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________________ ८२३ अणुलिह-अण्णतरठितिय ‘अणुलिह (अनु+लिह) अणुलिहंति ज ३।१७८,५१४३ अणुलिहंत (अनुलिहत् ) उ ५।५ अणुलिहमाण (अनुलिखत्) प २०४८ अणुलेवण (अनुलेपन) प २।२० से २७,३०,३१, ४१,४६ ज २०७० अणुलोम (अनुलोम) ज २।१६,६७ अणुलोमच्छाया (अनुलोमछाया) सू ६।४ अणुवउत्त (अनुपयुक्त) १५१४८,४६३४।१२ अणुवत्तमाण (अनुवर्तमान) ज ५।२७ अणुवम (अनुपम) प ३०।२७,२८ अणुवरयकाइया (अनुपरतकायिकी) प २२।२ अणुववेत (अनुपेत) प १७।१३२ अणुवसंत (अनुपशान्त) प १४।६ अणुवसंपज्जमाणगति (अनुपसंपद्यमानगति) प १६।३८,४२ अणुवसंपज्जित्ताणं (अनुपसंपद्य) प १६।४२ अणुवाय (अनुवाद) ज ४।१०३ अणुवायगइ (अनुपातगति) सू १।१४ अणुवासिय (अनुवासित) ज ५१५ अणुविद्ध (अनुविद्ध ) ज ३।१२,८८; ५।५८ अणुव्वय (अणुव्रत) उ ३।८१,८२ अणुसज्जमाण (अनुसजत्) ज ४।२०५ *अणुसज्ज (अनु + पंज) अणुसज्जित्था ज २।५० अणुसज्जिस्सं ति ज २।१६२, १६४ अणसमवयणोववत्तीय (अनूसमवदनोपपत्तिक) ज ३।१६७।१२ अणुसमय (अनुसमय) प ६।१६,६२,६३, १११७०; २८।४,२६,५० अणुसार (अनुसार) १ २०८० ज० ५१५७ उ ५४५ अणुहर (अनु+ह) अणुहरंति ज ३।१३८ अणुहो (अनु । भू) अणुहोति प २१६४।२२ अणूण (अनून) सू १६।२११८; १६।२२।२८ अणेग (अनेक) ५११३८।३,११४८१६,४७,१।१०११ ७; २१४१,६४ ज ११३७,२।१२,११३,१४६; ३।३,६,१२,२२,२४,२८,३१,३६,४१,४६,५८, ६६,७४,७७,६३,६६से१०१,१०६,१११,११६, १२०,१४७,१६३,१६८,१६३,२१२, २१३, २२२; ४।३,६,२५,३३,१२०,१४७,२१६, २४२; ५।३,४,२८,३२,३३,४३ उ १९७ से ६६; ३।४३,४४ ; ५।१०,१७ अणेगजीविय (अनेकजीवित जीवक) प ११३५,३६ अणेगविह (अनेकविध) प १।१३,२०,२३,२६,२६, ३५ से ५१,५६,६३ से ६६,७०,७१,७५,७६, ७८,७६.८६,९६,१६।३०,३७ अणेगसिद्ध (अनेकसिद्ध) प १११२,१६॥३६ अगिदिय (अनेकेन्द्रिय) प १११३८ अणेरइय (अनैरयिक) प १७।६०,६१ अणेसणिज्ज (अनेषणीय) उ ३।३८ अणोगाढ (अनवगाढ) प १११६२,२८।१२,५८ अणोवम (अनुपम) ज ३।६२,१०६,११६ अणोवमा (अनुपमा) प २१६४।१८,१७।१३५ अणोवमा (दे०) ज २०१७ अणोवाहणय (अनुपानत्क) उ ५।४३ अणोहट्टिय (दे०) उ ३।११६; ४।२३ अण्ण (अन्य) प ११२०,२३,२६,२६,३५ से ३७,३६ से ४७,४८७,१० से २६१६४८ से ५१,५६, ६०,७८,६६,६७, २०३० से ३३,४८ से ५५; ११।२१ से २५ ; ३६१६४ ज ११४५,४६; २।२०,७१,६०,३।८१,१८६,१८८,२०६, २१०,२१६,२२१, ४।१३,१४,५२,११४,१४६, १५६,१६५,२०६,२१६,२१६,२२१; ५।१,५, १६,२४,३८,४७,५०,६७, ७।५६,५६,१८३, १८५ सू ६।११०।१६२ से १६४,१६६; १७.१,१८।२१,२३,१६।११,२४, २०११ उ ५।१०,१७ अण्णतर (अन्यतर) सूह।१ अण्णतरठितिय (अन्यतरस्थितिक) प २८।५०,५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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