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________________ अच्चुयग-अजीवपज्जव से २६६,६३८,५६,६६, ८५, ८६, ६८,७१६; १८८, २०१६१,२११६१,७०,६१,६२,२८६६; ३०।२६,३३।१६,२४,३४।१६, १८ ज २०६४; ५।४६, ५४,५६,५८,५६ उ २।२२५/४१ अच्चुयग (अच्युतक) ज ५।४६ अच्वेत्ता ( अर्चयित्वा ) ज २।१२० अच्छ ( रुक्ष ) प १।६६,११।२१ ज २१३६,१३६ अच्छ (अच्छ ) प १९३१४, २०३०, ३१, ४१, ४६,५० ५२,५८,५६,६३,६४ ज १८ से १०,२३,३१, ३५,५१,३५१२,८८,१०६,१६४, ४१, ३, ७, १२, १५, २४, २५, २८ से ३१,३० से ४१,४५, ५७, ६२,६४,६६ से ६८, ७४ से ७६,८६,८८,६१ से ३,१०३, ११०, ११४, ११८, १४३, १५६ १७८,२०३,२०६,२१३,२१८,२४२,२४५, २५१,२५२,२६०।१५।५८, ७।५५ सु ५१; १६।२३ ( अच्छ (आस) अच्छेज्ज प २६४ । १६ अच्छत्तय (अछत्रक) उ५।४३ अच्छरगण ( अप्सरोगण ) प २१३०,३१,४१ ज १।३१ अच्छरसातंडुल ( अप्सरस्तण्डुल' ) ज ३।१२,८८ ५।५८ अच्छरा (दे० ) प ३६८१ अच्छरा ( अप्सरस् ) प ३४ । १६ से २४ उ ५ ।५ अच्छि (अक्षि ) प १।४८ ।४७,११।२५ चं १११ ज २।४३;३।१७८,७।१७८ उ० ३।११४ अच्छिण्ण (अच्छिन्न) प १५।४० से ४२ अच्छि (अछिद्र ) ज २।१५ अच्छिरोड ( अक्षिरोट) प ११५१ अच्छिवेह ( अक्षिवेध ) प ११५१ अच्छी (ऋक्षी ) प ११।२३ अच्छेरग (आश्चर्य) ज २।१५ अजर (अजर ) प २०६४।२१ १ अच्छो रसो येषां ते अच्छरसाः प्रत्यासन्नवस्तु प्रतिविम्बाधारभूता इवातिनिर्मला इतिभावः टीका पत्र १६२ Jain Education International ८१५ अजसोकित्तिणाम (अयश: कीर्तिनामन् ) प २३।३८, १२८ अजहरण ( अजघन्य ) प २३।१६१ से १९३ ज २।१५ अहमणुक्को (अजघन्यानुत्कर्ष ) प ४२६७, २६६ ५।४२,४६, ६४,७६, ११२, ११६,२४४; ७१३०१८ १०२,२३।६३,२८।६७ मोगुण ( अजघन्यानुत्कर्ष गुण) प५३८, ६०, ७५,६०,१०८, १६१,१६४,२०१, २०४,२०८,२१२,२१५,२१६,२२२, २२५,२४३ अजहण्णमणुक्कोसट्ठितिय ( अजघन्यानुत्कर्षस्थितिक) प ५।३५,५७,७२,८७,१०५, १७५, १७८, १८२, १८५,१५८,२४० अजहण्णमणुक्को सपदेसिय ( अजघन्यानुत्कर्ष प्रदेशिक ) प ५।२३१,२३२ मति) अजहण्णमणुक कोसमति (अजघन्यानुत्क प ५।६४ अजहणमणुक्को सोगा हणग (अजघन्यानुत्कर्षावगाहनक) प ५१७१,१७२,२३६,२३७ अजहणमणुककोसोगाहणय ( अजघन्यानुत्कर्षावगा हनक ) प ५ ५०,५४,६६,८४,१०२, १५५,१५८ १६०,१६४,१६७,१७२, २३७ अणुक्को ( अजघन्योत्कर्ष ) प ५६४,६८ अजहष्णुक्को सो गाहणग ( अजघन्योत्कर्षोवगाहनक ) प५।३१,३२ अणुक् कोसोगाहणय ( अजघन्योत्कर्षावगाहनक ) प५।३२,१६१ अजाइय (अयाचित ) उ० ३।३८ अजावणिज्ज (अयापनीय ) ज२।१३१ अजिण (अजिन ) ज २७८ अम्हि (अज) ज २।१५ अजिय ( अजित ) ज० ३।१८५,२०६ अजीरग ( अजीरक) ज २०४३ अजीव ( अजीव ) प १।१०१।२१५।५७ ज २०७१ सू २०१३ ३।१४४; ५।३४ अजीवपज्जव (अजीवपर्यव ) प ५१, १२३ से १२५, २४४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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