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________________ प्रमाणविधि ० अव्यय, सर्वनाम का साक्ष्य-स्थल का निर्देश प्राय: एक बार दिया है। ० रूट (1) अंकित शब्द धातुएं हैं। उनके रूप भी दिए गए हैं। ० शब्द के बाद साक्ष्यस्थल ... पण्णवणा... पहला प्रमाण पद का, दूसरा सूत्र का और तीसरा श्लोक का परिचायक है। जंबुद्दीवपण्णत्ती-- पहला प्रमाण वक्खार का, दूसरा सूत्र का, तीसरा श्लोक का परिचायक चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती ..पहला प्रमाण पाहुड का, दूसरा सूत्र का, तीसरा श्लोक का परिचायक है। उवंग अंक १ निरयावलियाओ, अंक २ कप्पडिसियाओ, अंक ३ पुष्म्यिाओ, अंक ४ पुष्फचूलियाओ, अंक ५ वण्हिदसाओ का परिचायक है। दूसरा सूत्र का प्रमाण, तीसरा श्लोक का है। अध्ययन (पद, वक्खार) आदि के परिवर्तन का संकेत (B) सेमिकोलन है। जहां एक सूत्र में अनेक श्लोक आ गए हैं वहां आगे के सूत्र की संख्या से पहले अध्ययन की संख्या भी दी गई है। जैसे उप्पल (उत्पल) पा० ११४६, ११४८१४४, ११६२ । शब्द पहले सूत्र में आया फिर उसी सूत्र के श्लोकों में आया तो उसके दोनों प्रमाण दिए हैं, जैसे --अइकाय (अतिकाय) प० २।४५, २०४५।२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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