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________________ मगर-मज्झिमउवरिम १००६ मगर (मकर) प ११५५,५९,२।३० ज १।३७; २११०१,४।२४,२७,३६,६६,६१,५।३२ सू २०१२ मगरंडग (कराण्डक) ज ५।३२ मगरज्मय (मकरध्वज) ज २।१५ मगरमुहविउदृसंठाणसंठिय (मकरमुखवित्तसंस्थान संस्थित) ज ४।२४,७४ मगसिरी (मार्गगिरी) सू १०७,१२ मगसीसावलिसंठिय (मृगशीविलिसंस्थित) सू १०३८ मगह (मगध) प ११६३।१ मगूस (दे०) प ११७८ मग्ग (मार्ग) ज ६४,३।२२,३६,६३,६६,१०६, १६३,१७५,१८० मग्गओ (दे० पृष्ठतम्) ज ५।४३ मग्गण (मार्गण) ज ३१२२३ मग्गदय (मार्गदय) ज ५।२१ मग्गदेसिय (मार्गदेशिक) ज ५१५,४६ मग्गमाण (मार्गयत्) उ ३।१३० मग्गरिमच्छ (मकरीमत्स्य) प ११५६ मग्गसिर (मार्गशीष) ज ७।१०४,१४५,१४६ सू १०।१२४ उ ३।४० मग्गसिर (मृगशिरस्) ज ७।१४०,१४५,१४६ मग्गसिरी (मार्गशिरी) ज ७।१३७,१४०,१४५, १४६,१५२,१५५ सू १०७,१२,२३,२५,२६ मग्गिज्ज (मार्गय) मग्गिज्जइ प १२॥३२ मघमघेत (दे० प्रसरत् ) प २।३०,३१,४१ ज ३७, ८८५७ सू २०१७ मघव (मघवन् ) प २५० ज ५।१८ मघा (मघा) ज ७।१२८,१२६,१३६,१४० सू १०।५,६२ मच्छ (मत्य) प ११५५,५६,६।८०।२ ज २११५, १३४;३।१७८,४१३,२५,२८,५३२,५८ सू२०१२ मच्छंडग (मत्स्याण्डक) ज ५।३२ मच्छंडिया (मत्स्य ण्डिका) प १७११३५ ज २११७ मच्छाहार (मत्स्याहार) ज २११३५ से १३७ मच्छिय (मक्षिका) प ११५१११ मच्छियपत्त (मक्षिकापत्र) प २०६४ मज्जण (मज्जन) ज ३।६,२२२ मज्जणघर (मज्जनगृह) ज ३।६,१७,२१,२८,३१, ३४,४१,४६,५८,६६,७४,७७,८५,१३६,१४७, १५३,१६८,१७७,१८७,१८८,२०१,२१८, २१६,२२२ उ १।१२४,५।१६ मज्जणय (मज्जनक) उ ११६७ मज्जणविहि (मज्जनविधि) ज ३।६,२२२ मज्जाया (मर्यादा) ज २११३३ मज्जार (मार्जार) प १४४।१ चित्रक मज्जाव (मज्जय) मज्जावेंति ज ५।१४ मज्जावेत्ता (मज्जयित्वा) ज ५।१४ मज्जिय (मज्जित) ज ३६,२२२ मज्झ (मध्य) प ११४८१६३ ; २।२१ से २७,२७।३, २।३० से ३६,३८,४१ से ४३,४६,५० से ५६, ६४;११६६,६७, २८।१६,१७,६२,६३ ज ११८,३५,४६,४७।१,५१,३१६,१७,२१, २४।३,३४,३७।१,४५।१,१०६,१३११३,१७७, १८५,२०६,२२२,२२४,२२५,४।१३,४५, ११०,११४,१२३,१४२।१,२,१५५,१५६।१, २१३,२२२,२४२,२६०।१,५।१४,१५,१७,३३, ३८,७।४५,२२२।१ सू १२।३०,२०१७ मज्झमज्झ (मध्यमध्य) ज २६५,६०३३१४, १७२,१८३,१८४,१८५,२०४,२२४;५१४४ सू २००२ उ १११६,६७,११०,१२५,१२६, १३२,१३३;३।२६,१११,१४१,४।१३,१५, १८:५११६ मज्झंतिय (मध्यान्तिक) ज ७।३६,३७,३८ मज्झगय (मध्यगत) ज ७।२१४ मज्झयार (दे० मध्य) ज ७।३२११ मज्झिम (मध्यम) प २१६४१७,२३।१६५ ज २१५५, ५६,१५५,१५६४।१६,२१,५।१३,१६,३६ सू२३ उ ३३१००,१३३ मज्झिमउवरिम (मध्यमउपरितन) प २८९२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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