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________________ ज ५७ पच्चत्थिमलवणसमुद्द-पच्छिमदारिया २०१२ उ ३३५४ पिच्चुत्तर (प्रति-+-उत्+त) पच्चुत्तरइ ज २।२८, पच्चत्थिमलवणसमुद्द (पाश्चात्यलवणसमुद्र) ४१,४६ उ ३३५१ ज ४।२६८,२७७ पच्चुत्तरित्ता (प्रत्युत्तीर्य) ज ३।२८ उ ३३५१ पच्चस्थिमिल्ल (पाश्चात्य) प १६३४ ज ११२०, पच्चुप्पण्ण (प्रत्युत्पन्न) ज २।६०३।२६,३६,४७, २३,४८,२।११६,३१४७,७६,६५,१४६.१५०, ५६,१३३,१३८,१४५, ५।३,२२ १५६,१६१,१६४; ४।३७,५५,६२,८१,८६,६८, पच्चुवसम (प्रति+उप-शम्) पच्चुवसमंति १०८,१७२,२१२,२१३,२३०.२३१,२३८; .. ७।१७८ सू २।११०।१४२,१३।१४,१६ पच्चुवसमित्ता (प्रत्युपशम्य) ज ५१७ पच्चत्यय (प्रत्यवस्तृत) ज ३।११७ पच्चुवेक्ख (प्रति+उप+ ईक्ष ) पच्चुवेक्खइ पिच्चप्पिण (प्रति + अर्पय) पच्चप्पिण' ज ३११८७ ज ३।३२,१७१; ५७१ पच्चप्पिणंति ज ३०८, पच्चुवेक्खित्ता (प्रत्युप्रेक्ष्य) ज ३।१८७ १३,१६,२६,४२,५०,५६,६७,७५,१४८,१६६, पच्चोयड (दे०) ज ४।३,२५ १७४,१७६,१६८,२००,२१३,५१७०,७३ पच्चोरुभित्ता (प्रत्यवरुह्य) ज ४।१३ पच्चप्पिणति ज ३।१६,५३,६२,७०,१४२, पन्चोरुह (प्रति अव--- रुह ) पच्चोरुहइ १६५,१८१,५२५ पच्चप्पिणह ज २।१०५; ज ३।६,२०,३३,५४,६३,७१,१४३,१५१,१६६, ३१७,१२,१५,४१,४६,५८,६६,७४,१३०,१४७, १८२,१८६,२०४,२१४।५।२१,४४ उ १।१६; १६८,१७३,१७५.१६१,१६६,२१२,५१६६ ३१५१ पच्चोरुहंति ज ३१२१५,५५,४५ ७२ उ १।१७,४।१६,५।१८ पच्चप्पिणामि पच्चोरुहति ज ३।२८,४१ पच्चोरुहेइ उ१।१०६ पच्चप्पिणामो उ १११२७ ज३।१११,४।१८ पच्चप्पिणाहि ज ३११८,३१,५२,६१,६६,७६, पच्चोरुहिता (प्रत्यदरुह्य) ज २१६५ उ ११६, ८३,६८,१२८,१४१,१५१,१५४,१६४,१७०, ३१५१,४११५ १८०५।२८,६८ उ १।११५ पच्चप्पिणिज्जइपच्चोलक्क (प्रति+अबक) पच्चोसक्कइ उ १११२८ पच्चप्पिणेज्जा प ३६।११ ज ३।१२,८८,१५५ पच्चोसक्कति सु २०१२ पच्चय (प्रत्यय) ज ३।१०६ पच्चोसक्कित्था ज ३८६,१०२,१५६,१६२ पच्चामित्त (प्रत्यामित्र) ज २।२८ पच्चोसक्कित्ता (प्रत्यवकष्क्य) ज ३।१२ पच्चाया (प्रति-आ-जन) पच्चा तिज ६।४ पच्छभाग (पश्चाद्भाग) सू १०।४,५ पच्चायाति ज २१६४ पच्चायाहिइ उ १४३ पच्छा (पश्चात् ) प ३४।१,२,३६।८५,८८ १०५ पच्चायात (प्रत्याजात) ज २।१३३ उ ३७,५१,५३,५४,६१,१०७,११८,१३६; पच्चावड (प्रत्याक्त) ज ५१३२ ४।२१ पच्चावरण्ह (प्रत्यापराण्ह) उ ३३५६,६४,६८,७१, पच्छाकड (पश्चात्कृत) सू ८।१ ७४,७६ पच्छिम (पश्चिम) ज २१५५,५७ से ५६,६४,१२६, पच्चुट्टित्तए (प्रत्युत्थातुम् ) उ ३५५ १५५,१५६; ३।१३५॥१ पिच्चुण्णम (प्रति+उत्-।-णम्) पच्चुण्णमइ पच्छिमकंठभाओवगता (पश्चिमकण्ठभागोपगता) ज ५१२१,५८ __ सू ६४ पच्चुण्णमित्ता (प्रत्युन्नम्य) ज ५।२१ पच्छिमदारिया (पश्चिमद्वारिका) सू १०।१३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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