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________________ महाणक्खत्त-महावीर १०१५ २२१ २०६,२०८,२१२,२१५.२३२,२६२,५५५; महाभीम (महाभीम) प २१४५,२।४५।१ ६।१ से २२ उ ११६७३।५१,५६,५८ महामंडलिय (महामाण्डलिक) प ११७४ महाणक्खत्त (महानक्षत्र) सू १०।२५,४३,१०८ महामंति (महामन्त्रिन्) ज ३।६,७७,२२२ महाणदी (महानदी) ज ४१६५,२६८ महामहिम (महामहिमन) ज २११७,११८, महाणिरय (महानिरय) प २२२७ ३।१२,१३,१४,२८,३०,४१,४२,४६ से ५१, महाणिहि (महानिधि) ज ३।१७८,१८३,२२०, ५८ से ६०,६६ से ६८,७४ से ७६.१३६,१३६, १४७ से १५१,१६८,१६६,१७० ; ५७४ महाणुभाग (महानुभाग) प २।३०,३१,४१,४६; महामेह (महामेघ) ज २।१०,१४१,१४२,१४५; ३६।८१ ज १२४,३१,३१११५,१२४,१२५, ३।६,१७,२१,३१,३४,३५,१७७,२२२ उ ३।४६ २२६; ४।६०,५।१८ सू १७११, २०११,२ महायस (महायशस्) प २१३०,३१,४१,४६; महाणुभाव (महानुभाव) सू १७।१;२०।१,२ ३६।८१ ज ११२४,३१,३।११५,१२४,१२५, महातव (महातपस्) ज ११५ २२६,५११८ महादंडय (महादण्डक) प ३।१८३ महारह (महारथ) ज ३।३५ महाद्दुम (महाद्रुम) ज ५१५१ महाराय (महाराज) ३।२०७,२०८,२२५ उ ३।५१, महाधणु (महाधनुष) उ ५।२।१ ५३,५४ महानिहि (महानिधि) ज ३।१६७।१,१० महारायवास (महाराजवास) ज २१६४ महानील (महानील) प २।३१ से ३३ महारुधिरपडण (महारुधिरपतन) ज २।४२ महापउम (महापद्म) ज ३।१६७।१,६,१७८ महारोरुय (महारोरुक) प २।२७ उ २१२,२० महालय (महत्, महालय) प २।२७,६३ महापउमद्दह (महापद्मद्रह) ज ४।६४,६५,७३,८६ ज २१११४,११५,५५४३ महापउमा (महापद्मा) उ २।१६,२० महावच्छ (महावत्स) ज ४।२०२।१,२०३ महापम्ह (महापक्षा) ज ४।२१२,२१२।१ महावप्प (महावप्र) ज ४१२१२,२१२।३ महापह (महापथ) ज ३।१८५.२१२,२१३,५७२, महाविजय (महाविजय) ज २०१७ ७३ उ १६८ महावित्त (महावृत्त) ज ५।५८ महापाताल (महापाताल) प २१६१ महाविदेह (महाविदेह) प ११७४,८८,२१७ महापुंडरीय (महापुण्डरीक) ज ४।२६८ ज ४।८६,६८ से १०३,१०८,१६२,१६७, महापुंडरीयहत्यगय (हस्तगतमहापुंडरीक) ज ३।१० १६६,१७२ से १७४,१७८,१८१,१८२,१८४, महापुरा (महापुरा) ज ४।२१२।२ १८५,१८७,१८८,१६०,१६१,१६३,१६४, महापुरिस (महापुरुष) प २१४५,२।४५।२ १६६,१६७,१६९,२०० से २०३,२०५,२०६, महापुरिसपडण (महापुरुषपतन) ज २०४२ २१३,२६२,६९,१४,२२ उ १।१४१,१४७; महापोंडरीय (महापौण्डरीक) प ११४६ ज ४।३,२५ २११३,२२,३।१८,२१,८६,१५२,१६५,१६६; महाफल (महाफल) उ १।१७ ४।२६,२८,५०४३ महाबल (महाबल) प २१३१,४१,४६ ज ११२४, महाविमाण (महाविमान) प २१६४ ३१,३७७,१०६,११५,१२४,१२५,१२६, महावीर (महावीर) ५१११११ व ११५,६,७:२१४ २२६,५।१८ सू १७।१,२०११,२ उ २।६; चं १० सू ११५ उ १५२.४ से ८,१६,१७,१६ ५।१३,२५ से २६,१४२,१४३,२।१ से ३,१० से १२,१४, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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