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________________ पक्कमंत-पच्चत्थिम पक्कमंत (प्रकामत्) ज ३।१०६ पगास (प्र+काश) पगासइ ज ४।६१,२७३, पक्किमृगसंठाणसंठित (पक्वेष्टकसंस्थानसंस्थित) ७.१७८ पगासेति सू ३.१ पगासेति सू ३२ सू १६०२६ पगिज्झिय (प्रगृह्य) उ ३।४२ पक्किट्टगसंठाणसंठिय (पक्वेष्टकसंस्थानसंस्थित) पिगिण्ह (प्र+गह ) पगिण्हइ ज ३।२०,३३,५४, ज ७.५८ ६३,७१,८४,१३१,१३७,१४३,१६६,१८२ पक्कोलिय (प्रकीडित) ज ३।१,१२,२८,४१,४६, पगिण्हंति ज ३।१११ ५८,६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ पगिण्हित्ता (प्रगा) ज ३।२० पक्ख (पक्ष) प ७२,७ से ३० ज २१४,६४,६६, पग्गहेत्तु (प्रगृह्य) ज ३।१२,८८,५१५८ ८८,७।११५,११६,११८,११६,१२६,१२७ पघसिय (प्रघर्षित) ज ३।३५ सू६।१८।११०८५,८७,६०,६१ पच्चक्ख (प्रत्यक्ष) ज ३१,२४।३,३७।१,४५।१, पक्खच्छाया (पक्षच्छाया) सू ६४ १३१।३ उ ५२४ पिक्खल (प्र+स्खल) पक्खलेज्ज उ ३१५५ पच्चक्खयाविणीय (प्रत्यक्षविनीत) ज ३।१०६ पक्खि (पक्षिन् ) प ६।८०।११११४;२११४७११ पच्चक्खवयण (प्रत्यक्षवचन) प १११८६ . ज २११३१ सू २०१२ पच्चक्खाण (प्रत्याख्यान) प २०११७,१८,३४ पक्खित्त (प्रक्षिप्त) प १२।३२ उ १६० पच्चक्खाणावरण (प्रत्याख्यानावरण) प १४१७; पिक्खिप्प (प्र-+क्षिप) पक्खिप्पई ज ३१६८ २३।३५ पक्खिव (प्र+क्षिप) पक्खिवइ उ ११४६,३१५१ पक्खिवंति ज २।१२०५।१६ पक्खिवेज्जाहि पच्चक्खाणी (प्रत्याख्यानिनी) प ११।३७।१ पच्चणुब्भवमाण (प्रत्यनुभवत्) प २।२० से २७ सू २०१६।३ पक्खिवित्ता (प्रक्षिप्य) ज २११२० उ ११६१; पच्चणुभवमाण (प्रत्यनुभवत्) ज १।१३,३०,३६; ३।४१ ३।१२६,४।२ सू२०१७ उ ११११,९८,६६%3 पक्खिविराली (पक्षिविराली) प ११७८ ३।११४,११५,११६ पच्चस्थाभिमुहि (पश्चिमाभिमुखिन्) ज ४।४२,७७, पक्खुभिय (प्रक्षुभित) ज ३।२२,३६,७८,६३,६६, १०६,१६३,१८० २६२ पक्खेवाहार (प्रक्षेपाहार) प२८।४०,६६,१०२,१०३ पच्चस्थिम (पाश्चात्य) प ३१ से ३७,१७६१७८, पक्खेवाहारत्त (प्रक्षेपाहारत्व) प २८।४०,६६ ज १११६,१८,२०,२३,२४,३५,४१,४६,४८, पक्खोलणय (प्रस्खलत्) उ ३।१३० ५१,३।१,४४,६८,६६,६७,१२८,४।१,१६, पगइ (प्रकृति) ज २।१६,३१३,११७, ७।१८० २६,३७,४२,४५,४८,५५,५७,६२,७७,८१,८४, उ ५।४०,४१ ८६,६४,६८,१०३,१०८,१२६,१३५,१४३, पगइभद्द (प्रकृतिभद्र) ज ११४१२।३६,४१ १५११२,१६२,१६७,१६६,१७२ से १७८,१८१, पगडि (प्रकृति) प २३।१।१ १८२,१८४,१८५,१६०,१६१,१६३,१६४, पगय (प्रगत) उश।१ १९६,१६७,१६८,२०० से २०३,२०५,२०६, पगरेमाण (प्रकुर्वत्) प ६।१२३ २०८,२०६,२१३,२१५,२२६,२३२,२३८, पगार (प्रकार) ज ३८१ २५१,२६२,२६५,२६६,२७१,२७२,२७४, पगास (प्रकाश) प १३१ ज २११५,३।३५,११७, ५।१०,३६६।१६ से २४,२६,७।१७८ १८८,४/१२५,५२६२७११७८ उ ५६ सू २।१८।११३।३२,१४,१६,१८।१४; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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