SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 890
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अकुडिल-अग्गमहिसी ८१३ ३२ से ३४,३६,३७,४५ अक्खीण (अक्षीण) प ३६।८२ अकुडिल (अकुटिल) ज २।१५ अक्खोड (अक्षोट) प १६।५५ अकुटवमाण (अकुर्वत्) सू २०१७ अक्खोडय (अक्षोटक) प १७११३२ अकेसर (अकेसर) प ११४८।४६ अक्खोभ (अक्षोभ) ज ३३ अकोह (अक्रोध) ज २१६८ अगंतूण (अगत्वा) प ३६।८३।२ अक्क (अर्क) प १।३७।३ अगंथ (अग्रन्थ) ज २७० अक्कबोंदी (दे०) प ११४०।५ अगक्छमाण (अगच्छत्) सू २०२ Vअक्कम (आ-+ क्रम्) अक्कमइ उ १।११६ अगड (दे०) प २१४,१३,१६ से १६,२८; १११७७ अक्कमाहि उ १५११५ ज २।३१ अक्कमित्ता (आत्रम्य) उ ११११५ अगणि (अग्नि) प ११४८१५६; २।२० से २५ अक्किज्ज (अक्रेय) ज ३।१६७।१३ अगणिकाय (अग्निकाय) ज २।१०५ से १०८ अक्किट्ठ (अक्लिष्ट) ज २०४६ अगस्थि (अगस्ति ) प ११३८।२ ज २।१० सू अक्कुस्समाण (आक्रोशत्) उ ३.१३० २०१८,२०१८।४ अक्कोप्प (अकोप्य) ज २०१५ अगरुलहुय (अगुरुलघुक) प १५१५७ ज २१५१,५४, अक्कोसमाण (आक्रोशत्) उ ३।१३० १२१,१२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, अक्ख (अक्ष) ज २।६,१३४ । १६३ अक्खय (अक्षय) ज १।११,४७, ३।१६७,२२६; अगरुयलहुयपज्जव (अगुरुलघुकपर्यव) ज २।१४६, ४।२२,५४,६४,१०२,१५६; २१ १५४,१६०,१६३ ७।२१० उ ३।४३,४४ अगरुयलहुयपरिणाम (अगुरुलघुकपरिणाम) अक्खर (अक्षर) ज २१६,१३४ प १३।२१,३० अक्खरपुट्ठिया (अक्षरपुष्टिका, पृष्टिका) प १६८ अगार (अगार) प २०११७,१८ ज २१६५,६७,८५, अक्खाइया (आख्यायिका) प १११३४।१ ८७ उ ३।१३,१०६ से १०८, ११२,११८, अक्खाइयाणिस्सिया (आख्यायिकानिश्रिता) १३६,१३८,१३६,४१४,१६,५।३२,४३ अगारवास (अगारवास) ज २१८७, ३।२२५ प १११३४ अक्खात (आख्यात) प १६४६,६६,७५,८१; उ ३।११८ २।२१ से २६,३०,३२ से ३६,४१,४३,४६, अगुरु (अगुरु) जं २।१०६,११० ४८ से ५२,५५ से ५७.६० से ६२ सू अगरलघुअणाम (अगुरुलघुक नामन्) प २३॥५१ ३।११३२ अगुरुलहुणाम (अगुरु लघुनामन् ) प २३।३८,११ अक्खाय (आख्यात) प ११५०,५१,६०,७६; अग्ग (अग्र) प २।३१ ज ११३७; २।१२०; ३।१२, २।२०,३१,५८,५६ ज ।२६,४।२१; १८,२२,३१,७६,८८.१०७,१२५ से १२८, ६।१०,११,१४,१५,१८ से २२,२६, ७।४,६३ १५१,१५२,१५६,१८० ८७ सू१०।१२७ अग्गंगुलिया (अग्रांगुलिका) उ ११५६,६१ से ६३ अक्खिव (आ+क्षिप्) अक्खिवइ उ १११०५ ८४,८६,८७ अक्खिविउकाम (आक्षेप्तुकाम) उ १११०५ अग्गभाव (अग्रभाव) ज ७।१३२।१. सू १०६४ १. टीका में अक्षरस्पृष्टिका है। अग्गमहिसी (अ महिषी) प २।३० से ३३,३५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy