SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1087
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०१० मझिमउवरिमगेवेज्जग-मणि २४ मज्झिमउवरिमगेवेज्जग (मध्यम उपरितन वेयक) १७।११२,११३; २०११८,३२,४७,२६।२; प १।१३७,४।२८२ से २८४,७४२५ ३०१२ मज्झिमग (मध्यमक) प २१६१ मणपज्जवणाणारिय (मनःपर्यवज्ञानार्य) प ११६६ मज्झिमगेवेज्ज (मध्यमवेयक) प ६४० मणपज्जवणाणि (मनःपर्यवज्ञानिन् ) प ३।१०१, मज्झिमगेवेज्जग (मध्यमवेयक) प २१६१,६२, १०३,५।११७:१८१८१,२८।१३६,३०।१६,१७ ३।१८३;६।५६,३३।१६ मणपज्जवनाण (मनःपर्यवज्ञान) प २०१३३ मज्झिममज्झिम (मध्यममध्यम) प १८६१ मणपज्जवनाणपरिणाम (मनःपर्यज्ञानपरिणाम) मज्झिममज्झिमगवेज्जग (मध्यममध्यमवेयक) प १३९ प १११३७,४।२७६ से २८१,७।२४ मणपरियारग (मनःपरिचारक) प३४।१८,२४,२५ मज्झिमय (मध्यमक) प २।६।१ मणपरियारणा (मनःपरिचारणा) प ३४।१७,१८, मज्झिमहेठिम (मध्यमाधस्तन) प २८६० मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जय (मध्यमाधस्तनप्रैवेयक) मणभक्खण (मनोभक्षण) प २८।१०५ प१११३७,४।२७६ से २७८,७।२३ मणभक्खत्त (मनोभक्षत्व) प २८।१०५ मज्झिमिल्ल (मध्यम) ज ४।२५३,२५५,२५८ मणभक्खि (मनोभक्षिन् ) प २८।११२,२८।१०४, मज्झिय (मध्यक) ज २०१५ १०५ मज्झिल्ल (मध्यम) ज ३।१ मणसमिय (मन:समित) ज २१६८ मट्टिया (मृत्तिका) ज ३।२०६५।५५,५६ मणसाइय (मनःस्वादित) ज ३।११३ मट्ठ (मृष्ट) प २।३०,३१,४१,४६,५६,६३,६४ मणसीकत ('मनीकृत) प२८।१०५ ज ११८,२३,३१,२।१५,४।१२८,५।४३ मणसीकय (मनीकृत) प ३४।१६,२१ से २४ सू २०१७ मणसीकरेमाण (मनीकुर्वत्) ज ३१५४,६३,७१, मट्ठमगर (मृष्टमकर) प ११५६ १११,११३,१३७,१४३,१६७ मडंब (मडम्ब) प ११७४ ज २।२२,१३१,३।१८, मणहर (मनोहर) ज २।१२,६५,३११३८,१८६, ३१,८१,१६७।२,१८०,१८५,२०६,२२१ २०४:४।१०७,५१५,२८,३८,७।१७८ उ ३३१०१ मणाभिराम (मनोभिराम) ज ३।१०६ मण (मनस्) प २२।४।२३।१५,१६,३४।१।२, मणाम (दे० 'मन' आप) प२८।१०५ ज २१६४; ३४।२४ ज २१६४,७१,३३,३५,१०५,१०६%3 ३।१८५,२०६; ५।५८ उ ११४१,४४; ३।१२८; ४११०७,१४६,५।३८,७२,७३ सू २०१७ ५।२२ उ १।१५,३५,४१ से ४४,७१,३।१८ मणामतर (मन:आपतर) ज २०१८,४।१०७ मणगुत्त (मनोगुप्त) ज २।६८ उ ३६६ मणामतरिय ('मन' आपत रक) प १७।१२६ से मणजोग (मनोयोग) प ३६।८६,८८,८६,६२ १२८,१३३ से १३५ ज २०१७ मणजोगपरिणाम (मनोयोगपरिणाम) प १३१७ मणामत्त ('मन' आपत्व') २८।२६,३४।२० मणजोगि (मनोयोगिन्) प ३९६:१३।१४,१६; मणि (मणि) प ११२०।२२।३१।४१,४८,१५।१।२, १८१५६२८११३८ १५।५० ज १११३,२१,२६,३३,४६;२।७,२४, मणपज्जत्ति (मनःपर्याप्ति) प २८.१४२,१४४,१४५ ५७,६४,६६,१२२,१२७,१४७,१५०,१५६, मण (पज्जवणाण) (मनःपर्यवज्ञान) प २६।१७ १६४७३।१,६,२०,२४,३०,३३,३५,५४,५६, मणपज्जवणाण (मनःपर्यवज्ञान) प ५।२४,११५, १. भिक्षुशब्दानुशासन ८।२।१६ अरुर्मनश्चक्षु" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy