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________________ ८१४ ४१, ४३,४८ से ५२ ज ११४५ २६०, ४/१५१; ५।१६, ३६, ४१, ४४, ५०, ५२, ५३; ७।१६८।२,१८३,१८६ सू १८।२१,२३, २४, २०१६ अग्गर (दे० ) प १ 15 अग्गल (अर्गल ) सू २०१८ अग्गसाला अग्रशाला ) ज २ | १० ; ४।१६६ अग्ग सहर ( अग्रशिखर ) ज १।३७ अग्गहत्थ (अग्रहस्त ) ज २।१५ गाणी (ग्रीक) ज ३।१०७ से १०६ अग (अग्नि) प २।३०।१,२।४०।२,६,११; ३६।९४ ज २६; ३।३, ६५, ११५, १२४, १२५ १५६ ५।१६,५२; ७।१३०, १८६।३ उ ३१४८, ५०, ५१,६४ अग्गिकुमार (अग्निकुमार ) प १।१३१५।३ ६ । १८ ज २ १०५, १०६ अग्गिदेवा (अग्निदेवता ) सू १०१८३ अग्गमाणव (अग्निमानव ) प २|४०|७ अग्गमेह ( अग्निमेघ) ज २।१३१ अग्गिल (अग्निल) सू २०१८५ afda (अग्निवेश्मन्) ज ७।११७,१२२।३, १३२/३ सू १०८४१३,१०१८६।३ अगिसीह (अग्निसिंह ) प २०४०१६ अग्गहोत्त (अग्निहोत्र ) उ३।५५,६३,७०,७३ अहोम (अग्निहोम ) ज ५।१६ ~ अग्घा ( आ + घा) - अग्घाति प १५ ३८,४२ अघाडग (दे० अपामार्ग ) प १|३७|४ अचंचल ( अचञ्चल) ज ३।१०६ अचंडपाडिय ( अचण्डपातित ) ज ३॥१०६ अचक्खुदंसण ( अचक्षुर्दर्शन ) प ५५, ७, १०, १२, १४,१६,१८,२०,२१,४५, ५३, ५६,५६,६३, ६८,७१,७४,७८, ६३, ६७, २६३, ७, १०, १३,१४,१७,१६ से २१ अक्खुद सणावरण ( अचक्षुदर्शनावरण) प २३।१४ अचक्खुदंसण ( अचक्षुर्दर्श निन् ) प ३|१०४; ५४७,६५,८०, ६६, ११७,१८८६ Jain Education International अग्गर-अच्चय अचरित्ति (अचरित्रिन्) प १३११४,१८,१६ अचरिम ( अचरम ) प १।१०३, १०६, १०७ १०६ ११०,११३,११४,११६,११६, १२०, १२२, १२३;३।१२३१०।२ से १३,२१,२६ से ५३; १८।१२७ अचरिमंत ( अचरमान्त ) प १०२ से ५,२१,२६,से २६ अचल (अचल ) ज ३ ६ से १०१, ५।२१ अचवल ( अचपल ) ज ५।५,७ अचित्त (अचित्त ) प ६।१३ से १७,१६ ज २०६६ अचित्तजोणीय (अचित्तयोनिक) प ६१६ अचिताहार (अचित्ताहार ) प २८|१, २ अचिरवत्त विवाह (अचिरवृत्तविवाह) सू २०१७ अचेलय (अचेलक ) ज २०६६ अचोक्ख (दे० ) ज ५।५ √ अच्च (अर्च ) अच्चेइ उ ५ । ७अच्चेति ज० २।१२० अच्चंत ( अत्यन्त ) उ १।७२, ७३,८७,८८, ६२; ३१४८, ५०, ५५ अच्चणिज्ज ( अर्चनीय) ज ७।१८५ सू० १८।२३ अचनिया (अर्चनिका) ज ४।१४०।१ अच्चसण ( अत्यशन ) ज ७ ११७/२ सू १०८६ २ अच्चासरण ( अत्यासन्न ) ज २६०३।२०५, २०६, ५।५८ अच्चासन्न ( अत्यासन्न ) ज ११६ aa (अर्चिस् ) प ११२६,२१३०,३१,४१,४६ अचित्ता ( अर्चयित्वा ) ज ३८८ अचिमालि (अर्चिर्मालिन् ) प २५०,५४,५८ से ६० ज ७।१८३ सू १८।२१,२४,२०१६ अच्चिस हस्तमाली (अचिस्सहस्र मालनीक) ज ४।२७५।२८ अच्च ईद (अच्युतेन्द्र ) ज ५।५८ अह ( अत्युष्ण) ज ७।११२ ।१ सू० १० १२६ । १ अच्चुत (अच्युत ) प ११३५२४६,५६,६०,३१८३ अच्चुतवडेंसय ( अच्युतावतंसक ) प २५६ अच्य (अच्युत ) प २।४६, ५६, ५६२, ६३,४।२६४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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