुवादिणी (छायानुवादिनी) सू ६।४ छमास (षण्मास) सू १।१६ छायाणुवायगति (छायानुपातगति) प १६।३८,४८ छम्मास (षण्मास) ज २।४६,७।२३,२५,२८,३०, छायाल (षट्चत्वारिंशत् ) प २।४०।४ ज ४।८६ ५७,६० सू १११३,१४,१७,२१,२४,२७,२।३; छायालीस (षट्चत्वारिंशत्) सू १४७ ६।११६।२५,२७ छायाविकंप (छायाविकम्प) सू ६।४ छम्मासावसेसाउय (छण्मासावशेषायुष्क) छारियभूय (क्षारिक भूत) ज २११३२,१४१ प६।११४ छावट्ठ (षट्पष्टि) ज ७।२७ छल (षष्) ज ७/२०१ सू १२।१२ छावठ्ठि (षट्षष्टि) प १८७६ ज ११२० छलंस (षडस्र) ज ३।६२,११६ सू १।११;१२।३ छलसीय (षडशीति) ज ४।४५;७।३१ सू ४।४; छावत्तर (षट्सप्तति) ज ७१ सू१६।१११,१११३ १५।२६ छावतरि (षट्सप्तति) प २१४०।२ छल्ली (छल्ली) प ११४८।३० से ३७,६३ छिद (छिद) छिदंति ज ५१५७ छियामि उ १८८ छवि (छवि) ज २।१६,३६,४१,१३३, ३३१०६ छिज्ज (छेद्य) उ ३।११४ छविच्छेय (छविच्छेद) ज २।३६,४१ छिण्ण (छिन्न) ज २८८,८६,३१२२५ छविधर (छविधर) ज ७१७८ छिण्णरुहा (छिन्नरुहा) प ११४८।३ गुडूची छविहर (छविधर) ज ७।१७८ छिद्द (छिद्र) प २।१० उ १६५,६६,१०५ छविध (षविध) प ६।११८ छिण्णलेसा (छिन्नलेश्या) सू ६।१ छविय (दे०) प १९७ कट आदि बनाने वाला छिन्नसोय (छिन्नस्रोतस,छिन्नशोक) ज २१६८ छविह (षविध) प १६१,६४,६५,६।११६ छिप्पतूर (क्षिप्रतूर्य) उ १११३८ १३।६।१५।३५,७०,२११२६,३१,३२,३४,३६, छिया (दे०) ज २१६७ २२।८३,८४,८६,२३।४५,४६; २४।२,४,८, छीइत्ता (क्षुत्वा) ज २१४६ १० से १२,२६।२,४,६,८ से १०,२६।६; छोरविरालिया (क्षीरबिडालिका) प १७६ ३०॥२ ज २१२,३,५०,५८,१२३,१२८,१४८, छौरविराली (क्षीरविदारी) प १४४०१४ १५१,१५७,१६४;४।१०१,१७१ ११४८।२ सफेद और अधिक दूध वाली छव्वीस (षड्विंशति) प २।२३ ज ७।१०८ विदारी सू ११२१ छाउद्देस (छायोद्देश) सू ६।२ छुरघरगसंठिय (क्षुरगृहकसंस्थित) सू १०॥३६ छाउमत्थिय (छाद्मस्थिक) प ३६।५३ से ५६,५८ छुरघरय (क्षुरगृहक) ज ७।१३३।१ छाणविच्छ्य (छगणवृश्चिक) प ११५१ छुहा (क्षुधा) प २१६४।१६ छायच्छाय (छायाछाया) सू ६।४ छेइत्ता (छित्त्वा) उ ३।१५०, ५।२८,४१ छाया (छाया) प २।३०,३१,४१,४६; १६:४८ छेज्ज (छेद्य) ज ३।३२ ज ११८,२३,३१,२११६,२०,१४६; ३।३,११७।१ छेता (छित्त्वा ) ज ७.२२ सू १११६ १२७:५।३२,७।१५६ से १६७।१ सू ६।४; छेत्तुं (छेत्तुम् ) ज २।६।१ Page #986 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छेद-जभग ६०६ छेद (छिद्) छेदेइ उ ३८३ छेदेहिइ उ ५१४३ छेदित्ता (छित्त्वा) उ २११२,३।१४ छेदेत्ता (छित्त्वा) उ ३१८३ छेदोवठ्ठावणिय (छेदोपस्थापनीय) प १११२४, छेदोवठावणियचरिस्परिणाम (छेदोपस्थानीय चरित्रपरिणाम) प १३।१२ छेय (छेद) ज २१३६,४१,६०,३।१७८,५१५ छेय (छिद् ) छेएइ उ ५।३६ छयणगदाइ (छेदनकदायिन्) प १२१३२ छेरमाण (रिच्यमान) उ३।१३० छेलिय (दे०) ज ३।३१ छेवट (सेवार्त) प २३।४५,६६,१०५,१०७,१०६, छोढुं (क्षिप्त्वा') सू ६।३ ज (यत्) प ११४ ज श६ सू ११४ उ ११२,३।३१; ५।३६ जइ (यदा) प २२२ जइ (यदि) प २०६४।१६ सू १।१३ उ ११६; २।१३।१,४।१।१ जइ (यत्र) प २३।१६० जइण (जविन्) ज २।६०,३।२६,३५,३६,४७,६४, ७२,१०६,११३,१३८,१४५;५॥५,२८,४४,४७, ६७,७११७८ जइया (यावत्) ज ७।१३१ जंगम (जङ्गम) ज ३।१०६ जंगल (जङ्गल) प १।६३।२ जंघा (जङ्घा) ज २।१५ उ ३।११४ जंत (यंत्र) प २।३०,३१,४१ ज ३।३२,७६,१०६, ११६,१७८,४।२७।५।२८ जंतु (जन्तु) ज २०४१ जंपमाण (जल्पत्) ज ३१८१ जंबु (जन्बु, जम्बू) प १।३५।१।१३१ उ १।३ से १. हे० ४।१४३ क्षिप् - छुह ५,७,६,१४२,१४४,२।२,४,१४,१६,२१,३।२, ४,१६,२१,२२,२४,८७,८६,१५३,१५५,१६६, १६८,१७०;४।२,४,२७,५।२,४,४४ जंबुद्दीव (जम्बूद्वीप) प २।३२,३३,३५,३६,४३,५०, ५१,१५।५४,५५।१;१६।३०,३६।८१ ज १७, १५,१६,१७।१,१८,२०,२३,३४,३५,४६,४८, ५१:२।१,७,१६,५२,५६,९०,१६१,१६४,३१२६, ३६,४७,५६,११३,१३३,१३८,१४५,४।१,६, ५२,५५,६२,८१,८६,९८,११४,१५६,१६०, १६५,१६७,१६६,१७२ से १७४,१७८,१८१, १८२,२०१ से २०३,२०६,२१३,२६२,२६५, २६८,२७१,२७४,२७७,५।३,२२,२६,६।१,५,७ से २६;७।१,४,८ से १४,३१,३३,३६ से ३६, ५२,५४,६२६३,६७ से ७२,८६,८७,६१,६२, १०१,१०२,१७५,१८२,१९८ से २०८,२१० से २१३ सू १।१४,१६,१७,१६,२१,२२,२४, २७;२।१,३,३।१,२,४।३,४,७,१०,६।१८।१; १०।१३२,१४२,१४७,१२।३०,१८७,२०; १६।१,२,१६।२२।२३ उ १६:३७,६१,१२५, १५७:५।२४,४३ जंबुद्दीवपण्णत्ति (जम्बूद्वीपज्ञप्ति) ज ७।१०१,१०२, २१४ सू ३।१ जंबू (जम्बू) ज ४।१४६ से १५०; १५१।१,२,१५२ से १५४,१५६,१५७।२,१५८,१५६,२०८; ७।२१३ जंबूणय (जाम्बूनद) ज ३।३०,३५ जंबू णयामय (जाम्बूनदमय) ज ११५१; ४।७,१३, ११८,१४३,२५६ जंबूपेढ (जम्बूपीठ) ज ४।१४३ से १४५ जंबूफल (जम्बूफल) प १७।१२३ जंबूफलकालिया (जम्बूफलकालिका) प १७।१३४ जंबूरुक्ख (जंबूरूक्ष) ज ७।२१३ जंबूवण (जम्बूवन) ज ७।२१३ जंबूवणसंड (जम्बूवनषण्ड) ज ७।२१३ जंभग (जृम्भक) ज ५।६६ Page #987 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० जंभय ( जृम्भक ) ज ५४७० जंभात्ता ( जृम्भयित्वा ) ज २०४६ जक्ख ( यक्ष ) प १।१३२; २।४१.४५; १५ ।५५।३ ज २०३१, २०१४, १८, २०, २१,४३,५१,६०,६८ १३,१३०, १३६,१४०, १४६, १७२, १८० सू १९३८ ५४७, २४, २६ जखम्गह ( यक्षग्रह) ज २०४३ जाययण ( यज्ञायतन) २७८,२४,२६ जक्खोद ( यक्षोद) सू १६ ३८ जग (जगत् ज ५१५,४६ जगई ( जगती) ज १७ से ६, १२, १४, ४६, ३५, ३७,४२,४५, ७१.७७, ६०, ६४,२६२ जगईसमिया (जगतीस मिका) ज १०१० जगती ( जगती) सू २०१ जगप्पईवदाइय (जगत्प्रदीपदायिका) ज ५१५, ४६ जयण ( जघन) ज ३११३८ जच्च ( जात्य) व २०१५३।१०६,१७८ जच्चrग ( जात्यकनक) ज २२६८ जट्ठ (इष्ट) उ ३१४८, ५० जडि ( जटिन् ज ३११७८ जडिवाइलय (जटिकादिलक) सू २०१६१५ जयायलय (दे० टिकालिक) सू २०६५ जढिलय ( जटिलक) सू २०१२ जद (त्यक्त) ज ३॥१२७ V जण ( जन्) जण इस्सइ ज २।१४२, १४३, १४५ जज्जा १७१६६.१६७,१६९ से १७२ जण (जन ) प १।१।२ ज १।२६ २०६५; ३११, ६५, १०६ ११६,१३८, १५६ सू १।११।६८, १३६; ३।११४, ११५, ११६५४७,२०,२७ जणक्य ( जनक्षय) ज २०४३ जणणी ( जननी) ज ५१५, ४६ जणवद (जनपद) उ १६६ जणवय (जनपद) प ११।३३ । १ ज २।१३१,३१८१, १८६,२०४,२२११।२४,९९,१०३१०६, ११०,११३, ११४,१२२,१२६,१३३ जणवयकल्लाणिया (जनपदकल्याणिका) ज ३११७८, १८६,२०४,२१४,२२१ जणवयविहार ( जनपदविहार) उ३१४६, १४५; ५।३३ जणवयसच्च ( जनपदसत्य ) प ११।३३ जणिय ( जनित ) उ ३०४८, ५० जण्ण (यज्ञ) ज २।३० उ ३।४८,५० tors ( यज्ञकिन् ) उ ३।५० जणु ( जानू ) ज ३।१२८८५४७,५८ जहवी ( जाह्नवी) ज ३।१६७।११ जत ( यत ) प २ ३०, ४१ जति (यदा ) प ५|२०६५।१३४११।२२।२६ जति ( यत्र ) प २३|१६७ जतिविह ( यतिविध ) प १६२० जत्ता (यात्रा) उ ३०३०,३१ जत्तिय ( यावत् ) प १५०६६.१०३२३११७५ जंभय - जम्म ज ७।२०० जत्थ ( यत्र ) ज ३१७६ उ ३ । ५५; ४ । २१ ; ५।३६ जवा (या) ज ७२० जदि ( यदि ) प ५१५ जम्पभि ( यत्प्रभृति) ज २०६७ उ २०११८ जम (यम) ज ७ १३०,१०६०२ २०५३ जम (काइय ) ( यमकायिक) ज १।३१ जग ( यमक) ज ४।११२ से ११५, ११७,१२०, १४०१२, १४१, १६५ जमगपव्यय ( यमकपर्वत) ज ४।१११, ११३.२०६. २६२३६।१० जमगवण्णाभ ( यमकवण भि) ज ४।११३ जमगसंठाणसंठिया ( यमकसंस्थानसंस्थित) ज ४।११० जमगसगम (दे० ) ज ३१२,३१,७८, १०६, १८० २०६५।२४ जमदेवया ( यमदेवता ) १०१८३ जमय ( यमक ) ज ४।११६ जमल (कमल) ज १२४ २०१५४।२७५१५२८ जमालि ( जमालि) उ ४१५११२०, २७, ३८ जमिगा (मिका) ज ४१६० जम्म ( जन्मन् ) प ३६।१४ ज २।१०३, १०४ उ १३४३।१८, १०१,१३१ Page #988 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्मण-जसंसि ९११ जम्मण (जन्मन्) ज ५।३,५,७,१७,२२,२६,४४, ४६,६७ से ७०,७२ से ७४ उ २।६३।११२; ४।१६।५।२५ जम्हा (यस्मात्) उ १।६३; २६ जय (यत्) प २।३१ जय (ज) ज २०१५,६४,६५, ३५,६.१८,२६,३६, ४७,५६,६४,७२,७७.६०,६३ ११४,१३३, १३८,१४५,१५१,१५७,१७८,१८०,१८५, २०५,२०६,२२२, ५।५८, ७।११८ उ १।१०७, ११०.११६,११८,१२२.१३०,५१७ जय (जि) जइस्सइ उ १११५ जयंति उ १११३५ जयंत (जन्त) प १११३८, २१६३;४।२६४ से २६६; ६।४२,५६;७।२६; १५।८६,६२,१००, १०२.१०५,१०८,१०६.११३,११४,११६, १२०,१२१,१२३,१२५,१२६,१३१,१३६; २८९६ ज ११५,४१६४ जयंती (जयन्ती) ज ४।२१२, २१२।४।५।८।१ ७।१२०१२,१८६ सू १०८८२ जयणा (यतना) उ ३।३१ जयहर (जयधर) ज ३।१२६।१ जया (यदा) ज ५११ सू १।११ उ ३।११८ जया (जया) सू१०।६०,१७०,१७२ जर (जरा) प १११११; ३६१८३।२ सू २०१६।६।। जर (ज्वर) ज २।४३ जरा (जरा) प २०६४,२०६४।६,२२,३६।१४।१ ज २१८८,८६,१०३,१०४,१३३,३।२२५ जरुला (दे०) प ११५१ जल (जल) प ११७५ ज २११३४,३।३२,८१,९८, १५१,४।३,२५ उ ३१५५ जल (ज्वल) जलं ति ज ५१५७ जलंत (ज्वलत् ) ज ३११८८,४६,१४,३१,४१,६८, ७६,६३ उ ३।४८,५०,५५६३, ६७.७०,७३, १०६,११८ जलकंत (जलकान्त) प १।२०।४।२।४०।६ जलकिड्डा (जलक्रीडा) उ ३।५१,५६ जलचारिया (जलचारिका) प ११५१ जलट्ठाण (जलस्थान) प २।४,१३,१६ से १६,२८ जलण (ज्वलन) ज ३।३५ जलपह (जलपथ) प १६।४५ जलप्पह (जलप्रभ) प २।४०१७ जलमज्जण (जलमज्जन) उ ३५१,५६ जलय (जलज) प ११४८।४० ज ४।२६५७ जलय (जलग) ज ३१३२ जलयर (जलचर) प ११५४,५५,६०,३३१८३; ४।११३ से १२१;६७१.७८,८३;२११८ से १०,३२ से ३४,४३,५३,६० सू १०।१२० जलरुह (जलरुह) प १।३३११,११४६ जलवासि (जलवासिन्) उ ३१५० जलविच्छुय (जलवृश्चिक) प ११५१ जलाभिसेय (जलाभिषक) उ ३१५०,५१,५६ जलासय (जलाशय) प २१४,१३,१६ से १६,२८ जलिय (ज्वलित) ज ३।३५ जलोउय (जलोतुक) प ११४६ जलोया (जलौका) प ११४६,७८ जल्ल (दे०) ज २।३२ जल्लेस (यत्लेश्य) प १७।६२,१०२ जल्ललेस्स (यत्लेश्य) प १७१६२,१०२ जव (यव) प ११४५।१ ज २।१५,३७, ३।११६ जवजव (यवयव) प ११४५।१ ज २।३७ जवण (यवन) प ११८६ जवणदीव (यवनद्वीप) ज ३।८१ जवणाणिया (यवनानिका) प १९८ जवणालिया (यवनालिका) प ३३।२६ जवणिज्ज (यापनीय) ज ३।३०,३२,३४ जवमज्झ (यवमध्य) ज २१६ जवसय (यवासक) प ११३७।३ जवासा नामक पौधा, एक तरह का खदिर जवासाकुसुम (यवासककुसुम) प १७.१२५ जस (यशस्) ज ३।३५,७७,१०६,१२६,१२६, १६७,१८५,२०६ जसंसि (यशस्विन्) ज ३१३,१२६।३। Page #989 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९१२ जसधर-जहण्णोगाहणग १८४ जसधर (यशोधर) ज ७।११७।१ ७३ से १६;३३।२ से १३,१५ से १७,३६।८ जसभद्द (यशोभद्र) ज ७।११७।१ सू १०।८६।१ से १०,१७,१८,२०,३०,३४,४४,६१,६६,६८, जसम (यशस्वत्) ज २१५६,६१ ७०७२ से ७४,७६,६२ ज २१४४,४५,५८, जसवई (यशस्वती) ज ७।१२१ सू १०६१ १२३,१२८,१४८,१५१,१५७;४।१०१,७।२८, जसोकित्ति (यशःकीर्ति) प २३।१६,२०,१५३ ५७,६०,१८२,१८७ से १९६,२०६ सू १।१४; जसोकित्तिणाम (यशःकीर्तिनामन्) प २३।३८, १८।२०,२५ से ३४;१६।२,२०७३ १२७,१८८ जहण्णग (जघन्यक) प १७।१४४,१४६:२३।१५२, जसोधर (यशोधर) सू १०।८६।१,८८।१ जशोहरा (यशोधरा) ज ४।१५७।१।५।६।१; जहण्णगुण (जघन्यगुण) प ५।३६,३७,५८,५६,७३, ७।१२०११ ७४,८८,८६,१०६,१०७,१८६,१६०,१६२, जस्संठित (यत्संस्थित) सू ४।३ १६३,१९६,१६७,१६६,२००,२०२,२०३, जह (यथा) प १११।३ उ १।१०६ २०६,२०७,२१०,२११,२१३,२१४,२१७, जहण (जघन) ज २०१५ २१८,२२०,२२१,२२३,२२४,२४१,२४२ जहण्ण द्वितीय (जघन्मस्थितिक) प ५।२३,३४,५५, जहण्ण (जघन्य) प ११७४, २१६४।८;४।१ से ५४, ५६ से ६७,६६ से ८६,६१ से १३३,१३५ से ५६,७०,७१,८५,८६,१०३,१०४,१७३,१७४, १७६,१७७,१८०,१८१,१८३,१८४,१८६, २६६,२६८,५१४०,४१,४४,४५,७७,७८,६२, १८७,२३८,२३६ ६३,६६,६७,११०,१११,११४,११५,१५३, जहण्णठितीय (जघन्य स्थितिक) प ५१५६ १५४,१५६,१५७,१५६,१६२,१६३,१६५,१६६, १६८,१६६६।१ से १८,२० से ४५,६०,६१, जहण्णपएसिय (जघन्यप्रदेशिक) प ५२२८ ६४,६६ से६८,१२०,१२१,१२३;७२,३,६ से जहण्णपदेशित (जघन्यप्रदेशिक) प ५१२२८ २६१११७०,७१:१२।६,१३।२२।२,१५॥४० से जहण्णपदेसिय (जघन्यप्रदेशिक) प १२२७ ४२,१७४१४६१८१२ से ४,६,८ से १०,१२,१४ जहण्णपय (जघन्यपद) ज ७।१६८,१६६,२०२, से १६,१८ से २४,२६ से २८,३० से ३६,४१ २०४,२०६।१२।३२ से ५४,५६,५७,५६ से ६७,६६ से ७४,७६ से जहण्णमति (जघन्यमति) प ५१६२,६३ ८१,८३ से ८५,८७,८६ से ११,६३,६५,९६, जहण्णय (जघन्यक) प १५६४१७।१४४; ६८,१०३,१०४,१०५,१०७,१०८,११०,११३, २१११०५२३।१६३ ज ७।२६ सू१।१४,१६, ११४,११६,११७,११६,१२०,२०१६ से १३, १७,१६,२१,२२,२४,२७,२।३।३।२;४।७,६; ६१,६३,२११३८,४० से ४२,४८,६३ से ७१, ६।१८।१६।२ ७४,८४,८६,८७,६० से ६३;२३।६० से ७६, जहण्णक्कोसग (जघन्योत्कर्षक) प १७।१४६ ८१,८३ से ६२,६५ से ६६,१०१ से १०४, जहण्णुक्कोसय (जघन्योत्कर्षक) प १५।६४; १११ से ११४,११६ से ११८,१२७,१२६, २१११०५ १३१,१३३ से १३५,१३८,१४०,१४२,१४३; जहण्णोगाहणग (जघन्यावगाहनक) प ५१२७,२८, १४७,१५१ से १५३,१५५,१५७,१५८,१६० ४८,४६,५२,५३,६७,६८,८२,८३,१००,१०१, से १६२,१६४ से १७३,१७६,१७७,१८२,१८३ १५३,१५४,१६२ १६३,१६५,१६६,१६८, १८६ से १८८,१६० से १९३;२८।२५,४७,५०, १६६,२३३,२३४ Page #990 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जष्णोगाहणय जातरूववडेंसग जहणोगा हणय ( जपन्यावगाहनक ) प ५३२८,४६, ५३,६८,६१,८३,१००,१५४,१५६,१५६, १६३,१६६,१६९,२३४ जहन्न ( जघन्य ) प ४६०,१३४ जहा (यथा ) प ११ ज १०११११२ १२: २४२३४२,४१२,५ जहाणाम ( यथानामन् ) सू २०१७ जाणा ( यथानामक ) प १६।५२, ५४; १७१०७,१०१,१११.११६,११,१२३ से १२८,१३० से १३५: २६११०५ ३४।१९ ३६।१४ ज १।१३,२१,२६,३३,३८, ४६२१७, १७.१८३८,५२,४७, १२२, १२७.१४७,१५०, १५६,१६१, १६४ ३११२:४२, ८, ११.१०७ ५१५,७,३२ जहाभूय ( यथाभूत) उ ११४२ जहारिह ( यथाह ) ज २।११३३।८१ जहाविभव ( यथाविभव) उ५।१७,२५ जहिच्छिय ( यथेष्ट ज २।१६.२२ जहेव ( यथैव ) सू १७।१३।२१ जहोचिय (यथोचित) १०३५ जा (या) जति प ६२०११ ज ७१३५२४ जाइ (जाति) प १३८२ छोटा आंवला चमेली, जायफल जाइ (जाति) प ११४६, ६०, ६६,७५,७६; ११ ६ ज २८८,६१,२२५:३०३,१०६५४५,४६ सू१।१२।१२।१.५ से १०,१२ से १७:१४॥ ३७ ११२.३४,४१,७४३१५६५।२६ जाइज्जमाण (च्यमान) उ१।१०५ जाणा (वातिनामन् ) प २२०१८,४०,०५,८७ मे ८६,१५० जाइना मनिलाउ (शतिनामनिधतायुक प ६।१२१ जाइय ( याचित) उ३।३८ जाइविशिट्ट्या (जातिविशिष्टता) प २३।५८ जाहलय (जातिहिङगुलक ) प १७।१२६ जाउकण (जातक) ७१३२०१ जाकणिया (जातुकणिका) सू १०।१६ जाउला (जातुलक ) प १।३७।५ जागर ( जागर ) प ३।१७४२३।१२५.१९९ से २०१ जागरमाण ( जाग्रत्) उ१।१५ ३०४८,५०,५५,८७, १८,१०६,१३१५/३६ जागरिया (जागरिका) उ१।६३ जाण (ज्ञा) जाण १४४०३५६ ज ७।११२५ जाग प ११।११:१७१०८ से ११०:२३।१३: ३० २७, २८ ज २७१७।११२ ११६८ जाति प २०६४।१३:१५०४६ से ४९ : ३३४२ से १३,१५ से १८:३४।१।१,३४१६ से २.११. १२ जाणति प ११।१२ से २०; १५।४४,४५; १७।१०६ से १०५,११०१११३०२५ से २८३६८०,८१ जागा हि सू १०।२२९ जाण (वान) ज २११२,३३,३४१०३३ १ १७,१९, २४,४११२,१३,१५ जाणमाण ( जानत् ) ज २१७१ जाणय (ज्ञ) ज ३।३२ ६१३ जाणवय (जनपद) ज १४२६:३११,१२,४१,४९, ५८,६६,७४, १४७, १६८,२१२ से २१४ सू १।१ जाणविमाण ( यानविमान ) ज ५३, ५,२२,२६,२८, ३०,३२,४४,४५ उ ३७, २१ जाणविमाणकारि (विमानका रिन्) ५४९ जाणिउकाम (ज्ञातुकाम) १२३|१३ जाणित्ता ( ज्ञात्वा ) प २३।१३ ज ३ । १२३ उ १६८; ५/४० जाणियत्व (ज्ञातव्य ) प १५।१४३: १६।१५:२३।१२ जाणु ( जानू ) ज ३१६,१२,८८,५१२१,५८ जाणुकोवरमाया (आनुकूरमजानुकूर) उ ३।२७.१३१३।१०५.१२१ जात (वात) प १७५ जात ( जात) ज २।१४६,३३ जातकम्म (जातकर्मन्) १६३३।१२६ जातरुवद डेंसग ( जातरूपावतंसक ) प २१५१ Page #991 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ जाति-जिणवर जाति (जाति) प ११५०,५१,८१,८१।१२।६४, जालघरग (जालगृहक) ज २०१३ २०६४।२२;११।८ से १०,३६।१४।१ ज २।१०; जाला (ज्वाला) प ११२६ ५५ जाव (यावत्) प १।१३, २१३२ से ४०,४२ से जातिआरिय (जात्यार्य) प ११६२,६४ ४६,४८,५० से ६३;४१५५७।६ से ३०; जातिणाम (जातिनामन्) प २३।८६,१५०,१५१ ८।३,४,६ से ११;६।२२;१०।१६ से २५,२७ जातिणामणिहत्ताउय (जातिनामनिधत्तायुष्क) से ३०,३२ से ४३,४५ से ५३; २०१५२,५६, प६।११८,१२०,१२३ ६०,६३,६४ ज १६ च १० सू १।१ उ १२; जातिनामनिहत्ताउय (जातिनामनिधत्तायुष्क) ११;३।१४।१:५१ प ६।११६,१२३ जावइ (यावी) प ११३७१५ जातिपुड (जातिपुट) ज ४।१०७ जावइय (यावत्) ज २१६:४।१४०१२ जातिविसिट्ठया (जातिविशिष्टता) प २३।२१ जावज्जीव (बावज्जीव) उ ३.५० जातिविहीणया (जातिविहीनता) प २३।२२.५८ जावति (यावी) प ११४३।१ जातीय (जातीय) ज ३।१०६ जातिय (शावत्) प १५१५१,५२ सू ६।३;१३३२ जाधे (यदा) सू १६।२४ जावय (ज्ञापक) ज ५१२१ जाय (जात) ज ११६,२०७१,८५,१२८,१४६; जावेत (यापयत् ) ज ३।१७८ ३८०,६५,६६,१०३ उ ११६६,६३,२१६; जासुमण (जपासुमनस्) प ११३७।१ ज ३।३५ ३।१३,४६,१०५,११३,१४४,१४६४।२१, जासुमणकुसुम (जपासुमनस्कुसुम) प १७.१२६ २७,३४,३८ जासुवण (जपासुमनस्) प ११४०।३ जाय (जन्) जायइ ज ३।६२,११६ जायंति जाहा (जाहक) प १७६ ज ३।६२,११६ जाहि (यत्र) प २४६ इजाय (याच्) जायेइ उ १।१०२ जाहे (यदा) ज ७।५६ सू १६।२७ उ ११५२; जायकोउहल्ल (जातकौतूहल) ज ११६ ३।१०६ जायणी (याचनी) प १११३७।१ जि (जि) जयति चं १११ जायतेय (जाततेजस्) ज २।१२६,१५८ जिण (जिन) प ११६३।६;१।१०१।३,४,१२; जायय (जातक) उ ३।३८ ३६।८३।२ ज १४०; २।६३,७१,७८,८०, जायरूव (जातरूप) ज २१६८,४।२५५;५।५ ५१५,२१,४६, सू १६।२२।१ जायरूवखंड (जातरूपखण्ड) प १११७४ जिण (जि) जिणाहि ज ३।१८५ जायरूबवडे सय (जातरूपावतंसक) १ २०५६ जिणसकधा (जिन सकधा') सू १८।२३ जायसंख्य (जातसंशय) ज ११६ जिणसकहा (जिन 'सकहा') ज २।१२०;४।१३४; जायसड्ढ (जातश्रद्ध) ज ११६ उ ११४,५२२ ७।१८५ जार (जार) ज ५।३२ जिणघर (जिनगृह) ज ४।१३६ जारु (चारु) प ११४८।२ जिणपडिमा (जिनप्रतिमा) ज ११४०,४।४७,१२६, जाल (जाल) प ११।१५ ज ३।६,१७,२१,३४,३५, १३६,१४७,२१६ १७७,१२२,१७८,५।२८ जिणभत्ति (जिनभक्ति) ज २१११३ जालंतर (जालान्तर) प २०४८ जिणवर (जिनवर) प ११११२ चं ११४ Page #992 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिणवरिंद-जीविय जिणवरिंद (जिणवरेन्द्र) प ११११ ज ५१५८ जिणिद (जिनेन्द्र) प ५१४१ ।। जिब्भगार (जिह्वाकार) प ११६७ जिभिदिय (जिहन्द्रिय) प १५२१,२,६,१३,१६, ३० से ३३,४२,५८,६४,६६,७०,८०२८।४२, ४५,४६,७१ उ३३३३ जिभिदियपरिणाम (निहन्द्रियपरिणाम) प १३।४ जिब्भिया (जिहिका) ज ४।२४,३६,६६,७४,६०, १६३; २४।२ से ४,६ से ११,१३ से १५; २५।२,३,५,२६।२से ४,८,६;२७२,३,६; २८।१०६,१०८,१०६,१११ से ११८,१२० से १२६,१२८ से १३३,१३६ से १४५,२६४, १६,१७,२२;३०१४,१४ से १६,२४,३१११,४; ३२।१,६।१,३५।६ ३६।१।१,३६।३०,३२, ३५,४६ से ४८,५२,५६,६२ से ६६,६६,७०,७२, ७३,७४,७७,७८,६४ ज २१६८,७१,५१५,४६; ६।४;७।२११,२१२ उ ११६०,६१;३।१४२, जिमिय (जिमित) ज ३१८२ उ ४।१६ जिय (जित) ज ३।१३५।२,१८५,२०६ जियंतय (जीवन्तक) प ११४४।२ जीवंत शाक जियंति (जीवन्ती) प ११४०।४ अन्य वृक्षों पर रहकर फैलने वाली लता जियनिद्द (जितनिद्र) ज ३।१०६ जियपरीसह (जितपरीषह) ज ३।१०६ जियसत्तु (जितशत्रु) ज १३ चं ८ सू ११३ उ ४।६ जीमूय (जीमूत) प १७।१२३ जीय (जीत) ज २१६०,११३; ३।२६,३६,४७,५६, १३३,१३८,१४५,५३,२२,२७ जीव (जीव) प ११४७।१,११४८१७ से ४३,४५, ४७,४६ से ५१,५५ से ५६,११८४,१०१।२; २१६४;३।१।२,३।१,९६ से ११३,१२३ से १२५,१४१ से १४३,१५० से १५२,१७४, १८३;६।१२०,१२३, ६।१२,१६,२५,२६, १०।३१,१११३०,३८,३६,४३,४६,४७,७० मे ७२,८० से ८२,८४,८५,६०१२।१०, १४।११ से १५,१७,१८,१६।२,१०,१६, २१,२३,१७।५६ ८४,८६,११२,११३; १८।१।१,१८।११६।१; २०११,६३, २११८४; २२१७ से १०,१२ से २२,२४ से २७,२६ से ४०;४२ से ४५,४८ से ५०,५२ से ५६,५८, ५६,६७ से ६६,७५ से ८६.८८ से १४,६६, ६७,१००; २३.११.२३।३.५ से ७,६ से ११, १३ से २३,१३४ १३५,१३७ से १३६,१५५, १५७.१६०,१६१,१६४.१६७,१७१,१७६, जिीव (जीव) जीव ज ३।१२६।२ जीविस्सइ उ १११५ जीवंजीव (जीवंजीव) प ११७८ जीवंजीवग (जीवंजीक्क) ज २।१२ जीवंत (जीवत् ) उ १११०६,११०,११४ जीवंतय (जीवत्क) उ ११६६,१०३,१३३ जीवघण (जीवधन) ५२१६४।१२; ३६।६३,६४ जीवणिकाय (जीवनिकाय) प २२।१०,७८ ज २१७२ जीवस्थिकाय (जीवास्तिकाय) प ३।११४,११५, ११६,१२२ जीवदय (जीवदय) ज ५१२१ जीवपज्जव (जीवपर्यव) प २१ से ३,१२२ जीवपण्णवणा (जीवप्रज्ञापना) प १११,१० से १५, ४६ से ५२,१३८ जीवपरिणाम (जीवपरिणाम) प १३।१,२,२० जीवमाण (जीवत्) उ १११५,२१,२२ जीवमिस्सिया (जीवमिश्रिता) प ११॥३६ जीवलोक (जीवलोक) ज २१६५,३१३१,१२४ जीवा (जीवा) ज ११२०,२३,४८; ३।२४।४।५५, ६२,८१,८६,६८,१०८,१७२,२६२,२६५,२७१, २७४ सू १११६,२।१,१०११४२,१४७,१२।३०, २०११ उ १११३८ जीवाजीवमिस्तिया (जीवाजीवमिश्रिता) १११३६ जीवाभिगम (जीवाभिगम) ज ११११,५।४६,५१ जीविय (जीवित) प ११४८१५,४१:२२१६ ज २१७० 3 ११२२,२५,२६,३४,१४०,३१६८,१०१, Page #993 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६ जीवियंतकरण-जोइस १३१,१५६ जुद्धसज्ज (युद्धसज्ज) उ १२११५ से ११७ जीवियंतकरण (जीवितान्तकरण) ज ३।२४ जुम्ह (युष्मत्) सू ११६ उ १।२२;३।२६ ; ४।११ जीवियारिह (जीविताह) ज ३१६ जुय (युग) ज ७।११० जीहा (जिह्वा) प २।३१, १५७७,८१,८२ जुयणद्ध (युगनद्ध) सू १२।१२६ ज २।१५,३।१०६७१७८ जुयल (युगल) ज ११२४;२।१५,१००,३।२११; जुइ (धुति) प २।३१ ज ३।१२,७८,८८,६२,११६, ४।२७,३०,५१५,२८,५८,६७, ७/१७८ १२६,१८०,५।२२,२६ उ ३।१३४ जंज (युज्) जुजइ प ३६१८६,८७,८६,६० जुयलग (युगलक) ज २१४६ उ ३।१२६ ____ जुजति प ३६८६ से ६० सू १५।१० जुवराय (युवराज) प १६।४१ ज २।२५ जंजमाण (युञ्जान) प ३६१८७,८४ से ६१ जुवलय (युगलक) प २।४०१२ जंजित्ता (युक्त्वा) सू १५।१० जुवाण (युवन्) ज ५१५ जुग (युग) ज २१४,६,१४१ से १४५, ३।३,११५, जुव्वण (यौवन) ज ३११३८ ११६,१२२,१२४;७।१२७ सू ६।१८।१; जूय (यूप) ज २०१५ १०।१२२,१२३,१२७:१२।६१३।३,१५१३५ जूया (यूका) प ११५० ज २।६,४० से ३७ जव (यूप) ज ३१३ उ ३४८,५०,५५ जुगंतकरभूमि (युगान्तकरभूमि) ज २१८४ जूस (यूष) सू १०।१२० जुगप्पत्त (युगप्राप्त) सू १२।८ जूहिया (यूथिका) प १३८०२ ज २।१०; ३।३ जुगमच्छ (युगमत्स्य) प ११५६ जूहियापुड (यूथिकापुट) ज ४।१०७ जुगव (युगपत्) प ३६।६२ ज ५१५ जेठ्ठ (ज्येष्ठ) ज ११५,३।१०६ चं १० सू ११५ जुगसंवच्छर (युगसंवत्सर) ज ७१०३,१०५,११० । जेठ्ठपुत्त (ज्येष्ठपुत्र) उ ३।१३,५०,५५ सू १०।१२५,१२७ जेट्ठा (ज्येष्ठा) ज ७।१२८,१२६,१३४।२, जुग्ग (युग्य) ज २।१२,३३ १३५।२,१३६,१४०,१४६,१५२,१६६ सू १०।२ जुज्झसज्ज (युद्धसज्ज) उ १।१२७,१२८,१३३ से ६,१८,२३,५१,६२,७३,७५,८३,११६,१२०, जुज्झ (युध) जुझंति उ १११३६ जुज्झह उ १११२६ १३१ से १३५ जुज्झामो उ १११२८ जुज्झित्था उ १११२७ जेट्ठामूल (ज्येष्ठामूल) ज ७.१०४,१४६,१४६, जुण्णकुमारी (जीर्णकुमारी) उ ४ाह १५५ सू १०।१२४ उ ३।४० जुण्णा (जीर्णा) उ ४६ जेट्ठामूली (ज्येष्ठामूली) ज ७।१३७,१४० जुति (द्युति) प २।३०,३१,४१,४६ ज ५।२०६ सू १०१७,१८,२२,२३,२६ । जुत्त (युक्त) ज २।१५,३।३,३५,७७,६५,१०६, जेणामेव (यव) प ३४।२२ ज ३१५ १३८,१५६,२११,४१२७, २८,५८,७।१४१ जोअ (द्योत) सू १६।२२।२७ से १४४,१५० से १५२,१७८ सू १०।२० से जोइ (ज्योतिष) सू १४।८,६,११ से १३ २२,२५,१७२,१७३;१६।२२।२७, २०१७ जोइस (ज्योतिस् ,ज्यौतिष) प २।४८;३४।१८ उ १।१७,११६,१२८ ज १।२४; २०६४ से ६६,१००,१०२,१०४, जुत्ति (युक्ति) ज ३।२०६ १०६,११०,११३ से ११७,५१४७,६७,७२ से जुत्ति (युक्ति,द्युति) उ ५।२।१ ७४;७।१७१ से १७४ च ५।४ सू १।६।४; जुद्धणीइ (युद्धनीति) ज ३।१६७।६,१७८ १६।२२।२ Page #994 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोइसगणरायपण्णत्ति-जोय जोइसगणरायपण्णत्ति (ज्योतिर्गणराजप्रज्ञप्ति) १७३।१२।२६।१५।१०।१६।२२।१० उ ३।३१ जोगपरिणाम (योगपरिणाम) प १३।२,१४,१६, जोइसपह (ज्योति:पथ) प २।२०,२४,२५,२७ १७,१६ ज ११२४ जोगसच्च (योगसत्य) प १११३३ जोइसप्पह (ज्योतिःपथ) प २।२२,२३,२६ जोगि (योगिन्) प ३६१६२ जोइसराय (ज्योतीराज) ज ७।१८३ से १८५ जोग्ग (योग्य) ज ३।१०६५७,४१ उ ३७ जोइसरायपण्णत्ति (ज्योतीराजप्रज्ञप्ति) चं ११४ जोणय (जोनक) ज ३८१ म्लेच्छ जोइसिंद (ज्योतिरिन्द्र) प २।४८ ज ७।१८३ से जोणि (योनि) प ११११४,१४४८।६३;२।६४६।१ १८५ उ ३१६,१५ से १८ से ४,६ से ११,१३ से १७,१६ से २३,२६ जोइसिंदत्त (ज्योतिरिन्द्रत्व) उ ३.१४ ज २।१३५ से १३७,३।३ जोइसिणी (ज्यौतिषी) प ३११३८,१८३,४।१७४ जोणिप्पमुह (योनिप्रमुख) प ११२०,२३,२६,२६, से १७६:१७१५३,७८,८२,८३,२०।१३ ४८,५०,५१,६०,६६,७५,८१ जोइसिय (ज्योतिषिक) प १११३०,१३३; २।४८; जोणिन्भूय (योनिभूत) प ११४८५१ ३।२८,१३७,१८३;४।१७१ से १७३ ; ५॥३, जोणिय (योनिक) ज ३।११।१ २६,१२२;६।२६,४६,५६,५६,६५,६९,८५,६४, जोणिसूल (योनिशूल) ज २।४३ १०६,१११,११७;७।६।६।११,१८,२४,१५॥३५, जोणीपमुह (योनिप्रमुख) प ११४६,७६ ४८,८७,६६,१२४; १६:१६; १७।२७,३०,५३, जोण्ह (ज्योत्स्न) सू १०।१३१,१८।१,५,६; ७८,८१,८३,६६,१०५,२०।१३,१६,२५,३०, १६।२२।१६,२०,१६।३१ ४८,५४,६०,२११५५,६१,७०,६०; २२॥३१, जोतिस (ज्योतिष) प २१४८,३१।६।१३. ३६,८८,१००।२८।७३,११७,२६।१५,३११५; सू १०।१३१,१८।१,५,६,१६।३१ ३३।१५,३०,३५।१५,२२,२३ ज २१६४ जोतिसराय (ज्योतीराज) सू १८।२१ से २४; ४।२४८,२५० से २५२,५१५३,५६,७२ से ७४; २०१४,६,७,६।१ जोतिसिद (ज्यौतिरिन्द्र,ज्यौतिषेन्द्र) सू १८।२१ से ७।१८५ २४,२०१४,६,७ जोइसियत्त (ज्योतिषिकत्व) प १५।१२६ जोतिसिणी (ज्यौतिषी) सू १८।२६ जोइसियराय (ज्योतीराज) प २०४८ जोतिसिय (ज्योतिषिक) ५ १२।६,३७,१३।२०; जोईरस (ज्योतीरस) ज ५१५ १५।१०४,१०७,१६।९।१७।३३,३४,६१; जोएअव्व (योजयितव्य) प १०।२६ १६।४।२०।३५,३७,२२।७५,२६।२२,३२।५; जोएत्ता (युक्त्त्वा ) सू १०।५।१५।८६ ३३।२३,३४,३७,३४।४,१०:३५।२३,३६।२६, जोएमाण (युञ्जत्) ज ७।१४१ से १४५,१५०, ४१,७२ मू १८।२३,२५,१६।२२ १५१ जोतिसियत्त (ज्योतिषिकत्व) प १५।१११,३६।२२ जोग (योग) प ३।१।१।११।३३।१।१८।१।१; जोत्तग (योक्त्रक) ज ७।१७८ २८।१०६।१,३६।१२ ज २१६५,७१,८८,६५; जोय (योग) ज ३।१७८,७।१२६ सू १०।२,३,५, ३।१५६,२२५, ७।१,११२।२,१२७११,१२६, ७५,१२२,१२३,१२६।१,१३२ से १३४,१३६, १३०,१३४।१,४,१३५,१३८ से १४०,१६७।१ १६२ से १६६१२।२६,३०; १५८,११,१२, चं २।३।५।१ सू १।६।३,१।९।११०।१,५,१७२, १३,१६।१,५,८,१५,१६,२१,१६।२२।२१ १७८ Page #995 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोय-असणा जोय (युज) जोइंति ज ७।१२६ जोइंसु जोयणसहस्सपहत्तिय (योजनसहस्रपृथक्त्कि) ज ७/१२६ जोइस्संति ज ७/१२६ मू १६।१ प १७५ जोएइ ज ७/१२६ जोएंति ज ७.१,११२२ जोव्वण (यौवन) प २॥३१:३४।२० ज २११५; सू १०॥५,१२६।१,२ जोएंसु ज ७१ सू १०७५ ३१६२,११६,१३८,५।६८,७० सू २०१७ जोएति सू १०।२० जोएस्संति ज ७१ उ ३।१२७ सु १०७५ जोयंति ज ७११२।१ जोवणग (यौवनक) उ३।१२७ १२८,५१४३ जोयण (योजन) प १७४,७५,८४,२।२१ से २७, जोह (योध) ज ३।१५,२१,२२,३१,३४,३६,७७, २६ से ३६,३८,४१ से ४३,४६,४८ से ५५, ७८,६१,६८,१६७/६,१७३,१७५,१६६ ५६,६३,६४,११।७२,१२।२७,३६,१५१४० से उ १११२३ ; ५१८ ४२,२११३८,४१ से ४३,४५,४७।१,२,२१॥६३, ६८ से ७०,८७,३३।१०,११,३६।६६,६८, झंझावाय (भ.झावात) प ११२६ ७०,७२,७४८१ ज १७,८,१२,१४,१६, झय (ध्वज) ज १।३७,२।१५,२०७३।७,३१,३५, १७.१,१८,२०,२३,२८,३२,३५,४६,४८,५१; । २।६३।१,१८,२५,३१,३८,४६,५२,६१,६६, १७८,१७६ ७६,८१,९५,९६,१११,११६,११८,१३१,१३२, झया (ध्वजा) उ १२२,१४० झल्लरि (झल्लरी) प ३३।२३ ज ३॥१२,७८, १३७,१४१,१५६,१६०,१६४,१८०,१६२; १८०,२०६ ४।१,३,६,७,१४,२३ से २५,३१,३६,३८ से। ४३,४५,४७,४६,५२,५५,५७,५६,६२,६४ से झस (झस) ज ३।३ ६८,७२ से ७८,८१,८६,८८,६० से ६५,९८, झिा (ध्य) भियाइ उ १।१५,३६८ झियामि १०३,१०८,११०,११२,११४ से ११६,११८ उ ११४० झियासि उ ११३७ झि ह उ ११४२ से १२८,१३२,१३६ से १४१ १४२।१,१४३, झियाहि उ ११४१ १४५,१४६,१५३,१५४,१५६,१६३ से १६५, झाण (ध्यान) उ ३३१ १६६,१७४ से १७६.१७८,१८३,२००,२०१, झाणंतरिया (ध्यानान्तरिका) ज २०७१ २०३;२०५ से २०७,२१३,२१५ से २१६, झाणकोट्टोवगय (ध्यानकोष्ठोपगत) ज ११५; २२१,२२६,२३४,२४० से २४३,२४५,२५७ २।८३ उ ११३ से २५६,२६२,५३,५,७,२२ से २४,२८,३५, झाम (दह) झामात जरा१०८ झामह ज २।१०७ ४३,४४,४६,५०,५३,६।६।१,६८,७।३ से झिगिर (दे०) ५ ११५० २५,३१ से ३४,५८,६२ से ८४,८६,८८,८६, झिगिरिड (दे०) ५ ११५० ११ से १६,१७१ से १७४,१८२,२०७ ‘झिया (ध्य,ध्मा) झियायंति ज ३।१०५ सू १११४,२० से २४,२६ से ३१,२११,३; झियायमाण (ध्यायत् ) उ ११३६,३७,४२,७१ ४।३ से ५,७,८,१०,१८।१,५,६,६ से ११,२०; झिल्लिया (झिल्लिका) प ११५० १६।४,७,१०,१४,१८,२०,२२।२८,२६, झिल्ली (झिल्ली) प ११४८६४२ १६।२३,२६,३०,३४,३७, उ १११३४,३७, झुसिर (शुषिर) ज ५।५७ सू २०११ ६१,५।४ झूिस (शोषय) सेइ उ ३८३ असहिइ जोयणपुहत्तिय (योजनपृथक्त्विक) प ११७५ उ ५।४३ जोयणसत्तपुहत्तिय (योजनशतपृथक्त्विक) प १७५ झूसणा (जोषणा) ज ३।२२४ Page #996 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असित्ता-ठिति ६१६ ठ झूसित्ता (शोपयित्वा) उ५११८ ठिइ (स्थिति) प १११।४।४।५:५१५,८४,११५, झूसिय (जुष्ट) ज ३।२२४ १४८,२१४,२३१६३ ज २१५६,७१,१५६; झूसेत्ता (शोषयित्वा) उ ३।८३,५।४३ ७।१६८।२,१८७ उ ११४१,४३,२।१२,२२, झोसेत्ता (शोषयित्वा) उ २।१२;३।१० ३।१६,८५,१२४,१५०,१६४,१६६,१७१; ४।२५,५।२६,४२ ट ठिइकल्लाण (स्थितिकल्याण) ज २८१ टंक (टङ्क) प ११ ठिइक्खय (स्थितिक्षय) उ ३।१८,१२५,१५२,४।२६; टिट्टिय (दे०) ज ५११६ ५।३० टोलकिति (दे०) ज २१३३ ठिइय (स्थितिक) उ ११२६,१४०२।२० ठिईय (स्थितिक) ज ११२४,३१,४६,४७,२।४४; ‘ठव (स्थापय ) ठवइ ज २१६५ ठविस्संति ३।२२५,४।२२,३४,५४,६०,६१,६४,८०,८५, ज २११४६ ठवेइ ज २१६५ उ १११६;३।५१; ८६,६७,१०२,१४१,१४२,१६१,१६७,१७७, ४।१८ ठवेंति ज २।१०४ ठवेसि उ ३७९ १८६,१६६,२०८,२६१,२७०,२७२,७१५५, ठवेहि प ११४८।५८,५६ ५८,२१३ ठवणा (स्थापना) प ११।३३।१ ठिच्चा (स्थित्वा) प १७४१०७,३४।२२,२३ ठवणासच्च (स्थापनासत्य) प १११३३ उ ११२०३।२६ ठवाव (स्थापय्) ठवावेइ उ ११४६ ठितलेस्स (स्थितलेश्य) परा४८ ठवावित्ता (स्थापयित्वा) उ ११४६ ठिति (स्थिति) प ४।१ से ४,६ से ४६,५६ से ५८, ठवेत्ता (स्थापयित्वा) उ १।१६ ६५,७१,७६,८८,६५,६८,१०१,१०४,११३, ठविय (स्थापित) ज ३८१ १३१,१४०,१४६,१५८,१६५,१६८,१७१, ठवेत्ता (स्थापयित्वा) ज २१६५ १७४,१८३,२०७,२१०,२१३,२६४,२६७, ठा (ष्ठा) ठाइ उ ११२२ २६६,७,१०,१२,१४,१६,१८,२०,२४ से ठाईऊण (स्थित्वा) ज ३।२४ २६,२८,३०,३२,३४,३७,४१,४५,४६,५०,५३, ठाण (स्थान) प १३१४,८४, २११ से ३६,४१ से ५६,५६,६३,६८,७१,७२,७४,७८,८३,८६,८६, ४३,४६,४८ से ५.२,५४ से ६४, ६।११०; ६३,६४,६७,१०१,१०२,१०४,१०५,१०७, १४१५,११ से १५,१७; १७।११४।१,१७।१४३ १११,११२,११६,१२२,१२६,१३१,१३४, से १८५; २३।१।१;२३।६,७,१६० ज ३।२४, १३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७,१४८, ८६,१०२,१५६,१६२,५।२१, ७५६ से ६० १५०,१५४,१६३,१६६,१६६,१७०,१७२, सू १०।१३८ से १४१,१४३ से १४६,१४८ से १७४,१७५,१७७,१७८,१८१,१८२,१८४, १५१:१६।२४,२७ उ १२२,१४०,३१५१।१; १८५,१८७,१८८,१६०,१६३,१६७,२००, ३१८३,११५,१२०,४।२१,२२,२४ २०३,२०७,२११,२१८,२२१,२२४,२२८, ठाणठित (स्थानस्थित) सू १६।२६ २३०,२३२,२३४,२३५,२३७,२३६,२४०, ठाणमग्गण (स्थानमार्गण) प २८।६,५२ २४२,१०१५३११२३।१३ से २३,६० से ६४, ठाणिज्ज (स्थानी) उ ११४४,४५ ६६,६८,६६,७२ से ७७,८०,८१,८३,८५ से ठाव (स्थापय) ठावेमि उ ३।१३ ६०,६२,६३,६५ से १६,१०१ से १०४,१११ से ठावेत्ता (स्थापयित्वा) उ ३५० ११४,११६ से ११८,१२७,१३०,१३१,१३३, Page #997 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० १७६,१७७, १७६, १८१,१८२,१८३, १८५, १८७,१६० से १९३; २८।५; ३६।८२११,८३१ सु १८।२५, २६ से ३४ ठितिणामनिहत्ताउय ( स्थितिनामनिधत्तायुष्क) प ६।१२२ ठितिनामणिहत्ताउय ( स्थितिनामनिधत्तायुष्क ) प ६।११८ ठितिपडिया ( स्थितिपतिता ) उ१।६३ ठितीचरिम ( स्थितिचरम ) प १०३४, ३५ ठितीणामणिहत्ताज्य ( स्थितिनामनिधत्तायुष्क ) प ६।११६ ठिय ( स्थित ) प ११।४७,४८,८० से ८३ ज ३६२, ११६,१३८५३,२८,७५८ सू १।१७ उ १।१६ ड डंस ( दंश ) ज २१४० डब्भ (दर्भ ) प ११४२।१ डमर ( डमर ) ज २४२ उमरबहुल (डमरबहुल) ज १।१८ V se (दह) डहेज्जा ज २६ डाव (दे० ) उ ११३८ डिंब ( डिम्ब ) ज २०४२ fsaबहुल (डिम्बबहुल) ज १।१८ भय (डिम्भक) उ३।१२,११४,१२३,१३० fistfभया ( डिम्भका ) उ३।६२, ११४,१२३,१३०, १३१,१३४ डोंगरू (दे०) ज २।१३१ डोंब (०) 15 डोंबिलग (दे० ) प ११८६ ढ ढंक ( ध्वांक्ष ) प १७६ ज २१४०,१३७ ढिकुण (दे० ) प ११५१।१ ज २।४० ण ण (न) प १।१०११३ ज १६ सू १।१४ १०।१२६ ठितिपडिया-णक्ख गई (नदी) ज ४।२००,२०२,२१२ णउति ( नवति ) १८१ णय ( नवति) ज १।१८ ४२५; ६८७८२ १७३ उल ( नकुल ) प १७६ णं (दे० ) प १।२० ज ११३ सू १।२ उ ११५; २०१; ३।१;४। १;५।१ जंगल ( लाङ्गल) ज ३।३ मंगलई (लाङ्गलिकी) प ११४८२६ गंगलिय ( लाङ्गलिक) ज २४६४, ३।१८५ गूल ( लाङ्गूल) ज ७।१७८ गोलि (लाङ्गुलिन् ) प १८६ णंद (नन्द) ज ७ । ११८ णंदणवण (नन्दनवन) ज २२६५, ६६, ४१२१४, २३४,२३६,२३७,२३६, २४०,५१५५ दवड ( नन्दनवनकूट ) ज ४१२,३६ दवणविवरचारिणी ( नन्दनवनविवरचारिणी ) ज २।१५ नंदा (नन्दा ) ज ४।१४० ५२६११६८ ७ ११८. सू १०/६० दक्खरिणी (दापुष्करणी ) ज ४।२२१ दावत्त (नन्दात्तं ) प ११५१।१ ज ३३,३२ दिघोष ( नन्दिघोष ) ज २११६,३३०,५१५२ नंदिपुर ( नन्दिपुर ) प ११२३३ दिय (नन्दित ) ५१२१ दयावत ( नन्द्यावर्त ) प १४६ ३१७८; ४१२८५/४६३ मंदिरुक्ख ( नन्दिरूक्ष ) प ११३६।२ दिवा ( नन्दिवर्धना ) ज ५८ ।१ दिस्सर (नंदिस्वर ) ) ज २११६,५४४,५२,७४ सू १६।३१ दुत्तरा ( नन्दोत्तरा) ज ५८ ।१ ree (नक ) प १०५६ णक्क (नक्त ) प ११८६ क्ख (नख ) ज २।१५,१३३,७१७० Page #998 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णक्खत्त-णपुंसगवयण ६२१ णक्खत्त (नक्षत्र) प २।२० से २२,४६,५१; ज १२२६;४।१७२ १५॥५५॥३ ज ११२४ ; २६५,७१,८८,१३८, णग्गोह (न्यग्रोध) प ११३६।२ ज २०७१ ३।२०६,२२५;७।१,५५,५८,६५,६६,१००, जग्गोहपरिमंडल (न्यग्रोधपरिमण्डल) प १५॥३५; १०३,१०४,१११,११२।१,२,११३,१२६, २३।४६ ज ७१६७ सू १०७४ १२८,१२६।१,१३० से १३३,१३४।२,३,४, Wणच्च (नत्) णच्चंति ज ३।१०४,१०५,५१५७ १३५१४,१३८ से १४५,१४७,१४८,१५०, णच्चण (नर्तन) प २।४१ १५१,१५२,१५६ से १६७,१७०,१७५, णिज्ज (ज्ञा) णज्जइ ज ३।१०५ १७७१३,१७८।२,१८०,१८१,१६७ च ५।४ णट्ट (नाट्य) प २।३१,४१ ज २१३२,३१८२, सू १०१ से ५,८ से २५,२७ से ३१,३३ से १६७।१०,१८५,१८७,२०६,२१८,५१,१६, ४२,४४,४६ से ५६,६१ से ७५,७७ से ८३, ५७,७१५५,५८,१८४ सू १८।२३;१६।२३,२६ १२ से १०७,१०६ से १२०,१२२,१२३,१२८, णट्रमालग (नाट्यमालक) ज ३,१५०,१५१ १२६।१,२,१३० से १३५,१५२ से १६६, णट्टमालय (नाट्यमालक) ज ११२४,४६, ६।१६ १७१ से १७३।११।२ से ६;१२।१६ से २८, गट्टमाल (नाट्यमाल) ज २८ ३०१३।११,१४,१५॥१,२,४,६ से ६,११, पट्टविहि (नाट्यविधि) ज ३।१६७।१०,५१५७,५८ १२,१४ से १६,१६२२,२५,२८,३४,३७; णट्टाणीय (नाट्यानीक) ज ५१४१,४४ १८४,७,१८,१६,३७,१६१६१,०२,८१२, णद्वरय (नष्टरजस्) ज ५७ ११॥३,१५॥३,१६,१६।२११४,७,२२।३,२२,३१, णडपेच्छा (नटप्रेक्षा) ज २१३२ १६।२३,२६; २०१७ उ ५।४१, णत (नत) सू २०१७,२०६६ णक्खत्तमंडल (नक्षत्रमण्डल) ज ७८५ से ६४,९७, णतंभाग (नक्तंभाग) सू १०॥४,५ ११३ सू १०।१२६,१३० णत्तु (नप्त) ज २।१३३ णक्खत्तमास (नक्षत्रमास) स् १२।२,१२ णत्थि (नास्ति) प १७५,८०,२।५२,६४।१८; णक्खत्तविजय (नक्षत्रविजय) सू १।६।४।१०।१३२, ५।४३,६६,८०,६६,१८०,१२।६,११,२१,२८; १३।१६,१५८७,६४ से १०१,१०३ से १०६, णक्खत्तविमाण (नक्षत्रविमान) प ४।१६५ से २०० १०८ से ११०,११२ से ११७,११६ से १२३, ज ७।१६३,१६४ सू १८१८,१२,१६,३३,३४ १२५,१२६,१२८ से १३२,१३८ से १४१, णक्खत्तसंठिति (नक्षत्रसंस्थिति) मु १०।२७ १४३१७७०;२११६२ से १०१,२२१४२; णक्खत्तसंवच्छर (नक्षत्रसंवत्सर) ज ७।१०३,१०४ २३।१३७,१३६,२८।१४२,१४५;३०।१७; सू १०।१२५,१२६,१२६,१२१२ ३६१८ से ११,१५ से २३,२५,२६,२८,३०, णख (नख) सू २०१२ ३१,३३,३४,४४ सू १।१३,१४,१०।२२,२५ णखीमंस (नखीमांस) सू १०।१२० कंथारी की जड णगर (नगर) प २१४१ से ४३,२।६४।१७; मणद (नद्) रणदंति ज ५१५७ णदी (नदी) प १११७७ ज २।३१ ज १।२६,२।२२,६६,७०,१३१,३।१८,३१,५२, णदीबहुल (नदीबहुल) ज १।१८ ६१,६६,८१,१३१,१३७,१४१,१६४,१६७।२, १८०,१८५,२०६५।५,४४ णपुंसग (नपुंसक) प १६६,७६,१११५ से १०,२५ णगरणिद्धमण (नगर णिद्धमण') प ११८४ से २८ णगरावास (नगरावास) प २।४१,४२,४६ णपुंसगवयण (नपुंसकवचन) प ११२६,८६ Page #999 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ पुंगवेद (नपुंसकवेद ) प १८/६२२३३६,८२, १४३, १४८, १५० णपुंसगवेदग (नपुंसकवेदक ) १३।१४,१५,१८ पुंगवेद (नपुंसक वेदक ) प २८।१४० पुंगवेय (नपुंसकवेद ) प २३।१४५ नपुंसगवेयपरिणाम (नपुंसक वेदपरिणाम ) प १३ | १३ णरवरिंद ( नरवरेन्द्र ) ३।१३५।२ णरवति (नरपति) ज ३११२६।२ पुंसय ( नपुंसक ) प ३।१८३ णरवसभ (नरवृषभ) ज ३११८, ६३, १८० णरसीह ( नरसिंह) ज ३११८,६३,१८० भ ( नभ) ज २।६५ सू २०/२ रिंद (नरेन्द्र ) ज ३६,६,१८,३२१,२,६३,११७, १२६।१,१८०,२२१,२२२ ।४१।१ णभसूरय ( नभः शूरक) सू २०१२ ( मंस ( नमस्य् ) नमसइ ज २६०५।२१,५८,६८ णमंसति उ १।२१ णमंसामि उ १।१७ सण ( नमस्यन) उ १।१७ णमसमाण ( नमस्यत् ) ज ११६ : २ ६० ३ । २०५, २०६५।५८ णमंसित्ता ( नमस्यित्वा) ज २।६० उ १।२१ मि (नमि) ज ३ | १३७ से १३६ णमिय (नत ) ज २।१५ णमो (नमस्) ज १।१, ३।२४११, १३१ मोत्थु ( नमोस्तु ) ज ५।५,२१,४६,५८,६५ जय (नय ) प १६।४६ णय ( नत ) ज ४|१३ णयगति ( नयगति) प १६३८, ४६ जयट्ठया (नयार्थता) सू १२/१३ पुंगवेद-व णरवइ ( नरपति) ज ३६, १७, १८, २१, २४४, ३१२८,३०,३४,३५,३७२, ४१, ४५२,४६,८८, ६१ से ३,१०६,१३१४, १३६, १४१, १७७, १८०, १८३,२०१,२१४,२२२ जल ( नल ) प ल (नड,नल ) प ११४१।१,१।४८।४६ ६ ११।७५ लिण ( नलिन) ज २१४४१३, २५, २१२,२१२।१ च १।१ लिगंग ( नलिनांग ) ज २१४ forकूड ( नलिनकूट ) ज ४।१६० से १९३ लिणा ( नलिना) ज ४। १५५।१,२२२।१ व ( नवन् ) प ११५१ ज १।२० सू १०।२ जव ( नव ) प २१५० ज ५।१८ चं ११ णवइ ( नवति) ज ४।२१३ णवग ( नवक ) प १८१ उमंगुलपरिणाह ( नवनवतत्यङ्गुलपरिणाह ) ज ३।१०६ णवणवति ( नवनवति) ज ४।२१३ वहिति ( नवनिधिपति) ज ३।१२६१२, १७५ वोइया ( नवनीतिका ) प ११३८ । ३ ज २।१० णवणीत ( नवनीत ) सू १०।१२०, २०७ वणीय ( नवनीत ) प ११।२५ ज ४।१३ वम ( नवम ) प १७।६६ ज ७।११४।२ सू १० ७७, १२४।२; १३।१० नवमालिया ( नवमालिका) ज ३।१२,८८, १०६; यण (नयन ) प २ ३१ ज २११५,६०,१०३,१०६, १०८,१३३,३३,६, ३५, १०६, १३८ ५।२१ raणमाला (नयनमाला ) ज २२६५; ३।१८६,२०४ जयर (नगर) ज ५।७०,७२ उ३।१०१ जयरी (नगरी) १।३।६ ज ११२, ३७।२१४ विहि ( नवविधि ) प ११०१६ पर (नर) ज १ ३७; २।१०१,१३३,३१६२,११६, १७८, १८६,२०४ ४।२७५।२८ ५।५८ परकंता ( नरकान्ता ) ज ४।२६६, २६८,२६६२; ६।२१ मिक्स (नवपक्ष ) ज २६४ पर (नरक) प २२० से २७ ज २।१३५ से १३७ पदमिया ( नवमिका) ज ५।१०।१ रात (नरकवास ) प २।२६ पवमी (नवमी) ज ७११२५ परदार्याणिय (नरदापनिक) प ११६६ ran ( नवक ) प २११४०,४३,४४ Page #1000 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवरं-णाणावरण ६२३ णवरं (दे०) २१४५,५२ से ५६,६१,५।२१,२६, ७।३,५,२८१७२,३३।११,१४:३६।२० ३५,३८,४३,५७,६०,६९,७२,७५,८०,८१,८४, ज ३।१११ से ३१५,१२४ से १२६४।१४१ १०,६४,१०२,११६,१५१,१६०,१६१,१६४, णागकुमारत्त (नागकुमारत्व) प ३६।२० १६१,१६५,२०१; ६।६६,६५,६८,१०४,११३; जागकुमारराय (नागकुमारराज) प २।३४,३५ १०१३०,१११८५१२।२६,३१,३६ से ३८, णागकुमारिद (नागकुमारेन्द्र) प २०३४ से ३६ १३।१६ से १८,२०,१५१८,१६,२६,३०,३४, णागधर (नागधर) ज ३।१७६ ३५,३८,४६,५५,६३,६५,६७,७५,८५,८६,६१ णागफड (नागस्फटा) प १३० ६७,६८,१०२,१०३,११५,१२१,१२२,१२५, णागपुप्फ (नागपूष्प) ज ३१३ १२६,१३६,१३७,१३८,१४०,१४१,१४२; जागरुक्ख (नागरूक्ष) प ११३५॥३ १६.४,१२,१७।२३,२५,२७,२६,३०,३२,३३, णागलया (नागलता) प ११४०।३ ३५,५८,६०,६३,७०,६१,६३,६६,१०५,१४५, णागोद (नागोद) सू १६।३८ १७२,१८१८०; २०१४३२,५४ ५५,५७,५८; णाडइज्ज (नाटकीय) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८, २११३५,६१,७०,७१,६२,२२।४१,४२,४४, ६६,१४७,१६८,२१२,२१३,२२१ ७६,८०.८२,६०२३।१०,१२,५६,५८,१५६, णाडग (नाटक) ज ३११७८,२०४,२१४,२२१ १६६,१६७,१७०,१७२,१७५,१८८,१६०; णाडगविहि (नाटकविधि) ज ३।१६७।१० २४।३,११,२६।९।२८।२७,३१,३८,४३,४७, णाडय (नाटक) ज ३।८२,१८६.१८७,२१८; ७३,७४,१०६,११५,१३३,१३८,२६।१४,२१, ५।२२,२६ ३०।१७:३३।१६,३४।३,५,१४,३५७,३६१६, णाण (ज्ञान) प १११०१।१०,३।१।१,३१५,२८,३०, ७,११,१३,१५,२४,२६,२८ से ३४,३८,४६, ३२,३४,३७,४३,४५,६८,६६,७२,७४,८०,८३, ५२,५६,६५,६८,६६,७२,७३ ज २१५२ सू ८४,८७,८६,६४,९६,१०१,१०२,१०५,१०७, १।१७,१०।२५;१८।२४ ११२,११७,१७।११२,११३:१८५१११ णवरि (दे०) ज ३५० २८।१०६।१;३०।२६,२८ सू २०१६।४,५ णवविह (नवविध) प ११६२,१३७,२११५५; णाणत्त (नानात्व) प २।४५, ६१६८,१५।४४,४५; २३३१४३६ २३।१६०;३६।१४,१५ ज २१५२.५६,१५६, णह (नख) ज २०१५,४३,१३३, ३१६२,११६,१४५ १६१,४।१३६,१४१,१६२,२६२,५१४८ से ५०; पहिया (नखिका) प १२४७ ७।३५,५८ णही (नखी) प ११४८।५ णाइ (न) ज ३।१२६ णाणपरिणाम (ज्ञानपरिणाम) प १३३२,६,१४,१६, णाइ (ज्ञाति) ज ३।१८७ १७,१६ णाइय (नादित) उ १।१२१,१२२,१२५,१२६, णाणा (नाना) प २।४८,१५१६,१६,२६,२१।२१, १३३,१३४,१३८,३।१११,४।१८,५११६ २२,२७,५६,६०,६१,७८,७६,३३।२१, गाउं (ज्ञातुम् ) सू १६।२२।२६ ज ११३७,३।१६,३०,५६,१०६,१४५,२२२; णाग (नाग) प २।४०।१,८,१३,१५१५५।३; ४।३,५,७,१३,२५ से २७,४६,६३,११४; ज २।३१, ३।२४।१,२,१३१।१,२,१७६%; ५।१६,३८,६७,७१७८ ४।२१२,५१५२;७।१२३ से १२५ सू १६॥३८ णाणारिय (ज्ञानार्य) प ११६२,६६ णागकुमार (नागकुमार) प २।३४ से ३६,३८,३६; णाणावरण (ज्ञानावरण) प २४।६,११ Page #1001 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ णाणावरणिज्ज-णास णाणावरणिज्ज (ज्ञानावरणीय) प २२।२६,२७; २६८,२७२,२७४,२७७ ; ५।१८,२८,४६,५७; २३॥१,३,६,७,६ से १३,२४,२५,६०,१३४, ७।११४,२१३,२१४ चं ११४ सू १०।१२४; १३६,१५४,१५५,१६०,१६४,१६७,१७६, १२।२६; १६२,६,६,१२,१६,२२।३,२८,३६ १७८,१८६,१६१,१६४ से १६६,२०२,२४।१ उ १११७ से ५,८,१५,२५।१,२,२६।१ से ४,७,१२; णामक (नामक) ज ३।२६,३६,४७,१३३,१३५ २७१ से ३ णामग (नामक) ज ४।२०० जाणाविध (नानाविध ) ज २१७,३।१८६ से १६२ णामधेन्ज (नामधेय) ज ११४० : णामधेज्ज (नामधेय) ज १।४७, ३।८१,२२१, णाणाविह (नानाविध) प ११४७११;२।४१ २२६;४।२२,३४,५४,६४,१०२,१०७,११३, ज १२१३,२१,२६,३३,३७,४६,२।१२,५७, १५७।२,१७७,२६०, ७/११४,११७.१२० १२२,१२७,१४७,१५०,१५६,१६४;३।७, सू १०८६,८८,१२४,२०१२ १०६,१८४,१६२,४।६३,५॥३२ णामधेय (नामधेय) ज ५१२१ णाणि (ज्ञानिन्) प १८७६; २३।२००; २८।१३५ णामय (नामक) ज ११४६; २०१७,४।१०६,१६३, ज ५.५,४६ २०४,२१०,२११ णाणोव उत्त (ज्ञानोपयुक्त) प ३६।६३,६४ णामसच्च (नामसत्य) प ११।३३ णात (ज्ञात) प ११६५ णामसूरय (दे०) सु २०१२ णाभ (नाभ) ज २।१५ णामाहयक (नामाहतक) ज ३।२६,३६,४७,१३३ णाभि (नाभि) ज २१५६,६२,६३, ४।२६०११;५।१३ णायग (ज्ञायक) ज ५।५,४६ णाभिणाल (नाभिनाल) ज ५।१३ णायय (ज्ञातक) ज २१२६ णाम (नामन ) प १११०१।१०।२।४८,५० से ५२ णायव्व (ज्ञातव्य) प १११०१३३,६,७,६,११; ५४ से ५७,५६,६०,६२ से ६४,६४।१७,१०३, १८।१।२,३५।१।१ १।३३।१; २२।२८,२३।१,१२,३८,२४।१५; णारग (नारक) प १२२६;२४।१०,११,२६।८,६ २६।११:२७१५,३६।८२,६२ ज ११२,३,५,१६, णाराय (नाराच) प २३।४५,४६ ज ३।३,३१ १८ से २०,२३,३५,४१,४५,४६,४८,५१,२१८, णारिकता (नारीकान्ता) ज ४।२६२,६।२१ १३,५१,५४,६० से ६३,१२१,१२६,१३०, णारी (नारी) ज ३।१८६,२०४ १४१ से १४५,१४६,१५४,१६०,१६३; ३३१, णारीकंता (नारीकान्ता) ज ४।२।६६ २,२६,३०,३५,३६,४७,५६,६७,१०३,१०६, णारीकूड (नारीकूट) ज ४।२६३।१ १११,११५,१३३,१४५,१६१,१६७।३,२२५, णाल (नाल) ज ४७ ४।१,३,२५,३१,३४,४०,४१,४५,४८,४६,५१, णालबद्ध (नालबद्ध) प ११४८।४० ५२,५५,५७,६२,६४,६७,६८,७५,७६,८१,८४, णालिएरीवण (नालिकेरीवन) ज राह ८६,८८,६२,६८,१०३,१०६,१०८,११०,१४१, णालिया (नालिका) ज २६ १४३,१५६ से १६५,१६७ से १६६,१७२ से णालिया (नालिका, नाडीका) प ११४०।१ १७८,१८० से १८२,१८४,१८५,१८७,१८८, णावा (नौ) प १६।४५ ज ३१८०,८१,१५१: १६०,१६१,१६३,१६४,१६६,१६७,१६६ से ७१३३।१ सू १०।३३ २०३,२०५ से २०६,२१०।१,२१२,२१३, णावागति (नौगति) प १६।३८,४५ २१४,२२६,२३४,२३७,२३६ से २४२,२४५, णावासंठिय (नौसंस्थित) १०१३३ २४६,२५१,२५२,२६१,२६२,२६५,२६६, णास (नाश्) णासेंति ज ३।६५ १५६ Page #1002 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णासा-णिज्जुत्त १२५ णासा (नासा) प २।३१ ज २।१५,१३३ णिगोद (निगोद) प ३।६२,८६,१८१३८ णिइय (नित्य) ज ७।२१० णिगोय (निगोद) प १८४५,५३ ज २११३३ णिउण (निपुण) ज २।१५३।६,२४,८७,१३८, णिग्गंथी (निर्ग्रन्थी) ज २१७२ २२२;५।५,२१,२८ सू २०१७ णिग्गय (निर्गत) ज १५४,३१६,१७,२१,३१,३४, णिओग (नियोग) ज २।१३३ ; ५।४३ १७७,२२२ णिओय (निगोद) प ३।६१,६३ णिग्गुंडी (निर्गुण्डी) प ११३७।३ इणिद (निन्द् ) णिदेहि उ ३।११५ णिग्गुण (निर्गुण) ज २११३५ णिब (निम्ब) प ११३५।१,१७।१३० णिग्याय (निर्घात) प ११२६ णिबछल्ली (निम्बछल्ली) प १७:१३० णिग्घायण (निर्घातन) ज २१७० णिबफाणिय (निम्बफाणित) प १७।१३० णिग्घोस (निर्घोष) ज ३।८८,१८०,१८३,५१५, णिबसार (निम्बसार) प १७।१३० २६,४६,४७,५६,६७ उ १११२१,१२२ १२५, णिकुरंब (निकुरम्ब) ज २।१० १२६,१३३,१३४,१३८,३।१११,४।१८; णिक्कंकड (निष्ककट) ज १८,२३,३१ ५१६ निक्कंकडछाया (निष्क ङ्कटछाया) प २।३१ ४१ णिचिय (निचित) ज ३।३; ५।५; ७।१७८ णिक्खमंत (निष्कामत् ) सू १६।२२।१४ णिच्च (नित्य) प २।२० से २७ ज ११११,२४, णिक्खमण (निष्क्रमण) ज ४।२७७ सू १३।१७ ४७, २।११,६७,१३३, ३।२२६; ४।२२,५४, णिक्खममाण (निष्क्रामत्) ज ३।२०३;७।१०,१६, ६१,६४,१०२,१६६,१६७,१७७,२०३,२१०, २० से २२,२६,२७,६६,७५,८१ च ४।२ २६४,२७३।५।२६, ७।२१०,२१३ सू १३१६,१२ सू १६।२२।१७ णिक्खित्त (निक्षिप्त) ज ३।२०,३३,५४,६३,७१, णिच्चमंडिया (नित्यमण्डिता) ज ४।१५७।१ ८४,१३७,१४३,१६७,१८२ णिच्चालोय नित्यालोक) सू २०१८ इणिक्खिव (नि+-क्षिप) णि क्खिवइ ज ३१६२; णिच्चुजोत (नित्योद्योत) सू २०१८ ५१६७ णिच्चुज्जोय (नित्योद्योत) सू २०६८।६ णिक्कुड (दे०, निष्कुट) प २।१० ज ३७६,७७, णिच्छिण्ण (निश्छिन्न) प २१६४।२२,३६।१४।१ १०६,१२८,१५१,१७० ; ५।२५ णिच्छीर (निःक्षीर) प ११४८३६ णिगच्छ (नि- गम्) णिगच्छइ ज २१६५; ३३१४, राणिच्छुभ (नि+क्षिप्) णिच्छुभइ प ३६।७३,७४ १७२,२०४,२२६ णिगच्छति ज ५१६३ णिच्छमति प ३६।५६,६१,६६,७०,७६ णिगच्छित्ता (निर्गत्य) ज २१६५ णिच्छूढ (निक्षिप्त) प ३६।६२,७७ णिगम (निगम) ज २।२२ उ ३।१०१ णिजुत्त (नियुक्त) प २।४१ णिगर (निकर) ज ३।१२,३५,८८,६५,१५६; णिज्जरा (निर्जरा) प १५॥४३ से ४७,४६३६७६ ४।१२५,५५८ से ८१ णिगरिय (निकरित, निगडित) ज ३।२४।३, णिज्जाणभूमि (निर्याणभूमि) ज ५१४६ ३७।१,४५।१,१३१।३ णिज्जाणमग्ग (निर्याणमार्ग) ज ५१४६ vणिगिण्ह (नि+ग्रह.) णिगिण्हइ) ज ३१२८ णिज्जिय (निजित) ज ३।१७५,२२१ णिगिण्हित्ता (निगृह्य) ज ३।२८ णिज्जुत्त (निर्युक्त) ज ३।१७८ Page #1003 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२६ णिज्झरबहुल-णिरह णिज्झरबहुल (निर्भरबहुल) ज १११८ इणिमज्जाव (नि-मज्जय) णिमज्जावेइ ज ३।६८ णिट्ठियट्ठ (निप्टितार्थ) प ३६।६३,६४ णिमुग्गजला (निमग्नजला) ज ३।६७ से १०१, णिडाल (ललाट) ज २०१५;३।३६,३६,४७,१३३ णिण्णग (निन्नग) प ११८६ णिम्मम (निर्मम) ज २१७०,५१५,४६,५८ णिण्णथल (निम्नस्थल) ज ७।११२॥५ णिम्मल (निर्मल) प २।३०,३१ ज ११८,२३,३१; णिण्णथलय (निम्नस्थलक) सू १०।१२६।५ २।१५; ४।१२५; ५।६२, ७।१७८ णिण्णुण्णय (निम्नोन्नत) ज २११३१ णिम्माणणाम (निर्माणनामन्) प २३।३८,१२८ णिण्हइया (निह्नविका) प ११६८ णिम्माय (निर्मात) ज ३।१ णितंब (नितम्ब) ज ११५१, ३१६१,१३७,४।१७४, णिम्मिय (निर्मित) ज ३।३५ १७५.१७६,१८२,१८८ णिम्मेर (निर्मर्याद) ज २११३५ णित्थारण (निस्तारण) ज ३११०६ इणियंस (नि- वस्) णियंसंति ज २।१०० णिदा (दे०) प ३५।१।१,३५।१६ णियंसेइ ज २१६६ णिदाया (दे०) प ३५।१७,१८,२०,२२,२३ णियंसण (निवसन) प २।४१ णिदाह (निदाघ) सु १०।१२४।२ ‘णियंसाव ( निवासय) णिसावेंति ज ३।२११ निद्दा (निद्रा) प २३।१४,२६,२७,१३४ १५५, णियंसावेत्ता (निवास्य) ज ३।२११ १७७,१८० णियंसेत्ता (न्युष्य) ज २१६६ णिवाणिद्दा (निद्रानिद्रा) प २३।१४ णियग (निजक) ज २।६४;३।३,१८७,१८८ णिद्ध (स्निग्ध) प १।९।३१,५११५४,२११; सू २०१७ १११५६,६०; १३।२२।१,२,२८।२६,३२,६६ ‘णियच्छ (निर्+दा) णियच्छति प २३।३ ज २।१५,३।३,२४,३५, ७।१७८ णियत (नियत) ज ३।८१ णिद्धत (निति) प २।३१ णियतिया (नयतिकी) प १७।११,२२,२३ णिद्धया (स्निग्धता) प १३।२२।१ णियत्थ (दे०) ज ३।१२५,१२६ णिद्धाइत्ता (निर्धाव्य) ज २।१३४ णियम (नियम) प ११२०,२३,२६,२६, ६।११४, इणिद्धाव (निर-धाव) णिद्धाइस्संति ज २।१३४, ११६; १०।२,११।५३,५७,५६,६६,६६।१; १४६ २१४९६,६६,१००,१०३; २२।४८,५१,६८, णिप्पंक (निष्पक) ज १८,२३ ६६,७१ से ७४; २३।१०,१२,२४।१४।२५।२, णिप्पच्चक्खाणपोसहोववास ४;२७।६२८।१६,३८,६५,९८ से १०१,३६।५६ (निष्प्रत्याख्यानपौषधोपवास) ज २११३५ ज ७।५०,५३,१६६ सू १८।३ /णिप्फज्ज (निर- पद्) णिप्फज्जइ ज २१६ णियमा (नियमा) ज ७।३२।१ सू २०१६ णिप्फत्ति (निष्पत्ति) ज ३।१६७/६ णियय (नियत) ज १।११,४७,३।२२६; ४।२२, णिफाइय (निष्पादित) ज ३।१२० ५४,६४,१०२,१५६; १२२,२६ णि फायय (निष्पादक) ज ३।११६ णियय (निजक) सू १६।२२।१४ णिप्फावग (निष्पावक) ज २।३७ णियया (नियता) ज ४११५७।१ णिब्भय (निर्भय) ज ३११२६,५।५८ णियर (निकर) ज २।१५ णिभिज्जमाण (निभिद्यमान) ज ४।१०७ णिरइ (निऋति) ज ७।१२०,१३०,१८६।४ णिभ (निभ) ज ३।३०,१७८ सू१०८३ Page #1004 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णि रइदेवता-णिव्वाणममा १२७ णिरइदेवता (निऋतिदेवता) सू १०८३ णिल्लेव (निलेप) ज २१६ णिरइयार (निरतिचार) प १११२६ णिवद्दय (निपतित) ज ३।२६,३६ णिरंतर (निरन्तर) प १०.३२ से ३४,४०,१११४१५ णिवड्ढेत्ता (निवृधा) ज ७।३० ७१:२०१२५,३१,५९,२२११३,१५,१७,१६ से णि वड्ढेमाण (निवर्धमान) ज ७।१३,१६,२२,७२, २१; ३६।८,६ ज २११५ ७८,८४ णिरय (निरय) १ २११,१०; २३।३६,८१,१११, णिवण्ण (निषण्ण) ज ७।१७८ १४६,१७१ णिवतित (निपतित) ज २।१४२ से १४५ णिरय (निरत) ज २०१३१ णिवत्त (निवृत्त) उ ३।१२६ णिरयगतिपरिणाम (नित्यगतिपरिणाम) प १३।३ -णिवय (नि--पत्) णिवयंति ज ५१६४ णिरयगतिय (निरयगतिक) प १३।१४ णिवह (निवह) ज ३।१०६ णिरयगामि (निरयगामिन् ) ज १।२२,५०,२१५८, णिवात (निपात) प ३६८१ ज २११३१ १२३,१२८,१४८,१५१,१५७;४।१०१ णिवाय (निपात) ज ३।३५,१०६ णिरयावास (निरयावास) प २२० से २४ णि विट्ठ (निविष्ट) प २०१३६ णिरवसेस (निरवशेष) प ६.६२१०।२८,१७।२८; णिवुड्ढि (निवृद्धि) सू १३।१७ २११९४,३४।२४;३६।२८,४६,६५,६६,७२ णिवुड्ढेत्ता (निवर्य) सू ६।१ णिरहंकार (निरहंकार) ज २१७० णिवुड्ढेमाण (निवर्धमान) सू ६।२ णिराणंद (निरानन्द) ज २१६०; १०३,१०६,१०८ णिवेइत्ता (निवेद्य) ज ३८१ णिरातंक (निरातङ्क) ज २।१६ इणिवेद ( निवेदय ) णिवेएइ ज ३८१,५१५८ णिरालय (निरालय) ज २१६८ णिवेदम ज ३।५ णिवेदेमो ज ३४० णिरालोय (निरालोक) ज २११३१ णिवेस (निवेश) प ११७४ ज ३१२८,३१,४१,४६, णिरावरण (निरावरण) ज २१७१,८५ ५२,११५,१३५,१४१,१५१,१६४,१६७२,१८० ‘णिरुंभ ( निरुध) णिरु भइ प ३६।६२ इणिवेस (नि वेशय) णिवेसेइ ज ५।२१,५८ णिरु भति प ३६।६२ णिवेसेत्ता (निवेश्य) ज ५१२१ णिरुभित्ता (निरुध्य) प ३६।१२ णि व्वण (निव्रण) ज २।१५,३।१७७,७।१७८ णिरुद्ध (निरुद्ध) प २३।१६३ -णिवत्त (निर्-वृत्) णिमत्तेइ सुहा२ णिव्वत्तेति प २३।१६३ सू ।१ णिरुवकिट्ठ (निरुपक्लिष्ट) ज २।४।१ थिव्वत्त (निवृत्त) ज ३।३०,४३,५१.६०,६८,७६, णिरुच्छाह (निरुत्साह) ल २।१३३ णिरुवलेव (निरुपलेप) ज ३।३ १३६,१५१,१७०,१७८,२१६ णिरुषहय (निरुपहत) ज २११५ णिवत्तणया (निवर्तन) प ३४१२,३ णिरुविग्ग (निरुद्विग्न)३।११६ णिध्वत्तणा (निर्वर्तना) प १५१५८।१,१५१६१ णिरुहा (नीरुहा) प ११४८।३ णिव्वत्तिय (निर्वतित) प २३।१३ से २३ गिरेयण (निरेजन) प ३६।६३,६४ णि व्वय (निर्वत) ज २।१३५ णिरोगय (नीरोगक) ज २३१२ णिवाघाय ( निर्याघात) प १६।५५;२११६५ णिरोह (निरोध) प ३६।६२ २८।३१ ज २०७१,८५ पिल्लज्ज (निर्लज्ज) ज २१३३ णिव्वाण मग्ग (निर्वाणमार्ग) ज २१७१ Page #1005 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ V निव्वाण ( निर्वापय् ) णिव्वाविस्सति ज २।१४१ णिव्वाहि ज ५।२८ णिव्वावेंति ज २।११२ णिव्वावेह ज २।१११ fraasee (निर्वृतिकर ) ज २।६४; ३ | ३ ; ४।१४६ froaइकरण (निर्वृतिकरण ) प १।१।२ floatee (निर्वृतिकर) ज ४।१०७ णिसंत ( निशान्त) ज ५।२६ सिग्ग ( निसर्ग ) ११।१०१।२ णिसट्ठ (निःसृष्ट) ज ३।२५,३८,४६,४७,१३२ सिढ (निषेध) प १६।३० ज ४।६६ freढकूड (निषधकूट) ज ४।६६ पिसण्ण (निषण्ण) ज २२८८३६,८१,२२२ णिसम्म ( निशम्य ) ज ३१६ णिसह (निषेध) ज ४८१,८६,८७,६७, ६८, २०१ से २०३,२०६, २०७, २०६,२३८,२६२ णिसहकूड (निषधकूट) ज ४।२३६ णि सहद्दह (निषधद्रह ) ज ४।२०७ सिर ( नि + सृज् ) णिसिरइ ज ३।२४,२६, ३७,३६,४५,४७,१३१,१३३ णिसिरंति ३।१६२; ४।५,७; ५।५, ७ णिसिरति प११।७१,७२,८४,८५ णिसिरण ( निसृजन ) प ११।७१ णिसिरमाण ( निसृजत् ) प ११।७१ जिसीइत्ता (निषद्य) ज ३०४६ / णिसीय ( नि + षद् ) णिसीएज्ज प ३६।९१ णिसीयइ ज ३८, ४१, ४६, ५८, ६६,७४, १४७, २१५,२२२ णिसीयंति ज १।१३,३०,३३; २७४ २ ५।४२ णिसीयति ज ३।१८८ / सियाव ( नि + षादय् ) णिसीयावेंति ज ५।१४,१७ णिसोयवेत्ता (निषाद्य) ज५।१४ णिसेग (निषेक) प २३।६० से ६४,६६,६८,६६, ७३,७५ से ७७, ८१, ८३, ८५ से ६०, ६२, ६५, से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४,११६ से ११८, १२७,१३०,१३१,१३३,१७६, १७७, १८२,१८३,१८७ णिव्वाण णीलय णिस्संग ( निःसङ्ग ) ज ५५८ मिस्सग्गरुड ( निसर्गरुचि) प १११०१।३ णिस्सा ( निश्रा ) प १२०, २३, २६,२६,४८ णिस्साय ( निश्राय) ज ३।१०६ णिस्सील ( निःशील) ज २११३५ णिस्सेस ( निःश्रेयस् ) ज २०७१ हिट्टू ( निहृत्य ) ज ३।६ (हिण ( नि + हन्) हिणंति ज ५। १३ हिणित्ता ( निहत्य) ज ५।१३ हियरय ( निहत रजस् ) ज ५।७ णिहि (निधि) प १५।५५।२ ज ३।१६७।१३, १४, १६८ णि हिय ( निहित ) ज ३।११६,२२१ णिहिरयण ( निधिरत्न) ज ३।१६७, १७०, ७ २०१, २०२ fuge (स्निहूक ) प ११४८४१ √णी (नी) इ ज ७।१५६,१५७,१६१,१६५, १६६; ३।१६३ णेति ज ७ १५६ सू१०।६३ ति सू १०/६३ / णी ( गम् ) णीति ज ३ । १०६ णीइ (नीति) ज ३।१६७ जोगिया (नीनिका) प १।५१ णीम ( नीप ) प १३६३ णी (नीत ) प १५ । १०२ णीयतर ( नीचतर ) ज ४।५४ णीयागोय ( नीचगोत्र ) प २३।२२,५७,५८,१३२ णीय (नीरजस् ) प २।३०,३१,६३,३६।६३,६४ ज १।१८,२३, ३१; २।६ ; ५।५८ जीरागदोस (नीरागदोष) ज ५।५८ नील (नील) प १६ से ८२।३१,२।४०।११; ५।५,७१३१६; १७ ६४; २३|१०४; २८/३२, ६६ ज ३।३१;४।२६४ सू २०१२, ८, २०१८१३) नीलकणवीरय (नीलकरवीरक) प १७।१२४ नीलकूड ( नीलकूट) ज ४।२६३।१ बंधुजीवय (नीलबन्धुजीवक ) प १७।१२४ नीलय (नीलक ) प १७।१२६ सू २० २ Page #1006 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णीललेस-२ इय ६२१ णीललेस (नीलबेश्य) प १७।८३,६२,६४,६५, णेग (नैक) प २८।४०,४३,६६ ज ३।३,३२ १०२,१०३.१०८,१६८,१८१७० अंगम (नगम) प १६।४६ णीललेस्टठाण (नीललेश्यास्थान) प १७४१४६ णेदव्व (नेतव्य) सू ६।१८।१६।३।१०।२३,२५; णीललेसा (नीललेश्या) प १७।१२१,१२४; १३॥ १८॥१,१६।१,३५,२०१८ २८।१२३ णेतु (नेतृ) सू १०।६३ णीललेस्स (नीलले श्य) प ३१६६;१३।१४;१७।३१, णेत्त (नेत्र) प १५७७,८२ ५६,५७,५६,६१६४,६६ से६८,७१ से ७४, णेत्तविण्णाणावरण (नेत्रविज्ञानावरण) १२३।१३ ७६,८१ से ८५,८७,१००,१०३,१०६ से १११, णेत्तावरण (नेत्रावरण) प २३।१३ जेद्दर (दे० नेहुर) प ११८६ णीललेस्सठाण (नीललेश्यास्थान) प १७।१४६ म (नेम) ज १।११ जीललेस्सा (नील लेश्या) प १६।४६; १७।३६, णेमि (नेमि) ज ३१३०,६५,१५६,१७८ ११५ से १२२,१२४,१२६,१३१,१३६,१४४, णेमिपास (नेमिपाव) ज ३।२२ १४५,१४८ से १५२ णम्म (नेम) ज ४।२६ णी दलेलाप र नाम (नीलरियापरिणाम) प १३१६ णेय (ज्ञेय) प २११५३ ज ३७७,१०६,१२६, जीवंत (नी वत) प१:३० ज ४९८,१०३, ७।१२७११,१६७।१ च ५२ सू १६२ १०८११०,१४०२,१४१ से १४३,१६२,१६५. यतिया (नवतिकी) प १७।२५ १६७,१७३ से १७६,१७८,१८० से १८२, यव्य (नेतन्य) प ४१५५; ५।१६१८।३।११।८१ १८४,१८५,१८७,१८८,१६०,१६१,१६३, १५।१०२,१०८,१४३, १७।८८, २११५२; १६४,१६६,१६७,१६६,२००,२२५।१,२२७, २२१७६;३६।२२,२६,३२,४६ ज १।१२ से २६२ से २६५ १४,२५,४६,२।४,६,४६,५६,६४,१३६,१५९% णीलसुत्तय (नीलसूत्रक) प १७।११६ ३१६४,१५०,१५१,२१७,४।१०,४७,५३,५६, णीली (नीली) ज ३।२४ ६०,६४,७६,८४,६०,६२,६६,१०६,१४१, णीलुप्पल (नीलोत्पल) प १७१२४ १४७,१६०,१६३ से १६५,१७३,१७४,१६७, णीसंद (निप्यन्द) 7१११३ च १११ २०७,२१०,२३८,२४३,२६२,२६८,२७४, णीसल्ल (निःशल्य) ज ५१५८ २७७,५१५३; ६५, ७।३५,५०,५८१३०, कणीसस (निर ! ३) णीससंति प १७।२,२५; १३१.१३५.१५५,१७६ सू ७.१,६२,१०॥२२ २८.२१,३३,३८,६७ णेयु (नेतृ) सू १९ णीसास (निःशास) ११६ रइअत्त (नैरकत्व) प १५६४ शोहम्ममाया (निहलामान)ज ३।३१ णरत्य (नाशिक) प २।२०,२१,३।१६,२२,४।३; णीहारिक (निति ) २०१२ १०।३२ से ३८,४० से ४२,४४ से ५२; णीहु (स्निह) प ११४८१? ११।४४,८०,१२।२,११ से १३,१५,३६; णणं (नन) ११:१:१७१४,६५,६९ से १०४, १३।१४,१६ से १६; १४।२,३,५,७,९,११ से ११५,११८,१२०,१२२,१४८,१४६,१५१,१५४; १५,१८,१५।१७,१८,३५,४६,४८,५६,६२, ६३,६५,६६,७१,७५,७८,८२,८३,६१,६४ से णेउर (दे०) प ११४६,५१ ६७,१००,१०२,१०७,१०८,११८ से १२० Page #1007 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णेर इयअसण्णिआउय-णोरहमणोबादर १२४,१३४,१३५,१३८,१४०,१४१,१६।३,६, सप्प (नैसर्प) ज ३।१६७४२,१७८ ११,१४,२०,२५,२६,३१,३२,१७११ से ६, णो (नो) प ११४६८ ज २१६ सु८१ ८ से १४,१७,१८,२३,२५,२८,२६,३२,३७, णोअपरित्त (नोअपरीत) प १८।११२ ४०,४२,४६,५७,८५,६० से ६२,१००,१०६ णोअसंजय (नोअसंयत) प १८६२ से १११,१८१२,५,८,९,११,१६।१,२०११११; णोअसण्णि (नोअसंज्ञिन् ) प ३११५,६ २०११ से ३,६,७,९,१०,१४,१५,१७ से २०, णोइंदिय (नोइन्द्रिय) प १५७० २३ से २५,२७,३२,३४,३५,३८ से ४२,४६, णोकसायवेयणिज्ज (नोकषायवेदनी) प २३।१७, ५२;२११५१,५२,५८,५६,६५,६६,७७,८१, ८७, २२१११,१३,१५,१७,१६ से २१,२३, णोपज्जत्तयणोअपज्जत्तय २४,२६,२७,३०,३१,३३,३५,३७ से ४५,४७, (नोपर्याप्तकनोअपर्याप्तक) प १८।११५ सोमवार ५३,५७,६६,७३,७५,७६,७६,८२,८७,८८, णोपरित्त (नोपरीत) प १८।११२ १०,६८,१००।२३।२,४,६,७,१०,१८,३७,५४, णोभवसिद्धियणोअभवसिद्धिय ७८,८०,१४६,१६४ से १६६,१६८,२४।१,३, (नोभवसिद्धिक नोअभवसिद्धिक) ५,८,१४,१५,२५३१,२,४,२६।१,३,२७।१,६; प १८।१२४;२८।११३,११४ ।। २८।१,३ से ५,२१ से २६,३०३८,६८,१०१, णोभवोवबातगति (नोभतोपपातगति) प १६१३७ १०२,१०४,१०६,११७,११६.१३३,१४३ से णोभवोववायगति (नोभवोपपातगति) प १६।२४, १४५; २६५ से ७,१५,१८,१६,२२३०१५ ३३ से ३७ से ७,१४,१७,२४,३११२,४,६।१,३२२२,५७ णोमालिया (नवमालिका) प ११३८१ ज २।१०% ३३।१ से ७,१६,२७,३०,३१,३४,३५,३७; ३४।१,३,५,६,१०,१३,१४,३५।२,५,७,६,११, णोमालियापुड (नवमालिकापुट) ज ४११०७ १३,१५,१७,१८,२१,३६।४,८,९,११ से १३, णोसंजतणोअसंजतणोसंजयासंजय १५,१८,२० से २२,२४,३० से ३४,३६,४३ (नोसंयतनोअसंतनोसंयतासंयत) से ४७,४६,५४,६५,६८,६६,७२ ज २०७१ प३२।१२ रइयअसण्णिआउय (नैरयिकासंज्ञ यायुष) णोसंजतणोअसंजयणोसंजतासंजय प २०१६२,६४ (नोसंतनोअसंयतनोसंतासंयत) प ३२॥४ रइयत्त (नैमिकत्वा) प १५॥१०३,१०४,१०६, णोसंजय (नोसंगत) प १८९२ १११,११५,११८,१२२,१२६,१२६,१४१, णोसंजयणोअसंजयणोसंजयासंजय ३६।१८,१६,२१,२३,२५,२६,३० से ३४,४६, (नोसं तनोअसंयतनोसंवतासंयत) रइयाउय (नैरयिकायुष) प २३।१८,३७,७८, प २८।१३१,३२॥३,६ ८०,१४६.१६६,१७०। णोसंजयासंजय (नोसंयतासंयत) प १८।६२ रतिय (नरयिक) प १०।३६ णोतणिणोअसलि (लोसंज्ञिन्नाअसंज्ञिन्) णेवच्छ (नेपथ्य) प २।४१ प १८।१२१,२८।१२०,१२१,१३४,१३६; णेवत्थ (नेपथ्य) ज ५।४३७।१०१ ३१११ से ३,५,६ णेवाण (निर्वाण) प २१६४।२० णोसुहमणोबादर (नोसुक्ष्मनोबादर) प १८।११८ Page #1008 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्हाण-त? ६३१ Vण्हाण (प्णा) ण्हाणे इ उ ११९७ पहाणेति ज २११०० पहाणेति २०६६ ण्हाणपीढ (स्नानपीठ) ज ३१६,२२२ पहाणमंडव (स्नानमण्डप) ज ३१६,२२२ ण्हाण मल्लियापुड (स्नानमल्लिकापुट) ज ४।१०७ पहाणेत्ता (स्नात्वा) ज २।६६ पहात (स्नात) सू २०१७ व्हाय (स्नात) ज ३५८,६६,७४,७७,८२,८५, १२५,१२६,१४७,१५३ उ ११६,४२,७७, १२१,१२२,१२६; ३।२६,११०,१४१,४।१२, १८,५।१७ ण्हारु (स्नायु) ज २११३३, ३।२४ हाव (स्नापय ,स्नपय्) पहावेइ उ ३।११४ ण्हावेता (स्नपतिा , स्नापयित्वा) ज २११०० त (तत्) प ११ सू ११ उ १११ तइय (तृतीय) प ३।२१, ६।८०१,१५।१४३ ज ३११३५।१४।५६,६७,१४२।३,७।१०८, १५८ चं ४।३ सू १८।३ उ २।२२,३।६८% ४१ तइया (तृतीया) ज ७।१२५ सू १०।१४८,१५० तइविह (ततिविध) प १५५६ तउखंड (पुखण्ड) प १११७४ तउय (त्रपुक) प १।२०।१ तउस (पुस) प ११४८।४८ ज ३।११६ खीरा उसमिजिया (त्रपुसमिञ्जिका) प ११५० उसी (पुसी) प ११४०११ खीरा की लता तए (ततस् ) उ ११४; २।८,३।११:५११३ तओ (तता) ५३४.१ से ३; ३६१७७,६२ उ ३।५१,५३,५४,८६,१०७,११०,१३६; ४१२१ तंजहा (तद्यथा) ११२ तंडव (ताण्डलम्) तंडवति ज ५१५७ तंडुल (तण्डुल) ज ३।१२,८८,१५८ उ ३।५१ तंत (तान्त) उ १५२ तंतवा (तान्त्रवक) प ११५१ तंती (तन्त्री) प २१३०,३१,४१,४६ ज ११४५; २।६५,३८२,१८५ से १८७,२०४,२०६, २१८,५१,१६,७५५,५८,१८४ सू१८।२३; १६।२३,२६ तंतु (तन्तु) ज ३११०६ तंतुवाय (तन्तुवाय) प १९७ तंदुल (तण्डुल) उ ३।५१ तंदुलमच्छ (तण्डुलमत्स्य) प ११५६ तंदुलेज्जग (तन्दुलीय) प ११४४।१ वायविडंग, चोलाई का साग तंब (ताम्र) प १।२०।१२।३१;१७।१२५ ज २।१५,३।१३८।१ तंबकरोडय (ताम्र करोडय') प १७।१२५ तंबखंड (ताम्रखण्ड) प ११७४ तंबच्छिकरण (ताम्राक्षिकरण) प १७।१३४ तंबछिवाडिया (ताम्र छिवाडिया') १७।१२५ तंबिय (ताम्रिक) उ ३।५०,५५ तंस (त्र्यस्र) प २४ से ६१०।१५,१६ तक (तकत्) ज ३१६५,१५६ तक्करबहुल (तस्करबहुल) ज १।१८ तक्कलि (तकिल) प ११४३।१ चक्रमर्द वृक्ष, चकवड तगरमेला (तगरमेला) ज ३।११।३ तगरपुड (तगरपुट) ज ४।१०७ तच्च (तृतीय) प ३।१८३२११६०,३३।१६;३६।६२ ज ७१६२ सू १।१४,१६,१७,२१ उ ११३६, ४०,११५,११६; ३।१,२,२३,५४,६०,६१,७७, ७८,८७,८८,१०८ तच्चा (तृतीया) सू १२।२१ तच्छण (तक्षण) ज २०७० तट्ट (दे०, स्थल) प २८ तट्ठ (त्रस्त) ज ७।१२।२ सू १०१८४१२ तदेवया (त्वष्ट्रदेवता) सू १०८३ तठु (त्वष्ट्र) ज ७।१३०,१८६४ Page #1009 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ तड-तयणंतर तड (तट) ज ३।१०६ उ ५५ तडाग (तटाक) प २।१३ तडित (तडित्) ज ३।२४ तण (तण) प १।३३।१,११४२,४४११,११४८।४६; ३८।६१ ज १११३,२१,२६,२६,३३,४६,२१७, २६,५७,१२२,१२७,१४४ से १४७,१५०, १५६,१६४,३।६८,१६२,४।६३,८२,५।५।। तणमूल (तृणमूल) प ११४८८ तणय (तृणक) ज २।३६ तणवणस्सइकाइय (तणवनस्पतिकायिक) ज २११३१ तविटिय (तृणवन्तक) प ११५० तणविहूण (तृणविहीन) ज १।१४ तणसोल्लिया (दे०मल्लिका) ज ३।३५ दणाहार (तृणाहार) प १५० तणु (तनु) प २१६४ ज ११५१;२।१५,१३३; ४।४५,१५६,७११७८ तणुक (तनुक) ज ३।१०६ तणुतणु (तनुतनु) प २०६४ तणुय (तनुक) ज ११८,३५,५१, २।१५; ३।१३८।१४।४५,११०,११४,१५६,२१३, २४२ तणुयतर (तनुकतर) प ११४८।३४ से ३७ तनुयरी (तनुतरी) प २६४ तणुवाय (तनुवात) प ११२६; २।१० तणुवायवलय (तनुवातवलय) प २।१० तण्हा (तृष्णा) प २०६४।१६ ज ३।१२१।१ तत (तत) ज ५१५७ ततगति (ततगति) प १६।१७,२२ तति (तति) प १५।१३४ ततिय (ततीय) प१०।१४।१ से ३,१११४२,८८; १२।३२,३८,३६।८५,८७ सू १०।६५,६६,७३, ७७,१२।१६:१३।१० उ श६३ ततिविह (ततिविध) प १६।२० तते (ततस) ज ११६ ततो (ततस् ) प ३४।१,३,३६।८५ ज ३१३५ तत्त (तप्त) प ११४८।५६;२।३१,४८ ज ३।११७ तत्तकवेल्लुयभूय (तप्त कवेल्लुय'भूत) ज २।१३२, १४१ तत्तजला (तप्तजला) ज ४।२०२ तत्ततव (तप्ततपस्) ज ११५ तत्तसमजोइभूय (तप्तसमज्योतिर्भूत) ज २।१३२, १४१ तत्तिय (तावत्) प १५।१०३ ज ७।२०० सू १०६५,६६,७३,७७,१२।१६:१३।१० तत्तो (ततस्) प ११११७,११४८।१२१६४१४; २११४७।१,२,३४।१,२ तत्थ (तत्र) प ११२० ज १११३ सू १।१४ उ १११० तत्थ (त्रस्त) प २१२० से २७ ज ३।१११.१२५ __उ १८६ तत्थगय (तत्रगत) ज ५१२१ तदणुरूव (तदनुरूप) ज २।१४१ से १४५ तदुभय (तदुभय) प १४।३; २२१४ से ६२३।१३ से २३ तप्प (तप्र) ३३।१६ तप्पभिइ (तत्प्रभृति) ज २।६७ उ ३।११८ तप्पाउग्ग (तत्प्रायोग्य) प २३१२००,२०१ तम (तमस्) ज २।१३१ तमतमप्पभा (तमस्तमःप्रभा) प ११५३;२।१,२०; १०११ तमतमा (तमस्तमा) प २।२७,२।२७१३ तमप्पभा (तमःप्रभा) प ११५३,२।१,२०,२६% ३।१६।४।१६ से २१,१०१ तमस (तमस्) प २०२० से २७ तमा (तमा) प ३।१८,१६,१८३, ६१५,७८,६१; २०१४२,२११६७,३३१८,१६ तमाल (तमाल) प ११४३।१ तय (त्वच) उ ३३५०,५१,५३ तयणंतर (तदनन्तर) ज ४।२१३ Page #1010 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तयणुरूव-तहापगार तयणुरूव (तदनुरूप) प ११७४ तया (त्वच् ) प १।३५,३६; १।४८।१३,२३,६३; ११४८ ज २।६७,१४५,१४६ तया (तदा) सू १।१४।१०।२६ उ ३।६२ तयाणंतर (तदनन्तर) सू १।१४,१६,२१,२४,२७; २।३ तयावरणिज्ज (तदावरणीय) ज ३।२२३ तयाविस (त्वगविष) प १७० तयाहार (त्यगाहार) उ ३५० तरंग (तरङ्ग) २।१५,१३३, ५।३२ तरच्छ (तरक्ष) प ११६६,१११२१ ज २।३६,१३६ तरच्छी (तरक्षी) प ११२३ तरमल्लिहायण (त रोमल्लिहायन) ज ७।१७८ तरुण (तरुण) ज २।१५; ३।३,२४,३०,१७८; ५।५,७ तरुणी (तरुणी) ज ३८२,१८७,२१८ तल (तल) प २।२० से २७,३०,३१,४१,४६ ज ११४५, २१६५,३७,८२,१७८,१८४,१८६, १८७,२०४,२०६,२१८,४।३,२५,४६,६७,८२, ८५,१२५,१४२,५।१,५,१६,६२,७।५५,५८, १७४,१७८,१८४ सू १८।२३;१६२३,२६ तलऊडा (त्रपुटी) प ११३७।३ छोटी इलायची तलभंगय (तलभङ्गक) प २।३१ तलवर (तलवर) प १६।४१ ज २।२५,३।६,१०, ७७,८६,१७८,१८६,१८८,२०६,२१०,२१६, २१६,२२१,२२२ उ १६२३।११,१०१; ५।१० तलाग (तडाग) प १११७७ ज २।३१ तलाय (तडाग) प २।४,१६ से १६,२८ तलिण (तलिन) ज २३१५ तलिय (तलित) उ ११३४,४६,७४ तल्लेस (तल्लेश्य) प १७।६२,१०२ से १०४ तव (तपस्) प १११०१।१० ज ११५,२।७१,८३; ३।३२॥१,११७,२२१;७।१६६ उ ११२,३; ३।२६,३१,६६,१३२,५।२६,३२ तव (तप्) तवइंति सू १६।१ तवइंसु ज ७।१ सू १६१ तवइस्संति सू १६१ तवंति ज ५१५७ तवयंति ज ७।५४ सू ४।१० तविसु सू १६१ तविस्संति ज २११३१ सू१०।१३२ तति ज ७.१ स् ३१ तवेंसु सू १६८ तवेति सू ३।२ तवणिज्ज (तपनीय) प १४८१५६२।३१,४८ ज ३१२४,३५,१०६,११७,४।४६;५।३८,६७; ७।१७८ तवणिज्जमय (तपनीयमय) ज ४१७,१३,८६,२०६, २५१,२५२,५॥३४ तवविसिठ्ठया (तपोविशिष्टता) प २३२१ तवविहीणया (तपोविहीनता) प २३।२२ तविय (तप्त) ज ३।३५,१०६७।११।५ सू १०।१२६।५ तवोकम्म (तपःकर्मन) उ २।१०७३।१४,५०, ४।२४।५।२८,३६,४३ तवोवहाण (तपउपधान) उ ३८३ तव्वइरित्त (तद्व्यतिरिक्त) प २३।१६१,१६३ तव्वतिरित (तद्व्यतिरिक्त) प २३।१६२ तसकाइय (त्रसकायिक) प ३१५० से ५२,५६,६०, ७२ से ७४,८३ से ८७,६५,१७१ से १७३; १८।२८,३०,३६,४७,५४ तसकाय (त्रसकाय) प १५।५३,५४ तसणाम (वसनामन्) प २३।३८,११७ तसरेणु (त्रसरेणु) ज २१६ तसित (तृषित) प २।२३ तसिय (तृषित) प १२० से २२,२४ से २७ उ ११८६ तह (तथा) प १११३ ज ३।११ च ४११ सू ११८ उ ३७६ तह (तथ्य) उ १।२४;३।१०३ तस्संठित (तत्संस्थित) ज ४१३ तहत्ति (तथेति) ज ३१५३,१०० तहप्पगार (तथाप्रकार) प १।२०,२३,२६,२६, Page #1011 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३४ तहप्पगार-तालियंट ३५ से ३७,३६ से ५१,५६,६०,६३ से ६६, ७०,७१,७५,७६,७८,६६,६९१११२१ से २५ तहा (तथा) प ११३५।३ ज ३।१०७ सू ८।१ उ १७ तहारूव (तथारूप) उ १।१७,२।१०,१२,३।१४, १६१,५३३६,४१,४३ तहाविह (तथाविध) प ११४८।७,१० से ३७,४१, ४३ तहि (तत्र) प २१६४।५ तहेव (तथैव) प ११४८।२ ज ११५१ सू १।१७ उ ११७ ता (तावत्) सू १।१० ताओ (ततस् ) ज ११२० उ २०१३;३।१८ तागंधत्त (तद्गन्धत्व) प १६।४६;१७।११५,११६, ११८,१४८,१४६ ताडिज्जमाण (ताड्यमान) सू ६।३ ताण (त्राण) ज ५।२१ ताफासत्त (तत्स्पर्शत्व) प १६।४६;१७११५, ११६,११८,१४८,१४६ तामरस (दे०) प ११४६ तामलित्ति (ताम्रलिप्ति) प ११६३।१ ताय (तात) उ ११४२ से ४४ तायत्तीसा (त्रयस्त्रिंशत्) प २।३२,३३,३५,५०,५१ ज २०१० तार (तार) प ११।२५ तारंतर (तारान्तर) ज ७।१६८।२ तारगग्ग (तारकाग्र) चं ५२ सू १६२ तारग (तारक) सू १६।२२।११ तारग्ग (ताराग्र) ज ७/१२७११,१३११२,१६७।१ सू१०१५५,१६।२२।२,२६ तारया (तारका) प २।४८ ज ५।२१ सू १०१५५; १६२२ तारसत्त (तद्रसत्व) प १६।४६;१७।११५,११६, ११८,१४८,१४६ तारा (तारा) प १११३३ ज ३७६,११६,१८५, २०६७।१३१,१७७।३,१८२ सू १०.५५, ५६,५७,५६,६१,६२,१५।११८२४,१८,१६, ३७,१६।२२।१,१६।२२,३१ तारागण (तारागण) ज ३१६,१७,२१,३४,१७७, २२२,७।१।१,१७० सू १८।४।१६।१,५३, ८॥३,१११४,१५१४,१६,२११५,८,१६।२२।३२, १६।३१,३५,३८ तारापिण्ड (तारापिण्ड) सू१६।२२।१ तारारूव (तारारूप) ५२०४६ से ५१,६३ ज ४।२७, ७।५५,५८,१६८,१७३,१७४, १७८।२,१७६ से १८२,१६७ सू१५।१; १८।१ से ३,१८ से २०,३७,१६।२३,२६; २०१७ उ २।१२,५०४१ ताराविमाण (ताराभिमान) प ४।२०१ से २०६; ६।८५ ज ७।१६५,१६६ १८।१,८,१३, १७,३५,३६ तारिस (तादृश) १०।१६४, २०१७ तारिसग (तादृशक) सू२०१७ उ ११३३,२१८,२० ५।१३,१५,३१ तारूवत्त (तद्रूपत्व) प १६।४६; १७।११५,११६, . ११८ से १२८,१४८ से १५२,१५४,१५५ ताल (ताल) प ११४७११, २३०,३१,४१,४६ ज११४५; २१६५,३१८२,१८६,२०४,२०६, २१८,२२२, ५३१,१६, ७।५५,५८,१८४ सू १८।१३; १६२३,२६ ताल (ताड) प ०४३।१ इताल (ताडय) तालेइ उ ५११६ तालेहि उ ५११५ तालण (ताडन) ज ७।१७८ तालपुडग (तालपुटक) उ १८६,६० तालायार (तालाचार) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८ ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ तालिय (ताडित) उ५।१७ तालियंट (तालदन्त) ज ३।११,५११०,५५ Page #1012 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालु-तित्थगरत्त ६३५ तालु (तालु) प २।३१ ज २११५, ३।३५,१०६, ४४,४६,५८ उ १।१६,२१,३।१०३,११३; ७.१७८ ४।१३,१६ ताक (तावत् ) प २४७ उ ११५१ तिग (त्रिक) ज २१६५३।१८५,२१२,२१३; ताव (ताप) ज ७।३२ उ ३.५० ५७२,७३,७।१३१।१ उ १६८ तावइय (तावत् ) ज १।१६,३।८।४।१२१,१४०।२, तिगिछद्दह (तिगिच्छद्रह) ज ४।८८ से ११ तिगिच्छकूड (तिगिच्छकूट) ज ४।२७५ तावक्खेत (तापक्षेत्र) सू २१३, ४।५।६।१; तिगिच्छायण (चिकित्सायन) सू १०।११६ १६।२२।१४,१६।२३,२६ तिगुण (त्रिगुण) ज २१६,७७,६६,६०,११८,१२१, तावक्खेत्तसंठिति (तापक्षेत्रसंस्थिति) ज ७।३१,३५, सू १०।६०,६१,१८।६ से १३ सू ४।१,३,४,६ तिगुणित (त्रिगुणित) सू १६।२२।२३,२५ तावखेत्त (तापक्षेत्र) ज ७।३२,५५,५८,१६८,२१२, तिजमलपय (त्रियमलपद) प १२॥३२ तिट्ठाणवडित (त्रिस्थानपतित) प ५।१२,१४,१६, तावखेत्तपह (तापक्षेत्रपथ) सू १६।२२।५ २०,२६,५३,५७,५६,६३,६८,७२,७४,७८,८३, तावण्णत्त (तद्वर्णत्व) प १६१४६; १७।११५, ६४,६७,१०१,११२,११५,११६,१२२ ११६,११८,१४८,१४६ लिठाणवडिय (त्रिस्थानपतित) प ५।१८ तावतिय (तावत् ) प १५५१,५२,६२ ज ४।१० तिणिस (तिनिश) ज ३।३५,१७८ तावत्तीस (त्राय त्रिंश) ज ५१५० तिण्ण (तीर्ण) ज ५।२१ तावत्तीसग (बायस्त्रिंशक) प २॥३२,३३,३५,४६ अतितिक्ख (तितिक्ष्) तितिक्खइ ज २१६७ से ५१ ज ५११६ तित्त (तृप्त) प २१६४।१६ तावत्तीसय (त्रायस्त्रिंशक) ज २०१० तित्त (तिक्त) प ११४ से ६,५५,७,२०५:११।५८, तावत्तीसा (त्रायस्त्रिंशक) प २।३० से ३२ १३।२८;२३१४६२८१२०,३२,६६ ज २।१४५ तावस (तापस) प २०१६१ उ ३१५०,५५ तित्तिर (तित्तिरि) प १७६ सू १०।१२० तावसत्त (तापसत्व) उ ३।५०,५५ तित्तीस (त्रयस्त्रिंशत् ) ज ४।१८ ताहि (तत्र) प २४।६।। तित्थ (तीर्थ) ज ३।१४,१५,१८,२०,२२,३०,३१; ताहे (तदा) ज ७।५६ उ ११५२, ३।१२३ ४।३,२५,५१५५,६।६,१२ से १४ ति (त्रि) प १११३ ज १७ च ३।३ सू १७ तित्थकर (तीर्थकर) ज २६३,१२५ उ१।१४ तित्थगर (तीर्थकर) प २०११।१ ज २१६०,६५, तिउड (दे०) ज ४।२०२ १०१ से १०३,११३.११४,११६,१५३; तिदु (तिन्दु) प ११३६।१ ५७,२२,७०,७३ तिदुय (तिन्दुक) प १६१५५ तित्थगरचियगा (तीर्थकरचितका) ज २।१०५ से तिदूय (तिन्दुक) प ११४८।४८ शिक्ख (तीक्ष्ण) ज २११३३,७१७८ तित्थगरणाम (तीर्थकरनामन्) प २३।३८,५६, तिक्खग्ग (तीक्ष्णाग्र) ज ७।१७८ १२६,१४६,१७४,१८६ तिक्खधार (तीक्ष्णधार) ज २।१३१; ३।१०६ दित्थगरणामगोय (तीर्थकरनामगोत्र) प २०१३९ तिक्खुतो (त्रिस्) ज ११६; २१६०; ३५,८८,८६, तित्यगरत्त (तीर्थक रत्व) प २०१३८ से ४०,४५, ६८,१३१,१३५,१५५,१५६,५५,२१ से २४, ४६,५१ Page #1013 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तित्थगरवंग-तिरिक्खजोणियत्त तित्थगरवंस (तीर्थकरवंश) ज २।१२४,१५२ ८३,८५,८८ से ६०,६३,६५ से ६७.१०२, तित्थगरसरीरग (तीर्थकरशरीरक) ज २०६६ १०६,१५५:४।३७.१७२११,१७४,६।१६ तित्थगरसिद्ध (तीर्थकरसिद्ध) प १११२ तिमिसगुहाकड (तिमिस्रागुहाट) ज ११३४ तित्थयर (तीर्थकर) ज ४।२४८,२५० से २५२, तिय (त्रिक) ५ १६।१५ ज ७।१३१११ ११.३,५,८ से १४,१६,१७,२१.२२,४४,४६, लिय (इंदिय) त्रीन्द्रिय प १७४६६ ६०,६२,६४,६६ से ६६,७२,७३,७।१६८ तियभंग (त्रिभर) ५२८१७,१३,२६।४,६3 तित्थयरमाउ (तीर्थक रमातृ) ज ५१६ से १२ २८।११२,११६,११६,१२१,१२३,१२५,१२६, तित्ययरमायरा (तीर्थकरमातृ) ज ५।५,१४,१७ १२८,१२६,१३२,१३३,१३६ से १४५ तित्थयरमाया (तीर्थकरमातृ) ज ५७,८,४६,६७ तिरिक्त (तिथंच) प १७॥३३; २११७ तित्थयराइसय (तीर्थक रातिशय) उ ४।१३ तिरिक्खजोगिषी (गिर्यौनिका) प ३१३६,१२८, तित्थयरातिसय (तीर्थकरातिशय) उ १।१६,४।१८ १८३;१७।४४,६३,६५ से ६६,८६,१८१४,१०; तित्थयराभिसेय (तीर्थकराभिषेक) ज ५१५४ से ५६ २०११३;२३।१६४,१६६,१६८ तित्थसिद्ध (तीर्थसिद्ध) प १।१२,१६।३६ तिरिक्खजोणिय ( तिनिक) ११५२,५४,५५, तिधा (त्रिधा) ज ११८ ६० से ६२, ६ ६ ,७,७७,८१,२।२८% तिपएसिय (त्रिप्रदेशिक) प ५।१३१,१५६,१०।८ ३१२४,३८,२६; १२७,१८३; ४११०४ से १५७; तिपडोयार (त्रिप्रत्यवतार,त्रिपदावतार) सू १९६३५ ५१३,२२,०२,८३,८५,८६,८८,८६,६२,६३, तिपदेस (त्रिप्रदेशिक) प १०।१४।१ ६६,६७,६।२१,२२,४८,५८,६५,७०,७१,७८, तिभाग (विभाग) प २१६४।४,६,७,६६।११६; ८१,८२,८३,८७,८६,९२,६६,६६ से १०३, २१।६१,२३।७८,७६,१४७,१६२,१६६, १०५,१०७,११३,११६, ८।६,७,६६,७,१६, ज १२०,४८,२।५८,१२६,१५५,१५७,१५६; १७,२२,२३, १११४६;१२।४,३१,१३।१८; ३।१७।३२,३४ सू १।२३,४।५८,६।३ १५॥३५,४६,८७,१०२,१२१,१३८,१६७,१४, तिभागतिभाग (त्रिभागविभाग) ५६।११६ २५,२७, १७॥२३,३५,३८,८१ से ४३,५८, तिभागतिभागतिभागावसेसाउय ६३ से ६६,८६८७,८६,६७,१०४,१८॥३,१०% (विभागत्रिभागत्रिभागावशेषायुक) प६।११५, १६।४।२०।१३,१७,२३,२५,२६,३४,३५,४८; २११८ से १६,२६ स ३२,४३,५३,६०,६८, तिभागतिभागावसेसाउय (विभागत्रिभागावशेषायुप्क) ७७,८२,८८,२२॥३१,७४,८७,६६,२३१७९, प६।११५ १९४,१६६,१६८,१६६२४१७,२८।४७,४८, तिभागावसेसाउय (त्रिभागावशेषायुष्क) प ६।११५, ११६,१३०,१३६,१३७,१४४,२६१५,२२; ११६ ३११४,३२।३३३।१,१२,२१,२८,३२,३६; तिभागूण (त्रिभागोन) प २१६४७ सू श२३ ३४।३,८,३५॥१४,२१,३६७,४०,५१,५७, तिभाय (विभाग) ज २१५५ से ५७,५६,१५६,१५८ ७२,७३ ज २१६७,१३५ से १३७ तिमि (तिमि) प ११५६ तिरिक्खजोगियअसआय तिमिगिल (तिमिङ्गिल) प ११५६ (तिर्यग्बोनिकासंजयाप) प २०६४ तिमिर (तिमिर) प ११४१।१ ज ३।६५,१५६ तिरिक्खजोणियत्त (तिर्यग्योनिकत्व) प १५६७, तिमिसगुहा (तिमिस्रागुहा) ज ११२४;३।६८,६६, १०३,१००६ Page #1014 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिरिक्खजोणियाउय-तुच्छ १३७ तिरिक्खजोणियाउय (तिर्यग्योनिकायुष) तिवण्ण (त्रिवर्ण) प ७.१७८ प २०१६३;२३।७६,१४७,१५८,१६२,१६५, तिवलि (त्रिवलि) ज ३।१३८।१ १७० तिवलियवलिय (त्रिवलिकवलित) ज २।१५ तिरिच्छ (तिर्यच्) सू १।६।१ तिवलिया (त्रिवलिका) ज ३।२६,३६,४७ तिरिच्छगति (तिर्यग्गति) सू २।१ च २११ उ ११२२,११५,११७,१४० तिरिय (तिर्यच ) प २१४१ से ४३,४६,४८; तिविह (विविध) प १११।१,११५४,६०,६६,७५, १११६५,६६,१५।५२;२०१५३;२११८७,६० से ७६,८१,८५,६।१,६,१३,२०,२६१३१७,१०, ६३;२३३३६,८२,११२,११५,१४८;२८।१५, ११,१३,१५७५,१६६४,२४;१७।११,२५, १६,६१,६२,३११६।१३२।६।१;३३।१६,१७ ३०,१३६१८१५६,६४,७७६०,१०५२११८; ज २१४६,७१,६०,१३७,३७६,११६,११८; २२१४ से ६;२३।३३,४२,२६७,३०१३; ४।५२,५१५,४४,७।४४ ५४ सू २।१,४।१०; ३५॥१,६,८ से १० चं ११४ उ ३।३८,४२ १८।१;१६।२२।१२ तिव्व (तीव्र) प २२७,२६ तिरियगति (तिर्यग्गति) प ६२,७,२३।१७२ तिसत्तखुत्तो (त्रिसप्तकृत्वस्) प ३६।८१ तिरियगतिपरिणाम (तिर्यग्गतिपरिणाम) प १३।३ तिसमइय (त्रिसामयिक) प ३६।६०,६७ से ६६, ७१,७५ तिरियगतिय (तिर्यग्गतिक) प १३।१६ से १८ तिसरय (त्रिसरक) ज ३।६,२२२ तिरियगामि (तिर्यगगामिन्) ज ११२२,५०,२१५८, तिहा (त्रिधा) ज ११२०,२।५५;१५५ १२३,१२८,१४८,१५१ १५७;४।१०१ तिहि (तिथि) ज ३।२०६;७।११८,१२१ सू शह तिरियलोग (तिर्यक्लोक) प २११८६ तिरियलोय (तिर्य कलोक) प २।१,४,८,१०,१३, तीत (अतीत) ज ७।३६ तीतवयण (अतीतवचन) प १११८६ १६ से १६.२८,३।१२५ से १७३,१७५,१७७ तिरियवाय (तिर्यग्वात) प १।२६ तीय (अतीत) प १५१५८।२ ज २१६०;३।२६,३६, तिरियाउय (तिर्यगायुष ) प २३।१८ ४७,५६,१३३,१३८,१४५,५॥३,२२७.५२ तिरीड (किरीट) प २।४६ ज ३।३१ तीर (तीर) ज ४।३,२५,६७ तिल (तिल) प ११४५।१,११४७।३ ज २।३७,११६ १४०३ ज २१३७.१११ तीस (त्रिंशत्) प ११८४ ज ११२० सू १११८ तिलक (तिलक) ज ३।१०६ उ ३।१४ तिलग (तिलक) ज ३।१२,८८,१७२,५।५८; तीसइ (त्रिंशत्) सू १०।४ ७/१७८ तीसति (त्रिंशत् ) सू १०।३५ तिलचुण्ण (तिलचूर्ण) प ११७६ तीसतिविह (त्रिंशद्विध) प १८७ तिलतंदुलग (तिलतण्डुलक) सू १०।१२० तु (तु) सू १६।२२ तिलपप्पडिया (तिलपर्पटिका) प ११४७।३ तुंग (तुङ्ग) प २।३१,४८ ज २११५,३।८१,१५१, तिलपुप्फवण्ण (तिलपुष्पवर्ण) सू २०१८,२०।८।३ ४१४६; ५।४३ उ ५१५ तिलय (तिलक) प ११३६।३;२।४८;१५।५५२ तुंड (तुण्ड) ज ३।२४ ज ४।४६ उ ३।११४ तुंब (तुम्ब) प ११४८।४८ उ ३।३०,३५,११६ तिलसिंगा (तिल 'सिंगा') प १११७८ तिल की फली तुंबी (तुम्बी) प ११४०११ तिवई (त्रिपदी) ज ३।१७८,५२५७ तुच्छ (तुच्छ) ज ७११८ Page #1015 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ तुच्छत्त (तुच्छत्व ) प १५।४४, ४५ तुच्छ (तुच्छा) यू १०।२० तुट्ठ (तुष्ट ) ज २।१४६; ३२,६,८,१५, १६, २६, ३१,४२, ५०, ५२, ५३, ५६,६१,६२,६७,६६, ७०,७५,७७,८४,९१.१००, ११४, १३७,१४१, १४२.१४०, १५०, १६५,१६९.१७२.१८१. १६६.११२,११६,२००, २१३५१५, १५.२१. २३,२७ से २६,४१,५५,५७,७० उ १।२१. ४२,४५, १०६ ३०१३,१०१,१०२,११३,१३६. १६०४।११,१४,२०६५।५.३८ तुट्ठि (तुष्टि) ज २|७१ उ १।७१,७२ डिल (तु) प २३०, ११,४९ खुटित (त्रुटिक) ज १०३१:२०२६ खुटित (त्रुटि) २३०,२१ तुडिय (त्रुटित ) प २१३०,३१,४१ ज ३६, ६,२६, ३६,४७,५६,६४,७२,१३३,१३८, १४५, २११, २२१३५।२१.५८ डिय (दे० त्रुटित) ज २०४ संरु विशेष ड) प २३०,३१,४१,४९ ज १०१४५० २०६५ २०१४,३०,४३,५१,६०,६८,८२,१३०, १३६,१४०,१४६, १७२, १८०, १८५, १८६, १८७,२०४,२१८५०१,१६,२२,२६६७५५, ५८,१०४ डिव (दे०) ज ७१६८१२ सू १६२३ अन्तःपुर डियंग (दे० त्रुटिनांग) २१४ तुडियंग (तुङ्ग) ज ३।१६७|१० तुष्णाम ( तुझा ) प १६७ √ तुयट्ट ( स्व + वृत्) तुयट्टति ज १।१३,३०, ३३ २७४२ प ३६।२१ तुरग (रंग) ज ११३७६२११०१३०३,२३,२८, ३५, ३७,४१,४५,६७,४६, १७८ ४४२७; ५१२८ तुरधरि (पवार) १८१४ से १७ ( तुच्छत तूली ५६,६४,७२,७८, ११३, १२२१३८, १४५, १८० २०६५१५,२१,२६,२८,४४,४७,६७ 1 (क) २०३०,३१,४१२४६५, १०६, ११० ३७,१२,८८५७,५८ से २०१७ तुल (तुला) ज ७।१३३।२ तुलसी (११२७१२,१४४४१२ तुलादियास्थित ) १०१४० तुल्ल (तुला) प ३1३८ से १२०,१२२ से १२४, १७४,१७६,१७८ से १८२५०५,७,१०,१२,१६, १८,२०,२४,२८,३०,३२,३४,३७,४१,४५,४६, ५३,५६,५६,६३,६८,७१,७४,७०,६३,८६, ८६,१३,६७,१०१, १०२, १०४,१०७,१११, ११५,११,१२,१३१,१३४,१३६,१३८, १४०,१४२,१४५,१४७,१५०,१५४,१६२, १६६,१३६,१७०, १७२, १७४, १७७,१८४, १८७,१०,१३,११७,२००,२०२,२०७, २११,२१४,२१८,२२१,२२४,२२८,२३४, २३५,२३७,२३६, २४२, ६।१२३,८१५, ७, ६, ११:१२,१६,२५१०३ से ५,२६ से २९ ११४७६, २०१५११६,१६,२६,२८,३१,३३, ६४; १७५६ से ६६,७१७६७८ से २ १४४ से १४६ २०१६४ २११०४, १०५ २२।१०१.२६१०१,४४,७०३४२५, ३६३५ से ४१,४८,४६,८३११ ज ३१३,२५,७११६८,१६७ भू १८१२,२,३७ तुल्लत्त (तुला) ज ७।१६६ १८/३ तुवर (तुवर) ज ३१२०३,५१५५,५६ तुवरी ( तुवरी) सू १०।१२० तुसार ( तुषार ) प २६४ तुसिणीय (तृष्णीक) ज २२६० उ ११३८,६१,६२, ८६,८७,१०० ३१५६.५६,६१,६४,६८,७१, ७४, ७६ (२०६७ ३१२१.१३५ २११२,७८ तुष्य (सूर्य) (तूप) ४११३ तुरिय ( त्वरित) ज २२६५, ६०, ३६,२६,३९४७, तुली (तुली) ज ४।१३ Page #1016 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तूवरी-तेया ६३६ तूवरी (तुवरी) प ११३७१३ १५३,१६२ से १६४;२८।१२३ तेइंदिय (त्रीन्द्रिय) प ११५०;२।७३।८,४० से तेउलेस्सापरिणाम (तेजोलेश्यापरिणाम) प १३।६ ४२,४६,४६,१४७ से १४६,१८३;४।६८ से तेदिय (त्रीन्द्रिय) प १११४,५०, ३।४२,४६,४६ १००,५॥३,२१,८१,६।२०,६५,७१,८३,८६, तेंदुय (तिन्दुक) प १७।१३२,१३३ १०४,११५;६।४;१११४५,१५।३४,७५,८१, तेंदूस (तिन्दुस) प ११४८।४८ ८६,१३७,१७।४०,६२,१०३,१८।१५,२२; तेगिच्छायण (चिकित्सायन) ज ७।१३२।४ २०१८,२३,२८,३३,४७, २११६,२८,४२; तेणबहुल (स्तेनबहुल) ज ११८ २२॥३१;२३।८७,१५१,१६०,१६१,२८।४५ तेण (तेन) सू ६१ से ४७,१०१,१२५,१३६ ; २६।१३;३०।११, तेणउति (त्रिनवति) सू १२।१२ २१,३११३,३४१६ तेणउय (त्रिनवति) ज ४।६२ तेइंदियत्त (त्रीन्द्रियत्व) प १५।६७,१४२ तेणामेव (तत्रव) प ३४।२२ ज ३३५ तेउ (तेजस्) १६८६,६२,१०४,११५,१३।६, तेतलि (तेजस्तलिन तेतलिन्) ज २१५०,१६४; १६,१७/४०,६६,१८।२६,२०१८.२३,२८, ४।१०६,२०५ ५७;२११८५,२२।२४ तेतालीस (त्रिचत्वारिंशत्) सू १११६ तेउकाइय (तेजस्कायिक) प १११५२१७ से ८:३।५० तेत्तीस (त्रयत्रिशत्) प २१६४१६ ज ४।६८ से ५२,५६,६० से ६३,६७,७१ से ७४,७८,८४ सू ११२० उ १११२६ से ८७,६१,६५,१६२ से १६४,१८३:४१७२,७५ तेदुरणमज्जिया (दे०) प ११५० से ७७; ५।३,१३,१४,६।१६,१०२ तेपण्ण (त्रिपञ्चाशत्) सू १२।२० तेउकाइयत्त (तेजस्कायिकत्व) ज ७२१२ तेय (तेजस्) प २।२०,३१,४१,४६,२८।१४१ तेउक्काइय (तेजस्कायिक) प ११२४;२७, ३४, ज २।१३३;३।३,१८,६३,१८०,१८८,७।११२१५ १६४,१८३;६।५;१२।२२,१५।२६,८५,१३७; सू १०।८८,१२६।५ उ ३।४८,५०,५५,६३, १७/६१ से ६३,१०३; १८४३,३८,४०,५१; ६७,७०,७३,१०६,११८ २०१२७,२६,३१,४५,२१।२५,४०,२२॥३१ तेयंसि (तेजस्विन्) ज ३१७७,१०६ तेउलेस (तेजोलेश्य) प १३।१५; १७६५,६६, तेयग (तेजस) प २११७६;३६।३२ १०२,१६८ तेयगसमुग्घाय (तैजससमुद्घात) प ३६।८,१२,२६, तेउलेसट्ठाण (तेजोलेश्यास्थान) प १७।१४६ ३२,३५,३७,४१,५३,५५,५७,५८,७३ तेउलेसा (तेजोलेश्या) प १७१५५,१२१,१४६ तेयगसरीर (तैजसशरीर) प २११७५ से ८१,८३, तेउलेस्स (तेजोलेश्य) प ३।६६; १३।१६,२०; ६०,६४,१००,१०३,१०४ १७।३३,५६,५६,६०,६२,६४,६६ से ६८,७१ तेयगसरीरय (तैजसशरीरक) प १२।१० से ७६,७८ से ८४,८७,८६,६५,१०१,१०२, तेयय (तैजस) प १२।१ से ५:२१११,३६।१।१ १६७,१८७२, २८।१२३ तेयलि (दे०) प ११४३।१।। तेउलेस्प्लट्ठाण (तेजोलेश्यास्थान) प १७१४६ तेयलेस्स (तेजोलेश्य) ज ११५ तेउलेस्सा (तेजोलेश्या) प १६:४६; १७।३४ से तेयस्सि (तेजस्थिन् ) ज २६८,१३८ ३६,३६,५०,५३,५४,६३,६६,११७,११८, तेया (जस) प १२।१४,१८,२१,२५,२६,२६,३५, १२१,१२२,१२६,१२६,१३३,१३७,१४४, २११६६,१०२,१०४,१०५,२३१६२;३६॥६२ Page #1017 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० १०८८२ तेया (तेजा ) ज ७।१२० २ तेयाल ( त्रिचत्वारिंशत् ) ज ११२३ तेयालीस ( त्रिचत्वारिंशत् ) सू १०।१५६ तेयासमुग्धाय (जससमुद्घात ) प ३६।१, ५, ७,४० तेयासरीर (तैजसशरीर ) प २१।८४ से ३ तेयाहिय ( त्र्याहिक) ज २१४३ तेरस (पोदशन् ) प ३६।८१ ज १७ सू १११४ तेरसक (त्रयोदशक ) सू १३।१२,१३,१७ तेरसम ( त्रयोदश ) प १० | १४ | ३ सू १० ७७; १३।१० तेरसविह ( त्रयोदशविध ) प १६।७ तेरसी (त्रयोदशी ) ज २२८८७ १२५ तेरिच्छिय (तैरश्चिक ) प २०१६१ ज ३।६२,११६ तेलापूर (तैलापूप ) प ३६।८१ ज १७ सू ११४ लोक्क (त्रैलोक्य) प १।१।१;३।१२५ से १७३, १७५, १७७ तेल्ल (तैल) प १।१०१।७;१५।१।२;१५।५० ज ३।११।३, ५।१४ उ ३।१३० तेल्लकेला (तलकेला ) उ३।१२८ तेल्लसमुग्ग (तैलसमुद्ग ) ज ५।५५ तेल्लसमुग्गहत्यगय ( हस्तगततैलसमुद्ग ) ज ३।११ तेल्लोक (त्रैलोक्य) उ५१५ तेवट्ठ (त्रिषष्टि) ज ७ २० २।३ तेवट्ठि (त्रिषष्टि) ज २६४ तेवण्ण (त्रिपञ्चाशत् ) प ४।१३४ ज ४।६२ सू ११।३ तेवतरि ( त्रिसप्तति) ज २ |४ तेवीस ( त्रिविंशति) प २४६ ज २।१२५ सू २/३ तेवीस (त्रिविशतितम) प १० | १४ | ३ तेवीसइम (त्रिविंशतितम) प १०।१४ २ तेवीसतिम (त्रिविंशतितम) सू १२।१६ तेसट्ठि (त्रिषष्टि) ज ७।३३ तेसीइ ( त्र्यशीति) ज २०६४ तेसील ( त्र्यशीति) सू १।२३ तेसीति ( त्र्यशीति) सू १।२३ तेसीय ( त्र्यशीति) सू १।१४ तेया-थणिय कुमार तेहिय ( त्र्याहिक) ज २६ तो ( ततस् ) प २।२७/३ तोट्ठ (दे० ) प १५१ तोण (तूण ) प ३।३१,३५,१७८ ज ३।३१,३५ १७८१।१३८ तोमर (तोमर) ज ३।३५,१७८ तोयधारा ( तोयधारा ) ज ५।१।१,६३,६४ तोरण ( तोरण ) प २१,३०,३१,४१ ज १।३७; २।१५,२०,३७,१७८,१६५४५, २३, २७ से ३०,३५,३७,३८, ४०, ४२,६५,६७,७१,७३, ७५,७७, ६० से ६२,६४, ११८, १२८, १४४, १७४,१८३,१८६,१६५,२२१,२४६५।३१ त्ति (इति) प ११ चं १।४ तिथभग ( स्तिभक ) प १।४८ । १ त्थिमिय ( स्तिमित) ज ११२,२६,३१,३,१८,३१, १८० चं ६ सू ११ उ १।१,६, २८, ३।१५७; ५।२४ त्थिहु ( स्तिभु ) प १।४८ ।१ थ भणया ( स्तम्भन ) प १६।५३ थं भय ( स्तम्भित ) प २३०, ३१, ४१, ४६ ज ३६, २२२५२१,२८ थक्कार (दे० ) थक्कारेति ज ५।५७ यण (स्तन) ज २।१५;३।१३८ उ ३।६८,१३०, ४६ थणगंतर ( स्तन कान्तर) उ४।२१ थणपाय ( स्तनपाय ) उ३।१३० थणमूल (स्तनमूल) उ ३६८ थणित ( स्तनित) सू २०११ थणिय ( स्तवित ) प २२३०१,२१४०१२, ८, १० ज ५।२२ णिकुमार ( स्तनितकुमार ) प १।१३१, ४ ५५; ५१३,८,५१,६।१८, ५२,६१,८१,८५,१०२,१०६, ११४; ७१३ ; ८३६।३, १५, ११।४४; १२२, १६,१३ । १५; १५ १६,७१,७८,८४,१३६; Page #1018 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थणियकुमारत्त-दंडपति ९४१ १६।३,११,१७।१७,६३,१०१,१६।१,२०१८, थूभ (स्तूप) प १११२५ ज २।१५,२०,३१; १२,२१,२३,२४,२७,३५,२११५५,६१,७०,६०, ४।१२५,१२६ २२।२३,३०,३६७३,६८,२४।५,२८।२७,६८, थभियग्ग (स्तुपिकाग्र) प२०६४ ११६,२६७,१६,३०७,१७,३११२,३३।११, थूभिया (स्तूपिका) प १११६,३७,४।१०,४६ २०,२७,३१,३५:३४।२,३५।१८,३६१५,२४, थभियाग (स्तुपिका) प २१४८ ज ११३८,४।१०, ३७,७२ ११५,२१७,२२६ थणियकूमारत (स्तनितकुमारत्व) प १५९५,१०१६ थेज्ज (स्थैर्य) उ ३।१२८ ३६।२२,२५ थेर (स्थविर) प १६।५१ सू २०१६।४ उ २।१०, थद्ध (स्तब्ध) ज ३।१०६ सू २०६२ १२३।१४,१५६,१६१,१६७;५॥३६ ४१,४३ थल (स्थल) प ११७५ ज २११३१,१३४;३1३२,६८ थेरग (स्थविरक) ज २११३३ उ ३१५५ थोव (स्तोक) प ३१ से १७,२४ से १२०,१२२ थलय (स्थलज) प ११४८।४० से १८१,१८३६।१२३;७।२,३,८।५,७,६,११; थलय (स्थलक) ज ५७ ६।१२,१६.२५,१०।३ से ५,२६,२७,१११७६, थलयर (स्थलचर) प ११५४,६१,६२,६६ से ६८ ६०१५।१३,१६,२६,२८,३१,३३,३४,६४; ७६३।१८३;४।१२२ से १४८,६७१,७८%; १७।५६ से ५६,६१.६४,६६ से ६८,७१ से २११८,११ से १६,३५,४४,५३,६० ७४,७६,७८ से ८३,१४४ से १४६;२०१६४; थवईरयण (स्थपतिरत्न) ज ३॥३२॥१ २१११०४,१०५,२२।१०१,२८।४१,४४,७०; थाल (स्थाल) प ११।२५ ज २।१५; ३।११,५१५५ ३४।२५,३६।३५ से ४१,४८ से ५१,८२ थालइ (स्थालकिन्) उ ३।५० ज२।४।२,६६ सू ८।१२०१५ थारुकिणिया (थारुकिनिका) ज ३।११।१ थोवतराग (स्तोकतरक) प ३५।२ थालीपाक (स्थालीपाक) सु २०१७ थोवूण (स्तोकोन) ज २०१५ थालीपाग (स्थालीपाक) ज २।३० थावरणाम (स्थावरनामन्) प २३।३८,११७ थासग (स्थासक) ज ३।१०६,१७८,७१७८ दओदर (दकोदर) ज २।४३ थिग्गल (दे०) प १५।१।२। दंड (दण्ड) प २।३०,३१,४१,३६।८५ ज २१६, थिबुग (स्तिबुक) प १५।२६; २११२४ ६० से ६२,३।३,१२,८८,११७,१७८,१६२; थिर (स्थिर) ज ७।१२४,१२५,१७८ ४।२६५।५,७,५८,७।१७८ उ ११३१ थिरणाम (स्थिरजामन्) प २३।३८,१२२ दंडग (दण्डक) प ६।१२३;१११८३,८५,१४।६,८, थिरीकरण (स्थिरीकरण) प १।१०१।१४ १०,१८,२०१५,२२।२०,२५,२८,४५,५६,५८ थिल्ली (दे०) ज २१३३ ७६;२३१८,१२,२८।१४५;३६।८,१२,२०,२६ थी (स्त्री) प १८४ से ३१,३३,३४,४४,४५ थीणद्धि (स्त्यानद्धि) प २३।१४,२७ दंडणायग (दण्डनायक) ज ३१६,७७,२२२ थीविलोयण (त्रीविलोचन) ज ७।१२३ से १२५ दंडणीइ (दण्डनीति) ज २१६० से ६२,३।१६७।६ थुरय (दे०) प १।४२।२ दंडदारु (दण्डदारु) उ ३१५१११ थूणा (स्थूणा) प १५।१।२,१५१५२ दंडपति (दण्डपति) ज ३।१०६ Page #1019 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ दंडय-ददुर दंडय (दण्डक) प १११८०,८२ से ८४;१४॥३४; सणावरणिज्ज (दर्शनावरणीय) प २३।१,३,८, १५।१०२,१४०;१७।८६,२२।३३,३५,४१,५४ १२ दंडरयण (दण्डरत्न) ज ३८८,८६,१५५,१५६, दक्ख (दक्ष) ज २५,५२ १७८,२२० दक्षिण (दक्षिण) ज ११४६,४।५२,५५,८१,८६, दंडरयणत्त (दण्डरत्नत्व) प २०६० १८,१०८,१४३,१५१११,१५६,१६४,१६५, दंडि (दण्डिन्) ज ३।१७८ ।। १८५,१६३,१६७,१६६,२००,२०४,२०६ दंडिया (दण्डिका) ज ३।३५ से २०८,२१३,२२७,२३०,२३७,२३८,२४६, दंत (दस्त) प २।३१ ज २१४३,१३३,१३४; २६२,२६५,२६८,२७१,२७७,५१४८,६।२३; ३।१०६,१७८,७।१७८ ७।१२६ दंतंतर (दन्तान्तर) उ १९७ दक्षिण कूल (दक्षिणकूल) उ ३५० दंतग्ग (दन्ताग्र) ज ७।१७८ दक्खिणा (दक्षिणा) उ ३।४८,५० दंतमाल (दन्तमाल) ज २१८ दक्खिणिल्ल (दाक्षिणात्य) ज १।२६ ; ३।१६३; दंतमूसल (दन्त मूसल) उ १६७ ४।३५,६५,७१,६०,११०,१४१,२०२,२१२, दंतार (दन्तकार) प १९७ २२८,२२६,२३८,५१४६७।१७८ दंति (दन्तिन) प ११४८।४ ज ३।२२१ उ १११४, दग (दक) प १७.१२८ ज ३।१२,५७; १५,२१,२२,२५,२६,१२१,१२५,१२६,१३२, ७।११२।४ मू१०।१२६।४,२०१८,२०१८।३ १३३,१३६,१३७,१४०,१४७ दगकलसग (दककलशक) ज ५७ दंतुक्खलिय (दन्त 'उक्खलिय') उ ३५० दगकुंभग (दककुम्भक) ज ५७ दंस (दंश) उ ३।१२८ दगथालग (दकस्थालक) ज ५७ दंसण (दर्शन) प १११०१।१०; २१६४।१२, दगपणवण्ण (दकपंचवर्ण) २०१८,२०१८।३ ३।१।१५।२१,२४,२८,३०,३२,३४,३७,४१, दगपिप्पली (दक पिप्पली) प ११४४।२ ४६,८०,८३,८४,८६,८७,८६,६४,९६,१०१, दगरय (दकरजस्) प २।३१,६४,१७।१२८ १०२,१०४,१०५,१०७,१११,११२,११५, ज २।१५ ११७; १३।१६।१८।१।१,२०।६१; २३।२६, दगवण्ण (दकवर्ण) सू २०१८ २८,६२,१३४,१७८, ३०।२६,२८ ज २०७१, दगवारग (दकवारक) ज ५७ ८५;३।१७८,२२३; ५।४३ उ ३।४४,५।१३, दठव्व (द्रष्टव्य) प १५॥२६ दड्ढ (दग्ध) प ३६।६४ दसण (उपउत्त) (दर्शनोपयुक्त) प ३६।६३,६४ दढ (दृढ) ज ३।२४,५१५७।१७८ दसणधर (दर्शनधर) ज ५१२१ दढपइण्ण (दृढप्रतिज्ञ) उ १११४१२।१३ दसणपरिणाम (दर्शनपरिणाम) प १३।२,१४,१६, दढरह (दृढरथ) उ ५।२।१ १८,१६ दत्त (दत्त) उ ३।२।१,३।१७१ दंणमोहणिज्ज (दर्शनमोहनीय) प २३॥३,३२,३३ दद्दर (दे०) प २।३०,३१,४१ ज ३७,२४,१८४, दसणवत्तिय (दर्शनप्रत्यय) ज ५१२७ २२१,५१५५ दसणारिय (दर्शनार्य) प ११६२,१०० से ११० ददु (दद्रु) ज २११३३ दसणावरण (दर्शनावरण) प २४१६ ददुर (दर्दुर) सू २००२ प २।४६ सु २००२ Page #1020 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दधि-दव्वीकर १४३ दधि (दधि) ज ४।१२५:५।६२ सू १०।१२० दलिय (दलिक) ज ३।३५ दप्पण (दर्पण) ज ३।१२,१७८,४।२८,५१५८ दव (द्रय) प २१४१ दप्पणिज्ज (दर्पणी) प १७:१३४ ज २०१८ दवकारग (द्रवकारक) ज ३।१७८ दप्पिय (दपित) ज ३।२४,७।१७८ दव्व (द्रव्य) प १।१०१।९।३।१२४,१७७,१७८; दब्भ (दर्भ) ज ७११३१३ उ३५१५६ १०५।११।४७,५३,५५,५७,५६,७० से ७३,७६ दब्भपुप्फ (दर्भपुष्प) प ११७० से ८५,१५।५७,१६।५०,२१११११,२११२२; दब्भसंथार (दर्भ गस्तार) ज ३।२०३३,५४,६३, २२।१३,१५,१७,१६,८०,८२,२८।५; ७१,८४,१३७,१६७,१८२ उ ।४३ ३५३१११ उ ११४० दब्भसंथारग (दर्भांस्तारका) ज ३।२०,३३,५४, दवओ (द्रव्यतस् ) प १११४८,४९१२१७,१०; ६३,७१,८४,१३७.१४३,१६६ २८.५,५१, ३५१४,५ ज २१६६ दभियायण (दायायन) १०।११२ दव्वजाय (द्रव्यजात) ज २१६६ दमणग (दमनक) प ११४४।३ ज ५१५८ दोनावृक्ष, दव्वट्ठ (द्रव्यार्थ) प ३।११६ से १२०,१२२, द्रोणलता १७६ से १८२; १०।३ से ५,२६ से २६; दमणगपुड (दम कपुट) ज ४।१०७ १७।१४४ से १४६;२१।१०४ दमणय (दम क) जे ३.१२.८८ दव्वट्ठता (द्रव्यार्थ) प ३।११६ से ११८ दमिल (द्रमिला, अविड) प ११८६ दव्वया (द्रव्यार्थ) प ३।११४,११६,१२०,१२२, दमिली (द्रविडा द्रमिला) ज ३।१११२ १७६ से १८२,५१५,७,१२,१४,१६,१८,२०, दरि (दरि) ज २१३८,३१८८,१०६ २४,२८,३०,३२,३४,३७,४१,४५,४६,५३, दरिवहुल (दरिबहुल) ज ११८ ५६,५६,६३,६८,७१,७४,७८,८३,८६,८६, दरिय (दप्त) ज २।१२:३।३४ ६३,६७,१०१,१०४,१०७,१११,११५,११६, दरिसणावरणिज्ज (दर्शनारणी) प २२।२८; १२६,१३१,१३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५, २३।१४,२६,२६१७;२७१४ १४७,१५०,१५४,१६३,१६६,१६६,१७२, दरिसणिज्ज (दर्शनी) प २।३०,३१,४१,४८, १७४,१७७,१८१,१८४,१८७,१६०,१६३, ४६,५६६३.६४ ज १८,२३,३१४२;२।१२, १६७,२००,२०३,२०७,२११,२१४,२१८, १४,१५,३।१७८,४।३ ६,१३,२५,२७,२६, २२१,२२४,२२८,२३०,२३२,२३४,२३७, ३३,४६,११६,५१२८ ४३,६२ सू १११ उ ५।४ २३६,२४२; १०।३ से ५,२६ से २६, से६ १७.१४४ से १४६,२१।१०४ ज ७।२०६ दरी (दरी) उ ३१५५ उ ३।४४ दल (दल) ज २।१५ ३.१०६ १११ दलइत्ता (दत्वा) ज३६ दव्वहलिया (द्रव्यहलिका) प ११४७ दिलय (दा) दलइरसंति उ ३।१२८ दलाइ दविदिय (द्रव्येन्द्रिय) प १५१५८।२,१५।७६ से ज ३।६,४१६१,५।४६ ज १।१०६;३।११४ ८४,८६,६१,६४ से ६७,१००,१०४ से १०६, दलयंति ज ५१५७ ६मति ज३८८ दलयह १०८,१०६,११४,११५,११७ से १२०,१२३, उ१११०३ दल मि उ १।१०३,३।११२ १३१,१३२,१४०,१४२,१४३ दलयामो उ ४१ दवी (दार्वी) प ११४४।२ दारुहरिद्रा दलयित्ता (दत्वा) ज ३।८८ दव्वीकर (दर्वीकर) प ११६६,७० Page #1021 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ दवें दिय-दार दव्वंदिय (द्रव्येन्द्रिय) प १५११०३,१२६,१२६, १४३ दस (दशन्) प २६६ ज ११२३ सू १।२४ उ १११७ दस (दशम) प १०।१४।३ दसगुण (दशगुण) प ५१५१,२८७,५३ दसण (दशन) ज २।१५,३।३५,१३८,५।२१ दसणह (दशनख) ज ३१२६,३६,४७,५६,६४,७२, ७७ १३३,१८८,५।२१ दसण्ण (दशार्ण) प ११९३४ दसवण्ण (दशार्धवर्ण) ज २।१०,३।१२,८८; ४।१६६,५७,५८ दसधणु (दशधनुष् ) उ ५।२।१ दसपएसिय (दशप्रदेशिक) प ५।१३०,१६१,१७६, १६५,२१६ दसपदेसिय (दशप्रदेशिक) प ५।१२७,१७९ दसम (दशम) प १०।१४।२।११।३३।१,१११३४।१ ज ७/६७,१०२,११४।२ च २४ सू ११६; १०७७.१२४१२,१२।२६१३१८ उ १७; २।१०,२२,३।१४,८३,१५०,१६१,४।२४; ५।२८,३६,४३ दसमी (दशमी) ज ७।११८,१२५ सू १०६० दसरह (दशरथ) उ ५।२।१ दसविध (दशविध) सू १२।२६ दसविह (दशविध) प ११३,१०१,१३१,५।१२४; १११३३,३४,३६,१३।२,२१,२३।१३ दससमयट्ठिईय (दडसमयस्थितिक) प ५।१४८ दसहा (दशधा) प २।३०।१ दसार (दसार) उ ५१५,१०,१७,१६ दसारवंस (दसारवंश) ज २११२४,१५२ दह (द्रह) प २१४,१३,१६ से १६,२८,१११७७; १॥५५॥२ ज २।३१,३।१३३,४।३,६४,८८, १४०१२,१४१,१४२,२०७,२६८,२७४।५।५५; ६।६।१ दिह (दह,) दहइ ज ३।१२ दहफुल्लइ (दे०) प १४०॥५ दहबहुल (द्रहबहुल) ज ११८ दहावई (द्रहावती) ज ४।१८८,,१८६ दहावईकूड (द्रहावतीकूट) ज ४।१८८ दहावती (दहावती) ज ४।१८७,१६० दहि (दधि) प ११०२५१७।१२८ ज २११५ ७।१७८ दहित्ता (दग्ध्वा ) ज ३।१२ दहियण (दधिधन) ज २।३१:१७।१२८ दहिमुह (दधिमुख) ज २।११६ दहिमुहपव्वय (दधिमुखपर्वत) ज २।११८,११६ दहिवण्ण (दधिपर्ण) प ११३६।३ केदा (दा) दिति सू १०।१२६ देइ ज ७।११२।४ सू १०।१२६ उ ११११० देंति ज ७.११२।३; उ ३।६८ दाइज्जमाण (दर्शयमान) ज ३।१८६,२०४ दाइय (दायिक) ज २१६४ दाऊण (दत्वा) ज ५१५८ दाडिम (दाडिम) प ११३६।१ ज २।१५ दाढा (दंष्ट्रा) ज ७।१७८ दाण (दान) ज ३।११७१ दाणंतराइय (दानान्तरायिक) ब २३.५६ दाणंतराय (दानान्तराय) प २३।२३ दाणकम्म (दानकर्मन्) ज ३।३२ दाणव (दानव) ज ३।११५,१२४,१२५ दाम (दामन्) प २।४८ ज ३।१६७,४।४६,१२६; ५३८ दामणिसंठिय (दामनीसंस्थित) सू १०।४६ दामणी (दामनी) ज ७।१३३१३ सू १०।४६ दामिणी (दामिनी) ज २।१५ दामिली (द्राविडी) प ११६८ दाय (दाय) ज २।६४ उ २०६५।१३,२५,५२ दायव्व (दातव्य) सू २०६५ दार (द्वार) प २१ ज १।१५ से १७,३८; ३।१०६,१६३,४।१०,६४,११५.१२१,१२२, १४७.२१७,२६२ चं ५।४ मू १।९।४।१०।१३१ Page #1022 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दार-दाहिणिल्ल ६४५ दार (दार) उ ३।४८,५० २०१२ उ ३५१,५३,६२ दारग (दारक) उ ११५३ से ५५,५७ से ५६,६१ दाहिणअवर (दक्षिणापर) ज ३१८१ से ६३,७८,८६,८२,२।६३६२,६८,१०१, दाहिण उत्तराय।। (दक्षिणोत्तरायता) ज ४।१४१ १०६,१३०,१३१ दाहिणओ (दक्षिणतस् ) प २।४०।३ दारगरूव (दार रूप) उ ३।१२६१३४ दाहिणड्ढ (दक्षिणार्ध) प २।५० सू २।१८।१ दारय (दारक) ज ५१५७ उ ११५१.५४,५६,६० दाहिण डढच्छ (दक्षिणार्धकच्छ) ज ४।१६८ से से ६२,७६७६२।६१०,३।११४,१२३,१२४ दारियत्त (दारिकात्व) उ ३।१२५ दाहिणड्ढभरह (दक्षिणार्धभरत) ज ११६,२१ से दारिया (दारिका) उ ३१६२,६८,१०१.१०६.११४, २३,४५ से ४७,३।१,२०८,४।३५ उ ५।१० १२३,१२६.१२८,१३०,४।५,६,११ से १६,१८, दाहिणड्ढभरहकड (दक्षिणा भरतकूट) ज ११३४, १६,२० ४१,४५,४६ दारु (दारु) ज ३।३२ दाहिण दारिया (दक्षिणद्वारिका) सु १०।१३१ दारुग (दारुक) ज ३१७८ दाहिण द्वभरह (दक्षिणार्द्धभरत) ज १२० दालयित्ता (दारयित्वा) ज ४।३५ दाहिण पच्दशिम (दक्षिणपाश्चात्य) प ३।१७६, दालित्ताणं (दलयित्वा) प ११७४ १७८ ज ३।३०,३१,१७२,१७३;४।१६,१६३, दालिम (दाडिम) प १६।५५; १७।१३२ २०८,२०६,२२३,२२६.२३०:५।३६,४६ सू २०१२ दास (दास) ज २।२६।३।१०३ उ ११५४,५५,७६, दाहिण पच्चस्थिमिल्ल (दक्षिणपाश्चात्य) ज ४१२३८ दासी (दासी) प ११३७।५ काकजंघा, नीलाम्ला, दाहिण पडीण (दक्षिणापाचीन) सु १।१६ नीलझिटी दाहिणपुरथिम (दक्षिणपौरस्त्य) प ३।१७६,१७८ दासी (दासी) ज ३।१०३ ज ४।१६,१०६,२०३,२२२,२२७,२२८,५।३६, दाह (दाह) ज २०४३ दाहिण (दक्षिण) प २११०,३२,३३,३५,४३,५० ४६ सू २।१,२०१२ दाहिण पुरथिमिल्ल (दक्षिणपौरस्त्य) ज ४।२३८%3B से ५२,५४,५६,५८ से ६०३।१ से ३७,१७६, १७८ ज १।१८,२०,२३,२५,२८,३२,४६,४८, ५।४४,४६ सू १११६२।१।१२।३० ५१,२१६५,११३;३।१६,१२,३६.१३६,१३७, दाहिणभुयंत (दक्षिणभुज न्त) सू २०१२ १४६,१५०,१८६,२०४।४।१,३,१६,२३,२६, ६हिणवाय (दक्षिणवात) प ११२६ ३७,५५,६२,६५,८१,८४,८६,८८,६०,९८, दाहिणवेयालि (दक्षिण वेयाली') प १६।४५ १०३,१०३,१०८.१२६,१६२,१६७ से १६६ दाहिपिल्ल (दाक्षिणात्य) प २।३२,३३,३५,३६, १७२ मे १७४१७७,१७८ १८०.१८१,१८३, ३८,४३,४४,४७,३।१८ से २३;१६।३४ १८७,१८६ से १६१,१६४,१६६.२०१ से ज १।२६,५१,२।११६;३३१४ ज ११२६,५१; २०३,२०५,२१०,२१४,२२०२३८,२६२, २।११६,३३१४,१५,१८,३६,५१,५२,६१,८३, २६८,२७१,२७४५६,२१,३६.५३,५८; ८५,८८ से १०,६२,६३,१२६,१६२,२०६,२१६; ७।१०१,१०२,१२६ १७८ , १।१५ से १७, ४।१७४ से १७६,१८२,१८३,१८८,१६५, १६:२।१८।१,१०।७५,१३।७,८;१८।१४; २०१,२०२,२१२,२४८,२५१:५।१४,४२,४५, Page #1023 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ दिगिदलय-दिसाणुवाय ५२ सू १०।१४२,१४७ २१,२२,२४,२७,२।३३१२,४८,६६।१; दिगिदलय (दे०) उ ३।११४ ८।१६।२,३,१०।५,६३ से ७४,८६।३,१२६।५ दिट्ठ (दृष्ट) प १।१०१३,८ ज ३।१२६ १६।२२।१८ उ ११६३,३७६४,६८,७१,७४, दिळंत (दृष्टान्त) प १७।१४८; उ ३.८,२६,६३ ७६,१२६५।१३,४५ दिळंतिय (दार्टान्तिक) ज ५।५७ दिवसखेत्त (दिवसक्षेत्र) ज ७।२७,३० ट्ठिाभट्ठ (दृष्टाभाषित) उ ३।५५ दिवसतिहि (दिवसतिथि) सू१०८६,६० दिठि (दष्टि) प २८।१०६।१ ज ३।१०५,५६७ दिवा (दिवा) ज ७।१२५ दिठिवाय (दृष्टिवाद) प ११११३,१११०११८ दिव (दिव्य) प २१३०,३१,४१,४६ ज ११३१, दिट्ठीविस (दृष्टिविष) प १७० ४५,२।६७,६०,१००,३।४,५,१२,१४,१५,१८, दिणकर (दिन कर) सू १६।११।२,१६।२११३, २६,३०,३१,३६,४३,४४,४७,५१,५२,५६, १६।२२।१२,१३ ६०,६१,६४,६८,६९,७२,७६,८८,६२,६५, दिणयर (दिन कर) ज ३११८८ सू १६।२२।३० १०६,११३,११६,११७,११६,१२२,१२३,१२६, उ ३।४८,५०,५५,६३,६७,७०,७३,१०६,११२ १३०,१३१,१३३,१३६ से १३८,१४०,१४१, दिण्ण (दत्त) प २।३०,३१ ज ३७,१८४,५।२६ १४५,१४६,१५०,१५६,१७२,१७३,१७८, उ ११६६,१०३,१०६,११०,११३,११४; १८०,२०६,२११,५।१,३,५,७,१६,२२,२६, ३१४८,५० २८,३०,४१,४३ से ४५,४७,५५,५७,५८, दित्त (दीप्त) प २१४६ ज ३६,१८,६३,१०३, ६७;७।५५,५८,१८४,१८५ सू १८।२२,२३; १८०,२२२७।१७८ सू १६।११।२,२१।३, १६।२६ उ ३।१७,८५,९४,१२२,१२३,१६३; १६।२२।३० ४।२५ दित्त (दृप्त) ज ३।१०३ दिव्वा (दिव्याक) प ११७१ दित्ततव (दीप्ततपस्) ज ११५ दिसा (दिशा) प २।३०,३१,२।४०।२,८,१०, दित्तसिरय (दीप्तशिरस्क) ज ३।६,१८ २१४१,४६ ज ११३८, २१३१,३।१४,१५, दिन्न (दत्त) प २।४१ २२,३०,३१,४३,४४,५१,५२,६०,६१,६८,६६, दिप्पंत (दीप्यमान) ज ३१६,१७,२१,३४,१७७, १०० से १११,१२५,१३०,१३१,१३६,१३७, २२२ १४०,१४१,१४६,१५०,१७२,१७३,१६५, दिप्पमाण (दीप्यमान) ज ३।१८,६३,१८० २११,४।१०,१२१,१५३,१६३,२१२,२१७, दिली (दे०) प ११५८ २३८,५१५२,७४;७।१७८ सू ११४,५१ दिवडढ (द्वयर्ध,द्वयपार्ध) २३।७३,८३,१३५, उ ११२२,१४०,३१५१,५३,५५,६३,६७,७०, १५२,१७२,३३।७,८ ज ६।८।१ सू ३।२६।३; १८१ दिसाकुमार (दिशाकुमार) प १।१३१; ५।३; दिवडढखेत (द्वयपार्धक्षेत्र) सू १०॥४,५ ६।१८ दिवस (दिवस) प २८।२७,७३ से ७६ ज २१६४; दिसाकुमारी (दिशाकुमारी) ज ५१ से ३,५ से ३१७६,६५,९६,११६,१२०,१३६,१६०,२०६; १०,१२ से १७ ७२६ से ३०,११२१५,११७,११८,१२६,१५६ दिसाचक्कवाल (दिशाचक्रवाल) ३५० से १६७ च ५।३ सू १।६।३,१।१३,१४,१६, दिसाणवाय (दिशानुपात) प ३।१ से १७,२४ से ७३ Page #1024 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिसादि-दुक्ख ९४७ ३७,१७६,१७८ १०२,१७५,१८२,१६८ से २०८,२१० से २१३ दिसादि (दिशादि) ज ४२६०१२ मेरुपर्वत सू १।१४,१६,१७,१६ से २२,२४,२७, २१, दिशापोक्खि (दिशाप्रोक्षिन) उ ३.५० ३,३।१,२,४।३,४,७,१०,६।१८।१;१०।१३२, दिसापोक्खिय (दिशाप्रोक्षिक) उ ३।५०,५५ १४२,१४७,१२।३०;१८७,२०,१६१,२,६, दिसापोक्खिय (तावस) (दिशाप्रोक्षिकतापस) ७.८।३,६,१२ से १४,१५।३,१६।१६,१६।२२, उ ३१५० २४,१६।२८,३१ से ३४ उ ११३७,६१, दिसाहत्थिकूड (दिशाहस्तिकूट) ज ४।२२५ से २३३ १२५,१५७; ५।२४,४३ दिसि (दिश) प २।२७,२।३०।१२।६३,३।१।१ दीवकुमार (द्वीपकुमार) प १११३१,५॥३,६।१८ ११॥६६,६६।१२१।६५,६६,२८।१६,३१,६५; दीवग (द्वीपिक) सू १०।१२० ३६।५६,६६,६८,७०,७२ से ७४ ज ४१२०४ दीवणिज की दीवणिज्ज (दीपनीय) प १७।१३४ ज २०१८ २१०,२१६,२२०:५।३०;७।४८,५०,५२,५३ दीविग (द्वीपिक) ज २।३६ उ १।२४;३।५१,५३, ६२,८१,१४३,१५६ दीविय (द्वीपिक) प ११६६,११।२१ ज ३।१३६; दिसौभाग (दिग्भाग) ज ३।२०८,५१५,४४,४५ उ३।११३,४।२० दीवियग्गाह (दीपिकग्राह) ज ३।१७८ दिसीभाय (दिग्भाग) ज १।३,३११६२,२०४, दीदिया (दीपिका) प १११२३ २०८;४।१२०,१३६,५१५,७ चं ७ सू ११२ दीवियाहत्यगय (हस्तगतदीपिका) ज ५।१२ उ ५१५ -दीस (दश) दीसंति प ११४८।५७ ज ७।३६,३८ दीण (दीन) उ १।१५,३५, ३।६८ दोह (दीर्घ) प २१६४।४; १३।२३ ज २११५,६६; दीणस्सर (दीन स्वर) ज २११३३ ३।१०६,१६७।११ दीणस्सरता (दीनस्वरता) प २३।२० दीहतर (दीर्धतर) ज ४१८० दीहवेयड्ढ (दीर्घवता ढ्य) ज ६।१० दीव (द्वीप) प १७४,७५,८०,८१,८४,२।१,४,७, १३,१६ से १६,२८,२६,३०।१,२।३२,३३,३५, दाहिया (दाधिका) प २१४,१३,१६ स १६,२ ३६,४०।२,६,११,२।४३,५०,५१,१५।११२, १५।५४,५५१६।३०,३३।१० से १२,१५ से दु (द्वि) प १११३ सू १।१४ १७,३६।८१ ज १७,१५ से १८,२०,२३, दुइय (द्वितीय) प ३।२२ ३४,३५,४६.४८,५१,२।१,७,५२,५६,९०,११६, दुंदुभय (दुन्दुभक) ज ७।१८६।२ सू २०१८ १६१,१६४।३।२६,३६,४७,५६,११३,१३३, बुदुहय (दुन्दुभक) सू २०१२ १३८,४।१,३१,३२,३४,४१,५२,५५,६२,६८, दुहि (दुन्दुभि) ज ३।१२,७८,१८०,२०६;५३५, ६६,७६,८१,८६,६०,६३,६८,११४,१५६, २२२६,४६,४७,५६,६७ उ १११२१,१२२, १६०,१६५,१६७,१६६,१७२ से १७४,१७८, १२५,१२६,१३३,१३४,१३८,३।१११; ४।१८; १८१,१८२,२०१ से २०३,२२६,२१३,२६२, ५।१६ २६५,२६८,२७१,२७४,२७७,५॥३,२१,२२, दुक्कालबहुल (दुष्कालबहुल) ज ११८ २६.४४,५२,७४।६।१ से ५७ से २६,७१, दुक्ख (दुःख) प २१६४।२२,६।११०,२०११८; ३,४,८ से १४,३१,३३,३६ से ३६.५२,५४, ३५११११,२,३५।१०,११,३६१८८,६२,६४।१ ६२,६३,६७ से ७२,८६,८७,६१,६२,१०१, ज १२२,२७,५०, २१५८,७१,८८,८६,१२३, Page #1025 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ दुक्खत्त-दुरूव दुपदेसिय (द्विप्रदेशिक) प ५११२७,१३०,१३१; १६३६ दुप्पउत्तकाइया (दुष्प्रयुक्तकायिकी) प २२।२ दुप्पव्वइय (दुष्प्रवजित) उ ३।५८,६०,७६ से ७६ दुप्पवेस (दुष्प्रवेश) ज ११२४ दुफास (दुःस्पर्श) ज २११३३ दुबत्तीस (द्वि द्वात्रिंशत्) सू १०११३८ से १४१, १४८,१५२,१२।२२ दुब्बल (दुर्बल) ज २११३३ दुभि (दुर ) प १३।२७,३१:२३।१०७ दुभिक्खबहुल (दुर्भिक्षबहुल) ज १।१८ दुब्भिगंध (दुर्गन्ध) प ११४ से ६; २०२० से २७; ५१५,७,२०५; ११॥५६१७।१३६; २८।२०, ३२,६६ ज ५१५ १२८,१५१,१५७, ३१७७,६२,१०६,११६, १२१११,१२५,४।१०१,१७१ सू १६।२२।१३ उ श६३,१४१,३।८६,५।४३ दुक्खत्त (दुःखत्व) प २८।२४ दुक्खभागि (दुःखभागिन्) ज २।१३३ दुक्खुत्तो (द्विस्) सू १११२ दुखुर (द्विखुर) प ११६२,६४ दुग (द्विक) ज ७।१३१।२ दुगुंछा (जुगुप्सा) प २३।३६,७७,१४५ दुगुण (द्विगुण) सू १६।२२।२३ दुगुणिय (द्विगुणित) ज २।२५ दुगूल (दुकूल) सू २०१७ दुग्ग (दुर्ग) उ ३।५५ दुग्गइगामि (दुर्गतिगामिन् ) प १७।१३८ दुग्गंध (दुर्गन्ध) ज २।१३३ उ ३३१३०,१३१,१३४ दुग्गम (दुर्गम) ज ३७७,१०६ दुग्गबहुल (दुर्गबहुल) ज १११८ दुग्गुल (दुकूल) ज ४.१३ दुघण (द्रुघण) ज ५१५ दुजडि (द्विजटिन् ) सू २०१८ दुज्जम्मय (दुर्जन्मक) उ ३।१३१,१३४ दुज्जाय (दुर्जात) उ ३।१३१,१३४ दुट्ठाणवडित (द्विस्थानपतित) प ५।१३४,१४३, १४८,१५१,१६३,१६४,१८१,१६७,२१८ दुठ्ठ (दुष्टु) उ १८८,६२ दुतीस (द्वात्रिंशत्) ज ४।६४ दुईत (दुर्दान्त) उ ५।१० दुईसणिज्ज (दुर्दर्शनीय) ज २११३३ दुद्ध (दुग्ध) प ११।२५ उ ३६८ दुधा (द्विधा) सू १६।१६ दुन्निकम्म (दुनिष्क्रम) ज २।१३२ दुपएसिय (द्विप्रदेशिक) प ५।१५३,१५४,१५७, १५६,१६०,१७६,१७७,१६२,१६३,२१३, २१४,१०।७१११४६,३०।२६ दुपदेस (द्विप्रदेशिक) प १०।१४।१ दूभागमंडल (द्विभागमण्डल) सू १५॥३७ दुम (द्रुम) ज २।८,१३,२०,५१५० दुय (द्रुत) ज ५।५७ अभिनय का प्रकार दुरंतपन्तलक्खण (दुरन्तप्रान्तलक्षण) ज ३।२६, ३६,४७,१०७,११४,१२२,१२४,१३३ उ ११८६,११५,११६ दुरभि (दुरभि) प २३।४८ दुरस (दूरस) ज २११३३ दुरहियास (दुरध्यास,दुरधिसह) प २०२० से २७ दुरुढ (आरूढ) ज ३।१७,२१,२२,३५,३६,७७, ११,१७७,१७८,१८३,२०१,२०२,२१४,२१७; ५।२२,२६,४३ -दुरुह (आ- रुह.) दुरुहइ ज ३१२०,३३,५४,६३, ७१,८१,८४,१०६,११७,१३७,१४३,१६६, २०४,२२४;५१४१,४२ उ १।१६ दुरुह ति ज ३।१११;;४।५:५१५ दुरुहति प १७।१०६, १११ दुरुहिता (आरुह य) प १७।१०६ ज ३।२० उ १११६ दुरूढ (आरूढ) उ १११२४,१३१,४।१२।५।१४ दुरूव (दूरूप) ज २११३३ Page #1026 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुरुह-दूसमदूसमा दुरूह (आ+रुह ) दुरूहइ उ १।११०,४।१५ १४,१६,१८,२३ ज २।१,५,६,५।१६,७११४ दुरूहेइ उ ४।१८ सू १०1८६,१२१,१२४,१८।२०,२०१३ दुरूहित्ता (आरुह य) उ ११११०४।१५ उ ३॥३१,३८,४०,४२,४४ दुरूहेत्ता (आरुह य) उ ४.१८ दुव्विसय (दुर्विषय) ज २।३१ दुल्लह (दुर्लभ) ज ३।११७ सू २०।६।१ दुसमइय (द्विसामयिक) प १११७१,३६।६०,६७, दुव (द्वि) ज ११२५ च ४।३ सू १।८।३ उ १।१११ ६८,७१,७५ दुवयण (द्विवचन) प १११८६ दुसमयठितीय (द्विसमयस्थितिक) प १११५१ दुवण्ण (दुर्वण) ज २।१५,१३३ दुसमसुसमा (दुष्षमसुषमा) ज २११४६ दुवार (द्वार) ज ३।८३,८५,८८ से ६०,६३,१०३, दुस्समदुस्समा (दुष्षमदुष्षमा) ज २२,३,६ १५४,१५७,१६२,१८६ दुस्समसुसमा (दुष्षमसुसमा) ज २।२,३,६,४६ दुवालस (द्वादशन् ) प २।६४ ज ११२० सू१११३ दुस्समा (दुष्षमा) ज २।२,३,६ उ २०१० दुहओ (द्वितस् द्वय) ज ४।६१ सू १०।१३६,२०१७ दुवालसंसिय (द्वादशास्रिक) ज ३६४,१३५,१५८ दुहओवत्त (द्वितआवर्त) प ११४६ दुवालसक्खुत्तो (द्वादशकृत्वस्) यू १२।२ से ६,११ दुहणाम (दुःखनामन्) प २३।२० दुवालसमा (द्वादशी) सू १०।१४१,१४६,१४८,१५५, दुहट्ट (दुधाट्ट) उ ११५२,७७ दुहता (दुःखता) प २३।१६ दुवालसमी (द्वादशी) सु १०।१४८,१५० दुहतो (द्वितम् द्वय) सू १०।१७३ दुवालसविह (द्वादशविध) प ११३४; १२।३७ दुहतोनिसहसंठिय (द्वितोनिषधसंस्थित) सू ४।३ ज ७।१०४ सू १०।१२६ उ ३१७६,१४३ दुहत्त (दुःखत्व) प २८।२६ दुविध (द्विविध) सू ४।१।। दुहया (दुःखता) प २३।३१ दुविह (द्विविध) प १११,२,४,१०,११,१६ से १८ दुहा (द्विधा) ज १११६,२०,२३,४।१,४२,६२,६४, २० से ३२,३४,४८ से ५१,५३,५७,५६ से १०८,१७२ ६१,६६,६७,६६,७५,७६,८१,८२,८८,६०, दूइज्जमाण (द्रूयमाण) ज ३।१०६ उ ११२,१७; १००,१०२ से १२३,१२५ से १२६,१३१ से ३।२६,६६,१३२,५॥३६ १३८,५१,१२३,६।११५,११६:११।३१,३२, दूभगणाम (दुर्भगनामन्) प २३।३८,१२४ ३५,३६,४१,१२१७ से १३,१६ से १८,२०, दूमिय (दे० धवलित) सू २०१७ २१,२३,२४,२७,३१ से ३३,१३।१,८,२२ दूमिय (दून) उ ११५६,६३,८४ २३,२७,३१,१५।१८,१६,४८,४६,६८,७१, दूय (दूत) ज ३।६,७७,२२२ उ १४९२,१०७ से ७२,७५,७६,१६।५,२८,३३,३५,१७।२,४,६, ११६,१२७ ६,१६,२३,२५,२७,१८।१३,२५,५५,६३,६७. ६८,७६,७६,८६,६४,६७,६६ १०१.१०६, ह.भ.१४.६७.६१ १०१.१०६. दूर (दूर) प २१४६,५०,५२,५३,६३,१७।१०६ १०६,१११,१२७;२११४ से ७,६ से २०,४६, ज ७।३६,३८ सू।२।१ ५५,५८,५६,६१,६५,६६,७०,२२२२,३,८; दूरतराग (दूरत रक) प १७।१०८,११० २३१६,२६,२६,३२,३४,४८,५६,५७,२८।४, दूस (दूष्प) ज २।२४,६५,६६,३।६,२२२ ४०,५०,६६; २६।१.५,८,९,११,१४,३०।१,५, दूसमदूसमा (दुष्षमदुष्षमा) ज २।१३०,१३, ७,११,१२:३३।१,३४।१२, ३५।१।२,३५।१२, १३६ Page #1027 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० समसमा ( दुष्षमसुसमा ) ज २।१२१ दुसमा ( दुष्षमा ) ज २०१२६,१४० दूसरणाम ( दुःस्वरनामन् ) प २३।३८,१२५ (य) प १७ । ११६ देय (देय) सू २०१२ देयड (दे० दृतिकार ) प ११६७ देव (देव) प १५२, १३०,१३८२।३० से ३६, ४१ से ४३,४६, ४७।१, ४८ से ६३, २०६४।१४; ३।२६ से ३६,३८,३६,१३१,१३३, १३५, १३७, १३६,१८३४।२५ से २७,३१ से ३३, ३७ से ३६, ४३ से ४५,४६,५५, १६५ से १६७,१७१, १७७ से १७६,१८३ से १८५,१८६ से १६१, १६५ से १६७,२०१ से २०३, २०७, २१३ से २१५,२२५ से २२७, २३७ से २४३, २४६, २४६,२५२,२५५ से २६६,६।२७ से ३८, ४१ से ४३,५०,५२,५६,६५,७०,८१,८२,८५ से ८७,८६,६०,६२,६३,६५,६६, ६८, ६६, १०१, १०३,१०५, १०९, ११०,११२,११३७८ से ३०,८१०,११६ ११; १५४५, ५५ ३,८७ से ६३,१०८, १०६,११४, ११५, ११७, १२५, १२६, १३२,१३६, १४३, १६।२५, २६, ३१, १७१४६, ५१,५२,७१,७३,७४,७६,७८ से ८१,८३,८६, १८१५,११,२०४६,२१५१,५५,६१,६२,७०, ७१,७७,८३,६१ से १३, २२/४१,४२,४५,७६, २३।३६,५४,८४,११४, १४६, १७२, १६४, १६६,१६८२८१६७,१०२,१०५,१३३,१४३ से १४५, ३३।१,१६ से १८,२४,२५, ३४।१५, १६,१८ से २५,३६।५०,८१ ज १११३,२४, ३०,३१,३३,३६,४५ से ४७,५१, २०६४,६०, ६५ से ६६,१०० से १०२,१०४ से ११६, १२०३ ।२०२४।१,२,२५ से २८,३०,३२२, ३३,३८ से ४१,४३,४६ से ४६,५१,६३ से ६५, ६८, ७१ से ७४, ७६,८४,६२,१११ से ११५,११६,१२३ से१२५,१३१।१,२,१३२ से १३४,१३६,१५०, १५१, १६७।१३, १७८, १८४, दुसमदुसमा देवगतिपरिणाम से १८६,१८८, १८६, १६१, १६२, ११८, १६६, २०७ से २१०, २१६,२२१,२२४,२२६, ४२, १३,१६,२०,५१ से ५४,६०,६१,८०,८४,८५, ६७,१०२, १०६, १०७,११२.११३,११४, १२०, १४१,१४२,१५०,१५६ से १६१, १६३,१६५, १६६,१७७, १८०, १८४, १८६, १८७, १६३, १६६ से २००,२०३, २०४,२०८ से २१२, २१५,२२६ से २३४, २३६, २४७, २४८, २५० से २५२,२६१,२६४, २६६, २६७, २७०,२७२, २७३,२७६,२७७; ५।१, ३ से ५, १४, १५, १६, २२, २३, २६ से २६, ३६, ४२,४३,४५, ४७,४६, ५०,५३ से ५६,६१,६७,६६ से ७४;६।१६; ७१५५,५६,५६,१६६,१७८१,१८५, १८७, १८६,११,१३,१६५, २१३,२१४ ६ 1१; १३।१७;१७।११८।२ से ४,१४ से १७,२१, २३,२५,२७,२६,३१,३३,३५,१६२३, २४, २६,२७,२०११,२,४,७ उ २।१३,३१५१,५६ से ६२,६५,६६,६६,७२, ७५ से ६१, १५१, १५२,१५६, १६२ से १६५ ५।५, २६, ३०,४२, ४३ देव (देव) सू १९ । ३६, ३८ देव नामक द्वीप देवणिआउय (देव | संज्ञायुष ) प २०१६२,६४ देवउल ( देवकुल) ज ५१५,७ देवकहरू (देवकहकहक ) ज ५।५७ देवकुमार (देवकुमार ) उ३।६२ देवकुनारिया (देवकुमारिका) उ३१६२ देवकुरा (देवकुरु) ज ४६४,६६, २०३, २०६ से २०८,२१३ देवकुरु (देवकुरु) प १।८७;१६।३०;१७।१६४ ज २६४।२०४।१,२०७,२०८,२१०।१ देवकुल ( देवकुल) ज २०६५ उ ३।३६ देवगड ( देवगति ) ज २६०, ३१२६, ३६, ४७,५६, ६४,७२,११३,१३३, १४५, ५।५, ४४, ४७, ६७ देवगइय ( देवगतिक ) प १३।२० देवगति ( देवगति ) प ६ ४, ६ देवगतिपरिणाम ( देवगतिपरिणाम ) प १३।३ Page #1028 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवगतिय-देविंद ५१ देवगतिय (देवगतिक) प १३।१५ देवगामि (देवगामिन्) ज ११२२,५०,२।५८,१२३, १२८,१४८,१५१,१५७,४।१०१ देवच्छंदग (देवच्छंदक) ज ४।२१६ देवच्छंदय (देवच्छंदक) ज ११४०,४।१३६,१४७, २१६ देवजुइ (देवद्युति) ज ३।२६,३६,४७,१२२,१२६, । देवजुति (देवद्युति) ज ५।४४ उ ३।८५,१२२ देवज्जुइ (देवद्युति) उ ३।१२३ देवढि (देवद्धि) ज ३।२६,३६,४७,१२२,१३३ देवता (देवता) चं ५२ सू १।६।२ देवत्त (देवत्व) प १५९६ से १०१,१०४ से १०६, १०८,११२,११४ से ११७,११६ से १२३, १२५,१२७ से १२६,१३१,१३२,१४३, उ २।१२,३।१५०,१६१; ५२८,४१ देवदारु (देवदारु) प ११४०।२ देवदाली (देवदाली) प ११३६।२:१७।१३० देवदालिपुष्फ (देवदालीपुष्प) प १७।१३० देवदुहदुहग (देवदुहदुहक) ज ५१५७ देवदूस (देवदूष्य) ज २१६५,१००,२११:५१५८ उ ३।१४,८३,१२०,१६१,४।२४ देवपन्वय (देवपर्वत) ज ४।२१२ देवमइ (देवमति) ज ३।१०६ देवय (देवता) प २।४८ ज ७।१२७।१,१६७।१ देवय (दैवत) ज २१६७;३।८१ सू १८।२३, उ १११७,७२,८८,६२,५॥३६ देवया (देवता) ज ३।३२,१०४,१०५,४।५३, १०६,२०४,२१०,७।३० सू १०७८ से ८३ देवराय (देवराज) प २१५० से ५६ ज १।३१; २८६ से ६३,६५,६७,६६,१०१,१०३,१०५, १०७,१०६,१११,११३,११४,११७ से ११६, १८६,२१७,४१२२१; ५।१८,२० से २३,२६ से २६,३६ से ४१,४३ से ४८,५४,५६,६०, ६१,६२,६५ से ६८,७१ से ७३ उ ३।१२२, १५० देवलोग (देवलोक) प २०१६१ ज २०४६,१५६%; ३।१ उ २।१३;३।१८,८६,१२५,१५२,१६५; ४।२६:५।३०,४३ देवलोय (देवलोक) ज २१४६ उ ५२४ देवसंघाय (देवसंघात) ज ७/१७६ देवसयणिज्ज (देवशयनीय) उ ३।१४,८३,१२०, १६१,४।२४ देवसयसहस्सीसर (देवशतसहस्रेश्वर) ज ३।१२६।३ देवसिरि (देवश्री) उ ३।१७१ देवाउय (देवायुष्क) प २०१६३,२३।१८,३७,८०, १४६,१७० देवाणंदा (देवानन्दा) ज ७/१२० सू १०८८।३ उ ३।११३; ४१२० देवाणुप्पिय (देवानुप्रिय) ज २१६५,६७,१०१, १०५,१०७,१०६,१११,११४,१४६,३१५,७, १२,१५,१८,२१,२६,२८,३१,३४,३६,४१, ४७,४६,५२,५६,५८,६१,६४,६६,६९,७२, ७४,७६,७७,८३,६०,६१,६६,१०५,१०७, ११३,११४,१२५,१२६।४,१२८,१३३,१३८, १४१,१४५,१४७,१५१,१५४,१५७,१६४, १६८,१७०,१७३,१७५,१८०,१८३,१८८, १६१,१६६,२०७,२१२,५३,५,७,१४,२२, २६,२८,४६,५४,६८,६६,७२,७३ उ १११७, ३७,३६,४१,४४,५४,५७,६६,७६,८८,६८, १०७,१०६,१११,११३,११५,११६,१२१, १२३,१२७,१२६,१३१,३।१३,७८ से ८१, १०२,१०३,१०६,१०८,११२,११५,१३६, १३८,१३६,१४८; ४।११,१४ से १६,१६,२२; ५।१५,१८,२७,३२,४० देवाणुभाग (देवानुभाग) ज ३।१२६ देवाणुभाव (देवानुभाव) ज ३।२६,३६,४७,१२२, १३३,५।४४ उ ३.८५,१२२,१२३ देवाहिव (देवाधिप) ज ५१५४ देविद (देवेन्द्र) प २१५० से ५६ ज ११३१:२१८६ से ६५,६७,९६,१०१,१०३,१०५,१०७,१०६, Page #1029 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५२ देविड्डि-दोणमुह १११,११३,११४,११८,११६;४।२२१;५।१८, ६१,६६,१०८,२१।७४,२२१५५,५६,५८,७६ २० से २३,२६ से २६,३६,४०,४३ से ४८, ज ११३०,३३,२२४;४।२२,३४,८३,११३, ५४,५६,६० से ६२,६५ से ६८,७१ से ७३ ११४,१६६,५।२६;७२१३ सू१।१६,६।१; उ ३।१२३,१५० ३।३।१०।१३८ से १५१,१६२ से १६६; देविढि (देवद्धि) ज ५१४४ उ ३।१७,८५,६४, १२।३०;१३।२ १२२,१२३,१६३ ; ४।२५ देसपंत (देशप्रान्त) उ १११३३,१३४ देवित्त (देवीत्व) उ ३।१२० देसभाग (देशभाग) प २।१६.१७,३०,३१,४१,५०, देवी (देवी) प २।३० से ३३,३५,४१,४३,४८ से ५२ ज २।१२,६५:३।३,११७,५३५ सू ३।६८ ५१,३।३६,१३२,१३४,१३६,१३८,१४०, देसभाय (देशभाग) प २।१८,१६,२८,५१,५६,६४ १८३;४।२८ से ३०,३४ से ३६,४० से ४२, ज ३७,५३३,३८ ४६ से ४८,५२,५५,१६८ से १७०,१७४,१८० । देसमाण (दिशत्) ज २।७२ से १८२,१८६ से १८८,१६२ से १६४,१६८ देसि (देशिन्) प २१४१ से २००,२०४ से २०६,२१० से २१२,२१६ देसिय (देशित) ज ३।२२,३६,६३,६६,१०६,१६३, से २२४,२२८ से २३६,१७।५०,७२,७३,७५, १८० ७६,७८,८०,८२,८३,१८।६,८,१२,२३॥ देसूण (देशोन) ज १११२,१४,१७,२३,३५,३७,५१; १६४,१६६,१६८ ज ११३,१३,३०,३३,३६, २।४४,४५,४।११४ ४५,२।६०,३१५२ से ५८,६०,१४०,१४१, देसूणग (देशोनक) ज ३।२२५; ४।६,३३,१४७, १४३ से १४७,१४६,४।२,१७ से २०,२२,३३, १५५,२४२ ३४,५३,६४,८६,१५६,१६४,२०३,२३७, देसोहि (देशावधि) प ३३।१।१,३३।३१ से ३३ २३८,२४८,२५० से २५२,५।१,५,१६,२६ से देह (देह) ज ३।१०६ २८,४२,४३,४५,४७,६७,७२,७३,७४१८३, देहधारि (देहधारिन्) प २१४१ ज ३।३ १८५,१८८,१६०,१६२,१६४,१६६,२१४; देहमाण (दे० पश्यत्) ज ३।२२२; ५।६७ चं ८ सू ११३;१८।२१,२३,२६,२८.३०,३२, दो (द्वि) प२०५६ ज १७० १४१४ उ १११३५ ३४,३६,२०१४ उ १।१० से १३,१५,१७,१६ दोच्च (द्वितीय) १६१८०१३३।१६,३६।१२ से २४,३० से ४१,४३,४४,४६,४८ से ५५, ज३।१२८,१५१,१६२, ७।२३,२५,२८ से ५७,५८,७० से ७४,८८,६५,६७,६६ से १०२, ३०,१५७.१६१,१६५.१७० सू १।१३,१४, १०६,११०,११३,११४,१४४ से १४६२४ से १६,१७,२१,२४,२७,२।३,६१,१०१६४.६८, ६,१६,१७,१६,२०७३।६०,६२,६४,१२१ से १२७.१३६,१४०,१४४,१४५,१५८,१११२ से १२५; ४।२५,२६,५।१०,१२,१३,१७,२५,३०, ४;१२।३,२०,२५,१३।१,१२,१३ उ १।३६, ४०,१११,१४३, २११,१५,२१,३।१,२०,२२ देवुक्कलिया (देवोत्कलिका) ज ५१५७ २३,५१,५३ ६०,६१,७७,७८,१०८ देवोद (देवोद) सू १६।३८ दोच्चा (द्वितीया) प ३।१८३ देस (देश) प ११३,४,२१६४।११;४।४३,४५,४६, दोणमुह (द्रोण मुख) प ११७४ ज २।२२,१३१; ४८,४६,५१,५२,५४,५।१२४,१२५,१५३५३; ३।१८,३१,३२,१६७।२,१८०;१८५,२०८, ५४,५७,१८१५६,६४,७७,८१,८३,८४,८६ से २२१ उ ३।१०१ Page #1030 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोला-धम्मवर बोला (दे०) १।५१ दोवारिय ( दौवारिक) ज ३१६,७७,२२२ दोस (दोष) प ११।३४०१ २२२०६२३०६ ज ३५३२,११७ सू २१२ २०११४६२।३५ दोसणितिया ( दोषनिचिता) प ११३४ दोसपुरिया ( दोषपूरिका ) प ११६८ दोसिणा (दे० ज्योत्स्ना ) चं २/४ सू ११६/४; १४ । १ से ४ १६।१,२ दोसणापक्ख ( 'दोसिणा पक्ष ) सू १३|१; १४।१ से ४,६,७ दोसिणाभा ( ' दोसिणा ' आभा ) ज ७।१८३ सू १८।२१,२०१६ दोसि लक्खण ( ' दोसिणा लक्षण ) चं २०४ सू १ ६ ४ दोसिणलकवण (दोसणा 'लक्षण) सू १६१ दोस्तिथ ( दौधिक ) प १९६ २०१५ दोहा ( दौर्भाग्य) दोहल (दोहद) उ ११३४,३५,४०,४१,४३,४४, ४६,७४ ध 1 धंत ( ध्मात ) प १।४८।५६ ज ३।२४ तोरुपपट्ट (मातीत रूप पट्ट) प १७।१२६ धण (धन) २०६४,६९, २०१०३ १६७०१४ धनंजय (धन) ज ७१११७४२१३२॥१ सू १०/८६।२६७ धणव (धपति) ज ३०१.२,१८,२१,२२,१५० १८३ धणिट्ठा (धनिष्ठा) ज ७।१९३।१,१२८ से १३०, १३६,१३८,१४१,१४९,१५६,१५७ सू १०।१ से ६, ८, २०, २३, २६, ४७,६३,६४,७४,८०, ९४, १२०,१३१ से १३३,१५२ घण (धनुष्प १७५२४६४१६२१४६,४७, ४७११,२,२१।६५ से ६७२६४८१ ज ११७,६, १०,२३,२५,३८,४०, ४३२१६,१६,५२,५६, ५८, ८६, १२३, १५१,१५७,१५९,१६१३३०२, २३,२४,३५,३७,६५,१३१, १५६, १६०,१७८; ४११०,१२,५५,६२,०१,०६,१८,१०१, १०८, ११०,११४, १४७, ५४,२४८, २६२,२६५, २६८,२७१, २७४ ७ १८२,२०७ १।१४: १८१३,२०३११२२,१३८,१४० धणुमह (धनु) ज २०४३ घणुप्पट्ठ (धनुष्पृष्ठ) ज १११८,२०,२३,४८ ४११,१७२ धणपुत्तिय (धनुः पृषनिक) प १७५ धणुवर ( धनुर्वर ) ज २२६२३४७६,११६,१११, १२०,१६७ ३,१८५,२०६ धणुह (धनुप्) ज ३।३१ घण्ण (धान्य) प ११०२६ से २८ २४६९:३४७६, ११६,११,१२०,१६७१३, १८५,२०६ उ ३।४० ५।१४ धण्ण (धन्य) ज ५१५,४६,५८१ ३४,४०,४१, ४३,४४,७४,३।६८,१०१,१३१,५।३६ धन्न (धन्य) ज २६४३३८ धमाससार ( धमाससार ) प १७।१२५ धम्म (धर्म) प २०१७, १८, २२, २५, २८,२६,३४, ४५ ज १०४ २०६४,७२,११३,१३३ चं १ १४ उ १२,२०,२१:३।१२,१०२,१०३,१३४ से १३६,१३८, १४२,१४७ ४.१४ ५०२०, २७ धम्मंत (धमा मान ३११७ धम्मका (धर्मकथा ) उ३।७१ धम्मचरण (धर्मचरण) ज २।१२१,१५८ धम्मजावरिया (धर्मजागरिका) उ २०११: ५०३६ धम्मणाय (धर्मनायक) ज ५।२१ धम्मत्यिका (धर्मारिका ) प १०३.२०११४ से ११६,१२२ ५।१२४ १५१५३,५४,५७ १८।१२५ धम्मद (धर्मदेव) धम्मदेश्य (धर्मदेशक) ५।२१ ५२१ धम्मरु ( धर्मरुचि ) प १।१०१।१, १२ धम्मरुक्ख ( धर्मरूक्ष ) प १|४३|१ धम्मवर ( धर्मवर ) ज २२६३,५०२१,२० ६५३ Page #1031 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ धम्मस रहि-धोव धम्मसारहि (धर्मसारथि) ज ५।२१, धारा (धारा) ज २।१४१ से १४५, ३।१२,११५; धम्मिय (धार्मिक) उ १११७,१६,२४:४।१२,१३, ११६,१२२,१२४ धाराहय (धाराहत) ज ५१२१ धय (ध्वज) उ ३३१०८,१८४ धारि (धारिन् ) प २।३०,३१,४१,४६ धर (धर) प २।३०,३१,४०।१०,२।४१,४६ से ५४ धारिणी (धारिणी) ज १३, २०१५ च ८ सू ११३ 1 धर (धृ) धरेइ ज ५।४६,६०,६६ धारेयव्व (धर्तव्य) सू २०६।५ धरण (धरण) ज २।३४,३५,४०।६ ज ३।१८५, धावण (धावन) ज ३।१७८,७१७८ २०६:५१५२ धिइ (धृति) ज ४।८६ उ ४।२।१ धरणि (धरणि) ज २११३२ धिइकूड (धृतिकूट) ज ४।६६ धरणिखील (धरणिकील) सू ५।१ धिक्कार (धिक्कार) ज २१६२ धरणितल (धरणितल) प १७।१०७,१०६,१११।। धिति (धृति) सू २०१६।३,५ ज ३।६।१२,३५,१०६ ४१२१३,२१५; ५।२१, धुर (धुर) सू २०१८ धुरय (धुरक) सू २०।८।५ धरणिसिंग (धरणिशृंग) सू ५।१ धुरा (धूर्) ज ३।३५,१७८,१८८ धरणीयल (धरणीतल) ज ३।१०६,११७:५॥५,४४ धुव (ध्रुव) ज २११,४७,३।१६७,२२६,४।२२, उ ११२३,६१ ५४,६४,१०२,१५६७२१० धरिज्जमाण (ध्रियमाण) ज ३।६,१८,७७,७८,६३, १८०,२२२ धुवराहु (ध्रुवराहु) सू २००३ धरत (धरत्) ज ३१६२ धूमकेउ (धूमकेतु) प २।४८ सू २०।८।४ धव (धव) प ११३६।३ धूमकेतु (धूमकेतु) सू २०१८ धवल (धवल) प २।३१ ज ११३७,२।१५,३।६, धूमप्पभा (धूमप्रभा) प १।५३;२।१,२०,२५; १७,२१,३१,३४,३५,११७,१७७,१७८,२११, ३।१५,१६,२०,१८३;४।१६ से १८; २२२,५।५८,७।१७८ ६।१४,७७,७८,१०।१; २०१७,४१, २११६७; ३३१७,१६ धवलवसभ (धवलवृषभ) ज ५।६२,६३ धस (दे०) उ ११२३,६१ धूमवट्टि (धूमवर्ति) ज ३।१२,८८,५१५८ धाइकम्म (धातृकर्म) उ ३।११५ Vधूमाय (धूमाय) धूमाहिति) ज २।१३१ धूया (दुहित) ज २।२७,६६ उ ३।११४;४।६,१६ धाई (धातृ) उ ११६४ धूलि (धूलि) ज २११३१,१३२ धाय (धात) प २।४७२ धूव (धूप) प २।३०,३१,४१ ज ११४०२१६५; धायइसंड (धातकीषण्ड) प १५३५५,१६।३०; ३७,६,११,१२,२१,३४,८५,८८,४।१३०, १७।१६५ सू ८।१,१६७,८।१,२,१६।९% १३६,२१८,२४२,५७,५७,५८ सू २०१७ १६।२२।२५ उ ३।५०,११० धायई (धातकी) प ११३५।२,१५१५५।१ धायईसंड (धातकीषण्ड) सू १६।२२।२३,२४ धोत (धौत) ज ३।११७ धार (धारय) धारे ज ३।१२६।१ धोय (धौत) प २।३१ ज ३।२४ धारणा (धारणा) ज ३।३ धोरण (दे०) ज ३।१७८७।१७८ धारणिज्ज (धारणीय) प २२।१५,८० Vधोव (धाव) धोवइ उ ४।२१ धोवसि उ ४।२२ Page #1032 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धोव्व-नलिणिगुम्म ५५ थोम्व (दे०) ज ३।१६७।६ नपुंसकलिंगसिद्ध (नपुंसकलिङ्गसिद्ध ) प १।१२ नपंसग (नपुंसक) प ११४६ से ५१,६०,७५,७६, ८१,११।२७ न (न) उ ११३७ नपुंसगवेद (नपुंसकवेद) प १८१६२,२३७५ नउय (नयुत) ज २।४ नपुंसगवेदग (नपुंसकवेदक) प ३६७,१३।१६ नउयंग (नयुताङ्ग) ज २।४ नपुंसय (नपुंसक) प ६७६ नंद (नन्द) ज २१६४;३।१८५,२०६ नभ (नभस् ) ज २।६५ नंदण (नन्दन) उ २।२।१ निमंस (नमस्य) नमसइ ज ११६,५१५८ नंदणवण (नन्दनवन) उ ५।६,७,३६ ३७ उ १११६३८१४।१३,५।२० नमसंति नंदा (नन्दा) उ ११३०,३१ उ ४।१६,५३३६ नमसीहामि उ ३।२६ नंदि (नन्दि) प १५।५५।१ नमसेज्ज ज २०६७ नंदिघोस (नन्दिघोष) ज ३।१७८ नमंसमाण (नमस्यत्) उ १११६ नंदिय (नन्दित) ज ३।५,६,८,१५,१६३१,५३, नमंसित्ता (नमस्यित्वा) ज ११६ उ १११९,३१८१; ६२,७०,७७,८४,६१,१००,११४,१४२,१६५, ४।१४।५।२० १७३,१८१,१८६,१६६,२१३,५।२७ नमिऊण (नत्वा) चं ११२ नंदीमुह (नन्दिमुख) ज २०१२ नय (नय) सू ११२५;२।२४।२ उ १३८,४०,४२ नंदीसरवर (नन्दीश्वरवर) ज २।११६ नयण (नयन) उ १११५.३५,३।६८ नक्खत्त (नक्षत्र) प १४१३३;२।२३ से २७,४८,५०, नयर नगर) ७८,२०, नयर (नगर) उ १२१२,२८,२६,१२१,१२२,३।४, १२.२८२६.१२१ ६३ उ २०१२ २१,२४,८६,१५५,१६८,१७१;४।४,६,७,१३, नगर (नगर) प ११७४ ज २१७१,३।६,७७,२२२ १५,१८,२८,५।२४ से २६,४३। नगरावास (नगरावास) प २।४३ नयरी (नगरी) चं ६,७,८ सू ११ से ३ उ ११६, नगरी (नगरी) उ ११११०।। १०,१२,१६ ६३,९५ ६७,६८,१०५ से १०७, नग्गभाव (नग्नभाव) उ ५१४३ ११०,१११,११५,१२२,१२५,१२६,१३०, नच्चंत (नत्यत्) ज ३११७८ उ १।१३६ १३२,१४४,१४५,२।४,५,१६,१७,३।६,११, निज्ज (ज्ञा) नज्जइ उ ११५४ २१.२७ से २६,४६,४८,५०,५५,६५,६६,६६, नट्ट (नाट्य) प २१३०,३१,४६ ज ११४५ १००,१११,१५७,१५८,१६६,१७१,५।४,५,६, नट्टविहि (नाट्यविधि) उ ३७,२१,२५,६२,१५६, ११,१६,३०,३३ १६६४।५ नर (नर) ज २१६५,७१ नट्ठ (नष्ट) ज २११३३ नरग (नरक) प २२२ से २७,२।२७।३,४ नत्ती (नप्त्री) उ ३।११४,११५,११६ उ ११२६ नत्तु (नपतृ) ज २१६६ उ २।२२ नरच्छाया (नरच्छाया) प १६।४७ नत्तुय (नप्तक) उ १२१०६,११०,११३,११४; नरय (नरक) प २।२३;६।८०२ उ १।१४० ३।११४ नरवइ (नरपति) उ १।१२४,१३१,५।१६ नत्थि (नास्ति) प ११८१; ५११५५, ३६।३३ नलिण (न लिन) प ११४६,११४८।४४ नदी (नदी) प २।४,१३.१६ से १६,२८; नलिणहत्थगय (हस्तगतनलिन) ज ३।१० १५।५५२ नलिणिगुम्म (नलिनीगुल्म) उ २।२।१ Page #1033 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव-निक्कट्ठ नव (नवन्) प ११८११ ज ३।१०६ सू १।१४ उ १२५३ नव (नवम) प १०।१४।३ नवणउति (नवनवति) सू १।२१ नवणउय (नवनवति) सू ११२६ नवणवति (नवनवति) सू ११२१ नवति (नवति) सू २।३ नवम (नवम) प १०।१४।१,२ उ ११७;२।२२ नवरं (दे०) प २१४०,४४,६२, ५।४२,४३,४६, ५०,५४,६४,८७,६८,१०२,१०५,१०८.११२, ११७,१२२,१३२.१४८,१५१,१६७,१७०, १७५,१७८,१७६,१८२,१८५,१८८,१६४, १६८,२०४,२०५,२०८,२१३,२१५,२१६, २१६,२२२,२२५,२३५,२४०,२४३, ६।४६, ५६,७४ से ७८.८०,८१,८३,८४,८६,८६,६२, ६४,१००,१०७,१०८,११२,१११८२,८३, १२।३१,१३।१५:१५।६०,६२,६६,६७,१४३; १७.६६३६।६ सू११२२ उ ११४८,२।२०; ३१७,१३, ४।५५।१३ नवविह (नवविध) प १७।१३६ नह (नख) उ ११३६,५५,५८,८०,८३,६६,११६: ११८,३।१०६,१३८,५।१७ नाइ (ज्ञाति) उ ३।४२,११०,१११,४।१६,१८ नाइय (नादित) ज ३७८,५।२२ नाग (नाग) प २।३०११,२।४०।१० ज ३११८५, २०६ नागकुमार (नागकुमार) प १११३१,२।३५;४।४३ से ४५,५५,५८,६।१८,६१ नागकुमारत्त (नागकुमारत्व) प ३६।२४ नागकुमारराय (नागकुमारराज) प २।३६ नागकुमारी (नागकुमारी) प ४।४६ से ४८ नागपव्यय (नागपर्वत) ज ४।२१२ नागमाल (नागमाल) ज २१८ नागलता (नारलता) प ११३६१ नाडइज्ज (नाटकीय) ज ३१७४ नाण (ज्ञान) प २१६४।१२,५।४३,८७,१०२,१०५, ११५ ज २१७१,८५,३१२२३,५।२१ उ ३।४४ नाणत्त (नानात्व) प २४० नाणा (नाना) ज ४।१३ नाणाविह (नानाविध) उ ५१५ नादित (नादित) ज ३।२०६ नाम (नामन्) प १११०११५; २।३०।१,२१५८,६१; २३।१५१ ज ११४६,३।२४,४।२६२ च ६,७, ८,१० सू १११ से ३,५,६ उ १११ से ३,९ से १३,२८ से ३२,६५,१४४ से १४६,१४८; २।४ से ७,१६ से २०,२२, ३।४,६१०,२१, २७,२८,४८,५०,५५,८६,६५ से ६७,१३२, १५५,१५७,१५८,१७१,४१७ से ६,२८; ५।२।१,४ से ७,६,११ से १३,२१,२४ से २६, ४०,४१ नामधिज्ज (नामधेय) प २६४ नामधज्ज (नामधेय) ज ३।१३५।१ सू १०१८४ उ १२६३,२१६३।१२६ नामय (नामक) चं ५।२ सू १।६।२ नायव्य (ज्ञातव्य) प ११४८६,१११०१।४,१२ सू१।२५,२।२ नारी (नारी) ज २१६५ नालिएरी (नालिकेरी) प ११४३।२,१।४७।१ नालियाबद्ध (नालिकाबद्ध) प ११४८१४१ नासा (नासा) ज ३।२११:५१५८ निउण (निपुण) प २।४१ ज ५७ निओय (नियोग) ज ३।१७८ इनिंद (निन्द् ) निदंति उ ३।११६ निदिज्जमाण (निन्द्यमान) उ ३।११८ निबकरय (निम्बकरज) प ११३५।३ निकुरंब (निकुरम्ब) उ ३।४६ निक्कंकड (निष्कङ्कट) ज १।३१ निक्कंकडछाया (निष्कङ्कटछाया) प २।३०,४६. ५६,६३,६४ निक्कंखिय (निष्काङ्क्षित) प १।१०१।१४ निक्कट्ठ (निकृष्ट) उ १११३८ Page #1034 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निक्खंत-निभच्छणा ६५७ निक्खंत (निष्क्रान्त) उ ३।१७०,४।२८,५।२७ निच्छय (निश्चय) उ ३।११ निक्खम (निर्-+ क्रम्) निक्खमइ उ ११११६ अनिच्छुहाव (नि । क्षेपय) निच्छुहावेइ उ १।११७ निक्खमण (निष्क्रमण) ज ४११७७ उ ३।१०६; निच्छुहाविय (निक्षेपित) उ ११११६ ४।१६ निच्छूढ (निक्षिप्त) उ ११११८ निक्खममाण (निष्क्रामत्) सू १।८।२,१।१२,१४, निज्जर (निर्+ज) निज्जरंति प १४।१८ १६,१८,१६,२१ २४,२७, २।३।६।१ निज्जरिंसु प १४।१८ नि:ज्जरिस्संति निक्खमित्ता (निष्क्रम्य) उ ११११६ प १४।१८ निज्जरेंसु प १४११८ निक्खित्त (निक्षिप्त) उ ३३४८,५०,५५ निज्जरा (निर्जग) प १४।१८।१ निक्खेव (निक्षेप) उ १११४८ निज्जाणसंठिय (निर्याणसं स्थित) सू ४।३ निगम (निगम) प १७४ ज ३१९,७७,२२२ निज्जाणभूमि (निर्याणभूमि) ज ५१४८ निगर (निकर) ज ३।१२,८८,५१५८ निज्जाणमग्ग (निर्माणमार्ग) ज ५१४४ उ ३६१ निगिण्ह (नि+ ग्रह ) निगिण्हइ ज ३।२३,३७, निज्जुत्त (नियुक्त) प २।३० निज्झर (निर्भर) ज २।४,१३ १६ से १६,२८ निगिण्हित्ता (निगृह य ) ज ३।२३ निट्ठियट्ठ (निष्टितार्थ) प ३६१६४ निगोद (निगोद) प ३६१ से ६३.७० से ७४,८२, निण्ण (निम्न) ज ३१७७,१०६ ८४ से ८७,६४,६५,१८३;१८।४६ नितंब (नितम्ब) ज ४।१६४ निगोय (निगोद) प ११४८।५६ से ५८,३८७ नित्तेय (निस्तेजस्) उ १।३५ निग्गंथ (निर्ग्रन्थ) ज २१७२ उ ३।३८,४०,४२, निदाया (दे०) प ३५।१८,१६ १०३,१३६,४।१४।५।२० निदाह (निदाघ) ज ७।११४।२ निग्गंथी (निर्ग्रन्थी) ज ३।१०२,११५,११७,११८, निद्दा (निद्रा) प २३।६१। ४।२२ उ ३।१०२,११५,११७,११८,४।२२ । निद्दायमाण (निद्रायमान) उ ३।१३० निग्गच्छ (निर्-+ गम् ) निग्गच्छइ उ १११६; निद्ध (स्निग्ध) प १४ से ६,५५,७,१२६,२१४, ३।१३,४।१३,५।१६ २१८,२२१,२२६; १३।२२; १७११३८ निग्गच्छित्ता (निर्गत्य) उ १११६,३।२६;४।१३ ज ३।१०६ निग्गय (निर्गत) चं ६ सू ११४ उ ११२,१६२।६; निन्न (निम्न) उ ३१५५ निप्पंक (निष्पक) प २।३०,३१,४६,५६,६३, ३।५,१२,२४,८६,१४७.१५५,१५६,४।४,१०; ६४ ज ११३१ ५।१४,२६,२७,३७,३८ निप्पट्ठपसिणक्षागरण (निःस्पृष्टप्रश्नव्याकरण) निग्घोस (निर्घोष) ज ३।१२,७८ उ ३१२६ निघस (निकष) ज ११५ निप्पाण (निष्प्राण) उ १६०,६१ निचिय (निचित) ज ५१५ V निष्फज्ज (निर+पद् ) निप्फज्जए ज ७।११२।४ निच्च (नित्य) प २४,२६,२७ सू १०।१२६।४ निप्फज्जति प ४।२६ निच्चच्छणय (नित्यासः, क, नित्यक्षणक) उ ५१५ निष्फन्न (निष्पन्न) ज २०१८ निच्चालोय (नितालोक) सू २०।८।६ निम्फाव (निष्पाव) प ११४५३१ ज ३।११६ सेम निच्चिट्ठ (निष्चेष्ट) उ १।६०,६१ निभंछ (निर। भर्स) निभच्छेइ उ ११५७ निच्छभिउकाम (निक्षेप्तुकाम) उ १७३ निभंच्छणा (निर्भर्त्सना) उ ११५७,८२ Page #1035 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ निभ-निविट्ठ निभ (निभ) ज ३।१०६ निरुवक्कमाउय (निरुपक्रमायुष्क) प६।११५,११६ निमज्जग (निमज्जक) उ ३१५० निरुवलेव (निरुपलेप) ज २१६८ निमित्त (निमित्त) उ ११४१,४३ निरुवहय (निरुपहत) उ ३।३२ निम्मंस (निर्मास) उ ११३५ निरोदर (निरुदर) ज २१५ निम्मम (निर्मम) प २१६४।१ निलाड (ललाट) उ १।२२,११५,११७,१४० निम्मल (निर्मल) प २।३१,४१,४६,५६.६३,६४ ।। निवइय (निपतित) ज ३।२५,३८,४६ ज ७१७८ निवज्जाव (नि+सादय) निवज्जावेइ उ ११४६ नियग (निजक) ज २।९३ उ १११६,१३६, ३३५०, निवज्जावेत्ता (निष द्य) उ १।४६ ९८,११०,१११,१२८,४।१३,१६,१८ निवडिय (निपतित) उ ११२२,१४० नियत्त (निकृत्त) उ १।२३,६१ निवड्ढेत्ता (निवर्ध्य) ज ७।२७ नियत्थ (दे०निवसित) उ ३१५१,५३,५५,६३,६७, निवड्ढेमाण (निवर्धयत् ) ज ७।२५,२७,३० ७०,७३ सू १२० नियम (नियम) प६।११६१०१६,२१,१११५५ निवत्त (निवृत्त) उ ११६३ २१।१०३ ; २२।५० से ५२,६७,२७।२ निवयउप्पय (निपातोत्पात) ज ५१५७ उ ३।३१ निवह (निवह) ज २१६५,३।६३,१५७,१६३ नियमसो (नियमशस्) प २।६४।११ निवार (नि+वारय्) निवारेंति उ ३।११७ नियमा (नियमा) ज ७।४८ निवारिज्जमाण (निवार्यमाण) उ ३।११८ नियल (निगड) उ ११६५,६६,६८,७२,८८,६२ निवुड्ढित्ता (निवर्ध्य) सू १।१४ निरंगण (निरङ्गण) प ११२५ निवुड्ढेत्ता (निवi) सू ६।१ निरंजण (निरञ्जन) ज २१६८ निवुड्ढेमाण (निवर्धमान) सू १।१४,२१,२७,२।३; निरंतर (निरन्तर) १६.४७ से ५८,१०६,११०% १०।३५ से ३६,४१ से ५३,१११७०,२०।१६, रोदन ३० ४४,६०; २२।११,२७,५३, ३६।२४ ज ५१५,७, निवेस (निवेश) प १७४ ज ३।१८,६१,६६, निरय (निरय) प २११,१० ज २११३३ १३१,१३७ उ १११३३,१३४ निरयगति (निरयगति) प ६।१,६ निवेसिय (निवेशित) उ ३६८ निरयपत्थड (निरयप्रस्तर) प २।१ निव्वत्त (निर्वत्त) प २१६७।१ ज ३।१४,४३,१४६ निरयावलिया (निरयावलिका) प २।१,१० उ १२५ निव्वत्तणया (निर्वर्तन) प ३४।१,२,३ से ८,१४२,१४३,१४८, २।१५।४५ निव्वत्तणा (निर्वर्तना) प १५१६०,६५ निरयावास (निरयावास) प २।२५ निव्वत्तणाहिकरणिया (निर्वर्तनाधिकरणिकी) निरवकंख (निरवकाङ्क्ष) ज २०७० प२२।३ निरवयव (निरवयव) उ ३७६ निव्वत्ति (निर्वृत्ति) प ११४८॥५३ निरवसेस (निरवशेष) प३४।२१ ज ४।१६०,२७७ निवाघाइय (निाघातिक) ज ७।१८२ उ१११४७ निव्वाघातिम (नि घातिन्,निर्व्याघातिम) निरालंबण (निरालम्बन) ज २१६८ सू १८।२० निरालोय (निरालोक) उ ११२२,१४० निव्वाघाय (निाघात) ज २१७ ज ३।२२३ निरावरण (निरावरण) ज ३।२२३ निम्विट्ठ (निर्विष्ट) ज ३।३२।१,२२१ Page #1036 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निव्विकाइय- नोइंदियउवउत्त निव्विकाइय ( निर्विष्टकायिक ) प १।१२७ निव्विण्ण (निर्दिष्ण) उ ११५२,७७ निव्वितिमिच्छा (निर्विचिकित्सा ) प १।१०१११४ निव्विसमाण (निविशमान ) प १।१२७ निव्वुइकर (निर्वृतिकर ) ज ५३३८ वुड्ढ ( नि + वर्धय् ) निव्बुड्ढे इ स ६ । १ निव्वय ( निर्वृत) उ १६१,६२,८६,८७ निव्वेड्ढ ( निर् + वेष्टय्) निव्वेड्ढे इ सू २२ निव्वेढेति सू २२ निव्वेयण (निवेदन) उ १।६१,६२,८६,८७ निसंत ( निशान्त ) उ ३।१३८ निसढ (निषध) ज ४१६४ उ५।२।१,५११३,२०, २२,२३,३१,३२,३४ से ४३ निसम्म ( निशम्य ) ज ३।६११।२१ ३ । १३; ४|१४; ५।३० निसामैत्त ( निशमितुं ) उ ३११०२,१३४ निसास ( निःश्वास ) ज ३।२२१ उ५।४३ निसीय ( नि + षद्) निसीयइ उ ११४१ निसीयित्ता (निषध) उ १।४१ निसीहिया (निषीधिका, नैषेधिकी) उ४।२१ से २३ निग (निषेक) प २३।७४ निस्संकिय ( निःशंकित ) प १।१०१।१४ निस्सग्ग ( निसर्ग ) प १।१०१।१ निस्सास विस ( निःश्वासविष ) प १७० निहाण ( निधान ) प १।१।२ निहिरयण ( निधि रत्न) ज ३।१६६ से १६८ / नीण (नी) नीणेइ उ १६७ नीय ( नीच) उ३ | १००,१३३ नीर (नीरजस् ) प २।४१,४६,५६,६३,६४ नील (नील ) प ११४ से ६; ५।२०५; ११।५३; २८।२० ज ४ २६ नीलपत्त (नीलपत्र ) प १५१ नीलमत्तिया ( नीलमृत्तिका ) प १।१६ नोललेस्स (नीललेश्य ) प १७६४ नोललेस्सा (नीललेश्या) प १७।३७ नीलवंत (नीलवत्) ज ४।१४२१३,१७८, १८०, २०७ २२७ नीलासोय (नीलाशोक ) प १७११२४ नीली (नीली) प १।३७।१ नील नीव (नीप) ज ५ | २१ ( नीसस ( निर् + श्वस् ) नीससंति प ७।१ से ४, ६ से ३०; १७।२५ नीसा ( निश्रा ) ज २।१३३ नीसास ( निःश्वास ) प १।४८।५३ ज २२४११ ; ५।५८ नोहरण (निर्हरण) उ १६२ नूणं ( नूनम् ) उ ३।३८ नेउर ( नुपूर ) ज १।२६ नेमि ( नेमि ) ज ३।३५ नेयव्व ( नेतव्य ) प २।४७।३ ; ३६।२७ ज ४।७५ सू२।२४।२१।१४८ २२२५१४५ नेरइय (नैरयिक) प ११५२, ५३; २।२० से २७; ३।१० से २३३८, ३६, १२६, १८३४।१,२.४ से २४; ५। ३ से ५, ८, २२, २७ से ३४,३६,३७, ४०,४१,४४,४५,६।१० से १६,४५, ४७, ५.१, ५८,६०,६५,६८,७०,७३ से ७८,८० से ८४, ८७,८८,६० से ६३,६६,६६,१०१ से १०३, १०५, १०६,११०,११४,११७,११६, १२१; ७ १ ८२, ४, ५, ६२, १४, २१, २४, १०८४२ ५१, ११।४०, ४१, १५६०,६१,८८, १ १७६, १०१; १८२; २०१६३,२२१३६ २८।१०६,३६।२२१।२६, १४० नेरइयअसण्णिआउय (नैरयिकासंज्ञयानुष्क) प २०६४ नेरइयत्त (नैरयिकत्व) उ१।२६, २७, २४० नेवत्थ (नेपथ्य ) ज ३।१७८ सप्प (सर्प) ज ३।१६७।१ नेह (स्नेह) उ १।७२,७३,८७,८८,६२ नो (नो ) प ५२ सू १।१८ उ १११५, ३।३४; ४२२ नोइंदियजवउत्त (नोइन्द्रियोपयुक्त) प २।१७४ Page #1037 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नोइंदियजवणिज्ज-पउस. नोइंदियजवणिज्ज (नोइन्द्रिययापनीय) उ ३।३२, ३०,६०,६४,८४,१५४,१५५,२६६,२७२, ३४ ५।५५ ५६;७।१७८ उ २।२,६ से १३ नोजुग (नोयुग) सू १२७ पउम (कंद) (पद्मकन्द) प ११४८६४२ नोपज्जत्तगनोअपज्जत्तग (नोपप्तिकनोअपर्याप्तक) पउमंग (पद्माङ्ग) ज २०४ प३।११० पउमगुम्म (पद्मगुल्म) उ २।२।१ नोपज्जत्तनोअपज्जत (नोप प्तिनो पर्याप्त) पउमद्दह (पद्मद्रह) ज ४।३,४,६,२२,२३,३७, प३।११० ३८,६४,८६,१४१,५।५५ नोपरिनोअपरित्त (नोपरीतनोअपरीत) प३।१०६ पउमपत्त (पद्मपत्र) ज ५१३२ नोभवसिद्धियनोअभवसिद्धिय पउमप्पभा (पद्मप्रभा) ज ४।१५४,१५५।१,२२१ (नोभासिद्धिकनोजभवसिद्धिक) प३।११३ पउमभ६ (पद्मभद्र) उ २।२।१ नोसंजतनोअसंजतनोसंजतासंजत पउमलता (पद्मलता) प १३६।१ (नोसंयतनो संयतनोन तासंत) प३।१०५ पउमलया (पद्मलता) ज ११३७, २।११,१०१; ४।२७;५२८,३२,३४;७।१७८ नोसंजयनोअसंजयनोसंजतासंजत पउमवरवेइया (पद्मवरवेदिका) ज १।१० से १२, (नोगतनोअमें तनोसंयतासयत) प ३।१०५ १४,२३,२५,२८,३२,३५,५१,४।१,३,२५,३१, नोसण्णिनोअसण्णि (नोगंज्ञिनोअसंज्ञिन) प ३।११२ ३६,४३,४५,५७,६२,६८,७२,७६,७८,८६, नोसुहुमनोबादर (नोसूक्ष्मनोबादर) प ३।१११ ६५,१०३,११०,११८,१४१,१४३,१४८,१४६, १७८,१८३,२००,२०१,२१३,२१५,२३४,२४० पइट्ठ (प्रतिष्ठ) ज ७४११४।१ से २४२ पइट्ठा (प्रतिष्ठा) ज ५१२१ पउमसेण (पद्मसेन) उ २।२।१ पइट्ठाण (प्रतिष्ठान) ज ३।१६७।११,३।२०६, पउमा (पद्मा ) प ११४८।४ ज ४।१५५११,२२१ . २१०,४।२६,५१५६ पउमहत्थगय (हस्तगतपद्म) ज ३।१० पइति ( तिष्ठित) प २०६४।२ पउमावई (पद्मावती) ज ५।१०।१ उ ११११, . पइदिव्य (तिष्टित) प २१६४।३ ; १४।१८।१ ६ से १०२,१४४,२१४,७ से ६,१६:५।२५ पइण्ण (प्रकीर्ण) ज ३।१२० पउमुत्तर (पद्मोत्तर) प १७४१३५ ज ४।२२५११, पइण्णग (प्रकीर्णक) प १।१०११८ २२६ पिउंज ( यूज) पउंजइ ज २१६०,६३,३१५६, पउमुतरा (पद्मोत्तरा) ज २।१७ चीनी,खांड १४५:५।२१,५८ पउंजति ज २।१८,३।११३; पउनुप्पलपिधाण (पद्मोत्पलपिधान) ज ३।२०६ १८५,२०६; १३ पउय (प्रयुत) ज २।४ पउंजमाण (प्रयुञ्जान) ज ३११७८ पउयंग (प्रयुताङ्ग) ज २।४ पउंजित्ता (प्रयुज्य) ज २।६० पउर (प्रचुर) ज २।१३१,३१०३ उ ५।५ पउट्ठ (प्रकोष्ठ) ज ७।१५८ पउरजंघा (प्रचुरजंघा) ज २।५३,१६२ पउम (पद्म) प ११४६,११४८१४१,४४,६२, पउरजण (पौरजन) ज २१६५ २।४६;११।२५ ज ११५१,२१४,१५,१६,३।३, पउल (दे०) प ११४८।६ १०,१०६,२०६;४।६,७,१४,१५,१७ से २२, पउस (पओस) प ११८६ Page #1038 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परसीया-पंचवीस उसिया ( बकुसिका ) ज ३।११।१ पस ( प्रदेश ) प ११४, ११४८२५८, ५६, २०६४, २।६४।११, ३ । १८०५।१३२,१३६ से १४५, १६०,१६१,१७६ १६५,२१४,२१६,१०१२ से ५,१८ से २४,२६ से ३०,११ |५०; १५ | १|१; १५।१२,२५,५४; १७ | १४१ ; २१।१।१; २२/५६३६।८२ ज २।१५ ३ । ११७५।३८ ६।१,३७।१७८ परसट्ठया ( प्रदेशार्थ ) प ३१२२, १८० ५ १२४, २८,६८,७८,८६,११५, १३६, १३८, १४०, १४३, १४७,१५०,१५४,१६३, १६६, १०३, १६७, २००,२१४,२१८,२२१,२३०, २४२, २०१३, २७ से २ε;१५।१३,२६,३१,१७ । १४४ से १४६; २१।१०४ उ ३/४४ पओग (प्रयोग) प १|१|५,१६।१ से ८, १८ ज ३।१०३,११५, १२४, १२५ पओगगति ( प्रयोगगति ) प १६ १७ से २१ पओगि ( प्रयोगिन् ) प १६ । १० से १५ पओय (प्रयोग) उ३।१०१ पंक ( प ) प १६।५४ पंकगति ( पङ्कगति ) प १६।३८, ५४ पंकप्पा ( पङ्कप्रभा ) प ११५३,२१,२०,२४; ३।१४,२०,२१,१८३,४।१३ से १५,६।१३, ७६,७७,१०११, २०१६,१०,४०,२११६७,३३६, १६ उ ११२६,२७,१४० बहुल (बल) ज २।१३२ पंक ( पङ्कज) ज ३।३५ पंकावई (पावती) ज ४। १९३ से १९६ पंकावती (पावती) ज ४ । १९५ पंच (पञ्चन् ) प १।७४ ज ११६ चं ३१३ सू १७ उ १२ पंच (पंचम) प १० | १४१४ से ६ पंचक (पञ्चक) प २३।१६४ पंचग (पञ्चक) प २३।१५५,१७७,१८० ज ७।१३१।२ ६६१ पंचगुल्लि (पंचांगुलितल ) ज ३१५६ पंचगुलिया (पञ्चाङ्गुलिका ) प १|४०|१ पंचाग ( ( पञ्चाग्नि) उ३।५० पंचणय ( पञ्चनवति) ज ४|११८ पंचतीस ( पञ्चत्रिंशत् ) सू १३ ।२५ पंचपसि ( पञ्चप्रदेशिक ) प १०।१० पंचम (पञ्चम ) प ३।१६,१८३६।८० १; १०।१४।३; १२।३२, १७१६५ २२१४१, ४२; ३३।१६,३६१८५,८७ ज २८८ ४११०६; ७।१०१ से ११०,१३१।१ सू १०७७,१२७; १३:११।२,६,१२१६; १३।१० उ २।२२; ३।७४,७६,१५४,१६६, १६७, ५ ११, ३, ४५ पंचमी ( पञ्चमी) ज ३१२४१४ ३७ २४५४२, ११८, १२५,१३११४ सू १०/६०; १२२८ पंचमुट्ठिय (पंचमुष्टिक ) ज ३ । २२४ उ ३।११३ पंच (पञ्चक) प २३।२६,२७,६१ पंचराय (पञ्चरात्रिक) ज २०७० पंचलइया (पंचलतिका) ज ३१८८ पंच (पंचवर्ण) ज १।१३,२१,२६,३३,३७, ३६,२७,५७,१२२, १२७, १४७, १५०, १५६, १६४,३१,७,२६,३६,४७,५६,६४,७२,८८, ११३,१३३,१३८, १४५, १६२,४१६३,११४; ५१३२,४३ सू २०१२ पंचण्णिय ( पंचदणिक) ज ३॥११७ पंचविध ( पञ्चविध ) सू २०१७ पंचविह (पञ्चविध ) प १४, १४, १५, ५५, ५८, १६, १२४,१३३,१३८, ११७३, १३४,६,१२,२४ से २६,२८६१५।५८ से ६०,६२,६३,६५ से ६७, १६।५,१७,२५,२७,२११२,३, ५५,७५,७६, ६४,२३।१७,२३,२५,२७,४०, ४१, ४३, ४४, ४६, ५६, ३४।१७, १८ ज २१४५३१८२,१८७, २१८७११०५,१११, ११२ सू १०।१२७ से १२६,१६।२२।२१ उ ३।१५,८४,१२१,१६२: ४।२४; ५।२५ पंचवीस (पञ्चविंशति ) सू १।२१ Page #1039 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६२ पंचसइय-पक्कणी पंचसइय (पञ्चशतिक) ज ४।१६२,१६८,२०४, ३६७,४०,५१,५७,७२,७३,६२ २१०,२३७,२६३,२६६,२७५ पंजर (पञ्जर) प २।४८ ज ३।११७,४।४६ पंचसतर (पञ्चसप्तति) सू १६।२२।३२ पंजलिडड (प्राञ्जलिपुट) ज ३।१२५,१२६५।५७ पंचसत्तर (पञ्जसप्तति) सू १८१४ उ १११६ पंचाणुव्वइय (पञ्चानुव्रतिक) उ ३।७६ पंजलियड (प्राञ्जलिपुट) ज ११६:२।६०,३।२०५, पंचाल (पाञ्चाल) प ११६३।२।। २०६;५०५८ पंचावण्ण (दे० पञ्चपञ्चाशत) ज ७८१,८४ पंडग (पण्डक) उ ३।३६ पंचासीइ (पञ्चाशीति) ज ७।२५ पंडगवण (पण्डकवन) प २११८७ ज ३।२०८; पंचासीत (पञ्चाशीति) सू १३११ ४।२१४,२४१,२४२,२४४,२४५,२४६,२५१, पंचासीति (पञ्चाशीति) सू २।३ २५२:५।४७,५५ पंचिदिय (पञ्चेन्द्रिय) प ११५२,५४,५५,६६, पंडर (पाण्डुर) प २१३१,४०१८ १३८, २।१६,२८,३११५३ से १५५,१८३; पंडिय (पण्डित) ज ३।३२ ४।१०५,५।३;६।१०७,१२१५,१३,१४,१५१३५, पंडुकंबलसिला (पाण्डुकम्बलशिला) ज ४।२४४, १७।२३;२०१३४,३५,२११४३,७०, २२।३१; २४६ २३।१६५ ज ३।१६७।५ पंडुमत्तिया (पाण्डुमृत्तिका) प १११६ पंचिदियरयण (पञ्चेन्द्रियरत्न) ज ३।२२०; पंडुय (पाण्डुक) ज ३।१६७।३ ७।२०३,२०४ पंडुयय (पाण्डुक) ज ३।१६७।१,१७८ पंचेंदिय (पञ्चेन्द्रिय) प १।१४,६० से ६२,६६ से पंडुर (पाण्डुर) ज ३।११७,१८८ ६८,७६,७७,८१३२४,४० से ४२,४८,४६, ण्डुरोग) ज २।४३ १८३;४।१०४,१०६ से १५७,५।२२,८२,८३, पंडुलइयमुही (पाण्डुरकितमुखी) उ १।३५ ८५,८६,८८,८६,६२,६३,९६,६७,६।२१,२२, पंडुसिला (पाण्डुशिला) ज ४।२४४ से २४७ ५४,६५,७१,७८,८३,८७,८६,६२,१००,१०२, पति (पङ्क्ति ) ज २१६५३।२०४;४।११६ १०५,१०७,११६, ६६,७,१६,१७,२२,२३; सू१६।२२।७,८,९ १११४६;१२।३१;१३।१८,१६,१५।१७,४६, पंतिया (पङ्क्तिका) उ ३३११४ ८७,६७,१०२,१०३,१०६,१२१,१३८,१६७, पंसु (पांशु, पांसु) ज २।१३३;३३१०६ १४,२७,१७।३३,३५,४१ से ४३,६३ से ६८, पंसुकीलियय (प्रांशुक्रीडितक) उ ३३८ ८६,६७,१०४,१८।१६,१८,२४,१६।४; पफड्ढ (प्र+कृष्) पकड्डइ ज ५१४६ २०११३,१७,२३,२५,२६,३४,४८,२११२,७ से पकड्ढिज्जमाण (प्रकृष्यमाण) ज ५१४४ १६,१६,२०,२६ से ३२,३६,४६,५१ से ५५, पिकर (प्र+कृ) पकरेंति प ६।११४ से ११६; ५८ से ६२,६५,६८,६६,७१,७७,८२,८८,६४; २०१८ से १३ ज ७१५६ सू १६।२४ २२१७४,८७,६६२३।४०,८६,१५०,१६७, पकरेति प २०१६३ १७१,१७६,१७७,१९६,१६६ से २०१;२४१७, पकरेमाण (प्रकुर्वत्) प६।१२३;२०१६३ २८॥४७,४८,६८,११६,१३०,१३६,१३७, पक्क (पक्व) प १६१५५ १४२,१४४;२६।१५,२२,३११४;३२।३,३३११, पक्कणिय (दे०) प ८६ १२,२१,२८,३२,३६,३४।३,८,३५।१४,२१; पक्कणी (दे०) ज ३।१२२ Page #1040 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पक्कमंत-पच्चत्थिम पक्कमंत (प्रकामत्) ज ३।१०६ पगास (प्र+काश) पगासइ ज ४।६१,२७३, पक्किमृगसंठाणसंठित (पक्वेष्टकसंस्थानसंस्थित) ७.१७८ पगासेति सू ३.१ पगासेति सू ३२ सू १६०२६ पगिज्झिय (प्रगृह्य) उ ३।४२ पक्किट्टगसंठाणसंठिय (पक्वेष्टकसंस्थानसंस्थित) पिगिण्ह (प्र+गह ) पगिण्हइ ज ३।२०,३३,५४, ज ७.५८ ६३,७१,८४,१३१,१३७,१४३,१६६,१८२ पक्कोलिय (प्रकीडित) ज ३।१,१२,२८,४१,४६, पगिण्हंति ज ३।१११ ५८,६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ पगिण्हित्ता (प्रगा) ज ३।२० पक्ख (पक्ष) प ७२,७ से ३० ज २१४,६४,६६, पग्गहेत्तु (प्रगृह्य) ज ३।१२,८८,५१५८ ८८,७।११५,११६,११८,११६,१२६,१२७ पघसिय (प्रघर्षित) ज ३।३५ सू६।१८।११०८५,८७,६०,६१ पच्चक्ख (प्रत्यक्ष) ज ३१,२४।३,३७।१,४५।१, पक्खच्छाया (पक्षच्छाया) सू ६४ १३१।३ उ ५२४ पिक्खल (प्र+स्खल) पक्खलेज्ज उ ३१५५ पच्चक्खयाविणीय (प्रत्यक्षविनीत) ज ३।१०६ पक्खि (पक्षिन् ) प ६।८०।११११४;२११४७११ पच्चक्खवयण (प्रत्यक्षवचन) प १११८६ . ज २११३१ सू २०१२ पच्चक्खाण (प्रत्याख्यान) प २०११७,१८,३४ पक्खित्त (प्रक्षिप्त) प १२।३२ उ १६० पच्चक्खाणावरण (प्रत्याख्यानावरण) प १४१७; पिक्खिप्प (प्र-+क्षिप) पक्खिप्पई ज ३१६८ २३।३५ पक्खिव (प्र+क्षिप) पक्खिवइ उ ११४६,३१५१ पक्खिवंति ज २।१२०५।१६ पक्खिवेज्जाहि पच्चक्खाणी (प्रत्याख्यानिनी) प ११।३७।१ पच्चणुब्भवमाण (प्रत्यनुभवत्) प २।२० से २७ सू २०१६।३ पक्खिवित्ता (प्रक्षिप्य) ज २११२० उ ११६१; पच्चणुभवमाण (प्रत्यनुभवत्) ज १।१३,३०,३६; ३।४१ ३।१२६,४।२ सू२०१७ उ ११११,९८,६६%3 पक्खिविराली (पक्षिविराली) प ११७८ ३।११४,११५,११६ पच्चस्थाभिमुहि (पश्चिमाभिमुखिन्) ज ४।४२,७७, पक्खुभिय (प्रक्षुभित) ज ३।२२,३६,७८,६३,६६, १०६,१६३,१८० २६२ पक्खेवाहार (प्रक्षेपाहार) प२८।४०,६६,१०२,१०३ पच्चस्थिम (पाश्चात्य) प ३१ से ३७,१७६१७८, पक्खेवाहारत्त (प्रक्षेपाहारत्व) प २८।४०,६६ ज १११६,१८,२०,२३,२४,३५,४१,४६,४८, पक्खोलणय (प्रस्खलत्) उ ३।१३० ५१,३।१,४४,६८,६६,६७,१२८,४।१,१६, पगइ (प्रकृति) ज २।१६,३१३,११७, ७।१८० २६,३७,४२,४५,४८,५५,५७,६२,७७,८१,८४, उ ५।४०,४१ ८६,६४,६८,१०३,१०८,१२६,१३५,१४३, पगइभद्द (प्रकृतिभद्र) ज ११४१२।३६,४१ १५११२,१६२,१६७,१६६,१७२ से १७८,१८१, पगडि (प्रकृति) प २३।१।१ १८२,१८४,१८५,१६०,१६१,१६३,१६४, पगय (प्रगत) उश।१ १९६,१६७,१६८,२०० से २०३,२०५,२०६, पगरेमाण (प्रकुर्वत्) प ६।१२३ २०८,२०६,२१३,२१५,२२६,२३२,२३८, पगार (प्रकार) ज ३८१ २५१,२६२,२६५,२६६,२७१,२७२,२७४, पगास (प्रकाश) प १३१ ज २११५,३।३५,११७, ५।१०,३६६।१६ से २४,२६,७।१७८ १८८,४/१२५,५२६२७११७८ उ ५६ सू २।१८।११३।३२,१४,१६,१८।१४; Page #1041 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज ५७ पच्चत्थिमलवणसमुद्द-पच्छिमदारिया २०१२ उ ३३५४ पिच्चुत्तर (प्रति-+-उत्+त) पच्चुत्तरइ ज २।२८, पच्चत्थिमलवणसमुद्द (पाश्चात्यलवणसमुद्र) ४१,४६ उ ३३५१ ज ४।२६८,२७७ पच्चुत्तरित्ता (प्रत्युत्तीर्य) ज ३।२८ उ ३३५१ पच्चस्थिमिल्ल (पाश्चात्य) प १६३४ ज ११२०, पच्चुप्पण्ण (प्रत्युत्पन्न) ज २।६०३।२६,३६,४७, २३,४८,२।११६,३१४७,७६,६५,१४६.१५०, ५६,१३३,१३८,१४५, ५।३,२२ १५६,१६१,१६४; ४।३७,५५,६२,८१,८६,६८, पच्चुवसम (प्रति+उप-शम्) पच्चुवसमंति १०८,१७२,२१२,२१३,२३०.२३१,२३८; .. ७।१७८ सू २।११०।१४२,१३।१४,१६ पच्चुवसमित्ता (प्रत्युपशम्य) ज ५१७ पच्चत्यय (प्रत्यवस्तृत) ज ३।११७ पच्चुवेक्ख (प्रति+उप+ ईक्ष ) पच्चुवेक्खइ पिच्चप्पिण (प्रति + अर्पय) पच्चप्पिण' ज ३११८७ ज ३।३२,१७१; ५७१ पच्चप्पिणंति ज ३०८, पच्चुवेक्खित्ता (प्रत्युप्रेक्ष्य) ज ३।१८७ १३,१६,२६,४२,५०,५६,६७,७५,१४८,१६६, पच्चोयड (दे०) ज ४।३,२५ १७४,१७६,१६८,२००,२१३,५१७०,७३ पच्चोरुभित्ता (प्रत्यवरुह्य) ज ४।१३ पच्चप्पिणति ज ३।१६,५३,६२,७०,१४२, पन्चोरुह (प्रति अव--- रुह ) पच्चोरुहइ १६५,१८१,५२५ पच्चप्पिणह ज २।१०५; ज ३।६,२०,३३,५४,६३,७१,१४३,१५१,१६६, ३१७,१२,१५,४१,४६,५८,६६,७४,१३०,१४७, १८२,१८६,२०४,२१४।५।२१,४४ उ १।१६; १६८,१७३,१७५.१६१,१६६,२१२,५१६६ ३१५१ पच्चोरुहंति ज ३१२१५,५५,४५ ७२ उ १।१७,४।१६,५।१८ पच्चप्पिणामि पच्चोरुहति ज ३।२८,४१ पच्चोरुहेइ उ१।१०६ पच्चप्पिणामो उ १११२७ ज३।१११,४।१८ पच्चप्पिणाहि ज ३११८,३१,५२,६१,६६,७६, पच्चोरुहिता (प्रत्यदरुह्य) ज २१६५ उ ११६, ८३,६८,१२८,१४१,१५१,१५४,१६४,१७०, ३१५१,४११५ १८०५।२८,६८ उ १।११५ पच्चप्पिणिज्जइपच्चोलक्क (प्रति+अबक) पच्चोसक्कइ उ १११२८ पच्चप्पिणेज्जा प ३६।११ ज ३।१२,८८,१५५ पच्चोसक्कति सु २०१२ पच्चय (प्रत्यय) ज ३।१०६ पच्चोसक्कित्था ज ३८६,१०२,१५६,१६२ पच्चामित्त (प्रत्यामित्र) ज २।२८ पच्चोसक्कित्ता (प्रत्यवकष्क्य) ज ३।१२ पच्चाया (प्रति-आ-जन) पच्चा तिज ६।४ पच्छभाग (पश्चाद्भाग) सू १०।४,५ पच्चायाति ज २१६४ पच्चायाहिइ उ १४३ पच्छा (पश्चात् ) प ३४।१,२,३६।८५,८८ १०५ पच्चायात (प्रत्याजात) ज २।१३३ उ ३७,५१,५३,५४,६१,१०७,११८,१३६; पच्चावड (प्रत्याक्त) ज ५१३२ ४।२१ पच्चावरण्ह (प्रत्यापराण्ह) उ ३३५६,६४,६८,७१, पच्छाकड (पश्चात्कृत) सू ८।१ ७४,७६ पच्छिम (पश्चिम) ज २१५५,५७ से ५६,६४,१२६, पच्चुट्टित्तए (प्रत्युत्थातुम् ) उ ३५५ १५५,१५६; ३।१३५॥१ पिच्चुण्णम (प्रति+उत्-।-णम्) पच्चुण्णमइ पच्छिमकंठभाओवगता (पश्चिमकण्ठभागोपगता) ज ५१२१,५८ __ सू ६४ पच्चुण्णमित्ता (प्रत्युन्नम्य) ज ५।२१ पच्छिमदारिया (पश्चिमद्वारिका) सू १०।१३१ Page #1042 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पच्छिमग-बज्जुवट्ठिय पच्छिमग (पश्चिमक) प १७१७० १३६,१४२,१४५,१४८,१५१,१५४,१५७, पच्छिमड्ढ (पश्चिमार्ध) प १६।३० . १६०,१६४,१६७,१७०,१७३,१७६,१७६, पच्छिमद्ध (पश्चिमार्ध) प १६।३०;१७।१६५ १८२,१८५,१८८,१६१,१६४,१६७,२००, पिच्छोल (प्रक्षालय) पछोलेंति ज ५१५७ २०३,२०६,२०६,२१२,२१५,२१८,२२१,२२४, पच्छोववण्णग (पश्चादुपपन्नक) प १७।४,६,१६,१७ २२७,२३०,२३३,२३६,६७१,७२,७६,८३, पजंपिय (प्रजल्पित) उ ३।६८ | ६७,६८,१०२,११।३१ से ३४,१८१६ से १२, पज्जत (पर्याप्त) प १।१७,२२,३१,४८।६०, १६ से २४,३१ से ३६,४०,४६ से ५१,५३, ११४६ से ५१,६०,६६,७५,७६,८१,२।१६ से ५४,११३;२११४०,४२,४४,४५;२३।१६६, ३६,४१ से ४३,४८ से ६३,३।११२,४३ से १६६ से २०१:२८।१४२,३६।६२ ४६,५३ से ६०,६४ से ७१.७५ से ८४,८८ पज्जत्ति (पर्याप्ति) प ११८४;२३।१६५,१६६, से ६५,११०,१७४;४।५५,७८,८७,६०,६१, १६६ से २०१;२८।१०६।१,२८।१४२ ६४,६७,१००,२३६,२४२,२४५,२४८,२५१, उ ३।१५,८४,१२१,१६२,४।२४ २५४,२५७,२६०,२६३,२६६,२६६,२७२, पज्जव (पर्यव) प ३।१२४,५।१ से ७,६ से २०, २७५,२७८,२८१,२८४,२८७,२६०,२६३, २३,२४,२७ से ३४,३६ से ३८,४० से ४२, २६६,२६६।६।१८१८।०२२११६,१६,१८, ४४,४५,४८,४६,५२,५३,५५,५६,५८,५६, २३ से ३४,३६,४०,४१,४४,४८,५०,५३,५५; ६२,६३,६७,६८,७०,७१,७३,७४,७७,७८, २३।१६३,१६५ ८२,८३,८५,८८,८६,६२,६३,६६,६७,१०० पज्जत्तग (पर्याप्तक) प ११२०,२३,२५,२६,२८, से १०७,११० से ११२,११४,११५,११८, २६,४८ मे ५१,५३,१३१ से १३३,१३५, ११६,१२८ से १३०,१३३ १३७ से १३६, १३७,१३८,२।१ से १६,३।४२ से ४६,५२ से . १४४,१४६,१४६,१५०,१५४,१५६,१६३, ६०,६३ से ७१,७४ से ८४,८७ से ८६,६१,६२, १६०,१६३,१६७,२००,२०३,२०५,२०७, ६४,६५,११०,१४३,१४६,१८३,६७१,७२, २११,२१४,२१८,२२१,२२४,२२८,२३० से ८३,६७,१०२,११३;११॥३६,४१,१५।४६; २३२,२३७,२३६,२४१,२४२,२४४;१०१५ २११५,१०,१३,२०,४१,५२ से ५५,७२; ज २।५१,५४,७१,१२१,१२६,१३०,१३८, ३४।१२,३६।६२ १४०,१४६,१५४,१६०,१६३;७।२०६ पज्जत्तगणाम (पर्याप्तकनामन्) प २३।३८,१२० उ ३।४७ पज्जत्तभाव (पर्याप्तभाव) उ ३।१५,८४,१२१, पज्जवसाण (पर्यवसान) प १११६६,६७,१४।१८; १६२,४।२४ २८।१६,१७,६२,६३,३६।२० ज २१६४,५२५६ पज्जत्तय (पर्याप्तक) प ३७४,८७,८६,६०,६२, ७।२३,२५,२८,३०,४५ सू १११४,१६,१७, ६३,६५,१४६,१५२,१५५,१५८,१६१,१६४, २१,२४,२७,२।३।६।१;१०।१,१११२ से ६ १६७.१७०,१७३,१७४,१८३;४।३,६,६,१२, उ ३१४० १५,१८,२१,२४,२७,३०,३३,३६,३६,४२, पज्जवसित (पर्यवसित) सू १११२ से ६ ४५,४८,५१,५४,५८,६१,६४,६७,६८,७१,७४, पज्जवसिय (पर्यवसित) प ११॥३० ७५,८१,८४,१०३,१०६,१०६,११२,११५, पज्जुण्ण (प्रद्युम्न) प ५१० ११८,१२१,१२४,१२७,१३०,१३३,१३६, पज्जुवट्ठिय (प्रत्युपस्थित) प १६।५२ Page #1043 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ε६६ √ पज्जुवास ( परि + उप + आस्) पज्जुवासइ ज २६०, ६३, ५३४८, ५०, ५८,६५ उ १११६; ३।१३; ४।१३; ५।१९ पज्जुवासंति ज ३।२०५, २०६;५।४६ उ ५।३६ पज्जुवासामि उ १।१७ पज्जुवासिज्जा उ५।३६ पज्जुवासीहा मि उ ३।२९ पज्जुवासेज्ज ज २१६७ पज्जुवासणया (पर्युपासन) उ१।१७ पज्जुवासणिज्ज (पर्युपासनीय) ज ७।१८५ सू १८।२३ पज्जुवासमाण (पर्युपासीन) ज १।६ चं १० उ ११४; ५।२२ पज्झमाण (प्रझञ्झमान) ज ५।३८ पट्ट (पट्ट) ज ३।२४,३५,७७,१०७,११७,१२४; ४।१३ २०१७ उ १।१३८ पट्टगार ( पट्टकार ) प १६७ पट्टण ( पत्तन ) प १।७४ ज २१२२,१३१; ३।१८, ३१,३२,८१,१६७१२, १८०, १८५, २०६, २२१ उ ३।१०१ पट्टणपति ( पत्तनपति) ज ३१८ १ पट्टिया ( पट्टिका) ज ३।७७, १०७,१२४ उ ११३८ पट्ठ (पृष्ट ) ज २११५;३ । १०६।११७ उ १।६७ पट्ठव (प्रस्थापित ) प २०१३६ पट्ठित ( प्रस्थित ) प १६।५२ पट्ठिय ( प्रस्थित ) प १६।५२ पड (पट) ज ३१६,८१,१२५,१२६,२२२ / पड ( पत्) पडइ उ ११५१ पडमंडव (पटमण्डप) ज ३८१ पडल (पटल ) ज २।१३१; ३।११; ४।३,२५ पडलग (पटलक) ज ५।५५ पडलहत्थग (पटल हस्तक) ज ३।११ पडसाय (पशाटक) ज २६६ पडह (पटह ) ३३।२२ ज३।१२,७८, १८०,२०६ पडाग ( पताका ) प २।४१,४८ ज १।३७ २०१५ ; ३३,३१ पडागसंठिया ( पताकासंस्थित) सू १०१४२ पडागा ( पताका ) प १५६, ७१ १५ २६ २१ २६, पज्जुवास पडिणिक्खम ५७ ज ३।३५, १०८ से १११,१७८ ४ ४६ ; ५।४३७११३३१२, १८४ उ ११२२, १४० पागाइप डागा ( पताकातिपताका) ज ३।७, १८४; ४१३० पडागातिपडागा ( पताकातिपताका ) प ११५६ पडसुया ( प्रतिश्रुत्) ज २६५ / पडिकप्प ( प्रति + कृप् ) पडिकप्पेइ ज ३।१५, २९, ३३ पडिकप्पेह ज ३।२१,३४,७७,६१, १७३,१७५,१६६ १।१२३ पडिक्कत (प्रतिक्रान्त) उ २।१२३ । १५०, १६१; ५।२८,३६,४१ / पडिक्कम ( प्रति + क्रम्) पडिक्कमेहि उ ३।११५ डिगय ( प्रतिगत) ज १।४ ३ । १२५५।७४ चं ६ V सू १।४ उ १।२, २४, ३७, २१, २५, ४५,६२, ६६,६९,७२,८१,१४३, १५६४।५ ५।२० पडिचर (प्रति + चर्) पडिचरइ सू १।१८ पडिचरंति सू १।१८ पडिचरति सू १३।१२ / पडिच्छ ( प्रति + इष् ) पडिच्छइ ज ३१४०, ४८, ५७,६५,७३,१३४, १३६,१४६,१५१,१५२ पडिच्छंति ज ५।१५ पडिच्छंतु ज ३।२६,३६, ४७,५६,६४,७२,१३३,१३८, १४५३३।११२; ४।१६ पडिच्छाहि ज ३।७६,१२८,१५१ पच्छिण्ण ( प्रतिच्छन्न) ज २१८, ६, १३ पच्छिमाण ( प्रतीच्छत् ) ज २२६५;३।१८,३१, १८०,१८६,२०४ पडिच्छायण ( प्रतिच्छादन) ज ४। १३ सू २०७ पडिच्छित्ता ( प्रतीष्य ) ज ३१७६ उ ११३३ पडिच्छिय ( प्रतीष्ट) उ३११३८ पडिजागरमाण ( प्रतिजाग्रत्) ज ३।२०,३३,८४, १८२,१६० १६५१०५ पडिण ( प्रतीचीन ) सू १।१६ पडिणिकास (प्रतिनिकाश ) ज ३६५, १५६ / पडिणिक्खम ( प्रति + निर् + क्रम्) पडिणिक्खमइ ज ३१५, १२, १४, १७, २१, २८, ३०, ३४,४१,४३, ४६,५१,५८,६०,६६,६८,७४,७७, ८४, ८५, १३६,१३६,१४०, १४७, १४६, १६८, १७२, Page #1044 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिणिक्खमित्ता-पडिवज्जितए १७७,१८७,१८८,१६६,२१४,२१८,२१६, २२२,२२४;५॥२३ पडिणिक्खमंति ज ३८, १५३,५७३ पडिणिक्खमें ति ज ३।१३ पडिणिक्खमित्ता (प्रति निष्क्रम्य) ज ३१५ पडिणिक्खमेत्ता (प्रतिनिष्क्रम्य) ज ३।१३ पडिणियत (प्रतिनियत) ज ३८१ पडिणिव्वुड (प्रतिनिर्वृत) ज २६८ पडिणीय (प्रत्यनीक) ज २।२८ सू २०६२ पडिदिसि (प्रति दिश) सू २०१२ पडिदुवार (प्रतिद्वार) प २१३०,३१,४१ ज ३७, १८३ पिडिनिक्खम (प्रति निर-+-क्रम) पडिनिक्खमइ उ ११४२, ३।४६,४।१२ पडिनिक्खमंति उ ११४५,३।१४५ पडिनिक्खमति उ ३।२६ पडिनिक्खमह उ १११२१ पडिनिक्खमित्ता (प्रतिनिष्क्रम्य) उ ११४२३।२६; ४।१२ पडिनिग्गच्छित्ता (प्रतिनिर्गत्य) उ १११२४;५।१६ पिडिनियत्त (प्रति+नि+वृत्) पडिनियत्तति प ३६।८८ पडिनियत्तित्ता (प्रतिनिवृत्य) प ३६।८८ पडिपाति (प्रतिपातिन) प २३।१३४,१३५,१३८, १४०,१४२,१४३,१५१ से १५५,१५७,१६०, १६१,१६४,१६६ से १६८,१७१ से १७३ पडिपाद (प्रतिपाद) ज ४।१३ पडिपुच्छण (प्रतिप्रच्छन) उ १११७ पडिपुच्छणिज्ज (प्रतिप्रच्छनीय) उ ३।११ पडिपुष्ण (प्रतिपूर्ण) प २११७४ ज २११५,७१, ८५,३।११७,१६७।१२,२०६,२२३,२२५; ५५६,७।१७८ पडिपुण्णचंद (प्रतिपूर्णचन्द्र) प २।५४,६०,३६।८१ __ ज ११७ सू १।१४ पडिबंध (प्रतिबन्ध) ज २१६६ उ ३।१०३,११२, १३६,१४८,४।११ पडिबुद्ध (प्रतिबुद्ध) उ १।३३; २।८।५।१३ पडिबोहण (प्रतिबोधन) ज ५२६ पडिमंजरी (प्रतिमंजरी) ज ७।२१३ पडिमोयण (प्रतिमोचन) ज २।१२ पडिय (पतित) उ ३।१३१,१३४,४।६ पडियाइक्खिय (प्रत्याख्यात) ज ३।२२४ पिडियागच्छ (प्रति- आ- गम) पडियागच्छइ सू२।१ पडियागच्छित्ता (प्रत्यागत्य) सू २।१ पडिरह (प्रतिरथ) उ ११२२,१४० पडिरूव (प्रतिरूप) प २।३० से ३२,३४,३५,३७, ३८,४१ से ४३,४५,४५।१,२,४६,४८ से ५२, ५८ से ६१,६३,६४ ज १८ से १०,२३,२४, २६,३१,३५,४२,५१,२।१२,१४,१५, ३११, १९५४१,३,६,१३,२५,२७ से ३०,३३,४६, १४६.१७८,२०३,५।३१,३३,३४,६२ सू १११; १८८उ ५१४ से ६ पडिरूवग (प्रतिरूपक) ज ३।१९५;४।४,५,२६, २७,८६,११८,१४४,२४६, ५।३०,३१,४६,६७ पडिरूवय (प्रतिरूपक) ज ३।१६५,२०४ से २०६, २१४,२१६,५१४१,४२,४४,४५ पडिरूविय (प्रतिरूपित) ज ३।१२० पिडिलाभ (प्रति+लाभय) पडिलाभेइ उ ३३१३४ पडिलाभेत्ता (प्रतिलाभ्य) उ ३३१०१ पहिलेद्र (प्रति--लिख) पडिलेटेड ज ३१२२४ पडिलेहित्ता (प्रतिलिख्य) ज ३।२२४ पडिलोम (प्रतिलोम) ज २१६,६७ पडिलोमच्छाया (प्रतिलोमच्छाया) सू ६।४ पडिवक्ख (प्रतिपक्ष) प ५२२६ पिडिदज्ज (प्रति+पद्) पडिवज्जइ प ३६९२ उ ३।१०४।५।२० पडिवज्जति सू ८।१ पडिवज्जाहि उ ३।११५ पडिवज्जिसु ज २१५१,५४,१२१ पडिवज्जिस्सइ ज २।१२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, १६३,३।१३४ पडिवज्जित्तए (प्रतिप्रत्तुम् ) प २०१७,१८,३४ उ ३३१११ Page #1045 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६८ पडिपज्जिता-पडु पडिवज्जित्ता (प्रतिपद्य) ३।४५,१०४,१४३,५।२० पिडिसुण (प्रति+श्रु) पडिसुणति ज ५७३ पडिवडितसम्मद्दिट्ठि (प्रतिपतितसम्पष्टि ) पडिसुणेइ ज ३।१६,५३,६२,७०,७७,८४, प ३३१८३ १००,१४२,१६५,१८१,५।२३,६६ उ ११५५; पडिवण्ण (प्रतिपन्न) प ३६।६२ ज ३।१४,२६, ३।१४० पडिसुणेति ज ३१८,१३,१०७,११३ ३०,३६,४३,४७,५१,५६,६०,६४,६८,७२, १८६,१६२ उ ११४५ पडिसुणेमि उ ११८३ ११३,१३०,१३६,१३८,१४०,१४५,१४६, पडिसुणेत्ता (प्रतिश्रुत्य) ज ३१८ उ ११४५ १७२ सू८।१ उ ३१६६,७६ पडिसेविय (प्रतिसे वित) ज २०७१ परिवत्ति (प्रतिपत्ति) चं हसू ११७१३,१।८।१,२, पडिसेह (प्रतिषेध) ५६।७४ से ७८,८०,११०, ३,१।२० से २३,२५,२६,२।१ से ३,३।१;४।२, ३,५१६।१७।१८।१६।१ से ३:१०।१, पडिसेह (प्रति+सेध) पडिसेहेइ ज ३।११० १३१:१७।११८।११६।१,२०११,२ उ १११६ पडिसेहेंति ज ३११०८ पडिवया (प्रतिपत्) ज २।१३८ पडिसेहित्तए (प्रतिषेद्धुभ् ) ज ३।११५,१२४,१२५ पडिवा (प्रतिपत्) ज ७।१२५ पडिसेहिता (प्रतिषि) उ १११६ पडिवाइ (प्रतिपातिन् ) प ३३।१।१,३३।३५ पडिसेहिय (प्रतिषिद्ध) ज ३।६५,१०६,१११,१५६ पडिवाति (प्रतिपातिन्) प १।११४ उ १२७ पडिवादिवस (प्रतिपत दिवस) ज ७।११६ सू १०८५ परिमेटेगव (तिरोधaro पडिसेहेयव्व (प्रतिषेधव्य) प ६१९८१०१६ से है पडिवाराइ (प्रतिपत रात्रि) ज ७।११६ पडिस्सुइ (प्रतिश्रुति) ज २।५६,६० ।। पडिवाराति (प्रतिपत्रात्रि) सू १०।८७ पिडिहण (प्रति+हुन् ) पडिहणंति सू ५।१ पडिवालेमाण (प्रतिपालयत्) उ १।१३३ पडिहत (प्रतिहत) प २०६४।२,३ ज ४।२५ पिडिविसज्ज (प्रति--वि-सजय) पडिविसज्जइ पडिहता (प्रतिहता) सू ६।४ उ३।१०४ पडिविसज्जेइ ज ३१६,२,७,४०, पडिहय (प्रतिहत) चं २ सू ११६:५१ ४८,५७,६५,७३,१२७,१३४,१३६,१४६,१५२, पडीण (प्रतीचीन) प २११०,५० से ६२ ज २१८, १७१,१८६,२१६ उ १६१०६३।१३७ २०,२४,३।१४।१,३,८६,८८,९८,१०३,१०८, पडिविसज्जिय (प्रतिविजित) ज ३।१७१ १४१,१६२,१६७,१६६,१७८,१८५,१८७, उ १३३,११० १६१,२००,२०३,२४५,२५१७।१०१ पडिदिसज्जेत्ता (प्रतिविसय) ज ३१६ सू १।१६२।१ पडिसंखेवेमाण (प्रतिसंक्षिपमाण) ज ५१४४ पडीणउदीण (प्रतीचीनोदीचीन) सू८।१ पिडिसंवेद (प्रति-!-सं+वेद) पडिसंवेदेति पडीणवाय (प्रतीचीनवात) प ११२६ प१५।३८ पडीणा (प्रतीची) ज १११८,२०,२३,२५, पडिसत्तु (प्रतिशत्रु) ज ३।१३५१ २८,३२,४८,३।१४।१,३,५५,६२,८१,८६,८८, पिडिसाहर (प्रति+सं+ह) पडिसाहरइ ज ५१६७ ८,१०३,१०८,१७२,२०५,२१४,२४६, पडिसाहरंति ज ३।१२५ पडिसाहरति २५२,२६२,३६८ प ३६।८५ पडु (पटु) प २।३०,३१,४१,४६ ज ११४५,३८२, पडिसाहरित्ता (प्रतिसंहृत्य) प ३६.८५ ज ३।१२५ १८५,१८७,२०६,२१८,५१,१६,७१५! पडिसाहरेमाण (प्रतिसंहरत्) ज ५।४४ . ५८,१८४ सू १८।२३:१६१९२३,२६ Page #1046 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडुच्च-पणिवय ६६६ पडुच्च (प्रती) प १२७४;२।७६।६३,८।४,६, पण (पञ्चन्) सू १०१५७ ८,१०,१११४६,५३, ५.५,५७,५६१४।५3 पणगजीव (पनकजीव) प ३६।६२ १८.१२११९५२३।६३,१७६२८१६,६,२० पणगमत्तिया (पनकमृत्तिका) प १११६ २६,३१,५२,५५,६८ से १०१ ज ४।५४ ‘पणच्च (प्र- नृत्) पणच्चंति ज ५१५७ मुहा२ पणट्ठ (प्रनष्ट) प ११४८।३६ पडुच्चरूच्च (पती स-) प ११॥३३,११।३३।१ पणतालीस (पञ्चचत्वारिंशत् ) प ११८४ पडुप्यण्ण (प्रत्युत्पन्न) प १२।१२,३२,३८ सू १६।२० ज ७.३६,५२ सु १।२७ पणतीस (पञ्चत्रिंशत् ) सू ११२० पडुप्पण्णभाव (प्रत्युत्पन्नभाव) प२८।१८ से १०१ पणतीसतिभाग (पञ्चत्रिंशत्भाग) प २३।८६,८८, पडुप्पण्ण वयण (प्रन्यू प नवचन) प ११।८६ ६५ से १८११८,१५१ पडे मुया (प्रतिश्रुत्) ज ५।२५ पणपण्ण (दे० एञ्चपञ्चाशत्) प ४।२८ ज ४।१७२ पडोयार (प्रत्यवतार) प ३०।२५,२६ ज १७,२१, सु १२१७ २२,२६,२७,२६,३३,४६,५०;२।७,१४,१५, पणय (दे०) प ११४६,११४८११,११६५ ज २११३३ २०,५२,५६,५८,१२२,१२३,१२७,१२८,१३१, पणय (प्रणत) ज ३८१,१०६ १३२,१३३,१३६,१४७,१४८,१५०,१५१, पणयबहुल ('पनक"बहुल) ज २११३२ १५६,१५७.१५६,१६४:४१५६,८२,६६ से पणयाल (पञ्चचत्वारिंशत् ) ज ७।१३४ सु ११२१ १०१,१०६,१७०,१७१ पणयालीस (पञ्चचत्वारिंशत्) ज ११६ सु ४।३ पडोल (पटोल) प १।३७।२,११४०।१,११४८।४८ उ ५।२८ पढम (प्रथम) प १११०३,१०६,१०७,१०६,११०, पणव (प्रणव) ज ३।१२,७८,१८०,२०६५५ ११३,११४,११६,११६,१२०,१२२,१२३; पणवण्ण (पञ्चपञ्चाशत्) ज ४१५५ २।३१,६१८०।११०।१४।१ से ३,१२।१२, पणण्णिय (पणपन्निक) प २१४१ १६,३१,३२,२२।३३,४१,३६।८५,८७,६२ पणवन्निय (पणपन्निक) प २१४७११ ज २१५५,५६,६३,६४,१३८,१५५ से १५८; पणवीस (पञ्चविंशति) प २।२२ ज ११२३ ३।३०,१३५,२१७,४१४२।३,१५३,१५४, सू १।२१ १८०,७।१८,२०,२३,२६,२८,६७,१०१,१०६, पणवीसतिविध (पञ्चविंशतिविध) सू ६।४ १५६,१६०,१६४ च ३।३ सू ११७,१३,१४, पणाम (प्रणाम) ज ३१५,६,१२,८८ १६,२१,२४,२७, २।३।६।१८।१।१०।६३, पिणाव (प्र-नामय) पणावेइ उ १।११६ ६७,७७,१२७,१३८,१३६,१४३,१४४,१४८, पणावेहि उ ११११५ १५०,१५२:१११२.३, १२।२,१६,२०,२४; पणावेत्ता (प्रणाम्य) उ १२११५ १३।१,७,६,०; १४१३,७ उ ११६ से ८,६३, पणासित (प्रणाशित) सू २०१७ १४२,१४३,१४८, २॥१,३,१४,१५,२२,३१३, पणिधाय (प्रणिधाय) प १७११११ सू ६१ १६,२०५०,५१,४।३,२७,५।३,४४ पणिय (पणित) ज २।२३ पढमणरीसर (प्रथमनरेश्वर) ज ३।१२६॥३ पणिवइय (प्रणिपतित) ज ३।१२५ पढमता (प्रथम) म ११४८१५१ पणिवय (प्र-णि+पत) पणिवयामि ज ३।२४।१, पढमया (प्रथम) ज ३१२११४११८०,५।५८ १३१।१ सू१०५ १. पनक: प्रतल: कर्दमः-टीका Page #1047 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० पणिहाय ( प्रणिधाय ) प १७।१०६ से १११ ज ४।५४,८०७ २७,३० ११४, २४ पणुवीस ( पञ्चविशति ) प ४।२७३३।७ पणुवी सइम (पंचविंशतितम ) प १० | १४ | ३ पण्णट्ठ (प्रणष्ट) ज ३।३ पण्णट्ठ (पञ्चषष्टि) ज ७।१५,९६ पण्णठि (पञ्चषष्टि) ज ४।१६५ १०/१५२ पण्णत्त (प्रज्ञप्त ) प १।१ ज १७ से १।१४ उ १।४ पण्णत्तर (पञ्चसप्तति) ज ४।४५ पण्णत्तरि (पञ्चसप्तति) ज ४।१४२ पण्णति (प्रज्ञप्ति ) सू २०१२।१२।१६० पण्णर ( पञ्चदशन् ) प १०।१४ ४, ५ पण्णरस (पञ्चदशन् ) प ११७४ ज १२३ पण्णरसद (पञ्चदशन् ) १९।२२।१२ पण्णरसति ( पञ्चदशन् ) सु २०१३ पण्णरसम (पञ्चदश) ज ७।६७ सू १०1७७; १२६१३।१,१०६ १४३,७११।२२, २०१३ पण्णरसविह (पञ्चदशविध ) प १२८८१६।१,२, ८,१८,१६ पण्णरसी (पञ्चदशी) सू १० १० १३०१ १४१३,७ पण्णरसीदिवस (पञ्चदशीदिवस) ज ७।११६ १०१३ यू १०/६५ पण्णरसीराइ ( पञ्चदशीरात्रि ) ज ७।११६ पण्णरसीराति (पञ्चदशीरात्रि) १०६७ √ पण्णव (प्र + ज्ञापय् ) पण्णवेइ ज ७।२१४ उ १८ पण्णवेहिंति सू १६।२२।३ पाणवणा (प्रज्ञापना) प ११११२, ४,४६,१३८ २८।६८ से १०१ उ ३।१०६ पण्णवणी (प्रज्ञापनी ) प ११०४ से १०,२६ से २६, ३७/१,८७ पण्णवित्त (प्रशप्तुम्) उ३।१०६ पणवीस (पञ्चविंशति ) प २२७१४ पणा (दे० ) प २/४०१३ ज ५४९ पणा (प्रज्ञा) पण्णावए ज ७।१६९ पण्णावग ( प्रज्ञापक) ज ३६५, १५६ हायपत्तिय पण्णास ( पञ्चाशत ) प २१५५ ज ११२३ १२/३, ८ उ५।१३ पण्य (प्रस्नत) उ३।१० / पतणतण ( प्र + तनतनाय्) तणतणाइस्सइ ज २११४१,१४५ तणतणावंति ज ३०११५ ५।७ पतणतणाइत्ता ( प्रतनतना ) ज २११४१ पतर (सर) १२११२,१६ पतव ( प्र + तर ) पतवंति ज ५।५७ / पताव ( प्र + तापय् ) पतायेंति सू ३१ पतिट्ठिय ( प्रतिष्ठित ) प १४ | ३ पतिसम ( प्रतिसम ) ज ३।६२,११६ पत्त ( प्राप्त ) प २२६४।२०, ६६८,२११७२,२३।१३ से २३,३६।९४११ ज २६५३२६,३६,४७, १२२,१२६,१३३४७३२६५,६८,१०१, १२२,१५०,१६१६४२५५४२३,२८,३१,३६, ४१ पत्त (पत्र) प १३४,३६,४७११,१२४८९,१६,२६, ३६,४५,४७,४६,५१,६३२२८,९,१२,१५, ६८, १४५, १४६; ३।११।३३।१२,८८, १८ १०६४१२,२५५४५५८३७११७८३३।५०, ५.१,५५ पत्त ( प्राप्त, पात्र) १।१२८ पत्तउर ( पत्तूर ) प १|३७|३ पत्तकयवर ( पत्रकच वर ) ज २१३६ पत्तच्छण्ण (पत्राच्छन्न) ज २।१२ पत्त (दे०) ज ५।५. पतपुर (पत्रपुट) ज ४।१०७ पत्तल (पत्र) ज २१५२०१०६७ १७८ ११ पत्त (वासा) (पत्रवर्षा) ज ५५७ पत्तविच्छु (पत्र) ११५१ पत्तामोड (पत्रामोट) उ ३।५१ पत्तासव (पत्रासव ) प १७।१३४ पताहार (पत्राहार) प १।५० ३।५० पत्तिय (पत्रित) उ ३४६ Page #1048 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्तिय- पभंकरा V पत्तिय ( प्रति + इ) पत्तिएज्जा प २०१७, १८,३४ पत्तियामि उ ३।१०३ पत्तेय ( प्रत्येक ) प ११४८१४५, ४७, ४६, ६०, २०४८; ६।१८; ६४; १०।१४; १६।१५ ज १।४६; ३।२०६४।५,२७,११०, ११४,११६, ११८, १२२,१२५,१२८,१३६; ५।१ से ३, ५, ७,३१, ४२, ५६ उ १।१२१,१२२,१२६ पत्तेयजिय ( प्रत्येकजीव ) ५ १२४८६ पत्तेयजीविय ( प्रत्येकजीवित) ५ १।३५,३६ पत्तेयबुद्ध सिद्ध ( प्रत्येकबुद्ध सिद्ध ) १।१२ पत्तेयसरीर ( प्रत्येकशरीर ) ५१।३२,३३,४७; ४७ २, ३, ३।७२ से ७४,८१,८४ से ८७, ६५, १८३१८/४४,५२ पत्तेयसरीरणाम ( प्रत्येकशरीरनामन् ) प २३।३८, १२१ पत्थ ( पथ्य ) ज ४३,२५ पत्थड ( प्रस्तट ) प २०१४,१०,१३,४८,६० से ६२ ज ४ ४६ पत्थाइत (प्रस्थातुम् ) उ ३।५५ पत्थाण (प्रस्थान ) उ ३१५१, ५३, ५५ परिज्माण (प्रार्थ्यमान ) ज २२६५; ३।१८६,२०४ पत्थिय ( प्रार्थित) ज ३१२६,४७,४६,८७,१२२, १२३,१३३, १४५,१८८५।२२ उ १।१५,५१, ५४,६५,७६,७६,६६,१०५ ३ २६,४८,५०, ५५,६८,१०६, ११८, १३१,५३६, ३७ पत्थिय ( प्रस्थित) उ३५१,५३,५५ पथिक ( पार्थिव) ज ३।३ पद (पद) प१1१०१ ।७, १२।३२; १८।१।२; २८।१४५;३६।७२ ज ३।३२ सू १०।६३ से ७४ पदाहिण (प्रदक्षिण) सू १६ २२ १०, ११; १६।२३ (पदीस ( प्र | दृश्) पदीसई प १।४८ । १० से १७,१६ से २३ पदीसए प १।४८।११ से १३ पदीसति प ११४८/२५ से २६ पदीसती ५१।४८।१८,२४ पदेस ( प्रदेश ) प १३,४,२।६४।१,११,३।१२४, ६७१ १८०,१८२५ ।१२४, १२५, १३१, १६१, १७७, १७६,१६३,२१६,२१८; १०२, ४, ५, १८, १६, २१ से २३,२५,२६; १२।३०,५३,५७; १७।११४।१; २२।५८,७६२८१५, ५१ ज २।६५; ४। १४३ सू १६ २६ पदेसघण ( प्रदेशघन ) प २०६४।५ पट्ठता ( प्रदेशार्थ ) प ३।११६ से १२०, १२२ पदेसया ( प्रदेशार्थ ) प ३।११५, ११६,१२०,१२२, १७६ से १८२,५।५, ७, १०, १४, १६, १८, २०, ३०, ३२,३४,३७,४१,४५,४६, ५३, ५६,५६,६३,७१, ७४,८३,८६,६३,६७, १०१, १०४,१०७, १११, ११६,१२६,१३१,१३४, १४५, १६६, १७२, १७४, १७७, १८१,१८४, १८७, १६०, २०३, २०७,२११,२२४, २२८, २३२,२३४,२३७, २३६; १०१३, ४, ५, २६, २७ १७ १४४, १४६ ; २१।१०४ पदेसणामणिहत्ता उय ( प्रदेशनामनिधत्ता युष्क ) प६।११८ पदेसणाम निहताय ( प्रदेशना मनिधत्ता युष्क ) प ६।११६,१२२ / पधार ( प्र + धू) पधारेइ ज ५।७२,७३ पधारेति प २२|४ पोत (प्रधौत) ज ३।१०६ पन्नरस ( पञ्चदशन् ) प १८४ पन्नरसविह (पञ्चदशविध ) प १।१२:१६ । ३६ पप (प्राय) प १६ | ४६; १७।११५ से १२२, १४८, १५४; २३।१३ से २३; २८ । १०५; ३४।१६ पपडमोदय ( पर्पटमोदक ) प १७।१३५ पप्पडमोयय ( पर्पटमोदक ) ज २०१७ पफ्फुल ( प्रफुल्ल ) ज ४।३, २५ पन्भट्ठ (प्रभ्रष्ट ) ज ३।१२,८८,५७,५८ पन्भार ( प्राग्भार ) प २।१ ज ३८८, १०६ उ १।२७, १४० ; ५५ पमंकर ( प्रभङ्कर) सू २०१८,२०१८ ७ पभंकरा ( प्रभङ्करा ) ज ४।२०२७।१८३ Page #1049 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७२ सू १८।२१, २४, २०६ पभंजण ( प्रभञ्जन ) प २२४०७ पभणिय ( प्रभणित) उ३१६८ भव ( प्रभव ) प ११।३०।२ भव ( प्र + भू) प्रभवति प ११।३०।१ पभा (प्रभा ) प २३०,३१,४०११०, २०४१, ४६ ज ३।३५,२११ ; ४।२२,३४,६०,२७२; ५।१८, ३२ पभाव ( प्रभाव) ज ३।६५, १५६,२२१ भावई ( प्रभावती) उ १।३३ भावणा (प्रभावना ) प १११०१।१४ भास (प्रभास) ज ४।२७२६ । १२ से १४ भास ( प्र + भाष्) पभासइ ज ४।२११ / पास ( प्र + भास् ) पभासंति ज ७।१ भासिसु ज ७।१ सू १६।१६ पभासिस्तंति ज ७ । १ सू १६।१ पभासेंति ज ७५१,५८ १६।१ भासु सु १६ । १ पभासेति सू १६ । १ पमाणभूय ( प्रमाणभूत) उ३।११ भासंत ( प्रभासमान ) सु १६ । १५/२ पभासतित्थ ( प्रभासतीर्थ ) ज ३१४३, ४४, ४६ पभासतित्थाधिपति ( प्रभासतीर्थाधिपति ) ज ३४६ पभासतित्थाहिवइ ( प्रभासतीर्थाधिपति) ज ३।४७ पभासतित्थकुमार ( प्रभासतीर्थ कुमार ) ज ३।४७ से ४६, ५१ भासेमाण ( प्रभासमान ) प २१३० से ३३, ३५, ३६, ४१,४८ से ५२,५८ पभिइ ( प्रभृति) ज २।१४६; ३८६. १७८ १८६, १८८१८६,२००, २१०, २१६, २१६,२२१ उ ३।१०१५ १०,१७,१६,३६ पभिति ( प्रभृति) ज ३।१० सू १६।२२।२५ पभु (प्रभु) ज ५५,४६,७११८३, १८४,१८५ सू १८ से २३ ५।३२ पभूय ( प्रभूत) ज ३१८१,१०३, १६७ १४ ५७ / पमज्ज ( प्र + मृज्) पमज्जइ ज ३।१२,२०,३३, ५४,६३,७१,८८, १३७, १४३, १६६ पमज्जित्ता ( प्रमृज्य ) ज ३।१२ पमत्त ( प्रमत्त ) प १७।३३,२१।७२ ज ५।२६ पमत्तसंजत ( प्रभत्तसंयत ) ६६६८ पत्तसंजय ( प्रमत्तसंयत ) प ६६८; १७।२५: २२/६१ मद्द (प्रमर्द) ज ७।१२६ १०।७५ उ १।१३६ पण ( प्रमर्दन) ज ५४५ पमाण ( प्रमाण ) प १।१०१६; १२।१२,३८ १५।१०,२३, २१।१।१, २१८४,८६,८७,६० से ६३;३०१२५, २६, ३३।१३, ३६०५६,६६,७०, ७४ ज ११३२,३५,४१,२१४; ६।१, १५, १३३, १३८,१४१ से १४५, ३।१०६,११७,१३८, १६७।३,४।१,६,२५,६४,७०,७६, ८६, ६०, १०६, १२३, १३३,१३६, १४०१२, १३४ से १६०, १६२ से १६५,१७४, १७५, १९४,२०२,२२२1१, २३५, २३६,२४६, २५०, २५१ ५४६,४६; ७३५,१६८१२,१७८ ११२७; २ ३ ४ ६ उ १।१३८३।१११ भजण-पम्हगंध पाणमित्त (प्रमाणमात्र ) ज ३६५, ११५, ११६, १५६,५३८ पमाणमेत्त ( प्रमाणन. त्र ) ज ११४०, २०१३३,१३४, १४१ से १४५३।१२,८८,०२, ११६,११६, १२२,१२४;४।१४,५७,५८,६७ माणसं वच्छर ( प्रमाणसंवत्सर) ज ७ १०३,१११ सु. १०।१२५,१२८ पमुइय ( प्रमुदित ) प २०४१ १४२६,२४६५;३।१, १२,२८,४१,४६,५८,६६,७४, १४७, १६८, २१२,२१३ सु १।१ पमुह (प्रमुख) ज ७।१७८२०१८,२०८१५ पमोय (प्रमोद) ज ३।२१२,२१३,२१६ म्ह (क्ष्मन्) प २१४६, ४।२०६,२१०, २१२; २१२।१ म्ह (पद्म) ज ११५, २५१ पहकूड ( पक्ष्मकूट ) ज ४।१८४ से १८७,२१० पहगंध (पद्मगंध ) ज २।५०,१६४४।१०६,२०५ Page #1050 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पम्हगावई-परक्कम ६७३ पम्हगावई (पक्षमावती) ज ४।२१२,२१२।१ पम्हल (पक्ष्मल) ज ३१६,२११,२१२:१५८ पम्हलेस (पद्मलेश्व) ५ १७.१६८ पम्हलेसट्ठाण (पझलेश्यास्थान) १७१४६ पम्हलेसा (पद्मश्या ), १७।१२१ पम्हलेस्स (पद्मले२५) प ३९६१३।२०१६।४६; १७।३५,५६,६४,६६ से ६८,७१.७३,७६ से ८१,८३,८४,११२,१६७,१८।७३;२८।१२३ पम्हलेस्सट्ठाण (पद्मलेश्यास्थान) प १७।१४६ पम्हलेस्ता (पद्मलेश्या) प १६।४६;१७।३५,३६, ५४,११७,११८,१२१,२२५,१२७,१२६,१३४, १३७,१४४,१५३ से १५५ पम्हलेस्सापरिणाम (पदमच्यापरिणाम) प १३१६ पम्हावई (पक्ष्मावती) ज ४।२०२।२,२१२ पय (पद) प ११०११७:२२।४५; २३।१४६; २८।१।२,२८।१२३,३६१६६,७२ ज ३।६,१२, ८८,१५५,१६७१७,५२१,५८,७।१५६ से १६७ उ ३३१०१,१३४ पयंग (पतङ्ग) प ११५१११ पयग (पतग, पदक) ज २।४१,२।४७११ पयडि (प्रकृति) ५२३।१११ पयणु (प्रतनु) ज २०१६ पयत (पतग,पदग) प २१४७१३ पयत (प्रत) ज ३।१२८८; १५८ पयत्त (प्रवृत्त) ज ५।२४,५७ पययपइ (पतगपति,पदगपति) प २१४७१३ पयर (प्रतर) प ११४८१६०; १२१८,२७,३६,३७ पयरग (प्रत रक) ज ३।१०६; ५।३८,६७ पयरय (प्रतरक) प ११।७५ पयराभेद (प्रतर भेद) प १११७५,७६ पयराभेय (प्रारद) प ११७३ पयला (प्रचला) प २३।१४ पयलाइय (दे०) प ११७६ पयलापयला (प्रचल प्रच) १ २३।१४ पयलिय (प्रचलित,प्रगलित) ३१६५२१ पयल्ल (प्रकल्प) सु २०१८,२०।८।५ पया (प्रजा) ज २१६४;३।१८५,२०६ पिया (प्र+जन ) पाएज्जा उ ३।१०१ पशामि उ ११७८,३६८ पयाहिइ उ ३।१३६ पयात (प्रयात) ज ३।१४,१५,३१,४३,४४,५१, ५२,६०,६१,६८,६६,१३०,१३१,१३६, १३७,१४०,१४१,१४६,१५०,१७३ पयाय (प्रथात) ज ३।३०,१४६,१६७,१७२ पयाय (प्रजात) उ ११५३ ; ३।१३४ पयायमाण (प्रजनयत्) उ ३।१२६ पयार (प्रचार) ज २११३१ पयालवण' (प्रयालवन) ज २१६ पयावइ (प्रजापति) ज ७।१३०,१८६।३ पयावइदेवया (प्रजापतिदेवता) मू १०१८३ पयाहिण (प्रदक्षिण) ज ११६२।६०३३५५५, ४४,४६ उ १।१६,२१, ३।११३,४।१३ पयाहिणावत्त (प्रदक्षिणावर्त) ज २।१५; ७।५५ पयोहर (पयोधर) ज २०१५ पर (पर) प १११०११४, २०६३, ३१३६,६।८०१२; १४।३,२२१४ से ६,२३।१३ से २३ सू १११६; ६।१;१३।१२, १४ से १७ पर (परं) प १११८६ परंगणय (पर्यङ्गत्) उ ३।१३० परंपर (परम्पर) प २०१६ से ८ ज ७।४२ परंपरगत (परम्परगत) प २१६४।२१ परंपरसिद्ध (परम्परसिद्ध) प ११११,१३,१६।३५, ३७ परंपरा (परम्परा) उ १११११,११२ परंपराघाय (परम्पराघात) प ३६।६४,७८ परंपरोगाढ (परम्पर वगाढ) प १११६३ परंपरोववण्णग (परम्परोपपन्नक) प १५१४६% ३४।१२ परक्कम (पराक्रम) प २३।१६,२० ज २१५१,५४, १२१,१२६,१३०,१३८,१४०.१४६,१५४, १.पिचालवण इति कल्पनापि जाते। Page #1051 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ परक्कममाण-परिग्गहिय १६०,१६३; ३।३,७७,१०६,१११,१२६,१२६, १८८,७११७८ सू २०११ परक्कममाण (पराक्रममाण) उ ३।१३० परघर (परगृह) उ ५।४३ परट्ठाण (परस्थान) प ६१६३,१५।१२१,३६।२०, २४,२७,४७ परपरिवाय (परपरिवाद) प २२।२० परपुठ्ठ (परपुष्ट) प १७।१२३ परभवियाउय (परभ विकायुष्क) प६।१।१,११४ से ११६ परम (परम) प २।२० से २७, २३१६६ ज २।४, ६६,७१,१३३, ३।३,५,६,८,१५,१६,३१,५३, ६२,७०,७७,८१,८२,८४,६१,१००,११४, १४२,१६५,१७३,१८१,१८६,१६६,२१३; ५।२१,२७ उ ११२१,४२, ३।५१,५६,१३०, १३१,१३४,१४४ परमत्थ (परमार्थ) प १११०१।१३ परमाणु (परमाणु) प १०।१४।१ ज २।६।३ परमाणुपोगग्ल (परमाणुपुद्गल) प ११४; ३।१७६, १८२,५।१२५,१२७ से १२६,१७३,१७४,१८६, १६०,२०२,२१०,२११,२२६,१०१६,१६।३४, ३९,४३,३०।२६,२८ परलोय (परलोक) ज २०७० परवस (परवश) उ ३।१२६ परसु (परशु) उ ११२३,८८,८६,६१ परस्सर (पराशर) प ११६६,११।२१ ज २११३६ परस्सरी (पराशरी) प १११२३ परहुय (परभृत) ज ३।२४ पराघायणाम (पराघातनामन्) प २३।३८,५३,११० पराजय (परा+ जि) पराजिणिस्सइ उ १११५ परामुट्ठ (परामृष्ट) ज ३।७६,८०,११६,११८ परामुस (परा+मृश) परामुसइ ज ३।१२,२३, ३७,४५,७८,८८,६४,११६,११७,११६,१३१, १३५ उ ११२२ परामुसित्ता (परामृश्य) ज ३।१२ उ ११२२ परावत्त (परा+वृत्) परावत्तेइ ज ३।२८,४१, ४६,१३५ परावत्तेत्ता (परावृत्य) ज ३।२८ परिकह (परि+कथम्) परिकहेइ उ ११२०,४।१४ परिकहेंति उ ३३१३५ परिकहेमो उ ३।१०२ परिकहेह उ ११४२ परिकहण (परिकथन) उ ५११३ परिकहेउं (परिकथरि तुम्) प २१६४।१७ परिकिण्ण (परिकीर्ण) उ ३।१४१; ४।१२,१३ परिक्खित्त (परिक्षिप्त) ज ३।२२,२४,३०,३६,७६, ७८,१७८ ; ४।११०,११६,११८,५।२८,४४ उ १११६:५।१७ परिक्खेव (परिक्षेप) प २५०,५६,६४,३६८१ ज १७,१०,१२,१४,२०,२३,३५,४८,५१; २२६;४।१,२१,२५,३१४०,४१,४५,४८,५३ से ५५,५७,६२,६७,६८,७५,७६,८०,८१,८४, ८६,६२,६३,६६,६८,१०८,११०,११४,११८, १४३,१६५,२१३,२२६,२४१,२४२,७७,१४ से १६,३१,३३,६६,७३ से ७८,६०,६३,६४, १८ से १००,२०७ सु १।१४,१६,१७,१६,२१, २४,२६,२७,२।३,३।१; ४।४,७,६।१,१०।१३२; १५२ से ४,१८।६।१६।१,४,५।१,७,१०,१४, १८,२०,३०,३१,३४,३५,३७ परिगय (परिगत) ज ३।३०,११७,४।२७,५।२८ उ ५१५ परिगर (परिकर) ज ३।२४।३,३१,३७।१,४५।१, १३१।३ परिगायमाण (परिगायत् ) ज ५१५,७ से १२,१७ उ ३।११४. परिग्गह (परिग्रह) प २२।१८,१६ ज २१४६ परिग्गहसण्णा (परिग्रहसंज्ञा) प ८।१,२,४ से ११ परिग्गाहय (परिगृहीत) प ४।२१६ से २२१,२३१ से २३३ ज २११५६,३१५,६,८,१२,१६,२६, ३६,४७,५३,५६,६२,६४,७०,७२,७७,८४,८८, ६०,१००,११४,१२६,१२७,१३३,१३८,१४२, १४५,१५१,१५७,१६५,१७८,१८१,१८६, Page #1052 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिग्गहिया-परियच्छिय ९७५ २०५,२०६,२०६,५१५,२१,४६,५८ उ १।३६, परिणित्वा (परि+नि-+-वा) परिणिव्वंति ४५,५५,५८,६४,८०,८३,६६,१०७,१०८, ज ११२२,५०; २।५८,१२३,१२८,४।१०१ ११६,११८,१२२;३।१०६,१३८,१४८,४।१५; परिणिबाइप ३६८८ परिणिवायंति ५६।११० परिणिव्वाति प ३६।९२ परिग्गहिया (पारिग्रहिकी) प १७।११,२२,२३, परिणिवाहिति ज २।१५१,१५७ २५; २२१६०,६२,६७,७०,७६,६२,१०१ परिणिव्वाण (परिनिर्वाण) ज २१११६ परिघट्ट (परिघृष्ट) ज ४।१२८,५।४३ परिणिव्वुड (परिनिर्वत) ज २१६८,३।२२५ परिछण्ण (परिच्छन्न) ज २।१२ परिणिन्वुय (परिनिर्वृत) ज २१८५,६० परिजाण (परि-+ ज्ञा) परिजाणइ उ ११३८; परितंत (परितान्त) उ ११५५,७७ ३।५८ परिजाणाइ उ १११००गरिजाणेति परित्त (परीत) ११४८।२० से २६,३४ से ३७, उ ३।११८ ४३,५२,५६, ३।११२,१०६।१८।१।२.१०६; परिज्जय (दे०) सू २०१२ मू १३।२;१४।४,८ परिणत (परिणत)९११४ से ६,११४८१५६ परित्तमिस्सिया (परीतमिश्रिता) प १११३६ परिणम (परिणम् ) परिणमंति १२८।२४ परित्तास (परित्रास) ज २०७० से २६,३६,४२,४५,४६,७१,७४,१०५,३४।२०, परिधाव परि धाव) परिधाति ज ५१५७ असोज ११२११३.मा १०।१२६१. परिनिव्वा (परि+नि+वा) परिनिव्वाहिइ ३,५ एरिणमति १६।४६१७११५ से १२२, उ ५।४३ १३६,१४८ से १५२,१५४,१५५ परिनिव्वुड (परिनिर्वृत) ज २।८८,८९ परिपीलइत्ता (परिपीड्य) प २८।२०,३२,६६ परिणममाण (परिणमत्) ज ३।२१,३४,५५,६४, परिपीलिय (परिपीडित) ज २११३३ ७२,८५,११२,१३८,१४४,१६८,१८३,१६१ परिपुछणा (परिप्रच्छन) ज ७१७८ उ १६० परिभट्ठ (परिभ्रष्ट) ज २११३३ परिणय (परिणत) प ११४,६ से १ ज २।१६:५।५ परिभाएत्ता (परिभाज्य) ज २१६४ उ ३।३८,४०,१२७,१२८; ५।४३ परिभाएमाण (परिभाजयत्) उ ११३४,४६,७४ परिणयव्व (परिणन्तव्य) ज २११३३ परिभाग (परिभाग) सू १०।१७३ परिणाम (परिणाम) प ११११५; १३।११७११४।१, परिभंजेमाण (परिभुजान) उ ११३४,४६,७४ १३६; २३।१३ से २३,१६५,१६६ से २०१ परिभुज्जमाण (परिभुज्यमान) ज ४।१०७ २८।१।१ ज २।१६,१३१, ३।२२३, ७।१३६।१, परिभोगत्त (परिभोगत्व) ज २।२४,३४,३५,३७; ७।२०२,२०४,२०७ परिणाम (परिनमय) परिणामें ति ११७।२; परिमंडल (परिमण्डल) प ११४ से ६१०।१५ से २८।२१,३३,६७ २४,२६ से ३०; ११।२५;१३।२४ ज ५।५,७, परिणामणया (परिणामन) ३४।१ से ३ २२ से २४ परिणामिय (प िणामित) प २३।१३ से २३ परिमंडिय (परिमण्डित) ज ११३७, ३।१,३५, परिणामेमाण (रिणमयत्) उ ११४१,४३ १०६,११७,११८,१७८,५१४३,७।१७८ परिणाह (परिणाह) ज ४।१०२ परिमाण (परिमाण) ज २६,४।१६८,२४३ परिणिट्ठिय (परिनिष्ठित) ज ३।३५ परियच्छिय (परिकक्षित) ज ५।४३ २११ Page #1053 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परियण-परिवुद्धि परियण (रिजन) ज ३।१८५ सू १६।२२।१८ रिवड्डिजति प ५११६१ पिरियर (परि ! चर) परिवरइ च ३३१ परिवड्ढमाण (परिवधान) १११७२ ज ४।३६, सू १७१ ४३,७२,७८,६५,१०३,१७८ उ ३।४६ परियाइत्ता (पर्यादाय) प १६।२० । परिवढि (परिवद्धि) ज २११३८,१४०,१४६, परियाइयणया (पदिान) प ३४।१ से ३ १५४,१६०,१६३ परियाग (पर्याय) उ २।१२; ३।१४,८३,१२०, परिवड्ढेमाण (परिवर्धमान) ज २।१३८,१४०, १५०,१६१; ४।२४।५।२८,३६,४१,४३ १४६,१५४,१६०,१६३ परियागय (पर्यागत) प १६॥५५ परिवय (परि- वृत) पग्वियंति ज ५।५७ परियाण (गरि- ज्ञा) परिणइ उ ३।१०८ परिवस (प!ि कम्) परिवसइ प २।३८ परियादि (गरि आदा) परियादियंति ज ११४५.४७:३।१२१,४१५१,५४,६०,६१,' ज ३१६२ ६४८०.८६,६७,१०२१०७,१६१,१६६, परियादित्ता (पदाय) ज ३।१६२ १८६.१६३.१६६,१६६.२०३,२०८,२१०, परियाय (पर्याय) ज २।८३,८४,४१२७२ उ २।२२; २६१,२६४,२६६,२६७,२७०,२७२,२७३, ३।१६६ परियायतकरभूमि (पर्यायान्त कर भूमि) ज १८४ २७६, ७।२१३ उ ३।२८ परिवसई उ ३।१५८; ४७ परिवति ११२० से २७,३० से ३६, परियायसंगइय (पर्या साङ्गतिक) उ ३।५५ ४१ से ४३,४८,४६,५१ से६४ ज ११२४,२६, परियारणया (परिचारण) प ३४।१ से ३ परियारणा (परिचारणा) प ३४।२; ३४।१ से ३, ३१,३।१०३,४११०२ परिवसति प २१३२,३३, ३५,३६.३६,४४,५१,५३ से ५५,५७ से ५६ १७,१८ परियारणिढि (परिचारद्धि) सू १८१२३ परिवसह ज ३।१२७ परिवसामो ज ३।१२६।४ परियारिड्ढि (परिचारद्धि) ज ७।१८५ परिवसण (परिवसन) ज २११६ परियारिय (परिवारित) प २।३१ 1 परिवह (रि-। वह ) परिवहइ उ १५० परियारेमाण (परिचारयत्) सू २०१२ परिवहंति ज ७।१७८ १८.१४ परिवहति परियाल (रिवार) ज २।१३३,५।२२,२६ गू १८।१६ परि हामि उ ११७५ उ १११६,६३,९७,६८,१०५ से १०७ परिवाडी (परिपाटी) ५१५१५५,२३।१०८ पिरियाव (परि+तापय्) परिवेति प ३६।६२ परिवायणी (-रिवादनी) ज ३।३१ परियावण्ण (पर्यापन्न) ५ १७।१३३ परिवार (परिव 'र) ज २।६३,९४,५५६ परियावण्णग (पर्यापन्नक) प २३,६,६,१२,१५ ७।१६८११.१७०,१८३ सू १८१४,२१,२३; परिरय (परिरय) ज ४।१४२।२,१५६।१,२३४, १६।२२।३१,३२ उ १।१६ ; ४१५,१३ २४०,७।१६,१६,७५,७८ सू ११२७,१८१६ से परिवारणा (रिवारणा) ज ४११४०।१ १३,१६।८।१,११११,१५१,२१।२ परिवारिय (परिवारित) २१३०,४१ परिलित (परिलीयमान) ज २०१२ परिविद्धंस (रि-- वि + ध्वंस्) परिविद्धसेज्जा परिली (दे०) ५ १।३७।५ परिवंदिय (परिवन्दित) चं १२ परिविद्धंसइत्ता (परिविध्वस्य) प२८।२०,३२ परिवज्जिय (परिवजित) उ ४६ परिवुड (परिवत) ज ५।४४ उ ४१११,१३ परिवड्ढ (परि+वृध्) परिवड्डति परिवुड्ढि (परिवृद्धि) ६ ५।१३२,१६१,१७६, Page #1054 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिवेढिय-पलिओवम ९७७ १६५,२१६,१११७२,१३,१७,१५।३४,७५ ज ४।१०३,१७८ परिवेढिय (परिवेष्टित) 7१५१५१ ज २११३३ परिव्वायग (परिव्राजक) प २०१६१ ज ३।१०६ परिसडिय (परिशटित) ज ३।१३३ उ ३१५० परिसप्प (परिसर्प) प ११६१,६७,७६,६७१; २११११,१४,५३,६० परिसा (परिषत् ) प २।३० से ३३,३५,४१,४३, ४८ से ५१ ज ११४,४५, २१६४,६०,४।१६ ५।१६,३६,४६ से ५१,५६, ७।५५,५८ चंह सू ११४; १८।२३ ; १६।२३,२६ उ ११२,१६, २०२।६; ३।५,१२,२४,२८,८६,१५५,१५६; ४१४,१०,१४; ५।१४,२६,३७ परिसाड (परिशाट) प ११८४ परिसाड (परि-+-शाटय) परिसा.ति ज ३।१६२; ५१५,७ परिसाडइत्ता (परिशाट्य) ५ २८।२०,३२,६६ परिसाडेत्ता (परिशाट्य) ज ३।१६२,५१५ परिहत्थ (दे०) ज ४।३,२५ परिहव (परि-भू) परिहवेति सू २।२ परिहा (परिखा), २।३०,३१,४१ ज ३।३२ परिहा (परि-+हा) परिहायति सू १६।२२।१४ परिहाण (परिधान) १२।४० परिहाणि (परिहाणि) ए २।६४ ज २।५१,५४, १२१,१२६,१३०, ४११०३,१४३ सू १६।२२।१६,२० परिहायमाण (परिहीयमाण) ५२१६४ ज २।५१, ५४,१२१,१२६,१३०,४।१०३,१४३,२००, २१०,२१३ उ ३।४७ परिहारविसुद्धिय (परिहारविशुद्धिक) प १।१२४, १२७ परिहारविसुद्धियचरित्तपरिणाम (परिहारविशुद्धिकचरित्रपरिणाम) प १३।१२ परिहावेतव्य (परिहारयितव्य) सू८।१ परिहित (परिहित) सू २०१७ परिहिय (परिहित) प २।३१,४१,४६ ज ३।२६, ३६.४७,५६,६४,७२,८५,११३,१३३,१३८, १४५ उ १११६ परिहीण (परिहीण) प २१६४।६।३६९२ ज ५।२२,२६ से २८ सू १६८।१,२०१६।४ परीसह (परीषह) ज २०६४ परुप्पर (परस्पर) ज ४।१८० परूढ (प्ररूढ) ज २१६,१३३,१४५,१४६ प रूव (प्र- रूपय) परूवेइ ज ७।२१४ उ १६८ परवण (प्ररूपण) ज २१६ परेंत (दे० पर्यन्त) ज ३।१२६ परोक्खवयण (परोक्षवचन) प १११८६,८७ परोप्पर (परस्पर) प २२॥५१,७३.७४ ज ११४६ पिलंघ ( प्रल ) पलंघेज्ज प ३६।११ पलंडु (कन्द) (पलाण्डुकन्द) प ११४८।४३ पलंब (प्रलम्ब) प २।३०,३१,४१,४६ ज २११५; ३।१७८,५।१८,७।१७८ सू २०१८ पलबमाण (प्रलम्बमान) ज ३१६,६,२२२,५।२१, ३८ पलवमाण (प्रलपत्) उ ३।१३० पलास (पलाश) प १।३५।१ ज ४।२२।१ पलिओवम (पल्योपम) प ११२४,४।३०,३४,३६, ४०,४२,४३,४५,४६,४८,४६,५१,५२,५४, १०४,१०६,११०,११२,१२४,१४६,१५१, १५५,१५७,१५८,१६०,१६२,१६४,१६५, १६७,१७१,१७३,१७७,१७६,१८०,१८२, १८३.१८५,१८६,१८८,१८६,१६१,१६२, १६४,१६५,१६७,१६८,२००,२०१,२०३, २०४,२०६,२०७,२०६,२१०,२१२,२१३, २१५,२१६,२१८,२१६,२२१,२२२,२२४, २२५,२२७.२२८,२३०,२३१,२३३,२३४, २३६;६।४३,१२।२४,१८।४,६,१०,१२,६०, ७० से ७२,२०१६३;२३१६१,६४,६६.६८,७३, ७५ से ७७,७६,८१,८३ से ८६,८८ से ६०, ६२,६५ से १६,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११७,११८,१३४,१३५,१३८,१४०,१४२, Page #1055 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७८ पलिभाग-पविज्जुयाइत्ता १४३,१५१ से १५३,१५५ से १५७,१६०, १६१,१६४,१६६ से १६६,१७१ से १७३ ज १२४,३१,४५ से ४७; २१५,६,४४,५२, ५६,५६,१५६,१६१, ३।१६७,२२६,४।२२, ३४,५४,६०,६१,६४,८०,८५,८६,६७,१०२, १४२,१६१,१६६,१६७।१३,१७७,१८६,१६६, २०८,२६१,२६६,२७०,२७२,७।१८७ से १६६ सू ६।१८।११८१२५ से ३६ उ ३।१६,८५, १२४;४।२५ पलिभाग (प्रतिभाग) प १२।२७,३६,३७,१५।५० ज २०६८ पलिभागभाव (प्रतिभागभाव) प १७.१५०,१५२ पलिमंथ (परिमन्थ') प ११४५१ पलिय (पलित) ज २११५,१३३ पलियंक (पर्यङ्क) ज १११८,४८४१५५,६२,६८, १६७,१६६; ७१३३३२ पलुग (पलुआ) प ११४८।६ सन की जाति का एक पौधा पल्ल (पल्य) ज २१६ पल्लग (पल्यक) प ३३।२० ज ४।५७ पल्लल (पल्वल) प २४,१३,१६ से १६,२८ पल्हत्य (पर्यस्त) ज ३।१०५ पल्हत्थमुह (पर्यस्तमुख) उ १।१५; ३।६८ पल्हव (पल्हव) प ११८६ पल्हविया (पल्हविका) ज ३।११।१ पल्हायणिज्ज (प्रह्ल दनीय) प १७१३४ ज २।१८, १८५ पवंच (प्रपञ्च) प २१६४ पवग (प्लवक) ज २१३२ पिवड ( प्र पत्) पवडइ ज ४।२३ से २५,३८ से ४०,६५ से ६७,७३ से ७५३९० से १२ पवडेज्ज उ ३१५५ पवडणया (प्रपतन) प १६॥५३ पवण (पवन) प २।३०।१ ज ३।३५१०६; १५ पिवत्त (प्र-+-वर्तय) पवत्तड प १९८१६।३६ १. वनस्पतिकोश में हरिभन्थ शब्द मिलता है। ४०,५५ पवत्तति प १६।४३ पवत्त (प्रवृत्त) ज ३१११५,१२३ पवत्ति (प्रवतिन् ) प १६।५१ पवत्ति (प्रवृत्ति) ज ४।२३,३८,६५,७३,६०,६१ पवयण (प्रवचन) प १।१०११५,११ सू २०१६।४ पवर (प्रवर) प २।३०,३१,४१,४६ ज ३७,६, १२,१५,१७,२१,२२,२४,२६,३१,३२,३४ से ३६,३६,४७,५६,६४,७२,७७,७८,८१, ८५,८८,६१,१०८ से १११,११३,१३३,१३८, १४५,१६७१५,१७३,१७५,१७७,१७८,१६६, २२२; ५।५,७,४६,५८ सू २०१७ उ १।१७, १६,२२,२४,१२३,१४०, ४।१२,१३,१५; ५।१८ पवह (प्रवह) ज ४।३६,४३,७२,७८,६०,६५, १७४,१८३,२६२, ६१८ पवा (प्रपा) ज २१६५,५१५,७७ ३।३६ पवाइत (प्रवादित) प २।३१,४६ पवाइय (प्रवादित) प २।३०,३१,४१ ज ११४५; ३।१२,७८,८२,१८०,१८५,१८७,२०६,२१८; ५।१,५१६, ७.५५,५८,१८४ सू १८।१३, १६।२३,२६ पवात (प्रपात) उ ५२५ पवादित (प्रवादित) ज ३।२०६ पवाय (प्रपात) ज २१३८,३८८,४।२३,३८,४२, ६५.६७,६८,७१,७३,६० से १४ पवायबहुल (प्रपातबहुल) ज १११८ पवाल (प्रवाल)प १।२०१२,११३५,३६,११४८।१५, २५,६३, २॥३१ ज २।२४,६४,६६,१३१,१४४, १४५,१४६;३।३५,११७,१६७।८ पवालंकुर (प्रवालाकुर) प १७।१२६ पवालि (प्रवालिन) ज ७।११२।३ सू १०।१२६।३ पविचरिय (प्रविचरित) ज ४१३ पविज्जुय (प्र+विद्युत् ) पविज्जुयाइस्सइ ज २।१४१ से १४५ पविज्जुयायंति ज ३।११५ पविज्जुयाइत्ता (प्रविद्युत्य) ज २।१४१ Page #1056 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पविज्जुयायित्ता-पसत्थ १७६ पविज्जुयायित्ता (प्रविद्युत्य) ज ३।११५ पव्वज्जा (प्रव्रज्या) उ ३११६६ पविट्ठ (प्रविष्ट) प १५।१।१,१५।३६,४०,४२।। पव्वत (पर्वत) प २।३२,३६,५०,५१,१७१११ ज ३।१०५,१७८.२२३;७।१७८ ज ११४६,३।२२४ सू ५।११६।२६ पवित्तिा (प्रविश्य) सू १०।१३६,१३।५,६ पव्वतराय (पर्वतराज) सू १६।२३ पवित्थर (प्र--वि- स्त) पवित्थरइ ज ३७९, पतिद (पर्वतेन्द्र) सू ५।१ पव्वय (पर्वक) प ११४२११ पविभत्त (प्रविभक्त) ज १।१८,२०,४८,४।१६७, पव्वय (पर्वत) ५२।३३,३५,४३,४४,१६।३०; २१५ १७।१०६ ज १।१६,१६,२०,२३ से २५,२८, पविभत्ति (प्रविभक्ति) सू १५॥३७ ३२,३३,४६।१,४७,४८,५१,२।३१,६०,११७, पवियरिय (प्रविचरित) ज ४१३,२५ ११८,११६,१३१,१३३,३।१,६१,८१,१३०, पवियारण (प्रविचारण) प १३१७ १३१,१३५ से १३७,२२४;४।२३,३८,४८, पविरल (प्रविरल) ज २।१३३; ५१७ ५७,५८,६०,६५,७१,७३,८४,६०,६१,६४, पिविस (प्र+विश्) पविसं ति ज ३।१८३ १०३,१०६,११०,१११,११३,११४,१४२, पविसंत (प्रविशत्) चं ४१२ सू १।८।२; १६।२२।४ १६०,१६२,१६३,१६७,१६८,१७२,१७३, पविसमाण (प्रविशत्) ज ३।२०३;७।१३,१६,२३ १७५,१७६,२००,२०५ से २०६,२१२ से से २५,२८ से ३०,७२,७८,८४ सू १।१२,१४, २१६,२२०,२२१,२२५,२२६,२३४,२३५, १६,१८,१६,२१.२४,२७,२६३,६।१; १३१६ २३७,२३६ से २४१,२५३,२५४,२५७,२५६, से १०,१४ से १६ २६० से २६२,५।४४,४७,४८,४६,५५,६।६।१; पिवुच्च (प्र-+वच्) पवुच्चइ सू ५।१ ६।१०,१६,२३,२४;७1८ से १३,३१,३३,५५, पवूढ (प्रव्यूढ) ज ३६७,१६१,४।२३,३५,३८,४२, ५८,६७ से ७२,६१,६२,१७१ सू ४।४,७,७११; ६५,७१,७३,७७,६०,६१,६४,१७४,१८३, ८।१,१८।५ उ ३३५५,५५,६ १६५,२६२ अपव्वय (प्र-व्रज्) पव्वयाइ उ ३।११२ पव्वयामि पवेस (प्रवेश) ज १११६,३८,३।१२,४१,४६,५८, उ ३।१३;४।१४ पव्वयाहि उ ३।१०७ ६६,७४,७७,१०६,१४७,१६८,२१२,२१३; पव्वयग (पर्वतक) ज १११३ ४।१०,११५,१२१,२१७ उ ५।४३ पव्वयबहुल (पर्वतबहुल) ज १११८ पव्व (पर्वन् ) प ११४८।४७,१११२५ ज ७।१०६ पव्वयराय (पर्वतराज) ज ७।५५ सू ५।१७।१ से ११० सू १०११२७:१२।१६,१७,१३।१,२ पव्वयसमिया (पर्वतसमिका) ज ११२३,२५,२८ पव्वइत्तए (प्रवजितुम) प २०१७,१८ उ ३१५०; पवयाउय (पर्वतायुष्) ज ५।१६ ५।३२ पव्वइय (प्रवजित) ज २१६५,६७,८५,८७ उ २।९; पव्वराहु (पर्वराहु) सू २०१३ पसंत (प्रशान्त) ज २६८,५७,२६ ३।१३,२१,५०,५५,५८,६०,७६,७७,७६,११३, ११८,५॥३८ पसढिल (प्रशिथिल) प २१४६ पव्वंस (दे०) उ ५।२५ शिशिर ऋतु पसण्णा (प्रसन्ना) उ १।३४,४६,७४ पव्वग (पर्वक) प १।३३।१:११४१,११४८।४६ पसत्त (प्रसक्त) ज ५।२६ ज २११४४ से १४६; ३।३१ पसत्थ (प्रशस्त) प १७।१३३,१३४,१३८,२३४५६, पिव्वज्ज (प्र-व्रज) पाजिहिइ उ ५।४३ . १०६,११६:३४।१३ ज ११३७,२।१५,३३३,६, Page #1057 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० पसय- उब्भूय १८,३५,६३,१०६,१८०,२२२,२२३;७।१७८ पसय (दे०) प ११६४ ज २१३५ पसर (प्र+स) पसरइ उ ३।५१ पसरई १।१०१७ पसरित्ता (प्रसृत्य) उ ३१५१ पिसव (प्र--सू) पसवंति ज २०४६ पसार (प्र+सारय) पसारेइ उ ३१६२ पसासेमाण (प्रशासयत्) ज ३।२ उ ५।६,११ पसिण (प्रश्न) ज ७।२१४ उ ३।२६ पसिय (प्रसत) ज ३।३५ पसु (पशु) प १११४ उ ३।३६,४८,५० पसूय (प्रसूत) ज ३।१०६ उ ३।४८,५०,५५ पसेढी (प्रश्रेणी) ज ५।३२ पसेणइ (प्रसेनजित्) ज २१५६,६२ पसेणी (प्रश्रेणी) ज ३।१२,१३,२८,२६,४१,४२, ४६,५०,५८,५६,६६,६७,७४,७५,१४७,१४८, १६८,१६६,१७८,१८६,१८८,२०६,२१०, २१६,२१६,२२१ पह (पथ) ज ३।१८५,१८८,२१२,२१३,५७२, ७३ सू १६।२२।१५ उ १९८ पहंकरा (प्रभङ्करा) ज ४।२०२२ पहकर (दे०) ज २११२६५,३।१७,२१,१७७ पहगर (दे०) ज ३।२२,३६,७८ पहत (प्रहत) ज २।१३१ पहरण (प्रहरण) ज ३।३१,३५,७७,१०७,१२४, १६७।६,१७८,४।१३७ उ १११३८ पहरणरयण (प्रहरणरत्न) ज ३।३५ पहराइया (प्रभाराजिका, प्रहारातिगा) प ११८ पहव (प्रभव) प ११॥३० पहसिय (प्रहसित) प २।४८ ज ११४२,४।४६, २२१,७१७६ सू १८१८ पहा (प्रभा) प २।३१ ज ११२४ पहाण (प्रधान) ज २।१५,६४,१३३,३।३,३२, ११७।१,१३८,१७५; ७।१७८ पहार (प्रहार) ज ३।१०६ उ ३।१३१,१३४ प हार (प्र-+धारय) पहारेत्थ ज २१९३१९, १८३ उ १८८ पहारेमाण (प्रधारयत्) प ३४।२४ पहाविय (प्रधावित) ज २।६५ पहिय (प्रथित) ज ३।१७,१८,२१,३१,६३,१७७, १८० पहीण (प्रहीण) ज २।८८,८६,३।२२५ पहु (प्रभु) ज ७।१६८।२ पाई (पाची) प ११४४।१ एकलता, मरकतपत्री पाइक्क (दे०) ज २१६५ पाईण (प्राचीन) प २।१०,५० से ५२,५४ से ६२ ज ११२०,२३ से २५,२८,३२,४८,३।१, १२६।४;४।१,३,५५,६२,८१,८६,८८,६८, १०३.१०८,१४१,१६२,१६७.१६६,१७२, १७८,१८५,१८७,१६१,२००,२०३,२०५, २१५,२४५,२४६,२५१,२६२,२६८,७।१०१, १०२ सू ८।१ पाईणपडिणायता (प्राचीनापाचीनायता) सू १।१६; २।११०।१४२,१४७;१२।३०। पाईणपडीणायता (प्राचीगापाचीनायता) प २१५० से ६२ ज १२० पाईणपडीणायया (प्राचीनापाचीनायता) ज ११२०; ३।१४।१,३,८६,८८,६८,१०८ पाईणवाय (प्राचीनवात) प श२६ पाउण (प्र+आप) पाउणइ उ ३३१४५१३६ पाउणति प ३६।६२ पाउणि सइ उ ५।४३ पाउणित्ता (प्राप्य) प ३६१६२ ज २१८८; ३३२२५ उ २११२,३।१४।४।२४।५।२ पाउप्पभाय (प्रादुष्प्रभात) ज ३।१८८ उ ३।४८, ५०,५५,६३,६७,७०,७३,१०६,११८ पाउब्भव (प्रादुस्-भू) पाउभभंति ज ५१२७ पाउब्भवह ज ५।२२,२६ उ १।१२१ पाउब्भवाभि उ ३।२६ पाउब्भवित्था ज ३।१०४ पाउभविस्सइ ज २।१४१ से १४५ पाउब्भवमाण (प्रादुर्भवत्) ज ५।२८ पाउन्भूय (प्रादुर्भत) ज ३।१०५.११३,१२५; Page #1058 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाउभवित्त-पादुब्भ ५।७४ सू १।४ उ १।२४, ३४, ४०, ४३, ७४; ३।५७,६२,६५,६६,७२, ७५, ८१, १४३, १५६ पाउभविलए (प्रादुर्भवितुम् ) ३।११३ पाउया (पादुका) ज ३१६, १७८ ५।२१ पाउस (प्रावृप् ) ज ७।१२६ पाओ (प्रा) २१ १२।१४ उ५।२५ पाओगय (प्रयोग) उ २।११ पाओसिया ( प्रादोषिकी ) पागड (प्रकट) ज ३।३ चं १।३ पागभाव ( प्रकटभाव) ज २२६८ पागडिय ( प्रकटित) २४८, ४६ पागढि ( प्राकर्षिन् ) ज ५।५,४६ पागत ( त्राकृत) सू १६।२२।३ पासा (पाकशासन) प २५० ज ५।१८ पगार (प्रकार) प २१३०,३१,४१ ज ३११; ४।११४,११६,७११३३।२ २२४६, ५६ पगारच्छाया ( प्रकारच्छाया ) सू ६४ पाचारसंठिया ( प्राकार संस्थित) सू २०१४३ Nare ( पातय् ) पाडेइ उ ३५१ पाडेंति ज ५।१६ पाड (वन) उ११५१,७६ पाडल ( पाटल) ज ३।१२,८८५५८ चाहता (पाटा) १३७।५ पालिड (पाटलिपुट) ज ४।१०७ पक्कि (प्रत्येक ) ३|११८, ४।२२ पालि (तुम् ) उ ११५१,७६,७७ पाडयतिथ ( प्रात्यन्तिक) ज ५५७ पाडिया (प्रतिपद् ) सू २००३ पारिहारिय (प्रातिहारिक ) प ३६।९१ पाडेत्ता ( पातयित्वा ) ज ५।१६ उ ३।५१ पाढा (ठ) १४८४; १७ १३१ पा (ण) प २०६४; ३६।६२,७७ ज २।१३१; ३।१०८ से १११७ २१२ पाण (प्राण, पान ) ज २।४।१, २ पाण (पान) उ३।५०, ५५,१०१,११०,११४,१३४; ४।१६ ६८१ पाणक्य ( प्राणक्षय) ज २०४३ पाणत ( प्राणत ) प १।१३५ / पाणम ( प्र + अन्) पाणमंति ५ ७।१ से ४,६ पाणय ( प्राणत ) प २२४६, ५८, ५६, ५६२, ६३; ३।१८३४१२५८ से २६०६।३६,५६,६६; ७ १७; १५८८ २१ ७० २८१८४३३ ।१६; ३४।१६,१८ ज ५।४६ उ २।२२ पाणय ( पानक) उ३।११४;४।२१ पाणयग ( प्राणतज ) ज ५।४६ पाणयवडेंस (प्राणतावतंसक ) प २०५८ पाणावात किरिया ( प्राणातिपातक्रिया ) प २२ १ पाणाइवाय ( प्राणातिपात ) प २२९ से ११,२१ से २३ पाणाइवायकिरिया ( प्राणातिपातक्रिया ) प २२६, ४६,४७,५०,५२,५७,५६ पाणा इवायविरत ( प्राणातिपात विरत ) प २२८३, ८४, ६१ से ४,६६ पाणावायवेरमण (प्राणातिपात विरमण ) प २२|७७ से ७६ पाणातिवास किरिया ( प्राणातिपातक्रिया ) प २२६ पाणि (प्राणिन् ) ज ३१७८ पाणि (पाणि) ज ५।५ उ १।११ से १३,३०,३२; २७,४१८५११२,२५ पाणिग्गहण ( पाणिग्रहण ) उ५।१३ पाणिय ( पानीय) उ३।१३० पाणियग (पानीयक) ज २।१३१ पाणिलेहा (पाणिरेखा) ज २।१५ पाणी (पाणि) प १४० ४ पात ( प्रातस् ) सू १०५,१३६ पाती (पात्री) ज ३।११;५।५ पाद (पाद) प १७।१११ ज ४।१३ पादपीठ (पादपीठ) ज ३।१७८ उ१।११५ पादणपडीणायया ( प्राचीनापाचीनायता ) ज १।१८ √ पावुभ (प्रा + दुर् भू) दुब्भवंति प ३४।१६,२१ Page #1059 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ पादो-पास पादो (प्रातस्) सू २१ पारगामि (पारगामिन ) ज ३७० पादोसिया (प्रादोषिकी) प २२।१,४,५६ पारणग (पारणक) उ ३१५१,५३,५४ पामोक्ख (प्रमुख,प्रमुख्य) ज ११२६, २०७४,७७; पारस (पारस) प २८६ ४।१३७ उ ५।१०,१७,१६ पारसी (पारसी) ज ३।११।२ पाय (पाद) ज' ३।१२५,१२६,२२०,२२४;५१५,७। पारिणामिया (पारिणामिकी) उ ११४१,४३ सू २०१६।६ उ ११११,१३,३० से ३२,७१, पारिप्पव (पारिप्लव) ५ १७६ 1११४:४।८.२१:४१२ पारियावणिया (पारितापनिकी) प २२११,५,५०, पाय (प्रातस्) सू १०।१३६ । ५२,५६ पायचारविहार (पादचारविहार) ज २१३३ पारेत्ता (पारयित्वा) ज ३।२८ पायच्छित्त (प्रायश्चित्त) ज ३७७,८१,८२,८५, पारेवत (पारापत) प १६।५५; १७।१३२ १२५,१२६ सू २०१७ उ १२१६,७०,१२१; पारेवय (पारापत) प ११७६; ज ३।३५ ३।११०,११५,५।१७ पारेवयगीवा (पारापतग्रीवा) प १७१२४ पायत्त (पादात) ज ३।१७८ ‘पाल (पालय) पालयाहि ज ३।१८५ पालेंति पायत्ताणीय (पादातानीक,पादात्यनीक) ज ३३१७८ ज ११२२,५०,५८,१२३,१२८,४।१०१ पायत्ताणीयाहिवई (पादातानीकाधिपति, पाले हिंति जरा१४८ पादात्यनीकाधिपति)ज श२२,२३,२६,४८ पालइत्ता (पालयित्वा) ज १८८ से ५२,५३ पालंब (प्रालम्ब) ज ३१६,६,२२२,५।२१ पायत्तिय (पादातिक) उ १११३८ पालक्का (पालक्या) प ११४४।१।। पायदद्दरय (पाददर्द रक) ज ५१५७ पालण (पालन) ज ३।१८५,२०६ पायपीढ (पादपीठ) ज ३१६, ५॥२१ उ ११११५ पालय (पालक) ज ५२८,२६,४६।३ पायमूल (पादमूल) उ ३।१२५ पालियायकुसुम (पारिजातकुसुम) १ १७।१२६ पायरास (प्रातराश) उ ११११०,१२६,१३३ पालेत्ता (पालयित्वा) ज ११२२ पालेमाण (पालयत्) ए २।३०,३१,४१,४६ पायव (पादप) ज २१६५,७१, ३।१०४,१०५ उ १११,६१, ३१५६,६४,६६,६८,७१,७४,७६ ज ११४५,३।१८५,२०६,२२१,५।१६ पायवंदय (पादवन्दक) उ १७०,४।११ उ ११६५,६६,७१,६४,१११,११२,५।१० पायविहारचार (पादविहारचार) उ ३।२६ पाव (प्र-आप्) पावे प २१६४।१५ पायसीस (पादशीर्ष) ज ४।१३ पाव (पाप) प १११०१।२,१११८६ पायहंस (पादहंस) प ११७६ पावयण (प्रवचन) उ ३।१०३,१३६,४।१४।५।२० पायाल (पाताल) १२।१,४,१०,१३ पाववल्ली (पावकवल्ली) प११४०१२ पायावच्च (प्राजापत्य) ज ७१२२२ सू १०८४१२ पावा (पावा) प ११६३१५ पायीण (प्राचीन) ज २।५३ पास (दृश) पासइ प १७।१०८ से ११०%, पायोवगय (प्रायोपगत) ज ३।२२४ ३०।२८ ज २१७१,६०,६३,३१५,१५,२६,३१, पार (पारय् ) पारेइ ज ३१२८,४१,४६,५८,६६, ३६,४४,४७,५२,५६,६१,१०६,११६.१३१, ७४,१३६,१४७,१८७ १३७,१४१.१७३,५॥३,२१,२८,६३ उ १११६; पारगत (पारगत) प २।६४।२१ ३७,४।१३,५।२२ पासउ ज ५२१ पासंति Page #1060 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पास - पिंगायण प२।६४।१३१५१४६ से ४६, ३३२ से १३, १५ से १५; ३४।६ से ६,११,१२ ज ३।१०५, ११३ उ १३६ पासति व १५३७, ४१, ४४, ४५,१७।१०६ से १११२३।१४; ३०।२५ से २८३६।८०,८१ पासह ज ३।१२४ पासिज्जा उ १।१५ पासििित ज २।१४६ पासिहिसि उ१।२२ पासेइ उ १।५७ पासेज्जा उ १।२१ पास (पास) प१1८8 पास ( प ) २।१५; ३ । ३२,४।१४२,२०२,२१२; ५११७,४३,४६,६०,६६, ७।३१,३३सू ४३,४; २०१२ उ ३।१२,१४,२१,२८,२६,४६,५१,७६; ४१०, ११,१३,१५,१६,२०,२८ पाश (पाश) ज ३ | १०६ पाडबहुल ( पाषण्डबहुल) ज १।१८ पासंडधम्म ( पाषण्डधर्म ) ज २।१२६ पासंग (पाशक ) ज ७ १७८ पासग्गाह (पाशग्राह) ज ३ । १७८ पासण्या ( दर्शन, पश्यत्ता) प १।१।७३०१, ५, ८, १० पात्यविहारि (पावस्थविहारिन् ) उ३।१२० पासमण (पश्यत् ) ज २०७१ पासवण ( प्रस्रवण ) ५ १८४ परसाई ( प्रासादीय, प्रासादिक ) प २३१,४८,५६, ६३ ज ११२३,४१,२११५, ४१३, ६, १३, २५, २६, ३३,४६, १४६; ५।६२ उ ५ ६ पासाण ( पाषाण ) ज ३।१०६,४३,२५,७०१७८ पासाद ( प्रासाद) २२६५ पासादच्छाया ( प्रासादच्छाया ) सू ६४ पासादसंठित ( प्रासादसंस्थित) सू ४/२ पासादीय (प्रासादीय, प्रासादिक ) प २०३०,४१,४६, ६४ ज १८, ३१२।१२,१४,४२७ सू १ । १ उ ५१४,५ पासा ( प्रासाद) ज १।४२, ४३; २२०, ६५;३ । ३२, ८२,१८७,२१८,२१६, ४३,४६,५०,५३,५६, १०६,११२,११६,११६, १२०, १४७, १५५,१५६, २२१ से २२४,२२६, २३५, २३७,२३८,२४०, ६८३ २४३,५।१,६,२५ उ ११४६, ६४; २६, ५१३, २०, २७, ३१ पासायवडेंसय ( प्रासादावतंसक ) ज ४।१०२,११६, २२१,२२२,२२३।१,२२४।१ पास ( पार्श्व) ज १।२३,२५,२८,३२,३।१७६; ४१,४३,६२,७२,७८, ८६, ६५, ६६, १०३, १७८, १८३,२००,२०१५/४६,६०,६६ पासिउं ( द्रष्टुम् ) प १।४८।५७ पासिउकाम ( द्रष्टुकाम ) प २३|१४ पासित्ता ( दृष्ट्वा ) १२३।१४ ज २।६० उ १।१६; ३।१०१,४।१३,५।१३ पासित्ताणं ( दृष्ट्वा ) उ१।३३; २८ पासियन्व ( द्रष्टव्य ) प २३|१४ पासेत्ता ( दृष्ट्वा ) उ १।५७ पाहाण ( पाषाण' ) ज ५।१६ पाहुड (प्राभृत) ज ३१८१ चं ३ २, ३, ५ ४ सू १७; ६१४,२५; १०११७३ पाहुडत्थ ( प्राभृतस्थ ) सू २०६ पाहुडपाहुड (प्राभृतप्राभृत) चं ५।४ सू १६ पाहुणिय ( प्राधुनिक) ज ७ १८६ । १ सू २०१८ पाय ( प्राभृत) प १५० पि (अपि) उ३।३० पिs (पितृ) उ १।६१; ५।४३ पिदेवया ( पितृदेवता ) सू १०/८३ पिउ (पितृ) ज ७ १३०, १८६४ उ ११५२,५४, ७६,७६,३५१,५६ उसे कह (कृष्ण) उ १।७ पिंगल ( पिङ्गल ) ज ३१६, १६७४,२२२ पिंगलक्ख ( पिंगलाक्ष ) ज ७ । १७८ पिंगलक्खग (पिंगलाक्षक) ज २।१२ पिंगलग ( पिंगलक ) ज ३।१६७ पिंगलय ( पिंगलक ) ज ३।१६७ १,१७८ सू २०/२, ८, २०१८१४ पिंगायण (रिगायन) ज ७ । १३२ । ३ सू १०।१०८ १. दे १।२६२ Page #1061 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ पिंडय-पीइदाण पिंडय (पिण्डक) ज ६६१ पिंडवाय (पिण्डपात) उ ५४३ पिडित (पिण्डित) प २०६४।१५,१६ पिंडिम (पिण्डिम) ज २।१२,५१५ पिक्क (पक्व) प १७।१३३ पिक्खुर (दे०) ज ३।८१ पिच्छय (पिच्छक) उ १२५६,६३,८४ पिच्छि (पिच्छिन्) ज ३१७८ पिट्ट (दे०) उ ३।११४ पिट्ठओ (पृष्ठतस्) ज ३।१०,११,८६,८७,१७६%; ५।४६,६०,६६ पिट्ठओउदग्गा (पृष्ठतउदग्रा) सू ६।४ पिटठंत (पृष्ठान्त) उ ३।३ पिठंतर (पृष्ठान्तर) उ२।१६,५१५ पिट्ठीय (पृष्ठ) उ ३।११४ । पिट्ठिकरंडक (पृष्ठकरण्डक) ज २०१६ पिटिठकरंडग (पृष्ठकरंडक) ज २१४८,१५६ पिट्टिकरंडक (पृष्ठकरण्डक) ज २।५२,१६१ पिट्ठिकरंडुय (पृष्ठकरण्डक) ज २५६ पिडग (पिटक) सू १६।२२।४,५,६ पिडय (पिटक) सू १६।२२।४,५ पिणद्ध (मिणद्ध) ज ३।६,७७,१०७,१२४,२२२ उ ११३८ Vपिणद्ध (पि+नह ) पिणद्धति ज ३१२११ -पिणद्धाव (पि+नाहय,पि+नि+धापय्) पिणद्धावेइ ज ५१५८ पिणद्धावित्ता (पिनाह्य पिनिधाप्य) ज ५१५८ पिणद्धत्ता (निह्य) ज ३।२११ पितिपिंड (पितृपिण्ड) ज २०३० पित्त (पित्त) प १८४ पित्तिय (पैत्तिक) उ ३।३५,११२,१२८ पिप्परि (पिप्पली) प ११३६।२ पिप्पलिचण्ण (पिपलिचूर्ण) प १११७६,१७४१३१ पिप्पलिया (गिप्पलिका) प ११३७।२ पिप्पली (हिप्पली) प १७।१३१ पिप्पलीमूलय (पिप्पलीमूलक) १७.१३१ पिप्पीलिया (पिप्पीलिका) १११५० पिय (प्रिय) प २।४१, २८।१०५ ज २०६४।३।५, ६०,१५७,१८५,२०६५।५८ उ ११४१,४४; ३।१२८,५२२ ‘पिय (पा) पियंति उ ३।६८ पिय (पितृ) उ ११७२,८८,६२,४।२८ पियंगाल (दे०) ११५१ पियंगु (प्रियङ्गु) प २।४०16 पियट्ठया (प्रियार्थ) ज ३१५,११५,१२५ पियतर (प्रियतर) ज २०१८,४।१०७ पियतरिया (प्रियतरका) प १७।१२६ से १२८, १३३ से १३५ ज २०१७ पियदंसण (प्रियदर्शन) ज ३।६,१७,२१,२८,३४, ४१,४६,१३६,१७७,२२२ सू २०१४ उ ५।५,२२ पियर (पित) प ११।१३,१८ पियस्सरता (प्रियस्वरता) प २३।१६ पिया (पितृ) ज २२२७ पिया (प्रिया) ज २।६६ उ ४८,६ पियाल (प्रियाल) ज ११३५।२ पिरिली (पिरिली) ज ३।३१ पिलग (पिलक) ज २११३७ पिलुक्खरुक्ख (प्लक्षरूक्ष) ११३६।२ पिल्लण (प्रेरण) ज ३।१०६ पिव (इव) ज ३।२२ उ १११३८ ; ३।५० पिवासा (पिपासा) उ ३।११४,११५,११६,१२८ पिसाय (पिशाच) १११३२, २।४१ से ४३,४५ ४६,६८५ पिसायइंद (पिश चेन्द्र) प ४२ से ४४ पिसायराय (पिशाचराज) प २।४२ से ४४ पिसुय (पिशुक) प ११५० ज २०४० पिधान (पिधान) ज ५१५६ पिहुजण (पृथक्जन) १६।२६ पिहुल (पृथल) ज २।१५; ७।३१,३३ सू ४।३,४, पोइगम (प्रीतिगम) ज ५१४६।३;७।१७८ पीइदाण (प्रीतिदान) ज ३।६,२६,२७,३६,४०, Page #1062 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीइमण-पूच्छा १८५ ४७,४८,५६,५७,६४,६५,७२,७३,१३३,१३४, ३६०८१ ज ११७ सू १११४ १३८,१३६,१४५,१४६ पुक्खरद्ध (पुष्करार्ध) ५ १५५५१७।१६५ पीइमण (प्रीतिमनस्) ज ३।५,६,८,१५,१६,३१,५३, सू १६।२१।२,५ ६२,७०,७७,८४,६१,१००,११४,१४२,१६५, पुक्खरवर (पुष्करवर)सू १९१२ से १६:२१॥३,२८ १७३,१८१,१८६,१६६,२१३,५२२१,२७ पुक्खरवरदीवड्ढ (पुष्करवरद्वीपार्ध) ५ १६।३० उ ११२१,४२, ३३१३६ सु १६२१ पीइवद्धण (प्रीतिवर्धन) ज ७।११४।१ पुक्खरवरोद (पुष्करवरोद) सू १६।२८ से ३१ पीढ (पीठ) प ३६।११ उ ३।३६ पुक्खरसारिया (पुष्करसारिका) प १६८ पीढग्गाह (पीठग्राह) ज ३।१७८ पुक्खरिणी (पुष्करिणी) ५२१४,१३,१६ से १६, पीढमद्द (पीठमर्द) ज ३।६,७७ २८; १११७७;२११८७ ज १११३,३३,२।१२; पीण (प्रीणय ) पीणति ज ५१५७ ४।१४०,१५४,२२१ से २२४,२३५,२४३ पीण (पीन) ज २।१५ पुषखरोद (पुष्करोद) ज ५१५५ सू १६।२८ से ३१ पीणणिज्ज (प्रीणनीय) प १७।१३४ पीणित (प्रीणित) सू १२।२६ पुक्खल (पुष्कल) ज ४।१६६ पीतय (पीतक) सू २०१२ पुक्खलकूड (पुष्कलकूट) ज ४११६८ पीति (प्रीति) उ १११११,११२ पुक्खलचक्कवट्टिविजय (पुष्कलचक्रवर्ति विजय) ज ४।१६४,१६५ पीतिदाण (प्रीतिदान) ज ३।१५० पुक्खलविजय (पुष्कलविजय) ज ४।१६७ पीतिवद्धण (प्रीतिवर्धन) सू१०।१२४।१ पुक्खलसंवट्टय (पुष्कलसंवर्तक) ज २।१४१,१४२ पीय (पीत) ज ३।२४,३१ । पीयकणवीरय (पीतकरवीर) प १७।१२७ पुक्खलावइचक्कवट्टीविजय (पूष्कलावतीचक्रवर्ति पीयबंधुजीवय (पीतबन्धुजीवक) १७।१२७ विजय) ज ४।२०० पीयासोग (पीताशोक) प १७:१२७ पुक्खलाई (पुष्कलावती) ज ४।१६६ पीलु (पीलु) १ १।३५।१ पुक्खलावईकूड (पुष्कलावतीकूट) ज ४।१६६ पीवर (बीपर) ज २।१५,७।१०८ पुग्गल (पुद्गल) प २८॥३५ पीसिज्जमाण (विष्यमाण) ज ४।१०७ पुच्छ (प्रच्छ) पुच्छड चं ११४ उ २०१२ पीहगपाय ('पीहग'पान) उ ३३१३० पुच्छिज्जति सू १०।६२ पुच्छिस्सामि उ १११७,३।२६ पुंख (पुङ्ख) ज ३।२४ पुंज (पुञ्ज) प २।३०,३१,४१ ज २।१०,३।७,८८ पुच्छणी (प्रच्छनी) ५ १११३७।१ ४।१६६,५७ पुच्छा (पृच्छा) प २।४४;४१५० से ५४,५६ से ६४; पुंडरीका (पुण्डरीका) ज ५।११११ ६६,६७,६६,७०,७१,७३,७४,७६,७७,८०,८१ पुंडरीगिणी (पुण्डरीकिणी) ज ४।२००।१ से ८७.८६,६०,६२ से ६४,६६,६७,६६,१००, पुंडरीय (पुण्डरीक) प २।४८ ज ३।१०।४।४६,२७४ १०२,१०३,१०५ से ११२,११४ से १३०, पुक्कार (पुक्का रय) पुक्कारेंति ज ५१५७ १३२ से १३६,१४१ से १४८,१५० से १५७, पुक्खर (पुष्कर) प १५१५५।१ ज २१६८ १५६ से १६४,१६६,१६७,१६६,१७०,१७२, सू १६।२१।१ १७३,१७५ से १८२,१८४ से २०६,२०८, पुक्खरकणिया (पुष्करकणिका) प २।३०,३१,४१; २०६,२११,२१२,२१४ से २६३,२६५,२६६, Page #1063 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८६ पुच्छिज्ज-युढविच्काइय .६६।११५।१।१,१५१३६ से ४०,४५,२०॥३६ २२१५६२३।१३ से २३;२८।११,१२,५७,५८ ज १।१८,२०,२३,४८, ३।३५; ४।१,५५,६२, ८१,८६,६८,१०८,१७२,६।१,३,७।४०,५०, २६८,५।१३,१५,१६,५५,५८,६२,६७,७०, ७३,८८,६६,१३०,१३३,१३५,१३७,१३६, १४२,१४४,१४६,१४६,१५३,१५६,१५६, १६२,१६५,१६८,१७१,१७३,१७६,१८०,१८३, १८६,१८६,१६२,१६६,१६६,२०२,२०६, २१०,२१३,२१७,२२०,२२३,२२७,२२६, २३३,२३६,२३८,६।२४ से २६,२८ से ४२, ७४,७६,७७,११०,११२;६।२२,१०१७ से १३, २२ से २४;१२।२४,३३,१४।१५१५।४ से ६, ६,१०,४२,५७,८१,८२,८५,८६,६२,६३; १६।४,६ से ८१७।१४,१७,२८,२६,३३,४१ से ५५,६५,१०२,१०४,१३१ से १३४,१५८, १६२,१६४,१८।२६,६२,११२,११८,१२१, १२३,१२४,१२७;१६।२,३,५,२०१४,७,१६, ३०,३५,४१ से ४४,४६ से ४८,५३,५४; २११३७,६७, २२१६८,६६,६५,९६;२३।४८ से ५०,६५,६६ से ७६,८१,८३ से ८६,८८ से ६०,९५,९८,६६,१०१ से १०४,१०६,१११ से ११८,१२८,१२६,१३१ से १३३,१५४,१७३; २४।६,८,२६।६,१०,२८७६ से ६७,६६, १०६,११०,१२६,१४५,२६८,११,२०,२१; ३०।१२,१८,२०,२२;३१।२,३,६,३२।३,४,६, ३३७ से १,२० से २६,२८,२६,३२,३३,३६; ३४१७ से ६,११,३५।३.११,१६,२२;३६।३४, ५०,५१,५५ से ५७ ज ४।२०४,२१०,२५८, २५६,७।६३,७४,७७,८३,८४,१०८,१४२ से १४४ सू ६।३;१०।१५१;१८।१० से १३,३५, ३६,१६।५,८,११,१५,१६,२१,३१,३५,३८ उ २।१३;३।८,२१,२६,६४,१५६,१६६ ; ४।५; ५।२३ पुच्छिज्ज (प्रच्छ) पुच्छिज्जइ प ३।१२१ पुच्छिज्जति प १११८२,८३,८५,१७।३०; २११६१,२८।११५,११७ पुच्छिज्जति प२८।१४५ पुठ्ठ (स्पृष्ट) प ०६४।१०,११,१११६१,६२, पुड (पुट) ज ५।१४,१७ उ ११५५,५७,६१,६२, ८०,८२,८६,८७,३।११४ पुढवि (पृथ्वी) प ११२०११,११४८।३८११५३, २।१,२० से २७,३० से ३७,४१ से ४३,४६, ४८ से ५१,६३,६४,३।११ से २३,१८३;४।४ से २४;६।१० से १६,४५,५१,७३ से ७८,८०; ८००१,२,६८८,६१,६२,१००,१०६:१०।१ से ३;११।२६ से २८,१५१५५।२,१६।२६; १७१३३,१८।१०७,११६;२०१६ से १०,३८ से ४२,४६,५६:२११५२,५६,६६,८५,८७, ६०,२२।२४,२८।१२३,३०।२५ से २८, ३३।३ से ८,१६,१७ ज २।१६,१७,६८; ३।२२४;४।२५४; ७।११२।४,२११,२१२ सू १०।१२६४ पुढधिकाइय (पृथ्वीकायिक) ५ १११५,१६, २।१ से ३,३१२,५० से ५२,५४,६० से ६३,६५ ७१ से ७४,७६,८४ से ८७,८६,६५,१५६ से १५८.१८३;४।५६ से ६४,६८,१३,६,१०, ५२,५३,५५,५६,५८,५६,६२,६३,६।१६,५३, ६२,८२,८३,८६,८६,१०२,१०३,११५; ७।४।८।३;६।४,१६:१२।२०,२१,२३,२५,२६, १३।१६,१५।२० से २८,५३,५४,७२ से ७४, ७६,१३७;१६।१२,१७।६५,१०२;२०१२४; २२।३७,२८।२८,२६।२० ज २१७२ सू २।१ पुढविकाइयत्त (पृथ्वीका कत्व) प १५४९६,३६।२२ ज ७४२१२ पुढविक्काइय (पृथ्वीकालिक) प १२।३,२४; १५।५७,८५,१६।४।१७।१८ से २२,४०,६०, ८७,६४,६५,६७,१०२,१८।२६,३२,३८,४०, पुढविकाय (पृथ्वी काय) सू श१ Page #1064 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुढविक्काइयत्त-पुप्फबद्दलय १८७ ४२,५०,१६०२२०११३,२२,२४ से २६,२८, १४२ च ५।१ सू१।९।११०।२१ ३२,३५,२१।३ से ५,२३,४०,७६,८०; पुण्णा (पूर्णा) सू १०६० २२॥३१,७३,२४।६।२८।२६.३०३३ से ३६, पुण्णाग (पुन्नाग) प ११३५।३ ज ३।१२,८८५८ ३८,६६२६८ से १०,२०,३०१८,६,१८,१६; पुण्णिमा (पूणिमा) ज ७।१२५,१२७।१,१३७ से ३११३;३४।३,३५११६,२०,३६१६२५.२६, १४५,१५४,१५५,१६७।१ सु १०६ से १७, ३८,५१ १६ से २२,२६ पुढविक्काइयत्त (पृथ्वीकायिकत्व) प १५।१४१; पुण्णिमासी (पौर्णमासी) ज ७।१३८,१४१ च ५२१ ३६।२६ सू १०७,८,१८,२०,२२,१२६।२,१३६ से पुढविसिलापट्टक (पृथ्वीशिलापट्टक) उ ५।८।। १५६; १३३१ से ३,६ पुढविसिलापट्टग (पृथ्वीशिलापट्टक) ज ३१२२३ पुत (पुत) उ ४६ पुढविसिलापट्टय (पृथ्वीशिलापट्टक) उ ११ पुत्त (पुत्र) ज २।२७,६४,६६,१३३ उ १।१०,१३, पुढविसिलावट्टय (पृथ्वी शिलापट्टक) ज १११३ १५,२१ से २३,३१,४३,५७,७२,७४,८२,८७, पुढवी (पृथ्वी) सू २।१;६।३;१८।१ उ ११२६,२७, ६५,१०६,११०,११३,११४,१४६; २।६,६,१८, १४०,१४१ २२३३४८,५०,५५,११४ पुण (पुनर्) प ६१८०।१ सू ११२० उ १११७ पुत्तंजीवय (पुत्रजीवक) प ११३५।२ पुणं (पुनर्) उ ३।१०२ पुत्तत्त (पुत्रत्व) उ ५।३०,४३ पुणब्भव (पुनर्भव) प २।६४ पुष्फ (पुष्प) प ११३५,३६,११४८।१७,२७,४०,४१, पुणरवि (पुनरपि) प ३६।१४ ज २१६,३१८१ ४७,६३,२।३०,३१,४०।१०,४१,१५२ ज २१८ ७।११८,१२१ सू २।१ से १०,१२,१५ से १८,६५,१४५,१४६ ; ३७, पुणव्वसु (पुनर्वसु) ज ७/१२८,१२६१३४ से ११,१२,२१,३४,७८,८५,८८,१०६,१८०, १३६,१४०,१४६,१६१ सू १०।२ से ६.१३, २०६।४।१६६,५७,२२,२६,४८,४६,५५; २४,४०,६२,६८,७५,८३,१०५,१२०,१३१ ७।३१,३३,३५,५५,११२॥३,४ सू ४।३,४,६, से १३३,१५५,१६१,१११२ से ४ ७,६; १०.२०,१२६।३,४;१६।२२।२,१५, १६।२३,२०१८।६ उ ११३५,३१५०,५१,५३, पुणो (पुनर्) ज ३।१०६ सू १६।२२ उ ३१६८ पुण्ण (पूर्ण) प २१४०१६ ज २।६०,१०३,१०६, ११०,११४:५६ १०८,१७८,३।६,२२२,४।३,२५,१७२।१; पुप्फ (पुष्प ) पुप्फति ज ३।१०४,१०५ ५।४६;७।१७८ पुप्फकेतु (पुष्पकेतु) सू २०१८ पुण्ण (पुण) प १११०१।२ ज ३।११७१५५,४६ पुप्फचंगरी (पुष्प 'चंगेरी') प ३३।२५ ज ३।११; पुण्णकलस (पूर्णकलश) प २।३० ज ५१४३ ५७,५५ पुण्णचंद (पूर्णचन्द्र) ज ३।३,११७ पुप्फचूला (पुप्पचूला) उ ४।२०,२२,२८ पुण्ण (भद्द) (पूर्णभद्र) उ ३।२।१ पुष्फलिया (पुष्पचूलिका) उ ११५,४।१ से ३, पुण्णभद्द (पूर्णभद्र) प २१४५,४५३१ ज ४।१६२।१, २७,५१ १६५ उ १६.१६,१४४; २११४,१६,३।१५६, पुष्फछज्जिया (पुष्पछादिका) ज ५१७ १५८,१६० से १६५.१६६.१७१,५।८ पुष्फपटलहत्थगय (हस्तगतपुष्पपटल) ज ३।११ पुण्णभद्दकूड (पूर्णभद्रकूट) ज ११३४,४६,४।१६५ पुप्फपडलग (पुष्पपटलक) ज ५१७ पुण्णमासी (पौर्णमासी पूर्णमासी) ज ७।११२।२, पुप्फबद्दलय (पुष्पवादलक) ज ५१७ Page #1065 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१ ५ १८८ पुप्फमाला-पुरिस पुप्फमाला (पुष्पमाला) ज ५।१।१ ज १।१६,१८,२०,२३,२४,३५,४१,४६,४८, पुप्फय (पुष्पक) ज ५१४६।३ ५१३।१,१४,१५,२२,२६,५१,५२,१६१,४।१, पुप्फ (वासा) (पुष्पवर्षा) ज ५।५७ १८,२६,३५,४५,५५,५७,६२,७१,८१,८४,८६, पुष्फविटिय (पुष्पवृन्तक) प ११५० ६०,१०३,१०६,१०८,१२६,१५१११,१५३, पुप्फाराम (पुष्पाराम) उ ३.४८ से ५०,५५ १६२,१६७,१६६,१७२,१७८,१८१,१८२, पुप्कारहण (पुष्पारोहण पुष्पारोपण) ज ३।१२,८८ १८४,१८५,१६०,१६१,१६३,१६४,१६६, पुप्फासव (पुष्पासव) प १७।१३४ १६७,१९६ से २०३.२०५,२०६,२०८,२०६, पुप्फाहार (पुष्पाहार) उ ३५० २१३,२१५,२१६,२२८,२३३,२३५,२३८, पुफिय (पुष्पित) उ ३।४६ २४३,२४५,२६२,२६५,२६६,२७१,२७२, पुफिया (पुष्पिका) उ ११५३।१ से ३,१६,२०, २७४,२७७,५८,१०,३६,४७,६।१६ से २४; . २२,२३,८७,८८,१५३,१५४,१६६,१६७,१७०; ७१७८ सू २।१८।११३।१२,१५,१५।८ से ४।१ १३:१८।१४ से १७, २०१२ उ ३१५१ पुप्फुत्तर (पुष्पोत्तर) प १७।१३५ पुरथिमपच्चत्थिम (पौरस्त्यपाश्चात्य) सू २११; पुप्फुत्तरा (पुष्पोत्तरा) ज २११७ शक्कर की जाति पुप्फोदय (पुष्पोदक) ज ३।६,२२२; पुरथिमलवणसमुह (पौरस्त्यलवणसमुद्र) ज ४।२६८ पुष्फोवयार (पुष्षोपचार) ज ७।१३३३१ पुरथिमिल्ल (पौरस्त्य) प १६।३४ ज ११२०,२३, पुष्फोवयारसंठिय (पुष्पोपचारसंस्थित) सू १०।१३० ४८,२।११७,३।२६,६५,६७,६६,१३५,१५१, पुम (पुंस) प १११५ से १०,२४,२६ से २८ १५६,१७०,२०४,२१४,४।१,२३,५५.६२,८१, पुमवयण (पुंस्वचन) प १११२६,८६ ८६,९८.१०८,१४३,१४७,१५६,१७२,२२६, पुर (पुर) ज २१६४ २२७,२३७,२३८,२६२,५।१४,४४,७।१७८ पुरओ (पुरतस्) ज ३११२,८८,१७८,१७६,२०२, सू २।११०।१४७,१३।१५ २१७,४१५,२७,१२२,१२४,१२७,५।३१,४३, ___ पुरवर (पुर वर) ज ३।३२,३५,२२१ ४४,४६,५७,५८,६०,६६ उ ३३५०,११२,४।१६ पुरा (पुरा) १।१३,३०,३३,३७,४१२ परओउदग्गा (पुरतउदग्रा) सू ६।४ पुराण (पुराण) ज ३।१६७ पुरंदर (पुरन्दर) प २।५० ज ५११८ पुरिभकंठभाओवगता (पूर्वकण्ठभापगता) सू ६।४ पुरक्खड (पुरस्कृत) सू ८।१ पुरिमड्ढ (पूर्वाद्ध) प १६।३० पुरजण (पुरजन) ज ३११२,२८,४१,४६,५८,६६, पुरिमलाल (पुरिमताल) ज २०७१ ७४,१४७,१६८,२१२,२१३ पुरिमद्ध (पूर्वार्द्ध) प १६।३०;१७।१६५ पुरतो (पुरतम्) सू २।२ पुरिस (पुरुष) प ११६०,६६,७५,७६,८१,८४; पुरत्थाभिमुह (पौरस्त्याभिमुख) ज ३।६,१२,२८, २।६४।१६,३११८३,६।७६;१६।४८,५२,५४; ४१,४६,५८,६६,७४,१४७,१८८,२०४,२१६, १७।१०८,१०६,१११ ज ३७,८,१५,१६,२१, २२२,५।२१,४१,४७,६० उ ११४१, ३।६१ ३१,३४,३५,७७,८१,१२५,१६७१४,१७३, पुरस्थाभिमुहि (पौरस्त्याभिमुखिन ) ज ४।२३,३५, १७६,१७८,१८३,१६६,२००,२१२,२१३ २६२ चं ४। २ ८ ।२,२०१७ उ १११७,१८,४४, पुरस्थिम (पौरस्त्य,पूर्व) प३।१ से ३७,१७६,१७८ ४५,१२३,१३१,३।११०,१११,४।१६ से १८; Page #1066 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरिसकर-पुव्ववेयाली ५।५,१५ से १८ पुरिसकार (पुरुषकार) सु २०१६।३ पुरिसक्कार (पुरुपकार) ५ २३।१६,२० ज २१५१, ५४,१२१,१२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४, १६०,२६३;३।१२६,१८८,७।१७८ सु २०।१ पुरिसच्छाया (पुरुषच्छाया) ज ७।२२,२५ सु २।३ पुरिसजुग (पुरुषयुग) ज २१८४ परिसवरगंधहस्थि (पुरुषवरगन्धहस्तिन् ) ज ०२१ पुरिसवरपुंडरीय (पुरुष रपुण्डरीक) ज ५।२१ । परिसलिंगसिद्ध (पुरुपरिङ्गसिद्ध) १११२ पुरिसवेद (पुरुषवेद) प १८।६१२३।१४२,१८७; २८।१४० परिसवेदग (पुरुषवेदक) प ३।९७;१३:१४,१८,१६ पुरिसवेय (पुरुषवेद) प २३।३६,७४,८४,१४४ पुरिसवेयग (पुरुषवेदक) प १३।१२ परिसवेयपरिणाम (पुरुषवेदपरिणाम) प १३।१३ पुरिससीह (पुरुषसिंह) ज ५।२१ पुरिसादाणीय (पुरुषादानीय) उ ३।१२,२६,७६; ४।१०,११,१३,१४,१६ पुरिसोत्तम (पुरुषोत्तम) ज ५।२१ पुरीष (पुरीष) उ ३११३०,१३१,१३४ पुरेक्खड (पुरस्कृत) प १५८३ से ८५,८७,८६ से १०१,१०३ से १०६,१०८ से ११०,११२ से १२३,१२५ से १३२,१३५ से १४३,३६८ से २६,३० से ३४,४४,४५,४७ पुरेखडिय (पुरस्कृतक) प१५।५८।२ पुरोहियरयण (पुरोहितरल) ज ३।१७८,१८६, १८८,२०६,२१०,२१६,२१६,२२० पुरोहियरयण (पुरोहित रत्नत्व), २०१५८ पुलग (पुलक) ५ ११५८ ज ११५:५५ पुलय (पुलक) : १२०१४ ज ३।३५ पुलाकिमिया (दे०) प ११४६ पुलिद (पुलिन्द) ५११८६ पुलिदी (पुलिन्दी) ज ३।११।२ पुलिण (पुलिन) ज ४।१३ २०१७ पुलिय (पुलित) ज ३।१७८;७१७८ पुव (पूर्व) प १६।२१,३६।६२ ज २।४,१६१; ३।१८५,२०६,२२१,४।१३५,२३८, ७।३८, २१२ चं १।३ सू ३।१:८।१।१८।१,२१ उ ११६६,१०६,११०,११३,११४ पुव्वंग (पूर्वाङ्ग) ज २।४;७।११७।१ सु ८।१; १०।८६।१ पुत्वंभाग (पूर्वभाग) सू१०।४,५ पुवकोडाकोडि (पूर्वकोटि कोटि) ज ३।१८५,२०६ पन्धकोडि (पूर्वकोटि) प ४।१०७,१०६,११३,११५, ११६,११८,११६,१२१,१३१,१३३,१३७,१३६, १४०,१४२,१४६,१४८,१८।४,६०,८१,८४, ८६,६६,२३७८,७६,१४७,१५८,१६२,१६५, १६६ ज २।१२३,१५१,३।१८५,२०६ ; ४।१०१ पुब्वग (पूर्वक) प ११।४६ पुचितिय (पूर्वचिन्तित) उ ३७६ पुषण्णत्थ (पूर्वन्यस्त) ज ५४२ पुवण्ह (पूवह्नि) ज २१७१,८८ पुव्वदारिया (पूर्वद्वारिका) सू १०११३१ पुवपडिवण्ण (पूर्वप्रतिपन्न) उ ३८१,८२ पुवपोट्ठवया (पूर्वप्रौष्ठपदा) सू १०।६४ पुव्वफग्गुणी (पूर्वफल्गुनी) ज ७।१२८,१२६,१३६ पुश्वभद्दवया (पूर्वभद्रपदा) ज ७१२८,१२६,१३६, १३६,१४२ सू १०६ पुत्वभव (पूर्वभव) उ ३६,२१,२६,१४६,१५६, १६६,१७१;४१५,२८ पुव्वभाव (पूर्व भाव) प २८।६८ से १०१ पुढचरइतगुणसेढीय (पूर्वरचितगुणश्रेणिक) प ३६।६२ पुस्वरत (पूर्वरत्र) उ ११५१,६५,७६;३।४८,५०, ५५,५७,६९,७२,७५,७६,६८,१०६,१३१ पुत्ववणिय (पूर्ववर्णित) ज २।५२,१६१,३।१७१; ४।६६,१०१,१०६,१६०,२३७,२४३,५।६,७, ७।३५,१६७ पुव्वविदेह (पूर्वविदेह) १ १६।३०।१७।१६१ ज २।६; ४।६६,६६,२१३,२६३।१ पुव्ववेयाली (पूर्व 'वेयाली') प १६:४५ Page #1067 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० पुव्वसंग ( पूर्वसांगतिक ) उ ३१५५ पुव्वसयसहस्स ( पूर्व शतसहस्र ) ज २२६४,८७,८८ ३।१८५,२२५ पुपुवी (पूर्वानुपूर्वी ) उ १२, १७, ३ २६, ६६, १३२,१४६,१५६; ४ । ११; ५/३६ पुवा (पूर्व) सू १०५,१२०;११।३;१२।२३ पुन्वापोट्ठवता ( पूर्व प्रोष्ठपदा) सू १०।५६ पुष्वापोट्ठवया ( पूर्वप्रोष्ठपदा) सू १०२४, ५, ६,२१, २३,३१,८२,६६,१३१,१३२ पुव्वा फग्गुणी ( पूर्व फल्गुनी) ज ७।१४०, १४८, १५१,१६३ सू १०।२ से ६,१५,२३,४४,६२, ७०,७५,८३,१०६,१२०,१३१ से १३३,१५२; १२।२३ पुव्वाभवया ( पूर्व भद्रपदा) ज ७ १४६,१५७ सू १०२, ३, ५, ७५, १३१,१३३ पुव्वामेव (पूर्वमेव ) प ३६।२४।२१ पुव्वावर (पूर्वापर ) ज १।२६४।२१,१४२,२५६; ६०१०, ११,१४,१५,१८ से २२,२६,७१४,६३, ८७,११०,१८३ पुव्वासाढा (पूर्वाषाढा) ज ७।१२८,१३६,१४०, १४६,१६७ सू १०।२ से ६,१६,२३,५३,६२, ७४, ८३, ११८, १३१ से १३५ पुव्वि (पूर्वम्) उ३।११८ पुव्विल्ल (पूर्वीय) ज ५।४१ godaar (पूर्वोपपतक ) प १७१४,६,१६,१७ पुस (पुष्प) ज ७।१२।१ पुस्स ( पुष्य ) ज ७ । १३६, १४०, १४६, १६१, १६२ सु १०२, ३, ५,६,१३,२४,४१,६२,६८,६६, ७५,८३,१०६, १२०,१३१ से १३३,१५६, १११६; १६।२२।१७ . पुसदेवया ( पुष्यदेवता ) सू १०१८३ पुस्सफल ( पुष्यफल ) प १।४८।४८ पुस्सायण ( पुष्यायण) ज ७।१३२।२ सू १०१६८ पुहत्त ( पृथक्त्व ) प ७।३,६ से ११८१, ८३, ८४, १२ ६; १५ ६; १८१४, १६, २४, ३१, ३६, ४९, ५४, पुव्वसंगइय- पेच्छ । घरमंडव ६०,६१,११३,११९; २११४४ से ४७, ४७११, २,६,२११६८,२४। १४, १५, २५२, ४,२७/२,६; २८।२७,७३ से ७६, १२१,१२४,१२७ से १३२,१३६,१४३,१४५ ३६।१७,३४ पुहत्तय (पार्थक्त्विक ) प १९८५ पुहवी (पृथ्वी) ज ३।३,३५,५।१०।१ पूअफलीवण ( पूगफलीवन ) ज २६ पूर (पोई) प १।३५।३ पूत ( पूतित्व) ज २६ पूइय ( पूजित ) ज ३१८१५।५ पूजित ( पूजित ) उ ३०४८,५० पूय ( पूर्व ) प १८४२१२० से २७ ज ३।१२० उ १५६,६१,६२८४,८६,८७ प्रणय (दे० ) प १६५ पूयणवत्तिय ( पूजनप्रत्यय ) ज ५।२७ पूर्याणिज्ज ( पूजनीय) सू १८।२३ पूयफली ( पूगफली ) प १।४३।२ पूया (पूजा) उ३।५१ √ पूर ( पूरय् ) पूरयंते ज ३।३१ पूरेड प ३६।८५ ७।११२।५ पूति ज ५।१३ पूरेति सु १०।१२६/५ पूर (पूरक) ज ३८८ पूरयंत ( पूरयत्) ज २।६५; ३।३१ पूरिम (पूरिम, पूर्य्य ) ज ३।२११ पूत (यत्) ज ३।३०,४३,५१,६०,६८,१३०, १३८ से १४०,१४६;७१७८ पूरेत्ता ( पूरयित्वा ) ज ५।१३ पूस (पुत्र) ज ७।१२८, १३०, १८६ ३ १० १४; १२।१६ से २३,२६ सफली (पुष्पफली) प १४० १ पूसमाणय ( पुष्यमाणव) ज ३ । १८५ समाणव (पुष्यमाणव ) २०६४; ५।३२ पेच्छणिज्ज ( प्रेक्षणी ) ज २।१५ पेच्छा ( प्रेक्षा) ज २२०, ३२ पेच्छाघरसंठित ( प्रेक्षागृहसंस्थित) सू ४२ पेच्छाघरमंडव ( प्रेक्षागृह मण्डप) ज ३|१९३ ; Page #1068 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेच्छिज्ज माण- पोलिंदो ४। १२३, १२४५।३३ पेच्छिज्जमाण (प्रेक्ष्यमान ) ज २२६५; ३३१८६, २०४ पेज (प्रेस) प ११।३४।१,२२।२० पेज्जणिस्सिया ( प्रेयनिश्रिता ) प ११।३४ पेढ (पीठ ) ज ४११४३, २०८ ५।१३ पेम्म (प्रेमन्) ज २।२७ पेरंत ( पर्यन्त ) ज १।१६; ३।१२६।४; ४।१४३, २४५, २४६, २५१,७१७८ पेलव (पेलव) ज ३।२११५।५८ पेस (प्रेष्य) ज २।२६ / पेस ( प्र + इष् ) पेसिज्जइ उ १।१२८ पेसेइ उ १।११० पेसेमि उ १।१०६ पेसेमो उ १।१२७ पसेह उ १।१०७ पेसेहि उ १।११५ पेसल (पेशल ) प १७।१३४ पेसितए (प्रेषितुम् ) उ १११०७ पेसिय (प्रेषित) उ १।११६,१२७ पेसुण्ण ( पैशुन्य ) प २२।२० V पेह ( प्र + ईक्ष ) पेहति प १५।५० पेहमाण (प्रेक्षमाण ) प १५।५० पेहुर्णामजिया ('पेहुण' मञ्जिका ) प १७।१२८ पोंडरीय ( पौण्डरीक ) प ११४६, ७९ ज ४१३, २५ पोंडरीयदल (पौण्डरीकदल ) प १७।१२८ / पोक्ख ( प्र + उक्ष्) पोक्खेइ उ ३।५१ पोक्खरत्थिभय ( पुष्करास्थिभाग) ज ४ ७ पोक्खरपत्त ( पुष्करपत्र ) ज ३।१०६ पोक्खरवर ( पुष्करवर ) सू १६।१५।१, २ पोक्खरवरदीव (पुष्करवरद्वीप) सू १९।१५ पोक्खल ( पुष्कर ) प १४६ पोक्खल स्थिभय ( पुष्करास्थिभाग) प ११४६ पोक्खलावतीचक्कवट्टि विजय (पुष्कल | वतीचक्रवर्ति विजय ) ज ४।१६७ पोग्गल ( पुद्गल ) प ११८४३।१।२,१२४,१७५, १७६,१८० से १८२, ५३१४०, १४३, १४५, १४७.१५०, १५४, २३३, २३४, २३६ से २३६, २४१,२४२; ६।२६;१५।४० से ४७,४६ : ६६१ १६।३३, ३४, १७/२, २५, २१।१।१, ६५, ६६; २३।१३ से २३:२८ २०, २२ से २४, ३२, ३४, ३६, ३० से ४२, ४४, ४५, ४८, ६६, ६८ से ७१, १०५ ३४ । १ । १,३४ ६, १६, २०, ३६।५६,६१, ६२,६६,७०,७३,७४,७६,७७,७६ से ८१; ज २६ ; ३ । १६२,५५,७३७।२११ सू ५।१; ७ १; १११ ; २०१२ पोग्गलगति (पुद्गलगति ) प १६।३८, ४३ पोग्गलत्थकाय ( पुद्गलास्तिकाण ) प ३।११४ ११५,१२०,१२२ पोगल परियट्ट (पुद्गल परिवर्त ) १८१३,२७,४५, ५६,६४,७७,८३,६०,१०८ पोच्चड (दे० ) उ३।१३० पोट्ट (दे० ) ज २|४३ पोट्टलिया (पोट्टलिका) ज ५।१६ पोट्ठवई (प्रोष्ठपदी) ज ७।१३६, १४२, १४८, १५१, १५.५ पोट्ठवती (प्रोष्ठपदी) सू १०७, ६, २१, २३, २६ पोट्ठवय (प्रोष्ठपद) सू १० ५,१२०,१५३ पोडइल ( पोटगल ) प १।४२।१ नल तृण पोत्तिया (दे० ) प ११५१।१ पोत्तिय (पौत्रिक) उ ३।५० पोत्थगग्गाह ( पुस्तकग्राह) ज ३१७८ पत्थरयण ( पुस्तक रत्न ) ज ४ । १४० पोत्थार (पुस्तकार ) प १६७ पोरग (पोर) व १४४ १ इक्षु पोराण (पुराण) प २८/२०,२६,३२,६६ ज १।१३,३०,३३,३६,४१२ पोरिसिच्छाया रुपीच्छाया ) सु १।६।३; ६।१ से ३ पोरिसी (पौरुषी) ज ७ । १५६ से १६७ से १०६४ से ७४ पोरिसीच्छाया ( पौरुषीच्छाया ) चं २३ पोरेवच्च (पौरपत्य पौरोवत्य ) प २।३० से ३३, ३५,४१,४८ से ५१ ज ११४५; ३।१८५.२०६. २२१५।१६ उ५।१० पोलिंदी (पौलिन्दी) ५१६८ Page #1069 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६२ पोस-फासचरिम पोस (पौष) ज २११६,७।१०४ सू १०।१२४ उ ३.४० पोसह (पौषध) ज २।१३५ पोसहघर (पौषधगृह) ज ३।३२ पोसहसाला (पौषधशाला) ज ३।१८ से २१,३१, ३३,३४,५२ से ५४५८,६१,६३,६६,६६,७०, ७१,७४,८४,८५,१३७,१३६,१४१ से १४३, १४७,१६४ से १६८,१८० से १८३,१६०, १६६ उ ५।३५ पोसहिय (पौषधिक) ज ३।२०,३३,३५,५४,६३, ७१,८४,१३७,१४३,१६७,१८२ पोसहोववास (पौषधोपवास) प २०१७,१८,३४, पोसी (पौषी) ज ७।१३७,१४०,१४६,१४६,१५५, सु १०७,१३,२२,२३,२६ पोहत्त (पृथक्त्व) प १५३१११,१५१८ से १०,२३, ३०.१४०,२४६ पोहत्तिय (पार्थक्त्विक) प २२।२५,२८,२३१८,१२ फलगग्गाह (फलकग्राह) ज ३।१७८ फलय (फलक) ज ४।२६ उ १।१३८ फल (वासा) (फलवर्षा) ज ५।५७ फलविटिय (फलवृत्तक) प १५० फलहसेज्जा (फलकशय्या) उ ५।४३ फलासव (फलासव) ५ १७।१३४ फलाहार (फलाहार) उ ३५० फलिय (फलित) उ ३।४६ फलिहकूड (स्फटिककूट) प २।५१,५६ 'फलिहामय (स्फटिकमय) १८१८ फाणिय (फाणित) ५१५।१२,१५१५० फालिय (स्फटिक) ज ४१३,२५ फालियामय (स्फटिकमय) प २।४८ ज ७।१७६, १७८ फग्गुण (फाल्गुन) ज २१७१;७।१०४ सू १०।१२४ उ ३।४० फग्गुणी (फल्गुनी) ज ७।१३७,१४०,१४६,१५३, १५५;१०।१२०,१२।२३ सु १०७,१५,२३, २५,२६,१२०,१५३,१५८,१२।२३।। फणस (पनस) प ११३६।११६।५५;१७।१३२ फणिज्जय (फणिज्झक) १ ११४४।३ मरुआ फरिस (स्पर्श) ज ३८२,१८७,२११,२१८,५१५८ गू २०१७ उ ५।२५ फरुस (रुष) ज २।१३१,१३३ फल (फल) प ११३५,३६,११४८।६,१८,२८,६३; २३।१३ से २३ ज १११३,३०,३३,३६,२८, ६,१२,१६,१७,१८,७१,१४५,१४६,३।११७, २२१,४।२;७।११२॥३,४ सू १०।१२०, १२६।३,४ उ ११३४,९८,६६,३५०,५३,६८, १०१,१३१,५६ फलग (फलक) ५ ३६।६१ ज ३।३१ उ ३।३६ फास (स्पर्श) प ११४ से ६२।२० से २७,३०,३१, ४१,४८,४६,३।१८२,५१५,७,१०,१२,१४,१६, १८,२०,२४,२८,३०,३२,३४,३७३६,४१,४५, ५३,५६,५६,६१,६३,६८,७१,७४,७६,७८, ८३,८६,८६,६१,६३,६७,१०१,१०४,१०७, १०६,१११,११५,११६,१२६,१३१,१३४, १३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७,१५०, १५२,१५४,१६३,१६६,१६६,१७२,१७४, १७७,१८१,१८४,१८७,१६०,१६३,१६७, २००,२०७,२११,२१४,२१८,२२६,२२४, २२८,२३०,२३२,२३४,२३७,२३६,२४२, २४४,१०१५३।१,१११५६१५१३८,७७,८१, ८२,१७४१३२ से १३४,२३।१३ से २३,१०६, २८१६,१०,२०,३२,५५,५६,६६, ३४।१।२; ३६८०,८१ ज १११३,२१७,१८,६८,१४२; ३११३८,४।२७,४६,८२,५।३२;७२०६ सू २०१७,८,२०१८,४ फासओ (स्पर्शतस्) प ११५ से १११६०; २८।१०,२०,२६,५६ फासचरिम (स्पर्शचरम) प १०५२,५३ १३० १।१६७ Page #1070 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फासणाम-बंधणविमोयणगति ९६३ फासणाम (स्पर्शनामन्) प २३॥३८,५० फुसमाण (स्पृशत्) प १३।२३ फासतो (स्पर्शतस्) प ११६ से ६२८१३२,६६ फुसमाणगति (स्पृशद्गति) प १६।३८,३६ फासपज्जव (स्पर्शपयंव) ज २१५१,५४,१२१,१२६, फुसित्ता (स्पृष्ट्वा ) प १५१५१,१६।३६३६७६,८१ १३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३; ज ३।१३१ ७/२०४ फुसिय (स्पृष्ट) ज ५७ फासपरिणाम (स्पर्शपरिणाम) ५१३।२१,२६ फेण (फेन) ज ३।३५,४।१२५:५१६२,७।१७८ फासपरियार (स्पर्शपरिचार) प ३४।२१ फेणमालिनी (फेनमालिनी) ज ४।२१२ फासपरियारग (स्पर्शपरिचारक) ५ ३४।२८,२१,२५ फासपरियारणा (स्पर्शपश्चिारणा) ५ ३४।१७,२१ फासमंत (स्पर्शवत) प १११५२,५६२८।५,६,५१, बउल (बकुल) प ११३५११ बउस (बकुश) प १२८९ फासविण्णाणावरण (स्पर्श विज्ञानावरण) प २३३१३ बंध (बन्ध) ५३।११२,१३।२२।१,२,१४।१८।१ फासादेस (स्पर्शादेश) प ११२०,२३,२६,२६,४८ २६।१२ ज २११३३ फासावरण (स्पर्शावरण) प २३।१३ बंध (वन्ध ) बंधइ प २३।३,१६८२४।१३ से फासिदिय (मर्श न्द्रिय) १ १५।१,६,७,१० से १८, १५ उ ३१५५ बंधति १४:१८,२२१२२,२३, २० से २७,३०,३१,३५,४२,५८ से ६४,६९,७०, ८६,६०:२३१५,७,१३४,१३५,१३७ से १४०, ७३,७४,८०,८५,१३३;२८।४२,४५,४६,७१ १४२,१४३,१४६,१४७,१५१ से १५८,१६० उ ३।३३ से १६२,१६४,१६६,१६७,१६६,१७१ से फासिदियत्त (स्पर्शन्द्रियत्व) १२८।२४,२६,३४।२० १७४,१७६,१७७,१८१,१८५,१८६,१६०; फासिदियपरिणाम (स्पर्शन्द्रियपरिणाम) प १३१४ २४॥४,५,१० से १२,१५,२६।४,६ ज ५११३ फासु (प्रासु) उ ३।३६ बंधति प २२।२१,८३,८६,८७,२३।११, फासुय (प्रासुक,स्पर्शक) उ ३।११४ २३१४,६,१६४ से १६६,१९८ से २०१:२४।२, फासुयविहार (प्रासुकविहार) उ ३।३०,३६ ३,१०,१५:२६।२,३,८ बंधिसु प १४।१७ फार्सेदिय (स्पर्शेन्द्रिय) प १५।१६,२८,३१ से ३३, बंधिस्संति प १४।१८ बंधेसु प १४.१८ ६४ से ६७,७६,१३४,२८६३६ बंधेसि उ ३७६ फुट्ट (दे०) ज २।१३३ बंधग (बन्धक) प ३।१७४;२२।२२,२३,८४,६०; फुट्ट ( फुट ) फुट्टउ उ ५७२ फुट्टिहि ज ५१७३ २३।६३ ; २४।४ से ८,१० से १३;२६।४ से फुट्टमाण (स्फुटत् ) ज ३१८२,१८७,२१८ ६,८ से १०;२७।५ फुड (स्पृष्ट) प १५।५३ से ५७;३६।५६,६०,६६ बंधण (बन्धन) प २१६४।२२:१६५५,३६।०२।१, से ६८,७०,७१,७४,७५,८१ च ११३ ८३।१,६४।१ ज २।२७,२६,८६,८६,१३३; फुडित्ता (स्फुटित्वा) प १११७८ फुडिय (फुटित) प २।१३३ ३।२२५ उ १६६६,६८,७२,८८,६२ फुल्ल (फुल्ल) ज ३।१८८ बंधणछेदणगति (बन्धनछेदनगति) प १६।१७,२३ फुल्लाबलि (फुललावलि) ज ५१३२ बंधणपरिणाम (बन्धनपरिणाम) प १३।२१,२२ फुस (स्पृश् ) फुसइ ज ३।१३१ फुसई प २।६४।११ बंधनविमोयणगति (बंधनविमोचन गति) फुसति ५ ११।७२ सू ५।१ फुसंतुज ३।११२ प १६।३८,५५ Page #1071 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ बंधमाण-बल विसिठ्ठया बंधमाण (बध्नत् ) प २२।२६,२७,२४।२ से ५,६ बत्तीसमंगुलमूसियसिर (द्वात्रिंशदङ्गलोच्छितशिरस्क) से १५:२५१२,४,५ ज ३।१०६ बंधय (बन्धक) प ११११६२,२२।२१ ८३,८६,८७; बत्तीसविह (द्वात्रिंशविध) ज ३।१५६ २३।१।१,२३।१६१ से १६३; २४।२,३,७,८, बदर (बदरा) प ११३७।२ कपास का पौधा १०,१२;२६२ से ४,६,८ से १० बद्ध (बद्ध) प१५१५८१२; २०१३६; २३।१३ से २३ बंधिता (बद्धवा) ज ५।१३ उ ३१५५ ज ३।२४,३५,७७,८२,१०७,१२४,१७८,१८६, बंधुजीदग (बन्धुजीवक) प ११३८।१ ज २०१०; १८७,२०४,२१४,२१८,२२१; ४।३.२५ २३५ उ १११३८ बंधेउकाम (बद्ध काम) उ ११७३ बद्धग (दे०) ज ७.१७८ एक आभूषण बंधेत्ता (बद्ध्वा ) ज ५।१६ उ ३७६ बद्धेल्लग (दे०) प १२०८ से १३,१६,२०,२१,२३, बंभ (ब्रह्मन्) प २१५४,१५।८८ ज ७/१२२।१ २४,२७,२८,३१ से ३३,१५८३ से ८६,८६ सू १०१८४१ से ६३,६५ से ६७,६६ से १०६,१०८ से १२३, बंभचेर (ब्रह्मचर्य) ज ७१६६ सु १८।३ १२५ से १३२,१३५,१३६ से १४१,१४३ बंभचेरवास (ब्रह्मचर्यवास) उ ५।४३ बधेल्लय (दे०) प १२१७,८,१२,२०; १५।६४ बंभण्णय (ब्राह्मण्यक) उ ३।२८,३८,४०,४२ बब्बर (बर्बर) प ११८६३८१ बंभयारि (ब्रह्मचारिन्) ज ३२०,३३,५४,६३,७१, बब्बरी (बर्बरी) ज ३।११।१ ८४,१३७,१४३,१६७,१८२ बम्ह (ब्रह्मन्) ज ७।१३०,१७६,१८६।३ बंभलोग (ब्रह्मलोक) प २।४६,५४,५५,६०,७४१२; बम्हदेवया (ब्रह्मदेवता) ११०७८ ३३।१६,३४।१६ बरग (दे०) ज ३।११६ शालि विशेष बंभलोय (ब्रह्मलोक) १११३५;२।४६,५४ से ५७, ६३,३।३३,१८३,४।२४३ से २४५,६।३१,५६, बरहिण (बहिन) प ११७६ ६५; २०१६१,२१७०,२८७६; ३४।१८ बल (बल) प २०।१।१;२३।१६,२० ज २१५१,५४, उ२।२२,५।२८ ६४,७१,१२१,१२६,१३०,१३८,१४०,१४६, बंभलोयग (ब्रह्मलोकज) ज ५।४६ १५४,१६०,१६३,३१३,१२,३१,७७,७८,८१, बंभलोयडिसय (ब्रह्मलोकावतंसक) १ २०५४ १०१,१०३,१०६,११७,१२६,१२६,१५१, बंभी (ब्राह्मी) प १४९८ ज २१७५ १८०,१८८,२०६४।२३६;; ५॥५,२२, बकुल (बकुल) ज ३।१२,८८,५४५८ २६,७११७८ भू २०११,७,६।३,५ उ १।६६, बग (बक) प ११७६ ६६,११५,११६,३।२।१,१७१ बिज्झ (बंध) बज्झति उ ३।१४२ बलकर (बलकर) ज ३।१३८ बत्तीस (द्वात्रिंशत् ) प २।२२ सु २।३ उ ३।१२६; बलकूड (बलकूट) ज ४।२३६,२३६ १३५ बलदेव (ब दे ) प १७४,६१, ६।२६ ज २।१२५, बत्तीसइ (द्वात्रिंशत् ) ज ३.१८६,२०४ १५३; ७२०० उ ५।१० से १२,३० बत्तीस इविह (द्वात्रिशविध) ज ५१५७ उ ३।१५६ बलदेवत्त (बलदेवत्व) प २०१५५ बत्तीसग (द्वात्रिंशत्) ज ७।१३१।१ बलव (बलवत्) ज ५१५७१२२।१ सू १०८४।१ बत्तीसजणवयसहस्सराय (द्वात्रिंशद् जनपदसहस्र- बलवग (वल (क) उ:५ राजन्) ३।१२६२ बलविसिठ्ठया (बलविशिष्टता) प २३१२१ Page #1072 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बलविहीणया-बहबीया ९६५ बलविहीणया (बलविहीनता) प २३।२२ ६१,६३,६४,३।१८३९।२६,१११२२१७) बलाग (बलाक) ज ३।३५ १३६; २२।१०१,३६८२ ज ११४५; बलागा (बलाका) प १७६ २।११,१२,५८,६५,८३,८८,६०,१२३, बलावलोय (बलावलोक) ज ३।८१ १२८.१३३,१३४,१४५,१४८,१५१,१५७; बलाहगा (बलाहका) ज ५।६।१ ३१६,११,२४,३२।१,८१,८७,१०३,१०४ बलाहया (बलाहका) ज ४।२१०.२३८ १०५,११७,१७८,१८५,१८६,१८८,२०४, बलि (बलि) प २।३१,३३,४०१७ ज २।११३, २०६,२१६,२१६,२२१,२२२.२२५,४।२,३, ११६; १५१ उ ३१५१,५६,६४ २५,२८ से ३०,३४,६०,१४०,१५६,२४८, बलिकम्म (बलिकर्मन्) ज ३।५८,६६,७४,७७,८२, २५०,२५१,२५२,५११,५,१६,४३,४६,४७, ८५,१२५,१२६,१४७ सू २०१७ उ १।१६, ६७,७।११२।१,२,७।१६८,१८५,१६७,२१३, ७०,१२१, ३।११०,५।१७ २१४ च २।४ सू १।६।४; २।१; १०।१२६।१, बलिपेढ (बलिपीठ) ज ४।१४० २; १४।१ से ८१८।२३; १९।१६, २०१७ बलिमोडय (दे०) प ११४८४७ उ१।१६,४१,४३,५१,५२,७६,७७,६३,६८; बव (बव) ज ७/१२३ मे १२५ २।१०,१२,३।११,१४,२८,५५,८३,१०१,१०६, बहल (बहल) ज ३।१०६ १०६,११४,११५,११६,१२०,१३० से १३२, बहलतर (बहलतर) प ११४८१३० से ३३ १३४,१५०,१६१,१६६४।२४,५७,१० बहलिय (बहलीक) प १८६ बहुआउपज्जव (बह वायु:पर्यव) ज ११२२,२७,५० बहली (बहली) ज ३।११ बहुउच्चत्तपज्जव (बहुच्चत्वपर्यव) ज ११२२,२७,५० बहव (बहु) ज १।१३,३१,२७,१०,२०,६५,१०१, बहुग (बहुक) प २।४६,५०,५२,५३,५५,६३ १०२,१०४,१०६,११४ से ११६,१२०,३।१०, बहुजण (बहुजन) ज ३।१०३ ८६,१०३,१७८,१८५,२०६,२१०,४।२२,८३, बहुणाय (बहुज्ञात) उ ३३१०१ ६७,११३,१३७,१६६,२०३,२६६,२७६,५।२६, बहुतराग (बहुतरक) प १७।१०८ से १११ ७२ से ७४ सु १८।२३ उ ३।४८ से ५०,५५, बहुतराय (बहुतरक) प १७।२,२५ ६२,१२३, ५।१७ बहुपडिपुण्ण (बहुप्रतिपूर्ण) ज २१८८; ३।२२५ बहस्सइ (बृहस्पति) सु २०१८,२०१८।४ उ ११३४,४०,४३,५३,७४,७८,२।१२,५।२८, बहस्सइदेवया (बृहस्पतिदेवता) मु १०।८३ ३६,४१ बहस्सति (बृहस्पति) प २।४८ बहुपढिय (बहुपठित) उ ३।१०१ बहस्सतिमहग्गह (बृहस्पतिमहाग्रह) सू १०।१२६ बहुपरियार (बहुपरिचार) उ ३३६६,१५६:५।२६ बहिं (बहिरा) प २।४८ बहुपरिवार (बहुपरिवार) उ ३।१३२ बहिता (बहिस्तात्,बहिस्) सू १६।२२।२७ बहुपुत्तिय (बहुपुत्रिक) उ ३।६०,१२० बहिया (बहि-तात्,बहिस्) ज १।३; २१७१;७।५८ बहुपुत्तिया (बहुपुत्रिका) उ ३।२।१,९०,६२,६४, सू १।२६।१,३; १६।२२।१ उ १।२;३।२६, १२०,१२५;४।५ ४६,४८.५०,५५,१४५, ५॥५,३३ बहुप्पयार (बहुप्रकार) ज २।१३१ बहु (बहु) प १।४८।५४; २।२० से २७,३० से ३५, बहुबीयग (बहुबीजक) प १।३४,३६ ३७ से ३६,४१ से ४३,४६,४८ से ५५,५८ से बहुबीया (बहुबीजक) प १।३६ Page #1073 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहुमज्भदेसभाग-बारवती बहुमज्झदेसभाग (बहुमध्यदेशभाग) ज ११३७, ११७,११८,१३१,१६६,१७०,१७९,२३४,२४० ४।३५ सू १६।१६ से २४२,२४७,२४८,२५०;५।३२,३५ सू२।१; बहुमज्झदेसभाय (बहुमध्यदेशभाग) ज १११०,१६, ६।३;१८।१,२०१७ ४०,४२,४३,३।१,६७,१६१,१६३,१६४,१६७; बहुस्सुय (बहुश्रुत) उ ३।६६,१५६,५।२६ ४।३,६,६,१२,३१,३३,४१,४७,४६,५७,५६, बाउच्चा (बाकुची) प ११३७।२ ६४,६८,७०,७६,८४,८८,६३,६८,११२,११८, बाण (वाण) प ११३८१२ वाण का फल ११६,१३६,१४१,१४३,१४५ से १४७,१५६, बाणउति (द्वानवति) मू १।१६।११६।१५।१ १६८,१७७,२०७,२०८,२१३,२१८,२२१,२४२, बाणउय (द्वानवति) ज ११४८ २४८,२५०,२५२,२६६,२७२,५१३ बाणकुसुम (वाणकुसुम) प १७।१२४ बहुमय (बहुमत) उ ३।१२८ बाताल (द्वि चत्वारिंशत्) सु १३।१ बहय (बहक)प ११४७।३,११४८।५४;३।३८ से १२०१ बातालीस (द्विचत्वारिंशत) म १६४१२२२ १२२ से १२४,१७४,१७६ से १८२,६१२३, बादर (बादर) प २.१,२,४,५,७,८,१०,११,१३, ८।५.७,६,११६।१२,१६,२५,१०।३ से ५,२६ १४; ३७२ से १५,१११,१८३४।६२ से ६४, से २६१११७६,६०१५।१३,१६.२६,२८,३१, ६६.७०,७६.७७,८५ से ८७,६२ से ६४,६८३, ३३,६४,१७।५६ से ६६,७१ से ७६,७८ से १०२,११।६४,१८१४१ से ४४,४६,४७,४६, ८३,१०६,१०७,१४४ से १४६; २०१६४; ५०,५४,११७, २१।४,५,२५.४०,४१ ५०; २१११०४,१०५:२८।४१,४४,७०,३४।२५; २८।१४,१५,६०,६१ सू २०११ ३६।३५ से ४१,४८,४६ सू १८१३७ बादरआउक्काइय (बादरअप्कायिक) प ११२१,२३ बहुल (बहुल) प २।४१ ज २११२,६४,६५,७१, बादरकाय (बादरकाय) प १२००२ ८८,१३३,१३४,१३८,४।२७७,७/१२६ बादरणाम (बादरनामन्) प २३॥३८,११६ बहुलपक्ख (बहुलपक्ष) ज ७११५,१२५ सू २०१३ बादरतेउक्काइय (बादरतेजस्कायिक) प ११२४,२६ बहुवत्तव्व (बहुवक्तव्य) प १।१।४ बादरवणस्सइकाइय (बादरवनस्पतिकायिक) बहवयण (बहुवचन) प १११८६ प ११३०,३२,३३,४७,४८ बहुविह (बहुविध) प २१६४।१७:१७।१३६ बादरबाउकाइय (बादरवायुकायिक) प ११२७,२६ ज ३१६,२२२ बादरसंपराय (बादरसंपराय) प १११४ बहुसंघयण (बहुसंहनन) ज १२२,२७,५० बायर (बादर) प६।१०२,१११६५,६६।१,१८१५२; बहुसंठाण (बहुसंस्थान) ज ११२२,२७,५० बहुसच्च (बहुसत्य) ज ७१२२।१ सू १०।०४।१ २१।२३,२४,२६,२७ ज ७४४३ बायरसंपराय (बादरसम्पराय) प ११११२,२३।१६२ बहुसम (बहुसम) प २।४८ से ५१,६३,३।३६; बायाल (द्विचत्वारिंशत् ) ज ४।८६,१०८ सू ३१ १७१०७,१०६,१११ ज १११३,२१,२५,२६, बायालीस (द्विचत्वारिंशत् ) प २१६४ ज २१६ २८,२९,३२,३३,३६,३७,३६,४०,४२,४६; २१७,१०,३८,५२,५६,५७,१२२,१२७,१४७, सू ३।१ उ ५९ बायालीसहि (द्विचत्वारिंशविध) प २३१३८ १५०,१५६,१५६,१६१,१६४; ३८१,१६२, १६३,१६६,१६७,४।२,३,८,९,११,१२,१६, बार (द्वादश) प १०।१४।३ ३२,४६,४७,४६,५०,५६,५८,५६,६३,६६,७०, बारबई (द्वारवती) उ ५।४,५,६,११,१६,३०,३३ ८२,८७,८८,१००,१०४,१०६,१११,११२, बारवती (द्वारवती) प ११६३।३ Page #1074 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारस - बिइय बारस ( द्वादशन् ) प १।७४ ज १८ सू ३।१ उ ५।४५ बारस ( द्वादश) ज ७ । ११४। २ सू १० | १२४२ बारसग ( द्वादशक ) प २३६८, १४०,१८३,१८४ बारसम ( द्वादश ) प १०।१४।२ सू १०।७७; १२।१७१३८ बारसविह ( द्वादशविध ) प १।१३५२११५५ बारसाह ( द्वादशाह) उ १।६३;३।१२६ बासी (द्वादशी) ज ७।१२५ बाल (बाल) ज २२६५; ३।२४;७ १७८ बालग (बालक) ज ११३७ बालचंद (बालचन्द्र ) उ ३।२४ बालदिवागर (बालदिवाकर ) प १७।१२६ बालभाव ( बालभाव ) उ३।१२७, १२८ ५४३ बालव ( बालव) ज २।१३८, ७।१२३ से १२६ गोव (बालेन्द्रगोप ) प १७।१२६ बालुया (बालुका) ज ४।१३ बावट्ठ ( द्वाषष्टि) ज ४१४७ बाट्ठि (द्विषष्टि ) प २१।६७ सू १०।१३७ बावण्ण (द्विपञ्चाशत् ) ज १।१७ सू १।२१ बावत्तर ( द्वासप्तति) ज ४। ११० बावतार ( द्वासप्तति ) प २।३० ज २।६४ सू २३; १६।११;२१।३ बावीस ( द्वाविंशति ) प ४|११ ज २८१ च ५।४ सू १६ बावीसइम (द्वाविंशतितम) प १०।१४।५ बावीस ( द्वाविंशतितम) प १०।१४|४ बासीत ( द्वयशीति) सू १।१२ बाल्ल ( बाल्य ) प १९७४ २ २१ से २७, ३० से ३६,४१ से ४३,४६,४८,६४,१५।१।१,१५४७, २२.३०,२११८४,८६,८७,६० से ६३, ३६।५६, ६६,७०,७४ ज १।४३; २।१४१ से १४५; ४।६, ७, १२, १४, १५, २४, ३६,६६, ७४,६१, ११४,११८,१२३,१२४,१२६ से १२८, १३२, १३६,१४०, १४३, १४५, १४७, २१७, २४५, ६६७ २४८, २५७, २५८, २५६ ५ ३५, ७ ७,६६,६०; १७७।१,२,३ सू १।२६,२७,१८११,६ से १३ TET ( बाहु ) १२३, ४८, २।१५ ३।६६ से १०१; ४१,२६,५५,६२,८१,८६,९८, ११५, १७२; _५।१४,१७,७।३१,३३,१६८१,१७८ सू ४/३, ४,६,७ उ ३५० बाहाओ ( बाहुतस् ) सू ४३,४,६,७ (ब) २२० से २७, ३० से ३६, ४१ से ४३ ; ३३।२७ से २६ ज ११२,३१,४।४६, ११४,२३४,२४०; ७।३१,३३,१६८।१ सू ४/३, ४,६,७,१६।२२।१५,१६ बाहिर (बाह्य) प १।४८।४५; १।१०१।६; १५।५५; ३३ । १ । १ ज २।१२,४।७, २१; ५/३६ ; ७।१० से १३.१६,१८,१६,२२,२५,२७ से ३०, ३५, ५५,५८,६६ से ७२,७५,७७, ७८,८१, से ८४,६६, १२६।१,१७५ स् १।११,१२,१४, १६,१७,२१,२२,२४,२७ से ३१,२/३;३।२; ४१६; ६।१६।१,२,१०।७५, १३।१३ से १६; १६।२२।१२; १६।२३,२६,२०१७ बाहिरओ (बाह्यतस् ) ज ३।२४।१,१३१।१; ७।१२६ बाहिरपुक्खरद्ध (बाह्यपुष्करार्द्ध) सू १९।१६ बाहिर (बाहिर, बाह्यक) ग १७५,८०, ८१ ७५, १७,६४,७६,८८ सू ११२ बाहिरिया (बाहिरिका) ज ३।५,७,१२,१७,२१, २८,३४,४१,४६,५८,६६,७४,७७, १३५, १४७, १५१,१७७, १८४, १८८, २१६ ४११६,७३१, ३३ सू ४३,४,६,७ उ १११६,४१,४२,१२४; ४|१२,५१६ बाहिरिल्ल (बाह्य) प २१।६० सू १८७ बाहु ( बाहु ज ३ | १२७; ५।५ बि(द्वितीय) प १०।१४।४ से ६ सू १।२६ बि ( द्वि) ज ४१६३; ६।१४ सू १।२६ बिइंदिय (द्वीन्द्रिय) प १७६६ बिइय (द्वितीय) प २।३१३६।८५ ज ३।३; Page #1075 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हहंद ७।१०७ उ २।२२,३।६४ बिइया ( द्वितीया ) ज ७।११७,१२५ सू १०।१४८, १५० बिइयादिवस ( द्विती / दिवस ) ज ७।११६ बिंदु (बिन्दु) प १|१०११७१५।२६,२१।२४ ज ३।१०६७।१३३।२ fa (बिम्ब ) प २३१,३२ बिबफल ( बिम्बफल ) प २।३१ ज ३।३५ बिहणिज्ज ( बृंहणीय) ज २०१८ बिगुण ( द्विगुण) ज २४ बिडाल ( विडाल ) प १।६६ ज २।३६ बितिय (द्वितीय) प ११४२,८८, १२१२,३८; २२।३३,४१,३६१८७ ज ३।६५; ४।१४२/३ सू १०७२,७७,८५,८७,१३।१,८,१४१३,७ उ १।६३ बितियादिवस ( द्वितीयदिवस ) सू १०८५ बितियाराति (द्वितीयरात्रि ) सू १०/८७ बिबोयण (दे० ) ज ४।१३ बिभेलय ( बिनीतक ) प १।३५।२ बिराल ( बिडाल) ज २।१३६ बिल (बिल) प २२४,१३,१६ से १६,२८ ज २।१३४,१४६ बिलपतिया ( विलपङ्क्तिका ) प २०४,१३,१६ से १६,२८ ज ४१६०,११३ बिलदास (बिलवासिन् ) ज २।१३३ उ ३ । ५० बिल्ल ( बिल्व ) प १ ३६।१; १६ ५५; १७/१३२ सू १०।१२० बिल्लाराम (दे० ) उ ३।४८,५५ बिल्ली ( चिल्ली ) प १।३७।२ एकसण, बथुआ बिल्ली (बिल्वी ) प १।४४।१ बीभच्छ ( वीभत्स ) उ ३।१३० बी (बीज) ए ११४५२, ११४८१६,२६,५१,६३; ३६।९४ ज २१०,१३३, ३।१६७।३ उ ३।५१, ५३ बीय (द्वितीय) प १२ १२ १०/७७ बिइया - बेइंदिय बी (बीजक ) प ११३८ ।१ बिजौरानीबु atres ( बीज रुचि ) प १।१०१ १,७ atree (बीरुह् ) प १।४८।३ बीय (वासा) (बीजद) ज ५।५७ बीर्यावटि ( वीज वृन्तक ) प १५० बीयाहार ( बीजाहार ) उ३।५० √ बुक्कार (दे०) बुक्का रेति ज ५।५७ बुझ ( बुध) बुज्झ प ३६८८ अंति ६।११० ज १।२२,५०२१५८, १२३,१२८; ४१०१ बुज्झति प ३६।६१ बुज्झिहिइ उ १।१४१; ३।८६,५१४३ बुज्झिहिति ज २।१५१,१५७ बुज्झेज्जा प २०१७, १८, २६, ३४ बुज्झित्ता (बुद्ध्वा ) उ ५ ४३ बुद्ध (बुद्ध) प २६४।२१ ज २२८८,८६३।२२५; ५।५,२१,४६,५८ बुद्धत (बुध्नान्त) सू २०१२ बुद्धबोहिय ( बुद्धबोधित ) प ११०५, १०७, १०८, १२० बुद्धबोहियसिद्ध ( बुद्ध बोधितसिद्ध ) प १।१२ बुद्धि (बुद्धि) ज ३१३, ३२, ४२६६।१ उ ४।२।१ बुध ( बुध) सू २015 √ बुय (ब्रू ) बुयामि प ११ ११,१६ बुयमाण ( ब्रुवाण ) प ११ ११,१६ बुह ( बुध) प २४८ सू २०१८ ४ √ बू (ब्रू) बेमि सू १०।१७३१।१४२२।१४; ३|१६; ५|४४ बूर (दे०) ५ २०1७ बे (द्वि ) प १२।३७ सू १३/६ इंदिय (द्वीन्द्रिय) प १४६ ; २।१६, ३७, ४० से ४२,४५,४६,१४४, १४५, १८३४।६५ से ६७; ५।३,१६,२०,६७,६८,७०,७१,७३,७४,७८; ६।२०,५४,६४, ७१,८३, ८६, १०२, १०४, ११५; ६४,२२,११।४५; १२।२७,१३।१७, १५/३० से ३३,७५,८०, ८६, १३७, १६।६, १३, १७/४०,६२, Page #1076 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेइंदियत्त-भंत 888 १०३;१८।१५,२१,१६।३;२०१८,२३,२८,३२, ४७:२११६,२८,४२,८६,८८,२२।३१:२३२८६, १५१,१५५ से १५७,१६३,१६६,१६७,१७५ २८।३७ से ४०,४२,१००,१०३,११६,१२५, १३६:२६।११ से १३,२१,३०११० से १२, २०,२१,३११३;३६।३६,६२ बेइंदियत्त (द्वीन्द्रियत्व) प १५९७,१४२ बॅटट्ठाइ (वृन्तस्थायिन् ) ज ५७ बंदिय (द्वीन्द्रिय) प ११४,४६;३।४२,४५,४६, १४६,५१५७;६७१ बेतेयालसतविह (द्वि त्रिचत्वारिंशत्शतविध) प १७।१३६ बेयाहिय (द्वयाहिक) ज २०४३ बेहिय (द्व याहिक) ज २६ बोंडइ (दे०) प ११३७।१ बोंदि (दे०) प २।३०,३१,४१,४६,६४।२,३ ज ५।१८ बोद्धव्व (बोद्धव्य) प १०।१४।२,३४।११२ ज ४।१५६।१,१६२।१,२०४।१,२१०।१; ७।११७।२,१२०।१,१३२।१,१६७।१, १७७.१,२,१८६।४ सु १०८६,८८,२०।८।८ उ १११७, ३।२।१४।२।१ बोधव्व (बोद्धव्य) प ११२०१४,३३।१,३५।२, ३६१२,३७।३,४२१२,४३१२,४८१८,४०, ११८१।१; २१६४।६,७,६८०।२,१०।५३।१; ११।३७।२; १७१।१।२८।१११ सू २०।८७ बोर (बदर) प १६।५५;१७।१३२ बोल (दे०) प २१४१ ज २१४२,६५,३।२२,३६, ७८,६३,६६,१०६,१६३,१८०,५२२६;७१५५, १७८ सू १६।२३ उ १११३८ बोहग (बोधक) ज ५१५,४६ बोय (बोधक) ज ३।१८८,५।२१ बोहि (बोधि) प २०१७,१८,२६,३४ बोहिदय (बोधिदय) ज ५।२१ बोहिय (बोधित) ज २११५,३।३ भइज्ज (भज) भइज्जति प २२०७४ भइज्जति प २२।७३ भइत्ता (भक्त्वा ) सू १२।१० से १२ भइत्त (भक्त) २१६४।१६ भंग (भङ्ग) प ११४८।१० से २०१०।६ से ६; १४।२।६।१६।१०,१५,२१,२२।२५,८४,८६; २४।५,८,१२,२६।४,६,६,१०,२८।११८ भंगुर (भङगुर) ज २०१५ भंगी (भृङ्गी) प ११४८१५,१७।१३१ भंगी (भङ्गी) प १६३।५ भंगीरय (भृङ्गिरजस्) प १७।१३१ भंड (भाण्ड) ज ३।७२,१५०,४।१०७,१४० सू २०१४ उ १।९३,१०५,१०६,११६:३।५०, ५५,६३,७०,७३,१२८ भंडग (भाण्डक) उ ३.५०,५५ भंडवेयालिय (भाण्डवैचारिक) प १६६ भंडार (भाण्डकार) प १६७ भंडी (भण्डी) प ११३७।५ शिरीष का पेड़ भंत (भदन्त) प ११७४,८४,२।१ से ३६,४१ से ४३,४६,४८ से ६४,३।३८ से १२०,१२२ से १२४,१७४,१७६ से १८३;४।१ से ४६,५२, ५६ से ५८,६५,७२,७६,८८,६५,६८,१०१, १०४,११३,१३१,१४०,१४६,१५८,१६५, १६८ से १७१,१७४,१७७,१७८,१८०,१८१, १८३,२०७,२१०,२१३,२६४,२६७,५१ से ७,६ से १२,१४,१६ से १८,२०,२३,२४,२७ से ३४,३६,३७,४०,४१,४४,४५,४८,४६,५२, ५३,५५,५६,५८,५६,६२,६३,६७,६८,७०,७१, ७७,७८,८२,८३,८५,८६,८८,८६,६२,६३, ६६,६७,१००,१०१,१०३,१०४,१०६,१०७, ११०,१११,११४,११५,११८,११६,१२३ से १२६,१३१,१३४,१३६,१३८,१४०,१४३, १४५,१४७,१५०,१५३,१५४,१५६,१५७, १६२,१६३,१६५,१६६,१६८,१६६,१७१, Page #1077 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ००० १७३,१८०,१६२,१९६,१६६,२०२,२०३, २१०,२१७,२२७,२२६,२३१,२३३,२३६, २३८,२४१, ६।१ से २३,२७,४३ से ४५,४७ से ५५,५७,५८,६० से ६४,६७,६८,७०,७५, ७८,८० से ८२,८७,६०,६३,६४,६६,६६, १०१,१०३,१०५,११०,११४ से ११६,११८ से १२१,१२३;७।१ से ४,६ से ३०८।१ से ११;६।१ से ४,६ से १६,१६ से २१,२५,२६; १०.१ से १३,१५ से २४,२६ से ५३;११११ से ४४,४६ से ४८,६१ से ७३,७६ से ६०; १२।१ से ५,७ से १३,१५,१६,२०,२१, २३,२७,३१ से ३३,१३।१ से ३१ १४।१ से ३,५,७,९,११ से १५,१७,१५१ से ३,७,८,११ से २८,३० से ३३,३६ से ४१,४३ से ५४,५६ से ७४,७६ से ८०,८३,८४,८६, ६१,६४ से ६७,१००,१०३ से १०६,१०६, ११४,११५,११७,११८ से १२०,१२३,१२६, १२६,१३२ से १३५,१४०,१४१,१६।१ से ३,१० से १३,१५,१७,१६ से २१; १७११ से ६,८ से १६,१६ से २१,२४,२८,२६,३३,३६ से ४०,५१,५६ से ६६,७१ से ७६,७८ से ८७, ६० से ६२,६४,६५,९६ से १०४,१०६ से ११६,११८ से १२०,१२२ से १३०,१३५ से १३७,१३६ से १५२,१५४ से १५७,१५६ से १६१,१६६,१६७,१६६ से १७२; १८।१ से १०,१२ से ३७,३६,४१ से ४७,४६ से ५१, ५४ से ८२,८४ से ६०,६३ से १११,११३, ११४,११६ से १२०,१२२,१२३,१२५ से १२७,१६।१,२०११ से ३,६,७,६ से १५,१७ से २५,२७ से २६.३२ से ३४,३८ से ४०, ४५४६ से ५१,६१ से ६४; २१।१ से १५, १६ से २५,२८ से ३२,३६,३८,४० से ४२,४८,४६,५६ से ६६,६८ से ८१, ८३ से ४६,६८ से १०१,१०३ से १०५; २२.१ से १६,२१ से २३,२६,२७,२६,३०, ३२ से ५०,५२ से ६६,७६ से ७६,८१ से ८४,८६,८७,८६ से ६४,६७ से ६६,१०१; २३.१ से ७,६,११,१३ से ४८,५७ से ६२, ८१,९०,१३४,१३५,१३७ से १४०,१५४, १५५,१५७,१६०,१६१,१६४,१६७,१७१, १७६,१७७,१६१ से १६६,१९८ से २०१; २४।१ से ५,८,११,१२,१४,२५।१,२, ४,५,२६।१ से ४,८,९२७१ से ३,६; २८।१,३ से ५,११ से १६,२१ से २५,२८ से ३१,३३ से ४२,४४,४५,४८ से ५०, ५१,५७ से ६०,६२ से ६५,६७ से ७१, ६८,१०२,१०४,१०६ से १०८,१११ से १२०,१२२,१२३,१२५,१२७,१२८,१३२; २६।१ से ३,५ से ७,६,१०,१२,१३,१६ से १९;३०।१ से ३,५ से ११,१३,१५ से १७, १६,२१,२५ से २८, ३१११,३२।१,२,४;३३।१ से ३,५,६,१२ से १८,२०,२२,३५।१,२,४ से १३,१६ से १८,२०,२३,३६।१ से २२,३० से ४६,५३,५४,५८ से ६७,७०,७१,७३ से ८८,६२,६४ ज १७,१५ से १८,२० से २३, २६,२७,२६,३३ से ३५,४१,४५ से ५१,२।१, ४,७,१४,१५,१७,४३,५२,५६,५७,५८,१२२, १२३,१२७,१२८,१३१ से १३७,१३६,१४७, १४८,१२०,१५१,१५६,१५७,१६१,१६४; ३।१,९८,४।१,२२,३४,४४,४५,४८,५१,५२, ५४५५,५६,५७,६०,६२,७६ से ८२,८४ से ८६,९६ से १८,१०० से १०३,१०६ से ११०, ११३,११४,१४१,१४३.१५६ से १६७,१६६ से १७८,१८० से १८२,१८४,१८५,१८७, १८८,१६० से १६४,१६६,१६७,१६६ से २०३,२०५ से २०६,२११ से २१५,२२५, २२६,२३४,२३६,२३७,२३६ से २४१,२४४, २४५,२४६,२५१ से २५५,२५७.२६० से २७७;६।१,२,४,७ से २६, ७।१ से४८,५०, ५२ से ७३,७६,७८ से १०७,१११ से १४५, १४७ से १५१,१५४ से १६७,१६६ से १७८, १८० से १८५,१८७,१६७ से १६६,२०१ से Page #1078 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तसंत-भद् २१३१४,६,८,२१,२४,२५,१४१, १४३ २१.३,१३,१५ ३१.२,८,१६,१८,२०२३, २६,३० से ३२,३५ से ४१,४४,०६,८८, १३, ४,१२३ से १२५, १५२, १५४, १६४,१६५, १६७४११,३, १४, २६:५११, ३,२०,२२,२३, ३२,४०,४३ अंतसंमंत (भ्रान्त सम्भ्रान्त ) ज ५।५७ मंभा (दे०) ज ३।३१ भाभूय (भाभूत) ज २।१३१,१३६ भक्खेय ( भक्ष्य ) उ ३।३७ से ४२ भग (भग) ज ७ १३०, १३३,१८६४ सू १०/३५ भगंदर ( भगंदर ) ज २४३ भगदेवया ( भगदेवता ) सू १०१८३ भगव ( भगवत् ) प १|१|३३६।०१ ज १५६; २६८,७०,७२,६०,६३,६५,६६,१०१ से १०२,११२,११४; ५३,५,७ से १४,२१,२२, २६,४४,४६,५८,६०,६२,६४,६७ से ७०,७२ से ७४७।२१४ चं १० १५ २०१६६ उ १२,४ से ८, १६, १७, १६ से २६, १४२, १४३, २।१ से ३,१० से १२, १४, १५, २१,३।१ से ३,७,८,१९,२०,२२,२३,२६,८७,८८, १०, १३,१५३,१५४,१५९,१६१.१६६, १६७,१७० ४। १ से ३,२७,५।१ से ३,४४ भगवंत ( भगवत् ) प २।६४ ज २२६६,७१,८३; ५।१.२११।१७ भगवती (भगवती) सू २०६१ भगसंटिय (भगसंस्थित) सू १०।३५ भगिणी ( भगिनी) ज २।२७,६६ भग्ग (भग्न ) प ११४६१० से २६ उ ३१३१,१३४ १०।१०० भग्गवेस ( भागंवेश) ज ७।१३२२ भज्जमाण ( भज्यमान) प ११४८|३८ भन्जा ( भार्या) ज २।२७,६११।१२, १४५; २१५, १७ मज्जिय (भजित ) उ ११३४,४६,७४ भट्टित (भर्तुत्व) प २०३०,३१,४१,४६ १०४५ ३।१८५,२०६,२२१५।१६ ज ५।१० भट्टिदार (भर्तृदारक) प ११०१५, २० मट्ठरय (भ्रष्टरजस्) ज ५७ मङि (दे०) ज २।१३१ भड (भट) ज २०१७,२१,२२,३६,७८, १७७ भडग (भटक) प ११८१ भण ( भण्) भणइ उ ३।६६ भणति प १७३८६ भणित ( भणित) प १२४८१९४७ १६२६ २४०६ ३।१८२; ५।२४४; ६ ५६, ६६, ८३, ८६, ६२, १००;१५।५५; २१।७७ सू १०।१४८; २०७ भणितब्व ( भणितव्य ) सू ८११; १०।१४८, १५०; १५४९ भणिय ( भणित ) प ११४८१५२२१२७३,४७; १००१ ६४ ४, ६, ८ ५।१५२; ११८० १२।१३,१५, २१:१५।१८,३०,१४० १६।१८ १७॥७, ६७; २०१२६,३५२११७६, ९४२२५४ २३।१००, १०८१५६,१७,१८१,१८५, ११०२४१८.६; २६/१५;३६।२०,२४,४६ ज २२४१३, २०१५; ३।१०९, १३८ १६७१२, ४,४१२०० चं ४।३ १८३ १० १५० १६।२२१, २ भण्ण ( भण्) भण्णइ प ५।२२६ ज ७।१४६ भांति प ५।२०५ भणति प ५२०५२११: ३६।६८ भक्त (भक्त) ज २२६५,७१८८३२२५३ २।१२; ३११४,१२०,१५०,१६१, १६६,५२८, ३९, ४१, ४३ भत्तपाण (भक्तपान) ज ३।१०३,२२४ भत्तसाला ( भक्तशाला ) ज ३।३२ भत्ति ( भक्ति) ज ३।१६७/६ भत्तिचित्त ( भक्तिचित्र) २४६ ज १३७; २०१०१३।३९,१२,५६,८८, १०९,११७, १४५, २२२; ४१२७, ४६ ५।१६, २८, ३२, ३४, ५६ १८१८ १९ २२।१,२ भत्तिय (दे० ) प १।४२।१ भद्द (भद्र ) प २।३१ ज २०६४,८१,३३,१२,५६, ८८, ११७,१३८, १८५, २०६४/४६; ५२८; १. वनस्पति कोष में भूतीक शब्द मिलता है । Page #1079 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११००२ 'भद्दग-भव ७।११८ उ २।२, ३१६६ से १८,१००,१०१ ७५,८३,१००,१२०,१३१ से १३४,१८७ १०६ से ११२ भरह (भरत) प ११८८,१६।३०।१७।१६० भद्दग (भद्रक) ज २।१६ . ज १११८ से २०,२३,४६,४७,५१, २७ से भद्दमुत्था (भद्रमुस्ता) ज ११४८१६ १५,२१ से ४५,५०,५२,५६,५७,५८,६०,१२२, भद्दय (भद्रक) ज ३।१०६ उ ५।४०,४१ १२३,१२७,१२८,१३१,१३२,१३३,१३६, भद्दवत (भाद्रपद) सू १०।१२४ १४१ से १४७,१५०,१५६,१५७,१५६,१६१, भद्दवय (भाद्रपद) ज ७१०४,११३।१,११४ । १६४;३.१ से १३,१५,१७,१६ से २३, सू १०।१२६ उ ३।४० २५ से ३४,३६ से ४२,४४ से ५०,५२ से ५६, भद्दसालवण (भद्रशालवन) ज ४१६४,२१४,२१५, ६१ से ६७,६६,७७,८३,८४,६० से १४,६६, २१६,२२०,२२१,२२५,२२६,२३४,२६२ ६६,१००,१०१,१०३,१०६ से १०६,११५ से भद्दसेण (भद्रसेन) ज ५१५२ १२६,१३१ से १३५।१,१३७,१३८,१३६,१४१ भद्दा (भद्रा) ज ५।१०।१,५४६८,७।११८ सू १०१२, से १४८,१५० से १५४,१५७,१५८,१६०,' ६० १६३ से १७०,१७३,१७५,१७७,१७८,१७६, भद्दासण (भद्रासन) ज ३१३,५६,१७८,४।२८, १८१ से १६२,१६८,१६६,२०१,२०२,२०४ ११२,५१३६,४२ से २२६;४।१,४८,५३,१०२,१७२,१७४,१७७, भद्दिलपुर (भद्दिलपुर) प ११६३।३ २७७,५५५,६७,६,१२,१६ भमंत (भ्रमत्, भ्रम्यत्) ज ४।३,२५ भरहकूड (भरतकूट) ज ४।४४,४८ भमर (भ्रमर) प ११५१,१७।१२३ ज २।१२;३।२४ भरहवास (भरतवर्ष) ज २।१५,४।३५ भमरावली (भमरावली) प १७।१२३ भरहवासपढमवति (भरतवर्षप्रथमपति) भमास (दे०) प ११४१।१,११४८।४६ - ज ३।१२६।२।। भय (भय) प १११।१२।२० से २७,१११३४।१; भरहाहिव (भरताधिप) ज ३।१८,८१,६३,१२१११, २३।३६,७७,१४५ ज २१६६,७०,३१६२,१११, १३५।२,१६७।१४,१८०,२२१ ११६,१२१११,१२५,१२७ उ १८६,३।११२, भरिय (भत) ज २१६३।१७८ १५६४।१६ भरिली (भरिली) प ११५१ भयंकर (भयङ्कर) ज २।१३१ भरु (भरु) प १८६ भयग (भृतक) ज २१२६ भरेत्ता (भृत्वा) उ ३१५१ भयणा (भजना) प १४४८१५० भल्लाय (भल्लात) प १॥३५॥२ भयणिस्सिया (भयनिश्रिता) प ११३४ भल्ली (भल्ली) प १४०।४ भयभेरव (भयभैरव) ज २१६४ भव (भव) प २१६४।५,६३।११२,१०१५३।१; भयव (भगवत्) प १३१२ ज २१६०,५३,१४, १८११२,१८।६५,२३।१३ से २३ ज ३१२४, १६,१७,२१,६६ १३१ भयसण्णा (भयसंज्ञा) प ८।१,२,४,५,७,६,११ भव (भवत्) उ ३।४३ भिर (भृ) भरेइ उ ३।५१ ‘भव (भू) भवइ ज १।४७,२१६६ सू १११३ भरणी (भरणी) ज ७।११३।१,१२८,१२६,१३४।२ उ ११२० भवउ ज २१६४,१५७ भवंति १३५॥२,१३६,१४०,१४४,१४६,१५६, प ११४६ से ५१,६०,८०,८१,५।४३;१६।१५; १७५ सू १०११ से ६,११,२३,३५,६२,६६, २११८४;२३।१५२;३६।२०,८२,६३ Page #1080 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवंत-भाणितव्व ज ४११५१११ सू ३१ उ १११४१,३१५० भवधारणिज्ज (भवधारणीय) १५॥१८,१६; .. भवति प १४।५.२८,३२,६६; २।४७।३; . २११५८,५६,६१,६२,६५ से ६७,७०,७१ १५१५८।१,३६।१।१ ज ११२६ सू १११३ भवपच्चइय (भवप्रत्ययिक) प ३३।१ भवतु ज २१६४ भवह उ ११४२ भविस्सइ भवसिद्धिय (भवसिद्धिक) प ३।११३,१८३; ज ११४७,१२७, २०७१,१३१ उ ११४१,५।४३ १८।१२२,२८।१११,११२ भविस्संति ज २११३३ भवे प ११४८॥३० से भवित्ता (भूत्वा) प २०११७ ज २६५ उ ३।१३ ३८ ज २१६ सू १६।१।१५।३;१५३१,४, ४।१४,५१३२ १६।२२।१३,१५;२११४,५ भवेज्जा उ ३८१ भविय (भविक) प ११११२२८।१०६।१ भवंत (भवत्) ज ३।२४।१,२,१३११,२ भविय (भव्य) ज ५।५८ उ ३।४३,४४ भवक्खय (भवक्षय) प २०६४।१० उ ३।१८,१२५, भवोवग्गह (भवोपग्रह) प ३६।८३।१. । १५२,४।२६,५।३०,४३ भवोववायगति (भवोपघातगति) प १६।२४,३१, भवचरिम (भवचरम) प १०।३६,३७ . ३२ भवण (भवन) प २।१,४,१०,१३,३० से ४०, भव्व (भव्य) प १६१५५; १७।१३२ कमरख, ४०।३,४,२।४२,४३,१११२५ ज ११३१,५१, करेला २।१५,२०,६५,१२०, ३१३,२५,२६,३२।२, भवपुरा (भव्यपुरा) ज ३।१६७७ ३८,३६,४६,४७,५१,५२,१०३,१४०,१४१, भसोल (दे०) ज ५१५७ १८३,१८६,२०४;४।६,१०,११,३३,४१,७०, भाइणज्ज (भागिनेय) उ ३।१२८ ६०,६३,१४७,१५३,१५६,१७४,१८२,२३८, भाइयव्व (भेतव्य) ज ५१५,७ से १०,१२,१३,४६ २४३,५१,५ से ७,१७,४४,६७,७० उ ११३३ भाइल्लय (दे०) ज २।२६ भवणपति (भवनपति) ज ३१८६,२०४ भाग (भाग) प २।१०,११,२३।१६०,१६४,१६७, भवणपत्थड (भवन प्रस्तट) प २११ १७५, २८।४०,४३,६६ ज २१६४ च ५१ सू श१६,२४.२६,२७,२६,३०; २२१,३,३१२ भवणवइ (भवनपति) प १६।२६;२०१५४ ज २६५, ४।४,५,७,१०,६।१६।३।१०।२,१३३,१३५, १६ १०० से १०२,१०४,१०६,११०,११३ से १३८ से १४२,१४४ से १६३।११।२ से ६; ११६,१२०,४।२४८,२५०,२५१;५।४७,५९, १२।२,३.६ से ६,१२.१३,१६ से २८,३०; ६७,७२ से ७४ १३।१,३,४,७ से १२,१४ से १७:१४।३,७; भवणवति (भवनपति) प ६।१०६३४।१६,१८ १५२ से २०,२२ से २६३१,३२,३४,१८१६, भवणवासि (भवनवासिन्) प १।१३०,१३१,२।३०, १०,२५,२६,१६।२२।१६,२०६३ ३०।१,२।३२, ३।२६,१३३,१८३;४।३१ से भागसय (भागशत) ज ७1८१,८४,६८,९६,१०० ३३,६३८५१७।५१,७४,७६,७७,८१,८३; भागसहस्स (भागसहस्र) ज ७।८१,६५,६६ २०१६१:२११५५,६१,७० ज २१६४,५१५२ भाणितव्य (भणितव्य) प॥३२,४०,४२,५०; सू २०१७ ३।१८२,४१६८,५।२२,३६,४३,६१,७६,६६, भवणवासिणी (भवनवासिनी) प ३।१३४,१८३; १०६,११७,१२२,१५२,२०६,२२६,२४४; ४।३४ से ३६,१७१५१,७५,७६,८२,८३ ६।४६,५६,६६,८१,८३,८६,८६,६२,६५, भवणावास (भवनावास) प २।३० से ३६ १००,१०२,१०३ १०७,१०८,१०।१४।१६।२० भवत्थकेवलि (भवस्थकेवलिन्) ११८९६,१०१ सू१।१४,२२,२५ Page #1081 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००४ भाणिय-भावेमाण ५।२४ भाणिय (भणित ) ज ३।२४,१३१ भायण (भाजन) ज ३।३२ उ ११४६ भाणियव्व (भणितव्य) प २।४३,४५,४७,६२; भारंडपक्खि (भारण्डपक्षिन) प ११७८ ५।६१,११७,१२०,२०५,६१६१,१२३;६।४; भारग्गस (भाराग्रशस्) ज २।१०६,११० १०।२८,१११४१,४६,८३,८५,१२१८ से १३, भारद्दाय (भारद्वाज) ज ७।१३२।२ सू १०।१०३ १५ से १७,२१,२५,१५।३०,५६,६२,८४, भारह (भारत) ज ११३४,३५,२।१३।१३५२२ १०२,१०३,१२१,१३४,१३८,१४०;१६।१८, सू१११८,१९,४१३ उ १६,३।१२५,१५७; २१,३२,१७७,२८,२६,३३,३५,६५,७०,७७, ८६,६७,१०२,१०३,१०५,१४६,१४८,१६५, भारहग (भारतक) ज ४।२५० १६७,२०१२५,२६,२११३५,४३,७७,८०,६४; भारहय (भारतक) सू १।१६ २२।२०,२५,२८,३३,३५,४१,४५,५४,५८, भारियत्त (भार्यत्व) उ ३।१२८ ८३,८४,८६,२३।१००,१०८,१५२,१५६, भारिया (भार्या) ज २१६३ सू २०१७ उ ३६७, १६०,१६४,१६७,१७५,१७६,१६०,१६१; ११२,१२८,४।८ २४१८,६,११,१५:२५१५:२६६ से १२:२७१४, भाव (भाव) प श२,१०१।३,४,६,२।६४।१ ५२८।१०,२५,५६,८७,१०२,१४५,२६।१५; ११।३३।१ ज २१६६,७१ उ ३।४३,४४ ३४।२१,३६।२०,२४,२६ से ३०,३२,३४,४६, भावओ (भावतस् ) प १११४८,५२,५३,५५; ४७.६५ ज १११६,२३,२६,४४,४६,२१७, २८।५,६,६,५१,५२,५५,३५१४,५ ज २१६६ ७२,६३,३।१२६,१५५,१७१:४१३,४,२५,३१, भावकेउ (भावकेतु) ज ७।१८६ ३६,४१,५२,५७,७०,७६,८२,८४,६०,६३, भावकेतु (भावकेतु) उ २०१८,२०।८।। भावचरिम (भावचरम) प १०॥४४,४५,५३।१ १०६,११०,११२,११६,११८,१२८,१६५, १७५,१७७,१८४,१६३,१६६,२०१,२०२, भावणा (भावना) ज २१७१ २०४,२०८,२१२,२१५,२१७,२२० से भावणागम' (भावनागम) ज २०७२ २२२,२२६,२३७,२४०,२४८,२४६.२६२, भावतो (भावतस् ) प १११५७,५६ २६५,२७१,५।३,७,१३,३२,४६,५५,५६ ६५; भावरुइ (भावरुचि) प १११०१।१० ६।३;७।१८६ सू ४।६।५।१८।११५।११; भावसच्च (भावसत्य) ज १११३३ २०१६ उ १११४७,१४८,२।२२;४।२८; भाविअप्प (भावितात्मन् ) प १५६४३ ५।१७,२५ भाविदिय (भावेन्द्रिय) प १५।५८।२,१५७६,१३३ भाणी (दे०) प ११४६,११४८।६२ से १३५,१४०,१४१,१४३ भाय (भाज) भाएंति ज ५१५७ भावित्ता (भावयित्वा) उ ३।१६१ भाय (भाग) ज १११८,४८,३।१,१३५।१४।१, भाविय (भावित) प १७८८ २३,३८,५५,६२,६५,८१,८६,६१,९८,१०३, भावियप्प (भावितात्मन्) प ३६७६ ज ७/१२२१२ १०८,११०,१४१,१६७,१७८,२००,२०५,२०७, सू १०।८४।२ २१२,२१४,२४०,७७,६,१०,१२,१३,१५, भावेमाण (भावयत्) ज ११५, २०७१,८३ उ ११२, १६,१८ से २५,३१,३३,५४,६५,६६,६८,६६ ३,२।१०,३।१४,२६,८३,६६,१३२,१४४,१५०%, ७१,७२,७६,१३४,१७७३१,२ उ ११६६,६४ ४।२४,५२६,२८,३२,३६,४३ भाय (भ्रातृ) ज २।२७,६६ उ १६५ १. आयारचूला पञ्चदशाध्ययनानुसारी Page #1082 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावेयव्व-भुज्जो १००५ भावेयव्व (भावयितव्य) प २२।४५ भिगार (भृङ्गार) प १११२५ ज ३।३,११,१७८; भास (भाष ) भासइ ज ७।२१४ उ ११८ ५६,४३,५५ भासंति प११०४३ से ४६ भासती भिगारग (भृङ्गारक) ज २०१२ प ११।३०।१,२ भासिंति प १६८ भिडिमाल (भिण्डिमाल, भिन्दिपाल) भास (भस्मन्) सू २०१८,२०८।८ ज ३।३१,१७८ भासंत (भाषमाण) प १११८६ भिक्खायरिया (भिक्षाचर्या) उ ३३१००,१३३ भासग (भाषक) प ३।११२,१०८१११३८ से ४१ भिज्जमाण (भिद्यमान) प ११७६ १८ गा २ भिण्ण (भिन्न) प ११७२ सू २०१२ भासज्जात (भाषाजात) प १११४२ भित्तिकडग (भित्तिकटक) ज ३९७ भासज्जाय (भाषाजात) प १११८८,८६ भित्तुं (भेत्तुम्) ज २।६।१ भासत्त (भाषात्व) प ११।४७,७० से ७२,८० से भिब्भिसमाण (बाभाष्यमाण) ज ४।२७,५।२८ भिस (विस) प ११४६,११४८।४२ ज २०१७; ८५ भासमणपज्जति (भाषामनःपर्याप्ति) उ ३।१५,८४ ४१३,२५ १२१,४।२४ भिसंत (दे० भासमान) ज ३।१७८,७।१७८ भासमाण (भाषमाण) प ११८६ भिसकंद (विषकंद) प १७।१३५ भिसमाण (दे०) ज ४।२७,५।२८ भासय (भाषक) प१८।१०४ भासरासि (भस्मराशि) प २१५०,५६,६० स २०१८ मति (भति) प २०२० से २७ भासरासिप्पभ (भस्मराशिप्रभ) प २१५४,५८ भीम (भीम) प २।२० से २७,४५,४५।१ उ ११३६ भासरासिवण्णाभ (भस्मराशिवर्णाभ) सू २०१२ भीय (भीत) ज २१६०,३।१११,१२५ उ ११८६ भासा (भाषा) प ११११५,१११८२३१; __३।११२; ४।१६ १०५.३।१११।१ से १०,२६ से ३०,३०।१, भुंज (भुज्) भुंजइ ज ३।३ भुंजए ज ४११७७ २,११।३१ से ३७,३७।१,२,११०४३ से ४६, भुंजाहि उ ३।१०७ ८२,८३,८७,८६; २८।१४२,१४४,१४५ भुंजमाण (भुजान) प २।३० से ३२,४१,४६ ज ३७७,१०० ज ११३३,४५:२।६१,१२०,३८२,१७१, भासाचरिम (भाषाचरम) प १०॥३८,३६ १८५,१८७,२०६,२१८,४।११३; ५१,१६; भासारिय (भाषार्य) प ११६२,९८ ७।५५,५८,१८४,१८५ सू १८।२२,२३; भासासमिय (भाषासमित) ज २।६८ उ ३६६ १६।२६ उ ३।६०,६८,१०१,१०६,१२६ से भासुर (भासुर) ५ २।३०,३१,४१,४६ ज ५१७,१८ १३१,१३४,५।२५ भिउडि (भृकुटि) ज ३।२६,३६,४७,१३३ vभुंजाव (भोजय) भुजावेइ उ ३।११४ उ ११२२,११५,११७,१४० भिकंड (दे०) भुकंडेति ज ३।२११ भिंग (भृङ्ग) प १७।१२४ भुक्खा (दे० बुभुक्षा) उ ११३५ से ३७,४० भिंगनिभा (भृङ्गनिभा) ज ४।२२३।१ भुजंग (भुजङ्ग) ज २।१५ भिंगपत्त (भृङ्गपत्र) प १७११२४ भुज्जो (भूयस्) प १६।४६१७।११५ से १२२, भिंगप्पभा (भृङ्गप्रभा) ज ४।१५५।२ १५४;२८।२४ से २६,३६,४२,४५,४६,७१, भिंगा (भृङ्गा) ज ४११५५।२,२२३।१ ७४,३४।२०,२२ से २४ ज ३।१२६७।२१४ Page #1083 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००६ भुत्त-भो भुत्त (भुक्त) ज २१७१३।८२ सू २०१७ उ ४।१६ भूय (भूत) प १११३२; २।४१,४५,६४,१५१५५।३; भुत्तभोइ (भुक्तभोगिन् ) उ ३११०७,१३६ ३६।६२,७७ उ २।१०,३१,१३१,३।१,६,२२, भुमगा (भू) ज २०१५ ३६,७८,८०,८१,६२,६३,६५,९६,११६,१२१, भुयग (भुजग) प २।४६ च ११२ १५१,१५६,१६०,१६३,१८०,२२२७७१२१२ भुयगवइ (भुजगपति) प २।४१ उ १११३८,३१४३.४४,४६:५४ भयपरिसप्प (भुजपरिसर्प) प ११६७,७६,४।१४० भूय (भूयस्) ज ३। से १४८,६७१.७५; २१११४,१६,३५,४६,६०। भूयग्गह (भूतग्रह) ज २।४३ भुयमोयग (भुजमोचक) १ १।२०।३ भूयणय (भूतृणक) प ११४४१३ भुयय (भुजग) प २११४७६१ भूयत्थ (भूतार्थ) प १११०११२ भुयरुक्ख (भूतवृक्ष) प १४३१२ भूयवाइय (भूतादिक) प २।४१,२।४७११ भुया (भुजा) प २१३०,३१,४१,४६ ज ५।२१,५८, भूया (भूता) उ ४।६,११ से १६,१८ से २४ उ३१६२ भूयाणंद (भूतानंद) प २।३४,३६,४०१७ भुस (बुश) प ११४२।१ भूसण (भूषण) प २।३०,३१,४१ ज ३।८१,१४८; ७।१७८ भू (भू) सू २।१ भूसणधर (भूषणधर) ज ३।६,२२१,५।२१ भूत (भूत) प २०६४ सू १६।३८ भूसिय (भूषित) ज ३।३०,३५,१७८ भूतिकम्म (भूतिकर्मन्) ज ५।१६ भे (भोस् ) उ ३।३८,४०,४२,४४ भूतोद (भूतोद) सू १९३८ भेद (भेद) प ११४८१३८,६।८३,१११७४,७६ से ७८; भूमि (भूमि) प ११७४ ज १।२६ १५३५३;२१।१६,४०,४३,४४,५२,५५,७६,७७, भूमिगय (भूमिगत) ज ३।१०५ ६४,२२।२०,३३।१११ भूमिचवेडा (भूमिचपेटा) ज ५७ भेदल (भेदक) ज ३।१०६ भूमितल (भूमितल) ज ५१५ भेदपरिणाम (भेदपरिणाम) प १३।२१,२५ भूमिभाग (भूमिभाग) प २।४८ से ५१,६३; भेय (भेद) प ११।७२,७३,७५,१६।३२,२११७७ १७।१०७,१०६,१११ ज १।१३,२१,२५,२६, उ १।३१ २८,२६,३२,३३,३६,३७,३६,४०,४२,४६%3 भेयघाय (भेदघात) चं ४।१,३ सू १।८।१,३,२२२ २१७,१०,३८,५२,५६,५७,१२२,१२७,१४१, भेयपरिणाम (भेदपरिणाम) प १३१२५ १४७,१५०,१५६,१५६,१६१,१६४,३८१, भेरि (भेरि) ज ३।१२,७८,१८०,२०० १६२,१६३,१६६,१६७,४।२,३,८,६,११,१२, भेरी (भेरी) उ ५३१५ से १७ १६,३२,४६,४७,४६,५०,५६,५८,५६,६३,६६, भेरुतालवण (भेरुतालवन) ज २६ ७०,८२,८७,८८,६३,१००,१०४,१०६,१११, भेसज्ज (भैषज्य) उ ३।१०१ ११२,११७,११८,११६,१२२,१२३,१३१, भेसण (भीषण) ज २।१३३ १६६,१७०,१७६,२१७,२३४,२४० से २४२, भो (भोस्) ज २१६५,६७,१०१,१०५,१०७,१०६, २४७,२४८,२५०;५॥३२,३३,३५;७।३३ १११,११४,३।७,१२,२६,३६,४७,४६,५२, सू २।१६।३।१८।१;२०१७ ५६,६१,६६,८३,६१,६६,११३,११५,१२२, भूमिया (भूमिका) ज ३।३२ १२४,१२७,१२८,१३३,१४१,१४७,१५१, भूमी (भूमि) ज १२।१३२,१४२,१४३,४।११६ १५४,१६८,१७०,१७५,१८०,१६६,२०७, Page #1084 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोग-मंजूसा १००७ मउ । : २१२,५१३,१४,२२,२६,५४,६८,६६,७२ २२१,२२२,५।१८,२१ उ १११७,१२३,१३१,४।१६:५।१५,१८ मउय (मृदुक) प ११४ से ६३।१८२,५१५७,२०६; भोग (भोग) प ११९५ ज २।६५,३।३ भू १८।२२, १५॥१५,१६,२७,२८,३२,३३,२८।२६,३२,६६ २३;१६।२६ उ ११२७,६३,१४०।३।६८,१०१, ज २११५,३।३ ; ५।५,७,१७८ १०६,१०७,१२६ से १३११३४,१३६ मउल (मुकुट) प २१४१ भोगंकरा (भोगङ्करा) ज ४।१०६,५।११ मउल (मुकुल) ज २।१५,३।१७८,७१७८ भोगंतराय (भोगान्त राय) प २३।२३ मउलि (मुकुलिन् ) प ११६६,७१ भोगस्थिय (भोगार्थिक) ज ३।१८५ मउलि (मौलि) प २।३०,३१,४१,४६' भोगभोग (भोगभोग) प २।३०,३१,४१,४६ मउलिय (मुकुलित) ज ३।६।५।२१ ज २१६१,१२०,३।१७१,१८५,२०६५।१,१६; मंकुणहत्थि (मत्कुणहस्तिन्) प ११६५ ७।५५,५८,१८४,१८५ मंख (मङ्ख) ज २१६४;३।१८५ भोगमालिणी (भोगमालिनी) ज ४।१६४।५।११।। मंगल (मंगल) ज २१६७,३१६,१२,१८,७७,८२, भोगवइया (भोगतिका) प १६८ ८५,८८,६३,१२५,१२६,१८०,२२२;५।५,४६ भोगवई (भोगवती) ज ४।१०६:५।१।१७।१२१ सू १८।२३;२०१७ उ १।१७,१६,७०,१२१, ____सू १०६१ ३३११०५।१७,३६ भोगविस (भोगविष) प १७० मंगलग (मंगलक) ज ३।१७८,४।१५८,५१५८ भोच्चा (भुक्त्वा) सू १०।१२० उ ५।१६ भोत्तूण (भुक्त्वा ) प २१६४।१६ मंगलावई (मंगलावती) ज ४।१६१,२०२।२,२०३ भोम (भौम) ज ७।१२२।३ मु १०८४।३ मंगलावईकूड (मंगलावतीकूट) ज ४।२०४।१ भोमेज्ज (भौमेय) प २।४१,४३ ज ३।२०६; मंगलावत्त (मंगलावर्त) ज ४।१६३,१६५ मंगलावत्तकूड (मङ्गलावर्तकूट) ज ४।१६२ भोमेज्जग (भौमेयक) प २।४१,४३,४६ मंगल्ल (मांगल्य) ज २१६४;३८५,१८५,२०६%3 भोमेज्जा (भौमेयक) प २४१,४२ ५।५८ उ ११४१,४४ भोयण (भोजन) प २१६४।१६ ज २।१८ च ५।३ मंगुस (दे०) प १७६ सू ११६।३।१०।१२०,२०१७ उ ३।११०,११४ । मंच (मव) सू १२।२६ भोयणजाय (भोजनजात) ज २०१८ मंचाइमंच (मञ्चातिमञ्च) ज ३७,१८४ भोयणमंडव (भोजनमण्डप) ज ३।२८,४१,४६, मंचातिमंच (मञ्चातिमञ्च) सू १।२६ ५८,६६,७४,१३६,१४७,१४६,१८७,२१८ मंजरिका (मञ्जरिका) ज ५१७२,७३ मंजिट्ठावण्णाभ (मञ्जिष्ठावर्णाभ) सू २०१२ मइ (मति) ज ३।३२ मंजु (मजु) ज २१६५; ३।१८६,२०४ मइअण्णाणि (मत्यज्ञानिन्) प३।१०२,१०३; मंजुघोसा (मंजुघोषा) ज ५१५२,५३ १८८३,२८।१३७ मंजुपाउयार (मञ्जुपादुकाकार) प १६७ मइल (दे० गलिन) ज २।१३१ उ ३।१३० मंजुल (मञ्जुल) उ ३६८ मउड (मुकुट) प २।३०,४८ से ५०,५।१८ मंजुस्सर (मंजुस्वर) ज ५१५२,५३ ज ३।३,६,६,१८,२६,३१,४७,६३,१८०,२११, मंजूसा (मञ्जूषा) ज ३।१६७;४।२००।१ Page #1085 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००८ मंडण ( मण्डन ) ज ३११०६ मंडल ( मण्डल ) ज ३०३०, ३५, ६५, १६, १०६, १५६, १६०,७२,१०,१३,१६,१६ से ३१,३५,५५, ५६,७२,७५,७८ से ८४,६५,६६,६८,६६, १००,१०४,१२६।१ चं २।१३।२ सु १ । ६ । १; १।७।२१।११,१२,१४,१८ से २५, २७:२1१ से ३, ३ २ ४ ४, ७, ६,६११ ; ६ २; १०७५, १३८ से १५१,१७३, १२।३०; १३०४, ५, १३; १५।२ से ४,१४ से ३६; १६।२२।१० से १२, १६।२३ मंडल ( मण्डलगति ) प २०४८ मंडलग्ग ( मण्डलाग्र ) ज ३।३५ मंडलपति ( मण्डलपति ) ज ३१८१ मंडलरोग ( मण्डल रोग) ज २१४३ मंडलवत ( मण्डलवत् ) सू १।२५ से ३१ मंडलसंठिति (मण्डलसंस्थिति ) सू ११२५ मंडल ( मण्डलिन् ) प १७१ मंडलिय ( माण्डलिक ) प १।७४; २०११ |१ मंडलियत्त ( मण्डलिकत्व ) प २०१५७ मंडलियराय ( माण्डलिकराज ) ज ३ । २२५ मंडलियावा ( मण्डलिकावात ) प १।२६ मंडव (मण्डप) ज ३८१,५।३५ मंडवग (मण्डपक) ज १।१३; २।१२ मंडव्वायण ( माण्डव्यायन) ज ७।१३२|३ मू १०।१०७ मंडित (मण्डित ) प २।३१ ज ३।१८४ मंडिय ( मण्डित ) प २।३१ ज ३१७,१८,३१,१८०; ५।२१,३८ मंडुक्की ( मण्डूकी ) प १४४ २ मंडूक (मण्डूकपुत्र ) सू १२/२६ मंडू ( मण्डूक) प १६।४४ मंगति ( मण्डूकगति ) प १६।३८, ४४ मंत (मन्त्र) ज ३ । ११५,१२४,१२५ उ ३।११,१०१ मंति ( मन्त्रिन्) ज ३६,७७, २२२ मंथ ( मन्थ ) प ३६।८५ मंडण - मगदंतिया मंद (मन्द) ज २२६५; ५०३८, ५७; ७१५८ सू २३; १८१८ मंदकुमार (मन्दकुमारक) प ११।११ से १५ मंदकुमारिया ( मन्दकुमारिका ) प ११।११ से १५ मंदगइ (मन्दगति) चं ४।२ सू १।८।२ मंदर (मन्दर ) प २३२, ३३,३५,३६,४३,४४,५०, ५१;१५।५५।३; १६।३० ज १।१६,२६,४६,५१; २२६८ ३१२, ४ ६४,१०३, १०६, १०८, ११४, १४३,१६०, १६२,१६३, २०३, २०५, २०८, २०६,२१२ से २१६,२१६ से २२२, २२५, २३३ से २३५, २३७ से २४१,२५३, २५४, २५७,२५६,२६०।१,२६१, २६२५।४७ से ५०, ५.३;६।१०,२३,२४;७८ से १३,३१,३३,६७ से ७२,६१,६२,१६८।१,१७१ सू ४१४,७; ५।१ ; ७१ ; ८ । १ ; १८५ उ ११०, २६.६६ मंदरकूड (मन्दरकूट) ज ४।२३६, ६।११ मंदरचूलिया ( मन्दरचूलिका) ज ४।२४१, २४२, २४३,२४५, २४६, २५१, २५२ मंदरपव्यय ( मन्दरपर्वत ) प १६ । ३० सू ४/४, ७ मंदलेस ( मन्दश्य ) सू १६।२२।३०;१६।२६ मंदावलेस ( मन्दातपलेश्य ) ज ७ ५८ सू १६ २६ मंदिर (मन्दिर) सू ७ १ मंस (मांस) प ११४८ | ४६, २।२० से २७ सू १०।१२० उ १।३४, ४०, ४३ से ४६, ४८, ४६,५१,५४,७४,७६,७६ मंसकच्छभ (मांसकच्छप ) प ११५७ मंसल (मांसल ) ज २।१५७।१७८ मंसाहार (मांसाहार ) ज २।१३५ से १३७ मंसु ( श्मश्रु) ज २।१३३ मक्कार ( माकार ) ज २।६१ माइत (दे० ) उ ११३८ मग (दे० ) ज ३ | ३१ मगत (दे० ) उ १।१३८ मगवंतिया (मदयंतिका) प ११३८ २ ज २।१० मेंहदी Page #1086 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मगर-मज्झिमउवरिम १००६ मगर (मकर) प ११५५,५९,२।३० ज १।३७; २११०१,४।२४,२७,३६,६६,६१,५।३२ सू २०१२ मगरंडग (कराण्डक) ज ५।३२ मगरज्मय (मकरध्वज) ज २।१५ मगरमुहविउदृसंठाणसंठिय (मकरमुखवित्तसंस्थान संस्थित) ज ४।२४,७४ मगसिरी (मार्गगिरी) सू १०७,१२ मगसीसावलिसंठिय (मृगशीविलिसंस्थित) सू १०३८ मगह (मगध) प ११६३।१ मगूस (दे०) प ११७८ मग्ग (मार्ग) ज ६४,३।२२,३६,६३,६६,१०६, १६३,१७५,१८० मग्गओ (दे० पृष्ठतम्) ज ५।४३ मग्गण (मार्गण) ज ३१२२३ मग्गदय (मार्गदय) ज ५।२१ मग्गदेसिय (मार्गदेशिक) ज ५१५,४६ मग्गमाण (मार्गयत्) उ ३।१३० मग्गरिमच्छ (मकरीमत्स्य) प ११५६ मग्गसिर (मार्गशीष) ज ७।१०४,१४५,१४६ सू १०।१२४ उ ३।४० मग्गसिर (मृगशिरस्) ज ७।१४०,१४५,१४६ मग्गसिरी (मार्गशिरी) ज ७।१३७,१४०,१४५, १४६,१५२,१५५ सू १०७,१२,२३,२५,२६ मग्गिज्ज (मार्गय) मग्गिज्जइ प १२॥३२ मघमघेत (दे० प्रसरत् ) प २।३०,३१,४१ ज ३७, ८८५७ सू २०१७ मघव (मघवन् ) प २५० ज ५।१८ मघा (मघा) ज ७।१२८,१२६,१३६,१४० सू १०।५,६२ मच्छ (मत्य) प ११५५,५६,६।८०।२ ज २११५, १३४;३।१७८,४१३,२५,२८,५३२,५८ सू२०१२ मच्छंडग (मत्स्याण्डक) ज ५।३२ मच्छंडिया (मत्स्य ण्डिका) प १७११३५ ज २११७ मच्छाहार (मत्स्याहार) ज २११३५ से १३७ मच्छिय (मक्षिका) प ११५१११ मच्छियपत्त (मक्षिकापत्र) प २०६४ मज्जण (मज्जन) ज ३।६,२२२ मज्जणघर (मज्जनगृह) ज ३।६,१७,२१,२८,३१, ३४,४१,४६,५८,६६,७४,७७,८५,१३६,१४७, १५३,१६८,१७७,१८७,१८८,२०१,२१८, २१६,२२२ उ १।१२४,५।१६ मज्जणय (मज्जनक) उ ११६७ मज्जणविहि (मज्जनविधि) ज ३।६,२२२ मज्जाया (मर्यादा) ज २११३३ मज्जार (मार्जार) प १४४।१ चित्रक मज्जाव (मज्जय) मज्जावेंति ज ५।१४ मज्जावेत्ता (मज्जयित्वा) ज ५।१४ मज्जिय (मज्जित) ज ३६,२२२ मज्झ (मध्य) प ११४८१६३ ; २।२१ से २७,२७।३, २।३० से ३६,३८,४१ से ४३,४६,५० से ५६, ६४;११६६,६७, २८।१६,१७,६२,६३ ज ११८,३५,४६,४७।१,५१,३१६,१७,२१, २४।३,३४,३७।१,४५।१,१०६,१३११३,१७७, १८५,२०६,२२२,२२४,२२५,४।१३,४५, ११०,११४,१२३,१४२।१,२,१५५,१५६।१, २१३,२२२,२४२,२६०।१,५।१४,१५,१७,३३, ३८,७।४५,२२२।१ सू १२।३०,२०१७ मज्झमज्झ (मध्यमध्य) ज २६५,६०३३१४, १७२,१८३,१८४,१८५,२०४,२२४;५१४४ सू २००२ उ १११६,६७,११०,१२५,१२६, १३२,१३३;३।२६,१११,१४१,४।१३,१५, १८:५११६ मज्झंतिय (मध्यान्तिक) ज ७।३६,३७,३८ मज्झगय (मध्यगत) ज ७।२१४ मज्झयार (दे० मध्य) ज ७।३२११ मज्झिम (मध्यम) प २१६४१७,२३।१६५ ज २१५५, ५६,१५५,१५६४।१६,२१,५।१३,१६,३६ सू२३ उ ३३१००,१३३ मज्झिमउवरिम (मध्यमउपरितन) प २८९२ Page #1087 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१० मझिमउवरिमगेवेज्जग-मणि २४ मज्झिमउवरिमगेवेज्जग (मध्यम उपरितन वेयक) १७।११२,११३; २०११८,३२,४७,२६।२; प १।१३७,४।२८२ से २८४,७४२५ ३०१२ मज्झिमग (मध्यमक) प २१६१ मणपज्जवणाणारिय (मनःपर्यवज्ञानार्य) प ११६६ मज्झिमगेवेज्ज (मध्यमवेयक) प ६४० मणपज्जवणाणि (मनःपर्यवज्ञानिन् ) प ३।१०१, मज्झिमगेवेज्जग (मध्यमवेयक) प २१६१,६२, १०३,५।११७:१८१८१,२८।१३६,३०।१६,१७ ३।१८३;६।५६,३३।१६ मणपज्जवनाण (मनःपर्यवज्ञान) प २०१३३ मज्झिममज्झिम (मध्यममध्यम) प १८६१ मणपज्जवनाणपरिणाम (मनःपर्यज्ञानपरिणाम) मज्झिममज्झिमगवेज्जग (मध्यममध्यमवेयक) प १३९ प १११३७,४।२७६ से २८१,७।२४ मणपरियारग (मनःपरिचारक) प३४।१८,२४,२५ मज्झिमय (मध्यमक) प २।६।१ मणपरियारणा (मनःपरिचारणा) प ३४।१७,१८, मज्झिमहेठिम (मध्यमाधस्तन) प २८६० मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जय (मध्यमाधस्तनप्रैवेयक) मणभक्खण (मनोभक्षण) प २८।१०५ प१११३७,४।२७६ से २७८,७।२३ मणभक्खत्त (मनोभक्षत्व) प २८।१०५ मज्झिमिल्ल (मध्यम) ज ४।२५३,२५५,२५८ मणभक्खि (मनोभक्षिन् ) प २८।११२,२८।१०४, मज्झिय (मध्यक) ज २०१५ १०५ मज्झिल्ल (मध्यम) ज ३।१ मणसमिय (मन:समित) ज २१६८ मट्टिया (मृत्तिका) ज ३।२०६५।५५,५६ मणसाइय (मनःस्वादित) ज ३।११३ मट्ठ (मृष्ट) प २।३०,३१,४१,४६,५६,६३,६४ मणसीकत ('मनीकृत) प२८।१०५ ज ११८,२३,३१,२।१५,४।१२८,५।४३ मणसीकय (मनीकृत) प ३४।१६,२१ से २४ सू २०१७ मणसीकरेमाण (मनीकुर्वत्) ज ३१५४,६३,७१, मट्ठमगर (मृष्टमकर) प ११५६ १११,११३,१३७,१४३,१६७ मडंब (मडम्ब) प ११७४ ज २।२२,१३१,३।१८, मणहर (मनोहर) ज २।१२,६५,३११३८,१८६, ३१,८१,१६७।२,१८०,१८५,२०६,२२१ २०४:४।१०७,५१५,२८,३८,७।१७८ उ ३३१०१ मणाभिराम (मनोभिराम) ज ३।१०६ मण (मनस्) प २२।४।२३।१५,१६,३४।१।२, मणाम (दे० 'मन' आप) प२८।१०५ ज २१६४; ३४।२४ ज २१६४,७१,३३,३५,१०५,१०६%3 ३।१८५,२०६; ५।५८ उ ११४१,४४; ३।१२८; ४११०७,१४६,५।३८,७२,७३ सू २०१७ ५।२२ उ १।१५,३५,४१ से ४४,७१,३।१८ मणामतर (मन:आपतर) ज २०१८,४।१०७ मणगुत्त (मनोगुप्त) ज २।६८ उ ३६६ मणामतरिय ('मन' आपत रक) प १७।१२६ से मणजोग (मनोयोग) प ३६।८६,८८,८६,६२ १२८,१३३ से १३५ ज २०१७ मणजोगपरिणाम (मनोयोगपरिणाम) प १३१७ मणामत्त ('मन' आपत्व') २८।२६,३४।२० मणजोगि (मनोयोगिन्) प ३९६:१३।१४,१६; मणि (मणि) प ११२०।२२।३१।४१,४८,१५।१।२, १८१५६२८११३८ १५।५० ज १११३,२१,२६,३३,४६;२।७,२४, मणपज्जत्ति (मनःपर्याप्ति) प २८.१४२,१४४,१४५ ५७,६४,६६,१२२,१२७,१४७,१५०,१५६, मण (पज्जवणाण) (मनःपर्यवज्ञान) प २६।१७ १६४७३।१,६,२०,२४,३०,३३,३५,५४,५६, मणपज्जवणाण (मनःपर्यवज्ञान) प ५।२४,११५, १. भिक्षुशब्दानुशासन ८।२।१६ अरुर्मनश्चक्षु" Page #1088 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणिकंचण-मणुस्सलोय १०११ ६३,७१,८१,८४,६५,१०६,११७,१३७,१४३, १४५,१५६,१६७।८,१२,१७८,१८२,१६२, २२२,४१३,१६,२५,४६,६३,८२,११४;५।१६, ३२,३८ सू २०१७,१८ मणिकंचण (मणिकाञ्चन) ज ४।२६६।१ मणिदत्त (मणिदत्त) उ ५।२४,२६ मणिपेढिया (मणिपीठिका) ज ११४३,४४,४।१२, १३,३३,१२३,१२४,१२६,१२७,१३२,१३३, १३६,१३६,१४५,१४६,१४७,२१८,२१६; ५॥३५ मणिमय (मणिय) प २।४८ ज ११४३;३।२०६; ४।५,७,१२,१३,२६,२७,४६,११४,१२३, १२४;५।३५.५५ मणिरयण (मणिरत्न) ज ३१६,१२,२४,३०,८८, ६२,६३,११६,१२१,१७८,२२०,२२२,४।१६, ४६,६७,५१२८,५८७१७८ मणिरयणक (मणिरत्नक) ज ११३७,३।६३ मणिरयणत्त (मणिरत्नत्व) प २०१६० मणिवइया (मणिमती) उ ३।१५०,१५८ मणिवई (मणिमती) उ ३।१६६ मणिवर (मणिवर) ज ३।६२,११६ मणिसिलागा (मणिशलाका) प १७४१३४ मणुई (मनुजी) ज २११५ मणुण्ण (मनोज्ञ) प २३।१५,३०,२८1१०५; ३४।१६,२१ ज २१६४; ३३१८५,२००; ४।१०७,५।३८,५८ सू २०१७ उ ११४१,४४; ३।१२८,५।२२ मणण्णतर (मनोज्ञतर) ज २११०४।१०७ मणुण्णतरिय (मनोज्ञतरक) प १७।१२६ मे १२८, १३३ से १३५ ज २०१७ मणुण्णत्त (मनोज्ञत्व) प ३४।२० मणण्णस्सरता (मनोज्ञस्वरता) प २३।१६ मणुय (मनुज) प६१८०।२,६८१;२०१५३, २३।३६,८३,११३,१४६,१७२,२८।१४४, १४५;३१।६।१;३२।६।१ ज १।२२,२७,५०; २।१४,१६,१६,२१ से २६,२८ से ३७,४१ से ४६,५६,५८,६४,१२३,१२८,१३३,१३४, १३५,१४६,१४८,१५१,१५७,१५६४।८५, १०१,१७१ उ १११४,१५,२१,३।९८,१०१, १३१,५।२३,३१ मणुयअसण्णिआउय (मनुजासंज्ञयायुष्क) प २०१६४ मणुयगति (मनुजगति) प ६॥३,८ मणुयगतिय (मनुजगतिक) प १३।१६ मणुयगामि (मनुजगामिन् ) ज ११२२,५०,२।१२३, १२८,१४८,१५१,१५७;४।१०१ मणुयगतिपरिणाम (मनुजगतिपरिणाम) प १३।३ मणुयरयण (मनुजरत्न) ज ३।२२० मणुयलोग (मनुजलोक) सू १६।२१।८ मणुयलोय (मनुजलोक) सू १६।२२।१,३ से ६ मणुयवइ (मनुजपति) ज ३।३ मणुयाउय (मनुजायुष्क) प २०१६३,२३।१८,१५८ मणुस्स (मनुष्य) प ११५२,८२ से ८५.१२६; २।२६;३।२५,३८,३६,१२६,१८३,४।१५८ से १६४,५।३,२३,२४,१००,१०१,१०३,१०४, १०६,१०७,११०,१११,११४,११५,११८ से १२०,६।२३,२४,४६,५५,६५,६६,७०,७२, ७६,८१,८२,८४,६०,६२,६४,९६,६७,९६ से १०४.१०८,११०,११३,११६, ७।४;८1८,६; ६८ से १०,१६,१७,२२,२३;११।२१,२२, २४,२६:१२।५,३२,१३।१६,१५१२२; १७१४५,४६,१२६,१६४,१७१,१६।४; २११७, ४८,२२।३६,२३।१६४,१९८; २६।१५; ३४।३३६।१।१,३६०४१,५२ ज २।६,७,५०, ५३,१६२,१६४;३।६८,१७८,२२१ सू २।३; १६।२२।१३;२०१२ उ ११२१,१२२,१२६, १३३,१३६,१३७,१४० मणुस्सखित्त (मनुष्यक्षेत्र) प १७४ मणुस्सखेत्त (मनुष्यक्षेत्र) प ११८४;२७,२६ सू १९।२२।२१ मणुस्सगामि (मनुष्यगामिन् ) ज २१५८ मणुस्सरुहिर (मनुष्यरुधिर) प १७।१२६ मणुस्सलोय (मनुष्यलोक) सू २०१२ Page #1089 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१२ मणुस्साउय-मत्थय २०४ मणुस्साउय (मनुष्यायुष्क) प २३।१४७,१६२,१६५, मणोणुकूल (मनोनुकूल) सु २०१७ १७० मणोमाणसिय (मनोमानसिक) उ ११६३ मणस्सी (मानुषी) प ३।३६,१३०,१८३,१११२३; मणोरम (मनोरम) प ३४।१६,२१,२२ १७।४८,१६०; २३।१६४,१६८,२०१ ज २७ ज ४।२६०।१५।४६।३:७।१७८ सू ५।१ मणस (मनुष्य) प ६८४,८७,१५।३५,४४,४५, उ ५।२८ ४७ से ५०,८७,६१,६८,१०३ से १०६,११५, मणोरह (मनोरथ) ज ३१८८,२२१ १२१ १२३,१२६,१३८; १६८,१५,२५,२८, मणोहरमाला (मनोरथमाला) ज २१६५,३३१८६, १७।२४,२५,३०,३३,३५,४७,७०,६७,१०४, १५७,१५६ से १६३,१६६,१६७,१७०,१७२, मणोसिला (मन शिला) प ११२००२ ज ३।११।३ मणोसिला (मन शिला प010 १८१४,१०,२०१४,१३,१८,२५,३०,३२.३५, मणोहर (मनोहर) प ३४।१६,२१ ज २।१२; ३६,४८, २१।१६,२०,३६,५४,६०,६६,७२, ७।११७१ सू१०१८६।१ ७७,८२,८६२२।३१,४५,७५,७६८०,८३ से म ण्ण (मन) मण्णामि प ११११ मण्णे १११५; ८५,८८,६०,६६,१००।२३।१०,१२,७६, ३९८ १६६,२००,२४।३,८,१०,१२,२५।४,५; मति (मति) प १३।१० ज ३१ २६।३,४,६,८,१०,२७।२,३,२८।२,४६ से मतिअण्णाण (मत्यज्ञान) प ५१५,७,१०,१२,१४, ५१,६७ से ६६,७१,१०३,११६ से १२१, १६,१८,२०,५६,६३,२६।२,६,६,१२,१७,१६ १२४,१२८,१३०,१३६ से १३८,१४१ से से २१ १४३;२६।२२३०।१४,२४;३१४,३२१४; मतिअण्णाणपरिणाम (मत्यज्ञानपरिणाम) प १३।१० ३३।१,१३,२१,२६,३३,३६,३४।६;३५१४, मतिअण्णाणि (मत्यज्ञानिन) प३।१०३:५८०,६६, २१,३६७,१०,११,१३ से १५,१७,२६,३०, ११७,१३।१४,१६,१७,१८१८३ ३१,३३,३४,५८,७२,८०,८१ ज ४।१०२, मतिणाण (मतिज्ञान) प २६।६ ७।२० से २५,७६,८२ सू २।३ मत्त (मत्त) ज २।१२ । मणूसखेत्त (मनुष्यक्षेत्र) प २११६२,६३ मत्त (अमत्र) सु २०६४ उ १६३,१०५,१०६ मणूसत्त (मनुष्यत्व) प १५।६८,१०४,११०,११५, मत्तंग (मत्ताङ्ग) ज २०१३ १२६,१३०,३६।२२,२६ ३०,३१,३३,३४ मत्तजला (मत्तजला) ज ४।२०२ मणूसाउय (मनुष्पायुष्क) प २३७६ मत्तियावई (मत्तिकावती) प १६३।४ मणूसी (मनुष्यणी) प २७।१५८,१५६,१६१ से मत्थगसूल (मस्तकशूल) ज २१४३ १६४;१८।४,१०,२०११३,२३।१६६,२०१ मत्थय (मस्तक) ज ३।५,६,८,१२,१६,२६,३६, मणोगम (मनोगम) ज ७।१७८ ४७,५३,५६,६२,६४,७०,७७,८१,८२,८४, मणोगय (मनोगत) ज ३।२६,३६,४७,५६,१२२, ८८,६०,१००,११४,१२६,१३३,१३८,१४२, १२३,१३३,१४५,१८८,५।२२ उ १११५,५१, १४५,१५१,१५७,१६५,१८१,१८७,१८६, ५४,६५,७६,७६,६६,१०५,३।२६,४८,५०, २०५,२०६,२०६,२१८,५१५,२१,४६,५८ ५५,६८,१०६,११८,१३१,५॥३६,३७ उ ११३६,४५,५५,५८,८०,८३,६६.१०७, मणोगुलिया (मनोगुलिका) ज ४।१२६ १०८,११६,११८,१२२,३।१०६,१३८,४।१५; मणोज्ज (मनोज्ञ) प ११३८.१ ज २११० ५।१७ Page #1090 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मदणसलागा-महंत १०१३ मदणसलागा (मदनशलाका) प १७६ मदणसाला (मदनशाला) उ ५५५ मद्दग (दे०) प ११३७।४ मद्दव (मार्दव) ज २१६,७१ मदुग (मद्गुक) ज २११३७ मधु (मधु) प १७।१३४ ज २।१०६,११० मधुर (मधुर) ज ३११८६,२०४ मिन्न (मन्) मन्ने ज ३।१०५ मम्म (मर्मन्) उ १६६ मम्मण (मन्मन) उ ३१६८ मय (पद) चं ११ मयकिच्च (मृतकृत्य) उ १६२ मयणिज्ज (मदनीय) प १७:१३४ ज २०१८ मयूर (मयूर) प ११७६ ज २।१५ उ ५१५५ मरगय (मरकत) प ११२०१३ ज ३।१०६ मरण (मरण) प १११११, २०६४;२०६४।६,२२; ३६।१।१,३६१८३।२,६४।१ ज २१७०,८८, १६,१०३,१०४,३।२२५ सू २०६६ उ ३।११२,१५६,४।१६ मरीइ (मरीचि) ज १३७ मरीइया (मरीचिका) ज ५१३२ मरुदेव (मरुदेव) ज २१५६.६२ मरुदेवा (मरुदेवा) ज २६३ मरुय (मरुक) प १८६ मरुयग (रुबक) प ११४४१३ मरुआ मरुयरायवसभशप्प (मरुद्राजवृषभकल्प) ज ३।१८,६३,१८० मख्यापुड (सरुबकयुट) ज ४।१०७ (मलय पश८६.श६३।३ ज ११२६,३।२, २११:५१५५ उ १११०,२६,६८५११ मलयगिरि (मलयगिरि) ज ३।२४ मलिण (मलिन) ज २।१३३ मलिय (मदित) ज ३१२२१ उ ११३५,३१५०, ११०,११३;४२० मल्ल (माला) प २।३०,३१,४१,४६ ज २।१२०, ३६,११,१२,२१,३४५५५,५७ उ १।३५; ३।५०,११० मल्ल (मल्ल) ज २।३२,३७८,८५,८८,१८०, २०६,२११,२२१,५।२२,२६ मल्लइ (मल्लवि) उ १।१२७ से १३०,१३२ मल्लदाम (माल्यदामन्) १ २।३०,३१,४१ ज ३७,६,१२,१८,२८,३०,३५,४१,४६,५८, ६६,७४,७७,७८,८८,६३,११७,११६,१४७, १६८,१७८,१८०,२१२,२१३,२२२ मल्ल (वासा) (माल्यवर्षा) ज २५७ मल्लि (मल्लि) ज ३।१०६ मल्लिया (मल्लिका) प ११३८।२ ज २।१०; ३३१२,८८,१७८,५१५,५८,७।१७८ मल्लियापुड (मल्लिकापुट) ज ४।१०७ मविज्जमाण (माप्यमान) प ११४८१५६ मवेज्जमाण (माप्यमान) प ११४८।५८ मसग (मशक) प ११५१११ ज २०४० उ ३०१२८ मसारगल्ल (दे०) प ११२०१३ ज ३।१०६; २५ मसि (मसि, मषि) ज २१२३ मसूर (मसूर) प ११४५१,११७६१५॥३,२१; २११२३,८० ज २।३७ मह (महत्) प २१३०,३१,४१,४६,६२; २३।१६३; ३६।८१ ज १११२,१४,३७,४०,४२,४३; २।३१, ३।२४,१६१,१६३,१६४,१६७,४।३, ६,६,१२,१३,२४,२५,३१,३३,३६ से ४१,४७, ४६,५६,६६ से ६८,७०,७४,७५,७६,८८,६३, १५६,२१६,२१८,२२१,२३५,२४३,२५०; ५६५,७,३५ से ३८,५४,६७, ७।५० मह (मथ) महिंति ज ५११६ महेइ उ ३३५१ महास (महाश्व) ज ३।१७६ महइ (महती) प २१२७ ज १।१०।२।११४,११५; १४३ महइमहालिय (महतीहत) उ ११२०७४।१४ महंत (महत्) ५ २३।१६३ ज१६,२६; ३१२ उ १।१०,२६६६; ११ Page #1091 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१४ महंत तर ( महत्तर) ज ४८०, १०२ महग्गय ( महाग्रह ) ज ७।११३ महग्गह ( महाग्रह ) ज ७ १,१०४,१७० सू १० १३० १६१५, ८, ११३, १५३, १६, २१।४,७,१६।२२।६, १३, २०१८ उ ३२५, ८४८६ महग्गहत ( महाग्रहत्व ) उ ३१८३ महग्घ (महा) ज ३८५, २०७, २०८, २२२ ५।५४ सू २०१७ उ १।१६, ४२, ३२६, १४१, ४।१२ महज्जुइ ( महाद्युति) ज १।२४, ३१:३।११५, १२४, १२५, २२६ ; ४।१६५; ५।१८ महज्जुइय (महाद्युतिक ) प २०४६ महज्जुतीय (महाद्युतिक ) प २०३०, ४१३६।८१ महढिय (महद्धिक ) प २०४६ महड्डीय (महर्द्धिक) ज ४।१७७ महण ( मथन) ज ३।२२१ महत (महत्) सू १८।२३ महति ( महती ) ज ३।३१ महतिमहालय (महती महत् ) प २/६३ महत्तरंग ( महत्तरक) उ१।१६ महत्तरगत्त ( महत्त रकत्व ) प २०३०, ३१, ४१, ४६ ज ३।१८५,२०६, २२१५।१६ उ ५ १० महत्तरिया ( महत्तरिका ) ज ४।१८५।१ से ३, ५ से १०,१२ से १७ उ ३६० ; ४ ५ महत्थ ( महार्थ ) ज ३।२०७, २०८, ५।५४,५५ महदंडय ( महादण्डक ) प ३|११२ मह ( महाद्रह ) ज ५१५५; ६।१७ हत्या ( महाप्रस्थान ) उ३।५५ मह ( महात्मन् ) ज ३ ७७,१०६ महब्बल ( महाबल) प २३०,३१,३६।८१ उ ५।२५ महया (महत्) ज ११२६, ४५, २।१२,६५,३२,१२, २२,३६,७८,८२,८८,८६,६३,६६, १०२, १०६, १५५,१५६, १८०, १८५, १८७, २१२,२१३, २१४,२१८; ४।२३,३८,६५,७३, ६०, ६१,१७७; महंत तर महाण ५।२२,२६,५६,५७,५८,७२,७३, ७१५५,५८, १७८, १८४ सू १६ २३, २६ उ १।१०,२३, २६,६०,६२,६५,६८,६६,७२,८५,८७,६१ से ६३,१३८, १३२,५८,११,१६,२०,२७ महरिह ( महार्ह ) ज ३६,८१,११७, २०७, २०८, २२२५।५४ महव्वय ( महाव्रत ) ज २१७२ महा (घा) ज ७।१४७, १५०,१६२,१६३ सू १०।१ से ४,६,१४,२३,६६,७०,७५,८३१२०,१३१ से १३३ महाओहस्सर ( महौघस्वर ) ज ५।५१ महाकंदिय ( महाक्रन्दित ) प २१४१,४२,४७ १ महाक ( महाकृष्ण ) उ १1७ महाकच्छ ( महाकच्छ) ज ४।१८२ से १८५ महाकच्छकूड ( महाकच्छकूट) ज ४ । १८६ महाकम्मतराग ( महाकर्मतरक ) प १७ ४,१६ महाकाय ( महाकाय ) प २।४१,४५, ४५।२ महाकाल ( महाकाल ) प २।२७,४४,४५, ४५ । १, २।४६, ४७ ज ३।१६७१,८,१७८ सू २०१८, २०१८।५ उ १७ महाघोस ( महाघोष ) प २०४०७ ज ५२४८, ४६ महाचाव ( महाचाप) ज ३१२४१४, ३७।२, ४५२, १३१।४ महाजस ( महायशस् ) सु १७ १२०१, २ महाजाइ ( महाजाति) प १३८ ३ ज २।१० महाजुतिय ( महाद्युतिक ) प १७ १ २०११, २ महाजुतीय (महाद्युतिक ) प २०३४ महाजुद्ध ( महायुद्ध ) ज २०४२ महाण (महानदी) ज ११६,१८,२०,४८,२०१३३; १३४,३।१,१४,१५,१८,५१,५२, ७६,७८,८१, ६७ से १०१,१११,११३, १२८, १४९ से १५१, १६१,१६४,१७०;४।२३, २४, २५,३५,३६,३८ से ४०,४२,५७,६५ से ६७,७१,७३,७४,७७, ७८,८४,६० से ६२,६४,६५, ११०, १४१, १४३, १६७,१६६,१७४, १७७, १७८, १८१, १८३ से १८५, १८७,१८६,१६०,२००, २०१,२०२, Page #1092 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाणक्खत्त-महावीर १०१५ २२१ २०६,२०८,२१२,२१५.२३२,२६२,५५५; महाभीम (महाभीम) प २१४५,२।४५।१ ६।१ से २२ उ ११६७३।५१,५६,५८ महामंडलिय (महामाण्डलिक) प ११७४ महाणक्खत्त (महानक्षत्र) सू १०।२५,४३,१०८ महामंति (महामन्त्रिन्) ज ३।६,७७,२२२ महाणदी (महानदी) ज ४१६५,२६८ महामहिम (महामहिमन) ज २११७,११८, महाणिरय (महानिरय) प २२२७ ३।१२,१३,१४,२८,३०,४१,४२,४६ से ५१, महाणिहि (महानिधि) ज ३।१७८,१८३,२२०, ५८ से ६०,६६ से ६८,७४ से ७६.१३६,१३६, १४७ से १५१,१६८,१६६,१७० ; ५७४ महाणुभाग (महानुभाग) प २।३०,३१,४१,४६; महामेह (महामेघ) ज २।१०,१४१,१४२,१४५; ३६।८१ ज १२४,३१,३१११५,१२४,१२५, ३।६,१७,२१,३१,३४,३५,१७७,२२२ उ ३।४६ २२६; ४।६०,५।१८ सू १७११, २०११,२ महायस (महायशस्) प २१३०,३१,४१,४६; महाणुभाव (महानुभाव) सू १७।१;२०।१,२ ३६।८१ ज ११२४,३१,३।११५,१२४,१२५, महातव (महातपस्) ज ११५ २२६,५११८ महादंडय (महादण्डक) प ३।१८३ महारह (महारथ) ज ३।३५ महाद्दुम (महाद्रुम) ज ५१५१ महाराय (महाराज) ३।२०७,२०८,२२५ उ ३।५१, महाधणु (महाधनुष) उ ५।२।१ ५३,५४ महानिहि (महानिधि) ज ३।१६७।१,१० महारायवास (महाराजवास) ज २१६४ महानील (महानील) प २।३१ से ३३ महारुधिरपडण (महारुधिरपतन) ज २।४२ महापउम (महापद्म) ज ३।१६७।१,६,१७८ महारोरुय (महारोरुक) प २।२७ उ २१२,२० महालय (महत्, महालय) प २।२७,६३ महापउमद्दह (महापद्मद्रह) ज ४।६४,६५,७३,८६ ज २१११४,११५,५५४३ महापउमा (महापद्मा) उ २।१६,२० महावच्छ (महावत्स) ज ४।२०२।१,२०३ महापम्ह (महापक्षा) ज ४।२१२,२१२।१ महावप्प (महावप्र) ज ४१२१२,२१२।३ महापह (महापथ) ज ३।१८५.२१२,२१३,५७२, महाविजय (महाविजय) ज २०१७ ७३ उ १६८ महावित्त (महावृत्त) ज ५।५८ महापाताल (महापाताल) प २१६१ महाविदेह (महाविदेह) प ११७४,८८,२१७ महापुंडरीय (महापुण्डरीक) ज ४।२६८ ज ४।८६,६८ से १०३,१०८,१६२,१६७, महापुंडरीयहत्यगय (हस्तगतमहापुंडरीक) ज ३।१० १६६,१७२ से १७४,१७८,१८१,१८२,१८४, महापुरा (महापुरा) ज ४।२१२।२ १८५,१८७,१८८,१६०,१६१,१६३,१६४, महापुरिस (महापुरुष) प २१४५,२।४५।२ १६६,१६७,१६९,२०० से २०३,२०५,२०६, महापुरिसपडण (महापुरुषपतन) ज २०४२ २१३,२६२,६९,१४,२२ उ १।१४१,१४७; महापोंडरीय (महापौण्डरीक) प ११४६ ज ४।३,२५ २११३,२२,३।१८,२१,८६,१५२,१६५,१६६; महाफल (महाफल) उ १।१७ ४।२६,२८,५०४३ महाबल (महाबल) प २१३१,४१,४६ ज ११२४, महाविमाण (महाविमान) प २१६४ ३१,३७७,१०६,११५,१२४,१२५,१२६, महावीर (महावीर) ५१११११ व ११५,६,७:२१४ २२६,५।१८ सू १७।१,२०११,२ उ २।६; चं १० सू ११५ उ १५२.४ से ८,१६,१७,१६ ५।१३,२५ से २६,१४२,१४३,२।१ से ३,१० से १२,१४, Page #1093 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१६ महावेदणतराग-महेसर ७४ १५,२१,३।१ से ३,७,८,१२,१६,२०,२२, महिंदज्झय (महेन्द्रध्वज) ज ४।१२८,१३३,१३६; २३,२६,८७,८८,६१,६३,१५३,१५४,१६६, ५।४३,४४,४६,५०,५२,५३ उ ३७ १६७,१७०,४।१ से ३,२७,५१ से ३,४४ महिड्ढीय (महद्धिक) प २।३०,३४,३५ से ३७, महावेदणतराग (महावेदनतरक) प १७।६,२७ ३६,४१,४६,४६,५०,५८ महासंगाम (महासंग्राम) ज २१४२ महिता (मथित्वा) ज ५११६ महासत्थपडण (महाशस्त्रपतन) ज २०४२ महित्य (दे०) प ११३७।४ महासमुद्द (महासमुद्र) ज ३।२२,३६,७८,६३,६६, महिमा महिमा (महिमन) प २।३१,६०,११६,५१३,७,२२, १०६,१६३,१८० ४६,७४ ज २१३१,६०,११६,५।३,७,२२,४६, महासरीर (महाशरीर) प १७।२,२५ महासुक्क (महाशुक्र) प २।४६,५६,५७; ३।३५, महिय (महित) प २।३०,३१,४१ ज १।३७,३।७, १८३; ४।२४६ से २५१, ६॥३३,५६,७१४; । १०८ से १११ २११७०,२८८१,३३।१६, ३४।१६,१८ महिय (मथित) उ ११२२,१४० उ २।२२ महिया (महिका) प ११२३ महासुक्कग (महाशुक्रज) ज ५।४६ महिला (महिला) ज २।१५,६४; ३।१३८,१६७।४ महासुक्कवडेंसय (महाशुक्रावतंसक) प २१५६ महिलिया (महिलिका) ज३।१२६।३ महासुमिण (महास्वप्न) उ०४० ४३ महिवइ (महीपति) ज ३।११७ महासेणकण्ह (महासेनकृष्ण) उ ११७ महिस (महिष) प ११६४; २।४६,११।२१ महासेत (महाश्वेत) प २१४७।३ ज ३।२४,१०३ महासोक्ख (महासौख्य) प २।३०,३१,४१,४६; महिती (महिषी) प १११२३ ज २।३४,७।१६८।२ ३६।८१ ज ११२४,३१, ३।११५,१२४,१२५, महु (मधु) ज ७।१७८ उ १३४,४६,७४; ३।५१ २२६,५१८ सू १७१,२०११ महु (मधुक) प ११४८।३ महाहिमवंत (महाहिमवत्) प १६।३० ज ४।५४, महुयरी (मधुकरी) ज २१२ ५५,६१ से ६३,७६ से ८१,२६८ महुर (मधुर) प ११४ से ६५१५,७,२०५; महिड्ढिय (महद्धिक) प २।३१,३७,३६,४२,४३, १११५८; १३।२८,२३६४६,१०८,२८।२६, ४८,५०,५२, १७१८४ से ८७,८६, ३६८१ ३२,६६ ज २।१२,१५,६५,१४५,४।३,२५; ज ११२४,३१,४५,४७,५१,३१११५,१२४, ५।२८,७४१७८ उ ११४१,४४,३९८ १२५,२२६,४।२२,३४,५१,५४,६०,६१,६४, महुरतण (मधुरतृण) प ११४२।२ ८०,८४,८५,६७,१०२,१०७,११३,१५६, महुरयर (मधुरतर) ज ५।२२ से २४ १६१,१६५,१६६,१७७,१८०,१८४,१८६, महुररस (मधुररस) प ११४८।४ १६६,१६८,२०३,२११,२६१,२६४,२६६, महुरा (मथुरा) प ११६३१५ २७२,५।१८,७।१८१,२१३ सू १७११, मसिंगी (मधुशृङ्गी) प १४४८।३ १८।१६, २०११,२ महुस्सर (मधुस्वर) प ५१५२ महिंद (महेन्द्र) ज १।२६, ३।२ उ १।१०,२६,६६, महेत्ता (मथित्वा) उ ३१५१ ५।११ महेसर (महेश्वर) प २।४७।२ Page #1094 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महोरग-मायणि १०१७ महोरग (महोरग) प ११६८,७५,१३२, २।४५ उ ३३३४ ज ३।११५,१२४,१२५ माणकसाइ (मानकषायिन्) प ३।१८:२८।१३३ महोरगच्छाया (महोरगच्छाया) प १६।४७ माणकसाय (मानकषाय) प १४११ मा (मा) उ ११४१, ३।१०३,११२,४।११ माणसायपरिणाम (मानकषायपरिणाम) प १३१५ माइ (मात) उ ११४८; २२२,४।२८,२४३ माणकसायि (मानकषायिन् ) प ३९८ माइमिच्छद्दिट्ठि (मायिमिथ्यादष्टि) प १५४६; माणणिस्तिया (माननिश्रिता) प १११३४ १७।२२; ३४।१२; ३५।२३ माणमूरण (मानभञ्जन') ज ५१५८ माइमिच्छद्दिठिउववाग माणवग (माणवक) ज २११२०,३।१६७।१,६, (मायिमिथ्यादृष्ट्युपपन्नक) प १७।२७,२६ ३।१७८,४।१३५ सू २०१८ माइमिच्छद्दिट्ठीउववण्णग माणवय (मानवक) ज ४।१३३७।१८५ (माणिमिथ्यादृष्ट्युपपन्न क) प १७।२७ सू १८।२३, २०१८४ माइय (मात्रिक) ज २०१५ माणस (मानस) प ३५।११२,३५।६,७ ज ५।२६ माईवाह (मातृवाह) प ११४६ माणसंजलणा (भानसंज्वलना) प २३१७० माउय (मातक) ज ५६ से १२,१७,४६,७२,७३ माणसण्णा (मानसंज्ञा) प ८।१,२ माउलिंग (मातुलिङ्ग) प १।३६।१ माण सभुग्घाय (मानसमुद्घात) प ३६।४२,४६, ४८ से ५२ मालिंगाराम (भातुलिंगाराम) उ ३१४८,५५ माणि (मानिन्) ज ४११७२।१ सू २०६२ माउलिंगी (मातुलिङ्गी) प ११३७।१ माणिक्क (माणिक्य) ज ३।१०६ माउलुंग (मातुलिङ्ग) प १६।५५ : १७।१३२ माणिभद्द (माणिभद्र) प २१४५,२।४५।१ ज ११३; मागह (मागध) ज ५।५५,६१२ से १४ ७।२१४ च ७,६ सू ११२,४ उ ३।२।१,३।१६६ मागहकुमार (मागधकुमार) ज ३३१३१ मागहतित्थ (मागधतीर्थ) ज ३११४,१५,१८,२२; माणिभद्दक ड (माणिभद्रकूट) ज ११३४,४६ माणुरा (मानुष) प २।६४।१४ ज २।१५,६७; २६,५।५५ ३।६२,११६,४।१७७ सू १६।२२।२;२०१२ मागहतित्थकुमार (गधतीर्थकुमार) ज ३।२०, २६,२७,२८,३० माणुसखेत (मानुषक्षेत्र) सू १६।२१।१,२,१६।२६ मागहतित्थाधिपति (मारधतीर्थाधिपति) ज३।२५ माणुसणग (मानुषन्नम) रु १६।२२।२७,२६ मागहतित्थाहिवइ (मागधतीर्थाधिपति)ज ३।२६ मामलोय (मानुपलोक) सू १६।२१।६।२०१२ माघी (माघी) ज ७।१४० माणुसुत्तर (मानुषोत्तर) ज ७।५५,५८ सू१६।१६ माडंबिय (माउम्बिक) प १६।४१ ज २२५,३।६, माधुस्सग (मानुष्यक) उ ३।१३७ १०,७७,८६,१७८,१८६,१८८,२०६,२१०, माणुस्थय (मानुष्यक) ज ३।८२,१८७,२१८, २२१:४।१७७ सू२०१७ उ ११११,३४:५।२५ २१६,२१६,२२१,२२२ उ ११६२,३।११, माता (जात्रा) प २१६४ १०१:५।१० माढरी (माठरी) पश४८।४ माय (गा) माएज्जा प २१६४।१६ माढी (माठी) ज ३।३१ भायंजण (माताजन) ज ४।२०२ माण (मान) प १११३४।१,१४१४,६,८,१० से १४; मायकाइ (आयाकषायिन् ) प ३६८,१८१६५ मायणि (मादनि) उ ५।२।१ २२।२०,२३६,३५,१८४ ज २११६,६६,१३३; ३।६५,१३८,१५६,१६७।३,२२१ सू १२।१७।१ १. हे० ४।१०६ Page #1095 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१८ माया-माह माया (माया) प११।३४।११४।४,६,८,१० से मालवंतद्दह (माल्यवत्द्रह) ज ४।२६२ १४;२२।१०।२३।६,३५,१८४ ज २०१६,६६, मालवंतपरियाय (माल्यवत्पर्याय) प १६।३० १३३ उ ३।३४ ज ४।२७२ माया (मात) ज २१२७,६६,५१५,७ से १०,१२, माला (माला) प २।३०,३१,४१,४६ ज ३१६,२०, १४,१७,४६,६७ उ १।१४८ ३३,४७,५४,६३,७१,८४,११३,१३७,१४३, माया (मात्रा) ज ४।३६,४३,७२,७८,६५,१०३, १६७,१८२,१८६,२०४,२२२ १४३,१७८,२००,२१३ मालागार (मालाकार) ज ५७ मायाकसाइ (मायाकषायिन्) ५ २८।१३३ मालि (मलिन् ) प ११७१ सांप विशेष मायाकसाय (मायाकषाय) १४।१ मालिया (मालिका) ज ७।१७८ मायाकसायपरिणाम (मायाकषायपरिणाम) १३५ मालुय (मालुक) प १३५१ मायानिस्सिया (मायानिश्रिता) १११३४ मालुया (मालुका) प ११४०।५,११५० मास (मास) प ४।१०१,१०३,६१५,१३ से १६, मायामोस (मायामृषा) प २२।२०,८० ३५,३६,४४; १८।२३, २३।६६,७०,१६५, मायामोसविरय (मायामृषाविरत) प २२१८५,६६ १८४ ज २१४,६४,६६,८३,८८,३।११६% मायावत्तिया (मायाप्रत्यया) प १७।११,२२,२३, ७।११४।२,११५,१२६,१२७,१३६।१,१५६ से २५; २२६०,६३,६८,७१,६३,६६,१०१ १६७ च ५।३ सू ११६६।१८।११०।६३ से मायासंजलण (मायासंज्वलन) प २३१७१ ७४,१२४; १२।३ से ६,१० से १२,१५; मायासण्णा (मायासंज्ञा) प ८।१,२ १३॥३,१४,१७,१५।१४ से २८, २०१३ मायासमुग्घात (मायासमुद्घात) प ३६।४६ उ ११३६,४०,४३,५३,७४,७८,३।४० मायासमुग्घाय (मायासमुद्घात) प ३६।४२,४८ मास (माष) प ११४५।१ ज २१३७, ३।११६ से ५१ उ ३।३६,४० मारणंतियसमुग्घाय (मारण:न्तिकसमुद्घात) मासखमण (मासक्षपण) उ २।१०।३।१४,८३; प १५॥४३; २११८४ से ६३,३६।१,४,७,२७, ४।२४; १२८,३६,४३ २६,३५ से ४१.४६,५३ से ५८,६६ मासचुण्ण (माषचूर्ण) प १११७६ मार (मार) ज ५१३२ मासद्ध (मासार्ध) उ २।१०।३।१४८३,४।२४; -मार (मारय) मारिस्सइ उ १८६ ५।२८,३६,४३ मारिबहुल (मारिबहुल) ज ११८ मासपण्णी (माषपर्णी) प ११४८।५ मारुय (मारुत) ज ५।५ मासपुरी (मासपुरी) प ११६३१५ मारेउकाम (मारयितुकाम) उ १७३ मासल (मांसल) प १७।१३४ माल (मालक) प ११३७।५ नीम माससिंगा (मास 'सिंगा') प १११७८ उडद की फली माल (माला) प २।५० ज ५।१८ मासवल्ली (माषवल्ली) प १४०।४ मालव (मालव) प ११८६ मासिय (मासिक) ज ३।२२५ मालवंत (माल्यवत्) ज ४।१०८,१४२॥३,१४३, मासिया (मासिकी) उ२१२,३१५०,१६१,१६९ १६२११,१६३ से १६७,१६६,१७२ से १७४, ५।२८,४३ २०३,२०७,२०६,२१०,२१५,२६२ माह (माघ) ज २।८८,७१०४ सू १०।१२४ मालवंतकूड (माल्यवत्कूट) ज ४।१६३ उ३४० Page #1096 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहण-मिसिमिसेंत १०१६ माहण (माहन) उ ३।२८,२६,४५,४७,४८,५०, ६६,७२ से ७४,६४,६५,९७ से ६६,१०१ ५५,५८,६०,७५,७६,७६ मिच्छादसणसल्ल (मिथ्यादर्शन शल्य) प २२।२०,२५ माहणकुल (माहनकुल) उ ३।१२५ मिच्छादसणसल्लविरय (मिथ्यादर्शनशल्यविरत) माहणरिसी (मानषि) उ ३।५१ से ५७,६२,८२ प २२१८६,८७,८६,६०,६७ से १६ माहणी (माहनी) उ ३।१२६ से १३१,१३४ से मिच्छादसणसल्लवेरमण (मिथ्यादर्शनशल्यविरमण) १४४,१४७,१४८ प२१८१,८२ माहिंद (माहेन्द्र ) प १४१३५२१४६,५३,५४,६३; मिच्छादंसणि (मिथ्यादर्शनिन्) प २२१६५ ३।३२,१८३;४।२४० से २४२,६।३०,५६,६५, मिच्छादिछि (मिथ्याष्टिः ) प २३।१६५ १५८८,२११७०२८१७८,३४।१६,१७ मिज्जमाण (मीयमान) सू १२।२ ज ५१४६७११२२।१ सू १०८४।१ उ २।२२ मित (मित) उ १४१,४४ माहिंदग (माहेन्द्रक) प २१५३,७।११।३३।१६ मित्त (मित्र) ज २।२६; ३।१८७,७।१२२११, माहिंदवडेंसय (माहेन्द्रावतंसक) प २।५३ १३०,१८६।४ सू १०१८४१ उ ३।३८,५०, माही (माघी) जे ७।१३७,१४६,१५३,१५४ ११०,१११,४।१६,१८ सू१०७,१४,२३,२५,२६ मित्तदेवया (मित्रदेवता) सू १०८३ माहेसरी (माहेश्वरी) प १;६८ मिय (मृग) प११६४१११४ ज २।३५ उ ५१५ मिउ (मृदु) ज २।१६;३।११७; ७।१७८ मिय (मित) ज २०१५ मिजा (मज्जा) प ११४८।४५,४६ मियंक (मृगाङ्क) सु २०६४ मिग (मृग) प २।४६ सू १०।१२० मियगंध (मृगगन्ध) ज २१५०,१६४,४।१०६,२०५ मिगसिरा (मृगशिरा) ज ७।१३६,१६०,१६१ मियलुद्ध (मृगलुब्ध) उ ३१५० सू१०।२ से ५,१२,२३,३८ मियवालुंकी (मृगवालुंकी) प ११४८।४; १७।१३० मिगसीसावलि (मृगशीर्षावलि) ज ७।१३३।१ पियवालुंकीफल (गवालुंकीफल) प १७।१३० मिच्छत्त (मिथ्यात्व) प २३।३ उ ३।४७ मिरिय (मरिच) प १७।१३१ मिच्छत्तवेदणिज्ज (मिथ्यात्ववेदनीय) प २३।१६८, मिरियचुण्ण (मरिचचूर्ण) प ११।७६ ; १७।१३१ १८२ मियसिर (मृगशीर्ष) ज ७।१२८ मिच्छत्तवेयणिज्ज (भिथ्यात्ववेदनीय) प २३।१७, मिरीइ (मरीचि) ज ३१११७ ३३,६६,१३८,१५७,१६१,१६६ मिरीचि (मरीचि) सू २।१ मिच्छत्ताभिगमि (मिथ्यात्वाभिगमिन) प३४११४ ।। मिरीया (मरीचि) सू २११ मिच्छद्दिछि (मिथ्यादृष्टि) प १७४,८४; मिलक्ख (म्लेच्छ) प ११८८,८६ ज ३७७,१०६ ३।१००,१८३ : ६।६७,१३,१४,१६,१७; मिलाइत्ता (भिलित्वा) ज ५१६४ १७।११,२३,२५; १८७७; १६१ रो ५; मिलाय (मिलय) मिलायइ उ १।१२५ मिलायंति २१।७२,२३।१६६,२००,२८।१२६ ज ३।१११ मिच्छादसणपरिणाम (मिथ्यादर्शनपरिणाम) मिलायित्ता (मिलित्वा) ज ३।१११ १३।११ मिलिय (मिलित) ११६।१५; २२१८४ मिच्छादसणवत्तिया (मिथ्यादर्शनप्रत्यया) मिसिमिसिंत (दे०) ज ३।१०६५।२१ प १७।११,२२,२३,२५; २२१६०,६५,६६, मिसिमिसेंत (दे०) ज ३१६,२४,२२२,५।२८ Page #1097 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२० मिसिमिसेमाण-मुद्दा मिसिमिसेमाण (दे०) ज ३।२६,३६,४७,१०७, १०६,१३३ उ ११२२,५७,८२,११५,१४० मिस्स (मिश्र) प १२४७२ मिस्सकेसी (मिश्रकेशी) ज ५।११।१ मिस्साकूर (मिश्राकूर) सू १०।२० मिहिला (मिथिला) पश६३।३ ज श२,३; ७।२१४ च ६ से ८ सू १।१ से ३ उ ३।१७१ मिहुण (मिथुन) ज २०१२; ४।३,२५ उ ५५ मीसग (मिश्रक) प३६।१ मीसजोणि (मिश्रयोनि) प ६।१६ मीसजोणिय (मिश्रयोनिक) प ६।१६ मीसय (मिश्रक) ज २।६५,६६ मीसाहार (मिश्राहार) प २८।१,२ मीसिय (मिश्रित) प ६।१३ से १७ मुइंग (मृदंग) प २।३०,३१,४१,४६,३३।२४ ज ११४५,३।१२,२८,४१,४६,५८,६६,७४, ७८,८२,१४७,१६८,१८०,१८५,१८७,२०६, २१२,२१३,२१८,५१,५,१६, ७।५५,५८, १८४ सू१८।२३।१६।२३,२६ मुइंगपुक्खर (मृदंगपुष्कर) ज २।१२७ मुंच (मुच्) भोच्छिहिंति ज २।१३१ मुंजपाउयार (मुञ्जपादुकाकार) प ११६७ मुंड (मुण्ड) प २०१७,१८ ज २१६५,६७,८५,८७ उ ३३१३,१०६ से १०८,११२,११८,१३६, १३८,१३६,४।१४,१६:५।३२ मुंडभाव (मुण्डभाव) उ ५४३ मुंडि (मुण्डिन् ) ज ३।१७८ मुक्क (मुक्त) प २।३०,३१,४१ ज २११०,१५; ३७,८८,४।१६६:५७ मुक्केलग (दे०) प १२१८ से १३,१६,२०,२१, २३,२४,२७,२८,३१ से ३३ मुक्केलय (दे०) प १२।७ से १०,१६,२०,२४,२७, २८,३६ मुगुंद (मुकुन्द) ज ३।३१ मुग्ग (मुद्ग) प ११४५।१ ज २।३७,३।११६ मुग्गचुण्ण (मुद्गचूर्ण) प १११७६ मुग्गपण्णी (मुद्गपर्णी) प ११४८।५ मुग्गसिंगा (मुद्ग'सिंगा') प ११७८ मूंग की फली मुग्गसूव (मुद्गसूप) सू १०।१२० मुच्च (मुच्) मुच्चइ प ३६१८८ मुच्चंति प६।११० ज ११२२,५०,२१५८,१२३,१२८; ४।१०१ उ ३।१४२ मुच्चति प ३६।११ मुच्चिहिइ उ १११४१,३।४६,५।४३ मुच्चिहिंति ज २।१५१ मुच्चेज्जा प २०१८ मुच्छिय (मूच्छित) ज ५।२६ उ ११४७,३।११४, ११५,११६ मुट्ठि (मुष्टि) ज २११४१ से १४५३।११५, ११६,१२२,१२४ मुट्ठिय (मौष्टिक,मुष्टिक) ज २६३२, ५,५ मुणाल (मृणाल) प ११४६,११४८।४२,२१६४ ज ३।१०६४।३,२५ मुणालिया (मृणालिका) प २।३१ मुणेयव (ज्ञातव्य) प ११३८।३;२।४०।६,११; १५।१४३ ज ४।१४२।३;७।१३४।४ सू १६।२२।११,२२ मुत्त (मुक्त) २१८८,८६,३७६,११६,११७,२२५; ५५,२१,४६ मुत्त (मूत्र) उ ३।१३० ,१३१,१३४ मुत्तजाल (मुक्तजाल) ज ३।१७७ मुत्तमाण (मूत्रयत्) उ ३।१३०,१३१,१३४ मुता (मुक्ता) ज ४।२७ मुत्ताजाल (मुक्ताजाल) ज ३।३०,४७,२२२ मुतादाम (मुक्तादामन्) ज ५।३८ मुत्तालय (मुक्तालय) प २०६४ मुत्तावलि (मुक्तावलि) ज ३।२११,४।२३,३८, ६५,७३,६०,६१ मुत्ति (मुक्ति) प २६४ ज २०७१ मुत्तियाजालय (मौक्तिकजालक) ज ३।१०६ मुत्तिसुह (मुक्तिसुख) प २१६४।१५ मुत्तोली (दे०) ज ३।१०६ मुद्दा (मुद्रा) प २॥३१ Page #1098 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुद्दिया-मेंढमुह १०२१ मुद्दिया (मृद्वीका) प १४०।४ ६५,९६,१८ से १००,१२२,१२६,१२७, मुद्दिया (मुद्रिका) ज ३।६,२११,२२२ १३४।१,२,३,१३५।१ से ४ च ३३१,४।१५।२ मुद्दियासारय (मृद वोकासारक) प १७।१३४ सू १।७।१,११८।१,१।६।२,१।१०,१३,१४,१६ मुद्ध (मुर्धन्) ज ५।२१,५८,६४,७२,७३,७।१७८ से १८,२१,२२,२४,२७,२१३,३।२,४१८,६; मुद्धत (मून्ति ) सू २०१२ ६।१८।१६।२१०।२ से ५,८४,१३३,१३४, मुद्धय (दे०) प ११५८ १५२ से १६५; १११२ से ६,१२।२ से ६, मुद्धागय (मूर्द्धगत) ज ३१६२,११६ १२,१३,१६ से २८,१३।१,३,१४।३,७; १५३२ मुम्मुर (मुमर) प ११२६ से ४,८,९,११,१२,३७,१७।१ उ ११२४,४७, मुम्मरभूय (मुर्मुरभूत) ज २।१३२,१४१ ६०,६२ मुय (मुच् ) मु ति कु २००२ मुहुत्तगइ (मुहूतंगति) च ४१३ मुयंत (मुञ्चत् ) ज २।१२ मुहुत्तग्ग (मूहूर्ताग्र) चं ५।१ सू ११६।११०।२; मुरव (मुरज) ज ३।१२,७८,१८०,२०६ १२।२ से। मुरुंड (मुरुण्ड) प ११८६ मूल (मूल) प १।३५,३६,११४८।१०,२०,३०,३४, मुरुंडी (मुरुण्डी) ज ३।११।२ ५१ ज ११८,३५,५१,२०६३।२२२०,४७,१५, मुसल (मुसल) प २।३०,३१,४१ ज २१६,१४१, ४३,४५,७२,७८,६०,६५,११०,११४,१२०, १४५, ३।३,२०,३३,५४,६३,७१८४,११५, १४२।१,१४६,१५६।१,१७४,२१३,२४२; ११६,१२२,१२४,१३७,१४३,१६७,१८२; ५।६७,७१३६,३८,१२४।१,१२८,१२६, ७।१७८ १३२।४,१३६,१४०,१४६,१५२,१६६,१६७, मुसावाय (मृषावाद) प २२।१२,१३,८० १७५ सू १०।२ से ६,१८,२३,५२,६२,७३ से मसावायविरय (मषावादविरत) प २२।८५ ७५,८३,११७,१२०,१३१ से १३३; १२॥२७; मुसुंढी (दे०) प ११४८।१२।३०,३१,४१ १८७ उ ३१५०,५१,५३ मुह (मुख) ज २१७१,१३३;३।१०५,१०६, मूलग (मूलक) प ११४४।२,११४५।२ ज ३।११६ १६७।११,४१२३,३६,३८,३६,४३,६५,६६, मूलग्ग (मूलाग्र) प ११४८१६३ ७२,७३,७८,६०,६१,६५,१८३,२६२७।१७८ मूलपासायवडेंसय (मूलप्रासादावतंसक) ज ४।१२० उ ३३५५,५६,६३,६४,६७,६८,७०,७१,७३, मूलय (मूलक) प ११४८।२ ७४,७६; ४।२१ मूलाग (मूलक) उ ११६२ मुहफुल्लय (मुखफुल्लक) ज ७४१३३।२ मूलापण्ण (मूलकपर्ण) सु १०।१२० मुहफुल्लसंठिय (मुख'फुल्ल'संस्थित) सू १०।४७ मूलाबीय (मूलकवीज) ज २॥३७ मुहभंडग (मुखभाण्डक) ज ३।१७८ मूलाहार (मूलाहार) उ ३१५० मुहमंगलिय (मुखमाङ्गलिक) ज २१६४;३।१८५ मूसग (मूषक) प १११७८ मुहमंडव (मुखमण्डप) ज ४।१२२ मूसा (मूषक) प ११७६ मुहुत्त (मुहूर्त) १६१ से ४,६ से १०,१७,१८,२२ मेइणी (मेदिनी) ज २।१५ से ३०,४५३,६ से 8;२३।६३,१२७,१३१, मेइणीय (मेदिनीक) ज ३१८,३१,१८० १८८ ज २।४२,३,२१६६,१३४;३।३२।२ मेंढक (मेंढक) सू १०।१२० मेढा सिंगी लता २०६;७।२० से ३०,३६ से ३८,७६ से ८२, मेंढमुह (मेंढमुख) प ११८६ Page #1099 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२२ मेघ (मेघ) ज ३ । २२४ मेघमालिनी (मेघमालिनी) ज ४।२३८ मेघस्सर ( मेघस्वर) ज ५।५२ मेच्छ ( म्लेच्छ ) प २६४।१७ मेच्छजाइ ( म्लेच्छजाति) ज ३१८१ मेढी (मेढी) उ३।११ मेढीभूय ( मेढीभूत) उ ३।११ मेत ( मात्र ) प ११४८१६०, ११७४,८४ १२।१२, २४,३८,१५।१०,२३, २१८४,८६,८७,६० से ४६३,३३।१३,३६।५६,६६,७०,७४ ज २।१३४ उ ३८३,१२०, १२१, १२७, १२८, १६१; ४।२४; ५।२३ मेद ( मेदस् ) प २।२० से २७ मेधावि ( मेधाविन्) ज ५।५ मेय (मेद) प १८ मेरग (मैरेय ) उ ११३४,४६,७४ मेरय (मैरेय ) प १७।१३४ मेरा ( मर्यादा) ज ३।२६,३६,४७,७६, १३२, १३३, १३८,१५१,१८८ सू २०१६/४ मेराग ( मर्यादाक) ज ३११२८, १५१,१७०, १८५, २०६,२२१५।१० मेरु (मेरु) ज ४२६०।१; ७ ३२३१, ७ ५५ सू ५१; ७।११।२२।१०, ११,१६२३ मेरुतालवण (मेरुतालवन) ज २६ मेलिमंद (दे० ) प १७० मेसर (दे० ) प १७६ मेह (मेघ) ज २।१३१३७, ६३, १०६, १२५, १४७, १६३५।२२ से २४ उ २।११ मेहंकरा ( मेघंकरा ) ज ४।२३७५।६।१ मेहकुमार ( मेघकुमार ) उ२।१११,११२ मेहमालिणी (मेघमालिनी) ज ५।६।१ मेहमुह (मेघमुख ) प १८६ ज ३।१११ से ११५ १२४ से १२६ मेहवई ( मेघवती ) ज ४।२३८,५५६ । १ मेहवण्ण ( मेघवर्ण) उ५।२४,२६ मेघ-या मेहा (मेघा ) ज ३ | ३ मेहाणीय (मेघानीक) ज ३।११५, १२४, १२५ महावि ( मेधाविन्) ज ३।१०६ २२।१६,१७,८० मेहुण (मैथुन) मेहुणवत्तिय (मैथुन प्रत्य) ज ७ । १८५ १८।२३, २४; २०१६ मेहुणा (मैथुनसंज्ञा ) प ८ । १ से ५,७ से ६, ११ मोंढ (दे०) ११158 मोक्ख (मोक्ष) ज २७१ मोगली (मोगली) एक जंगली पेड प १/४०१५ मोग्गर ( मुद्गर ) प ११३८ । २; २।४१ ज २।१० मोग्गलयण ( मौद्गलायन) ज ७ । १३२ । १ सू १०/१२ मोत्ति (मौक्तिक ) ज ३ | १६७८ मोत्तिय ( मौक्तिक ) प १४ ज २०२४,६४,६६; ३।३५ मोद्दाल (दे० ) ज २८ मोयई (मोची) प १।३५।१ हिलमोचिका साग मोयग ( मोचक ) ज ५।२१ मोरगीवा ( मयूरग्रीवा ) प १७।१३४ मोसभाग (मृषाभाषक ) प ११ ६० मोसमण (मृषामनस् ) प १६ १,७ मसणजोग (मृष मनोयोग ) प ३६।८९ मोसवइजोग (मृषावाक्योग ) प ३६।९० मोसा (मृषा ) प ११२ से १० २६ से २६,३२, ३४,४२,४३,४५,४६, ८२, ८४,८५,८७ से ८६ मोह ( मोह ) प २३|१६१ ज २।२३३ मोह (मोहय् ) मोहंति ज १|१३ मोहणिज्ज ( मोहनीय ) प २२।२८ २३१,१२, १७,३२,१९२२४।१३, २६ । १२२७/६ मोहरिय ( मौखरिक) ज ३।१७८ य (च) प १।१० ज ११७ सू १।७ उ १।७; ३।२।१४।२।१; ५।२।१ या (च) उ३।२।१ Page #1100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याण-रत्था १०२३ याण (ज्ञा) याणंति प १५।४६,४८,४६%; रट्ठ (राष्ट्र) उ ११६६,६४,६६ ३४।११,१२ याणति प २३।१३ याणामो रट्ठकूड (राष्ट्र कूट) उ ३।१२८ से १३१,१३३, उ ११३६ १३६,१३८ से १४०,१४७,१४६ याव (यावत् ) प ११२०,२३,२६,२६,३६,३७,३६ रणभूमि (रणभूमि)उ १११३५ से ४७,११४८७.१० से ३७,४१,४३,२४८ से रतण (रत्न) प२०४८ ५१,५६,६०,६३ से ६६,७०,७१,७५,७६,७८, रतणप्पभा (रत्नप्रभा) प२।४८,४६३१८३; ६।६११०१२,३ रतणवडेंसय (रत्नावतंसक) प २।५१ रइ (रति) प २।४१ ज ५।२६ रतणामय (रत्नमय) १ २०४६ रति (रति) ५ २३१३६,७६,१४४ रइकरग (रतिकरक) ज ५१४८,४६ रतिणाम (रतिनामन्) प २३।६४ रइकरगपव्वय (रतिकरकपर्वत) उ ५१४४ रतिपसत्त (रतिप्रसक्त) सू २०१७ रइत (रचित) प ३६।६२ रत्त (रक्त) प २।३१,२१४०।१० ज ३१७,२४,२५, रइत (रंतिद) ज ३।३५ रइय (रचित) २।३०,३१,४१ ज ११३७,२।१५, १८४,१८८; ७।१७८ सू १३३१,२०१३,७ उ ११७२,७३,८७,८८,६२ ३।६,६,१८,२४,३५,६३,१०६,११७,१७८, रत्त (रात्र) ज २।६।१,२।१४१ से १४५;३।११५, १८०,२२१,२२२,५१४३;०१५५ ११६,१२१,१२२,१२४ रइय (रतिक) प २०४८ रत्तंसुय (रक्तांशुक) ज ४।१३ सू २०१७ रइय (रतिद) ज २०१५ रत्तकंबलसिला (रक्तकम्बलशिला) ज ४।२४४, रइयामय (रजत मय) ज ४।१३ रउस्सल (रजस्वल) ज २११३१ २५२ रएत्ता (रचयित्वा) उ १११३७, ३५१ रत्तकणवीरय (रक्तकरवीरक) प १७.१२६ रंग (रङ्ग) ज ३।१६७।६ रत्तचंदण (रक्तचन्दन) प २।३०,३१,४१ रक्खस (राक्षस) प १२१३२,२।४१,४५ ज ७१२२ रत्तबधुजावय (रक्तबन्धुजीवक) प १७११२६ सू १०८४१३ रत्तरयण (रक्तरत्न) ज २।२४,६४,६९,३।१६७ रक्खा (रक्षा) ज ५११६ रत्तवई (रक्तवती) ज ४१२७४; ६।१६ रज्ज (राज्य) ज २१६४,३१२,१७५,१८८ उ ११६६, रत्तवईकूड (रक्तवतीकुट) ज ४।२७५ ६४,६६,१०३,१०६,११०,११३,११४,१२१, रत्तसिला (रक्तशिला) ज ४।२४४,२५१ १२२,१२६,५९,११ रत्ता (रक्ता) ज ४।२७४; ६।१६ रिज्ज (रञ्ज) रज्जति सू १३।१ रत्ताकूड (रक्ताकूट) ज ४।२७५ रज्जधुरा (राज्यधूर) उ १३१ रत्ताभ (रक्ताभ) प २१४६ रज्जवास (राज वास) ज २१८७ रत्तासोग (रक्ताशोक) ११७१२६ रज्जसिरि (राज्यश्री) उ १६५,६६,७१,९४,९८, रत्ति (रात्रि) ज ३।६५,१५६ ९६,१११,११२ रत्तुप्पल (रक्तोत्पल) प १७।१२६ ज २।१५; रज्जु (रज्जु) ज ३।१०६७।१७८ ७.१७८ रज्जुच्छाया (रज्जुच्छाया) मू ६।४ रत्था (रथ्या) ज ३७ Page #1101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२४ ( रम (रम्) रमंति ज १।१३,३०,३३३३४७६४१२ रमंत ( रममाण ) ज ३११७८ रमण ( रमण ) ज ३|१३८ रमणिज्ज ( रमणी ) प २०३१,४० से ५१.६२६ १७।१०७,१०२ ११११।१३.२१,२५,२६, २८,२१,३२,३३,३९,३७,२२४०, ४२, ४९; २०७, १०, १५, ३०,५२,५६,५७,१२२, १२७, १४७, १५०, १५६, १५६, १६१, १६४,३६,८१, १२२,१३,१६६, १६७,२२२४१२,२,५,६,११, १२.१६,३२,४६,४६, ४७, ४९, ५०, ५६,५८,५६, ६३,६६,७०,६२,८७,८८, १००,१०४,१०६, १११, ११२,११७, ११८, १३१.१६६.१७०, १७६,२०२११,२३४,२४० से २४२,२४७, २४८, २५०, २६७५३२,३५७१७५ भू २१:२३ १८१ रम्म ( रम्य ) २ १०,१२ ३०१ ४२०२१ उ ३।४९, ५०६ रम्मग ( रम्यक) ज ४।१०२,२०२ रम्मगकूड ( रम्यककूट) ज ४।२६३।१,२६६११ रम्मगवास (रम्पकवर्ष ) प १२०७:१६।२० [ज] ४१०२,१६२,२६६ से २६८६४६२१ रम्य ( रम्यक ) प १७।१६४ ज ४।२०२१,२६५ से २६७ रम्यास ( रम्यकव) ज २२६ र (रजस्) ३।२२३८५४७ ( रय (रचय्) रएइ उ १।१३७,३१५१ रएंति ज २०६६ र ज २६५ य उ २।११४ रयण (रत्न ) प १।१।२; १३,४८,२१३०,३१,४१, ४८ ११।२५ १५।२५।२:२००१।१ ज २०६४, ६६; ३६, १२, १८, २४, ३०, ३१, ३२।१,३५, ५६,६४,७६,७७,८१,११७१२५ से १२८, १३८, १४५, १५१.१५२,१६७११.५,१२,१४: २०१६८, १७५, १७८, १८०,१६४११२,२११, २२१,२२२, ४१४६, १३७ ५१५, ७,१३,१६, ३८,५८७१७८ १८८ २०७१।१११ ११२.१२३,१३१ रयणकरंड ( रत्नकरण्ड ) ज ३।११ रयणकरंजा ( रत्नकरण्डक) ज ५।५५ उ ३।१२८ रयण कुच्छधारिय ( रत्नकुक्षिधारिका) ज ५५,४६ रणचित्त (नचित्र ) ज ३१५६,१४५ रथयभा (रत्नप्रभा) ११५३ २३१२०,२१. ३० से ४६, ४१ से ४३,४६,५०,५१,६३ ३।११.२१४०४ से ६:६।१०,४५,५१,७२, ८१,१०६१०११ से ३,२०,२०१६।२६ २०१६,३३६, ४९, ५०, ५१, २१।५२,५६, ६६३०/२५ से २०३३०३,१६ २०१ २०३:१६१ रम-रयणी रयणव्यभः पुढविणेर ( ग्लापृथिवीकि) १ २०१५०.५१ रमण (स) २०५६ रयण (वासा) ( रत्नवर्षां) ज ५।५७ रयणमय ( रत्नमय ) प २३०,३१,४१ से ४३, ४६.५० से ५२.५८ से ६०,६३ ज १९,१०, ३१,३५,४०, ४६११:२०११४, ११५: ३०९९, १००,१०१४१२८, ३०, ४१,४५, ५७,६२,७४, ७६, १०३,११४,१३१,१७८,२१२,२१७, २७६ ५।३७ रयणसंचया ( रत्नसंचया) ज ४।२०२२ रास (रत्नावली) ज ३।२११ रर्याणि (रत्न) १।७५, २६४ ७, ८, २१।६६,६७, ७०,७१,७४ ज २।१३३ रयण ( रजनि) १।१४:६।१ रपिकर ( रजनिकर) ३।१०९ १९२२१२, १३ निवेत्त (क्षेत्र) ज ७२७,३० रधिर (जनिकर) ३०११७ (क) १।७५ रमणिय (रनिक) ४११० रणियर ( रजनिकर) ज २११५;३।११७ रयणी ( रत्नि) ज २१६,१२८,१३३,१४८ Page #1102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणी-रहवर १०२५ रयणी (रजनी) ज २११२८,१३३,३।१८८७।१२० ७।११२१४,२०६सू १०.१२६४२०१७ सू १०।८८।३ उ ३।४८,५०,५५,६३,६७,७०, उ ५१२५ ७३,१०६,११८ रसओ (रसतम) प ११५ से १२८।२६,३२,६६ रयणुच्चय (रलोच्चय) सू ५।१ रसचरिम (रसचरम) प १०५०,५१ रयणोच्चय (रत्नोच्चय) ज ४।२६०।१ रसणाम (रसनामन्) प २३३३८,४६ रयत्ताण (रजस्त्राण) ज ४११३ सू २०१७ रसतो (सतस् ) प ११६,८,९,११।५८;२८।८,२०, रयमत्त (रतमत्त) ज २११२ रयय (रजत) ज ३।१०३,४।२५,१२५,१४६; रसदेवी (रसदेवी) उ४।२।१ १६२।१,२३८,२५.५,५।५,६२ ; ७।१७८ रसपज्जव (रसपर्यव) ज २१५१,५४,१२१,१२६, रययकूड (रजतकूट) ज ४।१६४,२३६ १३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३ रययखंड (रजतखण्ड) ५११७४ रसपरिणाम (रसपरिणाम) प १३१२१,२८ रययवालुया (रजतवालुका) ज ४।३ रसभेय (सभेद) प ११४८१५ रययामय (रजतमय) ज ११२३, १२,८८,४।३, रसमंत (२ सवत्) प १११५२,५७,२८१५,५१ १३,२५,६४,८८,२०३:५१५.८;७।१७८ रसमेह (रसमेघ) ज २१४५ रसविण्णाणावरण (सज्ञिान व ण) प २३।१३ रव (रव), २।३०,३१,४१,४६ ज ११४५; २१६५ रसादेस (रसादेश) प १२०,२३,२६,२६,४८ ३।२२,३६,७८,८३,६३,६६,१६३,१८०,१८३, रसावरण (२सावरण) प २३।१३ १८५,१८७,२०४,२०६,२१३,२१६:५।१,५, रसिदियत (रसेन्द्रियत्व) प ३४।२० ६,२२,२६,४४,४६,४७,५६,६७, ७५५,५८, रसिय (सित) ज ३।३५,५।२२ से २४,२६ १७८,१८४ सू १८।२३;१६।२३,२६ रसोदय ( रसोदक) प ११२३ उ १।१२१,१२२,१२५,१२६,१३३,१३४,१३८; रस्सि (रश्मि) ज ३।३,१८८ ३११११,४।१८,५।१६ रह (२थ) ज १।२६,२।१२,३३,६५,१३४;३।३, रवभूय (रवभूत) ज ३।१०६ १५,१७,२१ से २३,२८,३१,३६,३७,४१,४५, रवि (रवि) ज २।१५;३।३,३०,७।१२७।१,१६७ ४६,७७,७८,६१,६८,१०६,१३१,१३५,१७३, सू१०७७;१६।८।२२२।३ १७५,१७७ से १७६,१६६,२२१,५१५७ रविकिरण (रविकिरण) ज २०१५ उ १।१४,१५,२१,२२,१२१,१२६,१३३,१३६ रस (रस) प ११४ से ६३।१८२,५१५,७,१०,१२, से १३८,४।१५,५।१८ १४,१६,१८,२०,२४,२८,३०,३२,३४,३७,३६, रहचक्कवाल (रथचक्रवाल) प ३६।८१ ज १७ ४१,४५,५३,५६,५६,६१,६३,६८,७१,७४, ७६,७८,८३,८६,८६,६१,६३,६७,१०१,१०४, रहच्छाया (रथच्छाया) प १६।४७ १०७,१०६,१११,११५,११६,१२६,१३८, रहनेउरचकवाल (रथनूपुरचक्रवाल) ज ११२६ १५०,१५२,१५४,१६०,२०५,२०७,२११, रहपह (रथपथ) ज २११३४ २१४,२२८,२४२,२४४,१०।५३।१,१११५७, रहमुसल (रथमुसल) उ १११४,१५,२१,२२,२५, ५८,१५॥३८; १७।११४।१।२३।१५,१६,१६, __२६,१३६,१३७,१४० २०,१०८:२८।२०,३२.६६,३६८०,८१ रहरेणु (रथरेणु) ज २१६ ज २।१८,४५,१४२,३।८२,१८७,२१८%; रहवर (रथवर) ज २।१५३।२२,३६,४४ रह Page #1103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२६ रहसिर-रायहंस रहसिर (रथशिरस) ज ३।१३१,१३५ रहस्स (रहस्य) उ ३।११ रहस्सियग (राहसिक) उ ११४६ रहस्सियय (राहसिक) उ ११४४ रहस्सीकर (रहस्यीक) रहस्सीकरेसि उ ११३६ रहिय (रहित) प ३२।६।१;३५।१।२ ज २।१५, १३३ सू २०६६ रहोकम्म (रहःकर्मन्) ज २७१ राइ (रात्रि) ज २०१५;३।११७,७।२६ से ३०, १२०,१२१ च ५।२ सू १९३२१,३, १६।११।१ राइ (राजन) उ ५।१० राइंदिय (रात्रिदिव) प ६३०१८।३३,५१; २३।१६२ ज २०४६,५२,५६,१५६,१६१, ७।२७,३०,१५८,१६१से १६७ सू ११११, १४,२२ से २४,२७,२॥३,६।१८।१; १०।१६६ से १६६; १२।२ से ६,१३,१५; १५॥३२,३४,३७ उ ११५३,७८ राइंदियग्ग (रात्रिदिवान) सू ११११,१२२ से ६, से २६,३१ से ३४,३६ से ४२,४४ से ५०,५२ से ५६,६१ से ६७,६६ से ७४,७६,८३,८८, ६० से ६४,६६,६६ से १०१,१०६ से १०६, १११ से १२०,१२१११,१२२ से १२५; १२६।१,१२७,१२८,१३१ से १३४,१३५११, १३७ से १३६,१४१,१४३,१४५ से १४७, १५० से १५४,१५७ से १६०,१६३ से १६७, १७०,१७३,१७५,१७७,१८१ से १८३,१८५ से १६२,१६८,१६६,२०१,२०२,२०४ से २१२,२१४,२१५,२१८,२१६,२२१ से २२३; ४।१७७,१८१,२००,५५,७ चं ८ सू ११३,४ उ ११० से १२,१४,१५,२१,२२,२५,२६,२६ से ३२,३४,३६ से ४४,४६,४६,५७,५८,६१, ६२,६५,६६,६८ से ७४,८२,८३,८६ से १६, १८ से ११६,१२१,१२७,१२६ से १४५; २।४,५,१६,१७,३१४,१५ से १८,२१,२४,८६, १५५,१६८,४।४,६,५६,११ से १३,२५,३० रायकुल (राजकुल) उ १११११,११२,५।४३ रायगिह (राजगह) प ११६३१ उ १११,२,२८,२६, ६३,३।४,२१,२४,८६,१५५,१६८४१४,६,७, १३,१५,१८ रायग्गल (राजार्गल) सु २०१८;२०।८।। रायत (राजत) ज ३।११७ रायतेय (राजतेजस्) ज ३११८,६३,१८०,१८७ रायधम्म (राजधर्म) ज २११२६,१५८ रायपवर (राजप्रवर) ज ३।६५,६६,१५६ रायप्पसेणइज्ज (राजप्रश्नीय) ज ४।११५:५।३२ रायबहुल (राजबहुल) ज १।१८ रायमग्ग (राजमार्ग) ज १६५ रायलच्छी (राजलक्ष्मी) ज ३।११७ रायवण्णय (राजवर्णक) ज ११२६,३।३ रायवर (राजवर) ज ३।२२,३६,६३,६६,१०६, १६३,१७५,१७८.१८०,१८८,२१६,२२४ रायवल्ली (राजवल्ली) १११४८१४ रायसरिस (राजसदृश) उ १।१२८ रायहंस (राजहंस) प ११७६ १५ राइण्ण (राजन्य) प १६५ ज २०६५ राईसर (राजेश्वर) ज ३।६,७७,८६,१७८,१८६, १८८,२०६,२१०,२१६,२१६,२२१,२२२ उ ३।११,१०१,५।१०,१७,३६ राग (राग) प २१४१,१७।११६२३।६ ज २।२६,३७,३५,१६४,१८८ सू १३।२।। राति (रात्रि) सू १।१३,१४,१६,२१,२२,२४,२७, २॥३; ३।२४।८,६;६।१८।१६।२,१०।५, ८८।३ रातिदिय (रात्रिदिव) प ४।७२,७४,७६,७८,६८, १००६।११,२६,३१ से ३४,१८१२२ रातीतिहि (रात्रितिथि) सू १०८६,६१ राम (राम) प १६३६ रामकण्ह (रामकृष्ण) उ ११७ राय (राजन) प १६।४१ ज ११३,२६; २०१६,२५, ६३:३।२ से ७,६ से १३,१५,१७ से २४,२६ Page #1104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायहाणी-रुहिर १०२७ ७।१७८ रायहाणी (राजधानी) प ११७४ ज १११६,४५, ४६,५१, २।२२,६५, ३।१,२,७,८,१४,१७२. १७३,१८०,१८२ से १८५,१६१,१६२,२०४, २०८,२०६,२१२,२२०,२२१,२२४;४।५२, ५३,६०,८४,६६,१०६,११४ से ११७,१५६, १६०,१६३ से १६५,१७४,१७५,१७७१८०, १८१,१६२,२००,२०२,२०४,२०६,२०७, २०८,२१०,२१२,२२६ से २३३,२३७ से २३६,२६३,२६६,२६६.२७२,२७५,५१५०; ६।१६७।१८४,१८५ उ ३।१०१ रायाभिसेय (राज्याभिषेक) ज २८५,३।१८८, २०६,२१२,२१४ उ १।६५,६८,७२ रायारिह (राजाह) ज ३८१ रालग (रालक) प ११४५।२ ज २१३७,३।११६ दक्षिण भारत के जंगलों में मिलने वाला एक सदाबहार पेड़ राव (रावय) राति ज ५१५७ रावेत (रावयत्) ज ३।१७८ रासि (राशि) प २१६४।१६ ; १२।३२;१७४१२६ राहु (राहु) प २।४८ सू २०१२,८,२०।८।४ राहुकम्म (राहुकर्म) सू २०१२ राहुदेव (राहुदेव) सू २०१२ राहुविमाण (राहुविमान) सू १६।२२।१७, २०१२ रिउध्वेय (ऋजुर्वेद) उ ३।२८ रिक्ख (ऋक्ष) ज ३।६,१७,२१,३४,१७७,२२२ सू १५।३७,१६।२२।२६ रिगिसिगि (दे०) ज ३।३१ वाद्य विशेष रिट्ठ (रिष्ट) ज ३।६२,५।५,७,२१ रिट्ठपुरा (रिष्टपुरा) ज ४।२००।१ रिट्ठा (रिष्टा) ज ४।२००।१ रिट्ठामय (रिष्टमय) ज ४।७,२६ रिद्ध (ऋद्ध) ज ११२,२६,३११ ६ सु १११ उ १११,६,२८,३।१५७;५।२४ रिसह (वृषभ) ज ७/१२२।३ सु १०।८४१३ रुइल (रुचिर) प २।४८ ज २।१५,३।३५,४।४६% रुक्ख (रूक्ष) प १।३३।१,१॥३४,३६,४७।१; १७।१११ ज १२०,३१,१३१,१४४ से १४६; ३।३२,१०६,१२६ उ ५१५ रुक्खगेहालय (रूक्षगेहालय) ज २।१६,२१ रुक्खमूल (रूक्षमूल) प ११४८।६१ ज २१८,६ रुक्खबहुल (रूक्षबहुल) ज १११८ रुक्खमूलिय (रूक्षमूलिक) उ ३५० रुट्ठ (रुष्ट) ज ३।२६,३६,४७,१०७,१०६,१३३ उ ११२२,१४० रुद्द (रुद्र) ज ७।१३०,१८६।३ रुद्ददेवया (रुद्रदेवता) सू १०.८३ रुप्प (रूप्य) प २२०।१ ज ३११६७।८ उ ३।४० रुप्पकला (रूप्यकला) ज ४।२६८,२६६।१,२७२; ६।२० रुप्पपट्ट (रूप्यपट्ट) ज ४।२६,२७० रुप्पमणिमय (रूप्यमणिमय) ज ५१५५ रुप्पमय (रूप्यमय) ज ४।२६,५३५५ रुप्पामय (रूप्यमय) ज ३।२०६४।२७० रुप्पि (रुक्मिन्) ५१६।३० ज ४।२६५,२६८, २६६।१,२७०,२७१ सू २०१८,२०।८।३ रुप्पिणी (रुक्मिणी) उ ५।१० रुप्पोभास (रूप्यावभास) सू २०१८ रुयग (रुचक) प २।३१ ज ११२३,२।१५:३।३२; ४।१,६२,८६,२३८५८ से १७ सू १६।३५ रुयगकूड (रुचककूट) ज ४।६६,२३६ रुयगवर (रुचकवर) सू १६।३५ रुयगवरोद (रुचकवरोद) सू १९३५ रुयगवरोभास (रुचकवरावभास) सू १६।३५ रुयय (रुचक) प ११२०।३ सू १६।३२ से ३४ रुरु (रुरु) प १४८।२ ज ११३७,२।३५,१०१; ४।२७।५।२८ रुहिर (रुधिर) प २१२० से २७ ज ३।३१ उ ११४४ से ४६ Page #1105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२८ रुहिरक हम-रोहियंसा रुहिरकद्दम (रुधिरकर्दम) उ १११३६ रुहिरबिंदु (रुधिरबिन्दु) ज ७।१३३।२ रुहिबिंदुसंठिय (रुधिरबिन्दुसंस्थित) सू १०।३६ रूत (रूत) ज ४।१३ सू २०१७ रूयंता (रूपांशा) ज ५।१३ रूयगावई (रूपकावती) ज ५।१३ रूया (रूपा) ज ५।१३ रूव (रूप) प ११।२५,३३।१,१२।३२,१५॥३७, ४१,२२।१७,८०; २३।१५,१६,१६,२०, ३४।१,२,३४।२० से २२ ज २।१५,१३३, ३।३,६,७६,८२,१०३,१०६,११६,११७,११६, १३८.१७८,१८६,१८७,२०४,२१८,२२२, ४।२७,४६,५।२८,४१,४३,५७,६८,७० सू २०१७ उ ३।१२७,५।२५ रूवग (रूपक) ज ४।२७,५।२८,७।१७८ रूवपरियारग (रूपपरिचारक) प ३४।१८,२२,२५ रूवपरियारणा (रूपपरिचारणा) प ३४।१७,२२ रूवविसिठ्ठया (रूपविशिष्टता) प २३।२१ रूवविहीणया (रूपविहीनता) प २३।२२ रूबसच्च (रूपसत्य) ॥११॥३३ रूवि (रूपिन ) प ११२,४,६५।१२३.१२५,१४४ सू १३।१७ रूवी (रूपिका) प १३७।१ सफेद आक का वृक्ष रूसमाण (रुष्यत् ) उ ३।१३० रेणु (रेणु) ज २।६,६५,१३१,५१७ रेणुबहुल (रेणुबहुल) ज २।१३२ रेणया (रेणका) प १४८१५ रेणका, संभाल के बीज रेरिज्जमाण (र राज्यमान) उ ३।४६ रेवई (रेवती) ज ७।११३।१,१२८,१२६,१३६, १४०,१४३,१४६,१५८ सू१०।१ उ ५।१२, १३,३० ३१ रेवतय (रैवतक) उ ५५ रेवती (रेवती) सू १०२ से ६,१०,२२,२३,३३, ६१,६५,७५,८३,६८,१२०,१३१ से १३३; १२।२२ रेवयग (रैवतक) उ ५१६ रोइंदग (रोविन्दक) ज ५१५७ रोग (रोग) ज २१४३,१३१ उ ३।३५,११२ रोगबहुल (रोगबहुल) ज १११८ रोज्झ (दे०) प १६४ रोद्द (रौद्र) ज ७१२२।१,१२६ सु १०।०४।१ रोम (रोमन्) प ११८६ ज २।१५,१३३ रोमक (रोमन) ज ३८१ रोमकूव (रोमकूप) ज ५।२१ रोमग (रोमक) प ११८६ रोमराइ (रोमराजि) ज २।१५ रोय (रुच्) रोएइन १११०१।२ रोएज्जा २०।१७,१८,३४ रोयए १११०११५ रोय (रोचय) रोएमि उ ३।१०३ रोय (रोग) उ ३।१२८ रोयणागिरि (रोचनगिरि) ज ४२२५।१,२३३ रोयमाण (रुदत्) उ १९२३११३० रोख्य (रोरुक,रौरव) १२२७ रोवाव (रोख्य) रोवावेइ उ ३।४८ रोवावित्तए (रोपतुिम) उ ३१४८ रोवाविय (रोहित) उ ३१५०,५५ V रोह (रुह ) रोहति ज ३१७६,११६ रोहिणिय (रोहिणीक) ए ११५० रोहिणी (रोहिणी) ज ७.११३।१,१२८,१२६, १३४।३,१३५।३,१३६,१४०,१४५,१४६,१६० सू १०।२ से ६,१२,२३,३७,६२,६७,७५,८३, १०२,१२०,१३१ से १३३ रोहियंस (रोहितांश) प ११४२।१ एक प्रकार का तृण रोहियंसकूड (रोहितांशकूट) ज ४।४४ रोहियंसदीद (रोहितांशी) ज ४।४१ रोहियंसप्पवायकुंड (रोहितांशाप्रपातकुण्ड) ज४।४० से ४२ रोहियंता (रोहितांशा) ज ४।३८ से ४०,४२,४३, ५७,१८२,२७०६।२० Page #1106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२० रोहियकूड-लयाबहुल १०२६ रोहियकूड (रोहितकूट) ज ४७६ लक्खणसंवच्छर (लक्षणसंवत्सर) ज ७।१०३,११२ रोहियदीव (रोहितद्वीप) ज ४१६८,६६ सू १०।१२५,१२६ रोहियप्पवायकुंड (रोहितप्रपातकंड) ज ४।६७,६८, लक्खणसहस्सधारक (लक्षणसहस्रधारक) ज ३११२६।१ रोहियमच्छ (रोहितमत्स्य) ए ११५६ लक्खारस (लाक्षारस) प १७।१२६ रोहिया (रोहिता) ज ४१६५ से ६७,७१,७२,२६८; लख (लक्ष) ज ३।३१ लच्छिकूड (लक्ष्मीकूट) ज ४।२७५ रोहीडय (रोहितक) उ ५।२४ से २६ लच्छिमई (लक्ष्मीमती) ज ५।६।१ लच्छी (लक्ष्मी ) ज ३।१८,६३,१८० उ ४।२।१ लज्जिय (लज्जित) ज २१६० उ११५८,८३ लउड (लकुट) ज ३।११ लट्ठ (लष्ट) ज ११३७,२।१५३।६,३५,११७, लउय (लकुच) प ११३६।३ २२२;४।१२८,५।४३,७४१७८ लउल (लकुट) ज ३।१७८ लउस (लकुश) प ११८६ लठ्ठदंत (लष्टदंत) प ११८६ लउसिया (लकुशिकी) ज ३।११।२ लट्ठि (यष्टि) ज २०१५ ख (लख) ज २१६४,३।१८५ लट्ठिग्गाह (यष्टिग्राह) ज ३११७८ लडह (दे०) ज २११५ लंघण (लङ्घन) ज ३।१०६,१७८,५१५७.१७८ लंतग (लान्तक) १ २।४६,५५,६३, ६।३२,५६, लण्ह (श्लक्ष्ण) ५ २।३०,३१,४१,४६,५६.६३,६४ ६५:७।१३,१५।८८,२११७०,३३।१६,३४।१६, ज १८,२३,३१,४।१ १८ ज ५१४६ लता (लता) प १।३३।१ लंतगवडेंसय (लान्तक वतंसक) २१५५ लद्ध (लब्ध) ज ३।२६,३६,४७,१०३,११७,१२२, लंतय (लान्तक) प १११३५ ; २१५५,५६, ३।३४, १२६,१३३,१८५,२०६ उ १११७,५७,८२,६६, १८३; ४।२४६ से २४८ ; २०१६१; २८1८० १०७,१२७,३।१३,२६,३८,८५,१२२,१४७. उ २०२२ १६०, ४१११,२५; ५।१५,२३,३१,३८,४२ लंबिय (लम्बित) ज ७।१७८ लट्ठ (लब्धार्थ) सू २०१७ लंबूसग (लम्बूसक) ज ५।३८,६७ लद्धि (लब्धि) प १११४६१५१५८।१,१५१६२ लंभ (लभ) लंभंगिज ३।३५ लिब्भ (लम्) लब्भइ ज ७।१४३ लंभणमच्छ (लम्भनमल्स्य) प १५६ लिभ (लभ) लभइ ज ७।१५१ लभति गु १०।५ लक्ख (लक्ष) प ११८१।१ ज ३।१०३ लभेज्जा प२०११७,१८,२२.२५,२८,२६,३४, लक्खण (लक्षण) पश४८१५५;२०६४।१२ ३८,३६,४१ से ४३,४५,४६ से ५२,५४,५५, ज २११४,१५,१६,३।३,३५,७७,१०६,१३८, ५६ १६७।१२;७।१७८ च २।४ सू १।६।४।१६।२, लय (लता) ७१७८ ४,६ उ १।३४ लया (लता) प ११३६ ज २१११,६७,१३१,१४४ लक्खणधर (लक्षणधर) ज २।१५ से १४६;३।१०६ उ ११२३,५।५ लक्खणधारि (लक्षणधारिन्) ज २०१५ लयाबहुल (लताबहुल) ज०१८ Page #1107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३० लयावण्ण-लूहेत्ता लयावण्ण (लतावर्ण) ज २।११ लाउयवण्णाभ (अलाबुकवर्णाभ) सू २०१२ लिल (लल,लड्) ललंति ज १११३,३०,३२, २७ लाघव (लाघव) ज २७१ ललंत (ललत्) ज ३।१७८,७।१७८ लाढ (लाढ) प ११६३१५ ललाड (ललाट) ज ७।१७८ लाभ (लाभ) ज ३।१७८,७।१७८ ललित (ललित) ज ३१६,२२ लाभंतराय (लाभान्तराय) प २३।२३ ललिय (ललित) ज ३१६,१७८,२२२;७।१७८ लाभत्थिय (लाभार्थिक) ज ३।१८५ ललियबाहा ('ललितबाहु) ज २११५ लाभविसिठ्ठया (लाभविशिष्टता) प २३।२१ लव (लव) २।४।२,२१६६७।११२।५ सू ८।१; लाभविहीणया (लाभविहीनता) प २३।२२ १०।१२६५ लायण्णत्त (लावण्यत्व) प ३४।२० लव (लप) लवंति सू २०११ लाला (लाला) ज ७१७८ लवंगरुक्ख (लवङ्गरूक्ष) प ११४३।२ लालाविस (लालाविष) प ११७० लवण (लवण) प १५०५५।१ ज ६।१,२,४,७१४, लावग (लावक) प १७६ ३२।१,६३,८७ सू ८.१,१६।२,३,५, लावणग (लावणिक) सु १६।२२।२३ १६।२२।२३ लावण्ण (लावण्य) प २३।१६,२० ज २।१५; लवणजल (लवणजल) सू १६॥५॥३ ५।६८,७० उ ३।१२७ लवणतोय (लवणतोय) सू १६।५।२:१६।२२।२४ लास (लासय) लासेंति ज ५१५७ लवणसमुद्द (लवणसमुद्र) प १५।५५, १६।३० लासग (लासक) ज २।३२ ज १११६,१८,२०,२३,३५,४८,४६३।१,२२, लासिया (लासिका,ल्हासिका) ज ३।११२ २८,३६,४१,४४,४६ ; ४।१,३५,३७,४२,४५, लिक्खा (लिक्षा) ज २।६,४० ५५,६२,७१,७७,८१.८६,६०,६४,९८,२००, लित्त (लिप्त) प २०२० से २७ २०१,२६२,२६५,२७१,२७४,६।३,५,१६ से लिवि (लिपि) प ११६८ २६७।३१,३३,८७ सू ११२२,४।४,७,८।१; लिहिय (लिखित) ज ७१७८ १६।३ से ६ लीला (लीला) ज २३,२८ लवणोदधि (लवणोदधि) सू १६।५।१ लुक्ख (रूक्ष) प १।४ से ६; १५,७,१२६,१५२, लवणोदय (लवणोदक) प ११२३ १५४,२११,२१८,२२१,२२६,२४४,१११५६ लहु (लघु) ज ३।३५,४८,४६,७१७८ से ६१,१३।२२।२,१३।२२,२६,१७।१३८; लहुपरक्कम (लघुपराक्रम) ज ५१४८,४६ २३।५०; २८।६ से ११,२०,३२,५५ से ५७,६६ लहुभूय (लघुभूत) ज २१७० लुक्खत्तण (रूक्षत्व) प १३।२२।१ लहुय (लघुक) प ११४ से ६;३।१८२, ५३५,७, लुक्खया (रूक्षता) प १३।२२।१ ज २।१३१ २०६; १५।१५ से १७,२८,३२,३३,२८।२६, लुद्धग (लुब्धक) उ ३।६८ लूह (मृज्,रूक्षय्) लू हेइ ज ५।५८ लूहेंति लहुयत्त (लघुकत्व) प १५१४४,४५ ज ३१२११ लाइय (दे०) प २।३०,३१,४१ ज १।३७,३७,१८४ लूहिय (मृष्ट,रूक्षित) ज ३।६,२२२ लाउय (अलाबुक) ज ३।११६ लहेत्ता (मृष्ट्वा ,मार्जयित्वा,रूक्षयित्वा) ज ३२११; १.टीका में 'ललिनो बाहु' है। ५५८ Page #1108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेक्ख-लोभसमुग्धात १०३१ लेक्ख (लेख्य) १९९८ ५८ से ६१,६३;१०।२,३,५,१२१७,१०,२०%; लेच्छइ (लिच्छवि,लेच्छवि) उ १११२७ से १३०, १५।१।२,१५५४३,४५,५६,१६।३४,१८।३, १३२ २६,२७,३७,३८,३६७६,८१,८५ ज २१६५, ले? (लेष्टु) ज २१७०,७१; ३।३५,६५ ७१,३।३५,६५,१५६,१६७,४१२६०११ लेपार (लेप्यकार) प १६७ सू १६।२२ कलेस (लिश) लेसेंति प ३६।६२ लोगंत (लोकान्त) ५२१६४;११॥३०:२११८४,८६, लेसणया (श्लेषण) प १६६५३ ८१ ज ७।१,६८,१६८।१,१७२ लेसा (लेश्या) प ११११५, २।३०,३१,४६३।१।१; लोगणाली (लोकनाली, लोकनाडी) प ३३।१८ १७१४३ से ४५,४७,६६,६७,११४,१४७,१५६ लोगणाह (लोकनाथ) ज ५।५,२१,४६ से १५८,१६१,१७२ च २२ ज ३।६५,१५६, लोगपईव (लोकप्रदीप) ज २१ २२३,७।३८,५८ सू १।६।२१।७।१६।१ से लोगपज्जोयगर (लोकप्रद्योतकर) ज ५२१ ३;१६।२६,२०१२,३ लोगपाल (लोकपाल) प २।३० से ३३,३५,४६ से लेसागति (लेश्यागति) प १६।३८ ५१ ज २।९०,११८,११६५।१६,५०,५६ लेसापडियाय (लेश्याप्रतिघात) ज ७१३८ लोगमज्झ (लोकमध्य) ज ४२६० लेसापरिणाम (लेश्यापरिणाम) प १३१२ लोगमज्झावसाणिय (लोकमध्यावसानिक) ज ५१५७ लेसाहिताव (लेश्याभिताप) ज ७।३८ लोगसष्णा (लोकसंज्ञा) प ८।१,२ लेसुद्देस (लेणोद्देश) सू ६२ लोगहिय (लोक हित) ज ५।२१ लेस्सा (लेश्या) प २१४१,१६५०१७।१११,१७।७, लोगागास (लोकाकाश) प ११४८१५८; २।१० १७,१८,३०,३६ से ४१,८८,६७,११४,१२६, लोगाधिवति (लोकाधिपति) प २२५०,५१ १३६,१३७,१४७,१५६,१५७,१५६,१६० से लोगालोग (लोकालोक) प १०१५ १६३;१८।१।१२८।१०६।१ लोगाहिवइ (लोकाधिपति) ज २।६१,५।१८,४८ लेस्सागति (लेश्यागति) ११६।४६ लोगुत्तम (लोकोत्तम) ज ५१५,२१,४६ लेस्साणुवायगति (लेपानुपातगति) प १६।३८,५० लोण (लवण) प १२०११ लेस्सापरिणाम (लेश्यापरिणाम) प १३१६,१४,१६, लोद्ध (लोध्र) प ११३६।३ १८ से २० लोभ (लोभ) प १११३४।१।१४।४,६,८,१० से लेह (लेख) ज २।६४ उ १।११५,११६ १५,१७,२२।२०२३१६,३५,१८४ ज २।१६, लेहट्ठ (रेखास्थ) ज ७।१५८,१६१,१६४,१६७ १३३ उ ३।३४ सू १०।६५,६८,७१,७४ लोभकसाइ (लोभकषागिन ) प ३९८,१३।१४; लोअण (लोचन) ज २।१५ १८१६६,२८।१३३ लोइय (लौकिक) ज ७।११४ सू १०।१२४ लोभकसाय (लोभकषाय) ५ १४।१,२,३६६४६ उ ११९२ लोभकसायपरिणाम (लोभ कषायपरिणाम) प १३१५ लोउत्तरिय (लोकोत्तरिक) ज ७।११४ सू १०।१२४ लोभणिस्सिया (लोभनिश्रिता) प ११२३४ लोक (लोक) ज ३।१०६,१६७ लोभसंजलणा (लोभसंज्वलना) प२३१७२,१४० लोग (लोक) प ११४८१६०; २।१०,१६,३०,३२. लोभसण्णा (लोभसंज्ञा) प ८१,२ ३४,३५,३७,३८,४१ से ४३,४८,५० से ५२, लोभसमुग्धात (लोभसमुद्घात) प ३६१४७ Page #1109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३२ लोभस मुग्धाय - वइर (वासा) लोम (लोमन) प २।२० से २७ ज ३।३, १०६; ७।१७८ लोभस मुग्धाय ( लोभसमुद्धत ) प ३६४२, ४४ से लोहित ( लोहित) प ५।२०५ सू २०१२ ४६, ४८ से ५१ लोहितक्ख ( लोहिताक्ष) ज ७ । १८६ | १ सू २०१८ लोहिय ( लोहित ) प १०४ से ६५ ५, ७, ११।५३ ; १७।१२६ ; २३ । १०३; २८ ३२,६६ ज ४२६ सू २०१२ लोहियक्ख ( लोहिताक्ष ) प १।२० ३; २३१,३२ ज ४।१०६ ; ५५ सू २०१८ |१ लोहियक्खकूड ( लोहिताक्षकूट) ज ४।१०५ लोहियखमणि ( लोहिताक्षमणि ) प १७।१२६ लोहियक्खमय ( लोहिताक्षमय ) ज ४।२६ लोहियक्खामय ( लोहिताक्षमय ) ज ३ | ३० लोहियपत्त ( लोहितपत्र ) प १०५१ लोहियमत्तिया ( लोहितमृत्तिका ) प १।१६ लोहियत्तय ( लोहितसूत्रक) प १७।११६ हसणकंद ( लसुनकन्द ) प ११४८।४३ ल्हसिय (ल्हासिक, लासिक ) प १८६ लोप (जोमपक्षिन् ) प १४७७,७६ लोमहत्य ( लोमहस्त) ज ३८८ लोमहत्या ( लोमहस्तक) ज ३।१२ लोमहत्यगपटलहत्थगय ( हस्तगतलोम हस्तकपटल ) ज ३।११ लोमाहार (लोमाहार ) प २८|११२,२८१४०,६६, १०२,१०३ लोमाहारत (लोमाहारत्व ) प २८।४०,६६ लोय (लोक) प ११४८५८,५६,२०१ से ३१,४६, ४६,३३।१३ सू २।११६।१,२१ उ ३।१३ लोय ( लोच) ज २६५; ३।२२४ उ ३।११३ लोयंत (लोकान्त) प २।६४।१० ११।७२ सू २१ १८।६ लोयग्ग ( लोकाय ) प २०६४, २०६४ | ३ लोयग्गथूमिया ( लोकाग्रस्तूपिका ) प २२६४ लोयग्गपडिबुज्झणा ( लोकाग्रप्रतिबोधना ) प २६४ लोण (लोचन) ज ७।१७८ लोयणाभि (लोकनाभि ) सू ५। १ लोयमज्ज्ञ ( लोकमध्य) सू ५।१ लोयाणी' (दे० ) प १।४८।६ लोल (लोल) ज २।१२ लोह (लोभ) ज २६६ लोह (लोह) ज ३१३,३५,१६७२८ लोहका ( लोकटाह) उ ३१५०,५५ लोहकसाइ (लोभकषायिन् ) प ३६८ लोहदंडग (लोहदण्डक) ज ३|१०६ लोहबद्ध (लोह्वर्ध ) ज ३१३५ लोहयक्खमय ( लोहिताक्षम ) ज ४।१३ लोहि (लोह) प १।४८।१ सफेद सुहागा लोहिच्च (लौहित्य) ज ७ । १३३ ।२ लोहिच्चायण ( लोहित्यायन) सू १०।१०४ १. लोचनी - बड़ी गोरखमुण्डी । व व (वा) प ११०१६ ज ३।११३ चं २११ सू १६ वइ (वाच् ) प १६ १, ७,२३ १५, १६ ज २६८ बइल (दे० व्याल ) प १।७१ वइगु (वाग्गुप्त ) ज २६८ वजोग (वाग्योग ) प २८१३८३६८६,८८,६०, ६२ वइजो परिणाम (वाग्योगपरिणाम ) प १३।७ वइजोगि (वाग्योगिन् ) प ३।६६; १३ १४; १८ ५६; २८।१३८ वत्ता (वदित्वा ) ज ५। ३ वयरिय (व्यतिचरित) सू २०१२ वाइयोगि ( वाग्योगिन् ) प १३।१७ वर (वज्र ) प ११२० १ २ ३० ज ३।१२,१८, २४,३५,८८,१०६,१८४, २१६ ४ ३,२५,४६, ६७,२३८,२५४;५।५, १३,२८,५८,७११७८ वइरसह ( वज्रऋषभ ) ज ३ | ३ बइरकूड ( वज्रकूट ) ज ४।२३६ वर (वासा) (वर्षा) ज ५।५७ Page #1110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वइरवेइया-वग्ग वइरवेइया (वज्रवेदिका) ज ११३७,४।२७,५।२८ वइरसारमइया (वज्रसारमतिका) ज ३।८८ वइरसेणा (वज्रसेना) ज ४।२३८ वइराड (वैराट) प १९३१४ वइरामय (वज्र मय) ज १७,८,११,२४,२।१२०; ३।३०,४१३,७,१३,१५,२४ से २६,२६,३१, ३६,६६,६८,७४,६१,६३,१२८,१४६,५१३८, ४३,७१७८,१८५ सू१८।२३ वइरोयणराय (वैरोचनराज) प २॥३३ ज २।११३ वइरोणिंद (वैरोचनेन्द्र) प २।३३ ज २।११३ वइरोसभणाराय (वज्रऋषभनाराच) प २३।४५, ६४ ज २०४६ वइसमिय (वाकसमित) ज २१६८ वइसाह (वैशाख) ज ३।२४;७।१०४,१४६,१५५ सू १०।१२४ उ १।२२,१४०;३।४० वइसाही (वैशाखी) ज ७।१३७ सू १०७,१७,२३, २६ वइस्सदेव (वैश्वदेव) उ ३.५१,५६,६४ वउ (वाच्) प १११५,८,२१ से २६ वंक (वक्र,वङ्क) ज २।१३३ वंकगति (वङ्कगति, वक्रगति) प १६।३८,५३ वंग (वङ्ग) प ११६३।१ ज २।१५ वंजण (व्यञ्जन) ज २११४ सू २०१७ वंजणोग्गह (यजनावग्रह) प १५।५८।२, १५।६८,६६,७१ से ७३,७५ वंजुलग (वजुलक) प ११७६ वंज्झा (वन्ध्या) उ ३।६७,१३१ वंत (वान्त) प १८४ सू २०१२ विंद (वन्द ) वंदइ ज ११६,२०६०।५।२१,६५ उ १११६३८१,४।१३,५१२० वंदंति उ ४।१६,५।३६ वंदामि प १।१११ ज ५।२१ सू २०१६।६ उ १४१७ वंदिज्जा उ ५१३६ वंदीहामि उ ३।२६ वंदेज्ज ज १६७ वंद (वन्द) ज ३।२२,३६,७८ उ १११६ वंदण (वन्दन) उ १।१७ वंदणकलस (वन्दनकलश) ज ३७,८७,५१५५ वंदणकलसहत्थगय (हस्तगतवन्दनकलश) ज ३।११ वंदणवत्तिय (वन्दनप्रत्यय) ज ५।२७ वंदणिज्ज (वन्दनीय) सू १८।२३ वंदिऊण (वन्दित्वा) चं ११४ वंदित्ता (वन्दित्वा) ज ११६ उ १११६,३।८१; ४।१४।५।२० वंदिया (वन्दिका) उ ४।११ वंस (वंश) प ११४१।२ वांस वंस (वंश) प १११७५ ज २।१२४,१५२,३।३१, १०६ उ ५५४३ वंसमूल (वंशमूल) प ११४८१८ वंसी (वंशी) प ११४७ वंसीपत्त (वंशीपत्र) प ६।२६ वंसीमुह (वंशीमुख) प १।४६ वक्कंत (अवक्रान्त) प ११४८।५३ ज २१८५ वक्कंति (अवक्रान्ति) प १।११४ विक्कम (अव---ऋम्) वक्कमइ प ११४८।५१ वक्कमंति प १।२०,२३,२६,२६,४८;६।२६ वक्कमति सु १६।२२।१६ वक्कल (वल्कल) उ ३।५१११ वक्वासि (वल्कवासिन्) उ ३।५० वक्ख (वक्षस्) ज २०१५ वक्खार (वक्षस्कार) प २।११।५५२ ज ४१२१२. ६.१० वक्खारकूड (वक्षस्कारकूट) ज ४।२०२६।११ वक्खारपव्वय (वक्षस्कारपर्वत) ज ४।६४,१०३ से १०८,१४३,१६२,१६३,१६६,१६७,१६६, १७२ से १७४,१७६,१७८ से १८१,१८४, १८५,१६०,१६१,१६६,१६७,१९६,२००, २०२ से २०५,२०८ से २१२,२१५,२६२; ५।५५६।१० वग (वृक) प १११२१ ज २।१३६ वगी (वृकी) प १११२३ वग्ग (वर्ग) प २१६४।१५,१६,१२।१०,३२,३६, ३७ उ ११५ से ८,२।१३।१,२,४।१,३,५१, Page #1111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३४ वग्ग-वट्टमाण ३,४५ १२६१६।३२,१७।५८,२०५६ से ५८; विग्ग (वल्ग) वग्गति ज ५१५५ २२।२५,२३।१६१,१६७; २४।१३,२५।३; वग्गण (वल्गन) ज ३।१७८ २६।४।२८।११२,१२३,१२६,१२७,१२६, वग्गणा (वर्गणा) प १११७२,१७।११४११.१४२ १३२,१३३,१३७ से १४१,१४३ ज २१७०, वग्गमूल (वर्गमूल) प १२।१२,१६,२७,३१,३२,३८ १३१,३।६,४।१७७,२१०,२४०,२४८,५।१३, वग्गु (वल्गु) प २१६४।१५ ज २१६४;३।१८५, . ४६,५२।१ २०६४।२१२,४।२१२॥३,५१५८ वज्ज (वाद्य) ज ५१५७ वग्गु (वाच) उ ११४१,४४ वज्जकंदय (वज्रकंदक) प १७११३० वग्गुरा (वागुरा) उ ५।१७ वज्जण (वर्जन) प १११०१३ वग्गुलि (वल्गुलि) प ११७८ वज्जणिज्ज (वर्जनीय) ज ११४६ वग्घ (व्याघ्र) प ११६६,१११२१ ज २१३६,१३६ वज्जपाणि (वज्रपाणि) ५२।५० ज ५१८,४६,६६ वग्घमुह (बाघ्रमुख) प ११८६ वज्जमाण (वाद्यमान) उ १११३८ वग्घारिम (दे०) ज ३८८ वज्जरिसभणाराय (वनऋषभनाराच) ज ११५; वग्घारिय (दे०) प २।३०,३१,४६ ज २१७,८८, २१४६ ११७ वज्जरिसहणाराय (वज्रऋषभनाराच) ज २।१६,८६ वग्यावच्च (व्याघ्रापत्य) ज ७।१३२१४ सू १०।११६ वज्जरिसहनाराय (यज्र ऋषभनाराच) सू ११५ वग्घी (व्याघ्री) प ११।२३ वज्जसंठिय (वज्रसंस्थित) प ११३० वच्च (वच्) वच्चंति ज ७।१३५।२,३ वज्जसूलपाणि (वज्रशूलपाणि) ज ५१५७ विच्च (व्रज्) वच्चइ सू ११६ वज्जिऊण (वर्जयित्वा) प २।२७।३ वच्छ (वक्षस्) प २।३०,३१,४१,४६ ज ३।३,६, वज्जित्ता (वर्जयित्वा) प २।२२,३२,३४ ज ४।१३४ ६,१८,६३,१८०,२२१,२२२:५।२१।। वज्जिय (वजित) प १०।१४।६ ज ५१५२ सू २०१७ वच्छ (वत्स) प ११६३।४ ज ४।२०१,२०२।१,२४८ वज्जेत्ता (वजयित्वा) प २।२१,२३ से २७,३०, वच्छगावई (वत्सकावती) ज ४।२०२।१ ३१,३३,३५,३६,४१ से ४३,४६ वच्छमित्ता (वत्स मित्रा) ज ४।२०४,२३८,५१६ वज्झ (वधा) ज ३।६२,११६ वच्छल (वत्सल) प ३।१२५; ५।५,४६ वज्झार (वर्धकार) प १६७ वच्छल्ल (वात्सल्प) प १।१०१।१४ वज्झियायण (वध्यापन) ज ७।१३२।४ सू १०।११८ वच्छाणी (वत्सादनी) प ११४०।४ सू १०।१२० विट्ट (वृत्) व ति उ ३।३३ वट्टति प १६।२२ गजपीपल, गुडूची वट्ट (वृत्त) प ११४ से ६,११६३।५,२।२० से २७, वच्छावई (वत्सावती) ज ४।२०२ ३० से ३६,४१ से ४३;१०।१५,२६,३६।८१ वज्ज (वज्र) ५११४८७ वज्रकंद, कोकिलाक्षवृक्ष, ज १७,३१,२।१५,३।७,८८,११७,४।३,२५, तालमखाना ६७,११४,१२८,२३४,२४०,२४१,५।५,४३; वज्ज (वर्जय) वज्जेज्ज प १०।१४।४ ७।३१,३३,१६७,१७८ सू १११४;४।३ से ७%; बज्ज (वज्र) ज २०१५ १०।७४; १६।२,६,६,१२,१६,२८,३२,३६ वज्ज (वयं) प २१४०।५,२१५२,६।४६,५६,६६, वडग (वर्तक) प ११७६ ज ५।१६ ८६,६४,९५,१०२,१०४;१०।३६११॥४१,८०, वट्टगमंस (वर्तकमांस) १०११२० कमलकंद ८४१२।३,१३।२२।२,१५४९८,११५,१२१, वट्टमाण (वर्तमान) प २।३१ ज २१७१३।१३८, Page #1112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेड-वणसई ५।५७ वट्टवेयड्ढ ( वृत्तवैताढ्य ) प १६।३० ज ४।४२, ५७,५८,६०,७१,७७, ८४, २६६, २७२; ५।५५; ६।१० ट्टि (वर्ति) प १४७/२ ट्टिय (वर्तित ) ज २।१५; ७ १७८ ट्टिया (वर्तिका ) प १ ४७ २ वड (वट ) प १३६।१ उ ३७१ वड (दे० ) प १।५६ मत्स्य विशेष वडगर (दे० ) प १५६ मत्स्य विशेष asभी ( वडभी) ज ३।११।१ asar (अवतंसक ) प २।५४,५८ वडिय ( पतित ) ज ३।१२५,१२६ वडेंस (अवतंस ) ज ४।२२५,२३२,२६०।१ वडेंसग (अवतंसक ) प २५०, ५२, ५५ से ५६ ज १।४३३।१७८, १८३ ४ ५०, १०६,११२, ११६,१५५,१५६, २३७,२३८,२४०, २४३ वडेंसगधर (अवतंसकधर ) ज ७।२१३ वडेंस (अवतंसक ) प २५० से ५३, ५६ ज १।४२, ३ । १८६ ४ ४६, ५६, १०२, ११६, १२०,१४७,२२१ से २२४, २३७, ५१,६,१८; ७१८४,१८५ वड्ड (वृधु ) वडति सू १६।२२।१६,२० वढते सु १६।२२।१४ वड्डज्जति प ५।१७६, २१६ वड्ढ (वर्धय्) वड्ढे इ उ ३।५१ वड्ढे सि उ ३७६ वड्ढइरयण ( वर्द्ध किरत्न) ज ३।१८,१६,३१,५२, ५३,६१,६२,६६,७०,६६,१००, १४१, १४२, १६४,१६५,१७८, १८०, १८१,१८६, १८८, २०६,२१०,२१६,२१६,२२० वड्ढइरयणत्त ( वर्द्ध किरत्नत्व) प २०५८ वड्ढमाणय ( वर्धमानक) प ३३।३५ वड्ढावय (वर्धापक) उ ३०११ afsar (वर्धितक) उ३।३८ वढेत्ता (वर्धयित्वा ) उ३।५१ ढोवुढि ( वृद्ध वृद्धि ) चं ३।१ सू ११७११, १।१०,१४; १३ ॥१ वण (वन) ज ४।२००, २०१,२१२,२१४,२१५, २३४, २३६,२३७, २४०, २४१,२४४, २४५, २४६,२५१,२५२;५।५५,५७;७।११४ auths (वनस्पति) प १८ १४, १०५, ११०,१२०; २०/२२ वण फइकाइय (वनस्पतिकायिक ) प ६।१६,८३; १२।२६;१३।१६; १५ २६, ५३, ५५, ७४; १४०; १६।४;१७१६२,६६, १०२, १८३८; १६१२; २०।१३,२६,४६,२१३,२७,७६,८५,२२/२४; २८।३६,१२३;२६।१०, २०, ३०१६; ३६।१३ से १६,३४,३८ वणफइकाइयत ( वनस्पतिकायिकत्व ) प १५९६ वतिकाइ (वनस्पतिकायिक ) प १६ । १२; १७।४० वर्णमाला ( वनमाला ) प २१३०,३१,४१,४६ ज ११३८, ४।१०,१२१, १४७, २१७; ५।१८ वयर ( वनचर) ३१।६।१ वणराइ ( वनराजि ) प १७।१२४ ज २।१२ वलय ( वनलता ) प ११३६ १ वणलया (वनलता) ज १।३७२ १०१ ४ २७; ५।२८ १०३५ वर्णाविरोह ( वनविरोध) ज ७।११४।२ वर्णाविरोहि (वनविरोधिन् ) सू १०।१२४।२ aris (वन षण्ड) ज १।१२ से १४,२३,२५,२८, ३२,३५,४१,३,२५, ३१, ३६, ४३, ४५. ५७,६२, ६८,७२,७६,७८,८६, ६०, ६३, ६५, १०३, ११०, ११६,११८,१४१,१४३, १५२१५३,१५४, १५६,१७४,१७६,१७८, १८३,२००,२१२, २१३,२१५,२२१, २३४, २४०, २४१,२४२, २४५७।२१३ उ५८ वणस्स (वनस्पति) प ६ । १०४;१७।३३; १८१५७,६२,२०२८ Page #1113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३६ वणस्सइकाइय-वण्णिय ५२ वणस्सइकाइय (वनस्पतिकायिक) प १।१५,३०; १३५,१६६,२६६,२७२,५।३२,५८,७।१७८ २।१३ से १५,३१६,५० से ५२,५८,६० से ६३. वण्णओ (वर्णतस्) ५ ११५ से ६१११५४,२८७, ६६,७१ से ७४,८०.८१,८४ से ८७,६३,६५, २०,२६,५३ १६८ से १७०,१८३,४८८,६० से १४;५३, वण्णग (दे०वर्णक) उ ३।११४ १७,१८,६६,६।५३,८६,१०२,११५,६।२१; वण्णग (वर्णक) ज ११३२,३।६,२०,३३,५४,६३, १५३८५,१२१,१३७,१८।२७,३५,४०,४३, ७१,८४,१३७,१४३,१६७,१८२,१६३,१६७, ४४,५२;२०१८,२११५,४१,२२।३१,३६।३३ २२२,४।१,११७,५११३;७।५५ ज २।१३१,१४४ वण्णचरिम (वर्णचरम) प १०।४६,४७ वणस्सइकाइयत्त (वनस्पतिकायिकत्व) ज ७।२१२ वण्णणाम (वर्णनामन्) प २३।३८,४७,१०१ से वणस्सति (वनस्पति) प ६।१०२,६।४ १०६,१०६ वणस्सतिकाइय (वनस्पतिकायिक) प ३।५०,५१, वण्णतो (वर्णतस्) प ११८,६२८।३२,६६ ६०,६३,६५,१८३;४।८६,५।१८,६।६३,८३; वण्णनाम (वर्णना मन् ) प २३।१०१ १५७६; २४।६३०।१६ वण्णपज्जव (वर्णपर्यव) ज २।५१,५४,१२१,१२६, वणिज (वणिज) ज ७।१२३ से १२५ करण नाम १३०,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३,७।२०६ वणिय (वणिज्) ज २।२३ वण्णपरिणाम (वर्णरिणाम) प १३।२१,२६ वणीमगबहुल (वनीपकबहुल) ज १११८ वण्णमंत (वर्णवत्) प १११५२,५३,२८।५,६,५१, विण्ण (वर्णय) वण्णइस्सामि प १।११३ वण्ण (वर्ण) प ११४ से ६; २।२० से २७,३०,३१, वण्णय (वर्णक) प २।३२,४२,४३ ज ११२,३,१२, ४०,४०१६;२।४१,४८,४६,६४,३।१८२,५५, १६,२३,२५,२८,३१,३५,३८,२।११,८३; ७,१०,१२,१४,१६,१८,२०,२४,२५,२८,३०, ४।३,२५,३१,३६,४०,४७,५७,६७,७६,११०, ३२,३४,३७ से ३६,४१,४५,४६,५३,५६,५६, ११२,११५ से १२०,१२६,१२८,१३५,१३६, ६१,६३,६८,७१,७४,७६,७८,८३,८६,८६,६१, १४१ से १४४,१४७ से १४६,१५३ से १५६, ६३,६७,१०१,१०४,१०७,१०६,१११,११५, १७८,१८३,२००,२०१,२१३,२१५,२१६, ११६,१२६,१३१,१३४,१३६,१३८,१४०, २२१,२३४,२४०,२४५,२४६,२४८,५३, १४३,१४५,१४७,१५०,१५२,१५४,१६३, २६ से ३३,३५ से ३७ च ६,७,८ सू १।२,३ १६६,१६६,१७२,१७४,१७७,१८१,१८४, उ १११,३।६१;४।१०।५।१४ १८७,१६०,१६३,१६७,२००,२०३,२०७, वण्णय (दे०वर्णक) उ ३।११४ २११,२१४,२१८,२२१,२२४,२२८,२३०, वण्ण (वासा) (वर्णवर्षा) ज ५१५७ २३२,२३४,२३७,२३६,२४२,२४४; वण्णादेस (वर्णादेश) प ११२०,२३,२६,२६,४८ १०।५३।१;११।५३;१७।१।१,१७१७,१७,१८; ११४११,१२३ से १२६,१३२ से १३४; वण्णाभ (वर्णाभ) प २।२० से २५,५०,५६,६० २३।१०८,१६०,२८।६,७,२०,२६,३२,५२, ज ४१२२,३४,६०,६४,८४,११३,२६६,२७२ ५३,६६,३०।२५,२६,३६।८०,८१ ज १।१३, वण्णावास (वर्णव्यास) ज ११११,४६,३।१६५, २६; २१७,१८,१३३,१४२, ३।३,११,१२,८८, १९७;४।४,७,१५,२६,८४,१४६,५१३ २११,४।२२,३४,३६,६०,८२,८४,८६,६४, वण्णिय (वणित) प १।१।३१६।२१ Page #1114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहिदसावय वहिदा ( वृष्णिवणा) वत्त ( वर्तय) वत्तस्सामि प ३६।६२ वत्तमंडल ( वृत्तमण्डल) ज ३११७८ वक्तव्य ( वक्त ) ज ४४२६६,७११४१ से १४५, १५० से १५२, १५४,१०६ १०।२० से २२ २५. वत्तव्वया ( वक्तव्यता ) प २०४०, ४४, ५ । १५२, २०५,२४४; १११८०१५१६ ज ३१५०. १६१,२७७४१५.३,६४,७५,७६,८३,८९,९०, १२,१०,११५,१२६,२००,२०५, २०७,२०८, २४०,२४६,२६२,२६८, २७७ ७ १०२ वथ (वस्त्र) प २३०, ३१, ४१, ४० से ५४; १५५५१२१७।११६३१६,११,१२,२६, ३९.४७,५६,६४,७२,७८८१८५११२,१३३, १३८, १४५,१६७१६,१६०,२२१ २०७ उ १।१६, ३५, ३१५१,५३,६३,६७,७०, ७३,११० ११५, ६५।१ से ३ ३१६३ वर्तति वत्यधर (वस्त्रधर ) ज २।२१:५१४८६ वत्थव्व ( वास्तव्य ) ज ५।१ से ३,५ से ७ त्यारण (वस्थारोहण, वस्त्रारोपण) ज ३११२,८८ वरिय ( वस्ति) ज २।१५ ३०११७ किम् (वस्तिकर्मन् ) उ३।१०१ वत्थिपुडग (दे० ) उ १।४४ से ४६ वत्थिभाग ( वस्तिभाग) ज ३।११६ वत्थु ( वस्तु ) प १४१५ ज ३ | ३२७ । १०१.१०२ सू १०१११५।१,३७ थुपरिच्छा (दस्तु परीक्षा) ज ३।३२ वत्युपस (वस्तुप्रदेश ) ज २०३२ वस्थुल (वास्तुक ) प ११३७४२३८१२४४११ ज २।१० वय (वत्) वय ३७७ वदंति सू २०२ वह ज ३।११३३४७२४१२४ वदामो सू ५।१ वदिस्पति ज २०१४६ वदेज्जा सू ६।१२ वदिता (उदित्वा) ज ३।१२५ बद्ध (व) ज ३२५ वद्धमाण ( वर्धमान ) प २।३० ज ३ | ३२ माग (वर्धक ) ज २१६४,३१३, १२, १७८; ४।२८: ५।३२७।१३३२ २०१८ २०१६१६ माणगठिया ( वर्द्धमानकरां स्थित ) सू १०.४१ वद्धमाणय ( वर्धमानक) ज ३।१८५ वद्वाव (वर्धय्) वद्भावेइ ज ३१५, २६,३६,४७, ५६,६४,७२,१०,१३३, १४५,१५१.१५७ उ १।११० वद्धति ज ३।११४,१२६,१३८, २०५,२०६१।१२२:५।१७ बद्धावेहि १०३७ उ १।१०७ वावेता (वर्धा) ज ३५ उ १।१०७ वध ( वध ) उ ३१४८, ५० वप्प ( वप्र ) ज ४३,२५,२१२,२१२३, २५१ गाव (कावती) ज ४।२१२०३ पावई (वप्रावती) ज ४।२११ पण (दे०) वमण (वमन) उ३।१०१ २४,१३,१६ से १९,२० वममाण (त्रमत् ) उ ३।१३० वमिय ( वमित, वान्त) उ३।१३०,१३१,१३४ वम् धर्मन्) ज ३३१ यषिय ( दमित) ज ३४७७,१०७, १२४ ११३८ वय (च्) बुच्चइ चं २१ वोच्छं प २२६४|१८ चं ११३ (द) या ज ७।३१ सू १०१०पर्यंत ज २२६।१,६४ वयह उ ३।१०३:४११४ बामि उ १७६ मोसू १।२० व्यासी ज ११६; २०६४,९०,६५,६७,१०१, १०५, १०७,१०९, १११.११४:३०५,७,१२,१८,२१,२६,२८,३१ से ३४,३६,४१,४७,४६,५२,४६,५८,६१,६४, ६६.६९,७२ ७४,७६,७७,८३,१०,११,९९, १०५,१०७,११३ से ११५,१२४, १२५, १२७, १२०, १३३,१३८, १४१.१४५, १४.१.१५४, १५७, १६४, १६८, १७०,१७३, १७५, १००, १८५, Page #1115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३८ वय-वरुण १८८,१६१,१६६,२०६:५॥३,५,१४,२१,२२,२६ वरगंधघर (वरगन्धधर) सू १७१ २८,४६,५४,६६,७२ च १० सू १।५ उ ११४; वरगंधित' (वरगन्धिक) सू २०१७ ३।२६;४।१४।५।१५ वयाहि ज ५।२२ वरगय (वरगत) ज ३।६,१२,१८,२८,४१,४६, उ १११०७ ५८,६६,७४,७८,८२,६३,१३६,१४७,१८०, वय (वयस) ज २।३१ १८७,१८८,२१२,२१३,२१८,२१६,२२२; वय (व्रत) प २०।१७,१८,३४ उ ३१४८,५०,५५ ५।४७,६० वयंस (वयस्थ) ज २।२६ वरचंपग (वरचम्पक) ज ३।३ राजचंपक वयगुत्त (वचोगुप्त) उ ३६६ वरण (वरण) प ११६३।४ वयण (वचन) प १११८६ ज २११३३, ३।३,८, वरदत्त (वरदत्त) उ ५।२१,२२,२४,३१,४०,४१,४३ १३,१६,२४,३२।२,५३,६२,७०,७७,८४, वरदाम (वरदा मन्) ज ३।३०,३१,३३,३६,३६,४१; १००,१३१,१४२,१६५,१८१,१६२,२१३, ६।१२ से १४ ५११५,२३,२६,२७,६९,७३ उ १।३३,४५,१०८ वरदामतित्थकुमार (वरदामतीर्थकुमार) ज ३१३३, वयण (वदा) ज २।१५,१६,३२६,५।२१ ३६ से ४१,४३ उ १।१५,३५,३१६० वरदामतित्थाधिपति (वरदामतीर्थ धिपति) ज ३।३८ वयणमाला (वदनमाला) ज २१६५,३।१८६.२०४ ।। वरपसण्णा (वरपसन्ना) प १७।१३४ वयमाण (वदत्) प ११०२६,८७ वरपुरिसवसण (वरपुरुषवसन) प १७।१२७ वर (वर) प २।४०८,२।४६,३६।८३।२ वरबोंदिधर (वर'बोंदि'धर) सू १७११,२०११ ज १११६,३७,३८;२।१५,२०,६५,७१,८५, वरमल्लधर (वरमाल्यधर) सू १७:१;२०११,२ ६५,६६,१००,१२०, ३।३,६,७,१२,१८,२२, वरवत्थधर (वरवस्त्रधर) सू १७११,२०११,२ २४,२८,३१,३२,३५,४१,४६,५२,५८,६१, वरवारुणी (वरवारुणी) ११७१३४ ६६,६६,७४,७६,७७,७८,८२,८८,६३,१०७, वरसीधु (वरसीधु) प १७।१३४ १०६,१२४,१२५,१२८,१३१,१३७,१३८, वराडा (वराटक) प ११४६ १४१,१४७,१५१,१५२,१६३,१६४,१६८; वराभरणधर (वराभरणधर) सू १७।१ १७५,१७८,१८३,१८६,१८७,२०६,२१०, वराभरणधारि (वराभरणधारिन्) सू २०११,२ २१३,२१८,२२१,२२३,४।१०,११५,२१७; वराह (वराह) प ११६४,२।४६ उ २१३५ ५७,२१,४३,५६,५८,७।१७८ सू १६।११।१ वराहमंस (वराहमांस) सू १०।१२० वाराहीकंद उ १११,४१,४६,६४,६१,१२१,१३८,२।६; वराहरुधिर (वराहरुधिर) प १७।१२६ ३।५६,६४,६६,६८,७६,८१,५५,१३,१६, वरिट्ठ (वरिष्ठ) ज ३।८१,५।२१ २०,२५,२७,३१ वरिस (वर्ष) ज ३।१७५ वर (वरक) प ११४५।२ तृण धान्य, चीनाधान वरिसारत्त (वर्षरात्र) सू १२।१४ उ ५।२५ विर (वरय्) वरति सू १६।२२।१६ वरयंति वरुट्ट (वरुड) प ११६७ पिच्छिकार, बेंत का काम चं २।२ सू१।६।२ वरयति सू ७।१ करने वाला वरकणगणिहस (परकनकनिकष) प १७.१२७ वरुण (वरुण) प १५१५५।१ ज ७।१३०,१८६।३ वरग (वरक) ज २।३७ तृणधान्य उ ३३५४ वरग (वरक) उ ४६ वरगंध (वरगन्ध) प २।३०,३१,४१ १. अतोऽनेकस्वरात् इति इक प्रत्ययः । Page #1116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरुण - वहिय वरुण (काइ ) ( वरुणकायिक) ज ११३१ वरुणदेवया ( वरुणदेवता ) सु १०८१ वरुणवर ( वरुणवर ) सू १६ । ३१ वरुणोद ( वरुणोद) सू १६ । ३१ वरेल्लग (दे० ) १ १ ७६ वलभीघर ( वलभीगृह) ज २।२० वलभीसंठित ( वलभीसंस्थित) सु४।२ वलय ( वलय ) प १।३३।१, ११४३ ज ३६,२२२ वलयाकार संठाण संठिया ( वलयाकार संस्थानसंस्थित) ज ४।२३४,२४०, २४१ वलयागार ( वलयाकार ) सू १६२, ६, ६, १२, १६, २८,३२,३६ बलवा (वडवा ) प ११।२३ बलि (वलि) ज २।१५,१३३ उ १।३४,४०,४३, ४६,४८,४६,५१,५४,७४,७६,७६ वलय ( वलित) ज २११५; ३।१०६ ; ५१५ वल्लभ ( वल्लभ) ज १।२६ वल्लि (वल्ली ) ज २।१३१,१४४ से १४६, ३।३२ उ ५३५ वल्ली ( वल्ली ) प १।३३।११।४०,१।४८।६१ वल्लीबहुल (वल्लीबहुल ) ज १।१८ aate (व्यपगत ) प १।१।१२।२० से २७ ववहारसच्च (व्यवहारसत्य ) प ११।३३ वस ( वस् ) वसई ज ३।१२२ साहि ७७,८४,६१,१००, ११४,१४२,१६५, १६७।१४,१७३, १८१, १८६,१६६,२१३; * ५।२१,२७,४१ उ ११२१, ४२; ३।३३,१३६ वसंत (बसन्त) प ७।१४४।२ सू१२।१४ उ ५ । २५ वसंतमास ( वसन्तमास) सू १०।१२४।२ वसंतलय ( वासन्तीलता) ज५।३२ सट्ट (शा) उ ११५२,७७ वसण ( दसन ) प २।४०।१०,११ ज ३७, १८४ ज १।२४; २।१५,२३,२५, २६, २८, ३० से ३२, ३६,४०,४२,४३,७०,३१२०,३३,५४,६३,७१, ८४, १३७,१४३, १६७,१८२ V ववरोव (वि + अप + रोपय् ) बबरोवेइ प २२६ वसुदेवया ( वसुदेवता ) सू १०८० वसुहर ( सुधर ) ज ३।१२६।१ उ ३।१३० वसन्भूय (व्यसनभूत) ज २०४३ भमंस (वृषभमांस) सु १०।१२० वसभवाहण (वृषभ वाहन ) प २१५१ ज २६१; ५।४८ उ १।२२ ववरोविय (व्यपरोपित) उ ११२५, २६ ववसाय (व्यवसाय) ज ४। १४० | १ ववसायसभा (व्यवसायसभा) ज ४।१४० वहार (व्यवहार) प ११।३३।११६।४६ उ ३।११ वह ( व्यथ) उ५।२।१ वह ( वह) उ५।२।१ वह ( वधक ) ज २१२८ ज ३।१८५ वहस्सइ (वृहस्पति) ज ७ १३०, १८९।३ वस ( वश ) ज ३।५, ६, ८, १५, १६,३१,५३,६२,७०, वहिय ( व्यथित) ज ३।१११,१२५ १०३६ सभाणुजात (वृषभानुजात ) सू १२।२६ वसमाण ( वसत् ) प ३।१८,३१,१८० उ ११११०, १२६,१३३ वसह ( वृषभ ) ज २९१ ; ७ १७८ चं १४ वसहरूवधारि ( वृषभरूपधारिन् ) ज ७।१७८ सू १८ ।१४ वसहि ( वसति ) ज २०१६,३१८,३१,१४० उ १।११०, १२६, १३३,३०३६ वसा (दसा ) प २।२० से २७,१५।११२, १५१५० वसिट्ठकूड ( वाशिष्ठकूट) ज ४।२०४।१ बसु (वसु ) ज ७ १३०,१८६।३ वसुंधरा ( वसुन्धरा ) ज ५ | ६ |१ वसुहा ( वसुधा ) ज ३।१८,३१,१८० / वह ( वध् ) वहंति ज ७११६८।२ वह (वध) उ १।१३६; ३।४८, ५० Page #1117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४० वा-वाणमंतरी वा (वा) प १११८७ ज २।३६ सू १११४ उ १।२७, वाउभक्खि (वायुभक्षिन्) उ ३.५० ३।१०१ वाउल (व्याकुल) ज २।१३१ वा (वा) वाहिति ज २११३१ वाकरेमाण (व्यागृणत्) ज २१७८ वागरा (वि+ आ--कृ) वागरेहिति उ ३।२६ वाइ (वादिन्) ज २८० वाइंगण (दे० वातिकुण) प ११३७।१ बैंगन का गाछ बागरेहिती उ ३।२६ वागरण (व्याकरण) ज ७।२१४ सू ६।३ उ १।१७ वाइंगणिकुसुम ('वाइंगणि'कुसुम) प १७।१२५ ३।२६ वाइत (वादित) प २।३०,३१,४६ वागल (वाल्कल) उ ३।५१,५३,५५,६३,६६,७०, वाइय (वादित) प २१४१ वाइय (वाद्य) ज ११४५,२।६५,३।८२,१८५, वागली (दे०) प ११४०२ बागुची, एक औषधि १८६,१८७,२०४,२०६,२१८,५।१,१६,७१५५, वाघाइय (व्याघातिक) ज ७।१८२ ५८,१८४ सू १८।२३;१६।२३,२६ वाघात (व्याघात) प ११७४, २११९५ वाइय (वातिक) उ३।११२,१२८ वाघातिम ('व्याघातिम,व्याघातिन् ) सू १८१२० वाउ (वायु) प ६१८६,१०४,११५, ६।४; १३।१६; वाघाय (व्याघात) प २१७, २८।३१ उ ११६५,६६ १७।४०,६६; २०१८,२३,२८,५७,२११८५ वाण (वाण) प ११३७।४ २२।२४ ज २।१६,३११७८,४।४६,५।४३,५२; वाणपत्थ (दानप्रस्थ) उ ३१५० ७।१२२।१,१३०,१८६।४ सू १०८४।१ वाणमंतर (वानव्यन्तर) प १११३०,१३१:२४१, वाउकाइय (वायुकायिक) १११५,२।१० से १२; ४३, ३।२७,१३५,१८३,४।१६५ से १६७; ३।५,५० से ५२,५७,६० से ६३,६८,७१ से ५।३,२५,१२१,६।२५,५६,६५,८५,६३,१०६, ७४,७६,८४ से ८७,६२,६५,१६५ से १६७, १११,११७;७।५।६।११,१८,२४;१२।६,३६; १८३;४७६,८०,८२,८३,८५ से ८७,५॥३, १३।२०।१५।३५,४८,८७,६६,१०४,१०७, १५,१६,६।१६,६२,६२,१०२ १११,१२४;१६।६,१६,१७।२६,३०,३२,३४, ५२,७७,८१,८३,६८,१०५,१६।४२०।१३, वाउकाय (वायुकाय) सू २०११ १६,२५,३०,३५,३७,४८,५४,६१,२११५५,६१, वाउकुमार (वायुकुमार) प १।१३१, २।४०।१, ७७,६०,२२।३१,३६,७५,८८,१००।२४।८; ६,११:५।३।६।१८ ज २।१०७,१०८ २८७२,११७,११६; २६।१५,२२,३११४; वाउक्कलिया (वातोत्कलिका) प ११२६ ३२।५; ३३।१४,२२,३०,३४,३७, ३४।४,१०, वाउक्काइय (वायुकायिक) प ११२७, २।११; १६,१८,३५।१५,२१,३६।२५,४१,७२ १२।३,४,२३,१५।२६,८५,१३७; १६१५,१२; ज १११३,३०,३३,३६; २०६४,६५,६६,१०० १७।६१,१०३,१८।२६,३४,३८,४०,४२,५२; से १०२,१०४,१०६,११०,११३ से ११६, २०१३१,४५,२१।२६,४०,५०,५७,६४,२२।३१, १२०,४।२,२४८,२५० से २५२,५।४७, ३४।३; ३६।६,३८,५६,७२,७५ ५३,५६,६७,७२ से ७४ सू २०१७ वाउकाइयत्त (वायुका यिकत्व) ज ७।२१२ वाणमंतरत्त (वानव्यन्तरत्व) प ३६।२२,२६ वाउक्काय (वायुकाय) ज २।१०७,१०८ वाणमंतरी (वानव्यन्तरी) प ३।१३६,१८३; बाउन्माम (वातोद्भ्राम) प १।२६ १. भावादिमः इति सूत्रेण इमः , Page #1118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाणारसी वास ४।१६८ से १७० १७५२,८२,८३ २०।१३ वाणारसी (राणसी) प १।९३।१२।२७ से २६,४६,४८,५०,५१, ६५, ६६, ६६, १००,१११ वाणिज्ज (वाणिज्य) ज २।२३ वातिय ( वातिक) उ ३।३५ वाबाध (व्यावाध) ज २१३६, ४१ वाम (बम) ज २०११३३४६ १२,२४४, ३७२, ४५२,८८, ११७, १३११४ ५।२१.५८ उ १।११५, ११६ : ३६२ वामण ( वामन ) प १५३५ २३।४६ वामणी (वानी) ज ३।११।१ वामभुवंत (भुजान्त) सू २०१२ वामेय ( ) प २०३१ ६ बाव (न) २२४६ २०६.१०,१३१,१३३६ ३।११,२४०३,३७११,४५०१. ११७,१३१०२, २११४।१६६५०३८.५० वाय (वाच) वाति ज ५।५७ वायंत ( वादयत्) ज ३।१७८ वायकर (वातकरक) ज ३|११३५।५५ बायमंडलिया ( वातमण्डलिका ) प ११२९ बायस (वास) प १७६ वायुदेवया (वायुदेवता ) सू १०१८३ वारि (वार) ज ३।२०१; ५५६ वारिसेणा (दारिषेणा ) ज ४ । २१० ; ५।६।१ वारुण (वरुण) ज ७।१२२२१०६४।२ वारुणी ( वारुणी ) ज ५।११।१ वारुणोदय ( वारुणोदक ) प ११२३ वाल ( व्याल) ज ३।२२२ उ३।१२८ बाल (बाल) ज ७११७५ वालग ( व्यालक ) ज ११३७ २।४१, १०१ ; ३।२० ; ४२७५॥२८ बालग्ग (बालाय ) ज २०६७।१७८ वालग्गपोइया (दे० ) ज २।२० बालग्गपोतिपासंटित (बालापोतिका 'संस्थित) सू ४१२,३ १०४१ वालपुच्छ ( व्यासपुच्छ) ज ७ १७८ वालिघाण (वालधान) ज ७२१७८ वालिहर ( वालिधर ) ज ७ १७८ वाली (पाली) ज ३।३० वालुंक ( वालुक ) प १।४८।४८ कपिथ की छाल वालुपप्पा (वालुकाप्रभा ) प १०५३ २०१,२०, २३;३११३,२१,२२,१८३४।१० से १२ ६।१२,७५,७६,१०११ २०११,३१२११६७ ३३।५ वाया (वालुका) प १।२०।१२।४८ ज ३।१११, ११३४।१३,२५,४६ सू २०१७ उ ३१५१,५६ वावण्ण ( व्यापन्न ) प १०१०१।१३ चावण्णय ( व्यापत्रक ) प २०१६१ वावहारिय (व्यावहारिक) ज २२६ वाविय ( व्यापित ) ज ३७६,११६ बावी (वापी) प २४,१३,१६ से १९.२८, ११९७७ ज १।३३; २०१२,१५४१६०, ११३३७।१३३।१ वास (वर्ष) प १२४६ २०१४१,२,४,६,२५,२७, २८,३०,३१,३३,३४, ३६, ३७, ३९, ४०, ४२, ४३, ४५, ४६, ४८, ४९, ५१, ५२, ५४,५६,५८, ६२,६४,६५,६७,६९,७१,७९,८१,८५,८७, ८८, १०, १४, १२५, १२७, १३४, १३६, १४३, १४५, १५२, १५४, १६५, १६७, १६८, १७०, १७१,१७३, १७४, १७६, १७७, १७६,१८०, १८२,१०३, १५, १०६,१६२७ से ४१: १६।३०:१६१२,६,६,१२,२०,२१,२८,३२. ३४,३५,४७,५०,५२,२०१६३२३।६० से ६४, ६६,६८,६६,७३ से ७८,८१,६३,८५ से १०, २,६५ से ६९,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११६ से ११८,१२७,१३०,१३१,१३३, १४७, १५८, १६, १७६, १७७,१८२, १८३, १८७, २८ १२५, ७४ से ८७, ६७ ज १।१८ से २३, ३४,३५,४७ से ५१:२११,४,६ से १५,२१ से ४५,५०,५२,५६ से २८,६५,०१,८८,१०, १२२,१२३,१२६ से १२८,१३० से १३४, Page #1119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४२ बास-विउल १३८ से १५०,१५४,१५६,१५७,१५६,१६१, वासहरकूड (वर्षधरकट) ज ६१११ १६४; ३।१,३,२६,३२,३६,४७,५६,६४,७२, वासहरपव्वय (वर्षधर पर्वत) प २११,१६।३० ७७,७६,१०३,१०६,११३,१२४,१२६,१३३, ज १।१८,४८,५१:३।१३१;४।१,२,४४,४५, १३५।२,१४५,१६७,१७५,१८५,१८८,२०६, ४८,५४,५५,६१ से ६३,७६ से ८१,८६,८७, २२१,२२५,२२६;४।१,३५,४२,५५,५६,६१, ९६ से १८,१०२,१०३,१०८,११०,१४३, ६२,७१,७७,८१ से ८३,८५,८६,६४,६८, १६२,१६६,१७३ से १७६.१७८,१८०.१८४, १६ से १०३,१०८,१६२,१६७।७,१६६ १७२ १६०,२०० से २०६,२०८,२०६ २६२ से २६४ से १७४,१७८,१८१,१८२,१८५,१८७,१६३, २६८ से २७०,२७३ से २७६,५।१४,१५; १६४,१६६,१९६ से २०३,२०५,२०६,२१३, ६।१०,१८ २६२,२६५,२६६,२७१ से २७३,२७७; वासावास (वर्षावास) ज २१७० ५१५५, ६।६।१,६।६,१२,१३,१४,१६७।१५६ वासिउं (वर्षितम) ज ३।११५ से १५.६,१८७ से १६० सू ४।३।६।११०।६३ वासिकी (वार्षिकी) स १२११८ से २३ से ६६८।१,१८।२५ से ३०,२०१७ उ ११६, वासिठ्ठ (वाशिष्ठ) ज ७।१३२।२ सू १०।१५ १४१,१४७ , २।१२,१३,२२,३।१४,१६,१८, वासित्ता (वर्षयित्वा) ज ५७ २१,८३,८६,१०४,११८,१२५,१५०,१५२, वासी (वासी) ज २१७० १५७,१६१,१६५,१६६; ४।२४,२६,२८; वासुदेव (वासुदेव) प ११७४,६१; ६।२६,२०।१।१ ५।२४,२८,३६,४१,४३ ज २।१२५१५३;७२०० उ ५९.१५,१७ से वास (वर्ष) वर्षा ज ३।११५,११६,५७; १६ ७११२।३,४ सू १०।१२६।३.४ वासुदेवत्त (वासुदेवत्व) ५ २०१५६ विास (वृष) वासंति ज ३।१८४,५७,५७ वाहण (वाहन) ज २१६४,३३१७,२१,३१,३२, वासति सू १०।१२६।३ वासह ज ३।१२४ ८१,१०३,१०६,१७७,५।१८,२२,२६ वासिस्सइ ज २।१४१ से १४५ वासिहिति उ ११६६,९४,९६,११५,११६ वाहि (व्याधि) ज २।१५,१३१,१३३ ज २।१३१ वाहिनी (वाहिनी) उ३।११०,४।१६,१८ वासंतिय (वास न्तिक) ज २।१० वि (अपि) प १३५ ज १११६ सू श६ उ ११७ वासंतिलता (वासन्तीलता) प ११३६१ विइक्कंत (व्यतिक्रान्त) ज २१७१,१३८,१४० वासंती (वासन्ती) प १३८।२ ज २०१५ विउक्कम (वि। उत्क्र म) विउक्कमंति वासघर (वासगृह) ज ३।३२ सू २०१७ उ ११३३; प६।२६ २।२८ विउट्ट (वि- वृत) उट्टहि उ ३।११५ वासपुड (वासपुट) ज ४।१०७ विउट्ट (निवृत्त) ज ४.३६,६६,६१ वासमाण (वर्षत्) ज ३।११६ विउल (विपुल) प २२३०,३१,४१ ज ११५; वासयंत (वासयत्) ज २१६५ २।६४,६५,६१,१२०,३३,६,७,१०३ १८५, वासरेणु (वासरेणु) ज २१६५ २०६५।२६,५४,७१७८ उ १११७.६३; वासहर (वर्षधर) प १५॥५५॥२ ज २।६५,३।१३१: २।११, ३।७:५०,५५,६१६८.१०१,१०६ ४।१०३,१०८,११०,१४३,१६२,१६७,१८१, १०७,११०.१२६,१३१,१३४,१३६,१४६; १८२,१८४,१६०,२००६।१०.१८ Page #1120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विउलमइ-विग्गह १०४३ विउलमइ (विपुलमति) ज २१८० विउन्ध (वि+ कृ) विउव्वइ ज ५।४१,४६,६०, ६६ उ ३६२ विउब्वंति प३४।१६ २१ से २३ ज २।१०२,१०६,१०८,३।११५,१६२,१६४, १६५,१६७,१६८,५१५५,५७ विउव्वह ज २।१०१,१०५:०३ विउव्वाहि ज ५१२८ विउब्वेह ज ३।१६१ विउव्वणगिडिढपत्त (विकिद्धिप्राप्त) सू १३।१७ विउव्वणया (किकरण) उ ३४।१ से ३ विउव्वणा (विकरणा) उ ३१७ विउव्वमाण (विकुर्वाण) सू २०१२ विउवित्तए (त्रिकर्तुम् ) ज ७।१८३ सु १८।२१ विउव्वित्ता (विकृत्य) प ३४।१६,२१ से २३ उ३।१२३ विउब्धिय (विकृत) प २१४१ विउव्वेत्ता (विकृत्य) ज ३।१६१ विउसमण (व्यवशमन) सू २०१७ विज्झगिरि (विन्ध्यगिरि) उ ३।१२५ विंट (वृन्त) प ११४८।४६ विहणिज्ज (बृंहणीय) प १७१३४ Vविकंप (वि+कम्प) विकंपइ चं ३।२ सू १७२ विकंपइत्ता (विकम्प्य) सू १२४ विकंपमाण (विकम्पमान) सू ११२४ विकप्प (विकल्प) ज ३।३२ विकप्पिय (विकलित) ज ३११०६ विकल (विकल) ज २११३३ विकिण्ण (विकीर्ण) ज ७१७८ विकिय भूय (विकृतभूत) ज ५१५७ वि रणर (विकिरणकर) ज ३।२२३ विकिरिज्जमाण (विकीर्यमाण) ज ४११०७ विकुस (विकुश) ज २१८,६ विक्कत (विक्रांत) ज ३।१०३ विक्कम (विक्रम) ज ३।३;७।१७८ चं १११ विक्खंभ (विष्कम्भ) प ११७४; २।५०,५६,६४; २१८४,८६,८७,६० से ६३,३६१५६,६६, ७०,७४,८१ ज ११७ से १०,१२,१४,१६,१८, २०,२३ से २५,२८,३२,३५,३७,३८,४०,४२, ४३,४८,५१,२।६,१४१ से १४५,३।९५,९६, १५६,१६०,१६७,४।१.३,६,७,६,१०,१२,१४, २४,२५,३१,३२,३६,३६ से ४१,४३,४५,४७, ४८,५६,५२ से ५५,५७,५६,६२,६४,६६ से ६६,७२,७४,७५,७६,७८,८०,८१,८४ से ८६, ८८,८६,६१ से ६३,६५,६६,६८,१०२,१०३, १०८,११०,११४ से ११६,११८ से १२७, १३२,१३६,१४०,१४३,१४५ से १४७,१५४ से १५६,१६२,१६५,१६७।११,१६६,१७२. १७४,१७६,१७८,१८३,२००,२०१,२०५, २१३,२१५ से २१६.२२१,२२६,२३४,२४० से २४२,२४५,२४८; १३५७७,१४ से १६, ६६,७३ से ७८,६०,६३,६४,१७७,२०७ चं ३।२ सू १७।२,१११४,२६,२७,१८१६ से १३; १९६४,७,१०,१४१८,२०,२१११,३०, ३१,३४,३५,३७ विक्खंभसूइ (विष्कम्भसूमि) प १२।१२,१६,२७, ३१३६ से ३८ विक्खय (विक्षत) ज २।१३३ विक्खुर (दे०) प ७१७८ विग (वृक) ज २।३६ विगत (विगत) प ११८४ विगतजोइ (विगतज्योतिस्) सु १४।१०।१५।८ से विगय (विकृत) ज २११३३ विगयमिस्सिया (विगतमिश्रिता) प १११३६ विलिदिय (विकलेन्द्रिय) १११८३ से ८५ १५।१०३, २०१३५;२२१८२:२८।११५,१२७, १३८,३१।६।१,३४।१४,३५।११२,३५१७; विगलेंदिय (विकलेन्द्रिय) प १११८२ विगोबइत्ता (विगोप्य) ज २०६४ विगह (विग्रह) ५ ३६।६०,६७ से ६६,७१,७५ ज ५१४४ उ ३१६१ Page #1121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विचारि-विज्जुप्पभद्दह विचारि (विचारिन्) सू १६१ विचित्त (विचित्र) प २।३०,३१,४१,४६ ज २।१२; ३।६१०६,२२२;७१७८ सु २०१७ उ २।१०; ३।१४,८३,१०२,१३५,१४२,४।२४,५।२८, विचित्तकूड (विचित्रकूट) उ ६।१० विचित्तपक्ख (विचित्रपक्ष) प ११५१ विचित्ता (विचित्रा) ज ५११११ विच्छड्डयित्ता (विच्छद्य) ज २०६४ विच्छड्डिय (विदित) ज ३।१०३ विच्छिण्ण (विस्तीर्ण) १ २०५१,५२,५४,५६,६० ज १८.१८,२०,२३,२५,३२,३५,४८,५१, २।१५,३।१,१८,३१,३५,५२,६१,६६,१०३, १०६,१३१,१३७,१३८।१,१४१ १६४,१८०%; ४।१,३,४५,५५,६२,८६,८८,६८,१०३,१०८, ११०,११४,१४१,१५६,१६२,१६७.१६६, १७२,१७८,१८५,१८७,१६१.२००,२०३, २०५,२१३,२१५,२४२,२४५,२४६,२५१, .. २५२,२६२,२६८,५॥३,२८,४६,७।१७७।१,२ उ ३।३७ विच्छिण्णतर (विस्तीर्णतर) ज ४।१०२ विच्छिप्पमाण (विस्पृश्यमान') ज २६५; ३।१८६,२०४ विच्छुत (वृश्चिक) प १५१ विच्छ्यअल (वृश्चिकाल) ज ७१३३।३ विच्छुयनंगोलसंठिय (वृश्चिकलांगूलसंस्थित) सू १०.५२ विजडि (द्विजटिन्) सू २०१८,२०८८ विजय (विजय) प १११३८,२॥१,४८.६३; ४।२६४ से २६६,६।४२,५६, ७।२६; १५।५५।२,१५।८६,६२,१००,१०५,१०८, १०६,११३,११४,११६,१२०,१२१,१२३, १२५,१२६,१३१,१३६; २८।६६ ज १५१५, १६,४६,५१, २०१७, ३१५,१८,२४।४,२६, ३१,३५,३७।२,३६,४५.२,४७,५२.५६,६१, ६४,६६,७२,८१,६०,११४ से ११६,१२२, १२४,१२६,१३११४,१३३.१३५,१३७,१३८ १४१,१४५,१५१,१५७,१६४,१७२,१७८, १८०,२०५,२०६,२०८,२०६; ४१४६५२, १०३,१६२,१६७ से १७८,१८१ से १८४, १८७ से १६१,१६३,१९६.१६७,१६६ से २०३,२०६,२१२,२६२,५।४३,५५,५७,५८; ६।६।१७।१:४,१२२।२ च ५।४ १०१८४। २,१२४। १ १।१०७,११०,११६,११८, १२२,१३०,५११७ विजय (विचय) १६ विजयखंधावार (जियस्करा) ३।१७२ विजयडूस (जियप्य) १२४८,५१३७ विजयपुरा (विण पूरा) ४१२१२ विजयवेजइया (विजयी )ज ३।१२,२८, ४१,४६,५८.६६,७४,१४७,१६८ विजया (विजया) ज ४२१२,२१२१४,५०८।१; ७।१२०१२,१८६ विजह (वि-हा) विमहति सू १५।८ विज्ज (विद) विज्जज ३११२१११ विज्जल (दे०, विना) ३८ विज्जा (विद्या) उ ३।१०१ विज्जाहर (विद्याधर) 48१:२१६३ ज ३।१३७ से १३६,२२०:४१२७ १७२, ५॥२८ उ ५५ रिज्जाहरसेढी (विद्याध श्रेणी) ज ११२५ से २८%3 ४।१७२:६।१५ विज्जु (विद्यु) प ११२६; २१३०१,२।४०।६,११ ज ४।२१०११ सू २०११ विज्जुकुमार (विद्यु कुर) प ११३१; ५॥३; ६१८ विज्जुकुमारिद (विद्युत्कुधारेन्द्र ) प २१४०१२ विज्युदंत (विद्युदंत) ११८६ बिज्रवाल (विद्युत्थान) .०७ से २१० रिज्जुप्पभड ( शुभकूट) ला ४।२१० विज्जुप्पभद्दह (विद्युभद्रह) ज ४१६४ १. हे०४।२५७ Page #1122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विज्जुप्पह-विद्धं स १०४५ ४।२ बिज्जुप्पह (विद्युत्नभ) ज ४।२१५ विण्णव ( विज्ञपय) विण्णवेइ उ १११०१ बिजप्पहबार (गिद्युत्प्रभवक्षस्कार) ज ४।२०५ विण्णवणा (विज्ञाना) उ ३।१०६ विज्युह (विद्युमुख) प ११८६ विण्णविज्जमाण (विज्ञप्यमान) उ १।१०२ वितुरेह (विद्युत क्षेत्र) ज २११३१;४।२११; विष्णवित्तए (विज्ञपयितुम् ) उ१९६ विण्हु (विष्णु) ज ७।१३०,१८६।३ विज्जुब (नियुज्जुियायति ज ५७ विण्हुदेवया (विष्णुदेवता) सू १०७६ विज्जुयावित्ता (विद्युत्यित्वा) ज ५७ वितत (विनत) ज ५।३२,५७ विज्झडिय (दे०, मिश्रित) ज २११३३ विसतपक्खि (विततपक्षिन्) प १७७,८१ विज्झिडियमच्छ ('लिज्झिाडिय'मत्स्य) प ११५६ वितत (वितृप्त) सू २०१८,२०।८।८ विछि (विष्टि) ज ७११२३ से १२५ वितत्थ (वित्रस्त) सू २०१८,२०१८।८ विडंबिय (म्बित) ज ७।१७८ वितथि (वितरित) ज २१६ विडिम (द, विटप) प २१४६ ज ४।१४६ वितिमिर (वितिभिर) प २।६३,३६।६३,६४ विडिमंतर (दे०, विटपान्तर) ज २०१६ वितिमिरतराग (वितिमिरतरक) प १७।१०८,११० दिड्डा (व्रीडा) ११५८,८३ वित्त (वित्त) ज ३।१०३,५।५८ विण (निष्ट) ज २११०३,१०४ वित्त (वेत्र) ज ३।१०६ विणमि (निमि) ज ३११३७,१३८,१३६ वित्ति (वृत्ति) ज १११३,३०,३३,३६; २।१३४; विणय (विनय) प १३१०१।१० ज ११६२।६०, १०,१३३,३१८,१३,१६.५३,६२७०,७७,८४, वित्थड (विस्तृत) ज ३।११७;७।३०,३१,३३ १००,१४२,१४७,१६५,१८१,१८६,१६२, सु ४।३,४,६,७,१६।२२।१५ २०५,२०६ २१३१५,२३,५८,६६,७३ वित्थय (विस्तृत) ज ३।३२,१०६ सु २०६४,६ उ१।१६,४५,५५,५८,६७, वित्थर (विस्तर) ज २।१३४ ८०,८३,१०८,११६,१२०,३।१२० वित्वाररुइ (विस्ताररुचि) प १११०१११,६ विणास (f नाश) प १।७४ वित्थिण्ण (विस्तीण) प २१५०,१६,५८ ज ११२४, विणासण (किशन) ज३८८,१०६:५७ २८ उ ३।९१५१४ विभिगमंत निगच्छन्) ज ३।१०६ विदिसा (विदिशा) ज ४।१०६,१५५,२०४,२१०, विणिम्मुयंत (ञ्चित् ) ज ११३७, ३।१२, २१२.२३५.२३७,५।१२ ८८,५१५८ विदिसि (विदिश) प ३६७०,७२ ज ५११२ Page #1123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४६ विद्वंसत्ता ( विध्वस्य ) प २८।६६ विद्वंसण ( विध्वंसन) उ ११५१,५२,७६,७७ विद्वंसित्तए (विध्वंसितुम् ) उ१।५१, ५२,७६,७७ विद्धि ( वृद्धि ) ज ७।१८६।३ सू १५८ विप्पण ( विहाण) ५३६ १९२ faceजहित्ता ( विप्रहाय ) प ३६।६२ विपविण (विप्रतिपन्न) उ ३२४७ विधाउ ( विधातृ) प २४७ २ विधुय (विधुत ) ज २।१०,४।१६६ विपुल ( विपुल ) ज २६६३८८, १०६ विपुलतर ( विपुलतर ) ज ४।१०२ विप्पजढ ( विप्रहीण ) उ १।६०, ६१ विजह (वि + प्र + हा) विप्पजहति प ३६।९२ विभु ( विभु ) ज ५।५,४६ विध्यमुक्क ( विप्रमुक्त) प २।६४।१, ६ १६ ५५; ३६।८३१२ ज ३।१२,८८,६२,११६; ५।७, ५८ उ ३।१५६ विपरिणामइता (परिणम्प ) प २८।२०,३२,६६ विप्पलायमान (प्रिलापयत् ) उ३।१३० विपति ( विप्रोषित) सू २०१७ face ( हित ) उ३।१३१,१३४ विबुद्ध ( विबुद्ध) ज ३।३ विबोयण (दे० ) सू २०१७ उपधान विभल (विह्वल ) ज २।१३३ विभंगअण्णाणपरिणाम ( विभंग ज्ञानपरिणाम ) प १३।१० विभंगणाण ( विभङ्गज्ञान ) प ५।५७; २६ २,६, १७,१६,३०१६ विभंगणाणि ( विभंगज्ञानिन् ) प ३१०२,१०३; ५।२६, १०७ १३ १४, १७, १८८४; २८ १३७; ३०।१६ विभंगनाण (विभंगज्ञान ) प ३०|२ विभंग (दे० ) प १४२२ v विभज (वि + भज् ) विभज्जइज २२५५ विभजिस्सइ ज २।१५५ विभक्त ( विभक्त) ज २०१५, १३३ विभयमाण (विभजमान, विभजत्) ज १।१६,४७ ; ४१४२,७१,७७, ६४, १६८, १८३,१८६, १६५, २६२ सू १६।१६ विभाग ( विभाग ) ज ३१३२ विभावणा ( विभावना ) प २८|१२ / विभास (वि + भाष) विभासिज्जा ज ५।५५ विभासेज्जा ज ५।५.७ विभासियव्व ( विभाषितव्य ) ज ५।४०, ५७ विद्धसइत्ता- विमाण विभूइ ( विभूति) ज ३।१२,७८, १८०, ५।२२,२६ विभूति ( विभूति ) ज ३।२०६ विभूसा ( विभूषा ) ज ३१२,७८, १८०, २०६; ५।२२,२६ विभूसिय ( विभूषित) ज २।६६, १००, ३६, ३५, ७८,१०६,२११,२२२,५।१४,४१,४३,५८; ७ १७८ उ १७०, ३।११० ४।१८५ १७ विभेल ( विभेल) उ ३।१२५, १३२,१३३,१४१,१४५ विमण ( विमनम् ) ज २६०,१०३,१०६, १०८ उ १।३५ विमय (दे० ) प ११४१२ विमल ( विमल ) प २।३१,६४ ज ११३७ २ १५; ३६,१२,१८,७७,८१,८८, १०७, ११७, १२४, १५१,१७८,२२२; ४।३, २५, १२५, २०४|१ ५१५,४६१३,५८,६२,७१७८ सू २०१६ उ १।१३८ विमलवाहण (विमलवाहन ) ज २५६,६१ विमाण ( विमान ) प २११,४,१०,१३,४८ से ५२, ५६२, २५ से ६३,७ । २६; ११।२५; २१ ६२, ९३,३३,१६,१७ ज २।१२०३३।३,११७; ४१११५, ५१३, ५, १८, २२,२५,२६,२८,३०,३२, ४१, ४३ से ४५,४६, ५०, ५२, ५३७ १७८१, १७६, १८४ से १६६ ६।१,१८।२२ से २४; २०१२ से ४ उ ३६, ७, १४, २५,८३,६०,१२०, १५६,१६१,१६६,१७१ ४५, २४, २८,५२८, ४१ Page #1124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विमाणकारि-विव १०४७ विमाणकारि (विमानकारिन्) ज ५१४८ से ५०,५३ विरल्लिय (तत') प १५१५१ विमाणवास (विमानवास) ज ३।११७ विरव (वि+रचय) विरवेइ उ ११४६ विमाणावलिया (विमानावलिका) प २११,४,१०,१३ विरवेत्ता (विरच्य) उ ११४६ विमाणावात (विजाना मास) प २०४८ से ६३ विरसमेह (विरसमेघ) ज २।१३१ ज ५।१८,१९,२४,४८ विरह (विरह) उ ११६५,६६,१०५ विमाणोववण्णग (विमानोपपन्नक) सू१६।२३,२६ विरहित (विरहित) प६.५ से ७,४३ सू १६।२५ विमुक्क (विमुक्त) प २०६४।१०,१६,२२, ३६।१४।१ विरहिय (विरहित) प६१ से ४,८ से २३,२७, विमोक्खण (विमोक्षण) ज २०७१ ४४,४५ ज २१४०,७१५७,६० सू १०७७ वियट्टछउम (विवृत्तछद्मन्) ज ५२२१ विराइय (विराजित) प २।३०,३१,४१,४६ वियड (विकट) प ६।२० से २३ ज २०१५ चं ११३ ज २।१५,३।११७;७।१७८ सू २०१८,२०१८ विराग (विराग) सू १३।२ वियडजोणिय (विकटयोनिक) पहा२५ विरायंत (विराजमान,विराजत्) ज ३।६,१२१ वियडावइ (विकटारातिन् ) ज ४।७७,८४,२६६ विराल (विडाल) प १११२१ वियडावति (विकटापातिन्) ५ १६।३० विराली (विडाली) प १११२३ वियत्थि (वितस्ति) प ११७५ विराय (वि+रावय) विरावेहिति ज २११३१ वियत्थिपुहत्तिय (मितस्तिपृथक्त्विक) प १७५ विराहणी (विराधनी) प १११३ /वियर (वि+त) वियरह ज ३।१८८ विराहय (विराधक) प ११८६ वियरग (दे०) ज ५११३ विराहिय (विराधित) उ ३।१४,२१,८३ वियरिय (विचरित) ज २।१२ विराहियसंजम (विराधितसंथम) प २०६१ वियल (विकल) प २४७ विराहियसंजमासंजम (विराधितसंयमासंयम) वियसंत (विकसत्) प २।४१ प २०६१ वियसिय (विकसित) प २।३१,४८ ज ३।६; विरिच (वि+भज) विरिचइ उ १६४ ४।४६; ५।२१ विरिचित्ता (विभज्य) उ ११६६,६४ ‘वियाण (कि- शा) विवाणाहि प ११४८।३८,३६ विरिय (वीर्य) प २३।१६,२० ज ३।१०७,११४ वियाणंत (विजानत) प २१६४।१७ विरेयण (विरेचन) उ ३३१०१ चियाणय (दिशा) ज ३।३२,७७,१०६ विलंब (विलम्ब) प २॥४०॥६ वियाणित्ता (विज्ञा) उ ५।३७ विलवमाण (विलपत्) उ ११६२,३१३० वियाणिय (विज्ञात) ज ३१८७ विलास (विलास) ज २।१५,३।१३८ सू २०१७ वियालय (निकाल:) ज ७/१८६।१ सू २०।८।१ विलिय (वीडित) ज २१६० उ ११५८,८३ विरइय (विरचित) ज ३।३,६,२२२ विलिहिज्जमाण (विलिख्यमान) प २१५० विरज्ज ( विज्) विरज्जति सू १३।१ ज ५११८ विरत (पिरत) ५ २६।१० विलेवण (विलेपन) ज ३१९,२०,३३,५४,६३,७१, विरति (विरति) ५२०१४१ विरत (विरक्त) सु १३।१;२०१३ ८४,१३७,१४३,१६७,१८२,२२२ चिरय (रजस्सू २०१८,२०८७ विक्ष (इ.:) ज ११३८,६८ उ १२३,३।१२८ विरयाविरति (विरताविरति) २०१४२ १. हे० ४।१३७ Page #1125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४८ विवंचि-विसुद्धतर विवंचि (विपञ्ची) ज ३।३१ सू ११२५,४।२,१६।३,६,१३,१७,२६,३३,३६ विवज्जिय (विवजित) उ ३।३६ विसमचारि (विषमचारिन्) ज ७/११२।२ विवडिय (विपतित) ज ३।१०८ से १११ सू १०।१२६२ अविवडढ (वि-|-वृध) विवड्ढे ति ज ३९५,१५६ विसमबहुल (विषमबहुल) १११८ विवड्ढंत (विवर्धमान) प ११४८।५२ विसमाउय (विषमायुष्क) प १७।१३ विवण्ण (विवर्ण) उ ११५,३।१८ विसमेह (विषमेघ) ज २।१३१ विवत्थ (विवस्त्र) सु २०१८ विसमोववण्णग (विषमोपपन्नक) प १७.१३ विवर (विवर) ज २१६५ उ ५१५ विसय (विषय) प २।४८,१११६६।१,१५।१११, विवरीत (विपरीत) मू २०६।२ १५।४०,४१,३३।१।१ ज २१४;३।१०४,१०५, विवरीय (विपरीत) ज ३।११७.१ १०७,११४,१२६।४।५।४६७।१७८ सू १८१ विवाग (विपाक) प २३॥१३ से २३ विसय (विशद) ज २०४,६५,१२६ विवाह (विवाह) सू २०१७ विसयवासि (विषयवासिन्) ज ३।२४।२,३।२६, विविह (विविध) १ २१४१,४८ ज ३।२४,११७, ३६,४७,५६,६४,७२,१३११२,१३३,१३८,१४५ १६७४१२,४।२७,४६,५१३८,६७,७१७८ विसयाणुपुव्वी (विषयानुपूर्वी) ज ७५० सू १८१८ उ ३।३५,११२,१२८ विसह (विषय) ज २।६८ विस (विष) उ १८६,६० विसहरण (विषहरण) ज ३।६५,१५६ विसंधि (विसन्धि) सू २०।८।५ विसाएमाण (विस्वादयत् ) उ ११३४,४६,७४ विसंधिकप्प (विसन्धिकल्प) सु २०१८ विसायणिज्ज (विस्वादनी!) ज २०१८ विसज्जिय (विसर्जित) ज ३।८१ विसारय (विशारद) ज ३१७७,१०६ उ १।३१ विसप्पमाण (विसर्पत) ज २।१५,३३५,६,८,१५, विसाल (विशाल) प २।४७१२ ज २।१५,३।१७८%; १६,३१,५३,६२,७०,७७,८४,६१,१००,११४, ४११५७।२७।१७८ सू २०१८,२०।८।८ १४२,१६५,१७३,१८१,१८६,१६६,२१३; विसाहा (विशाखा) ज ७१२८,१२६,१३४।३, ५।२१,२७,४१ उ ११२१,४२,३।१३६ १३५।३,१३६,१४०,१४६,१६५,१६६ विसम (विषम) प १३।२२।२,१६।५२३६।८२।१ सु १०।२ से ६,१७,२३,४६,६२,७२,७३,७५, ज २।३८,१३६,१३३,३१७६,८८,१०६,१२८, ८३,११४,१२०,१३१ से १३३, १२।२१ १५१,१७०।७।११२।३ सू १०।१२६।३ विसाही (वैशाखी) ज ७.१४० उ ३१५५ विसिठ्ठ (विशिष्ट) प २१४०।७ ज ११३७, २०१५, विसमचउक्कोणसंठित (विषमचतुष्कोणसं स्थित) २०७३।६,३५,१०६,११७.२२१,२२२,५१४३; सू ११२५:४।२ ७.१७८ विसमचउरंससंठाणसंठित (विषमचतुरस्रसंस्थान विसिठ्ठतर (विशिष्टतर) सू २०१७ संस्थित) सू श२५ | विसुज्झमाण (विशुधमान) प १।११३,१२८; विसमचउरससंठित (विषमचतुरस्रसंस्थित) सू ४२ २३।२००,२०१ ज ३।२२३ विसमचकवालसंठाणसंठित (विषमचक्रवालसंस्थान- विसुद्ध (विशुद्ध) ६ १६३; १७।१३८,३६/६३,६४ संस्थित) सू १६६ ज २८,६,३३,१०६५५८ उ ५१४३ विसमचक्कवालसंठित (विषमचक्रवालसंस्थित) विसुद्धतर (विशुद्धतर) ज २०७१ Page #1126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसुद्धतराग-वीइक्कत १०४६ विसुद्धतराग (विशुद्धतरक) प १७।१०८ से १११ विसुद्धलेस्सतराग (विशुद्धलेश्यातरक) प १७७ विसुद्ध वण्णतरग (विशुद्ध र्णत रक) प १७१६,१७ विसेस (विशेष) प २११४२०६४।१८,१२।३१; १५।२६,३०; १७।३०,१४६ ज १११३,३० ३३,३६,२०४५,१४५,३।३२,४१२,२५ सू २।२,४४,७; १५।५ से ७,१६८; २२।१३ विसेसाहिय (विशेषाधिक) प २१६४;३।१ से ६, २४ से ३२,३७ से १२०,१२२ से १२५,१२७, १४१ से १४३,१५६ से १७०,१७४ से १८३, ६।१२३;८।५,७,६,११६।१२,१६,२५,१०।३ से ५,२६ से २६;१११७६,६०१५।१३,१६, २६ से २८,३१,३३,१५१५८।१,१५।६४; १७।५६ से ६६,७१ से ७६,७८ से ८३,१४४ से १४६,२०६४, २११०४,१०५; २२।१०१२८१४१,४४,७०,३४।२५,३६।३५ से ४१,४८,४६,५१,८१ ज १७,२०,४।४५, ५७,६२,६८,११०,१४३,२१३,२३४,२४१; ७।१४,१६,७३ से ७५,६३,१६७,२०७ सु१।१४,२७,१८।३७;१६।१० विसोह (वि--शोधय) विसोहे हिट ३।११५ विस्स (विश्व) ज ७।१३०,१८६।४ विस्संभर (विश्वम्भर) ५१७६ विस्तदेण्या (विश्वदेवता) सू १०.३ विस्सुत (विश्रुत) ज ३।३५ विस्सुय (विश्रुत) ज३७७,१०६,१२६,१६७ विहंगु (दे०) प ११४८।४६ विहग (हिग) ज ११३७, २०६८,१०१,४।२७; ५२८ विहप्फइ (बृहस्पति) ज ७१०४ /विहर (वि+ हृ) विहरइ प १५० से ५३ ज ११५,४५,२१७० ६१,३।२,२०,२३,३३, ८२,८४,१५३,१७१,१८२,१८६,२१८,२१६, २२४;४।१५६५।१६ उ ११२,२७,३१६ ४।११:५९ विहरंति प २०२० से २७,३० से ३७,३६ से ४२,४६,४८ से ५२,५४,५५,५७ से ५६ ज १११३,३०,३३;२।८३,१२०,४।२, ११३; ५।१,३,८ से १३,६८,७५६,५६ सू १६।२४ उ ३।५०५२६ विहरति प २।३२,३३,३५,३६,४३ से ४५,४८,५१ ५३ से ५६ ज २१७२; ३।१२६; २८ से १३ सू २०१७ विहरसि उ ३८१ विहरामि उ ११७१,३१३६ विहराहि ज ३।१८५,२०६ विहरिस्संति ज १२१३४,१४६ विहरेज्जा सू २०१७ उ ५।३६ विहरमाण (विहरत्) ज २१७१ उ ११२,२० विहरित्तए (विहर्तुम् ) ज ७।१८४,१८५ सु १८।२२ उ ११६५,३१५० विहरिय (विहृत) उ ३१५५ विहव (विभव) ज ५१४३ विहाड (वि- घटय) विहाडेइ ज ३।६०,१५७ विहाडेहि ज ३८३,१५४ विहाडिय (विघटित) ज ३।६० विहाडेता (विघट्य) ज ३१८३ विहाण (विधान) प ११२०१२,११२०,२३,२६,२६, ४८,६८ विहाणमग्गण (विधानमार्गण) प २८६.६,५२,५५ विहायगति (विहायोगति) प १६।१७,३८,५५ विहायगतिणाम (विहायोगतिनामन्) प २३।३८, ५६,११६,११७,११६,१२८,१३२ विहार (विहार) ज २७१ विहि (विधि) प २।४५ ; २१११११ ज ३।२४।२, सू १६०२२ विहिण्णु (विधिज्ञ) ज ३।३२ विहूण (विहीन) प १०।१४।५ ज ४१६४,८६,१३६, २०८ बिहूसण (विभूषण) ज ४।१४०।१ वीइ (वीचि) ज ३।१५१ वीइक्कंत (व्यतिक्रान्त) ज २१५१,५४,७१,८८, ८६,१२१,१२६,१३०,१४६,१५४,१६०,१६३; ३१२२५ उ ११५३,७८,३।१२६ Page #1127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५० वीइभय-वुच्च वीइभय (बीतिभय) प १६३।४ वीरियंतराइय (वीर्यान्तरायिक) प २३६५६ वोइय (बीजित) ज ३।६,२२२ वीरियंतराय (धीर्यान्तराय) प २३।२३ वीइवइत्ता (व्यतिव्र) ज १११६,४६,४१५२ वीवाह (विवाह) ज २।१३० । उ ५।४१ वीस (विस) प २२० से २७ वीईवयमाण (व्यतिव्रजत्) ज २१६०,३।२६,३६, वीस (विंशति) प २।२४ ज ११२३ सू ७।१ ४७,५६ ६४,७२,१३३,१४५,५१४४,४७,६७ उ ५।२८ वीचि (वीचि) ज २११५,३८१ वीस (विंशतितम) प १०।१४।४ वीणग्गाह (वीणाग्राह) ज ३।१७८ वीसइ (विंशति) ज ३।१०६ च २।५ २ १।६।५ वीतराग (टीत राग) प १११०७ से ११०,११५, वीसइअंगुलवाहाक (विशत्यंगुलबाहुक) ज ३।१०६ ११७ से १२३ बीसति (विंशति) प २३७५ वीतरागसंजय (वी। रागसंगत) प १७।२५ वीसतिम (विंशतितम) सू १२।१७ वीतसोग (वीतशोक) सू २०१८ धीसधा (विंशतिधा) सू १२।३० वीतिमिर (वितिमिर) । २०६३ वीससा (मिस्रसा) १६५५; २३।१३ से २३ वोतिवयमाण (व्यतिव त्) ज ३।११३; ५।४४ वीससेण (विश्वसेन) ज ७।१२२।२ सू १०।०४।२ वीतीवय (वि:-अति-व्रज) वीतिवथति वीसहा (विंशतिधा) सू १०।१४२,१४७ भू२०१२ वीसायणिज्ज (विस्वादनीय) प १७।१३४ वीसुत (विश्रुत) ज ३।३५,११६ वीतीवतित्ता (अतिव्रज्य) प २१६३ वीहि (व्रीहि) प ११४५।१ ज २।३७ वीयणी (बीजनी) ज ३।३ वुच्च (वच्) बुच्चइ प ५७,३४,१०१,११६,१६६; वीयराग (पीतराग) प ११००,१०४ से १०७, ११।३,४१,१७१२,१३,२०,२७,११६,११६, १०६ से १११,११५,११६,११८,१२१ से १२३ १५२,१५५,२०१३६ ज ११४५,४७, २।४।१; वीयराय (वीतराग) प १।१०२ से १०४,११६, ३।१,६८,२२६,४।२२,३४,५१,५४,६०,६१, ११७,११६,१२०,१२२ ८०,८५,८६,६७,१०२,१०७,११३,१५६,१६१, वीयसोय (बीतशोक) ज ४।२१२,२१२१२ १६६,१७७,२०८,२११,२६१,२६४,२७०, सू २०१८७ २७३,२७६,७।१६६,१८५,२०६,२१३,२२६ वीर (वीर) ज ३१६,१०३,१०८ से १११,२२२ उ ३।३८ वुच्चंति प २२१४५;३०।१७ वुच्चति चं ११ उ ११२२,१४०, १५,१० प ५।३,५,७,१०,१२,१४,१६,१८,२०,२४, वीरंगय (वीराङ्गद) उ ५।२५,२७ से ३० २८,३०,३२,३७,४१,४५,४६,५३,५६,५६, वीरकण्ह (कीरकृष्ण) उ ५।१० ६३,६८,७१,७४,७८,८३,८६,८६,६३,६७, वीरण (वीरण) प ११४१११ १०४,१०७,१११,११५,१२७,१२६,१३१, वीरवर (वीरवर) सू २०६६ १३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७, वीरसेण (वीरसेन) उ ५।१० १५०,१५४,१५७,१६३,१६६,२०३,२४२; वीरिय (वीर्य) प २३।६ ज २१५१,५४,७१,१२१, १०१३;११४३,३६,४१,१५।४५,४८,६८; १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, ... १७१२,४,६,६,११,१६,१७,२०,१०७,१०६, १६३, ३।३,१२६,१८८,७१७८ सू २०११, १११,११६,११६,१५०,१५५, २०१३६,५१; २०६।३,५ २२१८,४५,२३।१६०।२६।१७,१६ से २१% Page #1128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वुद्धि-वेद ३०।१६,१६,२१,२३,२६,२८,३४।१२,१६, १८३५॥१८,२०,२३,३६।२८,८१,६४ वुट्ठि (वृष्टि) ज ३।११७ वुड्ढकुमारी (वृद्धकुमारी) उ ४६ वुड्ढय (वृद्धक) ज २१६५ वुड्ढा (वृद्धा) उ ४६ बुढि (वृद्धि) प ३३।१।१ ज ७।१,१०,१३,१६, १६,६६,७२,७५,७८ चं २।४ सू ११६।४,श२७ १३।१७ वृत्त (उक) ज ३१८,१३,१६,२६,४२,५०,५३,५६, ६२,६८,७०,७५,७७,८४,१००,१२५,१२६, १४२.१४८,१६५,१६६,१८१,१८६,१६२; ५।१५,२२,२६,७० चं २।४,५,५२ सू १।६।४,१।६।३ उ ११४०,४५,५५,५८,८०, ८२,१०८,३७८,८२,११३, ४।२० 1वेअ (वि+इ) वेअति सू ६१ वेइगा (वेदिका) ज ४।१२८ वेइया (वेदिका) प २।१२११६० ज २।२०४१३, २५,३६,५७,६३,११०,१४८,१५६,२२१,२४५ वेउवि (वैक्रिथिन् ) प २०४६ वेउविय (वैक्रियक) प १२।१,२,४,५,८,१४,१८, २४,२८,३३,३६;१६।५।२१।१,८३,१०४, १०५;२३।४२,६०,६२,१४६,१७३,३६।१।१, ३६३२ ज २१८०,५१४०,५६,७१५५,५८ सु १६।२३ २६ वेउव्वियमीससरीर (वैक्रियमिश्रशरीर) १६।१, ३,७,१० वेउव्वियमीसासरीर (वैकिमिश्रकशरीर) प१६।११,१२,१५,३६।८७ वेउव्वियसमुग्धाय (वै क्रिसमुद्घात) प ३६।१,४ से ७,२८,३५ से ३८,४०,४१,५३ से ५८,७० ७३ ज ३।११५,१६२,२०८:५।५,७,२६,५५ वेउव्वियसरीर (वैक्रियशरीर) प १२।१२,१६; १६।१,३,७,१२,१५, २११४६ से ६५,६८ से ७१,७७,८१,९६,६८,१०१,१०४,१०५; ३६।८७ वेउब्वियसरीरग (वैक्रियशरीरक) प १२।३६ वेउब्वियसरीरय (वैकिाशरीरक) प १२१८,२१,३१ वेउब्वियसरीरि (व क्रियशरीरिन् ) २८।१४१ वेंट (वन्त) प११४८।४५ वेंटबद्ध (वन्तबद्ध) प ११४८।४० वेग (वेग) प २१२१ से २७,३० ज २०१६ वेगच्छिग (वैकक्षिक) ज ७।१७८ वेच्च (दे०,व्युत,व्यूत) ज ४।१३ वेजयत (वजयन्त) प १११३८, २।६३,४।२६४ से २६६,६।४२,५६,७।२६१५८६,६२,१००, १०५,१०८,१०६,११३,११४,११६,१२०, १२१,१२३,१२५,१२६,१३१,१३६२८६६ ज १११५ वेजयंती (वैजयन्ती) प २।४८ ज ३।३१,१७८; ४।४६,२१२;५।८।१,५।४३,७।१२०१२,१८६ वेज्म (वेध्य) ज ३।३२ वेड्ड (दे० वीडित) ज २१६० वेढ (वेष्ट) ज २११३६ Vवेढ (वेष्ट) वेढइ उ ११४६ वेढय (वेष्टक) ज २।१३६ वेढल (दे०) प ११५८ वेढिम (वेष्टिम) ज ३।१११ वेढिय (वेष्टित) ज ३।३२ वेढेता (वेष्टित्वा) उ ११४६ वेणइया (वनयिकी,वैण किया) प १९८ उ ११४१, वेणुदालि (वेणुदालि) प २।३७,३६,४०१७ वेणुदेव (वेणुदेव) प २।३७,३८,४०१६ ज ४।२०८ वेणुयाणुजात (वेणुकानुजात) सू १।२६ वेत्त (वेत्र) प ११४१।१,१११७५ ज २१६७ वेद (वेदय) वेदेइ प २३।१।१,२५४ वेदेति प १७।२०,२३।११,२५॥४,५;२७।२,३,३५१२, ३,५,७,६,११,१३,१४,१७ से २०,२२,२३ वेदेति प २३१९,१०,१२ से २३,२५१२, २७।२, Page #1129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५२ वेद-वेयणा वेद (वेद) प ११६;३।१।११८।१।१; ८,१०,११,१४,१५, २५।१,२,४; २६।१,३,४, २८।१०६।१ उ ३।४८,५० ८,६२७।१,२,६,२८।१,७४,१०१,१०२, वेदग (वेदक) प ११६४।१;२५॥४,२७।३ १०५,१०६,१०६,१११,११५ से ११७,१२२, वेदणा (वेदना) प २।२३,२६,१७।१७.२०,२७, १२७,१३२, २६।१५,२२,३०।१४,२४; २६,३२,३३,२२१५; ३५।१११,३५।१ से ७,६, ३११५,६।१,३२।५,३३।३०,३४,३७; ११ से १४,१६ से २०,२२,२३ ज २११३१ ३४६४,५,११ से १४;३५॥३,५,७,६,१११५, वेदणासमुग्धाय (वेदनासमुद्घात ) प ३६।१,२,४ । २३,३६१७ से ६,११ से १३,१५,२०, से ८,१२,१८ से २०,३२,३६ से ४१,४६,५३ : २६,२७,३०,३२ से ३४,४१,४३ से ४५,४७, से ५६,६५ ५०,६५,६६,१२,७३ ज १९०,६५,६६, वेदणिज्ज (वेदनीय) प २३।१,१२,२४।१२,२५१५; १००,१०१,१०२,१०४,१०६,११०,११३ से २६।६.११;२७१५,३६।८२,६२ ११६,१२०,४।२४८,२५० से २५२,५११६, वेदपरिणाम (वेदपरिणाम) ॥ १३।२,१४,१५,१८, २६,२८,४७,६७,७२,७३,७४ वेमाणियत्त (वैमानिकत्व) प ३६।१८,२०,२२,२४, वेदय (वेदक) २७२ २६,२७,३० से ३४,४६,४७ वेदि (वेदि) उ ३१५१,५६,६४,६८,७१,७४,७६ वेमायत्त (विमानत्व) प २८।३६,४२,४५,४६,७१ वेदिया (वेदिका) ज १११४ ।। वेमाया (विमात्रा) प ७४४,१३।२२।१;२८।३८ वेदमाण (वद त्) प २६।२ से ४,८,६,१२,२७।२, वय विद्) वइसु प १४।१८ वइस्सति प १४।१८ वेएइ प २३।१५,१६,१८ से २० वेमापिणी (कैमानिकी) ५३।१४०,४१२१० से वेएंति ५१४।१८ २१२; १७५५,८०,८२,८३, २०१३ वेय (वेत्र) प ११४२।१ वेय (वेद) प १४।१८।१ वेमाणिय (वैमानिक) १११३०,१३४,१३८%; वेयग (वेदक) प २७।५ २०४६ से ५१,३११३६४।२०७ से २०६; वेयड्ढ (वैताद।) ज १।१८ से २०,२३ से २५, ५॥३,२६,१२२,६।४६.५६,६६,८५,८६,६२, २८,३२,३३,४६।१,४७,४८, २११३३,३।१, ६५,१०६,१११,११७,११६,१२१,७।७; ६१,१३७,२२०;४।१६७ से १६६,१७२।१, ८।३।६।११,१८,२४;१०।३२ से ५३;१११४६, १७३,१७७ ८०,८१,८४,१२१६,३८; १३।२०१४।२,३, वेयड्ढकूड (वैताद रक्ट) ज ११३४,४६,६।११ ५,७,६,११ से १५,१८,१५।३५,४६,५६ से वेयड्ढगिरि (वैताद : गिरि) ज २।१३१;३।२२० ६३,६५ से ६७,७५,८२,१३४, १६।९,१६, उ ५।१० २०,२१,२६; १७।२७,२८,३०,३४,३५,५४,७६ वेयड्ढगिरिकुमार (वैतादयगिरिकुमार) ज ११४७; से ८१,८३,८६ से ६१,६६.१०५१६।४; . ३६३ से ६६,६८,७२ २०११,४,५,१३,१६.२५,३०,३५,३७,५४,५६; वेयड्ढपध्वय (ताढ्य पर्वत) ज ११३४,३५,४१; २११५५,६२,७१, २२।१११३,१५,१७,१६, ३६०,६१,१३६,१३७,४१३५,३७,१६७,१७४ २०,२६,२७.३१,३५,३७.३६,४१,४२,४४, वेयणा (वेदना) प १३१७,२।२० से २२,२४,२५, ४७,५३ से ५८,६६,७५.७६,७६,८२,८८, २७,३५८,१०,२०३६।११ ज २।४३ ६०,१००,२३१२,४ से ७,१०,११,२४।१,३, उ ११६०,६२,८५,८७ Page #1130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेयणासमुग्घाय-स १०५३ वेयणासमुग्धाय (वेदनासमृद्घात) प ३६।३५,३७, सासिय (वैश्वासिक) उ३।१२८ ३६,४१ वेहल्ल (वेल्ल) ज ११९५ से १६,१०२ से ११७, वेयणिज्ज (वेदतीय) प २२।२८,२३।२६२४।१०, ११६,१२७.१२८ राजा श्रेणिक का एक पुत्र । ११;२५॥३,४;२६।८; ३६१८२ ज ३।२२५ वेहास (निहायस्) ३१३१,१३२, ५।६४ वेयय (वेदक) प २५१४ उ १९७ वेयवेयय (वेदवेदक) प ११११६ बेहाकडच्छाया (बिहा स्कृतच्छा 1) सू ६।४ वेर (वैर) ज ११४२,१३३ वोकाण (दे० प ११८६ वेरमण (दिरमण) प २०११७,१८,३४ वोच्छ (ब) चोच्छ म ज ७/१३५११ वेराण बंध (वैरानुबन्ध) ज २१४२ सू १६२।३१ वेराणुसय (वैरानुशय) ज २।२८ बोच्छिद (F: अब छिद) वोच्छिजिस्सइ वेरिय (वैरिक) ज २१२८ ___ज २१२६,१५८ वेरुलिय (वैडय) प ११२०१४ ज ११३७,३।१२, वोच्छिष्ण (व्य च्छिन्न) ८.१ उ ३।३४ ८८,६२,११६,१६७।१२,१७८,४१२४२, वोच्छिण्णदोहन (च्छिन्नदोहद) ११५०,७५ २६४:५५,२१,५८,७११७८ वोच्छेयकइ (व्यवच्छेदबटकी) प १७।१३४ योज्य (5) भिहितिज ११३४ वेरुलियाड (वैडर्यकट) ज ४७६ वेरुलियमणि (वैडूयं णि) प १७।११६,१४८ वोज्ज्ञ (उद्य) ज ३१२११; ५१५८ वोडाण (दे०) प ११४४।१ ज ४।३,२५ वेरुलियमय (वैड्यंमा) ज ३।१२,८८,४७,२६, वोयड (व्य वृत) प १११३७।२ बोलीण (त') सु २०६४ १६२,२४२,२६४;५।५८ वेलंबग (विडम्बक) ज २।३२ वोसकाय (गत्माष्टकाय) ज २०६७ वेलंबय (विडम्बक) ज २६३२ वैसाह (वैशाख) ज ७.१०४ व्व (इ) प १११०११७; २१४८ ज २०१५; वेला (वेला) प २११ उ ३।११० ३।२४१३,३७।१,४५०१,१३११३ उ ११३५ वेलु (वेणु) प ११४११२ वेलुय (वेणुक) प ११४८६१ वेस (वेष) प २।४१ ज २।१५,३।१३८,१७८ स (व) प रा३०,३१,४१४६,५०,५८ ज १११६; सू २०१७ २।१२०, ३११२,१७८ २ १०७४ उ ३।२६, वेसमण (वैधमण) ज ३।१८,३१,६३,१८०; ५५,१४१,४१२ ४।१७२।१।५।६८ से ७१,७१२२।२ स (स) प ११४८।४६; २१३०,३१,३२,४१,४६,५६, सू १०१८४।२ उ६।५४ ६३,६६ ज १८,१६,२३,२६,३१,३५२१६४, बेसमण (काइय) (वैध णकायिक) ज ११३१ ७१,७२,७७ से ८२,३१६,१७,१८,२१,२८, नेसमण कूड (वैश्रः कूट) ज ११३४,४६,४।४४, ३०,३५,४१,४६,५८,६६,७४,७६,८१,१०१, ३,२०२ ११६ से ११८,१२८,१४७,१५१,१६७,१६८, वेसाणिय (वैधाणिक) प ११८६ १८०,२१२,२१३,२२२,१३,१३,२१,२५, वेसाली (वैशाली) उ १११०५ से १०७,११०,१११, . ३६,४०,४१.५०,५१,५६,६७,११२,११४, ...११५.११६,१२६,१३०,१३२ १.हे० ४११६२ Page #1131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५४ सअंतर-मुखेज्ज ११६,१३५,१४७,१५५,१५६,२२१ से २२४, २५६,२७७,५।१,२१,३२,४१,४३,५०,५८%; ६।१०,११,१४,१५,१८,१६,२१,२२,२६, ७।४,४६,६३,६६,८७,६०,११०,११४,१३२, १६७,१८३,१६४ सू १८१२१, २०१२,७ उ१२६.४४ से ४६,६३,१०५,१०६,११५, ११६,११६,१३८,१४८, ४।५;५।२८ सअंतर (सान्तर) ५६।१।१ सई (सकृत् ) सू १।१२,१४ साइंदिय (सेन्द्रिय) प ३।४० से ४३,४६१८।१३, १८,१६ सइय (शतिक) ज ४।१६२,१६८,२०४,२१०, २३६,२६६,२७५ सउण (शकुन) ज २।१२; ४।३,२५ सउणरुय (शकुनरुत) ज २१६४ सउणि (शकुनि) ज २११६७।१२३ से १२५, १३३।१ सउणिपलीणगसंठिय (शकूनिप्रलीन कसं स्थित) सू १०।२६ संकड (संकट) ज ३।२११ संकप्प (संकल्प) ज ३।२६,३६,४७,५६,१०५, १२२,१२३,१३३,१४५,१८८,४।१४०।१; ५।२२ उ १।१५,३५,४१ से ४४,५१,५४,६५, ७१,७६,७६,६६,१०५ ; ३।२६,४८,५०,५५, ६८,१०६,११८,१३१;५॥३६,३७ संकम (संक्रम) प १०।३० ज ३।६६ से १०१,१६१ सु १६।२२।१२ सिंकम (+-क्रम) संकमति सू २२२ संमण (संक्रयण) सू १६।२२।१२ संकममाण (संक्रामत्) ज ७।१०,१३,१६,१६,२२, २५,२७,३०,६६,७२,७५,७८,८१,८४ सू १११४,१६,१७,२१,२४,२७,२।२,३,६।१ संकला (शृंखला) ज ३।३ संकाश्य (दे०) ३।५१,५३,५५,५६,६३,६४,६७,६८, ७१,७३,७४,७६ संकाइयग (दे०) उ ३५१ संकास (संकाश) प ११४८।५६ ज २१७८; ३११ संकिलिट्ठ (संक्लिष्ट) १७.११४।१,१३८; २३।१६५ संकिलिस्समाण (संक्लिश्यमान) १ ११११३,१२८ संकिलेसबहुल (संक्लेशबहुल) ज १११८ संकुचियपसारिय (संकुचितप्रसारित) ज ५१५७ संकुड (दे० संकुच) सू १६।२२।१५ संकुडिय (दे० संकुचित) ज २११३३ संकुय (संकुच) ज ७।३१,३३ सु ४।३,४,६,७ संकुल (संकुल) ज २१६५,३।१७,२१,१७७; ५२५ संख (शंख) प ११४६; २।३१,१७।१२८ ज २।१५, २४,६४,६८,६६, ३।३,१२,७८,१६७।१,१०, १७८.१८०,२०६४।८५,१२५,२१२,२१२।१; ५।६२; ७।१७८ मू २०१८,२०१८।२ संखणग (शंखनक) प ११४६ संखणाभ (शङ्खनाभ) सू २०१८ संखदल (शङ्खदल) प २१६४ संखधमा (शंखध्मायक) उ ३.५० संखमाल (शङ्खमाल) ज २।८ संखवण्णाभ (शङ्खवर्णाभ) सु २०१८ संखसणाम (शंखसनामन्) ज ७।१८६।२ संखायण (शंखायन) ज ७४१३२।१ सू १०१६३ संखार (शंखकार) प ११६७ संखावत्त (शंखावर्त) प ६२६ संखिज्ज (संख्येय) ज ३।१६२५१५ संखित्त (संक्षिप्त) ज १८,३५,५१,४।४५,११०, ११४,१५६,२१३,२४२ संखित्तविउलतेयलेस्स (संक्षिप्त विपुलतेजोलेश्य) ज ११५ उ ११३ संखिय (शांखिक) ज २१६४; ३।३१,१८५ संखेज्ज (संख्येय) प १११३,२०,२३,२६,२६,४०, ४८,११४८।८,४०,५७,३।१८०,५२,३,५,१२६, १२७,१४२,१४३;६।३५ से ४१,६०,६१,६४, ६६,६८,१०।१६,१८ से २७,२६,१११५०, ७२,१२॥३२,३३,३६,१५।८३,८४,८७,८६, Page #1132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संखेज्जइभाग-संघयणपज्जव १०५५ ६१,६३ से ६६,१०३,१०४,११०,११२,१२२, संखेवरुचि (संक्षेपरुचि) प १११०१।११ १२३,१३० से १३२,१३५ से १३७,१३६, संखोहबहुल (संक्षा भबहुल) ज ११८ १४२,१४३;१८।१५,२० से २३,२८,३२ से संग (सङ्ग) ज २१७० ३५,४७,५.० से ५२,३३।११,१५,३६।८,१४, संगइय (साङ्गतिक) ज २।२६ १७ से २०,२२,२३,२५,३३,४४,७०,७२,७४ संगंथ (संग्रन्थ) ज २१६६ २।४,५८,१५७; ५७ १६।३०,३१ संगत (सङ्गत) सू २०१७ संखेज्जइभाग (संख्येयभाग) प ६।४३:२११६५ से संगय (सङ्गत) ज २।१४,१५, ३३१०६,१३८; ७०,३६१७२ ७/१७८ संखेज्जगुण (संख्येयगुण) प ३।४,२५,३७,३६,४३, संगह (संग्रह) प १६।४६ ४४,४६,५३ से ५८,६०,६४ से ७१,८८ से संगहणिगाहा (संग्रहणीगाथा) प १४.७:२११४७ ६५,६७,६६,१०६,११०,१२८ से १४०,१४४ संगहणी (संग्रहणी) ज १।१७,६।६।१७।१६७ से १५५,१७१ से १७४,१७७,१७६ से १८३; यु १६१ उ ३।१७१ ; ४।२८,५१४५ ५।५,१०,२०,३२,१२६,१३४,१५१;६।१२३; संगहणीगाहा (संग्रहणीगाथा) प १०५३ ८१५,७,६,११:१०।२६,२७,१५।१३,३१; संगहिय (संगृहीत) ज ३।३५ १७१५६,६३,६४,६६ से ६८,७१ से ७३,७६, संगाम (संग्राम) ज ३।६२.११६ उ १।१४,१५, ७८,८० से ८३;२१।१०५,२८७,५३; ... २१,२२,२५,२६,१२६,१३७,१४० ३४।२५,३६।३५ से ४१,४८ से ५१ ज ७।१६७ संगामेमाण (सङ्ग्रामत्) उ १।२२,२५,२६,१४० सू १८।३७ संगल्लि (दे०) ज ३।१७६ सिंगोव (सं-गुप) संगोवेति ज २०४६,५६ संखेज्जजीविय (संख्येयजीवित) प ११४८।४१ ___संगोवेस्संति ज २।१५६ संखेज्जतिभाग (संख्येयभाग) प १२।१६,१५।४१ संगोविज्जमाण (संगोप्यमान) उ ३.४६ संखेज्जपएसिय (संख्येयप्रदेशिक) प ५।१३४,१६२, संगोवेत्ता (संगाप्य) ज २०४६ १६३,१८१,१६६,१६७,२१७,२१८,१०।१४, संगोवेमाण (संगोपयत्) उ ११५७,५८,८२,८३ १७,२६,२६ संघ (सड) प २।३०,३१,४१ ज ११३१, २११३१ संखेज्जपदेसिय (संख्येयप्रदेशिक) प ३।१७६; उ ५१५ ५।१२७,१३३,१८०,१८१;१०।१८,२१,२६ संघट्ट (सं+ घट) संघटॅति प ३६।६२ संखेज्जभाग (संख्येयभाग) प ५१५,१०,२०,३०, संघट्टा (संघट्टा) प ११४०।३ इरा नाम की लता ३२,१२६,१३४ संघबाहिर (संघबाह्य) सु २०१६।४ संखेज्जवासाउग (संख्येयवर्षा युक) प६७१ संघयण (संहनन) प२३०,३१,४१,४६;२३।१८, संखेज्जवासाउय (संख्येयवर्षा यूक) प६७१,७२, १०५,१०७,१६० ज ११५,२।१६,४६,५८,८६, ७६,६७,६८,११३,११६:२११५३,५४,७२ १२३,१२६,१२८,१४८,१५१,१५७,४।१०१, संखेज्जसमयद्वितीय (संख्येयसमयस्थितिक) १७१ सू १५ प ३।१८१,५।१४८ संघयणणाम (संहाननामन् ) प २३१३८,४५ ६४ संखेज्जसमयठितीय (संख्येयसमयस्थितिक) से ६७,६६,१०० प ३३१८१ संघयणपज्जव (संहननपर्यव) ज२१११,५४,१२१, संखेव (संक्षेप) प १।१०१।१ १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३ Page #1133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५६ संघरिससमुट्ठिय-संठित संघरिससमुठ्ठिय (संघर्षसमुत्थित) प ११२६ संजायसड्ढ (संजातश्रद्ध) ज ११६ संघाइम (संघातिम) ज ३।२११ संजुत्त (संयुक्त) प १५१५७ संघाड (संघाट) प ११४८१६२ संजोग (संयोग) प २१।१।१ ज ५१५७;७।१३४१२,३ संघाडय (संघाटक) उ ३।१००,१३३ संजोय (संयोग) प १८४; १६।१५ संघात (सं!- घातय) संघातेंति सू १११८ संजोयणाहिकरणिया (संयोजनाधिकरणिकी) संघाय (मंघात) प ११४७।२,३ ज ७१७८ प २२।३ संघाय (सं-घाय) संघाएंति प ३६।६२ संझन्भराग (सन्ध्याभ्रराग) प १७।१२६ संचय (संच ) ज २।१६,३११६७।१४ संझा (सन्ध्या ) प २१४०।११।। संचाय ( स मक) संचाएइ उ १६५२,३।१०६ संठाण (संस्थान) प ११४ से ६,४७११, २०२० से जंचाएमा प२०११७,१८,३४ संचाएमि २७,३०,३१,४१,४८ से ५०,५४,५८ से ६०, उ ११६५; ३।१३१ संचाएमो उ ११६६ ६४,६४११,४,५,६,१०।१५ से २४,२६ से संचाएहिइ उ ३।१३० ३०;१५।१११,१५।२ से ६,१८,१६,२१,२६, संचारिम (संचारित) ज ३।११७ ३०,३५,२१११।१,२११२१ से ३७,५६ से ६२, /संचिट्ठ (सं| ष्ठा) संचिट्ठइ उ ११३८,३१५६ ७३,७८ से ८०,६४, २३११००,१६०;३०।२५, चिटुसि उ १८६,३७६ २६; ३३।१।१,३३।२१ से २३,३६।८१ ज ११५, संचिय (सञ्चित) प २३।१३ से २३ ज ३।२२१ ७,८,१८,२०,२३,३५,५१:२।१६,२०,४७, संछण्ण (संछन्न) ज ४।३,२५ ८६,१२३,१२८,१४८,१५१,१५७,३।३,६५, संजत (संयत) प ३।१०५६।९७,६८,२११७२; १५६,४।१,३६,४५,५५,५७,६२,६६,७४,८४, ३२।६।१ ८६,६१,६७,६८,१०१,१०२,१०३,१०८,११०, संजतासंजत (संयतासंथत) प ६१९८२११७२; १६७,१७८,२१३,२४२,२४५; ७।३१,३२११, ३२।१,३ ३३,३५,५५,१२७११,१२६।१,१३३१३,१६७।१; संजतासंजय (संगतासंयत) प ३२१४ १६८१२,१७६ च ३।२ सू १७।२,१।१४; संजम (संयम) प ११११७ ज ११५, २१८३,३३३२। १ १ ०।६१३।१७,१८१८ उ ११३ उ ११२,३,३।२६,३१,६६,१३२,५२६ संठाणओ (संस्थानतस्) प ११५ से है संजय (यत) प ३।१।१,१०५,६।१८,१७।२५, संठाणतो (संस्थानतस्) प १७ से ६ ३०,३३, १८।१।१,१८१८६२११७२; संठाणणाम (संस्थाननामन्) प २३।३८,४६ २८।१०६।१,२८।१२८, ३२।१ से ४,६६।१।। संठाणपज्जव (संस्थानपर्यव) ज २१५१,५४,१२१, संजयासंजय (संयतासंयत) प३।१०५; ६९७; १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३ १७।२३,२५,३०:१८।६१२१।७२,२२१६२; संठाणपरिणाम (संस्थानपरिणाम) प १३।२१,२४ २८।१३०, ३२११,२,६ संठाणा (दे०) सू १०६,६२,६७,६८,७५,८३, संजलण (संज्वलन) प १४१७; २३।३५ १०३,१२०,१३१ से १३३;१२।२० मृगशिरा संजलणा (संज्वलना) प २३।१८४ नक्षत्र संजारर (सजात) ज ३।१११,१२५ उ ११८६ संठिइ (संस्थिति) ज ७।३१,३३,३५ चं २।१३।१, संजाय उहल्ल (संजातकौतूहल) ज ११६ १ सू १।६।१,१।७।१,१।६।१ संजायसंसय (संजातसंशय) ज ११६ संठित (संस्थित) प २।२० से २७,३०,३१,४१, .. Page #1134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संठिति - संपण्ण ४८ से ५०,५४,५६,६०,६४ १२५; ३।२; ४२ से ४, ६, ७, ६, ३३,३६,१०।२७ से ३१, ३३, ३४ से ४४,४६ से ५४; १८८; १६ २, ३, ६,६,१२,१३,१६,१७,२२/२,१५ संठिति ( संस्थिति) ज २/४६ सू १।१५, १६, १७, २५,४१ से ४, ६, ७, ६; ६।१; ८ १ ; ६२; १३।१७ संठिया ( संस्थित) प २०४८, ६४; १५२ से ६,१८, १६,२१,२६,३०,३५; २१।२१ से ३७, ५६ से ६२,७३,७८ से ८१,८३ ; ३३।१६ से २६; ३६१८१ ज ११५, ७, ८, १८, २०, २३, ३५, ३७, ४८,५१२।१५,१६,२०,४७, ८६; ३६, ६४, ६५, १३३,१३५,१५८, १५६, १६७, २२२:४१, २३,३८,३६,४५,५५, ५७, ६२, ६५, ६६, ७३.७४, ८६,६०,६१,६७, ६८, १०३, १०८, ११०,१२८; १६७ ११, १६६,१७८,२१३,२४२, २४५ ; ५।४३;७।३१ से ३३,३५,५५,१३३,१६७, १७६,१७८ सू १५, १४; ४ ६ उ १३ is (षण्ड) ज ३ | ११७,१८८ संडिल्ल ( शाण्डिल्य ) प १।९३।३ संजय ( सन्नत) ज ३११०६ संत (सत् ) प १।४७ । ३ ज २६४,६६ सू २० हार संत ( शान्त) ज २१६८ संत ( श्रान्त) उ ११५२,७७ संतइभाव (संततिभाव ) प ८४,६ संततिभाव ( सन्ततिभाव ) प ८५१० संत ( सं + तप्) संतप्पति सू ६ । १ संतप्यमाण (संतमान) सू ६ । १ संत ( सन्तत ) प ७|१ संतर ( सान्तर ) प ६।४७ से ५८; ११ ७०, ७१ संताणय ( सन्तानक) सू २०१८ संता ( सं + तापय् ) संत वेंति सू ३ | १ संतिकर (शान्तिकर) ज ३१८८ ( संथर ( सं + स्तृ) संथरइ ज ३१२०, ३३, ५४,६३, ७१,८४,१३७,१४३,१६६ संथति ज ३।१११ संथरित्ता (संस्कृत्य, संस्तीर्य ) ज ३।२० संथरेत्ता (संस्कृत्य, संस्तीर्य ) ज ३।१११ संथव (संस्तव ) प १।१०१।२३ संथार (संस्तार ) ज ३।११३ संथारग (संस्तारक) ज ३।१११ संथार (संस्तारक) ज ३।१११ १०५७ संण ( सं + स्तु) संथणइ ज ५५८ संथुणित्ता (संस्तुत्य ) ज ५।५८ संय (संस्तुत ) ज २६ε संव्वमाण (संस्तूयमान) ज ३११८, ६३, १८० संदभाणिया ( स्यन्दमानिका) ज २।१२,३३ संधि ( सन्धि ) प १।४८।३६ ज २।१५,१३३,४।१३, २६ संधिकम्म (सन्धिकर्मन् ) ज ३।३५ संधिवाल ( सन्धिपाल ) ज ३६,७७, २२२१६२ / संधुक्क (सं. +- धुक्ष ) संधुक्केइ उ ३।५१ संधुक्केत्ता (संधुक्ष्य ) उ ३।५१ / संधुक्ख ( सं + घुक्ष) संधुक्खंति ज ५।१६ संधुक्खित्ता (संधुक्ष्य ) ज ५।१६ संनिक्खित्त (सन्निक्षिप्त) ज १।४० संनिचित ( सन्निचित) उ५।५ संनिवडिय (संनिपतित ) उ१।२३,६१ संनिविट्ठ (संनिविष्ट) ज ४।२७; ५५४ संनिसण्ण (संनिषण्ण) उ ३।११ संपत्त (संप्रयुक्त) ज ३३५,८२,१०३, १७८, १८७,२१८ संपक्खाग ( सम्प्रक्षालक) उ३१५० संपग्गहिय ( सम्प्रगृहीत) ज ३।३५,१७८ संपट्ठित ( सम्प्रस्थित ) प १६।२२ संपट्ठिय (सम्प्रस्थित) ज ३१७८, १७६,२०२, २१७५।४३ संपत्ति (संप्रणदित ) प २३०, ४१ संपदिय (संप्रणदित ) प २।३१ संपादित (संप्रणादित ) ज १।३१ संपण्ण (संपन्न) उ १।२; ३।१५६; ५।२६ Page #1135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५९ संपत्त-संलाव संपत्त (सम्प्राप्त) ज ५।२१ सू २।३ उ ११४ से संपुष्णदोहल (सम्पूर्णदोहद) उ ११५०,७५ ८,६३,६३,१४२,१४३, २११ से ३,१४,१५, संपेह (सं+प्र+ईक्ष ) संपेहेइ ज ३।२६,३६,४७ २१,३।१ से ३,२०,२३,२६,८८,१२६,१५३, उ १११७, ३।२६ संपेहेति ज ३।१८८ १५४,१६६,१६७,१७०,४।१ से ३,२७,५११, संपेहेमि उ १७६ संपेहेत्ता (सम्प्रेक्ष्य) ज ३।२६ उ १।१७,३।२६ संपत्ति (सम्प्राप्ति) उ ११४१,४३,४४ संब (शम्ब) उ ५।१० संपत्थिय (सम्प्रस्थित) उ ३१६३,६७,७०,७३ संबंधि (सम्बन्धिन् ) ज ३।१८७ उ ३१५०,११०, संपन्न (सम्पन्न) ज २०१६ १११; ४।१६,१८ सिंपमज्ज (सं+प्र-+मृज) संपमज्जेज्जा ज ५५, संबद्ध (संबद्ध) ज १२० से २७ ७५ से ७६ संबद्धलेसाग (संबद्ध लेश्याक) सू १६।११।२ संपया (संपदा) ज २०७४ संबररुहिर (शम्बररुधिर) प १७।१२६ संपराइयबंधग (साम्परायिकबन्धक) प २३१६३ संबाह (सम्बाध) ज २।२२,३।१८,३१,१८०,२२१ संपराइयबंधय (साम्परायिक बन्धक) प २३।१७६ उ ३३१०१ संपराय (सम्पराय) ज ३।१०३ संबुद्ध (सम्बुद्ध) उ ३।४५ संपरिक्खित्त (सम्परिक्षिप्त) ज १७,६,२३,२५, संभंत (सम्भ्रान्त) उ ११३७ २८,३२,३५,४।१,३,६,१४,२५,३१,३६,४३, संभम (सम्भ्रम) ज ३।२०६५।२२,२६ ४५,५७,६२,६८,७२,७६,७८,८६,६०,६५, संभव (सम्भव) ज ७।११४ १०३,१४१,१४३,१४८,१४६,१५२,१७४, संभिन्न (सम्भिन्न) प ३३।१८ १७६,१७८,१८३,२००,२१३,२१५,२३४, संभिय (श्लेष्मिक) उ ३१३५ २४०,२४१,२४२,२४५,५।३८ सू ३।१:१६।२, संभूयग (सम्भूतक) उ ३६८ १२,२८,३२,३६ उ ५८ संभोग (सम्भोग) उ ११२७,१४० संपरिवुड (सम्परिवत) ज २।८८,६०,३६,१४, संमज्जग (सम्मज्जक) उ ३५० १८,२२,३०,३१,३६,४३,५१,६०,६८,७७, संमज्जण (सम्मार्जन) उ ३१५१,५६,७१,७६ ७८,६३,१३०,१३६,१४०,१४६,१७२,१८०, संमज्जिय (सम्माजित) ज २१६५,३७,१८४; १८६,२०४,२१४,२२१,२२२,२२४;५।१,५, ५२५७ २२,४६,४७,५६,६७ उ ११२,१६,६२,६३,६७, संमट्ठ (सम्मृष्ट) ज २।६; ३७,५।५७ ६८,१०५ से १०७,१२१,१२२,१२६ से १२८, संमुच्छ (सं+मुर्छ ) संमुच्छंति सू ६।१ संमुच्छति १३३, ३।१११,४।१८,५३१६ सू २०११ संपलग्ग (सम्प्रलग्न) ज ३।१०७,१०६ उ १११३८ संमुच्छित्ता (सम्मूर्च्छ य) सू २०११ संपलियंक (संपर्यङ्क) ज २८८ संमुच्छिय (सम्मूच्छित ) सू ६१ संपाविउकाम (सम्प्राप्तुकाम) ज ५।२१ सम्माण (सं-- मानय्) सम्माणे इ उ १।१०६; संपिडिय (सम्पिण्डित) प १६.१५ ज २०१२ ३।११० सम्माणति उ ५।३६ सम्मामि संपिणद्ध (संपिनद्ध) ज २११३३, ३।२४ उ १।१७ संपुच्छण (सम्प्रच्छन) ज ५१५ संलवमाण (संलएत्) उ ११४७ संपुण्ण (सम्पूर्ण) ज़ ३।२२१ उ १॥३४ संलाव (संलाप) ज २।१५;३।१३८ सू २०१७ Page #1136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संलेहणा-सक्करप्पभा १०५६ संलेहणा (संलेखना) ज ३।२२४ उ २।१२,३।१४, ८३,१२०,१५०,१६१,१६६५२८,४३ संवच्छर (संवत्सर) प ४६५,६७,२३।७४,१८७ ज २१४,६६,६६;७।२०,२५,२६,३७,१०३, १०४,११२।२,३,११३,११४,१२६ वं २।३।५।३ सू १।६।३,१६,१३,१४,१६, १७,२१,२४,२७,२।३।६।१८।११०।१२४ से १२७,१२६।२,३,१३०,१३८ से १६१; । ११।१ से ६,१२।१ से ६,१० से १३,१६ से २८,३०; १३।२;२०।३ उ ३।१२६,१३४ संवच्छरण (संवत्सरण) सू १।६।३ संवच्छरिय (सांवत्सरिक) ज २।४;३।२१२,२१३, २१६;७।११०,१२७ सू १०।१२२,१२३ संवट्टकप्प (संवर्तकल्प) उ १।१३६ संवट्टग (मंवर्तक) ज २।१३१ संवट्टगवाय (संवर्तकवात) प ११२६ ज ५१५ संवड्ढ (सं-+ वृध्) संवड्ढे इ उ ११५८ संवड्ढे मि उ १२८३ संवड्ढे हि उ ११५७ संवड्ढमाण (संवर्धमान) उ ११५४ संवड्ढिज्जमाण (संवर्ध्यमान) उ ३।४६ संवत्त (संवृत्त) ज ३।१०६ संवद्धिय (संवद्धित) ज ३१३५ संवर (शंकर) प १६४ मृग की जाति संवर (संवर) प ११०१।२ संवाह (संवाह) प ११७४ ज २।२२ संविकिण्ण (सं विकीर्ण) प २।४१ ज ११३१ संविगिण्ण (संविकीर्ण) प २।३०,३१ संविणद्ध (संविनद्ध) ज ३।३१ संवुक्क (दे०) प १।४६ संवुड (संवृत) प ६।२० से २३ सू २०१७ संबुडजोगिय (संवृतयोनिक) प ६।२५ संवडवियड (संवत विवत) प ६।२० से २३ संवुडवियडजोणिय (संवृतविवृतयोनिक) प ६।२५ संवुत्त (मंवृत्त) ज ४।१३ संवुय (संवृत्त) ज ३।२२२ संसयकरणी (संशयकरणी) प १११३७।२ संसत्त (संसक्त) उ ३३१२० संसत्तविहारि (संसक्तविहारिन् ) उ ३।१२० संसार (संसार) प २०६४,६४।१ ज २०७० उ ३।११२ संसारअपरित्त (संसारापरीत) प १८।१०६,१११ संसारत्थ (संसारस्थ) प ३१८३ संसारपरित्त (संसारपरीत) प १८।१०६,१०८ संसारपारगामि (संसारपारगामिन्) ज २७० संसारसमावण्ण (संसारसमापन्नक) प १२१०,१४, १५,४६ से ५२,१३८ संसारसमावण्णग (संसारसमापन्नक) प १११३९; २२८ संसिय (संश्रित) ज ३।८१ उ ३३५५ संहित (संहित) प ११४७।३ संहिय (संहित) ज २०१५ सकथा (सकथा) उ ३.५१११ सकसाइ (सकषायिन्) प ३९८,१८३,१८१६४; २८।१३२ सकहा (दे०) ज २१११३ सकाइय (सकायिक) प ३१५० से ५३,६०,१८।२५; ३०,३१ सकिरिय (सक्रिय) प २२१७,८ सकोरंट (सकोरण्ट) ज ३१६,१८,७७,७८,६३, १८०,२२२ सक्क (शक्य) प १६४८।५७ ज २१६।१ सक्क (शक) प २।५०,५१ ज ११३१, २।८६,६०, ६३,९५,९७,६६,१०१,१०३,१०५,१०७,१०६, १११,११३,११८,३३११५,१२४,१२५; ४।१७२,,२२२,२२३।१,२३५,२४०,२४३; ५।१८,२० से २३,२७ से २६,३६,४१,४३, ४५ से ५०,६१,६२,६५ से ६६,७२,७३ उ ३।१२३,१५० सक्करप्पभा (शर्कराप्रभा) प १३५३;२।१,२०,२२; ३।१२,२२,२३,१८३;४७,८,९६।११,७४, ७५:१०११;२०१५१,५४:२११६७,३३४,१६ Page #1137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६० सक्करप्पभा पुढविणेरइय-सट्टाण सक्करप्पभापुढविणेरइय (शर्कराप्रभापृथिवीनरयिक) सचित्तजोणिय (सचित्तयोनिक) प ६।१६ प २०१५२,५५ सचित्ताहार (सचित्ताहार) प २८।१,२ सक्करा (शर्करा) प ११२०११,१७४१३५ सच्च (सत्य) प १११०१।१० उ ११२४ ज २।१७,६८,४।२५४ सच्चमासग (सत्यभाषक) प १११६० सक्कार (सत्कार) ज २२५; ३।२१७ उ ११६२; सच्चमण (सत्यमनस्) प १६।१ से ३,७,८,१०, ५१७ ११,१५,१८ से २१ सिक्कार (सत्कारय्) सक्कारेइ ज ३।६,२७,४०, सच्चमणजोग (सत्यमनोयोग) प ३६।८६ ४८,५३,५७,६५,७३,६१,१२७,१३४,१३६, सच्चवइजोग (सत्यवाक्योग) प ३६।६० १४६,१५१,१५२,१८६,२१६ उ १।१०६; सच्चा (सत्य) प १११२,३,३२,३३,४२ से ४६,८२, ३।११० सक्कारेंति उ ५।३६ सक्कारेज्ज ८४,८५,८८,८६ ज २०६७ सकारेमि उ १३१७ सच्चामोस (सत्यामृषा) प १११२,३,३५,३६,४२, सक्कारणिज्ज (सत्कारणीय) सू१८।२३ ४३,४५,४६,८२,८४,८५,८८,८६ सक्कारवत्तिय (सत्कारप्रत्यय) ज ५।२७ सच्चामोसमासग (सत्यामृषाभाषक) प ११।६० सक्कारिय (सत्कारित) ज ३८१ सच्चामोसमण (सत्यामृषापनम् ) प १६।१,७ सक्कारेत्ता (सत्कार्य) ज ३।६ उ ३५० सच्चामोसमणजोग (सत्यामृषामनोयोग) प ३६८९ सक्कुलिकण्ण (शष्कुलिकर्ण) प ११८६ सच्चामोसवइजोग (सत्यामृषावाल्योग) ३६।६० सक्कोस (सक्रोश) ज ११२३,३५ सच्चित्त (सचित्त) प २८।११ सखिखिणी (सकिकिणी) ज ३।२६,३०,३६,४७, सच्छंद (स्वच्छन्द) प २१४१ ५६,६४,७२,११३,१३३,१३८,१४५,१७८ सच्छंदमइ (स्वच्छन्दमति) उ ३।११६४।२२ सग (स्वक) प २११६२,६३, ३३।१६,१७ सच्छीर (सक्षीर) प ११४८।३६ ___ ज २११२०,३८१,८६,१०२,१५६,१६२ सग (शक) प १८९ सजोगि (सयोगिन् ) प ३।६६,१८३; १८।५५; सगंथ (सग्रन्थ) ज २०६६ २८।१३८,३६।६२ सगड (शकट) ज २।१२,३३,७१७६३१ सजोगिकेवलि (सयोगिकेदलिन् ) प १११०८,१०६, सगडवूह (शकटव्यूह) उ १११३७ १२१,१२२ सगडुद्धिसंठिय (शकट 'उद्धि' संस्थित) सू १०३७ सजोगिभवत्थकेवलि (सोगिभवस्थकेवलिन) सगडुद्धी (शकट 'उद्धि') ज ७।१३३।१ प १८।१०१,१०२ सगडुद्धीमुहसंठिय (शकट 'उद्धि' मुखसंस्थित) सज्ज (सज्ज) ज ३।१७८ ज ७।३१,३३ सज्जाय (सर्जक) प ११४८।४६ पीत शालवृक्ष सगडद्धीसंठिय (शकट'उद्धि' संस्थित) ज ७।३२।१ सज्जाव (सञ्जय) सज्जावेंति उ १११३५ सगल (शकल) प ११४७।२२।३१ ज ७।१७८ सज्जावेत्ता (सञ्जयित्वा) उ ११३५ सू ८।११३।३ सज्झाय (स्वाध्याय) उ ३।३१ सगोत (सगोत्र) सू १०६२ से ११६ सट्ठ (षष्ठ) ज ३।१७८ सू श२१ सचित्त (सचित्त) प ६।१३ से १७ ज २०६६ सट्ठाण (स्वस्थान) प २२१,२,४,५,७,८,१०,११, सचित्तकम्म (सचित्तकर्मन) सु २०७ उ २१८ १३,१४,१६ से ३१,४६ ; ५।३५,४२,४६,५४, सचित्तजोणि (सचित्तयोनि) प ६।१६ ५७,६०,६४,६९,७५,७६,६०,६४,६८,१०८, Page #1138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सट्टिग-सण्णिसीय १०६१ ११२,११६,१२२,१५१,१६४,१६७,१६१, सण्णवणा (संज्ञपना) उ ३।१०६ १६४,१६८,२०१,२०४,२०८,२१२,२१५, सिण्णवित्तए (संज्ञपयितुम्) उ ३३१०६ २१६,२२२,२२५,२४३,२४४६।६३; सण्णा (संज्ञा) प १११।४।८।११३ ज १११३३ १५।१०२,१२१,१२२,१२७,३६।२०,२४,२६, सण्णासण्णि (संज्ञासंज्ञिन्) प ३१।६।१ २७,४७ इसण्णाह (सं नाहय्) सण्णाहेह ज ३।१५,२१ सछि (पष्टि) प २३३ ज ११२६ उ २।१२ ३१,३४,७७,६१,१७३,१७५,१६६ उ १११२३; सट्ठिग (पष्टिक) ज ३।११६ ५२१८ सटिठभाग (पष्टिभाग) ज ७१२१,२२,२५ सू १११० सण्णि (संज्ञिन् ) प १११७३।११२,११२११।११ सट्ठिभाय (षष्टिभाग) ज ७।२४ से २०;१८।१।२,१८।११६;२३।१७६,१७७, सठ्ठिय (पष्टिक) गु १११८ १६५,१६६,१६६ से २०१:२८।१०६१, सिड (शट) सडइ उ ११५१ २८।११५,११६३११ से ३,५,६,६।१; सड्ढइ (श्राद्धकिन्) उ ३३५० ३६।९२ सण (शण,सण) प ११३७६४,११४५।२ ज २।३७; सण्णिकास (सन्निकाश) ज ३१२२३,४।८५ ३।७६,११६ सण्णिक्खित्त (संनिक्षिप्त) ज ७।१८५ सणंकुमार (सनत्कुमार) प १।१३५२।४६,५२ से सण्णिचिय (सन्निचित) ज २१६ ५८,६३, ३।३१,१८३; ४।२३७ से २३६; सण्णिणाद (संनिनाद) ज ३।३०,३१,४३,५१,६०, ६।२६,५६,६५ ८५,११२,७।१०१५।८८, ६८,७८,१३०,१३६,१४०,१४६ १३८,२११७०,६१,२८७७,३३।१६,३४।१६, सण्णिणाय (सन्निनाद) ज ३।१२,१४,१७२,१८०, १८ उ २२ २०६,२२४;५।२२,२६;७।१२७।१ सर्णकुमारग (सनत्कुमारज) ६।६५ ज ५।४६ सण्णिभ (सन्निभ) ज ३।३,१७,१८,३१,८१,६१, सणंकुमारवडेंसय (सनत्कुमारावतंसक) प २।५२ ___६३,१७७,१८०,१८३,२०१,२१४ सणफद (सनख द) प ११६२,६६ सण्णिभूय (संज्ञिभूत) प १५।४८;१७।६३५१८ सणिक्खमण (सनिष्क्रमण) ज ४।२७७ सण्णिवाइय (सन्निपातिक) उ ३।११२,१२८ सण्णिविखत्त (संनिक्षिप्त) ज ७।१८५ सू १८।२३ सण्णिवात (सन्निपात) सू १०।२६ सणि चरसंबच्छर (शनैश्चरसंवत्सर) ज ७।१३३ सण्णिवाय (सन्निपात) चं ११ सू ११ सणिच्चारि (शनैश्चारिन् ) ज २१५०,१६४; सण्णिविट्ठ (सन्निविष्ट) ज ११३७,३।६६ से ४।१०६,२०५ १०१,१६३,४।६,३३,१२०,१४७,२१६,२४२; ५२३,२८,३३ सणिच्छर (शनैश्चर) प २१४८ ज ७१८६।१ सण्णिवेस (सन्निवेश) प १६।२२ ज २।२२; सु१०।१३०, २०१८।१ ३३३२,१८५,२०६ उ ३३१०१,१२५,१३२, सणिच्छरसंवच्छर (शनैश्चरसंवत्सर) ज ७।१०३, १३३,१४१,१४५,५।३६ ११३ सू १०।१२५,१३० सण्णिवेसमारी (सन्निवेशमारी) ज २१४३ सणिय (शनैस) ज ३१२२४ सण्णिसण्ण (सन्निषण्ण) ज ३।६,२०४।५।२१, सण्णज्झिउं (सन्नद्धं) ज ३।१२३ ४१,४७,६० सण्णाद्ध (सन्नद्ध) ज ३.१०७,१२४ उ १११३८ सिण्णिसीय (सं! नि-षद्) सण्णिसीयइ सण्णय (सन्नत) ज ७।१७८ ज ३।१२ Page #1139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६२ सण्णिसीयित्ता-सत्तर सण्णिसीयित्ता (संनिषद्य) ज ३।१२ सण्णिहिय (सन्निहित) प २१४७।२ सण्ह (श्लक्ष्ण) प १११८,१६,२।३०,३१,४१,४८, ४६,५६,६३,६४ ज ११८,२३,३१,३५,५१, ३।१२,८८,१६४,४।२४,२५,२६.४६,६७, ८८,११०,१७८,२१३,४।१०; ५५८ सोहमच्छ (श्लक्ष्णमत्स्य) प ११५६ सहसण्हिय (श्लक्ष्णश्लक्ष्णिक) ज २१६ सत (सत्) सू १३।२ सत (शत) प २।४१ से ४३,४६,४८ से ५२,५८ से ६४,४।१८६,१८८,६१३४,३६,६७, १८।१६,२४,४६,५४,६०,६१,११६२०११३; २११६७,६८, २३।६३,६८,६६,७३,७५ से ७७,८१,८३,८५,८७,६०,६२,६६,६७,११२, ११४,११६,१२७,१६४,१६६३६।१७,३४, ४१ सू १११८ से २०,२४;२॥३,३।१६।१; ६।३;१०११२७,१६५,१२।२ से ६,१२,१३, ३०,१३।१ से ३,१४१७,१५।२ से ४,१७ से १६,२२,२५ से २६,३१,३२,३४ से ३७; १८११,४ से ६,१७,२०१६।१,४,५।३.१६७, ८,१०,१५॥१,२,४,१६।१८ से २०,२११४; १६।२२।३२ सतक्कतु (शतक्रतु) प २१५० सतक्खुत्तो (शतकृत्वस्) सू० १२।१२ सतत (सतत) प ७१ सतपोरग (शतपोरक) प ११४१।१ सतभिसत (शतभिषग) सू १०६४ सतभिसय (शतभिषग) सू २०१२ से ६,६,२१,२३, ३०,५८,७५,८१,६५,१२०,१३१ से १३५; १२।२५ सतरा (सप्तति) सू १९।११।१ सतवच्छ (शतवत्स) प १७६ सतवत्त (शतपत्र) प ११४८।४४ सतवाइया (शतपादिका) प ११५० सतसहस्स (शतसहस्र) प ११२०,४६,५०,७५,७६, ८१,२।२० से २७.२७।२,२६ से ३३,३६ से ३९,४०१२;२०४१ से ४३,४८ से ५३,५४, ५६।१,२।६३,६४,४११७१,१७३,१७७,१७६; ६।४१;२१६३,६६,७० सू १५।२,१८।२५; १६।५।१,३,१६।८।१,३,१६२१११,८, १६।२२।६ सतहा (सप्तधा) ज ५७२,७३ सता (सदा) सू १६११ सतीणा (दे०) प ११४५११ सतेरा (शतेग) ज ५११२ सत्त (सप्तन्) प ११४६ ज ११२० चं ३।३ सू १७ उ ३३१०१ सत्त (सत्त्व) प २०६४, ३६।६२,७७ ज २११३२; ३।३;७।२१२ उ ११३;३१५१ सत्तंग (सप्ताङ्ग) उ ३१५१ सत्तग (सप्तक) ज ७१३११२ सत्तट्ठि (सप्तषष्टि) सू १०।२ सत्तद्विधा (सप्तषष्टिधा) सू १०।१५२ से १६०, १६२,१६३,१११२ से६; १२१७,८,१६ से २८ सत्तट्ठिहा (सप्तषष्टिधा) म १२२ सत्तणउत्ति (सप्तनवति) सू १८।१ सत्तत्तरि (सप्तसप्तति) ज ३।२२५ सत्ततीस (सप्तत्रिंशत्) ज ४।५५ सत्तत्तीस (सप्तत्रिंशत् ) ज ४।१४२१२ सत्तधणु (सप्तधनुष्) उ ५।२।१ सत्तपएसिय (सप्तप्रदेशिक) प १०।१२ सत्तपदेस (सप्तप्रदेशिक) प १०।१४।५ सत्तभाग (सप्तभाग) ५ २३।६१,६४,६८,७३,७५ से ७७,८१,८३ से ८५,८६,६०,६२,६६, १०१,१११ से ११४,११७,१२१,१२२,१३०, १३४,१३५,१४०,१४२,१४३,१५२,१५३, १५५,१६०,१६४,१६७,१७१ से १७३ सत्तम (सप्तम) प ६१८०।२;१०।१४।३; ३६।८५, ८६ ज ७९७ सू १०७७,१२।१६।१३।१० उ २।२२ सत्तमी (सप्तमी) ज ७।१२५ सत्तर (सप्तदशन्) प १०।१४।४ से ६ ज ७।२०२ Page #1140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरस-सद्दाव १०६३ सत्तरस (सप्तदशन् ) प ४।१६ ज ३७६ सू ८.१ सत्तरसविह (सप्तदशविध) प १६।३८ सत्तरि (सप्तति) प २१५३ ज ५।४६ सू १६।१४ सत्तविह (सप्तविध) प १११६,५३,१६।२६,३२; २२।२१ से २३,८३,८४,८६,८७,६०; २४१२ से ८,१० से १३;२५।४,५,२६।२ से ६,८ से १०;२७२,३,३६।७ सत्तसठ्ठ (सप्तषष्टि) ज ४।६८ सत्तसठ्ठि (सप्तषष्टि) सू १०।२२ सत्तसिक्खावइय (सप्तशिक्षावतिक) उ ३।७६ सत्तहत्तरि (सप्तसप्तति) ज २।४।२ सत्तहा (सप्तधा) ज ७।६५,६८,६६,७१,७२,७४, ७५,७७.७८,५१७२.७३ सत्ताणउइ (सप्तनवनि) प २१४६ सत्ताणउत (सप्तनवति) प २१४८ सत्ताणउय (सप्तनवति) ज ७।१८ सू ११२७ सत्तातीस (सप्तत्रिंशत्) प ४।२७६ सत्तालीस (सप्तचत्वारिंशत् ) सु १०।१५१ सत्तावण्ण (सप्तपञ्चाशत् ) ज ४।६२,७।२१; सू २१३ उ १११३ सत्तावीस (सप्तविंशति) प ४।२७६ ज १७ सू १।१० सत्तावीसतिविह (सप्तविंशतिविध) प १७४१३६ सत्तासीय (सप्ताशीति) ज ७७७ सति (शक्ति) प २०४१ ज ३।३५,१७८ सत्तिवण्ण (सप्तपर्ण) प ११३६।३ उ ३१६४ सत्तिवण्णवडेंसय (सप्तपर्णावतंसक) प २।५०,५२ सत्तिवण्णवण (सप्तपर्णवन) ज २।६४।११६ सत्तु (शत्रु) ज ३।३,३५,८८,१०६,१७५,२२१ सत्तुस्सेह (सप्तोत्सेध) ज ११५ सू ११५ सत्थ (शस्त्र) ज २।६।१,३।२०,३३,५४,६३,७१, ७७,८४,१०६,११५,१२४,१२५,१३७,१४३, १६७,१८२ उ ३।३८,४० सत्थ (शास्त्र) उ ३१२८ सत्यवाह (सार्थवाह १६४१ ज २१२५,३६, १०,७७,८६,१७८,१८६.१८८,१८६,२०६, २१०,२१६,२१६,२२१,२२२ उ ११९२; ३।११,६६,६८,१००,१०१,१०६ से ११२; ५।१०,१७,१६,३६ सत्थवाही (सार्थवाही) उ ३।६८,१०१ से १०५, १०७,१०८,११० से ११३ सत्थीमुहसंठित (स्वस्तिमुखसंस्थित) सू ४॥३,४,६,७ सदा (सदा) प २१३०,३१,४१. सदेवीय (सदेवीक) प २०११२,३४।१५,१६ सद्द (शब्द) प २।३०,३१,४१,१५।३६,३६,४०; १६.४६,२३।१५,१६,१६,२०,३०,३१; ३४।१०२,३४।२३ ज १।१३,२६,३१,२।७, १२,६५,३।६,१२,१४,१८,३० से ३२,४३, ५१,६०,६८,७७,७८,८२,८८,८६,६३,१३०, १३६ १४०,१४६,१५५,१५६,१७२,१७८,१८०, १८५,१८७,२०६,२१२,२१३,२१८,२२२; ४।३,२५,८२,५।२२,२६,३८,५७,५८,७२,७३, ७.१७८ सू २०१७ उ ११६० से ६२,८५ से ८७: ५।१६,१७,२०,२५,२७ सहपरिणाम (शब्दपरिणाम) प १३।२१,३१ सहपरियारग (शब्दपरिचारक) ५३४।१८,२३,२५ सद्दपरियारणा (शब्दपरिचारणा) प ३४।१७,२३ सद्दव्वया (सद्व्यता) ज ३।३ सिद्दह (श्रत्-+-धा) सद्दहइ प १११०११४,१२ सद्दहाइ प १।१०१।३ सद्दहामि उ ३३१०३; ४।१४।५।२० सद्दहेज्जा प २०१७,१८,३४ सद्दहणा (श्रद्धान) प १११०१।१३ सिद्दाव (शब्दय् ) सद्दाविस्संति ज २।१४६ सद्दावेइ ज २१६७,१०५,१०७,१११,३।७, १२,१५,१८,२१,२८,३१,३४,४१,४६,५२, ५८,६१,६६,६६,७४,७६,७७,८३,६१,६६, १७०,१७३,१७५,१८०,१८३,१८८,१६१, १६६,२०७,२१२,५।२२,२८,५४,६१,६८,६६, ७२,१२८,१४१,१४७,१५१,१५४,१६४,१६८ उ १।१७,३१९१४।१६,५।१५ सदाति ।३।१०५,१०७,११३,५१३,१४ सदावेमि उ १७६ Page #1141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६४ सद्दावइ ( शब्दापातिन् ) ज ४।४२,५७,५८,६०,७१, ७४ सावति ( शब्दापातिन् ) प १६३० सद्दावित्ता ( शब्दयित्वा ) ज २।१४६ सावेत्ता ( शब्दयित्वा ) ज २११७ उ १।१७, ३७; ४।१६;५।१५ सद्दुण्णइय (शब्दोन्नतिक ) ज २।१२४१३, २५ सद्ध (श्राद्ध) ज २३० द्धा (श्रद्धा) सू २०६३ सद्ध (सार्धम् ) प ३४।१६, २१ से २४ ज २०६५, ८८,६०,३१६, २२, ३६,७७, ७८, १८६, २०४, २२२,२२४;५।१,५, ४१, ४४, ४६, ४७, ५६, ६७,१३४; ७।१३५, १८४ सु १०।२ उ ११२; ३१६८४११८ ५।१६ उ १।२३।६८; ४।१८; ५।१६ सन्नद्ध ( सन्नद्ध ) ज ३।७७ सन्निकास ( सन्निकाश) ज ३।२४ सन्निभ (सन्निभ ) प २।३१ सन्निवाइय ( सान्निपातिक) उ३।३५ सन्निहिय ( सन्निहित ) प २१४६, ४७ सपक्ख ( स्वपक्ष) उ १ । २२,१४० पक्खि ( स्वपक्षिन् ) उ १।४६ सर्पाक् ( पक्षम् ) प २।५२ से ५६,६११६।३० सपज्जवसिय ( सपर्यवसित) प १८।१३,२५,५५, _५६,६३,६४,६७, ६८, ७६,७७,७६,८३,८६, ६०,१०५, १११,१२२,१२६ सपडिदिसि (सप्रतिदिश् ) प २५२ से ५६, ६१; १६।३० उ१।२२,४६, १४० सपरिनिव्वाण ( सपरिनिर्वाण ) ज ४।२७७ सपरियार ( सपरिवार ) ३४।१५,१६ सपरिवार ( सपरिवार ) प २३२,३३,३५,४३, ४८ से ५१ ज ११४४,४५, २१६०,४।५०, ५६, १०२,११२,१३५, १४७,१५५,२२१,२२२, _२२३०१,२२४।१,५१,१६,४१,५०,५८ सपुव्वावर (सपूर्वापर ) ज ४।२१, २५६ सू ३ | १; सद्दावइ- समकम्म १०।१२७,१८१,२१ सप्प (सर्प) ज ७।१३०,१८६।३ सप्प देवया ( सर्पदेवता ) सू १०८३ सप्प (सभ) २१३१,४१,४६,५६,६३,६६ ज ११८, २३ ५।३२ सप्पसुधा (सर्प सुगन्धा ) प १।४८।३ धवलवरु सह (सप्रभ ) प २३० ज १।२१ सप्पुरिस ( सत्पुरुष ) प २४५, ४५।२ सफाय (दे० ) प १।४८।५० सबर ( शबर ) प ११८६ सबरी ( शबरी) ज ३।११।२ सभितर ( साभ्यन्तर) ज ३।७,१८४ सभा (सभा) ज २२६५, १२०,४१२०, १२१,१२६, १३१,१४०, ५१५, ७, १८, २२, २३, ५०; ७ १८४, १८५१८।२२,२३ उ ३६,३६,६०,१५६, १६६, ४/५ ५।१५,१६ सभाव (स्वभाव) ज २।१५ भावणग ( सभावनाक) ज २७२ सम (सम ) प १ ४ ८ १० से १६१३।२२।१,२; १७।१।१; २१ ।१०२२२६६,७०२३।१६७; २६ ६, ६; ३६८२।१ ज २७१३।३५,१३८, १५१,१७०, २११, ४३.२५,५७,६७, १८०; १८३५।१८, ४३, ७।३७,३८, १३५।१,४,१६८, १७८ समइक्कंत (समतिक्रान्त) प २१३१ समइच्छमाण ( समतिक्रामत् ) ज २२६५; ३ | १८६, २०४ समंतओ ( समन्ततस् ) ज २।६५ समता ( समन्तात् ) प १७।१०६ से १११ ज १७, ६,२३,३२,३५,२०१३१,४३,६,१४,२०,२१, २५,३१,४५,४७,५७,६८,७६, ८६, १०३, १०७, १३१,१४३,१४८, १४९, १५२, २११, २१३, २१५,२३४,२४० से २४२, २४५ ५।५, ७,३८, ५७७।५८ सू ३।१ उ५८ समम्म (समकर्मन् ) प १७।३,४,१५,१६ Page #1142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समकिरिय-समय १०६५ समकिरिय (समक्रिय) प १७।१।१,१७।१०,११,२१ १३८,१४०,१४६,१५४,१५६,१६०,१६३; समक्खेत्त (समक्षेत्र) सू१०१४,५ ५।५८,७।१०१,१०२,१२६,२१४ च १० समग (समक) प १६१५२ ज ११२३,२५,३२; सू ११५;८।१,२०१७ उ ११२,४ से ८,१६, ३७८,७।११२।२ सू १०।१२६।१,२ १७,१६ से २६,१४२,१४३, २११ से ३,१०, समग्ग (समग्र) ज ३।२२१:४।३५,३७,४२,७१, १२,१४,१५,२१,३।१ से ३,७,८,१२,१९,२०, ७७,६०,६४,१७४,१८३,२६२,६।१६ से २२, २२,२३,२६,३८,४०,४४,८७,८८,६१,६३, सू २०१७ १५३,१५४,१६६ १६७,१७०,४।१ से ३,२७, समचउक्कोणसंठित (समचतुष्कोणसंस्थित) ५१ से ३,३७,४४ सू ११२५;४२ समणी (श्रमणी) ज ७।२१४ उ ३३१०२,११५, समचउरंस (समचतुरस्र) प २।३०।१५।१६,३५; ११७,११८,४।२२ २११२६,३१,३२,३६,६१,७३,२३।४६ समणुगम्ममाण (समनुगम्यमान) ज २१६४ ज ११५, २११६,४७,८६, ७।१६७ उ ११३ समणोवासग (श्रमणोपासक) ज २१७६ उ ३८३ समणोवासय (श्रमणोपासक) उ ११२०,५॥३४ समचउरंससंठाणसंठिय (समचतुरस्रसंस्थानसंस्थित) समणोवासिया (श्रमणोपासिका)ज २१७७ उ १२२०; सू ११५,२५ ३।१०५,१०६,१४४ समचउरंससंठित (समचतुरस्रसंस्थित) सू ४।२; समण्णागय (समन्वागत) ज ५१५ उ १६३ १०७४ समतल (समतल) ज ३।६५,१५६ समचक्कवालसंठित (समचक्रवालसंस्थित) समतिक्कंत (समतिक्रान्त) प २०६७ सू ११२५,४।२।१६।३,१३,१७,१६,२३ समत्त (समस्त) प २१६४।१५ ज ३।१७५ उ ३६१ समजस (समयशस्) प २१६० समत्त (समाप्त) ज ३।१६७,४१२००,५१५८%; समजोगि (समयोगिन् ) ज ५१५८ ७।१०१,१०२ सू १३।१०,१३,१४ से १६ समजुतीय (समद्युतिक) प २६० उ ११४८,३।११ समठ्ठ (समर्थ) प१११११ से २०१५॥४४; समत्थ (समर्थ) ज ३।१०६५ सू २०१७ १७।१,३,५,८,१०,१२,१४,१५,२४,१२३ से समपज्जवसिय (समपर्यवसित) सू १२।१० से १२ १२८,१३० से १३२,१३४,१३५;२०१२,३,१४ । -समप्प (सं+अर्पय) समप्पेइ ज ३११३८:४।३५, से १७,१६ से २५,२७ से ३०,३३,३४,४० ३७,४२,७१,७७,६०,१७४,१८३,१८६,२६२; से ४८,५२,५३,५६,६०,२२।७६,८०,८२,६२, ६।२१ से २४ समप्पति ज ३।६७,१६१; ६४,६५,३०।२५,३६।८०,८१,८३,८८,६२ ६।१६,२५,२६,४।६४ सू १०१५ समप्पेति ज २।१७,१८,२१ से २३,२५,२८,३० से ३३, सू १०॥५ ३८ से ४०,४२,४३,४।१०७,७११८४ समबल (समबल) प २।६०,६३ सू १८।२२ समभिरूढ (समभिरूढ) प १६१४६ ज ३३१०६ समण (श्रमण) प २॥३,६,६,१२,१५,२० से २७,६० समभिलोएमाण (समभिलोकमान) प १७१०६ से से ६३,३३३६,१५।४३,४५,३६७६,८१ ज ११५,६;२।१६,१६ से २१,२३,२५,२६, सिमभिलोय (सं-+-अभि+लोक् ) २८,३० से ३३,३६,३६ से ४३,४८,४६,५१, समभिलोएज्जा प १७४१०७.१०६,१११ ५४,५६,६८,७२,७४,८२,१२१,१२६,१३०, समय (समय) प १११३,१०३,१०६,१०७,१०६, Page #1143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६६ ११०,११२, ११४,११६,११६.१२०, १२२, १२३:२०६४।५:६।१।१,६१ से १६,२० से ४५,६० से ६४,६७,६८ १०३०१,२, १०२७०.७१ १२१२४, ३३१५।५८११.१६०३४, ३७१८१५६,६०,६२,६३,६७,५०,८१,८४, ८७, ८६, ६५, ६८, १०२, १०४, २०११११, २०१६ से १३:२२०५४,५६,५८,५६,७६,२३४६२. १९३३००२५, २६३६१८५८७६२ ज १।२. ४,५, १४; २४,७१,०८,०६१,१३१,१२४, १३८,१४१:३११०३, ५३१,६,८,९ से १२,१५, ४८, ५० से ५२७।५७,६०,११२०१ च ६४६, १० ११,४,५६।१८ १९ २ १०११५२ से १६१।११।२ से ६,१ से २८,३० १३०१,२१७१ १६०२५२०१३,५,७ ११ से ३,६,१६, २८, ५१.६५,७६, १४४; २१४,१७,३०४ से ६, ६, १२, २१, २४, २५, २७, ४८,५०,५५ से ५७,६४,६८,७१,७४,७६, ८६, १०, १५, १०, ११, १०६,१३१,१३२,१५५ से १५७,१५६,१६८,१६६, ४/४ से ६,१०,५४, १४,२१,२४,२६,३६,४०, ४१ समय ( समक) ज १।१४ समयक्वेत ( समयक्षेत्र) १२०,२१ समयखेत ( समयक्षेत्र ) प २१८६ समर (समर) ज ३०३,३५,१०३ समवण्ण (समवर्ण) प १७५,६,१७ समवेवण (समवेदन) १७११११७८१,१६,२० समसरीर ( समशरीर ) प १७ १,२,२८,२६ समसोक्ख ( समसौख्य ) २२६०,६३ समा (समा) ज २१७ से १५, २१ से ४५, ५० से ५६,८८,१२१ से १३३,१३८ से १४०,१४७ से १५०,१५२ से १६४३।१३५।२४।१८०, १८२७।२७ ९०४:१८१२,३ समाजय (समानुष्क) प १७।१।१,१७११२,१३ समागम ( समागम ) ज २४, ६ समाण (सत् ) प १५।५१, ५२; १७।११६; समय-समासतो १२८।१०५ ३४ १६, २१ से २४, ३६६२,७७ २०६० से ६२,७१,१४२ से १४५,३३,८, १३,१४,१९,२२,२५,२१,३०,३६,३८,४२, ४३,४६,५०,५१,५३,५९,६०,६२,६७,६८, ७०,७५,७७,८०,८२,८४,८६,१७,१००, १११,११८,१२५१२६,१३२,१३६,१४२, १४८, १४९, १५६,१६१.१६५,१६९,१७८, १८१,१८६,१६२,२०२,२०८, २१२ से २१४, २१७,२१६,४१२३,२५,३५,३७,३८,४२,६५, [ ७१,७३,७७, १०,६१,२४,१७४, १०२, १८६ १६५,२६२५।१५,२२,२४,२६,२६,४३.७० सू । ११।१७, २३ से २६,३७,४०,४५, ५२,५५ से ५८,६०,६२,७४,७७,८० से ८३, ८५,६० से १३,२९,१०७, १०८, ११०, ११८, १२७६३।१३,१५,२६,५०,५५,७८,६२,६४, १०६,१०,११२,१२१, १४७, १६०,१६२ ४१११,२०,५।१५,१७,३८ समाण ( समान) ज ३।११७ सू २०७३।१२८ / समाण ( सं + आए) समाणे ज ७।१०४ सू १०।१३० समानेति नू १० १२६ समाणीत ( समानीत ) उ३।४८, ५० समाणुभाव (समानुभाव ) प २०६०,६३ ज २।१३१ ४५६ समादह (आधा) समायहे उ ३।५१ समादीय ( समादिक) सू १२।१० से १२ समारिए ( समाचरितुम् ) उ३।१०२ समारंभ ( समारम्भ) उ १।२७,१४० समारूढ ( समारूढ ) ज ३।१२१ / समालभ (संजालम् ) समालभइ उ ३।११४ समावण्णव (समापन्नक) ज ७५५,५८ समास (समास ) प ३१३८, ३१ ज ७।१०१.१०२ सू १६।२२।१ समासओ (समासंतस् ) प १।४८ । ५४; १।४८ ज २०६६ समासतो ( समासतस् ) प १०४,२०,२३,२६,२९, Page #1144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समासाद- समुप्पण्ण ४१ से ५१,५३,६०,६६,७५,७६,८१,८८, १३१ से १३३,१३५, १३७, १३८ / समासाद ( सं + आ + सादय् ) समासादेति सू १५ समासादेत्ता (समासाद्य ) सू १५।८ से १३ समासादमाण (समासादयत् ) सू २३ √ समासास ( सं + आ + श्वासय् ) समासासेइ उ ११४१ समासात्ता (समाश्वास्य ) उ १।४१ समाहय ( समाहत) ज ५१५ समाहार ( समाहार ) प १७ १, २, १४, २४, २५, २८, २६ समाहारा ( समाहारा ) ज ५।६।१७।१२०/२ सू १०८८२ समाहि (समाधि) उ३।१५०,१६१,५।२८,३६,४१ समाहिय ( समाहित) ज ५।५८ समिइ ( समिति ) प १।१०१।१० ज २२४,६; ३।२२१ उ ११६३ समिदिय (समद्धिक ) प २६०,६३ समित (समित ) |१ समिद्ध ( समृद्ध ) ज १२, २६ २।१२३१,८१, १६७|१४,१७५ चं ६ सू ११ उ ११,६, २८; ३।१५७५१६,२४ समिरीय (समरीचिक ) प २।३०, ३१, ४१, ४६, ५६, ६३,६६ ज १८,२३, ३१ समिहा ( समिध्) ज ५।१६ महाकट्ठे ( समिधुकाष्ठ) उ३।५१ समीकर (समी + कृ ) समीकरेहिंति ज २।१३१ समीकरण ( समीकरण ) ज ३८८ समीकरणया ( समीकरण ) प ३६८२ ।१ समुइय ( समुदित) ज २।१४५, १४६ समुक्खित्त (समुत्क्षिप्त ) उ१।१३८ समुग्गक्खि ( समुद्गपक्षिन् ) प १।७७,८० समुग्गय ( समुद्गत ) प ३६।८१ समुग्गयभूय ( समुद्गत भूत) ज ३।१२१ समुग्धात ( समुद्घात) प २।२१ १०६७ समुग्धाय ( समुद्घात ) प १।१।७२ १, २, ४, ५, ७, ८, १०,११,१३,१४,१६ से २०, २२ से ३१,४६; ३६।१,४ से ७,४७, ५३ से ५८, ८२, ८३, ८३।१ २,३६१८६,८८ समुज्जा ( समुद्घात) ज २२८८,८६३।२२५ / समुट्ठ ( सं + उत् + ष्ठा) समुट्ठेति प ११७४ समुक्त (समुक्त ) ज ३।६, १७, २१,३४,१७७,२२२ समुत्तिष्ण (समुत्तीर्ण) ज ३१८१ समुदय ( समुदय) ज २१४, ६,३३,१२,३१,७८, १८०,२०६; ५।२२,२६,३८,६७ उ १।९२; ५।१७ समुदाण ( समुदान) उ ३।१००,१३३ समुदीरमाण (समुदीरयत् ) प ३४।२३ समुद्द ( समुद्र ) प ११८४; २१, ४, ७, १३, १६ से १६, २८,२६; १५।५५, २१८७, ६०, ६१, ३३१० से १२,१५ से १७३६।८१ ज १७,४६, ४८; २६०, ६७,६८,३१,३६,४।५२,५०४४, ५५; ६।१,२,४,७१४,६३,८७ सू १११४,१६,१७, १६ से २२, २४, २७, २।३, ३ । १, ४ ४, ७, ६।१; ८।१;१०।१३२;१६।१ से ३, ५, ६ से १२; १६।२२।२६; १६।२८, २६ से ३२,३५,३६,३८ उ १।१३८ समुद्दय (समुद्रक) प १।७५,८०, ८१ समुद्दलक्खा (समुद्रलिक्षा) प ११४६ समुदवायस (समुद्रवास ) प १७८ समुद्दविजय (समुद्रविजय ) उ५।१०,१७,१६ / समुप्पज्ज ( सं + उत् + पद्) समुप्पज्जइ प२८।७५, १०५; ३४।१६, २१ से २४ ज २।२७; २६,५६;४।१७७,१८१ समुप्पज्जंति ज ५।१ उ १।१११ समुप्पज्जति प २८१४, २५, २७, २६, ३८, ४७,५०,७३,७४,६७,३४।२३ समुप्पज्जित्था ज २।५६,६३,१२४,१२५; ३२,४,२६,३६,४७,५६,१२२, १३३, १४५, १८८५।२२ समुप्पज्जिस्सइ ज २।१५६ समुप्पज्जिस्संति ज २११५,२१,५३ समुप्पण्ण ( समुत्पन्न ) ३।१२३,२१६ Page #1145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६८ समुप्पन्न-सम्मामिच्छत्तवेयणिज्ज समुप्पन्न (समुत्पन्न) ज २१७१,८५, ३१५ से ६३३६।३५ से ४१,४८ से ५२,५६,६५, उ १११११,११२ ६६,७०,७३,७४,७६ समुप्पन्न कोउहल्ल (समुत्पन्न कौतूहल) ज ११६ सम्म (सम्पक) सू १०।१२६।४ उ १११११,११२ सम्म (सम्यक् ) ज २।६७ ; ३।१८५,१८६,२०६; समुप्पन्नसंसय (समुत्पन्नसंशय) ज ११६ ७।११२॥३,४ समुप्पन्नसड्ढ (समुत्पन्नश्रद्ध) ज १६ सम्मट्ठरत्यंतरावणवीहिय ससुब्भव (समुद्भव) ज ५१५,४६ (संमृष्टरथ्यान्न रापणवीथिक) ज ५१५७ समुल्लालिय (समुल्लालित) उ १।१३८ सम्मत (सम्मत) प १११३३।१ समुल्लावग (समुल्लापक) उ ३।६८ सम्मतसच्च (सम्मतसत्य) प १११३३ समुल्लावय (समुल्लापक) उ ३।६८ सम्मत्त (सम्यक्त्व) प ११११५,१।१०११६,७,१३; समुवगूढ (समुपगूढ) ज ४।६१,२७३ . ३।१।१,१८।१११,२०।३६२३।१७४;३४।१०२ समुस्सासणिस्सास (समुच्छवासनि:श्वास) प १७।१, ज २११३३ उ ३।४७,८३ २,२८,२६ सम्मत्तवेदणिज्ज (सम्यक्त्ववेदनीय) प २३।१८१ समुस्सासणीसास (समुच्छ्वासनिःश्वास) प १७२ सम्मत्तवेणिज्ज (सम्यक्त्ववेदनीय) प २३११७,३३, समूसिय (समुच्छ्रित) ज ३१७८,५।४३ ६५,१३७ समोगाढ (समवगाढ) प २१६४।१० सू १६।२६ सम्मताभिगमि (सम्यक्त्वाभिगमिन ) प ३४।१४ समोच्छण्ण (समवच्छन्न) ज ३११२१ सम्मइंसणपरिणाम (सम्यकदर्शनपरिणाम) समोप्पणा (समर्पणा) ज ३।११७ ११३।११ समोयर (सं-+अब+त) समोयरंति ज ७६७ सम्मद्दिछि (सम्यक्दष्टि) प ३.१००।६।६७,६८; समोवण्णग (समोपपन्नक) १७।१३ १३।१४,१७,१७।११,२३,२५,१८७६;१६।१ समोसढ (समवसत) ज ११४ चं हसू ११४ से ५,२११७२,२३।२००,२०१:२८।१२५,१३५ उ३।५,१२,२१,२४,२८,२६,८६,१५६;४।४; सम्मय (सम्मत) उ ३।१२८ ५२३७ सम्मा (सम्यक् ) प १३।११ समोसर (- - ) समोसरइ ज १५० सम्माण (सं+-मानय्) सम्माणे इ ज ३।६,२७,४०, समोसरति ज ५।४६ ४८,५७,६५,७३,६१,१२७,१३३,१३६,१४६, समोसरण (समवसरण) ज ५१५३ उ ३।२१,४।१० १५२,१८६,२१६ सम्माणज्ज ज २१६७ समोसरिय (समवत) ज ५।४८ उ १।१६,२।६३; सम्माणणिज्ज (सम्माननीय) सू १८१२३ ३।१५५,१६८; ५।१४ सम्माणवत्तिय (सम्मानप्रत्यय) ज ५।२७ समोहणित्ता (समवहत्य) प ३६।५६,६६,७०,७३, सम्माणियदोहद (समानीतदोहद) उ ११५०,७५ ७४ ज ३।११५ सम्माणेत्ता (सम्मान्य) ज ३६ उ ३५० सिमोहण्ण (+अब+हन) समोहण्णंति प सम्मामिच्छत्त (सम्यमिथ्यात्व) प २३।१७४ ३६१८३ ज ३।११५,१६२,२०८,५५,७ सम्मामिच्छत्तवेदणिज्ज (सम्यमिथ्यात्ववेदनीय) समोहण्णति प ३६।८२ प २३१६७,१८१ सभोहत (सनवहत) प ३।१७४ सम्मामिच्छत्तवेयणिज्ज (राम्यक मिथ्यात्ववेदनीय) समोहय (समवहत) प ३।१७४;१२४३, २११८४ प २३।१७,३३,१३६ Page #1146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मामिच्छत्ताभिगमि-सयणिज्ज १०६६ सम्मामिच्छत्ताभिगमि (सम्यक मिथ्यात्वाभिगमिन) २४१,२४५,२४८,५।३,४,२८,३३,५२,५३,५८% प३४।१४ ६।७,६।११,१४,१५, ७१।१,७।२ से ४,१०, सम्मामिच्छद्दिछि (सम्यक् मिथ्यादृष्टि) प ६१९७; १२,१४ से २५,२७,३०,३२,३४,५४,६२ से १३।१४,१७,१७।११,२३,२५;१८७८,१६३१ ६४,६७ से ८१,८४,८६,८७,८८,६१ से ६६,६८ से ५;२११७२,२८११२७,१३८ से १०२,११०,१२७,१३१।१,१७१ से १७४, सम्मामिच्छादं सणपरिणाम १६०,२०१ से २०७ सू १०८।२.१११० से १२, (सम्यमिथ्यादर्शनपरिणाम) प १३।११ १४,१६ से २४,२६ से ३१,२।१,३,४।४,५, सम्मामिच्छादिट्ठि (सम् मिथ्यादृष्टि) प ३।१०० ७,८,१०,६।१८।११०११३८ से १५१, V सम्मुच्छ (सं+ मुच्छ) सम्मुच्छंति प ११८४ . १६२ से १६४,१६६ से १६६।१२।२,५; सम्मुच्छति प ११.४ १३।४।१४।३।१८।१,१३,३०,१६१२, सम्मुच्छिम (संमूच्छिम् ) प ११४६ से ५१,६०,६६, १६।८।१,२,१६।२११५,१६।२०१६,६ उ ११२; ७५,७६,८१ से ८४;३।१८३;४।१०७ से ३३५५,६२,५।२८,४१ १०६,११६ से ११८,१२५ से १२७,१३४ से सय (स्वक) ज ३।७७,८४,१०२,१५३,१६२, १३६,१४३ से १४५,१५२ से १५४,१६१; १७८,१८३.१८६,२२४;५१,६,८,१०,१३, ६।२१,२३,६५,७१,७२,७४,८४,६४,६७,१००, २२,२६,४३,५६ उ १।३३,४२,४४,१०८, १०२,१०८,६६,१६,२२,१६।२८,१७१४२, १२१,१२२,१२६,३।११,४३,५३,१४८,४।१५ ४६,६३ से ६५,६७,८६; २११६,१०,१२,१३, सय (शी,स्वप्) सयंति ज १।१३,३०,३३, २।७; १५ से १६,३०,३३,३५,३७,४३ से ४७; ४।२,८७,२१५,२४७,६।८ २११४७।२,२११४८,५३,५४,७२ सयं (स्वयं) प १११०११३; २३॥१३ से २३ सम्मुति (सन्मति) ज २१५६,६० सू १६।११।३ सय (शत) प २१४१ से ४३,४६,५५,५८,५६२, सयंजय (शतञ्जय) ज ७।११७।२ सू १०८६२ ६२११:२।६३,२१६४।६।१२।३६,३७,१८।३१, । सयंपभ (स्वयंप्रभ) ज ४।२६०।१ सू ५।१,२०८, ३६,६०,११३;२११६५;२२।४५,२३।७४,८६, २०१६ ८८,८६,६५,६८,९६,१०१ से १०४,१११, सयंबुद्ध (स्वयंबुद्ध) ५ १११०५,१०६,११८,११६ ११३,११७,११८,१३०,१३१,१६४,१८३,१८७ सयंबुद्धसिद्ध (स्वयं युद्धसिद्ध) | १११२ ज १७,९,१०,१८,२०,२३,२६,३७,३८,४०, सयंभुरमण (स्वयंभूरमण) प २११८७,६०,६१ ४८; २।४।३.१६,४८,५२,६४,७५,७७,७८, सयंभूरमण (स्वयम्भूरमण) प १५१५५,५५।३ ८०,८६,१२८,१४८,१५७,१६१,३।१,१८,३१, १६।३८ ३५,६३,६५,६६ से १०१,१०४,१०५,१०६, सयंसंबुद्ध (स्वयंभबुद्ध) ज ५१२१ १२६,१५६,१७८,१८०,१६३,२०६,२१०, सयक्कउ (शतक्रतु) ज ५।८ २१६,२२१,२२२,४।६,१०,१२.१३,२३,२५, सयग्घी (दे०) प २१३०,३१,४१ ३२,४६,५५,५७,६२,६५,६७,७२,७३,७५, सयज्जल (शतज्वल) ज ४।२१०।१; ७६,८१,८६,६०,६१,६३,६५,६८,१०३,११०, सयण (शयन) प ११।२५ ज ३।१०३ सू २०१४,७ १२०,१४१,१४२।१,२,१४३,१४७,१५४,१६३ उ ३३५०,११०,१११,४।१६,१८ से १६५,१६७,१६६,१७८,१८३,२००,२०५ से सयण (स्वजन) ज २१६६ २०७,२१३ से २१६,२२१,२२६,२३४,२४०, सयणिज्ज (शयनीय) ज ४।१३,३३,७६,६३,१३५, Page #1147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७० सयधणु-सरिस १३६,१४०,१४७,१५३;५।१७ सू २०१७ सर (शर) प ११४१।१ ज ३।२४।१,२,३।२५,२६, उ ११४६,५।१३,२५,३१ ३१,३५,३८,३६,४६,४७,१३१११,२,१३२, सयधणु (शतधनुष) उ ५।२।१ १३३,१३५,१७८ उ १११३८ सयपत्त (शतपत्र) प ११४६ ज ४।३,२५ सर (सरस्) प २।४,१३,१६ से १६,२८,१११७७ सयपत्तहत्थगय (हस्तगतशतपत्र) ज ३।१० सर (स्वर) ज २११२,१३३, ३।३,४।३,२५,५।२८% सयपाग (शतपाक) ज ५।१४ ७.१७८ सयपुष्फा (शतपुष्पा) प ११४४।३ सौंफ सरंड (दे०) प ११७६ सयभिसया (शतभिषग्) ज ७।११३।१,१२८; सरग (शरक) ज ५।१६ उ ३।५६ ११५० सरड (सरट) प ११७६ १३४।२,१३५।२.१३६,१३६,१४२,१४६,१५७ सयमेव (स्व मेव) प १११०११३ ज २६५; सरण (शरण) ज ३।१२५,१२६:२१ ३।१०२,१६२,२२४ सू १३३५,६,१२,१३,१७ सरणदय (शरणदय) ज ५१२१ उ १६६५,६६,७१,८८,६४,३८१,८२,११३; सरणागय (शरणागत) ज ३।८१ उ १।१२८ ४/२० सरद (शरद्) सू १२।१४ सरपंतिया (सर:पंक्तिका) प २।४,१३,१६ से १६, सयरिसह (शतवृषभ) सू १०८४।३ २८,१११७७ सयरी (शतावरी) प ११३६।२ सरभ (शरभ) प ११६४ ज ११३७, २।३५,१०१; सयल (सकल) ज ३।३१ सू १६।२११६ ४।२७,५२८ सयवत्त (शतपत्र) प २।३१,४८ ज ४।४६ सरय (शरक) उ ३१५१ सयवसह (शतवृषभ) ज ७।१२२।३ सयसहस्स (शतसहस्र) प ११२३,२६,२६,४८,४६, सरय (शरद्) उ ५।२५ सरल (सरल) प ११४३।१,११४७११ ५१,६०,६६,८४; २।२२,२५,२।२७१४,२।३०, सरलवण (सरलवन) ज २६ ३३ से ३५,४०॥३,४,२१४६,४६,१५।४१; सरस (सरस) प २।३०,३१,४१ ज २६५,६६,६६, ३६।८१ ज १७, २१४,१८,६४,८७,८८%; १००,३७,६,१२,८२,८८,१८४,२११,२२२; ३।१७८,१८५,२०६,२२१,२२५,४।२५६,२६२; ५।१४,१५,५५,५८ ५।१८,२४,२५,२८,४४,४८,४६।२६।८।१, २० से २६,७।१।१,७१४ से १६,७३,७४, सरसर (सर:सरस्) ज ३।१०२,१५६,१६२ ७८,६३,६४,९८ से १००,१८७,२०७ सरसरपंतिया (सरासर:पंक्तिका) प २१४,१३,१६ सू १।१४,२१,२७,२।३;३।१६।१८।१; से १६,२८,१११७७ १०।१६५,१७३,१२।१८।२७;१६।१११, सराग (सराग) प १११००,१०१,१११ से ११४; १७.३३ १६।४,८,११,१४,१५।४,१८,२०,२११,५ सरागसंजय (सरागसंयत) प १७।२५ उ ३।१६ सरासण (शरासन) ज ३७७,१०७,१२४ सयसाहस्सिय (शतसाहस्रिक) सु १६।२६ उ ११३८ सयसाहस्सी (शतसाहस्री) ज ४।२१,६।८;७५८ सरि (सदक) ज ३।१६७१३ उ ३।१७१:४।२८ सया (सदा) ज ७।१२६,१७० सू १०७५,७७, सरिच्छ (सदश) ज ३।१८,५२,६१,६६,१३१, १३६,१७३;१६।१,११,२१,२०१२ १३६,१३७,१४१,१६४,१८० सयावरण (सदावरण) ज ३।१०६ मसहरी सरिस (सदृश) प १।४८।३८; २।३१ से ३३ Page #1148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरिसव-सविलेवण १०७१ सरीरसंघातणाम (शरीरसंघातनामन्) ।२३।४४ सरीरसंघायणाम (शरीरसंघातनामन ) २३१३८, ज ११४१,४६,२।१५,१६,३३,३५,७६,११६, १३५,१८८४१५२,१०६,१६३,१७२,१७४, १७७,२००,२०४,२१०,२१२,२२६७।१७८ सू १०।१६२,१६।३१,३५,३८ उ १।१४८; २०२२ सरिसय (सदशक) ज ११४६ सरिसव (सर्षप) प ११४४।२,४५।२,११४७।२ ज २।३७ उ ३।३७,३८ । सरिसवय (सदृशवयस्) उ ३३३८ सरिसवय (सर्षपक) उ ३।३८ सरिसवसमुग्ग (सर्षपसमुद्ग) ज ५१५५ सरिसवा (सदृश्वयस्) उ ३।३८,४०,४२ सरीणामय (सदगनामक) ज ११४६ सरीर (शरीर) प ११११५,११४७।२,३,११४८१५३, ५७; ११।३०,३०।२।१२।११४१५:१५:१०,२३; १६।२३;१७।१।१,२१।१।१२११३८,४० से । ४२,४८,५३,५६,६१,६३ से ६६,६८ से ७१, ७४,८४ से ६३; २८।११२,९८ से १०१; १०६।१,३६॥५६,६६,७०,७४ ज २१४५,४७, ६०,३८२,८५,१०६,१३८ सु २०१७ उ १२१६,३५,४२,३८,२६,३५,१२७,१४१; ४।१२,१८ सरीरंगोवंगणाम (शरीराङ्गोपाङ्गनामन्) __ प २३१३८,४२,६२ सरीरग (शरीः क) ज २१६६,१००,१०३,१०४, १०७,१०८ सरीरणाम (शरीरनामन् ) प २३।३८,४१,८६ से ६३,१४६,१७३,१७४ सरीरत्थ (शरीरस्थ) प ३६।८५ सरीरपज्जत्ति (शरीरपर्याप्ति) ५२८।१४२,१४३ उ ३.१५,८४ सरीरबंधणणाम (शरीरबन्धननामन्) प २३।३८, ४३,६२ सरीरबाओसिया (शरीरबा कुशिका) उ ४।२१,२२, २८ सरीरय (शरीरक) प १२।२ से ५;२१।१,२११६२ सरूव (स्वरूप) ज ५१४३ सललिय (सललित) चं १११ सलाइया (शलाकिका) ज ५१५ सलागा (शलाका) ज ३।११७,५१५ सलिंगसिद्ध (स्वलिङ्गसिद्ध) प १११२ सलिगि (स्वलिङ्गिन्) प २०१६१ सलिल (सलिल) ज ३७६,१०६४।३,२५,६४ सू ३३१ सलिलबिल (सलिलबिल) ज २।१३१ सलिला (सलिला) ज ३७६,११६,४।३५,३७,४२, ७१,७७,६०,६४,१७४,१८३,२६२,६।६।१, ६।१६ से २६ सलिलावई (सलिलावती) ज ४।२१२,४।२१२।१ सलील (सलील) ज २०१५ सलेस (सलेश्य) प १८६८,२८।१२२,१२३ सलेस्स (सलेश्य) प ३९६,१७।२८,५६ सल्ल (दे०) प ११७६ सल्लई (सल्लकी) प ११३५।१,११३७।१ सल्लगत्तण (शल्यकर्तन) ज ५१५८ सवंतीकरण (सवर्णीकरण) उ ११४६ सवण (श्रवण) ज २।१५,३।२२५, ७।११३।१, १२८,१३०,१३६,१३८,१४१,१४६,१५६ सू १०११ से ६,८,२०,२३,२८,५६,६३,७५, ७६,६३,१२०,१२२,१३० से १३५; १५॥ सवणता (श्रवण) २०१२८ सवणया (श्रवण) प २०१७,१८,२२,२५,२६, ३४,४५ उ १११७,३९,४०,४२,४३ सबहसावित (शपथशापित) उ ११५७,८२ सवालुइल्ल (सवालुक) ज ३।१०६ सविणय (सविाय) ज ३८१ सवियु (सवित) ज ७१३०,१८६ सवियादेवया (सवितृदेवता) सू १०८३ सविलेवण (सविलेपन) ५ ३६।८१ Page #1149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७२ सविसय-ससि २ सविसय (स्वविषय) प १११६७,६८,२८।१७,१८, ज ४।१०७:५।५,७ सू १६२,१२,२६,२८ ६३,६४ ज ७।४६ सव्वत्थ (सर्वत्र) प २।३२२१॥३५,४२,२२।२५; सविसेस (सविशेष) ज २।६;४।१५६;७।७,६६, ३६।४७ ज ३।१०६४।५७,१८३;७।३७,१६७ ६० सू १८१६ से १३ सू१८।३७ उ २०२२ सवेद (सवेद) प २८।१४० सव्वदरिसि (सर्वदर्शिन्) ज २१७१,५।२१ सवेदग (सवेदक) प ३।६७ सव्वपाणभूतजीवसत्तसुहावहा (सर्वप्राणभूतजीवसवेदय (सवेदक) प १८१५६ सत्त्वसुखावहा) प २०६४ सबेयग (सवेदक) प ३९७ सवप्पभा (सर्वप्रभा) ज ५।११।१ सव्व (सर्व) प ११२ ज ११७ चं ११२ सू १।१०। सव्वबल (सर्वबल) ज ३।१२,७८,१८०,२०६; उ११७० ५।२२,२६ सव्वओ (सर्वतम् ) प १७।१०६ से १११,२८११११, सव्वब्भतराय (सर्वाभ्यंतरक) सू श१४ २८२१,६७ ज १७,६,२३,३५,४।३,२१०, सव्वभाव (सर्वभाव) ज २१७१ २१४,२४१,२४२ सू ३१ उ ५।८ सव्वरयण (सर्वरत्न) ज ३।१६७,१७८ सध्वओभद्द (सर्वतोभद्र) ज ३।३२,५।४६३ सव्वसिग्धगइ (सर्वशीघ्रगति) ज ७।१८० सव्वंग (सर्वाङ्ग) ज २०१५ उ ११२३,६१ सम्वसिग्घगइतराय (सर्वशीघ्रगतितरक) ज ७।१८० सव्वकज्जवड्ढावय (सर्वकार्यवर्धापक) उ ३।११ सव्वसिद्धा (सर्वसिद्धा) ज ७।१२१ सू १०६१ सव्वकामसमिद्ध (सकामसमृद्ध) ज ७११७६१ सव्वहेट्ठिम (सर्वाधस्तन) सू ।३ सु १०।०६।१ सव्वाउय (सर्वायुष्क) ज २।८८,३।२२५ सव्वकालतित्त (सर्वकालतृप्त) प २।६४।२० सव्वामयणासिणी (सर्वामयनाशिनी) ज ३११३८ सव्वक्खरसंनिवाइ (सर्वाक्षरसन्निपातिन्) ज २१७८ सव्विदिय (सर्वेन्द्रिय) ज २०१८ सव्वक्खरसंनिवाति (सर्वाक्षरसन्निपातिन्) ज ११५ सम्वोउय (सर्वर्तुक) ज २।१२;३।३०,३५,२२१,२५ सव्वखुड्डाय (सर्वक्षुद्रक) सू १।१४ उ ५१६ सध्वग्ग (सर्वाग्र) ज ४।६,१४,१४६,२५६;७।१६८, १६६,२०१,२०३,२०५,२०७ सम्वोहि (सर्वावधि) प ३३।३१ से ३३ सव्वज्जुणसुव्वणमती (सर्वार्जुनस्वर्णमयी) ५२१६४ ससंभम (ससम्भ्रम) ज ३१६५२१ सध्वट्ठ (सर्वार्थ) ज ७१२२ सू १०१८४।३ ससक्कर (सशर्कर) ज ३।१०६ सव्वगसिद्ध (सर्वार्थकसिद्ध) प ६११० ससग (शशक) प ११६६ ज २।१३६ सव्वट्ठसिद्ध (सर्वार्थसिद्ध) प १११३८,२।६३; ससबिंदु (शश बिन्दु) प ११४०।५ ६।५६,६२,२०१६१२११७७ उ ५१४१ ससय (शशक) प १११२१ सव्वसिद्ध ग (सर्वार्थसिद्धक) प ४।२६७ से ससरीरि (सशरीरिन्) प २८।१४१ २६६६।४३,७१३०१५।६०,६३,१०१,१०६, ससरहिर (शशरुधिर) प १७।१२६ १०८,११४,११५,११७,१२०,१२१,१२३, ससि (शशिन्) प २।३१ ज २।१५,३१६,१७,२१, १२५,१२८,१२६,१३२,१३६,१४३;२०१४६% २८,३४,४१,४६,६३,१०६,१३६,१५७,१६३, २८१६७ १६७।१२,१७७,२२२७।११२।२;७।१६८।१ सवण्णु (सर्वज्ञ) ज २१७१,५।२१ सू१०७७,१२६।२१९।८।२,१६।२२।३,२३, सम्वतो (सर्वतस् ) प २१६४।१३,२८।२१,३३,६७, २६,२६,३१,२०१४ Page #1150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ससिया सहस्सार ससिया (शिका) प ११।२३ सरस ( दास्य) सु १०।१२९४४ सस्तिरीय ( सश्रीक) प २०३०, ३१, ४१, ४८, ४६, ५६,६३,६४ १०३१२२६४,३६,३५,११७, १८५,२०६,२२२, ४१२७,४६, ५१२८, ५० उ १२४१, ४४ सह (मह) प २३।१५६.१६०,१६४,१७५ ज २५०, १६४; ४।१०६, २०५७।१३५०४ उ ३।३८ / सह (सह) सहद ज २०६७ सहगल (सहगत ) प २२।१७ सहाय (सहगत ) प २२८० सहजायय ( सहजातक) ३३८ सही सहरिस ( सहर्ष ) ज ३१८१ सहयय ( सहबधितक) ३३८ (सीतिक) ३३८ सहसम्मुइ ( स्वसंस्मृति ) प १।१०१।२ सहस्स ( सहस्र ) प २।२१ से २७, ३० से ३६, ४०१५, ४१ से ४३,४६, ४६ से ५२, ५५ से ५७,५६, ५२ १.३ २१६३,६४,४१,३,४,६,२५,२७,२८, ३०,३१,३३,३४,३६,३७,३६,४०, ४२,४३, ४५,४६, ४०, ४९, ५१, ५२, ५४,५६,५८,६२,६४, ६५,६७,६९,७१,७१,०१,६५,८७,८८,१०,९४, १२५,१२७,१३४, १३६, १४३, १४५, १५२, १५४,१६५, १६७, १६८, १७०, १७४, १७६, १८०,१०२,१०३,१०५६।४०; १२६; १६२, ६,६,१२,१६,२०,२८,३२,३४,३५,४७, ५०० ५२,८५,२०१६३; २१।३८,४१,४३,४५, ४७११, २:२१०६५,६७,८७६२३।६० से ६२,६४,६६, ७८,८१,८४,१०,१११.१३३, १४७,१६७ से १६६,१७१ से १७३, १७५ से १७७,१५२: २८१२५,४०,४३,६९,७४ से ६७,६७३६४६८, ८१ ज १।७।११।१६,१७,२०,२३,४६,४८; २०४१३,२१६,१६,५२,५६,६५,७१,७७ से ८२, १२६,१३०,१३४, १३८, १४०, १४९, १५४, १५९.१६१३०१४,१८,२२,२०,३१,३६,४३, १०७३ ५१,५६,६०,६८,१३,१९,१०६, ११७, १२०, १२२,१२६।३:३११३०,१३६,१४०, १४५, १४९,१६३,१७२, १७५,१०,१८५,१८६, १८८१८१२०१, २१०, २१४, २१५, २१६, २२१,२२४;४।१,२७,३५,३७,४२, ४५, ५२, ५५.५७,६२.६४,७१७७.०१६६६८,१०,११, १४,१८,१०३,१०८, ११०,११४,११६.१५१०१. १६५,१६७, १६, १७४, १७५, १०३, २००, २०५,२१३,२१५,२३४, २४०, २५७ से २५६, २६२५।२८,३२,४३,४८, ४२११,५०,५२११, ५३, ५५,५६६१८० १.११ से २६७ ११,७१ से २५,३१,३३,३४,५४,६७ से ८४,१५,६६, १२७,१७०,१७८१,२,१८३,१८८, १८६, २०७ १।१४,२० से २२,२६,२७:२११,३,२०१६ ४३ से ५, १०६।१६।१.९०३:१०११३५,१६४; १२।२ से ७,६१८११.४,२०,२१,२६,२८, २१:११।१।१,१२०४,५३, ७,६१३,१०,११०१, ३,४,१६०१४, १५१,३,४,१२१८, १९, १६।२१।२, ४, ५, ७, १६१२२१२६,३२,१९१३० उ १।१४, १५,२१,२२,२५,२६,१२१,१२६. १३२,१३३,१३६, १३७, १४०, १४७,३७,९१, ११०,१११ ४।१६,१८५११७,३७ सहस्तक्ख ( सहस्राक्ष ) प २५० ज ५६ सहसगतो ( सहस्राग्रशस् ) प १२०, २३, २६,२६, ४८ सहस्तपत्त ( सहस्रपत्र ) प ११४६ ज ३१८६,४३, २२,२५,३०,३४:५।५५ सहपत्तहत्यगय ( हस्तगतसहस्रपत्र ) ज ३११० सहस्रपाग ( सहस्रपाक ) ज ५.११४ सहस्रस्ति (सहस्ररशिंग ) उ३२४६, १०,५५,६३, ६७,७०,७३,१०६,११८ सहसवत (सहस्रपत्र ) प १२४८२४४ सहस्सार ( सहकार ) प ११३५२४४६,५७,५८ ५२११,६२,३३६,१८२४०२५२ से २५४; ६।३४,५६,६५,८६,६२,१०६; १५८८; २०१५१,६१:२११७०, ११:२८१०२:३४११६,१८ Page #1151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७४ सहस्साग-साडय ४।१६ ज ५।४६२ उ २०२२ २५५,२५७,२५८,२६०,२६१,२६३,२६४, सहस्सारग (सहस्रारक) प ६३११२७।१५; २६६,२६७,२६६,२७०,२७२,२७३,२७५, ३३।१६ २७६,२७८,२७६,२८१,२८२.२८४,२८५, सहस्सारवडेंसय (सहस्रा रावतंसक) प २१५७ २८७,२८८,२६०,२६१,२९३.२६४,२६६, तहि (स खि) ज २।२६,६६ २६७,२६६ १८१२,६,१६,१६,२४,२८,३१, सहित (सहित) सू १६।२२।२५ ३६,४२,४४,४६,४०,४६,५४,६१,६६ से ७४, सहिय (सहित) प २६।२१ ज २।१५, ३।३१,६५, ७६,७६,८४,८५,७,११३.११९:२३॥६० से १५६७।१८६२ २०१८,२०८।२ ६६,६८,६६,७३ से७८,८१,८३ से १०,६२, तहोयर (सहोदर) उ ११६५ ६५ से ६६,१०१२ १०४,१११ से ११४, साइ (स्वाति) ज ७/१२८,१३४।२,१३५।२,१३६, ११६ से ११८,१२७१६ मे १३१,१३३ से १४०,१४६,१६५,१७५ १३५,१३८,१४०,१४२,१४३.१५१,१५३,१५५ साइम ( वाद्य) उ ३५०,५५,१०१,११०,१३४; से १५.५७,१६०,१६४.१६६ से १६८,१७१ से साइयार (गातिचार) प ११२६ १७३.१७५ से १७७,१८२,१८३,१८६,१८७, साइरेग (सातिरेक) प १८७६;२३।६५ ज ११३५, १६० ज १५, ५४,११,१२६,१५४, १६०,१६३ सू६।१८११ उश२६,१४०; ४०,५१२।१२८,१४८;४।६,१४ २३,३१,३८, ४१,६५,६८,७३,६०,६१,११६,११६,१२२, ३।१५०,१६४,१६६.१०१,५१२६,४२ १३६,१४६,१४७,२१६,२४२,७।२५,१६६, : सागार (राकार) प १६४११२,२३।१६५,१६६ से २०७ सू ८।११८।३७ २०१२६।११:३०२६,२८ साउफल (स्वादुफल) ज २।१२ सागारपति (साय वशिन्) , ३०।१५ से १८, साएय (साकेत) प ११६३।२ २०,२२,२३ सागर (मागर) प २१६८,३।३,७६,७६,८१,१०५, सागारवाशणला (स.का र दर्शन) ३०।२७ ११६,१२६।४,१२८,१५१,१७०,१८५,१८८, सागारपालपया (स रदर्शन) प ३०।१,२,५,६, २०६,२२१,४।१६२।१,२३६, ५॥३२,५८ ८ से १२,१६,२१ ज २१६८,३।३,७६,७६,८१,१०५,११६, सागाराणागारो उत्त (साकारानाकारोपयुक्त) १२६।४,१२८,१५१,१७०,१८५.१८८,२०६, प२८११३६ २२१,४।१६२११,२३८; १३२,५८ सू १६३१ लागारोवस ( स क्त ) ३।१०६.१७४; उ २।१२,५१० १३।१४,१८१९६; २६१६ से २१;३६।१२ सागरकूड (सागरकूट) ज ४११६४ सामारोवोगः (साका पग) २६६१,२,५,६, सागरचित (सागर चित्र) ज ४२३८ सागरचित्तकूड (साग चित्रकूट) ज ४।२३६ तगारोमोगारिकालाकारोपयोगपरिणाम) सागरोवम (सागरोपम) ५४११,३,४,६,७,६,१०, १२,१३,१५,१६,१८,१६,२१,२२,२४,२५,२७, साग (गाटक) ज ११२५.१२६ ३१,३३,३७,३६,२०७,२०६,२१३,२१५, साउथ (शाटन) ११.१.५२७६,७७ २२५,२२७,२३७,२३६,२४०,२४२,२४३, साडिसर ( शाउ १,५१,५२,७६,७७ २४५,२४६,२४८ २४६,२५१,२५२.२५४, Page #1152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सात-सारइयबलाहक १०७५ सात (सात) प ३५।१।१,२,३५८,६ सातावेदग (सातवेदक) । ३।१७४ सातावेदणिज्ज (सातवेदनीय) प २३।१५,२६, १४६,१७६ साताव्यणिज्ज (सातवेदनीय) प २३।१५,३०,६३, १३५ सातासात (सातासात) प ३५८,६ सालासोक्ख (सातसौरा) सु २०१७ साति (सादि) प २३।४६ साति (स्वाति) सू १०।२ से ६,१७,२३,४८,६२, ७२,७५,८३.११३,१३१ से १३४; १८१७ सातिरेग (सातिरेक) प ४।३१,३३,३७,३६,१६८, २००,२०४,२०६,२२५,२२७,२२८,२३०, २३१,२३३,२३४,२३६,२४०,२४२७।२,६, ११:१५६४११८।१६,१६,३१,३६,४६,५४, ६१.७६,८५,८७,११३,११६२१३८,४१, ६३,६६,८७२८।२५,७६,७८,३६।६८ सू २।३।६।३; १२।१५ सादि (सादि) प १५॥३५ सादि (स्वाति) सू१०।१२० सादिय (सादिक) प २१६४ सादीय (सादिक) प १८७,१७,२६,५८,५६,६३, ६७७५ से ७७,७६,८२,८३,८८,६०,६२, १००,१०५,११२,११५,११८,१२१,१२४,१२७ साध (साध) साधेति सू१०।१२० साधेति सू१०।१२० साभादिय (स्वाभाविक) ज ३।२०६५।५६ साम (ज्यादा) प ११३७।४ साम (सानन्) उ १।३१ सामंत (मानन्त) उ ११३,३।२६ सामग (याक) प ११४५।२ खामण (सामान्य) सू १०७७ साना (श्रामण्य) उ २।१२,३११४,२१,१२०, १५०,१६१:४।२४।५।२८,३६,४१,४३ सामण्णओविणिवाइय (सामान्यतोविनिपातिक) ज १५७ सामण्णपरियाय (श्रामण्यपर्याय) ज २१८८; ३।२२५ सामल (श्यामल) ज ३।१०६ सामलता (श्यामालता) प ११३६।१ सामलया (श्यामालता) ज २।११ सामली (शाल्मली) ज ४।२०८ सामा (श्यामा) प २१४०।६;१७.१२४ सामाइय (सामायिक) प १११२४.१२५ उ २।१०, १२;३।१४,१५०,१६१,५।२८,३६४१ सामाइयचरित्तपरिणाम (सामाकिचत्रिपरिणाम) प १३।१२ सामाण (समान) प २१४६,४७,४७१२ सामाणिय (साम निक) प २१३० से ३३,३५; ४०१५,४१,४३,४८ से ५६ ज ११४५२१६०; ४।१७,११३.१५०,१५६; ११,५,६,१६,३६,४२. ४४,४५,४६,४६।२.५०,५१,५२।१,५३,५६, ६५,६७,७१५६,५६,१८५ सु१८१२३;१६॥२४, २७ उ ३१६,२५,९०,१५०,१५६,१६६; ४१५ सामि (स्वामिन्) ११४;३।८,१६,४३,६२,७०,७७, ८४,१००,१२६।२,१४२,१६५,१८१,१९२; ५१५५,५७,५८ चं ६ सु १४ उ ११६,३६,४० ४२,४५,९६,१०३,१०७,१०८,११० से ११२, ११४,११६,१२८,१३६२।६१२:३१५,२४, ८६.१५५,१६८,४।४ सामित्त (स्व वित्व) २।३०,३१,४१,४६ ज १।४५,३।१८५,२०६,२२१ : ५।१६ उ ५११० सामिय (रवारिक) ज ३८१ सामुदानिय (सामुदानिक) १५ से १७ सायं (सायं) सू २।१,१०५ १३६ सायावेदणिज्ज (सातवेदनीय) २३३१५ सायावेयणिज्ज (सातवेदनी) १ २३१४१ सार (सार) प ११७६ ज २६, २१६४,६६; ३।२,३,२४,३५ च ११३ उ १।१०,२६,६६; ५।११ सायर (सागर) सू १६।२२।२४ सारइयबलाहक (शारदिक्षयलाहक) प १७१२८ Page #1153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७६ सारंग-साहारणसरीर सारंग (सारङ्ग) प ११५१ ज ३।३ साविट्ठी (धाविष्ठी) ज ७।१३७,१३८,१४१, सारकल्लाण (सारकल्याण) प ११४३३१ १४७,१५०,१५४ सू १०७,८,२०,२३,२५,२६ ‘सारक्ख (सं---रक्ष ) सारक्खंति ज २०४६,५२, साविया (श्राविका) ज ७।२१४ ५६ सारक्खिस्संति ज २।१५६,१६१ सावते (श्रावयत) ज ३।१७८ सारक्खमाण (संरक्षत्) उ ११५.७,५८,८२,८३ सास (श्वास) ज २०४३ सारक्खिज्जमाण (संरक्ष्यमान) उ ३।४६ सास (सस्य,शस्त्र) ज ७।११।४ सारक्खित्ता (संरक्ष्य) ज २०४६ सासग (सत्यक,शस्यक) प ११२०१२ सारय (शारद) ज ३।११७ सासग (शासक) ज ३।३५ सारस (सारस) ५१७६ ज २।१२ उ ५१५ सासण (शासन) ज ३।८१,१५१ उ १।१३६ सारहि (सारथि) ज ३।३५,१७८ सासत (शाश्वत) ३६१६४ सारिक्ख (सादृश्य) प २०६४।१८ सासय (शाश्वत) प २१६४,२१६४।२०,२२; सारीर (शारीर) प ३५।१।१; ३५।६,७ ३६।६३,६४,९४१ ज ११११,४७,३।२२६; सारीरमाणस (शारीरमानस) प ३५।६,७ ४।२२,३४,५४,६४,१०२,१०७,११३,१५६, साल (शाल) प ११३५।१,११४३।१,११४८।१४,२४ १६१, ७।२०८ से २१० सू २०१८,२०१८ सासवसमुग्गयहत्थगय (हस्तगतसर्षपसमुद्गत) सालंबण (सालम्बन) ज ३९ से १०१ ज ३१११ सालभंजिया (सालभजिका) ज ११३७,५॥३,२८ सासेंत (शासत्) ज ३।१७८ सालवण (शालवन) ज २६ सिाह (साधय) साहेइ उ ३५१ साला (दे०) प ११३५,३६,११४८।३३,३७ साहटु (गंहृत्य) ज ३.१२ उ १२२ सालि (शालि) प ११४५।१ ज २।३७,३।११६; साहर (संह) साहरइ ज २६५,३।२६,३६, ४।१३,७।१७८ ४७,१३३,५।२१,५८ साहरति ज २१६६; सालिगण (सालिंगन) सू २०१७ ५।१५,७०,६८,११० साहरह ज २६५,६७, सालिपिट्टरासि (शालिपिष्टराशि) प १७।१२८ १०६५।१४,८६ साहराहि ज ५१६८ सालिसच्छियामच्छ (शालिसाक्षिकामत्स्य) प ११५६ साहरिज्जमाण (संहियाण) ज ४।१०७ सालिरुय (सदृशक) सू २०१७ साहरित्ता (संहृत्य) ज २१६५ सावइज्ज (स्वापते) ज २१२४,६४ साहस्सिय (साहसिक) सू १६।२३,२६ उ ३६१ सावगधम्म (श्रावकधर्म) उ ३।४५,७६,१०३.१०४; साहस्सी (साहती: प ।३० से ३३,३५,४१,४३, १४३,५।२० ४८ से ५६ ज ११४५, २१७४ से ७७,६०; सावण (थावण) ज २११३८,७४१०४,११४ १२६ ३।२२१,४।१७,१६,२०,११२,११३,१२६, सू १०।१२४,१२६ उ ३।४० १५०,१५११२,१५६;५॥१,५,६,१६,३६,४०, सावतेय (स्व पतेय) ज २०६६ ४४ से ४६,४६ से १३,५६,६५.६७,७१५५, सावत्थी (थावस्ती) प ११६३५ उ ३।६ से ११,२१ ।। १७८,१८५ सू१८।१४ से १७,२१,२३ सावय (श्वापद) ज २१३६ उ ३१६,१२,२५,६०.१५६,१६६:४१५,५।१० सावय (श्रावक) ज ७।२१४ साहारण (साधारण) प ११४८।५४,५५,६० सावयबहुल (श्वापदबहल) ज ११८ साहारणसरीर (साधारणशरीर) प १।३२,४८ Page #1154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणसरीरणाम- सिझणया १०७७ २७४;६।१६ सिंधुआवत्तणकूड (सिंधुआवर्तनकूट) ज ४।३७ सिंधुकुंड (सिन्धुकुण्ड) ज ११५१,४११७४,१७५ सिंधुकूड (सिन्धुकूट) ज ४।४४ सिंधुगम (सिन्धुगम) ज ३।६४,१५१ सिंधुदेवी (सिन्धुदेवी) ज ३।५१,५२,५४,५६,५७, ५८ साहारणसरीरणाम (साधारणशरीरनामन्) प२३।३८,१२१ साहाविय (स्वाभाविक) ज ५१५५ साहि (कथय) साहिज्ज प १७।१२६ साहिज्जति प १७१२६ साहिज्जति प १७।१२६ साहिय (साधिक) प ४।२४० ज २।६६,३७६, ११६,११८,७११६४ साहीय (साधिक) प २१६४।८ साहु (साधु) चं ११२ साहेत्ता (साधावा) उ ३१५१ सिउंढि (दे०) प ११४८।१ सिंग (शृङ्ग) ज ३।१०६; २६३७।१७८ सिंगग्ग (शृंगाग्र) ज ३।२४ सिंगबेर (शृंगबेर) प ११४८।२; १७।१३१ सिंगबेरचुण्ण (शृंगवेरचूर्ण) प १११७६१७४१३१ सिंगभूत (शृंगभूत) ज ३।१८६ सिंगभूय (शृंगभूत) ज ३।२१७ सिंगमाल (शृंगमाल) ज २।८ सिंगार (शृंगार) प ३४।१६,२१ ज २०१५ सू २०१७ सिंगारागार (शृंगारागार) ज ३।१३८ सिगिरिड (शृंगिरीट) प ११५१११ सिंघाडग (शृंगाटक) प ११४८।६ ज २१६५; ३।१८५,२१२,२१३,५।७२,७३ उ ११६८ सिंघाडय (दे०) २०१२ राहु का नाम सिंघाण (सिंघाण सिंघाण) प १८४ सिंदुदार (सिन्दुवार) प ११३७।४,११३८।१ ज २।१०३।३५ सिंदुवारवरमल्लदाम (सिन्दुवारवरमाल्यदाभन्) प १७।१२८ सिंदूर (सिन्दूर) ३३५ सिंधु (सिन्धु) ज १११८,२०,४८, २।१३१,१३३, १३४;३।१,५१,५२,१४.६०,७६,७८,६७,६६ १११,११३,१२८,४१३७,१६७,१७४ ले १७६, सिंधुद्दीप (सिन्धुद्वीप) ज ४।३७ सिंधुप्पवायकुंड (सिन्धुप्रपातकुण्ड) ज ४।३७ सिंधुसागरंत (सिन्धुस:गरान्त) ज ३१८१ सिंधुसोवीर (सिन्धुसौवीर) प ११६३४ सिभिय (श्लैष्मिक) उ ३।११२,१२८ सिंहल (सिंहल) प १८६ सिंहलय (सिंहलक) ज ३।८१ सिंहली (सिंहली) ज ३।११।१ सिंहासण (सिंहासन) ज ११४४ सिक्खा (शिक्षः) प १११४६ उ ११२० सिक्खिय (शिक्षित) ज ३।१७८,७।१७८ सु २०१६।३,५ सिग्घ (शीघ्र) ज २।६०,३।२६,३६,४७,५६,६४, ७२,१०६,११३,१३३,१३८,१४५,५१५,२८, ४४,४७,६७ सू २।३; १५।१,३७,१८१८ सिग्घगइ (शीघ्रगति) ज ७१८० चं २।४:४।२ सू श६।४,१८।२ सिग्घगामि (शीघ्रगामिन्) ज ३।३५,१०६ सिग्घया (शीघ्रता) ज ३।१०६ सिज्श (सिध्) सिज्झइ प ३६।८८ सिज्झई प२०६७।२,३ सिझति प ६।५७,६७,११० ज ११२२,५०,२१५८,१२३.१२८,१४८, ४।१०१,१७३ सिज्झति प ३६।१२ सिझहिइ उ १११४१,२।२०७३।१८,४।२६; १४३ सिििहति ज २११५१,१५७ उरा२२, ४:२८ सिज्जा ए २०११८ या सिवन) ५६,४४ Page #1155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७८ सिणेहभाव-सिरिकंदलग सिबिया (शिबिका) ज २११०१,१०२ सिब्भ (श्लेष्मन्) ज २११३३ सिय (स्यात) प ११४८,५२५,१०,२०३०,३२, १०२,१२६,१३१,१३२,१३४,१६०,१७७, १६३,२१४,२२८, ६।११५,११६,१०१७ से १३,१७,१६,२०,३१,३२,३४,३६,३८,४०, ४२,४४,४६,४८,५०,५२,११।२,३,१२।६, २४,३२,३३,१५१५३,५४,६१,१२२,१२३; १७४६४,६५,१०२ से १०४,११६,१५०,१५२; २११६५,६८ से १००।२२।२६,२९,३०,३२, ३३,३८ से ४०,४२,५० से ५२,६७ से ६६, ७१,७४,६१,६३,६७,६६; २८॥३१,१०६, १११,११५,११७,१२०,१२२.१२५.१२८, १२६,१३२,१४३;३६।१४,१७,१६,२२,२३, २५,२७,३३,३४,६२,६३,७७ ज ७।२०८,२०६ सिया (स्पात्) ज ५७ सियाल (शृगाल) प १४६६,१११२१ ज २१३६, सिणेहभाव (स्नेहभाव) ज २।१४३ खित (सित) प २।३१ सित्त (सिक्त) ज॥६५३७,११६,५१५७ सिद्ध (सिद्ध) प ११११,१११३,२१६४,२१६४।२ से ४,६ से १२,१४,१६,१८,२० से २२,३।३७ से ३६,१८३,५॥३,६४४,४६,५७,५६,६७,६६; १११३६१२१७,१०,२०,१६।२५,३०,३२,३३, ३५,३७,१८१७१६।५।२२।८।२८।१०७,११०, ११३,११४,१२०,१२१,१२४,१२५.१३१, १३८,१३६,१४१,३२१६,३२१६३६।६३,६४ ज २।६।१,०८२,८८,८९,३१२२५,४।१६२।१, १७२।१,२०४।१,२१०।१,२६३।१,२६६।१; ५५८,७।११७ चं १२ लिलि (सिद्ध केवलिन् ) १८१६८,१०० सिद्धगति (सिद्धगति) प ६।५ सिद्धत्य (सिद्धार्थ) उ ५२६,२८ लिया (सिद्धार्थक) ज ३१२०६;५२५५,५६ सिद्धबाद (सिद्धार्थवन) ज २१६५ रिस्थिया (सिद्धाथिका) प १७११३५ मियोरम (सिद्धभारल) ज ७.११७.? सू १०८६१ सिद्धाय जड (सिदा तनकूट) ज १३३४ से ३६ ४१,४१४४,४५,४८,७६.६६,१०५,१०६, १३६,१६२,१६३.१८६.१६२,१९८.२१०, २११,२३५,२३७,२४२,२६३ सिखाया (तिदा तन) ज ४.१४७,१६३,१८० २१६,२१७,२२०,२३५.२३७,२४२ सिद्धाययणकर (सिद्धा तनकट ) ज ४।२१२,२७५ सिद्धालय (सिद्धालय) प २०६४ सिद्धि (सिद्धि) प २६४,३६६८३२ सिद्धिगइ (सिद्धिगति) ज ५२१ सिप्प (शिल्प) ज २१६४;३।१६७१७,५५,७ सिलारिय शिलार्य) प ११६२,६७ सिपिया (शिलिका) प १४२६२ सिप्पिसंपुङ (सुलिसंपुट) ५ ११४६ सियाली (शृगाली) ५१११२३ सिर (शिरस्) ज २।१३३;१८०,२२१ सिरय (शिरस्क), २।४६ ज २।१५,३।६,१८, ६३,१८०,२२२ सिरसावत्त (शिरसावर्त ) ज ३१५,६,८,१२,१६, २६,३६,४७,५३,५६,६२.६४,७०,७२,७४, ७७,८४,८८,६०,१००,११४,१२६,१३३, १३८,१४२,१४५,१५१,१५७,१६५,१८१, १८६,२०५,२०६,२०६:५१५,२१,४६,५८ उ ११३६,४५,५५,५८,८०,८३,६६,१०७, १०८,११६,११८,१२२,३।१०६,१३८,४।१५; ५।१७ सिरसिज (शिरसिज) ज ३।१३८ सिरि (श्री) ज २१८,६,१५, ४।२।१,४।१७ से २०, २२; ५।११।१,५१३८,७।२१३ सिरिकता (श्रीकान्ता) ज ४११५५।२,२२४।१ सिरिकंदलग (श्रीकन्दलक) ११६३ Page #1156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिकुड-सीमाविक्खंभ १०७६ सिरिकूड (श्रीक्ट ) ज ४१४४ सिस्सिणीभिक्खा (शिष्याभिक्षा) उ ४।१६ सिरिघर (श्रीनह) ज ३।२२० सिहंडि (शिखण्डिन्) ज ३।१७८ सिरिचंदा (श्रीचन्द्रा) ज ४११५५,२२४१ सिहर (शिखर) प २।४८ ज ११३७, ३१२४; सिरिणिलया (श्रीनिलया) ज ४१२२४।१ ४१४६,५१४३ उ ५५ सिरियाम (श्रीदान) ज ५१६७ सिहरतल (शिखरतत) ज ११३२,३३, ४।२४१ शिरिदेवित्त (श्रीदेवी) उ ४१२४ सिहरि (शिखारन) प २११:१६।३० ज ३।१८६, सिरिदेवी (श्रीदेवी) उ ४१५ २१७,४।२७१,२७३,२७४,२७७ सिरिनिलया (श्री नल्या) ज ४।१५।२ सिहरिकड (शिखरिकट) ज ४।२७५ सिरिमडिया (श्रीमतिा) ज ४।१५५।२,२२४।१ सिहरिसंठाणसंठिय (शिखरिसंस्थानस्थित) सिरिडिस्य (श्र्वतंसक) ७४।५ ज ४।२७६ सिरिदडे य (श्यतंरक) उ ४१२४ सिहि (शिखिन ) ज २११३७ सिरिवच्छ (श्री त्य) ज ३१३,७६,११६,१७८; सीउण्ह (शीतोष्ण) ज २११३३,३११३८ ४॥२८ सीओवष्यवायकंड (शीतोदाप्रपातकुण्ड) ज ४।६२ सिरिवच्छः श्रीसा) ज ५१४६।३ से १४ सिरिसंपूया (श्री भूता) ज ७।१२०११ सीओदा (शीतोदा) ज ४।६३,६४ सू १०।८८१ सीओदाकूड (शीतोदाकूट) ज ४।६६ सिरिहिरिधिनितिपरिवज्जिय (श्रीह्रीधतिकीति- सीत (गीत) ५ ११५,७ से ६,५१७,२११,२१२, परिजित) १९८६,१५,११६ २१४,२१५,२१८,२२० से २२६६।१ से ११; सिरीय श्रीक) ३।४६ २८।१०५,३४।१६,३५।१।१ सिरीस ( ब) १:३६१३ तीतजोणिय (शीतयोनिक) ५ ६।१२ सिरोव (सीप६८०१ सीतल (शीत) सू२०१२ लिला (शिला) ५११२०११, २०३१ ज २१२४,६४, सोना (सीता) १६४ सू २३ ६.३१५,११६,१६४१८४३२४५,२४६ सीसाली (सप्तचत्वारिंशत्) सूरा३ सीतोदय (शीतादक) । ११२३ सिधि मिलीलीन्त्री ॥३१,२१४०।१०। सीतोदा (शीतादा) ज ४।६१,६२,९५,२१०।१, रिचय ( निय) : ११ २१२,२१५,२२६ से २३१६।२२ सिला २०.५ प १४०२ सातोदामुह सिंड (सीतादामुख नपण्ड) ज ४।२१२ शिवोच्चय (शिलाज ।२६०११ सोटोसजोणिय (शीतोष्णमोनिया) प ६१२ सिव (श परा३०,३१.४१ ज १६४,३।१८५, सीतोलिण (शीतोष्ण) प ६।१ से ११,३५११ से ३ २०६५ २१,५८,७।११४। १ ०।१२४११ सीधु (सीधु) उ १.३४,४६,७४ ११४१४४,३।२११,१७१ सोभर (शीकर) उ १६७ सिसिर (शिशि) ७.११४३१ सू १०.१२४११ सीकर (सीकर) ज २१५६,६० सिस (शिष्य) ज २०१६ सीसंधर (पीनन्धर) १६,६० सिस्सिया (शिनाति बाउ ४१६ सीगार सीसाकार) प १२८ Page #1157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८० सीय (शीत ) प १४ से ६,५०५, १२६,१५४, २१०,२१३ से २१५, २१७ से २१६,२२१; ११।५६,६०,१७।१३८ २८।२०,३२,६६, १०५; ३५२, ३ ज २।१३१,१३४ उ ३।१२८ सीर (दे० ) प ११३७।३ सीयल (शीतल) ज २१२०,४३,२५ सीया ( शिक्षिका ) ज २।१२,३३,६४,६५,१०३, १०४ उ ३।११० १११,४।१६,१८ सोया (शीता ) ज १।१६,४।११०,१४१, १४३, १६२।१,१६७,१६६,१७२, १७४, १७७, १७८, १८०,१८१,१८३ से १८५, १८७,१८६ से १६१,१६३,१६६,१६७,१६६ से २०२,२१२, २१५,२२६,२२७,२३२, २३३,२६२,२६३ १; ५।१०।१६।२२,७२२ सीयामहाण (शीता महानदी ) ज ४ |२०० सीयाहवण (शीताखवन ) ज ४।१६६ से २०२ सीयालीस ( सप्तचत्वारिंशत् ) ज ७।२० सू ४।१० सीयोया (शीवोदा) ज ४।२०६, २०७, २०८, २१२, २२८ सीमोयाम्ह (शीतोदामुख) ज ४।२१२ सील (शीन ) प २०१७,१८,३४ ज ३।३५।५८ सोवणी (श्रीपण ) प १।३५।३ सीस (शीपं ) उ ११६७; ३ | ११४;४।२१ सोसपहेलियंग (शीर्षप्रहेलिकाङ्ग ) ज २४ सीपहेलिया ( शीर्ष प्रहेलिका ) ज २४ सू८ । १ सीसय (सीसक ) प १।२०१ सोवा ( शिशपा ) प १।३५।३ सोसणा ( शीर्ष वेदना ) ज २१४३ खंड ( सीसखण्ड ) ५ ११७४ सीसिणिभिक्खा ( शिष्य भिक्षा) उ३।११२ सोह ( सिंह ) प १।६६,२३०, ४६; ६८०1१; ११।२१ ज २।१५,३६,१३६ उ १।३३,२१८ ५।१३,१५ सीह (शीघ्र ) ज २३६, १३६, ३।२६,३६,४७,५६, ६४,७२,११३,१३३,१३८,१४५ ५१५, ४४, ४७, ६७ सीय-सुइभूय सोहकण्ण (सिंहकर्ण ) प १८६ सोहकण्णी ( सिंहकर्णी ) प १।४८ । १ सीह (शीघ्रगति) ज ७ १६८२ सीहघोस ( सिंहघोष ) ज २।१६ सीहणाद ( सिंहनाद) सू १९ । २३ सीहणाय ( सिंहनाद) ज ३।२२,३१,३६,७८,६३, ६६,१०६,१६३,१८०, ५१२, ५७, ७१५५, १७८ उ १।१३८ सोहणिसाइ ( सिंहनिषादिन् ) ज ७।१३३।३ सोहणीसाइठिय ( सिंहनिपादिसंस्थित) सू १०।५४ सीनाय ( सिंहनाद) उ १।१३८ सीहपुरा ( सिंहपुरा ) ज ४।२१२,२१२२ समुह ( सिंहमुख ) प १८६ सीहरू धार ( सिंहरूपधारिन् ) ज ७।१७८ सू १८ । १४ से १७ सीहस्सर ( सिंहस्वर ) ज २।१६ सीहसीया ( सिंहस्रोता, शीघ्रस्रोता) ज ४।२१२ सोहासण ( सिंहासन ) ज ३१३, ६, १२,२६,२८,३६, ४१,४७,४६,५८,६६,७४, १३३,१४५ १४७, १७८, १८८, १६७, २०४, २१४, २१६, २२२; ४।५०,५३,५६,११२,११६, १२३, १३५, १४७, १५५,२२३।१,२२४१,२४८, २५० से २५२; ५।१३,१४,१८,२१,३६,३० से ४१,४७,५०, ५५,६० सू १८।२३ उ ११४१,३१६,२५,६०, ६१,१३६,१५६,४/५ सीहा सण हत्थगय ( हस्तगतसिंहासन ) ज ३|११ सोही ( सिंही) प ११।२३ सु (सु) ज १।१३,३७,२१६, १२, १५,३१६, १२,२८, ३५,४१,४६,५८,६६,७४, ११७,११६,१३८, १७८,२२२,४।१३,१०२,१२८, १४६, १५७, १७८, १८०, १८१, १८२, २०२,२०४, २११; ५।५, ७, ६,५३,७१२० सुइ ( शुचि) २।१५ ३६,२२२;४।२६;५।५७ सुइग ( शुचिक) ज २६५;३।७ सुइभूय ( शुचीभूत) ज ३८२३१५१,५६ १. वनस्पति कोश में सिंहपर्णी शब्द मिलता है । Page #1158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुईभूय-सुजाय १०८१ सुईभूय (शुचीभूत) उ ४११६ सुउत्तार (सूत्तार) ज ४१३,२५ सुंकलितण (शंकरीतण) प ११४२।२ सुंगा (शौङ्का') ज ७।१३२।३ सुंगायण (शौङ्कायन) सु १०।११४ सुंठ (शुण्ठी) प १।४२।२,१।४८।४६ सुंदर (सुन्दर) ज २।१५,३।१३८,७१७८ सुंदरी (सुन्दरी) ज २११५,७५ सुंब (सुम्ब) प १२४१।१ सुंसुमार (शुशुमार,शिशुमार) प १३५५,६० सुकच्छ (सुकच्छ) ज ४।१७८,१८१ से १८३ सुकण्ह (सुकृष्ण) उ १७ सुकत (सुकृत) प २।३१,४१ सुकय (सुकृत) ५ २।३१,४१ ज ११३७, ३१७,६, १८,२४,३५,६३,१०६,१७८,१८०,२२२; ७१७८ सुकरण (सुकरण) ज ३।३५ सुकाल (सुकाल) उ १७,१४६,१४७,२।१८,१६ सुकाली (सुकाली) उ १११४५,१४६; २।१७,१८ सुकुमाल (सुकुमार) ज २।१५, ३।३,६,१०६, २०६,२११,२२२ उ १११४६ सुकुल (सुकुल) ज ३।१०६ सुकुसल (सुकुशल) ज ३।११६ सुक्क (शुक्र) प ११८४,१३५;२०४८,६३ सू २०१८, २०१८।४ उ ३।२।१,३।२५,८३,८६ सुक्क (शुक्ल), १३।६।। सुक्क (शुल्क) उ ३।१२८ सुक्क (शुष्क) उ ३।३५ से ३७,४०,४३ सुक्कपक्ख (शुक्लपक्ष) ज ७।११५,१२५ सू१६।२२।१८ सुछिवाडिया (दे०) प १७।१२८ सुकलेस (शुक्ललेश्य) प १७।५८,१०४,१६८; २३१२०० सुक्कलेसट्ठाण (शुक्ललेश्यास्थान) प १७।१४६ सुक्कलेसा (शुक्ललेश्या) प १७।४७,१३६ १. शौङ्कायन गोत्रस्य संक्षिप्त रूपम् । सुक्कलेस्स (शुक्ललेश्य) प ३९६१३।१८,२०%; १७।३५,५६,५८,६३ से ६६,७१,७३,७६ से ८१,८३,८४,८६,८६,१०४,११३,१६७; १८७४,२३।२०१२८११२३ सक्कलेस्सट्ठाण (शुक्ललेश्यास्थान) प १७४१४६ सुक्कलेस्सा (शुक्ललेश्या) प १६।४६,५०,१७।३५, ३६,३८,४१,४३,५४,११४,११७ से १२२, १२६,१३५,१३७,१४० से १४५,१४७,१५३ से १६१ सुक्कलेस्सापरिणाम (शुक्ललेश्यापरिणाम) प १३१६ सुक्कडिसय (शुक्रावतंसक) उ ३।२५,८३ सुक्किल (शुक्ल) प ११४ से ६५५,७,२०५; ११।५३,५४,१३।२६,२३।४७,१०१,१०६ १०६२०१६,७,२६,३२,५३,६६ ज १११३; २७,१६४;३।२४,३१,४।२६,११४ सू २०१२ सुक्किलपत्त (शुक्लपत्र) प ११५१ सुक्किलमत्तिया (शुक्लमृत्तिका) प १११६ सुक्किलसुत्तय (शुक्लसूत्रक) प १७/११६ सुक्किलय (शुक्लक) प १७४१२६ सू २०१२ सुक्किल्ल (शुक्ल) प२८१५२ सुग (शुक) प १७६ सुगइगामि (सुगतिगामिन् ) प १७११३८ सुगंध (सुगन्ध) प २।३०,३१,४१ ज २।१५,६५; ३७,१२,८८,२११,५७,५५ सू २०१७ उ ३३१३१ सुगंधि (सुगन्धिन) ज २।१२ सुगंधिय (सुगन्धिक) प ११४६ सुगपत्त (शुकपत्र) ज ३।१०६ सुगूढ (सुगूढ) ज २११५ सुघोसा (सुघोषा) ज ५।२२,२३,२४,४६ सुचक्क (सुचक्र) ज ३।३५ सुचरिय (सुचरित) ज २०७१ सुचिण्ण (सुचीर्ण) ज १११३,३०,३३,३६,४।२ सुजाणु (सुजानु) ज २०१५ सुजाय (सुजात) ज २।१४,१५,३।१०६४।३,२५, १५७,७१७८ Page #1159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८.२ सुजाया ( सुजाता ) ज ४१५७ २ सुजोय ( सुयोजित) ज ७ १७८ सुज्झ (दे० ) ४१३, २५ सुट्ठिय ( सुस्थित) ज ७ १७८ सुण (2) सुणंतु ज ३।२४।१,२,३ ।१३१।१, २ सुह प २।६४।१८ सुणेइ प १५३६ सुणेति प १५३६,४० सुग ( शुनक ) प १६६ ज २।३६,१३६ सुक्खत्ता ( सुनक्षत्रा) ज ७ १२० १ सू १०1८८१ सुमिय ( सुनत ) ज ७।१७८ सुणय ( शुनक ) प ११।२१ सुणिम्मिय ( सुनिर्मित) ज २०१५ सुणिरिक्खण ( सुनिरीक्षण) ज ७ १७८ सुणिया ( शुनिका ) प ११।२३ सुणिवेसि (सु निवेशित ) ज २०१२ सुहा ( स्नुषा ) ज २।२७,६६ सुत (जाण) ( श्रुतज्ञान ) प २६।१६ सुतअण्णाण ( श्रुताज्ञान ) प ५७,१२,२०,५६; २६, १२,१७,१६,२० सुतअण्णाणि ( श्रुताज्ञानिन् ) प ३१०२,१०३; ५८०,११७,३०।२३ सुताण ( श्रुतज्ञान ) प ५७, २०, २४,४१,४६,६७, १११,२६।१७,२१,३०१६,११ सुतणाणि ( श्रुतज्ञानिन् ) प ३।१०१,१०३,५१४३, ८०,६५,११३,२८।१३६ सुतिक्खण ( सुतीक्ष्ण) ज २६ । १ तो सुत ( सूत्र ) प १।१०१।६;२१।३५ सुत्त (सुप्त ) ज ३ | १७४ सुत्त ( श्रुत) प ११०१६ सुत ( रुइ ) ( सूत्ररुचि ) प ११०१।१ सुत्त (सूत्रक) ज ३1३६,१०६ सुत्ततय ( सूत्र ) प ४।५५ सुरु (सूत्ररुचि ) प १ । १०१।६ सुक्तालय (वैचारिक) प १९६ सुतीमई ( शुक्तिमती ) प १२६३/४ सुजाया-सुपुट्ठ सुदंसण (सुदर्शन) प २०६४ ३ ३० ४ १४६, १४७, १५०, १५७,१५६,२०८,२६०११ ; ७।२१३ ज २२६४; ३३० ४ १४७, १५०, १५६,२०८, २६०।१७।२१३ सू ५।१ उ४।७ से ६,१६,१८ सुदंसणभद्दसालवण (सुदर्शन भद्रशालवन) ज ५।५५ सुदंसणा (सुदर्शन) ज ४। १५७ १,२ सुविट्ठ (दृष्ट) १।१०१।१३ सुलह ( सुदर्लभ) ज ३।११७ १ सुद्ध (शुद्ध) प १७ ११४१, १७ ११६ सू २०१७ सुद्धदंत (शुद्धदन्त ) प १८६ सुद्धास (शुद्धप्रवेश, शुद्धात्मवेश, शुद्ध प्रावेश्य) ज ३।८५ सू २०१७ १।१६ सुद्धवाय (शुद्धवात ) प १२६ सुद्धागणि ( शुद्धाग्नि ) प १।२६ सुद्धोदय (शुद्धोदक) ५११२३ ज ३१६,२२२ सुधम्म (सुधर्म ) ज ४|१४० १ सुधा (धर्मा) ज ४।१३१ सू १८।२३ सुनिउण (सुविपुण ) ज ५५५,७ सुपट्ठ (तिष्ठ) प ५१४३, ५५ सू १०।१२४१ उ ३।२१ सुइट्ट (तिष्ठ) २०१५३।११ सुपइटिड (सुप्रतिष्ठित ) ज २०१४ ४।१४६; ५१४३ ( श्रुतोपयुक्त) प २३।१६५, १६६ से २०१ सुतेष्ठ) ज ४१२८ सुबह (पा) ज २१२,२१२ १ सुपरक्त (सुपराक्रान्त ) ज १११३,३०,३३,३६; ४२ सुपरिनिट्ठिय (सुरनिष्ठित ) उ३२८ सुपव्यय ( प्रजित) उ३१८०,८१ सुपसत्य (प्रशस्त ) ज ३।११७ सुपिक खोयरस (पक : ' सोद' रस ) प १७।१३४ सुपीय (गुपीत) ज ७ १२२११ सू १०२८४।३ सुपुट्ठ (सुपुष्ट ) ३।११७ Page #1160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुप्पइण्णा-सुरभि १०८३ सुप्पइण्णा (सुप्रकीर्णा) ज ५।६।१ सुमिणपाठग (स्वप्नपाठक) उ १।३३ सुप्पबुद्धा (सुप्रबुद्धा) ज ४।१५७।१,५६१ सुमेहा (सुमेघा) ज४।२३८,५६१ सुप्पभा (सुप्रभा) ज ७।१७८ सुय (श्रुत) प १११।२,३,१११०१।६।१३।१० सुप्पमाण (सुप्रमाण) ज २११५ चं १।३ सुप्पमाणतर (प्रमाणतर) ज ४११०२ सुय (शुक) प १७।१२४ सुफुल्ल (सफुल्ल) ज ३।१०४ सुय (शुक) प ११४२।१ बालतृण सुबद्ध (गुबद्ध) ज २।१५, ७।१७८ सुयअण्णाण (श्रुताज्ञान) प ५१५,१०,१४,१६,१८, सुबहु (सुबहु) उ ३।५०,५५ ६३,२६।२,६,२१; ३०।२,६,६,११,१६,२१ सुभि (स) प १३।२७,३१; २३।१०६ सुयअण्णाणपरिणाम (श्रुताज्ञानपरिणाम) प १३।१० सुन्भिगंध (सुगन्ध) प ११४ से ६५५,७,२०५; । सयअण्णाणि (श्रुताज्ञानिन्) प ५६५,६६१३।१४, १११५६;१७।१३७२८।२६,३२,६६ १६,१७,१८।८३,२८।१३७,३०११६ सुभ (शुभ) प २८।१०५ ज १।१३,३०,३३,३६; सुयक्खंध (श्रुतस्कन्ध) उ ५।४५ ३।२२३,४।२ सुयणाण (श्रुतज्ञान) प १११०१।८,५।५,७८,६३; सिभ (शुभ) सोभंति सू१६।११ सोभिमुसू १६।५ १७।११२,११३, २०१७,१८,३४,२६।२,६, सोभिस्संति सू १९११ सोभैति १६१ १२;३०।२,२१ सीभेसु सू १६।१ सोभेस्संति सू १९३८ सुयणाणारिय (श्रुतज्ञानार्य) प १६६ सुभंकर (शुभंकर) ज ३।८८ सुयणाणि (श्रुतज्ञानिन्) प ३।१०१,१०३,१३।१४, सुभग (शुभग) ५ ११४८/४४,११५० ज ४।३,२५; १७,१८१८०,३०११६,२३ ५६८,७।१७८ सू २०१४ सुयतोंड (शुकतोण्ड) ज ३।३५ सुभगणाम (शुभगनामन्) प २३॥३८,१२४ सुयनाणपरिणाम (श्रुतज्ञानपरिणाम) प १३।६ सुभगत्त (शुभगत्व) प ३४।२० सुयधम्म (श्रुतधर्म) प ११०१।१२ सुभगा (शुभगा) प ११४०।२ ज ४११६४।५।११ सुभणाम (शुभनामन्) प २३।१६,३८,१२३ स्यपुच्छ (शुकपिच्छ) प १७।१२४ सुभ६ (सुभद्र) उ २२ सुयमुह (शुकमुख) ज ३।१८८ सुभद्दा (सुभद्रा) ज २१७७,३।१३८,४।१५७।२ सुविट (शुक्रवृन्त) प ११५० उ ३।६७,६८,१०१ से १२०,१४६२२ सुयविसिठ्ठया (श्रुतविशिष्टता) ज २३१२१ सुभय (शुभग) प ११४६ सुयविहीणया (श्रुतविहीनता) ज २३१२२ सुभय (शुभक) उ ५१५ सुयात (सुजात) ज ३।१०६ सुभा (शुभा) ज ४।२०२।२ सुर (सुर) प २१६४।१५,३१।६।१ ज ३।११७ सुभोगा (सुभोगा) ज ४।१६४,५।१।१ सुरइय (सुरचित) प २१४१ सुमणदाम (सुमनोदामन्) ज ३।२११,५१५५,५८ सुरट्ठ (सौराष्ट्र) प ११६३।३ सुमणसा (मुभनस् ) प ११४०।३ मालतीपुष्पलता सुरत्त (सुरक्त) ज ७।१७८ सुमणा (सुमनस्) ज४।१५७।२,२०३ सुरप्पिय (सुरप्रिय) उ ५७,८ सुमहग्ध (सुमहाय) ज ३।६,२२२ सुरभि (सुरभि) प २।३१,४१,२३।४८ ज २११२, सुमहुर ( धुर) उ ३६८ १६,३७,६,३०,८८,१०६,२०६,२११,५१५, सुमिण (स्वप्न) उ११३३;२।८५११३,२५,३१ ___७,१४,२१,५६,५८,७११७८ उ ३।१३१ Page #1161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८४ सुरम्म-सुसाहय सुरम्म (सुरम्य) ज २११२,४।१३ सू २०१७ सुरवर (सुरवर) ज ५७ सुरवरिंद (सुरवरेन्द्र) ज ३।१०६ सुरहि (सुरभि) प २१३० ज ३१६,१२,३५,८८, २२१,२२२ सुरा (सुरा) उ ११३४,४६,७४ सुरादेवी (सुरादेवी) ज ४।४४,२७५,५।१०।१ उ ४।२।१ सुरिंद (सुरेन्द्र) प २।५० ज २१६१, ३।३५,५।१८, २१,४८,५२ सुख्या (सरूपा) ज ५।१३ । सुरूव (मुरूप) प २।३०,३१,४१,४५,४५।१,४८ ज ३।१०६,१३८,४।२६ सू २०१४ उ १११२, १३,३१,५३,७८,६५,५१५,२२ । सुलद्ध (सुलब्ध) उ ११३४,३।६८,१०१,१३१ सुलस (सुलस) ज ४।६४,२०७ सुलित्त (सुलिप्त) उ ३।१३०,१३१,१३४ सुवग्गु (सुवल्गु) उ ४।२१२,२१२।३ सुवच्छ (सुवत्स) प २।४७।२ ज ४।२०२।१ सुवच्छा (सुवत्सा ) ज ४।२०४,२३८,५।६।१ सुवण्ण (सुपर्ण) प २१३०११,४०।१,८,१०,५।३ ज ३।२४।१,२,१३१।१,२ सुवण्ण (सुवर्ण) प १।२०।१ ज २।२४,६४,६६; ३।६,२०,३३,५४,६३,७१,८४,६५,१०६, ११७,१३७,१४३,१५६,१६७।८,१८२,१८४, २२२;४।३,२५,२६,५१३८,५२,५५,६७,६८ उ३१४० सुवण्णकुमार (सुपर्णकुमार) प १।१३१,२।३७ से ४०,४१४६६१८ सुवण्णकुमारराय (सुपर्णकुमारराज) प २।३७ से ३६ सुवण्णकुमारिद (सुपर्णकुमारेन्द्र) प २।३७,३६ सुवण्णकुमारी (मपर्णकुमारी) प ४।५२ सुवण्णकूड (सुवर्णकूट) ज ४।२७५ सुवण्णकूला (सुवर्णकूला) ज ४।२७२,२७४,२७५; ६।२० सुवण्णजूहिया (सुवर्णयूथिका) प १७।१२७ ___ पीलीजूही सुवण्णमय (सुवर्णमय) ज ४।२६,५१५५. सुवण्ण (वासा) (मुवर्णवर्षा) ज ५।५७ सवण्णसिप्पि (सूवर्णशुक्ति) प १७४१२७ सुण्णिद (सुपर्णेन्द्र)प २०३८ सुवप्प (सुवप्र) ज ४।२१२,२१२।३ सुवयण (सुवचन) उ १।१७ सुविण (स्वप्न) उ १।३३।५।२५ सुविभत्त (सुविभक्त) ज ११३७, २।१४,१५, ३।३ सू २०१७ सुविरइय (सविरचित) ज २।१५, ३।२४;४।१३ सू २०१७ सुव्वत (सुव्रत) सू २०१८ सुव्वय (मुव्रत) सू २०६८ सुव्वया (सुव्रता) उ ३१६६,१००,१०६ से १०८, १११ से ११३,११५,११६,११८,१३२,१३३, १३६,१४१ से १४३,१४५,१४६,१४८,१५० सुसंगोविय (सुसङ्गोपित) उ ३।१२८ सुसंठिय (सुसंस्थित) ज ७।१७८ सुसंपरिहिय (सुसंपरिहित) उ ३।१२८ सुसंवुय (सुसंवृत) ज ३।६,२२२ सुसज्ज (सुसज्ज) ज ५१४३ सुसद्द (मुशब्द) ज ७।१७८ सुसमण (नुशमन) ज २६५३,१६२ सुसमदुस्समा (मुषमदुष्षमा) ज २।२,३,६,७,५४,५६ सुसमससमा (गुषमगुषमा) ज २।२,३,६,७,५२ १६१,१६३,१६४;४।१०६ सुसमा (सुषमा) ज २२,३,६,५१,५२,१६०,१६१; ४।८३ सुसमाहिय (ससमाहित) ज ३।३५ सुसवण (सुश्रवण) ज २०१५ सुसारक्खिय (सुसंरक्षित) उ ३।१२८ सुसाहय (सुसंहत] ज २०१५ १ हे० २।१३८ सिप्षि (शुक्ति) Page #1162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुसिणिद्ध-सूर १०८५ सुसिणिद्ध (मुस्निग्ध) ज २।१५ सुहुम (सूक्ष्म) प २।३,६,६,१२,१५,३१,३।१।२, सुसिलिट्ठ (राश्लिष्ट) ज ११३७,३१६,१२,१७८, ६१ से ७१,८५ से ६५,१११,१८३,४।५६ से २२२;४।१२८,५१४३७।१७८ ६१,६८,७५,८२,८३,६१,६८३,१०२, सुसीमा (मसीमा) ज ४।२०२।२ १५।४३,४५१८।१।२,३७ से ३६,११६; सुसीस (सुशिष्य) ज ३।१०६ २१॥४,५,२३ से २७,४०,४१,५०,२३।१२१%, सुसेण (सुषण) ज ३१७६,७७,७८,८०,८२ से ११, ३६७६,८१,६२ चं ११३ ज २१६;७११७८ १०६ से १११,१२८,१५१ से १५७,१७०,१७१ सुहमआउक्काइय (सूक्ष्मअप्काक) १२१,२२ सुस्सर (सुस्वर) ज २११५,५१५२,५३ सुहुमणाम (सूक्ष्मनामन्) प २३।३८,११८,१२० सुस्सूसमाण (शुश्रषमाण) ज ११६; २९०, ३१२०५, सुहुमतेउक्काइय (सूक्ष्मतैजस्कायिक) प ११२४,२५ २०६:५।५८ उ १।१६ सुहमवणस्सकाइय (सूक्ष्म वनस्पतिकायिक) सुह (सुख) प २।४८,२०६४।१५,१६,२०,३५॥१२, प ११३०,३१ ३५।१०,११,३६।१४।१ ज २११२,२०,७१; सुहुमवाउक्काइय (सूक्ष्मवायुकाधिक) प ११२७,२८ ३।६,८१,६६,१००,१०१,११७११,१२१,२२२; सुहुमसंपराय (सूक्ष्मसंपराय) प १।११२,११३, ४।२७,४८,१७७,५।२६,२८ सू १६।२२।१३ १२४,१२८; २३।१६१ ।। उ ११११०,१२६,१३३ सुहमसंपरायचरित्तपरिणाम (सूक्ष्मसंपरायचरित्रसुह (शुभ) प २१४६ ज २।१२,२०७३।४ __ परिणाम) प १३।१२ सुहंसुह (सुखंसुख) ज २११४६:३।१२१,१२७, सुहोतार (सुखावतार) ज ४।३,२५ २२४;५।६७ उ ११२,५०,७५ सुहोदय (सुखोदक, शुभोदक) ज ३।६ २२२ सुहणामा (शुभनामा) ज ७/१२१ सू १०६१ सुहोवभोग (सुखोपभोग) ज २।१४५,१४६ सुहता (सुखता) प २३।१५ सूइ (शुचि) ज ४।२६ सुहत्त (सुखत्व) प २८।२४,२६ सूईमुह (सूचीमुख) प ११४६ सुहत्थि (सुहस्तिन्) ज ४।२२५।१,२२८ सुई (सूची) प १५।२६:२१।२५ सुहफास (सुखरपर्श, शुभल्पर्श) ज ५।२८ सूणा (सूना) उ ११४४,४५ सुहम्मा (सुधर्मा) ज २११२०,४।१२०,१२१,१२६, सूमाल (सुकुमार) ज ३।२११:५।५६;७।१७८ १३८, ५।१८,२२,२३,५०, ७।१८४,१८५ उ १११ से १३,३० से ३२,५३,७८,६५, सू१८।२२,२३ उ ३।६,६०,१५६,१६६; १४५,२।५,७,१६३।९७;४।८।५।१२ ४।५,५११५.१६ सूमाला (सुकुमारा) ज ३१२२१५१५८ सुहया (सुखता) प २३।३० सूय (सुप) ज ३।१७८,१८६,१८८,२०६,२१०, सुहलेसा (शुभ लेश्या) ज ७।५८ २१६,२१६,२२१ सुहलेस्सा (शुभलेश्यः) सू १६।२२।३० सूलि (दे०) प ११८६ सुहावह (सुखावह) ज ४।२१२ सूर (सूर) प १११३३ ; २।२० से २७,४८% सुहासण (सुखासन) ज ३।२८,४१,४६,५८,६६, १५।५५।३ ज ११२४, २१६८,३१३५,६५, ___७४,१३६.१४७,१८७,२१८ ११७,१५६,१६७।१२,१८८,२०७,२१२, सुहि (सुखिन्) प २१६४।२०,३६।१४।१ ज २१२६ ५।५६७१०२,१३५।१,४,१७७।२,१७८११, सुहिरणियाकुसुम (सुहिरण्यिकाकुसुम) १८०,१८१ सू १०।३,१२३,१३४,१४३ से प१७।१२७ १४७,१५० से १६१,१६६ से १६६,१७२, Page #1163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८६ सूर-सेणावइ १५।२,१६,२११६,१६।२२।२३,२६, २०१७ उ ५।४१ सूरियगत (सूर्यगत) सू १।१६ सूरियपडिहि (सूर्यप्रतिधि) सु ६।३ सूरियाभ (सूर्याभ) ज ५१५५ उ ३७,६० से १२, १५६,५।२३ सूरियाभगम (सूर्याभगम) ज ५१४० सूरियावत्त (सूर्यावर्त) ज ४।२६०१२ सू ५।१ सूरियावरण (स्र्यावरण) ज ४।२६०।२ सू ५।१ सूरुग्गमण (मुरोद्गमन) ज २११३४ सूरोद (चुरोद) मू १६६३५ सूल (शूल) ज ३।३१,१७८ सूलपाणि (शूलपाणि) प २१५१ ज २१६१,५।४८, १७३१११२ से ६:१२।१६ से २८,१५॥१,५, ७,११,१२,१३,१५,१८,२१,२४,२७,३०,३३, ३६; १८.१,१८,१६,३४,३७,१६।१।१, १६।२२।४,१०,१५,२१,२३,२४,२७ से ३०, ३२;१६३५, २०१२,३,५,६ उ २।१२; ३।२।१,२१,४८,५५,६३,६७,७०,७३,१०६, ११८ सूर (शूर) ज ३।१०३ , ४।६४ सूरकंत (सूरकान्त) ११२०१४ सूरकंतमणिणिस्सिय (सूरकान्तमणिनिश्रित) प ११२६ सूरणकंद (सूरणकन्द, सूरणकंद) प ११४८७ सूरथमण (तुरास्तमयन) ज २।१३४ सूरपण्णत्ति (सूरप्रज्ञप्ति) ज ७।१०१ सूरपव्वय (सूरपर्वत) ज ४।२१२ सूरप्पभा (सूरप्रभा) सू १८।२४ सूरमंडल (सूरमण्डल) ज ७।२ से १६,१७७ सूरलेस्सा (सूरलेशा) सू १६॥३,४ सूरवडंस (सूरावतंसक) सू १८।२४ सूरवर (सुरवर) सू १९३५ सूरवरोभास (सूरवरावभास) सू १६।३५,३६ सूरवल्ली (गुरवल्ली) प १४०।३ सूरविमाण (सूरविमान) प ४।१८३ से १८८ ज ७।१७३,१७४,१७६,१८६,१६० सू १८११, ८,१०,१४,२६,३० सूरसेण (शूरसेन) प ११६३।५ सूरादेवीकूड (सूरादेवीकूट) ज ४।४४ सूराभिमुह (सुराभिमुख) उ ३।५० सूरिय (सूर्य) प २।४८ से ५१,६३ ज २।१३१; ७।१,१३,२० से ३१,३५ से ३६,५४,५८,६६, १०१,१५६ से १६८,१८०,१८१,१६७ चं २।२,५ सू १।६।२,५११११,१२,१४,१६ से २४,२७,२।१ से ३,३।१,२,४।१,२,४,७,६, १०,५।१६।१७।१८।१६।१ से ३;१०।६३ से ७४,१३२,१३४,१७११५।१,३; १७।१; १८।२,३,१८,१६,३७,१६।१५।२,१६।११, सूसर (सुस्पर) ज २।१६; ५।२२,२६ सूसरणाम (सुस्वरनामन्) प२३।३८,१२५ सूसरणिग्घोष (सुस्वरनिर्घोष) ज २११६ सूसरा (सुस्वरा) उ ३।७,६१ से (दे०) १ १।१० उ १११५, ३।३३ सेउ (सेतु) ज २।१२ सेज्जंस (श्रेयांस) ज २१७६ सु १०।२४११ सेज्जभंड (शय्याभाण्ड) उ ३।५१११ सेज्जा (शय्या) प ३६।६१ उ ३।३६,४१२१ सेटिठ (श्रेष्ठिन) प १६।४१ ज २२५; ३।६,१०, ७७,८६,१७८,१८६,१८८,२०६,२१०,२१६, २१६,२२१,२२२ उ ११९२,३।११,१३,१०१ सेडिय (दे०) ५ ११४२११ सेडी (दे०) प ११७६ लोमपक्षी विशेष सेडि (श्रेणि) प २।३१।१२।८,१२,१६,२७,३१, ३२,३६ से ३८,२११६३ ज २।१३३,२२०; ४।१७२,२००।५।३२,६।६।१,१५ सेणगपट्ठसंठित (सेनकपृष्ठसंस्थित) सू ४।३ सेणा (सेना) ज ३।१५,१७,२१,३१,३४,७७,७८, ८ ८,१०६,१५६,१७३,१७५,१७७,१८०, १६६ उ १११२३,१२७,१२८,५।१८ सेणावइ (सेनापति) प १६:४१ ज २६१५३।६, Page #1164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेणावइरयण-सेस १०८७ १०,७६ से ७८,८० से ११,१०६ से १११, १२८,१२६,१५१ से १५७,१७०,१७८,१८६, सेयणगसंठित (सेचनकसंस्थित) सु ४१३ १८८,२०६,२१०,२१६,२१६,२२१,२२२ सेयणय (सेचनक) उ १६६ से १६,१०३,१११, उ १२९२,३।११,१००।५।१० ११२ सेणावइरयण (सेना तिरल) ज ३।१७८,१८६, । सेयता (श्वेततः) सू ४।१ १८८,२०६,२१०,२१६,२२०,२२१:५।१६।। सेयबंधुजीवय (श्वेतबन्धुजीवक) । १७।१२८ सेणावइयणत (सेना तिराह) प २०१५८ सेयमाल (श्वेतमाल) ज २१८ सेणाबच्च (नैना त्य) २।३०,३१,४१,४६ सेयविया (श्वेतविका) प ११६३१६ ज१४:५; ३।१८५,२०६,२२१,५।१६ उ ॥१० सेया (श्वेततः) चं ६ सू १।६।१ सेणि (श्रेणि) अ ३१२,१३,२८,२६,४१,४२,४६, सेयाल (एष्यत्काल) प २८।२२,३४,३६,६८ ५.०,५८,५६,६६,६७,७४,७५,१४७,१४८, सेयासोय (श्वेताशोक) प १७।१२८ १६८,१६६,१७८,१८६,१८८,२०३,२१६, सेरियय (मैरे क) प ११३८।१ २१६,२२१ सेरिया (सेरिका) ज २।१०४।१६६ सेणिय (श्रेणिक) ११०,१२,२६ से ३२,३४, सेरुतालवण (सेरुतालवन) ज २६ ३६ ते ४४,४६ से ४६,५७,५८,६१,६२,६५, सेल (शल) प २१११११२५ ६६,६८,७२ से ७४,८२,८३,८६ से १२,६५, सेलसिहर (शैलशिखर) ज २।८८ ६६,१०३,१०६ से ११४,१४५; २१५,१७,२२; सेलु (शेलु) प ११३५।१ ३।४,२१,२४,८६,१५५,१६८,४।४ सेलेसि (शैलेशी) प ३६।६२ सेण्ण (मंन्य) ज ३।१५.२१,३१,३४,७७,७८,६१, सेलेसिपडिवण्णग (शैलेशीप्रतिपन्नक) प १११३६%3 ९५,१५६,१७३,१८५,१६९ २२१८ सेण्हा (श्लक्ष्णर) ११३५।३ सेल्लार (दे० कुन्तकार) प १६७ भाला बनाने सेत (श्वेत) २।४७१३,२०६४ ज ३।१२,८८ वाला सेत (थेस) १०१८४।१ सेवणा (सेवना) प १११०१।१३ सेदसप्प (स्वेतप) १७० सेवाल (शैवाल) प ११३८।२,११४६,११४८११, सेय (श्वेत) प ४६ ११६,३८,३।१८,३१, ११६२ ज २०१० ३५,६३,१८०, ४११०.८५,११५,१२१ १२५, सेवालभक्खि (शैवालभक्षिन्) उ ३१५० २१७;15.२,७।१७८ व २१म११६ सेस (शेष) प १११०१।११।२।३२,३४,३६ से ४०, उ ११४६५११६ ५१ से ५४,५८,६०,६२,३११८२,५।६४, सेय (वेद) १६१५४ १५२,१५४,२०५,२४४;६।८१,८३,८४; सेय (धयन्) ३।११३, १३८।१।७११२२११ १०।१४।६।१२।३८१३।१५ से १८:१५।१८, उ ११५१,५.४,६६,७६,७६,६६,१०७,११६; १६,३४,७५,५२,१७।२३,२५,२७,२६,३४, ३।४८,५०,५५.१०६,११८ ३५;२०१८,५६,६०; २२।४५,५५.८०; सेयंकर (भार): २०१८,२०१८१७ २३४५६,१५६,१५६,१६३,१६१,१६३,१६६; सेयंस (श्रेषस) ज ७/११४११ २४।८,६२५।४२८।२६,३८,४६,७४,१०१, सेयकणवीर (बेतकरवीर) १७१२८ १२३,१४५,३०११४:३२।६।१;३४।२२ से सेयणग (सेचनक) उ ११६६.१०२ से ११६,१२७; २४;३५।१।२;३६।३३,६७ से ६९,७१,७३ Page #1165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८८ सेसय-सोमणस्सिय ज ११४६; २०५२,८८,१६१ ; ३।१५०,१५३, सोत्थिय (स्वस्तिक) प २।६४ ज २।१५; ३।३, १५७,१६१,१८३,४।३७,४१,५३,७०,६३, ३२,१७८,४।२८,५।३२ सू २०१८,२०।८।६ १०६,१४१,१४७,१५३,१५५,१५६,१६५, सोत्थियसाय (स्वस्तिकशाक) प ११४४।२ १७२,१७७,१८४,१८५,१८७ से १९१,२०३; सोदामिणी (सौदामिनी) ज ५१२ ५।८,५१,७४१३५।१ सू ८।१६।३।१०।२५, सोभ (शुभ) सोभंति ज ७।१ सोभते ज २।१५; १५२ से १६१,१११२ से ६:१२।१६ से २८; ३।२४।३,३७।१,४५।१,१३१।३ सोभिसु १८।२४१६।२२।२२ उ ११४८,२१६,२२; ज ७।१ सोभिसंति ज ७१ सू १६१ ३।७,४१२२,२८,५।१६,४५ सोमेंति सू १६।१ सोभेसु सू १६।१ सेसय (शेषक) प २३।१६० सोभंत (शोभमान) ज २११५ सेसवई (शेषवती) ज ५।६।१ सोभग्ग (सौभाग्य) ज ५६८,७० सेसिय (शेषित) ज ७।१४६ सोभण (शोभन) ज ३।२०६ सेह (दे०) प ११७६ सोभमाण (शोभमान) ज ३।२४।३,३७।१,४५।१, सोइंदिय (श्रोत्रन्द्रिय) प १५॥१,२,७,८,११ से १८, १०६,१३११३ ४०; १५।५८ से ६७,६९,७०,१३३,१३४; । सोभयंत (शोभमान) ज ७।१७८ २८७१ उ ३३३ सोभा (शोभा) ज १ सोइंदियत्त (श्रोत्रेन्द्रियत्व) प २८।२४;३४।२० सोभात (शोभयमान) ज ३।१७८ सोइंदियपरिणाम (श्रोत्रेन्द्रियपरिणाम) प १३।४ सोभिय (शोभित) ज ३।३५,२२१७।१७८ सोंड (शौण्ड) ज ७।१७८ सोभेत (शोभमान) ज ३।१७८ सोंडमगर (शौण्डमकर) प ११५६ सोम (सोम) ज ४।२०३;७।१३०,१८६२ सोंडा (शुण्डा) उ १।६७ सू २०१८,२०।८।२ उ ३।५१,१५१,१५२ सोक्ख (सौख्य) प २१६४।१४,१८.२२ सोम (सौम्य) ज २।१५ सू २०१४ उ ५१५,२२ सोमंगलक (सौमङ्गलक) प ११४६ सोक्खुप्पाय (सौख्योत्पाद) सू २०।६।६ सोग (शोक) प २३।३६,७७,१४५ ज २।१५,७०; सोम (काइय) (सोमकाथिक) ज ११३१ सोमणस (सौमनस) ज ४।२०३,२०४।१,२०५, ३।१०५ सोगंधिय (सौगन्धिक) ५११२०१४,१४४८१४४ २०८,२१५; ५।४६।३,५५,७।११७२ ज ३।१०,४।३,२५; १५ सू १०.८६।२ सोच्चा (श्रुत्वा) ज ३।६ उ ११२१,३।१३; सोमणसवक्खार (सौमनसवक्षस्कार) ज ४।२०५ ४।१४।५।२० सोमणसवण (सौमनसवन) ज ४।२१४,२४०, २४१,२४३ सोणि (श्रोणि) ज २११५ सोमणसा (सौमनस्या) ज ४।१५७।१७।१२०११ सोणिय (शोणित) प ११८४ ज ३।३६ उ ११५६, सू १०८८१ ६१,६२,८४,८६ ८७ सोमणस्सिय (सौमन स्थित, सौमनस्यिक) ज ३१५, सोणीक (श्रोणिक) ज ३।१०६।१ ६,८,१५,१६,३१,५३,६२,७०,७७,८४,६१, सोत्त (श्रोत्र) प १५७७ १०७,११४,१४२,१६५,१७३,१८१,१८६, सोत्तिय (शौक्तिक) प ११४६ १६६,२१३,४।२०३;५२१,२७ उ १।२१,४२, सोत्तिय (सौत्रिक) प १६६ ३।१२६ Page #1166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमदंसण-हंभो १०८६ सोमदंसण (सौम्यदर्शन) ज २१६८ सोवत्थिय (सौवस्तिक) ज ४।२१०।१; ५॥३२ सोमदेवया (सोमदेवता) सू १०८३ _सू २०१८,२०८।६ सोमया (सोमता) ज ३।३ सोवाण (सोपान) ज ३११६५,२०४ से २०६, सोमरूव (सौम्य रूप) उ ५२२ २१४ से २१६:४।४,५,२६,२७,८६,११८, १२८,१४४,२४६,५१३०,४१,४२ सोमा (सोमा) उ ३।१२६ से १३१,१३४ से १४४, सोस (शोष) ज २।४३ १४७,१४८,१५० सोहंत (शोभमान) प २१ सोमाण (सोपान) ज ५।४१,४२,४४,४५ सोहग्ग (सौभाग्य) प ३४१२० ज २१६५,३।१८६, सोमिल (सोमिल) उ ३।२८ से ३२,३५ से ४५, २०४ ४७,४८,५० से ६५,६७ से ८३ सोहम्म (सौधर्म) प १४१३५, २।४६ से ५२,५८, सोय (श्रोतस्) ज २११३४। ६३,३।२६,१८३;४।२१३ से २२४;६।५६,६५, सोय (शोक) उ ११२३,६१,६३ ८५,६५,१११,१०१२,३,१५८७,२०१६१ सोयमाण (शोचत्) उ १।६२ २१॥६१,७०,६०,२८७५;३०।२६,३४११६, सोयविण्णाणावरण (श्रोत्रविज्ञानावरण) य २३।१३ १८ ज ५११८,२४,२५,४४ उ २।१२,२२; सोयामणी (सौदामिनी) ज ३।३५ ३।१०,१२०,१५६,१६१,४१५,२४,२८,५१४१ सोयावरण (श्रोत्रावरण) प २३३१३ सोहम्मकप्प (सौधर्मकल्प) प ६।२७ सोरिक (सौरिक) प ११६३।२ सोहम्मकप्पवइ (सौधर्मकल्पपति) ज ५।२६ सोल (षोडश) प१०।१४।४ से ६ ज ४१४२ सोहम्मकप्पवासि (सौधर्मकल्पवासिन) ज २१६० सू २३ ५।१६,२६,४३ सोल (षोडशन्) सू १९१६ सोहम्मग (सौधर्मज) प २।५०,५१,७८,१५६६, सोलस (षोडशन्) प २।२५ ज १७ सू १।१४ १०८,११२,१२५,२०१४६३३।१६,२४ उ ३।१२,१२६,५।१०। - ज १४६ सोलसअंगुलजंघाक (षोडशांगुलजङ्घाक) सोहम्मगकप्पवासि (सौधर्मककल्पवासिन्) प २१५० ज ३३१०६ सोहम्मवडेंसय (सौधर्मावतंसक) प २१५६ सोलसग (षोडशक) प २।२७।१,२ सोहम्मवडेंसय (सौधर्मावतंसक) प २१५०,५४ सोलसम (षोडश) सू १२।१७ ज ५११८ सोलसमंडलचारि (षोडशमण्डलचारिन्) सू १३१५ सोहा (शोभा) ज ३।६,२२२ सोलसविह (षोडशविध) प १११८६,२३।३५ सोहिय (शोभित) ज २।१२ सोला (षोडशन) सू १९१६ सोल्ल (दे० पक्व) उ ११३४,४०,४६,७४ सोल्लिय (दे० पक्व) उ ३१५० हंत (हन्त) ज २१२४.२७,२६,३४ से ३७,४१,६४, सोवक्कमाउय (सोपक्रमायुष्क) प६।११५,११६ ६६४।२७३,५२६८ से ७०।७।३६,३७,१०१ सोवचिय (सोपचित) ज २७१ हंता (हन्त) प ११।१,१५।४३;१७।१६६,२०।१०, सोवच्छिय (सौवस्तिक) प ११५० २२,२८।३ उ ५॥३२ सोवणिय (सौवणिक) ज ३।१३५,२०६;४।१३; हंदि (दे०) ज ३।२४।११,३१११,५।२७,७२,७३ ५।५५,५६ हंभो (दे०) उ ११११५,११६; ३।५८,६०,७६,७६ ह Page #1167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६० हंस-हरिकंतदीव हंस (हंस) प ११२०१४,७६ ज २।१२,१५ उ ५५ हत्थिणिया (हस्तिनिका) प १११२३ हंसगम्भ (हंसगर्भ) ज ५१५ हत्थितावस (हस्तितापस) उ ३१५० हंसलक्खण (हंसलक्षण) ज २१६६ हत्यिमुह (हस्तिमुख) प १।८६ हंसस्सर (हंसस्वर) ज २।१६:५२५२ हत्थिरयण (हस्तिरत्न) ज ३।१५,१७,२०,३१,३३, हक्कार (हाकार) ज २६० ५४,६३,७१,७७,६१,६२,१४३,१५१,१६६, हक्कार (आ+कारय) हक्कारेंति ज ५१५७ १७३,१७५,१७७,१७८,१८२,१८३,१८६, हठ (हृष्ट) ज २।४,१४६,३।५,६,८,१३,१५,१६, १६६,२०२,२०४,२१४,२१७,२२० उ १११२३, २६,३१,४२,५०,५२,५३,५६,६१,६२,६७, १३१ ६६,७०,७५,८४,६१,१००,११४,१३७,१४१, इत्थिरयणत्त (दस्ति रत्तत्व हत्थिरयणत्त (हस्तिरत्नत्व) प २०५६ १४२,१४८,१५०,१६५.१६६,१७३,१८१, हत्थिसोंड (हस्तिशौण्ड) प ११५० १८६,१६२,१६६,२०८,२१३,५५,१५,२१, हदमाण (हदमान) उ ३।१३० २३,२७ से २६,४१,५५,५७,७० उ ११२१, हम्ममाण (हन्यमान) उ १११३० ४२,४५,१०८,३।१३,१०१,१०३,११३,१३४, हम्मिय (हर्म्य) ज २।२० १३६,१४७,१६०,४।११,१४,२०,५।१५,३८ हम्मियतलसंटित (हर्म्यतलसंस्थित) सू ४।२ हडप्पग्गाह ('हडप्प'ग्राह) ज ३।१७८ हय (हय) प २।३०,४६ ज २।६५,३।३,१५,१७, हढ (हठ) प ११४६,११४८६६,११६२ २१,२२,३१,३४,३६,७७,७८,६१,१०८ से हणमाण (घ्नत्) ३।१३० १११,१७३,१७५,१७७,१८५,१८७,१६६, हणुगा (हनुका) ज २०१५ २०६,२१८ उ १११२३,१३८,५।१,७,१८ हत्थ (हस्त) प २१३०,३१,४१,४६ ज २१६५; . हय (हत) ज २१६० से ६२, ३।२२१७१८४ ३।६,२४।४,३७४२,४५२,१०६,१३११४,१८६, उ १।२२,१४०,३।१२३,१२६ २०४।५।२१,७/१२८,१२६।१,१३३।२,१३६, हयकण्ण (हयकर्ण) प ११८६ १४०,१४६,१६४ सू १०१२ से ६,१६,२३, हयच्छाया (हयच्छाया) प १६।४७ ४६,६२,७१,७५,८३,१११,१२०,१३१,१३२, हयपोसण (हयपोषण) ज ३।३ १५६१२।२४ उ १८८,८६३३५१,५६,९८; हयरूवधारि (हयरूपधारिन्) ज ७१७८ ४।२१ से २३ हयलाला (हयलाला) ज ३।२११;५।५८ हत्थग (हस्तक) ज ४।३०,५१५ हयवति (हयपति) ज ३।१२६।२ हत्थगय (हस्तगत) ज ३१९,२१,३४,८५ से ८७; हयहेसिय (यहेसित) ज ३।३१,५१५७,७।१७८ ५।८ से ११,५७ हर (ह) हरेज्जा ज १६ हत्थसंठिय (हस्तसंस्थित) सू १०।४६ हरओ (हरतस्) ज ४।१४० हत्थि (हस्तिन) प ११६५; १२२१ ज २।३५, हरडय (हरीतक) प ११३५२२ ६५,३३३१,६८,१६७,१७८,५॥५७ उ १२१२१, १३१,११८ हरतणुय (हरतनुक) प ११२३,१।४८१६ हत्थिखंध (हरितस्कन्ध) ज ३।१८,७८,६३,१८०, हरि (हरित्) ज ३।३५,४।८४,९०६।२१ २१२,२१३ सू २०१८,२०१८।४ हत्थिणपुर (हस्तिनापुर) उ ३।१७१ हरिकंत (हरिकान्त) प २।४०१६ हत्थिणाउर (हस्तिनापुर) उ ३१७१ हरिकंतदीव (हरिकान्तद्वी।) ज ४७६ Page #1168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरिकंतप्पवायकुंड-हालिद्दय १०६१ हरिकंतप्पवायकुंड (हरिकान्ताप्रपातकुण्ड) ज ४।७५, हलीमुह (हलीमुख) ज ३३५ ७६,७७ हलीसागर (हलीसागर) प ११५० हरिकंता (हरिकान्ता) ज ४७३ से ७५,७७,७८, हव (भू) हवाइ प २।४७।२,३६।१४ ८४,६०,२६२,२६८,६।२१ ज ७।१३२।४,१७७।३ सू १६।२२।६ हवंति हरिकताकूड (हरिकान्ताकूट) ज ४७६ प११३८।३,११४८।५८,५६ ज ७।१७८।१,२ हरिकूड (हरिकूट) ज ४।६६,२१०।१ चं ३१३ सू ११७।३;१२।७१,१६।१।१, हरिणेगमसि (हरिनगमेषिन् ) ज ५।२२,२३,४६ १६।२२।८,२१ हवति प ११३७४३,३५।१११, हरितग (हरितक) प ११४४।१ ३६९४ हवेज्ज प २०६४।४ हवेज्जा हरिता (हरितक) ज २११४४,१४५ ५२१६४।१६ हरिमेला (हरिमेल!) ज ३।१७८, ७।१७८ हव्व (अर्वाच) प ३६।८१ उ १।२२,७०,८६,१०७, हरिय (हरित) प ११६४।१ ज ३१२४ उ ३१५१,५३ १०८,११५ से ११७,११६,१२७,१२८ हरियग (हरितक) उ ३।४६ हव्व (हव्य) ज २१६,२४,३४,३५,३७,३।१०७, हरिया (हरितक) प १।३३।१,११४४ ज २।१४५, ११४, ७।२० से २५,७६,८२,२०२,२०४,२०६ सू २।३;२०१७ हरियाल (हरिताल) प ११२०१२;१७।१२७ Vहस (हस्) हसंति ज २७ ज ३।११ हसंत (हसत्) ज ३।१७८ हरियालगुलिया (हरितालगुलिका) प १७।१२७ ।। हसमाण (हसत्) उ ३।१३० हरियालभेद (हरितालभेद) प १७।१२७ हसित (हसित) सू २०१७ हरियालिया (हरितालिका) ज ५।१३ हसिय (हसित) प २१४१ ज २।१५,३११३८ हरिवास (हरिवर्ष) प १८७;१६।३०,१७११६४ हस्स (ह्रस्व) प २।६४।४; १३।२३ ज २१६४।६२,७७,८१ से ८६,१०२,२६५; हस्सतर (ह्रस्वतर) ज ४।५४ ६।६,२१ हाण (मल्लिध्राण) ज ३।१०६ हरिवासकड (हरिवपकट) ज ४७६,६६ हायमाणय (हीयमानक) प ३३१३५ हरिस (हर्ष) प २।२० से २७ ज ३१५,६,८,१५, हार (हार) प २।३०,३१,४१,४६,६४ ज ३।६,६, १६,३१,५३,६२,७०,७७,८४,६१,१००,११४, १८,२६,३५,६३,१८०,२११,२२२; ४।२३, १४२,१६५,१७३,१८१,१८६,१६६,२१३,५।२१ ३८,६५.७३,६०,६१,५।२१,३८,६७ २७,४१ उ श२१,४२,७१,७२,३।१३१,५।२२ उ १६६,१०२ से ११७,११६ हरिस्सह (हरिसह) २।४०१७ ज ४।१६२।१,१६५, हारितग (हारितक) ज ३।११६ २१० हारोस (दे० हारोष) पश८६ हरिस्सहकूड (हरिसहकूट) ज ४।१६५,२३६ हालाहल (हालाहल) प ११५० हलउलेमाण (दे०) उ ३।११४ हालिद्द (हारिद्र) ५ ११४ से ६; ५।५,७,२०५; हलधरवसण (हलधरवसन) प १७११२४ १११५३;२३।१०२,२८।२६,३२,६६ ज ४।२६ हलिहपत्त (हरिद्रापत्र) प ११५१ सू २०१२ हलिद्दा (हरिद्रा) प ११४८।२ हालिद्दगुलिया (हारिद्रगुलिका) प १७११२७ हलिद्दी (हरिद्रा) ज ३।११६ हालिद्दमत्तिया (हारिद्रमृत्तिका) प १११६ हलिमच्छ (हलिमत्स्य) प ११५६ हालिद्दय (हारिद्रक) ५ १७.१२६ Page #1169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६२ हाद्दिवण्णाभ ( हारिद्रवर्णाभ) सू २०१२ हात्ति ( हारिद्रसूत्रक) प १७ ११६ हालिद्दा ( हरिद्रा ) प १७ १२७ हालिद्दाभेद (हरिद्राभेद ) प १७।१२७ हास (हास ) प २४१, २०४७ ३; ११।३४।१; २३।३६,७६,१४४ ज २२६६,७० हासकार (हासकारक ) ज ३।१७८ हासणिस्सिया ( हास निश्रिता ) प ११।३४ हासरइ ( हासरति ) प २।४७/३ हासा (हासा) ज ५।११।१ हाहाभूय (हाहाभूत) ज २।१३१,१३६ हिंगुरुक्ख ( हिंगुरूक्ष ) प १।४३।२ हिंगुल ( हिंगुलक ) प १।२०।२ ज ३।११ हिंगुलुग ( हिंगुलुक) ज ३।३५ हिट्टिम (अधस्तन ) प २।२७।१ हिट्ठ (अधस् ) प २२४ से २७ रू १८१२, ३; १६।२२।१७ हिट्ठि (अधस् ) ज ७।१६८।१ हिट्ठिल ( अधस्तन ) ज ७।१७५ हिट्ठिलग (अधस्तन ) ज ७।१७५ हिट्ठिल्ल ( अधस्तन ) सू १८।७ हितकर ( हितकर ) ज ३८८ ह्रिदय (हृदय) ज ३|१३८ हिमय (हिमक) प १।२३ हिमवंत ( हिमवत्) ज ११२६, ३२, ३५, ४ । १७७ उ१।१०,२६,६६,५।११ हिमवयकूड (हिमवत्कूट) ज ४।२३६ हिमसीतल (हिमशीतल ) सू २०१२ हिय ( हित ) ज २६४,७१,३१८८;५।२६ हियईसर (हृदयेश्वर ) ज ३ । १२६ । ३ हियकर ( हितकर ) ज ३।१६७ हियकारग ( हितकारक ) ज ५४५,४६ हिय (हृदय) ज ३।५,६,८,१५,१६,३१,३५, ५३,६२,७०,७७,८४,६१,१००, ११४, १४२, १६५,१७३, १८१, १८५, १८६, १८६,१६६, २१३,५।२१,२७,४१,५८ सू २०१६ १ हालिद्दवण्णाभ हु उ १।२१, ४२; ३।१३१ हिययगमणिज्ज (हृद गमनीय) ज २२६४, ३ | १८५, २०६५।५८ हिय पल्हाणिज्ज (हृदयप्रह्लादनीय) ज २६४ ३।१८५,२०६,५१४८ हिययमाला (हृदयमाला ) ज २२६५३।१८६, २०४ हिययसूल ( हृदयशूल ) ज २०४३ हिरण्ण (हिरण्य) ज २।२४,६४,६६,४।२७३; ५।६८ से ७० हिरण्णवय (हैरण्यवत ) प १८७ हिरण्णवास (हिरण्यवास ) ज ३।१८४; ५ ।५७ हिरण्णविहि (हिरण्यविधि) ज ५।५७ हिरि (ही) ज ४।६४; ५।११।१ उ ४।२।१ हिरिकूड ( ह्रीकूट) ज ४७६ हिरिसिरिधोकित्तिधारक ( ह्रीश्रीधी कतिधारक ) ज ३।१२६।१ हिरिसिरिपरिवज्जिय ( ह्रीश्रीपरिवर्जित) ज ३।२६, ३६,४७,१०७, ११४,१२२,१२४,१३३ हिलियमाण (अभिलीयमान) ज ३।१०६ हिल्लिय (दे० ) प १५० हीण ( हीन ) प २६४ ४, ५ ५, १०, २०, ३०,३२, १०२,१२६,१३१,१३२,१३४, १६०, १७७, १६३,२१४.२२८ हीणपुण्णचाउद्दस ( हीनपुचातुर्दश) ज ३।२६, ३६,४७, १०७, ११४,१२२,१२४,१३३ हीणपुण्णचाउस ( हीनपुण: चतुर्दशिक ) उ११८६ ११५,११६ हीणस्तरता (हीनस्वरता ) ५२३।२० हीनस्सर ( हीनस्वर) ज २।१३३ हीर (हीर ) प १।४८।२० से २६ होरमाण (हियमाण) ज ७।३१, ३३ सू ४१४, ७ हील (हेलय् ) हीलेंति उ ३।११७ ही विजमाण (हेल्यमान) उ३।११८ √हु (भू) हुंति ज १ १७, ४ । १४२ । १, ७ १३४।१,४; १७२ ।१ चं ४१३ सु ११८१३, १६।२२१४,५,१५, Page #1170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुंड-होरंभा १०६३ २०,२३,२७,३१ हेमंत (हेमन्त) ज २१७०,८८,७४१६० से १६३ हुंड (हुण्ड) प १५।१८,३०,३५;२१२८ से ३३, सू ८।११०।६७ से ७०।१२।१४ उ ५१२५ ३५ से ३७,५८,५६२३१४६ हेमंती (हेमन्ती) सू १२।२४ से २८ हुंबउट (दे०) उ ३५० हेमंतीय (हैमन्तीक) सू १२१८ हुडुक्क (हुडुक्क) ज ३।२०६ हेमजाल (हेमजाल) ज ३४७ । हुण (हु) हुणइ उ ३।५१ हेमव (हेमवत्) ज ७।११४।१ सू १०।१२४।२ हुत (हुत) उ ३।४८,५० हेमवय (हैमवत) ११८७; १६।३०,१७।१६३ हुतवह (हुतवह) ज ३।१०६ ज ३११७८,४।१,४२,५३,५५,५६,५७,६१,६२, हुयवह (हुतवह) ज २।३१ ७१,७६,१०२,२३८,२७१,६१९,२० हुहुय (हुहुक) ज २१४ हेमवयक ड (हैमरतकूट) ज ४।४४,७६ हुहुयंग (हुहुकाङ्ग) ज २।४ हेमाभ (हेमाभ) उ १।२६,१४० हूण (हूण) प १८६ हेरण्णवय (हैरण्यवत)।१६।३० ज ४।१०२, हेउ (हेतु) प १११०१।५ उ ३६ २६४।१,२६८,२७१ से २७४।६।६,२० हे? (अधस्) प २।२१ से २३,३० से ३६,४१ से हेरण्णवयकूड (हैरण्यवतकूट) ज ४।२६६,२७५ ४३,४६,१२।३२, ३६।९१ ज ३११८३,४।१३४ हो (भू) होइप ११४८१५२;१८।१ से १०,१२ से हेट्ठा (अधस्) सू १२।३०; १७।१;२०१६ ३७,३६,४१ से ५१,५४ से ५६,६१ से ६०, हेठिम (अधस्तन) ५२।६२।१।३३।१६ ६२ से ११४,११६,११७,११६,१२०,१२२, हेटिठम उवरिम (अधस्तन उपरितन) प २८1८६ १२३,१२५ से १२७ ज १।१६७।४,८,३।६, हेटिठमउवरिमगेवेज्जग (अधस्तन उपरितनप्रैवेयक) ११६४।१४२।२, ७।११२।१,१४२।२, प १११३७,४१२७३ से २७५, ७।२२ १५११२,१७७।१,२ सू १६।२२१६,७,१७,२८, हेटिठमग (अधस्तन) ज ७१३६।१ २६,२०१८।८ उ ४।२।१ होई ११११०१८ हेटिठमगेवेज्ज (अधस्तनप्रैवेय) प ६।३६ २।२७।१ होउ उ ११६३,२।६ हाति हेठिमगेवेज्जग (अधस्तनप्रैवेयक) ५ २०६० से ५११४७१२,११४८।४७,४६,१७५,७६, ६२,३।१८३,६।५६ ८१।१; २।२७१३,२१४०१८ से ११ २०६४।६; हेमिमज्झिम (अधस्तनमध्यम) प ४।२७१; २२।२५ ज १।१६:४।१५११२;७।११३।१, १७२११ सू १०।१२९।२,५,२०।८।३,२०१६ हेटिठममज्झिमगेवेज्जग (अधस्तनमध्यमवेयक) उ २।२२ होज्ज प २२।६०,२८।१०६ होज्जा ए ११३७,४।२७०,२७२,७।१ प१६।१०,११,१३,१५,२१,१७।११२,२२।२३, हेठिमहेट्ठिम (अधस्तनाधस्तन) प ४।२६८,२६६ २४।४,५,८,११,१२,२५।५।२६।४,६,६,१०; हेट्टिमहेट्ठिमगेवेज्जग (अधस्तनाधस्तनवयक) २७।३ होलि प११४३१२,११४८।३६,५०; प १११३७,४।२६७, ७।२०,२८८७ २।४०।१,२१६४।६।१०।१४।१:१२।२२।१ हेछिल्ल (अधस्तन) प १६।३४२११६०,३३।१६, १८।११२,१८१५६ ज १६४७।१७।१७२११% सू१६।२२।१६ हात्था ज १।२।६६ चं६ १७ ज २।११३,४।२५३,२५४,२५७,७।१७४, सू ११ उ १।१२।४,३।६,४।८५।४ २१५ सू १८।१ होतए (भा तुम्) उ ४।२२ हेतु (हेतु) प ३०।२५,२६ सू १।१४,१६,२१,२४, होत्तिय (होत्रिक) प ११४२।१ 3 ३१५०... २७,२।३,४।४,७, ६।१ होमाण (भवत्) प १७।११२,११३ हेम (हेम) प २।५० ज ४।६१,५११८ होरंभा (होरम्भा) ज ३।३१ २८८८ Page #1171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ० m. ४४ ४५ ८१ ६० १२५ १४२ १५४ १७४ १६६ १७६ १५० १८२ १६५ २०० २०० २०० २०६ २०२ २०६ २०८ २१० २१० २२१ २२ε पं० १७ १६ २३ २१ २६ २० २८ १२ ६ १५ २३ २५ ८ १ २ ३२ १६ १६ १ २२ १५ शुद्धि पत्र अशुद्ध पण्णवणा संठाओ कोलोभासा परमममुहं अभि० भक्कं ० बण्णादि • देवेहतो सोतोसणा पड्डुच्च परिमंडलस्य ओसपप्पि ० पडुप्पणं वाणमंतरणं एषणं पुविवक० पुच्छए बधेलग० जस्सस्थि बा ० सरीकाय ० ०मीससरीर० ० आहाग ० ०मीसारीर० पुरिस होचा शुद्ध संठाणओ कालोभासा परममसुहं आभि० गब्भवक्कं ० वष्णादि देवहितो सीतोसिमा o पडुच्च परिमंडलस्स ओसणि ● पडुप्पण्णं वाणमंतराणं एणट्ठेणं पुढविक्क० पुच्छाए बल्लग० जस्सत्वि वा ० सरीरकाय० ० मीसासरीर० आहारग० ०मीसासरीर० पुरिसे होज्जा Page #1172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६५ २३१ २३२ २४३ पा० ४ पं० २० भवेतारुवे पोंडरिय० इत्थवेदे तिरिक्ख० गव्भक्क० छहवि० २५६ भवेतारूवे पोंडरीय० इत्थिवेदे तिरिक्खजोणिय० गब्भवक्क० छव्वि० जहा २५६ २८१ २८५ पण्णत्ते २८६ २६२ २६७ ३२४ ३४१ ०सागरोव० सागारोव सरीरा सरीर० समुग्घया ० उवण्णगा जंबुद्दीव ०पह्मगोरे सागरोवम० सागारोव० सारीरा सारीर० समुग्घाया ०उववण्णगा ३४२ ३४३ ३५६ ३५६ महावीस्स ०कुडे m g मत्तंगाणाणं मणम० वोवाह m ० mmm ० ना ० mm is 15 mr ०पम्हगोरे महावीरस्स ० कूडे ० कडे मत्तंगाणामं मणाम० वीवाह वा इणछे अज्झावसित्ता दूसमाणामं अभिरममाणा निग्घोसणा० मिसिमिसे खिप्पामेव महामहिम खिप्पामेव ० इंदणील. अणुप्पवाए अटठारस अंतिम इणट्टे अज्झावसत्ता ० दूसमणामं अभिरमाणा निग्घोषणा० मिसिमिस खिप्पमेव महाहिम खिप्पमेव ० इंदणी अणुप्पबाए अटटारस ४०८ ४१२ ४१३ ४१४ ur Page #1173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६६ ४२२ ४२२ ४२३ ४२३ ४२३ ४२३ ४२५ ४३६ ४४२ ४४५ ४४५ ४४५ ४६० ४६३ ४६३ ४६६ ४६८ ५६८ ५७० ६१५ ६५६ ६६८ ६८६ ६६४ ६६७ ६६७ ७२३ ७२३ ७३४ ७८० ७८१ 19८४ १७ २१ ܐ ११ अन्तिम ३७ पा० ४ पा० २ ४ २३ पा० ६ १४ ६ ह १० १ ८ w 9 5 2 m x ८ १२ १३ ७ ५ पा० ५ पं १९ ४ ७ 919 ०वासिण्णो पोइदिणं उस्समर्क पुरंतं पच्चयभि० णेयवव्वो हरि० (स) नं० सपट्टिय तणं सद्धावेत्ता ०पोर्ट ० फहिलह० धव० धण० जंब विष्फद पणत्ताओ सूरपण्णत्त जोयय० मुहुता बावट्ट० ससुद्द वराभण ० ० विताए धुम० उवंगा सर्वतीकरणेण सवण्णीकरण (क ) ०वंक० पुडिबुद्धा पावयणं ०पारियागं ०वासिणी पीइदाणं उस्सुवर्क पूरेंतं परययाभि० गेयव्वो हिरि० ( स ) ० अत्थमंतमेत्त ( शाबू पा ) जं० संपट्टिय तए णं सहावेत्ता पीठं ० फलिह० धूव ० धणु जंबू विहप्फई पण्णत्ताओ जोयण ० मुहुत्ता वावडि० समुदं वराभरण० ० विताए ०धूम सवण्णीकरणं सवंतीकरणे (ग) ०वंक पडिबद्धा पावयणं परिया Page #1174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दकोश कमांक स्थल अशुद्ध अंगपरियारिया अगरुयलहुयपज्जव अट्ठावण्ण xxuri अपज्जुवासणया अप्प अउज्झ (अंगपरिचारिका) अगक्छमाण ज २।१६३ (अष्टपञ्चाशत) अधमत्थिकाय (अपर्युपासना) अप्प (अल्प) जवासा अप्पिण (आ+स्फोट्य) अब्भंग अब्भतरपुरक्खरद्ध अब्भुक्ख अओज्झ (अंगप्रतिचारिका) अगच्छमाण ज २।१६३ (अष्टपञ्चाशत्) अधम्मत्थिकाय (अपर्युपासन) अप्पा (अल्पा) अप्पिण (आ+स्फोट्य) -अब्भंग अब्भंतरपुक्खरद्ध अब्भुक्ख १ अप्फोड ~ ~ ~ अब्भुट्ठ अब्भुट्ठ ~ ~ oury ~ ~ १६. आगासथिग्गल आहारगसरीरय इच्छामण उज्झरबहुल उत्तमपुरिस २०. अभिणंद अभिवुड्ढ (आकाश थिग्गल) (आरारकशरीरक) (इच्छामनस) (निर्झरबहुल) (उत्तमपुरु) उत्पन्न (उपदर्शयितुभ्) (ओधमेघ) ओलंग कक्खंत्तर (कछभी) अभिणंद अभिवुड्ढ (आकाश 'थिग्गल') (आहारकशरीरक) (इच्छामनस्) (उज्झरबहुल) (उत्तमपुरुष) उप्पन्न (उपदर्शयितुम्) (ओघमेघ) ओलंब कक्खंतर (कच्छपी) ~ उवदंसित्तए ओघमेघ २४. कच्छभी Page #1175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६८ 0 0 कलंबुया कल (कल) (कदम्बक) कहिचि कहिय कालहेसि (कालहेसिन) (कौंम्भिक) (कुमुद) (कलम) (कलम्बुका) कहिंचि कहिय 0 0 0 कुंभिक्क कुमुदा 0 गरह गवेस 0 गा 0 गाह 0 oo Ko चउपएसिय गिण्ह गुणड्ढ गेवज्ज चःतु प्रदेशिक चय चय चर चि चित चुल्लहिमवंत (कौम्भिक) (कुमुदा) गिरह गवेस गा गाह गिण्ह गुणड्ढ -गेवेज्ज (चतुःप्रदेशिक) चय चिय चर इचि चित (क्षुल्लहिमवत्) छज्ज (छायाच्छाया) छिंद (छिन्नस्रोतस्) छेद छेय (दे० जटिकायलक) जा जाणियब्व जोयणसतपुहत्तिय (निवृध्य) (निवृत्त) णिव्वाय (नेरयिकासंज्यायुष्क) (त्रपूसीमज्जिका) (चुल्लहिमवत्) छज्ज (छायाछाया) छिंद (छिन्नस्रोतस) छायाछाया छिन्नसोय CCCCCCCCC or जटियायलय छेय (दे० जटिकायिलक) जा जाणियत्व जोयणसत्तपुहत्तिय (निवऱ्या) (निवृत्त) णिव्वाण (नैरयिकासंजयायुष) (त्रपुसीमिजिका) णिवुड्ढत्ता णिव्वत्त णेरइयअसण्णिआउय तउसी मिजिया Page #1176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६६ ६४. ६५. तिंडव (त्वष्टदेवता) (त्वष्ट्र) 0 0 6 (तिर्यगयोनिकासंज्ञयायूष्क) (तिर्यगायुष्क) (दत्त्वा ) (दत्त्वा ) (दुष्ठु) ७०. ७१. ७२. 6 6 दु? ७३. 6 6 दुहट्ट ७५. 6 6 6 ७७. ७८. 6 पम्ह ८०. ८१. तंडव तट्टदेवया (त्वष्ट्रदेवता) त? (त्वष्ट्र) तित्तीस (त्रयस्त्रिशत्) ज० ४।६८ तिरिक्खजोणियअसण्णिआउय (तिर्यगयोनिकासंज्ञयायुष्) तिरियाउय (तिर्यगायुष्) दलयित्ता (दत्वा ) दाऊण (दत्वा) (दुष्टु) दुरभि (दुरभि) (दुधाट्ट) देवअसण्णिआउय (देवासंघ्यायुष्) पंचसतर पञ्जसप्तति पच्चोसक्कित्ता प्रत्यवप्कष्क्य पडि सेहित्तए प्रतिषेध्दुभ् (पद्म) २५१ परिणित्वा परियाण परिवय परिहा पल्हायणिज्ज (प्रहृलदनीय) पिट्ठीय पुक्खलाई पुष्फपडलग (षुष्पपटलक) पुस्वरत्त पूइय पूजित पेहुणमिजिया 'पेहुण' मजिका पोट्टवई प्रौष्ठपदी पोट्टवती प्रौष्ठपदी प १३।१ से ३१ भणित प ११४८१४७ भत्तिचित्त ज० ३।३६ ॥५६ भवोववायगति (भवोवपघातगति) भासग प३।१२,.......१०८ भूमिचवेउ ज ५७ मंडलवता मंडलवत (टलजन) 11111 (दुर्घट्ट) (देवासंज्ञयायुष्क) पञ्चसप्तति प्रत्यवष्वष्क्य प्रतिषेद्धम् (पद्म) ४।२५१ परिणिव्वा परियाण परिवय अपरिहा (प्रहृलादनीय) पिट्टि पुक्खलावई (पुष्पपटलक) पुव्वरत्त पूजित पेहुणमज्जिका प्रोष्ठपदी प्रोष्ठपदी प १३।१ से १३,२१ से ३१ प० ११४८।४१ ज० ३।३,६,५४५८ (भवोवपपातगति) प ३।१२,१०८ ज ५१५७ S ६१. m mm m m ६५. m ६७. m १८. m Page #1177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११०० माणवग मालवंतपरियाय मेहुणसण्णा रयण (वासा) रयणिय १०३. १०४. १०५. रिसह लोम वरदामतित्थाधिपति १०७. १०८. १०६. ११०. १११. ११२. ११३. ११४. ११५. (माणवक) (माल्यवत्पर्याय) मथुन संज्ञा (रत्नवर्षां) (रन्निक) (वृपभ) (लोमन) वरगंधघर (वरदामतीर्थधिपति) वालिघाण कपिथ्य (संवृत्त) सगोत सत्तणउत्ति सम्माणियदोहद सय (सिलीन्ध्र) (सुदर्लभ) स्यपुच्छ सुसमससमा वालुक संवत्त (मानवक) (माल्यवत्पर्याय) मैथुन संज्ञा (रत्नवर्षा) (रलिक) (वृषभ) (लोमन्) वरगंधधर (वरदामतीर्थाधिपति) वालिधाण कपित्थ (संवर्त) सगोत्त सत्तणउति सम्माणियदोहल सिय (सिलीन्ध्र) (सुदुर्लभ) सुयपुच्छ सुसमसुसमा अट्टरूसग (अटरूषक) पश३७४४ एरावण (ऐरावत) प ११३७६४ प ११४८।५० ~ सिलिध सुदुल्लह ११८. ११६. केहण णल (नड) १० ११४१।१ १०४ पोवलइ (दे०) ए ११४८।३ वेणु (वेणु) प ११४८१४६ Page #1178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Pilate & Personal use only www.lainelibrary.org